कर्ज मुक्ति का अनुभूत मन्त्र प्रयोग

11
कजज मुिि का ऄनुभूत मर योग यᳰद अप कजज से परेशान हं और अᳶथक संकट से गुजर रहे हं तथा िजनसे सहयोग कᳱ अशा थी वे भी अनाकानी कर रहे हं तो यहां ऄंᳰकत मर को िवणु जी के िचरा के सम भोजपर या सफेद कागज पर लाल रंग कᳱ याही से नीचे िलखे मर को 21 बार पकर िलख लं और ईसे ताबीज मं भरकर गले मं धारण करंगे तो कजज मुिि के साथ- साथ अपकᳱ अᳶथक मनोकामनाएं पूणज होने लगंगी। यह योग ऄनुभूत है , आसे योग मं लाकर अप भी लाभ ईठाएं एवं पᳯरिचत को भी लाभ ᳰदलाएं। मर आस कार है - उँ भूᳯरदा भूᳯर देिहनो , मादं भूयाज भर। भूᳯर घेᳰदर ᳰदसिस। उँ भूᳯर दािस ुतः पुरजा शूर वृराहन् । अ नो भजव राधिस॥ कजज मुिि के ईपाय कजलेने कᳱ अदत िि को परमुखापेी बना देती है। ऄगर अप भी कजज के बोझ तले दबे हं , तो ᳲचितत न ह। शाᳫ मं आसके ईपाय कᳱ ाया दी हइ है। - मंगलवार को िलया गया कजज थाइ हो जाता है आसिलए न तो आस ᳰदन कजज लं और न ही कज के िलए बंक अᳰद मअवेदन करं। - बुधवार को ᳰदए गए कजज का पैसा कᳯठनाइ से वापस होता है। बुधवार के ᳰदन न कजाज लं और न कज दं। - मंगल कᳱ दशा-ऄंतदजशा-यंतर दशा मं ऊण न लं। - घर का नैऊय कोण (दिण-पििम) उंचा रख, तथा इशान कोण (पूवज -ईर) नीचा रखं। - रिववार के योग मं हत नर या ऄमृतिसिि योग अने पर कजज न लं। - ऄथवजवेद के छठवं कांड के 117, 118, 119 आन तीन सूि का िनयिमत पाठ करने या करवाने से ऊण मुिि होती है। - "मंगलो भूिमपुरि ऊणहताज धनद। िथरासनो महाकाय: सवजकामिवरोधक:।।" - आस मंर कᳱ िनय एक माला ात: जपने से ऊण मुिि होती है। यह जप दीपक कᳱ साी मं होना चािहए। - ऄशोक का वृ तथा नर-मादा केले का वृ ऊण मुिि देते हं। ऄत: आहं लगाकर आनकᳱ िनयिमत देखभाल करनी चािहए। - ऊणमोचक मंगल तोर तथा ऊणहा ü गणेश तोर का भी िविध िवधान पूवजक ᳰकया गया पाठ ऊण मुिि कारक होता है। - जब अप कजज ईतारने मं सम हो जाएं तब कजज कᳱ थम ᳰकत शुल प के मंगलवार को देना ठीक रहता है। - रिववार को हत नर या ऄमृतिसिि योग घᳯटत होने पर कजज चुकाना ऄितशुभ होता है। ऊण मुिि के ईपाय

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Page 1: कर्ज मुक्ति का अनुभूत मन्त्र प्रयोग

कजज मुिि का ऄनुभूत मन्त्र प्रयोग

यह्लद अप कजज से परेशान ह ंऔर अर्थथक संकट से गुजर रह ेह ंतथा िजनसे सहयोग कह्ळ अशा थी वे भी अनाकानी कर रह ेह ंतो

यहां ऄंह्लकत मन्त्र को िवष्णु जी के िचरा के समक्ष भोजपर या सफेद कागज पर लाल रंग कह्ळ स्याही से नीचे िलखे मन्त्र को 21 बार पढ़कर िलख लं और

ईसे ताबीज मं भरकर गले मं धारण करंगे तो कजज मुिि के साथ- साथ अपकह्ळ अर्थथक मनोकामनाएं पूणज होने लगंगी। यह प्रयोग ऄनुभूत है, आसे प्रयोग मं

लाकर अप भी लाभ ईठाएं एवं पह्ऱरिचतं को भी लाभ ह्लदलाएं। मन्त्र आस प्रकार है-

उँ भूह्ऱरदा भूह्ऱर देिहनो, मादभ्रं भूयाज भर। भूह्ऱर घेह्लदन्त्र ह्लदत्सिस।

उँ भूह्ऱर दाह्यिस श्रुतः पुरुजा शूर वृराहन् । अ नो भजस्व राधिस॥

कजज मुिि के ईपाय

कजज लेने कह्ळ अदत व्यिि को परमुखापेक्षी बना दतेी ह।ै ऄगर अप भी कजज के बोझ तले दबे हं , तो ह्ऴचितत न हं। शास्त्रों मं आसके ईपायं कह्ळ व्याख्या दी

हुइ ह।ै

- मंगलवार को िलया गया कजज स्थाइ हो जाता ह ैआसिलए न तो आस ह्लदन कजज लं और न ही कजज के िलए बंक अह्लद मं अवेदन करं।

- बुधवार को ह्लदए गए कजज का पैसा कह्ऱठनाइ से वापस होता ह।ै बुधवार के ह्लदन न कजाज लं और न कजज द।ं

- मंगल कह्ळ दशा-ऄंतदजशा-प्रत्यंतर दशा मं ऊण न लं।

- घर का नैऊत्य कोण (दिक्षण-पििम) उंचा रखं, तथा इशान कोण (पूवज-ईत्तर) नीचा रखं।

- रिववार के योग मं हस्त नक्षर या ऄमृतिसिि योग अने पर कजज न लं।

- ऄथवजवेद के छठवं कांड के 117, 118, 119 आन तीन सूिं का िनयिमत पाठ करने या करवाने से ऊण मुिि होती ह।ै

- "मंगलो भूिमपुरि ऊणहताज धनप्रद।

िस्थरासनो महाकाय: सवजकामिवरोधक:।।"

- आस मंर कह्ळ िनत्य एक माला प्रात: जपने से ऊण मुिि होती ह।ै यह जप दीपक कह्ळ साक्षी मं होना चािहए।

- ऄशोक का वृक्ष तथा नर-मादा केले का वृक्ष ऊण मुिि दतेे ह।ं ऄत: आन्त्ह ंलगाकर आनकह्ळ िनयिमत दखेभाल करनी चािहए।

- ऊणमोचक मंगल स्तोर तथा ऊणहत्ताü गणेश स्तोर का भी िविध िवधान पूवजक ह्लकया गया पाठ ऊण मुिि कारक होता ह।ै

- जब अप कजज ईतारने मं सक्षम हो जाएं तब कजज कह्ळ प्रथम ह्लकश्त शुक्ल पक्ष के मंगलवार को दनेा ठीक रहता ह।ै

- रिववार को हस्त नक्षर या ऄमृतिसिि योग घह्ऱटत होने पर कजज चुकाना ऄितशुभ होता ह।ै

ऊण मुिि के ईपाय

Page 2: कर्ज मुक्ति का अनुभूत मन्त्र प्रयोग

1॰ चर लग्न मेष, ककज , तुला व मकर मं कजज लेने पर शीघ्र ईतर जाता ह।ै लेह्लकन , चर लग्न मं कजाज द ंनहं। चर लग्न मं पांचवं व नवं स्थान मं शुभ ग्रह व

अठवं स्थान मं कोइ भी ग्रह नहं हो, वरना ऊण पर ऊण चढ़ता चला जाएगा।

2॰ ह्लकसी भी महीने कह्ळ कृष्णपक्ष कह्ळ 1 ितिथ, शुक्लपक्ष कह्ळ 2, 3, 4, 6, 7, 8, 10, 11, 12, 13 पूर्थणमा व मंगलवार के ह्लदन ईधार द ंऔर बुधवार को

कजज लं।

3॰ हस्त नक्षर रिववार कह्ळ संक्रांित के वृिि योग मं कजाज ईतारने से मुिि िमलती ह।ै

4॰ कजज मुिि के िलए ऊणमोचन मंगल स्तोर का पाठ करं एवं िलए हुए कजज कह्ळ प्रथम ह्लकश्त मंगलवार से दनेा शुरू करं। आससे कजज शीघ्र ईतर जाता ह।ै

5॰ कजज लेने जाते समय घर से िनकलते वि जो स्वर चल रहा हो , ईस समय वही पांव बाहर िनकालं तो कायज िसिि होती है, परंतु कजज दतेे समय सूयज

स्वर को शुभकारी माना ह।ै

6॰ लाल मसूर कह्ळ दाल का दान द।ं

7॰ वास्तु ऄनुसार इशान कोण को स्वच्छ व साफ रखं।

8॰ वास्तुदोष नाशक हरे रंग के गणपित मुख्य द्वार पर अगे-पीछे लगाएं।

9॰ हनुमानजी के चरणं मं मंगलवार व शिनवार के ह्लदन तेल-ह्ऴसदरू चढ़ाएं और माथे पर ह्ऴसदरू का ितलक लगाएं। हनुमान चालीसा या बजरंगबाण का

पाठ करं।

10॰ ऊणहताज गणेश स्तोर का शुक्लपक्ष के बुधवार से िनत्य पाठ करं।

11॰ बुधवार को सवा पाव मूंग ईबालकर घी-

शक्कर िमलाकर गाय को िखलाने से शीघ्र कजज से

मुिि िमलती ह ै

12॰ सरसं का तेल िमट्टी के दीये मं भरकर, ह्लफर

िमट्टी के दीये का ढक्कन लगाकर ह्लकसी नदी या

तालाब के ह्लकनारे शिनवार के ह्लदन सूयाजस्त के

समय जमीन मं गाड़ दनेे से कजज मुि हो सकते

ह।ं

13॰ िसि-कंुिजका-स्तोर का िनत्य एकादश पाठ करं।

14॰ घर कह्ळ चौखट पर ऄिभमंिरत काले घोडे़ कह्ळ नाल शिनवार के ह्लदन लगाएं।

15॰ श्मशान के कुएं का जल लाकर ह्लकसी पीपल के वृक्ष पर चढ़ाना चािहए। यह कायज िनयिमत रुप से ७ शिनवार को ह्लकया जाना चािहए।

16॰ ५ गुलाब के फूल, १ चाँदी का पत्ता, थोडे से चावल, गुड़ लं। ह्लकसी सफेद कपडे़ मं २१ बार गायरी मन्त्र का जप करते हुए बांध कर जल मं प्रवािहत

कर द।ं ऐसा ७ सोमवार को करं।

17॰ ताम्रपर पर कजजनाशक मंगल यंर (भौम यंर) ऄिभमंिरत करके पूजा करं या सवा चार रत्ती का मूंगायुि कजज मुिि मंगल यंर ऄिभमंिरत करके गले

मं धारण करं।

18॰ सवज-िसिि-बीसा-यंर धारण करने से सफलता िमलती ह।ै

19॰ कुश कह्ळ जड़, िबल्व का पञ्चांग (पर, फल, बीज, लकड़ी और जड़) तथा िसन्त्दरू- आन सबका चूणज बनाकर चन्त्दन कह्ळ पीह्ऱठका पर नीचे िलखे मन्त्र को

िलखे। तदन्त्तर पिञ्चपचार से पूजन करके गो-घृत के द्वारा ४४ ह्लदह्ऴन तक प्रितह्लदन ७ बार हवन करे। मन्त्र कह्ळ जप संख्या कम-से-कम १०,००० है, जो ४४

ह्लदनं मं पूरी होनी चािहये। ४३ ह्लदनं तक प्रितह्लदन २२८ मन्त्रं का जाप हो और ४४ वं ह्लदन १९६ मन्त्रं का। तदन्त्तर १००० मन्त्र का जप दशांश के रुप

मं करना अवश्यक ह।ै मन्त्र आस प्रकार ह-ै

“ॎ अं ह्रीं क्रं श्रं िश्रयै नमः ममालक्ष्ममं नाशय नाशय मामृणोत्तीणं कुरु कुरु सम्पदं वधजय वधजय स्वाहा।”

20॰ ऊण मुिि के िलये िनम्न मंरं मं से ह्लकसी एक का जाप िनत्य प्रित करं-

(क) “ॎ गणेश! ऊण िछिन्त्ध वरेण्यं हुं नमः फट्।”

(ख) “ॎ मंगलमूतजये नमः।”

(ग) “ॎ गं ऊणहताजयै नमः।”

(घ) “ॎ ऄरेरात्मप्रदानेन यो मुिो भगवान् ऊणात् दत्तारेयं तमीशानं नमािम ऊणमुिये।”

21॰ मंगलवार को िशव मंह्लदर मं जाकर िशवह्ऴलग पर मसूर कह्ळ दाल “ॎ ऊण-मुिेश्वर महादेवाय नमः” मंर बोलते हुए चढ़ाएं।

Page 3: कर्ज मुक्ति का अनुभूत मन्त्र प्रयोग

22॰ भगवान िवष्णु कह्ळ प्रितमा या िचर के सम्मुख ७ बार, २१ बार या ऄिधक-से-ऄिधक ऊग्वेद के आस प्रिसि मन्त्र का जप करं-

“ॎ भूह्ऱरदा भूह्ऱर देिहनो, मादभ्रं भूयाज भर।

भूह्ऱर धेह्लदन्त्र ह्लदत्सिस।

ॎ भूह्ऱर दाह्यिस श्रुतः पुरुजा शूर वृरहन्।

अ नो भजस्व राधिस।

(ह ेलक्ष्ममीपत!े अप दानी हं, साधारण दानदाता ही नहं बहुत बडे़ दानी ह।ं अप्तजनं से सुना ह ैह्लक संसारभर से िनराश होकर जो याचक अपसे प्राथजना

करता ह ैईसकह्ळ पुकार सुनकर ईसे अप अर्थथक कष्टों से मुि कर दतेे हं-ईसकह्ळ झोली भर दतेे ह।ं ह ेभगवान्! मुझे आस ऄथज संकट से मुि कर दो।)

23॰ नीचे प्रदर्थशत यन्त्र को ह्लकसी मंगलवार के ह्लदन शुभमुहूतज मं, भोजपर के उपर, ऄनार कह्ळ कलम से ऄष्टोगंध के द्वारा िलखं। आसे प्रितिित कर िनम्न मन्त्र

कह्ळ एक माला जप करं-“ॎ नमः भौमाय” ह्लफर यन्त्र को ताबीज मं भरकर धारण करं।

24॰ “गजेन्त्र-मोक्ष-स्तोर” का िनत्य एक पाठ करना चािहए। आसे ऄिधक प्रभावशाली बनाने के िलये यह्लद गजेन्त्र-मोक्ष-स्तोर के ईपरान्त्त “नारायण-कवच”

का पाठ ह्लकया जाये तो ऄिधक श्रेयष्कर होगा।

25. ऊण-पह्ऱरहारक प्रदोष-व्रत

शंकर ‘प्रदोष व्रत’ के ह्लदन ऄथाजत् कृष्ण-पक्ष एवं शुक्ल-पक्ष कह्ळ रयोदशी (तेरस) ितिथ को प्रातःकाल स्नानाह्लद कर भगवान्

का यथा-शिि पञ्चोपचार या षोडशोपचार से पूजन करं। ह्लफर िनम्निलिखत ‘िविनयोग’ अह्लद कर िनर्ददष्टो मन्त्र का

यथाशिि २१, ११, १ माला या केवल ११ बार जप करे।

िविनयोगः- ॎ ऄस्य ऄनृणा-मन्त्रस्य श्रीऊण-मुिेश्वरः ऊिषः। िरषु्टोप् छन्त्दः। रुरो दवेता। मम ऊण-पह्ऱरहाराथे जपे

िविनयोगः।

ऊष्याह्लद-न्त्यासः- श्रीऊण-मुिेश्वरः ऊषये नमः िशरिस। िरषु्टोप् छन्त्दसे नमः मुखे। रुर-दवेतायै नमः हृह्लद। मम ऊण-

पह्ऱरहाराथे जपे िविनयोगाय नमः सवांगे।

कर-न्त्यासः- ॎ ऄनृणा ऄिस्मन् ऄंगुिाभ्यां नमः। ऄनृणाः परिस्मन् तजजनीभ्यां नमः। तृतीये लोके ऄनृणा स्याम मध्यमाभ्यां नमः। ये दवे-याना ऄनािमकाभ्यां

नमः। ईत िपतृ-याणा किनििकाभ्यां नमः। सवाजण्यथो ऄनृणाऽऽक्षीयेम करतल-कर-पृिाभ्यां नमः।

ऄङग-न्त्यासः- ॎ ऄनृणा ऄिस्मन् हृदयाय नमः। ऄनृणाः परिस्मन् िशरसे स्वाहा। तृतीये लोके ऄनृणा स्याम िशखायै वषट्। ये दवे-याना कवचाय हुम्। ईत

िपतृ-याणा नेर-रयाय वौषट्। सवाजण्यथो ऄनृणाऽऽक्षीयेम ऄस्त्रोाय फट्।

ध्यानः-

ध्याये िनत्यं महशें रजत-िगह्ऱर-िनभं चारु-चन्त्रावतंसम्,

रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परश-ुमृग-वराभीित-हस्तं प्रसन्नम्।

पद्मासीनं समन्त्तात् स्तुतममर-गणैव्याजघ्र-कृह्ऴत्त वसानम्,

िवश्वाद्यं िवश्व-बीजं िनिखल-भय-हरं पञ्च-वक्रं िरनेरम्।।

ऄथाजत् भगवान् रुर पञ्च-मुख और िरनेर ह।ं चाँदी के पवजत के समान ईनकह्ळ ईज्ज्वल कािन्त्त ह।ै सुन्त्दर चन्त्रमा ईनके मस्तक पर शोभायमान ह।ै रत्न-जह्ऱटत

अभूषणं से ईनका शरीर प्रकाशमान ह।ै ऄपने चार हाथओं मं परशु, मृग, वर और ऄभय मुराएँ धारण ह्लकए ह।ं मुख पर प्रसन्नता ह।ै पद्मासन पर

िवराजमान ह।ं चारं ओर से दवे-गण ईनकह्ळ वन्त्दना कर रह ेह।ं बाघ कह्ळ खाल वे पहने ह।ं िवश्व के अह्लद, जगत् के मूल-स्वरुप और समस्त प्रकार के भय-

नाशक-ऐसे महशे्वर का मं िनत्य ध्यान करता हू।ँ

ईि प्रकार ध्यान कर भगवान् रुर का पुनः पञ्चोपचारं से या मानस ईपचारं से पूजन कर हाथ जोड़कर िनम्न प्राथजना करे-

ऄनन्त्त-लक्ष्ममीमजम सिन्नधौ सदा िस्थरा भवित्वत्यिस-

वधजनेन नानाऽऽदतृः शरु-िनवारकोऽह ंभवािम शम्भौ !

ऄथाजत् ह ेशम्भो ! कभी समाप्त न होनेवाली लक्ष्ममी मेरे पास सदा-िस्थर होकर रह ेऔर मं काम-क्रोधाह्लद सब प्रकार के शरुओं को दरू करने मं समथज बनूँ।

मन्त्र-जाप- “ॎ ऄनृणा ऄिस्मन,् ऄनृणाः परिस्मन्, तृतीये लोके ऄनृणा स्याम। ये दवे-याना ईत िपतृ-याणा, सवाजण्यथो ऄनृणाऽऽक्षीयेम।”

रुराक्ष या रि-चन्त्दन कह्ळ माला से प्रातःकाल यथा शिि पूवज िनदशेानुसार जप करं। यह्लद समथज हो, तो ह्लकन्त्हं वेदपाठी ब्राह्मण द्वारा ‘षडंग-शत-रुरीय’ मं

ईि मन्त्र का ‘सम्पुट’ लगाकर भगवान शंकर का ऄिभषेक करे और सम्पुह्ऱटत ११ पाठ कराए। अवश्यकतानुसार ‘िशव-मिहम्न-स्तोर’ मं भी ईि मन्त्र का

‘सम्पुट’ लग सकता ह।ै ऄिभषेक के बाद पुनः पूजन एवं मन्त्र-जप कर, िनम्न स्तोर का पाठ करे-

जय दवे जगन्नाथ, जय शंकर शाश्वत। जय सवज-सुराध्यक्ष, जय सुरार्थचत ! ।।

Page 4: कर्ज मुक्ति का अनुभूत मन्त्र प्रयोग

जय सवज-गुणानन्त्त, जय सवज-वर-प्रद ! जय सवज-िनराधार, जय िवश्वम्भराव्यय ! ।।

जय िवश्वैक-िवद्येश, जय नागेन्त्र-भूषण ! जय गौरी-पते शम्भो, जय चन्त्राधज-शेखर ! ।।

जय कोट्यकज -संकाश, जयानन्त्त-गुणाकर ! जय रुर-िवरुपाक्ष, जय िनत्य-िनरञ्जन ! ।।

जय नाथ कृपा-िसन्त्धो, जय भिार्थत्त-भञ्जन ! जय दसु्तर-संसार-सागरोत्तारण-प्रभो ! ।।

प्रसीद मे महा-भाग, संसारात्तजस्य िखद्यतः। सवज-पाप-क्षयं कृत्वा, रक्ष मां परमेश्वर ! ।।

मम दाह्ऱररय-मग्नस्य, महा-पाप-हतीजसः। महा-शोक-िवनष्टोस्य, महा-रोगातुरस्य च।।

महा-ऊण-परीत्तस्य, दध्यमानस्य कमजिभः। गदःै प्रपीड्यमानस्य, प्रसीद मम शंकर ! ।।

(स्क॰ पु॰ ब्रा॰ ब्रह्मो॰ ७।५९-६६)

फल-श्रुितः

दाह्ऱररयः प्राथजयेदवें, पूजान्त्ते िगह्ऱरजा-पितम्। ऄथाजढ्यो वािप राजा वा, प्राथजयेद ्दवेमीश्वरम्।।

दीघजमायुः सदाऽऽरोग्यं, कोष-वृििबजलोन्नितः। ममास्तु िनत्यमानन्त्दः, प्रसादात् तव शंकर ! ।।

शरवः संक्षयं यान्त्तु, प्रसीदन्त्तु मम गुहाः। नश्यन्त्तु दस्यवः राष्ट्रे, जनाः सन्त्तुं िनरापदाः।।

दरु्थभक्षमह्ऱर-सन्त्तापाः, शमं यान्त्तु मही-तले। सवज-शस्य समृििना,ं भूयात् सुख-मया ह्लदशः।।

ईि स्तोर के २१ पाठ करने के बाद नीराजन करे। स्तोर के प्रित-पाठ के बाद एक िबल्व-पर गन्त्ध-पुष्प से युि कर भगवान् िशव को ऄर्थपत करे। सांयकाल

पुनः भगवान् िशव का पञ्चोपचार-पूजन कर मूल-मन्त्र (ऄनृणा॰॰॰) का एक माला-जप और ११ बार स्तोर का पाठ करे। आसके बाद अम के पत्ते को िर-मधु

(दधू+ घी + शहद) मं डुबोकर ऄिग्न मं हवन करे। हवन िविध आस प्रकार है-

सायं सन्त्ध्या करने के बाद प्राणायाम कर ितिथ अह्लद का ईल्लेख करते हुए संकल्प करे-

‘मम ऊण-पह्ऱरहाराथं रयोदश्यिधपित-श्रीरुर-प्रीत्यथे प्रदोष-व्रतांग-भूतं अम्र-पर-होमं कह्ऱरष्ये।’

तदन्त्तर ऄिग्न-स्थापन-पूवजक प्रज्विलत ऄिग्न मं हवन करे। पहले िविनयोग पढे़-

ॎ ऄस्य ऊण-मोचन-मन्त्रस्य कश्यप ऊिषः। िवराट् छन्त्दः। रयोदश्यिधपितः रुरो दवेता। मम ऊण-पह्ऱरहाराथे अम्र-पर-होमे िविनयोगः।

ऄब िनम्न मन्त्र द्वारा ११ बार अहुितयाँ द।े किलयुग मं चार गुणा ऄिधक का िवधान है, ऄतः ५१ अहुितयाँ पूवोि िविध के ऄनुसार अम्र-परं कह्ळ दनेी

चािहए-

अहुित-मन्त्रः- “ॎ सहस्त्रो ज्वलन् मृत्युं नाशय स्वाहा। रयोदश्यिधपित-रुरायेद ंन मम्।”

हवन के बाद नैऊज त्य-कोण कह्ळ ओर मुख करके पूवोि ‘िविनयोग’ का ईच्चारण कर िनम्न मन्त्र का ११ बार जप करे-

ॎ नमो भगवते ताण्डव-िप्रयाय रयोदश्यिधपित-नील-कण्ठाय स्वाहा।

ह्लफर ‘वायव्य-कोण कह्ळ ओर मुख करके पूवोि ‘िविनयोग’ का ईच्चारण कर िनम्न मन्त्र का ११ बार जप करे-

ॎ नमो भगवते ऊण-मोचन-रुराय ऄस्मद ्ऊणं िवमोचय हु ंफट् स्वाहा।

तदन्त्तर इशान-कोण कह्ळ ओर मुख करके िनम्न ‘िविनयोग’ पढे़-

ॎ ऄस्य श्रीऄंगारक-मन्त्रस्य कश्यप ऊिषः। ऄनुषु्टोप छन्त्दः। भौमो दवेता। मम ऊण-पह्ऱरहाराथे जपे िविनयोगः।

िविनयोग के बाद िनम्न मन्त्र का ११ बार जप करे-

ॎ ऄंगारक, मही-पुर, भगवन्, भि-वत्सल ! नमोऽस्तु ते। ममाशेष-ऊणमाशु िवमोचय।

जप को परमेश्वर के प्रित ऄर्थपत करे। आसके बाद मृित्तका का पूजन करे। यह िमट्टी खेत के स्वच्छ स्थान से पहले ही मँगवा कर रख ले। प हले िमट्टी कह्ळ

प्राथजना करे-

सवेश्वर-स्वरुपेण, त्वद-्रुपां मृित्तकािममाम्।

ह्ऴलगाथज त्वां िप्र-गृह्रािम, प्रसन्न भव शोभने !।।

ह्लफर नमजदा या गंगा-जल िमलाकर ईि िमट्टी का िशव-ह्ऴलग बनाए। ईसका पूजन षोडशोपचार से करे। चने कह्ळ दाल का नैवेद्य दकेर पुष्पाञ्जिल प्रदान करे।

तदनन्त्तर पुनः पूवोि मन्त्र ‘ॎ ऄनृणा॰॰॰’ का ११ माला जप तथा २१ पाठ स्तोर करे। ह्लफर पुनः भगवान् का ईनके नामं द्वारा पूजन करे। यथा-

पूवे भवाय िक्षित-मूतजये नमः, इशान्त्ये शवाजय जल-मूतजये नमः।

ईत्तरे रुरािभ-मूतजये नमः, वायव्ये ईग्राय वायु-मूतजये नमः।

पििमे भीमायाकाश-मूतजये नमः, नैऊत्ये पशु-पतये यजमान मूतजये नमः।

दिक्षणे महा-दवेाय सोम-मूतजये नमः। अगे्नये इशानाय सूयज-मूतजये नमः।।

Page 5: कर्ज मुक्ति का अनुभूत मन्त्र प्रयोग

ऄन्त्त मं अरती कर, िनम्न प्रकार प्राथजना करे-

भवांस्तुत्यमानां एव,ं पशूनां पाश-मोचकः।

तथा व्रतेन सन्त्तुष्टोः, ऊण-िवमोचनं कुरु।।

ऊण-रोग-दाह्ऱररयाह्लद-पाप-क्षुत्-ताप-मृत्यवः।

भय-शोक-मनस्तापाः, नश्यन्त्तु मम सवजदा।।

दसूरे ह्लदन प्रातःकाल िमट्टी के ईि िशव-ह्ऴलग का पञ्चोपचार पूजन कर जल अह्लद मं िवसजजन करे। आस प्रकार १२ प्रदोष-व्रत करे। िनत्य केवल स्तोर-पाठ

और ‘ऄनृणा॰॰” मन्त्र का जप करे।

आस प्रकार ऄनुिान करने से भगवान् िशव कह्ळ कृपा से िनस्सन्त्दहे ‘ऊण’ से छुटकारा िमलता है और लक्ष्ममी कह्ळ प्रािप्त होती ह।ै

Page 6: कर्ज मुक्ति का अनुभूत मन्त्र प्रयोग

लक्ष्ममी का अशीवाजद प्राप्त करने का ईपाय

दीपावली के रात स्नानाह्लद करने के बाद के लक्ष्ममी पूजन कह्ळ तैयारी करं। तैयारी करने के

बाद 11 लघु नाह्ऱरयल लक्ष्ममी के चरणं रखं।

आसके बाद आस मंर का जप करं-

मंर: उँ महालक्ष्मम्य ैच िवद्मह ेिवष्णुपत्नं च धीमिह तन्नौ लक्ष्ममी प्रचोदयात्।

आस मंर कह्ळ 2 माला करं। ह्लफर आन 11 लघु नाह्ऱरयल को ह्लकसी लाल कपड़े मं लपेटकर

ितजोरी मं रखं। ह्लफर दसूरे ह्लदन ह्लकसी तालाब या सरोवर मं िवसर्थजत कर दं। ऐसा करने

पर महालक्ष्ममी भि पर अजीवन कृपा बनाए रखती ह।ं ईस व्यिि घर के हर सदस्य को

कभी धन कह्ळ कमी महसूस नहं होगी।

महालक्ष्ममी मरं: उँ ह्रीं श्रं क्लं महालक्ष्ममी, महासरस्वती ममगृह ेअगच्छ-अगच्छ ह्रीं

नम:।

मंर जप कह्ळ िविध: आस मंर को दीपावली कह्ळ रात को कुमकुम या ऄष्टोगंध से थाली पर

िलखं। महालक्ष्ममी कह्ळ िविधवत पूजा करने के बाद आस मंर के 1800 या यथेष्टो जप करं।

आसके प्रभाव से वषजभर भि को ऄपार धन-दौलत प्राप्त होगी। ध्यान रह ेमंर दीपावली

के दौरान पूणजत: धार्थमक अचरण रखं। मंर के संबंध म ंकोइ शंका मन मं ना लाएं

ऄन्त्यथा मंर िनष्फल हो जाएगा।s

//दीपावली कह्ळ रात लक्ष्ममी पूजन करते समय आन मंरं का जप करते हुए महालक्ष्ममी को

कुमकुम, ऄक्षत और फूल ऄर्थपत करं।

ऄष्टोलक्ष्ममी मंर-

- उँ अद्यलक्ष्मम्यै नम:

- उँ िवद्यालक्ष्मम्यै नम:

- उँ सौभग्यलक्ष्मम्यै नम:

- उँ ऄमृतलक्ष्मम्यै नम:

- उँ कामलक्ष्मम्यै नम:

- उँ सत्यलक्ष्मम्यै नम:

Page 7: कर्ज मुक्ति का अनुभूत मन्त्र प्रयोग

- उँ भोगलक्ष्मम्यै नम:

- उँ योगलक्ष्मम्यै नम:

आन मंरं के िविधवत जप से लक्ष्ममीजी प्रसन्न हंगी और भि को धन अह्लद सभी सुख

प्राप्त हंगे।

कुबेर दवे का मंर: उँ यक्षाय कुबेराय वशै्रवणाय, धन धन्त्यािधपतये धन धान्त्य समृिि मे

देिहत दापय स्वाहा।

यह देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देव का ऄमोघ मंर ह।ै आस मंर का तीन माह तक रोज

108 बार जप करं। जप करते समय ऄपने सामने एक कौड़ी (धनलक्ष्ममी कौड़ी) रखं। तीन

माह के बाद प्रयोग पूरा होने पर आस कौड़ी को ऄपनी ितजोरी या लॉकर मं रख दं। ऐसा

करने पर कुबेर देव कह्ळ कृपा से अपका लॉकर कभी खाली नहं होगा। हमेशा ईसमं धन

भरा रहगेा।दापय स्वाहा।

यह देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देव का ऄमोघ मंर ह।ै आस मंर का तीन माह तक रोज

108 बार जप करं। जप करते समय ऄपने सामने एक कौड़ी (धनलक्ष्ममी कौड़ी) रखं। तीन

माह के बाद प्रयोग पूरा होने पर आस कौड़ी को ऄपनी ितजोरी या लॉकर मं रख दं। ऐसा

करने पर कुबेर देव कह्ळ कृपा से अपका लॉकर कभी खाली नहं होगा। हमेशा ईसमं धन

भरा रहगेा।।

आन मंरं के िविधवत जप से लक्ष्ममीजी प्रसन्न हंगी और भि को धन अह्लद सभी सुख

प्राप्त हं सुखी दाम्पत्य जीवन के िलए प्रयोग:

-केले के पेड़ कह्ळ पूजा करं।

-कन्त्याओं को िमठाइ िखलाएं एवं अर्थशवाद प्राप्त करं।

-पीपल के पेड़ मं जल डालं।

-हल्दी कह्ळ गांठ 8 ह्लदन तक मिन्त्दर मं दान दं।

-साधु को भोजन कराएं एवं पीले वस्त्रो दान दं।

-भगवान िवष्णु-लक्ष्ममी कह्ळ पूजा करं।

-गुड़ और चने कह्ळ दाल का प्रसाद ऄर्थपत करं।

Page 8: कर्ज मुक्ति का अनुभूत मन्त्र प्रयोग

गरीबी दरू करने का लक्ष्ममी मंर:

उँ ऐं ह्रीं श्रं क्लं दह्ऱररय िवनाशके जगत्प्रसूत्यै नम:।।

मंर िसि करने कह्ळ िविध:

आस मंर को िसि करने के िलए दीपावली के ह्लदन ब्रह्म मुहूतज मं ईठं, सभी अवश्यक कायं

से िनवृत्त हो जाएं। ह्लफर घर मं ह्लकसी पिवर स्थान पर महालक्ष्ममी का िचर स्थािपत करं।

िचर के समक्ष घी का दीपक, ऄगरबत्ती अह्लद लगाएं। मां लक्ष्ममी के सामने बैठकर ईि

मंर कह्ळ 11 मालाएं जपं। माला कमलगटे्ट कह्ळ होनी चािहए। मंर जप के समय दीपक

जलता रहना चािहए।

दीपावली के ह्लदन 11 मालाएं जप करने के बाद प्रितह्लदन ऄपने सामथ्र्य के ऄनुसार आस

मंर का जप करं। 12 लाख मंर जप के बाद यह िसि हो जाता ह ैऔर देवी लक्ष्ममी का

अशीवाजद साधक को प्राप्त हो जाता ह।ै आसका शुभ प्रभाव कुछ ह्लदनं मं ह्लदखाइ देने

लगेगा।

ध्यान रह ेआस दौरान ह्लकसी भी प्रकार का ऄधार्थमक कृत्य ना करं। ऄन्त्यथा मंर

लाभदायक नहं होगा। ऄन्त्यथा मंर लाभदायक नहं होगा।

पूजा के िलए दीपक कैसे तैयार करं

देवताओं को घी का दीपक ऄपनी बायं ओर तथा तेल का दीपक दायं ओर लगाना

चािहए।

- देवी-देवताओं को लगाया गया दीपक पूजन कायज के बीच बुझना नहं चािहए। आस बात

का िवशेष ध्यान रखं।

- दीपक हमेशा भगवान के सामने ही लगाएं।

- घी के दीपक के िलए सफेद रुइ कह्ळ बत्ती लगाएं।

- तेल के दीपक के िलए लाल बत्ती का ईपयोग ह्लकया जाना चािहए।

- दीपक कहं से खंिडत या टूटा नहं होना चािहए।

भगवान को फूल चढ़ाने से पहले ध्यान रख.ं..

Page 9: कर्ज मुक्ति का अनुभूत मन्त्र प्रयोग

िशवजी कह्ळ पूजा मं मालती, कंुद, चमेली, केवड़ा के फूल वर्थजत ह्लकए गए ह।ं

- सूयज ईपासना मं ऄगस्त्य के फूलं का ईपयोग नहं करना चािहए।

- सूयज और श्रीगणेश के ऄितह्ऱरि सभी देवी-देवताओं को िबल्व पर चढ़ाएं जा सकते ह।ं

सूयज और श्री गणेश को िबल्व पर न चढ़ाएं।

- प्रात: काल स्नानाह्लद के बाद भी देवताओं पर चढ़ाने के िलए पुष्प तोड़ं या चयन करं।

ऐसा करने पर भगवान प्रसन्न होते ह।ं

- िबना नहाए पूजा के िलए फूल कभी ना तोड़े।

ह्लकस देवता को कौन सा फूल चढ़ाए?ं

श्रीगणेश- अचार भूषण ग्रंथानुसार भगवान श्रीगणेश को तुलसीदल को छोड़कर सभी

प्रकार के फूल चढ़ाए जा सकत ेह।ं

शंकरजी- भगवान शंकर को धतूरे के पुष्प, हरह्ऴसगार, व नागकेसर के सफेद पुष्प, सूख े

कमल गटे्ट, कनेर, कुसुम, अक, कुश अह्लद के पुष्प चढ़ाने का िवधान ह।ै

सूयज नारायण- आनकह्ळ ईपासना कुटज के पुष्पं से कह्ळ जाती ह।ै आसके ऄलावा कनेर,

कमल, चंपा, पलाश, अक, ऄशोक अह्लद के पुष्प भी िप्रय ह।ं भगवती गौरी- शंकर

भगवान को चढऩे वाले पुष्प मां भगवती को भी िप्रय ह।ं आसके ऄलावा बेला, सफेद

कमल, पलाश, चंपा के फूल भी चढ़ाए जा सकते ह।ं

श्रीकृष्ण- ऄपने िप्रय पुष्पं का ईल्लेख महाभारत मं युिधििर से करते हुए श्रीकृष्ण कहते

ह-ं मुझे कुमुद, करवरी, चणक, मालती, नंह्लदक, पलाश व वनमाला के फूल िप्रय ह।ं

लक्ष्ममीजी- आनका सबसे ऄिधक िप्रय पुष्प कमल ह।ै

िवष्णुजी- आन्त्ह ंकमल, मौलिसरी, जूही, कदम्ब, केवड़ा, चमेली, ऄशोक, मालती, वासंती,

चंपा, वैजयंती के पुष्प िवशेष िप्रय ह।ं

ह्लकसी भी देवता के पूजन म ंकेतकह्ळ के पुष्प नहं चढ़ाए जाते।

क्यं नहं चढ़ाते िशव को शंख से जल?

Page 10: कर्ज मुक्ति का अनुभूत मन्त्र प्रयोग

िशव पुराण के ऄनुसार शंखचूड नाम का महापराक्रमी दैत्य हुअ। शंखचूड दैत्यराम दंभ

का पुर था। दैत्यराज दंभ को जब बहुत समय तक कोइ संतान ईत्पन्न नहं हुइ तब ईसने

िवष्णु के िलए घोर तप ह्लकया और तप से प्रसन्न होकर िवष्णु प्रकट हुए। िवष्णु ने वर

मांगने के िलए कहा तब दंभ ने एक महापराक्रमी तीनं लोको के िलए ऄजेय पुर का वर

मांगा और िवष्णु तथास्तु बोलकर ऄंतध्र्यान हो गए। तब दंभ के यहां शंखचूड का जन्त्म

हुअ और ईसने पुष्कर मं ब्रह्मा कह्ळ घोर तपस्या कर ईन्त्ह ंप्रसन्न कर िलया। ब्रह्मा ने वर

मांगने के िलए कहा और शंखचूड ने वर मांगा ह्लक वो देवताओं के िलए ऄजेय हो जाए।

ब्रह्मा ने तथास्तु बोला और ईसे श्रीकृष्णकवच ह्लदया ह्लफर वे ऄंतध्र्यान हो गए। जाते-जाते

ब्रह्मा ने शंखचूड को धमजध्वज कह्ळ कन्त्या तुलसी से िववाह करने कह्ळ अज्ञा दी। ब्रह्मा कह्ळ

अज्ञा पाकर तुलसी और शंखचूड का िववाह हो गया। ब्रह्मा और िवष्णु के वर के मद मं

चूर दैत्यराज शंखचूड ने तीनं लोकं पर स्वािमत्व स्थािपत कर िलया। देवताओं ने रस्त

होकर िवष्णु से मदद मांगी परंतु ईन्त्हंने खुद दंभ को ऐसे पुर का वरदान ह्लदया था ऄत:

ईन्त्हंने िशव से प्राथजना कह्ळ। तब िशव ने देवताओं के दखु दरू करने का िनिय ह्लकया और

वे चल ह्लदए। परंतु श्रीकृष्ण कवच और तुलसी के पाितव्रत धमज कह्ळ वजह से िशवजी भी

ईसका वध करने मं सफल नहं हो पा रह ेथे तब िवष्णु से ब्राह्मण रूप बनाकर दैत्यराज

से ईसका श्रीकृष्ण कवच दान मं ले िलया और शंखचूड का रूप धारण कर तुलसी के

शील का ऄपहरण कर िलया। ऄब िशव ने शंखचूड को ऄपने िरशुल से भस्म कर ह्लदया

और ईसकह्ळ हिियं से शंख का जन्त्म हुअ। चूंह्लक शंखचूड िवष्णु भि था ऄत: लक्ष्ममी-

िवष्णु को शंख का जल ऄित िप्रय ह ैऔर सभी देवताओं को शंख से जल चढ़ाने का

िवधान ह।ै परंतु िशव ने चूंह्लक ईसका वध ह्लकया था ऄत: शंख का जल िशव को िनषेध

बताया गया ह।ै आसी वजह से िशवजी को शंख से जल नहं चढ़ाया जाता ह।ै

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