अमरकथा अमृत

168
1 ीभ अभयकथा ननमोजजत वचनाॊश आधारयत (सॊत तवऻान सायाॊश) * अभयकथा अभ त फोध * (सअथथ तीन बाग सहहत) तवदी सॊत ी होयाभदेव जी भहायाज वन भ सभाधध अवथा भ यचनाकाय तवदशी सॊत ी होयाभदेव उपथ ीदेव जी भहायाज ाभ दफथुवा (भेयठ) वारे ऩयभहॊस याजमोग आभ सॊजम ववहाय गढ यो, भेयठ, (0 0)

Upload: sudeep-rastogi

Post on 22-Jan-2017

289 views

Category:

Spiritual


15 download

TRANSCRIPT

1

श्रीभद् अभयकथा ननमोजजत प्रवचनाॊश आधारयत

(सॊक्षऺप्त तत्वऻान सायाॊश)

* अभयकथा अभतृ फोध * (सअथथ तीनों बाग सहहत)

तत्वदर्शी सॊत श्री होयाभदेव जी भहायाज वन भें सभाधध अवस्था भें

यचनाकाय

तत्वदशी सॊत श्री होयाभदेव उपथ श्रीदेव जी भहायाज

ग्राभ दफथुवा (भेयठ) वारे

ऩयभहॊस याजमोग आश्रभ

सॊजम ववहाय गढ योड़, भेयठ, (उ0 प्र0)

2

द्ववतीम सॊस्कयण जनवयी सन ्2013 ई0

भूल्म – रू 100/-

3

श्रीभद् अभयकथा ननमोजजत प्रवचनाॊश आधारयत

सॊक्षऺप्त तत्वऻान सायाॊश

अभयकथा अभतृ फोध (सअथथ तीनो बाग सहहत)

श्री ऩयभऩूज्म श्री सतगुरुदेव श्री 1008 श्री स्वाभी याभानन्द सत्माथी जी ऩयभहॊस भहायाज याजमोग भजन्दय

(ऩयभहॊस सत्माथी मभशन, यघुफयऩुया नo-2, हदल्री – 31)

के

श्री चयणों भें सभवऩथत दासानदुास

एवॊ

ऩयभ काव्म यचनाकाय

तत्वदशी सॊत श्री होयाभदेव उपथ श्रीदेव प्रजाऩनत

(ग्राभ व ऩोस्ट दफथुवा, तहसीर सयधना जजरा भेयठ वारे)

सॊस्थाऩक – ऩयभहॊस याजमोग आश्रभ

सॊजम ववहाय, गढ योड, भेयठ

भो0 08979553493

भें मह

द्ववतीम सॊकमरत सॊस्कयण ववस्ताय सहहत सम्ऩन्न हुआ।

4

सतगुरु ऩयभहॊस श्री होयाभदेव जी की सॊक्षऺप्त जीवन झाॉकी ।। अवतयण।।

श्री सतगुरुदेव सॊत श्री होयाभदेव प्रजाऩनत का जन्भ वव0 सम्वत ्2003 तदानुसाय सन ्1946 ई0 शुब भास कानतथक कृष्ण ऩऺ की सप्तभी अहोई का त्मौहाय हदन गुरुवाय (फहृस्ऩनतवाय) को प्रात् 3.29 फजे ब्रह्भ भूहतथ भें एक ननधथन प्रजाऩनत ऩरयवाय भें सॊत श्री उभयाव प्रजाऩनत ग्राभ दफथुवा तहसीर सयधना जजरा भेयठ भें हुआ था। भाता जी का नाभ भाथुयी देवी था। आऩसे ऩूवथ आऩकी ऩाॉच फहने थी ऩुत्र के अबाव भें भात वऩता फैचने थे इसके मरमे भात – वऩता ने भाॉ जगदम्फा की कठोय अयाधना की थी। देवी ने श्री ववष्णु की उऩासना कयने को कहा। जफ वऩताश्री श्री ववष्णु की बजतत कयने रगे। तफ श्री ववष्णु की कृऩा हुई कक आऩ के घय शीघ्र ही सचखण्डी सॊत का जन्भ होगा कुछ सभम फाद भात वऩता भें वववाद फन गमा तफ आऩ भात गबथ भें थे। भाता अरग यहने रगी जजसके सात भाह फाद आऩका जन्भ हुआ घय भें खुशी की रहय दौड गमी फैय ववयोध बी सभाप्त हो गमा। ऩयन्तु जन्भ के कुछ हदन फाद आऩ फीभाय यहने रगे। एक हदन आऩकी दशा फहुत चचन्ताजनक हो गई। तत्कार भाता जी ऩास के शहय भेयठ भें ऩैदर इराज के मरमे रे गई। रौटत ेवतत गभी भें ववह्वर ऩैदर भाता ने आऩके भुख से कऩडा उठाकय देखा तो आऩ अचतेन (भतृ) थे भाॉ की चीख ननकर गई भाॉ पूट पूट कय योने रगी नन्श्वास व अचतेावस्था देख भाता ऩागर हो उठी तफ ही अचानक एक छोटी सी रडकी जॊगर भें कहीॊ से आ टऩकी औय फोरी भाता ! महद तुभ भुझ ेखाना दो तो तुम्हाया फच्चा जीववत हो जामेगा। भाता जी ने वामदा ककमा। चरत ेचरत ेफच्चा ऩुन् बफल्कुर ठीक हो गमा। भाॉ जफ कुछ बोजन मरमे खुशी से वहीॊ ऩय आई तो वहाॉ जॊगर भें कन्मा न होकय एक गाम खडी थी जजसे भाता जी ने बोजन खखरामा। सम्बवत् मह कोई दैवव शजततस्वरूऩा चभत्काय हदखा गई हो। भहाऩुरुषों का कथन है कक जफ कोई भहान ववबूनत सॊसाय भें अवतरयत होती है तो देवी देवता बी बेष फदर कय दशथनाथथ आत ेहैं। कुछ हदन फाद आऩ दफुाया गम्बीय रूऩ से फीभाय ऩड गमे। सभस्त उऩचाय असपर यहे ऩैसा ऩास नहीॊ था ऩहरे जैसी अवस्था हो गई भुदाथई (भूछाथ) चहेये ऩय छा गई साॊस गनत फन्द होने से आऩकी भतृ्मु हो गई। तफ घय भें एक कहय सा छा गमा तमोंकक ऩुत्र रूऩ भें आऩ ही भात वऩता की अकेरी सन्तान थी। वऩता जी इतने अधीय हो गमे कक आऩको देखा न गमा औय कुऐॊ भें

5

डूफने चर ऩड।े एक आदभी ने उन्हे अचानक आकय कुऐॊ भें चगयने से योका औय कहा कक तुम्हाया फच्चा ठीक है। भभता भें डूफे हुवे वऩता जी घय आमे औय देखा कक फच्च ेऩय कपन डार हदमा गमा था, सफ यो यहे थे। अनामास ही एक साधु जी आमे औय मबऺा भाॉगी। तथा मबऺा के मरमे हठ कयने रगा भाता ने योत ेयोत ेबीऺा दे दी। साधु ने बीऺा का आटा कपन के ऊऩय डार हदमा औय कपन उठाकय फोरे, फच्चा तमों सफको रूरा यहा है जीववत हो जा ? फच्चा तत्कार योने रगा। सफ भें प्रसन्नता आई ऩयन्तु साधु का कुछ ऩता नहीॊ चरा कहाॉ चरा गमा ? सम्बवत् मह बी कोई देवमोग ही था।

दो0- कबी ककसी बी सॊत का भत कयना अऩभान।

न जाने ककस बेष भें मभर जामें बगवान।।

शर्शऺा एवॊ गहृस्थ जीवन

इसके फाद आऩके वऩताजी आऩको कुछ तीथों के दशथन कयाने ननकरे। एक फाय जफ आऩ चाय वषथ के थे वहाॉ आऩ एक ताराफ भें चगय गमे, फडी भुजश्कर से वऩता ने आऩको ढूॊढ कय ननकारा। आऩके फाद एक फहन औय एक बाई का जन्भ हुआ। वऩता स्वमॊ फीभाय यहत ेतथा वदृ्धा अवस्था भें जैसे तैसे भजदयूी कयके गहृस्थ चरा यहे थे। ऐसे भें आऩकी इच्छा अनुसाय आऩको ववद्मारम भें प्रवेश हदरामा गमा। ऩढने भें आऩ तीव्र फुवद्ध तथा भेधावी छात्र मसद्ध हुवे। वऩता की अवस्था अच्छी न होने के कायण आऩ ज्मादा नहीॊ ऩढ सके कुर दसवीॊ कऺा ऩास की। आऩ अऩना ऩढाई का फकामा सभम वऩता की भदद भें रगात ेभजदयूी कयके ऩढने जात ेयहत ेथे। आऩकी बजन ऩूजन भें कोई रूचच नहीॊ थी। ऩत्थय ऩूजा तो बाती ही नहीॊ थी। वऩताजी ने कई फाय आऩको बजन ध्मान की तयप रगाने का प्रमत्न ककमा ऩयन्तु आऩ शयायती फनत ेगमे। आऩ के वऩता ने आऩकी शादी श्री नत्थूयाभ की सुऩुबत्र जगवती देवी से ग्राभ गेझा (भेयठ) से कय दी। कुछ हदन फाद आऩके वऩता जी ने बववष्मवाणी की कक भैं आज से अटठायहवें हदन ब्रह्भ भूहतथ भें सॊसाय को छोड दूॉगा। भुझ ेबगवत गीता रा दो। एक ऩाठ ननत्म ककमा करूॉ गा। अठायहनें हदन ठीक ऐसा ही हुआ। वऩता जी ने सभाधी अवस्था भें रीन होकय याभ आ गमे जम याभ कहत ेहुवे शयीय त्माग हदमा। आऩको गहृस्थ बाय सम्बारना ऩड गमा फार आमु भें मह एक फडा धतका रगा। आऩ गहृस्थ बाय उठाने रगे, ववद्मारम का त्माग कयना ऩड गमा।

6

थोडा बजन ध्मान श्री दगुाथ जी का कयने रगे तथा भजदयूी कयके गहृस्थ चराने भें आऩ रग गमे। आऩने नायामण कवच धायण ककमा तथा आहद शजतत की कृऩा प्राप्त की। औय आहद शजतत ने सदैव आऩकी बुजाओ भें ननवास कयने का वयदान हदमा। सन ्1965 ई0 कानतथक ऩूखणथभा को आऩ स्वगीम वऩता की गॊग दीऩ यस्भ ऩूयी कयके जफ वाऩस रौट यहे थे तफ गॊगा तीय की येती ऩय अनामास ही एक साधु (अवधूत) रटा धायी छोटा कद फार सपेद (आमु थोडी), ने आऩका हाथ ऩकड मरमा। उसने आऩ से चवन्नी भाॉगी । आऩने कहा भेये ऩास नहीॊ है आऩने उसे कोई ठग मा फहरूवऩमा सभझा था अवधूत फोरा बाई की तयेे ऩास तीन रूऩमे दो चवन्नी हैं भैं केवर एक चवन्नी भाॉगता हूॉ महद नहीॊ देगा तो ऩछतामेगा। आऩको सॊदेह हुआ कक शामद इसने भेये ऩैसे देख मरमे है तमा मह कोई जादगूय है। ऐसी बमबीत जस्थनत भें आऩने जैसे ही चवन्नी देने को हाथ फढामा तबी उसने कहा – चवन्नी अऩनी ही भुट्ठी भें फॊद कय रो कपय आऻा अनुसाय जैसे ही आऩने भुट्ठी खोरी तो चवन्नी बय हथेरी ऩय सपेद ऩानी था। साधु ने उन्हे अभतृ फता कय आऩको ऩीने के मरमे कहा। आऩने डयत ेडयत ेहुवे उसे वऩमा जो अत्मन्त स्वाहदष्ट व भीठा था। कुछ ऩानी आऩकी छाती ऩय भरवामा। तफ आऩने सभझा मह कोई साधू है। उस अवधूत ने कहा बैमा होयाभ इसी मभथ्मा एवॊ ववनाश शीर भुद्रा के मरमे झूठ फोर यहे थे। मह तो मूॉ ही ऩानी हो जाती है भैं जजसे देता हूॉ बॊडाया बय जाता है, औय जफ रेता हूॉ तो सम्ऩदा मूॉही चरी जाती है। इससे इतना भोह न कयो औय कुकभथ त्माग कय सद्कभथ ऩय चरो जो तुम्हे कयना है। कपय अवधूत ने आऩको नाभ दान दीऺा दी औय कहा कक भैं तुम्हे दीऺा देने आमा था सो दे दी है। मह चवन्नी का जर सचखॊड का अभतृ था जो तुभने ऩी मरमा है। बववष्म भें मह यॊग हदखामेगा ग्रन्थ मरखामेगा। अफ तुभ इसी भॊत्र का एक वषथ घय ऩय ही ध्मानाभ्मास कयो। इससे तुझ ेऩूणथ सतगुरु की तयेे घय ऩय ही प्राजप्त होगी। तुभ उनकी चयण शयण भें सतनाभ की कभाई कयना तुम्हाया भोऺ होगा। तयेे शत्रु बी अनेको फनेगें जजसभें तू सत्म के कायण ववजमी होगा। अफ तू गॊगातीय की तयप दस कदभ भॊत्र जऩता जऩता हुआ जा कपय भेये ऩास भुडकय आना। आऩ दस कदभ ऩूणथ कयके जैसे ही वाऩस भुड ेतो देखा कक अवधूत गामफ होने रगा आऩ उसकी तयप दौडकय चयणों भें ऩडने को चगये तो वह अदृश्म हो चुका था। अफ आऩको अवधूत का वैयाग्म हो गमा।

7

कपय घय आकय उसी ववचध अनुसाय ध्मानाभ्मास कयना शुरु कय हदमा। साथ साथ घय का बयण ऩोषण भजदयूी कयना बी जायी यखा आऩने अऩनी छोटी छटी फहन की शादी जैसे तैसे कय दी। छोटे बाई को गोद भें ऩारा तथा ऩुत्रवत प्माय हदमा गहृस्थ भें ऩजत्न का सहमोग बी अनुऩभेम यहा। अफ आऩको सफ याभवीय के नाभ से ऩुकायने रगे।

सतगुरु शभरन एवॊ दीऺा प्राप्प्त

ईश्वय बजतत आऩके रृदम भें जाग चुकी थी। ऻान ऩुष्ऩ खखर चुका था। ईश्वय बजतत भें जर बफन भीन जैसे अवस्था फन गई थी। ऩयन्तु अवधूत के ननदेशानुसाय ऩूणथ गुरु की खोज कयना ही रक्ष्म था। जफ कोई साधु सन्त आऩको कहीॊ मभरता तो आऩ वाताथराऩ कयत ेऩयन्तु सन्तुजष्ट नहीॊ हुई। इसी प्रकाय कई भहीने फीत गमे। एक हदन आऩ भजदयूी ऩय रगे थे कक एक सॊत ग्राभ भें आमे। आऩ उनके ऩास ऩीछे – ऩीछे चर हदमे। उनसे बी आऩने कापी तकथ ववतकथ ककमे अन्त भें आऩने तीन प्रश्न औय ककमे।

1.भै आऩको गुरु धायण कय सकता हूॉ मा नहीॊ ?

2.वह ऩयभतत्व तमा है जजसे जान रेने के फाद कुछ शेष जानने मोग्म नहीॊ यहता?

3.हहयण्मगबथ तमा होता है ?

सुनकय श्री सॊत जी फोरे फेटा सुख गहृस्थी भें है तुम्हायी अबी शादी हुई है सुख बोगो मशष्म फनना आसान नहीॊ है। आऩने कहा कक भुझ ेगुरु मभरन की प्मास रगी है उसे आऩ फुझाने भें सभथथ हो। गुरु बफन जीवन ऐसा है जैसा कक दीऩक के बफना भहर। सॊत जी ने ऩयभतत्व की व्माख्मा की कपय भूर प्रकृनत का प्रसॊग देत ेहुवे कहा कक मे हहयण्मगबथ तुभ जानना चाहत ेहो मा देखना ? भैं हदखा बी सकता हूॉ। इसी वाताथराऩ भें सॊत जी सोने रगे। आऩ उन ऩय दो घॊटे तक ऩॊखा डुरात ेयहे जागने ऩय आऩको ऩॊखा कयत ेहुवे ही ऩामा तफ खुश होकय सॊत जी साॊम के सभम आऩके ही साथ टहरने ननकरे यास्त ेभें ब्रह्भ ऻान चचाथ कयत ेकयत ेफहुत दयू ननकर गमे औय एक फहत ेगूर के ककनाये रूक कय स्नान ककमा आऩने उनको स्नान कयामा तथा वस्त्र धोमे कपय फैठकय आऩका सॊत जी ने हाथ थाभ मरमा। मह श्रावण शुतर एकादशी का हदन था। आऩने कहा गुरुदेव हाथ छोडने के मरमे न ऩकडना। आऩने बी श्री भहायाज का हाथ ऩकड मरमा। ऩूछने ऩय आऩने फतामा कक गुरुदेव महद आऩने भुझ ेछोड हदमा तो भैं आऩका हाथ

8

नहीॊ छोडूॊगा। भुझ ेसॊबारकय ऩकडना भैं अनत दम्बी ऩाऩाचायी अधभ आऩकी शयण आमा हूॉ ववचाय रेना। स्वाभी जी ने वामदा ककमा कक भै तुभसे अनत प्रसन्न हुआ हूॉ। भै तुझ ेवचन देता हूॉ कक तुझ ेहहयण्मगबथ ही नहीॊ ऩूणथ ऩयभहॊस ऩद की प्राजप्त कया दूॉगा तयेा नाभ है होयाभ “जा हो जा याभ ” भेया आशीवाथद ग्रहण कय। इस प्रकाय सोरह वषथ की आमु भें आऩने दीऺा धायण की। तीन हदन आऩके घय ऩय साथ यहकय वे सॊत जी चरे गमे। मे सॊत थे श्री 1008 ब्रह्भदशी श्री स्वाभी याभानन्द सत्माथी जी ऩयभहॊस याजमोग भजन्दय हदल्री – 31 की गद्दी ऩय ववयाजजत। श्री स्वाभी जी की मोग्म मशष्म मभरन की ईच्छा तथा आऩकी ऩूणथ प्राजप्त की इच्छा आज ऩूणथ हुई थी। कपय आऩने अऩने छोटे बाई की शादी की। गहृस्थ बाय बी उठाना अननवामथ था। आऩको ध्मान रीन देखकय आऩकी ऩजत्न बी गुरु – मशष्मा फनकय साथ साथ बजन ध्मान औय भजदयूी कयने रगी।

ध्मानमोग एवॊ प्रकृतत प्रकोऩ

दीऺा प्राजप्त के फाद आऩने दृढ सॊकल्ऩ मरमा (ऩाऊॉ गा मा मभट जाऊॉ गा) के साथ ध्मान सभाचध भें बयसक प्रमत्न ककमा औय श्रीगुरु देव के प्रनत आऩका सभऩथण एक उदाहयण फन गमा। श्रीगुरुदेव की भूनतथ आऩके अन्त्कणथ भें फस चुकी थी। बजन ध्मान भें इतनी रीनता थी कक सायी सायी यात जफ प्रजा सोती थी आऩ एक चादय भें मरऩटे ध्मानमोग भें सभामे यहत ेथे। गुरुदेव को ऩर बय बी नहीॊ बूरत ेथे। इसी ऩरयजस्थनत भें थोडी ही आमु भें आऩके साथ ऐसी घटना घटी कक आऩका रृदम हहर उठा। शामद मह कोई देवी ऩयीऺा थी। आऩ एक अऩने घेय से घय जा यहे थे अचानक आऩके चचयेे बाई की स्त्री ने एक षडमन्त्र आऩको भयवाने के मरमे यचाकय एक उऩरा आऩ ऩय पें का औय उसने शोय भचामा। वहीॊ नछऩे हुवे 20 आदभी जो हचथमायो से तैनात फुरामे गमे थे, सफने एकदभ आऩ ऩय हभरा कय हदमा आऩ ननहत्थे थे राठी ऊऩय फयस यहीॊ थी शोय सुनकय आऩकी भाता जी आमीॊ तो आऩके चाचा ने उस ऩय प्रहाय कयके मसय पोड डारा। आऩ उसे फचाने बागे थे कक शोय सुनकय आऩकी ऩजत्न जगवती जो गबाथवस्था भें थी दौडी आई वह आऩको फचाने रगी कक उस ऩय बी रोहे की छड से चाचा ने तथा कई गुन्डों ने प्रहाय ककमा जजससे वह फेहोश होकय चगय गई। आऩने प्राथथना की हे हरय ! हे शजतत ! भेयी यऺा कयो तबी आऩ वऩटत े – वऩटत े

9

ऩजत्न को कन्धे ऩय राद कय उठाकय घय भें रे गमे। वहाॉ से आऩको फाहय ननकारा औय राठी फयसने रगी तबी आऩने हभरावय की राठी छीन कय घभासान मुद्ध ककमा जजससे शत्रु ऩऺ दीवायें कूद कय बागने रगे। तफ जान फची। कपय आऩने अऩनी ऩजत्न को सम्बारा, भाता को उठामा। अगरे हदन आऩने ऩॊचामत फुराई जजसभे गाॊव के सबी प्रभुख व्मजततमों को फुराकय वाकात को स्ऩष्ट कयने की फात यखी। ऩहरे तो उस स्त्री ने आऩको फदनाभ कयने की फात कही ऩयन्तु वह झूठी मसद्ध हुई। कापी देय ऩॊचामत भें तकथ उठे कपय उस स्त्री व आऩके चाचा व अन्म गुन्डों को ऩॊचामत ने दोषी भानकय ऩाॊच ऩाॊच जूत ेरगाने की सजा दी तथा आऩको ननदोष भाना। आऩ इस षडमन्त्र से फेखफय थे। उस स्त्री ने सोचा था कक पे्रभी मभरन भें याभवीय रूकावट कयेगा इसमरमे उसे भयवा देना चाहहमे। सबा ने उन्हे दजण्डत ककमा तथा आऩसे ऺभा भॊगवाई। आऩने अऩने चाचा से कहा – भुझसे तमा ऺभा भाॊगत ेहो ऩयभेश्वय से ऺभा भाॊगो। आऩने चाचा का बी इराज कयामा ऩयन्तु आश्चमथ मह था कक आऩके शयीय ऩय कहीॊ चोट नहीॊ थी। कुछ हदन फाद उस स्त्री का ऩनत तऩैहदक का फीभाय हुआ औय भय गमा। इसका बी दोष वह आऩ ऩय देती यही कक याभवीय ने इसे कुछ ककमा है। इस तयह इस स्त्री ने आऩ ऩय अनेकों अत्माचाय ककमे ऩयन्तु स्वमॊ ही रजज्जत होती यही। आऩ हरय इच्छा कहकय शान्त फने यहत ेथे। उधय ध्मानमोग भें आऩकी सुनतथ नब भण्डरों ऩय तीव्र रूऩ से चर यही थी ध्मानावस्था उत्तभ गनत ऩय जा यही थी। मशव ववष्णु ऩावथती आहद का साऺात्काय आऩको हुआ तथा आशीवाथद प्राप्त ककमे। ऩयभात्भा अऩने बततो को इतना कष्ट न जाने तमों देत ेहैं ?

एक फाय आऩ भजदयूी कयने एक चगयजाघय भें गमे वहाॉ आऩने ऩॊद्रह हदन काभ ककमा था। एक हदन आऩ प्राथथना बवन की दीवाय की ऩुताई कय यहे थे फहुत ऊॉ च ेऩय एक दीवाय भें फहुत फडी घडी (घन्टा) टॊगी थी जो आऩकी कूॉ ची रगकय नीच ेचगयकय चूय चूय हो गई। तबी सीढी कपसर कय चगयने रगी आऩ बी नीच ेचगय गमे। सपेदी (करी) छरक कय आऩ की आॉखों भें बय गई आॉख भें जख्भ बय गमा। जैसे तैसे आऩने नर ऩय आॉखे धोई, आऩ जैसे तैसे अॊधे हुवे ही अऩने घय ऩाॉच कोस ऩैदर चरकय आमे। ऩयन्तु घॊटे की ऺनत ऩूनतथ भें आऩका हहसाफ योक मरमा गमा था औय आऩकी साईककर बी चगयजे भें फॊद कय दी गई थी। आऩ ऩैसे से तॊग तो थे ही मह औय गयीफी ऩय भाय हो गई। शाभ को आऩ

10

घय आमे उदास हुवे चुऩ सो गमे। ऩजत्न अधीय हो गई, योने रगी कक अॊधा होने से अफ गुजाया कैसे होगा ! औय ववनती कयने रगी कक हे- प्रबु इन्हे ठीक कयदो। आऩ यात बय ईसा भसीह को कोसत ेतथा मशकामत कयत ेयहे। अगरे हदन जफ चगयजाघय की ऩुताई कयके बफना भजदयूी मरमे आऩ चरे तो चगयजाघय जो ऩूणथत् फॊद कय हदमा गमा था का अचानक एक दयवाजा खुरा। जजसभें से एक ऩादयी फाहय आमे उन्होने आऩसे पे्रभ की फात ेकी तथा ठेकेदाय को सभस्त हहसाफ व साइककर रौटा देने को कहा औय आऩकी आॉख ऩय हाथ यखा जजससे योशनी आई औय हदखाई देने रगा। कपय हहसाफ हदरा कय आऩको पे्रभ देत ेदेत ेवह सॊत वाऩस चगयजे भें ही सभा गमा। कपय सफ घय चरे गमे। शामद मह कोई ईशा जी की बेंट होगी। इस प्रकाय चौदह वषथ (दीऺा के हदन से) सायी सायी यात ध्मान सभाचधस्थ यहकय आऩने अऩनी ननजधाभ मात्रा अनेकों कष्ट तथा गहृस्थ ऩारन के साथ साथ तम कयके अरख रोक तक की मात्रा ऩूणथ कय री। 30 – 31 वषथ की आमु भें इतनी सुतथमात्रा की कभाई कयना एक अनुऩभेम कामथ था। इसी फीच आऩके श्री गुरुदेव सत्माथी जी का बन्डाया रगा वहाॉ आऩको श्री भहायाज जी ने अचानक आऩको प्रवचन कयने का आदेश हदमा। जफ आऩ प्रवचन कयने रगे तो सभस्त सॊत भॊडर आश्चमथ चककत यह गमे। कपय श्री भहायाज जी ने आऩको प्रसन्न होकय तथा मोग्म मशष्म जानकय जनकल्माणाथथ नाभ दीऺा देने की आऻा कयके सतगुरु ऩद की ववचध ऩूवथक उऩाचध ऩय सुशोमबत कय हदमा तथा सभस्त गुरु बाईमों के मरमे बी आऩको सम्बारने का आदेश हदमा। गुरुत्व बाय स्वीकाय कयके आऩ जगत जीवों को नाभ दान उऩदेश तथा सतसॊग देने भें सतगुरु सेवक फनकय जुट गमे। अनेकों बततों को आऩने सचखण्ड से जोडने के मरमे ग्रहण ककमा। अनेकों रृदमों भें आऩने सतनाभ का डॊका फजामा औय ऩूणथ ऩद प्राप्त कयामा। फहुत से गुरु बाई बी आऩकी शयण भें अऩनी सतनाभ कभाई भें रग गमे। इसी फीच अनेकों सॊत आऩसे सतसॊग वाताथ कयने आने रगे। ववद्वान बी आऩके उत्तय ऻान ववऻान व रूहानी प्रवचन सुनकय आश्चमथ भें ऩडने रगे। एक हदन आऩको ध्मान मोग भें एक हदव्म ज्मोनत ने आऻा दी कक आऩ अऩनी आॉखों देखा अनुबव भहाकाव्म रूऩ भे मरखो। मह फात सफ सॊत सुनकय आऩसे इस कामथ को ऩूया कयने ऩय फर देने रगे। आऩने उन सॊत मशष्म जनों के साभने जो अखण्ड ऻान प्रगट ककमा उसी को भहाकाव्म रूऩ भें मरखना शुरु कय हदमा।

11

सयस्वती जजव्हा ऩय ववयाजभान हो गई। ऩयसेवा बूखे प्मासों को बोजन देना मबखायी ने जो भाॊगा वह दे देना। एक फाय आऩ ध्मानमोगस्थ ननन्द्रा भें चायऩाई ऩय सो यहे थे ऩास भें यसोई थी जजसकी पशथ चायऩाई जजतनी ऊॉ ची थी अचानक सुफह उठे तो देखा कक एक सऩथ तीन टुकड ेहुवे आऩकी चायऩाई के ऊऩय पन ककमे यसोई भें कटा ऩडा है, उसे चायऩाई ऩय जाने से ऩहरे अचानक आई ककसी नोर ने काट डारा था। शीघ्र ही आऩकी ननवाथण मात्रा अनाभी धाभ ऩयभहॊस ऩद की ऩूणथ हो गई। अगरे वषथ गुरु भॊहदय ऩय सॊत भण्डरी के सभऺ आऩके गुरुदेव ने कहा कक मशष्मों अफ भैं तुम्हाये साभने एक हीया ऩेश कयता हूॉ। आऩको फुरामा गमा। आऩने सचखण्ड का सॊदेश तथा कारदेश से सुनतथ को ननकारने का वह प्रवचन हदमा जजसने सभस्त सॊत सभाज को आश्चमथ चककत कय हदमा।

कुछ हदन फाद आऩ सोमे हुवे थे आऩने स्वऩन भें देखा कक आकाश से एक गोरा आऩके भकान ऩय चगय यहा है जजसे आऩने दयू पें क हदमा वहीॊ जाकय वह पट गमा तुयन्त आऩके साभने एक अनत सुन्दय बत्रशूरधायी वऩताम्फय ऩहने भुकुट फाॉधे एक देवी प्रगट हुई। आऩने उसे देखकय ववनम ऩूवथक ऩूछा कक “तुभ कौन हो ” तमों आई हो ? उसने उत्तय हदमा “भेया नाभ होणी है भेया आना ननष्पर नहीॊ जाता कुछ हदन तुम्हाये ऩास यहूॉगी तुम्हायी ऩयीऺा है। आऩने कहा देवी तुभ जाओ महाॉ तो भेये ईष्टदेव बगवान का ही आगभन बाता है। वह हॊसती हुई अदृश्म हो गई। आऩ चौंक कय उठे कपय नीॊद नहीॊ आई। इसमरमे यात्री भें ही कुछ काव्म यचना शुरु कय दी। इस घटना के कुछ ही हदन फाद प्रकृनत देवी का प्रकोऩ शुरु हो गमा। स्वगीम वऩता के सभम से आऩके घय के नीच ेनीच े(अन्डय ग्राउन्ड) एक नारी फाहय ननकरकय खडन्जे आभ भें चगयती थी जजससे कई फाय आऩका भकान चगय गमा था वऩताजी इसको फॊद कयने भें असपर यहत ेथे तमोंकक इसे फॊद कयना आकाश से ताया तोडकय राने जैसा कहठन था। एक फाय वऩता की इस चचन्ता को देखत ेहुवे आऩने उन्हे वचन हदमा था कक भैं इसे एक हदन फॊद कय दूॉगा। अफ वह सभम आ गमा था। एक तयप ध्मान सभाचध व काव्म यचना गहृस्थ ऩारन तथा ऩयभाथथ सतसॊग आहद तो दसूयी ओय देवव प्रकोऩ। आऩके घय के नीच ेनीच ेअनुचचत जो नारी कभजोयी के कायण ननकारी हुई थी उसका ऩानी जजस खडॊजे ऩय चगयता था वह ऩॊचामत द्वाया ऊॊ चा फनामा जाने से ऩानी भकान भें रूककय खतया ऩैदा हो गमा। आऩका दखु ककसी ने नहीॊ सभझा। वववश होकय आऩने उसे बफस्भाय कय हदमा जजसकी सूचना ऩात ेही

12

ववऩऺ के सौ आदभी आऩ ऩय टूट ऩड।े नारी खुरने का दफाव डारा ऩयन्तु आऩ नहीॊ भाने तो उनभें छ् प्रभुख व्मजतत नामक फनकय न्मामाल्म भें चुऩचाऩ दावा दामय कय आमे उन्होने नारी को खुरवाने का फीडा चाफा। इन छ् व्मजतत कारूयाभ, हुतभमसॊह, हॊसा, झब्फय व सभम के ऩीछे उनके सौ खानदानी व्मजततमों के अरावा ग्राभ के असॊख्म व्मजतत बी थे। आऩ अकेरे थे। आऩ डटकय भुकाफरा कयत ेयहे। इसी फीच ववऩऺ ने एक सबा आऩको ऩीटने की तम कयके फुराई। आऩने जगदम्फा का स्भयण ककमा जो प्रकट हुई औय आऩकी यऺा कयने का वामदा व ववजमी बव का वयदान देकय चरी गई। तफ आऩ अकेरे सबा भें गमे ऩयन्तु वहाॉ हभरावय आऩस भें ही रड ऩड।े औय चरे गमे ऩयन्तु ववऩऺ सॊगहठत हुआ आऩको भायने ऩय तुर गमा। कुछ हदन फाद अचानक ऩुमरस आई। आऩको आऩके बाई भहावीय व खानदानी बाई चन्दयाभ व खेभचन्द को साथ ही एक यात जेर जाना ऩडा। वहाॉ चन्दयाभ ने कहा कक अफ तुम्हे (आऩको) अकेरा नहीॊ यहने देंगे चाहे कपय दोफाया जेर ही आना ऩड।े फाहय ननकरकय ववऩऺ से रोहा रूॉगा। आऩने यातबय चन्दयाभ को ऻानाधाय ऩय सभझामा तथा कहा कक अफ हभ जेर नहीॊ आमेंगे अफ ववऩऺी दर जेर आमेगा ववजम हभायी होगी धभथ की ववजम ननजश्चत है तमोंकक ववऩऺ अन्माम से हभाये घयों भें जन फर ऩय गन्दा ऩानी प्रकृनत ववरूद्ध बयना चाहता है। रो भैं तुम्हे ववजमी होने का नतरक कयता हूॉ फस नाभ भात्र को भेये साथ खड ेहो जाओ। चन्दयाभ सॊग भें सहामक फन गमा।

आऩ घय ऩय आमे यात्री भें ववऩऺ खुशी भें सबा कयने रगा आऩको बी फुरवामा गमा जहाॉ आऩको डाॉटा तथा नारी खोरने को वववश ककमा ऩयन्तु आऩने अन्माम के ववरूद्ध रडना ही शे्रष्ठ सभझा। ववऩऺ आऩ ऩय भायऩीट को टूटना चाहता था आऩके शब्द उनका प्रहाय योक देत ेथे। अगरे हदन ववऩऺानुसाय ऩुमरस आऩको चगयफ्ताय कय रे गई वहाॉ जफ आऩको थानेदाय ने सत्म वचन उऩदेशों को सुना तो आऩको छोड हदमा औय आऩका दखु सभझा जजसे धभथऩऺानुसाय आऩकी भदद कयने का वामदा ककमा। गवथ व जनसॊख्मा की अचधकता से आऩको पॊ साने के षडमन्त्र यच ेजाने रगे। आऩके बाई बी घफयाने रगे। आऩने हहम्भत नहीॊ हायी। एक षडमन्त्र बयी सबा भें जो आऩने ववपर कय दी ववऩऺी झब्फय ने आऩको क्रोध भें ररकाय कय कहा कक हभ उल्रू को हॊसनी नहीॊ देंगें अथाथत तुम्हे नारी की खुशी नहीॊ देंगें। आऩने कहा कक जो हॊस होगा वह हॊसनी रे जामेगा। कपय तो सभस्त ववऩऺ आऩ ऩय झऩट ऩडा। आऩ अकेरे

13

अड ेभुकाफरा कयत ेयहे जजससे आऩके ववयोधी खानदानी आऩका साहस देखकय आऩकी सुयऺाथथ आ गमे। आऩने बयी ववऩऺी की सबा भें प्रनतऻा की कक भैंने ब्रह्भऻान गीता की कसभ है जजन हाथों से नारी फॊद की है अफ उन से नारी कबी नहीॊ खोरूॉगा औय ऩानी खडॊजे आभ जजस ऩय तुभ नहीॊ फहने देत ेसे ही ऩानी फहकय जामा कयेगा। भैं ऩानी खडन्जे आभ सेही खोरकय भानूॉगा। जफ कोई अचधकायी जाॉच के मरमे आता तो आऩके चाचा बी ववऩऺ की सीॊख भें छुऩे छुऩे यहत ेऔय आऩके ववरूद्ध ही फोरत ेथे जजसका ववऩऺी दर ने पामदा उठाकय एक षडमन्त्र यचकय आऩको फॊद कयाना चाहा। आऩ स्वमॊ को तथा अऩने बाइमों को फचात ेयहे तथा शत्रुदर की मोजनामें ववपर कयत ेयहे आऩकी चाची का इसी दौयान ववऩऺ ने चार चरकय कत्र कया हदमा। चाचा ववऩऺ के साथ मभरता यहता था उसे ववऩऺ ने आऩके ववरूद्ध थाने भें रयऩोटथ कयने को उकसामा ताकक आऩ पाॉसी चढ जामें ऩयन्तु ! आऩके चचयेे बाई व उसके भाभा ने आऩके चाचा की आॉखे खोर दी जजससे आऩ सुयक्षऺत फच।े साॉच को आॉच नहीॊ होती है। शत्रु ऩऺ ने चायों तयप ऐसी जस्थनत ऩैदा की कक आऩ फुयी तयह पॊ सने रगे। आऩ हय घटना को ईश्वय नाटक मा हरय इच्छा कहत ेथे। शत्रु दर प्रनतहदन सबा फुराकय गुप्त षडमन्त्र यचत ेजजससे आऩके फार फच्च ेऩजत्न सफ ऩयेशान थे। एक हदन आऩ अऩने खेत भें ऩानी बय यहे थे आऩको ज्वय चढ यहा था थोडी देय भें ऩुमरस आई औय आऩको गुप्त रूऩ से उठा कय थाना दौयारा भें हवारात भें फन्द कय हदमा। शत्रु ऩऺ के ककसी दो रयश्तदेायों का अऻात फदभाशों ने कत्र कय हदमा था। जजसकी साजजश भें आऩ को चगयफ्ताय कया हदमा। कत्र भें पॊ सामा जानकय आऩ हवारात भें ही ऩयभेश्वय के ध्मान भें रीन हुवे सो गमे। आऩको ध्मान ननॊद्रा भें अनत सुन्दय शजतत स्वरूऩा भहा तजेऩुॉज ववबूनत जगदम्फा देवी ने ध्मान भें दशथन देत ेहुवे कहा कक ऩुत्र घफयाओ नहीॊ तुम्हायी भदद कयने के मरमे भुझ ेमहाॉ बेजा गमा है, ननदोष की भेये द्वाया यऺा होगी। आऩका ध्मान छूटा। यात्री के 2 फजे थे थोडी देय फाद आऩको ऩुमरस ने फाॉध कय मातनाऐॊ देनी शुरु की। अनेकों मातना देने ऩय बी आऩको कुछ बी भहसूस नहीॊ हुआ। ववद्मुत के झटके रगामे तो ववद्मुत गुर हो गई। खम्फे से केबफर टूट कय चगय गमा। कपय दयोगा जी आऩको हवारात भें फन्द कयके स्वमॊ सो गमे। औय जफ सुफह चौंक कय उठे तो आऩको ननदोष सभझा। ऩुमरस अचधऺक को आऩके बाईमो ने खफय दी जजस ऩय दयोगा जी को डाटा गमा तथा आऩको फाइज्जत रयहा कय हदमा गमा। जैसे ही

14

आऩ घय आमे तो देखा कक सॊकट ऩय सॊकट था फार फच्च ेसफ यो यहे हैं तमोंकक उसी सभम घय ऩय अचानक कजथ से री गई बैंस भय गई थी आऩने हरय इच्छा सभझकय सफको सभझामा। इसी फीच ववऩऺ के प्रबाव से नारी खोरने के आदेश हो गमे आऩकी भदद एक बू0 ऩू0 जजरा जज आगया ने की जो भौके ऩय न्मामाधीश को रामे। भौंके ऩय बीड हो गई थी कई घटना ऐसी घटी जजससे न्मामाधीश ने आऩका कदभ धभथमुतत तथा अन्माम के ववरूद्ध औय दाॊतो फीच जजभ्मा जैसी ऩरयजस्थनत को सभझा था। कपय न्मामाधीश वाऩस चरे गमे। ववऩऺी दर का कहना था कक याभवीय नारी खोरने के नाभ से एक पावडा जभीन नारी खोर दी कह कय भायदे तो हभ मुद्ध फन्द कय देंगें तमोंकक गीता की कसभ जरूय तोडनी है। आऩने इसे स्वीकाय नहीॊ ककमा। इस ऩय ववऩऺ का एक मोद्धा फोरा कक याभवीय तुझ ेहभ भतृ्मुघाट ऩहुॉचाकय दभ रेंगें। हभायी सौ राठी एक साथ उठती है औय हभायी फहुत फडी पौज है। इस प्रकाय शत्रुऩऺ का गवथ आकाश को छूने रगा आऩके ऩजत्न व फच्चों का कहीॊ फाहय ननकरना बी खतयनाक फन गमा। फच्च ेबूख से तडपने रगे।

इस घटना के कुछ हदन फाद खेभचन्द व यॊजजत जोगी दोंनों दचूधमा थे भे गोरी चर गई जजसभें ववऩऺ ने यॊजीत की ओट से आऩको चन्दयाभ व खेभचन्द को पॊ साना चाहा। थाना से ऩुमरस आ गई जजसकी खुशी भें ववऩऺ झूभ यहा था ऩयन्तु आऩने यात बय भें ऐसी रीरा यची कक आऩके बाईमों के फजाम यॊजीत को ही चगयफ्ताय कय मरमा गमा। शत्रु ऩऺ अपसोस भें ऩड गमा। फाद भें आऩने यॊजीत को ननदोष सभझा ऩैयफी की कभी कयके उसे बी न्मामारम से फयी कया हदमा गमा। तथा ननदेश हदमा कक ककसी के कहने भें आकय ऐसी हयकत कपय न कयना। कुछ हदन फाद जो आऩके साथी बाई थे। वे घफयाकय अरग हटने रगे तमोंकक शत्रु ऩऺ ववशार था अऩनी पौज का जोय हदखा यहा था अफ आऩ अकेरे यह गमे। ववऩऺ की भनत ऩय होणी सवाय हुई उन्होने खडॊजों भें ऊॉ च ेऩुस्त ेफाॉध हदमे। फयसात शुरु हो गई। ऩानी भौहल्रे भें बय गमा भकान चगयने रगे आऩकी ऺनत होने रगी। आऩ वववश हुवे ऩयभेश्वय ध्मान कयके जजराचधकायी से मभरे जजससे भौंके ऩय ऩुमरस आई औय ववऩऺ के न भानने ऩय खडन्जे का फाॉध हटाकय ऩानी ननकार हदमा। ववऩऺ सहन न कय सका ऩुमरस से मबड गमा। तीन दयोगा व मसऩाही नघय गमे ककसी तयह फदनमसॊह दयोगा जाने ककस तयह बाग ननकरा जजसकी सूचना ऩय तत्कार 90 (नब्फे) जवान ऩी0 ऐ0 सी0 के घटना

15

स्थर ऩय आमे। ववऩऺ को चगयफ्ताय कय थाने से चारान द्वाया जेर बेजा गमा। अफ ऩुमरस द्वाया उनका गवथ चूय चूय हो गमा आऩके बाई ऩुन् साथ देने रगे। ऩडमन्त्रकारयमों की कई फाय आऩसे भुठबेड हुई ऩयन्तु आऩ ही सपर यहे। उधय न्मामधीश की रयऩोटथ आऩ के ऩऺ भें होने से आऩको ववजमी घोवषत कय हदमा। ऩरयणाभ स्वरूऩ अफ ऩुमरस के गरे भें आऩके सॊकट की भारा ऩड गई थी। आऩको कोई चचन्ता नहीॊ यही। ऩुमरस केस भें सजा का ऩैगाभ हुआ। आऩने ईश्वय से प्राथथना की कक हे प्रबु भैं ककसी को जेर कयाने के मरमे नहीॊ ऩैदा हुआ हूॉ उन्हे रयहा कय दो। कुछ देय फाद ववऩऺ हाया हुआ सा भुचरकों ऩय छूटा घय आमा। ववऩऺ के ऩौरूष ठॊड ेहो गमे जजससे आऩसे उन्होने याजीनाभा पैसरा कय मरमा। इसी फीच कई मशष्मों को आऩने सॊकटों से फचामा तथा काव्म यचना जायी यखी। कुछ हदन फाद झब्फय मसॊह ववऩऺ का नेता जो फहुत सभझदाय था आऩकी शयण भें आकय ध्मान भागथ अऩनाकय सतऩथ ऩय चरने रग गमा उसने मशष्मता को ननबामा। इसी दौयान बफचरा रड़का ववयेन्द्र कुभाय गेंद अरभायी से उतायता हुआ दधू से गम्बीय रूऩ से जर गमा ऩैसा ऩास नहीॊ था। आऩ अस्ऩतार जा यहे थे कक श्री याभ चन्द्र ऩेशकाय आऩके मशष्म जजसने भतृ्मु ननकटतभ फच्च ेको इराज कयाकय फचामा वह ननत्म साथी यहा।

सतसॊग प्रचाय

इसी फीच श्री भहायाज श्री सतगुरु स्वाभी याभानन्द सत्माथी जी का आऩके ऩास सतसॊग प्रचाय का ऩत्र आमा। आऩने इसके मरमे दयू दयू तक सतसॊग प्रचाय ककमा तथा अनेकों रृदमों भें प्रबु बजतत व ऩयभहॊस याजमोग की मशऺा दीऺा बय दी। सतसॊग प्रचाय तो दसूयी तयप गहृस्थ भें दैववक प्रकोऩ बी फढत ेयहे। आऩकी चचयेी बावज जो आऩसे कु्रद्ध थी ने आऩको जार साझी भें बयकय पॊ सवाने के मभथ्मा कई षडमन्त्र यच ेववऩऺ के कुछ व्मजतत उसे बडका कय आऩसे यॊजजश ननकारने की मोजना भें यहत ेथे। उसने कई फाय अऩने घय भें स्वमॊ चोयी के इल्जाभ रगाकय बी पॊ सवामा ऩयन्तु सफ षडमॊत्र ननष्पर हुवे। उसकी एक सहेरी बी उसे बडकाती थी। एक फाय उसने आऩके फीफी फच्चो ऩय हभरा कय हदमा खुद थाने रयऩोटथ कयाने चरी गई उसका ऩनत पौज भें नौकय था ऩयन्तु उसे इतनी कभ फुवद्ध थी कक वह वास्तववकता जानने भें असपर था उसने दयोगा जी को पुसरामा कक वह आऩको थाने राकय भायऩीट कय दे। आऩ एस

16

एस ऩी साहफ से मभरे जजसके कायण मह मोजना बी ववपर हो गई। कुछ हदन फाद ववऩऺ के कुछ फच्चों ने स्कूर से आत ेवतत अऩनी मोजनानुसाय आऩके फड ेरडके भहेश को फाॉध कय गॊग नहय भें फहा हदमा। कुछ देय फाद स्कूर के कुछ औय फच्च ेआ गमे जजन्होने उसे गॊग नहय से फाहय ननकारा। आऩ कहत ेथे कक–

ज्मूॉ ववमबषण रॊका फसे जजभ्मा दन्तन छाभ।

त्मूॉ यहनी होयाभ की हयऩर फेरी याभ।।

एक फाय चन्दयाभ को यॊजजस से पॊ साने के मरमे गाॊव के एक अन्म व्मजतत ने याबत्र भें स्वमॊ गोरी चराकय आऩके व चन्दयाभ के नाभ थाने भें रयऩोटथ कय दी। आऩको थाने फुरवामा गमा दोंनों ऩऺ वहाॉ भौजूद थे दयोगा जी ने आऩसे कहा कक गोरी तमो चराई। आऩने कहा दयोगा जी सभस्त सॊसाय का स्वाभी एक ऩयभेश्वय है उसने अऩने जीवों की सुयऺा के मरमे देवताओॊ को ऺेत्र फाॉटें हैं आऩ बी उसी तयह इस ऺेत्र के उसी ऩयभेश्वय के जीवो की सुयऺा कयके ऩयभेश्वय का ही कामथ कयत ेहैं। मह रयऩोटथ कताथ आऩको ऩयभेश्वय भानकय ऩाॉच कदभ मह कहकय बयदे कक हे ऩयभेश्वय ! गोरी याभवीय ने व चन्दयाभ ने चराई है तो हभे जेर बेज दो। भगय गोरी एक चरी दो व्मजतत गोरी चरामें गोरी एक ही कैसा कभार है। थानेदाय साहफ ने आऩको ननदोष सभझा तथा आऩका ऻान सतसॊग सुनकय प्रसन्न होकय रयहा कय हदमा। उसने बी ऩाॉच कदभ बयने को इन्काय कय हदमा था। इतनी घटना के फाद भैं रेखक आऩकी शयण भें आमा भैंने जो ऻान एवॊ सुनतथ मात्रा कभाई आऩकी शयण यहकय प्राप्त की उसके मरमे भैं कई कई जन्भों तक बी आऩका आबायी हूॉ। आऩ अऩने प्रवचन केवर रूहानी सतसॊग सॊस्कृत बये श्रोंकों से अरॊकृत देत ेथे सुनने वारे भुग्ध हो जात।े दयू दयू से फड ेफड ेअचधकायीगण बी आऩके ऩास ऻान प्राजप्त के मरमे आने रगे फहुत से सन्मासी सॊत बी आऩके ऩास आकय ध्मेम ऩूनतथ के मरमे ठहयत ेथे। आऩने ग्राभ गेझा भें एक सौ एक सतसॊग एक स्थान ऩय कयने की प्रनतऻा री औय एक ऩयभहॊस याजमोग सॊस्था फनाई जजसका अचधक बाय भुझ ऩय सौऩा गमा। भेया ऩूया ऩरयवाय आऩका दीवाना फन गमा था। आऩ होरी जन्भाष्टभी सफ भनात ेतथा ऻान प्रचाय कयत।े एक हदन छ् मशष्मों को जन्भाष्टभी की अधथ यात्री ऩय अभय कथा बी सुनाई जजसको सुनकय भेये रृदम भें केवर आऩ ही आऩ सभा चुके थे। मही हार अन्म मशष्मों का बी था। कुछ रोग गुन्ड ेसतसॊग को चराने नहीॊ देत ेथे सतसॊग

17

भें राठी व ढेरे फयसने की मोजना से आत ेऩयन्तु न जाने तमों कोई कुछ नहीॊ कय ऩामा कई चभत्काय बी हुवे जजसके फाद वे सफ कापी ऩयेशानी खडी कयके, ननयाश होकय वास्तववकता को सभझ ऩामे कपय कोई ववयोधी नही हुआ आऩने 101 सतसॊग ऩूणथ कयके मऻ बन्डाया ककमा। एक फाय भैने ऩूछा कक गुरुदेव आऩने इतनी थोडी सी आमु भें आऩने ऩूणथ अनाभीधाभ तक की मात्रा कयरी तथा मह भाहाकाव्म हहन्दतु्वसागय अभयकथा बी मरख हदमा मह कैसे हुआ ? आऩने उत्तय हदमा कक – मह मोग मात्रा तो भेयी ऩूवथ भें ही ऩूणथ थी। इस जन्भ भें तो केवर दोहयामा गमा है। यही फात इस काव्म की – जफ भैंने अऩनी सुतथमात्रा ऩयभहॊस ऩद अनाभी धाभ तक ऩूणथ कय री तफ एक हदन भैं ध्मानावस्था भें सुषुजप्त भें होता हुआ तुरयमातीत अवस्था भें ऩहुॉचा तो देखा कक चायों हदशाओॊ से झन्ड ेमरमे हुवे अऩने अऩने गुरुओॊ के साथ भॊडमरमाॉ आकास भागथ को जा यहे है भेये ऩूछने ऩय उन्होने फतामा कक अगभ रोक भें एक ववशार भुततात्भाओॊ का दयफाय है हभ सफ वहीॊ ऩय जा यहे हैं। ऩयन्तु बफना गुरु के साथ हुवे वहाॉ कोई जाने का प्रमत्न बी न कये। भैं तुयन्त याजमोग भॊहदय शाहदया अऩने गुरुदेव स्वाभी याभानन्द सत्माथी जी ऩयभहॊस भहायाज के ऩास आमा तथा वतृान्त फताकय गुरुदेव को वहाॉ चरने की ववनती की। भना कयने ऩय आऩने श्री भहायाज जी की इस फात ऩय यजाफन्दी प्राप्त की कक आऩ उन्हे अऩने कॊ धों ऩय अगभरोक रे चरेंगे। स्वाभी जी फीभाय थे। आऩने श्री गुरुदेव को कॊ धे ऩय फैठाकय गगन भॊडर को गभन ककमा हाथ भें अऩने गुरुदेव का झन्डा मरमा। चरते चरते आऩ अगभ दयफाय भें ऩहुॉचे औय वहाॉ श्री सतगुरुदेव को दयफाय की स्टेज की एक कुसी ऩय फैठामा। आऩके दादा गुरुदेव ने आऩको पे्रभ से मभरन ककमा। फड ेफड ेसतगुरुदेव सबी भतों के भुततात्भाओॊ को उऩदेश देने वहाॉ आमे थे। आऩ स्टेज के आगे श्री सत्माथी जी की आऻानुसाय खड ेहो गमे। आऩकी जजधय नजय जाती वहाॉ तक सॊत भॊण्डमरमाॉ फैठी हदखती थी तथा सफके झऩ्ड ेरहया यहे थे। इसी फीच वहाॉ प्रकाश फढने रगा आकाश भें से एक ववशार सूमथ के सभान प्रकाश ऩुॉज स्टेज की तयप उतयने रगा सफकी दृजष्ट उसी ऩय रगी थी। स्टेज ऩय आकय वह श्री सत्माथी जी के हाथ भें शॊख फनकय ठहय गमा। शॊख भें से दचूधमा अभतृ की धाय ननकरी जजसे सत्माथी जी ने आऩको वऩरामा। कपय वह प्रकाश ऩुॉज फनकय आकाश भें जाते जाते ववरीन हो गई। जजसभें से आवाज मह आई कक “होयाभ” जो अभतृ तूने वऩमा है इसे जगत के कल्माण भें रगाना कारदेश के जीवों के कल्माणाथथ इस अभतृ तत्व को काव्म रूऩ भें बय देना काव्म शजतत के मरमे तुझे अभतृ ऩहरे बी मभर चुका है औय अफ बी वऩरामा गमा है। भैने मह काव्म मरखे हैं।

18

इस प्रकाय आऩने अनेकों सन्त मशष्मों को सतरोक अरखरोक तक की चाफी देकय कृताथथ ककमा है। एक फाय जो बी प्रवचन सुनाता वही शास्त्राथथ छोडकय प्रबाववत हुआ। आऩका मशष्म फन जाना सहज फात थी। सतगुरुदेव का ऩूणथ जीवन चरयत्र तथा ववऻान ऩढने के मरमे श्रीदेव जीवन चरयत्र को भॊगाकय अवश्म ऩढे।

जम सजच्चदानन्द

सॊत सुदीऩ यस्तोगी (टीकाकाय)

अभतृवाणी से ऩद यचनाॊर्श

आहद अनन्तॊ भहा ज्मोनत ऩुॉजॊ ननवाथणरूऩॊ सोSहभ ्सोSहभ।्। चचदानन्द रूऩॊ ननत्मॊ फोधॊ सत्मॊ शाश्वत सोSहभ ्सोSहभ।्। कताथ न बोतता फॊधॊ न भोऺॊ कभथ यहहतॊ सोSहभ ्सोSहभ।्। जन्भ न भतृ्मु धभथ न अधभथ अऺम सनातन सोSहभ ्सोSहभ।्। सगुणॊ न ननगुणॊ ऩयात्ऩयोSहभ ्देह यहहतॊ सोSहभ ्सोSहभ।्। ववश्व स्वरूऩॊ यवव शमश धायॊ स्वमॊ प्रकाशॊ सोSहभ ्सोSहभ।्। सुखॊ न दखुॊ न भनचचत्त मुतत मशवोस्वरूऩॊ सोSहभ ्सोSहभ।्। न नाभॊ न रूऩॊ, भुतत सवथदा कार यहहतॊ सोSहभ ्सोSहभ।्। अनन्त ज्मोनत स्तीत्व ऩुॉजॊ अगभ ननत्मॊ सोSहभ ्सोSहभ।्। आत्भस्वरूऩॊ जगदातीतॊ होयाभदेवॊ सोSहभ ्सोSहभ।्।

2 – बजन कब्वारी

उठ अॊखखमाॊ खोरकय देख जया – तयेे सय ऩय भौत ववयाज यही।।टेक।।

भतृ्मु से भची है खराफरी – सॊसाय भें हो यही चराचरी।। कोई आज भया कोई कर भया फस भौत की घन्टी फाज यही।।1।।

खामे ऩथृ्वी आकाश ब्रह्भण्ड बी – भौत का ऩेट न बयता कबी।। याजा यॊक सुय भुनन सफ खामे वो सफके मसय ऩय गाज यही।।2।।

भामा भें तू भौत को बूरा – हवाई ककरे चचनै पूरा पूरा।। न जाने कफ आजा फुरावा वो तो सफको दे आवाज यही।।3।।

फचने का कुछ साधन कयरे – भौत से ऩहरे ऩाय उतयरे।। होयाभ अभयखण्ड फासा कयरे भौत वहाॉ ऩय राज यही।।4।।

19

3 – बजन

गुरुदेव कयो अफ भुझ ऩै दमा – तयेे दय ऩय आश रगामे यही।।टेक0।।

कई जन्भ दान तऩ मऻ यचच – कोई कपय बी न उतया ऩाय कबी।। व्रत उऩवास कय भोऺ न ऩाई राखों जन्भ गॊवाम यही।।1।।

ऩढ – ऩढ ऩोथी न ऩाय मभरा है – वेद ऩुयान भें जीव पॊ सा है।। भजन्दय जा – जा भैं हाय गई फस ध्मान भें सुतथ सभाम यही।।2।।

बकुृहट घाट ऩै आसन कयके – सुयनत दसवें द्वाय चढी।। सुष्भन घाट भें उल्टी चढके सचखॊड ज्मोत जगामे यही।।3।।

कार ने कभथ काण्ड यचादी – सचखॊड भागथ फन्द कयादी।। होयाभ कार का देस त्माग भैं अभय रोक को जाम यही।।4।।

4 – बजन

चर गगन भहर भें देख जया। वहाॉ जगभग ज्मोत सभावत है।।टे0।।

भूर द्वाय से उठा ऩवन को – उल्टी धाया चढा बजन को।। भेरूदॊड की ऩौढी चढ के सुष्भन मशखय ऩद ऩावत है।।1।।

नब गॊगा भें सफ भर छुटै – चायों देह जीव की टूटै। शूरी ऊऩय सेज वऩमा की सुयता कोई सेज बफछावत है।।2।।

स्वगथ नयक सफ देश छौडकै – सचखण्ड खखडकी खोर दौडके।।

अगखणत सूयज दे ऩरयक्रभा रख – रख सुनतथ हयषावत है।।3।।

बफयरा गुरु कोई बेद फतावे – सुनतथ अरख अनाभ चढावै।। होयाभदेव मह दे सन्देषा अऩने ननज देस सभावत है।।4।।

5 – बजन

सुन सखी अचयज की कहूॉ – सॊतो का ऩाय नहहॊ ऩावत है।।टे0।।

यात्री भें वो सूयज देखे – बौय बई कहैं अॊचधमाया।।

20

बफन फादर के बफजरी देखे – बफन दीऩक ज्मोत जगावत है।।1।।

अॊधा होकय जग को देखे – फन्द कान सुनत ेवाणी।। बफना साज आवाज जगावे जीवत भौत सभावत है।।2।।

बफन जजभ्मा के वाणी उऩजै उल्टी धाया अभतृ ऩीवै।। बफना ऩॊख आकाश भें उडत ेकार से बम नहहॊ खावत है।।3।।

वो ननत भयत ेननत जीत ेहैं ब्रह्भाण्ड भें आत ेजात ेहैं।।

होयाभ तो तीनों रोक छोड चौथे के गीत सुनावत हैं।।4।।

6 – बजन

उठ सोSहॊ शब्द ववचाय जया – तयेे स्वाॉसों भें सोहॊ फाज यही।।टे0।।

भारा छोडके बज भनका भनका छोड बजो अजऩा।। बकुृटी भें तीसया नमन खोर जगभग ज्मोत ववयाज यही।।1।।

हॊ से उठकय सो ऩय जाओ हॊ सो उरटके सोहॊ गावो।। इतकीस हजाय छ् सो ननत स्वासा सोहॊ सोहॊ गाज यही।।2।।

सोSहॊ धाय भें अभतृ फयसे बेद बफना जीव सफ तयसे।। तू ककस नीॊद भें सोमा ऩडा वो तो याग छत्तीसों साज यही।।3।।

ऩूये गुरु की शयणी भें चर ऩर – ऩर भें यहा सभम ननकर।। होयाभ कारकी ऩेश नहीॊ जहाॉ सोSहभ ्सोSहभ ्याज यही।।4।।

7 – बजन

हय यात के वऩछरे ऩहय भें अनभोर घडी एक आती है।।

ऩयरोक की दनुनमा रुटती है आनन्द की रहय जगाती है।।टे0।।

जो सोत ेहैं वो खोत ेहैं जो जागत ेहैं वो ऩात ेहैं।।

सचखॊड से चगयती है गॊगा अनभोर यतन फहा राती है।।1।।

जो कार के जीव वो सोत ेहैं गुरुभुखख तो अभतृ न्हात ेहैं।। उस अगभधाय भें उरटी चढ सुनतथ सचखॊड को जाती है।।2।।

कोई हॊस के भये कोई योके भये जीवन उसका कुछ होके भये।।

21

जीत ेजी जो उस ऩहय भये हीयों की खान ऩा जाती है।।3।।

सॊत होयाभ की वाणी मह जो उस ऩहय भें सोत ेहैं।।

वो रोक ऩयरोक सबी खोत ेवो दौरत हाथ न आती है।।4।।

8 – बजन

अगय है भोऺ की ईच्छा तो सतगुरु की शयण भें चर। मभरेगा भोऺ गुरु ऩद भें त्मागके भन के सफ छर फर।।टे0।।

तमा होगा जटा फढाने से मा बस्भी तन यभाने से।। तमा होगा ऩत्थय ऩूजन से मभरेगा कार ही का छर।।1।।

अगय है स्वगथ की ईच्छा तो कय कभथकाॊड तू साये।। भोऺ तो सतगुय के ऩद भें गमे हैं राखों नय ननकर।।2।।

ऋवष कभथकाॊड भें पॊ सकय मत्न कय कयके हाये हैं।।

मभरेगा भोऺऩद कैसे सजग जहाॉ कार है हय ऩर।।3।।

सॊत होयाभ की वाणी गुरु के शब्द को ध्मावें।। ननकर कय कार के दय से अरख की ज्मोत भें जा यर।।4।।

9 – बजन

जया कय खोज ननज तन की जो नश्वय बी कहाता है।।

इसी भें स्रोत अभतृ का कहीॊ से फह के आता है।।टे0।।

मे ऩाॉचों तत्व की यचना हाड औय भाॊस का ऩुतरा।। यतन भखण भाखणक का मसॊधु इसी भें जगभगाता है।।1।।

मे नौ दय कामा भें तुभको झरक जो भोह रात ेहैं।। इसी भे दसभ का द्वाया खजाना सतगुय हदखाता है।।2।।

ऩवन का फीच भें खम्बा बफना दीऩक के उजजमाया।।

जजसे सतगुय का ईशाया वही मह याज ऩाता है।।3।।

अगय है ईच्छा उस घय की चयण छू सतगुय के चरकय।।

होयाभ जफ कृऩा सतगुय की बव फन्धन छूट जाता है।।4।।

22

10 – बजन

घट घट भें याभ यभता है नहहॊ बफन याभ घट खारी।। वो कण कण भें सभामा है अजफ है ज्मोनत ननयारी है।।टे0।।

ऋवष भुनन देव नय ककन्नय आऩ ही फन कय आमा है।।

वही नब वामु जर अजग्न वही पर पूर हरयमारी।।1।। दभकत ेउसकी ज्मोनत से गगन भें राखों यवव ताये। रगता बोग शयभाऊॊ वो कयता जग की प्रनतऩारी।।2।।

जर थर नब भें सबी प्राणी सबी भें उसकी ही ज्मोनत।। वो जो चाहे सोई यचदे कार बी आऻा का ऩारी।।3।।

दास होयाभ उस घय को ऋवष भुनन खोज कय हाये।। मभरा जफ घट भें ही ऩामा मभरन की याह ननयारी।।4।।

11 – बजन

हदखादे ज्मोत वो अऩनी जजसे घट भें नछऩामा है। बफना सतगुरु न कोई बी तुम्हाया ऩाय ऩामा है।।टे0।।

कोई कहे काफे भें फसता कोई कैराश भें कहता।

कोई कहै शेष शैय्मा ऩय कोई फैकुॊ ठ भें यहता।।

कोई कहै ब्रह्भा ही ईश्वय जगत उसने यचामा है।।1।।

कोई जड ऩत्थय भें ढूॊढे कोई ननगुथण ननयॊजन भें।

कोई व्रत मऻ तीथथ भें कोई बस्भी बव बॊजन भें।।

कोई कहै मशव ही ईश्वय सबी मशवजी की भामा है।।2।।

कभथ मऻ दान तऩ जजतने स्वगथ फैकुन्ठ तक जावें।।

बोगकय ऩुन्म पर अऩना ऩुनन भतृरोक भें आवें।।

कबी ऊऩय कबी नीच ेभामा ने जग नचामा है।।3।।

तुझ ेभहा कार बी बजत ेभौत बी काॉऩ जाती है।।

अनन्त भहा ज्मोनत ऩुॊज तू है भन वाणी हाय ऩाती है।।

होयाभ वह ऩयदा भेये सतगुरु ने हटामा है।।4।।

23

12 – बजन

दो0- एक याभ दशयथ नन्दना एक घट आत्भ याभ।

एक ऊॉ काय जग को यचत इक न्माया अरख अनाभ।।

भेया एक सहाया है सतनाभ नभो नभो जम यभत ेयाभ।

अनन्त ज्मोनत ऩुॊज प्रबु को कौहट कौहट भेये प्रणाभ।।टे0।।

जजसकी ऩावन शजतत ऩाकय जर थर अम्फय काॉऩ यहे।

अगखणत बानु ब्रह्भाण्डों भें दे ऩरयक्रभा भाऩ यहे।

जजसके फर से अजग्न प्रज्वर ऩवन दौडता आठो माभ।।1।।

जो कण कण भें फसा हुआ है जो घट घट का अन्तमाथभी।

सकर ववश्व जजसके अॊग अॊग भें सकर चयाचय का स्वाभी।।

जजसके बम से भतृ्मु काॉऩे कार बी बजता जजसका नाभ।।2।।

जजसके बम से ब्रह्भा मशव ववष्णु फॊधे सूत्र भें तऩत ेहैं।

सकर ववश्व का ववधान यचात ेऔय नाभ उसी का जऩत ेहैं।।

कार तो तमा भहाकार बी बजता खड ेकाॊऩत ेचायों धाभ।।3।।

अरख ननयॊजन बव बम बॊजन जो सफ जग का यखवारा।

देवी देव ब्रह्भाण्ड बूतगण सफ जजसके गर की भारा।।

उस ननयाकाय भहा ज्मोनत ऩुरुष का साॊचा नाभ सुमभय होयाभ।।4।।

13 – बजन

ऩयभप्रबु का धयके ध्मान सभझाऊ अभय कहानी।

कार देश से जजससे छूटके अभय होम जा प्रानी।।टे0।।

प्राण अऩान का कामा भाॊही बकुृटी ताय मभरावै।

येचक ऩूयक कुम्बक कयके कुन्डरी जाम उठावै।।

बकुृटी घाट मशवनेत्र खोर रख ऩावे ज्मोत ननशानी।।1।।

सुष्भना भें प्राण चढाके ऩकडो खझरमभर ताया।

शाभ सडक अगभ ऩॊथ भें ज्मोनतज्मोत अऩाया।।

सुन्न मशखय चढै जफ सुनतथ कय न सके कोई हानी।।2।।

बफन ऩॊख ऩऺी उडो गगन भें कार योक नहहॊ ऩावे।

24

भहाकार बी योक सकै ना जफ सुनतथ सचखॊड जावे।।

अखॊड सभाचध रगा अरख की कामा सुचध बफसयानी।।3।।

होयाभदेव सतगुय की शयणी सुनतथ शब्द कभावै।

चाय आवयण तज भामा के ननश्चम भुजतत ऩावै।।

आऩा अजऩा सजऩा मभटजा ज्मोत भें ज्मोत सभानी।।4।।

14 – बजन

सुन सीभा मह अभय कथा तुझ ेबजन बेद सभझाऊॉ भैं।

कार देश की ऩये सजृष्ट से अभय रोक दयसाऊॉ भैं।।टे0।।

नहीॊ तहॊ सूयज ताये दभकै बफना दीऩ का उजजमाया।

नहहॊ हदन यैन अनुऩभ ज्मोनत तीन रोक से न्माया।।

ब्रह्भाववष्णु मशव नायद हाये रगा ध्मान इक ऊॉ काया।

बत्ररोकेश्वय ऊॉ काय से, आगे सजच्चदानन्द सचखण्ड धाया।।

तऩ मऻ व्रत वाह्म साधन अन्तरय तीथथ कयाऊॉ भैं।।1।।

भुॊड भुॊडा मा धुनन यभा सफ कार से फाजी हाय गमे।

शीत उष्ण जर ऺुधा सह, तन जीणथ कयके डाय गमे।

ऩौथी ऩुयान बेद नहहॊ मभरता नेनत नेनत ऩुकाय गमे।

ऩूणथ गुरु बफन बेद मभराना राखो जन्भ मसधाय गमे।

जजसे मभरे तत्वदशी सतगुरु उसको शीश झुकाऊॉ भैं।।2।।

स्वगथ ऩातार वऩॊड ब्रह्भाण्ड भें साया कार ऩसाया है।

ब्रह्भाववष्णु मशव यच ेकार ने सौंऩ हदमा जगबाया है।।

ऩाऩ ऩुन्म कभथकाॊड यचाकय चौयासी चतकय डाया है।

सतऩुरुष के अभयरोक का फन्द ककमा गुप्त द्वाया है।

कार भहाकार की ठाभ ऩये तुझ ेज्मोनतऩुॊज सभाऊ भैं।।3।।

सुयनत बेद बजन गभन यस अन्तरय ज्मोनत जान हहमे।

अगभ सडक बकुृटी भध्म भें नतसय नेत्र वऩछान मरमे।।

सुतथ ननयत के फाॊध घुॊघरू सुष्भन गभन प्रस्थान ककमे।

अन्तय जेमोनत ननयन्तय वाणी सुयनत शब्द ऩहचान मरमे।।

होयाभदेव सुऩात्र सॊत से ना कुछ साय नछऩाऊॉ भैं।।4।।

25

यचनाकाय की ओय से सभऩपण

वप्रम ऩाठकगण – मो तो गीता उऩननषद वेद शास्त्रों भें ऩमाथप्त ऻान बया है ऩयन्तु भोऺ ऩद का ववऻान गोऩनीम होत ेहोत ेप्राम रुप्त हो गमा है। साया ववश्व जजतने बी भोऺ के साधन अऩनाता है वे सफ कार का ही छर है। मत्न कयता हुआ बी जीव फाय फाय वास्तववक ववऻान से अरग हुवा कार देश भें ही यह जाता है। फड े – फड ेऻानी सॊत बी रूहानी ववऻान के अबाव भें रकीय के पकीय फने हुवे हैं। जो इसको जान रेता है वह बी सॊत भत की आऻानुसाय इसे प्रकट नहीॊ कयता गुप्त गुप्त कयने से इसका रोऩ होता जा यहा है। आज अनेकों ऩॊथ भत है जो भुजतत का साधन वाह्म जगत भें ढूॊढत ेहैं। आज प्रस्तुत भहाकाव्म को भुझ जन सेवक ने वतत की जरूयत को ऩूया कयने के मरमे मरखा है। भैंने अऩने श्री सतगुरुदेव स्वाभी श्री याभानन्द सत्माथी जी ऩयभहॊस भहायाज की शयण भें यहकय इस ववऻान को प्रमोगात्भक रूऩ से स्वमॊ आॉखों देखकय मरखा है। मरखकय मह काव्म अऩने श्री गुरुदेव को सभवऩथत ककमा है। भुझ ेऩूणथ आशा है कक मह भहाकाव्म यचना सचखण्ड का सॊदेश है जो भोऺगाभी आत्भाओॊ के मरमे एक वयदान है। इसका सहाया रेकय बववष्म भें सतगुरु जन अऩने मशष्मों को सचखण्ड प्रस्थान कयने का आधाय प्राप्त कयके भुजतत धाभ तक ऩहुॉचगेें। इस काव्म का प्रसायण जो बी ऩुण्मवान कयेगा वह ऩयभेश्वय सचखण्ड वासी सतगुरु का वप्रम होगा। मोगीश्वयों द्वाया मह काव्म यचना गुरुस्वरूऩ भें स्वीकाय की गई है। आशा है कक आने वारे सभम की मह काव्म यचना जरूयत है। इससे जीवों का कल्माण होगा इसका ननत्म ऩाठ हहन्दतु्व (जहाॉ द्वैत नहीॊ है) का आधाय है। त्रुहट के मरमे भैं ऺभा प्राथी हूॉ। कुछ भानसी ववद्वान भेयी काव्म यचनाओॊ से कतयन चुयाकय अऩने को ववद्वान फनामेंगे जफकक उसे प्रमोगात्भक ऻान का ववऻान नहीॊ होगा।

आत्भऻान से आत्भ साऺात्काय तक की मात्रा का ऩूणथ ऻान ववऻान भेयी काव्म यचनाऐॊ श्रीभद् अभयकथा भहाकाव्म, श्रीभद् ब्रह्भफोध भहाकाव्म, श्रीभद् देवकृत याभामण भहाकाव्म, श्रीभद् श्रीकृष्ण चरयत्र भानस तथा श्रीभद ब्रह्भाण्ड गीता का अवश्म अध्ममन कीजजमे।

हार ऩता्- सॊस्थाऩक एवॊ सतगुरु

ऩयभहॊस याजमोग आश्रभ (देवकुॊ ज) सॊजम ववहाय, गढ योड, भेयठ

26

ववषम सूधच

सॊत श्री होयाभदेव जी की सॊक्षऺप्त जीवन झाॊकी - iv

अभतृवाणी से ऩद यचनाॊश (बजन) - xviii

यचनाकाय की ओय से सभऩथण - xxv

बाग – 1

1. स्तुनत - 1

2. जीवात्भा तत्व - 2

3. भन कक्रमा मोग - 7

4. भतृ्मु कारगनत - 9

5. अष्टाॊग मोग - 14

6. प्राणावयोध - 22

7. वऩन्ड देश दशथन - 23

8. ब्रह्भाण्ड देश दशथन - 25

9. दमार देश दशथन - 27

10. ननवाथण (हहन्दतु्व ऩद) - 29

11. हदव्म सन्देश - 32

बाग – 2

12. जीव – प्रकृनत – ब्रह्भ ववऻान - 36

13. रोकऩनत व्मवस्था एवॊ ववश्व यचना - 39

14. मुगान्तय सुतथडौरय - 47

15. कभथ उत्तऩजत्त ववऻान - 51

16. कभथ प्रकृनत वववेक - 54

17. सॊत सुतथ अवतयण - 61

18. सुनत थ मात्रा सहामक सन्त सतगुरु - 66

बाग – 3

19. अनहद धाया - 72

20. भन - 75

21. ननजज सुतथ मात्रा - 79

22. सतऩुरुष सन्देश - 99

23. तप्तशीरा ननवायण ववऻान - 120

24. सायतत्व सत्मोऩदेश - 124

27

श्रीभद् याजमोगस्थ अभयकथा ननमोजजत

अभयकथा अभतृ फोध बाग – 1

1 – स्तुनत

श्रोक्- अनन्त ज्मोततववपबु साऺात कृत्वा भानुषववग्रहभ।्

गुरुरूऩेण प्रोद्धतत जीव तस्भै श्री गुरुवै नभ्।।1।।

जो अनन्त ज्मोनतऩुॊज साऺात ऩयभेश्वय की देह भें सभाकय गुरु रूऩ भें जीवों का उद्धाय कयत ेहैं ऐसे जो श्री गुरुदेव हैं उनको भेया नभस्काय है।

श्रोक्- नभाशभ सवप सन्तानाभ मस्मै रृदमातन यभेतत नाभॊ।

तने ऩद कॉ ज नभनभात्रेण सवप ऩाऩै प्रभुच्मत।े।2।।

उन सभस्त सन्तजनो को भैं नभस्काय कयता हूॉ जजनके रृदम भें प्रबु का सतनाभ सभामा हुआ है। औय जजनके चयण कभरों भें नभन भात्र से सवथऩाऩ नष्ट हो जात ेहैं।

श्रोक्- आदद देवॊ नभस्तुभ्मॊ प्रसीद भभॊ ऩयभेश्वय्। ब्रदृहत तजेऩुजॊ नभस्तुभ्मॊ ऩूणप नभो Sस्तुत।े।3।। जो सफके आहद देव जगदीश्वय है जो भहान तजेऩुॊज स्वरूऩ हैं को नभस्काय है उसे ऩूणथ नभस्काय है।

श्रोक्- अखिर ववश्वाधायॊ व्माप्तॊ चयाचयॊ मेन।

सवप ऩाऩहयॊ देवॊ तॊ अनन्तॊ ज्मोतत नौम्महभ।।4।।

जो अखखर ववश्व के आधाय है जो सभस्त बूतप्रखणमों भें व्माप्त है औय सभस्त ऩाऩों को हयने वारे है उन अनन्त ज्मोनत स्वरूऩ प्रबु को भैं नभस्काय कयता हूॉ।

श्रोक्- रूकभवणप प्रकार्श ऩुॊजॊ मोSसौ ऩुयष् ऩयभ। सॊतमा नभप्न्त मॊ र्शाश्वतॊ तॊ नभाशभ ऩयात्ऩयॊ।।5।।

जो रूतभवणथ प्रकाशऩुॊज ऩयभ ऩुयष ऩयभेश्वय है तथा जजस शाश्वत ब्रह्भ को सॊतजन नभस्काय कयत ेहैं उस ऩयभब्रह्भ को भैं नभस्काय कयता हूॉ।

श्रोक्- तनत्मॊ रु्शद्धॊ तनशरपप्तॊ ऩूणप ऩुरुष सनातनभ।्

नभाशभ कायण कायणाम नभो नभाशभ ऩादहभाभ।्।6।।

28

जो सनातन धभथ शुद्ध तथा ननरेऩ ऩूणथ ऩुरुष ऩयभेश्वय हैं उस कायणों के कायण को नभस्काय है नभस्काय है वे भेयी यऺा कये।

श्रोक्- नभाशभ कष्ट ववभोचनाम वेदात्ऩयॊ रोकात्ऩयॊ ददव्मॊ। अनाशभधाभ तनवापण रूऩॊ मस्मत ेनभो नभ्।।7।।

कष्टो को हयने वारे वेदो से ऩये रोंकों से ऩये हदव्मऩुरुष को नभस्काय है जजसका अनामभधाभ ननवाथण रूऩ है उसको नभस्काय है।

2 – जीवात्भातत्व

दो0- सुशभयन कय वऩतुभात को चयणन र्शीर्श तनवाम। उय ऩट सतगुय ध्मान धरय फणपऊॉ मोग अथाम।।1।।

अऩने भाता वऩता के चयणों भें शीश ननवा कय उनका स्भयण कयके औय रृदम भें श्री सतगुरुदेव का ध्मान कयके भैं अथाम मोग का वणथन कयता हूॉ।

छ0- कीन्हेऊ प्रश्न कछुक सॊत भो कवन जगत आधाय ववर्शेषइ।

कवन जगत को ऩयभ तत्व प्जस जातन न बमे कछु र्शेषइ।।

ककभ भतृ्मुऩाय गतत सुयतदह कक दहन्दतु्व भूर उऩदेषइ।

“होयाभ” मथा उत्तय दई सुतन टरय बयभ करेषइ।।1।। एक फाय कुछ मशष्मों (सॊतो) ने भुझसे प्रश्न ककमा कक इस जगत का ववशेष आधाय तमा है ? औय जगत का ऩयभ यहस्म तमा है जजसे जानने के फाद कुछ बी शेष जानने मोग्म नहीॊ यहता ? आत्भा की भतृ्मु के ऩाय तमा गनत होती है ? तथा हहन्दतु्व का भूर उऩदेश तमा है ? श्री होयाभदेव जी कहत ेहै कक भैंने जजस प्रकाय उत्तय हदमे उन्हें सुनों ! उनके सुनने से सफ बभथ करेश टर जात ेहैं।

श्रोक्- धभापधभो ऩया ऩयभतत्व इदभात्भ भुक्त सॊवदा। ऻात्वा आत्भस्थतीथ ंऻेमत्व र्शेष् नान्म बवेत।।8।।

धभाथधभों से ऩाय ऩयभतत्व मह आत्भा सदा भुतत है। आत्भरूऩी तीथथ को जानकय कपय जानने के मरमे कुछ बी दसूया शेष नहीॊ यहता।

श्रोक्- सवपशभदॊ जनादपनो ववश्व व्माप्तॊ नान्मत्तत।

सो Sहॊ स चत्वॊ स च सवपबूतान्तापत्भा।।9।।

29

मह सफ कुछ ववश्व व्माऩक तत्व श्री हरय (ऩूणथ ऩयभेश्वय) हैं। वही भैं हूॉ वही तुभ हो औय वही सभस्त बूत प्राखणमों की अन्तयात्भा है।

दो0- आत्भतत्व न सहजे सुरब गुरु बफनु होम न ऻान।

तनज ऩद ववछरय तनुपॊ दद ऩरय कायागाय भहान।।2।।

मह आत्भ तत्व सहज ही सुरब नहीॊ होता इसका बफना सतगुरु के ऻान नहीॊ होता मह अऩने धाभ (अनाभी रोक) से बफछुड कय देह भें चधरय हुई भहान कायागाय भें ऩडी हुई है।

श्रोक्- मो मस्म गुण न प्रकृषे तस्म नीॊदा सततॊ कयोतत।

न आप्नोतत मथा कप्यमता रूभरय िट्ट अॊगूय।।10।।

जो व्मजतत ककसी के गुण को नहीॊ सभझता कपय वह उसकी ननॊदा ननयन्तय कयने रगता है। जैसे कक प्राजप्त न होने ऩय रोभडी अॉगूयो को खटे्ट फताकय चरी गई।

छ0- बमेऊ फन्दी भामाऩट ववच भ्रुवगुहा प्स्थत ज्मोतत स्वरूऩ। सवप व्माऩक र्शौमपर्शारी अजय अभय अऺम ववश्राप्न्त रूऩ।।

सो जीवात्भा तत्वत ववजातन करय याजमोग प्राप्प्त अनूऩ।

“होयाभ” आत्भ अगाढ उदधध बफनु ऻेम न भोऺऩद घूऩ।।2।। भ्रुवभध्म केन्द्र जस्थत मह ज्मोनत स्वरूऩ आत्भा भामा के ऩदे भें फन्दी हो गई है जफकक मह सवथव्माऩक शौमथशारी अजय अभय अववनासी एवॊ आनन्दभमी है। सहज सभाचध से याजमोग की प्राजप्त कयके वह आत्भा तत्व से जानी जाती है। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक मह आत्भा एक अगाध सभुन्द्र है जजसको जाने बफना भोऺऩद भें जस्थनत नहीॊ होती।

दो0- तनभपर ववरै्शष सद्साधकक ववजानदहॊ आत्भसाय।

अजय अनुऩभेम आत्भा अऺम अकथ अववकाय।।3।।

स्वच्छ एवॊ शुद्ध स्वरूऩ साधक ही ववशेषकय इस आत्भतत्व को जान ऩात ेहैं मह अजन्भा अनुऩभेम अववनाशी अववकायी एवॊ अकथनीम है।

दो0- कफहुॉ जन्भ नदहॊ आत्भा कफहुॉ न भतृ्मु प्राप्त।

फधातीत शर्शव ऩुयाततन अगम्म र्शार्शवत व्माप्त।।4।।

30

आत्भा का न कबी जन्भ होता है औय न कबी भतृ्मु होती है, वध बी नहीॊ होता। मह तो सदा से ही कल्माणकायी अगम्म एवॊ जस्थय रूऩ से सवथत्र ववद्मभान यहने वारी है।

दो0- “होयाभ” र्शस्त्र न छेददहॊ गरा सके नहीॊ नीय। जया सकई नाहीॊ अनर कफहुॉ न र्शोष्म सभीय।।5।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक इसको शस्त्र काट नहीॊ सकत ेजर गरा नहीॊ सकता, अजग्न जरा नहीॊ सकती औय वामु से कबी सुष्क होने वारी नहीॊ है।

दो0- मथा तजदहॊ जीणप फसन गहदहॊ ऩुतन नय नूतन।

तथा जीव तनु जीणप तप्ज धायदहॊ देह अन्मन।।6।।

जजस प्रकाय ऩुयाने वस्त्रों को त्मागकय भनुष्म नमे वस्त्र धायण कयता है उसी प्रकाय मह जीव ऩुयाने कभजोय देह को त्मागकय नमी देह धायण कयता है।

चौ0- यचना षट्भॊडरमुक्त ज्मोततभपम । जीव ऩरयभाऩ अॊगुष्ठ भात्र भम।। भॊडर इक तऊ इक अधधकाई । ऩयतस्थऩयत प्माज की नाई।।1।।

मह जीवात्भा छ् ज्मोनतभथम भॊडरों से मुतत यचना वारा औय अॊगुष्ठ भात्र ऩरयभाऩ वारा है। प्रत्मेक भॊडर भें एक भें एक फढकय है जो प्माज की तयह ऩतथ सी चढे हुवे हैं।

चौ0- प्रथभ वाह्म ब्रह्भभॊडर ज्मोतत । गगन सभान अथाम ववबौतत।।

ब्रह्भभॊडर गबपस्थ भॊडर भूरा । ऩया प्राकृतत अॊर्श अनुकूरा।।2।।

ऩहरा भॊडर ब्रह्भ भॊडर है जो ज्मोनत ऩूणथ है। गगन के सभान असीभ सौन्दमथ ऩूणथ है। ब्रह्भ भॊडर के भूर (गबथ) भें ऩया प्रकृनत के अॊशों के अनुकूर भूर भॊडर है। (मह प्रकृनत भॊडर है)

चौ0- ऩीतवणप मह व्माऩक बत्रगुणातत । शरॊग देह जीवात्भा शे्रम अतत।।

इह भॊडर ववच भनसई अॊर्शा । ऻान कभप दतुत इप्न्िम दसाॊर्शा।।3।।

मह भॊडर ऩीरे यॊग का है जजसभें प्रकृनत के तीनों गुण (सत यज तभ) व्माप्त है। मही जीवात्भा की अनत शे्रष्ठ मरॊग देह है इस भॊडर भें भनकी बी ज्मोनत है तथा ऻान कभथ औय दस इजन्द्रमों की ज्मोनत है।

चौ0- प्राकृतत भॊडर भाॊझ भहाना । तीसयी सूक्ष्भ भॊडर प्राना।। प्राण मह सफ र्शप्क्तन्ह सयोता । जे बफनु जगत अचतेन सोता।।4।।

31

प्रकृनत भॊडर के गबथ भें तीसया अनत सूक्ष्भ प्राण भॊडर है मही प्राण सफ शजततमों का स्रोत है जजसके बफना जगत अचतेन सो जाता है।

दो0- प्राण प्रकृततभॊडर भह भेधा तत्व असथान।

“होयाभ” आत्भ सॊमोग से अहदहॊ प्राण चतेान।।7।। प्राण औय प्रकृनत भॊडरों के फीच भें फुवद्ध गुण (ऻान) तत्व का स्थान है। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक आत्भा के सॊमोग से ही प्राण को चतेना मभरती है।

चौ0- प्राण भॊडर भॊह नीर हया सा । चतुथप भॊडर अहॊकाय ऩयासा।। सत यज तभ गुण मथा प्रबावा । ततन्ह सफ ज्मोतत अहॊ प्रगटावा।।1।।

प्राण भॊडर के अॊदय नीरा हया यॊग जैसा चौथा भॊडर अहॊकाय भॊडर ज्मोनत है सत यज तभ गुण मुतत जैसा प्रबाव होता है, मह अहभ वैसी ही उनकी सफ ज्मोनतमाॉ प्रगट कयता है।

चौ0- अहॊकाय गबप भॊह भॊडर ऩॊचभ । धचत्त भॊडर सवपसॊकल्ऩ सऺभ।।

ऩायदर्शी रु्शक्र धचत फैिाना । सत यज तभ गुण प्रबावु नाना।।2।।

अहॊकाय भॊडर के गबथ भें ऩाॊचवाॊ चचत्त भॊडर है जो सवथ सॊकल्ऩों के मरमे सऺभ हैं मह चचत्त ऩायदशी श्वेत यॊग का कहा गमा है सत यज तभ गुणों का इस ऩय अनेक प्रकाय से प्रबाव ऩडता है।

चौ0- षष्टभ भॊडर धचत्त के भाॊहीॊ । ऩयदाय कणक सभ आत्भ साॉहीॊ।।

सष्ठ भॊडर मुतत आत्भा । बई जीव तजे रूऩ ऩयभात्भा।।3।।

चचत भॊडर ज्मोनत के अन्दय ऩयदाय के कण रूऩ छठा भॊडर आत्भा का है। मह ववबु आत्भा है प्रकृनत के साये भॊडरो से मुतत आत्भा जीवात्भा फन गमी है। इन्ही भॊडरों के सॊमोग से मह आत्भा ऩयभात्भा से अरग हो गई है।

चौ0- इह ववधध आतभ जीव फनाई । देहावयण दईु चक्र उरझाई।।

मह आतभ सो ऩयब्रह्भ जानी । तनयि ऩयि कधथऊ ब्रह्भऻानी।।4।।

इस प्रकाय मह आत्भा जीव फनाई गमी है औय देह रूऩी आवयण चढाकय द्वैत चक्र भें पसादी है। मह आत्भा वही ऩायब्रह्भरूऩ जानी गई है ब्रह्भऻानी सॊतजनों ने इसका ननयख ऩयख कयके कथन ककमा है।

दो0- जे कीप्न्ह जग व्माप्त सकर सो सत्म तनत्म अववनार्श।

“होयाभ” न सभथप ववश्व की तादहय कयदहॊ ववनार्श।।8।।

32

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक जो इस जगत को यचा कय इसभें ऩूणथ रूऩ से व्माप्त है वह सदा सत्म ननत्म औय अववनाशी है ववश्व भें ककसी की साभथथ नहीॊ जो उसका ववनाश कय सके।

छ0- सो आत्भा न प्रवचने प्राप्त न भेघा न श्रवण ववऻानदहॊ।

सकर सॊस्काय जेदह धचत नष्मत प्रगट तदेह सन सववऻानदहॊ।।

रिाम छखणक छवव साधक सन ऩुतन ऩुतन बमेऊ अबानदहॊ।

“होयाभ” बफनु आत्भ ववजाने टयदहॊ न बवफॊध भहानदहॊ।।3।। आत्भा न प्रवचन से प्राप्त होती है न फुवद्ध से न कानों से जानी जाती है। जजसके चचत्त सॊस्काय नष्ट हो गमे होत ेहै उसके सभऺ सववऻान प्रगट हो जाती है। ऐसे साधक को मह ऺणीक छवव हदखाकय फाय फाय अदृष्म हो जाती है। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक आत्भा को जाने बफना सॊसाय का भहान फॊधन नहीॊ कटता।

दो0- जीवात्भा यथो स्वाभी यथ मह भनुज र्शयीय। भेघा जाऩय सायथी भन घोटक झनजीय।।9।।

भनुष्म शयीय एक यथ है आत्भा इस यथ का स्वाभी फैठा है फुवद्ध उस ऩय सायथी है औय घोड ेकी रगाभ भन है।

दो0- दसो इप्न्िमाॉ घोटक यथ भायग ववषम अऩाय। “होयाभ”देव शसॊहासन चदढ हॉसा उतये ऩाय।।10।। श्री सॊत होयाभदेव जी कहत ेहै कक दसों इजन्द्रमाॉ यथ के घोड ेहैं ववषम रूऩी अऩाय यास्ता है यथ मसॊहासन ऩय फैठकय ही आत्भा ऩाय उतयती है।

दो0- जो जन ववयदहत सॊमभ सवप अरू ऩूणपत अऻान।

सो न गहदहॊ ऩयभ ऩद बटकत फीच जहान।।11।।

जो भनुष्म सभस्त समभों से यहहत है औय ऩूणथतमा अऻानी है वह ऩयभऩद प्राप्त नहीॊ कय सकता वह सॊसाय भें ही बटकता यहता है।

दो0- जे जन ऩयभ ववऻान मुक्त रु्शधचय अरू सॊमभधचत्त।

त ेआत्भा सहजे सुरब टयत अऻान ववधचत्त।।12।।

जो भनुष्म ऩयभ ऻानी ऩववत्र तथा सॊमभ चचत्त वारे हैं उनको मह आत्भा सहज ही सुरब हो जाती है उनके ववचचत्र अऻान नष्ट हो जात ेहैं।

दो0- जे जन शसॊहासन ऩैदठदहॊ चॊचर भन भतत हीन।

33

“होयाभ” तादह अश्व दस देमदहॊ ऩर ऩथ फीन।।13।। जो भनुष्म चॊचर भन व फुवद्ध हीन अवस्था भें यथ मसॊहासन ऩय फैठ जाता है। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक उसको (इजन्द्रम रूऩी) दस घोड ेऩर बय भें उसे यास्त ेसे बटका देत ेहैं।

दो0- जे जन शसॊहासन ऩैठदहॊ सववयाग्म उय ऻान।

“होयाभ” तादह अश्व दस जादहॊ सीध तनवापन।।14।। जो भनुष्म वववेकऩूणथ एवॊ रृदम भें ऻान मुतत वारा इस यथ के मसॊहासन ऩय फैठता है श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक उसकी (इजन्द्रम रूऩी) दस घोड ेसीधे ननवाथण की ओय रे जात ेहैं।

दो0- भहतत्व ऩये भूर प्रकृतत ताऩये ब्रह्भ ववर्शेष। मत काष्ठा मत ऩयागतत नदहॊ अगे्र कछु र्शेष।।15।।

भहत्त तत्व से ऩये भूरप्रकृनत है उससे ऩये ऩूणथब्रह्भ ववशेष है महीॊ ऩय ननज रक्ष्म है औय महीॊ ऩय ऩयभगनत इससे आगे कुछ नहीॊ है।

दो0- जफ साधक भन आऩने अततसजृदहॊ कभप सकाभ।

अऩुन आऩ सन्तुष्ट बमो सो प्स्थतत प्रऻ “होयाभ”।।16।। जफ साधक अऩने भन के सभस्त ईच्छामुतत कभों का त्माग कय देता है औय अऩने आऩ भें ही सन्तुष्ट होता है श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक वही जस्थत प्रऻ है।

दो0- होइ मोगास्थ सफ कभपकय ववषमेन ववयप्क्त धाय।

क्रोध अभीत काभा तप्ज मोगासीन अऩाय।।17।।

मोग भें जस्थत होकय कभथ कये औय ववषमों से ववयजतत धायण कयरे। औय क्रोध के शत्रु काभ को त्माग कय अखॊड मोग भें प्रववष्ठ होवे।

दो0- क्रोध त ेभोह भोह त ेस्भतृत ऺीण होम भततनास। भततनास जेदह को बमो ताको तनमय ववनास।।18।।

क्रोध से भोह उत्ऩन्न होता है भोह से स्भनृत ऺीण होकय फुवद्ध का नास हो जाता है। जजसकी भेघा का नास हो गमा उसका ववनास ननकट है।

3 – भन कक्रमा मोग

34

दो0- “होयाभ” भन चॊचर अतत कयत भनन सवपकार।

रृदमकभर प्रततऩॊिरयन ववचयदहॊ बत्रगुणी जार।।19।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक भन फडा चॊचर है। मह हय वतत भनन कयता यहता है औय मह सत यज तभ गुणी प्रकृनत जार भें मरप्त हुआ रृदम कभर की प्रत्मेक ऩॊखुडडमाॉ भें भ्रभण कयता है।

दो0- सत यज तभ यत भन चतुय कयत नाना कक्रडाम।

“होयाभ” चऩर चॊचर अतत ऩर ऩर भतत दिडाम।।20।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक मह चतुय भन सत यज तभ गुणों भें पॊ सा हुआ नाना प्रकाय के खेर यचता है मह फडा चॊचर औय चाराक है ऩर ऩर ऩर भें फुवद्ध को प्रबावी कयता यहता है।

चौ0- उत्तय ऩप्श्चभ जफदहॊ भनधावा । गभन दरूय को भतत ररचावा।। उत्तय ददशर्श गमेऊ भन जफदहॊ । भैथुन कभप आर्शा बई तफदहॊ।।1।।

रृदम कभर की उत्तय ऩजश्चभ की ऩखॊडी ऩय भन जफ जाता है तफ दयू की मात्रा के मरमे फुवद्ध को ररचाता है औय जफ उत्तय हदशा वारी ऩॊखडी ऩय जाता है तफ इसे भैथुन कयने की ईच्छा उत्ऩन्न होती है।

चौ0- ऩूवोत्तय भनुआ जफ जावा । सेवादद सकर कभप भन बावा।। बूरदहॊ भन गय दक्षऺण जावा । ऩाऩ शसतभ छर ऩािॊड बावा।।2।।

जफ भन ऩूवथ – उत्तय हदशा की ऩॊखडी ऩय जाता है तफ सेवाहद सभस्त शुबकामथ भन को सूझत ेहै औय महद बूर से भन दक्षऺण ऩॊखडी ऩय जाता है तो इसे ऩाऩ जुल्भ धोखा ऩाखॊड औय कुकभथ ही अच्छे रगत ेहैं।

चौ0- दक्षऺणऩूवप तनयाऩद सुहानी । आरस्मयाभ अमन सुस्तानी।।

दक्षऺण ऩप्श्चभ ददर्शा भहाना । चहदहॊ भनरम एश्वमप नाना।।3।।

दक्षऺण ऩूवथ हदशा अनत सुहानी है तथा आरस्म आयाभ औय सुस्ती का घय है। दक्षऺण – ऩजश्चभ हदशा भहान है महाॉ ऩय भन बोग ऐश्वमों भें रम होना चाहता है।

चौ0- ऩप्श्चभददर्शा रयदद शसदद बावा । ऩूवप गभन बप्क्तबाव सभावा।। सतयज तभ गुण मथा प्रभाना । तथा प्रबाव धचत भन प्रमाना।।4।।

35

ऩजश्चभ हदशा की ऩॊखडी भें ऋवद्ध मसवद्ध सूझती हैं तथा ऩूवथ भें गभन कयने से भन भें बजतत बावना सभाती है। सत यज तभगुणों का जैसा प्रबाव होता है वैसा ही प्रबाव से भन चचत्त ऩय गभन कयता है।

दो0- रृदम कभर भध्म आइ भन चहदहॊ फस ऐकान्त।

रृदम कभर अष्ट ऩॊिरयने ववचयदहॊ भनु भहान्त।।21।।

रृदम कभर के भध्म भें आकय भन फस ऐकान्त चाहता है। इस प्रकाय रृदम कभर की अष्ट ऩॊखडडमों ऩय मह भहान भन भ्रभण कयता है।

दो0- मोगाभ्मास ववयाग नाव भन वशर्शबूतई होंम। गुरु ऻान उऩदेर्श बफनु करयम न साधन कोम।।22।।

मोगाभ्मास तथा वैयाग्म की नाव ऩय चढकय भन वमशबूत हो जाता है। ऩयन्तु इस साधना को सतगुरु के ऻान व उऩदेश के बफना नहीॊ कयना चाहहमे।

4 – भतृ्मु कार गतत

दो0- भतृ्मु सफकी अतनवामप फचा सके नदहॊ कोम।

ऻानी तजेदहॊ तनु हषप सों भन्दभतत ऩीडडत होम।।23।।

भतृ्मु सफकी अननवामथ है इससे कोई बी फच नहीॊ सकता। ऻानीजन तो शयीय को हषथ से त्माग देत ेहैं। ऩयन्तु भूखथ अऻानी फडी ऩीडा बोगता है।

चौ0- प्राण तजेहीॊ जफ स्थूरदेहा । देही तद भत्मोवस्था सेहा।। अन्तदहॊ बाव प्जन्ह स्थूर तजावा । रमैइ जीव तथा गतत ऩावा।।1।।

अन्त भें प्राण जफ स्थूर देह से अरग होता है तफ प्राणी की वह भतृ्मु अवस्था होती है। अन्त सभम भें जीव जजन्ह बावों से स्थूरदेह त्मागता है उसी भें रम हुआ वैसी ही गनत को प्राप्त कयता है।

चौ0- कुफासना सॊमुक्त कुगतत ऩावा । सद् भेघा यत सदगतत जावा।। आवत भतृ्मुकार जफ घेया । होइदहॊ भहान ववऩद दिु डयेा।।2।।

फुयी ईच्छाओॊ से मुतत होकय जीव फुयी गनत ऩाता है औय शुद्ध फुवद्ध से सद्गनत को प्राप्त होता है। जफ भतृ्मु सभम का चक्र आता है तफ भहान भुमसफत व दखुों का डयेा रग जाता है।

चौ0- बफछुवन सहस्त्र दॊस सभऩीया । ऩाम अऻानी तजत र्शयीया।।

36

जे जन प्राण वश्म करय दीना । भतृ्मुऩीय सो सफ हय रीना।।3।।

हजायों बफच्छुओॊ के डॊक भायने जैसी ऩीडा अऻानी ऩुरुष शयीय त्मागत ेसभम बोगत ेहैं। ऩयन्तु जो भनुष्म प्राण को वश्म भें कय रेत ेहैं उन्हे भतृ्मु से कोई कष्ट नहीॊ होता।

चौ0- योभ योभ यशभ प्राण र्शयीया । नि शर्शि ऩूणप व्माप्त तसीया।। भतृ्मु तनकट देही जफ आना । अॊग प्रतत अॊग शसभटत मह प्राना।।

मे ही खिॊचाव कष्ट कय भूरा । जासु देही ऩीय प्रततकूरा।।4।।

शयीय के योभ योभ भें प्राण यभा हुआ है जो मसय से ऩैय तक तजेरूऩ से ऩूणथ तथा व्माप्त है। भतृ्मु जफ देहधायी के ननकट आती है तफ प्रत्मेक अॊग से प्राण मसभटने रगता है। मही खखॊचाव कष्टों की जड है इसी से जीव को ववऩयीत ऩीडा होती है।

दो0- र्शनै र्शनै नस नाडी से सन सन खिॊचमाॊ प्रान।

तनप्ष्क्रम सफ इप्न्िमाॊ बई देही यहे नदहॊ बान।।24।।

जफ धीये धीये नस नाडडमों से सन सन कयता हुआ प्राण खखॊचता है तफ सभस्त इजन्द्रमाॊ कक्रमाहीन हो जाती हैं औय जीव को कुछ बी ऻान नहीॊ यहता।

चौ0- नमना िुरत दीित कछु नाहीॊ । जीभ्मा यहत न फोरत जाहीॊ।। कॊ ठ रूके अन्होसी छावहीॊ । रृदम गतत भन्द छूटत जावहीॊ।।1।।

आॉखे खुरी होने ऩय बी कुछ नहीॊ दीखता जीभ्मा होत ेहुवे बी फोरा नहीॊ जाता। कॊ ठ रूक जाता है फेहोसी आने रगती है औय रृदम गनत भन्द होकय सभाप्त होती जाती है।

चौ0- घफयाहट फेचैनी सायी । ऩाम जीव तफ ववऩदा बायी।। वऩॊड तप्ज प्राण िौऩरय आवा । अऻात र्शप्क्त तद फन्दी फनावा।।2।।

उस सभम सफ प्रकाय की घफयाहट औय फेचैनी हो जाती है औय जीव फहुत ज्मादा दखु ऩाता है। प्राण वऩॊड देश को त्मागकय खौऩडी भें आ जाता है तुयन्त ही अऻात शजतत (कार) जीव को फन्दी फना रेता है।

चौ0- भन भेघा मत बमऊ सुचारू । करयत कभप तनज कोष ववचारू।। आऻाताधीन बोगदहॊ प्रराऩु । कुकभप कोषइ कयदहॊ ऩश्चाताऩु।।3।।

37

महाॉ (भ्रकुटी भध्म केन्द्र भें जस्थत भतृ्मु कभर भें) भन फुवद्ध सुचारू हो जाती है। जीव अऩने सॊचचत कभथ कोष ऩय ऩश्चाताऩ कयने रगता है औय अऻानता वश ककमे गमे जीवन बय के कभों ऩय ववचाय कयता है।

चौ0- अऻातर्शप्क्त तद प्राण रूॊ धावा । वऩॊड कोदह तछि जीव तनकसावा।।

दसोप्न्ि अहभ धचत्त भन भेधा । ऩाॉच प्राण सॊग तफ तनु छेधा।।4।।

अऻात शजतत तफ प्राण को अवरूद्ध कय देती है है औय देह के ककसी बी नछद्र से जीवात्भा को ननकार देती है तफ दस इजन्द्रमाॉ अहॊ चचत्त भन भेघा तथा ऩाॉच प्राणों के साथ देह से ववच्छेदन हो जाता है।

दो0- भतृ्मुकार जो धीय जन सुशभयत प्जन प्जन बाव। तनु तजत ततन्ह बाव यत अन्तदहॊ तत तत ऩाव।।25।।

भतृ्मु के सभम जो ऻानी धीय ऩुरुष जजन जजन बावों का स्भयण कयके शयीय त्मागत ेहैं वे उसी बाव भें रम होत ेहुफे अन्त भें उसी उसी को प्राप्त होत ेहैं।

चौ0- तनकसत प्राण जफ ककदह द्वाया । नासदहॊ ऻान बान ततदह साया।।

स्थूर अततसजृ होर्श ऩुतन आई । स्थूर अरग ऩरय देत ददिाई।।1।।

जफ प्राण शयीय के ककसी बी द्वाय से ननकर जाता है तफ जीव का सफ ऻान बान नष्ट होता है। कपय से स्थूर त्मागने के फाद कपय से होश आता है तफ जीवात्भा को अऩना स्थूरदेह अरग ऩडा हदखाई देता है।

चौ0- सूक्ष्भ प्राण देह धुम्र सभाना । देखि स्थूर प्रगटदहॊ भुि काना।। छाॊव सभाॉन यधच ऩूणप र्शयीया । प्राण तनदहॊ तव गगन कयीया।।2।।

सूक्ष्भ प्राणदेह धुॊवे के सभान होती है जजसे देखकय प्राणदेह भें भुख- कानाहद प्रगट हो जात ेहैं। जीव छामा के सभान ऩूया शयीय (मरॊग देह) यचकय तफ प्राणदेह (मरॊग देह) भें वहाॉ से गभन कय जाता है।

चौ0- ऩयरोक गभन जीव जफ कयदहॊ । बौततक डौरय छम योध न ऩयदहॊ।।

षठ भॊडर दतुतऩुॉज मह जीवा । कभप सॊस सॊग गभन कयीवा।।3।।

जीव जफ ऩयरोक को गभन कयता है तफ स्थूर देह से डौयी कट जाने से कुछ बी फाधा नहीॊ आती। फजल्क छ् भॊडरो की ज्मोनतभथम ऩुॉज जीवात्भा कभथ सॊस्कायों के साथ मात्रा भें सभा जाता है।

चौ0- कभपकोष ऩूवपजन्भ सॊस्काया । होइ ऩुनजपन्भ तथाकाया।।

38

सदगतत जाइ सुसज्जन ऻानी । बोगदहॊ दयुगतत अधभ अऻानी।।4।।

ऩूवथजन्भ भें ककमे गमे कभथ कोष सॊस्कायों से अगरा जन्भ मभरता है इस प्रकाय साधु सुसज्जन ऻानी जन उत्तभ गनत प्राप्त कयत ेहैं औय ऩाऩी अऻानी जन भहान दगुथनतमों को बोगत ेहैं।

दो0- प्राणगतत साधक आधीन जे तनत कीन्ही अभ्मास।

प्राण खिचन सॊकट र्शयीय मोगी के नदहॊ ऩास।।26।।

प्राणगनत मोचगमों के आधीन होती है जजन्होंने ननत अभ्मास ककमा हुआ है शयीय से प्राण के खखचाॊव का कष्ट उस मोगाभ्मासी को नहीॊ होता।

दो0- मोधगन की अदबुत गतत प्जदहके प्राण अधीन।

यहदहॊ प्रथक गतत तनु प्राण जीवन भयन नवीन।।27।।

जजनके प्राण वश भें हैं उन मोचगमों की गनत ही ववचचत्र है उनके प्राण औय देह की गनत अरग अरग यहती है औय उनका ननत्म नमा जन्भ भयण होता है।

चौ0- जन्भभयण क्रभ तफ रधग रागा । कभप अकभप जफ रधग अनुयागा।। कयत कयत तनत मोगाभ्मासा । भतृ्मु ऩूवप नासदहॊ कभप पाॊसा।।1।।

जफ तक कभथ अकभथ भें आसजतत हैं तफ तक ही जन्भ भयण का क्रभ रगा होता है। ननत मोगाभ्मास कयत ेकयत ेमोगी के सफ कभथ फॊधन भतृ्मु से ऩहरे ही नष्ट हो जात ेहैं।

चौ0- बफसारय कतापऩन दृष्टा होवा । तद ततदह कभप जार सफ ऺोवा।। मोगाभ्मास सुसतसॊग तयणी । प्राणधीन भनवा फस कयणी।।2।।

जफ जीव कताथऩन का बाव त्मागकय कभथ भें दृष्टा हो जाता है तफ उसके कभथजार सफ ऺम हो जात ेहैं। मोगाभ्मास व सतसॊग की नौका से तथा प्राणों को आधीन कयने से भन को वश भें कयें।

चौ0- नाडी सॊर्शोधन जे तनत कयदहॊ । ततदहॊ जीवात्भ उध्र्वगतत तयदहॊ।।

नाना नाडी व्माप्त र्शयीया । सुष्भन शे्रष्ठ प्जदह र्शौघत धीया।।3।।

जो भनुष्म अऩनी नाडडमों का ननत्म शौधन कयत ेहैं उनकी जीवात्भा उध्र्व गनत भें नतय जाती है। हभाये शयीय भें अनेकों नाडडमाॉ हैं उनभें सुष्भना नाडी शे्रष्ठ है जजसे ऻानीजन शुद्ध कयत ेहैं।

चौ0- रु्शबगतत हरय सुष्भन ठहयाई । जॊहदहॊ गभन भोऺ सॊत ऩाई।।

39

तहाॉ तनजात्भ ज्मोतत जगावे । ऩुतन ऩयभेश्वय ज्मोतत सभावे।।4।।

ऩयभेश्वय ने शे्रष्ठ गनत सुष्भना भें जस्थत की है जजसभें मात्रा कयके सॊतजन भोऺऩद प्राप्त कयत ेहैं। सुष्भना भें अऩनी आत्भ ज्मोनत प्रगट कये कपय ऩयभेश्वय की ज्मोनत भें सभा जावें।

दो0- मोगाभ्मासी आत्भा , सुष्भन जाइ अॊतकार।

“होयाभ” यववरोकदहॊ ऩहुॉच वाऩशस नहीॊ जग जार।।28।। अभ्मासी ऩुरुष की आत्भा अन्त सभम भें जफ सुष्भन भें ववचयण कयती है श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक तफ वह आत्भा सूमथरोक भें ऩहुॉचती है कपय वह सॊसाय चक्र भें वाऩस नहीॊ आती।

चौ0- प्राणाभ्मास तनऩुण अभ्मासी । इप्च्छत द्वाय प्राण तनसकासी।। अगखणत तछि कामा यधच यािै । नऊ दय प्रभुि सॊत जन बािै।।1।।

जो प्राणामाभ भें ननऩुण अभ्मास वारे सॊत हैं वे अऩनी इच्छानुसाय द्वाय से प्राण ननकारत ेहैं। शयीय भें अनेकों नछद्र फनामे गमे हैं ऩयन्तु उनभें सॊतों ने नौ द्वाय ही प्रभुख भाने हैं।

चौ0- नऊ द्वाये कभप प्राण तजेहीॊ । कुगतत सुगतत ऩावत सफ देहीॊ।। दसभद्वाय गोऩ तनु भाहीॊ । गुरुकृऩा बफनु ऩावत नाहीॊ।।2।।

कभों के अनुसाय नौ द्वायों से प्राण ननकरत ेहैं औय उसी के अनुसाय जीव अच्छी फुयी गनत प्राप्त कयता है। शयीय भें दसवाॊ द्वाय गुप्त है जो गुरुकृऩा के बफना प्राप्त नहीॊ होता।

चौ0- सुष्भन प्स्थत अगखणत रोका । गभदहॊ सॊत गदह सतगुरु चौंका।। ब्रह्भयॊध्र भॊदह सुष्भन द्वाया । गभदहॊ सॊत कैवल्म अऩाया।।3।।

सुष्भना भें अगखणत रोक जस्थत हैं सतगुरुदेव का ईशाया ऩाकय सॊत उसभें गभन कयत ेहैं। ब्रह्भयॊध्र से सुष्भना के द्वाया सॊत भहान कैवल्म ऩद की ओय गभन कयता है।

चौ0- सोड्ष तीथप सुषभन भाहीॊ । अगभधाय चदढ ऩावउ ताॊहीॊ।। जे जे केन्ि कयउ धथय प्राना । त ेत ेरोक जीव प्रस्थाना।।4।।

सुष्भना भागथ भें सोरह रोक (तीथथ) ऩडत ेहैं अगभ ऩथ ऩय चढकय उनको प्राप्त कय। जजस जजस चक्र भें प्राण जस्थय होगा उसी उसी चक्र भें जीवात्भा प्रस्थान कयता है।

40

दो0- सुष्भना र्शौधन सॊत कयत कक भतृकार मह प्रान।। “होयाभ” ब्रह्भयन्ध्र तनकशस कयदहॊ भोऺ प्रस्थान।।29।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक सॊत जन सुष्भना का शौधन इसमरमे कयत ेहैं कक भतृ्मुकार भें आत्भा ब्रह्भयन्ध्र से ननकरकय भोऺ को प्रस्थान कय जामे।

5 – अष्टाॊग मोग

दो0- मोग ऩॊथ वववयण देऊॉ सुशभय गुरु धचत्तराम।

मथा अष्टाॊग मोग भोही दीन्हेउ र्शयण रिाम।।30।।

भैं अऩने सतगुरुदेव को चचत्त भें फसाकय औय स्भयण कयके जैसा उन्होने अऩनी शयण देकय भुझ ेहदखामा है उस अष्टाॊगमोग का वववयण देता हूॉ।

चौ0- सत्म अदहॊसा ब्रह्भचमप धायी । अस्तमेाऩरयग्रह गुणकायी।।

प्रथभ अॊग मभमोग कहाई । साधक सो जो मह भन बाई।।1।।

सत्म अहहॊसा ब्रह्भचमथ अस्तमे (चोयी न कयना) अऩरयग्रह (दसूये की चीज बफना हक ग्रहण न कयना) आहद गुण वारा मोग का प्रथभ अॊग मभ कहा गमा है। साधक वही है जजसे मभ अच्छा रगे।

चौ0- सत्मऩारन दृढगतत जफ सॊता । होदहॊ सत्म सफ श्राऩ वय भॊता।। साधक शसद्ध अदहॊसा जफदहॊ । तप्ज फैय सफ सॊग यहे तफदहॊ।।2।।

सत्म के ऩारन भें जफ सॊत की दृढगनत (अवस्था) हो जाती है तफ उसके हदमे गमे श्राऩ वयदान औय भॊत्रणा सफ सत्म हो जात ेहैं। औय जफ साधक को अहहॊसा मसद्ध हो जाती है तफ सफ फैय बाव त्मागकय उसके सॊग (ननकट) फसने रगत ेहैं।

चौ0- ब्रह्भचमप फरदेई सफ अॊगा । जागत भतत उयजा नव यॊगा।। गुप्त ऩरयणाभ तनकट तफ आवा । दृढभतत सदृढ अस्तैम अबावा।।3।।

ब्रह्भचमथ शयीय के सफ अॊगों को फरवान कयता है जजससे नई नई प्रकाय से चतेना मभरती है औय फुवद्ध जागतृ होती है। अगय अस्तैम के अबाव की दृढता फन जामे तो शयीय भें छुऩे हुवे फहुत से यहस्म साभने आ जामेंगें।

चौ0- ऩूवपजनभ सफ बेद ववजाना । गय करय दृढ ऩथ मोग ध्माना।। रु्शद्ध ववचाय ववनम्र सदाचायी । इत उत रोक ऩाम मर्श बायी।।4।।

41

अगय याजमोग ऩथ से ध्मान सभाचध दृढ कयरें तो ऩूवथजन्भों का बेद बी जाना जा सकता है। औय शुद्ध ववचाय ववनम्रता तथा सदाचाय से रोक ऩयरोक दोंनों भें बायी मश प्राप्त होता है।

दो0- सौच सन्तोष अध्ममन तऩ यत हरय प्राणीधान।

“होयाभ” औज फर फाढदहॊ अॊग दसूय तनमभान।।31।। सौच (अन्दय फाहय की ऩववत्रता) सॊतोष तऩ स्वाध्माम तथा ईश्वय भें सभऩथण होने से श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक औजाहद मसवद्धमाॉ प्राप्त होती है औय मह मोग का दसूया अॊग ननमभ कहराता है।

दो0- “होयाभ” सौच सभथप वर्श फाढदहॊ भतत वैयाग्म। सॊमभ फस काभा टये तनभपर भन फढबाग्म।।32।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक सौच की साभथथता भें ऻान व वैयाग्म फढत ेहैं औय सॊमभ से ईच्छाऐॊ मभटती है भन ननभथर होता है ऐसा मोगी फड ेबाग्म वारा है।

चौ0- याग द्वेष काभा सफ टयैदहॊ । भन तनजातभ यभण कयेदहॊ।। सन्तोष सभान अन्म सुि नाहीॊ । देखि ववचारय ऩटर भन भाॊहीॊ।।1।।

ऐसे साधक के याग द्वेष काभना आहद सफ नष्ट हो जात ेहैं औय भन अऩनी आत्भा भें यभण कयता है। अऩने भन के ऩदे भें ववचाय कयके देखो सन्तोष के सभान सुख कहीॊ नहीॊ है।

चौ0- तऩ यत अघभर जीयण जानी । होंहदहॊ भन सॊमभी ववऻानी।।

स्वाध्माम हरय सत्वगुण रीना । ईष्ट शभरन को प्जम अकुरीना।।2।।

ऩाऩ कभों की अऩववत्रता तऩ से दफुथर हो जाती है औय भन सॊमभी ववऻानी हो जाता है। स्वाध्ममन से ईश्वयीम के सत्वगुण प्राप्त होत ेहैं औय भन अऩने ईष्टदेव से मभरने को व्माकुर हो जाता है।

चौ0- ईश्वय प्राणीधान जफ सॊता । साध्म सभाधध यभदहॊ बगवन्ता।।

आसन तीसयो अॊग उच्चायी । जाकय ववधध फहुय प्रकायी।।3।।

साधक को जफ ईश्वय भें सभवऩथत बाव उत्ऩन्न हो जाता है तफ वह सभाचध साध्मकय बगवान भें सभा जाता है। मोग का तीसया अॊग आसन कहा गमा है जजनकी ववचधमाॉ फहुत प्रकाय की हैं।

चौ0- साधक आसन जो दहतकायी । यहहु यत सोइ साध्म ववचायी।।

42

आसन जफ साधक धथय होई । द्वन्द आघात ऩीय नदहॊ कोई।।4।।

साधक को जो बी आसन हहतकायी (सुखद) हो उसी को साध्म कय ध्मान मोग भें ऩयभेश्वय भें यभ जावे जफ साधक का आसन जस्थय हो जाता है उसको तफ वाह्म झगड ेचोट तथा ऩीडा सफ सहन कयने की शजतत आ जाती है।

दो0- अतत शे्रष्ठ मोगाॊग चतुथप तनमशभत प्राणामाभ।

याजमोग आधाय िम्ब सत्मॊ कहदहॊ “होयाभ”।।33।। मोग का चौथा अॊग ननममभत प्राणामाभ है जो अनत शे्रष्ठ है। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक वह नन्सॊदेह सत्म है कक याजमोग का प्राणामाभ ही आधाय खम्ब है।

चौ0- येचक ऩूयक ऩुतन ऩुतन प्राना । हौंदहॊ नाडीभर नष्ट सुजाना।। कदट कदट धचत्त सॊस्काय ऺम होई । बफनसदहॊ ऩाऩ तनभपर भन होई।।1।। फाय फाय के येचक ऩूयक (साॊस खीचना औय छोडना) प्राणामाभ से ऻानी जनों की नाडी शुद्ध हो जाती है। औय चचत्त के सबी सॊस्काय कट कट कय नष्ट हो जात ेहैं। ऩाऩ का नास होता है औय भन ननभथर हो जाता है।

चौ0- प्राणामाभ अभ्मास अऩाया । सॊधचत कभप कोष सफ ऺाया।। होदहॊ तनफर अववद्मादद करेषा । कटतधचत्तई दयुावयण र्शेषा।।2।।

प्राणामाभ अभ्मास कयने से सॊचचत कभथसॊस्काय नष्ट हो जात ेहैं। अववद्मा आहद करेश कभजोय होत ेहैं जजससे चचत्त के शेष दयुावयण बी कट जात ेहैं।

चौ0- आवयण मही ऻान सफ ढाॊका । जासु जीव भद भोदहत बाका।। धचत्त ऩट सॊस ऺम जफ होई । प्रकासदहॊ ऻान जीव भुक्त सोई।।3।।

इन्हीॊ भरावयणो से सभस्त ऻान ढका हुआ है जजससे जीव भोहहत होकय भद भें बया यहता है। जफ चचत्त से मे सॊस्काय आवयण नष्ट हो जात ेहैं तफ ऻान प्रगट होता है औय जीव भुतत हो जाता है।

चौ0- बफनु सतगुरु साध्म मह नाहीॊ । सुनहु साय सफ देंहु फुझाहीॊ।। ऩायिी सदगुरु प्जन्ह ऩामा । ततन्ह सभान को धतन जग जामा।।4।।

43

ऐ सॊतजनों ! ध्मान से सुनो मह चचत्त को नष्ट कयने वारी कक्रमा प्राणामाभ बफना सतगुरु के साध्म नहीॊ है। जजसने ऩूणथ ब्रह्भदशी तत्वगुरु प्राप्त कय मरमा है उसके सभान बाग्मशारी सॊसाय ने ककसको ऩैदा ककमा है ?

दो0- जीवनाधाय कामाऩुरय ऩॊचरूऩ यभदहॊ मह प्रान।

प्राणाऩान सभान ब्मान ऩॊचभ वामु उदान।।34।।

इस शयीय भें जीवन आधाय मह प्राण ऩाॉच रूऩ से यभा हुआ है। प्राण अऩान सभान ब्मान औय ऩाॊचवा उदानवामु है।

चौ0- तनऩुरय प्राण ठाभ भुि घ्राणा । नाशसका रधग उय व्माप्त तनदाणा।। अधौ औय गभदहॊ ववधध नाना । गबप भर भूत्र ववडारय अऩाना।।1।।

इस देहनगयी भें प्राणवामु का स्थान भुख औय घ्राण है जो नामसका से रृदम तक स्वाबाववक रूऩ से व्माप्त है। अऩान वामु गबथ भर तथा भूत्र को फाहय ननकारता है जो ववमबन्न प्रकाय से ऊऩय से नीच ेको गभन कयता है।

चौ0- नाशब सों ऩग रधग अऩान फहदहॊ । नाशब सीभ उय सभाॊ सुहाफदहॊ।। िान ऩान की सफ यस ऩावा । ववववध अॊग मह सभाॊ ऩावा।।2।।

नामब से ऩैयों तक अऩान वामु फहती है औय रृदम से नामब की सीभा तक सभान वामु फहती है। खान ऩान के सफ यसों को प्राप्त कयके सभान वामु शयीय के ववमबन्न अॊगों को ऩहुॉचाती है।

चौ0- वामु व्माने सवप व्माप्त र्शयीया । ववचयेदहॊ सकर अॊग नस नीया।। कॉ ठ कऩार कोभद असथाना । कयदहॊ प्रमान मह वामु उदाना।।3।।

व्मान वामु शयीय भें व्माऩक यहती है जो सभस्त अॊगों की नस नाडडमों भें ववचयती है। कॊ ठ से मसय तक उदान वामु गभन कयती है।

चौ0- भतृ्मु कार सूक्ष्भ देहाकाया । तनकसत जीव उदान आधाया।। वामु उदान सॊमशभत जफदहॊ । तनकसत जीव ब्रह्भयन्ध्र तफदहॊ।।4।।

भतृ्मु कार भें सूक्ष्भ प्राणदेह (मरॊग शयीय) आकाय वारा मह जीव उदान वामु द्वाया फाहय ननकरता है। जफ उदान वामु ऩय सॊमभ मसद्ध हो जाती है तफ ही जीव (सॊतात्भा) ब्रह्भयॊध्र से होता हुआ फाहय ननकरता है।

दो0- अतत बोजन अततबूि वा अततर्शामारस्म तनिाथप।

“होयाभ” अतत जाग्रण अवऩ मोग न सधदहॊ मथाथप।।35।।

44

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक अचधक बोजन कयके मा अचधक बूखा होने ऩय मा अचधक ननद्राथथ आरस्म मा अचधक जागने ऩय बी मोग साधन ठीक नहीॊ सधता। चौ0- ऩॊचभ अॊग प्रत्माहाय सुहाई । भधथ भनोवपृ्त्त अन्त्ऩुय राई।।

योककम भन करय केन्ि दठकाना । वैयाग्म अभ्मास फस सुदृढ जाना।।1।।

मोग का ऩाॉचवाॊ अॊग प्रत्माहाय है अथाथत भनोवजृत्तमों को फाहय से मसभटा कय अन्त्कणथ भें राना है भनको योक योक कय एक केन्द्र ऩय जस्थत कयना है जो अभ्मास तथा वैयाग्म से सुदृढ हो जाता है।

चौ0- याजमोग िम्फ प्रत्माहाया । जासु भन अवयोधधत बाया।। प्रत्माहाय शसवद्ध शसद्ध जफहीॊ । इप्न्िमाॊ तनग्रह हौंहदहॊ तफहीॊ।।2।।

प्रत्माहाय याजमोग का एक जस्थय आधाय खम्फ है जजसका भन ऩय अऩाय रूऩ से अवयोध होता है। साधक को जफ प्रत्माहाय मसद्ध हो जाता है तफ उसकी सफ इजन्द्रमाॉ वशीबूत यहती हैं।

चौ0- ऐकदहॊ केन्ि भनोवपृ्त्त धायी । यहेऊ अडडग न डडगे रक्ष्मायी।। मोगीजन धायण मह भानी । मोग अॊग षष्टभ कदह ऻानी।।3।।

साधक अऩनी भनोवजृत्तमों को एक ही केन्द्र ऩय जस्थय कये औय अडडग यहे रक्ष्म न डडग सके मह मोगी जनों ने धायणा भानी है जजसे ऻानी जन मोग का छठा अॊग कहत ेहैं।

चौ0- धायण गतत धायणा कहराइ । जो करय सभाधध रूधचय फनाइ।।

ऩुतन ऩुतन भन ववषमन भॊह आवा । अटर धायणा वॊर्श करय रावा।।4।।

धायण कयने की कक्रमा को धायणा कहत ेहैं जजससे सभाचध अवस्था रूचचकय फनती है। भन फाय फाय ववषमों भें बागता है अटर धायणा गनत से इसे वश्म भें कय मरमा जाता है।

दो0- भनदहॊ फेग घीभा कये िीॊचत यहे र्शयीय।

योक योक भन केन्ि करय फाॊधध प्राण झनझीय।।36।।

सॊतो का कथन है कक भन के वेग को धीभा कयता जामे औय धायणा के मरमे शयीय को सतकथ यखें तथा भन को प्राण की जॊजीय भें फाॊधकय फाय – फाय योक – योक कय केजन्द्रत कये।

चौ0- रक्ष्म एक प्जदहॊ धचत्त उरूझाहीॊ । सभाधधदहॊ अन्म दृष्म तद नाहीॊ।।

45

धायणगतत धचत्त ध्मेमकाया । असभी बाव अबाव अऩाया।।1।।

जफ चचत्त को ककसी एक रक्ष्म ऩय रगात ेहैं तफ सभाचध अवस्था भें साधक के सम्भुख दसूया दृश्म नहीॊ होता। इसी धायणा से चचत्त ध्मेमाकाय वारा हो जाता है। उस सभम अऩनेऩन (आऩा) का बान ऻान नहीॊ यहता।

चौ0- एदहॊ अवस्था भन रमयावा । सो सप्तभ अॊग ध्मान कहावा।। बमऊ ध्मानयत जफ फहु कारा । सुयत सभाधधस्थ क्रभ तनयारा।।2।।

इस अवस्था भें जफ भन रम हो जाता है तफ उस अवस्था को ही मोग का सातवाॊ अॊग ध्मान कहा जाता है। जफ इसी प्रकाय फहुत सभम तक ध्मान जुड जाता है तफ सभाचध अवस्था भें सुनतथ का ननयारा क्रभ होता है।

चौ0- बज सतनाभ मदवऩ ववऩदाहू । नादहॊ सुयग सुि ततदह सभताहू।। ववऩद आम नय उच्चकरय हेतू । जगद बोग बीॊतत जतन येतू।।3।।

ऩयभेश्वय का साॉचा नाभ बजना चाहहमे इसभें चाहें ककतनी बी ववऩजत्त तमों न हों तमोंकक इसकी सभानता भें स्वगथ का सुख बी कुछ नहीॊ है। ववऩजत्त तो भनुष्म को ऊॉ चा उठाने के मरमे आती है औय सॊसाय के बोग तो येत की दीवाय की तयह होत ेहैं।

चौ0- जे सॊत सुयतत ध्मान सभावा । मोगारूढ ऩयभ ऩद ऩावा।। ध्मान बफना तनश्पर तऩ जाऩू । मदवऩ सहैदहॊ फहुरय सन्ताऩू।।4।।

जो सॊत अऩनी सुयनत को ध्मान भें सभात ेहैं वे मोगऩथ ऩय मात्रा कयत ेहुवे ऩयभऩद प्राप्त कयत ेहैं। जऩ तऩ सफ ध्मान के बफना ननष्पर होत ेहैं चाहे ककतनी ही ऩयेशानी तमों न उठाई गई हो।

दो0- अष्टभ अॊग सभाधध अहदहॊ मोगी प्राप्त ववऻान।

सवपरोक ऩयरोक रित भनहय ववषम भहान।।37।।

याजमोग का आॊठवाॊ अॊग सभाचध है जजसभें मोगी ववऻान प्राप्त कयता है। वहाॉ सभस्त रोक ऩयरोक देखता है। मह फडा ही भनोहय ववषम है।

चौ0- जेइ जेइ रक्ष्म धचत्तदहॊ रगावा । ताही भादहॊ इकाग्रतत ऩावा।।

दसूय दृष्म जफ धचत्त के नाहीॊ । ध्मानाव्स्था सभाधध कहाहीॊ।।1।।

जजस जजस रक्ष्म भें चचत्त को रगामा जाता है उसी उसी भें चचत्त भें इकाग्रनत प्राप्त होती है औय जफ चचत्त भें दसूया कोई दृष्म नहीॊ होता तफ वह अवस्था सभाचध कहराती है।

46

चौ0- केवर ध्मैम ऩदायथ भाॊहीॊ । धायणा ध्मान सभाधध जुडाहीॊ।।

ऩयभ ववयाग शसद्ध जफ साधक । धचत्त सॊस्काय तफहुॉ नदहॊ फाधक।।2।।

साधक को चाहहमे कक वह केवर एकध्मेम तत्व भें ही धायणा ध्मान तथा सभाचध को जोड दें। जफ साधक को ऩयभ वैयाग्म हो जाता है तफ चचत्त के सॊस्काय उसके भागथ भें फाधक नहीॊ होत।े

चौ0- जे कछु कभप कयत जग प्रानी । सॊस्काय सवप सॊधचत धचत्त जानी।। जफ रधग धचतदहॊ र्शेष सॊस्काया । होंइदहॊ न सुयत भुक्त बव ऩाया।।3।।

प्राणी सॊसाय भें जो बी कभथ कयता है उसके कभथ सॊस्काय सफ चचत्त भें सॊचचत हो जात ेहैं औय जफ तक चचत्त भें सॊस्काय शेष हैं तफ तक मह जीवात्भा बवसागय ऩाय होकय भुजतत नहीॊ ऩाती।

चौ0- सॊस्काय ववच सॊमभ करय मोगी । जानदहॊ ऩूवपजन्भ कृत बोगी।। धचत्त सॊस्काय ववनर्शम जफ साये । केवल्म तनवेर्श सभाधध तनहाये।।4।।

सॊस्कायों भें सॊमभ कयके मोगी अऩने ऩूवथजन्भ के ककमे गमे कभथ बोंगों को जान जाता है। औय जफ चचत्त के सभस्त सॊस्काय नष्ट हो जात ेहैं वह स्वमॊ को सभाचध भें अऩने केवल्म (भुजतत धाभ) भें प्रववष्ट हुआ देखता है।

दो0- बानु भॊह सॊमभ आप्त गय प्रगटदहॊ रोक ववऻान।

“होयाभ” भमॊक सॊमभ करय उदमदहॊ उड्गन ऻान।।38।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक सूमथ भें सॊमभ से ब्रह्भाण्ड का ऻान होता है औय चन्द्रभा भें सॊमभ कयने से तायागण का ऻान होता है।

दो0- घु्रव ताया से तायाभतत नाशब सॊमभ तनु ऻातन।

कॊ ठ कूऩ सॊमभ करय बूि प्मास तनवततन।।39।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक धु्रवताये भें सॊमभ कयने से तायों की गनत का नामब भें सॊमभ कयने से शयीय का ऻान होता है। औय कॊ ठतार भें सॊमभ कयने से बूख प्मास से ननवजृत्त हो जाती है।

दो0- कुभापकाय नाडी सॊमभ धचत्त अरू तन धथय होम।।

भूधाप ज्मोतत सॊमभ धथय शसद्ध दयसन पर सोम।।40।।

शयीय भें कुभाथकाय नाडी भें सॊमभ कयने चचत्त औय देह जस्थय होती है। ब्रह्भनाडी भें ज्मोनत का सॊमभ कयके जस्थय होने से मसद्धों के दशथन का पर प्राप्त होता है।

47

चौ0- वरयष्ठ गतत मोगी जफ ऩावा । अगखणत रोकऩतत तव आवा।। बमउ देव रोकेर्श शसद्ध दशर्शपत । सवप तनहारय मोगी बमे हवषपत।।1।।

जफ मोगी की ध्मान मोग भें उत्तभ गनत हो जाती है तफ अगखणत रोक अचधष्ठाता प्रगट होने रगत ेहैं। औय देवी देवताओॊ मसद्धगण रोकेश्वयों के दशथन होने रगत ेहैं उन्हे देखकय मोगी फहुत खुश होता है।

चौ0- देव प्ररोब देंदहॊ ववधध नाना । चहदहॊ साध्म की ध्मान डडगाना।।

बूशर तेंदह भ्रभ जार न ऩयहू । ऺखणक जातन तनज रक्ष्म अनुसयहू।।2।।

देवतागण अनेकों प्ररोबन देकय साधक का (ऩयीऺा रूऩ भे) ध्मान डडगाना चाहत ेहैं। बूरकय बी उनके भ्रभजार भें नहीॊ ऩडना चाहहमे फजल्क उन्हे ऺखणक जानकय अऩने रक्ष्म का अनुसयण कयना चाहहमे।

चौ0- फड ेबाग्म हौं नय तन ऩावा । ऋवद्ध शसवद्ध सॊग सुयगण आवा।। रोक ऩयरोक ब्रह्भाण्ड ऩुतन ऩाया । हौं देित कपयेउ मथानुसाया।।3।।

भेये तो फड ेबाग्म हैं कक भैंने भानव देह प्राप्त की है देवगण ऋवद्ध मसवद्ध रेकय भेये ऩास आत ेहैं औय भैं रोक ऩयरोक अऩाय ब्रह्भाण्ड तथा वहाॉ के बी ऩये के सबी धननॊ ऩुरुषों को देखता जाता हूॉ।

चौ0- भैं अतत शे्रष्ठ ईर्श सॊत तोया । कयदहॊ शसद्ध सुय आदय भोया।। अस अशबभान नासकय भूरा । यहहु सजग त्माग जतन रू्शरा।।4।।

देवताओॊ के इस प्रकाय के व्मवहाय को देखकय साधक को कबी बी ऐसा अमबभान नहीॊ कयना चाहहमे कक हे ऩयभेश्वय भैं तयेा अनत शे्रष्ठ सन्त हूॉ देवतागण बी भेया आदय सत्काय कयत ेहैं तमोंकक मह नास का कायण हो जाता है। सदा सतकथ यहना चाहहमे। ऐसा अमबभानी ववचाय प्रनतकूर सभझकय तत्कार त्माग देना चाहहमे।

दो0- तनन्दक दहतषेी साधु का चुन चुन दोष ऩचाम।

स्वमॊ नयक फासा कये साधुन शे्रष्ठ फनाम।।41।।

ननॊदा कयने वारा साधु का हहतषेी होता है वह उसके सफ दोष अऩने ऊऩय रेकय स्वमॊ नयक जाता है ऩयन्तु साधु को शे्रष्ठ फनाता है।

दो0- तनन्दक तनमये याखिमे ऩरक न दरूय याखि।

सॊत सुकृत सुयतछत कये िोज िोज अघ चाखि।।42।।

48

ननन्दा कयने वारे को सदा ऩास यखें ऩरक बय की देयी को बी दयू न कयें तमोंकक वह साधु का सफ दोष खोज खोज कय स्वमॊ खा जाता है औय इस प्रकाय सन्त का ऩुण्मकोष सुयक्षऺत यखता है।

दो0- “होयाभ” तयेी तनन्दक अतत तनशर्श ददन िेंरें दाव।

तू ऩयभाथप न अततसजृ याभ बफजानदहॊ बाव।।43।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक ये भन तयेे ननॊदक फहुत हैं यात हदन अऩना दाॊव खेरत ेहैं ऩयन्तु तू ऩयभाथथ भत त्माग तमोंकक ईश्वय सफ बावों को सभझत ेहैं।

दो0- ऩग ऩग प्रततयोधी िड ेज्मूॊ यसना ववच दन्त।

जैसी भतत तैसी गतत फैय ईर्श औय अन्त।।44।।

ऩग ऩग ऩय तयेे ऐसै ववयोधी खड ेहुवे हैं जैसे कक दाॊतों के फीच जजव्हा यहती है। जजसकी जैसी भनत है वैसी ही उसकी गनत है तमोंकक ईश्वय औय आतॊक दोंनों भें शत्रुता है।

दो0- “होयाभ” गुरु आऻा तनबा तनबपम कय ऩयभाथप। जफ जफ भुतन भि फाधा ; तफ याभ फनाई साथप।।45।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक ये भन तू गुरु आऻा का ऩारन कय औय ननबथम ऩयभाथथ कय। ववश्वामभत्र भुनन ने जफ जफ मऻ यचच तफ ही फाधा ऩडी ऩयन्तु एक हदन याभ ने उसे साथथक फना हदमा था।

6 – प्राणावयोध

दो0- प्जन ऩकयो तनज प्राण मह प्राप्त सोम र्शप्क्त सकर।

प्राणावयोध भतृ्मु नहीॊ फमायव्रत छवव अचर।।46।।

जजसने अऩने प्राण ऩय ननमन्त्रण कय मरमा उसने सफ शजततमाॉ प्राप्त कयरी हैं। प्राण का योक रेना भतृ्मु नहीॊ है फजल्क प्राणामाभ का चभत्काय है।

छ0- इकसत ्इक नरी उय सयोरूह जाभॊह ववर्शेष सुष्भन फतन। गमऊ कऩार छौय ओय रधग अधौ हवै कुन्डरीतन ऩदभ भतन।।

प्रगटत कुन्डरीतन जाग्रतत ऩै अद्भौतत ज्मोतत ददनकय जतन।

“होयाभ” नाशब वऩॊड कॊ ज शरऩदट सो सोवत कार ऩुयाततन।।4।।

49

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक रृदम कभर भें से एक सौ एक नाडडमाॉ ननकरती हैं जजनभें सुष्भना ववशेष रूऩ से फनी हुई है। मह रृदम से कऩार की ओय गई है इसके नीच ेकुण्डरानन का ऩदभ है। नाबी ऩदभ से मरऩटी हुई फहुत सभम से मह आद्मा शजतत (कुण्डरीनन) सोई ऩडी है। जजसके जागने से सूमथ के सभान अद्भतु ज्मोनत प्रकट होती है।

दो0- “होयाभ” सुष्भन भध्म फज्रा धचत्रणी फज्रा भाहीॊ। धचत्रणी ववच रूऩा नरी ताभॊह सुयत चढाहीॊ।।47।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक सुष्भना के अन्दय फज्रा नाडी है औय फज्रा भें चचत्रणी नाडी है औय चचत्रणी भें रूऩा नाडी है इसी भें सुयनत को चढाना चाहहमे।

दो0- इक इक प्रस्तय जेई ववधध चदढदहॊ आद्मा उध्वप छौय।

त्मूॊ त्मूॊ ऩद ऩद भन स्तय ऩट कटत जात सफ ओय।।48।।

(जफ रूऩा नाडी भें मोगस्थ सडक ऩय) जजस प्रकाय एक एक भजन्जर कुन्डरीनन ऊऩय की ओय चढती जाती है तफ त्मूॉ त्मूॉ ऩद ऩद ऩय भन के स्तय ऩट (भरावयण सफ तयप से कटते) जात ेहैं।

छ0- भानुष अघ कटक सुष्भन तनवेर्श जाकय योक आद्मा ऩडमौ। फदढ चरत रई फमायव्रत दृढ सुष्भन रु्शधच तद सुततप चढमौ।।

कुन्डरीतन चढत कऩार ओय तद भर जरय र्शप्क्त स्रोत फढ्मौ।

“होयाभ” िुरत ददव्मनमन कॊ ज नादहॊ सॊत भद भोह भढ्मौ।।5।। भनुष्म के ऩाऩ सभूह सुऩष्भना भें प्रववष्ठ होत ेहैं जजससे आद्मा शजतत को योक रगती है ऩयन्तु प्राणामाभ द्वाया सुष्भना को मह शुद्ध कयती हुई आगे फढती है। औय सुनतथ बी ऊऩय चढती है। कुन्डरीनन जफ सुष्भना भें कऩार की ओय को चढती है तफ ऩाऩ जरत ेहैं औय मोग शजतत का स्रोत फढता है। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक जफ हदव्म नेत्र खुर जाता है तफ सन्त अहॊकाय औय भोह भें नहीॊ पॊ सता।

7 – वऩन्ड देर्श दर्शपन

छ0- ब्रह्भऩॊथ प्रयम्ब कार ध्मान ववच अद्भौतत कर दृष्म ववजानदहॊ।।

50

झरकत इत उत कोहरू धुम्र अनर याकेर्श ददनेर्श तनसानदहॊ।।

अम्फय अतनर आरोक ततशभय बू चऩरादद चभक सन आनदहॊ।।

ऩॊचबूत ऊऩय उदठ साधक मत प्राप्मत शसवद्ध ववयद भहानदहॊ।।6।।

ब्रह्भऩॊथ के आयम्ब भें ध्मानावस्था भें अदबुत सुन्दय सुन्दय दृष्म जान ऩडत ेहैं इधय उधय, धुॊवा, अजग्न चाॊद सूयज जैसे ननशान झरकत ेहैं तथा मोगी के साभने आकाश वामु प्रकाश के नतयमभये से ऩथृ्वी तथा ववद्मुत जैसी चभक आती है। अफ साधक ऩॊच भहाबूत (ऩथृ्वी-जर-वामु-आकाश-अजग्न) तत्वों से ऊऩय उठ जाता है औय महाॉ उसे अनेक भहान मसवद्धमाॉ बी प्राप्त हो जाती हैं।

दो0- प्रायम्ब वऩण्डी ऺेत्र भॊह ठाडड षट् चक्र भुकाभ। “होयाभ” ववरोकक सुतप तहॊ चारू दृष्म शरराभ।।49।। आयम्ब भें वऩन्ड ऺेत्र की मात्रा भें ऩहरे छ् चक्रों के भुकाभ जस्थय हैं। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक सुनतथ महाॉ ऩय अनेंकों भनोहय दृष्म देखती है।

चौ0- गुदास्थान भुराधाय सुहाई । क्रीॊ जाऩ रूधच वणप रराई।। ववऩुर शसवद्ध भनोहय भुकाभा । चारय दरन को गणऩतत धाभा।।1।।

गुदास्थान भें भूराधाय चक्र है जो रार यॊग का है तथा महाॉ ऩय तरीॊ का जाऩ होता है। मह फहुत सी भनोहय मसवद्धमों का स्थान है वह चाय दरों का फना हुआ गणेश जी का धाभ है।

चौ0- दसूयों इप्न्िम चक्र ववर्शारा । कनक दतुत सभ रूधचय उजारा।। याजत चतुयानन इहधाभा । षट्दरन ऩरयऩादट अशबयाभा।।2।।

दसूया ववशार इजन्द्रम चक्र है जजसभें सोने की चभक जैसा प्रकाश है मह श्री ब्रह्भा जी का सुखधाभ है जो छ् दरों की सुन्दय यचना है।

चौ0- नाशब कभर ऩदभनाब सुहाहीॊ । दस दरन दस र्शब्द उदाहीॊ।। अनाहत चक्र रृदम असथाना । शर्शव शर्शवानी रूधचय दठकाना।।3।।

नामब कभर भें श्री ववष्णु बगवान सोबामभान हैं महाॉ दस दरों भें दस शब्द प्रगट होत ेहैं। रृदम भें अनह्त चक्र है जहाॉ मशव ऩावथती का सुन्दय ननवास है।

चौ0- कॊ ठ भाॊही सुदठ ववरु्शद्ध भुकाभा । षोडस दरन भमॊक यॊग धाभा।। श्री दगुाप स्वदेर्श फसावा । अतत अनूठ सॊत अचयज ऩावा।।4।।

51

कॊ ठ स्थान भें सुन्दय ववशुद्ध चक्र है जो सोरह दरों का चन्द्रभा जैसे यॊग का स्थान है इस स्थान ऩय दगुाथ जी ननवास कयती हैं मह फहुत ही अनूठा धाभ है जजसे देखकय सॊतजन आश्चमथ कयत ेहैं।

दो0- अक्षऺअमन आऻाचक्र भॊह दोऊ दर तनशभपत ठाभ।

ऩॊचतत्व शबन्न शबन्न यॊग तहाॉ ज्मोततववपबु रु्शधचधाभ।।50।।

आॉखो के स्थान भें आऻाचक्र है जो दो दरों का फना हुआ स्थान है महाॉ ऩाॉचों तत्वों के मबन्न मबन्न यॊग हदखाई ऩडत ेहैं। मह ज्मोनत ननयॊजन का ऩववत्र धाभ है (फहुत से मोगी इन शट्चक्रों को हठमोग द्वाया तोडत ेहैं ऩयन्तु हहन्तुत्व ऩद ननवाथण देश अनाभी रोक जाने वारे माबत्रमों को इनके तोडने की आवश्मतता नहीॊ है। तमोंकक हभें सहज याजमोग द्वाया ऩूणथ हहन्दतु्व ऩद तक ऩहुॉचना है) (जहाॉ है न द्वैत वही हहन्दतु्व है) जजसे सनातन धभथ से जाना जाता है।

8 – ब्रह्भाण्ड देर्श दर्शपन

दो0- चरत चरत सुयतत चदढ सहस्त्रदर कॊ ज भझाय।

सत्मॊ शर्शवभ प्रकार्श अतत िुरत ब्रह्भाप्ण्ड द्वाय।।51।।

महाॉ से आगे सुयनत चरकय सहस्रदर कभर भें प्रववष्ट होती है महाॉ सत्मॊ मशवॊ का ववऩुर प्रकाश है औय महाॉ अफ ब्रह्भाण्ड का दयवाजा खुर जाता है।

दो0- “होयाभ” ब्रह्भाण्ड िॊड मत यत सुयततर्शब्द रीन।

सतगुरू ऻान अभ्मासयत िुरत कऩाट भहीन।।52।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक अफ ब्रह्भाण्ड देश भें महाॉ से सुनतथ को शब्द भें रीन कय रेवे औय अऩने सतगुरु के ऻान अभ्मास से भहीन कऩाट हदव्म नमन खुर जाता है। (सहज याजमोगी महीॊ से साधनाभ्मास शुरु कयत ेहैं)।

दो0- सतगुरु दीऺाधाय सुयत धावदहॊ वेग सभीय।

सहस्त्रदर कॊ ज से तनकशस ऩहुॉचत बत्रकुदट तीय।।53।।

सतगुरु से प्राप्त दीऺा आधाय ऩय सुयनत वामु वेग से दौडती है औय सहस्रदर कभर से ननकर कय बत्रकुटी के ननकट ऩहुॉचती है।

चौ0- इडा वऩ ॊगर सुष्भन भनोहाया । बत्रकुदट सॊगभ भहान ववस्ताया।। घन्टा नाद ध्वतन अशस आवा । जतन सभीऩ कोऊ भप्न्दय बावा।।1।।

52

इडा वऩ ॊगरा औय सुष्भना नाडी का भनोहय भहान ववस्ताय वारा बत्रकुटी भें सॊगभ है बत्रकुटी भें घन्टे नाद फजने की ऐसी आवाज गूॉजती है भानों ऩास भें ही कोई भजन्दय हो।

चौ0- बत्रकुटी भायग इक फॊकनारा । गुरु दर्शपन तॉह हों ततष कारा।। व्माऩक बत्रकुदट बत्रगुणी भामा । ववऩुर भनोयभ जार बफछामा।।2।।

बत्रकुटी से ऩहरे यास्त ेभें एक फॊक नार आती है जहाॉ ऩहुॉचकय साधक को गुरुदेव के दशथन होत ेहैं। बत्रकुटी भें बत्रगुणी भामा व्माप्त है जजसने वहाॉ भन को हयने वारा जार बफछामा हुआ है।

चौ0- होई सुयतत सदगुरु ऩदरीना । ऩाम ऩास गई सुन्न नवीना।। अदबुत अतत ववस्ताय भुकाभा । बये फहु सय अभतृ अशबयाभा।।3।।

सुयनत सतगुरु चयणों भें रीन होकय उनसे ऩास (प्रभाणादेश) ऩाकय सुन्न रोक भें जाती है। मह फहुत ववस्ताय वारा तथा अदबुत स्थान है महाॉ फहुत से अभतृ के सुन्दय ताराफ है।

चौ0- हीये ऩन्ने भहर अतत बायी । देवरोक सुि ववववध प्रकायी।। ववस्ततृ वन उऩवन तहॉ नाना । देवरोक महीॊ सुयधग स्थाना।।4।।

महाॉ हीये ऩन्ने जड ेहुवे अनेक ववशार भहर हैं। अनेक प्रकाय से सुखदामी मह देवरोक है। महाॉ अनेकों फड ेफड ेवन उऩवन हैं महीॊ देवरोक का स्वगथधाभ है।

दो0- रु्शब कभपपर ऩावदहॊ स्वगप बोगदहॊ बोग भहान।

ऩुण्म फयाफय सफ बोगदहॊ ऩुण्म ऺीणत इह आन।।54।।

शुब कभथ कयने से स्वगथ प्राप्त होता है जहाॉ भहान बोग बोगे जात ेहैं ऩयन्तु सफ ऐश्वमथ ककमे गमे ऩुन्म कभों के फयाफय ही मभरत ेहैं। जफ ऩुण्म कभथ सभाप्त हो जात ेहैं तफ ऩुन् सफको इसी भतृरोक भें आना ऩडता है।

दो0- सुय सुन्दयी अप्सया तहॊ चॊहदहॊ ध्मान डडगाम।

नाना सुि उरझाई सफ मोगी रक्ष्म बटकाम।।55।।

देवरोक भें अनेक देवता व देव सुन्दयी मोगी का ध्मान डडगाना चाहत ेहै तथा मोगी को अनेकों प्रकाय से अऩने सुखों भें उरझाकय उसे रक्ष्म भें बटका देती है।

दो0- ब्रह्भ ऩधथक को चादहमे तप्ज सफ सुय सुि धाभ।

53

दृढ ववयाग फढता चरत दयू फसत “होयाभ”।।56।। ब्रह्भ भागथ ऩय चरने वारे मोगी को चाहहमे कक वह देवरोक के सफ सुखों को त्मागता हुआ दृढ फैयाग्म से आगे फढता चरे तमोंकक उसका अऩना घय कहीॊ दयू ही है।

चौ0- अगे्र भहासुन्न ववषभी घाटी । जीव यदहत ऩयकृतत ऩरयऩाटी।। भामा अॊध ऩावत नदहॊ फाटी । शसॊह बारू ववषधय कहॉ घाटी।।1।।

आगे भहासुन्नरोक की अन्धेयी घाटी है महाॉ की प्रकृनत यचना जीव यहहत है। महाॉ भ्रभात्भक अॊधेये भें यास्ता बी नहहॊ मभरता अन्धेयी घाहटमों भें कहीॊ कहीॊ शेय बारु व साॊऩ मभरत ेहैं।

चौ0- ऩहुॉचत सुयत ऩुतन बुॊवय भझायी । जीव प्रकृतत भामा बई सायी।। सहस्त्र अठ्ठासी दीऩ यचामे । हीये भुततमन भहर जुयामे।।2।।

कपय सुनतथ बुॊवय गुपा भें ऩहुॉचती है महाॉ की भामा जीॊव प्रकृनत मुतत है। अट्ठासी हजाय दीऩ प्रज्वमरत हैं औय भहरों भें हीये भोती जड ेहुवे हैं।

चौ0- हॊस ऩुरुष तहॊ आमसु ऩावा । सकर प्रकृतत बव चक्र चरावा।। फहौरय सुयत दहन्डाये भाॊहीॊ । देत गतत ततष सोहॊ साॊहीॊ।।3।।

महाॉ ऩय हॊसऩुरुष (भहाकार) की आऻानुसाय सभस्त बव चक्र को प्रकृनत चरा यही है अनेक भोऺगाभी आत्भाओॊ को महाॉ एक हहन्डौरे भें भहाकार जगदीश्वय घुभा यहें हैं।

चौ0- आत्भा भाॊझ हॊसतन ववयाजै । झूरो ऩय हॊस आत्भा गाजै।। कैरासी सॊत शभरत कताया । अदबुद छवव रखि करय जमकाया।।4।।

इन आत्भाओॊ के फीच भें हॊस ऩुरुष ववयाजभान हैं महाॉ हॊस आत्भाऐॊ झूरों ऩय झूरती हैं। महाॉ ऩय कैराश ऩय जाने वारी सॊतों की कताये मभरती हैं महाॉ की छवव को ववयरा सॊत ही देख ऩाता है। जजसे देखकय वह जम जमकाय कयने रगता है। (महाॉ तक ब्रह्भाण्ड की यचना है)।

दो0- तत्वदयसी सातनध्म भें गय साधक भन धीय। “होयाभ”देव प्रऻा जगे ऩहुॉच ेसचिॊड सीय।।57।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक तत्वदशी सदगुरु के साननध्म भें साधक भन भें धैमथ से काभ रे तो उसकी प्रऻा जाग जामेगी जजससे वह सॊचखण्ड देस भें चरा जामेगा।

54

9 – दमारदेर्श दर्शपन

छ0- बुॊवय तप्ज सचिण्ड गभदहॊ ववर्शार सीभ नहीॊ आय ऩाय। षोड्स बानु हॊस चॊवय डुयावदहॊ सतधुतन व्माप्त बफनु कर शसताय।।

सुयत बफरोकत वववऩन ववगशसत चहुॉ ददशस फमाय सुगन्ध अऩाय।।

“होयाभ”देव कौदट यवव दतुत सभ सतऩुरुष व्माप्त उप्जमाय।।7।। आगे बुॊवयरोक को छोडकय सुयनत सचखण्ड भें प्रवेश कयती है जजसकी ववशार सीभा का कोई वायऩाय नहीॊ है। सोरह हॊस धनन ऩुरुष सतऩुरुष का आदेश फजात ेहैं औय बफना मसताय करऩुजों के धुनन सभाई यहती है। फगीचों की चायों तयप व्माऩक सुगॊध पैरी है। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक कयोडों सूमो के प्रकाश के सभान सत्मऩुरुष का प्रकाश है।

छ0- तदटतन तट तुयास तरूवय तान तनावतत र्शािा कुॉ ज करी। ववगशस तीय कभर कहुॉ तनयित सय अकप आब ्दयसत बरी।।

ववववध योय बफहॊग तॉहवाॊ कूजत कूर कहुॉ कर हॊस करी।

“होयाभ” तरून ऩई जुगनु जतन ज्मोतत, दृग िोशर ववराकक गरी।।8।। महाॉ ऩय नहदमों के ककनाये तुयास जैसे वृऺ ों की शाखाऐॊ तथा कमरमाॉ तान सा तनाव यही है ककनाये ऩय कहीॊ कहीॊ कभर खखरे हैं। महाॉ सूमथ की छवव ताराफ भें फडी भनोहय रगती है। ववमबन्न प्रकाय के ऩक्षऺमों की चहचाहट हो यही है जराश्मों भें कहीॊ – कहीॊ हॊसों की कताये हैं। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक वृऺ ों ऩय जुगनु जैसी ज्मोनतमाॊ हदखाई देती हैं मे दृष्म प्रऻा नेत्र खोरकय ही हदखाई देत ेहैं।

दो0- अततश्म अभतृ तडाग तहॊ अभ्रॊकष ववटऩ अथाम।

जाऩय याजदहॊ भुक्तात्भा सुयतत अनहद हयषाम।।58।।

महाॉ अनेक अभतृ कुन्ड हैं तथा रम्फे रम्फे वृऺ हैं जजन ऩय भुततात्भाऐॊ ववयाजभान हैं महाॉ ऩय सुयनत अनहद भें भस्त हो जाती है।

चौ0- आगे अरि रोक हौं जानी । अरि ऩुरुष अरि ठकुयानी।। अयफन बानु योभ सभ नाहीॊ । मत सुयतत फीज रूऩ दयुाहीॊ।।1।।

55

आगे भैंने अरखरोक को देखा वहाॉ अरखऩुरुष की प्रबुता है उसके योभ के सभान अयफों सूमथ बी नहीॊ है महाॉ सभस्त आत्भाऐॊ फीज रूऩ भें गुप्त यहती हैं।

चौ0- अरिधतन दहयण्मगबप कहामे । जहवाॊ सवप जीव रम ऩामे।।

ब्रह्भददवस सो जीव तनकसावा । तनशर्श कार तनप्ज गबप सभावा।।2।।

मह अरख ऩुरुष ही हहयण्मगबथ है जजसभें सभस्त आत्भाऐॊ रम होती है अऩने हदवसकार भें वह जीवों को सॊसाय भें बेजता है तथा अऩनी यात्री कार भें हहयण्मगबथ भें सभा रेता है।

चौ0- ताऩय अगभ भहर इक साजा । अगभ ऩुरुष तहॊ उत्तभ याजा।। अगखणत रोक रोकेर्श अिॊडा । कयैहीॊ याज्म तनज तनज ब्रह्भण्डा।।3।।

उससे आगे अगभ ऩुरुष का भहर है वहाॉ का सवोऩरय याजा अगभ ऩुरुष है। अगभरोक भें अगखणत रोक रोकाचधऩनत हैं जो अऩने अऩने ब्रह्भाण्डों भें याज्म कयत ेहैं।

चौ0- आभ दयफाय असॊख्म ऋवष सॊगा । होदहॊ प्रवचन सतसॊग प्रसॊगा।। ऩयभ प्रकार्श व्माप्त ततन्ह रोका । ककॊ धचत नादह ऩीय दिु र्शोका।।4।।

महाॉ एक आभ दयफाय भें असॊख्म सॊतजनों के साथ सतसॊग प्रवचन के प्रसॊग होत ेहै। उस रोक भें ऩयभ प्रकाश व्माप्त है ककॊ चचत भात्र बी कोई ऩीडा दखु मा तरेश वहाॉ नहीॊ है।

दो0- भोऺाशबराषी आत्भा तहॊ कयदहॊ अजफ ववरास।

न चभकत यवव र्शशर्श दाशभतन ववकशसत तनज प्रकार्श।।59।।

भोऺामबराषी आत्भाऐॊ महाॊ अदबुत आनन्द प्राप्त कयती हैं वहाॉ न चाॉद है न सूयज औय न ववद्मुत ही चभकती है केवर आत्भाओॊ का ननजज प्रकाश ही व्माप्त है।

10 – तनवााँण (दहॊन्दतु्व) ऩद

दो0- बफनु तत्वदयसी सतगुरु सुयत गभन नदह ऩूय।

“होयाभ” बयशभत ववद ुअवऩ ऩाए ऩतन भग चूय।।60।।

56

सदगुरु के बफना मह सुयनत मात्रा ऩूणथ नहीॊ होती। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक ववद्वान बी भ्रमभत हैं जो उनके बफना ऩतन को चरे जात ेहैं, उनका भागथ नष्ट हो जाता है।

चौ0- भैं सफ सॊतन की ऩगधूया । जे रई नाभ सतगुरु ऩूया।। सतगुरु सूयत गगन चढावा । अगभ अगोचय ऩाय रिावा।।1।।

भैं सफ सॊत जनों की जजन्होने ऩूणथ सतगुरु से सतनाभ की दीऺा री हुई है चयणों की धूरी हूॉ। सतगुरु ही सॊत की सुनतथ को नबभॊडरों भें चढाता है औय अगभ अगोचय से आगे हहन्दतु्व धाभ अनाभी को हदखाता है।

चौ0- सकर बाॊतत ईर्श तनयाकाया । कफहुॉ न रेदहॊ देह अवताया।। यवव आददक को धायक देवा । को ववधध होंदहॊ देह भॊह ठेवा।।2।।

ईश्वय सफ प्रकाय से ननयाकाय है वह कबी बी देहावताय धायण नहीॊ कयता वही सूमों आहद को धायण कयने वारा देव है कपय बरा वह ककस प्रकाय देह धायण कयेगा।

चौ0- प्जदहघट ताही तजे अवतयदहॊ । अवताय जातन जग ततदह अनुसयदहॊ।।

ताही ववबूतत सुय जगत धथयावा । ततन्ह तनॊदक प्रबुकृतत ठकुयावा।।3।।

जजसके रृदम भें उस ऩयभेश्वय की तजे ककयण उतय जाती है। सॊसाय उसी को अवताय भानकय उसका अनुसयण कयने रगता है। इसी प्रकाय से उसकी ववबूनतमाॉ में जगत की व्मवस्था कयने भें सभथथ हैं। इनकी ननॊदा कयने वारा ऩयभेश्वय की सजृष्ट चक्र की व्मवस्था को ठुकयाने वारा है।

चौ0- कभप तें जीव उच्चऩेद रेहू । ववधध हरय हय रधग देह गहेहू।। कभप आधाय सफ गहदहॊ र्शयीया । बटकत कपयत कार कृतत ऩीया।।4।।

कभथ अनुसाय जीव उच्च ऩद प्राप्त कय सकता है ब्रह्भा व शॊकय जी जैसी देह ग्रहण कयने भें बी कोई सॊदेह नहीॊ है। कभाथनुसाय ही सफ जीव शयीय धायण कयत ेहैं औय सफ दखु सहत ेहुवे कार चक्र भें बटकत ेकपयत ेहैं औय ऩीडा बोगत ेहैं।

दो0- सो अनाभी ऩयभ ऩुरुष बव रूधच अकती र्शेष।

जीव प्रकृततब्रह्भ सोइ बवकृतत ऩात्र ववर्शेष।।61।।

वह ऩयभेश्वय सभस्त सॊसाय को यचकय बी अकताथ तथा शेष है औय ब्रह्भ जीव तथा प्रकृनत तीनों ही इस सजृष्ट चक्र के ऩात्र हैं।

57

दो0- र्शप्क्तन्ह भामा नाभ है भामा प्रकृतत बत्रगुणे।

ऺेत्र मुतत सो ब्रह्भ सगुण ऺेत्र तजाई तनगुपणे।।62।।

शजतत का ही नाभ भामा है औय भामा बत्रगुण प्रकृनत है। प्रकृनत सॊमुतत ब्रह्भ ही सगुण है तथा प्रकृनत यहहत वही ननगुथण कहराता है।

दो0- सो चतेन न स्थूर अणु दीघप न हस्वाकाय।

स्ऩर्शप रूऩ अतीत रि अऺम ज्मोतत अववकाय।।63।।

वह चतेन ऩुरुष न स्थूर है न अणु है न फढने वारा है न सभाप्त होने वारा है। वह तो सदैव अववनाशी अववकाय तथा ज्मोनत स्वरूऩ देखा गमा है।

दो0- सषृ्टी कार सो ऩूणप ब्रह्भ मद्मवऩ अजन्भा र्शेष।

तनज र्शप्क्त को जगरूऩ दइ व्मक्ताव्मक्त ववर्शेष।।64।।

सषृ्टी यचना कार भें वह ऩूणथ ब्रह्भ मद्मवऩ वह अजन्भा एवॊ शेष है कपय बी वह अऩनी भामा को जगत रूऩ देकय ववशेष रूऩ से उसभें व्मतताव्मतत

जाना जाता है।

दो0- प्रकृतत ऺेत्र मौतन तनहाय जीवा फीज अनूऩ।

कृषक चतेन तनगुपन ब्रह्भ पर रागे जगरूऩ।।65।।

प्रकृनत की ऺेत्ररूऩ मौनन तथा जीवों को अनुऩभ फीज सभझना चाहहमे। वह ननगुथण ननयाकाय ऩयभेश्वय चतेन ककसान है औय उसका पर रूऩ मह सॊसाय है।

दो0- सचिॊड प्राप्त भुक्तात्भा बई जो ब्रह्भ ववरीन।

जगदाव्मवस्था धभापथप दहतु धायदहॊ देह नवीन।।66।।

सचखण्ड प्राप्त भुततात्भा जो ब्रह्भ भें रम हो गई है वे ही बगवद कामथ से जगदव्मवस्था तथा धभथ की यऺा के मरमे नमे नमे अवताय धायण कयती है।

दो0- ऩूणपब्रह्भ प्रधान बत्रर्शप्क्त जग सषृ्टी कयभ ववर्शेष।

“होयाभ” ववबूतत सो प्रगट ब्रह्भा ववष्णु भहेष।।67।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक उस ऩूणथ ब्रह्भ की तीन भुख्म शजततमाॉ सॊसाय भें सजृष्ट के ववशेष कभथ के मरमे प्रगट होती है मे तीॊनो शजततमाॊ ब्रह्भा ववष्णु औय भहेश हैं।

दो0- न कामप कायण “होयाभ” न कोऊ कफहुॉ सभान। स्वाबाववक कक्रमा ऻान फर गुण मुक्त ऩुरुष ऩुयान।।68।।

58

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक उस ऩूणथ ब्रह्भ का न कोई कामथ है न कोई कायण है औय न कोई कबी उसके सभान है वह ऩुयातन ऩुरुष ऻान फर कक्रमा आहद गुणों से स्वाबाववक ही मुतत है।

दो0- इक यवव कक सत कौदट यवव सॊग्रहदहॊ तनज उप्जमाय।

तदवऩ ककॊ धचत ततदह योभ सभ यवव भुि दीऩ कताय।।69।।

एक सूमथ तो तमा महद सौ कौहट सूमों का प्रकाश एकत्र ककमा जामे तो बी उसके योभ के सभान न है। फजल्क ऐसा सभझों जैसे सूमथ के सभान दीऩों की कताय हो।

दो0- नदहॊ उदम यवव र्शशर्श तहॊ नदहॊ उड्गन सभुदाम।

नदहॊ चभकत चऩरा चऩर नदहॊ अप्ग्न अनर उगाम।।70।।

वहाॉ न सूमथ चन्द्रभा न तायागण ही उदम होत ेहैं न मह तीव्र गामभनी ववद्मुत चभकती है औय न अजग्न ही अऩना तजे ऩैदा कयती है।

दो0- “होयाभ” मत बानु उदम मत होदहॊ अस्त रु्शधचधाभ।

सकर ब्रह्भाण्ड ववरीन मत बफयर आप्त तत ठाभ।।71।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक जजसभें बानु उदम होता है औय जजसभें अस्त हो जाता है तथा जजसभें सभस्त ब्रह्भाण्ड (दनुनमाॊ) ववरीन हो जाती है उस धाभ को कोई बफयरा ही ऩाता है।

छ0- ततरउ तरे दधधनीव घतृ ह्वै सोतु जर काष्ठदहॊ अनर मथा। यभऊ सकर ववश्वातनदेव सो ज्मोतत स्वरूऩ तनयाकाय तथा।

ऩैदठऊ मोगाभ्मास नाव भुतन ऩावदहॊ सोई नासदहॊ व्मथा।।

“होयाभ” फसैदहॊ दहन्दतु्व सो अस मोगी अभोघ दरुपब कथा।।9।। जैसे नतरों भें तरे, दधू भें घी श्रोत भें जर तथा काष्ठ भें अजग्न यभनत है उसी प्रकाय वह ऩयभेश्वय ज्मोनतस्वरूऩ ननयाकाय रूऩ से सफ भें यभा हुआ है। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक जो मोगी सुनतथशब्द रूऩी मोगाभ्मास की नाव भें फैठकय ऩूणथ मोग की प्राजप्त कयत ेहैं उनकी सफ फाधाऐॊ नष्ट हो जाती है औय वे उस ननवाथण ऩद (हहन्दतु्व ऩद) भें फासा कयत ेहैं ऐसे मोगी का मभरना अनत दरुथब कहा गमा है।

दो0- मथा सरय तनज नाभ रूऩ तप्ज बई सभुन्ि रीन।

तथा नाभ तनज रूऩ तप्ज सुयत बई ऺयहीन।।72।।

59

जजस प्रकाय नदी अऩने नाभ रूऩ को त्मागकय सभुन्द्र भें ववरीन हो जाती है उसी प्रकाय सुयनत अऩना नाभ रूऩ त्मागकय ववनाश यहहत (ब्रह्भ भें रम) हो जाती है।

दो0- ज्मूॊ सरयता फयिा शभशर गहदहॊ अम्फुद तनज नाभ। त्मूॊ आत्भ ऩयभब्रह्भ शभशर तुल्म बई ब्रह्भ दाभ।।73।।

जैसे नदी का जर वषाथ के जर से मभरकय अऩना सभुन्द्र नाभ प्राप्त कय रेता है उसी प्रकाय मह आत्भा ऩूणथ ब्रह्भ ज्मोनत भें मभरकय ब्रह्भ के सभान ही हो जाती है अथाथत मह आत्भा ऩयभात्भा फन जाती है।

11 – ददव्म सन्देर्श

छ0- जे नय आत्भसुि भॊह यत हैं आत्भसुि यदह यसिातन ववर्शेष।

यभण आत्भ भॊह सन्तुष्ट यहदहॊ न ततदह कभप प्रऩॊच र्शेष।।

असऻेम कभपन तप्ज आसप्क्त तद न होदहॊ कछु ऩाऩ करेर्श।

“होयाभ” न फॊध्मो कभपसु तद ; आप्त इक यस गतत सभावेर्श।।10।। जो भनुष्म आत्भसुख भें ही यत है औय आत्भसुख भें ही आनजन्दत है, आत्भा भें ही सन्तुष्ट हुआ यभता है उसके कभथजार कुछ शेष नहीॊ यहत ेऐसा जान कय कभथ को कये औय आसजतत को त्माग दे कपय उसको कोई ऩाऩ करेश नहीॊ होता। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक तफ वह कभों भें नहीॊ फॊधता उसका तो एकयस गनत भें सभावेश होता है।

छ0- स्वाबाववकक प्रकृतत बत्रमगुण केशर, उऩजत कभप अऩुन आऩ सकर। अऻानवर्श “भें कताप हूॉ” जोतन, कभपफॊध जीव बटकत ऩर ऩर। प्राप्त ऻान तनजुदह जातन अकताप भुच्मदहॊ जीव सफ अघतरूपर।

“होयाभ” तनहारय कभप भॊह अकभप यभउ सववयाग आत्भ तनश्चर।।11।। प्रकृनत के स्वबाववक तीन गुणों से स्वमॊ सवथ कभथ उत्ऩन्न होत ेहैं। जीव अऻानता के कायण “भै कताथ हूॉ ” ऐसा जानकय स्वमॊ कभथ फॊधनों भें फॊधकय हय ऩर बटकता यहता है। औय ऻान प्राप्त कयके स्वमॊ को अकताथ जानकय ऩाऩरूऩी वृऺ पर से जीव भुतत यहता है। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक कभथ भें अकभथ देखकय ननश्चर रूऩ से आत्भा भें ही यभण कयना चाहहमे।

60

दो0- कभप कयत कताप न फनदहॊ याखिअ बाव तनष्काभ।

सवप सौंऩ गुरु ऩद कभर शभशरमाॊ ऩूणप धाभ।।74।।

भनुष्म कभथ तो कये ऩयन्तु कताथ न फने औय अऩना बाव ननश्काभ यखे औय अऩना सफ कुछ गुरु ऩद कभर भें सभवऩथत कयदे तफ वह ऩूणथ धाभ प्राप्त होता है।

दो0- ऩाऩ जये ज्मूॉ राकरय फमायव्रत आधाय।

कुन्डरीतन जगे नाडड रु्शधचय िुरे भोऺ का द्वाय।।75।।

जैसे रकडी जरती है उसी प्रकाय प्राणामाभ से ऩाऩ जर जात ेहैं। कुन्डरीनन जागतृ होती है औय नाडी शुद्ध होती है कपय भोऺ का द्वाय खुर जाता है।

दो0- ईर्श न कोऊ की ऩुण्म धयै नादहॊ काऊ की ऩाऩ।

अऻान ऩट ऻानदहॊ चढमो भानुष भोदहत आऩ।।76।।

ईश्वय न ककसी का ऩुन्म धायण कयता है न ककसी का ऩाऩ फजल्क ऻान ऩय अऻान का ऩदाथ चढा हुआ है जजससे जीव स्वमॊ ही भ्रमभत होता यहता है।

दो0- सऩप कैं चुकक भर ववच दऩपण ज्मूॉ जेय ववच गबप भहान।

“होयाभ” धुम्र अप्ग्न ढक्मौ तथा काभ भॊह ऻान।।77।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक जैसे सऩथ कैचुमर भें, भर से दऩथण तथा जेय भें गबथ औय धुवें भें अजग्न ढकी हुई है उसी प्रकाय ऻान काभ (वासनाओॊ) भें ढका हुआ है।

दो0- याभ याभदहॊ सॊसाय ववच हौं यभदहॊ यशभ याभ।

यशभ यशभ याभ तनहारयमाॉ याभ सोई “होयाभ”।।78।। याभ सभस्त सॊसाय भें यभा हुआ है औय भैं यभत ेयाभ भें यभता हूॉ इस प्रकाय यभत ेयाभ भें यभकय देखा कक जो वह याभ है वही भैं हूॉ।

दो0- फाय फाय जीवन भयण ववऩुर भात ृस्तन्म ऩान।

टयदहॊ न आत्भऻान बफनु कय केततक ऩुण्म दान।।79।।

चाहे भनुष्म ककतना ही ऩुण्म दान कयरे फायम्फाय जीवन भयण तथा फहुत सी भाताओॊ का दधू ऩान तफ तक नहहॊ छूटता जफ तक आत्भऻान न हो।

छ0- मऻेऊ देवत्व तऩेऊ ब्रह्भऩुय दानेऊ नव नव सुिबोग गह्मौ।।

धभेऊ सुगतत ऩाऩेऊ नयक ऻानेऊ जीव ऩीमूष रह्मौ।।

61

धभापधभप सतासत अततसजृ जे कहुॉ यत मोगाभ्मास यह्मौ।।

“होयाभ” गुरुऩद कॊ ज स्नेदह सो तनवापण ऩाम अस शु्रतत कहमौ।।12।। मऻ से देवरोक तऩ से ब्रह्भरोक सहस्रदर कभर से बत्रकुटी तक दान से नमे नमे सुख बोग प्राप्त होत ेहैं। धभथ से सद्गनत, ऩाऩ से नयक तथा ऻान से जीव अभतृ को प्राप्त कयता है। औय जो कोई धभथ अधभथ को त्मागकय केवर ध्मान मोगाभ्मास भे रगा होता है औय श्री गुरु चयणों का पे्रभी है श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक वह ननवाथण धाभ के प्राप्त कय रेता है। शास्त्र शु्रनत ऐसा कहत ेहैं।

दो0- गोऩनीम अतत साय मह फड ेबाग्म नय ऩाम।

अधधकायी सदमात्र शर्शष्म सम्भुि सकदहॊ फुताम।।80।।

मह फडा ही गुप्त तत्व (यहस्म) है इसे फड ेबाग्म वारा भनुष्म प्राप्त कयता है इसे अचधकायी सुऩात्र मशष्म के ही सम्भुख फतामा जा सकता है।

दो0- अनाधधकायी स्नेहौवऩ देम नादहॊ मह साय।

मत्र तत्र न कथनीम कदा प्जशभ ठौय ततयस्काय।।81।।

अनाचधकायी को मह यहस्म अऩाय स्नेह होने ऩय बी देम नहीॊ है जहाॉ इसका ननयादय हो तथा जहाॉ तहाॉ कबी बी मह कथनीम नहीॊ है।

दो0- अभतृ मह जगदहतु फायन शभस शर्शष्मन प्रगटाम।

ऩाऩ कभाई कैवल्म की वरयष्ठ सुदीऺा ऩाम।।82।।

मह अभय कथाभतृ जगत कल्माणाथथ मशष्मों के फहाने प्रगट कयता हूॉ भैने वरयष्ठ सत्मदीऺा ग्रहण कयके कैवल्म ऩद ननवाथणधाभ की कभाई कयके प्राप्त ककमा है।

दो0- प्जन सदगुरु कृऩा “होयाभ” बमेऊ मोगाचाय। ऩथ प्रदर्शपक ततष देवको कौदट कौदट नभस्काय।।83।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक भैं जजन गुरुदेव की कृऩा से भैं ऩयभहॊस मोगाचामथ हुआ हूॉ अऩने ऩथ प्रदशथक उन गुरुदेव को कौहट कौहट नभस्काय कयता हूॉ।

इनत प्रथभों बाग

शाजन्त ! शाजन्त !! शाजन्त!!!

62

श्रीभद् याजमोगस्थ अभयकथा ननमोजजत

अभयकथा अभतृ फोध बाग – 2

12 – जीव – प्रकृतत – ब्रह्भ ववऻान

दो0- गुरुऩद ऩॊकज ऩिारय तनत कय जौरय करय प्रणाभ।

ध्मान ऩयभात्भा धारयके कथदहॊ मोग “होयाभ”।।84।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक भैं गुरु चयणों को ननत्म ऩखाय कय तथा हाथ जोडकय औय ऩयभेश्वय का ध्मान कयके मोग का वणथन कयता हूॉ।

चौ0- प्रथभ ऩूयन ऩुरुष अनाभी । अनन्त अथाम अखिर बव स्वाभी।। उऩप्ज ईच्छा बमेहुॉ जगरूऩा । प्रगदट स्वरूऩ सॊउ तयॊग अनूऩा।।1।।

आयम्ब भें ऩूणथ ऩयभेश्वय अनाभी जो कक अन्तयहहत अऩाय तथा अखखर सॊसाय का स्वाभी है को इच्छा हुई कक भैं जगरूऩ फन जाऊॉ । उसी सभम उसके स्वरूऩ भें से एक अदबुत तयॊग उत्ऩन्न हुई।

63

चौ0- ईश्वय तयॊग प्राकयतत भूरा । यचत जगत सत्म तनमभानुकूरा।। ऩूणपब्रह्भ सागय दतुत बाया । असॊख्म बफन्द ुबमो अॊर्श न्माया।।2।।

ऩूणथब्रह्भ की वह ज्मोनत तयॊग ही मह भूरप्रकृनत है जो प्रबु के ननमभानुसाय इस सॊसाय की यचना कयती है। मह ऩूणथब्रह्भ ज्मोनत अनन्त सागय के सभान है औय वही ऩूणथ ब्रह्भ अऩने ज्मोनत अॊश रूऩ फून्दे (रूहे) फनकय अरग – अरग रूऩ फना है।

चौ0- भूर प्राकयतत भहत्व जामा । जासु बत्रगुणी अहभ उगामा।। अहभ भहतत्व शभशर र्शब्द यचामा । र्शब्द से नब ऩुतन अतनर अथामा।।3।। भूर प्रकृनत ने भहतत्व उत्ऩन्न ककमा जजससे बत्रगुणी अहॊकाय उत्ऩन्न हुआ कपय अहभतत्व ने भहत्त से मभरकय शब्द उत्ऩन्न ककमा। कपय शब्द ने आकाश, आकाश से वामु तत्व उत्ऩन्न हुआ।

चौ0- र्शब्दमुक्त नब करय कक्रमा सभीया । प्रगट बमो ऩुॉज अनर तसीया।। अनर तन्भात्रा ऩाॉच प्रकायी । जासु शभशर वामु तजे प्रसायी।।4।।

शब्दमुतत आकाश भें वामु ने कक्रमा कयके अजग्न तत्व को प्रकट ककमा औय अजग्न की ऩाॉच तन्भात्राओॊ से मभरकय वामु ने तजे उत्ऩन्न ककमा।

दो0- तजे से यस यस से जर जर से गॊध उऩजाम।

गॊधधम तन्भात्रा शभशर ऩाधथपवी तत्व उगाम।।85।।

तजे से यस, यस से जर, जर से गॊध उत्ऩन्न हुई औय गॊध की तन्भात्राओॊ से मह ऩथृ्वी तत्व उत्ऩन्न हुआ।

दो0- तजे ऩुॊज ववकृत स्वमॊ अहभ इप्न्िमाॉ दस प्रगटाम।

ततन्ह अशबभानी दसाददत्म प्जदह भन बूऩ यचाम।।86।।

तजे सभूह ववकृत होने ऩय अहभ ने स्वमॊ दसो इजन्द्रमाॉ प्रगट की औय उनके दस अमबभानी देवता उत्ऩन्न ककमे जजन ऩय भन को याजा फनामा।

दो0- ऩॊचबूत तनभात्राॉ ववकाय स्वरूऩ यभाम।

स्वमॊ भहतत्व ववकाय मुक्त ब्रह्भ सो कक्रमा कयाम।।87।।

स्वमॊ भहतत्व ने जो ववकाय रूऩ ऩॉच भहाबूतों के शब्द स्ऩशथ रूऩ यस गॊध आहद तन्भात्राओॊ को अऩने भें ववकाय रूऩ से सभाकय ब्रह्भ ज्मोनत से कक्रमा ऩाकय तथा –

दो0- तद एक रूऩ सफ तत्वऩुॊज इकॊ ड फीज प्रगटाम।

64

“होयाभ” दहयण्मगबप मही सुयतत कोष अथाम।।88।। सफ तत्वों का एक रूऩ कयके फीज रूऩ (आत्भाऐॊ) एक अण्डा ऩैदा ककमा श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक मही हहयण्मगबथ है (जजसभें साया जगत जस्थत है) मही रूहों का अथाह बॊडाय है।

दो0- ऩयभतत्व मह आत्भा भामावर्श बई जीव।

त्मूॉ नाना स्वरूऩ भॊह प्रबु सफ रीरा कीव।।89।।

ऩयभतत्व मह आत्भा ही भामा वश जीव फनी है। इस प्रकाय सभस्त आत्भस्वरूऩों भें स्वमॊ ऩयभेश्वय ही सफ रीरा खेर यहा है।

चौ0- बू आऩो नब अनर सभीया । भन भतत अहॊ अष्ट प्रकीया।। अष्टधा मह जड प्रकृतत फिानी । कभप ऻान दसोप्न्िमाॊशबभानी।।1।।

बू-जर-नब-अजग्न वामु, भन, फुवद्ध औय अहॊकाय मह आठ प्रकाय के तत्व ही अष्टधा (जड प्रकृनत) कहे जात ेहैं इन्ही से कभथऻान दस इजन्द्रमाॉ देवता उत्ऩन्न हैं।

चौ0- चतेनरूऩ ऩयाप्रकृतत तनयायी । धायत जगत तनमभानुसायी।। प्रकृतत तनमभ जगत अनुकूरा । कछु नदहॊ उदम तनमभ प्रततकूरा।।2।।

चतेनरूऩ मह ऩया प्रकृनत ननयारी ही है जो अऩने ननमभानुसाय जगत को धायण कयती है। प्रकृनत के सबी ननमभ जगत के अनुकूर हैं ननमभ ववरूद्ध कुछ बी नहीॊ होता।

चौ0- प्रकृतत तनमभ प्रबु इच्छा जाने । दोऊ प्रकृतत रमारम स्थाने।। सफ जग भोदहत बत्रगुण बावा । प्राकृतत मन्त्र जगदीर्श चरावा।।3।।

प्राकृनतक ननमभ को ईश्वय की इच्छा जानना चचहहमे। इसी भें ऩया अऩया दोंनों रूऩों से प्रकृनत उदम औय ऩयरम कयती है। साया सॊसाय प्रकृनत के बत्रगुणों भें भोहहत है जफकक प्रकृनतचक्र को स्वमॊ ईश्वय चराता है।

चौ0- प्रकृतत चाप्क्क जगदीर्श कुम्हाया । चाप्क्कदहॊ देम गतत यचत ऩसाया।। प्रबु अध्मऺता प्रकृतत भामा । जगत चयाचय जार यचामा।।

ऩया प्रकृतत सचिम्ड यचावा । कार जगद अऩया उदावा।।4।।

प्रकृनत चक्ररूऩ है औय ईश्वय कुम्हाय है जो चक्र को गनत देकय मह सॊसाय यचता है। मह प्रकृनत बत्रगुणों से प्रबु की अध्मऺता भें सभस्त चयाचय

65

जगत को यचाती है। इस प्रकाय ऩया प्रकृनत सचखण्डी देसों को यचती है औय अऩयाप्रकृनत कार देंसों को उत्ऩन्न कयती है।

दो0- ऩुतन ऩुतन उत्ऩप्त्त ववनास सकरबूत सभुदाम।

प्रकृतत फस अवरप्म्फत कयत ऩूयण ऩुरुष अथाम।।90।।

सभस्त चयाचय जगत व भहाबूतों को फाय फाय उत्ऩन्न व ववनास होना वह अनन्त ऩयभेश्वय इस प्रकृनत ऩय ही आधारयत कयता है।

चौ0- नैसगप अनादद आकाय ववनार्शी । यॊग रूऩ ऺम रम तनज यार्शी।। ऩुतन ऩुतन नैसगप बई फहु रूऩा । प्ररम कार रमदहॊ ब्रह्भ बूऩा।।1।।

मह प्रकृनत अनाहद है इसके फने आकाय ववनाशी है यॊग रूऩ आकाय नष्ट होने ऩय इसके तत्व अऩने भूर तत्व भें सभा जात ेहैं। मह प्रकृनत फाय – फाय अनेकों रूऩ धायण कयती है। औय प्ररम कार भें मह बी ब्रह्भ ज्मोनत भें रम हो जाती है।

चौ0- गौ से दधुध दधुध से भराई । भराई दहयाई घतृ उगाई।। त्मूॊ ऩयभेश्वय जगत यचामा । ब्रह्भाॊर्श प्रकृतत फीज फनामा।।2।।

जैसे गाम से दधू, दधू से भराई को बफरोकय घी ऩैदा ककमा जाता है वैसे ही ऩयभेश्वय ने जगत यचामा है। ब्रह्भ के अॊश जीव को फीज रूऩ फनामा है।

चौ0- ओत प्रोत प्जशभ भनका धागा । प्रकृतत वऩयोम त्मूॉ ईर्श सभागा।। प्राकृतत मौतन उगदहॊ सॊसाया । ऩुतन ऩुतन क्रभ तनमभानुसाया।।3।।

जैसे भारा के फीजों भें घागा ओतप्रोत है उसी प्रकाय ऩयभेश्वय प्रकृनत भें ओत-प्रोत सभामा) है। प्रकृनत मोनन भें ही सॊसाय उत्ऩन्न होता है। फाय फाय ननमभानुसाय मही सजृष्ट क्रभ चरता यहता है।

चौ0- फीज प्रदक सो वऩतु ऩयभेश्वय । फीज रूऩ सफ जीव चयाचय।। फीज ब्रह्भ सफ बूत कोषामा । प्रकृतत मौतन स्वमॊ सभामा।।4।।

वह ऩयभेश्वय फीज डारने वारा वऩता है औय चयाचय जीव फीज रूऩ है। सफ बूतों का फीज बी ब्रह्भ ही है जो प्रकृनतरूऩ मौनन भें स्वमॊ ही सभामा हुआ है।

दो0- नैसगापतीत अऺम अजय अनुऩभ ज्मोतय सोम।

भामा रूऩ सागय ववधचत्र राॊतघके शभरनी होम।।91।।

66

वह ऩूणथ ब्रह्भ अनुऩभ ज्मोनतस्वरूऩ – अजय अभय है तथा प्रकृनत से ऩये है इस भामा रूऩ ववचचत्र सभुन्दय को राॊघकय ही उससे मभरन हो सकता है।

13 – रोकऩतत व्मवस्था एवॊ ववश्व यचना

दो0- आदद अनादद अनाशभ प्रबु तनज ईच्छा आधीन।

अगभ अगोचय अरि यच ेसत्मऩुरय सत्तासीन।।92।।

उस आहद अनाहद अनाभी ऩयभेश्वय ने अऩनी इच्छाधीन (अऩनी प्रकृनत को आधीन कयके) आहदकार भें ऩहरे अगभ अगोचय अरख औय सतरोक की सत्ता का ऩद यचा था।

चौ0- अऺमऩूणप ऩुरुष अनाभी । तनयाकाय ज्मोतत सकर जग स्वाभी।। अगभ यचाई अगभ कहावा । अरेि ऩुरुष अरि सभावा।। असॊख्म सपृ्ष्ट अगोचय धाभा । असॊख्म धतन तहॊ शबन्न शबन्न नाभा।।1।। वह अववनाशी अनाभी ऩूणथ ऩुरुष ननयाकाय भहा ज्मोनत सभस्त जगत का स्वाभी है जो अगभ रोक यचकय अगभ ऩुरुष कहरामा औय अरख रोक यचकय अरख ऩुरुष नाभ से उसभें सभामा हुआ है। अगोचय रोक भें अगखणत सजृष्टमाॉ है जजनभें अगखणत धननमों के मबन्न मबन्न नाभ हैं।

चौ0- अरि ववच सुयतत फीज फनाई । अरि रोक दहयण्मगबप सभाई।। जफ सतरोक यच्मा ऩयभेश्वय । सुयत व्मवस्था कीन्ह सत्मेश्वय।।2।।

अरख रोक भें सुनतथमों को फीज रूऩ फनामा गमा है जो अरख रोक भें हहयण्मगबथ भें सभाई गई है कपय ऩयभेश्वय ने सतरोक की यचना की औय वह स्वमॊ आत्भ व्मवस्थाऩक ववयाट रूऩ से सफका ईश्वय है। वही सफकी व्मवस्था कयता है।

चौ0- ईह बत्रिॊड भह भूर सभावा । आगे सत्मधतन करा शसधावा।। सतधतन षोड्स सुत् प्रगटामे । जेदहॊ भुख्म सप्त सतऩुरय फसामे।।3।।

इह बत्रखॊड (अनाभी अरख व सतरोक) भें ऩयभेश्वय का असर नूय सभामा हुआ है महाॉ से आगे उसकी करा (ववबूनतमाॉ) बेजी गई हैं। सत्मऩुरुष

67

ऩयभेश्वय ने कपय सोरह सुत् उत्ऩन्न ककमे जजनभें से सात भुख्म सतरोक भें फसामे गमे जो ववयाट ऩुरुष के साथ यहत ेहैं।

चौ0- सतरोक सतभामा प्रगटाई । जासु सुत् दहतु ब्रह्भाण्ड यचाई।। प्रकृतत धाय ऩुतन बुॊवय यचावा । भहाकार सुत् सुतप सोऩाॊवा।।4।।

सतरोक भें सत्वगुणी भामा प्रगट की है जजससे धननमों के मरमे ब्रह्भाण्ड की यचना की गई कपय प्रकृनत की सतयज तभ धाया से बुवय रोक यचामा गमा जजसभें भहाकार को सभस्त सुतथ बॊडाय सौंऩ हदमा गमा (जो उसने तऩस्मा कयके ववयाट ऩुरुष से भाॊगा था)।

दो0- बुवॊय गुहा अष्टभधनी सोहॊ ऩुरुष कहाम।

सतऩुरुष आऻानुसाय सॊसायी चक्र चराम।।931।

बुॊवय रोक का स्वाभी आॊठवाॉ धनन भहाकार सोहॊ ऩुरुष कहराता है जो सत ऩुरुष की आऻानुसाय सॊसाय चक्र को चराता है।

दो0- भहासुन्न सुन्न याचै ऩुतन इक सुत दीप्न्ह ताज।

ऩॊच भुकाभ ऩॊच गुप्त सुत् तनमुक्त अॊधेयी याज।।94।।

कपय सुन्न तथा भहासुन्न यच ेगमे जजसभें एक सुत् को वहाॉ का याज्म सौंऩा गमा भहासुन्न भें ऩाॊच गुप्त भुकाभ हैं जहाॉ अन्धेयी स्टेट है उनभें ऩाॉच सुत् धनन ऩुरुष कामभ ककमे गमे।

दो0- भान सयोवय सय यच्मो उध्र्व सुन्न के देर्श।

अधौ बत्रगुणी भामा बई सतऩुरुष आदेर्श।।95।।

सुन्नरोक की ऊऩयी स्थान भें तफ एक भानसयोवय की यचना की गई महाॉ से नीच ेबत्रगुणी भामा सतऩुरुष के आदेशानुसाय व्माप्त हुई है।

दो0- कछु कारोऩयान्त सुन्नदह ऩयगदट धाय ववर्शेष।

भामाधीन जासु यच्मो बत्रकुदट सहस्त्र देर्श।।96।।

कुछ सभम फाद सुन्न देश से एक ववशेष धाया प्रकट हुई। भामा के आधीन उससे बत्रकुटी तथा सहस्त्र दर कभर की यचना की गई। सहस्त्र दर कभर भें ही वऩ ॊड तथा ब्रह्भाण्डों भें जीवों की व्मवस्था मुतत सजृष्ट यची गई है।

दो0- बत्रगुणी ऊॉ काय देस, मत रधग वेद फिान।

सकर चयाचय कारिॊड जगदीश्वय बगवान।।97।।

68

सतयज तभ गुणी ऊॉ काय ऩद है महीॊ तक वेदों भें वणथन है। मही ऊॉ सभस्त चयाचय कारदेसी का जगदीश्वय बगवान कहा गमा है।

चौ0- ओभ सुत् बत्रकुदट साम्राजा । अजम ब्रह्भ भामावी याजा।। ब्रह्भाण्ड देर्श तनयगुण सौंऩामे । सतऩुरुष की आमसु ऩामे।।1।।

प्रन्द्रहवाॊ धनन (सुत्) ऊॉ काय है जजसका बत्रकुटी भें साम्राज्म है मह अऺय ब्रह्भ (ऩायब्रह्भ) बत्ररोकी का ऩूणथ याजा है। ब्रह्भाण्ड देश इस प्रकाय ननगुथण धननमों को सौंऩ हदमे गमे सफ धनन ऩुरूषों को सतऩुरुष की आमशवाथद आऻाऐॊ अऩने अऩने देशों भें प्राप्त होती हैं।

चौ0- धतन षोड्षी तनयॊजन याजा । भाॊधग सतऩुरुष सौं साम्राजा।। दीन्हीॊ तनयॊजन को सहस्त्राया । बत्रगुणी बत्रकुटी र्शप्क्त सॊचाया।।2।।

सोरहवाॊ सुत् कार ननयॊजन है जजसने सतऩुरुष से अऩना याज्म भाॊगा। भाॊगने ऩय सहस्त्र दर का साम्राज्म हदमा गमा औय बत्रकुटी देश की बत्रगुणी शजतत बण्डाय का सॊचाय बी हदमा गमा।

चौ0- दहयण्मगबप तें सुयत ऩठाई । भहासुन्न ऩॊच गुप्तठाभ दयुाई।। बमो व्मतीत जफ तहॊ कछु कारा । जीव कोष ववबाप्जत ववर्शारा।।3।।

कपय हहयण्मगबथ से सफ रूहें बेजी गई जो भहासुन्न की ऩाॉच सुन्नों भें गुप्त यखी गई। वहाॉ यहत ेजफ फहुत सभम व्मतीत हो गमा तफ ववशार जीव बण्डाय को बी फाॉटा गमा।

चौ0- सुयत कोष सफ तनयॊजन ऩामा । सोडषी सुत् मह कार कहामा।। बत्रकुटी धाभ भामा ववस्तायी । आत्भा बई तॉह जीव बफचायी।।4।।

सभस्त जीव बन्डाय ज्मोनत ननयॊजन ने प्राप्त ककमा है। मही सोरहवाॊ सुत् कारधनन कहराता है। बत्रकुटी भें भामा का ववस्ताय है महीॊ ऩय आत्भा जीव रूऩ फन गई है।

दो0- सोड्षी सुत् तनयॊजन मह ऩाम जीव बॊडाय।

जगत यच्मन आमसु गदह सतऩुरुष ऩयभसयकाय।।98।।

सोरहवें धनन ननयॊजन ने मह जीव बण्डाय प्राप्त कयके ऩयभ ऩुरुष सतऩुरुष से आगे सजृष्ट यचना कयने की आऻा प्राप्त की।

चौ0- सतऩुरुष ववनीत तनयॊजन गाई । आदद र्शप्क्त तफ सम्भुि आई।। ऩुतन तनयॊजन ववधध हरय हय याचु । तैतीस कौदट सुय देवव प्रगाचु।।1।।

69

कपय ननयॊजन ने सतऩुरुष से ववनती की जजससे आहद शजतत उसके सम्भुख प्रगट हुई। कपय उससे ब्रह्भा, ववष्णु मशव उत्ऩन्न हुवे जजसके फाद तैतीस कोहट देवी देवताओॊ की उत्ऩजत्त की गई। (ऩयभेश्वय ने ववचाय ककमा कक कार तप्तमसरा यचकय उसऩय सबी जीवों को तऩाकय खामेगा। तफ प्रबु ने अऩने स्वरूऩ से तीन ज्मोनतऩुॉज प्रगट कयके भामा के गबथ भें ननवास ककमा जो मे बत्रदेव के रूऩ भें ऩुत्र फनकय प्रगट हुवे। मे दान ऩुन्म, सत्म, न्माम, धभथ, करूणा, ऺभा, दमा आहद से तप्तमसरा को शान्त कयत ेयहत ेहैं)

चौ0- ऊॉ करा सत यज तभ धाया । तनयॊजन यच्मै बत्रदेव बत्रकाया।। स्वमॊ तछऩो सहस्त्राय भझरय । उऩजत तहॊ त ेदस अवतारय।।2।।

ऊॉ की सत यज तभ धाया से ननयॊजन ने बत्रदेवों (ब्रह्भा ववष्णु भहेश) को बत्ररूऩों भें यचा है। कपय वह स्वमॊ सहस्त्रदर भें कभर भें नछऩ गमा (अदृष्म हो गमा) वहीॊ से दस अवताय सॊसाय भें उत्ऩन्न होत ेयहत ेहैं।

चौ0- तनयॊजन आदेर्श र्शप्क्तदह दीन्हों । सकर चयाचय यचना कीन्हों।।

आदद र्शप्क्त सो जगदम्फा नाभा । अऺम अजेम जगत अशबयाभा।।3।।

कार ननयॊजन ने शजतत को आदेश हदमा कक सकर चयाचय जगत की यचना कये। मह आहद शजतत ही जगदम्फा नाभ वारी है जो इस सुन्दय जगत भें अववनासी तथा अजेम है।

चौ0- सहस्त्रदर ऩुतन गमेऊ बत्रदेवा । प्रगदट र्शप्क्त ततन्ह सन ठेवा।। ऩूछत बत्रदेव र्शप्क्त सन जाहीॊ । कौन कताप हभयो जग भाॊहीॊ।।4।।

कपय तीनों देवता (ब्रह्भा, ववष्णु, भहेश) सहस्त्र दर भें गमे वहाॉ उनके सभऺ शजतत प्रगट हुई। बत्रदेवों ने उनके सभऺ जाकय ऩूछा कक हभाया कताथ सॊसाय भें कौन है ?

दो0- सहस्त्रदीऩ यधच तनयॊजना ककधय छुऩौं तत्कार।

ववधध हरय हय जातन नदहॊ र्शप्क्त को ऩहभार।।99।।

ऩयन्तु सहस्त्र दर देश को यचाकय कार ननयॊजन तुयन्त कहाॉ नछऩ गमा मह यहस्म ब्रह्भा, ववष्णु मशव ने नहीॊ जाना था केवर शजतत को इसका ऻान था।

दो0- तनयॊजन बेद दीन्है नदहॊ र्शप्क्त ककमो गुप्त साय।

जीव सपृ्ष्ट ततदह आमसु फस यत र्शप्क्त चतेनधाय।।100।।

70

ज्मोनत ननयॊजन का शजतत ने उन्हे बेद नहीॊ हदमा वह यहस्म गुप्त ही यख मरमा औय जीव सजृष्ट की यचना भें ननयॊजन के आदेशानुसाय चतेन धाया द्वाया शजतत स्वमॊ जुट गई।

चौ0- फीज रूऩदहॊ चतेन बन्डाया । प्रथभ अभीफा जीव प्रसाया।। एक कोवषम मह जन्तु अऻानी । सपृ्ष्ट यचन आयम्ब अग्रानी।।1।।

फीज रूऩ के चतेन बन्डाय से शजतत ने प्रथभ अभीफा नाभक प्राणी को यचा इसी एक कोवषम ऻान हीन जन्तु से आगे सजृष्ट यचना का आगे आयम्ब हुआ।

चौ0- चौदस अॊडस नौरि जर जीवा । र्शप्क्त स्वमॊ मह यचन यधचवा।।

शर्शव तीस रऺ यधच स्थावय प्रातन । ववष्णु सत्ताईस रऺ उतद्भज िातन।।2।। चौदह राख अडज (अन्ड ेसे ऩैदा होने वारे) तथा नौ राख जर जीवों की यचना स्वमॊ शजतत ने की मशव ने तीस राख मानन स्थावय वन ऩवथत ववशारकाम प्रखणमों की तथा ववष्णु ने सत्ताईस राख मौनन उनद्भज (आकाश चायी ऩशु ऩऺी) प्रखणमों की उत्ऩजत्त की।

चौ0- चारय रऺ ववधध वऩण्डज यचावा । स्थूर आवयण सुयत चढावा।। सवोत्तभ नय देह फनाई । ऩॊच तत्व मुतत यचन यचाई।।3।।

चाय राख वऩन्डज जीवों को ब्रह्भा जी ने यचा औय रूहों के ऊऩय स्थूर आवयण चढामे। सफसे शे्रष्ठ भानवदेह फनाई जजसभें ऩाॉचों तत्वों की ऩूणथता की गई।

चौ0- बू जर अप्ग्न अरू सभीया । चारयतत्व ऩयधान वऩॊडडया।। अडॊज तीन उतद्भज द्वै बूता । स्थावय भुख्म बू तत्व इकूता।।4।।

वऩॊडज मोननमों भें अचधकाॊश जर अजग्न तथा वामु मे चाय तत्व भुख्म यखे गमे अन्डज प्राखणमों भें तीन तत्व (ब-ूजर-वामु) उनद्भज मौननमों भें दो तत्व (बू-वामु) तथा स्थावय मोनन भें एक बू तत्व प्रधान रूऩ से यखे गमे हैं।

दो0- बूतत्व जगत ऩदाथप ववच जरतत्व ववषमन दौय।

अनर क्रोध वामु प्ररोब नबाकषपण भतत ओय।।101।।

बू तत्व की प्रधानता से प्राणी की रूचच साॊसारयक धन धान्म वस्तुओॊ भें अचधक होती है जर तत्व की अचधकता से काभ तथा ववषमों की तयप खखचाव

71

फढता है अजग्न तत्व से क्रोध वामुतत्व से रोब तथा आकाश तत्व का आकषथण ऻान की ओय होता है।

दो0- आवागभन के देर्श भें सुयत गदठ देह चारय।

बफनु सतगुरु छूटै नदहॊ कहत “होयाभ” ववचारय।।102।। आवागभन की रृद भें रूह चाय देहावयणों भें गहठ हुई है। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक मे चायों देहावयण बफना सतगुय के नहीॊ छूटत।े

चौ0- ऩॊचतत्व तनशभपत स्थूर र्शयीया । गहदहॊ जीव भतृ्मु रोक भझीया।। बत्रगुण दसोप्न्िम अन्त् कणप चारय । शरॊग देह गदठ सुयत अऩारय।।1।।

ऩाॉच तत्वों से फना हुआ स्थूर शयीय है जजसे जीवात्भा भतृरोक भें गहृण कयती है मह आत्भा गीनों गुण (सत यज तभ) दस इजन्द्रमाॉ तथा चाय अन्त्कणथ (भन, फुवद्ध, चचत्त, भनत अहॊकाया) आहद सत्रह तत्वों से फनी हुई मरॊगदेह भें पसीॊ हुई है।

चौ0- तीसय सूक्ष्भ ददव्म देह अऩाये । सहस्त्रदर बत्रकुदट सुयतत धाये।। अन्तस भन धचत्त भतत अहॊकाया । र्शब्द ऩयस यस रूऩ गॊधाया।।2।।

तीसया सूक्ष्भ शयीय होता है जो हदव्म एवॊ ववशार है इसको सुनतथ सहस्रदर देश से बत्रकुटी की हद से धायण कयती है मह चायों अन्त्कणथ (भन-चचत्त-फुवद्ध-अहॊकाय) ऩाॉच ववषमाय (शब्द स्ऩशथ यस रूऩ गॊध) तत्वों से फना है।

चौ0- बत्रकुदट सेतु सुन्न कायण र्शयीया । ऩाॉच ववष्म सुयत सॊगीया।। ताऩये सुयतत फीज ववजाने । बत्रकुदट आम पॊ ददहॊ अनजाने।।3।।

बत्रकुटी से सेतुसुन्न (दसभद्वाय प्रदेश) तक कायण शयीय यहता है इसभें ऩाॉच ववषम शब्द स्ऩशथ यस रूऩ गॊध आहद तत्व देहावयण हैं। इससे ऩये जीवात्भा देह यहहत फीज रूऩ हो जाती मह आत्भा अनजाने ही बत्रकुहट भें शयीयों भें आकाय पॊ स गई हैं।

चौ0- ऩॊचभ सॊकल्ऩ तुरयमा र्शयीया । जासु ऩाम ववबु भोध सभीया।। भ्रुव भध्म इक शर्शवनात्र ववर्शारा । तासु तनकशस ऩरय भतृ्मु जारा।।4।।

ऩाॊचवा सॊकल्ऩ बावुक तुरयमा शयीय है जजससे आत्भा भोऺ का आनन्द बोगती है। भ्रुव भध्म भें (नामसका के अग्र बाग ऩय भ्रकुटी भें) एक तीसया मशव-नेत्र है जजसभें से ननकर कय आत्भा भतृ्मु जार भें पस गई है।

दो0- स्थूर देदह दहतु स्थूर बोज्म शरॊग देह सुॊगप्न्ध ऺीय।

72

सूक्ष्भ तनु दृप्ष्ट प्रकार्श तपृ्त नाभदहॊ चतुथप र्शयीय।।103।।

स्थूरदेह के मरमे स्थूर बोजन है मरॊग देह सुगन्ध हवव से तथा सूक्ष्भ तन दृजष्ट प्रकाश से औय चौथा शयीय सतनाभ शब्द से तपृ्त होता है।

छ0- नमन औऩरय चारय दरन को भ्रुभध्म अन्तस कॊ वर ववयाजहीॊ।

कायनयत चारयदरन चारय फर भन धचत्त भेघा अहभ गाजहीॊ।।

ताऩय भतृ्मु कॊ वर षटदरन भॊह षट् र्शप्क्त गततभम जानऊ।

सो षट् र्शप्क्त जन्भ अस्त प्रनाभ फदृ्ध ऺीन भतृ्मु भानऊ।।13।।

नेत्रों के ऊऩय (भ्रुभध्म केन्द्र) भें चाय दरों का अन्त्कणथ चक्र है जजसके चायों दरों भें चाय शजततमाॉ (भन, चचत्त, फुवद्ध, अहॊकाय) भानी जाती है, कामथयत है। इसके ठीक ऊऩय महीॊ ऩय छ् दरों का भतृ्मु कॊ वर चक्र है जजसभें छ् शजतत कक्रमा कयती है। वे छ् शजतत क्रभश् जन्भ अस्त प्रनाभ वदृ्ध ऺीन तथा भतृ्मु भानी गई हैं।

चौ0- गबप भॊह फीयज यज जन्भ जभावे । अस्त गबप भॊह अॊग उगावे।। प्रनाभ गबप भॊह खझल्री छावा । फदृ्ध ऩवन सॊग अॊग उगावा।।1।।

गबथ भें वीमथ औय यज को जन्भ शजतत जभाती है औय अस्त शयीय के सबी अॊगों को फढावा देती है। प्रनाभ से गबथ ऩय झल्री चढती है औय फदृ्ध शजतत वामु के साथ गबथ के अॊगों को ववकमसत कयती है। चौ0- गबपस्थ शर्शरु्श अॊग छीन ववबाज्मदहॊ । भतृ्मुर्शप्क्त फस गबप त्माज्मदहॊ।।

भ्रुभध्म तीसय ततर गुहानी । ऩॊचतत्व गुण सुयत सुठानी।।2।।

गबथस्थ मशशु के अॊगों का ऺीण शजतत ववबाजन कयती है औय कपय भतृ्मु तत्व शजतत से गबथ भें से ववसजथन होता है। भ्रुभध्म केन्द्र भें तीसयी नतर गुपा जानी गई है महाॉ ऩय आत्भा (रूह) ऩाॉच तत्व व बत्रगुणों की गाॊठ भें फॊध जाती है।

चौ0- ततसय ततर वऩण्ड येि प्रकासा । प्जदह सभीऩ आऻाचक्र फासा।। सहस्त्र कॊ वर रधग अॊड देर्शा । ताकय ऩाय ब्रह्भाण्ड ववर्शेषा।।3।।

ननच ेसे मशवनेत्र तक वऩॊड देश की हद है जजसके (मशवनेत्र के) ऩास ही आऻाचक्र है कपय सहस्रदर कॊ वर तक अॊड देश है औय इसके ऩाय ब्रह्भाण्ड देश है।

चौ0- ऩाय ब्रह्भाण्ड दमार अनाभी । सकर जग स्वाभी अन्तयजाभी।।

73

सहस्त्रदर यधच बत्ररोकक सायी । फसदहॊ दमार धतन कभपचायी।।4।।

ब्रह्भाण्ड के ऩाय अनाभीश्वय का दमार देश है जो सभस्त सॊसाय का ईश्वय है। सफ कुछ जानने वारा है तीनों रोंकों की यचना सहस्त्रदर कॊ वर भें ही यचाई गई औय सुनतथमों (रूहों) के ननवास केन्द्रों भें सभस्त अचधष्ठातागण सचखॊडवासी ऩयभेश्वय के कभथचायी गण हैं।

दो0- वऩ ॊड अॊड देर्श फॊददत सुयत सदा कहाई जीव।

“होयाभ” अॊड वऩॊड तज बई, सहस्त्रदर भॊह सीव।।104।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक वऩॊड अॊड देस भें नघरय हुई मह जीवात्भा सदा जीव कहराती है। वऩ ॊड अॊड देशों को त्माग कय सहस्रदर कॊ वर भें मह सीव नाभ वारी कहराती है।

दो0- भान सयोवय सेतु सुन्न न्हाम कहाई हॊस।

दमार उजशसपरयन्हाम सुयत बई ऩयभहॊस।।105।।

सेतु सुन्न भें भानसयोवय का स्नान कयके मह सुयनत हॊस कहराती है औय दमार देश भें ऊजाथ गॊगा नदी भें स्नान कयके सुनतथ ऩयभहॊस कहराती है। (ब्रह्भा जी जो सत्मऩुरुष की ब्रहत ज्मोनत धाया हैं ने सॊसाय व्मवस्था से भोऺ तक के मरमे दस वेदों की धाया का फैखान ककमा था जजनभें से ब्रह्भवेद तथा सुयतवेद (अभयकथा) गुप्त हो गई। चाय स्वाथी जनों ने व्मोऩाय फनाकय यख रीॊ। शेष चाय वेद प्रचमरत हैं जजन्हे ऩॊडडतों ने अऩनी जीववका कभाने का रूऩ दे हदमा। श्री ववष्णु जी जगत भें सत्मऩुरुष की ओय बेजने के मरमे कार तप्तमशरा को शान्त फनाने के मरमे सज्जन ऩुरुषों को फचाने के मरमे असुयों का सॊहाय कयती है। मशव ऩयरमकायी यहत ेहैं। भुखथ ववद्वान सत्मऩुरुष के इस बत्ररूऩ अवतायों को कार का ही अवताय भानत ेहैं)।

14 – मुगान्तय सुतपडौरय

दो0- शबन्न शबन्न मुग सुयत डौय ठाडड शबन्न शबन्न भुकाभ। शबन्न शबन्न केन्ि शबन्न शबन्न गतत शबन्न शबन्न कभप “होयाभ”।।106।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक सुतथ डौय मबन्न मबन्न मुगों भें मबन्न मबन्न स्थानों ऩय यहीॊ है औय मबन्न मबन्न केन्द्रों ऩय इसके कभथ औय गनत बी मबन्न मबन्न यहत ेहैं।

74

चौ0- सतमुग भाॉदहॊ सुयत की डौरय । ठाडड सेतु सुन्न बयभ ऩातौरय।। अप्स्थन प्राण भन गज सभाना । राि फयष नय आमु प्रभाना।।1।।

सतमुग भें सुनतथ की डौरय बभथ के ऩदे भें सेतु सुन्न भें थी तफ प्राण अजस्थमों भें था औय भन हाथी के सभान फरवान था उस सभम भनुष्म की आमु एक राख वषथ तक का प्रभाण थी।

चौ0- जफ रधग अप्स्थ फर नदहॊ नासी । भतृ्मु कदा तनकट नदहॊ जासी।। डाॊवाडोर भन फर नदहॊ होई । कभपन भरदहॊ सुयत नदहॊ गोई।।2।।

जफ तक अजस्थफर नष्ट नहीॊ होता तफ तक भतृ्मु की सम्बावना नहीॊ होती थी भन फरवान होने से डाॊवाडोर नहीॊ होता था। कभों का भैर बी सुनतथ ऩय नहीॊ था?

चौ0- र्शनै र्शनै ततयतामुग आई । बत्रगुणकयभ सुयत बयभाई।। यक्त भॊह प्राण फसऊ एदहॊ कारा । भन फर बा हम सरयस तनढारा।।3।। धीये धीये त्रेता मुग आ गमा तफ सुनतथ को बत्रगुणी कभों भें पॊ सा हदमा गमा। उस सभम प्राण यतत भें आ गमा औय भनोफर घटकय घोड ेके सभान यह गमा।

चौ0- सहस्त्रकॊ वर सुतप डौय सभाई दस सहस्त्र वषप आमु नय ऩाई।। बत्रकुदट राधग बेद सॊत जाना । ऩूयनधाभ भातन बयभाना।।4।।

कपय नीच ेउतय कय सुनतथ की डौयी (सुतथधाय) सहस्त्रदर कभर भें सभा गई। उस वतत सॊत जन बत्रकुटी देश (ऊॉ अऺय ब्रह्भ) तक का ही बेद जान ऩामे। औय इसी को ऩूणथ ऩद भानकय भ्रभ भें यह गमे।

दो0- द्वाऩय मुग भॊह सुयत डौरय पॊ ददहॊ द्वैत के बाव।

अन्तस कॊ वर भ्रुभध्म उध्र्व अऺम सुयत धथयाव।।107।।

द्वाऩय मुग भें मह जीवात्भा द्वैत के चक्र भें पॊ स जाती है औय बू भध्म के ऊऩय अन्त्कयण कॊ वर भें ठहय जाती है।

चौ0- भन फर अजा सभ द्वाऩय भाॊहीॊ । सहस्त्र फयीष आमु जन ऩाहीॊ।। प्राण त्वचा धथयदहॊ ततष कारा । सुयतत भरीन बमउ कृततजारा।।1।।

75

द्वाऩय मुग भें भनोफर फकयी के सभान हो गमा औय भनुष्म की आमु हजाय वषथ यह गई। प्राण त्वचा भें जस्थय हो गमे। औय रूह कभथ जार भें ऩड कय भरीन हो गई।

चौ0- कयभ भैर फीत ेसो कारा । कशरमुग फदढ ववषम फमारा।। सुयत फसत ततृीम ततर भाॊहीॊ । जॉह भ्रुवभध्म शर्शव नेत्र कहाहीॊ।।2।।

कभथ भरीनता भें ही वह सभम फीत गमा औय अफ कमरमुग भें ववषम वासना फढ गई है। अफ सुनतथ तीसये नतर भें जहाॉ बूभध्म केन्द्र भें मशव नेत्र कहराता है ठहय गई है।

चौ0- कशरमुग फशसहैं अन्न भॊह प्राना । भनोफर हौंइहैं वऩऩीशर सभाना।। र्शत फयीष नय आमु फैिानी । अन्तरयध्मान भोष सॊत जानी।।3।।

अफ कमरमुग भें प्राण अन्न भें फसत ेहैं जजससे भन का फर चीॊटी के सभान हो जामेगा औय कमरमुग भें भनुष्म की आमु का प्रभाण सौ वषथ कहा गमा है। इस सभम केवर अन्तरयध्मान (सुनतथ ध्मान मात्रा मोग) से सॊत मोगी जन भोऺ जानत ेहैं।

चौ0- नदहॊ अतनवामप मऻ तऩ दाना । तनष्काभ कयभ नाभ कल्माना।।

सतनाभ शे्रष्ठ कशरमुग भाॊही । सुशभय सुशभय जन रु्शबगतत ऩाहीॊ।।4।।

अफ मऻ तऩ दान आहद अननवामथ नहीॊ यहे है केवर ननष्काभ बाव कभथ कयने तथा सतनाभ से कल्माण हो जाता है। करमुग भें केवर सतनाभ शे्रष्ठ है जजसके स्भयण से भनुष्म शुब गनत ऩाता है।

दो0- र्शाभकॊ ज की घाट शसहय इप्न्िमदहॊ व्माप्त सुतपधाय।।

स्थूर जगत वऩॊडऩौय यशभ शरप्त अघकभप अऩाय।।108।।

मशव नेत्र घाट (नतसये नतर) से बी उतय कय अफ सुनतथ की धाया इजन्द्रमों भें सभा यही है। औय स्थूर जगत के वऩॊडरोंकों भें यभ कय ऩाऩों भें मरप्त है जजससे अऩाय ऩाऩ कभथ हो यहे है।

चौ0- सुयत ववऩुर दतुत ऩुॊज सभाना । व्माप्त देह रघु फड़ प्रभाना।। र्शाभ कॊ ज तें तनु चतेन याखि । अऻान शरप्त भन सुत की काखि।।1।। सुनतथ (जीवात्भा) एक ववशार ज्मोनतऩुॊज के सभान है जो छोटे फड ेप्रभाण से सभस्त शयीयों भें व्माप्त है। मशव नेत्र स्थान (शाभकॊ ज) भें जस्थय

76

होकय वहीॊ से शयीय को चतेना देती है। औय मह अऩने द्वाया यचामे गमे (जड़ तत्व) भन की गतथ भें मरप्त हो यहीॊ है।

चौ0- जागतृ कार सुयत की धाया । रोचन फसत ववर्शेष प्रकाया।। उरदटउ गय कॊ ठचके्र आदहॊ । अन्तस धाय शभशर स्वऩन यचादहॊ।।2।।

जागतृ अवस्था भें सुनतथ की धाया ववशेष प्रकाय से नेत्रों भें फसती है जजससे आॉखे देखती हैं। महद सुनतथ की धाया उरटकय कॊ ठचक्र भे आ जाती है तो अन्त्कयण की धाया से मभरकय मह स्वऩन की यचना कय रेती है।

चौ0- ज्मोततरपम गय ध्मानाधाया । तुरयमा गतत उदमदहॊ सहस्त्राया।। उध्र्व गभन गय बत्रकुदट आवा । तुरयमातीत अवस्था कहावा।।3।।

महद घ्मान अभ्मास से सुनतथ की धाया ज्मोनत भें रम हो जाती है तो वह सहस्त्रदर कॊ वर भें तुरयमा अवस्था प्रगट कयती है औय महद महाॉ से ऊऩय उठकय बत्रकुटी भें आ जाती है तो वह तुरयमातीत अवस्था कहराती है।

चौ0- फड बागी सुयतत र्शब्द चढावा । तुरयमातीतभतीत सभावा।। इह रक्ष्म सॊत कयदहॊ अभ्मासा । तप्ज गौघाट कयदहॊ उच्च फासा।।4।।

उनके फड ेबाग्म हैं जजसने सुनतथ को शब्दधाया ऩय चढा हदमा है तमोंकक वही तुरयमातीतभतीत अवस्था भें सभाता है। इसी उद्देश्म से सॊतजन याजमोग अभ्मास कयत ेहैं कक इजन्द्रमों के घाट को त्माग कय सुनतथ उध्र्व रोंकों भें फासा कये जो तुरयमातीतभतीत सहज सभाचध अवस्था भें प्राप्त होत ेहैं।

दो0- ध्मानयत जे जे भुकाभ सुयतत नब ऩॊथ शसधाम।

“होयाभ”देव धनीऩुय रखि ; त ेत ेतीयथ न्हाम।।109।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक ध्मानामोगावस्था भें यत सुनतथ जजन जजन रोंकों भें आकाश भागथ से मात्रा कयती है उन उन रोंकों के धननमों को देखती हुई उन उन रोंकों के तीथों भें स्नान कयती है।

दो0- सत्मऩुरय षट् भुकाभ शसहय सुयत धथयत र्शाभकॉ ज।

त्मूॊ भन बत्रकुदट षट् ऩदभ फशस अवतरय उयिॊज।।110।।

सतरोक से छ् भुकाभ (केन्द्र) उतय कय सुनतथ तीसये नतर भें आकय ठहयी हुई है इसी तयह भन बी छ् भुकाभ उतय कय रृदम गुहा भें ठहया हुआ है।

चौ0- नबभग सुयतत चढदहॊ प्जदह कारा । भन रु्शधच हौंदहॊ टयदहॊ ववषमारा।। सुयत सॊग भन बत्रकुदट जफ आवा । बत्रगुण प्रकृततदह भन रमयावा।।1।।

77

जजस सभम सुनतथ (रूह) आकाश भागथ ऩय चढती है तफ भन ऩववत्र होने रगता है ववषम ववकाय कटने रगत ेहैं। जफ भन सुनतथ के साथ बत्रकुटी केन्द्र ऩय आ जाता है तफ भन बत्रगुणी प्रकृनत भें रम हो जाता है।

चौ0- सुयत भामा तप्ज सुन्न शसधाई । जाइ अनाशभधाभ सुधध ऩाई।। ऩावदहॊ ऩयभसॊत धाभ अनाभी । ऺयाऺायतीत सुयततन्ह स्वाभी।।21।।

महाॉ ऩय सुनतथ भामा के ऩदे त्माग कय सुन्न रोक की मात्रा ऩय चढती है औय चढती हुई अनाभी देश (ननज धाभ) ऩहुॉचती है। ऩूणथमोगी सॊत ही अनाभी घाभ प्राप्त कयत ेहैं जहाॉ ऺय अऺय से बी ऩये सफ सुनतथमों का स्वाभी यहता है।

चौ0- ततउ ततर सुयत भध्मभ प्रकासु । सहस्त्र कॊ वर बानु सभ बासु।। चतुगुपणी ज्मोतत दसभा द्वाया । सत्मरोक सोड्ष अयकाया।।3।।

तीसये नतर भें सुनतथ का भध्मभ प्रकाश होता है सहस्त्रदर कॊ वर भें सूमथ के सभान चभकता है। दसभ द्वाय (सुन्न रोक) भें चाय गुणी ज्मोनत हो जाती है औय सतरोक भें सुनतथ का प्रकाश सोरह सूमों के सभान होता है।

चौ0- असॊख्म यवव सभ अनाभ प्रकासी । ज्मोततस्वरूऩ सुयत तॊह बासी।। ऩूयण शभशर सो ऩूणप कहाहीॊ । रु्शद्ध भुक्त तनज भूर सभाई।।4।।

अनाभी भें सुनतथ का प्रकाश अनन्त सूमों के सभान है वहाॉ सुनतथ अनन्त ज्मोनत स्वरूऩ वारी रगती है। वहाॉ ऩयभेश्वय से मभरकय सुनतथ ऩूणथ कहराती है औय भुतत सुनतथ (रूह) अऩने भूर स्वरूऩ (वास्तववक स्वरूऩ) भें सभा जाती है।

दो0- कछुक मोगी मोगीश्वय भूर देर्श नहीॊ ऻान।

षट् चक्र उदठ सहस्र कभर ऩूयणभोऺ फिातन।।111।।

कुछ मोगी मोगीश्वयों को अऩने भूर देश (अनाभीधाभ) का ऻान नहीॊ है वे तो छ् चक्रों से ऊऩय उठकय सहस्त्रदर कॊ वर भें ही ऩूणथ भोऺ का फैखान कय देत ेहैं।

15 – कभप उत्ऩप्त्त ववऻान

दो0- कभप प्रधान ईश्वय यच्मौं बफनु कभप जीव नहीॊ कोम।

कभप भॊह अकभप ववरोकक जे तनशरपप्त कभपणा सोम।।112।।

78

ऩयभेश्वय ने सॊसाय भें कभथ को प्रधान फनामा है बफना कभथ के कोई बी जीव नहीॊ है ऩयन्तु जो कभथ भें अकभथ देखता है कभथ का कताथ नहीॊ फनता वह कभों से मरप्त बी नहीॊ होता।

चौ0- सकर कभप इप्न्िमाॊ प्रगटोई । सो सफ कह तनदोष दसोई।। आऩदहॊ हभ कयभ नदहॊ कीन्हा । बमऊ सोइ जे भन यधच दीन्हा।।1।।

सभस्त कभथ इजन्द्रमों द्वाया प्रकट होत ेहैं ऩयन्तु इजन्द्रमाॊ कहती है कक हभ दस की दस ननदोष हैं हभने कभथ अऩने आऩ नहीॊ ककमा फजल्क वही हुआ है जो भन ने यचकय हभें हदमा है।

चौ0- हौं ऩयफस कदह भन अकुराई । भनन सोइ जेदह भतत सुझाई।। सत यज तभ गुण मथा प्रबावा । ऩयफस भेघा कभप नचावा।।2।।

भन कहता है कक भैं बी ऩयामे आधीन हूॉ तमोंकक भें वही भनन कयता हूॉ जैसा कक फुवद्ध सुझाव बेजती है। सत यज तभ गुणों का जैसा प्रबाव होता है फुवद्ध के आधीन भैं वैसा ही कभथ सुझाता हूॉ।

चौ0- भेघा कदह कछु हौं नदहॊ दोषा । आमसु भनदह देहुॉ अनुकोषा।। मथा मथा जेदह कोष सॊस्काया । तथा तथा रि आमसु डाया।।3।।

फुवद्ध कहती है कक भेया कुछ बी दोष नहीॊ है भैं तो भन को सॊस्काय कोष के अनुसाय आऻा देती हूॉ जैसा जैसा जजसका सॊस्काय कोष है वैसी वैसी देखकय आऻा बेजती हूॉ।

चौ0- सॊत पे्रयणा भेधा जागी । तद सो भनदहॊ सॊदेर्श पे्रषागी।। गौका रधग अशस आमसु आवा । नैसगप सुबाऊ कयभ प्रगटावा।।4।।

सॊस्कायों की पे्रयणा से फुवद्ध जागती है कपय फुवद्ध भन को सॊदेश बेजती है। इजन्द्रमों तक इसी प्रकाय आऻा आती है। इस प्रकाय प्रकृनत स्वबाव से ही कभथ प्रगट होत ेहैं।

दो0- धीय सुसज्जन वववेक यत यहदहॊ ववयक्त कभपजार।

गुण ही गुण भॊह फयतहीॊ । जातनअ नदहॊ बूचार।।113।।

ऻानवान सॊतजन अऩने वववेक के कभथजार भें बी ववयतत होत ेहैं। गुण ही गुणों भें फयत यहे हैं ऐसा जानकय वे डाॊवाॊडोर नहीॊ होत।े

चौ0- ऩुतन ऩुतन बव छर नाचत प्रानी । रयतै बयै जतन यहटदहॊ ऩानी।। अऩया प्रकृतत मह जार यचदहॊ । जनभभयण जीव उरूझादहॊ।।1।।

79

जैसे यहट की फाजल्टमों भें ऩानी बयता तथा रयतता यहता है उसी प्रकाय प्राणी सॊसाय चक्र भें फाय फाय नाच यहा है। मह चक्र (जार) अऩया प्रकृनत यचती यहती है औय जीवों को जनभ भयण चक्र भें उरझामे यखती है।

चौ0- जीव प्रकृतत ब्रह्भ अनादद । बव नाटक ततउ ऩात्र शभसादद।। प्रकृतत चतेदहॊ ब्रह्भ आधाया । जासु सजृना चतेन सॊचाया।।2।।

जीवात्भा प्रकृनत औय ब्रह्भ तीनों अववनाशी तथा अनाहद हैं जो कक इस सॊसाय रूऩी नाटक के फहाने भात्र तीन सुऩात्र हैं। प्रकृनत ब्रह्भ के आधाय से चतेन होती है जजसके (ब्रह्भ के) कायण ही प्रकृनत की यचनाओॊ भें चतेना का सॊचाय होता है?

चौ0- ववयप्क्तहीन अऻ अहॊकायी । ऩावत ऩीय ववऩद अतत बायी।। आसप्क्त धारय कभप जे कयेहीॊ । तादह सुयत कयभ गतत ऩयेहीॊ।।3।।

ववयजततहीन (अवववेकी) अऻानी अहॊकायी व्मजतत फहुत अचधक ववऩजत्त औय ऩीडा बोगत ेहैं। इस प्रकाय जो आसजतत से कभथ कयत ेहैं उनकी सुनतथ कभथ बोग चक्र भें पस जाती है।

चौ0- ववयक्त तनश्काभी ऻानी ध्मानी । शसद्ध सभथप याजमोग भहानी।।

ईर्श दयस साधन याजमोगा । जहॊ नदहॊ गुप्त कछु देखि प्रमोगा।।4।।

ववयतत ननष्काभी ऻानी ध्मानी ही भहान याजमोग को साध सकता है। ईश्वय साऺात्काय का याजमोग ही साधन है इसभें प्रमोग कयके देखो कुछ बी गुप्त नहीॊ यहता?

दो0- जीव कयभ गय चॊह न करय होइ न सकदहॊ स्वतन्त्र।।

रेत कयादहॊ वववर्श करय जीव फॊध्मौ प्रकृतत मन्त्र।।114।।

जीव कभथ न बी कयना चाहे तो बी वह स्वतन्त्र नहीॊ हो सकता तमोकक जीव प्रकृनत चक्र रूऩी मन्त्र भें फॊधा हुआ है। वह जीव को वववश कयके कभथ कया रेती है।

दो0- तनज तनज प्रकृतत स्वबाउ वर्श कयदहॊ जीव चषे्टाम।

स्वबाव ववयोध दयुगभ अतत ऩरयवतपन सहजुऩाम।।115।।

अऩनी अऩनी स्वबाव प्रकृनत के वमशबूत जीवों भें सभस्त कामथ गनत होती है। तमोंकक स्वबाव प्रकृनत का ववयोध कयना फड़ा कहठन है कपय बी उसभें ऩरयवतथन सयरता से ही आता है।

80

दो0- इप्न्िमादद ववकायमुक्त प्रकृतत जीवदहॊ फॊधनकाय।

“होयाभ” अभातनत्वगुणी ऩयभ भोऺ दाताय।।116।। भन इजन्द्रमाहद ववकायों से मुतत प्रकृनत जीव की फॊधनकायी है। श्रीहोयाभदेव जी कहत ेहैं कक तीनों गुणों (सत यज तभ) से यहहत होकय मही ऩयभ भोऺ देने वारी हो जाती है।

दो0- प्रकृतत प्स्थत जीव “होयाभ” बुक्तदहॊ ततदह गुणान।

कायण बत्रगुण आसप्क्त सॊग सदासद् मौतन जन्भान।।117।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक प्रकृनत भें जस्थत जीव प्रकृनत के गुणों को बोगता है। औय इसी बत्रगुणी आसजततभमता के कायण जीव अच्छी फुयी मौननमों भें जन्भ रेता है।

छ0- जफ रधग सुरब नयदेह मह तनमतत सूत्र जन कयभ कयेहौं।। कभपप्रकृतत बवदहॊ शे्रम कयभ जार बफना जग धथतत ऺयेहौं।।

बत्रगुण फॊधन प्रततऩर डायदहॊ र्शीर्श चढ्मो तनज र्शासन कयेहौं।

जे जन रु्शबारु्शब कभप ववयक्त सो न कदा कभपपॊ द ऩयेहौं।।14।।

जफ तक मह देह कामभ है तफ तक जीव को प्रकृनत सूत्र भें फॊधे यहकय कभथ कयने ऩडेंगें। तमोकक कभथ प्रकृनत जगत भें शे्रष्ठ है औय कभथ के बफना तो जग व्मवस्था ही सभाप्त हो जामेगी। हय ऩर जीव के शयीय के ऊऩय चढे हुवे प्रकृनत के बत्रगुणी फॊधन सतकथ शासन कयत ेयहेंगे ऩयन्तु जो भनुष्म शुब अशुब कभों से ववयतत है उसके कभथ अकभथ के पर के सफ फॊधन नष्ट हो जात ेहैं।

दो0- जफ रधग धचत्त सॊस्काय र्शेष तफ रधग भोष न ऩाम।

ऺमदहॊ सो ध्मानस्थ गभन सुयतत तनज गहृ शसधाम।।118।।

जफ तक चचत्त भें कभथ सॊस्काय शेष हैं तफ तक भोऺ प्राप्त नहीॊ होता। ध्मान मोगाभ्मास से सॊस्काय नष्ट होकय सुनतथ (अगभ ऩथ ऩय) अऩने गहृ (ननजधाभ) को चरी जाती है।

दो0- र्शनै् र्शनै् धचत्त सॊस्काय जफदहॊ नष्ट बई जाम।

सो ऩयभगतत कैवल्म की ध्मानस्थ मोगी ऩाम।।119।।

धीये धीये जफ चचत्त के सॊस्काय नष्ट हो जात ेहैं तफ वह अवस्था कैवल्म की होती है जजसे मोगीजन ध्मान सभाचधवस्था से प्राप्त कयत ेहैं।

81

16 – कभप प्रकृतत वववेक

दो0- कयभ ववयदहत जग जीव नदहॊ कभप प्रकृतत हमाधीन।

“होयाभ” आसप्क्त सो फप्न्ध कभप ववयप्क्त फॊधनहीन।।120।। सॊसाय भें कभथ यहहत कोई बी प्राणी नहीॊ है। कभथ प्रकृनत के स्वबाववक सुखों से होत ेहैं। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक जजसकी कभों भें आसजतत है वह फॊधा हुआ है औय जो कभों से ववयजतत वारा है उसको फॊधन नहीॊ है।

छ0- ककॊ कभप अकभप ववकभप बमे नदहॊ तनणपम भेधा वववर्श फतन। करयत ववचारय सुकृतत कदापर प्रततकूर प्राकृतत जतन।।

कहुॉ औसय अकभप कभप बमो कहुॉ सुकभप गतत अकभप फतन।

कभपदहॊ अकभप अकभपदहॊ कभप रि अशरप्त मोगी शसयोभतन।।15।।

बत्रगुण मुतत कभथ तमा है अकभथ तमा है तथा ववकभथ तमा है ? इसका ननणथम कयने भें फुवद्ध वववश है, कोई ननणथम नहीॊ है तमोंकक कबी कबी अच्छी तयह ववचाय कयके अच्छा कभथ ककमा जाता है ऩयन्तु प्रकृनतवश उसका पर प्रनतकूर हो जाता है। कबी कबी कभथ अकभथ फन जाता है। औय अकभथ सुकभथ फन जाता है। जो कभथ भें अकभथ तथा अकभथ भें कभथ देखता है वह मसयोभणी साधक कभाथकभथ से मरऩामभान नहीॊ होता।

दो0- काभना सॊकल्ऩ यदहत कभप दग्ध ऻानाप्ग्न तनष्काभ।

आत्भवत जग जे ऩैिदहॊ, सो ऩॊडडत “होयाभ”।।121।। जजसके कभथ काभना तथा सॊकल्ऩ यहहत है तथा ननश्काभ ऻानाजग्न भें बस्भ हैं औय वह सॊसाय को ननज आत्भ स्वरूऩ सभझता है श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक वही ऩॊडडत है।

चौ0- प्रज्वशरत अनर बस्भ वन जैसे । ऻानानर बस्भदहॊ कृतत तैसे।। सफ ऩावऩन से गय फड ऩाऩा । ववऻानवान नाहीॊ सन्ताऩा।।1।।

जजस प्रकाय तजे जरती हुई अजग्न से वन बस्भ हो जाता है उसी प्रकाय ऻानाजग्न से कभथ बस्भ हो जात ेहैं। महद कोई फड ेसे बी फडा ऩाऩी हो तो बी ववऻानवान (ऻानीजन) को कोई (कष्ट) नहीॊ होता।

चौ0- सुि दिु जीव जगत सफ ऩावा । ऻानी अशरप्त भूढ अकुरावा।। ववऻानवान कुगतत नदहॊ ऩावा । तनष्काभ बाव बव शसॊधु ततयावा।।2।।

82

सुख औय दखु दोंनों ही सॊसाय भें सफ जीवों ऩय आत ेहैं। ऩयन्तु ऻानीजन उसभें मरप्त नहीॊ होत ेऔय भूखथ उन्हे व्माकुर होकय बोगता है। ववऻानी जन कबी बी दगुथनत को प्राप्त नहीॊ होत ेवह तो ननष्काभ बाव से बवसागय से नतय जात ेहैं।

चौ0- सॊसमवान जे भनुज अऻानी । इत उत रोक नहीॊ सुि सानी।। भ्रभत कपयत भामा कय पे्रया । जनभ भयण दिु आऩद डयेा।।3।।

जो भनुष्म अऻानी है तथा सॊसम भें है उन्हे महाॉ वहाॉ ककसी बी रोक भें सुख शाजन्त नहीॊ होती वह तो भामा भें पॊ सा हुआ बटकता कपयता है औय जन्भ जन्भान्तय दखुद आऩदा से नघया यहता है।

चौ0- धभपनाभ फॊध्मों अॊधववश्वासा । कयदहॊ कुकभप भनोयथ आसा।। ताही सुयत अघौगतत ऩावा । अॊतकारे तनकृष्ट जुतन जावा।।4।।

जो धभथ के नाभ ऩय अन्धववश्वास भें पॊ सता है औय अऩने भनोयथ के मरमे कुकभथ (जैसे नायी को जराना, सनत कयना, फमर चढाना, बूत वऩशाच, भरेच्छ ऩूजा औय टोटके कयना आहद कभों) भें आस्था यखता है उसकी सुनतथ (रूह) अधौगनत को प्राप्त होती है औय अन्तकार भें ननकृष्ट (कीट, ऩतॊग, पे्रत) मोननमो भें जाती है।

दो0- आसप्क्तहीन वववेककजन कभप करय यहत तनरेऩ।

कभप सॊस्काय नदहॊ र्शेष ततदह “होयाभ” न धचत ववऺेऩ।।122।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक आसजतत यहहत वववेकी भनुष्म कभथ कयता हुआ बी कभथपर से ननमरथप्त यहता है उसका कोई बी कभथ सॊस्काय शेष नहीॊ यह जाता औय उसके चचत्त भें कोई ववकाय नहीॊ यहता।

दो0- सदा वववेक से उऩजदहॊ धचत्त ऩय रु्शधच सॊस्काय।

जासु भेघा भन इप्न्िमाॉ प्रबाववत कभप प्रसाय।।123।।

वववेक से सदा चचत्त ऩय शुद्ध सॊस्काय ऩैदा होत ेहैं। जजससे भन, फुवद्ध औय इजन्द्रमाॉ प्रबाववत होकय कभों का प्रसाय कयती है।

दो0- ज्मूॊ जर भध्म कभर फसत त्मूॉ ऻातनन की यहन।

“होयाभ” सभऩपण याभदहॊ ; सदा सुिानन्द र्शमन।।124।।

83

जैसे जर भें कभर फसता है उसी तयह सॊत ऻानी जन बी यहत ेहैं श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक उनका सभऩथण अऩने याभ को होता है इसमरमे उनका सदा सदा सुखानन्द भें फासा यहता है।

दो0- सवपकभप हरय अऩपण कयैहु सुशसवद्ध अशसवद्ध सभबाव।

आस भनोयथ ऩूततप ततदह सहज प्रबु व्मवस्था ऩाव।।125।।

इसमरमे भनुष्म को चाहहमे अऩना सफ कुछ ऩयभेश्वय के अऩथण कयदे औय मसवद्ध अमसवद्ध भें सभता का बाव यखे। कपय वह अऩनी भनोयथ काभना प्रबु की व्मवस्था अनुसाय सहज ही भें ऩा जाता है।

चौ0- जे ऩद ऻानी ऻानसु ऩावा । तो ऩद कयभ अकाभ उगावा।। जे भन काॊऺा वैय न द्वेषा । सुि दिु द्वन्द सभधीय ववर्शेषा।।1।।

जजस ऩद को ऻानीजन ऻान से प्राप्त कयत ेहैं वहीॊ ऩद ननष्काभ कभों से बी मभर जाता है। जजसके भन भें ककसी की आकाॊऺा वैय औय द्वेष नहीॊ होता वह सुख दखु औय झगडों भें सभान यहता हुआ ववशेष ववद्वान है।

चौ0- ईर्श सभवऩपत कयभ यत जोई । आत्भसन्तुष्ट इकयस रम होई।। रु्शद्ध भन प्जतपे्न्िम हरय ववरीना । कभप तनष्काभ ऩयभगतत दीना।।2।।

जो ईश्वय भें सभवऩथत होकय कभों भें यत है वह आत्भा भें सन्तुष्ट हुआ इक यस बाव भें रम होता है। तथा जजसका भन शुद्ध होता है इजन्द्रमों ऩय सॊमभ है तथा भन ऩयभेश्वय भें रम है उसको ननष्काभ कभथ ऩयभ गनत देत ेहैं।

चौ0- ऩश्मत्मे ऩश्मदहॊ ग्रहणात्मे गहदहॊ । स्ऩर्शपस्मे स्ऩर्शप सुननत्मे सुनहदहॊ।।

वदत न वदेदहॊ कयत न कयदहॊ । कभापकभप सो शरप्त न ऩयदहॊ।।3।।

जो देखकय बी नहीॊ देखत ेग्रहण कयके बी ग्रहण नहीॊ कयते, स्ऩशथ कयके बी स्ऩशथ नहीॊ कयते, फोरत ेहुमे बी नहीॊ फोरत ेऔय कयत ेहुवे बी कुछ नहीॊ कयत ेउनको कभथ अकभथ मरऩामभान नहीॊ कयत।े

चौ0- आसप्क्त त्माग सफ कभप कयैदहॊ । तत्व ऻानी सो सत्म अनुसयैदहॊ।।

आत्भस्वरूऩदहॊ तपृ्त ववऻानी । आत्भ ऩयभात्भज्मोत सभानी।।4।।

जो आसजतत त्माग कय सभस्त कभों को कयत ेहैं वही तत्व ऻानी जन ही सत्म का अनुसयण कयत ेहै तथा अऩने आत्भस्वरूऩ भें तपृ्त वह मोगी अऩनी आत्भा को ऩयभात्भा ज्मोनत भें सभा देता है।

दो0- न कभप कभपपर कफहु केदह यचदहॊ प्रबु अववनास।

84

प्रकृतत सॊसगप काभा उददत अनादद कार प्रमास।।126।।

वह अववनासी प्रबु कबी ककसी के कभथ मा कभथ के पर को ननधाथरयत नहीॊ कयता। मे कभथ तो अनाहदकार के प्रमास से प्रकृनत के सॊसगथ भें काभनाओॊ से उदम होत ेहैं।

चौ0- कयनी बयनी जीवदहॊ रागी । जफ रधग जीव कभापनुयागी।। जीव देह प्जन गुण सॊग त्मागे । ततदह फस ऩुनजपन्भ कृतत जागे।।1।।

जफ तक जीव की कभों भें आसजतत है तफ तक कयनी बयनी जीव के साथ रगी है। जीव उसी गुण (बाव) भें रीन होकय देह को त्मागता है। कपय ऩुनथजन्भ भें उसी बावाधीन कभथ प्रगट होत ेहैं।

चौ0- कछु गुण प्स्थय बमऊ तन भाॊहीॊ । होहदहॊ प्रवतृ भन इप्न्िम जाॊहीॊ।।

आसप्क्त ववहीन कभप जफ होई । कभप फॊधन तफ सॊग न कोई।।2।।

शयीय भें कुछ गुण जस्थय रूऩ से ववद्मभान होत ेहैं जजनभें भन इजन्द्रमाॉ जल्दी ही प्रवतृ्त हो उठत ेहैं। औय जफ कभथ आसजतत यहहत होत ेहै तफ कोई फन्धन नहीॊ होता।

चौ0- प्रकृतत ववच सुयत गुणानुबोगा । बोगकृतत सतत प्रकृतत प्रमोगा।। आऩदहॊ प्रकृतत बोग उऩजाई । आऩदहॊ आऩ ऩुतन बोधग जाई।।3।।

प्रकृनत भें यहकय ही जीव प्रकृनत के गुणों को बोगता है। गुण बोग कक्रमा ही प्रकृनत का ननयन्तय प्रमोग है। मह बत्रगुण प्रकृनत स्वमॊ ही बोग उत्ऩन्न कयती है औय कपय स्वमॊ ही स्वमॊ से बोगी जाती है।

चौ0- अल्ऩऻ जीव ऩुतन आऩ नचावा । प्जदह वशर्श सुयत ववऩद अतत ऩावा।। आत्भतनग्रह कभप ववयप्क्त धायी । साधनाभ्मास यत भुप्क्त ववचायी।।4।।

कपय मह प्रकृनत अऻानी जीव को स्वमॊ ही नचाती है जजसके आधीन जीवात्भा फहुत कष्ट उठाती है। जफ मह सुयनत आत्भा (आऩ से आऩ) भें सभा जाती है, कभों से ववयतत हो जाती है तफ साधनाभ्मास द्वाया मह भुजतत की जस्थनत कही जाती है।

दो0- तनष्काभ व्मवहाय प्स्थय धचत्त दृढभतत जादह ववकास।

अन्तय कभाई साधना सो तनशरपप्त जग बास।।127।।

85

जजसका व्मवहाय ननष्काभ पर की इच्छा यहहत है चचत्त जस्थय है औय फुवद्ध का दृढ रूऩ से ववकास हो गमा है तथा अऩनी अन्दय की साधना कभाई सुयनत नब मात्रा ऩूणथ है वह सॊसाय भें ननमरथप्त ववचयता है।

दो0- प्रकृततक द्वै स्वरूऩ तनत जीव ऩॊदह चक्र चराम।

इक यभण जग जार फन्धौ दसूय भोऺ प्रदाम।।128।।

प्रकृनत के दो स्वरूऩ (ऩया अऩया) है जो ननत्म जीवों ऩय अऩना चक्र चरामे हैं? एक भें यभण कयने से तो सॊसाय फॊधन होता है ऩयन्तु दसूये (ऩया) से भुजतत मभरती है।

दो0- जफ रधग जीव रिेदहॊ तनज ऩयभेश्वय शबन्न रूऩ। तफ रधग भोदहत कभप जार ऩीडडत तघरय बवकूऩ।।129।।

जफ तक जीव अऩना स्वरूऩ ऩयभेश्वय से मबन्न देखता है तफ तक ही कभथ जार से भोहहत हुआ सॊसाय रूऩी कुऐॊ भें नघय कय ऩीडडत है।

दो0- जफ जानदहॊ भैं ब्रह्भ हूॉ सवप ववधध ब्रह्भात्भ बाव।

होदहॊ न शरप्त तद कभपसु तनसॊर्शम अभतृ ऩाव।।130।।

औय जफ “भैं ब्रह्भ हूॉ ” ऐसा जान रेता है औय सफ प्रकाय से ब्रह्भात्भ बाव भें ही यहता है तफ वह कभों से मरप्त नहीॊ होता औय नन्सॊदेह अभतृ को प्राप्त हो जाता है।

दो0- सो मो ब्रह्भात्भबाव यत ताको ब्रह्भ ही जान।

ऻानानर सफ ऩाऩ ऩुन्म नष्ट बमेउ यत ध्मान।।131।।

औय वह मोगी सॊत जो ब्रह्भात्भ बाव भें ही रीन यहता है उसे ब्रह्भ ही जानना चाहहमे तमोकक उसके सभस्त ऩाऩ ऩुन्म सॊस्काय ध्मानमोग भें रीन ऻानाजग्न भें नष्ट हो गमे होत ेहैं।

चौ0- मऻ तऩ तीयथ जऩ व्रत दाना । सवप स्वगप के ही हेतु फिाना।। ऩुन्म कभप पर स्वगप ऩठावा । ववववध बोग सुि दान प्रदावा।।1।।

मऻ तऩ तीयथ ककतथन व्रत औय दान सबी स्वगथ के मरमे ही कहे गमे हैं। ऩुन्म कभों के पर स्वगथ भें बेजत ेहैं औय ववमबन्न प्रकाय के सुख बोग दान से मभरत ेहैं।

चौ0- करय करय मऻ नय देवत्व ऩावा । ऩुण्म ऺीणत ऩुतन इह बयभावा।। उच्मगतत रु्शबारु्शब पर त्मागी । आत्भरीन जन जग फड बागी।।2।।

86

मऻों से भनुष्म देवत्व को प्राप्त होता है जो ऩुन्म सभाप्त होने ऩय इसी रोक भें आ बटकता है। शुबाशुब कभथ पर त्मागी की उच्चगनत होती है औय जो आत्भरीन है वह सॊसाय भें फडा बाग्मशारी है।

चौ0- बगतत सकर मोगन की भाता । ऋवष भुतन मोगीन्ह आश्रम दाता।। अन्तदहॊ तऩस्वी सुमोगी ऻानी । सभावत बप्क्त उदय सफ जातन।।3।।

बजतत सफ मोगों की भाता है जो ऋवष भुनन मोगी सफकी आश्रम दाता है। सभस्त तऩस्वी मोगी व ऻानी जन अन्त भें सफ बजतत के उदय भें सभात ेहैं मही सफने जाना है।

चौ0- बफना सभऩपण बगतत न होई । तनश्काभ कभप बफनु सुरब न सोई।। तनश्काभ बाव नदहॊ बफनु वववेका । साधहु मोग करय बप्क्तन्ह टेका।।4।।

सभऩथण के बफना बजतत नहीॊ होती औय सभऩथण ननष्काभ कभथ बफना नहीॊ होता औय ननष्काभ बाव वैयाग्म बफना नहीॊ होता। सभस्त मोगों को बजतत के आधाय ऩय साधना चाहहमे।

दो0- सूिी गीरी ईधन प्जशभ प्रज्वशरत अनर जयाम।

ऻानानर ववऻानी त्मूॉ ऩाऩ ऩुन्म ववनसाम।।132।।

सूखे गीरे ईधन को जैसे तजे जरती हुई अजग्न जरा देती है उसी प्रकाय ववऻानीजन अऩने सभस्त ऩाऩ ऩुन्म नष्ट कय डारत ेहैं।

चौ0- फीज सुि दिु धभापधभप नाना । आत्भ भाॊहीॊ कहुॉ हौं नदहॊ जाना।। कताप न बताप सुयत ककदह कारा । सदा कूटस्थ मह भुक्त ववर्शारा।।1।।

भैं सभस्त सुख, दखु, धभथ अधभथ, का फीज इस आत्भा भें कहीॊ नहीॊ देखता हूॉ मह आत्भा ककसी बी कार भें कताथ – बोतता बी नहीॊ है। मह तो सदा ननत्म कूटस्थ औय भुतत तथा ववशार है।

चौ0- फॊधन भोऺ भनदहॊ ववषम रागा । तादह भुक्त करय जीव सुियागा।। धचत्त वासन ऩइ तनमन्त्रण यािै । आत्भ भाॊहीॊ ऩयभात्भ झाॊिै।।2।।

फन्ध औय भोऺ तो भन के ववषम हैं भन को भुतत कयके जीवात्भा सुखानॊहदत हो जाती है। इसमरमे चचत्त की वासनाओॊ ऩय ननमन्त्रण यखना चाहहमे कपय आत्भा भें ही ऩयभात्भा की झाॉकी देंखें।

चौ0- ववरम धचत्त तद सगुण न रूऩा । सगुण ध्मान रम तनगुपणानूऩा।।

ध्माता ध्मेम ध्मान इक होई । तदाकाय रम द्वैत न कोई।।3।।

87

जफ चचत्त रम होता है तफ कोई सगुण (साकाय) रूऩ नहीॊ यहता तमोकक सगुण ध्मान ननगुथण के स्वरूऩ भें रम हो जाता है। इस प्रकाय साधक, ईष्टदेव औय उसका ध्मान तीनों का एक रूऩ हो जाता है। कपय उसी ईष्ट स्वरूऩ भें तदाकाय होकय रम होने ऩय द्वैत कुछ शेष नहीॊ यहता।

चौ0- धचत्तवतृत तयॊगाकृतत साकाया । तनगुपण प्राप्प्त भॊह सहामकाया।। सगुण ध्मान ऩुरदट तनयाकाया । रिदहॊ सॊत जन सभाधध ऩसाया।।4।।

चचत्तवजृत्तमों की साकाय तयॊग आकृनत ननगुथण की प्राजप्त भें सहामक होती है। इस प्रकाय सगुण ध्मान को ननयाकाय स्वरूऩ (ज्मोनत स्वरूऩ) भें ऩरट कय सॊत मोगीजन सभाचधस्त नजाया (ऩयरोक की दनुनमा) देखत ेहैं।

दो0- दार्शपतनकता सॊसाय की ऩूणप होम प्जस ठाभ।

तहॉ सों आयम्ब भूरसत्म सुयत गभन “होयाभ”।।133।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक सॊसाय की सभस्त दाशथननकता जजस स्थान ऩय सभाप्त व ऩूणथ हो जाती है वहाॉ से आगे वास्तववक सत्म की ओय सुनतथ की मात्रा आयम्ब होती है।

दो0- “होयाभ” इह सॊसाय से गय चाहदहॊ तनयवान।

ववषम आसप्क्त त्माग सफ ; कय सुतपर्शब्द मोगान।।134।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक महद इस सॊसाय से ननवाथण (भुजतत) चाहत ेहो तो ववष्मों की आसजतत त्माग कय (श्रसत्म ऩथ) सुनतथ-शब्द-मोग का ऻान ग्रहण कयें।

17 – सॊत सुतप अवतयण

दो0- चारय प्रकाय असॊख्म सुतप आम फसदहॊ जग भादहॊ।

भहाकार आधीन सफ तीन रोक बयभादहॊ।।135।।

चाय प्रकाय से असॊख्म आत्भाऐॊ इस सॊसाय भे आकय फसती हैं वे सफ भहाकार के अधीन होकय तीनों रोक (अण्ड, वऩण्ड, ब्रह्भाण्ड) भें बटकामी जाती हैं।

चौ0- सतरोक रधग ठाभ सहस्त्रायी । यचना कयत कछु सुयत शसधायी।।

88

तॊह तें कछु भ्रुभध्मरोका । कयदहॊ यचन गदह कारदहॊ भौका।।1।।

सतरोक से कुछ आत्भाऐॊ यचना कयती हुई सहस्त्रदर कभर भें उतयती हैं औय कुछ सहस्त्रदर कभर से बूभध्म रोक तक कार ननयॊजन से अवसय ऩाकय सजृष्ट (यचना) कयती हैं।

चौ0- तीसय जीव बॊडाय ववर्शारा । तनयॊजन कीन्ही ओभ हवारा।। चौथे सो सॊत आत्भा जाने । सुयत धचदामे बवशसॊधु ततयाने।।2।।

तीसये प्रकाय का वह जीव बण्डाय है जो कार ननयॊजन ने ऊॉ काय (बत्रकुटी) के हवारे ककमा था। चौथे प्रकाय की वे सतात्भाऐॊ जानी जाती हैं जो महाॉ कारदेश भें जीवों को जगाकय बवसागय से ऩाय उतीयती हैं।

चौ0- सतऩुरुष स्वमॊ न गहेदहॊ अवताया । मौतन यदहत सो अशरप्त अऩाया।। जे सॊत देहदहॊ कयदहॊ अभ्मासा । कयदहॊ सवपदा सतऩुरय फासा।।3।।

सतऩुरुष कबी बी अवताय नहीॊ रेता वह तो अनन्त अऩाय तथा मोनन यहहत है। जो सॊतजन देह भें (अऩने अन्दय) याजमोग सुनतथशब्द का अभ्मास कयत ेहैं वे अऩनी तीथथ मात्रा (सुनतथमात्रा) तम कयके सदा सचखॉड भें फासा ऩात ेहैं।

चौ0- ततन्हदह सतऩुरुष देदहॊ आदेषु । सो प्रगटदहॊ जग जीव दहतषेु।। सो सतऩुरुष अवताय कहाहीॊ । जीव धचदाम सचिण्ड ऩठाहीॊ।।4।।

इन्ही आत्भाओॊ को सतऩुरुष आऻा देत ेहैं जजसके परस्वरूऩ वे इस रोक भें प्रकट होकय जीवों का कल्माण कयती हैं। मे आत्भाऐॊ सतऩुरुष का अवताय कहराती है औय वे सॊतात्भाऐॊ जीवों को जगा जगाकय सचखण्ड (सतरोक-अरख-अगभ-अगोचय तथा अनाभी रोक) भें बेजती हैं।

दो0- सॊत कभप की येि ऩय धयै दमा की भेि।

“होयाभ” रू्शशर कॊ टक कटै सॊत भागप चशर देि।।136।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक सॊतआत्भाऐॊ कभों की येखा ऩय अऩनी दमा कृऩा की भेख रगा देत ेहैं। कपय शूमर (पाॊसी) बी काॊटे ऩय कट जाती है सॊतऩॊथ ऩय चर कय देखरो।

चौ0- ब्रह्भाण्डी बफम्फ वऩण्ड यधच भामा । अॊडकय बफम्फ वऩॊड ऩॊह छामा।।

कछु सॊत वऩॊड अॊडदहॊ ध्माहीॊ । शसवद्धन तपृ्त हरयद्वाय न ऩाहीॊ।।1।।

भामा ने ब्रह्भाण्ड की नकर वऩॊड रोंकों भें यचच है औय अॊड रोंकों का प्रनतबफम्फ वऩॊड भें उताया है। कुछ साधक वऩॊड औय अॊड के अचधष्ठाताओॊ का

89

ध्मान कयत ेहैं वे मसवद्धमों से ही तपृ्त हो जात ेहैं तफ कुर भामरक के द्वाय की उन्हे प्राजप्त नहीॊ होती।

चौ0- तनयॊजन आमसु र्शप्क्त अवताया । याभ कृष्ण प्रगटदहॊ सॊसाया।। कार अवतायदहॊ याखि सहाई । शभशरहु ईर्श करय सुयत कभाई।।2।।

कार ननयॊजन की आऻा से शजतत के अवताय याभ श्रीकृष्ण आहद जगत उद्धाय के मरमे प्रगट होत ेहैं। इन काररूऩ अवतायों को सहामक फनाकय अऩनी सुयनत की अन्तय की कभाई (सुतथ शब्द मोगमात्रा) कयत ेहुवे ऩूणथ ऩयभेश्वय से मभरना चाहहमे।

चौ0- तनगुण सगुण ईर्श कभपचायी । जग थाऩक सफ जीव दहतायी।। सहाम करय अरू तप्ज ततन्ह धाभा । अन्तरयभागप गहहु तनज ग्राभा।।3।।

सभस्त सगुण ननगुथण धनन प्रबु के कभथचायी हैं जो जीवों के हहत के मरमे ववश्व की व्मवस्था कयने वारे हैं। इन सफको सहामक फनाकय औय इनके देशों को त्मागता हुआ अऩने अन्दय भागथ (सुतथ मात्रा) से अऩने ननज धाभ (अनाभी रोक) को प्राप्त कये।

चौ0- सगुण तनगुण भहाकार भुकाभा । सतऩुरुष ध्मान यत कयत ववश्राभा।। जफ रधग उरदट ऩथ सुतप न गोई । भामा ठाभ कबु भुप्क्त न होई।।4।। सगुण ननगुथण सफ भहाकार के देशों भें हैं औय वे सफ अऩने अऩने देशों भें ही सतऩुरुष के ध्मान भें यत यहत ेहैं जफ सुनतथ (रूह) अऩनी धाया, जो आॉखों से नीच ेइजन्द्रम केन्द्रों भें उतय यही है को ऩरटकय (आॉखो के ऩीछे अगभ ऩथ ऩय) उल्टी नहीॊ चढाती तफ तक भामा के देशों से इसकी कबी भुजतत नहीॊ होती।

दो0- जेदह ध्मान साधना शे्रम भहत्ता सगुण ववजातन।

सगुण नाव ऩैदठउ चरै तनयगुण शभरदहॊ भहातन।।137।।

जजसकी ध्मान साधना शे्रष्ठ हो गमी है वह सगुण की भहत्ता जान चुका है। सगुण की नाव ऩय चढकय चरता चरता वह ननगुथण ब्रह्भ को प्राप्त कय रेता है।

दो0- तनगुपण की साधना कये सगुणदह करयअ तनन्द।

कहत “होयाभ” भततभॊद सो बमो भोततमा बफन्द।।138।।

90

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक जो ननगुथण की साधना कयता है औय सगुण ब्रह्भ की यात हदन ननन्दा कयता है उस तत्व अनमबऻ साधक को भोनतमाबफ ॊद का योग रग गमा है।

दो0- तनगुपण सगुण षोडस सुत् कयत याज्म तनप्ज ठाभ।

तनज तनज द्वीऩदहॊ ऩावदहॊ सत्मधतन कृऩा रु्शचाभ।।139।।

सगुण ननगुथण सोरह सुत् अऩने अऩने रोंकों भें याज्म कयत ेहैं। जो दमार ऩुरुष के आधीन यहत ेहैं औय भामा के सुन्दय अवताय कहे जात ेहैं। वे सफ अऩने अऩने देशों भें ही सत्मऩुरुष की ऩावन कृऩा ऩात ेयहत ेहैं।

दो0- तनगुपण देस मात्रा कयै सगुणदहॊ याखि सहाम।

सगुण तनगुण की नाव चदढ ऩूणप ऩुरुष सभाम।।140।।

ननगुथण देशों की मात्रा कयें औय सगुण ब्रह्भ को सहामक यखें। इस प्रकाय सगुण ननगुथण की नौंका भें चढकय अऩने ऩूणथ कुर भामरक भें सभामे जामें।

दो0- सुगण से आगे तनगुण ऩाय ब्रह्भ कदह वेद।

सगुण तनगुण तप्ज ऩाइमे ऩूणप ऩुरुष अबेद।।141।।

सगुण ब्रह्भ से आगे ननगुथण ब्रह्भ है। जजसे वेदों ने ऩायब्रह्भ कहा है। दोंनों सगुण व ननगुथण को त्माग कय ही ऩूणथ ऩुरुष ऩयभेश्वय को प्राप्त कयना चाहहमे।

सो0- प्रबु कृतत आऻाकाय, जगत सुव्मवस्था कामप यत।

ततन्हकय बत्ररोकक बाय, तनज तनज ऩुय सुय वॊदनीम।।1।।

जगदीश्वय की यचना भें आऻाकायी जगत की सुव्मवस्था कामथ भें रगे हुवे सबी देवतागण बी वॊदनीम ही हैं। तमोंकक उनके हाथों भें बत्ररोक की व्मवस्था का बाय है।

दो0- सगुण तनगुण के देर्श को नदहॊ धरय वैय तजाम।

तज ज्मूॉ मान तजामहीॊ मात्री तनज रछ ऩाम।।142।।

सगुण ननगुथण के देशों को फैय यख कय नहीॊ त्मागना चाहहमे फजल्क जैसे मात्री अऩनी भॊजजर ऩय ऩहुॉच कय वाहन को त्माग देता है ऐसे ही त्मागना चाहहमे।

चौ0- जग थाऩक बत्रदेव कहामा । काराधीन जगत ठहयामा।। ताही देर्शसु जफ सचधाभा । सुयत न जादहॊ फॊधेदहॊ कारनाभा।।1।।

91

जगत की व्मवस्था कयने वारे बत्रदेव (ब्रह्भा, ववष्णु व भहेश) कहे जात ेहैं जो ननयॊजन के आधीन जगत को चरा यहे हैं। इनके देश से जफ सुनतथ (आत्भाऐॊ) सचखण्ड भें जानी फन्द हो जाती हैं औय महीॊ कार जार फॊधती जाती है।

चौ0- सतऩुरुष आमसु बुॊवयऩतत कीन्ही । प्रगदट को धतन सुयत ऩथ दीन्हौ।। कारचक्र जे फचना चाहीॊ । सो अवताय ततन्हदहॊ चतेाहीॊ।।2।।

तफ सतऩुरुष दमार भहाकार धनन को आऻा देता है जजसके परस्वरूऩ कोई धनन अवताय रेता हैऔय वह उन रूहो को सचखॊड का यास्ता हदखाता है। जो रूह कारचक्र से फचना चाहती है, वह धनन उन्ही आत्भाओॊ को जगाता है।

चौ0- कछु सुतप सचिॊड़ सॊउ आवा । सोइ ऩयभसॊत जगत कहावा।। गदृहत सुयत सॊग दमा यिावै । ऩुतन कपयइ तनज देर्श सभावै।।3।।

कबी कबी कुछ आत्भाऐॊ सचखॊड से आ जाती हैं जो सॊसाय भें ऩयभसॊतो भें कहीॊ जाती है। वे अऩने द्वाया ग्रहण (दीक्षऺत) की गई रूहो ऩय अऩनी दमा यखत ेहैं। कपय वह वावऩस अऩने ननजधाभ (हहन्दतु्वऩद) सचखॊड भें सभा जाती है।

चौ0- ववनसदहॊ धभप जफ असुय प्रगाडड । अनाचाय ग्रशसत बव दिु ठाडड।। ववष्णु स्वमॊ तद प्रगटत सॊसाया । हयदहॊ फसुन्धया सॊत दिु बाया।।4।।

जफ धभथ का नास होने रगता है असुय जन उत्तजेजत हो उठत ेहैं जजनके अत्माचायों के प्रकोऩ से सॊसाय भें फडा कष्ट फढ जाता है तफ श्री ववष्णु बगवान स्वमॊ अवताय रू भें प्रगट होकय ऩथृ्वी ऩय सॊतजनों का दखु हयण कयत ेहैं।

दो0- अवताय सहसया बत्रकुदट प्रगट हयण बवबाय।

सचिॊडी सॊत सुजीवदहॊ कयदहॊ कारिॊड ऩाय।।143।।

बत्रकुहट औय सहस्त्रदर देश से आने वारे अवताय सॊसाय सागय से जीवों को ऩाय कयने के मरमे ही आत ेहैं।

दो0- कार अवताय प्रगट इह जग व्मवस्थाऩन हेत।

दमारावताय प्रगटदहॊ िारी कयादहॊ िेत।।144।।

92

कारदेश के अवताय इस सॊसाय की कपय से व्मवस्था कयने आत ेहैं ऩयन्तु दमार अवताय (ऩयभसॊत) इस कारदेश को खारी कयने को प्रगट होत ेहैं। (तमोंकक वे महाॉ से रूहों को सचखॊड बेजत ेहैं)।

चौ0- सतऩुरय ऩाय बत्रधाभ ऩसाया । अरि अगभ अनाशभ अऩाया।। ऩयभसॊत तॊह कयदहॊ ववश्राभू । आभ दयफाय सतऩरय ठाभू।।1।।

सतरोक के ऩाय तीन रोक अरख, अगभ, अनाभी का ववस्ताय है वहाॉ ऩयभहॊस सॊत ववश्राभ कयत ेहैं। उनका आभ दयफाय सतरोक भें रगता है।

चौ0- सन्त सुयत दहतु बत्रकुदट आवा । चुतन चुतन सुयत सचिॊड ऩठावा।।

सो ऩुतन रौदट जगत न आवदहॊ । ऩूणाँ स्वाभी सॊग भोऺ भनावदहॊ।।2।।

वे सॊत रूहों की बराई के मरमे सचखॊड से बत्रकुहट देश तक आ जात ेहैं। औय चुन चुन कय रूहों को ग्रहण कयके सचखॊड बेजत ेहैं। कपय वे रूहें रौटकय सॊसाय भें नहीॊ आती। वे रूहे ऩूणथ ऩयभेश्वय के साथ भौज भनाती हैं।

चौ0- अन्तरय देस सॊत जफ जाहीॊ । कयभहीन सुयत भग आहीॊ।। चाहदहॊ सो सतरोकदहॊ जावा । सॊत कृऩा नय जनभ प्रदावा।।3।।

जफ सॊतजन अऩनी ननज मात्रा भें अन्दय नब भें गभन कयत ेहैं तफ भागथ भें फहुत सी ऐसी रूहें मभरती हैं जजनकी सतनाभ की कुछ बी कभाई नहीॊ है ऩयन्तु वे सॊत रोक जाना चाहती हैं। सॊत जन उन ऩय दमा कयके उन्हे भनुष्म का जन्भ हदरा देत ेहैं।

चौ0- ऩयभसॊत सचिॊड आई जाहीॊ । सुयत ऩयणाम तनज ठाभ ऩठाहीॊ।। सकर धाभधनी सुयत दहतषेी । मथा कार करय कृऩा ववर्शेषी।।4।।

ऩूणथ सॊत मोगीजन सचखॊड से आत ेजात ेहैं औय अऩने द्वाया गहृण की हुई सुतों को सम्बारकय धुयधाभ तक ऩहुॉचत ेहैं। यास्त ेके सबी रोक धनी बी आत्भाओॊ के मरमे हहतषेी हैं वे सभमानुसाय अऩनी ववशेष दमा कृऩा बी उन ऩय कयत ेहैं।

दो0- सवप रोकऩतत सुयत दहत ेमात्रा सहामकाय।

जे जन डौरय कार सॊग सो न चदढ तरय ऩाय।।145।।

भागथ के सबी देशों के धनी सुयनत की मात्रा भें सहामता कयत ेहैं औय उनके साथ यहत ेहैं। ऩयन्तु जजनकी सुनतथ की डौरय कार के साथ फॊधी है वे उस मात्रा ऩय नहीॊ चढ सकत ेहैं औय न बवसागय ऩाय हो ऩात ेहैं।

93

18 – सुततपमात्रा सहामक सन्त सतगुय

दो0- शर्शवततर से सहस्त्राय रधग सुयतें फूॊद सभान।

दसभद्वाय भॊह रहय सभ ब्रह्भाण्ड ऩये शसन्धु जान।।146।।

हदव्म नेत्र से सहस्त्र दर कभर तक जीवात्भाऐॊ फून्द के सभान होती है। दसभ द्वाय (देवरोक) अथाथत सुन्नरोक भें रहय के सभान हैं औय ब्रह्भाण्ड के ऩाय सचखण्ड भें सागय के सभान ववशार हो जाती हैं।

चौ0- सेतु सुन्न रधग नय नारय बेदा । भानसय नहाम देह भ्रभ छेदा।। जे जन कीन्है ध्मान कभाई । प्रत्मऺ रिदहॊ सो अनुबूताई।।1।।

नय नायी देहात्भक बेद बी सुन्नरोक तक है वहाॉ भानसयोवय भें आत्भा का स्नान होने ऩय देह भ्रभ नष्ट हो जाता है। जजन सॊतजनों ने अऩने अन्दय ननज ध्मान की कभाई की है वे ही सॊत प्रत्मऺ अनुबूनत (साऺात्काय) कयके देखत ेहैं (तथा अऩने मशष्मों को प्रत्मऺानुबूनत कया सकत ेहैं)।

चौ0- जगत जीव सो कयदहॊ दहतषेू । अन्तरय भग तनश्ऩऺ उऩदेषू।। अन्तरय गभन यहदहॊ शर्शष्म सॊगा । ऩन्थ रिाम सचिॊड प्रसॊगा।।2।।

वे ही जीवों को अन्तभुथखख भागथ (सुनतथ शब्द मोग मात्रा) का ननश्ऩऺ उऩदेश देत ेहैं औय उनका हहत कयत ेहैं। तथा अन्तरय मात्रा (सहज सभाचध भागथ) भें मशष्म के सॊग यहत ेहैं औय सचखॊड (हहन्दतु्व ऩद) का प्रसॊग देकय ऩथ ननदेशन कयत ेहैं।

चौ0- गुरु कृऩा सफ तें अधधकाई । उफायदहॊ सुयत ऩॊथ दयसाई।। बफनु गुरु गभन सुपर न होई । ईर्श कृऩा बफनु सुरब न सोई।।3।।

सतगुरु की कृऩा सफसे फढकय है वे ही जीवों को भागथ हदखाकय बवसागय भें उफायत ेहैं। बफना सतगुरु मोगमात्रा ऩूणथ नहीॊ होती औय वह कृऩा ईश कृऩा के बफना सुरब नहीॊ होती।

चौ0- जीव फॊध्मउ सुयग सुि नाना । करय कयभ जऩ तऩ मऻ नाना।। हौंदहॊ तुष्ट सुय रयदद शसदद ऩाई । तनजात्भऻान सुधध नदहॊ ऩाई।।4।।

94

मह जीव जऩ तऩस्मा मऻ दान आहद कभथ कयके देवताओॊ के नाना प्रकाय के यच ेहुवे स्वगथ सुखों भें उरझा हुआ है। औय उनके द्वाया प्राप्त मसवद्धमों भें भग्न है उसे अऩने ननजधाभ हहन्दतु्व ऩद (ननवाथण ऩद) की सुध नहीॊ है।

दो0- गदृहत सुयत सम्बार दहतु सचिॊड सॊउ बत्रकुदट आम।

शर्शष्मन सेवा गहदहॊ गुरु अन्तरय ददव्मरूऩ रिाम।।147।।

सतगुरु की शयण अथाम है वे अऩनी गहृण की हुई रूहों की सम्बार कयने के मरमे सचखण्ड से बत्रकुहट (ऊॉ काय देश) तक आकय मशष्मों सन्तों की सेवा गहृण कयके उसे आन्तरयक हदव्म ववयाट रूऩ हदखात ेहैं।

चौ0- सुनहु सन्त भभ नेक सरहानी । इप्न्िमॊघाट तप्ज गहहुॉ गुरु फानी।। िोरहु जाई गगन ककवायी । करय सुततपर्शब्द रम मोग अगायी।।1।।

हे सन्तों भेयी (श्री होयाभदेव जी की) नेक सराह सुनों ! इजन्द्रमों के घाट को त्मागकय गुरु वाणी (साय शब्द सतनाभ सुनतथमात्रा ववऻान) को गहृण कयो औय सुनतथ को शब्द भें रम कयके आकाश भागथ की खखयकी (गुप्तद्वाय) को खोरो।

चौ0- वऩ ॊडदहॊ सुयत भन इच्छाधीना । बत्रकुदट भदढ बत्रम भामा ऩयीना।। भामाभर बत्रकुदटदहॊ तजावै । भनवा जीतत ततदह उध्र्व चढावै।।2।।

वऩन्ड रोकों भें सुनतथ भन व ईच्छा के आधीन यहती है औय बत्रकुटी (अऺय ब्रह्भ ऊॉ काय देश) भें बत्रगुणा भामा के ऩदे भें भढी जाती है। भामा का सायाभर आवयण बत्रकुहट भें ही त्माग दो। औय भन को जीतकय अऩनी सुयनत को उच्च रोंकों भें चढा देंवें।

चौ0- तॊह तनत फहदहॊ अगभ की धाया । उरदट ऩॊथ कोउ बफयर शसधाया।। सुयतत धाय जो ऩुरट चढावदहॊ । सफ तीयथ रि तनजऩद ऩावदहॊ।।3।।

अगभ की धाया हदन यात फहती है उस उरटी धाय ऩय कोई बफयरा ही गभन कयता है। जो सॊतमोगी जन अऩनी सुनतथ को उरटी धाय ऩय चढा देता है वह यास्त ेके सफ रोंकों के तीथथ देखता हुआ अऩने ननज धाभ ननवाथण (हहन्दतु्व ऩद) को प्राप्त कय रेता है।

चौ0- ऩूणपसन्त जीवदहॊ ऩयभ दहतषेु । कृऩा करय भेटत जगद करेषु।। सो वऩ ॊड साधना सुयत न ठेशर । तनजऩुरय जाहीॊ सुयत सहेशर।।4।।

95

ऩूणथ सॊत सुनतथ के ऩयभ हहतैषी होत ेहैं वे अऩनी कृऩा कयके जग के करेश मभटा देत ेहैं। वे सॊतजन सुनतथ को वऩन्ड साधना भें नहीॊ रगात ेफजल्क गहृहत (ग्रहण की हुई) सुनतथ के साथ – साथ ननज धाभ (अनाभी रोक को जात ेहैं)।

दो0- कार सदहत द्वै अन्म सुत् सचिॊड देर्श न जाम।

“होयाभ” कृऩा सतधाभ की तनज तनज धाभदहॊ ऩाम।।148।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक कार सहहत दो अन्म धनन सतरोक भें नहीॊ जात ेवे सचखॊड की भौज अऩने अऩने रोंकों भें ही प्राप्त कयत ेयहत ेहैं।

चौ0- सतऩुरुष अप्रसन्न रखि कारा । ताही जार ववकट ववकयारा।। तदवऩ कार भेदटउ नदहॊ जाहीॊ । तीदह सॊग सोड्ष सुत् नसाहीॊ।।1।।

सतऩुरुष मद्मवऩ कार से अप्रसन्न है तमोंकक उसका कार जार फडा ववकयार औय ववकट है कपय बी कार को मभटामा नहीॊ जा सकता तमोकक उसके साथ सोरह सुत् (धनन) बी मभटत ेहैं।

चौ0- कार जार मदवऩ ववकयारा । सॊतन सॊग सो ऩयभ दमारा।। जे जग जीव बई जो काभा । कारदहॊ सुय सुरय सफदहॊ ऩठाभा।।3।।

कार का जार मद्मवऩ फडा ववकयार है कपय बी सॊतजनों के मरमे वह फडा दमारु है। सॊसाय भें जजस जजस जीव को जो जो ईच्छा होती है कार के देवी देवतागण उसको वह सफ बेजत ेयहत ेहैं।

चौ0- सॊधचत कयभ ततयकुदट फासे । सो सदगुरु दमा सफ नासै।। प्रायब्ध कयभ बोधग तनु भाॊही । दमा भेि सॊत सकइ रगाहीॊ।।4।।

जीव के सॊचचत कभथ बत्रकुटी भें फसत ेहै वे सफ सतगुरू की कृऩा से नष्ट हो जात ेहैं। औय प्रायब्ध कभथ देह ऩाकय बुगत ेजात ेहै (जजनका सहत्रदर देश भें बॊडाय होता है) सॊत उनभें बी अऩनी दमा की भेख रगा सकत ेहैं।

चौ0- सतगुरू शर्शष्मन्ह रइ कछु सेवा । भेटत तादह कछु कयभ अधेवा।। कछुक कयभ सुऩन बुगतादह । अन्तरयगभन ततदह सॊग तनबादह।।5।।

गुरू रोग मशष्म से कुछ सेवा रेकय उसके कभों का रेखा जोखा मभटा देत ेहैं औय वे मशष्म के कुछ कभों को स्वप्न भें बुगतवा देत ेहैं औऱ उसकी ननजमात्रा भें साथ ननबात ेहैं।

दो0- तीसय ततर जरिण्डी नऩृ फॊघ्मो ऩॊच दस ऩच्चीस।

96

चाय भथाइ दस भयइ नऩृ भुक्त गुयवार्शीस।।149।।

तीसये नतर भें मह देह स्वाभी (जीवात्भा) ऩाॉच भहाबूत दस इजन्द्रमाॊ तथा ऩच्चीस चचत्तवनृतमों के साथ फॊधा हुआ है। वह जफ चायों अन्त्कयण (भन,चचत्त,भेधा, अहभ) को भथता है तो दसो इजन्द्रमाचधष्ठाता अऩने आऩ नष्ट हो जात ेहैं औय गुरू के आमशवाथद से जीव भुतत हो जाता है।

चौ0- गदृहत सुयत गय कायण कोई । देह तज कारदह सुन्न सभोई।। र्शेष प्राण ततदह तॊह बुगताहीॊ । सुयत सम्बार करय गगन चढाहीॊ।।1।।

महद सॊत सतगुरूओॊ की ग्रहण की हुई कोई रूह ककसी कायण (अकार भौत) शयीय त्माग देती है तो उसकी व्मवस्था सुन्न देश भें कय दी जाती है उसके शेष प्राण वहाॉ ऩूये कय हदमे जात ेहैं। कपय उसकी सुयनत की सम्बार कयके गगन भॊडरों ऩय चढा दी जाती है।

चौ0- तनयगुय सुयत सुन्नधतन सम्बारे । तहॉ ऩुन्म बोधग ऩुन् बव डाये।। सुयत तनयत गुरू जे सुन्न फाॊधी । कयभ भुक्त सुतप सो सुन्न साॊघी।।2।। ननगुयी ऩयन्तु नेक रूह को सुन्नधनन ही सम्बारता है ऩयन्तु वह उसे अऩने ऩुन्म पर के फयाफय ही बोगता है औय कपय बवसागय के हवारे कय हदमा जाता है। सतगुरु देव सुनतथ की डौरय जजस सुन्न देश भें फाॉधत ेहैं कभथमुतत वह आत्भा (रूह) उसी सुन्न भें चरी जाती है।

चौ0- भामा ऩात तीसय ततर छूटै । सहस्त्र कॊ वर सूखि तरू टूटै।। बत्रकूदट जाम फीज सफ नासा । दसभद्वाय बत्रगुण भर ऺासा।।3।।

तीसये नतर (आऻआचक्र को ननकट ऻान सुन्न) भें भामा रूऩी वृऺ के ऩत्त ेछुट जात ेहैं औय सहस्रकॊ वर (बुवरोक) भें भामा का वृऺ ही टूट जाता है। बत्रकुटी (ऊॉ काय ऩद) भें ऩहुॉचकय भामा के फीच का ही सवथनाश हो जाता है औय दसभतार (भानसयोवय सुन्न रोंक भें जस्थत) भें बत्रगुणी भामा का भरावयण बी सभाप्त हो जाता है।

चौ0- आगे रु्शद्ध ऩयाप्रकृतत होई । अन्तरय गभन सहामक जोई।।

तहॉ सुयत अतत तीव्र शसधावा । ऩयभहॊस होइ दहन्दतु्व सभावा।।4।।

97

महाॉ से आगे शुद्ध ऩया प्रकृनत है जो सुती की आन्तरयक मात्रा भें सहामक होती है। ऩया प्रकृनत याज्म भें सुनतथ तीव्र वेग से दौडती है इस प्रकाय वह सुनतथ ऩयभहॊस फनकय अऩने भूर हहन्दतु्वऩद (अनाभीरोक) भें सभाती है।

दो0- सुयत डौरय इह कारकय श्रीऩतत कय भतत ऺौय।।

धचत्त ब्रह्भा अहभशर्शव कय आद्मा कय भनडौय।।150।।

इस रोक भें सुनतथ की डौरय कार के हाथ भें है फुवद्ध की डौरय श्री ववष्णु के हाथ भें चचत्त की ब्रह्भा के, अहभ ्की डौरय श्री मशव के हाथ भें तथा भन की डोरय दृढता से शजतत के हाथ भें है।

चौ0- जफ रधग सुयत झॊझदीऩ न ऩाया । ददक् रू्शशरकार बूत बमकाया।। ताऩय ततन्ह प्रबऊ न कोई । तनयबम सुयत गभन तॉह होई।।1।।

जफ तक सुयनत मभरोक को ऩाय नहीॊ कय रेती तफ तक ही इसे हदक्र शूर कार ग्रह बूतपे्रत आहद बम देत ेहैं। मभ रोक से ऩाय इनका कोई प्रबाव नहीॊ होता आगे तो सुनतथ की मात्रा ननबथमता से होती है।

चौ0- तद गुरुकृऩा सुयत उडड जाई । ऩाय ब्रह्भाण्ड सचधाभ सभाई।। अगखणत बानु अगभ आकार्शा । सन्त चककत मह देखि तभार्शा।।2।।

ऩूणथ सतगुयओॊ की कृऩा से सुनतथ तीव्र वेग से उडान बयती हुई ब्रह्भाण्ड के ऩाय सत्मधाभ अनाभी भें सभाती है वहाॉ अगभ रोक भें अगखणत सूमथ आकाश भें चभकत ेहैं उस नजाये को देखकय ऋवष जन आश्चमथ भें ऩड जात ेहैं।

चौ0- तीसय ततर तें प्रथभ भकाभा । आगे धचत्त ऩुतन सुयत शसधाभा।। सहस्त्र कभर से बत्रकुदट थाना । भनुआ ऩाछै सुयत प्रस्थाना।।3।।

तीसय नतर से सहस्रदर कभर तक आगे चचत्त उसके ऩीछे रूह जाती है। सहस्र दर कॊ वर से बत्रकुटी स्थान तक सुयनत भन के ऩीछे चरती है।

चौ0- बत्रकुदट से रधग दसभ द्वाये । आगे तनयत तद सुयत शसधाये।। दसभ द्वाय से सचिॊड देसा । सतगुरु ऩाछे सुयत चयेसा।।4।।

बत्रकुटी से दसभ द्वाय की सीभा भें आगे ननयत (सुतथ डौय) ऩीछे सुनतथ चरती है। दसभ द्वाय से सचखॊड देस तक ववशेष सुनतथ सतगुरु के ऩीछे चरती है।

दो0- सुयत चार प्रथभ भुकाभ सभ वऩऩीर “होयाभ”। दसूय भान ततउ भगृ सभ अगे्रमान अववयाभ।।151।।

98

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक सुनतथ की चार प्रथभ साम्राज्म (सहस्रदर कॊ वर) भें चीॊटी के सभान होती है। दसूये भुकाभ भें भच्छरी तथा तीसये भुकाभ भें भगृ के सभान होती है औय आगे बफना ववयाभ वारे मान के सभान हो जाती है।

चौ0- मथा मथा इक इक सौऩाना । कयत गभन सुयतत घट थाना।। कटेदहॊ ववकाय फढदहॊ प्रकासा । फदढ फदढ गभन अनन्त ववकासा।।1।।

जैसे जैसे एक एक भॊजजर मात्रा कयके सुनतथ अन्दय के रोंकों को चढती जाती है वैसे वैसे ही सुनतथ के भर आवयण कटत ेजात ेहैं। औय प्रकाश फढता जाता है। मह प्रकाश फढता फढता अनॊत प्रकाश भें ववकमसत हो जाता है।

चौ0- भेघ बफछुरय बफन्द ज्मूॉ थर आवा । धूसय रयशर शभशर कीचु कहावा।। त्मूॉ शभशर सुयत कयभ अरू भामा । बई जीव तनज भूर दयुामा।।2।।

जैसे फादरों से बफछुडकय फूॊद धयती ऩय आकय मभट्टी भें रयर मभर कय कीचड कहतारी है उसी प्रकाय आत्भा कभथ, सॊस्कायों औय भामा भें मभर कय जीव फन जाती है औय अऩना भूर स्वरूऩ नछऩा (गॊवा) चुकी होती है।

चौ0- दहयण्मगयब अव्मक्त प्राकृतत । जफ रधग ऩाय न जावदहॊ सुयतत।। तनजगहृ कफहुॉ जाइ नदहॊ ऩावा । तफ रधग सो Sहभ ्कदह सकुचावा।।3।। जफ तक जीवात्भा (रूह) ववयाट हहयण्मगबथ तथा अव्मतत प्रकृनत को ऩाय नहीॊ कय रेती तफ तक सो Sह्भ (भैं वहीॊ हूॉ अथाथत अहॊ ब्रह्भाजस्भ) कहती हुई खझझकती है औय अऩने ननज धाभ (अनाभी रोक अथाथत ननवाथणऩद) हहन्दतु्वऩद का कबी बी साऺात्काय मानी ऩाय नहीॊ ऩा सकती है।

चौ0- प्जशभ कोउ नऩृसुत कायागाये । हौं याजकुॊ वय तनअथप उच्चाये।। ऩीसत चाप्क्क नऩृसुत को जानी । त्मूॉ सुयतगतत रिदहॊ ववऻानी।।4।।

जैसे कोई याजा का रडका कहीॊ कायागाय भें फॊद ऩडा होकय व्मथथ ही कहे कक “भैं याजकुभाय हूॉ ” औय वहाॉ चतकी ऩीसता हो तो बरा उसे याजऩुत्र कौन जानेगा ? मही जीवात्भा की गनत ववऻानी मोगी सॊतजन वऩॊडरोक भें देखत ेहैं। (अथाथत वह अऻान भें है जो अह्भ ब्रह्भाजस्भ कहता तो है ऩयन्तु ब्रह्भ होने की चषे्टा (साधना) नहीॊ कयता)।

दो0- अनाशभधाभ रधग मात्रा ऩहुॉचत बफयरा कोम।

कहत “होयाभ”देव भोदह सहज सुरब बई सोम।।152।।

99

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक अनाभीधाभ (ननवाथणऩद) की मात्रा ऩय बफयरे ही कोई ऩहुचता है औय वह भुझ ेसहज ही भें प्राप्त हो गई।

श्रीभद् याजमोगस्थ सुनतथ अभयकथा ननमोजजत

अभयकथा अभतृ फोध बाग – 3

19 – अनहद धाया

दो0- मोगी जफ तनज ध्मानयत सुनत र्शब्द श्रोत फन्द।

सफ रोकन की गूॊजे धुतन सॊत रम ऩयभानन्द।।153।। मोगी जफ अऩने ध्मान भें रीन होकय अऩने कानों को फन्द कयके शब्द सुनता है तफ सबी रोंकों से उसको ध्वनन गूॉजती है जजसभें सॊत ऩयभानन्द भें रम हो जाता है।

चौ0- ववर्शेष नाद अनहद ववऻाना । सुनदहॊ सॊत फन्द करय तनज काना।।

प्रगटत र्शब्द प्रततघट प्रततकारा । साध कृऩासु िुरदहॊ मह तारा।।1।। मह अनहद नाद एक ववशेष शब्द ववऻान है जजसे सॊत जन अऩने कान फॊद कयके सुनत ेहैं मह शब्द प्रत्मेक भनुष्म भें हय सभम प्रगट होता है ऩयन्तु इसका बेद सॊतों की कृऩा से ही खुरता है।

चौ0- प्रथभ शभशर जुशर देत सुनाई । यत अभ्मास शबन्न शबन्न प्रगटाई।। प्रगटदहॊ नाद मह दस प्रकाया । सुतन सुतन साधक सुभुि सॊचाया।।2।। आयम्ब भें मह नाद मभमर जुरी सी सुनाई देती है कपय ननयन्तय अभ्मास से ववववध प्रकाय का प्रगट होने रगता है। मह नाद दस प्रकाय का प्रगट होता है। जजसको सुन सुनकय ऩयभ सुख का सॊचाय होता है।

चौ0- सुयतत र्शब्द जफ मोग शभराना । तारू अभीयस चुअत भहाना।। सुनत र्शब्द धचडडमन सभ फोरी । जतन सभीऩ को उऩवन जौरी।।3।। जफ सुनतथ शब्द का मोग मभर जाता है तफ तारु से अभतृ टऩकता है। चचडडमों की फोरी जैसा शब्द सुनकय ऐसा रगता है भानों आस ऩास भें कहीॊ फाग फगीची हो जजसभें चचडडमाॉ चहचहा यहीॊ हो।

100

चौ0- प्रगटत तहॉ कोराहर बायी । केन्ि सहस्त्रदर कॊ वर भॊझायी।। याजमोग र्शब्दधाय दवुाया । सुना रिा मह अचयज साया।।4।।

वहाॉ ऩय फहुत अचधक शोय हो यहा है औय मह सफ सहस्रदर कॊ वर भें होता है। याजमोग शब्द धाय द्वाया मह सफ आश्चमथ भैंने देखा औय सुना।

दो0- झीॊगय की झन्काय सभ सुनत नाद जफ कान। “होयाभ” सॊत उऩजत तद सुस्ती आरस्म भहान।।154।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक जफ कानों भें झॊकाय सुनाई देती है तफ सॊतों भें फहुत सुस्ती औय आरस्म ऩैदा होता है।

चौ0- फाढदहॊ बप्क्त पे्रभ अभ्मासी । जफ घडडमार सुनदहॊ जतन कासी।। सहस्त्र कॊ वर सों मह धुतन आवा । जतन सभीऩ को भन्दय बावा।।1।। भानों काशी भें घडडमार फज यहा हो जफ ऐसी आवाज आती है तफ साधक भें ईश्वय व बजतत बावना फढ जाती है। मह ध्वनन सहस्रदर कॊ वर भें से ही आती है औय ऐसा रगता है कक भानों आसऩास भें कोई भजन्दय हो।

चौ0- र्शॊि धुतन सुतन साधक हयषावा । व्माऩक सुगन्ध यत सॊत भस्तावा।। अततकय भनोहय बत्रकुदट धाभा । चुअत अभीयस तारु भुकाभा।।2।। शॊख की सी आवाज सुनकय साधक प्रसन्न हो जाता है चायों तयप सुगन्ध व्माप्त है जजससे सॊत भें शुब भस्ती आ जाती है। बत्रकुटी धाभ फडा भनोहय है महाॉ से तारू भें अभीयस टऩकता है।

चौ0- वीणा शसताय धुतन तॊह छाई । सुहातन सभाॊ कयमो नदहॊ जाई।।

तार आवाजू दसभ द्वाया । सुनदहॊ सन्त गुरु कृऩा आधाया।।3।। महाॉ ऩय वीणा मसताय की ध्वनन छाई हुई है औय इतना सुहावना भौसभ है कक वणथन नहीॊ ककमा जा सकता। दसभद्वाय (सुन्नरोक) भें तार की ध्वनन आती है जजसे गुरु कृऩा से सॊत जन सुनत ेहैं।

चौ0- सहज सभाधध शे्रष्ठ सफ जानी । अऩयोऺ प्जस भाॊहीॊ ऩसानी।। सहज सुरब नहीॊ दृष्टी मोगा । सो करयअ नाद मोग प्रमोगा।।4।। सॊतों ने सहज सभाचध सवोऩरय भानी है तमोंकक इसभें सभस्त ववश्व का नजाया प्रत्मऺ होता है जजन्हे दृजष्टमोग (सहज सभाचध) आसानी से सुरब नहीॊ है वे अनहद मोग का प्रमोग कयत ेहैं।

दो0- दसभ रोक से आ यही फाॊसुरय की आवाज।

101

गुप्त बेदी सन्त “होयाभ” सुनत रित सफ याज।।155।। ब्रह्भाण्डी दसभ रोक (सुन्न रोक) भें फाॊसुयी की आवाज आती है श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक गुप्त बेदी सॊतजन इस सफ यहस्म को सुनत ेऔय देखत ेहैं।

चौ0- नाद नपीयी सुनत जो कोई । सुय सभ र्शप्क्त ऩावत सन्त सोई।। धुतन सुतन सुतन ह्वै सयर र्शयीया । बफहॊग वेधग उडड अन्तरय धीया।।1।। जो साधक नपीयी का नाद सुनता है वह सॊत देवताओॊ जैसी शजतत प्राप्त कयता है नाद सुनत ेसुनत ेशयीय सयर हो जाता है औय मोगी अन्तयध्मान भें ऩऺी के वेग सभान उडान बयता है।

चौ0- भेघ गयज सतरोकदहॊ छावा । सुनत सदासद बाव तनयावा।। र्शब्दधाय सुनहु दोई काना । रक्ष्म सुरब याजमोगस्थ ध्माना।।2।। फादरों की गयज जैसी आवाज सतरोक भें पैरी हुई है। जजसके सुनने से सॊत असॊत बाव सभाप्त हो जाता है। मह अनहद नाद दामें कान से सुनना चाहहमे इससे याजमोग ध्मान प्राजप्त का रक्ष्म सहज ही सुरब हो जाता है।

चौ0- फाभ श्रोत सुनत धुतन जोई । नयक रोक धुतन ऩावत सोई।।

बेद अनहद धुतन दस प्रकाया । बफनु गुरु सुनत न ऩावत ऩाया।।3।। जो फाॊमे कान से नाद सुनता है वह नयक रोक की धुनन प्राप्त कयता है अनहद नाद दस प्रकाय का होता है। जजसको गुरु के बफना नहीॊ सुना जाता न ऩाय ऩामा जाता है।

चौ0- सुतन सुतन धुतन ब्रह्भाण्ड तजावे । नदहॊ अनहद ततष देस शसधावे।।

ऩूणप बेद कक शरिहु भन चाहीॊ । सॊतभत ेकी आमसु नाॊहे।।4।। इस अनहद धुनन को सुनत ेहुवे ब्रह्भाण्डों को त्मागता जावे औय जजस धाभ भें अनहद् शब्द नहीॊ है उस देश को प्रस्थान कये। उसका ऩूया वणथन भैं भन चाहा कैसे मरखूॉ ? इसके मरमे सॊतभत की आऻा नहीॊ है।

दो0- अनहद बी पीकी सभझ गय नदहॊ दृष्म रिाम। दॊगर ढौय दरूयके सुतन दॊगर न देखिउ जाम।।156।। महद दृश्म (ब्रह्भाण्ड का प्रत्मऺ दशथन) नहीॊ हदखाई देता है तो अनहद बी पीका जानना चाहहमे तमोंकक दॊगर के ढोर दयू से सुनने से दॊगर तो जाकय नहहॊ देख गमा।

102

दो0- सतरोक ऩाय नाद गुप्त अरि अगभ रु्शधचधाभ। ताऩये सीभ अनाशभऩुय नाद यदहत “होयाभ”।।157।। सतरोक से आगे अरख अगभ ऩववत्र धाभ है वहाॉ नाद गुप्त है। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक इनकी सीभा से ऩये अनाभी रोक (हहन्दतु्व धाभ) की नाद यहहत सीभा (हद) है।

20 – भन

दो0- सफर ब्रह्भ अॊर्श भनुआ मह चॊचर चऩर “होयाभ”। ववचयदहॊ स्वच्छन्द सुयतसॊग वऩण्ड ब्रह्भाण्ड की ठाभ।।158।। श्रीहोयाभदेव जी कहत ेहैं कक मह भन सफर ब्रह्भ का अॊश है औऱ फडा चॊचर औऱ चाराक है मह वऩन्ड औऱ ब्रह्भाण्ड के देशों भें सुयनत (जीवात्भा) के साथ स्वतॊत्र ववचयता है।

चौ0- ब्रह्भाण्ड ऩाय सुयत जफ जाई । भनुआ तहॊ तदेह सॊग तजाई।।

तनजस्वाथप को भन फरवाना । फस करय रीन्ही सुयत भहाना।।1।। सुयती जफ ब्रह्भाण्ड से ऩाय चरी जाती है तफ भन सुयनत का सॊग छोड देता है। अऩने स्वाथथवश इस फमरष्ठ भन ने भहान जीवात्भा को अऩने वश भें कय यखा है।

चौ0- भामा भाॊझ सुयतत की धाया । जासु भनेप्न्ि ऩीवु अभी साया।। कभपन भूर मही यस जानी । सुि दिु भूर कृतकभप परानी।।2।। सुनतथ की धाया भामा भें फहती है जजससे भन औय इजन्द्रमाॊ उसका सभस्त अभतृ ऩी जात ेहैं। मह अभतृ यस(जो इजन्द्रमों द्वाया भन ने ग्रहण ककमा है) ही कभों की जड है औय ककमे गमे कभों के पर रूऩ सुख दखु की भूर है।

चौ0- ईर्श ववभुि जफ रधग भन सोवा । बोगदह जीव दिु सदभतत िोवा।। काभ क्रोध भद रोबउ भोहा । कायण ततन्ह भन दयुगतत जोहा।।3।। जफतक भन ऩयभेशवय से ववभुख हुआ सोमा हुआ है तफतक जीव सद फुवद्ध को खोकय दखु बोगता है तथा काभ क्रोध रोब भोह अहॉकाय आहद के वशीबूत यहकय दगुथनत बोगता यहता है।

चौ0- प्रीतभऩद गय शभरना चाहदहॊ । भनुआ सुयत्माधीन यिाहदहॊ।।

103

सुयत सॊग भनुआ आमसु धायी । बमऊ सुयतभुक्त कयभ बफहायी।।4।। महद ऩयभेश्वय के धाभ (अनाभी खॊड) को प्राप्त कयना चाहत ेहो तो भन को सुनतथ के अधीन यखो। महद भन सुयनत के साथ आऻाकायी होकय नौकय के सभान यहे तो सुयनत कभो भें यभण कयती हुई बी भुतत यहती है।

दो0- तीन ठाभ भन की बई वऩॊड ब्रह्भण्ड देस।

ततन्ह ववबूतत भामा फस भ्रशभत जगत करेस।।159।। वऩॊड (ऩातार) अॊड (स्वगथ) ब्रह्भाण्ड (देवरोक) के देश मे तीनों भन के केन्द्र है। श्री होयाभदेवजी कहत ेहै कक भामा के इन तीनों रोकों के अधीन मह जीवात्भा जगत के करेसों भें बटकती कपयती है।

चौ0- वऩन्डीभन वऩॊड रिैदहॊ सुजाना । ऩैदठउ अक्षऺ कॊ ठ उयथाना।। वऩ ॊडदह भन कय अतुर प्रबावा । जीवन ऩरु्श सभ जीव बफतावा।।1।।

सॊतजन वऩॊड देशों भें वऩ ॊडी भन को देखत ेहैं, जो आॉखें कॊ ठ तथा रृदम भें फैठा है। वऩ ॊड भें भन का फहुत प्रबाव होने से जीव ऩशु के सभान जीवन बफताने रगता है।

चौ0- अॊड देस अॊडी भन गाजै । सहस्र कॊ वर ज्मोतत रधग याजै।।

तीसय भन ब्रहभण्डी भहाना । सुयत सॊग बत्रकुदट सुन्न गाभा।।2।। अॊड देश भें अॊडीभन होता है जो सुयनत के साथ सहस्रदर कॊ वर की ज्मोनत तक (सुयनत के)साथ यहता है। तीसया भहान ब्रह्भाण्डी भन है जो सुयनत के साथ बत्रकुटी औय सुन्न रोक भें आता जाता है।

चौ0- सुभन कुभन भन दोउ प्रकाया । ततप्न्ह प्रबावु शबन्न शबन्न धाया।। सुभन रु्शधचता वववेक ऺभावा । बोग ववरास यस कुभन धावा।।3।। सुभन औय कुभन दो प्रकाय का भन होता है जजनका प्रबाव बी मबन्न मबन्न धायाओॊ का होता है। सुभन, ऺभा, वववेक ऩववत्रता राता है औय कुभन बोग ववरासी इजन्द्रम यसों भें दौडता है।

चौ0- वऩन्डीभन ततगुण यस चािी । अन्डी प्रभुि सत यज गुण यािी।।

भन ब्रहभाण्डी सतत प्रधाना । सो अतत तनकट सुयतत सॊग ऩाना।।4।। वऩन्डीभन बत्रगुण के यस को चखता है अन्डीभन भें सत यज गुण प्रधान रूऩ से ववद्मभान है तथा ब्रह्भाण्डी भन भें सत्व गुण की प्रधानता है। मही भन सुनतथ के साथ ज्मादा ननकटता ऩाता है।

104

दो0- सुभन घाट चरे सॊत जन तनज अन्त रेत सुधाय। “होयाभ” कुभन ऩथ जो चरे ऩूणप जीवन धधक्काय।।160।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहै कक सुभन के घाट ऩय चरकय सॊतजन अऩना आखखय सुधाय रेत ेहैं औय जो कुभन के भागथ ऩय चरत ेहै उनके ऩूणथ जीवन को चधतकाय है।

चौ0- काभक्रोधादद ऩॊच ववकाया । अकायण न उत्ऩन्न कीन्ही कयताया।।

ऩॊच ववकाय गय ईर्श ववनासदहॊ । जगद व्मवस्था धथतत सफ नासदहॊ।।1।। काभ क्रोध रोब भोह औऱ अहॊकाय मह ऩाॊच ववकाय ऩयभेश्वय ने अकायण ही उत्ऩन्न नही ककमे हैं। महद इन ऩाॊचों ववकायों को ईश्वय मभटा दे तो सभस्त ववश्व की व्मवस्था तथा जस्थनत सफ कुछ सभाप्त हो जामेगा।

चौ0- काभ सो उऩप्ज सकर सॊसाया । क्रोध बफना अनुर्शासन ऺाया।। रोब बफना जग जीववमा नाहीॊ । भोह बफनु जातक नदहॊ ऩोषाहीॊ।।2।। तमोंकक काभ से मह साया सॊसाय उत्ऩन्न होता है क्रोध न हो तो अनुशासन बॊग हो जामे। रोब के बफना जीवन चराना दबूय हो जामे औय भोह न हो तो जीवों का ऩारन ऩोषण नहीॊ होगा।

चौ0- कयभ न प्रकट बफनु अहॊकाया । कभप यदहत नदहॊ जग धथततकाया।। ऩॊच ववकाय जीवदेह यहही । सॊमभ प्रमोग बफन अकयभ अहहीॊ।।3।। औय अहॊकाय के बफना कभथ प्रगट नही होता। कभथयहहत अवस्था से तो सॊसाय की जस्थनत का बी ववस्ताय नही होता। जीव के शयीय भें ऩाॊचो ववकाय ववद्मभान यहत ेहै। इनका बफना सॊमभ उऩमोग कयना ही ऩाऩ होता है।

चौ0- ऩुतन ऩुतन भनदह ववयाग फढावै । सुयतत सॊग नब ऩॊथ चढावै। अन्तरय नाभ सुधाभन जौयी । शु्रत तनयत भग चशर तनज ऩौयी।।4।। साधक को चाहहमे कक फाय फाय भन भें वैयाग्म फढाता जामे उसे सुयत मात्रा के साथ नब भॊडरों भें चढावे। भन को अन्तरय नाभ यस (सतनाभ) से जोड दे औय नाभ व दृश्मों को देखता हुआ नब भॊडरों की मात्रा कये।

दो0- भनुआ शे्रष्ठ भहता मह प्जस यॊग दे यॊग जाम। “होयाभ” ऩुतन सो न छुटै दे बगतत यॊग यॊगाम।।161।।

105

श्री होयाभदेवजी कहत ेहै कक भन की शे्रष्ठ ववशेषता है कक इसे जजस यॊग भें यॊग दे उसी भें यॊग जाता है कपय वह यॊग नही छूटता इसीमरमे उसको बजतत यॊग भें यॊग देना चाहहमे।

छ0- तनसॊर्शम भन अततर्शम चॊचर सरय सभ फेधग फहावु बमॊक। वैयाग्माभ्मास सो वशर्शबूतदहॊ जतन ग्रहणे ग्रासदहॊ भमॊक।।

इकाग्रधचत प्जदह भन वशर्शकय ध्मानदह नासदहॊ ततदह फमॊक।

“होयाभ” तनजात्भ देखि चयाचय अहदहॊ ततदह आत्भदयस तनर्शॊक।।16।।

इसभें सॊशम नही कक भन फहुत चॊचर होता है तथा मह नदी के फहाव की तयह बमॊकय वेग वारा है। ककन्तु वैयाग्म तथा अभ्मास द्वाया मह इस प्रकाय वश भे हो जाता है जैसे ग्रहण भे चन्द्रभा ग्रस मरमा जाता है। जजनके भन वमशबूत है तथा चचत्त एकाग्र है उनके मोग ध्मान कयने से सभस्त ववकाय नष्ट हो जात ेहैं। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कपय अऩनी आत्भा भें सभस्त जगत चयाचय देखत ेहुवे नन्सॊदेह आत्भ साऺात्काय हो जाता है।

छ0- ऩूवपजन्भ जे मोग का साधन करय दृढ अवस्था मोगन की। तदवऩ ऩयभ ऩद ऩाम नदहॊ छूदट भतृ्मु कार गतत तन की।। ककदह कायण मोग भ्रष्टावऩ ऩूवपजन्भ सुगतत सॊस्कायन की। “होयाभ” सो मोधगन कुर जन्भै िुरै सहज ग्रप्न्थ ऻानन की।।17।। ऩूवथ जन्भ भें जजसने (सुनतथ शब्द) मोग की साधना कयके अऩनी मोग व्मवस्था दृढ कय री थी ऩयन्तु कपय बी वह ऩयभ ऩद (ननवाथण) को प्राप्त न कय सके औय भतृ्मु कार आत ेही शयीय की कक्रमा ही सभाप्त हो गई। तथा ककसी कायण से मोग बषृ्ट हो गमे तो उनकी बी ऩूवथ जन्भ के शुब सॊस्कायों से शुब गनत होती है। श्री होयाभदेव जी भहायाज कहत ेहैं कक वह मोचगमों के कुर भें जन्भ रेत ेहैं वहाॉ उनकी ऻान ग्रजन्थ सहज ही भें खुर जाती है।

छ0- अभ्मास साधना कयत कयत नष्म होदह सॊस्काय सकर जयकै। हों नाडड र्शौधधत सुसज्जन की चदढ सुयत गगन ज्मोतत झयकै।

सकर कभप ततदह साधन के सुयतावयण जहॊ गदह तहॊदह छयकै।

जहॉ रधग कभाई भॊप्जर की तनु तजै तहाॊ सुयतत पयकै।।18।।

मोग साधनाभ्मास कयत ेकयत ेसभस्त सॊस्काय जर कय नष्ट हो जात ेहैं औय साधक की नाडी शुद्ध हो जाती है औय साधक की सुनतथ गगन सुन्नों की ओय

106

चढती चरी जाती है। सुनतथ मात्रा भे ऐसे मोचगमों से सभस्त कामथ तथा वे सुतथ आवयण जो बी आत्भा ने जजस जजस स्थान से प्राप्त ककमे थे वे वहीॊ वहीॊ ऩय छूट जात ेहै। उनकी इस ब्रह्भभागथ भें जहाॊ तक की कभाई ऩूणथ हो चुकी होती है, शयीय को त्मागने के फाद उनकी सुयनत वहीॊ वहीॊ (उसी रोक भें) ऩहुॉच जाती है।

21 – तनप्जसुतप मात्रा

दो0- कहत सॊत “होयाभ”देव सुनहु सन्त धरय ध्मान

जे कछु तनज मात्रा रिा सो सफ कयहुॉ फिान।।162।। श्री होयाभदेव जी भहायाज कहत ेहैं कक हे सॊतों अफ ध्मान रगाकय सुनों भैने अऩनी ननजज सुनतथ माऻा भें जो कुछ अऩनी आॉखों से देखा वह सफ वणथन कयता हूॉ।

दो0- ऩॊच भहाबूत ववप्जत सुयत जफहु गगन चदढ जाम।

वऩॊड ब्रह्भाण्ड सॊगभ सीभ तीसय ततर दय ऩाम।।163।।

ऩॊच भहाबूतों को जीतकय सुनतथ जफ आकाश भागथ ऩय चढ जाती है तफ वऩॊड औय ब्रह्भाण्ड की सीभा के सॊगभ ऩय एक तीसया नतर मशव नेत्र चक्र, का द्वाय मभरता है(मही हदव्म नेत्र है)।

चौ0- जफदहॊ सुयत तीसय ततर ऩाया । िुरदहॊ ऻान रु्शधच नमन अऩाया।। तफ सो नमन ब्रह्भाण्ड तनहाये । वाह्म नमन काज सफ ऺाये।।1।।

सुनतथ जफ तीसये नतर चक्र से ऩाय हो जाती है तो ववशार ऻान नेत्र खुर जाता है मही ऻान नेत्र अफ ब्रह्भाण्ड को देखता है वहाॉ आॉखों का काभ अफ सभाप्त हो जाता है।

चौ0- सहज सभाधध बै भनोहायी । भनोयॊजक दृष्म मात्रा सायी।। बफन सतगुरु नदहॊ सधै सभाधध । ऩग ऩग देत भन कोदटन ब्माधध।।2।।

सहज सभाचध फडी ही भनबावन अवस्था है इसभें सुनतथ की मात्रा फड ेभनोयॊजन दृष्मों वारी है। सभाचध बफना सदगुरु के नही सध ऩाती है तमोंकक भन ऩग ऩग ऩय सैकडों रूकावटें खडी कयता है।

चौ0- जे जन अन्तस ऩावन नाहीॊ । नदहॊ प्रकार्श सभाधध भाॊहीॊ।। कप्म्ऩत नीय प्रततबफम्फ न कोई । भरमुत अन्त्कणप गतत सोई।।3।।

107

जजन भनुष्मों का अन्त्कयण ऩववत्र नहीॊ है वे सभाचध के प्रकाश(ज्मोनत) नहीॊ देखत ेजैसे कॊ म्ऩन मुतत जर भें कोई प्रनतबफम्फ नहीॊ होता। भर मुतत अनत्कयण की वैसी ही गनत होती है।

चौ0- चॊचर भन धचत्त धथय प्जदह कारा । प्रगट सॊत सन ज्मोतत ववर्शारा।।

तद तप्जम जऩ नाद अभ्मासा । दटकदटकी फाॊधध रिहुॊ प्रकासा।।4।।

चॊचर भन औय चचत्त जफ जस्थय हो जात ेहैं तफ सॊतों के साभने ववशार प्रकाश प्रकट होता है उस सभम जऩ तथा नाद अभ्मास को छोडकय केवर एक टकटकी दजष्ट के प्रकाश को ही देखता जामे।

दो0- ब्रह्भभागप भॊह ववववध सॊत साधु जन दयशसत होम।

सतसॊग कछु तऩ यत कोउ बगतत बाव सभोम।।164।।

ब्रह्भ भागथ भें अनेक प्रकाय के साधु सॊत हदखाई देत ेहैं जजनभें कुछ तो आऩस भें सतसॊग कयत ेहुवे कुछ धूना तऩत ेहुवे औय कुछ बजतत भें रीन होत ेहैं।

चौ0- कछुक ववववध बाॊतत तऩ कयदहॊ । बेद ऩाम ब्रह्भऩथ अनुसयदहॊ।। भायग झॊझयी द्वीऩ भहाना । मोगभ्रष्ट जन गहदहॊ दठकाना।।1।।

कुछ सॊतजन ववववध प्रकाय की तऩस्मा कयत ेहैं जो उठाकय ब्रह्भ ऩॊथ ऩय चरने का प्रमत्न कयत ेहैं। यास्त ेभें एक भहान झॊझयीद्वीऩ (मभरोक) है जहाॉ मोग भ्रष्ट साधुजन फसत ेहैं।

चौ0- ब्रह्भधाभी सॊत आवॊत जादहॊ । भ्रशभत सॊतदह भग दयषादहॊ।।

चरत चरत ब्रह्भऩॊथ अऩाया । शभरदहॊ बफतयतन सरय बफस्ताया।।2।।

ब्रह्भ रोंकों के सॊत ननत आत ेजात ेहैं वे यास्त ेभें बटकी सॊतआत्भाओॊ को यास्ता हदखात ेहैं अऩाय ब्रह्भ भागथ ऩय चरत ेचरत ेहुवे एक ववस्ताय वारी फैतयणी नदी मभरती है।

चौ0- ववर्शार बॊवय रहय अधधकाई । ततयदहॊ सॊत फूडदहॊ अघयाई।। गुरुभुिी बजन ध्मान अभ्मासी । सहजदहॊ ऩाय सरय हरय कृऩासी।।3।।

इस नदी भें फडी ववशार रहये हैं फहुत बवयें ऩडती हैं इसे सॊत (नेकात्भा) ऩाय कयत ेहैं औय ऩाऩाचायी इसभें डूफ जात ेहैं। गुरुभुखी बजन ध्मान अभ्मास वारी रूहें हरय कृऩा से सहज भें ही इसे ऩाय कय जाती है।

चौ0- भानसी सुयग नयक मभ ठाभा । कयभाधाय जीव सफ गाभा।।

108

ऩीडडत सुयत कयत ऩतछताऩु । भेंटदहॊ ततन्ह सॊतकृऩा सन्ताऩु।।4।।

मभरोक भें भानवी स्वगथ नयक है जहाॉ कभों के पर अनुसाय सॊत आत्भाऐॊ बेज दी जाती हैं। वहाॉ ऩीडडत (ऩुन्महीन)रूहें फडा ऩश्चाताऩ कयती हैं। सॊत जनों की कृऩा ही उनके दखु को भेटती हैं।

दो0- जीव असॊसी ववषमानुयत बफतयतन ऩाय न होम। ऩुन्म दानी सॊत मोगीजन गुरुभुखि उतये कोम।।165।।

ववषमों भें आसतत सॊसायी जीव तो फैतयनी नदी ऩाय नहीॊ होत।े ऩहरे ही डूफ जात ेहैं। उसे तो साधु दानी ऩुन्म(नेक) सॊतजन मा गुरुभुखख ही ऩाय उतयत ेहैं।

चौ0- कछुक ऩधथक ऩदमात्रा कयेदहॊ । कछु वेधग जतन वाहन उयेदहॊ।। र्शनै् र्शनै् सहस्त्र कॊ ज आवा । सहस्त्र ऩॊिरयन भन हयषावा।।1।।

कुछ मात्री ऩद मात्रा कयत ेहैं कुछ वाहन की तयह तजे गनत से उडत ेहैं इस प्रकाय मात्रा कयत ेकयत ेधीये धीये सहस्रदर कॊ वर (कार ननयॊजन) सफर ब्रह्भ ब्रह्भ का रोक आ जाता है जजसकी सहस्र ऩॊखडडमों को देखकय भन प्रसन्न हो जाता है।

चौ0- वऩन्डदहॊ भनकय ईच्छा बायी । बूल्मौ अॊडदह चौकरय सायी।।

छूदट व्मथा भन बमउ ववयागी । ध्मान मोग तीव्र शरॊव रागी।।2।।

वऩन्ड देस भें जो भन बायी ईच्छाऐॊ कयता था वह अण्ड देस सहस्र दर चक्र भें सफ चौकडी बूर गमा। भन वैयागी हो गमा, सायी ऩयेशानी कट गई औय ध्मानमोग भें तीव्र रौ रग गई।

चौ0- जफ फीती तॊहवाॊ कछु कारा । प्रगदट भो सन ज्मोतत ववर्शारा।। अॊगुष्ठ भाऩ भात्र सो ज्मोतत । अडौर दीऩ घुम्रहीन ववबौतत।।3।।

इस प्रकाय जफ कुछ सभम फीत गमा तफ अचानक भेये साभने एक ववशार ज्मोनत प्रगट हुई भात्र अॊगूठे की ऩरयभाऩ जैसी मह ज्मोनत धुआॉ यहहत तथा जस्थय यहने वारी ववबूनत थी।

चौ0- वऩन्डदहॊ सफ ककरयमा कय सोई । रिदहॊ ऩायखि गुरु शसस कोई।। मह ददव्मधाभ अन्त ऩद नाहीॊ । अगे्र गभऊ दृढ बाव सभाहीॊ।।4।।

109

मही ज्मोनत वऩॊड देशो की सभस्त कक्रमा कयती है जजसे प्रत्मेक ऩयभाथी (ब्रह्भऩॊथी मोगी) देखता है। मह हदव्म धाभ अजन्तभ धाभ नहीॊ है भैं दृढ बाव से आगे चरता गमा।

दो0- षट्चक्र बेदी सॊत जन तनयॊजन ज्मोतत तनहाय।

भन्मदहॊ भुप्क्त सहस्त्राय कॊ ज अग्र बेद नदहॊ ऩाय।।166।।

वऩॊड देसी षट्चक्रों का बेदन (मात्रा) कयने वारे सॊत मोगी जन कार ननयॊजन देस की मही ज्मोनत देखकय मही सहस्त्र दर कॊ वर भे ही भुजतत भानत ेहैं। उन्हे आगे का न तो कोई ऻान है न ऩाय ही मभरता है।

चौ0- सभाधधस्थ ध्मान अग्ररक्ष्म रगावा । अततकर भायगचदढ हयषावा।।

आगे चरत इक सरय तनहायी । र्शीतर नीय धाय दधुधमायी।।1।।

अचग्रभ रक्ष्म का महाॉ सभाचधस्थ ध्मान रगामे हुवे भैं (श्री होयाभदेव जी) एक अनत सुन्दय सडक ऩय चरकय फहुत ही प्रसन्न हुआ इस सडक ऩय आगे चरत ेचरत ेभैंने एक नदी देखी जजसका फहुत शीतर जर था। तथा दचूधमा धाय फह यही थी।

चौ0- ऩावन तीय हौं करय असनाना । करय सरय स्रोत ओय प्रमाना।। सरय तट चशरत चशरत फहु कारा । ऩामउ उद्गभ ऩौय ववर्शारा।।2।।

वहाॉ भैंने उसके ऩावन तट ऩय स्नान ककमा कपय उसकी उरटी धाय के ककनाये ककनाये प्रस्थान कय हदमा। इस प्रकाय फहुत सभम तक नदी के ककनाये ककनाये चरत ेचरत ेभैंने उसके ननकास धाभ को ऩा मरमा।

चौ0- हरय ठाड ैधगरय शर्शिय भहाना । र्शॊि चक्र गदा ऩद्म कय बाना।। ततन्ह ऩद कॊ ज तनकशस सरय सोई । छटा देखि हौं गद् गद् होई।।3।।

वहाॉ एक ऊॉ च ेऩवथत की चोटी की चट्टान ऩय साऺात श्रीहरय ववष्णु बगवान खड ेथे जजनकी चतुबुथजाओॊ भें शॊख चक्र गदा औय ऩदभ सुशोमबत हो यहे थे। औय उनके चयण कभरों से वह नदी ननकर कय फह यही थी। उसकी छवव देखकय भैं वहाॉ गदगद हो उठा।

चौ0- दर्शपन ऩाम कीन्ही प्रणाभा । आशर्शष गदह तनज रक्ष्म शसधाभा।। अन्तरय ज्मोतत तनयन्तय वाणी । वाभ सडक चदढ सुयत भहानी।।4।।

110

उनके दशथन कयके औय प्रणाभ कयके भैं उनका आमशवाथद प्राप्त कयके अऩने रक्ष्म की ओय चर हदमा। इस प्रकाय अन्तयध्मानस्थ प्रगट ज्मोनत तथा ननयन्तय सतनाभ धाया से भहान सुनतथ शाभ सडक ऩय चढ गई।

दो0- ज्मोतत रक्ष्म सुयतत चदढ नबभॊडर उल्टीधाय।

सुयत तनयत कौतुक मह बफयरे ऩावत ऩाय।।167।।

नब भॊडर भें उरटी अगभ धाय ऩय ज्मोनत का रक्ष्म साधकय सुनतथ चढती गई। मह सुयत ननयत का खेर है कोई बफयरा ही इसका ऩाय ऩाता है।

चौ0- शसभटत सुयत जफदहॊ अन्तकारा । वऩ ॊड अॊड तप्ज चदढ ऩॊथ तनयारा।। भन तनभपर यत अभ्मासा जोई । कुटम्फ माद फैकुॊ ठ रधग होई।।1।।

अजन्तभ सभम भें जफ रूह शयीय भें मसमभट जाती है तफ वह वऩॊड व अन्ड देशों से ऊऩय एक ननयारे ऩथ ऩय आगे चरती है। शुद्ध सॊतजन जो ध्मान मोग अभ्मास भें रगे हुवे हैं भतृ्मु के फाद उन्हे वहाॉ अऩने कुटुम्फ की माद फैकुन्ठ रोक (सहस्त्रदर देश) तक आती है।

चौ0- भतृिॊड तप्जत ऩदायथ साये । आवदहॊ माद तॊह फहु प्रकाये।। सहस्त्रदीऩ अरू बत्रकुदट देसा । मादें र्शेष जतन स्वऩन ववर्शेसा।।2।।

भतृरोक (वऩण्डरोक) भें छूटे सबी साभान (घय गहृस्थी धन भार) वहाॉ तयह तयह से माद आत ेहैं इससे आगे सहस्त्रदर औय बत्रकुटी देश भें मादें ववशेष स्वऩन के सभान शेष यह जाती हैं।

चौ0- सुन्नदहॊ माद अतत सुक्ष्भ बमऊ । भानसय न्हाम सुधध सफ ऺमऊ।। तहॊ सुयत अभ्मासी अववकायी । कयदहॊ आनन्द फय हयस बफहायी।।3।।

सुन्न रोक भें मादें फहुत सूक्ष्भ यह जाती है औय भान सयोवय तार भें स्नान कयने ऩय इधय की सफ सुध फुध सभाप्त हो जाती है। वहाॉ सुनतथ अभ्मासी ननववथकायी होकय अन्तय (नब भॊडर जस्थत) रोंकों के आनन्द भें फड ेहषथ से ववहाय कयती है।

चौ0- सो न चॊहदहॊ ऩुतन भतृिॊड आवा । भामा कार गुरुकृऩा नसावा।। कार देस भॊह भामा ठगनी । तनज यॊग यॊधग भनुवा सॊग रगनी।।4।।

वहाॉ से सुनतथ कपय भतृरोक भें आना नहीॊ चाहती। वह तो सतगुरु की कृऩा से अऩना कारचक्र सभाप्त कय रेती है। जफकक कार के देश भें जीव को

111

ठगने वारी भामा अऩने यॊग भें यॊग कय सॊग सॊग यहकय भन को बयभामे यखती है।

दो0- जफ रधग भनवा गगन चदढ जाइ न बत्रकुदट ऩाय।

तफ रधग जीव अबागी सभ सुि दिु सहे अऩाय।।168।।

जफ तक सुनतथ औय भन इस भतृ रोक से वाऩस बत्रकुटी से ऩाय नहीॊ होत ेतफ तक ही जीव अबागा (बाग्महीन) है औय फड े – फड ेसुख – दखु बोगता कपयता है।

दो0- सहस्र कॊ ज फॊकनार सतगुरु दर्शपन ऩाम।

“होयाभ” अग्र इक ठाभदहॊ जुगर शसॊह सन आम।।169।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक सहस्त्रदर (कार ननयॊजन रोक) से ननकर कय फॊकनार स्थान भें अऩने अऩने सतगुरु के दशथन प्राप्त होत ेहैं। तथा बत्रकुटी की सीभा आने से ऩहरे ही एक स्थान ऩय मसहों की फरवान जौडी मभरती है।

दो0- “होयाभ” ऩॊथ जॊगरात भें सऩप सॊत सन आम। कोऊ न काहु हातन कयत उऩवन आब ्अथाम।।170।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक जॊगर के यास्त ेसे मोगी के साभने सऩथ आ जात ेहैं कोई बी ककसी की हानन नहीॊ कयता महाॉ फागों की छवव बी ननयारी ही है।

चौ0- अभर धचत्त वैयाग्म भन होई । बत्रकुदट ऩाय होदहॊ तद कोई।। बत्रकुदट देस याजा ओॊकाया । जग यचना िव्मकोष अऩाया।।1।।

जफ फहुत ननभथर वैयाग्म उत्ऩन्न हो जाता है। तफ कोई बत्रकुटी को ऩाय कय ऩाता है। बत्रकुटीधाभ भें (अऺयब्रह्भ) ओॊकाय का याज्म है जो ववश्व यचना के भसारे का अऩाय बण्डाय है।

चौ0- िोज न र्शाऩा भस्तक भाॊहीॊ । बयै अततगुप्त बॊडाय तहाॉही।। िोजहु तॊह नैसगप िजाना । जानदहॊ बेद कोउ सॊत सुजाना।।2।।

अऩने भस्तक भें अमबशाऩ की खोज न कयो इसभें ऩयभेश्वय ने फहुत फहुत गुप्त खजाने बय यखे हैं। इसभें प्रनतहदन प्राकृनतक गुप्त खजानों को खोजो इसका बेद कोई सॊत मोगीजन ही जानत ेहैं।

चौ0- बत्रकुदट व्माऩै बत्रगुणी भामा । जेदह सकर मह जगद यचामा।। अन्तरय भन मत अभर बमऊ । जन्भान्तय सुयतत सॊग तजमऊ।।3।।

112

बत्रकुटी (ऊॉ काय के देश) भें सत यज, तभ की बत्रगुणी धाया व्माप्त है जजससे मह साया सॊसाय यचामा गमा है। महाॉ ब्रह्भाण्डी भन बी ननभथर हो जाता है औय जनभजन्भान्तय का रूह का साथ छोड देता है। (भन की सीभा महीॊ सभाप्त हो जाती है औय वेद इसी ऩद तक के ऻान दाता हैं)।

चौ0- धनी भहर कर उऩवन भाॊहीॊ । ओॊ अॊ हू हू आवाज सुहाहीॊ।। आगे कोऊ तनगुया नदहॊ जावा । कभपकाण्ड मत रधग पर ऩावा।।4।।

धनन का सुॊदय भहर फगीचों के फीच भें जस्थय है औय महाॉ ओॊ अॊ हू हू की आवाज गूॊज यही है। महाॉ से आग कोई ननगुया नहीॊ जा सकता है तऩ व्रत कभथकाण्ड का पर महीॊ तक प्राप्त होता है।

दो0- बत्रकुदट सीभा दसभद्वाय सुन्न रोक ववस्ताय।।

भामा रुबावत सॊत जन गुरुबक्त उतयै ऩाय।।171।।

बत्रकुटी की सीभा ऩाय दसभद्वाय भें सुन्नरोक का ववस्ताय है महीॊ की भामा सॊत जनों को भोह रेती है कोई बफयरा गुरुबतत ही इससे ऩाय होता है।

चौ0- इडा वऩ ॊगरा स्वय तॊह नाहीॊ । सुष्भन गभन तॊह सुयत चढाहीॊ।। भामावी मह रोक अऩाया । वैयाग्महीन नदहॊ ऩावदह ऩाया।।1।।

वहाॊ इॊडा वऩ ॊगरा नाडडमाॊ (स्वय) नहीॊ ऩहुॉचत ेकेवर सुष्भना भें सूनतथ चढामी जाती है। (मही सुन्न ब्रह्भाण्डी दसभ द्वाय है)। महीॊ ववस्ततृ भामा का ववशार देवरोक हैं। वैयाग्महीन कोई बी इसका ऩाय नहीॊ ऩा सकता।

चौ0- अतत सुन्दय वन उऩवन नाना । रु्शधच तडाग सॊगभयभय सभाना।। इन्िदेव साम्राज्म ववस्तायी । कयदहॊ अऩसया नतृ्म फहु बायी।।2।।

महाॉ अनत सुन्दय सुन्दय फाग फगीच ेहैं। जजनभें सॊगभयभय के फने अभतृ के ताराफ हैं। वहाॉ दसभद्वाय के बीतय सुन्न भें ईन्द्र का ववस्ततृ याज्म है महाॉ अऩसयामें फडा बायी नतृ्म कयती हैं।

चौ0- यॊग बफयॊगी भीन सय देिी । तैयत कपयत करोर ववर्शेिी।। केशर कयत सुयतट सुयनायी । ऩावन दृष्म अतुर भनोहायी।।3।।

भैंनें ताराफों भें यॊग बफयॊगी भच्छमरमाॉ देखी जो ववशेष करोर कयती हुई तैयती कपयती हैं। ताराफ के ककनाये देवजस्त्रमाॉ (अऩसयाऐॊ) अठखेमरमाॉ (नतृ्म) कयती हुई झूभती है। मह फडा ही भनोहय दृष्म है।

चौ0- ऩरयजात ववटऩ इन्ि दयफाया । रता ववर्शार आमतन बाया।।

113

तॊह ऩैदठ भन उऩजदहॊ काभा । सो सफ ऩूणप होंदहॊ अववयाभा।।4।।

इन्द्र के दयफाय भें एक कल्ऩ वृऺ है जजसकी ववशार रताऐॊ तथा बायी आमतन है उसके ननच ेफैठकय जजसको जो बी काभना होती है वह तुयन्त ही बफना ककसी अवयोध के ऩूणथ हो जाती है।

दो0- रु्शधच कर तरूवय आॊगना अदबुद यच्मन “होयाभ”। आबा फयतन जाइ नहीॊ देव कयदहॊ ववश्राभ।।172।।

कल्ऩ वृऺ का चफूतया (आॊगन) फडा ऩववत्र एवॊ सुन्दय यचना से फनामा हुआ फहुत ही शौबामभान है। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक ककस प्रकाय वणथन करूॉ महाॉ देवतागण ववश्राभ कयत ेहैं। जजसकी आबा का फैखान नहीॊ ककमा जा सकता।

चौ0- अभीकूऩ तॊह ववऩुर ववर्शारा । ऩीवत न्हावत सुयसुरय फारा।। श्वेत यॊग काभधेनु गौका । अदबुत दात देखि देवरोंका।।1।।

वहाॉ एक फहुत ववशार अभतृ का कुॉ आ है जजसभें देवी देवताओॊ की कन्माऐॊ स्नान कयती है तथा अभतृ ऩान कयती हैं। देवरोक भें एक अदबुत दैन श्वेत यॊग की काभधेनु गाम देखी।

चौ0- सो दृश्म देखिउ अचयज जागा । रित रित दहम आनॊदयागा।।

रु्शधच प्रदेर्श सुयऩुरय साम्राजा । सवोऩरय इन्ि याजाधधयाजा।।2।।

वह दृष्म (काभधेनु गाम) देखकय फडा आश्चमथ हुआ तथा देख देखकय फडा आनन्द हुआ। मह ऩववत्र प्रदेश देवताओॊ की साम्राज्म नगयी है महाॉ के सवोऩरय याजाचधयाज श्री इन्द्र देवता हैं।

चौ0- धयाधाभ जो र्शत्क्रतु होई । इन्ि ऩद ऩइ सुर्शोशबत सोई।। ववधचत्र शरराभ देव र्शयीया । ताही देखि शभटत सफ ऩीया।।3।।

ऩथृ्वी रोक भें जो सौ (100) मऻों का कताथ होता है वही इन्द्र के ऩद ऩय सुशोमबत होता है देवताओॊ के शयीय फहुत ही सुन्दय ववचचत्र शौबामभान हैं जजनको देखकय जीव की ऩीडा मभट जाती है।

चौ0- अतत प्रकार्श मदवऩ सुयधाभा । तदवऩ न दीित सुयतनु छाभा।। चहुॉ ददशस व्माप्त भनोहय भामा । वववेक हीन जन र्शीघ्र पॊ सामा।।4।।

114

मद्मवऩ देवताओॊ के रोक भें फहुत प्रकाश व्माप्त है कपय बी देवताओॊ के शयीय की ऩयछाई नहीॊ दीखाई देती। चायों तयप भन भें फसने वारी भामा ही भामा है जो वववेकहीन सन्तजनों को फडी जल्दी पॊ सा रेती है।

सो0- बत्ररू्शर गदह तनज हाथ, मत नब भॊडर दतुत ऩुॊजहीॊ। नभदहॊ साध प्जन भाथ, रिा तजेस्वी शर्शवस्वरूऩ।।2।।

भैंने (आगे चरकय) देवरोक के आकाश भें एक ज्मोनतऩुॊज प्रकाश भें अऩने हाथ भें बत्रशूर मरमे हुवे तजेस्वी मशव (शॊकय) जी को देखा जजनको साधु सन्त जन नतभस्तक प्रणाभ कयत ेहैं।

चौ0- सुयग रोके ककॊ धचत बम नहीॊ । दसों ददशस ऩयभानन्द सुहाहीॊ।। भानव सुि र्शतगुणा सुिायी । बोगदहॊ गॊधवपरोक नय नायी।।1।।

देवताओॊ के इस स्वगथ रोक भें ककॊ चचत बी बम नहीॊ है दसों हदसाओॊ भें ऩयभ सुख पैरा हुआ है। भनुष्म के सुख का सौ (100) गुणा सुख गॊधवथ रोक के नय नायी बोगत ेहैं।

चौ0- गॊधवप त ेर्शत ्गुणी सुि बोगा । देवरोक जन कयत प्रमोगा।। सुयरोक र्शतगुणा अधधकाई । वऩतय रोक फासी सफ ऩाई।।2।।

गॊधवथ रोक का सौ गुणा सुख (एश्वमथ) का प्रमोग देवरोक वारे प्राप्त कयत ेहैं औय देवरोक का सौ गुणा वऩतरृोक ननवासी आनन्द बोगत ेहैं।

चौ0- वऩत ृर्शतगुणा अजानज रोका । एतइ ऩये अजानज सुय रोका।। अगे्रतत कभपदेव रोकऩारा । जाकय र्शतगुणी ईन्ि ववर्शारा।।3।।

वऩतय रोक का सौगुणा सुख अजानज रोक वारे तथा अजानज रोक से इतना ही (सौ गुणा) सुख अजानज देवरोक वारों का होता है। अजानज देवरोक वारों का सौगुणा आनन्द कभथदेव रोकऩारों को है इसका इतना ही (सौगुणा) सुख इन्द्ररोक वारों का है।

चौ0- इन्ि रोक र्शत गुणी सुिदावा । फहृस्ऩततरोक तनवासी ऩावा।। एतइ प्रजाऩतत रोक सुिायी । इह क्रभ रोक अग्र ववस्तायी।।4।।

इन्द्ररोक का सौ गुणा सुख फहृस्ऩनतरोक के ननवासी ऩात ेहैं। कपय इतना ही (सौ गुणा क्रभ से) प्रजाऩनत रोक भें सुखानन्द है औय इसी क्रभानुसाय (प्रजाऩनत रोक का सौ गुणा) आनन्द का आगे ववस्ताय ब्रह्भ के रोक का है।

दो0- ऺखणक बोग इह ऩाइ नय फाढदहॊ अहभ अऩाय।

115

सो भततभॊद न जानदहॊ केततक वॊधचत साय।।173।।

इस ऩथृ्वीरोक ऩय भनुष्म को ऺखणक सुखबोग ऩाकय इतना अहॊकाय फढ जाता है कक भूखथ मह नहहॊ जानता कक वह ऩयभसाय सुखानन्द से ककतना वॊचचत है।

दो0- “होयाभ”देव सुन्न भॊह सुयत चॉहु ददशस भामा ववकास। भायग मत तत सॊत शभरत साधु न होइ तनयास।।174।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक सुन्न रोक (दसभ द्वाय भें) मद्मवऩ सुनतथ को भामावी जार भें से ननकरना ऩडता है तो बी जहाॉ तहाॉ सॊतजन मभरत ेयहत ेहैं जजससे साधक को अऩने रक्ष्म की तयप चरने भें कोई ननयाशा नहीॊ ऩडती।

दो0- देव ऋवष आश्रभ रूयौ चचाप होत ब्रह्भऻान।

सहज सभाधध रिदहॊ तनत सॊत मामावय फान।।175।।

वहाॉ देव ऋवषमों के सुन्दय सुन्दय आश्रभ हैं ननत ब्रह्भऻान की चचाथ होती यहती है। जजन सॊतों की रूहानी मात्रा भें घूभने कपयने कक आदत है वे मह सफ अऩनी ध्मान सभाचध भें देखत ेयहत ेहैं।

दो0- चरत चरत सुयतत रित भानसयोवय ऩाय।

करय स्नान आगे फदढ भहासुन्न अॊध ववस्ताय।।176।।

चरत ेचरत ेसुनतथ (रूह) भानसयोवय के तट ऩय स्नान कयके वहाॉ से आगे फढती है जहाॉ भहासुन्न रोक का फहुत ववस्ततृ अन्धेया है।

छ0- चहुॉ ददशस व्माप्त सुदठ भौशर अवशर नैसगप तनकाई क्षऺततज ववतान। असॊख्म ववस्ततृ धगरय गुहा अॊध नदहॊ उझऩै नशरनीर्श भहान।।

जीव यदहत ऩरयऩाटी भ्रशभत दृढासयत सॊत कयत प्रमान।

“होयाभ” कहुॉ कहुॉ ऩयत दतुत झाॊई ततष रक्ष्म ऩाय भहासुन्न जान।।19।। चायों हदशाओॊ भें ऩवथतों की कतायें तथा ववस्ततृ आकाश भें प्रकृनत की सुन्दयता व्माप्त है असॊख्म ऩवथतों भें घोय अॊधेयी गुपाऐॊ हैं वहाॉ चन्द्रभा बी नहीॊ चभकता है। महाॉ की सषृ्टी जीव यहहत है महाॉ से भ्रमभत होकय सॊत आगे की दृढ आशा रगाकय प्रस्थान (ननकरा) कयत ेहैं। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक कहीॊ कहीॊ प्रकाश की झाॊकरी सी ऩड जाती है उसी ऩय रक्ष्म साधकय भहासुन्न से ऩाय हुआ जाता है।

दो0- ऩॊच भुकाभ तॊह गुप्त अतत याज्म ऩॊचसुत् सुहाम।

116

बत्रकुदट रधग प्ररम जदौं तॉहवाॊ सुयत सभाम।।177।।

महाॉ ऩाॉच स्थान अनत गुप्त हैं जजनभें ऩाॉच धनी याज्म कयत ेहैं। जफ बत्रकुटी देश तक प्ररम हो जाती है तफ सभस्त रूहें इनभें सभा दी जाती है।

दो0- आगे ियफ मोजन सुयत मकच अधौ शसहयाम।

ऩुतन उदठ उधवप आगे फदढ चककतइ सॊत बयभाम।।178।।

महाॉ आगे चरकय (भहासुन्न की साभीऩाय) सुनतथ एकदभ (अचानक) ही खयफों मोजन नीच ेकी ओय चगयती है कपय उठकय ऊऩय की तयप आगे फढती है महाॉ फहुत से सॊत अचजम्बत होकय बभथ भें ऩड जात ेहैं।

चौ0- आगे बुॊवयरोक छवव छाई । तनर्शोऩयान्त प्रबात जतन आई।। वन उऩवन झूरे फहु देिी । हीये भोती भहर ववर्शेिी।।1।।

आगे बॊवय रोक (बुॊवय मसताया) की छवव छामी हुई है भानों रम्फी यात्री के फाद प्रबात हुआ है इस रोक भें झूरों ऩय आत्भाऐॊ (रूहे) झूरती हुई देखी। महाॉ हीये भोनतमों जड ेववशेष भहर हैं।

चौ0- हौं ऩुतन ब्रह्भचक्र दढॊग आवा । भहाकार देखिअ हयसावा।। सतऩुरुष की आमसु ऩाई । सोहॊ ऩुरुष बवचक्र चराई।।2।।

कपय चरकय भैं ब्रह्भचक्र के ननकट आ गमा वहाॉ भहाकार को देखकय हवषथत हो गमा। वहाॉ सतऩुरुष की आऻा ऩाकय भहाकारधनी सॊसाय चक्र (हहन्डौरा) जजस ऩय रूहें घूभ यही है, को चरा यहा है।

चौ0- सभझत सुयत मत हौं वववर्शावा । भहाकार सफु फाॊधध नचावा।। ऩूणप गुरु जे सुयत र्शयणादहॊ । अभतृ न्हामे कारचक्र तजादहॊ।।3।।

महाॉ रूहें सभझती है कक भैं वववश हूॉ तमोंकक सबी रूहों को भहाकार फाॊधकय नचा यहा है। जो सुत ेऩूणथ सतगुरु की शयण भें हैं वे तो अभतृ भें स्नान कयके कारचक्र को त्माग देती है।

चौ0- सचिॊड बेद सुयत जो जानी । बुॊवयऩतत ततन्ह सॊग दमा यचानी।। सतऩुरुष आमसु बुॊवयऩतत दीन्है । तनवापण ऩधथक कबु ऩॊथ न फीन्हे।।4।। जो सुतथ सचखॊड का बेद जान रेती है भहाकार धनी उनके साथ दमा यखता है तमोंकक सतऩुरुष की भहाकार को मह आऻा हुई है कक वह ननवाथण मात्री का कबी बी यास्ता न योके।

दो0- काराधधष्ठाता वऩ ॊड अॊड अरू ब्रह्भाण्ड ववर्शार।

117

अन्म सहाइ देवसॊग देदहॊ गतत जग जार।।179।।

कार के अचधष्ठाता देवतागण वऩॊड औय अॊड रोंकों भें तथा (भहाकार के) ब्रह्भाण्डी रोंकों (मसतायों) भें सफ अन्म सहामक सुतो् (धननमों) के साथ सॊसाय चक्र को चरात ेहैं।

चौ0- आगे चरत सतऩुरय ऩॊथ सॊता । शभरदह सॊत जै जैकाय कयता।। भायग हौं रखि अचयज एका । असॊख्म धेनु सॊग सॊत अनेका।।1।।

आगे सतरोक की ओय यास्त ेभें सॊतों को चरत ेचरत ेफहुत सी सन्त भॊडरी जम जमकाय कयती जाती हुई मभरती है। आगे चरकय यास्त ेभें भैंने एक आश्चमथ देखा कक अगखणत गामों के साथ एक ववशेष सन्त था।

चौ0- सो सफ सॊत भोदह बेटाॊ कीन्ही । ब्रह्भोऩदेर्श ऩैदठ तॊह दीन्ही।। हौं सफ सॊतन आशर्शषु ऩावा । रक्ष्म सुशभय तनज गभन ठहयावा।।2।।

उन सॊतों ने भुझ से बेंट की तथा वहाॉ फैठकय ब्रह्भऻान का उऩदेश हदमा। कपय भैंने उस सॊत का आमशवाथद प्राप्त ककमा औय अऩने रक्ष्म को स्भयण कयके भैं अऩनी भॊजजर ऩय चर हदमा।

चौ0- चरत चरत फीती फहु कारा । ववरोकक भनोयभ दृष्म ववर्शारा।। ठाडड अभ्रॊकष ववटऩ कताया । दीऩभारा सभ आबु अऩाया।।3।।

फहुत सभम तक आगे चरत ेचरत ेभैंने एक ववशार भनोहय दृष्म देखा कक फड ेफड ेरम्फे वृऺ ों की कतायें खडी थी जजन ऩय दीऩावरी जैसी अऩाय जगभग ज्मोनत ववयाजभान थी।

चौ0- व्माऩक अभरयत तार सुहाने । यॊजक भेघ नब तघरयअ रिाने।। ववटऩ औऩरय इक हॊस देषा । रित न शभटदहॊ वऩऩास भुनेषा।।4।।

वहाॉ अभतृ से बये फड ेफड ेताराफ हैं औय भौसभ ऐसा रगता है भानों आकाश भें फादर नघय यहें हों। वहीॊ ऩय एक वृऺ की चोटी ऩय एक हॊस देखा जजसको देखकय भुननमों ऋवषमों की प्मास नहीॊ मभटती।

दो0- मत साम्राज्म सत्मऩुरुष वणपन ककमेउ न जाम।

अनुऩभ बवन ववयाट रखि सॊतजन धन्म धन्म गाम।।180।।

आगे सतऩुरुष (धनी) का याज्म है जजसका वणथन कयने भें नहीॊ आता। ववयाट ऩुरुष का भहर अनुभेम है जजसे देखकय सॊतजन धन्म धन्म कह उठत ेहैं।

दो0- सत्मऩुरुष ववयाट मह सकर जीवघट जातन।

118

अखिर ब्रह्भाण्ड कण कण भॊह चतेन रूऩ रिातन।।181।।

ववयाट रूऩ इस सतऩुरुष को सफ बूतों के अन्त्कणथ भें जानना चाहहमे। मह सभस्त ब्रह्भाण्ड रोक रोकान्तयों के कण कण भें व्माप्त है।

दो0- ऩया अऩया प्रकृतत दोऊ रमबूत भूर स्रोत।

“होयाभ” रिा सतरोकदहॊ सतभामा सत्म ज्मोत।।182।। मह सत्मरोक ऩया अऩया (जड व चतेन) दोंनों प्रकृनतमों का रमबूत भूर स्रोत हैं। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक सतरोक भें सत्म ज्मोनत औय भामा बी सत्म ही देखी।

चौ0- ऩयभधनी सत्मऩुरुष तनयाया । तनकारय प्रकृतत िौशर वऩटाया।। ऩया अऩया प्रकृतत द्वै रूऩा । यचत वऩॊड ब्रह्भाण्ड अनूऩा।।1।।

सतऩुरुष ऩयभ एवॊ ऩूणथ धनी है जजसका कोई ऩाय बी नहीॊ है उसने ही अऩनी वऩटायी खोरकय सॊसाय को उसभें से ननकारा तथा भूर प्रकृनत के ऩया अऩया दो स्वरूऩ कयके ब्रह्भाण्डों की यचना की है।

चौ0- दोनन रूऩ सो स्वमॊ सभामा । जासु प्राकयतत जगत यचामा।। सत्म ववयाट स्वरूऩ ववर्शारा । भेघा चककत रिदहॊ प्जस कारा।।2।।

कपय सतऩुरुष स्वमॊ प्रकृनत के दोंनों स्वरूऩों (जड चतेन) भें सभा गमा है जजससे प्रकृनत चतेन हुई औय सॊसाय की यचना हुई। सत्म ववयाट का स्वरूऩ फडा ववशार है जजस सभम उसे देखा जाता है फुवद्ध चककत हो जाती है।

चौ0- सकर ब्रह्भाण्ड जीव सुय दानव । ववधध शर्शव हरय भहाबूत जारव।। रोक रोकान्तय अधधऩतत धीया । ओत प्रोत सतऩुरुष र्शयीया।।3।।

सभस्त ब्रह्भाण्डों के जीव देव दैत्म ब्रह्भा ववष्णु मशव तथा भहाबूतों की यचना तथा रोक रोकान्तयों के अचधष्ठातागण तथा सन्त सुसज्जन सफ उसी ववयाट ऩुरुष के शयीय भें ओतप्रोत है।

चौ0- रिदहॊ सॊत जफ ववयाट स्वरूऩा । ऩुतन न ऩयदहॊ रौदट बव कूऩा।। अस आत्भऻ कभप र्शेष न कोई । कभप ककमे न प्रमोजन कोई।।4।।

जफ सन्तों को ववयाट (सतऩुरुष) के स्वरूऩ का साऺात्काय हो जाता है वह वहाॉ से वाऩस रौटकय सॊसाय रूऩी कुऐॊ भे ऩुन् नहीॊ चगयता। इस प्रकाय ऐसा आत्भऻानी ऩुरुष का कोई कभथ शेष नहीॊ यह जाता वह (सॊसाय भें यहता हुआ) कभथ कये मा न कये उसको कभथ से कोई प्रमोजन नहीॊ यहता।

119

दो0- सत्मऩुरुष देिी सॊतजन नासदहॊ सकर करेर्श।

“होयाभ” सुयत कृत्म कृत्म बइ फन्धन नदहॊ रवरेर्श।।183।। सत्मऩुरुष ववयाट ऩुरुष की छवव को देखकय सॊतजनों के सभस्त करेश सभाप्त हो जात ेहै महाॉ ऩय सुनतथ धन्म धन्म हो जाती है कोई फन्धन महाॉ शेष नहीॊ यहता।

दो0- ववयाट स्वरूऩ जो श्रीकृष्ण ऩायथ दीप्न्ह रिाम।

“होयाभ” रिहु सो सतऩुरय केदह ववधध वणपन गाम।।184।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक जो ववयाट स्वरूऩ श्री कृष्ण ने ऩायथ को हदखामा था वह सचखॊड भें देखने को मभरता है इसका वणथन ककसी प्रकाय नहीॊ हो ऩाता।

चौ0- सदगुय तॊह आत ववधध दयसाई । अरि ऩॊथ भभ सुयत शसधाई।। अरि रोक ववस्ताय ववर्शेिा । गगन ऩौदढ चदढ अचयज ऩैिा।।1।।

वहाॉ ऩय भुझ ेसदगुरुदेव ने एक ऐसी ववचध प्रदमशथत कयाई जजससे भेयी सुयनत अरख भागथ ऩय दौड चरी। गगन मसहढमों ऩय चढकय भैंने अरख रोक के ववशेष ववस्ताय का आश्चमथ देखा।

चौ0- ऩावन तॊह इक ठाभ तनहायी । फारश्वय बइ बेंट हभायी।। सॊत सभाज ददमत सतसॊगा । फहावत ब्रह्भऻान सत्मगॊगा।।2।।

वहाॉ भैंने (श्री होयाभदेव जी ने) एक ऩववत्र स्थान देखा वहाॉ हभायी फारेश्वय नाथ जी से बेंट हो गई। जो ववस्ततृ सॊत ,सबा भें सतसॊग कय यहे थे औय ब्रह्भऻान की कथा प्रसॊग दे यहे थे।

चौ0- चतुबुपज धनी भो करय उऩदेरु्श । तनवापण रक्ष्म सन्देरु्श। आगे चरत हौं सरयता देिी । स्नान कयत अभीधाय ववर्शेिी।।3।।

वहाॉ एक चतुबुथज ऩुरुष ने भुझ ेउऩदेश हदमा तथा ननवाथण धाभ (हहन्दतु्व ऩद) के रक्ष्म का सॊदेशा हदमा। आगे चरकय भैंने एक नदी देखी जजसकी अभतृ धाय भें भैंने स्नान ककमा।

चौ0- अरि रोक अथाह ववस्ताया । भहाकायण सो ब्रह्भाण्ड साया।। ऩूणप जग दहयण्मगबप मह मौतन । फीज स्वरूऩ सफ बूत सभौतन।।4।।

120

अरख का ववस्ताय अथाह है जो सभस्त ब्रह्भाण्डों का भहाकायण है मही सभस्त ववश्व की मौनन मह हहयण्मगबथ है। जजसभें सभस्त बूत (चय अचय) फीज रूऩ भें सभामे होत ेहैं।

दो0- “होयाभ” ऩूणप प्जशभ स्तीत्व फीजदहॊ दयुाम। ववयाट चयाचय जग ततदह दहयण्मै कोष सभाम।।185।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक जजस प्रकाय सभस्त वृऺ का स्तीत्व फीज भें छुऩा होता है उसी प्रकाय अखखर चयाचय (जड चतेन) जगत हहयण्मगबथ भें सभा जाता है।

चौ0- सकर ब्रह्भाण्ड स्रोत मह जानी । उगै िऩै जग दहयण्म सभानी।।

चौभुिी ववधध तहॊ दर्शपन दीन्है । ववववध प्रकाय हौं प्रसॊग कीन्है।।1।।

इस हहयण्मगबथ को सभस्त ब्रह्भाण्ड का भूर स्रोत सभझो साया सॊसाय उत्ऩन्न औय ववनास क्रभ से इसी भें सभामा होता है। वहाॉ भुझ ेचतुभुथखी ब्रह्भा जी ने अऩने दशथन हदमे औय भैंने उनसे ववववध प्रकाय ऻान चचाथ की।

चौ0- हौं चारय भुि ववषम प्रश्न कीन्ही । सो ववधधवत भोदह उत्तय दीन्ही।। बत्रभुि अधचद कक चतेन ऐका । ब्रह्भा फिातन साय प्रत्मेका।।2।।

ब्रह्भा जी के चाय भुख के ववषम भें भैंने प्रश्न ककमे जजनका सफ उत्तय ब्रह्भा जी ने ववचधवत हदमा। भेया प्रश्न था कक आऩके तीन भुख अचते औय एक चतेन तमों हैं ? ब्रह्भा जी ने प्रत्मेक का सत्म सत्म यहस्म वणथन ककमा।

चौ0- सतमुग चतेन सत्मानन होई । धयभानन चते त्रेतामुग जोई।।

मऻदत्त चतेन द्वाऩय जफहीॊ । कशरमुग भुि मह चतेन अफहीॊ।।3।।

सतमुग भें सत्म भुख चतेन होता है त्रेता के सभम धभथभुख चतेन होता है, द्वाऩय भें मऻदत्त भुख चतेन हो जाता है औय अफ कमरमुग भें मह कमरक भुख चतेन है।

चौ0- ववर्शेष प्रबावु भुि कशरकारा । नाभ ध्मान यत शभरदहॊ शर्शवारा।। तुभ “होयाभ” सतगुरु र्शयणाई । कयहु सुअवसय सुयत कभाई।।4।। इस कमरमुगी भुख के सभम का ववशेष प्रबाव होता है इसभें नाभ व ध्मान (सतनाभ शब्द ध्मान) से ननवाथणऩद मभर जाता है। तुभ होयाभदेव तो ऩूणथ सतगुरु की शयण ऩामे हुवे हो मह फहुत उत्तभ अवसय हैं सतनाभ सुयत की कभाई कय रो।

121

दो0- अरि अॊर्श रु्शधच अगभ रोक बफयरे ऩहुॉचत कोम।

प्जन्ह देि सो जातनमाॊ वणपन सकै नदहॊ होम।।186।।

अरख का ही अॊश ऩावन अगभ रोक है महाॉ बफयरे ही कोई ऩहुॉचत ेहैं। इसे तो जजसने देखा वही जानता है इसका वणथन नहीॊ हो ऩाता।

चौ0- अरिाॉर्श अगभ अगोचय िॊडा । प्स्थतत ववर्शार अगखणत ब्रह्भण्डा।

अगखणत रोक रोकेर्श अनेका । शर्शव ववष्णु चतुयानन प्रत्मेका।।1।।

अरखरोक के ही अॊश अगभ अगोचय रोक हैं जजनकी ववशार जस्थनत भें असॊख्म ब्रह्भाण्ड हैं। असॊख्म रोक औय अनेक रोकऩार हैं। प्रत्मेक भें ब्रह्भा, ववष्णु, मशव अरग अरग हैं।

चौ0- चभकत गगन भॊडर यवव नाना । सॊत चककत रखि दृष्म सुहाना।। ऩयभाणु सॊख्मा धगनत गय जादहॊ । ब्रह्भाण्ड सॊख्मा सम्बव नादहॊ।।2।।

अगभ रोक के आकाश भॊडर के (एक ही अन्तयार भें) अगखणत सूमथ भॊडर सभूह दभकत ेहैं। इस भहान दृश्म को देखकय सॊतजन चककत हो जात ेहैं। महद ऩयभाणुओॊ की सॊख्मा बी चगनरी जामे तो ब्रह्भाण्डों की सॊख्मा जानना सम्बव नहीॊ है।

चौ0- सुनु सफ शर्शष्म मह भभ फानी । सकर दृष्म नदहॊ सम्बव फिानी।। तदवऩ जे कछु ऩयेऊ ददिाई । सायाॊर्श रूऩ सफ कहुॉ भुददताई।।3।।

तुभ सबी मशष्मों ! भेयी वाणी सुनों – सभस्त दृष्मों का फखान कयना सम्बव नहीॊ है कपय बी जो कुछ हदखाई ऩडा उसको सायाॊश रूऩ भें भैं सहषथ कह यहा हूॉ।

चौ0- सो जन जगत फयो फडबागी । ध्मानमोग प्जन्ह सुयतत रागी।। भभ दृढ व्रत जे कछु फुताऊॉ । प्रमोगरूऩ सफ तुम्हदहॊ रिाऊॉ ।।4।।

वह व्मजतत फड ेही फडबागी हैं जजनकी सुयनत ध्मानमोग भें रगी हुई है। भेया दृढ वचन हैं भैं जो कुछ फताऊॉ गा वह सफ प्रमोग रूऩ भें तुझको हदखाऊॉ गा।

छ0- अतत ववधचत्र ववस्ततृ अगभरोक यचना ब्रह्भण्डिॊड अततकर फातन।

अगखणत ववष्णु ववधध शर्शव प्रततिॊड अगखणत यववभॊडर ज्मोतत जतन।।

अगखणत रोकऩार बू – बूधय सुय भुतन मोगी असॊख्म धतन।

“होयाभ” ववधचत्र चयाचय सषृ्टी रु्शधच तार सरय कक सॊख्मा गतन।।20।।

122

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक अगभ रोक का ववस्ताय ववचचत्र है जजसभें अनेक अनत ऩावन ब्रह्भाण्ड खॊड फने हैं प्रत्मेक भें अगखणत रोकऩार बू बूऩनत देवता ऋवष भुनन मोगी तथा असॊख्म धनी हैं महाॉ की फडी ववचचत्र सजृष्ट है उसभें ऩववत्र अभतृ ताराफ व नहदमों की सॊख्मा नहीॊ चगनी जाती है।

दो0- अरि अगभ ऩाय सीभ इक उजाप गॊग ववर्शार।

ऩावन धाय र्शीतर जर स्नान करय सॊत तनहार।।187।।

अरख औय अगभ की सीभा के ऩाय एक उजाथ गॊगा फडी ववशार है जजसकी ऩावन धाया है औय उसका जर शीतर है। सॊत जन उसभें स्नान कयके ऩयभानन्द प्राप्त कयत ेहै।

दो0- बॊवये उठत रहयें ऩयत उजाप सरय की धाय।

गुरुभुखि सन्त स्नान कयत सुयत भुकुत बव बाय।।188।।

उजाथ नदी की धाया भें बॊवये उठती हैं, फडी फडी रहयें ऩडती हैं। इसभें गुरुभुखख सॊत स्नान कयत ेहैं। महाॉ सुनतथ सॊसाय के हयेक बाय से भुतत हो जाती है।

चौ0- ऩुतन ऩुतन तनत करय ध्मानाभ्मासा । धावदहॊ सुयत जॊह अनन्त प्रकासा।।

नव नव फस्ती नव नव भुकाभा । फसदहॊ सन्त तॉह तनज तनज धाभा।।1।। फाय फाय (ननयन्तय) ननत ध्मान अभ्मास कयके सुनतथ उधय दौडती है जहाॉ अनन्त प्रकाश है। वहाॉ नव नव भुकाभ भें नई नई फजस्तमाॉ हैं वहाॉ अऩने अऩने स्थानों भें सॊत जन फसत ेहैं।

चौ0- ब्रह्भरोकदहॊ सफ कयत प्रतीऺा । कयदहॊ ऩयस्ऩय ब्रह्भ सभीऺा।। कछुक साधुजन धूतन यभावदहॊ । ऩयभसॊत मोगी ध्मान सभावदहॊ।।2।।

मे सफ सॊतात्भाऐॊ ननवाथणधाभ (हहन्दतु्व ऩद) की प्रतीऺा कयती हैं औय ऩयस्ऩय ऩयभेश्वय की (ब्रह्भऻान की) चचाथ कयती है। उनभें कुछ साधुजन धूना यभात ेहैं तो कुछ ध्मानमोग भें सभामे यहत ेहैं।

चौ0- सकर सन्त ब्रह्भदहॊ यत यहदहॊ । आनन्दरम धन्म धन्म कहदहॊ।।

उध्र्वप चशर सुतप ऩद तनवापणा । भन वाणी नदहॊ ऩाय फिाणा।।3।।

सबी सॊतात्भाऐॊ ब्रह्भ प्राजप्त भें रगी यहती है औय ब्रह्भानन्द भें रम होकय अऩने आऩ को धन्म धन्म कहती हैं। अफ सुनतथ महाॉ से ऊऩय को ननवाथण ऩद की तयप चढती हैं जजसका भन वाणी बी ऩाय नहीॊ फतात।े

123

चौ0- ब्रह्भरोक अततकर ऩावन । भुक्त सुयत फहु ठाभ सुहावन।। फड ेबाग्म प्जन्ह मह ऩद ऩाई । अतत दरुपब सफ सॊतन गाई।।4।।

ब्रह्भधाभ फडा सुन्दय औय ऩववत्र है महाॉ भुततात्भाओॊ के मरमे फहुत सुहावनी जगह है। जजसने इस धाभ (ऩद) की प्राजप्त कय री हो वह फडा बाग्मशारी है सबी सॊतजन इसकी प्राजप्त फडी दरुथब फतात ेहैं।

दो0- कोसो राम्फे आमतन आश्रभ बवन अनेक।

जतन सफ सॊगभयभय की फतन यचना एक से ऐक।।189।।

महाॉ कोसौ रम्फे आमतन (ववस्ताय) के अनेकों भजन्दय आश्रभ बवन हैं। भानों सफ सॊगभयभय के फने हों सफ एक से एक फढकय फने हैं।

चौ0- दयूस्थ जहॉ रधग दृप्ष्ट जाहीॊ । सुन्दय आश्रभ ववववध रिाहीॊ।। ऩुष्ऩ बफधथका फन उऩवन नाना । अभतृसय कर आॊगन भहाना।।1।।

दयू दयू तक जहाॉ तक दृजष्ट जाती है ववववध प्रकाय के सुन्दय सुन्दय आश्रभ हदखाई देत ेहैं। फहुत से वन फाग फगीच ेपुरवारयमों तथा आॊगन भें सुन्दय अभतृ के ताराफ हैं।

चौ0- श्वेत काॊच की चभक सभाना । व्माप्त प्रकार्श न कथनी जाना।। चहुॉ ददशस व्माऩक अतुर प्रकासा । चभकौंध हीन अनुऩभ बासा।।2।।

सपेद काॊच की चभक जैसा इतना प्रकाश पैरा हुआ है जो चकाचौंध से यहहत है औय जजसकी कोई उऩभा कहीॊ नहीॊ है।

चौ0- मात्रा करय कछु सुतप तॊह जाहीॊ । जॉह अनन्त प्रकार्श ऩुॊज साहीॊ।। रूक्भवणप सरयस अतुल्म प्रकासा । ऩूणप सन्त ततष भाॊहीॊ सभासा।।3।।

कुछ आत्भाऐॊ मात्रा कयती हुई वहाॉ चरी जाती हैं जहाॉ अनन्त प्रकाश ऩुॊज स्वरूऩ ऩूणथ ब्रह्भ ऩयभेश्वय है। उसका रूकभ वणथ सभान अतुल्म (तुरना यहहत) प्रकाश है। बफयरे ऩूणथ मोगी सॊतजन ही उसभें जाकय सभात ेहैं।

चौ0- तॊह नदहॊ यवव र्शशर्श दाशभतन दभकै । तादह प्रकार्श प्राप्त सफ चभकै।। अतत ऩावन दहन्दतु्व ऩद तनवापणा । अनन्त अनन्त सफ सॊत फिाणा।।4।। वहाॉ (ऩूणथ ब्रह्भ भें) सूमथ चन्द्रभा तथा बफजरी आहद कुछ बी नहीॊ दभकती फजल्क मे सफ बी उसी के प्रकाश से चभकत ेहैं। मह ननवाथणधाभ ही हहन्दतु्व ऩद है जो अनत ऩववत्र है इसको सबी सॊतों ने अनन्त अनन्त कहा है।

दो0- भुक्तसुतप सबा भॊह प्रतीतदहॊ ब्रह्भ धथतत भहा प्रकास।

124

“होयाभ” ववनमदहॊ भुक्तसुतप रि न शभटदहॊ वऩऩास।।190।। ननवाथण ऩद (स्थान) ऩय सभस्त भुततात्भाओॊ की सबा की भहान अनन्त प्रकाश ऩुॊज ब्रह्भ भें जस्थत प्रतीत होती है। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक उस ज्मोनत स्वरूऩ की मे भुतत आत्भाऐॊ स्तुनत कय यहीॊ हैं। उनकी उसे देख देख कय बी प्मास नहीॊ मभटती।

दो0- दहन्दतु्व ऩद अनाभी अिॊड तीयथ यत जो होम। “होयाभ” ब्रह्भ मात्री वह तनश्चम तनवााँण सभोम।।191।। मह हहन्दतु्व ऩद अखॊड अनाभीधाभ है इसकी तीथथ मात्रा भें जो रग गमा है श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक वह ब्रह्भमात्री ननश्चम ही ननवाथण को प्राप्त होगा।

दो0- जस जस दृष्म मात्रा रिे सफ कफहुॉ साभथप नाम।

जानदहॊ रखि जे नमन तनज सतगुरु र्शयणी ऩाम।।192।।

भैंने (श्री होयाभदेव जी ने) जैसे जैसे दृश्म इस मात्रा भें देखे हैं सफका वणथन कयने की साभथथ भुझभें नहीॊ है जो कोई अऩनी आॉखों से सतगुरुओॊ की शयण प्राप्त कयके देखता है वही जानता है।

दो0- सवप ववश्व व्माप्त ब्रह्भ ववच ब्रह्भ व्माप्त ववश्व भाॊहीॊ।

प्जस देिा सो जातनमा ककस ववधध वणपहु साॊहीॊ।।193।।

सभस्त सॊसाय ऩूणथ ब्रह्भ भें सभामा है औय ऩूणथ ब्रह्भ ववश्व भें सभामा हुआ है। उसे जो देखता है वही जानता है। उस ऩूणथ साॉही का भैं ककस प्रकाय वणथन कय सकता हूॉ।

दो0- गुदाचक्र से अनाशभिॊड दहन्दतु्व सोड्ष कऺाभ।

जे प्जस गदह सो ऩूणप कदह भारा फीज ऩमाभ।।194।।

भूराधाय चक्र (ऩातार रोक) से अनाभी धाभ (ननवाथण ऩद) तक हहन्दतु्व की सोरह कऺाऐॊ हैं जजसको जो कऺा प्राप्त हो गई उसने उसी को ऩूणथऩद कह हदमा है। मे सफ कऺामें हहन्दतु्व भें ऐसे वऩयोमी हुई हैं जैसे भारा भें फीज वऩयोमे हुवे हैं।

चौ0- ऩायदर्शपक ज्मोतत ऩुॉज भहाना । तनयाकाय रूक्भवणप सभाना।। कयत सन्त जे ततदह साऺात्काया । अध ऩुण्म तप्ज सो भुक्त अववकाया।।1।।

125

वह भहान ब्रह्भ ज्मोनत ऩुॊज ऩायदशथक ननयाकाय एवॊ रूकभ वणथ ज्मोनत के सभान है जो सॊत्ताभाऐॊ उसका दशथन कयती हैं वे ऩाऩ ऩुण्म की सीभा से ऩये भुतत एवॊ ननववथकायी हो जाती है।

चौ0- भनवाणी सों अगम्म बफजाने । अन्म तऩ ब्रत मऻ कभप न ऩाने।।

ववरु्शद्ध अन्तस जे साधक कोई । सतत ध्मान यत रिे ब्रह्भ सोई।।2।।

वह ऩूणथ ब्रह्भ भन वाणी से ऩये जाना जाता है। तऩ व्रत मऻ कभथकाण्ड आहद अन्म साधनों से वह अनाभीश्वय प्राप्त नहीॊ होता। ऩववत्र अन्त्कयण वारा कोई साधक ववशेष ननयन्तय सहजसभाचधस्थ ध्मानमोग भें रीन हुआ ही उस ब्रह्भ को देख ऩाता है।

चौ0- ध्मान बफना सो ऩद न गहेऊ । याजमोग मत ऩूणप अहेऊ।। तनवापणधाभ ऩयभसॊत ऩावदहॊ । कार देस ऩुतन रौदट न आवदहॊ।।3।।

सहज सभाचधस्थ ध्मान मोग के बफना वह ऩद प्राप्त नहीॊ होता याजमोग महीॊ ऩय ऩूणथ होता है। इस ननवाथणधाभ को ऩयभसॊत ही प्राप्त कय ऩात ेहैं औय वे कपय वहाॉ से रौटकय कार देश भें नहीॊ आत।े

चौ0- सकर भुक्त सुतप अनाशभधाभा । प्स्थत कामप ब्रह्भ सबा अशबयाभा।। सो ब्रह्भ सकर बवचक्र चरादहॊ । तदवऩ कहन सुनन अरगादहॊ।।4।।

अनाभी धाभ भें सभस्त भुतत आत्भाऐॊ उस कामथ ब्रह्भ की सुन्दय सबा भें जस्थत हैं। वह अनाभीश्वय (ऩूणथब्रह्भ) ही सभस्त सॊसाय चक्र को स्वमॊ चरा यहा है औय कपय बी कहन सुनन से न्माया यहता है।

दो0- ववववध कामप दहतु भुक्त सुतप जग आवश्मकतानुसाय।

सभम समम ब्रह्भ ऩठावदहॊ कार िॊड सुयत सम्हाय।।195।।

सॊसाय की आवश्मतता अनुसाय कार रोक भें जीॊवों की सम्बार के मरमे ववववध प्रकाय के धभथ कामों के मरमे वह ऩयभेश्वय सभम सभम ऩय भुतत आत्भाओॊ को बेजता यहता है।

चौ0- हौं रखि मह धाभ अनाभा । ऩुतन प्रमासयत अग्र शसधाभा।। अनाभी उध्र्वप ब्मोभ गुहानी । गुप्तद्वाय इक देखि सुहानी।।1।।

भैंने मह धाभ अनाभी देखा है कपय बी भैं प्रमासयत (खोज कयता हुआ) औय आगे गभन ककमा। अनाभी धाभ से ऊऩय भहाव्मोभ भें एक गुप्त द्वाय अनत सुहाना देखा।

126

चौ0- तॉह अतत र्शान्त वातावु तनहाया । ऩयभ र्शाप्न्त ब्मोभ तनयाया।। ईर्शकण नाना गततभम ऩाऐ । चभक ज्मोततवर केशर फनाऐ।।2।।

वहाॉ फडा ही शान्त वातावयण देखा मह ननयारा ही ऩयभशाजन्तभम व्मोभ था। वहाॉ नाना ईशकण गनतशीर ऩामे। वे ज्मोनतवत चभकत ेहुवे ऩयस्ऩय क्रीडा फनामे हुवे थे।

चौ0- सो कण ऩयस्ऩय कय गतत भेरा । चतेन्म फर नूतन तत्व ठेरा।। सभमोऩयान्त एदह कण साये । फनदहॊ ववश्व स्वरूऩ अऩाये।।3।।

वे सफ कण ऩयस्ऩय गनत का भेरा कय यहे थे जजससे चतेन्म शजतत का नूतन तत्व प्रगट हो यहा था। सभमोऩयान्त मही कण अऩाय ववश्वरूऩ फन जात ेहैं।

चौ0- ता सउॉ अग्र गभन हभ देिा । उऩभा यदहत इक बवन ववर्शेिा।। तॉह ऩूणप धतन सेज ववश्राभा । तॉह त ेयधच सो धाभ अनाभा।।4।।

हभने उससे बी ऩये गभन कयके देखा कक एक उऩभा यहहत ववशेष बवन है। वहाॉ ऩूणथऩयभेश्वय की ववश्राभ सेज है वहीॊ से उसने अनाभी धाभ की यचना की थी।

चौ0- सो ऩद राि कयोयों भाहीॊ । बफयरा कोइ तत्वदयसी जाहीॊ।। कार देसीम साधन साये । तॊह नदहॊ गम्म भगदहॊ सफ हाये।।5।।

उस ऩद ऩय राखों कयोडों भें कोई बफयरा तत्वदशी ही जा ऩाता है। महाॉ कारदेस के सभस्त साधनों की वहाॉ ऩहुॉच नहीॊ है। मे सफ भागथ भें ही थक जात ेहैं।

दो0- मऻ तऩ तीयथ साधना कारिण्ड यॊजन धाय।

भोऺ कायण ध्मान गभन आत्भ दयस अववकाय।।196।।

मऻ तऩ तीथथ औय साधना भात्र कार के देस की यॊजनधायाऐॊ हैं। भोऺ का शुद्ध कायण तो ध्मान मात्रा भें आत्भसाऺात्काय ही है।

22 - सत्मोऩदेर्श

दो0- जफ रधग जीव न जानदहॊ तनज स्वरूऩ ब्रह्भ रूऩ। भनभुखि होइ व्माकुर अतत ऩुतन ऩुतन ऩरय बवकूऩ।।197।।

127

जफ तक जीव अऩने स्वरूऩ को ब्रह्भरूऩ नहीॊ जानता तफ तक वह भनभुखख होकय अनत व्माकुर है औय फायम्फाय सॊसाय रूऩी कुऐॊ भें चगयता ऩडता है।

दो0- “होयाभ” अस प्रमास कय मह भानुष तन ऩाम। ववकट कार चक्कय शभटै सुयतत तनजऩुय जाम।।198।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक मह भनुष्म का शयीय ऩाकय ऐसी कभाई कयें जजससे मह कार चतकय मभट जामे औय सुनतथ अऩने देश वाऩस चरी जामे।

चौ0- सॊत सुतप जफ तजैदहॊ र्शयीया । अनाभीधाभ गभन कयीया।। रघु शे्रणी सॊत सुतप ववर्शेषा । फाइ जाम सुन्न बुॊवरू देषा।।1।।

सॊतो (ऩूणथ मोगी जनों) की रूह जफ शयीय का त्मागन कयती है तो अनाभी धाभ को गभन कयती है औय रघु शे्रणी सॊतों की सुनतथ सुन्न तथा बुॊवय रोक भें फसाई जाती है।

चौ0- जहॊ रधग प्जदह सुवष होदहॊ कभाई । तनु तप्ज सुतप ततष ठाभ शसधाई।।

प्रबु बमकायी नेकी दानी । सवप सुयत स्वगप रोक प्रस्थानी।।2।।

जजसकी अऩनी सुष्भना चक्रों भें जजस रोक तक की कभाई (मात्रा) ऩूणथ है शयीय त्मागने ऩय उसकी रूह उसी रोक भें चरी जाती है। प्रबु से डयने वारी नेकी (ऩुण्मात्भा) दानी आत्भाऐॊ स्वगथ रोक भें ऩहुॉचती हैं।

चौ0- ववधध हरय हय ऩुरय सो सुि बोगा । गहदहॊ ऩुतन नय तन ऩुण्म मोगा।। नय तन ऩाम न बप्ज जगदीर्शा । सो पॊ दद कार जार दयूदीर्शा।।3।।

वे आत्भाऐॊ ब्रह्भा ववष्णु मशव की ऩुरयमों भें सुख बोगती है औय कपय अऩने ऩूवथ ऩुन्मों के मोग से भनुष्म देह को ग्रहण कयती है। जो भानव तन ऩाकय बी ऩयभेश्वय का बजन नहीॊ कयता वह कार की कैद भें नघय कय भहान ददुथशा को प्राप्त होता है।

चौ0- झॊझयीद्वीऩ भहॊ नयकदहॊ थाना । ऩावदहॊ दहॊसक सुयत दठकाना।। धभप दान ऩुण्महीन ववकायी । तनष्कृष्ट जौतन चौयासी डायी।।4।।

झॊझयी दीऩ (मभरोक) भें नकथ का ववस्ताय है वहाॉ हत्मायी जीवात्भाऐॊ डारी जाती है। तथा धभथहीन दान ऩुन्महीन ववकायी रूहें ननकृष्ट मोननमों भें डार दी जाती है।

दो0- नदहॊ धयभ ऩुन्म बजन ध्मान नदहॊ तीयथ व्रत “होयाभ”।

128

सो ऩावदहॊ तनकृष्ट मुतन वनस्ऩतत धगरय जडाभ।।199।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक जजन रूहों के ऩास न धभथ न ऩुन्म न बजन ध्मान है तथा तीथथ व्रत कुछ नहीॊ है वे ननकृष्ट रूहें वनस्ऩनत ऩवथत जड आहद मोननमाॉ प्राप्त कयती है।

चौ0- जड जौतन बोधगअ धचयकारा । ऩावदहॊ कबु नय देह बफहारा।। ऩयभायधथ धभापत्भा ऻानी । मभ आदेर्श सफ सुयधग ऩठानी।।1।।

रम्फे सभम तक वे आत्भाऐॊ जड मोननमों को बोगकय कबी नयदेह ऩा जामें तो बी फेहार यहती है औय जो ऩुन्मवान धभाथत्भा दानी ऻानी आत्भाऐॊ हैं वे सफ मभयाज की आऻा से स्वगथ भें बेज दी जाती है।

चौ0- बोग ववराशस सूदि सॊसायी । दें मभदतू मातना बायी।। ऩुतन धभपयाम सन करय ठाड ै। कयभ बुगान ऩरययौयव अगाड।ै।2।।

बोग ववरासी ब्माज खाने वारी सॊसाय भें पॊ सी आत्भाओॊ (रूहों) को मभयाज के दतू फडी फडी मातनाऐॊ देत ेहैं। कपय उन्हे धभथयाज (मभयाज) के सन्भुख खडा ककमा जाता है जजसके परस्वरूऩ वे अऩने कभों का पर यौयव नयक भें जाकय बुगतत ेहैं।

चौ0- जे सॊत ऩूयन गुरु र्शयणाई । अन्तरय धाभ स्वच्छन्द आई जाई।।

ऩूणपसॊत जफ तजदहॊ र्शयीया । प्राण शसभेदट बत्रकुदट रम कीया।।3।।

ऩूणथ सॊत सतगुरु की शयण भें यहकय अन्तरयऺ रोंकों भें स्वछन्द आत ेजात ेहैं ऩूणथ सॊत जफ अऩना शयीय त्मागत ेहैं तफ वे अऩने प्राणों को सभेट कय बत्रकुटी भें रम कय देत ेहैं।

चौ0- बफनु अवयोध अनाभी गाभा । ऩद तनयवाण कयदहॊ ववश्राभा।। सकर सॊत तुभ धन्म धन्म बागी । तनजऩद गभन प्जऻासा जागी।।4।।

वे बफना ककसी रूकावट के अनाभी रोक चरे जात ेहैं औय वहाॉ ननवाथण ऩद भें ववश्राभ कयत ेहैं। तुभ सबी सॊतजन धन्म हो फड ेबाग्मशारी हो जो तुभभें ननजदेस जाने की जजऻासा जागतृ हो गई है।

दो0- भोहवर्श जग आसक्त जन जफ आवत अन्तकार।

तनु तजत भोह ऩीय अतत “होयाभ” धचत्त बफहार।।200।।

129

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक जो भनुष्म सॊसाय भें भोह के वशीबूत हैं जफ उनका अन्त सभम आता है तफ उन्हे भोह की ऩीडा फहुत होती है औय उनका अन्त्कयण व्माकुर हो उठता है।

चौ0- जफ रधग कारिॊड अततसजृ नाहीॊ । तफ रधग सुयत बव जार पॊ साहीॊ।। छूटत नाहीॊ रऺ चौयासी । बोगदहॊ आवागभन मभपाॊसी।।1।।

जफ तक कार का ऺेत्र नहीॊ छोडा जाता तफ तक मह सुनतथ (रूह) सॊसाय चक्र भे पॊ साई जाती है। औय चौयासी राख मौननमाॊ बी उससे नहीॊ छूटती इन्ही भें वह आवागभन की मभऩाश को बोगती यहती है।

चौ0- कछुक सुयत ऩयदहतु व्मवहायी । देंमदहॊ कार आनन्द सुिायी।। प्रथभ धतन धाभ सुयतगय कोई । फॊधदहॊ तनयत सचिॊड भुक्त सोई।।2।।

कुछ शुबाचयण ऩयहहत व्मावहाय वारी रूहें हैं उन्हे कार ननयॊजन आनन्द सुख बोग प्रदान कयता है। अगय ऩहरे धनी के देश से ककसी सुतथ की डौयी सचखॊड से फॊध जाती है तो वह भुतत हो जाती है।

चौ0- तत्वदयसी सतगुय कोउ ऩूया । कयत जीव कार िॊड दयूा।। रखि शर्शष्म बगतत तनभपरताई । कयत ब्रह्भरम ऩॊथ दयसाई।।3।।

कोई ऩूणथ ववशेष तत्वदशी सतगुरु ही अऩने मशष्म की सुनतथ को कार के देश से अरग कय सकता है। वह मशष्म की बजतत तथा भन की शुद्धता को देखकय उसे सच्चा ऩथ (सुनतथ शब्द मोग) हदखाकय ब्रह्भज्मोनत भें रमकय देता है।

चौ0- जाकी गगन चदढ सुयतत जेती । ततन्ह अन्तरय सुन्न गतत बई ततेी।।

जे सॊत तनत तनत भयना जाने । अन्तदहॊ सहज शसशभट प्रस्थाने।।4।।

जजसकी सुनतथ गगन भॊडरों भें जहाॉ तक चढ चुकी होती है उनकी अन्तरयऺ रोंकों भें गनत बी वैसी ही होती है। सॊतजन तो ननत ननत भयना जानत ेहैं वे अन्तसभम भें मसमभट कय स्वमॊ ही महाॉ से प्रस्थान कय देत ेहैं।

दो0- कारचक्र गय चॊहहीॊ छदट ऩूणपसॊत र्शयखण जाम।

कभापकभप सॊग तजाम सो ब्रह्भऩॊथ देत रिाम।।201।।

महद कार चक्र से छूटना चाहत ेहो तो ऩूणथ सॊतों की शयण जाओॊ वे कभाथकभथ का साथ छुडवाकय ब्रह्भभागथ हदखरा देत ेहैं।

दो0- सॊत बफनु सॊसाय भें फाढदहॊ दषु्कभप अऩाय।

130

जीव नयक मातना सहै बयै चौयासी भाय।।202।।

सॊत जनों के बफना इस सॊसाय भें अऩाय दषु्कथ भथ फढ जात ेहैं। जीव फडी मातनाऐॊ बोगता है औय रख चौयासी का बाय सहता है।

चौ0- सन्त धभप अधभप गतत ऩाया । प्रगटदहॊ जगदहत प्रबु अधधकाया।। कामपऺ ेत्र ततन्ह दे प्रबु जेता । इह जग कभप कयेदहॊ सॊत ततेा।।1।।

ऩूणथ सॊत धभथ अधभथ गनत से ऩये होत ेहैं वे ऩयभेश्वय की आऻा (अचधकाय) से सॊसाय के कल्माण के मरमे प्रगट होत ेहैं औय ऩयभेश्वय उन्हे जजतना कामथऺ ेत्र औय अचधकाय सौंऩ जात ेहैं। वे इस सॊसाय भें उतना ही कामथ कयत ेहैं।

चौ0- बूशभ स्वगप अस न कोऊ प्रानी । जे बत्रगुण तनमतत यदहत ववजानी।। तनष्काभ बाव जगत सॉत यहहीॊ । जगत जीव दहतु फहु कष्ट सहहीॊ।।2।।

ऩथृ्वी औय स्वगथ भें ऐसा कोई बी प्राणी नहीॊ है जो बत्रगुणी प्रकृनत से यहहत जाना जामे कपय बी सॊतजन सॊसाय भें ननष्काभ बाव से यहत ेहैं औय जग के जीवों के मरमे स्वमॊ फहुत कष्ट सहन कयत ेहैं।

चौ0- सत्म धनी ऩथ बेद दयसावा । आमहु हभ जग जीव दहतावा।। ऩूणप ऩुरुष की कयत उऩदेरु्श । जगावत जीव दइ ब्रह्भ सॊदेरु्श।।3।।

ऩयभसत्म (ववयाट) के भागथ का बेद प्रसायण कयने के मरमे हभ जगत भें जीवों के हहत के मरमे आमे हैं औय उस ऩूणथ ब्रह्भ अनाभीश्वय का उऩदेश देत ेहैं औय ब्रह्भ सॊदेशा देकय जीवों को जगात ेहैं।

चौ0- धभप स्वरूऩ शबन्न शबन्न कारा । प्रकृत्माधीन प्रगट बव जारा।। सभमोधचत कभप धभप ऩरयबाषा । वववेक धारय कयहु कभप फासा।।4।।

धभथ का स्वरूऩ मबन्न मबन्न सभम भें मबन्न मबन्न हो जाता है प्रकृनत के आधीन ही मह बव जार प्रगट होता है। सभम ऩय उचचत कभथ कयना ही धभथ की ऩरयबाषा है इसमरमे वववेक धायण कयके ही कभों भें फासा कयो।

दो0- तनज तनज कभप अशबयत भनुज उध्र्वप अधौगतत प्राप्त। कभप प्रकृतत स्वाबाववकक सकर जीव सॊग व्माप्त।।203।।

भनुष्म अऩने कभों से जुडा हुआ ऊॉ ची नीची गनत को प्राप्त होता है। कभथ प्रकृनत अऩने स्वाबाववक गुण से प्रत्मेक जीव के सॊग है औय उनभें व्माप्त है।

131

सो0- अल्ऩ सॊकट अतत बोगदहॊ, वववेकहीन नय ऩरु्श सभ।।

भतत वववेकदह मोगदहॊ, भहा सॊकट अवऩ अल्ऩ बई।।3।।

वववेकहीन भनुष्म तो ऩशु के सभान है वह थौड ेसॊकट को बी अचधक कयके बोगता है औय वववेक फुवद्ध के मोग वारा भहान सॊकट को बी अल्ऩ कय रेता है।

चौ0- जे जन प्राप्त आत्भ ववऻाना । तनसॊर्शम गहदहॊ सो ब्रह्भ भहाना।।

भामा देर्श ववच फतन फैयागी । कयत मात्रा तनवापणनुयागी।।1।।

जो भनुष्म आत्भ ववऻानी है वे ननसन्देह ऩूणथ ब्रह्भ को प्राप्त कयत ेहैं। भनुष्म को चाहहमे कक इस भामा के देश भें वैयागी फना यहकय ननवाथणधाभ का अनुयागी फनकय अऩनी मात्रा (सुनतथ मात्रा) कये।

चौ0- तनभापन भोह अरू अल्ऩाहायी । ऩैदठ इकान्त सतनाभ ववचायी।। ध्मानमोग अभ्मास यत होई । आत्भ धाभ प्राप्त तद कोई।।2।।

भान अऩभान अहॊकाय तथा भोह आहद त्मागकय औय कभ बोजन कयके ऐकान्त स्थान भें फैठकय सतनाभ (सुतथ शब्द) का स्भयण चचन्तन कये औय ध्मानमोगाभ्मास भें रग जावे तफ जाकय कोई आत्भधाभ (ननवाथणऩद) को प्राप्त होता है।

चौ0- वववेकाधीन कयहु कभप नाना । उध्र्वप रोकदहॊ सुयत ऩठाना।। आत्भ यभण यत सो वैयागी । सवपबूतदहॊ सभदृष्टानुयागी।।3।।

वववेक धाय कय साये कभथ कयो औय ऊऩय के रोकों की मात्रा भें सुनतथ को चढाओ। इस प्रकाय ननजात्भा भें ही यभण कयने वारा वह वैयागी सफ बूतों भें सभबाव देखने वारा आत्भ पे्रभी होता है।

चौ0- सफ जग प्रबु ववबूतत ववजाने । आत्भ बप्क्त यत ऩयभऩद ऩाने।। जर बरय घट प्जशब जरभॊह टेका । व्माप्त ईर्श त्मूॊ जीव प्रत्मेका।।4।।

सभस्त सॊसाय को प्रबु की ही ववबूनत जानना चाहहमे। इस प्रकाय आत्भबजतत रीन होने से ऩयभ ऩद प्राप्त होता है। तमोंकक जैसे जर से बया हुआ घडा जर भें यखा हो तो उसके फाहय औय बीतय जर ही जर होता है इसी प्रकाय वह ऩयब्रह्भ प्रत्मेक जीव भें फाहय औय बीतय व्माप्त है।

दो0- प्रबु आधश्रत सभदृष्टा जन रु्शधच सतनाभाधाय।

ईर्शानुग्रह वववेकक सो ऩावदहॊ ऩद अऺमाय।।204।।

132

जो प्रबु आचश्रत सभदृष्टा व्मजतत ऩववत्र सत नाभ आधाय है प्रबु की कृऩा से वह वववेकी अववनाशी ऩद ननवाथणऩद (अनाभी) को ऩा रेता है।

चौ0- कक सॊग्रह गय जग ऺम धन जौया । धतन सोम प्जन्ह सतनाभ फटौया।।

ठाभ सोई जग भॊह सुिकायी । सॊग्रह धन जॊह होम तुम्हायी।।1।।

महद सॊसाय भें नाशवान धन ऐकत्र ककमा तो तमा जोडा ? सच्चा धनन तो वह है जजसने सतनाभ की कभाई का धन इकट्ठा कय मरमा है। सॊसाय भें वही स्थान सुखदामी है जहाॉ ऩय तुम्हाया धन एकत्र है।

चौ0- कछुक भनुज ऐसो जग भाॉहीॊ । मर्श हेतु ऩुण्म दान कयाहीॊ।। चाहत सदा सो भान फडाई । कयत ददिावा धयभ कभाई।।2।।

कुछ भनुष्म सॊसाय भें ऐसे बी हैं जो मश के मरमे दान ऩुन्म कयत ेहैं। वे सदा भान फढाई चाहत ेहैं इसमरमे धभथ कभाई का हदखावा कयत ेहैं।

चौ0- तत प्रततपर मत ऩाकय प्रानी । प्रबु ऩुरुस्काय सो वॊतछत जानी।। सजग होई तनज ऩुण्म दयुावा । करय सुकभप नदहॊ रोक ददिावा।।3।।

उस ऩुन्म दान का पर महीॊ प्राप्त कयके अथाथत पर को मशरूऩ भें ऩाकय वह प्रबु द्वाया मभरने वारे ऩुरुस्काय से वॊचचत यह जाता है। इसमरमे सावधान यहकय अऩने ऩुन्मों को छुऩाकय (गुप्त) यतखे। सतकभथ को केवर हदखावा के मरमे न कये।

चौ0- ऐतत गुप्त यि आऩुनी दानु । फाभ न जातन कक करय कय दहानु।। रिदहॊ सकरकृतत प्रबु तुम्हायी । देंदहॊ प्रततपर मथा अनुसायी।।4।।

अऩना दान इतना गुप्त यखो कक दाॊमा हाथ बी न जान ऩामे कक फामें हाथ ने तमा दान ककमा है ? श्री हरय तुम्हाये सफ कभों को देखत ेहैं। औय उसी के अनुसाय पर देत ेहैं।

दो0- “होयाभ” धन्म सो जन अतत प्जन उय नाभ तनवास।

तनजात्भ यत ऩयभाथप करय होहदहॊ प्रबु भें फास।।205।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक वे भनुष्म धन्म हैं जजनके रृदम भें सतनाभ का वासा है तमोंकक वे ननजात्भा भें यभण कयत ेहुवे ऩयभाथथ कयत ेहैं उनका ऩयभेश्वय भें फासा होता है।

चौ0- कछु जन ववनती कयत ददिावा । कक नदहॊ जानदहॊ प्रबु सफ बावा।। ठाडड प्राथपना बवन जगावा । ताकक ततदह रखि सफ मर्श गावा।।1।।

133

कुछ रोग प्राथथना आहद का बी हदखावा कयत ेहैं बरा ऐसी तमा चीज है जजसके बाव को ऩयभेश्वय नहीॊ जानता है ? वे भनुष्म खड ेहोकय प्राथथना भें चचल्रा चचल्रा कय भजन्दय(बुवन) को जगात ेहैं, ताकक ऐसा देखकय सफ रोग उसका मश गान कयें।

चौ0- ततन्ह सफ प्रततपर ऺम मर्श द्वाया । सजग न करयअ ततष प्रकाया।। ध्मान कभाई कयैहु इकन्ता । अदृष्म ठाडड सफ रिदहॊ बगवन्ता।।2।।

उन सफ प्राथथनाओॊ का प्रनतपर उसके मशगान भें नष्ट हो जाता है। इसमरमे सावधान यहें इस प्रकाय कबी नहीॊ कयना चाहहमे।

चौ0- कक चाहना तुभ सो सफ जाने । सभम ऩयै सफ प्रफन्ध ऩठाने।। असकोउ जीव जगद भॊह नाहीॊ । जाऩय तादह दृप्ष्ट न जाहीॊ।।3।।

तुम्हें ककस वस्तु की चाहना है। वह ऩयभेश्वय सफ जानता है औय सभम आने ऩय वह साये प्रफॊध बेज देता है। ऐसा सॊसाय भें चयाचय कोई जीव जन्तु नहीॊ है जजस ऩय उसकी दृजष्ट नहीॊ जाती हो।

चौ0- ईर्श न्माम कबु त्रुदट न होई । न्मामारम मदवऩ नदहॊ कोई।। सकर चयाचय को प्रततऩारा । सो सफ कार सजग यिवारा।।4।।

ईश्वय के न्माम भें कबी कोई गरती नहीॊ होती मद्मवऩ उसकी कहीॊ बी कोई न्मामारम (अदारत) नहीॊ रगती है। वह सभस्त चयाचय प्राखणमों का ऩारनहाया है औय सदैव सतकथ यखवारा है।

दो0- “होयाभ” सच्चाई न छुऩै झूॊठे छर की आड। इक बफनु प्रगट होत है र्शतऩतप असत्म अिाड।।206।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक सच्चाई कबी झूठीॊ छर की आड भें सदा छुऩी नहीॊ यहती वह एक हदन झूठ के सौ ऩयदे उखाड कय बी प्रगट होती है।

दो0- असॊख्म यतन बरय देहऩुरय छुऩै गुप्त फहु बॊडाय।

अन्तरय कभाई नाभ धन ऩायखि उतयै ऩाय।।207।।

मह भनुष्म शयीय अगखणत यत्नों से बया हुआ है औय इसभें अगखणत गुप्त बॊडाये बये हुवे हैं। ऩयन्तु अन्दय की कभाई (आन्तरयक रोक मात्रा) वारा तथा सत्म नाभ धन ऩायखी (ऩयखने वारा) ही इसका ऩाय ऩाता है।

छ0- र्शाभकॊ ज बौ ऩाय घाट द्ववतीमोप्न्वॊस साय सुन्न अन्तरय फतन। चारय चौके फहत्तय नार कोठरय गुप्त ऩॉच ठाभ भागप जतन।।

134

ततउ बुॊवयगुहा छ् बत्रकुदट गुप्त फाटी भुकाभ सोड्षधतन।

“होयाभ” अगखणत यवव सरय चदढ मात्रा अनाशभ सुतपभतन।।21।। तीसये नतर भ्रुभध्म केन्द्र के ऩाय फाईस सुन्नें अन्दय (आन्तरयऺ भें) फनी हुई है चाय चौके फहत्तय नार कोठरयमाॉ तथा भागथ भें ऩाॉच गुप्त भुकाभ फने हैं तीन बुॊवय गुपा छ् बत्रकुटी गुप्त हैं तथा सोरह सुत् (रोकनामक धनी) जस्थत हैं। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक आन्तरयऺ भें अगखणत सूमथ औय फहुत सी नहदमाॉ हैं जजनसे गुजयत ेहुवे मह सुनतथ अनाभी धाभ की मात्रा कयती है।

छ0- जनभ रेत तनरेऩ स्तीत्व से सफ शर्शरु्श सवपदा भुक्त अववकाय। जग शर्शऺक तनज कुर सॊस्कृतत की छाऩ चढावत धभप आधाय।।

दहन्द ुकहत तनत याभ नाभ जऩ भौशभन अल्राह ईसु ईसाय।

“होयाभ” कहै जगत सफ छशरमा कोइ न कदह तनज स्तीत्व तनहाय।।22।।

फच्चा अऩने भूर स्तीत्व (ब्रह्भज्मोनत) से सवथदा भुतत अववकायी रूऩ से जनभ रेता है। जगत भें मशऺक (भाता वऩता गुरु) उस ऩय अऩने कुर की सॊस्कृनत की धभथ धाय ऩय छाऩ चढा देत ेहैं। हहन्द ुकहता है कक तू याभ नाभ जऩ, भुसरभान कहता है कक अल्राह जऩ औय ईसाई ईशा को बजने को कहता है। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक मह साया जगत ही छमरमा है। तमोंकक कोई बी उसे (फच्च ेको) मह नहीॊ सभझाता कक तू अऩना स्तीत्व खोज (भूर स्रोत की प्राजप्त कय)।

छ0- जफ रधग जीव नदहॊ जानत है तनज स्तीत्व ज्मोतत स्वरूऩन की।

तफ रधग िोजत आनन्द फाहय यभण कयत तनज इप्न्िम भन की।।

भ्रभत कपयत भूर नदहॊ ऩावत िुरत न ग्रप्न्थ ऻानन की।

“होयाभ” स्तीत्व तनजात्भ ज्मोतत शभरे न यटन अवतायन की।।23।। जफ तक जीव अऩने भूर स्तीत्व ज्मोनत स्वरूऩ को नहीॊ जानता तफ तक आनन्द की खोज वाह्म जगत भें खोजता है औय अऩनी भन इजन्द्रमों के सुख भें यभण कयता है। इस प्रकाय बभथग्रस्त कपयता है अऩना भूर (ब्रह्भज्मोनत) अथाथत ननवाणथ ऩद प्राप्त नहीॊ होता श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक ननजात्भ ज्मोनत स्तीत्व ऩीय ऩैगम्फयों के नाभ की यटन रगाने से नहीॊ मभरता।

छ0- ऺण बॊगुय जीवन का फुदफुट कफ पूट चरे नदहॊ चते चरी। जड को त्माग ऊऩय उदठ देिे तन भाॊहीॊ ऩयभ ज्मोत जरी।।

135

फाहरय शसशभट अन्तरय ऩट िोरउ धभापधभप की त्माग गरी।

“होयाभ”देव तुरयमातीत रिहु स्तीत्व तनजात्भ खिरी करी।।24।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक इस ऺखणक जीवन का फुरफुरा न जाने कफ पूट जामे कुछ ऩता नहीॊ चरता इसमरमे भनुष्म को चाहहमे कक वह जड ऩदाथों की ऩूजा त्माग कय ऊऩय उठ कय देखे उसके देह भें ही ऩूणथ ब्रह्भ ऩयभेश्वय की ऩयभ ज्मोनत जर यही है। फाहय से मसमभट कय अन्दय का ऩदाथ खोर दे औय धभथ अधभथ का चतकय छोड दे। कपय (ध्मानस्थ होकय) तुरयमातीत सभाचधस्थ जस्थनत भें जाकय देखे अऩनी ननजात्भा के स्तीत्व की करी (ज्मोनत धाय) तयेे ही बीतय खखर यही है।

दो0- सकर धभपग्रन्थ ऩठन कये नाना देवत्व ध्माम।

बफना तनजात्भ ऻान दयस तनयथप भोऺ नदहॊ ऩाम।।208।।

चाहे साये धभथ शास्त्र ग्रन्थों को ऩढ रें मा साये देवताओॊ की ऩूजा ध्मान कयें बफना ननजात्भ ववऻान साऺात्काय के (अऩनी आत्भा को सववऻान जाने बफना) सफ व्मथथ है औय कबी बी ननवाथण ऩद (हहन्दतु्व ऩद) ननवाथण धाभ प्राप्त नहीॊ होता।

चौ0- िोजत भोऺ जड ऩाहन ऩूजै । कोउ तीथप व्रत कभपमऻ रूजै।। कोउ भोऺ दहतु बस्भ यभावा । कोऊ जीव हत फशर चढावा।।1।।

उस ननवाथण (भोऺ ऩद) धाभ की कोई जड ऩत्थय की ऩूजा भें खोज कयता है कोई तीथथ व्रत कीतथन आहद भें रगा होता है कोई भोऺ के मरमे शयीय ऩय बस्भ यभाता है तो कोई ऩय जीवों की फमर चढाता है।

चौ0- कोऊ कहे हरय फसदहॊ कैरासा । कोउ फैकुन्ठ रिदहॊ अववनासा।। कोऊ बूत वऩर्शाच व्रत गाई । कछु तरू जर अध्र्मप भोऺ भनाई।।2।।

कोई कहता है ऩयभेश्वय काफा कैराश भें है कोई उस अववनाशी प्रबु को फैकुन्ठ धाभ भें देखता है। कोई बूत पे्रतों के व्रत उऩवास भें रगा हुआ है तो कोई अऩने वऩता कुरधभथ भें वृऺ ों ऩय जर का अध्र्मथ चढाकय ही भोऺ भनाता है।

चौ0- सो सफ नदहॊ भोऺ कय साधा । कफहुॉ न कटदहॊ कार छर व्माधा।। भूर ऻान बफनु स्वायथी नाना । बटकत कपयत भठेर्श भ्रभाना।।3।।

136

मे सफ भोऺ के साधन नहीॊ हैं इनसे कबी बी कार छर (आवागभन) की ब्माधा नहीॊ मभटती। सफ नाना प्रकाय से अऻानता भें स्वाथी फनकय सॊसाय भें ढोंगी भठाधीश रोरुऩ गद्दीधायी भहात्भाओॊ को बटकामे हुवे बटकत ेकपयत ेहैं।

चौ0- ऩयभधयभ अद्वैत रिाई । सुयत उठाम ततदह देस ऩठाई।। जीवदहॊ जेइ पे्रभ नदहॊ दावा । सो नदहॊ धयभ अधभप कहावा।।4।।

ऩयभ धभथ वही है जो (जीव को उसका) भूर स्तीत्व हदखाता है औय सुनतथ (जीवात्भा को कार देस से) उठाकय उसके देस ऩूणथ ब्रह्भधाभ भें बेज देता है। इस प्रकाय जो जीवों के प्रनत पे्रभ प्रदान नहीॊ कयता वह धभथ नहीॊ है वह तो अधभथ कहराता है।

दो0- जीवदहॊ भूर स्तीत्व स्रोत तनयवाणधाभ अिॊड।

“होयाभ” सोम दहन्दतु्व ऩद ऩावहु तप्ज ऩािॊड।।209।। जीवात्भा का ननज भूर स्तीत्व स्रोत अखॊड ननवाथण धाभ है श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक वही हहन्दतु्व ऩद है जजसे छर ऩाखॊड त्माग कय प्राप्त कयना चाहहमे।

दो0- जफ जफ घौय अधभप फढै ववघटदहॊ धभप सत्मसाय।

तफ तफ प्स्थतत भमापदा दहतु प्रगटत जग अवताय।।210।।

जफ जफ घौय ऩाऩ फढता है धभथ का सत्मसाय घट जाता है तफ तफ उसकी जस्थकक भमाथदा स्थावऩत कयने के मरमे ही अवताय सॊसाय भें आत ेहैं।

दो0- सतमुग भें हरयश्चन्ि बमे त्रेता भें श्रीयाभ।

दवुाऩुय कृष्ण उफारयमाॉ दहदतु्व बान “होयाभ”।।211।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक सतमुग भें सत्मवादी हरयश्चन्द्र हुवे त्रेता भें श्री याभ हुवे औय द्वाऩय भें श्रीकृष्ण हुवे जजन्होने हहन्दतु्व ऩद (ननवाथण धाभ) की वयीमता को प्रगट ककमा।

दो0- मदा कदा सतरोक से भतृिॊड जीव दहताथप।

“होयाभ” आदहॊ ऩयभसॊत देदहॊ सन्देर्श मथाथप।।212।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक कबी कबी सतरोक से कारदेश के जीवों के हहत के मरमे ऩयभसॊत आत ेहैं औय वहाॉ का मथाथथ सन्देशा देत ेहैं।

दो0- “होयाभ” अनाशभऩुय फसे देह कार के देस। ज्मोतत ज्मोत भेरा बमा क्मा घय क्मा ऩयदेस।।213।।

137

श्री होयाभदेव जी कहत ेहै कक भैं तो अनाभीधाभ भें फसा हुआ हूॉ औय भेयी देह कार के देश भें है ऩयन्तु ज्मोनत ज्मोत (आत्भा ऩयभात्भा रम) का एक भेरा हो गमा है अफ भुझ ेतमा घय तमा ऩयदेश है।

दो0- सतऩुरुष की सॊदेर्श दॊऊ करय सुयतत रम ब्रह्भधाभ।

जे ववधध सुयत तनजऩद गहे ता ववधध यत “होयाभ”।।214।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक भें सतऩुरुष का सॊदेश देता हूॉ औय सुनतथ को ब्रह्भ धाभ (ननवाथण ऩद) भें रम कयता हूॉ तथा जजस प्रकाय बी जीव अऩने ननजधाभ (ननवाथण धाभ) को प्राप्त कये उसी ववचध से सफके साथ रगा हुआ हूॉ।

चौ0- सुनहु शर्शष्म सफ भभ उऩदेरू्श । ऩयदहत हीन बगतत जतन केरू्श।। भाभ र्शयण अरू यठ हरयनाभा । ऩयदहत सभ नदहॊ इह सुिधाभा।।1।।

सबी मशष्मों भेया उऩदेश सुनो ऩयहहत यहहत बजतत ऐसी है जैसे सेवय का पूर (सुन्दय ऩयन्तु सुगॊध हीन) है। भेयी शयण औय हरय नाभ की यट रगाने का सुख बी इस रोक के ऩयभाथथ के सभान नहीॊ है।

चौ0- धभप ऩुनीत जो पे्रभ प्रदावा । घट घट भहॊ सुयत रिावा।। जहॉ छुआ छूत ऊॉ च नीचु फाढै । धयभ नाभ तॊह कशरि शरसाढै।।2।।

सॊसाय का वही धभथ ऩथ (भत) ऩववत्र है जो पे्रभ ऩैदा कयता है तथा घट घट भें अऩनी आत्भा की अनुबूनत कयाता है। जजस धभथ भत भें छुआछूत तथा उच्च नीचता का फोर फारा है उसभें तो धभथ के नाभ ऩय करॊक रगा हुआ है।

चौ0- ब्राह्भण जो सो ब्रह्भभम ऻानी । जात ऩात मत गण्म न भानी।।

जाकय दहम जगदीर्श सभावा । ऩयघट सो नदहॊ सुऩन सतावा।।3।।

ब्राह्भण वही है जो ब्रह्भदशी ब्रह्भऻानी है जानत ऩानत की इसभें कोई चगनती भान्म नहीॊ है। जजसके रृदम भें ऩयभेश्वय सभामा है वह स्वऩने भें बी ककसी को नहीॊ सता सकता।

चौ0- शर्शष्म सदाचाय करय सहामकाया । असॊगबाव गमेऊ बव ऩाया।। जे ववधध होम तनजात्भ फाया । अवसय नयतनु गहु तत धाया।।4।।

मशष्टाचाय तथा सदाचाय को सहामक कयके तथा ववयजततबाव से सॊसाय से ऩाय हो जाओॊ। जजस प्रकाय बी अऩनी आत्भा का उद्धाय हो सके भानवदेह का सुअवसय सभझकय उसी साधन को अऩना रेना चाहहमे।

दो0- “होयाभ” स्वमॊ तनज भीत नय स्वभेव अरय भहान।

138

इप्न्िम सॊमभ सुि उऩजदहॊ अतनग्रह ववऩद ववतान।।215।।

भनुष्म स्वमॊ ही अऩना मभत्र है औय स्वमॊ ही अऩना शत्रु है। इजन्द्रमों ऩय सॊमभ कयने से सफ सुख परत ेहैं असॊमभ के ववस्ताय से ववऩजत्तमाॉ आती है।

चौ0- ववनम अधभप की नास कयेदहॊ । ऩयाक्रभ यत अनथप न ऩयेदहॊ।।

सदाचाय सफ कुरऺण िावा । ऺभा सवपदा क्रोध नसावा।।1।।

ववनम अधभथ का नाश कयती है जहाॉ ऩयाक्रभ है वहाॉ कबी अनथथ नहीॊ होता, ऺभा सदा क्रोध को खाती है औय सदाचाय सभस्त कुरऺणों का घातक है।

चौ0- इकधभप गय आनदह घाती । धभप नहीॊ सौ अधभप उगाती।।

जीववत सो जो मर्शस्वी ऻानी । तनॊदावान जग भतृक सभानी।।2।।

महद एक धभथ दसूये धभथ का घाती है तो वह धभथ नहीॊ वह तो अधभथ को ऩैदा कयने वारा है सॊसाय भें जीववत वही है जो मशस्वी तथा ऻानी है ननॊदनीम भानव तो सॊसाय भें भतृक के सभान है।

चौ0- कामा ऺेत्र भन कृषक बायी । अघ ऩुन्न फीज सषृ्टी सायी।। जो जस फोई तस पर ऩावा । कयभ जार सफ जीव भ्रभावा।।3।।

मह देह ऺेत्र है भन फडा बायी कृषक है ऩाऩ ऩुन्म रूऩ फीज से मह सॊसाय प्रगट होता है। जजसने जैसा फोमा वैसा ही पर ऩामा इस प्रकाय साये जीव भ्रभामे हुवे हैं। इस प्रकाय कभथ जार भें सबी जीव भ्रमभत हैं।

चौ0- क्रोध र्शाप्न्त दयुजन सज्जनाई । कृऩणता भतत असत सच्चाई।।

काभ वववेक भूढ चतुयाही । कयहु ववजम अन्म साधन नाहीॊ।।4।।

क्रोध को शाजन्त से, दषु्ट को साधुता से, कृऩणता को ऻान से असत्म को सत्म से, काभ को वववेक से तथा भूखथ को चतुयाई से ववजम प्राप्त कयें। इसके अनतरयतत दसूया कोई साधन नहीॊ है।

दो0- सुि भें दिु दिु भाहीॊ सुि ऩयस्ऩय यहे सभाम।।

इक आवत इक जात है सभम सफ चक्र चराम।।216।।

सुख भें दखु औय दखु भें सुख ऩयस्ऩय सभा यहे हैं। इक आता है एक जाता है मह सफ चक्र सभम चराता है।

दो0- धनी तनयोगी शर्शष्टतीम सुऩुत्र ववधा मर्शबाव।।

मे षट् सुि भनुरोक भॊह फड ेबाग्म नय ऩाव।।217।।

139

धनी होना, स्वस्थता, सुरऺणा स्त्री, आऻाकायी ऩुत्र, ववद्मा औय मशबाव मे छ् सुख भनुष्म रोक भें फड ेबाग्मशारी व्मजतत ऩात ेहैं।

चौ0- ऺीय नीय सभ भीत तनयारा । यहदह भीत सॊग ववऩददहॊ कारा।। स्भवृद्धकार दजुपन बमे भीता । भूढ भीतसु अभीत सुबीता।।1।।

वह मभत्र दधू तथा जर के सभान ननयारा है जो ववऩजत्त कार भें अऩने मभत्र के सॊग यहता है। खुशहारी भें तो दषु्ट जन बी मभत्र फन जाता है। औय भूखथ मभत्र से तो शत्रु बी अच्छा है।

चौ0- ऩयोऺ हतक सम्भुि वप्रमवादी । तजहु तादह जतन ऺीय ववषादी।। तजैउ दजुपन मदवऩ ववद्वाना । ककॊ भ न बमॊकय नाग भखणभाना।।2।।

जो व्मजतत साभने तो वप्रम फोरने वारा है औय ऩीछे घातक फना होता है उसे जहय मुतत अभतृ जानकय त्माग दो। चाहे वह ववद्वान ही तमों न हो दषु्ट जन को त्माग दो। तमोंकक तमा भणीवारा नाग बमॊकय नहीॊ होता ?

चौ0- ववषददहॊ धैमप ऺभा सुिकारा । सदशस वाकऩटु ऩौरूष मुद्धारा।। मर्शदहॊ रूधच धभपर्शास्त्र सनही । सॊतजनन के सुबाउ फसेहीॊ।।3।।

ववऩजत्त भें धैमथ सुख भें ऺभा सबा भें वतता मुद्ध भें ऩौरूष (ऩयाक्रभ) मश की रूचच तथा धभथशास्त्रों भें अनुयाग मे रऺण फुवद्धभान व्मजततमों भें स्वबाववक ही फसत ेहैं।

चौ0- कथनी कयनी जु अन्तय बाया । रोक ऩयरोक न कहीॊ सुिाया।। फक अरू हॊस फसत इक तारा । फक गहै भीन हॊस भुततमारा।।4।।

जजनकी कथनी तथा कयनी भें बायी अन्तय है उनको रोक ऩयरोक भें कहीॊ बी सुख नहीॊ है। फगुरा औय हॊस एक तार ऩय यहत ेहैं कपय बी फगुरा भछरी खाता है औय हॊस भोती ही खाता है।

दो0- “होयाभ” जहै नदह तनज फॊधु न जीवव साधन कोम।

न मर्श धन ववद्मा सॊगी को र्शीघ्र ठाभ तज सोम।।218।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक जहाॉ कोई अऩना फॊधु फाॊधव न हो कोई जीववका का साधन न हो न मश न धन ववद्मा न कोई सॊगी साथी हो उस स्थान को अनत शीघ्र त्माग देना चाहहमे।

चौ0- ऩयभ ऩववत्र गहृस्थाश्रभ जाना । तनज गहृ सवपदा तीथप सभाना।। शर्शष्टबामाप गहृस्थ सुिायी । बामापहीन गहृ वन तुल्म बायी।।1।।

140

गहृस्थाश्रभ को ऩयभ ऩववत्र जाना गमा है औय अऩना घय सदा तीथथ के सभान होता है। सुरऺणा स्त्री साथी हो तो गहृस्थ सुखभम होता है। बामाथहीन घय वन के सभान है।

चौ0- इकभत सन्तुष्ट जहाॊ नय नायी । सुि सम्भतत तहॉ टयत न टायी।। सुता वधु प्जस गहृ दिु बोगदहॊ । नष्मदहॊ र्शीघ्र सो गहृ कष मोगदहॊ।।2।। जजस घय भें ऩयस्ऩय नय नायी (ऩनत ऩजत्न) एक दसूये से सन्तुष्ट तथा एक भत हैं वहाॉ से सुख, (ऐश्वमथ सुफुवद्ध) टारे से बी न टरती। औय जजस घय भें फहु फेहटमाॉ कष्ट बोगती है (मातनाऐॊ सहती हैं) वह घय करह के मोग से शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।

चौ0- अथापतुरय को गुरू फॊधु न कोई । काभातुय बम राज न होई।। दरयिी सोम जो तषृ्णा गाभी । धनी धीय प्जन्ह तोष सभाभी।।3।।

धन के रारची का कोई गुरु मा फॊधु नहीॊ होता। काभी ऩुरुष को कोई बम राज शभथ नहीॊ होती। दरयद्री वही है जजसको तषृ्णा उठती है औय जजनके रृदम भें सॊतोष सभामा है वही धनी तथा ऻानी है।

चौ0- तनज प्रततकूर दिुद व्मवहाया । ऩयसॊग सो न कयेहु प्रहाया।। जे कभप जगत सवप दहतकायी । कयेहु र्शीघ्र न ववरम्फ ववचायी।।4।।

जो व्मवहाय अऩने मरमे दखुदामी व प्रनतकूर है उसका दसूयों के साथ प्रहाय न कयो। जो कभथ सॊसाय भें सफके हहत भें है उसे शीघ्र कय डारो उसभें ववरम्फ नहीॊ ववचायना चाहहमे।

दो0- त्रेता भें यावण फढा द्वाऩय दैत्म कॊ सयाम ।

कशरमुग दैत्म दहेज है सफ सुि चैन हताम।।219।।

त्रेता मुग भें यावण असुय फढा था द्वाऩय मुग भें कॊ सयाज दैत्म था औय कमरमुग का दैत्म दहेज है जजसने सफके सुख चैन नष्ट कय यखे हैं।

दो0- आग रगी सॊसाय भें जर जर भयती नारय।

अफरा सॊग अनथप दहेज चहुॉ ददशस हा हाकारय।।220।।

इस सॊसाय भें दहेज की आग रगी हुई है जस्त्रमाॉ जर जर कय भय यहीॊ है। ननफथर ननदोष नायी के साथ दहेज एक अन्माम है। इससे चायों तयप हा हाकाय भचा हुआ है।

दो0- दहेज आड जो दषु्ट जन अफरा देत हताम।

141

सो जन यौयव नयक ऩरय तथा घौय कष्ट ऩाम।।221।।

दहेज की आड भें जो दषु्ट जन अफरा स्त्री का वध कयत ेहैं मा उसे खुद कयना ऩडता है वे दषु्ट जन (मभयाज के न्मामानुसाय) यौयव नकथ भें डार हदमे जात ेहैं कपय अफरा जैसी ही घोय मातना बोगत ेहैं।

दो0- फशरक फशरद सूदि कजुय नारय दभन हत्माय।

बटकत तफ रधग पे्रत फतन जफ रधग न दॊशसत उद्धाय।।222।।

फमर की बेंट देने वारा तथा फमर चढाने वारा, सूदखोय तथा कॊ जूस (जो धनन होकय बी दाता नहहॊ) औय अफरा जस्त्रमों का दभन कयने वारा हत्माया उतने ही हदन तक पे्रत मोननमों भें बटकता है जजतने हदन तक दॊमसत (फमर चढा हुआ मा अकार भतृ्मु का मशकाय ककमा हुआ जीव) का उद्धाय नहीॊ हो जाता।

छ0- धतन होम दाता न होइ सभथप फतन ऺभा न रावदहॊ। न दीनन दमा बुिन्ह बोज्म अनाथदहॊ दान न दावदहॊ।।

न ऻातनन बाव न वप्रम बाषी तनर्शदीन अहॊ सभावदहॊ।

“होयाभ”देव बुववबाय फतन सो घौय नयक गतत ऩावदहॊ।।25।। जो भनुष्म धनवान है। ऩयन्तु दाता नहीॊ है, सभथथवान होकय बी ऺभा नहीॊ राता न गयीफों ऩय दमा कयता है, न बूखों को बोजन देता है, अनाथों को दान नहीॊ देता न ऻाननमों का सत्काय कयता है, न वप्रम बाषी है, हदन यात अहॊकाय भें सभामा यहता है श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक वह इस ऩथृ्वी ऩय बाय रूऩ फनकय अनत घोय नकथ की गनत (मातनाऐॊ) को प्राप्त होता है।

दो0- ववर्शार जरधध सेतु फॊध रॊक जरय यावन नास।

सो सफ बा सत्म धभप पर आत्भ फर प्रमास।।223।।

ववशार सभुद्र को ऩैदर राॊघना रॊकेश (यावण) का नास तथा रॊका ऩय ववजम कयना (मह याभ की साधना औय फर द्वाया मसद्ध नहीॊ हुआ फजल्क) मह उनके आत्भफर के प्रमत्न का पर था। मह सत्म औय अधभथ के ऩरयणाभ स्वरूऩ हुआ था।

चौ0- वनिॊड फीच ववटऩ फहु फाढै । वाताघात यतछत सफ ठाढै।। तणृ सभूह फयिा सफ योका । इकत्व अिण्ड तॊह नदहॊ रयऩु भौंका।।1।।

142

वनखॊड भें फहुत फढे हुवे वृऺ सभूह तूपानों भें बी सुयक्षऺत खड ेयहत ेहै तथा नतनकों का सभूह सायी वषाथ को योक रेता है इसी प्रकाय जहाॉ एकता औय अखॊडता होती है वहाॉ शत्रु को अवसय नहीॊ मभरता।

चौ0- नारय चरयत्र अरू बाग्म भनुज को । जानत नाहीॊ देव दनुज को।। गयफ न यिु धन जन मौवन की । तनभेषदहॊ िाज्मा कार सफन की।।2।। नायी के चरयत्र औय भनुष्म के बाग्म को देव दैत्म कोई नहीॊ जान सकता। इसमरमे धन औय जवानी तथा जन फर का कबी गवथ नहीॊ कयना चाहहमे तमोंकक कार सफको ऩर बय भें नष्ट कय डारता है।

चौ0- तनशर्शददन मभऩुय जावदहॊ जीवा । अचयज र्शेष चहदहॊ प्जमु कीवा।। सफ ववधध कार बम बफसयाई । बमउ ऩाऩ यत नाभ तजाई।।3।।

हदन यात प्राणी मभरोक भें जा यहे हैं कपय बी आश्चमथ है कक शेष प्राणी रम्फे सभम तक जस्थय जीना चाहत ेहैं। इसमरमे ही जीव कार का बम बूरकय सत्म नाभ (साय शब्द) को त्माग कय ऩाऩों भें यत है।

चौ0- नायी भादहॊ सीम कय फासा । ऩुरुषदहॊ होम याभ सभासा।। तद जग ववऩद कॊ ह नदहॊ काऊॊ । जगद जीमन की तनतत सुनाऊॊ ।।4।।

महद नारय भें सीता का फासा हो औय ऩुरुष भें याभ का ननवास हो तो ककसी को कहीॊ कोई ववऩजत्त नहीॊ होगी भैं तुभको मह सॊसाय भें जीने की नीनत सुनाता हूॉ।

दो0- सषृ्टी ऩूवप आत्भा सकर ववरमदहॊ ब्रह्भ स्वरूऩ।

तनज स्तीत्व सो बफछुरय मत बटकत तघरय बवकूऩ।।224।।

सजृष्ट की यचना से ऩहरे सफ आत्भाऐॊ ननजात्भ ज्मोनत ऩूणथ ब्रह्भ (भहा ज्मोनत ऩुॉज) ऩयभेश्वय भें ववरीन यहती है जो अऩने उस भूर स्तीत्व से बफछुड कय महाॉ (कार के देश) सॊसाय रूऩी कुऐॊ भें नघयी हुई बटकती है।

दो0- ऋवष भुतन मोगी सॊत ववयक्त देवव देव अवताय।

“होयाभ” सकर जीवु जग चढत कार की जाय।।225।। ऋवष भुनन मोगी सन्त वैयागी देवी, देवता अवताय तथा सॊसाय के सबी जीव कार की दाढ भें चढे हुवे हैं।

चौ0- धन्म सुयत जो नाभ आधाया । अन्तरय शसशभट गहेदहॊ सचधाया।। देत सकर सॊत एदह उऩदेसा । गदहॊ र्शब्दधाय जाम तनज देसा।।1।।

143

वे जीवात्भा धन्म है जो सतनाभ आधाय हैं औय अऩने अन्दय मसमभट कय अन्तरयध्मान मात्रा यत होकय सचखॊड की धाया को ग्रहण कयती है। सबी सन्तों का मही उऩदेश है कक साय शब्द को ग्रहण कयके अऩने ननज धाभ अनाभी रोक (हहन्दतु्व ऩद) को गभन कयें।

चौ0- जफ रधग सुयत सतनाभ न ऩावा । तफ रधग कयभ काण्ड बयभावा।। जफ रधग िुरत न अन्तरय नमना । ज्मोतत न प्रगट कार छर र्शमना।।2।। जफ तक सुनतथ (रूह) सतनाभ को नहीॊ प्राप्त कयती तफ तक कभथकाण्ड भें ही बटकती यहती है। औय जफ तक तीसया आन्तरयक नेत्र नहीॊ खुरता तफ तक वह ज्मोनत प्रगट नहीॊ होती। औय जीव कार के छर भें ही पॊ सता यहेगा।

चौ0- िॊड ब्रह्भाण्ड रोक रोकान्तय । ब्रह्भ ऩायब्रह्भ सफ घट अन्दय।।

जफ रधग सुयत ऩकरय सचधाया । चढे न नब भॊड नादहॊ उफाया।।

ऩायिी सदगुरु की र्शयणाई । सकर बेद भायग िुर जाई।।3।।

खॊड ब्रह्भाण्ड रोक रोकोन्तय ब्रह्भ ऩायब्रह्भ सफ इस देह के अन्दय हैं। जफ तक सुनतथ अगभ रोक की धाया ऩकड कय नब भॊडरों भें नहीॊ चढती तफ तक इसका उद्धाय नहीॊ है। ऩायखी (तत्वदशी) सदगुरु की शयण भें इस भायग का साया बेद खुर जाता है।

चौ0- नैनन ऩाछर ऩट धरय कारा । भ्रभ डारय सफु फादहय तनकारा।। फाहय सुयत नऊ दय उरूझाई । दसभ द्वाय भग फॊद कयाई।।4।।

कार ननयॊजन ने जीवों की आॉखों के ऩीछे ऩदाथ कयके सफको भ्रभ छर से फाहय ननकार हदमा है औय फाहय कयके सुनतथ को नौ द्वायों के जार भें उरझा हदमा औय दसवें गुप्त द्वाय को गुप्त रूऩ से फॊद कय हदमा है।

दो0- “होयाभ” बत्रगुखण ठाभ तप्ज कय चौथे ऩद ध्मान। ज्मोतत ज्मोत भेरा तहाॉ बफन्द ुभॊह शसॊधु शभरान।।226।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक बत्रगुणी ठाभ (वऩ ॊड अॊड ब्रह्भाण्ड) को त्माग (ऊऩय उठा) कय चौथा ऩद (ननवाथण धाभ, अनाभी रोक, सचखॊड, हहन्दतु्व ऩद, कैवल्म) अथाथत दमार देस का ध्मान कयना चाहहमे वहाॉ आत्भ ऩयभात्भा ज्मोनत ज्मोत का एक भेरा है जो फून्द (आत्भा) का ऩयभात्भा रूऩी सागय भें मभरान है।

दो0- सहज सभाधधस्थ अगभ ऩथ गहहु र्शब्द की डोय।

144

उरटी धाय सुयतत चढै ऩयभ ज्मोतत की ओय।।227।।

याजमोग आधाय से सहज सभाचधस्थ ध्मानावस्था भें रग कय अगभ ऩॊथ के मरमे सतनाभ की डौय ऩकडनी चाहहमे। कपय उरटी धाया (नीच ेसे ऊऩय को) सुनतथ को ऩयभ ज्मोनत (ननजात्भ भूर स्रोत) की ओय को चढावे।

दो0- सतगुय की र्शयणी गहै अरि ऩुरुष का ध्मान।

“होयाभ” वऩॊड ब्रह्भाण्ड तज चौथे ऩद तनवापन।।228।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक अऩने सतगुरु की शयणी ग्रहण कयके अरख ननयॊजन (अकार ऩुरुष का ध्मान कये कपय भतृ रोक, स्वगथ रोक औय देव रोक) सफको त्माग कय चौथे ऩद (ननवाथण देस) ऩहुॉचकय भोऺ होता है।

चौ0- सभथप न ततथपव्रत मऻ दाना । कयदहॊ सुयत सचिॊड प्रस्थाना।।

ऩयभतत्व दतुतऩथ सतनाभा । होदहॊ सुयत ऩाय कार नाभा।।1।।

जऩ तऩ तीथथ व्रत दान आहद की इतनी साभथथ नहीॊ है जो सुनतथ को वाऩस सचखॊड भें प्रस्थान कय दे। भूर तत्व ज्मोनत ऩॊथ तथा साय शब्द सतनाभ है जजसके द्वाया सुनतथ कार देस से ऩाय हो जाती है।

चौ0- अऩनो याभ जगत से न्माया । सफ ववधध कहन सुनन से न्माया।। ताही फर जर थर नब थाॊऩें । कार भहाकार सुत् सफ काॊऩें।।2।।

अऩना याभ तो जगत से न्माया (ननयाकाय भहा ज्मोनत स्वरूऩ ननयारा) ही है उसी के फर से जर थर आकाश हटके हुवे हैं। उसीसे कार भहाकार आहद (सगुण ननगुथण) सोरह सुत् (धनन) सफ काॊऩत ेहैं।

चौ0- देवी देव धनी अवताया धयदह जगत ततदह फर धाया।। अनन्त ब्रह्भाण्ड यवव र्शशर्श धायक । सवापधाय सो जग उद्धायक।।3।।

सॊसाय के सभस्त देवी देवता रोक धनन औय अवताय, उसी के फर से सॊसाय को सम्बारत ेहैं। (अथाथत सबी अऩने ऺेत्र भें उसी की आऻानुसाय कामथ भें रगे हुवे हैं) अनन्त ब्रह्भाण्ड सूमों चन्द्रभाओॊ को धायण कयने वारा वह सवाथधाय ऩयभेश्वय ही जगत का उद्धाय कयने वारा है।

चौ0- सतगुय सो जौ अरि रिावे । देम सभाधध ब्रह्भनेत्र जगावें।। शर्शष्म ज्मोतत ऩयभ ज्मोत शभरावा । अस गुरु शर्शष्म बफयर कोउ ऩावा।।4।। सदगुय ऩूया वही है जो मशष्मों को अरख को हदखावे औय उसको सभाचध अवस्था देकय ब्रह्भनेत्र को जगा देंवें। मशष्म की आत्भ ज्मोनत को (कार देस से

145

उठाकय सचखॊड रे जाकय) भूर ऩयभ ज्मोनत स्वरूऩ ऩयभेश्वय भें मभरा दे। ऐसा तत्वदशी गुरु ककसी ववयरे मशष्म को ही प्राप्त होता है।

दो0- तनवापण ऩधथक को चादहमे कये ऩाठ ब्रह्भ ऻान।

गुरु र्शयण यहै ध्मानयत तज कभापकभप परान।।229।।

ननवाथण मात्री को चाहहमे कक वह इस भहाकाव्म ब्रह्भऻान का ननत्म ऩाठ कये औय कभथ अकभथ पर का त्माग कयके गुरुदेव की शयण भें ननजात्भ ज्मोनत ध्मान भें रीन यहे।

दो0- तनत्म कये जो ध्मान ऩठन अभयकथा ववऻान।

ब्रह्भमात्री ऩयभहॊस सो ब्रह्भरम ब्रह्भ ऩयामन।।230।।

जो भनुष्म उस अभयकथा के ववऻान को ऩढकय ननत्म ध्मान मोग भें यभण कयता है वह ऩयभहॊस ब्रह्भ मात्री ब्रह्भ को सभवऩथत हुआ ब्रह्भ भें ही रम हो जाता है।

चौ0- तनज सतगुरु हौं ऩयभ आबायी । करूॉ प्रणाभ भो ऩततत उफायी।। कार सों छीन्ही सुयतत डौयी । गगन चढाम अगभ ऩद जौयी।।1।।

भैं अच्छे सतगुरु देव (श्री स्वाभी याभानन्द सत्माथी जी ऩयभहॊस भहायाज) का फडा आबायी हूॉ भैं उनको प्रणाभ कयता हूॉ वे भुझ ऩनतत का उद्धाय कयने वारे हैं। उन्होने भेयी सुनतथ की डौय कार से छीनकय नब भॊडरों भें चढकय ऩूणथ ऩयभहॊस ऩद हहन्दतु्वधाभ अगम्म रोक) भें जोड दी है।

चौ0- कामागोऩ बॊडाय रिामा । करय कृऩा ब्रह्भधाभ ऩठामा।। अन्तरयऩॊथ देखि तनज आॉिी । अनाभी आमसु साय सफ बाॊिीॊ।।2।।

उन्होने देह नगयी के गुप्त खजाने हदखामे औय अऩनी कृऩा कयके ऩयभधाभ ननवाथणऩद – ऩयभहॊस अद्वैत देस) हदखामा। भैंने अन्तरय गगन भागथ को अऩनी आॉखों से देखकय तफ अनाभीश्वय की ध्मानस्थ आऻा से मह सफ तत्व का वणथन कय हदमा है।

चौ0- भततभन्द तनजुदहॊ दारयि जानी । मदवऩ देह छुवऩ यतन भहानी।। ऩयभधतन जो नय तन ऩावा । बफना बेद दारयि कहावा।।3।।

अऻानी भनुष्म अऩने आऩको कॊ गार कहता है जफकक उसके शयीय भें यत्न कोष बये ऩड ेहैं। जजसने भानव देह ऩाई है वह फडा बाग्मशारी है ऩयन्तु बेद (ऻान) के बफना वह कॊ गार कहराता है।

146

चौ0- बफनु बेदी बभप कोट न टूटै । यतनकोष ऩयदा नदहॊ पूटै।। देहऩुरय कुॊ जी सतगुरु ऩासा । ततन्ह ऩद कॊ ज नभेऊ ववश्वासा।।4।।

बफना बेद खुरे बभथ का कोट नहीॊ टूटता औय यत्न कोष का ऩदाथ नहीॊ पटता। देह नगयी की चाफी सतगुरुओॊ के ऩास होती है इसमरमे ववश्वास धायण कयके उनके चयणों भें ववनती कये।

दो0- गुरु गुरु तात तात नदहॊ ऩतत न ऩतत नदहॊ देव।

“होयाभ” स्वजन स्वजन नदहॊ गय नदहॊ बव जर िेव।।231।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक वह गुरु गुरु नहहॊ है, वह वऩता बी वऩता नहीॊ है, वह देवता बी देवता नहीॊ है औय वह फन्धु (मभत्र) फन्धु नहीॊ है जो सॊसाय से नैमा को ऩाय नहहॊ रगाता हो।

दो0- कौदट कौदट कय जौरय तनत धरय गुरुऩद कॊ ज भाथ।

दस ददशस से करूॊ नभन तनत भो ऩततत तायन्नाथ।।232।।

भैं कौहट कौहट हाथ जोडकय अऩने सतगुरु देव के चयण कभरों को भस्तक ऩय यखकय ननत दसों हदसाओॊ से उनको नभस्काय कयता हूॉ वे भुझ अधभ के तायने वारे हैं।

दो0- सुयतत आत्भ र्शब्द सतनाभ दोनन मोग शभराम।

धुतन अनहद र्शब्द धाय ऩाय अनाशभ ज्मौतत सभाम।।233।।

सुनतथ अथथ आत्भा है औय शब्द अथथ सतनाभ है। इन दोंनों का मोग मभराकय अनहद शब्द धाय से आगे (ननवाथण) ज्मोनत भें सभा जावे।

दो0- काव्म र्शप्क्त मोग बप्क्त यतन, प्जदह सॊत ईर्श प्रदाम।

ततदह मर्श बोग सुि धन सकर, प्रथभ रेत तछनाम।।234।।

काव्म रेखन, शजतत मोग तथा बजतत यत्न ऩयभेश्वय जजस सॊत को प्रदान कयत ेहैं उसके सफ मश एश्वमथ सुख धन ऩहरे ही छीन रेत ेहैं।

दो0- ऩग ऩग ऩय अऩभान ठेस ताको हरय तनत देत।

ताकक साधक तनश्काभ रु्शद्ध यहै भोऺ की हेत।।235।।

ऩग ऩग ऩय ऩयभेश्वय उसको अऩभान तथा कष्ट देत ेयहत ेहैं ताकक वह साधक भोऺ के मरमे ननश्काभ तथा शुद्ध यहे।

दो0- जाकय जैसी बावना श्रद्धा बप्क्त अनुयाग।

ततन्ह तैसी भभ धथतत सदा भभ दात ज्मूॉ राग।।236।।

147

भुझभें जजसकी जैसी श्रद्धा बजतत तथा पे्रभ है वैसी ही उनके मरमे भेयी जस्थनत है। जैसी उनकी रग्न है वैसी ही भेयी देन है।

चौ0- प्जदह भभ फचन अटर ववश्वासा । ऩावदहॊ सो शर्शष्म तत्व प्रकासा।। हौं स्नेह शर्शष्म सुयत गदह रीन्ही । सहज सभाधध सुअवस्था दीन्ही।।1।।

जजसका भेये वचन (उऩदेश) ऩय अखॊड ववश्वास है वही मशष्म ऩयभ तत्व प्रकाश को प्राप्त कयता है। भैंने स्नेहवश मशष्मों की सुनतथ ग्रहण कय री है औय उनको उत्तभ सहज सभाचध अवस्था दी है।

चौ0- कछुक शर्शष्म सदबप्क्त बावदहॊ । कछुक तनश्काभ कभप गतत ऩावदहॊ।। सो फडु बाग्म यत सहज सभाधध । ऩावत भोऺ कटदह जग व्माधध।।2।।

कुछ मशष्मों को सदबजतत अच्छी रगती है कुछ को ननश्काभ कभथ गनत प्राप्त होती है। वे फड ेबाग्मशारी है जो ध्मानमोग सभाचध जस्थनत भें यत हैं तमोंकक वेही ननवााँणधाभ (भोऺऩद) प्राप्त कयत ेहैं उनकी बव व्माधा नष्ट हो जाती है।

चौ0- तनश्काभ बाव कभप सफ भोये । कभप शरऩाम गतत नहीॊ घोये।। आत्भस्वरूऩ ववचयहुॉ जग भाॊहीॊ । द्वैत कछुक प्रगटे सन नाहीॊ।।3।।

भेये सफ कभथ ननष्काभ बाव के हैं कभथ भें मरऩामभान गनत भेये ऩास नहीॊ है। भैं तो आत्भस्वरूऩ से सॊसाय भें ववचयण कयता हूॉ। द्वैतबाव (भैं औय हूॉ तू औय है) भेये साभने प्रगट नहीॊ हैं।

चौ0- भाभ प्रकृतत भाभ आधीना । हौं सवपबाव जगासप्क्त ववहीना।। जनभ भयण सुिदिु भभ नाहीॊ । तनत्म र्शाश्वत स्वरूऩ सभाहीॊ।।4।।

भेयी प्रकृनत भेये आधीन है भैं सवथबाव से सॊसाय की आसजतत यहहत हूॉ जनभ भयण सुख दखु वे भुझभें नहीॊ है भैं तो ननत्म शाशवत स्वरूऩ भें जस्थत हूॉ।

दो0- हौं सवपबाव ववच एकयस फासा गुरु र्शयणाम।

“होयाभ” मोग प्स्थत प्जऊॊ अनाभी ध्मान रगाम।।237।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक भैं सवथबावों भें एकयस यहता हूॉ औय अनाभीधाभ (कार भहाकार तथा सचखॊड से ऩये सत्म अकार ऩुरुष) का ध्मान रगाकय मोग भें जस्थत यहकय जीवन फीताता हूॉ।

148

23 – तप्तर्शीरा तनवायण ववऻान

दो0- जफ रधग काभा कोंऩरे उऩजत धचत्त के भादहॊ।।

तरू ववगसत फीजा उगे मभपॊ द छूटत नादहॊ।।238।।

जफ तक काभनाओॊ की कोम्ऩरे चचत्त भें उत्ऩन्न होती यहती है तफ तक वृऺ परता पूरता है औय फीज उत्ऩन्न होता यहता है जजसके कायण मभ का पॊ दा नहीॊ छूटता।

चौ0- अगे्र कयार रूऩ कशरकारा । फादढहैं िर यह सुजन बफहारा।। िरदह कवच फहु िर जन होंहैं । स्वायथ फस ऩयऩीय पुयोहैं।।1।।

आगे कयाररूऩ कमरमुग है जजसभें दषु्ट जन फढेंगे तथा सज्जन ऩुरुष दखुी यहेगें। दषु्ट व्मजतत का कवच फहुत से दषु्ट जन फन जामेंगे औय स्वाथथ के मरमे बरे रोंगों भें ऩीडा सजृजत कयेंगे।

चौ0- धयभ नाभ ऩयऩॊच फढावा । सत्ता फर अन्माम उगावा।। ताॊत्री भरेच्छदहॊ ईष्ट फनावा । दहन्दतु्व नीॊव हॊशस हॊशस दहयावा।।2।।

धभथ के नाभ ऩय प्रऩॊच फढामेंगे। वे सत्ता के फर ऩय अन्माम उऩजामेंगे तथा ताॊबत्रकों तथा भरेच्छों को अऩना ईष्ट फनाकय हहन्दतु्व की नीॊव को हॊस हॊस कय हहरा देंगे।

चौ0- धयभ ऻान सत्मसाय बफहाने । ईर्श अवतायन्ह नीॊदा उगाने।।

हौं यछाथप सत्मसाय भहाना । भूर काव्म यची करय फिाना।।3।।

धभथ का ऻान औय सत्मसाय को मभटा कय ईश अवतायों की नीॊदा को उत्ऩन्न कयेंगें। उसकी सुयऺाथथ भहान सत्मसाय की नाना प्रकाय से (काव्म यचनाऐॊ कयके) भूर काव्मों की भैने यचना कयके फैखान कय दी है।

चौ0- छर कायण जगत अऻ प्रानी । ऩाइहैं धयभ उद्धायदहॊ हानी।।

फर ऩयऩॊच स्वायथ भाहीॊ । मभदहॊ पाॊस भहादिु ऩानी।।4।।

छर के कायण जगत भें अल्ऩऻ प्राणी धभथ औय उद्धाय की हानी को बोगेंगे कपय वे प्रऩॊच के फर औय स्वाथथ से मभ के पॊ दे भें भहादखु ऩामेंगे।

दो0- भॊददय भॊह ताॊबत्रक सॊत ऩाइहैं ठाभ ववद ुगाथ।

स्वायथ फस िर ऩूप्जहैं छुटदहॊ नाभ जगनाथ।।239।।

149

भॊहदयों भें ताॊबत्रक सॊत स्थान ऩा रेंगे जजनका स्वाथीजन ववद्वान गुण गान कयेंगे। इस प्रकाय उन्हे स्वाथीजन स्वाथथ के वमशबूत ऩूजेंगे जजससे जगदीश्वय का नाभ छुटता जामेगा।

दो0- जीव उफायक गुरुन कबु का यावट भन भोह।

“होयाभ” शसॊहासन शर्शष्म उय ऩैदठ कयदहॊ भर छोह।।240।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक जीवों के उद्धायक सदगुरुओॊ के भन भें याज बवनों से बी तमा भोह है ? उनका मसहाॊसन तो मशष्म का रृदम है उसभें फैठकय मशष्म का ववकाय नष्ट कयना चाहहमे।

दो0- कछु वेता तत्वऻान बफनु साकाय ब्रह्भ नीॊदनाम।

भूर स्वरूऩ जानत नदहॊ फय फतन जग बयभाम।।241।।

कुछ ववद्वान जन तत्वऻान के बफना साकाय ब्रह्भ की नीॊदा कयत ेहैं वे भूर स्वरूऩ (ऩयभतत्व) को तो जानत ेनहीॊ फस फड ेफनकय जगत को भ्रमभत कयत ेयहत ेहैं। (वे अऩने को अद्वैत ऩॊथी भानत ेहैं जफकक द्वैत ऩॊथी होत ेहैं। तमोंकक उन्होने व्मतत अव्मतत कयके ब्रह्भ के दो बाग कय हदमे हैं)

चौ0- सत्मऩुरुषदहॊ सभछ प्जस कारा । गदह कार जीवु कोष ववर्शारा।। तद ऩयभेश्वय दीप्न्ह वयदाना । कार स्वमॊ चदहॊ सपृ्ष्ट यचाना।।1।।

सत्मऩुरुष अकार के सभऺ जजस सभम कार ने जीॊवों का ववशार बॊडाय प्राप्त ककमा था तफ ऩयभेश्वय ने उसे वयदान हदमा था जजसके अनुसाय कार ने सजृष्ट की यचना स्वमॊ ही कयनी चाहीॊ।

चौ0- प्रबु तनज भनदहॊ कीन्ही ववचायी । यधचहैं कार तप्तशर्शरा दिुायी।। ताऩदहॊ जीव बूतन असनावा । कोउ जीव तद यह न यछावा।।2।।

तफ ऩयभेश्वय ने अऩने भन भें ववचाय ककमा कक मह कार ननजश्चत ही फडी दखुदाई तप्तमशरा का ननभाथण कयेगा औय उस ऩय सभस्त जीॊवों को बून बूनकय खामेगा तफ कोई बी जीव सुयक्षऺत नहीॊ यह ऩामेगा।

चौ0- प्रबु अकार बत्रधाय उगाई । ववधध हरयहय स्वरूऩ सभाई।। तीतन गुणन अधधऩतत बत्रदेवा । कार धाय भॊह कीन्ही ठेवा।।3।।

तत्कार अकार ऩयभेश्वय ने तीन धायाऐॊ (सत यज तभ) का ननभाथण ककमा जो ब्रह्भा ववष्णु औय भहादेव के रूऩ भें जगत भें सभा गई।

150

तीनों गुणों के तीनों मे देवता अचधष्ठाता है जजन्होने कार की भामा धाय भें अऩना ननवास ककमा है।

चौ0- कारदहॊ तनम रूऩ सो जामे । भामा कार की धाय सभामे।। ततन्हदह कार सजृना सौंऩाई । भामा भॊह करूणा उऩजाई।।4।।

उन्होने उसके (कार के) ऩुत्र रूऩ भें जन्भ मरमा औय वे कार की शजततधाया भें सभा गमे। कार ने उनको ही सजृष्ट सजृन का कामथ बाय सौंऩ हदमा। तफ इन्ही तीनों देवों ने भामा धाय भें करूणा को उत्ऩन्न ककमा।

दो0- कारदहॊ तप्तशर्शरा प्रफर असनइ बूनइ जीव।

तॉह बत्रदेव सुयऺा यचत जीवदहतु कभप ऩुनीव।।242।।

कार की प्रफर तप्तमशरा ऩय कार जीवों को बून बूनकय खाता है। वहाॉ मे तीनों देवता (ब्रह्भा ववष्णु भहेश) ही जीवों के हहत के मरमे उससे फचाने के मरमे ऩावन कभथ यचत ेहैं।

चौ0- दान ऩुन्म मऻ तऩ ध्माना । ऩयाऩय ऻान यच्मै ववधध नाना।।

जासु जीव तप्तशर्शरा न चाढै । होइ ववऩद छम सफ सुि फाढै।।1।।

तथा दान ऩुन्म मऻ तऩस्मा ध्मान तथा ऩया अऩया ऻान को नाना प्रकाय से यचत ेहैं। ताकक जीससे जीव कार के तप्तमशरा ऩय न चढ जामे औय उसकी (जीव की) ववऩदाओॊ का नास होकय सबी सुख फढ सकें ।

चौ0- गय कय सजृन स्वमभ मह कारा । कोऊ न सम्बव सकदहॊ तनहारा।। ततदह तप्तशर्शरा र्शान्त कय हेतु । तनश्काभ बाव कय कयभ सचतुे।।2।।

महद जगत की यचना कार स्वमॊ ही कयता तो सम्बव नहीॊ यहता कक कोई ननहार हो सकता। इसमरमे ही कार की तप्तमशरा की शाजन्त के मरमे ननश्काभ बाव (भेधा) से सफ कभों को सचते यहकय कयना चाहहमे।

चौ0- हरय जीवन करा ऻान प्रसावा । तप्तशर्शरा सॉउ जीव यछावा।। बत्रदेव रूऩ मह धाय अकारा । कारदेस कय जीव सम्बारा।।3।।

श्रीहरय (ववष्णु) जी जीने की करा का ऻान प्रसायण कयत ेहैं औय तप्तमशरा से जीवों की सुयऺा कयत ेहैं। बत्रदेवों के रूऩ भें मह अकार ऩुरुष ऩयभेश्वय की धाया ही कारदेस भें जीवों की सम्बार कयती है।

चौ0- कार अगन सुकयभ प्रफादा । जतन नीय करय अनर छफादा।। जग दहत दस वेद ववधध याच े। अल्ऩऻ चारय प्रगट कय फाच।े।4।।

151

कार की अजग्न को सुकभथ दफात ेयहत ेहैं जैसे कक जर अजग्न को मभटा देता है ववश्व के हहत के मरमे ब्रह्भा जी ने दस वेद यच ेथे ऩयन्तु स्वाथी अल्ऩऻ ववद्वानों ने केवर चाय वेद ही प्रगट कयके फतामे हैं।

दो0- अकार ऩुरुष उवाच मह जे व्मक्त ब्रह्भ तनॊदनाम।

भाभ व्मवस्था कयत बॊग सो भोदह कफहु न ऩाम।।243।।

अकार ऩुरुष ऩयभेश्वय ने कहा कक जो (भेये ननयाकाय स्वरूऩ को बजता है औय भेये साकाय (व्मतत) स्वरूऩों की नीॊदा कयता है वह कार देसभें जीवों की सुयऺाथथ भेयी व्मवस्था को बॊग कयने वारा है। वह भुझ ेकबी बी प्राप्त नहीॊ हो सकता।

दो0- तप्तशसरा नदहॊ र्शभन मदा फढदहॊ अतत अनाचाय।

धयभ यछन भभामसु तद श्रीहरय रॊदह अवताय।।244।।

औय जफ कार की तप्तमशरा शान्त होने का नाभ रेती, फहुत अत्माचाय फढ जाता है तफ भेयी ही आऻा से धभथ की यऺा के मरमे श्रीहरय अवताय धायण कयत ेहैं।

24 – सायतत्व सत्मोऩदेर्श

दो0- ददवस एक करय नभन गरूड श्री ववष्णु सॉउ उच्चारय।

ववववध बाॊतत सॊत जन तऩत ककभुत न मभछर टारय।।245।।

एक हदन नभन कयत ेहुवे गरूड जी ने श्री ववष्णु जी से कहा कक प्रबु सॊत जन ववववध बाॊनत से तऩस्मा कयत ेहैं कपय बी मभ की पाॉस तमों नहीॊ टरती ?

चौ0- कोऊ कथा हरय कीयतन गावा । कोऊ तऩत तन जीयण छावा।।

कोऊ मऻ जऩ कयत फहु बाॊती । कोऊ ध्मान यत गहे न र्शाॊती।।1।।

कोई कथा हरय कीतथन गाता है औय कोई फहुत तऩकय देह को जीणथ कयके नष्ट कय रेता है। कोई मऻ कोई फहुत तयह के नाभ जऩता है तथा कोई ध्मान गभन रीन यहता है कपय बी कोई शाजन्त (आवागभन मभपाॊस से भुजतत) तमों नहीॊ ऩाता ?

चौ0- सत्मरोक सत्मऩुरुष साम्राज्म । जॊहवाॊ जगत कार फर राजा।।

152

फोरे हरय मभ छर वऩछानो । सत्मऩुरुष बगतत दहम जानों।।2।।

तफ श्रीहरय फोरे कक सत्मरोक भें सत्मऩुरुष अकार का साम्राज्म है जहाॉ जगत औय कार का फर रजज्जत होता है। तुभ (अऩनी ऩायखी भनत से) मभ प्रऩॊच की ऩहचान कयो औय सत्मऩुरुष अकार की बजतत को रृदम भें जान रो।

चौ0- जफ रधग सचिण्ड होइ न डयेा । स्वऩनेउ नाहीॊ कार तनफेया।।

छूटत नाहीॊ राि चौयासी । मदवऩ सुकृत कार ही ग्रासी।।3।।

जफ तक सचखॊड (ननजधाभ) भें वासा न होवे तफ तक कार से छुटकाया स्वऩने भें बी नहीॊ होगा औय आवागभन की मह राख चौयास्सी छूट नहीॊ ऩाती। मद्मवऩ सुकृत हों तो बी कार ही ग्रास फना रेता है।

चौ0- भभ र्शयण जाऩदहॊ भभ नाभा । तदवऩ ऩतन नदहॊ होंदहॊ यछाभा।। कयत मोग ऺेभ फहु बाॊती । सदाचाय बफनु ऩाम न छाॊती।।4।।

मद्मवऩ कोई भेयी शयण भें यहकय भेया नाभ जऩता यहता हो कपय बी वह ऩतन को चरा जाता हैं तमोंकक ककतने ही मोग ध्मान साधन अनेकों प्रकाय के ककमे जात ेयहे हों तो बी बफना सद् आचयण धायण ककमे कोई बी ऩयभानन्द शाजन्त को नहहॊ ऩाता।

चौ0- जो प्जदह बजे ततदह का होवे । अन्तकार तथा गतत ऩोवे।। सुयग नयक शभयषा प्ररोबा । सफ नश्वय अततसजृ ततन्ह ऺोबा।।5।।

औय जो जजसको बजता है वह उसी का हो जाता है औय अन्तकार भें वैसी ही गनत को ऩोवषत होता है। मे स्वगथ नयक सबी भषृा प्ररोबन वारे हैं औय सबी नश्वय है। इन्हे त्मागदें इनका ऺोब न कये।

दो0- जे प्जदह बप्ज सोहभ ्कही अभय नाभ गुप्त साय।

र्शेष जऩन सफ कार छर कार पाॊस हयफाय।।246।।

जो जजस को बजता है उसी को सोहभाजस्भ कहता है जफकक अभय नाभ गुप्त तत्व है इसके अरावा शेष सबी नाभ जाऩ कार का ही छर हैं उनसे कार की पाॊस हयफाय रगी यहती है।

दो0- ओॊहभ ्सोहभ ्सॉउ अतीत अभय र्शब्द इक गौन।

प्जन्ह ऩाई सो ततय गमे बई अवस्था भौन।।247।।

153

ओहॊ – सोहॊ से ऩये एक अभय शब्द (अभय नाभ) गुप्त है जजसने उसे प्राप्त कय मरमा है वही बव सागय से नतय गमा। (अथाथत भोऺ ऩा गमा) तफ उसकी अवस्था भौन हो जाती है।

चौ0- केतत तीथप व्रत कय फन ऻानी । तनत्म ऩाठ बजन ककदह गानी।।

जफ रग आत्भस्वरूऩ न जागी । हौंदहॊ न भोष कार पॊ द रागी।।1।।

ककतने ही तीथथ व्रत कयके ऻानी फन जा औय ननत बजन ऩाठ ककसी का गान कयरे जफ तक आत्भस्वरूऩ का जागयण नहीॊ होगा तफ तक भोऺ नहीॊ है, कार का ही पॊ दा रगा यहता है।

चौ0- प्जदह भन फास जगद की आसा । नदहॊ सुसॊत सो जगददह दासा।। हौं तनज यचना जीव धथतत हेतु । सफववधध सुिकय जगद यचतुे।।2।।

औय जजसके भन भें जगत की ही काभना है वह उत्तभ सॊत नहीॊ है वह तो जगत का ही दास है। भैंने जीवों की व्मवस्था हेतु जगत के मरमे अऩनी सजृष्ट की यचना सवथप्रकाय से फडी सुखदामी की है।

चौ0- जे नदहॊ कबु ऩयनीॊदा गावे । दहॊसा तप्ज करूणा भन रावें।। ऩयभायथ दहतु कय जग सेवा । भनदहॊ यभण तनजात्भ ठेवा।।3।।

जो कबी ककसी की नीॊदा नहीॊ कयता, हहॊसा त्मागकय भन भें करूणा यखता है तथा ऩयभाथथ हेतु जगत की सेवा कयता है औय भन भें ननजात्भा वास भें यभण कयता है –

चौ0- घट घट भाॊहीॊ भोदह तनहाये । जीवन इन्दयीमतनग्रह धाये।।

ऩुतन ध्मानस्थ गुरु र्शयणाई । हौं भोषद ततदह धथतत यचाई।।4।।

तथा घट घट भें भुझ ेही देखता है औय इजन्द्रम सॊमभ को जीवन भें धायण कयता है कपय सदगुरु की शयण भें ध्मानस्थ यहता है भैंने उसी के मरमे भोऺ की व्मवस्था फनाई है।

दो0- सायहीन जे कहदहॊ कथा दें भामाकृत ऻान।

स्वमभॊ तये न आतन ततये बटकत सो मभथान।।248।।

महाॉ जो ववद्वान साय यहहत कथाऐॊ कहता है औय भामा यचचत ऻान देता है वह न तो स्वमॊ नतय ऩामा औय न ही उससे दसूये कोई नतय सके वे मभरोक भें दोंनों ही बटक यहे हैं।

154

चौ0- फीस ब्रह्भाण्ड सात ऩातारा । कयत याज्म मह कार कयारा।। तदवऩ ततन्हदहॊ नदहॊ आसन राई । इकववॊर्शदहॊ अदृष्म यजनाई।।1।।

फीस ब्रह्भाण्डों औय सात ऩातारों भें मह कयार कार याज्म कयता है कपय बी उन सफभें आसन नहहॊ रगामा भात्र इतकीसवें ब्रह्भाण्ड भें अदृष्म यहकय नीच ेतक याज्म चराता है।

चौ0- कायण एदह फहुय सॊत ऻानी । वशसक ठाभ तनयाकाय फिानी।। बत्रकुदट ठाभ कार प्जन देिा । तनयाकाय शभशर बयभ ववर्शेिा।।2।।

इसी कायण फहुत से ऻानी सॊतों ने फीस ब्रह्भाण्डों भें कार को नहीॊ देखा तो उनभें ईश्वय को ननयाकाय फैखान कय हदमा। औय जजसने बत्रकुहट देस भें कार का स्वरूऩ देखा तो उन्हे ननयाकाय का ववशेष भ्रभ ही मभरा।

चौ0- कार भहाकार ऩाय अकारा । अन्त सुठाभ अनाभ तनयारा।। प्जन्ह धचतवई व्मक्ताव्मक्त ठाभा । सकर बयभ तनज ऻान नसाभा।।3।। कार औय भहाकार से ऩये सत्मऩुरुष अकार की ननयारी ही सफके अन्त से ऩये अनाभी याजधानी है। जजसने मह व्मतताव्मतत धाभ देखा है वह अऩने सभस्त भ्रभों का नाश कय रेता है।

दो0- “होयाभ”देव ऋवष भुतनन्ह याभ कृष्ण अवताय। ऻान न गदह नीॊदा कयत सो ववद ुऻान रफाय।।249।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक ऋवषमों, याभ तथा कृष्ण आहद अवतायों का जो ऻान तो गहृण नहीॊ कयता अवऩतु नीॊदा कयता है वह भषृा ऻान वारा ववद्वान है।

चौ0- भात्र जे सोहभ ्सोहभ ्जऩावा । सोहभ ्स्वरूऩ नदहॊ दयसावा।। सो ऻानी जतन बािदहॊ कागा । सॊत सोइ प्जदह दहम सो जागा।।1।।

औय जो भात्र सोहभ ्सोहभ ्ही जऩवात ेहै ऩयन्तु उसको सोहभ ्स्वरूऩ का साऺात्काय नही कयात ेवह ऐसे ऻानी है जैसे कक कोआ (काॉव काॉव) फोर यहा हो तमोंकक सॊत वही है जजसके रृदम भें सोहभ ्स्वरूऩ प्रगट हो चुका है।

चौ0- सो ऩद राि कयोयों भाहीॊ । बफयरे कोई तत्वदयसी ऩाहीॊ।। कार देसीम साधन साये । तॊह नदहॊ गम्म भगदहॊ सफ हाये।।2।।

155

उस ऩद को राखों कयोडों भें कोई बफयरा ही तत्वदयशी सॊत प्राप्त कयता है। महाॉ के कार देसीम सभस्त साधनों की वहाॉ ऩहुॉच नहीॊ है वे सबी भायग भें ही थक जात ेहैं।

चौ0- जऩ तऩ तीयथ व्रत भि दाना । साधन कारधतन भुददताना।। गय तनजात्भ टॊकण सचिॊडा । िोशरफ आत्भ राब अिण्डा।।3।।

जऩ तऩ तीयथ वतृ मऻ दान आहद सफ कार धनन को ही आनजन्दत कयत ेहैं। औय महद सचखॊड भें ननजात्भा का खाता खोर मरमा है तो तफ मे सबी साधन आत्भा को ही अखण्ड राब ऩहुॉचात ेहैं।

चौ0- बफनु सतकभप जीव दिु ऩाई । तप्तशर्शरा होहदहॊ दिु दाई।। तात ेसो अवऩ तनश्चम कीजै । रक्ष्म गभन तनजातभ दीजै।।4।।

सतकभों के बफना कार देस भें जीवों को दखु मभरता है जजससे कार की तप्तमशरा दखुदाई फन जाती है। इसमरमे मह सफबी ननश्चम कयके कयत ेयहना चाहहमे औय अऩना रक्ष्म ननजात्भा भें गभन कयत ेयहना चाहहमे।

दो0- गय मत सुकुत तप्ज कोऊ सचिण्ड कथा सुनाम।

तप्तऩट अनर उगाम सो आनदह ताऩ फढाम।।250।।

महद कोई महाॉ सत्मकभों को त्मागकय सचखण्ड की कथा सुनाता है तो वह कार की तप्तमशरा ऩय अजग्न उत्ऩन्न कयता है जजससे वह दसूये जीवों के मरमे ताऩ फढाता है।

दो0- तप्तशर्शरा हयन सुकभप कय तनश्काभ बाव सभादहॊ।।

ऩयभ तत्व तनजात्भ दयस भोऺ धाभ प्रदादहॊ।।251।।

इस तप्तमशरा के हयण के मरमे सुकभथ कयो औय इनभें ननश्काभ बावना सभामे यखों तमोंकक ननजात्भ साऺात्काय ही ऩयभतत्व है जो भोऺधाभ प्रदान कयता है।

सो0- भात्र अहभ ब्रह्भाप्स्भ सोहभाप्स्भ कथनेन जना।

नाऩनोतत स्वरूऩदर्शपनॊ तत्वऻावऩ न भुक्तमा।।4।।

भात्र अहभ ब्रह्भाजस्भ सोहभाजस्भ कहत ेयहने से भानव मद्मवऩ तत्वऻ बी है, कपय बी ननज स्वरूऩ के साऺात्काय (दशथन) की प्राजप्त बफना भुतत नहीॊ होता।

सो0- मथा दीऩ वायता भात्रेण न बवतत प्रकार्शॊ।

156

तथा सोहभ ्कथन इव कुत्र भोऺ तत्वऻ Sवऩ।।5।। जजस प्रकाय दीऩक की वायता कयने भात्र से प्रकाश नहीॊ होता उसी प्रकाय सोहभ ्(भैं वही हूॉ) कहने भात्र से तत्वऻाननमों को बी भोऺ कहाॉ होता है ?

दो0- मऻ तऩ तीयथ साधना कारिण्ड यॊजन धाय।

भोऺ कायण रु्शद्धाचयण आत्भ दयस अववकाय।।252।।

मऻ तऩ तीयथ साधना आहद सबी कार देस के भनोयॊजन की ही धायाऐॊ है जफकक भोऺ का कायण शुद्धाचयण औय अववकायी आत्भ साऺात्काय ही है।

चौ0- ऩोथी ऩठन कथा प्रसॊगा । सायहीन ववद ुकहदहॊ उभॊगा।। सायतत्व बफनु कारदहॊ पाॊसी । आत्भऻान बफनु बयदहॊ चौयासी।।1।।

ऩोथी (धभथग्रथों) की कथा प्रसॊगों को उभॊग ऩूवथक ववद्वान जन सायहीन कयके कहा कयत ेहैं जफकक सायतत्व के बफना सफ कार की ही पाॊसी है जजससे जीव आत्भऻान के बफना राख चौयासी बोगता है।

चौ0- फदढ चदढ तनयशभत कथा सुनावा । सो सफ व्मसनी भूढ कहावा।। ववद ुसोई प्जस आत्भऻाना । नातय रवण बफनु व्मॊजन सभाना।।2।।

जो फढा चढाकय स्वमॊ ननमभथत कथाऐॊ सुनात ेहैं वे सफ ऻानी जन व्मसनी औय भूखथ होत ेहैं। ववद्वान तो वह है जजसे आत्भऻान है अन्मथा उसका ऻान बफना रवण के व्मॊजन के सभान है।

चौ0- बाय न धगरय सागय बाया । नाप्स्तक बाय बाय हॊकाया।। ववश्वासघातत सभ जग भाॊहीॊ । भदह बाय दसूय कहुॉ नाहीॊ।।3।।

ऩवथत बाय नहीॊ है सातों सभुन्दय बी ऩथृ्वी ऩय बाय नहीॊ है। बाय नाजस्तक जन हैं औय बाय उनका अहॊकाय है। इस जगत भें ववश्वासघाती के सभान दसूया कहीॊ बी कुछ ऩथृ्वी के ऊऩय बाय नहीॊ है।

चौ0- नाभ जाऩ करय तुप्ष्ट ऩावा । कयभकाण्ड यत जीवन फीतावा।। आत्भऻान ध्मान बफनु रूिा । होदहॊ न हरयत तरूवय सूिा।।4।।

औय जो भात्र नाभ जाऩ कयने से ही सॊतुष्टी प्राप्त कय रेता है वह अऩना जीवन कभथकाण्ड भे ही व्मतीत कय देता है जफकक आत्भऻान (अहभ ब्रह्भाजस्भ बाव) बी ध्मान के बफना रूखा है। इससे सूखा हुआ वृऺ कबी हया नहीॊ होता।

दो0- जटा फढाम ततरकछाऩ दम्ब बरय बगवा बेस।

157

ऻानी फतन बयभाई जग चरे न मभ दय ऩेस।।253।।

जो जटा फढाकय नतरक छाऩ कयके बगवा बेष का दम्ब कयता है उसकी मभद्वाय ऩय कोई ऩेस नहीॊ चरती।

चौ0- एक कार बोजन तनु र्शोषा । भामा छर नदहॊ ऩावत भोषा।। देह दण्डन करय भोष ववचायी । फुभी ताडन कुत भहोयग भायी।।1।।

औय जो एक ही सभम बोजन कयके शयीय का शोषण कय यहे है वे बी भामा यचचत छर भें भोऺ नहीॊ ऩात।े वे देह को दण्ड देकय भोऺ ववचायत ेहैं। बरा फम्फी को ऩीटने से नाग कहाॉ भय जाता है ?

चौ0- सो जन कार वप्रम जग भाहीॊ । वाह्म कभपकाण्ड धचत्त राहीॊ।।

आत्भदयस प्जदह ध्मान ववर्शारा । तीदह ऩॊदह प्रसन्न हौदहॊ अकारा।।2।।

वह व्मजतत कार को जगत भें वप्रम रगता है जो वाह्म कभथकाण्ड आहद को चचत्त भें यखता है जफकक जजसको ववशार ध्मान द्वाया आत्भसाऺात्काय होता है उससे स्वमॊ सत्मऩुरुष अकार प्रसन्न होत ेहैं।

चौ0- गरूड सभऺ श्रीनायामन । ददवस एक कदह वचन भहामन।।

षड् दयसन कूऩ ऩततत सॊसायी । जानत नदहॊ ऩयभाथप उफायी।।3।।

गरूड जी के सभऺ एक फाय श्री नायामण ने भहान वचन कहा था कक षड्दशथन रूऩी भहाकूऩ भें चगया हुआ भानव अऩने उद्धाय के ऩयभाथथ को नहीॊ जानता।

चौ0- ववचयत ववद ुफतन ऩरु्श सभाना । जतन दयवी न ऩाक यस ऩाना।। ऩाठ कयत नदहॊ साय गहदहॊ । जर भॊदह ठाढै वऩऩास सहदहॊ।।4।।

वह ववद्वान फनकय ऩशु के ही सभान इस प्रकाय ववचयता है जैसे की कयछरी बोजन भें यहकय बी बोजन के यस को प्राप्त नहीॊ कय ऩाती। वह ऩाठ स्वाध्माम तो कयता है ऩयन्तु उसभें से सायतत्व को ग्रहण नहीॊ कयता अवऩतु जर भें (धभथ शास्त्रों के ऻान रूऩी सभुन्दय भें) खडा हुआ बी प्मास ही बोगता है।

दो0- ऩुन्मोऩदेसी सदम ऺम्म कैतव ऩािण्ड हीन।

अद्म दरूय तनमत्मानुकूर भभ उय फासा कीन।।254।।

ऩुन्म धभोऩदेशक, दमावान, छर, ऩाखण्ड से यहहतस ऩाऩकभथ से दयू तथा प्रकृनत के अनुकूर यहने वारा बतत भेये रृदम भें ननवास कयता है।

दो0- अहभ ब्रह्भाप्स्भ यटन यत सो भ्रशभत जग भ्रभाम।

158

“होयाभ”देव दीऩ यटन , ककही गहृ ततशभय नसाम।।255।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक जो अहभ ब्रह्भाजस्भ की यटन भें रगा है वह बी भ्रमभत है औय दसूयों को बी बयभामे यखता है। बरा ! दीऩक की भात्र वाताथ कहत ेयहने से ही ककसी के घय का अॊधकाय तमा कबी नष्ट हो ऩाता है ?

दो0- ओहॊ सोहभ ्जऩ जफ रधग ; बमऊ नदहॊ तदरूऩ।

“होयाभ” ककत ेवेता भुए नदहॊ टरय छर बवकूऩ।।256।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक ओहॊ सोहॊ के जाऩ से जफ तक तदरूऩ (सोहभ ्स्वरूऩ) न हो जामे तफ तक ककतने ही ऻानीजन भय गमे उनका बव रूऩी कुऐ का छर नहीॊ सभाप्त हुआ अथाथत सॊसाय भें ही रौटना ऩडा।

चौ0- प्जन कय भतत सदइ यदह ऐसी । आउ ऩडोसन हो भोदह जैसी।। ततन्ह सॊग तज गह भायग सोई । जाउ सातनध्म बव फॊधन छोई।।1।।

जजनकी भनत ऐसी सदा यहती है कक ऩडोसन आ भुझ जैसी हो जा उनका सॊग तुयन्त त्माग कय वहीॊ भायग गहृण कयना चाहहमे जजस के साननध्म भें सॊसाय का फॊधन सभाप्त हो जामे।

चौ0- वेद र्शास्त्र ऩुयान ऩदठ नाना । गवॊ ववद ुदेदहॊ आनदहॊ ऻाना।। बफना सुफोध दयस घट भाहीॊ । यह जतन कयछी ऩाक यस नाहीॊ।।2।।

वेद शास्त्र औय ऩुयाण आहद नाना ग्रन्थों को ऩढकय जो ववद्वान दसूयों को ऻान देत ेहै, वे सुफोध (ऩयभतत्व ऻान के) साऺात्काय को घट भें ककमे बफना ऐसे यहत ेहैं जैसे हाॊडी भें कयछरी ऩाकयस को प्राप्त नहीॊ कयती।

(जो ऻान ऩुस्तको सतसॊगों भें ऩढ सुनकय फैखान ककमा जाता है वह चुयामा हुआ ऻान अचधक हदन साथथक तथा जस्थय नहीॊ यहता जफकक अऩनी साधना तऩस्मा तथा ध्मानस्थ सुयनत मात्रा से साऺात्कारयत ऻान सदैव मथाथथ फना यहता है तथा ऩयभतत्व प्राजप्त का वाहन फन जाता है)

चौ0- सॊसाय भोह नदहॊ ततन्ह नासा । मत्र तत्र वददहॊ ऩयभतत्व बासा।। ततन्ह गतत सेंवय सुभन की नाई । दीऩ कथन जतन ततशभय न जाई।।3।। उनके सॊसायी भोह का नाश नहीॊ होता कपय बी जहाॉ तहाॉ वे ऩयभतत्व (अहभ ्ब्रह्भाजस्भ ऻान आत्भतत्व) की बाषा फोरा कयत ेहैं उनकी जस्थनत सेंवय के पूर की तयह होती है जैसे कक दीऩक की चचाथ से नतमभय (अॊधकाय) तो नहीॊ मभटता।

159

चौ0- जे नदहॊ बावी कदा नदहॊ बावी । जे बावी सवपदा सम्बावी।। एदह धचन्तन ववष करय जाने । ककभुत न अजहुॉ अभीयस ऩाने।।4।।

जो नहीॊ होना है वह कबी बी नहीॊ होना है औय जो होना ननजश्चत है वह सवथदा सम्बव है। इसी चचन्तन को ववष कयके जानों कक अफ तक भैंने अभतृ यसऩान तमों नहहॊ ककमा ?

दो0- सो ददनु नदहॊ दयुददनु कदा भेघाच्छन अॊधऩात।

“होयाभ”देव सो दयुददनु याभ बजन नदहॊ छाऩ।।257।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक वह हदन फुया हदन नहीॊ है जो कष्टो के अॊध ताऩों के फादरों से आच्छाहदत यहा हो अवऩतु वह हदन फुया हदन है जजस हदन श्रीहरय के बजन की उसभें छाऩ न रगाई हो।

चौ0- जे जन कय हरय सुभयन काभा । सभउ जगत व्मोऩाय गताभ।। सो दयुभतत गतत चॊदह असनाना । होंहदहॊ र्शान्त जफ शसॊधु कराना।।1।।

जो भनुष्म श्रीहरय के स्भयण की काभना सॊसाय के झभेरों व सभम के चरे जाने ऩय कयत ेहैं उन दभुथनत (भूखथ) जनों की गनत ऐसी है कक वे जफ सभुन्द्र की रहये शान्त हो जामे तफ स्नान कयना चाहत ेहैं।

चौ0- सदगुरु श्रीहरय सॊत प्जन्ह ऩाई । तीनन कृऩा भहा परदाई।। तदवऩ बफनु तनप्ज कृऩा ककदह कारा । होहदहॊ सकर भनोयथ छारा।।2।।

सदगुरु श्रीहरय औय सॊत जजसने प्राप्त कय मरमे है उनके मे तीनों कृऩाऐॊ भहा परदाई होती है ऩयन्तु कपय बी अऩने ऊऩय अऩनी स्वमॊ की कृऩा ककमे बफना ककसी बी कार भें उसके साये भनोयथ नष्ट हो जात ेहैं।

चौ0- बगतत फीज तनफये कबु नाहीॊ । मदवऩ फीतत अनन्त मुग जाहीॊ।। जनभ उच्च नीचदह गहृ होई । तऊय सॊत के सॊत गतत सोई।।3।।

बजतत का फीज कबी बी उगे बफना नहीॊ यहता मद्मवऩ अनन्त मुग फीत जामें औय चाहे ऊॉ च नीच घय भें बी जन्भ हो जामे वह वही सॊत का सॊत यहता है उसकी ऐसी ही गनत होती है।

चौ0- उऩदेर्श फिान सहज सुिदाई । व्मवस्था भात्र सो ववद ुऩोषाई।। जानन कायण शर्शष्म प्रऻतावा । नातय आत्भदयस नदहॊ ऩावा।।4।।

उऩदेश तो सयर औय सुखदाई है जफकक इसका सबी ववद्वानों ने व्मवस्था भात्र ऩारन ऩोषण कयामा है। ऩयन्तु उस ऩयभतत्व को जानने का

160

कायण मशष्म की अऩनी ही प्रऻा से होता है अन्मथा कबी बी आत्भसाऺात्काय प्राप्त नहीॊ होता।

दो0- एक ददवस ऩाॊडु ऩोर धगरय भोदह शभशर ऩयसुयाभ।

दई तनदेर्श उऩदेर्श रु्शधचय वददऊ शु्रणु “होयाभ”।।258।। एक फाय ऩाॊडु ऩोर ऩवथत ऩय भुझ ेऩयसुयाभ मभरे थे तफ उन्होने भुझ ेऩववत्र उऩदेश औय ननदेश हदमे थे औय कहा था कक होयाभदेव जी सुनो-

चौ0- सयर रृदम बफनु श्रद्धा देिी । शर्शष्म ऩॊदह तुभ करय कृऩा ववर्शेिी।।

एदह कायण तुभ गदह फय हानी । अग्रावऩ शभशरहैं फहुरय िरानी।।1।।

अऩने सयर रृदम के कायण तुभने बफना श्रद्धा देखे बी मशष्मों के ऊऩय ववशेष कृऩा कय दी है उसी कायण तुभने उनसे फहुत फडी हानी ऩाई है ; अफ आगे बी ऐसे फहुत से खर मशष्म मभरेगें (तमोंकक चाटुकाय मशष्म को यॊग फदरत ेदेय नहीॊ रगती)

चौ0- अधग्रभ सभम घोय कशरकारा । चाटुकाय शर्शष्म फहु छर सारा।। ततन्हदहॊ बुरावु कबु नदहॊ आना । ऩयि बफना नदहॊ उच्च ऩद दाना।।2।।

आगे घोय कमरमुग का सभम आमेगा। चाटुकाय मशष्म फडा छर यचेंगें तुभ उनके हदखावे भें कबी भत आ जाना औय उन्हे बफना ऩयख ककमे उच्च गनत (ऩद) प्रदान भत कय देना।

चौ0- श्रद्धा सभयऩन बफना ववचारु । अभय र्शब्द नदहॊ धाय उतारू।। भमा शसिावतन तव दहतकायी । भानहु भ्रात सत्म वचन हभायी।।3।।

श्रद्धा औय सभऩथण का ववचाय ककमे बफना ककसी बी मशष्म भें अभय शब्द की धाया नहीॊ उताय देना। भेयी मह मशऺा तुम्हाये मरमे हहतकायी है भ्राता मह सत्म फचन हभाया भान रेना।

चौ0- सतमुग भॊह हरयश्चन्ि सभाना । वशर्शष्ठ शर्शष्म को याभ भहाना।। धोम्म शर्शष्म गय आरूखण कोई । अथवा सॊदीऩक गुरु बक्त होई।।4।।

सतमुग भें हरयश्चन्द्र के सभान – वमशष्ठ के भहान मशष्म श्री याभ – धोम्म ऋवष के आरूखण मशष्म जैसा कोई अथवा कोई गुरु बतत सॊदीऩक जैसा कोई मशष्म हो।

चौ0- गय इक्रव्म भोयध्वज बेंटे । िोरहु अभय रोक भग गेंटे।। तुभ सभयथ हौं सफ ववधध जानी । कही अदृष्म बमे भुतन ऻानी।।5।।

161

औय महद कोई ऐकरव्म अथवा भोयध्वज जैसा मशष्म मभर जामे तो उसके भोऺभागथ की सभस्त अवयोध (ग्रजन्थमाॉ) खोर देना। तथा अभय शब्द उसभें प्रगट कय देना। भैंने सफ तयह जान मरमा है कक तुभ ऩूणथ सभथथ हो। ऐसा कहकय वह भहात्भा (ऩयसुयाभ फताकय) अदृष्म हो गमा।

(इसमरमे जो ऻान ऩुस्तकों सतसॊगो अथवा प्रवचनों से मभरता है वह ऩयामा चुयामा हुआ ऻान होता है वह मथाथथ ऻान नहीॊ होता। जफकक स्वमॊ की साधना ऩे अऩनी अन्तगथत की ग्रजन्थमों को खोर कय अभयरोक मात्रा भें प्रगट ऻान ही अऩना ही ऻान साथथक ऻान होता है।)

दो0- तनकसत केहरय वन मथा ऩरु्श िग बफरदहॊ सभाम।

“होयाभ”देव आत्भ सभच्छ आतन ऻान भुयझाम।।259।। जजसप्रकाय मसॊह के ननकरत ेही फन भें सभस्त ऩशु ऩऺी अऩने बफरों भें सभा जात ेहै श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक उसी प्रकाय आत्भसाऺात्काय ऻान के सभऺ अन्म सबी ऻान भुयझा जात ेहैं। अथाथत सबी अन्म ऻान बान नछऩ जात ेहैं।

दो0- बफना बजन बगवान के शभटे नदहॊ मभजार।

ऩुतन ऩुतन भानव देह नदहॊ अवसय रु्शबभ सम्बार।।260।।

ऩयभेश्वय के बजन के बफना मभजार नहीॊ छूटता औय मह भानव देह बी फाय फाय नहीॊ मभरती मह शुब अवसय है इस की सम्बार कय रेनी चाहहमे।

दो0- “होयाभ”देव भानव मह मदवऩ ब्रह्भ अवताय। भामा छर स्वरूऩ बफसय बमो जीव मभ जाय।।261।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक मह भनुष्म मद्मवऩ ऩयब्रह्भ ऩयभेश्वय का ही अवताय है ऩयन्तु भामा के छर भें अऩने स्वरूऩ को बूरकय मभ के जार भें जीव फन गमा है।

दो0- कयदहॊ हरय सुभयन रारची काभा धन सुि भान।

हरय तप्ज ध्मावदह आनदहॊ कशरमुग की ऩहचान।।262।।

रारची स्वाथी व्मजतत श्री हरय का स्भयण अऩने भन भें धन एश्वमथ औय प्रनतष्ठा की काभना के मरमे ही कयता है इसीमरमे वह श्री बगवान को त्मागकय भनोकाभना के मरमे अन्म (बूतों पे्रतों वऩशाचों ताॊबत्रको तथा भरेच्छों

162

को ईष्ट फनाकय उनकी ही आयाधना कयने रगता है वही तो कमरमुग की ऩहचान है।

दो0- “होयाभ”देव भन चऩर स्वायथ यत गुरु कीन्ह। बटकत भग भध्मदहॊ धगये जे ऩाई सफ छीन्ह।।263।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक जजनका भन चऩर है औय ननजज स्वायथ की ऩूनतथ के मरमे सदगुरु की शयण प्राप्त की है वह बटककय भागथ भें ही चगय जाता है। औय अफ गुरु शयण भें जो कुछ प्राप्त कय मरमा था उससे वह सफ छीन मरमा जाता है।

दो0- कछुक भनुज असो जगददहॊ जतनत बप्क्त ववगसाम।

कृवष तनकट पर रागतन दीन्ह ववटऩ कटाम।।264।।

सॊसाय भें कुछ ऐसे बी भनुष्म हैं जो अऩनी बजतत को प्रमत्न ऩूवथक परीबूत कय रेत ेहैं औय जफ बजतत रूऩी खेती पर देने के ननकट आती है तो भूखथ उस वृऺ को ही काट देता है।

(ऐसे भनुष्म की ऐसी अवस्था फन जाती है कक जफ वह ऩहाड के नीच ेखडा था तो सम्बरना नहीॊ ऩडता था औय न चगयने का बम ही था। अफ ऊऩय चोटी ऩय चढता गमा तो सम्बरने की अवश्मतता फन गमी जो वह नहीॊ चाहता था कक कुछ कयना ऩड।े जफ फच्चा प्राथमभक ववद्माल्म से उच्चतय ववद्माल्मों भें चरा जाता है तो वहाॉ की मशऺा गहृण कयना उसे दगुथभ फन जाता है। तफ वह भूखथ प्राथमभक मशऺा को ही शे्रष्ठ फताता है। कुछ ऐसे बी भूखथ ववद्वान होत ेहैं वे बगवद गीता को ऩढना औय दसूयो को सुनाने भें ही सुखी होत ेहै ऩयन्तु गीता भें जो आऻाऐॊ हैं वह उनऩय चरता नहीॊ फस ऩढने औय यटने ऩय ही रूके यहत ेहैं। उनका उद्धाय उसके भात्र स्वाध्माम से नहीॊ होता। ऐसे वाचक भानव से फचकय यहना चाहहमे। वे स्वमॊ भ्रमभत होकय दसूयों के बजतत भागथ को बी ऩनतत कयके मभगाभी फन जात ेहैं। बगवदगीता का ऻान ऩढने सुनाने भें ही नहीॊ फजल्क आचयण ऩय तोरने के मरमे हैं। उसभें मशऺा दी गई है दीऺा नहीॊ दी गई जजसका प्रमास कयना चाहहमे।)

दो0- शर्शऺा गहे दीऺा तजे ववपर धये गुरु दोष।

गुरु आमसु अवहेरना ; कये प्रतीऺा भोष।।265।।

163

ऐसे चाटुकाय साधक मशऺा गहृण कयता है औय दीऺा का त्माग कय देता है औय अऩनी काभना भें ववपर होकय गुरु को दोष हदमा कयता है। वह गुरु आऻा की अवहेरना कयता है औय भोऺ की प्रतीऺा कयता है। (ऐसे व्मजतत की बजतत की कभाई ननश्पर चरी जाती है। ऐसे व्मजतत को तत्कार त्माग देना चाहहमे औय तत्व ववऻान नहीॊ देना चाहहमे जो तुम्हायी बजतत साधना को सभाप्त कय यहा हो तमोंकक उसे कार भामा ने छुटा छुटामा ऩुन् ऩकड मरमा होता है।)

दो0- ऩावन अवसय नय देह सदगुय ईर्श दमार।

“होयाभ” तनप्ज कृऩा बफना जीव पॊ दमो जभजार।।266।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक मद्मवऩ मह नय देह सदगुरु औय ईश्वय की दमारता का ऩावन अवसय मभरा है ऩयन्तु चौथी अऩनी स्वमॊ की कृऩा के बफना मह जीव मभ के जार भें पॊ दा यहता है।

चौ0- अभय धाभ सचिण्ड के ऩाया । सफववधध कहन सुनन से न्माया।। सो अकार सवापन्तयमाभी । सुय भुतन सॊत सफ कयदहॊ नभाभी।।1।।

अभयधाभ तो सचखण्ड के बी ऩाय है जो सफ ववचध कहन सुनन से न्माया है। उस अकार ऩुरुष अन्तमाथभी को सभस्त सुयगण भुनन औय सॊत जन नभन कयत ेहैं।

चौ0- कार भहकार भतृ्मु शसयनावा । आदद अनादद अनन्त कहावा।। प्जदह भन र्शेष न काभा कोई । अस बफयर सॊत ऩावत सोई।।2।।

उसे कार भहाकार औय भतृ्मु बी शीश ननवात ेहै। वह आहद अनाहद औय अनन्त कहराता है। जजसके भन भें सॊसाय की कोई काभना शेष नहीॊ यहती ऐसा वह कोई बफयरा ही सॊत उसे प्राप्त कयता है।

चौ0- आवागभन छुटत ततन्ह जानी । प्जन्ह सो ऩाई न ऩुतन बव आनी।। सो ऩूय जग ऩूय तनकसाई । तदवऩ र्शेष यह ऩूय कहाई।।3।।

आवागभन का चक्र उनका छूटता जानो जजन्होने उसे ऩा मरमा है कपय वह ऩुन् सॊसाय भें नहीॊ आता। वह ऩयभेश्वय ऩूणथ है उसने अऩने भें से मह सॊसाय बी ऩूणथ ननकारा है कपय बी वह शेष ; ऩूणथ ही कहराता है।

चौ0- बफनु गुरु कृऩा सुरब सो नाहीॊ । सम्बव सुरब तत्वदयसी रिाहीॊ।। तात ेर्शयण तत्वदयशसन्ह जाई । गहहु अभय ऩद सफ जतनाई।।4।।

164

गुरु की कृऩा के बफना वह सुरब नही होता औय तत्वदशीमों की शयण उसे हदखराने भें सुरब हैं औय प्राप्त है। इसमरमे तत्वदशी सॊतों की शयण भें जावे औय सभस्त मत्नऩूवथक उस अभय ऩद की प्राजप्त कयनी चाहहमे।

दो0- सॊसायज सुिासक्त इव रधग कथन ब्रह्भाप्स्भ यट।

कभप ब्रह्भ भ्रष्ट व्मसतन सो “होयाभ” तजेउ झट।।267।। सॊसाय से उत्ऩन्न होने वारे सुखों भें आसतत भनुष्म जजसे अहभ ब्रहभाजस्भ कहने की यट रगी हुई है वह कभथ तथा ब्रह्भ दोंनों भें भ्रष्ट है श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक उस को तुयन्त त्माग कय दो। (तमोंकक वह अहभ ब्रह्भाजस्भ बाव का अऩभान कय यहा है। अथाथत बफना ब्रह्भस्वरूऩ प्रगट ककमे अहभ ब्रह्भाजस्भ वातम का अऩभान है)

दो0- गय जग काभा ऩूप्जए भन इप्च्छत देवव देव।

भोऺ प्रदक इक ध्मान गतत घट ऩयगट मह भेव।।268।।

इस सॊसाय भें महद जगत ऩदाथों की ही काभना है तो अऩने भन की ईच्छानुसाय देवव देवताओॊ को ऩूज रो जफकक वास्तववकता तो मह है कक भोऺ प्रदान कयने वारी तो भात्र एक ध्मान की अवस्था ही है औय मह भेवा अन्तघथट भें ही प्रगट होती है।

दो0- “होयाभ” सऩप सीढी सदृर्श सुतप भग मोग अथाम। गुरुकृऩा ऩौडी चढै घटे अदहभुि जाम।।269।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक सुयनत मात्रा मोग अथाम है जो सऩथ औय सीढी के खेर के सभान है इसभें गुरुकृऩा से ऩौडी चढ जात ेहैं औय गुरु कृऩा ही साधक सऩथ (शैतान) के भुख भें जाकय ऩतन भें चरा जाता है।

दो0- ऩतॊग पुये आकार्श भें डौरय सदगुरु हाथ।

डौरय कटे धगये जात है बई उडान अकाथ।।270।।

साधक की ऩतॊग रूऩी सुनतथ आकाश (उच्च भण्डरों) भें उडान बयने रगती है तफ बी उसकी डौयी गुरु के हाथ भें ही यहती है तफ उसकी सभस्त चढाई ननयथथक हो जाती है।

दो0- ध्मान मोग मात्रा मह ववयरे बइ ऩरयऩूय।

गुरुकृऩा भेवा शभरे गुरु बफनु चकनाचूय।।271।।

165

ध्मानमोग की मह मात्रा ककसी बफयरे साधक की ऩूणथ होती है तमोंकक इसभें गुरुकृऩा है तो भेवा (पर) मभर जाता है औय गुरु के बफना चकनाचूय हो जाती है।

दो0- “होयाभ”देव बवशसॊधु भें कच्छ भच्छ नाग कुयेस। बशर बई सदगुरु शभरे ऩहुॉचामा तनज देस।।272।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक बव सागय भें कच्छवे फडी फडी भच्छमरमाॉ तथा भगयभच्छ बये ऩड ेहै(मह अच्छा हुआ कक सदगुरु मभर गमे औय अऩने देस ऩहुॉचा हदमा।

(इस मात्रा भें सीहढमों ऩय गुरु बजतत चढाती है औय सऩथ के भुख भें गुरुघाती द्रोही नीॊदक अहॊकायी जन पॊ सकय जहाॉ से चरे थे ऩतन होकय नीच ेचगय जात ेहैं इसमरमे अऩनी बजतत साधना गुरु सभऩथण भें ऩूणथ कय रेनी चाहहमे।)

दो0- कूऩ भण्डूक न हौइमे फदढ आगे भ्रभ जाम।

बफना अवरोकै भण्डूका कूऩदहॊ कहे अथाम।।273।।

कबी बी कुऐ का भेंढक फन कय नहीॊ यहना, चाहहमे आगे फढो सफ भ्रभ टर जामेगा तमोंकक बफना देखे भेंढक कुऐॊ को ही अथाह कहता यहता है।

दो0- कहत “होयाभ” शर्शष्मन सन हौं दइ गुह्मोऩदेर्श। स्वमभ करय सो काव्मफद्ध नासत बयभ करेर्श।।274।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक भैंने मशष्मों के सभऺ जो गुप्त ऻानोंऩदेश हदमा था उसको स्वमॊ काव्मफद्ध कय हदमा है। मह ऻानोऩदेश सभस्त भ्रभ औय करेशों को मभटाने वारा है।

दो0- बगतत से धायण करय ध्मान गभन सचिण्ड।

“होयाभ”देव ऩूणपऩद रभ्म फाॊटेउ ऻान अिण्ड।।275।। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक भैंने बजतत से ध्मानमोग सचखण्ड मात्रा धायण कयके ऩूणथऩद अनाभीधाभ प्राप्त ककमा कपय मह अखण्ड ऻान जग हहताथथ फाॊटा है।

दो0- भेया भुझभें कुछ नहीॊ जो कुछ सो गुरु दात।

सतगुरु भदीम कल्ऩवृऺ भैं वृऺ की इक ऩात।।276।।

भेया अऩना भुझभें कुछ नहीॊ है जो कुछ है वह सफ गुरुदेव की दैन है भेये गुरुदेव तो कल्ऩवृऺ के सभान हैं औय भैं उसका एक ऩत्ता हूॉ।

166

दो0- सतगुय ऺभा भोदह ककप्जमे प्रगट कीन्ह गुप्त साय।

सॊत बववष्म बटके नदहॊ सत्मऩॊथ गहै सॊसाय।।277।।

हे भेये सतगुरुदेव ! भुझ ेऺभा कय देना तमोंकक भैंने मह याजमोगस्थ ऩयभहॊस ऩद (हहन्दतु्व ऩद) अथाथत अभयकथाभतृ आत्भ ऻान की गुप्त यहस्मों को प्रगट कय हदमा है ताकक सॊत जन बववष्म भें बटक न ऩावे औय अऩना सत्मऩॊथ सॊसाय ग्रहण कय सके।

दो0- ऩयभ काव्म मह सतगुरु करूॉ सभऩपण तोम।

“होयाभ” दासा वय ददप्जमे ऺभा ऺभा कदह भोम।।278।। मह ऩयभ काव्म हे सतगुरु देव ! भैं तुम्हाये ही अऩथण कयता हूॉ। श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक भुझ दास को मह वय दें दीजजमे कक भुझ ेऺभा ऺभा कह देना।

दो0- ऩायब्रह्भ सतगुरु भेये सप्च्चदानन्द सुिधाभ।

सफ सॊतन के अॊग सॊग प्रबु कौदट कौदट प्रणाभ।।279।।

हे भेये ऩायब्रह्भ स्वरूऩ सतगुरुदेव तुभ सजच्चदानन्द सुखधाभ हो औय अऩने सभस्त सन्तों के अॊग सॊग हो आऩको कौहट कौहट प्रणाभ है।

दो0- श्री याभानन्द सत्माथी जम ऩूणप सप्च्चदानन्द।

नभस्काय गुरु आऩको सफ सॊतन के उयचन्द।।280।।

हे श्री स्वाभी याभानन्द सत्माथी जी भहायाज ऩूणथ सजच्चदानन्द आऩकी जम हो। हे सफ सॊतन के रृदम ऩनत आऩको नभस्काय है।

दो0- “होयाभ” ऩयभ ववऻान मह प्रततशरवऩ सहस्त्र छऩाम।

सुऩात्र सन्त ऩुतन दान दे र्शत भि पर ऩाम।।281।।

श्री होयाभदेव जी कहत ेहैं कक जो व्मजतत इस ऩयभ ववऻान की एक हजाय प्रनतमाॉ छऩवाकय कपय सुऩात्र साधु जनों भें दान कये वह सौं मऻों का पर प्राप्त कयने वारा होगा।

सो0- मत सवापतन बूतातन उददतोस्थातन च रमतत मत्रे।

अनन्त ज्मोतत ऩुॊज ववबु् तस्मै नभाशभ होयाभो sहभ।्।6।। जजसभें सभस्त बूत (चयाचय) उत्ऩन्न होत ेहै औय जजसभें जस्थत यहत ेहैं औय कपय जजसभें रम हो जात ेहैं उस अनन्त ज्मोनत ऩुॉज ऩयभेश्वय को भैं होयाभदेव नभस्काय कयता हूॉ।

167

श्रो0- इतत त ेगहृ्भाद गुह्मातयॊ भमा ऩयभ वच्।

मो सुऩात्र बक्तशे्वाशबधास्मतत स तयो बव न सॊर्शम।।11।।

फस मह इतना ही गुप्त से गुप्त (आत्भववऻान) भेया ऩयभ वचन को जो भानव सुऩात्र अचधकायी बततों (सॊतजनों) के प्रनत कहेगा वह बव सागय से नतय जामेगा इसभें कोई सॊशम नहीॊ है।

इतत ततृीमो बाग

र्शाप्न्त! र्शाप्न्त!! र्शाप्न्त!!!

168

सतसॊग कामप ऺेत्र

भाशसक सतसॊग (सभम- प्रात् 11 फजे से अऩयाहन 4 फजे तक)

- प्रत्मेक भाह के प्रथभ यवववाय देवकुन्ज आश्रभ, सॊजम ववहाय, गढ योड, भेयठ, (उ0 प्र0)

- प्रत्मेक भाह के दसूये यवववाय को ककरा, जजरा ऩरयक्षऺतगढ, (उ0 प्र0)

- प्रत्मेक भाह के तीसये यवववाय को ए – 30 रोहहमा नगय, गाजजमाफाद, (उ0 प्र0)

- प्रत्मेक भाह के अजन्तभ यवववाय को अन्मत्र दयू दयू कहीॊ।

वावषपक सतसॊग

- पयवयी के अजन्तभ सप्ताह भें ग्राभ तुकाथह, जजरा कुशीनगय, (उ0 प्र0)।

- गुरु ऩूखणपभा ऩवप - आसाड भास की ऩूखणथभा से एक हदन ऩहरे चतुयदसी को अऩयाहन 2 फजे से प्रायम्ब होकय अगरे हदन प्रात् 6 फजे तक। स्थान देवकुॊ ज आश्रभ, सॊजम ववहाय, गढ योड, भेयठ।

- जन्भ ददवस - कानत थक भास की कृष्ण ऩऺ की सप्तभी से एक हदन ऩहरे षष्ठी भें अऩयाहन 2 फजे से प्रायम्ब होकय अगरे हदन प्रात् 6 फजे तक। स्थान देवकुॊ ज आश्रभ, भेयठ।

- सतसॊग ग्राभ शससौटा आश्रभ - ज्मेष्ठ शुतरा ऩॊचभी प्रनतवषथ सावन कृष्ण चतुदथशी (कावडा) पारगुन चतुदथशी कावड।

ºÉƺlÉÉ{ÉEò B´ÉÆ º´ÉɨÉÒ

iÉi´Énù®úºÉÒ ºÉÆiÉ ½þÉä®úɨÉnäù´É |ÉVÉÉ{ÉÊiÉ

{É®ú¨É½ÆþºÉ ®úÉVɪÉÉäMÉ +ɸɨÉ

ºÉÆVÉªÉ Ê´É½þÉ®ú {ÉÉä0 ¨ÉèÊb÷Eò±É EòÉʱÉVÉ

MÉfø ®úÉäb, ÊVɱÉÉ ¨Éä®ú`ö, =0 |É0, ¦ÉÉ®úiÉ