भगत सिंह
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भगत सि�ंह भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। भगतसिसंह ने देश की आज़ादी के लि ए जि"स साहस के साथ शलि#शा ी ब्रि%टि'श सरकार का मुक़ाब ा ब्रिकया, वह आ" के युवकों के लि ए एक बहुत बड़ा आदश. है। इन्होंने केन्द्रीय संसद (सेण्ट्र असेम्ब ी) में बम फें ककर भी भागने से मना कर टिदया। जि"सके फ स्वरूप इन्हें २३ मार्च. १९३१ को इनके दो अन्य सालिथयों, रा"गुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर 'का टिदया गया। सारे देश ने उनके बलि दान को बड़ी गम्भीरता से याद ब्रिकया। उनके "ीवन ने कई ब्रिहन्दी ब्रिFल्मों के र्चरिरत्रों को प्रेरिरत ब्रिकया। कुछ ब्रिFल्में तो उनके नाम से बनाई गयीं "ैसे - द लीज़ेंड ऑफ़ भगत सि�ंह। मनो" कुमार की सन् १९६५ में बनी ब्रिफल्म शहीद भगत सिसंह के "ीवन पर बनायीं गयी अब तक की सव.श्रेष्ठ प्रामाणिQक ब्रिफल्म मानी "ाती है। काकोरी काण्ड में ४ क्रान्तिन्तकारिरयों को फाँसी व १६ अन्य को कारावास की स"ाओं से भगत सिसंह इतने अधिXक उब्रिYग्न हुए ब्रिक उन्होंने १९२८ में अपनी पा'\ नौजवान भारत �भा का ब्रिहन्दुस्तान रिरपब्लि_ कन ऐसोलिसएशन में ब्रिव य कर टिदया और उसे एक नया नाम टिदया ब्रिहन्दुस्तान सोशलि स्' रिरपब्लि_ कन एसोलिसएशन। पह े ाहौर में साण्डस.-वX और उसके बाद टिदल् ी की केन्द्रीय असेम्ब ी में र्चन्द्रशेखर आ"ाद व पा'\ के अन्य सदस्यों के साथ बम-ब्रिवस्फो' करके ब्रि%टि'श साम्राज्य के ब्रिवरुद्ध खु े ब्रिवद्रोह को बु न्दी प्रदान की। इन सभी बम Xमाको के लि ए उन्होंने वीर सावरकर के क्रांब्रितद अणिभनव भारत की भी सहायता ी और इसी द से बम बनाने के गुर सीखे।
ब्रिहन्दी के प्रखर लिर्चन्तक रामब्रिव ास शमा. ने अपनी पुस्तक स्वाधीनता �ंग्राम: बदलते परिरप्रेक्ष्य में उनके बारे में टि'प्पQी की है:
"ऐसा कम होता है ब्रिक एक क्रान्तिन्तकारी दूसरे क्रान्तिन्तकारी की छब्रिव का वQ.न करे और दोनों ही शहीद हो "ायें। रामप्रसाद ब्रिबस्मिस्म १९ टिदसम्बर १९२७ को शहीद हुए, उससे पह े मई १९२७ में भगतसिसंह ने कि#रती में 'काकोरी के वीरों से परिरर्चय' ेख लि खा। उन्होंने ब्रिबस्मिस्म के बारे में लि खा - 'ऐसे नौ"वान कहाँ से धिम सकते हैं? आप युद्ध ब्रिवद्या में बडे़ कुश हैं और आ" उन्हें फाँसी का दण्ड धिम ने का कारQ भी बहुत हद तक यही है। इस वीर को फाँसी का दण्ड धिम ा और आप हँस टिदये। ऐसा ब्रिनभmक वीर, ऐसा सुन्दर "वान, ऐसा योग्य व उच्चकोटि' का ेखक और ब्रिनभ.य योद्धा धिम ना कटिoन है।' सन् १९२२ से १९२७ तक रामप्रसाद ब्रिबस्मिस्म ने एक म्बी वैर्चारिरक यात्रा पूरी की। उनके आगे की कड़ी थे भगतसिसंह।"