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    माहनामा अबक़री मैगज़ीन

    के अगस्त के एहम मज़ामीन

    हहिंदी ज़बान में

    दफ़्तर माहनामा अबक़री

    मरकज़ रूहाननयत व अम्न 78/3 अबक़री स्ट्रीट नज़्द क़ुततबा मस्स्ट्िद

    मज़ंग चोंगी लाहौर पाककस्ट्तान

    एडिटर: शैख़-उल-वज़ाइफ़् हज़रत हकीम मुहम्मद ताररक़

    महमूद मज्ज़ूबी चग़ुताई دامت برکاتہم

    [email protected]

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    फ़ेहररस्त अच्छे इख़्लाक़ अपनाने वाले के दरजात ........................................................................................................ 4

    हाल ए हदल ................................................................................................................................................... 4

    मेरी तीन गज़ुाररशात ...................................................................................................................................... 4

    दर्स रूहाननयत व अम्न .................................................................................................................................. 7

    हम दनु्या में कययूँ और ककर् ललए आये? ...................................................................................................... 7

    दर्स रे् फ़ैज़ पाने वाले .................................................................................................................................... 9

    बग़रै कश्ती के र्मनु्दर पार करने वाले ...................................................................................................... 11

    तीन घयूँट पपयो बे कफ़क्र जजयो: ..................................................................................................................... 13

    माललश! बच्चों के बेशमुार अमराज़ का आर्ान इलाज ............................................................................... 14

    हर आफ़त, तकलीफ़, क़त्ल व ग़ारत रे् बचने का आर्ान नसु्ख़ा .............................................................. 17

    पग़ैम्बर ملسو هيلع هللا ىلص इस्लाम का ग़रै मजुस्लमों रे् हुस्न र्लयक ............................................................................. 19

    चेहरे के दाग़ और बालों के ललए आज़मयदह टोटके ...................................................................................... 19

    हज़रत शाह तरुत फ़क़ीर ہیعل ہللا رحمت के मसु्तनद रूहानी वज़ाइफ़् ............................................................... 21

    माओिं की परेशानी अब हुई बबल्कुल ख़त्म: ................................................................................................. 24

    जजस्मानी बीमाररयों का शाफ़ी इलाज .......................................................................................................... 25

    उज्ली, रोशन और ख़यबर्यरत आूँखें! आप की भी हो र्कती हैं .................................................................... 29

    १२ हदन में हर जाइज़ मक़्र्द पयरा .............................................................................................................. 31

    खान ेके ललए जीना या जीने के ललए खाना................................................................................................ 33

    बीमारी, झगड़,े जादय जजन्नात के ललए वज़ीफ़ा दरूद ................................................................................... 36

    इजम्तहान में फ़स्टस डिवीज़न के ललए ........................................................................................................... 38

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    क़ाररईन की ख़ुर्यर्ी और आज़मयदह तहरीरे .................................................................................................. 40

    महुब्बतें बािंहटए, महुब्बतें पाइए: ................................................................................................................... 44

    आएिं टोटके आज़माएिं और फैलाएिं! ............................................................................................................... 45

    अबक़री में टोटका र्ेकशन का क़याम: ........................................................................................................ 46

    ररश्तों की र्ाल्हा र्ाल परुानी बिंहदश चिंद हदनों में ख़त्म ............................................................................ 47

    अब हर जाइज़ तमन्ना होगी पयरी (इन शा अल्लाह): ................................................................................. 48

    कक़स्मत ख़ुद बनाइये .................................................................................................................................... 49

    उफ़्! ये जज़न्दगी का ना पाइदार र्फ़र ........................................................................................................ 51

    हरमनै में नकैकयों के पहाड़ .......................................................................................................................... 53

    अल्लामा र्ाहब के वज़ाइफ़् रे् मजुश्कलात का अज़ाला ................................................................................ 55

    तालय में ख़राश हो या ज़बान मुिंह पर छाल ेर्ब ठीक ................................................................................. 57

    ढेरों बीमाररयों के ललए मेरा आज़मयदह नसु्ख़ा .............................................................................................. 58

    गमु्शदुह चीज़, फ़दस और र्मासया पाने का वज़ीफ़ा ....................................................................................... 59

    २० र्ाल परुाना ललकोररया ठीक: ................................................................................................................. 62

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    अच्छे इख़्लाक़ अपनाने वाले के दरजात हज़रत अबू उमामा عنہ ہللا رضی ररवायत करत ेहैं कक रसूलल्लाह ملسو هيلع هللا ىلص ने इशातद फ़मातया: मैं उस शख़्स के

    ललए िन्नत के अतराफ़ में एक घर (ददलाने) की स्ज़म्मा दारी लेता हूूँ िो हक़ पर होने के बाविूद भी

    झगड़ा छोड़ दे और उस शख़्स के ललए िन्नत के दरम्यान में एक घर (ददलाने) की स्ज़म्मा दारी लेता हूूँ

    िो मज़ाक़ में भी झूट ना बोले और उस शख़्स के ललए िन्नत के बुलंद तरीन दिात में एक घर (ददलाने)

    की स्ज़म्मा दारी लेता हूूँ िो अपने इख़्लाक़ अच्छे बना ले। हज़रत अबू ददातअ عنہ ہللا رضی से ररवायत है

    कक मैं ने रसूलल्लाह ملسو هيلع هللا ىلص को ये इशातद फ़मातते हुए सुना: स्िस शख़्स को भी (ककसी की तरफ़ से)

    स्िस्ट्मानी तक्लीफ़ पोहंच ेकिर वो उस को मुआफ़ कर दे तो अल्लाह तआला इस की विह से एक दिात

    बुलंद फ़मात देते हैं और एक गुनाह मुआफ़ फ़मात देते हैं। (नतलमतज़ी) ☆ हज़रत अबू हुरैरा عنہ ہللا رضی

    ररवायत करते हैं कक रसूल अकरम ملسو هيلع هللا ىلص ने इशातद फ़मातया: हज़रत मूसा बबन इम्रान علیہ السالم न ेअल्लाह

    तआला की बारगाह में अज़त ककया: ऐ मेरे रब! आप के बन्दों में आप के नज़्दीक ज़्यादा इज़्ज़त वाला कौन

    है? अल्लाह तआला ने इशातद फ़मातया: वो बन्दा िो बदला ले सकता हो और किर मुआफ़ कर दे। (बेहक़ी)

    ☆ हज़रत अब्दलु्लाह बबन उमर امعنہ ہللا رضی ररवायत करते हैं कक रसूलल्लाह ملسو هيلع هللا ىلص ने इशातद फ़मातया:

    बन्दा (ककसी चीज़ का) ऐसा कोई घूूँट नही ंपीता िो अल्लाह तआला के नज़्दीक ग़सु्ट्से का घूूँट पीने से

    बेह्तर हो स्िस को वो महज़ अल्लाह तआला की रज़ा के ललए पी िाए। (मस्ट्नद् अहमद)

    हाल ए हदल जो मैंने देखा रु्ना और र्ोचा

    मेरी तीन गुज़ाररशात एडिटर के क़लम रे्

    अपनी भरपूर ताक़त, िवानी, क़ुव्वत, एनिी और शबाब स्िस के २५ साल सऊदी अरब ररयाल तलाश

    करते करते गुज़र गए, लाखों कमाया और ख़बू कमाया लोगों ने दाद दी कक माल पैसा और चीज़ें बहुत आ

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    रही हैं। किर कोलशश की कक पाककस्ट्तान में बेटे को सेटल करूूँ और उस को यहाूँ बबज़ननस ददलाऊं उस को

    उस दौर के तीस लाख भेिे। िब ककसी के पास तीस हज़ार होता था तो उसे लोग बहुत मालदार कहते थे

    हुआ ये कक उस की स्ज़न्दगी स ेतीन चीज़ें हट गईं पहली चीज़ माूँ बाप की वो दआुएं स्िन को िवानी ही में

    छोड़ कर ये ररयाल तलाश करने गया था, उस ेपल पल में, साूँसों साूँसों में, लम्हे लम्हे में माूँ बाप की

    दआुओं की अशद्द ज़रूरत थी और माूँ बाप ही थे स्िन्हों ने उसे तरक़्क़ी, काम्याबी, बरकतों और बहारों के

    ज़ीने तय कराने थे। उन की दआुओं से यक्सर महरूम रह गया, कभी कभी पूछ लेता था किर एक वक़्त

    आया पूछने का भी वक़्त ना लमला। अफ़्सोस कक दोनों के िनाज़े में भी शरीक ना हो सका। िो दसूरा

    नुक़्सान हुआ वो िवान बीवी की आहें, स्िस की लससकती, उभरती और ननखरती िवानी, िज़्बात,

    चाहतें, ख़्वादहशात, उमंगें, उम्मीदें अदंर ही अदंर रह गईं और हसरतें िूब िूब कर किर उभरती थी ंऔर

    उभर उभर कर किर िूबती थीं लेककन उसे एक ही धनु सवार थी कक मैं ने मालदार बन्ना है, दौलत इकट्ठी

    करनी है, मालदार बन कर साल दो साल के बाद चदं हफ़्तों के ललए आता वो िो साल दो साल की िुदाई

    बिाए इस के कक सच्ची तलब बन िाती, वो लड़ाई, बद्द गुमानी शक व शुबा में बदल िाती, यूूँ ये हफ़्त े

    एक दसूरे से दरू नफ़रतों, उल्झनों और िुदाई में गुज़रता और ये शख़्स किर अरब चला िाता। बीवी की

    तन्हाइयों की ठंिी साूँसें इस को खा िातीं और वो ठंिी साूँसें इस के मुस्ट्तस्क़्बल को दरअसल वीरान कर

    रही थी ंऔर ये समझ रहा था कक मैं तरक़्क़ी कर रहा हूूँ। क़ाररईन! याद रखें चदं फ़ीसद बीववयां ऐसी होंगी

    िो बद्द दआुएं देती होंगी अक्सररयत बद्द दआुएं नहीं देतीं, आहें देती हैं। याद रखखयेगा! आहें बद्द दआुओं से

    ज़्यादा असर रखती हैं और उन का असर बअज़ औक़ात इंसान और बअज़ औक़ात नस्ट्लों तक चलता है,

    उसको बीवी की आहें लगती और उल्झाती रही ंलेककन उस पर वही एक धनु सवार थी कक मैं ने माल

    कमाना है, दौलत कमानी है और चीज़ें बनानी हैं और तीसरा नुक़्सान और घाटा ये हुआ कक बीवी घर में

    नस्ट्लों की मेअमार और शौहर बाहर से नस्ट्लों के ललए छतरी, िब छतरी हट िाती है तो मेअमार की कोई

    हैलसय्यत नहीं रहती स्िस औलाद पर बाप का साया नहीं होता, बहुत कम है कक उन के इख़्लाक़, आमाल,

    मुआश्रत और तहज़ीब बेह्तर हो सके वरना अक्सर वो इख़्लाक़ मुआश्रत और तहज़ीब स ेदरू हो कर नंगी

    स्ज़न्दगी और बग़ावत पर उतर आत ेहैं और मुआशरे की उस स्ज़न्दगी को पसंद करते हैं िो कक मुआशरे

    की बहुत बद्द तरीन स्ज़न्दगी होती है। बस उस शख़्स के ज़वाल का सबब ये तीन बातें बनीं। माूँ बाप की

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    दआुओं से महरूमी, बीवी की आहें और लसस्स्ट्कयां और औलाद की तरबबयत में कमी। और ये कमी

    आदहस्ट्ता आदहस्ट्ता बढ़ती चली गयी िो कमाता था औलाद को देता था और औलाद को बना बनाया माल

    बग़ैर मेहनत और मुशक़्क़त के िो लमला उन के अदंर क़ददातनी तो पहले ही ख़त्म हो चकुी थी बाप के क़ुबत

    ने मुहब्बत दी ना थी, क़ुबत ही ना रहा तो बाप की ख़नू पसीने की कमाई का एह्सास भी ना रहा। तो बाप

    माल भेिता रहा, ना तिुबकेारी दौलत की ज़्यादती, उठती िवानी, िज़्बात और छतरी बबल्कुल नहीं।

    बस किर क्या था सब कुछ लुट गया आि उस शख़्स को घर से ननकले ३५ साल हो गए हैं, पच्चीस साल

    भरपूर कमाई की पर हालसल कुछ ना हुआ। और अब साल्हा साल से पांच छे सो ररयाल की नोकरी में

    बुढ़ापे की स्ज़न्दगी एक शख़्स की चौकीदारी में गुज़ार रहा और अपनी हसरतों पे बैठ कर आंसू बहाता है,

    मेरी औलाद नाफ़मातन ननकली, मेरी औलाद ने मेरी माल व दौलत और चीज़ों की क़दर नहीं की। उसे अपने

    वाललदैन के साथ बीती स्ज़न्दगी भूल गयी उस ने अपने वाललदैन के साथ क्या ककया था? याद रखखयेगा

    स्ज़न्दगी में मकाफ़ात और िैसा बोना वैसा काटना ये हमेशा रहा है। हाूँ रब करीम है, ककसी के ललए

    मुआफ़ी का इंतज़ाम और मुआफ़ी का ऐलान कर दे उस से कौन पूछ सके? लेककन ये मकाफ़ात का

    ननज़ाम सदा चलेगा, मैं लसफ़त उन माल कमाने वालों की खख़दमत में िो घर से दरू दरहम दीनार ररयाल

    पाउंि, यूरो, िॉलर और क़ीमती करेंसी ख़बू कमाई। ररज़्क़ हलाल कमाना और ररज़्क़ हलाल के ललए

    मेहनत करना ना ऐब है ना मैं मना करता हूूँ लेककन आप की खख़दमत में इतनी दरख़्वास्ट्त ज़रूर करूूँ गा

    कक इन तीन चीज़ों का अगर ख़्याल रख सकते हैं तो ज़रूर रखखयेगा अगर नहीं रख सकते तो बराहे करम!

    लौट आएं ये आन ेदो आने वाला पाककस्ट्तानी रुपया लाखों के िॉलर ररयाल और दीनार से कही ंबेह्तर है

    स्िस का अिंाम परेशानी मसाइल और मुस्ककलात हैं। क़ाररईन! मैं कभी कभी आप को इस मोज़ूअ पर

    छेड़ता हूूँ और याद दहानी कराता हूूँ, उम्मीद है मेरी बातों पर आप तवज्िह करेंगे क्योंकक हर चीज़ माल

    दौलत और नस्ट्लों को नही ंसंवारती कुछ और सबब भी होत ेहैं। स्िस से माल दौलत और चीज़ें बनती हैं।

    बेरून मुल्क स्ितने भी लोग ररज़्क़ रोज़ी के ललए गए हैं उन की खख़दमत में मेरी ये तीन गुज़ाररशात हमेशा

    रहीं, अक्सर लोगों की आूँखों पर शीश ेहोते हैं वो शायद मेरी गुज़ाररशात को ना पढ़ें हत्ता कक सुन्ना भी

    गवारा ना करें लेककन हक़ीक़त सदा आककार होती है और हक़ीक़त हक़ीक़त होती है।

    माहनामा अबक़री अगस्त 2015 शुमारा निंबर 110_____________Page No 3

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    दर्स रूहाननयत व अम्न

    हम दनु्या में कययूँ और ककर् ललए आये? शैख़-उल-वज़ाइफ़ हज़रत हकीम मुहम्मद ताररक़

    महमयद मज्ज़यबी चुग़ताईدامت برکاتہم

    हफ़्तवार दर्स रे् इक़्तबार्

    फ़लाह पाने वाले: एक ख़ातून न ेएक अल्लाह वाले स ेपूछा कक मेरा बच्चा िब स्ट्कूल िाता है तो मेरा ददल

    हर वक़्त उस में अटका रहता है। तो उस अल्लाह वाले ने फ़मातया: "क्या कैकफ़य्यत होती है?" ख़ातून ने

    अज़त ककया: "हज़रत हर पल मेरा ददल उस की कैकफ़य्यतों में अटका रहता है कक अब सो रहा होगा या िाग

    रहा होगा, कही ंचोट तो नहीं लगी, कही ंगगर तो नहीं पड़ा, कहीं खाना, प्यास, पेशाब की कैकफ़य्यत होगी

    तो छोटा बच्चा है, अगर पेशाब आया तो कौन अस्ट्तंिा कराएगा, अगर भूक लगी तो कौन खाना

    खखलाएगा, अगर प्यास लगी तो कौन प्यास बुझाएगा, कौन क्या करेगा हर वक़्त उस में ही ददल अटका

    रहता है।" तो अल्लाह वाले ने फ़मातया: "मैं न ेतुझ ेअल्लाह, अल्लाह लसखा ददया है आि के बाद तेरा ददल

    अल्लाह की ज़ात की तरफ़ ऐसे ही अटका रहेगा िैसे तरेा ददल तेरे बच्चे के बारे में रहता है।" तो स्िस का

    ददल अल्लाह की ज़ात आली की तरफ़ ऐसे ही अटका रहेगा वो फ़लाह पाएगा।

    अल्लाह जजन के क़रीब आता है: ऐसा फ़दत बज़ादहर दनु्या में होगा लेककन उस का ददल अल्लाह की ज़ात

    आली की तरफ़ ऐसा अटका हुआ होगा िैस ेबच्च ेकी तरफ़ उस की माूँ का ददल अटका हुआ होता है और

    माूँ हर पल बच्च ेके साथ ना होत ेहुए भी साथ होती है। हम न ेअल्लाह को देखा नहीं लेककन अल्लाह हमारे

    साथ है। उसी तरह बच्चा हम से दरू है और हम न ेबच्च ेको देखा नहीं लेककन बच्चा दरू होते हुए भी हमारे

    साथ है। किर माूँ ख़्याल ही ख़्याल में उस का बोसा ले रही होती है, उसे अपनी बाूँहों में ले रही होती है,

    तसव्वुर ही तसव्वुर में उस को नेहला रही होती है, तसव्वुर ही में उस को बुला रही होती है, तसव्वुर ही में

    उस को पहना रही होती है, तसव्वुर ही में उस को खखला रही होती है। किर ऐसे ही अल्लाह की ज़ात आली

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    का तसव्वुर हो िाता है। अल्लाह की मुहब्बत और अल्लाह का तअल्लुक़ ददल में रच बस िाता है। किर

    उस के ललए मेहनत कर के, मुशक़्क़त कर के, मुिादहदा कर के िब बन्दा इस कैकफ़य्यत में पोहंचता है तो

    किर अल्लाह उस के क़रीब आ िाता है।

    ज़रूररयात जज़न्दगी और हलाल व हराम ज़राए: अब अल्लाह पाक िल्ल शानुहू ने बन्दे के साथ सारी

    ज़रूररयात लगा दी हैं। खाना खाना ज़रूरत, पानी पीना ज़रूरत, कपड़ा पेहेन्ना ज़रूरत स्ज़न्दगी का

    ननज़ाम ज़रूरत है। ये सब अल्लाह ने इंसान के साथ लगा ददया है। अब अल्लाह पाक फ़मातते हैं ये बता कक

    तू हलाल की स्ज़न्दगी में िाएगा या हराम की स्ज़न्दगी में िाएगा। किर अल्लाह ने उस को ढील दे दी। ये

    हराम के रास्ट्त ेहैं। ये हलाल के रास्ट्ते हैं दोनों बता ददए। हराम के रास्ट्तों में ज़ादहरन चमक और लज़्ज़त

    बहुत नज़र आ रही होती है लेककन हलाल के रास्ट्तों के अदंर ज़ादहरं कांटे नज़र आते हैं, उन हलाल के

    रास्ट्तों के अदंर बज़ादहर ख़कुकी नज़र आती है, उन रास्ट्तों के अदंर ज़ादहरं कोई चमक नज़र नही ंआती।

    अल्लाह पाक ने लसफ़त दो रास्ट्ते ददए हैं और उन दोनों रास्ट्तों पर अख़्तयार भी दे ददया है और अख़्तयार भी

    थोड़ ेअरस ेके ललए ददया है। इक़्तदार भी थोड़ा अरसा ददया।

    हर उरूज को ज़वाल है: ये हक़ीक़त तवज्िह तलब है!!! इंसान अपने फ़न में फ़न्कार भी होता है, ककसी

    सब्िेक्ट में स्ट्पेशललस्ट्ट भी होता है, अपने फ़न में यक्ता भी होता है, कोई कारीगर है स्ितनी उम्र बढ़ती

    िाएगी कारीगरी में यक्ता होता िाएगा, इधर फ़न में यक्ता होता है। इधर फ़न में उरूि पाता है तो उधर

    मोत का फ़ररकता दरवाज़ा खटखटाता है। कही ंये दावा ना कर बैठे कक सब कुछ में ही हूूँ। किर वो कारीगर

    और उस की दास्ट्ताूँ ख़त्म हो िाती है। किर नया बन्दा आता है। वो कभी िूबता है, तो कभी उभरता है,

    किर उस का लसतारा चमकता है, किर वो उस्ट्ताद केहेल्वाता है, किर वो अपने फ़न में बाकमाल हो िाता

    है। किर यूूँ होता है कक मोत का फ़ररकता उस का दरवाज़ा खटखटाता है। अज़ल से ये तारीख़ ऐसे ही चलती

    आ रही है।

    कया हम दनु्या में इर् ललए आत ेहैं?:

    अब ये हमारे ललए लम्हा कफ़क्र ये है कक क्या हम यहाूँ बच्च ेपैदा करने की मशीन, माल कमाने की मशीन,

    नोट छापने की मशीन, एक गाड़ी से दसूरी, एक प्लाट से दसूरा प्लाट क्या हम इस ललए आत ेहैं? हम

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    ककस ललए आये हैं? एक पैग़ाम है और ये मेरे ललए भी है आप के ललए भी है, मैं भी इस का मोह्ताि हूूँ

    आप भी इस के मोह्ताि हैं, पैग़ाम ये है कक हम ककस ललए आये हैं दनु्या में? क्यूूँ आये हैं दनु्या में?

    कया मुर्ल्मान और काकफ़र की जज़न्दगी में कुछ फ़क़स नहीिं?:

    काकफ़र से पूछा क्यूूँ आया? कहने लगा इस ललए आया कक बड़ा हो िाऊं, ललहाज़ा खेलते खेलते बड़ा हो

    गया। इस के बाद माूँ बाप ने ककसी कस्ट्ब में लगा ददया, पहले पढ़ाने में लगाया, किर कारोबार में लगाया

    इस के बाद शादी कर दी, शादी के बाद बच्च ेहो गए, किर बूढ़ा हो कर मर गया बस स्ज़न्दगी ख़त्म।

    मुसल्मान भी सोचे कक क्या उस की स्ज़न्दगी के ददन रात भी ऐसे ही गुज़रन ेचादहए? तो किर काकफ़र और

    मुसल्मान की स्ज़न्दगी में कोई फ़क़त ही नही ंरहा? सुबह उठत ेही काकफ़र सोचता है कक आि का ददन कैसे

    गुज़रेगा? सुबह उठत ेही मुसल्मान सोचता है आि का ददन कैसे गुज़रेगा? कोई फ़क़त रहा? कोई फ़क़त भी

    ना रहा?

    मुर्ल्मान की जज़न्दगी में इजम्तयाज़ कैर्े आएगा?:

    फ़मातया कक िब कोई मुसल्मान सुबह उठते ही दनु्या को, माल को, चीज़ों को, अस्ट्बाब को सोचता है तो

    एक फ़ररकता िो दाए ंतरफ़ होता है वो आवाज़ देता है कक ऐ अल्लाह के बन्दे मेरे अल्लाह को सोच,

    अल्लाह की सोच दामन गीर कर कक मैं आि के ददन अल्लाह को कैसे राज़ी करूूँ गा। उस वक़्त एक शैतान

    िो इंसान के बाए ंतरफ़ होता है वो आवाज़ देता है ख़्याल करना अल्लाह को ना सोचना, अल्लाह की ना

    सोचना। दनु्या को सोच, िो त ूसोच रहा है बबल्कुल ठीक सोच रहा है। मुसल्मान फ़ररकते की आवाज़ को

    नहीं सुन सकता, वो शैतान की आवाज़ को भी नहीं सुन सकता, फ़ररकता अपनी ड्यूटी पूरी करता है शैतान

    अपनी ड्यूटी पूरी करता है। (िारी है)

    दर्स रे् फ़ैज़ पाने वाले मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! हम ने अबक़री ररसाला पढ़ा बहुत अच्छा लगा,

    अबक़री ररसाला अपने ररकतेदारों को भी हदया ककया वो भी अब हर माह बाक़ाइदगी से ररसाला ले रहे हैं।

    इस ररसाले की विह से हम सब में बड़ी तब्दीललयां आ गईं हैं। ख़ास कर आप के दसत सुन्ने से तो ददल की

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    दनु्या ही बदल गयी, हम सब आप के ललए दआुएं करत ेहैं। हम पहले अूँधेरे में थे हमें रौशनी लमल गयी।

    मुझ े३० साल से रात को नींद का मसला था, सारी सारी रात िागती नींद ना आती थी, किर उठ कर आप

    के दसत सुन्ना शुरू कर देती थी, अिब सुकून लमलता, आदहस्ट्ता आदहस्ट्ता दसत सुनत ेसुनत ेही नींद आ

    िाती। पहले नींद की दवाई के बग़ैर नींद ना आती थी अब बग़ैर ककसी दवाई के पुरसुकून सोती हूूँ। दसत की

    विह से हमारे घर में सुकून आ गया है, बहुत से कारोबार व मुआशी मसाइल हल हुए हैं। मेरा सारा घर

    आप से बहुत मुहब्बत और अक़ीदत रखते हैं और अल्लाह तआला का शुक्र अदा करते हैं, अगर हमें

    अबक़री और आप का दसत ना लमलता ना िाने इस वक़्त हम ककस हाल में होत,े उस रहमान ने हमें आप

    से लमला ददया ये सब उस की नज़रे करम है वरना हम इस क़ाबबल कहाूँ थे। (वाललदा नसीम अख़्तर)

    माहनामा अबक़री अगस्त 2015 शुमारा निंबर 110________________Page No 4

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    बग़ैर कश्ती के र्मुन्दर पार करने वाले

    (र्मुन्दर न ेउन्हें अल्लाह के हुकम र्े पार करा हदया ये इर् तरह र्मुन्दर पर चल रहे थे जैर्ा कक नरम

    रेत पर चला जाता है। ऊिं टों के पैर नहीिं नघस्ते थे और घोड़ ेर्वारों के रकाब तक पानी नहीिं पोहिंचता था और

    ये मर्ाफ़त कश्ती के ललए एक हदन रात की थी।) (अबय लबीब शाज़्ली)

    क़ैस बबन हिाि ने स्िन साहब स ेये ररवायत सुनी है वो नक़ल करते हैं िब हज़रत उमरू बबन अलआ्स ्

    عنہ ہللا رضی ने लमस्र फ़तह ककया तो उन के पास अहल लमस्र उस महीना में आये स्िस को 'बोना' उन की

    ज़बान में कहत ेहैं, बोना अज्मी ज़बान में एक महीने का नाम है और उन से कहा ऐ अमीर! हमारे इस नील

    के ललए एक तरीक़ा है इस में पानी बग़ैर इस तरीक़े के नहीं रहता है, उन से पूछा कक वो तरीक़ा क्या है?

    उन्हों न ेकहा िब इस महीने की बारहवी ंरात गुज़र िाती है तो हम एक ऐसी कंुवारी लड़की की तरफ़

    क़सद करते हैं िो अपने माूँ बाप की इक्लोती होती है, उस के माूँ बाप को हम राज़ी कर लेत ेहैं और उसे

    हम ज़ेवर और ललबास फ़ाख़्रह से िहाूँ तक हो सकता है, मुज़य्यं करते हैं, किर हम उस लड़की को दयातए

    नील में िाल देते हैं तो उन से हज़रत इब्न अलआ्स ् عنہ ہللا رضی न ेफ़मातया ये बात इस्ट्लाम में नहीं हो

    सकती, इस्ट्लाम हर उस रस्ट्म को गगरा देता है िो इस से पहले है, चनुाच ेअहल लमस्र इन तीन महीनों में

    बोना और अबीब और लमस्री में ठहरे रहे, दयातए नील बबल्कुल भी िारी ना हुआ यहाूँ तक कक उन लोगों ने

    िलावतनन का इरादा ककया, िब ये बात हज़रत इब्न अलआ्स ् عنہ ہللا رضی न ेदेखी तो हज़रत उमर

    عنہ ہللا رضی के पास इस बात को ललखा, हज़रत उमर عنہ ہللا رضی न ेउन्हें िवाब ददया कक तुम ने ये

    बात ठीक कही कक इस्ट्लाम अपने से पहली रस्ट्मों को लमटा देता है, मैं तुम्हारे पास ये परचा भेिता हूूँ िब

    तुम्हारे पास मेरा ख़त पोहंच ेतो उस पच ेको नील के अदंर िाल देना, िब हज़रत उमर عنہ ہللا رضی का

    ख़त इब्न अलआ्स ् عنہ ہللا رضی के पास आया उस परचा को खोल कर पढ़ा तो उस पच ेमें लसफ़त इतना

    मज़्मून था: अल्लाह के बन्दे उमर अमीरुल मोअलमनीं की तरफ़ से अहल लमस्र के दयातए नील के ललए,

    अमाबाद! अगर तू अपनी तरफ़ से िारी होता था तो मत िारी हो और अगर अल्लाह वादहद क़ह्हार ने

    तुझ को िारी ककया था तो हम अल्लाह वादहद क़ह्हार से सवाल करत ेहैं कक तुझ को िारी कर दे" हज़रत

    इब्न अलआ्स عنہ ہللا رضی ने ये परचा दयातए नील में उस रोज़ से एक ददन पहले स्िस में कक ये लोग

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    लड़की को भेंट चढ़ाते थे, िाल ददया। उधर अहल लमस्र िलावतनन का और लमस्र से चले िाने का इस ललए

    इरादा ककये हुए थे कक उन की मुआश का मुआम्ला दयातए नील के बग़ैर दरुुस्ट्त ना हो सकता था। भेंट

    चढ़ाने वाले ददन िब लोगों ने सुबह देखा कक अल्लाह पाक ने दयातए नील का पानी सोला हाथ ऊंचा बहा

    ददया है। और ये बुरा तरीक़ा अहल लमस्र से हमेशा के ललए ख़त्म हो गया। (और आि तक दयातए नील नहीं

    सूखा) उरवतुल अइम्मा मोला बनी सअद ने बयान ककया कक अबू रेहाना समुन्दर में सवार हुए और ये

    नबी करीम ملسو هيلع هللا ىلص के सहाबी हैं ये लसलाई का काम करते थे उन की सुई समुन्दर में िा पड़ी तो उन्हों ने

    कहा ऐ रब! मैं तुझ ेक़सम देता हूूँ कक त ूमेरी सुई ज़रूर वापस कर दे, वो सुई सतह समुन्दर पर ज़ादहर हुई

    और उन्हों न ेउसे उठा ललया।

    हज़रत अबू हुरैरा عنہ ہللا رضی ने बयान ककया कक िब नबी करीम ملسو هيلع هللا ىلص ने हज़रत अला बबन हुज़्रमी

    عنہ ہللا رضی को तहरैन भेिा तो मैं भी उन के पीछे गया मैं ने उन से तीन बातें देखीं मैं नहीं िानता कक

    उन में स ेकौनसी ज़्यादा अिीब है? िब हम समुन्दर के ककनारे पोहंच ेउन्हों ने कहा अल्लाह का नाम लो

    और इस में घुस िाओ, चनुाच ेहम ने अल्लाह का नाम ललया और उस में उतर गए और उस से पार हो गए

    और हमारे ऊंटों के तल्वे तक भी तर नही ंहुए थे। एक ररवायत में है कक हज़रत अला عنہ ہللا رضی ने

    मुसल्मानों स ेकहा कक हमारे साथ दारेन चलो ता कक हम उन दकुमनों से ग़ज़्वा करें िो वहां हैं, मुसल्मानों

    ने फ़ौरन इस की तय्यारी की, हज़रत अला عنہ ہللا رضی उन को ले कर चले और समुन्दर के ककनारे आ

    गए ता कक कस्कतयों में सवार हों तो देखा कक मसाफ़त बहुत बईद है, दकुमनों तक ककती के ज़ररए नही ं

    पोहंच सकते हैं, दकुमन भाग िाएंगे ये अपने घोड़ों समेत समुन्दर में कूद पड़ ेऔर कह रहे थे "या अहतम-र-्

    रादहमीन या हकीमु या करीमु या अहद ुया समद ुया हय्यु या मुह्यु या क़य्यूमु या ज़ल-्िलालल वल-्

    इक्रालम। ला इलाह इल्ला अन्त या रब्बना"

    اْلم لم وااالا

    ْذاااْل قاییُوُم َیا ُُمُْی َیا ُ َیا ی حا ُد َیا ا َصا ُد َیا ااحا ْیُم َیا رم

    کا ْیُم َیا کم حا ْْیا َیا م اِحم ا الریاااْرَحا َیااا َیا را ااْت ا َیا

    ا لَ ا املی َلا ام امم ( ْکرا (

    और सारे लककर को हुक्म ददया कक घुस िाएं चनुाचे सारे लककर न ेऐसा ही ककया समुन्दर ने उन्हें

    अल्लाह के हुक्म से पार करा ददया ये इस तरह समुन्दर पर चल रहे थे िैसा कक नरम रेत पर चला िाता

    है। ऊंटों के पैर नही ंनघस्ट्ते थे और घोड़ ेसवारों के रकाब तक पानी नहीं पोहंचता था और ये मसाफ़त ककती

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    के ललए एक ददन रात की थी। इस समुन्दर को दसूरे ककनारे तक पार ककया और अपने दकुमनों से लड़ ेऔर

    उन पर ग़ाललब आ गए और उन का माल ग़नीमत िमा ककया इस के बाद वापस आये तो समुन्दर को एक

    दसूरी िाननब से पार कर रहे थे कक अपनी पहली िगा पर लौट आये और ये सब बात एक ही में हुई। इस

    के बाद िब हम लौटे और उन के साथ चले, ज़मीन के एक िंगल में, और हमारे पास पानी नही ंथा हम ने

    उन से इस बात की लशकायत की उन्हों न ेदो रकअत नमाज़ पढ़ी इस के बाद दआु की तो अचानक ढाल के

    बराबर एक अब्र नुमूदार हुआ किर उस अब्र ने अपनी मशकेँ लटका दी ंतो हम ने वपया और ऊंटों को

    वपलाया और उन की वफ़ात हो गयी, हम ने उन को रेत में दफ़न ककया, हम थोड़ी दरू तक चले थे कक हम

    ने कहा कक दररदें आएूँगे और उन को खा िाएंगे, हम िो उन की क़ब्र की तरफ़ वापस हुए तो उन को क़ब्र

    में ना देखा। एक ररवायत में ये इज़ाफ़ा है िब हम को उन मकअबर कसरा के गवनतर ने देखा तो उस ने

    कहा ख़दुा की क़सम हम उन का मुक़ाबला ना करेंगे तो वो एक ककती में बैठ कर फ़ारस चला गया।

    (हयातुल सहाबा दहस्ट्सा दहुम '१०')

    तीन घयूँट पपयो बे कफ़क्र जजयो: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अबक़री ररसाले वपछले काफ़ी अरसे से मुसल्सल

    पढ़ रही हूूँ, हमने अपनी मुस्ककलात के हल के ललए आप को ख़त ललखा था आप ने हमें कुछ अमल करन े

    को बताए थे। आप के बताए हुए तमाम वज़ाइफ़् पर हमने अमल ककया है, माशाअल्लाह हमारी काफ़ी

    परेशाननयां ख़त्म हो गयी हैं मैं न ेवज़ू वाला अमल ककया है िो कक इस तरह कक वज़ू करने के बाद आप

    उसी नल्के से तीन घूूँट पानी पीए,ं पहले घूूँट पर अल्लाह शाफ़ी, दसुरे घूूँट पर अल्लाह काफ़ी और तीसरे

    घूूँट पर अल्लाह मुआफ़ी कहें। कोलशश करें कक ये पानी खड़ ेहो कर पीएं। मेरे बहुत से मसाइल िो हल नहीं

    हो रहे थे वो वज़ू के तीन घूूँट पानी वाले अमल से हल हो गए। मेरी िो िो हाितें थी ंवो इस अमल ने पूरी

    कर दीं। आप का बे हद्द शुकक्रया कक आप के ददए गए अमल से हमारी मुस्ककलात ख़त्म हो गयी हैं।

    अल्लाह आप को इस का अिर अज़ीम ज़रूर देगा। (लमलसज़ नूर मुहम्मद, सक्खर)

    माहनामा अबक़री अगस्त 2015 शुमारा निंबर 110______________Page No. 5

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    माललश! बच्चों के बेशुमार अमराज़ का आर्ान इलाज (बच्चों की माललश उर् वक़्त तक जारी रखें जब तक वो कई र्ाल के ना हो जाएिं। अगर आप मज़ीद

    हहम्मत करें तो बच्चों के स्कय ल जाने की उम्र के बाद भी मस्र्ाज के मामयल को कम अज़ कम उर् वक़्त

    तक जारी रखें जब तक कक वो इर्े बदासश्त कर र्कें ।) (प्रोफ़ेसर उमाइमा इस्म्तयाज़)

    बच्चों की स्िल्द और बालों को ख़सुूसी तवज्िह और देख भाल की ज़रूरत होती है ता कक मज्मूई सेहत के

    साथ उन की स्िल्द और बाल भी इब्तदा ही से सेहतमंद रहें लेककन बेकतर माएूँ इस बारे में ज़्यादा

    मालूमात नही ंरखतीं। ललहाज़ा िहाूँ मुख़्तललफ़ रसाइल में ख़वातीन की स्स्ट्कन और हेयर केअर के बारे में

    बेशुमार मज़ामीन ललखे िाते हैं इसी तरह बच्चों के ललए भी इस बारे में मज़ामीन ललखे िाने चादहयें ता

    कक माएूँ उन से रहनुमाई हालसल कर सकें । यही विह है कक इन सतूर में आि नोननहालों की नरम व

    नाज़ुक स्िल्द और बालों की दहफ़ाज़त के ललए कुछ मकवरे पेश ककये िा रहे हैं। हमारे हाूँ आम तौर पर

    होता कुछ यूूँ है कक िैस ेही घर में ककसी नो मोलूद का इज़ाफ़ा होता है, ख़ान्दान और मोहल्ले पड़ोस की

    तमाम तर ख़वातीन इस के बारे में अपन ेअपने मकवरों से नवाज़न ेके ललए आ पोहंचती हैं। इस तरह माूँ

    मज़ीद परेशा ंहो िाती है कक ककस के मकवरे पर अमल ककया िाये और ककस के मकवरे पर नहीं। सो आि

    कल ये सूरत हाल है कक अगर माूँ के पास कोई मददगार मौिूद हुआ तो कुछ रोज़ तक नो ज़ाएदा बच्च ेका

    मस्ट्साि वग़ैरा कर ललया िाता है वरना नही ंिबकक बच्चों को शीर ख़्वारी की उम्र के बाद भी मस्ट्साि,

    स्स्ट्कन केअर और हेयर केअर की ज़रूरत होती है। स्िल्द हमारे स्िस्ट्म का हस्ट्सास तरीन दहस्ट्सा है और

    बच्चों की स्िल्द मज़ीद नरम व नाज़ुक होती है इस ललए शुरू ही से उन की दहफ़ाज़त करें और स्िल्द के

    साथ बालों की देख भाल को मामूल का दहस्ट्सा बना लें। इस तरह बच्चे िंू िंू बड़ ेहोंगे उन्हें ख़दु भी इन

    चीज़ों की एहलमयत का अदंाज़ा होने लगे गा और नोिवानी की दहफ़ाज़त के आदी हो चकेु होंगे। दसूरी

    विह ये है कक बच्पन ही से इन बातों पर तवज्िह देने के नतीिे में स्िल्द और बाल चूकंक सेहतमंद रहेंगे

    ललहाज़ा वो मुख़्तललफ़ मसाइल का लशकार होने से बचे रहेंगे। इस तरह के बेकतर मसाइल बच्पन ही में

    अपनी िड़ें बना लेते हैं और किर नोिवानी की उम्र को पोहंचने तक ये मसाइल पुख़्ता हो िाते हैं। लमसाल

    के तौर पर स्िल्द के मसामात का बंद हो िाना वग़ैरा। ये सब ऐस ेमसाइल हैं स्िन से ज़रा सी तवज्िह

    की बदौलत इब्तदा ही में ही बचा िा सकता है। स्िल्द की दहफ़ाज़त: बच्चों की माललश उस वक़्त तक

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    िारी रखें िब तक वो कई साल के ना हो िाएूँ। अगर आप मज़ीद दहम्मत करें तो बच्चों के स्ट्कूल िाने की

    उम्र के बाद भी मस्ट्साि के मामूल को कम अज़ कम उस वक़्त तक िारी रखें िब तक कक वो इस ेबदातकत

    कर सकें । मस्ट्साि के दौरान बच्चों को उन की ददल्चस्ट्पी के मुताबबक़ बातों में लगाएं ता कक वो उस से

    िान छुड़ाने की कोलशश ना करें। हक़ीक़त ये है कक इस तरह एक साथ वक़्त गुज़ारने की सूरत में माूँ और

    बच्च ेके दरम्यान मुहब्बत और क़ुरबत में मज़ीद इज़ाफ़ा होता है। िब बच्च ेज़रा और बड़ ेहो िाएं तो

    उन्हें ललटा कर मस्ट्साि करने के बिाए बेठा भी सकती हैं। इस दौरान आप उन्हें कोई खखलौना पकड़ा दें

    या कोई अच्छी सी कहानी सुना दें। यूूँ वो मगन रहेंगे और आप इत्मीनान से अपना काम अिंाम दे

    सकें गी। इस से एक फ़ायदा ये भी है कक माललश के दौरान आप को बच्चों के स्िस्ट्म का िाइज़ा लेते रहने

    का मोक़आ लमलेगा। ललहाज़ा उन के स्िस्ट्म पर कोई ग़ैर मामूली उभार, दाना, िूँ सी या धब्बा देखें तो

    फ़ौरन िॉक्टर के पास ले िाएूँ। एक और एहम बात कक मस्ट्साि के वक़्त बच्चे की प्राइवेसी का ख़ास तौर

    स ेख़्याल रखें। घर के तमाम अफ़राद या मेहमानों के सामने उस का मस्ट्साि करना शुरू ना हो िाएं।

    मस्ट्साि के ललए माककत ट में बहुत से अच्छे बेबी ऑइल दस्ट्तयाब हैं। उन में से कोई ऐसा ऑइल मुन्तखख़ब

    कर लें स्िस से बच्चा एलिी महसूस ना करे। उस तेल में ज़ाफ़रान के कुछ रेश ेिाल कर रख दें ता कक उस

    की ख़बूबयों में मज़ीद इज़ाफ़ा हो िाए। गलमतयों में बच्चों को ककसी हल्के साबुन से दबुारह नेहलाएं। गलमतयों

    में आने वाला पसीना बच्चों की स्िल्द के मसामात बंद कर देता है ललहाज़ा उन्हें बाक़ाइदगी से ककसी

    अच्छे साबुन के साथ नहलाना ज़रूरी है। बग़ैर साबुन नहलाने से स्िल्द की ख़ानतर ख़्वाह सफ़ाई मुस्म्कन

    नहीं इस तरह बच्च ेगमी दानों का लशकार हो सकत ेहैं। उन के नहान ेका पानी गरम या ज़्यादा ठन्ि ेके

    बिाए मुअतदल रखें। हफ़्त ेमें एक बार नहलाने से पहले ताज़ह िलों और सस्ब्ज़यों के गूदे से बच्चों का

    मस्ट्साि करें। इस मक़्सद के ललए टमाटर, खीरा, गािर और केला बेह्तरीन है। इस दौरान बच्चों को िलों

    और सस्ब्ज़यों के इस मल्ग़बूे से खेलने की इिाज़त भी दें ता कक वो ख़शुी ख़शुी मस्ट्साि करवाएं। गलमतयों

    में भी स्िल्द को ठंिक पोहंचाने के ललए दही का इस्ट्तेमाल भी कर सकते हैं। इस के इलावा धपू के वक़्त

    िब भी बच्चों को बाहर ले िाएं तो उन्हें कोई अच्छा हीट और सन ्ग्लासेज़ पहनाएं। बालों की दहफ़ाज़त:

    बच्चों के बालों में व्क़्तन फ़वक़्तन तेल की माललश ज़रूर करें। सर में तेल लगाने के दौरान भी बच्चों को

    ककसी ना ककसी मकग़लेु में उल्झा कर रखें। सर के मस्ट्साि से बच्च ेसुकून महसूस करत ेहैं और किर इस

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    के आदी हो िाते हैं। हेयर ऑइल की बहुत सी अक़्साम माककत ट में दस्ट्तयाब हैं ता हम आप ख़कुबू वाले तेल

    के बिाए सादह और ख़ाललस तेल मुन्तखख़ब करें। ददन में कम अज़ कम दो बार बच्चों के बालों में कंघा या

    ब्रश करें ता कक ये सुल्झ ेहुए और चमक्दार रहें। बच्चों के बाल अगर उल्झ ेहुए हों तो उन्हें कई दहस्ट्सों में

    बाूँट लें और एक हाथ से थाम कर दसूरे हाथ से आदहस्ट्ता आदहस्ट्ता सुल्झाएं। इस तरह बाल कम से कम

    टूटेंगे और बच्च ेको ददत भी नहीं होगा। बच्च ेिंू िंू बड़ ेहों उन के बालों को नरम, चमक्दार और घना

    बनाने के ललए हेयर मास्ट्क लगाएं। हस्ट्ब ेज़रूरत दहना, सीका काई और आमला पौिर ले कर थोड़ ेसे तेल

    में लमलाए ंऔर दस लमनट के ललए बालों में लगा रहन ेदें किर सर धलुा दें। अगर आप के बच्च ेके बाल

    बहुत ज़्यादा ख़कुक हैं तो पहले बालों में तेल लगाएं लेककन िब तक मास्ट्क लगा हो बच्च ेको अपनी

    ननगरानी में रखें। ददन के वक़्त बाहर ले िाते वक़्त कैप वग़ैरा पहनाएं और एक से िढ़े माह के बाद उन के

    बाल बा क़ाइदगी से तुकवातए ंता कक ये सेहतमंद रहें और ख़शु नुमा ददखाई दें। बच्चों को बड़ों की प्रोिक््स

    लगाने से गुरेज़ करें िैस ेकी ऑइल, क्रीम या परफ़्यूम वग़ैरा। इन चीज़ों में मौिूद केलमकल्ज़ बच्चों की

    स्िल्द और बालों के ललए नक़ु्सानदह होत ेहैं। उन के बाल ख़कुक करने के ललए हेयर ड्रायर का इस्ट्तेमाल

    ना करें लेककन अगर सदी के बाइस या ककसी तक़रीब के ललए ड्रायर लगाना ज़रूरी हो तो उसे लो सेदटगं

    पर और बालों से ख़ासा दरू रखें। गीले बालों में कंघा ना करें क्योंकक इस तरह बाल बहुत ज़्यादा टूटते हैं

    और उन की लचक ख़त्म हो िाती है। चमक्दार साफ़ शफ़्फ़ाफ़ स्िल्द और घन ेसेहतमंद बाल शस्ख़्सयत

    को ख़शु नुमा और पुर कलशश बनान ेका बाइस होत ेहैं ललहाज़ा इस तरह बच्च ेके एतमाद में भी इज़ाफ़ा

    होता है। मंदिात बाला तमाम तिावीज़ लड़कों और लड़ककयों के ललए यक्सा ंमुफ़ीद हैं ता हम अगर आप

    का बच्चा ग़ैर मामूली हस्ट्सास स्िल्द का माललक है तो अपने िॉक्टर के मकवरे के बग़ैर ककसी तज्वीज़ पर

    अमल ना करें।

    माहनामा अबक़री अगस्त 2015 शुमारा निंबर 110______________Page No.6

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    हर आफ़त, तकलीफ़, क़त्ल व ग़ारत रे् बचने का आर्ान नुस्ख़ा (एक दम हिंगामा हुआ, क़त्ल की धमककयाूँ दी जा रही थीिं, गहरी नीिंद र्े वापर्ी हुई, देखा तो कोच रुकी

    हुई, ड्राईवर र्ीट र्े ग़ायब, दयर्री कोच के ड्राईवर ने बहुत ग़लीज़ गुफ़्तुगय की, ये तो ग़नीमत था कक जजर्

    कोच में राक़मा थी उर् ड्राईवर न ेकाफ़ी तहम्मुल लमज़ाजी का मुज़ाहहरा ककया)

    (ज़ककया इक़्तदार, बहावल्नगर)

    अक्सर सफ़र का इत्तफ़ाक़ होता है िब से सूरह कहफ़ सफ़र में पढ़ना शुरू की है बेशुमार अनहोन ेवाक़्यात

    देखे, अल्लाह तआला लसफ़त सूरह पढ़ने से ककस तरह बचाता है। हर आफ़त, मुसीबत और क़त्ल व ग़ारत

    स ेमहफ़ूज़ रखता है। अमूमन कोच में सफ़र के दौरान सूरह कहफ़ पढ़ती हूूँ, कोच की रवानगी से दस

    लमनट क़ब्ल कोच में बैठ िाती हूूँ, सूरह पढ़ चकुने के बाद पूरी कोच पर तीन मततबा िूूँ क मार देती हूूँ और

    ज़ेहन में ये तसव्वुर होता है कक स्िस तरह अल्लाह न ेअसहाब कहफ़ को हर मुसीबत से बचाया था ऐसा

    ही हमें भी दौरान सफ़र हर मुसीबत स ेबचा ले। अमूमन सूरह पढ़ने के बाद पुरसुकून हो िाती हूूँ, घर में

    मसरूफ़ होती हूूँ तमाम काम समेटने की िल्दी होती है, थकन ले कर कॉस्ट्टर में बैठ िाती हूूँ, सूरतें पढ़ती

    और नींद का दटकट होता है, ये दटकट गहरी नींद सुला देता है कहाूँ स्ट्टॉप आया है, या नही ंआता, नींद तो

    नॉन स्ट्टॉप होती है। आि भी ऐसा ही था। एक दम हंगामा हुआ, क़त्ल की धमककयाूँ दी िा रही थी,ं गहरी

    नींद से वापसी हुई, देखा तो कोच रुकी हुई, ड्राईवर सीट से ग़ायब, दसूरी कोच के ड्राईवर ने बहुत ग़लीज़

    गुफ़्तुग ूकी, ये तो ग़नीमत था कक स्िस कोच में राक़मा थी उस ड्राईवर न ेकाफ़ी तहम्मुल लमज़ािी का

    मुज़ादहरा ककया, सुलह करते हुए वापस कोच में आ गया, बाक़ी लोग भी आ कर अपनी सीटों पर

    बबरािमान हो गए। ड्राईवर ने गाड़ी स्ट्टाटत ही की थी कक दसूरा ड्राईवर तेज़ी से अपनी गाड़ी को इतना क़रीब

    लाया कक हमारी गाड़ी को टक्कर मार कर तबाह कर दे िो मंज़र राक़मा देख रही थी वो ख़ौफ़नाक था,

    गाड़ी के पख़तच्चे उड़त ेदेख रही थी, किर क्या होगा? राक़मा सोच भी रही थी और रो भी रही थी, रब से

    दआु मांगने की लशद्दत थी, इन्ही सेकंिों में मलाइका हमारी गाड़ी ननकाल कर ले गए थे क्योंकक ये ककसी

    इंसान के बस का रोग नहीं था। यही सोचती रही काश! दसूरे बस में भी ककसी मुसाकफ़र ने सूरह कहफ़ पढ़

    ली होती तो ऐसा ना होता। स्िस क़दर लोग ड्राइववगं करत ेहैं िो लोग पायलट हैं, रेन के ड्राईवर हैं,

    कोलशश कर के सूरह कहफ़ पढ़ कर ड्राइववगं सीट पर बैठें दनु्या का सफ़र ड्राइववगं करते गुज़र िाता है।

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    फ़ुरसत के मुन्तस्ज़र ना रहें। िब ये सूरह पढ़ेंगे तो ख़दु ब ख़दु वक़्त में बरकत होगी। तमाम ड्राइववगं

    करने वाली बहनों से दरख़्वास्ट्त करंूगी इन शा अल्लाह वो सूरह कहफ़ पढ़ कर ड्राइववगं करें इस सूरह के

    पढ़ने के कमालात देखें और अबक़री में ललख कर भेिें ता कक सब लोग इस सूरह को पढ़ा करें। अिर आप

    को भी लमलेगा। ये सूरह पढ़ने से परेशाननयां ख़त्म हो िाती हैं और वक़्त में बरकत होती है, हक़ीक़त

    ललखी है, अल्लाह करे क़ारी इस पर अमल करें।

    दयर्रा वाक़्या: आि भी सफ़र के ललए रवानगी थी, घरेलू मसरूकफ़यात ज़्यादा थीं, यूूँ स्ट्टैंि पर िाने में

    कुछ देर हो गयी, किर अपनी सीट पर िा कर बैठ गयी, िात ेही अपना पंि सूरह खोला और सूरह कहफ़

    पढ़ने लगी, चार रुकूअ ही पढ़े थे कक कोच में इस क़दर सवाररयां आईं कक सीटों के दरम्यान इंसानों की

    दीवार लग गयी, शीशों के सामने बहुत मोटे परदे पड़ ेहुए थे, मुझ ेएक बार पंि सूरह बंद करना पड़ा,

    अल्फ़ाज़ नज़र ही नही ंआ रहे थे, िंू ही मैं ने पढ़ना बंद ककया मुझ ेमहसूस हुआ गाड़ी कफ़ज़ा में

    क़लाबास्ज़याूँ खा रही है, फ़ौरन ख़्याल आया सूरह पढ़ना बंद कर दी है इस ललए अल्लाह की रहमत दरू हो

    गयी है। िल्दी से परदे हटाए पंि सूरह खोला और किर सूरह पढ़ने लगी, िंू ही सूरह पढ़नी शुरू की बस

    की क़लाबास्ज़याूँ रुक गईं, बहुत सुकून स ेसफ़र होन ेलगा, पूरी सूरह मुकम्मल की, किर पूरे सफ़र में कोई

    परेशानी ना हुई, िब सूरह पढ़नी बंद की, मलाइका को बे हद्द ना गवार गुज़रा बस क़लाबास्ज़याूँ खाने

    लगी, ये सोच कर बे हद्द ख़शुी हुई लसफ़त सूरह पढ़ने से मलाइका साथ रहते हैं। ये ककतनी ख़शु नसीबी है

    और इब्लीस दरू हो िाता है, िहाूँ इब्लीस ना हो वहां कभी झगड़ा नही ंहोता, वहां तो अम्न ही अम्न है।

    सफ़र करते दो घंटे गुज़र चुके थे मगर ना टी वी, ना िके, राक़मा ने अपनी साथी बहन से कहा िो

    हमसफ़र थी,ं ये स्ज़न्दगी में पहली गाड़ी देखी है स्िस में टी वी नहीं है। वरना तमाम सफ़र बहुत तक्लीफ़

    में कटता। हमसफ़र बहन कह रही थीं टी वी तो मौिूद है, चलाया नहीं है। सामने ननगाह िाली तो वाक़ई

    टी वी लगा हुआ था। ख़शुी की बात ये है कोई फ़दत बस में बोलता ही नहीं। सोते हुए और अल्लाह का स्ज़क्र

    करते हुए सफ़र गुज़रता है। स्ज़न्दगी गुज़ारने का मज़ा अल्लाह की अताअत में है। हर सफ़र में बा

    क़ाइदगी से सूरह पढ़ती हूूँ। मोहतरम क़ाररईन! आप भी ये सूरह पढ़ा करें किर इस के कमालात देखें।

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    इस्लाम और रवादारी

    पैग़म्बर ملسو هيلع هللا ىلص इस्लाम का ग़ैर मुजस्लमों रे् हुस्न र्लयक (कक़स्त निंबर १००) (इब्न ज़ेब लभकारी)

    (बहैलर्य्यत मुर्ल्मान हम जजर् बा अख़्लाक़ नबी ملسو هيلع هللا ىلص के पैरोकार हैं उन का ग़ैर मुजस्लमों र्े कया

    लमर्ाली र्लयक था, आप ने र्ाबबक़ा अक़्र्ात में पढ़ा अब उन के जान्वरों र्े हुस्न र्लयक के चिंद वाक़्यात