ओशो गंगा_ osho ganga_ अष्टावक्र_...

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  • 8/9/2019 _ Osho Ganga_ _ -- -1( ) --9

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    सोमवार , 30 दसंबर 2013 अटाव : माहागीता --भाग -1( ओशो ) वचन --9

    मरेा म  झुको  नमकार —वचन —नौवां

    जनक उवाज।

    काशो म नज पं नातरतोऽयहं ततः।

    यदा काशते वव तदाउउहंभास एव ह।।28।।

    अहो विकपतं ववमानायय भासते ।

    यं श  ुतौ फणी रजौ वार सयकरे यथा ।।29।।

    मतो वनगतं ववं मयेव लयमेयत।

    म  ृद क  ु भो जले वीच: कनके कटकं यथा।।30।।अहो अहं नमो मझ ंवनाशो यय िनात म ।

    मादतबययत ंजगनाशेउप तठत:।।31।।

    अहो अहं नमो मयमेकोऽहं देहवानय ।

    वचनगता नागता यात वविवाथत:।।32।।

    अहो अहं नमो मख ंदो नातीह मसम:।

    असंथ  ृय शररेण येन वव चर ध  तृ म।्।33।।

    अहो अहं नमो मख ंयय मे िनात क  ं चन।

    अथवा यय म सव यदाङमनसगोचरम।्।34।।

    ध म अन  ुभ  ूत है, वचार नहं। वचार धम क छाया भी नहंबन पाता। और जो वचार म ह उलझ जाते ह, वे धम से सदा के लए 

    द  रू रह जाते ह। वचारक िजतना धम से द  रू होता है उतना कोई और 

    नहं!

    मरे ेबार ेम

    OSHO GANGA

    NEW DEHLI, NEW DEHLI,

    INDIA

    ओशो सयासी 

    मरेा प  रूा ोफ़ाइल देख

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    अटाव : माहागीता --

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    जैसे ेम एक अन  ुभव है, ऐसे ह परमामा भी एक अन  ुभव है।

    और अन  ुभव करना हो, तो समता से ह संभव है।

    वचार क या मन  ुय का छोटा—सा अंश ह ै—और अशं भी 

    बह  ुत सतह, बह  ुत गहरा नहं। अंश भी अंततल का नहं, क का 

    नहं, परध का; न हो तो भी आदमी जी सकता है । और अब तो 

    वचार करने वाले यं नमत ह  ुए ह, उहने तो बात बह  ुत साफ कर द क वचार तो यं भी कर सकता है, मन  ुय क क  ु छ गरमा नहं!

    अरटोटल या उस जसैे वचारक ने मन  ुय को वचारवान ाणी 

    कहा है। अब उस परभाषा को बदल देना चाहए, यक अब तो 

    कंय  टूर वचार कर लेता ह ै—और मन  ुय से यादा दता से, यादा 

    नप  ुणता से; मन  ुय से तो भ  लू भी होती है, कंय  टूर से भ  लू क 

    संभावना नहं।

    मन  ुय क गरमा उसके वचार म नहं है। मन  ुय क गरमा 

    उसके अन  ुभव म है।जैसे त  ुम वाद लेते हो कसी वत  ु का, तो वाद केवल नहं है।

    घटा! त  ुहारे रोए ं—रोएं म घटा। त  ुम वाद से मगन ह  ुए।

    जैसे त  ुम शराब पी लेते हो, तो पीने का परणाम त  ुहारे वचार 

    म ह नह ंहोता, त  ुहारे हाथ —परै भी डावांडोल होने लगते ह। शराबी 

    को चलते देखा? शराब रोएं —रोएं तक पह   ुचं गयी! चाल म भी झलकती 

    है, आंख म भी झलकती है, उसके उठने—बैठने म भी झलकती है,

    उसके वचार म भी झलकती है; लेकन उसके सम को घेर लेती है।

    धम तो शराब जैसा ह ै—जो पीयेगा, वह जानेगा; जो पी कर 

    मत होगा, वह अन  ुभव करेगा। जनक के ये वचन उसी मदरा 

    के ण म कहे गये ह। इह अगर त  ुम बना वाद के समझोग,े तो 

    भ  लू हो जाने क संभावना है। तब इनका अथ त  ुह क  ु छ और ह 

    माल  मू पड़ेगा। तब इनम त  ुम ऐसे अथ जोड़ लोगे जो त  ुहारे ह।

    जैसे क क  ृ ण कहते ह गीता म : सव धमान ्परयय,

    मामेकं शरणं ज। —सब छोड़—छाड़ अज   ुन, त   ूमेर शरण आ!

    जब त  ुम पढ़ोग ेतो ऐसा लगेगा यह घोषणा तो बड़े अहंकार क 

    हो गयी; 'सब छोड़—छाड़, मेर शरण म आ! मेर शरण म!'

    तो इस 'मेरे' का जो अथ त  ुम करोगे, वह त  ुहारा होगा, क  ृ ण 

    का नहं होगा। क  ृ ण म तो कोई 'म' बचा नहं है। यह तो सफ कहने

    क बात है। यह तो तीक क बात है। त  ुमने तीक को बह  ुत यादा 

    समझ रखा ह।ै त  ुहार ांत के कारण तीक त  ुह सय हो गया है।

    क  ृ ण के लए केवल यवहारक है, पारमाथक नह।ं

    त  ुमने देखा, अगर कोई आदमी राय झडंे पर य  कू दे, तो मार 

    भाग -1 वचन --10

    अटाव : माहागीता --भाग -1(ओशो ) वचन --9

    अटाव : माहागीता --भाग -1(ओशो ) वचन -

    -8

    अटाव :माहागीता --भाग -1 (ओशो ) वचन --7

    अटाव : माहागीता --भाग -1 वचन --6

    अटाव : माहागीता --भाग -1 वचन --5

    अटाव :माहागीता --भाग -1(ओशो ) वचन -4

    अटाव माहागीता --भाग -1 (ओशो ) वचन --3

    अटाव : माहागीता --भाग -1 (ओशो ) -वचन --2

    अटाव : माहागीता --भाग -1(ओशो ) वचन --1

    हंसा तो मोती च  ून-े-(सतं लाल ) ओशे--वचन --10

    जागरणम  िुत ह—ैनौवांवचन नौवांवचन ;

    दनाक 19मई ...हंसा तो मोती च  ून-े-(सतं 

    लाल ) ओशो --वचन --8

    हंसा तो मोती च  ून-े-(सतं लाल ) ओशो --वचन --07

    गीता दन--भाग --1

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     —काट हो जाये, झगड़ा हो जाये, य  ु हो जाये 'राय झडंे पर य  कू 

    दया!' लेकन त  ुमने कभी सोचा क राय झडंा रा का तीक है,

    और रा पर त  ुम रोज थ  कूते हो, कोई झगड़ा खड़ा नह ंकरता! प  ृवी 

    पर त  ुम य  कू दो, कोई झगड़ा खड़ा नहं होता। जब भी त  ुम य  कू रहे हो,

    त  ुम रा पर ह य  कू रहे ह—कहं भी थ  कूो। रा पर थ  कूने से कोई 

    झगड़ा खड़ा नह ंहोता। रा का जो तीक है , संकेत—मा, ऐसे तो 

    कपड़े का ट  ुकड़ा ह ै—लेकन उस पर अगर कोई य  कू दे तो य  ु भी हो सकते ह।

    मन  ुय तीक को बह  ुत म  ूय दे देता है —इतना म  ूय, िजतना 

    उनम नह ंहै। मन  ुय अपने अंधपेन म तीक म जीने लगता है।

    क  ृ ण जब 'म' शद का योग करते ह, तो केवल यावहारक 

    है; बोलना है, इसलए करते ह; कहना है, इसलए करते ह। लेकन 

    कहने और बोलने के बाद वहा कोई 'म' नहं है। अगर त  ुम आंख म

    आंख डाल कर क  ृ ण क देखोग ेतो वहां त  ुम कसी 'म' को न पाओगे।

    वहा परम सनाटा ह,ै श  ूय ह।ै वहा म विसजत ह  ुआ है। इसलए तो 

    इतनी सरलता से क  ृ ण कह पाते ह क आ, मेर शरण आ जा! जब वे

    कहते ह क आ, मेर शरण आ जा, तो हम लगेगा बड़े अहंकार क 

    घोषणा हो गयी। यक हम 'म' का जो अथ जानते ह वह अथ तो 

    करग।े

    जनक के ये वचन तो त  ुह और भी चकत कर दग।े ऐसे वचन 

    प  ृवी पर द  सूरे ह ह नह।ं क  ृ ण ने तो कम—से—कम कहा था, 'आ,

    मेर शरण आ'; जनक के ये वचन तो क  ु छ ऐसे ह क त  ुम भरोसा न करोगे। इन वचन म जनक कहते ह क ' अहो! अहो, मेरा वभाव!

    अहो, मेरा काश! आचय! यह म कौन ह  ू !ं म अपनी ह शरण जाता 

    ह  ू !ं नमकार म  ुझ!े' यह त  ुम हैरान हो जाओगे।

    इन वचन म जनक अपने को नमकार करते ह। यहां तो 

    द  सूरा भी नहं बचा। बार—बार कहते ह, 'म आचयमय ह  ू !ं म  ुझको 

    नमकार है!'

    अहो अहं नमो मख ंवनाशो यय िनात मे।

    म इतने आचय से भर गया ह  ू ,ंम वयं आचय ह  ू ।ं म अपनेको नमकार करता ह  ू ।ं यक सभी नट हो जायेगा, तब भी म

    बचत। मा से ले कर कण तक सब नट हो जायेगा, फर भी म

    बच  ू गंा। म  ुझ ेनमकार है! म  ुझ जसैा द कौन! संसार म ह  ू ं —और 

    अलत! जल म कमलवत! म  ुझ ेनमकार है!

    मन  ुय—जात ने ऐसी उदघोषणा कभी स  ुनी नह ं: 'अपने को ह 

    नमकार!' त  ुम कहोगे, यह तो अहंकार क हद हो गयी। द  सूरे से कहते,

    तब भी ठक था, यह अपने ह पैर छ  ू लेना..!

    (ओशो )

    हंसा तो मोती च  ून-े-(सतं लाल ) ओशो वचन --06

    हंसा तो मोती च  ून-े-लाल (ओशो ) वचन --05

    हंसा तो मोती च  ून-े-(सतं लाल ) ओशो वचन --04

    हंसा तो मोती च  ून-े-ओशो (वचन --03)

    हंसा तो मोती च  ून-े-ओशो (वचन --02)

    हंसा तो मोती च  ून-े-(सतं लाल ) ओशो वचन --01

    जीवन क नाव (कवता )जरथ  ु --नाचता गाता 

    मसीहा --(ओशो )अठाईव-ं- ...

    जरथ  ु --नाचता गाता मसीहा --(ओशो )सताईवा-ं-...

    जरथ  ु --नाचाता गाता 

    मसीहा --ओशो छबीसवां--प ...

    —जीवन (कवता )

    इस गीत उठा है ाण म(कवता )

    अंधा क  ु ता --कहानी 

    जरथ  ु --नाचाता गाता मसीहा -ओशो (पचीसवां-व ...

    जरथ  ु --नाचता गाता मसीहा --ओशो (चौबीसवां-वच ...

    जरथ  ु --नाचता गाता मसीहा --ओशो ( तइैसवा-ंवचन ...

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      िजसने दले—रंगी को 

      हर काम से रोका है

      हर बात पे टोका है!

    जब भी दय म कोई तरंग उठती है, तो ब  ु तण रोकती 

    है। जब भी कोई भाव गहन होता है, ब  ु तण दखलदंाजी करती है।

      ये अल भी या शै है

      िजसने दले—रंगी को   हर काम से रोका है,

      हर बात पे टोका है!

    त  ुम इस अल को थोड़ा कनारे रख देना—थोड़ी देर को ह सह,

    ण भर को ह सह। उन ण म ह बादल हट जाएंग,े स  रूज का 

    दशन होगा। अगर इस अल को त  ुम हटा कर न रख पाओ, तो यह 

    टोकती ह चल जाती है। टोकना इसक आदत है। टोकना इसका 

    वभाव है। दखलदंाजी इसका रस है।

    और धम का संबंध ह ैदय से, वह तरंग खराब हो जायेगी। उस 

    तरंग पर ब  ु का रंग चढ़ जायेगा, और बात खो जायेगी। त  ुम क  ु छ का 

    क  ु छ समझ लोग।े

      आराता ए मानी,

      तखईल है शायर क!

    जो वातवक कव है, मनीषी है, ऋष है, वह तो अथ पर 

    यान देता ह।ै

      आराता ए मानी,  तखईल है शायर क!

    उसक कपना म तो अथ के फ  ूल खलते ह, अथ  क स  ुगधं 

    उठती ह।ै

      लज म उलझ जाना 

      फन काफया—गो का है।

    लेकन जो त  ुकबंद ह,ै काफया—गो, वह शद म ह उलझ जाता 

    है। वह कव नह ंहै। त  ुकबंद तो शद के साथ शद को मलाए चला 

    जाता है। त  ुकबंद को अथ का कोई योजन नहं होता, शद से शद मेल खा जाएं, बस काफ है।

    ब  ु त  ुकबंद ह,ै काफया—गो है। अथ का रहय, अथ का राज,

    तो दय म छपा ह।ै तो ब  ु को हटा कर स  ुनना, तो ह त  ुम स  ुन 

    पाओगे।

    मने स  ुना ह,ै म  ुला नसीन एक कपड़े वाले क द  कुान पर 

    गये, और एक कपड़े क ओर इशारा करके प  छूने लगे, भाई, इस कपड़े

    का या भाव है?

    उपनषद --कैवय उपनषद --ओशो  (18)

    उपनषद --नवाण उपनषद --ओशो  (16)

    उपनषद --सवसार उपनषद --ओशो  (19)

    एक वचार  (12)एस धमो सनंतनो --भाग -1 (3)

    ओशा क  े  अम  तृ प  (6)

    ओशो एक परचय -- (1)

    ओशो क य प  ूतक  े -- (65)

    ओशो ससगं  (42)

    कथा याा --एस धमम सनतंनो (2)

    कथा याा -एस धम सनतंनो (18)

    कहानी --कथा  (14)

    क  ु छ बात--भदे भर  (16)

    गीता दशन --भाग --1 (ओशो )(1)

    चलो हंस ल-े- (4)

    जरथ  ु --नाचता गाता मसीहा --ओशो  (28)

    यान  (27)

    यान सफ एक मनट --- (1)

    याप योग -थम ओर िअतम म  िुत  (18)

    पत ंजल : योग --स  ू (भाग --1)(1)

    पतजंल --योग स  ू  (15)

    पोनी एक क  ु त ेक आम कथा (16)

    शन चचा--ओशो  (27)

    भारत एक सनातन याा  (55)

    मध  रु यादे ओशो क  े  सगं .. (3)

    मरो ह ैजोगी मरो --(गोरख नाथ )ओशो  (2)

    http://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%8B%20%E0%A4%B9%E0%A5%88%20%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%80%20%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%8B--%28%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%96%20%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A5%29%20%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A5%8Bhttp://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%AE%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A4%B0%20%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%87%20%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A5%8B%20%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%20..http://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%20%E0%A4%8F%E0%A4%95%20%E0%A4%B8%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%A8%20%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BEhttp://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B6%E0%A4%A8%20%E0%A4%9A%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%BE--%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A5%8Bhttp://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%8F%E0%A4%95%20%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%A4%E0%A5%87%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%AE%20%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BEhttp://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%BF--%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%20%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0http://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A4%82%20%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%BF%3A%20%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97--%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%20%28%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97--1%29http://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AA%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A5%E0%A4%AE%20%E0%A4%93%E0%A4%B0%20%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AE%20%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BFhttp://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AB%20%E0%A4%8F%E0%A4%95%20%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%9F---http://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8http://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%9C%E0%A4%B0%E0%A4%A5%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0--%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%A4%E0%A4%BE%20%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BE%20%E0%A4%AE%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%B9%E0%A4%BE--%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A5%8Bhttp://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%9A%E0%A4%B2%E0%A5%8B%20%E0%A4%B9%E0%A4%82%E0%A4%B8%20%E0%A4%B2%E0%A5%87--http://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BE%20%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6%E0%A4%A8--%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97--1%20%20%28%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A5%8B%29http://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%9B%20%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%82--%E0%A4%AD%E0%A5%87%E0%A4%A6%20%E0%A4%AD%E0%A4%B0%E0%A5%80http://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80--%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BEhttp://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE%20%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%8F%E0%A4%B8%20%E0%A4%A7%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%82%20%E0%A4%B8%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A5%8Bhttp://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE%20%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%20--%E0%A4%8F%E0%A4%B8%20%E0%A4%A7%E0%A4%AE%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%82%20%E0%A4%B8%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A5%8Bhttp://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A5%8B%20%E0%A4%B8%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97http://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A5%8B%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%20%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A5%87--http://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A5%8B%20%E0%A4%8F%E0%A4%95%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%AF--http://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%20%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0http://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%8F%E0%A4%B8%20%E0%A4%A7%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%AE%E0%A5%8B%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A5%8B--%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97-1http://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%8F%E0%A4%95%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0http://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6--%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6--%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A5%8Bhttp://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6--%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A3%20%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6--%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A5%8Bhttp://oshoganga.blogspot.in/search/label/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6--%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%AF%20%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6--%E0%A4%93%E0%A4%B6%E0%A5%8B

  • 8/9/2019 _ Osho Ganga_ _ -- -1( ) --9

    6/28

    द  कुानदार बोला, म  ुला, पाच पये मीटर! म  ुला ने कहा, साढ़े

    चार पये म देना है? द  कुानदार बोला, बड़े मयां , साढ़े चार म तो घर 

    म पड़ता है। तो म  ुला ने कहा, ठक, फर ठक। तो ठक है, घर से ह 

    ले लग।े

    आदमी अपना अथ डाले चला जाता ह।ै

    एक रोगी ने एक दांत के डाटर से प  छूा, क या आप बना 

    कट के दातं नकाल सकते ह?डाटर ने कहा, हमेशा नहं। अभी कल क ह बात है। एक 

    ियत का दांत मरोड़ कर नकालते समय मेर कलाई उतर गयी!

    डाटर का दद अपना है। दातं नकलवाने जो आया है, उसक 

    फ द  सूर है; उसका दद अपना है।

    म  ुला नसीन को एक जगह नौकर पर रखा गया। मालक ने

    कहा, जब त  ुह नौकर पर रखा गया था, तब त  ुमने कहा था क त  ुम 

    कभी थकते नहं, और अभी—अभी त  ुम मेज पर टांग पसार कर सो रहे

    थ।े

    म  ुला ने कहा, मालक, मेरे न थकने का यह तो राज है।

    हम अपने अथ डाले चले जाते ह। और जब तक हम अपने अथ

    डालने बंद न कर, तब तक शा के अथ गट नहं होते! शा को 

    पढ़ने के लए एक वशेष कला चाहए, शा को पढ़ने के लए धारणा 

     —रहत, धारणा—श  ूय चत चाहए। शा को पने के लए याया 

    करने क जद नह,ं वण का, वाद का, संतोष—प  वूक, धयैप  वूक 

    आवादन करने क मता चाहए।स  ुनो इन स  ू को—

    'काश मेरा वप ह।ै म उससे अलग नहं ह  ू  ंजब संसार 

    काशत होता है, तब वह मेरे काश से ह काशत होता है।

    काशो मे नजं प ंनातरतोउयहं तत:।

    यह सारा जगत मेरे ह काश से काशत है , कहते ह जनक।

    िनचत ह यह काश 'म' का काश नहं हो सकता, िजसक 

    जनक बात कर रहे ह। यह काश तो 'म—श  ूयता' का ह काश हो 

    सकता है। इसलए भाषा पर मत जाना, काफया—ग मत बनना, ब  ु क दखलदंाजी मत करना। सीधा—सादा अथ है, इसे इरछा—तरछा मत 

    कर लेना। काश मेरा वप है।

    कहने को तो ऐसा ह कहना पड़ेगा, यक भाषा तो अानय 

    क है। ानय क तो कोई भाषा नहं। इसलए कभी अगर दो ानी 

    मल जाय तो च  पु रह जाते ह, बोल भी या? न तो भाषा है क  ु छ, न 

    बोलने को है क  ु छ। न वषय है बोलने के लए क  ु छ, न िजस भाषा म

    बोल सक वह है।

    माई डायमडं ड ेवद ओशो --मा ंमे श  ुयो  (22)

    माग क मध  रु अन  भु  ूतया—ं (10)

    मरे कवताए-ं- (19)

    मरे कहानया-ं- (7)

    य ेया कहत ेह-ै- (2)

    वान भरैव तं --भाग --2 (23)

    वान भरैव तं --भाग --3 (25)

    वान भरैव तं --भाग --4 (19)

    वान भरैव तं --भाग --5 (21)

    वान भरैव तं --भाग -1 (25)

    सभंोग स ेसमाध क और  (49)

    स  नुहर याद (2)

    वणम बचपन ------ओशो (40)

    वीणम बचपन ------ओशो (34)

    हंसा तो मोती च  ून-े-(सतं लाल )ओशो  (10)

     ‘’ ओशो क शौय गाथा ’’—वामी सजंय भारती  (4)

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  • 8/9/2019 _ Osho Ganga_ _ -- -1( ) --9

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    कहते ह, फरद और कबीर का मलना ह  ुआ था, दो दन च  पु 

    बैठे रहे। एक द  सूरे का हाथ हाथ म ले लेते, गले भी लग जाते, आसं  ुओ 

    क धार भी बहती, ख  बू मगन होकर डोलने भी लगते!

    शय तो घबड़ा गये। शय क बड़ी आकांा थी क दोन 

    बोलग,े तो हम पर वषा हो जायेगी। क  ु छ कहगे, तो हम स  ुन लग।े एक 

    शद भी पकड़ लग ेतो साथक हो जायेगा जीवन।

    लेकन बोले ह नहं। दो दन बीत गए। वे दो दन बड़े लंबे हो गये। शय तीा कर रहे ह, और कबीर और फरद च  पु बैठे ह।

    अंततः जब वदा हो गये, कबीर वदा कर आये फरद को, तो फरद के

    शयो ने प  छूा, या ह  ुआ? बोले नह ंआप? ऐसे तो आप सदा बोलते

    ह। हम क  ु छ भी प  छूते ह तो बोलते ह। और हम इसी आशा म तो 

    आपको मलाए कबीर से क क  ु छ आप दोन के बीच होगी बात, क  ु छ 

    रस बहेगा, तो हम अभागे भी थोड़ा—बह  ुत उसम से पी लग।े दोन 

    कनार को पास कर दया था—गंगा बहेगी, हम भी नान कर लग,े

    लेकन गगंा बह ह नहं। मामला या ह  ुआ?

    फरद ने कहा, कबीर और मेरे बीच बोलने को क  ु छ न था, न 

    बोलने क कोई भाषा थी। न प  छूने को क  ु छ था, न कहने को क  ु छ था।

    था बह  ुत क  ु छ, धारा बह भी, गगंा बह भी; लेकन शद क न थी,

    मौन क थी।

    यह कबीर से उनके शय ने प  छूा क या ह  ुआ? आप च  पु 

    य हो गये? आप तो ऐसे हो गये जैसे सदा से ग  ू गं ेह!

    कबीर ने कहा, पागल! अगर फरद के सामने बोलता, तो अानी स होता। जो बोलता वह अानी स होता। न बोले ह 

    जहां काम चलता हो, वहा बोलने क बात ह कहां? जहां स  ईू से काम 

    चलता हो वहां तलवार पागल उठाते ह। यहां बना बोले चल गया। ख  बू 

    धारा बह! देखा नह,ं कैसे आंस   ूबहे, कैसी मती रह!

    शद क कोई जरत नहं दो ानय के बीच। दो अानय के

    बीच शद ह शद होते ह, अथ बलक  ु ल नह ंहोता। दो ानय के

    बीच अथ ह अथ होता है, शद बलक  ु ल नह ंहोते। अानी और ानी 

    के बीच शद भी होते ह, अथ भी होते ह। संभाषण के लए एक ानी चाहए, एक अानी चाहए। दो अानी ह तो ववाद होता है । संभाषण 

    तो हो नहं सकता, संवाद हो नह ंसकता, सर— फ  ु टौवल हो सकती है।

    दो ानी ह, शद से संवाद नहं होता, कसी और गहन लोक म क  

    का मलन होता है। िसमलन हो जाता है, संवाद क जरत या?

    बन कहे बात पह   ुचँ जाती है, बन बताये दशन हो जाता है। एक 

    अानी और एक ानी के बीच संवाद क संभावना है। ानी बोलने को 

    राजी हो, अानी स  ुनने को राजी हो, तो संवाद हो सकता है।

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  • 8/9/2019 _ Osho Ganga_ _ -- -1( ) --9

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    शा के वचन एक अथ म सदा वरोधाभासी ह; पैरािडासकल 

    ह। यक शा जो कहते ह, वह कहा नहं जा सकता, और जो नहं

    कहा जा सकता, उसको कहने क चेटा करते ह। अन  ुकंपा है क कहं

    ब  ुप  ुष ने कहने क चेटा क है —उसको—जो नहं कहा जा सकता।

    आंख हमार उठाने क आकांा क है उस तरफ, जहां हम आंख उठाना 

    भ  लू ह गये। हम आकाश के थोड़े दशन कराये। हम तो जमीन पर 

    सरकते, रगते, हमने सर उठाना बंद कर दया है।कहते ह, मंस  रू को जब फांसी लगी, और जब वह स  लू पर 

    लटका ह  ुआ हंसने लगा। तो कोई एक लाख लोग क भीड़ थी, उनम से

    कसी ने प  छूा, मैस  रू, त  ुम हंस य रहे हो?

    मैस  रू ने कहा, म इसलए हंस रहा ह  ू  ंक चलो यह अछा ह 

    हआ क फांसी लगी, त  ुमने कम से कम थोड़ा आंख तो ऊपर उठाकर 

    दखेा!

    स  लू पर लटका था तो लोग को सर ऊपर करके देखना पड़ 

    रहा था। तो मंस  रू ने कहा, त  ुमने कम से कम—चलो इस बहाने सह—

    थोड़ा आकाश क तरफ तो आंख उठा। इसलए सन ह  ू  ंक यह स  लू 

    ठक ह ह  ुई। शायद म  ुझ ेदेखते—देखते त  ुह वह दख जाये, जो मेरे

    भीतर छपा है। शायद इस म  ृय  ु क घड़ी म, म  ृय  ु के आघात म,

    त  ुहारे वचार क या बंद हो जाये, और ण भर को आकाश ख  लु 

    जाये! और त  ुह उसके दशन हो जाय, जो म ह  ू !ं

    काशो मे नज पं

     —काश मेरा वप है।नातरतोऽमह ंतत:

     —म उससे अलग नह,ं काश से अलग नहं।

    यह जो काश का अंत:ोत है, यह तभी उपलध होता है, जब 

    'म' चला जाता है। लेकन कहो, तो कैसे कहो? जब कहना होता है तो 

    'म'ै को फर ले आना होता है।

    'जब संसार काशत होता है, तब वह मेरे काश से ह 

    काशत होता है।'

    िनचत ह जनक यहां जनक नाम के ियत के संबंध म नहंबोल रहे ह। ियत तो खो गया, ियत क लहर तो गई—यह तो 

    सागर बचा! यह सागर हम सबका है। यह घोषणा जनक क, उनके ह 

    संबंध म नहं, त  ुहारे संबंध म भी है, जो कभी ह  ुए, उनके संबंध म;

    जो कभी हगे, उनके संबंध म! यह समत िअतव के संबंध म

    घोषणा है।

    त  ुम जरा मटना सीखो, तो इसका वाद लगने लगे। और वाद 

    लगगेा, तो ऐसी घोषणाए ंत  ुमसे भी उठगी। इह रोकना म  ुिकल है।

    Osho Amrit/ ओशो  अम  तृ 

    पतजंल :योग 

    –स  ू

    (भाग 

    -1)

    - पतजंल : योग —स  ू (भाग —1) ओशो पतजंल अयतं वरल ियत है। व ेब  ु हैब  ु , क  ृ ण और जीसस क भांत , महावीर , मोहमद और जयथ  ु क भांत। ल.े..12 घटें पहले

    Osho Satsang.org/ ओशो ससगं पतजंल : योग –स  ू (भाग –1)- पतजंल : योग —स  ू (भाग —1) ओशो पतजंल अयतं वरल ियत है। व ेब  ु हैब  ु , क  ृ ण और जीसस क भांत , महावीर , मोहमद और जयथ  ु क भांत। ल.े..12 घटें पहले

    मरेे फोटो –पचं मढ़ (मय देश ) - पचं मढ़ बह  तु रमणीय थल ह,ैचार ओर सागवान ओ आम क  ेघने व 

     ृ ……कतनी ह गम मे

    भी हरे भरे रहते है। देवो क  े  देव शव क  े  प  जूनय ंओर दशनय मंदर ……ओर यहा ...1 वष  पहले

    शद मजं  षूा  ‘’ ओशो क शौय गाथा ’’—वामी सजंय भारती  - ओशो कसी और तयैार म थे-- जसैा क हमन ेपीछे देखा , धम और राजनीत क मशीनर या तो ओशो क  े  जबरदत वरोध मथी या मौन समथन म िजसेकोई खास समथन न ...1 वष  पहले

    OshoTeertha/ ओशो तथ | Just anotherWordPress.com siteवामी देव तीथ  भारती — -जम सबंोधी महा समाध 1908 भात : 8 सतबंर 1979 संया : 8 सतबंर 1979 वामी देव तीथ  भारती 

    chitthajagat

    मरे लॉग स  चूी 

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  • 8/9/2019 _ Osho Ganga_ _ -- -1( ) --9

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    मंस  रू को पता था क अगर उसने इस तरह क बात कह.

    'अनलहक', 'अहं िमाम', क 'म ह परमामा ह  ू  ं' तो स  लू लगगेी;

    म  ुसलमान क भीड़ उसे बदात न कर सकेगी; अधं क भीड़ उसे देख 

    न पायेगी। फर भी उसने घोषणा क। उसके म ने उसे कहा भी ऐसी 

    घोषणा न करो, ऐसी घोषणा खतरनाक होगी। मैस  रू भी जानता है क 

    ऐसी घोषणा खतरनाक हो सकती है , लेकन यह घोषणा क न सक।

    जब फ  ूल खलता ह ैतो स  ुगधं बखरेगी ह। जब दया जलेगा तो काश फैलेगा ह। फर जो हो, हो। रहम का एक वचन है .

    खरै, ख  नू, खासंी, ख  शुी, वैर, ीत, मध  पुान,

    रहमन दाबे न दबे, जानत सकल जहांन।

    क  ु छ बात ह, जो दबाये नहं दबती। साधारण मदरा पी लो, तो 

    कैसे दबाओग?े असर ऐसा होता है क शराब पीने वाला िजतना दबाने

    क कोशश करता है उतना ह गट होता है। खयाल कया त  ुमने?

    शराबी बड़ी चेटा करता है क कसी को पता न चले! सहल कर 

    बोलता है। उसी म पता चलता है। सहल कर चलता है, उसी म

    डावंांडोल हो जाता है। होशयार दखाना चाहता है क कसी को पता न 

    चले।

    म  ुला नसीन एक रात पी कर घर लौटा। तो बह  ुत वचार 

    करके लौटा क आज पनी को पता न चलने देगा। या करना चाहए?

    सोचा क चल कर क  ु रान पढ  ू ।ं कभी स  ुना क शराबी और क  ु रान पढ़ता 

    हो! जब क  ु रान पढ  ू गंा तो साफ हो जायेगा क शराब पी कर नहं आया 

    ह  ू ।ं कभी शराबय ने क  ु रान पढ़े!घर पह   ुचंा, काश जला कर बैठ गया, क  ु रान पने लगा।

    आखर पनी आई, और उसने उसे झकझोरा और कहा क बंद करो यह 

    बकवास! यह स  टूकेस खोले कसलए बैठे हो?

    क  ु रान शराबी खोजे कैसे? स  टूकेस मल गया उनको, उसे खोल 

    कर पढ़ रहे थे!

    ऐसे छपाना संभव नह ंहै। और जब साधारण मदरा नहं

    छपती तो भ   ु—मदरा कैसे छपेगी? आंख से मती झलकने लगती 

    है। आंख मदहोश हो जाती ह। वचन म कसी और लोक का रंग छा जाता है। वचन सतरंगे हो जाते ह। वचन म इंधन  ुष फैल जाते ह।

    साधारण गय भी बोलो तो पय 

    हो जाता है। बात करो तो गीत जैसी माल  मू होने लगती है।

    चलो तो न  ृय जैसा लगता है। नह,ं छपता नहं!

    खरै, ख  नू, खासंी, ख  शुी, वैर, ीत, मध  पुान,

    रहमन दाबे न दबे, जानत सकल जहांन।

    उदघोषणा होकर रहती है।

    भगवान ी रजनीश (ओशो ) क  ेपता ी रजनीश आम मसंय ...3 वष  पहले

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  • 8/9/2019 _ Osho Ganga_ _ -- -1( ) --9

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    सय वभावत: उदघोषक है। जैसे ह सय क घटना भीतर 

    घटती, त  ुहारे अनजाने उदघोषणा होने लगती है।

    जनक ने ये शद सोच—सोच कर नहं कहे ह; सोच—सोच कर 

    कहते तो संकोच खा जाते। अभी—अभी अटाव को लाये ह, अभी—

    अभी अटाव ने थोड़ी—सी बात कह ह—और जनक को घटना घट गई!

    संकोच करते, अगर ब  ु से हसाब लगाते, कहते, 'या सोचगे

    अटाव क म अानी, और ऐसी बात कह रहा ह  ू !ं ये तो परम ानय के योय ह। इतने जद कहं घटना घटती ह!ै अभी स  ुना और 

    घट गई, ऐसा कहं ह  ुआ है! समय लगता है, जनम—जनम लगते ह,

    बड़ी द  भूर याा है; खग क धार पर चलना होता है। 'सब बात याद 

    आई होतीं, और सोच कर कहा होता क इतने द  रू तक ऐसी घोषणा 

    मत करो।

    लेकन यह घोषणा अपने से हो रह है , यह म त  ुह याद 

    दलाना चाहता ह  ू ।ं जनक कह रहे ह, ऐसा कहना ठक नहं; जनक से

    कहा जा रहा है, ऐसा कहना ठक है।

    'आचय है क िकपत संसार अान से म  ुझम ऐसा भासता है,

    जैसे सीपी म चादं, रसी म सापं, स  यू क करण म जल भासता है।

    '

    अहो विकपत ववमानामय भासते।

    य ंश  ुतौ फणी रजौ वार स  यूकरे यथा।।

    जैसे सीपी म चादं का म हो जाता, रसी म कभी अंधरे ेम

    सापं क ांत हो जाती है और मथल म स  यू क करण के कारण कभी—कभी मयान का म हो जाता है , म  गृ—मरचका पैदा हो जाती 

    है।

    आचय है! यह घटना इतनी आकिमक घट है, यह घटना 

    इतनी तीता से घट है, यह 'जनक को बोध इतना वरत ह  ुआ है क 

    जनक सहल नह ंपाये! आचय से भरे ह। जैसे एक छोटा—सा बचा 

    परय के लोक म आ गया हो, और हर चीज ल  ुभावनी हो, और हर 

    चीज भरोसे के बाहर हो। तरत  ूलयन ने कहा है. जब तक परमामा का 

    दशन नह ंह  ुआ, तब तक अववास रहता है; और जब परमामा का दशन हो जाता है, तब भी अववास रहता है।

    उसके शय ने प  छूा. हम समझे नह।ं हमने तो स  ुना है क 

    जब परमामा का दशन हो जाता है, तो ववास आ जाता है।

    तरत  ूलयन ने कहा. जब तक दशन नह ंह  ुआ, अववास रहता 

    है क परमामा हो कैसे सकता है? असंभव! अन  ुभव के बना कैसे

    ववास! और जब परमामा का अन  ुभव होता है, तो भरोसा नहं आता 

    क इतना आनंद हो सकता है! इतना काश! इतना अम  तृ! तब भी 

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    असंभव लगता है। जब तक नह ंह  ुआ, तब तक असंभव लगता है; जब 

    हो जाता है, तब और भी असंभव लगता है।

    ठक उसी दशा म ह जनक।

    आचय! सफ िकपत है सब क  ु छ। म ह केवल सय ह  ू  ंसाी 

     —मा सय है और सब भासमान, और सब माया!

    'म  ुझसे उपन ह  ुआ यह संसार म  ुझम वसैे ह लय को ात 

    होगा, जैसे मी म घड़ा, जल म लहर, सोने म आभ  षूण लय होते ह।'

    फक देख रहे ह? जनक का मन  ुय—प खो रहा है, परमाम—

    प गट हो रहा है।

    वामी रामतीथ अमरका गये। वे मत आदमी थे। कसी ने

    प  छूा, द  ुनया को कसने बनाया? वे मती म हगे, समाध का ण 

    होगा—कहा, 'मने!' अमरका म ऐसी बात, कोई भरोसा नहं करेगा।

    चलती ह,ै भारत म चलती है। इस तरह के वतय भी चल जाते ह।

    बड़ी सनसनी फैल गई—लोग ने प  छूा, ' आप होश म तो ह? चांद—तारे

    आपने बनाये?' कहा—'मने बनाये, मने ह चलाये, तब से चल रहे ह।'

    इस वतय को समझना कठन है। और अगर उनके अमरक 

    ोता न समझ सके, तो आचय नह ंकरना चाहए। वाभावक है। यह 

    वतय राम का नहं है; या अगर है, तो असल राम का ह ै—रामतीथ

    का तो नहं है। इस घड़ी म रामतीथ लहर क तरह नहं बोल रहे ह,

    सागर क तरह बोल रहे ह; सनातन, शावत क तरह बोल रहे ह,

    सामयक क तरह नहं बोल रहे; शरर और मन म सीमत—परभाषत मन  ुय क तरह नहं बोल रहे—शरर और मन के पार, अपरभाषत,

    अेय क भांत बोल रहे ह। राम से राम ह बोले, रामतीथ नह।ं यह 

    उदघोषणा परमामा क ह ै!

    मगर बड़ा कठन है, बड़ा म  ुिकल है तय करना।

    फर राम भारत लौटे. तो गंगोी क याा पर जाते थे। गगंा म

    नान कर रहे थे। छलांग लगा द पहाड़ से। लख गए एक छोटा—सा 

    प, रख गये क ' अब राम जाता है अपने असल वप से मलने।

    प  ुकार आ गई है, अब इस देह म न रह सक  ू ं गा। वराट ने ब  ुलाया!'अखबार ने खबर छापी क आमहया कर ल। ठक है,

    अखबार भी ठक कहते ह। नद म क  ूद गये, आमहया हो गई। राम 

    से प  छेू कोई, तो राम कहगे, 'त  ुम आमहया कये बैठे हो, म  ुझको 

    कहते हो मने आमहया कर ल? मने तो सफ सीमा तोड़ कर वराट 

    के साथ संबंध जोड़ लया। मने तो बाधा हटा द बीच से। म मरा थोड़ी।

    मरा—मरा था, अब जीवंत ह  ुआ, अब वराट के साथ ज  ुड़ा। वह जो छोट 

     —सी जीवन क धार थी, अब सागर बनी। मने सीमा छोड़ी, आमा 

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    थोड़ी! आमा तो मने अब पाई, सीमा छोड़ कर पाई। '

    इसलए इसे सदा याद रखना जर है, क जब कभी त  ुहारे

    भीतर समाध सघन होती है, जब समाध के मेघ त  ुहारे भीतर घरते

    ह, तो जो वषा होती है, वह त  ुहारे अहंकार, िअमता क नहं है। वह 

    वषा त  ुमसे पार से आती है, त  ुमसे अतीत है।

    इस घड़ी म जनक का ियतव तो जा रहा है ।

    'म  ुझसे उपन ह  ुआ यह संसार म  ुझम वसैे ह लय को ात होगा, जैसे मी म घड़ा, जल म लहर, सोने म आभ  षूण लय होते ह।

    '

      न था क  ु छ तो ख  दुा था 

      क  ु छ न होता तो ख  दुा होता।

      ड  ु बोया म  ुझको होने ने न 

      होता म तो या होता?

    ड  ु बोया म  ुझको होने ने! हम कहगे रामतीथ ने आमहया कर 

    ल। रामतीथ कहगे, ड  ु बोया म  ुझको होने ने! यह तो ड  ूब कर गगंा म म

    पहल दफे ह  ुआ। जब तक था, तब तक ड  ूबा था।

      न था क  ु छ तो ख  दुा था,

    क  ु छ न होता तो ख  दुा होता।

      ड  ु बोया म  ुझको होने ने

      न होता म तो या होता?

    ख  दुा होते! परमामा होते!

    यह जो होने क सीमा है , इस सीमा को जब व क भांत कोई उतारकर रख देता है, तो सय के दशन होते ह। जैसे सापं अपनी 

    क च  लु से नकल जाता है सरक कर, ऐसी ह घटना जनक को घट।

    अटाव ने कैटेलटक क तरह काम कया होगा।

    वैानक कैटेलटक एजट क बात करते ह। वे कहते ह क 

    क  ु छ तव कह ंघटनाओ ंम सय प से भाग नहं लेते, लेकन 

    उनक मौज  दूगी के बना घटना नहं घटती।

    त  ुमने देखा, वषा म बजल चमकती है! वैानक कहते ह क 

    आसीजन और हाइोजन के मलने से पानी बनता ह ै, लेकन हाइोजन और आसीजन का मलन तभी होता है जब बजल मौज  दू 

    हो। अगर बजल मौज  दू न हो तो मलन नहं होता। ययप बजल 

    कोई भी हसा नहं लेती, हाइोजन और आसीजन के मलने म

    बजल कोई भी हाथ नहं बटाती—सफ मौज  दूगी! इस तरह क 

    मौज  दूगी को वैानक ने नाम दया है. कैटेलटक एजट।

    ग  ु कैटेलटक एजट ह।ै वह क  ु छ करता नहं, पर उसक बना 

    मौज  दूगी के क  ु छ होता भी नहं। उसक मौज  दूगी म क  ु छ हो जाता है।

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    ययप करता वह क  ु छ भी नहं, लेकन सफ उसक मौज  दूगी! इसे

    समझना। सफ उसक ऊजा त  ुह घेरे रहती है। उस ऊजा के घराव म

    त  ुमम बल उपन हो जाता ह ै—बल त  ुहारा है। गीत फ  ूटने लगते ह—

    गीत त  ुहारे ह। घोषणाएं घटने लगती ह—घोषणाए ंत  ुहार ह! लेकन 

    ग  ु क मौज  दूगी के बना शायद घटतीं भी नहं।

    अटाव क मौज  दूगी ने कैटेलटक एजट का काम कया।

    देखकर उस सौय, शांत, परम अवथा को, जनक को अपना भ  लूा घर याद आ गया होगा, झाकं कर उन आंख म, देखकर अपरंपार वतार,

    अपनी भ  लू—बसर संभावना मरण म आ गई होगी। स  ुनकर अटाव 

    के वचन—सय म पगे, अन  ुभव म पग े—वाद जग गया होगा।

    कहते ह, एक ियत ने संह पाल रखा था। छोटा—सा बचा 

    था, आखं भी न ख  लु थीं —तब उसे घर ले आया था। उस सहं ने कभी 

    मासंाहार न कया था, ख  नू का उसे कोई वाद भी न था। वह शाकाहार 

    सहं था। शाक—सजी खाता, रोट खाता। उसे पता ह न था। पता का 

    कोई कारण भी न था। लेकन एक दन यह आदमी बैठा था अपनी 

    क  ु रसी पर, इसके पैर म चोट लगी थी, और ख  नू थोड़ा—सा झलका था।

    सहं भी पास म बैठा था। बठैे—बैठे उसने जीभ से वह ख  नू चाट लया।

    बस! एक ण म पातंरण हो गया। सहं ग  रुाया। उस ग  रुाहट म हसंा 

    थी। अभी तक वह जैनी था, अचानक सहं हो गया। अभी तक 

    शाकाहार था। तो श  ु साक—सजी खाकर जैसी आवाज नकल सकती 

    थी, नकलती थी। हालांक अभी कोई मांसाहार कर नहं लया था, जरा 

     —सा ख  नू चखा था, लेकन याद आ गई। रोए ं—रोएं म सोई ह  ुई सहं क वम  तृ मता जाग गई! कोई जग उठा! कसी ने अंगड़ाई ले ल! जो 

    सोया था उसने आखं खोल। वह ग  रुा कर उठ खड़ा ह  ुआ। फर उसने

    हमले श  ु कर दये। फर उसे घर म रखना म  ुिकल हो गया। फर 

    उसे जगंल म छोड़ देना पड़ा। इतने दन तक वह सोया—सोया था, आज 

    पहल दफा उसे याद आई क म कौन ह  ू !ं

    अटाव क छाया म जनक को याद आई क म कौन ह  ू ।ं और 

    ये वचन, अगर जनक ने सोच कर कहे होते तो कह ह न सकते थे,

    संकोच पकड़ लेता। यह कोई आसान है कहना?'म  ुझसे उपन ह  ुआ यह संसार म  ुझम वसैे ह लय को ात 

    होगा, जैसे मी म घड़ा, जल म लहर, और सोने म आभ  षूण लय होते

    ह। '

    अटाव क छाया, अटाव क मौज  दूगी, जगा गई। सोया था 

    जो जम—जम से सहं, गजना करने लगा! अपने वप क याद आ 

    गई, आम—म  ृत ह  ुई! यह तो ससंग का अथ है। ससंग को प  रूब म

    बह  ुत म  ूय दया गया है, िपचम क भाषाओ ंम ससंग के लए कोई 

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    ठक—ठक शद ह नह ंहै। यक ससंग का कोई म  ूय िपचम म

    समझा नह ंगया।

    ससगं का अथ इतना ह है. िजसने जान लया हो, उसके पास 

    बैठकर वाद संामक हो जाता है। िजसने जान लया हो, उसक तरंग 

    म ड  ूबकर, त  ुहारे भीतर क सोई ह  ुई वम  तृ तरंग सय होने लगती 

    ह, कंपन आने लगता है। ससंग का इतना ह अथ है क जो त  ुमसे

    आग ेजा च  कुा हो, उसे जाया ह  ुआ देखकर त  ुहारे भीतर च  नुौती उठती है. त  ुह भी जाना ह।ै कना फर म  ुिकल हो जाता है। ससंग का अथ

    ग  ु के वचन स  ुनने से उतना नहं, िजतनी ग  ु क मौज  दूगी पीने से है,

    िजतना ग  ु को अपने भीतर आने देने, िजतना ग  ु के साथ एक लय 

    म ब हो जाने से ह।ै

    ग  ु एक वशट तरंग म जी रहा है। त  ुम जब ग  ु के पास होते

    हो, तब उसक तरंग, त  ुहारे भीतर भी वैसी ह तरंग को पैदा करती 

    ह। त  ुम भी थोड़ी देर को ह सह, कसी और लोक म वेश कर जाते

    हो, गेटाट बदलता ह।ै त  ुहारे देखने का ढाचंा बदलता है। थोड़ी देर 

    को त  ुम ग  ु क आंख से देखने लगते हो, ग  ु के कान से स  ुनने लगते

    हो।

    म त  ुमसे यह कहना चाहता ह  ू  ंक जब जनक ने ये वचन बोले,

    तो ये वचन भी अटाव के ह वचन ह। कहते तो ह—'जनक उवाच',

    लेकन म त  ुह याद दलाना चाहता ह  ू  ंयह 'अटाव उवाच' ह ह।ै वह 

    जो अटाव ने कहा था, और वह जो अटाव क मौज  दूगी थी, वह 

    इतनी सघन हो गई है क जनक तो गए, जनक तो बह गए बाढ़ म,उनका तो कोई पता—ठकाना नहं है, वह घर तो गर गया। यह तो 

    कोई और ह बोलने लगा!

    'म  ुझसे उपन ह  ुआ यह संसार, म  ुझम वसैे ह लय को ात 

    होगा, जैसे मी म घड़ा, जल म लहर, सोने म आभ  षूण लय होते ह।

    '

      म वो ग  मु—ग  ुता म  ुसाफर ह  ू  ंक आप अपनी मंिजल ह  ू ं

      म  ुझ ेहती से या हासल, म ख  दु हती का हासल ह  ू ।ं

    वो ग  मु—ग  ुता म  ुसाफर ह  ू ं —म एक ऐसा भटका याी ह  ू  ंभ  लूा—भटका याी, बटोह। क आप अपनी मंिजल ह  ू ं —क म  ुझ ेपता नहं,

    लेकन ह  ू  ंम अपनी मंिजल।

    मंिजल कह ंबाहर नहं है। भटका ह  ू  ंइसलए क भीतर झांक 

    कर नह ंदखेा ह;ै अयथा भटकने का कोई कारण नहं है। भटका ह  ू ं

    इसलए क आंख बदं करके नह ंदखेा ह।ै भटका ह  ू  ंइसलए क अपने

    को पहचानने क कोई कोशश नहं क। और वहां खोज रहा ह  ू  ंमंिजल,

    जहां मंिजल हो नहं सकती।

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    वो ग  मु—ग  ुता म  ुसाफर ह  ू ,ंक आप अपनी मंिजल ह  ू ।ं

    यह तो भटकाव का कारण है, क मंिजल भीतर है, हम बाहर 

    खोज रहे ह। रोशनी भीतर जल रह है। काश बाहर पड़ रहा है। बाहर 

    काश को पड़ते देखकर हम दौड़े जा रहे ह क काश का ोत भी 

    बाहर ह होगा। बाहर जो काश पड़ रहा है  वह हमारा है। बाहर से जो 

    गधं आ रह है, वह हमार द ह  ुई गधं ह;ै वह तफलन है, तवन 

    है। हम उस तवन के पीछे भाग रहे ह।य  नूानी कथा ह ैनाससस क। एक य  ुवक—बह  ुत स   ुदंर! बड़ी 

    म  ुिकल म पड़ गया है। वह बैठा ह ैएक झील के कनारे—शांत, स   ुदंर 

    झील; तरंग भी नहं! उसम अपनी छाया देखी। वह मोहत हो गया 

    अपनी छाया पर। वह अपनी छाया से ेम करने लगा। वह इतना 

    पागल हो गया क वहा ंसे हटे ह न। उसे भ  खू—यास भ  लू गई। वह 

    मजन   ूहो गया, और अपनी ह छाया को लैला समझ लया। छाया स   ुदंर 

    थी, बार—बार वह झील म उतरे उसे पकड़ने को, लेकन जब उतरे तो 

    झील कैप जाये, लहर उठ आय, छाया खो जाये। फर कनारे पर बैठ 

    जाये। जब झील शांत हो तब फर दखाई पड़े। कहते ह, वह पागल हो 

    गया। ऐसे ह वह मर गया।

    त  ुमने नाससस नाम का पौधा देखा होगा। िपचमी पौधा है। वह 

    नद के कनारे होता है, नाससस क याद म ह उसको नाम दया 

    गया। वह नद के कनारे ह होता है, और झाकंकर अपनी छाया, अपने

    फ  ूल को पानी म देखता रहता है।

    लेकन हर आदमी नाससस है। िजसे हम खोज रहे वह भीतर है। जहां हम खोज रहे, वहा केवल तबंब है, वहा केवल तवनया 

    ह। िनचत ह तवनय को खोजने का कोई उपाय नहं, जब तक 

    हम म  लूोत क तरफ न आय।

      म वो ग  मु—ग  ुता म  ुसाफर ह  ू  ंक आप अपनी मंिजल ह  ू ं

      म  ुझ ेहती से या हासल......

     —जीवन से म  ुझ ेया लेना देना ह?ै

      म ख  दु हती का हासल ह  ू ।ं

      —म ख  दु जीवन का नकष ह  ू ।ंजीवन से म  ुझ ेक  ु छ लेना—देना नह ंहै। जीवन के मायम से

    म  ुझ ेक  ु छ अथ नह ंखोजना है —म ख  दु जीवन का अथ ह  ू ;ं म ख  दु जीवन 

    क निपत ह  ू  ंनकष ह  ू ;ं उसका आखर फ  ूल ह  ू ?ं अंतम चरण 

    ह  ू ,ंउचतम शखर ह  ू ।ं '

    लेकन जो ियत जीवन म अथ खोज रहा है, वह नरंतर 

    अथहनता को अन  ुभव करता है। यह तो ह  ुआ आध  ुनक य  ुग म अथ

    खो गया है! लोग कहते ह, जीवन म अथ कहां? ऐसी द  घुटना पहले

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    कभी न घट थी। ऐसा नहं क पहले ब  ुमान आदमी न थ े—बह  ुत 

    ब  ुमान लोग ह  ुए ह, उनके साथ त  ुलना भी करनी कठन है। ब  ु भी 

    हए ह; जरथ  ु भी ह  ुए ह; लाओस  ु भी ह  ुए ह, अटाव भी ह  ुए ह।

    ब  ु के और या शखर हो सकते ह? इससे बड़ी और या मेधा होगी?

    लेकन कभी कसी ने नहं कहा क जीवन म अथ नह ंहै।

    आध  ुनक य  ुग के जो ब  ुमान लोग ह—सा  ह, काम   ूह,

    काफका ह—वे सब कहते ह क जीवन म कोई अथ नह ंहै, अथहन,वतडा, म  खू के वारा कह गई कथा—ए टेल टोड बाइ एन ईडयट!

    एक म  खू के वारा कहा गया अथहन वतय! अनगल लाप! 'ए टेल 

    टोड बाइ एन ईडयट फ  ूल आफ य  रू एंड वाएज सनीफाइंग 

    नथ  गं!' नह ंक  ु छ अथ, नह ंक  ु छ म  ूय, यथ क बकवास ह ै—ऐसा है

    जीवन!

    या ह  ुआ? जीवन अचानक अथहन य माल  मू होने लगा?

    कह ंऐसा तो नहं क अथ हम गलत दशा म खोज रहे ह? यक 

    क  ृ ण तो कहते ह, जीवन महासाथक है। यक क  ृ ण तो कहते ह क 

    जीवन तो परम अथ और वभा से भरा ह  ुआ है। और ब  ु तो कहते ह,

    परम शांत, परम आनंद, जीवन म छपा है। अटाव तो कहते ह,

    जीवन वयं परमामा है। कह ंभ  लू हो रह है, कह ंच  कू हो रह है।

    हम कह ंगलत दशा म खोज रहे ह।

    म  ुझ ेहती से या हासल, म ख  दु हती का हासल ह  ू ।ं

    जब हम बाहर खोजते ह, जीवन अथहन माल  मू होता है। जब 

    हम भीतर खोजते ह, जीवन अथप  णू माल  मू होता है, यक हम ह जीवन के अथ ह।

    'म आचयमय ह  ू !ं म  ुझको नमकार है। मा से लेकर त  णृ 

    पयत जगत के नाश होने पर भी मेरा नाश नहं। म नय ह  ू ।ं '

    ऐसा अदभ  ुत वचन न तो पहले कभी कहा गया, न फर पीछे

    कभी कहा गया। इस वचन क अदभ  ुतता देखते हो : म  ुझको नमकार 

    है! िनचत ह यह जनक का वतय नह ंहै। यह परम घटना घट 

    गई, उस घटना का ह वतय है। यह समाधथ वर है। यह संगीत 

    समाध का है!  अहो अहं नमो मयं वनाशो यय िनात मे।

    सब मटेगा, म नह ंमला! सब जमता है, मरता ह ै—म न 

    जमता ह  ू  ंन मरता ह  ू !ं आचयमय ह  ू !ं म वयं आचय ह  ू !ं म  ुझ ेमेरा 

    नमकार! छोटे से छोटे त  णृ से लेकर मा तक बनते ह और मटते

    ह; उनका समय आता और जाता। वे सब समय म घट ह  ुई घटनाए ंह,

    तरंग ह। म साी ह  ू !ं म उह बनते और मटते देखता ह  ू ।ं वे मेर ह 

    आंख के सामने चल रहे अभनय, खले और नाटक ह। मेर ह आंख 

  • 8/9/2019 _ Osho Ganga_ _ -- -1( ) --9