19th edition-final - copy - indian...

27
अनुमिणका अंक – उनीसवां जुलाई– िदसंबर, 2017 1. नपीठ रकािवजेता- णा सोबती 2. लाल हवेली कहानी 3. वह पाना चाहता है---किवता 4. राजभाषा पखवाड़ा- िरपोट 5 . राजभाषा पखवाड़ा के दौरान आयोिजत कायमᲂ के दृय 6. बाबा साहेब भीम राव अबेडकर – 62वᱶ महापिरिनवाण िदवस के आयोजन के दृय 7. जीवन समर - कहानी 8. जीना सीख िलया – किवता 9. मािलक, कुता और नौकर - कहानी 10. वाय सफलता की कुं जी 11. कीड़े का रखवाला- लघु कथा 11. छोटी सी दुिनया – कहानी 12. संसदीय राजभाषा सिमित की दूसरी उप-सिमित के िनरीण मदुरै जंशन, रामे᳡रम टेशन और अजमेर मंडल 12. रेल अंचलᲂ मᱶ राजभाषा से संबंिधत गितिविधयᲂ के दृय रक अवनी लोहानी अय, रेलवे बोड देबल कुमार गायेन सदय कािमक आनद माथुर महािनदेशक, कािमक पता : राजभाषा िनदेशालय, रेल मंालय (रेलवे बोड), कमरा नं. 544, रेल भवन, रेलवे बोड नई िदली - 110001. Email : dol@rb.railnet.gov.in धान पादक एस.पी. माही कायपालक िनदेशक था.(आर) संपादक के.पी. सयानंदन िनदेशक,राजभाषा पादक नी पटनी उप िनदेशक,राजभाषा सह संपादक पुिपदर कौर सहायक िनदेशक, राजभाषा तकनीकी सहयोग िशव चरण गौड़ विरठ अनुवादक संपादन सहयोग मो. सािबर अली हसन िसिकी, विर. अनुवादक िव᳡ के सभी धम , भले ही और चीजᲂ मᱶ अंतर रखते हᲂ, िकन सभी इस बात पर एकमत हᱹ िक दु िनया मᱶ कुछ नहᱭ बस सय जीिवत रहता है - महामा गांधी

Upload: others

Post on 28-Oct-2019

6 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  •    

         

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

      

    अनुकर्मिणका अंक – उन् नीसवां जलुाई– िदसबंर, 2017

    1. ज्ञानपीठ परुस् कार िवजतेा- कृष् णा सोबती 2. लाल हवलेी –कहानी 3. वह पाना चाहता ह-ै--किवता 4. राजभाषा पखवाड़ा- िरपोटर् 5 . राजभाषा पखवाड़ा के दौरान आयोिजत कायर्कर्म के दशृ् य 6. बाबा साहबे भीम राव अम्बडेकर – 62व महापिरिनवार्ण िदवस के

    आयोजन के दशृ् य 7. जीवन समर - कहानी 8. जीना सीख िलया – किवता 9. मािलक, कुत् ता और नौकर - कहानी 10. स् वास् थ् य सफलता की कंुजी 11. कीड़े का रखवाला- लघ ुकथा 11. छोटी सी दिुनया – कहानी

    12. ससंदीय राजभाषा सिमित की दसूरी उप-सिमित के िनरीक्षण – मदरैु जकं्शन, रामे रम स्टेशन और अजमरे मडंल 12. रेल अचंल म राजभाषा स ेसबंिंधत गितिविधय के दशृ् य   

    सरंक्षक अश् वनी लोहानी

    अध् यक्ष, रेलवे बोडर् दबेल कुमार गायने

    सदस् य कािमक आनन् द माथरु

    महािनदशेक, कािमक

    पता : राजभाषा िनदशेालय, रेल मतंर्ालय (रेलव ेबोडर्),

    कमरा न.ं 544, रेल भवन, रेलव ेबोडर् नई िदल् ली - 110001. Email : [email protected]

    पर्धान सपंादक एस.पी. माही

    कायर्पालक िनदशेक स् था.(आर) सपंादक

    के.पी. सत्यानदंन िनदशेक,राजभाषा

    उप सपंादक नीरू पटनी

    उप िनदशेक,राजभाषा

    सह सपंादक पिुष्पन् दर कौर

    सहायक िनदशेक, राजभाषा

    तकनीकी सहयोग िशव चरण गौड़ विरष् ठ अनुवादक

    सपंादन सहयोग मो. सािबर अली हसन िसि की,

    विर. अनुवादक

    िव के सभी धमर्, भल ेही और चीज म अतंर रखत ेह , लिेकन सभी इस बात पर एकमत ह िक दिुनया म कुछ नह बस सत्य जीिवत रहता ह ै

    - महात्मा गाधंी

  •  

      

     

    ज्ञानपीठ परुस् कार िवजतेा- कृष् णा सोबती

    िहदी सिहत् य जगत की वयोवृ , ि़जदािदल, बेबाक

    और दबंग कृष् णा सोबती जी को वषर् 2017 का िहदी सािहत् य का पर्िति त ज्ञानपीठ पुरस् कार िदए जाने

    के िलए चुना गया ह.ै सन् 1950 से कथा और उपन् यास लेखन म लगातार सिकर्य कृष् णा सोबती को मिहला-पर्धान िवषय पर अपने िनभ क और साहसी लेखन के िलए जाना जाता ह.ै िजस समय िहदी सािहत् य म कुछ मिहला िवषयक िवषय पर िलखना विजत माना जाता था, उस समय भी बेबाक कृष् णा

    जी ने अपनी लेखनी से मुखर और साहसी स् तर्ी पातर् को गढ़ा. आज के असिहष् णु, सांपर्दाियक और

    वैमनस् यपूणर् समाज म भी वह अपनी लेखनी से समाज के सत् ता-संस् थान के िखलाफ अपनी बुलदं आवाज़ उठाती रही ह. वह हम हमारी महान संस् कृित और सभ् यता की साझी िवरासत की याद िदलाती रहती ह. उन् ह ज्ञानपीठ पुरस् कार िदया जाना एक तरह से इस महान िवरासत का सम् मान ह.ै

    उनकी पहली कहानी ‘लामा’ 1950 म छपी थी. साठ के दशक म आए उपन् यास ‘िमतर्ो मरजानी’ से कृष् णा सोबती सवार्िधक चिचत हुई, जो एक िववािहत मिहला के स् वच् छंद व् यवहार से संबंिधत ह.ै इसके अलावा ‘डार से िबछुड़ी’, ‘िजदगीनामा’,

    ‘ए लड़की’, ‘यार के यार’, ‘तीन पहाड़’, ‘िदनो दािनश’, ‘सुरजमुखी अंधेरे’, ‘जैनी मेहरबान िसह’ उनके पर्मुख उपन् यास ह. नई कहानी के दौर म ‘’बादल के घेरे’’, ‘’िसक् का बदल गया’’ से उन् ह न ेअपनी अिमट पहचान बनाई. कृष् णा सोबती को 1980 म ‘’ि़जदगीनामा’’ के िलए सािहत् य अकादमी पुरस् कार, 1982 म िहदी अकादमी पुरस् कार, 2007 म व् यास सम् मान, 1991 म लाइफटाइम िलटरेरी अचीवमट अवाडर् तथा 2001 म िहदी अकादमी का श् लाका सम् मान भी िमल चुका ह.ै उनके िवलक्षण, बेबाक व् यिक्तत् व का इस कथन से पता चलता ह ै जो उन् ह ने अपने बारे म िलखा ह,ै ‘’ म िकसी पर्ेरणा या बाहरी दबाव से नह िलखती. अपन ेसमूचे होने म रचकर, पैठकर जीने की तरह िलखती हू.ँ तभी िलखती हू ँ जब िलखने के िसवाय कोई चारा न रह जाए.’’ ऐसी महान िवभूित को शत-शत नमन. कृष् णा सोबती को ज्ञानपीठ पुरस् कार िदए जाने की घोषणा से ऐसा पर्तीत होता ह ै िक सम् मान ने खुद अपना मान बढ़ाया ह.ै कृष् णा जी दीघार्यु ह और भिवष् य म भी इसी पर्कार सिकर्य बनी रह और भारतीय िहदी सािहत् य म नए कीितमान स् थािप त कर. ऐसी हम कामना करते ह.

    -- पुिष्पदर कौर

    सहायक िनदशेक राजभाषा

     

    म ऐस ेधमर् को मानता हू,ं जो स्वततंर्ता, समानता और भाईचारा िसखाता ह।ै -डॉ. भीम राव अम्बडेकर

  •                                                   

    लाल हवलेी 

    तािहरा ने पास के बथर् पर सोए अपने पित को दखेा और एक लंबी साँस ख चकर करवट बदल ली।

    कंबल से ढकी रहमान अली की ऊँची त द गाड़ी के झकोल से रह-रहकर काँप रही थी। अभी तीन घंटे और थे। तािहरा ने अपनी नाजुक कलाई म बधँी हीरे की जगमगाती घड़ी को कोसा, कमब त िकतनी दरे म घंटी बजा रही थी। रात-भर एक आँख भी नह लगी थी उसकी।

    पास के बथर् म उसका पित और नीचे के बथर् म उसकी बेटी सलमा दोन न द म बेखबर बेहोश पड़ े थे। तािहरा घबरा कर बैठ गई। क्य आ गई थी वह पित के कहने म, सौ बहाने बना सकती थी! जो घाव समय और िवस्मृित ने पूरा कर िदया था, उसी पर उसने स्वयं ही नश्तर रख िदया, अब भुगतने के िसवा और चारा ही क्या था!

    स्टेशन आ ही गया था। तािहरा ने काला रेशमी बुकार् ख च िलया। दामी सूटकेस, नए िबस्तरबंद, एयर बैग, चांदी की सुराही उतरवाकर रहमान अली ने हाथ पकड़कर तािहरा को ऐसे सँभलकर अदंाज़ से उतारा जैसे वह काँच की गुिड़या हो, तिनक-सा धक्का लगने पर टूटकर िबखर जाएगी। सलमा पहल ेही कूदकर उतर चुकी थी।

     

    दरू से भागत,े हाँफते हाथ म काली टोपी पकड़ ेएक नाटे से आदमी ने लपककर रहमान अली को गले से लगाया और गोद म लेकर हवा म उठा िलया। उन दोन की आँख से आँसू बह रह ेथे। 'तो यही मामू िब े ह।' तािहरा ने मन ही मन सोचा और थे भी िब े ही भर के। िबिटया को दखेकर मामू ने झट गले

    से लगा िलया, 'िबल्कुल इस्मत ह,ै रहमान।' व े सलमा का माथा चूम-चूमकर कह ेजा रह े थे, 'वही चेहरा मोहरा, वही नैन-नक्श। इस्मत नह रही तो खुदा ने दसूरी इस्मत भेज दी।' तािहरा पत्थर की-सी मूरत बनी चुप खड़ी थी। उसके िदल पर जो दहकते अंगारे दहक रह ेथे उन्ह कौन दखे सकता था? वही स्टेशन, वही कनेर का पेड़, पंदर्ह साल म इस छोटे से स्टेशन को भी क्या कोई नह बदल सका!

    'चलो बटेी।' मामू बोल,े 'बाहर कार खड़ी ह।ै िजला तो छोटा ह,ै पर अल्ताफ की पहली पोिस्टग यही हुई। इन्शाअल्ला अब कोई बड़ा शहर िमलेगा।'

    मामू के इकलौते बेटे अल्ताफ की शादी म रहमान अली पािकस्तान से आया था, अल्ताफ को पुिलस-क ान बनकर भी क्या इसी शहर म आना था। तािहरा िफर मन-ही-मन कुढ़ी।

    घर पहुचँे तो बूढ़ी नानी खुशी से पागल-सी हो गई। बार-बार रहमान अली को गले लगा कर चूमती थ

     

     

  •                                                    

    'या अल्लाह, यह क्या तेरी कुदरत। इस्मत को ही िफर भेज िदया।' दोन बहुएँ भी बोल उठ , 'सच अम्मी जान, िबल्कुल इस्मत आपा ह पर बहू का मुँह भी तो दिेखए। लीिजए ये रही अशरफ़ी।' और झट अशरफ़ी थमा कर निनया सास ने तािहरा का बुकार् उतार िदया, 'अल्लाह, चाँद का टुकड़ा ह,ै नन्ह नजमा दखेो सोन ेका िदया जला धरा ह।ै'

    तािहरा ने लज्जा से िसर झुका िलया। पंदर्ह साल म वह पहली बार ससुराल आई थी। बड़ी मुिश्कल से वीसा िमला था, तीन िदन रहकर िफर पािकस्तान चली जाएगी, पर कैसे कटगे ये तीन िदन?

    'चलो बहू, उपर के कमरे म चलकर आराम करो। म चाय िभजवाती हू।ँ' कहकर नन्ह मामी उसे ऊपर पहुचँा आई। रहमान नीचे ही बैठकर मामू से बात म लग गया और सलमा को तो बड़ी अम्मी ने गोद म ही ख च िलया। बार बार उसके माथे पर हाथ फेरत , और िहचिकयाँ बँध जाती, 'मेरी इस्मत, मेरी बच्ची।'

    तािहरा ने एकांत कमरे म आकर बुकार् फक िदया। बन्द िखड़की को खोला तो कलेजा धक हो गया। सामने लाल हवलेी खड़ी थी। चटपट िखड़की बंद कर तख्त पर िगरती-पड़ती बैठ गई, 'खुदाया - तू मुझे क्य सता रहा ह?' वह मुँह ढाँपकर िससक उठी। पर क्य दोष द ेवह िकसी को। वह तो जान गई थी िक िहन्दसु्तान के िजस शहर म उसे जाना ह,ै वहाँ का एक-एक कंकड़ उस पर पहाड़-सा टूटकर बरसेगा। उसके नेक पित को क्या पता? भोला रहमान अली, िजसकी पिवतर् आँख म तािहरा के पर्ित पेर्म की गंगा छलकती, िजसने उसे पालत ूिहरनी-सा बनाकर अपनी बेिड़य से बाँध िलया था, उस रहमान अली से क्या कहती?

    पािकस्तान के बटवारे म िकतन े िपसे, उसी म से एक थी तािहरा! तब थी वह सोलह वषर् की कनक छड़ी-सी सुन्दरी सुधा! सुधा अपन ेमामा के साथ ममेरी बहन के ब्याह म मुल्तान आई। दगें की ज्वाला ने उसे फँूक िदया। मुिस्लम गंुड की भीड़ जब भूखे कु की भाँित

     

    उसे बोटी-सी िचचोड़ने को थी तब ही आ गया फिरश्ता बनकर रहमान अली। नह , वे नह छोडगे, िहदु ने उनकी बहू-बेिटय को छोड़ िदया था क्या? पर रहमान अली की आवाज़ की मीठी डोर ने उन्ह बाँध िलया। सांवला दबुला-पतला रहमान सहसा कठोर मेघ बनकर उस पर छा गया। सुधा बच गई पर तािहरा बनकर। रहमान की जवान बीवी को भी दहेली म ऐसे ही पीस िदया था, वह जान बचाकर भाग आया था, बुझा और घायल िदल लेकर। सुधा ने बहुत सोचा समझा और रहमान ने भी दलील क पर पशेमान हो गया। हारकर िकसी ने एक-दसूरे पर बीती िबना सनु े ही मजबूिरय से समझौता कर िलया। तािहरा उदास होती तो रहमान अली आसमान स ेतारे तोड़ लाता, वह हसँती तो वह कुबार्न हो जाता।

    एक साल बाद बटेी पैदा हुई तो रहा-सहा मलै भी धुलकर रह गया। अब तािहरा उसकी बेटी की माँ थी, उसकी िकस्मत का बुलन्द िसतारा। पहले कराची म छोटी-सी बजाजी की दकुान थी, अब वह सबसे बड़ ेिडपाटर्मटल स्टोर का मािलक था। दस-दस सुन्दरी एंग्लो इंिडयन छोकिरयाँ उसके इशार पर नाचती, धड़ाधड़ अमरीकी नायलॉन और डकेरॉन बेचत । दबुला-पतला रहमान हवा-भरे रबर के िखलौने-सा फूलने लगा। त द बढ़ गई। गदर्न ठकर शानदार अकड़ से ऊँची उठ गई, सीना तन गया, आवाज़ म खुद-ब-खुद एक अमरीकी डौल आ गया।

     

     

  •                                                    

    पर नीलम-पुखराज से जड़ी, हीरे से चमकती-दमकती तािहरा, शीशम के हाथी दाँत जड़ ेछपर-खट पर अब भी बेचैन करवट ही बदलती। माचर् की जाड़ ेसे दामन छुड़वाती हल्की गम की उमस िलए पािकस्तानी दोपहिरया म पानी से िनकली मछली-सी तड़फड़ा उठती। मस्ती-भरे होली के िदन जो अब उसकी पािकस्तानी िज़न्दगी म कभी नह आएँगे गुलाबी मलमल की वह चुनरी उसे अभी भी याद ह,ै अम्मा ने हल्का-सा गोटा टाँक िदया था। हाथ म मोटी-सी पुस्तक िलए उसका तरुण पित कुछ पढ़ रहा था। घुँघराली लट का गुच्छा चौड़ ेमाथे पर झुक गया था, हाथ की अधजली िसगरेट हाथ म ही बुझ गई थी। गुलाबी चुनरी के गोटे की चमक दखेत े ही उसने और भी िसर झुका िदया था, चुलबलुी सुन्दरी बािलका नववधू से झपझपकर रह जाता था, बेचारा। पीछे से चुपचाप आ कर सुधा ने दोन गाल पर अबीर मल िदया था और झट चौके म घुसकर अम्मा के साथ गुिझया बनाने म जुट गई थी। वह से सास की नज़र बचाकर भोली िचतवन से पित की ओर दखे चट से छोटी-सी गुलाबी जीभ िनकालकर िचढ़ा भी िदया था, उसने। जब वह मुल्तान जाने को हुई तो िकतना कहा था उन्ह न,े 'सुधा मुल्तान मत जाओ।' पर वह क्या जानती थी िक दभुार्ग्य का मेघ उस पर मंडरा रहा ह?ै स्टेशन पर छोड़ने आए थे, इसी स्टेशन पर। यही कनेर का पेड़ था, यही जंगला। मामाजी के साथ गठरी-सी बनी सुधा को घूघँट उठाने का अवकाश नह िमला। गाड़ी चली तो साहस कर उसने घूघंट जरा-सा िखसकाकर अंितम बार उन्ह दखेा था। वही अमृत की अंितम घूटँ थी।

     

    सुधा तो मर गई थी, अब तािहरा थी। उसने िफर काँपते हाथ से िखड़की खोली, वही लाल हवेली थी उसके सुर वकील साहब की। वही छत पर चढ़ी रात की रानी की बेल, तीसरा कमरा जहाँ उसके जीवन की िकतनी रस-भरी रात बीती थ , न जाने क्या कर रह ेह गे, शादी कर ली होगी, क्या पता बच्च से खेल रह ह ! आँखे िफर बरसन ेलग और एक अनजाने मोह से वह जूझ उठी।

    'तािहरा,  अरे कहाँ हो?'  रहमान अली का स्वर आया और हडबड़ाकर आँखे प छ तािहरा िबस्तरबंद खोलने लगी। रहमान अली ने गीली आँखे दखे तो घुटना टेक कर उसके पास बैठ गया,  'बीवी,  क्या बात हो गई?  िसर तो नह दखु रहा ह।ै चलो-चलो, लेटो चलकर। िकतनी बार समझाया ह ै   िक  यह  सब  काम मत िकया करो, पर सुनता कौन ह!ै बठैो कुस पर,  म  िबस्तर  खोलता  हू।ँ'     मखमली  ग े  पर  रेशमी  चादर िबछाकर रहमान अली ने तािहरा को िलटा िदया और शरबत लेने चला गया। सलमा आकर िसर दबाने लगी, बड़ी अम्मा ने आकर कहा,  'नज़र लग गई ह,ै  और क्या।'  नह नजमा न ेदहकते अंगार पर चून और िमचर् से नज़र उतारी। िकसी ने कहा,  'िदल का दौरा पड़  गया,  आंवले का  मुरब्बा  चटाकर दखेो।‘  लाड और दलुार की थपिकयाँ दकेर सब चले गए। पास म लेटा रहमान अली खरार्टे भरने लगा। तो दबे पैर वह िफर िखड़की पर जा खड़ी हुई। बहुत िदन से प्यासे को जैसे ठंड े पानी की झील िमल गई थी, पानी पी-पीकर भी प्यास नह बुझ रही थी। तीसरी मंिज़ल पर रोशनी जल रही थी। उस घर म रात का खाना दरे से ही िनबटता था। िफर खाने के बाद दधू पीन ेकी भी तो उन्ह आदत थी। इतने साल गज़ुर गए,  िफर भी उनकी एक-एक आदत उसे दो के पहाड़ ेकी तरह जुबानी याद थी। सुधा, सुधा कहाँ ह ैत?ू उसका हृदय उसे स्वयं िधक्कार उठा, तूने अपना गला क्य नह घ ट िदया? तू मर क्य नह गई, कुएँ म कूदकर? क्या पािकस्तान के कुएँ सूख गए थे? तूने धमर् छोड़ा पर  

     

     

  •                                                   

    बड़ी धूमधाम स े ब्याह हुआ,  चांद-सी दलु्हन आई। शाम को िपक्चर का पर्ोगर्ाम बना। नया जोड़ा,  बड़ी अम्मी, लड़िकयाँ, यहाँ तक िक घर की नौकरािनयाँ भी बन-ठनकर तयैार हो गई। पर तािहरा नह गई, उसका िसर दखु रहा था। बे िसर-पैर के मुहब्बत के गाने सुनने की ताकत उसम नह थी। अकेले अंधेरे कमरे म वह चुपचाप पड़ी रहना चाहती थी - िहन्दसु्तान, प्यारे िहन्दसु्तान की आिखरी साँझ। जब सब चले गए तो तेज ब ी जलाकर वह आदमकद आईने के सामने खड़ी हो गई। समय और भाग्य का अत्याचार भी उसका अलौिकक स दयर् नह लूट सका। वह बड़ी-बड़ी आँख, गोरा रंग और संगमरमर-सी सफेद दहे  ‐‐ कौन कहगेा वह एक जवान बेटी की माँ ह?ै कह पर भी उसके पु यौवन ने समय से मुँह की नह खाई थी। कल वह सुबह चार बजे चली जाएगी। िजस दवेता ने उसके िलए सवर्स्व त्याग कर वैरागी का वेश धर िलया ह,ै क्या एक बार भी उसके दशर्न नह िमलगे? िकसी शैतान-नटखट बालक की भाँित उसकी आँखे चमकने लग । झटपट बुकार् ओढ़, वह बाहर िनकल आई,  पैर म िबजली की गित आ गई, पर हवेली के पास आकर वह पसीना-पसीना हो गई। िपछवाड़ ेकी सीिढ़याँ उसे याद थ जो ठीक उनके कमरे की छोटी िखड़की के पास अकर ही   

    संस्कार रह गए,  पेर्म की धारा मोड़ दी, पर बेड़ी नह कटी, हर तीज, होली, दीवाली तेरे कलेजे पर भाला भ ककर िनकल जाती ह।ै हर ईद तुझे खुशी से क्य नह भर दतेी? आज सामने तेरे ससुराल की हवेली ह,ै जा उनके चरण म िगरकर अपने पाप धो ले। तािहरा ने िससिकयाँ रोकने को दपु ा मुँह म दबा िलया।  रहमान अली न े करवट बदली और पलंग चरमराया। दबे पैर रखती तािहरा िफर लेट गई। सबुह उठी तो शहनाइयाँ बज रही थ ,  रेशमी रंग-िबरंगी गरारा-कमीज अबरखी चमकते दपु े, िहना और मोितया की गमक से पूरा घर मह-महकर रहा था। पुिलस बड तैयार था, खाकी विदयाँ और लाल तुरर्म के साफे सूरज की िकरन से चमक रह ेथे। बारात म घर की सब औरत भी जाएँगी। एक बस म रेशमी चादर तानकर पदार् ख च िदया गया था। लड़िकयाँ बड़ी-बड़ी सुमदार आंख से नशा-सा िबखेरती एक दसुरे पर िगरती-पड़ती बस पर चढ़ रही थ । बड़ी-बुिढ़याँ पानदान समेटकर बड़ ेइत्मीनान से बैठने जा रही थ और पीछे-पीछे तािहरा काला बुकार् ओढ़कर ऐसी गुमसुम चली जा रही थी जैसे सुध-बुध खो बैठी हो। ऐसी ही एक सांझ को वह भी दलु्हन बनकर इसी शहर आई थी, बस म िसमटी-िसमटाई लाल चुनर स ेढ़की। आज था स्याह बुकार्,  िजसने उसका चेहरा ही नह ,  पूरी िपछली िजन्दगी अंधेरे म डुबाकर रख दी थी।  'अरे िकसी ने वकील साहब के यहां बुलौआ भेजा या नह ?' बड़ी अम्मी बोल ओर तािहरा के िदल पर नश्तर िफरा। 'द े िदया अम्मी।' मामूजान बोल,े  'उनकी तबीयत ठीक नह ह,ै इसी से नह आए।'  'बड़ ेनेक आदमी ह' बड़ी अम्मी ने िडिबया खोलकर पान मुंह म भरा, िफर छाली की चुटकी िनकाली और बोली, 'शहर के सबस ेनामी वकील के बेटे ह पर आस न औलाद। सुना एक बीवी दगें म मर गई तो िफर घर ही नह बसाया।'      

  •                                                  

    िनजर्न दवेालय की ओर भागी। न जाने िकतनी मनौितयाँ माँगी थ ,  इसी दहेरी पर। िसर पटककर वह लौट गई,  आँचल पसारकर उसने आिखरी मनौती माँगी, 'ह ेभोलेनाथ, उन्ह सुखी रखना। उनके पैर म काँटा भी न गड़।े' हीरे की अँगूठी उतारकर चढ़ा दी और भागती-हाँफती घर पहुचँी।  रहमान अली ने आते ही उसका पीला चेहरा दखेा तो नब्ज़ पकड़ ली,  'दखँूे, बुखार तो नह ह,ै अरे अँगूठी कहाँ गई?' वह अँगूठी रहमान ने उसे इसी साल शादी के िदन यादगार म पहनाई थी।   'न जाने कहाँ िगर गई?' थके स्वर म तािहरा ने कहा।   'कोई बात नह ' रहमान ने झुककर ठंडी बफ़र् -सी लंबी अँगुिलय को चूमकर कहा,  'ये अँगुिलयाँ आबाद रह। इन्शाअल्ला अब के तेहरान से चौकोर हीरा मँगवा लगे।' तािहरा की खोई दिृ िखड़की से बाहर अंधेरे म डूबती लाल हवेली पर थी,  िजसके तीसरे कमरे की रोशनी दप-स-ेबुझ गई थी। तािहरा ने एक सदर् साँस ख चकर िखड़की बन्द कर दी। लाल हवेली अंधरेे म गले तक डूब चुकी थी। 

    रुकती थ । एक-एक पैर दस मन का हो गया, कलेजा फट-फट कर मुंह को आ गया, पर अब वह तािहरा नह थी, वह सोलह वषर् पूवर् की चंचल बािलका नववधू सुधा थी जो सास की नज़र बचाकर तरुण पित के गाल पर अबीर मलने जा रही थी। िमलन के उन अमूल्य क्षण म सयैद वंश के रहमान अली का अिस्तत्व िमट गया था। आिखरी सीढ़ी आई, सांस रोककर, आँखे मूँद वह मनाने लगी, 'ह ेिबल्वे र महादवे, तुम्हारे चरण म यह हीरे की अँगूठी चढ़ाऊँगी, एक बार उन्ह िदखा दो पर वे मुझे न दखे।' बहुत िदन बाद भक्त भगवान का स्मरण िकया था,  कैसे न सुनत?े आँसु से अंधी ने दवेता को दखे िलया। वही गंभीर मुदर्ा, वही ल े का इकबरार् पाजामा और मलमल का कुतार्। मेज़ पर अभािगन सुधा की तस्वीर थी जो गौने पर बड़ े भय्या ने ख ची थी।  'जी भरकर दखे पगली और भाग जा, भाग तािहरा, भाग! ' उसके कान म जसैे स्वयं भोलानाथ गरजे।  सुधा िफर डूब गई,  तािहरा जगी। सब िसनेमा से लौटने को ह गे। अंितम बार आँख ही आँख म दवेता की चरण-धूिल लेकर वह लौटी और िबल्वे र महादवे के

    वह पाना चाहता ह ै-पेर्म बंधना चाहता ह ैबंधन म जैसे बेल िलपटी रहती ह ै वह पड़ होना चाहता ह ै फल दनेा चाहता ह ै लेिकन झुकना नह चाहता ह ै अकड़ कर खड़े रहना चाहता ह ै वह नदी बन कर समुदर् म िमलना चाहता ह ै लेिकन बहना नह चाहता पानी की तरह

    वह िचिड़य की तरह उड़ना चाहता ह ै लेिकन पंख नह िहलाना चाहता ह ै वह सुदरू तार की तरह िटमिटमाना चाहता ह ैअँधेरे म उजाला लाना चाहता ह ै लेिकन जलना नह चाहता ह ै वह जो ह ैउससे इतर होना चाहता ह ै पर वह अिनि त ह ै और इसी िलए ठहरा ह ै खंिडत िव ास के साथ ।

    वह पाना

    चाहता ह ै

    - तजे पर्ताप नारायण 

  •                                                   

    जािमया मीिलया इस् लािमया से आए िहदी अिधकारी शर्ी राजेश कुमार ने अपने-अपने व् याख् यान पर्स् तुत िकए

    इसी शर्ंखला म, 21 िसतंबर, 2017 को “सोशल मीिडया एव ंिहदी” िवषय पर एक संगोष् ठी का आयोजन िकया गया, िजसम राजभाषा िनदेशालय के पूवर् िनदशेक शर्ी िवजय कुमार मल् होतर्ा तथा रेलवे िहदी सलाहकार सिमित के सदस् य शर्ी सैयद हािमद अली ने अपने-अपने व् याख् यान पर्स् तुत िकए.

    इसी कड़ी म, 19 िसतंबर, 2017 को बोडर् कायार्लय म एक लोकिपर्य कायर्कर्म अतंाक्षरी का भी आयोजन िकया गया, िजसका लोग ने भरपूर आनंद उठाया.

    राजभाषा पखवाड़ा-2017 का समापन समारोह 27.09.2017 को रेल भवन के कॉन् फर्स हॉल म आयोिजत िकया गया, िजसम रेलवे बोडर् के िवत् त आयुक् त शर्ी बी.एन. मोहपातर्ा ने िवजेता को पर्माण-पतर् तथा नकद पुरस् कार से पुरस् कृत िकया. साथ ही, उन् ह ने पुरस् कार िवजेता को बधाई दी.

    तत् पश् चात्, इस अवसर पर एक भव् य किव सम् मेलन का आयोजन िकया गया, िजसम कई नामचीन किवय ने भाग िलया और अपनी हास् य किवता /रचना के ज़िरए से खचाखच भरे हॉल म शर्ोता-गण का मन-मोह िलया और शर्ोता-गण ने भी बीच-बीच म जोरदार तािलयां बजाकर उनका उत् साहवधर्न िकया. 

     इस पर्कार, दो सप् ताह चले इस राजभाषा

    पखवाड़े का समापन हुआ.  

    रेल मंतर्ालय (रेलवे बोडर्) म िहदी िदवस के उपल य म राजभाषा पखवाड़ा-2017 का  िदनांक 14 से 27 िसतंबर, 2017 तक सफलतापूवर्क आयोजन िकया गया. इस दौरान िविभन् न  अिभरूिच वाले कायर्कर्म यथा िहदी िनबंध, वाक्, िटप् पण एवं पर्ारूप लेखन, टंकण, अंताक्षरी, पर्श् न मंच आिद का आयोजन िकया गया, िजसम बोडर् कायार्लय के अिधकािरय /कमर्चािरय ने बढ़‐चढ़ कर िहस् सा  िलया. 

    राजभाषा पखवाड़े की शुरूआत 14 िसतंबर, 2017 को िहदी िनबंध पर्ितयोिगता के साथ हुई, िजसम बोडर् कायार्लय के अिधकािरय /कमर्चािरय ने उत् साहपूवर्क भाग िलया. इसी कड़ी म, 15 िसतंबर, 2017 को िहदी िटप् पण एवं पर्ारूप लेखन पर्ितयोिगता का आयोजन िकया गया. 

    18 और 22 िसतंबर, 2017 को बोडर् कायार्लय के अिधकािरय /कमर्चािरय के िलए कर्मश: टंकण पर्ितयोिगता एवं सािहित्यक पर्श् न मचं का आयोजन िकया गया, िजसम िवेजेता को सािहित्यक पुस् तक का िवतरण िकया गया.   20 िसतंबर, 2017 को एक िहदी कायर्शाला का आयोजन िकया गया, िजसम दो व् याख् याता यथा भारतीय मानक ब् यूरो से सहायक िनदेशक शर्ी राम सकल िसह एवं  

    राजभाषा पखवाड़ा-2017 - िरपोटर् 

  •  

     

     

     

     

     

     

     

    रेलव े बोडर् म िदनांक 14 स े27 िसतबंर, 2017 तक आयोिजत राजभाषा पखवाड़ा के दशृ् य 

  •  

    बाबा साहबे डॉ. भीम राव अम्बडेकर जी का 62वा ंमहापिरिनवार्ण िदवस  

    रेलवे बोडर् म िदनांक 6 िदसंबर 2017 को भारतीय संिवधान के जनक एवं भारत र डॉ बाबा साहब भीमराव अम्बडेकर जी का 62वां महापिरिनवार्ण िदवस मनाया गया. रेल भवन की दसूरी मंिजल म महापिरिनवार्ण िदवस के अवसर पर ऑल इंिडया एस सी/एस टी रेलवे एंप्लॉय एसोिसएशन के सौजन्य से डॉ अम्बडेकर के जीवन के िविभ पहलु को उजागर करते हुए एक भ िचतर् पर्दशर्नी का आयोजन िकया गया. इस िचतर् पर्दशर्नी का शुभारंभ सदस्य कािमक शर्ी डी के गायेन, सदस्य कषर्ण शर्ी घनश्याम िसह, िव ायुक्त (रेलव)े शर्ी बी एन मोहपातर्, महािनदशेक कािमक शर्ी आनंद माथुर, अपर सदस्य कािमक शर्ी मनोज पांडे, सिचव रेलवे बोडर् शर्ी आर के वमार्, एआईआरएफ के अध्यक्ष शर्ी आर डी गु ा तथा महासिचव शर्ी िशव गोपाल िमशर्ा तथा ऑल इंिडया एससी/एसटी रेलवे एंप्लॉय एसोिसएशन के महासिचव शर्ी अशोक कुमार एवं अन्य गणमान्य िक्तय ारा बाबा साहबे के िचतर् पर दीप पर्ज्विलत करके तथा उन्ह पुष्पांजिल अिपत करके िकया गया. इस पर्दशर्नी म कानूनिवद, अथर्शा ी, राजनीितज्ञ तथा सामािजक सुधारक के रूप म बाबा साहबे के जीवन से जुड़े िविभ पहलु के दलुर्भ िचतर् को एकितर्त करके पर्दशर्नी के रूप म पर्दिशत िकया गया िजन्ह दखेकर पर्दशर्नी म पधारे रेल मतंर्ालय के उच्च अिधकािरय तथा दशर्क ारा इस भ पर्दशर्नी की सराहना की गई. यह पर्दशर्नी सुबह 10:30 बजे से 5:00 बजे तक के िलए खुली रखी गई िजसम बड़ी संख्या म बोडर् कायार्लय के अिधकािरय और कमर्चािरय ारा अवलोकन िकया गया. 

     

  •  

    बाबा साहबे डॉ. भीम राव अबंडेकर – 62वा ंमहापिरिनवार्ण िदवस के आयोजन के दशृ् य 

  •  

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

       

    बाबा साहबे डॉ. भीम राव अबंडेकर – 62व महापिरिनवार्ण िदवस के आयोजन के दशृ् य 

    सदस्य कािमक, रेलवे बोडर् शर्ी डी.के. गायेन डॉ. भीमराव अम् बेडकर जी को शर्ृ ासुमन अिपत करते हुए  

    महािनदशेक, कािमक शर्ी आनंद माथुर डॉ. भीमराव अम् बेडकर जी को शर्ृ ासुमन अिपत करते हुए  

    कायर्पालक िनदशेक, स् था.(आर) शर्ी एस.पी. माही डॉ. भीमराव अम् बेडकर जी को शर्ृ ासुमन अिपत करत ेहुए  

    ऑल इंिडया एससीएसटी रेलवे एम् प् लॉई एशोिसएशन के महासिचव शर्ी अशोक कुमार डॉ. भीमराव अम् बेडकर जी को शर्ृ ासुमन अिपत करते हुए  

    सदस्य कषर्ण, रेलवे बोडर् शर्ी घनश् याम िसह डॉ. भीमराव अम् बेडकर जी के िचतर् के सामन े ीप पर्ज् जविलत करते हुए  

    एआईआरएफ के महासिचव शर्ी िशव गोपाल िमशर्ा डॉ. भीमराव अम् बेडकर जी को शर्ृ ासुमन अिपत करते हुए  

  •   

        

    बाबा साहबे भीम राव अबंडेकर – 62व महापिरिनवार्ण िदवस के आयोजन के दशृ् य 

    सिचव, रेलवे बोडर् शर्ी आर.के. वमार् डॉ. भीमराव अम् बेडकर जी को शर्ृ ासुमन अिपत करते हुए  

    सदस्य कािमक, रेलवे बोडर् शर्ी डी.के. गायेन डॉ. भीमराव अम् बेडकर जी की िचतर्-पर्दर्शनी का अवलोकन करते हुए  

    सदस्य कािमक, रेलवे बोडर् तथा अन् य अिधकारीगण डॉ. भीमराव अम् बेडकर जी की िचतर्-पर्दर्शनी का अवलोकन करते हुए  

    िवत् तायुक् त, रेल शर्ी बी.एन. मोहपातर् एवं अन् य अिधकारीगण डॉ. अम् बेडकर जी की िचतर्-पर्दर्शनी का अवलोकन करते हुए  

    डॉ. अम् बेडकर जी के महापिरिनवार्ण िदवस के अवसर पर उनके जीवन काल पर िचतर्-पर्दर्शनी म भाग लेते हुए बोडर् के सदस् य एवं अन् य अिधकारीगण तथा एआईआरएफ और ऑल इंिडया एससीएसटी रेलवे एम् प् लॉई एशोिसएशन के पदािधकारी 

  •  

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

    जीवन समर  

    मनुष्य जीवन अनमोल ह ै और ई र का िदया हुआ सव म तौफा माना गया ह।ै जीवन-यातर्ा के पड़ाव म दःुख-सुख के झ के आते जाते ह। इन सब से डट कर मुकाबला करना ही सफल इंसान की पहचान मानी गई ह।ै युवा पीढ़ी नौकरी के पर्यास म तनाव-गर्स्त नजर आती ह।ै जब सारे पर्यास के बाद भी नौकरी हाथ नह लगती,तो युवा िनराश होन े लगते ह। हताश होकर रास्ते से भटक जाते ह। भिवष्य म अंधकार नजर आने लगता ह।ै नरेश भी ऐसे ही दौर से गुजर रहा था। सरकारी नौकरी पकड़ने के िलए बार-बार कंपीटीशन िदए। िलिखत परीक्षा व इंटर ू तक अनेक बार पहुचँा। िमलने वाल से सहायता की अपील की परंतु बार-बार असफलता ही हाथ लगती। इन हालात म घरवाल के ताने-उलाहने सुनने को िमलते। यार-दोस्त ने भी क ी-काटना शुरु कर िदया। नरेश को िनराशा ने घेर िलया। उसको यह नह सूझ रहा था िक आग ेक्या कर? सरकारी नौकरी िमलना तो मुिश्कल ह।ै लाख परीक्षािथय म सलेक्ट होना नामुमिकन ह।ै

    िनराशा के इस भंवर म नरेश फंसा हुआ ह।ै उसे आशा की िकरण नजर नह आ रही ह।ै नरेश की इस दशा को दखेकर घर के बुजुगर् दादाजी ने ताड़ िलया िक नरेश को सहारे की जरुरत ह।ै उन्ह ने पूछा, नरेश क्या बात ह ै ? क्या बहुत परेशान हो ? नरेश ने दादाजी को हमददर् समझ कर सारी बात बताई। दादाजी को जीवन का पूरा अनुभव था। उन्ह ने जीवन के अनेक उतार- चढ़ाव दखेे थे। उन्होने कहा िक नरेश िचता करने की कोई बात नह ह।ै सब ठीक हो जाएगा। मनुष्य को कमर् करते रहना चािहए। कमर्ठ इंसान से ई र को भी हारना पड़ता  

    ह।ै पर्ाचीन कहावत ह ै िक “कतार् से हारे करतार”। किठन कमर् करने से जीवन म सफलता िमलती ह।ै ऐसे कमर्ठ इंसान को ई र को भी कोई न कोई अवसर अवश्य दनेा पड़ता ह।ै नरेश ने बात काटते हुए कहा िक बाबा म बार-बार परीक्षा दतेा हू ँपरंत ुसफल नह हो पाता हू ँऔर आप कह रह ेह िक ई र कमर्ठ इंसान को अवश्य सफलता दतेा ह।ै म तो समझ नह पा रहा हू।ँ दादाजी ने गहरी ांस लेकर कहना शुरू िकया।

    जीवन म काम करने के अनेक के्षतर् ह।ै अपनी रूची के अनुरूप उनकी तलाश करनी पड़ती ह।ै उस अवसर को हािसल करने के पर्यास िकए जाते ह और जब रूची का कायर् िमल जाए तो उसम पूरी तरह मन लगाना पड़ता ह।ै उस कायर् के उतार चढ़ाव दखेने पड़ते ह। उसम बारीिकय का अध्ययन करके कायर् को पूणर्रूप से समझना होता ह।ै कायर् को लगन व पिरशर्म से करने से उसम सफलता िमल सकती ह।ै नरेश को जैसे नई ऊजार् िमल गई। उसने तय कर िलया िक जीवन चलाने के िलए कायर् तो करना ही ह।ै उसको लाभ-हािन, ापार कारोबार के कायर् म रूची थी। उसने उसी िदन िवचार कर िलया िक िकसी भी ापािरक कायर् म हाथ आजमाते ह। वह रेडीमेड कपड़ की

    ापािरक कंपनी म काम तलाशन े गया और उसे सेल्समेन का कायर् िमल गया।

    नरेश सुबह से शाम तक घर-घर दस्तक दतेा,गर्ाहक को सामान िदखाता साथ ही लोग का सेल्समेन के पर्ित जो रवैया नजर आता उसे भी अनुभव करता। शुरूआत म खास िबकर्ी भी नह हुई परंतु उसने दादाजी की सीख को याद करके उस काम को  

    कहानी 

  •                              

     

     

    सुचारू तरीके से करना शुरू िकया। िबकर्ी के्षतर् के जानकार लोग से सलाह मशिवरा िकया। कंपनी के मेनेजर को अपना गुरू बनाया। अपनी जबुान म िमठास को जगह दी। गर्ाहक की हिैसयत को समझ कर उत्पाद िदखाना शुरू िकया। धीरे-धीरे उसका कायर् चल िनकला। इसके बाद उसने पैसे की पकड़ करना शुरू िकया। अनावश्यक िफजूलखच को बंद िकया और बचत को बढ़ाना शुरू िकया। इन पर्यास से उसका काम बहुत अच्छा हो गया। दो पैसे हाथ म आने से उसका आत्मिव ास बढ़ गया। घर-पिरवार म भी उसकी पूछ होने लगी। कंपनी म एक सफल सेल्समेन के रूप म नरेश की िगनती होने लगी।

    कंपनी म अिधक िबकर्ी दनेे वाले सेल्समेन को पर्ोत्साहन दनेे का पर्ावधान था। नरेश को एक िदन मेनजेर ने अपने पास बुलाया। पूछा क्य भाई नरेश तुम्हारा कायर् कैसे चल रहा ह ै? क्या तुम्ह इस कायर् को करने म कोई किठनाई नजर आती ह ै? तुम इस काम को आगे ले जाने म क्या पर्यास कर सकते हो ? ऐसे अनेक पर् एक साथ कर िदए। नरेश ने जवाब िदया सर,मेरा काम बहुत अच्छा चल रहा ह।ै मुझे इस काम म कोई किठनाई महसूस नह होती बिल्क म तो इस काम को करने म

    बहुत खुश हू।ँ म सेल्समेन के कायर् को अिधक क्षमता से करने के िलए मेरे मािजन म कमी करके अिधक मातर्ा म उत्पाद बेचना चाहता हू।ँ अिधक माल िबकने से मेरा मुनाफा स्वतः ही बढ़ जाएगा। मेनेजर नरेश के वक्त से बहुत पर्भािवत हुआ। उसने नरेश को िबकर्ी के और ज्यादा ल य िदए। नरेश ने किठन पिरशर्म से उन्ह हािसल िकया। मेनेजर ने नरेश के कायर् की लगन को अच्छी तरह जांचा-परखा और उसे सभी सेल्समेन के ऊपर सुपरवाईजर बना िदया। अब नरेश का कायर् केवल सेल्समेन को सामान दनेा और उनके काम म आने वाली किठनाईय को दरू करना और मागर्दशर्न दनेा था। उसे अब घर-घर जाने की जरूरत नह थी। िदन भर पसीने म तर-बतर होने वाला नरेश अब ठंडी हवा म अपने कक्ष म रहता था। उसकी सेलेरी भी बढ़ चुकी थी। घर के लोग भी खुश थे । आज उसे दादाजी की समझाइश याद आती ह ैिक यिद दादाजी ने उसे न संभाला होता तो आज वह इस मुकाम पर नह पहुचं पाता। सधन्यवाद।

    िशवचरण बैरवा राजभाषा अिधकारी∕िनमार्ण िनमार्ण िवभाग,पर्.का.उपरे,जयपुर

  •                                                   

    वो िपछले 2-3 िदन से नजर नह आ रहा था। कुत् ता घुमात,े टहलते या बच पर बैठे कई पिरिचत चेहरे तो िदखते थ,े मगर उसकी अनुपिस्थित मुझे कचोट सी रही थी। पाकर् के तीन चक् कर लगाने म मुझे लगभग तीस िमनट लगते ह। तीन बार उस स् थान स ेभी गुजरा जह वह रोज बैठा रहता था। मगर वो वह नह िदखा। एक िदन पजामा पहने उसका नौकर कुत् ते के साथ नजर आया। कल से तो वह भी नदारद था।

    सुबह की सैर, जबसे मािनग वॉक म तब् दील हुई ह,ै उसके अनुयायी भी थोड़ा बढ़ गए ह। कुछ इसे बाबा रामदवे का योगदान कहा जा सकता ह ैऔर यिद न माने तो भी यह सत् य ह ैिक तंदरुूस् ती के पर्ित जागरूकता तो बढ़ी ही ह।ै सवेरे-सवेरे हर शहर के पाक म काफी लोग टहलते, तेज-तेज पग रखते अथवा दौड़ते हुए नजर आते ह। नवयुवक अक् सर दौड़ लगाते ह ै और कुछ बड़े उमर् वाले लोग योगासन भी करते ह। कह पर मिहलाएं कीतर्न करती ह। पर्ात:काल एक अलग ही माहौल रहता ह ैपाकर् म।

    पर्ात:कालीन सैर को लोकिपर्य बनाने म टीवी चैनल के अलवा अखबार का भी खासा योगदान ह।ै हर िदन सेहत के बारे म कुछ-न-कुछ छपता रहता ह। रिववारीय संस् करण म तो एक पूरा पृष् ठ ही इस पर होता ह।ै अगर इतने से भी आप न मान, तो अगला पृष् ठ दखे – यह नए-नए पकवान पर होता ह।ै फैसला आपका – चब घटाएं या चब बढ़ाएं। सुबह की सैर करने वाल की इस बढ़ती संख् या का एक बड़ा िहस् सा मरेे जैसे लोग का ह।ै मेरे जसेै? जी ह तीन मध् य से सुशोिभत – मध् य वग य, मध् य आयु और मध् य पर्दशे वाले।

    कल ही एक व् हाट्सएप आया था --- “समय और पेट --- कब िनकल जाता ह,ै पता ही नह चलता। िफर

    न पेट वािपस आता ह,ै न समय।” शायद अब आप समझ गए ह गे िक ‘मध् य पर्दशे’ का तात् पयर् शरीर के िनकले हुए उस अगर् भाग से ह ैजो िवकास के अलग-अलग स् तर पर सभी मध् य आयु (‘अधेड़’ शब् द अच् छा नह लगता) वाले व् यिक्तय म पाया जाता ह।ै िवकास की उच् च अवस् था पहुचंने पर इसे त द भी कहा जाता ह।ै धन् य हू ँिक मरेी इतनी तरक् की अभी नह हुई ह।ै

    मेटर्ो म यातर्ा कर तो एक सवक्षण आंख से ही कर डािलए। ‘मध् य पर्दशे’ िजन व् यिक्तय म नजर आएगा, वह अमूमन सभी मध् य आयु के ह गे। एक ओर िशिथल होता शरीर और दसूरी ओर बढ़ता पेट। दोन का एक ही इलाज – मािनग वॉक, मािनग वॉक। सुबह सैर के िलए लोग यथाशिक्त और यथासामथ् यर् िनकलते ह। मूलत: यह तीन बातेां पर आधािरत होता ह ै– िनत् य उठने का समय, िनत् यकमर् म लगने वाला समय और ऑिफस जाने का टाईम, यिद नौकरी पर ह और यिद नह , तो बच् च ेछोड़न/ेसब् जी लेने/अखबार पढ़ने के टाईम के अनुसार। भारतीय रेल की बदौलत भारत के िविभन् न भाग म 32 वषर् से अिधक रहने के बाद आिखर अपने शहर िदल् ली म लौटा। अपनी पुरानी बस् ती के ही उस पाकर् म घूमने और बचपन से साथी लोग से रूबरू होने लगा जो अब मरेी ही तरह बड़े हो गए थे। पुराने पिरिचत िजनम से कई का नाम म भूल गया था, कुछ मुझे भूल गए थे। कुछ सफेद बाल वाले और कुछ गंज े एक फ्लैशबैक सरीखे 30-40 वषर् पूवर् के नेकर पहने फुटबाल या िकर्केट खेलते याद आने लग।े पुरानी याद ताजा होने लगी। ‘टीटू’ का नाम मुझे अब याद नह था और उसके िलए म

    मािलक, कुत् ता और नौकर  – कहानी 

  •                                                  

    मंगले का दोस् त था। प च-छह लोग का पंजाबी म बात करता उसका ‘कबीला’ जब मेरे पास से िनकलता तो टीटू और म एक दसूरे का अिभवादन करते। बाकी सोचत ेह गे िक कह से (िकत् थ !) एक नया बािशन् दा आ गया?

    सुबह टहलने वाले कभी-कभी रोज िदखने वाल को पहचान भर लेते ह – जैसा वह आदमी। उसे मोटा कहा जा सकता था। साल दर साल समोसे, पकोड़े, काजू, मक् खन, िमठाई और ऑिफस या दकुान की कुस म िनरंतर आठ-नौ घंटे बैठे रहने के सिम्मिलत पर्यास का असर उस पर साफ नजर आता था। उसका कुत् ता दौड़ता था और नौकर पीछे-पीछे मगर वह तो हर प च िमनट चलकर बच पर बैठ जाता। िफर भी यह पर्यास वंदनीय था ----- कायर्कर्म चालू था – वकर् -इन-पर्ोगर्ेस!

    मध् य आयु म अक् सर ऐसा होता ह ैिक शरीर को पुन: चुस् त करने म महीन लग जाते ह। म भी यही महसूस कर रहा हू।ँ हो सकता ह ैउसे कोई बीमारी हो िवशेषकर डाईबटीज या हृदय संबंधी। जो भी हो ताजी हवा का तो वह सेवन कर ही रहा था। एक महानगर के िकसी कमरे म सारा िदन बंद रह कर सवेरे के यह उत् तम पल तो उसे कतई नह िमलते।

    मोटे लोग टेर्क पट नह पहनते। एक तो पेट के नीचे सरक जाती ह ैऔर दसूरा पीछे फंस जाती ह।ै जरा सा झुक तो शरीर म मोटापा कह -कह ह-ै साफ नजर आता ह,ै िवशेषकर पृष् ठभाग म। इसीिलए मोटे लोग

    अक् सर ढीली पतलून पहनते ह। वह भी एक मटमैली पट पहनता था, ऊपर एक ढीली सफेद टी-शटर् – कालर

    वाली और हम सभी की तरह सैर वाले कपड़े के जूते। उसका नौकर शायद उसी उमर् का था। वह एक

    ढीली सफेद पाजामा और पूरी आस् तीन की कमीज पहन ेऔर हाथ म कुत् ते की चेन िलए चलता था। पुराना खानदानी वफादार होगा जसैा हमारे सामने वाले मकान

    का ‘बहादरु’ ह ै िजसे िपछले तीस साल से तो हम

    दखे ही रह ेह। और कुत् ता? लेबराडोर नस् ल का हल् के भूरे

    रंग का। न िकसी अन् य कुत् ते से खेलता और न ही भ कता। बस जैसे कुत् त की िफतरत होती ह,ै हर

    झांड़ी को संूघता और पैर उठाकर अपनी उपिस्थित दजर् करा दतेा। कम से कम आठ साल का होगा –

    कुत् त म भी मध् य आयु का। पैर म बंधी प ी बता रह थी िक उसका आपरेशन हुआ था।

    पाकर् का चक् कर काटते हुए कुछ लोग तो आपके सामने से आते ह तो कुछ पीछे से तेज चलते हुए आपसे आगे िनकल जाते ह। समय के साथ कुछ अपिरिचत पिरिचत से लगने लगते ह,ै भले ही पर्कट

    अिभवादन कर या न कर। ऐसे चलते-चलते अनजान लोग के बारे म हम क् या-क् या सोचने लग जाते ह। म उसे और उसके नौकर को चलते-चलत ेसदा पार करता था। उसने मुझे कभी नह दखेा मगर नौकर पहचानने लगा था। शायद वह मेरे बारे म सोचता हो। कुत् ते को तो झाि़डय से ही फुरसत नह थी।

    हमारा पाकर् चार कालोनी के बीच म ह।ै वह िनि त ही मेरी कालोनी का नह था, शायद

    समीप के गलुमोहर पाकर् कालोनी स े आता था क् य िक एक बार मने उसे उस ओर के गेट से बाहर िनकलता दखेा था। हो सकता ह ैउसका गुलमोहर पाकर् म अपना घर हो या िफर िकराए पर रहता हो या िफर अपनी कार वह खड़ी करके आया हो। लगता तो संपन् न था। सहेत हालािंक बहुत अच् छी नह थी।

  •  

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

     

    कैसी अजीब बात ह।ै लेना दनेा कुछ नह एक अनजान शख् स के बारे म सोच ेजा रह ेह।ै मगर क् या कर, चलत-ेचलते आते हुए ख् याल म वह भी आ जाता, जब सामने से िनकलता या बच पर बैठा नजर आता। और अब, जबिक वह नजर नह आ रहा था मुझे उसकी याद आ रही थी। क् य नह आ रहा होगा वो? क् या बीमार हो गया? या मािनग वॉक रास नह आई? या उसका तबादला हो गया या घर बदल िलया? ऐसे पर्श् न िजनका जवाब मेरे पास नह था। घुमता रहता, सोचता रहता। िफर यह कौतुहल भी समाप् त हो गया। मुझे कलकत् ता से टर्ांसफर पर आए छह माह बीत चुके थे। सरकारी मकान भी एलाट हो गया। बेटी की कलकत् ता म बोडर् की परीक्षा भी समाप् त हो गयी थी।

    तो अपनी गृहस् थी लेकर म सरकारी आवास म आ गया। उस पाकर् म अब नह जा सकता – बहुत दरू ह।ै िदनचयार् भी अब खंूटे के बैल सी हो गई, सब के टाईम दखेत-ेदखेते अपने िलए समय ही नह रह गया। अब सबेरे मुझे अपने पालतू कुत् ते को घुमाना पड़ता ह।ै मािनग वॉक होती ह ै मगर घर के आसपास। अब न टीटू से कोई मुलाकात और न ही उस आदमी के दशर्न की संभावना बची ह।ै बस यदा-कदा यह सोचता हू ँिक क् या वो वािपस टहलने लगा होगा? यिद ह तो क् या उसने, उसके नौकर ने या उसके कुत् ते ने मेरी अनुपिस्थित महसूस की होगी? मुझे ‘िमस’ िकया? जैसे म उसे करने लगा था। एक ऐसा पर्श् न जो सदा अनुत् तिरत ही रहगेा।

    मनोज पाण् ड े अपर सदस् य (कािमक), रेलव ेबोडर्

     

    था। पत्थर टूटते ही वो अपनी कैद से िनकल कर भागा। सब अचरज म थे की आिखर वो इस तरह कैसे कैद हो गया और इस िस्थित म भी वो अब तक जीिवत कैसे था ?

    अब गुरु जी राजा की तरफ पलटे और पुछा , ” अगर आप ऐसा सोचते ह िक आप इस राज्य म हर िकसी का ध्यान रख रह ेह, सबको पाल-पोष रह ेह, तो बताइये पत्थर के बीच फंसे उस कीड़े का ध्यान कौन रख रहा था..बताइये कौन ह ैइस कीड़े का पालनहार ?”

    राजा को अपनी गलती का एहसास हो चुका था, उसे अपने अिभमान पर पछतावा होने लगा , गुरु की कृपा से वे जान चुका था िक वो ई र ही ह ैिजसने हर एक जीव को बनाया ह ैऔर वही ह ैजो सबका ध्यान रखता ह।ै

    - गुमान िसह नेगी अवर शर्णेी िलिपक, रेलव ेबोडर्

    बहुत पुरानी बात ह,ै एक राजा था वो अपनी वीरता और सुशासन के िलए बहुत पर्िस था। इस पर्िस ी ने उसे धीरे धीरे घमण्डी बनाना आरम्भ कर िदया था। एक बार वो अपने गुरु के साथ भर्मण कर रहा था, राज्य की समृि और खुशहाली दखेकर भीतर ही भीतर घमंड के भाव आने लगे , वो मन ही मन सोचने लगा , सचमुच, “म एक महान राजा हू”ँ, म िकतने अच्छी तरह से अपनी पर्जा की दखेभाल और लालन पालन करता हू ँ !” ये सब मेरा िकया हुआ ह ैगुरु जी सवर्ज्ञानी थे , वे तुरंत ही अपने िशष्य के भाव को समझ गए और तत्काल उसे सुधारने का िनणर्य िलया। रास्ते म ही एक बड़ा सा पत्थर पड़ा था , गुरु जी ने सैिनक को उसे तोड़ने का िनदश िदया। जैसे ही सैिनक ने पत्थर के दो टुकड़े िकये एक अिव ीय दशृ्य िदखा , पत्थर के बीचो-बीच एक छोटा सा कीड़ा रह रहा 

    कीड़े का रखवाला

  • स्वस्थ जीवन सफलता की कंुजी

    िकसी भी िक्त को अगर िकसी भी कायर् म सफलता पानी ह ै तो इसके िलए सबसे पहले उसके शरीर का स्वस्थ होना बहुत ही आवश्यक ह ै क्य िक जब तक स्वास्थ्य अच्छा नह होगा तब तक सफलता पर्ा नह की जा सकती ह।ै

    िजस मनषु्य का स्वास्थ्य अच्छा होता ह ैउस मनुष्य का मिस्तष्क, सोचने-समझने की क्षमता तथा कायर् के पर्ित िन ा सही होती ह ै और तभी वह मनुष्य िकसी भी कायर् को करने म सफलता पर्ा कर पाता ह।ै इसिलए स्वस्थ जीवन ही सफलता पर्ा करने की कंुजी ह।ै

    पानी :- सभी िक्तय को स्वस्थ रहने के िलए पर्ितिदन

    सुबह के समय म िबस्तर से उठकर कुछ समय के िलए पालथी मारकर बैठना चािहए और कम से कम 1 से 3 िगलास गुनगुना पानी पीना चािहए या िफर ठंडा पानी पीना चािहए।

    स्वस्थ रहने के िलए पर्त्येक िक्तय को पर्ितिदन कम से कम 10 से 12 िगलास पानी पीना चािहए।

    महत्वपणूर् िकर्या :-

    सभी िक्तय को स्वस्थ रहने के िलए पर्ितिदन िदन म 2 बार मल त्याग करना चािहए।

    सांसे लंबी-लंबी और गहरी लेनी चािहए तथा चलते या बैठते और खड़ ेरहते समय अपनी कमर को सीधा रखना चािहए।

    िदन म समय म कम से कम 2 बार ठंडे पानी से ान करना चािहए।

    िदन म कम से कम 2 बार भगवान का स्मरण तथा ध्यान कर, एक बार सूयर् उदय होने से पहले तथा एक बार रात को सोते समय।

    िवशर्ाम :- सभी मनुष्य को भोजन करने के बाद मतूर्-त्याग

    जरूर करना चािहए। पर्ितिदन िदन म कम से कम 1-

    2 बार 5 से 15 िमनट तक वजर्ासन की मुदर्ा करने से स्वास्थ्य सही रहता ह।ै

    सोने के िलए सख्त या मध्यम स्तर के िबस्तर का उपयोग करना चािहए तथा िसर के नीचे पतला तिकया लेकर सोना चािहए।

    सोते समय सारी िचता को भूल जाना चािहए तथा गहरी न द म सोना चािहए और शरीर को ढीला छोड़कर सोना चािहए।

    पीठ के बल या दािहनी ओर करवट लेकर सोना चािहए।

    सभी मनुष्य को भोजन और सोने के समय म कम से कम 3 घण्टे का अन्तर रखना चािहए।

  •                                                  

    ायाम :- सभी िक्तय को स्वस्थ रहने के िलए पर्ितिदन

    सुबह के समय म आधे घण्टे तक ायाम करना चािहए तथा सैर या जॉिगग करनी चािहए।

    सभी िक्तय को आसन, सूयर्-नमस्कार, बागवानी, तैराकी, ायाम तथा खेल आिद िकर्याएं करनी चािहए, िजनके फलस्वरूप स्वास्थ्य हमेशा अच्छा रहता ह।ै

    भोजन करने के बाद कम से कम 20 िमनट तक टहलना चािहए िजसके फलस्वरूप स्वास्थ्य सही रहता ह।ै

    भोजन :- कभी भी भखू से ज्यादा भोजन नह करना

    चािहए तथा िजतना आवश्यक हो उतना ही भोजन करना चािहए।

    भोजन को अच्छी तरह से चबाकर तथा धीरे-धीरे

    और शांितपूवर्क खाना चािहए। िदन म केवल 2 बार ही भोजन करना चािहए। सुबह के समय म कम से कम 8-10 बजे के बीच

    म भोजन करना चािहए तथा शाम के समय म 5-7 बजे के बीच म भोजन कर लेना चािहए। ऐसा करने से स्वास्थ्य हमेशा सही रहता ह।ै

    भोजन म बीज या खा ा उपयोग करने से पहले उसे रात भर पानी म िभगोकर रखना चािहए। इसके बाद अगले िदन उनका उपयोग भोजन म करना चािहए।

    भोजन के एक भाग म अनाज तथा दसूरे भाग म सिब्जयां होनी चािहए।

    ज्यादा पके हुए तथा ज्यादा कच्चे अ पदाथ