2 - सुरः अलबक़रा - islam in hindi - sura baqra.pdf · के नाम...

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रः अल-बक़रा www.IslamInHindi.org 1 2 - रः अल-बक़रा मदीना मɅ नािजल और इसकी 286 आयतɅ , और 40 ǽक है ! Ǿ करता अãलाह के नाम से जो रहमान रहीम है। الرحيم الرحمن بسم1. अलीफ़ लाम मीम 2. (ये ) वह िकताब है। िजस (के िकताबे दा होने ) मɅ भी शक नहीं (ये ) परहेज़गारɉ की रहन मा है 3. जो ग़ैब पर ईमान लाते हɇ और (पाबÛदी से ) नमाज़ अदा करते हɇ और जो हमने उनको िदया है उसमɅ से (राहे दा मɅ ) ख़च करते हɇ 4. और जो पर (रस ) और से पहले नािज़ल िकया गया है उस पर ईमान लाते हɇ और वही आिख़रत का यक़ीन भी रखते हɇ 5. यही लोग अपने परवरिदगार की िहदायत पर (आिमल) हɇ और यही लोग अपनी िदली रादɅ पाएँगे 6. बेशक िजन लोगɉ ने ʼn इख़तेयार िकया उनके िलए बराबर है (रस ) वाह (चाहे ) उÛहɅ डराओ या डराओ वह ईमान लाएँगे 7. उनके िदलɉ पर और उनके कानɉ पर (नज़र करके ) दा ने तसदीक़ कर दी है (िये ईमान लाएँगे ) और उनकी ऑ ंखɉ पर परदा (पड़ा ) है और उÛहीं के िलए (बह ) बड़ा अज़ाब है 8. और बाज़ लोग ऐसे भी हɇ जो (ज़बान से तो) कहते हɇ िहम दा पर और क़यामत पर ईमान लाए हालाँिक वह िदल से ईमान नहीं लाए

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सरः अल-बक़रा

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2 - सरः अल-बक़रा

मदीना म नािजल हई और इसकी 286 आयत और 40 क ह

श करता ह अ लाह क नाम स जो रहमान व रहीम ह

بسم هللا الرحمن الرحيم

1 अलीफ़ लाम मीम

2 (य) वह िकताब ह िजस (क िकताब खदा होन) म कछ भी शक नही (य) परहज़गार की रहनमा ह

3 जो ग़ब पर ईमान लात ह और (पाब दी स) नमाज़ अदा करत ह और जो कछ हमन उनको िदया ह उसम स (राह खदा म) ख़चर करत ह

4 और जो कछ तम पर (ऐ रसल) और तम स पहल नािज़ल िकया गया ह उस पर ईमान लात ह और वही आिख़रत का यक़ीन भी रखत ह

5 यही लोग अपन परवरिदगार की िहदायत पर (आिमल) ह और यही लोग अपनी िदली मराद

पाएग

6 बशक िजन लोग न क इख़तयार िकया उनक िलए बराबर ह (ऐ रसल) खवाह (चाह) तम

उ ह डराओ या न डराओ वह ईमान न लाएग

7 उनक िदल पर और उनक कान पर (नज़र करक) खदा न तसदीक़ कर दी ह (िक य ईमान न

लाएग) और उनकी ऑख पर परदा (पड़ा हआ) ह और उ ही क िलए (बहत) बड़ा अज़ाब ह

8 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो (ज़बान स तो) कहत ह िक हम खदा पर और क़यामत पर ईमान

लाए हालािक वह िदल स ईमान नही लाए

सरः अल-बक़रा

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9 खदा को और उन लोग को जो ईमान लाए धोखा दत ह हालािक वह अपन आपको धोखा दत ह और कछ शऊर नही रखत ह

10 उनक िदल म मज़र था ही अब खदा न उनक मज़र को और बढ़ा िदया और चिक वह लोग झठ

बोला करत थ इसिलए उन पर तकलीफ दह अज़ाब ह

11 और जब उनस कहा जाता ह िक म क म फसाद न करत िफरो (तो) कहत ह िक हम तो िसफर इसलाह करत ह

12 ख़बरदार हो जाओ बशक यही लोग फसादी ह लिकन समझत नही

13 और जब उनस कहा जाता ह िक िजस तरह और लोग ईमान लाए ह तम भी ईमान लाओ तो कहत ह कया हम भी उसी तरह ईमान लाए िजस तरह और बवकफ़ लोग ईमान लाए ख़बरदार हो जाओ लोग बवक़फ़ ह लिकन नही जानत

14 और जब उन लोग स िमलत ह जो ईमान ला चक तो कहत ह हम तो ईमान ला चक और

जब अपन शतान क साथ तनहा रह जात ह तो कहत ह हम त हार साथ ह हम तो (मसलमान को) बनात ह

15 (वह कया बनाएग) खदा उनको बनाता ह और उनको ढील दता ह िक वह अपनी सरकशी म

ग़लत पचा (उलझ) रह

16 यही वह लोग ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही ख़रीद ली िफर न उनकी ितजारत ही न

कछ नफ़ा िदया और न उन लोग न िहदायत ही पाई

17 उन लोग की िमसाल (तो) उस शखस की सी ह िजसन (रात क वकत मजम म) भड़कती हईआग रौशन की िफर जब आग (क शोल) न उसक िगद पश (चार ओर) खब उजाला कर

िदया तो खदा न उनकी रौशनी ल ली और उनको घटाटोप अधर म छोड़ िदया

18 िक अब उ ह कछ सझाई नही दता य लोग बहर गग अ ध ह िक िफर अपनी गमराही स

बाज़ नही आ सकत

19 या उनकी िमसाल ऐसी ह जस आसमानी बािरश िजसम तािरिकया ग़ज़र िबजली हो मौत क

खौफ स कड़क क मार अपन कान म ऊगिलया द लत ह हालािक खदा कािफ़र को (इस

तरह) घर हए ह (िक उसक िहल नही सकत)

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20 क़रीब ह िक िबजली उनकी ऑख को चौि धया द जब उनक आग िबजली चमकी तो उस

रौशनी म चल खड़ हए और जब उन पर अधरा छा गया तो (िठठक क) खड़ हो गए और खदा चाहता तो य भी उनक दखन और सनन की कवत छीन लता बशक खदा हर चीज़ पर क़ािदर

21 ऐ लोग अपन परवरिदगार की इबादत करो िजसन तमको और उन लोग को जो तम स

पहल थ पदा िकया ह अजब नही तम परहज़गार बन जाओ

22 िजसन त हार िलए ज़मीन का िबछौना और आसमान को छत बनाया और आसमान स

पानी बरसाया िफर उसी न त हार खान क िलए बाज़ फल पदा िकए पस िकसी को खदा का हमसर न बनाओ हालािक तम खब जानत हो

23 और अगर तम लोग इस कलाम स जो हमन अपन ब द (मोह मद) पर नािज़ल िकया ह

शक म पड़ हो पस अगर तम स च हो तो तम (भी) एक सरा बना लाओ और खदा क िसवा जो भी त हार मददगार ह उनको भी बला लो

24 पस अगर तम य नही कर सकत हो और हरिगज़ नही कर सकोग तो उस आग स डरो िसक

ईधन आदमी और प थर ह ग और कािफ़र क िलए तयार की गई ह

25 और जो लोग ईमान लाए और उ ह न नक काम िकए उनको (ऐ पग़ बर) खशख़बरी द दो िक उनक िलए (बिह त क) वह बाग़ात ह िजनक नीच नहर जारी ह जब उ ह इन बाग़ात का कोई मवा खान को िमलगा तो कहग य तो वही (मवा ह जो पहल भी हम खान को िमल चका ह) (कय िक) उ ह िमलती जलती सरत व रग क (मव) िमला करग और बिह त म उनक

िलए साफ सथरी बीिवया होगी और य लोग उस बाग़ म हमशा रहग

26 बशक खदा म छर या उसस भी बढ़कर (हक़ीर चीज़) की कोई िमसाल बयान करन म नही झपता पस जो लोग ईमान ला चक ह वह तो य यक़ीन जानत ह िक य (िमसाल) िब कल

ठीक ह और य परवरिदगार की तरफ़ स ह (अब रह) वह लोग जो कािफ़र ह पस वह बोल

उठत ह िक खदा का उस िमसाल स कया मतलब ह ऐसी िमसाल स ख़दा बहतर की िहदायत

करता ह मगर गमराही म छोड़ता भी ह तो ऐस बदकार को

27 जो लोग खदा क एहदो पमान को मज़बत हो जान क बाद तोड़ डालत ह और िजन

(ता लक़ात) का खदा न हकम िदया ह उनको क़ताआ कर दत ह और म क म फसाद करत

िफरत ह यही लोग घाटा उठान वाल ह

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28 (हाए) कय कर तम खदा का इ कार कर सकत हो हालािक तम (माओ क पट म) बजान थ

तो उसी न तमको िज़ दा िकया िफर वही तमको मार डालगा िफर वही तमको (दोबारा क़यामत म) िज़ दा करगा िफर उसी की तरफ लौटाए जाओग

29 वही तो वह (खदा) ह िजसन त हार (नफ़) क ज़मीन की कल चीज़ को पदा िकया िफर

आसमान (क बनान) की तरफ़ मताव जह हआ तो सात आसमान हमवार (व मसतहकम)

बना िदए और वह (खदा) हर चीज़ स (खब) वािक़फ ह

30 और (ऐ रसल) उस वकत क़ो याद करो जब त हार परवरिदगार न फ़िर त स कहा िक म

(अपना) एक नाएब ज़मीन म बनानवाला ह (फिर त ता जब स) कहन लग कया त ज़मीन

ऐस शखस को पदा करगा जो ज़मीन म फ़साद और खरिज़या करता िफर हालािक (अगर)

ख़लीफा बनाना ह (तो हमारा यादा हक़ ह) कय िक हम तरी तारीफ व तसबीह करत ह और

तरी पाकीज़गी सािबत करत ह तब खदा न फरमाया इसम तो शक ही नही िक जो म जानता ह तम नही जानत

31 और (आदम की हक़ीक़म ज़ािहर करन की ग़रज़ स) आदम को सब चीज़ क नाम िसखा िदए

िफर उनको फिर त क सामन पश िकया और फ़रमाया िक अगर तम अपन दाव म िक हम

म तहक िख़लाफ़त ह स च हो तो मझ इन चीज़ क नाम बताओ

32 तब फ़िर त न (आिजज़ी स) अज़र की त (हर ऐब स) पाक व पाकीज़ा ह हम तो जो कछ तन

बताया ह उसक िसवा कछ नही जानत त बड़ा जानन वाला मसलहत का पहचानन वाला ह

33 (उस वकत ख़दा न आदम को) हकम िदया िक ऐ आदम तम इन फ़िर त को उन सब चीज़

क नाम बता दो बस जब आदम न फ़िर त को उन चीज़ क नाम बता िदए तो खदा न

फिर त की तरफ िख़ताब करक फरमाया कय म तमस न कहता था िक म आसमान और

ज़मीन क िछप हए राज़ को जानता ह और जो कछ तम अब ज़ािहर करत हो और जो कछ

तम िछपात थ (वह सब) जानता ह

34 और (उस वकत क़ो याद करो) जब हमन फ़िर त स कहा िक आदम को सजदा करो तो सब

क सब झक गए मगर शतान न इ कार िकया और ग़ र म आ गया और कािफ़र हो गया

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35 और हमन आदम स कहा ऐ आदम तम अपनी बीवी समत बिह त म रहा सहा करो और जहा स त हारा जी चाह उसम स ब फराग़त खाओ (िपयो) मगर उस दरखत क पास भी न जाना (वरना) िफर तम अपना आप नक़सान करोग

36 तब शतान न आदम व हौ वा को (धोखा दकर) वहा स डगमगाया और आिख़र कार उनको िजस (ऐश व राहत) म थ उनस िनकाल फका और हमन कहा (ऐ आदम व हौ वा) तम

(ज़मीन पर) उतर पड़ो तमम स एक का एक दशमन होगा और ज़मीन म त हार िलए एक

ख़ास वकत (क़यामत) तक ठहराव और िठकाना ह

37 िफर आदम न अपन परवरिदगार स (माज़रत क च द अ फाज़) सीख पस खदा न उन

अ फाज़ की बरकत स आदम की तौबा कबल कर ली बशक वह बड़ा माफ़ करन वाला महरबान ह

38 (और जब आदम को) य हकम िदया था िक यहा स उतर पड़ो (तो भी कह िदया था िक) अगर

त हार पास मरी तरफ़ स िहदायत आए तो (उसकी परवी करना कय िक) जो लोग मरी िहदायत पर चलग उन पर (क़यामत) म न कोई ख़ौफ होगा

39 और न वह रजीदा होग और (य भी याद रखो) िजन लोग न कफर इख़तयार िकया और हमारी आयत को झठलाया तो वही जह नमी ह और हमशा दोज़ख़ म पड़ रहग

40 ऐ बनी इसराईल (याक़ब की औलाद) मर उन एहसानात को याद करो जो तम पर पहल कर

चक ह और तम मर एहद व इक़रार (ईमान) को परा करो तो म त हार एहद (सवाब) को परा क गा और मझ ही स डरत रहो

41 और जो (करान) मन नािज़ल िकया वह उस िकताब (तौरत) की (भी) तसदीक़ करता ह जो त हार पास ह और तम सबस चल उसक इ कार पर मौजद न हो जाओ और मरी आयत क

बदल थोड़ी क़ीमत (दनयावी फायदा) न लो और मझ ही स डरत रहो

42 और हक़ को बाितल क साथ न िमलाओ और हक़ बात को न िछपाओ हालािक तम जानत हो और पाब दी स नमाज़ अदा करो

43 और ज़कात िदया करो और जो लोग (हमार सामन) इबादत क िलए झकत ह उनक साथ तम

भी झका करो

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44 और तम लोग स नकी करन को कहत हो और अपनी ख़बर नही लत हालािक तम िकताब

खदा को (बराबर) रटा करत हो तो तम कया इतना भी नही समझत

45 और (मसीबत क वकत) सबर और नमाज़ का सहारा पकड़ो और अलब ता नमाज़ दभर तो ह

मगर उन ख़ाक़सार पर (नही) जो बख़बी जानत ह

46 िक वह अपन परवरिदगार की बारगाह म हािज़र ह ग और ज़ र उसकी तरफ लौट जाएग

47 ऐ बनी इसराइल मरी उन नअमत को याद करो जो मन पहल त ह दी और य (भी तो सोचो) िक हमन तमको सार जहान क लोग स बढ़ा िदया

48 और उस िदन स डरो (िजस िदन) कोई शखस िकसी की तरफ स न िफिदया हो सकगा और न

उसकी तरफ स कोई िसफािरश मानी जाएगी और न उसका कोई मआवज़ा िलया जाएगा और न वह मदद पहचाए जाएग

49 और (उस वकत क़ो याद करो) जब हमन त ह (त हार बज़रगो को) िफरऔन (क प ज) स

छड़ाया जो त ह बड़-बड़ दख द क सतात थ त हार लड़क पर छरी फरत थ और त हारी औरत को (अपनी िख़दमत क िलए) िज़ दा रहन दत थ और उसम त हार परवरिदगार की तरफ स (त हार सबर की) सखत आज़माइश थी

50 और (वह वकत भी याद करो) जब हमन त हार िलए दिरया को टकड़-टकड़ िकया िफर हमन

तमको छटकारा िदया

51 और िफरऔन क आदिमय को त हार दखत-दखत डबो िदया और (वह वकत भी याद करो) जब हमन मसा स चालीस रात का वायदा िकया था और तम लोग न उनक जान क बाद

एक बछड़ को (परसितश क िलए खदा) बना िलया

52 हालािक तम अपन ऊपर ज़ म जोत रह थ िफर हमन उसक बाद भी दरगज़र की तािक तम

शकर करो

53 और (वह वकत भी याद करो) जब मसा को (तौरत) अता की और हक़ और बाितल को जदा करनवाला क़ानन (इनायत िकया) ताक तम िहदायत पाओ

54 और (वह वकत भी याद करो) जब मसा न अपनी क़ौम स कहा िक ऐ मरी क़ौम तमन बछड़ को (ख़दा) बना क अपन ऊपर बड़ा सखत ज म िकया तो अब (इसक िसवा कोई चारा नही

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िक) तम अपन ख़ािलक की बारगाह म तौबा करो और वह य ह िक अपन को क़ ल कर डालो त हार परवरिदगार क नज़दीक त हार हक़ म यही बहतर ह िफर जब तमन ऐसा िकया तो खदा न त हारी तौबा क़बल कर ली बशक वह बड़ा महरबान माफ़ करन वाला ह

55 और (वह वकत भी याद करो) जब तमन मसा स कहा था िक ऐ मसा हम तम पर उस वकत

तक ईमान न लाएग जब तक हम खदा को ज़ािहर बज़ािहर न दख ल उस पर त ह िबजली न

ल डाला और तम तकत ही रह गए

56 िफर त ह त हार मरन क बाद हमन िजला उठाया तािक तम शकर करो

57 और हमन तम पर अबर का साया िकया और तम पर मन व सलवा उतारा और (य भी तो कह

िदया था िक) जो सथरी व नफीस रोिज़या त ह दी ह उ ह शौक़ स खाओ और उन लोग न

हमारा तो कछ िबगड़ा नही मगर अपनी जान पर िसतम ढात रह

58 और (वह वकत भी याद करो) जब हमन तमस कहा िक इस गाव (अरीहा) म जाओ और इसम

जहा चाहो फराग़त स खाओ (िपयो) और दरवाज़ पर सजदा करत हए और ज़बान स िह ता बिखशश कहत हए आओ तो हम त हारी ख़ता य बखश दग और हम नकी करन वाल की नकी (सवाब) बढ़ा दग

59 तो जो बात उनस कही गई थी उस शरीर न बदलकर दसरी बात कहनी श कर दी तब हमन

उन लोग पर िज ह न शरारत की थी उनकी बदकारी की वजह स आसमानी बला नािज़ल

की

60 और (वह वकत भी याद करो) जब मसा न अपनी क़ौम क िलए पानी मागा तो हमन कहा (ऐ

मसा) अपनी लाठी प थर पर मारो (लाठी मारत ही) उसम स बारह च म फट िनकल और

सब लोग न अपना-अपना घाट बखबी जान िलया और हमन आम इजाज़त द दी िक खदा की दी हईरोज़ी स खाओ िपयो और म क म फसाद न करत िफरो

61 (और वह वकत भी याद करो) जब तमन मसा स कहा िक ऐ मसा हमस एक ही खान पर न

रहा जाएगा तो आप हमार िलए अपन परवरिदगार स दआ कीिजए िक जो चीज़ ज़मीन स

उगती ह जस साग पात तरकारी और ककड़ी और गह या (लहसन) और मसर और याज़

(मन व सलवा) की जगह पदा कर (मसा न) कहा कया तम ऐसी चीज़ को जो हर तरह स

बहतर ह अदना चीज़ स बदलन चाहत हो तो िकसी शहर म उतर पड़ो िफर त हार िलए जो तमन मागा ह सब मौजद ह और उन पर सवाई और मोहताजी की मार पड़ी और उन लोग

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न क़हर खदा की तरफ पलटा खाया य सब इस सबब स हआ िक वह लोग खदा की िनशािनय स इ कार करत थ और पग़ बर को नाहक शहीद करत थ और इस वजह स

(भी) िक वह नाफ़रमानी और सरकशी िकया करत थ

62 बशक मसलमान और यहिदय और नसरािनय और ला मज़हब म स जो कोई खदा और

रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए और अ छ-अ छ काम करता रह तो उ ही क िलए उनका अजर

व सवाब उनक खदा क पास ह और न (क़यामत म) उन पर िकसी का ख़ौफ होगा न वह

रजीदा िदल ह ग

63 और (वह वकत याद करो) जब हमन (तामील तौरत) का तमस एक़रार कर िलया और हमन

त हार सर पर तर स (पहाड़ को) लाकर लटकाया और कह िदया िक तौरत जो हमन तमको दी ह उसको मज़बत पकड़ रहो और जो कछ उसम ह उसको याद रखो

64 तािक तम परहज़गार बनो िफर उसक बाद तम (अपन एहदो पमान स) िफर गए पस अगर

तम पर खदा का फज़ल और उसकी महरबानी न होती तो तमन सखत घाटा उठाया होता

65 और अपनी क़ौम स उन लोग की हालत तो तम बखबी जानत हो जो श ब (सनीचर) क िदन

अपनी हद स गज़र गए (िक बावजद ममािनअत िशकार खलन िनकल) तो हमन उन स कहा िक तम राइ द गए ब दर बन जाओ (और वह ब दर हो गए)

66 पस हमन इस वाक़य स उन लोग क वा त िजन क सामन हआ था और जो उसक बाद

आनवाल थ अज़ाब क़रार िदया और परहज़गार क िलए नसीहत

67 और (वह वकत याद करो) जब मसा न अपनी क़ौम स कहा िक खदा तम लोग को ताकीदी हकम करता ह िक तम एक गाय िज़बाह करो वह लोग कहन लग कया तम हमस िद लगी करत हो मसा न कहा म खदा स पनाह मागता ह िक म जािहल बन

68 (तब वह लोग कहन लग िक (अ छा) तम अपन खदा स दआ करो िक हम बता द िक वह

गाय कसी हो मसा न कहा बशक खदा न फरमाता ह िक वह गाय न तो बहत बढ़ी हो और न

बिछया बि क उनम स औसत दरज की हो ग़रज़ जो तमको हकम िदया गया उसको बजा लाओ

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69 वह कहन लग (वाह) तम अपन खदा स दआ करो िक हम य बता द िक उसका रग आिख़र

कया हो मसा न कहा बशक खदा फरमाता ह िक वह गाय खब गहर ज़दर रग की हो दखन वाल

उस दखकर खश हो जाए

70 तब कहन लग िक तम अपन खदा स दआ करो िक हम ज़रा य तो बता द िक वह (गाय) और

कसी हो (वह) गाय तो और गाय म िमल जल गई और खदा न चाहा तो हम ज़ र (उसका) पता लगा लग

71 मसा न कहा खदा ज़ र फरमाता ह िक वह गाय न तो इतनी सधाई हो िक ज़मीन जोत न

खती सीच भली चगी एक रग की िक उसम कोई ध बा तक न हो वह बोल अब (जा क) ठीक-

ठीक बयान िकया ग़रज़ उन लोग न वह गाय हलाल की हालािक उनस उ मीद न थी वह

िक वह ऐसा करग

72 और जब एक शखस को मार डाला और तमम उसकी बाबत फट पड़ गई एक दसर को क़ाितल

बतान लगा जो तम िछपात थ

73 खदा को उसका ज़ािहर करना मजर था पस हमन कहा िक उस गाय को कोई टकड़ा लकर इस

(की लाश) पर मारो य खदा मद को िज़ दा करता ह और तम को अपनी कदरत की िनशािनया िदखा दता ह

74 तािक तम समझो िफर उसक बाद त हार िदल सखत हो गय पस वह िमसल प थर क

(सखत) थ या उसस भी यादा करखत कय िक प थर म बाज़ तो ऐस होत ह िक उनस नहर

जारी हो जाती ह और बाज़ ऐस होत ह िक उनम दरार पड़ जाती ह और उनम स पानी िनकल

पड़ता ह और बाज़ प थर तो ऐस होत ह िक खदा क ख़ौफ स िगर पड़त ह और जो कछ तम

कर रह हो उसस खदा ग़ािफल नही ह

75 (मसलमान ) कया तम य लालच रखत हो िक वह त हारा (सा) ईमान लाएग हालािक उनम

का एक िगरोह (सािबक़ म) ऐसा था िक खदा का कलाम सनाता था और अ छी तरह

समझन क बाद उलट फर कर दता था हालािक वह खब जानत थ और जब उन लोग स

मलाक़ात करत ह

76 जो ईमान लाए तो कह दत ह िक हम तो ईमान ला चक और जब उनस बाज़-बाज़ क साथ

तिख़लया करत ह तो कहत ह िक जो कछ खदा न तम पर (तौरत) म ज़ािहर कर िदया ह कया

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तम (मसलमान को) बता दोग तािक उसक सबब स कल त हार खदा क पास तम पर

ह जत लाए कया तम इतना भी नही समझत

77 लिकन कया वह लोग (इतना भी) नही जानत िक वह लोग जो कछ िछपात ह या ज़ािहर करत ह खदा सब कछ जानता ह

78 और कछ उनम स ऐस अनपढ़ ह िक वह िकताब खदा को अपन मतलब की बात क िसवा कछ नही समझत और वह फक़त खयाली बात िकया करत ह

79 पस वाए हो उन लोग पर जो अपन हाथ स िकताब िलखत ह िफर (लोग स कहत िफरत) ह

िक य खदा क यहा स (आई) ह तािक उसक ज़िरय स थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी फ़ायदा) हािसल कर पस अफसोस ह उन पर िक उनक हाथ न िलखा और िफर अफसोस ह उनपर िक

वह ऐसी कमाई करत ह

80 और कहत ह िक िगनती क च द िदन क िसवा हम आग छएगी भी तो नही (ऐ रसल) इन

लोग स कहो िक कया तमन खदा स कोई इक़रार ल िलया ह िक िफर वह िकसी तरह अपन

इक़रार क िख़लाफ़ हरिगज़ न करगा या ब समझ बझ खदा पर बोहताव जोड़त हो

81 हा (सच तो यह ह) िक िजसन बराई हािसल की और उसक गनाह न चार तरफ स उस घर

िलया ह वही लोग तो दोज़ख़ी ह और वही (तो) उसम हमशा रहग

82 और जो लोग ईमानदार ह और उ ह न अ छ काम िकए ह वही लोग ज नती ह िक हमशा ज नत म रहग

83 और (वह वकत याद करो) जब हमन बनी ईसराइल स (जो त हार बजरग़ थ) अहद व पमान

िलया था िक खदा क िसवा िकसी की इबादत न करना और मा बाप और क़राबतदार और

यतीम और मोहताज क साथ अ छ सलक करना और लोग क साथ अ छी तरह (नरमी) स बात करना और बराबर नमाज़ पढ़ना और ज़कात दना िफर तमम स थोड़ आिदिमय क

िसवा (सब क सब) िफर गए और तम लोग हो ही इक़रार स मह फरन वाल

84 और (वह वकत याद करो) जब हमन तम (त हार बज़रग ) स अहद िलया था िक आपस म

खरिज़या न करना और न अपन लोग को शहर बदर करना तो तम (त हार बजरग़ ) न

इक़रार िकया था और तम भी उसकी गवाही दत हो

सरः अल-बक़रा

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85 (िक हा ऐसा हआ था) िफर वही लोग तो तम हो िक आपस म एक दसर को क़ ल करत हो और अपन स एक ज थ क नाहक़ और ज़बरद ती िहमायती बनकर दसर को शहर बदर

करत हो (और ल फ़ तो य ह िक) अगर वही लोग क़दी बनकर त हार पास (मदद मागन)

आए तो उनको तावान दकर छड़ा लत हो हालािक उनका िनकालना ही तम पर हराम िकया गया था तो िफर कया तम (िकताब खदा की) बाज़ बात पर ईमान रखत हो और बाज़ स

इ कार करत हो पस तम म स जो लोग ऐसा कर उनकी सज़ा इसक िसवा और कछ नही िक

िज़ दगी भर की सवाई हो और (आिख़रकार) क़यामत क िदन सखत अज़ाब की तरफ लौटा िदय जाए और जो कछ तम लोग करत हो खदा उसस ग़ािफ़ल नही ह

86 यही वह लोग ह िज ह न आख़रत क बदल दिनया की िज़ दगी ख़रीद पस न उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी और न वह लोग िकसी तरह की मदद िदए जाएग

87 और य हक़ीक़ी बात ह िक हमन मसा को िकताब (तौरत) दी और उनक बाद बहत स पग़ बर

को उनक क़दम ब क़दम ल चल और मिरयम क बट ईसा को (भी बहत स) वाजए व रौशन

मौिजज िदए और पाक ह िजबरील क ज़िरय स उनकी मदद की कया तम उस क़दर

बदिदमाग़ हो गए हो िक जब कोई पग़ बर त हार पास त हारी खवािहश नफ़सानी क

िख़लाफ कोई हकम लकर आया तो तम अकड़ बठ िफर तमन बाज़ पग़ बर को तो झठलाया और बाज़ को जान स मार डाला

88 और कहन लग िक हमार िदल पर िग़लाफ चढ़ा हआ ह (ऐसा नही) बि क उनक कफर की वजह स खदा न उनपर लानत की ह पस कम ही लोग ईमान लात ह

89 और जब उनक पास खदा की तरफ़ स िकताब (करान आई और वह उस िकताब तौरत) की जो उन क पास तसदीक़ भी करती ह और उसस पहल (इसकी उ मीद पर) कािफ़र पर

फतहयाब होन की दआए मागत थ पस जब उनक पास वह चीज़ िजस पहचानत थ आ गई

तो लग इ कार करन पस कािफ़र पर खदा की लानत ह

90 कया ही बरा ह वह काम िजसक मक़ाबल म (इतनी बात पर) वह लोग अपनी जान बच बठ ह

िक खदा अपन ब द स िजस पर चाह अपनी इनायत स िकताब नािज़ल िकया कर इस र क

स जो कछ खदा न नािज़ल िकया ह सबका इ कार कर बठ पस उन पर ग़ज़ब पर ग़ज़ब टट

पड़ा और कािफ़र क िलए (बड़ी) सवाई का अज़ाब ह

91 और जब उनस कहा गया िक (जो क़रान) खदा न नािज़ल िकया ह उस पर ईमान लाओ तो कहन लग िक हम तो उसी िकताब (तौरत) पर ईमान लाए ह जो हम पर नािज़ल की गई थी

सरः अल-बक़रा

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और उस िकताब (करान) को जो उसक बाद आई ह नही मानत ह हालािक वह (क़रान) हक़ ह

और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करती ह मगर उस िकताब करान

का जो उसक बाद आई ह इ कार करत ह (ऐ रसल) उनस य तो पछो िक तम (त हार बजरग़)

अगर ईमानदार थ तो िफर कय खदा क पग़ बर का सािबक़ क़ ल करत थ

92 और त हार पास मसा तो वाज़ए व रौशन मौिजज़ लकर आ ही चक थ िफर भी तमन उनक

बाद बछड़ को खदा बना ही िलया और उसस तम अपन ही ऊपर ज़ म करन वाल थ

93 और (वह वकत याद करो) जब हमन तमस अहद िलया और (क़ोह) तर को (त हारी उदल

हकमी स) त हार सर पर लटकाया और (हमन कहा िक य िकताब तौरत) जो हमन दी ह

मज़बती स िलए रहो और (जो कछ उसम ह) सनो तो कहन लग सना तो (सही लिकन) हम

इसको मानत नही और उनकी बईमानी की वजह स (गोया) बछड़ की उलफ़त घोल क उनक

िदल म िपला दी गई (ऐ रसल) उन लोग स कह दो िक अगर तम ईमानदार थ तो तमको त हारा ईमान कया ही बरा हकम करता था

94 (ऐ रसल) इन लोग स कह दो िक अगर खदा क नज़दीक आख़रत का घर (बिह त) ख़ास

त हार वा त ह और लोग क वासत नही ह पस अगर तम स च हो तो मौत की आरज क़रो

95 (तािक ज दी बिह त म जाओ) लिकन वह उन आमाल बद की वजह स िजनको उनक हाथ

न पहल स आग भजा ह हरिगज़ मौत की आरज़ न करग और खदा ज़ािलम स खब वािक़फ

96 और (ऐ रसल) तम उन ही को िज़ दगी का सबस यादा हरीस पाओग और मशिरक़ म स

हर एक शखस चाहता ह िक काश उसको हज़ार बरस की उमर दी जाती हालािक अगर इतनी तलानी उमर भी दी जाए तो वह ख़दा क अज़ाब स छटकारा दन वाली नही और जो कछ वह

लोग करत ह खदा उस दख रहा ह

97 (ऐ रसल उन लोग स) कह दो िक जो िजबरील का दशमन ह (उसका खदा दशमन ह)

कय िक उस फ़िर त न खदा क हकम स (इस करान को) त हार िदल पर डाला ह और वह

उन िकताब की भी तसदीक करता ह जो (पहल नािज़ल हो चकी ह और सब) उसक सामन

मौजद ह और ईमानदार क वा त खशख़बरी ह

98 जो शखस ख़दा और उसक फिर त और उसक रसल और (ख़ासकर) िजबराईल व

मीकाइल का दशमन हो तो बशक खदा भी (ऐस) कािफ़र का द मन ह

सरः अल-बक़रा

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99 और (ऐ रसल) हमन तम पर ऐसी िनशािनया नािज़ल की ह जो वाजए और रौशन ह और

ऐस नाफरमान क िसवा उनका कोई इ कार नही कर सकता

100 और उनकी य हालत ह िक जब कभी कोई अहद िकया तो उनम स एक फरीक़ न तोड़ डाला बि क उनम स अकसर तो ईमान ही नही रखत

101 और जब उनक पास खदा की तरफ स रसल (मोह मद) आया और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करता ह तो उन अहल िकताब क एक िगरोह न िकताब खदा को अपन पस प त फक िदया गोया वह लोग कछ जानत ही नही और उस मतर क पीछ पड़

गए

102 िजसको सलमान क ज़मान की सलतनत म शयातीन जपा करत थ हालािक सलमान न

कफर नही इख़तयार िकया लिकन शतान न कफर एख़तयार िकया िक वह लोग को जाद

िसखाया करत थ और वह चीज़ जो हा त और मा त दोन फ़िर त पर बाइिबल म नािज़ल

की गई थी हालािक य दोन फ़िर त िकसी को िसखात न थ जब तक य न कह दत थ िक हम

दोन तो फ़क़त (ज़िरयाए आज़माइश) ह पस तो (इस पर अमल करक) बईमान न हो जाना उस पर भी उनस वह (टोटक) सीखत थ िजनकी वजह स िमया बीवी म तफ़रक़ा डालत हालािक बग़र इ न खदाव दी वह अपनी इन बात स िकसी को ज़रर नही पहचा सकत थ

और य लोग ऐसी बात सीखत थ जो खद उ ह नक़सान पहचाती थी और कछ (नफा) पहचाती थी बावजद िक वह यक़ीनन जान चक थ िक जो शखस इन (बराईय ) का ख़रीदार

हआ वह आिख़रत म बनसीब ह और बशबह (मआवज़ा) बहत ही बड़ा ह िजसक बदल उ ह न

अपनी जान को बचा काश (उस कछ) सोच समझ होत

103 और अगर वह ईमान लात और जाद वग़रह स बचकर परहज़गार बनत तो खदा की दरगाह

स जो सवाब िमलता वह उसस कही बहतर होता काश य लोग (इतना तो) समझत

104 ऐ ईमानवाल तम (रसल को अपनी तरफ मताव ज करना चाहो तो) रआना (हमारी िरआयत कर) न कहा करो बि क उनज़रना (हम पर नज़र तव जो रख) कहा करो और (जी लगाकर) सनत रहो और कािफर क िलए ददरनाक अज़ाब ह

105 ऐ रसल अहल िकताब म स िजन लोग न कफर इख़तयार िकया वह और मशरकीन य नही चाहत ह िक तम पर त हार परवरिदगार की तरफ स भलाई (वही) नािज़ल की जाए और

सरः अल-बक़रा

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(उनका तो इसम कछ इजारा नही) खदा िजसको चाहता ह अपनी रहमत क िलए ख़ास कर

लता ह और खदा बड़ा फज़ल (करन) वाला ह

106 (ऐ रसल) हम जब कोई आयत म सख़ करत ह या त हार ज़हन स िमटा दत ह तो उसस

बहतर या वसी ही (और) नािज़ल भी कर दत ह कया तम नही जानत िक बशबहा खदा हर

चीज़ पर क़ािदर ह

107 कया तम नही जानत िक आसमान की सलतनत बशबहा ख़ास खदा ही क िलए ह और खदा क िसवा त हारा न कोई सरपर त ह न मददगार

108 (मसलमान ) कया तम चाहत हो िक तम भी अपन रसल स वस ही (बढ़ग) सवालात करो िजस तरह सािबक़ (पहल) ज़मान म मसा स (बतक) सवालात िकए गए थ और िजस शखस

न ईमान क बदल कफर एख़तयार िकया वह तो यक़ीनी सीध रा त स भटक गया

109 (मसलमान ) अहल िकताब म स अकसर लोग अपन िदली हसद की वजह स य खवािहश

रखत ह िक तमको ईमान लान क बाद िफर कािफ़र बना द (और ल फ तो य ह िक) उन पर

हक़ ज़ािहर हो चका ह उसक बाद भी (य तम ना बाक़ी ह) पस तम माफ करो और दरगज़र

करो यहा तक िक खदा अपना (कोई और) हकम भज बशक खदा हर चीज़ पर क़ािदर ह

110 और नमाज़ पढ़त रहो और ज़कात िदय जाओ और जो कछ भलाई अपन िलए (खदा क यहा) पहल स भज दोग उस (क सवाब) को मौजद पाआग जो कछ तम करत हो उस खदा ज़ र

दख रहा ह

111 और (यहद) कहत ह िक यहद (क िसवा) और (नसारा कहत ह िक) नसारा क िसवा कोई

बिह त म जान ही न पाएगा य उनक खयाली पलाव ह (ऐ रसल) तम उन स कहो िक भला अगर तम स च हो िक हम ही बिह त म जाएग तो अपनी दलील पश करो

112 हा अलब ता िजस शखस न खदा क आग अपना सर झका िदया और अ छ काम भी करता ह

तो उसक िलए उसक परवरिदगार क यहा उसका बदला (मौजद) ह और (आख़रत म) ऐस

लोग पर न िकसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐस लोग ग़मग़ीन होग

113 और यहद कहत ह िक नसारा का मज़हब कछ (ठीक) नही और नसारा कहत ह िक यहद का मज़हब कछ (ठीक) नही हालािक य दोन फरीक़ िकताब (खदा) पढ़त रहत ह इसी तरह उ ही जसी बात वह (मशरकीन अरब) भी िकया करत ह जो (खदा क एहकाम) कछ नही जानत तो

सरः अल-बक़रा

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िजस बात म य लोग पड़ झगड़त ह (दिनया म तो तय न होगा) क़यामत क िदन खदा उनक

दरिमयान ठीक फसला कर दगा

114 और उसस बढ़कर ज़ािलम कौन होगा जो खदा की मसिजद म उसका नाम िलए जान स

(लोग को) रोक और उनकी बरबादी क दर प हो ऐस ही को उसम जाना मनािसब नही मगर

सहम हए ऐस ही लोग क िलए दिनया म सवाई ह और ऐस ही लोग क िलए आख़रत म

बड़ा भारी अज़ाब ह

115 (त हार मसिजद म रोकन स कया होता ह कय िक सारी ज़मीन) खदा ही की ह (कया) परब

(कया) पि चम बस जहा कही िक़ ल की तरफ ख़ करो वही खदा का सामना ह बशक खदा बड़ी ग जाइश वाला और खब वािक़फ ह

116 और यहद कहन लग िक खदा औलाद रखता ह हालािक वह (इस बखड़ स) पाक ह बि क जो कछ ज़मीन व आसमान म ह सब उसी का ह और सब उसकी क फरमाबरदार ह

117 (वही) आसमान व ज़मीन का मोिजद ह और जब िकसी काम का करना ठान लता ह तो उसकी िनसबत िसफर कह दता ह िक हो जा पस वह (खद ब खद) हो जाता ह

118 और जो (मशरकीन) कछ नही जानत कहत ह िक खदा हमस (खद) कलाम कय नही करता या हमार पास (खद) कोई िनशानी कय नही आती इसी तरह उ ही की सी बात वह कर चक

ह जो उनस पहल थ उन सब क िदल आपस म िमलत जलत ह जो लोग यक़ीन रखत ह

उनको तो अपनी िनशािनया कय साफतौर पर िदखा चक

119 (ऐ रसल) हमन तमको दीन हक़ क साथ (बिह त की) खशख़बरी दन वाला और (अज़ाब स)

डरान वाला बनाकर भजा ह और दोज़िख़य क बार म तमस कछ न पछा जाएगा

120 और (ऐ रसल) न तो यहदी कभी तमस रज़ामद होग न नसारा यहा तक िक तम उनक मज़हब की परवी करो (ऐ रसल उनस) कह दो िक बस खदा ही की िहदायत तो िहदायत ह (बाक़ी ढकोसला ह) और अगर तम इसक बाद भी िक त हार पास इ म (क़रान) आ चका ह उनकी खवािहश पर चल तो (याद रह िक िफर) तमको खदा (क ग़ज़ब) स बचान वाला न कोई सरपर त होगा न मददगार

सरः अल-बक़रा

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121 िजन लोग को हमन िकताब (करान) दी ह वह लोग उस इस तरह पढ़त रहत ह जो उसक पढ़न का हक़ ह यही लोग उस पर ईमान लात ह और जो उसस इनकार करत ह वही लोग घाट म ह

122 बनी इसराईल मरी उन नअमत को याद करो जो मन तम को दी ह और य िक

मन तमको सार जहान पर फज़ीलत दी

123 और उस िदन स डरो िजस िदन कोई शखस िकसी की तरफ स न िफदया हो सकगा और न उसकी तरफ स कोई मआवज़ा क़बल िकया जाएगा और न कोई िसफािरश ही फायदा पहचा सकगी और न लोग मदद िदए जाएग

124 (ऐ रसल) बनी इसराईल को वह वकत भी याद िदलाओ जब इबराहीम को उनक

परवरिदगार न च द बात म आज़माया और उ ह न परा कर िदया तो खदा न फरमाया म तमको (लोग का) पशवा बनान वाला ह (हज़रत इबराहीम न) अज़र की और मरी औलाद म स फरमाया (हा मगर) मर इस अहद पर ज़ािलम म स कोई शखस फ़ायज़ नही हो सकता

125 (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब हमन ख़ानए काबा को लोग क सवाब

और पनाह की जगह क़रार दी और हकम िदया गया िक इबराहीम की (इस) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और इबराहीम व इसमाइल स अहद व पमान िलया िक मर (उस) घर को तवाफ़ और एतक़ाफ़ और क और सजदा करन वाल क वा त साफ सथरा रखो

126 और (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब इबराहीम न दआ मागी िक ऐ मर

परवरिदगार इस (शहर) को पनाह व अमन का शहर बना और उसक रहन वाल म स जो खदा और रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए उसको तरह-तरह क फल खान को द खदा न फरमाया (अ छा मगर) वो कफर इख़तयार करगा उसकी दिनया म च द रोज़ (उन चीज़ो स) फायदा उठान दगा िफर (आख़रत म) उसको मजबर करक दोज़ख़ की तरफ खीच ल जाऊगा और वह बहत बरा िठकाना ह

127 और (वह वकत याद िदलाओ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बिनयाद

बल द कर रह थ (और दआ) मागत जात थ िक ऐ हमार परवरिदगार हमारी (य

सरः अल-बक़रा

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िख़दमत) कबल कर बशक त ही (दआ का) सनन वाला (और उसका) जानन वाला ह

128 (और) ऐ हमार पालन वाल त हम अपना फरमाबरदार ब दा बना हमारी औलाद स

एक िगरोह (पदा कर) जो तरा फरमाबरदार हो और हमको हमार हज की जगह िदखा द और हमारी तौबा क़बल कर बशक त ही बड़ा तौबा कबल करन वाला महरबान ह

129 (और) ऐ हमार पालन वाल मकक वाल म उ ही म स एक रसल को भज जो

उनको तरी आयत पढ़कर सनाए और आसमानी िकताब और अकल की बात िसखाए और उन (क नफ़स) क पाकीज़ा कर द बशक त ही ग़ािलब और सािहब तदबीर ह

130 और कौन ह जो इबराहीम क तरीक़ स नफरत कर मगर जो अपन को अहमक़

बनाए और बशक हमन उनको दिनया म भी मि तख़ब कर िलया और वह ज़ र आख़रत म भी अ छ ही म स होग

131 जब उनस उनक परवरिदगार न कहा इ लाम कबल करो तो अज़र म सार जहा क

परवरिदगार पर इ लाम लाया 132 और इसी तरीक क़ी इबराहीम न अपनी औलाद स वसीयत की और याकब न (भी)

िक ऐ फरज़ द खदा न त हार वा त इस दीन (इ लाम) को पस द फरमाया ह पस तम हरिगज़ न मरना मगर मसलमान ही होकर

133 (ऐ यहद) कया तम उस वकत मौजद थ जब याकब क सर पर मौत आ खड़ी

हईउस वकत उ ह न अपन बट स कहा िक मर बाद िकसी की इबादत करोग कहन लग हम आप क माबद और आप क बाप दादाओ इबराहीम व इ माइल व इसहाक़ क माबद व यकता खदा की इबादत करग और हम उसक फरमाबरदार ह

134 (ऐ यहद) वह लोग थ जो चल बस जो उ ह न कमाया उनक आग आया और जो

तम कमाओग त हार आग आएगा और जो कछ भी वह करत थ उसकी पछगछ तमस नही होगी

सरः अल-बक़रा

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135 (यहदी ईसाई मसलमान स) कहत ह िक यहद या नसरानी हो जाओ तो राह रा त पर आ जाओग (ऐ रसल उनस) कह दो िक हम इबराहीम क तरीक़ पर ह जो बाितल स कतरा कर चलत थ और मशरकीन स न थ

136 (और ऐ मसलमान तम य) कहो िक हम तो खदा पर ईमान लाए ह और उस पर

जो हम पर नािज़ल िकया गया (करान) और जो सहीफ़ इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकब और औलाद याकब पर नािज़ल हए थ (उन पर) और जो िकताब मसा व ईसा को दी गई (उस पर) और जो और पग़ बर को उनक परवरिदगार की तरफ स उ ह िदया गया (उस पर) हम तो उनम स िकसी (एक) म भी तफरीक़ नही करत और हम तो खदा ही क फरमाबरदार ह

137 पस अगर य लोग भी उसी तरह ईमान लाए ह िजस तरह तम तो अलब ता राह

रा त पर आ गए और अगर वह इस तरीक स मह फर ल तो बस वह िसफर त हारी ही िज़द पर ह तो (ऐ रसल) उन (क शर) स (बचान को) त हार िलए खदा काफ़ी होगा और वह (सबकी हालत) खब जानता (और) सनता ह

138 (मसलमान स कहो िक) रग तो खदा ही का रग ह िजसम तम रग गए और खदाई

रग स बहतर कौन रग होगा और हम तो उसी की इबादत करत ह 139 (ऐ रसल) तम उनस पछो िक कया तम हम स खदा क बार झगड़त हो हालािक

वही हमारा (भी) परवरिदगार ह (वही) त हारा भी (परवरिदगार ह) हमार िलए ह हमारी कारगज़ािरया और त हार िलए त हारी कारसतािनया और हम तो िनरखर उसी म ह

140 कया तम कहत हो िक इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौद याकब सब क

सब यहदी या नसरानी थ (ऐ रसल उनस) पछो तो िक तम यादा वािक़फ़ हो या खदा और उसस बढ़कर कौन ज़ािलम होगा िजसक पास खदा की तरफ स गवाही (मौजद) हो (िक वह यहदी न थ) और िफर वह िछपाए और जो कछ तम करत हो खदा उसस बख़बर नही

141 य वह लोग थ जो िसधार चक जो कछ कमा गए उनक िलए था और जो कछ तम कमाओग त हार िलए होगा और जो कछ वह कर गज़र उसकी पछगछ तमस न होगी

सरः अल-बक़रा

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142 बाज़ अहमक़ लोग य कह बठग िक मसलमान िजस िक़बल बतल मक़ स की तरफ

पहल स सजदा करत थ उस स दसर िक़बल की तरफ मड़ जान का बाइस हआ ऐ रसल तम उनक जवाब म कहो िक परब पि चम सब ख़दा का ह िजस चाहता ह सीध रा त की तरफ िहदायत करता ह

143 और िजस तरह त हार िक़बल क बार म िहदायत की उसी तरह तम को आिदल

उ मत बनाया तािक और लोग क मक़ाबल म तम गवाह बनो और रसल मोह मद त हार मक़ाबल म गवाह बन और (ऐ रसल) िजस िक़बल की तरफ़ तम पहल सज़दा करत थ हम न उसको को िसफर इस वजह स िक़बला क़रार िदया था िक जब िक़बला बदला जाए तो हम उन लोग को जो रसल की परवी करत ह हम उन लोग स अलग दख ल जो उलट पाव िफरत ह अगरच य उलट फर िसवा उन लोग क िजन की ख़दा न िहदायत की ह सब पर शाक़ ज़ र ह और ख़दा ऐसा नही ह िक त हार ईमान नमाज़ को जो बतलमक़ स की तरफ पढ़ चक हो बरबाद कर द बशक ख़दा लोग पर बड़ा ही रफ़ीक व महरबान ह

144 ऐ रसल िक़बला बदलन क वा त बशक त हारा बार बार आसमान की तरफ मह

करना हम दख रह ह तो हम ज़ र तम को ऐस िक़बल की तरफ फर दग िक तम िनहाल हो जाओ अ छा तो नमाज़ ही म तम मि ज़द मोहतरम काब की तरफ मह कर लो और ऐ मसलमान तम जहा कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मह कर िलया करो और िजन लोग को िकताब तौरत वगरह दी गयी ह वह बख़बी जानत ह िक य तबदील िक़बल बहत बजा व द त ह और उस क परवरिदगार की तरफ़ स ह और जो कछ वह लोग करत ह उस स ख़दा बख़बर नही

145 और अगर अहल िकताब क सामन दिनया की सारी दलील पश कर दोग तो भी वह

त हार िक़बल को न मानग और न तम ही उनक िक़बल को मानन वाल हो और ख़द अहल िकताब भी एक दसर क िक़बल को नही मानत और जो इ म क़रान त हार पास आ चका ह उसक बाद भी अगर तम उनकी खवािहश पर चल तो अलब ता तम नाफ़रमान हो जाओग

सरः अल-बक़रा

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146 िजन लोग को हमन िकताब (तौरत वग़रह) दी ह वह िजस तरह अपन बट को पहचानत ह उसी तरह तरह वह उस पग़ बर को भी पहचानत ह और उन म कछ लोग तो ऐस भी ह जो दीदए व दािन ता (जान बझकर) हक़ बात को िछपात ह

147 ऐ रसल तबदील िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह पस तम कही शक

करन वाल म स न हो जाना 148 और हर फरीक़ क वा त एक िस त ह उसी की तरफ वह नमाज़ म अपना मह कर

लता ह पस तम ऐ मसलमान झगड़ को छोड़ दो और निकय म उन स लपक क आग बढ़ जाओ तम जहा कही होग ख़दा तम सबको अपनी तरफ ल आऐगा बशक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

149 और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा तक मकका स) तो भी नमाज़ म तम

अपना मह मि ज़द मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर िलया करो और बशक य नया िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह

150 और त हार काम स ख़दा ग़ािफल नही ह और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा

तक क मकका स तो भी) तम (नमाज़ म) अपना मह मि ज़द हराम की तरफ कर िलया करो और (ऐ रसल) तम जहा कही हआ करो तो नमाज़ म अपना मह उसी काबा की तरफ़ कर िलया करो (बार बार हकम दन का एक फायदा य ह तािक लोग का इ ज़ाम तम पर न आन पाए मगर उन म स जो लोग नाहक़ हठधमीर करत ह वह तो ज़ र इ ज़ाम दग) तो तम लोग उनस डरो नही और िसफ़र मझस डरो और (दसरा फ़ायदा य ह) तािक तम पर अपनी नअमत परी कर द

151 और तीसरा फायदा य ह तािक तम िहदायत पाओ मसलमान य एहसान भी वसा

ही ह जस हम न तम म तम ही म का एक रसल भजा जो तमको हमारी आयत पढ़ कर सनाए और त हार न स को पाकीज़ा कर और त ह िकताब क़रान और अकल की बात िसखाए और तम को वह बात बताए िजन की त ह पहल स खबर भी न थी

152 पस तम हमारी याद रखो तो म भी त हारा िज़कर (खर) िकया क गा और मरा

यिकरया अदा करत रहो और नाशकरी न करो

सरः अल-बक़रा

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153 ऐ ईमानदार मसीबत क वकत सबर और नमाज़ क ज़िरए स ख़दा की मदद माग

बशक ख़दा सबर करन वाल ही का साथी ह 154 और जो लोग ख़दा की राह म मार गए उ ह कभी मदार न कहना बि क वह लोग

िज़ दा ह मगर तम उनकी िज़ दगी की हक़ीकत का कछ भी यऊर नही रखत 155 और हम त ह कछ खौफ़ और भख स और माल और जान और फल की कमी स

ज़ र आज़माएग और (ऐ रसल) ऐस सबर करन वाल को ख़शख़बरी द दो 156 िक जब उन पर कोई मसीबत आ पड़ी तो वह (बसाखता) बोल उठ हम तो ख़दा ही

क ह और हम उसी की तरफ लौट कर जान वाल ह 157 उ ही लोग पर उनक परवरिदगार की तरफ स इनायत ह और रहमत और यही

लोग िहदायत या ता ह 158 बशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़दा की िनशािनय म स ह पस जो शखस

ख़ानए काबा का हज या उमरा कर उस पर उन दोनो क (दरिमयान) तवाफ़ (आमद ओ र त) करन म कछ गनाह नही (बि क सवाब ह) और जो शखस खश खश नक काम कर तो िफर ख़दा भी क़दरदा (और) वािक़फ़कार ह

159 बशक जो लोग हमारी इन रौशन दलील और िहदायत को िज ह हमन नािज़ल

िकया उसक बाद िछपात ह जबिक हम िकताब तौरत म लोग क सामन साफ़ साफ़ बयान कर चक ह तो यही लोग ह िजन पर ख़दा भी लानत करता ह और लानत करन वाल भी लानत करत ह

160 मगर िजन लोग न (हक़ िछपान स) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर

ली और जो िकताब ख़दा म ह साफ़ साफ़ बयान कर िदया पस उन की तौबा म क़बल करता ह और म तो बड़ा तौबा क़बल करन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

सरः अल-बक़रा

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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9 खदा को और उन लोग को जो ईमान लाए धोखा दत ह हालािक वह अपन आपको धोखा दत ह और कछ शऊर नही रखत ह

10 उनक िदल म मज़र था ही अब खदा न उनक मज़र को और बढ़ा िदया और चिक वह लोग झठ

बोला करत थ इसिलए उन पर तकलीफ दह अज़ाब ह

11 और जब उनस कहा जाता ह िक म क म फसाद न करत िफरो (तो) कहत ह िक हम तो िसफर इसलाह करत ह

12 ख़बरदार हो जाओ बशक यही लोग फसादी ह लिकन समझत नही

13 और जब उनस कहा जाता ह िक िजस तरह और लोग ईमान लाए ह तम भी ईमान लाओ तो कहत ह कया हम भी उसी तरह ईमान लाए िजस तरह और बवकफ़ लोग ईमान लाए ख़बरदार हो जाओ लोग बवक़फ़ ह लिकन नही जानत

14 और जब उन लोग स िमलत ह जो ईमान ला चक तो कहत ह हम तो ईमान ला चक और

जब अपन शतान क साथ तनहा रह जात ह तो कहत ह हम त हार साथ ह हम तो (मसलमान को) बनात ह

15 (वह कया बनाएग) खदा उनको बनाता ह और उनको ढील दता ह िक वह अपनी सरकशी म

ग़लत पचा (उलझ) रह

16 यही वह लोग ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही ख़रीद ली िफर न उनकी ितजारत ही न

कछ नफ़ा िदया और न उन लोग न िहदायत ही पाई

17 उन लोग की िमसाल (तो) उस शखस की सी ह िजसन (रात क वकत मजम म) भड़कती हईआग रौशन की िफर जब आग (क शोल) न उसक िगद पश (चार ओर) खब उजाला कर

िदया तो खदा न उनकी रौशनी ल ली और उनको घटाटोप अधर म छोड़ िदया

18 िक अब उ ह कछ सझाई नही दता य लोग बहर गग अ ध ह िक िफर अपनी गमराही स

बाज़ नही आ सकत

19 या उनकी िमसाल ऐसी ह जस आसमानी बािरश िजसम तािरिकया ग़ज़र िबजली हो मौत क

खौफ स कड़क क मार अपन कान म ऊगिलया द लत ह हालािक खदा कािफ़र को (इस

तरह) घर हए ह (िक उसक िहल नही सकत)

सरः अल-बक़रा

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20 क़रीब ह िक िबजली उनकी ऑख को चौि धया द जब उनक आग िबजली चमकी तो उस

रौशनी म चल खड़ हए और जब उन पर अधरा छा गया तो (िठठक क) खड़ हो गए और खदा चाहता तो य भी उनक दखन और सनन की कवत छीन लता बशक खदा हर चीज़ पर क़ािदर

21 ऐ लोग अपन परवरिदगार की इबादत करो िजसन तमको और उन लोग को जो तम स

पहल थ पदा िकया ह अजब नही तम परहज़गार बन जाओ

22 िजसन त हार िलए ज़मीन का िबछौना और आसमान को छत बनाया और आसमान स

पानी बरसाया िफर उसी न त हार खान क िलए बाज़ फल पदा िकए पस िकसी को खदा का हमसर न बनाओ हालािक तम खब जानत हो

23 और अगर तम लोग इस कलाम स जो हमन अपन ब द (मोह मद) पर नािज़ल िकया ह

शक म पड़ हो पस अगर तम स च हो तो तम (भी) एक सरा बना लाओ और खदा क िसवा जो भी त हार मददगार ह उनको भी बला लो

24 पस अगर तम य नही कर सकत हो और हरिगज़ नही कर सकोग तो उस आग स डरो िसक

ईधन आदमी और प थर ह ग और कािफ़र क िलए तयार की गई ह

25 और जो लोग ईमान लाए और उ ह न नक काम िकए उनको (ऐ पग़ बर) खशख़बरी द दो िक उनक िलए (बिह त क) वह बाग़ात ह िजनक नीच नहर जारी ह जब उ ह इन बाग़ात का कोई मवा खान को िमलगा तो कहग य तो वही (मवा ह जो पहल भी हम खान को िमल चका ह) (कय िक) उ ह िमलती जलती सरत व रग क (मव) िमला करग और बिह त म उनक

िलए साफ सथरी बीिवया होगी और य लोग उस बाग़ म हमशा रहग

26 बशक खदा म छर या उसस भी बढ़कर (हक़ीर चीज़) की कोई िमसाल बयान करन म नही झपता पस जो लोग ईमान ला चक ह वह तो य यक़ीन जानत ह िक य (िमसाल) िब कल

ठीक ह और य परवरिदगार की तरफ़ स ह (अब रह) वह लोग जो कािफ़र ह पस वह बोल

उठत ह िक खदा का उस िमसाल स कया मतलब ह ऐसी िमसाल स ख़दा बहतर की िहदायत

करता ह मगर गमराही म छोड़ता भी ह तो ऐस बदकार को

27 जो लोग खदा क एहदो पमान को मज़बत हो जान क बाद तोड़ डालत ह और िजन

(ता लक़ात) का खदा न हकम िदया ह उनको क़ताआ कर दत ह और म क म फसाद करत

िफरत ह यही लोग घाटा उठान वाल ह

सरः अल-बक़रा

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28 (हाए) कय कर तम खदा का इ कार कर सकत हो हालािक तम (माओ क पट म) बजान थ

तो उसी न तमको िज़ दा िकया िफर वही तमको मार डालगा िफर वही तमको (दोबारा क़यामत म) िज़ दा करगा िफर उसी की तरफ लौटाए जाओग

29 वही तो वह (खदा) ह िजसन त हार (नफ़) क ज़मीन की कल चीज़ को पदा िकया िफर

आसमान (क बनान) की तरफ़ मताव जह हआ तो सात आसमान हमवार (व मसतहकम)

बना िदए और वह (खदा) हर चीज़ स (खब) वािक़फ ह

30 और (ऐ रसल) उस वकत क़ो याद करो जब त हार परवरिदगार न फ़िर त स कहा िक म

(अपना) एक नाएब ज़मीन म बनानवाला ह (फिर त ता जब स) कहन लग कया त ज़मीन

ऐस शखस को पदा करगा जो ज़मीन म फ़साद और खरिज़या करता िफर हालािक (अगर)

ख़लीफा बनाना ह (तो हमारा यादा हक़ ह) कय िक हम तरी तारीफ व तसबीह करत ह और

तरी पाकीज़गी सािबत करत ह तब खदा न फरमाया इसम तो शक ही नही िक जो म जानता ह तम नही जानत

31 और (आदम की हक़ीक़म ज़ािहर करन की ग़रज़ स) आदम को सब चीज़ क नाम िसखा िदए

िफर उनको फिर त क सामन पश िकया और फ़रमाया िक अगर तम अपन दाव म िक हम

म तहक िख़लाफ़त ह स च हो तो मझ इन चीज़ क नाम बताओ

32 तब फ़िर त न (आिजज़ी स) अज़र की त (हर ऐब स) पाक व पाकीज़ा ह हम तो जो कछ तन

बताया ह उसक िसवा कछ नही जानत त बड़ा जानन वाला मसलहत का पहचानन वाला ह

33 (उस वकत ख़दा न आदम को) हकम िदया िक ऐ आदम तम इन फ़िर त को उन सब चीज़

क नाम बता दो बस जब आदम न फ़िर त को उन चीज़ क नाम बता िदए तो खदा न

फिर त की तरफ िख़ताब करक फरमाया कय म तमस न कहता था िक म आसमान और

ज़मीन क िछप हए राज़ को जानता ह और जो कछ तम अब ज़ािहर करत हो और जो कछ

तम िछपात थ (वह सब) जानता ह

34 और (उस वकत क़ो याद करो) जब हमन फ़िर त स कहा िक आदम को सजदा करो तो सब

क सब झक गए मगर शतान न इ कार िकया और ग़ र म आ गया और कािफ़र हो गया

सरः अल-बक़रा

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35 और हमन आदम स कहा ऐ आदम तम अपनी बीवी समत बिह त म रहा सहा करो और जहा स त हारा जी चाह उसम स ब फराग़त खाओ (िपयो) मगर उस दरखत क पास भी न जाना (वरना) िफर तम अपना आप नक़सान करोग

36 तब शतान न आदम व हौ वा को (धोखा दकर) वहा स डगमगाया और आिख़र कार उनको िजस (ऐश व राहत) म थ उनस िनकाल फका और हमन कहा (ऐ आदम व हौ वा) तम

(ज़मीन पर) उतर पड़ो तमम स एक का एक दशमन होगा और ज़मीन म त हार िलए एक

ख़ास वकत (क़यामत) तक ठहराव और िठकाना ह

37 िफर आदम न अपन परवरिदगार स (माज़रत क च द अ फाज़) सीख पस खदा न उन

अ फाज़ की बरकत स आदम की तौबा कबल कर ली बशक वह बड़ा माफ़ करन वाला महरबान ह

38 (और जब आदम को) य हकम िदया था िक यहा स उतर पड़ो (तो भी कह िदया था िक) अगर

त हार पास मरी तरफ़ स िहदायत आए तो (उसकी परवी करना कय िक) जो लोग मरी िहदायत पर चलग उन पर (क़यामत) म न कोई ख़ौफ होगा

39 और न वह रजीदा होग और (य भी याद रखो) िजन लोग न कफर इख़तयार िकया और हमारी आयत को झठलाया तो वही जह नमी ह और हमशा दोज़ख़ म पड़ रहग

40 ऐ बनी इसराईल (याक़ब की औलाद) मर उन एहसानात को याद करो जो तम पर पहल कर

चक ह और तम मर एहद व इक़रार (ईमान) को परा करो तो म त हार एहद (सवाब) को परा क गा और मझ ही स डरत रहो

41 और जो (करान) मन नािज़ल िकया वह उस िकताब (तौरत) की (भी) तसदीक़ करता ह जो त हार पास ह और तम सबस चल उसक इ कार पर मौजद न हो जाओ और मरी आयत क

बदल थोड़ी क़ीमत (दनयावी फायदा) न लो और मझ ही स डरत रहो

42 और हक़ को बाितल क साथ न िमलाओ और हक़ बात को न िछपाओ हालािक तम जानत हो और पाब दी स नमाज़ अदा करो

43 और ज़कात िदया करो और जो लोग (हमार सामन) इबादत क िलए झकत ह उनक साथ तम

भी झका करो

सरः अल-बक़रा

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44 और तम लोग स नकी करन को कहत हो और अपनी ख़बर नही लत हालािक तम िकताब

खदा को (बराबर) रटा करत हो तो तम कया इतना भी नही समझत

45 और (मसीबत क वकत) सबर और नमाज़ का सहारा पकड़ो और अलब ता नमाज़ दभर तो ह

मगर उन ख़ाक़सार पर (नही) जो बख़बी जानत ह

46 िक वह अपन परवरिदगार की बारगाह म हािज़र ह ग और ज़ र उसकी तरफ लौट जाएग

47 ऐ बनी इसराइल मरी उन नअमत को याद करो जो मन पहल त ह दी और य (भी तो सोचो) िक हमन तमको सार जहान क लोग स बढ़ा िदया

48 और उस िदन स डरो (िजस िदन) कोई शखस िकसी की तरफ स न िफिदया हो सकगा और न

उसकी तरफ स कोई िसफािरश मानी जाएगी और न उसका कोई मआवज़ा िलया जाएगा और न वह मदद पहचाए जाएग

49 और (उस वकत क़ो याद करो) जब हमन त ह (त हार बज़रगो को) िफरऔन (क प ज) स

छड़ाया जो त ह बड़-बड़ दख द क सतात थ त हार लड़क पर छरी फरत थ और त हारी औरत को (अपनी िख़दमत क िलए) िज़ दा रहन दत थ और उसम त हार परवरिदगार की तरफ स (त हार सबर की) सखत आज़माइश थी

50 और (वह वकत भी याद करो) जब हमन त हार िलए दिरया को टकड़-टकड़ िकया िफर हमन

तमको छटकारा िदया

51 और िफरऔन क आदिमय को त हार दखत-दखत डबो िदया और (वह वकत भी याद करो) जब हमन मसा स चालीस रात का वायदा िकया था और तम लोग न उनक जान क बाद

एक बछड़ को (परसितश क िलए खदा) बना िलया

52 हालािक तम अपन ऊपर ज़ म जोत रह थ िफर हमन उसक बाद भी दरगज़र की तािक तम

शकर करो

53 और (वह वकत भी याद करो) जब मसा को (तौरत) अता की और हक़ और बाितल को जदा करनवाला क़ानन (इनायत िकया) ताक तम िहदायत पाओ

54 और (वह वकत भी याद करो) जब मसा न अपनी क़ौम स कहा िक ऐ मरी क़ौम तमन बछड़ को (ख़दा) बना क अपन ऊपर बड़ा सखत ज म िकया तो अब (इसक िसवा कोई चारा नही

सरः अल-बक़रा

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िक) तम अपन ख़ािलक की बारगाह म तौबा करो और वह य ह िक अपन को क़ ल कर डालो त हार परवरिदगार क नज़दीक त हार हक़ म यही बहतर ह िफर जब तमन ऐसा िकया तो खदा न त हारी तौबा क़बल कर ली बशक वह बड़ा महरबान माफ़ करन वाला ह

55 और (वह वकत भी याद करो) जब तमन मसा स कहा था िक ऐ मसा हम तम पर उस वकत

तक ईमान न लाएग जब तक हम खदा को ज़ािहर बज़ािहर न दख ल उस पर त ह िबजली न

ल डाला और तम तकत ही रह गए

56 िफर त ह त हार मरन क बाद हमन िजला उठाया तािक तम शकर करो

57 और हमन तम पर अबर का साया िकया और तम पर मन व सलवा उतारा और (य भी तो कह

िदया था िक) जो सथरी व नफीस रोिज़या त ह दी ह उ ह शौक़ स खाओ और उन लोग न

हमारा तो कछ िबगड़ा नही मगर अपनी जान पर िसतम ढात रह

58 और (वह वकत भी याद करो) जब हमन तमस कहा िक इस गाव (अरीहा) म जाओ और इसम

जहा चाहो फराग़त स खाओ (िपयो) और दरवाज़ पर सजदा करत हए और ज़बान स िह ता बिखशश कहत हए आओ तो हम त हारी ख़ता य बखश दग और हम नकी करन वाल की नकी (सवाब) बढ़ा दग

59 तो जो बात उनस कही गई थी उस शरीर न बदलकर दसरी बात कहनी श कर दी तब हमन

उन लोग पर िज ह न शरारत की थी उनकी बदकारी की वजह स आसमानी बला नािज़ल

की

60 और (वह वकत भी याद करो) जब मसा न अपनी क़ौम क िलए पानी मागा तो हमन कहा (ऐ

मसा) अपनी लाठी प थर पर मारो (लाठी मारत ही) उसम स बारह च म फट िनकल और

सब लोग न अपना-अपना घाट बखबी जान िलया और हमन आम इजाज़त द दी िक खदा की दी हईरोज़ी स खाओ िपयो और म क म फसाद न करत िफरो

61 (और वह वकत भी याद करो) जब तमन मसा स कहा िक ऐ मसा हमस एक ही खान पर न

रहा जाएगा तो आप हमार िलए अपन परवरिदगार स दआ कीिजए िक जो चीज़ ज़मीन स

उगती ह जस साग पात तरकारी और ककड़ी और गह या (लहसन) और मसर और याज़

(मन व सलवा) की जगह पदा कर (मसा न) कहा कया तम ऐसी चीज़ को जो हर तरह स

बहतर ह अदना चीज़ स बदलन चाहत हो तो िकसी शहर म उतर पड़ो िफर त हार िलए जो तमन मागा ह सब मौजद ह और उन पर सवाई और मोहताजी की मार पड़ी और उन लोग

सरः अल-बक़रा

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न क़हर खदा की तरफ पलटा खाया य सब इस सबब स हआ िक वह लोग खदा की िनशािनय स इ कार करत थ और पग़ बर को नाहक शहीद करत थ और इस वजह स

(भी) िक वह नाफ़रमानी और सरकशी िकया करत थ

62 बशक मसलमान और यहिदय और नसरािनय और ला मज़हब म स जो कोई खदा और

रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए और अ छ-अ छ काम करता रह तो उ ही क िलए उनका अजर

व सवाब उनक खदा क पास ह और न (क़यामत म) उन पर िकसी का ख़ौफ होगा न वह

रजीदा िदल ह ग

63 और (वह वकत याद करो) जब हमन (तामील तौरत) का तमस एक़रार कर िलया और हमन

त हार सर पर तर स (पहाड़ को) लाकर लटकाया और कह िदया िक तौरत जो हमन तमको दी ह उसको मज़बत पकड़ रहो और जो कछ उसम ह उसको याद रखो

64 तािक तम परहज़गार बनो िफर उसक बाद तम (अपन एहदो पमान स) िफर गए पस अगर

तम पर खदा का फज़ल और उसकी महरबानी न होती तो तमन सखत घाटा उठाया होता

65 और अपनी क़ौम स उन लोग की हालत तो तम बखबी जानत हो जो श ब (सनीचर) क िदन

अपनी हद स गज़र गए (िक बावजद ममािनअत िशकार खलन िनकल) तो हमन उन स कहा िक तम राइ द गए ब दर बन जाओ (और वह ब दर हो गए)

66 पस हमन इस वाक़य स उन लोग क वा त िजन क सामन हआ था और जो उसक बाद

आनवाल थ अज़ाब क़रार िदया और परहज़गार क िलए नसीहत

67 और (वह वकत याद करो) जब मसा न अपनी क़ौम स कहा िक खदा तम लोग को ताकीदी हकम करता ह िक तम एक गाय िज़बाह करो वह लोग कहन लग कया तम हमस िद लगी करत हो मसा न कहा म खदा स पनाह मागता ह िक म जािहल बन

68 (तब वह लोग कहन लग िक (अ छा) तम अपन खदा स दआ करो िक हम बता द िक वह

गाय कसी हो मसा न कहा बशक खदा न फरमाता ह िक वह गाय न तो बहत बढ़ी हो और न

बिछया बि क उनम स औसत दरज की हो ग़रज़ जो तमको हकम िदया गया उसको बजा लाओ

सरः अल-बक़रा

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69 वह कहन लग (वाह) तम अपन खदा स दआ करो िक हम य बता द िक उसका रग आिख़र

कया हो मसा न कहा बशक खदा फरमाता ह िक वह गाय खब गहर ज़दर रग की हो दखन वाल

उस दखकर खश हो जाए

70 तब कहन लग िक तम अपन खदा स दआ करो िक हम ज़रा य तो बता द िक वह (गाय) और

कसी हो (वह) गाय तो और गाय म िमल जल गई और खदा न चाहा तो हम ज़ र (उसका) पता लगा लग

71 मसा न कहा खदा ज़ र फरमाता ह िक वह गाय न तो इतनी सधाई हो िक ज़मीन जोत न

खती सीच भली चगी एक रग की िक उसम कोई ध बा तक न हो वह बोल अब (जा क) ठीक-

ठीक बयान िकया ग़रज़ उन लोग न वह गाय हलाल की हालािक उनस उ मीद न थी वह

िक वह ऐसा करग

72 और जब एक शखस को मार डाला और तमम उसकी बाबत फट पड़ गई एक दसर को क़ाितल

बतान लगा जो तम िछपात थ

73 खदा को उसका ज़ािहर करना मजर था पस हमन कहा िक उस गाय को कोई टकड़ा लकर इस

(की लाश) पर मारो य खदा मद को िज़ दा करता ह और तम को अपनी कदरत की िनशािनया िदखा दता ह

74 तािक तम समझो िफर उसक बाद त हार िदल सखत हो गय पस वह िमसल प थर क

(सखत) थ या उसस भी यादा करखत कय िक प थर म बाज़ तो ऐस होत ह िक उनस नहर

जारी हो जाती ह और बाज़ ऐस होत ह िक उनम दरार पड़ जाती ह और उनम स पानी िनकल

पड़ता ह और बाज़ प थर तो ऐस होत ह िक खदा क ख़ौफ स िगर पड़त ह और जो कछ तम

कर रह हो उसस खदा ग़ािफल नही ह

75 (मसलमान ) कया तम य लालच रखत हो िक वह त हारा (सा) ईमान लाएग हालािक उनम

का एक िगरोह (सािबक़ म) ऐसा था िक खदा का कलाम सनाता था और अ छी तरह

समझन क बाद उलट फर कर दता था हालािक वह खब जानत थ और जब उन लोग स

मलाक़ात करत ह

76 जो ईमान लाए तो कह दत ह िक हम तो ईमान ला चक और जब उनस बाज़-बाज़ क साथ

तिख़लया करत ह तो कहत ह िक जो कछ खदा न तम पर (तौरत) म ज़ािहर कर िदया ह कया

सरः अल-बक़रा

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तम (मसलमान को) बता दोग तािक उसक सबब स कल त हार खदा क पास तम पर

ह जत लाए कया तम इतना भी नही समझत

77 लिकन कया वह लोग (इतना भी) नही जानत िक वह लोग जो कछ िछपात ह या ज़ािहर करत ह खदा सब कछ जानता ह

78 और कछ उनम स ऐस अनपढ़ ह िक वह िकताब खदा को अपन मतलब की बात क िसवा कछ नही समझत और वह फक़त खयाली बात िकया करत ह

79 पस वाए हो उन लोग पर जो अपन हाथ स िकताब िलखत ह िफर (लोग स कहत िफरत) ह

िक य खदा क यहा स (आई) ह तािक उसक ज़िरय स थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी फ़ायदा) हािसल कर पस अफसोस ह उन पर िक उनक हाथ न िलखा और िफर अफसोस ह उनपर िक

वह ऐसी कमाई करत ह

80 और कहत ह िक िगनती क च द िदन क िसवा हम आग छएगी भी तो नही (ऐ रसल) इन

लोग स कहो िक कया तमन खदा स कोई इक़रार ल िलया ह िक िफर वह िकसी तरह अपन

इक़रार क िख़लाफ़ हरिगज़ न करगा या ब समझ बझ खदा पर बोहताव जोड़त हो

81 हा (सच तो यह ह) िक िजसन बराई हािसल की और उसक गनाह न चार तरफ स उस घर

िलया ह वही लोग तो दोज़ख़ी ह और वही (तो) उसम हमशा रहग

82 और जो लोग ईमानदार ह और उ ह न अ छ काम िकए ह वही लोग ज नती ह िक हमशा ज नत म रहग

83 और (वह वकत याद करो) जब हमन बनी ईसराइल स (जो त हार बजरग़ थ) अहद व पमान

िलया था िक खदा क िसवा िकसी की इबादत न करना और मा बाप और क़राबतदार और

यतीम और मोहताज क साथ अ छ सलक करना और लोग क साथ अ छी तरह (नरमी) स बात करना और बराबर नमाज़ पढ़ना और ज़कात दना िफर तमम स थोड़ आिदिमय क

िसवा (सब क सब) िफर गए और तम लोग हो ही इक़रार स मह फरन वाल

84 और (वह वकत याद करो) जब हमन तम (त हार बज़रग ) स अहद िलया था िक आपस म

खरिज़या न करना और न अपन लोग को शहर बदर करना तो तम (त हार बजरग़ ) न

इक़रार िकया था और तम भी उसकी गवाही दत हो

सरः अल-बक़रा

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85 (िक हा ऐसा हआ था) िफर वही लोग तो तम हो िक आपस म एक दसर को क़ ल करत हो और अपन स एक ज थ क नाहक़ और ज़बरद ती िहमायती बनकर दसर को शहर बदर

करत हो (और ल फ़ तो य ह िक) अगर वही लोग क़दी बनकर त हार पास (मदद मागन)

आए तो उनको तावान दकर छड़ा लत हो हालािक उनका िनकालना ही तम पर हराम िकया गया था तो िफर कया तम (िकताब खदा की) बाज़ बात पर ईमान रखत हो और बाज़ स

इ कार करत हो पस तम म स जो लोग ऐसा कर उनकी सज़ा इसक िसवा और कछ नही िक

िज़ दगी भर की सवाई हो और (आिख़रकार) क़यामत क िदन सखत अज़ाब की तरफ लौटा िदय जाए और जो कछ तम लोग करत हो खदा उसस ग़ािफ़ल नही ह

86 यही वह लोग ह िज ह न आख़रत क बदल दिनया की िज़ दगी ख़रीद पस न उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी और न वह लोग िकसी तरह की मदद िदए जाएग

87 और य हक़ीक़ी बात ह िक हमन मसा को िकताब (तौरत) दी और उनक बाद बहत स पग़ बर

को उनक क़दम ब क़दम ल चल और मिरयम क बट ईसा को (भी बहत स) वाजए व रौशन

मौिजज िदए और पाक ह िजबरील क ज़िरय स उनकी मदद की कया तम उस क़दर

बदिदमाग़ हो गए हो िक जब कोई पग़ बर त हार पास त हारी खवािहश नफ़सानी क

िख़लाफ कोई हकम लकर आया तो तम अकड़ बठ िफर तमन बाज़ पग़ बर को तो झठलाया और बाज़ को जान स मार डाला

88 और कहन लग िक हमार िदल पर िग़लाफ चढ़ा हआ ह (ऐसा नही) बि क उनक कफर की वजह स खदा न उनपर लानत की ह पस कम ही लोग ईमान लात ह

89 और जब उनक पास खदा की तरफ़ स िकताब (करान आई और वह उस िकताब तौरत) की जो उन क पास तसदीक़ भी करती ह और उसस पहल (इसकी उ मीद पर) कािफ़र पर

फतहयाब होन की दआए मागत थ पस जब उनक पास वह चीज़ िजस पहचानत थ आ गई

तो लग इ कार करन पस कािफ़र पर खदा की लानत ह

90 कया ही बरा ह वह काम िजसक मक़ाबल म (इतनी बात पर) वह लोग अपनी जान बच बठ ह

िक खदा अपन ब द स िजस पर चाह अपनी इनायत स िकताब नािज़ल िकया कर इस र क

स जो कछ खदा न नािज़ल िकया ह सबका इ कार कर बठ पस उन पर ग़ज़ब पर ग़ज़ब टट

पड़ा और कािफ़र क िलए (बड़ी) सवाई का अज़ाब ह

91 और जब उनस कहा गया िक (जो क़रान) खदा न नािज़ल िकया ह उस पर ईमान लाओ तो कहन लग िक हम तो उसी िकताब (तौरत) पर ईमान लाए ह जो हम पर नािज़ल की गई थी

सरः अल-बक़रा

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और उस िकताब (करान) को जो उसक बाद आई ह नही मानत ह हालािक वह (क़रान) हक़ ह

और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करती ह मगर उस िकताब करान

का जो उसक बाद आई ह इ कार करत ह (ऐ रसल) उनस य तो पछो िक तम (त हार बजरग़)

अगर ईमानदार थ तो िफर कय खदा क पग़ बर का सािबक़ क़ ल करत थ

92 और त हार पास मसा तो वाज़ए व रौशन मौिजज़ लकर आ ही चक थ िफर भी तमन उनक

बाद बछड़ को खदा बना ही िलया और उसस तम अपन ही ऊपर ज़ म करन वाल थ

93 और (वह वकत याद करो) जब हमन तमस अहद िलया और (क़ोह) तर को (त हारी उदल

हकमी स) त हार सर पर लटकाया और (हमन कहा िक य िकताब तौरत) जो हमन दी ह

मज़बती स िलए रहो और (जो कछ उसम ह) सनो तो कहन लग सना तो (सही लिकन) हम

इसको मानत नही और उनकी बईमानी की वजह स (गोया) बछड़ की उलफ़त घोल क उनक

िदल म िपला दी गई (ऐ रसल) उन लोग स कह दो िक अगर तम ईमानदार थ तो तमको त हारा ईमान कया ही बरा हकम करता था

94 (ऐ रसल) इन लोग स कह दो िक अगर खदा क नज़दीक आख़रत का घर (बिह त) ख़ास

त हार वा त ह और लोग क वासत नही ह पस अगर तम स च हो तो मौत की आरज क़रो

95 (तािक ज दी बिह त म जाओ) लिकन वह उन आमाल बद की वजह स िजनको उनक हाथ

न पहल स आग भजा ह हरिगज़ मौत की आरज़ न करग और खदा ज़ािलम स खब वािक़फ

96 और (ऐ रसल) तम उन ही को िज़ दगी का सबस यादा हरीस पाओग और मशिरक़ म स

हर एक शखस चाहता ह िक काश उसको हज़ार बरस की उमर दी जाती हालािक अगर इतनी तलानी उमर भी दी जाए तो वह ख़दा क अज़ाब स छटकारा दन वाली नही और जो कछ वह

लोग करत ह खदा उस दख रहा ह

97 (ऐ रसल उन लोग स) कह दो िक जो िजबरील का दशमन ह (उसका खदा दशमन ह)

कय िक उस फ़िर त न खदा क हकम स (इस करान को) त हार िदल पर डाला ह और वह

उन िकताब की भी तसदीक करता ह जो (पहल नािज़ल हो चकी ह और सब) उसक सामन

मौजद ह और ईमानदार क वा त खशख़बरी ह

98 जो शखस ख़दा और उसक फिर त और उसक रसल और (ख़ासकर) िजबराईल व

मीकाइल का दशमन हो तो बशक खदा भी (ऐस) कािफ़र का द मन ह

सरः अल-बक़रा

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99 और (ऐ रसल) हमन तम पर ऐसी िनशािनया नािज़ल की ह जो वाजए और रौशन ह और

ऐस नाफरमान क िसवा उनका कोई इ कार नही कर सकता

100 और उनकी य हालत ह िक जब कभी कोई अहद िकया तो उनम स एक फरीक़ न तोड़ डाला बि क उनम स अकसर तो ईमान ही नही रखत

101 और जब उनक पास खदा की तरफ स रसल (मोह मद) आया और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करता ह तो उन अहल िकताब क एक िगरोह न िकताब खदा को अपन पस प त फक िदया गोया वह लोग कछ जानत ही नही और उस मतर क पीछ पड़

गए

102 िजसको सलमान क ज़मान की सलतनत म शयातीन जपा करत थ हालािक सलमान न

कफर नही इख़तयार िकया लिकन शतान न कफर एख़तयार िकया िक वह लोग को जाद

िसखाया करत थ और वह चीज़ जो हा त और मा त दोन फ़िर त पर बाइिबल म नािज़ल

की गई थी हालािक य दोन फ़िर त िकसी को िसखात न थ जब तक य न कह दत थ िक हम

दोन तो फ़क़त (ज़िरयाए आज़माइश) ह पस तो (इस पर अमल करक) बईमान न हो जाना उस पर भी उनस वह (टोटक) सीखत थ िजनकी वजह स िमया बीवी म तफ़रक़ा डालत हालािक बग़र इ न खदाव दी वह अपनी इन बात स िकसी को ज़रर नही पहचा सकत थ

और य लोग ऐसी बात सीखत थ जो खद उ ह नक़सान पहचाती थी और कछ (नफा) पहचाती थी बावजद िक वह यक़ीनन जान चक थ िक जो शखस इन (बराईय ) का ख़रीदार

हआ वह आिख़रत म बनसीब ह और बशबह (मआवज़ा) बहत ही बड़ा ह िजसक बदल उ ह न

अपनी जान को बचा काश (उस कछ) सोच समझ होत

103 और अगर वह ईमान लात और जाद वग़रह स बचकर परहज़गार बनत तो खदा की दरगाह

स जो सवाब िमलता वह उसस कही बहतर होता काश य लोग (इतना तो) समझत

104 ऐ ईमानवाल तम (रसल को अपनी तरफ मताव ज करना चाहो तो) रआना (हमारी िरआयत कर) न कहा करो बि क उनज़रना (हम पर नज़र तव जो रख) कहा करो और (जी लगाकर) सनत रहो और कािफर क िलए ददरनाक अज़ाब ह

105 ऐ रसल अहल िकताब म स िजन लोग न कफर इख़तयार िकया वह और मशरकीन य नही चाहत ह िक तम पर त हार परवरिदगार की तरफ स भलाई (वही) नािज़ल की जाए और

सरः अल-बक़रा

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(उनका तो इसम कछ इजारा नही) खदा िजसको चाहता ह अपनी रहमत क िलए ख़ास कर

लता ह और खदा बड़ा फज़ल (करन) वाला ह

106 (ऐ रसल) हम जब कोई आयत म सख़ करत ह या त हार ज़हन स िमटा दत ह तो उसस

बहतर या वसी ही (और) नािज़ल भी कर दत ह कया तम नही जानत िक बशबहा खदा हर

चीज़ पर क़ािदर ह

107 कया तम नही जानत िक आसमान की सलतनत बशबहा ख़ास खदा ही क िलए ह और खदा क िसवा त हारा न कोई सरपर त ह न मददगार

108 (मसलमान ) कया तम चाहत हो िक तम भी अपन रसल स वस ही (बढ़ग) सवालात करो िजस तरह सािबक़ (पहल) ज़मान म मसा स (बतक) सवालात िकए गए थ और िजस शखस

न ईमान क बदल कफर एख़तयार िकया वह तो यक़ीनी सीध रा त स भटक गया

109 (मसलमान ) अहल िकताब म स अकसर लोग अपन िदली हसद की वजह स य खवािहश

रखत ह िक तमको ईमान लान क बाद िफर कािफ़र बना द (और ल फ तो य ह िक) उन पर

हक़ ज़ािहर हो चका ह उसक बाद भी (य तम ना बाक़ी ह) पस तम माफ करो और दरगज़र

करो यहा तक िक खदा अपना (कोई और) हकम भज बशक खदा हर चीज़ पर क़ािदर ह

110 और नमाज़ पढ़त रहो और ज़कात िदय जाओ और जो कछ भलाई अपन िलए (खदा क यहा) पहल स भज दोग उस (क सवाब) को मौजद पाआग जो कछ तम करत हो उस खदा ज़ र

दख रहा ह

111 और (यहद) कहत ह िक यहद (क िसवा) और (नसारा कहत ह िक) नसारा क िसवा कोई

बिह त म जान ही न पाएगा य उनक खयाली पलाव ह (ऐ रसल) तम उन स कहो िक भला अगर तम स च हो िक हम ही बिह त म जाएग तो अपनी दलील पश करो

112 हा अलब ता िजस शखस न खदा क आग अपना सर झका िदया और अ छ काम भी करता ह

तो उसक िलए उसक परवरिदगार क यहा उसका बदला (मौजद) ह और (आख़रत म) ऐस

लोग पर न िकसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐस लोग ग़मग़ीन होग

113 और यहद कहत ह िक नसारा का मज़हब कछ (ठीक) नही और नसारा कहत ह िक यहद का मज़हब कछ (ठीक) नही हालािक य दोन फरीक़ िकताब (खदा) पढ़त रहत ह इसी तरह उ ही जसी बात वह (मशरकीन अरब) भी िकया करत ह जो (खदा क एहकाम) कछ नही जानत तो

सरः अल-बक़रा

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िजस बात म य लोग पड़ झगड़त ह (दिनया म तो तय न होगा) क़यामत क िदन खदा उनक

दरिमयान ठीक फसला कर दगा

114 और उसस बढ़कर ज़ािलम कौन होगा जो खदा की मसिजद म उसका नाम िलए जान स

(लोग को) रोक और उनकी बरबादी क दर प हो ऐस ही को उसम जाना मनािसब नही मगर

सहम हए ऐस ही लोग क िलए दिनया म सवाई ह और ऐस ही लोग क िलए आख़रत म

बड़ा भारी अज़ाब ह

115 (त हार मसिजद म रोकन स कया होता ह कय िक सारी ज़मीन) खदा ही की ह (कया) परब

(कया) पि चम बस जहा कही िक़ ल की तरफ ख़ करो वही खदा का सामना ह बशक खदा बड़ी ग जाइश वाला और खब वािक़फ ह

116 और यहद कहन लग िक खदा औलाद रखता ह हालािक वह (इस बखड़ स) पाक ह बि क जो कछ ज़मीन व आसमान म ह सब उसी का ह और सब उसकी क फरमाबरदार ह

117 (वही) आसमान व ज़मीन का मोिजद ह और जब िकसी काम का करना ठान लता ह तो उसकी िनसबत िसफर कह दता ह िक हो जा पस वह (खद ब खद) हो जाता ह

118 और जो (मशरकीन) कछ नही जानत कहत ह िक खदा हमस (खद) कलाम कय नही करता या हमार पास (खद) कोई िनशानी कय नही आती इसी तरह उ ही की सी बात वह कर चक

ह जो उनस पहल थ उन सब क िदल आपस म िमलत जलत ह जो लोग यक़ीन रखत ह

उनको तो अपनी िनशािनया कय साफतौर पर िदखा चक

119 (ऐ रसल) हमन तमको दीन हक़ क साथ (बिह त की) खशख़बरी दन वाला और (अज़ाब स)

डरान वाला बनाकर भजा ह और दोज़िख़य क बार म तमस कछ न पछा जाएगा

120 और (ऐ रसल) न तो यहदी कभी तमस रज़ामद होग न नसारा यहा तक िक तम उनक मज़हब की परवी करो (ऐ रसल उनस) कह दो िक बस खदा ही की िहदायत तो िहदायत ह (बाक़ी ढकोसला ह) और अगर तम इसक बाद भी िक त हार पास इ म (क़रान) आ चका ह उनकी खवािहश पर चल तो (याद रह िक िफर) तमको खदा (क ग़ज़ब) स बचान वाला न कोई सरपर त होगा न मददगार

सरः अल-बक़रा

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121 िजन लोग को हमन िकताब (करान) दी ह वह लोग उस इस तरह पढ़त रहत ह जो उसक पढ़न का हक़ ह यही लोग उस पर ईमान लात ह और जो उसस इनकार करत ह वही लोग घाट म ह

122 बनी इसराईल मरी उन नअमत को याद करो जो मन तम को दी ह और य िक

मन तमको सार जहान पर फज़ीलत दी

123 और उस िदन स डरो िजस िदन कोई शखस िकसी की तरफ स न िफदया हो सकगा और न उसकी तरफ स कोई मआवज़ा क़बल िकया जाएगा और न कोई िसफािरश ही फायदा पहचा सकगी और न लोग मदद िदए जाएग

124 (ऐ रसल) बनी इसराईल को वह वकत भी याद िदलाओ जब इबराहीम को उनक

परवरिदगार न च द बात म आज़माया और उ ह न परा कर िदया तो खदा न फरमाया म तमको (लोग का) पशवा बनान वाला ह (हज़रत इबराहीम न) अज़र की और मरी औलाद म स फरमाया (हा मगर) मर इस अहद पर ज़ािलम म स कोई शखस फ़ायज़ नही हो सकता

125 (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब हमन ख़ानए काबा को लोग क सवाब

और पनाह की जगह क़रार दी और हकम िदया गया िक इबराहीम की (इस) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और इबराहीम व इसमाइल स अहद व पमान िलया िक मर (उस) घर को तवाफ़ और एतक़ाफ़ और क और सजदा करन वाल क वा त साफ सथरा रखो

126 और (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब इबराहीम न दआ मागी िक ऐ मर

परवरिदगार इस (शहर) को पनाह व अमन का शहर बना और उसक रहन वाल म स जो खदा और रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए उसको तरह-तरह क फल खान को द खदा न फरमाया (अ छा मगर) वो कफर इख़तयार करगा उसकी दिनया म च द रोज़ (उन चीज़ो स) फायदा उठान दगा िफर (आख़रत म) उसको मजबर करक दोज़ख़ की तरफ खीच ल जाऊगा और वह बहत बरा िठकाना ह

127 और (वह वकत याद िदलाओ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बिनयाद

बल द कर रह थ (और दआ) मागत जात थ िक ऐ हमार परवरिदगार हमारी (य

सरः अल-बक़रा

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िख़दमत) कबल कर बशक त ही (दआ का) सनन वाला (और उसका) जानन वाला ह

128 (और) ऐ हमार पालन वाल त हम अपना फरमाबरदार ब दा बना हमारी औलाद स

एक िगरोह (पदा कर) जो तरा फरमाबरदार हो और हमको हमार हज की जगह िदखा द और हमारी तौबा क़बल कर बशक त ही बड़ा तौबा कबल करन वाला महरबान ह

129 (और) ऐ हमार पालन वाल मकक वाल म उ ही म स एक रसल को भज जो

उनको तरी आयत पढ़कर सनाए और आसमानी िकताब और अकल की बात िसखाए और उन (क नफ़स) क पाकीज़ा कर द बशक त ही ग़ािलब और सािहब तदबीर ह

130 और कौन ह जो इबराहीम क तरीक़ स नफरत कर मगर जो अपन को अहमक़

बनाए और बशक हमन उनको दिनया म भी मि तख़ब कर िलया और वह ज़ र आख़रत म भी अ छ ही म स होग

131 जब उनस उनक परवरिदगार न कहा इ लाम कबल करो तो अज़र म सार जहा क

परवरिदगार पर इ लाम लाया 132 और इसी तरीक क़ी इबराहीम न अपनी औलाद स वसीयत की और याकब न (भी)

िक ऐ फरज़ द खदा न त हार वा त इस दीन (इ लाम) को पस द फरमाया ह पस तम हरिगज़ न मरना मगर मसलमान ही होकर

133 (ऐ यहद) कया तम उस वकत मौजद थ जब याकब क सर पर मौत आ खड़ी

हईउस वकत उ ह न अपन बट स कहा िक मर बाद िकसी की इबादत करोग कहन लग हम आप क माबद और आप क बाप दादाओ इबराहीम व इ माइल व इसहाक़ क माबद व यकता खदा की इबादत करग और हम उसक फरमाबरदार ह

134 (ऐ यहद) वह लोग थ जो चल बस जो उ ह न कमाया उनक आग आया और जो

तम कमाओग त हार आग आएगा और जो कछ भी वह करत थ उसकी पछगछ तमस नही होगी

सरः अल-बक़रा

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135 (यहदी ईसाई मसलमान स) कहत ह िक यहद या नसरानी हो जाओ तो राह रा त पर आ जाओग (ऐ रसल उनस) कह दो िक हम इबराहीम क तरीक़ पर ह जो बाितल स कतरा कर चलत थ और मशरकीन स न थ

136 (और ऐ मसलमान तम य) कहो िक हम तो खदा पर ईमान लाए ह और उस पर

जो हम पर नािज़ल िकया गया (करान) और जो सहीफ़ इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकब और औलाद याकब पर नािज़ल हए थ (उन पर) और जो िकताब मसा व ईसा को दी गई (उस पर) और जो और पग़ बर को उनक परवरिदगार की तरफ स उ ह िदया गया (उस पर) हम तो उनम स िकसी (एक) म भी तफरीक़ नही करत और हम तो खदा ही क फरमाबरदार ह

137 पस अगर य लोग भी उसी तरह ईमान लाए ह िजस तरह तम तो अलब ता राह

रा त पर आ गए और अगर वह इस तरीक स मह फर ल तो बस वह िसफर त हारी ही िज़द पर ह तो (ऐ रसल) उन (क शर) स (बचान को) त हार िलए खदा काफ़ी होगा और वह (सबकी हालत) खब जानता (और) सनता ह

138 (मसलमान स कहो िक) रग तो खदा ही का रग ह िजसम तम रग गए और खदाई

रग स बहतर कौन रग होगा और हम तो उसी की इबादत करत ह 139 (ऐ रसल) तम उनस पछो िक कया तम हम स खदा क बार झगड़त हो हालािक

वही हमारा (भी) परवरिदगार ह (वही) त हारा भी (परवरिदगार ह) हमार िलए ह हमारी कारगज़ािरया और त हार िलए त हारी कारसतािनया और हम तो िनरखर उसी म ह

140 कया तम कहत हो िक इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौद याकब सब क

सब यहदी या नसरानी थ (ऐ रसल उनस) पछो तो िक तम यादा वािक़फ़ हो या खदा और उसस बढ़कर कौन ज़ािलम होगा िजसक पास खदा की तरफ स गवाही (मौजद) हो (िक वह यहदी न थ) और िफर वह िछपाए और जो कछ तम करत हो खदा उसस बख़बर नही

141 य वह लोग थ जो िसधार चक जो कछ कमा गए उनक िलए था और जो कछ तम कमाओग त हार िलए होगा और जो कछ वह कर गज़र उसकी पछगछ तमस न होगी

सरः अल-बक़रा

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142 बाज़ अहमक़ लोग य कह बठग िक मसलमान िजस िक़बल बतल मक़ स की तरफ

पहल स सजदा करत थ उस स दसर िक़बल की तरफ मड़ जान का बाइस हआ ऐ रसल तम उनक जवाब म कहो िक परब पि चम सब ख़दा का ह िजस चाहता ह सीध रा त की तरफ िहदायत करता ह

143 और िजस तरह त हार िक़बल क बार म िहदायत की उसी तरह तम को आिदल

उ मत बनाया तािक और लोग क मक़ाबल म तम गवाह बनो और रसल मोह मद त हार मक़ाबल म गवाह बन और (ऐ रसल) िजस िक़बल की तरफ़ तम पहल सज़दा करत थ हम न उसको को िसफर इस वजह स िक़बला क़रार िदया था िक जब िक़बला बदला जाए तो हम उन लोग को जो रसल की परवी करत ह हम उन लोग स अलग दख ल जो उलट पाव िफरत ह अगरच य उलट फर िसवा उन लोग क िजन की ख़दा न िहदायत की ह सब पर शाक़ ज़ र ह और ख़दा ऐसा नही ह िक त हार ईमान नमाज़ को जो बतलमक़ स की तरफ पढ़ चक हो बरबाद कर द बशक ख़दा लोग पर बड़ा ही रफ़ीक व महरबान ह

144 ऐ रसल िक़बला बदलन क वा त बशक त हारा बार बार आसमान की तरफ मह

करना हम दख रह ह तो हम ज़ र तम को ऐस िक़बल की तरफ फर दग िक तम िनहाल हो जाओ अ छा तो नमाज़ ही म तम मि ज़द मोहतरम काब की तरफ मह कर लो और ऐ मसलमान तम जहा कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मह कर िलया करो और िजन लोग को िकताब तौरत वगरह दी गयी ह वह बख़बी जानत ह िक य तबदील िक़बल बहत बजा व द त ह और उस क परवरिदगार की तरफ़ स ह और जो कछ वह लोग करत ह उस स ख़दा बख़बर नही

145 और अगर अहल िकताब क सामन दिनया की सारी दलील पश कर दोग तो भी वह

त हार िक़बल को न मानग और न तम ही उनक िक़बल को मानन वाल हो और ख़द अहल िकताब भी एक दसर क िक़बल को नही मानत और जो इ म क़रान त हार पास आ चका ह उसक बाद भी अगर तम उनकी खवािहश पर चल तो अलब ता तम नाफ़रमान हो जाओग

सरः अल-बक़रा

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146 िजन लोग को हमन िकताब (तौरत वग़रह) दी ह वह िजस तरह अपन बट को पहचानत ह उसी तरह तरह वह उस पग़ बर को भी पहचानत ह और उन म कछ लोग तो ऐस भी ह जो दीदए व दािन ता (जान बझकर) हक़ बात को िछपात ह

147 ऐ रसल तबदील िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह पस तम कही शक

करन वाल म स न हो जाना 148 और हर फरीक़ क वा त एक िस त ह उसी की तरफ वह नमाज़ म अपना मह कर

लता ह पस तम ऐ मसलमान झगड़ को छोड़ दो और निकय म उन स लपक क आग बढ़ जाओ तम जहा कही होग ख़दा तम सबको अपनी तरफ ल आऐगा बशक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

149 और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा तक मकका स) तो भी नमाज़ म तम

अपना मह मि ज़द मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर िलया करो और बशक य नया िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह

150 और त हार काम स ख़दा ग़ािफल नही ह और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा

तक क मकका स तो भी) तम (नमाज़ म) अपना मह मि ज़द हराम की तरफ कर िलया करो और (ऐ रसल) तम जहा कही हआ करो तो नमाज़ म अपना मह उसी काबा की तरफ़ कर िलया करो (बार बार हकम दन का एक फायदा य ह तािक लोग का इ ज़ाम तम पर न आन पाए मगर उन म स जो लोग नाहक़ हठधमीर करत ह वह तो ज़ र इ ज़ाम दग) तो तम लोग उनस डरो नही और िसफ़र मझस डरो और (दसरा फ़ायदा य ह) तािक तम पर अपनी नअमत परी कर द

151 और तीसरा फायदा य ह तािक तम िहदायत पाओ मसलमान य एहसान भी वसा

ही ह जस हम न तम म तम ही म का एक रसल भजा जो तमको हमारी आयत पढ़ कर सनाए और त हार न स को पाकीज़ा कर और त ह िकताब क़रान और अकल की बात िसखाए और तम को वह बात बताए िजन की त ह पहल स खबर भी न थी

152 पस तम हमारी याद रखो तो म भी त हारा िज़कर (खर) िकया क गा और मरा

यिकरया अदा करत रहो और नाशकरी न करो

सरः अल-बक़रा

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153 ऐ ईमानदार मसीबत क वकत सबर और नमाज़ क ज़िरए स ख़दा की मदद माग

बशक ख़दा सबर करन वाल ही का साथी ह 154 और जो लोग ख़दा की राह म मार गए उ ह कभी मदार न कहना बि क वह लोग

िज़ दा ह मगर तम उनकी िज़ दगी की हक़ीकत का कछ भी यऊर नही रखत 155 और हम त ह कछ खौफ़ और भख स और माल और जान और फल की कमी स

ज़ र आज़माएग और (ऐ रसल) ऐस सबर करन वाल को ख़शख़बरी द दो 156 िक जब उन पर कोई मसीबत आ पड़ी तो वह (बसाखता) बोल उठ हम तो ख़दा ही

क ह और हम उसी की तरफ लौट कर जान वाल ह 157 उ ही लोग पर उनक परवरिदगार की तरफ स इनायत ह और रहमत और यही

लोग िहदायत या ता ह 158 बशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़दा की िनशािनय म स ह पस जो शखस

ख़ानए काबा का हज या उमरा कर उस पर उन दोनो क (दरिमयान) तवाफ़ (आमद ओ र त) करन म कछ गनाह नही (बि क सवाब ह) और जो शखस खश खश नक काम कर तो िफर ख़दा भी क़दरदा (और) वािक़फ़कार ह

159 बशक जो लोग हमारी इन रौशन दलील और िहदायत को िज ह हमन नािज़ल

िकया उसक बाद िछपात ह जबिक हम िकताब तौरत म लोग क सामन साफ़ साफ़ बयान कर चक ह तो यही लोग ह िजन पर ख़दा भी लानत करता ह और लानत करन वाल भी लानत करत ह

160 मगर िजन लोग न (हक़ िछपान स) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर

ली और जो िकताब ख़दा म ह साफ़ साफ़ बयान कर िदया पस उन की तौबा म क़बल करता ह और म तो बड़ा तौबा क़बल करन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

सरः अल-बक़रा

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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20 क़रीब ह िक िबजली उनकी ऑख को चौि धया द जब उनक आग िबजली चमकी तो उस

रौशनी म चल खड़ हए और जब उन पर अधरा छा गया तो (िठठक क) खड़ हो गए और खदा चाहता तो य भी उनक दखन और सनन की कवत छीन लता बशक खदा हर चीज़ पर क़ािदर

21 ऐ लोग अपन परवरिदगार की इबादत करो िजसन तमको और उन लोग को जो तम स

पहल थ पदा िकया ह अजब नही तम परहज़गार बन जाओ

22 िजसन त हार िलए ज़मीन का िबछौना और आसमान को छत बनाया और आसमान स

पानी बरसाया िफर उसी न त हार खान क िलए बाज़ फल पदा िकए पस िकसी को खदा का हमसर न बनाओ हालािक तम खब जानत हो

23 और अगर तम लोग इस कलाम स जो हमन अपन ब द (मोह मद) पर नािज़ल िकया ह

शक म पड़ हो पस अगर तम स च हो तो तम (भी) एक सरा बना लाओ और खदा क िसवा जो भी त हार मददगार ह उनको भी बला लो

24 पस अगर तम य नही कर सकत हो और हरिगज़ नही कर सकोग तो उस आग स डरो िसक

ईधन आदमी और प थर ह ग और कािफ़र क िलए तयार की गई ह

25 और जो लोग ईमान लाए और उ ह न नक काम िकए उनको (ऐ पग़ बर) खशख़बरी द दो िक उनक िलए (बिह त क) वह बाग़ात ह िजनक नीच नहर जारी ह जब उ ह इन बाग़ात का कोई मवा खान को िमलगा तो कहग य तो वही (मवा ह जो पहल भी हम खान को िमल चका ह) (कय िक) उ ह िमलती जलती सरत व रग क (मव) िमला करग और बिह त म उनक

िलए साफ सथरी बीिवया होगी और य लोग उस बाग़ म हमशा रहग

26 बशक खदा म छर या उसस भी बढ़कर (हक़ीर चीज़) की कोई िमसाल बयान करन म नही झपता पस जो लोग ईमान ला चक ह वह तो य यक़ीन जानत ह िक य (िमसाल) िब कल

ठीक ह और य परवरिदगार की तरफ़ स ह (अब रह) वह लोग जो कािफ़र ह पस वह बोल

उठत ह िक खदा का उस िमसाल स कया मतलब ह ऐसी िमसाल स ख़दा बहतर की िहदायत

करता ह मगर गमराही म छोड़ता भी ह तो ऐस बदकार को

27 जो लोग खदा क एहदो पमान को मज़बत हो जान क बाद तोड़ डालत ह और िजन

(ता लक़ात) का खदा न हकम िदया ह उनको क़ताआ कर दत ह और म क म फसाद करत

िफरत ह यही लोग घाटा उठान वाल ह

सरः अल-बक़रा

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28 (हाए) कय कर तम खदा का इ कार कर सकत हो हालािक तम (माओ क पट म) बजान थ

तो उसी न तमको िज़ दा िकया िफर वही तमको मार डालगा िफर वही तमको (दोबारा क़यामत म) िज़ दा करगा िफर उसी की तरफ लौटाए जाओग

29 वही तो वह (खदा) ह िजसन त हार (नफ़) क ज़मीन की कल चीज़ को पदा िकया िफर

आसमान (क बनान) की तरफ़ मताव जह हआ तो सात आसमान हमवार (व मसतहकम)

बना िदए और वह (खदा) हर चीज़ स (खब) वािक़फ ह

30 और (ऐ रसल) उस वकत क़ो याद करो जब त हार परवरिदगार न फ़िर त स कहा िक म

(अपना) एक नाएब ज़मीन म बनानवाला ह (फिर त ता जब स) कहन लग कया त ज़मीन

ऐस शखस को पदा करगा जो ज़मीन म फ़साद और खरिज़या करता िफर हालािक (अगर)

ख़लीफा बनाना ह (तो हमारा यादा हक़ ह) कय िक हम तरी तारीफ व तसबीह करत ह और

तरी पाकीज़गी सािबत करत ह तब खदा न फरमाया इसम तो शक ही नही िक जो म जानता ह तम नही जानत

31 और (आदम की हक़ीक़म ज़ािहर करन की ग़रज़ स) आदम को सब चीज़ क नाम िसखा िदए

िफर उनको फिर त क सामन पश िकया और फ़रमाया िक अगर तम अपन दाव म िक हम

म तहक िख़लाफ़त ह स च हो तो मझ इन चीज़ क नाम बताओ

32 तब फ़िर त न (आिजज़ी स) अज़र की त (हर ऐब स) पाक व पाकीज़ा ह हम तो जो कछ तन

बताया ह उसक िसवा कछ नही जानत त बड़ा जानन वाला मसलहत का पहचानन वाला ह

33 (उस वकत ख़दा न आदम को) हकम िदया िक ऐ आदम तम इन फ़िर त को उन सब चीज़

क नाम बता दो बस जब आदम न फ़िर त को उन चीज़ क नाम बता िदए तो खदा न

फिर त की तरफ िख़ताब करक फरमाया कय म तमस न कहता था िक म आसमान और

ज़मीन क िछप हए राज़ को जानता ह और जो कछ तम अब ज़ािहर करत हो और जो कछ

तम िछपात थ (वह सब) जानता ह

34 और (उस वकत क़ो याद करो) जब हमन फ़िर त स कहा िक आदम को सजदा करो तो सब

क सब झक गए मगर शतान न इ कार िकया और ग़ र म आ गया और कािफ़र हो गया

सरः अल-बक़रा

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35 और हमन आदम स कहा ऐ आदम तम अपनी बीवी समत बिह त म रहा सहा करो और जहा स त हारा जी चाह उसम स ब फराग़त खाओ (िपयो) मगर उस दरखत क पास भी न जाना (वरना) िफर तम अपना आप नक़सान करोग

36 तब शतान न आदम व हौ वा को (धोखा दकर) वहा स डगमगाया और आिख़र कार उनको िजस (ऐश व राहत) म थ उनस िनकाल फका और हमन कहा (ऐ आदम व हौ वा) तम

(ज़मीन पर) उतर पड़ो तमम स एक का एक दशमन होगा और ज़मीन म त हार िलए एक

ख़ास वकत (क़यामत) तक ठहराव और िठकाना ह

37 िफर आदम न अपन परवरिदगार स (माज़रत क च द अ फाज़) सीख पस खदा न उन

अ फाज़ की बरकत स आदम की तौबा कबल कर ली बशक वह बड़ा माफ़ करन वाला महरबान ह

38 (और जब आदम को) य हकम िदया था िक यहा स उतर पड़ो (तो भी कह िदया था िक) अगर

त हार पास मरी तरफ़ स िहदायत आए तो (उसकी परवी करना कय िक) जो लोग मरी िहदायत पर चलग उन पर (क़यामत) म न कोई ख़ौफ होगा

39 और न वह रजीदा होग और (य भी याद रखो) िजन लोग न कफर इख़तयार िकया और हमारी आयत को झठलाया तो वही जह नमी ह और हमशा दोज़ख़ म पड़ रहग

40 ऐ बनी इसराईल (याक़ब की औलाद) मर उन एहसानात को याद करो जो तम पर पहल कर

चक ह और तम मर एहद व इक़रार (ईमान) को परा करो तो म त हार एहद (सवाब) को परा क गा और मझ ही स डरत रहो

41 और जो (करान) मन नािज़ल िकया वह उस िकताब (तौरत) की (भी) तसदीक़ करता ह जो त हार पास ह और तम सबस चल उसक इ कार पर मौजद न हो जाओ और मरी आयत क

बदल थोड़ी क़ीमत (दनयावी फायदा) न लो और मझ ही स डरत रहो

42 और हक़ को बाितल क साथ न िमलाओ और हक़ बात को न िछपाओ हालािक तम जानत हो और पाब दी स नमाज़ अदा करो

43 और ज़कात िदया करो और जो लोग (हमार सामन) इबादत क िलए झकत ह उनक साथ तम

भी झका करो

सरः अल-बक़रा

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44 और तम लोग स नकी करन को कहत हो और अपनी ख़बर नही लत हालािक तम िकताब

खदा को (बराबर) रटा करत हो तो तम कया इतना भी नही समझत

45 और (मसीबत क वकत) सबर और नमाज़ का सहारा पकड़ो और अलब ता नमाज़ दभर तो ह

मगर उन ख़ाक़सार पर (नही) जो बख़बी जानत ह

46 िक वह अपन परवरिदगार की बारगाह म हािज़र ह ग और ज़ र उसकी तरफ लौट जाएग

47 ऐ बनी इसराइल मरी उन नअमत को याद करो जो मन पहल त ह दी और य (भी तो सोचो) िक हमन तमको सार जहान क लोग स बढ़ा िदया

48 और उस िदन स डरो (िजस िदन) कोई शखस िकसी की तरफ स न िफिदया हो सकगा और न

उसकी तरफ स कोई िसफािरश मानी जाएगी और न उसका कोई मआवज़ा िलया जाएगा और न वह मदद पहचाए जाएग

49 और (उस वकत क़ो याद करो) जब हमन त ह (त हार बज़रगो को) िफरऔन (क प ज) स

छड़ाया जो त ह बड़-बड़ दख द क सतात थ त हार लड़क पर छरी फरत थ और त हारी औरत को (अपनी िख़दमत क िलए) िज़ दा रहन दत थ और उसम त हार परवरिदगार की तरफ स (त हार सबर की) सखत आज़माइश थी

50 और (वह वकत भी याद करो) जब हमन त हार िलए दिरया को टकड़-टकड़ िकया िफर हमन

तमको छटकारा िदया

51 और िफरऔन क आदिमय को त हार दखत-दखत डबो िदया और (वह वकत भी याद करो) जब हमन मसा स चालीस रात का वायदा िकया था और तम लोग न उनक जान क बाद

एक बछड़ को (परसितश क िलए खदा) बना िलया

52 हालािक तम अपन ऊपर ज़ म जोत रह थ िफर हमन उसक बाद भी दरगज़र की तािक तम

शकर करो

53 और (वह वकत भी याद करो) जब मसा को (तौरत) अता की और हक़ और बाितल को जदा करनवाला क़ानन (इनायत िकया) ताक तम िहदायत पाओ

54 और (वह वकत भी याद करो) जब मसा न अपनी क़ौम स कहा िक ऐ मरी क़ौम तमन बछड़ को (ख़दा) बना क अपन ऊपर बड़ा सखत ज म िकया तो अब (इसक िसवा कोई चारा नही

सरः अल-बक़रा

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िक) तम अपन ख़ािलक की बारगाह म तौबा करो और वह य ह िक अपन को क़ ल कर डालो त हार परवरिदगार क नज़दीक त हार हक़ म यही बहतर ह िफर जब तमन ऐसा िकया तो खदा न त हारी तौबा क़बल कर ली बशक वह बड़ा महरबान माफ़ करन वाला ह

55 और (वह वकत भी याद करो) जब तमन मसा स कहा था िक ऐ मसा हम तम पर उस वकत

तक ईमान न लाएग जब तक हम खदा को ज़ािहर बज़ािहर न दख ल उस पर त ह िबजली न

ल डाला और तम तकत ही रह गए

56 िफर त ह त हार मरन क बाद हमन िजला उठाया तािक तम शकर करो

57 और हमन तम पर अबर का साया िकया और तम पर मन व सलवा उतारा और (य भी तो कह

िदया था िक) जो सथरी व नफीस रोिज़या त ह दी ह उ ह शौक़ स खाओ और उन लोग न

हमारा तो कछ िबगड़ा नही मगर अपनी जान पर िसतम ढात रह

58 और (वह वकत भी याद करो) जब हमन तमस कहा िक इस गाव (अरीहा) म जाओ और इसम

जहा चाहो फराग़त स खाओ (िपयो) और दरवाज़ पर सजदा करत हए और ज़बान स िह ता बिखशश कहत हए आओ तो हम त हारी ख़ता य बखश दग और हम नकी करन वाल की नकी (सवाब) बढ़ा दग

59 तो जो बात उनस कही गई थी उस शरीर न बदलकर दसरी बात कहनी श कर दी तब हमन

उन लोग पर िज ह न शरारत की थी उनकी बदकारी की वजह स आसमानी बला नािज़ल

की

60 और (वह वकत भी याद करो) जब मसा न अपनी क़ौम क िलए पानी मागा तो हमन कहा (ऐ

मसा) अपनी लाठी प थर पर मारो (लाठी मारत ही) उसम स बारह च म फट िनकल और

सब लोग न अपना-अपना घाट बखबी जान िलया और हमन आम इजाज़त द दी िक खदा की दी हईरोज़ी स खाओ िपयो और म क म फसाद न करत िफरो

61 (और वह वकत भी याद करो) जब तमन मसा स कहा िक ऐ मसा हमस एक ही खान पर न

रहा जाएगा तो आप हमार िलए अपन परवरिदगार स दआ कीिजए िक जो चीज़ ज़मीन स

उगती ह जस साग पात तरकारी और ककड़ी और गह या (लहसन) और मसर और याज़

(मन व सलवा) की जगह पदा कर (मसा न) कहा कया तम ऐसी चीज़ को जो हर तरह स

बहतर ह अदना चीज़ स बदलन चाहत हो तो िकसी शहर म उतर पड़ो िफर त हार िलए जो तमन मागा ह सब मौजद ह और उन पर सवाई और मोहताजी की मार पड़ी और उन लोग

सरः अल-बक़रा

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न क़हर खदा की तरफ पलटा खाया य सब इस सबब स हआ िक वह लोग खदा की िनशािनय स इ कार करत थ और पग़ बर को नाहक शहीद करत थ और इस वजह स

(भी) िक वह नाफ़रमानी और सरकशी िकया करत थ

62 बशक मसलमान और यहिदय और नसरािनय और ला मज़हब म स जो कोई खदा और

रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए और अ छ-अ छ काम करता रह तो उ ही क िलए उनका अजर

व सवाब उनक खदा क पास ह और न (क़यामत म) उन पर िकसी का ख़ौफ होगा न वह

रजीदा िदल ह ग

63 और (वह वकत याद करो) जब हमन (तामील तौरत) का तमस एक़रार कर िलया और हमन

त हार सर पर तर स (पहाड़ को) लाकर लटकाया और कह िदया िक तौरत जो हमन तमको दी ह उसको मज़बत पकड़ रहो और जो कछ उसम ह उसको याद रखो

64 तािक तम परहज़गार बनो िफर उसक बाद तम (अपन एहदो पमान स) िफर गए पस अगर

तम पर खदा का फज़ल और उसकी महरबानी न होती तो तमन सखत घाटा उठाया होता

65 और अपनी क़ौम स उन लोग की हालत तो तम बखबी जानत हो जो श ब (सनीचर) क िदन

अपनी हद स गज़र गए (िक बावजद ममािनअत िशकार खलन िनकल) तो हमन उन स कहा िक तम राइ द गए ब दर बन जाओ (और वह ब दर हो गए)

66 पस हमन इस वाक़य स उन लोग क वा त िजन क सामन हआ था और जो उसक बाद

आनवाल थ अज़ाब क़रार िदया और परहज़गार क िलए नसीहत

67 और (वह वकत याद करो) जब मसा न अपनी क़ौम स कहा िक खदा तम लोग को ताकीदी हकम करता ह िक तम एक गाय िज़बाह करो वह लोग कहन लग कया तम हमस िद लगी करत हो मसा न कहा म खदा स पनाह मागता ह िक म जािहल बन

68 (तब वह लोग कहन लग िक (अ छा) तम अपन खदा स दआ करो िक हम बता द िक वह

गाय कसी हो मसा न कहा बशक खदा न फरमाता ह िक वह गाय न तो बहत बढ़ी हो और न

बिछया बि क उनम स औसत दरज की हो ग़रज़ जो तमको हकम िदया गया उसको बजा लाओ

सरः अल-बक़रा

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69 वह कहन लग (वाह) तम अपन खदा स दआ करो िक हम य बता द िक उसका रग आिख़र

कया हो मसा न कहा बशक खदा फरमाता ह िक वह गाय खब गहर ज़दर रग की हो दखन वाल

उस दखकर खश हो जाए

70 तब कहन लग िक तम अपन खदा स दआ करो िक हम ज़रा य तो बता द िक वह (गाय) और

कसी हो (वह) गाय तो और गाय म िमल जल गई और खदा न चाहा तो हम ज़ र (उसका) पता लगा लग

71 मसा न कहा खदा ज़ र फरमाता ह िक वह गाय न तो इतनी सधाई हो िक ज़मीन जोत न

खती सीच भली चगी एक रग की िक उसम कोई ध बा तक न हो वह बोल अब (जा क) ठीक-

ठीक बयान िकया ग़रज़ उन लोग न वह गाय हलाल की हालािक उनस उ मीद न थी वह

िक वह ऐसा करग

72 और जब एक शखस को मार डाला और तमम उसकी बाबत फट पड़ गई एक दसर को क़ाितल

बतान लगा जो तम िछपात थ

73 खदा को उसका ज़ािहर करना मजर था पस हमन कहा िक उस गाय को कोई टकड़ा लकर इस

(की लाश) पर मारो य खदा मद को िज़ दा करता ह और तम को अपनी कदरत की िनशािनया िदखा दता ह

74 तािक तम समझो िफर उसक बाद त हार िदल सखत हो गय पस वह िमसल प थर क

(सखत) थ या उसस भी यादा करखत कय िक प थर म बाज़ तो ऐस होत ह िक उनस नहर

जारी हो जाती ह और बाज़ ऐस होत ह िक उनम दरार पड़ जाती ह और उनम स पानी िनकल

पड़ता ह और बाज़ प थर तो ऐस होत ह िक खदा क ख़ौफ स िगर पड़त ह और जो कछ तम

कर रह हो उसस खदा ग़ािफल नही ह

75 (मसलमान ) कया तम य लालच रखत हो िक वह त हारा (सा) ईमान लाएग हालािक उनम

का एक िगरोह (सािबक़ म) ऐसा था िक खदा का कलाम सनाता था और अ छी तरह

समझन क बाद उलट फर कर दता था हालािक वह खब जानत थ और जब उन लोग स

मलाक़ात करत ह

76 जो ईमान लाए तो कह दत ह िक हम तो ईमान ला चक और जब उनस बाज़-बाज़ क साथ

तिख़लया करत ह तो कहत ह िक जो कछ खदा न तम पर (तौरत) म ज़ािहर कर िदया ह कया

सरः अल-बक़रा

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तम (मसलमान को) बता दोग तािक उसक सबब स कल त हार खदा क पास तम पर

ह जत लाए कया तम इतना भी नही समझत

77 लिकन कया वह लोग (इतना भी) नही जानत िक वह लोग जो कछ िछपात ह या ज़ािहर करत ह खदा सब कछ जानता ह

78 और कछ उनम स ऐस अनपढ़ ह िक वह िकताब खदा को अपन मतलब की बात क िसवा कछ नही समझत और वह फक़त खयाली बात िकया करत ह

79 पस वाए हो उन लोग पर जो अपन हाथ स िकताब िलखत ह िफर (लोग स कहत िफरत) ह

िक य खदा क यहा स (आई) ह तािक उसक ज़िरय स थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी फ़ायदा) हािसल कर पस अफसोस ह उन पर िक उनक हाथ न िलखा और िफर अफसोस ह उनपर िक

वह ऐसी कमाई करत ह

80 और कहत ह िक िगनती क च द िदन क िसवा हम आग छएगी भी तो नही (ऐ रसल) इन

लोग स कहो िक कया तमन खदा स कोई इक़रार ल िलया ह िक िफर वह िकसी तरह अपन

इक़रार क िख़लाफ़ हरिगज़ न करगा या ब समझ बझ खदा पर बोहताव जोड़त हो

81 हा (सच तो यह ह) िक िजसन बराई हािसल की और उसक गनाह न चार तरफ स उस घर

िलया ह वही लोग तो दोज़ख़ी ह और वही (तो) उसम हमशा रहग

82 और जो लोग ईमानदार ह और उ ह न अ छ काम िकए ह वही लोग ज नती ह िक हमशा ज नत म रहग

83 और (वह वकत याद करो) जब हमन बनी ईसराइल स (जो त हार बजरग़ थ) अहद व पमान

िलया था िक खदा क िसवा िकसी की इबादत न करना और मा बाप और क़राबतदार और

यतीम और मोहताज क साथ अ छ सलक करना और लोग क साथ अ छी तरह (नरमी) स बात करना और बराबर नमाज़ पढ़ना और ज़कात दना िफर तमम स थोड़ आिदिमय क

िसवा (सब क सब) िफर गए और तम लोग हो ही इक़रार स मह फरन वाल

84 और (वह वकत याद करो) जब हमन तम (त हार बज़रग ) स अहद िलया था िक आपस म

खरिज़या न करना और न अपन लोग को शहर बदर करना तो तम (त हार बजरग़ ) न

इक़रार िकया था और तम भी उसकी गवाही दत हो

सरः अल-बक़रा

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85 (िक हा ऐसा हआ था) िफर वही लोग तो तम हो िक आपस म एक दसर को क़ ल करत हो और अपन स एक ज थ क नाहक़ और ज़बरद ती िहमायती बनकर दसर को शहर बदर

करत हो (और ल फ़ तो य ह िक) अगर वही लोग क़दी बनकर त हार पास (मदद मागन)

आए तो उनको तावान दकर छड़ा लत हो हालािक उनका िनकालना ही तम पर हराम िकया गया था तो िफर कया तम (िकताब खदा की) बाज़ बात पर ईमान रखत हो और बाज़ स

इ कार करत हो पस तम म स जो लोग ऐसा कर उनकी सज़ा इसक िसवा और कछ नही िक

िज़ दगी भर की सवाई हो और (आिख़रकार) क़यामत क िदन सखत अज़ाब की तरफ लौटा िदय जाए और जो कछ तम लोग करत हो खदा उसस ग़ािफ़ल नही ह

86 यही वह लोग ह िज ह न आख़रत क बदल दिनया की िज़ दगी ख़रीद पस न उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी और न वह लोग िकसी तरह की मदद िदए जाएग

87 और य हक़ीक़ी बात ह िक हमन मसा को िकताब (तौरत) दी और उनक बाद बहत स पग़ बर

को उनक क़दम ब क़दम ल चल और मिरयम क बट ईसा को (भी बहत स) वाजए व रौशन

मौिजज िदए और पाक ह िजबरील क ज़िरय स उनकी मदद की कया तम उस क़दर

बदिदमाग़ हो गए हो िक जब कोई पग़ बर त हार पास त हारी खवािहश नफ़सानी क

िख़लाफ कोई हकम लकर आया तो तम अकड़ बठ िफर तमन बाज़ पग़ बर को तो झठलाया और बाज़ को जान स मार डाला

88 और कहन लग िक हमार िदल पर िग़लाफ चढ़ा हआ ह (ऐसा नही) बि क उनक कफर की वजह स खदा न उनपर लानत की ह पस कम ही लोग ईमान लात ह

89 और जब उनक पास खदा की तरफ़ स िकताब (करान आई और वह उस िकताब तौरत) की जो उन क पास तसदीक़ भी करती ह और उसस पहल (इसकी उ मीद पर) कािफ़र पर

फतहयाब होन की दआए मागत थ पस जब उनक पास वह चीज़ िजस पहचानत थ आ गई

तो लग इ कार करन पस कािफ़र पर खदा की लानत ह

90 कया ही बरा ह वह काम िजसक मक़ाबल म (इतनी बात पर) वह लोग अपनी जान बच बठ ह

िक खदा अपन ब द स िजस पर चाह अपनी इनायत स िकताब नािज़ल िकया कर इस र क

स जो कछ खदा न नािज़ल िकया ह सबका इ कार कर बठ पस उन पर ग़ज़ब पर ग़ज़ब टट

पड़ा और कािफ़र क िलए (बड़ी) सवाई का अज़ाब ह

91 और जब उनस कहा गया िक (जो क़रान) खदा न नािज़ल िकया ह उस पर ईमान लाओ तो कहन लग िक हम तो उसी िकताब (तौरत) पर ईमान लाए ह जो हम पर नािज़ल की गई थी

सरः अल-बक़रा

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और उस िकताब (करान) को जो उसक बाद आई ह नही मानत ह हालािक वह (क़रान) हक़ ह

और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करती ह मगर उस िकताब करान

का जो उसक बाद आई ह इ कार करत ह (ऐ रसल) उनस य तो पछो िक तम (त हार बजरग़)

अगर ईमानदार थ तो िफर कय खदा क पग़ बर का सािबक़ क़ ल करत थ

92 और त हार पास मसा तो वाज़ए व रौशन मौिजज़ लकर आ ही चक थ िफर भी तमन उनक

बाद बछड़ को खदा बना ही िलया और उसस तम अपन ही ऊपर ज़ म करन वाल थ

93 और (वह वकत याद करो) जब हमन तमस अहद िलया और (क़ोह) तर को (त हारी उदल

हकमी स) त हार सर पर लटकाया और (हमन कहा िक य िकताब तौरत) जो हमन दी ह

मज़बती स िलए रहो और (जो कछ उसम ह) सनो तो कहन लग सना तो (सही लिकन) हम

इसको मानत नही और उनकी बईमानी की वजह स (गोया) बछड़ की उलफ़त घोल क उनक

िदल म िपला दी गई (ऐ रसल) उन लोग स कह दो िक अगर तम ईमानदार थ तो तमको त हारा ईमान कया ही बरा हकम करता था

94 (ऐ रसल) इन लोग स कह दो िक अगर खदा क नज़दीक आख़रत का घर (बिह त) ख़ास

त हार वा त ह और लोग क वासत नही ह पस अगर तम स च हो तो मौत की आरज क़रो

95 (तािक ज दी बिह त म जाओ) लिकन वह उन आमाल बद की वजह स िजनको उनक हाथ

न पहल स आग भजा ह हरिगज़ मौत की आरज़ न करग और खदा ज़ािलम स खब वािक़फ

96 और (ऐ रसल) तम उन ही को िज़ दगी का सबस यादा हरीस पाओग और मशिरक़ म स

हर एक शखस चाहता ह िक काश उसको हज़ार बरस की उमर दी जाती हालािक अगर इतनी तलानी उमर भी दी जाए तो वह ख़दा क अज़ाब स छटकारा दन वाली नही और जो कछ वह

लोग करत ह खदा उस दख रहा ह

97 (ऐ रसल उन लोग स) कह दो िक जो िजबरील का दशमन ह (उसका खदा दशमन ह)

कय िक उस फ़िर त न खदा क हकम स (इस करान को) त हार िदल पर डाला ह और वह

उन िकताब की भी तसदीक करता ह जो (पहल नािज़ल हो चकी ह और सब) उसक सामन

मौजद ह और ईमानदार क वा त खशख़बरी ह

98 जो शखस ख़दा और उसक फिर त और उसक रसल और (ख़ासकर) िजबराईल व

मीकाइल का दशमन हो तो बशक खदा भी (ऐस) कािफ़र का द मन ह

सरः अल-बक़रा

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99 और (ऐ रसल) हमन तम पर ऐसी िनशािनया नािज़ल की ह जो वाजए और रौशन ह और

ऐस नाफरमान क िसवा उनका कोई इ कार नही कर सकता

100 और उनकी य हालत ह िक जब कभी कोई अहद िकया तो उनम स एक फरीक़ न तोड़ डाला बि क उनम स अकसर तो ईमान ही नही रखत

101 और जब उनक पास खदा की तरफ स रसल (मोह मद) आया और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करता ह तो उन अहल िकताब क एक िगरोह न िकताब खदा को अपन पस प त फक िदया गोया वह लोग कछ जानत ही नही और उस मतर क पीछ पड़

गए

102 िजसको सलमान क ज़मान की सलतनत म शयातीन जपा करत थ हालािक सलमान न

कफर नही इख़तयार िकया लिकन शतान न कफर एख़तयार िकया िक वह लोग को जाद

िसखाया करत थ और वह चीज़ जो हा त और मा त दोन फ़िर त पर बाइिबल म नािज़ल

की गई थी हालािक य दोन फ़िर त िकसी को िसखात न थ जब तक य न कह दत थ िक हम

दोन तो फ़क़त (ज़िरयाए आज़माइश) ह पस तो (इस पर अमल करक) बईमान न हो जाना उस पर भी उनस वह (टोटक) सीखत थ िजनकी वजह स िमया बीवी म तफ़रक़ा डालत हालािक बग़र इ न खदाव दी वह अपनी इन बात स िकसी को ज़रर नही पहचा सकत थ

और य लोग ऐसी बात सीखत थ जो खद उ ह नक़सान पहचाती थी और कछ (नफा) पहचाती थी बावजद िक वह यक़ीनन जान चक थ िक जो शखस इन (बराईय ) का ख़रीदार

हआ वह आिख़रत म बनसीब ह और बशबह (मआवज़ा) बहत ही बड़ा ह िजसक बदल उ ह न

अपनी जान को बचा काश (उस कछ) सोच समझ होत

103 और अगर वह ईमान लात और जाद वग़रह स बचकर परहज़गार बनत तो खदा की दरगाह

स जो सवाब िमलता वह उसस कही बहतर होता काश य लोग (इतना तो) समझत

104 ऐ ईमानवाल तम (रसल को अपनी तरफ मताव ज करना चाहो तो) रआना (हमारी िरआयत कर) न कहा करो बि क उनज़रना (हम पर नज़र तव जो रख) कहा करो और (जी लगाकर) सनत रहो और कािफर क िलए ददरनाक अज़ाब ह

105 ऐ रसल अहल िकताब म स िजन लोग न कफर इख़तयार िकया वह और मशरकीन य नही चाहत ह िक तम पर त हार परवरिदगार की तरफ स भलाई (वही) नािज़ल की जाए और

सरः अल-बक़रा

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(उनका तो इसम कछ इजारा नही) खदा िजसको चाहता ह अपनी रहमत क िलए ख़ास कर

लता ह और खदा बड़ा फज़ल (करन) वाला ह

106 (ऐ रसल) हम जब कोई आयत म सख़ करत ह या त हार ज़हन स िमटा दत ह तो उसस

बहतर या वसी ही (और) नािज़ल भी कर दत ह कया तम नही जानत िक बशबहा खदा हर

चीज़ पर क़ािदर ह

107 कया तम नही जानत िक आसमान की सलतनत बशबहा ख़ास खदा ही क िलए ह और खदा क िसवा त हारा न कोई सरपर त ह न मददगार

108 (मसलमान ) कया तम चाहत हो िक तम भी अपन रसल स वस ही (बढ़ग) सवालात करो िजस तरह सािबक़ (पहल) ज़मान म मसा स (बतक) सवालात िकए गए थ और िजस शखस

न ईमान क बदल कफर एख़तयार िकया वह तो यक़ीनी सीध रा त स भटक गया

109 (मसलमान ) अहल िकताब म स अकसर लोग अपन िदली हसद की वजह स य खवािहश

रखत ह िक तमको ईमान लान क बाद िफर कािफ़र बना द (और ल फ तो य ह िक) उन पर

हक़ ज़ािहर हो चका ह उसक बाद भी (य तम ना बाक़ी ह) पस तम माफ करो और दरगज़र

करो यहा तक िक खदा अपना (कोई और) हकम भज बशक खदा हर चीज़ पर क़ािदर ह

110 और नमाज़ पढ़त रहो और ज़कात िदय जाओ और जो कछ भलाई अपन िलए (खदा क यहा) पहल स भज दोग उस (क सवाब) को मौजद पाआग जो कछ तम करत हो उस खदा ज़ र

दख रहा ह

111 और (यहद) कहत ह िक यहद (क िसवा) और (नसारा कहत ह िक) नसारा क िसवा कोई

बिह त म जान ही न पाएगा य उनक खयाली पलाव ह (ऐ रसल) तम उन स कहो िक भला अगर तम स च हो िक हम ही बिह त म जाएग तो अपनी दलील पश करो

112 हा अलब ता िजस शखस न खदा क आग अपना सर झका िदया और अ छ काम भी करता ह

तो उसक िलए उसक परवरिदगार क यहा उसका बदला (मौजद) ह और (आख़रत म) ऐस

लोग पर न िकसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐस लोग ग़मग़ीन होग

113 और यहद कहत ह िक नसारा का मज़हब कछ (ठीक) नही और नसारा कहत ह िक यहद का मज़हब कछ (ठीक) नही हालािक य दोन फरीक़ िकताब (खदा) पढ़त रहत ह इसी तरह उ ही जसी बात वह (मशरकीन अरब) भी िकया करत ह जो (खदा क एहकाम) कछ नही जानत तो

सरः अल-बक़रा

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िजस बात म य लोग पड़ झगड़त ह (दिनया म तो तय न होगा) क़यामत क िदन खदा उनक

दरिमयान ठीक फसला कर दगा

114 और उसस बढ़कर ज़ािलम कौन होगा जो खदा की मसिजद म उसका नाम िलए जान स

(लोग को) रोक और उनकी बरबादी क दर प हो ऐस ही को उसम जाना मनािसब नही मगर

सहम हए ऐस ही लोग क िलए दिनया म सवाई ह और ऐस ही लोग क िलए आख़रत म

बड़ा भारी अज़ाब ह

115 (त हार मसिजद म रोकन स कया होता ह कय िक सारी ज़मीन) खदा ही की ह (कया) परब

(कया) पि चम बस जहा कही िक़ ल की तरफ ख़ करो वही खदा का सामना ह बशक खदा बड़ी ग जाइश वाला और खब वािक़फ ह

116 और यहद कहन लग िक खदा औलाद रखता ह हालािक वह (इस बखड़ स) पाक ह बि क जो कछ ज़मीन व आसमान म ह सब उसी का ह और सब उसकी क फरमाबरदार ह

117 (वही) आसमान व ज़मीन का मोिजद ह और जब िकसी काम का करना ठान लता ह तो उसकी िनसबत िसफर कह दता ह िक हो जा पस वह (खद ब खद) हो जाता ह

118 और जो (मशरकीन) कछ नही जानत कहत ह िक खदा हमस (खद) कलाम कय नही करता या हमार पास (खद) कोई िनशानी कय नही आती इसी तरह उ ही की सी बात वह कर चक

ह जो उनस पहल थ उन सब क िदल आपस म िमलत जलत ह जो लोग यक़ीन रखत ह

उनको तो अपनी िनशािनया कय साफतौर पर िदखा चक

119 (ऐ रसल) हमन तमको दीन हक़ क साथ (बिह त की) खशख़बरी दन वाला और (अज़ाब स)

डरान वाला बनाकर भजा ह और दोज़िख़य क बार म तमस कछ न पछा जाएगा

120 और (ऐ रसल) न तो यहदी कभी तमस रज़ामद होग न नसारा यहा तक िक तम उनक मज़हब की परवी करो (ऐ रसल उनस) कह दो िक बस खदा ही की िहदायत तो िहदायत ह (बाक़ी ढकोसला ह) और अगर तम इसक बाद भी िक त हार पास इ म (क़रान) आ चका ह उनकी खवािहश पर चल तो (याद रह िक िफर) तमको खदा (क ग़ज़ब) स बचान वाला न कोई सरपर त होगा न मददगार

सरः अल-बक़रा

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121 िजन लोग को हमन िकताब (करान) दी ह वह लोग उस इस तरह पढ़त रहत ह जो उसक पढ़न का हक़ ह यही लोग उस पर ईमान लात ह और जो उसस इनकार करत ह वही लोग घाट म ह

122 बनी इसराईल मरी उन नअमत को याद करो जो मन तम को दी ह और य िक

मन तमको सार जहान पर फज़ीलत दी

123 और उस िदन स डरो िजस िदन कोई शखस िकसी की तरफ स न िफदया हो सकगा और न उसकी तरफ स कोई मआवज़ा क़बल िकया जाएगा और न कोई िसफािरश ही फायदा पहचा सकगी और न लोग मदद िदए जाएग

124 (ऐ रसल) बनी इसराईल को वह वकत भी याद िदलाओ जब इबराहीम को उनक

परवरिदगार न च द बात म आज़माया और उ ह न परा कर िदया तो खदा न फरमाया म तमको (लोग का) पशवा बनान वाला ह (हज़रत इबराहीम न) अज़र की और मरी औलाद म स फरमाया (हा मगर) मर इस अहद पर ज़ािलम म स कोई शखस फ़ायज़ नही हो सकता

125 (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब हमन ख़ानए काबा को लोग क सवाब

और पनाह की जगह क़रार दी और हकम िदया गया िक इबराहीम की (इस) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और इबराहीम व इसमाइल स अहद व पमान िलया िक मर (उस) घर को तवाफ़ और एतक़ाफ़ और क और सजदा करन वाल क वा त साफ सथरा रखो

126 और (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब इबराहीम न दआ मागी िक ऐ मर

परवरिदगार इस (शहर) को पनाह व अमन का शहर बना और उसक रहन वाल म स जो खदा और रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए उसको तरह-तरह क फल खान को द खदा न फरमाया (अ छा मगर) वो कफर इख़तयार करगा उसकी दिनया म च द रोज़ (उन चीज़ो स) फायदा उठान दगा िफर (आख़रत म) उसको मजबर करक दोज़ख़ की तरफ खीच ल जाऊगा और वह बहत बरा िठकाना ह

127 और (वह वकत याद िदलाओ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बिनयाद

बल द कर रह थ (और दआ) मागत जात थ िक ऐ हमार परवरिदगार हमारी (य

सरः अल-बक़रा

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िख़दमत) कबल कर बशक त ही (दआ का) सनन वाला (और उसका) जानन वाला ह

128 (और) ऐ हमार पालन वाल त हम अपना फरमाबरदार ब दा बना हमारी औलाद स

एक िगरोह (पदा कर) जो तरा फरमाबरदार हो और हमको हमार हज की जगह िदखा द और हमारी तौबा क़बल कर बशक त ही बड़ा तौबा कबल करन वाला महरबान ह

129 (और) ऐ हमार पालन वाल मकक वाल म उ ही म स एक रसल को भज जो

उनको तरी आयत पढ़कर सनाए और आसमानी िकताब और अकल की बात िसखाए और उन (क नफ़स) क पाकीज़ा कर द बशक त ही ग़ािलब और सािहब तदबीर ह

130 और कौन ह जो इबराहीम क तरीक़ स नफरत कर मगर जो अपन को अहमक़

बनाए और बशक हमन उनको दिनया म भी मि तख़ब कर िलया और वह ज़ र आख़रत म भी अ छ ही म स होग

131 जब उनस उनक परवरिदगार न कहा इ लाम कबल करो तो अज़र म सार जहा क

परवरिदगार पर इ लाम लाया 132 और इसी तरीक क़ी इबराहीम न अपनी औलाद स वसीयत की और याकब न (भी)

िक ऐ फरज़ द खदा न त हार वा त इस दीन (इ लाम) को पस द फरमाया ह पस तम हरिगज़ न मरना मगर मसलमान ही होकर

133 (ऐ यहद) कया तम उस वकत मौजद थ जब याकब क सर पर मौत आ खड़ी

हईउस वकत उ ह न अपन बट स कहा िक मर बाद िकसी की इबादत करोग कहन लग हम आप क माबद और आप क बाप दादाओ इबराहीम व इ माइल व इसहाक़ क माबद व यकता खदा की इबादत करग और हम उसक फरमाबरदार ह

134 (ऐ यहद) वह लोग थ जो चल बस जो उ ह न कमाया उनक आग आया और जो

तम कमाओग त हार आग आएगा और जो कछ भी वह करत थ उसकी पछगछ तमस नही होगी

सरः अल-बक़रा

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135 (यहदी ईसाई मसलमान स) कहत ह िक यहद या नसरानी हो जाओ तो राह रा त पर आ जाओग (ऐ रसल उनस) कह दो िक हम इबराहीम क तरीक़ पर ह जो बाितल स कतरा कर चलत थ और मशरकीन स न थ

136 (और ऐ मसलमान तम य) कहो िक हम तो खदा पर ईमान लाए ह और उस पर

जो हम पर नािज़ल िकया गया (करान) और जो सहीफ़ इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकब और औलाद याकब पर नािज़ल हए थ (उन पर) और जो िकताब मसा व ईसा को दी गई (उस पर) और जो और पग़ बर को उनक परवरिदगार की तरफ स उ ह िदया गया (उस पर) हम तो उनम स िकसी (एक) म भी तफरीक़ नही करत और हम तो खदा ही क फरमाबरदार ह

137 पस अगर य लोग भी उसी तरह ईमान लाए ह िजस तरह तम तो अलब ता राह

रा त पर आ गए और अगर वह इस तरीक स मह फर ल तो बस वह िसफर त हारी ही िज़द पर ह तो (ऐ रसल) उन (क शर) स (बचान को) त हार िलए खदा काफ़ी होगा और वह (सबकी हालत) खब जानता (और) सनता ह

138 (मसलमान स कहो िक) रग तो खदा ही का रग ह िजसम तम रग गए और खदाई

रग स बहतर कौन रग होगा और हम तो उसी की इबादत करत ह 139 (ऐ रसल) तम उनस पछो िक कया तम हम स खदा क बार झगड़त हो हालािक

वही हमारा (भी) परवरिदगार ह (वही) त हारा भी (परवरिदगार ह) हमार िलए ह हमारी कारगज़ािरया और त हार िलए त हारी कारसतािनया और हम तो िनरखर उसी म ह

140 कया तम कहत हो िक इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौद याकब सब क

सब यहदी या नसरानी थ (ऐ रसल उनस) पछो तो िक तम यादा वािक़फ़ हो या खदा और उसस बढ़कर कौन ज़ािलम होगा िजसक पास खदा की तरफ स गवाही (मौजद) हो (िक वह यहदी न थ) और िफर वह िछपाए और जो कछ तम करत हो खदा उसस बख़बर नही

141 य वह लोग थ जो िसधार चक जो कछ कमा गए उनक िलए था और जो कछ तम कमाओग त हार िलए होगा और जो कछ वह कर गज़र उसकी पछगछ तमस न होगी

सरः अल-बक़रा

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142 बाज़ अहमक़ लोग य कह बठग िक मसलमान िजस िक़बल बतल मक़ स की तरफ

पहल स सजदा करत थ उस स दसर िक़बल की तरफ मड़ जान का बाइस हआ ऐ रसल तम उनक जवाब म कहो िक परब पि चम सब ख़दा का ह िजस चाहता ह सीध रा त की तरफ िहदायत करता ह

143 और िजस तरह त हार िक़बल क बार म िहदायत की उसी तरह तम को आिदल

उ मत बनाया तािक और लोग क मक़ाबल म तम गवाह बनो और रसल मोह मद त हार मक़ाबल म गवाह बन और (ऐ रसल) िजस िक़बल की तरफ़ तम पहल सज़दा करत थ हम न उसको को िसफर इस वजह स िक़बला क़रार िदया था िक जब िक़बला बदला जाए तो हम उन लोग को जो रसल की परवी करत ह हम उन लोग स अलग दख ल जो उलट पाव िफरत ह अगरच य उलट फर िसवा उन लोग क िजन की ख़दा न िहदायत की ह सब पर शाक़ ज़ र ह और ख़दा ऐसा नही ह िक त हार ईमान नमाज़ को जो बतलमक़ स की तरफ पढ़ चक हो बरबाद कर द बशक ख़दा लोग पर बड़ा ही रफ़ीक व महरबान ह

144 ऐ रसल िक़बला बदलन क वा त बशक त हारा बार बार आसमान की तरफ मह

करना हम दख रह ह तो हम ज़ र तम को ऐस िक़बल की तरफ फर दग िक तम िनहाल हो जाओ अ छा तो नमाज़ ही म तम मि ज़द मोहतरम काब की तरफ मह कर लो और ऐ मसलमान तम जहा कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मह कर िलया करो और िजन लोग को िकताब तौरत वगरह दी गयी ह वह बख़बी जानत ह िक य तबदील िक़बल बहत बजा व द त ह और उस क परवरिदगार की तरफ़ स ह और जो कछ वह लोग करत ह उस स ख़दा बख़बर नही

145 और अगर अहल िकताब क सामन दिनया की सारी दलील पश कर दोग तो भी वह

त हार िक़बल को न मानग और न तम ही उनक िक़बल को मानन वाल हो और ख़द अहल िकताब भी एक दसर क िक़बल को नही मानत और जो इ म क़रान त हार पास आ चका ह उसक बाद भी अगर तम उनकी खवािहश पर चल तो अलब ता तम नाफ़रमान हो जाओग

सरः अल-बक़रा

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146 िजन लोग को हमन िकताब (तौरत वग़रह) दी ह वह िजस तरह अपन बट को पहचानत ह उसी तरह तरह वह उस पग़ बर को भी पहचानत ह और उन म कछ लोग तो ऐस भी ह जो दीदए व दािन ता (जान बझकर) हक़ बात को िछपात ह

147 ऐ रसल तबदील िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह पस तम कही शक

करन वाल म स न हो जाना 148 और हर फरीक़ क वा त एक िस त ह उसी की तरफ वह नमाज़ म अपना मह कर

लता ह पस तम ऐ मसलमान झगड़ को छोड़ दो और निकय म उन स लपक क आग बढ़ जाओ तम जहा कही होग ख़दा तम सबको अपनी तरफ ल आऐगा बशक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

149 और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा तक मकका स) तो भी नमाज़ म तम

अपना मह मि ज़द मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर िलया करो और बशक य नया िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह

150 और त हार काम स ख़दा ग़ािफल नही ह और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा

तक क मकका स तो भी) तम (नमाज़ म) अपना मह मि ज़द हराम की तरफ कर िलया करो और (ऐ रसल) तम जहा कही हआ करो तो नमाज़ म अपना मह उसी काबा की तरफ़ कर िलया करो (बार बार हकम दन का एक फायदा य ह तािक लोग का इ ज़ाम तम पर न आन पाए मगर उन म स जो लोग नाहक़ हठधमीर करत ह वह तो ज़ र इ ज़ाम दग) तो तम लोग उनस डरो नही और िसफ़र मझस डरो और (दसरा फ़ायदा य ह) तािक तम पर अपनी नअमत परी कर द

151 और तीसरा फायदा य ह तािक तम िहदायत पाओ मसलमान य एहसान भी वसा

ही ह जस हम न तम म तम ही म का एक रसल भजा जो तमको हमारी आयत पढ़ कर सनाए और त हार न स को पाकीज़ा कर और त ह िकताब क़रान और अकल की बात िसखाए और तम को वह बात बताए िजन की त ह पहल स खबर भी न थी

152 पस तम हमारी याद रखो तो म भी त हारा िज़कर (खर) िकया क गा और मरा

यिकरया अदा करत रहो और नाशकरी न करो

सरः अल-बक़रा

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153 ऐ ईमानदार मसीबत क वकत सबर और नमाज़ क ज़िरए स ख़दा की मदद माग

बशक ख़दा सबर करन वाल ही का साथी ह 154 और जो लोग ख़दा की राह म मार गए उ ह कभी मदार न कहना बि क वह लोग

िज़ दा ह मगर तम उनकी िज़ दगी की हक़ीकत का कछ भी यऊर नही रखत 155 और हम त ह कछ खौफ़ और भख स और माल और जान और फल की कमी स

ज़ र आज़माएग और (ऐ रसल) ऐस सबर करन वाल को ख़शख़बरी द दो 156 िक जब उन पर कोई मसीबत आ पड़ी तो वह (बसाखता) बोल उठ हम तो ख़दा ही

क ह और हम उसी की तरफ लौट कर जान वाल ह 157 उ ही लोग पर उनक परवरिदगार की तरफ स इनायत ह और रहमत और यही

लोग िहदायत या ता ह 158 बशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़दा की िनशािनय म स ह पस जो शखस

ख़ानए काबा का हज या उमरा कर उस पर उन दोनो क (दरिमयान) तवाफ़ (आमद ओ र त) करन म कछ गनाह नही (बि क सवाब ह) और जो शखस खश खश नक काम कर तो िफर ख़दा भी क़दरदा (और) वािक़फ़कार ह

159 बशक जो लोग हमारी इन रौशन दलील और िहदायत को िज ह हमन नािज़ल

िकया उसक बाद िछपात ह जबिक हम िकताब तौरत म लोग क सामन साफ़ साफ़ बयान कर चक ह तो यही लोग ह िजन पर ख़दा भी लानत करता ह और लानत करन वाल भी लानत करत ह

160 मगर िजन लोग न (हक़ िछपान स) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर

ली और जो िकताब ख़दा म ह साफ़ साफ़ बयान कर िदया पस उन की तौबा म क़बल करता ह और म तो बड़ा तौबा क़बल करन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

सरः अल-बक़रा

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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28 (हाए) कय कर तम खदा का इ कार कर सकत हो हालािक तम (माओ क पट म) बजान थ

तो उसी न तमको िज़ दा िकया िफर वही तमको मार डालगा िफर वही तमको (दोबारा क़यामत म) िज़ दा करगा िफर उसी की तरफ लौटाए जाओग

29 वही तो वह (खदा) ह िजसन त हार (नफ़) क ज़मीन की कल चीज़ को पदा िकया िफर

आसमान (क बनान) की तरफ़ मताव जह हआ तो सात आसमान हमवार (व मसतहकम)

बना िदए और वह (खदा) हर चीज़ स (खब) वािक़फ ह

30 और (ऐ रसल) उस वकत क़ो याद करो जब त हार परवरिदगार न फ़िर त स कहा िक म

(अपना) एक नाएब ज़मीन म बनानवाला ह (फिर त ता जब स) कहन लग कया त ज़मीन

ऐस शखस को पदा करगा जो ज़मीन म फ़साद और खरिज़या करता िफर हालािक (अगर)

ख़लीफा बनाना ह (तो हमारा यादा हक़ ह) कय िक हम तरी तारीफ व तसबीह करत ह और

तरी पाकीज़गी सािबत करत ह तब खदा न फरमाया इसम तो शक ही नही िक जो म जानता ह तम नही जानत

31 और (आदम की हक़ीक़म ज़ािहर करन की ग़रज़ स) आदम को सब चीज़ क नाम िसखा िदए

िफर उनको फिर त क सामन पश िकया और फ़रमाया िक अगर तम अपन दाव म िक हम

म तहक िख़लाफ़त ह स च हो तो मझ इन चीज़ क नाम बताओ

32 तब फ़िर त न (आिजज़ी स) अज़र की त (हर ऐब स) पाक व पाकीज़ा ह हम तो जो कछ तन

बताया ह उसक िसवा कछ नही जानत त बड़ा जानन वाला मसलहत का पहचानन वाला ह

33 (उस वकत ख़दा न आदम को) हकम िदया िक ऐ आदम तम इन फ़िर त को उन सब चीज़

क नाम बता दो बस जब आदम न फ़िर त को उन चीज़ क नाम बता िदए तो खदा न

फिर त की तरफ िख़ताब करक फरमाया कय म तमस न कहता था िक म आसमान और

ज़मीन क िछप हए राज़ को जानता ह और जो कछ तम अब ज़ािहर करत हो और जो कछ

तम िछपात थ (वह सब) जानता ह

34 और (उस वकत क़ो याद करो) जब हमन फ़िर त स कहा िक आदम को सजदा करो तो सब

क सब झक गए मगर शतान न इ कार िकया और ग़ र म आ गया और कािफ़र हो गया

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35 और हमन आदम स कहा ऐ आदम तम अपनी बीवी समत बिह त म रहा सहा करो और जहा स त हारा जी चाह उसम स ब फराग़त खाओ (िपयो) मगर उस दरखत क पास भी न जाना (वरना) िफर तम अपना आप नक़सान करोग

36 तब शतान न आदम व हौ वा को (धोखा दकर) वहा स डगमगाया और आिख़र कार उनको िजस (ऐश व राहत) म थ उनस िनकाल फका और हमन कहा (ऐ आदम व हौ वा) तम

(ज़मीन पर) उतर पड़ो तमम स एक का एक दशमन होगा और ज़मीन म त हार िलए एक

ख़ास वकत (क़यामत) तक ठहराव और िठकाना ह

37 िफर आदम न अपन परवरिदगार स (माज़रत क च द अ फाज़) सीख पस खदा न उन

अ फाज़ की बरकत स आदम की तौबा कबल कर ली बशक वह बड़ा माफ़ करन वाला महरबान ह

38 (और जब आदम को) य हकम िदया था िक यहा स उतर पड़ो (तो भी कह िदया था िक) अगर

त हार पास मरी तरफ़ स िहदायत आए तो (उसकी परवी करना कय िक) जो लोग मरी िहदायत पर चलग उन पर (क़यामत) म न कोई ख़ौफ होगा

39 और न वह रजीदा होग और (य भी याद रखो) िजन लोग न कफर इख़तयार िकया और हमारी आयत को झठलाया तो वही जह नमी ह और हमशा दोज़ख़ म पड़ रहग

40 ऐ बनी इसराईल (याक़ब की औलाद) मर उन एहसानात को याद करो जो तम पर पहल कर

चक ह और तम मर एहद व इक़रार (ईमान) को परा करो तो म त हार एहद (सवाब) को परा क गा और मझ ही स डरत रहो

41 और जो (करान) मन नािज़ल िकया वह उस िकताब (तौरत) की (भी) तसदीक़ करता ह जो त हार पास ह और तम सबस चल उसक इ कार पर मौजद न हो जाओ और मरी आयत क

बदल थोड़ी क़ीमत (दनयावी फायदा) न लो और मझ ही स डरत रहो

42 और हक़ को बाितल क साथ न िमलाओ और हक़ बात को न िछपाओ हालािक तम जानत हो और पाब दी स नमाज़ अदा करो

43 और ज़कात िदया करो और जो लोग (हमार सामन) इबादत क िलए झकत ह उनक साथ तम

भी झका करो

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44 और तम लोग स नकी करन को कहत हो और अपनी ख़बर नही लत हालािक तम िकताब

खदा को (बराबर) रटा करत हो तो तम कया इतना भी नही समझत

45 और (मसीबत क वकत) सबर और नमाज़ का सहारा पकड़ो और अलब ता नमाज़ दभर तो ह

मगर उन ख़ाक़सार पर (नही) जो बख़बी जानत ह

46 िक वह अपन परवरिदगार की बारगाह म हािज़र ह ग और ज़ र उसकी तरफ लौट जाएग

47 ऐ बनी इसराइल मरी उन नअमत को याद करो जो मन पहल त ह दी और य (भी तो सोचो) िक हमन तमको सार जहान क लोग स बढ़ा िदया

48 और उस िदन स डरो (िजस िदन) कोई शखस िकसी की तरफ स न िफिदया हो सकगा और न

उसकी तरफ स कोई िसफािरश मानी जाएगी और न उसका कोई मआवज़ा िलया जाएगा और न वह मदद पहचाए जाएग

49 और (उस वकत क़ो याद करो) जब हमन त ह (त हार बज़रगो को) िफरऔन (क प ज) स

छड़ाया जो त ह बड़-बड़ दख द क सतात थ त हार लड़क पर छरी फरत थ और त हारी औरत को (अपनी िख़दमत क िलए) िज़ दा रहन दत थ और उसम त हार परवरिदगार की तरफ स (त हार सबर की) सखत आज़माइश थी

50 और (वह वकत भी याद करो) जब हमन त हार िलए दिरया को टकड़-टकड़ िकया िफर हमन

तमको छटकारा िदया

51 और िफरऔन क आदिमय को त हार दखत-दखत डबो िदया और (वह वकत भी याद करो) जब हमन मसा स चालीस रात का वायदा िकया था और तम लोग न उनक जान क बाद

एक बछड़ को (परसितश क िलए खदा) बना िलया

52 हालािक तम अपन ऊपर ज़ म जोत रह थ िफर हमन उसक बाद भी दरगज़र की तािक तम

शकर करो

53 और (वह वकत भी याद करो) जब मसा को (तौरत) अता की और हक़ और बाितल को जदा करनवाला क़ानन (इनायत िकया) ताक तम िहदायत पाओ

54 और (वह वकत भी याद करो) जब मसा न अपनी क़ौम स कहा िक ऐ मरी क़ौम तमन बछड़ को (ख़दा) बना क अपन ऊपर बड़ा सखत ज म िकया तो अब (इसक िसवा कोई चारा नही

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िक) तम अपन ख़ािलक की बारगाह म तौबा करो और वह य ह िक अपन को क़ ल कर डालो त हार परवरिदगार क नज़दीक त हार हक़ म यही बहतर ह िफर जब तमन ऐसा िकया तो खदा न त हारी तौबा क़बल कर ली बशक वह बड़ा महरबान माफ़ करन वाला ह

55 और (वह वकत भी याद करो) जब तमन मसा स कहा था िक ऐ मसा हम तम पर उस वकत

तक ईमान न लाएग जब तक हम खदा को ज़ािहर बज़ािहर न दख ल उस पर त ह िबजली न

ल डाला और तम तकत ही रह गए

56 िफर त ह त हार मरन क बाद हमन िजला उठाया तािक तम शकर करो

57 और हमन तम पर अबर का साया िकया और तम पर मन व सलवा उतारा और (य भी तो कह

िदया था िक) जो सथरी व नफीस रोिज़या त ह दी ह उ ह शौक़ स खाओ और उन लोग न

हमारा तो कछ िबगड़ा नही मगर अपनी जान पर िसतम ढात रह

58 और (वह वकत भी याद करो) जब हमन तमस कहा िक इस गाव (अरीहा) म जाओ और इसम

जहा चाहो फराग़त स खाओ (िपयो) और दरवाज़ पर सजदा करत हए और ज़बान स िह ता बिखशश कहत हए आओ तो हम त हारी ख़ता य बखश दग और हम नकी करन वाल की नकी (सवाब) बढ़ा दग

59 तो जो बात उनस कही गई थी उस शरीर न बदलकर दसरी बात कहनी श कर दी तब हमन

उन लोग पर िज ह न शरारत की थी उनकी बदकारी की वजह स आसमानी बला नािज़ल

की

60 और (वह वकत भी याद करो) जब मसा न अपनी क़ौम क िलए पानी मागा तो हमन कहा (ऐ

मसा) अपनी लाठी प थर पर मारो (लाठी मारत ही) उसम स बारह च म फट िनकल और

सब लोग न अपना-अपना घाट बखबी जान िलया और हमन आम इजाज़त द दी िक खदा की दी हईरोज़ी स खाओ िपयो और म क म फसाद न करत िफरो

61 (और वह वकत भी याद करो) जब तमन मसा स कहा िक ऐ मसा हमस एक ही खान पर न

रहा जाएगा तो आप हमार िलए अपन परवरिदगार स दआ कीिजए िक जो चीज़ ज़मीन स

उगती ह जस साग पात तरकारी और ककड़ी और गह या (लहसन) और मसर और याज़

(मन व सलवा) की जगह पदा कर (मसा न) कहा कया तम ऐसी चीज़ को जो हर तरह स

बहतर ह अदना चीज़ स बदलन चाहत हो तो िकसी शहर म उतर पड़ो िफर त हार िलए जो तमन मागा ह सब मौजद ह और उन पर सवाई और मोहताजी की मार पड़ी और उन लोग

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न क़हर खदा की तरफ पलटा खाया य सब इस सबब स हआ िक वह लोग खदा की िनशािनय स इ कार करत थ और पग़ बर को नाहक शहीद करत थ और इस वजह स

(भी) िक वह नाफ़रमानी और सरकशी िकया करत थ

62 बशक मसलमान और यहिदय और नसरािनय और ला मज़हब म स जो कोई खदा और

रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए और अ छ-अ छ काम करता रह तो उ ही क िलए उनका अजर

व सवाब उनक खदा क पास ह और न (क़यामत म) उन पर िकसी का ख़ौफ होगा न वह

रजीदा िदल ह ग

63 और (वह वकत याद करो) जब हमन (तामील तौरत) का तमस एक़रार कर िलया और हमन

त हार सर पर तर स (पहाड़ को) लाकर लटकाया और कह िदया िक तौरत जो हमन तमको दी ह उसको मज़बत पकड़ रहो और जो कछ उसम ह उसको याद रखो

64 तािक तम परहज़गार बनो िफर उसक बाद तम (अपन एहदो पमान स) िफर गए पस अगर

तम पर खदा का फज़ल और उसकी महरबानी न होती तो तमन सखत घाटा उठाया होता

65 और अपनी क़ौम स उन लोग की हालत तो तम बखबी जानत हो जो श ब (सनीचर) क िदन

अपनी हद स गज़र गए (िक बावजद ममािनअत िशकार खलन िनकल) तो हमन उन स कहा िक तम राइ द गए ब दर बन जाओ (और वह ब दर हो गए)

66 पस हमन इस वाक़य स उन लोग क वा त िजन क सामन हआ था और जो उसक बाद

आनवाल थ अज़ाब क़रार िदया और परहज़गार क िलए नसीहत

67 और (वह वकत याद करो) जब मसा न अपनी क़ौम स कहा िक खदा तम लोग को ताकीदी हकम करता ह िक तम एक गाय िज़बाह करो वह लोग कहन लग कया तम हमस िद लगी करत हो मसा न कहा म खदा स पनाह मागता ह िक म जािहल बन

68 (तब वह लोग कहन लग िक (अ छा) तम अपन खदा स दआ करो िक हम बता द िक वह

गाय कसी हो मसा न कहा बशक खदा न फरमाता ह िक वह गाय न तो बहत बढ़ी हो और न

बिछया बि क उनम स औसत दरज की हो ग़रज़ जो तमको हकम िदया गया उसको बजा लाओ

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69 वह कहन लग (वाह) तम अपन खदा स दआ करो िक हम य बता द िक उसका रग आिख़र

कया हो मसा न कहा बशक खदा फरमाता ह िक वह गाय खब गहर ज़दर रग की हो दखन वाल

उस दखकर खश हो जाए

70 तब कहन लग िक तम अपन खदा स दआ करो िक हम ज़रा य तो बता द िक वह (गाय) और

कसी हो (वह) गाय तो और गाय म िमल जल गई और खदा न चाहा तो हम ज़ र (उसका) पता लगा लग

71 मसा न कहा खदा ज़ र फरमाता ह िक वह गाय न तो इतनी सधाई हो िक ज़मीन जोत न

खती सीच भली चगी एक रग की िक उसम कोई ध बा तक न हो वह बोल अब (जा क) ठीक-

ठीक बयान िकया ग़रज़ उन लोग न वह गाय हलाल की हालािक उनस उ मीद न थी वह

िक वह ऐसा करग

72 और जब एक शखस को मार डाला और तमम उसकी बाबत फट पड़ गई एक दसर को क़ाितल

बतान लगा जो तम िछपात थ

73 खदा को उसका ज़ािहर करना मजर था पस हमन कहा िक उस गाय को कोई टकड़ा लकर इस

(की लाश) पर मारो य खदा मद को िज़ दा करता ह और तम को अपनी कदरत की िनशािनया िदखा दता ह

74 तािक तम समझो िफर उसक बाद त हार िदल सखत हो गय पस वह िमसल प थर क

(सखत) थ या उसस भी यादा करखत कय िक प थर म बाज़ तो ऐस होत ह िक उनस नहर

जारी हो जाती ह और बाज़ ऐस होत ह िक उनम दरार पड़ जाती ह और उनम स पानी िनकल

पड़ता ह और बाज़ प थर तो ऐस होत ह िक खदा क ख़ौफ स िगर पड़त ह और जो कछ तम

कर रह हो उसस खदा ग़ािफल नही ह

75 (मसलमान ) कया तम य लालच रखत हो िक वह त हारा (सा) ईमान लाएग हालािक उनम

का एक िगरोह (सािबक़ म) ऐसा था िक खदा का कलाम सनाता था और अ छी तरह

समझन क बाद उलट फर कर दता था हालािक वह खब जानत थ और जब उन लोग स

मलाक़ात करत ह

76 जो ईमान लाए तो कह दत ह िक हम तो ईमान ला चक और जब उनस बाज़-बाज़ क साथ

तिख़लया करत ह तो कहत ह िक जो कछ खदा न तम पर (तौरत) म ज़ािहर कर िदया ह कया

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तम (मसलमान को) बता दोग तािक उसक सबब स कल त हार खदा क पास तम पर

ह जत लाए कया तम इतना भी नही समझत

77 लिकन कया वह लोग (इतना भी) नही जानत िक वह लोग जो कछ िछपात ह या ज़ािहर करत ह खदा सब कछ जानता ह

78 और कछ उनम स ऐस अनपढ़ ह िक वह िकताब खदा को अपन मतलब की बात क िसवा कछ नही समझत और वह फक़त खयाली बात िकया करत ह

79 पस वाए हो उन लोग पर जो अपन हाथ स िकताब िलखत ह िफर (लोग स कहत िफरत) ह

िक य खदा क यहा स (आई) ह तािक उसक ज़िरय स थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी फ़ायदा) हािसल कर पस अफसोस ह उन पर िक उनक हाथ न िलखा और िफर अफसोस ह उनपर िक

वह ऐसी कमाई करत ह

80 और कहत ह िक िगनती क च द िदन क िसवा हम आग छएगी भी तो नही (ऐ रसल) इन

लोग स कहो िक कया तमन खदा स कोई इक़रार ल िलया ह िक िफर वह िकसी तरह अपन

इक़रार क िख़लाफ़ हरिगज़ न करगा या ब समझ बझ खदा पर बोहताव जोड़त हो

81 हा (सच तो यह ह) िक िजसन बराई हािसल की और उसक गनाह न चार तरफ स उस घर

िलया ह वही लोग तो दोज़ख़ी ह और वही (तो) उसम हमशा रहग

82 और जो लोग ईमानदार ह और उ ह न अ छ काम िकए ह वही लोग ज नती ह िक हमशा ज नत म रहग

83 और (वह वकत याद करो) जब हमन बनी ईसराइल स (जो त हार बजरग़ थ) अहद व पमान

िलया था िक खदा क िसवा िकसी की इबादत न करना और मा बाप और क़राबतदार और

यतीम और मोहताज क साथ अ छ सलक करना और लोग क साथ अ छी तरह (नरमी) स बात करना और बराबर नमाज़ पढ़ना और ज़कात दना िफर तमम स थोड़ आिदिमय क

िसवा (सब क सब) िफर गए और तम लोग हो ही इक़रार स मह फरन वाल

84 और (वह वकत याद करो) जब हमन तम (त हार बज़रग ) स अहद िलया था िक आपस म

खरिज़या न करना और न अपन लोग को शहर बदर करना तो तम (त हार बजरग़ ) न

इक़रार िकया था और तम भी उसकी गवाही दत हो

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85 (िक हा ऐसा हआ था) िफर वही लोग तो तम हो िक आपस म एक दसर को क़ ल करत हो और अपन स एक ज थ क नाहक़ और ज़बरद ती िहमायती बनकर दसर को शहर बदर

करत हो (और ल फ़ तो य ह िक) अगर वही लोग क़दी बनकर त हार पास (मदद मागन)

आए तो उनको तावान दकर छड़ा लत हो हालािक उनका िनकालना ही तम पर हराम िकया गया था तो िफर कया तम (िकताब खदा की) बाज़ बात पर ईमान रखत हो और बाज़ स

इ कार करत हो पस तम म स जो लोग ऐसा कर उनकी सज़ा इसक िसवा और कछ नही िक

िज़ दगी भर की सवाई हो और (आिख़रकार) क़यामत क िदन सखत अज़ाब की तरफ लौटा िदय जाए और जो कछ तम लोग करत हो खदा उसस ग़ािफ़ल नही ह

86 यही वह लोग ह िज ह न आख़रत क बदल दिनया की िज़ दगी ख़रीद पस न उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी और न वह लोग िकसी तरह की मदद िदए जाएग

87 और य हक़ीक़ी बात ह िक हमन मसा को िकताब (तौरत) दी और उनक बाद बहत स पग़ बर

को उनक क़दम ब क़दम ल चल और मिरयम क बट ईसा को (भी बहत स) वाजए व रौशन

मौिजज िदए और पाक ह िजबरील क ज़िरय स उनकी मदद की कया तम उस क़दर

बदिदमाग़ हो गए हो िक जब कोई पग़ बर त हार पास त हारी खवािहश नफ़सानी क

िख़लाफ कोई हकम लकर आया तो तम अकड़ बठ िफर तमन बाज़ पग़ बर को तो झठलाया और बाज़ को जान स मार डाला

88 और कहन लग िक हमार िदल पर िग़लाफ चढ़ा हआ ह (ऐसा नही) बि क उनक कफर की वजह स खदा न उनपर लानत की ह पस कम ही लोग ईमान लात ह

89 और जब उनक पास खदा की तरफ़ स िकताब (करान आई और वह उस िकताब तौरत) की जो उन क पास तसदीक़ भी करती ह और उसस पहल (इसकी उ मीद पर) कािफ़र पर

फतहयाब होन की दआए मागत थ पस जब उनक पास वह चीज़ िजस पहचानत थ आ गई

तो लग इ कार करन पस कािफ़र पर खदा की लानत ह

90 कया ही बरा ह वह काम िजसक मक़ाबल म (इतनी बात पर) वह लोग अपनी जान बच बठ ह

िक खदा अपन ब द स िजस पर चाह अपनी इनायत स िकताब नािज़ल िकया कर इस र क

स जो कछ खदा न नािज़ल िकया ह सबका इ कार कर बठ पस उन पर ग़ज़ब पर ग़ज़ब टट

पड़ा और कािफ़र क िलए (बड़ी) सवाई का अज़ाब ह

91 और जब उनस कहा गया िक (जो क़रान) खदा न नािज़ल िकया ह उस पर ईमान लाओ तो कहन लग िक हम तो उसी िकताब (तौरत) पर ईमान लाए ह जो हम पर नािज़ल की गई थी

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और उस िकताब (करान) को जो उसक बाद आई ह नही मानत ह हालािक वह (क़रान) हक़ ह

और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करती ह मगर उस िकताब करान

का जो उसक बाद आई ह इ कार करत ह (ऐ रसल) उनस य तो पछो िक तम (त हार बजरग़)

अगर ईमानदार थ तो िफर कय खदा क पग़ बर का सािबक़ क़ ल करत थ

92 और त हार पास मसा तो वाज़ए व रौशन मौिजज़ लकर आ ही चक थ िफर भी तमन उनक

बाद बछड़ को खदा बना ही िलया और उसस तम अपन ही ऊपर ज़ म करन वाल थ

93 और (वह वकत याद करो) जब हमन तमस अहद िलया और (क़ोह) तर को (त हारी उदल

हकमी स) त हार सर पर लटकाया और (हमन कहा िक य िकताब तौरत) जो हमन दी ह

मज़बती स िलए रहो और (जो कछ उसम ह) सनो तो कहन लग सना तो (सही लिकन) हम

इसको मानत नही और उनकी बईमानी की वजह स (गोया) बछड़ की उलफ़त घोल क उनक

िदल म िपला दी गई (ऐ रसल) उन लोग स कह दो िक अगर तम ईमानदार थ तो तमको त हारा ईमान कया ही बरा हकम करता था

94 (ऐ रसल) इन लोग स कह दो िक अगर खदा क नज़दीक आख़रत का घर (बिह त) ख़ास

त हार वा त ह और लोग क वासत नही ह पस अगर तम स च हो तो मौत की आरज क़रो

95 (तािक ज दी बिह त म जाओ) लिकन वह उन आमाल बद की वजह स िजनको उनक हाथ

न पहल स आग भजा ह हरिगज़ मौत की आरज़ न करग और खदा ज़ािलम स खब वािक़फ

96 और (ऐ रसल) तम उन ही को िज़ दगी का सबस यादा हरीस पाओग और मशिरक़ म स

हर एक शखस चाहता ह िक काश उसको हज़ार बरस की उमर दी जाती हालािक अगर इतनी तलानी उमर भी दी जाए तो वह ख़दा क अज़ाब स छटकारा दन वाली नही और जो कछ वह

लोग करत ह खदा उस दख रहा ह

97 (ऐ रसल उन लोग स) कह दो िक जो िजबरील का दशमन ह (उसका खदा दशमन ह)

कय िक उस फ़िर त न खदा क हकम स (इस करान को) त हार िदल पर डाला ह और वह

उन िकताब की भी तसदीक करता ह जो (पहल नािज़ल हो चकी ह और सब) उसक सामन

मौजद ह और ईमानदार क वा त खशख़बरी ह

98 जो शखस ख़दा और उसक फिर त और उसक रसल और (ख़ासकर) िजबराईल व

मीकाइल का दशमन हो तो बशक खदा भी (ऐस) कािफ़र का द मन ह

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99 और (ऐ रसल) हमन तम पर ऐसी िनशािनया नािज़ल की ह जो वाजए और रौशन ह और

ऐस नाफरमान क िसवा उनका कोई इ कार नही कर सकता

100 और उनकी य हालत ह िक जब कभी कोई अहद िकया तो उनम स एक फरीक़ न तोड़ डाला बि क उनम स अकसर तो ईमान ही नही रखत

101 और जब उनक पास खदा की तरफ स रसल (मोह मद) आया और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करता ह तो उन अहल िकताब क एक िगरोह न िकताब खदा को अपन पस प त फक िदया गोया वह लोग कछ जानत ही नही और उस मतर क पीछ पड़

गए

102 िजसको सलमान क ज़मान की सलतनत म शयातीन जपा करत थ हालािक सलमान न

कफर नही इख़तयार िकया लिकन शतान न कफर एख़तयार िकया िक वह लोग को जाद

िसखाया करत थ और वह चीज़ जो हा त और मा त दोन फ़िर त पर बाइिबल म नािज़ल

की गई थी हालािक य दोन फ़िर त िकसी को िसखात न थ जब तक य न कह दत थ िक हम

दोन तो फ़क़त (ज़िरयाए आज़माइश) ह पस तो (इस पर अमल करक) बईमान न हो जाना उस पर भी उनस वह (टोटक) सीखत थ िजनकी वजह स िमया बीवी म तफ़रक़ा डालत हालािक बग़र इ न खदाव दी वह अपनी इन बात स िकसी को ज़रर नही पहचा सकत थ

और य लोग ऐसी बात सीखत थ जो खद उ ह नक़सान पहचाती थी और कछ (नफा) पहचाती थी बावजद िक वह यक़ीनन जान चक थ िक जो शखस इन (बराईय ) का ख़रीदार

हआ वह आिख़रत म बनसीब ह और बशबह (मआवज़ा) बहत ही बड़ा ह िजसक बदल उ ह न

अपनी जान को बचा काश (उस कछ) सोच समझ होत

103 और अगर वह ईमान लात और जाद वग़रह स बचकर परहज़गार बनत तो खदा की दरगाह

स जो सवाब िमलता वह उसस कही बहतर होता काश य लोग (इतना तो) समझत

104 ऐ ईमानवाल तम (रसल को अपनी तरफ मताव ज करना चाहो तो) रआना (हमारी िरआयत कर) न कहा करो बि क उनज़रना (हम पर नज़र तव जो रख) कहा करो और (जी लगाकर) सनत रहो और कािफर क िलए ददरनाक अज़ाब ह

105 ऐ रसल अहल िकताब म स िजन लोग न कफर इख़तयार िकया वह और मशरकीन य नही चाहत ह िक तम पर त हार परवरिदगार की तरफ स भलाई (वही) नािज़ल की जाए और

सरः अल-बक़रा

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(उनका तो इसम कछ इजारा नही) खदा िजसको चाहता ह अपनी रहमत क िलए ख़ास कर

लता ह और खदा बड़ा फज़ल (करन) वाला ह

106 (ऐ रसल) हम जब कोई आयत म सख़ करत ह या त हार ज़हन स िमटा दत ह तो उसस

बहतर या वसी ही (और) नािज़ल भी कर दत ह कया तम नही जानत िक बशबहा खदा हर

चीज़ पर क़ािदर ह

107 कया तम नही जानत िक आसमान की सलतनत बशबहा ख़ास खदा ही क िलए ह और खदा क िसवा त हारा न कोई सरपर त ह न मददगार

108 (मसलमान ) कया तम चाहत हो िक तम भी अपन रसल स वस ही (बढ़ग) सवालात करो िजस तरह सािबक़ (पहल) ज़मान म मसा स (बतक) सवालात िकए गए थ और िजस शखस

न ईमान क बदल कफर एख़तयार िकया वह तो यक़ीनी सीध रा त स भटक गया

109 (मसलमान ) अहल िकताब म स अकसर लोग अपन िदली हसद की वजह स य खवािहश

रखत ह िक तमको ईमान लान क बाद िफर कािफ़र बना द (और ल फ तो य ह िक) उन पर

हक़ ज़ािहर हो चका ह उसक बाद भी (य तम ना बाक़ी ह) पस तम माफ करो और दरगज़र

करो यहा तक िक खदा अपना (कोई और) हकम भज बशक खदा हर चीज़ पर क़ािदर ह

110 और नमाज़ पढ़त रहो और ज़कात िदय जाओ और जो कछ भलाई अपन िलए (खदा क यहा) पहल स भज दोग उस (क सवाब) को मौजद पाआग जो कछ तम करत हो उस खदा ज़ र

दख रहा ह

111 और (यहद) कहत ह िक यहद (क िसवा) और (नसारा कहत ह िक) नसारा क िसवा कोई

बिह त म जान ही न पाएगा य उनक खयाली पलाव ह (ऐ रसल) तम उन स कहो िक भला अगर तम स च हो िक हम ही बिह त म जाएग तो अपनी दलील पश करो

112 हा अलब ता िजस शखस न खदा क आग अपना सर झका िदया और अ छ काम भी करता ह

तो उसक िलए उसक परवरिदगार क यहा उसका बदला (मौजद) ह और (आख़रत म) ऐस

लोग पर न िकसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐस लोग ग़मग़ीन होग

113 और यहद कहत ह िक नसारा का मज़हब कछ (ठीक) नही और नसारा कहत ह िक यहद का मज़हब कछ (ठीक) नही हालािक य दोन फरीक़ िकताब (खदा) पढ़त रहत ह इसी तरह उ ही जसी बात वह (मशरकीन अरब) भी िकया करत ह जो (खदा क एहकाम) कछ नही जानत तो

सरः अल-बक़रा

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िजस बात म य लोग पड़ झगड़त ह (दिनया म तो तय न होगा) क़यामत क िदन खदा उनक

दरिमयान ठीक फसला कर दगा

114 और उसस बढ़कर ज़ािलम कौन होगा जो खदा की मसिजद म उसका नाम िलए जान स

(लोग को) रोक और उनकी बरबादी क दर प हो ऐस ही को उसम जाना मनािसब नही मगर

सहम हए ऐस ही लोग क िलए दिनया म सवाई ह और ऐस ही लोग क िलए आख़रत म

बड़ा भारी अज़ाब ह

115 (त हार मसिजद म रोकन स कया होता ह कय िक सारी ज़मीन) खदा ही की ह (कया) परब

(कया) पि चम बस जहा कही िक़ ल की तरफ ख़ करो वही खदा का सामना ह बशक खदा बड़ी ग जाइश वाला और खब वािक़फ ह

116 और यहद कहन लग िक खदा औलाद रखता ह हालािक वह (इस बखड़ स) पाक ह बि क जो कछ ज़मीन व आसमान म ह सब उसी का ह और सब उसकी क फरमाबरदार ह

117 (वही) आसमान व ज़मीन का मोिजद ह और जब िकसी काम का करना ठान लता ह तो उसकी िनसबत िसफर कह दता ह िक हो जा पस वह (खद ब खद) हो जाता ह

118 और जो (मशरकीन) कछ नही जानत कहत ह िक खदा हमस (खद) कलाम कय नही करता या हमार पास (खद) कोई िनशानी कय नही आती इसी तरह उ ही की सी बात वह कर चक

ह जो उनस पहल थ उन सब क िदल आपस म िमलत जलत ह जो लोग यक़ीन रखत ह

उनको तो अपनी िनशािनया कय साफतौर पर िदखा चक

119 (ऐ रसल) हमन तमको दीन हक़ क साथ (बिह त की) खशख़बरी दन वाला और (अज़ाब स)

डरान वाला बनाकर भजा ह और दोज़िख़य क बार म तमस कछ न पछा जाएगा

120 और (ऐ रसल) न तो यहदी कभी तमस रज़ामद होग न नसारा यहा तक िक तम उनक मज़हब की परवी करो (ऐ रसल उनस) कह दो िक बस खदा ही की िहदायत तो िहदायत ह (बाक़ी ढकोसला ह) और अगर तम इसक बाद भी िक त हार पास इ म (क़रान) आ चका ह उनकी खवािहश पर चल तो (याद रह िक िफर) तमको खदा (क ग़ज़ब) स बचान वाला न कोई सरपर त होगा न मददगार

सरः अल-बक़रा

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121 िजन लोग को हमन िकताब (करान) दी ह वह लोग उस इस तरह पढ़त रहत ह जो उसक पढ़न का हक़ ह यही लोग उस पर ईमान लात ह और जो उसस इनकार करत ह वही लोग घाट म ह

122 बनी इसराईल मरी उन नअमत को याद करो जो मन तम को दी ह और य िक

मन तमको सार जहान पर फज़ीलत दी

123 और उस िदन स डरो िजस िदन कोई शखस िकसी की तरफ स न िफदया हो सकगा और न उसकी तरफ स कोई मआवज़ा क़बल िकया जाएगा और न कोई िसफािरश ही फायदा पहचा सकगी और न लोग मदद िदए जाएग

124 (ऐ रसल) बनी इसराईल को वह वकत भी याद िदलाओ जब इबराहीम को उनक

परवरिदगार न च द बात म आज़माया और उ ह न परा कर िदया तो खदा न फरमाया म तमको (लोग का) पशवा बनान वाला ह (हज़रत इबराहीम न) अज़र की और मरी औलाद म स फरमाया (हा मगर) मर इस अहद पर ज़ािलम म स कोई शखस फ़ायज़ नही हो सकता

125 (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब हमन ख़ानए काबा को लोग क सवाब

और पनाह की जगह क़रार दी और हकम िदया गया िक इबराहीम की (इस) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और इबराहीम व इसमाइल स अहद व पमान िलया िक मर (उस) घर को तवाफ़ और एतक़ाफ़ और क और सजदा करन वाल क वा त साफ सथरा रखो

126 और (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब इबराहीम न दआ मागी िक ऐ मर

परवरिदगार इस (शहर) को पनाह व अमन का शहर बना और उसक रहन वाल म स जो खदा और रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए उसको तरह-तरह क फल खान को द खदा न फरमाया (अ छा मगर) वो कफर इख़तयार करगा उसकी दिनया म च द रोज़ (उन चीज़ो स) फायदा उठान दगा िफर (आख़रत म) उसको मजबर करक दोज़ख़ की तरफ खीच ल जाऊगा और वह बहत बरा िठकाना ह

127 और (वह वकत याद िदलाओ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बिनयाद

बल द कर रह थ (और दआ) मागत जात थ िक ऐ हमार परवरिदगार हमारी (य

सरः अल-बक़रा

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िख़दमत) कबल कर बशक त ही (दआ का) सनन वाला (और उसका) जानन वाला ह

128 (और) ऐ हमार पालन वाल त हम अपना फरमाबरदार ब दा बना हमारी औलाद स

एक िगरोह (पदा कर) जो तरा फरमाबरदार हो और हमको हमार हज की जगह िदखा द और हमारी तौबा क़बल कर बशक त ही बड़ा तौबा कबल करन वाला महरबान ह

129 (और) ऐ हमार पालन वाल मकक वाल म उ ही म स एक रसल को भज जो

उनको तरी आयत पढ़कर सनाए और आसमानी िकताब और अकल की बात िसखाए और उन (क नफ़स) क पाकीज़ा कर द बशक त ही ग़ािलब और सािहब तदबीर ह

130 और कौन ह जो इबराहीम क तरीक़ स नफरत कर मगर जो अपन को अहमक़

बनाए और बशक हमन उनको दिनया म भी मि तख़ब कर िलया और वह ज़ र आख़रत म भी अ छ ही म स होग

131 जब उनस उनक परवरिदगार न कहा इ लाम कबल करो तो अज़र म सार जहा क

परवरिदगार पर इ लाम लाया 132 और इसी तरीक क़ी इबराहीम न अपनी औलाद स वसीयत की और याकब न (भी)

िक ऐ फरज़ द खदा न त हार वा त इस दीन (इ लाम) को पस द फरमाया ह पस तम हरिगज़ न मरना मगर मसलमान ही होकर

133 (ऐ यहद) कया तम उस वकत मौजद थ जब याकब क सर पर मौत आ खड़ी

हईउस वकत उ ह न अपन बट स कहा िक मर बाद िकसी की इबादत करोग कहन लग हम आप क माबद और आप क बाप दादाओ इबराहीम व इ माइल व इसहाक़ क माबद व यकता खदा की इबादत करग और हम उसक फरमाबरदार ह

134 (ऐ यहद) वह लोग थ जो चल बस जो उ ह न कमाया उनक आग आया और जो

तम कमाओग त हार आग आएगा और जो कछ भी वह करत थ उसकी पछगछ तमस नही होगी

सरः अल-बक़रा

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135 (यहदी ईसाई मसलमान स) कहत ह िक यहद या नसरानी हो जाओ तो राह रा त पर आ जाओग (ऐ रसल उनस) कह दो िक हम इबराहीम क तरीक़ पर ह जो बाितल स कतरा कर चलत थ और मशरकीन स न थ

136 (और ऐ मसलमान तम य) कहो िक हम तो खदा पर ईमान लाए ह और उस पर

जो हम पर नािज़ल िकया गया (करान) और जो सहीफ़ इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकब और औलाद याकब पर नािज़ल हए थ (उन पर) और जो िकताब मसा व ईसा को दी गई (उस पर) और जो और पग़ बर को उनक परवरिदगार की तरफ स उ ह िदया गया (उस पर) हम तो उनम स िकसी (एक) म भी तफरीक़ नही करत और हम तो खदा ही क फरमाबरदार ह

137 पस अगर य लोग भी उसी तरह ईमान लाए ह िजस तरह तम तो अलब ता राह

रा त पर आ गए और अगर वह इस तरीक स मह फर ल तो बस वह िसफर त हारी ही िज़द पर ह तो (ऐ रसल) उन (क शर) स (बचान को) त हार िलए खदा काफ़ी होगा और वह (सबकी हालत) खब जानता (और) सनता ह

138 (मसलमान स कहो िक) रग तो खदा ही का रग ह िजसम तम रग गए और खदाई

रग स बहतर कौन रग होगा और हम तो उसी की इबादत करत ह 139 (ऐ रसल) तम उनस पछो िक कया तम हम स खदा क बार झगड़त हो हालािक

वही हमारा (भी) परवरिदगार ह (वही) त हारा भी (परवरिदगार ह) हमार िलए ह हमारी कारगज़ािरया और त हार िलए त हारी कारसतािनया और हम तो िनरखर उसी म ह

140 कया तम कहत हो िक इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौद याकब सब क

सब यहदी या नसरानी थ (ऐ रसल उनस) पछो तो िक तम यादा वािक़फ़ हो या खदा और उसस बढ़कर कौन ज़ािलम होगा िजसक पास खदा की तरफ स गवाही (मौजद) हो (िक वह यहदी न थ) और िफर वह िछपाए और जो कछ तम करत हो खदा उसस बख़बर नही

141 य वह लोग थ जो िसधार चक जो कछ कमा गए उनक िलए था और जो कछ तम कमाओग त हार िलए होगा और जो कछ वह कर गज़र उसकी पछगछ तमस न होगी

सरः अल-बक़रा

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142 बाज़ अहमक़ लोग य कह बठग िक मसलमान िजस िक़बल बतल मक़ स की तरफ

पहल स सजदा करत थ उस स दसर िक़बल की तरफ मड़ जान का बाइस हआ ऐ रसल तम उनक जवाब म कहो िक परब पि चम सब ख़दा का ह िजस चाहता ह सीध रा त की तरफ िहदायत करता ह

143 और िजस तरह त हार िक़बल क बार म िहदायत की उसी तरह तम को आिदल

उ मत बनाया तािक और लोग क मक़ाबल म तम गवाह बनो और रसल मोह मद त हार मक़ाबल म गवाह बन और (ऐ रसल) िजस िक़बल की तरफ़ तम पहल सज़दा करत थ हम न उसको को िसफर इस वजह स िक़बला क़रार िदया था िक जब िक़बला बदला जाए तो हम उन लोग को जो रसल की परवी करत ह हम उन लोग स अलग दख ल जो उलट पाव िफरत ह अगरच य उलट फर िसवा उन लोग क िजन की ख़दा न िहदायत की ह सब पर शाक़ ज़ र ह और ख़दा ऐसा नही ह िक त हार ईमान नमाज़ को जो बतलमक़ स की तरफ पढ़ चक हो बरबाद कर द बशक ख़दा लोग पर बड़ा ही रफ़ीक व महरबान ह

144 ऐ रसल िक़बला बदलन क वा त बशक त हारा बार बार आसमान की तरफ मह

करना हम दख रह ह तो हम ज़ र तम को ऐस िक़बल की तरफ फर दग िक तम िनहाल हो जाओ अ छा तो नमाज़ ही म तम मि ज़द मोहतरम काब की तरफ मह कर लो और ऐ मसलमान तम जहा कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मह कर िलया करो और िजन लोग को िकताब तौरत वगरह दी गयी ह वह बख़बी जानत ह िक य तबदील िक़बल बहत बजा व द त ह और उस क परवरिदगार की तरफ़ स ह और जो कछ वह लोग करत ह उस स ख़दा बख़बर नही

145 और अगर अहल िकताब क सामन दिनया की सारी दलील पश कर दोग तो भी वह

त हार िक़बल को न मानग और न तम ही उनक िक़बल को मानन वाल हो और ख़द अहल िकताब भी एक दसर क िक़बल को नही मानत और जो इ म क़रान त हार पास आ चका ह उसक बाद भी अगर तम उनकी खवािहश पर चल तो अलब ता तम नाफ़रमान हो जाओग

सरः अल-बक़रा

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146 िजन लोग को हमन िकताब (तौरत वग़रह) दी ह वह िजस तरह अपन बट को पहचानत ह उसी तरह तरह वह उस पग़ बर को भी पहचानत ह और उन म कछ लोग तो ऐस भी ह जो दीदए व दािन ता (जान बझकर) हक़ बात को िछपात ह

147 ऐ रसल तबदील िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह पस तम कही शक

करन वाल म स न हो जाना 148 और हर फरीक़ क वा त एक िस त ह उसी की तरफ वह नमाज़ म अपना मह कर

लता ह पस तम ऐ मसलमान झगड़ को छोड़ दो और निकय म उन स लपक क आग बढ़ जाओ तम जहा कही होग ख़दा तम सबको अपनी तरफ ल आऐगा बशक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

149 और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा तक मकका स) तो भी नमाज़ म तम

अपना मह मि ज़द मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर िलया करो और बशक य नया िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह

150 और त हार काम स ख़दा ग़ािफल नही ह और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा

तक क मकका स तो भी) तम (नमाज़ म) अपना मह मि ज़द हराम की तरफ कर िलया करो और (ऐ रसल) तम जहा कही हआ करो तो नमाज़ म अपना मह उसी काबा की तरफ़ कर िलया करो (बार बार हकम दन का एक फायदा य ह तािक लोग का इ ज़ाम तम पर न आन पाए मगर उन म स जो लोग नाहक़ हठधमीर करत ह वह तो ज़ र इ ज़ाम दग) तो तम लोग उनस डरो नही और िसफ़र मझस डरो और (दसरा फ़ायदा य ह) तािक तम पर अपनी नअमत परी कर द

151 और तीसरा फायदा य ह तािक तम िहदायत पाओ मसलमान य एहसान भी वसा

ही ह जस हम न तम म तम ही म का एक रसल भजा जो तमको हमारी आयत पढ़ कर सनाए और त हार न स को पाकीज़ा कर और त ह िकताब क़रान और अकल की बात िसखाए और तम को वह बात बताए िजन की त ह पहल स खबर भी न थी

152 पस तम हमारी याद रखो तो म भी त हारा िज़कर (खर) िकया क गा और मरा

यिकरया अदा करत रहो और नाशकरी न करो

सरः अल-बक़रा

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153 ऐ ईमानदार मसीबत क वकत सबर और नमाज़ क ज़िरए स ख़दा की मदद माग

बशक ख़दा सबर करन वाल ही का साथी ह 154 और जो लोग ख़दा की राह म मार गए उ ह कभी मदार न कहना बि क वह लोग

िज़ दा ह मगर तम उनकी िज़ दगी की हक़ीकत का कछ भी यऊर नही रखत 155 और हम त ह कछ खौफ़ और भख स और माल और जान और फल की कमी स

ज़ र आज़माएग और (ऐ रसल) ऐस सबर करन वाल को ख़शख़बरी द दो 156 िक जब उन पर कोई मसीबत आ पड़ी तो वह (बसाखता) बोल उठ हम तो ख़दा ही

क ह और हम उसी की तरफ लौट कर जान वाल ह 157 उ ही लोग पर उनक परवरिदगार की तरफ स इनायत ह और रहमत और यही

लोग िहदायत या ता ह 158 बशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़दा की िनशािनय म स ह पस जो शखस

ख़ानए काबा का हज या उमरा कर उस पर उन दोनो क (दरिमयान) तवाफ़ (आमद ओ र त) करन म कछ गनाह नही (बि क सवाब ह) और जो शखस खश खश नक काम कर तो िफर ख़दा भी क़दरदा (और) वािक़फ़कार ह

159 बशक जो लोग हमारी इन रौशन दलील और िहदायत को िज ह हमन नािज़ल

िकया उसक बाद िछपात ह जबिक हम िकताब तौरत म लोग क सामन साफ़ साफ़ बयान कर चक ह तो यही लोग ह िजन पर ख़दा भी लानत करता ह और लानत करन वाल भी लानत करत ह

160 मगर िजन लोग न (हक़ िछपान स) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर

ली और जो िकताब ख़दा म ह साफ़ साफ़ बयान कर िदया पस उन की तौबा म क़बल करता ह और म तो बड़ा तौबा क़बल करन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

सरः अल-बक़रा

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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35 और हमन आदम स कहा ऐ आदम तम अपनी बीवी समत बिह त म रहा सहा करो और जहा स त हारा जी चाह उसम स ब फराग़त खाओ (िपयो) मगर उस दरखत क पास भी न जाना (वरना) िफर तम अपना आप नक़सान करोग

36 तब शतान न आदम व हौ वा को (धोखा दकर) वहा स डगमगाया और आिख़र कार उनको िजस (ऐश व राहत) म थ उनस िनकाल फका और हमन कहा (ऐ आदम व हौ वा) तम

(ज़मीन पर) उतर पड़ो तमम स एक का एक दशमन होगा और ज़मीन म त हार िलए एक

ख़ास वकत (क़यामत) तक ठहराव और िठकाना ह

37 िफर आदम न अपन परवरिदगार स (माज़रत क च द अ फाज़) सीख पस खदा न उन

अ फाज़ की बरकत स आदम की तौबा कबल कर ली बशक वह बड़ा माफ़ करन वाला महरबान ह

38 (और जब आदम को) य हकम िदया था िक यहा स उतर पड़ो (तो भी कह िदया था िक) अगर

त हार पास मरी तरफ़ स िहदायत आए तो (उसकी परवी करना कय िक) जो लोग मरी िहदायत पर चलग उन पर (क़यामत) म न कोई ख़ौफ होगा

39 और न वह रजीदा होग और (य भी याद रखो) िजन लोग न कफर इख़तयार िकया और हमारी आयत को झठलाया तो वही जह नमी ह और हमशा दोज़ख़ म पड़ रहग

40 ऐ बनी इसराईल (याक़ब की औलाद) मर उन एहसानात को याद करो जो तम पर पहल कर

चक ह और तम मर एहद व इक़रार (ईमान) को परा करो तो म त हार एहद (सवाब) को परा क गा और मझ ही स डरत रहो

41 और जो (करान) मन नािज़ल िकया वह उस िकताब (तौरत) की (भी) तसदीक़ करता ह जो त हार पास ह और तम सबस चल उसक इ कार पर मौजद न हो जाओ और मरी आयत क

बदल थोड़ी क़ीमत (दनयावी फायदा) न लो और मझ ही स डरत रहो

42 और हक़ को बाितल क साथ न िमलाओ और हक़ बात को न िछपाओ हालािक तम जानत हो और पाब दी स नमाज़ अदा करो

43 और ज़कात िदया करो और जो लोग (हमार सामन) इबादत क िलए झकत ह उनक साथ तम

भी झका करो

सरः अल-बक़रा

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44 और तम लोग स नकी करन को कहत हो और अपनी ख़बर नही लत हालािक तम िकताब

खदा को (बराबर) रटा करत हो तो तम कया इतना भी नही समझत

45 और (मसीबत क वकत) सबर और नमाज़ का सहारा पकड़ो और अलब ता नमाज़ दभर तो ह

मगर उन ख़ाक़सार पर (नही) जो बख़बी जानत ह

46 िक वह अपन परवरिदगार की बारगाह म हािज़र ह ग और ज़ र उसकी तरफ लौट जाएग

47 ऐ बनी इसराइल मरी उन नअमत को याद करो जो मन पहल त ह दी और य (भी तो सोचो) िक हमन तमको सार जहान क लोग स बढ़ा िदया

48 और उस िदन स डरो (िजस िदन) कोई शखस िकसी की तरफ स न िफिदया हो सकगा और न

उसकी तरफ स कोई िसफािरश मानी जाएगी और न उसका कोई मआवज़ा िलया जाएगा और न वह मदद पहचाए जाएग

49 और (उस वकत क़ो याद करो) जब हमन त ह (त हार बज़रगो को) िफरऔन (क प ज) स

छड़ाया जो त ह बड़-बड़ दख द क सतात थ त हार लड़क पर छरी फरत थ और त हारी औरत को (अपनी िख़दमत क िलए) िज़ दा रहन दत थ और उसम त हार परवरिदगार की तरफ स (त हार सबर की) सखत आज़माइश थी

50 और (वह वकत भी याद करो) जब हमन त हार िलए दिरया को टकड़-टकड़ िकया िफर हमन

तमको छटकारा िदया

51 और िफरऔन क आदिमय को त हार दखत-दखत डबो िदया और (वह वकत भी याद करो) जब हमन मसा स चालीस रात का वायदा िकया था और तम लोग न उनक जान क बाद

एक बछड़ को (परसितश क िलए खदा) बना िलया

52 हालािक तम अपन ऊपर ज़ म जोत रह थ िफर हमन उसक बाद भी दरगज़र की तािक तम

शकर करो

53 और (वह वकत भी याद करो) जब मसा को (तौरत) अता की और हक़ और बाितल को जदा करनवाला क़ानन (इनायत िकया) ताक तम िहदायत पाओ

54 और (वह वकत भी याद करो) जब मसा न अपनी क़ौम स कहा िक ऐ मरी क़ौम तमन बछड़ को (ख़दा) बना क अपन ऊपर बड़ा सखत ज म िकया तो अब (इसक िसवा कोई चारा नही

सरः अल-बक़रा

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िक) तम अपन ख़ािलक की बारगाह म तौबा करो और वह य ह िक अपन को क़ ल कर डालो त हार परवरिदगार क नज़दीक त हार हक़ म यही बहतर ह िफर जब तमन ऐसा िकया तो खदा न त हारी तौबा क़बल कर ली बशक वह बड़ा महरबान माफ़ करन वाला ह

55 और (वह वकत भी याद करो) जब तमन मसा स कहा था िक ऐ मसा हम तम पर उस वकत

तक ईमान न लाएग जब तक हम खदा को ज़ािहर बज़ािहर न दख ल उस पर त ह िबजली न

ल डाला और तम तकत ही रह गए

56 िफर त ह त हार मरन क बाद हमन िजला उठाया तािक तम शकर करो

57 और हमन तम पर अबर का साया िकया और तम पर मन व सलवा उतारा और (य भी तो कह

िदया था िक) जो सथरी व नफीस रोिज़या त ह दी ह उ ह शौक़ स खाओ और उन लोग न

हमारा तो कछ िबगड़ा नही मगर अपनी जान पर िसतम ढात रह

58 और (वह वकत भी याद करो) जब हमन तमस कहा िक इस गाव (अरीहा) म जाओ और इसम

जहा चाहो फराग़त स खाओ (िपयो) और दरवाज़ पर सजदा करत हए और ज़बान स िह ता बिखशश कहत हए आओ तो हम त हारी ख़ता य बखश दग और हम नकी करन वाल की नकी (सवाब) बढ़ा दग

59 तो जो बात उनस कही गई थी उस शरीर न बदलकर दसरी बात कहनी श कर दी तब हमन

उन लोग पर िज ह न शरारत की थी उनकी बदकारी की वजह स आसमानी बला नािज़ल

की

60 और (वह वकत भी याद करो) जब मसा न अपनी क़ौम क िलए पानी मागा तो हमन कहा (ऐ

मसा) अपनी लाठी प थर पर मारो (लाठी मारत ही) उसम स बारह च म फट िनकल और

सब लोग न अपना-अपना घाट बखबी जान िलया और हमन आम इजाज़त द दी िक खदा की दी हईरोज़ी स खाओ िपयो और म क म फसाद न करत िफरो

61 (और वह वकत भी याद करो) जब तमन मसा स कहा िक ऐ मसा हमस एक ही खान पर न

रहा जाएगा तो आप हमार िलए अपन परवरिदगार स दआ कीिजए िक जो चीज़ ज़मीन स

उगती ह जस साग पात तरकारी और ककड़ी और गह या (लहसन) और मसर और याज़

(मन व सलवा) की जगह पदा कर (मसा न) कहा कया तम ऐसी चीज़ को जो हर तरह स

बहतर ह अदना चीज़ स बदलन चाहत हो तो िकसी शहर म उतर पड़ो िफर त हार िलए जो तमन मागा ह सब मौजद ह और उन पर सवाई और मोहताजी की मार पड़ी और उन लोग

सरः अल-बक़रा

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न क़हर खदा की तरफ पलटा खाया य सब इस सबब स हआ िक वह लोग खदा की िनशािनय स इ कार करत थ और पग़ बर को नाहक शहीद करत थ और इस वजह स

(भी) िक वह नाफ़रमानी और सरकशी िकया करत थ

62 बशक मसलमान और यहिदय और नसरािनय और ला मज़हब म स जो कोई खदा और

रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए और अ छ-अ छ काम करता रह तो उ ही क िलए उनका अजर

व सवाब उनक खदा क पास ह और न (क़यामत म) उन पर िकसी का ख़ौफ होगा न वह

रजीदा िदल ह ग

63 और (वह वकत याद करो) जब हमन (तामील तौरत) का तमस एक़रार कर िलया और हमन

त हार सर पर तर स (पहाड़ को) लाकर लटकाया और कह िदया िक तौरत जो हमन तमको दी ह उसको मज़बत पकड़ रहो और जो कछ उसम ह उसको याद रखो

64 तािक तम परहज़गार बनो िफर उसक बाद तम (अपन एहदो पमान स) िफर गए पस अगर

तम पर खदा का फज़ल और उसकी महरबानी न होती तो तमन सखत घाटा उठाया होता

65 और अपनी क़ौम स उन लोग की हालत तो तम बखबी जानत हो जो श ब (सनीचर) क िदन

अपनी हद स गज़र गए (िक बावजद ममािनअत िशकार खलन िनकल) तो हमन उन स कहा िक तम राइ द गए ब दर बन जाओ (और वह ब दर हो गए)

66 पस हमन इस वाक़य स उन लोग क वा त िजन क सामन हआ था और जो उसक बाद

आनवाल थ अज़ाब क़रार िदया और परहज़गार क िलए नसीहत

67 और (वह वकत याद करो) जब मसा न अपनी क़ौम स कहा िक खदा तम लोग को ताकीदी हकम करता ह िक तम एक गाय िज़बाह करो वह लोग कहन लग कया तम हमस िद लगी करत हो मसा न कहा म खदा स पनाह मागता ह िक म जािहल बन

68 (तब वह लोग कहन लग िक (अ छा) तम अपन खदा स दआ करो िक हम बता द िक वह

गाय कसी हो मसा न कहा बशक खदा न फरमाता ह िक वह गाय न तो बहत बढ़ी हो और न

बिछया बि क उनम स औसत दरज की हो ग़रज़ जो तमको हकम िदया गया उसको बजा लाओ

सरः अल-बक़रा

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69 वह कहन लग (वाह) तम अपन खदा स दआ करो िक हम य बता द िक उसका रग आिख़र

कया हो मसा न कहा बशक खदा फरमाता ह िक वह गाय खब गहर ज़दर रग की हो दखन वाल

उस दखकर खश हो जाए

70 तब कहन लग िक तम अपन खदा स दआ करो िक हम ज़रा य तो बता द िक वह (गाय) और

कसी हो (वह) गाय तो और गाय म िमल जल गई और खदा न चाहा तो हम ज़ र (उसका) पता लगा लग

71 मसा न कहा खदा ज़ र फरमाता ह िक वह गाय न तो इतनी सधाई हो िक ज़मीन जोत न

खती सीच भली चगी एक रग की िक उसम कोई ध बा तक न हो वह बोल अब (जा क) ठीक-

ठीक बयान िकया ग़रज़ उन लोग न वह गाय हलाल की हालािक उनस उ मीद न थी वह

िक वह ऐसा करग

72 और जब एक शखस को मार डाला और तमम उसकी बाबत फट पड़ गई एक दसर को क़ाितल

बतान लगा जो तम िछपात थ

73 खदा को उसका ज़ािहर करना मजर था पस हमन कहा िक उस गाय को कोई टकड़ा लकर इस

(की लाश) पर मारो य खदा मद को िज़ दा करता ह और तम को अपनी कदरत की िनशािनया िदखा दता ह

74 तािक तम समझो िफर उसक बाद त हार िदल सखत हो गय पस वह िमसल प थर क

(सखत) थ या उसस भी यादा करखत कय िक प थर म बाज़ तो ऐस होत ह िक उनस नहर

जारी हो जाती ह और बाज़ ऐस होत ह िक उनम दरार पड़ जाती ह और उनम स पानी िनकल

पड़ता ह और बाज़ प थर तो ऐस होत ह िक खदा क ख़ौफ स िगर पड़त ह और जो कछ तम

कर रह हो उसस खदा ग़ािफल नही ह

75 (मसलमान ) कया तम य लालच रखत हो िक वह त हारा (सा) ईमान लाएग हालािक उनम

का एक िगरोह (सािबक़ म) ऐसा था िक खदा का कलाम सनाता था और अ छी तरह

समझन क बाद उलट फर कर दता था हालािक वह खब जानत थ और जब उन लोग स

मलाक़ात करत ह

76 जो ईमान लाए तो कह दत ह िक हम तो ईमान ला चक और जब उनस बाज़-बाज़ क साथ

तिख़लया करत ह तो कहत ह िक जो कछ खदा न तम पर (तौरत) म ज़ािहर कर िदया ह कया

सरः अल-बक़रा

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तम (मसलमान को) बता दोग तािक उसक सबब स कल त हार खदा क पास तम पर

ह जत लाए कया तम इतना भी नही समझत

77 लिकन कया वह लोग (इतना भी) नही जानत िक वह लोग जो कछ िछपात ह या ज़ािहर करत ह खदा सब कछ जानता ह

78 और कछ उनम स ऐस अनपढ़ ह िक वह िकताब खदा को अपन मतलब की बात क िसवा कछ नही समझत और वह फक़त खयाली बात िकया करत ह

79 पस वाए हो उन लोग पर जो अपन हाथ स िकताब िलखत ह िफर (लोग स कहत िफरत) ह

िक य खदा क यहा स (आई) ह तािक उसक ज़िरय स थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी फ़ायदा) हािसल कर पस अफसोस ह उन पर िक उनक हाथ न िलखा और िफर अफसोस ह उनपर िक

वह ऐसी कमाई करत ह

80 और कहत ह िक िगनती क च द िदन क िसवा हम आग छएगी भी तो नही (ऐ रसल) इन

लोग स कहो िक कया तमन खदा स कोई इक़रार ल िलया ह िक िफर वह िकसी तरह अपन

इक़रार क िख़लाफ़ हरिगज़ न करगा या ब समझ बझ खदा पर बोहताव जोड़त हो

81 हा (सच तो यह ह) िक िजसन बराई हािसल की और उसक गनाह न चार तरफ स उस घर

िलया ह वही लोग तो दोज़ख़ी ह और वही (तो) उसम हमशा रहग

82 और जो लोग ईमानदार ह और उ ह न अ छ काम िकए ह वही लोग ज नती ह िक हमशा ज नत म रहग

83 और (वह वकत याद करो) जब हमन बनी ईसराइल स (जो त हार बजरग़ थ) अहद व पमान

िलया था िक खदा क िसवा िकसी की इबादत न करना और मा बाप और क़राबतदार और

यतीम और मोहताज क साथ अ छ सलक करना और लोग क साथ अ छी तरह (नरमी) स बात करना और बराबर नमाज़ पढ़ना और ज़कात दना िफर तमम स थोड़ आिदिमय क

िसवा (सब क सब) िफर गए और तम लोग हो ही इक़रार स मह फरन वाल

84 और (वह वकत याद करो) जब हमन तम (त हार बज़रग ) स अहद िलया था िक आपस म

खरिज़या न करना और न अपन लोग को शहर बदर करना तो तम (त हार बजरग़ ) न

इक़रार िकया था और तम भी उसकी गवाही दत हो

सरः अल-बक़रा

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85 (िक हा ऐसा हआ था) िफर वही लोग तो तम हो िक आपस म एक दसर को क़ ल करत हो और अपन स एक ज थ क नाहक़ और ज़बरद ती िहमायती बनकर दसर को शहर बदर

करत हो (और ल फ़ तो य ह िक) अगर वही लोग क़दी बनकर त हार पास (मदद मागन)

आए तो उनको तावान दकर छड़ा लत हो हालािक उनका िनकालना ही तम पर हराम िकया गया था तो िफर कया तम (िकताब खदा की) बाज़ बात पर ईमान रखत हो और बाज़ स

इ कार करत हो पस तम म स जो लोग ऐसा कर उनकी सज़ा इसक िसवा और कछ नही िक

िज़ दगी भर की सवाई हो और (आिख़रकार) क़यामत क िदन सखत अज़ाब की तरफ लौटा िदय जाए और जो कछ तम लोग करत हो खदा उसस ग़ािफ़ल नही ह

86 यही वह लोग ह िज ह न आख़रत क बदल दिनया की िज़ दगी ख़रीद पस न उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी और न वह लोग िकसी तरह की मदद िदए जाएग

87 और य हक़ीक़ी बात ह िक हमन मसा को िकताब (तौरत) दी और उनक बाद बहत स पग़ बर

को उनक क़दम ब क़दम ल चल और मिरयम क बट ईसा को (भी बहत स) वाजए व रौशन

मौिजज िदए और पाक ह िजबरील क ज़िरय स उनकी मदद की कया तम उस क़दर

बदिदमाग़ हो गए हो िक जब कोई पग़ बर त हार पास त हारी खवािहश नफ़सानी क

िख़लाफ कोई हकम लकर आया तो तम अकड़ बठ िफर तमन बाज़ पग़ बर को तो झठलाया और बाज़ को जान स मार डाला

88 और कहन लग िक हमार िदल पर िग़लाफ चढ़ा हआ ह (ऐसा नही) बि क उनक कफर की वजह स खदा न उनपर लानत की ह पस कम ही लोग ईमान लात ह

89 और जब उनक पास खदा की तरफ़ स िकताब (करान आई और वह उस िकताब तौरत) की जो उन क पास तसदीक़ भी करती ह और उसस पहल (इसकी उ मीद पर) कािफ़र पर

फतहयाब होन की दआए मागत थ पस जब उनक पास वह चीज़ िजस पहचानत थ आ गई

तो लग इ कार करन पस कािफ़र पर खदा की लानत ह

90 कया ही बरा ह वह काम िजसक मक़ाबल म (इतनी बात पर) वह लोग अपनी जान बच बठ ह

िक खदा अपन ब द स िजस पर चाह अपनी इनायत स िकताब नािज़ल िकया कर इस र क

स जो कछ खदा न नािज़ल िकया ह सबका इ कार कर बठ पस उन पर ग़ज़ब पर ग़ज़ब टट

पड़ा और कािफ़र क िलए (बड़ी) सवाई का अज़ाब ह

91 और जब उनस कहा गया िक (जो क़रान) खदा न नािज़ल िकया ह उस पर ईमान लाओ तो कहन लग िक हम तो उसी िकताब (तौरत) पर ईमान लाए ह जो हम पर नािज़ल की गई थी

सरः अल-बक़रा

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और उस िकताब (करान) को जो उसक बाद आई ह नही मानत ह हालािक वह (क़रान) हक़ ह

और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करती ह मगर उस िकताब करान

का जो उसक बाद आई ह इ कार करत ह (ऐ रसल) उनस य तो पछो िक तम (त हार बजरग़)

अगर ईमानदार थ तो िफर कय खदा क पग़ बर का सािबक़ क़ ल करत थ

92 और त हार पास मसा तो वाज़ए व रौशन मौिजज़ लकर आ ही चक थ िफर भी तमन उनक

बाद बछड़ को खदा बना ही िलया और उसस तम अपन ही ऊपर ज़ म करन वाल थ

93 और (वह वकत याद करो) जब हमन तमस अहद िलया और (क़ोह) तर को (त हारी उदल

हकमी स) त हार सर पर लटकाया और (हमन कहा िक य िकताब तौरत) जो हमन दी ह

मज़बती स िलए रहो और (जो कछ उसम ह) सनो तो कहन लग सना तो (सही लिकन) हम

इसको मानत नही और उनकी बईमानी की वजह स (गोया) बछड़ की उलफ़त घोल क उनक

िदल म िपला दी गई (ऐ रसल) उन लोग स कह दो िक अगर तम ईमानदार थ तो तमको त हारा ईमान कया ही बरा हकम करता था

94 (ऐ रसल) इन लोग स कह दो िक अगर खदा क नज़दीक आख़रत का घर (बिह त) ख़ास

त हार वा त ह और लोग क वासत नही ह पस अगर तम स च हो तो मौत की आरज क़रो

95 (तािक ज दी बिह त म जाओ) लिकन वह उन आमाल बद की वजह स िजनको उनक हाथ

न पहल स आग भजा ह हरिगज़ मौत की आरज़ न करग और खदा ज़ािलम स खब वािक़फ

96 और (ऐ रसल) तम उन ही को िज़ दगी का सबस यादा हरीस पाओग और मशिरक़ म स

हर एक शखस चाहता ह िक काश उसको हज़ार बरस की उमर दी जाती हालािक अगर इतनी तलानी उमर भी दी जाए तो वह ख़दा क अज़ाब स छटकारा दन वाली नही और जो कछ वह

लोग करत ह खदा उस दख रहा ह

97 (ऐ रसल उन लोग स) कह दो िक जो िजबरील का दशमन ह (उसका खदा दशमन ह)

कय िक उस फ़िर त न खदा क हकम स (इस करान को) त हार िदल पर डाला ह और वह

उन िकताब की भी तसदीक करता ह जो (पहल नािज़ल हो चकी ह और सब) उसक सामन

मौजद ह और ईमानदार क वा त खशख़बरी ह

98 जो शखस ख़दा और उसक फिर त और उसक रसल और (ख़ासकर) िजबराईल व

मीकाइल का दशमन हो तो बशक खदा भी (ऐस) कािफ़र का द मन ह

सरः अल-बक़रा

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99 और (ऐ रसल) हमन तम पर ऐसी िनशािनया नािज़ल की ह जो वाजए और रौशन ह और

ऐस नाफरमान क िसवा उनका कोई इ कार नही कर सकता

100 और उनकी य हालत ह िक जब कभी कोई अहद िकया तो उनम स एक फरीक़ न तोड़ डाला बि क उनम स अकसर तो ईमान ही नही रखत

101 और जब उनक पास खदा की तरफ स रसल (मोह मद) आया और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करता ह तो उन अहल िकताब क एक िगरोह न िकताब खदा को अपन पस प त फक िदया गोया वह लोग कछ जानत ही नही और उस मतर क पीछ पड़

गए

102 िजसको सलमान क ज़मान की सलतनत म शयातीन जपा करत थ हालािक सलमान न

कफर नही इख़तयार िकया लिकन शतान न कफर एख़तयार िकया िक वह लोग को जाद

िसखाया करत थ और वह चीज़ जो हा त और मा त दोन फ़िर त पर बाइिबल म नािज़ल

की गई थी हालािक य दोन फ़िर त िकसी को िसखात न थ जब तक य न कह दत थ िक हम

दोन तो फ़क़त (ज़िरयाए आज़माइश) ह पस तो (इस पर अमल करक) बईमान न हो जाना उस पर भी उनस वह (टोटक) सीखत थ िजनकी वजह स िमया बीवी म तफ़रक़ा डालत हालािक बग़र इ न खदाव दी वह अपनी इन बात स िकसी को ज़रर नही पहचा सकत थ

और य लोग ऐसी बात सीखत थ जो खद उ ह नक़सान पहचाती थी और कछ (नफा) पहचाती थी बावजद िक वह यक़ीनन जान चक थ िक जो शखस इन (बराईय ) का ख़रीदार

हआ वह आिख़रत म बनसीब ह और बशबह (मआवज़ा) बहत ही बड़ा ह िजसक बदल उ ह न

अपनी जान को बचा काश (उस कछ) सोच समझ होत

103 और अगर वह ईमान लात और जाद वग़रह स बचकर परहज़गार बनत तो खदा की दरगाह

स जो सवाब िमलता वह उसस कही बहतर होता काश य लोग (इतना तो) समझत

104 ऐ ईमानवाल तम (रसल को अपनी तरफ मताव ज करना चाहो तो) रआना (हमारी िरआयत कर) न कहा करो बि क उनज़रना (हम पर नज़र तव जो रख) कहा करो और (जी लगाकर) सनत रहो और कािफर क िलए ददरनाक अज़ाब ह

105 ऐ रसल अहल िकताब म स िजन लोग न कफर इख़तयार िकया वह और मशरकीन य नही चाहत ह िक तम पर त हार परवरिदगार की तरफ स भलाई (वही) नािज़ल की जाए और

सरः अल-बक़रा

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(उनका तो इसम कछ इजारा नही) खदा िजसको चाहता ह अपनी रहमत क िलए ख़ास कर

लता ह और खदा बड़ा फज़ल (करन) वाला ह

106 (ऐ रसल) हम जब कोई आयत म सख़ करत ह या त हार ज़हन स िमटा दत ह तो उसस

बहतर या वसी ही (और) नािज़ल भी कर दत ह कया तम नही जानत िक बशबहा खदा हर

चीज़ पर क़ािदर ह

107 कया तम नही जानत िक आसमान की सलतनत बशबहा ख़ास खदा ही क िलए ह और खदा क िसवा त हारा न कोई सरपर त ह न मददगार

108 (मसलमान ) कया तम चाहत हो िक तम भी अपन रसल स वस ही (बढ़ग) सवालात करो िजस तरह सािबक़ (पहल) ज़मान म मसा स (बतक) सवालात िकए गए थ और िजस शखस

न ईमान क बदल कफर एख़तयार िकया वह तो यक़ीनी सीध रा त स भटक गया

109 (मसलमान ) अहल िकताब म स अकसर लोग अपन िदली हसद की वजह स य खवािहश

रखत ह िक तमको ईमान लान क बाद िफर कािफ़र बना द (और ल फ तो य ह िक) उन पर

हक़ ज़ािहर हो चका ह उसक बाद भी (य तम ना बाक़ी ह) पस तम माफ करो और दरगज़र

करो यहा तक िक खदा अपना (कोई और) हकम भज बशक खदा हर चीज़ पर क़ािदर ह

110 और नमाज़ पढ़त रहो और ज़कात िदय जाओ और जो कछ भलाई अपन िलए (खदा क यहा) पहल स भज दोग उस (क सवाब) को मौजद पाआग जो कछ तम करत हो उस खदा ज़ र

दख रहा ह

111 और (यहद) कहत ह िक यहद (क िसवा) और (नसारा कहत ह िक) नसारा क िसवा कोई

बिह त म जान ही न पाएगा य उनक खयाली पलाव ह (ऐ रसल) तम उन स कहो िक भला अगर तम स च हो िक हम ही बिह त म जाएग तो अपनी दलील पश करो

112 हा अलब ता िजस शखस न खदा क आग अपना सर झका िदया और अ छ काम भी करता ह

तो उसक िलए उसक परवरिदगार क यहा उसका बदला (मौजद) ह और (आख़रत म) ऐस

लोग पर न िकसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐस लोग ग़मग़ीन होग

113 और यहद कहत ह िक नसारा का मज़हब कछ (ठीक) नही और नसारा कहत ह िक यहद का मज़हब कछ (ठीक) नही हालािक य दोन फरीक़ िकताब (खदा) पढ़त रहत ह इसी तरह उ ही जसी बात वह (मशरकीन अरब) भी िकया करत ह जो (खदा क एहकाम) कछ नही जानत तो

सरः अल-बक़रा

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िजस बात म य लोग पड़ झगड़त ह (दिनया म तो तय न होगा) क़यामत क िदन खदा उनक

दरिमयान ठीक फसला कर दगा

114 और उसस बढ़कर ज़ािलम कौन होगा जो खदा की मसिजद म उसका नाम िलए जान स

(लोग को) रोक और उनकी बरबादी क दर प हो ऐस ही को उसम जाना मनािसब नही मगर

सहम हए ऐस ही लोग क िलए दिनया म सवाई ह और ऐस ही लोग क िलए आख़रत म

बड़ा भारी अज़ाब ह

115 (त हार मसिजद म रोकन स कया होता ह कय िक सारी ज़मीन) खदा ही की ह (कया) परब

(कया) पि चम बस जहा कही िक़ ल की तरफ ख़ करो वही खदा का सामना ह बशक खदा बड़ी ग जाइश वाला और खब वािक़फ ह

116 और यहद कहन लग िक खदा औलाद रखता ह हालािक वह (इस बखड़ स) पाक ह बि क जो कछ ज़मीन व आसमान म ह सब उसी का ह और सब उसकी क फरमाबरदार ह

117 (वही) आसमान व ज़मीन का मोिजद ह और जब िकसी काम का करना ठान लता ह तो उसकी िनसबत िसफर कह दता ह िक हो जा पस वह (खद ब खद) हो जाता ह

118 और जो (मशरकीन) कछ नही जानत कहत ह िक खदा हमस (खद) कलाम कय नही करता या हमार पास (खद) कोई िनशानी कय नही आती इसी तरह उ ही की सी बात वह कर चक

ह जो उनस पहल थ उन सब क िदल आपस म िमलत जलत ह जो लोग यक़ीन रखत ह

उनको तो अपनी िनशािनया कय साफतौर पर िदखा चक

119 (ऐ रसल) हमन तमको दीन हक़ क साथ (बिह त की) खशख़बरी दन वाला और (अज़ाब स)

डरान वाला बनाकर भजा ह और दोज़िख़य क बार म तमस कछ न पछा जाएगा

120 और (ऐ रसल) न तो यहदी कभी तमस रज़ामद होग न नसारा यहा तक िक तम उनक मज़हब की परवी करो (ऐ रसल उनस) कह दो िक बस खदा ही की िहदायत तो िहदायत ह (बाक़ी ढकोसला ह) और अगर तम इसक बाद भी िक त हार पास इ म (क़रान) आ चका ह उनकी खवािहश पर चल तो (याद रह िक िफर) तमको खदा (क ग़ज़ब) स बचान वाला न कोई सरपर त होगा न मददगार

सरः अल-बक़रा

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121 िजन लोग को हमन िकताब (करान) दी ह वह लोग उस इस तरह पढ़त रहत ह जो उसक पढ़न का हक़ ह यही लोग उस पर ईमान लात ह और जो उसस इनकार करत ह वही लोग घाट म ह

122 बनी इसराईल मरी उन नअमत को याद करो जो मन तम को दी ह और य िक

मन तमको सार जहान पर फज़ीलत दी

123 और उस िदन स डरो िजस िदन कोई शखस िकसी की तरफ स न िफदया हो सकगा और न उसकी तरफ स कोई मआवज़ा क़बल िकया जाएगा और न कोई िसफािरश ही फायदा पहचा सकगी और न लोग मदद िदए जाएग

124 (ऐ रसल) बनी इसराईल को वह वकत भी याद िदलाओ जब इबराहीम को उनक

परवरिदगार न च द बात म आज़माया और उ ह न परा कर िदया तो खदा न फरमाया म तमको (लोग का) पशवा बनान वाला ह (हज़रत इबराहीम न) अज़र की और मरी औलाद म स फरमाया (हा मगर) मर इस अहद पर ज़ािलम म स कोई शखस फ़ायज़ नही हो सकता

125 (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब हमन ख़ानए काबा को लोग क सवाब

और पनाह की जगह क़रार दी और हकम िदया गया िक इबराहीम की (इस) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और इबराहीम व इसमाइल स अहद व पमान िलया िक मर (उस) घर को तवाफ़ और एतक़ाफ़ और क और सजदा करन वाल क वा त साफ सथरा रखो

126 और (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब इबराहीम न दआ मागी िक ऐ मर

परवरिदगार इस (शहर) को पनाह व अमन का शहर बना और उसक रहन वाल म स जो खदा और रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए उसको तरह-तरह क फल खान को द खदा न फरमाया (अ छा मगर) वो कफर इख़तयार करगा उसकी दिनया म च द रोज़ (उन चीज़ो स) फायदा उठान दगा िफर (आख़रत म) उसको मजबर करक दोज़ख़ की तरफ खीच ल जाऊगा और वह बहत बरा िठकाना ह

127 और (वह वकत याद िदलाओ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बिनयाद

बल द कर रह थ (और दआ) मागत जात थ िक ऐ हमार परवरिदगार हमारी (य

सरः अल-बक़रा

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िख़दमत) कबल कर बशक त ही (दआ का) सनन वाला (और उसका) जानन वाला ह

128 (और) ऐ हमार पालन वाल त हम अपना फरमाबरदार ब दा बना हमारी औलाद स

एक िगरोह (पदा कर) जो तरा फरमाबरदार हो और हमको हमार हज की जगह िदखा द और हमारी तौबा क़बल कर बशक त ही बड़ा तौबा कबल करन वाला महरबान ह

129 (और) ऐ हमार पालन वाल मकक वाल म उ ही म स एक रसल को भज जो

उनको तरी आयत पढ़कर सनाए और आसमानी िकताब और अकल की बात िसखाए और उन (क नफ़स) क पाकीज़ा कर द बशक त ही ग़ािलब और सािहब तदबीर ह

130 और कौन ह जो इबराहीम क तरीक़ स नफरत कर मगर जो अपन को अहमक़

बनाए और बशक हमन उनको दिनया म भी मि तख़ब कर िलया और वह ज़ र आख़रत म भी अ छ ही म स होग

131 जब उनस उनक परवरिदगार न कहा इ लाम कबल करो तो अज़र म सार जहा क

परवरिदगार पर इ लाम लाया 132 और इसी तरीक क़ी इबराहीम न अपनी औलाद स वसीयत की और याकब न (भी)

िक ऐ फरज़ द खदा न त हार वा त इस दीन (इ लाम) को पस द फरमाया ह पस तम हरिगज़ न मरना मगर मसलमान ही होकर

133 (ऐ यहद) कया तम उस वकत मौजद थ जब याकब क सर पर मौत आ खड़ी

हईउस वकत उ ह न अपन बट स कहा िक मर बाद िकसी की इबादत करोग कहन लग हम आप क माबद और आप क बाप दादाओ इबराहीम व इ माइल व इसहाक़ क माबद व यकता खदा की इबादत करग और हम उसक फरमाबरदार ह

134 (ऐ यहद) वह लोग थ जो चल बस जो उ ह न कमाया उनक आग आया और जो

तम कमाओग त हार आग आएगा और जो कछ भी वह करत थ उसकी पछगछ तमस नही होगी

सरः अल-बक़रा

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135 (यहदी ईसाई मसलमान स) कहत ह िक यहद या नसरानी हो जाओ तो राह रा त पर आ जाओग (ऐ रसल उनस) कह दो िक हम इबराहीम क तरीक़ पर ह जो बाितल स कतरा कर चलत थ और मशरकीन स न थ

136 (और ऐ मसलमान तम य) कहो िक हम तो खदा पर ईमान लाए ह और उस पर

जो हम पर नािज़ल िकया गया (करान) और जो सहीफ़ इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकब और औलाद याकब पर नािज़ल हए थ (उन पर) और जो िकताब मसा व ईसा को दी गई (उस पर) और जो और पग़ बर को उनक परवरिदगार की तरफ स उ ह िदया गया (उस पर) हम तो उनम स िकसी (एक) म भी तफरीक़ नही करत और हम तो खदा ही क फरमाबरदार ह

137 पस अगर य लोग भी उसी तरह ईमान लाए ह िजस तरह तम तो अलब ता राह

रा त पर आ गए और अगर वह इस तरीक स मह फर ल तो बस वह िसफर त हारी ही िज़द पर ह तो (ऐ रसल) उन (क शर) स (बचान को) त हार िलए खदा काफ़ी होगा और वह (सबकी हालत) खब जानता (और) सनता ह

138 (मसलमान स कहो िक) रग तो खदा ही का रग ह िजसम तम रग गए और खदाई

रग स बहतर कौन रग होगा और हम तो उसी की इबादत करत ह 139 (ऐ रसल) तम उनस पछो िक कया तम हम स खदा क बार झगड़त हो हालािक

वही हमारा (भी) परवरिदगार ह (वही) त हारा भी (परवरिदगार ह) हमार िलए ह हमारी कारगज़ािरया और त हार िलए त हारी कारसतािनया और हम तो िनरखर उसी म ह

140 कया तम कहत हो िक इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौद याकब सब क

सब यहदी या नसरानी थ (ऐ रसल उनस) पछो तो िक तम यादा वािक़फ़ हो या खदा और उसस बढ़कर कौन ज़ािलम होगा िजसक पास खदा की तरफ स गवाही (मौजद) हो (िक वह यहदी न थ) और िफर वह िछपाए और जो कछ तम करत हो खदा उसस बख़बर नही

141 य वह लोग थ जो िसधार चक जो कछ कमा गए उनक िलए था और जो कछ तम कमाओग त हार िलए होगा और जो कछ वह कर गज़र उसकी पछगछ तमस न होगी

सरः अल-बक़रा

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142 बाज़ अहमक़ लोग य कह बठग िक मसलमान िजस िक़बल बतल मक़ स की तरफ

पहल स सजदा करत थ उस स दसर िक़बल की तरफ मड़ जान का बाइस हआ ऐ रसल तम उनक जवाब म कहो िक परब पि चम सब ख़दा का ह िजस चाहता ह सीध रा त की तरफ िहदायत करता ह

143 और िजस तरह त हार िक़बल क बार म िहदायत की उसी तरह तम को आिदल

उ मत बनाया तािक और लोग क मक़ाबल म तम गवाह बनो और रसल मोह मद त हार मक़ाबल म गवाह बन और (ऐ रसल) िजस िक़बल की तरफ़ तम पहल सज़दा करत थ हम न उसको को िसफर इस वजह स िक़बला क़रार िदया था िक जब िक़बला बदला जाए तो हम उन लोग को जो रसल की परवी करत ह हम उन लोग स अलग दख ल जो उलट पाव िफरत ह अगरच य उलट फर िसवा उन लोग क िजन की ख़दा न िहदायत की ह सब पर शाक़ ज़ र ह और ख़दा ऐसा नही ह िक त हार ईमान नमाज़ को जो बतलमक़ स की तरफ पढ़ चक हो बरबाद कर द बशक ख़दा लोग पर बड़ा ही रफ़ीक व महरबान ह

144 ऐ रसल िक़बला बदलन क वा त बशक त हारा बार बार आसमान की तरफ मह

करना हम दख रह ह तो हम ज़ र तम को ऐस िक़बल की तरफ फर दग िक तम िनहाल हो जाओ अ छा तो नमाज़ ही म तम मि ज़द मोहतरम काब की तरफ मह कर लो और ऐ मसलमान तम जहा कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मह कर िलया करो और िजन लोग को िकताब तौरत वगरह दी गयी ह वह बख़बी जानत ह िक य तबदील िक़बल बहत बजा व द त ह और उस क परवरिदगार की तरफ़ स ह और जो कछ वह लोग करत ह उस स ख़दा बख़बर नही

145 और अगर अहल िकताब क सामन दिनया की सारी दलील पश कर दोग तो भी वह

त हार िक़बल को न मानग और न तम ही उनक िक़बल को मानन वाल हो और ख़द अहल िकताब भी एक दसर क िक़बल को नही मानत और जो इ म क़रान त हार पास आ चका ह उसक बाद भी अगर तम उनकी खवािहश पर चल तो अलब ता तम नाफ़रमान हो जाओग

सरः अल-बक़रा

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146 िजन लोग को हमन िकताब (तौरत वग़रह) दी ह वह िजस तरह अपन बट को पहचानत ह उसी तरह तरह वह उस पग़ बर को भी पहचानत ह और उन म कछ लोग तो ऐस भी ह जो दीदए व दािन ता (जान बझकर) हक़ बात को िछपात ह

147 ऐ रसल तबदील िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह पस तम कही शक

करन वाल म स न हो जाना 148 और हर फरीक़ क वा त एक िस त ह उसी की तरफ वह नमाज़ म अपना मह कर

लता ह पस तम ऐ मसलमान झगड़ को छोड़ दो और निकय म उन स लपक क आग बढ़ जाओ तम जहा कही होग ख़दा तम सबको अपनी तरफ ल आऐगा बशक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

149 और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा तक मकका स) तो भी नमाज़ म तम

अपना मह मि ज़द मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर िलया करो और बशक य नया िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह

150 और त हार काम स ख़दा ग़ािफल नही ह और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा

तक क मकका स तो भी) तम (नमाज़ म) अपना मह मि ज़द हराम की तरफ कर िलया करो और (ऐ रसल) तम जहा कही हआ करो तो नमाज़ म अपना मह उसी काबा की तरफ़ कर िलया करो (बार बार हकम दन का एक फायदा य ह तािक लोग का इ ज़ाम तम पर न आन पाए मगर उन म स जो लोग नाहक़ हठधमीर करत ह वह तो ज़ र इ ज़ाम दग) तो तम लोग उनस डरो नही और िसफ़र मझस डरो और (दसरा फ़ायदा य ह) तािक तम पर अपनी नअमत परी कर द

151 और तीसरा फायदा य ह तािक तम िहदायत पाओ मसलमान य एहसान भी वसा

ही ह जस हम न तम म तम ही म का एक रसल भजा जो तमको हमारी आयत पढ़ कर सनाए और त हार न स को पाकीज़ा कर और त ह िकताब क़रान और अकल की बात िसखाए और तम को वह बात बताए िजन की त ह पहल स खबर भी न थी

152 पस तम हमारी याद रखो तो म भी त हारा िज़कर (खर) िकया क गा और मरा

यिकरया अदा करत रहो और नाशकरी न करो

सरः अल-बक़रा

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153 ऐ ईमानदार मसीबत क वकत सबर और नमाज़ क ज़िरए स ख़दा की मदद माग

बशक ख़दा सबर करन वाल ही का साथी ह 154 और जो लोग ख़दा की राह म मार गए उ ह कभी मदार न कहना बि क वह लोग

िज़ दा ह मगर तम उनकी िज़ दगी की हक़ीकत का कछ भी यऊर नही रखत 155 और हम त ह कछ खौफ़ और भख स और माल और जान और फल की कमी स

ज़ र आज़माएग और (ऐ रसल) ऐस सबर करन वाल को ख़शख़बरी द दो 156 िक जब उन पर कोई मसीबत आ पड़ी तो वह (बसाखता) बोल उठ हम तो ख़दा ही

क ह और हम उसी की तरफ लौट कर जान वाल ह 157 उ ही लोग पर उनक परवरिदगार की तरफ स इनायत ह और रहमत और यही

लोग िहदायत या ता ह 158 बशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़दा की िनशािनय म स ह पस जो शखस

ख़ानए काबा का हज या उमरा कर उस पर उन दोनो क (दरिमयान) तवाफ़ (आमद ओ र त) करन म कछ गनाह नही (बि क सवाब ह) और जो शखस खश खश नक काम कर तो िफर ख़दा भी क़दरदा (और) वािक़फ़कार ह

159 बशक जो लोग हमारी इन रौशन दलील और िहदायत को िज ह हमन नािज़ल

िकया उसक बाद िछपात ह जबिक हम िकताब तौरत म लोग क सामन साफ़ साफ़ बयान कर चक ह तो यही लोग ह िजन पर ख़दा भी लानत करता ह और लानत करन वाल भी लानत करत ह

160 मगर िजन लोग न (हक़ िछपान स) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर

ली और जो िकताब ख़दा म ह साफ़ साफ़ बयान कर िदया पस उन की तौबा म क़बल करता ह और म तो बड़ा तौबा क़बल करन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

सरः अल-बक़रा

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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44 और तम लोग स नकी करन को कहत हो और अपनी ख़बर नही लत हालािक तम िकताब

खदा को (बराबर) रटा करत हो तो तम कया इतना भी नही समझत

45 और (मसीबत क वकत) सबर और नमाज़ का सहारा पकड़ो और अलब ता नमाज़ दभर तो ह

मगर उन ख़ाक़सार पर (नही) जो बख़बी जानत ह

46 िक वह अपन परवरिदगार की बारगाह म हािज़र ह ग और ज़ र उसकी तरफ लौट जाएग

47 ऐ बनी इसराइल मरी उन नअमत को याद करो जो मन पहल त ह दी और य (भी तो सोचो) िक हमन तमको सार जहान क लोग स बढ़ा िदया

48 और उस िदन स डरो (िजस िदन) कोई शखस िकसी की तरफ स न िफिदया हो सकगा और न

उसकी तरफ स कोई िसफािरश मानी जाएगी और न उसका कोई मआवज़ा िलया जाएगा और न वह मदद पहचाए जाएग

49 और (उस वकत क़ो याद करो) जब हमन त ह (त हार बज़रगो को) िफरऔन (क प ज) स

छड़ाया जो त ह बड़-बड़ दख द क सतात थ त हार लड़क पर छरी फरत थ और त हारी औरत को (अपनी िख़दमत क िलए) िज़ दा रहन दत थ और उसम त हार परवरिदगार की तरफ स (त हार सबर की) सखत आज़माइश थी

50 और (वह वकत भी याद करो) जब हमन त हार िलए दिरया को टकड़-टकड़ िकया िफर हमन

तमको छटकारा िदया

51 और िफरऔन क आदिमय को त हार दखत-दखत डबो िदया और (वह वकत भी याद करो) जब हमन मसा स चालीस रात का वायदा िकया था और तम लोग न उनक जान क बाद

एक बछड़ को (परसितश क िलए खदा) बना िलया

52 हालािक तम अपन ऊपर ज़ म जोत रह थ िफर हमन उसक बाद भी दरगज़र की तािक तम

शकर करो

53 और (वह वकत भी याद करो) जब मसा को (तौरत) अता की और हक़ और बाितल को जदा करनवाला क़ानन (इनायत िकया) ताक तम िहदायत पाओ

54 और (वह वकत भी याद करो) जब मसा न अपनी क़ौम स कहा िक ऐ मरी क़ौम तमन बछड़ को (ख़दा) बना क अपन ऊपर बड़ा सखत ज म िकया तो अब (इसक िसवा कोई चारा नही

सरः अल-बक़रा

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िक) तम अपन ख़ािलक की बारगाह म तौबा करो और वह य ह िक अपन को क़ ल कर डालो त हार परवरिदगार क नज़दीक त हार हक़ म यही बहतर ह िफर जब तमन ऐसा िकया तो खदा न त हारी तौबा क़बल कर ली बशक वह बड़ा महरबान माफ़ करन वाला ह

55 और (वह वकत भी याद करो) जब तमन मसा स कहा था िक ऐ मसा हम तम पर उस वकत

तक ईमान न लाएग जब तक हम खदा को ज़ािहर बज़ािहर न दख ल उस पर त ह िबजली न

ल डाला और तम तकत ही रह गए

56 िफर त ह त हार मरन क बाद हमन िजला उठाया तािक तम शकर करो

57 और हमन तम पर अबर का साया िकया और तम पर मन व सलवा उतारा और (य भी तो कह

िदया था िक) जो सथरी व नफीस रोिज़या त ह दी ह उ ह शौक़ स खाओ और उन लोग न

हमारा तो कछ िबगड़ा नही मगर अपनी जान पर िसतम ढात रह

58 और (वह वकत भी याद करो) जब हमन तमस कहा िक इस गाव (अरीहा) म जाओ और इसम

जहा चाहो फराग़त स खाओ (िपयो) और दरवाज़ पर सजदा करत हए और ज़बान स िह ता बिखशश कहत हए आओ तो हम त हारी ख़ता य बखश दग और हम नकी करन वाल की नकी (सवाब) बढ़ा दग

59 तो जो बात उनस कही गई थी उस शरीर न बदलकर दसरी बात कहनी श कर दी तब हमन

उन लोग पर िज ह न शरारत की थी उनकी बदकारी की वजह स आसमानी बला नािज़ल

की

60 और (वह वकत भी याद करो) जब मसा न अपनी क़ौम क िलए पानी मागा तो हमन कहा (ऐ

मसा) अपनी लाठी प थर पर मारो (लाठी मारत ही) उसम स बारह च म फट िनकल और

सब लोग न अपना-अपना घाट बखबी जान िलया और हमन आम इजाज़त द दी िक खदा की दी हईरोज़ी स खाओ िपयो और म क म फसाद न करत िफरो

61 (और वह वकत भी याद करो) जब तमन मसा स कहा िक ऐ मसा हमस एक ही खान पर न

रहा जाएगा तो आप हमार िलए अपन परवरिदगार स दआ कीिजए िक जो चीज़ ज़मीन स

उगती ह जस साग पात तरकारी और ककड़ी और गह या (लहसन) और मसर और याज़

(मन व सलवा) की जगह पदा कर (मसा न) कहा कया तम ऐसी चीज़ को जो हर तरह स

बहतर ह अदना चीज़ स बदलन चाहत हो तो िकसी शहर म उतर पड़ो िफर त हार िलए जो तमन मागा ह सब मौजद ह और उन पर सवाई और मोहताजी की मार पड़ी और उन लोग

सरः अल-बक़रा

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न क़हर खदा की तरफ पलटा खाया य सब इस सबब स हआ िक वह लोग खदा की िनशािनय स इ कार करत थ और पग़ बर को नाहक शहीद करत थ और इस वजह स

(भी) िक वह नाफ़रमानी और सरकशी िकया करत थ

62 बशक मसलमान और यहिदय और नसरािनय और ला मज़हब म स जो कोई खदा और

रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए और अ छ-अ छ काम करता रह तो उ ही क िलए उनका अजर

व सवाब उनक खदा क पास ह और न (क़यामत म) उन पर िकसी का ख़ौफ होगा न वह

रजीदा िदल ह ग

63 और (वह वकत याद करो) जब हमन (तामील तौरत) का तमस एक़रार कर िलया और हमन

त हार सर पर तर स (पहाड़ को) लाकर लटकाया और कह िदया िक तौरत जो हमन तमको दी ह उसको मज़बत पकड़ रहो और जो कछ उसम ह उसको याद रखो

64 तािक तम परहज़गार बनो िफर उसक बाद तम (अपन एहदो पमान स) िफर गए पस अगर

तम पर खदा का फज़ल और उसकी महरबानी न होती तो तमन सखत घाटा उठाया होता

65 और अपनी क़ौम स उन लोग की हालत तो तम बखबी जानत हो जो श ब (सनीचर) क िदन

अपनी हद स गज़र गए (िक बावजद ममािनअत िशकार खलन िनकल) तो हमन उन स कहा िक तम राइ द गए ब दर बन जाओ (और वह ब दर हो गए)

66 पस हमन इस वाक़य स उन लोग क वा त िजन क सामन हआ था और जो उसक बाद

आनवाल थ अज़ाब क़रार िदया और परहज़गार क िलए नसीहत

67 और (वह वकत याद करो) जब मसा न अपनी क़ौम स कहा िक खदा तम लोग को ताकीदी हकम करता ह िक तम एक गाय िज़बाह करो वह लोग कहन लग कया तम हमस िद लगी करत हो मसा न कहा म खदा स पनाह मागता ह िक म जािहल बन

68 (तब वह लोग कहन लग िक (अ छा) तम अपन खदा स दआ करो िक हम बता द िक वह

गाय कसी हो मसा न कहा बशक खदा न फरमाता ह िक वह गाय न तो बहत बढ़ी हो और न

बिछया बि क उनम स औसत दरज की हो ग़रज़ जो तमको हकम िदया गया उसको बजा लाओ

सरः अल-बक़रा

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69 वह कहन लग (वाह) तम अपन खदा स दआ करो िक हम य बता द िक उसका रग आिख़र

कया हो मसा न कहा बशक खदा फरमाता ह िक वह गाय खब गहर ज़दर रग की हो दखन वाल

उस दखकर खश हो जाए

70 तब कहन लग िक तम अपन खदा स दआ करो िक हम ज़रा य तो बता द िक वह (गाय) और

कसी हो (वह) गाय तो और गाय म िमल जल गई और खदा न चाहा तो हम ज़ र (उसका) पता लगा लग

71 मसा न कहा खदा ज़ र फरमाता ह िक वह गाय न तो इतनी सधाई हो िक ज़मीन जोत न

खती सीच भली चगी एक रग की िक उसम कोई ध बा तक न हो वह बोल अब (जा क) ठीक-

ठीक बयान िकया ग़रज़ उन लोग न वह गाय हलाल की हालािक उनस उ मीद न थी वह

िक वह ऐसा करग

72 और जब एक शखस को मार डाला और तमम उसकी बाबत फट पड़ गई एक दसर को क़ाितल

बतान लगा जो तम िछपात थ

73 खदा को उसका ज़ािहर करना मजर था पस हमन कहा िक उस गाय को कोई टकड़ा लकर इस

(की लाश) पर मारो य खदा मद को िज़ दा करता ह और तम को अपनी कदरत की िनशािनया िदखा दता ह

74 तािक तम समझो िफर उसक बाद त हार िदल सखत हो गय पस वह िमसल प थर क

(सखत) थ या उसस भी यादा करखत कय िक प थर म बाज़ तो ऐस होत ह िक उनस नहर

जारी हो जाती ह और बाज़ ऐस होत ह िक उनम दरार पड़ जाती ह और उनम स पानी िनकल

पड़ता ह और बाज़ प थर तो ऐस होत ह िक खदा क ख़ौफ स िगर पड़त ह और जो कछ तम

कर रह हो उसस खदा ग़ािफल नही ह

75 (मसलमान ) कया तम य लालच रखत हो िक वह त हारा (सा) ईमान लाएग हालािक उनम

का एक िगरोह (सािबक़ म) ऐसा था िक खदा का कलाम सनाता था और अ छी तरह

समझन क बाद उलट फर कर दता था हालािक वह खब जानत थ और जब उन लोग स

मलाक़ात करत ह

76 जो ईमान लाए तो कह दत ह िक हम तो ईमान ला चक और जब उनस बाज़-बाज़ क साथ

तिख़लया करत ह तो कहत ह िक जो कछ खदा न तम पर (तौरत) म ज़ािहर कर िदया ह कया

सरः अल-बक़रा

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तम (मसलमान को) बता दोग तािक उसक सबब स कल त हार खदा क पास तम पर

ह जत लाए कया तम इतना भी नही समझत

77 लिकन कया वह लोग (इतना भी) नही जानत िक वह लोग जो कछ िछपात ह या ज़ािहर करत ह खदा सब कछ जानता ह

78 और कछ उनम स ऐस अनपढ़ ह िक वह िकताब खदा को अपन मतलब की बात क िसवा कछ नही समझत और वह फक़त खयाली बात िकया करत ह

79 पस वाए हो उन लोग पर जो अपन हाथ स िकताब िलखत ह िफर (लोग स कहत िफरत) ह

िक य खदा क यहा स (आई) ह तािक उसक ज़िरय स थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी फ़ायदा) हािसल कर पस अफसोस ह उन पर िक उनक हाथ न िलखा और िफर अफसोस ह उनपर िक

वह ऐसी कमाई करत ह

80 और कहत ह िक िगनती क च द िदन क िसवा हम आग छएगी भी तो नही (ऐ रसल) इन

लोग स कहो िक कया तमन खदा स कोई इक़रार ल िलया ह िक िफर वह िकसी तरह अपन

इक़रार क िख़लाफ़ हरिगज़ न करगा या ब समझ बझ खदा पर बोहताव जोड़त हो

81 हा (सच तो यह ह) िक िजसन बराई हािसल की और उसक गनाह न चार तरफ स उस घर

िलया ह वही लोग तो दोज़ख़ी ह और वही (तो) उसम हमशा रहग

82 और जो लोग ईमानदार ह और उ ह न अ छ काम िकए ह वही लोग ज नती ह िक हमशा ज नत म रहग

83 और (वह वकत याद करो) जब हमन बनी ईसराइल स (जो त हार बजरग़ थ) अहद व पमान

िलया था िक खदा क िसवा िकसी की इबादत न करना और मा बाप और क़राबतदार और

यतीम और मोहताज क साथ अ छ सलक करना और लोग क साथ अ छी तरह (नरमी) स बात करना और बराबर नमाज़ पढ़ना और ज़कात दना िफर तमम स थोड़ आिदिमय क

िसवा (सब क सब) िफर गए और तम लोग हो ही इक़रार स मह फरन वाल

84 और (वह वकत याद करो) जब हमन तम (त हार बज़रग ) स अहद िलया था िक आपस म

खरिज़या न करना और न अपन लोग को शहर बदर करना तो तम (त हार बजरग़ ) न

इक़रार िकया था और तम भी उसकी गवाही दत हो

सरः अल-बक़रा

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85 (िक हा ऐसा हआ था) िफर वही लोग तो तम हो िक आपस म एक दसर को क़ ल करत हो और अपन स एक ज थ क नाहक़ और ज़बरद ती िहमायती बनकर दसर को शहर बदर

करत हो (और ल फ़ तो य ह िक) अगर वही लोग क़दी बनकर त हार पास (मदद मागन)

आए तो उनको तावान दकर छड़ा लत हो हालािक उनका िनकालना ही तम पर हराम िकया गया था तो िफर कया तम (िकताब खदा की) बाज़ बात पर ईमान रखत हो और बाज़ स

इ कार करत हो पस तम म स जो लोग ऐसा कर उनकी सज़ा इसक िसवा और कछ नही िक

िज़ दगी भर की सवाई हो और (आिख़रकार) क़यामत क िदन सखत अज़ाब की तरफ लौटा िदय जाए और जो कछ तम लोग करत हो खदा उसस ग़ािफ़ल नही ह

86 यही वह लोग ह िज ह न आख़रत क बदल दिनया की िज़ दगी ख़रीद पस न उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी और न वह लोग िकसी तरह की मदद िदए जाएग

87 और य हक़ीक़ी बात ह िक हमन मसा को िकताब (तौरत) दी और उनक बाद बहत स पग़ बर

को उनक क़दम ब क़दम ल चल और मिरयम क बट ईसा को (भी बहत स) वाजए व रौशन

मौिजज िदए और पाक ह िजबरील क ज़िरय स उनकी मदद की कया तम उस क़दर

बदिदमाग़ हो गए हो िक जब कोई पग़ बर त हार पास त हारी खवािहश नफ़सानी क

िख़लाफ कोई हकम लकर आया तो तम अकड़ बठ िफर तमन बाज़ पग़ बर को तो झठलाया और बाज़ को जान स मार डाला

88 और कहन लग िक हमार िदल पर िग़लाफ चढ़ा हआ ह (ऐसा नही) बि क उनक कफर की वजह स खदा न उनपर लानत की ह पस कम ही लोग ईमान लात ह

89 और जब उनक पास खदा की तरफ़ स िकताब (करान आई और वह उस िकताब तौरत) की जो उन क पास तसदीक़ भी करती ह और उसस पहल (इसकी उ मीद पर) कािफ़र पर

फतहयाब होन की दआए मागत थ पस जब उनक पास वह चीज़ िजस पहचानत थ आ गई

तो लग इ कार करन पस कािफ़र पर खदा की लानत ह

90 कया ही बरा ह वह काम िजसक मक़ाबल म (इतनी बात पर) वह लोग अपनी जान बच बठ ह

िक खदा अपन ब द स िजस पर चाह अपनी इनायत स िकताब नािज़ल िकया कर इस र क

स जो कछ खदा न नािज़ल िकया ह सबका इ कार कर बठ पस उन पर ग़ज़ब पर ग़ज़ब टट

पड़ा और कािफ़र क िलए (बड़ी) सवाई का अज़ाब ह

91 और जब उनस कहा गया िक (जो क़रान) खदा न नािज़ल िकया ह उस पर ईमान लाओ तो कहन लग िक हम तो उसी िकताब (तौरत) पर ईमान लाए ह जो हम पर नािज़ल की गई थी

सरः अल-बक़रा

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और उस िकताब (करान) को जो उसक बाद आई ह नही मानत ह हालािक वह (क़रान) हक़ ह

और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करती ह मगर उस िकताब करान

का जो उसक बाद आई ह इ कार करत ह (ऐ रसल) उनस य तो पछो िक तम (त हार बजरग़)

अगर ईमानदार थ तो िफर कय खदा क पग़ बर का सािबक़ क़ ल करत थ

92 और त हार पास मसा तो वाज़ए व रौशन मौिजज़ लकर आ ही चक थ िफर भी तमन उनक

बाद बछड़ को खदा बना ही िलया और उसस तम अपन ही ऊपर ज़ म करन वाल थ

93 और (वह वकत याद करो) जब हमन तमस अहद िलया और (क़ोह) तर को (त हारी उदल

हकमी स) त हार सर पर लटकाया और (हमन कहा िक य िकताब तौरत) जो हमन दी ह

मज़बती स िलए रहो और (जो कछ उसम ह) सनो तो कहन लग सना तो (सही लिकन) हम

इसको मानत नही और उनकी बईमानी की वजह स (गोया) बछड़ की उलफ़त घोल क उनक

िदल म िपला दी गई (ऐ रसल) उन लोग स कह दो िक अगर तम ईमानदार थ तो तमको त हारा ईमान कया ही बरा हकम करता था

94 (ऐ रसल) इन लोग स कह दो िक अगर खदा क नज़दीक आख़रत का घर (बिह त) ख़ास

त हार वा त ह और लोग क वासत नही ह पस अगर तम स च हो तो मौत की आरज क़रो

95 (तािक ज दी बिह त म जाओ) लिकन वह उन आमाल बद की वजह स िजनको उनक हाथ

न पहल स आग भजा ह हरिगज़ मौत की आरज़ न करग और खदा ज़ािलम स खब वािक़फ

96 और (ऐ रसल) तम उन ही को िज़ दगी का सबस यादा हरीस पाओग और मशिरक़ म स

हर एक शखस चाहता ह िक काश उसको हज़ार बरस की उमर दी जाती हालािक अगर इतनी तलानी उमर भी दी जाए तो वह ख़दा क अज़ाब स छटकारा दन वाली नही और जो कछ वह

लोग करत ह खदा उस दख रहा ह

97 (ऐ रसल उन लोग स) कह दो िक जो िजबरील का दशमन ह (उसका खदा दशमन ह)

कय िक उस फ़िर त न खदा क हकम स (इस करान को) त हार िदल पर डाला ह और वह

उन िकताब की भी तसदीक करता ह जो (पहल नािज़ल हो चकी ह और सब) उसक सामन

मौजद ह और ईमानदार क वा त खशख़बरी ह

98 जो शखस ख़दा और उसक फिर त और उसक रसल और (ख़ासकर) िजबराईल व

मीकाइल का दशमन हो तो बशक खदा भी (ऐस) कािफ़र का द मन ह

सरः अल-बक़रा

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99 और (ऐ रसल) हमन तम पर ऐसी िनशािनया नािज़ल की ह जो वाजए और रौशन ह और

ऐस नाफरमान क िसवा उनका कोई इ कार नही कर सकता

100 और उनकी य हालत ह िक जब कभी कोई अहद िकया तो उनम स एक फरीक़ न तोड़ डाला बि क उनम स अकसर तो ईमान ही नही रखत

101 और जब उनक पास खदा की तरफ स रसल (मोह मद) आया और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करता ह तो उन अहल िकताब क एक िगरोह न िकताब खदा को अपन पस प त फक िदया गोया वह लोग कछ जानत ही नही और उस मतर क पीछ पड़

गए

102 िजसको सलमान क ज़मान की सलतनत म शयातीन जपा करत थ हालािक सलमान न

कफर नही इख़तयार िकया लिकन शतान न कफर एख़तयार िकया िक वह लोग को जाद

िसखाया करत थ और वह चीज़ जो हा त और मा त दोन फ़िर त पर बाइिबल म नािज़ल

की गई थी हालािक य दोन फ़िर त िकसी को िसखात न थ जब तक य न कह दत थ िक हम

दोन तो फ़क़त (ज़िरयाए आज़माइश) ह पस तो (इस पर अमल करक) बईमान न हो जाना उस पर भी उनस वह (टोटक) सीखत थ िजनकी वजह स िमया बीवी म तफ़रक़ा डालत हालािक बग़र इ न खदाव दी वह अपनी इन बात स िकसी को ज़रर नही पहचा सकत थ

और य लोग ऐसी बात सीखत थ जो खद उ ह नक़सान पहचाती थी और कछ (नफा) पहचाती थी बावजद िक वह यक़ीनन जान चक थ िक जो शखस इन (बराईय ) का ख़रीदार

हआ वह आिख़रत म बनसीब ह और बशबह (मआवज़ा) बहत ही बड़ा ह िजसक बदल उ ह न

अपनी जान को बचा काश (उस कछ) सोच समझ होत

103 और अगर वह ईमान लात और जाद वग़रह स बचकर परहज़गार बनत तो खदा की दरगाह

स जो सवाब िमलता वह उसस कही बहतर होता काश य लोग (इतना तो) समझत

104 ऐ ईमानवाल तम (रसल को अपनी तरफ मताव ज करना चाहो तो) रआना (हमारी िरआयत कर) न कहा करो बि क उनज़रना (हम पर नज़र तव जो रख) कहा करो और (जी लगाकर) सनत रहो और कािफर क िलए ददरनाक अज़ाब ह

105 ऐ रसल अहल िकताब म स िजन लोग न कफर इख़तयार िकया वह और मशरकीन य नही चाहत ह िक तम पर त हार परवरिदगार की तरफ स भलाई (वही) नािज़ल की जाए और

सरः अल-बक़रा

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(उनका तो इसम कछ इजारा नही) खदा िजसको चाहता ह अपनी रहमत क िलए ख़ास कर

लता ह और खदा बड़ा फज़ल (करन) वाला ह

106 (ऐ रसल) हम जब कोई आयत म सख़ करत ह या त हार ज़हन स िमटा दत ह तो उसस

बहतर या वसी ही (और) नािज़ल भी कर दत ह कया तम नही जानत िक बशबहा खदा हर

चीज़ पर क़ािदर ह

107 कया तम नही जानत िक आसमान की सलतनत बशबहा ख़ास खदा ही क िलए ह और खदा क िसवा त हारा न कोई सरपर त ह न मददगार

108 (मसलमान ) कया तम चाहत हो िक तम भी अपन रसल स वस ही (बढ़ग) सवालात करो िजस तरह सािबक़ (पहल) ज़मान म मसा स (बतक) सवालात िकए गए थ और िजस शखस

न ईमान क बदल कफर एख़तयार िकया वह तो यक़ीनी सीध रा त स भटक गया

109 (मसलमान ) अहल िकताब म स अकसर लोग अपन िदली हसद की वजह स य खवािहश

रखत ह िक तमको ईमान लान क बाद िफर कािफ़र बना द (और ल फ तो य ह िक) उन पर

हक़ ज़ािहर हो चका ह उसक बाद भी (य तम ना बाक़ी ह) पस तम माफ करो और दरगज़र

करो यहा तक िक खदा अपना (कोई और) हकम भज बशक खदा हर चीज़ पर क़ािदर ह

110 और नमाज़ पढ़त रहो और ज़कात िदय जाओ और जो कछ भलाई अपन िलए (खदा क यहा) पहल स भज दोग उस (क सवाब) को मौजद पाआग जो कछ तम करत हो उस खदा ज़ र

दख रहा ह

111 और (यहद) कहत ह िक यहद (क िसवा) और (नसारा कहत ह िक) नसारा क िसवा कोई

बिह त म जान ही न पाएगा य उनक खयाली पलाव ह (ऐ रसल) तम उन स कहो िक भला अगर तम स च हो िक हम ही बिह त म जाएग तो अपनी दलील पश करो

112 हा अलब ता िजस शखस न खदा क आग अपना सर झका िदया और अ छ काम भी करता ह

तो उसक िलए उसक परवरिदगार क यहा उसका बदला (मौजद) ह और (आख़रत म) ऐस

लोग पर न िकसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐस लोग ग़मग़ीन होग

113 और यहद कहत ह िक नसारा का मज़हब कछ (ठीक) नही और नसारा कहत ह िक यहद का मज़हब कछ (ठीक) नही हालािक य दोन फरीक़ िकताब (खदा) पढ़त रहत ह इसी तरह उ ही जसी बात वह (मशरकीन अरब) भी िकया करत ह जो (खदा क एहकाम) कछ नही जानत तो

सरः अल-बक़रा

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िजस बात म य लोग पड़ झगड़त ह (दिनया म तो तय न होगा) क़यामत क िदन खदा उनक

दरिमयान ठीक फसला कर दगा

114 और उसस बढ़कर ज़ािलम कौन होगा जो खदा की मसिजद म उसका नाम िलए जान स

(लोग को) रोक और उनकी बरबादी क दर प हो ऐस ही को उसम जाना मनािसब नही मगर

सहम हए ऐस ही लोग क िलए दिनया म सवाई ह और ऐस ही लोग क िलए आख़रत म

बड़ा भारी अज़ाब ह

115 (त हार मसिजद म रोकन स कया होता ह कय िक सारी ज़मीन) खदा ही की ह (कया) परब

(कया) पि चम बस जहा कही िक़ ल की तरफ ख़ करो वही खदा का सामना ह बशक खदा बड़ी ग जाइश वाला और खब वािक़फ ह

116 और यहद कहन लग िक खदा औलाद रखता ह हालािक वह (इस बखड़ स) पाक ह बि क जो कछ ज़मीन व आसमान म ह सब उसी का ह और सब उसकी क फरमाबरदार ह

117 (वही) आसमान व ज़मीन का मोिजद ह और जब िकसी काम का करना ठान लता ह तो उसकी िनसबत िसफर कह दता ह िक हो जा पस वह (खद ब खद) हो जाता ह

118 और जो (मशरकीन) कछ नही जानत कहत ह िक खदा हमस (खद) कलाम कय नही करता या हमार पास (खद) कोई िनशानी कय नही आती इसी तरह उ ही की सी बात वह कर चक

ह जो उनस पहल थ उन सब क िदल आपस म िमलत जलत ह जो लोग यक़ीन रखत ह

उनको तो अपनी िनशािनया कय साफतौर पर िदखा चक

119 (ऐ रसल) हमन तमको दीन हक़ क साथ (बिह त की) खशख़बरी दन वाला और (अज़ाब स)

डरान वाला बनाकर भजा ह और दोज़िख़य क बार म तमस कछ न पछा जाएगा

120 और (ऐ रसल) न तो यहदी कभी तमस रज़ामद होग न नसारा यहा तक िक तम उनक मज़हब की परवी करो (ऐ रसल उनस) कह दो िक बस खदा ही की िहदायत तो िहदायत ह (बाक़ी ढकोसला ह) और अगर तम इसक बाद भी िक त हार पास इ म (क़रान) आ चका ह उनकी खवािहश पर चल तो (याद रह िक िफर) तमको खदा (क ग़ज़ब) स बचान वाला न कोई सरपर त होगा न मददगार

सरः अल-बक़रा

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121 िजन लोग को हमन िकताब (करान) दी ह वह लोग उस इस तरह पढ़त रहत ह जो उसक पढ़न का हक़ ह यही लोग उस पर ईमान लात ह और जो उसस इनकार करत ह वही लोग घाट म ह

122 बनी इसराईल मरी उन नअमत को याद करो जो मन तम को दी ह और य िक

मन तमको सार जहान पर फज़ीलत दी

123 और उस िदन स डरो िजस िदन कोई शखस िकसी की तरफ स न िफदया हो सकगा और न उसकी तरफ स कोई मआवज़ा क़बल िकया जाएगा और न कोई िसफािरश ही फायदा पहचा सकगी और न लोग मदद िदए जाएग

124 (ऐ रसल) बनी इसराईल को वह वकत भी याद िदलाओ जब इबराहीम को उनक

परवरिदगार न च द बात म आज़माया और उ ह न परा कर िदया तो खदा न फरमाया म तमको (लोग का) पशवा बनान वाला ह (हज़रत इबराहीम न) अज़र की और मरी औलाद म स फरमाया (हा मगर) मर इस अहद पर ज़ािलम म स कोई शखस फ़ायज़ नही हो सकता

125 (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब हमन ख़ानए काबा को लोग क सवाब

और पनाह की जगह क़रार दी और हकम िदया गया िक इबराहीम की (इस) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और इबराहीम व इसमाइल स अहद व पमान िलया िक मर (उस) घर को तवाफ़ और एतक़ाफ़ और क और सजदा करन वाल क वा त साफ सथरा रखो

126 और (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब इबराहीम न दआ मागी िक ऐ मर

परवरिदगार इस (शहर) को पनाह व अमन का शहर बना और उसक रहन वाल म स जो खदा और रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए उसको तरह-तरह क फल खान को द खदा न फरमाया (अ छा मगर) वो कफर इख़तयार करगा उसकी दिनया म च द रोज़ (उन चीज़ो स) फायदा उठान दगा िफर (आख़रत म) उसको मजबर करक दोज़ख़ की तरफ खीच ल जाऊगा और वह बहत बरा िठकाना ह

127 और (वह वकत याद िदलाओ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बिनयाद

बल द कर रह थ (और दआ) मागत जात थ िक ऐ हमार परवरिदगार हमारी (य

सरः अल-बक़रा

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िख़दमत) कबल कर बशक त ही (दआ का) सनन वाला (और उसका) जानन वाला ह

128 (और) ऐ हमार पालन वाल त हम अपना फरमाबरदार ब दा बना हमारी औलाद स

एक िगरोह (पदा कर) जो तरा फरमाबरदार हो और हमको हमार हज की जगह िदखा द और हमारी तौबा क़बल कर बशक त ही बड़ा तौबा कबल करन वाला महरबान ह

129 (और) ऐ हमार पालन वाल मकक वाल म उ ही म स एक रसल को भज जो

उनको तरी आयत पढ़कर सनाए और आसमानी िकताब और अकल की बात िसखाए और उन (क नफ़स) क पाकीज़ा कर द बशक त ही ग़ािलब और सािहब तदबीर ह

130 और कौन ह जो इबराहीम क तरीक़ स नफरत कर मगर जो अपन को अहमक़

बनाए और बशक हमन उनको दिनया म भी मि तख़ब कर िलया और वह ज़ र आख़रत म भी अ छ ही म स होग

131 जब उनस उनक परवरिदगार न कहा इ लाम कबल करो तो अज़र म सार जहा क

परवरिदगार पर इ लाम लाया 132 और इसी तरीक क़ी इबराहीम न अपनी औलाद स वसीयत की और याकब न (भी)

िक ऐ फरज़ द खदा न त हार वा त इस दीन (इ लाम) को पस द फरमाया ह पस तम हरिगज़ न मरना मगर मसलमान ही होकर

133 (ऐ यहद) कया तम उस वकत मौजद थ जब याकब क सर पर मौत आ खड़ी

हईउस वकत उ ह न अपन बट स कहा िक मर बाद िकसी की इबादत करोग कहन लग हम आप क माबद और आप क बाप दादाओ इबराहीम व इ माइल व इसहाक़ क माबद व यकता खदा की इबादत करग और हम उसक फरमाबरदार ह

134 (ऐ यहद) वह लोग थ जो चल बस जो उ ह न कमाया उनक आग आया और जो

तम कमाओग त हार आग आएगा और जो कछ भी वह करत थ उसकी पछगछ तमस नही होगी

सरः अल-बक़रा

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135 (यहदी ईसाई मसलमान स) कहत ह िक यहद या नसरानी हो जाओ तो राह रा त पर आ जाओग (ऐ रसल उनस) कह दो िक हम इबराहीम क तरीक़ पर ह जो बाितल स कतरा कर चलत थ और मशरकीन स न थ

136 (और ऐ मसलमान तम य) कहो िक हम तो खदा पर ईमान लाए ह और उस पर

जो हम पर नािज़ल िकया गया (करान) और जो सहीफ़ इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकब और औलाद याकब पर नािज़ल हए थ (उन पर) और जो िकताब मसा व ईसा को दी गई (उस पर) और जो और पग़ बर को उनक परवरिदगार की तरफ स उ ह िदया गया (उस पर) हम तो उनम स िकसी (एक) म भी तफरीक़ नही करत और हम तो खदा ही क फरमाबरदार ह

137 पस अगर य लोग भी उसी तरह ईमान लाए ह िजस तरह तम तो अलब ता राह

रा त पर आ गए और अगर वह इस तरीक स मह फर ल तो बस वह िसफर त हारी ही िज़द पर ह तो (ऐ रसल) उन (क शर) स (बचान को) त हार िलए खदा काफ़ी होगा और वह (सबकी हालत) खब जानता (और) सनता ह

138 (मसलमान स कहो िक) रग तो खदा ही का रग ह िजसम तम रग गए और खदाई

रग स बहतर कौन रग होगा और हम तो उसी की इबादत करत ह 139 (ऐ रसल) तम उनस पछो िक कया तम हम स खदा क बार झगड़त हो हालािक

वही हमारा (भी) परवरिदगार ह (वही) त हारा भी (परवरिदगार ह) हमार िलए ह हमारी कारगज़ािरया और त हार िलए त हारी कारसतािनया और हम तो िनरखर उसी म ह

140 कया तम कहत हो िक इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौद याकब सब क

सब यहदी या नसरानी थ (ऐ रसल उनस) पछो तो िक तम यादा वािक़फ़ हो या खदा और उसस बढ़कर कौन ज़ािलम होगा िजसक पास खदा की तरफ स गवाही (मौजद) हो (िक वह यहदी न थ) और िफर वह िछपाए और जो कछ तम करत हो खदा उसस बख़बर नही

141 य वह लोग थ जो िसधार चक जो कछ कमा गए उनक िलए था और जो कछ तम कमाओग त हार िलए होगा और जो कछ वह कर गज़र उसकी पछगछ तमस न होगी

सरः अल-बक़रा

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142 बाज़ अहमक़ लोग य कह बठग िक मसलमान िजस िक़बल बतल मक़ स की तरफ

पहल स सजदा करत थ उस स दसर िक़बल की तरफ मड़ जान का बाइस हआ ऐ रसल तम उनक जवाब म कहो िक परब पि चम सब ख़दा का ह िजस चाहता ह सीध रा त की तरफ िहदायत करता ह

143 और िजस तरह त हार िक़बल क बार म िहदायत की उसी तरह तम को आिदल

उ मत बनाया तािक और लोग क मक़ाबल म तम गवाह बनो और रसल मोह मद त हार मक़ाबल म गवाह बन और (ऐ रसल) िजस िक़बल की तरफ़ तम पहल सज़दा करत थ हम न उसको को िसफर इस वजह स िक़बला क़रार िदया था िक जब िक़बला बदला जाए तो हम उन लोग को जो रसल की परवी करत ह हम उन लोग स अलग दख ल जो उलट पाव िफरत ह अगरच य उलट फर िसवा उन लोग क िजन की ख़दा न िहदायत की ह सब पर शाक़ ज़ र ह और ख़दा ऐसा नही ह िक त हार ईमान नमाज़ को जो बतलमक़ स की तरफ पढ़ चक हो बरबाद कर द बशक ख़दा लोग पर बड़ा ही रफ़ीक व महरबान ह

144 ऐ रसल िक़बला बदलन क वा त बशक त हारा बार बार आसमान की तरफ मह

करना हम दख रह ह तो हम ज़ र तम को ऐस िक़बल की तरफ फर दग िक तम िनहाल हो जाओ अ छा तो नमाज़ ही म तम मि ज़द मोहतरम काब की तरफ मह कर लो और ऐ मसलमान तम जहा कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मह कर िलया करो और िजन लोग को िकताब तौरत वगरह दी गयी ह वह बख़बी जानत ह िक य तबदील िक़बल बहत बजा व द त ह और उस क परवरिदगार की तरफ़ स ह और जो कछ वह लोग करत ह उस स ख़दा बख़बर नही

145 और अगर अहल िकताब क सामन दिनया की सारी दलील पश कर दोग तो भी वह

त हार िक़बल को न मानग और न तम ही उनक िक़बल को मानन वाल हो और ख़द अहल िकताब भी एक दसर क िक़बल को नही मानत और जो इ म क़रान त हार पास आ चका ह उसक बाद भी अगर तम उनकी खवािहश पर चल तो अलब ता तम नाफ़रमान हो जाओग

सरः अल-बक़रा

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146 िजन लोग को हमन िकताब (तौरत वग़रह) दी ह वह िजस तरह अपन बट को पहचानत ह उसी तरह तरह वह उस पग़ बर को भी पहचानत ह और उन म कछ लोग तो ऐस भी ह जो दीदए व दािन ता (जान बझकर) हक़ बात को िछपात ह

147 ऐ रसल तबदील िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह पस तम कही शक

करन वाल म स न हो जाना 148 और हर फरीक़ क वा त एक िस त ह उसी की तरफ वह नमाज़ म अपना मह कर

लता ह पस तम ऐ मसलमान झगड़ को छोड़ दो और निकय म उन स लपक क आग बढ़ जाओ तम जहा कही होग ख़दा तम सबको अपनी तरफ ल आऐगा बशक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

149 और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा तक मकका स) तो भी नमाज़ म तम

अपना मह मि ज़द मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर िलया करो और बशक य नया िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह

150 और त हार काम स ख़दा ग़ािफल नही ह और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा

तक क मकका स तो भी) तम (नमाज़ म) अपना मह मि ज़द हराम की तरफ कर िलया करो और (ऐ रसल) तम जहा कही हआ करो तो नमाज़ म अपना मह उसी काबा की तरफ़ कर िलया करो (बार बार हकम दन का एक फायदा य ह तािक लोग का इ ज़ाम तम पर न आन पाए मगर उन म स जो लोग नाहक़ हठधमीर करत ह वह तो ज़ र इ ज़ाम दग) तो तम लोग उनस डरो नही और िसफ़र मझस डरो और (दसरा फ़ायदा य ह) तािक तम पर अपनी नअमत परी कर द

151 और तीसरा फायदा य ह तािक तम िहदायत पाओ मसलमान य एहसान भी वसा

ही ह जस हम न तम म तम ही म का एक रसल भजा जो तमको हमारी आयत पढ़ कर सनाए और त हार न स को पाकीज़ा कर और त ह िकताब क़रान और अकल की बात िसखाए और तम को वह बात बताए िजन की त ह पहल स खबर भी न थी

152 पस तम हमारी याद रखो तो म भी त हारा िज़कर (खर) िकया क गा और मरा

यिकरया अदा करत रहो और नाशकरी न करो

सरः अल-बक़रा

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153 ऐ ईमानदार मसीबत क वकत सबर और नमाज़ क ज़िरए स ख़दा की मदद माग

बशक ख़दा सबर करन वाल ही का साथी ह 154 और जो लोग ख़दा की राह म मार गए उ ह कभी मदार न कहना बि क वह लोग

िज़ दा ह मगर तम उनकी िज़ दगी की हक़ीकत का कछ भी यऊर नही रखत 155 और हम त ह कछ खौफ़ और भख स और माल और जान और फल की कमी स

ज़ र आज़माएग और (ऐ रसल) ऐस सबर करन वाल को ख़शख़बरी द दो 156 िक जब उन पर कोई मसीबत आ पड़ी तो वह (बसाखता) बोल उठ हम तो ख़दा ही

क ह और हम उसी की तरफ लौट कर जान वाल ह 157 उ ही लोग पर उनक परवरिदगार की तरफ स इनायत ह और रहमत और यही

लोग िहदायत या ता ह 158 बशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़दा की िनशािनय म स ह पस जो शखस

ख़ानए काबा का हज या उमरा कर उस पर उन दोनो क (दरिमयान) तवाफ़ (आमद ओ र त) करन म कछ गनाह नही (बि क सवाब ह) और जो शखस खश खश नक काम कर तो िफर ख़दा भी क़दरदा (और) वािक़फ़कार ह

159 बशक जो लोग हमारी इन रौशन दलील और िहदायत को िज ह हमन नािज़ल

िकया उसक बाद िछपात ह जबिक हम िकताब तौरत म लोग क सामन साफ़ साफ़ बयान कर चक ह तो यही लोग ह िजन पर ख़दा भी लानत करता ह और लानत करन वाल भी लानत करत ह

160 मगर िजन लोग न (हक़ िछपान स) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर

ली और जो िकताब ख़दा म ह साफ़ साफ़ बयान कर िदया पस उन की तौबा म क़बल करता ह और म तो बड़ा तौबा क़बल करन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

सरः अल-बक़रा

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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िक) तम अपन ख़ािलक की बारगाह म तौबा करो और वह य ह िक अपन को क़ ल कर डालो त हार परवरिदगार क नज़दीक त हार हक़ म यही बहतर ह िफर जब तमन ऐसा िकया तो खदा न त हारी तौबा क़बल कर ली बशक वह बड़ा महरबान माफ़ करन वाला ह

55 और (वह वकत भी याद करो) जब तमन मसा स कहा था िक ऐ मसा हम तम पर उस वकत

तक ईमान न लाएग जब तक हम खदा को ज़ािहर बज़ािहर न दख ल उस पर त ह िबजली न

ल डाला और तम तकत ही रह गए

56 िफर त ह त हार मरन क बाद हमन िजला उठाया तािक तम शकर करो

57 और हमन तम पर अबर का साया िकया और तम पर मन व सलवा उतारा और (य भी तो कह

िदया था िक) जो सथरी व नफीस रोिज़या त ह दी ह उ ह शौक़ स खाओ और उन लोग न

हमारा तो कछ िबगड़ा नही मगर अपनी जान पर िसतम ढात रह

58 और (वह वकत भी याद करो) जब हमन तमस कहा िक इस गाव (अरीहा) म जाओ और इसम

जहा चाहो फराग़त स खाओ (िपयो) और दरवाज़ पर सजदा करत हए और ज़बान स िह ता बिखशश कहत हए आओ तो हम त हारी ख़ता य बखश दग और हम नकी करन वाल की नकी (सवाब) बढ़ा दग

59 तो जो बात उनस कही गई थी उस शरीर न बदलकर दसरी बात कहनी श कर दी तब हमन

उन लोग पर िज ह न शरारत की थी उनकी बदकारी की वजह स आसमानी बला नािज़ल

की

60 और (वह वकत भी याद करो) जब मसा न अपनी क़ौम क िलए पानी मागा तो हमन कहा (ऐ

मसा) अपनी लाठी प थर पर मारो (लाठी मारत ही) उसम स बारह च म फट िनकल और

सब लोग न अपना-अपना घाट बखबी जान िलया और हमन आम इजाज़त द दी िक खदा की दी हईरोज़ी स खाओ िपयो और म क म फसाद न करत िफरो

61 (और वह वकत भी याद करो) जब तमन मसा स कहा िक ऐ मसा हमस एक ही खान पर न

रहा जाएगा तो आप हमार िलए अपन परवरिदगार स दआ कीिजए िक जो चीज़ ज़मीन स

उगती ह जस साग पात तरकारी और ककड़ी और गह या (लहसन) और मसर और याज़

(मन व सलवा) की जगह पदा कर (मसा न) कहा कया तम ऐसी चीज़ को जो हर तरह स

बहतर ह अदना चीज़ स बदलन चाहत हो तो िकसी शहर म उतर पड़ो िफर त हार िलए जो तमन मागा ह सब मौजद ह और उन पर सवाई और मोहताजी की मार पड़ी और उन लोग

सरः अल-बक़रा

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न क़हर खदा की तरफ पलटा खाया य सब इस सबब स हआ िक वह लोग खदा की िनशािनय स इ कार करत थ और पग़ बर को नाहक शहीद करत थ और इस वजह स

(भी) िक वह नाफ़रमानी और सरकशी िकया करत थ

62 बशक मसलमान और यहिदय और नसरािनय और ला मज़हब म स जो कोई खदा और

रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए और अ छ-अ छ काम करता रह तो उ ही क िलए उनका अजर

व सवाब उनक खदा क पास ह और न (क़यामत म) उन पर िकसी का ख़ौफ होगा न वह

रजीदा िदल ह ग

63 और (वह वकत याद करो) जब हमन (तामील तौरत) का तमस एक़रार कर िलया और हमन

त हार सर पर तर स (पहाड़ को) लाकर लटकाया और कह िदया िक तौरत जो हमन तमको दी ह उसको मज़बत पकड़ रहो और जो कछ उसम ह उसको याद रखो

64 तािक तम परहज़गार बनो िफर उसक बाद तम (अपन एहदो पमान स) िफर गए पस अगर

तम पर खदा का फज़ल और उसकी महरबानी न होती तो तमन सखत घाटा उठाया होता

65 और अपनी क़ौम स उन लोग की हालत तो तम बखबी जानत हो जो श ब (सनीचर) क िदन

अपनी हद स गज़र गए (िक बावजद ममािनअत िशकार खलन िनकल) तो हमन उन स कहा िक तम राइ द गए ब दर बन जाओ (और वह ब दर हो गए)

66 पस हमन इस वाक़य स उन लोग क वा त िजन क सामन हआ था और जो उसक बाद

आनवाल थ अज़ाब क़रार िदया और परहज़गार क िलए नसीहत

67 और (वह वकत याद करो) जब मसा न अपनी क़ौम स कहा िक खदा तम लोग को ताकीदी हकम करता ह िक तम एक गाय िज़बाह करो वह लोग कहन लग कया तम हमस िद लगी करत हो मसा न कहा म खदा स पनाह मागता ह िक म जािहल बन

68 (तब वह लोग कहन लग िक (अ छा) तम अपन खदा स दआ करो िक हम बता द िक वह

गाय कसी हो मसा न कहा बशक खदा न फरमाता ह िक वह गाय न तो बहत बढ़ी हो और न

बिछया बि क उनम स औसत दरज की हो ग़रज़ जो तमको हकम िदया गया उसको बजा लाओ

सरः अल-बक़रा

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69 वह कहन लग (वाह) तम अपन खदा स दआ करो िक हम य बता द िक उसका रग आिख़र

कया हो मसा न कहा बशक खदा फरमाता ह िक वह गाय खब गहर ज़दर रग की हो दखन वाल

उस दखकर खश हो जाए

70 तब कहन लग िक तम अपन खदा स दआ करो िक हम ज़रा य तो बता द िक वह (गाय) और

कसी हो (वह) गाय तो और गाय म िमल जल गई और खदा न चाहा तो हम ज़ र (उसका) पता लगा लग

71 मसा न कहा खदा ज़ र फरमाता ह िक वह गाय न तो इतनी सधाई हो िक ज़मीन जोत न

खती सीच भली चगी एक रग की िक उसम कोई ध बा तक न हो वह बोल अब (जा क) ठीक-

ठीक बयान िकया ग़रज़ उन लोग न वह गाय हलाल की हालािक उनस उ मीद न थी वह

िक वह ऐसा करग

72 और जब एक शखस को मार डाला और तमम उसकी बाबत फट पड़ गई एक दसर को क़ाितल

बतान लगा जो तम िछपात थ

73 खदा को उसका ज़ािहर करना मजर था पस हमन कहा िक उस गाय को कोई टकड़ा लकर इस

(की लाश) पर मारो य खदा मद को िज़ दा करता ह और तम को अपनी कदरत की िनशािनया िदखा दता ह

74 तािक तम समझो िफर उसक बाद त हार िदल सखत हो गय पस वह िमसल प थर क

(सखत) थ या उसस भी यादा करखत कय िक प थर म बाज़ तो ऐस होत ह िक उनस नहर

जारी हो जाती ह और बाज़ ऐस होत ह िक उनम दरार पड़ जाती ह और उनम स पानी िनकल

पड़ता ह और बाज़ प थर तो ऐस होत ह िक खदा क ख़ौफ स िगर पड़त ह और जो कछ तम

कर रह हो उसस खदा ग़ािफल नही ह

75 (मसलमान ) कया तम य लालच रखत हो िक वह त हारा (सा) ईमान लाएग हालािक उनम

का एक िगरोह (सािबक़ म) ऐसा था िक खदा का कलाम सनाता था और अ छी तरह

समझन क बाद उलट फर कर दता था हालािक वह खब जानत थ और जब उन लोग स

मलाक़ात करत ह

76 जो ईमान लाए तो कह दत ह िक हम तो ईमान ला चक और जब उनस बाज़-बाज़ क साथ

तिख़लया करत ह तो कहत ह िक जो कछ खदा न तम पर (तौरत) म ज़ािहर कर िदया ह कया

सरः अल-बक़रा

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तम (मसलमान को) बता दोग तािक उसक सबब स कल त हार खदा क पास तम पर

ह जत लाए कया तम इतना भी नही समझत

77 लिकन कया वह लोग (इतना भी) नही जानत िक वह लोग जो कछ िछपात ह या ज़ािहर करत ह खदा सब कछ जानता ह

78 और कछ उनम स ऐस अनपढ़ ह िक वह िकताब खदा को अपन मतलब की बात क िसवा कछ नही समझत और वह फक़त खयाली बात िकया करत ह

79 पस वाए हो उन लोग पर जो अपन हाथ स िकताब िलखत ह िफर (लोग स कहत िफरत) ह

िक य खदा क यहा स (आई) ह तािक उसक ज़िरय स थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी फ़ायदा) हािसल कर पस अफसोस ह उन पर िक उनक हाथ न िलखा और िफर अफसोस ह उनपर िक

वह ऐसी कमाई करत ह

80 और कहत ह िक िगनती क च द िदन क िसवा हम आग छएगी भी तो नही (ऐ रसल) इन

लोग स कहो िक कया तमन खदा स कोई इक़रार ल िलया ह िक िफर वह िकसी तरह अपन

इक़रार क िख़लाफ़ हरिगज़ न करगा या ब समझ बझ खदा पर बोहताव जोड़त हो

81 हा (सच तो यह ह) िक िजसन बराई हािसल की और उसक गनाह न चार तरफ स उस घर

िलया ह वही लोग तो दोज़ख़ी ह और वही (तो) उसम हमशा रहग

82 और जो लोग ईमानदार ह और उ ह न अ छ काम िकए ह वही लोग ज नती ह िक हमशा ज नत म रहग

83 और (वह वकत याद करो) जब हमन बनी ईसराइल स (जो त हार बजरग़ थ) अहद व पमान

िलया था िक खदा क िसवा िकसी की इबादत न करना और मा बाप और क़राबतदार और

यतीम और मोहताज क साथ अ छ सलक करना और लोग क साथ अ छी तरह (नरमी) स बात करना और बराबर नमाज़ पढ़ना और ज़कात दना िफर तमम स थोड़ आिदिमय क

िसवा (सब क सब) िफर गए और तम लोग हो ही इक़रार स मह फरन वाल

84 और (वह वकत याद करो) जब हमन तम (त हार बज़रग ) स अहद िलया था िक आपस म

खरिज़या न करना और न अपन लोग को शहर बदर करना तो तम (त हार बजरग़ ) न

इक़रार िकया था और तम भी उसकी गवाही दत हो

सरः अल-बक़रा

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85 (िक हा ऐसा हआ था) िफर वही लोग तो तम हो िक आपस म एक दसर को क़ ल करत हो और अपन स एक ज थ क नाहक़ और ज़बरद ती िहमायती बनकर दसर को शहर बदर

करत हो (और ल फ़ तो य ह िक) अगर वही लोग क़दी बनकर त हार पास (मदद मागन)

आए तो उनको तावान दकर छड़ा लत हो हालािक उनका िनकालना ही तम पर हराम िकया गया था तो िफर कया तम (िकताब खदा की) बाज़ बात पर ईमान रखत हो और बाज़ स

इ कार करत हो पस तम म स जो लोग ऐसा कर उनकी सज़ा इसक िसवा और कछ नही िक

िज़ दगी भर की सवाई हो और (आिख़रकार) क़यामत क िदन सखत अज़ाब की तरफ लौटा िदय जाए और जो कछ तम लोग करत हो खदा उसस ग़ािफ़ल नही ह

86 यही वह लोग ह िज ह न आख़रत क बदल दिनया की िज़ दगी ख़रीद पस न उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी और न वह लोग िकसी तरह की मदद िदए जाएग

87 और य हक़ीक़ी बात ह िक हमन मसा को िकताब (तौरत) दी और उनक बाद बहत स पग़ बर

को उनक क़दम ब क़दम ल चल और मिरयम क बट ईसा को (भी बहत स) वाजए व रौशन

मौिजज िदए और पाक ह िजबरील क ज़िरय स उनकी मदद की कया तम उस क़दर

बदिदमाग़ हो गए हो िक जब कोई पग़ बर त हार पास त हारी खवािहश नफ़सानी क

िख़लाफ कोई हकम लकर आया तो तम अकड़ बठ िफर तमन बाज़ पग़ बर को तो झठलाया और बाज़ को जान स मार डाला

88 और कहन लग िक हमार िदल पर िग़लाफ चढ़ा हआ ह (ऐसा नही) बि क उनक कफर की वजह स खदा न उनपर लानत की ह पस कम ही लोग ईमान लात ह

89 और जब उनक पास खदा की तरफ़ स िकताब (करान आई और वह उस िकताब तौरत) की जो उन क पास तसदीक़ भी करती ह और उसस पहल (इसकी उ मीद पर) कािफ़र पर

फतहयाब होन की दआए मागत थ पस जब उनक पास वह चीज़ िजस पहचानत थ आ गई

तो लग इ कार करन पस कािफ़र पर खदा की लानत ह

90 कया ही बरा ह वह काम िजसक मक़ाबल म (इतनी बात पर) वह लोग अपनी जान बच बठ ह

िक खदा अपन ब द स िजस पर चाह अपनी इनायत स िकताब नािज़ल िकया कर इस र क

स जो कछ खदा न नािज़ल िकया ह सबका इ कार कर बठ पस उन पर ग़ज़ब पर ग़ज़ब टट

पड़ा और कािफ़र क िलए (बड़ी) सवाई का अज़ाब ह

91 और जब उनस कहा गया िक (जो क़रान) खदा न नािज़ल िकया ह उस पर ईमान लाओ तो कहन लग िक हम तो उसी िकताब (तौरत) पर ईमान लाए ह जो हम पर नािज़ल की गई थी

सरः अल-बक़रा

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और उस िकताब (करान) को जो उसक बाद आई ह नही मानत ह हालािक वह (क़रान) हक़ ह

और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करती ह मगर उस िकताब करान

का जो उसक बाद आई ह इ कार करत ह (ऐ रसल) उनस य तो पछो िक तम (त हार बजरग़)

अगर ईमानदार थ तो िफर कय खदा क पग़ बर का सािबक़ क़ ल करत थ

92 और त हार पास मसा तो वाज़ए व रौशन मौिजज़ लकर आ ही चक थ िफर भी तमन उनक

बाद बछड़ को खदा बना ही िलया और उसस तम अपन ही ऊपर ज़ म करन वाल थ

93 और (वह वकत याद करो) जब हमन तमस अहद िलया और (क़ोह) तर को (त हारी उदल

हकमी स) त हार सर पर लटकाया और (हमन कहा िक य िकताब तौरत) जो हमन दी ह

मज़बती स िलए रहो और (जो कछ उसम ह) सनो तो कहन लग सना तो (सही लिकन) हम

इसको मानत नही और उनकी बईमानी की वजह स (गोया) बछड़ की उलफ़त घोल क उनक

िदल म िपला दी गई (ऐ रसल) उन लोग स कह दो िक अगर तम ईमानदार थ तो तमको त हारा ईमान कया ही बरा हकम करता था

94 (ऐ रसल) इन लोग स कह दो िक अगर खदा क नज़दीक आख़रत का घर (बिह त) ख़ास

त हार वा त ह और लोग क वासत नही ह पस अगर तम स च हो तो मौत की आरज क़रो

95 (तािक ज दी बिह त म जाओ) लिकन वह उन आमाल बद की वजह स िजनको उनक हाथ

न पहल स आग भजा ह हरिगज़ मौत की आरज़ न करग और खदा ज़ािलम स खब वािक़फ

96 और (ऐ रसल) तम उन ही को िज़ दगी का सबस यादा हरीस पाओग और मशिरक़ म स

हर एक शखस चाहता ह िक काश उसको हज़ार बरस की उमर दी जाती हालािक अगर इतनी तलानी उमर भी दी जाए तो वह ख़दा क अज़ाब स छटकारा दन वाली नही और जो कछ वह

लोग करत ह खदा उस दख रहा ह

97 (ऐ रसल उन लोग स) कह दो िक जो िजबरील का दशमन ह (उसका खदा दशमन ह)

कय िक उस फ़िर त न खदा क हकम स (इस करान को) त हार िदल पर डाला ह और वह

उन िकताब की भी तसदीक करता ह जो (पहल नािज़ल हो चकी ह और सब) उसक सामन

मौजद ह और ईमानदार क वा त खशख़बरी ह

98 जो शखस ख़दा और उसक फिर त और उसक रसल और (ख़ासकर) िजबराईल व

मीकाइल का दशमन हो तो बशक खदा भी (ऐस) कािफ़र का द मन ह

सरः अल-बक़रा

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99 और (ऐ रसल) हमन तम पर ऐसी िनशािनया नािज़ल की ह जो वाजए और रौशन ह और

ऐस नाफरमान क िसवा उनका कोई इ कार नही कर सकता

100 और उनकी य हालत ह िक जब कभी कोई अहद िकया तो उनम स एक फरीक़ न तोड़ डाला बि क उनम स अकसर तो ईमान ही नही रखत

101 और जब उनक पास खदा की तरफ स रसल (मोह मद) आया और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करता ह तो उन अहल िकताब क एक िगरोह न िकताब खदा को अपन पस प त फक िदया गोया वह लोग कछ जानत ही नही और उस मतर क पीछ पड़

गए

102 िजसको सलमान क ज़मान की सलतनत म शयातीन जपा करत थ हालािक सलमान न

कफर नही इख़तयार िकया लिकन शतान न कफर एख़तयार िकया िक वह लोग को जाद

िसखाया करत थ और वह चीज़ जो हा त और मा त दोन फ़िर त पर बाइिबल म नािज़ल

की गई थी हालािक य दोन फ़िर त िकसी को िसखात न थ जब तक य न कह दत थ िक हम

दोन तो फ़क़त (ज़िरयाए आज़माइश) ह पस तो (इस पर अमल करक) बईमान न हो जाना उस पर भी उनस वह (टोटक) सीखत थ िजनकी वजह स िमया बीवी म तफ़रक़ा डालत हालािक बग़र इ न खदाव दी वह अपनी इन बात स िकसी को ज़रर नही पहचा सकत थ

और य लोग ऐसी बात सीखत थ जो खद उ ह नक़सान पहचाती थी और कछ (नफा) पहचाती थी बावजद िक वह यक़ीनन जान चक थ िक जो शखस इन (बराईय ) का ख़रीदार

हआ वह आिख़रत म बनसीब ह और बशबह (मआवज़ा) बहत ही बड़ा ह िजसक बदल उ ह न

अपनी जान को बचा काश (उस कछ) सोच समझ होत

103 और अगर वह ईमान लात और जाद वग़रह स बचकर परहज़गार बनत तो खदा की दरगाह

स जो सवाब िमलता वह उसस कही बहतर होता काश य लोग (इतना तो) समझत

104 ऐ ईमानवाल तम (रसल को अपनी तरफ मताव ज करना चाहो तो) रआना (हमारी िरआयत कर) न कहा करो बि क उनज़रना (हम पर नज़र तव जो रख) कहा करो और (जी लगाकर) सनत रहो और कािफर क िलए ददरनाक अज़ाब ह

105 ऐ रसल अहल िकताब म स िजन लोग न कफर इख़तयार िकया वह और मशरकीन य नही चाहत ह िक तम पर त हार परवरिदगार की तरफ स भलाई (वही) नािज़ल की जाए और

सरः अल-बक़रा

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(उनका तो इसम कछ इजारा नही) खदा िजसको चाहता ह अपनी रहमत क िलए ख़ास कर

लता ह और खदा बड़ा फज़ल (करन) वाला ह

106 (ऐ रसल) हम जब कोई आयत म सख़ करत ह या त हार ज़हन स िमटा दत ह तो उसस

बहतर या वसी ही (और) नािज़ल भी कर दत ह कया तम नही जानत िक बशबहा खदा हर

चीज़ पर क़ािदर ह

107 कया तम नही जानत िक आसमान की सलतनत बशबहा ख़ास खदा ही क िलए ह और खदा क िसवा त हारा न कोई सरपर त ह न मददगार

108 (मसलमान ) कया तम चाहत हो िक तम भी अपन रसल स वस ही (बढ़ग) सवालात करो िजस तरह सािबक़ (पहल) ज़मान म मसा स (बतक) सवालात िकए गए थ और िजस शखस

न ईमान क बदल कफर एख़तयार िकया वह तो यक़ीनी सीध रा त स भटक गया

109 (मसलमान ) अहल िकताब म स अकसर लोग अपन िदली हसद की वजह स य खवािहश

रखत ह िक तमको ईमान लान क बाद िफर कािफ़र बना द (और ल फ तो य ह िक) उन पर

हक़ ज़ािहर हो चका ह उसक बाद भी (य तम ना बाक़ी ह) पस तम माफ करो और दरगज़र

करो यहा तक िक खदा अपना (कोई और) हकम भज बशक खदा हर चीज़ पर क़ािदर ह

110 और नमाज़ पढ़त रहो और ज़कात िदय जाओ और जो कछ भलाई अपन िलए (खदा क यहा) पहल स भज दोग उस (क सवाब) को मौजद पाआग जो कछ तम करत हो उस खदा ज़ र

दख रहा ह

111 और (यहद) कहत ह िक यहद (क िसवा) और (नसारा कहत ह िक) नसारा क िसवा कोई

बिह त म जान ही न पाएगा य उनक खयाली पलाव ह (ऐ रसल) तम उन स कहो िक भला अगर तम स च हो िक हम ही बिह त म जाएग तो अपनी दलील पश करो

112 हा अलब ता िजस शखस न खदा क आग अपना सर झका िदया और अ छ काम भी करता ह

तो उसक िलए उसक परवरिदगार क यहा उसका बदला (मौजद) ह और (आख़रत म) ऐस

लोग पर न िकसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐस लोग ग़मग़ीन होग

113 और यहद कहत ह िक नसारा का मज़हब कछ (ठीक) नही और नसारा कहत ह िक यहद का मज़हब कछ (ठीक) नही हालािक य दोन फरीक़ िकताब (खदा) पढ़त रहत ह इसी तरह उ ही जसी बात वह (मशरकीन अरब) भी िकया करत ह जो (खदा क एहकाम) कछ नही जानत तो

सरः अल-बक़रा

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िजस बात म य लोग पड़ झगड़त ह (दिनया म तो तय न होगा) क़यामत क िदन खदा उनक

दरिमयान ठीक फसला कर दगा

114 और उसस बढ़कर ज़ािलम कौन होगा जो खदा की मसिजद म उसका नाम िलए जान स

(लोग को) रोक और उनकी बरबादी क दर प हो ऐस ही को उसम जाना मनािसब नही मगर

सहम हए ऐस ही लोग क िलए दिनया म सवाई ह और ऐस ही लोग क िलए आख़रत म

बड़ा भारी अज़ाब ह

115 (त हार मसिजद म रोकन स कया होता ह कय िक सारी ज़मीन) खदा ही की ह (कया) परब

(कया) पि चम बस जहा कही िक़ ल की तरफ ख़ करो वही खदा का सामना ह बशक खदा बड़ी ग जाइश वाला और खब वािक़फ ह

116 और यहद कहन लग िक खदा औलाद रखता ह हालािक वह (इस बखड़ स) पाक ह बि क जो कछ ज़मीन व आसमान म ह सब उसी का ह और सब उसकी क फरमाबरदार ह

117 (वही) आसमान व ज़मीन का मोिजद ह और जब िकसी काम का करना ठान लता ह तो उसकी िनसबत िसफर कह दता ह िक हो जा पस वह (खद ब खद) हो जाता ह

118 और जो (मशरकीन) कछ नही जानत कहत ह िक खदा हमस (खद) कलाम कय नही करता या हमार पास (खद) कोई िनशानी कय नही आती इसी तरह उ ही की सी बात वह कर चक

ह जो उनस पहल थ उन सब क िदल आपस म िमलत जलत ह जो लोग यक़ीन रखत ह

उनको तो अपनी िनशािनया कय साफतौर पर िदखा चक

119 (ऐ रसल) हमन तमको दीन हक़ क साथ (बिह त की) खशख़बरी दन वाला और (अज़ाब स)

डरान वाला बनाकर भजा ह और दोज़िख़य क बार म तमस कछ न पछा जाएगा

120 और (ऐ रसल) न तो यहदी कभी तमस रज़ामद होग न नसारा यहा तक िक तम उनक मज़हब की परवी करो (ऐ रसल उनस) कह दो िक बस खदा ही की िहदायत तो िहदायत ह (बाक़ी ढकोसला ह) और अगर तम इसक बाद भी िक त हार पास इ म (क़रान) आ चका ह उनकी खवािहश पर चल तो (याद रह िक िफर) तमको खदा (क ग़ज़ब) स बचान वाला न कोई सरपर त होगा न मददगार

सरः अल-बक़रा

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121 िजन लोग को हमन िकताब (करान) दी ह वह लोग उस इस तरह पढ़त रहत ह जो उसक पढ़न का हक़ ह यही लोग उस पर ईमान लात ह और जो उसस इनकार करत ह वही लोग घाट म ह

122 बनी इसराईल मरी उन नअमत को याद करो जो मन तम को दी ह और य िक

मन तमको सार जहान पर फज़ीलत दी

123 और उस िदन स डरो िजस िदन कोई शखस िकसी की तरफ स न िफदया हो सकगा और न उसकी तरफ स कोई मआवज़ा क़बल िकया जाएगा और न कोई िसफािरश ही फायदा पहचा सकगी और न लोग मदद िदए जाएग

124 (ऐ रसल) बनी इसराईल को वह वकत भी याद िदलाओ जब इबराहीम को उनक

परवरिदगार न च द बात म आज़माया और उ ह न परा कर िदया तो खदा न फरमाया म तमको (लोग का) पशवा बनान वाला ह (हज़रत इबराहीम न) अज़र की और मरी औलाद म स फरमाया (हा मगर) मर इस अहद पर ज़ािलम म स कोई शखस फ़ायज़ नही हो सकता

125 (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब हमन ख़ानए काबा को लोग क सवाब

और पनाह की जगह क़रार दी और हकम िदया गया िक इबराहीम की (इस) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और इबराहीम व इसमाइल स अहद व पमान िलया िक मर (उस) घर को तवाफ़ और एतक़ाफ़ और क और सजदा करन वाल क वा त साफ सथरा रखो

126 और (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब इबराहीम न दआ मागी िक ऐ मर

परवरिदगार इस (शहर) को पनाह व अमन का शहर बना और उसक रहन वाल म स जो खदा और रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए उसको तरह-तरह क फल खान को द खदा न फरमाया (अ छा मगर) वो कफर इख़तयार करगा उसकी दिनया म च द रोज़ (उन चीज़ो स) फायदा उठान दगा िफर (आख़रत म) उसको मजबर करक दोज़ख़ की तरफ खीच ल जाऊगा और वह बहत बरा िठकाना ह

127 और (वह वकत याद िदलाओ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बिनयाद

बल द कर रह थ (और दआ) मागत जात थ िक ऐ हमार परवरिदगार हमारी (य

सरः अल-बक़रा

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िख़दमत) कबल कर बशक त ही (दआ का) सनन वाला (और उसका) जानन वाला ह

128 (और) ऐ हमार पालन वाल त हम अपना फरमाबरदार ब दा बना हमारी औलाद स

एक िगरोह (पदा कर) जो तरा फरमाबरदार हो और हमको हमार हज की जगह िदखा द और हमारी तौबा क़बल कर बशक त ही बड़ा तौबा कबल करन वाला महरबान ह

129 (और) ऐ हमार पालन वाल मकक वाल म उ ही म स एक रसल को भज जो

उनको तरी आयत पढ़कर सनाए और आसमानी िकताब और अकल की बात िसखाए और उन (क नफ़स) क पाकीज़ा कर द बशक त ही ग़ािलब और सािहब तदबीर ह

130 और कौन ह जो इबराहीम क तरीक़ स नफरत कर मगर जो अपन को अहमक़

बनाए और बशक हमन उनको दिनया म भी मि तख़ब कर िलया और वह ज़ र आख़रत म भी अ छ ही म स होग

131 जब उनस उनक परवरिदगार न कहा इ लाम कबल करो तो अज़र म सार जहा क

परवरिदगार पर इ लाम लाया 132 और इसी तरीक क़ी इबराहीम न अपनी औलाद स वसीयत की और याकब न (भी)

िक ऐ फरज़ द खदा न त हार वा त इस दीन (इ लाम) को पस द फरमाया ह पस तम हरिगज़ न मरना मगर मसलमान ही होकर

133 (ऐ यहद) कया तम उस वकत मौजद थ जब याकब क सर पर मौत आ खड़ी

हईउस वकत उ ह न अपन बट स कहा िक मर बाद िकसी की इबादत करोग कहन लग हम आप क माबद और आप क बाप दादाओ इबराहीम व इ माइल व इसहाक़ क माबद व यकता खदा की इबादत करग और हम उसक फरमाबरदार ह

134 (ऐ यहद) वह लोग थ जो चल बस जो उ ह न कमाया उनक आग आया और जो

तम कमाओग त हार आग आएगा और जो कछ भी वह करत थ उसकी पछगछ तमस नही होगी

सरः अल-बक़रा

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135 (यहदी ईसाई मसलमान स) कहत ह िक यहद या नसरानी हो जाओ तो राह रा त पर आ जाओग (ऐ रसल उनस) कह दो िक हम इबराहीम क तरीक़ पर ह जो बाितल स कतरा कर चलत थ और मशरकीन स न थ

136 (और ऐ मसलमान तम य) कहो िक हम तो खदा पर ईमान लाए ह और उस पर

जो हम पर नािज़ल िकया गया (करान) और जो सहीफ़ इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकब और औलाद याकब पर नािज़ल हए थ (उन पर) और जो िकताब मसा व ईसा को दी गई (उस पर) और जो और पग़ बर को उनक परवरिदगार की तरफ स उ ह िदया गया (उस पर) हम तो उनम स िकसी (एक) म भी तफरीक़ नही करत और हम तो खदा ही क फरमाबरदार ह

137 पस अगर य लोग भी उसी तरह ईमान लाए ह िजस तरह तम तो अलब ता राह

रा त पर आ गए और अगर वह इस तरीक स मह फर ल तो बस वह िसफर त हारी ही िज़द पर ह तो (ऐ रसल) उन (क शर) स (बचान को) त हार िलए खदा काफ़ी होगा और वह (सबकी हालत) खब जानता (और) सनता ह

138 (मसलमान स कहो िक) रग तो खदा ही का रग ह िजसम तम रग गए और खदाई

रग स बहतर कौन रग होगा और हम तो उसी की इबादत करत ह 139 (ऐ रसल) तम उनस पछो िक कया तम हम स खदा क बार झगड़त हो हालािक

वही हमारा (भी) परवरिदगार ह (वही) त हारा भी (परवरिदगार ह) हमार िलए ह हमारी कारगज़ािरया और त हार िलए त हारी कारसतािनया और हम तो िनरखर उसी म ह

140 कया तम कहत हो िक इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौद याकब सब क

सब यहदी या नसरानी थ (ऐ रसल उनस) पछो तो िक तम यादा वािक़फ़ हो या खदा और उसस बढ़कर कौन ज़ािलम होगा िजसक पास खदा की तरफ स गवाही (मौजद) हो (िक वह यहदी न थ) और िफर वह िछपाए और जो कछ तम करत हो खदा उसस बख़बर नही

141 य वह लोग थ जो िसधार चक जो कछ कमा गए उनक िलए था और जो कछ तम कमाओग त हार िलए होगा और जो कछ वह कर गज़र उसकी पछगछ तमस न होगी

सरः अल-बक़रा

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142 बाज़ अहमक़ लोग य कह बठग िक मसलमान िजस िक़बल बतल मक़ स की तरफ

पहल स सजदा करत थ उस स दसर िक़बल की तरफ मड़ जान का बाइस हआ ऐ रसल तम उनक जवाब म कहो िक परब पि चम सब ख़दा का ह िजस चाहता ह सीध रा त की तरफ िहदायत करता ह

143 और िजस तरह त हार िक़बल क बार म िहदायत की उसी तरह तम को आिदल

उ मत बनाया तािक और लोग क मक़ाबल म तम गवाह बनो और रसल मोह मद त हार मक़ाबल म गवाह बन और (ऐ रसल) िजस िक़बल की तरफ़ तम पहल सज़दा करत थ हम न उसको को िसफर इस वजह स िक़बला क़रार िदया था िक जब िक़बला बदला जाए तो हम उन लोग को जो रसल की परवी करत ह हम उन लोग स अलग दख ल जो उलट पाव िफरत ह अगरच य उलट फर िसवा उन लोग क िजन की ख़दा न िहदायत की ह सब पर शाक़ ज़ र ह और ख़दा ऐसा नही ह िक त हार ईमान नमाज़ को जो बतलमक़ स की तरफ पढ़ चक हो बरबाद कर द बशक ख़दा लोग पर बड़ा ही रफ़ीक व महरबान ह

144 ऐ रसल िक़बला बदलन क वा त बशक त हारा बार बार आसमान की तरफ मह

करना हम दख रह ह तो हम ज़ र तम को ऐस िक़बल की तरफ फर दग िक तम िनहाल हो जाओ अ छा तो नमाज़ ही म तम मि ज़द मोहतरम काब की तरफ मह कर लो और ऐ मसलमान तम जहा कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मह कर िलया करो और िजन लोग को िकताब तौरत वगरह दी गयी ह वह बख़बी जानत ह िक य तबदील िक़बल बहत बजा व द त ह और उस क परवरिदगार की तरफ़ स ह और जो कछ वह लोग करत ह उस स ख़दा बख़बर नही

145 और अगर अहल िकताब क सामन दिनया की सारी दलील पश कर दोग तो भी वह

त हार िक़बल को न मानग और न तम ही उनक िक़बल को मानन वाल हो और ख़द अहल िकताब भी एक दसर क िक़बल को नही मानत और जो इ म क़रान त हार पास आ चका ह उसक बाद भी अगर तम उनकी खवािहश पर चल तो अलब ता तम नाफ़रमान हो जाओग

सरः अल-बक़रा

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146 िजन लोग को हमन िकताब (तौरत वग़रह) दी ह वह िजस तरह अपन बट को पहचानत ह उसी तरह तरह वह उस पग़ बर को भी पहचानत ह और उन म कछ लोग तो ऐस भी ह जो दीदए व दािन ता (जान बझकर) हक़ बात को िछपात ह

147 ऐ रसल तबदील िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह पस तम कही शक

करन वाल म स न हो जाना 148 और हर फरीक़ क वा त एक िस त ह उसी की तरफ वह नमाज़ म अपना मह कर

लता ह पस तम ऐ मसलमान झगड़ को छोड़ दो और निकय म उन स लपक क आग बढ़ जाओ तम जहा कही होग ख़दा तम सबको अपनी तरफ ल आऐगा बशक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

149 और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा तक मकका स) तो भी नमाज़ म तम

अपना मह मि ज़द मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर िलया करो और बशक य नया िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह

150 और त हार काम स ख़दा ग़ािफल नही ह और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा

तक क मकका स तो भी) तम (नमाज़ म) अपना मह मि ज़द हराम की तरफ कर िलया करो और (ऐ रसल) तम जहा कही हआ करो तो नमाज़ म अपना मह उसी काबा की तरफ़ कर िलया करो (बार बार हकम दन का एक फायदा य ह तािक लोग का इ ज़ाम तम पर न आन पाए मगर उन म स जो लोग नाहक़ हठधमीर करत ह वह तो ज़ र इ ज़ाम दग) तो तम लोग उनस डरो नही और िसफ़र मझस डरो और (दसरा फ़ायदा य ह) तािक तम पर अपनी नअमत परी कर द

151 और तीसरा फायदा य ह तािक तम िहदायत पाओ मसलमान य एहसान भी वसा

ही ह जस हम न तम म तम ही म का एक रसल भजा जो तमको हमारी आयत पढ़ कर सनाए और त हार न स को पाकीज़ा कर और त ह िकताब क़रान और अकल की बात िसखाए और तम को वह बात बताए िजन की त ह पहल स खबर भी न थी

152 पस तम हमारी याद रखो तो म भी त हारा िज़कर (खर) िकया क गा और मरा

यिकरया अदा करत रहो और नाशकरी न करो

सरः अल-बक़रा

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153 ऐ ईमानदार मसीबत क वकत सबर और नमाज़ क ज़िरए स ख़दा की मदद माग

बशक ख़दा सबर करन वाल ही का साथी ह 154 और जो लोग ख़दा की राह म मार गए उ ह कभी मदार न कहना बि क वह लोग

िज़ दा ह मगर तम उनकी िज़ दगी की हक़ीकत का कछ भी यऊर नही रखत 155 और हम त ह कछ खौफ़ और भख स और माल और जान और फल की कमी स

ज़ र आज़माएग और (ऐ रसल) ऐस सबर करन वाल को ख़शख़बरी द दो 156 िक जब उन पर कोई मसीबत आ पड़ी तो वह (बसाखता) बोल उठ हम तो ख़दा ही

क ह और हम उसी की तरफ लौट कर जान वाल ह 157 उ ही लोग पर उनक परवरिदगार की तरफ स इनायत ह और रहमत और यही

लोग िहदायत या ता ह 158 बशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़दा की िनशािनय म स ह पस जो शखस

ख़ानए काबा का हज या उमरा कर उस पर उन दोनो क (दरिमयान) तवाफ़ (आमद ओ र त) करन म कछ गनाह नही (बि क सवाब ह) और जो शखस खश खश नक काम कर तो िफर ख़दा भी क़दरदा (और) वािक़फ़कार ह

159 बशक जो लोग हमारी इन रौशन दलील और िहदायत को िज ह हमन नािज़ल

िकया उसक बाद िछपात ह जबिक हम िकताब तौरत म लोग क सामन साफ़ साफ़ बयान कर चक ह तो यही लोग ह िजन पर ख़दा भी लानत करता ह और लानत करन वाल भी लानत करत ह

160 मगर िजन लोग न (हक़ िछपान स) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर

ली और जो िकताब ख़दा म ह साफ़ साफ़ बयान कर िदया पस उन की तौबा म क़बल करता ह और म तो बड़ा तौबा क़बल करन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

सरः अल-बक़रा

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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न क़हर खदा की तरफ पलटा खाया य सब इस सबब स हआ िक वह लोग खदा की िनशािनय स इ कार करत थ और पग़ बर को नाहक शहीद करत थ और इस वजह स

(भी) िक वह नाफ़रमानी और सरकशी िकया करत थ

62 बशक मसलमान और यहिदय और नसरािनय और ला मज़हब म स जो कोई खदा और

रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए और अ छ-अ छ काम करता रह तो उ ही क िलए उनका अजर

व सवाब उनक खदा क पास ह और न (क़यामत म) उन पर िकसी का ख़ौफ होगा न वह

रजीदा िदल ह ग

63 और (वह वकत याद करो) जब हमन (तामील तौरत) का तमस एक़रार कर िलया और हमन

त हार सर पर तर स (पहाड़ को) लाकर लटकाया और कह िदया िक तौरत जो हमन तमको दी ह उसको मज़बत पकड़ रहो और जो कछ उसम ह उसको याद रखो

64 तािक तम परहज़गार बनो िफर उसक बाद तम (अपन एहदो पमान स) िफर गए पस अगर

तम पर खदा का फज़ल और उसकी महरबानी न होती तो तमन सखत घाटा उठाया होता

65 और अपनी क़ौम स उन लोग की हालत तो तम बखबी जानत हो जो श ब (सनीचर) क िदन

अपनी हद स गज़र गए (िक बावजद ममािनअत िशकार खलन िनकल) तो हमन उन स कहा िक तम राइ द गए ब दर बन जाओ (और वह ब दर हो गए)

66 पस हमन इस वाक़य स उन लोग क वा त िजन क सामन हआ था और जो उसक बाद

आनवाल थ अज़ाब क़रार िदया और परहज़गार क िलए नसीहत

67 और (वह वकत याद करो) जब मसा न अपनी क़ौम स कहा िक खदा तम लोग को ताकीदी हकम करता ह िक तम एक गाय िज़बाह करो वह लोग कहन लग कया तम हमस िद लगी करत हो मसा न कहा म खदा स पनाह मागता ह िक म जािहल बन

68 (तब वह लोग कहन लग िक (अ छा) तम अपन खदा स दआ करो िक हम बता द िक वह

गाय कसी हो मसा न कहा बशक खदा न फरमाता ह िक वह गाय न तो बहत बढ़ी हो और न

बिछया बि क उनम स औसत दरज की हो ग़रज़ जो तमको हकम िदया गया उसको बजा लाओ

सरः अल-बक़रा

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69 वह कहन लग (वाह) तम अपन खदा स दआ करो िक हम य बता द िक उसका रग आिख़र

कया हो मसा न कहा बशक खदा फरमाता ह िक वह गाय खब गहर ज़दर रग की हो दखन वाल

उस दखकर खश हो जाए

70 तब कहन लग िक तम अपन खदा स दआ करो िक हम ज़रा य तो बता द िक वह (गाय) और

कसी हो (वह) गाय तो और गाय म िमल जल गई और खदा न चाहा तो हम ज़ र (उसका) पता लगा लग

71 मसा न कहा खदा ज़ र फरमाता ह िक वह गाय न तो इतनी सधाई हो िक ज़मीन जोत न

खती सीच भली चगी एक रग की िक उसम कोई ध बा तक न हो वह बोल अब (जा क) ठीक-

ठीक बयान िकया ग़रज़ उन लोग न वह गाय हलाल की हालािक उनस उ मीद न थी वह

िक वह ऐसा करग

72 और जब एक शखस को मार डाला और तमम उसकी बाबत फट पड़ गई एक दसर को क़ाितल

बतान लगा जो तम िछपात थ

73 खदा को उसका ज़ािहर करना मजर था पस हमन कहा िक उस गाय को कोई टकड़ा लकर इस

(की लाश) पर मारो य खदा मद को िज़ दा करता ह और तम को अपनी कदरत की िनशािनया िदखा दता ह

74 तािक तम समझो िफर उसक बाद त हार िदल सखत हो गय पस वह िमसल प थर क

(सखत) थ या उसस भी यादा करखत कय िक प थर म बाज़ तो ऐस होत ह िक उनस नहर

जारी हो जाती ह और बाज़ ऐस होत ह िक उनम दरार पड़ जाती ह और उनम स पानी िनकल

पड़ता ह और बाज़ प थर तो ऐस होत ह िक खदा क ख़ौफ स िगर पड़त ह और जो कछ तम

कर रह हो उसस खदा ग़ािफल नही ह

75 (मसलमान ) कया तम य लालच रखत हो िक वह त हारा (सा) ईमान लाएग हालािक उनम

का एक िगरोह (सािबक़ म) ऐसा था िक खदा का कलाम सनाता था और अ छी तरह

समझन क बाद उलट फर कर दता था हालािक वह खब जानत थ और जब उन लोग स

मलाक़ात करत ह

76 जो ईमान लाए तो कह दत ह िक हम तो ईमान ला चक और जब उनस बाज़-बाज़ क साथ

तिख़लया करत ह तो कहत ह िक जो कछ खदा न तम पर (तौरत) म ज़ािहर कर िदया ह कया

सरः अल-बक़रा

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तम (मसलमान को) बता दोग तािक उसक सबब स कल त हार खदा क पास तम पर

ह जत लाए कया तम इतना भी नही समझत

77 लिकन कया वह लोग (इतना भी) नही जानत िक वह लोग जो कछ िछपात ह या ज़ािहर करत ह खदा सब कछ जानता ह

78 और कछ उनम स ऐस अनपढ़ ह िक वह िकताब खदा को अपन मतलब की बात क िसवा कछ नही समझत और वह फक़त खयाली बात िकया करत ह

79 पस वाए हो उन लोग पर जो अपन हाथ स िकताब िलखत ह िफर (लोग स कहत िफरत) ह

िक य खदा क यहा स (आई) ह तािक उसक ज़िरय स थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी फ़ायदा) हािसल कर पस अफसोस ह उन पर िक उनक हाथ न िलखा और िफर अफसोस ह उनपर िक

वह ऐसी कमाई करत ह

80 और कहत ह िक िगनती क च द िदन क िसवा हम आग छएगी भी तो नही (ऐ रसल) इन

लोग स कहो िक कया तमन खदा स कोई इक़रार ल िलया ह िक िफर वह िकसी तरह अपन

इक़रार क िख़लाफ़ हरिगज़ न करगा या ब समझ बझ खदा पर बोहताव जोड़त हो

81 हा (सच तो यह ह) िक िजसन बराई हािसल की और उसक गनाह न चार तरफ स उस घर

िलया ह वही लोग तो दोज़ख़ी ह और वही (तो) उसम हमशा रहग

82 और जो लोग ईमानदार ह और उ ह न अ छ काम िकए ह वही लोग ज नती ह िक हमशा ज नत म रहग

83 और (वह वकत याद करो) जब हमन बनी ईसराइल स (जो त हार बजरग़ थ) अहद व पमान

िलया था िक खदा क िसवा िकसी की इबादत न करना और मा बाप और क़राबतदार और

यतीम और मोहताज क साथ अ छ सलक करना और लोग क साथ अ छी तरह (नरमी) स बात करना और बराबर नमाज़ पढ़ना और ज़कात दना िफर तमम स थोड़ आिदिमय क

िसवा (सब क सब) िफर गए और तम लोग हो ही इक़रार स मह फरन वाल

84 और (वह वकत याद करो) जब हमन तम (त हार बज़रग ) स अहद िलया था िक आपस म

खरिज़या न करना और न अपन लोग को शहर बदर करना तो तम (त हार बजरग़ ) न

इक़रार िकया था और तम भी उसकी गवाही दत हो

सरः अल-बक़रा

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85 (िक हा ऐसा हआ था) िफर वही लोग तो तम हो िक आपस म एक दसर को क़ ल करत हो और अपन स एक ज थ क नाहक़ और ज़बरद ती िहमायती बनकर दसर को शहर बदर

करत हो (और ल फ़ तो य ह िक) अगर वही लोग क़दी बनकर त हार पास (मदद मागन)

आए तो उनको तावान दकर छड़ा लत हो हालािक उनका िनकालना ही तम पर हराम िकया गया था तो िफर कया तम (िकताब खदा की) बाज़ बात पर ईमान रखत हो और बाज़ स

इ कार करत हो पस तम म स जो लोग ऐसा कर उनकी सज़ा इसक िसवा और कछ नही िक

िज़ दगी भर की सवाई हो और (आिख़रकार) क़यामत क िदन सखत अज़ाब की तरफ लौटा िदय जाए और जो कछ तम लोग करत हो खदा उसस ग़ािफ़ल नही ह

86 यही वह लोग ह िज ह न आख़रत क बदल दिनया की िज़ दगी ख़रीद पस न उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी और न वह लोग िकसी तरह की मदद िदए जाएग

87 और य हक़ीक़ी बात ह िक हमन मसा को िकताब (तौरत) दी और उनक बाद बहत स पग़ बर

को उनक क़दम ब क़दम ल चल और मिरयम क बट ईसा को (भी बहत स) वाजए व रौशन

मौिजज िदए और पाक ह िजबरील क ज़िरय स उनकी मदद की कया तम उस क़दर

बदिदमाग़ हो गए हो िक जब कोई पग़ बर त हार पास त हारी खवािहश नफ़सानी क

िख़लाफ कोई हकम लकर आया तो तम अकड़ बठ िफर तमन बाज़ पग़ बर को तो झठलाया और बाज़ को जान स मार डाला

88 और कहन लग िक हमार िदल पर िग़लाफ चढ़ा हआ ह (ऐसा नही) बि क उनक कफर की वजह स खदा न उनपर लानत की ह पस कम ही लोग ईमान लात ह

89 और जब उनक पास खदा की तरफ़ स िकताब (करान आई और वह उस िकताब तौरत) की जो उन क पास तसदीक़ भी करती ह और उसस पहल (इसकी उ मीद पर) कािफ़र पर

फतहयाब होन की दआए मागत थ पस जब उनक पास वह चीज़ िजस पहचानत थ आ गई

तो लग इ कार करन पस कािफ़र पर खदा की लानत ह

90 कया ही बरा ह वह काम िजसक मक़ाबल म (इतनी बात पर) वह लोग अपनी जान बच बठ ह

िक खदा अपन ब द स िजस पर चाह अपनी इनायत स िकताब नािज़ल िकया कर इस र क

स जो कछ खदा न नािज़ल िकया ह सबका इ कार कर बठ पस उन पर ग़ज़ब पर ग़ज़ब टट

पड़ा और कािफ़र क िलए (बड़ी) सवाई का अज़ाब ह

91 और जब उनस कहा गया िक (जो क़रान) खदा न नािज़ल िकया ह उस पर ईमान लाओ तो कहन लग िक हम तो उसी िकताब (तौरत) पर ईमान लाए ह जो हम पर नािज़ल की गई थी

सरः अल-बक़रा

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और उस िकताब (करान) को जो उसक बाद आई ह नही मानत ह हालािक वह (क़रान) हक़ ह

और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करती ह मगर उस िकताब करान

का जो उसक बाद आई ह इ कार करत ह (ऐ रसल) उनस य तो पछो िक तम (त हार बजरग़)

अगर ईमानदार थ तो िफर कय खदा क पग़ बर का सािबक़ क़ ल करत थ

92 और त हार पास मसा तो वाज़ए व रौशन मौिजज़ लकर आ ही चक थ िफर भी तमन उनक

बाद बछड़ को खदा बना ही िलया और उसस तम अपन ही ऊपर ज़ म करन वाल थ

93 और (वह वकत याद करो) जब हमन तमस अहद िलया और (क़ोह) तर को (त हारी उदल

हकमी स) त हार सर पर लटकाया और (हमन कहा िक य िकताब तौरत) जो हमन दी ह

मज़बती स िलए रहो और (जो कछ उसम ह) सनो तो कहन लग सना तो (सही लिकन) हम

इसको मानत नही और उनकी बईमानी की वजह स (गोया) बछड़ की उलफ़त घोल क उनक

िदल म िपला दी गई (ऐ रसल) उन लोग स कह दो िक अगर तम ईमानदार थ तो तमको त हारा ईमान कया ही बरा हकम करता था

94 (ऐ रसल) इन लोग स कह दो िक अगर खदा क नज़दीक आख़रत का घर (बिह त) ख़ास

त हार वा त ह और लोग क वासत नही ह पस अगर तम स च हो तो मौत की आरज क़रो

95 (तािक ज दी बिह त म जाओ) लिकन वह उन आमाल बद की वजह स िजनको उनक हाथ

न पहल स आग भजा ह हरिगज़ मौत की आरज़ न करग और खदा ज़ािलम स खब वािक़फ

96 और (ऐ रसल) तम उन ही को िज़ दगी का सबस यादा हरीस पाओग और मशिरक़ म स

हर एक शखस चाहता ह िक काश उसको हज़ार बरस की उमर दी जाती हालािक अगर इतनी तलानी उमर भी दी जाए तो वह ख़दा क अज़ाब स छटकारा दन वाली नही और जो कछ वह

लोग करत ह खदा उस दख रहा ह

97 (ऐ रसल उन लोग स) कह दो िक जो िजबरील का दशमन ह (उसका खदा दशमन ह)

कय िक उस फ़िर त न खदा क हकम स (इस करान को) त हार िदल पर डाला ह और वह

उन िकताब की भी तसदीक करता ह जो (पहल नािज़ल हो चकी ह और सब) उसक सामन

मौजद ह और ईमानदार क वा त खशख़बरी ह

98 जो शखस ख़दा और उसक फिर त और उसक रसल और (ख़ासकर) िजबराईल व

मीकाइल का दशमन हो तो बशक खदा भी (ऐस) कािफ़र का द मन ह

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99 और (ऐ रसल) हमन तम पर ऐसी िनशािनया नािज़ल की ह जो वाजए और रौशन ह और

ऐस नाफरमान क िसवा उनका कोई इ कार नही कर सकता

100 और उनकी य हालत ह िक जब कभी कोई अहद िकया तो उनम स एक फरीक़ न तोड़ डाला बि क उनम स अकसर तो ईमान ही नही रखत

101 और जब उनक पास खदा की तरफ स रसल (मोह मद) आया और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करता ह तो उन अहल िकताब क एक िगरोह न िकताब खदा को अपन पस प त फक िदया गोया वह लोग कछ जानत ही नही और उस मतर क पीछ पड़

गए

102 िजसको सलमान क ज़मान की सलतनत म शयातीन जपा करत थ हालािक सलमान न

कफर नही इख़तयार िकया लिकन शतान न कफर एख़तयार िकया िक वह लोग को जाद

िसखाया करत थ और वह चीज़ जो हा त और मा त दोन फ़िर त पर बाइिबल म नािज़ल

की गई थी हालािक य दोन फ़िर त िकसी को िसखात न थ जब तक य न कह दत थ िक हम

दोन तो फ़क़त (ज़िरयाए आज़माइश) ह पस तो (इस पर अमल करक) बईमान न हो जाना उस पर भी उनस वह (टोटक) सीखत थ िजनकी वजह स िमया बीवी म तफ़रक़ा डालत हालािक बग़र इ न खदाव दी वह अपनी इन बात स िकसी को ज़रर नही पहचा सकत थ

और य लोग ऐसी बात सीखत थ जो खद उ ह नक़सान पहचाती थी और कछ (नफा) पहचाती थी बावजद िक वह यक़ीनन जान चक थ िक जो शखस इन (बराईय ) का ख़रीदार

हआ वह आिख़रत म बनसीब ह और बशबह (मआवज़ा) बहत ही बड़ा ह िजसक बदल उ ह न

अपनी जान को बचा काश (उस कछ) सोच समझ होत

103 और अगर वह ईमान लात और जाद वग़रह स बचकर परहज़गार बनत तो खदा की दरगाह

स जो सवाब िमलता वह उसस कही बहतर होता काश य लोग (इतना तो) समझत

104 ऐ ईमानवाल तम (रसल को अपनी तरफ मताव ज करना चाहो तो) रआना (हमारी िरआयत कर) न कहा करो बि क उनज़रना (हम पर नज़र तव जो रख) कहा करो और (जी लगाकर) सनत रहो और कािफर क िलए ददरनाक अज़ाब ह

105 ऐ रसल अहल िकताब म स िजन लोग न कफर इख़तयार िकया वह और मशरकीन य नही चाहत ह िक तम पर त हार परवरिदगार की तरफ स भलाई (वही) नािज़ल की जाए और

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(उनका तो इसम कछ इजारा नही) खदा िजसको चाहता ह अपनी रहमत क िलए ख़ास कर

लता ह और खदा बड़ा फज़ल (करन) वाला ह

106 (ऐ रसल) हम जब कोई आयत म सख़ करत ह या त हार ज़हन स िमटा दत ह तो उसस

बहतर या वसी ही (और) नािज़ल भी कर दत ह कया तम नही जानत िक बशबहा खदा हर

चीज़ पर क़ािदर ह

107 कया तम नही जानत िक आसमान की सलतनत बशबहा ख़ास खदा ही क िलए ह और खदा क िसवा त हारा न कोई सरपर त ह न मददगार

108 (मसलमान ) कया तम चाहत हो िक तम भी अपन रसल स वस ही (बढ़ग) सवालात करो िजस तरह सािबक़ (पहल) ज़मान म मसा स (बतक) सवालात िकए गए थ और िजस शखस

न ईमान क बदल कफर एख़तयार िकया वह तो यक़ीनी सीध रा त स भटक गया

109 (मसलमान ) अहल िकताब म स अकसर लोग अपन िदली हसद की वजह स य खवािहश

रखत ह िक तमको ईमान लान क बाद िफर कािफ़र बना द (और ल फ तो य ह िक) उन पर

हक़ ज़ािहर हो चका ह उसक बाद भी (य तम ना बाक़ी ह) पस तम माफ करो और दरगज़र

करो यहा तक िक खदा अपना (कोई और) हकम भज बशक खदा हर चीज़ पर क़ािदर ह

110 और नमाज़ पढ़त रहो और ज़कात िदय जाओ और जो कछ भलाई अपन िलए (खदा क यहा) पहल स भज दोग उस (क सवाब) को मौजद पाआग जो कछ तम करत हो उस खदा ज़ र

दख रहा ह

111 और (यहद) कहत ह िक यहद (क िसवा) और (नसारा कहत ह िक) नसारा क िसवा कोई

बिह त म जान ही न पाएगा य उनक खयाली पलाव ह (ऐ रसल) तम उन स कहो िक भला अगर तम स च हो िक हम ही बिह त म जाएग तो अपनी दलील पश करो

112 हा अलब ता िजस शखस न खदा क आग अपना सर झका िदया और अ छ काम भी करता ह

तो उसक िलए उसक परवरिदगार क यहा उसका बदला (मौजद) ह और (आख़रत म) ऐस

लोग पर न िकसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐस लोग ग़मग़ीन होग

113 और यहद कहत ह िक नसारा का मज़हब कछ (ठीक) नही और नसारा कहत ह िक यहद का मज़हब कछ (ठीक) नही हालािक य दोन फरीक़ िकताब (खदा) पढ़त रहत ह इसी तरह उ ही जसी बात वह (मशरकीन अरब) भी िकया करत ह जो (खदा क एहकाम) कछ नही जानत तो

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िजस बात म य लोग पड़ झगड़त ह (दिनया म तो तय न होगा) क़यामत क िदन खदा उनक

दरिमयान ठीक फसला कर दगा

114 और उसस बढ़कर ज़ािलम कौन होगा जो खदा की मसिजद म उसका नाम िलए जान स

(लोग को) रोक और उनकी बरबादी क दर प हो ऐस ही को उसम जाना मनािसब नही मगर

सहम हए ऐस ही लोग क िलए दिनया म सवाई ह और ऐस ही लोग क िलए आख़रत म

बड़ा भारी अज़ाब ह

115 (त हार मसिजद म रोकन स कया होता ह कय िक सारी ज़मीन) खदा ही की ह (कया) परब

(कया) पि चम बस जहा कही िक़ ल की तरफ ख़ करो वही खदा का सामना ह बशक खदा बड़ी ग जाइश वाला और खब वािक़फ ह

116 और यहद कहन लग िक खदा औलाद रखता ह हालािक वह (इस बखड़ स) पाक ह बि क जो कछ ज़मीन व आसमान म ह सब उसी का ह और सब उसकी क फरमाबरदार ह

117 (वही) आसमान व ज़मीन का मोिजद ह और जब िकसी काम का करना ठान लता ह तो उसकी िनसबत िसफर कह दता ह िक हो जा पस वह (खद ब खद) हो जाता ह

118 और जो (मशरकीन) कछ नही जानत कहत ह िक खदा हमस (खद) कलाम कय नही करता या हमार पास (खद) कोई िनशानी कय नही आती इसी तरह उ ही की सी बात वह कर चक

ह जो उनस पहल थ उन सब क िदल आपस म िमलत जलत ह जो लोग यक़ीन रखत ह

उनको तो अपनी िनशािनया कय साफतौर पर िदखा चक

119 (ऐ रसल) हमन तमको दीन हक़ क साथ (बिह त की) खशख़बरी दन वाला और (अज़ाब स)

डरान वाला बनाकर भजा ह और दोज़िख़य क बार म तमस कछ न पछा जाएगा

120 और (ऐ रसल) न तो यहदी कभी तमस रज़ामद होग न नसारा यहा तक िक तम उनक मज़हब की परवी करो (ऐ रसल उनस) कह दो िक बस खदा ही की िहदायत तो िहदायत ह (बाक़ी ढकोसला ह) और अगर तम इसक बाद भी िक त हार पास इ म (क़रान) आ चका ह उनकी खवािहश पर चल तो (याद रह िक िफर) तमको खदा (क ग़ज़ब) स बचान वाला न कोई सरपर त होगा न मददगार

सरः अल-बक़रा

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121 िजन लोग को हमन िकताब (करान) दी ह वह लोग उस इस तरह पढ़त रहत ह जो उसक पढ़न का हक़ ह यही लोग उस पर ईमान लात ह और जो उसस इनकार करत ह वही लोग घाट म ह

122 बनी इसराईल मरी उन नअमत को याद करो जो मन तम को दी ह और य िक

मन तमको सार जहान पर फज़ीलत दी

123 और उस िदन स डरो िजस िदन कोई शखस िकसी की तरफ स न िफदया हो सकगा और न उसकी तरफ स कोई मआवज़ा क़बल िकया जाएगा और न कोई िसफािरश ही फायदा पहचा सकगी और न लोग मदद िदए जाएग

124 (ऐ रसल) बनी इसराईल को वह वकत भी याद िदलाओ जब इबराहीम को उनक

परवरिदगार न च द बात म आज़माया और उ ह न परा कर िदया तो खदा न फरमाया म तमको (लोग का) पशवा बनान वाला ह (हज़रत इबराहीम न) अज़र की और मरी औलाद म स फरमाया (हा मगर) मर इस अहद पर ज़ािलम म स कोई शखस फ़ायज़ नही हो सकता

125 (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब हमन ख़ानए काबा को लोग क सवाब

और पनाह की जगह क़रार दी और हकम िदया गया िक इबराहीम की (इस) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और इबराहीम व इसमाइल स अहद व पमान िलया िक मर (उस) घर को तवाफ़ और एतक़ाफ़ और क और सजदा करन वाल क वा त साफ सथरा रखो

126 और (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब इबराहीम न दआ मागी िक ऐ मर

परवरिदगार इस (शहर) को पनाह व अमन का शहर बना और उसक रहन वाल म स जो खदा और रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए उसको तरह-तरह क फल खान को द खदा न फरमाया (अ छा मगर) वो कफर इख़तयार करगा उसकी दिनया म च द रोज़ (उन चीज़ो स) फायदा उठान दगा िफर (आख़रत म) उसको मजबर करक दोज़ख़ की तरफ खीच ल जाऊगा और वह बहत बरा िठकाना ह

127 और (वह वकत याद िदलाओ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बिनयाद

बल द कर रह थ (और दआ) मागत जात थ िक ऐ हमार परवरिदगार हमारी (य

सरः अल-बक़रा

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िख़दमत) कबल कर बशक त ही (दआ का) सनन वाला (और उसका) जानन वाला ह

128 (और) ऐ हमार पालन वाल त हम अपना फरमाबरदार ब दा बना हमारी औलाद स

एक िगरोह (पदा कर) जो तरा फरमाबरदार हो और हमको हमार हज की जगह िदखा द और हमारी तौबा क़बल कर बशक त ही बड़ा तौबा कबल करन वाला महरबान ह

129 (और) ऐ हमार पालन वाल मकक वाल म उ ही म स एक रसल को भज जो

उनको तरी आयत पढ़कर सनाए और आसमानी िकताब और अकल की बात िसखाए और उन (क नफ़स) क पाकीज़ा कर द बशक त ही ग़ािलब और सािहब तदबीर ह

130 और कौन ह जो इबराहीम क तरीक़ स नफरत कर मगर जो अपन को अहमक़

बनाए और बशक हमन उनको दिनया म भी मि तख़ब कर िलया और वह ज़ र आख़रत म भी अ छ ही म स होग

131 जब उनस उनक परवरिदगार न कहा इ लाम कबल करो तो अज़र म सार जहा क

परवरिदगार पर इ लाम लाया 132 और इसी तरीक क़ी इबराहीम न अपनी औलाद स वसीयत की और याकब न (भी)

िक ऐ फरज़ द खदा न त हार वा त इस दीन (इ लाम) को पस द फरमाया ह पस तम हरिगज़ न मरना मगर मसलमान ही होकर

133 (ऐ यहद) कया तम उस वकत मौजद थ जब याकब क सर पर मौत आ खड़ी

हईउस वकत उ ह न अपन बट स कहा िक मर बाद िकसी की इबादत करोग कहन लग हम आप क माबद और आप क बाप दादाओ इबराहीम व इ माइल व इसहाक़ क माबद व यकता खदा की इबादत करग और हम उसक फरमाबरदार ह

134 (ऐ यहद) वह लोग थ जो चल बस जो उ ह न कमाया उनक आग आया और जो

तम कमाओग त हार आग आएगा और जो कछ भी वह करत थ उसकी पछगछ तमस नही होगी

सरः अल-बक़रा

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135 (यहदी ईसाई मसलमान स) कहत ह िक यहद या नसरानी हो जाओ तो राह रा त पर आ जाओग (ऐ रसल उनस) कह दो िक हम इबराहीम क तरीक़ पर ह जो बाितल स कतरा कर चलत थ और मशरकीन स न थ

136 (और ऐ मसलमान तम य) कहो िक हम तो खदा पर ईमान लाए ह और उस पर

जो हम पर नािज़ल िकया गया (करान) और जो सहीफ़ इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकब और औलाद याकब पर नािज़ल हए थ (उन पर) और जो िकताब मसा व ईसा को दी गई (उस पर) और जो और पग़ बर को उनक परवरिदगार की तरफ स उ ह िदया गया (उस पर) हम तो उनम स िकसी (एक) म भी तफरीक़ नही करत और हम तो खदा ही क फरमाबरदार ह

137 पस अगर य लोग भी उसी तरह ईमान लाए ह िजस तरह तम तो अलब ता राह

रा त पर आ गए और अगर वह इस तरीक स मह फर ल तो बस वह िसफर त हारी ही िज़द पर ह तो (ऐ रसल) उन (क शर) स (बचान को) त हार िलए खदा काफ़ी होगा और वह (सबकी हालत) खब जानता (और) सनता ह

138 (मसलमान स कहो िक) रग तो खदा ही का रग ह िजसम तम रग गए और खदाई

रग स बहतर कौन रग होगा और हम तो उसी की इबादत करत ह 139 (ऐ रसल) तम उनस पछो िक कया तम हम स खदा क बार झगड़त हो हालािक

वही हमारा (भी) परवरिदगार ह (वही) त हारा भी (परवरिदगार ह) हमार िलए ह हमारी कारगज़ािरया और त हार िलए त हारी कारसतािनया और हम तो िनरखर उसी म ह

140 कया तम कहत हो िक इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौद याकब सब क

सब यहदी या नसरानी थ (ऐ रसल उनस) पछो तो िक तम यादा वािक़फ़ हो या खदा और उसस बढ़कर कौन ज़ािलम होगा िजसक पास खदा की तरफ स गवाही (मौजद) हो (िक वह यहदी न थ) और िफर वह िछपाए और जो कछ तम करत हो खदा उसस बख़बर नही

141 य वह लोग थ जो िसधार चक जो कछ कमा गए उनक िलए था और जो कछ तम कमाओग त हार िलए होगा और जो कछ वह कर गज़र उसकी पछगछ तमस न होगी

सरः अल-बक़रा

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142 बाज़ अहमक़ लोग य कह बठग िक मसलमान िजस िक़बल बतल मक़ स की तरफ

पहल स सजदा करत थ उस स दसर िक़बल की तरफ मड़ जान का बाइस हआ ऐ रसल तम उनक जवाब म कहो िक परब पि चम सब ख़दा का ह िजस चाहता ह सीध रा त की तरफ िहदायत करता ह

143 और िजस तरह त हार िक़बल क बार म िहदायत की उसी तरह तम को आिदल

उ मत बनाया तािक और लोग क मक़ाबल म तम गवाह बनो और रसल मोह मद त हार मक़ाबल म गवाह बन और (ऐ रसल) िजस िक़बल की तरफ़ तम पहल सज़दा करत थ हम न उसको को िसफर इस वजह स िक़बला क़रार िदया था िक जब िक़बला बदला जाए तो हम उन लोग को जो रसल की परवी करत ह हम उन लोग स अलग दख ल जो उलट पाव िफरत ह अगरच य उलट फर िसवा उन लोग क िजन की ख़दा न िहदायत की ह सब पर शाक़ ज़ र ह और ख़दा ऐसा नही ह िक त हार ईमान नमाज़ को जो बतलमक़ स की तरफ पढ़ चक हो बरबाद कर द बशक ख़दा लोग पर बड़ा ही रफ़ीक व महरबान ह

144 ऐ रसल िक़बला बदलन क वा त बशक त हारा बार बार आसमान की तरफ मह

करना हम दख रह ह तो हम ज़ र तम को ऐस िक़बल की तरफ फर दग िक तम िनहाल हो जाओ अ छा तो नमाज़ ही म तम मि ज़द मोहतरम काब की तरफ मह कर लो और ऐ मसलमान तम जहा कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मह कर िलया करो और िजन लोग को िकताब तौरत वगरह दी गयी ह वह बख़बी जानत ह िक य तबदील िक़बल बहत बजा व द त ह और उस क परवरिदगार की तरफ़ स ह और जो कछ वह लोग करत ह उस स ख़दा बख़बर नही

145 और अगर अहल िकताब क सामन दिनया की सारी दलील पश कर दोग तो भी वह

त हार िक़बल को न मानग और न तम ही उनक िक़बल को मानन वाल हो और ख़द अहल िकताब भी एक दसर क िक़बल को नही मानत और जो इ म क़रान त हार पास आ चका ह उसक बाद भी अगर तम उनकी खवािहश पर चल तो अलब ता तम नाफ़रमान हो जाओग

सरः अल-बक़रा

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146 िजन लोग को हमन िकताब (तौरत वग़रह) दी ह वह िजस तरह अपन बट को पहचानत ह उसी तरह तरह वह उस पग़ बर को भी पहचानत ह और उन म कछ लोग तो ऐस भी ह जो दीदए व दािन ता (जान बझकर) हक़ बात को िछपात ह

147 ऐ रसल तबदील िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह पस तम कही शक

करन वाल म स न हो जाना 148 और हर फरीक़ क वा त एक िस त ह उसी की तरफ वह नमाज़ म अपना मह कर

लता ह पस तम ऐ मसलमान झगड़ को छोड़ दो और निकय म उन स लपक क आग बढ़ जाओ तम जहा कही होग ख़दा तम सबको अपनी तरफ ल आऐगा बशक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

149 और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा तक मकका स) तो भी नमाज़ म तम

अपना मह मि ज़द मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर िलया करो और बशक य नया िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह

150 और त हार काम स ख़दा ग़ािफल नही ह और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा

तक क मकका स तो भी) तम (नमाज़ म) अपना मह मि ज़द हराम की तरफ कर िलया करो और (ऐ रसल) तम जहा कही हआ करो तो नमाज़ म अपना मह उसी काबा की तरफ़ कर िलया करो (बार बार हकम दन का एक फायदा य ह तािक लोग का इ ज़ाम तम पर न आन पाए मगर उन म स जो लोग नाहक़ हठधमीर करत ह वह तो ज़ र इ ज़ाम दग) तो तम लोग उनस डरो नही और िसफ़र मझस डरो और (दसरा फ़ायदा य ह) तािक तम पर अपनी नअमत परी कर द

151 और तीसरा फायदा य ह तािक तम िहदायत पाओ मसलमान य एहसान भी वसा

ही ह जस हम न तम म तम ही म का एक रसल भजा जो तमको हमारी आयत पढ़ कर सनाए और त हार न स को पाकीज़ा कर और त ह िकताब क़रान और अकल की बात िसखाए और तम को वह बात बताए िजन की त ह पहल स खबर भी न थी

152 पस तम हमारी याद रखो तो म भी त हारा िज़कर (खर) िकया क गा और मरा

यिकरया अदा करत रहो और नाशकरी न करो

सरः अल-बक़रा

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153 ऐ ईमानदार मसीबत क वकत सबर और नमाज़ क ज़िरए स ख़दा की मदद माग

बशक ख़दा सबर करन वाल ही का साथी ह 154 और जो लोग ख़दा की राह म मार गए उ ह कभी मदार न कहना बि क वह लोग

िज़ दा ह मगर तम उनकी िज़ दगी की हक़ीकत का कछ भी यऊर नही रखत 155 और हम त ह कछ खौफ़ और भख स और माल और जान और फल की कमी स

ज़ र आज़माएग और (ऐ रसल) ऐस सबर करन वाल को ख़शख़बरी द दो 156 िक जब उन पर कोई मसीबत आ पड़ी तो वह (बसाखता) बोल उठ हम तो ख़दा ही

क ह और हम उसी की तरफ लौट कर जान वाल ह 157 उ ही लोग पर उनक परवरिदगार की तरफ स इनायत ह और रहमत और यही

लोग िहदायत या ता ह 158 बशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़दा की िनशािनय म स ह पस जो शखस

ख़ानए काबा का हज या उमरा कर उस पर उन दोनो क (दरिमयान) तवाफ़ (आमद ओ र त) करन म कछ गनाह नही (बि क सवाब ह) और जो शखस खश खश नक काम कर तो िफर ख़दा भी क़दरदा (और) वािक़फ़कार ह

159 बशक जो लोग हमारी इन रौशन दलील और िहदायत को िज ह हमन नािज़ल

िकया उसक बाद िछपात ह जबिक हम िकताब तौरत म लोग क सामन साफ़ साफ़ बयान कर चक ह तो यही लोग ह िजन पर ख़दा भी लानत करता ह और लानत करन वाल भी लानत करत ह

160 मगर िजन लोग न (हक़ िछपान स) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर

ली और जो िकताब ख़दा म ह साफ़ साफ़ बयान कर िदया पस उन की तौबा म क़बल करता ह और म तो बड़ा तौबा क़बल करन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

सरः अल-बक़रा

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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69 वह कहन लग (वाह) तम अपन खदा स दआ करो िक हम य बता द िक उसका रग आिख़र

कया हो मसा न कहा बशक खदा फरमाता ह िक वह गाय खब गहर ज़दर रग की हो दखन वाल

उस दखकर खश हो जाए

70 तब कहन लग िक तम अपन खदा स दआ करो िक हम ज़रा य तो बता द िक वह (गाय) और

कसी हो (वह) गाय तो और गाय म िमल जल गई और खदा न चाहा तो हम ज़ र (उसका) पता लगा लग

71 मसा न कहा खदा ज़ र फरमाता ह िक वह गाय न तो इतनी सधाई हो िक ज़मीन जोत न

खती सीच भली चगी एक रग की िक उसम कोई ध बा तक न हो वह बोल अब (जा क) ठीक-

ठीक बयान िकया ग़रज़ उन लोग न वह गाय हलाल की हालािक उनस उ मीद न थी वह

िक वह ऐसा करग

72 और जब एक शखस को मार डाला और तमम उसकी बाबत फट पड़ गई एक दसर को क़ाितल

बतान लगा जो तम िछपात थ

73 खदा को उसका ज़ािहर करना मजर था पस हमन कहा िक उस गाय को कोई टकड़ा लकर इस

(की लाश) पर मारो य खदा मद को िज़ दा करता ह और तम को अपनी कदरत की िनशािनया िदखा दता ह

74 तािक तम समझो िफर उसक बाद त हार िदल सखत हो गय पस वह िमसल प थर क

(सखत) थ या उसस भी यादा करखत कय िक प थर म बाज़ तो ऐस होत ह िक उनस नहर

जारी हो जाती ह और बाज़ ऐस होत ह िक उनम दरार पड़ जाती ह और उनम स पानी िनकल

पड़ता ह और बाज़ प थर तो ऐस होत ह िक खदा क ख़ौफ स िगर पड़त ह और जो कछ तम

कर रह हो उसस खदा ग़ािफल नही ह

75 (मसलमान ) कया तम य लालच रखत हो िक वह त हारा (सा) ईमान लाएग हालािक उनम

का एक िगरोह (सािबक़ म) ऐसा था िक खदा का कलाम सनाता था और अ छी तरह

समझन क बाद उलट फर कर दता था हालािक वह खब जानत थ और जब उन लोग स

मलाक़ात करत ह

76 जो ईमान लाए तो कह दत ह िक हम तो ईमान ला चक और जब उनस बाज़-बाज़ क साथ

तिख़लया करत ह तो कहत ह िक जो कछ खदा न तम पर (तौरत) म ज़ािहर कर िदया ह कया

सरः अल-बक़रा

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तम (मसलमान को) बता दोग तािक उसक सबब स कल त हार खदा क पास तम पर

ह जत लाए कया तम इतना भी नही समझत

77 लिकन कया वह लोग (इतना भी) नही जानत िक वह लोग जो कछ िछपात ह या ज़ािहर करत ह खदा सब कछ जानता ह

78 और कछ उनम स ऐस अनपढ़ ह िक वह िकताब खदा को अपन मतलब की बात क िसवा कछ नही समझत और वह फक़त खयाली बात िकया करत ह

79 पस वाए हो उन लोग पर जो अपन हाथ स िकताब िलखत ह िफर (लोग स कहत िफरत) ह

िक य खदा क यहा स (आई) ह तािक उसक ज़िरय स थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी फ़ायदा) हािसल कर पस अफसोस ह उन पर िक उनक हाथ न िलखा और िफर अफसोस ह उनपर िक

वह ऐसी कमाई करत ह

80 और कहत ह िक िगनती क च द िदन क िसवा हम आग छएगी भी तो नही (ऐ रसल) इन

लोग स कहो िक कया तमन खदा स कोई इक़रार ल िलया ह िक िफर वह िकसी तरह अपन

इक़रार क िख़लाफ़ हरिगज़ न करगा या ब समझ बझ खदा पर बोहताव जोड़त हो

81 हा (सच तो यह ह) िक िजसन बराई हािसल की और उसक गनाह न चार तरफ स उस घर

िलया ह वही लोग तो दोज़ख़ी ह और वही (तो) उसम हमशा रहग

82 और जो लोग ईमानदार ह और उ ह न अ छ काम िकए ह वही लोग ज नती ह िक हमशा ज नत म रहग

83 और (वह वकत याद करो) जब हमन बनी ईसराइल स (जो त हार बजरग़ थ) अहद व पमान

िलया था िक खदा क िसवा िकसी की इबादत न करना और मा बाप और क़राबतदार और

यतीम और मोहताज क साथ अ छ सलक करना और लोग क साथ अ छी तरह (नरमी) स बात करना और बराबर नमाज़ पढ़ना और ज़कात दना िफर तमम स थोड़ आिदिमय क

िसवा (सब क सब) िफर गए और तम लोग हो ही इक़रार स मह फरन वाल

84 और (वह वकत याद करो) जब हमन तम (त हार बज़रग ) स अहद िलया था िक आपस म

खरिज़या न करना और न अपन लोग को शहर बदर करना तो तम (त हार बजरग़ ) न

इक़रार िकया था और तम भी उसकी गवाही दत हो

सरः अल-बक़रा

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85 (िक हा ऐसा हआ था) िफर वही लोग तो तम हो िक आपस म एक दसर को क़ ल करत हो और अपन स एक ज थ क नाहक़ और ज़बरद ती िहमायती बनकर दसर को शहर बदर

करत हो (और ल फ़ तो य ह िक) अगर वही लोग क़दी बनकर त हार पास (मदद मागन)

आए तो उनको तावान दकर छड़ा लत हो हालािक उनका िनकालना ही तम पर हराम िकया गया था तो िफर कया तम (िकताब खदा की) बाज़ बात पर ईमान रखत हो और बाज़ स

इ कार करत हो पस तम म स जो लोग ऐसा कर उनकी सज़ा इसक िसवा और कछ नही िक

िज़ दगी भर की सवाई हो और (आिख़रकार) क़यामत क िदन सखत अज़ाब की तरफ लौटा िदय जाए और जो कछ तम लोग करत हो खदा उसस ग़ािफ़ल नही ह

86 यही वह लोग ह िज ह न आख़रत क बदल दिनया की िज़ दगी ख़रीद पस न उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी और न वह लोग िकसी तरह की मदद िदए जाएग

87 और य हक़ीक़ी बात ह िक हमन मसा को िकताब (तौरत) दी और उनक बाद बहत स पग़ बर

को उनक क़दम ब क़दम ल चल और मिरयम क बट ईसा को (भी बहत स) वाजए व रौशन

मौिजज िदए और पाक ह िजबरील क ज़िरय स उनकी मदद की कया तम उस क़दर

बदिदमाग़ हो गए हो िक जब कोई पग़ बर त हार पास त हारी खवािहश नफ़सानी क

िख़लाफ कोई हकम लकर आया तो तम अकड़ बठ िफर तमन बाज़ पग़ बर को तो झठलाया और बाज़ को जान स मार डाला

88 और कहन लग िक हमार िदल पर िग़लाफ चढ़ा हआ ह (ऐसा नही) बि क उनक कफर की वजह स खदा न उनपर लानत की ह पस कम ही लोग ईमान लात ह

89 और जब उनक पास खदा की तरफ़ स िकताब (करान आई और वह उस िकताब तौरत) की जो उन क पास तसदीक़ भी करती ह और उसस पहल (इसकी उ मीद पर) कािफ़र पर

फतहयाब होन की दआए मागत थ पस जब उनक पास वह चीज़ िजस पहचानत थ आ गई

तो लग इ कार करन पस कािफ़र पर खदा की लानत ह

90 कया ही बरा ह वह काम िजसक मक़ाबल म (इतनी बात पर) वह लोग अपनी जान बच बठ ह

िक खदा अपन ब द स िजस पर चाह अपनी इनायत स िकताब नािज़ल िकया कर इस र क

स जो कछ खदा न नािज़ल िकया ह सबका इ कार कर बठ पस उन पर ग़ज़ब पर ग़ज़ब टट

पड़ा और कािफ़र क िलए (बड़ी) सवाई का अज़ाब ह

91 और जब उनस कहा गया िक (जो क़रान) खदा न नािज़ल िकया ह उस पर ईमान लाओ तो कहन लग िक हम तो उसी िकताब (तौरत) पर ईमान लाए ह जो हम पर नािज़ल की गई थी

सरः अल-बक़रा

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और उस िकताब (करान) को जो उसक बाद आई ह नही मानत ह हालािक वह (क़रान) हक़ ह

और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करती ह मगर उस िकताब करान

का जो उसक बाद आई ह इ कार करत ह (ऐ रसल) उनस य तो पछो िक तम (त हार बजरग़)

अगर ईमानदार थ तो िफर कय खदा क पग़ बर का सािबक़ क़ ल करत थ

92 और त हार पास मसा तो वाज़ए व रौशन मौिजज़ लकर आ ही चक थ िफर भी तमन उनक

बाद बछड़ को खदा बना ही िलया और उसस तम अपन ही ऊपर ज़ म करन वाल थ

93 और (वह वकत याद करो) जब हमन तमस अहद िलया और (क़ोह) तर को (त हारी उदल

हकमी स) त हार सर पर लटकाया और (हमन कहा िक य िकताब तौरत) जो हमन दी ह

मज़बती स िलए रहो और (जो कछ उसम ह) सनो तो कहन लग सना तो (सही लिकन) हम

इसको मानत नही और उनकी बईमानी की वजह स (गोया) बछड़ की उलफ़त घोल क उनक

िदल म िपला दी गई (ऐ रसल) उन लोग स कह दो िक अगर तम ईमानदार थ तो तमको त हारा ईमान कया ही बरा हकम करता था

94 (ऐ रसल) इन लोग स कह दो िक अगर खदा क नज़दीक आख़रत का घर (बिह त) ख़ास

त हार वा त ह और लोग क वासत नही ह पस अगर तम स च हो तो मौत की आरज क़रो

95 (तािक ज दी बिह त म जाओ) लिकन वह उन आमाल बद की वजह स िजनको उनक हाथ

न पहल स आग भजा ह हरिगज़ मौत की आरज़ न करग और खदा ज़ािलम स खब वािक़फ

96 और (ऐ रसल) तम उन ही को िज़ दगी का सबस यादा हरीस पाओग और मशिरक़ म स

हर एक शखस चाहता ह िक काश उसको हज़ार बरस की उमर दी जाती हालािक अगर इतनी तलानी उमर भी दी जाए तो वह ख़दा क अज़ाब स छटकारा दन वाली नही और जो कछ वह

लोग करत ह खदा उस दख रहा ह

97 (ऐ रसल उन लोग स) कह दो िक जो िजबरील का दशमन ह (उसका खदा दशमन ह)

कय िक उस फ़िर त न खदा क हकम स (इस करान को) त हार िदल पर डाला ह और वह

उन िकताब की भी तसदीक करता ह जो (पहल नािज़ल हो चकी ह और सब) उसक सामन

मौजद ह और ईमानदार क वा त खशख़बरी ह

98 जो शखस ख़दा और उसक फिर त और उसक रसल और (ख़ासकर) िजबराईल व

मीकाइल का दशमन हो तो बशक खदा भी (ऐस) कािफ़र का द मन ह

सरः अल-बक़रा

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99 और (ऐ रसल) हमन तम पर ऐसी िनशािनया नािज़ल की ह जो वाजए और रौशन ह और

ऐस नाफरमान क िसवा उनका कोई इ कार नही कर सकता

100 और उनकी य हालत ह िक जब कभी कोई अहद िकया तो उनम स एक फरीक़ न तोड़ डाला बि क उनम स अकसर तो ईमान ही नही रखत

101 और जब उनक पास खदा की तरफ स रसल (मोह मद) आया और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करता ह तो उन अहल िकताब क एक िगरोह न िकताब खदा को अपन पस प त फक िदया गोया वह लोग कछ जानत ही नही और उस मतर क पीछ पड़

गए

102 िजसको सलमान क ज़मान की सलतनत म शयातीन जपा करत थ हालािक सलमान न

कफर नही इख़तयार िकया लिकन शतान न कफर एख़तयार िकया िक वह लोग को जाद

िसखाया करत थ और वह चीज़ जो हा त और मा त दोन फ़िर त पर बाइिबल म नािज़ल

की गई थी हालािक य दोन फ़िर त िकसी को िसखात न थ जब तक य न कह दत थ िक हम

दोन तो फ़क़त (ज़िरयाए आज़माइश) ह पस तो (इस पर अमल करक) बईमान न हो जाना उस पर भी उनस वह (टोटक) सीखत थ िजनकी वजह स िमया बीवी म तफ़रक़ा डालत हालािक बग़र इ न खदाव दी वह अपनी इन बात स िकसी को ज़रर नही पहचा सकत थ

और य लोग ऐसी बात सीखत थ जो खद उ ह नक़सान पहचाती थी और कछ (नफा) पहचाती थी बावजद िक वह यक़ीनन जान चक थ िक जो शखस इन (बराईय ) का ख़रीदार

हआ वह आिख़रत म बनसीब ह और बशबह (मआवज़ा) बहत ही बड़ा ह िजसक बदल उ ह न

अपनी जान को बचा काश (उस कछ) सोच समझ होत

103 और अगर वह ईमान लात और जाद वग़रह स बचकर परहज़गार बनत तो खदा की दरगाह

स जो सवाब िमलता वह उसस कही बहतर होता काश य लोग (इतना तो) समझत

104 ऐ ईमानवाल तम (रसल को अपनी तरफ मताव ज करना चाहो तो) रआना (हमारी िरआयत कर) न कहा करो बि क उनज़रना (हम पर नज़र तव जो रख) कहा करो और (जी लगाकर) सनत रहो और कािफर क िलए ददरनाक अज़ाब ह

105 ऐ रसल अहल िकताब म स िजन लोग न कफर इख़तयार िकया वह और मशरकीन य नही चाहत ह िक तम पर त हार परवरिदगार की तरफ स भलाई (वही) नािज़ल की जाए और

सरः अल-बक़रा

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(उनका तो इसम कछ इजारा नही) खदा िजसको चाहता ह अपनी रहमत क िलए ख़ास कर

लता ह और खदा बड़ा फज़ल (करन) वाला ह

106 (ऐ रसल) हम जब कोई आयत म सख़ करत ह या त हार ज़हन स िमटा दत ह तो उसस

बहतर या वसी ही (और) नािज़ल भी कर दत ह कया तम नही जानत िक बशबहा खदा हर

चीज़ पर क़ािदर ह

107 कया तम नही जानत िक आसमान की सलतनत बशबहा ख़ास खदा ही क िलए ह और खदा क िसवा त हारा न कोई सरपर त ह न मददगार

108 (मसलमान ) कया तम चाहत हो िक तम भी अपन रसल स वस ही (बढ़ग) सवालात करो िजस तरह सािबक़ (पहल) ज़मान म मसा स (बतक) सवालात िकए गए थ और िजस शखस

न ईमान क बदल कफर एख़तयार िकया वह तो यक़ीनी सीध रा त स भटक गया

109 (मसलमान ) अहल िकताब म स अकसर लोग अपन िदली हसद की वजह स य खवािहश

रखत ह िक तमको ईमान लान क बाद िफर कािफ़र बना द (और ल फ तो य ह िक) उन पर

हक़ ज़ािहर हो चका ह उसक बाद भी (य तम ना बाक़ी ह) पस तम माफ करो और दरगज़र

करो यहा तक िक खदा अपना (कोई और) हकम भज बशक खदा हर चीज़ पर क़ािदर ह

110 और नमाज़ पढ़त रहो और ज़कात िदय जाओ और जो कछ भलाई अपन िलए (खदा क यहा) पहल स भज दोग उस (क सवाब) को मौजद पाआग जो कछ तम करत हो उस खदा ज़ र

दख रहा ह

111 और (यहद) कहत ह िक यहद (क िसवा) और (नसारा कहत ह िक) नसारा क िसवा कोई

बिह त म जान ही न पाएगा य उनक खयाली पलाव ह (ऐ रसल) तम उन स कहो िक भला अगर तम स च हो िक हम ही बिह त म जाएग तो अपनी दलील पश करो

112 हा अलब ता िजस शखस न खदा क आग अपना सर झका िदया और अ छ काम भी करता ह

तो उसक िलए उसक परवरिदगार क यहा उसका बदला (मौजद) ह और (आख़रत म) ऐस

लोग पर न िकसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐस लोग ग़मग़ीन होग

113 और यहद कहत ह िक नसारा का मज़हब कछ (ठीक) नही और नसारा कहत ह िक यहद का मज़हब कछ (ठीक) नही हालािक य दोन फरीक़ िकताब (खदा) पढ़त रहत ह इसी तरह उ ही जसी बात वह (मशरकीन अरब) भी िकया करत ह जो (खदा क एहकाम) कछ नही जानत तो

सरः अल-बक़रा

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िजस बात म य लोग पड़ झगड़त ह (दिनया म तो तय न होगा) क़यामत क िदन खदा उनक

दरिमयान ठीक फसला कर दगा

114 और उसस बढ़कर ज़ािलम कौन होगा जो खदा की मसिजद म उसका नाम िलए जान स

(लोग को) रोक और उनकी बरबादी क दर प हो ऐस ही को उसम जाना मनािसब नही मगर

सहम हए ऐस ही लोग क िलए दिनया म सवाई ह और ऐस ही लोग क िलए आख़रत म

बड़ा भारी अज़ाब ह

115 (त हार मसिजद म रोकन स कया होता ह कय िक सारी ज़मीन) खदा ही की ह (कया) परब

(कया) पि चम बस जहा कही िक़ ल की तरफ ख़ करो वही खदा का सामना ह बशक खदा बड़ी ग जाइश वाला और खब वािक़फ ह

116 और यहद कहन लग िक खदा औलाद रखता ह हालािक वह (इस बखड़ स) पाक ह बि क जो कछ ज़मीन व आसमान म ह सब उसी का ह और सब उसकी क फरमाबरदार ह

117 (वही) आसमान व ज़मीन का मोिजद ह और जब िकसी काम का करना ठान लता ह तो उसकी िनसबत िसफर कह दता ह िक हो जा पस वह (खद ब खद) हो जाता ह

118 और जो (मशरकीन) कछ नही जानत कहत ह िक खदा हमस (खद) कलाम कय नही करता या हमार पास (खद) कोई िनशानी कय नही आती इसी तरह उ ही की सी बात वह कर चक

ह जो उनस पहल थ उन सब क िदल आपस म िमलत जलत ह जो लोग यक़ीन रखत ह

उनको तो अपनी िनशािनया कय साफतौर पर िदखा चक

119 (ऐ रसल) हमन तमको दीन हक़ क साथ (बिह त की) खशख़बरी दन वाला और (अज़ाब स)

डरान वाला बनाकर भजा ह और दोज़िख़य क बार म तमस कछ न पछा जाएगा

120 और (ऐ रसल) न तो यहदी कभी तमस रज़ामद होग न नसारा यहा तक िक तम उनक मज़हब की परवी करो (ऐ रसल उनस) कह दो िक बस खदा ही की िहदायत तो िहदायत ह (बाक़ी ढकोसला ह) और अगर तम इसक बाद भी िक त हार पास इ म (क़रान) आ चका ह उनकी खवािहश पर चल तो (याद रह िक िफर) तमको खदा (क ग़ज़ब) स बचान वाला न कोई सरपर त होगा न मददगार

सरः अल-बक़रा

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121 िजन लोग को हमन िकताब (करान) दी ह वह लोग उस इस तरह पढ़त रहत ह जो उसक पढ़न का हक़ ह यही लोग उस पर ईमान लात ह और जो उसस इनकार करत ह वही लोग घाट म ह

122 बनी इसराईल मरी उन नअमत को याद करो जो मन तम को दी ह और य िक

मन तमको सार जहान पर फज़ीलत दी

123 और उस िदन स डरो िजस िदन कोई शखस िकसी की तरफ स न िफदया हो सकगा और न उसकी तरफ स कोई मआवज़ा क़बल िकया जाएगा और न कोई िसफािरश ही फायदा पहचा सकगी और न लोग मदद िदए जाएग

124 (ऐ रसल) बनी इसराईल को वह वकत भी याद िदलाओ जब इबराहीम को उनक

परवरिदगार न च द बात म आज़माया और उ ह न परा कर िदया तो खदा न फरमाया म तमको (लोग का) पशवा बनान वाला ह (हज़रत इबराहीम न) अज़र की और मरी औलाद म स फरमाया (हा मगर) मर इस अहद पर ज़ािलम म स कोई शखस फ़ायज़ नही हो सकता

125 (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब हमन ख़ानए काबा को लोग क सवाब

और पनाह की जगह क़रार दी और हकम िदया गया िक इबराहीम की (इस) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और इबराहीम व इसमाइल स अहद व पमान िलया िक मर (उस) घर को तवाफ़ और एतक़ाफ़ और क और सजदा करन वाल क वा त साफ सथरा रखो

126 और (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब इबराहीम न दआ मागी िक ऐ मर

परवरिदगार इस (शहर) को पनाह व अमन का शहर बना और उसक रहन वाल म स जो खदा और रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए उसको तरह-तरह क फल खान को द खदा न फरमाया (अ छा मगर) वो कफर इख़तयार करगा उसकी दिनया म च द रोज़ (उन चीज़ो स) फायदा उठान दगा िफर (आख़रत म) उसको मजबर करक दोज़ख़ की तरफ खीच ल जाऊगा और वह बहत बरा िठकाना ह

127 और (वह वकत याद िदलाओ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बिनयाद

बल द कर रह थ (और दआ) मागत जात थ िक ऐ हमार परवरिदगार हमारी (य

सरः अल-बक़रा

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िख़दमत) कबल कर बशक त ही (दआ का) सनन वाला (और उसका) जानन वाला ह

128 (और) ऐ हमार पालन वाल त हम अपना फरमाबरदार ब दा बना हमारी औलाद स

एक िगरोह (पदा कर) जो तरा फरमाबरदार हो और हमको हमार हज की जगह िदखा द और हमारी तौबा क़बल कर बशक त ही बड़ा तौबा कबल करन वाला महरबान ह

129 (और) ऐ हमार पालन वाल मकक वाल म उ ही म स एक रसल को भज जो

उनको तरी आयत पढ़कर सनाए और आसमानी िकताब और अकल की बात िसखाए और उन (क नफ़स) क पाकीज़ा कर द बशक त ही ग़ािलब और सािहब तदबीर ह

130 और कौन ह जो इबराहीम क तरीक़ स नफरत कर मगर जो अपन को अहमक़

बनाए और बशक हमन उनको दिनया म भी मि तख़ब कर िलया और वह ज़ र आख़रत म भी अ छ ही म स होग

131 जब उनस उनक परवरिदगार न कहा इ लाम कबल करो तो अज़र म सार जहा क

परवरिदगार पर इ लाम लाया 132 और इसी तरीक क़ी इबराहीम न अपनी औलाद स वसीयत की और याकब न (भी)

िक ऐ फरज़ द खदा न त हार वा त इस दीन (इ लाम) को पस द फरमाया ह पस तम हरिगज़ न मरना मगर मसलमान ही होकर

133 (ऐ यहद) कया तम उस वकत मौजद थ जब याकब क सर पर मौत आ खड़ी

हईउस वकत उ ह न अपन बट स कहा िक मर बाद िकसी की इबादत करोग कहन लग हम आप क माबद और आप क बाप दादाओ इबराहीम व इ माइल व इसहाक़ क माबद व यकता खदा की इबादत करग और हम उसक फरमाबरदार ह

134 (ऐ यहद) वह लोग थ जो चल बस जो उ ह न कमाया उनक आग आया और जो

तम कमाओग त हार आग आएगा और जो कछ भी वह करत थ उसकी पछगछ तमस नही होगी

सरः अल-बक़रा

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135 (यहदी ईसाई मसलमान स) कहत ह िक यहद या नसरानी हो जाओ तो राह रा त पर आ जाओग (ऐ रसल उनस) कह दो िक हम इबराहीम क तरीक़ पर ह जो बाितल स कतरा कर चलत थ और मशरकीन स न थ

136 (और ऐ मसलमान तम य) कहो िक हम तो खदा पर ईमान लाए ह और उस पर

जो हम पर नािज़ल िकया गया (करान) और जो सहीफ़ इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकब और औलाद याकब पर नािज़ल हए थ (उन पर) और जो िकताब मसा व ईसा को दी गई (उस पर) और जो और पग़ बर को उनक परवरिदगार की तरफ स उ ह िदया गया (उस पर) हम तो उनम स िकसी (एक) म भी तफरीक़ नही करत और हम तो खदा ही क फरमाबरदार ह

137 पस अगर य लोग भी उसी तरह ईमान लाए ह िजस तरह तम तो अलब ता राह

रा त पर आ गए और अगर वह इस तरीक स मह फर ल तो बस वह िसफर त हारी ही िज़द पर ह तो (ऐ रसल) उन (क शर) स (बचान को) त हार िलए खदा काफ़ी होगा और वह (सबकी हालत) खब जानता (और) सनता ह

138 (मसलमान स कहो िक) रग तो खदा ही का रग ह िजसम तम रग गए और खदाई

रग स बहतर कौन रग होगा और हम तो उसी की इबादत करत ह 139 (ऐ रसल) तम उनस पछो िक कया तम हम स खदा क बार झगड़त हो हालािक

वही हमारा (भी) परवरिदगार ह (वही) त हारा भी (परवरिदगार ह) हमार िलए ह हमारी कारगज़ािरया और त हार िलए त हारी कारसतािनया और हम तो िनरखर उसी म ह

140 कया तम कहत हो िक इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौद याकब सब क

सब यहदी या नसरानी थ (ऐ रसल उनस) पछो तो िक तम यादा वािक़फ़ हो या खदा और उसस बढ़कर कौन ज़ािलम होगा िजसक पास खदा की तरफ स गवाही (मौजद) हो (िक वह यहदी न थ) और िफर वह िछपाए और जो कछ तम करत हो खदा उसस बख़बर नही

141 य वह लोग थ जो िसधार चक जो कछ कमा गए उनक िलए था और जो कछ तम कमाओग त हार िलए होगा और जो कछ वह कर गज़र उसकी पछगछ तमस न होगी

सरः अल-बक़रा

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142 बाज़ अहमक़ लोग य कह बठग िक मसलमान िजस िक़बल बतल मक़ स की तरफ

पहल स सजदा करत थ उस स दसर िक़बल की तरफ मड़ जान का बाइस हआ ऐ रसल तम उनक जवाब म कहो िक परब पि चम सब ख़दा का ह िजस चाहता ह सीध रा त की तरफ िहदायत करता ह

143 और िजस तरह त हार िक़बल क बार म िहदायत की उसी तरह तम को आिदल

उ मत बनाया तािक और लोग क मक़ाबल म तम गवाह बनो और रसल मोह मद त हार मक़ाबल म गवाह बन और (ऐ रसल) िजस िक़बल की तरफ़ तम पहल सज़दा करत थ हम न उसको को िसफर इस वजह स िक़बला क़रार िदया था िक जब िक़बला बदला जाए तो हम उन लोग को जो रसल की परवी करत ह हम उन लोग स अलग दख ल जो उलट पाव िफरत ह अगरच य उलट फर िसवा उन लोग क िजन की ख़दा न िहदायत की ह सब पर शाक़ ज़ र ह और ख़दा ऐसा नही ह िक त हार ईमान नमाज़ को जो बतलमक़ स की तरफ पढ़ चक हो बरबाद कर द बशक ख़दा लोग पर बड़ा ही रफ़ीक व महरबान ह

144 ऐ रसल िक़बला बदलन क वा त बशक त हारा बार बार आसमान की तरफ मह

करना हम दख रह ह तो हम ज़ र तम को ऐस िक़बल की तरफ फर दग िक तम िनहाल हो जाओ अ छा तो नमाज़ ही म तम मि ज़द मोहतरम काब की तरफ मह कर लो और ऐ मसलमान तम जहा कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मह कर िलया करो और िजन लोग को िकताब तौरत वगरह दी गयी ह वह बख़बी जानत ह िक य तबदील िक़बल बहत बजा व द त ह और उस क परवरिदगार की तरफ़ स ह और जो कछ वह लोग करत ह उस स ख़दा बख़बर नही

145 और अगर अहल िकताब क सामन दिनया की सारी दलील पश कर दोग तो भी वह

त हार िक़बल को न मानग और न तम ही उनक िक़बल को मानन वाल हो और ख़द अहल िकताब भी एक दसर क िक़बल को नही मानत और जो इ म क़रान त हार पास आ चका ह उसक बाद भी अगर तम उनकी खवािहश पर चल तो अलब ता तम नाफ़रमान हो जाओग

सरः अल-बक़रा

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146 िजन लोग को हमन िकताब (तौरत वग़रह) दी ह वह िजस तरह अपन बट को पहचानत ह उसी तरह तरह वह उस पग़ बर को भी पहचानत ह और उन म कछ लोग तो ऐस भी ह जो दीदए व दािन ता (जान बझकर) हक़ बात को िछपात ह

147 ऐ रसल तबदील िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह पस तम कही शक

करन वाल म स न हो जाना 148 और हर फरीक़ क वा त एक िस त ह उसी की तरफ वह नमाज़ म अपना मह कर

लता ह पस तम ऐ मसलमान झगड़ को छोड़ दो और निकय म उन स लपक क आग बढ़ जाओ तम जहा कही होग ख़दा तम सबको अपनी तरफ ल आऐगा बशक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

149 और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा तक मकका स) तो भी नमाज़ म तम

अपना मह मि ज़द मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर िलया करो और बशक य नया िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह

150 और त हार काम स ख़दा ग़ािफल नही ह और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा

तक क मकका स तो भी) तम (नमाज़ म) अपना मह मि ज़द हराम की तरफ कर िलया करो और (ऐ रसल) तम जहा कही हआ करो तो नमाज़ म अपना मह उसी काबा की तरफ़ कर िलया करो (बार बार हकम दन का एक फायदा य ह तािक लोग का इ ज़ाम तम पर न आन पाए मगर उन म स जो लोग नाहक़ हठधमीर करत ह वह तो ज़ र इ ज़ाम दग) तो तम लोग उनस डरो नही और िसफ़र मझस डरो और (दसरा फ़ायदा य ह) तािक तम पर अपनी नअमत परी कर द

151 और तीसरा फायदा य ह तािक तम िहदायत पाओ मसलमान य एहसान भी वसा

ही ह जस हम न तम म तम ही म का एक रसल भजा जो तमको हमारी आयत पढ़ कर सनाए और त हार न स को पाकीज़ा कर और त ह िकताब क़रान और अकल की बात िसखाए और तम को वह बात बताए िजन की त ह पहल स खबर भी न थी

152 पस तम हमारी याद रखो तो म भी त हारा िज़कर (खर) िकया क गा और मरा

यिकरया अदा करत रहो और नाशकरी न करो

सरः अल-बक़रा

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153 ऐ ईमानदार मसीबत क वकत सबर और नमाज़ क ज़िरए स ख़दा की मदद माग

बशक ख़दा सबर करन वाल ही का साथी ह 154 और जो लोग ख़दा की राह म मार गए उ ह कभी मदार न कहना बि क वह लोग

िज़ दा ह मगर तम उनकी िज़ दगी की हक़ीकत का कछ भी यऊर नही रखत 155 और हम त ह कछ खौफ़ और भख स और माल और जान और फल की कमी स

ज़ र आज़माएग और (ऐ रसल) ऐस सबर करन वाल को ख़शख़बरी द दो 156 िक जब उन पर कोई मसीबत आ पड़ी तो वह (बसाखता) बोल उठ हम तो ख़दा ही

क ह और हम उसी की तरफ लौट कर जान वाल ह 157 उ ही लोग पर उनक परवरिदगार की तरफ स इनायत ह और रहमत और यही

लोग िहदायत या ता ह 158 बशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़दा की िनशािनय म स ह पस जो शखस

ख़ानए काबा का हज या उमरा कर उस पर उन दोनो क (दरिमयान) तवाफ़ (आमद ओ र त) करन म कछ गनाह नही (बि क सवाब ह) और जो शखस खश खश नक काम कर तो िफर ख़दा भी क़दरदा (और) वािक़फ़कार ह

159 बशक जो लोग हमारी इन रौशन दलील और िहदायत को िज ह हमन नािज़ल

िकया उसक बाद िछपात ह जबिक हम िकताब तौरत म लोग क सामन साफ़ साफ़ बयान कर चक ह तो यही लोग ह िजन पर ख़दा भी लानत करता ह और लानत करन वाल भी लानत करत ह

160 मगर िजन लोग न (हक़ िछपान स) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर

ली और जो िकताब ख़दा म ह साफ़ साफ़ बयान कर िदया पस उन की तौबा म क़बल करता ह और म तो बड़ा तौबा क़बल करन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

सरः अल-बक़रा

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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तम (मसलमान को) बता दोग तािक उसक सबब स कल त हार खदा क पास तम पर

ह जत लाए कया तम इतना भी नही समझत

77 लिकन कया वह लोग (इतना भी) नही जानत िक वह लोग जो कछ िछपात ह या ज़ािहर करत ह खदा सब कछ जानता ह

78 और कछ उनम स ऐस अनपढ़ ह िक वह िकताब खदा को अपन मतलब की बात क िसवा कछ नही समझत और वह फक़त खयाली बात िकया करत ह

79 पस वाए हो उन लोग पर जो अपन हाथ स िकताब िलखत ह िफर (लोग स कहत िफरत) ह

िक य खदा क यहा स (आई) ह तािक उसक ज़िरय स थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी फ़ायदा) हािसल कर पस अफसोस ह उन पर िक उनक हाथ न िलखा और िफर अफसोस ह उनपर िक

वह ऐसी कमाई करत ह

80 और कहत ह िक िगनती क च द िदन क िसवा हम आग छएगी भी तो नही (ऐ रसल) इन

लोग स कहो िक कया तमन खदा स कोई इक़रार ल िलया ह िक िफर वह िकसी तरह अपन

इक़रार क िख़लाफ़ हरिगज़ न करगा या ब समझ बझ खदा पर बोहताव जोड़त हो

81 हा (सच तो यह ह) िक िजसन बराई हािसल की और उसक गनाह न चार तरफ स उस घर

िलया ह वही लोग तो दोज़ख़ी ह और वही (तो) उसम हमशा रहग

82 और जो लोग ईमानदार ह और उ ह न अ छ काम िकए ह वही लोग ज नती ह िक हमशा ज नत म रहग

83 और (वह वकत याद करो) जब हमन बनी ईसराइल स (जो त हार बजरग़ थ) अहद व पमान

िलया था िक खदा क िसवा िकसी की इबादत न करना और मा बाप और क़राबतदार और

यतीम और मोहताज क साथ अ छ सलक करना और लोग क साथ अ छी तरह (नरमी) स बात करना और बराबर नमाज़ पढ़ना और ज़कात दना िफर तमम स थोड़ आिदिमय क

िसवा (सब क सब) िफर गए और तम लोग हो ही इक़रार स मह फरन वाल

84 और (वह वकत याद करो) जब हमन तम (त हार बज़रग ) स अहद िलया था िक आपस म

खरिज़या न करना और न अपन लोग को शहर बदर करना तो तम (त हार बजरग़ ) न

इक़रार िकया था और तम भी उसकी गवाही दत हो

सरः अल-बक़रा

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85 (िक हा ऐसा हआ था) िफर वही लोग तो तम हो िक आपस म एक दसर को क़ ल करत हो और अपन स एक ज थ क नाहक़ और ज़बरद ती िहमायती बनकर दसर को शहर बदर

करत हो (और ल फ़ तो य ह िक) अगर वही लोग क़दी बनकर त हार पास (मदद मागन)

आए तो उनको तावान दकर छड़ा लत हो हालािक उनका िनकालना ही तम पर हराम िकया गया था तो िफर कया तम (िकताब खदा की) बाज़ बात पर ईमान रखत हो और बाज़ स

इ कार करत हो पस तम म स जो लोग ऐसा कर उनकी सज़ा इसक िसवा और कछ नही िक

िज़ दगी भर की सवाई हो और (आिख़रकार) क़यामत क िदन सखत अज़ाब की तरफ लौटा िदय जाए और जो कछ तम लोग करत हो खदा उसस ग़ािफ़ल नही ह

86 यही वह लोग ह िज ह न आख़रत क बदल दिनया की िज़ दगी ख़रीद पस न उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी और न वह लोग िकसी तरह की मदद िदए जाएग

87 और य हक़ीक़ी बात ह िक हमन मसा को िकताब (तौरत) दी और उनक बाद बहत स पग़ बर

को उनक क़दम ब क़दम ल चल और मिरयम क बट ईसा को (भी बहत स) वाजए व रौशन

मौिजज िदए और पाक ह िजबरील क ज़िरय स उनकी मदद की कया तम उस क़दर

बदिदमाग़ हो गए हो िक जब कोई पग़ बर त हार पास त हारी खवािहश नफ़सानी क

िख़लाफ कोई हकम लकर आया तो तम अकड़ बठ िफर तमन बाज़ पग़ बर को तो झठलाया और बाज़ को जान स मार डाला

88 और कहन लग िक हमार िदल पर िग़लाफ चढ़ा हआ ह (ऐसा नही) बि क उनक कफर की वजह स खदा न उनपर लानत की ह पस कम ही लोग ईमान लात ह

89 और जब उनक पास खदा की तरफ़ स िकताब (करान आई और वह उस िकताब तौरत) की जो उन क पास तसदीक़ भी करती ह और उसस पहल (इसकी उ मीद पर) कािफ़र पर

फतहयाब होन की दआए मागत थ पस जब उनक पास वह चीज़ िजस पहचानत थ आ गई

तो लग इ कार करन पस कािफ़र पर खदा की लानत ह

90 कया ही बरा ह वह काम िजसक मक़ाबल म (इतनी बात पर) वह लोग अपनी जान बच बठ ह

िक खदा अपन ब द स िजस पर चाह अपनी इनायत स िकताब नािज़ल िकया कर इस र क

स जो कछ खदा न नािज़ल िकया ह सबका इ कार कर बठ पस उन पर ग़ज़ब पर ग़ज़ब टट

पड़ा और कािफ़र क िलए (बड़ी) सवाई का अज़ाब ह

91 और जब उनस कहा गया िक (जो क़रान) खदा न नािज़ल िकया ह उस पर ईमान लाओ तो कहन लग िक हम तो उसी िकताब (तौरत) पर ईमान लाए ह जो हम पर नािज़ल की गई थी

सरः अल-बक़रा

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और उस िकताब (करान) को जो उसक बाद आई ह नही मानत ह हालािक वह (क़रान) हक़ ह

और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करती ह मगर उस िकताब करान

का जो उसक बाद आई ह इ कार करत ह (ऐ रसल) उनस य तो पछो िक तम (त हार बजरग़)

अगर ईमानदार थ तो िफर कय खदा क पग़ बर का सािबक़ क़ ल करत थ

92 और त हार पास मसा तो वाज़ए व रौशन मौिजज़ लकर आ ही चक थ िफर भी तमन उनक

बाद बछड़ को खदा बना ही िलया और उसस तम अपन ही ऊपर ज़ म करन वाल थ

93 और (वह वकत याद करो) जब हमन तमस अहद िलया और (क़ोह) तर को (त हारी उदल

हकमी स) त हार सर पर लटकाया और (हमन कहा िक य िकताब तौरत) जो हमन दी ह

मज़बती स िलए रहो और (जो कछ उसम ह) सनो तो कहन लग सना तो (सही लिकन) हम

इसको मानत नही और उनकी बईमानी की वजह स (गोया) बछड़ की उलफ़त घोल क उनक

िदल म िपला दी गई (ऐ रसल) उन लोग स कह दो िक अगर तम ईमानदार थ तो तमको त हारा ईमान कया ही बरा हकम करता था

94 (ऐ रसल) इन लोग स कह दो िक अगर खदा क नज़दीक आख़रत का घर (बिह त) ख़ास

त हार वा त ह और लोग क वासत नही ह पस अगर तम स च हो तो मौत की आरज क़रो

95 (तािक ज दी बिह त म जाओ) लिकन वह उन आमाल बद की वजह स िजनको उनक हाथ

न पहल स आग भजा ह हरिगज़ मौत की आरज़ न करग और खदा ज़ािलम स खब वािक़फ

96 और (ऐ रसल) तम उन ही को िज़ दगी का सबस यादा हरीस पाओग और मशिरक़ म स

हर एक शखस चाहता ह िक काश उसको हज़ार बरस की उमर दी जाती हालािक अगर इतनी तलानी उमर भी दी जाए तो वह ख़दा क अज़ाब स छटकारा दन वाली नही और जो कछ वह

लोग करत ह खदा उस दख रहा ह

97 (ऐ रसल उन लोग स) कह दो िक जो िजबरील का दशमन ह (उसका खदा दशमन ह)

कय िक उस फ़िर त न खदा क हकम स (इस करान को) त हार िदल पर डाला ह और वह

उन िकताब की भी तसदीक करता ह जो (पहल नािज़ल हो चकी ह और सब) उसक सामन

मौजद ह और ईमानदार क वा त खशख़बरी ह

98 जो शखस ख़दा और उसक फिर त और उसक रसल और (ख़ासकर) िजबराईल व

मीकाइल का दशमन हो तो बशक खदा भी (ऐस) कािफ़र का द मन ह

सरः अल-बक़रा

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99 और (ऐ रसल) हमन तम पर ऐसी िनशािनया नािज़ल की ह जो वाजए और रौशन ह और

ऐस नाफरमान क िसवा उनका कोई इ कार नही कर सकता

100 और उनकी य हालत ह िक जब कभी कोई अहद िकया तो उनम स एक फरीक़ न तोड़ डाला बि क उनम स अकसर तो ईमान ही नही रखत

101 और जब उनक पास खदा की तरफ स रसल (मोह मद) आया और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करता ह तो उन अहल िकताब क एक िगरोह न िकताब खदा को अपन पस प त फक िदया गोया वह लोग कछ जानत ही नही और उस मतर क पीछ पड़

गए

102 िजसको सलमान क ज़मान की सलतनत म शयातीन जपा करत थ हालािक सलमान न

कफर नही इख़तयार िकया लिकन शतान न कफर एख़तयार िकया िक वह लोग को जाद

िसखाया करत थ और वह चीज़ जो हा त और मा त दोन फ़िर त पर बाइिबल म नािज़ल

की गई थी हालािक य दोन फ़िर त िकसी को िसखात न थ जब तक य न कह दत थ िक हम

दोन तो फ़क़त (ज़िरयाए आज़माइश) ह पस तो (इस पर अमल करक) बईमान न हो जाना उस पर भी उनस वह (टोटक) सीखत थ िजनकी वजह स िमया बीवी म तफ़रक़ा डालत हालािक बग़र इ न खदाव दी वह अपनी इन बात स िकसी को ज़रर नही पहचा सकत थ

और य लोग ऐसी बात सीखत थ जो खद उ ह नक़सान पहचाती थी और कछ (नफा) पहचाती थी बावजद िक वह यक़ीनन जान चक थ िक जो शखस इन (बराईय ) का ख़रीदार

हआ वह आिख़रत म बनसीब ह और बशबह (मआवज़ा) बहत ही बड़ा ह िजसक बदल उ ह न

अपनी जान को बचा काश (उस कछ) सोच समझ होत

103 और अगर वह ईमान लात और जाद वग़रह स बचकर परहज़गार बनत तो खदा की दरगाह

स जो सवाब िमलता वह उसस कही बहतर होता काश य लोग (इतना तो) समझत

104 ऐ ईमानवाल तम (रसल को अपनी तरफ मताव ज करना चाहो तो) रआना (हमारी िरआयत कर) न कहा करो बि क उनज़रना (हम पर नज़र तव जो रख) कहा करो और (जी लगाकर) सनत रहो और कािफर क िलए ददरनाक अज़ाब ह

105 ऐ रसल अहल िकताब म स िजन लोग न कफर इख़तयार िकया वह और मशरकीन य नही चाहत ह िक तम पर त हार परवरिदगार की तरफ स भलाई (वही) नािज़ल की जाए और

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(उनका तो इसम कछ इजारा नही) खदा िजसको चाहता ह अपनी रहमत क िलए ख़ास कर

लता ह और खदा बड़ा फज़ल (करन) वाला ह

106 (ऐ रसल) हम जब कोई आयत म सख़ करत ह या त हार ज़हन स िमटा दत ह तो उसस

बहतर या वसी ही (और) नािज़ल भी कर दत ह कया तम नही जानत िक बशबहा खदा हर

चीज़ पर क़ािदर ह

107 कया तम नही जानत िक आसमान की सलतनत बशबहा ख़ास खदा ही क िलए ह और खदा क िसवा त हारा न कोई सरपर त ह न मददगार

108 (मसलमान ) कया तम चाहत हो िक तम भी अपन रसल स वस ही (बढ़ग) सवालात करो िजस तरह सािबक़ (पहल) ज़मान म मसा स (बतक) सवालात िकए गए थ और िजस शखस

न ईमान क बदल कफर एख़तयार िकया वह तो यक़ीनी सीध रा त स भटक गया

109 (मसलमान ) अहल िकताब म स अकसर लोग अपन िदली हसद की वजह स य खवािहश

रखत ह िक तमको ईमान लान क बाद िफर कािफ़र बना द (और ल फ तो य ह िक) उन पर

हक़ ज़ािहर हो चका ह उसक बाद भी (य तम ना बाक़ी ह) पस तम माफ करो और दरगज़र

करो यहा तक िक खदा अपना (कोई और) हकम भज बशक खदा हर चीज़ पर क़ािदर ह

110 और नमाज़ पढ़त रहो और ज़कात िदय जाओ और जो कछ भलाई अपन िलए (खदा क यहा) पहल स भज दोग उस (क सवाब) को मौजद पाआग जो कछ तम करत हो उस खदा ज़ र

दख रहा ह

111 और (यहद) कहत ह िक यहद (क िसवा) और (नसारा कहत ह िक) नसारा क िसवा कोई

बिह त म जान ही न पाएगा य उनक खयाली पलाव ह (ऐ रसल) तम उन स कहो िक भला अगर तम स च हो िक हम ही बिह त म जाएग तो अपनी दलील पश करो

112 हा अलब ता िजस शखस न खदा क आग अपना सर झका िदया और अ छ काम भी करता ह

तो उसक िलए उसक परवरिदगार क यहा उसका बदला (मौजद) ह और (आख़रत म) ऐस

लोग पर न िकसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐस लोग ग़मग़ीन होग

113 और यहद कहत ह िक नसारा का मज़हब कछ (ठीक) नही और नसारा कहत ह िक यहद का मज़हब कछ (ठीक) नही हालािक य दोन फरीक़ िकताब (खदा) पढ़त रहत ह इसी तरह उ ही जसी बात वह (मशरकीन अरब) भी िकया करत ह जो (खदा क एहकाम) कछ नही जानत तो

सरः अल-बक़रा

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िजस बात म य लोग पड़ झगड़त ह (दिनया म तो तय न होगा) क़यामत क िदन खदा उनक

दरिमयान ठीक फसला कर दगा

114 और उसस बढ़कर ज़ािलम कौन होगा जो खदा की मसिजद म उसका नाम िलए जान स

(लोग को) रोक और उनकी बरबादी क दर प हो ऐस ही को उसम जाना मनािसब नही मगर

सहम हए ऐस ही लोग क िलए दिनया म सवाई ह और ऐस ही लोग क िलए आख़रत म

बड़ा भारी अज़ाब ह

115 (त हार मसिजद म रोकन स कया होता ह कय िक सारी ज़मीन) खदा ही की ह (कया) परब

(कया) पि चम बस जहा कही िक़ ल की तरफ ख़ करो वही खदा का सामना ह बशक खदा बड़ी ग जाइश वाला और खब वािक़फ ह

116 और यहद कहन लग िक खदा औलाद रखता ह हालािक वह (इस बखड़ स) पाक ह बि क जो कछ ज़मीन व आसमान म ह सब उसी का ह और सब उसकी क फरमाबरदार ह

117 (वही) आसमान व ज़मीन का मोिजद ह और जब िकसी काम का करना ठान लता ह तो उसकी िनसबत िसफर कह दता ह िक हो जा पस वह (खद ब खद) हो जाता ह

118 और जो (मशरकीन) कछ नही जानत कहत ह िक खदा हमस (खद) कलाम कय नही करता या हमार पास (खद) कोई िनशानी कय नही आती इसी तरह उ ही की सी बात वह कर चक

ह जो उनस पहल थ उन सब क िदल आपस म िमलत जलत ह जो लोग यक़ीन रखत ह

उनको तो अपनी िनशािनया कय साफतौर पर िदखा चक

119 (ऐ रसल) हमन तमको दीन हक़ क साथ (बिह त की) खशख़बरी दन वाला और (अज़ाब स)

डरान वाला बनाकर भजा ह और दोज़िख़य क बार म तमस कछ न पछा जाएगा

120 और (ऐ रसल) न तो यहदी कभी तमस रज़ामद होग न नसारा यहा तक िक तम उनक मज़हब की परवी करो (ऐ रसल उनस) कह दो िक बस खदा ही की िहदायत तो िहदायत ह (बाक़ी ढकोसला ह) और अगर तम इसक बाद भी िक त हार पास इ म (क़रान) आ चका ह उनकी खवािहश पर चल तो (याद रह िक िफर) तमको खदा (क ग़ज़ब) स बचान वाला न कोई सरपर त होगा न मददगार

सरः अल-बक़रा

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121 िजन लोग को हमन िकताब (करान) दी ह वह लोग उस इस तरह पढ़त रहत ह जो उसक पढ़न का हक़ ह यही लोग उस पर ईमान लात ह और जो उसस इनकार करत ह वही लोग घाट म ह

122 बनी इसराईल मरी उन नअमत को याद करो जो मन तम को दी ह और य िक

मन तमको सार जहान पर फज़ीलत दी

123 और उस िदन स डरो िजस िदन कोई शखस िकसी की तरफ स न िफदया हो सकगा और न उसकी तरफ स कोई मआवज़ा क़बल िकया जाएगा और न कोई िसफािरश ही फायदा पहचा सकगी और न लोग मदद िदए जाएग

124 (ऐ रसल) बनी इसराईल को वह वकत भी याद िदलाओ जब इबराहीम को उनक

परवरिदगार न च द बात म आज़माया और उ ह न परा कर िदया तो खदा न फरमाया म तमको (लोग का) पशवा बनान वाला ह (हज़रत इबराहीम न) अज़र की और मरी औलाद म स फरमाया (हा मगर) मर इस अहद पर ज़ािलम म स कोई शखस फ़ायज़ नही हो सकता

125 (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब हमन ख़ानए काबा को लोग क सवाब

और पनाह की जगह क़रार दी और हकम िदया गया िक इबराहीम की (इस) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और इबराहीम व इसमाइल स अहद व पमान िलया िक मर (उस) घर को तवाफ़ और एतक़ाफ़ और क और सजदा करन वाल क वा त साफ सथरा रखो

126 और (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब इबराहीम न दआ मागी िक ऐ मर

परवरिदगार इस (शहर) को पनाह व अमन का शहर बना और उसक रहन वाल म स जो खदा और रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए उसको तरह-तरह क फल खान को द खदा न फरमाया (अ छा मगर) वो कफर इख़तयार करगा उसकी दिनया म च द रोज़ (उन चीज़ो स) फायदा उठान दगा िफर (आख़रत म) उसको मजबर करक दोज़ख़ की तरफ खीच ल जाऊगा और वह बहत बरा िठकाना ह

127 और (वह वकत याद िदलाओ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बिनयाद

बल द कर रह थ (और दआ) मागत जात थ िक ऐ हमार परवरिदगार हमारी (य

सरः अल-बक़रा

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िख़दमत) कबल कर बशक त ही (दआ का) सनन वाला (और उसका) जानन वाला ह

128 (और) ऐ हमार पालन वाल त हम अपना फरमाबरदार ब दा बना हमारी औलाद स

एक िगरोह (पदा कर) जो तरा फरमाबरदार हो और हमको हमार हज की जगह िदखा द और हमारी तौबा क़बल कर बशक त ही बड़ा तौबा कबल करन वाला महरबान ह

129 (और) ऐ हमार पालन वाल मकक वाल म उ ही म स एक रसल को भज जो

उनको तरी आयत पढ़कर सनाए और आसमानी िकताब और अकल की बात िसखाए और उन (क नफ़स) क पाकीज़ा कर द बशक त ही ग़ािलब और सािहब तदबीर ह

130 और कौन ह जो इबराहीम क तरीक़ स नफरत कर मगर जो अपन को अहमक़

बनाए और बशक हमन उनको दिनया म भी मि तख़ब कर िलया और वह ज़ र आख़रत म भी अ छ ही म स होग

131 जब उनस उनक परवरिदगार न कहा इ लाम कबल करो तो अज़र म सार जहा क

परवरिदगार पर इ लाम लाया 132 और इसी तरीक क़ी इबराहीम न अपनी औलाद स वसीयत की और याकब न (भी)

िक ऐ फरज़ द खदा न त हार वा त इस दीन (इ लाम) को पस द फरमाया ह पस तम हरिगज़ न मरना मगर मसलमान ही होकर

133 (ऐ यहद) कया तम उस वकत मौजद थ जब याकब क सर पर मौत आ खड़ी

हईउस वकत उ ह न अपन बट स कहा िक मर बाद िकसी की इबादत करोग कहन लग हम आप क माबद और आप क बाप दादाओ इबराहीम व इ माइल व इसहाक़ क माबद व यकता खदा की इबादत करग और हम उसक फरमाबरदार ह

134 (ऐ यहद) वह लोग थ जो चल बस जो उ ह न कमाया उनक आग आया और जो

तम कमाओग त हार आग आएगा और जो कछ भी वह करत थ उसकी पछगछ तमस नही होगी

सरः अल-बक़रा

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135 (यहदी ईसाई मसलमान स) कहत ह िक यहद या नसरानी हो जाओ तो राह रा त पर आ जाओग (ऐ रसल उनस) कह दो िक हम इबराहीम क तरीक़ पर ह जो बाितल स कतरा कर चलत थ और मशरकीन स न थ

136 (और ऐ मसलमान तम य) कहो िक हम तो खदा पर ईमान लाए ह और उस पर

जो हम पर नािज़ल िकया गया (करान) और जो सहीफ़ इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकब और औलाद याकब पर नािज़ल हए थ (उन पर) और जो िकताब मसा व ईसा को दी गई (उस पर) और जो और पग़ बर को उनक परवरिदगार की तरफ स उ ह िदया गया (उस पर) हम तो उनम स िकसी (एक) म भी तफरीक़ नही करत और हम तो खदा ही क फरमाबरदार ह

137 पस अगर य लोग भी उसी तरह ईमान लाए ह िजस तरह तम तो अलब ता राह

रा त पर आ गए और अगर वह इस तरीक स मह फर ल तो बस वह िसफर त हारी ही िज़द पर ह तो (ऐ रसल) उन (क शर) स (बचान को) त हार िलए खदा काफ़ी होगा और वह (सबकी हालत) खब जानता (और) सनता ह

138 (मसलमान स कहो िक) रग तो खदा ही का रग ह िजसम तम रग गए और खदाई

रग स बहतर कौन रग होगा और हम तो उसी की इबादत करत ह 139 (ऐ रसल) तम उनस पछो िक कया तम हम स खदा क बार झगड़त हो हालािक

वही हमारा (भी) परवरिदगार ह (वही) त हारा भी (परवरिदगार ह) हमार िलए ह हमारी कारगज़ािरया और त हार िलए त हारी कारसतािनया और हम तो िनरखर उसी म ह

140 कया तम कहत हो िक इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौद याकब सब क

सब यहदी या नसरानी थ (ऐ रसल उनस) पछो तो िक तम यादा वािक़फ़ हो या खदा और उसस बढ़कर कौन ज़ािलम होगा िजसक पास खदा की तरफ स गवाही (मौजद) हो (िक वह यहदी न थ) और िफर वह िछपाए और जो कछ तम करत हो खदा उसस बख़बर नही

141 य वह लोग थ जो िसधार चक जो कछ कमा गए उनक िलए था और जो कछ तम कमाओग त हार िलए होगा और जो कछ वह कर गज़र उसकी पछगछ तमस न होगी

सरः अल-बक़रा

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142 बाज़ अहमक़ लोग य कह बठग िक मसलमान िजस िक़बल बतल मक़ स की तरफ

पहल स सजदा करत थ उस स दसर िक़बल की तरफ मड़ जान का बाइस हआ ऐ रसल तम उनक जवाब म कहो िक परब पि चम सब ख़दा का ह िजस चाहता ह सीध रा त की तरफ िहदायत करता ह

143 और िजस तरह त हार िक़बल क बार म िहदायत की उसी तरह तम को आिदल

उ मत बनाया तािक और लोग क मक़ाबल म तम गवाह बनो और रसल मोह मद त हार मक़ाबल म गवाह बन और (ऐ रसल) िजस िक़बल की तरफ़ तम पहल सज़दा करत थ हम न उसको को िसफर इस वजह स िक़बला क़रार िदया था िक जब िक़बला बदला जाए तो हम उन लोग को जो रसल की परवी करत ह हम उन लोग स अलग दख ल जो उलट पाव िफरत ह अगरच य उलट फर िसवा उन लोग क िजन की ख़दा न िहदायत की ह सब पर शाक़ ज़ र ह और ख़दा ऐसा नही ह िक त हार ईमान नमाज़ को जो बतलमक़ स की तरफ पढ़ चक हो बरबाद कर द बशक ख़दा लोग पर बड़ा ही रफ़ीक व महरबान ह

144 ऐ रसल िक़बला बदलन क वा त बशक त हारा बार बार आसमान की तरफ मह

करना हम दख रह ह तो हम ज़ र तम को ऐस िक़बल की तरफ फर दग िक तम िनहाल हो जाओ अ छा तो नमाज़ ही म तम मि ज़द मोहतरम काब की तरफ मह कर लो और ऐ मसलमान तम जहा कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मह कर िलया करो और िजन लोग को िकताब तौरत वगरह दी गयी ह वह बख़बी जानत ह िक य तबदील िक़बल बहत बजा व द त ह और उस क परवरिदगार की तरफ़ स ह और जो कछ वह लोग करत ह उस स ख़दा बख़बर नही

145 और अगर अहल िकताब क सामन दिनया की सारी दलील पश कर दोग तो भी वह

त हार िक़बल को न मानग और न तम ही उनक िक़बल को मानन वाल हो और ख़द अहल िकताब भी एक दसर क िक़बल को नही मानत और जो इ म क़रान त हार पास आ चका ह उसक बाद भी अगर तम उनकी खवािहश पर चल तो अलब ता तम नाफ़रमान हो जाओग

सरः अल-बक़रा

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146 िजन लोग को हमन िकताब (तौरत वग़रह) दी ह वह िजस तरह अपन बट को पहचानत ह उसी तरह तरह वह उस पग़ बर को भी पहचानत ह और उन म कछ लोग तो ऐस भी ह जो दीदए व दािन ता (जान बझकर) हक़ बात को िछपात ह

147 ऐ रसल तबदील िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह पस तम कही शक

करन वाल म स न हो जाना 148 और हर फरीक़ क वा त एक िस त ह उसी की तरफ वह नमाज़ म अपना मह कर

लता ह पस तम ऐ मसलमान झगड़ को छोड़ दो और निकय म उन स लपक क आग बढ़ जाओ तम जहा कही होग ख़दा तम सबको अपनी तरफ ल आऐगा बशक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

149 और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा तक मकका स) तो भी नमाज़ म तम

अपना मह मि ज़द मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर िलया करो और बशक य नया िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह

150 और त हार काम स ख़दा ग़ािफल नही ह और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा

तक क मकका स तो भी) तम (नमाज़ म) अपना मह मि ज़द हराम की तरफ कर िलया करो और (ऐ रसल) तम जहा कही हआ करो तो नमाज़ म अपना मह उसी काबा की तरफ़ कर िलया करो (बार बार हकम दन का एक फायदा य ह तािक लोग का इ ज़ाम तम पर न आन पाए मगर उन म स जो लोग नाहक़ हठधमीर करत ह वह तो ज़ र इ ज़ाम दग) तो तम लोग उनस डरो नही और िसफ़र मझस डरो और (दसरा फ़ायदा य ह) तािक तम पर अपनी नअमत परी कर द

151 और तीसरा फायदा य ह तािक तम िहदायत पाओ मसलमान य एहसान भी वसा

ही ह जस हम न तम म तम ही म का एक रसल भजा जो तमको हमारी आयत पढ़ कर सनाए और त हार न स को पाकीज़ा कर और त ह िकताब क़रान और अकल की बात िसखाए और तम को वह बात बताए िजन की त ह पहल स खबर भी न थी

152 पस तम हमारी याद रखो तो म भी त हारा िज़कर (खर) िकया क गा और मरा

यिकरया अदा करत रहो और नाशकरी न करो

सरः अल-बक़रा

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153 ऐ ईमानदार मसीबत क वकत सबर और नमाज़ क ज़िरए स ख़दा की मदद माग

बशक ख़दा सबर करन वाल ही का साथी ह 154 और जो लोग ख़दा की राह म मार गए उ ह कभी मदार न कहना बि क वह लोग

िज़ दा ह मगर तम उनकी िज़ दगी की हक़ीकत का कछ भी यऊर नही रखत 155 और हम त ह कछ खौफ़ और भख स और माल और जान और फल की कमी स

ज़ र आज़माएग और (ऐ रसल) ऐस सबर करन वाल को ख़शख़बरी द दो 156 िक जब उन पर कोई मसीबत आ पड़ी तो वह (बसाखता) बोल उठ हम तो ख़दा ही

क ह और हम उसी की तरफ लौट कर जान वाल ह 157 उ ही लोग पर उनक परवरिदगार की तरफ स इनायत ह और रहमत और यही

लोग िहदायत या ता ह 158 बशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़दा की िनशािनय म स ह पस जो शखस

ख़ानए काबा का हज या उमरा कर उस पर उन दोनो क (दरिमयान) तवाफ़ (आमद ओ र त) करन म कछ गनाह नही (बि क सवाब ह) और जो शखस खश खश नक काम कर तो िफर ख़दा भी क़दरदा (और) वािक़फ़कार ह

159 बशक जो लोग हमारी इन रौशन दलील और िहदायत को िज ह हमन नािज़ल

िकया उसक बाद िछपात ह जबिक हम िकताब तौरत म लोग क सामन साफ़ साफ़ बयान कर चक ह तो यही लोग ह िजन पर ख़दा भी लानत करता ह और लानत करन वाल भी लानत करत ह

160 मगर िजन लोग न (हक़ िछपान स) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर

ली और जो िकताब ख़दा म ह साफ़ साफ़ बयान कर िदया पस उन की तौबा म क़बल करता ह और म तो बड़ा तौबा क़बल करन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

सरः अल-बक़रा

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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85 (िक हा ऐसा हआ था) िफर वही लोग तो तम हो िक आपस म एक दसर को क़ ल करत हो और अपन स एक ज थ क नाहक़ और ज़बरद ती िहमायती बनकर दसर को शहर बदर

करत हो (और ल फ़ तो य ह िक) अगर वही लोग क़दी बनकर त हार पास (मदद मागन)

आए तो उनको तावान दकर छड़ा लत हो हालािक उनका िनकालना ही तम पर हराम िकया गया था तो िफर कया तम (िकताब खदा की) बाज़ बात पर ईमान रखत हो और बाज़ स

इ कार करत हो पस तम म स जो लोग ऐसा कर उनकी सज़ा इसक िसवा और कछ नही िक

िज़ दगी भर की सवाई हो और (आिख़रकार) क़यामत क िदन सखत अज़ाब की तरफ लौटा िदय जाए और जो कछ तम लोग करत हो खदा उसस ग़ािफ़ल नही ह

86 यही वह लोग ह िज ह न आख़रत क बदल दिनया की िज़ दगी ख़रीद पस न उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी और न वह लोग िकसी तरह की मदद िदए जाएग

87 और य हक़ीक़ी बात ह िक हमन मसा को िकताब (तौरत) दी और उनक बाद बहत स पग़ बर

को उनक क़दम ब क़दम ल चल और मिरयम क बट ईसा को (भी बहत स) वाजए व रौशन

मौिजज िदए और पाक ह िजबरील क ज़िरय स उनकी मदद की कया तम उस क़दर

बदिदमाग़ हो गए हो िक जब कोई पग़ बर त हार पास त हारी खवािहश नफ़सानी क

िख़लाफ कोई हकम लकर आया तो तम अकड़ बठ िफर तमन बाज़ पग़ बर को तो झठलाया और बाज़ को जान स मार डाला

88 और कहन लग िक हमार िदल पर िग़लाफ चढ़ा हआ ह (ऐसा नही) बि क उनक कफर की वजह स खदा न उनपर लानत की ह पस कम ही लोग ईमान लात ह

89 और जब उनक पास खदा की तरफ़ स िकताब (करान आई और वह उस िकताब तौरत) की जो उन क पास तसदीक़ भी करती ह और उसस पहल (इसकी उ मीद पर) कािफ़र पर

फतहयाब होन की दआए मागत थ पस जब उनक पास वह चीज़ िजस पहचानत थ आ गई

तो लग इ कार करन पस कािफ़र पर खदा की लानत ह

90 कया ही बरा ह वह काम िजसक मक़ाबल म (इतनी बात पर) वह लोग अपनी जान बच बठ ह

िक खदा अपन ब द स िजस पर चाह अपनी इनायत स िकताब नािज़ल िकया कर इस र क

स जो कछ खदा न नािज़ल िकया ह सबका इ कार कर बठ पस उन पर ग़ज़ब पर ग़ज़ब टट

पड़ा और कािफ़र क िलए (बड़ी) सवाई का अज़ाब ह

91 और जब उनस कहा गया िक (जो क़रान) खदा न नािज़ल िकया ह उस पर ईमान लाओ तो कहन लग िक हम तो उसी िकताब (तौरत) पर ईमान लाए ह जो हम पर नािज़ल की गई थी

सरः अल-बक़रा

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और उस िकताब (करान) को जो उसक बाद आई ह नही मानत ह हालािक वह (क़रान) हक़ ह

और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करती ह मगर उस िकताब करान

का जो उसक बाद आई ह इ कार करत ह (ऐ रसल) उनस य तो पछो िक तम (त हार बजरग़)

अगर ईमानदार थ तो िफर कय खदा क पग़ बर का सािबक़ क़ ल करत थ

92 और त हार पास मसा तो वाज़ए व रौशन मौिजज़ लकर आ ही चक थ िफर भी तमन उनक

बाद बछड़ को खदा बना ही िलया और उसस तम अपन ही ऊपर ज़ म करन वाल थ

93 और (वह वकत याद करो) जब हमन तमस अहद िलया और (क़ोह) तर को (त हारी उदल

हकमी स) त हार सर पर लटकाया और (हमन कहा िक य िकताब तौरत) जो हमन दी ह

मज़बती स िलए रहो और (जो कछ उसम ह) सनो तो कहन लग सना तो (सही लिकन) हम

इसको मानत नही और उनकी बईमानी की वजह स (गोया) बछड़ की उलफ़त घोल क उनक

िदल म िपला दी गई (ऐ रसल) उन लोग स कह दो िक अगर तम ईमानदार थ तो तमको त हारा ईमान कया ही बरा हकम करता था

94 (ऐ रसल) इन लोग स कह दो िक अगर खदा क नज़दीक आख़रत का घर (बिह त) ख़ास

त हार वा त ह और लोग क वासत नही ह पस अगर तम स च हो तो मौत की आरज क़रो

95 (तािक ज दी बिह त म जाओ) लिकन वह उन आमाल बद की वजह स िजनको उनक हाथ

न पहल स आग भजा ह हरिगज़ मौत की आरज़ न करग और खदा ज़ािलम स खब वािक़फ

96 और (ऐ रसल) तम उन ही को िज़ दगी का सबस यादा हरीस पाओग और मशिरक़ म स

हर एक शखस चाहता ह िक काश उसको हज़ार बरस की उमर दी जाती हालािक अगर इतनी तलानी उमर भी दी जाए तो वह ख़दा क अज़ाब स छटकारा दन वाली नही और जो कछ वह

लोग करत ह खदा उस दख रहा ह

97 (ऐ रसल उन लोग स) कह दो िक जो िजबरील का दशमन ह (उसका खदा दशमन ह)

कय िक उस फ़िर त न खदा क हकम स (इस करान को) त हार िदल पर डाला ह और वह

उन िकताब की भी तसदीक करता ह जो (पहल नािज़ल हो चकी ह और सब) उसक सामन

मौजद ह और ईमानदार क वा त खशख़बरी ह

98 जो शखस ख़दा और उसक फिर त और उसक रसल और (ख़ासकर) िजबराईल व

मीकाइल का दशमन हो तो बशक खदा भी (ऐस) कािफ़र का द मन ह

सरः अल-बक़रा

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99 और (ऐ रसल) हमन तम पर ऐसी िनशािनया नािज़ल की ह जो वाजए और रौशन ह और

ऐस नाफरमान क िसवा उनका कोई इ कार नही कर सकता

100 और उनकी य हालत ह िक जब कभी कोई अहद िकया तो उनम स एक फरीक़ न तोड़ डाला बि क उनम स अकसर तो ईमान ही नही रखत

101 और जब उनक पास खदा की तरफ स रसल (मोह मद) आया और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करता ह तो उन अहल िकताब क एक िगरोह न िकताब खदा को अपन पस प त फक िदया गोया वह लोग कछ जानत ही नही और उस मतर क पीछ पड़

गए

102 िजसको सलमान क ज़मान की सलतनत म शयातीन जपा करत थ हालािक सलमान न

कफर नही इख़तयार िकया लिकन शतान न कफर एख़तयार िकया िक वह लोग को जाद

िसखाया करत थ और वह चीज़ जो हा त और मा त दोन फ़िर त पर बाइिबल म नािज़ल

की गई थी हालािक य दोन फ़िर त िकसी को िसखात न थ जब तक य न कह दत थ िक हम

दोन तो फ़क़त (ज़िरयाए आज़माइश) ह पस तो (इस पर अमल करक) बईमान न हो जाना उस पर भी उनस वह (टोटक) सीखत थ िजनकी वजह स िमया बीवी म तफ़रक़ा डालत हालािक बग़र इ न खदाव दी वह अपनी इन बात स िकसी को ज़रर नही पहचा सकत थ

और य लोग ऐसी बात सीखत थ जो खद उ ह नक़सान पहचाती थी और कछ (नफा) पहचाती थी बावजद िक वह यक़ीनन जान चक थ िक जो शखस इन (बराईय ) का ख़रीदार

हआ वह आिख़रत म बनसीब ह और बशबह (मआवज़ा) बहत ही बड़ा ह िजसक बदल उ ह न

अपनी जान को बचा काश (उस कछ) सोच समझ होत

103 और अगर वह ईमान लात और जाद वग़रह स बचकर परहज़गार बनत तो खदा की दरगाह

स जो सवाब िमलता वह उसस कही बहतर होता काश य लोग (इतना तो) समझत

104 ऐ ईमानवाल तम (रसल को अपनी तरफ मताव ज करना चाहो तो) रआना (हमारी िरआयत कर) न कहा करो बि क उनज़रना (हम पर नज़र तव जो रख) कहा करो और (जी लगाकर) सनत रहो और कािफर क िलए ददरनाक अज़ाब ह

105 ऐ रसल अहल िकताब म स िजन लोग न कफर इख़तयार िकया वह और मशरकीन य नही चाहत ह िक तम पर त हार परवरिदगार की तरफ स भलाई (वही) नािज़ल की जाए और

सरः अल-बक़रा

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(उनका तो इसम कछ इजारा नही) खदा िजसको चाहता ह अपनी रहमत क िलए ख़ास कर

लता ह और खदा बड़ा फज़ल (करन) वाला ह

106 (ऐ रसल) हम जब कोई आयत म सख़ करत ह या त हार ज़हन स िमटा दत ह तो उसस

बहतर या वसी ही (और) नािज़ल भी कर दत ह कया तम नही जानत िक बशबहा खदा हर

चीज़ पर क़ािदर ह

107 कया तम नही जानत िक आसमान की सलतनत बशबहा ख़ास खदा ही क िलए ह और खदा क िसवा त हारा न कोई सरपर त ह न मददगार

108 (मसलमान ) कया तम चाहत हो िक तम भी अपन रसल स वस ही (बढ़ग) सवालात करो िजस तरह सािबक़ (पहल) ज़मान म मसा स (बतक) सवालात िकए गए थ और िजस शखस

न ईमान क बदल कफर एख़तयार िकया वह तो यक़ीनी सीध रा त स भटक गया

109 (मसलमान ) अहल िकताब म स अकसर लोग अपन िदली हसद की वजह स य खवािहश

रखत ह िक तमको ईमान लान क बाद िफर कािफ़र बना द (और ल फ तो य ह िक) उन पर

हक़ ज़ािहर हो चका ह उसक बाद भी (य तम ना बाक़ी ह) पस तम माफ करो और दरगज़र

करो यहा तक िक खदा अपना (कोई और) हकम भज बशक खदा हर चीज़ पर क़ािदर ह

110 और नमाज़ पढ़त रहो और ज़कात िदय जाओ और जो कछ भलाई अपन िलए (खदा क यहा) पहल स भज दोग उस (क सवाब) को मौजद पाआग जो कछ तम करत हो उस खदा ज़ र

दख रहा ह

111 और (यहद) कहत ह िक यहद (क िसवा) और (नसारा कहत ह िक) नसारा क िसवा कोई

बिह त म जान ही न पाएगा य उनक खयाली पलाव ह (ऐ रसल) तम उन स कहो िक भला अगर तम स च हो िक हम ही बिह त म जाएग तो अपनी दलील पश करो

112 हा अलब ता िजस शखस न खदा क आग अपना सर झका िदया और अ छ काम भी करता ह

तो उसक िलए उसक परवरिदगार क यहा उसका बदला (मौजद) ह और (आख़रत म) ऐस

लोग पर न िकसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐस लोग ग़मग़ीन होग

113 और यहद कहत ह िक नसारा का मज़हब कछ (ठीक) नही और नसारा कहत ह िक यहद का मज़हब कछ (ठीक) नही हालािक य दोन फरीक़ िकताब (खदा) पढ़त रहत ह इसी तरह उ ही जसी बात वह (मशरकीन अरब) भी िकया करत ह जो (खदा क एहकाम) कछ नही जानत तो

सरः अल-बक़रा

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िजस बात म य लोग पड़ झगड़त ह (दिनया म तो तय न होगा) क़यामत क िदन खदा उनक

दरिमयान ठीक फसला कर दगा

114 और उसस बढ़कर ज़ािलम कौन होगा जो खदा की मसिजद म उसका नाम िलए जान स

(लोग को) रोक और उनकी बरबादी क दर प हो ऐस ही को उसम जाना मनािसब नही मगर

सहम हए ऐस ही लोग क िलए दिनया म सवाई ह और ऐस ही लोग क िलए आख़रत म

बड़ा भारी अज़ाब ह

115 (त हार मसिजद म रोकन स कया होता ह कय िक सारी ज़मीन) खदा ही की ह (कया) परब

(कया) पि चम बस जहा कही िक़ ल की तरफ ख़ करो वही खदा का सामना ह बशक खदा बड़ी ग जाइश वाला और खब वािक़फ ह

116 और यहद कहन लग िक खदा औलाद रखता ह हालािक वह (इस बखड़ स) पाक ह बि क जो कछ ज़मीन व आसमान म ह सब उसी का ह और सब उसकी क फरमाबरदार ह

117 (वही) आसमान व ज़मीन का मोिजद ह और जब िकसी काम का करना ठान लता ह तो उसकी िनसबत िसफर कह दता ह िक हो जा पस वह (खद ब खद) हो जाता ह

118 और जो (मशरकीन) कछ नही जानत कहत ह िक खदा हमस (खद) कलाम कय नही करता या हमार पास (खद) कोई िनशानी कय नही आती इसी तरह उ ही की सी बात वह कर चक

ह जो उनस पहल थ उन सब क िदल आपस म िमलत जलत ह जो लोग यक़ीन रखत ह

उनको तो अपनी िनशािनया कय साफतौर पर िदखा चक

119 (ऐ रसल) हमन तमको दीन हक़ क साथ (बिह त की) खशख़बरी दन वाला और (अज़ाब स)

डरान वाला बनाकर भजा ह और दोज़िख़य क बार म तमस कछ न पछा जाएगा

120 और (ऐ रसल) न तो यहदी कभी तमस रज़ामद होग न नसारा यहा तक िक तम उनक मज़हब की परवी करो (ऐ रसल उनस) कह दो िक बस खदा ही की िहदायत तो िहदायत ह (बाक़ी ढकोसला ह) और अगर तम इसक बाद भी िक त हार पास इ म (क़रान) आ चका ह उनकी खवािहश पर चल तो (याद रह िक िफर) तमको खदा (क ग़ज़ब) स बचान वाला न कोई सरपर त होगा न मददगार

सरः अल-बक़रा

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121 िजन लोग को हमन िकताब (करान) दी ह वह लोग उस इस तरह पढ़त रहत ह जो उसक पढ़न का हक़ ह यही लोग उस पर ईमान लात ह और जो उसस इनकार करत ह वही लोग घाट म ह

122 बनी इसराईल मरी उन नअमत को याद करो जो मन तम को दी ह और य िक

मन तमको सार जहान पर फज़ीलत दी

123 और उस िदन स डरो िजस िदन कोई शखस िकसी की तरफ स न िफदया हो सकगा और न उसकी तरफ स कोई मआवज़ा क़बल िकया जाएगा और न कोई िसफािरश ही फायदा पहचा सकगी और न लोग मदद िदए जाएग

124 (ऐ रसल) बनी इसराईल को वह वकत भी याद िदलाओ जब इबराहीम को उनक

परवरिदगार न च द बात म आज़माया और उ ह न परा कर िदया तो खदा न फरमाया म तमको (लोग का) पशवा बनान वाला ह (हज़रत इबराहीम न) अज़र की और मरी औलाद म स फरमाया (हा मगर) मर इस अहद पर ज़ािलम म स कोई शखस फ़ायज़ नही हो सकता

125 (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब हमन ख़ानए काबा को लोग क सवाब

और पनाह की जगह क़रार दी और हकम िदया गया िक इबराहीम की (इस) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और इबराहीम व इसमाइल स अहद व पमान िलया िक मर (उस) घर को तवाफ़ और एतक़ाफ़ और क और सजदा करन वाल क वा त साफ सथरा रखो

126 और (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब इबराहीम न दआ मागी िक ऐ मर

परवरिदगार इस (शहर) को पनाह व अमन का शहर बना और उसक रहन वाल म स जो खदा और रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए उसको तरह-तरह क फल खान को द खदा न फरमाया (अ छा मगर) वो कफर इख़तयार करगा उसकी दिनया म च द रोज़ (उन चीज़ो स) फायदा उठान दगा िफर (आख़रत म) उसको मजबर करक दोज़ख़ की तरफ खीच ल जाऊगा और वह बहत बरा िठकाना ह

127 और (वह वकत याद िदलाओ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बिनयाद

बल द कर रह थ (और दआ) मागत जात थ िक ऐ हमार परवरिदगार हमारी (य

सरः अल-बक़रा

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िख़दमत) कबल कर बशक त ही (दआ का) सनन वाला (और उसका) जानन वाला ह

128 (और) ऐ हमार पालन वाल त हम अपना फरमाबरदार ब दा बना हमारी औलाद स

एक िगरोह (पदा कर) जो तरा फरमाबरदार हो और हमको हमार हज की जगह िदखा द और हमारी तौबा क़बल कर बशक त ही बड़ा तौबा कबल करन वाला महरबान ह

129 (और) ऐ हमार पालन वाल मकक वाल म उ ही म स एक रसल को भज जो

उनको तरी आयत पढ़कर सनाए और आसमानी िकताब और अकल की बात िसखाए और उन (क नफ़स) क पाकीज़ा कर द बशक त ही ग़ािलब और सािहब तदबीर ह

130 और कौन ह जो इबराहीम क तरीक़ स नफरत कर मगर जो अपन को अहमक़

बनाए और बशक हमन उनको दिनया म भी मि तख़ब कर िलया और वह ज़ र आख़रत म भी अ छ ही म स होग

131 जब उनस उनक परवरिदगार न कहा इ लाम कबल करो तो अज़र म सार जहा क

परवरिदगार पर इ लाम लाया 132 और इसी तरीक क़ी इबराहीम न अपनी औलाद स वसीयत की और याकब न (भी)

िक ऐ फरज़ द खदा न त हार वा त इस दीन (इ लाम) को पस द फरमाया ह पस तम हरिगज़ न मरना मगर मसलमान ही होकर

133 (ऐ यहद) कया तम उस वकत मौजद थ जब याकब क सर पर मौत आ खड़ी

हईउस वकत उ ह न अपन बट स कहा िक मर बाद िकसी की इबादत करोग कहन लग हम आप क माबद और आप क बाप दादाओ इबराहीम व इ माइल व इसहाक़ क माबद व यकता खदा की इबादत करग और हम उसक फरमाबरदार ह

134 (ऐ यहद) वह लोग थ जो चल बस जो उ ह न कमाया उनक आग आया और जो

तम कमाओग त हार आग आएगा और जो कछ भी वह करत थ उसकी पछगछ तमस नही होगी

सरः अल-बक़रा

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135 (यहदी ईसाई मसलमान स) कहत ह िक यहद या नसरानी हो जाओ तो राह रा त पर आ जाओग (ऐ रसल उनस) कह दो िक हम इबराहीम क तरीक़ पर ह जो बाितल स कतरा कर चलत थ और मशरकीन स न थ

136 (और ऐ मसलमान तम य) कहो िक हम तो खदा पर ईमान लाए ह और उस पर

जो हम पर नािज़ल िकया गया (करान) और जो सहीफ़ इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकब और औलाद याकब पर नािज़ल हए थ (उन पर) और जो िकताब मसा व ईसा को दी गई (उस पर) और जो और पग़ बर को उनक परवरिदगार की तरफ स उ ह िदया गया (उस पर) हम तो उनम स िकसी (एक) म भी तफरीक़ नही करत और हम तो खदा ही क फरमाबरदार ह

137 पस अगर य लोग भी उसी तरह ईमान लाए ह िजस तरह तम तो अलब ता राह

रा त पर आ गए और अगर वह इस तरीक स मह फर ल तो बस वह िसफर त हारी ही िज़द पर ह तो (ऐ रसल) उन (क शर) स (बचान को) त हार िलए खदा काफ़ी होगा और वह (सबकी हालत) खब जानता (और) सनता ह

138 (मसलमान स कहो िक) रग तो खदा ही का रग ह िजसम तम रग गए और खदाई

रग स बहतर कौन रग होगा और हम तो उसी की इबादत करत ह 139 (ऐ रसल) तम उनस पछो िक कया तम हम स खदा क बार झगड़त हो हालािक

वही हमारा (भी) परवरिदगार ह (वही) त हारा भी (परवरिदगार ह) हमार िलए ह हमारी कारगज़ािरया और त हार िलए त हारी कारसतािनया और हम तो िनरखर उसी म ह

140 कया तम कहत हो िक इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौद याकब सब क

सब यहदी या नसरानी थ (ऐ रसल उनस) पछो तो िक तम यादा वािक़फ़ हो या खदा और उसस बढ़कर कौन ज़ािलम होगा िजसक पास खदा की तरफ स गवाही (मौजद) हो (िक वह यहदी न थ) और िफर वह िछपाए और जो कछ तम करत हो खदा उसस बख़बर नही

141 य वह लोग थ जो िसधार चक जो कछ कमा गए उनक िलए था और जो कछ तम कमाओग त हार िलए होगा और जो कछ वह कर गज़र उसकी पछगछ तमस न होगी

सरः अल-बक़रा

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142 बाज़ अहमक़ लोग य कह बठग िक मसलमान िजस िक़बल बतल मक़ स की तरफ

पहल स सजदा करत थ उस स दसर िक़बल की तरफ मड़ जान का बाइस हआ ऐ रसल तम उनक जवाब म कहो िक परब पि चम सब ख़दा का ह िजस चाहता ह सीध रा त की तरफ िहदायत करता ह

143 और िजस तरह त हार िक़बल क बार म िहदायत की उसी तरह तम को आिदल

उ मत बनाया तािक और लोग क मक़ाबल म तम गवाह बनो और रसल मोह मद त हार मक़ाबल म गवाह बन और (ऐ रसल) िजस िक़बल की तरफ़ तम पहल सज़दा करत थ हम न उसको को िसफर इस वजह स िक़बला क़रार िदया था िक जब िक़बला बदला जाए तो हम उन लोग को जो रसल की परवी करत ह हम उन लोग स अलग दख ल जो उलट पाव िफरत ह अगरच य उलट फर िसवा उन लोग क िजन की ख़दा न िहदायत की ह सब पर शाक़ ज़ र ह और ख़दा ऐसा नही ह िक त हार ईमान नमाज़ को जो बतलमक़ स की तरफ पढ़ चक हो बरबाद कर द बशक ख़दा लोग पर बड़ा ही रफ़ीक व महरबान ह

144 ऐ रसल िक़बला बदलन क वा त बशक त हारा बार बार आसमान की तरफ मह

करना हम दख रह ह तो हम ज़ र तम को ऐस िक़बल की तरफ फर दग िक तम िनहाल हो जाओ अ छा तो नमाज़ ही म तम मि ज़द मोहतरम काब की तरफ मह कर लो और ऐ मसलमान तम जहा कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मह कर िलया करो और िजन लोग को िकताब तौरत वगरह दी गयी ह वह बख़बी जानत ह िक य तबदील िक़बल बहत बजा व द त ह और उस क परवरिदगार की तरफ़ स ह और जो कछ वह लोग करत ह उस स ख़दा बख़बर नही

145 और अगर अहल िकताब क सामन दिनया की सारी दलील पश कर दोग तो भी वह

त हार िक़बल को न मानग और न तम ही उनक िक़बल को मानन वाल हो और ख़द अहल िकताब भी एक दसर क िक़बल को नही मानत और जो इ म क़रान त हार पास आ चका ह उसक बाद भी अगर तम उनकी खवािहश पर चल तो अलब ता तम नाफ़रमान हो जाओग

सरः अल-बक़रा

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146 िजन लोग को हमन िकताब (तौरत वग़रह) दी ह वह िजस तरह अपन बट को पहचानत ह उसी तरह तरह वह उस पग़ बर को भी पहचानत ह और उन म कछ लोग तो ऐस भी ह जो दीदए व दािन ता (जान बझकर) हक़ बात को िछपात ह

147 ऐ रसल तबदील िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह पस तम कही शक

करन वाल म स न हो जाना 148 और हर फरीक़ क वा त एक िस त ह उसी की तरफ वह नमाज़ म अपना मह कर

लता ह पस तम ऐ मसलमान झगड़ को छोड़ दो और निकय म उन स लपक क आग बढ़ जाओ तम जहा कही होग ख़दा तम सबको अपनी तरफ ल आऐगा बशक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

149 और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा तक मकका स) तो भी नमाज़ म तम

अपना मह मि ज़द मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर िलया करो और बशक य नया िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह

150 और त हार काम स ख़दा ग़ािफल नही ह और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा

तक क मकका स तो भी) तम (नमाज़ म) अपना मह मि ज़द हराम की तरफ कर िलया करो और (ऐ रसल) तम जहा कही हआ करो तो नमाज़ म अपना मह उसी काबा की तरफ़ कर िलया करो (बार बार हकम दन का एक फायदा य ह तािक लोग का इ ज़ाम तम पर न आन पाए मगर उन म स जो लोग नाहक़ हठधमीर करत ह वह तो ज़ र इ ज़ाम दग) तो तम लोग उनस डरो नही और िसफ़र मझस डरो और (दसरा फ़ायदा य ह) तािक तम पर अपनी नअमत परी कर द

151 और तीसरा फायदा य ह तािक तम िहदायत पाओ मसलमान य एहसान भी वसा

ही ह जस हम न तम म तम ही म का एक रसल भजा जो तमको हमारी आयत पढ़ कर सनाए और त हार न स को पाकीज़ा कर और त ह िकताब क़रान और अकल की बात िसखाए और तम को वह बात बताए िजन की त ह पहल स खबर भी न थी

152 पस तम हमारी याद रखो तो म भी त हारा िज़कर (खर) िकया क गा और मरा

यिकरया अदा करत रहो और नाशकरी न करो

सरः अल-बक़रा

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153 ऐ ईमानदार मसीबत क वकत सबर और नमाज़ क ज़िरए स ख़दा की मदद माग

बशक ख़दा सबर करन वाल ही का साथी ह 154 और जो लोग ख़दा की राह म मार गए उ ह कभी मदार न कहना बि क वह लोग

िज़ दा ह मगर तम उनकी िज़ दगी की हक़ीकत का कछ भी यऊर नही रखत 155 और हम त ह कछ खौफ़ और भख स और माल और जान और फल की कमी स

ज़ र आज़माएग और (ऐ रसल) ऐस सबर करन वाल को ख़शख़बरी द दो 156 िक जब उन पर कोई मसीबत आ पड़ी तो वह (बसाखता) बोल उठ हम तो ख़दा ही

क ह और हम उसी की तरफ लौट कर जान वाल ह 157 उ ही लोग पर उनक परवरिदगार की तरफ स इनायत ह और रहमत और यही

लोग िहदायत या ता ह 158 बशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़दा की िनशािनय म स ह पस जो शखस

ख़ानए काबा का हज या उमरा कर उस पर उन दोनो क (दरिमयान) तवाफ़ (आमद ओ र त) करन म कछ गनाह नही (बि क सवाब ह) और जो शखस खश खश नक काम कर तो िफर ख़दा भी क़दरदा (और) वािक़फ़कार ह

159 बशक जो लोग हमारी इन रौशन दलील और िहदायत को िज ह हमन नािज़ल

िकया उसक बाद िछपात ह जबिक हम िकताब तौरत म लोग क सामन साफ़ साफ़ बयान कर चक ह तो यही लोग ह िजन पर ख़दा भी लानत करता ह और लानत करन वाल भी लानत करत ह

160 मगर िजन लोग न (हक़ िछपान स) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर

ली और जो िकताब ख़दा म ह साफ़ साफ़ बयान कर िदया पस उन की तौबा म क़बल करता ह और म तो बड़ा तौबा क़बल करन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

सरः अल-बक़रा

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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और उस िकताब (करान) को जो उसक बाद आई ह नही मानत ह हालािक वह (क़रान) हक़ ह

और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करती ह मगर उस िकताब करान

का जो उसक बाद आई ह इ कार करत ह (ऐ रसल) उनस य तो पछो िक तम (त हार बजरग़)

अगर ईमानदार थ तो िफर कय खदा क पग़ बर का सािबक़ क़ ल करत थ

92 और त हार पास मसा तो वाज़ए व रौशन मौिजज़ लकर आ ही चक थ िफर भी तमन उनक

बाद बछड़ को खदा बना ही िलया और उसस तम अपन ही ऊपर ज़ म करन वाल थ

93 और (वह वकत याद करो) जब हमन तमस अहद िलया और (क़ोह) तर को (त हारी उदल

हकमी स) त हार सर पर लटकाया और (हमन कहा िक य िकताब तौरत) जो हमन दी ह

मज़बती स िलए रहो और (जो कछ उसम ह) सनो तो कहन लग सना तो (सही लिकन) हम

इसको मानत नही और उनकी बईमानी की वजह स (गोया) बछड़ की उलफ़त घोल क उनक

िदल म िपला दी गई (ऐ रसल) उन लोग स कह दो िक अगर तम ईमानदार थ तो तमको त हारा ईमान कया ही बरा हकम करता था

94 (ऐ रसल) इन लोग स कह दो िक अगर खदा क नज़दीक आख़रत का घर (बिह त) ख़ास

त हार वा त ह और लोग क वासत नही ह पस अगर तम स च हो तो मौत की आरज क़रो

95 (तािक ज दी बिह त म जाओ) लिकन वह उन आमाल बद की वजह स िजनको उनक हाथ

न पहल स आग भजा ह हरिगज़ मौत की आरज़ न करग और खदा ज़ािलम स खब वािक़फ

96 और (ऐ रसल) तम उन ही को िज़ दगी का सबस यादा हरीस पाओग और मशिरक़ म स

हर एक शखस चाहता ह िक काश उसको हज़ार बरस की उमर दी जाती हालािक अगर इतनी तलानी उमर भी दी जाए तो वह ख़दा क अज़ाब स छटकारा दन वाली नही और जो कछ वह

लोग करत ह खदा उस दख रहा ह

97 (ऐ रसल उन लोग स) कह दो िक जो िजबरील का दशमन ह (उसका खदा दशमन ह)

कय िक उस फ़िर त न खदा क हकम स (इस करान को) त हार िदल पर डाला ह और वह

उन िकताब की भी तसदीक करता ह जो (पहल नािज़ल हो चकी ह और सब) उसक सामन

मौजद ह और ईमानदार क वा त खशख़बरी ह

98 जो शखस ख़दा और उसक फिर त और उसक रसल और (ख़ासकर) िजबराईल व

मीकाइल का दशमन हो तो बशक खदा भी (ऐस) कािफ़र का द मन ह

सरः अल-बक़रा

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99 और (ऐ रसल) हमन तम पर ऐसी िनशािनया नािज़ल की ह जो वाजए और रौशन ह और

ऐस नाफरमान क िसवा उनका कोई इ कार नही कर सकता

100 और उनकी य हालत ह िक जब कभी कोई अहद िकया तो उनम स एक फरीक़ न तोड़ डाला बि क उनम स अकसर तो ईमान ही नही रखत

101 और जब उनक पास खदा की तरफ स रसल (मोह मद) आया और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करता ह तो उन अहल िकताब क एक िगरोह न िकताब खदा को अपन पस प त फक िदया गोया वह लोग कछ जानत ही नही और उस मतर क पीछ पड़

गए

102 िजसको सलमान क ज़मान की सलतनत म शयातीन जपा करत थ हालािक सलमान न

कफर नही इख़तयार िकया लिकन शतान न कफर एख़तयार िकया िक वह लोग को जाद

िसखाया करत थ और वह चीज़ जो हा त और मा त दोन फ़िर त पर बाइिबल म नािज़ल

की गई थी हालािक य दोन फ़िर त िकसी को िसखात न थ जब तक य न कह दत थ िक हम

दोन तो फ़क़त (ज़िरयाए आज़माइश) ह पस तो (इस पर अमल करक) बईमान न हो जाना उस पर भी उनस वह (टोटक) सीखत थ िजनकी वजह स िमया बीवी म तफ़रक़ा डालत हालािक बग़र इ न खदाव दी वह अपनी इन बात स िकसी को ज़रर नही पहचा सकत थ

और य लोग ऐसी बात सीखत थ जो खद उ ह नक़सान पहचाती थी और कछ (नफा) पहचाती थी बावजद िक वह यक़ीनन जान चक थ िक जो शखस इन (बराईय ) का ख़रीदार

हआ वह आिख़रत म बनसीब ह और बशबह (मआवज़ा) बहत ही बड़ा ह िजसक बदल उ ह न

अपनी जान को बचा काश (उस कछ) सोच समझ होत

103 और अगर वह ईमान लात और जाद वग़रह स बचकर परहज़गार बनत तो खदा की दरगाह

स जो सवाब िमलता वह उसस कही बहतर होता काश य लोग (इतना तो) समझत

104 ऐ ईमानवाल तम (रसल को अपनी तरफ मताव ज करना चाहो तो) रआना (हमारी िरआयत कर) न कहा करो बि क उनज़रना (हम पर नज़र तव जो रख) कहा करो और (जी लगाकर) सनत रहो और कािफर क िलए ददरनाक अज़ाब ह

105 ऐ रसल अहल िकताब म स िजन लोग न कफर इख़तयार िकया वह और मशरकीन य नही चाहत ह िक तम पर त हार परवरिदगार की तरफ स भलाई (वही) नािज़ल की जाए और

सरः अल-बक़रा

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(उनका तो इसम कछ इजारा नही) खदा िजसको चाहता ह अपनी रहमत क िलए ख़ास कर

लता ह और खदा बड़ा फज़ल (करन) वाला ह

106 (ऐ रसल) हम जब कोई आयत म सख़ करत ह या त हार ज़हन स िमटा दत ह तो उसस

बहतर या वसी ही (और) नािज़ल भी कर दत ह कया तम नही जानत िक बशबहा खदा हर

चीज़ पर क़ािदर ह

107 कया तम नही जानत िक आसमान की सलतनत बशबहा ख़ास खदा ही क िलए ह और खदा क िसवा त हारा न कोई सरपर त ह न मददगार

108 (मसलमान ) कया तम चाहत हो िक तम भी अपन रसल स वस ही (बढ़ग) सवालात करो िजस तरह सािबक़ (पहल) ज़मान म मसा स (बतक) सवालात िकए गए थ और िजस शखस

न ईमान क बदल कफर एख़तयार िकया वह तो यक़ीनी सीध रा त स भटक गया

109 (मसलमान ) अहल िकताब म स अकसर लोग अपन िदली हसद की वजह स य खवािहश

रखत ह िक तमको ईमान लान क बाद िफर कािफ़र बना द (और ल फ तो य ह िक) उन पर

हक़ ज़ािहर हो चका ह उसक बाद भी (य तम ना बाक़ी ह) पस तम माफ करो और दरगज़र

करो यहा तक िक खदा अपना (कोई और) हकम भज बशक खदा हर चीज़ पर क़ािदर ह

110 और नमाज़ पढ़त रहो और ज़कात िदय जाओ और जो कछ भलाई अपन िलए (खदा क यहा) पहल स भज दोग उस (क सवाब) को मौजद पाआग जो कछ तम करत हो उस खदा ज़ र

दख रहा ह

111 और (यहद) कहत ह िक यहद (क िसवा) और (नसारा कहत ह िक) नसारा क िसवा कोई

बिह त म जान ही न पाएगा य उनक खयाली पलाव ह (ऐ रसल) तम उन स कहो िक भला अगर तम स च हो िक हम ही बिह त म जाएग तो अपनी दलील पश करो

112 हा अलब ता िजस शखस न खदा क आग अपना सर झका िदया और अ छ काम भी करता ह

तो उसक िलए उसक परवरिदगार क यहा उसका बदला (मौजद) ह और (आख़रत म) ऐस

लोग पर न िकसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐस लोग ग़मग़ीन होग

113 और यहद कहत ह िक नसारा का मज़हब कछ (ठीक) नही और नसारा कहत ह िक यहद का मज़हब कछ (ठीक) नही हालािक य दोन फरीक़ िकताब (खदा) पढ़त रहत ह इसी तरह उ ही जसी बात वह (मशरकीन अरब) भी िकया करत ह जो (खदा क एहकाम) कछ नही जानत तो

सरः अल-बक़रा

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िजस बात म य लोग पड़ झगड़त ह (दिनया म तो तय न होगा) क़यामत क िदन खदा उनक

दरिमयान ठीक फसला कर दगा

114 और उसस बढ़कर ज़ािलम कौन होगा जो खदा की मसिजद म उसका नाम िलए जान स

(लोग को) रोक और उनकी बरबादी क दर प हो ऐस ही को उसम जाना मनािसब नही मगर

सहम हए ऐस ही लोग क िलए दिनया म सवाई ह और ऐस ही लोग क िलए आख़रत म

बड़ा भारी अज़ाब ह

115 (त हार मसिजद म रोकन स कया होता ह कय िक सारी ज़मीन) खदा ही की ह (कया) परब

(कया) पि चम बस जहा कही िक़ ल की तरफ ख़ करो वही खदा का सामना ह बशक खदा बड़ी ग जाइश वाला और खब वािक़फ ह

116 और यहद कहन लग िक खदा औलाद रखता ह हालािक वह (इस बखड़ स) पाक ह बि क जो कछ ज़मीन व आसमान म ह सब उसी का ह और सब उसकी क फरमाबरदार ह

117 (वही) आसमान व ज़मीन का मोिजद ह और जब िकसी काम का करना ठान लता ह तो उसकी िनसबत िसफर कह दता ह िक हो जा पस वह (खद ब खद) हो जाता ह

118 और जो (मशरकीन) कछ नही जानत कहत ह िक खदा हमस (खद) कलाम कय नही करता या हमार पास (खद) कोई िनशानी कय नही आती इसी तरह उ ही की सी बात वह कर चक

ह जो उनस पहल थ उन सब क िदल आपस म िमलत जलत ह जो लोग यक़ीन रखत ह

उनको तो अपनी िनशािनया कय साफतौर पर िदखा चक

119 (ऐ रसल) हमन तमको दीन हक़ क साथ (बिह त की) खशख़बरी दन वाला और (अज़ाब स)

डरान वाला बनाकर भजा ह और दोज़िख़य क बार म तमस कछ न पछा जाएगा

120 और (ऐ रसल) न तो यहदी कभी तमस रज़ामद होग न नसारा यहा तक िक तम उनक मज़हब की परवी करो (ऐ रसल उनस) कह दो िक बस खदा ही की िहदायत तो िहदायत ह (बाक़ी ढकोसला ह) और अगर तम इसक बाद भी िक त हार पास इ म (क़रान) आ चका ह उनकी खवािहश पर चल तो (याद रह िक िफर) तमको खदा (क ग़ज़ब) स बचान वाला न कोई सरपर त होगा न मददगार

सरः अल-बक़रा

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121 िजन लोग को हमन िकताब (करान) दी ह वह लोग उस इस तरह पढ़त रहत ह जो उसक पढ़न का हक़ ह यही लोग उस पर ईमान लात ह और जो उसस इनकार करत ह वही लोग घाट म ह

122 बनी इसराईल मरी उन नअमत को याद करो जो मन तम को दी ह और य िक

मन तमको सार जहान पर फज़ीलत दी

123 और उस िदन स डरो िजस िदन कोई शखस िकसी की तरफ स न िफदया हो सकगा और न उसकी तरफ स कोई मआवज़ा क़बल िकया जाएगा और न कोई िसफािरश ही फायदा पहचा सकगी और न लोग मदद िदए जाएग

124 (ऐ रसल) बनी इसराईल को वह वकत भी याद िदलाओ जब इबराहीम को उनक

परवरिदगार न च द बात म आज़माया और उ ह न परा कर िदया तो खदा न फरमाया म तमको (लोग का) पशवा बनान वाला ह (हज़रत इबराहीम न) अज़र की और मरी औलाद म स फरमाया (हा मगर) मर इस अहद पर ज़ािलम म स कोई शखस फ़ायज़ नही हो सकता

125 (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब हमन ख़ानए काबा को लोग क सवाब

और पनाह की जगह क़रार दी और हकम िदया गया िक इबराहीम की (इस) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और इबराहीम व इसमाइल स अहद व पमान िलया िक मर (उस) घर को तवाफ़ और एतक़ाफ़ और क और सजदा करन वाल क वा त साफ सथरा रखो

126 और (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब इबराहीम न दआ मागी िक ऐ मर

परवरिदगार इस (शहर) को पनाह व अमन का शहर बना और उसक रहन वाल म स जो खदा और रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए उसको तरह-तरह क फल खान को द खदा न फरमाया (अ छा मगर) वो कफर इख़तयार करगा उसकी दिनया म च द रोज़ (उन चीज़ो स) फायदा उठान दगा िफर (आख़रत म) उसको मजबर करक दोज़ख़ की तरफ खीच ल जाऊगा और वह बहत बरा िठकाना ह

127 और (वह वकत याद िदलाओ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बिनयाद

बल द कर रह थ (और दआ) मागत जात थ िक ऐ हमार परवरिदगार हमारी (य

सरः अल-बक़रा

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िख़दमत) कबल कर बशक त ही (दआ का) सनन वाला (और उसका) जानन वाला ह

128 (और) ऐ हमार पालन वाल त हम अपना फरमाबरदार ब दा बना हमारी औलाद स

एक िगरोह (पदा कर) जो तरा फरमाबरदार हो और हमको हमार हज की जगह िदखा द और हमारी तौबा क़बल कर बशक त ही बड़ा तौबा कबल करन वाला महरबान ह

129 (और) ऐ हमार पालन वाल मकक वाल म उ ही म स एक रसल को भज जो

उनको तरी आयत पढ़कर सनाए और आसमानी िकताब और अकल की बात िसखाए और उन (क नफ़स) क पाकीज़ा कर द बशक त ही ग़ािलब और सािहब तदबीर ह

130 और कौन ह जो इबराहीम क तरीक़ स नफरत कर मगर जो अपन को अहमक़

बनाए और बशक हमन उनको दिनया म भी मि तख़ब कर िलया और वह ज़ र आख़रत म भी अ छ ही म स होग

131 जब उनस उनक परवरिदगार न कहा इ लाम कबल करो तो अज़र म सार जहा क

परवरिदगार पर इ लाम लाया 132 और इसी तरीक क़ी इबराहीम न अपनी औलाद स वसीयत की और याकब न (भी)

िक ऐ फरज़ द खदा न त हार वा त इस दीन (इ लाम) को पस द फरमाया ह पस तम हरिगज़ न मरना मगर मसलमान ही होकर

133 (ऐ यहद) कया तम उस वकत मौजद थ जब याकब क सर पर मौत आ खड़ी

हईउस वकत उ ह न अपन बट स कहा िक मर बाद िकसी की इबादत करोग कहन लग हम आप क माबद और आप क बाप दादाओ इबराहीम व इ माइल व इसहाक़ क माबद व यकता खदा की इबादत करग और हम उसक फरमाबरदार ह

134 (ऐ यहद) वह लोग थ जो चल बस जो उ ह न कमाया उनक आग आया और जो

तम कमाओग त हार आग आएगा और जो कछ भी वह करत थ उसकी पछगछ तमस नही होगी

सरः अल-बक़रा

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135 (यहदी ईसाई मसलमान स) कहत ह िक यहद या नसरानी हो जाओ तो राह रा त पर आ जाओग (ऐ रसल उनस) कह दो िक हम इबराहीम क तरीक़ पर ह जो बाितल स कतरा कर चलत थ और मशरकीन स न थ

136 (और ऐ मसलमान तम य) कहो िक हम तो खदा पर ईमान लाए ह और उस पर

जो हम पर नािज़ल िकया गया (करान) और जो सहीफ़ इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकब और औलाद याकब पर नािज़ल हए थ (उन पर) और जो िकताब मसा व ईसा को दी गई (उस पर) और जो और पग़ बर को उनक परवरिदगार की तरफ स उ ह िदया गया (उस पर) हम तो उनम स िकसी (एक) म भी तफरीक़ नही करत और हम तो खदा ही क फरमाबरदार ह

137 पस अगर य लोग भी उसी तरह ईमान लाए ह िजस तरह तम तो अलब ता राह

रा त पर आ गए और अगर वह इस तरीक स मह फर ल तो बस वह िसफर त हारी ही िज़द पर ह तो (ऐ रसल) उन (क शर) स (बचान को) त हार िलए खदा काफ़ी होगा और वह (सबकी हालत) खब जानता (और) सनता ह

138 (मसलमान स कहो िक) रग तो खदा ही का रग ह िजसम तम रग गए और खदाई

रग स बहतर कौन रग होगा और हम तो उसी की इबादत करत ह 139 (ऐ रसल) तम उनस पछो िक कया तम हम स खदा क बार झगड़त हो हालािक

वही हमारा (भी) परवरिदगार ह (वही) त हारा भी (परवरिदगार ह) हमार िलए ह हमारी कारगज़ािरया और त हार िलए त हारी कारसतािनया और हम तो िनरखर उसी म ह

140 कया तम कहत हो िक इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौद याकब सब क

सब यहदी या नसरानी थ (ऐ रसल उनस) पछो तो िक तम यादा वािक़फ़ हो या खदा और उसस बढ़कर कौन ज़ािलम होगा िजसक पास खदा की तरफ स गवाही (मौजद) हो (िक वह यहदी न थ) और िफर वह िछपाए और जो कछ तम करत हो खदा उसस बख़बर नही

141 य वह लोग थ जो िसधार चक जो कछ कमा गए उनक िलए था और जो कछ तम कमाओग त हार िलए होगा और जो कछ वह कर गज़र उसकी पछगछ तमस न होगी

सरः अल-बक़रा

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142 बाज़ अहमक़ लोग य कह बठग िक मसलमान िजस िक़बल बतल मक़ स की तरफ

पहल स सजदा करत थ उस स दसर िक़बल की तरफ मड़ जान का बाइस हआ ऐ रसल तम उनक जवाब म कहो िक परब पि चम सब ख़दा का ह िजस चाहता ह सीध रा त की तरफ िहदायत करता ह

143 और िजस तरह त हार िक़बल क बार म िहदायत की उसी तरह तम को आिदल

उ मत बनाया तािक और लोग क मक़ाबल म तम गवाह बनो और रसल मोह मद त हार मक़ाबल म गवाह बन और (ऐ रसल) िजस िक़बल की तरफ़ तम पहल सज़दा करत थ हम न उसको को िसफर इस वजह स िक़बला क़रार िदया था िक जब िक़बला बदला जाए तो हम उन लोग को जो रसल की परवी करत ह हम उन लोग स अलग दख ल जो उलट पाव िफरत ह अगरच य उलट फर िसवा उन लोग क िजन की ख़दा न िहदायत की ह सब पर शाक़ ज़ र ह और ख़दा ऐसा नही ह िक त हार ईमान नमाज़ को जो बतलमक़ स की तरफ पढ़ चक हो बरबाद कर द बशक ख़दा लोग पर बड़ा ही रफ़ीक व महरबान ह

144 ऐ रसल िक़बला बदलन क वा त बशक त हारा बार बार आसमान की तरफ मह

करना हम दख रह ह तो हम ज़ र तम को ऐस िक़बल की तरफ फर दग िक तम िनहाल हो जाओ अ छा तो नमाज़ ही म तम मि ज़द मोहतरम काब की तरफ मह कर लो और ऐ मसलमान तम जहा कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मह कर िलया करो और िजन लोग को िकताब तौरत वगरह दी गयी ह वह बख़बी जानत ह िक य तबदील िक़बल बहत बजा व द त ह और उस क परवरिदगार की तरफ़ स ह और जो कछ वह लोग करत ह उस स ख़दा बख़बर नही

145 और अगर अहल िकताब क सामन दिनया की सारी दलील पश कर दोग तो भी वह

त हार िक़बल को न मानग और न तम ही उनक िक़बल को मानन वाल हो और ख़द अहल िकताब भी एक दसर क िक़बल को नही मानत और जो इ म क़रान त हार पास आ चका ह उसक बाद भी अगर तम उनकी खवािहश पर चल तो अलब ता तम नाफ़रमान हो जाओग

सरः अल-बक़रा

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146 िजन लोग को हमन िकताब (तौरत वग़रह) दी ह वह िजस तरह अपन बट को पहचानत ह उसी तरह तरह वह उस पग़ बर को भी पहचानत ह और उन म कछ लोग तो ऐस भी ह जो दीदए व दािन ता (जान बझकर) हक़ बात को िछपात ह

147 ऐ रसल तबदील िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह पस तम कही शक

करन वाल म स न हो जाना 148 और हर फरीक़ क वा त एक िस त ह उसी की तरफ वह नमाज़ म अपना मह कर

लता ह पस तम ऐ मसलमान झगड़ को छोड़ दो और निकय म उन स लपक क आग बढ़ जाओ तम जहा कही होग ख़दा तम सबको अपनी तरफ ल आऐगा बशक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

149 और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा तक मकका स) तो भी नमाज़ म तम

अपना मह मि ज़द मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर िलया करो और बशक य नया िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह

150 और त हार काम स ख़दा ग़ािफल नही ह और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा

तक क मकका स तो भी) तम (नमाज़ म) अपना मह मि ज़द हराम की तरफ कर िलया करो और (ऐ रसल) तम जहा कही हआ करो तो नमाज़ म अपना मह उसी काबा की तरफ़ कर िलया करो (बार बार हकम दन का एक फायदा य ह तािक लोग का इ ज़ाम तम पर न आन पाए मगर उन म स जो लोग नाहक़ हठधमीर करत ह वह तो ज़ र इ ज़ाम दग) तो तम लोग उनस डरो नही और िसफ़र मझस डरो और (दसरा फ़ायदा य ह) तािक तम पर अपनी नअमत परी कर द

151 और तीसरा फायदा य ह तािक तम िहदायत पाओ मसलमान य एहसान भी वसा

ही ह जस हम न तम म तम ही म का एक रसल भजा जो तमको हमारी आयत पढ़ कर सनाए और त हार न स को पाकीज़ा कर और त ह िकताब क़रान और अकल की बात िसखाए और तम को वह बात बताए िजन की त ह पहल स खबर भी न थी

152 पस तम हमारी याद रखो तो म भी त हारा िज़कर (खर) िकया क गा और मरा

यिकरया अदा करत रहो और नाशकरी न करो

सरः अल-बक़रा

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153 ऐ ईमानदार मसीबत क वकत सबर और नमाज़ क ज़िरए स ख़दा की मदद माग

बशक ख़दा सबर करन वाल ही का साथी ह 154 और जो लोग ख़दा की राह म मार गए उ ह कभी मदार न कहना बि क वह लोग

िज़ दा ह मगर तम उनकी िज़ दगी की हक़ीकत का कछ भी यऊर नही रखत 155 और हम त ह कछ खौफ़ और भख स और माल और जान और फल की कमी स

ज़ र आज़माएग और (ऐ रसल) ऐस सबर करन वाल को ख़शख़बरी द दो 156 िक जब उन पर कोई मसीबत आ पड़ी तो वह (बसाखता) बोल उठ हम तो ख़दा ही

क ह और हम उसी की तरफ लौट कर जान वाल ह 157 उ ही लोग पर उनक परवरिदगार की तरफ स इनायत ह और रहमत और यही

लोग िहदायत या ता ह 158 बशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़दा की िनशािनय म स ह पस जो शखस

ख़ानए काबा का हज या उमरा कर उस पर उन दोनो क (दरिमयान) तवाफ़ (आमद ओ र त) करन म कछ गनाह नही (बि क सवाब ह) और जो शखस खश खश नक काम कर तो िफर ख़दा भी क़दरदा (और) वािक़फ़कार ह

159 बशक जो लोग हमारी इन रौशन दलील और िहदायत को िज ह हमन नािज़ल

िकया उसक बाद िछपात ह जबिक हम िकताब तौरत म लोग क सामन साफ़ साफ़ बयान कर चक ह तो यही लोग ह िजन पर ख़दा भी लानत करता ह और लानत करन वाल भी लानत करत ह

160 मगर िजन लोग न (हक़ िछपान स) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर

ली और जो िकताब ख़दा म ह साफ़ साफ़ बयान कर िदया पस उन की तौबा म क़बल करता ह और म तो बड़ा तौबा क़बल करन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

सरः अल-बक़रा

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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99 और (ऐ रसल) हमन तम पर ऐसी िनशािनया नािज़ल की ह जो वाजए और रौशन ह और

ऐस नाफरमान क िसवा उनका कोई इ कार नही कर सकता

100 और उनकी य हालत ह िक जब कभी कोई अहद िकया तो उनम स एक फरीक़ न तोड़ डाला बि क उनम स अकसर तो ईमान ही नही रखत

101 और जब उनक पास खदा की तरफ स रसल (मोह मद) आया और उस िकताब (तौरत) की जो उनक पास ह तसदीक़ भी करता ह तो उन अहल िकताब क एक िगरोह न िकताब खदा को अपन पस प त फक िदया गोया वह लोग कछ जानत ही नही और उस मतर क पीछ पड़

गए

102 िजसको सलमान क ज़मान की सलतनत म शयातीन जपा करत थ हालािक सलमान न

कफर नही इख़तयार िकया लिकन शतान न कफर एख़तयार िकया िक वह लोग को जाद

िसखाया करत थ और वह चीज़ जो हा त और मा त दोन फ़िर त पर बाइिबल म नािज़ल

की गई थी हालािक य दोन फ़िर त िकसी को िसखात न थ जब तक य न कह दत थ िक हम

दोन तो फ़क़त (ज़िरयाए आज़माइश) ह पस तो (इस पर अमल करक) बईमान न हो जाना उस पर भी उनस वह (टोटक) सीखत थ िजनकी वजह स िमया बीवी म तफ़रक़ा डालत हालािक बग़र इ न खदाव दी वह अपनी इन बात स िकसी को ज़रर नही पहचा सकत थ

और य लोग ऐसी बात सीखत थ जो खद उ ह नक़सान पहचाती थी और कछ (नफा) पहचाती थी बावजद िक वह यक़ीनन जान चक थ िक जो शखस इन (बराईय ) का ख़रीदार

हआ वह आिख़रत म बनसीब ह और बशबह (मआवज़ा) बहत ही बड़ा ह िजसक बदल उ ह न

अपनी जान को बचा काश (उस कछ) सोच समझ होत

103 और अगर वह ईमान लात और जाद वग़रह स बचकर परहज़गार बनत तो खदा की दरगाह

स जो सवाब िमलता वह उसस कही बहतर होता काश य लोग (इतना तो) समझत

104 ऐ ईमानवाल तम (रसल को अपनी तरफ मताव ज करना चाहो तो) रआना (हमारी िरआयत कर) न कहा करो बि क उनज़रना (हम पर नज़र तव जो रख) कहा करो और (जी लगाकर) सनत रहो और कािफर क िलए ददरनाक अज़ाब ह

105 ऐ रसल अहल िकताब म स िजन लोग न कफर इख़तयार िकया वह और मशरकीन य नही चाहत ह िक तम पर त हार परवरिदगार की तरफ स भलाई (वही) नािज़ल की जाए और

सरः अल-बक़रा

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(उनका तो इसम कछ इजारा नही) खदा िजसको चाहता ह अपनी रहमत क िलए ख़ास कर

लता ह और खदा बड़ा फज़ल (करन) वाला ह

106 (ऐ रसल) हम जब कोई आयत म सख़ करत ह या त हार ज़हन स िमटा दत ह तो उसस

बहतर या वसी ही (और) नािज़ल भी कर दत ह कया तम नही जानत िक बशबहा खदा हर

चीज़ पर क़ािदर ह

107 कया तम नही जानत िक आसमान की सलतनत बशबहा ख़ास खदा ही क िलए ह और खदा क िसवा त हारा न कोई सरपर त ह न मददगार

108 (मसलमान ) कया तम चाहत हो िक तम भी अपन रसल स वस ही (बढ़ग) सवालात करो िजस तरह सािबक़ (पहल) ज़मान म मसा स (बतक) सवालात िकए गए थ और िजस शखस

न ईमान क बदल कफर एख़तयार िकया वह तो यक़ीनी सीध रा त स भटक गया

109 (मसलमान ) अहल िकताब म स अकसर लोग अपन िदली हसद की वजह स य खवािहश

रखत ह िक तमको ईमान लान क बाद िफर कािफ़र बना द (और ल फ तो य ह िक) उन पर

हक़ ज़ािहर हो चका ह उसक बाद भी (य तम ना बाक़ी ह) पस तम माफ करो और दरगज़र

करो यहा तक िक खदा अपना (कोई और) हकम भज बशक खदा हर चीज़ पर क़ािदर ह

110 और नमाज़ पढ़त रहो और ज़कात िदय जाओ और जो कछ भलाई अपन िलए (खदा क यहा) पहल स भज दोग उस (क सवाब) को मौजद पाआग जो कछ तम करत हो उस खदा ज़ र

दख रहा ह

111 और (यहद) कहत ह िक यहद (क िसवा) और (नसारा कहत ह िक) नसारा क िसवा कोई

बिह त म जान ही न पाएगा य उनक खयाली पलाव ह (ऐ रसल) तम उन स कहो िक भला अगर तम स च हो िक हम ही बिह त म जाएग तो अपनी दलील पश करो

112 हा अलब ता िजस शखस न खदा क आग अपना सर झका िदया और अ छ काम भी करता ह

तो उसक िलए उसक परवरिदगार क यहा उसका बदला (मौजद) ह और (आख़रत म) ऐस

लोग पर न िकसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐस लोग ग़मग़ीन होग

113 और यहद कहत ह िक नसारा का मज़हब कछ (ठीक) नही और नसारा कहत ह िक यहद का मज़हब कछ (ठीक) नही हालािक य दोन फरीक़ िकताब (खदा) पढ़त रहत ह इसी तरह उ ही जसी बात वह (मशरकीन अरब) भी िकया करत ह जो (खदा क एहकाम) कछ नही जानत तो

सरः अल-बक़रा

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िजस बात म य लोग पड़ झगड़त ह (दिनया म तो तय न होगा) क़यामत क िदन खदा उनक

दरिमयान ठीक फसला कर दगा

114 और उसस बढ़कर ज़ािलम कौन होगा जो खदा की मसिजद म उसका नाम िलए जान स

(लोग को) रोक और उनकी बरबादी क दर प हो ऐस ही को उसम जाना मनािसब नही मगर

सहम हए ऐस ही लोग क िलए दिनया म सवाई ह और ऐस ही लोग क िलए आख़रत म

बड़ा भारी अज़ाब ह

115 (त हार मसिजद म रोकन स कया होता ह कय िक सारी ज़मीन) खदा ही की ह (कया) परब

(कया) पि चम बस जहा कही िक़ ल की तरफ ख़ करो वही खदा का सामना ह बशक खदा बड़ी ग जाइश वाला और खब वािक़फ ह

116 और यहद कहन लग िक खदा औलाद रखता ह हालािक वह (इस बखड़ स) पाक ह बि क जो कछ ज़मीन व आसमान म ह सब उसी का ह और सब उसकी क फरमाबरदार ह

117 (वही) आसमान व ज़मीन का मोिजद ह और जब िकसी काम का करना ठान लता ह तो उसकी िनसबत िसफर कह दता ह िक हो जा पस वह (खद ब खद) हो जाता ह

118 और जो (मशरकीन) कछ नही जानत कहत ह िक खदा हमस (खद) कलाम कय नही करता या हमार पास (खद) कोई िनशानी कय नही आती इसी तरह उ ही की सी बात वह कर चक

ह जो उनस पहल थ उन सब क िदल आपस म िमलत जलत ह जो लोग यक़ीन रखत ह

उनको तो अपनी िनशािनया कय साफतौर पर िदखा चक

119 (ऐ रसल) हमन तमको दीन हक़ क साथ (बिह त की) खशख़बरी दन वाला और (अज़ाब स)

डरान वाला बनाकर भजा ह और दोज़िख़य क बार म तमस कछ न पछा जाएगा

120 और (ऐ रसल) न तो यहदी कभी तमस रज़ामद होग न नसारा यहा तक िक तम उनक मज़हब की परवी करो (ऐ रसल उनस) कह दो िक बस खदा ही की िहदायत तो िहदायत ह (बाक़ी ढकोसला ह) और अगर तम इसक बाद भी िक त हार पास इ म (क़रान) आ चका ह उनकी खवािहश पर चल तो (याद रह िक िफर) तमको खदा (क ग़ज़ब) स बचान वाला न कोई सरपर त होगा न मददगार

सरः अल-बक़रा

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121 िजन लोग को हमन िकताब (करान) दी ह वह लोग उस इस तरह पढ़त रहत ह जो उसक पढ़न का हक़ ह यही लोग उस पर ईमान लात ह और जो उसस इनकार करत ह वही लोग घाट म ह

122 बनी इसराईल मरी उन नअमत को याद करो जो मन तम को दी ह और य िक

मन तमको सार जहान पर फज़ीलत दी

123 और उस िदन स डरो िजस िदन कोई शखस िकसी की तरफ स न िफदया हो सकगा और न उसकी तरफ स कोई मआवज़ा क़बल िकया जाएगा और न कोई िसफािरश ही फायदा पहचा सकगी और न लोग मदद िदए जाएग

124 (ऐ रसल) बनी इसराईल को वह वकत भी याद िदलाओ जब इबराहीम को उनक

परवरिदगार न च द बात म आज़माया और उ ह न परा कर िदया तो खदा न फरमाया म तमको (लोग का) पशवा बनान वाला ह (हज़रत इबराहीम न) अज़र की और मरी औलाद म स फरमाया (हा मगर) मर इस अहद पर ज़ािलम म स कोई शखस फ़ायज़ नही हो सकता

125 (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब हमन ख़ानए काबा को लोग क सवाब

और पनाह की जगह क़रार दी और हकम िदया गया िक इबराहीम की (इस) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और इबराहीम व इसमाइल स अहद व पमान िलया िक मर (उस) घर को तवाफ़ और एतक़ाफ़ और क और सजदा करन वाल क वा त साफ सथरा रखो

126 और (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब इबराहीम न दआ मागी िक ऐ मर

परवरिदगार इस (शहर) को पनाह व अमन का शहर बना और उसक रहन वाल म स जो खदा और रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए उसको तरह-तरह क फल खान को द खदा न फरमाया (अ छा मगर) वो कफर इख़तयार करगा उसकी दिनया म च द रोज़ (उन चीज़ो स) फायदा उठान दगा िफर (आख़रत म) उसको मजबर करक दोज़ख़ की तरफ खीच ल जाऊगा और वह बहत बरा िठकाना ह

127 और (वह वकत याद िदलाओ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बिनयाद

बल द कर रह थ (और दआ) मागत जात थ िक ऐ हमार परवरिदगार हमारी (य

सरः अल-बक़रा

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िख़दमत) कबल कर बशक त ही (दआ का) सनन वाला (और उसका) जानन वाला ह

128 (और) ऐ हमार पालन वाल त हम अपना फरमाबरदार ब दा बना हमारी औलाद स

एक िगरोह (पदा कर) जो तरा फरमाबरदार हो और हमको हमार हज की जगह िदखा द और हमारी तौबा क़बल कर बशक त ही बड़ा तौबा कबल करन वाला महरबान ह

129 (और) ऐ हमार पालन वाल मकक वाल म उ ही म स एक रसल को भज जो

उनको तरी आयत पढ़कर सनाए और आसमानी िकताब और अकल की बात िसखाए और उन (क नफ़स) क पाकीज़ा कर द बशक त ही ग़ािलब और सािहब तदबीर ह

130 और कौन ह जो इबराहीम क तरीक़ स नफरत कर मगर जो अपन को अहमक़

बनाए और बशक हमन उनको दिनया म भी मि तख़ब कर िलया और वह ज़ र आख़रत म भी अ छ ही म स होग

131 जब उनस उनक परवरिदगार न कहा इ लाम कबल करो तो अज़र म सार जहा क

परवरिदगार पर इ लाम लाया 132 और इसी तरीक क़ी इबराहीम न अपनी औलाद स वसीयत की और याकब न (भी)

िक ऐ फरज़ द खदा न त हार वा त इस दीन (इ लाम) को पस द फरमाया ह पस तम हरिगज़ न मरना मगर मसलमान ही होकर

133 (ऐ यहद) कया तम उस वकत मौजद थ जब याकब क सर पर मौत आ खड़ी

हईउस वकत उ ह न अपन बट स कहा िक मर बाद िकसी की इबादत करोग कहन लग हम आप क माबद और आप क बाप दादाओ इबराहीम व इ माइल व इसहाक़ क माबद व यकता खदा की इबादत करग और हम उसक फरमाबरदार ह

134 (ऐ यहद) वह लोग थ जो चल बस जो उ ह न कमाया उनक आग आया और जो

तम कमाओग त हार आग आएगा और जो कछ भी वह करत थ उसकी पछगछ तमस नही होगी

सरः अल-बक़रा

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135 (यहदी ईसाई मसलमान स) कहत ह िक यहद या नसरानी हो जाओ तो राह रा त पर आ जाओग (ऐ रसल उनस) कह दो िक हम इबराहीम क तरीक़ पर ह जो बाितल स कतरा कर चलत थ और मशरकीन स न थ

136 (और ऐ मसलमान तम य) कहो िक हम तो खदा पर ईमान लाए ह और उस पर

जो हम पर नािज़ल िकया गया (करान) और जो सहीफ़ इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकब और औलाद याकब पर नािज़ल हए थ (उन पर) और जो िकताब मसा व ईसा को दी गई (उस पर) और जो और पग़ बर को उनक परवरिदगार की तरफ स उ ह िदया गया (उस पर) हम तो उनम स िकसी (एक) म भी तफरीक़ नही करत और हम तो खदा ही क फरमाबरदार ह

137 पस अगर य लोग भी उसी तरह ईमान लाए ह िजस तरह तम तो अलब ता राह

रा त पर आ गए और अगर वह इस तरीक स मह फर ल तो बस वह िसफर त हारी ही िज़द पर ह तो (ऐ रसल) उन (क शर) स (बचान को) त हार िलए खदा काफ़ी होगा और वह (सबकी हालत) खब जानता (और) सनता ह

138 (मसलमान स कहो िक) रग तो खदा ही का रग ह िजसम तम रग गए और खदाई

रग स बहतर कौन रग होगा और हम तो उसी की इबादत करत ह 139 (ऐ रसल) तम उनस पछो िक कया तम हम स खदा क बार झगड़त हो हालािक

वही हमारा (भी) परवरिदगार ह (वही) त हारा भी (परवरिदगार ह) हमार िलए ह हमारी कारगज़ािरया और त हार िलए त हारी कारसतािनया और हम तो िनरखर उसी म ह

140 कया तम कहत हो िक इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौद याकब सब क

सब यहदी या नसरानी थ (ऐ रसल उनस) पछो तो िक तम यादा वािक़फ़ हो या खदा और उसस बढ़कर कौन ज़ािलम होगा िजसक पास खदा की तरफ स गवाही (मौजद) हो (िक वह यहदी न थ) और िफर वह िछपाए और जो कछ तम करत हो खदा उसस बख़बर नही

141 य वह लोग थ जो िसधार चक जो कछ कमा गए उनक िलए था और जो कछ तम कमाओग त हार िलए होगा और जो कछ वह कर गज़र उसकी पछगछ तमस न होगी

सरः अल-बक़रा

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142 बाज़ अहमक़ लोग य कह बठग िक मसलमान िजस िक़बल बतल मक़ स की तरफ

पहल स सजदा करत थ उस स दसर िक़बल की तरफ मड़ जान का बाइस हआ ऐ रसल तम उनक जवाब म कहो िक परब पि चम सब ख़दा का ह िजस चाहता ह सीध रा त की तरफ िहदायत करता ह

143 और िजस तरह त हार िक़बल क बार म िहदायत की उसी तरह तम को आिदल

उ मत बनाया तािक और लोग क मक़ाबल म तम गवाह बनो और रसल मोह मद त हार मक़ाबल म गवाह बन और (ऐ रसल) िजस िक़बल की तरफ़ तम पहल सज़दा करत थ हम न उसको को िसफर इस वजह स िक़बला क़रार िदया था िक जब िक़बला बदला जाए तो हम उन लोग को जो रसल की परवी करत ह हम उन लोग स अलग दख ल जो उलट पाव िफरत ह अगरच य उलट फर िसवा उन लोग क िजन की ख़दा न िहदायत की ह सब पर शाक़ ज़ र ह और ख़दा ऐसा नही ह िक त हार ईमान नमाज़ को जो बतलमक़ स की तरफ पढ़ चक हो बरबाद कर द बशक ख़दा लोग पर बड़ा ही रफ़ीक व महरबान ह

144 ऐ रसल िक़बला बदलन क वा त बशक त हारा बार बार आसमान की तरफ मह

करना हम दख रह ह तो हम ज़ र तम को ऐस िक़बल की तरफ फर दग िक तम िनहाल हो जाओ अ छा तो नमाज़ ही म तम मि ज़द मोहतरम काब की तरफ मह कर लो और ऐ मसलमान तम जहा कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मह कर िलया करो और िजन लोग को िकताब तौरत वगरह दी गयी ह वह बख़बी जानत ह िक य तबदील िक़बल बहत बजा व द त ह और उस क परवरिदगार की तरफ़ स ह और जो कछ वह लोग करत ह उस स ख़दा बख़बर नही

145 और अगर अहल िकताब क सामन दिनया की सारी दलील पश कर दोग तो भी वह

त हार िक़बल को न मानग और न तम ही उनक िक़बल को मानन वाल हो और ख़द अहल िकताब भी एक दसर क िक़बल को नही मानत और जो इ म क़रान त हार पास आ चका ह उसक बाद भी अगर तम उनकी खवािहश पर चल तो अलब ता तम नाफ़रमान हो जाओग

सरः अल-बक़रा

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146 िजन लोग को हमन िकताब (तौरत वग़रह) दी ह वह िजस तरह अपन बट को पहचानत ह उसी तरह तरह वह उस पग़ बर को भी पहचानत ह और उन म कछ लोग तो ऐस भी ह जो दीदए व दािन ता (जान बझकर) हक़ बात को िछपात ह

147 ऐ रसल तबदील िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह पस तम कही शक

करन वाल म स न हो जाना 148 और हर फरीक़ क वा त एक िस त ह उसी की तरफ वह नमाज़ म अपना मह कर

लता ह पस तम ऐ मसलमान झगड़ को छोड़ दो और निकय म उन स लपक क आग बढ़ जाओ तम जहा कही होग ख़दा तम सबको अपनी तरफ ल आऐगा बशक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

149 और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा तक मकका स) तो भी नमाज़ म तम

अपना मह मि ज़द मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर िलया करो और बशक य नया िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह

150 और त हार काम स ख़दा ग़ािफल नही ह और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा

तक क मकका स तो भी) तम (नमाज़ म) अपना मह मि ज़द हराम की तरफ कर िलया करो और (ऐ रसल) तम जहा कही हआ करो तो नमाज़ म अपना मह उसी काबा की तरफ़ कर िलया करो (बार बार हकम दन का एक फायदा य ह तािक लोग का इ ज़ाम तम पर न आन पाए मगर उन म स जो लोग नाहक़ हठधमीर करत ह वह तो ज़ र इ ज़ाम दग) तो तम लोग उनस डरो नही और िसफ़र मझस डरो और (दसरा फ़ायदा य ह) तािक तम पर अपनी नअमत परी कर द

151 और तीसरा फायदा य ह तािक तम िहदायत पाओ मसलमान य एहसान भी वसा

ही ह जस हम न तम म तम ही म का एक रसल भजा जो तमको हमारी आयत पढ़ कर सनाए और त हार न स को पाकीज़ा कर और त ह िकताब क़रान और अकल की बात िसखाए और तम को वह बात बताए िजन की त ह पहल स खबर भी न थी

152 पस तम हमारी याद रखो तो म भी त हारा िज़कर (खर) िकया क गा और मरा

यिकरया अदा करत रहो और नाशकरी न करो

सरः अल-बक़रा

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153 ऐ ईमानदार मसीबत क वकत सबर और नमाज़ क ज़िरए स ख़दा की मदद माग

बशक ख़दा सबर करन वाल ही का साथी ह 154 और जो लोग ख़दा की राह म मार गए उ ह कभी मदार न कहना बि क वह लोग

िज़ दा ह मगर तम उनकी िज़ दगी की हक़ीकत का कछ भी यऊर नही रखत 155 और हम त ह कछ खौफ़ और भख स और माल और जान और फल की कमी स

ज़ र आज़माएग और (ऐ रसल) ऐस सबर करन वाल को ख़शख़बरी द दो 156 िक जब उन पर कोई मसीबत आ पड़ी तो वह (बसाखता) बोल उठ हम तो ख़दा ही

क ह और हम उसी की तरफ लौट कर जान वाल ह 157 उ ही लोग पर उनक परवरिदगार की तरफ स इनायत ह और रहमत और यही

लोग िहदायत या ता ह 158 बशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़दा की िनशािनय म स ह पस जो शखस

ख़ानए काबा का हज या उमरा कर उस पर उन दोनो क (दरिमयान) तवाफ़ (आमद ओ र त) करन म कछ गनाह नही (बि क सवाब ह) और जो शखस खश खश नक काम कर तो िफर ख़दा भी क़दरदा (और) वािक़फ़कार ह

159 बशक जो लोग हमारी इन रौशन दलील और िहदायत को िज ह हमन नािज़ल

िकया उसक बाद िछपात ह जबिक हम िकताब तौरत म लोग क सामन साफ़ साफ़ बयान कर चक ह तो यही लोग ह िजन पर ख़दा भी लानत करता ह और लानत करन वाल भी लानत करत ह

160 मगर िजन लोग न (हक़ िछपान स) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर

ली और जो िकताब ख़दा म ह साफ़ साफ़ बयान कर िदया पस उन की तौबा म क़बल करता ह और म तो बड़ा तौबा क़बल करन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

सरः अल-बक़रा

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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(उनका तो इसम कछ इजारा नही) खदा िजसको चाहता ह अपनी रहमत क िलए ख़ास कर

लता ह और खदा बड़ा फज़ल (करन) वाला ह

106 (ऐ रसल) हम जब कोई आयत म सख़ करत ह या त हार ज़हन स िमटा दत ह तो उसस

बहतर या वसी ही (और) नािज़ल भी कर दत ह कया तम नही जानत िक बशबहा खदा हर

चीज़ पर क़ािदर ह

107 कया तम नही जानत िक आसमान की सलतनत बशबहा ख़ास खदा ही क िलए ह और खदा क िसवा त हारा न कोई सरपर त ह न मददगार

108 (मसलमान ) कया तम चाहत हो िक तम भी अपन रसल स वस ही (बढ़ग) सवालात करो िजस तरह सािबक़ (पहल) ज़मान म मसा स (बतक) सवालात िकए गए थ और िजस शखस

न ईमान क बदल कफर एख़तयार िकया वह तो यक़ीनी सीध रा त स भटक गया

109 (मसलमान ) अहल िकताब म स अकसर लोग अपन िदली हसद की वजह स य खवािहश

रखत ह िक तमको ईमान लान क बाद िफर कािफ़र बना द (और ल फ तो य ह िक) उन पर

हक़ ज़ािहर हो चका ह उसक बाद भी (य तम ना बाक़ी ह) पस तम माफ करो और दरगज़र

करो यहा तक िक खदा अपना (कोई और) हकम भज बशक खदा हर चीज़ पर क़ािदर ह

110 और नमाज़ पढ़त रहो और ज़कात िदय जाओ और जो कछ भलाई अपन िलए (खदा क यहा) पहल स भज दोग उस (क सवाब) को मौजद पाआग जो कछ तम करत हो उस खदा ज़ र

दख रहा ह

111 और (यहद) कहत ह िक यहद (क िसवा) और (नसारा कहत ह िक) नसारा क िसवा कोई

बिह त म जान ही न पाएगा य उनक खयाली पलाव ह (ऐ रसल) तम उन स कहो िक भला अगर तम स च हो िक हम ही बिह त म जाएग तो अपनी दलील पश करो

112 हा अलब ता िजस शखस न खदा क आग अपना सर झका िदया और अ छ काम भी करता ह

तो उसक िलए उसक परवरिदगार क यहा उसका बदला (मौजद) ह और (आख़रत म) ऐस

लोग पर न िकसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐस लोग ग़मग़ीन होग

113 और यहद कहत ह िक नसारा का मज़हब कछ (ठीक) नही और नसारा कहत ह िक यहद का मज़हब कछ (ठीक) नही हालािक य दोन फरीक़ िकताब (खदा) पढ़त रहत ह इसी तरह उ ही जसी बात वह (मशरकीन अरब) भी िकया करत ह जो (खदा क एहकाम) कछ नही जानत तो

सरः अल-बक़रा

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िजस बात म य लोग पड़ झगड़त ह (दिनया म तो तय न होगा) क़यामत क िदन खदा उनक

दरिमयान ठीक फसला कर दगा

114 और उसस बढ़कर ज़ािलम कौन होगा जो खदा की मसिजद म उसका नाम िलए जान स

(लोग को) रोक और उनकी बरबादी क दर प हो ऐस ही को उसम जाना मनािसब नही मगर

सहम हए ऐस ही लोग क िलए दिनया म सवाई ह और ऐस ही लोग क िलए आख़रत म

बड़ा भारी अज़ाब ह

115 (त हार मसिजद म रोकन स कया होता ह कय िक सारी ज़मीन) खदा ही की ह (कया) परब

(कया) पि चम बस जहा कही िक़ ल की तरफ ख़ करो वही खदा का सामना ह बशक खदा बड़ी ग जाइश वाला और खब वािक़फ ह

116 और यहद कहन लग िक खदा औलाद रखता ह हालािक वह (इस बखड़ स) पाक ह बि क जो कछ ज़मीन व आसमान म ह सब उसी का ह और सब उसकी क फरमाबरदार ह

117 (वही) आसमान व ज़मीन का मोिजद ह और जब िकसी काम का करना ठान लता ह तो उसकी िनसबत िसफर कह दता ह िक हो जा पस वह (खद ब खद) हो जाता ह

118 और जो (मशरकीन) कछ नही जानत कहत ह िक खदा हमस (खद) कलाम कय नही करता या हमार पास (खद) कोई िनशानी कय नही आती इसी तरह उ ही की सी बात वह कर चक

ह जो उनस पहल थ उन सब क िदल आपस म िमलत जलत ह जो लोग यक़ीन रखत ह

उनको तो अपनी िनशािनया कय साफतौर पर िदखा चक

119 (ऐ रसल) हमन तमको दीन हक़ क साथ (बिह त की) खशख़बरी दन वाला और (अज़ाब स)

डरान वाला बनाकर भजा ह और दोज़िख़य क बार म तमस कछ न पछा जाएगा

120 और (ऐ रसल) न तो यहदी कभी तमस रज़ामद होग न नसारा यहा तक िक तम उनक मज़हब की परवी करो (ऐ रसल उनस) कह दो िक बस खदा ही की िहदायत तो िहदायत ह (बाक़ी ढकोसला ह) और अगर तम इसक बाद भी िक त हार पास इ म (क़रान) आ चका ह उनकी खवािहश पर चल तो (याद रह िक िफर) तमको खदा (क ग़ज़ब) स बचान वाला न कोई सरपर त होगा न मददगार

सरः अल-बक़रा

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121 िजन लोग को हमन िकताब (करान) दी ह वह लोग उस इस तरह पढ़त रहत ह जो उसक पढ़न का हक़ ह यही लोग उस पर ईमान लात ह और जो उसस इनकार करत ह वही लोग घाट म ह

122 बनी इसराईल मरी उन नअमत को याद करो जो मन तम को दी ह और य िक

मन तमको सार जहान पर फज़ीलत दी

123 और उस िदन स डरो िजस िदन कोई शखस िकसी की तरफ स न िफदया हो सकगा और न उसकी तरफ स कोई मआवज़ा क़बल िकया जाएगा और न कोई िसफािरश ही फायदा पहचा सकगी और न लोग मदद िदए जाएग

124 (ऐ रसल) बनी इसराईल को वह वकत भी याद िदलाओ जब इबराहीम को उनक

परवरिदगार न च द बात म आज़माया और उ ह न परा कर िदया तो खदा न फरमाया म तमको (लोग का) पशवा बनान वाला ह (हज़रत इबराहीम न) अज़र की और मरी औलाद म स फरमाया (हा मगर) मर इस अहद पर ज़ािलम म स कोई शखस फ़ायज़ नही हो सकता

125 (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब हमन ख़ानए काबा को लोग क सवाब

और पनाह की जगह क़रार दी और हकम िदया गया िक इबराहीम की (इस) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और इबराहीम व इसमाइल स अहद व पमान िलया िक मर (उस) घर को तवाफ़ और एतक़ाफ़ और क और सजदा करन वाल क वा त साफ सथरा रखो

126 और (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब इबराहीम न दआ मागी िक ऐ मर

परवरिदगार इस (शहर) को पनाह व अमन का शहर बना और उसक रहन वाल म स जो खदा और रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए उसको तरह-तरह क फल खान को द खदा न फरमाया (अ छा मगर) वो कफर इख़तयार करगा उसकी दिनया म च द रोज़ (उन चीज़ो स) फायदा उठान दगा िफर (आख़रत म) उसको मजबर करक दोज़ख़ की तरफ खीच ल जाऊगा और वह बहत बरा िठकाना ह

127 और (वह वकत याद िदलाओ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बिनयाद

बल द कर रह थ (और दआ) मागत जात थ िक ऐ हमार परवरिदगार हमारी (य

सरः अल-बक़रा

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िख़दमत) कबल कर बशक त ही (दआ का) सनन वाला (और उसका) जानन वाला ह

128 (और) ऐ हमार पालन वाल त हम अपना फरमाबरदार ब दा बना हमारी औलाद स

एक िगरोह (पदा कर) जो तरा फरमाबरदार हो और हमको हमार हज की जगह िदखा द और हमारी तौबा क़बल कर बशक त ही बड़ा तौबा कबल करन वाला महरबान ह

129 (और) ऐ हमार पालन वाल मकक वाल म उ ही म स एक रसल को भज जो

उनको तरी आयत पढ़कर सनाए और आसमानी िकताब और अकल की बात िसखाए और उन (क नफ़स) क पाकीज़ा कर द बशक त ही ग़ािलब और सािहब तदबीर ह

130 और कौन ह जो इबराहीम क तरीक़ स नफरत कर मगर जो अपन को अहमक़

बनाए और बशक हमन उनको दिनया म भी मि तख़ब कर िलया और वह ज़ र आख़रत म भी अ छ ही म स होग

131 जब उनस उनक परवरिदगार न कहा इ लाम कबल करो तो अज़र म सार जहा क

परवरिदगार पर इ लाम लाया 132 और इसी तरीक क़ी इबराहीम न अपनी औलाद स वसीयत की और याकब न (भी)

िक ऐ फरज़ द खदा न त हार वा त इस दीन (इ लाम) को पस द फरमाया ह पस तम हरिगज़ न मरना मगर मसलमान ही होकर

133 (ऐ यहद) कया तम उस वकत मौजद थ जब याकब क सर पर मौत आ खड़ी

हईउस वकत उ ह न अपन बट स कहा िक मर बाद िकसी की इबादत करोग कहन लग हम आप क माबद और आप क बाप दादाओ इबराहीम व इ माइल व इसहाक़ क माबद व यकता खदा की इबादत करग और हम उसक फरमाबरदार ह

134 (ऐ यहद) वह लोग थ जो चल बस जो उ ह न कमाया उनक आग आया और जो

तम कमाओग त हार आग आएगा और जो कछ भी वह करत थ उसकी पछगछ तमस नही होगी

सरः अल-बक़रा

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135 (यहदी ईसाई मसलमान स) कहत ह िक यहद या नसरानी हो जाओ तो राह रा त पर आ जाओग (ऐ रसल उनस) कह दो िक हम इबराहीम क तरीक़ पर ह जो बाितल स कतरा कर चलत थ और मशरकीन स न थ

136 (और ऐ मसलमान तम य) कहो िक हम तो खदा पर ईमान लाए ह और उस पर

जो हम पर नािज़ल िकया गया (करान) और जो सहीफ़ इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकब और औलाद याकब पर नािज़ल हए थ (उन पर) और जो िकताब मसा व ईसा को दी गई (उस पर) और जो और पग़ बर को उनक परवरिदगार की तरफ स उ ह िदया गया (उस पर) हम तो उनम स िकसी (एक) म भी तफरीक़ नही करत और हम तो खदा ही क फरमाबरदार ह

137 पस अगर य लोग भी उसी तरह ईमान लाए ह िजस तरह तम तो अलब ता राह

रा त पर आ गए और अगर वह इस तरीक स मह फर ल तो बस वह िसफर त हारी ही िज़द पर ह तो (ऐ रसल) उन (क शर) स (बचान को) त हार िलए खदा काफ़ी होगा और वह (सबकी हालत) खब जानता (और) सनता ह

138 (मसलमान स कहो िक) रग तो खदा ही का रग ह िजसम तम रग गए और खदाई

रग स बहतर कौन रग होगा और हम तो उसी की इबादत करत ह 139 (ऐ रसल) तम उनस पछो िक कया तम हम स खदा क बार झगड़त हो हालािक

वही हमारा (भी) परवरिदगार ह (वही) त हारा भी (परवरिदगार ह) हमार िलए ह हमारी कारगज़ािरया और त हार िलए त हारी कारसतािनया और हम तो िनरखर उसी म ह

140 कया तम कहत हो िक इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौद याकब सब क

सब यहदी या नसरानी थ (ऐ रसल उनस) पछो तो िक तम यादा वािक़फ़ हो या खदा और उसस बढ़कर कौन ज़ािलम होगा िजसक पास खदा की तरफ स गवाही (मौजद) हो (िक वह यहदी न थ) और िफर वह िछपाए और जो कछ तम करत हो खदा उसस बख़बर नही

141 य वह लोग थ जो िसधार चक जो कछ कमा गए उनक िलए था और जो कछ तम कमाओग त हार िलए होगा और जो कछ वह कर गज़र उसकी पछगछ तमस न होगी

सरः अल-बक़रा

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142 बाज़ अहमक़ लोग य कह बठग िक मसलमान िजस िक़बल बतल मक़ स की तरफ

पहल स सजदा करत थ उस स दसर िक़बल की तरफ मड़ जान का बाइस हआ ऐ रसल तम उनक जवाब म कहो िक परब पि चम सब ख़दा का ह िजस चाहता ह सीध रा त की तरफ िहदायत करता ह

143 और िजस तरह त हार िक़बल क बार म िहदायत की उसी तरह तम को आिदल

उ मत बनाया तािक और लोग क मक़ाबल म तम गवाह बनो और रसल मोह मद त हार मक़ाबल म गवाह बन और (ऐ रसल) िजस िक़बल की तरफ़ तम पहल सज़दा करत थ हम न उसको को िसफर इस वजह स िक़बला क़रार िदया था िक जब िक़बला बदला जाए तो हम उन लोग को जो रसल की परवी करत ह हम उन लोग स अलग दख ल जो उलट पाव िफरत ह अगरच य उलट फर िसवा उन लोग क िजन की ख़दा न िहदायत की ह सब पर शाक़ ज़ र ह और ख़दा ऐसा नही ह िक त हार ईमान नमाज़ को जो बतलमक़ स की तरफ पढ़ चक हो बरबाद कर द बशक ख़दा लोग पर बड़ा ही रफ़ीक व महरबान ह

144 ऐ रसल िक़बला बदलन क वा त बशक त हारा बार बार आसमान की तरफ मह

करना हम दख रह ह तो हम ज़ र तम को ऐस िक़बल की तरफ फर दग िक तम िनहाल हो जाओ अ छा तो नमाज़ ही म तम मि ज़द मोहतरम काब की तरफ मह कर लो और ऐ मसलमान तम जहा कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मह कर िलया करो और िजन लोग को िकताब तौरत वगरह दी गयी ह वह बख़बी जानत ह िक य तबदील िक़बल बहत बजा व द त ह और उस क परवरिदगार की तरफ़ स ह और जो कछ वह लोग करत ह उस स ख़दा बख़बर नही

145 और अगर अहल िकताब क सामन दिनया की सारी दलील पश कर दोग तो भी वह

त हार िक़बल को न मानग और न तम ही उनक िक़बल को मानन वाल हो और ख़द अहल िकताब भी एक दसर क िक़बल को नही मानत और जो इ म क़रान त हार पास आ चका ह उसक बाद भी अगर तम उनकी खवािहश पर चल तो अलब ता तम नाफ़रमान हो जाओग

सरः अल-बक़रा

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146 िजन लोग को हमन िकताब (तौरत वग़रह) दी ह वह िजस तरह अपन बट को पहचानत ह उसी तरह तरह वह उस पग़ बर को भी पहचानत ह और उन म कछ लोग तो ऐस भी ह जो दीदए व दािन ता (जान बझकर) हक़ बात को िछपात ह

147 ऐ रसल तबदील िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह पस तम कही शक

करन वाल म स न हो जाना 148 और हर फरीक़ क वा त एक िस त ह उसी की तरफ वह नमाज़ म अपना मह कर

लता ह पस तम ऐ मसलमान झगड़ को छोड़ दो और निकय म उन स लपक क आग बढ़ जाओ तम जहा कही होग ख़दा तम सबको अपनी तरफ ल आऐगा बशक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

149 और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा तक मकका स) तो भी नमाज़ म तम

अपना मह मि ज़द मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर िलया करो और बशक य नया िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह

150 और त हार काम स ख़दा ग़ािफल नही ह और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा

तक क मकका स तो भी) तम (नमाज़ म) अपना मह मि ज़द हराम की तरफ कर िलया करो और (ऐ रसल) तम जहा कही हआ करो तो नमाज़ म अपना मह उसी काबा की तरफ़ कर िलया करो (बार बार हकम दन का एक फायदा य ह तािक लोग का इ ज़ाम तम पर न आन पाए मगर उन म स जो लोग नाहक़ हठधमीर करत ह वह तो ज़ र इ ज़ाम दग) तो तम लोग उनस डरो नही और िसफ़र मझस डरो और (दसरा फ़ायदा य ह) तािक तम पर अपनी नअमत परी कर द

151 और तीसरा फायदा य ह तािक तम िहदायत पाओ मसलमान य एहसान भी वसा

ही ह जस हम न तम म तम ही म का एक रसल भजा जो तमको हमारी आयत पढ़ कर सनाए और त हार न स को पाकीज़ा कर और त ह िकताब क़रान और अकल की बात िसखाए और तम को वह बात बताए िजन की त ह पहल स खबर भी न थी

152 पस तम हमारी याद रखो तो म भी त हारा िज़कर (खर) िकया क गा और मरा

यिकरया अदा करत रहो और नाशकरी न करो

सरः अल-बक़रा

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153 ऐ ईमानदार मसीबत क वकत सबर और नमाज़ क ज़िरए स ख़दा की मदद माग

बशक ख़दा सबर करन वाल ही का साथी ह 154 और जो लोग ख़दा की राह म मार गए उ ह कभी मदार न कहना बि क वह लोग

िज़ दा ह मगर तम उनकी िज़ दगी की हक़ीकत का कछ भी यऊर नही रखत 155 और हम त ह कछ खौफ़ और भख स और माल और जान और फल की कमी स

ज़ र आज़माएग और (ऐ रसल) ऐस सबर करन वाल को ख़शख़बरी द दो 156 िक जब उन पर कोई मसीबत आ पड़ी तो वह (बसाखता) बोल उठ हम तो ख़दा ही

क ह और हम उसी की तरफ लौट कर जान वाल ह 157 उ ही लोग पर उनक परवरिदगार की तरफ स इनायत ह और रहमत और यही

लोग िहदायत या ता ह 158 बशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़दा की िनशािनय म स ह पस जो शखस

ख़ानए काबा का हज या उमरा कर उस पर उन दोनो क (दरिमयान) तवाफ़ (आमद ओ र त) करन म कछ गनाह नही (बि क सवाब ह) और जो शखस खश खश नक काम कर तो िफर ख़दा भी क़दरदा (और) वािक़फ़कार ह

159 बशक जो लोग हमारी इन रौशन दलील और िहदायत को िज ह हमन नािज़ल

िकया उसक बाद िछपात ह जबिक हम िकताब तौरत म लोग क सामन साफ़ साफ़ बयान कर चक ह तो यही लोग ह िजन पर ख़दा भी लानत करता ह और लानत करन वाल भी लानत करत ह

160 मगर िजन लोग न (हक़ िछपान स) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर

ली और जो िकताब ख़दा म ह साफ़ साफ़ बयान कर िदया पस उन की तौबा म क़बल करता ह और म तो बड़ा तौबा क़बल करन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

सरः अल-बक़रा

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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िजस बात म य लोग पड़ झगड़त ह (दिनया म तो तय न होगा) क़यामत क िदन खदा उनक

दरिमयान ठीक फसला कर दगा

114 और उसस बढ़कर ज़ािलम कौन होगा जो खदा की मसिजद म उसका नाम िलए जान स

(लोग को) रोक और उनकी बरबादी क दर प हो ऐस ही को उसम जाना मनािसब नही मगर

सहम हए ऐस ही लोग क िलए दिनया म सवाई ह और ऐस ही लोग क िलए आख़रत म

बड़ा भारी अज़ाब ह

115 (त हार मसिजद म रोकन स कया होता ह कय िक सारी ज़मीन) खदा ही की ह (कया) परब

(कया) पि चम बस जहा कही िक़ ल की तरफ ख़ करो वही खदा का सामना ह बशक खदा बड़ी ग जाइश वाला और खब वािक़फ ह

116 और यहद कहन लग िक खदा औलाद रखता ह हालािक वह (इस बखड़ स) पाक ह बि क जो कछ ज़मीन व आसमान म ह सब उसी का ह और सब उसकी क फरमाबरदार ह

117 (वही) आसमान व ज़मीन का मोिजद ह और जब िकसी काम का करना ठान लता ह तो उसकी िनसबत िसफर कह दता ह िक हो जा पस वह (खद ब खद) हो जाता ह

118 और जो (मशरकीन) कछ नही जानत कहत ह िक खदा हमस (खद) कलाम कय नही करता या हमार पास (खद) कोई िनशानी कय नही आती इसी तरह उ ही की सी बात वह कर चक

ह जो उनस पहल थ उन सब क िदल आपस म िमलत जलत ह जो लोग यक़ीन रखत ह

उनको तो अपनी िनशािनया कय साफतौर पर िदखा चक

119 (ऐ रसल) हमन तमको दीन हक़ क साथ (बिह त की) खशख़बरी दन वाला और (अज़ाब स)

डरान वाला बनाकर भजा ह और दोज़िख़य क बार म तमस कछ न पछा जाएगा

120 और (ऐ रसल) न तो यहदी कभी तमस रज़ामद होग न नसारा यहा तक िक तम उनक मज़हब की परवी करो (ऐ रसल उनस) कह दो िक बस खदा ही की िहदायत तो िहदायत ह (बाक़ी ढकोसला ह) और अगर तम इसक बाद भी िक त हार पास इ म (क़रान) आ चका ह उनकी खवािहश पर चल तो (याद रह िक िफर) तमको खदा (क ग़ज़ब) स बचान वाला न कोई सरपर त होगा न मददगार

सरः अल-बक़रा

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121 िजन लोग को हमन िकताब (करान) दी ह वह लोग उस इस तरह पढ़त रहत ह जो उसक पढ़न का हक़ ह यही लोग उस पर ईमान लात ह और जो उसस इनकार करत ह वही लोग घाट म ह

122 बनी इसराईल मरी उन नअमत को याद करो जो मन तम को दी ह और य िक

मन तमको सार जहान पर फज़ीलत दी

123 और उस िदन स डरो िजस िदन कोई शखस िकसी की तरफ स न िफदया हो सकगा और न उसकी तरफ स कोई मआवज़ा क़बल िकया जाएगा और न कोई िसफािरश ही फायदा पहचा सकगी और न लोग मदद िदए जाएग

124 (ऐ रसल) बनी इसराईल को वह वकत भी याद िदलाओ जब इबराहीम को उनक

परवरिदगार न च द बात म आज़माया और उ ह न परा कर िदया तो खदा न फरमाया म तमको (लोग का) पशवा बनान वाला ह (हज़रत इबराहीम न) अज़र की और मरी औलाद म स फरमाया (हा मगर) मर इस अहद पर ज़ािलम म स कोई शखस फ़ायज़ नही हो सकता

125 (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब हमन ख़ानए काबा को लोग क सवाब

और पनाह की जगह क़रार दी और हकम िदया गया िक इबराहीम की (इस) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और इबराहीम व इसमाइल स अहद व पमान िलया िक मर (उस) घर को तवाफ़ और एतक़ाफ़ और क और सजदा करन वाल क वा त साफ सथरा रखो

126 और (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब इबराहीम न दआ मागी िक ऐ मर

परवरिदगार इस (शहर) को पनाह व अमन का शहर बना और उसक रहन वाल म स जो खदा और रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए उसको तरह-तरह क फल खान को द खदा न फरमाया (अ छा मगर) वो कफर इख़तयार करगा उसकी दिनया म च द रोज़ (उन चीज़ो स) फायदा उठान दगा िफर (आख़रत म) उसको मजबर करक दोज़ख़ की तरफ खीच ल जाऊगा और वह बहत बरा िठकाना ह

127 और (वह वकत याद िदलाओ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बिनयाद

बल द कर रह थ (और दआ) मागत जात थ िक ऐ हमार परवरिदगार हमारी (य

सरः अल-बक़रा

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िख़दमत) कबल कर बशक त ही (दआ का) सनन वाला (और उसका) जानन वाला ह

128 (और) ऐ हमार पालन वाल त हम अपना फरमाबरदार ब दा बना हमारी औलाद स

एक िगरोह (पदा कर) जो तरा फरमाबरदार हो और हमको हमार हज की जगह िदखा द और हमारी तौबा क़बल कर बशक त ही बड़ा तौबा कबल करन वाला महरबान ह

129 (और) ऐ हमार पालन वाल मकक वाल म उ ही म स एक रसल को भज जो

उनको तरी आयत पढ़कर सनाए और आसमानी िकताब और अकल की बात िसखाए और उन (क नफ़स) क पाकीज़ा कर द बशक त ही ग़ािलब और सािहब तदबीर ह

130 और कौन ह जो इबराहीम क तरीक़ स नफरत कर मगर जो अपन को अहमक़

बनाए और बशक हमन उनको दिनया म भी मि तख़ब कर िलया और वह ज़ र आख़रत म भी अ छ ही म स होग

131 जब उनस उनक परवरिदगार न कहा इ लाम कबल करो तो अज़र म सार जहा क

परवरिदगार पर इ लाम लाया 132 और इसी तरीक क़ी इबराहीम न अपनी औलाद स वसीयत की और याकब न (भी)

िक ऐ फरज़ द खदा न त हार वा त इस दीन (इ लाम) को पस द फरमाया ह पस तम हरिगज़ न मरना मगर मसलमान ही होकर

133 (ऐ यहद) कया तम उस वकत मौजद थ जब याकब क सर पर मौत आ खड़ी

हईउस वकत उ ह न अपन बट स कहा िक मर बाद िकसी की इबादत करोग कहन लग हम आप क माबद और आप क बाप दादाओ इबराहीम व इ माइल व इसहाक़ क माबद व यकता खदा की इबादत करग और हम उसक फरमाबरदार ह

134 (ऐ यहद) वह लोग थ जो चल बस जो उ ह न कमाया उनक आग आया और जो

तम कमाओग त हार आग आएगा और जो कछ भी वह करत थ उसकी पछगछ तमस नही होगी

सरः अल-बक़रा

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135 (यहदी ईसाई मसलमान स) कहत ह िक यहद या नसरानी हो जाओ तो राह रा त पर आ जाओग (ऐ रसल उनस) कह दो िक हम इबराहीम क तरीक़ पर ह जो बाितल स कतरा कर चलत थ और मशरकीन स न थ

136 (और ऐ मसलमान तम य) कहो िक हम तो खदा पर ईमान लाए ह और उस पर

जो हम पर नािज़ल िकया गया (करान) और जो सहीफ़ इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकब और औलाद याकब पर नािज़ल हए थ (उन पर) और जो िकताब मसा व ईसा को दी गई (उस पर) और जो और पग़ बर को उनक परवरिदगार की तरफ स उ ह िदया गया (उस पर) हम तो उनम स िकसी (एक) म भी तफरीक़ नही करत और हम तो खदा ही क फरमाबरदार ह

137 पस अगर य लोग भी उसी तरह ईमान लाए ह िजस तरह तम तो अलब ता राह

रा त पर आ गए और अगर वह इस तरीक स मह फर ल तो बस वह िसफर त हारी ही िज़द पर ह तो (ऐ रसल) उन (क शर) स (बचान को) त हार िलए खदा काफ़ी होगा और वह (सबकी हालत) खब जानता (और) सनता ह

138 (मसलमान स कहो िक) रग तो खदा ही का रग ह िजसम तम रग गए और खदाई

रग स बहतर कौन रग होगा और हम तो उसी की इबादत करत ह 139 (ऐ रसल) तम उनस पछो िक कया तम हम स खदा क बार झगड़त हो हालािक

वही हमारा (भी) परवरिदगार ह (वही) त हारा भी (परवरिदगार ह) हमार िलए ह हमारी कारगज़ािरया और त हार िलए त हारी कारसतािनया और हम तो िनरखर उसी म ह

140 कया तम कहत हो िक इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौद याकब सब क

सब यहदी या नसरानी थ (ऐ रसल उनस) पछो तो िक तम यादा वािक़फ़ हो या खदा और उसस बढ़कर कौन ज़ािलम होगा िजसक पास खदा की तरफ स गवाही (मौजद) हो (िक वह यहदी न थ) और िफर वह िछपाए और जो कछ तम करत हो खदा उसस बख़बर नही

141 य वह लोग थ जो िसधार चक जो कछ कमा गए उनक िलए था और जो कछ तम कमाओग त हार िलए होगा और जो कछ वह कर गज़र उसकी पछगछ तमस न होगी

सरः अल-बक़रा

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142 बाज़ अहमक़ लोग य कह बठग िक मसलमान िजस िक़बल बतल मक़ स की तरफ

पहल स सजदा करत थ उस स दसर िक़बल की तरफ मड़ जान का बाइस हआ ऐ रसल तम उनक जवाब म कहो िक परब पि चम सब ख़दा का ह िजस चाहता ह सीध रा त की तरफ िहदायत करता ह

143 और िजस तरह त हार िक़बल क बार म िहदायत की उसी तरह तम को आिदल

उ मत बनाया तािक और लोग क मक़ाबल म तम गवाह बनो और रसल मोह मद त हार मक़ाबल म गवाह बन और (ऐ रसल) िजस िक़बल की तरफ़ तम पहल सज़दा करत थ हम न उसको को िसफर इस वजह स िक़बला क़रार िदया था िक जब िक़बला बदला जाए तो हम उन लोग को जो रसल की परवी करत ह हम उन लोग स अलग दख ल जो उलट पाव िफरत ह अगरच य उलट फर िसवा उन लोग क िजन की ख़दा न िहदायत की ह सब पर शाक़ ज़ र ह और ख़दा ऐसा नही ह िक त हार ईमान नमाज़ को जो बतलमक़ स की तरफ पढ़ चक हो बरबाद कर द बशक ख़दा लोग पर बड़ा ही रफ़ीक व महरबान ह

144 ऐ रसल िक़बला बदलन क वा त बशक त हारा बार बार आसमान की तरफ मह

करना हम दख रह ह तो हम ज़ र तम को ऐस िक़बल की तरफ फर दग िक तम िनहाल हो जाओ अ छा तो नमाज़ ही म तम मि ज़द मोहतरम काब की तरफ मह कर लो और ऐ मसलमान तम जहा कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मह कर िलया करो और िजन लोग को िकताब तौरत वगरह दी गयी ह वह बख़बी जानत ह िक य तबदील िक़बल बहत बजा व द त ह और उस क परवरिदगार की तरफ़ स ह और जो कछ वह लोग करत ह उस स ख़दा बख़बर नही

145 और अगर अहल िकताब क सामन दिनया की सारी दलील पश कर दोग तो भी वह

त हार िक़बल को न मानग और न तम ही उनक िक़बल को मानन वाल हो और ख़द अहल िकताब भी एक दसर क िक़बल को नही मानत और जो इ म क़रान त हार पास आ चका ह उसक बाद भी अगर तम उनकी खवािहश पर चल तो अलब ता तम नाफ़रमान हो जाओग

सरः अल-बक़रा

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146 िजन लोग को हमन िकताब (तौरत वग़रह) दी ह वह िजस तरह अपन बट को पहचानत ह उसी तरह तरह वह उस पग़ बर को भी पहचानत ह और उन म कछ लोग तो ऐस भी ह जो दीदए व दािन ता (जान बझकर) हक़ बात को िछपात ह

147 ऐ रसल तबदील िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह पस तम कही शक

करन वाल म स न हो जाना 148 और हर फरीक़ क वा त एक िस त ह उसी की तरफ वह नमाज़ म अपना मह कर

लता ह पस तम ऐ मसलमान झगड़ को छोड़ दो और निकय म उन स लपक क आग बढ़ जाओ तम जहा कही होग ख़दा तम सबको अपनी तरफ ल आऐगा बशक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

149 और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा तक मकका स) तो भी नमाज़ म तम

अपना मह मि ज़द मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर िलया करो और बशक य नया िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह

150 और त हार काम स ख़दा ग़ािफल नही ह और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा

तक क मकका स तो भी) तम (नमाज़ म) अपना मह मि ज़द हराम की तरफ कर िलया करो और (ऐ रसल) तम जहा कही हआ करो तो नमाज़ म अपना मह उसी काबा की तरफ़ कर िलया करो (बार बार हकम दन का एक फायदा य ह तािक लोग का इ ज़ाम तम पर न आन पाए मगर उन म स जो लोग नाहक़ हठधमीर करत ह वह तो ज़ र इ ज़ाम दग) तो तम लोग उनस डरो नही और िसफ़र मझस डरो और (दसरा फ़ायदा य ह) तािक तम पर अपनी नअमत परी कर द

151 और तीसरा फायदा य ह तािक तम िहदायत पाओ मसलमान य एहसान भी वसा

ही ह जस हम न तम म तम ही म का एक रसल भजा जो तमको हमारी आयत पढ़ कर सनाए और त हार न स को पाकीज़ा कर और त ह िकताब क़रान और अकल की बात िसखाए और तम को वह बात बताए िजन की त ह पहल स खबर भी न थी

152 पस तम हमारी याद रखो तो म भी त हारा िज़कर (खर) िकया क गा और मरा

यिकरया अदा करत रहो और नाशकरी न करो

सरः अल-बक़रा

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153 ऐ ईमानदार मसीबत क वकत सबर और नमाज़ क ज़िरए स ख़दा की मदद माग

बशक ख़दा सबर करन वाल ही का साथी ह 154 और जो लोग ख़दा की राह म मार गए उ ह कभी मदार न कहना बि क वह लोग

िज़ दा ह मगर तम उनकी िज़ दगी की हक़ीकत का कछ भी यऊर नही रखत 155 और हम त ह कछ खौफ़ और भख स और माल और जान और फल की कमी स

ज़ र आज़माएग और (ऐ रसल) ऐस सबर करन वाल को ख़शख़बरी द दो 156 िक जब उन पर कोई मसीबत आ पड़ी तो वह (बसाखता) बोल उठ हम तो ख़दा ही

क ह और हम उसी की तरफ लौट कर जान वाल ह 157 उ ही लोग पर उनक परवरिदगार की तरफ स इनायत ह और रहमत और यही

लोग िहदायत या ता ह 158 बशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़दा की िनशािनय म स ह पस जो शखस

ख़ानए काबा का हज या उमरा कर उस पर उन दोनो क (दरिमयान) तवाफ़ (आमद ओ र त) करन म कछ गनाह नही (बि क सवाब ह) और जो शखस खश खश नक काम कर तो िफर ख़दा भी क़दरदा (और) वािक़फ़कार ह

159 बशक जो लोग हमारी इन रौशन दलील और िहदायत को िज ह हमन नािज़ल

िकया उसक बाद िछपात ह जबिक हम िकताब तौरत म लोग क सामन साफ़ साफ़ बयान कर चक ह तो यही लोग ह िजन पर ख़दा भी लानत करता ह और लानत करन वाल भी लानत करत ह

160 मगर िजन लोग न (हक़ िछपान स) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर

ली और जो िकताब ख़दा म ह साफ़ साफ़ बयान कर िदया पस उन की तौबा म क़बल करता ह और म तो बड़ा तौबा क़बल करन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

सरः अल-बक़रा

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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121 िजन लोग को हमन िकताब (करान) दी ह वह लोग उस इस तरह पढ़त रहत ह जो उसक पढ़न का हक़ ह यही लोग उस पर ईमान लात ह और जो उसस इनकार करत ह वही लोग घाट म ह

122 बनी इसराईल मरी उन नअमत को याद करो जो मन तम को दी ह और य िक

मन तमको सार जहान पर फज़ीलत दी

123 और उस िदन स डरो िजस िदन कोई शखस िकसी की तरफ स न िफदया हो सकगा और न उसकी तरफ स कोई मआवज़ा क़बल िकया जाएगा और न कोई िसफािरश ही फायदा पहचा सकगी और न लोग मदद िदए जाएग

124 (ऐ रसल) बनी इसराईल को वह वकत भी याद िदलाओ जब इबराहीम को उनक

परवरिदगार न च द बात म आज़माया और उ ह न परा कर िदया तो खदा न फरमाया म तमको (लोग का) पशवा बनान वाला ह (हज़रत इबराहीम न) अज़र की और मरी औलाद म स फरमाया (हा मगर) मर इस अहद पर ज़ािलम म स कोई शखस फ़ायज़ नही हो सकता

125 (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब हमन ख़ानए काबा को लोग क सवाब

और पनाह की जगह क़रार दी और हकम िदया गया िक इबराहीम की (इस) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और इबराहीम व इसमाइल स अहद व पमान िलया िक मर (उस) घर को तवाफ़ और एतक़ाफ़ और क और सजदा करन वाल क वा त साफ सथरा रखो

126 और (ऐ रसल वह वकत भी याद िदलाओ) जब इबराहीम न दआ मागी िक ऐ मर

परवरिदगार इस (शहर) को पनाह व अमन का शहर बना और उसक रहन वाल म स जो खदा और रोज़ आिख़रत पर ईमान लाए उसको तरह-तरह क फल खान को द खदा न फरमाया (अ छा मगर) वो कफर इख़तयार करगा उसकी दिनया म च द रोज़ (उन चीज़ो स) फायदा उठान दगा िफर (आख़रत म) उसको मजबर करक दोज़ख़ की तरफ खीच ल जाऊगा और वह बहत बरा िठकाना ह

127 और (वह वकत याद िदलाओ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बिनयाद

बल द कर रह थ (और दआ) मागत जात थ िक ऐ हमार परवरिदगार हमारी (य

सरः अल-बक़रा

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िख़दमत) कबल कर बशक त ही (दआ का) सनन वाला (और उसका) जानन वाला ह

128 (और) ऐ हमार पालन वाल त हम अपना फरमाबरदार ब दा बना हमारी औलाद स

एक िगरोह (पदा कर) जो तरा फरमाबरदार हो और हमको हमार हज की जगह िदखा द और हमारी तौबा क़बल कर बशक त ही बड़ा तौबा कबल करन वाला महरबान ह

129 (और) ऐ हमार पालन वाल मकक वाल म उ ही म स एक रसल को भज जो

उनको तरी आयत पढ़कर सनाए और आसमानी िकताब और अकल की बात िसखाए और उन (क नफ़स) क पाकीज़ा कर द बशक त ही ग़ािलब और सािहब तदबीर ह

130 और कौन ह जो इबराहीम क तरीक़ स नफरत कर मगर जो अपन को अहमक़

बनाए और बशक हमन उनको दिनया म भी मि तख़ब कर िलया और वह ज़ र आख़रत म भी अ छ ही म स होग

131 जब उनस उनक परवरिदगार न कहा इ लाम कबल करो तो अज़र म सार जहा क

परवरिदगार पर इ लाम लाया 132 और इसी तरीक क़ी इबराहीम न अपनी औलाद स वसीयत की और याकब न (भी)

िक ऐ फरज़ द खदा न त हार वा त इस दीन (इ लाम) को पस द फरमाया ह पस तम हरिगज़ न मरना मगर मसलमान ही होकर

133 (ऐ यहद) कया तम उस वकत मौजद थ जब याकब क सर पर मौत आ खड़ी

हईउस वकत उ ह न अपन बट स कहा िक मर बाद िकसी की इबादत करोग कहन लग हम आप क माबद और आप क बाप दादाओ इबराहीम व इ माइल व इसहाक़ क माबद व यकता खदा की इबादत करग और हम उसक फरमाबरदार ह

134 (ऐ यहद) वह लोग थ जो चल बस जो उ ह न कमाया उनक आग आया और जो

तम कमाओग त हार आग आएगा और जो कछ भी वह करत थ उसकी पछगछ तमस नही होगी

सरः अल-बक़रा

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135 (यहदी ईसाई मसलमान स) कहत ह िक यहद या नसरानी हो जाओ तो राह रा त पर आ जाओग (ऐ रसल उनस) कह दो िक हम इबराहीम क तरीक़ पर ह जो बाितल स कतरा कर चलत थ और मशरकीन स न थ

136 (और ऐ मसलमान तम य) कहो िक हम तो खदा पर ईमान लाए ह और उस पर

जो हम पर नािज़ल िकया गया (करान) और जो सहीफ़ इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकब और औलाद याकब पर नािज़ल हए थ (उन पर) और जो िकताब मसा व ईसा को दी गई (उस पर) और जो और पग़ बर को उनक परवरिदगार की तरफ स उ ह िदया गया (उस पर) हम तो उनम स िकसी (एक) म भी तफरीक़ नही करत और हम तो खदा ही क फरमाबरदार ह

137 पस अगर य लोग भी उसी तरह ईमान लाए ह िजस तरह तम तो अलब ता राह

रा त पर आ गए और अगर वह इस तरीक स मह फर ल तो बस वह िसफर त हारी ही िज़द पर ह तो (ऐ रसल) उन (क शर) स (बचान को) त हार िलए खदा काफ़ी होगा और वह (सबकी हालत) खब जानता (और) सनता ह

138 (मसलमान स कहो िक) रग तो खदा ही का रग ह िजसम तम रग गए और खदाई

रग स बहतर कौन रग होगा और हम तो उसी की इबादत करत ह 139 (ऐ रसल) तम उनस पछो िक कया तम हम स खदा क बार झगड़त हो हालािक

वही हमारा (भी) परवरिदगार ह (वही) त हारा भी (परवरिदगार ह) हमार िलए ह हमारी कारगज़ािरया और त हार िलए त हारी कारसतािनया और हम तो िनरखर उसी म ह

140 कया तम कहत हो िक इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौद याकब सब क

सब यहदी या नसरानी थ (ऐ रसल उनस) पछो तो िक तम यादा वािक़फ़ हो या खदा और उसस बढ़कर कौन ज़ािलम होगा िजसक पास खदा की तरफ स गवाही (मौजद) हो (िक वह यहदी न थ) और िफर वह िछपाए और जो कछ तम करत हो खदा उसस बख़बर नही

141 य वह लोग थ जो िसधार चक जो कछ कमा गए उनक िलए था और जो कछ तम कमाओग त हार िलए होगा और जो कछ वह कर गज़र उसकी पछगछ तमस न होगी

सरः अल-बक़रा

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142 बाज़ अहमक़ लोग य कह बठग िक मसलमान िजस िक़बल बतल मक़ स की तरफ

पहल स सजदा करत थ उस स दसर िक़बल की तरफ मड़ जान का बाइस हआ ऐ रसल तम उनक जवाब म कहो िक परब पि चम सब ख़दा का ह िजस चाहता ह सीध रा त की तरफ िहदायत करता ह

143 और िजस तरह त हार िक़बल क बार म िहदायत की उसी तरह तम को आिदल

उ मत बनाया तािक और लोग क मक़ाबल म तम गवाह बनो और रसल मोह मद त हार मक़ाबल म गवाह बन और (ऐ रसल) िजस िक़बल की तरफ़ तम पहल सज़दा करत थ हम न उसको को िसफर इस वजह स िक़बला क़रार िदया था िक जब िक़बला बदला जाए तो हम उन लोग को जो रसल की परवी करत ह हम उन लोग स अलग दख ल जो उलट पाव िफरत ह अगरच य उलट फर िसवा उन लोग क िजन की ख़दा न िहदायत की ह सब पर शाक़ ज़ र ह और ख़दा ऐसा नही ह िक त हार ईमान नमाज़ को जो बतलमक़ स की तरफ पढ़ चक हो बरबाद कर द बशक ख़दा लोग पर बड़ा ही रफ़ीक व महरबान ह

144 ऐ रसल िक़बला बदलन क वा त बशक त हारा बार बार आसमान की तरफ मह

करना हम दख रह ह तो हम ज़ र तम को ऐस िक़बल की तरफ फर दग िक तम िनहाल हो जाओ अ छा तो नमाज़ ही म तम मि ज़द मोहतरम काब की तरफ मह कर लो और ऐ मसलमान तम जहा कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मह कर िलया करो और िजन लोग को िकताब तौरत वगरह दी गयी ह वह बख़बी जानत ह िक य तबदील िक़बल बहत बजा व द त ह और उस क परवरिदगार की तरफ़ स ह और जो कछ वह लोग करत ह उस स ख़दा बख़बर नही

145 और अगर अहल िकताब क सामन दिनया की सारी दलील पश कर दोग तो भी वह

त हार िक़बल को न मानग और न तम ही उनक िक़बल को मानन वाल हो और ख़द अहल िकताब भी एक दसर क िक़बल को नही मानत और जो इ म क़रान त हार पास आ चका ह उसक बाद भी अगर तम उनकी खवािहश पर चल तो अलब ता तम नाफ़रमान हो जाओग

सरः अल-बक़रा

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146 िजन लोग को हमन िकताब (तौरत वग़रह) दी ह वह िजस तरह अपन बट को पहचानत ह उसी तरह तरह वह उस पग़ बर को भी पहचानत ह और उन म कछ लोग तो ऐस भी ह जो दीदए व दािन ता (जान बझकर) हक़ बात को िछपात ह

147 ऐ रसल तबदील िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह पस तम कही शक

करन वाल म स न हो जाना 148 और हर फरीक़ क वा त एक िस त ह उसी की तरफ वह नमाज़ म अपना मह कर

लता ह पस तम ऐ मसलमान झगड़ को छोड़ दो और निकय म उन स लपक क आग बढ़ जाओ तम जहा कही होग ख़दा तम सबको अपनी तरफ ल आऐगा बशक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

149 और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा तक मकका स) तो भी नमाज़ म तम

अपना मह मि ज़द मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर िलया करो और बशक य नया िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह

150 और त हार काम स ख़दा ग़ािफल नही ह और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा

तक क मकका स तो भी) तम (नमाज़ म) अपना मह मि ज़द हराम की तरफ कर िलया करो और (ऐ रसल) तम जहा कही हआ करो तो नमाज़ म अपना मह उसी काबा की तरफ़ कर िलया करो (बार बार हकम दन का एक फायदा य ह तािक लोग का इ ज़ाम तम पर न आन पाए मगर उन म स जो लोग नाहक़ हठधमीर करत ह वह तो ज़ र इ ज़ाम दग) तो तम लोग उनस डरो नही और िसफ़र मझस डरो और (दसरा फ़ायदा य ह) तािक तम पर अपनी नअमत परी कर द

151 और तीसरा फायदा य ह तािक तम िहदायत पाओ मसलमान य एहसान भी वसा

ही ह जस हम न तम म तम ही म का एक रसल भजा जो तमको हमारी आयत पढ़ कर सनाए और त हार न स को पाकीज़ा कर और त ह िकताब क़रान और अकल की बात िसखाए और तम को वह बात बताए िजन की त ह पहल स खबर भी न थी

152 पस तम हमारी याद रखो तो म भी त हारा िज़कर (खर) िकया क गा और मरा

यिकरया अदा करत रहो और नाशकरी न करो

सरः अल-बक़रा

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153 ऐ ईमानदार मसीबत क वकत सबर और नमाज़ क ज़िरए स ख़दा की मदद माग

बशक ख़दा सबर करन वाल ही का साथी ह 154 और जो लोग ख़दा की राह म मार गए उ ह कभी मदार न कहना बि क वह लोग

िज़ दा ह मगर तम उनकी िज़ दगी की हक़ीकत का कछ भी यऊर नही रखत 155 और हम त ह कछ खौफ़ और भख स और माल और जान और फल की कमी स

ज़ र आज़माएग और (ऐ रसल) ऐस सबर करन वाल को ख़शख़बरी द दो 156 िक जब उन पर कोई मसीबत आ पड़ी तो वह (बसाखता) बोल उठ हम तो ख़दा ही

क ह और हम उसी की तरफ लौट कर जान वाल ह 157 उ ही लोग पर उनक परवरिदगार की तरफ स इनायत ह और रहमत और यही

लोग िहदायत या ता ह 158 बशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़दा की िनशािनय म स ह पस जो शखस

ख़ानए काबा का हज या उमरा कर उस पर उन दोनो क (दरिमयान) तवाफ़ (आमद ओ र त) करन म कछ गनाह नही (बि क सवाब ह) और जो शखस खश खश नक काम कर तो िफर ख़दा भी क़दरदा (और) वािक़फ़कार ह

159 बशक जो लोग हमारी इन रौशन दलील और िहदायत को िज ह हमन नािज़ल

िकया उसक बाद िछपात ह जबिक हम िकताब तौरत म लोग क सामन साफ़ साफ़ बयान कर चक ह तो यही लोग ह िजन पर ख़दा भी लानत करता ह और लानत करन वाल भी लानत करत ह

160 मगर िजन लोग न (हक़ िछपान स) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर

ली और जो िकताब ख़दा म ह साफ़ साफ़ बयान कर िदया पस उन की तौबा म क़बल करता ह और म तो बड़ा तौबा क़बल करन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

सरः अल-बक़रा

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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िख़दमत) कबल कर बशक त ही (दआ का) सनन वाला (और उसका) जानन वाला ह

128 (और) ऐ हमार पालन वाल त हम अपना फरमाबरदार ब दा बना हमारी औलाद स

एक िगरोह (पदा कर) जो तरा फरमाबरदार हो और हमको हमार हज की जगह िदखा द और हमारी तौबा क़बल कर बशक त ही बड़ा तौबा कबल करन वाला महरबान ह

129 (और) ऐ हमार पालन वाल मकक वाल म उ ही म स एक रसल को भज जो

उनको तरी आयत पढ़कर सनाए और आसमानी िकताब और अकल की बात िसखाए और उन (क नफ़स) क पाकीज़ा कर द बशक त ही ग़ािलब और सािहब तदबीर ह

130 और कौन ह जो इबराहीम क तरीक़ स नफरत कर मगर जो अपन को अहमक़

बनाए और बशक हमन उनको दिनया म भी मि तख़ब कर िलया और वह ज़ र आख़रत म भी अ छ ही म स होग

131 जब उनस उनक परवरिदगार न कहा इ लाम कबल करो तो अज़र म सार जहा क

परवरिदगार पर इ लाम लाया 132 और इसी तरीक क़ी इबराहीम न अपनी औलाद स वसीयत की और याकब न (भी)

िक ऐ फरज़ द खदा न त हार वा त इस दीन (इ लाम) को पस द फरमाया ह पस तम हरिगज़ न मरना मगर मसलमान ही होकर

133 (ऐ यहद) कया तम उस वकत मौजद थ जब याकब क सर पर मौत आ खड़ी

हईउस वकत उ ह न अपन बट स कहा िक मर बाद िकसी की इबादत करोग कहन लग हम आप क माबद और आप क बाप दादाओ इबराहीम व इ माइल व इसहाक़ क माबद व यकता खदा की इबादत करग और हम उसक फरमाबरदार ह

134 (ऐ यहद) वह लोग थ जो चल बस जो उ ह न कमाया उनक आग आया और जो

तम कमाओग त हार आग आएगा और जो कछ भी वह करत थ उसकी पछगछ तमस नही होगी

सरः अल-बक़रा

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135 (यहदी ईसाई मसलमान स) कहत ह िक यहद या नसरानी हो जाओ तो राह रा त पर आ जाओग (ऐ रसल उनस) कह दो िक हम इबराहीम क तरीक़ पर ह जो बाितल स कतरा कर चलत थ और मशरकीन स न थ

136 (और ऐ मसलमान तम य) कहो िक हम तो खदा पर ईमान लाए ह और उस पर

जो हम पर नािज़ल िकया गया (करान) और जो सहीफ़ इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकब और औलाद याकब पर नािज़ल हए थ (उन पर) और जो िकताब मसा व ईसा को दी गई (उस पर) और जो और पग़ बर को उनक परवरिदगार की तरफ स उ ह िदया गया (उस पर) हम तो उनम स िकसी (एक) म भी तफरीक़ नही करत और हम तो खदा ही क फरमाबरदार ह

137 पस अगर य लोग भी उसी तरह ईमान लाए ह िजस तरह तम तो अलब ता राह

रा त पर आ गए और अगर वह इस तरीक स मह फर ल तो बस वह िसफर त हारी ही िज़द पर ह तो (ऐ रसल) उन (क शर) स (बचान को) त हार िलए खदा काफ़ी होगा और वह (सबकी हालत) खब जानता (और) सनता ह

138 (मसलमान स कहो िक) रग तो खदा ही का रग ह िजसम तम रग गए और खदाई

रग स बहतर कौन रग होगा और हम तो उसी की इबादत करत ह 139 (ऐ रसल) तम उनस पछो िक कया तम हम स खदा क बार झगड़त हो हालािक

वही हमारा (भी) परवरिदगार ह (वही) त हारा भी (परवरिदगार ह) हमार िलए ह हमारी कारगज़ािरया और त हार िलए त हारी कारसतािनया और हम तो िनरखर उसी म ह

140 कया तम कहत हो िक इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौद याकब सब क

सब यहदी या नसरानी थ (ऐ रसल उनस) पछो तो िक तम यादा वािक़फ़ हो या खदा और उसस बढ़कर कौन ज़ािलम होगा िजसक पास खदा की तरफ स गवाही (मौजद) हो (िक वह यहदी न थ) और िफर वह िछपाए और जो कछ तम करत हो खदा उसस बख़बर नही

141 य वह लोग थ जो िसधार चक जो कछ कमा गए उनक िलए था और जो कछ तम कमाओग त हार िलए होगा और जो कछ वह कर गज़र उसकी पछगछ तमस न होगी

सरः अल-बक़रा

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142 बाज़ अहमक़ लोग य कह बठग िक मसलमान िजस िक़बल बतल मक़ स की तरफ

पहल स सजदा करत थ उस स दसर िक़बल की तरफ मड़ जान का बाइस हआ ऐ रसल तम उनक जवाब म कहो िक परब पि चम सब ख़दा का ह िजस चाहता ह सीध रा त की तरफ िहदायत करता ह

143 और िजस तरह त हार िक़बल क बार म िहदायत की उसी तरह तम को आिदल

उ मत बनाया तािक और लोग क मक़ाबल म तम गवाह बनो और रसल मोह मद त हार मक़ाबल म गवाह बन और (ऐ रसल) िजस िक़बल की तरफ़ तम पहल सज़दा करत थ हम न उसको को िसफर इस वजह स िक़बला क़रार िदया था िक जब िक़बला बदला जाए तो हम उन लोग को जो रसल की परवी करत ह हम उन लोग स अलग दख ल जो उलट पाव िफरत ह अगरच य उलट फर िसवा उन लोग क िजन की ख़दा न िहदायत की ह सब पर शाक़ ज़ र ह और ख़दा ऐसा नही ह िक त हार ईमान नमाज़ को जो बतलमक़ स की तरफ पढ़ चक हो बरबाद कर द बशक ख़दा लोग पर बड़ा ही रफ़ीक व महरबान ह

144 ऐ रसल िक़बला बदलन क वा त बशक त हारा बार बार आसमान की तरफ मह

करना हम दख रह ह तो हम ज़ र तम को ऐस िक़बल की तरफ फर दग िक तम िनहाल हो जाओ अ छा तो नमाज़ ही म तम मि ज़द मोहतरम काब की तरफ मह कर लो और ऐ मसलमान तम जहा कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मह कर िलया करो और िजन लोग को िकताब तौरत वगरह दी गयी ह वह बख़बी जानत ह िक य तबदील िक़बल बहत बजा व द त ह और उस क परवरिदगार की तरफ़ स ह और जो कछ वह लोग करत ह उस स ख़दा बख़बर नही

145 और अगर अहल िकताब क सामन दिनया की सारी दलील पश कर दोग तो भी वह

त हार िक़बल को न मानग और न तम ही उनक िक़बल को मानन वाल हो और ख़द अहल िकताब भी एक दसर क िक़बल को नही मानत और जो इ म क़रान त हार पास आ चका ह उसक बाद भी अगर तम उनकी खवािहश पर चल तो अलब ता तम नाफ़रमान हो जाओग

सरः अल-बक़रा

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146 िजन लोग को हमन िकताब (तौरत वग़रह) दी ह वह िजस तरह अपन बट को पहचानत ह उसी तरह तरह वह उस पग़ बर को भी पहचानत ह और उन म कछ लोग तो ऐस भी ह जो दीदए व दािन ता (जान बझकर) हक़ बात को िछपात ह

147 ऐ रसल तबदील िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह पस तम कही शक

करन वाल म स न हो जाना 148 और हर फरीक़ क वा त एक िस त ह उसी की तरफ वह नमाज़ म अपना मह कर

लता ह पस तम ऐ मसलमान झगड़ को छोड़ दो और निकय म उन स लपक क आग बढ़ जाओ तम जहा कही होग ख़दा तम सबको अपनी तरफ ल आऐगा बशक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

149 और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा तक मकका स) तो भी नमाज़ म तम

अपना मह मि ज़द मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर िलया करो और बशक य नया िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह

150 और त हार काम स ख़दा ग़ािफल नही ह और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा

तक क मकका स तो भी) तम (नमाज़ म) अपना मह मि ज़द हराम की तरफ कर िलया करो और (ऐ रसल) तम जहा कही हआ करो तो नमाज़ म अपना मह उसी काबा की तरफ़ कर िलया करो (बार बार हकम दन का एक फायदा य ह तािक लोग का इ ज़ाम तम पर न आन पाए मगर उन म स जो लोग नाहक़ हठधमीर करत ह वह तो ज़ र इ ज़ाम दग) तो तम लोग उनस डरो नही और िसफ़र मझस डरो और (दसरा फ़ायदा य ह) तािक तम पर अपनी नअमत परी कर द

151 और तीसरा फायदा य ह तािक तम िहदायत पाओ मसलमान य एहसान भी वसा

ही ह जस हम न तम म तम ही म का एक रसल भजा जो तमको हमारी आयत पढ़ कर सनाए और त हार न स को पाकीज़ा कर और त ह िकताब क़रान और अकल की बात िसखाए और तम को वह बात बताए िजन की त ह पहल स खबर भी न थी

152 पस तम हमारी याद रखो तो म भी त हारा िज़कर (खर) िकया क गा और मरा

यिकरया अदा करत रहो और नाशकरी न करो

सरः अल-बक़रा

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153 ऐ ईमानदार मसीबत क वकत सबर और नमाज़ क ज़िरए स ख़दा की मदद माग

बशक ख़दा सबर करन वाल ही का साथी ह 154 और जो लोग ख़दा की राह म मार गए उ ह कभी मदार न कहना बि क वह लोग

िज़ दा ह मगर तम उनकी िज़ दगी की हक़ीकत का कछ भी यऊर नही रखत 155 और हम त ह कछ खौफ़ और भख स और माल और जान और फल की कमी स

ज़ र आज़माएग और (ऐ रसल) ऐस सबर करन वाल को ख़शख़बरी द दो 156 िक जब उन पर कोई मसीबत आ पड़ी तो वह (बसाखता) बोल उठ हम तो ख़दा ही

क ह और हम उसी की तरफ लौट कर जान वाल ह 157 उ ही लोग पर उनक परवरिदगार की तरफ स इनायत ह और रहमत और यही

लोग िहदायत या ता ह 158 बशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़दा की िनशािनय म स ह पस जो शखस

ख़ानए काबा का हज या उमरा कर उस पर उन दोनो क (दरिमयान) तवाफ़ (आमद ओ र त) करन म कछ गनाह नही (बि क सवाब ह) और जो शखस खश खश नक काम कर तो िफर ख़दा भी क़दरदा (और) वािक़फ़कार ह

159 बशक जो लोग हमारी इन रौशन दलील और िहदायत को िज ह हमन नािज़ल

िकया उसक बाद िछपात ह जबिक हम िकताब तौरत म लोग क सामन साफ़ साफ़ बयान कर चक ह तो यही लोग ह िजन पर ख़दा भी लानत करता ह और लानत करन वाल भी लानत करत ह

160 मगर िजन लोग न (हक़ िछपान स) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर

ली और जो िकताब ख़दा म ह साफ़ साफ़ बयान कर िदया पस उन की तौबा म क़बल करता ह और म तो बड़ा तौबा क़बल करन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

सरः अल-बक़रा

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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135 (यहदी ईसाई मसलमान स) कहत ह िक यहद या नसरानी हो जाओ तो राह रा त पर आ जाओग (ऐ रसल उनस) कह दो िक हम इबराहीम क तरीक़ पर ह जो बाितल स कतरा कर चलत थ और मशरकीन स न थ

136 (और ऐ मसलमान तम य) कहो िक हम तो खदा पर ईमान लाए ह और उस पर

जो हम पर नािज़ल िकया गया (करान) और जो सहीफ़ इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकब और औलाद याकब पर नािज़ल हए थ (उन पर) और जो िकताब मसा व ईसा को दी गई (उस पर) और जो और पग़ बर को उनक परवरिदगार की तरफ स उ ह िदया गया (उस पर) हम तो उनम स िकसी (एक) म भी तफरीक़ नही करत और हम तो खदा ही क फरमाबरदार ह

137 पस अगर य लोग भी उसी तरह ईमान लाए ह िजस तरह तम तो अलब ता राह

रा त पर आ गए और अगर वह इस तरीक स मह फर ल तो बस वह िसफर त हारी ही िज़द पर ह तो (ऐ रसल) उन (क शर) स (बचान को) त हार िलए खदा काफ़ी होगा और वह (सबकी हालत) खब जानता (और) सनता ह

138 (मसलमान स कहो िक) रग तो खदा ही का रग ह िजसम तम रग गए और खदाई

रग स बहतर कौन रग होगा और हम तो उसी की इबादत करत ह 139 (ऐ रसल) तम उनस पछो िक कया तम हम स खदा क बार झगड़त हो हालािक

वही हमारा (भी) परवरिदगार ह (वही) त हारा भी (परवरिदगार ह) हमार िलए ह हमारी कारगज़ािरया और त हार िलए त हारी कारसतािनया और हम तो िनरखर उसी म ह

140 कया तम कहत हो िक इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौद याकब सब क

सब यहदी या नसरानी थ (ऐ रसल उनस) पछो तो िक तम यादा वािक़फ़ हो या खदा और उसस बढ़कर कौन ज़ािलम होगा िजसक पास खदा की तरफ स गवाही (मौजद) हो (िक वह यहदी न थ) और िफर वह िछपाए और जो कछ तम करत हो खदा उसस बख़बर नही

141 य वह लोग थ जो िसधार चक जो कछ कमा गए उनक िलए था और जो कछ तम कमाओग त हार िलए होगा और जो कछ वह कर गज़र उसकी पछगछ तमस न होगी

सरः अल-बक़रा

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142 बाज़ अहमक़ लोग य कह बठग िक मसलमान िजस िक़बल बतल मक़ स की तरफ

पहल स सजदा करत थ उस स दसर िक़बल की तरफ मड़ जान का बाइस हआ ऐ रसल तम उनक जवाब म कहो िक परब पि चम सब ख़दा का ह िजस चाहता ह सीध रा त की तरफ िहदायत करता ह

143 और िजस तरह त हार िक़बल क बार म िहदायत की उसी तरह तम को आिदल

उ मत बनाया तािक और लोग क मक़ाबल म तम गवाह बनो और रसल मोह मद त हार मक़ाबल म गवाह बन और (ऐ रसल) िजस िक़बल की तरफ़ तम पहल सज़दा करत थ हम न उसको को िसफर इस वजह स िक़बला क़रार िदया था िक जब िक़बला बदला जाए तो हम उन लोग को जो रसल की परवी करत ह हम उन लोग स अलग दख ल जो उलट पाव िफरत ह अगरच य उलट फर िसवा उन लोग क िजन की ख़दा न िहदायत की ह सब पर शाक़ ज़ र ह और ख़दा ऐसा नही ह िक त हार ईमान नमाज़ को जो बतलमक़ स की तरफ पढ़ चक हो बरबाद कर द बशक ख़दा लोग पर बड़ा ही रफ़ीक व महरबान ह

144 ऐ रसल िक़बला बदलन क वा त बशक त हारा बार बार आसमान की तरफ मह

करना हम दख रह ह तो हम ज़ र तम को ऐस िक़बल की तरफ फर दग िक तम िनहाल हो जाओ अ छा तो नमाज़ ही म तम मि ज़द मोहतरम काब की तरफ मह कर लो और ऐ मसलमान तम जहा कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मह कर िलया करो और िजन लोग को िकताब तौरत वगरह दी गयी ह वह बख़बी जानत ह िक य तबदील िक़बल बहत बजा व द त ह और उस क परवरिदगार की तरफ़ स ह और जो कछ वह लोग करत ह उस स ख़दा बख़बर नही

145 और अगर अहल िकताब क सामन दिनया की सारी दलील पश कर दोग तो भी वह

त हार िक़बल को न मानग और न तम ही उनक िक़बल को मानन वाल हो और ख़द अहल िकताब भी एक दसर क िक़बल को नही मानत और जो इ म क़रान त हार पास आ चका ह उसक बाद भी अगर तम उनकी खवािहश पर चल तो अलब ता तम नाफ़रमान हो जाओग

सरः अल-बक़रा

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146 िजन लोग को हमन िकताब (तौरत वग़रह) दी ह वह िजस तरह अपन बट को पहचानत ह उसी तरह तरह वह उस पग़ बर को भी पहचानत ह और उन म कछ लोग तो ऐस भी ह जो दीदए व दािन ता (जान बझकर) हक़ बात को िछपात ह

147 ऐ रसल तबदील िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह पस तम कही शक

करन वाल म स न हो जाना 148 और हर फरीक़ क वा त एक िस त ह उसी की तरफ वह नमाज़ म अपना मह कर

लता ह पस तम ऐ मसलमान झगड़ को छोड़ दो और निकय म उन स लपक क आग बढ़ जाओ तम जहा कही होग ख़दा तम सबको अपनी तरफ ल आऐगा बशक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

149 और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा तक मकका स) तो भी नमाज़ म तम

अपना मह मि ज़द मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर िलया करो और बशक य नया िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह

150 और त हार काम स ख़दा ग़ािफल नही ह और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा

तक क मकका स तो भी) तम (नमाज़ म) अपना मह मि ज़द हराम की तरफ कर िलया करो और (ऐ रसल) तम जहा कही हआ करो तो नमाज़ म अपना मह उसी काबा की तरफ़ कर िलया करो (बार बार हकम दन का एक फायदा य ह तािक लोग का इ ज़ाम तम पर न आन पाए मगर उन म स जो लोग नाहक़ हठधमीर करत ह वह तो ज़ र इ ज़ाम दग) तो तम लोग उनस डरो नही और िसफ़र मझस डरो और (दसरा फ़ायदा य ह) तािक तम पर अपनी नअमत परी कर द

151 और तीसरा फायदा य ह तािक तम िहदायत पाओ मसलमान य एहसान भी वसा

ही ह जस हम न तम म तम ही म का एक रसल भजा जो तमको हमारी आयत पढ़ कर सनाए और त हार न स को पाकीज़ा कर और त ह िकताब क़रान और अकल की बात िसखाए और तम को वह बात बताए िजन की त ह पहल स खबर भी न थी

152 पस तम हमारी याद रखो तो म भी त हारा िज़कर (खर) िकया क गा और मरा

यिकरया अदा करत रहो और नाशकरी न करो

सरः अल-बक़रा

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153 ऐ ईमानदार मसीबत क वकत सबर और नमाज़ क ज़िरए स ख़दा की मदद माग

बशक ख़दा सबर करन वाल ही का साथी ह 154 और जो लोग ख़दा की राह म मार गए उ ह कभी मदार न कहना बि क वह लोग

िज़ दा ह मगर तम उनकी िज़ दगी की हक़ीकत का कछ भी यऊर नही रखत 155 और हम त ह कछ खौफ़ और भख स और माल और जान और फल की कमी स

ज़ र आज़माएग और (ऐ रसल) ऐस सबर करन वाल को ख़शख़बरी द दो 156 िक जब उन पर कोई मसीबत आ पड़ी तो वह (बसाखता) बोल उठ हम तो ख़दा ही

क ह और हम उसी की तरफ लौट कर जान वाल ह 157 उ ही लोग पर उनक परवरिदगार की तरफ स इनायत ह और रहमत और यही

लोग िहदायत या ता ह 158 बशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़दा की िनशािनय म स ह पस जो शखस

ख़ानए काबा का हज या उमरा कर उस पर उन दोनो क (दरिमयान) तवाफ़ (आमद ओ र त) करन म कछ गनाह नही (बि क सवाब ह) और जो शखस खश खश नक काम कर तो िफर ख़दा भी क़दरदा (और) वािक़फ़कार ह

159 बशक जो लोग हमारी इन रौशन दलील और िहदायत को िज ह हमन नािज़ल

िकया उसक बाद िछपात ह जबिक हम िकताब तौरत म लोग क सामन साफ़ साफ़ बयान कर चक ह तो यही लोग ह िजन पर ख़दा भी लानत करता ह और लानत करन वाल भी लानत करत ह

160 मगर िजन लोग न (हक़ िछपान स) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर

ली और जो िकताब ख़दा म ह साफ़ साफ़ बयान कर िदया पस उन की तौबा म क़बल करता ह और म तो बड़ा तौबा क़बल करन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

सरः अल-बक़रा

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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142 बाज़ अहमक़ लोग य कह बठग िक मसलमान िजस िक़बल बतल मक़ स की तरफ

पहल स सजदा करत थ उस स दसर िक़बल की तरफ मड़ जान का बाइस हआ ऐ रसल तम उनक जवाब म कहो िक परब पि चम सब ख़दा का ह िजस चाहता ह सीध रा त की तरफ िहदायत करता ह

143 और िजस तरह त हार िक़बल क बार म िहदायत की उसी तरह तम को आिदल

उ मत बनाया तािक और लोग क मक़ाबल म तम गवाह बनो और रसल मोह मद त हार मक़ाबल म गवाह बन और (ऐ रसल) िजस िक़बल की तरफ़ तम पहल सज़दा करत थ हम न उसको को िसफर इस वजह स िक़बला क़रार िदया था िक जब िक़बला बदला जाए तो हम उन लोग को जो रसल की परवी करत ह हम उन लोग स अलग दख ल जो उलट पाव िफरत ह अगरच य उलट फर िसवा उन लोग क िजन की ख़दा न िहदायत की ह सब पर शाक़ ज़ र ह और ख़दा ऐसा नही ह िक त हार ईमान नमाज़ को जो बतलमक़ स की तरफ पढ़ चक हो बरबाद कर द बशक ख़दा लोग पर बड़ा ही रफ़ीक व महरबान ह

144 ऐ रसल िक़बला बदलन क वा त बशक त हारा बार बार आसमान की तरफ मह

करना हम दख रह ह तो हम ज़ र तम को ऐस िक़बल की तरफ फर दग िक तम िनहाल हो जाओ अ छा तो नमाज़ ही म तम मि ज़द मोहतरम काब की तरफ मह कर लो और ऐ मसलमान तम जहा कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मह कर िलया करो और िजन लोग को िकताब तौरत वगरह दी गयी ह वह बख़बी जानत ह िक य तबदील िक़बल बहत बजा व द त ह और उस क परवरिदगार की तरफ़ स ह और जो कछ वह लोग करत ह उस स ख़दा बख़बर नही

145 और अगर अहल िकताब क सामन दिनया की सारी दलील पश कर दोग तो भी वह

त हार िक़बल को न मानग और न तम ही उनक िक़बल को मानन वाल हो और ख़द अहल िकताब भी एक दसर क िक़बल को नही मानत और जो इ म क़रान त हार पास आ चका ह उसक बाद भी अगर तम उनकी खवािहश पर चल तो अलब ता तम नाफ़रमान हो जाओग

सरः अल-बक़रा

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146 िजन लोग को हमन िकताब (तौरत वग़रह) दी ह वह िजस तरह अपन बट को पहचानत ह उसी तरह तरह वह उस पग़ बर को भी पहचानत ह और उन म कछ लोग तो ऐस भी ह जो दीदए व दािन ता (जान बझकर) हक़ बात को िछपात ह

147 ऐ रसल तबदील िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह पस तम कही शक

करन वाल म स न हो जाना 148 और हर फरीक़ क वा त एक िस त ह उसी की तरफ वह नमाज़ म अपना मह कर

लता ह पस तम ऐ मसलमान झगड़ को छोड़ दो और निकय म उन स लपक क आग बढ़ जाओ तम जहा कही होग ख़दा तम सबको अपनी तरफ ल आऐगा बशक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

149 और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा तक मकका स) तो भी नमाज़ म तम

अपना मह मि ज़द मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर िलया करो और बशक य नया िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह

150 और त हार काम स ख़दा ग़ािफल नही ह और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा

तक क मकका स तो भी) तम (नमाज़ म) अपना मह मि ज़द हराम की तरफ कर िलया करो और (ऐ रसल) तम जहा कही हआ करो तो नमाज़ म अपना मह उसी काबा की तरफ़ कर िलया करो (बार बार हकम दन का एक फायदा य ह तािक लोग का इ ज़ाम तम पर न आन पाए मगर उन म स जो लोग नाहक़ हठधमीर करत ह वह तो ज़ र इ ज़ाम दग) तो तम लोग उनस डरो नही और िसफ़र मझस डरो और (दसरा फ़ायदा य ह) तािक तम पर अपनी नअमत परी कर द

151 और तीसरा फायदा य ह तािक तम िहदायत पाओ मसलमान य एहसान भी वसा

ही ह जस हम न तम म तम ही म का एक रसल भजा जो तमको हमारी आयत पढ़ कर सनाए और त हार न स को पाकीज़ा कर और त ह िकताब क़रान और अकल की बात िसखाए और तम को वह बात बताए िजन की त ह पहल स खबर भी न थी

152 पस तम हमारी याद रखो तो म भी त हारा िज़कर (खर) िकया क गा और मरा

यिकरया अदा करत रहो और नाशकरी न करो

सरः अल-बक़रा

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153 ऐ ईमानदार मसीबत क वकत सबर और नमाज़ क ज़िरए स ख़दा की मदद माग

बशक ख़दा सबर करन वाल ही का साथी ह 154 और जो लोग ख़दा की राह म मार गए उ ह कभी मदार न कहना बि क वह लोग

िज़ दा ह मगर तम उनकी िज़ दगी की हक़ीकत का कछ भी यऊर नही रखत 155 और हम त ह कछ खौफ़ और भख स और माल और जान और फल की कमी स

ज़ र आज़माएग और (ऐ रसल) ऐस सबर करन वाल को ख़शख़बरी द दो 156 िक जब उन पर कोई मसीबत आ पड़ी तो वह (बसाखता) बोल उठ हम तो ख़दा ही

क ह और हम उसी की तरफ लौट कर जान वाल ह 157 उ ही लोग पर उनक परवरिदगार की तरफ स इनायत ह और रहमत और यही

लोग िहदायत या ता ह 158 बशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़दा की िनशािनय म स ह पस जो शखस

ख़ानए काबा का हज या उमरा कर उस पर उन दोनो क (दरिमयान) तवाफ़ (आमद ओ र त) करन म कछ गनाह नही (बि क सवाब ह) और जो शखस खश खश नक काम कर तो िफर ख़दा भी क़दरदा (और) वािक़फ़कार ह

159 बशक जो लोग हमारी इन रौशन दलील और िहदायत को िज ह हमन नािज़ल

िकया उसक बाद िछपात ह जबिक हम िकताब तौरत म लोग क सामन साफ़ साफ़ बयान कर चक ह तो यही लोग ह िजन पर ख़दा भी लानत करता ह और लानत करन वाल भी लानत करत ह

160 मगर िजन लोग न (हक़ िछपान स) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर

ली और जो िकताब ख़दा म ह साफ़ साफ़ बयान कर िदया पस उन की तौबा म क़बल करता ह और म तो बड़ा तौबा क़बल करन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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146 िजन लोग को हमन िकताब (तौरत वग़रह) दी ह वह िजस तरह अपन बट को पहचानत ह उसी तरह तरह वह उस पग़ बर को भी पहचानत ह और उन म कछ लोग तो ऐस भी ह जो दीदए व दािन ता (जान बझकर) हक़ बात को िछपात ह

147 ऐ रसल तबदील िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह पस तम कही शक

करन वाल म स न हो जाना 148 और हर फरीक़ क वा त एक िस त ह उसी की तरफ वह नमाज़ म अपना मह कर

लता ह पस तम ऐ मसलमान झगड़ को छोड़ दो और निकय म उन स लपक क आग बढ़ जाओ तम जहा कही होग ख़दा तम सबको अपनी तरफ ल आऐगा बशक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

149 और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा तक मकका स) तो भी नमाज़ म तम

अपना मह मि ज़द मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर िलया करो और बशक य नया िक़बला त हार परवरिदगार की तरफ स हक़ ह

150 और त हार काम स ख़दा ग़ािफल नही ह और (ऐ रसल) तम जहा स जाओ (यहा

तक क मकका स तो भी) तम (नमाज़ म) अपना मह मि ज़द हराम की तरफ कर िलया करो और (ऐ रसल) तम जहा कही हआ करो तो नमाज़ म अपना मह उसी काबा की तरफ़ कर िलया करो (बार बार हकम दन का एक फायदा य ह तािक लोग का इ ज़ाम तम पर न आन पाए मगर उन म स जो लोग नाहक़ हठधमीर करत ह वह तो ज़ र इ ज़ाम दग) तो तम लोग उनस डरो नही और िसफ़र मझस डरो और (दसरा फ़ायदा य ह) तािक तम पर अपनी नअमत परी कर द

151 और तीसरा फायदा य ह तािक तम िहदायत पाओ मसलमान य एहसान भी वसा

ही ह जस हम न तम म तम ही म का एक रसल भजा जो तमको हमारी आयत पढ़ कर सनाए और त हार न स को पाकीज़ा कर और त ह िकताब क़रान और अकल की बात िसखाए और तम को वह बात बताए िजन की त ह पहल स खबर भी न थी

152 पस तम हमारी याद रखो तो म भी त हारा िज़कर (खर) िकया क गा और मरा

यिकरया अदा करत रहो और नाशकरी न करो

सरः अल-बक़रा

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153 ऐ ईमानदार मसीबत क वकत सबर और नमाज़ क ज़िरए स ख़दा की मदद माग

बशक ख़दा सबर करन वाल ही का साथी ह 154 और जो लोग ख़दा की राह म मार गए उ ह कभी मदार न कहना बि क वह लोग

िज़ दा ह मगर तम उनकी िज़ दगी की हक़ीकत का कछ भी यऊर नही रखत 155 और हम त ह कछ खौफ़ और भख स और माल और जान और फल की कमी स

ज़ र आज़माएग और (ऐ रसल) ऐस सबर करन वाल को ख़शख़बरी द दो 156 िक जब उन पर कोई मसीबत आ पड़ी तो वह (बसाखता) बोल उठ हम तो ख़दा ही

क ह और हम उसी की तरफ लौट कर जान वाल ह 157 उ ही लोग पर उनक परवरिदगार की तरफ स इनायत ह और रहमत और यही

लोग िहदायत या ता ह 158 बशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़दा की िनशािनय म स ह पस जो शखस

ख़ानए काबा का हज या उमरा कर उस पर उन दोनो क (दरिमयान) तवाफ़ (आमद ओ र त) करन म कछ गनाह नही (बि क सवाब ह) और जो शखस खश खश नक काम कर तो िफर ख़दा भी क़दरदा (और) वािक़फ़कार ह

159 बशक जो लोग हमारी इन रौशन दलील और िहदायत को िज ह हमन नािज़ल

िकया उसक बाद िछपात ह जबिक हम िकताब तौरत म लोग क सामन साफ़ साफ़ बयान कर चक ह तो यही लोग ह िजन पर ख़दा भी लानत करता ह और लानत करन वाल भी लानत करत ह

160 मगर िजन लोग न (हक़ िछपान स) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर

ली और जो िकताब ख़दा म ह साफ़ साफ़ बयान कर िदया पस उन की तौबा म क़बल करता ह और म तो बड़ा तौबा क़बल करन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

सरः अल-बक़रा

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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153 ऐ ईमानदार मसीबत क वकत सबर और नमाज़ क ज़िरए स ख़दा की मदद माग

बशक ख़दा सबर करन वाल ही का साथी ह 154 और जो लोग ख़दा की राह म मार गए उ ह कभी मदार न कहना बि क वह लोग

िज़ दा ह मगर तम उनकी िज़ दगी की हक़ीकत का कछ भी यऊर नही रखत 155 और हम त ह कछ खौफ़ और भख स और माल और जान और फल की कमी स

ज़ र आज़माएग और (ऐ रसल) ऐस सबर करन वाल को ख़शख़बरी द दो 156 िक जब उन पर कोई मसीबत आ पड़ी तो वह (बसाखता) बोल उठ हम तो ख़दा ही

क ह और हम उसी की तरफ लौट कर जान वाल ह 157 उ ही लोग पर उनक परवरिदगार की तरफ स इनायत ह और रहमत और यही

लोग िहदायत या ता ह 158 बशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़दा की िनशािनय म स ह पस जो शखस

ख़ानए काबा का हज या उमरा कर उस पर उन दोनो क (दरिमयान) तवाफ़ (आमद ओ र त) करन म कछ गनाह नही (बि क सवाब ह) और जो शखस खश खश नक काम कर तो िफर ख़दा भी क़दरदा (और) वािक़फ़कार ह

159 बशक जो लोग हमारी इन रौशन दलील और िहदायत को िज ह हमन नािज़ल

िकया उसक बाद िछपात ह जबिक हम िकताब तौरत म लोग क सामन साफ़ साफ़ बयान कर चक ह तो यही लोग ह िजन पर ख़दा भी लानत करता ह और लानत करन वाल भी लानत करत ह

160 मगर िजन लोग न (हक़ िछपान स) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर

ली और जो िकताब ख़दा म ह साफ़ साफ़ बयान कर िदया पस उन की तौबा म क़बल करता ह और म तो बड़ा तौबा क़बल करन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

सरः अल-बक़रा

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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161 बशक िजन लोग न कफर एखतयार िकया और क ही की हालत म मर गए उ ही पर ख़दा की और फिर त की और तमाम लोग की लानत ह हमशा उसी फटकार म रहग

162 न तो उनक अज़ाब ही म तखफ़ीफ़ (कमी) की जाएगी 163 और न उनको अज़ाब स मोहलत दी जाएगी और त हारा माबद तो वही यकता

ख़दा ह उस क िसवा कोई माबद नही जो बड़ा महरबान रहम वाला ह 164 बशक आसमान व ज़मीन की पदाइश और रात िदन क र ो बदल म और क़ि तय

जहाज़ म जो लोग क नफ क़ी चीज़ (माल ितजारत वगरह दिरया) म ल कर चलत ह और पानी म जो ख़दा न आसमान स बरसाया िफर उस स ज़मीन को मदार (बकार) होन क बाद िजला िदया (शादाब कर िदया) और उस म हर िक़ म क जानवर फला िदय और हवाओ क चलान म और अबर म जो आसमान व ज़मीन क दरिमयान ख़दा क हकम स िघरा रहता ह (इन सब बात म) अकल वाल क िलए बड़ी बड़ी िनशािनया ह

165 और बाज़ लोग ऐस भी ह जो ख़दा क िसवा और को भी ख़दा का िमसल व शरीक

बनात ह (और) जसी मोह बत ख़दा स रखनी चािहए वसी ही उन स रखत ह और जो लोग ईमानदार ह वह उन स कही बढ़ कर ख़दा की उलफ़त रखत ह और काश ज़ािलम को (इस वकत) वह बात सझती जो अज़ाब दखन क बाद सझगी िक यक़ीनन हर तरह की क़वत ख़दा ही को ह और य िक बशक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

166 (वह कया सखत वकत होगा) जब पशवा लोग अपन परवो स अपना पीछा छड़ाएग

और (ब च म ख़द) अज़ाब को दखग और उनक बाहमी ता लक़ात टट जाएग 167 और परव कहन लगग िक अगर हम कही िफर (दिनया म) पलटना िमल तो हम

भी उन स इसी तरह अलग हो जायग िजस तरह एन वकत पर य लोग हम स अलग हो गए य ही ख़दा उन क आमाल को िदखाएगा जो उ ह (सर तापा पास ही) पास िदखाई दग और िफर भला कब वह दोज़ख़ स िनकल सकत ह

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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168 ऐ लोग जो कछ ज़मीन म ह उस म स हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ स) खाओ और शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह तो त हारा ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह

169 वह तो त ह बराई और बदकारी ही का हकम करगा और य चाहगा िक तम ब जान

बझ ख़दा पर बोहतान बाध

170 और जब उन स कहा जाता ह िक जो हकम ख़दा की तरफ स नािज़ल हआ ह उस को मानो तो कहत ह िक नही बि क हम तो उसी तरीक़ पर चलग िजस पर हमन अपन बाप दादाओ को पाया अगरच उन क बाप दादा कछ भी न समझत ह और न राह रा त ही पर चलत रह ह

171 और िजन लोग न कफर एखतयार िकया उन की िमसाल तो उस शखस की िमसाल

ह जो ऐस जानवर को पकार क अपना हलक़ फाड़ जो आवाज़ और पकार क िसवा सनता (समझता ख़ाक) न हो य लोग बहर गग अ ध ह िक ख़ाक नही समझत

172 ऐ ईमानदार जो कछ हम न त ह िदया ह उस म स सथरी चीज़ (शौक़ स) खाओ

और अगर ख़दा ही की इबादत करत हो तो उसी का शकर करो 173 उसन तो तम पर बस मदार जानवर और खन और सअर का गो त और वह जानवर

िजस पर ज़बह क वकत ख़दा क िसवा और िकसी का नाम िलया गया हो हराम िकया ह पस जो शखस मजबर हो और सरकशी करन वाला और यादती करन वाला न हो (और उनम स कोई चीज़ खा ल) तो उसपर गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

174 बशक जो लोग इन बात को जो ख़दा न िकताब म नािज़ल की ह िछपात ह और

उसक बदल थोड़ी सी क़ीमत (दनयावी नफ़ा) ल लत ह य लोग बस ऍगार स अपन पट भरत ह और क़यामत क िदन ख़दा उन स बात तक तो करगा नही और न उ ह (गनाह स) पाक करगा और उ ही क िलए ददरनाक अज़ाब ह

175 यही लोग वह ह िज ह न िहदायत क बदल गमराही मोल ली और बिखयय (ख़दा)

क बदल अज़ाब पस वह लोग दोज़ख़ की आग क कय कर बरदा त करग

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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176 य इसिलए िक ख़दा न बरहक़ िकताब नािज़ल की और बशक िजन लोग न िकताब ख़दा म र ो बदल की वह लोग बड़ प ल दरज की मख़ालफत म ह

177 नकी कछ यही थोड़ी ह िक नमाज़ म अपन मह परब या पि चम की तरफ़ कर लो

बि क नकी तो उसकी ह जो ख़दा और रोज़ आिख़रत और फ़िर त और ख़दा की िकताब और पग़ बर पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त म अपना माल क़राबत दार और यतीम और मोहताजो और परदिसय और मागन वाल और लौ डी ग़लाम (क गल खलासी) म सफर कर और पाब दी स नमाज़ पढ और ज़कात दता रह और जब कोई एहद िकया तो अपन क़ौल क पर हो और फ़कर व फाक़ा र ज और घटन क वकत सािबत क़दम रह यही लोग वह ह जो दावए ईमान म स च िनकल और यही लोग परहज़गार ह

178 ऐ मोिमन जो लोग (नाहक़) मार डाल जाए उनक बदल म तम को जान क बदल

जान लन का हकम िदया जाता ह आज़ाद क बदल आज़ाद और ग़लाम क बदल ग़लाम और औरत क बदल औरत पस िजस (क़ाितल) को उसक ईमानी भाई तािलब कसास की तरफ स कछ माफ़ कर िदया जाय तो उस भी उसक क़दम ब क़दम नकी करना और ख़श मआमलती स (ख़न बहा) अदा कर दना चािहए य त हार परवरिदगार की तरफ आसानी और महरबानी ह िफर उसक बाद जो यादती कर तो उस क िलए ददरनाक अज़ाब ह

179 और ऐ अक़लमनद क़सास (क क़वाएद मक़ररर कर दन) म त हारी िज़ दगी ह

(और इसीिलए जारी िकया गया ह तािक तम ख़रज़ी स) परहज़ करो 180 (मसलमान ) तम को हकम िदया जाता ह िक जब तम म स िकसी क सामन मौत

आ खड़ी हो बशत िक वह कछ माल छोड़ जाए तो मा बाप और क़राबतदार क िलए अ छी वसीयत कर जो ख़दा स डरत ह उन पर य एक हक़ ह

181 िफर जो सन चका उसक बाद उस कछ का कछ कर द तो उस का गनाह उ ही

लोग की गरदन पर ह जो उस बदल डाल बशक ख़दा सब कछ जानता और सनता ह

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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182 (हा अलब ता) जो शखस वसीयत करन वाल स बजा तरफ़दारी या ब इ साफी का ख़ौफ रखता ह और उन वािरस म सलह करा द तो उस पर बदलन का कछ गनाह नही ह बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

183 ऐ ईमानदार रोज़ा रखना िजस तरह तम स पहल क लोग पर फजर था उसी तरफ

तम पर भी फज़र िकया गया तािक तम उस की वजह स बहत स गनाह स बचो 184 (वह भी हमशा नही बि क) िगनती क च द रोज़ इस पर भी (रोज़ क िदन म) जो

शखस तम म स बीमार हो या सफर म हो तो और िदन म िजतन क़ज़ा हए हो) िगन क रख ल और िज ह रोज़ा रखन की कवत ह और न रख तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना िखला दना ह और जो शखस अपनी ख़शी स भलाई कर तो य उस क िलए यादा बहतर ह और अगर तम समझदार हो तो (समझ लो िक िफदय स) रोज़ा रखना त हार हक़ म बहरहाल अ छा ह

185 (रोज़ का) महीना रमज़ान ह िजस म क़रान नािज़ल िकया गया जो लोग का

रहनमा ह और उसम रहनमाई और (हक़ व बाितल क) तमीज़ की रौशन िनशािनया ह (मसलमान ) तम म स जो शखस इस महीन म अपनी जगह पर हो तो उसको चािहए िक रोज़ा रख और जो शखस बीमार हो या िफर सफ़र म हो तो और िदन म रोज़ की िगनती परी कर ख़दा त हार साथ आसानी करना चाहता ह और त हार साथ सखती करनी नही चाहता और (यमार का हकम इस िलए िदया ह) तािक तम (रोज़ो की) िगनती परी करो और तािक ख़दा न जो तम को राह पर लगा िदया ह उस नअमत पर उस की बड़ाई करो और तािक तम शकर गज़ार बनो

186 (ऐ रसल) जब मर ब द मरा हाल तमस पछ तो (कह दो िक) म उन क पास ही ह

और जब मझस कोई दआ मागता ह तो म हर दआ करन वाल की दआ (सन लता ह और जो मनािसब हो तो) क़बल करता ह पस उ ह चािहए िक मरा भी कहना मान) और मझ पर ईमान लाए

187 तािक वह सीधी राह पर आ जाए (मसलमान ) त हार वा त रोज़ की रात म

अपनी बीिवय क पास जाना हलाल कर िदया गया औरत (गोया) त हारी चोली ह और तम (गोया उन क दामन हो) ख़दा न दखा िक तम (गनाह) करक अपना नकसान करत (िक ऑख बचा क अपनी बीबी क पास चल जात थ) तो उसन

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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त हारी तौबा क़बल की और त हारी ख़ता स दर गज़र िकया पस तम अब उनस हम िब तरी करो और (औलाद) जो कछ ख़दा न त हार िलए (तक़दीर म) िलख िदया ह उस माग और खाओ और िपयो यहा तक िक सबह की सफद धारी (रात की) काली धारी स आसमान पर परब की तरफ़ तक त ह साफ नज़र आन लग िफर रात तक रोज़ा परा करो और हा जब तम मि ज़द म एतकाफ़ करन बठो तो उन स (रात को भी) हम िब तरी न करो य ख़दा की (मअ यन की हई) हद ह तो तम उनक पास भी न जाना य ख लम ख ला ख़दा अपन एहकाम लोग क सामन बयान करता ह तािक वह लोग (नाफ़रमानी स) बच

188 और आपस म एक दसर का माल नाहक़ न खाओ और न माल को (िर वत म)

हककाम क यहा झ क दो तािक लोग क माल म स (जो) कछ हाथ लग नाहक़ ख़दर बदर कर जाओ हालािक तम जानत हो

189 (ऐ रसल) तम स लोग चाद क बार म पछत ह (िक कयो घटता बढ़ता ह) तम कह

दो िक उसस लोग क (दनयावी) अमर और हज क अवक़ात मालम होत ह और य कोई भली बात नही ह िक घरो म िपछवाड़ स फाद क) आओ बि क नकी उसकी ह जो परहज़गारी कर और घर म आना हो तो) उनक दरवाज क़ी तरफ स आओ और ख़दा स डरत रहो तािक तम मराद को पहचो

190 और जो लोग तम स लड़ तम (भी) ख़दा की राह म उनस लड़ो और यादती न

करो (कय िक) ख़दा यादती करन वाल को हरिगज़ दो त नही रखता 191 और तम उन (मशिरक ) को जहा पाओ मार ही डालो और उन लोग न जहा

(मकका) स त ह शहर बदर िकया ह तम भी उ ह िनकाल बाहर करो और िफतना परदाज़ी (िशकर ) खरज़ी स भी बढ़ क ह और जब तक वह लोग (क फ़ार) मि ज़द हराम (काबा) क पास तम स न लड तम भी उन स उस जगह न लड़ पस अगर वह तम स लड़ तो बखटक तम भी उन को क़ ल करो कािफ़र की यही सज़ा ह

192 िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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193 और उन स लड़ जाओ यहा तक िक फ़साद बाक़ी न रह और िसफर ख़दा ही का दीन रह जाए िफर अगर वह लोग बाज़ रह तो उन पर यादती न करो कय िक ज़ािलम क िसवा िकसी पर यादती (अ छी) नही

194 हरमत वाला महीना हरमत वाल महीन क बराबर ह (और कछ महीन की

खसिसयत नही) सब हरमत वाली चीज एक दसर क बराबर ह पस जो शखस तम पर यादती कर तो जसी यादती उसन तम पर की ह वसी ही यादती तम भी उस पर करो और ख़दा स डरत रहो और खब समझ लो िक ख़दा परहज़गार का साथी ह

195 और ख़दा की राह म ख़चर करो और अपन हाथ जान हलाकत म न डालो और नकी

करो बशक ख़दा नकी करन वाल को दो त रखता ह 196 और िसफर ख़दा ही क वा त हज और उमरा को परा करो अगर तम बीमारी वगरह

की वजह स मजबर हो जाओ तो िफर जसी क़रबानी मय सर आय (कर दो) और जब तक करबानी अपनी जगह पर न पहच जाय अपन सर न मडवाओ िफर जब तम म स कोई बीमार हो या उसक सर म कोई तकलीफ हो तो (सर मडवान का बदला) रोज या खरात या करबानी ह पस जब मतमइन रह तो जो शखस हज तम तो का उमरा कर तो उसको जो करबानी मय सर आय करनी होगी और िजस स करबानी ना ममिकन हो तो तीन रोज ज़माना ए हज म (रखन ह ग) और सात रोज ज़ब तम वापस आओ य परा दहाई ह य हकम उस शखस क वा त ह िजस क लड़क बाल मि ज़दल हराम (मकका) क बािश द न हो और ख़दा स डरो और समझ लो िक ख़दा बड़ा सखत अज़ाब वाला ह

197 हज क महीन तो (अब सब को) मालम ह (श वाल ज़ीक़ादा िजलहज) पस जो

शखस उन महीन म अपन ऊपर हज लािज़म कर तो (एहराम स आिख़र हज तक) न औरत क पास जाए न कोई और गनाह कर और न झगड और नकी का कोई सा काम भी कर तो ख़दा उस को खब जानता ह और (रा त क िलए) ज़ाद राह मिह या करो और सब म बहतर ज़ाद राह परहज़गारी ह और ऐ अकलम द मझ स डरत रहो

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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198 इस म कोई इ ज़ाम नही ह िक (हज क साथ) तम अपन परवरिदगार क फज़ल (नफ़ा ितजारत) की खवािहश करो और िफर जब तम अरफात स चल खड़ हो तो मशअ ल हराम क पास ख़दा का िजकर करो और उस की याद भी करो तो िजस तरह त ह बताया ह अगरच तम इसक पहल तो गमराहो स थ

199 िफर जहा स लोग चल खड़ ह वही स तम भी चल खड़ हो और उसस मग़िफरत

की दआ माग बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह 200 िफर जब तम अरक़ान हज बजा ला चको तो तम इस तरह िज़कर ख़दा करो िजस

तरह तम अपन बाप दादाओ का िज़कर करत हो बि क उसस बढ़ कर क िफर बाज़ लोग ऐस ह जो कहत ह िक ऐ मर परवरिदगार हमको जो (दना ह) दिनया ही म द द हालािक (िफर) आिख़रत म उनका कछ िह सा नही

201 और बाज़ ब द ऐस ह िक जो दआ करत ह िक ऐ मर पालन वाल मझ दिनया म

नअमत द और आिख़रत म सवाब द और दोज़ख़ की बाग स बचा 202 यही वह लोग ह िजनक िलए अपनी कमाई का िह सा चन ह 203 और ख़दा बहत ज द िहसाब लन वाला ह (िन फ़) और इन िगनती क च द िदन

तक (तो) ख़दा का िज़कर करो िफर जो शखस ज दी कर बठ और (िमना) स और दो ही िदन म चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गनाह नही ह और जो (तीसर िदन तक) ठहरा रह उस पर भी कछ गनाह नही लिकन यह िरयायत उसक वा त ह जो परहज़गार हो और खदा स डरत रहो और यक़ीन जानो िक एक िदन तम सब क सब उसकी तरफ क़बर स उठाए जाओग

204 ऐ रसल बाज़ लोग मनािफक़ीन स ऐस भी ह िजनकी िचकनी चपड़ी बात (इस ज़रा

सी) दनयावी िज़ दगी म त ह बहत भाती ह और वह अपनी िदली मोह बत पर ख़दा को गवाह मक़ररर करत ह हालॉिक वह त हार द मन म सबस यादा झगड़ाल ह

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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205 और जहा त हारी मोह बत स मह फरा तो इधर उधर दौड़ धप करन लगा तािक म क म फ़साद फलाए और ज़राअत (खती बाड़ी) और मवशी का स यानास कर और ख़दा फसाद को अ छा नही समझता

206 और जब कहा जाता ह िक ख़दा स डरो तो उस ग़ र गनाह पर उभारता ह बस ऐस

क बखत क िलए जह नम ही काफ़ी ह और बहत ही बरा िठकाना ह

207 और लोग म स ख़दा क ब द कछ ऐस ह जो ख़दा की (ख़शनदी) हािसल करन की ग़रज़ स अपनी जान तक बच डालत ह और ख़दा ऐस ब द पर बड़ा ही य कक़त वाला ह

208 ईमान वाल तम सबक सब एक बार इ लाम म (परी तरह ) दािख़ल हो जाओ और

शतान क क़दम ब क़दम न चलो वह त हारा यक़ीनी ज़ािहर ब ज़ािहर द मन ह 209 िफर जब त हार पास रौशन दलील आ चकी उसक बाद भी डगमगा गए तो अ छी

तरह समझ लो िक ख़दा (हर तरह) ग़ािलब और तदबीर वाला ह 210 कया वह लोग इसी क म तिज़र ह िक सफद बादल क साय बानो की आड़ म

अज़ाब ख़दा और अज़ाब क फ़िर त उन पर ही आ जाए और सब झगड़ चक ही जात हालॉिक आिख़र कल उमर ख़दा ही की तरफ ज िकए जाएग

211 (ऐ रसल) बनी इसराइल स पछो िक हम न उन को कसी कसी रौशन िनशािनया दी

और जब िकसी शखस क पास ख़दा की नअमत (िकताब) आ चकी उस क बाद भी उस को बदल डाल तो बशक़ ख़दा सखत अज़ाब वाला ह

212 िजन लोग न कफर इखतयार िकया उन क िलय दिनया की ज़रा सी िज़ दगी ख़ब

अ छी िदखायी गयी ह और ईमानदार स मसखरापन करत ह हालॉिक क़यामत क िदन परहज़गार का दरजा उनस (कही) बढ़ चढ़ क होगा और ख़दा िजस को चाहता ह ब िहसाब रोज़ी अता फरमाता ह

213 (पहल) सब लोग एक ही दीन रखत थ (िफर आपस म झगड़न लग तब) ख़दा न

नजात स ख़श ख़बरी दन वाल और अज़ाब स डरान वाल पग़ बर को भजा और

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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इन पग़ बर क साथ बरहक़ िकताब भी नािज़ल की तािक िजन बात म लोग झगड़त थ िकताब ख़दा (उसका) फ़सला कर द और िफर अफ़सोस तो य ह िक इस हकम स इखतलाफ िकया भी तो उ ही लोग न िजन को िकताब दी गयी थी और वह भी जब उन क पास ख़दा क साफ एहकाम आ चक उसक बाद और वह भी आपस की शरारत स तब ख़दा न अपनी महरबानी स (ख़ािलस) ईमानदार को वह राह हक़ िदखा दी िजस म उन लोग न इखतलाफ डाल रखा था और ख़दा िजस को चाह राह रा त की िहदायत करता ह

214 कया तम य खयाल करत हो िक बह त म पहच ही जाओग हालॉिक अभी तक त ह

अगल ज़मान वाल की सी हालत नही पश आयी िक उ ह तरह तरह की तक़लीफ (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी न घर िलया था और ज़लज़ल म इस क़दर िझझोड ग़ए िक आिख़र (आिज़ज़ हो क) पग़ बर और ईमान वाल जो उन क साथ थ कहन लग दिखए ख़दा की मदद कब (होती) ह दखो (घबराओ नही) ख़दा की मदद यक़ीनन बहत क़रीब ह

215 (ऐ रसल) तमस लोग पछत ह िक हम ख़दा की राह म कया खचर कर (तो तम

उ ह) जवाब दो िक तम अपनी नक कमाई स जो कछ खचर करो तो (वह त हार मा बाप और क़राबतदार और यतीम और मोहताजो और परदिसय का हक़ ह और तम कोई नक सा काम करो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

216 (मसलमान ) तम पर िजहाद फजर िक़या गया अगरच तम पर शाक़ ज़ र ह और

अजब नही िक तम िकसी चीज़ (िजहाद) को नापस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बहतर हो और अजब नही िक तम िकसी चीज़ को पस द करो हालॉिक वह त हार हक़ म बरी हो और ख़दा (तो) जानता ही ह मगर तम नही जानत हो

217 (ऐ रसल) तमस लोग हरमत वाल महीन की िन बत पछत ह िक (आया) िजहाद

उनम जायज़ ह तो तम उ ह जवाब दो िक इन महीन म जहाद बड़ा गनाह ह और य भी याद रह िक ख़दा की राह स रोकना और ख़दा स इ कार और मि जदल हराम (काबा) स रोकना और जो उस क अहल ह उनका मि जद स िनकाल बाहर करना (य सब) ख़दा क नज़दीक इस स भी बढ़कर गनाह ह और िफ़तना परदाज़ी क ती ख़न स भी बढ़ कर ह और य क फ़ार हमशा तम स लड़त ही चल जाएग यहा तक िक अगर उन का बस चल तो तम को त हार दीन स िफरा द और तम

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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म जो शखस अपन दीन स िफरा और क की हालत म मर गया तो ऐस ही का िकया कराया सब कछ दिनया और आखरत (दोन ) म अकारत ह और यही लोग जह नमी ह (और) वह उसी म हमशा रहग

218 बशक िजन लोग न ईमान क़बल िकया और ख़दा की राह म िहजरत की और

िजहाद िकया यही लोग रहमत ख़दा क उ मीदवार ह और ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

219 (ऐ रसल) तमस लोग शराब और जए क बार म पछत ह तो तम उन स कह दो

िक इन दोनो म बड़ा गनाह ह और कछ फायद भी ह और उन क फायद स उन का गनाह बढ़ क ह और तम स लोग पछत ह िक ख़दा की राह म कया ख़चर कर तम उनस कह दो िक जो त हार ज़ रत स बच य ख़दा अपन एहकाम तम स साफ़ साफ़ बयान करता ह

220 तािक तम दिनया और आिख़रत (क मामलात) म ग़ौर करो और तम स लोग यतीम क बार

म पछत ह तम (उन स) कह दो िक उनकी (इसलाह द ती) बहतर ह और अगर तम उन स

िमलजल कर रहो तो (कछ हजर) नही आिख़र वह त हार भाई ही तो ह और ख़दा फ़सादी को ख़र खवाह स (अलग ख़ब) जानता ह और अगर ख़दा चाहता तो तम को मसीबत म डाल दता बशक ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

221 और (मसलमान ) तम मशिरक औरत स जब तक ईमान न लाए िनकाह न करो कय िक

मशिरका औरत त ह अपन ह नो जमाल म कसी ही अ छी कय न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कसा ही अ छा कयो न मालम हो मगर िफर भी ईमानदार औरत उस स ज़ र अ छी ह और मशरकीन जब तक ईमान न लाए अपनी औरत

उन क िनकाह म न दो और मशिरक त ह कया ही अ छा कय न मालम हो मगर िफर भी ब दा मोिमन उनस ज़ र अ छा ह य (मशिरक मदर या औरत) लोग को दोज़ख़ की तरफ

बलात ह और ख़दा अपनी इनायत स बिह त और बि शस की तरफ बलाता ह और अपन

एहकाम लोग स साफ साफ बयान करता ह तािक य लोग चत

222 (ऐ रसल) तम स लोग हज़ क बार म पछत ह तम उनस कह दो िक य ग दगी और िघन की बीमारी ह तो (अ याम हज़) म तम औरत स अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाए

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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उनक पास न जाओ पस जब वह पाक हो जाए तो िजधर स त ह ख़दा न हकम िदया ह उन क

पास जाओ बशक ख़दा तौबा करन वालो और सथर लोग को पस द करता ह त हारी बीिवया (गोया) त हारी खती ह

223 तो तम अपनी खती म िजस तरह चाहो आओ और अपनी आइ दा की भलाई क वा त

(आमाल साक) पशगी भजो और ख़दा स डरत रहो और य भी समझ रखो िक एक िदन

तमको उसक सामन जाना ह और ऐ रसल ईमानदार को नजात की ख़श ख़बरी द दो

224 और (मसलमान ) तम अपनी क़सम (क हील) स ख़दा (क नाम) को लोग क साथ सलक

करन और ख़दा स डरन और लोग क दरिमयान सलह करवा दन का मानअ न ठहराव और

ख़दा सबकी सनता और सब को जानता ह

225 त हारी लग़ो (बकार) क़सम पर जो बइखतयार ज़बान स िनकल जाए ख़दा तम स िगर तार

नही करन का मगर उन कसम पर ज़ र त हारी िगर त करगा जो तमन क़सदन (जान

कर) िदल स खायी हो और ख़दा बखशन वाला बदरबार ह

226 जो लोग अपनी बीिवय क पास जान स क़सम खाय उन क िलए चार महीन की मोहलत ह

पस अगर (वह अपनी क़सम स उस म त म बाज़ आए) और उनकी तरफ तव जो कर तो बशक ख़दा बड़ा बखशन वाला महरबान ह

227 और अगर तलाक़ ही की ठान ल तो (भी) बशक ख़दा सबकी सनता और सब कछ जानता ह

228 और िजन औरत को तलाक़ दी गयी ह वह अपन आपको तलाक़ क बाद तीन हज़ क ख़ म

हो जान तक िनकाह सानी स रोक और अगर वह औरत ख़दा और रोज आिख़रत पर ईमान

लायी ह तो उनक िलए जाएज़ नही ह िक जो कछ भी ख़दा न उनक रहम (पट) म पदा िकया ह उसको िछपाए और अगर उन क शौहर मल जोल करना चाह तो वह (म त मज़करा) म

उन क वापस बला लन क यादा हक़दार ह और शरीयत मवािफक़ औरत का (मद पर) वही सब कछ हक़ ह जो मद का औरत पर ह हा अलब ता मद को (फ़जीलत म) औरत पर

फौिक़यत ज़ र ह और ख़दा ज़बरद त िहक़मत वाला ह

229 तलाक़ रजअई िजसक बाद ज हो सकती ह दो ही मरतबा ह उसक बाद या तो शरीयत क

मवािफक़ रोक ही लना चािहए या ह न सलक स (तीसरी दफ़ा) िब कल ख़सत और तम

को य जायज़ नही िक जो कछ तम उ ह द चक हो उस म स िफर कछ वापस लो मगर जब

सरः अल-बक़रा

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

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दोन को इसका ख़ौफ़ हो िक ख़दा न जो हद मक़ररर कर दी ह उन को दोनो िमया बीवी क़ायम

न रख सकग िफर अगर त ह (ऐ मसलमानो) य ख़ौफ़ हो िक यह दोनो ख़दा की मकररर की हई हदो पर क़ायम न रहग तो अगर औरत मदर को कछ दकर अपना पीछा छड़ाए (खला कराए) तो इसम उन दोन पर कछ गनाह नही ह य ख़दा की मक़ररर की हई हद ह बस उन स

आग न बढ़ो और जो ख़दा की मक़ररर की हईहद स आग बढ़त ह वह ही लोग तो ज़ािलम ह

230 िफर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) द तो उसक बाद जब तक दसर मदर स

िनकाह न कर ल उस क िलए हलाल नही हा अगर दसरा शौहर िनकाह क बाद उसको तलाक़

द द तब अलब ता उन िमया बीबी पर बाहम मल कर लन म कछ गनाह नही ह अगर उन

दोन को यह ग़मान हो िक ख़दा हद को क़ायम रख सकग और य ख़दा की (मक़ररर की हई)

हद ह जो समझदार लोग क वा त साफ साफ बयान करता ह

231 और जब तम अपनी बीिवय को तलाक़ दो और उनकी म त परी होन को आए तो अ छ

उनवान स उन को रोक लो या ह न सलक स िब कल ख़सत ही कर दो और उ ह तकलीफ

पहचान क िलए न रोको तािक (िफर उन पर) यादती करन लगो और जो ऐसा करगा तो यक़ीनन अपन ही पर ज म करगा और ख़दा क एहकाम को कछ हसी ठटटा न समझो और

ख़दा न जो त ह नअमत दी ह उ ह याद करो और जो िकताब और अकल की बात तम पर

नािज़ल की उनस त हारी नसीहत करता ह और ख़दा स डरत रहो और समझ रखो िक ख़दा हर चीज़ को ज़ र जानता ह

232 और जब तम औरत को तलाक़ दो और वह अपनी म त (इ त) परी कर ल तो उ ह अपन

शौहर क साथ िनकाह करन स न रोक जब आपस म दोन िमया बीवी शरीयत क मवािफक़

अ छी तरह िमल जल जाए य उसी शखस को नसीहत की जाती ह जो तम म स ख़दा और

रोज आखरत पर ईमान ला चका हो यही त हार हक़ म बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात ह

और उसकी ख़बी ख़दा खब जानता ह और तम (वसा) नही जानत हो 233 और (तलाक़ दन क बाद) जो शखस अपनी औलाद को परी म त तक दध िपलवाना चाह तो

उसकी ख़ाितर स माए अपनी औलाद को पर दो बरस दध िपलाए और िजसका वह लड़का ह

(बाप) उस पर माओ का खाना कपड़ा द तर क मतािबक़ लािज़म ह िकसी शखस को ज़हमत

नही दी जाती मगर उसकी ग जाइश भर न मा का उस क ब च की वजह स नक़सान गवारा िकया जाए और न िजस का लड़का ह (बाप) उसका (बि क द तर क मतािबक़ िदया जाए)

और अगर बाप न हो तो दध िपलान का हक़ उसी तरह वािरस पर लािज़म ह िफर अगर दो

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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बरस क क़ ल मा बाप दोन अपनी मरज़ी और मशवर स दध बढ़ाई करना चाह तो उन दोन

पर कोई गनाह नही और अगर तम अपनी औलाद को (िकसी अ ना स) दध िपलवाना चाहो तो उस म भी तम पर कछ गनाह नही ह बशत िक जो तमन द तर क मतािबक़ मक़ररर

िकया ह उन क हवाल कर दो और ख़दा स डरत रहो और जान रखो िक जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दखता ह

234 और तमम स जो लोग बीिवया छोड़ क मर जाए तो य औरत चार महीन दस रोज़ (इ ा भर)

अपन को रोक (और दसरा िनकाह न कर) िफर जब (इ की म त) परी कर ल तो शरीयत क

मतािबक़ जो कछ अपन हक़ म कर इस बार म तम पर कोई इ ज़ाम नही ह और जो कछ

तम करत हो ख़दा उस स ख़बरदार ह

235 और अगर तम (उस ख़ौफ स िक शायद कोई दसरा िनकाह कर ल) उन औरत स इशारतन

िनकाह की (कद इ ा) ख़ा तगारी (उ मीदवारी) करो या अपन िदलो म िछपाए रखो तो उसम

भी कछ तम पर इ ज़ाम नही ह (कय िक) ख़दा को मालम ह िक (तम स सबर न हो सकगा और) उन औरत स िनकाह करन का खयाल आएगा लिकन चोरी िछप स िनकाह का वायदा न करना मगर य िक उन स अ छी बात कह गज़र (तो मज़ाएक़ा नही) और जब तक मक़ररर

िमयाद गज़र न जाए िनकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो िक जो कछ

त हारी िदल म ह ख़दा उस को ज़ र जानता ह तो उस स डरत रहो और (य भी) जान लो िक

ख़दा बड़ा बखशन वाला बदरबार ह

236 और अगर तम न अपनी बीिवय को हाथ तक न लगाया हो और न महर मअ यन िकया हो और उसक क़ ल ही तम उनको तलाक़ द दो (तो इस म भी) तम पर कछ इ ज़ाम नही ह हा उन औरत क साथ (द तर क मतािबक़) मालदार पर अपनी हिसयत क मआिफक़ और

ग़रीब पर अपनी हिसयत क मवािफक़ (कपड़ पए वग़रह स) कछ सलक करना लािज़म ह

नकी करन वाल पर य भी एक हक़ ह

237 और अगर तम उन औरत का महर तो मअ यन कर चक हो मगर हाथ लगान क क़ ल ही

तलाक़ द दो तो उन औरत को महर मअ यन का आधा द दो मगर य िक य औरत ख़द माफ

कर द या उन का वली िजसक हाथ म उनक िनकाह का एखतयार हो माफ़ कर द (तब कछ

नही) और अगर तम ही सारा महर बखश दो तो परहज़गारी स बहत ही क़रीब ह और आपस

की बज़रगी तो मत भलो और जो कछ तम करत हो ख़दा ज़ र दख रहा ह

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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238 और (मसलमान ) तम तमाम नमाज़ की और ख़ससन बीच वाली नमाज़ सबह या ज़ोहर या अ की पाब दी करो और ख़ास ख़दा ही वा त नमाज़ म क़नत पढ़न वाल हो कर खड़ हो िफर अगर तम ख़ौफ की हालत म हो

239 और परी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पदल िजस तरह बन पड़ पढ़ लो िफर जब त ह

इ मनान हो तो िजस तरह ख़दा न त ह (अपन रसल की मआरफत इन बात को िसखाया ह

जो तम नही जानत थ

240 उसी तरह ख़दा को याद करो और तम म स जो लोग अपनी बीिवय को छोड़ कर मर जाए

उन पर अपनी बीिबय क हक़ म साल भर तक क नान व न क (रोटी कपड़ा) और (घर स) न

िनकलन की वसीयत करनी (लािज़म) ह पस अगर औरत ख़द िनकल खड़ी हो तो जायज़

बात (िनकाह वगरह) स कछ अपन हक़ म कर उसका तम पर कछ इ ज़ाम नही ह और

ख़दा हर य पर ग़ािलब और िहक़मत वाला ह

241 और िजन औरत को ताअ यन महर और हाथ लगाए बगर तलाक़ द दी जाए उनक साथ

जोड़ पए वगरह स सलक करना लािज़म ह

242 (य भी) परहज़गार पर एक हक़ ह उसी तरह ख़दा तम लोग की िहदायत क वा त अपन

एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता ह

243 तािक तम समझो (ऐ रसल) कया तम न उन लोग क हाल पर नज़र नही की जो मौत क डर

क मार अपन घर स िनकल भाग और वह हज़ारो आदमी थ तो ख़दा न उन स फरमाया िक

सब क सब मर जाओ (और वह मर गए) िफर ख़दा न उ ह िज दा िकया बशक ख़दा लोग

पर बड़ा महरबान ह मगर अकसर लोग उसका शकर नही करत

244 और मसलमान ख़दा की राह म िजहाद करो और जान रखो िक ख़दा ज़ र सब कछ सनता

(और) जानता ह

245 ह कोई जो ख़दा को क़ज़र ए ह ना द तािक ख़दा उसक माल को इस क िलए कई गना बढ़ा द

और ख़दा ही तगद त करता ह और वही कशायश दता ह और उसकी तरफ सब क सब लौटा िदय जाओग

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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246 (ऐ रसल) कया तमन मसा क बाद बनी इसराइल क सरदार की हालत पर नज़र नही की जब

उ ह न अपन नबी (शमयल) स कहा िक हमार वा त एक बादशाह मक़ररर कीिजए तािक हम

राह ख़दा म िजहाद कर (पग़ बर न) फ़रमाया कही ऐसा तो न हो िक जब तम पर िजहाद

वािजब िकया जाए तो तम न लड़ो कहन लग जब हम अपन घर और अपन बाल ब च स

िनकाल जा चक तो िफर हम कौन सा उ बाक़ी ह िक हम ख़दा की राह म िजहाद न कर िफर

जब उन पर िजहाद वािजब िकया गया तो उनम स च द आदिमय क िसवा सब क सब न

लड़न स मह फरा और ख़दा तो ज़ािलम को खब जानता ह

247 और उनक नबी न उनस कहा िक बशक ख़दा न त हारी दरखवा त क (मतािबक़ तालत को

त हारा बादशाह मक़ररर िकया (तब) कहन लग उस की हकमत हम पर कय कर हो सकती ह

हालािक स तनत क हक़दार उसस यादा तो हम ह कय िक उस तो माल क एतबार स भी फ़ारगल बाली (ख़शहाली) तक नसीब नही (नबी न) कहा ख़दा न उस तम पर फज़ीलत दी ह

और माल म न सही मगर इ म और िज म का फलाव तो उस का ख़दा न यादा फरमाया ह

और ख़दा अपना म क िजस चाह द और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और वािक़फ़कार ह

248 और उन क नबी न उनस य भी कहा इस क (मनाजािनब अ लाह) बादशाह होन की य

पहचान ह िक त हार पास वह स दक़ आ जाएगा िजसम त हार परवरिदगार की तरफ स

तसकीन द चीज और उन त बरक़ात स बचा खचा होगा जो मसा और हा न की औलाद

यादगार छोड़ गयी ह और उस स दक को फिर त उठाए होग अगर तम ईमान रखत हो तो बशक उसम त हार वा त परी िनशानी ह

249 िफर जब तालत लशकर समत (शहर ऐिलया स) रवाना हआ तो अपन सािथय स कहा दखो आग एक नहर िमलगी इस स यक़ीनन ख़दा त हार सबर की आज़माइश करगा पस जो शखस उस का पानी पीयगा मझ (कछ वा ता) नही रखता और जो उस को नही चखगा वह

बशक मझ स होगा मगर हा जो अपन हाथ स एक (आधा च ल भर क पी) ल तो कछ हजर नही पस उन लोग न न माना और च द आदिमय क िसवा सब न उस का पानी िपया ख़र

जब तालत और जो मोिमनीन उन क साथ थ नहर स पास हो गए तो (ख़ास मोिमन क

िसवा) सब क सब कहन लग िक हम म तो आज भी जालत और उसकी फौज स लड़न की सकत नही मगर वह लोग िजनको यक़ीन ह िक एक िदन ख़दा को मह िदखाना ह बधड़क

बोल उठ िक ऐसा बहत हआ िक ख़दा क हकम स छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ािलब

आ गयी ह और ख़दा सबर करन वाल का साथी ह

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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250 (ग़रज़) जब य लोग जालत और उसकी फौज क मक़ाबल को िनकल तो दआ की ऐ मर

परवरिदगार हम कािमल सबर अता फरमा और मदान जग म हमार क़दम जमाए रख और

हम कािफर पर फतह इनायत कर

251 िफर तो उन लोग न ख़दा क हकम स दशमन को िशक त दी और दाऊद न जालत को क़ ल

िकया और ख़दा न उनको स तनत व तदबीर त न अता की और इ म व हनर जो चाहा उ ह गोया घोल क िपला िदया और अगर ख़दा बाज़ लोग क ज़िरए स बाज़ का दफाए (शर)

न करता तो तमाम ए ज़मीन पर फ़साद फल जाता मगर ख़दा तो सार जहान क लोग पर

फज़ल व रहम करता ह

252 ऐ रसल य ख़दा की स ची आयत ह जो हम तम को ठीक ठीक पढ़क सनात ह और बशक

तम ज़ र रसल म स हो 253 यह सब रसल (जो हमन भज) उनम स बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उनम स बाज़ तो ऐस ह

िजनस ख़द ख़दा न बात की उनम स बाज़ क (और तरह पर) दज बल द िकय और मिरयम

क बट ईसा को (कस कस रौशन मौिजज़ अता िकय) और हलकदस (िजबरईल) क ज़िरय

स उनकी मदद की और अगर ख़दा चाहता तो लोग इन (पग़ बर ) क बाद हय वह अपन पास

रौशन मौिजज़ आ चकन पर आपस म न लड़ मरत मगर उनम फट पड़ गई पस उनम स

बाज़ तो ईमान लाय और बाज़ कािफ़र हो गय और अगर ख़दा चाहता तो यह लोग आपस म

लड़त मगर ख़दा वही करता ह जो चाहता ह

254 ऐ ईमानदार जो कछ हमन तमको िदया ह उस िदन क आन स पहल (ख़दा की राह म) ख़चर

करो िजसम न तो ख़रीदो फरोखत होगी और न यारी (और न आशनाई) और न िसफ़ािरश (ही काम आयगी) और क करन वाल ही तो ज म ढात ह

255 ख़दा ही वो ज़ात पाक ह िक उसक िसवा कोई माबद नही (वह) िज़ दा ह (और) सार जहान

का सभालन वाला ह उसको न ऊघ आती ह न नीद जो कछ आसमानो म ह और जो कछ

ज़मीन म ह (गरज़ सब कछ) उसी का ह कौन ऐसा ह जो बग़र उसकी इजाज़त क उसक पास

िकसी की िसफ़ािरश कर जो कछ उनक सामन मौजद ह (वह) और जो कछ उनक पीछ (हो चका) ह (खदा सबको) जानता ह और लोग उसक इ म म स िकसी चीज़ पर भी अहाता नही कर सकत मगर वह िजस िजतना चाह (िसखा द) उसकी कसीर सब आसमानॊ और ज़मीन

सरः अल-बक़रा

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

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को घर हय ह और उन दोन (आसमान व ज़मीन) की िनगहदा त उसपर कछ भी मि कल

नही और वह आलीशान बजग़र मरतबा ह

256 दीन म िकसी तरह की जबरद ती नही कय िक िहदायत गमराही स (अलग) ज़ािहर हो चकी

तो िजस शखस न झठ खदाओ बत स इकार िकया और खदा ही पर ईमान लाया तो उसन वो मज़बत र सी पकड़ी ह जो टट ही नही सकती और ख़दा सब कछ सनता और जानता ह

257 ख़दा उन लोग का सरपर त ह जो ईमान ला चक िक उ ह (गमराही की) तारीिक़य स

िनकाल कर (िहदायत की) रौशनी म लाता ह और िजन लोग न क इखतयार िकया उनक

सरपर त शतान ह िक उनको (ईमान की) रौशनी स िनकाल कर (क की) तारीिकय म

डाल दत ह यही लोग तो जह नमी ह (और) यही उसम हमशा रहग

258 (ऐ रसल) कया तम न उस शखस (क हाल) पर नज़र नही की जो िसफ़र इस िबरत पर िक ख़दा न उस स तनत दी थी इबराहीम स उनक परवरिदगार क बार म उलझ पड़ा िक जब इबराहीम

न (उसस) कहा िक मरा परवरिदगार तो वह ह जो (लोग को) िजलाता और मारता ह तो वो भी (शख़ी म) आकर कहन लगा म भी िजलाता और मारता ह (त हार ख़दा ही म कौन सा कमाल ह) इबराहीम न कहा (अ छा) खदा तो आफ़ताब को परब स िनकालता ह भला तम

उसको पि चम स िनकालो इस पर वह कािफ़र हकका बकका हो कर रह गया (मगर ईमान न

लाया) और ख़दा ज़ािलम को मिज़ल मक़सद तक नही पहचाया करता

259 (ऐ रसल तमन) मसलन उस (ब द क हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर स होकर गज़रा और वो ऐसा उजड़ा था िक अपनी छत पर स ढह क िगर पड़ा था य दखकर वह ब दा (कहन

लगा) अ लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी क बाद कय कर आबाद करगा इस पर ख़दा न

उसको (मार डाला) सौ बरस तक मदार रखा िफर उसको िजला उठाया (तब) पछा तम िकतनी दर पड़ रह अजर क़ी एक िदन पड़ा रहा एक िदन स भी कम फ़रमाया नही तम (इसी हालत म)

सौ बरस पड़ रह अब ज़रा अपन खान पीन (की चीज़ ) को दखो िक बसा तक नही और ज़रा अपन गध (सवारी) को तो दखो िक उसकी ह िडया ढर पड़ी ह और सब इस वा त िकया ह

तािक लोग क िलय त ह क़दरत का नमना बनाय और अ छा अब (इस गध की) ह िडय

की तरफ़ नज़र करो िक हम कय कर जोड़ जाड़ कर ढाचा बनात ह िफर उनपर गो त चढ़ात ह

पस जब य उनपर ज़ािहर हआ तो बसाखता बोल उठ िक (अब) म य यक़ीन कािमल जानता ह िक ख़दा हर चीज़ पर क़ािदर ह

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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260 और (ऐ रसल) वह वाकया भी याद करो जब इबराहीम न (खदा स) दरखवा त की िक ऐ मर

परवरिदगार त मझ भी तो िदखा द िक त मद को कय कर िज़ दा करता ह ख़दा न फ़रमाया कया त ह (इसका) यक़ीन नही इबराहीम न अज़र की (कय नही) यक़ीन तो ह मगर ऑख स

दखना इसिलए चाहता ह िक मर िदल को परा इि मनान हो जाए फ़रमाया (अगर य चाहत

हो) तो चार पिर द लो और उनको अपन पास मगवा लो और टकड़ टकड़ कर डालो िफर हर

पहाड़ पर उनका एक एक टकड़ा रख दो उसक बाद उनको बलाओ (िफर दखो तो कय कर वह

सब क सब त हार पास दौड़ हए आत ह और समझ रखो िक ख़दा बशक ग़ािलब और

िहकमत वाला ह

261 जो लोग अपन माल खदा की राह म खचर करत ह उनक (खचर) की िमसाल उस दान की सी

िमसाल ह िजसकी सात बािलयॉ िनकल (और) हर बाली म सौ (सौ) दान ह और ख़दा िजसक

िलय चाहता ह दना कर दता ह और खदा बड़ी ग जाइश वाला (हर चीज़ स) वािक़फ़ ह

262 जो लोग अपन माल ख़दा की राह म ख़चर करत ह और िफर ख़चर करन क बाद िकसी तरह का

एहसान नही जतात ह और न िजनपर एहसान िकया ह उनको सतात ह उनका अजर (व

सवाब) उनक परवरिदगार क पास ह और न आख़रत म उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह

ग़मगीन ह ग

263 (सायल को) नरमी स जवाब द दना और (उसक इसरार पर न िझड़कना बि क) उसस

दरगज़र करना उस खरात स कही बहतर ह िजसक बाद (सायल को) ईज़ा पहच और ख़दा हर

श स बपरवा (और) बदरबार ह

264 ऐ ईमानदार आपनी खरात को एहसान जतान और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) दन की

वजह स उस शखस की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोग को िदखान क

वा त ख़चर करता ह और ख़दा और रोज आखरत पर ईमान नही रखता तो उसकी खरात की िमसाल उस िचकनी चटटान की सी ह िजसपर कछ ख़ाक (पड़ी हई) हो िफर उसपर ज़ोर शोर

का (बड़ बड़ क़तर स) मह बरस और उसको (िमटटी को बहाक) िचकना चपड़ा छोड़ जाए (इसी तरह) िरयाकार अपनी उस ख़रात या उसक सवाब म स जो उ ह न की ह िकसी चीज़ पर

क़ ज़ा न पाएग (न दिनया म न आख़रत म) और ख़दा कािफ़र को िहदायत करक मिज़ल

मक़सद तक नही पहचाया करता

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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265 और जो लोग ख़दा की ख़शनदी क िलए और अपन िदली एतक़ाद स अपन माल ख़चर करत ह

उनकी िमसाल उस (हर भर) बाग़ की सी ह जो िकसी टील या टीकर पर लगा हो और उस पर

ज़ोर शोर स पानी बरसा तो अपन दगन फल लाया और अगर उस पर बड़ धड़ ल का पानी न

भी बरस तो उसक िलय ह की फआर (ही काफ़ी) ह और जो कछ तम करत हो ख़दा उसकी दखभाल करता रहता ह

266 भला तम म कोई भी इसको पस द करगा िक उसक िलए खजर और अगर का एक बाग़ हो

उसक नीच नहर जारी ह और उसक िलए उसम तरह तरह क मव ह और (अब) उसको बढ़ाप न घर िलया ह और उसक (छोट छोट) नातवॉ कमज़ोर ब च ह िक एकबारगी उस बाग़

पर ऐसा बगोला आ पड़ा िजसम आग (भरी) थी िक वह बाग़ जल भन कर रह गया ख़दा अपन एहकाम को तम लोग स साफ़ साफ़ बयान करता ह तािक तम ग़ौर करो

267 ऐ ईमान वाल अपनी पाक कमाई और उन चीज़ म स जो हमन त हार िलए ज़मीन स पदा

की ह (ख़दा की राह म) ख़चर करो और बर माल को (ख़दा की राह म) दन का क़सद भी न करो हालॉिक अगर ऐसा माल कोई तमको दना चाह तो तम अपनी ख़शी स उसक लन वाल नही हो मगर य िक उस (क लन) म (अमदन) आख चराओ और जान रहो िक ख़दा बशक

बिनयाज़ (और) सज़ावार ह द ह

268 शतान तमको तगद ती स डराता ह और बरी बात (बखल) का तमको हकम करता ह और

ख़दा तमस अपनी बिखशश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता ह और ख़दा बड़ी ग जाइश वाला और सब बात का जानन वाला ह

269 वह िजसको चाहता ह िहकमत अता फ़रमाता ह और िजसको (ख़दा की तरफ) स िहकमत

अता की गई तो इसम शक नही िक उस ख़िबय स बड़ी दौलत हाथ लगी और अकलम द क

िसवा कोई नसीहत मानता ही नही 270 और तम जो कछ भी ख़चर करो या कोई म नत मानो ख़दा उसको ज़ र जानता ह और (य भी

याद रह) िक ज़ािलम का (जो) ख़दा का हक़ मार कर और की न करत ह (क़यामत म)

कोई मददगार न होगा 271 अगर ख़रात को ज़ािहर म दो तो यह (ज़ािहर करक दना) भी अ छा ह और अगर उसको

िछपाओ और हाजतम द को दो तो य िछपा कर दना त हार हक़ म यादा बहतर ह और

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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ऐस दन को ख़दा त हार गनाह का क फ़ारा कर दगा और जो कछ तम करत हो ख़दा उसस

ख़बरदार ह

272 ऐ रसल उनका मिज़ल मक़सद तक पहचाना त हारा काम नही (त हारा काम िसफर रा ता

िदखाना ह) मगर हॉ ख़दा िजसको चाह मिज़ल मक़सद तक पहचा द और (लोग ) तम जो कछ नक काम म ख़चर करोग तो अपन िलए और तम ख़दा की ख़शनदी क िसवा और काम

म ख़चर करत ही नही हो (और जो कछ तम नक काम म ख़चर करोग) (क़यामत म) तमको भरपर वापस िमलगा और त हारा हक़ न मारा जाएगा

273 (यह खरात) ख़ास उन हाजतम द क िलए ह जो ख़दा की राह म िघर गय हो (और) ए

ज़मीन पर (जाना चाह तो) चल नही सकत नावािक़फ़ उनको सवाल न करन की वजह स

अमीर समझत ह (लिकन) त (ऐ मख़ाितब अगर उनको दख) तो उनकी सरत स ताड़ जाय

(िक य मोहताज ह अगरच) लोग स िचमट क सवाल नही करत और जो कछ भी तम नक

काम म ख़चर करत हो ख़दा उसको ज़ र जानता ह

274 जो लोग रात को या िदन को िछपा कर या िदखा कर (ख़दा की राह म) ख़चर करत ह तो उनक

िलए उनका अजर व सवाब उनक परवरिदगार क पास ह और (क़यामत म) न उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़दार ख़ाितर ह ग

275 जो लोग सद खात ह वह (क़यामत म) खड़ न हो सकग मगर उस शखस की तरह खड़ ह ग

िजस को शतान न िलपट कर मख़बतल हवास (पागल) बना िदया ह य इस वजह स िक वह

उसक क़ायल हो गए िक जसा िबकरी का मामला वसा ही सद का मामला हालॉिक िबकरी को तो खदा न हलाल और सद को हराम कर िदया बस िजस शखस क पास उसक परवरिदगार की तरफ़ स नसीहत (ममािनयत) आय और वह बाज़ आ गया तो इस हकम क नािज़ल होन स

पहल जो सद ल चका वह तो उस का हो चका और उसका अमर (मामला) ख़दा क हवाल ह

और जो मनाही क बाद िफर सद ल (या िबकरी क माल को यकसा बताए जाए) तो ऐस ही लोग

जह नम म रहग

276 खदा सद को िमटाता ह और ख़रात को बढ़ाता ह और िजतन नाशकर गनाहगार ह खदा उ ह

दो त नही रखता

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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277 (हॉ) िजन लोग न ईमान क़बल िकया और अ छ-अ छ काम िकए और पाब दी स नमाज़

पढ़ी और ज़कात िदया िकय उनक िलए अलब ता उनका अजर व (सवाब) उनक परवरिदगार

क पास ह और (क़यामत म) न तो उन पर िकसी िक़ म का ख़ौफ़ होगा और न वह र जीदा िदल ह ग

278 ऐ ईमानदार ख़दा स डरो और जो सद लोग क िज़ म बाक़ी रह गया ह अगर तम स च

मोिमन हो तो छोड़ दो 279 और अगर तमन ऐसा न िकया तो ख़दा और उसक रसल स लड़न क िलय तयार रहो और

अगर तमन तौबा की ह तो त हार िलए त हारा असल माल ह न तम िकसी का ज़बरद ती नकसान करो न तम पर ज़बरद ती की जाएगी

280 और अगर कोई तगद त त हारा (क़ज़रदार हो) तो उस ख़शहाली तक मोह लत (दो) और

सदक़ा करो और अगर तम समझो तो त हार हक़ म यादा बहतर ह िक असल भी बखश दो 281 और उस िदन स डरो िजस िदन तम सब क सब ख़दा की तरफ़ लौटाय जाओग िफर जो कछ

िजस शखस न िकया ह उसका परा परा बदला िदया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282 ऐ ईमानदार जब एक िमयाद मक़रररा तक क िलए आपस म क़जर क़ा लन दन करो तो उस

िलखा पढ़ी कर िलया करो और िलखन वाल को चािहय िक त हार दरिमयान त हार क़ौल व

क़रार को इ साफ़ स ठीक ठीक िलख और िलखन वाल को िलखन स इ कार न करना चािहय (बि क) िजस तरह ख़दा न उस (िलखना पढ़ना) िसखाया ह उसी तरह उसको भी व

उ (बहाना) िलख दना चािहय और िजसक िज़ म क़ज़र आयद होता ह उसी को चािहए िक

(तम सक) की इबारत बताता जाय और ख़दा स डर जो उसका स चा पालन वाला ह डरता रह और (बतान म) और क़ज़र दन वाल क हक़क़ म कछ कमी न कर अगर क़ज़र लन वाला कम अकल या माज़र या ख़द (तम सक) का मतलब िलखवा न सकता हो तो उसका सरपर त ठीक ठीक इ साफ़ स िलखवा द और अपन लोग म स िजन लोग को तम गवाही लन क िलय पस द करो (कम स कम) दो मद की गवाही कर िलया करो िफर अगर दो मदर न हो तो (कम स कम) एक मदर और दो औरत (कय िक) उन दोन म स अगर एक भल

जाएगी तो एक दसरी को याद िदला दगी और जब गवाह हककाम क सामन (गवाही क िलए)

बलाया जाए तो हािज़र होन स इ कार न कर और क़ज़र का मामला खवाह छोटा हो या उसकी

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

सरः अल-बक़रा

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

सरः अल-बक़रा

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िमयाद मअ यन तक की (द तावज़) िलखवान म कािहली न करो ख़दा क नज़दीक य

िलखा पढ़ी बहत ही मि सफ़ाना कारवाई ह और गवाही क िलए भी बहत मज़बती ह और

बहत क़रीन (क़यास) ह िक तम आई दा िकसी तरह क शक व शबहा म न पड़ो मगर जब

नक़द सौदा हो जो तम लोग आपस म उलट फर िकया करत हो तो उसकी (द तावज) क न

िलखन म तम पर कछ इ ज़ाम नही ह (हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोखत) हो तो गवाह कर िलया करो और क़ाितब (द तावज़) और गवाह को ज़रर न पहचाया जाए और

अगर तम ऐसा कर बठ तो य ज़ र त हारी शरारत ह और ख़दा स डरो ख़दा तमको मामल

की सफ़ाई िसखाता ह और वह हर चीज़ को ख़ब जानता ह

283 और अगर तम सफ़र म हो और कोई िलखन वाला न िमल (और क़ज़र दना हो) तो रहन या क ज़ा रख लो और अगर तमम एक का एक को एतबार हो तो (य ही क़ज़र द सकता ह मगर)

िफर िजस शखस पर एतबार िकया गया ह (क़ज़र लन वाला) उसको चािहय क़ज़र दन वाल की अमानत (क़ज़र) परी परी अदा कर द और अपन पालन वाल ख़दा स डर (मसलमानो) तम

गवाही को न िछपाओ और जो िछपाएगा तो बशक उसका िदल गनाहगार ह और तम लोग

जो कछ करत हो ख़दा उसको ख़ब जानता ह

284 जो कछ आसमान म ह और जो कछ ज़मीन म ह (ग़रज़) सब कछ खदा ही का ह और जो

कछ त हार िदल म ह खवाह तम उसको ज़ािहर करो या उस िछपाओ ख़दा तमस उसका िहसाब लगा िफर िजस को चाह बखश द और िजस पर चाह अज़ाब कर और ख़दा हर चीज़

पर क़ािदर ह

285 हमार पग़ बर (मोह मद) जो कछ उनपर उनक परवरिदगार की तरफ स नािज़ल िकया

गया ह उस पर ईमान लाए और उनक (साथ) मोिमनीन भी (सबक) सब ख़दा और उसक

फ़िर त और उसकी िकताब और उसक रसल पर ईमान लाए (और कहत ह िक) हम ख़दा क पग़ बर म स िकसी म तफ़रक़ा नही करत और कहन लग ऐ हमार परवरिदगार हमन

(तरा इरशाद) सना 286 और मान िलया परवरिदगार हम तरी ही मग़िफ़रत की (खवािहश ह) और तरी ही तरफ़ लौट

कर जाना ह ख़दा िकसी को उसकी ताक़त स यादा तकलीफ़ नही दता उसन अ छा काम

िकया तो अपन नफ़ क िलए और बरा काम िकया तो (उसका वबाल) उसी पर पडग़ा ऐ हमार

परवरिदगार अगर हम भल जाऐ या ग़लती कर तो हमारी िगर त न कर ऐ हमार

परवरिदगार हम पर वसा बोझ न डाल जसा हमस अगल लोग पर बोझा डाला था और ऐ

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर

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हमार परवरिदगार इतना बोझ िजसक उठान की हम ताक़त न हो हमस न उठवा और हमार

कसर स दरगज़र कर और हमार गनाह को बखश द और हम पर रहम फ़रमा त ही हमारा मािलक ह त ही कािफ़र क मक़ाबल म हमारी मदद कर