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संत रै दास के पद

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  • संत रैदास के पद

  • • पद काव्य रचना की गाई जाने वाली शैली है। इसका ववकास लोक गीतो ं

    की परंपरा से माना जाता है। यह माविक छन्द की शे्रणी में आता है। प्राय:

    पदो ंके साथ वकसी न वकसी राग का वनदेश वमलता है। पद ववशेष को

    सम्बन्धित राग में ही गाया जाता है।यह पद्य ववधा भन्धिकालीन युग का प्राण

    है ! भन्धिकालीन युग में पूणणतः सभी कववयो ं( भन्धिमागण अनुयायी / सूफी

    परंपरा ) इत्यावद ने इसी ववधा में अपनी रचनाएँ की है !

    • यह ववधा मुख्यतः भगवान् से ववनय करने हेतु , पे्रम हेतु , माधुयण , ववरह ,

    करुण रस , और उपदेश जैसी अवस्थाओ ंको वनसृत करने हेतु ही होती है !

    यह एक ऐसी ववधा है वजसमें काव्य, संगीत के माध्यम से स्वतः ह्रदय से

    वनकलता है ! इसे धु्रपद गायन भी कहते थे !

    मीराबाई , सूरदास , तुकाराम , कबीरदास इत्यावद कभी कलम इत्यावद

    लेकर नही ंबैठते थे ! भगवदपे्रम में व्याकुल इन पे्रवमयो ंके ह्रदय से स्वयं ही

    अववरल काव्य धारा फूट पड़ती थी वजसे उनके सहचर वलवपबद्ध करते थे

    https://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AFhttps://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B6%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A5%80https://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%9B%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6

  • भि रैदास के पदो ंका गायन

    पाठ्यक्रम में वदए गए भजनो ंके गायन का रसास्वादन करने के वलए वनम्नवलन्धित वलंक्स पर जाएँ -

    कैसे छूटे नाम रट लागी भजन गायन : https://www.youtube.com/watch?v=OnVqqxL44aw ऐसी लाल तुझ वबन भजन गायन : https://www.youtube.com/watch?v=2KtdbTYUIfw

    https://www.youtube.com/watch?v=OnVqqxL44awhttps://www.youtube.com/watch?v=OnVqqxL44awhttps://www.youtube.com/watch?v=OnVqqxL44awhttps://www.youtube.com/watch?v=2KtdbTYUIfwhttps://www.youtube.com/watch?v=2KtdbTYUIfwhttps://www.youtube.com/watch?v=2KtdbTYUIfw

  • संत कवव रैदास का जीवन पररचय

    • संत रैदास (१४३३, माघ पूर्णिमा)

    • संत कुलभूषण कवव रैदास उन महान् सन्ो ंमें अग्रणी थे वजन्ोनें अपनी रचनाओ ंके माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयो ंको दूर करने में महत्वपूणण योगदान वकया। इनकी रचनाओ ंकी ववशेषता लोक-वाणी का अद्भुत प्रयोग रही है वजससे जनमानस पर इनका अवमट प्रभाव पड़ता है। मधुर एवं सहज संत रैदास की वाणी ज्ञानाश्रयी होते हुए भी ज्ञानाश्रयी एवं पे्रमाश्रयी शािाओ ंके मध्य सेतु की तरह हैं |

    • https://www.youtube.com/watch?v=CudxmydTYOw

    • इस वलंक पर जाकर आप संत कवव रैदास के जीवन व उनसे जुडी घटनाओ ंको चलवचि रूप में देि सकते हैं|

    https://www.youtube.com/watch?v=CudxmydTYOw

  • जन्म

    माघ पूवणणमा संवत 1388

    जन्म स्थान : काशी

    व्यवसाय :

    चमणकार (जूते

    बनाने का काम)

    रैदास के वशष्य/भि

    मीरा बाई,*वसकंदर

    लोधी,* राजा पीपा,*

    राजा नागरमल

    रैदास के गुरु :

    स्वामी रामानंद

    संत कबीर के

    समकालीन

    मृतु्य संवत : 1518 (१३० वषण की आयु

    में)

  • अनपढ़ परनु् साधु-सन्ो ंकी संगवत से पयाणप्त व्यावहाररक

    ज्ञान

    ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भन्धि के नाम पर

    वकये जाने वाले वववाद को सारहीन तथा वनरथणकता

    संत-सावहत्य के गं्रथो ंऔर गुरु-गं्रथ साहब में

    इनके पद पाए जाते हैं।

    भन्धिकाल के वनगुणण भन्धि शािा के कवव

    ज्ञानाश्रयी होते हुए भी ज्ञानाश्रयी एवं पे्रमाश्रयी शािाओ ंके

    मध्य सेतु की तरह

    https://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5https://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81_%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5_%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%AChttps://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81_%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5_%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%AChttps://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81_%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5_%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%AChttps://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81_%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5_%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%AChttps://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81_%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5_%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%AChttps://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AF%E0%A5%80_%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A4%BEhttps://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AF%E0%A5%80_%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A4%BEhttps://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AF%E0%A5%80_%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A4%BEhttps://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AF%E0%A5%80_%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A4%BE

  • एकवनष्ठता

    अनन्य

    भन्धि

    भाव

    दैन्य भाव

    आत्मवनवेदन

    दास्य

    भाव

    सहज

    भन्धि

    कवव रैदास की भन्धि भावना

  • प्रथम पद • अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी ।

    प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी , जाकी अँग-अँग बास समानी ।

    प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा , जैसे वचतवत चंद चकोरा ।

    प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती , जाकी जोवत बरै वदन राती ।

    प्रभु जी, तुम मोती हम धागा , जैसे सोनवहं वमलत सुहागा ।

    प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा , ऐसी भन्धि करै रैदासा ।

    पद का मूल भाव : प्रसु्तत पद में कवव रैदास कहते हैं वक वजसके मन में भी ईश्वर के प्रवत

    पे्रम और भन्धि की लगन लग जाए तो वफर वह नही ंछूटती| रैदास भि और भगवान का

    सम्बि बताते हुए कहते हैं वक ईश्वर हर हाल, हर काल में सवणशे्रष्ठ है और उनकी भन्धि तथा

    संपकण में आने से भि में भी उनके गुण समावहत होने लगते हैं|इसके अलावा उसने चंदन –

    पानी, दीपक – बाती आवद अनेक उदाहरणो ंद्वारा उनका साविध्य पाने तथा अपने स्वामी के

    प्रवत दास्य भन्धि की स्वीकारोन्धि की है।

  • अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी ।

    प्रसु्तत पद में कवव रैदास कहते हैं वक वजसके मन में भी ईश्वर के प्रवत पे्रम और भन्धि की लगन लग जाए

    तो वफर वह नही ंछूटती|अथाणत जी मनुष्य के मन में ईश्वर के प्रवत पे्रम उत्पि हो जाए तो वह सांसाररक

    बंधनो ंमें नही ंबँधता| वह सब कुछ भूल कर ईश्वर का ही नाम रटता रहता है|

  • प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी , जाकी अँग-अँग बास समानी ।

    | रैदास भि और भगवान का सम्बि बताते हुए कहते हैं वक ईश्वर हर हाल, हर काल में सवणशे्रष्ठ है और

    उनकी भन्धि तथा संपकण में आने से भि में भी उनके गुण समावहत होने लगते हैं| यवद प्रभु चन्दन के

    समान हैं तो भि को पानी के समान| वजस प्रकार चन्दन के संपकण में आने से पानी में चन्दन के गुण समा

    जाते हैं उसी प्रकार ईश्वर की भन्धि से भि का हृदय ईश-पे्रम की सुगंध से पररपूणण हो जाता है|वजस

    ईश्वर भि

    https://www.youtube.com/watch?v=8zkKCN8SJE4

  • प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा

    कवव कहते हैं वक ईश्वर काले बादलो ंके समान हैं और भि मोर के सामान |

    वजस प्रकार बादलो ंको देि मयूर नृत्य करने लगता है उसी प्रकार अपने हृदय में ईश्वर के दशणन कर भि का मन प्रसिता से नाच उठता है|

    https://www.youtube.com/watch?v=qDvFdj-pFMc

  • जैसे वचतवत चंद चकोरा | ईश्वर

    भि

    रैदास जी ईश्वर को चाँद और भि को

    चकोर पक्षी मानते हुए कहते हैं वक जैसे

    चकोर चाँद के पे्रमाकषणण में बांध कर उसे

    पे्रम पूवणक वनहारता रहता है उसी पे्रम भाव से

    भि भी ईश्वर को वनहार कर आनंवदत

    चंद्रमा और चकोर के पे्रम की भांवत भि भी

    सदैव अपने हृदय में ईश्वर के दशणन पाना

    चाहता है|

    https://www.youtube.com/watch?v=GW1AQRokp64

  • प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती ,

    जाकी जोवत बरै वदन राती । रैदास जी ईश्वर को दीपक तथा भि को उसमें

    जलने वाली बत्ती के सामान बताते हुए कहते हैं वक

    ईश्वर व भि के बीच वदए और बत्ती के समान

    सम्बि है| भि का मन सदा प्रभु भन्धि की ज्योवत से प्रकावशत रहता है|

  • ईश्वर उस बहुमूल्य मोती के समान हैं

    वजसके संपकण में आने से साधारण

    धागे के समान भि की कीमत भी बढ़ जाती है|

  • सोने पर सुहागा

    सोने पर सुहागे का प्रभाव जानने के वलए इस वलंक पर (11:18 पर ) न्धिक करें

    जैसे सुहागे के संपकण से सोना िरा हो जाता है, उसी तरह भि भी ईश्वर के संपकण से शुद्ध व पववि हो जाता है।

    https://www.youtube.com/watch?v=ZIW5YivG1lI&list=PLHWBteJlBKUruBuiEP9P8HWoaZFB_VSGKhttps://www.youtube.com/watch?v=ZIW5YivG1lI&list=PLHWBteJlBKUruBuiEP9P8HWoaZFB_VSGKhttps://www.youtube.com/watch?v=ZIW5YivG1lI&list=PLHWBteJlBKUruBuiEP9P8HWoaZFB_VSGKhttps://www.youtube.com/watch?v=ZIW5YivG1lI&list=PLHWBteJlBKUruBuiEP9P8HWoaZFB_VSGKhttps://www.youtube.com/watch?v=ZIW5YivG1lI&list=PLHWBteJlBKUruBuiEP9P8HWoaZFB_VSGKhttps://www.youtube.com/watch?v=ZIW5YivG1lI&list=PLHWBteJlBKUruBuiEP9P8HWoaZFB_VSGK

  • प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै 'रैदासा'॥

    रैदास कवव ईश्वर की ऐसी भन्धि करना चाहते हैं वजसमें ईश्वर उनके स्वामी हो ंतथा वे ईश्वर के दास बन कर

    रहें।

  • कवठन शब्ो ंके अथण

    • अब कैसे छूटै (छूट सकती है ) राम नाम रट (रटना/ बार-बार दोहराना) लागी । प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी , जाकी (वजसकी) अँग-अँग (प्रते्यक अंग में) बास

    (सुगंध/ िुशबू) समानी (समा गई है) ।

    प्रभु जी, तुम घन (बादल) बन हम मोरा (मोर) , जैसे वचतवत (पे्रम पूवणक देिना/

    वनहारना) चंद (चाँद) चकोरा (चकोर नमक पक्षी) ।

    प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती (बत्ती) , जाकी (वजसकी)जोवत (ज्योवत) बरै (जलती

    रहती है) वदन राती (रात/ रावि) ।

    प्रभु जी, तुम मोती हम धागा , जैसे सोनवहं (सोने में ) वमलत (वमल जाता है) सुहागा

    (Borax (सोवडयम टेटर ाबोरेट) । प्रभु जी, तुम तुम स्वामी (मावलक) हम दासा (सेवक) , ऐसी भन्धि करै रैदासा ।

  • प्रवतपाद्य पद में कवव रैदास कहते हैं वक वजसके मन में भी ईश्वर के प्रवत पे्रम और भन्धि की लगन लग जाए तो वफर

    वह नही ंछूटती| रैदास भि और भगवान का सम्बि बताते हुए कहते हैं वक ईश्वर हर हाल, हर काल में

    सवणशे्रष्ठ है और उनकी भन्धि तथा संपकण में आने से भि में भी उनके गुण समावहत होने लगते हैं| यवद प्रभु

    चन्दन के समान हैं तो भि पानी के समान| वजस प्रकार चन्दन के संपकण में आने से पानी में चन्दन के गुण

    समा जाते हैं उसी प्रकार ईश्वर की भन्धि से भि का हृदय ईश-पे्रम की सुगंध से पररपूणण हो जाता है|वजस

    प्रकार बादलो ंको देि मयूर नृत्य करने लगता है उसी प्रकार ईश्वर के दशणन कर भि का मन प्रसिता से

    नाच उठता है| चंद्रमा और चकोर के पे्रम की भांवत भि भी सदैव अपने हृदय में ईश्वर के दशणन पाना चाहता

    है| ईश्वर व भि के बीच वदए और बत्ती के समान सम्बि है| भि का मन सदा प्रभु भन्धि की ज्योवत से

    प्रकावशत रहता है| ईश्वर उस बहुमूल्य मोती के समान हैं वजसके संपकण में आने से साधारण धागे के समान

    भि की कीमत भी बढ़ जाती है| जैसे सुहागे के संपकण से सोना िरा हो जाता है, उसी तरह भि भी ईश्वर

    के संपकण से शुद्ध व पववि हो जाता है। रैदास कवव ईश्वर की ऐसी भन्धि करना चाहते हैं वजसमें ईश्वर उनके

    स्वामी हो ंतथा वे ईश्वर के दास बन कर रहें।

  • वद्वतीय पद ऐसी लाल तुझ वबनु कउनु करै ।

    गरीब वनवाजु गुसाईआ मेरा माथै छिु धरै ॥

    जाकी छोवत जगत् कउ लागै ता पर तुही ंढरै ।

    नीचउ ऊच करै मेरा गोवबंदु काहू ते न डरै ॥

    नामदेव कबीरू वतलोचनु सधना सैनु तरै ।

    कवह रववदासु सुनहु रे संतहु हररजीउ ते सभै सरै ॥

    पद गायन :https://www.youtube.com/watch?v=YG3jj6_rpVc

    • केन्द्रीय भाव (मूलभाव)

    • प्रसु्तत पद में ईश्वर के कृपालु तथा समदशी स्वभाव का वणणन करते

    हुए ईश्वर को सवण सामर्थ्णवान बताया है| रैदास जी कहते हैं जात-पात,

    ऊंच-नीच आवद भेदभाव मनुष्य द्वारा बनाये गए हैं| ईश्वर की दृवि में

    सब समान हैं| ईश्वर अपने वनम्न कुल में जन्में भिो ंपर भी पे्रमभाव

    रिते हैं तथा उन्ें समाज में सम्मावनत स्थान प्रदान करते हैं| ईश्वर के वलए कुछ भी असंभव नही ंहैं|

    https://www.youtube.com/watch?v=YG3jj6_rpVchttps://www.youtube.com/watch?v=YG3jj6_rpVchttps://www.youtube.com/watch?v=YG3jj6_rpVchttps://www.youtube.com/watch?v=YG3jj6_rpVchttps://www.youtube.com/watch?v=YG3jj6_rpVc

  • ऐसी लाल तुझ वबनु कउनु करै ।

    इस पंन्धि में कवव पे्रम भाव से ईश्वर को लाल संबोधन से पुकारते हुए कहते हैं वक हे ईश्वर! आप सवण

    सामर्थ्णवान हैं| आपके वलए वलए इस संसार में कुछ भी असंभव नही ंहै| भला आपके अवतररि इस संसार

    में ऐसा कृत्य ( गरीबो ं को सम्मान वदलाने का) कौन कर सकता है?

  • गरीब वनवाजु गुसाईआ मेरा माथै छिु धरै ॥

    • रैदास कवव ईश्वर को गरीब नवाज़ कह कर पुकारते हैं|अथाणत भगवान गरीब तथा दीन– दुन्धियो ंपर दया करने वाले हैं|

    • प्रभु ही ऐसे कृपालु स्वामी हैं जो अपने वनम्न कुल में जन्में भिो ंके माथे पर राजाओ ंजैसा छि रि देते हैं अथाणत सम्मान व गौरव वदलवाते हैं|

  • जाकी छोवत जगत् कउ लागै, ता पर तुही ंढरै ।

    • सारा संसार वजन्ें असृ्पश्य (अछूत) मान कर उनके

    प्रवत भेद-भाव पूणण व्यवहार करता है तुम उन पर अपना पे्रम उड़ेल देते हो|

  • अन्य लोग समाज के भय से वनम्न कुल के व्यन्धि के समीप जाने से भी डरते हैं

    परनु् वबना वकसी से डरे वनम्न कुल में जने्म व्यन्धि को समाज में सम्मान वदलाने का सामर्थ्ण केवल ईश्वर में ही है|

    नीचउ ऊच करै मेरा गोवबंदु काहू ते न डरै ॥

  • नामदेव कबीरू वतलोचनु सधना सैनु तरै ।

    उनकी दया से नामदेव, कबीर, विलोचन, सधना तथा सैन जैसे भि कवव वनम्न कुल में जन्म लेने के बाद भी तर गए।

  • संत नामदेव : नामदेव भारत के प्रवसद्ध संत थे। इनके समय में नाथ और महानुभाव पंथो ंका महारािर में प्रचार था। वे जावत से छीपी अथाणत् कपडे पर छपाई का काम करने वाले थे

    इनके जीवन पररचय के वलए वनम्नवलन्धित वलंक पर न्धिक करें : https://www.youtube.com/watch?v=scBGgvHX314

    https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A5_%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%AFhttps://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B5_%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%AF&action=edit&redlink=1https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0https://www.youtube.com/watch?v=scBGgvHX314https://www.youtube.com/watch?v=scBGgvHX314

  • संत कबीर : सफल साधक, भि कवव, मतप्रवतणक अथवा समाज सुधारक कबीर का नाम संत समुदाय में अग्रणी हैं| कबीर जावत से जुलाहे अथाणत् कपडा बुनने वाले थे|

    संत कबीर के जीवन पर आधाररत चलवचि के वलए वनम्नवलन्धित वलंक पर न्धिक करें :

    https://www.youtube.com/watch?v=RUDFis-tdg4

    https://www.youtube.com/watch?v=RUDFis-tdg4https://www.youtube.com/watch?v=RUDFis-tdg4https://www.youtube.com/watch?v=RUDFis-tdg4https://www.youtube.com/watch?v=RUDFis-tdg4

  • भि विलोचन : श्री गुरू गं्रथ सावहब जी में अपनी बाणी द्वारा हमेशा-हमेशा के वलए अमरता प्राप्त करने वाले भिो ंमें भि विलोचन आयु के काल अनुसार तीसरे स्थान पर आते हैं। जावत से वैश्य थे |

    भि विलोचन की समू्पणण कथा जानने के वलए वनम्नवलन्धित वलंक पर न्धिक करें :

    https://www.youtube.com/watch?v=7LvKfZXjjWU

    https://www.youtube.com/watch?v=7LvKfZXjjWUhttps://www.youtube.com/watch?v=7LvKfZXjjWUhttps://www.youtube.com/watch?v=7LvKfZXjjWU

  • सधना : भि सधना जी के माँ-बाप का कुछ पता नही चलता। बचपन से ही संतो,ं फकीरो ंऔर महापुरूषो ंके पास बैठने और ज्ञान चचाण सुनने की लग्न थी। उनका पेशा कसाई का था।

    आपको प्रभु के प्यारो ंका वमलाप परमात्मा की भन्धि की ओर ले गया

    भि सधना जी के ववषय में और अवधक जानने के वलए वनम्नवलन्धित वलंक पर जाएँ : https://www.youtube.com/watch?v=2KJQN0GaTHA

    https://www.youtube.com/watch?v=2KJQN0GaTHAhttps://www.youtube.com/watch?v=2KJQN0GaTHAhttps://www.youtube.com/watch?v=2KJQN0GaTHAhttps://www.youtube.com/watch?v=2KJQN0GaTHAhttps://www.youtube.com/watch?v=2KJQN0GaTHA

  • सैन : हजारो ंही ऐसे भि हैं वजन्ोनें परमात्मा का नाम जप कर भन्धि करके संसार में यश कमाया| ऐसे भिो ंमें “सैन भगत जी” का भी नाम आता है| श्री सैन जी के जन्म व पररवार के ववषय में कुछ ववशेष जानकारी प्राप्त नही ंहोती| परनु् इतना अवश्य कहा जा सकता है वक वह जावत से नाई थे|

    भि सैन जी की जीवन गाथा वनम्न वलंक पर जाकर देिें :

    https://www.youtube.com/watch?v=YG3jj6_rpVc

    https://www.youtube.com/watch?v=YG3jj6_rpVchttps://www.youtube.com/watch?v=YG3jj6_rpVchttps://www.youtube.com/watch?v=YG3jj6_rpVchttps://www.youtube.com/watch?v=YG3jj6_rpVchttps://www.youtube.com/watch?v=YG3jj6_rpVchttps://www.youtube.com/watch?v=YG3jj6_rpVc

  • कवठन शब्ो ंके अथण

    ऐसी (ऐसा महान कायण) लाल (ईश्वर) तुझ वबनु ( तुम्हारे अवतररि) कउनु (कौन)करै (कर सकता है)। गरीब वनवाजु (गरीबो ंपर कृपा करने वाला) गुसाईआ (गोसाईं/ ईश्वर) मेरा माथै (माथे पर)छिु (छि : जैसा राजाओ ंके सर पर होता है) धरै (धारण करवा देता है) ॥ जाकी (वजसकी) छोवत (छुआछूत) जगत (संसार) कउ (को) लागै (लगती है) ता पर (उन पर) तुही ं(तुम ही ) ढरै (पे्रम प्रकट करते है)। नीचउ (वनम्न कुल में जन्म लेने वाले व्यन्धि को) ऊच (ऊँचा) करै (बना देता है) मेरा गोवबंदु (मेरा ईश्वर) काहू ते (वकसी से भी) न डरै (नही ंडरता है)॥ नामदेव कबीरू वतलोचनु सधना सैनु तरै (तर गए/ मोक्ष प्राप्त कर वलया)। कवह (कहते हैं) रववदासु (रैदास कवव) सुनहु रे (ध्यान पूवणक सुनो)संतहु (संतो/ सज्जनो)ंहररजीउ (भगवान) ते (से/ के वलए) सभै (सब कुछ) सरै (संभव है) ॥

  • • प्रसु्तत पद में ईश्वर के कृपालु तथा समदशी स्वभाव का वणणन करते हुए रैदास जी कहते

    हैं वक ईश्वर के वबना ऐसा कोई कृपालु है जो भि के वलए इतना बडा कायण कर सकता

    है। वे गरीब तथा दीन-दुन्धियो ंपर दया करने वाले हो । प्रभु ही ऐसे कृपालु स्वामी हैं जो

    अपने वनम्न कुल में जन्में भिो ंके माथे पर राजाओ ंजैसा छि रि देते हैं अथाणत सम्मान

    व गौरव वदलवाते हैं| सारा संसार वजन्ें असृ्पश्य (अछूत) मान कर उनके प्रवत भेद-भाव

    पूणण व्यवहार करता है तुम उन पर अपना पे्रम उड़ेल देते हो| वबना वकसी से डरे वनम्न

    कुल में जने्म व्यन्धि को समाज में सम्मान वदलाने का सामर्थ्ण केवल ईश्वर में ही है|

    उनकी दया से नामदेव, कबीर, विलोचन, सधना तथा सैन जैसे भि कवव वनम्न कुल में

    जन्म लेने के बाद भी तर गए। रैदास कवव संत जनो ंको संबोवधत करते हुए कहते हैं हरर

    जी सब कुछ करने में समथण हैं। उनके वलए कुछ भी असंभव नही|ं

  • काव्यगत सौन्दयण • रैदास ने अपनी काव्य-रचनाओ ंमें सरल, व्यावहाररक ब्रजभाषा का प्रयोग वकया है, वजसमें अवधी, राजस्थानी, िड़ी बोली और उदूण-फारसी के शब्ो ंका भी वमश्रण है।

    • इनकी भन्धि में आत्मवनवेदन, दैन्य भाव व दास्य भाव और सहज भन्धि भाव है|

    • रूपक अलंकार का सुन्दर प्रयोग वकया गया है|

    • अनेक उद्धरणदेते हुए कवव ने ईश्वर के प्रवत अपनी अनन्य व एकवनष्ठ भन्धि भावना को प्रकट वकया है|

    • तुकांतता के कारण पद में गेयता का गुण ववद्यमान है|

  • अवधन्यास • रैदास के पद पाठ के आधार पर वनम्नवलन्धित प्रश्ो ंके उत्तर अपनी उत्तर-पुन्धस्तका में वलिें-

    • प्रश् 1. दोनो ंपदो ंके प्रवतपाद्य वलन्धिए|

    • प्रश् 2.

    • क) पहले पद में भगवान और भि की वजन-वजन चीज़ो ंसे तुलना की गई है, उनका उले्लि कीवजए।

    • (ि) पहले पद की प्रते्यक पंन्धि के अंत में तुकांत शब्ो ंके प्रयोग से नाद-सौदंयण आ गया है, जैसे: पानी, समानी आवद। इस पद में से अन्य तुकांत शब् छाँटकर वलन्धिए।

    • (ग) पहले पद में कुछ शब् अथण की दृवि से परस्पर संबद्ध हैं। ऐसे शब्ो ंको छाँटकर वलन्धिए:

    • उदाहरण: दीपक बाती ……………. ………….. ……………. ………….. ……………. ………….. ……………. …………..

    • (घ) दूसरे पद में कवव ने ‘गरीब वनवाजु’ वकसे कहा है? स्पि कीवजए। • (ङ) दूसरे पद की ‘जाकी छोवत जगत कउ लागै ता पर तुही ंढरै’ इस पंन्धि का आशय स्पि कीवजए।

    • (च) ‘रैदास’ ने अपने स्वामी को वकन-वकन नामो ंसे पुकारा है?