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गुǽ×व काया[लय Ʈारा Ĥèतुत मािसक -पǒğका िसतàबर-2010 NON PROFIT PUBLICATION Font Help >> http://gurutvajyotish.blogspot.com

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  • गु व कायालय ारा तुत मािसक ई-प का

    िसत बर-2010

    NON PROFIT PUBLICATION

    Font Help >> http://gurutvajyotish.blogspot.com

  • 2 िसत बर 2010

    Font Help >> FREE

    E CIRCULAR गु व योितष प का संपादक

    िचंतन जोशी संपक गु व योितष वभाग गु व कायालय 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA फोन 91+9338213418, 91+9238328785, ईमेल

    [email protected], [email protected],

    वेब http://gk.yolasite.com/ http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/

    प का तुित िचंतन जोशी, व तक.ऎन.जोशी फोटो ा फ स िचंतन जोशी, व तक आट हमारे मु य सहयोगी व तक.ऎन.जोशी

    ( व तक सो टेक इ डया िल)

    य आ मय बंधु/ ब हन

    जय गु देव हर मनु य क कामना होती ह उसे जीवन म सभी कार के भौितक सुख साधन ा हो। य क कामनाए ं तो अंनत होती ह इसी कामनाओ ं म कई कामनाए ंजीवन क मूल आव यकताओ ंसे संबंिधत होती ह, उस कामना क पूित हेतु य दन-रात अथक प र म एव ंजीतोड मेहनत करन ेस ेपीछे नह ंहटता क तु कभी-कभी य क दन-रात क मेहनत का ई र य श के कारण अथवा अ य कारणो से उस ेपूण फल ा नह ंहो पाती ह। एसी थती म य करेतो करे या? य को ई र य कृपा एव ंचम कार क और कदम बढान े हेतु बा य होना पडता ह। ज मे य सफलता एव ंिन फलता य क वय ंक भावना पर िनभर होती ह। यो क भावनाए ह भवसागर ह जसम य क सफलता एव ंिन फलता िन हत होती ह। य द य ई र म भावना शु होग ेतो य को िन त ह पूण सफलता ा होती ह। इसी िलय ेइस क युग म शा ो वचन स ेती फल दान करन ेवाल ेभगवान गणेश और माता काली ह।

    कला च ड वनायकौ अथात:् कलयुग म च ड और वनायक क आराधना िस दायक और फलदायी होता है।

    व तंुड महाकाय सूयको ट सम भ: िन व नं कु मे देव: सवकायष ुसवदा

    हे लंबे शर र और हाथी समान मुंख वाले गणेश जी, आप करोड़ सूय के समान चमक ल ेह। कृपा कर मेरे सारे काम म आने वाली बाधाओं व नो को आप सदा दर करतेू रह। आप अपन ेजीवन म दन ित दन अपन ेउ े य क पूित हेतु अ णय हो एवं आपके सभी शुभ काय भगवान ी गणेश के आिशवाद से िन व न पूण करन ेहेतु आपको सहायक हो हमार य ह मंगल कामना ह......

    िचंतन जोशी NON PROFIT PUBLICATION

  • 3 िसत बर 2010

    वशेष लेख सव थम पूजनीय कथा 13 गणेश के क याणकार मं 19 सव थम पूजा वै दक एवं शा के मत 17 गणेश चतुथ योितष क नजर म 32

    लघु कथाएं ी 47 मू य 54

    िलखो नाम रेत और प थर पर 22

    अनु म कृ ण के मुख म ांड दशन 4 राधाकृत गणेश तो म ् 36 कृ ण मरण का मह व 5 गणेश कवचम ् 37 ी कृ ण का नामकरण सं कार 6 व णुकृतं गणेश तो म ् 38 ीकृ ण चालीसा 7 गणपित तो म ् 39 व प ीकृत ीकृ ण तो 8 ी गणेश आरित 39 ाणे र ीकृ ण मं 9 गणेशभुजंगम ् 40 ा रिचत कृ ण तो 9 ी व ने रा ो र शतनाम तो म ् 41

    ीकृ णा कम ् 10 वनायक तो 42 कृ ण के विभ न मं 11 ी िस वनायक तो म ् 43 कृ ण मं 12 िशवश कृतं गणाधीश तो म 44 गणपित पूजन म तुलसी िन ष य 18 मनोवांिछतफलो क ाि हेतु िस द गणपित तो 45 गणेश पूजन म कोन से फूल चढाए 22 गणेश पूजन से वा तु दोष िनवारण 46 गणेश ने चूर कय कुबेर का अहंकार 23 गणेश वाहन मूषक केसे बना 47 व ननाशक गणेश म 23 संक हर चतुथ त का ारंभ कब हवाु 48 एकदंत कथा गणेश 24 अमंगल ह नह मंगलकार भी है-मंगल 49 व तु ड कथा 26 गणेशजी माता ल मी के द क पु है? 50 संकटनाशन गणेश तो म ् 27 संतान गणपित तो 50 संक हरणं गणेशा कम ् 28 गणेश पुराण क म हमा 51 गणेश पं चर म ् 29 िसतंबर-२०१० मािसक पंचांग 56 गणपित अथवशीष 30 िसतंबर -२०१० मािसक त-पव- यौहार 57 गणेश तवन 31 िसत बर २०१० वशेष योग 59 गणेश चतुथ पर चं दशन िनषेध य ... 33 ह चलन िसत बर -2010 60 गणेश ादशनाम तो म ् 34 मािसक रािश फल 61 एकद त शरणागित तो म ् 35 गणेश ादशनाम तो म ् 62

  • 4 िसत बर 2010

    कृ ण के मुख म ांड दशन ज मा मी

    02-िसत बर-2010

    एक बार बलराम स हत वाल बाल खेल रह थे खेलते-खेलते यशोदा के पास पहँचेु और यशोदाजी से कहा मा!ँ कृ ण ने आज िम ट खाई ह। यशोदा ने कृ ण के हाथ को पकड़ िलया और धमकाने लगी क तुमने िम ट य खाई! यशोदा को यह भय था क कह ं िम ट खाने से कृ ण कोई रोग न लग जाए। मा ँ क डांट से कृ ण तो इतने भयभीत हो गए थे क वे माँ क ओर आँख भी नह ं उठा पा रहे थे।

    तब यशोदा ने कहा तूने एका त म िम ट य खाई! िम ट खाते हए तुजे बलराम स हत और भी वाल ुने देखा ह। कृ ण ने कहा- िम ट मने नह ं खाई ह। ये सभी लोग झुठ बोल रहे ह। य द आपको लगता ह मने िम ट खाई ह, तो वयं मेरा मुख देख ले। माँ ने कहा य द ऐसा है तो तू अपना मुख खोल। लीला करन ेके िलए बाल कृ ण ने अपना मुख माँ के सम खोल दया। यशोदा ने जब मुख के अंदर देखते ह उसम संपूण व दखाई पड़ने लगा। अंत र , दशाए,ँ प, पवत, समु ,

    पृ वी,वाय,ु व ुत, तारा स हत वगलोक, जल, अ न, वाय,ु आकाश इ या द विच संपूण व एक ह काल म दख पड़ा। इतना ह नह ,ं यशोदा ने उनके मुख म ज के साथ वयं अपने आपको भी देखा।

    इन बात से यशोदा को तरह-तरह के तक- वतक होने लगे। या म व न देख रह हूँ! या देवताओं क कोई माया ह या मेर बु ह यामोह ह या इस मेरे कृ ण का ह कोई वाभा वक भावपूण चम कार ह। अ त म उ ह ने यह ढ़ िन य कया क अव य ह इसी का चम कार है और िन य ह ई र इसके प म अवत रत हएं ह। तब उ ह ने कृ ण क तुितु क उस श व प पर को म नम कार करती हँ।ू कृ ण ने जब देखा क माता यशोदा ने मेरा त व पूणतः समझ िलया ह तब उ ह ने तुरंत पु नेहमयी अपनी श प माया बखेर द जससे यशोदा ण म ह सबकुछ भूल गई। उ ह ने कृ ण को उठाकर अपनी गोद म उठा िलया।

  • 5 िसत बर 2010

    कृ ण मरण का मह व िचंतन जोशी

    ी शुकदेवजी राजा पर त ् से कहते ह- सकृ मनः कृ णापदार व दयोिनवेिशतं त णरािगु यै रह। न ते यम ंपाशभृत त टान ् व नेऽ प प य त ह

    चीणिन कृताः॥ भावाथ: जो मनु य केवल एक बार ीकृ ण के गुण म ेम करने वाले अपने िच को ीकृ ण के चरण कमल

    म लगा देते ह, वे पाप से छूट जाते ह, फर उ ह पाश हाथ म िलए हए यमदत के दशन व नु ू म भी नह ं हो सकते।

    अ व मृितः कृ णपदार व दयोः णो यभ ण शमं तनोित च। स व य शु ं परमा मभ ं ानं च व ान वरागयु म ्॥

    भावाथ: ीकृ ण के चरण कमल का मरण सदा बना रहे तो उसी से पाप का नाश, क याण क ाि , अ तः करण क शु , परमा मा क भ और वैरा ययु ान- व ान क ाि अपने आप ह हो जाती ह।

    पुंसां किलकृता दोषा यदेशा मसंभवान ्। सवा ह रत िच थो भगवा पु षो मः॥

    भावाथ:भगवान पु षो म ीकृ ण जब िच म वराजते ह, तब उनके भाव से किलयुग के सारे पाप और य, देश तथा आ मा के दोष न हो जाते ह।

    श यासनाटनाला ीडा नाना दकमसु।

    न वदः स तमा मानं वृ णयःु कृ णचेतसः॥ भावाथ: ीकृ ण को अपना सव व समझने वाले भ ीकृ ण म इतने त मय रहते थे क सोते, बैठते, घूमते, फरते, बातचीत करते, खेलते, नान करते और भोजन आ द करते समय उ ह अपनी सुिध ह नह ं रहती थी।

    वैरेण यं नृपतयः िशशुपालपौ -

    शा वादयो गित वलास वलोकना ैः। याय त आकृतिधयः शयनासनादौ

    त सा यमापुरनुर िधया ंपुनः कम ्॥ भावाथ: जब िशशुपाल, शा व और पौ क आ द राजा वैरभाव से ह खाते, पीते, सोते, उठते, बैठते हर व ी ह र क चाल, उनक िचतवन आ द का िच तन करने के कारण मु हो गए, तो फर जनका िच ी कृ ण म अन य भाव से लग रहा है, उन वर भ के मु होने म तो संदेह ह या ह?

    एनः पूवकृतं य ाजानः कृ णवै रणः। जह व तेु तदा मानः क टः पेश कृतो यथा॥

    भावाथ: ीकृ ण से ेष करन ेवाले सम त नरपितगण अ त म ी भगवान के मरण के भाव से पूव संिचत पाप को न कर वैसे ह भगव प हो जाते हू , जैस ेपेश कृत के यान से क ड़ा त प हो जाता हैू , अतएव ीकृ ण का मरण सदा करते रहना चा हए।

    योितष संबंिधत वशेष परामश योित व ान, अंक योितष, वा तु एवं आ या मक ान स संबंिधत वषय म हमारे 28 वष से अिधक वष के

    अनुभव के साथ योितस स ेजुडे नये-नये संशोधन के आधार पर आप अपनी हर सम या के सरल समाधान ा कर कर सकते ह। गु व कायालय संपक : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785

  • 6 िसत बर 2010

    ी कृ ण का नामकरण सं कार िचंतन जोशी

    वसुदेवजी क ाथना पर यदओं केु पुरो हत महातप वी गगाचायजी ज नगर पहँचे। उ ह देखकर ुनंदबाबा अ यिधक स न हए।ु उ ह ने हाथ जोड़कर णाम कया और उ ह व णु तु य मानकर उनक विधवत पूजा क । इसके प ात नंदजी ने उनसे कहा आप कृ या मेरे इन दोन ब च का नामकरण सं कार कर द जए।

    इस पर गगाचायजी ने कहा क ऐसा करने म कुछ अड़चन ह। म यदवंिशय का पुरो हत हँु ू, य द म तु हारे इन पु का नामकरण सं कार कर दँ तो लोग ूइ ह देवक का ह पु मानने लगगे, य क कंस तो पहले से ह पापमय बु वाला ह। वह सवदा िनरथक बात ह सोचता है। दसर ओर तु हार वू वसुदेव क मै ी है।

    अब मु य बात यह ह क देवक क आठवीं संतान लड़क नह ं हो सकती य क योगमाया ने कंस से यह कहा था अरे पापी मुझे मारने से या फायदा है? वह सदैव यह सोचता है क कह ं न कह ं मुझे मारने वाला अव य उ प न हो चुका ह। य द म नामकरण सं कार करवा दँगा तो मुझे पूण आशा हू क वह मेरे ब च को मार डालेगा और हम लोग का अ यिधक अिन करेगा।

    नंदजी ने गगाचायजी से कहा य द ऐसी बात है तो कसी एका त थान म चलकर विध पूवक इनके जाित सं कार करवा द जए। इस वषय म मेरे अपने

    आदमी भी न जान सकगे। नंद क इन बात को सुनकर गगाचाय ने एका त म िछपकर ब चे का नामकरण करवा दया। नामकरण करना तो उ ह अभी ह था, इसीिलए वे आए थे।

    गगाचायजी ने वसुदेव से कहा रो हणी का यह पु गुण से अपने लोग के मन को स न करेगा। अतः इसका नाम राम होगा। इसी नाम से यह पुकारा जाएगा। इसम बल क अिधकता अिधक होगी। इसिलए इसे लोग बल भी कहगे। यदवंिशय क आपसी फूट ुिमटाकर उनम एकता को यह था पत करेगा, अतः लोग इस ेसंकषण भी कहगे। अतः इसका नाम बलराम होगा।

    अब उ ह ने यशोदा और नंद को ल य करके कहा- यह तु हारा पु येक युग म अवतार हण करता रहता ह। कभी इसका वण ेत, कभी लाल, कभी पीला होता है। पूव के येक युग म शर र धारण करते हए इसके तीन वण हो चुके ह। इस बार ुकृ णवण का हआ हैु , अतः इसका नाम कृ ण होगा। तु हारा यह पु पहले वसुदेव के यहाँ ज मा ह, अतः ीमान वासुदेव नाम से व ान लोग पुकारगे।

    तु हारे पु के नाम और प तो िगनती के परे ह, उनम से गुण और कम अनु प कुछ को म जानता हँ। दसरे लोग यह नह ं जानू ू सकते। यह तु हारे गोप गौ एवं गोकुल को आनं दत करता हआु तु हारा क याण करेगा। इसके ारा तुम भार वप य से भी मु रहोगे।

    इस पृ वी पर जो भगवान मानकर इसक भ करगे उ ह श ु भी परा जत नह ं कर सकगे। जस तरह व णु के भजने वाल को असुर नह ं परा जत कर सकते। यह तु हारा पु स दय, क ित, भाव आ द म व णु के स श होगा। अतः इसका पालन-पोषण पूण सावधानी से करना। इस कार कृ ण के वषय म आदेश देकर गगाचाय अपने आ म को चले गए।

  • 7 िसत बर 2010

    ॥ ीकृ ण चालीसा ॥ दोहा बंशी शोिभत कर मधुर, नील जलद तन याम। अ णअधरजनु ब बफल, नयनकमलअिभराम॥ पूण इ , अर व द मुख, पीता बर शुभ साज। जय मनमोहन मदन छ व, कृ णच महाराज॥ जय यदनंदनु जय जगवंदन। जय वसुदेव देवक न दन॥ जय यशुदा सुत न द दलारे।ु जय भ ुभ न के ग तारे॥ जय नट-नागर, नाग नथइया॥ कृ ण क हइया धेन ुचरइया॥ पुिन नख पर भु िग रवर धारो। आओ द नन क िनवारो॥ वंशी मधुर अधर ध र टेरौ। होव े पूण वनय यह मेरौ॥ आओ ह र पुिन माखन चाखो। आज लाज भारत क राखो॥ गोल कपोल, िचबुक अ णारे। मृदु मु कान मो हनी डारे॥ रा जत रा जव नयन वशाला। मोर मुकुट वैज तीमाला॥ कंुडल वण, पीत पट आछे। क ट कं कणी काछनी काछे॥ नील जलज सु दरतन ुसोहे। छ बल ख, सुरनर मुिनमन मोहे॥ म तक ितलक, अलक घुँघराले। आओ कृ ण बांसुर वाले॥ क र पय पान, पूतन ह तार ्यो। अका बका कागासुर मार ्यो॥ मधुवन जलतअिगन जब वाला। भैशीतललखत हं नंदलाला॥ सुरपित जब ज च यो रसाई। मूसर धार वा र वषाई॥ लगत लगत ज चहन बहायो। गोवधन नख धा र बचायो॥ ल ख यसुदा मन म अिधकाई। मुखमंह चौदह भुवन दखाई॥ दु कंस अित उधम मचायो। को ट कमल जब फूल मंगायो॥ नािथ कािलय हं तब तुम ली ह। चरण िच दै िनभय क ह॥ क र गो पन संग रास वलासा। सबक पूरण कर अिभलाषा॥

    केितक महा असुर संहार ्यो। कंस ह केस पक ड़ दै मार ्यो॥ मात- पता क ब द छुड़ाई। उ सेन कहँ राज दलाई॥ म ह से मृतक छह सुत लायो। मातु देवक शोक िमटायो॥ भौमासुर मुर दै य संहार । लाये षट दश सहसकुमार ॥ दै भीम हं तृण चीर सहारा। जरािसंधु रा स कहँ मारा॥ असुर बकासुर आ दक मार ्यो। भ न के तब क िनवार ्यो॥ द न सुदामा के दःखु टार ्यो। तंदलु तीन मूंठ मुख डार ्यो॥ ेम के साग वदरु घर माँगे। दय धनु के मेवा यागे॥

    लखी ेम क म हमा भार । ऐसे याम द न हतकार ॥ भारत के पारथ रथ हाँके। िलये च कर न हं बल थाके॥ िनज गीता के ान सुनाए। भ न दय सुधा वषाए॥ मीरा थी ऐसी मतवाली। वष पी गई बजाकर ताली॥ राना भेजा साँप पटार । शाली ाम बन े बनवार ॥ िनजमाया तुम विध हं दखायो। उर ते संशय सकल िमटायो॥ तब शत िन दा क र त काला। जीवन मु भयो िशशुपाला॥ जब हं ौपद टेर लगाई। द नानाथ लाज अब जाई॥ तुरत ह वसन बने नंदलाला। बढ़े चीर भै अ र मुँह काला॥ अस अनाथ के नाथ क हइया। डूबत भंवर बचावइ नइया॥ 'सु दरदास' आस उर धार । दया क ज ै बनवार ॥ नाथ सकल मम कुमित िनवारो। महु बेिग अपराध हमारो॥ खोलो पट अब दशनद जै। बोलो कृ ण क हइया क जै॥ दोहा यह चालीसा कृ ण का, पाठ करै उर धा र। अ िस नविनिध फल, लहै पदारथ चा र॥

  • 8 िसत बर 2010

    व प ीकृत ीकृ ण तो व प य ऊचुः वं परमं धाम िनर हो िनरहंकृितः।

    िनगुण िनराकारः साकारः सगुणः वयम ् ॥१॥ सा प िनिल ः परमा मा िनराकृितः। कृितः पु ष वं च कारण ं च तयोः परम ् ॥२॥

    सृ थ यंत वषये ये च देवा यः मृताः। ते वदंशाः सवबीजा - व णु-महे राः ॥३॥ य य लो ना ं च ववरे चाऽ खल ं व मी रः। महा वरा महा व णु तं त य जनको वभो ॥४॥ तेज व ं चाऽ प तेज वी ानं ानी च त परः। वेदेऽिनवचनीय व ं क वा ं तोतुिमहे रः ॥५॥ महदा दसृ सू ं पंचत मा मेव च। बीज ं वं सवश ना ं सवश व पकः ॥६॥ सवश रः सवः सवश या यः सदा। वमनीहः वयं योितः सवान दः सनातनः ॥७॥

    अहो आकारह न वं सव व हवान प। सव याणां वषय जानािस ने यी भवान ् ।८॥ सर वती जड भूता यत ् तो े य न पणे। जड भूतो महेश शेषो धम विधः वयम ् ॥९॥ पावती कमला राधा सा व ी देवसूर प। ॥११॥ इित पेतु ता व प य त चरणा बुजे। अभयं ददौ ता यः स नवदने णः ॥१२॥ व प ीकृतं तो ंपूजाकाल ेच यः पठेत ्। स गितं व प ीना ंलभते नाऽ संशयः ॥१३॥ ॥ इित ी वैवत व प ीकृतं कृ ण तो ंसमा म ्॥

    इस ीकृ ण तो का िनयिमत पाठ करने से भगवान ् ीकृ ण अपने भ पर िनःस देह स न होते है। यह तो य अभय को दान करने वाला ह।

  • 9 िसत बर 2010

    ा रिचत कृ ण तो ोवाच :

    र र हरे मां च िनम नं कामसागरे। द क ितजलपूु ण च द पारेु बहसंकटेु ॥१॥ भ व मृितबीजे च वप सोपानद तरे।ु अतीव िनमल ानच ुः- छ नकारणे ॥२॥ ज मोिम-संगस हते यो ष न ाघसंकुले। रित ोतःसमायु े ग भीरे घोर एव च ॥३॥ थमासृत पे च प रणाम वषालये।

    यमालय वेशाय मु ाराित व तृतौ ॥४॥ बु या तर या व ानै रा मानतः वयम ्। वयं च व कणधारः सीद मधुसूदन ॥५॥

    म धाः कितिच नाथ िनयो या भवकम ण। स त व ेश वधयो हे व े र माधव ॥६॥ न कम े मेवेद लोकोऽयमी सतः। तथाऽ प न पृहा कामे व यवधायके ॥७॥ हे नाथ क णािस धो द नब धो कृपां कु । व ं महेश महा ाता दः व नंु मां न दशय ॥८॥

    इ यु वा जगतां धाता वरराम सनातनः। याय ं यायं म पदा जं श त ्स मार मािमित ॥९॥ णा च कृतं तो ं भ यु यः पठेत ्।

    स चैवाकम वषये न िनम नो भवे ुवम ् ॥१०॥ मम मायां विन ज य स ानं लभते ुवम ्। इह लोके भ यु ो म वरो भवेत ् ॥११॥ ॥ इित ी देवकृत ंकृ ण तो ं स पूणम ्॥

    ाणे र ीकृ ण मं मं :-

    "ॐ ऐं ीं लीं ाण व लभाय सौः सौभा यदाय ीकृ णाय वाहा।"

    विनयोगः- ॐ अ य ी ाणे र ीकृ ण मं य भगवान ्ीवेद यास ऋ षः,

    गाय ी छंदः-, ीकृ ण-परमा मा देवता, ली ंबीज,ं ीं श ः, ऐ ंक लकं, ॐ यापकः, मम सम त- लशे-प रहाथ, चतुवग- ा य,े सौभा य वृ यथ च जप े विनयोगः। ऋ या द यासः- ीवेद यास ऋषये नमः िशरिस, गाय ी छंदस ेनमः मुख,े ीकृ ण परमा मा देवताय ैनमः द, लीं बीजाय नमः गु ,े ी ंश ये नमः नाभौ, ऐ ंक लकाय नमः पादयो, ॐ यापकाय नमः सवा ग,े मम सम त लेश प रहाथ, चतुवग ा य,े सौभा य वृ यथ च जप े विनयोगाय नमः अंजलौ।

    कर- यासः- ॐ ऐं ी ं ली ं अंगु ा या ं नमः ाणव लभाय तजनी या ं वाहा, सौः म यमा या ं वष , सौभा यदाय अनािमका या ं हुं ीकृ णाय किन का या ं वौष , वाहा करतलकरपृ ा या ंफ । अंग- यासः- ॐ ऐं ी ं ली ं दयाय नमः, ाण व लभाय िशरस ेवाहा, सौः िशखायै वष , सौभा यदाय िशखायै कवचाय हुं, ीकृ णाय ने - याय वौष , वाहा अ ाय फ । यानः- "कृ णं जग मपहन- प-वण, वलो य ल जाऽऽकुिलता ंमरा याम।्

    मधूक-माला-युत-कृ ण-देहं, वलो य चािलं य ह रं मर तीम।।् "

    भावाथ: संसार को मु ध करन ेवाले भगवान ्कृ ण के प-रंग को देखकर ेम पूण होकर गो पया ँल जापूवक याकुल होती ह और मन-ह -मन ह र को मरण करती हईु भगवान ्कृ ण क मधूक-पु प क माला से वभु षत देह का आिलंगन करती ह। इस मं का विध- वधान से १,००,००० जाप करन े का वधान ह।

  • 10 िसत बर 2010

    ीकृ णा कम ् पाव युवाच- कैलासिशखरे र ये गौर पृ छित शंकरम ्।

    ा डा खलनाथ वं सृ संहारकारकः॥१॥ वमेव पू यसेलौकै व णुसुरा दिभः।

    िन यं पठिस देवेश क य तो ं महे रः॥२॥ आ यिमदम य तं जायते मम शंकर। त ाणेश महा ा संशयं िछ ध शंकर॥३॥ ी महादेव उवाच-

    ध यािस कृतपु यािस पावित ाणव लभे। रह याितरह यं च य पृ छिस वरानने॥४॥ ी वभावा महादे व पुन वं प रपृ छिस।

    गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं य तः॥५॥ द े च िस हािनः या मा ेन गोपयेत ्। इदं रह यं परमं पु षाथ दायकम ्॥६॥ धनर ौघमा ण यं तुरंग ं गजा दकम ्। ददाित मरणादेव महामो दायकम ्॥७॥ त ेऽहं सं व यािम ृणु वाव हता ये। योऽसौ िनरंजनो देव व पी जनादनः॥८॥ संसारसागरो ारकारणाय सदा नृणाम ्। ीरंगा दक पेण ैलो यं या य ित ित॥९॥

    ततो लोका महामूढा व णुभ वव जताः। िन यं नािधग छ त पुननारायणो ह रः॥१०॥ िनरंजनो िनराकारो भ ानां ीितकामदः। वृदावन वहाराय गोपालं पमु हन ्॥११॥

    मुरलीवादनाधार राधायै ीितमावहन ्। अंशांशे यः समु मी य पूण पकलायुतः॥१२॥ ीकृ णच ो भगवा न दगोपवरो तः।

    ध रणी पणी माता यशोदान ददाियनी॥१३॥ ा यां ायािचतो नाथो देव यां वसुदेवतः। णाऽ यिथतो देवो देवैर प सुरे र॥१४॥

    जातोऽव यां मुकु दोऽ प मुरलीवेदरेिचका। तयासा वचःकृ वा ततो जातो मह तले॥१५॥ संसारसारसव वं यामलं महद वलमु ्। एत योितरहं वे ं िच तयािम सनातनम ्॥१६॥ गौरतेजो बना य तु यामतैजः समचयेत ्। जपे ा यायते वा प स भवे पातक िशवे॥१७॥ स हासुरापी च वण तेयी च पंचमः। एतैद षै विल ये तेजोभेदा महे र।१८॥ त मा योितरभू ेधा राधामाधव पकम ्। त मा ददं महादे व गोपालेनैव भा षतम ्॥१९॥ दवाससोु मुनेम हे काित यां रासम डले। ततः पृ वती राधा स देहं भेदमा मनः॥२०॥ िनरंजना समु प नं मयाऽधीतं जग मिय। ीकृ णेन ततः ो ं राधायै नारदाय च॥२१॥

    ततो नारदतः सव वरला वै णवा तथा। कलौ जान त देवेिश गोपनीयं य तः॥२२॥ शठाय कृपणायाथ दा भकाय सुरे र।

    ह यामवा नोित त मा ेन गोपयेत ्॥२३॥

    भा य ल मी द बी सुख-शा त-समृ क ाि के िलय ेभा य ल मी द बी :- ज स ेधन ि , ववाह योग, यापार वृ , वशीकरण, कोट कचेर के काय, भूत ेत बाधा, मारण, स मोहन, ता क बाधा, श ुभय, चोर भय जेसी अनेक परेशािनयो स ेर ा होित है और घर मे सुख समृ क ाि होित है, भा य ल मी द बी मे लघु ी फ़ल, ह तजोड (हाथा जोड ), िसयार िस गी, ब ल नाल, शंख, काली-सफ़ेद-लाल गुंजा, इ जाल, माय जाल, पाताल तुमड जेसी अनेक दलभु साम ी होती है।

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  • 11 िसत बर 2010

    कृ ण के विभ न मं मूल मं :

    कंृ कृ णाय नमः यह भगवान कृ ण का मूलमं ह। इस मूल मं के िनयिमत जाप करने से य को जीवन म सभी बाधाओं एवं क स ेमु िमलती ह एवं सुख क ाि होती ह। स दशा र मं :

    ॐ ीं नमः ीकृ णाय प रपूणतमाय वाहा यह भगवान कृ ण का स रा अ र का ह। इस मूल मं के िनयिमत जाप करने से य को मं िस हो जाने के प यात उसे जीवन म सबकुछ ा होता ह। स ा र मं :

    गोव लभाय वाहा इस सात अ र वाल े मं के िनयिमत जाप करने से जीवन म सभी िस यां ा होती ह। अ ा र मं :

    गोकुल नाथाय नमः इस आठ अ र वाले मं के िनयिमत जाप करने से य क सभी इ छाएँ एवं अिभलाषाए पूण होती ह। दशा र मं :

    ली ं ल लीं यामलांगाय नमः इस दशा र मं के िनयिमत जाप करने से संपूण िस य क ाि होती ह। ादशा र मं :

    ॐ नमो भगवते ीगो व दाय इस कृ ण ादशा र मं के िनयिमत जाप करने से इ िस क ाि होती ह।

    तेईस अ र मं : ॐ ीं ं लीं ीकृ णाय गो वंदाय

    गोपीजन व लभाय ीं ीं ी यह तेईस अ र मं के िनयिमत जाप करने से य क सभी बाधाएँ वतः समा हो जाती ह। अ ठाईस अ र मं :

    ॐ नमो भगवते न दपु ाय आन दवपुषे गोपीजनव लभाय वाहा

    यह अ ठाईस अ र मं के िनयिमत जाप करने से य को सम त अिभ व तुओ ं क ाि होती ह। उ तीस अ र मं :

    लीलादंड गोपीजनसंस दोद ड बाल प मेघ याम भगवन व णो वाहा।

    यह उ तीस अ र मं के िनयिमत जाप करने से थर ल मी क ाि होती है। ब ीस अ र मं :

    न दपु ाय यामलांगाय बालवपुष ेकृ णाय गो व दाय गोपीजनव लभाय वाहा।

    यह ब ीस अ र मं के िनयिमत जाप करने से य क सम त मनोकामनाए ँपूण होती ह। ततीस अ र मं :

    ॐ कृ ण कृ ण महाकृ ण सव व ं सीद मे। रमारमण व ेश व ामाशु य छ मे॥

    यह ततीस अ र के िनयिमत जाप करन े से सम त कार क व ाएं िनःसंदेह ा होती ह।

    यह ीकृ ण के ती भावशाली मं ह। इन मं के िनयिमत जाप से य के जीवन म सुख, समृ एवं सौभा य क ाि होती ह।

  • 12 िसत बर 2010

    कृ ण मं भगवान ी कृ ण से संबंधी मं तो शा म भरे पडे ह। ले कन जन साधारण म कुछ खास मं का ह चलन और अ यािधक मह व ह।

    ॐ कृ णाय वासुदेवाय हरये परमा मने। णतः लेशनाशाय गो वंदाय नमो नमः॥

    इस मं को िनयिमत नान इ या द से िनवृत होकर व छ कपडे पहन कर 108 बार जाप करने से य के

    जीवन म कसी भी कार के संकट नह ं आते।

    ॐ नमः भगवते वासुदेवाय कृ णाय लेशनाशाय गो वंदाय नमो नमः। इस मं को िनयिमत नान इ या द से िनवृत होकर व छ कपडे पहन कर 108 बार जाप करने से आक मक संकट से मु िमलित ह।

    हरे कृ ण हरे कृ ण, कृ ण-कृ ण हरे हरे। हरे राम हरे राम, राम-राम हरे हरे।

    इस मं को िनयिमत नान इ या द से िनवृत होकर व छ कपडे पहन कर 108 बार जाप करने से य को जीवन मे सम त भौितक सुखो एवं मो ाि होती ह।

    पित-प ी म कलह िनवारण हेतु य द प रवार म सुख-सु वधा के सम त साधान होते हएु भी छोट -छोट बातो म पित-प ी के बच मे कलह होता रहता ह, तो घर के जतने सद य हो उन सबके नाम से गु व कायालत ारा शा ो विध- वधान से मं िस ाण- ित त पूण चैत य यु वशीकरण कवच एव ंगृह कलह नाशक ड बी बनवाले एवं उसे अपने घर म बना कसी पूजा, विध- वधान से आप वशेष लाभ ा कर सकते ह। य द आप मं िस पित वशीकरण या प ी वशीकरण एवं गृह कलह नाशक ड बी बनवाना चाहते ह, तो संपक आप कर सकते ह।

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  • 13 िसत बर 2010

    सव थम पूजनीय कथा िचंतन जोशी

    भारतीय सं कृित म येक शुभकाय करन ेके पूव भगवान ी गणेश जी क पूजा क जाती ह इसी िलये य ेकसी भी काय का शुभारंभ करन ेस ेपूव काय का " ी गणेश करना" कहा जाता ह। एवं यक शुभ काय या अनु ान करन े के पूव ‘‘ ी गणेशाय नमः” का उ चारण कया जाता ह। गणेश को सम त िस य को देन े वाला माना गया है। सार िस या ँगणेश म वास करती ह।

    इसके पीछे मु य कारण ह क भगवान ी गणेश सम त व न को टालन े वाल े ह, दया एवं कृपा के अित सुंदर महासागर ह, एवं तीनो लोक के क याण हेतु भगवान गणपित सब कार स ेयो य ह। सम त व न बाधाओ ं

    को दरू करन े वाल े गणेश वनायक ह। गणेशजी व ा-बु के अथाह सागर एवं वधाता ह।

    भगवान गणेश को सव थम पूजे जाने के वषय म कुछ वशेष लोक कथा चिलत ह। इन वशेष एवं लोक य कथाओं का वणन यहा कर रह ह।

    इस के संदभ म एक कथा है क मह ष वेद यास ने महाभारत को स ेबोलकर िलखवाया था, जस े वय ंगणेशजी ने िलखा था। अ य कोई भी इस ंथ को ती ता से िलखन ेम समथ नह ं

    था।

    सव थम कौन पूजनीय हो? कथा इस कार ह : तीनो लोक म सव थम कौन पूजनीय हो?, इस बात को लेकर सम त देवताओ ंम ववाद खडा हो गया। जब इस ववादने बडा प धारण कर िलय ेतब सभी देवता अपन-ेअपन ेबल बु अ के बल पर दाव े तुत करन े लगे। कोई पर णाम नह ं आता देख सब देवताओ ंने िनणय िलया क चलकर भगवान ी व ण ु को िनणायक बना कर उनस े फैसला करवाया जाय।

    सभी देव गण व णु लोक म ेउप थत हो गय,े भगवान व णु ने इस मु े को गंभीर होते देख ी व णु ने सभी देवताओ ंको अपन ेसाथ लेकर िशवलोक म पहचु गये। िशवजी ने कहा इसका सह िनदान सृ कता

    ाजी ह बताएंगे। िशवजी ी व णु एवं अ य देवताओ ं के साथ िमलकर

    लोक पहचु और ाजी को सार बाते व तार स ेबताकर उनस े फैसला करन े का अनुरोध कया। ाजी ने कहा थम पूजनीय वह ं होगा जो जो पूरे ा ड के तीन च कर लगाकर सव थम लौटेगा।

    सम त देवता ा ड का च कर लगान े के िलए अपन े अपन े वाहन पर सवार होकर िनकल पड़े। ले कन, गणेशजी का वाहन मूषक था। भला मूषक

    मं िस प ना गणेश भगवान ी गणेश बु और िश ा के कारक ह बुध के अिधपित देवता ह। प ना गणेश बुध के सकारा मक भाव को बठाता ह एवं नकारा मक भाव को कम करता ह।. प न

    गणेश के भाव से यापार और धन म वृ म वृ होती ह। ब चो क पढाई हेतु भी वशेष फल द ह प ना गणेश इस के भाव से ब चे क बु कूशा होकर उसके आ म व ास म भी वशेष वृ होती ह। मानिसक अशांित को कम करने म मदद करता ह, य ारा अवशो षत हर व करण शांती दान करती ह, य के शार र के तं को िनयं त करती ह। जगर, फेफड़े, जीभ, म त क और तं का तं इ या द रोग म सहायक होते ह। क मती प थर मरगज के बने होते ह।

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  • 14 िसत बर 2010

    पर सवार हो गणेश कैस े ा ड के तीन च कर लगाकर सव थम लौटकर सफल होते। ले कन गणपित परम व ा-बु मान एवं चतुर थे। गणपित ने अपन ेवाहन मूषक पर सवार हो कर अपन ेमाता- पत क तीन द णा पूर क और जा पहँचेु िनणायक

    ाजी के पास। ाजी ने जब पूछा क वे य नह ं गए ा ड के च कर पूरे करन,े तो गजाननजी ने जवाब दया क

    माता- पत म तीन लोक, सम त ा ड, सम त तीथ, सम त देव और सम त पु य व मान होते ह।

    अतः जब मन ेअपन ेमाता- पत क प र मा पूर कर ली, तो इसका ता पय है क मने पूरे ा ड क द णा पूर कर ली। उनक यह

    तकसंगत यु वीकार कर ली गई और इस तरह वे सभी लोक म सवमा य 'सव थम पू य' माने गए।

    िलंगपुराण के अनुसार (105। 15-27) – एक बार असुर से त देवतागण ारा क गई ाथना से भगवान िशव ने सुर-समुदाय को अिभ वर देकर आ त कया। कुछ ह समय के प ात तीनो लोक के देवािधदेव महादेव भगवान िशव का माता पावती के स मुख पर व प

    गणेश जी का ाक य हआ।ु सव व नेश मोदक य गणपितजी का जातकमा द सं कार के प ात ्भगवान िशव ने अपन े पु को उसका कत य समझाते हएु आशीवाद दया क जो तु हार पूजा कये बना पूजा पाठ, अनु ान इ या द शुभ कम का अनु ान करेगा, उसका

    मंगल भी अमंगल म प रणत हो जायेगा। जो लोग फल क कामना से ा, व णु, इ अथवा अ य देवताओं क भी पूजा करगे, क तु तु हार पूजा नह ं करग,े उ ह तुम व न ारा बाधा पहँचाओगे।ु ज म क कथा भी बड़ रोचक है। गणेशजी क पौरा णक कथा

    भगवान िशव क अन उप थित म माता पावती ने वचार कया क उनका वयं का एक सेवक होना चा हय,े जो परम शुभ, कायकुशल तथा उनक आ ा का

    सतत पालन करने म कभी वचिलत न हो। इस कार सोचकर माता पावती न अपन ेमंगलमय पावनतम शर र के मैल से अपनी माया श से बाल गणेश को उ प न कया।

    एक समय जब माता पावती मानसरोवर म नान कर रह थी तब उ ह न े नान थल पर कोई आ न सके इस हेतु अपनी माया से गणेश को ज म देकर 'बाल गणेश' को पहरा देने के िलए िनयु कर दया।

    इसी दौरान भगवान िशव उधर आ जाते ह। गणेशजी िशवजी को रोक कर कहते ह क आप उधर नह ं जा सकते ह। यह सुनकर भगवान िशव ोिधत हो जाते ह और गणेश जी को

    रा ते से हटने का कहते ह कंतु गणेश जी अड़े रहते ह तब दोन म यु हो जाता है। यु के दौरान ोिधत होकर िशवजी बाल गणेश का िसर धड़ से अलग कर देते ह। िशव के इस कृ य का जब पावती को पता चलता है तो वे वलाप और ोध से लय का सृजन करते हए कहती है क तुमने मेरेु पु को मार डाला।

    मं िस मंूगा गणेश मूंगा गणेश को व ने र और िस वनायक के प म जाना जाता ह। इस के पूजन स े जीवन म सुख सौभा य म वृ होती ह। र संचार को संतुिलत करता ह। म त क को ती ता दान कर य को चतुर बनाता ह। बार-बार होन ेवाले गभपात स ेबचाव होता ह। मूंगा गणेश से बुखार, नपुंसकता , स नपात और चेचक जेस े रोग म लाभ ा होता ह।

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  • 15 िसत बर 2010

    पावतीजी के दःखु को देखकर िशवजी ने उप थत गणको आदेश देते हवेु कहा सबस ेपहला जीव िमल,े उसका िसर काटकर इस बालक के धड़ पर लगा दो, तो यह बालक जी वत हो उठेगा। सेवको को सबस ेपहल ेहाथी का एक ब चा िमला। उ ह न ेउसका िसर लाकर बालक के धड़ पर लगा दया, बालक जी वत हो उठा।

    उस अवसर पर तीनो देवताओ ंने उ ह सभी लोक म अ पू यता का वर दान कया और उ ह सव अ य पद पर वराजमान कया। कंद पुराण

    वैवतपुराण के अनुसार (गणपितख ड) – िशव-पावती के ववाह होने के बाद उनक कोई

    संतान नह ं हईु , तो िशवजी ने पावतीजी से भगवान व णु के शुभफल द ‘पु यक’ त करने को कहा पावती के ‘पु यक’ त स े भगवान व ण ु ने स न हो कर पावतीजी को पु ाि का वरदान दया। ‘पु यक’ त के भाव स ेपावतीजी को एक पु उ प न हवा।ु

    पु ज म क बात सुन कर सभी देव, ऋ ष, गंधव आ द सब गण बालक के दशन हेतु पधारे। इन देव गणो म शिन महाराज भी उप थत हवे।ु क तु शिनदेव ने प ी ारा दये गये शाप के कारण बालक का दशन नह ं कया। पर तु माता पावती के बार-बार कहने पर शिनदेव न जेस े ह अपनी िशश ु बालके उपर पड , उसी ण बालक गणेश का गदन धड़ से अलग हो गया। माता पावती के वलप करन े पर भगवान ् व ण ुपु पभ ा नद के अर य से एक गजिशश ुका म तक काटकर लाये और गणेशजी के म तक पर लगा दया। गजमुख लगे होन े के कारण कोई गणेश क उपे ा न करे इस िलय ेभगवान व णु अ य

    देवताओ ंके साथ म तय कय क गणेश सभी मांगलीक काय म अ णीय पूज ेजायग ेएवं उनके पूजन के बना कोई भी देवता पूजा हण नह ंकरगे।

    इस पर भगवान ् व ण ु ने े तम उपहार स ेभगवान गजानन क पूजा क और वरदान दया क

    सवा ेतव पूजा च मया द ा सुरो म। सवपू य योगी ो भव व से युवाच तम।।्

    (गणपितखं. 13। 2) भावाथ: ‘सुर े ! मने सबस े पहले तु हार पूजा क है, अतः व स! तुम सवपू य तथा योगी हो जाओ।’

    वैवत पुराण म ह एक अ य संगा तगत पु व सला पावती ने गणेश म हमा का बखान करते हएु परशुराम से

    कहा – व धं ल को टं च ह तंु श ो

    गणे रः। जते याणा ं वरो न ह ह त च म काम।।्

    तेजसा कृ णतु योऽयं कृ णां गणे रः। देवा ा य ेकृ णकलाः पूजा य

    पुरत ततः।। ( वैवतप.ु, गणपितख., 44। 26-27) भावाथ: जते य पु ष म े गणेश तुमम जैस े लाख -करोड़ ज तुओ ंको मार डालन ेक श है; पर तु तुमने म खी पर भी हाथ नह ं उठाया। ीकृ ण के अंश से उ प न हआ वह गणेश तेज म ीकृ ण के ह ुसमान है। अ य देवता ीकृ ण क कलाएँ ह। इसीसे इसक अ पूजा होती है। शा ीय मतस े

    शा ोम पंचदेव क उपासना करन ेका वधान ह।

    मं िस यापार वृ कवच

    यापार वृ कवच यापार के शी उ नित के िलए उ म ह। चाह कोई भी यापार हो अगर उसम लाभ के थान पर बार-बार हािन हो रह ह। कसी कार से यापार म बार-बार बांधा उ प न हो रह हो! तो संपूण ाण ित त मं िस पूण चैत य यु यापात वृ यं को यपार थान या घर म था पत करन ेसे शी ह यापार वृ एवं िनत तर लाभ ा होता ह।

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  • 16 िसत बर 2010

    आ द यं गणनाथं च देवी ं ं च केशवम।् पंचदैवतिम यु ं सवकमसु पूजयेत।।्

    (श दक प मु) भावाथ: - पंचदेव क उपासना का ांड के पंचभूत के साथ संबंध है। पंचभूत पृ वी, जल, तेज, वायु और आकाश से बनते ह। और पंचभूत के आिधप य के कारण से आ द य, गणनाथ(गणेश), देवी, और केशव ये पंचदेव भी पूजनीय ह। हर एक त व का हर एक देवता वामी ह-

    आकाश यािधपो व णुर ने ैव महे र । वायोः सूयः तेर शो जीवन य गणािधपः।।

    भावाथ:- म इस कार ह महाभूत अिधपित 1. ित (पृ वी) िशव 2. अप ्(जल) गणेश 3. तेज (अ न) श (महे र ) 4. म त ्(वाय)ु सूय (अ न) 5. योम (आकाश) व ण ु

    भगवान ् ीिशव पृ वी त व के अिधपित होने के कारण उनक िशविलंग के प म पािथव-पूजा का वधान ह। भगवान व णु के आकाश त व के अिधपित होने के ्कारण उनक श द ारा तुित करने का वधान ह। भगवती देवी के अ न त व का अिधपित होने के कारण उनका अ नकु ड म हवना द के ारा पूजा करने का वधान ह। ीगणेश के जलत व के अिधपित होने के कारण उनक सव थम पूजा करने का वधान ह, य क

    ांद म सव थम उ प न होने वाले जीव त व ‘जल’ का अिधपित होने के कारण गणेशजी ह थम पू य के अिधकार होते ह। आचाय मनु का कथन है-

    “अप एच ससजादौ तासु बीजमवासृजत।्” (मनु मृित 1)

    भावाथ: इस माण से सृ के आ द म एकमा वतमान जल का अिधपित गणेश ह।

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  • 17 िसत बर 2010

    सव थम पूजा वै दक एव ंशा के मत

    िचंतन जोशी गणपित श द का अथ ह।

    गण(समूह)+पित ( वामी) = समूह के वामी को सेनापित अथात गणपित कहते ह। मानव शर र म पाँच ाने या,ँ पाँच कम याँ और चार अ तःकरण होते ह।

    एवं इस श ओं को जो श यां संचािलत करती ह उ ह ं को चौदह देवता कहते ह। इन सभी देवताओं के मूल ेरक ह भगवान ीगणेश।

    भगवान गणपित श द अथात ओंकार के तीक ह् , इनक मह व का यह ह ं मु य कारण ह।

    ीगणप यथवशीष म व णत ह ओंकार का ह य व प गणपित देवता ह। इसी कारण सभी कार के शुभ मांगिलक काय और देवता- ित ापनाओ ं म भगवान गणपित क थम पूजा क जाती ह। जस कार से येक मं क श को बढाने के िलये मं के

    आग ॐ (ओम)् आव यक लगा होता ह। उसी कार येक शुभ मांगिलक काय के िलये पर भगवान ्

    गणपित क पूजा एवं मरण अिनवाय मानी गई ह। इस सभी शा एवं वै दक धम, स दाय ने इस ाचीन पर परा को एक मत से वीकार कया ह इसका सद य से भगवान गणेश जी क थम पूजन करने क परंपरा का अनुसरण करते चले आरहे ह।

    गणेश जी क ह पूजा सबसे पहल े य होती है, इसक पौरा णक कथा इस कार है - प पुराण के अनुसार (सृ ख ड 61। 1 से 63। 11) – एक दन यासजी के िश य ने अपने गु देव को णाम

    करके कया क गु देव! आप मुझे देवताओं के पूजन का सुिन त म बतलाइये। ित दन क पूजा म सबसे पहले कसका पूजन करना चा हये ?

    तब यासजी ने कहा: व न को दर करने के ूिलये सव थम गणेशजी क पूजा करनी चा हये। पूवकाल म पावती देवी को देवताओं ने अमृत से तैयार कया हआ ुएक द य मोदक दया। मोदक देखकर दोन बालक ( क द तथा गणेश) माता से माँगने लगे। तब माता ने मोदक के भाव का वणन करते हए कहा क तुम दोनो ुम से जो धमाचरण के ारा े ता ा करके आयेगा, उसी को म यह मोदक दँगी।ू माता क ऐसी बात सुनकर क द मयूर पर आ ढ़ हो कर अ प मुहतभर म सब ू

    तीथ क नान कर िलया। इधर ल बोदरधार गणेशजी माता- पता क प र मा करके पताजी के स मुख खड़े हो गये। तब पावतीजी ने कहा- सम त तीथ म कया हआ नानु , स पूण देवताओं को कया हआ नम कारु , सब य का अनु ान तथा सब कार के त, म , योग और संयम का पालन- ये सभी साधन माता- पता के पूजन के सोलहव अंश के बराबर भी नह ं हो सकते। इसिलये यह गणेश सैकड़ पु और सैकड़ गण से भी बढ़कर े है। अतः देवताओं का बनाया हआ यह मोदक ुम गणेश को ह अपण करती हूँ। माता- पता क भ के कारण ह गणेश जी क येक शुभ मंगल म सबसे पहले पूजा होगी। त प ात महादेवजी बोले् - इस गणेश के ह अ पूजन से स पूण देवता स न ह जाते ह। इस िलये तुमह सव थम गणेशजी क पूजा करनी चा हये।

    फ टक गणेश फ टक ऊजा को क त करने म सहायता मानागया ह। इस के भाव से यह य को नकारा मक उजा से बचाता ह एवं एक

    उ म गुणव ा वाले फ टक से बनी गणेश ितमा को और अिधक भावी और प व माना जाता ह। Rs.550 से Rs.8200 तक

  • 18 िसत बर 2010

    गणपित पूजन म तुलसी िन ष य

    िचंतन जोशी तुलसी सम त पौध म े मानी जाती ह। हंद ूधम

    म सम त पूजन कम म तुलसी को मुखता द जाती ह। ायः सभी हंद ूमं दर म चरणामृत म भी तुलसी का योग

    होता ह। इसके पीछे ऎसी कामना होती है क तुलसी हण करन े स े तुलसी अकाल मृ य ु को हरने वाली तथा सव यािधय का नाश करन ेवाली ह।

    पर तु यह पू य तुलसी को भगवान ी गणेश क पूजा म िन ष मानी गई ह। इनस ेस ब क प म एक कथा िमलती ह एक समय नवयौवन स प न तुलसी देवी नारायण परायण होकर तप या के िनिम से तीथ म मण करती हईु गंगा तट पर पहँचीं।ु वहाँ पर उ ह न ेगणेश को देखा, जो क त ण युवा लग रहे थे। गणेशजी अ य त सु दर, शु और पीता बर धारण कए हएु आभूषण से वभू षत थे, गणेश कामनार हत, जते य म सव े , योिगय के योगी थे गणेशजी वहां ीकृ ण क आराधना म यानरत थे। गणेशजी को देखते ह

    तुलसी का मन उनक ओर आक षत हो गया। तब तुलसी उनका उपहास उडान े लगीं। यानभंग होन े पर गणेश जी ने उनस ेउनका प रचय पूछा और उनके वहा ंआगमन का कारण जानना चाहा। गणेश जी ने कहा माता! तप वय का यान भंग करना सदा पापजनक और अमंगलकार होता ह। शुभ!े भगवान ीकृ ण आपका क याण कर, मेरे यान भंग स ेउ प न दोष आपके िलए अमंगलकारक न हो। इस पर तुलसी ने कहा— भो! म धमा मज क क या हूं और

    तप या म संल न हं।ू मेर यह तप या पित ाि के िलए ह। अत: आप मुझस े ववाह कर ली जए। तुलसी क यह बात सुनकर बु े गणेश जी ने उ र दया हे माता! ववाह करना बडा भयंकर होता ह, म हचार हं।ू ववाह तप या के िलए नाशक, मो ार के रा ता बंद करन ेवाला, भव बंधन से बंधे, संशय का उ म थान ह। अत: आप मेर ओर स ेअपना यान हटा ल और कसी अ य को पित के प म तलाश कर। तब कु पत होकर तुलसी ने भगवान गणेश को शाप देते हएु कहा क आपका ववाह अव य होगा। यह सुनकर िशव पु गणेश ने भी तुलसी को शाप दया देवी, तुम भी िन त प से असुर ारा त होकर वृ बन जाओगी।

    इस शाप को सुनकर तुलसी ने यिथत होकर भगवान ी गणेश क वंदना क । तब स न होकर गणेश जी न ेतुलसी

    से कहा हे मनोरम!े तुम पौध क सारभूता बनोगी और समयांतर स ेभगवान नारायण क या बनोगी। सभी देवता आपसे नेह रखगे पर तु ीकृ ण के िलए आप वशेष य रहगी। आपक पूजा मनु य के िलए मु दाियनी होगी तथा मेरे पूजन म आप सदैव या य रहगी। ऎसा कहकर गणेश जी पुन: तप करने चल े गए। इधर तुलसी देवी द:ु खत दय स ेपु कर म जा पहंचीु और िनराहार रहकर तप या म संल न हो गई। त प ात गणेश के शाप स ेवह िचरकाल तक शंखचूड क य प ी बनी रह ं। जब शंखचूड शंकर जी के शूल से मृ य ु

    को ा हआु तो नारायण या तुलसी का वृ प म ादभावु हआ।ु

  • 19 िसत बर 2010

    गणेश के क याणकार मं िचंतन जोशी

    गणेश मं क ित दन एक माला मं जाप अव य करे। दये गये मं ो मे से कोई भी एक मं का जाप करे।

    (०१) गं । (०२) लं । (०३) ल । (०४) ी गणेशाय नमः । (०५) ॐ वरदाय नमः । (०६) ॐ सुमंगलाय नमः । (०७) ॐ िचंतामणये नमः । (०८) ॐ व तंुडाय हम ।ु ् (०९) ॐ नमो भगवते गजाननाय । (१०) ॐ गं गणपतये नमः । (११) ॐ ॐ ी गणेशाय नमः । यह मं के जप से य को जीवन म कसी भी कार का क नह ंरेहता है।

    आिथक थित मे सुधार होता है। एवं सव कारक र -िस ा होती है।

    भगवान गणपित के अ य मं ॐ गं गणपतये नमः ।

    एसा शा ो वचन ह क गणेश जी का यह मं चम का रक और त काल फल देने वाला मं ह। इस मं का पूण भ पूवक जाप करने से सम त बाधाएं दर होती ह।ू षडा र का जप आिथक गित व समृ ददायक है ।

    ॐ व तंुडाय हमु ् । कसी के ारा क गई तां क या को न करने के िलए, व वध कामनाओं क शी पूित के िलए उ छ गणपित क साधना कजाती ह। उ छ गणपित के मं का जाप अ य भंडार दान करने वाला ह।

    ॐ ह त पशािच िलख े वाहा । आल य, िनराशा, कलह, व न दरू करन ेके िलए व नराज प क आराधना का यह मं जप े।

  • 20 िसत बर 2010

    ॐ गं सादनाय नम:। मं जाप स े कम बंधन, रोगिनवारण, कुबु , कुसंग , दभा यू , स े मु होती ह। सम त व न दरू होकर धन, आ या मक चेतना के वकास एवं आ मबल क ाि के िलए हेर बं गणपित का मं जप े। ॐ गूं नम:। रोजगार क ाि व आिथक समृ द ा होकर सुख सौभा य ा होता ह। ॐ ी ं ं ली ं ल गं ग प ये वर वरदे नमः ॐ त पु षाय व हे व तु डाय धीम ह त नो द तः चोदयात। ल मी ाि एवं यवसाय बाधाए ंदरू करन ेहेतु उ म मानगया ह।

    ॐ गीः गूं गणपतये नमः वाहा। इस मं के जाप से सम त कार के व नो एवं संकटो का का नाश होता ह। ॐ ी गं सौभा य गणप ये वर वरद सवजन ंम वशमानय वाहा। ववाह म आन ेवाल ेदोषो को दरू करन ेवाल को ैलो य मोहन गणेश मं का जप करन ेस ेशी ववाह व अनुकूल जीवनसाथी क ाि होती है । ॐ व तु डेक ाय लींह ं ी ंगं गणपतये वर वरद सवजन ंमं दशमानय वाहा । इस मं के अित र गणपित अथवशीष, संकटनाशक, गणेश ोत, गणेशकवच, संतान गणपित ोत, ऋणहता गणपित ोत मयूरेश ोत, गणेश चालीसा का पाठ करन ेस ेगणेश जी क शी कृपा ा होती है । ॐ वर वरदाय वजय गणपतये नमः। इस मं के जाप से मुकदम ेम सफलता ा होती ह। ॐ ग ंगणपतये सव व न हराय सवाय सवगुरव ेल बोदराय ंग ंनमः। वाद- ववाद, कोट कचहर म वजय ाि , श ुभय से छुटकारा पान ेहेतु उ म। ॐ नमः िस वनायकाय सवकायक सव व न शमनाय सव रा य व य कारनाय सवजन सव ी पु षाकषणाय ी ॐ वाहा। इस मं के जाप को या ा म सफलता ाि हेतु योग कया जाता ह। ॐ हुं गं ल ह र ा गणप ये वरद वरद सवजन दये त भय वाहा। यह ह र ा गणेश साधना का चम कार मं ह।

  • 21 िसत बर 2010

    ॐ ल ग ंगणपतये नमः। गृह कलेश िनवारण एवं घर म सुखशा त क ाि हेतु। ॐ ग ंल यौ आग छ आग छ फ । इस मं के जाप से द र ता का नाश होकर, धन ाि के बल योग बनन ेलगते ह। ॐ गणेश महाल य ैनमः। यापार स ेस ब धत बाधाएं एवं परेशािनया ंिनवारण एवं यापर म िनरंतर उ नित हेतु।

    ॐ ग ंरोग मु ये फ । भयानक असा य रोग से परेशानी होन ेपर, उिचत ईलाज कराने पर भी लाभ ा नह ंहोरहा हो, तो पूण व ास स मं का जाप करने स ेया जानकार य स ेजाप करवान ेसे धीरे-धीरे रोगी को रोग स ेछुटकारा िमलता ह। ॐ अ त र ाय वाहा। इस मं के जाप से मनोकामना पूित के अवसर ा होन ेलगते ह। गं गणप ये पु वरदाय नमः। इस मं के जाप से उ म संतान क ाि होती ह। ॐ वर वरदाय वजय गणपतये नमः। इस मं के जाप से मुकदम ेम सफलता ा होती ह। ॐ ी गणेश ऋण िछ ध वरे य हुं नमः फट । यह ऋण हता मं ह। इस मं का िनयिमत जाप करना चा हए। इसस ेगणेश जी स न होते है और साधक का ऋण चुकता होता है। कहा जाता है क जसके घर म एक बार भी इस मं का उ चारण हो जाता है है उसके घर म कभी भी ऋण या द र ता नह ंआ सकती। जप विध ात: नाना द शु होकर कुश या ऊन के आसन पर पूव क और मुख होकर बैठ। सामने गणॆश जी का िच , यं या

    मूित थाि कर फर षोडशोपचार या पंचोपचार से भगवान गजानन का पूजन कर थम दन संक प कर। इसके बाद भगवान णेश का एका िच से यान कर। नैवे म य द संभव होतो बूं द या बेसन के ल डू का भोग लगाय ेनह ंतो गुड का भोग लगाये । साधक को गणेश जी के िच या मूित के स मुख शु घी का द पक जलाए। रोज १०८ माला का जाप कर ने से शी फल क ाि होती ह। य द एक दन म १०८ माला संभव न हो तो ५४, २७,१८ या ९ मालाओं का भी जाप कया जा सकता ह। मं जाप करने म य द आप असमथ हो, तो कसी ा ण को उिचत द णा देकर उनसे जाप करवाया जा सकता ह।

  • 22 िसत बर 2010

    गणेश पूजन म कोन से फूल चढाए।

    गणेश जी को दवाू सवािधक य है। इस िलय ेसफेद या हर दवाू चढ़ानी चा हए। दवाू क तीन या पाँच प ी होनी चा हए।

    गणेश जी को तुलसी छोड़कर सभी प और पु प य ह। गणेशजी पर तुलसी चढाना िनषेध ह।

    न तुल या गणािधपम ् (प पुराण)

    भावाथ :तुलसी से गणेशजी क पूजा कभी नह ंकरनी चा हये।

    'गणेश तुलसी प दगाु नैव तु दवायाू ' (काितक माहा य) भावाथ : गणेशजी क तुलसी प स ेएवं दगाजीु क दवाू पूजा नह ं

    करनी चा हये। गणेशजी क पूजा म म दार के लाल फूल चढ़�