अनु. 35 a और 370 की व्यावहाररकता¤…नु. 35 a और 370...

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अनु . 35 A और 370 की ावहाररकता जू और कशीर को विशेष रा का दजा ा देने िाले भारतीय संविधान के अनुछे द 35 A और अनुछे द 370 के ािधान पूरे देश म बहस का मुा बना आ है .भारतीय संविधान के अनुसार जहां भारत को राों का संघ कहा गया है िहीं जू कशीर को कु छ विशेष संिैधावनक ािधानों के तहत विवश दजा ा वदया गया है । आखिर ऐसा ों है वक जू कशीर भारत का वहा होते ए भी एक कशीरी लड़की अगर वकसी गैर कशीरी लेवकन भारतीय लड़के से शादी करती है तो िह अपनी जू कशीर रा की नागरकता िो देती है लेवकन अगर कोई लड़की वकसी गैर कशीरी लेवकन पावकानी लड़के से वनकाह करती है तो उस लड़के को कशीरी नागरकता वमल जाती है। समय आ गया है वक इस कार के कानून वकसके हक म ह इस विषय पर िली एिं ापक बहस हो। यहा गौरतलब है वक आज पूरे भारत म वजस अनुछे द 35A (कैवपटल A ) पर बहस वछड़ी है , िह संविधान की वकसी भी वकताब म नहीं वमलता. हालांवक संविधान म अनुछे द 35a (ॉल a ) जऱर है , लेवकन इसका जू -कशीर से कोई सीधा संबंध नहीं है . दरअसल 35 A को संविधान के मु भाग म नहीं बखि पररवश (अपवड) म शावमल वकया गया है . 1954 के वजस आदेश से अनुछे द 35 A को संविधान म जोड़ा गया था , िह आदेश भी अनुछे द 370 की उपधारा ( 1) के अंतगात ही रार पवत ारा पारत वकया गया था. अनुछे द 35A की संवैधाननक थथनत अनुछे द 35A की संिैधावनक खथथवत ा है ? यह अनुछे द भारतीय संविधान का वहा है या नहीं ? ा रा र पवत के एक आदेश से इस अनुछे द को संविधान म जोड़ देना अनुछे द 370 का दुऱपयोग करना है ? इन तमाम सिालों के जिाब तलाशने के वलए जू कशीर अयन क ज ही अनुछेद 35A को सिोच ायालय म चुनौती देने की बात कर रहा है . िसे अनुछे द 35A से जुड़े कुछ सिाल और भी ह . यवद अनुछे द 35A असंिैधावनक है तो सिोच ायालय ने 1954 के बाद से आज तक कभी भी इसे असंिैधावनक घोवषत ों नहीं वकया ? यवद यह भी मान वलया जाए वक 1954 म नेहर सरकार ने राजनीवतक कारणों से इस अनुछेद को संविधान म शावमल वकया था तो विर वकसी भी गैर -कांेसी सरकार ने इसे समा ों नहीं वकया? इसके जिाब म इस मामले को उठाने िाले लोग मानते ह वक ादातर सरकारों को इसके बारे म पता ही नहीं था शायद इसवलए ऐसा नहीं वकया गया होगा. भारतीय संनवधान का अनुछेद 35 A 14 मई 1954 को तालीन रा र पवत राज साद ारा ेसीडवशयल ऑडार के जरए संविधान के पररवश म पंवडत नेहऱ की अनुशंसा पर समावि वकया गया था। इस अनुछे द ारा जू कशीर विधानसभा को यह अवधकार वमलता है वक 1) िह अपने मूल वनिावसयों को पररभावषत करे 2) इसके अनुसार जू कशीर का मूल वनिासी िह खि है जो 14 मई 1954 को रा का नागरक हो या विर 10 साल पहले से यहा रह रहा हो। 3) रा सरकार के अधीन वनयोजन ,सवि का अजान ,रा म बस जाने या छािृवतयां या ऐसी अ कार की सहायता ,अवधकार अथिा विशेषावधकार जो भी रा सरकार दान करती है केिल रा के थानीय मूल वनिावसयों को ही वदए जाएं गे। 'अनुछे द 35A दरअसल अनुछे द 370 से ही जुड़ा है . और अनुछे द 370 एक ऐसा विषय है वजससे ायालय तक बचने की कोवशश करता है . यही कारण है वक इस पर आज तक खथथवत साफ़ नहीं हो सकी है . ' अनुछे द 370 जू कशीर को कुछ ा है अनु . 35 A ? अनु . 35 A ? की संिैधावनक ा है अनु . 370 अनु . 35 A का इवतहास अनु . 35 A का मकसद ों हो रही है इसे हटाने की मांग ? अनु . 35 की तावक ा कतइसके विरोध के कारण सिोच ायालय का रि समालोचना

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  • अनु. 35 A और 370 की व्यावहाररकता

    जमू्म और कश्मीर को विशेष राज्य का दजाा देने िाले भारतीय संविधान के अनुचे्छद 35 A और अनुचे्छद 370 के प्रािधान पूरे

    देश में बहस का मुद्दा बना हुआ है.भारतीय संविधान के अनुसार जहां भारत को राज्यो ंका संघ कहा गया है िही ं जमू्म कश्मीर

    को कुछ विशेष संिैधावनक प्रािधानो ंके तहत विवशष्ट दजाा वदया गया है । आखिर ऐसा क्ो ंहै वक जमू्म कश्मीर भारत का वहस्सा

    होते हुए भी एक कश्मीरी लड़की अगर वकसी गैर कश्मीरी लेवकन भारतीय लड़के से शादी करती है तो िह अपनी जमू्म कश्मीर

    राज्य की नागररकता िो देती है लेवकन अगर कोई लड़की वकसी गैर कश्मीरी लेवकन पावकस्तानी लड़के से वनकाह करती है तो

    उस लड़के को कश्मीरी नागररकता वमल जाती है। समय आ गया है वक इस प्रकार के कानून वकसके हक में हैं इस विषय पर

    िुली एिं व्यापक बहस हो।

    यहााँ गौरतलब है वक आज पूरे भारत में वजस अनुचे्छद 35A (कैवपटल A ) पर बहस वछड़ी है , िह संविधान की वकसी भी

    वकताब में नही ंवमलता. हालांवक संविधान में अनुचे्छद 35a (स्मॉल a ) जरूर है, लेवकन इसका जमू्म-कश्मीर से कोई सीधा संबंध

    नही ंहै. दरअसल 35 A को संविधान के मुख्य भाग में नही ंबखि पररवशष्ट (अपेंवडक्स) में शावमल वकया गया है. 1954 के वजस

    आदेश से अनुचे्छद 35 A को संविधान में जोड़ा गया था , िह आदेश भी अनुचे्छद 370 की उपधारा (1) के अंतगात ही राष्टर पवत

    द्वारा पाररत वकया गया था.

    अनुचे्छद 35A की संवैधाननक स्थथनत

    अनुचे्छद 35A की संिैधावनक खथथवत क्ा है? यह अनुचे्छद भारतीय संविधान का वहस्सा है या नही?ं क्ा राष्टर पवत के एक आदेश

    से इस अनुचे्छद को संविधान में जोड़ देना अनुचे्छद 370 का दुरूपयोग करना है? इन तमाम सिालो ंके जिाब तलाशने के वलए

    जमू्म कश्मीर अध्ययन कें द्र जल्द ही अनुचे्छद 35A को सिोच्च न्यायालय में चुनौती देने की बात कर रहा है.

    िैसे अनुचे्छद 35A से जुड़े कुछ सिाल और भी हैं. यवद अनुचे्छद 35A असंिैधावनक है तो सिोच्च न्यायालय ने 1954 के बाद से

    आज तक कभी भी इसे असंिैधावनक घोवषत क्ो ंनही ंवकया ? यवद यह भी मान वलया जाए वक 1954 में नेहरु सरकार ने

    राजनीवतक कारणो ंसे इस अनुचे्छद को संविधान में शावमल वकया था तो विर वकसी भी गैर-कांगे्रसी सरकार ने इसे समाप्त क्ो ं

    नही ंवकया? इसके जिाब में इस मामले को उठाने िाले लोग मानते हैं वक ज्यादातर सरकारो ंको इसके बारे में पता ही नही ंथा

    शायद इसवलए ऐसा नही ंवकया गया होगा.

    भारतीय संनवधान का अनुचे्छद 35 A

    14 मई 1954 को तत्कालीन राष्टर पवत राजेंद्र प्रसाद द्वारा पे्रसीडेंवशयल ऑडार के जररए संविधान के पररवशष्ट में पंवडत नेहरू की

    अनुशंसा पर समाविष्ट वकया गया था। इस अनुचे्छद द्वारा जमू्म कश्मीर विधानसभा को यह अवधकार वमलता है वक

    1) िह अपने मूल वनिावसयो ंको पररभावषत करे

    2) इसके अनुसार जमू्म कश्मीर का मूल वनिासी िह व्यखि है जो 14 मई 1954 को राज्य का नागररक हो या विर 10 साल

    पहले से यहााँ रह रहा हो।

    3) राज्य सरकार के अधीन वनयोजन ,सम्पवि का अजान ,राज्य में बस जाने या छात्रिृवतयां या ऐसी अन्य प्रकार की सहायता

    ,अवधकार अथिा विशेषावधकार जो भी राज्य सरकार प्रदान करती है केिल राज्य के थथानीय मूल वनिावसयो ंको ही वदए जाएंगे।

    'अनुचे्छद 35A दरअसल अनुचे्छद 370 से ही जुड़ा है. और अनुचे्छद 370 एक ऐसा विषय है वजससे न्यायालय तक बचने की

    कोवशश करता है. यही कारण है वक इस पर आज तक खथथवत साफ़ नही ंहो सकी है. ' अनुचे्छद 370 जमू्म कश्मीर को कुछ

    क्ा है अनु .

    35 A ? अनु . 35 A ?

    की संिैधावनक

    खथथवत

    क्ा है अनु .

    370 अनु . 35 A का

    इवतहास

    अनु . 35 A का

    मकसद क्ो ंहो रही है इसे

    हटाने की मांग ?

    अनु . 35 की

    तावका कता इसके विरोध

    के कारण

    सिोच्च न्यायालय

    का रुि समालोचना

  • विशेषावधकार देता है. लेवकन कुछ लोगो ंको विशेषावधकार देने िाला यह अनुचे्छद क्ा कुछ अन्य लोगो ंके मानिावधकार तक

    छीन रहा है?

    क्यार है अनुचे्छ द 370

    1. संविधान का अनुचे्छद 370 अथथाशयी प्रबंध के जररए जमू्म और कश्मीर को एक विशेष स्वायिा िाले राज्य का दजाा देता है।

    2. 370 का िाका 1947 में शेि अबु्दल्ला ने तैयार वकया था , वजन्हें प्रधानमंत्री जिाहरलाल नेहरू और महाराजा हरर वसंह ने

    जमू्म-कश्मीर का प्रधानमंत्री वनयुि वकया था।

    3. शेि अबु्दल्ला ने 370 को लेकर यह दलील दी थी वक संविधान में इसका प्रबंध अथथांयी रूप में ना वकया जाए। उन्होनें राज्य

    के वलए मजबूत स्वायिा की मांग की थी, वजसे कें द्र ने ठुकरा वदया था।

    4. 370 के प्रािधानो ंके अनुसार संसद को जमू्म-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का

    अवधकार है। लेवकन अन्य विषय से संबंवधत कानून को लागू कराने के वलए कें द्र को राज्य का अनुमोदन चावहए।

    5. इसी विशेष दजे के कारण जमू्म-कश्मीर पर संविधान का अनुचे्छद 356 लागू नही ंहोती है। राष्टर पवत के पास राज्य के संविधान

    को बिाास्त करने का अवधकार नही ंहै।

    6. भारत के दूसरे राज्यो ंके लोग जमू्म-कश्मीर में जमीन नही ंिरीद सकते हैं। यहां के नागररको ंके पास दोहरी नागररकता होती

    है। एक नागररकता जमू्म-कश्मीर की और दूसरी भारत की होती है।

    7. यहां दूसरे राज्य के नागररक को राज्य की सरकारी नौकरी करने पर भी कुछ प्रवतबंध हैं ।

    8. भारतीय संविधान के अनुचे्छद 360 वजसमें देश में वििीय आपातकाल लगाने का प्रािधान है , िह भी जमू्म-कश्मीर पर लागू

    नही ंहोता है।

    9. अनुचे्छद 370 की िजह से ही जमू्म-कश्मीर का अपना अलग झंडा और प्रतीक वचन्ह भी है।

    10. 1965 तक जमू्म और कश्मीर में राज्यपाल की जगह सदर-ए-ररयासत और मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री हुआ करता था।

    क्या है अनुछेद 35 A का इनतहास

    अनुचे्छद 35 A के प्रािधानो ंकी उत्पवि 1927 में हुई जब जमू्म के डोगरा ने इस डर से वक पंजाब के लोगो ंके आने से सरकारी

    सेिाओ ंमें उनका वनयंत्रण होगा , महाराजा हरर वसंह से संपका वकया था. इन आशंकाओ ंसे हरर वसंह ने 1927 और 1932 में

    अवधसूचना जारी की, वजसमें राज्य के विषय और उनके अवधकारो ंको पररभावषत वकया गया.जमू्म और कश्मीर का संविधान, जो

    1956 में तैयार वकया गया था, ने 1927 और 1932 के अवधसूचनाओ ंमें िवणात थथायी वनिावसयो ंकी पररभाषा को बरकरार रिा.

    उन्होनें केिल राज्य के मूल वनिावसयो ंको ही सरकारी सुविधाओ ंका लाभ एिं राज्य में जमीन िरीदने के अवधकार देने की बात

    की थी। संभितः उने्ह महाराजा को डर था वक कही ंअंगे्रज यहााँ पर जमीन िरीद कर अपना अवधकार थथावपत करना न शुरू

    कर दें।जब 26 अकू्टबर 1947 में जमू्म कश्मीर ररयासत का भारत संघ में विलय हुआ तो उपयुाि अवधसूचना को बरकरार रिा

    गया। 1954 के राष्टर पवत के आदेश ने एक रूपरेिा प्रदान की वजसमें अनुचे्छद 370 के तहत जमू्म-कश्मीर और कें द्र सरकार के

    बीच शखियो ंके विभाजन के वलए भारतीय संविधान में अनुछेद 35 A को शावमल वकया गय था. इसके पररणामस्वरूप बाँटिारे

    के िि जो पररिार पावकस्तान से भारत के वकसी भी वहसे्स में आकर बस गए िे भारत के नागररक बन गए लेवकन िे पररिार

    जो जमू्म और कश्मीर में बसे िो आज तक शरणाथी बने हुए हैं।

    भारत में इस कानून को ितामान स्वरूप में साल 1954 में पहचान दी गई। ये संविधान की धारा 370 का एक वहस्सा है , जो

    कश्मीर को एक विशेष राज्य का दजाा देती है। संविधान का ये अंग राज्य को एक अलहदा संविधान , अलग झंडा और सभी

    मामलो ंमें स्वतंत्र रहने का अवधकार देता है, हालांवक विदेशी मामले, रक्षा और संचार के मामले भारत सरकार के पास हैं। जब

    साल 1956 में जमू्म-कश्मीर संविधान को स्वीकार वकया गया तो दो साल पुराने थथाई नागररकता कानून को भी सहमवत दी

    गई। ये कानून इस राज्य के विवशष्ट के्षत्रीय पहचान की रक्षा करता है।

    नकस मकसद के तहत 1954 में अनुचे्छद 35A जोड़ा गया?

    देश की एकता को िण्ड िण्ड करने िाले इस प्रकार के 'विशेषावधकार' कश्मीर के आिाम को भारत के आिाम से जोड़ने का

    काम कर रहे हैं या विर तोड़ने का ? वजस वदन जमू्म और कश्मीर का आम आदमी इस सच्चाई को समझ जाएगा वक कश्मीर

  • को दी गई इस विशेषता का लाभ िहााँ अलगाििावदयो ंद्वारा उठाया जा रहा है और कश्मीरी आिाम इन 'विशेषावधकारो'ं के

    बािजूद देश के बाकी वहस्सो ंसे बहुत पीछे रह गया है िो िुद ही इसके खिलाि िड़ा होगा।

    यहााँ सबसे बड़ा प्रश्न है वक धारा 370 जो वक भारतीय संविधान के 21 िें भाग में समाविष्ट है और वजसके शीषाक शब्द हैं 'जमू्म

    कश्मीर के सम्बन्ध में अथथायी प्रािधान' , िो 370 जो िुद एक अथथायी प्रािधान है,उसकी आड़ में 14 मई 1954 को प्रधानमंत्री

    जिाहरलाल नेहरू की अनुशंसा पर तत्कालीन राष्टर पवत राजेंद्र प्रसाद द्वारा 35A को 'संविधान के पररवशष्ट दो ' में थथावपत वकया

    गया था। 2002 में अनुचे्छद 21 में संशोधन करके 21A को उसके बाद जोड़ा गया था तो अनुचे्छद 35A को अनुचे्छद 35 के बाद

    क्ो ंनही ंजोड़ा गया, उसे पररवशष्ट में थथान क्ो ंवदया गया?

    जबवक संविधान में अनुचे्छद 35 के बाद 35a भी है लेवकन उसका जमू्म कश्मीर से कोई लेना देना नही ंहै।

    इसके अलािा जानकारो ंके अनुसार वजस प्रविया द्वारा 35 A को संविधान में समाविष्ट वकया गया िह प्रविया ही अलोकतांवत्रक

    है एिं भारतीय संविधान के अनुचे्छद 368 का भी उलं्लघन है वजसमें वनधााररत प्रविया के वबना संविधान में कोई संशोधन नही ं

    वकया जा सकता।

    एक तथ्य यह भी वक जब भारत में विवध के शासन का प्रथम वसद्ांत है वक 'विवध के समक्ष' प्रते्यक व्यखि समान है और प्रते्यक

    व्यखि को 'विवध का समान ' संरक्षण प्राप्त होगा तो क्ा देश के एक राज्य के 'कुछ' नागररको ंको विशेषावधकार देना क्ा शेष

    नागररको ंके साथ अन्याय नही ंहै ? यहााँ 'कुछ' नागररको ंका ही उले्लि वकया गया है क्ोवंक 35 A राज्य सरकार को यह

    अवधकार देती है वक िह अपने राज्य के 'थथायी नागररको ं' की पररभाषा तय करे। इसके अनुसार जो व्यखि 14 मई 1954 को

    राज्य की प्रजा था या 10 िषों से राज्य में रह रहा है िो ही राज्य का थथायी नागररक है।

    इन धाराओ ंकी अहनमयत

    धारा 35-A की अहवमयत को इसी से समझा जा सकता है वक अभी केिल जमू्म-कश्मीर से इस धारा को हटाने की चचाा भर

    से इतना बिाल मचा है। यवद उसे हटा वदया गया तो क्ा होगा। दरअसल , धारा 35-A से जमू्म-कश्मीर सरकार और िहां की

    विधानसभा को थथायी वनिासी की पररभाषा तय करने का अवधकार वमलता है। मतलब ये वक राज्य सरकार को अवधकार है वक

    िो आजादी के िि दूसरी जगहो ंसे आए लोगो ंऔर अन्य भारतीय नागररको ंको जमू्म-कश्मीर में वकस तरह की सुविधाएं दे या

    नही?ं

    धारा 35-A हटाने के वलए दायर यावचका को चुनौती देने िाली एक यावचका भी कोटा में दायर कर दी गई है। कोटा ने इस

    यावचका पर सुनिाई के वलए 5 जजो ंकी एक बेंच बनाई है। बेंच 6 हफ्ो ंमें इस मामले की सुनिाई करेगी। कोटा ने कहा है वक

    बेंच धारा 35-A और अनुचे्छद 370 की संिैधावनक रूप से जांच करेगी और इसके तहत वमलने िाले विशेष राज्य के दजे पर भी

    विर से विचार होगा। िही ंजमू्म-कश्मीर की सरकार ने कोटा में कहा है वक 2002 में इस मुदे्द पर हाई कोटा ने िैसला सुनाया था

    वजससे यह मामला सेटल हो गया था।

    धारा 35-A के खिलाि सुप्रीम कोटा में यावचका लगाई गई है। इसी वसलवसले में वपछले वदनो ंिारुि अबु्दल्ला ने अपने घर पर

    विपक्षी पावटायो ंकी एक मीवटंग भी बुलाई थी। इस मीवटंग के बाद तथ्य सामने आया वक धारा 35-ए हटाने पर एक बड़ा

    जनविद्रोह पैदा हो जाएगा। याद वदलाया गया वक जब 2008 में अमरनाथ भूवम मामला सामने आया था , तो लोग रातोरात उठ

    िड़े हुए थे। इस प्रकार धारा 35-Aको रद्द वकए जाने का नतीजा और बड़े विद्रोह की िजह बन सकता है।

    उमर अबु्दल्ला ने संविधान के धारा 35-ए के मुदे्द पर भाजपा को वनशाने पर वलया है। उन्होनें कहा वक भाजपा इस मुदे्द को जमू्म

    बनाम कश्मीर की लड़ाई बताते हुए प्रोपेगंडा िैला रही है। उन्होनें कहा वक अगर इस अनुचे्छद को ित्म वकया गया तो अन्य

    राज्यो ंके लोग कश्मीर आकर संपवि िरीदें गे और अपने बच्चो ंके वलए शैक्षवणक स्कॉलरवशप हावसल करें गे , राहत सामग्री लेंगे

    और सरकारी नौकररयां भी ले लेंगे।

    जानकार बताते हैं वक भारतीय संसद कश्मीररयो ंके वलए कानून नही ंबना सकती। इसका अवधकार वसिा राज्य सरकार के

    पास है। इस बाबत पूिा मुख्यमंत्री उमर अबु्दल्ला ने कहा है वक कानून को वनरस्त करने पर जमू्म और लद्दाि में बड़ी समस्या

    पैदा हो जाएगी। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ी ने भी चेताया है वक इससे भारत और कश्मीर का नाजुक ररश्ता टूट जाएगा।

    बहरहाल, अब देिना है वक कोटा इस बारे में क्ा िैसला सुनाती है?

    क्योलं उठ रही है हटाने की मांग

  • इस अनुचे्छद को हटाने के वलए एक दलील ये दी जा रही है वक इसे संसद के जररए लागू नही ंकरिाया गया था. दूसरी दलील ये

    है वक देश के विभाजन के िि बड़ी तादाद में पावकस्तान से शरणाथी भारत आए. इनमें लािो ंकी तादाद में शरणाथी जमू्म-

    कश्मीर राज्य में भी रह रहे हैं. जमू्म-कश्मीर सरकार ने अनुचे्छद 35A के जररए इन सभी भारतीय नागररको ंको जमू्म-कश्मीर

    के थथायी वनिासी प्रमाणपत्र से िंवचत कर वदया. इन िंवचतो ंमें 80 िीसद लोग वपछड़े और दवलत वहंदू समुदाय से हैं. इसी के

    साथ जमू्म-कश्मीर में वििाह कर बसने िाली मवहलाओ ंऔर अन्य भारतीय नागररको ंके साथ भी जमू्म-कश्मीर सरकार

    अनुचे्छद 35A की आड़ लेकर भेदभाि करती है.

    इसकी तानकि कता

    इसका दंश झेल रहे हैं िो पररिार जो 1947 में पविमी पावकस्तान से भारत में आए थे। जहााँ देश के बाकी वहस्सो ंमें बसने िाले

    ऐसे पररिार आज भारत के नागररक हैं िही ंजमू्म कश्मीर में बसने िाले ऐसे पररिार आज 70 साल बाद भी शरणाथी हैं।

    इसका दंश झेल रहे हैं 1970 में प्रदेश सरकार द्वारा सिाई के वलए विशेष आग्रह पर पंजाब से बुलाए जाने िाले िो सैकड़ो ं

    दवलत पररिार वजनकी संख्या आज दो पीवियााँ बीत जाने के बाद हजारो ंमें हो गई है लेवकन ये आज तक न तो जमू्म कश्मीर के

    थथाई नागररक बन पाए हैं और न ही इन लोगो ंको सिाई कमाचारी के आलािा कोई और काम राज्य सरकार द्वारा वदया जाता

    है। जहााँ एक तरि जमू्म कश्मीर के नागररक विशेषावधकार का लाभ उठाते हैं इन पररिारो ंको उनके मौवलक अवधकार भी

    नसीब नही ंहैं।

    जमू्म और कश्मीर को विशेष राज्य का दजाा देने िाले भारतीय संविधान के अनुचे्छद 35 ए और अनुचे्छद 370 के प्रािधान पूरे

    देश में बहस का मुद्दा बना हुआ है. अतः इस पृष्ठभूवम में अनुचे्छद 35 ए के प्रािधानो ंऔर उसके पक्ष विपक्ष के तकों को समझना

    अवत आिश्यक है.

    अनुचे्छद 35 ए के पक्ष में तकि

    अनुचे्छद 35 ए के पक्ष में वनम्ांवकत तका वदए जा सकते हैं –

    संिैधावनक विशेषज्ो ंके अनुसार, विवभन्न भारतीय राज्यो ंके संबंध में संविधान के विवभन्न लेि हैं, वजनमें विशेष प्रािधान (अनुचे्छद

    371 और अनुचे्छद 371 ए-1 ) शावमल हैं. इसके अलािा, अनुचे्छद 370 मूल संविधान का वहस्सा है और इसवलए, अनुचे्छद 35 ए

    इससे भी सम्बखन्धत है.

    अनुचे्छद 35 ए जमू्म और कश्मीर राज्य की जनसांखख्यकीय खथथवत को अपने वनधााररत संिैधावनक रूप में संरवक्षत करना चाहता

    है

    भारत के संविधान के अनुचे्छद 35 ए, वकसी भी खथथवत में राज्य के वलए कुछ नया करने की कोवशश नही ंकरता. यह केिल

    भारत के संविधान और जमू्म और कश्मीर के संविधान के बीच पहले से ही विद्यमान संबंधो ंको स्पष्ट करता है

    छह दशको ंमें भारत के राष्टर पवत ने 41 संिैधावनक आिेदन आदेश जारी वकए जो वक भारतीय संविधान के विवभन्न प्रािधानो ंके

    तहत जमू्म और कश्मीर के साथ लागू होते हैं, वजसमें संघ द्वारा चुने गए राज्यपाल की जगह वनिाावचत सदा-ए-ररयासत को वदया

    जाता जाता है.

    यवद सिोच्च न्यायालय का मानना है वक अनुचे्छद 35 ए संविधान का उलं्लघन करता है , तो इस तरह के िैसले को 1950 से

    लेकर सभी संिैधावनक आिेदन आदेशो ंतक लागू वकया जाना चावहए.

    अनुचे्छद 35 ए के नवरुद्ध तकि

    अनुचे्छद 35 ए के विरुद् वनम्वलखित तका वदए जा सकते हैं.

    अनुचे्छद 370 को सशि करने के उदे्दश्य से तत्कालीन राष्टर पवत ने 14 मई 1954 को वबना वकसी संसदीय कायािाही के एक

    संिैधावनक आदेश वनकाला ,वजसमें उन्होने एक नये अनुचे्छद 35A को भारत के संविधान में जोड़ वदया। इसमें संविधान में

    अनुचे्छद 368 के तहत भारत के संविधान में संशोधन के वलए वनधााररत प्रविया का पालन नही ंवकया गया था. इसवलए , यह

  • संविधान में संशोधन सवहत कानून द्वारा थथावपत संिैधावनक प्रवियाओ ंका उलं्लघन करता है. यह संसद का एकमात्र काया

    है,कायाकाररणी का नही ं.

    अनुचे्छद 35 A द्वारा समवथात थथायी वनिासी िगीकरण संविधान के अनुचे्छद 14 का उलं्लघन करता है , जो कानून के समक्ष

    समानता का मौवलक अवधकार प्रदान करता है.

    अनुचे्छद 35 A मौवलक अवधकार का सीधा उलं्लघन है क्ोवंक जमू्म और कश्मीर के थथायी वनिावसयो ंके समान ,अवनिासी

    भारतीय नागररको ंको अवधकार और विशेषावधकार नही ंवमल सकते हैं.

    इस अनुचे्छद के तहत राज्य विधानमंडल द्वारा पाररत संकल्प उन पुरूषो ंके बच्चो ंको उिरावधकार के अवधकार प्रदान करते हैं,

    जो अथथायी वनिासी मवहलाओ ंसे वििाह कर रहे हैं, लेवकन मवहलाओ ंके बच्चो ंको उसी खथथवत में इनकार करते हैं.

    यह एक औरत के अवधकार 'उसकी पसंद के एक आदमी से शादी करने ' की खथथवत का सीधा उलं्लघन है. यवद जमू्म-कश्मीर

    की मवहला जमू्म-कश्मीर के एक गैर-थथायी वनिासी से शादी करती है, तो उनके उिरावधकारी संपवि के अवधकारी नही ंहोते हैं.

    संपवि, रोजगार आवद से जुड़े प्रवतबंधो ंके कारण एंटरपे्रन्योर और प्रोिेशनल्स यहााँ जाने में रूवच नही ंरिते जो इस थथान के

    सामावजक विकास में मुख्य बाधा है.

    अब इसकी आड़ में भारतीय संविधान के अनुचे्छद 14 , 15, 19 एिं 21 में भारतीय नागररको ंको समानता और कही ंभी बसने

    के जो अवधकार वदए,िह प्रवतबंवधत कर वदए गए। इस प्रकार एक ही भारत के नागररको ंको इस अनुचे्छद 35 ने बााँट वदया।

    अनुचे्छद 35A की सबसे ज्यादा मार ,1947 में पविमी पावकस्तान से आए 20 लाि से ज्यादा प्रिासी ‘वहन्दू’ झेल रहे हैं। इन

    प्रिासी वहन्दुओ ंमें ज्यादातर आबादी ‘दवलतो’ं की थी। वपछले 68 िषों से कश्मीर में बसे होने के बािजूद उने्ह िहााँ की

    ‘नागररकता’ नही ंवमली है। उन्हें राज्य में ज़मीन िरीदने का अवधकार नही ंहै ,उनके बचे्च को सरकारी नौकरी नही ंवमल

    सकती,व्यिसावयक वशक्षण संथथानो ंके दरिाजे उनकेवलए अिरुद् हैं।

    नवरोध के कारण

    भारत प्रशावसत कश्मीर भारत का अकेला मुखिम बहुल राज्य है। ऐसे में कई कश्मीररयो ंको शक है वक वहन्दू राष्टर िादी समूह

    वहन्दुओ ंको कश्मीर में आने के वलए प्रोत्सावहत कर रहे हैं। भारत के साथ कड़िे संबंध रिने िाले कश्मीररयो ंके वलए ये बात

    हजम नही ंहो रही है, क्ोवंक कश्मीर में साल 1989 से भारत के खिलाि वहंसक संघषा जारी है।

    कश्मीर में धारा 35-ए के तहत बनने िाले कानूनो ंको भारत के दूसरे राज्यो ंसे नागररको ंके समानता के अवधकार के उलं्लघन

    के खिलाि नही ंलाया जा सकता। इस धारा को वनरस्त करने की मांग करने िालो ंका कहना है वक धारा 368 के तहत संविधान

    संशोधन के वलए तय प्रविया का पालन करते हुए इसे संविधान में नही ंजोड़ा गया था।

    सवोच्च न्यायालय में दायर यानिका

    2014 में एक गैर सरकारी संगठन ने सिोच्च न्यायालय में अनुचे्छद 35 A को हटाने की मांग करते हुए एक यावचका दायर की

    थी क्ोवंक भारतीय संविधान के अनुचे्छद 368 में वनधााररत प्रविया का पालन करके इसे संविधान में शावमल नही ंवकया गया

    था.जिाब में जब जमू्म-कश्मीर सरकार ने एक प्रवत-शपथ पत्र दायर वकया और यावचका को बिाास्त करने की मांग की तो कें द्र

    सरकार ने ऐसा नही ंवकया. इसी तरह दो कश्मीरी मवहलाओ ंने जमू्म-कश्मीर के खिलाि भेदभाि को लेकर अनुचे्छद 35 A के

    खिलाि 2017 में सिोच्च न्यायालय में एक और मामला दायर वकया.

    जुलाई 2017 में एक हावलया सुनिाई में अटॉनी जनरल के के िेणुगोपाल ने सुप्रीम कोटा को बताया वक कें द्र सरकार इस मामले

    में हलिनामा दाखिल करने की इचु्छक नही ंथी , बखि सरकार इस विषय पर एक 'बड़ा बहस' चाहती थी.इसके बाद, सिोच्च

    न्यायालय ने इस मामले को तीन न्यायाधीशो ंकी पीठ में भेजा और मामले के अंवतम वनपटान के वलए छह सप्ताह का समय

    वनधााररत वकया, जो जमू्म और कश्मीर में वििाद का एक कारण बना हुआ है.

    समालोिना

  • पूिा प्रधानमंत्री श्री अटल वबहारी िाजपेयी जी के यह शब्द भी याद आते हैं वक , ' कश्मीररयत जम्हूररयत और इंसावनयत से ही

    कश्मीर समस्या का हल वनकलेगा ' । वकनु्त बेहद वनराशाजनक तथ्य यह है वक यह तीनो ंही चीजें आज कश्मीर में कही ंवदिाई

    नही ंदेती। कश्मीररयत , आज आतंवकत और लूलुहान है। इंसावनयत की कब्र आतंकिाद बहुत पहले ही िोद चुका है और

    जम्हूररयत पर अलगिावदयो ंका कब्जा है।

    जमू्म और कश्मीर भारत का अवभन्न अंग है. इस राज्य को ऐवतहावसक और भौगोवलक कारको ंसे देश के राजनीवतक के्षत्र में एक

    विशेष खथथवत प्राप्त है. भारतीय संविधान के अनुचे्छद 370 इस समझ को कानूनी तौर पर समथान देता हैं और भारतीय संविधान

    एिं जमू्म और कश्मीर के संविधान के बीच एक पुल की तरह काम करता है. अनुचे्छद 35 ए पर ितामान वििाद यद्यवप अप्रत्यक्ष

    रूप से जमू्म और कश्मीर के बारे में केन्द्र-राज्य संबंधो ंको संचावलत करने िाले कुछ मूलभूत पहलुओ ंको उजागर कर रहा है.

    इस मुदे्द पर सही वनणाय के वलए संविधान के संरक्षक के रूप में न्यायपावलका सही मंच है.

    अगर सही माने मे देश की एकता और अिंडता को अकु्षन्न बनाए रिना है तो धीरे धीरे ही सही लेवकन अनुछेद 370 और 35 A

    को राष्टर वहत में समाप्त कर वदया जाये । तावक एक ही देश में इस दोयम दजे को समाप्त वकया जा सके । पूरे देश के लोगो ंको

    राष्टर ीय अिंडता में रूवच का अवधकार है, िे थथाई रूप से कही ंभी वनिास कर सकते हैं और भारत के वकसी भी के्षत्र में समान

    अवधकार प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे मे एक स्वतंत्र सेकु्लर लोकतंत्र में धारा 370 जैसी िेभेदकारी अिधारणा का कोई थथान नही ं

    होना चावहए। यह अथथाई व्यिथथा थी और अब इसे समाप्त कर देना चावहए । चाहे 370 और 35 A का अंवतम वनष्कषा जो भी

    हो लेवकन यह तो तय है वक जमू्म कश्मीर वक इस समस्या का समाधान अंततः कश्मीररयत , जम्हूररयत और इंसावनयत से ही

    वनकलेगा क्ोवंक इसी में िहााँ के लोगो ंवक भलाई और देश वक भलाई है ।