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गुǽ×व काया[लय Ʈारा Ĥèतुत मािसक -पǒğका अगèत 2010 NON PROFIT PUBLICATION

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  • गु व कायालय ारा तुत मािसक ई-प का अग त 2010

    NON PROFIT PUBLICATION

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    Xkq:Ro T;ksfr”k 1 vxLr 2010

    FREE E CIRCULAR

    गु व योितष प का संपादक

    िचंतन जोशी संपक गु व योितष वभाग गु व कायालय 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA फोन 91+9338213418, 91+9238328785, ईमेल

    [email protected], [email protected],

    वेब http://gk.yolasite.com/ http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/

    प का तुित िचंतन जोशी, व तक.ऎन.जोशी फोटो ा फ स िचंतन जोशी, व तक आट हमारे मु य सहयोगी व तक.ऎन.जोशी

    ( व तक सो टेक इ डया िल)

    य आ मय बंधु/ ब हन

    जय गु देव हमारे मु य लोग http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/ के हमारे सभी आ मय बंधु/ब हन एवं िनयिमत पाठको के आ मय अनुरोध से े रत होकर हमारे कायालय ारा अग त मास स े िनयिमत मािसक ई प का गु व योितष को आपको अपन ेजीवन म गितशील होन ेका सुगम माग ा हो एवं आपको अपन ेजीवन म सम त कार के भौितक सुखो क ाि होकर आपके भीतर आ या मक वकास एवं ाचीन भारतीय व ान स े

    संबंिधत ान क िनरंतर वृ हो इस उ े य से हम गु व कायालय प रवार क और स े आपको एवं आपके प रवार को गु व योितष प का को िनशु ल भेट कर रह ह। आपके अनुरोध स ेमािसक प का शुभारंभ करन ेका हम ेसौभा य ा हवा।ु आपके स ेम नेहभाव हेतु हम आपके सभी आभार ह।

    आप हमारा मागदशन करते रह। आपके सुझाव एवं ित या हम े िनयिमत िमलते रहे।

    इ स ेअित र हमन ेअपन े वष के अनुभवो के आधार पर आप अपन ेकाय-उ े य एवं अनुकूलता हेतु यं , ह र एवं उपर और दलभु मं श से पूण ाण- ित त िचज व तु का हमशा योग करे जो १००% फलदायक हो। ईसी िलय ेहमारा उ े य यह ंहे क शा ो विध- वधान से विश तेज वी मं ो ारा िस ाण- ित त पूण चैत य यु सभी कार के य - कवच एवं शुभ

    फलदायी ह र एवं उपर आपके घर तक पहोचान ेका है।

    सूय क करणे उस घर म वेश करापाती है। जीस घर के खड़क दरवाजे खुले ह ।

    िचंतन जोशी NON PROFIT PUBLICATION

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    Xkq:Ro T;ksfr”k 2 vxLr 2010

    वशेष लेख ावण मास के थम सोमवार त के लाभ 31

    द र ता स ेमु 44

    लघु कथाएं शैतान 13 अपन क चोट 26 जीवन म ान क कमाई 19 वधाता क े कृित 30

    अनु म गु ाथना 3 कम फल ह केवलं 34 गुव कम ् 4 गु आ ा पालक िश य उपम यु 35 िशव मह व 5 िशव कामदेव कथा 36 िशव उपासना का मह व 6 िशव और सती का ेम 37 महामृ यंुजय मं 7 िशव पावती का ववाह 40 महामृ यंुजय मं जाप कस समय कर? 8 गु सेवा 43 सव रोगनाशक यं /कवच 9 द र ता से मु 44 िशव कृपा हेतु उ म ावण मास 11 दोष त का मह व 48 भौितकक दरू होते ह ावणमास के सोमवार तसे 12 सव काय िस कवच 51 सोमवार त कथा 13 वेदसार िशव तव 53 सा ात ह िशविलंग 14 महाकाल तवन 54 आपक रािश और िशव पूजा 15 ािभषेक तो 55 ादश योितिलग तो म ् 16 िशव मानस पूजा 56

    िशवरा त से लाभ 17 िशवा कम 57 गंगा का वग से पृथवी पर आगमन केसे हवाु ? 18 ी ा कम 58 िशव पूजन से कामना िस 20 िलंगा कम 59

    ा- वषण-ुमहेश म े कोन? 21 िशवम ह न तो म ् 60 िशविलंग पूजा का मह व या ह? 22 ा कृत िशव तो 63 चातुमास त का मह व 23 िशव आरती 64 य िशव को य ह बेल प ? 25 िशव तांडव तो 65

    सोलह सोमवार तकथा 27 िशव तुित (राम च रतमानस) 66 िशविलंग के विभ न कार व लाभ 31 मािसक रािश फल 67 िशवप चा र तो म ् 32 मािसक पंचांग 68 िशव के क याणकार मं 32 मािसक त-पव- यौहार 69 ावण सोमवार त कैसे कर? 33 वशेष योग 71

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    गु ाथना िचंतन जोशी

    गु ा ु व णुः गु दवो महे रः ।

    गु ः सा ात ्परं त मै ी गुरवे नमः ॥

    भावाथ: गु ा ह, गु व णु ह, गु ह शंकर ह; गु ह सा ात ्पर ह; एसे स ु को नमन । यानमूलं गु मूितः पूजामूलम गु र पदम।् मं मूलं गु रवा यं मो मूलं गु र कृपा।।

    भावाथ: गु क मूित यान का मूल कारण है, गु के चरण पूजा का मूल कारण ह, वाणी जगत के सम त मं का और गु क कृपा मो ाि का मूल कारण ह।

    अख डम डलाकारं या ं येन चराचरम।् त पदं दिशतं येन त मै ीगुरव ेनमः।।

    वमेव माता च पता वमेव वमेव बंधु सखा वमेव। वमेव व ा वणं वमेव वमेव सव मम देव देव।।

    ानंदं परमसुखदं केवलं ानमूित ं ातीतं गगनस शं त वम या दल यम ्। एकं िन यं वमलमचलं सवधीसा भुतं भावातीतं गुणर हतं स ंु तं नमािम ॥

    भावाथ: ा के आनंद प परम ्सुख प, ानमूित, ं से परे, आकाश जैसे िनलप, और सू म "त वमिस" इस ईशत व क अनुभूित ह जसका ल य है; अ तीय, िन य वमल, अचल, भावातीत, और गुणर हत -

    ऐसे स ु को म णाम करता हूँ ।

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    Xkq:Ro T;ksfr”k 4 vxLr 2010

    गुव कम ्शर रं सु प ंतथा वा कल ,ं यश ा िच ंधन ंमे तु यम।् मन ेन ल न ंगुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्१॥ कल ंधन ंपु पौ ा दसव, गृहो बा धवाः सवमेत जातम।् मन ेन ल न ंगुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्२॥ षड़ंगा दवेदो मुखे शा व ा, क व वा द ग ं सुप ं करोित। मन ेन ल न ंगुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्३॥ वदेशेष ुमा यः वदेशेष ुध यः, सदाचारवृ ेष ुम ो न चा यः। मन ेन ल न ंगुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्४॥ माम डले भूपभूपलबृ दैः,

    सदा से वतं य य पादार व दम।् मन ेन ल न ंगुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्५॥ यशो मे गतं द ुदान तापात,् जग त ुसव करे य सादात।् मन ेन ल न ंगुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्६॥ न भोगे न योगे न वा वा जराजौ, न क तामुखे नैव व ेष ुिच म।् मन ेन ल न ंगुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्७॥

    अर ये न वा व य गेहे न काय, न देहे मनो वतते मे वन य। मन ेन ल नं गुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्८॥ गुरोर कं यः पठे पुरायदेह , यितभूपित चार च गेह । लमे ा छताथं पदं सं ,ं गुरो वा ये मनो य य ल नम॥्९॥ ॥इित ीमद आ शंकराचाय वरिचतम ्गुव कम संपूणम॥् ् भावाथ: (१) य द शर र पवान हो, प ी भी पसी हो और स क ित चार दशाओं म व त रत हो, सुमे पवत के तु य अपार धन हो, कंतु गु के ीचरण म य द मन आस न हो तो इन सार उपल धय से या लाभ?

    (२) य द प ी, धन, पु -पौ , कुटंुब, गृह एवं वजन, आ द ार ध से सव सुलभ हो कंतु गु के ीचरण म य द मन आस न हो तो इस ार ध-सुख से या लाभ? (३) य द वेद एवं ६ वेदांगा द शा ज ह कंठ थ ह , जनम सु दर का य िनमाण क ितभा हो, कंतु उनका मन य द गु के ीचरण के ित आस न हो तो इन

    सदगुण से या लाभ? (४) ज ह वदेश म समान आदर िमलता हो, अपने देश म जनका िन य जय-जयकार से वागत कया जाता हो और जसके समान दसरा कोई सदाचार भ ूनह ं, य द उनका भी मन गु के ीचरण के ित आस न हो तो सदगुण से या लाभ?

    (५) जन महानुभाव के चरण कमल भूम डल के राजा-महाराजाओं से िन य पू जत रहते ह , कंतु उनका मन य द गु के ीचरण के ित आस न हो तो इस सदभा य से या लाभ?

    (६) दानवृ के ताप से जनक क ित चारो दशा म या हो, अित उदार गु क सहज कृपा से ज ह संसार के सारे सुख-ए य ह तगत ह , कंतु उनका मन य द गु के ीचरण म आस भाव न रखता हो तो इन सारे एशवय से या लाभ?

    (७) जनका मन भोग, योग, अ , रा य, ी-सुख और धन भोग से कभी वचिलत

    न होता हो, फर भी गु के ीचरण के ित आस न बन पाया हो तो मन क इस अटलता से या लाभ?

    (८) जनका मन वन या अपने वशाल भवन म, अपने काय या शर र म तथा अमू य भ डार म आस न हो, पर गु के ीचरण म भी वह मन आस न हो पाये

    तो इन सार अनास य का या लाभ?

    (९) जो यित, राजा, चार एवं गृह थ इस गु अ क का पठन-पाठन करता है और जसका मन गु के वचन म आस है, वह पु यशाली शर रधार अपने इ छताथ एवं

    पद इन दोन को सं ा कर लेता है यह िन त है।

    ***

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    िशव मह व िचंतन जोशी

    धम शा ो म भगवान िशव को जगत पता बताया गया ह। यो क भगवान िशव सव यापी एवं पूण ह। हंद ूसं कृित

    म िशव को मनु य के क याण का तीक माना जाता ह। िशव श द के उ चारण या यान मा से ह मनु य

    को परम आनंद दान करता ह। भगवान िशव भारतीय सं कृित को दशन ान के ारा संजीवनी

    दान करन े वाल े देव ह। इसी कारण अना द काल स ेभारतीय धम साधना म िनराकार प म होते हवेु भी िशविलंग के प म साकार मूित क पूजा होती ह। देश- वदेश म भगवान िशव के मं दर हर छोटे-बडे शहर एवं क बो म मोजुद ह, जो भगवान महादेव क यापकता को एवं उनके भ ो क आ था को कट करते ह। भगवान िशव एक मा एसे देव ह जसे भोल े भंडार कहा जाता ह, भगवान िशव थोङ सी पूजा-अचना स े ह वह स न हो जाते ह। मानव जाित क उ प भी भगवान

    िशव स े मानी जाती ह। अतः भगवान िशव के व प को जानना येक िशव भ के िलए परम

    आव यक ह। भगवान भोले नाथ ने समु मंथन से िनकले हए सम वष को अपने कंठ म धारण ु

    कर वह नीलकंठ कहलाये।

    योितष संबंिधत वशेष परामश योित व ान, अंक योितष, वा तु एवं आ या मक ान स संबंिधत वषय म हमारे 28 वष से अिधक वष के अनुभव के

    साथ योितस से जुडे नये-नये संशोधन के आधार पर आप अपनी हर सम या के सरल समाधान ा कर कर सकते ह। गु व कायालय संपक : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785

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    Xkq:Ro T;ksfr”k 6 vxLr 2010

    f’ko mikluk dk egRo िचंतन जोशी

    भगवान िशव का सतो गुण, रजो गुण, तमो गुण तीन पर एक समान अिधकार ह। िशवन ेअपन ेम तक पर चं मा को धारण कर शिश शेखर कहलाय े ह। चं मा स े िशव को वशेष नेह होन े के कारण चं सोमवार का अिधपित ह इस िलय ेिशव का य वार सोमवार ह। िशव क पूजा-अचना के िलये सोमवार के दन करने का वशेष मह व ह, इस दन त रखने से या िशव िलंग पर अिभषेक करने से िशवक वशेष कृपा ा होती ह। सभी सोमवार िशव को य ह, परंतु पूरे ावण मास के सभी सोमवार को कय े गये त-पूजा अचना अिभषेक पूरे वष कये गये त के समान फल दान करन ेवाली होती ह। िशव को ावण मास इस िलये अिधक य ह यो क ावण मास म वातावरण म जल त व क अिधकता होती ह एवं चं जलत व का अिधपती ह ह। जो िशव के

    म तक पर सुशोिभत ह। िशव उपासना के विभ न प वेद म व णत ह। िशव मं उपासना म पंचा र "नम: िशवाय" या "ॐ नम: िशवाय" और महामृ युंजय इ या द मं के जप का भी ावण मास म वशेष मह व ह, ावण मास म कय गये मं जाप कई गुना अिधक भाव शाली िस होते देखे गये ह। जहा िशव पंचा र मं मनु य को सम त भौितक सुख साधनो क ाि हेतु वशेष लाभकार ह, वह ं महामृ युंजय मं के जप से मनु य के सभी कार के मृ यु भय-रोग-क -द र ता दर होकर उसे द घायु क ाि होती ह। ू महामृ युजंय मं , ािभषेक आ द का सामु हक अनु ान करन ेस ेअितवृ , अनावृ एवं महामार आ द से र ा होती ह एवं अ य सभी कार के उप व क शांित होती ह।

    भा य ल मी द बी सुख-शा त-समृ क ाि के िलये भा य ल मी द बी :- ज से धन ि , ववाह योग, यापार वृ , वशीकरण, कोट कचेर के काय, भूत ेत बाधा, मारण, स मोहन, ता क बाधा, श ुभय, चोर भय जेसी अनेक परेशािनयो से र ा होित है और घर मे सुख समृ क ाि होित है, भा य ल मी द बी मे लघु ी फ़ल, ह तजोड (हाथा जोड ), िसयार िस गी, ब ल नाल, शंख, काली-सफ़ेद-लाल गुंजा, इ जाल,

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    Xkq:Ro T;ksfr”k 7 vxLr 2010

    महामृ यु जय मं

    महामृ युंजय मं के विध वधान के साथ म जाप करने से अकाल मृ य ुतो टलती ह ह, रोग, शोक, भय इ या द का नाश होकर य को व थ आरो यता क ाि होती ह।

    य द नान करते समय शर र पर पानी डालते समय महामृ यु जय मं का जप करन ेसे वचा स ब धत सम याए दर होकर वा यू लाभ होता ह। य द कसी भी कार के अ र क आशंका हो, तो उसके िनवारण एवं शा त के िलये शा म स पूण विध- वधान से महामृ युंजय मं के जप करन ेका उ लेख कया गया ह। ज स े य मृ यु पर वजय ाि का वरदान देने वाले देवो के देव महादेव स न होकर अपने भ के सम त रोगो का हरण कर य

    को रोगमु कर उसे द घाय ु दान करते ह। मृ य ुपर वजय ा करने के कारण ह इस मं को मृ युंजय कहा जाता है। महामृ यंजय मं

    क म हमा का वणन िशव पुराण, काशीखंड और महापुराण म कया गया ह। आयुवद के ंथ म भी मृ युंजय मं का उ लेख है। मृ य ुको जीत लेने के कारण ह इस मं को मृ युंजय कहा जाता है।

    मह व: मृ यु विन जतो य मात ्त मा मृ युंजय: मृत: या मृ युंजयित इित मृ युंजय, अथात : जो मृ य ुको जीत ले, उस ेह मृ युंजय कहा जाता ह।

    मानव शर र म जो भी रोग उ प न होते ह उसके बारे म शा ो म जो उ लेख ह वह इस कार ह। "शर रं यािधमं दरम"् ांड के पंच त व से उ प न शर र म समय के अंतराल पर नाना कार क आिध- यिघ उपािधया ंउ प न होती रहती ह। इस िलए हम अपने शर र को व य रखने के िलए आहार- वहार, खान-पान और िनयिमत दनचया िन त समय पर करना पडता ह। य द इन सब को िन त समय अविध पर करते रहन ेके बाद भी य द कोई रोग या यािध हो जाए एवं वह रोग इलाज करान ेके बाद भी य द ठ क नह ं हो एवं सभी जगा से िनराशा हाथ लगरह हो तो एस ेअ र क िनवृ या शांित के िलए महामृ यु य मं जप का योग अव य कर। शा म मृ य ुभयको वप या संकट माना गया ह, एवं शा ो के अनुशार वप या मृ य के िनवारण के देवता िशव ह। एवं योितषशा के अनुशार दखु, वप या मृ य के दाता एवं िनवारण के देवता शिनदेव ह, यो क शिन य के कम के अनु प य को फल दान करते ह। शा ो के अनुशार माक डेय ऋ ष का जीवन अ य प था, परंतु महामृ युंजय मं जप से िशव कृपा ा कर उ ह िचरंजीवी होन ेका वरदान ा हवा।ु महामृ युंजय का वेदो मं िन निल खत है-

    ॐ य बकं यजामहे सुग धं पु वधनम ्। उवा किमव ब धना मृ योमु ीय माऽमृतात् ॥

    मं उ चारण वचार :इस मं म आए येक श द का उ चारण प करना अ यंत आव यक है, य क प श द उ चारण मे ह मं क सम श समा हत होती ह। इस मं म उ ले खत येक श द अपने आप म एक संपूण बीज मं का अथ िलए हए है।ु

    िचंतन जोशी

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    महामृ यंुजय मं जाप कस समय कर? िचंतन जोशी

    कब महामृ युंजय मं का जाप नान इ या द से िनवृत होकर ित दन भी कर सकते ह इ से व मान समय के क तो दर होते ह ह साथ म आने वाले क काभी वतः ह िनवारण हो जाता ह।ू महामृ युंजय मं के िनयिमत यथासंभव जाप करने से बहतु बाधाए ँदरू होती एसा हमने हमारे अनुभवो से जाना ह। परंतु य द वशेष थितय म महामृ युजंय मं के जाप क आव य ा हो तो भी करयाजा सकता ह। य द घरका कोइ सद य रोग स ेपी ड़त ह । या उसक सेहत बार बार खराब हो रह ह । भयंकर महामार से लोग मर रहे ह , तो जाप कर अपिन और अपन ेप रवार क सुर ा हेतु। य द सामु हक य ारा जाप कया जाय ेतो अ यािधक लोगो को लाभ होता ह। राजभय अथा त सरकार से संबंिधत कोइ पीडा या क ह । साधक का मन धािमक काय नह ंलग रहा ह । श ुसे संबंिधत परेशािन एवं लेश ह ।

    य द सामु हक य ारा जाप कया जाये तो सम व , देश, रा य, शहर आ द के हताथ उ े य से भी जप कये जासकते ह। इ स ेअ यािधक लोगो को लाभ होता ह। योितष मारक हो ारा ितकूल (अशुभ) फल ा हो रह ह । य द ज म, मास, गोचर और दशा, अंतदशा, थूलदशा आ द म हपीड़ा होने क आशंका ह । कंुडाली मेलापक म य द नाड़ दोष, षडा क आ द दोष ह । एक से अिधक अशुभ ह रोग एवं श ु थान(ष म भाव) म ह ।

    तो महामृ युंजय मं का जप करना परम फलदायी है। महामृ युंजय मं के जप व उपासना के तर के आव यकता के अनु प होते ह। का य उपासना के प म भी इस मं का जप कया जाता है। जप के िलए अलग-अलग मं का योग होता है। यहाँ हमन ेआपक सु वधा के िलए सं कृत म जप विध, विभ न यं -मं , जप म सावधािनया,ँ तो आ द उपल ध कराए ह। इस कार आप यहा ँइस अ भतु जप के बारे म व तृत जानकार ा कर सकते ह। महामृ युंजय जप विध - (मूल सं कृत म) कृतिन य यो जपकता वासन ेपांगमुख उदहमुखो वा उप व य धृत ा भ म पु ः । आच य । ाणानाया य। देशकालौ संक य मम वा य मान य अमुक कामनािस यथ ीमहामृ युंजय मं य अमुक सं याप रिमतं जपमहंक र ये वा कारिय ये। ॥ इित ा य हकसंक पः॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॐ गुरवे नमः। ॐ गणपतये नमः। ॐ इ देवताय ैनमः। इित न वा यथो विधना भूतशु ं ाण ित ा ंच कुयात ्।

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    Xkq:Ro T;ksfr”k 9 vxLr 2010

    सव रोगनाशक यं /कवच मनु य अपन ेजीवन के विभ न समय पर कसी ना कसी सा य या असा य रोग से त होता ह।

    उिचत उपचार से यादातर सा य रोगो से तो मु िमल जाती ह, ले कन कभी-कभी सा य रोग होकर भी असा या होजाते ह, या कोइ असा य रोग से िसत होजाते ह। हजारो लाखो पय ेखच करन ेपर भी अिधक लाभ ा नह ंहो पाता। डॉ टर ारा दजान ेवाली दवाईया अ प समय के िलय ेकारगर सा बत होती ह, एिस थती म लाभा ाि के िलये य एक डॉ टर से दसरेू डॉ टर के च कर लगाने को बा य हो जाता ह।

    भारतीय ऋषीयोने अपने योग साधना के ताप से रोग शांित हेतु विभ न आयुवर औषधो के अित र यं , मं एवं तं उ लेख अपन े ंथो म कर मानव जीवन को लाभ दान करन ेका साथक यास हजारो वष पूव कया था। बु जीवो के मत से जो य जीवनभर अपनी दनचया पर िनयम, संयम रख कर आहार हण करता ह, एसे य को विभ न रोग से िसत होन ेक संभावना कम होती ह। ले कन आज के बदलते युग म एस े य भी भयंकर रोग से त होते दख जाते ह। यो क सम संसार काल के अधीन ह। एवं मृ य ु िन त ह जसे वधाता के अलावा और कोई टाल नह ंसकता, ले कन रोग होन े क थती म य रोग दरू करन ेका यास तो अव य कर सकता ह। इस िलये यं मं एव ंतं के कुशल जानकार स ेयो य मागदशन लेकर य रोगो से मु पान ेका या उसके भावो को कम करन ेका यास भी अव य कर सकता ह।

    योितष व ा के कुशल जानकर भी काल पु षक गणना कर अनेक रोगो के अनेको रह य को उजागर कर सकते ह। योितष शा के मा यम से रोग के मलूको पकडने मे सहयोग िमलता ह, जहा आधुिनक िच क सा शा अ म होजाता ह वहा योितष शा ारा रोग के मूल(जड़) को पकड कर उसका िनदान करना लाभदायक एवं उपायोगी िस होता ह।

    हर य म लाल रंगक कोिशकाए पाइ जाती ह, जसका िनयमीत वकास म ब तर के स ेहोता रहता ह। जब इन कोिशकाओ के म म प रवतन होता है या वखं डन होता ह तब य के शर र म वा य संबंधी वकारो उ प न होते ह। एवं इन कोिशकाओ का संबंध नव हो के साथ होता ह। ज स ेरोगो के होन ेके कारणा य के ज मांग से दशा-महादशा एवं हो क गोचर म थती से ा होता ह।

    सव रोग िनवारण कवच एवं महामृ युंजय यं के मा यम से य के ज मांग म थत कमजोर एवं पी डत

    हो के अशुभ भाव को कम करन ेका काय सरलता पूवक कया जासकता ह। जेस ेहर य को ांड क उजा एव ंपृ वी का गु वाकषण बल भावीत कता ह ठक उसी कार कवच एवं यं के मा यम से ांड क उजा के सकारा मक भाव से य को सकारा मक उजा ा होती ह ज स ेरोग के भाव को कम कर रोग मु करन ेहेतु सहायता िमलती ह।

    रोग िनवारण हेतु महामृ युंजय मं एवं यं का बडा मह व ह। ज से ह द ूसं कृित का ायः हर य महामृ युंजय मं से प रिचत ह।

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    Xkq:Ro T;ksfr”k 10 vxLr 2010

    कवच के लाभ : एसा शा ो वचन ह जस घर म महामृ युंजय यं था पत होता

    ह वहा िनवास कता हो नाना कार क आिध- यािध-उपािध से र ा होती ह।

    पूण ाण ित त एवं पूण चैत य यु सव रोग िनवारण कवच कसी भी उ एवं जाित धम के लोग चाहे ी हो या पु ष धारण कर सकते ह।

    ज मांगम अनेक कारके खराब योगो और खराब हो क ितकूलता से रोग उतप न होते ह।

    कुछ रोग सं मण से होते ह एवं कुछ रोग खान-पान क अिनयिमतता और अशु तास ेउ प न होते ह। कवच एवं यं ारा एसे अनेक कार के खराब योगो को न कर, वा य लाभ और शार रक र ण ा करने हेतु सव रोगनाशक कवच एवं यं सव उपयोगी

    होता ह। आज के भौितकता वाद आधुिनक युगमे अनेक एसे रोग होते ह, जसका उपचार ओपरेशन और दवासे भी

    क ठन हो जाता ह। कुछ रोग एसे होते ह जसे बताने म लोग हच कचाते ह शरम अनुभव करते ह एसे रोगो को रोकने हेतु एवं उसके उपचार हेतु सव रोगनाशक कवच एवं यं लाभादािय िस होता ह।

    येक य क जेसे-जेस ेआयु बढती ह वैसे-वस ैउसके शर र क ऊजा होती जाती ह। जसके साथ अनेक कार के वकार पैदा होन ेलगते ह एसी थती म भी उपचार हेतु सव रोगनाशक कवच एवं यं फल द होता

    ह। जस घर म पता-पु , माता-पु , माता-पु ी, या दो भाई एक ह न मे ज म लेते ह, तब उसक माता के िलये

    अिधक क दायक थती होती ह। उपचार हेतु महामृ युंजय यं फल द होता ह। जस य का ज म प रिध योगम ेहोता ह उ हे होन ेवाले मृ य ुतु य क एवं होन ेवाले रोग, िचंता म

    उपचार हेतु सव रोगनाशक कवच एवं यं शुभ फल द होता ह। नोट:- पूण ाण ित त एवं पूण चैत य यु सव रोग िनवारण कवच एवं यं के बारे म अिधक जानकार हेतु हम से संपक कर।

    GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)

    Call Us - 9338213418, 9238328785

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    (ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)

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    Xkq:Ro T;ksfr”k 11 vxLr 2010

    िशव कृपा हेतु उ म ावण मास िचंतन जोशी

    भारत वष म अना दकाल से विभ न पव मनाये जाते ह, एवं भगवान िशव से संबंधी अनेक त- यौहात मनाए जाते रहे ह। इन उतसवो म ावण मास का अपना वशेष मह व ह। पौरा णक मा यताओ ंके अनुशार ावण मास म चार सोमवार (कभी-कभी पांच सोमवार होते ह) , एक दोष त तथा एक िशवरा शािमल होत ह इन सबका संयोग एकसाथ ावण मह न ेम होता ह, इसिलए ावण का मह ना िशव कृपा हेतु शी शुभ फल देने वाला मानागया ह। िशवपुराण के अनुशार ावण माह म ादश योितिलग के दशन करने से सम त तीथ के दशन का पू य

    एक साथ ह ा हो जाता ह। प पुराण के अनुशार ावण माह म ादश योितिलग के दशन करन ेसे मनु य क सम त शुभ कामनाए ं

    पूण होती ह एवं उस ेसंसार के सम त सुख क ाि होकर उसे िशव कृपा से मो क ाि हो जाती ह। थम सोमवार को- क चे चावल एक मु ठ िशव िलंग

    पर चढाया जाता ह। दसरेू सोमवार को- सफेद ित ली एक मु ठ िशव िलंग

    पर चढाया जाता ह। तीसरे सोमवार को- ख़ड़े मूँग एक मु ठ िशव िलंग पर

    चढाया जाता ह। चौथे सोमवार को- जौ एक मु ठ िशव िलंग पर चढाया जाता ह। य द पाँचवा ँसोमवार आए तो एक मु ठ क चा स ूचढाया जाता ह।

    िशव क पूजा म ब वप अिधक मह व रखता है। िशव ारा वषपान करने के कारण िशव के म तक पर जल क धारा से जलािभषेक िशव भ ारा कया जाता है। िशव भोलेनाथ ने गंगा को िशरोधाय कया है। ावण मास म िशवपुराण, िशवलीलामृत, िशव कवच, िशव चालीसा, िशव पंचा र मं , िशव पंचा र तो , महामृ युंजय मं का पाठ एवं जाप करना वशषे लाभ द होता ह।

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    bUnz tky&: 251 ek;k tky&: 251

    गु व कायालय संपक : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785

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    Xkq:Ro T;ksfr”k 12 vxLr 2010

    भौितक क दरू होते ह ावण मास के सोमवार त से िचंतन जोशी

    ावण मास इस साल 27 जुलाई से 24 अग त के बीच रहेगा। इस दौरान 2 अग त , 9 अग त , 16 अग त , 23 अग त को चार सोमवार ावण मास म पड़ रहे ह। क हं देशो म 27 जुलाई से ावण मास ारंभ होन ेसे 5 सोमवार होरहे ह। ावण मास के सम त सोमवार के दन त करन ेसे पूरे साल भर के सोमवार के त समान पु य फल िमलता ह। सोमवार के त के दन ातःकाल ह नान इ या द से िनवृ होकर, िशव मं दर, देवालय घरम जाकर िशव िलंग पर जल, दधू, दह , शहद, घी, चीनी, ेत चंदन, रोली(कुमकुम), ब व प (बेल प ), भांग, धतूरा आ द स अिभषेक कया जाता ह।

    पित क लंबी आयु क कामना हेतु सुहागन य को सोमवार के दन त रखन ेस ेिशव कृपा स ेअखंड सौभा य क ाि होती ह।

    ब चो को सोमवार का त कर िशव मं दर म जलािभषेक करने से व ा और बु क ाि होती ह। रोजगार ाि हेतु दध एवं जल चढाने से रोजगार ाि ू क संभावना बढ जाती ह। यापार एवं नौकर करने वाले य य द ावण मास के सोमवार का त करने से धन-धा य और ल मी क

    वृ होती ह।

    त के दन गंगाजल से नान कर अथवा जल म थोडा गंगा जल िमला कर नान करन ेके प यात िशव िलंग पर जल चढ़ाया जाता ह। आज भी उ र एवं पूव भारत म कांवड़ पर परा का वशेष मह व ह। ाल ुगंगाजल अथवा प व न द स कावड़ म जल भरकर तीथ थल तक कांवड़ लेकर जाते ह। इसका उ े य िशवजीक कृपा ा करना ह। आज के भौितकतावा द युग म य अिधक स ेअिधक भौितक सुख साधनो को जुटाते हएु कभी-कभी य नैितकता का दामन छोड कर अनैितकता का दामन थाम लेता ह जस के फल व प अपन े ितकूल कम के कारण य को भ व य म अनेक सम याओ ंस े िसत होते देखा गया ह। य ारा कये गये ितकूल कम के बंधन से मु कराने क समथता भगवान भोले भंडार िशव क कृपा ाि से य के ारा संिचत पाप न हो जाते ह।

    मं िस यं गु व कायालय ारा विभ न कार के यं कोपर(ता प ), िसलवर (चांद ) ओर गो ड (सोने) मे विभ न कार क सम या के अनुसार बनवा के मं िस पूण ाण ित त एवं चैत य यु कये जाते है. जसे साधारण (जो पूजा-पाठ नह जानते या नह कसकते) य बना कसी पूजा अचना- विध वधान वशेष लाभ ा कर सकते है. जस मे िचन यं ो स हत हमारे वष के अनुसंधान ारा बनाए गये यं भी समा हत है. इसके अलवा आपक आव यकता अनुशार यं बनवाए जाते है. गु व कायालय ारा उपल ध कराये गये सभी यं अखं डत एवं २२ गेज शु कोपर(ता प )- 99.99 टच शु िसलवर (चांद ) एवं 22 केरेट गो ड (सोने) मे बनवाए जाते है. यं के वषय मे अिधक जानकार के िलये हेतु स पक करे

    गु व कायालय: Bhubaneswar- 751 018, (ORISSA) INDIA

    Call Us : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785, E-mail Us:- [email protected], [email protected],

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    Xkq:Ro T;ksfr”k 13 vxLr 2010

    सोमवार त कथा व तक.ऎन.जोशी

    कैलाश के उ र म िनषध पवत के िशखर पर वय ं भा नामक एक वशाल पुर थी जसम धन वाहन नामक एक गण वराज रहते थे। समय अनुसार उ हे आठ पु और अंत म एक क या उ प न हईु जसका नाम गंधव सेना था। वह अ य त पवती थी और उसे अपन े प का बहतु अिभमान था। वह कहा करती थी क संसार म कोई गंधव या देवी मेरे प के करोड़व ेअंश

    के समान भी नह ंहै। एक दन एक आकाशचर गण नायक ने उसक बात सुनी तो उस ेशाप दे दया 'तुम प के अिभमान' म गंधव और देवताओ ंका अपमान करती हो अत: तु हारे शर र म कोढ़ हो जायेगा। शाप सुन कर क या भयभीत हो गयी और दया क भीख मांगने लगी। उसक बनती सुन कर गणनायक को दया आ गयी और उ ह न ेकहा हमालय के वन म गो ृ ंग नाम के े मुनी रहते है। वे तु हारा उपकार करेगे। ऐसा कह कर गणनायक चला गया। गंधव सेना व छोड़ कर अपन े पता के पास आई और अपन ेकु होन ेके कारण तथा उसस ेमु का उपाय बताया। माता पता उस ेत ण लेकर हमालय पवत पर गए और गो ृ ंग का दशन करके तुित करन ेलगे। मुिन के पूछन ेपर उ ह न ेकहा क मेरे बेट को कोढ़ हो गया है कृपया इसक शांित का कोई उपाय बताएं। मुिन ने कहा क समु के समीप भगवान सोमनाथ वराजमान है। वहां जाकर सोमवार त ारा भगवान शंकर क आराधना करो। ऐसा करने से पु ी का रोग दर हो जायेगा। मुिन के वचन सुन करू धनवाहन अपनी पु ी के साथ भास े म जाकर सोमनाथ के दशन कए और पूरे विध वधान के साथ सोमवार ज करते हए भगवान ुशंकर क आराधना कए उनक भ स े स न होकर शंकर भगवान ने उस क या के रोग को दर कया और उ हे ूअपनी भ भी दान म दया। आज भी लोग िशव जी को स न करने के िलए इस त को पूर िन ा एवं भ के साथ करते है और िशव क कृपा को ा करते है।

    शैतान जब एक शैतान का मन अपने आप से ऊब गया, तो उसने सं यास लेने का िन य कया। तब उसने अपने गुलाम को एक-एक कर बेचना शु कर दया। 'बुराई', 'झूठ', 'ई या', 'िन साह, ' 'दप'-सब पं बांधकर उसके सामने खड़े हो गये। शैतान के भ आते गए और उ ह पहचान कर एक-एक को खर दते गये। पर अंत म एक बहत ह भ ड़ा ुऔर कु प गुलाम खड़ा था, जसे कोई पहचान नह ंपा रहा था। आ य क बात तो यह थी क शैतान ने उसका मू य दसरे सभी गुलाम से बढ़करू था। अ त म साहस करके एक खर ददार ने शैतान से पूछा यह महाशय कौन ह? "ओह, यह!" शैतान मु कराया, "यह मेरा सबसे य और वफादार गुलाम है। बहतु थोड़े ह लोग जानते ह क यह मेरा दा हना हाथ ह। म इसके सहारे बड़ आसानी से लोग को अपने िशकंजे म कस लेता हूं; उ ह एक-दसरेू के खून का यास बना देता हं। यू , नह ं पहचाना अभी भी?" शैतान अ टहास कर उठा, फर बोला, "यह फूट है, फूट!" व तक

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    सा ात ह िशविलंग िचंतन जोशी

    िशविलंगक पूजा-अचना अना दकालसे व यापक रह ह। संसार के सबसे ाचीन थ ऋ वेद म िलंग उपासना का उ लेख िमलता ह।

    सवदेवा मको : सव देवा: िशवा मका:। भावाथ: भगवान िशव और सव देव म वराजमान होने से के ह पयायवाची श द ह। ाय: सभी सभी शा एवं पुराण म िशविलंग के पूजन का उ लेख िमलता ह। ह द ूशा म जहां भी िशव उपासनाका वणन कया गया ह, वहां िशविलंग क म हमा का गुण-गान अव य िमलता ह। क दपुराणम िशविलंग म हमा इस कार क गई है-

    आकाश ंिल गिम याहु:पृ वी त यपी ठका। आलय: सवदेवानांलयना ल गमु यते॥

    भावाथ: आकाश िलंग है और पृ वी उसक पी ठका ह। इस िलंग म सम त देवताओं का वास ह। स पूण सृ का इसम लय ह, इसीिलए इसे िलंग कहते ह।

    िशवपुराणम िशविलंग म हमा इस कार क गई है- िल गमथ ह पु षंिशवंगमयती यद:।

    िशव-श यो िच यमेलनंिल गमु यते॥ भावाथ: िशव-श के िच का स मिलत व प ह िशविलंग ह। इस कार िलंग म सृ के जनक क अचना होती है। िलंग परमपु ष सदा िशवका बोधक ह। इस कार यह व दत होता है क िलंग का थम अथ कट करने वाला हआु , य क इसी से सृ क उ प हई ह। ु

    दसरा ू भावाथ: यह ा णय का परम कारण और िनवास-थान ह।

    तीसरा भावाथ: िशव- श का िलंग योिन भाव और अ नार र भाव मूलत:एक ह व प ह। सृ के बीज को देने वाले परम िलंग प भगवान िशव जब अपनी कृित पा श से आधार-आधेय क भाँित संयु होते ह, तभी सृ क उ प होती है, अ यथा नह ं। िलंगपुराण िशविलंग म हमा इस कार क गई है-

    मूले ा तथा म ये व णु भुवने र:। ोप रमहादेव: णवा य:सदािशव:॥

    िल गवेद महादेवी िल गसा ा महे र:। तयो:स पूजना न यंदेवी देव पू जतो॥

    भावाथ: िशव िलंगके मूल म ा, म य म व णु तथा शीष म शंकर ह। णव (ॐ) व प होने से सदािशवमहादेव कहलाते ह। िशविलंग णव का प होने से सा ात ् ह है। िलंग महे र और उसक वेद महादेवी होने से िलगांचनके ारा िशव-िश दोन क पूजा वत:स प न हो जाती है। िलंगपुराण म िशव को देवमयऔर िशव-श का संयु व प होने का उ लेख कया

    गया ह। भगवान िशव ारा िशविलंग म हमा इस कार क गई है-

    लोकं िल गा मकं ा वािल गेयोऽचयते ह माम ् । न मेत मा यतर: योवा व ते विचत ् ॥

    भावाथ: जो भ संसार के मूल कारण महाचैत यिलंग क अचना करता ह और लोक को िलंगा मकजानकर िलंग-पूजा म त पर रहता ह, मुझे उससे अिधक य अ य कोई मनु य नह ं ह।

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    Xkq:Ro T;ksfr”k 15 vxLr 2010

    आपक रािश और िशव पूजा िचंतन जोशी

    िशव पुराण म उ लेख ह क महािशवरा के दन िशविलंग क उ प हईु थी, िशववरा के दन िशव पूजन, त और उपवास से य को अनतं फल क ाि होती ह। योितष शा के अनुसार य अपनी रािश के अनुसा भगवान िशव क आराधना और पूजन कर वशेष लाभ ा कर सकते ह । जसे अपनी ज म रािश या नाम रािश पता हो वह य िन न साम ी से िशविलंग पर अिभषेक कर तो वशेष लाभ ा होते देखा गया ह।

    O मेष : जल या दध केू साथ म गुड़, शहद (मध,ु महु, मध) लाल चंदन, लाल कनेर के फूल सब िमला कर या कसी भी एक व तु को जल/ दधू के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ िमलता ह।

    P वृषभ : जल या दह के साथ म श कर(िम ी), अ त(चांवल), सफेद ितल, सफेद चंदन, ेत आक फूल सब िमला कर या कसी भी एक व तु को जल या दह के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ िमलता ह।

    Q िमथुन: गंगा जल या दधू के साथ म दबू, जौ, बेल प सब िमला कर या कसी भी एक व तु को गंगा जल या दधू के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ िमलता ह।

    R कक : दधू या जल के साथ म शु घी, सफेद ितल, सफेद चंदन, सफेद आक सब िमला कर या कसी भी एक व तु को दध ूया जल के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ ा होता ह।

    S िसंह: जल या दध के साथ म शु घीू , गुड़, शहद (मध,ु महु, मध) लाल चंदन सब िमला कर या कसी भी एक व तु को जल या दध के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ ा होता ह।ू

    T क या : गंगा जल या दधू के साथ म दबू, जौ, बेल प सब िमला कर या कसी भी एक व त ुको गंगा जल या दधू के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ िमलता ह।

    U तुला : गंगा जल या दह के साथ म श कर(िम ी), अ त(चांवल), सफेद ितल, सफेद चंदन, ेत आक फूल, सुगंिधत इ सब िमला कर या कसी भी एक व तु को जल या दह के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ िमलता ह।

    V वृ क : जल या दधू के साथ म घी, गुड़, शहद (मध,ु महु, मध) लाल चंदन, लाल रंग के फूल सब िमला कर या कसी भी एक व तु को जल/ दधू के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ िमलता ह।

    W धन ु: जल या दधू के साथ म ह द , केसर, चावल, घी, शहद, पीले फुल, पीली सरस , नागकेसर सब िमला कर या कसी भी एक व त ुको जल/ दधू के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ ा होता ह।

    X मकर : गंगा जल या दह के साथ म काले ितल, सफेद चंदन, श कर(िम ी), अ त(चांवल),सब िमला कर या कसी भी एक व त ु को अिभषेक गंगा जल या दह के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ ा होता ह।

    Y कंुभ : गंगा जल या दह के साथ म काले ितल, सफेद चंदन, श कर(िम ी), अ त(चांवल),सब िमला कर या कसी भी एक व त ुको अिभषेक गंगा जल या दह के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ ा होता ह।

    Z मीन : जल या दध के ू साथ म ह द , केसर, चावल, घी, शहद, पीले फुल, पीली सरस , नागकेसर सब िमला कर या कसी भी एक व त ुको जल/ दधू के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ ा होता ह।

    महािशव रा एव ं ावण मास मे सोमवार के दन कोइ भी य जसे अपनी रािश पता नह ं ह वह य चाहे तो पंचामृत से िशविलंग का अिभषेक कर सकते ह

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    ादश योितिलग तो म ्सौरा देश े वशदेऽितर य े योितमय ंच कलावतंसम।् भ दानाय कृपावतीण तं सोमनाथं शरणं प े॥१॥ ीशैलशृंग े वबुधाितसंग ेतुला तंुगेऽ प मुदा वस तम।्

    तमजुन ंम लकपूवमेकं नमािम संसारसमु सेतुम॥्२॥ अव तकाया ं व हतावतारं मु दानाय च स जनानाम।् अकालमृ यो: प रर णाथ व दे महाकालमहासुरेशम॥्३॥

    कावे रकानमदयो: प व ेसमागम ेस जनतारणाय। सदैव मा धातृपुरे वस तम कारमीश ंिशवमेकमीडे॥४॥ पूव रे विलकािनधान ेसदा वस तं िग रजासमेतम।् सुरासुरारािधतपादप ं ीवै नाथं तमहं नमािम॥५॥

    या ये सदंग ेनगरेितऽर ये वभू षतांगम ् व वधै भोग:ै। स मु दमीशमेकं ीनागनाथं शरणं प े॥६॥ महा पा च तटे रम तं स पू यमान ंसततं मुनी ैः। सुरासुरैय महोरगा :ै केदारमीश ंिशवमेकमीडे॥७॥ स ा शीष वमल ेवस तं गोदावर तीरप व देशे।

    य शनात ्पातकमाश ुनाश ं याित तं य बकमीशमीडे॥८॥ सुता पण जलरािशयोग ेिनब य सेतंु विशखैरसं य:ै। ीरामच ेण सम पतं तं रामे रा यं िनयतं नमािम॥९॥

    यं डा कनीशा किनकासमाज ेिनषे यमाण ं पिशताशनै । सदैव भीमा दपद िस ं तं शंकरं भ हतं नमािम॥१०॥ सान दमान दवन ेवस तमान दक दं हतपापवृ दम।् वाराणसीनाथमनाथनाथं ी व नाथं शरणं प े॥११॥

    इलापुरे र य वशालकेऽ मन ्समु लस तं च जग रे यम।् व दे महोदारतरं वभाव ंघृ णे रा य ंशरणं प े॥१२॥ योितमय ादशिलंगकाना ंिशवा मना ं ो िमदं मेण।

    तो ंप ठ वा मनुजोऽितभ या फल ंतदालो य िनजं भजे च॥

    जो य ा पूवक इस ादश योितिलग तो का पाठ करता ह, उसे सा ात ादश योितिलग के दशन करन ेके समान ह लाभ ा होता ह।

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    Xkq:Ro T;ksfr”k 17 vxLr 2010

    िशवरा त से लाभ महा िशवरा भगवान शंकर का सबस ेप व दन माना जाता ह। िशवरा पर अपनी आ मा को िनमल करन ेका महा त माना जाता ह। महािशव रा त से मनु य के सभी पाप का नाश हो जाता ह। उ क हंसक वृ बदल जाती ह। सम त जीव के ित उसके िभतर दया, क णा इ या द स भावो का आगमन होता है।

    ईशान सं हता म िशवरा के बारे मे उ लेख इस कार कया गया है-

    िशवरा तम नाम सवपाम णाशनम।् ् ् आचा डाल मनु याणम भु मु दायकं॥्

    भावाथ:- िशव रा नाम वाला त सम त पाप का शमन करने वाला ह। इस दन त कर ने से दु मनु य को भी भ मु ा होती ह। योितष शा

    चतुदशी ितिथ के वामी िशवजी ह। योितष शा म चतुदशी ितिथ को परम शुभ फलदायी मना गया ह। वैसे तो िशवरा हर मह ने चतुदशी ितिथ को होती ह। परंतु फा गुन कृ ण प क चतुदशी को महािशवरा कहा गया ह। योितषी शा के अनुसार व को उजा दान करने वाले सूय इस समय तक उ रायण म आ होते ह, और ऋतु प रवतन का यह समय अ यंत शभु कहा माना जाता ह। िशव का अथ ह है क याण करना, एवं िशवजी सबका क याण करने वाले देवो के भी देव महादेव ह। अत: महा िशवरा के दन िशव कृपा ा कर य को सरलता से इ छत सुख क ाि होती ह। योितषीय िस ंत के अनुसार चतुदशी ितिथ तक चं मा अपनी ीण थ अव था म पहंच जा ा ह। ु अपनी ीण अव था के कारण बलह न होकर चं मा सृ को ऊजा( काश) देने म असमथ हो जाते ह।

    चं का सीधा संबंध मनु य के मन से बताया गया ह। योितष िस त से जब चं कमजोर होतो मन थोडा कमजोर हो जाता ह, ज से भौितक संताप ाणी को घेर लेते ह, और वषाद, मा सक चंच ता-अ थरता एवं असंतुलन स ेमनु य को विभ न कार के क का सामना करना पड़ता ह।

    धम ंथोमे चं मा को िशव के म तक पर सुशोिभत बताय गया ह। ज से भगवान िशव क कृपा ा होने से चं देव क कृपा वतः ा हो जाती ह। महािशवरा को िशव क अ यंत य ितिथ बताई गई ह। यादातर योितषी िशवरा के दन िशव आराधना कर सम त क से मु पाने क सलाह देते ह।

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    गंगा का वग से पृथवी पर आगमन केसे हवाु ? िचंतन जोशी

    युिध र ने लोमश ऋ ष से पूछा, "हे मुिनवर! राजा भगीरथ गंगा को कस कार पृ वी पर ले आये? कृपया इस संग को भी सुनाय।" लोमश ऋ ष ने कहा, "धमराज!

    इ वाकु वंश म सगर नामक एक बहत ह तापी राजा हवे।ु ु उनके वैदभ और शै या नामक दो रािनयाँ थीं। राजा सगर ने कैलाश पवत पर दोन रािनय के साथ जाकर शंकर भगवान क घोर तप या क । उनक तप या से स न होकर भगवान शंकर ने उनसे कहा क हे राजन!् तुमन ेपु ाि क कामना से मेर आराधना क है। अतएव म वरदान देता हँ क तु हार एक रानी के ूसाठ हजार पु ह गे क तु दसर रानी से तु हारा वंश चलाने वाला एक ह ूसंतान होगी। इतना कहकर शंकर भगवान पूनः अ त यान हो गये। "समय बीतने पर शै या ने असमंज नामक एक अ य त पवान पु को ज म दया और वैदभ के गभ से एक तु बी उ प न हई जसे फोड़नेु

    पर साठ हजार पु िनकले। कालच बीतता गया और असमंज का अंशुमान नामक पु उ प न हआ। असमंज अ य त द कृित का था इसिलयेु ु राजा सगर

    ने उसे अपने देश से बाहर कर दया। फर एक बार राजा सगर ने अ मेघ य करने क द ा ली। अ मेघ य का यामकण घोड़ा छोड़ दया गया और उसके पीछे-

    पीछे राजा सगर के साठ हजार पु अपनी वशाल सेना के साथ चलने लगे। सगर के इस अ मेघ य से भयभीत होकर देवराज इ ने अवसर पाकर उस घोड़े को चुरा िलया और उसे ले जाकर क पल मुिन के आ म म बाँध दया। उस समय क पल मुिन यान म लीन थे अतः उ ह इस बात का पता नह ंचला क इ ने घोड़े बाँध दया ह। इधर सगर के साठ हजार पु ने घोड़े को पृ वी के हरेक थान पर ढँढाू क तु उसका पता नह ं लग पाया। वे घोड़े को खोजते हये पृ वी को खोद कर ु पाताल लोक तक पहँचु गये जहाँ अपने आ म म क पल मुिन तप या कर रहे थे और वह ं पर वह घोड़ा बँधा हआु था। सगर के पु ने यह समझ कर क घोड़े को क पल मुिन ह चुरा लाये ह, क पल मुिन को कटवचन सुनाना आर भु कर दया। अपन ेिनरादर से कु पत होकर क पल मुिन न ेराजा सगर के साठ हजार पु को अपने ोधा न से भ म कर दया। जब सगर को नारद मुिन के ारा अपने साठ हजार पु के भ म हो जाने का समाचार िमला तो व ेअपन ेपौ अंशुमान को बुलाकर बोले क बेटा! तु हारे साठ हजार दादाओं को मेरे कारण क पल मुिन क ोधा न म भ म हो जाना पड़ा। अब तुम क पल मुिन के आ म म जाकर उनसे मा ाथना करके उस घोड़े को ले आओ। अंशुमान अपने दादाओं के बनाये हयेु रा ते से चलकर क पल मुिन के आ म म जा पहँचे। वहाँ पहँचु ु कर उ ह ने अपनी ाथना एवं मृद यवहार से क पु ल मुिन को स न कर िलया। क पल मुिन ने स न होकर उ ह वर माँगने के िलये कहा। अंशुमान बोल े क मुने! कृपा कर के हमारा अ लौटा द और हमारे दादाओ ंके उ ारका कोई उपाय बताय। क पल मुिन ने घोड़ा लौटाते हयेु कहा क व स! जब तु हारे दादाओकंा उ ार केवल गंगा के जल से तपण करने पर ह हसकता है।

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    "अंशुमान ने य का अ लाकर सगर का अ मेघ य पूण करा दया। य पूण होने पर राजा सगर अंशुमान को रा य स प कर गंगा को वग स ेपृ वी पर लाने के उ े य से तप या करने के िलये उ राखंड चले गये इस कार तप या करते-करते उनका वगवास हो गया। अंशुमान के पु का नाम दलीप था। दलीप के बड़े होने पर अंशुमान भी दलीप को रा य स प कर गंगा को वग से पृ वी पर लाने के उ े य से तप या करने के िलये उ राखंड चले गये क तु वे भी गंगा को वग से पृ वी पर लाने म सफल नह ं हो सके। दलीप के पु का नाम भगीरथ था। भगीरथ के बड़े होने पर दलीप ने भी अपने पूवज का अनुगमन कया क तु गंगा को लाने म उ ह भी असफलता ह हाथ आई। "अ ततः भगीरथ क तप या से गंगा स न ह औरु उनसे वरदान माँगने के िलया कहा। भगीरथ ने हाथ जोड़कर कहा क माता! मेरे साठ हजार पुरख के उ ार हेतु आप पृ वी पर अवत रत होने क कृपा कर। इस पर गगंा ने कहा व स! म तु हार बात मानकर पृ वी पर अव य आउँगी, क तु मेरे वेग को शंकर भगवान के अित र और कोई सहन नह ं कर सकता। इसिलये तुम पहले शंकर भगवान को स न करो। यह सुन कर भगीरथ ने शंकर भगवान क घोर तप या क और उनक तप या से स न होकर िशव जी हमालय के िशखर पर गंगा के वेग को रोकने के िलये खड़े हो गये। गंगा जी वग से सीधे िशव जी क जटाओं पर जा िगर ं। इसके बाद भगीरथ गंगा जी को अपन ेपीछे-पीछे अपने पूवज के अ थय तक ले आये जससे उनका उ ार हो गया। भगीरथ के पूवज का उ ार करके गंगा जी सागर म जा िगर ं और अग य मुिन ारा सोखे हयेु समु म फर से जल भर गया।"

    जीवन म ान क कमाई एक संत महा मा थे। उनका एक युवा िश य था। उस िश य को अपने ान और व ता पर बड़ा घमंड था। महा मा उसके इस घमंड को दर करना चाहते थे। इसिलएू एक दन सवेरे ह वह उसे साथ लेकर या ा पर िनकले। धूप चढ़ते देख दोन एक खेत म पहंचे। वहां एक कु सान या रयां बना कर सींच रहा था। गु -िश य काफ देर तक वहां खड़े रहे, क तु कसान ने आंख उठाकर उनक ओर देखा तक नह ं। वह लगन से अपने काम म म नता से अपने काम म लगा रहा। सं या होते होते गु -िश य एक नगर म पहंचे। वहां उ ह ने देखा क एक ुलुहार लोहा पीट रहा ह। पसीने से उसक सार देह तर-बतर हो रह थी। गु -िश य काफ देर वहा ंखड़े रहे, ले कन लुहार को गदन ऊपर उठाने क भी फुरसत नह ं थी। गु -िश य फर और आगे बढ़े और सं या से रा ी होने के समय वे एक सराय म पहंचे। वेु थकान से चूर हो गये। वहां तीन मुसा फर और बैठे थे। वे भी पूर तरह थके हए दखाईु पड़ते थे। गु ने िश य से कहा, "तुमन ेदेखा, कुछ पान ेके िलए कतना देना पडता ह। कसान अपना तन-मन लुटाता ह, तब कह ं खेत म अ न फलता ह। लुहार शर र क उजा देता ह तब धातु िस होती ह। या ी अपने को चुकाकर मं जल पाता ह। तुमने ान के पोथे-पर-पोथे रट डाल,े ले कन कतना ान पा िलया? ान तो कमाई ह। कमाकर उसे पाया जाता ह। कम से ान क या रय को सींचो। जीवन क आंच म ान क धातु िस करो। माग म अपने को चुकाकर ान क

    मं जल पाओ। ान कसी का सगा नह ं ह। ान को जो कमाता ह, ान उसी के पास जाता ह।

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    िशव पूजन से कामना िस िचंतन जोशी

    िशविलंग पर गंगा जल से अिभषेक करने से भौितक सुख ा होता ह एवं मनु य को मो क ाि होती ह। िशव पुराण के अनुशार िशविलंग पर अ न, फूल एवं विभ न व तुओं से जलािभषेक कर मनु य के सम त कार के क ोका िनवारण कया जासकता ह। िन न साधना िशव ितमा(मूित) के सम करने से शी लाभ ा होते ह। ल मी ाि हेतु भगवान िशव को ब वप , कमल, शतप एवं शंखपु प अपण करने से लाभ ा होता ह। पु ाि हेतु भगवान िशव को धतुरे के फूल अपण करने से शुभ फल क ाि होती ह। भौितक सुख एवं मो ाि हेतु वेत आक, अपमाग एवं सफेद कमल के फूल भगवान िशव को चढाने से लाभ

    ा होता ह। वाहन सुख क ाि हेतु चमेली के फूल भगवान िशव को चढाने से शी उ म वाहन ाि के योग बनते ह। ववाह सुख म आने वाली बाधाओं को दर करने हेतु बेला के फूल भगवान िशव को चढाने से उ म प ी क ू

    ाि होती होती ह एवं क या के फूल चढाने से उ म पित क ाि होती ह। जूह के फूल भगवान िशव को चढाने से य को अ न का अभाव नह ं होता ह।

    सुख स प क ाि हेतु भगवान िशव को हार िसंगार के फूल चढाने से लाभ ा होता ह।

    िशविलंग पर अिभषेक हेतु योग वंश वृ हेतु िशविलंग पर घी का अिभषेक शुभ फलदायी होता ह। भौितक सुख साधनो म वृ हेतु िशविलंग पर सुगंिधत य से अिभषेक करन ेसे शी उनम बढोतर होती ह। रोग िनवृ हेतु महामृ युंजय मं जप करते हवे शहद ु (मधु) से अिभषेक करने से रोग का नाश होता ह। रोजगार वृ हेतु गंगाजल एवं शहद (मधु) से अिभषेक करने से लाभ ा होता ह।

    वण मास म कये गये पूजन एवं अिभषेक से भगवान िशव क कृपा ाि के साथ-साथ माता पवती, गणेश और मां ल मी क भी कृपा ा होती ह।

    या आप कसी सम या से त ह? आपक�