मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप...

106
मेरी इयावन कवताएँ अटल बहारी वाजपेयी अनुभूत के वर 1. आओ फर से दया जलाएँ आओ फर से दया जलाएँ भरी पहरी म अंधयारा सूरज परछाई से हारा अंतरतम का नेह नचोड़ - बुझी ई बाती सुलगाएँ। आओ फर से दया जलाएँ हम पड़ाव को समझे मंज़ल लय आ आंख से ओझल वतमान के मोहजाल म- आने वाला कल न भुलाएँ। आओ फर से दया जलाएँ।

Upload: others

Post on 20-Apr-2020

16 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

Page 1: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

मरी इयावन कवताए अटल बहारी वाजपयी

अनभत क वर

1 आओ फर स दया जलाए

आओ फर स दया जलाए

भरी पहरी म अधयारा

सरज परछाई स हारा

अतरतम का नह नचोड़-

बझी ई बाती सलगाए

आओ फर स दया जलाए

हम पड़ाव को समझ मज़ल

लय आ आख स ओझल

वतमान क मोहजाल म-

आन वाला कल न भलाए

आओ फर स दया जलाए

आत बाक य अधरा

अपन क वन न घरा

अतम जय का व बनान-

नव दधीच हया गलाए

आओ फर स दया जलाए

2 हरी हरी ब पर

हरी हरी ब पर

ओस क बद

अभी थी

अभी नह ह

ऐसी खशया

जो हमशा हमारा साथ द

कभी नह थी

कह नह ह

कायर क कोख स

फटा बाल सय

जब परब क गोद म

पाव फलान लगा

तो मरी बगीची का

पा-पा जगमगान लगा

म उगत सय को नमकार क

या उसक ताप स भाप बनी

ओस क बद को ढढ

सय एक सय ह

जस झठलाया नह जा सकता

मगर ओस भी तो एक सचाई ह

यह बात अलग ह क ओस णक ह

य न म ण ण को जऊ

कण-कण म बखर सौदय को पऊ

सय तो फर भी उगगा

धप तो फर भी खलगी

लकन मरी बगीची क

हरी-हरी ब पर

ओस क बद

हर मौसम म नह मलगी

3 पहचान

आदमी न ऊचा होता ह न नीचा होता ह

न बड़ा होता ह न छोटा होता ह

आदमी सफ आदमी होता ह

पता नह इस सीध-सपाट सय को

नया य नह जानती ह

और अगर जानती ह

तो मन स य नह मानती

इसस फक नह पड़ता

क आदमी कहा खड़ा ह

पथ पर या रथ पर

तीर पर या ाचीर पर

फक इसस पड़ता ह क जहा खड़ा ह

या जहा उस खड़ा होना पड़ा ह

वहा उसका धरातल या ह

हमालय क चोट पर पच

एवरट-वजय क पताका फहरा

कोई वजता यद ईया स दध

अपन साथी स वासघात कर

तो उसका या अपराध

इसलए य हो जाएगा क

वह एवरट क ऊचाई पर आ था

नह अपराध अपराध ही रहगा

हमालय क सारी धवलता

उस कालमा को नह ढ़क सकती

कपड़ क धया सफद जस

मन क मलनता को नह छपा सकती

कसी सत कव न कहा ह क

मनय क ऊपर कोई नह होता

मझ लगता ह क मनय क ऊपर

उसका मन होता ह

छोट मन स कोई बड़ा नह होता

टट मन स कोई खड़ा नह होता

इसीलए तो भगवान कण को

श स सज रथ पर चढ़

क क मदान म खड़

अजन को गीता सनानी पड़ी थी

मन हारकर मदान नह जीत जात

न मदान जीतन स मन ही जीत जात ह

चोट स गरन स

अधक चोट लगती ह

अथ जड़ जाती

पीड़ा मन म सलगती ह

इसका अथ यह नह क

चोट पर चढ़न क चनौती ही न मान

इसका अथ यह भी नह क

परथत पर वजय पान क न ठान

आदमी जहा ह वही खड़ा रह

सर क दया क भरोस पर पड़ा रह

जड़ता का नाम जीवन नह ह

पलायन परोगमन नह ह

आदमी को चाहए क वह जझ

परथतय स लड़

एक व टट तो सरा गढ़

कत कतना भी ऊचा उठ

मनयता क तर स न गर

अपन धरातल को न छोड़

अतयामी स मह न मोड़

एक पाव धरती पर रखकर ही

वामन भगवान न आकाश-पाताल को जीता था

धरती ही धारण करती ह

कोई इस पर भार न बन

मया अभयान स न तन

आदमी क पहचान

उसक धन या आसन स नह होती

उसक मन स होती ह

मन क फकरी पर

कबर क सपदा भी रोती ह

4 गीत नह गाता

बनकाब चहर ह

दाग बड़ गहर ह

टटता तलम आज सच स भय खाता

गीत नही गाता

लगी कछ ऐसी नज़र

बखरा शीश सा शहर

अपन क मल म मीत नह पाता

गीत नह गाता

पीठ म छरी सा चाद

रा गया रखा फाद

म क ण म बार-बार बध जाता

गीत नह गाता

5 न म चप न गाता

न म चप न गाता

सवरा ह मगर परब दशा म

घर रह बादल

ई स धधलक म

मील क पथर पड़ घायल

ठठक पाव

ओझल गाव

जड़ता ह न गतमयता

वय को सर क स

म दख पाता

न म चप न गाता

समय क सदर सास न

चनार को झलस डाला

मगर हमपात को दती

चनौती एक ममाला

बखर नीड़

वहस चीड़

आस ह न मकान

हमानी झील क तट पर

अकला गनगनाता

न म चप न गाता

6 गीत नया गाता

गीत नया गाता

टट ए तार स फट बासती वर

पथर क छाती म उग आया नव अकर

झर सब पील पात कोयल क कक रात

ाची म अणम क रख दख पता

गीत नया गाता

टट ए सपन क कौन सन ससक

अतर क चीर था पलक पर ठठक

हार नह मानगा रार नह ठानगा

काल क कपाल प लखता मटाता

गीत नया गाता

7 ऊचाई

ऊच पहाड़ पर

पड़ नह लगत

पौध नह उगत

न घास ही जमती ह

जमती ह सफ बफ

जो कफ़न क तरह सफ़द और

मौत क तरह ठडी होती ह

खलती खलखलाती नद

जसका प धारण कर

अपन भाय पर बद-बद रोती ह

ऐसी ऊचाई

जसका परस

पानी को पथर कर द

ऐसी ऊचाई

जसका दरस हीन भाव भर द

अभनदन क अधकारी ह

आरोहय क लय आमण ह

उस पर झड गाड़ जा सकत ह

कत कोई गौरया

वहा नीड़ नह बना सकती

ना कोई थका-मादा बटोही

उसक छाव म पलभर पलक ही झपका सकता ह

सचाई यह ह क

कवल ऊचाई ही काफ़ नह होती

सबस अलग-थलग

परवश स पथक

अपन स कटा-बटा

शय म अकला खड़ा होना

पहाड़ क महानता नह

मजबरी ह

ऊचाई और गहराई म

आकाश-पाताल क री ह

जो जतना ऊचा

उतना एकाक होता ह

हर भार को वय ढोता ह

चहर पर मकान चपका

मन ही मन रोता ह

ज़री यह ह क

ऊचाई क साथ वतार भी हो

जसस मनय

ठठ सा खड़ा न रह

और स घल-मल

कसी को साथ ल

कसी क सग चल

भीड़ म खो जाना

याद म डब जाना

वय को भल जाना

अतव को अथ

जीवन को सगध दता ह

धरती को बौन क नह

ऊच कद क इसान क जरत ह

इतन ऊच क आसमान छ ल

नय न म तभा क बीज बो ल

कत इतन ऊच भी नह

क पाव तल ब ही न जम

कोई काटा न चभ

कोई कली न खल

न वसत हो न पतझड़

हो सफ ऊचाई का अधड़

मा अकलपन का साटा

मर भ

मझ इतनी ऊचाई कभी मत दना

ग़र को गल न लगा सक

इतनी खाई कभी मत दना

8 कौरव कौन कौन पाडव

कौरव कौन

कौन पाडव

टढ़ा सवाल ह

दोन ओर शकन

का फला

कटजाल ह

धमराज न छोड़ी नह

जए क लत ह

हर पचायत म

पाचाली

अपमानत ह

बना कण क

आज

महाभारत होना ह

कोई राजा बन

रक को तो रोना ह

9 ध म दरार पड़ गई

ख़न य सफ़द हो गया

भद म अभद खो गया

बट गय शहीद गीत कट गए

कलज म कटार दड़ गई

ध म दरार पड़ गई

खत म बाद गध

टट गय नानक क छद

सतलज सहम उठ थत सी बतता ह

वसत स बहार झड़ गई

ध म दरार पड़ गई

अपनी ही छाया स बर

गल लगन लग ह ग़र

ख़दकशी का राता तह वतन का वाता

बात बनाए बगड़ गई

ध म दरार पड़ गई

10 मन का सतोष

पथवी पर

मनय ही ऐसा एक ाणी ह

जो भीड़ म अकला और

अकल म भीड़ स घरा अनभव करता ह

मनय को झड म रहना पसद ह

घर-परवार स ारभ कर

वह बतया बसाता ह

गली-ाम-पर-नगर सजाता ह

सयता क नर दौड़ म

सकत को पीछ छोड़ता आ

कत पर वजय

मय को म म करना चाहता ह

अपनी रा क लए

और क वनाश क सामान जटाता ह

आकाश को अभशत

धरती को नवसन

वाय को वषा

जल को षत करन म सकोच नह करता

कत यह सब कछ करन क बाद

जब वह एकात म बठकर वचार करता ह

वह एकात फर घर का कोना हो

या कोलाहल स भरा बाजार

या काश क गत स तज उड़ता जहाज

या कोई वानक योगशाला

था मदर

या मरघट

जब वह आमालोचन करता ह

मन क परत खोलता ह

वय स बोलता ह

हान-लाभ का लखा-जोखा नह

या खोया या पाया का हसाब भी नह

जब वह परी जदगी को ही तौलता ह

अपनी कसौट पर वय को ही कसता ह

नममता स नरखता परखता ह

तब वह अपन मन स या कहता ह

इसी का महव ह यही उसका सय ह

अतम याा क अवसर पर

वदा क वला म

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 2: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

आत बाक य अधरा

अपन क वन न घरा

अतम जय का व बनान-

नव दधीच हया गलाए

आओ फर स दया जलाए

2 हरी हरी ब पर

हरी हरी ब पर

ओस क बद

अभी थी

अभी नह ह

ऐसी खशया

जो हमशा हमारा साथ द

कभी नह थी

कह नह ह

कायर क कोख स

फटा बाल सय

जब परब क गोद म

पाव फलान लगा

तो मरी बगीची का

पा-पा जगमगान लगा

म उगत सय को नमकार क

या उसक ताप स भाप बनी

ओस क बद को ढढ

सय एक सय ह

जस झठलाया नह जा सकता

मगर ओस भी तो एक सचाई ह

यह बात अलग ह क ओस णक ह

य न म ण ण को जऊ

कण-कण म बखर सौदय को पऊ

सय तो फर भी उगगा

धप तो फर भी खलगी

लकन मरी बगीची क

हरी-हरी ब पर

ओस क बद

हर मौसम म नह मलगी

3 पहचान

आदमी न ऊचा होता ह न नीचा होता ह

न बड़ा होता ह न छोटा होता ह

आदमी सफ आदमी होता ह

पता नह इस सीध-सपाट सय को

नया य नह जानती ह

और अगर जानती ह

तो मन स य नह मानती

इसस फक नह पड़ता

क आदमी कहा खड़ा ह

पथ पर या रथ पर

तीर पर या ाचीर पर

फक इसस पड़ता ह क जहा खड़ा ह

या जहा उस खड़ा होना पड़ा ह

वहा उसका धरातल या ह

हमालय क चोट पर पच

एवरट-वजय क पताका फहरा

कोई वजता यद ईया स दध

अपन साथी स वासघात कर

तो उसका या अपराध

इसलए य हो जाएगा क

वह एवरट क ऊचाई पर आ था

नह अपराध अपराध ही रहगा

हमालय क सारी धवलता

उस कालमा को नह ढ़क सकती

कपड़ क धया सफद जस

मन क मलनता को नह छपा सकती

कसी सत कव न कहा ह क

मनय क ऊपर कोई नह होता

मझ लगता ह क मनय क ऊपर

उसका मन होता ह

छोट मन स कोई बड़ा नह होता

टट मन स कोई खड़ा नह होता

इसीलए तो भगवान कण को

श स सज रथ पर चढ़

क क मदान म खड़

अजन को गीता सनानी पड़ी थी

मन हारकर मदान नह जीत जात

न मदान जीतन स मन ही जीत जात ह

चोट स गरन स

अधक चोट लगती ह

अथ जड़ जाती

पीड़ा मन म सलगती ह

इसका अथ यह नह क

चोट पर चढ़न क चनौती ही न मान

इसका अथ यह भी नह क

परथत पर वजय पान क न ठान

आदमी जहा ह वही खड़ा रह

सर क दया क भरोस पर पड़ा रह

जड़ता का नाम जीवन नह ह

पलायन परोगमन नह ह

आदमी को चाहए क वह जझ

परथतय स लड़

एक व टट तो सरा गढ़

कत कतना भी ऊचा उठ

मनयता क तर स न गर

अपन धरातल को न छोड़

अतयामी स मह न मोड़

एक पाव धरती पर रखकर ही

वामन भगवान न आकाश-पाताल को जीता था

धरती ही धारण करती ह

कोई इस पर भार न बन

मया अभयान स न तन

आदमी क पहचान

उसक धन या आसन स नह होती

उसक मन स होती ह

मन क फकरी पर

कबर क सपदा भी रोती ह

4 गीत नह गाता

बनकाब चहर ह

दाग बड़ गहर ह

टटता तलम आज सच स भय खाता

गीत नही गाता

लगी कछ ऐसी नज़र

बखरा शीश सा शहर

अपन क मल म मीत नह पाता

गीत नह गाता

पीठ म छरी सा चाद

रा गया रखा फाद

म क ण म बार-बार बध जाता

गीत नह गाता

5 न म चप न गाता

न म चप न गाता

सवरा ह मगर परब दशा म

घर रह बादल

ई स धधलक म

मील क पथर पड़ घायल

ठठक पाव

ओझल गाव

जड़ता ह न गतमयता

वय को सर क स

म दख पाता

न म चप न गाता

समय क सदर सास न

चनार को झलस डाला

मगर हमपात को दती

चनौती एक ममाला

बखर नीड़

वहस चीड़

आस ह न मकान

हमानी झील क तट पर

अकला गनगनाता

न म चप न गाता

6 गीत नया गाता

गीत नया गाता

टट ए तार स फट बासती वर

पथर क छाती म उग आया नव अकर

झर सब पील पात कोयल क कक रात

ाची म अणम क रख दख पता

गीत नया गाता

टट ए सपन क कौन सन ससक

अतर क चीर था पलक पर ठठक

हार नह मानगा रार नह ठानगा

काल क कपाल प लखता मटाता

गीत नया गाता

7 ऊचाई

ऊच पहाड़ पर

पड़ नह लगत

पौध नह उगत

न घास ही जमती ह

जमती ह सफ बफ

जो कफ़न क तरह सफ़द और

मौत क तरह ठडी होती ह

खलती खलखलाती नद

जसका प धारण कर

अपन भाय पर बद-बद रोती ह

ऐसी ऊचाई

जसका परस

पानी को पथर कर द

ऐसी ऊचाई

जसका दरस हीन भाव भर द

अभनदन क अधकारी ह

आरोहय क लय आमण ह

उस पर झड गाड़ जा सकत ह

कत कोई गौरया

वहा नीड़ नह बना सकती

ना कोई थका-मादा बटोही

उसक छाव म पलभर पलक ही झपका सकता ह

सचाई यह ह क

कवल ऊचाई ही काफ़ नह होती

सबस अलग-थलग

परवश स पथक

अपन स कटा-बटा

शय म अकला खड़ा होना

पहाड़ क महानता नह

मजबरी ह

ऊचाई और गहराई म

आकाश-पाताल क री ह

जो जतना ऊचा

उतना एकाक होता ह

हर भार को वय ढोता ह

चहर पर मकान चपका

मन ही मन रोता ह

ज़री यह ह क

ऊचाई क साथ वतार भी हो

जसस मनय

ठठ सा खड़ा न रह

और स घल-मल

कसी को साथ ल

कसी क सग चल

भीड़ म खो जाना

याद म डब जाना

वय को भल जाना

अतव को अथ

जीवन को सगध दता ह

धरती को बौन क नह

ऊच कद क इसान क जरत ह

इतन ऊच क आसमान छ ल

नय न म तभा क बीज बो ल

कत इतन ऊच भी नह

क पाव तल ब ही न जम

कोई काटा न चभ

कोई कली न खल

न वसत हो न पतझड़

हो सफ ऊचाई का अधड़

मा अकलपन का साटा

मर भ

मझ इतनी ऊचाई कभी मत दना

ग़र को गल न लगा सक

इतनी खाई कभी मत दना

8 कौरव कौन कौन पाडव

कौरव कौन

कौन पाडव

टढ़ा सवाल ह

दोन ओर शकन

का फला

कटजाल ह

धमराज न छोड़ी नह

जए क लत ह

हर पचायत म

पाचाली

अपमानत ह

बना कण क

आज

महाभारत होना ह

कोई राजा बन

रक को तो रोना ह

9 ध म दरार पड़ गई

ख़न य सफ़द हो गया

भद म अभद खो गया

बट गय शहीद गीत कट गए

कलज म कटार दड़ गई

ध म दरार पड़ गई

खत म बाद गध

टट गय नानक क छद

सतलज सहम उठ थत सी बतता ह

वसत स बहार झड़ गई

ध म दरार पड़ गई

अपनी ही छाया स बर

गल लगन लग ह ग़र

ख़दकशी का राता तह वतन का वाता

बात बनाए बगड़ गई

ध म दरार पड़ गई

10 मन का सतोष

पथवी पर

मनय ही ऐसा एक ाणी ह

जो भीड़ म अकला और

अकल म भीड़ स घरा अनभव करता ह

मनय को झड म रहना पसद ह

घर-परवार स ारभ कर

वह बतया बसाता ह

गली-ाम-पर-नगर सजाता ह

सयता क नर दौड़ म

सकत को पीछ छोड़ता आ

कत पर वजय

मय को म म करना चाहता ह

अपनी रा क लए

और क वनाश क सामान जटाता ह

आकाश को अभशत

धरती को नवसन

वाय को वषा

जल को षत करन म सकोच नह करता

कत यह सब कछ करन क बाद

जब वह एकात म बठकर वचार करता ह

वह एकात फर घर का कोना हो

या कोलाहल स भरा बाजार

या काश क गत स तज उड़ता जहाज

या कोई वानक योगशाला

था मदर

या मरघट

जब वह आमालोचन करता ह

मन क परत खोलता ह

वय स बोलता ह

हान-लाभ का लखा-जोखा नह

या खोया या पाया का हसाब भी नह

जब वह परी जदगी को ही तौलता ह

अपनी कसौट पर वय को ही कसता ह

नममता स नरखता परखता ह

तब वह अपन मन स या कहता ह

इसी का महव ह यही उसका सय ह

अतम याा क अवसर पर

वदा क वला म

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 3: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

जब परब क गोद म

पाव फलान लगा

तो मरी बगीची का

पा-पा जगमगान लगा

म उगत सय को नमकार क

या उसक ताप स भाप बनी

ओस क बद को ढढ

सय एक सय ह

जस झठलाया नह जा सकता

मगर ओस भी तो एक सचाई ह

यह बात अलग ह क ओस णक ह

य न म ण ण को जऊ

कण-कण म बखर सौदय को पऊ

सय तो फर भी उगगा

धप तो फर भी खलगी

लकन मरी बगीची क

हरी-हरी ब पर

ओस क बद

हर मौसम म नह मलगी

3 पहचान

आदमी न ऊचा होता ह न नीचा होता ह

न बड़ा होता ह न छोटा होता ह

आदमी सफ आदमी होता ह

पता नह इस सीध-सपाट सय को

नया य नह जानती ह

और अगर जानती ह

तो मन स य नह मानती

इसस फक नह पड़ता

क आदमी कहा खड़ा ह

पथ पर या रथ पर

तीर पर या ाचीर पर

फक इसस पड़ता ह क जहा खड़ा ह

या जहा उस खड़ा होना पड़ा ह

वहा उसका धरातल या ह

हमालय क चोट पर पच

एवरट-वजय क पताका फहरा

कोई वजता यद ईया स दध

अपन साथी स वासघात कर

तो उसका या अपराध

इसलए य हो जाएगा क

वह एवरट क ऊचाई पर आ था

नह अपराध अपराध ही रहगा

हमालय क सारी धवलता

उस कालमा को नह ढ़क सकती

कपड़ क धया सफद जस

मन क मलनता को नह छपा सकती

कसी सत कव न कहा ह क

मनय क ऊपर कोई नह होता

मझ लगता ह क मनय क ऊपर

उसका मन होता ह

छोट मन स कोई बड़ा नह होता

टट मन स कोई खड़ा नह होता

इसीलए तो भगवान कण को

श स सज रथ पर चढ़

क क मदान म खड़

अजन को गीता सनानी पड़ी थी

मन हारकर मदान नह जीत जात

न मदान जीतन स मन ही जीत जात ह

चोट स गरन स

अधक चोट लगती ह

अथ जड़ जाती

पीड़ा मन म सलगती ह

इसका अथ यह नह क

चोट पर चढ़न क चनौती ही न मान

इसका अथ यह भी नह क

परथत पर वजय पान क न ठान

आदमी जहा ह वही खड़ा रह

सर क दया क भरोस पर पड़ा रह

जड़ता का नाम जीवन नह ह

पलायन परोगमन नह ह

आदमी को चाहए क वह जझ

परथतय स लड़

एक व टट तो सरा गढ़

कत कतना भी ऊचा उठ

मनयता क तर स न गर

अपन धरातल को न छोड़

अतयामी स मह न मोड़

एक पाव धरती पर रखकर ही

वामन भगवान न आकाश-पाताल को जीता था

धरती ही धारण करती ह

कोई इस पर भार न बन

मया अभयान स न तन

आदमी क पहचान

उसक धन या आसन स नह होती

उसक मन स होती ह

मन क फकरी पर

कबर क सपदा भी रोती ह

4 गीत नह गाता

बनकाब चहर ह

दाग बड़ गहर ह

टटता तलम आज सच स भय खाता

गीत नही गाता

लगी कछ ऐसी नज़र

बखरा शीश सा शहर

अपन क मल म मीत नह पाता

गीत नह गाता

पीठ म छरी सा चाद

रा गया रखा फाद

म क ण म बार-बार बध जाता

गीत नह गाता

5 न म चप न गाता

न म चप न गाता

सवरा ह मगर परब दशा म

घर रह बादल

ई स धधलक म

मील क पथर पड़ घायल

ठठक पाव

ओझल गाव

जड़ता ह न गतमयता

वय को सर क स

म दख पाता

न म चप न गाता

समय क सदर सास न

चनार को झलस डाला

मगर हमपात को दती

चनौती एक ममाला

बखर नीड़

वहस चीड़

आस ह न मकान

हमानी झील क तट पर

अकला गनगनाता

न म चप न गाता

6 गीत नया गाता

गीत नया गाता

टट ए तार स फट बासती वर

पथर क छाती म उग आया नव अकर

झर सब पील पात कोयल क कक रात

ाची म अणम क रख दख पता

गीत नया गाता

टट ए सपन क कौन सन ससक

अतर क चीर था पलक पर ठठक

हार नह मानगा रार नह ठानगा

काल क कपाल प लखता मटाता

गीत नया गाता

7 ऊचाई

ऊच पहाड़ पर

पड़ नह लगत

पौध नह उगत

न घास ही जमती ह

जमती ह सफ बफ

जो कफ़न क तरह सफ़द और

मौत क तरह ठडी होती ह

खलती खलखलाती नद

जसका प धारण कर

अपन भाय पर बद-बद रोती ह

ऐसी ऊचाई

जसका परस

पानी को पथर कर द

ऐसी ऊचाई

जसका दरस हीन भाव भर द

अभनदन क अधकारी ह

आरोहय क लय आमण ह

उस पर झड गाड़ जा सकत ह

कत कोई गौरया

वहा नीड़ नह बना सकती

ना कोई थका-मादा बटोही

उसक छाव म पलभर पलक ही झपका सकता ह

सचाई यह ह क

कवल ऊचाई ही काफ़ नह होती

सबस अलग-थलग

परवश स पथक

अपन स कटा-बटा

शय म अकला खड़ा होना

पहाड़ क महानता नह

मजबरी ह

ऊचाई और गहराई म

आकाश-पाताल क री ह

जो जतना ऊचा

उतना एकाक होता ह

हर भार को वय ढोता ह

चहर पर मकान चपका

मन ही मन रोता ह

ज़री यह ह क

ऊचाई क साथ वतार भी हो

जसस मनय

ठठ सा खड़ा न रह

और स घल-मल

कसी को साथ ल

कसी क सग चल

भीड़ म खो जाना

याद म डब जाना

वय को भल जाना

अतव को अथ

जीवन को सगध दता ह

धरती को बौन क नह

ऊच कद क इसान क जरत ह

इतन ऊच क आसमान छ ल

नय न म तभा क बीज बो ल

कत इतन ऊच भी नह

क पाव तल ब ही न जम

कोई काटा न चभ

कोई कली न खल

न वसत हो न पतझड़

हो सफ ऊचाई का अधड़

मा अकलपन का साटा

मर भ

मझ इतनी ऊचाई कभी मत दना

ग़र को गल न लगा सक

इतनी खाई कभी मत दना

8 कौरव कौन कौन पाडव

कौरव कौन

कौन पाडव

टढ़ा सवाल ह

दोन ओर शकन

का फला

कटजाल ह

धमराज न छोड़ी नह

जए क लत ह

हर पचायत म

पाचाली

अपमानत ह

बना कण क

आज

महाभारत होना ह

कोई राजा बन

रक को तो रोना ह

9 ध म दरार पड़ गई

ख़न य सफ़द हो गया

भद म अभद खो गया

बट गय शहीद गीत कट गए

कलज म कटार दड़ गई

ध म दरार पड़ गई

खत म बाद गध

टट गय नानक क छद

सतलज सहम उठ थत सी बतता ह

वसत स बहार झड़ गई

ध म दरार पड़ गई

अपनी ही छाया स बर

गल लगन लग ह ग़र

ख़दकशी का राता तह वतन का वाता

बात बनाए बगड़ गई

ध म दरार पड़ गई

10 मन का सतोष

पथवी पर

मनय ही ऐसा एक ाणी ह

जो भीड़ म अकला और

अकल म भीड़ स घरा अनभव करता ह

मनय को झड म रहना पसद ह

घर-परवार स ारभ कर

वह बतया बसाता ह

गली-ाम-पर-नगर सजाता ह

सयता क नर दौड़ म

सकत को पीछ छोड़ता आ

कत पर वजय

मय को म म करना चाहता ह

अपनी रा क लए

और क वनाश क सामान जटाता ह

आकाश को अभशत

धरती को नवसन

वाय को वषा

जल को षत करन म सकोच नह करता

कत यह सब कछ करन क बाद

जब वह एकात म बठकर वचार करता ह

वह एकात फर घर का कोना हो

या कोलाहल स भरा बाजार

या काश क गत स तज उड़ता जहाज

या कोई वानक योगशाला

था मदर

या मरघट

जब वह आमालोचन करता ह

मन क परत खोलता ह

वय स बोलता ह

हान-लाभ का लखा-जोखा नह

या खोया या पाया का हसाब भी नह

जब वह परी जदगी को ही तौलता ह

अपनी कसौट पर वय को ही कसता ह

नममता स नरखता परखता ह

तब वह अपन मन स या कहता ह

इसी का महव ह यही उसका सय ह

अतम याा क अवसर पर

वदा क वला म

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 4: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

लकन मरी बगीची क

हरी-हरी ब पर

ओस क बद

हर मौसम म नह मलगी

3 पहचान

आदमी न ऊचा होता ह न नीचा होता ह

न बड़ा होता ह न छोटा होता ह

आदमी सफ आदमी होता ह

पता नह इस सीध-सपाट सय को

नया य नह जानती ह

और अगर जानती ह

तो मन स य नह मानती

इसस फक नह पड़ता

क आदमी कहा खड़ा ह

पथ पर या रथ पर

तीर पर या ाचीर पर

फक इसस पड़ता ह क जहा खड़ा ह

या जहा उस खड़ा होना पड़ा ह

वहा उसका धरातल या ह

हमालय क चोट पर पच

एवरट-वजय क पताका फहरा

कोई वजता यद ईया स दध

अपन साथी स वासघात कर

तो उसका या अपराध

इसलए य हो जाएगा क

वह एवरट क ऊचाई पर आ था

नह अपराध अपराध ही रहगा

हमालय क सारी धवलता

उस कालमा को नह ढ़क सकती

कपड़ क धया सफद जस

मन क मलनता को नह छपा सकती

कसी सत कव न कहा ह क

मनय क ऊपर कोई नह होता

मझ लगता ह क मनय क ऊपर

उसका मन होता ह

छोट मन स कोई बड़ा नह होता

टट मन स कोई खड़ा नह होता

इसीलए तो भगवान कण को

श स सज रथ पर चढ़

क क मदान म खड़

अजन को गीता सनानी पड़ी थी

मन हारकर मदान नह जीत जात

न मदान जीतन स मन ही जीत जात ह

चोट स गरन स

अधक चोट लगती ह

अथ जड़ जाती

पीड़ा मन म सलगती ह

इसका अथ यह नह क

चोट पर चढ़न क चनौती ही न मान

इसका अथ यह भी नह क

परथत पर वजय पान क न ठान

आदमी जहा ह वही खड़ा रह

सर क दया क भरोस पर पड़ा रह

जड़ता का नाम जीवन नह ह

पलायन परोगमन नह ह

आदमी को चाहए क वह जझ

परथतय स लड़

एक व टट तो सरा गढ़

कत कतना भी ऊचा उठ

मनयता क तर स न गर

अपन धरातल को न छोड़

अतयामी स मह न मोड़

एक पाव धरती पर रखकर ही

वामन भगवान न आकाश-पाताल को जीता था

धरती ही धारण करती ह

कोई इस पर भार न बन

मया अभयान स न तन

आदमी क पहचान

उसक धन या आसन स नह होती

उसक मन स होती ह

मन क फकरी पर

कबर क सपदा भी रोती ह

4 गीत नह गाता

बनकाब चहर ह

दाग बड़ गहर ह

टटता तलम आज सच स भय खाता

गीत नही गाता

लगी कछ ऐसी नज़र

बखरा शीश सा शहर

अपन क मल म मीत नह पाता

गीत नह गाता

पीठ म छरी सा चाद

रा गया रखा फाद

म क ण म बार-बार बध जाता

गीत नह गाता

5 न म चप न गाता

न म चप न गाता

सवरा ह मगर परब दशा म

घर रह बादल

ई स धधलक म

मील क पथर पड़ घायल

ठठक पाव

ओझल गाव

जड़ता ह न गतमयता

वय को सर क स

म दख पाता

न म चप न गाता

समय क सदर सास न

चनार को झलस डाला

मगर हमपात को दती

चनौती एक ममाला

बखर नीड़

वहस चीड़

आस ह न मकान

हमानी झील क तट पर

अकला गनगनाता

न म चप न गाता

6 गीत नया गाता

गीत नया गाता

टट ए तार स फट बासती वर

पथर क छाती म उग आया नव अकर

झर सब पील पात कोयल क कक रात

ाची म अणम क रख दख पता

गीत नया गाता

टट ए सपन क कौन सन ससक

अतर क चीर था पलक पर ठठक

हार नह मानगा रार नह ठानगा

काल क कपाल प लखता मटाता

गीत नया गाता

7 ऊचाई

ऊच पहाड़ पर

पड़ नह लगत

पौध नह उगत

न घास ही जमती ह

जमती ह सफ बफ

जो कफ़न क तरह सफ़द और

मौत क तरह ठडी होती ह

खलती खलखलाती नद

जसका प धारण कर

अपन भाय पर बद-बद रोती ह

ऐसी ऊचाई

जसका परस

पानी को पथर कर द

ऐसी ऊचाई

जसका दरस हीन भाव भर द

अभनदन क अधकारी ह

आरोहय क लय आमण ह

उस पर झड गाड़ जा सकत ह

कत कोई गौरया

वहा नीड़ नह बना सकती

ना कोई थका-मादा बटोही

उसक छाव म पलभर पलक ही झपका सकता ह

सचाई यह ह क

कवल ऊचाई ही काफ़ नह होती

सबस अलग-थलग

परवश स पथक

अपन स कटा-बटा

शय म अकला खड़ा होना

पहाड़ क महानता नह

मजबरी ह

ऊचाई और गहराई म

आकाश-पाताल क री ह

जो जतना ऊचा

उतना एकाक होता ह

हर भार को वय ढोता ह

चहर पर मकान चपका

मन ही मन रोता ह

ज़री यह ह क

ऊचाई क साथ वतार भी हो

जसस मनय

ठठ सा खड़ा न रह

और स घल-मल

कसी को साथ ल

कसी क सग चल

भीड़ म खो जाना

याद म डब जाना

वय को भल जाना

अतव को अथ

जीवन को सगध दता ह

धरती को बौन क नह

ऊच कद क इसान क जरत ह

इतन ऊच क आसमान छ ल

नय न म तभा क बीज बो ल

कत इतन ऊच भी नह

क पाव तल ब ही न जम

कोई काटा न चभ

कोई कली न खल

न वसत हो न पतझड़

हो सफ ऊचाई का अधड़

मा अकलपन का साटा

मर भ

मझ इतनी ऊचाई कभी मत दना

ग़र को गल न लगा सक

इतनी खाई कभी मत दना

8 कौरव कौन कौन पाडव

कौरव कौन

कौन पाडव

टढ़ा सवाल ह

दोन ओर शकन

का फला

कटजाल ह

धमराज न छोड़ी नह

जए क लत ह

हर पचायत म

पाचाली

अपमानत ह

बना कण क

आज

महाभारत होना ह

कोई राजा बन

रक को तो रोना ह

9 ध म दरार पड़ गई

ख़न य सफ़द हो गया

भद म अभद खो गया

बट गय शहीद गीत कट गए

कलज म कटार दड़ गई

ध म दरार पड़ गई

खत म बाद गध

टट गय नानक क छद

सतलज सहम उठ थत सी बतता ह

वसत स बहार झड़ गई

ध म दरार पड़ गई

अपनी ही छाया स बर

गल लगन लग ह ग़र

ख़दकशी का राता तह वतन का वाता

बात बनाए बगड़ गई

ध म दरार पड़ गई

10 मन का सतोष

पथवी पर

मनय ही ऐसा एक ाणी ह

जो भीड़ म अकला और

अकल म भीड़ स घरा अनभव करता ह

मनय को झड म रहना पसद ह

घर-परवार स ारभ कर

वह बतया बसाता ह

गली-ाम-पर-नगर सजाता ह

सयता क नर दौड़ म

सकत को पीछ छोड़ता आ

कत पर वजय

मय को म म करना चाहता ह

अपनी रा क लए

और क वनाश क सामान जटाता ह

आकाश को अभशत

धरती को नवसन

वाय को वषा

जल को षत करन म सकोच नह करता

कत यह सब कछ करन क बाद

जब वह एकात म बठकर वचार करता ह

वह एकात फर घर का कोना हो

या कोलाहल स भरा बाजार

या काश क गत स तज उड़ता जहाज

या कोई वानक योगशाला

था मदर

या मरघट

जब वह आमालोचन करता ह

मन क परत खोलता ह

वय स बोलता ह

हान-लाभ का लखा-जोखा नह

या खोया या पाया का हसाब भी नह

जब वह परी जदगी को ही तौलता ह

अपनी कसौट पर वय को ही कसता ह

नममता स नरखता परखता ह

तब वह अपन मन स या कहता ह

इसी का महव ह यही उसका सय ह

अतम याा क अवसर पर

वदा क वला म

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 5: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

पथ पर या रथ पर

तीर पर या ाचीर पर

फक इसस पड़ता ह क जहा खड़ा ह

या जहा उस खड़ा होना पड़ा ह

वहा उसका धरातल या ह

हमालय क चोट पर पच

एवरट-वजय क पताका फहरा

कोई वजता यद ईया स दध

अपन साथी स वासघात कर

तो उसका या अपराध

इसलए य हो जाएगा क

वह एवरट क ऊचाई पर आ था

नह अपराध अपराध ही रहगा

हमालय क सारी धवलता

उस कालमा को नह ढ़क सकती

कपड़ क धया सफद जस

मन क मलनता को नह छपा सकती

कसी सत कव न कहा ह क

मनय क ऊपर कोई नह होता

मझ लगता ह क मनय क ऊपर

उसका मन होता ह

छोट मन स कोई बड़ा नह होता

टट मन स कोई खड़ा नह होता

इसीलए तो भगवान कण को

श स सज रथ पर चढ़

क क मदान म खड़

अजन को गीता सनानी पड़ी थी

मन हारकर मदान नह जीत जात

न मदान जीतन स मन ही जीत जात ह

चोट स गरन स

अधक चोट लगती ह

अथ जड़ जाती

पीड़ा मन म सलगती ह

इसका अथ यह नह क

चोट पर चढ़न क चनौती ही न मान

इसका अथ यह भी नह क

परथत पर वजय पान क न ठान

आदमी जहा ह वही खड़ा रह

सर क दया क भरोस पर पड़ा रह

जड़ता का नाम जीवन नह ह

पलायन परोगमन नह ह

आदमी को चाहए क वह जझ

परथतय स लड़

एक व टट तो सरा गढ़

कत कतना भी ऊचा उठ

मनयता क तर स न गर

अपन धरातल को न छोड़

अतयामी स मह न मोड़

एक पाव धरती पर रखकर ही

वामन भगवान न आकाश-पाताल को जीता था

धरती ही धारण करती ह

कोई इस पर भार न बन

मया अभयान स न तन

आदमी क पहचान

उसक धन या आसन स नह होती

उसक मन स होती ह

मन क फकरी पर

कबर क सपदा भी रोती ह

4 गीत नह गाता

बनकाब चहर ह

दाग बड़ गहर ह

टटता तलम आज सच स भय खाता

गीत नही गाता

लगी कछ ऐसी नज़र

बखरा शीश सा शहर

अपन क मल म मीत नह पाता

गीत नह गाता

पीठ म छरी सा चाद

रा गया रखा फाद

म क ण म बार-बार बध जाता

गीत नह गाता

5 न म चप न गाता

न म चप न गाता

सवरा ह मगर परब दशा म

घर रह बादल

ई स धधलक म

मील क पथर पड़ घायल

ठठक पाव

ओझल गाव

जड़ता ह न गतमयता

वय को सर क स

म दख पाता

न म चप न गाता

समय क सदर सास न

चनार को झलस डाला

मगर हमपात को दती

चनौती एक ममाला

बखर नीड़

वहस चीड़

आस ह न मकान

हमानी झील क तट पर

अकला गनगनाता

न म चप न गाता

6 गीत नया गाता

गीत नया गाता

टट ए तार स फट बासती वर

पथर क छाती म उग आया नव अकर

झर सब पील पात कोयल क कक रात

ाची म अणम क रख दख पता

गीत नया गाता

टट ए सपन क कौन सन ससक

अतर क चीर था पलक पर ठठक

हार नह मानगा रार नह ठानगा

काल क कपाल प लखता मटाता

गीत नया गाता

7 ऊचाई

ऊच पहाड़ पर

पड़ नह लगत

पौध नह उगत

न घास ही जमती ह

जमती ह सफ बफ

जो कफ़न क तरह सफ़द और

मौत क तरह ठडी होती ह

खलती खलखलाती नद

जसका प धारण कर

अपन भाय पर बद-बद रोती ह

ऐसी ऊचाई

जसका परस

पानी को पथर कर द

ऐसी ऊचाई

जसका दरस हीन भाव भर द

अभनदन क अधकारी ह

आरोहय क लय आमण ह

उस पर झड गाड़ जा सकत ह

कत कोई गौरया

वहा नीड़ नह बना सकती

ना कोई थका-मादा बटोही

उसक छाव म पलभर पलक ही झपका सकता ह

सचाई यह ह क

कवल ऊचाई ही काफ़ नह होती

सबस अलग-थलग

परवश स पथक

अपन स कटा-बटा

शय म अकला खड़ा होना

पहाड़ क महानता नह

मजबरी ह

ऊचाई और गहराई म

आकाश-पाताल क री ह

जो जतना ऊचा

उतना एकाक होता ह

हर भार को वय ढोता ह

चहर पर मकान चपका

मन ही मन रोता ह

ज़री यह ह क

ऊचाई क साथ वतार भी हो

जसस मनय

ठठ सा खड़ा न रह

और स घल-मल

कसी को साथ ल

कसी क सग चल

भीड़ म खो जाना

याद म डब जाना

वय को भल जाना

अतव को अथ

जीवन को सगध दता ह

धरती को बौन क नह

ऊच कद क इसान क जरत ह

इतन ऊच क आसमान छ ल

नय न म तभा क बीज बो ल

कत इतन ऊच भी नह

क पाव तल ब ही न जम

कोई काटा न चभ

कोई कली न खल

न वसत हो न पतझड़

हो सफ ऊचाई का अधड़

मा अकलपन का साटा

मर भ

मझ इतनी ऊचाई कभी मत दना

ग़र को गल न लगा सक

इतनी खाई कभी मत दना

8 कौरव कौन कौन पाडव

कौरव कौन

कौन पाडव

टढ़ा सवाल ह

दोन ओर शकन

का फला

कटजाल ह

धमराज न छोड़ी नह

जए क लत ह

हर पचायत म

पाचाली

अपमानत ह

बना कण क

आज

महाभारत होना ह

कोई राजा बन

रक को तो रोना ह

9 ध म दरार पड़ गई

ख़न य सफ़द हो गया

भद म अभद खो गया

बट गय शहीद गीत कट गए

कलज म कटार दड़ गई

ध म दरार पड़ गई

खत म बाद गध

टट गय नानक क छद

सतलज सहम उठ थत सी बतता ह

वसत स बहार झड़ गई

ध म दरार पड़ गई

अपनी ही छाया स बर

गल लगन लग ह ग़र

ख़दकशी का राता तह वतन का वाता

बात बनाए बगड़ गई

ध म दरार पड़ गई

10 मन का सतोष

पथवी पर

मनय ही ऐसा एक ाणी ह

जो भीड़ म अकला और

अकल म भीड़ स घरा अनभव करता ह

मनय को झड म रहना पसद ह

घर-परवार स ारभ कर

वह बतया बसाता ह

गली-ाम-पर-नगर सजाता ह

सयता क नर दौड़ म

सकत को पीछ छोड़ता आ

कत पर वजय

मय को म म करना चाहता ह

अपनी रा क लए

और क वनाश क सामान जटाता ह

आकाश को अभशत

धरती को नवसन

वाय को वषा

जल को षत करन म सकोच नह करता

कत यह सब कछ करन क बाद

जब वह एकात म बठकर वचार करता ह

वह एकात फर घर का कोना हो

या कोलाहल स भरा बाजार

या काश क गत स तज उड़ता जहाज

या कोई वानक योगशाला

था मदर

या मरघट

जब वह आमालोचन करता ह

मन क परत खोलता ह

वय स बोलता ह

हान-लाभ का लखा-जोखा नह

या खोया या पाया का हसाब भी नह

जब वह परी जदगी को ही तौलता ह

अपनी कसौट पर वय को ही कसता ह

नममता स नरखता परखता ह

तब वह अपन मन स या कहता ह

इसी का महव ह यही उसका सय ह

अतम याा क अवसर पर

वदा क वला म

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 6: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

हमालय क सारी धवलता

उस कालमा को नह ढ़क सकती

कपड़ क धया सफद जस

मन क मलनता को नह छपा सकती

कसी सत कव न कहा ह क

मनय क ऊपर कोई नह होता

मझ लगता ह क मनय क ऊपर

उसका मन होता ह

छोट मन स कोई बड़ा नह होता

टट मन स कोई खड़ा नह होता

इसीलए तो भगवान कण को

श स सज रथ पर चढ़

क क मदान म खड़

अजन को गीता सनानी पड़ी थी

मन हारकर मदान नह जीत जात

न मदान जीतन स मन ही जीत जात ह

चोट स गरन स

अधक चोट लगती ह

अथ जड़ जाती

पीड़ा मन म सलगती ह

इसका अथ यह नह क

चोट पर चढ़न क चनौती ही न मान

इसका अथ यह भी नह क

परथत पर वजय पान क न ठान

आदमी जहा ह वही खड़ा रह

सर क दया क भरोस पर पड़ा रह

जड़ता का नाम जीवन नह ह

पलायन परोगमन नह ह

आदमी को चाहए क वह जझ

परथतय स लड़

एक व टट तो सरा गढ़

कत कतना भी ऊचा उठ

मनयता क तर स न गर

अपन धरातल को न छोड़

अतयामी स मह न मोड़

एक पाव धरती पर रखकर ही

वामन भगवान न आकाश-पाताल को जीता था

धरती ही धारण करती ह

कोई इस पर भार न बन

मया अभयान स न तन

आदमी क पहचान

उसक धन या आसन स नह होती

उसक मन स होती ह

मन क फकरी पर

कबर क सपदा भी रोती ह

4 गीत नह गाता

बनकाब चहर ह

दाग बड़ गहर ह

टटता तलम आज सच स भय खाता

गीत नही गाता

लगी कछ ऐसी नज़र

बखरा शीश सा शहर

अपन क मल म मीत नह पाता

गीत नह गाता

पीठ म छरी सा चाद

रा गया रखा फाद

म क ण म बार-बार बध जाता

गीत नह गाता

5 न म चप न गाता

न म चप न गाता

सवरा ह मगर परब दशा म

घर रह बादल

ई स धधलक म

मील क पथर पड़ घायल

ठठक पाव

ओझल गाव

जड़ता ह न गतमयता

वय को सर क स

म दख पाता

न म चप न गाता

समय क सदर सास न

चनार को झलस डाला

मगर हमपात को दती

चनौती एक ममाला

बखर नीड़

वहस चीड़

आस ह न मकान

हमानी झील क तट पर

अकला गनगनाता

न म चप न गाता

6 गीत नया गाता

गीत नया गाता

टट ए तार स फट बासती वर

पथर क छाती म उग आया नव अकर

झर सब पील पात कोयल क कक रात

ाची म अणम क रख दख पता

गीत नया गाता

टट ए सपन क कौन सन ससक

अतर क चीर था पलक पर ठठक

हार नह मानगा रार नह ठानगा

काल क कपाल प लखता मटाता

गीत नया गाता

7 ऊचाई

ऊच पहाड़ पर

पड़ नह लगत

पौध नह उगत

न घास ही जमती ह

जमती ह सफ बफ

जो कफ़न क तरह सफ़द और

मौत क तरह ठडी होती ह

खलती खलखलाती नद

जसका प धारण कर

अपन भाय पर बद-बद रोती ह

ऐसी ऊचाई

जसका परस

पानी को पथर कर द

ऐसी ऊचाई

जसका दरस हीन भाव भर द

अभनदन क अधकारी ह

आरोहय क लय आमण ह

उस पर झड गाड़ जा सकत ह

कत कोई गौरया

वहा नीड़ नह बना सकती

ना कोई थका-मादा बटोही

उसक छाव म पलभर पलक ही झपका सकता ह

सचाई यह ह क

कवल ऊचाई ही काफ़ नह होती

सबस अलग-थलग

परवश स पथक

अपन स कटा-बटा

शय म अकला खड़ा होना

पहाड़ क महानता नह

मजबरी ह

ऊचाई और गहराई म

आकाश-पाताल क री ह

जो जतना ऊचा

उतना एकाक होता ह

हर भार को वय ढोता ह

चहर पर मकान चपका

मन ही मन रोता ह

ज़री यह ह क

ऊचाई क साथ वतार भी हो

जसस मनय

ठठ सा खड़ा न रह

और स घल-मल

कसी को साथ ल

कसी क सग चल

भीड़ म खो जाना

याद म डब जाना

वय को भल जाना

अतव को अथ

जीवन को सगध दता ह

धरती को बौन क नह

ऊच कद क इसान क जरत ह

इतन ऊच क आसमान छ ल

नय न म तभा क बीज बो ल

कत इतन ऊच भी नह

क पाव तल ब ही न जम

कोई काटा न चभ

कोई कली न खल

न वसत हो न पतझड़

हो सफ ऊचाई का अधड़

मा अकलपन का साटा

मर भ

मझ इतनी ऊचाई कभी मत दना

ग़र को गल न लगा सक

इतनी खाई कभी मत दना

8 कौरव कौन कौन पाडव

कौरव कौन

कौन पाडव

टढ़ा सवाल ह

दोन ओर शकन

का फला

कटजाल ह

धमराज न छोड़ी नह

जए क लत ह

हर पचायत म

पाचाली

अपमानत ह

बना कण क

आज

महाभारत होना ह

कोई राजा बन

रक को तो रोना ह

9 ध म दरार पड़ गई

ख़न य सफ़द हो गया

भद म अभद खो गया

बट गय शहीद गीत कट गए

कलज म कटार दड़ गई

ध म दरार पड़ गई

खत म बाद गध

टट गय नानक क छद

सतलज सहम उठ थत सी बतता ह

वसत स बहार झड़ गई

ध म दरार पड़ गई

अपनी ही छाया स बर

गल लगन लग ह ग़र

ख़दकशी का राता तह वतन का वाता

बात बनाए बगड़ गई

ध म दरार पड़ गई

10 मन का सतोष

पथवी पर

मनय ही ऐसा एक ाणी ह

जो भीड़ म अकला और

अकल म भीड़ स घरा अनभव करता ह

मनय को झड म रहना पसद ह

घर-परवार स ारभ कर

वह बतया बसाता ह

गली-ाम-पर-नगर सजाता ह

सयता क नर दौड़ म

सकत को पीछ छोड़ता आ

कत पर वजय

मय को म म करना चाहता ह

अपनी रा क लए

और क वनाश क सामान जटाता ह

आकाश को अभशत

धरती को नवसन

वाय को वषा

जल को षत करन म सकोच नह करता

कत यह सब कछ करन क बाद

जब वह एकात म बठकर वचार करता ह

वह एकात फर घर का कोना हो

या कोलाहल स भरा बाजार

या काश क गत स तज उड़ता जहाज

या कोई वानक योगशाला

था मदर

या मरघट

जब वह आमालोचन करता ह

मन क परत खोलता ह

वय स बोलता ह

हान-लाभ का लखा-जोखा नह

या खोया या पाया का हसाब भी नह

जब वह परी जदगी को ही तौलता ह

अपनी कसौट पर वय को ही कसता ह

नममता स नरखता परखता ह

तब वह अपन मन स या कहता ह

इसी का महव ह यही उसका सय ह

अतम याा क अवसर पर

वदा क वला म

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 7: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

अजन को गीता सनानी पड़ी थी

मन हारकर मदान नह जीत जात

न मदान जीतन स मन ही जीत जात ह

चोट स गरन स

अधक चोट लगती ह

अथ जड़ जाती

पीड़ा मन म सलगती ह

इसका अथ यह नह क

चोट पर चढ़न क चनौती ही न मान

इसका अथ यह भी नह क

परथत पर वजय पान क न ठान

आदमी जहा ह वही खड़ा रह

सर क दया क भरोस पर पड़ा रह

जड़ता का नाम जीवन नह ह

पलायन परोगमन नह ह

आदमी को चाहए क वह जझ

परथतय स लड़

एक व टट तो सरा गढ़

कत कतना भी ऊचा उठ

मनयता क तर स न गर

अपन धरातल को न छोड़

अतयामी स मह न मोड़

एक पाव धरती पर रखकर ही

वामन भगवान न आकाश-पाताल को जीता था

धरती ही धारण करती ह

कोई इस पर भार न बन

मया अभयान स न तन

आदमी क पहचान

उसक धन या आसन स नह होती

उसक मन स होती ह

मन क फकरी पर

कबर क सपदा भी रोती ह

4 गीत नह गाता

बनकाब चहर ह

दाग बड़ गहर ह

टटता तलम आज सच स भय खाता

गीत नही गाता

लगी कछ ऐसी नज़र

बखरा शीश सा शहर

अपन क मल म मीत नह पाता

गीत नह गाता

पीठ म छरी सा चाद

रा गया रखा फाद

म क ण म बार-बार बध जाता

गीत नह गाता

5 न म चप न गाता

न म चप न गाता

सवरा ह मगर परब दशा म

घर रह बादल

ई स धधलक म

मील क पथर पड़ घायल

ठठक पाव

ओझल गाव

जड़ता ह न गतमयता

वय को सर क स

म दख पाता

न म चप न गाता

समय क सदर सास न

चनार को झलस डाला

मगर हमपात को दती

चनौती एक ममाला

बखर नीड़

वहस चीड़

आस ह न मकान

हमानी झील क तट पर

अकला गनगनाता

न म चप न गाता

6 गीत नया गाता

गीत नया गाता

टट ए तार स फट बासती वर

पथर क छाती म उग आया नव अकर

झर सब पील पात कोयल क कक रात

ाची म अणम क रख दख पता

गीत नया गाता

टट ए सपन क कौन सन ससक

अतर क चीर था पलक पर ठठक

हार नह मानगा रार नह ठानगा

काल क कपाल प लखता मटाता

गीत नया गाता

7 ऊचाई

ऊच पहाड़ पर

पड़ नह लगत

पौध नह उगत

न घास ही जमती ह

जमती ह सफ बफ

जो कफ़न क तरह सफ़द और

मौत क तरह ठडी होती ह

खलती खलखलाती नद

जसका प धारण कर

अपन भाय पर बद-बद रोती ह

ऐसी ऊचाई

जसका परस

पानी को पथर कर द

ऐसी ऊचाई

जसका दरस हीन भाव भर द

अभनदन क अधकारी ह

आरोहय क लय आमण ह

उस पर झड गाड़ जा सकत ह

कत कोई गौरया

वहा नीड़ नह बना सकती

ना कोई थका-मादा बटोही

उसक छाव म पलभर पलक ही झपका सकता ह

सचाई यह ह क

कवल ऊचाई ही काफ़ नह होती

सबस अलग-थलग

परवश स पथक

अपन स कटा-बटा

शय म अकला खड़ा होना

पहाड़ क महानता नह

मजबरी ह

ऊचाई और गहराई म

आकाश-पाताल क री ह

जो जतना ऊचा

उतना एकाक होता ह

हर भार को वय ढोता ह

चहर पर मकान चपका

मन ही मन रोता ह

ज़री यह ह क

ऊचाई क साथ वतार भी हो

जसस मनय

ठठ सा खड़ा न रह

और स घल-मल

कसी को साथ ल

कसी क सग चल

भीड़ म खो जाना

याद म डब जाना

वय को भल जाना

अतव को अथ

जीवन को सगध दता ह

धरती को बौन क नह

ऊच कद क इसान क जरत ह

इतन ऊच क आसमान छ ल

नय न म तभा क बीज बो ल

कत इतन ऊच भी नह

क पाव तल ब ही न जम

कोई काटा न चभ

कोई कली न खल

न वसत हो न पतझड़

हो सफ ऊचाई का अधड़

मा अकलपन का साटा

मर भ

मझ इतनी ऊचाई कभी मत दना

ग़र को गल न लगा सक

इतनी खाई कभी मत दना

8 कौरव कौन कौन पाडव

कौरव कौन

कौन पाडव

टढ़ा सवाल ह

दोन ओर शकन

का फला

कटजाल ह

धमराज न छोड़ी नह

जए क लत ह

हर पचायत म

पाचाली

अपमानत ह

बना कण क

आज

महाभारत होना ह

कोई राजा बन

रक को तो रोना ह

9 ध म दरार पड़ गई

ख़न य सफ़द हो गया

भद म अभद खो गया

बट गय शहीद गीत कट गए

कलज म कटार दड़ गई

ध म दरार पड़ गई

खत म बाद गध

टट गय नानक क छद

सतलज सहम उठ थत सी बतता ह

वसत स बहार झड़ गई

ध म दरार पड़ गई

अपनी ही छाया स बर

गल लगन लग ह ग़र

ख़दकशी का राता तह वतन का वाता

बात बनाए बगड़ गई

ध म दरार पड़ गई

10 मन का सतोष

पथवी पर

मनय ही ऐसा एक ाणी ह

जो भीड़ म अकला और

अकल म भीड़ स घरा अनभव करता ह

मनय को झड म रहना पसद ह

घर-परवार स ारभ कर

वह बतया बसाता ह

गली-ाम-पर-नगर सजाता ह

सयता क नर दौड़ म

सकत को पीछ छोड़ता आ

कत पर वजय

मय को म म करना चाहता ह

अपनी रा क लए

और क वनाश क सामान जटाता ह

आकाश को अभशत

धरती को नवसन

वाय को वषा

जल को षत करन म सकोच नह करता

कत यह सब कछ करन क बाद

जब वह एकात म बठकर वचार करता ह

वह एकात फर घर का कोना हो

या कोलाहल स भरा बाजार

या काश क गत स तज उड़ता जहाज

या कोई वानक योगशाला

था मदर

या मरघट

जब वह आमालोचन करता ह

मन क परत खोलता ह

वय स बोलता ह

हान-लाभ का लखा-जोखा नह

या खोया या पाया का हसाब भी नह

जब वह परी जदगी को ही तौलता ह

अपनी कसौट पर वय को ही कसता ह

नममता स नरखता परखता ह

तब वह अपन मन स या कहता ह

इसी का महव ह यही उसका सय ह

अतम याा क अवसर पर

वदा क वला म

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 8: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

जड़ता का नाम जीवन नह ह

पलायन परोगमन नह ह

आदमी को चाहए क वह जझ

परथतय स लड़

एक व टट तो सरा गढ़

कत कतना भी ऊचा उठ

मनयता क तर स न गर

अपन धरातल को न छोड़

अतयामी स मह न मोड़

एक पाव धरती पर रखकर ही

वामन भगवान न आकाश-पाताल को जीता था

धरती ही धारण करती ह

कोई इस पर भार न बन

मया अभयान स न तन

आदमी क पहचान

उसक धन या आसन स नह होती

उसक मन स होती ह

मन क फकरी पर

कबर क सपदा भी रोती ह

4 गीत नह गाता

बनकाब चहर ह

दाग बड़ गहर ह

टटता तलम आज सच स भय खाता

गीत नही गाता

लगी कछ ऐसी नज़र

बखरा शीश सा शहर

अपन क मल म मीत नह पाता

गीत नह गाता

पीठ म छरी सा चाद

रा गया रखा फाद

म क ण म बार-बार बध जाता

गीत नह गाता

5 न म चप न गाता

न म चप न गाता

सवरा ह मगर परब दशा म

घर रह बादल

ई स धधलक म

मील क पथर पड़ घायल

ठठक पाव

ओझल गाव

जड़ता ह न गतमयता

वय को सर क स

म दख पाता

न म चप न गाता

समय क सदर सास न

चनार को झलस डाला

मगर हमपात को दती

चनौती एक ममाला

बखर नीड़

वहस चीड़

आस ह न मकान

हमानी झील क तट पर

अकला गनगनाता

न म चप न गाता

6 गीत नया गाता

गीत नया गाता

टट ए तार स फट बासती वर

पथर क छाती म उग आया नव अकर

झर सब पील पात कोयल क कक रात

ाची म अणम क रख दख पता

गीत नया गाता

टट ए सपन क कौन सन ससक

अतर क चीर था पलक पर ठठक

हार नह मानगा रार नह ठानगा

काल क कपाल प लखता मटाता

गीत नया गाता

7 ऊचाई

ऊच पहाड़ पर

पड़ नह लगत

पौध नह उगत

न घास ही जमती ह

जमती ह सफ बफ

जो कफ़न क तरह सफ़द और

मौत क तरह ठडी होती ह

खलती खलखलाती नद

जसका प धारण कर

अपन भाय पर बद-बद रोती ह

ऐसी ऊचाई

जसका परस

पानी को पथर कर द

ऐसी ऊचाई

जसका दरस हीन भाव भर द

अभनदन क अधकारी ह

आरोहय क लय आमण ह

उस पर झड गाड़ जा सकत ह

कत कोई गौरया

वहा नीड़ नह बना सकती

ना कोई थका-मादा बटोही

उसक छाव म पलभर पलक ही झपका सकता ह

सचाई यह ह क

कवल ऊचाई ही काफ़ नह होती

सबस अलग-थलग

परवश स पथक

अपन स कटा-बटा

शय म अकला खड़ा होना

पहाड़ क महानता नह

मजबरी ह

ऊचाई और गहराई म

आकाश-पाताल क री ह

जो जतना ऊचा

उतना एकाक होता ह

हर भार को वय ढोता ह

चहर पर मकान चपका

मन ही मन रोता ह

ज़री यह ह क

ऊचाई क साथ वतार भी हो

जसस मनय

ठठ सा खड़ा न रह

और स घल-मल

कसी को साथ ल

कसी क सग चल

भीड़ म खो जाना

याद म डब जाना

वय को भल जाना

अतव को अथ

जीवन को सगध दता ह

धरती को बौन क नह

ऊच कद क इसान क जरत ह

इतन ऊच क आसमान छ ल

नय न म तभा क बीज बो ल

कत इतन ऊच भी नह

क पाव तल ब ही न जम

कोई काटा न चभ

कोई कली न खल

न वसत हो न पतझड़

हो सफ ऊचाई का अधड़

मा अकलपन का साटा

मर भ

मझ इतनी ऊचाई कभी मत दना

ग़र को गल न लगा सक

इतनी खाई कभी मत दना

8 कौरव कौन कौन पाडव

कौरव कौन

कौन पाडव

टढ़ा सवाल ह

दोन ओर शकन

का फला

कटजाल ह

धमराज न छोड़ी नह

जए क लत ह

हर पचायत म

पाचाली

अपमानत ह

बना कण क

आज

महाभारत होना ह

कोई राजा बन

रक को तो रोना ह

9 ध म दरार पड़ गई

ख़न य सफ़द हो गया

भद म अभद खो गया

बट गय शहीद गीत कट गए

कलज म कटार दड़ गई

ध म दरार पड़ गई

खत म बाद गध

टट गय नानक क छद

सतलज सहम उठ थत सी बतता ह

वसत स बहार झड़ गई

ध म दरार पड़ गई

अपनी ही छाया स बर

गल लगन लग ह ग़र

ख़दकशी का राता तह वतन का वाता

बात बनाए बगड़ गई

ध म दरार पड़ गई

10 मन का सतोष

पथवी पर

मनय ही ऐसा एक ाणी ह

जो भीड़ म अकला और

अकल म भीड़ स घरा अनभव करता ह

मनय को झड म रहना पसद ह

घर-परवार स ारभ कर

वह बतया बसाता ह

गली-ाम-पर-नगर सजाता ह

सयता क नर दौड़ म

सकत को पीछ छोड़ता आ

कत पर वजय

मय को म म करना चाहता ह

अपनी रा क लए

और क वनाश क सामान जटाता ह

आकाश को अभशत

धरती को नवसन

वाय को वषा

जल को षत करन म सकोच नह करता

कत यह सब कछ करन क बाद

जब वह एकात म बठकर वचार करता ह

वह एकात फर घर का कोना हो

या कोलाहल स भरा बाजार

या काश क गत स तज उड़ता जहाज

या कोई वानक योगशाला

था मदर

या मरघट

जब वह आमालोचन करता ह

मन क परत खोलता ह

वय स बोलता ह

हान-लाभ का लखा-जोखा नह

या खोया या पाया का हसाब भी नह

जब वह परी जदगी को ही तौलता ह

अपनी कसौट पर वय को ही कसता ह

नममता स नरखता परखता ह

तब वह अपन मन स या कहता ह

इसी का महव ह यही उसका सय ह

अतम याा क अवसर पर

वदा क वला म

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 9: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

कोई इस पर भार न बन

मया अभयान स न तन

आदमी क पहचान

उसक धन या आसन स नह होती

उसक मन स होती ह

मन क फकरी पर

कबर क सपदा भी रोती ह

4 गीत नह गाता

बनकाब चहर ह

दाग बड़ गहर ह

टटता तलम आज सच स भय खाता

गीत नही गाता

लगी कछ ऐसी नज़र

बखरा शीश सा शहर

अपन क मल म मीत नह पाता

गीत नह गाता

पीठ म छरी सा चाद

रा गया रखा फाद

म क ण म बार-बार बध जाता

गीत नह गाता

5 न म चप न गाता

न म चप न गाता

सवरा ह मगर परब दशा म

घर रह बादल

ई स धधलक म

मील क पथर पड़ घायल

ठठक पाव

ओझल गाव

जड़ता ह न गतमयता

वय को सर क स

म दख पाता

न म चप न गाता

समय क सदर सास न

चनार को झलस डाला

मगर हमपात को दती

चनौती एक ममाला

बखर नीड़

वहस चीड़

आस ह न मकान

हमानी झील क तट पर

अकला गनगनाता

न म चप न गाता

6 गीत नया गाता

गीत नया गाता

टट ए तार स फट बासती वर

पथर क छाती म उग आया नव अकर

झर सब पील पात कोयल क कक रात

ाची म अणम क रख दख पता

गीत नया गाता

टट ए सपन क कौन सन ससक

अतर क चीर था पलक पर ठठक

हार नह मानगा रार नह ठानगा

काल क कपाल प लखता मटाता

गीत नया गाता

7 ऊचाई

ऊच पहाड़ पर

पड़ नह लगत

पौध नह उगत

न घास ही जमती ह

जमती ह सफ बफ

जो कफ़न क तरह सफ़द और

मौत क तरह ठडी होती ह

खलती खलखलाती नद

जसका प धारण कर

अपन भाय पर बद-बद रोती ह

ऐसी ऊचाई

जसका परस

पानी को पथर कर द

ऐसी ऊचाई

जसका दरस हीन भाव भर द

अभनदन क अधकारी ह

आरोहय क लय आमण ह

उस पर झड गाड़ जा सकत ह

कत कोई गौरया

वहा नीड़ नह बना सकती

ना कोई थका-मादा बटोही

उसक छाव म पलभर पलक ही झपका सकता ह

सचाई यह ह क

कवल ऊचाई ही काफ़ नह होती

सबस अलग-थलग

परवश स पथक

अपन स कटा-बटा

शय म अकला खड़ा होना

पहाड़ क महानता नह

मजबरी ह

ऊचाई और गहराई म

आकाश-पाताल क री ह

जो जतना ऊचा

उतना एकाक होता ह

हर भार को वय ढोता ह

चहर पर मकान चपका

मन ही मन रोता ह

ज़री यह ह क

ऊचाई क साथ वतार भी हो

जसस मनय

ठठ सा खड़ा न रह

और स घल-मल

कसी को साथ ल

कसी क सग चल

भीड़ म खो जाना

याद म डब जाना

वय को भल जाना

अतव को अथ

जीवन को सगध दता ह

धरती को बौन क नह

ऊच कद क इसान क जरत ह

इतन ऊच क आसमान छ ल

नय न म तभा क बीज बो ल

कत इतन ऊच भी नह

क पाव तल ब ही न जम

कोई काटा न चभ

कोई कली न खल

न वसत हो न पतझड़

हो सफ ऊचाई का अधड़

मा अकलपन का साटा

मर भ

मझ इतनी ऊचाई कभी मत दना

ग़र को गल न लगा सक

इतनी खाई कभी मत दना

8 कौरव कौन कौन पाडव

कौरव कौन

कौन पाडव

टढ़ा सवाल ह

दोन ओर शकन

का फला

कटजाल ह

धमराज न छोड़ी नह

जए क लत ह

हर पचायत म

पाचाली

अपमानत ह

बना कण क

आज

महाभारत होना ह

कोई राजा बन

रक को तो रोना ह

9 ध म दरार पड़ गई

ख़न य सफ़द हो गया

भद म अभद खो गया

बट गय शहीद गीत कट गए

कलज म कटार दड़ गई

ध म दरार पड़ गई

खत म बाद गध

टट गय नानक क छद

सतलज सहम उठ थत सी बतता ह

वसत स बहार झड़ गई

ध म दरार पड़ गई

अपनी ही छाया स बर

गल लगन लग ह ग़र

ख़दकशी का राता तह वतन का वाता

बात बनाए बगड़ गई

ध म दरार पड़ गई

10 मन का सतोष

पथवी पर

मनय ही ऐसा एक ाणी ह

जो भीड़ म अकला और

अकल म भीड़ स घरा अनभव करता ह

मनय को झड म रहना पसद ह

घर-परवार स ारभ कर

वह बतया बसाता ह

गली-ाम-पर-नगर सजाता ह

सयता क नर दौड़ म

सकत को पीछ छोड़ता आ

कत पर वजय

मय को म म करना चाहता ह

अपनी रा क लए

और क वनाश क सामान जटाता ह

आकाश को अभशत

धरती को नवसन

वाय को वषा

जल को षत करन म सकोच नह करता

कत यह सब कछ करन क बाद

जब वह एकात म बठकर वचार करता ह

वह एकात फर घर का कोना हो

या कोलाहल स भरा बाजार

या काश क गत स तज उड़ता जहाज

या कोई वानक योगशाला

था मदर

या मरघट

जब वह आमालोचन करता ह

मन क परत खोलता ह

वय स बोलता ह

हान-लाभ का लखा-जोखा नह

या खोया या पाया का हसाब भी नह

जब वह परी जदगी को ही तौलता ह

अपनी कसौट पर वय को ही कसता ह

नममता स नरखता परखता ह

तब वह अपन मन स या कहता ह

इसी का महव ह यही उसका सय ह

अतम याा क अवसर पर

वदा क वला म

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 10: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

गीत नह गाता

पीठ म छरी सा चाद

रा गया रखा फाद

म क ण म बार-बार बध जाता

गीत नह गाता

5 न म चप न गाता

न म चप न गाता

सवरा ह मगर परब दशा म

घर रह बादल

ई स धधलक म

मील क पथर पड़ घायल

ठठक पाव

ओझल गाव

जड़ता ह न गतमयता

वय को सर क स

म दख पाता

न म चप न गाता

समय क सदर सास न

चनार को झलस डाला

मगर हमपात को दती

चनौती एक ममाला

बखर नीड़

वहस चीड़

आस ह न मकान

हमानी झील क तट पर

अकला गनगनाता

न म चप न गाता

6 गीत नया गाता

गीत नया गाता

टट ए तार स फट बासती वर

पथर क छाती म उग आया नव अकर

झर सब पील पात कोयल क कक रात

ाची म अणम क रख दख पता

गीत नया गाता

टट ए सपन क कौन सन ससक

अतर क चीर था पलक पर ठठक

हार नह मानगा रार नह ठानगा

काल क कपाल प लखता मटाता

गीत नया गाता

7 ऊचाई

ऊच पहाड़ पर

पड़ नह लगत

पौध नह उगत

न घास ही जमती ह

जमती ह सफ बफ

जो कफ़न क तरह सफ़द और

मौत क तरह ठडी होती ह

खलती खलखलाती नद

जसका प धारण कर

अपन भाय पर बद-बद रोती ह

ऐसी ऊचाई

जसका परस

पानी को पथर कर द

ऐसी ऊचाई

जसका दरस हीन भाव भर द

अभनदन क अधकारी ह

आरोहय क लय आमण ह

उस पर झड गाड़ जा सकत ह

कत कोई गौरया

वहा नीड़ नह बना सकती

ना कोई थका-मादा बटोही

उसक छाव म पलभर पलक ही झपका सकता ह

सचाई यह ह क

कवल ऊचाई ही काफ़ नह होती

सबस अलग-थलग

परवश स पथक

अपन स कटा-बटा

शय म अकला खड़ा होना

पहाड़ क महानता नह

मजबरी ह

ऊचाई और गहराई म

आकाश-पाताल क री ह

जो जतना ऊचा

उतना एकाक होता ह

हर भार को वय ढोता ह

चहर पर मकान चपका

मन ही मन रोता ह

ज़री यह ह क

ऊचाई क साथ वतार भी हो

जसस मनय

ठठ सा खड़ा न रह

और स घल-मल

कसी को साथ ल

कसी क सग चल

भीड़ म खो जाना

याद म डब जाना

वय को भल जाना

अतव को अथ

जीवन को सगध दता ह

धरती को बौन क नह

ऊच कद क इसान क जरत ह

इतन ऊच क आसमान छ ल

नय न म तभा क बीज बो ल

कत इतन ऊच भी नह

क पाव तल ब ही न जम

कोई काटा न चभ

कोई कली न खल

न वसत हो न पतझड़

हो सफ ऊचाई का अधड़

मा अकलपन का साटा

मर भ

मझ इतनी ऊचाई कभी मत दना

ग़र को गल न लगा सक

इतनी खाई कभी मत दना

8 कौरव कौन कौन पाडव

कौरव कौन

कौन पाडव

टढ़ा सवाल ह

दोन ओर शकन

का फला

कटजाल ह

धमराज न छोड़ी नह

जए क लत ह

हर पचायत म

पाचाली

अपमानत ह

बना कण क

आज

महाभारत होना ह

कोई राजा बन

रक को तो रोना ह

9 ध म दरार पड़ गई

ख़न य सफ़द हो गया

भद म अभद खो गया

बट गय शहीद गीत कट गए

कलज म कटार दड़ गई

ध म दरार पड़ गई

खत म बाद गध

टट गय नानक क छद

सतलज सहम उठ थत सी बतता ह

वसत स बहार झड़ गई

ध म दरार पड़ गई

अपनी ही छाया स बर

गल लगन लग ह ग़र

ख़दकशी का राता तह वतन का वाता

बात बनाए बगड़ गई

ध म दरार पड़ गई

10 मन का सतोष

पथवी पर

मनय ही ऐसा एक ाणी ह

जो भीड़ म अकला और

अकल म भीड़ स घरा अनभव करता ह

मनय को झड म रहना पसद ह

घर-परवार स ारभ कर

वह बतया बसाता ह

गली-ाम-पर-नगर सजाता ह

सयता क नर दौड़ म

सकत को पीछ छोड़ता आ

कत पर वजय

मय को म म करना चाहता ह

अपनी रा क लए

और क वनाश क सामान जटाता ह

आकाश को अभशत

धरती को नवसन

वाय को वषा

जल को षत करन म सकोच नह करता

कत यह सब कछ करन क बाद

जब वह एकात म बठकर वचार करता ह

वह एकात फर घर का कोना हो

या कोलाहल स भरा बाजार

या काश क गत स तज उड़ता जहाज

या कोई वानक योगशाला

था मदर

या मरघट

जब वह आमालोचन करता ह

मन क परत खोलता ह

वय स बोलता ह

हान-लाभ का लखा-जोखा नह

या खोया या पाया का हसाब भी नह

जब वह परी जदगी को ही तौलता ह

अपनी कसौट पर वय को ही कसता ह

नममता स नरखता परखता ह

तब वह अपन मन स या कहता ह

इसी का महव ह यही उसका सय ह

अतम याा क अवसर पर

वदा क वला म

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 11: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

वय को सर क स

म दख पाता

न म चप न गाता

समय क सदर सास न

चनार को झलस डाला

मगर हमपात को दती

चनौती एक ममाला

बखर नीड़

वहस चीड़

आस ह न मकान

हमानी झील क तट पर

अकला गनगनाता

न म चप न गाता

6 गीत नया गाता

गीत नया गाता

टट ए तार स फट बासती वर

पथर क छाती म उग आया नव अकर

झर सब पील पात कोयल क कक रात

ाची म अणम क रख दख पता

गीत नया गाता

टट ए सपन क कौन सन ससक

अतर क चीर था पलक पर ठठक

हार नह मानगा रार नह ठानगा

काल क कपाल प लखता मटाता

गीत नया गाता

7 ऊचाई

ऊच पहाड़ पर

पड़ नह लगत

पौध नह उगत

न घास ही जमती ह

जमती ह सफ बफ

जो कफ़न क तरह सफ़द और

मौत क तरह ठडी होती ह

खलती खलखलाती नद

जसका प धारण कर

अपन भाय पर बद-बद रोती ह

ऐसी ऊचाई

जसका परस

पानी को पथर कर द

ऐसी ऊचाई

जसका दरस हीन भाव भर द

अभनदन क अधकारी ह

आरोहय क लय आमण ह

उस पर झड गाड़ जा सकत ह

कत कोई गौरया

वहा नीड़ नह बना सकती

ना कोई थका-मादा बटोही

उसक छाव म पलभर पलक ही झपका सकता ह

सचाई यह ह क

कवल ऊचाई ही काफ़ नह होती

सबस अलग-थलग

परवश स पथक

अपन स कटा-बटा

शय म अकला खड़ा होना

पहाड़ क महानता नह

मजबरी ह

ऊचाई और गहराई म

आकाश-पाताल क री ह

जो जतना ऊचा

उतना एकाक होता ह

हर भार को वय ढोता ह

चहर पर मकान चपका

मन ही मन रोता ह

ज़री यह ह क

ऊचाई क साथ वतार भी हो

जसस मनय

ठठ सा खड़ा न रह

और स घल-मल

कसी को साथ ल

कसी क सग चल

भीड़ म खो जाना

याद म डब जाना

वय को भल जाना

अतव को अथ

जीवन को सगध दता ह

धरती को बौन क नह

ऊच कद क इसान क जरत ह

इतन ऊच क आसमान छ ल

नय न म तभा क बीज बो ल

कत इतन ऊच भी नह

क पाव तल ब ही न जम

कोई काटा न चभ

कोई कली न खल

न वसत हो न पतझड़

हो सफ ऊचाई का अधड़

मा अकलपन का साटा

मर भ

मझ इतनी ऊचाई कभी मत दना

ग़र को गल न लगा सक

इतनी खाई कभी मत दना

8 कौरव कौन कौन पाडव

कौरव कौन

कौन पाडव

टढ़ा सवाल ह

दोन ओर शकन

का फला

कटजाल ह

धमराज न छोड़ी नह

जए क लत ह

हर पचायत म

पाचाली

अपमानत ह

बना कण क

आज

महाभारत होना ह

कोई राजा बन

रक को तो रोना ह

9 ध म दरार पड़ गई

ख़न य सफ़द हो गया

भद म अभद खो गया

बट गय शहीद गीत कट गए

कलज म कटार दड़ गई

ध म दरार पड़ गई

खत म बाद गध

टट गय नानक क छद

सतलज सहम उठ थत सी बतता ह

वसत स बहार झड़ गई

ध म दरार पड़ गई

अपनी ही छाया स बर

गल लगन लग ह ग़र

ख़दकशी का राता तह वतन का वाता

बात बनाए बगड़ गई

ध म दरार पड़ गई

10 मन का सतोष

पथवी पर

मनय ही ऐसा एक ाणी ह

जो भीड़ म अकला और

अकल म भीड़ स घरा अनभव करता ह

मनय को झड म रहना पसद ह

घर-परवार स ारभ कर

वह बतया बसाता ह

गली-ाम-पर-नगर सजाता ह

सयता क नर दौड़ म

सकत को पीछ छोड़ता आ

कत पर वजय

मय को म म करना चाहता ह

अपनी रा क लए

और क वनाश क सामान जटाता ह

आकाश को अभशत

धरती को नवसन

वाय को वषा

जल को षत करन म सकोच नह करता

कत यह सब कछ करन क बाद

जब वह एकात म बठकर वचार करता ह

वह एकात फर घर का कोना हो

या कोलाहल स भरा बाजार

या काश क गत स तज उड़ता जहाज

या कोई वानक योगशाला

था मदर

या मरघट

जब वह आमालोचन करता ह

मन क परत खोलता ह

वय स बोलता ह

हान-लाभ का लखा-जोखा नह

या खोया या पाया का हसाब भी नह

जब वह परी जदगी को ही तौलता ह

अपनी कसौट पर वय को ही कसता ह

नममता स नरखता परखता ह

तब वह अपन मन स या कहता ह

इसी का महव ह यही उसका सय ह

अतम याा क अवसर पर

वदा क वला म

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 12: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

टट ए तार स फट बासती वर

पथर क छाती म उग आया नव अकर

झर सब पील पात कोयल क कक रात

ाची म अणम क रख दख पता

गीत नया गाता

टट ए सपन क कौन सन ससक

अतर क चीर था पलक पर ठठक

हार नह मानगा रार नह ठानगा

काल क कपाल प लखता मटाता

गीत नया गाता

7 ऊचाई

ऊच पहाड़ पर

पड़ नह लगत

पौध नह उगत

न घास ही जमती ह

जमती ह सफ बफ

जो कफ़न क तरह सफ़द और

मौत क तरह ठडी होती ह

खलती खलखलाती नद

जसका प धारण कर

अपन भाय पर बद-बद रोती ह

ऐसी ऊचाई

जसका परस

पानी को पथर कर द

ऐसी ऊचाई

जसका दरस हीन भाव भर द

अभनदन क अधकारी ह

आरोहय क लय आमण ह

उस पर झड गाड़ जा सकत ह

कत कोई गौरया

वहा नीड़ नह बना सकती

ना कोई थका-मादा बटोही

उसक छाव म पलभर पलक ही झपका सकता ह

सचाई यह ह क

कवल ऊचाई ही काफ़ नह होती

सबस अलग-थलग

परवश स पथक

अपन स कटा-बटा

शय म अकला खड़ा होना

पहाड़ क महानता नह

मजबरी ह

ऊचाई और गहराई म

आकाश-पाताल क री ह

जो जतना ऊचा

उतना एकाक होता ह

हर भार को वय ढोता ह

चहर पर मकान चपका

मन ही मन रोता ह

ज़री यह ह क

ऊचाई क साथ वतार भी हो

जसस मनय

ठठ सा खड़ा न रह

और स घल-मल

कसी को साथ ल

कसी क सग चल

भीड़ म खो जाना

याद म डब जाना

वय को भल जाना

अतव को अथ

जीवन को सगध दता ह

धरती को बौन क नह

ऊच कद क इसान क जरत ह

इतन ऊच क आसमान छ ल

नय न म तभा क बीज बो ल

कत इतन ऊच भी नह

क पाव तल ब ही न जम

कोई काटा न चभ

कोई कली न खल

न वसत हो न पतझड़

हो सफ ऊचाई का अधड़

मा अकलपन का साटा

मर भ

मझ इतनी ऊचाई कभी मत दना

ग़र को गल न लगा सक

इतनी खाई कभी मत दना

8 कौरव कौन कौन पाडव

कौरव कौन

कौन पाडव

टढ़ा सवाल ह

दोन ओर शकन

का फला

कटजाल ह

धमराज न छोड़ी नह

जए क लत ह

हर पचायत म

पाचाली

अपमानत ह

बना कण क

आज

महाभारत होना ह

कोई राजा बन

रक को तो रोना ह

9 ध म दरार पड़ गई

ख़न य सफ़द हो गया

भद म अभद खो गया

बट गय शहीद गीत कट गए

कलज म कटार दड़ गई

ध म दरार पड़ गई

खत म बाद गध

टट गय नानक क छद

सतलज सहम उठ थत सी बतता ह

वसत स बहार झड़ गई

ध म दरार पड़ गई

अपनी ही छाया स बर

गल लगन लग ह ग़र

ख़दकशी का राता तह वतन का वाता

बात बनाए बगड़ गई

ध म दरार पड़ गई

10 मन का सतोष

पथवी पर

मनय ही ऐसा एक ाणी ह

जो भीड़ म अकला और

अकल म भीड़ स घरा अनभव करता ह

मनय को झड म रहना पसद ह

घर-परवार स ारभ कर

वह बतया बसाता ह

गली-ाम-पर-नगर सजाता ह

सयता क नर दौड़ म

सकत को पीछ छोड़ता आ

कत पर वजय

मय को म म करना चाहता ह

अपनी रा क लए

और क वनाश क सामान जटाता ह

आकाश को अभशत

धरती को नवसन

वाय को वषा

जल को षत करन म सकोच नह करता

कत यह सब कछ करन क बाद

जब वह एकात म बठकर वचार करता ह

वह एकात फर घर का कोना हो

या कोलाहल स भरा बाजार

या काश क गत स तज उड़ता जहाज

या कोई वानक योगशाला

था मदर

या मरघट

जब वह आमालोचन करता ह

मन क परत खोलता ह

वय स बोलता ह

हान-लाभ का लखा-जोखा नह

या खोया या पाया का हसाब भी नह

जब वह परी जदगी को ही तौलता ह

अपनी कसौट पर वय को ही कसता ह

नममता स नरखता परखता ह

तब वह अपन मन स या कहता ह

इसी का महव ह यही उसका सय ह

अतम याा क अवसर पर

वदा क वला म

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 13: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

पौध नह उगत

न घास ही जमती ह

जमती ह सफ बफ

जो कफ़न क तरह सफ़द और

मौत क तरह ठडी होती ह

खलती खलखलाती नद

जसका प धारण कर

अपन भाय पर बद-बद रोती ह

ऐसी ऊचाई

जसका परस

पानी को पथर कर द

ऐसी ऊचाई

जसका दरस हीन भाव भर द

अभनदन क अधकारी ह

आरोहय क लय आमण ह

उस पर झड गाड़ जा सकत ह

कत कोई गौरया

वहा नीड़ नह बना सकती

ना कोई थका-मादा बटोही

उसक छाव म पलभर पलक ही झपका सकता ह

सचाई यह ह क

कवल ऊचाई ही काफ़ नह होती

सबस अलग-थलग

परवश स पथक

अपन स कटा-बटा

शय म अकला खड़ा होना

पहाड़ क महानता नह

मजबरी ह

ऊचाई और गहराई म

आकाश-पाताल क री ह

जो जतना ऊचा

उतना एकाक होता ह

हर भार को वय ढोता ह

चहर पर मकान चपका

मन ही मन रोता ह

ज़री यह ह क

ऊचाई क साथ वतार भी हो

जसस मनय

ठठ सा खड़ा न रह

और स घल-मल

कसी को साथ ल

कसी क सग चल

भीड़ म खो जाना

याद म डब जाना

वय को भल जाना

अतव को अथ

जीवन को सगध दता ह

धरती को बौन क नह

ऊच कद क इसान क जरत ह

इतन ऊच क आसमान छ ल

नय न म तभा क बीज बो ल

कत इतन ऊच भी नह

क पाव तल ब ही न जम

कोई काटा न चभ

कोई कली न खल

न वसत हो न पतझड़

हो सफ ऊचाई का अधड़

मा अकलपन का साटा

मर भ

मझ इतनी ऊचाई कभी मत दना

ग़र को गल न लगा सक

इतनी खाई कभी मत दना

8 कौरव कौन कौन पाडव

कौरव कौन

कौन पाडव

टढ़ा सवाल ह

दोन ओर शकन

का फला

कटजाल ह

धमराज न छोड़ी नह

जए क लत ह

हर पचायत म

पाचाली

अपमानत ह

बना कण क

आज

महाभारत होना ह

कोई राजा बन

रक को तो रोना ह

9 ध म दरार पड़ गई

ख़न य सफ़द हो गया

भद म अभद खो गया

बट गय शहीद गीत कट गए

कलज म कटार दड़ गई

ध म दरार पड़ गई

खत म बाद गध

टट गय नानक क छद

सतलज सहम उठ थत सी बतता ह

वसत स बहार झड़ गई

ध म दरार पड़ गई

अपनी ही छाया स बर

गल लगन लग ह ग़र

ख़दकशी का राता तह वतन का वाता

बात बनाए बगड़ गई

ध म दरार पड़ गई

10 मन का सतोष

पथवी पर

मनय ही ऐसा एक ाणी ह

जो भीड़ म अकला और

अकल म भीड़ स घरा अनभव करता ह

मनय को झड म रहना पसद ह

घर-परवार स ारभ कर

वह बतया बसाता ह

गली-ाम-पर-नगर सजाता ह

सयता क नर दौड़ म

सकत को पीछ छोड़ता आ

कत पर वजय

मय को म म करना चाहता ह

अपनी रा क लए

और क वनाश क सामान जटाता ह

आकाश को अभशत

धरती को नवसन

वाय को वषा

जल को षत करन म सकोच नह करता

कत यह सब कछ करन क बाद

जब वह एकात म बठकर वचार करता ह

वह एकात फर घर का कोना हो

या कोलाहल स भरा बाजार

या काश क गत स तज उड़ता जहाज

या कोई वानक योगशाला

था मदर

या मरघट

जब वह आमालोचन करता ह

मन क परत खोलता ह

वय स बोलता ह

हान-लाभ का लखा-जोखा नह

या खोया या पाया का हसाब भी नह

जब वह परी जदगी को ही तौलता ह

अपनी कसौट पर वय को ही कसता ह

नममता स नरखता परखता ह

तब वह अपन मन स या कहता ह

इसी का महव ह यही उसका सय ह

अतम याा क अवसर पर

वदा क वला म

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 14: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

उस पर झड गाड़ जा सकत ह

कत कोई गौरया

वहा नीड़ नह बना सकती

ना कोई थका-मादा बटोही

उसक छाव म पलभर पलक ही झपका सकता ह

सचाई यह ह क

कवल ऊचाई ही काफ़ नह होती

सबस अलग-थलग

परवश स पथक

अपन स कटा-बटा

शय म अकला खड़ा होना

पहाड़ क महानता नह

मजबरी ह

ऊचाई और गहराई म

आकाश-पाताल क री ह

जो जतना ऊचा

उतना एकाक होता ह

हर भार को वय ढोता ह

चहर पर मकान चपका

मन ही मन रोता ह

ज़री यह ह क

ऊचाई क साथ वतार भी हो

जसस मनय

ठठ सा खड़ा न रह

और स घल-मल

कसी को साथ ल

कसी क सग चल

भीड़ म खो जाना

याद म डब जाना

वय को भल जाना

अतव को अथ

जीवन को सगध दता ह

धरती को बौन क नह

ऊच कद क इसान क जरत ह

इतन ऊच क आसमान छ ल

नय न म तभा क बीज बो ल

कत इतन ऊच भी नह

क पाव तल ब ही न जम

कोई काटा न चभ

कोई कली न खल

न वसत हो न पतझड़

हो सफ ऊचाई का अधड़

मा अकलपन का साटा

मर भ

मझ इतनी ऊचाई कभी मत दना

ग़र को गल न लगा सक

इतनी खाई कभी मत दना

8 कौरव कौन कौन पाडव

कौरव कौन

कौन पाडव

टढ़ा सवाल ह

दोन ओर शकन

का फला

कटजाल ह

धमराज न छोड़ी नह

जए क लत ह

हर पचायत म

पाचाली

अपमानत ह

बना कण क

आज

महाभारत होना ह

कोई राजा बन

रक को तो रोना ह

9 ध म दरार पड़ गई

ख़न य सफ़द हो गया

भद म अभद खो गया

बट गय शहीद गीत कट गए

कलज म कटार दड़ गई

ध म दरार पड़ गई

खत म बाद गध

टट गय नानक क छद

सतलज सहम उठ थत सी बतता ह

वसत स बहार झड़ गई

ध म दरार पड़ गई

अपनी ही छाया स बर

गल लगन लग ह ग़र

ख़दकशी का राता तह वतन का वाता

बात बनाए बगड़ गई

ध म दरार पड़ गई

10 मन का सतोष

पथवी पर

मनय ही ऐसा एक ाणी ह

जो भीड़ म अकला और

अकल म भीड़ स घरा अनभव करता ह

मनय को झड म रहना पसद ह

घर-परवार स ारभ कर

वह बतया बसाता ह

गली-ाम-पर-नगर सजाता ह

सयता क नर दौड़ म

सकत को पीछ छोड़ता आ

कत पर वजय

मय को म म करना चाहता ह

अपनी रा क लए

और क वनाश क सामान जटाता ह

आकाश को अभशत

धरती को नवसन

वाय को वषा

जल को षत करन म सकोच नह करता

कत यह सब कछ करन क बाद

जब वह एकात म बठकर वचार करता ह

वह एकात फर घर का कोना हो

या कोलाहल स भरा बाजार

या काश क गत स तज उड़ता जहाज

या कोई वानक योगशाला

था मदर

या मरघट

जब वह आमालोचन करता ह

मन क परत खोलता ह

वय स बोलता ह

हान-लाभ का लखा-जोखा नह

या खोया या पाया का हसाब भी नह

जब वह परी जदगी को ही तौलता ह

अपनी कसौट पर वय को ही कसता ह

नममता स नरखता परखता ह

तब वह अपन मन स या कहता ह

इसी का महव ह यही उसका सय ह

अतम याा क अवसर पर

वदा क वला म

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 15: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

जो जतना ऊचा

उतना एकाक होता ह

हर भार को वय ढोता ह

चहर पर मकान चपका

मन ही मन रोता ह

ज़री यह ह क

ऊचाई क साथ वतार भी हो

जसस मनय

ठठ सा खड़ा न रह

और स घल-मल

कसी को साथ ल

कसी क सग चल

भीड़ म खो जाना

याद म डब जाना

वय को भल जाना

अतव को अथ

जीवन को सगध दता ह

धरती को बौन क नह

ऊच कद क इसान क जरत ह

इतन ऊच क आसमान छ ल

नय न म तभा क बीज बो ल

कत इतन ऊच भी नह

क पाव तल ब ही न जम

कोई काटा न चभ

कोई कली न खल

न वसत हो न पतझड़

हो सफ ऊचाई का अधड़

मा अकलपन का साटा

मर भ

मझ इतनी ऊचाई कभी मत दना

ग़र को गल न लगा सक

इतनी खाई कभी मत दना

8 कौरव कौन कौन पाडव

कौरव कौन

कौन पाडव

टढ़ा सवाल ह

दोन ओर शकन

का फला

कटजाल ह

धमराज न छोड़ी नह

जए क लत ह

हर पचायत म

पाचाली

अपमानत ह

बना कण क

आज

महाभारत होना ह

कोई राजा बन

रक को तो रोना ह

9 ध म दरार पड़ गई

ख़न य सफ़द हो गया

भद म अभद खो गया

बट गय शहीद गीत कट गए

कलज म कटार दड़ गई

ध म दरार पड़ गई

खत म बाद गध

टट गय नानक क छद

सतलज सहम उठ थत सी बतता ह

वसत स बहार झड़ गई

ध म दरार पड़ गई

अपनी ही छाया स बर

गल लगन लग ह ग़र

ख़दकशी का राता तह वतन का वाता

बात बनाए बगड़ गई

ध म दरार पड़ गई

10 मन का सतोष

पथवी पर

मनय ही ऐसा एक ाणी ह

जो भीड़ म अकला और

अकल म भीड़ स घरा अनभव करता ह

मनय को झड म रहना पसद ह

घर-परवार स ारभ कर

वह बतया बसाता ह

गली-ाम-पर-नगर सजाता ह

सयता क नर दौड़ म

सकत को पीछ छोड़ता आ

कत पर वजय

मय को म म करना चाहता ह

अपनी रा क लए

और क वनाश क सामान जटाता ह

आकाश को अभशत

धरती को नवसन

वाय को वषा

जल को षत करन म सकोच नह करता

कत यह सब कछ करन क बाद

जब वह एकात म बठकर वचार करता ह

वह एकात फर घर का कोना हो

या कोलाहल स भरा बाजार

या काश क गत स तज उड़ता जहाज

या कोई वानक योगशाला

था मदर

या मरघट

जब वह आमालोचन करता ह

मन क परत खोलता ह

वय स बोलता ह

हान-लाभ का लखा-जोखा नह

या खोया या पाया का हसाब भी नह

जब वह परी जदगी को ही तौलता ह

अपनी कसौट पर वय को ही कसता ह

नममता स नरखता परखता ह

तब वह अपन मन स या कहता ह

इसी का महव ह यही उसका सय ह

अतम याा क अवसर पर

वदा क वला म

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 16: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

वय को भल जाना

अतव को अथ

जीवन को सगध दता ह

धरती को बौन क नह

ऊच कद क इसान क जरत ह

इतन ऊच क आसमान छ ल

नय न म तभा क बीज बो ल

कत इतन ऊच भी नह

क पाव तल ब ही न जम

कोई काटा न चभ

कोई कली न खल

न वसत हो न पतझड़

हो सफ ऊचाई का अधड़

मा अकलपन का साटा

मर भ

मझ इतनी ऊचाई कभी मत दना

ग़र को गल न लगा सक

इतनी खाई कभी मत दना

8 कौरव कौन कौन पाडव

कौरव कौन

कौन पाडव

टढ़ा सवाल ह

दोन ओर शकन

का फला

कटजाल ह

धमराज न छोड़ी नह

जए क लत ह

हर पचायत म

पाचाली

अपमानत ह

बना कण क

आज

महाभारत होना ह

कोई राजा बन

रक को तो रोना ह

9 ध म दरार पड़ गई

ख़न य सफ़द हो गया

भद म अभद खो गया

बट गय शहीद गीत कट गए

कलज म कटार दड़ गई

ध म दरार पड़ गई

खत म बाद गध

टट गय नानक क छद

सतलज सहम उठ थत सी बतता ह

वसत स बहार झड़ गई

ध म दरार पड़ गई

अपनी ही छाया स बर

गल लगन लग ह ग़र

ख़दकशी का राता तह वतन का वाता

बात बनाए बगड़ गई

ध म दरार पड़ गई

10 मन का सतोष

पथवी पर

मनय ही ऐसा एक ाणी ह

जो भीड़ म अकला और

अकल म भीड़ स घरा अनभव करता ह

मनय को झड म रहना पसद ह

घर-परवार स ारभ कर

वह बतया बसाता ह

गली-ाम-पर-नगर सजाता ह

सयता क नर दौड़ म

सकत को पीछ छोड़ता आ

कत पर वजय

मय को म म करना चाहता ह

अपनी रा क लए

और क वनाश क सामान जटाता ह

आकाश को अभशत

धरती को नवसन

वाय को वषा

जल को षत करन म सकोच नह करता

कत यह सब कछ करन क बाद

जब वह एकात म बठकर वचार करता ह

वह एकात फर घर का कोना हो

या कोलाहल स भरा बाजार

या काश क गत स तज उड़ता जहाज

या कोई वानक योगशाला

था मदर

या मरघट

जब वह आमालोचन करता ह

मन क परत खोलता ह

वय स बोलता ह

हान-लाभ का लखा-जोखा नह

या खोया या पाया का हसाब भी नह

जब वह परी जदगी को ही तौलता ह

अपनी कसौट पर वय को ही कसता ह

नममता स नरखता परखता ह

तब वह अपन मन स या कहता ह

इसी का महव ह यही उसका सय ह

अतम याा क अवसर पर

वदा क वला म

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 17: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

मर भ

मझ इतनी ऊचाई कभी मत दना

ग़र को गल न लगा सक

इतनी खाई कभी मत दना

8 कौरव कौन कौन पाडव

कौरव कौन

कौन पाडव

टढ़ा सवाल ह

दोन ओर शकन

का फला

कटजाल ह

धमराज न छोड़ी नह

जए क लत ह

हर पचायत म

पाचाली

अपमानत ह

बना कण क

आज

महाभारत होना ह

कोई राजा बन

रक को तो रोना ह

9 ध म दरार पड़ गई

ख़न य सफ़द हो गया

भद म अभद खो गया

बट गय शहीद गीत कट गए

कलज म कटार दड़ गई

ध म दरार पड़ गई

खत म बाद गध

टट गय नानक क छद

सतलज सहम उठ थत सी बतता ह

वसत स बहार झड़ गई

ध म दरार पड़ गई

अपनी ही छाया स बर

गल लगन लग ह ग़र

ख़दकशी का राता तह वतन का वाता

बात बनाए बगड़ गई

ध म दरार पड़ गई

10 मन का सतोष

पथवी पर

मनय ही ऐसा एक ाणी ह

जो भीड़ म अकला और

अकल म भीड़ स घरा अनभव करता ह

मनय को झड म रहना पसद ह

घर-परवार स ारभ कर

वह बतया बसाता ह

गली-ाम-पर-नगर सजाता ह

सयता क नर दौड़ म

सकत को पीछ छोड़ता आ

कत पर वजय

मय को म म करना चाहता ह

अपनी रा क लए

और क वनाश क सामान जटाता ह

आकाश को अभशत

धरती को नवसन

वाय को वषा

जल को षत करन म सकोच नह करता

कत यह सब कछ करन क बाद

जब वह एकात म बठकर वचार करता ह

वह एकात फर घर का कोना हो

या कोलाहल स भरा बाजार

या काश क गत स तज उड़ता जहाज

या कोई वानक योगशाला

था मदर

या मरघट

जब वह आमालोचन करता ह

मन क परत खोलता ह

वय स बोलता ह

हान-लाभ का लखा-जोखा नह

या खोया या पाया का हसाब भी नह

जब वह परी जदगी को ही तौलता ह

अपनी कसौट पर वय को ही कसता ह

नममता स नरखता परखता ह

तब वह अपन मन स या कहता ह

इसी का महव ह यही उसका सय ह

अतम याा क अवसर पर

वदा क वला म

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 18: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

बना कण क

आज

महाभारत होना ह

कोई राजा बन

रक को तो रोना ह

9 ध म दरार पड़ गई

ख़न य सफ़द हो गया

भद म अभद खो गया

बट गय शहीद गीत कट गए

कलज म कटार दड़ गई

ध म दरार पड़ गई

खत म बाद गध

टट गय नानक क छद

सतलज सहम उठ थत सी बतता ह

वसत स बहार झड़ गई

ध म दरार पड़ गई

अपनी ही छाया स बर

गल लगन लग ह ग़र

ख़दकशी का राता तह वतन का वाता

बात बनाए बगड़ गई

ध म दरार पड़ गई

10 मन का सतोष

पथवी पर

मनय ही ऐसा एक ाणी ह

जो भीड़ म अकला और

अकल म भीड़ स घरा अनभव करता ह

मनय को झड म रहना पसद ह

घर-परवार स ारभ कर

वह बतया बसाता ह

गली-ाम-पर-नगर सजाता ह

सयता क नर दौड़ म

सकत को पीछ छोड़ता आ

कत पर वजय

मय को म म करना चाहता ह

अपनी रा क लए

और क वनाश क सामान जटाता ह

आकाश को अभशत

धरती को नवसन

वाय को वषा

जल को षत करन म सकोच नह करता

कत यह सब कछ करन क बाद

जब वह एकात म बठकर वचार करता ह

वह एकात फर घर का कोना हो

या कोलाहल स भरा बाजार

या काश क गत स तज उड़ता जहाज

या कोई वानक योगशाला

था मदर

या मरघट

जब वह आमालोचन करता ह

मन क परत खोलता ह

वय स बोलता ह

हान-लाभ का लखा-जोखा नह

या खोया या पाया का हसाब भी नह

जब वह परी जदगी को ही तौलता ह

अपनी कसौट पर वय को ही कसता ह

नममता स नरखता परखता ह

तब वह अपन मन स या कहता ह

इसी का महव ह यही उसका सय ह

अतम याा क अवसर पर

वदा क वला म

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 19: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

अपनी ही छाया स बर

गल लगन लग ह ग़र

ख़दकशी का राता तह वतन का वाता

बात बनाए बगड़ गई

ध म दरार पड़ गई

10 मन का सतोष

पथवी पर

मनय ही ऐसा एक ाणी ह

जो भीड़ म अकला और

अकल म भीड़ स घरा अनभव करता ह

मनय को झड म रहना पसद ह

घर-परवार स ारभ कर

वह बतया बसाता ह

गली-ाम-पर-नगर सजाता ह

सयता क नर दौड़ म

सकत को पीछ छोड़ता आ

कत पर वजय

मय को म म करना चाहता ह

अपनी रा क लए

और क वनाश क सामान जटाता ह

आकाश को अभशत

धरती को नवसन

वाय को वषा

जल को षत करन म सकोच नह करता

कत यह सब कछ करन क बाद

जब वह एकात म बठकर वचार करता ह

वह एकात फर घर का कोना हो

या कोलाहल स भरा बाजार

या काश क गत स तज उड़ता जहाज

या कोई वानक योगशाला

था मदर

या मरघट

जब वह आमालोचन करता ह

मन क परत खोलता ह

वय स बोलता ह

हान-लाभ का लखा-जोखा नह

या खोया या पाया का हसाब भी नह

जब वह परी जदगी को ही तौलता ह

अपनी कसौट पर वय को ही कसता ह

नममता स नरखता परखता ह

तब वह अपन मन स या कहता ह

इसी का महव ह यही उसका सय ह

अतम याा क अवसर पर

वदा क वला म

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 20: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

सयता क नर दौड़ म

सकत को पीछ छोड़ता आ

कत पर वजय

मय को म म करना चाहता ह

अपनी रा क लए

और क वनाश क सामान जटाता ह

आकाश को अभशत

धरती को नवसन

वाय को वषा

जल को षत करन म सकोच नह करता

कत यह सब कछ करन क बाद

जब वह एकात म बठकर वचार करता ह

वह एकात फर घर का कोना हो

या कोलाहल स भरा बाजार

या काश क गत स तज उड़ता जहाज

या कोई वानक योगशाला

था मदर

या मरघट

जब वह आमालोचन करता ह

मन क परत खोलता ह

वय स बोलता ह

हान-लाभ का लखा-जोखा नह

या खोया या पाया का हसाब भी नह

जब वह परी जदगी को ही तौलता ह

अपनी कसौट पर वय को ही कसता ह

नममता स नरखता परखता ह

तब वह अपन मन स या कहता ह

इसी का महव ह यही उसका सय ह

अतम याा क अवसर पर

वदा क वला म

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 21: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

या कोई वानक योगशाला

था मदर

या मरघट

जब वह आमालोचन करता ह

मन क परत खोलता ह

वय स बोलता ह

हान-लाभ का लखा-जोखा नह

या खोया या पाया का हसाब भी नह

जब वह परी जदगी को ही तौलता ह

अपनी कसौट पर वय को ही कसता ह

नममता स नरखता परखता ह

तब वह अपन मन स या कहता ह

इसी का महव ह यही उसका सय ह

अतम याा क अवसर पर

वदा क वला म

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 22: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

जब सबका साथ छटन लगता ह

शरीर भी साथ नह दता

तब आमलान स म

यद कोई हाथ उठाकर यह कह सकता ह

क उसन जीवन म जो कछ कया

सही समझकर कया

कसी को जानबझकर चोट पचान क लए नह

सहज कम समझकर कया

तो उसका अतव साथक ह

उसका जीवन सफ़ल ह

उसी क लए यह कहावत बनी ह

मन चगा तो कठौती म गगाजल ह

11 झक नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

सय का सघष सा स

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 23: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

याय लड़ता नरकशता स

अधर न द चनौती ह

करण अतम अत होती ह

दप ना का लय नकप

व टट या उठ भकप

यह बराबर का नह ह य

हम नहथ श ह स

हर तरह क श स ह सज

और पशबल हो उठा नलज

कत फर भी जझन का ण

अगद न बढ़ाया चरण

ाण-पण स करग तकार

समपण क माग अवीकार

दाव पर सब कछ लगा ह क नह सकत

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 24: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

टट सकत ह मगर हम झक नह सकत

12 र कह कोई रोता ह

र कह कोई रोता ह

तन पर पहरा भटक रहा मन

साथी ह कवल सनापन

बछड़ गया या वजन कसी का

दन सदा कण होता ह

जम दवस पर हम इठलात

य ना मरण यौहार मनात

अतम याा क अवसर पर

आस का अशकन होता ह

अतर रोय आख ना रोय

धल जायग वपन सजाय

छलना भर व म कवल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 25: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

सपना ही सच होता ह

इस जीवन स मय भली ह

आतकत जब गली गली ह

म भी रोता आसपास जब

कोई कह नह होता ह

13 जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करत आज

हाथ स नकल सार

भत भवय क चता म

वतमान क बाज़ी हार

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 26: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

हान लाभ क पलड़ म

तलता जीवन ापार हो गया

मोल लगा बकन वाल का

बना बका बकार हो गया

मझ हाट म छोड़ अकला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला

14 मौत स ठन गई

ठन गई

मौत स ठन गई

जझन का मरा इरादा न था

मोड़ पर मलग इसका वादा न था

राता रोक कर वह खड़ी हो गई

य लगा ज़दगी स बड़ी हो गई

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 27: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

मौत क उमर या ह दो पल भी नह

ज़दगी सलसला आज कल क नह

म जी भर जया म मन स म

लौटकर आऊगा कच स य ड

त दब पाव चोरी-छप स न आ

सामन वार कर फर मझ आज़मा

मौत स बख़बर ज़दगी का सफ़र

शाम हर सरमई रात बसी का वर

बात ऐसी नह क कोई ग़म ही नह

दद अपन-पराए कछ कम भी नह

यार इतना पराय स मझको मला

न अपन स बाक़ ह कोई गला

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 28: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

हर चनौती स दो हाथ मन कय

आधय म जलाए ह बझत दए

आज झकझोरता तज़ तफ़ान ह

नाव भवर क बाह म महमान ह

पार पान का क़ायम मगर हौसला

दख तवर तफ़ा का तवरी तन गई

मौत स ठन गई

15 राह कौन सी जाऊ म

चौराह पर लटता चीर

याद स पट गया वजीर

चल आखरी चाल क बाजी छोड़ वर सजाऊ

राह कौन सी जाऊ म

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 29: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

सपना जमा और मर गया

मध ऋत म ही बाग झर गया

तनक टट य बटो या नवस सजाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

दो दन मल उधार म

घाट क ापार म

ण-ण का हसाब ल या नध शष लटाऊ म

राह कौन सी जाऊ म

16 म सोचन लगता

तज रतार स दौड़ती बस

बस क पीछ भागत लोग

बच सहालती औरत

सड़क पर इतनी धल उड़ती ह

क मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 30: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

परख सोचन क लए आख बद करत थ

म आख बद होन पर सोचता

बस ठकान पर य नह ठहरत

लोग लाइन म य नह लगत

आखर यह भागदौड़ कब तक चलगी

दश क राजधानी म

ससद क सामन

धल कब तक उड़गी

मरी आख बद ह

मझ कछ दखाई नह दता

म सोचन लगता

17 हरोशमा क पीड़ा

कसी रात को

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 31: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

मरी नद अचानक उचट जाती ह

आख खल जाती ह

म सोचन लगता क

जन वानक न अण अ का

आवकार कया था

व हरोशमा-नागासाक क भीषण

नरसहार क समाचार सनकर

रात को कस सोए हग

दात म फसा तनका

आख क करकरी

पाव म चभा काटा

आख क नद

मन का चन उड़ा दत ह

सग-सबधी क मय

कसी य का न रहना

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 32: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

परचत का उठ जाना

यहा तक क पालत पश का भी वछोह

दय म इतनी पीड़ा

इतना वषाद भर दता ह क

चा करन पर भी नद नह आती ह

करवट बदलत रात गजर जाती ह

कत जनक आवकार स

वह अतम अ बना

जसन छह अगत उीस सौ पतालीस क काल-रा को

हरोशमा-नागासाक म मय का ताडव कर

दो लाख स अधक लोग क बल ल ली

हजार को जीवन भर क लए अपाहज कर दया

या उह एक ण क लए सही

य अनभत नह ई क

उनक हाथ जो कछ आ

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 33: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

अछा नह आ

यद ई तो वत उह कटघर म खड़ा नह करगा

कत यद नह ई तो इतहास उह

कभी माफ़ नह करगा

18 नए मील का पथर

नए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतमनए मील का पथर पार आ

कतन पथर शष न कोई जानता

अतम कौन पडाव नही पहचानता

अय सरज अखड धरती

कवल काया जीती मरती

इसलय उ का बढना भी यौहार आ

नए मील का पथर पार आ

बचपन याद बत आता ह

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 34: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

यौवन रसघट भर लाता ह

बदला मौसम ढलती छाया

रसती गागर लटती माया

सब कछ दाव लगाकर घाट का ापार आ

नए मील का पथर पार आ

(इकसठव जम-दवस पर)

19 मोड़ पर

मझ र का दखाई दता ह

म दवार पर लखा पढ़ सकता

मगर हाथ क रखाए नह पढ़ पाता

सीमा क पार भड़कत शोल

मझ दखाई दत ह

पर पाव क इद-गद फली गम राख

नज़र नह आती

या म बढ़ा हो चला

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 35: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

हर पचीस दसबर को

जीन क एक नई सीढ़ चढ़ता

नए मोड़ पर

और स कम

वय स यादा लड़ता

म भीड़ को चप करा दता

मगर अपन को जवाब नही द पाता

मरा मन मझ अपनी ही अदालत म खड़ा कर

जब जरह करता ह

मरा हफनामा मर ही खलाफ पश करता ह

तो म मकमा हार जाता

अपनी ही नजर म गनहगार बन जाता

तब मझ कछ दखाई नही दता

न र का न पास का

मरी उ अचानक दस साल बड़ी हो जाती ह

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 36: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

म सचमच बढ़ा हो जाता

(25 दसबर 1993 जम-दवस पर)

20 आओ मन क गाठ खोल

यमना तट टल रतील

घासndashफस का घर डाड पर

गोबर स लीप आगन म

तलसी का बरवा घट वर

मा क मह म रामायण क दोह-चौपाई रस घोल

आओ मन क गाठ खोल

बाबा क बठक म बछ

चटाई बाहर रख खड़ाऊ

मलन वाल क मन म

असमजस जाऊ या न जाऊ

माथ तलक नाक पर ऐनक पोथी खली वयम स बोल

आओ मन क गाठ खोल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 37: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

सरवती क दख साधना

लमी न सबध न जोड़ा

म न माथ का चदन

बनन का सकप न छोड़ा

नय वष क अगवानी म टक क ल कछ ताजा हो ल

आओ मन क गाठ खोल

(25 दसबर 1994 जम-दवस पर)

21 नई गाठ लगती

जीवन क डोर छोर छन को मचली

जाड़ क धप वण कलश स फसली

अतर क अमराई

सोई पड़ी शहनाई

एक दब दद-सी सहसा ही जगती

नई गाठ लगती

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 38: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

र नह पास नह मजल अजानी

सास क सरगम पर चलन क ठानी

पानी पर लकर-सी

खली जजीर-सी

कोई मगतणा मझ बार-बार छलती

नई गाठ लगती

मन म लगी जो गाठ मकल स खलती

दागदार जदगी न घाट पर धलती

जसी क तसी नह

जसी ह वसी सही

कबरा क चादरया बड़ भाग मलती

नई गाठ लगती

22 य

जो कल थ

व आज नह ह

जो आज ह

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 39: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

व कल नह हग

होन न होन का म

इसी तरह चलता रहगा

हम ह हम रहग

यह म भी सदा पलता रहगा

सय या ह

होना या न होना

या दोन ही सय ह

जो ह उसका होना सय ह

जो नह ह उसका न होना सय ह

मझ लगता ह क

होना-न-होना एक ही सय क

दो आयाम ह

शष सब समझ का फर

ब क ायाम ह

कत न होन क बाद या होता ह

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 40: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

यह अनरत ह

यक नया नचकता

इस क खोज म लगा ह

सभी साधक को इस न ठगा ह

शायद यह ही रहगा

यद कछ अनरत रह

तो इसम बराई या ह

हा खोज का सलसला न क

धम क अनभत

वान का अनसधान

एक दन अवय ही

ार खोलगा

पछन क बजाय

य वय उर बोलगा

23 मा याचना

मा करो बाप तम हमको

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 41: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

बचन भग क हम अपराधी

राजघाट को कया अपावन

मज़ल भल याा आधी

जयकाश जी रखो भरोसा

टट सपन को जोड़ग

चताभम क चगारी स

अधकार क गढ़ तोड़ग

राीयता क वर

24 वतता दवस क पकार

पह अगत का दन कहता - आज़ाद अभी अधरी ह

सपन सच होन बाक़ ह राखी क शपथ न परी ह

जनक लाश पर पग धर कर आजाद भारत म आई

व अब तक ह खानाबदोश ग़म क काली बदली छाई

कलक क फटपाथ पर जो आधी-पानी सहत ह

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 42: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

उनस पछो पह अगत क बार म या कहत ह

ह क नात उनका ख सनत यद तह लाज आती

तो सीमा क उस पार चलो सयता जहा कचली जाती

इसान जहा बचा जाता ईमान ख़रीदा जाता ह

इलाम ससकया भरता हडालर मन म मकाता ह

भख को गोली नग को हथयार पहाए जात ह

सख कठ स जहाद नार लगवाए जात ह

लाहौर कराची ढाका पर मातम क ह काली छाया

पतन पर गलगत पर ह ग़मगीन ग़लामी का साया

बस इसीलए तो कहता आज़ाद अभी अधरी ह

कस उलास मनाऊ म थोड़ दन क मजबरी ह

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 43: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

दन र नह खडत भारत को पनः अखड बनाएग

गलगत स गारो पवत तक आजाद पव मनाएग

उस वण दवस क लए आज स कमर कस बलदान कर

जो पाया उसम खो न जाए जो खोया उसका यान कर

25 अमर आग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

उर दश म अजत ग सा

जागक हरी यग-यग का

मतमत थय धीरता क तमा सा

अटल अडग नगपत वशाल ह

नभ क छाती को छता सा

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 44: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

कत-पज सा

द दपक क काश म-

झलमल झलमल

योतत मा का पय भाल ह

कौन कह रहा उस हमालय

वह तो हमाव वालागर

अण-अण कण-कण गर-कदर

गजत वनत कर रहा अब तक

डम-डम डम का भरव वर

गौरीशकर क गर गर

शल-शखर नझर वन-उपवन

त तण दपत

शकर क तीसर नयन क-

लय-व स जगमग योतत

जसको छ कर

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 45: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

ण भर ही म

काम रह गया था म भर

यही आग ल तदन ाची

अपना अण सहाग सजाती

और खर दनकर क

कचन काया

इसी आग म पल कर

नश-नश दन-दन

जल-जल तपल

स-लय-पयत तमावत

जगती को राता दखाती

यही आग ल हद महासागर क

छाती ह धधकाती

लहर-लहर वाल लपट बन

पव-पमी घाट को छ

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 46: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

सदय क हतभाय नशा म

सोय शलाखड सलगाती

नयन-नयन म यही आग ल

कठ-कठ म लय-राग ल

अब तक हतान जया ह

इसी आग क द वभा म

सत-सध क कल कछार पर

सर-सरता क धवल धार पर

तीर-तट पर

पणकट म पणासन पर

कोट-कोट ऋषय-मनय न

द ान का सोम पया था

जसका कछ उछ मा

बबर पम न

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 47: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

दया दान सा

नज जीवन को सफल मान कर

कर पसार कर

सर-आख पर धार लया था

वद-वद क म-म म

म-म क प-प म

प-प क शद-शद म

शद-शद क अर वर म

द ान-आलोक दपत

सय शव सदर शोभत

कपल कणाद और जमन क

वानभत का अमर काशन

वशद-ववचन यालोचन

जगत माया का दशन

कोट-कोट कठ म गजा

जो अत मगलमय वगक वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 48: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

यही आग सरय क तट पर

दशरथ जी क राजमहल म

घन-समह य चल चपला सी

गट ई वलत ई थी

दय-दानव क अधम स

पीड़त पयभम का जन-जन

शकत मन-मन

सत व

आकल मनवर-गण

बोल रही अधम क तती

तर आ धम का पालन

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 49: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

तब वदश-राथ दश का

सोया यव जागा था

रोम-रोम म गट ई यह वाला

जसन असर जलाए

दश बचाया

वामीक न जसको गाया

चकाचध नया न दखी

सीता क सतीव क वाला

व चकत रह गया दख कर

नारी क रा-नम जब

नर या वानर न भी अपना

महाकाल क बल-वद पर

अगणत हो कर

समत हषत शीश चढ़ाया

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 50: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

यही आग वलत ई थी-

यमना क आकल आह स

अयचार-पीड़त ज क

अ-सध म बड़वानल बन

कौन सह सका मा का दन

दन दवक न कारा म

सलगाई थी यही आग जो

कण-प म फट पड़ी थी

जसको छ कर

मा क कर क कड़या

पग क लड़या

चट-चट टट पड़ी थ

पाचजय का भरव वर सन

तड़प उठा आ सदशन

अजन का गाडीव

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 51: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

भीम क गदा

धम का धम डट गया

अमर भम म

समर भम म

धम भम म

कम भम म

गज उठ गीता क वाणी

मगलमय जन-जन कयाणी

अपढ़ अजान व न पाई

शीश झकाकर एक धरोहर

कौन दाशनक द पाया ह

अब तक ऐसा जीवन-दशन

कालद क कल कछार पर

कण-कठ स गजा जो वर

अमर राग ह अमर राग ह

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 52: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

कोट-कोट आकल दय म

सलग रही ह जो चनगारी

अमर आग ह अमर आग ह

26 परचय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म शकर का वह ोधानल कर सकता जगती ार ार

डम क वह लयवन जसम नचता भीषण सहार

रणचडी क अतत यास म गा का उम हास

म यम क लयकर पकार जलत मरघट का धवाधार

फर अतरतम क वाला स जगती म आग लगा म

यद धधक उठ जल थल अबर जड चतन तो कसा वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म आद पष नभयता का वरदान लय आया भपर

पय पीकर सब मरत आए म अमर वा लो वष पीकर

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 53: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

अधरक यास बझाई ह मन पीकर वह आग खर

हो जाती नया भमसात जसको पल भर म ही छकर

भय स ाकल फर नया न ारभ कया मरा पजन

म नर नारायण नीलकठ बन गया न इसम कछ सशय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म अखल व का ग महान दता वा का अमर दान

मन दखलाया ममाग मन सखलाया ान

मर वद का ान अमर मर वद क योत खर

मानव क मन का अधकार या कभी सामन सकठका सहर

मरा वणभ म गहर गहर सागर क जल म चहर चहर

इस कोन स उस कोन तक कर सकता जगती सौरभ म

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म तजःपज तम लीन जगत म फलाया मन काश

जगती का रच करक वनाश कब चाहा ह नज का वकास

शरणागत क रा क ह मन अपना जीवन दकर

वास नही यद आता तो साी ह इतहास अमर

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 54: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

यद आज दहल क खडहर सदयक ना स जगकर

गजार उठ उनक वर स ह क जय तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

नया क वीरान पथ पर जब जब नर न खाई ठोकर

दो आस शष बचा पाया जब जब मानव सब कछ खोकर

म आया तभ वत होकर म आया ान दप लकर

भला भटका मानव पथ पर चल नकला सोत स जगकर

पथ क आवतस थककर जो बठ गया आध पथ पर

उस नर को राह दखाना ही मरा सदव का ढनय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

मन छाती का ल पला पाल वदश क सजत लाल

मझको मानव म भद नही मरा अतःथल वर वशाल

जग स ठकराए लोगको लो मर घर का खला ार

अपना सब कछ लटा चका पर अय ह धनागार

मरा हीरा पाकर योतत परकयका वह राज मकट

यद इन चरण पर झक जाए कल वह करट तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 55: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म वीरप मर जननी क जगती म जौहर अपार

अकबर क पस पछो या याद उह मीना बझार

या याद उह चोड ग म जलनवाली आग खर

जब हाय सहो माताए तल तल कर जल कर हो गई अमर

वह बझनवाली आग नही रग रग म उस समाए

यद कभ अचानक फट पड वलव लकर तो या वमय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

होकर वत मन कब चाहा ह कर ल सब को गलाम

मन तो सदा सखाया ह करना अपन मन को गलाम

गोपाल राम क नामपर कब मन अयाचार कया

कब नया को ह करन घर घर म नरसहार कया

कोई बतलाए काबल म जाकर कतनी मजद तोडी

भभाग नही शत शत मानव क दय जीतन का नय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 56: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

म एक ब परपण सध ह यह मरा ह समाज

मरा इसका सबध अमर म और यह ह समाज

इसस मन पाया तन मन इसस मन पाया जीवन

मरा तो बस कत यही कर सब कछ इसक अपण

म तो समाज क थात म तो समाज का सवक

म तो सम क लए का कर सकता बलदान अभय

ह तन मन ह जीवन रग रग ह मरा परचय

27 आज सध म वार उठा ह

आज सध म वार उठा ह

नगपत फर ललकार उठा ह

क क कणndashकण स फर

पाचजय कार उठा ह

शतndashशत आघात को सहकर

जीवत हथान हमारा

जग क मतक पर रोली सा

शोभत हथान हमारा

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 57: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

नया का इतहास पछता

रोम कहा यनान कहा ह

घरndashघर म शभ अन जलाता

वह उत ईरान कहा ह

दप बझ पमी गगन क

ात आ बबर अधयारा

कत चीर कर तम क छाती

चमका हथान हमारा

हमन उर का नह लटाकर

पीड़त ईरानी पाल ह

नज जीवन क योत जलाndash

मानवता क दपक बाल ह

जग को अमत का घट दकर

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 58: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

हमन वष का पान कया था

मानवता क लय हष स

अथndashव का दान दया था

जब पम न वनndashफल खाकर

छाल पहनकर लाज बचाई

तब भारत स साम गान का

वागक वर था दया सनाई

अानी मानव को हमन

द ान का दान दया था

अबर क ललाट को चमा

अतल सध को छान लया था

साी ह इतहास कत का

तब स अनपम अभनय होता ह

परब स उगता ह सरज

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 59: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

पम क तम म लय होता ह

व गगन पर अगणत गौरव

क दपक अब भी जलत ह

कोटndashकोट नयन म वणम

यग क शतndashसपन पलत ह

कत आज प क शोणत स

रजत वसधा क छाती

टकड़-टकड़ ई वभाजत

बलदानी परख क थाती

कण-कण पर शोणत बखरा ह

पग-पग पर माथ क रोली

इधर मनी सख क दवाली

और उधर जन-जन क होली

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 60: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

माग का सर चता क

भम बना हा-हा खाता ह

अगणत जीवन-दप बझाता

पाप का झका आता ह

तट स अपना सर टकराकर

झलम क लहर पकारती

यनानी का र दखाकर

चगत को ह गहारती

रो-रोकर पजाब पछता

कसन ह दोआब बनाया

कसन मदर-गार को

अधम का अगार दखाया

खड़ दहली पर हो

कसन पौष को ललकारा

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 61: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

कसन पापी हाथ बढ़ाकर

मा का मकट उतारा

कामीर क नदन वन को

कसन ह सलगाया

कसन छाती पर

अयाय का अबार लगाया

आख खोलकर दखो घर म

भीषण आग लगी ह

धम सयता सकत खान

दानव धा जगी ह

ह कहन म शमात

ध लजात लाज न आती

घोर पतन ह अपनी मा को

मा कहन म फटती छाती

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 62: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

जसन र पीला कर पाला

ण-भर उसक ओर नहारो

सनी सनी माग नहारो

बखर-बखर कश नहारो

जब तक शासन ह

वणी कस बध पायगी

कोट-कोट सतत ह

मा क लाज न लट पायगी

28 जम क पकार

अयाचारी न आज पनः ललकारा अयायी का चलता ह दमन-धारा

आख क आग सय मटा जाता ह भारतमाता का शीश कटा जाताह

या पनः दश टकड़ म बट जाएगा या सबका शोणत पानी बनजाएगा

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 63: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

कब तक दानव क माया चलन दग कब तक भमासर को हमछलन दग

कब तक जम को य ही जलन दग कब तक जम क मदराढलन दग

चपचाप सहग कब तक लाठ गोली कब तक खलग मन ख सहोली

हलाद परीा क बला अब आई होलका बनी दखोअलाशाही

मा-बहन का अपमान सहग कब तक भोल पाडव चपचाप रहगकब तक

आखर सहन क भी सीमा होती ह सागर क उर म भी वाला सोतीह

मलयानल कभी बवडर बन ही जाता भोल शव का तीसरा न खलजाता

जनको जन-धन स मोह ाण स ममता व र रह अब पाचजय

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 64: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

ह बजता

जो वमख य स हठ र कादर ह रणभरी सन कपत जन कअतर ह

व र रह चड़या पहन घर बठ बहन थक माताए कान उमठ

जो मानसह क वशज समख आय फर एक बार घर म ही आगलगाए

पर अयायी क लका अब न रहगी आन वाली सतान य न कहगी

पो क रहत का जनन का माथा चप रह दखत अयाय क गाथा

अब शोणत स इतहास नया लखना ह बल-पथ पर नभय पावआज रखना ह

आओ खडत भारत क वासी आओ कामीर बलाता याग उदासीआओ

शकर का मठ कहण का का जगाता जम का कण-कण ाह-ाह चलाता

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 65: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

लो सनो शहीद क पकार आती ह अयाचारी क सा थराती ह

उजड़ सहाग क लाली तह बलाती अधजली चता मतवाली तहजगाती

अथया शहीद क दत आमण बलवद पर कर दो सववसमपण

कारागार क दवार का योता कसी बलता अब कसा समझोता

हाथ म लकर ाण चलो मतवाल सन म लकर आग चलोनवालो

जो कदम बाधा अब पीछ नह हटगा बचा - बचा हस - हस करमर मटगा

वष क बाद आज बल का दन आया अयाय - याय का चर -सघषण आया

फर एक बात भारत क कमत जागी जनता जागी अपमानतअमत जागी

दखो वदश क कत न कम हो जाय कण - कण पर फर बल क

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 66: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

छाया छा जाए

29 कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

यह परपरा का वाह ह कभी न खडत होगा

प क बल पर ही मा का मतक मडत होगा

वह कपत ह जसक रहत मा क दन दशा हो

शत भाई का घर उजाड़ता जसका महल बसा हो

घर का दपक थ मात-मदर म जब अधयारा

कसा हास-वलास क जब तक बना आ बटवारा

कस बट न मा क टकड़ करक दप जलाए

कसन भाई क समाध पर ऊच महल बनाए

सबल भजा म रत ह नौका क पतवार

चीर चल सागर क छाती पार कर मझधार

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 67: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

ान-कत लकर नकला ह वजयी शकर

अब न चलगा ढग दभ मया आडबर

अब न चलगा रा म का गहत सौदा

यह अभनव चाणय न फलन दगा वष का पौधा

तन क श दय क ा आम-तज क धारा

आज जगगा जग-जननी का सोया भाय सतारा

कोट पप चढ़ रह दव क शभ चरण पर

कोट चरण बढ़ रह यय क ओर नरतर

30 गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

गगन म लहरता ह भगवा हमारा

घर घोर घन दासता क भयकर

गवा बठ सवव आपस म लडकर

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 68: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

बझ दप घर-घर आ शय अबर

नराशा नशा न जो डरा जमाया

य जयचद क ोह का फल ह

जो अब तक अधरा सबरा न आया

मगर घोर तम म पराजय क गम म वजय क वभा ल

अधर गगन म उषा क वसन मनो क नयन म

चमकता रहा पय भगवा हमारा१

भगावा ह पनी क जौहर क वाला

मटाती अमावस लटाती उजाला

नया एक इतहास या रच न डाला

चता एक जलन हजार खडी थी

पष तो मट नारया सब हवन क

समध बन ननल क पग पर चढ थी

मगर जौहर म घर कोहरो म

धए क घनो म क बल क ण म

धधकता रहा पय भगवा हमारा २

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 69: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

मट दवाता मट गए श मदर

लट दवया लट गए सब नगर घर

वय फट क अन म घर जला कर

परकार हाथ म लह क कडया

कपत क माता खडी आज भी ह

भर अपनी आखो म आस क लडया

मगर दासता क भयानक भवर म पराजय समर म

अखीरी ण तक शभाशा बधाता क इछा जगाता

क सब कछ लटाकर ही सब कछ दलान

बलाता रहा ाण भगवा हमारा३

कभी थ अकल ए आज इतन

नही तब डर तो भला अब डरग

वरोध क सागर म चान ह हम

जो टकराएग मौत अपनी मरग

लया हाथ म वज कभी न झकगा

कदम बढ रहा ह कभी न कगा

न सरज क समख अधरा टकगा

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 70: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

नडर ह सभी हम अमर ह सभी हम

क सर पर हमार वरदहत करता

गगन म लहरता ह भगवा हमारा४

31 उनक याद कर

जो बरस तक सड़ जल म उनक याद कर

जो फासी पर चढ़ खल म उनक याद कर

याद कर काला पानी को

अज क मनमानी को

को म जट तल परत

सावरकर स बलदानी को

याद कर बहर शासन को

बम स थरात आसन को

भगतसह सखदव राजग

क आमोसग पावन को

अयायी स लड़

दया क मत फरयाद कर

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 71: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

उनक याद कर

बलदान क बला आई

लोकत द रहा हाई

वाभमान स वही जयगा

जसस कमत गई चकाई

म मागती श सगठत

य ससगत भ अकपत

कत तजवी घत हमगर-सी

म मागती गत अतहत

अतम वजय सनत पथ म

य अवसाद कर

उनक याद कर

32 अमर ह गणत

राजपथ पर भीड़ जनपथ पड़ा सना

पलटन का माच होता शोर ना

शोर स डब ए वाधीनता क वर

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 72: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

वाणी लखनी जड़ कसमसाता डर

भयाताकत भीड़ जन अधकार वचत

बद याय कपाट सा अमयादत

लोक का य का जयकार होता

वतता का व रावी तीर रोता

र क आस बहान को ववश गणत

राजमद न रद डाल म क शभ म

या इसी दन क लए पवज ए बलदान

पीढ़या जझ सदय चला अन-नान

वतता क सर सघष का घननाद

होलका आपात क फर मागती ाद

अमर ह गणत कारा क खलग ार

प अमत क न वष स मान सकत हार

33 सा

मासम बच

बढ़ औरत

जवान मद क लाश क ढर पर चढ़कर

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 73: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

जो सा क सहासन तक पचना चाहत ह

उनस मरा एक सवाल ह

या मरन वाल क साथ

उनका कोई रता न था

न सही धम का नाता

या धरती का भी सबध नह था

पथवी मा और हम उसक प ह

अथववद का यह म

या सफ जपन क लए ह

जीन क लए नह

आग म जल बच

वासना क शकार औरत

राख म बदल घर

न सयता का माण प ह

न दश-भ का तमगा

व यद घोषणा-प ह तो पशता का

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 74: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

माश ह तो पततावथा का

ऐस कपत स

मा का नपती रहना ही अछा था

नदष र स सनी राजग

मशान क धल स गरी ह

सा क अनयत भख

र-पपासा स भी बरी ह

पाच हजार साल क सकत

गव कर या रोए

वाथ क दौड़ म

कह आजाद फर स न खोए

चनौती क वर

34 मातपजा तबधत

पप कटक म खलत ह

दप अधर म जलत ह

आज नह ाद यग स

पीड़ा म ही पलत ह

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 75: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

कत यातना क बल पर

नह भावनाए कती ह

चता होलका क जलती ह

अयायी कर ही मलत ह

35 कठ-कठ म एक राग ह

मा क सभी सपत गथत वलत दय क माला

हकश स महासध तक जगी सघटन-वाला

दय-दय म एक आग ह कठ-कठ म एक राग ह

एक यय ह एक व लौटाना मा का सख-सहाग ह

बल वरोध क सागर म हम सढ़ चान बनग

जो आकर सर टकराएग अपनी-अपनी मौत मरग

वपदाए आती ह आए हम न क ग हम न क ग

आघात क या चता ह हम न झक ग हम न झक ग

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 76: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

सागर को कसन बाधा ह तफान को कसन रोका

पाप क लका न रहगी यह उचास पवन का झका

आधी लघ-लघ दप बझाती पर धधकाती ह दावानल

कोट-कोट दय क वाला कौन बझाएगा कसम बल

छईमई क पड़ नह जो छत ही मरझा जाएग

या तड़ताघात स नभ क योतत तार बझ पाएग

लय-घन का व चीरकर अधकार को चर-चर कर

वलत चनौती सा चमका ह ाची क पट पर शभ दनकर

सय सय क खर ताप स चमगादड़ उलक छपत ह

खग-कल क दन को सन कर करण-बाण या क सकत ह

शद दय क वाला स वास-दप नकप जलाकर

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 77: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

कोट-कोट पग बढ़ जा रह तल-तल जीवन गला-गलाकर

जब तक यय न परा होगा तब तक पग क गत न कगी

आज कह चाह कछ नया कल को बना झक न रहगी

36 आए जस-जस क हमत हो

ह महोदध क छाती म धधक अपमान क वाला

और आजआसत हमाचल मतमान दय क माला

सागर क उाल तरग म जीवन का जी भर कदन

सोन क लका क म लख कर भरता आह भजन

शय तट स सर टकरा कर पछ रही गगा क धारा

सगरसत स भी बढ़कर हा आज आ मत भारत सारा

यमना कहती कण कहा ह सरय कहती राम कहा ह

थत गडक पछ रही ह चगत बलधाम कहा ह

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 78: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

अजन का गाडीव कधर ह कहा भीम क गदा खो गयी

कस कोन म पाचजय ह कहा भीम क श सो गयी

अगणत सीताय अपत ह महावीर नज को पहचानो

अपमानत पदाय कतनी समरधीर शर को सधानो

अल को धल चटान वाल पौष फर स जागो

यव वम क जागो चणकप क नय जागो

कोट कोट पो क माता अब भी पीड़त अपमानत ह

जो जननी का ःख न मटाय उन प पर भी लानत ह

लानत उनक भरी जवानी पर जो सख क नद सो रह

लानत ह हम कोट कोट ह कत कसी क चरण धो रह

अब तक जस जग न पग चम आज उसी क समख नत य

गौरवमण खो कर भी मर सपराज आलस म रत य

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 79: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

गत गौरव का वाभमान ल वतमान क ओर नहारो

जो जठा खा कर पनप ह उनक समख कर न पसारो

पवी क सतान भ बन परदसी का दान न लगी

गोर क सतत स पछो या हमको पहचान न लगी

हम अपन को ही पहचान आमश का नय ठान

पड़ ए जठ शकार को सह नह जात ह खान

एक हाथ म सजन सर म हम लय लए चलत ह

सभी कत वाला म जलत हम अधयार म जलत ह

आख म वभव क सपन पग म तफान क गत हो

रा भ का वार न कता आए जस जस क हमत हो

37 एक बरस बीत गया

एक बरस बीत गया

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 80: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

झलासाता जठ मास

शरद चादनी उदास

ससक भरत सावन का

अतघट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकच म समटा जग

कत वकल ाण वहग

धरती स अबर तक

गज म गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ नहारत नयन

गनत दन पल छन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 81: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

38 जीवन क ढलन लगी साझ

जीवन क ढलन लगी साझ

उमर घट गई

डगर कट गई

जीवन क ढलन लगी साझ

बदल ह अथ

शद ए थ

शात बना खशया ह बाझ

सपन म मीत

बखरा सगीत

ठठक रह पाव और झझक रही झाझ

जीवन क ढलन लगी साझ

39 पनः चमकगा दनकर

आज़ाद का दन मना

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 82: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

नई ग़लामी बीच

सखी धरती सना अबर

मन-आगन म कच

मन-आगम म कच

कमल सार मरझाए

एक-एक कर बझ दप

अधयार छाए

कह क़द कबराय

न अपना छोटा जी कर

चीर नशा का व

पनः चमकगा दनकर

40 कदम मलाकर चलना होगा

बाधाए आती ह आए

घर लय क घोर घटाए

पाव क नीच अगार

सर पर बरस यद वालाए

नज हाथ म हसत-हसत

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 83: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

आग लगाकर जलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

हाय-दन म तफ़ान म

अगर असयक बलदान म

उान म वीरान म

अपमान म समान म

उत मतक उभरा सीना

पीड़ा म पलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

उजयार म अधकार म

कल कहार म बीच धार म

घोर घणा म पत यार म

णक जीत म दघ हार म

जीवन क शत-शत आकषक

अरमान को ढलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 84: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

क़दम मलाकर चलना होगा

समख फला अगर यय पथ

गत चरतन कसा इत अब

समत हषत कसा म थ

असफल सफल समान मनोरथ

सब कछ दकर कछ न मागत

पावस बनकर ढ़लना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

कछ काट स सजत जीवन

खर यार स वचत यौवन

नीरवता स मखरत मधबन

परहत अपत अपना तन-मन

जीवन को शत-शत आत म

जलना होगा गलना होगा

क़दम मलाकर चलना होगा

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 85: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

41 पड़ोसी स

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का मतक नह झकगा

अगणत बलदानो स अजत यह वतता

अ वद शोणत स सचत यह वतता

याग तज तपबल स रत यह वतता

खी मनजता क हत अपत यह वतता

इस मटान क साजश करन वाल स कह दो

चनगारी का खल बरा होता ह

और क घर आग लगान का जो सपना

वो अपन ही घर म सदा खरा होता ह

अपन ही हाथ तम अपनी क ना खोदो

अपन पर आप कहाडी नह चलाओ

ओ नादान पडोसी अपनी आख खोलो

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 86: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

आजाद अनमोल ना इसका मोल लगाओ

पर तम या जानो आजाद या होती ह

तह मत म मली न कमत गयी चकाई

अज क बल पर दो टकड पाय ह

मा को खडत करत तमको लाज ना आई

अमरीक श स अपनी आजाद को

नया म कायम रख लोग यह मत समझो

दस बीस अरब डालर लकर आन वाली बरबाद स

तम बच लोग यह मत समझो

धमक जहाद क नार स हथयार स

कमीर कभी हथया लोग यह मत समझो

हमलो स अयाचार स सहार स

भारत का शीष झका लोग यह मत समझो

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 87: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

जब तक गगा म धार सध म वार

अन म जलन सय म तपन शष

वातय समर क वद पर अपत हग

अगणत जीवन यौवन अशष

अमरीका या ससार भल ही हो व

कामीर पर भारत का सर नही झकगा

एक नह दो नह करो बीस समझौत

पर वत भारत का नय नह कगा

ववध क वर

42 रोत रोत रात सो गई

झक न अलक

झपी न पलक

सधय क बारात खो गई

रोत रोत रात सो गई

दद पराना

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 88: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

मीत न जाना

बात ही म ात हो गई

रोत रोत रात सो गई

घमड़ी बदली

बद न नकली

बछड़न ऐसी था बो गई

रोत रोत रात सो गई

43 बलाती तह मनाली

आसमान म बजली यादा

घर म बजली काम

टलीफ़ोन घमत जाओ

यादातर गमसम

बफ ढक पवतमालाए

नदया झरन जगल

करय का दश

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 89: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

दवता डोल पल-पल

हर-हर बादाम व पर

लाड खड़ चलगोज़

गधक मला उबलता पानी

खोई मण को खोज

दोन बाह पसार

बलाती तह मनाली

दावानल म मलयानल सी

महक म मनाली

44 अतर

या सच ह या शव या सदर

शव का अचन

शव का वजन

क वसगत या पातर

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 90: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

वभव ना

अतर सना

क गत या थलातर

45 बबली क दवाली

बबली लौली क दो

क नह खलौन दो

लब-लब बाल वाल

फल-पचक गाल वाल

कद छोटा खोटा वभाव ह

दख अजनबी बड़ा ताव ह

भाग तो बस शामत आई

मह स झटपट पट दबाई

दौड़ो मत ठहरो य क य

थोड़ी दर करग भ-भ

डरत ह इसलए डरात

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 91: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

सघ-साघ कर खश हो जात

इह तनक-सा यार चाहए

नजर म एतबार चाहए

गोद म चढ़कर बठ ग

हसकर पर म लोटग

पाव पसार पलग पर सोत

अगर उतारो मलकर रोत

लकन नद बड़ी कची ह

पहरदारी म सची ह

कह जरा-सा होता खटका

कद भाग मारा झटका

पटका लप सराही तोड़ी

पकड़ा चहा गदन मोड़ी

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 92: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

बली स मनी परानी

उस पकड़न क ह ठानी

पर बली ह बड़ी सयानी

आखर ह शर क नानी

ऐसी सरपट दौड़ लगाती

क स न पकड़ म आती

बबली मा ह लौली बटा

मा सीधी ह बटा खोटा

पर दोन म यार बत ह

यार बत तकरार बत ह

लड़त ह इसान जस

गस म हवान जस

लौली को कचड़ भाती ह

थ बसती नहलाती ह

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 93: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

लोट-पोट कर कर बराबर

फर बतर पर चढ़ दौड़कर

बबली जी चालाक चत ह

लौली बध और सत ह

घर क ऊपर बठा कौवा

बबली जी को जस हौवा

भक-भक कोहराम मचाती

आसमान सर पर ल आती

जब तक कौवा भाग न जाता

बबली जी को चन न आता

आतशबाजी स घबरात

बतर क नीच छप जात

एक दवाली ऐसी आई

बबली जी न दौड़ लगाई

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 94: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

बदहवास हो घर स भागी

तोड़ रत ममता यागी

कोई सजन मल सड़क पर

मोटर म ल गए उठाकर

रपट पलस म दज कराई

अखबार म खबर छपाई

लौली जी रह गए अकल

कसस झगड़ कसस खल

बजी अचानक घट टन-टन

उधर फोन पर बोल सजन

या कोई का खोया ह

रग कसा कसा लया ह

बबली जी का प बखाना

रग बखाना ढग बखाना

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 95: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

बोल आप तरत आइए

परशान रहम खाइए

जब स आई ह रोती ह

ना खाती ह ना सोती ह

मोटर लकर सरपट भाग

नह दखत पीछ आग

जा पच जो पता बताया

घर घट का बटन दबाया

बबली क आवाज सन पड़ी

ार खला सामन आ खड़ी

बदहवास सी समट-समट

पलभर ठठक फर आ लपट

घर म लहर खशी क छाई

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 96: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

मानो दवाली फर आई

पर न चलगी आतशबाजी

का पालो मर ाजी

46 अपन ही मन स कछ बोल

या खोया या पाया जग म

मलत और बछड़त मग म

मझ कसी स नह शकायत

यप छला गया पग-पग म

एक बीती पर डाल याद क पोटली टटोल

पवी लाख वष परानी

जीवन एक अनत कहानी

पर तन क अपनी सीमाए

यप सौ शरद क वाणी

इतना काफ़ ह अतम दतक पर खद दरवाज़ा खोल

जम-मरण अवरत फरा

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 97: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

जीवन बजार का डरा

आज यहा कल कहा कच ह

कौन जानता कधर सवरा

अधयारा आकाश असीमताण क पख को तौल

अपन ही मन स कछ बोल

47 मनाली मत जइयो

मनाली मत जइयो गोरी

राजा क राज म

जइयो तो जइयो

उड़क मत जइयो

अधर म लटकहौ

वायत क जहाज़ म

जइयो तो जइयो

सदसा न पइयो

टलफोन बगड़ ह

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 98: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

मधा महाराज म

जइयो तो जइयो

मशाल ल क जइयो

बजरी भइ बरन

अधरया रात म

मनाली तो जइहो

सरग सख पइह

ख नीको लाग मोह

राजा क राज म

48 दखो हम बढ़त ही जात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात

उवलतर उवलतम होती ह

महासगठन क वाला

तपल बढ़ती ही जाती ह

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 99: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

चडी क मड क माला

यह नागपर स लगी आग

योतत भारत मा का सहाग

उर दण परब पम

दश दश गजा सगठन राग

कशव क जीवन का पराग

अतथल क अवआग

भगवा वज का सदश याग

वन वजनकात नगरीय शात

पजाब सध सय ात

करल कनाटक और बहार

कर पार चला सगठन राग

ह ह मलत जात

दखो हम बढ़त ही जात १

यह माधव अथवा महादव न

जटा जट म धारण कर

मतक पर धर झर झर नझर

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 100: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

आलावत तन मन ाण ाण

ह न नज को पहचाना

कत कम शर सधाना

ह यय र ससार र मद म चर

पथ भरा शल जीवन कल

जननी क पग क तनक धल

माथ पर ल चल दय सभी मद मात

बढ़त जात दखो हम बढ़त ही जात२

49 जग न होन दग

हम जग न होन दग

व शात क हम साधक ह जग न होन दग

कभी न खत म फर खनी खाद फलगी

खलहान म नह मौत क फसल खलगी

आसमान फर कभी न अगार उगलगा

एटम स नागासाक फर नह जलगी

यवहीन व का सपना भग न होन दग

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 101: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

जग न होन दग

हथयार क ढर पर जनका ह डरा

मह म शात बगल म बम धोख का फरा

कफन बचन वाल स कह दो चलाकर

नया जान गई ह उनका असली चहरा

कामयाब हो उनक चाल ढग न होन दग

जग न होन दग

हम चाहए शात जदगी हमको यारी

हम चाहए शात सजन क ह तयारी

हमन छड़ी जग भख स बीमारी स

आगआकर हाथ बटाए नया सारी

हरी-भरी धरती को खनी रग न लन दग

जग न होन दग

भारत-पाकतान पड़ोसी साथ-साथ रहना ह

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 102: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

यार कर या वार कर दोन को ही सहना ह

तीन बार लड़ चक लड़ाई कतना महगा सौदा

सी बम हो या अमरक खन एक बहना ह

जो हम पर गजरी बच क सग न होन दग

जग न होन दग

50 आओ मद नामद बनो

मद न काम बगाड़ा ह

मद को गया पछाड़ा ह

झगड़-फसाद क जड़ सार

जड़ स ही गया उखाड़ा ह

मद क तती बद ई

औरत का बजा नगाड़ा ह

गम छोड़ो अब सद बनो

आओ मद नामद बनो

गलछर खब उड़ाए ह

रस भी खब तड़ाए ह

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 103: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

च चपड़ चलगी तनक नह

सर सब क गए मड़ाए ह

उलट गगा क धारा ह

य तल का ताड़ बनाए ह

तम दवा नह हमदद बनो

आयो मद नामद बनो

औरत न काम सहाला ह

सब कछ दखा ह भाला ह

मह खोलो तो जय-जय बोलो

वना तहाड़ का ताला ह

ताली फटकारो झख मारो

बाक ठन-ठन गोपाला ह

गदश म हो तो गद बनो

आयो मद नामद बनो

पौष पर फरता पानी ह

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 104: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

पौष कोरी नादानी ह

पौष क गण गाना छोड़ो

पौष बस एक कहानी ह

पौषवहीन क पौ बारा

पौष क मरती नानी ह

फाइल छोड़ो अब फद बनो

आओ मद नामद बनो

चौकड़ी भल चौका दखो

चहा फको मौका दखौ

चलती चक क पाट म

पसती जीवन नौका दखो

घर म ही लटया डबी ह

चटया म ही धोखा दखो

तम कला नह बस खद बनो

आयो मद नामद बनो

51 सपना टट गया

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 105: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

हाथ क हद ह पीली

पर क महद कछ गीली

पलक झपकन स पहल ही

सपना टट गया

दप बझाया रची दवाली

लकन कट न अमावस काली

थ आआान

वण सवरा ठ गया

सपना टट गया

नयत नट क लीला यारी

सब कछ वाहा क तयारी

अभी चला दो कदम कारवा

साथी छट गया

सपना टट गया

मय -अटल बहारी वाजपयी

Page 106: मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल ब ह ार ी वा जप ेय ी Poem… · मेर ी इय ाव न कव त ाए ँ अटल

मय -अटल बहारी वाजपयी