योग का इतिहास - holistic united · web viewय ग दस हज र स ल...

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ययय यययय यय? | What is Yoga in Hindi ययय यययय ससससससस सससस 'ससस' यय ययययय यय, ययययय यययय यय ययययययययय ययययय यय ययययय यय यययययययययय ययययय यय ययय यय यययय ययय, यययययय ययययय यय यययय यययय यययय यययययय यययय यय य ययययययय यय ययय ययय यय यययय ययययययय ययययययय यय ययययय ययय, यययय ययय यययय यय ययययय, ययययययय, यययययय ययय यय ययययय यययय यययययय ययययय यययययय ययय यय यययययय ययय यययय यययययय यय यय यय ययययय यय यययय यययययययय यययययय यययय यययय यय ययय ययययययय यय यययय यययय यययय ययय ययय ययययययय ययय यययय यययय यय ययययय ययय ययययययय यययय ययय यय| यययय ययययय यययय ययय, "ययय ययययय ययययययय यय ययय यययय ययय यय ययययययययय यययययय यय ययययययययय यययय यय यययययय ययय ययय यय यययययययययय ययययय यय, यय यययय यययययययय यय ययय यय ययययय ययय यययय यय"

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Page 1: योग का इतिहास - Holistic United · Web viewय ग दस हज र स ल स भ अध क समय स प रचलन म ह । मननश ल पर

योग क्या है? | What is Yoga in Hindi

योग शब्द संस्कृत धातु 'युज' से नि�कला है, जि�सका मतलब है व्यक्ति�गत चेत�ा या आत्मा का सार्व�भौमिमक चेत�ा या रूह से मिमल�। योग, भारतीय ज्ञान की पांच हजार वर्ष� पुरानी शैली है । हालांनिक कई लोग योग को केर्वल शारीरिरक व्यायाम ही मा�ते हैं, �हाँ लोग शरीर को मोडते, मरोड़ते, खि-ंचते हैं और श्वास ले�े के �टि2ल तरीके अप�ाते हैं। यह र्वास्तर्व में केर्वल म�ुष्य के म� और आत्मा की अ�ंत क्षमता का -ुलासा कर�े र्वाले इस गह� निर्वज्ञा� के सबसे सतही पहलू हैं। योग निर्वज्ञा� में �ीर्व� शैली का पूर्ण� सार आत्मसात निकया गया है|साधक अंक्तिशत कहते हैं, "योग सिसर्फ� व्यायाम और आसन नहीं है। यह भार्व�ात्मक एकीकरर्ण और रहस्यर्वादी तत्र्व का स्पश� क्तिलए हुए एक आध्यात्मित्मक ऊंचाई है, �ो आपको सभी कल्प�ाओं से परे की कुछएक झलक देता है।"

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योग का इतितहास | History of Yoga in Hindiयोग दस ह�ार साल से भी अमिधक समय से प्रचल� में है। म��शील परंपरा का सबसे तरौता�ा उल्ले-, �ासदीय सू� में, सबसे पुरा�े �ीर्वन्त सानिहत्य ऋग्र्वेद में पाया �ाता है। यह हमें निPर से क्तिसन्धु-सरस्र्वती सभ्यता के दश�� कराता है। ठीक उसी सभ्यता से, पशुपनित मुहर (क्तिसक्का) जि�स पर योग मुद्रा में निर्वरा�मा� एक आकृनित है, �ो र्वह उस प्राची� काल में योग की व्यापकता को दशा�ती है। हालांनिक, प्राची�तम उपनि�षद, बृहदअरण्यक में भी, योग का निहस्सा ब� चुके, निर्वभिभन्न शारीरिरक अभ्यासों का उल्ले- मिमलता है। छांदोग्य उपनि�षद में प्रत्याहार का तो बृहदअरण्यक के एक स्तर्व� (र्वेद मंत्र) में प्रार्णायाम के अभ्यास का उल्ले- मिमलता है। यथार्वत, ”योग” के र्वत�मा� स्र्वरूप के बारे में, पहली बार उल्ले- शायद कठोपनि�षद में आता है, यह य�ुर्व_द की कथाशा-ा के अंनितम आठ र्वग` में पहली बार शामिमल होता है �ोनिक एक मुख्य और महत्र्वपूर्ण� उपनि�षद है। योग को यहाँ भीतर (अन्तम��) की यात्रा या चेत�ा को निर्वकक्तिसत कर�े की एक प्रनिbया के रूप में दे-ा �ाता है।प्रक्तिसद्ध संर्वाद, “योग याज्ञर्वल्क्य” में, �ोनिक (बृहदअरण्यक उपनि�षद में र्वर्णिरं्णत है), जि�समें बाबा याज्ञर्वल्क्य और क्तिशष्य ब्रह्मर्वादी गागg के बीच कई साँस ले�े सम्बन्धी व्यायाम, शरीर की सPाई के क्तिलए आस� और ध्या� का उल्ले- है। गागg द्वारा छांदोग्य उपनि�षद में भी योगास� के बारे में बात की गई है।अथर्व�रे्वद में उल्लेखि-त संन्याक्तिसयों के एक समूह, र्वाता� (सभा) द्वारा, शारीरिरक आस� �ोनिक योगासन के रूप में निर्वकक्तिसत हो सकता है पर बल टिदया गया है| यहाँ तक निक संनिहताओं में उल्लेखि-त है निक प्राची� काल में मुनि�यों, महात्माओं, र्वाता�ओं (सभाओं) और निर्वभिभन्न साधु और संतों द्वारा कठोर शारीरिरक आचरर्ण, ध्या� र्व तपस्या का अभ्यास निकया �ाता था।योग धीरे-धीरे एक अर्वधारर्णा के रूप में उभरा है और भगर्वद गीता के साथ साथ, महाभारत के शांनितपर्व� में भी योग का एक निर्वस्तृत उल्ले- मिमलता है।

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बीस से भी अमिधक उपनि�षद और योग र्वक्तिशष्ठ उपलब्ध हैं, जि��में महाभारत और भगर्वद गीता से भी पहले से ही, योग के बारे में, सर्वmच्च चेत�ा के साथ म� का मिमल� हो�ा कहा गया है।हिहंदू दश�� के प्राची� मूलभूत सूत्र के रूप में योग की चचा� की गई है और शायद सबसे अलंकृत पतं�क्तिल योगसूत्र में इसका उल्ले- निकया गया है। अप�े दूसरे सूत्र में पतं�क्तिल, योग को कुछ इस रूप में परिरभानिषत करते हैं:

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" योग: सिचत्त-वसृित्त तिनरोध: "- योग सूत्र 1.2

पतं�क्तिल का ले-� भी अष्टांग योग के क्तिलए आधार ब� गया। �ै� धम� की पांच प्रनितज्ञा और बौद्ध धम� के योगाचार की �डें पतं�क्तिल योगसूत्र मे नि�निहत हैं।मध्यकाली� युग में हठ योग का निर्वकास हुआ।

योग के गं्रथ: पतंजसिल योग सूत्र |Scriptures of Yoga: Patanjali Yoga Sutras

पतं�क्तिल को योग के निपता के रूप में मा�ा �ाता है और उ�के योग सूत्र पूरी तरह योग के ज्ञा� के क्तिलए समर्पिपंत रहे हैं।प्राची� शास्त्र पतं�क्तिल योग सूत्र, पर गुरुदेर्व के अ�न्य प्रर्वच�, आपको योग के ज्ञा� से प्रकाशमा� (लाभान्विन्र्वत) करते हैं, तथा योग की उत्पनित और उदे्दश्य के बारे में बताते हैं। योग सूत्र की इस व्याख्या का लक्ष्य योग के क्तिसद्धांत ब�ा�ा और योग सूत्र के अभ्यास को और अमिधक समझ�े योग्य र्व आसा� ब�ा�ा है। इ�में ध्या� कें टिद्रत कर�े के प्रयास की पेशकश की गई है निक क्या एक ‘योग �ीर्व� शैली’ का उपयोग योग के अंनितम लाभों का अ�ुभर्व कर�े के क्तिलए निकया �ा सकता है|गुरुदेर्व �े भी योगसूत्र उपनि�षद पर बहुत चचा� की है। गीता पर अप�ी टि2प्पर्णी में उन्हों�े, सांख्ययोग, कम�योग, भक्ति�योग, रा�गुनिहययोग और निर्वभूनितयोग की तरह, योग के निर्वभिभन्न अंगों पर प्रकाश डाला है।