ऄसम के कृष्ण भक्त कवि श्री माधिदेि...

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“kks/k ea Fku] 2015 ऄसम के कृण भ कवि ी माधिदेि ारा विरवचत बरगीत के विषय -ितु का विेषणामक ऄययन लेᳰकन वजस समय ऄसमीया सावहय के आवतहास म भव मूलक सावहय को अवभभााि के समय को तीन भाग म विभावजत ᳰकया गया। जैसे - (1) ाक ् -शंकरी युग, (2) शंकरी युग, (3) शंकरोर युग। आस काल कᳱ समय सीमा सन् 1300 से 1826 . तक माना जाता है। शंकरी युग को ऄसमीया सावहय म शंकरदेिकालीन युग के नाम से जाना जाता है। यह युग ऄसमीया सावहय आवतहास का िण-युग है। आसी समय पूिोर के ऄसम ात म शंकरदेि और माधिदेि जैसे महान संतो का अविभााि अ। शंकरदेि माधिदेि के गु थे। ईह ही ऄसम के नि-िणि धमा के िाक माना जाता है। आसी धमा के चार के ईेय से ई दोन संतो ने बरगीत जैसे मधुर भव गीत वलखा। और आस गीत कᳱ रचना जाबुली भाषा म कᳱ है। नि-िणि धमा मूलतः कृण भव धान है। सूरदास ने कृण के सुगुण प कᳱ ईपासना कᳱ है लेᳰकन शंकरदेि और माधिदेि ने कृण कᳱ ईपासना वनगुाण प म ᳰकया है। ऄपने भव मागा म ीकृण को छोकर ऄय देिी-देिता को थान नह ᳰदया है। तप, जप, य या य सापे साधन-मागा कᳱ ऄपेा िण-कᳱतान और ससंग ारा भव के सहज-सरल मागा को ऄपनाने पर बल ᳰदया है। भव के े म ाᳬण चाडाल का सम ऄवधकार बताने का यास ᳰकया है। ऄᳲहसा, ेम, कणा मा अᳰद मानिीय सगुण का विकास पर मानितािाद कᳱ वता करना नि-िणि धमा का धान लय रहा है। शोध अलेख कᳱ पृभूवमः- ऄसमीया सावहय के िैणि भ कवि ी मधिदेि का जम ितामान ऄसम के लखीमपुर वजले म नारायणपुर ऄंचल के कावचकटा नदी के वनकट लेटेकुपुखुरी नामक थान म हᳯरᳲशगा बोरा के घर पर सन् 1489 . को अ। ईनके वपता का नाम गोविदवगरी भया और माता का नाम मनोरमा देिी थी। माधिदेि का बायकाल साधन सप नह था। कायथ जावत के ईनके वपता ितामान बांगलादेश के रंगपुर के बाडुका के वनिासी थे। िे परहिी सदी के ईराा म ऄसम वथत , अज के नगाि वजले के बादोिा नामक थान म अ बसे। यह कायथ जावत कᳱ एक लकᳱ से माधिदेि के वपता ने वििाह रचाया। मनोरमा नाम कᳱ यह लकᳱ शंकरदेि के दूर कᳱ ᳯरतेदार थी। हᳯरᳲशगा नाम के एक सन ईह लखीमपुर वजले के नारायणपुर के लेतेकुपुखुरी नामक थान पर ले अते है। माधिदेि का ऄसमीया गीवतका के े म एक विवश थान है। िे कृण के ईपासक थे और शंकरदेि के वय वशय म से एक थे। ईहने ाचीन ऄसमीया भव का जगत को एक ऄवभनि ईपहार बरगीत के प म दान ᳰकया है। माधिदेि ऄसमीया सावहय के थम भ कवि है वजहने िासय भाि को ऄपने गीत और का म थान ᳰदया। माधिदेि ने ऄपने गु शंकरदेि के अानुसार बरगीत कᳱ रचना करने के वलए ऄपने को तुत ᳰकया। कहा जाता है ᳰक शंकरदेि के बरगीत कᳱ पांडुवलवप को बरपेटा (ऄसम का एक वजला) के ईनके एक भ पने के ऄपने घर िन मागा के ले जा रहे थे ; ᳰक ऄकामात् िन म अग लग जाने के कारण बरगीत कᳱ पांडुवलवप ईसी म जल गयी। आसी दुःख के कारण शंकरदेि ने गीत णयन करना छो ᳰदया और ऄपने वय वशय माधिदेि को ᳰकसु गीत कोरा (कुछ और गीत वलख) कहकर गीत णयन करने के वलए अदेश

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“kks/k eaFku] 2015

ऄसम के कृष्ण भक्त कवि श्री माधिदेि द्वारा विरवचत बरगीत के विषय-िस्तु का

विश्लेषणात्मक ऄध्ययन

लेककन वजस समय ऄसमीया सावहत्य के आवतहास में भवक्त मूलक सावहत्य को अवभभााि के समय को

तीन भागों में विभावजत ककया गया। जैसे- (1) प्राक्-शंकरी युग, (2) शंकरी युग, (3) शंकरोत्तर युग। आस काल

की समय सीमा सन् 1300 से 1826 इ. तक माना जाता ह।ै शंकरी युग को ऄसमीया सावहत्य में

शंकरदिेकालीन युग के नाम से जाना जाता ह।ै यह युग ऄसमीया सावहत्य आवतहास का स्िणा-युग ह।ै आसी समय

पूिोत्तर के ऄसम प्रान्त में शंकरदिे और माधिदिे जैसे महान संतो का अविभााि हुअ। शंकरदिे माधिदिे के

गुरु थे। ईन्हें ही ऄसम के नि-िैष्णि धमा के प्रित्ताक माना जाता ह।ै आसी धमा के प्रचार के ईद्दशे्य से ईक्त दोनों

संतो ने बरगीत जैसे मधुर भवक्त गीत वलखा। और आस गीत की रचना ब्रजाबुली भाषा में की ह।ै नि-िैष्णि धमा

मूलतः कृष्ण भवक्त प्रधान ह।ै सूरदास ने कृष्ण के सुगुण रुप की ईपासना की ह ैलेककन शंकरदिे और माधिदिे ने

कृष्ण की ईपासना वनगुाण रुप में ककया ह।ै ऄपने भवक्त मागा में श्रीकृष्ण को छोड़कर ऄन्य दिेी-दिेता को स्थान

नहीं कदया ह।ै तप, जप, यज्ञ या व्यय सापेक्ष साधन-मागा की ऄपेक्षा श्रिण-कीतान और सत्संग द्वारा भवक्त के

सहज-सरल मागा को ऄपनाने पर बल कदया ह।ै भवक्त के क्षेत्र में ब्राह्मण चाण्डाल का सम ऄवधकार बताने का

प्रयास ककया ह।ै ऄहहसा, पे्रम, करुणा क्षमा अकद मानिीय सद्गुणों का विकास पर मानितािाद की प्रवतष्ठा

करना नि-िैष्णि धमा का प्रधान लक्ष्य रहा ह।ै

शोध अलेख की पृष्ठभूवमः-

ऄसमीया सावहत्य के िैष्णि भक्त कवि श्री मधिदिे का जन्म ितामान ऄसम के लखीमपुर वजले में

नारायणपुर ऄंचल के कावचकटा नदी के वनकट लेटेकुपुखुरी नामक स्थान में हररहशगा बोरा के घर पर सन्

1489 इ. को हुअ। ईनके वपता का नाम गोविन्दवगरी भञ्या और माता का नाम मनोरमा दिेी थी। माधिदिे

का बाल्यकाल साधन सम्पन्न नहीं था। कायस्थ जावत के ईनके वपता ितामान बांगलादशे के रंगपुर के बाण्डुका के

वनिासी थे। िे पन्रहिी सदी के ईत्तरार्द्ा में ऄसम वस्थत , अज के नगााँि वजले के बाड़दोिा नामक स्थान में अ

बसे। यहीं कायस्थ जावत की एक लड़की से माधिदिे के वपता ने वििाह रचाया। मनोरमा नाम की यह लड़की

शंकरदिे के दरू की ररश्तेदार थी।

हररहशगा नाम के एक सज्जन ईन्हें लखीमपुर वजले के नारायणपुर के लेतेकुपुखुरी नामक स्थान पर ले

अते ह।ै

माधिदिे का ऄसमीया गीवतकाव्य के क्षेत्र में एक विवशष्ट स्थान ह।ै िे कृष्ण के ईपासक थे और शंकरदिे

के वप्रय वशष्य में से एक थे। ईन्होंने प्राचीन ऄसमीया भवक्त काव्य जगत को एक ऄवभनि ईपहार बरगीत के रुप

में प्रदान ककया ह।ै माधिदिे ऄसमीया सावहत्य के प्रथम भक्त कवि ह ैवजन्होंने िात्सल्य भाि को ऄपने गीतों

और काव्य में स्थान कदया। माधिदिे ने ऄपने गुरु शंकरदिे के अज्ञानुसार बरगीत की रचना करने के वलए

ऄपने को प्रस्तुत ककया। कहााँ जाता ह ैकक शंकरदिे के बरगीतों की पांडुवलवप को बरपेटा (ऄसम का एक वजला)

के ईनके एक भक्त पढ़ने के ऄपने घर िन मागा के ले जा रह ेथे ; कक ऄकास्मात् िन में अग लग जाने के कारण

बरगीतों की पांडुवलवप ईसी में जल गयी। आसी दःुख के कारण शंकरदिे ने गीत प्रणयन करना छोड़ कदया और

ऄपने वप्रय वशष्य माधिदिे को ककसु गीत कोरा (कुछ और गीत वलखों) कहकर गीत प्रणयन करने के वलए अदशे

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कदया। अज्ञा को वशरोधारी कर ऄपने गुरु की परम्परा को अगे बढ़ाने के वलए तैयार हुये। शंकरदिे बरगीतों के

सृवष्टकताा ह ैपरन्तु माधिदिे ने बरगीत की परम्परा को अगे बढ़ाने में काफी योगदान भी कदया। शंकरदिे के

ईत्तरावधकारी के रुप में माधिदिे ने आसे (बरगीत) फलने-फुलने में बड़ी भूवमका का वनिााह ककया। बरगीत

ऄसमीया िैष्णि सावहत्य की एक महत्िपूणा शाखा ह।ै शंकरदिे के समय को ऄसमीया सावहत्य के आवतहास में

‘भवक्तकाल’ तथा ईनके तत्कालीन समय को ‘शंकरी युग ’ की संज्ञा से ऄवभवहत ककया गया ह।ै ऄसमीया

गीतीकाव्य के क्षेत्र में बरगीत ऄपनी सावहवत्यक , सांस्कृवतक और ऐवतहावसक महत्ि को स्थावपत करता ह।ै

ऄसम में िैष्णि धमा को प्रचार करने के वलए शंकरदिे और ईनके वशष्य माधिदिे का प्रथम प्रयास बरगीत रहा

ह।ै यानी कक बरगीत के द्वारा शंकरदिे ने िैष्णि धमा को फैलाने का बीड़ा ईठाया। ऄसमीया सावहत्य में िैष्णि

अन्दोलन को ‘नि िैष्णि धमा ’ की संज्ञा कदया जाता ह।ै यह ‘नि िैष्णि धमा ’ तत्कालीन बाह्मण्यिाद धमा के

वखलाफ ईठ खड़ा हुअ एक भवक्त अन्दोलन ह।ै

बरगीत की पररभाषाः-

बरगीत के सम्बन्ध में ऄसमीया सावहत्यकार डॉ. िाणीकान्त काकवत का मानना ह ैकक “शंकरदिे के और

माधिदिे के बरगीत ईच्च नैवतक और अध्यावत्मक भािों पर प्रवतवस्थत ह।ै आसीवलए ईन गीतों को बरगीत कहााँ

जाता ह।ै ऄंगे्रजी के कवि हरेरक ( Herrick) ने भी अध्यावत्मक भाि पर अधाररत कुछ कविता रचना करके

ईनको ‘Noble Numbers’ नाम कदया था। हमारे सावहत्य में भी बरगीत ‘Noble Numbers’ ह।ै” बरगीत से

हम यह ऄवभप्राय ले सकते ह ैकक ‘बर’ ऄथाात् श्रेष्ठ और गीत ऄथाात् गीत। यानी जो गीत श्रेष्ठ कहलाने का

ऄवधकारी हो िहीं बरगीत ह।ै शंकरदिे और माधिदिे के गीतों को ऄसम में शे्रष्ठ गीत के रुप में स्िीकार ककया

जाता ह।ै वजसमें नैवतकता के साथ ईच्च अध्यावत्मकता का भाि और परमाथा की बात कहीं गइ ह।ै आसीवलए

ईसे बरगीत की संज्ञा से ऄवभवहत ककया जाता ह।ै अज भी शंकरदिे और माधिदिे द्वारा रवचत गीतों को

विवभन्न धार्ममक ऄनुष्ठानों में बरगीत के रुप में गाया और सुना जाता ह।ै शंकरदिे और ईनके वशष्य माधिदिे

द्वारा रवचत भवक्तपक गीत समुहों को ही ऄसमीया िैष्णि समाज ने बरगीत के रुप में स्िीकार ककया ह।ै अज

बरगीत ईनके गीतों का पयााय बन चुका ह।ै शंकरदिे और माधिदिे के परिती काल में कुछ प्रमुख िैष्णि कवि

हुये जैसे रामचरण ठाकुर , भिानी पुरीया , गोपाल अता , ऄवनरुर्द् दिे , श्रीराम अता अकद। आन लोगों ने भी

ईनकी (शंकरदिे और माधिदिे) भााँवत ईसी शैली कुछ भवक्त परक गीतों की रचनायें की। ईन गीतों को ककसी

ककसी क्षेत्रों में बरगीत के रुप में गाया भी जाता था। परन्तु ऄसमीया िैष्णि समाज नें ईन गीत समुहों को

बरगीत के रुप में स्िीकार नहीं ककया और न ही ईस श्रेणी में ही रखा। केिल शंकरदिे और माधिदिे के द्वारा

रवचत भवक्तपरक गीतों को ही बरगीत के रुप में ग्रहण ककया। राजमोहन नाथ , कावलराम मेवध , दिेेन्रनाथ

बेजबरुिा, डॉ. िाणीकान्त काकवत , डॉ. महशे्वर नेईग अकद प्रमुख अलोचकों ने भी शंकरदिे और माधिदिे के

गीतों को ही बरगीत की संज्ञा से ऄवभवहत ककया। कावलराम मेवध ने बरगीत को ‘महान् गीत’ या ‘स्िगीय गीत’

(Great Song या Song Celestial) कहकर ईच्च अध्यावत्मक अदशा की ओर आशारा ककया। शंकरदिे के बाद

ईनके वशष्य माधिदिे ने बरगीत की परम्परा को अगे बढ़ाया। यहााँ पर हम कह सकते ह ैकक ‘शंकरदिे और

माधिदिे के द्वारा रवचत भवक्त परक गीत या पद ही बरगीत के श्रेणी में अते ह,ै ऄन्य िैष्णि कवियों के नहीं।’

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माधिदिे द्वारा विरवचत बरगीतों की मूल विषय िस्तुः

कृष्ण भवक्त कवि माधिदिे के बरगीतों को मुलतः तीन भागों में विभक्त करके दखेा जा सकता ह।ै जैसेः-

1. प्राथाना प्रधान विषयक बरगीत।

2. ईपदशे प्रधान विषयक बरगीत।

3. लीला विषयक बरगीत।

ईपरोक्त तीनों विभाजनों का विशे्लषणात्मक ऄध्ययन करने पर माधिदिे के बरगीतों की विशेषताओं को

सरलता पूिाक ऄिलोकन ककया जा सकता ह।ै श्रीमाधिदिे ऄसम के महान् संत शंकरदिे के परम वशष्य में से थे।

शंकरदिे बरगीत के प्रणेता ह ैलेककन ईनकी विरासत को ईनके वशष्य ने काफी अगे बढ़ाया। भक्त कवि

माधिदिे के तीनो स्तरों के बरगीतों में प्रभु की भवक्त, ईनकी विविध लीलायें के िणानों के द्वारा समपूणा

ऄसमीया जनमानस को िैष्णि भवक्त से ऄनुरक्त करने का प्रयास ककया।

बरगीतों के विभाजनों में से लीला विषयक गीतों को ही विशेष स्थान वमला ह।ै विरह, परमाथा विषयक

गीत भी माधिदिे के बरगीत में दखेने को वमलता है ; ककन्तु संख्यों के दवृष्टकोण से दखेा जाए तो लीला विषयक

गीतों की ऄपेक्षाकृत ईस प्रकार के गीत कम पररलवक्षत होते ह।ै कवि माधिदिे ने ऄपने बरगीत में सबसे ऄवधक

नारी का पुत्र िात्सल्य रुप और मातृत्ि का दशान कराया ह।ै माधिदिे का वप्रय रस िात्सल्य रहा है , लेककन

भवक्त रस को भी ऄपने गीत में प्रवतपाकदत करने का पुरा प्रयास ककया ह।ै ऄसमीया गीती काव्य के क्षेत्र में

माधिदिे के द्वारा िात्सल्य रस में रवचत बरगीत श्रेष्ठ और ऄनुठा ह।ै

प्राथाना प्रधान बरगीतः-

लेककन यहााँ पर ईपरोक्त विभाजन के अधार पर ईनके द्वारा रवचत बरगीतों को ऄध्ययन करने का

प्रयास रहगेा। क्रम से सिाप्रथम ईनके प्राथाना प्रधान विषयक गीतों से आस समीक्षा को अगे बढ़ाना ऄपेवक्षत

होगा। माधिदिे के प्राथाना प्रधान बरगीत में को ऄगर दखेा जाये तो ईसमें हमें प्रभु के प्रवत ऄनुरक्त सेिा भाि

को दखेा जा सकता ह।ै माधिदिे के द्वारा रवचत प्राथाना प्रधान पारमार्मथक गीतों लगभग 25 पद होगें। आन

गीतों में विशेष रुप से दाशावनक पावण्डत्य की िुवर्द्गाम्य की दशान की गम्भीरता ह।ै भगिान की कृपादवृष्ट की

खोज में व्याकुल और अिेग में विह्िल भक्त कवि के हृदय की अकुलता को प्रकावशत करता ह।ै हरर भवक्त आस

क्षणभंगुर जीिन और संसार रुपी समुर के वलए ध्रुि तारा के समान ह।ै आस तत्ि को साधारण मनुष्य ईपलवधध

नहीं कर सकता, वजस कारण मनुष्य झुठ-मुठ ऄवनत्य संसार को ही सार तत्ि मानकर तथा ऄवनत्य जीिन-

यौिन के राग में मतिाला होकर काम, क्रोध, मोह, लोभ अकद के िश में होकर विविध प्रकार के पाप कमा में

वलप्त रहता ह।ै लेककन जीिन का ऄवस्थर चीत आसे नहीं समझ पाता कक ईनका पापमवत दहे एक कदन काल

ग्रवसत कर लेगा। दास्य भवक्त के एकांवतक साधक माधिदिे भी ऄपने ऄवस्थर चंचल मन को वस्थर नहीं कर

पाया ह।ै चंचल मन की चाहत में जीिन की लोभ-लालसा में िशीभुत होकर ऄवस्थर और क्षवणक को समझते

हुये भी सांसाररकता विषय-िासनाओं में ही असक्त रहा, और जीिन के महाधन स्िरुप भगिान के नाम को

स्मरण करना भूल गया ह।ै माधिदिे ऄपने को महाऄधम, पावपयों का पापी समझने लगे ह।ै िे ऄंतकाल में

पश्चताप करते हुये हरर भवक्त की लालसा से कहते ह ैकक –

ध्रुिः- राम तेरर चरणकमले रवत लागों

मागों भकवत गोसााँआ

हामु ऄनाथ नाथ तुहुाँ गोविन्द

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ऄगवतक गवत अिरर कोआ नाआ।।

पदः- वनरमल भकवत राज तूिा नाम गुण

ता वबना पवततपािन नावह माआ।

हामु पवतत तुमवह एकु पालक

आिेरर गोसााँआ बन्छवब नावह सोआ।।

तुिा वनज दास संगवत रवत भकवत

तृण दशने मागोंहो प्रभु राम।

ति वनज दासकु दासक लेिना

कहय माधि अिरर नावह काम।। 1

माधिदिे ने प्रभु को ‘तुहु वबने अिरर सुददृ नावह हरेोहो’ सम्बोवधत करते हुये ऄपने को इश्वर के चरणों

में समर्मपत ककया ह।ै ‘दया करो हमारर और कररया ईर्द्ार मोके चरण कमल े’ कहते हुये पवतत पािन भगिान के

दोनों चरणों को पकड़कर दण्डित प्राथाना करते ह।ै भक्त कवि आसी प्रकार की अिेग-विह्िलता पूणा गीत अकद

प्राणस्पशी बन पड़ा ह।ै

यूाँ तो माधिदिे कृष्ण भक्त कवि लेककन ईनके भवक्त विषयक गीतों कृष्ण के साथ साथ राम को भी स्मरण

ककया गया ह।ै एक ईदाहरण दषृ्तव्य हःै-

ध्रुिः- राम गोसााँआ करोहों गोहारर।

रहु हृकद-पंकज ठाम हामारर।।

पदः- माया छोवड़ भकवत करु दाना।

करों तुिा चरण-पंकज मधुपाना।।

माधि दास कहतु राम तेरा।

जाहााँ जाहााँ चरण तोह ेवशरो मेरा।। 2

माधिदिे ने प्रस्तुत बरगीत को भक्तों के सम्मुख अशोिारी राग में गाया ह।ै राम के सम्मुख प्राथाना

करते हुये कह रह ेह ैकक हे ! गोसाआ राम मैं तुम्हारी प्राथाना कर रहा हाँ कक तुम मेरे हृदय रुपी कमल में

विराजमान हो जाआये और मेरे मन से माया को दरू कर भवक्त भाि को ईसमे समावहत कर दीवजए। वजससे की

मैं तुम्हारे चरणकमलों की मधुपान कर सकु। माधिदिे ऄपनी दास्य भवक्त को प्रदर्मशत करते हुये कहते ह ैकक ह े

राम, जहााँ जहााँ तुम्हारे चरणे होगे िहीं दास माधि के मस्तक होगा।

आसी क्रम से माधिदिे ऄपनी भवक्त भािना को प्रदर्मशत करते हुये नारायण की लीला का ऄपरमपार

बताया ह।ै ईसकी लीला को समझ पाना आतना सरल काया नहीं ह।ै माधिदिे नारायण की लीला का बरगीत के

माध्यम से िणान करते हुये कहते हैं कक-

ध्रुिः- नारायण माया जानि कोआ।

सुरपवत चतुरबयन मुवण शंकर

वचवन्तते अकुल होआ।।

पदः- ऄघट घटन पटु चातुरी जो वनत

ऄवनत समान जो होआ।

जयते ऄवनत वनत सम भासत

ऐछन चातुरी हरर तोआ।।

कोआ कोआ सञ्चा कोआ कोआ वमछा

कबहु वनयत नावह जावन।।

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सञ्चा वमछा समान कय भाषत

मोह करत िेदिाणी।।

सञ्चा वमछा ककछुए नावह जानत

मुरुख पामर मवतहीना।

जाहा जाहा गवत मवत तोहो कमलापवत

कहतु माधि दास दीना।। 3

भक्त कवि माधि ने कहााँ ह ैकक ह ेनारायण,तुम्हारी माया को कोन समझ सकता है ? दिेराज आन्र,

चतुमुाख ब्रह्म और वशि और नारद अकद जैसे वसर्द् जन भी तुम्हारी लीला को तत्काल नहीं समझ सकते। तुम्हारी

वचन्तन में िे ओर ऄवधक व्याकुल हो ईठते ह।ै तुम्हारी माया बड़ी चतुराइ से ऄसम्भि को सम्भि कर कदखाता

ह।ै तुम्हारी लीला के कारण ही वनत्य सत्य और ऄसत्य दोनों ही एकसमान लगने लगता ह।ै वजतने भी ऄवनत्य

िस्तुयें ह ैिहीं सिात्र विद्यमान जैसे लगने लगते ह।ै ह ेहरर माया का सम्भि काया तुम्हारी लीला मात्र ह।ै कौन

कौन सी िस्तुये ऄसत्य ह ैऔर कौन सी िस्तुये सत्य ह ैआसे वनवश्चत पूिाक नहीं कहााँ जा सकता। तुम्हारे भेद-

ऄभेद को नहीं जानकर िेद दोनो बातों को समान रुप से िणान करने लगता ह ैवजससे सारे जनमानस के मन में

परम शावन्त की ऄनुभूवत होने लगती ह।ै हम सब परम मुखा है, पापी ह,ै मवतहीन ह ैसत्य और ऄसत्य की परख

करना नहीं जानते ह।ै आसी कारण हरर के दास माधि कहते ह ैकक- ह ेकमलापवत, जहााँ जहााँ पर गवत, मवत,

बुवर्द् अकद की पे्ररणा वमलती ह ैिे सारे तुम्हारे ही कारण ह।ै

माधिदिे ने बरगीत में दास्य भवक्त भािना को प्रकट करते हुये, परमाथा की प्रावप्त की ओर ऄपने मन

को ऄग्रसर ककया ह।ै माधि की सम्पूणा बरगीतों में भवक्त की सागर प्रिावहत होती ह।ै सहृदय ईनके भवक्तपरक

गीतों को सुनकर और पढ़कर परम तृवप्त को प्राप्त कर सकता ह।ै आस प्रकार के बरगीतों का प्रणयन करने के पीछे

ईनका एकमात्र ईद्दशे्य यह रहा कक ईनके गुरु श्रीमंत शंकरदिे के द्वारा चलाये ‘नि िैष्णि भवक्त मागा ’ को पूणा

रुप से ऄसम में स्थावपत करना था। माधिदिे ने परिती काल में गुरु को काया को सफलता पूिाक अगे का प्रयास

अजीिन करता रहा। आसी प्रकार ईनके बरगीत में भगिान विष्णु के विविध नामों का प्रयोग कर ईनकी प्रवत

ऄपनी भवक्त को अगे बढ़ाया ह।ै ईनके कुछ और प्रथाना प्रधान बरगीतों को दखेने का प्रयास करेगे वजसमें ऄपने

ऄराध्य को विविध नाम से स्मरण ककया हःै-

ध्रुिः- कैछे गोविन्द सेिहु तोआ।

चंचल मन मेरर वथर नावह होआ।। 4

X X X

ध्रुिः- गोपाल कृपाल राम करुणासागर स्िामी।

तुिा पद मरकन्द वबन्द ुअशा करर अछो तुवम।। 5

X X X

ध्रुिः- मआ तेरर दासकु दासा करु करुणा मुरारर।

ए भिसागर मह तारहु तुिा चरणे हामारर।। 6

माधिदिे ने ईपरोक्त प्राथाना प्रधान बरगीतों में ऄपने ऄराध्य को कभी गोविन्द, गोपाल, मुरारर अकद

नामों से पुकारा ह।ै आससे यह स्पष्ट हो जाता ह ैकक माधि दिे नरायाण के ऄितार कृष्ण रुप माधुरी पर ऄवधक

अकर्मषत थे। सूरदास की भााँवत ही माधिदिे भी कृष्ण की भवक्त के प्रवत समर्मपत थे। ऐसे ही कवतपय प्राथाना

प्रधान गीत ह ैजो परमाथा की प्रावप्त के ईद्दशे्य से ईन्होंने वलखा। जैसेः-

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ध्रुि- नारायण सेिोहो चरण तोहारर

तुहु वबने अिरर सुहृद नावह हरेोहो

दया करवह हामारर।।

पद- तुहु कृपाल करुणामय मानस

दया करु एकबारा।

वनगम वनदढु़ सार तेरर नामा

रहु भरर बयने हामारा।।

भकवत-अनन्द ेवबन्द ुकर दाना

मेरर यतने तेवज अशा।

पयरवह लावग शरण एकु मागो

दीन माधि मवतनाशा।। 7

ऄथाात् माधिदिे प्रभु के सम्मुख ऄपनी भवक्त भािना को प्रकट करते हुये कह रह ेह ैकक नारायण, मैं

तुम्हारी चरणों में प्राथाना रहा हाँ। तुम्हारे ऄलािा मैं ककसी ओर को वहतकर सुहृद के रुप में नहीं दखेा ह।ै

ध्रुि- कैछे गोविन्द सेिहु तोआ।

चंचल मन मेरर वथर नावह होआ।।

पद- जैसे पंकज दलगत नीर।

विषय लुधध मन तैछे ऄवथर।।

छोवड़ पामर मवत तुिा पाआ।

रुप रस परश शबद गन्धे धाय।।

कहय माधि हरर करु मेरर दाया।

चरणे शरण लेहु छोड़ह माया।। 8

परमाथा विषयक गीतों में प्रभु के चरणों में अत्मसमपाण का भाि कदखता ह।ै यह ईनके दास्य भवक्त

भािना को प्रदर्मशत करता ह।ै जैसे-

ध्रुिः- दयार ठाकुर हरर यदमुवण ऐ राम

ऄधमे तोमार नाम डाके।

कृपा करा नारायण अमार चंचल मन

तोमार चरणे जेन थाके।। 9

ईपदशे प्रधान विषयक बरगीतः-

शंकरदिे के अज्ञानुसार माधिदिे ने बरगीत प्रणयन करने के वलए अगे अये ह।ै ऄपने गुरु की अदशे

को वशरोधारी कर ईन्होंने िैष्णि धमा के प्रचार के ईद्दशे्य से गीत वलखना प्रारम्भ ककया। बरगीत के ऄध्ययन से

ऐसा ऄनुभि होता ह ैकक हम कृष्ण के सगुण रुप से साक्षात्कार हो रह ेह ैलेककन ऐसा कदावप नहीं सोचना

चावहए। बरगीत में गुरु और वशष्य दोनो ने परमब्रह्म के वनगुाण वनराकार रुप को ही ऄपने ऄराध्य का विषय

बनाया। जो हमे वनगुाण भक्त कवि कबीर के सामने खड़ा कर दतेा ह।ै साधारण अम जनता को भवक्त मागा से

जोड़ने के वलए आससे ऄच्छा ईपाय ओर ककया हो सकता था। कबीर ने वजस भााँवत समाज में साधारण समझे

जाने िाले लोग- चमार, लुहार, कुम्हार, बुनकर अकद सभी को भवक्त के ऄथाह सागर में डुबोने का प्रयास ककया

ह।ै ठीक आसी भााँवत माधिदिे ने ऄसम के विविध जनजावतयों समुदायों को िैष्णि भवक्त के कोठोर विवध-

विधानों से वनकाल कर ईनके गरु द्वारा स्थावपत नि िैष्णि भवक्त धमा ने जोड़ने का कुशल प्रयास ककया। कृष्ण

भक्त कवि माधिदिे ऄपने द्वारा प्रचाररत िैष्णि भवक्त के सरलतम रुप से जोड़ने से भक्त जनों यहीं ईपदशे दतेे

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हुये कहते ह ैकक िहीं एकमात्र परमब्रह्म ह ैसवच्चदानन्द स्परुप है, िही हमे आस माया मय संसार से ईद्दार कर

सकते ह।ै दास्य भवक्त का ईत्कृष्ट ईदाहरण ईपदशे प्रधान भवक्त गीत कवि माधिदिे की ऄनुपम सृवष्ट ह।ै

माधिदिे ने मनुष्यों के चंचल मन के ईद्दशे्य कर सांसाररक विषय-िासनाओं के प्रवत आशारा करते हुये ईपदशे

प्रधान भवक्त गीतों का प्रणयन ककया ह।ै संसार की मोहमाया से मुवक्त होने का एकमात्र ईपाय हररभक्त ही है,

और ऐसे तत्ि ज्ञान से सम्बवन्धत ईपदशेों को कवि ने अिेगमयी भाषा के साथ िर्मणत ककया ह।ै

धन-जन, जीिन सभी कुछ कमल के पत्ते के ईपर ठहरे हुये जल की भााँवत ऄवस्थर और क्षणभंगुर ह।ै हरर

भजन और भवक्त ही एकमात्र आस संसार रुपी समुर में डुबने से बचा सकता ह।ै हरर के माया जाल में जीि बन्दी

ह,ै तीनो लोको में एक ऐसा स्थान नहीं ह ैजहााँ ईसके माया का जाल फैला न हो। ह ेमन ! िहीं माया जाल के

सृवष्ट कताा है ईसी के शरण में जा कर ईसके चरणों की भजन करने पर ही सांसाररक विषय िासनाओं से मुवक्त

वमल सकता ह।ै माधिदिे के ईपदशे प्रधान भवक्त गीतों में राम, कृष्ण और विष्णु को विवभन्न रुपों में वचवत्रत

ककया गया ह।ै ईनके ईपदशे प्रधान बरगीतों में कभी ‘राम परम धन वचन्तहु मन भाइ ’ और कभी ‘हरर पद

मनोहर परम धन ’ और कभी ‘मन मजहु कमलापवत गोपाल भावियो मन सकल जतने ’ और कभी ‘प्राणेर

गोपीनाथ’ अकद संबोधनों द्वारा परम ऄराध्य के प्रवत ऄपने ऄन्दर वछपे भवक्त भािना को प्रकट ककया ह।ै ईन्होनें

ऄपने गीत के पदों में इश्वर को राम, हरर, कमलापवत विष्णु, गोपालक तथा गोपीिल्लभ कृष्ण अकद सभी को

एक ही कहााँ ह।ै भक्त कवि माधिदिे ने जनमानस को ऄपनी ईपदशेात्मक गीतों के माध्यम से ईपकृत करने का

प्रयास ककया ह।ै ईपदशे प्रधान गीतों में माधिदिे की भवक्त भािना चरमों ईत्कषा पर चड़ा हुअ कदखता ह।ै

जैसेः-

ध्रुिः- रे मन सेिहु हररकहु चरणा

वनकट दखेहु वनज मरणा।।

दखेत हररकहु चरण शरण वबन े

नावह नावह भिभय तरणा।।

पदः- चारर बेद पुराण यत भारत

गीता भागित चाआ।

ईवह सार वबचार कय भाषत

हरर वबने तारक नाआ।।

सनक सनातन मुवन शुक नारद

चतुरबयन शूलपावण।।

सहस्रबयन अकद गाित हररगुण

सकल वनगम तत्ि जावन।।

कृष्ण नाम यश परम ऄवमया रस

गाित मूकूत वनशेष।

परम मुरुखमवत कहय माधि दीन

शंकर गुरु ईपदशे।। 10

ऄथाात् ह ेमन! दखेों ऄपनी मृत्यु काफी वनकट ह।ै हरर के चरणों का अश्रय ग्रहण करने के ऄलािा संसार

की भय से मुवक्त पाने का और दसूरा मागा नहीं ह।ै ईसे ही दखेकरके हरर के चरणों की सेिा कर। चार िेद, गीता

सवहत महाभारत और भागित सवहत वजतने भी पुराण ह ैसभी में खोज करके दखेने के बाद सारतत्ि के रुप में

यहीं कहााँ गया ह ैकक हरर के ऄलािा ईर्द्ार कताा और कोइ नहीं ह।ै सनक, सनातन अकद मुवन, नारद, शुक,

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ब्रह्मा, वशि और ऄनन्त नाग अकद सभी कोइ एकमात्र हरर को ही शास्त्र के सारतत्ि जान कर ईसी का गुण गान

और कीतान करते ह।ै सांसाररक बन्धन से मुक्त होकर विचरण करने िाले भी परम ऄमृत रस तुल्य कृष्ण का

नाम-यश का कीतान करता ह।ै परम मुखा मवत कवि माधि ऄपने गुरु शंकरदिे के ईपदशेानुसार आस बात को

कहााँ ह।ै

कवि ने ईपमा, प्रतीक अकद के द्वारा ऄवत सरल पूिाक ऄपनी भवक्त भािना को प्रकावशत करने का

प्रयास ककया ह।ै ईपदशेात्मक भवक्त परक गीतों में एक विशेषता यह ह ैकक आन गीतों में दहे-विचार ऄथाात्

क्षणभंगुरता की प्रवत ध्िवन भी मुखररत हुअ ह।ै मवज रहु मेरर मन गीत में मन को ईद्दशे्य करके कहा ह ैकक ह े

भाइ! वजस शरीर को तुम ऄपना समझ रह ेहो, मृत्यु के समय साथ नहीं जाएगा। कवि ने सांसाररकता को हरर

के सामने तुच्छ बताते हुये यह ईपदशे दनेे का प्रयास ककया ह ैकक अजीिन ईसी (हरर) का गुण-कीतान करते

रहना चावहए।

ध्रुि- हररपदपंकज मेरर मनाआ।

वचत वचन्तहु हृकद वमलाआ।।

पद- दखुभंजन भितरणी।

हररभकतर ए वचन्तामवण।।

हररचरण शरण वबना।

गवत नावह नावह मवतहीना।।

सुर शंकर जाकरु सेिा।

दखेो सो पुनु दिेकु दिेा।।

दीन माधि मूरुखमवत।

कह ेहररके परमगवत।। 11

ऄथाात् ह ेमेरे मन! हृदय को एकवनष्ठ भाि से हरर के पद रुपी पंकज की वचन्ता कर। हरर भक्तों के वलए िहीं

वचन्तामवण स्िरुप ह।ै िही संसार के कलेशों के हरणकताा ह ैऔर संसार रुपी समुर को पार कराने िाले एक

नौका ह।ै मवतहीन लोगों के वलए हरर के चरणों की शरण में ग्रहण करने के ऄलािा ओर कोइ गवत नहीं ह।ै

कवि के द्वारा रवचत ईपदशे प्रधान गीतों की रचना करने ईद्दशे्य यह रहा ह ैकक तत्कालीन समाज में

एक नाम िाले धमा की स्थापना ककया जा सके। पन्रहिीं (15 िीं) शताधदी के ऄन्त से पहले महापुरुष शंकरदिे

ने नि िैष्णि धमा एिं भवक्त का प्रचार करना प्रारम्भ ककया। ईनके ईद्भि के समय ऄसम में विविध प्रकार की

ईपभाषा, नाना धमा, नाना प्रकार के अचार-विचार एिं पर्द्वतयााँ विद्यामान थी। नैवतक अदशा,

अध्यावत्मकता, साधना और सत्यधमा के अचरण के ऄभाि ने तत्कालीन समाज व्यिस्था को विशंृ्रखवलत ककये

रखा था। जन साधारण के सम्मुख एक नैवतक अदशा का ऄभाि होने के कारण ऄपनी रुवचनुसार पथ का

ऄनुसरण करते थे। आसके ऄलािा भी तत्कालीन समय में िामाचारी तावन्त्रकों का प्रभाि कुछ-कुछ स्थानों में

विशेष रुप से था। जैसे ऄसम के शकदया (वजला वतनसुककया) के ताम्रेश्वरी मंकदर, कामरुप में कामाख्या मंकदर

अकद स्थान तावन्त्रको का केन्र था। तावन्त्रको के विविध मत, विविध दिे-दवेियों की ईपासना और मान्यताओं ने

अम लोगो का मन सनातन धमा के प्रवत ईदावसन होने लगा था। अम जनसाधारण का मन सनातन के प्रवत

अस्थाहीन हो चुका था। आसके भी कइ कारण थे। आस प्रकार के विकट पररवस्थवतयों में महापुरुष शंकरदिे ने

जनता के सम्मुख प्राचीन सनातन धमा का अदशा निीन स्िरुप में प्रस्तुत ककया। ऄसम के विविध प्रकार के

धमाािलम्बी एिं मतािलम्बी िालों में पे्रम, एकता का ऄभाि था। अध्यावत्मकता के भाि को जगाने के वलए

एक सहज अचरण िाले धार्ममक पथ की अिश्यकता थी। ईन्होंने आसके वलए िैष्णि भवक्त को और नि िैष्णि

धमा को एक नये रुप में प्रचार ककया तथा प्राचीन िैष्णि धमा को सांसाररक रुप कदया। शंकरदिे के द्वारा

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प्रचाररत नि िैष्णि भवक्त मागा को एक योग्य ईतरावधकारी के रुप में माधिदिे ने अगे बढ़ाया। आस भवक्त मागा

के ऄन्तगात दोनों संतों ने अम जनता के सम्मुख िैष्णि भवक्त को सरल रुप में प्रस्तुत ककया। कवि के ईपदशे

प्रधान बरगीतों में भवक्त का सार तत्ि दखेने को वमलता ह।ै हरर भवक्त की महत्ता को स्थवपत करते हुये

माधिदिे भक्त जनों से कहते ह ैककः-

ध्रुिः- हररपदपंकज पजंर मोआ।

तामह रहु राजहसंा होआ।।

पदः- रयनी कदिसे वलजञु राम नामा।

प्रपन्नजनाशवन-पजंर रामा।।

अित कालभुजंगम गरवज।

हररपद ेशरण लेहु सब बरवज।।

माधि दास दीन हीनमवत।

कहय रामचरण दहुों गवत।। 12

माधिदिे कहते ह ैकक मैं हररपदपंकज रुपी हपजरे में राजहसं की तरह बंदी होकर रहु। शरणागतों के

वलए राम ब्रज की तरह सुहृद ऄस्त्र ह ैजो हमेशा सबकी सहायता प्रदामन करने िाले ह।ै आसीवलए मैं कदन-रात

राम नाम का स्मरण करता रहता हाँ। सपा की भााँवत मूर्मतमान काल गजान करते हुये समीप अने लगा है,

आसीवलए सभी प्रकार के मोहो को त्याग कर हरर के चरणों में अश्रय लेना चावहए। मवतहीन दीन दास माधि

कहते ह ैकक– राम के चरण युगो युगो तक सभी के वलए एकमात्र गवत दाता ह।ै आसी प्रकार से माधि के कइ

बरगीत ह ैवजसमें ईन्होंने हरर भवक्त को सरल रुप से प्रस्तुत करने का प्रयास ककया ह।ै

ध्रुिः- रामक बाणी जपहु मन भाआ।

कवलको काले अिर गवत नाआ।।

पदः- जाकेरर बयने रहतु रामबाणी।

ताकेरर चरण-रेणू लेहु जावन।।

राम चरण जोवह करत ईपासा।

ताकेरर हुाँ हामु दासको दासा।।

माधि दास मूरुखमवत गाआ।

रहु मन भकत चरणरेणु लाआ।। 13

X x x

ध्रुिः- वचन्तहु गोविन्द मन मेरर भाआ।

हृदयपंकजे रहु राम गोसाआ।।

पदः- जगजन जीिन रहु हृकद रामा।

कोरट कल्पतरु पूरण कामा।।

माधि दास कहय मन मोआ।

राम वबने नावह बान्धि कोआ।। 14

ईपयुाक्त दोनों पदो में ईन्होने ऄपनी दास्य भवक्त को दशााते हुये सभी को हरर की चरणों की सेिा एक

दास के रुप में करने पर बल कदया ह।ै

लीला विषयक बरगीतः-

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माधिदिे के द्वारा रवचत समस्त भवक्त गीतों में से अकषाणीय और जनवप्रय गीत ह।ै भागित के केवन्रय

चररत्र ऄलौककक, ऄसमान्य कृष्ण के शैशि और ककशोर की ऄिस्था की मनमोहनीय लीला पर अधाररत गीत

ह।ै भक्त कवि माधिदिे की संगीतज्ञ प्रवतभा िात्सल्य भवक्त के रसात्मक गीतों में सुन्दर ढ़ग से ऄवभव्यक्त हुअ

ह।ै आन गीतों की संख्या ऄवधक नहीं ह ैलेककन विषय िस्तुपान को लक्ष्य करके वलखे गये गीतों को मुख्यतः कइ

भागों में विभक्त कर सकते ह।ै जैसे- कृष्ण के वशशु रुप के स्तनपान, चोर चातुरर, बन्धन, जागन, भोजन,

प्रत्याितान, खेलन, भुषण, हरण, कृष्ण के रुप माधुरी, गोपी विरह, ढोला रोहण, फाक खेलन और ऄनन्य लीला

परक गीत अकद।

माधिदिे के बरगीत में ऄितारी कृष्ण के दो व्यवक्तत्ि इश्वरीय और मानिीय स्िरुप ऄवत ममास्पशी

होकर ईभरा ह।ै श्रीकृष्ण के शैशि और ककशोराव्सस्था की हाँसी-कु्रन्दनों का समुज्जिल ईनके बरगीतों में

ऄवभव्यक्त हुअ ह।ै माधिदिे ने मातृ यशोदा और पुत्र कृष्ण के वचन्तन, अिेग-ऄनुभूवत, ममता अकद सभी को

ईपने भीतर ईपलवधध करने का प्रयास ककया ह।ै आसीवलए हरएक गीतें में नीवज व्यवक्तगत अिेग-ऄनुभूवत

प्रखरता से ऄपनी हृदय की िाणीरुप में स्ितः स्फुरत भाि से ऄवभव्यक्त हुअ ह।ै भक्त कवि सूरदास और

माधिदिे के गातों में काफी हदतक सादशृ्य का ऄिलोकन ककया जा सकता ह।ै विशेष कर सूरदास के गोकुल

लीला के ऄन्तगात वशशु कृष्ण के जागन, चलन, खेलन और चोर-चातुरर परक गीतों के साथ माधिदिे के आस

विषय के गीतों की काफी समानतायें हैं। ऄगर संवक्षप्त में कहााँ जाये तो सूरदास और माधिदिे के वशशु के

मनःवस्थवत का वचत्रण की प्रवतभा ऄतुलनीय ह।ै

माधिदिे के द्वारा रवचत लीला विषयक गीतों में बाल कृष्ण का विविध लीलाओं और नाना क्रीड़ाओं

का सुन्दर िणान ककया गया ह।ै कृष्ण के नाना प्रकार की लीला एिं केली-क्रीड़ाओं अकद को ईनके लीला विषयक

गीतों के ऄन्तगात रखा गया ह।ै विरह, विरवक्त, लीला, चोर चातुरी अकद विषयों के ऄलािा भी ईनके बरगीतों

में परमाथा जैसे गम्भीर विषयों की ऄवभव्यवक्त हुअ ह।ै

कृष्ण के रुप माधुरी का िणान करते हुये माधिदिे कहते ह ैककः-

ध्रुिः- याद ुभाल नाचतु, नन्दनन्दन गोविन्द नाचतु

ब्रजनायक नागर नाचतु परमानन्द रसे रे।

सुरासुरे जार चरणपंकज रेणु वशरे परशे रे।।

पदः- लािण्य सुन्दर करट धररया ए बाम हाते रे।

दवक्षण कोमल कर थावपया ए प्रभु माथे रे।।

करटक ककककणी बाजे नूपुर-रि पािे रे।

इषत कटाक्ष हावस सुन्दर ভভভবহপপभ्रुि चलािे रे।।

नाटेर माधुरी गोपी-मोहन मदन फान्द ेरे।

यशोमती-नन्द-चकोर श्यामल सुन्दर चान्द ेरे।।

चौवभवत गोवपनी बेकढ़ हाटे तावल बजािे रे।

कहय माधि हरर भुिन-मन भुलािे रे।। 15

संगीतात्मकता के दवृष्टकोण से ईपरोक्त ईपदशेात्मक बरगीत को माधिदिे ने नाट राग में गाया ह।ै

यदिुंश में ऄितीणा नन्द के नन्द गोविन्द के कुमार रुप नृत्य कर रह ेह।ै दिे और ऄसुर सभीलोग वजसके चरण

रुपी कमल के पराग को ऄपने वशश पर धारण करते है, िही परमानन्द स्िरुप भगिान श्री कृष्ण ऄपनी लीला

रस में ऄवभभुत होकर नागर ब्रजनायक रुप में नृत्यक कर रह ेह।ै लीला नृत्य के ऄिस्था में प्रभु ऄपने सुकमल

बाये हाथ को वशश पर रखे हुये ह ैऔर बाये हाथ से ऄपने लािन्यमय कमर को पकड़ ेरखे हुये ह।ै ईनके करट

प्रदशे से कककणी की रुनु-झुनु और चरणों के नूपुरों की मनमोहक ध्िवन अ रही ह।ै ईनकी कटाक्ष भरी मृद ु

मुस्कान और ईनकी मन मोहक मद चाल से चलते हुये नृत्य करना जैसे गोवपयों को मोवहत करने के ईद्दशे्य से

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कर रह ेह।ै ईसी में ईनकी ऄवभनय की माधुरी रुप प्रकावशत हुअ ह।ै यशोदा और नन्द चकोर पक्षी की भााँवत

श्याम सुन्दर रुपी चााँद के नृत्य दशृ्य को दखे कर अनन्द की प्रावप्त कर रह ेह।ै गोवपयााँ भी श्याम के नृत्य की

शोभा में मोवहत होकर चारो ओर घुम घुमकर तावलयों के साथ ईनका द ेरह ेह।ै माधिदिे कहते ह ैकक आसी

प्रकार परमात्मा कृष्ण नृत्य कर भकतों के दखुो को हरते ह ैऔर समस्त भुिन िावसयों को अनन्द विभोर करते

अ रह ेह।ै

ऄगर माधिदिे द्वारा विरवचत लीला विषयक गीतों को दखेा जाये तो आसे ओर कइ भागों में विभक्त

ककया जा सकता ह।ै जैसेः-

(क) जागन विषयक गातों में ग्िालों के साथ िन में गाये चराने जाने के वलए माता यशोदा का कृष्ण को

नींद से जगाने का िणान को दखेा जा सकता ह।ै माता यशोदा पुत्र कृष्ण को सखा संग गो चराने जाने

के वलए नींद से जगाती ह।ै माधिदिे द्वारा वचवत्रत कृष्ण की लीलाओं में जागन की लीला का दशृ्य

भी मनोहारी ह।ै कवि ने आस प्रसंग में ऄपनी कुशलता का पररचय कदया ह।ै जैसे-

ध्रुिः- ईठरे ईठ बापु गोपाल ह ै

वनवश परभात भेल।

कमलनयन बुवल घने घन

यशोदा डाककते लेल।। 16

X X X

ध्रुिः- ईठ ईठ बाबु चान्द बयन।

यशोदा मािे डाके घने घन।। 17

(ख) चरन विषयक गीतों में कृष्ण का सखा संग दही, माखन लेकर गौ चराने जाते हुये का मार्ममक िणान

कदखाइ दतेा ह।ै माधिदिे की कृष्ण द्वारा गो चराने की लीला का िणान भी ऄनुपम ह।ै माधिदिे ने

कृष्ण और ईनके सखाओं के गो चराने की लीला को बड़ ेही मनोहारी रुप से िर्मणत ककया ह।ै जैसे-

ध्रुिः- गोविन्द चलये विररन्दािने गोपवशशु संगे।

बजािे मोहन बेनु धेनु धाय रंगे।। 18

X X X

ध्रुिः- परभाते श्यामकानु धेनु लैया संगे।

िंशीर वनस्बाने िृदािन चले रंगे।। 19

(ग) खेलन विषयक गीतों में सखाओं के साथ िे ककस प्रकार की क्रीड़ा ऄथिा खेल खेला करते थे ईसका

िणान ककया गया ह।ै कृष्ण की बाल लीलाओं में से खेलन लीला भा ऄनुपम ह।ै िृंदािन में सखाओं के

संग केवल-क्रीड़ाओं का वजस रुप में कवि ने िणान ककया ह ैिह बरगीतों के पदों में दखेा जा सकता हैं।

जैसे-

ध्रुिः- गोपाल खेलाय कदम्बतले।

भुिन मोहन मूरुवत मधुर

मदन वजवनया ज्बले।। 20

X X X

ध्रुिः- भाल कलीया कानु खेलान खेलाय।

खेलार माधुरी हरर भुिन भुलाय।। 21

X X X

ध्रुिः- यशोनन्दन बालक मेले।

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परम अनन्द ेकोटोरा खेले।। 22

(घ) गोकुल मे गोवपयों के संग नाचना-गाना अकद कक्रयाओं को नृत्य विषयक गीतों के ऄन्तगात रखा

गया ह।ै गोपीयों के संग ककये गये लीला कृष्ण की प्रधान लीलाओं में से एक ह।ै कृष्ण ने गोपीयों के

संग रास लीलायें भी की ह ैलेककन िद रास और नृत्य का सम्बन्ध लीला िासनात्मक न होकर

अत्मा-परमात्मा का वमलन ह,ै आसे कवि का सांसाररक िणान नहीं कहााँ जा सकता। अध्यावत्मक

दवृष्टकोण से कृष्ण और गोपीयो के मध्य का सम्बन्ध परमार्मथक ह ैन की दवैहक। िृंदािन में गोपीयों

और कृष्ण की नृत्य लीला को जो िणान माधिदिे ने ककया ह ैिह बहुत ही हृदय स्पशी ह।ै जैसे-

ध्रुिः भावल नाचे भाल मदनगोपाला।

बजािे मोहन बेनु गले बनमाला।। 23

शंकरदिे की भााँवत माधिदिे ने भी बरगीत में रामायण की विषय-िस्तुओं को दखेा जा सकता ह।ै जैसे-

ध्रुिः जय जय राम रघकुल पंकज

कदनकर राम मुरारर।

जो पदकमल सुरासुर सेित

सकल भुिन ऄवधकारी।। 24

X X X

ध्रुिः दखेो रे नयन भरर लोइ।

परम पुरुष राम राजा होइ।। 25

माधिदिे के द्वारा रवचत बरगीतों में कृष्ण के रुप िणान पर अधाररत बरगीत बड़ा ही मनेहारी और

हृदयस्पशी ह।ै जैसेः-

ध्रुिः- कद्मब तरुतले निीन नीरद रुवचर सुन्दर श्याम।

भुिन-मोहन मूरुवत मनोहर कवतहो नावह ईपाम।।

पदः- भुिन मनोहर नयन चञ्चर

ियन चान्द ईजोर।

हावसते ऄवमया बररषे पेवख सवख

जीिन नारह ेमोर।।

कतना यतने विवध वनरवमल

सुन्दर कानुक रुप।

पेवखते लािण्य लाज भयो पुनु

कोरट मन्मथ चुप।।

रतन भुषण जैसे वनरमल

गगने तारा शुहाय।

कहय माधि हामारर मजु मन

नन्द नन्दन पाय।। 26

कवि ने कृष्ण की लीला को प्रकृवत के विपररत कहते हुये ईसका ममास्पशी िणान ककया हःै-

ध्रुिः- हरर तेरर लीला विपररत।

सुमररते हामार अकुल करे वचत।।

पदः- ऄनन्त ब्रह्माण्डपवत हयैा अपुने।

धररलो लिणुचोर नाम केबा गुणे।।

ब्रह्मा हरे अराधे जाहार दआु पाि।

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से तुवम लिणु मागा गोिाररक ठाि।।

काल माया काम्पे जार नाम सुमरणे।

जशोिार भये तुवम कम्पा कक कारणे।।

जार मायापाशे बन्दी सकल संसार।

से तुवम बन्धन केने लैला यशोदार।।

जार अज्ञा पाले चराचर वनरन्तरे।

केने धेनु राखा तुवम गोिालीर घरे।।

गरुड़ बाहन गवत सदाआ जाहार।

से तुवम गोपीक बहा आ कोन विहार।।

जावनलों केिले तुवम भकवतर बश्य।

सकल वनगमे प्रभु आ बर रहस्य।।

कहय माधि दास करठन पामर।

तोमार दासरो दास भैलो दामोदर।। 27

कवि ने प्रभु की लीला को ऄपरम्पार मानते हुये भवक्त भाि से ईनकी दासता को स्िीकार ककया ह।ै

बरगीत प्रणयन का ईद्दशे्य यह रहा ह ैकक आसके माध्यम से वनगुाण वनराकार परम ब्रह्म को साकार रुप में

विविध नाम दकेर एकमात्र ईपास्य दिेता मानकर ईन्हीं का गुण गान ककया ह।ै शंकरदिे की भााँवत माधिदिे ने

भी बरगीत में कृष्ण को रासलीला करने िाले पे्रमी के रुप में नहीं, ऄवपतु ईनको परमात्मा का स्िरुप मानकर

ईसका िणान एिं वचत्रण ककया गया ह।ै माधिदिे के बरगीतों की विषय िस्तु की चचाा की सुविधा के वलए आसे

चार भागों में विभक्त कर सकते हैं। जैसे- (क) बरगीत में बाल गोपाल का िणान, (ख) बरगीत में गोपी ईर्द्ि

सम्िाद िणान, (ग) बरगीत में सवच्चदानंद भगिान नारायण का िणान, और (घ) बरगीत में ऄवभव्यक्त

अध्यावत्मक और दाशावनक अदशा।

(क) बरगीत में बाल गोपाल का िणानः- माधिदिे ने श्री कृष्ण के िात्सल्य

िणान को दखे सकते ह।ै श्रीकृष्ण की विविध लीलायें जो सदिे भक्तों को अनवन्दत और ऄह्लाकदत करते

अ रह ेहैं ईसका एक मात्र का कवियों का ऄथक प्रयास ही ह।ै माधिदिे को ऄसमीया सावहत्य के

िात्सल्य रस कवि के रुप में जाना जाता ह।ै कवि ने कृष्ण की बाल कृत्यों जैसे िृंदािन के कावलन्दी के

ककनारे गौ चराना, बााँसुरी बजाना और नाना प्रकार अनन्द की ऄनुभूवत करना अकद का वचत्रण ककया

ह।ै बरगीत में बाल गोपाल का रुप िणान ऄवत मनमोहक बन पड़ा ह।ै ईसका रुप और सौन्दया गोकुल

िावसयों को हमेशा अकर्मषत ककये रहता ह।ै एक ग्िाल गोपाल की रुप सौन्दया के दशान के वलए ऄपनी

माता को पुकारती हःै-

ध्रुिः- माआ हरे गोकुल चान्द अिे

सकल बालक माजे वजवन नटिर साजे

हावस रसे भुिन भुलािे।।

पदः- श्याम शरीर पीत पट पररलवम्बत

कण्ठे कदम्ब माला लुले।

रुपे कोरट-मदन मन मोहन

वशरे वशखण्डक दलुे।।

धेनु पदरेणु करे कनक बेणु

लहु लहु पञ्चमगाय।

करट तट ककककणी पािे नूपुर धिवन

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हरषे हरसे धेनु धाय।।

कानुक चान्दबयन घन घन हरेत े

गोवपनी दरशन पाया रे।

कहय माधि हरर-चरण वशरे धरर

दीनित्सल करु दाया रे।। 28

गोवपयााँ अपस में बाते करते हुये कृष्ण की चचाा करते हुये कहते ह ैकक-

ध्रुिः- सवख ह ेचले कानु विररन्दािने।

बयन चान्दरे सुधा नयन चकोर दहुों

वपया थाकों हने लय मने।। 29

(ख) माधिदिे के बरगीत में गोपी विरह का िणानः- कृष्ण का गोकुल छोड़कर मथुरा चले जाने के बाद ईनके

परम भक्त गोवपयों की विरह दशा का मार्ममक िणान ककया ह।ै गोवपयााँ कृष्ण की भवक्त में पवत-पुत्र की

ऄवभलाषा कर वसफा कृष्णके चरणों की ही वचन्ता कर रह ेह।ै

ध्रुिः- प्राणनाथ नकरा बवन्चत।

तोहारर वियोग अवग दह ेमोर वचत।

ऐ बन्ध माधि ह।े

पदः- पवत सुत सुहृद सोदर बन्धुजन।

सब सुख तेवज भजो तोहारर चरण।।

सोवह प्राणनाथ तुहों जाहा काहााँ लावग।

नरह ेजीिन मोर तेरर लावग अवग।।

सब तेवज तोहारर चरणे कैलों अश।

भकतित्सल स्िामी नकरा नैराश।।

वबने तुहो रहय जीिन नावह मोआ।

तुहो वबने हामारर बान्धि नावह कोआ।।

हास्य वनरीक्षण तेरर मधुर अलाप।

सुमरर सुमरर मेरर वमले हृकद ताप।।

धरणी लुरटया गोपी करत क्रन्दन।

कहय माधि गवत नन्दरे नन्दन।। 30

कृष्ण के गोकुल छोड़ने के बाद गोवपयों की दशा बहुत गम्भीर हो जाती ह।ै कृष्ण के वबना गोपीयों को

गोकुल सुना और ऄंवधयारा लगने लगा ह।ै वजसका िणान कवि ने ककया हःै-

ध्रुिः- गोकुले अजु गोपाल वबने भयो ऄवन्धयारर।

ईगत सुर दरू गयो रे मुरारर।।

पदः- हामारर जीिन दरू गयोरे गोविन्द।

नयने नदखेो अर पद ऄरविन्द।।

रवि वबने कदन नोह ेजल वबने न मीन।

हरर वबने गोपीर जीिन भैल क्षीण।।

धरणी लुरटया गोपी फोकारे सघन।

कहय माधि गवत नन्दरे नन्दन।। 31

कृष्ण गोवपयों की अकुलता को जानकर ईनको विरह की दशा से ईबारने के वलए मथुरा के वमत्र को

ईर्द्ि को गोकुल भेजने का ईपाय वनकालते ह।ै ताकक ईर्द्ि गोकुल जाकर ईनको कृष्ण का सन्दशे द ेसके।

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ध्रुिः- चल रे चल बन्धु ईर्द्ि ह े

मेरर सुमरर गोकुल मन दह।े

गोपी अकुल हामु वबरह।े।

पदः- सुमरर सुमरर मन झुरय घन घन

धररते नपारो वहऄ।

हामात वनत वनत सुवम्प प्राण वचत

सयल गोवपनी धरे जीि।।

पुत्र पररिार छाड़ल वनरन्तर

हामाते कयो पवत अष।

माधि दास दीन कहय भकवतहीन

होाँ हरर दासकु दास।। 32

(ग) माधिदिे के बरगीत में सवच्चदानंद भगिान नारायण का िणानः- माधिदिे

ने कृष्ण को परमानन्द स्िरुप जानकर ईसकी िन्दना करता ह।ै ब्रह्म, वशि अकद सभी दिेता भी ईन्हीं

का गुण-गान करते ह ैऔर िहीं सकल संसार के पालनकताा ह।ै

ध्रुिः- जय जय नन्द नन्दन परमानन्द

बन्दो बालगोपालं।

यो पदपंकज-रज ऄज बन्दय

सकल भुिन एकु पालं।।

पदः- रोमवबबरमह कोरट कोरट ऄण्ड

जैछन ऄणु परमावण।

नन्दन्दन कवत नाम धरत सोवह

तुवह लीला कोआ जावन।।

दीनदयाल जगजनतारण-

कारण ईवह ऄितारा।

परम मरुखमवत कहय माधि दीन

गवत मेरर नन्दकुमारा।। 33

(घ) माधिदिे के बरगीत में ऄवभव्यक्त अध्यावत्मक और दाशावनक अदशाः-

माधिदिे के बरगीत में अध्यावत्मक और दाशावनक भाि पूणा रुप से पूणा रुप से ऄवभव्यक्त हुअ ह।ै कवि

ने ईपास्य दिे को साधरण मनुष्यों से परे बताया ह।ै िह ऄगम और ऄगोचर है, ईसके गुणों को कोइ

िणान नहीं कर सकता, ईसका पार पाना असान काया नहीं ह।ै कवि ने अध्यावत्मक और दाशावनक की

भािना को ऄपने गीतों के माध्यम से सरल रुप में िर्मणत ककया ह।ै अध्यावत्मक और दाशावनक की

भािना के द्वारा कवि ने हरर की भवक्त की महत्ता को जनसाधरण के मध्य स्थावपत करने का प्रयास

ककया ह।ै सांसाररक प्रिृवत्तयााँ काम, क्रोध, लोभ, मद, िासना, माया अकद मनुष्य को भ्रवमत कर

ईलझाती रहती ह।ै कवि ने भारतीय िेदान्त दशान के ऄद्वतैिाद ऄथाात् ब्रह्म सत्य जगत वमथ्या को

प्रकावशत ककया ह।ै माधि ने बरगीत में भवक्त से ही इश्वर की करुणा लाभ करने का ईपाय बताया ह।ै

बरगीत में श्रिण-कीतान के ऄलािा पे्रमभवक्त, दास्यभवक्त और एकचरण भवक्त मागा का िणान ककया ह।ै

‘एक नाम धमा ’ माधिदिे के गुरु शंकरदिे के भवक्त मागा का प्रमुख वसर्द्ान्त रहा ह।ै

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ध्रुिः- नारायण के गुण जानि तोआ।

करहु करुणा नाथ ऄधमक मोआ।।

पदः- सहस्र बयने गुण गाित वभन वभन

बयने करत बखाना ।

तोहारर नाम गुण यश मवहमाक

तबहु ऄन्त नावह जाना।।

महामुवण चतुर-बयन सुर शंकर

मोवहत जाकेरर माया।।

चारर िेद विचार करर अित

जाकेरर ऄन्त नपाया।।

सनक सनातन अकद योगीगण

जाकेरर मवहमा न जाना।

हामु मूरुखमवत कमने जानि हरर

गवत तुहु माधि गाना।। 34

इश्वर पाप विनाशक ह,ै िह सदिै भक्तो के संकटों का वनदान करते ह।ै आसीवलए ईसी का वनत्य सेिा

और ऄचाना ककया जाना चावहए। आसी के द्वारा ही परम अनन्द की प्रावप्त हो सकता ह।ै माधिदिे कहते ह ैककः-

ध्रुिः- गोपीनाथ, जगजीिन स्िामी राम, सेिहों तोआ।

हरर करहु करुणा नाथ मोआ।। 35

X X X

ध्रुिः- मोके वबना मवत कदले गोपाल

तुवम ऄगवतर गवत।

ए भिभञ्जन तोमार चरण

सेविते नकरों रवत।। 36

वनष्कषातः कहााँ जा सकता ह ैकक ईपरोक्त ईल्लेवखत बरगीतों के विभाजनों में से चोर-चातुरर और

लीला विषयक गीतों को ही विशेष स्थान वमला ह।ै विरह, परमाथा विषयक गीत भी माधिदिे के बरगीत में

दखेने को वमलता ह;ै ककन्तु संख्यों के दवृष्टकोण से दखेा जाए तो लीला विषयक गीतों की ऄपेक्षाकृत ईस प्रकार

के गीत कम पररलवक्षत होते ह।ै कवि माधिदिे ने ऄपने बरगीत में सबसे ऄवधक नारी का पुत्र िात्सत्य रुप और

मातृत्ि का दशान कराया ह।ै माधिदिे का वप्रय रस िात्सल्य रहा है, लेककन भवक्त रस को भी ऄपने गीत में

प्रवतपाकदत करने का पुरा प्रयास ककया ह।ै ऄसमीया गीती काव्य के क्षेत्र में माधिदिे के द्वारा िात्सल्य रस में

रवचत बरगीत श्रेष्ठ और ऄनुठा ह।ै रसों के साथ-साथ ईन्होंने ऄपने बरगीत में ईपमा, रुपक, ऄनुप्रास, अकद

ऄलंकारो का भी प्रयोग ककया ह।ै िैष्णि धमा के प्रचार के ईद्दशे्य से बरगीत का प्रणयन ककया गया था। आसके

माध्यम से वनगुाण वनराकार परम ब्रह्म को साकार रुप में विविध नाम दकेर श्रीकृष्ण, राम, नारायण और गोपाल

अकद को एकमात्र ईपास्य दिेता मानकर ईन्हीं का गुण-गान ककया ह।ै माधिदिे के बरगीत में कृष्ण को

रासलीला करने िाले पे्रमी के रुप में नहीं, ऄवपतु ईनको परमात्मा का स्िरुप मानकर िणान एिं वचत्रण ककया

हैं। बरगीत में श्रीकृष्ण को पररत्राण कताा और पापविनाशक रुप में िणान ककया गया ह।ै बरगीत को हम

अध्यावत्मकता की कसौटी पर ईतार कर दखे सकते ह।ै

माधिदिे के बरगीतों की एक महत्िपूणा विशेषता यह ह ैकक आसमें विविध रागों का भी वनदशान ह।ै

ईनके बरगीतों में सत्ताइस (27) प्रकार के रागों ईल्लेख वमलता ह।ै जैसेः- अशोिाली, ऄवहर, माउर(मान्हार),

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श्री, धनश्री, भरटयाली, तुर-भरटयाली, सुहाइ, वसन्दरुा, िसन्त, बरारी(बड़ारी), तुर-िसन्त, बलोिार, मल्लार,

नट-मल्लार, श्रीगन्धार, नाट, लवलत, गौड़ी (गौरी), श्याम, श्याम-गोड़ा, कामोद, कौ, केदार, कानाड़ा, और

भुपाली अकद। ऄसमीया शास्त्रीय संगीत और ऄसमीया गीवत सावहत्य के क्षेत्र में माधिदिे और ईनके गुरु

शंकरदिे के बरगीत एक ऄतुलनीय ऄिदान ह।ै

बरगीत की भाषा को ब्रजाबुली भाषा की संज्ञा से ऄवभवहत ककया गया। यह ब्रजाबुली एक प्रकार की

कृवतम भाषा ह,ै वजसे ऄसमीया, संस्कृत, ब्रज, ओवड़या, बाङला, नेपाली अकद भाषा को वमलाकर तैयार ककया

गया। बरगीत में सावहवत्यकता, काव्यात्मकता और संगीतात्मकता का सुन्दर समाहार रुप दखेने को वमलता ह।ै

रटप्पणीः आस अलेख में वजतने भी माधिदिे के द्वारा रवचत बरगीत के पद वलए गये हैं सभी को स्ियं द्वारा मूल

भाषा ऄसमीया से वहन्दी में वलवपयान्तरण ककया ह।ै

सन्दभाः-

1. माहपुरुष श्री श्री शंकरदिे और माध्िदिे विरवचत बरगीत, पृष्ठ संख्या- 116

2. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 105

3. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 106

4. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 110

5. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 112

6. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 113

7. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 109

8. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 110

9. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 122

10. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 133

11. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 136

12. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 134

13. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 134

14. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 135

15. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 153

16. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 227

17. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 128

18. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 131

19. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 232

20. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 205

21. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 207

22. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 245

23. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 211

24. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 241

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25. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 243

26. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 226

27. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 206

28. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 200

29. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 225

30. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 222

31. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 221

32. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 223

33. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 119

34. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 111

35. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 130

36. ईपयुाक्त, पृष्ठ संख्या- 131

सन्दभा ग्रन्थ सूचीः-

ऄसमीयाः

1. बरुिा, शान्तनु कौवशक, सम्पादन और संकलनकताा, (तृतीय संस्करण, 2009), माहपुरुष श्री श्री

शंकरदिे और माध्िदिे विरवचत बरगीत, प्रकाशकः ज्योवत प्रकाशन, पानबजार, गौहाटी – 01, ऄसम।

2. िमान, वशिनाथ, सम्पादक, (प्रथम संस्करण, जून, 1991), शंकरदिे, ऄसमीया सावहत्यर बुरंजी,

प्रकाशकः अनन्दराम बरुिा भाषा-कला संसकृवत संस्था, ईत्तर गौहाटी – 30, ऄसम।

3. महन्त, बापचन्र, (वद्वतीय संस्करण, ऄक्टूबर, 2012), महापुरुषर शंकरदिेर बरगीत, प्रबन्ध गानर

परम्परागत बरगीत, प्रकाशकः बनलता, नतुन बजार, वडबरुगढ़ – 01, ऄसम।

4. महन्त, बापचन्र, सम्पादक, (प्रथम संस्करण, ऄगस्त, 1992), बरगीत, प्रकाशकः स्टुडने्ट स्टोरस,

कॉलेज होस्टेल रोड, गौहाटी – 01, ऄसम।

5. शमाा, कुसुम चन्र, (प्रथम संस्करण, ऄक्टूबर, 2004), शंकरदिे सावहत्यर अभाख, िैष्णि भवक्तिाद

शंकरदिे अरु माधिदिेर सावहत्य अलोचना, प्रकाशकः श्रीमती कामेश्वेरी दिेी, हमेवन्तका,

जापारकुवस, नलिारी, ऄसम।

6. काकवत, डॉ. िाणीकान्त, (पंचम संस्करण, ऄगस्त, 2011), बरगीत शीषाक प्रबन्ध, पुरवन ऄसमीया

सावहत्य, प्रकाशकः राजेन्र प्रसाद मजुमदार,ऄसम प्रकाशन पररषद, गौहाटी – 21, ऄसम।