-अटल िबहारी...

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अनुमिणका अंक – 22 वां जुलाई - िसतबर, 2018 1. िबमल जी (हानी) - नोज पा2. िवभागीय पिकाएं (किवता) - पुिपदर कौर 3. मुंशी ेमचंद - महान सािहयकार (लेख) - मो. सा.अ.ह. िसिकी 4. िव᳡ िहदी समेलन – परंपरा और उपलिधयां 5 . रेल मंालय, राजभाषा िनदेशालय ᳇ारा मुंशी ेमचंद जयंती के आयोजन के दृय. 6. रेलवे बोड राजभाषा कायावयन सिमित की बैठक मᱶ “रेल राजभाषा’ पिका के िवमोचन के दृय 7. रेलवे बोड राजभाषा कायावयन सिमित की बैठक मᱶ “रेल राजभाषा मोबाइल एप’ के िवमोचन के दृय 8. रेलवे बोड राजभाषा कायावयन सिमित की बैठक मᱶ “ई-पिका” के िवमोचन के िच 9. भारती भारत क(किवता) - शाित देवे खरे 10. संसदीय राजभाषा सिमित की दूसरी उप सिमित ᳇ारा सिडका, लालागु़डा, िसकंदराबाद के िनरीण के दृय. 11. वथ जीवन सफलता की कुं जी (लेख)- साभार रक अवनी लोहानी अय, रेलवे बोड एस.एन. अवाल सदय कािमक आनद माथुर महािनदेशक, कािमक पता : राजभाषा िनदेशालय, रेल मंालय (रेलवे बोड), कमरा नं. 544, रेल भवन, रेलवे बोड नई िदली - 110001. Email : dol@rb.railnet.gov.in धान पादक एस.पी. माही कायपालक िनदेशक था.(आर) संपादक के.पी. सयानंदन िनदेशक,राजभाषा पादक नी पटनी उप िनदेशक,राजभाषा सह संपादक पुिपदर कौर सहायक िनदेशक, राजभाषा तकनीकएवं संपादन सहयोग मो. सािबर अली हसन िसिकी, विर. अनुवादक “बाधाएँ आती हᱹ आएँ, िघरᱶ लय की घोर घटाएँ, पाँवᲂ के नीचे अंगारे, िसर पर बरसᱶ यिद वालाएँ, िनज हाथᲂ मᱶ हँसते-हँसते, आग लगाकर जलना होगा, क़दम िमलाकर चलना होगा” -अटल िबहारी वाजपेयी

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    अनुकर्मिणका अंक – 22 वां जुलाई - िसतम्बर, 2018

    1. िबमल जी (कहानी) - मनोज पाण्डे2. िवभागीय पितर्काएं (किवता) - पुिष्पदर कौर 3. मुंशी पेर्मचंद - महान सािहत्यकार (लेख)

    - मो. सा.अ.ह. िसि की 4. िव िहन्दी सम्मेलन – परंपरा और उपलिब्धयां 5 . रेल मतंर्ालय, राजभाषा िनदशेालय ारा मुंशी पर्ेमचंद जयंती के

    आयोजन के दशृ्य. 6. रेलवे बोडर् राजभाषा कायार्न्वयन सिमित की बैठक म “रेल राजभाषा’ पितर्का के िवमोचन के दशृ्य 7. रेलवे बोडर् राजभाषा कायार्न्वयन सिमित की बैठक म “रेल राजभाषा

    मोबाइल एप’ के िवमोचन के दशृ्य 8. रेलवे बोडर् राजभाषा कायार्न्वयन सिमित की बैठक म “ई-पितर्का” के

    िवमोचन के िचतर् 9. भारती भारत की (किवता) - शािन्त दवेेन्दर् खरे 10. संसदीय राजभाषा सिमित की दसूरी उप सिमित ारा सिडका, लालागुड़ा, िसकंदराबाद के िनरीक्षण के दशृ्य. 11. स्वस्थ जीवन सफलता की कंुजी (लेख)- साभार

    सरंक्षक अश् वनी लोहानी

    अध् यक्ष, रेलवे बोडर् एस.एन. अगर्वाल

    सदस् य कािमक आनन् द माथरु

    महािनदशेक, कािमक

    पता : राजभाषा िनदशेालय, रेल मतंर्ालय (रेलव ेबोडर्),

    कमरा न.ं 544, रेल भवन, रेलव ेबोडर् नई िदल् ली - 110001. Email : [email protected]

    पर्धान सपंादक एस.पी. माही

    कायर्पालक िनदशेक स् था.(आर) सपंादक

    के.पी. सत्यानदंन िनदशेक,राजभाषा

    उप सपंादक नीरू पटनी

    उप िनदशेक,राजभाषा

    सह सपंादक पिुष्पदर कौर

    सहायक िनदशेक, राजभाषा

    तकनीकी एव ंसपंादन सहयोग मो. सािबर अली हसन िसि की,

    विर. अनुवादक  

    “बाधाएँ आती ह आएँ, िघर पर्लय की घोर घटाएँ, पाँव के नीच ेअगंारे, िसर पर बरस यिद ज्वालाएँ, िनज हाथ म हसँते-हसँते, आग लगाकर जलना होगा, क़दम िमलाकर चलना होगा”

    -अटल िबहारी वाजपेयी

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    िबमल जी

    “एक युग बीत गया, सर!” िबमल बोले। यकीनन एक युग तो बीत ही गया था। बनारस, वाराणसी, काशी ---- िकतने ही नाम ह इस नगर के। िनरंतर बसे हुए पर्ाचीन नगर म से संभवत: सबसे पर्ाचीन। िजसके घाट का स् पशर् कर गगंा आगे िनकल जाती ह।ै कोई डुबकी लगाता ह,ै कोई स् नान करता ह ैतो कोई केवल चुल् लू भर पानी से ही संतुष् ट हो जाता ह।ै और उसे अपने सर पर डाल आगे िनकल लेता ह।ै लौ के भी अलग-अलग रूप! कभी िचता, कभी आरती तो कभी पतर्ी के दोने म घी बत् ती के साथ पर्वािहत दीए की। नाव और बजड़ ेम बठेै तीथर्याितर्य और पयर्टक के अलावा बनारस म और भी बहुत कुछ ह।ै मने भी कुछ साल इस शहर म िबताए थे।

    डी.एल.डब्ल्यू – यही पिरिचत नाम ह ै डीजल लोकोमोिटव वक् सर् या डीजल रेल कारखाना का, जहाँ साल पहले यह फैक् टर्ी लगी थी। िवस् तृत क्षेतर् म फैली कामगार और अफसर की िरहाईश – बनारस शहर की भीड़भाड़ और अराजकता से परे – व् यविस्थत, हरी-भरी और शांत। और साफ भी।

    हा,ं एक युग तो बीत ही गया था। िपछली शताब् दी का आिखरी दशक था। और उसके भी अंितम पाँच वषर्। उमर् भी कम, वजन भी कम, िचन् ताएं भी कम। यँू किहए जवानी के बेहतर िदन म मेरी पोिस्टग डी.एल. डब्ल्यू म हुई थी। कारखाने के माहौल म काम करने का यह पहला अवसर था। अफसरी भी नगण् य! अपना कायर्भार मझुे स पते समय पुन् नूस् वामी ने तीन चाबी वाला एक गुच् छा िदया। “यह चािबयाँ िकसकी ह? मने पूछा। “लम् बी वाली कमरे के दरवाजे की, चपटी वाली टेबल के दराज की और अलमारी की गोदरेज वाली,” पुन् नूस् वामी बोला। “कमरे की चाबी क् य ? यह तो चपरासी खोलता ह-ै “मने पूछा।

    “पाटर्नर, यहां िडप् टी को अपना कमरा खुद खोलना पड़ता ह,ै बंद भी करना पड़ता ह।ै अलग चपरासी नह ह।ै “वेलकम टू डीएलडब् लू वाराणसी’’ टेढ़ी सी मुदर्ा म उसने कहा और चला गया पुन् नूस् वामी बनारस छोड़ कर मदर्ास। अब वो मुक् त था। अब म, मेरा कमरा और चाबी का गुच् छा – पहल ेिदन का यह पहला ज्ञान! िफर आया नाम ----- “पाण् ड’े’ – मान िलया गया िक म यह का हू।ँ कुछ ने तो िरश् तेदारी जोड़न ेका भी पर्यास िकया – “सर कान् यकुब् ज ह गे?’’ “वो क् या होता ह?ै’’ मने पलटकर पूछा और स् पष् ट कर िदया िक म छोरा गंगा िकनारे वाला नह हू।ँ बहुत को तकलीफ हुई जो िनकटता दशार् कर अपना उल् लू सीधा करना चाहते थे। एक िवपर् नेता को तो बड़ा झटका लगा। बड़ी ड ग हांक चुका था िक अब तो सारे काम अपने पाण् डजेी से करा लगे। अतंतोगत् वा मेरा पूरा पर्वास उसे एक क्षण भी रास नह आया। मगर बेचारा कर भी क् या सकता था। धािमक पयर्टन को यिद छोड़ द तो भी बनारस की अपनी कुछ िविशष् टता ह।ै इनम दो ह- साड़ी और कालीन। कालीन की तो मेरी औकात थी नह , मगर सािड़य ने, या किहए उनकी खरीदी ने शर्ीमती जी को व् यस् त रखा। यह पर आते ह ैिबमल जी – साड़ी के व् यापारी। मूलत: गुजराती मगर अब पूरे बनारसी। न जाने कैसे िबमल जी से उनका पिरचय हो गया। एक िदन कायार्लय से घर लौटा तो दखेा बाहर बजाज का एक नीला स् कूटर खड़ा ह।ै अंदर बैठक म तीन मिहलाएं – िमसेज अरोड़ा और सहाय, शर्ीमितजी के साथ सोफे पर और िबमल जी और सफेद कुत पायजाम म एक मोटा सा आदमी जमीन पर।

    मुसड़ी हुई साि़डय का फैला ढेर और उन म से पर्त् येक पर तीन मिहला की जारी िवस् तृत िववेचना, जो शायद काफी समय से जारी थी।

    यह सब मेरी समझ के बाहर था और सािड़याँ भी िजस अवस् था म थ , खास आकिषत नह कर रह थ । मुझे तो वह ऐसी लग जसैे बचपन म बतर्न के बदले दी जाने वाली घर की पुरानी साि़डय की होती थी। हालांिक वह काम भी गुजराती औरत ही िकया करती थी।

    म ऐस ेधमर् को मानता हू,ं जो स्वततंर्ता, समानता और भाईचारा िसखाता ह।ै -डॉ. भीम राव अम्बडेकर

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    “नमस् ते सर, मेरा नाम िबमल ह,ै डी.एल.डब् लू म मेरा आना-जाना लगा रहता ह,ै” वह बोले।

    “िबमल जी यहां सब के घर आते रहते ह, इनके पास साि़डय की चौइस भी अच् छी रहती ह”ै शर्ीमती जी ने जोड़ा। उपिस्थत भदर् मिहला को यथोिचत अिभवादन कर म अपन ेकमरे म चला गया। लाई गई साि़डय का गहन अवलोकन, िवश् लषेण और मोल-भाव अनवरत चलता रहा। कुछ दरे बाद मुझे भी चाय-नाश् ता िमल गया। जािहर था िक यह आगंतुक के िलए था। अपन को तो ‘एक पे एक फर्ी’ स् कीम के अंतगर्त िमल गया।

    “इन दो म से कौन सी ज् यादा अच् छी लगती ह?ै” लगभग आधे घंटे बाद शर्ीमती जी ने कमरे म आकर पूछा। इस पर्कार के पर्श् न का उत् तर दनेे का सामथ् यर् कोई नह रखता- िवशेषकर पित। िफर भी मने िहम् मत की और अपनी राय रखी। “नीली वाली म क् या खराबी ह?ै” वह बोल । यह ‘नीली’ दसूरी साड़ी थी। “दोन ही अच् छी ह, मगर यह नारंगी थोड़ी अलग ह”ै मने उत् तर िदया।

    अलग ह!ै ऐसी किठन पिरिस्थित से बचने का यही एक अचूक उत् तर रहता ह।ै सुरिक्षत भी। भाई लोग नोट कर! सच तो यह था िक दोन साि़डय की हालत उस समय कोई खास अच् छी नह लग रही थी – यह कच् ची साड़ी थी, जो सीधे बुनकर से ली गई थी। कुछ समय बाद मिहला सभा भंग हुई और साि़डय को एक सफेद चददर म बांध िबमल जी और वह मोटा आदमी स् कूटर म बैठ कर चले गए। चुनी हुई साड़ी अलग गठठर म थ ।

    दो िदन बाद िबमल एक साड़ी लाए- िवश् वास ही नह हुआ िक यह उन् ह दो म से एक थी। पािलश के बाद उसकी तो रंगत ही बदल गई थी।

    िबमल ने मुझे बनारस म साड़ी के व् यापार के बारे म बताया। अलग-अलग स् तर के बुनकर रहते ह। कुछ तो कमीशन पर नामदार िडजा़यनर के िलए बुनते ह।ै बम् बई और िदल् ली म जो साि़डय हजार म िबकती ह, उनको बहुत ही कम दाम पर बुनकर बनाता ह।ै नाम और मुनाफा यह बड़ े व् यापारी और िडजा़यनर कमाते ह। मझले स् तर के व् यापारी सीधे बुनकर स ेखरीदते ह। ‘स ी’ म जहां यह कारीगर अपना माल लाते ह, तेजी से मोल भाव होता ह ैऔर व् यापारी माल खरीदकर िफर आगे बेचते ह। इस अवस् था म साड़ी काफी बेकार सी नजर आती ह।ै उसका असली िनखार और रूप तो पािलश और पेर्स होने के बाद मुखर होता ह।ै बनारस म मेरी पोिस्टग के दौरान पिरवार म काफी शािदयां िफक् स हुई, कई िरश् तेदार और िमतर् घूमने आए और मेरे साथ रह।े सभी ने साि़डयां भी खरीद । इसिलए िबमल जी हमारे घर अक् सर आते रह।े

    एक अजीब सा शहर ह ैबनारस। गंगा के केवल एक ही तट पर बसा हुआ। घाट तो कई जगह ह – िचतर्कूट, होशंगाबाद, महशे् वर, हिर ार --- मगर इतन ेअिधक और इतनी दरूी-अस् सी से वरूणा तक, लगातार फैले कह नह ह। नाव म बैिठए और बस एक घंटे गंगा के पर्वाह म बहते-बहते दखेते रिहए इन घाट को। अलग-अलग मगर िफर भी जड़ु ेहुए। पृथक परन् त ुिनरंतर। और िफर दवे दीपावली! ऐसा त् योहार जो हर िकसी को मंतर्मुग्ध कर द।े दीपावली के लगभग दस िदन बाद मनाया जाता ह।ै हर घाट की हर सीढ़ी पर जलते िदए। स् थान-स् थान पर िविभन् न सांस् कृितक आयोजन िजनकी मधुर आवाज उन सकड़ो नाव तक यदा-कदा पहुचंती रहती ह ै जो इस रात खचाखच भरी रहती ह। सजे हुए बज़ड़ और उनकी छत पर बैठे लोग गंगा पर्वाह के साथ बहती नाव से इस अदभुत् दशृ् य को दखेते ह।ै उपर च द की िनराली छटा। अद्भूत।् उस रात हम भी गए थे। अचानक एक बड़ी सी नाव बगल स ेिनकल गई – गद ेके फूल से सजी हुई – शंकराचायर् का बज़ड़ा था। िफर एक और िनकला – शास् तर्ीय संगीत की तंरग। कोई बोला- िगिरजा दवेी गा रही थ । भारत म कई जगह गया हू ँ इससे पहले और इसके बाद भी। मगर उस िदन दखेी बनारस की दवे दीपावली की याद आज भी रोमांिचत कर दतेी ह।ै संकटमोचन का मंिदर। बजरंगबली को िनरंतर पर्णाम करत,े पिरकर्मा करते और वह पड़ी हनुमान चालीसा की एक पर्ित उठा, उसका पाठ करते भक् तगण। वािषक संगीत महोत् सव, जहां शास् तर्ीय संगीत के एक से एक बेहतर अनयुायी अपनी कला पर्दिशत करते ह। और वहां के स् थाई िनवासी बंदर, जो शायद ही िकसी को तंग करते ह ।

    एक स् कूटर था मेरे पास। जब मन करता तो हम दोन अपन ेबटेे को लकेर चल ेजात ेथे बी.एच.यू. (काशी िहन् द ूिवश् विव ालय) के काशी िवश् वनाथ मंिदर म। भव् य, साफ सुथरा और शान् त। कह कोने पर चुपचाप पढ़ते िव ाथ । बड़ा अच् छा लगता था वहां। िविभन् न वेद व उपिनषद के श् लोक जगह-जगह पर पत् थर पर िलखे हुए। पिरकर्मा करते-करते म इन् ह पढ़ता रहता और कोिशश करता समझने इस ज्ञान को – “मन िजसका िचतंन नह कर सकता और जो मन को िचतंन करने की शिक्त पर्दान करता ह,ै उसे तुम बर्हम् जानो”

    इस बार इतने अतंराल के बाद जब वहां गया तो एक बार िफर पढ़ता चला गया उन सभी श् लोक के िहन् दी/अंगेर्जी अनुवाद को। काफी समय बाद उपर िलखा श् लोक भी िमल गया। लगा िक आना सफल हो गया। “लाइफ हडै कम फुल सकर्ल” – जीवन का एक पूरा चकर् िनकल गया था।

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    भारतीय रेल, भारतीय रेल दशे का गौरव भारतीय रेल

    भारतीय रेल की िवभागीय पितर्काएं राजभाषा िहदी का मान बढ़ाए ं

    गाड़ी पिरचालन, यातर्ी सुरक्षा सािहत्य, संस्कृित, ज्ञान िवज्ञान पर्शासिनक िनयम ह या तकनीकी ज्ञान

    यातर्ा वृतांत और किवताए ंसब कुछ हमको सुलभ कराएं

    राजभाषा पितर्का का ापक योगदान इनको बनाता बहुत महान

    रेल पर ह अनेक पितर्काए ंिजनको पढ़ मन खुश हो जाए

    सारंग, सृजन, सरस्वती संगम पर्यास, पर्गित, रेल संगम

    रेल ितर्वेणी, का ांजिल, रेल रिश्म दिक्षण ध्विन, राजभारती, मानक रिश्म

    रेल बुंदले शर्ी, अवंितका रेल बृज िनहािरका राजभाषा पर्वाह, राजभाषा मागर्दिशका

    किवता शतक, थार रेल, लोअर परेल गौरव मरूधरा, मरूगंधा, आशर्म सौरभ

    जयपुर दपर्ण, पूव र रेल दपर्ण कैरेज दपर्ण, पिहया दपर्ण, न्यू बंगाईगांव कारखाना दपर्ण

    अक् टूबर 1999 म बनारस छोड़त ेसमय पिरवार भी बढ़ गया। एक बेटी भी हो गई थी। बनारस के ही एक पंिडत ने उसको नाम िदया था- गायतर्ी। इस बार की यातर्ा उसे अपने अतीत को समझने की भी कोिशश थी। मने उसे उसका जन् म स् थल – डीरेका का अस् पताल भी िदखाया, वह पुराना घर भी जहां अब कोई और रहता ह।ै और जहां मेरे बाद और उससे पहल ेभी िकतने ही रह गए ह गे। बेटे स् वामी का पहला स् कूल, जह मुझे उसके बहुत बातूनी होने की िशकायत िमली। यही तो बचपन का मजा था। न उसे यह याद ह ैन कुछ िदन बाद इसका कोई अथर् ही रहगेा।

    हां, एक युग बीत गया था। बनारस बहुत साफ हो गया ह।ै डीरेका पिरसर और सुन् दर हो गया ह।ै दफ्तर म उस समय के पिरिचत एक-एक करके चले गए ह। नए कमर्चािरय के मानसपटल से मेरी याद भी शायद धुंधली हो जल् दी ही िमट जाती, यिद म इस बार यहां नह आता। पुन: सबको िफर याद िदला आया िक म भी कभी यह रहता था, काम करता था। अब यहां मेरी याद कुछ िदन तक और चलगी।

    हां, एक युग बीत गया था। मगर कुछ-कुछ अभी भी नह बदला। बाबा िवश् वनाथ, संकटमोचन और बीएचयू मंिदर के दशर्न, िवश् वनाथ गली का सजा हुआ सामान और सािड़य की खरीद। वह भी िबमल जी से ही। हां, एक युग बीत गया िबमल जी, मगर काशी तो न जाने ऐसे िकतने युग दखे चुकी ह ैऔर िकतने ही दखेेगी। सचमुच युगातीत ह ैबनारस।

    ****** मनोज पाण् ड े

    अपर सदस् य (कािमक)

    सेलम ज्योित, पोनमलर, लोकोवाणी

    िचराग, आरोही, मंडल माधुरी, इंदर्ायणी गितमान, कोयल, रेल सुरिभ पल्लिवका, स्वणर्रेखा, जयचंडी

    आरजिसटी एक्सपर्ेस, राजनाग हरदम, पर्गितपथ, पर्यास

    रोशनी, अिभ िक्त, रेल सुधा दीक्षा, कलरव, रेल सुरिभ, मधुभािषका

    िकसलय, वैशाली, पर्ितिबब राजभाषा संवाद, काशी पर्ितिबब

    कमर्वीर, कारवा,ं रेल रंजनी उत्किलका, रेल रािगनी, राजभाषा महाल मी

    संदशे, राजनाग, चंबलवाणी मंडल संवाद, राजभाषा भावना, रेल वाणी

    राजभाषा िवभूित, अरूणोदय, मधुभािषका मैटर्ो चेतना, अजयधारा, िव ुतिविधका

    सािहत्य, कला और िवज्ञान की बहती धारा िदन पर्ितिदन ज्ञान बढ़ाती हमारा

      

    पुिष्पदर कौर सहायक िनदशेक, राजभाषा 

    रेलव ेबोडर् 

    िवभागीय पितर्काएं 

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    मुशंी पर्मेचंद

    (31 जलुाई 1880 – 8 अक्टूबर 1936 ) मुंशी पर्ेमचंद िहन्दी और उदूर् के महानतम भारतीय लेखक म से एक ह। उनका वास्तिवक नाम धनपत

    राय शर्ीवास्तव था, पर्ेमचंद को नवाब राय और मुंशी पर्ेमचंद के नाम से भी जाना जाता ह।ै उपन्यास के के्षतर् म उनके योगदान को दखेकर बंगाल के िवख्यात उपन्यासकार शरतचंदर् च ोपाध्याय ने उन्ह उपन्यास समर्ाट कहकर संबोिधत िकया था। मुंशी पर्मेचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के नज़दीक लमही गाँव म हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी दवेी तथा िपता का नाम मुंशी अजायबराय था। उनके िपता लमही म ही डाकमुशंी के पद पर कायर्रत थे। उनकी िशक्षा का आरंभ उदूर्, फारसी भाषा से हुआ, पढ़ने का शौक उन् ह बचपन से ही था। 13 साल की उमर् म ही उन् ह ने ितिलस्म-ए-होशरुबा पढ़ िलया था। 1898 म मिैटर्क की परीक्षा उ ीणर् करने के बाद वे एक स्थानीय िव ालय म िशक्षक के पद पर िनयुक्त हो गए। नौकरी के साथ ही उन्ह ने पढ़ाई जारी रखी। 1910 म उन् ह ने अगंर्ेजी, दशर्न, फारसी और इितहास लेकर इंटर पास िकया और 1919 म बी.ए. पास करने के बाद िशक्षा िवभाग के इंस्पेक्टर पद पर िनयुक्त हुए।

    सात वषर् की अवस्था म उनकी माता तथा चौदह वषर् की अवस्था म िपता का दहेान्त हो जाने के कारण उनका पर्ारंिभक जीवन काफी संघषर्मय रहा। उनका पहला िववाह उन िदन की परंपरा के अनुसार पंदर्ह साल की उमर् म हुआ जो सफल नह रहा। वे आयर् समाज से पर्भािवत रह,े जो उस समय का बहुत बड़ा धािमक और सामािजक आदंोलन था। उन्ह ने िवधवा-िववाह का समथर्न िकया और1906 म दसूरा िववाह अपनी पर्गितशील परंपरा के अनुरूप बाल-िवधवा िशवरानी दवेी से िकया। उनकी तीन संताने हुईं- शर्ीपत राय, अमृत राय और कमला दवेी शर्ीवास्तव। 1910 म जब उन्ह ने “सोज-ेवतन” (रा का िवलाप) िलखा तो हमीरपुर के िजला कलेक्टर ने उन्ह ेतलब कर िलया और उन पर जनता को भड़काने का आरोप लगाया। सोज-ेवतन की सभी पर्ितया ँजब्त कर न कर दी गईं। कलेक्टर ने नवाबराय को िहदायत दी िक अब वे कुछ भी नह िलखगे, यिद िलखा तो जेल भेज िदया जाएगा। इस समय तक पर्मेचंद, धनपत राय नाम से िलखते थे। उदूर् म पर्कािशत होने वाली ज़माना पितर्का के सम्पादक और उनके अजीज दोस् त मुंशी दयानारायण िनगम ने उन्ह पेर्मचंद नाम से िलखने की सलाह दी। इसके बाद वे पेर्मचन्द के नाम से िलखने लगे। उन् ह ने आरंिभक लेखन “ज़माना पितर्का” म ही िकया।

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    पर्ेमचंद ने िहन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का िवकास िकया िजसने पूरी सदी के सािहत्य का मागर्दशर्न िकया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक पर्भािवत कर पेर्मचदं ने सािहत्य की यथाथर्वादी परंपरा की न व रखी। उनका लेखन िहन्दी सािहत्य की एक ऐसी िवरासत ह ैिजसके िबना िहन्दी के िवकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागिरक, कुशल व ा तथा सुधी संपादक थ।े बीसव शती के पूवार् र् म, जब िहन्दी म तकनीकी सुिवधा का अभाव था उस समय भी उनका योगदान अतुलनीय था। य तो उनके सािहित्यक जीवन का आरंभ 1901 से हो चुका था पर उनकी पहली िहन्दी कहानी सरस्वती पितर्का के िदसम्बर अंक म 1915 म सौत नाम से पर्कािशत हुई और 1936 म अंितम कहानी कफन नाम से पर्कािशत हुई । बीस वष की इस अविध म उनकी कहािनय के अनेक रंग दखेने को िमलते ह। उनसे पहले िहदी म काल्पिनक, एय्यारी और पौरािणक धािमक रचनाए ं ही की जाती थी। पर्ेमचंद ने िहदी म यथाथर्वाद की शुरूआत की। " भारतीय सािहत्य का बहुत सा िवमशर् जो बाद म पर्मुखता से उभरा चाह ेवह दिलत सािहत्य हो या नारी सािहत्य उसकी जड़ कह गहरे पेर्मचदं के सािहत्य म िदखाई दतेी ह।"

    पर्ेमचंद के लेख 'पहली रचना' के अनुसार उनकी पहली रचना अपन ेमामा पर िलखा व् यंग् य थी, जो अब अनुपलब् ध ह।ै उनका पहला उपलब् ध लेखन उदूर् उपन्यास 'असरारे मआिबद” ह।ै पेर्मचदं का दसूरा उपन् यास 'हमखुमार् व हमसवाब' िजसका िहदी रूपातंरण 'पेर्मा' नाम से 1907 म पर्कािशत हुआ। इसके बाद पेर्मचंद का पहला कहानी संगर्ह सोज़े-वतन नाम से आया जो 1908 म पर्कािशत हुआ। सोज-ेवतन यानी “दशे का ददर्”। दशेभिक्त की भावना से ओतपर्ोत होने के कारण इस पर अंगर्ज़ेी सरकार ने रोक लगा दी और इसके लेखक को भिवष् य म इस तरह का लेखन न करने की चेतावनी दी। इसके कारण उन्ह नाम बदलकर िलखना पड़ा। 'पर्ेमचदं' नाम से उनकी पहली कहानी “बड़े घर की बेटी” ज़माना पितर्का के िदसम्बर 1910 के अंक म पर्कािशत हुई। मरणोपरांत उनकी कहािनयाँ मानसरोवर नाम से 8 खंड म पर्कािशत हुई।

    कथा समर्ाट पेर्मचन्द का कहना था िक सािहत्यकार दशेभिक्त और राजनीित के पीछे चलने वाली सच्चाई नह बिल्क उसके आगे मशाल िदखाती हुई चलने वाली सच्चाई ह।ै यह बात उनके सािहत्य म उजागर हुई ह।ै 1921 म उन्ह ने महात्मा गांधी के आह्वान पर अपनी नौकरी छोड़ दी। कुछ महीने मयार्दा पितर्का का संपादन भार संभाला, छह साल तक माधुरी नामक पितर्का का संपादन िकया, 1930 म बनारस से अपना मािसक पतर् हसं शुरू िकया और 1932 के आरंभ म जागरण नामक एक सा ािहक और िनकाला। उन्ह ने लखनऊ म 1936 म अिखल भारतीय पर्गितशील लेखक संघ के सम्मेलन की अध्यक्षता की। उन्ह ने मोहन दयाराम भवनानी की अजतंा िसनेटोन कंपनी म कहानी-लेखक की नौकरी भी की। 1934 म पर्दिशत मजदरू नामक िफल्म की कथा िलखी और कंटेर्क्ट की साल भर की अविध पूरी िकये िबना ही दो महीने का वेतन छोड़कर बनारस भाग आये क्य िक बंबई (आधुिनक मुंबई) का और उससे भी यादा वहाँ की िफल्मी दिुनया का हवा-पानी उन्ह रास नह आया। उन् ह ने मूल रूप से िहदी म 1915 से कहािनयां िलखना और 1918 (सेवासदन) से उपन् यास िलखना शरुू िकया।

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    पर्ेमचंद ने कुल करीब तीन सौ कहािनयाँ, लगभग एक दजर्न उपन्यास और कई लेख िलखे। उन्ह ने कुछ नाटक भी िलखे और कुछ अनुवाद कायर् भी िकया। पेर्मचदं के कई सािहित्यक कृितय का अंगर्ज़ेी, रूसी, जमर्न सिहत अनेक भाषा म अनुवाद हुआ। गोदान उनकी कालजयी रचना ह।ै कफन उनकी अंितम कहानी मानी जाती ह।ै उन् ह ने िहदी और उदूर् म पूरे अिधकार से िलखा। उनकी अिधकांश रचनाएं मूल रूप से उदूर् म िलखी गई ह लेिकन उनका पर्काशन िहदी म पहले हुआ। ततीस वष के रचनात्मक जीवन म वे सािहत्य की ऐसी िवरासत स प गए जो गुण की दिृ से अमूल्य ह ैऔर आकार की दिृ से असीिमत।

    बहुमुखी पर्ितभा संप पेर्मचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आिद अनेक िवधा म सािहत्य की सृि की। पर्मुखतया उनकी ख्याित कथाकार के तौर पर हुई और अपने जीवन काल म ही वे ‘उपन्यास समर्ाट’ की उपािध स ेसम्मािनत हुए। उन्ह ने कुल 15 उपन्यास, 300 से कुछ अिधक कहािनयाँ, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तक तथा हजार पृ के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूिमका, पतर् आिद की रचना की लेिकन जो यश और पर्ित ा उन्ह उपन्यास और कहािनय से पर्ा हुई, वह अन्य िवधा से पर्ा न हो सकी।

    पर्ेमचंद के उपन् यास न केवल िहन् दी उपन् यास सािहत् य म बिल्क संपूणर् भारतीय सािहत् य म मील के पत् थर ह। उन् ह ने 'सेवासदन' (1918), 'पर्ेमाशर्म' (1921) 'रंगभूिम' (1925), 'कायाकल् प' (1926), 'िनमर्ला' (1927), 'गबन' (1931), 'कमर्भूिम' (1932) से होता हुआ यह सफर 'गोदान' (1936) तक पूणर्ता को पर्ाप् त हुआ। रंगभिूम म पर्ेमचंद एक अंधे िभखारी सूरदास को कथा का नायक बनाकर िहदी कथा सािहत् य म कर्ांितकारी बदलाव का सूतर्पात कर चुके थे। गोदान का िहदी सािहत् य ही नह , िवश् व सािहत् य म महत् वपूणर् स् थान ह।ै

    उनके जीवन काल म कुल नौ कहानी संगर्ह पर्कािशत हुए- 'सप् त सरोज', 'नविनिध', 'पर्ेमपूिणमा', 'पेर्म-पचीसी', 'पेर्म-पर्ितमा', 'पेर्म- ादशी', 'समरयातर्ा', 'मानसरोवर' : भाग एक व दो और 'कफन'। उनकी मृत् यु के बाद उनकी कहािनयाँ 'मानसरोवर' शीषर्क से 8 भाग म पर्कािशत हुई। उनकी कहािनय म िवषय और िशल्प की िविवधता ह।ै उन्ह ने मनुष्य के सभी वग से लेकर पशु-पिक्षय तक को अपनी कहािनय म मुख्य पातर् बनाया ह।ै

    उनकी कहािनय म िकसान , मजदरू , ि य , दिलत , आिद की समस्याएं गंभीरता से िचितर्त हुई ह। उन्ह ने समाजसुधार, दशेपर्ेम, स्वाधीनता संगर्ाम आिद से संबंिधत कहािनयाँ िलखी ह। उनकी ऐितहािसक कहािनयाँ तथा पर्ेम संबंधी कहािनयाँ भी काफी लोकिपर्य सािबत हुईं। पर्ेमचंद की पर्मुख कहािनय म- 'पंच परमेश् वर', 'गलु् ली डंडा', 'दो बैल की कथा', 'ईदगाह', 'बड़े भाई साहब', 'पूस की रात', 'कफन', 'ठाकुर का कुआँ', 'स ित', 'बूढ़ी काकी', 'तावान', 'िवध् वंस', 'दधू का दाम', 'मंतर्' आिद शािमल ह।ै

    जीवन के अंितम िदन म वे गंभीर रूप से बीमार पड़।े उनका उपन्यास मंगलसूतर् पूरा नह हो सका और लम्बी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को उनका िनधन हो गया। उनका अंितम उपन्यास मगंल सूतर् उनके पुतर् अमृत राय ने पूरा िकया।

    मो.सािबर अली हसन िसि की विर अनवुादक, रेलव ेबोडर्

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    िव िहन्दी सम्मलेन- परंपरा और उपलिब्धया ं

    िहदी भाषा के सबसे बड़े सम्मेलन के रूप म  स्वीकृत िव िहदी सम्मेलन पर्ारंभ से ही िहदी  को अंतररा ीय स्तर पर पर्िति त करता रहा ह।ै िव  िहदी सम्मेलन की यह यातर्ा सन् 1975 म भारत से शुरू हुई। इसके आयोजन का िवचार रा भाषा पर्चार सिमित, वधार् ारा सन ् 1973 म पर्स्तुत िकया गया। िहदी के पर्चार-पर्सार एवं संयुक्त रा संघ म िहदी को एक आिधकािरक भाषा के रूप म स्थािपत करने के उ ेश्य से 10  से 14 जनवरी, 1975 को रा भाषा पर्चार सिमित के तत्त्वावधान म भारत सरकार के सहयोग  से पहला िव िहदी सम्मेलन नागपुर म आयोिजत िकया गया। इस सम्मेलन का बोध वाक्य ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ था िजसका आशय था िहदी ारा ‘एक  िव एक मानव’ की भावना का संचार। सम्मलेन म स्वागत भाषण महारा के तत्कालीन मुख्यमंतर्ी वसंतराव नाइक ारा िदया गया। समापन समारोह की मखु्य वक्ता महीयसी महादवेी वमार् थ । उ ाटन करते हुए भारत की पर्धानमतंर्ी शर्ीमती इंिदरा गांधी ने कहा, ‘िहदी िव की महान भाषा म से ह। (भारत की) ये सभी भाषाएँ दशे की सांस्कृितक िवरासत की समान उ रािधकारी ह। ये भाषाएँ भारत की रा भाषाए ँह और उनम से िहदी भारत की रा ीय संपकर् की भाषा ह,ै क्य िक इस भाषा का पिरवार सबसे बड़ा ह।ै भारत का पर्त्येक बच्चा अपनी मातृभाषा सीखे, रा ीय संपकर्  भाषा के रूप म िहदी सीखे और अतंररा ीय संपकर्  भाषा के रूप म अंगर्ेजी सीखे।’ सम्मेलन म कुल सात शैिक्षक सतर् का आयोजन िकया गया िजनम ‘िहदी की अंतररा ीय िस्थित’ पर एक पूणर् सतर् तथा दो अन्य िवषय के अंतगर्त तीन-तीन समानांतर सतर् थे।  

    ‘िव  मानव की चेतना, भारत और िहदी’ िवषय के अंतगर्त तीन समानांतर सतर् के िवषय थ—े(1) शा त मूल्य  की खोज (2) जनसंचार साधन की भूिमका (3) िव मानव का मूल्यगत संकट और भाषा तथा लेखन के संदभर् म युवा पीढ़ी की मानिसकता। ‘आधुिनक युग और िहदी : आवश्यकताएँ और उपलिब्धयाँ’ िवषय के अंतगर्त तीन समानांतर सतर् के शीषर्क थे (1) पर्शासन, िविध और िवधायी काय की भाषा (2) ज्ञान-िवज्ञान का माध्यम (3) भाषा िशक्षण और सहायक सामगर्ी। सम्मेलन म तीस दशे के एक सौ बाईस पर्ितिनिधय  ने भाग िलया। इस अवसर पर एक वृहद ् पर्दशर्नी तथा सांस्कृितक कायर्कर्म का आयोजन भी िकया गया। सांस्कृितक कायर्कर्म म आकाशवाणी कलाकार का  संगीत कायर्कर्म, भारतीय कला कदर् एवं मॉरीशस की कलाकार मंडली ‘ितर्वेणी’ की पर्स्तुितयाँ पर्मुख थ । एक अंतररा ीय किव गो ी का भी आयोजन िकया गया। आयोजन स्थल को ‘िव िहदी नगर’ का नाम िदया गया एवं पर्वेश ार को ‘तुलसी’,  ‘मीरा’,  ‘सूर’,  ‘कबीर’,  ‘नामदवे’ और रैदास’ नाम से सुसिज्जत  िकया गया। यहाँ भारतीय भाषा के पंदर्ह लेखक  को सम्मािनत िकया गया। इनके अितिरक्त बारह अिहदी भाषी लेखक तथा दो िविश लेखक को भी सम्मािनत िकया गया। इस अवसर पर तीन पर्स्ताव पािरत िकए गए— (1) संयुक्त रा संघ म िहदी को अिधकािरक भाषा के रूप म स्थान िदलाया जाए। (2) वधार् म एक िव िहदी िव ापीठ की स्थापना हो। (3) िव िहदी सम्मेलन को स्थाियत्व पर्दान करने के िलए िवचारपूवर्क एक योजना बनाई जाए। 

    इस सम्मेलन म 14 जनवरी को रा भाषा पर्चार सिमित, वधार् के कदर्ीय कायार्लय के पर्ांगण म िव  िहदी िव ापीठ का िशलान्यास और गोस्वामी तुलसी- दास जी की पर्ितमा का अनावरण फादर कािमल  बुल्के ारा िकया गया। इस अवसर पर एक िवशेष डाक िटकट भी जारी िकया गया। पहले िव िहदी सम्मलेन के आयोजन

    ारा इस बात की पिु हो गई िक िहदी असाधारण सामथ्यर्-संप भाषा ह ैऔर वह संपूणर् भारत को एकता के सूतर् म बाँधने के गौरव की अिधकािरणी ह।ै इस आयोजन ने पहली बार िहदी को रा ीय एवं अंतररा ीय स्तर पर पर्िति त िकया और िहदी के पक्ष म एक वातावरण िनिमत िकया। इस आयोजन का एक अन्य महत्त्वपूणर् पिरणाम यह था िक िहदी के बहाने दिुनया भर के पर्वासी भारतीय भारत से जड़ुे।

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    दसूरे िव िहदी सम्मेलन का आयोजन भारतवंशी बहुल दशे मॉरीशस म हुआ। भारतवंिशय के िलए यह िवशेष रूप से गौरव का अवसर था, क्य िक िहदी ारा भारत से उनका भावात्मक एवं रचनात्मक संबंध बना हुआ ह।ै   

    दसूरा 28  से 30 अगस्त, 1976 को मॉरीशस की राजधानी पोटर् लुई िस्थत महात्मा गांधी संस्थान म आयोिजत सम्मेलन के  उ ाटन एवं समापन समारोह की अध्यक्षता भारत  के तत्कालीन स्वास्थ्य एवं पिरवार िनयोजन मंतर्ी डॉ. कणर् िसह ने की। इस सम्मेलन म डॉ. कणर् िसह की अध्यक्षता म भारत के तेईस सदस्यीय पर्ितिनिध मंडल सिहत सतर्ह दशे के एक सौ इक्यासी पर्ितिनिधय ने भाग िलया। सम्मेलन म चार पूणर् शैिक्षक सतर् का आयोजन िकया गया िजनके िवषय थ—े(1) िहदी की अंतररा ीय िस्थित, शैली और स्वरूप (2) जनसंचार के साधन और िहदी (3)  िहदी के पर्चार म स्वैिच्छक  संस्था की भूिमका (4)  िव म िहदी के पठनपाठन की समस्या।  

    सम्मेलन म एक पुस्तक एवं एक िचतर् पर्दशर्नी भी लगाई गई। सांस्कृितक कायर्कर्म म भारतीय कला कदर्, महात्मा गांधी संस्थान मॉरीशस तथा युवा एवं कर्ीड़ा मतंर्ालय मॉरीशस की पर्स्तुितयाँ थ । एक किव सम्मेलन का भी आयोजन िकया गया। इस अवसर पर मॉरीशस के तीन डाक िटकट जारी िकए गए तथा नागरी पर्चािरणी सभा

    ारा पर्कािशत  ‘तुलसी गर्थंावली’  के तृतीय खंड का लोकापर्ण िकया  गया। इस सम्मेलन म पहले िव िहदी सम्मेलन म पािरत पर्स्ताव की पुि करते हुए दो और पर्स्ताव पािरत िकए गए— (1) मॉरीशस म एक िहदी कदर् की स्थापना की जाए, जो पूरे िव की िहदी गितिविधय  का समन्वय कर सके।  (2) एक अंतररा ीय पितर्का का पर्काशन हो जो भाषा के माध्यम से ऐसे समुिचत वातावरण का िनमार्ण कर सके, िजसम मानव िव का नागिरक बना रह।े मॉरीशस म आयोिजत इस सम्मलेन ारा िहदी एक िव भाषा के रूप म पर्िति त हुई। इस सम्मेलन म न केवल िहदी का अंतररा ीय स्वरूप पर्कट हुआ वरन् िव की अन्य भाषा के समकक्ष िहदी की िस्थित का आकलन भी िकया गया। इस सम्मेलन  ारा यह स्प हो गया िक भिवष्य म िहदी िव स्तर पर अन्य िव भाषा के साथ महत्त्वपूणर् भिूमका िनभाएगी। अभी तक आयोिजत िव िहन्दी सम्मलेन इस पर्कार स ेह: 1. पर्थम िव िहन्दी सम्मेलन नागपुर, भारत 10-12 जनवरी,1975

    2. ि तीय िव िहन्दी सम्मेलन पोटर् लुई, मॉरीशस 28-30 अगस्त,1976

    3. तृतीय िव िहन्दी सम्मेलन नई िदल्ली, भारत 28-30 अक्टूबर,1983

    4. चतुथर् िव िहन्दी सम्मेलन पोटर् लुई,मॉरीशस 02-04 िदसम्बर,1993

    5. पांचवां िव िहन्दी सम्मेलन पोटर् ऑफ स्पेन,िटर्िनडाड एण्ड टोबेगो 04-08 अपर्ैल,1996

    6. छठा िव िहन्दी सम्मेलन लंदन,यू. के. 14-18 िसतम्बर,1999

    7. सातवां िव िहन्दी सम्मेलन पारामािरबो,सूरीनाम 06-09 जून, 2003

    8. आठवां िव िहन्दी सम्मेलन न्यूयाकर् ,संयुक्त राज्य अमरीका 13-15जुलाई, 2007

    9. नौवां िव िहदी सम्मेलन जोहांसबगर्, दिक्षण अफर्ीका 22-24 िसतंबर, 2012

    10. दसवां िव िहदी सम्मेलन भोपाल, भारत 10-12 िसतंबर, 2015

    11. ग्यारहवां िव िहदी सम्मेलन पोटर् लुई,मॉरीशस 18-20 अग त 2018

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    रेलव े बोडर् म िदनांक 01.08.2018 को राजभाषा िनदशेालय ारा मुंशी पर्ेमचंद जयतंी का आयोजन 

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    रेलव े बोडर् म िदनांक 01.08.2018 को आयोिजत पर्ेमचदं जयंती के दशृ्य 

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    रेलव े बोडर् म िदनांक 01.08.2018 को आयोिजत पर्ेमचदं जयंती के दशृ्य 

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    िदनांक 06.06.2018 को रेलव ेबोडर् राजभाषा कायार्न्वयन सिमित की बैठक के दौरान ‘रेल राजभाषा’ पितर्का का िवमोचन

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    िदनांक 06.06.2018 को रेलव ेबोडर् राजभाषा कायार्न्वयन सिमित की बैठक के दौरान सदस्य चल स्टॉक, रेलव ेबोडर् ारा ‘रेल राजभाषा मोबाइल एप’ का िवमोचन

     

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    िदनांक 06.06.2018 को रेलव ेबोडर् राजभाषा कायार्न्वयन सिमित की बैठक के दौरान सदस्य चल स्टॉक, रेलव ेबोडर् ारा ‘ई-पितर्का’ का िवमोचन

     

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    भारती भारत की

    महलनुमा बँगल म बैठी, राज कर रही अंगर्ेजी अगर िमला स् थान कह तो, आउट हाउस िहन् दी को। मुन् ना तुतलाता क ख म, पर पढ़ता ह ैअल् फाबेट बुक शेल् फ म बकु अंगर्ेजी, आउट हाउस िहन् दी को आलमारी म िगफ्ट िखलौने, लेिबल पा अंगर्ेजी का चकाच ध ख म मार, आउट हाउस िहन् दी को। सािहित्यक जन भी बहुतेरे, पर्ेिरत हो अंगर्ेजी से िलखते िहन् दी म पर दतेे, आउट हाउस िहन् दी को। एक िचिकत् सा का िवभाग ह,ै यह न रत् ती गुंजाइश लगा पढ़ाई दवा के पच, तक सब कुछ अंगर्ेजी म। पर वोटाथ हर पाट के, भीख म गते िहन् दी म जीत गये तो इंगिलश रानी, आउट हाउस िहन् दी को। और मीिडया वह बेचारा, परस रहा मजबूरी म दो भाषाय पर दतेा ह,ै आउट हाउस िहन् दी को। वह माता के दधू सी मीठी, िपता सरीखी उन् नत भाल हमको शमर् न आई दतेे, आउट हाउस िहन् दी को। पुरख की थाती सी पोढ़ी, गुरु गिरमा सी िनस् सीमा हम अभागे वंिचत दतेे, आउट हाउस िहन् दी को। िशक्षािवद ्भी असमंजस म, दो भाषायी पाट म िकसे पढ़ाय क् या छोड़,े पर आउट हाउस िहन् दी को। बच् चा पढ़ता कान् वेन् ट म, घर म राम कृष् ण पूजा सोमवार ‘मन् ड’े से समझ,े आउट हाउस िहन् दी को। घर म रामायण गीता ह,ै बेटा कहता ह ै‘आमीन’ मैकाले तुम धन् य िदलाया, आउट हाउस िहन् दी को। कहो पछत् तर बटेा पूछे, पापा ‘व् हाट पछत् तर मीन् स’ पंचतंतर् के रुप बदल गये, आउट हाउस िहन् दी को।

    इंगिलश को भाषा रहने दो, न दो उसे हक मािलक का िशक्षाय लो, लेिकन मत दो, आउट हाउस िहन् दी को। बड़ ेज्ञान, िवज्ञान, आधुिनक िशक्षाय फैलाती ह। थाती इसे बना , मत दो आउट हाउस िहन् दी को।

    माना िवश् व व् यािपनी ह ैवह, पर हम समझ कमजोरी तो हम पर चढ़ क् य हमसे िदलाया, आउट हाउस िहन् दी को।

    िवडम् बना अब िहन् दी िलखते पढ़ते ह अंगर्ेजी म उच् चारण को दी ितलांजली, आउट हाउस िहन् दी को।

    हम बने ह गुनाहगार, ह ैदोष नह कुछ दसूर को हम करते सम् मान न िमलता, आउट हाउस िहन् दी को।

    कर गिल तयां परुख ने तो, हम क् य वह अिभशाप भर नेहरू जी की चूक द ेगई, आउट हाउस िहन् दी को।

    अतातुकर् थे कमालपाशा, िजस िदन वे आजाद हुये िदया राष् टर्भाषा का पद, एक रात म तुक भाषा को।

    भारतेन् द ुसे पुरखे रोये थ,े इसकी बेकदर्ी पर “सब उन् नित का मूल” कहा, उन महाभाग ने िहन् दी को।

    अवनित के गड़ह ेम िगरे हम, हमको कौन उठायेगा पि म की उतरावन पहने, लितयाते ह िहन् दी को।

    दिुनयां के दशे को दखेो, िहन् दी ह ैसरताज जह मारीशसवासी क् या ही सम् मान द ेरह ेिहन् दी को।

    िगरिमिटया मजदरू ने भी, क् या कमाल िदखलाया था दरू दशे ले जाकर भी थी, साख बढ़ाई िहन् दी की।

    गूंगा राष् टर् िबना िनज भाषा, जीभ कट गई भारत की ओ िहन् दी के मानधनी ! अब घर ले आ िहन् दी को।

    आउट हाउस पड़ी बेचारी, िबलख रही ह ैमहतारी ओ िहन् दी के बहु बेट ! घर ले आओ िहन् दी को।

    हम तो कहकर सो जायगे, लाज तुम् ह ही रखनी ह।ै ओ िहन् दी के पर्हरी, रक्षक ! घर ले आओ िहन् दी को।

    िज ी सा संकल् प जभी, कुछ करने पर तुल जायेगा िकसकी िहम् मत ह ैजो रोके, मुकुट बनाते िहन् दी को। तुम तो कदम बढ़ाओ आग,े िवश् व चलेगा पीछे ही सभी राष् टर्भाषा बनना स् वीकार करगे िहन् दी को। दिुनया दखेे हमने भी, आउट हाउस से उठवा कर शीश चढ़ा, संपूज् य जगह िदलवाई अपनी िहन् दी को।  

    शाि त देवे द्र खरे

    किवता

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    िदनांक 05.09.2018 को ससंदीय राजभाषा सिमित की दसूरी उप सिमित ारा सवारी िडब्बा कारखाना, लालागडुा/िसकंदराबाद का िनरीक्षण

     

     

  • स्वस्थ जीवन सफलता की कंुजी

    िकसी भी िक्त को अगर िकसी भी कायर् म सफलता पानी ह ै तो इसके िलए सबसे पहले उसके शरीर का स्वस्थ होना बहुत ही आवश्यक ह ै क्य िक जब तक स्वास्थ्य अच्छा नह होगा तब तक सफलता पर्ा नह की जा सकती ह।ै

    िजस मनषु्य का स्वास्थ्य अच्छा होता ह ैउस मनुष्य का मिस्तष्क, सोचने-समझने की क्षमता तथा कायर् के पर्ित िन ा सही होती ह ै और तभी वह मनुष्य िकसी भी कायर् को करने म सफलता पर्ा कर पाता ह।ै इसिलए स्वस्थ जीवन ही सफलता पर्ा करने की कंुजी ह।ै

    पानी :- सभी िक्तय को स्वस्थ रहने के िलए पर्ितिदन

    सुबह के समय म िबस्तर से उठकर कुछ समय के िलए पालथी मारकर बैठना चािहए और कम से कम 1 से 3 िगलास गुनगुना पानी पीना चािहए या िफर ठंडा पानी पीना चािहए।

    स्वस्थ रहने के िलए पर्त्येक िक्त को पर्ितिदन कम से कम 10 से 12 िगलास पानी पीना चािहए।

    महत्वपणूर् िकर्या :-

    सभी िक्तय को स्वस्थ रहने के िलए पर्ितिदन िदन म 2 बार मल त्याग करना चािहए।

    सांसे लंबी-लंबी और गहरी लेनी चािहए तथा चलते या बैठते और खड़ ेरहते समय अपनी कमर को सीधा रखना चािहए।

    िदन म समय म कम से कम 2 बार ठंडे पानी से ान करना चािहए।

    िदन म कम से कम 2 बार भगवान का स्मरण तथा ध्यान कर, एक बार सूयर् उदय होने से पहले तथा एक बार रात को सोते समय।

    िवशर्ाम :- सभी मनुष्य को भोजन करने के बाद मतूर्-त्याग

    जरूर करना चािहए। पर्ितिदन िदन म कम से कम 1-

    2 बार 5 से 15 िमनट तक वजर्ासन की मुदर्ा करने से स्वास्थ्य सही रहता ह।ै

    सोने के िलए सख्त या मध्यम स्तर के िबस्तर का उपयोग करना चािहए तथा िसर के नीचे पतला तिकया लेकर सोना चािहए।

    सोते समय सारी िचता को भूल जाना चािहए तथा गहरी न द म सोना चािहए और शरीर को ढीला छोड़कर सोना चािहए।

    पीठ के बल या दािहनी ओर करवट लेकर सोना चािहए।

    सभी मनुष्य को भोजन और सोने के समय म कम से कम 3 घण्टे का अन्तर रखना चािहए।

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    ायाम :- सभी िक्तय को स्वस्थ रहने के िलए पर्ितिदन

    सुबह के समय म आधे घण्टे तक ायाम करना चािहए तथा सैर या जॉिगग करनी चािहए।

    सभी िक्तय को आसन, सूयर्-नमस्कार, बागवानी, तैराकी, ायाम तथा खेल आिद िकर्याएं करनी चािहए, िजनके फलस्वरूप स्वास्थ्य हमेशा अच्छा रहता ह।ै

    भोजन करने के बाद कम से कम 20 िमनट तक टहलना चािहए िजसके फलस्वरूप स्वास्थ्य सही रहता ह।ै

    भोजन :- कभी भी भखू से ज्यादा भोजन नह करना

    चािहए तथा िजतना आवश्यक हो उतना ही भोजन करना चािहए।

    भोजन को अच्छी तरह से चबाकर तथा धीरे-धीरे

    और शांितपूवर्क खाना चािहए। िदन म केवल 2 बार ही भोजन करना चािहए। सुबह के समय म कम से कम 8-10 बजे के बीच

    म भोजन करना चािहए तथा शाम के समय म 5-7 बजे के बीच म भोजन कर लेना चािहए। ऐसा करने से स्वास्थ्य हमेशा सही रहता ह।ै

    भोजन म बीज या खा ा उपयोग करने से पहले उसे रात भर पानी म िभगोकर रखना चािहए। इसके बाद अगले िदन उनका उपयोग भोजन म करना चािहए।

    भोजन के एक भाग म अनाज तथा दसूरे भाग म सिब्जयां होनी चािहए।

    ज्यादा पके हुए तथा ज्यादा कच्चे अ पदाथ का भोजन नह करना चािहए।

    भोजन म वसायुक्त शु तेल का ही इस्तेमाल करना चािहए, जैसे- ितल का तेल या सूरजमुखी का तेल आिद।

    भोजन म कच्चे पदाथ का अिधक सेवन करना चािहए जैसे- अंकुिरत चीज, ताजी और प ेदार हरी सिब्जया,ं सलाद, फल का रस, न बू तथा शहद िमला हुआ पानी, मौसम के अनुसार फल आिद।

    दधू की जगह छाछ या दही का अिधक उपयोग करना चािहए।

    पका हुआ भोजन करने के िलए चोकर सिहत आटे की रोटी, दिलए तथा िबना पॉिलश िकए हुए चावल का उपयोग करना चािहए।

    स ाह म कम से कम 1 बार फल का रस पीकर उपवास रखना चािहए।

    स्वस्थ रहने के िलए जैसे ही बीमार पड़े तुरंत ही पर्ाकृितक िचिकत्सा से उपचार करना चािहए।

    कम उपयोग करन ेवाली चीज :- िमचर्-मसाल,े दाल, घी, आइसकर्ीम, कर्ीम,

    नमक, िमठाईयां, िगरीदार चीज तथा पकाई हुई चीज का भोजन म बहुत ही कम उपयोग करना चािहए।

    अिधक वजन उठाने का कायर् नह करना चािहए। बहुत ज्यादा किठन ायाम नह करना चािहए। ऊंची एड़ी के जूते नह पहनने चािहए। टी.वी. तथा िफल्म आिद ज्यादा नह दखेनी

    चािहए। …………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………