अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21...

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61 अयाय 2 – कबीर का काय : अन ति और अभभयति 2.1 कबीर की भति भावना 2.2 कबीर का रहयवाद 2.3 कबीर के दाशननक ववचार 2.4 कबीर का समाज दशन 2.5 कबीर की अभभयंजना ैली

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Page 1: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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अधयाय 2 ndash कबीर का कावय अनभति और अभभवयकति

21 कबीर की भकति भावना

22 कबीर का रहसयवाद

23 कबीर क दारशननक ववचार

24 कबीर का समाज दरशन

25 कबीर की अभभवयजना रली

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साहहतय क कषतर म जो रचनाकार भाव और भाषा क दवध स टकराि हए दोनो म सामय सथाविि करिा ह अथाशि अिन भाव क अनसार भाषा की खोज करिा ह वह बड़ा रचनाकार होिा ह कबीर ऐस कवव ह कजनकी कजिनी परखर अनभनि ह उिनी ही महतविरश अभभवयकति भी

21 कबीर की भकति

हहदी साहहत य क तनिहास म कबीर का वयकतितव अनोखा ह भकतिकाल क व िहल ऐस सि ह कजन ह िरश भत ि का दजाश परा ि ह कवविा करना उनका लकष य नही था उनका लकष य भववि भकति था और उस भसलभसल म उन हकन जो कछ कहा या भलखा यहद उसम कवविा ह िो जसा कक आचायश हजारी परसाद दवववदी का कहना ह वह घलए म भमली वस ि ह1 तस परकार कबीर मलि भत ि ह कबीर की भकतिrsquo क क दर म परम ह तस भकति क भलए िरषोतिम अगरवाल न भलखा ह कक भकति रब द मलि अनराव और भावीदारी का आरय लकर ही आया था तस मल आरय म समिशर सत िा क भय स उत िन न नही परम और अनराव का ही समिशर ह भत ि िराकजि सननक की िरह समिशर करन वाल को नही बराबरी क परम म समिशर करन वाल को कहा जािा था यह बाि यास क क ननकत ि और ििरनन क सतरक स स िष ट हो जािी ह समाज क बदलन क समानािर भकति भावीदारी कहन को रह वई निमस िक समिशर को ही भकति मान और मनवा भलया वया नामदव रामानद और कबीर का

1 भरवकमार भमशर भकति आदोलन और भकति काव य 2010 ि-91 2िरषोतिम अगरवाल अकथ कहानी परम की2010ि-339-340 3जीएनदास भमकसटक सागस ऑफ कबीर1996 ि-78

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महत व तसबाि म ह कक व समानसत िा और धमशसत िा दवारा भकति िर चढा हदय वए आवरर को हटाकर तसक मल आरय भावीदारी को वािस लाि ह1

भकति मान भावीदारी कहन का अथश भकति क वास िववक ममश को जानन का ह भकति का वास िववक ममश राजसत िा क सामन या परभ सत िा क सामन

झकना नही ह बककक यह िो बराबरी का समिशर ह कजसक मल म परम ह िर भकति क रास ि बहि कह न ह कजसक बार म कबीर कहि ह कक -

कबीर यह घर परम का खाला का घर नाहहि | सीस उिार हाथ करर सो पस घर मााहह1

अथाशि तस परम भकति क दरबार म परवर क भलए अहकार और दभ को छोड़ना िड़वा साथ ही साथ भत ि म वह िाकि और होना चाहहए कजसम अिन घर को जला दन का दमखम हो-

ldquoकबबरा खडा बाजार म भलए लकाठी हाथ | जो घर जार आपना चल हमार साथ2

सचमच कबीर की रिो िर कबीर क साथ चलना मामली बाि नही ह कबीर जीवन भर वहार लवा लवा कर थक वए कक कोई माई का लाल िो उनक साथ चल ककन ि रिश तिनी क ोर थी कक ककसी का हलसला नही हआ कक उस िरा करि हए वह उनक साथ आए और आव बढ3 भकति कबीर क भलए एक दसाध य साधना ह तस दसाध य साधना क भलए व ककसी भत ि क सामन भसफश दो परिीक रखि ह- lsquoसिीrsquo और lsquoररवीरrsquo रर वीर यदध भभम म िीछ िर नही रखिा परारक का उत सवश करक लकष य भसवदध करिा ह वह धीर बवदध और कसथ र चचति होिा ह उसका सकक ि अववचल होिा ह कबीर को भकति साधना क

1 भरवकमार भमशर भकति आदोलन और भकति काव य 2010 ि77 2 वही ि77 3 वही ि77

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कषतर म ऐस ही दढ ननश चयी और ननभशय व यकति की आवश यकिा थी1 रर वीर को कबीर सबस बड़ा साधक मानि ह उस जीन मरन की कोई चचिा नही रहिी-

कबीर खि न छाड सखख जझि दल माहहि

आसा जीवन-मरण की मन म आन नाहहि2

रर की िरह सिी का मन अववचल होिा ह वह अिन वपरय की एकननष परभमका होिी ह व साधक को तसी सिी क तसी अनन य परम को आदरश मानन को कहि ह वह ससार क सार परलोभनक और आकषशरक को त याव कर भव म मातर अिन वपरयिम क भमलन की भावना सजाय चचिा िर चढ जािी ह यह साकतवक उत सवश उस परम साधना क उ चिम स िर िर िह चा दिा ह-

ldquoकबीर सिी जलन का नीकलो चचिधारी एक वववक िन मन सौप या पीव का िब अििर रही न रखा3

कबीर की भकति को lsquoपरमा भकतिrsquo नारदी भकति lsquoभाव भकतिrsquo तत याहद कहा जािा ह कबीर भकति क कषतर म भकति क रास तरीय परराली म दीत हकषि होकर नही उिर थ कफर भी अनजान ही उन हकन वष रव भकति सतर क सभी सतरक िथा अनासकतियक का िालन अिन भकति म ककया ह नारदी भकति क भलए नारद िाचरातर म स िष ट कि स कहा वया ह कक भववान क सववोपिाचध स वकि को ित िर होकर (अथाशि अनन य भाव स) समस ि तहदरयक और मन क दवारा सवन करना ही भकति ह10 कछ तसी िरह क लकषर कबीर क भकति क भी ह कजसम अनन य भाव की ही परमखिा ह ईश वर क परनि परम गयारह की आसकतियक वर माहत म य सकति िजासकति स मररासकति दास यासकति सखयासकति वात सक यासकति कािारकति आतमननवदवासकति िरम ववरहासकति

1रामचदर निवारी कबीर मीमासा2007 ि 75 2 मािा परसाद व ि कबीर गरथावली1969 ि 115 3वही ि 119

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म परवट होिा ह वष रव भकति क तन आसकतियक को कबीर की भकति म दखा जा सकिा ह कबीर जब अिन को राम का कतिा कहि ह िो वो दास य भाव की भकति को ही परकट कर रह होि ह-

कबीर किा राम का मतिया मरा नािउ

गल राम की जवड़ड कजि खच तिउ जािउ1

कबीर राम को अिना वपरयिम िथा अिन को उनकी बहररया कहकर कािासकति का ही िररचय दि ह- हरर मोरा पीव म हरर की बहररया राम बड म छटक लहररया2

जब कबीर हरर को जननी और अिन को उसक बट कि म परस िि करि ह िो वहा व वात सक य भाव व यत ि करि ह

हरर जननी म बालक िरा काह न औगण बकसह मरा3

राम म िरशि लीन होन की दरा कबीर क यहा अदभि कि स ह यह िरश िन मयिा की कसथनि ह लाली मर लाल की कजि दखो तिि लाल लाली दखन म गई म भी हो गई लाल4

कबीर क यहा आत म-ननवदन का स वर भी ह व अिन को समगर कि स िरमात मा क परनि ननवहदि करि ह- 1श यामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि 63 2वही 2011 ि143 3मोहन भसह ककी कबीर(अनहदि)ि-30 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85

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मरा मझ म कछ नहीि जो कछ ह सो िरा िरा िझको सौपिा त या लाग ह मरा1

िरमात मा क ववयोव म कबीर न दयदय ननकाल कर रख हदया ह परम भमलन क बाद बबरह की कसथनि बहि िड़िान वाली ह उनक यहा ववरहासकति को भरिर

मातरा म दखा जा सकिा ह- िलफ बबन बालम मोर कजया

हदन नहीि चन राि नहह तनिहदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo2

कबीर की भकति म तन आसकतियक क अनिररत ि lsquoनाम-स मररrsquo की महहमा का भी बखान हrsquoनामस मररrsquo सवर भकति एव ननवशर भकति दोनक क क दर म रहा ह ववचध ननषध स जब मन रदध हो जािा ह िभी उसम नाम स मरर की भावना उत िन न होिी ह3 कबीर कहि ह-

कबीर राम धयाइ ल कजभया सौ कहट मिि| हरर सागर कजतन बीसर छीलर दकज अनििrdquo4

कबीर न जञान और भकति क रदध कि को भमलाकर एक ऐसा रसायन बनाया कजसम सापरदानयक आडबर धाभमशक िाखणड की ब िक नही ह | यहद योव स परदरशन और क छ साधना को ननकाल कर उस सहज बना हदया जाय जञान हो भमथ या दभ एव अहकार ननकालकर उस ववनयरील बना हदया जाय और भकति स अधववश वास फलासकति एव वाहय िजाववधान ननकालकर उस रदध रावात मक परकरियया क कि म दखा जाय िो सामाजस य का वह बबद परा ि हो

1श यामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-62 2हजारी परसाद हदवदी कबीर1990 ि 250 3रामकमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 87 4श यामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि54

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सकिा ह जहा खड़ होकर कबीर िथा कचथि योचवयक िडडि और भत ि िीनक को चनलिी द रह थ1

कबीर ननवशर भकति साधना को उसक चरम िरररनि िक ल जाि ह कबीर की ननवशर भकति उस सवर राम भकति क सीध ववरोध म आिी ह कजसम राम को दररथ का ितर मानकर उनक अविारी कि का चचतरर ह कबीर राम क तस कि क कायल नही थ उनका राम िो कोई दसरा ममश रखन वाला था- दसरथ सि तिहा लोक बखाना

राम नाम को मरम ह आना2

तस परकार कबीर की भकति सहज साधना िर आधाररि हकजसम लोक को एकाकार कर लन की अदभि कषमिा ह

22 कबीर का रहस यवाद

हहदी म रहस यवाद रब द अगरजी क भमकसटभसज म का हहदी किािरर ह हहदी साहहत यकोर क अनसार अिनी अिसफररि अिरोकष अनभनि दवारा सत य िरम-ित व अथवा ईश वर का परत यकष साकषात कार करन की परवनि रहस यवाद ह3 रहस यवाद मनष य की ऐसी परवकति ह जो उनको िरमित व का अनभव करािी ह माना जािा ह कक िरमित व परा ि करन क बाद मनष य की मकति भमलिी ह रहस यवादी साधक रहस यवादी सत य क परनि आश वस ि रहिा ह तसभलए यह व यकतिवि धमश का आधार बनिी ह अनभनि क िरम कषरक म आत मा एक 1रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007ि-78 2रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007 ि78 3 धीरदर वमाश (परस) हहदी साहहतयकोर (परथम भाव )2009 ि 535

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हदव य रकति स ति-परोि निन िरम आनन द मत ि और परवकतिकि अनभव करिी ह

लडी अिडर हहल क अनसार - रहस यवाद िरम सतिा क परनि भावकिा भरी परनिकरियया को कहा ह1

परो आर डी रानाड क अनसार ldquoईश वर क परनि साधक की सरल सहज सीधी िथा परत यकष अन िपरजञात मक अनभनि ही रहस यवाद हrdquo2

साहहत य चचिकक न भी रहस यवाद को वववचन करन का परयास ककया ह आचायय रामचिदर शत ल रहस यवाद को तस परकार िररभावषि करि ह कक काव य की वह परवकति कजसम िरोकष सतिा स रावात मकसबध करक उसस भमलन िथा ववयोव की कसथनियक क काक िननक चचतर अककि ककय जाि ह3 रामचन दर रत ल काव य म िरम सतिा स रावात मक सबध िथा सयोव-ववयोव की कसथनियक म ववववध परकार क अनभनि होन की कसथनि माना ह

रामकमार वमाश क अनसार रहस यवाद जीवात मा की उस अन िहहशि परवकति का परकारन ह कजसम वह हदव य और अललककक रकति स अिना राि और ननश छल सबध जोड़ना चाहिी ह यह सबध यहा िक बढ जािा ह कक दोनक म कछ भी अिर नही रह जािा4 रहस यवाद म जीव क आत मा का िरमात मा स भमलन का आवव का परकारन होिा ह कजसस मनष य हदव य रकति परा ि कर लिा ह5

1The Poetry of my mysticism might be defined on the one hand as a temperamental reaction to the vision of prophecyरवीदर नाथ टवोर वन हडरड िोएमस ऑफ कबीर 1995 ि xix 2ldquoMysticism denotes that attitude of mind which involves a direct immediate firsthand intuitive apprehension of Godrdquo-रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007 स उदधि ि 87 3आचायश रामचदर रतल भाव -21999ि 48 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 92 5 शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011

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श यामसन दर दास कहि ह कक कवविा म रहस यवाद भावकिा का आधार िाि ह व भलखि ह- चचन िन क कषतर का रहहमवाद कवविा क कषतर म जाकर कक िना और भावकिा का आधार िाकर रहस यवाद का कि िकड़िा ह1

उियशत ि कथनक स स िष ट ह कक रहस यवाद आत मा-िरमात मा क एकात म स थाविि करन की परवकति ह यह परत यकष सयोवानभव की परकरियया ववरष ह तसकी अनभनि की अवस था म ववषय और व यकति का अववभाज य एकात म-भमशरर हो जािा ह िरमात मा सवाशिीि ह और आत मा उसकी परकनि की अराचधकारररी ह अनभनि की अवस था भी सवाशिीि होिी ह यह दयदय का धमश ह वह अिन जीवन म ववचाररा एकान ि आध याकतमक आनन द को स वीकार करिा ह साकषात कार की कसथनि अननवशचनीय होिी ह तस िरह हम कह सकि ह कक दश य जवि म व या ि उस व यत ि और अवोचर सतिा स आत मा क रावात मक सबध स थाविि करन को रहस यवाद कहा जािा ह रहस यवादी िरम सतिा की कजजञासा परकट करिा ह तसक अन िवशि एक कवव उस ववराट सतिा क परनि अिन ऐस भावोदवारक को व यत ि करिा ह कजनम सख-दख आनन द-ववषाद हास-रदन सयोव-ववयोव घल रहि ह और अननवशचनीय आनन द का अनभव ककया जा सकिा ह

दारशननक दकषट स रहस यवाद रब द बहि व यािक ह तस ककसी ववभरष ट दारशननक मि िक सीभमि करना समाचीन नही ह तसक अिवशि कई भदक को स वीकार ककया जा सकिा ह नावन दरनाथ उिाध याय रहस यवाद क यहा िर ववचार करि हए भलखि ह-परकार अथवा भद क ववषय म कभी वववचक िवी और िकशचमी का भद स वीकार करि ह कभी धमो क आधार िर ईसाई सफी हहद बलदध आहद भद स वीकार करि ह और कभी धमशननष ावादी िथा उदारवादी भदक म उनका ववभाजन करि ह िवी रहस यवाद क अिवशि भारिीय रहस यवाद म भी भदक का ननकिर कमशकाण डिरक रहस यवाद औिननषद रहस यवाद योविरक

1 वही ि 56

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रहस यवाद बलदध रहस यवाद और व यकतििरक रहस यवाद क कि म भमलिा ह अनिम परकार क भी दो कि रास तरीय और सावशललककक स वीकार ककए वए ह1 तस िरह रहस यवाद की तस व यािक अवधाररा को सवशसम मि दारशननक मान यिात क कि म बाधना कह न ह ईसाई धमश म भी रहस यवादी िि व भमलि ह बातबबल रहस यवाद का शरष गरथ हउसक एविभसक स नामक अरक म ईश वर क परत यकष साकषात कार की हदव यानभनि का वरशन ह सि िाल की शरदधा आस था और ववश वास का आधार यह हदव य साकषात कार ही ह2 तस िरह ईसाई धमश क अिवशि बहि स सि ऐस हए ह जो रहस यवादी हतस लाम म रहस यवाद का परारभ सफीवाद स हआ उनकी साधना म अनक सीह िया िार करनी होिी ह परायकशचि िररविशन त याव दररदरिा धयश ईश वर म ववश वास ईश वर छा म सिोष आहद तनक उिराि आध याकतमक अनभनि की भय आरा परम यास और साकषात कार की दराए आिी ह सफी साधना स दररदरिा िि और िववतरिा यत ि जीवन िथा सदवक की किा अननवायश ह3 उियशत ि वववरर स सिषट ह कक तस लामी रहस यवाद म भी िरम ित व वक की महिा अध याकतमक अनभनि साकषात कार आहद का समावर ह यह भारिीय रहस यवाद स अचधक ननकट ह वजाली जलालददीन सफी हाकफज उमर खयास ननजामीसादी और जामी परभसदध ईरानी सफी कवव ह भारि म भी सफी सि और कवव हए ह

हहदी म आहदकाल स रहस यवाद की िरम िरा रही ह हहदी साहहत य क आरभभक रहस यवादी कवव भसदध ह हहदी साहहत य क मध य यव (भकतिकाल) म सवर एव ननवशर दो किक म रहस यवादी रचनाए परचर मातरा म उिलब ध ह तस यव म रहस यवादी रचनाकार कबीर नानक दाद सरदास िलसीदास मीराबाई आहद बहि स कवव ह अन य भारिीय भाषात म भी रहस यवादी रचनाए

1वासदव भसह(स) कबीर 2004 ि 138 2धीरदर वमाश (परस) हहदी साहहतयकोर (परथम भाव )2009 ि 37 3वही ि-37

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उिलब ध ह रवीदरनाथ स परभाववि होकर छायावादी कववयक न भी रहस यवादी रचनाए दी एक िरह स यह कबतरम रहस वाद ह

उियशत ि वववररक स स िष ट ह कक रहस यवादी ववचार बहि ही व यािक ह ककसी न ककसी कि म यह मनष य क आहदम काल स आज िक उिकसथि ह तसक ववववध परकार और भद ह यह ककसी ववभरष ट अवधाररा म नही बधा ह िकशचमी रहस यवाद और भारिीय रहस यवाद म अन िर क बावजद समान ित व मलजद ह

रहस यवाद की कसथति

रामकमार वमाश न रहस यवाद की िीन िररकसथनियक का उक लख ककया ह- 1 िहली िररकसथनि वह ह जहा व यकति ववरष अनि रकति स अिना सबध जोड़न क भलए अगरसर होिा ह1

2 दवविीय कसथनि िब आिी ह जब आत मा िरमात मा स परम करन लव जािी ह भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक आत मा म एक परकार का उन माद या िावलिन छा जािा ह2

3 तसक िश चाि रहस यवाहदयक की िीसरी कसथनि आिी ह जो रहस यवाद की चरम सीमा बिला सकिी ह तस दरा म आत मा और िरमात मा का तिना ऐत य हो जािा ह कक कफर उनम कोई भभन निा नही रहिी3

उियशत ि उदधररक स स िष ट ह रहस यवाद म िरम सत िा क परनि कजजञासा की भावना रहिी ह रहस यवादी साधक िरम सत िा क महत व का परदरशन करि हए उसस भमलन या दरशन करन का परयास करि ह भलनिक ववध और त लष स

1रामकमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 96 2वही ि 97 3 वहीि 97

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छटकारा िान क बाद उस सत िा का आभास या दरशन होिा ह िथा ससार का वास िववक जञान या िरोकष अनभनि होिी ह कफर आत मा और िरमात मा का चचर भमलन होिा ह आत मा म िरमात मा क वरक का समाहार हो जािा ह कबीर क रहस यवाद की कसथनि और ववरषिा क अध ययन स ििा चलिा ह कक रहस यवाद क कछ सामान य ित वक क अनिररत ि उनकी अलव ववरषिा ह उनक रहस यवाद म भारिीय और ववदरी दोनक परकार की ववरषिात का समावर ह यह कबीर क हहद और मसलमान दोनक परकार क सिक क साननध य म रहन का िररराम ह कबीर रहस यवादी कसथनियक को बड़ सजीव िव स परस िि करि ह यथा-

(1) कजजञासा की भावना- रहस यवाद म िरम ित व को जानन की त छा िीवर होिी ह उसी िरह कबीर म भी कजजञासा की भावना ह कबीर का ईश वर ननवशर एव ननराकार ह वह सवशतर ववदयमान ह कबीर का मन अिन तष टदव क परनि कजजञासा उत िन न करि ह और जानना चाहि ह कक वह रहहम कसा ह कहा ह और ककस िरह वह अिनी सिरश करियया करिा रहिा ह तस चचिन म डबकर भलखि ह कक कजस रहहम का न कि ह न रखा ह और न कजसका वरश ह वह त या ह यह रहहमाण ड िथा य परार कहा स आि ह मि जीव कहा जाकर ववलीन हो जािा ह जीवक की समस ि तकनदरया कहा ववशराम करिी ह वह मरन क बाद कहा जािी ह-

कबीर जानना चाहि ह कक lsquoरब दrsquoकहा लीन हो जािा ह जब रहहम और विड कछ नही ह िब िच ित व कहा लीन हो जािा ह समस ि वर कहा समा जाि ह- ldquoसििो धागा टटा गगन ववतनभस गया सबद ज कहाा समाई ए सिसा मोहह तनस हदन व याप कोई न कह समझाई

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नहीि बरहमािड पतन नााही पिच ित व भी नाहीि इडा वप िगला सखमन नााही ए गण कहाा समाहीि1

उियशत ि िकतियक स स िष ट ह कक कबीर क मकसिष क म कििहल कजजञासा एव ववस मय की भावना ह कबीर सब कछ जानन क भलए िीवर उत क ा व यत ि करि ह

(2)बरहम का महततव परदशयन और अतनवयचनीयिा-

कजजञासा और किहल की कसथनि म साधक को िथ-परदरशक की आवश यकिा िड़िी ह अि साधक सिवक की ररर म िह च जािा ह वक की किा स ही जञान की आ धी आिी ह और भरम टट जािा ह कबीर कहि ह कक वक अिन हाथ म कमान लकर उसस परम सहहि ऐसा उिदर किीबार चलािा ह कक वह भरष य क दयदय म लविा ह- सिगर लई कमािण करर बााहण लागा िीर एक ज बाहय परीति सा भीिरी रहया सरीर2

अललककक सतिा अननवशचनीय ह वह अदभि और अललककक सतिा ह जो सवशतर वयाि होकर भी कही हदखाई नही दिी उसका िररचय मन बवदध एव वारी स परा ि करना सवशथा असम भव ह और उसका वरशन करना व व का वड़ ह कफर भी वरशन करन कापरयत न करि हए कहि ह कक कभी उस lsquoिहि बास स िािराrsquo कहकर उसकी सकष मानि सकष म कसथनि की तर सकि करि ह िो कभी उस िज-िज िारसमिर कहकर उसकी शरष िा का परनििादन करि ह कबीर िरम सत िा को एक ऐसा रसायर कहि ह कजसम स िरश मातर स सारा ररीर कचन बन जािा ह

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 125 2वही ि 49

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सब रसायन म ककया हरर सा और न कोई तिल इक घट म सिचर िौ सब िन कि चन होइ1

तस िरह स िष ट ह कक कबीर उस अव यत ि िरम सत िा की महतिा शरष िा का परनििादन करि ह साथ ही उसकी अननवशचनीयिा भी स वीकार करि ह (3) दशयन और भमलन का परयत न- रहस यवादी साधक िरम ित व स साकषात कार या भमलन का परयत न करि ह कजस िरह एक ववयोचवनी परमी स भमलन क भलए आिर रहिी ह उसी िरह कबीर भी िरम सत िा स भमलन का परयत न करि ह कबीर भावकिा म अवयति सत िा स भमलना चाहि ह रहस यवादी कववयक म भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक िरम ित व स भमलन क भलए िावलिन छा जािा ह रामकमार वमाश क अनसार कजस परकार ककसी जलपरिाि क याद म समीि क सभी छोट छोट स वर अिननशहहि हो जाि ह ीक उसी परकार उस ईश वरीय परम म सार ववचार या िो ल ि हो जाि ह अथवा उसी परम क बहाव म बह जाि ह2 कबीर भमलन की उत क ा म स वय को भस म कर दना चाहि ह भमलन क परयत न म कबीर ररीर को जलाकर राख कर डालना चाहि ह और कहि ह कक उस राख की स याही बनाकर अिनी हडडी की लखनी स अिन वपरयतिम राम क िास चचटठी भलखकर भज सम भवि िभी मरा स मरर हो सकवा और व मझस भमलन आ सक व- यह िन जारौ मभस करौ भलखौ राम का नाऊा

लखनी करा करिक की भलखख भलखख राम पठाउा 3

कबीर कहि ह ववरह स वय मझस कह रहा ह कक ि मझ कभी मि छोड़ना त यककक म ही िझ उस िरम रहहम क िज म लीन कर द वा- 1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 61 2राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-97 33शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 54

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ववरह कह कबीर सौ ि कजन छााछ मोहह पार बरहम क िज म िहाा ल राखो िोहह1

कबीर की िकतियक म कजस िरह का परयत न ह वह परम का चरमोत कषश ह तसम दाम ित य परम ह कजसम स वय को राम की बहररया कहि ह तसभलए िरषोतिम अगरवाल का कथन ह - ldquoउनकी साधना ही परम क सबस सकशलष ट कि दाित य रनि का किक ह2 तस दाम ित य कि म कबीर िरम सतिा का वपरयिमा ह अगरवाल जी आव कहि ह -रीनि-ररवाज धमश-कमश और परदत ि मयाशदा का िरषोन मख महावरा नारी ननदा करिा ह िो साधना का परमोन मख महावरा कवव को नारी ही बना दिा ह3 तस िरह कबीर क मन म ऊषमा ह जनन ह जो आत मानभनि की तर अगरसर करिा ह

(4) सिसाररक बाधाएा

ननवकति रहस यवादी साधना िथ िर अनक परकार क ससाररक कष टक का सामना करना िड़िा ह उस िरम सतिा का साकषात कार सरलिा स सभव नही होिा कबीर न भी अिन साधना िथ िर अनक सासाररक ववघनक का सामना ककया ह उनहोन सबस बड़ा कारर माया को माना ह तस माया क कारर ही काम रियोध लोभ मोह आहद ववकार सिाि रहि ह तसक दो परमख कि ह- कचन और काभमनी कबीर कहि ह कक माया व याभभचारररी ह मोहहनी ह और सभी जीवक को धोखक म डालिी रहिी ह माया विराचनी ह-कबीर माया डाकणीि सब ककसही कौ खाइ4

वक क किा स कबीर का मन तस ससार स ववमख होकर ईश वरोन मख हआ तस कसथनि को परा ि करन क भलए उन ह अिन मन का िरश िररषकार 1दवाररका परसाद सतसनाहहनदी क पराचीन परनिननचध कवव( नवीिम स) ि 85 2िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 3िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि74

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करना िड़ा कबीर न मन को ननयबतरि करन िरमात मा क नाम का स मरर करन आचरर को रदध रखन ववचार और आचरर म एकिा लान सासाररक परलोभनक स अलव रहन सत य को गरहर करन अहहसात मक दकषटकोर को अिनानअहकार को तयावन और जीवन को मत ि होन की आवश यकिा िर जो बार-बार बल हदया ह वह मन क िररष कार क भलए ही होिा ह सब वक की किा स सभव होि ह-

कबीर िीछ लावा जात था लोक वद क साथ आव थ सिवक भमक या दीिक दीया हाचथ1 उियशत ि वववचन स स िष ट ह कक कबीर की साधना क मावशम ववघ न आि ह और उनस ननवकति का उिाय भी बिाि ह (5) िरम सतिा क दरशन का आभास

रहस यवाद म जब कोई साधक माया-मोह िर ववजय परा ि करक मावश क समस ि भलनिक ववघ न को िार कर साधना मावश िर आव बढिा ह वह थोड़ा आध याकतमक ससार म िह च जािा ह साधक क दयदय म जञान ज योनि का िीवर आलोक भर जािा ह तस सासाररक अधकार स दर हदव य रकति का दरशन करन लविा ह कबीर कहि ह- हद छाड़ ड बहहद गया हआ तनरन िर बास का वल ज फल या फल बबन को नीरष दास2

अथाशि म ससीम को िार करक असीम म िह च वया वही मरा राशवि ननवास हो वया वहा मन अनभव ककया कक बबना फल क एक कमल िखला हआ ह तसका दरशन भववान का ननजी दास ही कर सकिा ह तस िरह कबीर सासाररक माया मोह िर ववजय परा ि करक रहहम ज योनि दरशन करन लविा हlsquoरहहम-ज योनिrsquo का दरशन सब नहीबककक कोई साधक ही कर सकिा ह 1मािा परसाद वि कबीर गरथावली 1969 ि- 41 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 58

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(6) वास िववक जञान और परमानभति

जब ककसी साधक को िरम सतिा का आभास होन लविा ह िो उसक दयदय म जञान की ज योनि जलन लविी ह और उस वास िववक ससार का बोध होन लविा ह यही जञान भरभमि परािरयक का मावश-दरशन करिी ह कबीर कहि ह कक कजस उतकटिा और िीवरिा क साथ मन माया-जनय ववषयक म रमिा ह उिनी ही उत कटिा और िीवरिा क साथ यहद वह राम म रम जाए िो वह साधक िारामण डल स भी िर वहा िह च सकिा ह जहा स वह आया ह अथाशि उस रहहम म लीन हो जािा ह- जस माया मन रम या ज राम रमाइ िौ िारामण डल छााड़ड करर जहाा क सो िहाा जाई1

स थायी भमलन

रहस यवाद की अनिम कसथनि आत मा और िरमात मा का स थायी भमलन माना वया ह भमलन की तस अवस था को कबीर न ववववध परिीकक और किकक क माध यम स कहा ह स वय को दकहन बिाि हए कबीर कहि ह कजस परकार एक ित नी अिन िनि क साथ रयन करिी ह उसी परकार आत मा और िरमात मा दोनक एक होकर रयन करि ह‒

बहि हदनन थ परीिम पाए बड घर बठ आए मिहदर मााहह भया उकजयारा ल सिी अपना पीव प यारा2

कबीर न चचर भमलन का किक ववाहहक उत सव क माध यम स व यत ि ककया ह- दलहहन गावहा मिगलाचार हम घरर आय हो परम पररस भरिार| िन रति करर म मन रति करहा पिच िति बरािी|1

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि59 2 वहीि 117

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वववाहोिराि िरम ित व स अदभि भमलन होिा ह कजसस अननवचशनीय आनद की उिलब ध होिी ह कबीर कहि ह भववान की सवनि स म रीिल हो वया ह अब मोह की िाि भमट वई ह अब अदर म साकषात कार हो जान क कारर म राि-हदन सख की ननचध परा ि कर रहा ह हरर सिगति सीिल भया भमटा मोह की िाप तनस बासरर सख तनध य लहयाजब अििरर परकटना आप2

तस िरह आत म ित व और िरम ित व का स थायी भमलन हो जािा ह भत ि और भववान साधक और साध य जीव और रहहम एक हो जाि ह दोनक अमर हो जाि ह

कबीर क कावय म वयति रहसयवादी िररकसथयक का अध ययन करन िर जञाि होिा ह कक उनकी रहसयवाद की अिनी ववरषिाए ह तन िर हहदत क अदविवाद िथा मसलमानक क सफी-मि का परभाव लत हकषि होि ह तनक रहस यवाद म आकसिकिा माधयश भावना अन िमशखी साधना परम ित व भावनात मक सबधक का समावर ह रकर क अदविवाद का परादभाशव 8वी रिाब दी म होिा ह अदविवाद क अनसार आत मा और िरमात मा एक सतिा ह माया क कारर ही िरमात मा क नाम और कि का अकसित व ह वस िि आि मा और िरमात मा एक ही रकति क दो भाव ह जो माया क कारर अलव ह लककन व िन एक ही म भमल जाि ह तस परकरियया को कबीर तस िरह व यत ि करि ह

जल म कि भ कि भ म जल ह बाहहर भीिर पानी फटा कि भ जल जलहह समान यह िि कथो चगयानी3

1 जीएनदास लव स गज ऑफ कबीर1994 ि 39 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 59 3वहीि 128

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जल म भरा घड़ा जल म िर रहा ह तसक बाहरभीिर िानी ह घड़ा (माया) फटन िर जल एक हो जािा ह

ईसा क 8वी रिाब दी म तस लाम धमश क अिवशि तनक िरिरावि आदरो क ववरोध म सफी सपरदाय का उदय हआ सफीमि म बद और खदा का एकीकरर हो सकिा ह िर माया की ववरष चचाश नही ह िरमात मा स भमलन क भलए आत मा की चार दराए िार करनी िड़िी ह- (1) ररीयि (2) िरीकि (3)हकीकि(4) माररफि

तन दरात को िार करक ही आत मा और िरमात मा का सकममलन होिा ह तस परकार आत माम िरमात मा का अनभव होन लविा ह दसरी बाि यह ह कक सफी मि म परम का अर महत विरश हपरम ही कमश ह और परम ही धमश ह रामकमार वमाश का कथन ह कक ननस वाथश परम ही सफीमि का परार ह फारसी म कजिन सफी कवव ह व कवविा म परम क अनिररत ि कछ जानि ही नही ह1परम सफीमि म नरा ह खमारी ह परम क नर म साधक को ससार का कछ ध यान नही रहिा कबीर न भलखा ह-

हरर रसपीया जाातनय कबहा न जाय खमार ममििा घामि रह नााही िन की सार2

सफीमि म ईश वर स तरी कि म ह िर कबीर यहा ईश वर िरष कि म ह कबीर क रहस यवाद क बार म आव रामकमार वमाश न भलखा ह कबीर न अिन रहस यवाद क स िष टीकरर म दोनक की अदविवाद और सफीमि की बाि ली ह फलि उन हकन अदविवाद स माया और चचिन िथा सफीमि स परम लकर अिन रहस यवाद की सकषट की हrsquorsquo3

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 102 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-61 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-104

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रहस यवाद म परम का महत विरश स थान ह तसम उिनी जञान की आवश यकिा नही ह कजिन परम की तसभलए कबीर कहि ह- अ कथ कहानी परम की कछ कही न जाई गाग करी सरकरा बठा मसकाई1

परम की कहानी अकथ ह जो उसका आस वाद ल लिा ह वह व व क रत कर खान क अनभव जसा होिा ह कजसका वरशन वह नही कर सकिा तसभलए कबीर क रहस यवाद को भकतिमलक और परममलक रहस यवाद जाना जा सकिा ह

23 कबीर का दाशयतनक ववचार

मानव एक ववचाररील परारी ह ससार म घहटि होन वाल परत यक वनिववचध क परनि जावकक रहिा ह और चचिन क माध यम स रहस य समझन का परयत न करि ह ितिशचाि एक ववचार का जन म होिा ह यही ववचार दरशन का कि धारर करिा ह दारशननक ववचार जब भाव म किािररि होि ह िो भकति का ववषय बनिा ह

दरशन रब द का राकबदक अथश चाकषष परत यकष साकषात कार जानना2 तत याहद ह सामान य कि म परत यक व यकति का कोई न कोई दरशन अवश य होिा ह रास तर क कि म वह रास तर कजसम आत मा अनात मा जीव रहहम परकनि िरष जवि धमश मोकष मानव जीवन क उददश य आहद का ननकिर हो3 अगरजी कोर क अनसार ldquoदरशन एक अध ययन ह कजसम जीवन और जवि क परकनि और अथश का अध ययन ककया जािा हrdquo4सामान य अथश म lsquoदरशनrsquo का परयोव ककसी ववचार या भसदधाि की व याख या िाककश क ियशवकषर अथवा ववभभन न 1जीएनदास लव सागस ऑफ कबीर1994 ि-115 2 काभलक परासाद( स )वहि हहनदी कोर 1992 ि 509 3वही 509 4 The Study of the nature and meaning of universe and the human life- एस हॉनशबीऔतसफोडश लनशर डडतसनरी 2010 ि 1137

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ित व चचिन की परकरिययात क भलए आिा हककि मल कि म यह आत म जञान ित व जञान अथवा िरम ित व क जञान कि म आिा ह यह अनभव का िाककश क अथवा परमािरक मीमासा ह यह ससार क ममश को उदघाहटि करिा ह यह िरष परकनि का जञान ह

भकति काव य म भत ि कववयक न अिन आचायवोप स दारननशक िततववादी भसदधािक का जञान परा ि ककया ह परा ि जञान को उन हकन अिनी रचनात म अनभव क स िर िर उिारा ह भत ि कवव अिनी रचनात क स िर िर िहल रचनाकार ह उस सीध िलर िर दारशननक नही कहा जा सकिा उनक काव य म चचिन भावाभभव यकति की अिकषा वलर ह यदयवि भत ि कवव ककसी न ककसी वष रव आचायश क भरष य मान जाि ह िरन ि उनक काव य म सबदध आचायो क ित ववाद को िाककश क चचिन क कि म िरररि नही ह जहा िक कबीर का परशन ह िो यह कहा जा सकिा ह कक कबीर अचधक स वितर व यकतित व क साधक ह कबीर मलि दारशननक नही ह िरन ि उनक काव य म कई िरह क भसदधािक को दखा जा सकिा ह कबीर ककसी िवश परचभलि ववभरष ट सम परदाय यामिवाद स नही बध थ

रामकमार वमाश न कबीर क दरशन क सदभश म भलखा ह - सि मि का दरशन ककसी ववरष रास तर स नही भलया वया रास तरक म कबीर की आस था नही थी त यककक रास तर एक दकषटकोर ववरष स भलए या कह जाि ह और सापरदानयकिा क आधार िर ही हटक होि हhellip अि सि सपरदाय का दरशन उिननषद भारिीय षडदरशन बलदध धमश सफी सपरदाय नाथ सपरदाय की ववश वजनीन अनभनियक क ित वक को भमलाकर सवह ि हआ ह य ित व सीध रास तर स नही आय वरन रिाकबदयक की अनभनि िला िलकर महात मात की व यावहाररक जञान की कसलटी िर कस जाकर सत सव और वक क उिदरक स

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

101

परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 2: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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साहहतय क कषतर म जो रचनाकार भाव और भाषा क दवध स टकराि हए दोनो म सामय सथाविि करिा ह अथाशि अिन भाव क अनसार भाषा की खोज करिा ह वह बड़ा रचनाकार होिा ह कबीर ऐस कवव ह कजनकी कजिनी परखर अनभनि ह उिनी ही महतविरश अभभवयकति भी

21 कबीर की भकति

हहदी साहहत य क तनिहास म कबीर का वयकतितव अनोखा ह भकतिकाल क व िहल ऐस सि ह कजन ह िरश भत ि का दजाश परा ि ह कवविा करना उनका लकष य नही था उनका लकष य भववि भकति था और उस भसलभसल म उन हकन जो कछ कहा या भलखा यहद उसम कवविा ह िो जसा कक आचायश हजारी परसाद दवववदी का कहना ह वह घलए म भमली वस ि ह1 तस परकार कबीर मलि भत ि ह कबीर की भकतिrsquo क क दर म परम ह तस भकति क भलए िरषोतिम अगरवाल न भलखा ह कक भकति रब द मलि अनराव और भावीदारी का आरय लकर ही आया था तस मल आरय म समिशर सत िा क भय स उत िन न नही परम और अनराव का ही समिशर ह भत ि िराकजि सननक की िरह समिशर करन वाल को नही बराबरी क परम म समिशर करन वाल को कहा जािा था यह बाि यास क क ननकत ि और ििरनन क सतरक स स िष ट हो जािी ह समाज क बदलन क समानािर भकति भावीदारी कहन को रह वई निमस िक समिशर को ही भकति मान और मनवा भलया वया नामदव रामानद और कबीर का

1 भरवकमार भमशर भकति आदोलन और भकति काव य 2010 ि-91 2िरषोतिम अगरवाल अकथ कहानी परम की2010ि-339-340 3जीएनदास भमकसटक सागस ऑफ कबीर1996 ि-78

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महत व तसबाि म ह कक व समानसत िा और धमशसत िा दवारा भकति िर चढा हदय वए आवरर को हटाकर तसक मल आरय भावीदारी को वािस लाि ह1

भकति मान भावीदारी कहन का अथश भकति क वास िववक ममश को जानन का ह भकति का वास िववक ममश राजसत िा क सामन या परभ सत िा क सामन

झकना नही ह बककक यह िो बराबरी का समिशर ह कजसक मल म परम ह िर भकति क रास ि बहि कह न ह कजसक बार म कबीर कहि ह कक -

कबीर यह घर परम का खाला का घर नाहहि | सीस उिार हाथ करर सो पस घर मााहह1

अथाशि तस परम भकति क दरबार म परवर क भलए अहकार और दभ को छोड़ना िड़वा साथ ही साथ भत ि म वह िाकि और होना चाहहए कजसम अिन घर को जला दन का दमखम हो-

ldquoकबबरा खडा बाजार म भलए लकाठी हाथ | जो घर जार आपना चल हमार साथ2

सचमच कबीर की रिो िर कबीर क साथ चलना मामली बाि नही ह कबीर जीवन भर वहार लवा लवा कर थक वए कक कोई माई का लाल िो उनक साथ चल ककन ि रिश तिनी क ोर थी कक ककसी का हलसला नही हआ कक उस िरा करि हए वह उनक साथ आए और आव बढ3 भकति कबीर क भलए एक दसाध य साधना ह तस दसाध य साधना क भलए व ककसी भत ि क सामन भसफश दो परिीक रखि ह- lsquoसिीrsquo और lsquoररवीरrsquo रर वीर यदध भभम म िीछ िर नही रखिा परारक का उत सवश करक लकष य भसवदध करिा ह वह धीर बवदध और कसथ र चचति होिा ह उसका सकक ि अववचल होिा ह कबीर को भकति साधना क

1 भरवकमार भमशर भकति आदोलन और भकति काव य 2010 ि77 2 वही ि77 3 वही ि77

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कषतर म ऐस ही दढ ननश चयी और ननभशय व यकति की आवश यकिा थी1 रर वीर को कबीर सबस बड़ा साधक मानि ह उस जीन मरन की कोई चचिा नही रहिी-

कबीर खि न छाड सखख जझि दल माहहि

आसा जीवन-मरण की मन म आन नाहहि2

रर की िरह सिी का मन अववचल होिा ह वह अिन वपरय की एकननष परभमका होिी ह व साधक को तसी सिी क तसी अनन य परम को आदरश मानन को कहि ह वह ससार क सार परलोभनक और आकषशरक को त याव कर भव म मातर अिन वपरयिम क भमलन की भावना सजाय चचिा िर चढ जािी ह यह साकतवक उत सवश उस परम साधना क उ चिम स िर िर िह चा दिा ह-

ldquoकबीर सिी जलन का नीकलो चचिधारी एक वववक िन मन सौप या पीव का िब अििर रही न रखा3

कबीर की भकति को lsquoपरमा भकतिrsquo नारदी भकति lsquoभाव भकतिrsquo तत याहद कहा जािा ह कबीर भकति क कषतर म भकति क रास तरीय परराली म दीत हकषि होकर नही उिर थ कफर भी अनजान ही उन हकन वष रव भकति सतर क सभी सतरक िथा अनासकतियक का िालन अिन भकति म ककया ह नारदी भकति क भलए नारद िाचरातर म स िष ट कि स कहा वया ह कक भववान क सववोपिाचध स वकि को ित िर होकर (अथाशि अनन य भाव स) समस ि तहदरयक और मन क दवारा सवन करना ही भकति ह10 कछ तसी िरह क लकषर कबीर क भकति क भी ह कजसम अनन य भाव की ही परमखिा ह ईश वर क परनि परम गयारह की आसकतियक वर माहत म य सकति िजासकति स मररासकति दास यासकति सखयासकति वात सक यासकति कािारकति आतमननवदवासकति िरम ववरहासकति

1रामचदर निवारी कबीर मीमासा2007 ि 75 2 मािा परसाद व ि कबीर गरथावली1969 ि 115 3वही ि 119

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म परवट होिा ह वष रव भकति क तन आसकतियक को कबीर की भकति म दखा जा सकिा ह कबीर जब अिन को राम का कतिा कहि ह िो वो दास य भाव की भकति को ही परकट कर रह होि ह-

कबीर किा राम का मतिया मरा नािउ

गल राम की जवड़ड कजि खच तिउ जािउ1

कबीर राम को अिना वपरयिम िथा अिन को उनकी बहररया कहकर कािासकति का ही िररचय दि ह- हरर मोरा पीव म हरर की बहररया राम बड म छटक लहररया2

जब कबीर हरर को जननी और अिन को उसक बट कि म परस िि करि ह िो वहा व वात सक य भाव व यत ि करि ह

हरर जननी म बालक िरा काह न औगण बकसह मरा3

राम म िरशि लीन होन की दरा कबीर क यहा अदभि कि स ह यह िरश िन मयिा की कसथनि ह लाली मर लाल की कजि दखो तिि लाल लाली दखन म गई म भी हो गई लाल4

कबीर क यहा आत म-ननवदन का स वर भी ह व अिन को समगर कि स िरमात मा क परनि ननवहदि करि ह- 1श यामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि 63 2वही 2011 ि143 3मोहन भसह ककी कबीर(अनहदि)ि-30 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85

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मरा मझ म कछ नहीि जो कछ ह सो िरा िरा िझको सौपिा त या लाग ह मरा1

िरमात मा क ववयोव म कबीर न दयदय ननकाल कर रख हदया ह परम भमलन क बाद बबरह की कसथनि बहि िड़िान वाली ह उनक यहा ववरहासकति को भरिर

मातरा म दखा जा सकिा ह- िलफ बबन बालम मोर कजया

हदन नहीि चन राि नहह तनिहदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo2

कबीर की भकति म तन आसकतियक क अनिररत ि lsquoनाम-स मररrsquo की महहमा का भी बखान हrsquoनामस मररrsquo सवर भकति एव ननवशर भकति दोनक क क दर म रहा ह ववचध ननषध स जब मन रदध हो जािा ह िभी उसम नाम स मरर की भावना उत िन न होिी ह3 कबीर कहि ह-

कबीर राम धयाइ ल कजभया सौ कहट मिि| हरर सागर कजतन बीसर छीलर दकज अनििrdquo4

कबीर न जञान और भकति क रदध कि को भमलाकर एक ऐसा रसायन बनाया कजसम सापरदानयक आडबर धाभमशक िाखणड की ब िक नही ह | यहद योव स परदरशन और क छ साधना को ननकाल कर उस सहज बना हदया जाय जञान हो भमथ या दभ एव अहकार ननकालकर उस ववनयरील बना हदया जाय और भकति स अधववश वास फलासकति एव वाहय िजाववधान ननकालकर उस रदध रावात मक परकरियया क कि म दखा जाय िो सामाजस य का वह बबद परा ि हो

1श यामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-62 2हजारी परसाद हदवदी कबीर1990 ि 250 3रामकमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 87 4श यामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि54

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सकिा ह जहा खड़ होकर कबीर िथा कचथि योचवयक िडडि और भत ि िीनक को चनलिी द रह थ1

कबीर ननवशर भकति साधना को उसक चरम िरररनि िक ल जाि ह कबीर की ननवशर भकति उस सवर राम भकति क सीध ववरोध म आिी ह कजसम राम को दररथ का ितर मानकर उनक अविारी कि का चचतरर ह कबीर राम क तस कि क कायल नही थ उनका राम िो कोई दसरा ममश रखन वाला था- दसरथ सि तिहा लोक बखाना

राम नाम को मरम ह आना2

तस परकार कबीर की भकति सहज साधना िर आधाररि हकजसम लोक को एकाकार कर लन की अदभि कषमिा ह

22 कबीर का रहस यवाद

हहदी म रहस यवाद रब द अगरजी क भमकसटभसज म का हहदी किािरर ह हहदी साहहत यकोर क अनसार अिनी अिसफररि अिरोकष अनभनि दवारा सत य िरम-ित व अथवा ईश वर का परत यकष साकषात कार करन की परवनि रहस यवाद ह3 रहस यवाद मनष य की ऐसी परवकति ह जो उनको िरमित व का अनभव करािी ह माना जािा ह कक िरमित व परा ि करन क बाद मनष य की मकति भमलिी ह रहस यवादी साधक रहस यवादी सत य क परनि आश वस ि रहिा ह तसभलए यह व यकतिवि धमश का आधार बनिी ह अनभनि क िरम कषरक म आत मा एक 1रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007ि-78 2रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007 ि78 3 धीरदर वमाश (परस) हहदी साहहतयकोर (परथम भाव )2009 ि 535

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हदव य रकति स ति-परोि निन िरम आनन द मत ि और परवकतिकि अनभव करिी ह

लडी अिडर हहल क अनसार - रहस यवाद िरम सतिा क परनि भावकिा भरी परनिकरियया को कहा ह1

परो आर डी रानाड क अनसार ldquoईश वर क परनि साधक की सरल सहज सीधी िथा परत यकष अन िपरजञात मक अनभनि ही रहस यवाद हrdquo2

साहहत य चचिकक न भी रहस यवाद को वववचन करन का परयास ककया ह आचायय रामचिदर शत ल रहस यवाद को तस परकार िररभावषि करि ह कक काव य की वह परवकति कजसम िरोकष सतिा स रावात मकसबध करक उसस भमलन िथा ववयोव की कसथनियक क काक िननक चचतर अककि ककय जाि ह3 रामचन दर रत ल काव य म िरम सतिा स रावात मक सबध िथा सयोव-ववयोव की कसथनियक म ववववध परकार क अनभनि होन की कसथनि माना ह

रामकमार वमाश क अनसार रहस यवाद जीवात मा की उस अन िहहशि परवकति का परकारन ह कजसम वह हदव य और अललककक रकति स अिना राि और ननश छल सबध जोड़ना चाहिी ह यह सबध यहा िक बढ जािा ह कक दोनक म कछ भी अिर नही रह जािा4 रहस यवाद म जीव क आत मा का िरमात मा स भमलन का आवव का परकारन होिा ह कजसस मनष य हदव य रकति परा ि कर लिा ह5

1The Poetry of my mysticism might be defined on the one hand as a temperamental reaction to the vision of prophecyरवीदर नाथ टवोर वन हडरड िोएमस ऑफ कबीर 1995 ि xix 2ldquoMysticism denotes that attitude of mind which involves a direct immediate firsthand intuitive apprehension of Godrdquo-रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007 स उदधि ि 87 3आचायश रामचदर रतल भाव -21999ि 48 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 92 5 शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011

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श यामसन दर दास कहि ह कक कवविा म रहस यवाद भावकिा का आधार िाि ह व भलखि ह- चचन िन क कषतर का रहहमवाद कवविा क कषतर म जाकर कक िना और भावकिा का आधार िाकर रहस यवाद का कि िकड़िा ह1

उियशत ि कथनक स स िष ट ह कक रहस यवाद आत मा-िरमात मा क एकात म स थाविि करन की परवकति ह यह परत यकष सयोवानभव की परकरियया ववरष ह तसकी अनभनि की अवस था म ववषय और व यकति का अववभाज य एकात म-भमशरर हो जािा ह िरमात मा सवाशिीि ह और आत मा उसकी परकनि की अराचधकारररी ह अनभनि की अवस था भी सवाशिीि होिी ह यह दयदय का धमश ह वह अिन जीवन म ववचाररा एकान ि आध याकतमक आनन द को स वीकार करिा ह साकषात कार की कसथनि अननवशचनीय होिी ह तस िरह हम कह सकि ह कक दश य जवि म व या ि उस व यत ि और अवोचर सतिा स आत मा क रावात मक सबध स थाविि करन को रहस यवाद कहा जािा ह रहस यवादी िरम सतिा की कजजञासा परकट करिा ह तसक अन िवशि एक कवव उस ववराट सतिा क परनि अिन ऐस भावोदवारक को व यत ि करिा ह कजनम सख-दख आनन द-ववषाद हास-रदन सयोव-ववयोव घल रहि ह और अननवशचनीय आनन द का अनभव ककया जा सकिा ह

दारशननक दकषट स रहस यवाद रब द बहि व यािक ह तस ककसी ववभरष ट दारशननक मि िक सीभमि करना समाचीन नही ह तसक अिवशि कई भदक को स वीकार ककया जा सकिा ह नावन दरनाथ उिाध याय रहस यवाद क यहा िर ववचार करि हए भलखि ह-परकार अथवा भद क ववषय म कभी वववचक िवी और िकशचमी का भद स वीकार करि ह कभी धमो क आधार िर ईसाई सफी हहद बलदध आहद भद स वीकार करि ह और कभी धमशननष ावादी िथा उदारवादी भदक म उनका ववभाजन करि ह िवी रहस यवाद क अिवशि भारिीय रहस यवाद म भी भदक का ननकिर कमशकाण डिरक रहस यवाद औिननषद रहस यवाद योविरक

1 वही ि 56

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रहस यवाद बलदध रहस यवाद और व यकतििरक रहस यवाद क कि म भमलिा ह अनिम परकार क भी दो कि रास तरीय और सावशललककक स वीकार ककए वए ह1 तस िरह रहस यवाद की तस व यािक अवधाररा को सवशसम मि दारशननक मान यिात क कि म बाधना कह न ह ईसाई धमश म भी रहस यवादी िि व भमलि ह बातबबल रहस यवाद का शरष गरथ हउसक एविभसक स नामक अरक म ईश वर क परत यकष साकषात कार की हदव यानभनि का वरशन ह सि िाल की शरदधा आस था और ववश वास का आधार यह हदव य साकषात कार ही ह2 तस िरह ईसाई धमश क अिवशि बहि स सि ऐस हए ह जो रहस यवादी हतस लाम म रहस यवाद का परारभ सफीवाद स हआ उनकी साधना म अनक सीह िया िार करनी होिी ह परायकशचि िररविशन त याव दररदरिा धयश ईश वर म ववश वास ईश वर छा म सिोष आहद तनक उिराि आध याकतमक अनभनि की भय आरा परम यास और साकषात कार की दराए आिी ह सफी साधना स दररदरिा िि और िववतरिा यत ि जीवन िथा सदवक की किा अननवायश ह3 उियशत ि वववरर स सिषट ह कक तस लामी रहस यवाद म भी िरम ित व वक की महिा अध याकतमक अनभनि साकषात कार आहद का समावर ह यह भारिीय रहस यवाद स अचधक ननकट ह वजाली जलालददीन सफी हाकफज उमर खयास ननजामीसादी और जामी परभसदध ईरानी सफी कवव ह भारि म भी सफी सि और कवव हए ह

हहदी म आहदकाल स रहस यवाद की िरम िरा रही ह हहदी साहहत य क आरभभक रहस यवादी कवव भसदध ह हहदी साहहत य क मध य यव (भकतिकाल) म सवर एव ननवशर दो किक म रहस यवादी रचनाए परचर मातरा म उिलब ध ह तस यव म रहस यवादी रचनाकार कबीर नानक दाद सरदास िलसीदास मीराबाई आहद बहि स कवव ह अन य भारिीय भाषात म भी रहस यवादी रचनाए

1वासदव भसह(स) कबीर 2004 ि 138 2धीरदर वमाश (परस) हहदी साहहतयकोर (परथम भाव )2009 ि 37 3वही ि-37

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उिलब ध ह रवीदरनाथ स परभाववि होकर छायावादी कववयक न भी रहस यवादी रचनाए दी एक िरह स यह कबतरम रहस वाद ह

उियशत ि वववररक स स िष ट ह कक रहस यवादी ववचार बहि ही व यािक ह ककसी न ककसी कि म यह मनष य क आहदम काल स आज िक उिकसथि ह तसक ववववध परकार और भद ह यह ककसी ववभरष ट अवधाररा म नही बधा ह िकशचमी रहस यवाद और भारिीय रहस यवाद म अन िर क बावजद समान ित व मलजद ह

रहस यवाद की कसथति

रामकमार वमाश न रहस यवाद की िीन िररकसथनियक का उक लख ककया ह- 1 िहली िररकसथनि वह ह जहा व यकति ववरष अनि रकति स अिना सबध जोड़न क भलए अगरसर होिा ह1

2 दवविीय कसथनि िब आिी ह जब आत मा िरमात मा स परम करन लव जािी ह भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक आत मा म एक परकार का उन माद या िावलिन छा जािा ह2

3 तसक िश चाि रहस यवाहदयक की िीसरी कसथनि आिी ह जो रहस यवाद की चरम सीमा बिला सकिी ह तस दरा म आत मा और िरमात मा का तिना ऐत य हो जािा ह कक कफर उनम कोई भभन निा नही रहिी3

उियशत ि उदधररक स स िष ट ह रहस यवाद म िरम सत िा क परनि कजजञासा की भावना रहिी ह रहस यवादी साधक िरम सत िा क महत व का परदरशन करि हए उसस भमलन या दरशन करन का परयास करि ह भलनिक ववध और त लष स

1रामकमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 96 2वही ि 97 3 वहीि 97

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छटकारा िान क बाद उस सत िा का आभास या दरशन होिा ह िथा ससार का वास िववक जञान या िरोकष अनभनि होिी ह कफर आत मा और िरमात मा का चचर भमलन होिा ह आत मा म िरमात मा क वरक का समाहार हो जािा ह कबीर क रहस यवाद की कसथनि और ववरषिा क अध ययन स ििा चलिा ह कक रहस यवाद क कछ सामान य ित वक क अनिररत ि उनकी अलव ववरषिा ह उनक रहस यवाद म भारिीय और ववदरी दोनक परकार की ववरषिात का समावर ह यह कबीर क हहद और मसलमान दोनक परकार क सिक क साननध य म रहन का िररराम ह कबीर रहस यवादी कसथनियक को बड़ सजीव िव स परस िि करि ह यथा-

(1) कजजञासा की भावना- रहस यवाद म िरम ित व को जानन की त छा िीवर होिी ह उसी िरह कबीर म भी कजजञासा की भावना ह कबीर का ईश वर ननवशर एव ननराकार ह वह सवशतर ववदयमान ह कबीर का मन अिन तष टदव क परनि कजजञासा उत िन न करि ह और जानना चाहि ह कक वह रहहम कसा ह कहा ह और ककस िरह वह अिनी सिरश करियया करिा रहिा ह तस चचिन म डबकर भलखि ह कक कजस रहहम का न कि ह न रखा ह और न कजसका वरश ह वह त या ह यह रहहमाण ड िथा य परार कहा स आि ह मि जीव कहा जाकर ववलीन हो जािा ह जीवक की समस ि तकनदरया कहा ववशराम करिी ह वह मरन क बाद कहा जािी ह-

कबीर जानना चाहि ह कक lsquoरब दrsquoकहा लीन हो जािा ह जब रहहम और विड कछ नही ह िब िच ित व कहा लीन हो जािा ह समस ि वर कहा समा जाि ह- ldquoसििो धागा टटा गगन ववतनभस गया सबद ज कहाा समाई ए सिसा मोहह तनस हदन व याप कोई न कह समझाई

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नहीि बरहमािड पतन नााही पिच ित व भी नाहीि इडा वप िगला सखमन नााही ए गण कहाा समाहीि1

उियशत ि िकतियक स स िष ट ह कक कबीर क मकसिष क म कििहल कजजञासा एव ववस मय की भावना ह कबीर सब कछ जानन क भलए िीवर उत क ा व यत ि करि ह

(2)बरहम का महततव परदशयन और अतनवयचनीयिा-

कजजञासा और किहल की कसथनि म साधक को िथ-परदरशक की आवश यकिा िड़िी ह अि साधक सिवक की ररर म िह च जािा ह वक की किा स ही जञान की आ धी आिी ह और भरम टट जािा ह कबीर कहि ह कक वक अिन हाथ म कमान लकर उसस परम सहहि ऐसा उिदर किीबार चलािा ह कक वह भरष य क दयदय म लविा ह- सिगर लई कमािण करर बााहण लागा िीर एक ज बाहय परीति सा भीिरी रहया सरीर2

अललककक सतिा अननवशचनीय ह वह अदभि और अललककक सतिा ह जो सवशतर वयाि होकर भी कही हदखाई नही दिी उसका िररचय मन बवदध एव वारी स परा ि करना सवशथा असम भव ह और उसका वरशन करना व व का वड़ ह कफर भी वरशन करन कापरयत न करि हए कहि ह कक कभी उस lsquoिहि बास स िािराrsquo कहकर उसकी सकष मानि सकष म कसथनि की तर सकि करि ह िो कभी उस िज-िज िारसमिर कहकर उसकी शरष िा का परनििादन करि ह कबीर िरम सत िा को एक ऐसा रसायर कहि ह कजसम स िरश मातर स सारा ररीर कचन बन जािा ह

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 125 2वही ि 49

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सब रसायन म ककया हरर सा और न कोई तिल इक घट म सिचर िौ सब िन कि चन होइ1

तस िरह स िष ट ह कक कबीर उस अव यत ि िरम सत िा की महतिा शरष िा का परनििादन करि ह साथ ही उसकी अननवशचनीयिा भी स वीकार करि ह (3) दशयन और भमलन का परयत न- रहस यवादी साधक िरम ित व स साकषात कार या भमलन का परयत न करि ह कजस िरह एक ववयोचवनी परमी स भमलन क भलए आिर रहिी ह उसी िरह कबीर भी िरम सत िा स भमलन का परयत न करि ह कबीर भावकिा म अवयति सत िा स भमलना चाहि ह रहस यवादी कववयक म भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक िरम ित व स भमलन क भलए िावलिन छा जािा ह रामकमार वमाश क अनसार कजस परकार ककसी जलपरिाि क याद म समीि क सभी छोट छोट स वर अिननशहहि हो जाि ह ीक उसी परकार उस ईश वरीय परम म सार ववचार या िो ल ि हो जाि ह अथवा उसी परम क बहाव म बह जाि ह2 कबीर भमलन की उत क ा म स वय को भस म कर दना चाहि ह भमलन क परयत न म कबीर ररीर को जलाकर राख कर डालना चाहि ह और कहि ह कक उस राख की स याही बनाकर अिनी हडडी की लखनी स अिन वपरयतिम राम क िास चचटठी भलखकर भज सम भवि िभी मरा स मरर हो सकवा और व मझस भमलन आ सक व- यह िन जारौ मभस करौ भलखौ राम का नाऊा

लखनी करा करिक की भलखख भलखख राम पठाउा 3

कबीर कहि ह ववरह स वय मझस कह रहा ह कक ि मझ कभी मि छोड़ना त यककक म ही िझ उस िरम रहहम क िज म लीन कर द वा- 1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 61 2राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-97 33शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 54

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ववरह कह कबीर सौ ि कजन छााछ मोहह पार बरहम क िज म िहाा ल राखो िोहह1

कबीर की िकतियक म कजस िरह का परयत न ह वह परम का चरमोत कषश ह तसम दाम ित य परम ह कजसम स वय को राम की बहररया कहि ह तसभलए िरषोतिम अगरवाल का कथन ह - ldquoउनकी साधना ही परम क सबस सकशलष ट कि दाित य रनि का किक ह2 तस दाम ित य कि म कबीर िरम सतिा का वपरयिमा ह अगरवाल जी आव कहि ह -रीनि-ररवाज धमश-कमश और परदत ि मयाशदा का िरषोन मख महावरा नारी ननदा करिा ह िो साधना का परमोन मख महावरा कवव को नारी ही बना दिा ह3 तस िरह कबीर क मन म ऊषमा ह जनन ह जो आत मानभनि की तर अगरसर करिा ह

(4) सिसाररक बाधाएा

ननवकति रहस यवादी साधना िथ िर अनक परकार क ससाररक कष टक का सामना करना िड़िा ह उस िरम सतिा का साकषात कार सरलिा स सभव नही होिा कबीर न भी अिन साधना िथ िर अनक सासाररक ववघनक का सामना ककया ह उनहोन सबस बड़ा कारर माया को माना ह तस माया क कारर ही काम रियोध लोभ मोह आहद ववकार सिाि रहि ह तसक दो परमख कि ह- कचन और काभमनी कबीर कहि ह कक माया व याभभचारररी ह मोहहनी ह और सभी जीवक को धोखक म डालिी रहिी ह माया विराचनी ह-कबीर माया डाकणीि सब ककसही कौ खाइ4

वक क किा स कबीर का मन तस ससार स ववमख होकर ईश वरोन मख हआ तस कसथनि को परा ि करन क भलए उन ह अिन मन का िरश िररषकार 1दवाररका परसाद सतसनाहहनदी क पराचीन परनिननचध कवव( नवीिम स) ि 85 2िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 3िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि74

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करना िड़ा कबीर न मन को ननयबतरि करन िरमात मा क नाम का स मरर करन आचरर को रदध रखन ववचार और आचरर म एकिा लान सासाररक परलोभनक स अलव रहन सत य को गरहर करन अहहसात मक दकषटकोर को अिनानअहकार को तयावन और जीवन को मत ि होन की आवश यकिा िर जो बार-बार बल हदया ह वह मन क िररष कार क भलए ही होिा ह सब वक की किा स सभव होि ह-

कबीर िीछ लावा जात था लोक वद क साथ आव थ सिवक भमक या दीिक दीया हाचथ1 उियशत ि वववचन स स िष ट ह कक कबीर की साधना क मावशम ववघ न आि ह और उनस ननवकति का उिाय भी बिाि ह (5) िरम सतिा क दरशन का आभास

रहस यवाद म जब कोई साधक माया-मोह िर ववजय परा ि करक मावश क समस ि भलनिक ववघ न को िार कर साधना मावश िर आव बढिा ह वह थोड़ा आध याकतमक ससार म िह च जािा ह साधक क दयदय म जञान ज योनि का िीवर आलोक भर जािा ह तस सासाररक अधकार स दर हदव य रकति का दरशन करन लविा ह कबीर कहि ह- हद छाड़ ड बहहद गया हआ तनरन िर बास का वल ज फल या फल बबन को नीरष दास2

अथाशि म ससीम को िार करक असीम म िह च वया वही मरा राशवि ननवास हो वया वहा मन अनभव ककया कक बबना फल क एक कमल िखला हआ ह तसका दरशन भववान का ननजी दास ही कर सकिा ह तस िरह कबीर सासाररक माया मोह िर ववजय परा ि करक रहहम ज योनि दरशन करन लविा हlsquoरहहम-ज योनिrsquo का दरशन सब नहीबककक कोई साधक ही कर सकिा ह 1मािा परसाद वि कबीर गरथावली 1969 ि- 41 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 58

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(6) वास िववक जञान और परमानभति

जब ककसी साधक को िरम सतिा का आभास होन लविा ह िो उसक दयदय म जञान की ज योनि जलन लविी ह और उस वास िववक ससार का बोध होन लविा ह यही जञान भरभमि परािरयक का मावश-दरशन करिी ह कबीर कहि ह कक कजस उतकटिा और िीवरिा क साथ मन माया-जनय ववषयक म रमिा ह उिनी ही उत कटिा और िीवरिा क साथ यहद वह राम म रम जाए िो वह साधक िारामण डल स भी िर वहा िह च सकिा ह जहा स वह आया ह अथाशि उस रहहम म लीन हो जािा ह- जस माया मन रम या ज राम रमाइ िौ िारामण डल छााड़ड करर जहाा क सो िहाा जाई1

स थायी भमलन

रहस यवाद की अनिम कसथनि आत मा और िरमात मा का स थायी भमलन माना वया ह भमलन की तस अवस था को कबीर न ववववध परिीकक और किकक क माध यम स कहा ह स वय को दकहन बिाि हए कबीर कहि ह कजस परकार एक ित नी अिन िनि क साथ रयन करिी ह उसी परकार आत मा और िरमात मा दोनक एक होकर रयन करि ह‒

बहि हदनन थ परीिम पाए बड घर बठ आए मिहदर मााहह भया उकजयारा ल सिी अपना पीव प यारा2

कबीर न चचर भमलन का किक ववाहहक उत सव क माध यम स व यत ि ककया ह- दलहहन गावहा मिगलाचार हम घरर आय हो परम पररस भरिार| िन रति करर म मन रति करहा पिच िति बरािी|1

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि59 2 वहीि 117

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वववाहोिराि िरम ित व स अदभि भमलन होिा ह कजसस अननवचशनीय आनद की उिलब ध होिी ह कबीर कहि ह भववान की सवनि स म रीिल हो वया ह अब मोह की िाि भमट वई ह अब अदर म साकषात कार हो जान क कारर म राि-हदन सख की ननचध परा ि कर रहा ह हरर सिगति सीिल भया भमटा मोह की िाप तनस बासरर सख तनध य लहयाजब अििरर परकटना आप2

तस िरह आत म ित व और िरम ित व का स थायी भमलन हो जािा ह भत ि और भववान साधक और साध य जीव और रहहम एक हो जाि ह दोनक अमर हो जाि ह

कबीर क कावय म वयति रहसयवादी िररकसथयक का अध ययन करन िर जञाि होिा ह कक उनकी रहसयवाद की अिनी ववरषिाए ह तन िर हहदत क अदविवाद िथा मसलमानक क सफी-मि का परभाव लत हकषि होि ह तनक रहस यवाद म आकसिकिा माधयश भावना अन िमशखी साधना परम ित व भावनात मक सबधक का समावर ह रकर क अदविवाद का परादभाशव 8वी रिाब दी म होिा ह अदविवाद क अनसार आत मा और िरमात मा एक सतिा ह माया क कारर ही िरमात मा क नाम और कि का अकसित व ह वस िि आि मा और िरमात मा एक ही रकति क दो भाव ह जो माया क कारर अलव ह लककन व िन एक ही म भमल जाि ह तस परकरियया को कबीर तस िरह व यत ि करि ह

जल म कि भ कि भ म जल ह बाहहर भीिर पानी फटा कि भ जल जलहह समान यह िि कथो चगयानी3

1 जीएनदास लव स गज ऑफ कबीर1994 ि 39 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 59 3वहीि 128

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जल म भरा घड़ा जल म िर रहा ह तसक बाहरभीिर िानी ह घड़ा (माया) फटन िर जल एक हो जािा ह

ईसा क 8वी रिाब दी म तस लाम धमश क अिवशि तनक िरिरावि आदरो क ववरोध म सफी सपरदाय का उदय हआ सफीमि म बद और खदा का एकीकरर हो सकिा ह िर माया की ववरष चचाश नही ह िरमात मा स भमलन क भलए आत मा की चार दराए िार करनी िड़िी ह- (1) ररीयि (2) िरीकि (3)हकीकि(4) माररफि

तन दरात को िार करक ही आत मा और िरमात मा का सकममलन होिा ह तस परकार आत माम िरमात मा का अनभव होन लविा ह दसरी बाि यह ह कक सफी मि म परम का अर महत विरश हपरम ही कमश ह और परम ही धमश ह रामकमार वमाश का कथन ह कक ननस वाथश परम ही सफीमि का परार ह फारसी म कजिन सफी कवव ह व कवविा म परम क अनिररत ि कछ जानि ही नही ह1परम सफीमि म नरा ह खमारी ह परम क नर म साधक को ससार का कछ ध यान नही रहिा कबीर न भलखा ह-

हरर रसपीया जाातनय कबहा न जाय खमार ममििा घामि रह नााही िन की सार2

सफीमि म ईश वर स तरी कि म ह िर कबीर यहा ईश वर िरष कि म ह कबीर क रहस यवाद क बार म आव रामकमार वमाश न भलखा ह कबीर न अिन रहस यवाद क स िष टीकरर म दोनक की अदविवाद और सफीमि की बाि ली ह फलि उन हकन अदविवाद स माया और चचिन िथा सफीमि स परम लकर अिन रहस यवाद की सकषट की हrsquorsquo3

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 102 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-61 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-104

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रहस यवाद म परम का महत विरश स थान ह तसम उिनी जञान की आवश यकिा नही ह कजिन परम की तसभलए कबीर कहि ह- अ कथ कहानी परम की कछ कही न जाई गाग करी सरकरा बठा मसकाई1

परम की कहानी अकथ ह जो उसका आस वाद ल लिा ह वह व व क रत कर खान क अनभव जसा होिा ह कजसका वरशन वह नही कर सकिा तसभलए कबीर क रहस यवाद को भकतिमलक और परममलक रहस यवाद जाना जा सकिा ह

23 कबीर का दाशयतनक ववचार

मानव एक ववचाररील परारी ह ससार म घहटि होन वाल परत यक वनिववचध क परनि जावकक रहिा ह और चचिन क माध यम स रहस य समझन का परयत न करि ह ितिशचाि एक ववचार का जन म होिा ह यही ववचार दरशन का कि धारर करिा ह दारशननक ववचार जब भाव म किािररि होि ह िो भकति का ववषय बनिा ह

दरशन रब द का राकबदक अथश चाकषष परत यकष साकषात कार जानना2 तत याहद ह सामान य कि म परत यक व यकति का कोई न कोई दरशन अवश य होिा ह रास तर क कि म वह रास तर कजसम आत मा अनात मा जीव रहहम परकनि िरष जवि धमश मोकष मानव जीवन क उददश य आहद का ननकिर हो3 अगरजी कोर क अनसार ldquoदरशन एक अध ययन ह कजसम जीवन और जवि क परकनि और अथश का अध ययन ककया जािा हrdquo4सामान य अथश म lsquoदरशनrsquo का परयोव ककसी ववचार या भसदधाि की व याख या िाककश क ियशवकषर अथवा ववभभन न 1जीएनदास लव सागस ऑफ कबीर1994 ि-115 2 काभलक परासाद( स )वहि हहनदी कोर 1992 ि 509 3वही 509 4 The Study of the nature and meaning of universe and the human life- एस हॉनशबीऔतसफोडश लनशर डडतसनरी 2010 ि 1137

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ित व चचिन की परकरिययात क भलए आिा हककि मल कि म यह आत म जञान ित व जञान अथवा िरम ित व क जञान कि म आिा ह यह अनभव का िाककश क अथवा परमािरक मीमासा ह यह ससार क ममश को उदघाहटि करिा ह यह िरष परकनि का जञान ह

भकति काव य म भत ि कववयक न अिन आचायवोप स दारननशक िततववादी भसदधािक का जञान परा ि ककया ह परा ि जञान को उन हकन अिनी रचनात म अनभव क स िर िर उिारा ह भत ि कवव अिनी रचनात क स िर िर िहल रचनाकार ह उस सीध िलर िर दारशननक नही कहा जा सकिा उनक काव य म चचिन भावाभभव यकति की अिकषा वलर ह यदयवि भत ि कवव ककसी न ककसी वष रव आचायश क भरष य मान जाि ह िरन ि उनक काव य म सबदध आचायो क ित ववाद को िाककश क चचिन क कि म िरररि नही ह जहा िक कबीर का परशन ह िो यह कहा जा सकिा ह कक कबीर अचधक स वितर व यकतित व क साधक ह कबीर मलि दारशननक नही ह िरन ि उनक काव य म कई िरह क भसदधािक को दखा जा सकिा ह कबीर ककसी िवश परचभलि ववभरष ट सम परदाय यामिवाद स नही बध थ

रामकमार वमाश न कबीर क दरशन क सदभश म भलखा ह - सि मि का दरशन ककसी ववरष रास तर स नही भलया वया रास तरक म कबीर की आस था नही थी त यककक रास तर एक दकषटकोर ववरष स भलए या कह जाि ह और सापरदानयकिा क आधार िर ही हटक होि हhellip अि सि सपरदाय का दरशन उिननषद भारिीय षडदरशन बलदध धमश सफी सपरदाय नाथ सपरदाय की ववश वजनीन अनभनियक क ित वक को भमलाकर सवह ि हआ ह य ित व सीध रास तर स नही आय वरन रिाकबदयक की अनभनि िला िलकर महात मात की व यावहाररक जञान की कसलटी िर कस जाकर सत सव और वक क उिदरक स

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 3: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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महत व तसबाि म ह कक व समानसत िा और धमशसत िा दवारा भकति िर चढा हदय वए आवरर को हटाकर तसक मल आरय भावीदारी को वािस लाि ह1

भकति मान भावीदारी कहन का अथश भकति क वास िववक ममश को जानन का ह भकति का वास िववक ममश राजसत िा क सामन या परभ सत िा क सामन

झकना नही ह बककक यह िो बराबरी का समिशर ह कजसक मल म परम ह िर भकति क रास ि बहि कह न ह कजसक बार म कबीर कहि ह कक -

कबीर यह घर परम का खाला का घर नाहहि | सीस उिार हाथ करर सो पस घर मााहह1

अथाशि तस परम भकति क दरबार म परवर क भलए अहकार और दभ को छोड़ना िड़वा साथ ही साथ भत ि म वह िाकि और होना चाहहए कजसम अिन घर को जला दन का दमखम हो-

ldquoकबबरा खडा बाजार म भलए लकाठी हाथ | जो घर जार आपना चल हमार साथ2

सचमच कबीर की रिो िर कबीर क साथ चलना मामली बाि नही ह कबीर जीवन भर वहार लवा लवा कर थक वए कक कोई माई का लाल िो उनक साथ चल ककन ि रिश तिनी क ोर थी कक ककसी का हलसला नही हआ कक उस िरा करि हए वह उनक साथ आए और आव बढ3 भकति कबीर क भलए एक दसाध य साधना ह तस दसाध य साधना क भलए व ककसी भत ि क सामन भसफश दो परिीक रखि ह- lsquoसिीrsquo और lsquoररवीरrsquo रर वीर यदध भभम म िीछ िर नही रखिा परारक का उत सवश करक लकष य भसवदध करिा ह वह धीर बवदध और कसथ र चचति होिा ह उसका सकक ि अववचल होिा ह कबीर को भकति साधना क

1 भरवकमार भमशर भकति आदोलन और भकति काव य 2010 ि77 2 वही ि77 3 वही ि77

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कषतर म ऐस ही दढ ननश चयी और ननभशय व यकति की आवश यकिा थी1 रर वीर को कबीर सबस बड़ा साधक मानि ह उस जीन मरन की कोई चचिा नही रहिी-

कबीर खि न छाड सखख जझि दल माहहि

आसा जीवन-मरण की मन म आन नाहहि2

रर की िरह सिी का मन अववचल होिा ह वह अिन वपरय की एकननष परभमका होिी ह व साधक को तसी सिी क तसी अनन य परम को आदरश मानन को कहि ह वह ससार क सार परलोभनक और आकषशरक को त याव कर भव म मातर अिन वपरयिम क भमलन की भावना सजाय चचिा िर चढ जािी ह यह साकतवक उत सवश उस परम साधना क उ चिम स िर िर िह चा दिा ह-

ldquoकबीर सिी जलन का नीकलो चचिधारी एक वववक िन मन सौप या पीव का िब अििर रही न रखा3

कबीर की भकति को lsquoपरमा भकतिrsquo नारदी भकति lsquoभाव भकतिrsquo तत याहद कहा जािा ह कबीर भकति क कषतर म भकति क रास तरीय परराली म दीत हकषि होकर नही उिर थ कफर भी अनजान ही उन हकन वष रव भकति सतर क सभी सतरक िथा अनासकतियक का िालन अिन भकति म ककया ह नारदी भकति क भलए नारद िाचरातर म स िष ट कि स कहा वया ह कक भववान क सववोपिाचध स वकि को ित िर होकर (अथाशि अनन य भाव स) समस ि तहदरयक और मन क दवारा सवन करना ही भकति ह10 कछ तसी िरह क लकषर कबीर क भकति क भी ह कजसम अनन य भाव की ही परमखिा ह ईश वर क परनि परम गयारह की आसकतियक वर माहत म य सकति िजासकति स मररासकति दास यासकति सखयासकति वात सक यासकति कािारकति आतमननवदवासकति िरम ववरहासकति

1रामचदर निवारी कबीर मीमासा2007 ि 75 2 मािा परसाद व ि कबीर गरथावली1969 ि 115 3वही ि 119

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म परवट होिा ह वष रव भकति क तन आसकतियक को कबीर की भकति म दखा जा सकिा ह कबीर जब अिन को राम का कतिा कहि ह िो वो दास य भाव की भकति को ही परकट कर रह होि ह-

कबीर किा राम का मतिया मरा नािउ

गल राम की जवड़ड कजि खच तिउ जािउ1

कबीर राम को अिना वपरयिम िथा अिन को उनकी बहररया कहकर कािासकति का ही िररचय दि ह- हरर मोरा पीव म हरर की बहररया राम बड म छटक लहररया2

जब कबीर हरर को जननी और अिन को उसक बट कि म परस िि करि ह िो वहा व वात सक य भाव व यत ि करि ह

हरर जननी म बालक िरा काह न औगण बकसह मरा3

राम म िरशि लीन होन की दरा कबीर क यहा अदभि कि स ह यह िरश िन मयिा की कसथनि ह लाली मर लाल की कजि दखो तिि लाल लाली दखन म गई म भी हो गई लाल4

कबीर क यहा आत म-ननवदन का स वर भी ह व अिन को समगर कि स िरमात मा क परनि ननवहदि करि ह- 1श यामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि 63 2वही 2011 ि143 3मोहन भसह ककी कबीर(अनहदि)ि-30 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85

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मरा मझ म कछ नहीि जो कछ ह सो िरा िरा िझको सौपिा त या लाग ह मरा1

िरमात मा क ववयोव म कबीर न दयदय ननकाल कर रख हदया ह परम भमलन क बाद बबरह की कसथनि बहि िड़िान वाली ह उनक यहा ववरहासकति को भरिर

मातरा म दखा जा सकिा ह- िलफ बबन बालम मोर कजया

हदन नहीि चन राि नहह तनिहदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo2

कबीर की भकति म तन आसकतियक क अनिररत ि lsquoनाम-स मररrsquo की महहमा का भी बखान हrsquoनामस मररrsquo सवर भकति एव ननवशर भकति दोनक क क दर म रहा ह ववचध ननषध स जब मन रदध हो जािा ह िभी उसम नाम स मरर की भावना उत िन न होिी ह3 कबीर कहि ह-

कबीर राम धयाइ ल कजभया सौ कहट मिि| हरर सागर कजतन बीसर छीलर दकज अनििrdquo4

कबीर न जञान और भकति क रदध कि को भमलाकर एक ऐसा रसायन बनाया कजसम सापरदानयक आडबर धाभमशक िाखणड की ब िक नही ह | यहद योव स परदरशन और क छ साधना को ननकाल कर उस सहज बना हदया जाय जञान हो भमथ या दभ एव अहकार ननकालकर उस ववनयरील बना हदया जाय और भकति स अधववश वास फलासकति एव वाहय िजाववधान ननकालकर उस रदध रावात मक परकरियया क कि म दखा जाय िो सामाजस य का वह बबद परा ि हो

1श यामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-62 2हजारी परसाद हदवदी कबीर1990 ि 250 3रामकमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 87 4श यामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि54

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सकिा ह जहा खड़ होकर कबीर िथा कचथि योचवयक िडडि और भत ि िीनक को चनलिी द रह थ1

कबीर ननवशर भकति साधना को उसक चरम िरररनि िक ल जाि ह कबीर की ननवशर भकति उस सवर राम भकति क सीध ववरोध म आिी ह कजसम राम को दररथ का ितर मानकर उनक अविारी कि का चचतरर ह कबीर राम क तस कि क कायल नही थ उनका राम िो कोई दसरा ममश रखन वाला था- दसरथ सि तिहा लोक बखाना

राम नाम को मरम ह आना2

तस परकार कबीर की भकति सहज साधना िर आधाररि हकजसम लोक को एकाकार कर लन की अदभि कषमिा ह

22 कबीर का रहस यवाद

हहदी म रहस यवाद रब द अगरजी क भमकसटभसज म का हहदी किािरर ह हहदी साहहत यकोर क अनसार अिनी अिसफररि अिरोकष अनभनि दवारा सत य िरम-ित व अथवा ईश वर का परत यकष साकषात कार करन की परवनि रहस यवाद ह3 रहस यवाद मनष य की ऐसी परवकति ह जो उनको िरमित व का अनभव करािी ह माना जािा ह कक िरमित व परा ि करन क बाद मनष य की मकति भमलिी ह रहस यवादी साधक रहस यवादी सत य क परनि आश वस ि रहिा ह तसभलए यह व यकतिवि धमश का आधार बनिी ह अनभनि क िरम कषरक म आत मा एक 1रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007ि-78 2रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007 ि78 3 धीरदर वमाश (परस) हहदी साहहतयकोर (परथम भाव )2009 ि 535

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हदव य रकति स ति-परोि निन िरम आनन द मत ि और परवकतिकि अनभव करिी ह

लडी अिडर हहल क अनसार - रहस यवाद िरम सतिा क परनि भावकिा भरी परनिकरियया को कहा ह1

परो आर डी रानाड क अनसार ldquoईश वर क परनि साधक की सरल सहज सीधी िथा परत यकष अन िपरजञात मक अनभनि ही रहस यवाद हrdquo2

साहहत य चचिकक न भी रहस यवाद को वववचन करन का परयास ककया ह आचायय रामचिदर शत ल रहस यवाद को तस परकार िररभावषि करि ह कक काव य की वह परवकति कजसम िरोकष सतिा स रावात मकसबध करक उसस भमलन िथा ववयोव की कसथनियक क काक िननक चचतर अककि ककय जाि ह3 रामचन दर रत ल काव य म िरम सतिा स रावात मक सबध िथा सयोव-ववयोव की कसथनियक म ववववध परकार क अनभनि होन की कसथनि माना ह

रामकमार वमाश क अनसार रहस यवाद जीवात मा की उस अन िहहशि परवकति का परकारन ह कजसम वह हदव य और अललककक रकति स अिना राि और ननश छल सबध जोड़ना चाहिी ह यह सबध यहा िक बढ जािा ह कक दोनक म कछ भी अिर नही रह जािा4 रहस यवाद म जीव क आत मा का िरमात मा स भमलन का आवव का परकारन होिा ह कजसस मनष य हदव य रकति परा ि कर लिा ह5

1The Poetry of my mysticism might be defined on the one hand as a temperamental reaction to the vision of prophecyरवीदर नाथ टवोर वन हडरड िोएमस ऑफ कबीर 1995 ि xix 2ldquoMysticism denotes that attitude of mind which involves a direct immediate firsthand intuitive apprehension of Godrdquo-रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007 स उदधि ि 87 3आचायश रामचदर रतल भाव -21999ि 48 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 92 5 शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011

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श यामसन दर दास कहि ह कक कवविा म रहस यवाद भावकिा का आधार िाि ह व भलखि ह- चचन िन क कषतर का रहहमवाद कवविा क कषतर म जाकर कक िना और भावकिा का आधार िाकर रहस यवाद का कि िकड़िा ह1

उियशत ि कथनक स स िष ट ह कक रहस यवाद आत मा-िरमात मा क एकात म स थाविि करन की परवकति ह यह परत यकष सयोवानभव की परकरियया ववरष ह तसकी अनभनि की अवस था म ववषय और व यकति का अववभाज य एकात म-भमशरर हो जािा ह िरमात मा सवाशिीि ह और आत मा उसकी परकनि की अराचधकारररी ह अनभनि की अवस था भी सवाशिीि होिी ह यह दयदय का धमश ह वह अिन जीवन म ववचाररा एकान ि आध याकतमक आनन द को स वीकार करिा ह साकषात कार की कसथनि अननवशचनीय होिी ह तस िरह हम कह सकि ह कक दश य जवि म व या ि उस व यत ि और अवोचर सतिा स आत मा क रावात मक सबध स थाविि करन को रहस यवाद कहा जािा ह रहस यवादी िरम सतिा की कजजञासा परकट करिा ह तसक अन िवशि एक कवव उस ववराट सतिा क परनि अिन ऐस भावोदवारक को व यत ि करिा ह कजनम सख-दख आनन द-ववषाद हास-रदन सयोव-ववयोव घल रहि ह और अननवशचनीय आनन द का अनभव ककया जा सकिा ह

दारशननक दकषट स रहस यवाद रब द बहि व यािक ह तस ककसी ववभरष ट दारशननक मि िक सीभमि करना समाचीन नही ह तसक अिवशि कई भदक को स वीकार ककया जा सकिा ह नावन दरनाथ उिाध याय रहस यवाद क यहा िर ववचार करि हए भलखि ह-परकार अथवा भद क ववषय म कभी वववचक िवी और िकशचमी का भद स वीकार करि ह कभी धमो क आधार िर ईसाई सफी हहद बलदध आहद भद स वीकार करि ह और कभी धमशननष ावादी िथा उदारवादी भदक म उनका ववभाजन करि ह िवी रहस यवाद क अिवशि भारिीय रहस यवाद म भी भदक का ननकिर कमशकाण डिरक रहस यवाद औिननषद रहस यवाद योविरक

1 वही ि 56

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रहस यवाद बलदध रहस यवाद और व यकतििरक रहस यवाद क कि म भमलिा ह अनिम परकार क भी दो कि रास तरीय और सावशललककक स वीकार ककए वए ह1 तस िरह रहस यवाद की तस व यािक अवधाररा को सवशसम मि दारशननक मान यिात क कि म बाधना कह न ह ईसाई धमश म भी रहस यवादी िि व भमलि ह बातबबल रहस यवाद का शरष गरथ हउसक एविभसक स नामक अरक म ईश वर क परत यकष साकषात कार की हदव यानभनि का वरशन ह सि िाल की शरदधा आस था और ववश वास का आधार यह हदव य साकषात कार ही ह2 तस िरह ईसाई धमश क अिवशि बहि स सि ऐस हए ह जो रहस यवादी हतस लाम म रहस यवाद का परारभ सफीवाद स हआ उनकी साधना म अनक सीह िया िार करनी होिी ह परायकशचि िररविशन त याव दररदरिा धयश ईश वर म ववश वास ईश वर छा म सिोष आहद तनक उिराि आध याकतमक अनभनि की भय आरा परम यास और साकषात कार की दराए आिी ह सफी साधना स दररदरिा िि और िववतरिा यत ि जीवन िथा सदवक की किा अननवायश ह3 उियशत ि वववरर स सिषट ह कक तस लामी रहस यवाद म भी िरम ित व वक की महिा अध याकतमक अनभनि साकषात कार आहद का समावर ह यह भारिीय रहस यवाद स अचधक ननकट ह वजाली जलालददीन सफी हाकफज उमर खयास ननजामीसादी और जामी परभसदध ईरानी सफी कवव ह भारि म भी सफी सि और कवव हए ह

हहदी म आहदकाल स रहस यवाद की िरम िरा रही ह हहदी साहहत य क आरभभक रहस यवादी कवव भसदध ह हहदी साहहत य क मध य यव (भकतिकाल) म सवर एव ननवशर दो किक म रहस यवादी रचनाए परचर मातरा म उिलब ध ह तस यव म रहस यवादी रचनाकार कबीर नानक दाद सरदास िलसीदास मीराबाई आहद बहि स कवव ह अन य भारिीय भाषात म भी रहस यवादी रचनाए

1वासदव भसह(स) कबीर 2004 ि 138 2धीरदर वमाश (परस) हहदी साहहतयकोर (परथम भाव )2009 ि 37 3वही ि-37

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उिलब ध ह रवीदरनाथ स परभाववि होकर छायावादी कववयक न भी रहस यवादी रचनाए दी एक िरह स यह कबतरम रहस वाद ह

उियशत ि वववररक स स िष ट ह कक रहस यवादी ववचार बहि ही व यािक ह ककसी न ककसी कि म यह मनष य क आहदम काल स आज िक उिकसथि ह तसक ववववध परकार और भद ह यह ककसी ववभरष ट अवधाररा म नही बधा ह िकशचमी रहस यवाद और भारिीय रहस यवाद म अन िर क बावजद समान ित व मलजद ह

रहस यवाद की कसथति

रामकमार वमाश न रहस यवाद की िीन िररकसथनियक का उक लख ककया ह- 1 िहली िररकसथनि वह ह जहा व यकति ववरष अनि रकति स अिना सबध जोड़न क भलए अगरसर होिा ह1

2 दवविीय कसथनि िब आिी ह जब आत मा िरमात मा स परम करन लव जािी ह भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक आत मा म एक परकार का उन माद या िावलिन छा जािा ह2

3 तसक िश चाि रहस यवाहदयक की िीसरी कसथनि आिी ह जो रहस यवाद की चरम सीमा बिला सकिी ह तस दरा म आत मा और िरमात मा का तिना ऐत य हो जािा ह कक कफर उनम कोई भभन निा नही रहिी3

उियशत ि उदधररक स स िष ट ह रहस यवाद म िरम सत िा क परनि कजजञासा की भावना रहिी ह रहस यवादी साधक िरम सत िा क महत व का परदरशन करि हए उसस भमलन या दरशन करन का परयास करि ह भलनिक ववध और त लष स

1रामकमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 96 2वही ि 97 3 वहीि 97

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छटकारा िान क बाद उस सत िा का आभास या दरशन होिा ह िथा ससार का वास िववक जञान या िरोकष अनभनि होिी ह कफर आत मा और िरमात मा का चचर भमलन होिा ह आत मा म िरमात मा क वरक का समाहार हो जािा ह कबीर क रहस यवाद की कसथनि और ववरषिा क अध ययन स ििा चलिा ह कक रहस यवाद क कछ सामान य ित वक क अनिररत ि उनकी अलव ववरषिा ह उनक रहस यवाद म भारिीय और ववदरी दोनक परकार की ववरषिात का समावर ह यह कबीर क हहद और मसलमान दोनक परकार क सिक क साननध य म रहन का िररराम ह कबीर रहस यवादी कसथनियक को बड़ सजीव िव स परस िि करि ह यथा-

(1) कजजञासा की भावना- रहस यवाद म िरम ित व को जानन की त छा िीवर होिी ह उसी िरह कबीर म भी कजजञासा की भावना ह कबीर का ईश वर ननवशर एव ननराकार ह वह सवशतर ववदयमान ह कबीर का मन अिन तष टदव क परनि कजजञासा उत िन न करि ह और जानना चाहि ह कक वह रहहम कसा ह कहा ह और ककस िरह वह अिनी सिरश करियया करिा रहिा ह तस चचिन म डबकर भलखि ह कक कजस रहहम का न कि ह न रखा ह और न कजसका वरश ह वह त या ह यह रहहमाण ड िथा य परार कहा स आि ह मि जीव कहा जाकर ववलीन हो जािा ह जीवक की समस ि तकनदरया कहा ववशराम करिी ह वह मरन क बाद कहा जािी ह-

कबीर जानना चाहि ह कक lsquoरब दrsquoकहा लीन हो जािा ह जब रहहम और विड कछ नही ह िब िच ित व कहा लीन हो जािा ह समस ि वर कहा समा जाि ह- ldquoसििो धागा टटा गगन ववतनभस गया सबद ज कहाा समाई ए सिसा मोहह तनस हदन व याप कोई न कह समझाई

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नहीि बरहमािड पतन नााही पिच ित व भी नाहीि इडा वप िगला सखमन नााही ए गण कहाा समाहीि1

उियशत ि िकतियक स स िष ट ह कक कबीर क मकसिष क म कििहल कजजञासा एव ववस मय की भावना ह कबीर सब कछ जानन क भलए िीवर उत क ा व यत ि करि ह

(2)बरहम का महततव परदशयन और अतनवयचनीयिा-

कजजञासा और किहल की कसथनि म साधक को िथ-परदरशक की आवश यकिा िड़िी ह अि साधक सिवक की ररर म िह च जािा ह वक की किा स ही जञान की आ धी आिी ह और भरम टट जािा ह कबीर कहि ह कक वक अिन हाथ म कमान लकर उसस परम सहहि ऐसा उिदर किीबार चलािा ह कक वह भरष य क दयदय म लविा ह- सिगर लई कमािण करर बााहण लागा िीर एक ज बाहय परीति सा भीिरी रहया सरीर2

अललककक सतिा अननवशचनीय ह वह अदभि और अललककक सतिा ह जो सवशतर वयाि होकर भी कही हदखाई नही दिी उसका िररचय मन बवदध एव वारी स परा ि करना सवशथा असम भव ह और उसका वरशन करना व व का वड़ ह कफर भी वरशन करन कापरयत न करि हए कहि ह कक कभी उस lsquoिहि बास स िािराrsquo कहकर उसकी सकष मानि सकष म कसथनि की तर सकि करि ह िो कभी उस िज-िज िारसमिर कहकर उसकी शरष िा का परनििादन करि ह कबीर िरम सत िा को एक ऐसा रसायर कहि ह कजसम स िरश मातर स सारा ररीर कचन बन जािा ह

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 125 2वही ि 49

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सब रसायन म ककया हरर सा और न कोई तिल इक घट म सिचर िौ सब िन कि चन होइ1

तस िरह स िष ट ह कक कबीर उस अव यत ि िरम सत िा की महतिा शरष िा का परनििादन करि ह साथ ही उसकी अननवशचनीयिा भी स वीकार करि ह (3) दशयन और भमलन का परयत न- रहस यवादी साधक िरम ित व स साकषात कार या भमलन का परयत न करि ह कजस िरह एक ववयोचवनी परमी स भमलन क भलए आिर रहिी ह उसी िरह कबीर भी िरम सत िा स भमलन का परयत न करि ह कबीर भावकिा म अवयति सत िा स भमलना चाहि ह रहस यवादी कववयक म भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक िरम ित व स भमलन क भलए िावलिन छा जािा ह रामकमार वमाश क अनसार कजस परकार ककसी जलपरिाि क याद म समीि क सभी छोट छोट स वर अिननशहहि हो जाि ह ीक उसी परकार उस ईश वरीय परम म सार ववचार या िो ल ि हो जाि ह अथवा उसी परम क बहाव म बह जाि ह2 कबीर भमलन की उत क ा म स वय को भस म कर दना चाहि ह भमलन क परयत न म कबीर ररीर को जलाकर राख कर डालना चाहि ह और कहि ह कक उस राख की स याही बनाकर अिनी हडडी की लखनी स अिन वपरयतिम राम क िास चचटठी भलखकर भज सम भवि िभी मरा स मरर हो सकवा और व मझस भमलन आ सक व- यह िन जारौ मभस करौ भलखौ राम का नाऊा

लखनी करा करिक की भलखख भलखख राम पठाउा 3

कबीर कहि ह ववरह स वय मझस कह रहा ह कक ि मझ कभी मि छोड़ना त यककक म ही िझ उस िरम रहहम क िज म लीन कर द वा- 1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 61 2राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-97 33शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 54

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ववरह कह कबीर सौ ि कजन छााछ मोहह पार बरहम क िज म िहाा ल राखो िोहह1

कबीर की िकतियक म कजस िरह का परयत न ह वह परम का चरमोत कषश ह तसम दाम ित य परम ह कजसम स वय को राम की बहररया कहि ह तसभलए िरषोतिम अगरवाल का कथन ह - ldquoउनकी साधना ही परम क सबस सकशलष ट कि दाित य रनि का किक ह2 तस दाम ित य कि म कबीर िरम सतिा का वपरयिमा ह अगरवाल जी आव कहि ह -रीनि-ररवाज धमश-कमश और परदत ि मयाशदा का िरषोन मख महावरा नारी ननदा करिा ह िो साधना का परमोन मख महावरा कवव को नारी ही बना दिा ह3 तस िरह कबीर क मन म ऊषमा ह जनन ह जो आत मानभनि की तर अगरसर करिा ह

(4) सिसाररक बाधाएा

ननवकति रहस यवादी साधना िथ िर अनक परकार क ससाररक कष टक का सामना करना िड़िा ह उस िरम सतिा का साकषात कार सरलिा स सभव नही होिा कबीर न भी अिन साधना िथ िर अनक सासाररक ववघनक का सामना ककया ह उनहोन सबस बड़ा कारर माया को माना ह तस माया क कारर ही काम रियोध लोभ मोह आहद ववकार सिाि रहि ह तसक दो परमख कि ह- कचन और काभमनी कबीर कहि ह कक माया व याभभचारररी ह मोहहनी ह और सभी जीवक को धोखक म डालिी रहिी ह माया विराचनी ह-कबीर माया डाकणीि सब ककसही कौ खाइ4

वक क किा स कबीर का मन तस ससार स ववमख होकर ईश वरोन मख हआ तस कसथनि को परा ि करन क भलए उन ह अिन मन का िरश िररषकार 1दवाररका परसाद सतसनाहहनदी क पराचीन परनिननचध कवव( नवीिम स) ि 85 2िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 3िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि74

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करना िड़ा कबीर न मन को ननयबतरि करन िरमात मा क नाम का स मरर करन आचरर को रदध रखन ववचार और आचरर म एकिा लान सासाररक परलोभनक स अलव रहन सत य को गरहर करन अहहसात मक दकषटकोर को अिनानअहकार को तयावन और जीवन को मत ि होन की आवश यकिा िर जो बार-बार बल हदया ह वह मन क िररष कार क भलए ही होिा ह सब वक की किा स सभव होि ह-

कबीर िीछ लावा जात था लोक वद क साथ आव थ सिवक भमक या दीिक दीया हाचथ1 उियशत ि वववचन स स िष ट ह कक कबीर की साधना क मावशम ववघ न आि ह और उनस ननवकति का उिाय भी बिाि ह (5) िरम सतिा क दरशन का आभास

रहस यवाद म जब कोई साधक माया-मोह िर ववजय परा ि करक मावश क समस ि भलनिक ववघ न को िार कर साधना मावश िर आव बढिा ह वह थोड़ा आध याकतमक ससार म िह च जािा ह साधक क दयदय म जञान ज योनि का िीवर आलोक भर जािा ह तस सासाररक अधकार स दर हदव य रकति का दरशन करन लविा ह कबीर कहि ह- हद छाड़ ड बहहद गया हआ तनरन िर बास का वल ज फल या फल बबन को नीरष दास2

अथाशि म ससीम को िार करक असीम म िह च वया वही मरा राशवि ननवास हो वया वहा मन अनभव ककया कक बबना फल क एक कमल िखला हआ ह तसका दरशन भववान का ननजी दास ही कर सकिा ह तस िरह कबीर सासाररक माया मोह िर ववजय परा ि करक रहहम ज योनि दरशन करन लविा हlsquoरहहम-ज योनिrsquo का दरशन सब नहीबककक कोई साधक ही कर सकिा ह 1मािा परसाद वि कबीर गरथावली 1969 ि- 41 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 58

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(6) वास िववक जञान और परमानभति

जब ककसी साधक को िरम सतिा का आभास होन लविा ह िो उसक दयदय म जञान की ज योनि जलन लविी ह और उस वास िववक ससार का बोध होन लविा ह यही जञान भरभमि परािरयक का मावश-दरशन करिी ह कबीर कहि ह कक कजस उतकटिा और िीवरिा क साथ मन माया-जनय ववषयक म रमिा ह उिनी ही उत कटिा और िीवरिा क साथ यहद वह राम म रम जाए िो वह साधक िारामण डल स भी िर वहा िह च सकिा ह जहा स वह आया ह अथाशि उस रहहम म लीन हो जािा ह- जस माया मन रम या ज राम रमाइ िौ िारामण डल छााड़ड करर जहाा क सो िहाा जाई1

स थायी भमलन

रहस यवाद की अनिम कसथनि आत मा और िरमात मा का स थायी भमलन माना वया ह भमलन की तस अवस था को कबीर न ववववध परिीकक और किकक क माध यम स कहा ह स वय को दकहन बिाि हए कबीर कहि ह कजस परकार एक ित नी अिन िनि क साथ रयन करिी ह उसी परकार आत मा और िरमात मा दोनक एक होकर रयन करि ह‒

बहि हदनन थ परीिम पाए बड घर बठ आए मिहदर मााहह भया उकजयारा ल सिी अपना पीव प यारा2

कबीर न चचर भमलन का किक ववाहहक उत सव क माध यम स व यत ि ककया ह- दलहहन गावहा मिगलाचार हम घरर आय हो परम पररस भरिार| िन रति करर म मन रति करहा पिच िति बरािी|1

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि59 2 वहीि 117

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वववाहोिराि िरम ित व स अदभि भमलन होिा ह कजसस अननवचशनीय आनद की उिलब ध होिी ह कबीर कहि ह भववान की सवनि स म रीिल हो वया ह अब मोह की िाि भमट वई ह अब अदर म साकषात कार हो जान क कारर म राि-हदन सख की ननचध परा ि कर रहा ह हरर सिगति सीिल भया भमटा मोह की िाप तनस बासरर सख तनध य लहयाजब अििरर परकटना आप2

तस िरह आत म ित व और िरम ित व का स थायी भमलन हो जािा ह भत ि और भववान साधक और साध य जीव और रहहम एक हो जाि ह दोनक अमर हो जाि ह

कबीर क कावय म वयति रहसयवादी िररकसथयक का अध ययन करन िर जञाि होिा ह कक उनकी रहसयवाद की अिनी ववरषिाए ह तन िर हहदत क अदविवाद िथा मसलमानक क सफी-मि का परभाव लत हकषि होि ह तनक रहस यवाद म आकसिकिा माधयश भावना अन िमशखी साधना परम ित व भावनात मक सबधक का समावर ह रकर क अदविवाद का परादभाशव 8वी रिाब दी म होिा ह अदविवाद क अनसार आत मा और िरमात मा एक सतिा ह माया क कारर ही िरमात मा क नाम और कि का अकसित व ह वस िि आि मा और िरमात मा एक ही रकति क दो भाव ह जो माया क कारर अलव ह लककन व िन एक ही म भमल जाि ह तस परकरियया को कबीर तस िरह व यत ि करि ह

जल म कि भ कि भ म जल ह बाहहर भीिर पानी फटा कि भ जल जलहह समान यह िि कथो चगयानी3

1 जीएनदास लव स गज ऑफ कबीर1994 ि 39 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 59 3वहीि 128

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जल म भरा घड़ा जल म िर रहा ह तसक बाहरभीिर िानी ह घड़ा (माया) फटन िर जल एक हो जािा ह

ईसा क 8वी रिाब दी म तस लाम धमश क अिवशि तनक िरिरावि आदरो क ववरोध म सफी सपरदाय का उदय हआ सफीमि म बद और खदा का एकीकरर हो सकिा ह िर माया की ववरष चचाश नही ह िरमात मा स भमलन क भलए आत मा की चार दराए िार करनी िड़िी ह- (1) ररीयि (2) िरीकि (3)हकीकि(4) माररफि

तन दरात को िार करक ही आत मा और िरमात मा का सकममलन होिा ह तस परकार आत माम िरमात मा का अनभव होन लविा ह दसरी बाि यह ह कक सफी मि म परम का अर महत विरश हपरम ही कमश ह और परम ही धमश ह रामकमार वमाश का कथन ह कक ननस वाथश परम ही सफीमि का परार ह फारसी म कजिन सफी कवव ह व कवविा म परम क अनिररत ि कछ जानि ही नही ह1परम सफीमि म नरा ह खमारी ह परम क नर म साधक को ससार का कछ ध यान नही रहिा कबीर न भलखा ह-

हरर रसपीया जाातनय कबहा न जाय खमार ममििा घामि रह नााही िन की सार2

सफीमि म ईश वर स तरी कि म ह िर कबीर यहा ईश वर िरष कि म ह कबीर क रहस यवाद क बार म आव रामकमार वमाश न भलखा ह कबीर न अिन रहस यवाद क स िष टीकरर म दोनक की अदविवाद और सफीमि की बाि ली ह फलि उन हकन अदविवाद स माया और चचिन िथा सफीमि स परम लकर अिन रहस यवाद की सकषट की हrsquorsquo3

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 102 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-61 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-104

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रहस यवाद म परम का महत विरश स थान ह तसम उिनी जञान की आवश यकिा नही ह कजिन परम की तसभलए कबीर कहि ह- अ कथ कहानी परम की कछ कही न जाई गाग करी सरकरा बठा मसकाई1

परम की कहानी अकथ ह जो उसका आस वाद ल लिा ह वह व व क रत कर खान क अनभव जसा होिा ह कजसका वरशन वह नही कर सकिा तसभलए कबीर क रहस यवाद को भकतिमलक और परममलक रहस यवाद जाना जा सकिा ह

23 कबीर का दाशयतनक ववचार

मानव एक ववचाररील परारी ह ससार म घहटि होन वाल परत यक वनिववचध क परनि जावकक रहिा ह और चचिन क माध यम स रहस य समझन का परयत न करि ह ितिशचाि एक ववचार का जन म होिा ह यही ववचार दरशन का कि धारर करिा ह दारशननक ववचार जब भाव म किािररि होि ह िो भकति का ववषय बनिा ह

दरशन रब द का राकबदक अथश चाकषष परत यकष साकषात कार जानना2 तत याहद ह सामान य कि म परत यक व यकति का कोई न कोई दरशन अवश य होिा ह रास तर क कि म वह रास तर कजसम आत मा अनात मा जीव रहहम परकनि िरष जवि धमश मोकष मानव जीवन क उददश य आहद का ननकिर हो3 अगरजी कोर क अनसार ldquoदरशन एक अध ययन ह कजसम जीवन और जवि क परकनि और अथश का अध ययन ककया जािा हrdquo4सामान य अथश म lsquoदरशनrsquo का परयोव ककसी ववचार या भसदधाि की व याख या िाककश क ियशवकषर अथवा ववभभन न 1जीएनदास लव सागस ऑफ कबीर1994 ि-115 2 काभलक परासाद( स )वहि हहनदी कोर 1992 ि 509 3वही 509 4 The Study of the nature and meaning of universe and the human life- एस हॉनशबीऔतसफोडश लनशर डडतसनरी 2010 ि 1137

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ित व चचिन की परकरिययात क भलए आिा हककि मल कि म यह आत म जञान ित व जञान अथवा िरम ित व क जञान कि म आिा ह यह अनभव का िाककश क अथवा परमािरक मीमासा ह यह ससार क ममश को उदघाहटि करिा ह यह िरष परकनि का जञान ह

भकति काव य म भत ि कववयक न अिन आचायवोप स दारननशक िततववादी भसदधािक का जञान परा ि ककया ह परा ि जञान को उन हकन अिनी रचनात म अनभव क स िर िर उिारा ह भत ि कवव अिनी रचनात क स िर िर िहल रचनाकार ह उस सीध िलर िर दारशननक नही कहा जा सकिा उनक काव य म चचिन भावाभभव यकति की अिकषा वलर ह यदयवि भत ि कवव ककसी न ककसी वष रव आचायश क भरष य मान जाि ह िरन ि उनक काव य म सबदध आचायो क ित ववाद को िाककश क चचिन क कि म िरररि नही ह जहा िक कबीर का परशन ह िो यह कहा जा सकिा ह कक कबीर अचधक स वितर व यकतित व क साधक ह कबीर मलि दारशननक नही ह िरन ि उनक काव य म कई िरह क भसदधािक को दखा जा सकिा ह कबीर ककसी िवश परचभलि ववभरष ट सम परदाय यामिवाद स नही बध थ

रामकमार वमाश न कबीर क दरशन क सदभश म भलखा ह - सि मि का दरशन ककसी ववरष रास तर स नही भलया वया रास तरक म कबीर की आस था नही थी त यककक रास तर एक दकषटकोर ववरष स भलए या कह जाि ह और सापरदानयकिा क आधार िर ही हटक होि हhellip अि सि सपरदाय का दरशन उिननषद भारिीय षडदरशन बलदध धमश सफी सपरदाय नाथ सपरदाय की ववश वजनीन अनभनियक क ित वक को भमलाकर सवह ि हआ ह य ित व सीध रास तर स नही आय वरन रिाकबदयक की अनभनि िला िलकर महात मात की व यावहाररक जञान की कसलटी िर कस जाकर सत सव और वक क उिदरक स

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

102

वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 4: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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कषतर म ऐस ही दढ ननश चयी और ननभशय व यकति की आवश यकिा थी1 रर वीर को कबीर सबस बड़ा साधक मानि ह उस जीन मरन की कोई चचिा नही रहिी-

कबीर खि न छाड सखख जझि दल माहहि

आसा जीवन-मरण की मन म आन नाहहि2

रर की िरह सिी का मन अववचल होिा ह वह अिन वपरय की एकननष परभमका होिी ह व साधक को तसी सिी क तसी अनन य परम को आदरश मानन को कहि ह वह ससार क सार परलोभनक और आकषशरक को त याव कर भव म मातर अिन वपरयिम क भमलन की भावना सजाय चचिा िर चढ जािी ह यह साकतवक उत सवश उस परम साधना क उ चिम स िर िर िह चा दिा ह-

ldquoकबीर सिी जलन का नीकलो चचिधारी एक वववक िन मन सौप या पीव का िब अििर रही न रखा3

कबीर की भकति को lsquoपरमा भकतिrsquo नारदी भकति lsquoभाव भकतिrsquo तत याहद कहा जािा ह कबीर भकति क कषतर म भकति क रास तरीय परराली म दीत हकषि होकर नही उिर थ कफर भी अनजान ही उन हकन वष रव भकति सतर क सभी सतरक िथा अनासकतियक का िालन अिन भकति म ककया ह नारदी भकति क भलए नारद िाचरातर म स िष ट कि स कहा वया ह कक भववान क सववोपिाचध स वकि को ित िर होकर (अथाशि अनन य भाव स) समस ि तहदरयक और मन क दवारा सवन करना ही भकति ह10 कछ तसी िरह क लकषर कबीर क भकति क भी ह कजसम अनन य भाव की ही परमखिा ह ईश वर क परनि परम गयारह की आसकतियक वर माहत म य सकति िजासकति स मररासकति दास यासकति सखयासकति वात सक यासकति कािारकति आतमननवदवासकति िरम ववरहासकति

1रामचदर निवारी कबीर मीमासा2007 ि 75 2 मािा परसाद व ि कबीर गरथावली1969 ि 115 3वही ि 119

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म परवट होिा ह वष रव भकति क तन आसकतियक को कबीर की भकति म दखा जा सकिा ह कबीर जब अिन को राम का कतिा कहि ह िो वो दास य भाव की भकति को ही परकट कर रह होि ह-

कबीर किा राम का मतिया मरा नािउ

गल राम की जवड़ड कजि खच तिउ जािउ1

कबीर राम को अिना वपरयिम िथा अिन को उनकी बहररया कहकर कािासकति का ही िररचय दि ह- हरर मोरा पीव म हरर की बहररया राम बड म छटक लहररया2

जब कबीर हरर को जननी और अिन को उसक बट कि म परस िि करि ह िो वहा व वात सक य भाव व यत ि करि ह

हरर जननी म बालक िरा काह न औगण बकसह मरा3

राम म िरशि लीन होन की दरा कबीर क यहा अदभि कि स ह यह िरश िन मयिा की कसथनि ह लाली मर लाल की कजि दखो तिि लाल लाली दखन म गई म भी हो गई लाल4

कबीर क यहा आत म-ननवदन का स वर भी ह व अिन को समगर कि स िरमात मा क परनि ननवहदि करि ह- 1श यामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि 63 2वही 2011 ि143 3मोहन भसह ककी कबीर(अनहदि)ि-30 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85

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मरा मझ म कछ नहीि जो कछ ह सो िरा िरा िझको सौपिा त या लाग ह मरा1

िरमात मा क ववयोव म कबीर न दयदय ननकाल कर रख हदया ह परम भमलन क बाद बबरह की कसथनि बहि िड़िान वाली ह उनक यहा ववरहासकति को भरिर

मातरा म दखा जा सकिा ह- िलफ बबन बालम मोर कजया

हदन नहीि चन राि नहह तनिहदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo2

कबीर की भकति म तन आसकतियक क अनिररत ि lsquoनाम-स मररrsquo की महहमा का भी बखान हrsquoनामस मररrsquo सवर भकति एव ननवशर भकति दोनक क क दर म रहा ह ववचध ननषध स जब मन रदध हो जािा ह िभी उसम नाम स मरर की भावना उत िन न होिी ह3 कबीर कहि ह-

कबीर राम धयाइ ल कजभया सौ कहट मिि| हरर सागर कजतन बीसर छीलर दकज अनििrdquo4

कबीर न जञान और भकति क रदध कि को भमलाकर एक ऐसा रसायन बनाया कजसम सापरदानयक आडबर धाभमशक िाखणड की ब िक नही ह | यहद योव स परदरशन और क छ साधना को ननकाल कर उस सहज बना हदया जाय जञान हो भमथ या दभ एव अहकार ननकालकर उस ववनयरील बना हदया जाय और भकति स अधववश वास फलासकति एव वाहय िजाववधान ननकालकर उस रदध रावात मक परकरियया क कि म दखा जाय िो सामाजस य का वह बबद परा ि हो

1श यामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-62 2हजारी परसाद हदवदी कबीर1990 ि 250 3रामकमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 87 4श यामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि54

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सकिा ह जहा खड़ होकर कबीर िथा कचथि योचवयक िडडि और भत ि िीनक को चनलिी द रह थ1

कबीर ननवशर भकति साधना को उसक चरम िरररनि िक ल जाि ह कबीर की ननवशर भकति उस सवर राम भकति क सीध ववरोध म आिी ह कजसम राम को दररथ का ितर मानकर उनक अविारी कि का चचतरर ह कबीर राम क तस कि क कायल नही थ उनका राम िो कोई दसरा ममश रखन वाला था- दसरथ सि तिहा लोक बखाना

राम नाम को मरम ह आना2

तस परकार कबीर की भकति सहज साधना िर आधाररि हकजसम लोक को एकाकार कर लन की अदभि कषमिा ह

22 कबीर का रहस यवाद

हहदी म रहस यवाद रब द अगरजी क भमकसटभसज म का हहदी किािरर ह हहदी साहहत यकोर क अनसार अिनी अिसफररि अिरोकष अनभनि दवारा सत य िरम-ित व अथवा ईश वर का परत यकष साकषात कार करन की परवनि रहस यवाद ह3 रहस यवाद मनष य की ऐसी परवकति ह जो उनको िरमित व का अनभव करािी ह माना जािा ह कक िरमित व परा ि करन क बाद मनष य की मकति भमलिी ह रहस यवादी साधक रहस यवादी सत य क परनि आश वस ि रहिा ह तसभलए यह व यकतिवि धमश का आधार बनिी ह अनभनि क िरम कषरक म आत मा एक 1रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007ि-78 2रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007 ि78 3 धीरदर वमाश (परस) हहदी साहहतयकोर (परथम भाव )2009 ि 535

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हदव य रकति स ति-परोि निन िरम आनन द मत ि और परवकतिकि अनभव करिी ह

लडी अिडर हहल क अनसार - रहस यवाद िरम सतिा क परनि भावकिा भरी परनिकरियया को कहा ह1

परो आर डी रानाड क अनसार ldquoईश वर क परनि साधक की सरल सहज सीधी िथा परत यकष अन िपरजञात मक अनभनि ही रहस यवाद हrdquo2

साहहत य चचिकक न भी रहस यवाद को वववचन करन का परयास ककया ह आचायय रामचिदर शत ल रहस यवाद को तस परकार िररभावषि करि ह कक काव य की वह परवकति कजसम िरोकष सतिा स रावात मकसबध करक उसस भमलन िथा ववयोव की कसथनियक क काक िननक चचतर अककि ककय जाि ह3 रामचन दर रत ल काव य म िरम सतिा स रावात मक सबध िथा सयोव-ववयोव की कसथनियक म ववववध परकार क अनभनि होन की कसथनि माना ह

रामकमार वमाश क अनसार रहस यवाद जीवात मा की उस अन िहहशि परवकति का परकारन ह कजसम वह हदव य और अललककक रकति स अिना राि और ननश छल सबध जोड़ना चाहिी ह यह सबध यहा िक बढ जािा ह कक दोनक म कछ भी अिर नही रह जािा4 रहस यवाद म जीव क आत मा का िरमात मा स भमलन का आवव का परकारन होिा ह कजसस मनष य हदव य रकति परा ि कर लिा ह5

1The Poetry of my mysticism might be defined on the one hand as a temperamental reaction to the vision of prophecyरवीदर नाथ टवोर वन हडरड िोएमस ऑफ कबीर 1995 ि xix 2ldquoMysticism denotes that attitude of mind which involves a direct immediate firsthand intuitive apprehension of Godrdquo-रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007 स उदधि ि 87 3आचायश रामचदर रतल भाव -21999ि 48 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 92 5 शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011

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श यामसन दर दास कहि ह कक कवविा म रहस यवाद भावकिा का आधार िाि ह व भलखि ह- चचन िन क कषतर का रहहमवाद कवविा क कषतर म जाकर कक िना और भावकिा का आधार िाकर रहस यवाद का कि िकड़िा ह1

उियशत ि कथनक स स िष ट ह कक रहस यवाद आत मा-िरमात मा क एकात म स थाविि करन की परवकति ह यह परत यकष सयोवानभव की परकरियया ववरष ह तसकी अनभनि की अवस था म ववषय और व यकति का अववभाज य एकात म-भमशरर हो जािा ह िरमात मा सवाशिीि ह और आत मा उसकी परकनि की अराचधकारररी ह अनभनि की अवस था भी सवाशिीि होिी ह यह दयदय का धमश ह वह अिन जीवन म ववचाररा एकान ि आध याकतमक आनन द को स वीकार करिा ह साकषात कार की कसथनि अननवशचनीय होिी ह तस िरह हम कह सकि ह कक दश य जवि म व या ि उस व यत ि और अवोचर सतिा स आत मा क रावात मक सबध स थाविि करन को रहस यवाद कहा जािा ह रहस यवादी िरम सतिा की कजजञासा परकट करिा ह तसक अन िवशि एक कवव उस ववराट सतिा क परनि अिन ऐस भावोदवारक को व यत ि करिा ह कजनम सख-दख आनन द-ववषाद हास-रदन सयोव-ववयोव घल रहि ह और अननवशचनीय आनन द का अनभव ककया जा सकिा ह

दारशननक दकषट स रहस यवाद रब द बहि व यािक ह तस ककसी ववभरष ट दारशननक मि िक सीभमि करना समाचीन नही ह तसक अिवशि कई भदक को स वीकार ककया जा सकिा ह नावन दरनाथ उिाध याय रहस यवाद क यहा िर ववचार करि हए भलखि ह-परकार अथवा भद क ववषय म कभी वववचक िवी और िकशचमी का भद स वीकार करि ह कभी धमो क आधार िर ईसाई सफी हहद बलदध आहद भद स वीकार करि ह और कभी धमशननष ावादी िथा उदारवादी भदक म उनका ववभाजन करि ह िवी रहस यवाद क अिवशि भारिीय रहस यवाद म भी भदक का ननकिर कमशकाण डिरक रहस यवाद औिननषद रहस यवाद योविरक

1 वही ि 56

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रहस यवाद बलदध रहस यवाद और व यकतििरक रहस यवाद क कि म भमलिा ह अनिम परकार क भी दो कि रास तरीय और सावशललककक स वीकार ककए वए ह1 तस िरह रहस यवाद की तस व यािक अवधाररा को सवशसम मि दारशननक मान यिात क कि म बाधना कह न ह ईसाई धमश म भी रहस यवादी िि व भमलि ह बातबबल रहस यवाद का शरष गरथ हउसक एविभसक स नामक अरक म ईश वर क परत यकष साकषात कार की हदव यानभनि का वरशन ह सि िाल की शरदधा आस था और ववश वास का आधार यह हदव य साकषात कार ही ह2 तस िरह ईसाई धमश क अिवशि बहि स सि ऐस हए ह जो रहस यवादी हतस लाम म रहस यवाद का परारभ सफीवाद स हआ उनकी साधना म अनक सीह िया िार करनी होिी ह परायकशचि िररविशन त याव दररदरिा धयश ईश वर म ववश वास ईश वर छा म सिोष आहद तनक उिराि आध याकतमक अनभनि की भय आरा परम यास और साकषात कार की दराए आिी ह सफी साधना स दररदरिा िि और िववतरिा यत ि जीवन िथा सदवक की किा अननवायश ह3 उियशत ि वववरर स सिषट ह कक तस लामी रहस यवाद म भी िरम ित व वक की महिा अध याकतमक अनभनि साकषात कार आहद का समावर ह यह भारिीय रहस यवाद स अचधक ननकट ह वजाली जलालददीन सफी हाकफज उमर खयास ननजामीसादी और जामी परभसदध ईरानी सफी कवव ह भारि म भी सफी सि और कवव हए ह

हहदी म आहदकाल स रहस यवाद की िरम िरा रही ह हहदी साहहत य क आरभभक रहस यवादी कवव भसदध ह हहदी साहहत य क मध य यव (भकतिकाल) म सवर एव ननवशर दो किक म रहस यवादी रचनाए परचर मातरा म उिलब ध ह तस यव म रहस यवादी रचनाकार कबीर नानक दाद सरदास िलसीदास मीराबाई आहद बहि स कवव ह अन य भारिीय भाषात म भी रहस यवादी रचनाए

1वासदव भसह(स) कबीर 2004 ि 138 2धीरदर वमाश (परस) हहदी साहहतयकोर (परथम भाव )2009 ि 37 3वही ि-37

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उिलब ध ह रवीदरनाथ स परभाववि होकर छायावादी कववयक न भी रहस यवादी रचनाए दी एक िरह स यह कबतरम रहस वाद ह

उियशत ि वववररक स स िष ट ह कक रहस यवादी ववचार बहि ही व यािक ह ककसी न ककसी कि म यह मनष य क आहदम काल स आज िक उिकसथि ह तसक ववववध परकार और भद ह यह ककसी ववभरष ट अवधाररा म नही बधा ह िकशचमी रहस यवाद और भारिीय रहस यवाद म अन िर क बावजद समान ित व मलजद ह

रहस यवाद की कसथति

रामकमार वमाश न रहस यवाद की िीन िररकसथनियक का उक लख ककया ह- 1 िहली िररकसथनि वह ह जहा व यकति ववरष अनि रकति स अिना सबध जोड़न क भलए अगरसर होिा ह1

2 दवविीय कसथनि िब आिी ह जब आत मा िरमात मा स परम करन लव जािी ह भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक आत मा म एक परकार का उन माद या िावलिन छा जािा ह2

3 तसक िश चाि रहस यवाहदयक की िीसरी कसथनि आिी ह जो रहस यवाद की चरम सीमा बिला सकिी ह तस दरा म आत मा और िरमात मा का तिना ऐत य हो जािा ह कक कफर उनम कोई भभन निा नही रहिी3

उियशत ि उदधररक स स िष ट ह रहस यवाद म िरम सत िा क परनि कजजञासा की भावना रहिी ह रहस यवादी साधक िरम सत िा क महत व का परदरशन करि हए उसस भमलन या दरशन करन का परयास करि ह भलनिक ववध और त लष स

1रामकमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 96 2वही ि 97 3 वहीि 97

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छटकारा िान क बाद उस सत िा का आभास या दरशन होिा ह िथा ससार का वास िववक जञान या िरोकष अनभनि होिी ह कफर आत मा और िरमात मा का चचर भमलन होिा ह आत मा म िरमात मा क वरक का समाहार हो जािा ह कबीर क रहस यवाद की कसथनि और ववरषिा क अध ययन स ििा चलिा ह कक रहस यवाद क कछ सामान य ित वक क अनिररत ि उनकी अलव ववरषिा ह उनक रहस यवाद म भारिीय और ववदरी दोनक परकार की ववरषिात का समावर ह यह कबीर क हहद और मसलमान दोनक परकार क सिक क साननध य म रहन का िररराम ह कबीर रहस यवादी कसथनियक को बड़ सजीव िव स परस िि करि ह यथा-

(1) कजजञासा की भावना- रहस यवाद म िरम ित व को जानन की त छा िीवर होिी ह उसी िरह कबीर म भी कजजञासा की भावना ह कबीर का ईश वर ननवशर एव ननराकार ह वह सवशतर ववदयमान ह कबीर का मन अिन तष टदव क परनि कजजञासा उत िन न करि ह और जानना चाहि ह कक वह रहहम कसा ह कहा ह और ककस िरह वह अिनी सिरश करियया करिा रहिा ह तस चचिन म डबकर भलखि ह कक कजस रहहम का न कि ह न रखा ह और न कजसका वरश ह वह त या ह यह रहहमाण ड िथा य परार कहा स आि ह मि जीव कहा जाकर ववलीन हो जािा ह जीवक की समस ि तकनदरया कहा ववशराम करिी ह वह मरन क बाद कहा जािी ह-

कबीर जानना चाहि ह कक lsquoरब दrsquoकहा लीन हो जािा ह जब रहहम और विड कछ नही ह िब िच ित व कहा लीन हो जािा ह समस ि वर कहा समा जाि ह- ldquoसििो धागा टटा गगन ववतनभस गया सबद ज कहाा समाई ए सिसा मोहह तनस हदन व याप कोई न कह समझाई

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नहीि बरहमािड पतन नााही पिच ित व भी नाहीि इडा वप िगला सखमन नााही ए गण कहाा समाहीि1

उियशत ि िकतियक स स िष ट ह कक कबीर क मकसिष क म कििहल कजजञासा एव ववस मय की भावना ह कबीर सब कछ जानन क भलए िीवर उत क ा व यत ि करि ह

(2)बरहम का महततव परदशयन और अतनवयचनीयिा-

कजजञासा और किहल की कसथनि म साधक को िथ-परदरशक की आवश यकिा िड़िी ह अि साधक सिवक की ररर म िह च जािा ह वक की किा स ही जञान की आ धी आिी ह और भरम टट जािा ह कबीर कहि ह कक वक अिन हाथ म कमान लकर उसस परम सहहि ऐसा उिदर किीबार चलािा ह कक वह भरष य क दयदय म लविा ह- सिगर लई कमािण करर बााहण लागा िीर एक ज बाहय परीति सा भीिरी रहया सरीर2

अललककक सतिा अननवशचनीय ह वह अदभि और अललककक सतिा ह जो सवशतर वयाि होकर भी कही हदखाई नही दिी उसका िररचय मन बवदध एव वारी स परा ि करना सवशथा असम भव ह और उसका वरशन करना व व का वड़ ह कफर भी वरशन करन कापरयत न करि हए कहि ह कक कभी उस lsquoिहि बास स िािराrsquo कहकर उसकी सकष मानि सकष म कसथनि की तर सकि करि ह िो कभी उस िज-िज िारसमिर कहकर उसकी शरष िा का परनििादन करि ह कबीर िरम सत िा को एक ऐसा रसायर कहि ह कजसम स िरश मातर स सारा ररीर कचन बन जािा ह

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 125 2वही ि 49

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सब रसायन म ककया हरर सा और न कोई तिल इक घट म सिचर िौ सब िन कि चन होइ1

तस िरह स िष ट ह कक कबीर उस अव यत ि िरम सत िा की महतिा शरष िा का परनििादन करि ह साथ ही उसकी अननवशचनीयिा भी स वीकार करि ह (3) दशयन और भमलन का परयत न- रहस यवादी साधक िरम ित व स साकषात कार या भमलन का परयत न करि ह कजस िरह एक ववयोचवनी परमी स भमलन क भलए आिर रहिी ह उसी िरह कबीर भी िरम सत िा स भमलन का परयत न करि ह कबीर भावकिा म अवयति सत िा स भमलना चाहि ह रहस यवादी कववयक म भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक िरम ित व स भमलन क भलए िावलिन छा जािा ह रामकमार वमाश क अनसार कजस परकार ककसी जलपरिाि क याद म समीि क सभी छोट छोट स वर अिननशहहि हो जाि ह ीक उसी परकार उस ईश वरीय परम म सार ववचार या िो ल ि हो जाि ह अथवा उसी परम क बहाव म बह जाि ह2 कबीर भमलन की उत क ा म स वय को भस म कर दना चाहि ह भमलन क परयत न म कबीर ररीर को जलाकर राख कर डालना चाहि ह और कहि ह कक उस राख की स याही बनाकर अिनी हडडी की लखनी स अिन वपरयतिम राम क िास चचटठी भलखकर भज सम भवि िभी मरा स मरर हो सकवा और व मझस भमलन आ सक व- यह िन जारौ मभस करौ भलखौ राम का नाऊा

लखनी करा करिक की भलखख भलखख राम पठाउा 3

कबीर कहि ह ववरह स वय मझस कह रहा ह कक ि मझ कभी मि छोड़ना त यककक म ही िझ उस िरम रहहम क िज म लीन कर द वा- 1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 61 2राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-97 33शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 54

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ववरह कह कबीर सौ ि कजन छााछ मोहह पार बरहम क िज म िहाा ल राखो िोहह1

कबीर की िकतियक म कजस िरह का परयत न ह वह परम का चरमोत कषश ह तसम दाम ित य परम ह कजसम स वय को राम की बहररया कहि ह तसभलए िरषोतिम अगरवाल का कथन ह - ldquoउनकी साधना ही परम क सबस सकशलष ट कि दाित य रनि का किक ह2 तस दाम ित य कि म कबीर िरम सतिा का वपरयिमा ह अगरवाल जी आव कहि ह -रीनि-ररवाज धमश-कमश और परदत ि मयाशदा का िरषोन मख महावरा नारी ननदा करिा ह िो साधना का परमोन मख महावरा कवव को नारी ही बना दिा ह3 तस िरह कबीर क मन म ऊषमा ह जनन ह जो आत मानभनि की तर अगरसर करिा ह

(4) सिसाररक बाधाएा

ननवकति रहस यवादी साधना िथ िर अनक परकार क ससाररक कष टक का सामना करना िड़िा ह उस िरम सतिा का साकषात कार सरलिा स सभव नही होिा कबीर न भी अिन साधना िथ िर अनक सासाररक ववघनक का सामना ककया ह उनहोन सबस बड़ा कारर माया को माना ह तस माया क कारर ही काम रियोध लोभ मोह आहद ववकार सिाि रहि ह तसक दो परमख कि ह- कचन और काभमनी कबीर कहि ह कक माया व याभभचारररी ह मोहहनी ह और सभी जीवक को धोखक म डालिी रहिी ह माया विराचनी ह-कबीर माया डाकणीि सब ककसही कौ खाइ4

वक क किा स कबीर का मन तस ससार स ववमख होकर ईश वरोन मख हआ तस कसथनि को परा ि करन क भलए उन ह अिन मन का िरश िररषकार 1दवाररका परसाद सतसनाहहनदी क पराचीन परनिननचध कवव( नवीिम स) ि 85 2िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 3िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि74

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करना िड़ा कबीर न मन को ननयबतरि करन िरमात मा क नाम का स मरर करन आचरर को रदध रखन ववचार और आचरर म एकिा लान सासाररक परलोभनक स अलव रहन सत य को गरहर करन अहहसात मक दकषटकोर को अिनानअहकार को तयावन और जीवन को मत ि होन की आवश यकिा िर जो बार-बार बल हदया ह वह मन क िररष कार क भलए ही होिा ह सब वक की किा स सभव होि ह-

कबीर िीछ लावा जात था लोक वद क साथ आव थ सिवक भमक या दीिक दीया हाचथ1 उियशत ि वववचन स स िष ट ह कक कबीर की साधना क मावशम ववघ न आि ह और उनस ननवकति का उिाय भी बिाि ह (5) िरम सतिा क दरशन का आभास

रहस यवाद म जब कोई साधक माया-मोह िर ववजय परा ि करक मावश क समस ि भलनिक ववघ न को िार कर साधना मावश िर आव बढिा ह वह थोड़ा आध याकतमक ससार म िह च जािा ह साधक क दयदय म जञान ज योनि का िीवर आलोक भर जािा ह तस सासाररक अधकार स दर हदव य रकति का दरशन करन लविा ह कबीर कहि ह- हद छाड़ ड बहहद गया हआ तनरन िर बास का वल ज फल या फल बबन को नीरष दास2

अथाशि म ससीम को िार करक असीम म िह च वया वही मरा राशवि ननवास हो वया वहा मन अनभव ककया कक बबना फल क एक कमल िखला हआ ह तसका दरशन भववान का ननजी दास ही कर सकिा ह तस िरह कबीर सासाररक माया मोह िर ववजय परा ि करक रहहम ज योनि दरशन करन लविा हlsquoरहहम-ज योनिrsquo का दरशन सब नहीबककक कोई साधक ही कर सकिा ह 1मािा परसाद वि कबीर गरथावली 1969 ि- 41 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 58

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(6) वास िववक जञान और परमानभति

जब ककसी साधक को िरम सतिा का आभास होन लविा ह िो उसक दयदय म जञान की ज योनि जलन लविी ह और उस वास िववक ससार का बोध होन लविा ह यही जञान भरभमि परािरयक का मावश-दरशन करिी ह कबीर कहि ह कक कजस उतकटिा और िीवरिा क साथ मन माया-जनय ववषयक म रमिा ह उिनी ही उत कटिा और िीवरिा क साथ यहद वह राम म रम जाए िो वह साधक िारामण डल स भी िर वहा िह च सकिा ह जहा स वह आया ह अथाशि उस रहहम म लीन हो जािा ह- जस माया मन रम या ज राम रमाइ िौ िारामण डल छााड़ड करर जहाा क सो िहाा जाई1

स थायी भमलन

रहस यवाद की अनिम कसथनि आत मा और िरमात मा का स थायी भमलन माना वया ह भमलन की तस अवस था को कबीर न ववववध परिीकक और किकक क माध यम स कहा ह स वय को दकहन बिाि हए कबीर कहि ह कजस परकार एक ित नी अिन िनि क साथ रयन करिी ह उसी परकार आत मा और िरमात मा दोनक एक होकर रयन करि ह‒

बहि हदनन थ परीिम पाए बड घर बठ आए मिहदर मााहह भया उकजयारा ल सिी अपना पीव प यारा2

कबीर न चचर भमलन का किक ववाहहक उत सव क माध यम स व यत ि ककया ह- दलहहन गावहा मिगलाचार हम घरर आय हो परम पररस भरिार| िन रति करर म मन रति करहा पिच िति बरािी|1

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि59 2 वहीि 117

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वववाहोिराि िरम ित व स अदभि भमलन होिा ह कजसस अननवचशनीय आनद की उिलब ध होिी ह कबीर कहि ह भववान की सवनि स म रीिल हो वया ह अब मोह की िाि भमट वई ह अब अदर म साकषात कार हो जान क कारर म राि-हदन सख की ननचध परा ि कर रहा ह हरर सिगति सीिल भया भमटा मोह की िाप तनस बासरर सख तनध य लहयाजब अििरर परकटना आप2

तस िरह आत म ित व और िरम ित व का स थायी भमलन हो जािा ह भत ि और भववान साधक और साध य जीव और रहहम एक हो जाि ह दोनक अमर हो जाि ह

कबीर क कावय म वयति रहसयवादी िररकसथयक का अध ययन करन िर जञाि होिा ह कक उनकी रहसयवाद की अिनी ववरषिाए ह तन िर हहदत क अदविवाद िथा मसलमानक क सफी-मि का परभाव लत हकषि होि ह तनक रहस यवाद म आकसिकिा माधयश भावना अन िमशखी साधना परम ित व भावनात मक सबधक का समावर ह रकर क अदविवाद का परादभाशव 8वी रिाब दी म होिा ह अदविवाद क अनसार आत मा और िरमात मा एक सतिा ह माया क कारर ही िरमात मा क नाम और कि का अकसित व ह वस िि आि मा और िरमात मा एक ही रकति क दो भाव ह जो माया क कारर अलव ह लककन व िन एक ही म भमल जाि ह तस परकरियया को कबीर तस िरह व यत ि करि ह

जल म कि भ कि भ म जल ह बाहहर भीिर पानी फटा कि भ जल जलहह समान यह िि कथो चगयानी3

1 जीएनदास लव स गज ऑफ कबीर1994 ि 39 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 59 3वहीि 128

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जल म भरा घड़ा जल म िर रहा ह तसक बाहरभीिर िानी ह घड़ा (माया) फटन िर जल एक हो जािा ह

ईसा क 8वी रिाब दी म तस लाम धमश क अिवशि तनक िरिरावि आदरो क ववरोध म सफी सपरदाय का उदय हआ सफीमि म बद और खदा का एकीकरर हो सकिा ह िर माया की ववरष चचाश नही ह िरमात मा स भमलन क भलए आत मा की चार दराए िार करनी िड़िी ह- (1) ररीयि (2) िरीकि (3)हकीकि(4) माररफि

तन दरात को िार करक ही आत मा और िरमात मा का सकममलन होिा ह तस परकार आत माम िरमात मा का अनभव होन लविा ह दसरी बाि यह ह कक सफी मि म परम का अर महत विरश हपरम ही कमश ह और परम ही धमश ह रामकमार वमाश का कथन ह कक ननस वाथश परम ही सफीमि का परार ह फारसी म कजिन सफी कवव ह व कवविा म परम क अनिररत ि कछ जानि ही नही ह1परम सफीमि म नरा ह खमारी ह परम क नर म साधक को ससार का कछ ध यान नही रहिा कबीर न भलखा ह-

हरर रसपीया जाातनय कबहा न जाय खमार ममििा घामि रह नााही िन की सार2

सफीमि म ईश वर स तरी कि म ह िर कबीर यहा ईश वर िरष कि म ह कबीर क रहस यवाद क बार म आव रामकमार वमाश न भलखा ह कबीर न अिन रहस यवाद क स िष टीकरर म दोनक की अदविवाद और सफीमि की बाि ली ह फलि उन हकन अदविवाद स माया और चचिन िथा सफीमि स परम लकर अिन रहस यवाद की सकषट की हrsquorsquo3

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 102 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-61 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-104

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रहस यवाद म परम का महत विरश स थान ह तसम उिनी जञान की आवश यकिा नही ह कजिन परम की तसभलए कबीर कहि ह- अ कथ कहानी परम की कछ कही न जाई गाग करी सरकरा बठा मसकाई1

परम की कहानी अकथ ह जो उसका आस वाद ल लिा ह वह व व क रत कर खान क अनभव जसा होिा ह कजसका वरशन वह नही कर सकिा तसभलए कबीर क रहस यवाद को भकतिमलक और परममलक रहस यवाद जाना जा सकिा ह

23 कबीर का दाशयतनक ववचार

मानव एक ववचाररील परारी ह ससार म घहटि होन वाल परत यक वनिववचध क परनि जावकक रहिा ह और चचिन क माध यम स रहस य समझन का परयत न करि ह ितिशचाि एक ववचार का जन म होिा ह यही ववचार दरशन का कि धारर करिा ह दारशननक ववचार जब भाव म किािररि होि ह िो भकति का ववषय बनिा ह

दरशन रब द का राकबदक अथश चाकषष परत यकष साकषात कार जानना2 तत याहद ह सामान य कि म परत यक व यकति का कोई न कोई दरशन अवश य होिा ह रास तर क कि म वह रास तर कजसम आत मा अनात मा जीव रहहम परकनि िरष जवि धमश मोकष मानव जीवन क उददश य आहद का ननकिर हो3 अगरजी कोर क अनसार ldquoदरशन एक अध ययन ह कजसम जीवन और जवि क परकनि और अथश का अध ययन ककया जािा हrdquo4सामान य अथश म lsquoदरशनrsquo का परयोव ककसी ववचार या भसदधाि की व याख या िाककश क ियशवकषर अथवा ववभभन न 1जीएनदास लव सागस ऑफ कबीर1994 ि-115 2 काभलक परासाद( स )वहि हहनदी कोर 1992 ि 509 3वही 509 4 The Study of the nature and meaning of universe and the human life- एस हॉनशबीऔतसफोडश लनशर डडतसनरी 2010 ि 1137

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ित व चचिन की परकरिययात क भलए आिा हककि मल कि म यह आत म जञान ित व जञान अथवा िरम ित व क जञान कि म आिा ह यह अनभव का िाककश क अथवा परमािरक मीमासा ह यह ससार क ममश को उदघाहटि करिा ह यह िरष परकनि का जञान ह

भकति काव य म भत ि कववयक न अिन आचायवोप स दारननशक िततववादी भसदधािक का जञान परा ि ककया ह परा ि जञान को उन हकन अिनी रचनात म अनभव क स िर िर उिारा ह भत ि कवव अिनी रचनात क स िर िर िहल रचनाकार ह उस सीध िलर िर दारशननक नही कहा जा सकिा उनक काव य म चचिन भावाभभव यकति की अिकषा वलर ह यदयवि भत ि कवव ककसी न ककसी वष रव आचायश क भरष य मान जाि ह िरन ि उनक काव य म सबदध आचायो क ित ववाद को िाककश क चचिन क कि म िरररि नही ह जहा िक कबीर का परशन ह िो यह कहा जा सकिा ह कक कबीर अचधक स वितर व यकतित व क साधक ह कबीर मलि दारशननक नही ह िरन ि उनक काव य म कई िरह क भसदधािक को दखा जा सकिा ह कबीर ककसी िवश परचभलि ववभरष ट सम परदाय यामिवाद स नही बध थ

रामकमार वमाश न कबीर क दरशन क सदभश म भलखा ह - सि मि का दरशन ककसी ववरष रास तर स नही भलया वया रास तरक म कबीर की आस था नही थी त यककक रास तर एक दकषटकोर ववरष स भलए या कह जाि ह और सापरदानयकिा क आधार िर ही हटक होि हhellip अि सि सपरदाय का दरशन उिननषद भारिीय षडदरशन बलदध धमश सफी सपरदाय नाथ सपरदाय की ववश वजनीन अनभनियक क ित वक को भमलाकर सवह ि हआ ह य ित व सीध रास तर स नही आय वरन रिाकबदयक की अनभनि िला िलकर महात मात की व यावहाररक जञान की कसलटी िर कस जाकर सत सव और वक क उिदरक स

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

99

2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

101

परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 5: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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म परवट होिा ह वष रव भकति क तन आसकतियक को कबीर की भकति म दखा जा सकिा ह कबीर जब अिन को राम का कतिा कहि ह िो वो दास य भाव की भकति को ही परकट कर रह होि ह-

कबीर किा राम का मतिया मरा नािउ

गल राम की जवड़ड कजि खच तिउ जािउ1

कबीर राम को अिना वपरयिम िथा अिन को उनकी बहररया कहकर कािासकति का ही िररचय दि ह- हरर मोरा पीव म हरर की बहररया राम बड म छटक लहररया2

जब कबीर हरर को जननी और अिन को उसक बट कि म परस िि करि ह िो वहा व वात सक य भाव व यत ि करि ह

हरर जननी म बालक िरा काह न औगण बकसह मरा3

राम म िरशि लीन होन की दरा कबीर क यहा अदभि कि स ह यह िरश िन मयिा की कसथनि ह लाली मर लाल की कजि दखो तिि लाल लाली दखन म गई म भी हो गई लाल4

कबीर क यहा आत म-ननवदन का स वर भी ह व अिन को समगर कि स िरमात मा क परनि ननवहदि करि ह- 1श यामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि 63 2वही 2011 ि143 3मोहन भसह ककी कबीर(अनहदि)ि-30 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85

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मरा मझ म कछ नहीि जो कछ ह सो िरा िरा िझको सौपिा त या लाग ह मरा1

िरमात मा क ववयोव म कबीर न दयदय ननकाल कर रख हदया ह परम भमलन क बाद बबरह की कसथनि बहि िड़िान वाली ह उनक यहा ववरहासकति को भरिर

मातरा म दखा जा सकिा ह- िलफ बबन बालम मोर कजया

हदन नहीि चन राि नहह तनिहदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo2

कबीर की भकति म तन आसकतियक क अनिररत ि lsquoनाम-स मररrsquo की महहमा का भी बखान हrsquoनामस मररrsquo सवर भकति एव ननवशर भकति दोनक क क दर म रहा ह ववचध ननषध स जब मन रदध हो जािा ह िभी उसम नाम स मरर की भावना उत िन न होिी ह3 कबीर कहि ह-

कबीर राम धयाइ ल कजभया सौ कहट मिि| हरर सागर कजतन बीसर छीलर दकज अनििrdquo4

कबीर न जञान और भकति क रदध कि को भमलाकर एक ऐसा रसायन बनाया कजसम सापरदानयक आडबर धाभमशक िाखणड की ब िक नही ह | यहद योव स परदरशन और क छ साधना को ननकाल कर उस सहज बना हदया जाय जञान हो भमथ या दभ एव अहकार ननकालकर उस ववनयरील बना हदया जाय और भकति स अधववश वास फलासकति एव वाहय िजाववधान ननकालकर उस रदध रावात मक परकरियया क कि म दखा जाय िो सामाजस य का वह बबद परा ि हो

1श यामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-62 2हजारी परसाद हदवदी कबीर1990 ि 250 3रामकमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 87 4श यामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि54

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सकिा ह जहा खड़ होकर कबीर िथा कचथि योचवयक िडडि और भत ि िीनक को चनलिी द रह थ1

कबीर ननवशर भकति साधना को उसक चरम िरररनि िक ल जाि ह कबीर की ननवशर भकति उस सवर राम भकति क सीध ववरोध म आिी ह कजसम राम को दररथ का ितर मानकर उनक अविारी कि का चचतरर ह कबीर राम क तस कि क कायल नही थ उनका राम िो कोई दसरा ममश रखन वाला था- दसरथ सि तिहा लोक बखाना

राम नाम को मरम ह आना2

तस परकार कबीर की भकति सहज साधना िर आधाररि हकजसम लोक को एकाकार कर लन की अदभि कषमिा ह

22 कबीर का रहस यवाद

हहदी म रहस यवाद रब द अगरजी क भमकसटभसज म का हहदी किािरर ह हहदी साहहत यकोर क अनसार अिनी अिसफररि अिरोकष अनभनि दवारा सत य िरम-ित व अथवा ईश वर का परत यकष साकषात कार करन की परवनि रहस यवाद ह3 रहस यवाद मनष य की ऐसी परवकति ह जो उनको िरमित व का अनभव करािी ह माना जािा ह कक िरमित व परा ि करन क बाद मनष य की मकति भमलिी ह रहस यवादी साधक रहस यवादी सत य क परनि आश वस ि रहिा ह तसभलए यह व यकतिवि धमश का आधार बनिी ह अनभनि क िरम कषरक म आत मा एक 1रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007ि-78 2रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007 ि78 3 धीरदर वमाश (परस) हहदी साहहतयकोर (परथम भाव )2009 ि 535

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हदव य रकति स ति-परोि निन िरम आनन द मत ि और परवकतिकि अनभव करिी ह

लडी अिडर हहल क अनसार - रहस यवाद िरम सतिा क परनि भावकिा भरी परनिकरियया को कहा ह1

परो आर डी रानाड क अनसार ldquoईश वर क परनि साधक की सरल सहज सीधी िथा परत यकष अन िपरजञात मक अनभनि ही रहस यवाद हrdquo2

साहहत य चचिकक न भी रहस यवाद को वववचन करन का परयास ककया ह आचायय रामचिदर शत ल रहस यवाद को तस परकार िररभावषि करि ह कक काव य की वह परवकति कजसम िरोकष सतिा स रावात मकसबध करक उसस भमलन िथा ववयोव की कसथनियक क काक िननक चचतर अककि ककय जाि ह3 रामचन दर रत ल काव य म िरम सतिा स रावात मक सबध िथा सयोव-ववयोव की कसथनियक म ववववध परकार क अनभनि होन की कसथनि माना ह

रामकमार वमाश क अनसार रहस यवाद जीवात मा की उस अन िहहशि परवकति का परकारन ह कजसम वह हदव य और अललककक रकति स अिना राि और ननश छल सबध जोड़ना चाहिी ह यह सबध यहा िक बढ जािा ह कक दोनक म कछ भी अिर नही रह जािा4 रहस यवाद म जीव क आत मा का िरमात मा स भमलन का आवव का परकारन होिा ह कजसस मनष य हदव य रकति परा ि कर लिा ह5

1The Poetry of my mysticism might be defined on the one hand as a temperamental reaction to the vision of prophecyरवीदर नाथ टवोर वन हडरड िोएमस ऑफ कबीर 1995 ि xix 2ldquoMysticism denotes that attitude of mind which involves a direct immediate firsthand intuitive apprehension of Godrdquo-रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007 स उदधि ि 87 3आचायश रामचदर रतल भाव -21999ि 48 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 92 5 शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011

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श यामसन दर दास कहि ह कक कवविा म रहस यवाद भावकिा का आधार िाि ह व भलखि ह- चचन िन क कषतर का रहहमवाद कवविा क कषतर म जाकर कक िना और भावकिा का आधार िाकर रहस यवाद का कि िकड़िा ह1

उियशत ि कथनक स स िष ट ह कक रहस यवाद आत मा-िरमात मा क एकात म स थाविि करन की परवकति ह यह परत यकष सयोवानभव की परकरियया ववरष ह तसकी अनभनि की अवस था म ववषय और व यकति का अववभाज य एकात म-भमशरर हो जािा ह िरमात मा सवाशिीि ह और आत मा उसकी परकनि की अराचधकारररी ह अनभनि की अवस था भी सवाशिीि होिी ह यह दयदय का धमश ह वह अिन जीवन म ववचाररा एकान ि आध याकतमक आनन द को स वीकार करिा ह साकषात कार की कसथनि अननवशचनीय होिी ह तस िरह हम कह सकि ह कक दश य जवि म व या ि उस व यत ि और अवोचर सतिा स आत मा क रावात मक सबध स थाविि करन को रहस यवाद कहा जािा ह रहस यवादी िरम सतिा की कजजञासा परकट करिा ह तसक अन िवशि एक कवव उस ववराट सतिा क परनि अिन ऐस भावोदवारक को व यत ि करिा ह कजनम सख-दख आनन द-ववषाद हास-रदन सयोव-ववयोव घल रहि ह और अननवशचनीय आनन द का अनभव ककया जा सकिा ह

दारशननक दकषट स रहस यवाद रब द बहि व यािक ह तस ककसी ववभरष ट दारशननक मि िक सीभमि करना समाचीन नही ह तसक अिवशि कई भदक को स वीकार ककया जा सकिा ह नावन दरनाथ उिाध याय रहस यवाद क यहा िर ववचार करि हए भलखि ह-परकार अथवा भद क ववषय म कभी वववचक िवी और िकशचमी का भद स वीकार करि ह कभी धमो क आधार िर ईसाई सफी हहद बलदध आहद भद स वीकार करि ह और कभी धमशननष ावादी िथा उदारवादी भदक म उनका ववभाजन करि ह िवी रहस यवाद क अिवशि भारिीय रहस यवाद म भी भदक का ननकिर कमशकाण डिरक रहस यवाद औिननषद रहस यवाद योविरक

1 वही ि 56

70

रहस यवाद बलदध रहस यवाद और व यकतििरक रहस यवाद क कि म भमलिा ह अनिम परकार क भी दो कि रास तरीय और सावशललककक स वीकार ककए वए ह1 तस िरह रहस यवाद की तस व यािक अवधाररा को सवशसम मि दारशननक मान यिात क कि म बाधना कह न ह ईसाई धमश म भी रहस यवादी िि व भमलि ह बातबबल रहस यवाद का शरष गरथ हउसक एविभसक स नामक अरक म ईश वर क परत यकष साकषात कार की हदव यानभनि का वरशन ह सि िाल की शरदधा आस था और ववश वास का आधार यह हदव य साकषात कार ही ह2 तस िरह ईसाई धमश क अिवशि बहि स सि ऐस हए ह जो रहस यवादी हतस लाम म रहस यवाद का परारभ सफीवाद स हआ उनकी साधना म अनक सीह िया िार करनी होिी ह परायकशचि िररविशन त याव दररदरिा धयश ईश वर म ववश वास ईश वर छा म सिोष आहद तनक उिराि आध याकतमक अनभनि की भय आरा परम यास और साकषात कार की दराए आिी ह सफी साधना स दररदरिा िि और िववतरिा यत ि जीवन िथा सदवक की किा अननवायश ह3 उियशत ि वववरर स सिषट ह कक तस लामी रहस यवाद म भी िरम ित व वक की महिा अध याकतमक अनभनि साकषात कार आहद का समावर ह यह भारिीय रहस यवाद स अचधक ननकट ह वजाली जलालददीन सफी हाकफज उमर खयास ननजामीसादी और जामी परभसदध ईरानी सफी कवव ह भारि म भी सफी सि और कवव हए ह

हहदी म आहदकाल स रहस यवाद की िरम िरा रही ह हहदी साहहत य क आरभभक रहस यवादी कवव भसदध ह हहदी साहहत य क मध य यव (भकतिकाल) म सवर एव ननवशर दो किक म रहस यवादी रचनाए परचर मातरा म उिलब ध ह तस यव म रहस यवादी रचनाकार कबीर नानक दाद सरदास िलसीदास मीराबाई आहद बहि स कवव ह अन य भारिीय भाषात म भी रहस यवादी रचनाए

1वासदव भसह(स) कबीर 2004 ि 138 2धीरदर वमाश (परस) हहदी साहहतयकोर (परथम भाव )2009 ि 37 3वही ि-37

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उिलब ध ह रवीदरनाथ स परभाववि होकर छायावादी कववयक न भी रहस यवादी रचनाए दी एक िरह स यह कबतरम रहस वाद ह

उियशत ि वववररक स स िष ट ह कक रहस यवादी ववचार बहि ही व यािक ह ककसी न ककसी कि म यह मनष य क आहदम काल स आज िक उिकसथि ह तसक ववववध परकार और भद ह यह ककसी ववभरष ट अवधाररा म नही बधा ह िकशचमी रहस यवाद और भारिीय रहस यवाद म अन िर क बावजद समान ित व मलजद ह

रहस यवाद की कसथति

रामकमार वमाश न रहस यवाद की िीन िररकसथनियक का उक लख ककया ह- 1 िहली िररकसथनि वह ह जहा व यकति ववरष अनि रकति स अिना सबध जोड़न क भलए अगरसर होिा ह1

2 दवविीय कसथनि िब आिी ह जब आत मा िरमात मा स परम करन लव जािी ह भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक आत मा म एक परकार का उन माद या िावलिन छा जािा ह2

3 तसक िश चाि रहस यवाहदयक की िीसरी कसथनि आिी ह जो रहस यवाद की चरम सीमा बिला सकिी ह तस दरा म आत मा और िरमात मा का तिना ऐत य हो जािा ह कक कफर उनम कोई भभन निा नही रहिी3

उियशत ि उदधररक स स िष ट ह रहस यवाद म िरम सत िा क परनि कजजञासा की भावना रहिी ह रहस यवादी साधक िरम सत िा क महत व का परदरशन करि हए उसस भमलन या दरशन करन का परयास करि ह भलनिक ववध और त लष स

1रामकमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 96 2वही ि 97 3 वहीि 97

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छटकारा िान क बाद उस सत िा का आभास या दरशन होिा ह िथा ससार का वास िववक जञान या िरोकष अनभनि होिी ह कफर आत मा और िरमात मा का चचर भमलन होिा ह आत मा म िरमात मा क वरक का समाहार हो जािा ह कबीर क रहस यवाद की कसथनि और ववरषिा क अध ययन स ििा चलिा ह कक रहस यवाद क कछ सामान य ित वक क अनिररत ि उनकी अलव ववरषिा ह उनक रहस यवाद म भारिीय और ववदरी दोनक परकार की ववरषिात का समावर ह यह कबीर क हहद और मसलमान दोनक परकार क सिक क साननध य म रहन का िररराम ह कबीर रहस यवादी कसथनियक को बड़ सजीव िव स परस िि करि ह यथा-

(1) कजजञासा की भावना- रहस यवाद म िरम ित व को जानन की त छा िीवर होिी ह उसी िरह कबीर म भी कजजञासा की भावना ह कबीर का ईश वर ननवशर एव ननराकार ह वह सवशतर ववदयमान ह कबीर का मन अिन तष टदव क परनि कजजञासा उत िन न करि ह और जानना चाहि ह कक वह रहहम कसा ह कहा ह और ककस िरह वह अिनी सिरश करियया करिा रहिा ह तस चचिन म डबकर भलखि ह कक कजस रहहम का न कि ह न रखा ह और न कजसका वरश ह वह त या ह यह रहहमाण ड िथा य परार कहा स आि ह मि जीव कहा जाकर ववलीन हो जािा ह जीवक की समस ि तकनदरया कहा ववशराम करिी ह वह मरन क बाद कहा जािी ह-

कबीर जानना चाहि ह कक lsquoरब दrsquoकहा लीन हो जािा ह जब रहहम और विड कछ नही ह िब िच ित व कहा लीन हो जािा ह समस ि वर कहा समा जाि ह- ldquoसििो धागा टटा गगन ववतनभस गया सबद ज कहाा समाई ए सिसा मोहह तनस हदन व याप कोई न कह समझाई

73

नहीि बरहमािड पतन नााही पिच ित व भी नाहीि इडा वप िगला सखमन नााही ए गण कहाा समाहीि1

उियशत ि िकतियक स स िष ट ह कक कबीर क मकसिष क म कििहल कजजञासा एव ववस मय की भावना ह कबीर सब कछ जानन क भलए िीवर उत क ा व यत ि करि ह

(2)बरहम का महततव परदशयन और अतनवयचनीयिा-

कजजञासा और किहल की कसथनि म साधक को िथ-परदरशक की आवश यकिा िड़िी ह अि साधक सिवक की ररर म िह च जािा ह वक की किा स ही जञान की आ धी आिी ह और भरम टट जािा ह कबीर कहि ह कक वक अिन हाथ म कमान लकर उसस परम सहहि ऐसा उिदर किीबार चलािा ह कक वह भरष य क दयदय म लविा ह- सिगर लई कमािण करर बााहण लागा िीर एक ज बाहय परीति सा भीिरी रहया सरीर2

अललककक सतिा अननवशचनीय ह वह अदभि और अललककक सतिा ह जो सवशतर वयाि होकर भी कही हदखाई नही दिी उसका िररचय मन बवदध एव वारी स परा ि करना सवशथा असम भव ह और उसका वरशन करना व व का वड़ ह कफर भी वरशन करन कापरयत न करि हए कहि ह कक कभी उस lsquoिहि बास स िािराrsquo कहकर उसकी सकष मानि सकष म कसथनि की तर सकि करि ह िो कभी उस िज-िज िारसमिर कहकर उसकी शरष िा का परनििादन करि ह कबीर िरम सत िा को एक ऐसा रसायर कहि ह कजसम स िरश मातर स सारा ररीर कचन बन जािा ह

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 125 2वही ि 49

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सब रसायन म ककया हरर सा और न कोई तिल इक घट म सिचर िौ सब िन कि चन होइ1

तस िरह स िष ट ह कक कबीर उस अव यत ि िरम सत िा की महतिा शरष िा का परनििादन करि ह साथ ही उसकी अननवशचनीयिा भी स वीकार करि ह (3) दशयन और भमलन का परयत न- रहस यवादी साधक िरम ित व स साकषात कार या भमलन का परयत न करि ह कजस िरह एक ववयोचवनी परमी स भमलन क भलए आिर रहिी ह उसी िरह कबीर भी िरम सत िा स भमलन का परयत न करि ह कबीर भावकिा म अवयति सत िा स भमलना चाहि ह रहस यवादी कववयक म भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक िरम ित व स भमलन क भलए िावलिन छा जािा ह रामकमार वमाश क अनसार कजस परकार ककसी जलपरिाि क याद म समीि क सभी छोट छोट स वर अिननशहहि हो जाि ह ीक उसी परकार उस ईश वरीय परम म सार ववचार या िो ल ि हो जाि ह अथवा उसी परम क बहाव म बह जाि ह2 कबीर भमलन की उत क ा म स वय को भस म कर दना चाहि ह भमलन क परयत न म कबीर ररीर को जलाकर राख कर डालना चाहि ह और कहि ह कक उस राख की स याही बनाकर अिनी हडडी की लखनी स अिन वपरयतिम राम क िास चचटठी भलखकर भज सम भवि िभी मरा स मरर हो सकवा और व मझस भमलन आ सक व- यह िन जारौ मभस करौ भलखौ राम का नाऊा

लखनी करा करिक की भलखख भलखख राम पठाउा 3

कबीर कहि ह ववरह स वय मझस कह रहा ह कक ि मझ कभी मि छोड़ना त यककक म ही िझ उस िरम रहहम क िज म लीन कर द वा- 1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 61 2राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-97 33शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 54

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ववरह कह कबीर सौ ि कजन छााछ मोहह पार बरहम क िज म िहाा ल राखो िोहह1

कबीर की िकतियक म कजस िरह का परयत न ह वह परम का चरमोत कषश ह तसम दाम ित य परम ह कजसम स वय को राम की बहररया कहि ह तसभलए िरषोतिम अगरवाल का कथन ह - ldquoउनकी साधना ही परम क सबस सकशलष ट कि दाित य रनि का किक ह2 तस दाम ित य कि म कबीर िरम सतिा का वपरयिमा ह अगरवाल जी आव कहि ह -रीनि-ररवाज धमश-कमश और परदत ि मयाशदा का िरषोन मख महावरा नारी ननदा करिा ह िो साधना का परमोन मख महावरा कवव को नारी ही बना दिा ह3 तस िरह कबीर क मन म ऊषमा ह जनन ह जो आत मानभनि की तर अगरसर करिा ह

(4) सिसाररक बाधाएा

ननवकति रहस यवादी साधना िथ िर अनक परकार क ससाररक कष टक का सामना करना िड़िा ह उस िरम सतिा का साकषात कार सरलिा स सभव नही होिा कबीर न भी अिन साधना िथ िर अनक सासाररक ववघनक का सामना ककया ह उनहोन सबस बड़ा कारर माया को माना ह तस माया क कारर ही काम रियोध लोभ मोह आहद ववकार सिाि रहि ह तसक दो परमख कि ह- कचन और काभमनी कबीर कहि ह कक माया व याभभचारररी ह मोहहनी ह और सभी जीवक को धोखक म डालिी रहिी ह माया विराचनी ह-कबीर माया डाकणीि सब ककसही कौ खाइ4

वक क किा स कबीर का मन तस ससार स ववमख होकर ईश वरोन मख हआ तस कसथनि को परा ि करन क भलए उन ह अिन मन का िरश िररषकार 1दवाररका परसाद सतसनाहहनदी क पराचीन परनिननचध कवव( नवीिम स) ि 85 2िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 3िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि74

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करना िड़ा कबीर न मन को ननयबतरि करन िरमात मा क नाम का स मरर करन आचरर को रदध रखन ववचार और आचरर म एकिा लान सासाररक परलोभनक स अलव रहन सत य को गरहर करन अहहसात मक दकषटकोर को अिनानअहकार को तयावन और जीवन को मत ि होन की आवश यकिा िर जो बार-बार बल हदया ह वह मन क िररष कार क भलए ही होिा ह सब वक की किा स सभव होि ह-

कबीर िीछ लावा जात था लोक वद क साथ आव थ सिवक भमक या दीिक दीया हाचथ1 उियशत ि वववचन स स िष ट ह कक कबीर की साधना क मावशम ववघ न आि ह और उनस ननवकति का उिाय भी बिाि ह (5) िरम सतिा क दरशन का आभास

रहस यवाद म जब कोई साधक माया-मोह िर ववजय परा ि करक मावश क समस ि भलनिक ववघ न को िार कर साधना मावश िर आव बढिा ह वह थोड़ा आध याकतमक ससार म िह च जािा ह साधक क दयदय म जञान ज योनि का िीवर आलोक भर जािा ह तस सासाररक अधकार स दर हदव य रकति का दरशन करन लविा ह कबीर कहि ह- हद छाड़ ड बहहद गया हआ तनरन िर बास का वल ज फल या फल बबन को नीरष दास2

अथाशि म ससीम को िार करक असीम म िह च वया वही मरा राशवि ननवास हो वया वहा मन अनभव ककया कक बबना फल क एक कमल िखला हआ ह तसका दरशन भववान का ननजी दास ही कर सकिा ह तस िरह कबीर सासाररक माया मोह िर ववजय परा ि करक रहहम ज योनि दरशन करन लविा हlsquoरहहम-ज योनिrsquo का दरशन सब नहीबककक कोई साधक ही कर सकिा ह 1मािा परसाद वि कबीर गरथावली 1969 ि- 41 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 58

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(6) वास िववक जञान और परमानभति

जब ककसी साधक को िरम सतिा का आभास होन लविा ह िो उसक दयदय म जञान की ज योनि जलन लविी ह और उस वास िववक ससार का बोध होन लविा ह यही जञान भरभमि परािरयक का मावश-दरशन करिी ह कबीर कहि ह कक कजस उतकटिा और िीवरिा क साथ मन माया-जनय ववषयक म रमिा ह उिनी ही उत कटिा और िीवरिा क साथ यहद वह राम म रम जाए िो वह साधक िारामण डल स भी िर वहा िह च सकिा ह जहा स वह आया ह अथाशि उस रहहम म लीन हो जािा ह- जस माया मन रम या ज राम रमाइ िौ िारामण डल छााड़ड करर जहाा क सो िहाा जाई1

स थायी भमलन

रहस यवाद की अनिम कसथनि आत मा और िरमात मा का स थायी भमलन माना वया ह भमलन की तस अवस था को कबीर न ववववध परिीकक और किकक क माध यम स कहा ह स वय को दकहन बिाि हए कबीर कहि ह कजस परकार एक ित नी अिन िनि क साथ रयन करिी ह उसी परकार आत मा और िरमात मा दोनक एक होकर रयन करि ह‒

बहि हदनन थ परीिम पाए बड घर बठ आए मिहदर मााहह भया उकजयारा ल सिी अपना पीव प यारा2

कबीर न चचर भमलन का किक ववाहहक उत सव क माध यम स व यत ि ककया ह- दलहहन गावहा मिगलाचार हम घरर आय हो परम पररस भरिार| िन रति करर म मन रति करहा पिच िति बरािी|1

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि59 2 वहीि 117

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वववाहोिराि िरम ित व स अदभि भमलन होिा ह कजसस अननवचशनीय आनद की उिलब ध होिी ह कबीर कहि ह भववान की सवनि स म रीिल हो वया ह अब मोह की िाि भमट वई ह अब अदर म साकषात कार हो जान क कारर म राि-हदन सख की ननचध परा ि कर रहा ह हरर सिगति सीिल भया भमटा मोह की िाप तनस बासरर सख तनध य लहयाजब अििरर परकटना आप2

तस िरह आत म ित व और िरम ित व का स थायी भमलन हो जािा ह भत ि और भववान साधक और साध य जीव और रहहम एक हो जाि ह दोनक अमर हो जाि ह

कबीर क कावय म वयति रहसयवादी िररकसथयक का अध ययन करन िर जञाि होिा ह कक उनकी रहसयवाद की अिनी ववरषिाए ह तन िर हहदत क अदविवाद िथा मसलमानक क सफी-मि का परभाव लत हकषि होि ह तनक रहस यवाद म आकसिकिा माधयश भावना अन िमशखी साधना परम ित व भावनात मक सबधक का समावर ह रकर क अदविवाद का परादभाशव 8वी रिाब दी म होिा ह अदविवाद क अनसार आत मा और िरमात मा एक सतिा ह माया क कारर ही िरमात मा क नाम और कि का अकसित व ह वस िि आि मा और िरमात मा एक ही रकति क दो भाव ह जो माया क कारर अलव ह लककन व िन एक ही म भमल जाि ह तस परकरियया को कबीर तस िरह व यत ि करि ह

जल म कि भ कि भ म जल ह बाहहर भीिर पानी फटा कि भ जल जलहह समान यह िि कथो चगयानी3

1 जीएनदास लव स गज ऑफ कबीर1994 ि 39 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 59 3वहीि 128

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जल म भरा घड़ा जल म िर रहा ह तसक बाहरभीिर िानी ह घड़ा (माया) फटन िर जल एक हो जािा ह

ईसा क 8वी रिाब दी म तस लाम धमश क अिवशि तनक िरिरावि आदरो क ववरोध म सफी सपरदाय का उदय हआ सफीमि म बद और खदा का एकीकरर हो सकिा ह िर माया की ववरष चचाश नही ह िरमात मा स भमलन क भलए आत मा की चार दराए िार करनी िड़िी ह- (1) ररीयि (2) िरीकि (3)हकीकि(4) माररफि

तन दरात को िार करक ही आत मा और िरमात मा का सकममलन होिा ह तस परकार आत माम िरमात मा का अनभव होन लविा ह दसरी बाि यह ह कक सफी मि म परम का अर महत विरश हपरम ही कमश ह और परम ही धमश ह रामकमार वमाश का कथन ह कक ननस वाथश परम ही सफीमि का परार ह फारसी म कजिन सफी कवव ह व कवविा म परम क अनिररत ि कछ जानि ही नही ह1परम सफीमि म नरा ह खमारी ह परम क नर म साधक को ससार का कछ ध यान नही रहिा कबीर न भलखा ह-

हरर रसपीया जाातनय कबहा न जाय खमार ममििा घामि रह नााही िन की सार2

सफीमि म ईश वर स तरी कि म ह िर कबीर यहा ईश वर िरष कि म ह कबीर क रहस यवाद क बार म आव रामकमार वमाश न भलखा ह कबीर न अिन रहस यवाद क स िष टीकरर म दोनक की अदविवाद और सफीमि की बाि ली ह फलि उन हकन अदविवाद स माया और चचिन िथा सफीमि स परम लकर अिन रहस यवाद की सकषट की हrsquorsquo3

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 102 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-61 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-104

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रहस यवाद म परम का महत विरश स थान ह तसम उिनी जञान की आवश यकिा नही ह कजिन परम की तसभलए कबीर कहि ह- अ कथ कहानी परम की कछ कही न जाई गाग करी सरकरा बठा मसकाई1

परम की कहानी अकथ ह जो उसका आस वाद ल लिा ह वह व व क रत कर खान क अनभव जसा होिा ह कजसका वरशन वह नही कर सकिा तसभलए कबीर क रहस यवाद को भकतिमलक और परममलक रहस यवाद जाना जा सकिा ह

23 कबीर का दाशयतनक ववचार

मानव एक ववचाररील परारी ह ससार म घहटि होन वाल परत यक वनिववचध क परनि जावकक रहिा ह और चचिन क माध यम स रहस य समझन का परयत न करि ह ितिशचाि एक ववचार का जन म होिा ह यही ववचार दरशन का कि धारर करिा ह दारशननक ववचार जब भाव म किािररि होि ह िो भकति का ववषय बनिा ह

दरशन रब द का राकबदक अथश चाकषष परत यकष साकषात कार जानना2 तत याहद ह सामान य कि म परत यक व यकति का कोई न कोई दरशन अवश य होिा ह रास तर क कि म वह रास तर कजसम आत मा अनात मा जीव रहहम परकनि िरष जवि धमश मोकष मानव जीवन क उददश य आहद का ननकिर हो3 अगरजी कोर क अनसार ldquoदरशन एक अध ययन ह कजसम जीवन और जवि क परकनि और अथश का अध ययन ककया जािा हrdquo4सामान य अथश म lsquoदरशनrsquo का परयोव ककसी ववचार या भसदधाि की व याख या िाककश क ियशवकषर अथवा ववभभन न 1जीएनदास लव सागस ऑफ कबीर1994 ि-115 2 काभलक परासाद( स )वहि हहनदी कोर 1992 ि 509 3वही 509 4 The Study of the nature and meaning of universe and the human life- एस हॉनशबीऔतसफोडश लनशर डडतसनरी 2010 ि 1137

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ित व चचिन की परकरिययात क भलए आिा हककि मल कि म यह आत म जञान ित व जञान अथवा िरम ित व क जञान कि म आिा ह यह अनभव का िाककश क अथवा परमािरक मीमासा ह यह ससार क ममश को उदघाहटि करिा ह यह िरष परकनि का जञान ह

भकति काव य म भत ि कववयक न अिन आचायवोप स दारननशक िततववादी भसदधािक का जञान परा ि ककया ह परा ि जञान को उन हकन अिनी रचनात म अनभव क स िर िर उिारा ह भत ि कवव अिनी रचनात क स िर िर िहल रचनाकार ह उस सीध िलर िर दारशननक नही कहा जा सकिा उनक काव य म चचिन भावाभभव यकति की अिकषा वलर ह यदयवि भत ि कवव ककसी न ककसी वष रव आचायश क भरष य मान जाि ह िरन ि उनक काव य म सबदध आचायो क ित ववाद को िाककश क चचिन क कि म िरररि नही ह जहा िक कबीर का परशन ह िो यह कहा जा सकिा ह कक कबीर अचधक स वितर व यकतित व क साधक ह कबीर मलि दारशननक नही ह िरन ि उनक काव य म कई िरह क भसदधािक को दखा जा सकिा ह कबीर ककसी िवश परचभलि ववभरष ट सम परदाय यामिवाद स नही बध थ

रामकमार वमाश न कबीर क दरशन क सदभश म भलखा ह - सि मि का दरशन ककसी ववरष रास तर स नही भलया वया रास तरक म कबीर की आस था नही थी त यककक रास तर एक दकषटकोर ववरष स भलए या कह जाि ह और सापरदानयकिा क आधार िर ही हटक होि हhellip अि सि सपरदाय का दरशन उिननषद भारिीय षडदरशन बलदध धमश सफी सपरदाय नाथ सपरदाय की ववश वजनीन अनभनियक क ित वक को भमलाकर सवह ि हआ ह य ित व सीध रास तर स नही आय वरन रिाकबदयक की अनभनि िला िलकर महात मात की व यावहाररक जञान की कसलटी िर कस जाकर सत सव और वक क उिदरक स

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 6: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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मरा मझ म कछ नहीि जो कछ ह सो िरा िरा िझको सौपिा त या लाग ह मरा1

िरमात मा क ववयोव म कबीर न दयदय ननकाल कर रख हदया ह परम भमलन क बाद बबरह की कसथनि बहि िड़िान वाली ह उनक यहा ववरहासकति को भरिर

मातरा म दखा जा सकिा ह- िलफ बबन बालम मोर कजया

हदन नहीि चन राि नहह तनिहदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo2

कबीर की भकति म तन आसकतियक क अनिररत ि lsquoनाम-स मररrsquo की महहमा का भी बखान हrsquoनामस मररrsquo सवर भकति एव ननवशर भकति दोनक क क दर म रहा ह ववचध ननषध स जब मन रदध हो जािा ह िभी उसम नाम स मरर की भावना उत िन न होिी ह3 कबीर कहि ह-

कबीर राम धयाइ ल कजभया सौ कहट मिि| हरर सागर कजतन बीसर छीलर दकज अनििrdquo4

कबीर न जञान और भकति क रदध कि को भमलाकर एक ऐसा रसायन बनाया कजसम सापरदानयक आडबर धाभमशक िाखणड की ब िक नही ह | यहद योव स परदरशन और क छ साधना को ननकाल कर उस सहज बना हदया जाय जञान हो भमथ या दभ एव अहकार ननकालकर उस ववनयरील बना हदया जाय और भकति स अधववश वास फलासकति एव वाहय िजाववधान ननकालकर उस रदध रावात मक परकरियया क कि म दखा जाय िो सामाजस य का वह बबद परा ि हो

1श यामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-62 2हजारी परसाद हदवदी कबीर1990 ि 250 3रामकमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 87 4श यामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि54

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सकिा ह जहा खड़ होकर कबीर िथा कचथि योचवयक िडडि और भत ि िीनक को चनलिी द रह थ1

कबीर ननवशर भकति साधना को उसक चरम िरररनि िक ल जाि ह कबीर की ननवशर भकति उस सवर राम भकति क सीध ववरोध म आिी ह कजसम राम को दररथ का ितर मानकर उनक अविारी कि का चचतरर ह कबीर राम क तस कि क कायल नही थ उनका राम िो कोई दसरा ममश रखन वाला था- दसरथ सि तिहा लोक बखाना

राम नाम को मरम ह आना2

तस परकार कबीर की भकति सहज साधना िर आधाररि हकजसम लोक को एकाकार कर लन की अदभि कषमिा ह

22 कबीर का रहस यवाद

हहदी म रहस यवाद रब द अगरजी क भमकसटभसज म का हहदी किािरर ह हहदी साहहत यकोर क अनसार अिनी अिसफररि अिरोकष अनभनि दवारा सत य िरम-ित व अथवा ईश वर का परत यकष साकषात कार करन की परवनि रहस यवाद ह3 रहस यवाद मनष य की ऐसी परवकति ह जो उनको िरमित व का अनभव करािी ह माना जािा ह कक िरमित व परा ि करन क बाद मनष य की मकति भमलिी ह रहस यवादी साधक रहस यवादी सत य क परनि आश वस ि रहिा ह तसभलए यह व यकतिवि धमश का आधार बनिी ह अनभनि क िरम कषरक म आत मा एक 1रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007ि-78 2रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007 ि78 3 धीरदर वमाश (परस) हहदी साहहतयकोर (परथम भाव )2009 ि 535

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हदव य रकति स ति-परोि निन िरम आनन द मत ि और परवकतिकि अनभव करिी ह

लडी अिडर हहल क अनसार - रहस यवाद िरम सतिा क परनि भावकिा भरी परनिकरियया को कहा ह1

परो आर डी रानाड क अनसार ldquoईश वर क परनि साधक की सरल सहज सीधी िथा परत यकष अन िपरजञात मक अनभनि ही रहस यवाद हrdquo2

साहहत य चचिकक न भी रहस यवाद को वववचन करन का परयास ककया ह आचायय रामचिदर शत ल रहस यवाद को तस परकार िररभावषि करि ह कक काव य की वह परवकति कजसम िरोकष सतिा स रावात मकसबध करक उसस भमलन िथा ववयोव की कसथनियक क काक िननक चचतर अककि ककय जाि ह3 रामचन दर रत ल काव य म िरम सतिा स रावात मक सबध िथा सयोव-ववयोव की कसथनियक म ववववध परकार क अनभनि होन की कसथनि माना ह

रामकमार वमाश क अनसार रहस यवाद जीवात मा की उस अन िहहशि परवकति का परकारन ह कजसम वह हदव य और अललककक रकति स अिना राि और ननश छल सबध जोड़ना चाहिी ह यह सबध यहा िक बढ जािा ह कक दोनक म कछ भी अिर नही रह जािा4 रहस यवाद म जीव क आत मा का िरमात मा स भमलन का आवव का परकारन होिा ह कजसस मनष य हदव य रकति परा ि कर लिा ह5

1The Poetry of my mysticism might be defined on the one hand as a temperamental reaction to the vision of prophecyरवीदर नाथ टवोर वन हडरड िोएमस ऑफ कबीर 1995 ि xix 2ldquoMysticism denotes that attitude of mind which involves a direct immediate firsthand intuitive apprehension of Godrdquo-रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007 स उदधि ि 87 3आचायश रामचदर रतल भाव -21999ि 48 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 92 5 शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011

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श यामसन दर दास कहि ह कक कवविा म रहस यवाद भावकिा का आधार िाि ह व भलखि ह- चचन िन क कषतर का रहहमवाद कवविा क कषतर म जाकर कक िना और भावकिा का आधार िाकर रहस यवाद का कि िकड़िा ह1

उियशत ि कथनक स स िष ट ह कक रहस यवाद आत मा-िरमात मा क एकात म स थाविि करन की परवकति ह यह परत यकष सयोवानभव की परकरियया ववरष ह तसकी अनभनि की अवस था म ववषय और व यकति का अववभाज य एकात म-भमशरर हो जािा ह िरमात मा सवाशिीि ह और आत मा उसकी परकनि की अराचधकारररी ह अनभनि की अवस था भी सवाशिीि होिी ह यह दयदय का धमश ह वह अिन जीवन म ववचाररा एकान ि आध याकतमक आनन द को स वीकार करिा ह साकषात कार की कसथनि अननवशचनीय होिी ह तस िरह हम कह सकि ह कक दश य जवि म व या ि उस व यत ि और अवोचर सतिा स आत मा क रावात मक सबध स थाविि करन को रहस यवाद कहा जािा ह रहस यवादी िरम सतिा की कजजञासा परकट करिा ह तसक अन िवशि एक कवव उस ववराट सतिा क परनि अिन ऐस भावोदवारक को व यत ि करिा ह कजनम सख-दख आनन द-ववषाद हास-रदन सयोव-ववयोव घल रहि ह और अननवशचनीय आनन द का अनभव ककया जा सकिा ह

दारशननक दकषट स रहस यवाद रब द बहि व यािक ह तस ककसी ववभरष ट दारशननक मि िक सीभमि करना समाचीन नही ह तसक अिवशि कई भदक को स वीकार ककया जा सकिा ह नावन दरनाथ उिाध याय रहस यवाद क यहा िर ववचार करि हए भलखि ह-परकार अथवा भद क ववषय म कभी वववचक िवी और िकशचमी का भद स वीकार करि ह कभी धमो क आधार िर ईसाई सफी हहद बलदध आहद भद स वीकार करि ह और कभी धमशननष ावादी िथा उदारवादी भदक म उनका ववभाजन करि ह िवी रहस यवाद क अिवशि भारिीय रहस यवाद म भी भदक का ननकिर कमशकाण डिरक रहस यवाद औिननषद रहस यवाद योविरक

1 वही ि 56

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रहस यवाद बलदध रहस यवाद और व यकतििरक रहस यवाद क कि म भमलिा ह अनिम परकार क भी दो कि रास तरीय और सावशललककक स वीकार ककए वए ह1 तस िरह रहस यवाद की तस व यािक अवधाररा को सवशसम मि दारशननक मान यिात क कि म बाधना कह न ह ईसाई धमश म भी रहस यवादी िि व भमलि ह बातबबल रहस यवाद का शरष गरथ हउसक एविभसक स नामक अरक म ईश वर क परत यकष साकषात कार की हदव यानभनि का वरशन ह सि िाल की शरदधा आस था और ववश वास का आधार यह हदव य साकषात कार ही ह2 तस िरह ईसाई धमश क अिवशि बहि स सि ऐस हए ह जो रहस यवादी हतस लाम म रहस यवाद का परारभ सफीवाद स हआ उनकी साधना म अनक सीह िया िार करनी होिी ह परायकशचि िररविशन त याव दररदरिा धयश ईश वर म ववश वास ईश वर छा म सिोष आहद तनक उिराि आध याकतमक अनभनि की भय आरा परम यास और साकषात कार की दराए आिी ह सफी साधना स दररदरिा िि और िववतरिा यत ि जीवन िथा सदवक की किा अननवायश ह3 उियशत ि वववरर स सिषट ह कक तस लामी रहस यवाद म भी िरम ित व वक की महिा अध याकतमक अनभनि साकषात कार आहद का समावर ह यह भारिीय रहस यवाद स अचधक ननकट ह वजाली जलालददीन सफी हाकफज उमर खयास ननजामीसादी और जामी परभसदध ईरानी सफी कवव ह भारि म भी सफी सि और कवव हए ह

हहदी म आहदकाल स रहस यवाद की िरम िरा रही ह हहदी साहहत य क आरभभक रहस यवादी कवव भसदध ह हहदी साहहत य क मध य यव (भकतिकाल) म सवर एव ननवशर दो किक म रहस यवादी रचनाए परचर मातरा म उिलब ध ह तस यव म रहस यवादी रचनाकार कबीर नानक दाद सरदास िलसीदास मीराबाई आहद बहि स कवव ह अन य भारिीय भाषात म भी रहस यवादी रचनाए

1वासदव भसह(स) कबीर 2004 ि 138 2धीरदर वमाश (परस) हहदी साहहतयकोर (परथम भाव )2009 ि 37 3वही ि-37

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उिलब ध ह रवीदरनाथ स परभाववि होकर छायावादी कववयक न भी रहस यवादी रचनाए दी एक िरह स यह कबतरम रहस वाद ह

उियशत ि वववररक स स िष ट ह कक रहस यवादी ववचार बहि ही व यािक ह ककसी न ककसी कि म यह मनष य क आहदम काल स आज िक उिकसथि ह तसक ववववध परकार और भद ह यह ककसी ववभरष ट अवधाररा म नही बधा ह िकशचमी रहस यवाद और भारिीय रहस यवाद म अन िर क बावजद समान ित व मलजद ह

रहस यवाद की कसथति

रामकमार वमाश न रहस यवाद की िीन िररकसथनियक का उक लख ककया ह- 1 िहली िररकसथनि वह ह जहा व यकति ववरष अनि रकति स अिना सबध जोड़न क भलए अगरसर होिा ह1

2 दवविीय कसथनि िब आिी ह जब आत मा िरमात मा स परम करन लव जािी ह भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक आत मा म एक परकार का उन माद या िावलिन छा जािा ह2

3 तसक िश चाि रहस यवाहदयक की िीसरी कसथनि आिी ह जो रहस यवाद की चरम सीमा बिला सकिी ह तस दरा म आत मा और िरमात मा का तिना ऐत य हो जािा ह कक कफर उनम कोई भभन निा नही रहिी3

उियशत ि उदधररक स स िष ट ह रहस यवाद म िरम सत िा क परनि कजजञासा की भावना रहिी ह रहस यवादी साधक िरम सत िा क महत व का परदरशन करि हए उसस भमलन या दरशन करन का परयास करि ह भलनिक ववध और त लष स

1रामकमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 96 2वही ि 97 3 वहीि 97

72

छटकारा िान क बाद उस सत िा का आभास या दरशन होिा ह िथा ससार का वास िववक जञान या िरोकष अनभनि होिी ह कफर आत मा और िरमात मा का चचर भमलन होिा ह आत मा म िरमात मा क वरक का समाहार हो जािा ह कबीर क रहस यवाद की कसथनि और ववरषिा क अध ययन स ििा चलिा ह कक रहस यवाद क कछ सामान य ित वक क अनिररत ि उनकी अलव ववरषिा ह उनक रहस यवाद म भारिीय और ववदरी दोनक परकार की ववरषिात का समावर ह यह कबीर क हहद और मसलमान दोनक परकार क सिक क साननध य म रहन का िररराम ह कबीर रहस यवादी कसथनियक को बड़ सजीव िव स परस िि करि ह यथा-

(1) कजजञासा की भावना- रहस यवाद म िरम ित व को जानन की त छा िीवर होिी ह उसी िरह कबीर म भी कजजञासा की भावना ह कबीर का ईश वर ननवशर एव ननराकार ह वह सवशतर ववदयमान ह कबीर का मन अिन तष टदव क परनि कजजञासा उत िन न करि ह और जानना चाहि ह कक वह रहहम कसा ह कहा ह और ककस िरह वह अिनी सिरश करियया करिा रहिा ह तस चचिन म डबकर भलखि ह कक कजस रहहम का न कि ह न रखा ह और न कजसका वरश ह वह त या ह यह रहहमाण ड िथा य परार कहा स आि ह मि जीव कहा जाकर ववलीन हो जािा ह जीवक की समस ि तकनदरया कहा ववशराम करिी ह वह मरन क बाद कहा जािी ह-

कबीर जानना चाहि ह कक lsquoरब दrsquoकहा लीन हो जािा ह जब रहहम और विड कछ नही ह िब िच ित व कहा लीन हो जािा ह समस ि वर कहा समा जाि ह- ldquoसििो धागा टटा गगन ववतनभस गया सबद ज कहाा समाई ए सिसा मोहह तनस हदन व याप कोई न कह समझाई

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नहीि बरहमािड पतन नााही पिच ित व भी नाहीि इडा वप िगला सखमन नााही ए गण कहाा समाहीि1

उियशत ि िकतियक स स िष ट ह कक कबीर क मकसिष क म कििहल कजजञासा एव ववस मय की भावना ह कबीर सब कछ जानन क भलए िीवर उत क ा व यत ि करि ह

(2)बरहम का महततव परदशयन और अतनवयचनीयिा-

कजजञासा और किहल की कसथनि म साधक को िथ-परदरशक की आवश यकिा िड़िी ह अि साधक सिवक की ररर म िह च जािा ह वक की किा स ही जञान की आ धी आिी ह और भरम टट जािा ह कबीर कहि ह कक वक अिन हाथ म कमान लकर उसस परम सहहि ऐसा उिदर किीबार चलािा ह कक वह भरष य क दयदय म लविा ह- सिगर लई कमािण करर बााहण लागा िीर एक ज बाहय परीति सा भीिरी रहया सरीर2

अललककक सतिा अननवशचनीय ह वह अदभि और अललककक सतिा ह जो सवशतर वयाि होकर भी कही हदखाई नही दिी उसका िररचय मन बवदध एव वारी स परा ि करना सवशथा असम भव ह और उसका वरशन करना व व का वड़ ह कफर भी वरशन करन कापरयत न करि हए कहि ह कक कभी उस lsquoिहि बास स िािराrsquo कहकर उसकी सकष मानि सकष म कसथनि की तर सकि करि ह िो कभी उस िज-िज िारसमिर कहकर उसकी शरष िा का परनििादन करि ह कबीर िरम सत िा को एक ऐसा रसायर कहि ह कजसम स िरश मातर स सारा ररीर कचन बन जािा ह

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 125 2वही ि 49

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सब रसायन म ककया हरर सा और न कोई तिल इक घट म सिचर िौ सब िन कि चन होइ1

तस िरह स िष ट ह कक कबीर उस अव यत ि िरम सत िा की महतिा शरष िा का परनििादन करि ह साथ ही उसकी अननवशचनीयिा भी स वीकार करि ह (3) दशयन और भमलन का परयत न- रहस यवादी साधक िरम ित व स साकषात कार या भमलन का परयत न करि ह कजस िरह एक ववयोचवनी परमी स भमलन क भलए आिर रहिी ह उसी िरह कबीर भी िरम सत िा स भमलन का परयत न करि ह कबीर भावकिा म अवयति सत िा स भमलना चाहि ह रहस यवादी कववयक म भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक िरम ित व स भमलन क भलए िावलिन छा जािा ह रामकमार वमाश क अनसार कजस परकार ककसी जलपरिाि क याद म समीि क सभी छोट छोट स वर अिननशहहि हो जाि ह ीक उसी परकार उस ईश वरीय परम म सार ववचार या िो ल ि हो जाि ह अथवा उसी परम क बहाव म बह जाि ह2 कबीर भमलन की उत क ा म स वय को भस म कर दना चाहि ह भमलन क परयत न म कबीर ररीर को जलाकर राख कर डालना चाहि ह और कहि ह कक उस राख की स याही बनाकर अिनी हडडी की लखनी स अिन वपरयतिम राम क िास चचटठी भलखकर भज सम भवि िभी मरा स मरर हो सकवा और व मझस भमलन आ सक व- यह िन जारौ मभस करौ भलखौ राम का नाऊा

लखनी करा करिक की भलखख भलखख राम पठाउा 3

कबीर कहि ह ववरह स वय मझस कह रहा ह कक ि मझ कभी मि छोड़ना त यककक म ही िझ उस िरम रहहम क िज म लीन कर द वा- 1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 61 2राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-97 33शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 54

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ववरह कह कबीर सौ ि कजन छााछ मोहह पार बरहम क िज म िहाा ल राखो िोहह1

कबीर की िकतियक म कजस िरह का परयत न ह वह परम का चरमोत कषश ह तसम दाम ित य परम ह कजसम स वय को राम की बहररया कहि ह तसभलए िरषोतिम अगरवाल का कथन ह - ldquoउनकी साधना ही परम क सबस सकशलष ट कि दाित य रनि का किक ह2 तस दाम ित य कि म कबीर िरम सतिा का वपरयिमा ह अगरवाल जी आव कहि ह -रीनि-ररवाज धमश-कमश और परदत ि मयाशदा का िरषोन मख महावरा नारी ननदा करिा ह िो साधना का परमोन मख महावरा कवव को नारी ही बना दिा ह3 तस िरह कबीर क मन म ऊषमा ह जनन ह जो आत मानभनि की तर अगरसर करिा ह

(4) सिसाररक बाधाएा

ननवकति रहस यवादी साधना िथ िर अनक परकार क ससाररक कष टक का सामना करना िड़िा ह उस िरम सतिा का साकषात कार सरलिा स सभव नही होिा कबीर न भी अिन साधना िथ िर अनक सासाररक ववघनक का सामना ककया ह उनहोन सबस बड़ा कारर माया को माना ह तस माया क कारर ही काम रियोध लोभ मोह आहद ववकार सिाि रहि ह तसक दो परमख कि ह- कचन और काभमनी कबीर कहि ह कक माया व याभभचारररी ह मोहहनी ह और सभी जीवक को धोखक म डालिी रहिी ह माया विराचनी ह-कबीर माया डाकणीि सब ककसही कौ खाइ4

वक क किा स कबीर का मन तस ससार स ववमख होकर ईश वरोन मख हआ तस कसथनि को परा ि करन क भलए उन ह अिन मन का िरश िररषकार 1दवाररका परसाद सतसनाहहनदी क पराचीन परनिननचध कवव( नवीिम स) ि 85 2िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 3िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि74

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करना िड़ा कबीर न मन को ननयबतरि करन िरमात मा क नाम का स मरर करन आचरर को रदध रखन ववचार और आचरर म एकिा लान सासाररक परलोभनक स अलव रहन सत य को गरहर करन अहहसात मक दकषटकोर को अिनानअहकार को तयावन और जीवन को मत ि होन की आवश यकिा िर जो बार-बार बल हदया ह वह मन क िररष कार क भलए ही होिा ह सब वक की किा स सभव होि ह-

कबीर िीछ लावा जात था लोक वद क साथ आव थ सिवक भमक या दीिक दीया हाचथ1 उियशत ि वववचन स स िष ट ह कक कबीर की साधना क मावशम ववघ न आि ह और उनस ननवकति का उिाय भी बिाि ह (5) िरम सतिा क दरशन का आभास

रहस यवाद म जब कोई साधक माया-मोह िर ववजय परा ि करक मावश क समस ि भलनिक ववघ न को िार कर साधना मावश िर आव बढिा ह वह थोड़ा आध याकतमक ससार म िह च जािा ह साधक क दयदय म जञान ज योनि का िीवर आलोक भर जािा ह तस सासाररक अधकार स दर हदव य रकति का दरशन करन लविा ह कबीर कहि ह- हद छाड़ ड बहहद गया हआ तनरन िर बास का वल ज फल या फल बबन को नीरष दास2

अथाशि म ससीम को िार करक असीम म िह च वया वही मरा राशवि ननवास हो वया वहा मन अनभव ककया कक बबना फल क एक कमल िखला हआ ह तसका दरशन भववान का ननजी दास ही कर सकिा ह तस िरह कबीर सासाररक माया मोह िर ववजय परा ि करक रहहम ज योनि दरशन करन लविा हlsquoरहहम-ज योनिrsquo का दरशन सब नहीबककक कोई साधक ही कर सकिा ह 1मािा परसाद वि कबीर गरथावली 1969 ि- 41 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 58

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(6) वास िववक जञान और परमानभति

जब ककसी साधक को िरम सतिा का आभास होन लविा ह िो उसक दयदय म जञान की ज योनि जलन लविी ह और उस वास िववक ससार का बोध होन लविा ह यही जञान भरभमि परािरयक का मावश-दरशन करिी ह कबीर कहि ह कक कजस उतकटिा और िीवरिा क साथ मन माया-जनय ववषयक म रमिा ह उिनी ही उत कटिा और िीवरिा क साथ यहद वह राम म रम जाए िो वह साधक िारामण डल स भी िर वहा िह च सकिा ह जहा स वह आया ह अथाशि उस रहहम म लीन हो जािा ह- जस माया मन रम या ज राम रमाइ िौ िारामण डल छााड़ड करर जहाा क सो िहाा जाई1

स थायी भमलन

रहस यवाद की अनिम कसथनि आत मा और िरमात मा का स थायी भमलन माना वया ह भमलन की तस अवस था को कबीर न ववववध परिीकक और किकक क माध यम स कहा ह स वय को दकहन बिाि हए कबीर कहि ह कजस परकार एक ित नी अिन िनि क साथ रयन करिी ह उसी परकार आत मा और िरमात मा दोनक एक होकर रयन करि ह‒

बहि हदनन थ परीिम पाए बड घर बठ आए मिहदर मााहह भया उकजयारा ल सिी अपना पीव प यारा2

कबीर न चचर भमलन का किक ववाहहक उत सव क माध यम स व यत ि ककया ह- दलहहन गावहा मिगलाचार हम घरर आय हो परम पररस भरिार| िन रति करर म मन रति करहा पिच िति बरािी|1

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि59 2 वहीि 117

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वववाहोिराि िरम ित व स अदभि भमलन होिा ह कजसस अननवचशनीय आनद की उिलब ध होिी ह कबीर कहि ह भववान की सवनि स म रीिल हो वया ह अब मोह की िाि भमट वई ह अब अदर म साकषात कार हो जान क कारर म राि-हदन सख की ननचध परा ि कर रहा ह हरर सिगति सीिल भया भमटा मोह की िाप तनस बासरर सख तनध य लहयाजब अििरर परकटना आप2

तस िरह आत म ित व और िरम ित व का स थायी भमलन हो जािा ह भत ि और भववान साधक और साध य जीव और रहहम एक हो जाि ह दोनक अमर हो जाि ह

कबीर क कावय म वयति रहसयवादी िररकसथयक का अध ययन करन िर जञाि होिा ह कक उनकी रहसयवाद की अिनी ववरषिाए ह तन िर हहदत क अदविवाद िथा मसलमानक क सफी-मि का परभाव लत हकषि होि ह तनक रहस यवाद म आकसिकिा माधयश भावना अन िमशखी साधना परम ित व भावनात मक सबधक का समावर ह रकर क अदविवाद का परादभाशव 8वी रिाब दी म होिा ह अदविवाद क अनसार आत मा और िरमात मा एक सतिा ह माया क कारर ही िरमात मा क नाम और कि का अकसित व ह वस िि आि मा और िरमात मा एक ही रकति क दो भाव ह जो माया क कारर अलव ह लककन व िन एक ही म भमल जाि ह तस परकरियया को कबीर तस िरह व यत ि करि ह

जल म कि भ कि भ म जल ह बाहहर भीिर पानी फटा कि भ जल जलहह समान यह िि कथो चगयानी3

1 जीएनदास लव स गज ऑफ कबीर1994 ि 39 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 59 3वहीि 128

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जल म भरा घड़ा जल म िर रहा ह तसक बाहरभीिर िानी ह घड़ा (माया) फटन िर जल एक हो जािा ह

ईसा क 8वी रिाब दी म तस लाम धमश क अिवशि तनक िरिरावि आदरो क ववरोध म सफी सपरदाय का उदय हआ सफीमि म बद और खदा का एकीकरर हो सकिा ह िर माया की ववरष चचाश नही ह िरमात मा स भमलन क भलए आत मा की चार दराए िार करनी िड़िी ह- (1) ररीयि (2) िरीकि (3)हकीकि(4) माररफि

तन दरात को िार करक ही आत मा और िरमात मा का सकममलन होिा ह तस परकार आत माम िरमात मा का अनभव होन लविा ह दसरी बाि यह ह कक सफी मि म परम का अर महत विरश हपरम ही कमश ह और परम ही धमश ह रामकमार वमाश का कथन ह कक ननस वाथश परम ही सफीमि का परार ह फारसी म कजिन सफी कवव ह व कवविा म परम क अनिररत ि कछ जानि ही नही ह1परम सफीमि म नरा ह खमारी ह परम क नर म साधक को ससार का कछ ध यान नही रहिा कबीर न भलखा ह-

हरर रसपीया जाातनय कबहा न जाय खमार ममििा घामि रह नााही िन की सार2

सफीमि म ईश वर स तरी कि म ह िर कबीर यहा ईश वर िरष कि म ह कबीर क रहस यवाद क बार म आव रामकमार वमाश न भलखा ह कबीर न अिन रहस यवाद क स िष टीकरर म दोनक की अदविवाद और सफीमि की बाि ली ह फलि उन हकन अदविवाद स माया और चचिन िथा सफीमि स परम लकर अिन रहस यवाद की सकषट की हrsquorsquo3

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 102 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-61 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-104

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रहस यवाद म परम का महत विरश स थान ह तसम उिनी जञान की आवश यकिा नही ह कजिन परम की तसभलए कबीर कहि ह- अ कथ कहानी परम की कछ कही न जाई गाग करी सरकरा बठा मसकाई1

परम की कहानी अकथ ह जो उसका आस वाद ल लिा ह वह व व क रत कर खान क अनभव जसा होिा ह कजसका वरशन वह नही कर सकिा तसभलए कबीर क रहस यवाद को भकतिमलक और परममलक रहस यवाद जाना जा सकिा ह

23 कबीर का दाशयतनक ववचार

मानव एक ववचाररील परारी ह ससार म घहटि होन वाल परत यक वनिववचध क परनि जावकक रहिा ह और चचिन क माध यम स रहस य समझन का परयत न करि ह ितिशचाि एक ववचार का जन म होिा ह यही ववचार दरशन का कि धारर करिा ह दारशननक ववचार जब भाव म किािररि होि ह िो भकति का ववषय बनिा ह

दरशन रब द का राकबदक अथश चाकषष परत यकष साकषात कार जानना2 तत याहद ह सामान य कि म परत यक व यकति का कोई न कोई दरशन अवश य होिा ह रास तर क कि म वह रास तर कजसम आत मा अनात मा जीव रहहम परकनि िरष जवि धमश मोकष मानव जीवन क उददश य आहद का ननकिर हो3 अगरजी कोर क अनसार ldquoदरशन एक अध ययन ह कजसम जीवन और जवि क परकनि और अथश का अध ययन ककया जािा हrdquo4सामान य अथश म lsquoदरशनrsquo का परयोव ककसी ववचार या भसदधाि की व याख या िाककश क ियशवकषर अथवा ववभभन न 1जीएनदास लव सागस ऑफ कबीर1994 ि-115 2 काभलक परासाद( स )वहि हहनदी कोर 1992 ि 509 3वही 509 4 The Study of the nature and meaning of universe and the human life- एस हॉनशबीऔतसफोडश लनशर डडतसनरी 2010 ि 1137

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ित व चचिन की परकरिययात क भलए आिा हककि मल कि म यह आत म जञान ित व जञान अथवा िरम ित व क जञान कि म आिा ह यह अनभव का िाककश क अथवा परमािरक मीमासा ह यह ससार क ममश को उदघाहटि करिा ह यह िरष परकनि का जञान ह

भकति काव य म भत ि कववयक न अिन आचायवोप स दारननशक िततववादी भसदधािक का जञान परा ि ककया ह परा ि जञान को उन हकन अिनी रचनात म अनभव क स िर िर उिारा ह भत ि कवव अिनी रचनात क स िर िर िहल रचनाकार ह उस सीध िलर िर दारशननक नही कहा जा सकिा उनक काव य म चचिन भावाभभव यकति की अिकषा वलर ह यदयवि भत ि कवव ककसी न ककसी वष रव आचायश क भरष य मान जाि ह िरन ि उनक काव य म सबदध आचायो क ित ववाद को िाककश क चचिन क कि म िरररि नही ह जहा िक कबीर का परशन ह िो यह कहा जा सकिा ह कक कबीर अचधक स वितर व यकतित व क साधक ह कबीर मलि दारशननक नही ह िरन ि उनक काव य म कई िरह क भसदधािक को दखा जा सकिा ह कबीर ककसी िवश परचभलि ववभरष ट सम परदाय यामिवाद स नही बध थ

रामकमार वमाश न कबीर क दरशन क सदभश म भलखा ह - सि मि का दरशन ककसी ववरष रास तर स नही भलया वया रास तरक म कबीर की आस था नही थी त यककक रास तर एक दकषटकोर ववरष स भलए या कह जाि ह और सापरदानयकिा क आधार िर ही हटक होि हhellip अि सि सपरदाय का दरशन उिननषद भारिीय षडदरशन बलदध धमश सफी सपरदाय नाथ सपरदाय की ववश वजनीन अनभनियक क ित वक को भमलाकर सवह ि हआ ह य ित व सीध रास तर स नही आय वरन रिाकबदयक की अनभनि िला िलकर महात मात की व यावहाररक जञान की कसलटी िर कस जाकर सत सव और वक क उिदरक स

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

84

कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

102

वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 7: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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सकिा ह जहा खड़ होकर कबीर िथा कचथि योचवयक िडडि और भत ि िीनक को चनलिी द रह थ1

कबीर ननवशर भकति साधना को उसक चरम िरररनि िक ल जाि ह कबीर की ननवशर भकति उस सवर राम भकति क सीध ववरोध म आिी ह कजसम राम को दररथ का ितर मानकर उनक अविारी कि का चचतरर ह कबीर राम क तस कि क कायल नही थ उनका राम िो कोई दसरा ममश रखन वाला था- दसरथ सि तिहा लोक बखाना

राम नाम को मरम ह आना2

तस परकार कबीर की भकति सहज साधना िर आधाररि हकजसम लोक को एकाकार कर लन की अदभि कषमिा ह

22 कबीर का रहस यवाद

हहदी म रहस यवाद रब द अगरजी क भमकसटभसज म का हहदी किािरर ह हहदी साहहत यकोर क अनसार अिनी अिसफररि अिरोकष अनभनि दवारा सत य िरम-ित व अथवा ईश वर का परत यकष साकषात कार करन की परवनि रहस यवाद ह3 रहस यवाद मनष य की ऐसी परवकति ह जो उनको िरमित व का अनभव करािी ह माना जािा ह कक िरमित व परा ि करन क बाद मनष य की मकति भमलिी ह रहस यवादी साधक रहस यवादी सत य क परनि आश वस ि रहिा ह तसभलए यह व यकतिवि धमश का आधार बनिी ह अनभनि क िरम कषरक म आत मा एक 1रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007ि-78 2रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007 ि78 3 धीरदर वमाश (परस) हहदी साहहतयकोर (परथम भाव )2009 ि 535

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हदव य रकति स ति-परोि निन िरम आनन द मत ि और परवकतिकि अनभव करिी ह

लडी अिडर हहल क अनसार - रहस यवाद िरम सतिा क परनि भावकिा भरी परनिकरियया को कहा ह1

परो आर डी रानाड क अनसार ldquoईश वर क परनि साधक की सरल सहज सीधी िथा परत यकष अन िपरजञात मक अनभनि ही रहस यवाद हrdquo2

साहहत य चचिकक न भी रहस यवाद को वववचन करन का परयास ककया ह आचायय रामचिदर शत ल रहस यवाद को तस परकार िररभावषि करि ह कक काव य की वह परवकति कजसम िरोकष सतिा स रावात मकसबध करक उसस भमलन िथा ववयोव की कसथनियक क काक िननक चचतर अककि ककय जाि ह3 रामचन दर रत ल काव य म िरम सतिा स रावात मक सबध िथा सयोव-ववयोव की कसथनियक म ववववध परकार क अनभनि होन की कसथनि माना ह

रामकमार वमाश क अनसार रहस यवाद जीवात मा की उस अन िहहशि परवकति का परकारन ह कजसम वह हदव य और अललककक रकति स अिना राि और ननश छल सबध जोड़ना चाहिी ह यह सबध यहा िक बढ जािा ह कक दोनक म कछ भी अिर नही रह जािा4 रहस यवाद म जीव क आत मा का िरमात मा स भमलन का आवव का परकारन होिा ह कजसस मनष य हदव य रकति परा ि कर लिा ह5

1The Poetry of my mysticism might be defined on the one hand as a temperamental reaction to the vision of prophecyरवीदर नाथ टवोर वन हडरड िोएमस ऑफ कबीर 1995 ि xix 2ldquoMysticism denotes that attitude of mind which involves a direct immediate firsthand intuitive apprehension of Godrdquo-रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007 स उदधि ि 87 3आचायश रामचदर रतल भाव -21999ि 48 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 92 5 शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011

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श यामसन दर दास कहि ह कक कवविा म रहस यवाद भावकिा का आधार िाि ह व भलखि ह- चचन िन क कषतर का रहहमवाद कवविा क कषतर म जाकर कक िना और भावकिा का आधार िाकर रहस यवाद का कि िकड़िा ह1

उियशत ि कथनक स स िष ट ह कक रहस यवाद आत मा-िरमात मा क एकात म स थाविि करन की परवकति ह यह परत यकष सयोवानभव की परकरियया ववरष ह तसकी अनभनि की अवस था म ववषय और व यकति का अववभाज य एकात म-भमशरर हो जािा ह िरमात मा सवाशिीि ह और आत मा उसकी परकनि की अराचधकारररी ह अनभनि की अवस था भी सवाशिीि होिी ह यह दयदय का धमश ह वह अिन जीवन म ववचाररा एकान ि आध याकतमक आनन द को स वीकार करिा ह साकषात कार की कसथनि अननवशचनीय होिी ह तस िरह हम कह सकि ह कक दश य जवि म व या ि उस व यत ि और अवोचर सतिा स आत मा क रावात मक सबध स थाविि करन को रहस यवाद कहा जािा ह रहस यवादी िरम सतिा की कजजञासा परकट करिा ह तसक अन िवशि एक कवव उस ववराट सतिा क परनि अिन ऐस भावोदवारक को व यत ि करिा ह कजनम सख-दख आनन द-ववषाद हास-रदन सयोव-ववयोव घल रहि ह और अननवशचनीय आनन द का अनभव ककया जा सकिा ह

दारशननक दकषट स रहस यवाद रब द बहि व यािक ह तस ककसी ववभरष ट दारशननक मि िक सीभमि करना समाचीन नही ह तसक अिवशि कई भदक को स वीकार ककया जा सकिा ह नावन दरनाथ उिाध याय रहस यवाद क यहा िर ववचार करि हए भलखि ह-परकार अथवा भद क ववषय म कभी वववचक िवी और िकशचमी का भद स वीकार करि ह कभी धमो क आधार िर ईसाई सफी हहद बलदध आहद भद स वीकार करि ह और कभी धमशननष ावादी िथा उदारवादी भदक म उनका ववभाजन करि ह िवी रहस यवाद क अिवशि भारिीय रहस यवाद म भी भदक का ननकिर कमशकाण डिरक रहस यवाद औिननषद रहस यवाद योविरक

1 वही ि 56

70

रहस यवाद बलदध रहस यवाद और व यकतििरक रहस यवाद क कि म भमलिा ह अनिम परकार क भी दो कि रास तरीय और सावशललककक स वीकार ककए वए ह1 तस िरह रहस यवाद की तस व यािक अवधाररा को सवशसम मि दारशननक मान यिात क कि म बाधना कह न ह ईसाई धमश म भी रहस यवादी िि व भमलि ह बातबबल रहस यवाद का शरष गरथ हउसक एविभसक स नामक अरक म ईश वर क परत यकष साकषात कार की हदव यानभनि का वरशन ह सि िाल की शरदधा आस था और ववश वास का आधार यह हदव य साकषात कार ही ह2 तस िरह ईसाई धमश क अिवशि बहि स सि ऐस हए ह जो रहस यवादी हतस लाम म रहस यवाद का परारभ सफीवाद स हआ उनकी साधना म अनक सीह िया िार करनी होिी ह परायकशचि िररविशन त याव दररदरिा धयश ईश वर म ववश वास ईश वर छा म सिोष आहद तनक उिराि आध याकतमक अनभनि की भय आरा परम यास और साकषात कार की दराए आिी ह सफी साधना स दररदरिा िि और िववतरिा यत ि जीवन िथा सदवक की किा अननवायश ह3 उियशत ि वववरर स सिषट ह कक तस लामी रहस यवाद म भी िरम ित व वक की महिा अध याकतमक अनभनि साकषात कार आहद का समावर ह यह भारिीय रहस यवाद स अचधक ननकट ह वजाली जलालददीन सफी हाकफज उमर खयास ननजामीसादी और जामी परभसदध ईरानी सफी कवव ह भारि म भी सफी सि और कवव हए ह

हहदी म आहदकाल स रहस यवाद की िरम िरा रही ह हहदी साहहत य क आरभभक रहस यवादी कवव भसदध ह हहदी साहहत य क मध य यव (भकतिकाल) म सवर एव ननवशर दो किक म रहस यवादी रचनाए परचर मातरा म उिलब ध ह तस यव म रहस यवादी रचनाकार कबीर नानक दाद सरदास िलसीदास मीराबाई आहद बहि स कवव ह अन य भारिीय भाषात म भी रहस यवादी रचनाए

1वासदव भसह(स) कबीर 2004 ि 138 2धीरदर वमाश (परस) हहदी साहहतयकोर (परथम भाव )2009 ि 37 3वही ि-37

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उिलब ध ह रवीदरनाथ स परभाववि होकर छायावादी कववयक न भी रहस यवादी रचनाए दी एक िरह स यह कबतरम रहस वाद ह

उियशत ि वववररक स स िष ट ह कक रहस यवादी ववचार बहि ही व यािक ह ककसी न ककसी कि म यह मनष य क आहदम काल स आज िक उिकसथि ह तसक ववववध परकार और भद ह यह ककसी ववभरष ट अवधाररा म नही बधा ह िकशचमी रहस यवाद और भारिीय रहस यवाद म अन िर क बावजद समान ित व मलजद ह

रहस यवाद की कसथति

रामकमार वमाश न रहस यवाद की िीन िररकसथनियक का उक लख ककया ह- 1 िहली िररकसथनि वह ह जहा व यकति ववरष अनि रकति स अिना सबध जोड़न क भलए अगरसर होिा ह1

2 दवविीय कसथनि िब आिी ह जब आत मा िरमात मा स परम करन लव जािी ह भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक आत मा म एक परकार का उन माद या िावलिन छा जािा ह2

3 तसक िश चाि रहस यवाहदयक की िीसरी कसथनि आिी ह जो रहस यवाद की चरम सीमा बिला सकिी ह तस दरा म आत मा और िरमात मा का तिना ऐत य हो जािा ह कक कफर उनम कोई भभन निा नही रहिी3

उियशत ि उदधररक स स िष ट ह रहस यवाद म िरम सत िा क परनि कजजञासा की भावना रहिी ह रहस यवादी साधक िरम सत िा क महत व का परदरशन करि हए उसस भमलन या दरशन करन का परयास करि ह भलनिक ववध और त लष स

1रामकमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 96 2वही ि 97 3 वहीि 97

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छटकारा िान क बाद उस सत िा का आभास या दरशन होिा ह िथा ससार का वास िववक जञान या िरोकष अनभनि होिी ह कफर आत मा और िरमात मा का चचर भमलन होिा ह आत मा म िरमात मा क वरक का समाहार हो जािा ह कबीर क रहस यवाद की कसथनि और ववरषिा क अध ययन स ििा चलिा ह कक रहस यवाद क कछ सामान य ित वक क अनिररत ि उनकी अलव ववरषिा ह उनक रहस यवाद म भारिीय और ववदरी दोनक परकार की ववरषिात का समावर ह यह कबीर क हहद और मसलमान दोनक परकार क सिक क साननध य म रहन का िररराम ह कबीर रहस यवादी कसथनियक को बड़ सजीव िव स परस िि करि ह यथा-

(1) कजजञासा की भावना- रहस यवाद म िरम ित व को जानन की त छा िीवर होिी ह उसी िरह कबीर म भी कजजञासा की भावना ह कबीर का ईश वर ननवशर एव ननराकार ह वह सवशतर ववदयमान ह कबीर का मन अिन तष टदव क परनि कजजञासा उत िन न करि ह और जानना चाहि ह कक वह रहहम कसा ह कहा ह और ककस िरह वह अिनी सिरश करियया करिा रहिा ह तस चचिन म डबकर भलखि ह कक कजस रहहम का न कि ह न रखा ह और न कजसका वरश ह वह त या ह यह रहहमाण ड िथा य परार कहा स आि ह मि जीव कहा जाकर ववलीन हो जािा ह जीवक की समस ि तकनदरया कहा ववशराम करिी ह वह मरन क बाद कहा जािी ह-

कबीर जानना चाहि ह कक lsquoरब दrsquoकहा लीन हो जािा ह जब रहहम और विड कछ नही ह िब िच ित व कहा लीन हो जािा ह समस ि वर कहा समा जाि ह- ldquoसििो धागा टटा गगन ववतनभस गया सबद ज कहाा समाई ए सिसा मोहह तनस हदन व याप कोई न कह समझाई

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नहीि बरहमािड पतन नााही पिच ित व भी नाहीि इडा वप िगला सखमन नााही ए गण कहाा समाहीि1

उियशत ि िकतियक स स िष ट ह कक कबीर क मकसिष क म कििहल कजजञासा एव ववस मय की भावना ह कबीर सब कछ जानन क भलए िीवर उत क ा व यत ि करि ह

(2)बरहम का महततव परदशयन और अतनवयचनीयिा-

कजजञासा और किहल की कसथनि म साधक को िथ-परदरशक की आवश यकिा िड़िी ह अि साधक सिवक की ररर म िह च जािा ह वक की किा स ही जञान की आ धी आिी ह और भरम टट जािा ह कबीर कहि ह कक वक अिन हाथ म कमान लकर उसस परम सहहि ऐसा उिदर किीबार चलािा ह कक वह भरष य क दयदय म लविा ह- सिगर लई कमािण करर बााहण लागा िीर एक ज बाहय परीति सा भीिरी रहया सरीर2

अललककक सतिा अननवशचनीय ह वह अदभि और अललककक सतिा ह जो सवशतर वयाि होकर भी कही हदखाई नही दिी उसका िररचय मन बवदध एव वारी स परा ि करना सवशथा असम भव ह और उसका वरशन करना व व का वड़ ह कफर भी वरशन करन कापरयत न करि हए कहि ह कक कभी उस lsquoिहि बास स िािराrsquo कहकर उसकी सकष मानि सकष म कसथनि की तर सकि करि ह िो कभी उस िज-िज िारसमिर कहकर उसकी शरष िा का परनििादन करि ह कबीर िरम सत िा को एक ऐसा रसायर कहि ह कजसम स िरश मातर स सारा ररीर कचन बन जािा ह

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 125 2वही ि 49

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सब रसायन म ककया हरर सा और न कोई तिल इक घट म सिचर िौ सब िन कि चन होइ1

तस िरह स िष ट ह कक कबीर उस अव यत ि िरम सत िा की महतिा शरष िा का परनििादन करि ह साथ ही उसकी अननवशचनीयिा भी स वीकार करि ह (3) दशयन और भमलन का परयत न- रहस यवादी साधक िरम ित व स साकषात कार या भमलन का परयत न करि ह कजस िरह एक ववयोचवनी परमी स भमलन क भलए आिर रहिी ह उसी िरह कबीर भी िरम सत िा स भमलन का परयत न करि ह कबीर भावकिा म अवयति सत िा स भमलना चाहि ह रहस यवादी कववयक म भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक िरम ित व स भमलन क भलए िावलिन छा जािा ह रामकमार वमाश क अनसार कजस परकार ककसी जलपरिाि क याद म समीि क सभी छोट छोट स वर अिननशहहि हो जाि ह ीक उसी परकार उस ईश वरीय परम म सार ववचार या िो ल ि हो जाि ह अथवा उसी परम क बहाव म बह जाि ह2 कबीर भमलन की उत क ा म स वय को भस म कर दना चाहि ह भमलन क परयत न म कबीर ररीर को जलाकर राख कर डालना चाहि ह और कहि ह कक उस राख की स याही बनाकर अिनी हडडी की लखनी स अिन वपरयतिम राम क िास चचटठी भलखकर भज सम भवि िभी मरा स मरर हो सकवा और व मझस भमलन आ सक व- यह िन जारौ मभस करौ भलखौ राम का नाऊा

लखनी करा करिक की भलखख भलखख राम पठाउा 3

कबीर कहि ह ववरह स वय मझस कह रहा ह कक ि मझ कभी मि छोड़ना त यककक म ही िझ उस िरम रहहम क िज म लीन कर द वा- 1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 61 2राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-97 33शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 54

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ववरह कह कबीर सौ ि कजन छााछ मोहह पार बरहम क िज म िहाा ल राखो िोहह1

कबीर की िकतियक म कजस िरह का परयत न ह वह परम का चरमोत कषश ह तसम दाम ित य परम ह कजसम स वय को राम की बहररया कहि ह तसभलए िरषोतिम अगरवाल का कथन ह - ldquoउनकी साधना ही परम क सबस सकशलष ट कि दाित य रनि का किक ह2 तस दाम ित य कि म कबीर िरम सतिा का वपरयिमा ह अगरवाल जी आव कहि ह -रीनि-ररवाज धमश-कमश और परदत ि मयाशदा का िरषोन मख महावरा नारी ननदा करिा ह िो साधना का परमोन मख महावरा कवव को नारी ही बना दिा ह3 तस िरह कबीर क मन म ऊषमा ह जनन ह जो आत मानभनि की तर अगरसर करिा ह

(4) सिसाररक बाधाएा

ननवकति रहस यवादी साधना िथ िर अनक परकार क ससाररक कष टक का सामना करना िड़िा ह उस िरम सतिा का साकषात कार सरलिा स सभव नही होिा कबीर न भी अिन साधना िथ िर अनक सासाररक ववघनक का सामना ककया ह उनहोन सबस बड़ा कारर माया को माना ह तस माया क कारर ही काम रियोध लोभ मोह आहद ववकार सिाि रहि ह तसक दो परमख कि ह- कचन और काभमनी कबीर कहि ह कक माया व याभभचारररी ह मोहहनी ह और सभी जीवक को धोखक म डालिी रहिी ह माया विराचनी ह-कबीर माया डाकणीि सब ककसही कौ खाइ4

वक क किा स कबीर का मन तस ससार स ववमख होकर ईश वरोन मख हआ तस कसथनि को परा ि करन क भलए उन ह अिन मन का िरश िररषकार 1दवाररका परसाद सतसनाहहनदी क पराचीन परनिननचध कवव( नवीिम स) ि 85 2िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 3िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि74

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करना िड़ा कबीर न मन को ननयबतरि करन िरमात मा क नाम का स मरर करन आचरर को रदध रखन ववचार और आचरर म एकिा लान सासाररक परलोभनक स अलव रहन सत य को गरहर करन अहहसात मक दकषटकोर को अिनानअहकार को तयावन और जीवन को मत ि होन की आवश यकिा िर जो बार-बार बल हदया ह वह मन क िररष कार क भलए ही होिा ह सब वक की किा स सभव होि ह-

कबीर िीछ लावा जात था लोक वद क साथ आव थ सिवक भमक या दीिक दीया हाचथ1 उियशत ि वववचन स स िष ट ह कक कबीर की साधना क मावशम ववघ न आि ह और उनस ननवकति का उिाय भी बिाि ह (5) िरम सतिा क दरशन का आभास

रहस यवाद म जब कोई साधक माया-मोह िर ववजय परा ि करक मावश क समस ि भलनिक ववघ न को िार कर साधना मावश िर आव बढिा ह वह थोड़ा आध याकतमक ससार म िह च जािा ह साधक क दयदय म जञान ज योनि का िीवर आलोक भर जािा ह तस सासाररक अधकार स दर हदव य रकति का दरशन करन लविा ह कबीर कहि ह- हद छाड़ ड बहहद गया हआ तनरन िर बास का वल ज फल या फल बबन को नीरष दास2

अथाशि म ससीम को िार करक असीम म िह च वया वही मरा राशवि ननवास हो वया वहा मन अनभव ककया कक बबना फल क एक कमल िखला हआ ह तसका दरशन भववान का ननजी दास ही कर सकिा ह तस िरह कबीर सासाररक माया मोह िर ववजय परा ि करक रहहम ज योनि दरशन करन लविा हlsquoरहहम-ज योनिrsquo का दरशन सब नहीबककक कोई साधक ही कर सकिा ह 1मािा परसाद वि कबीर गरथावली 1969 ि- 41 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 58

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(6) वास िववक जञान और परमानभति

जब ककसी साधक को िरम सतिा का आभास होन लविा ह िो उसक दयदय म जञान की ज योनि जलन लविी ह और उस वास िववक ससार का बोध होन लविा ह यही जञान भरभमि परािरयक का मावश-दरशन करिी ह कबीर कहि ह कक कजस उतकटिा और िीवरिा क साथ मन माया-जनय ववषयक म रमिा ह उिनी ही उत कटिा और िीवरिा क साथ यहद वह राम म रम जाए िो वह साधक िारामण डल स भी िर वहा िह च सकिा ह जहा स वह आया ह अथाशि उस रहहम म लीन हो जािा ह- जस माया मन रम या ज राम रमाइ िौ िारामण डल छााड़ड करर जहाा क सो िहाा जाई1

स थायी भमलन

रहस यवाद की अनिम कसथनि आत मा और िरमात मा का स थायी भमलन माना वया ह भमलन की तस अवस था को कबीर न ववववध परिीकक और किकक क माध यम स कहा ह स वय को दकहन बिाि हए कबीर कहि ह कजस परकार एक ित नी अिन िनि क साथ रयन करिी ह उसी परकार आत मा और िरमात मा दोनक एक होकर रयन करि ह‒

बहि हदनन थ परीिम पाए बड घर बठ आए मिहदर मााहह भया उकजयारा ल सिी अपना पीव प यारा2

कबीर न चचर भमलन का किक ववाहहक उत सव क माध यम स व यत ि ककया ह- दलहहन गावहा मिगलाचार हम घरर आय हो परम पररस भरिार| िन रति करर म मन रति करहा पिच िति बरािी|1

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि59 2 वहीि 117

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वववाहोिराि िरम ित व स अदभि भमलन होिा ह कजसस अननवचशनीय आनद की उिलब ध होिी ह कबीर कहि ह भववान की सवनि स म रीिल हो वया ह अब मोह की िाि भमट वई ह अब अदर म साकषात कार हो जान क कारर म राि-हदन सख की ननचध परा ि कर रहा ह हरर सिगति सीिल भया भमटा मोह की िाप तनस बासरर सख तनध य लहयाजब अििरर परकटना आप2

तस िरह आत म ित व और िरम ित व का स थायी भमलन हो जािा ह भत ि और भववान साधक और साध य जीव और रहहम एक हो जाि ह दोनक अमर हो जाि ह

कबीर क कावय म वयति रहसयवादी िररकसथयक का अध ययन करन िर जञाि होिा ह कक उनकी रहसयवाद की अिनी ववरषिाए ह तन िर हहदत क अदविवाद िथा मसलमानक क सफी-मि का परभाव लत हकषि होि ह तनक रहस यवाद म आकसिकिा माधयश भावना अन िमशखी साधना परम ित व भावनात मक सबधक का समावर ह रकर क अदविवाद का परादभाशव 8वी रिाब दी म होिा ह अदविवाद क अनसार आत मा और िरमात मा एक सतिा ह माया क कारर ही िरमात मा क नाम और कि का अकसित व ह वस िि आि मा और िरमात मा एक ही रकति क दो भाव ह जो माया क कारर अलव ह लककन व िन एक ही म भमल जाि ह तस परकरियया को कबीर तस िरह व यत ि करि ह

जल म कि भ कि भ म जल ह बाहहर भीिर पानी फटा कि भ जल जलहह समान यह िि कथो चगयानी3

1 जीएनदास लव स गज ऑफ कबीर1994 ि 39 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 59 3वहीि 128

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जल म भरा घड़ा जल म िर रहा ह तसक बाहरभीिर िानी ह घड़ा (माया) फटन िर जल एक हो जािा ह

ईसा क 8वी रिाब दी म तस लाम धमश क अिवशि तनक िरिरावि आदरो क ववरोध म सफी सपरदाय का उदय हआ सफीमि म बद और खदा का एकीकरर हो सकिा ह िर माया की ववरष चचाश नही ह िरमात मा स भमलन क भलए आत मा की चार दराए िार करनी िड़िी ह- (1) ररीयि (2) िरीकि (3)हकीकि(4) माररफि

तन दरात को िार करक ही आत मा और िरमात मा का सकममलन होिा ह तस परकार आत माम िरमात मा का अनभव होन लविा ह दसरी बाि यह ह कक सफी मि म परम का अर महत विरश हपरम ही कमश ह और परम ही धमश ह रामकमार वमाश का कथन ह कक ननस वाथश परम ही सफीमि का परार ह फारसी म कजिन सफी कवव ह व कवविा म परम क अनिररत ि कछ जानि ही नही ह1परम सफीमि म नरा ह खमारी ह परम क नर म साधक को ससार का कछ ध यान नही रहिा कबीर न भलखा ह-

हरर रसपीया जाातनय कबहा न जाय खमार ममििा घामि रह नााही िन की सार2

सफीमि म ईश वर स तरी कि म ह िर कबीर यहा ईश वर िरष कि म ह कबीर क रहस यवाद क बार म आव रामकमार वमाश न भलखा ह कबीर न अिन रहस यवाद क स िष टीकरर म दोनक की अदविवाद और सफीमि की बाि ली ह फलि उन हकन अदविवाद स माया और चचिन िथा सफीमि स परम लकर अिन रहस यवाद की सकषट की हrsquorsquo3

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 102 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-61 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-104

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रहस यवाद म परम का महत विरश स थान ह तसम उिनी जञान की आवश यकिा नही ह कजिन परम की तसभलए कबीर कहि ह- अ कथ कहानी परम की कछ कही न जाई गाग करी सरकरा बठा मसकाई1

परम की कहानी अकथ ह जो उसका आस वाद ल लिा ह वह व व क रत कर खान क अनभव जसा होिा ह कजसका वरशन वह नही कर सकिा तसभलए कबीर क रहस यवाद को भकतिमलक और परममलक रहस यवाद जाना जा सकिा ह

23 कबीर का दाशयतनक ववचार

मानव एक ववचाररील परारी ह ससार म घहटि होन वाल परत यक वनिववचध क परनि जावकक रहिा ह और चचिन क माध यम स रहस य समझन का परयत न करि ह ितिशचाि एक ववचार का जन म होिा ह यही ववचार दरशन का कि धारर करिा ह दारशननक ववचार जब भाव म किािररि होि ह िो भकति का ववषय बनिा ह

दरशन रब द का राकबदक अथश चाकषष परत यकष साकषात कार जानना2 तत याहद ह सामान य कि म परत यक व यकति का कोई न कोई दरशन अवश य होिा ह रास तर क कि म वह रास तर कजसम आत मा अनात मा जीव रहहम परकनि िरष जवि धमश मोकष मानव जीवन क उददश य आहद का ननकिर हो3 अगरजी कोर क अनसार ldquoदरशन एक अध ययन ह कजसम जीवन और जवि क परकनि और अथश का अध ययन ककया जािा हrdquo4सामान य अथश म lsquoदरशनrsquo का परयोव ककसी ववचार या भसदधाि की व याख या िाककश क ियशवकषर अथवा ववभभन न 1जीएनदास लव सागस ऑफ कबीर1994 ि-115 2 काभलक परासाद( स )वहि हहनदी कोर 1992 ि 509 3वही 509 4 The Study of the nature and meaning of universe and the human life- एस हॉनशबीऔतसफोडश लनशर डडतसनरी 2010 ि 1137

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ित व चचिन की परकरिययात क भलए आिा हककि मल कि म यह आत म जञान ित व जञान अथवा िरम ित व क जञान कि म आिा ह यह अनभव का िाककश क अथवा परमािरक मीमासा ह यह ससार क ममश को उदघाहटि करिा ह यह िरष परकनि का जञान ह

भकति काव य म भत ि कववयक न अिन आचायवोप स दारननशक िततववादी भसदधािक का जञान परा ि ककया ह परा ि जञान को उन हकन अिनी रचनात म अनभव क स िर िर उिारा ह भत ि कवव अिनी रचनात क स िर िर िहल रचनाकार ह उस सीध िलर िर दारशननक नही कहा जा सकिा उनक काव य म चचिन भावाभभव यकति की अिकषा वलर ह यदयवि भत ि कवव ककसी न ककसी वष रव आचायश क भरष य मान जाि ह िरन ि उनक काव य म सबदध आचायो क ित ववाद को िाककश क चचिन क कि म िरररि नही ह जहा िक कबीर का परशन ह िो यह कहा जा सकिा ह कक कबीर अचधक स वितर व यकतित व क साधक ह कबीर मलि दारशननक नही ह िरन ि उनक काव य म कई िरह क भसदधािक को दखा जा सकिा ह कबीर ककसी िवश परचभलि ववभरष ट सम परदाय यामिवाद स नही बध थ

रामकमार वमाश न कबीर क दरशन क सदभश म भलखा ह - सि मि का दरशन ककसी ववरष रास तर स नही भलया वया रास तरक म कबीर की आस था नही थी त यककक रास तर एक दकषटकोर ववरष स भलए या कह जाि ह और सापरदानयकिा क आधार िर ही हटक होि हhellip अि सि सपरदाय का दरशन उिननषद भारिीय षडदरशन बलदध धमश सफी सपरदाय नाथ सपरदाय की ववश वजनीन अनभनियक क ित वक को भमलाकर सवह ि हआ ह य ित व सीध रास तर स नही आय वरन रिाकबदयक की अनभनि िला िलकर महात मात की व यावहाररक जञान की कसलटी िर कस जाकर सत सव और वक क उिदरक स

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

101

परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

102

वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 8: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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हदव य रकति स ति-परोि निन िरम आनन द मत ि और परवकतिकि अनभव करिी ह

लडी अिडर हहल क अनसार - रहस यवाद िरम सतिा क परनि भावकिा भरी परनिकरियया को कहा ह1

परो आर डी रानाड क अनसार ldquoईश वर क परनि साधक की सरल सहज सीधी िथा परत यकष अन िपरजञात मक अनभनि ही रहस यवाद हrdquo2

साहहत य चचिकक न भी रहस यवाद को वववचन करन का परयास ककया ह आचायय रामचिदर शत ल रहस यवाद को तस परकार िररभावषि करि ह कक काव य की वह परवकति कजसम िरोकष सतिा स रावात मकसबध करक उसस भमलन िथा ववयोव की कसथनियक क काक िननक चचतर अककि ककय जाि ह3 रामचन दर रत ल काव य म िरम सतिा स रावात मक सबध िथा सयोव-ववयोव की कसथनियक म ववववध परकार क अनभनि होन की कसथनि माना ह

रामकमार वमाश क अनसार रहस यवाद जीवात मा की उस अन िहहशि परवकति का परकारन ह कजसम वह हदव य और अललककक रकति स अिना राि और ननश छल सबध जोड़ना चाहिी ह यह सबध यहा िक बढ जािा ह कक दोनक म कछ भी अिर नही रह जािा4 रहस यवाद म जीव क आत मा का िरमात मा स भमलन का आवव का परकारन होिा ह कजसस मनष य हदव य रकति परा ि कर लिा ह5

1The Poetry of my mysticism might be defined on the one hand as a temperamental reaction to the vision of prophecyरवीदर नाथ टवोर वन हडरड िोएमस ऑफ कबीर 1995 ि xix 2ldquoMysticism denotes that attitude of mind which involves a direct immediate firsthand intuitive apprehension of Godrdquo-रामचदर निवारी कबीर मीमासा 2007 स उदधि ि 87 3आचायश रामचदर रतल भाव -21999ि 48 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 92 5 शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011

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श यामसन दर दास कहि ह कक कवविा म रहस यवाद भावकिा का आधार िाि ह व भलखि ह- चचन िन क कषतर का रहहमवाद कवविा क कषतर म जाकर कक िना और भावकिा का आधार िाकर रहस यवाद का कि िकड़िा ह1

उियशत ि कथनक स स िष ट ह कक रहस यवाद आत मा-िरमात मा क एकात म स थाविि करन की परवकति ह यह परत यकष सयोवानभव की परकरियया ववरष ह तसकी अनभनि की अवस था म ववषय और व यकति का अववभाज य एकात म-भमशरर हो जािा ह िरमात मा सवाशिीि ह और आत मा उसकी परकनि की अराचधकारररी ह अनभनि की अवस था भी सवाशिीि होिी ह यह दयदय का धमश ह वह अिन जीवन म ववचाररा एकान ि आध याकतमक आनन द को स वीकार करिा ह साकषात कार की कसथनि अननवशचनीय होिी ह तस िरह हम कह सकि ह कक दश य जवि म व या ि उस व यत ि और अवोचर सतिा स आत मा क रावात मक सबध स थाविि करन को रहस यवाद कहा जािा ह रहस यवादी िरम सतिा की कजजञासा परकट करिा ह तसक अन िवशि एक कवव उस ववराट सतिा क परनि अिन ऐस भावोदवारक को व यत ि करिा ह कजनम सख-दख आनन द-ववषाद हास-रदन सयोव-ववयोव घल रहि ह और अननवशचनीय आनन द का अनभव ककया जा सकिा ह

दारशननक दकषट स रहस यवाद रब द बहि व यािक ह तस ककसी ववभरष ट दारशननक मि िक सीभमि करना समाचीन नही ह तसक अिवशि कई भदक को स वीकार ककया जा सकिा ह नावन दरनाथ उिाध याय रहस यवाद क यहा िर ववचार करि हए भलखि ह-परकार अथवा भद क ववषय म कभी वववचक िवी और िकशचमी का भद स वीकार करि ह कभी धमो क आधार िर ईसाई सफी हहद बलदध आहद भद स वीकार करि ह और कभी धमशननष ावादी िथा उदारवादी भदक म उनका ववभाजन करि ह िवी रहस यवाद क अिवशि भारिीय रहस यवाद म भी भदक का ननकिर कमशकाण डिरक रहस यवाद औिननषद रहस यवाद योविरक

1 वही ि 56

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रहस यवाद बलदध रहस यवाद और व यकतििरक रहस यवाद क कि म भमलिा ह अनिम परकार क भी दो कि रास तरीय और सावशललककक स वीकार ककए वए ह1 तस िरह रहस यवाद की तस व यािक अवधाररा को सवशसम मि दारशननक मान यिात क कि म बाधना कह न ह ईसाई धमश म भी रहस यवादी िि व भमलि ह बातबबल रहस यवाद का शरष गरथ हउसक एविभसक स नामक अरक म ईश वर क परत यकष साकषात कार की हदव यानभनि का वरशन ह सि िाल की शरदधा आस था और ववश वास का आधार यह हदव य साकषात कार ही ह2 तस िरह ईसाई धमश क अिवशि बहि स सि ऐस हए ह जो रहस यवादी हतस लाम म रहस यवाद का परारभ सफीवाद स हआ उनकी साधना म अनक सीह िया िार करनी होिी ह परायकशचि िररविशन त याव दररदरिा धयश ईश वर म ववश वास ईश वर छा म सिोष आहद तनक उिराि आध याकतमक अनभनि की भय आरा परम यास और साकषात कार की दराए आिी ह सफी साधना स दररदरिा िि और िववतरिा यत ि जीवन िथा सदवक की किा अननवायश ह3 उियशत ि वववरर स सिषट ह कक तस लामी रहस यवाद म भी िरम ित व वक की महिा अध याकतमक अनभनि साकषात कार आहद का समावर ह यह भारिीय रहस यवाद स अचधक ननकट ह वजाली जलालददीन सफी हाकफज उमर खयास ननजामीसादी और जामी परभसदध ईरानी सफी कवव ह भारि म भी सफी सि और कवव हए ह

हहदी म आहदकाल स रहस यवाद की िरम िरा रही ह हहदी साहहत य क आरभभक रहस यवादी कवव भसदध ह हहदी साहहत य क मध य यव (भकतिकाल) म सवर एव ननवशर दो किक म रहस यवादी रचनाए परचर मातरा म उिलब ध ह तस यव म रहस यवादी रचनाकार कबीर नानक दाद सरदास िलसीदास मीराबाई आहद बहि स कवव ह अन य भारिीय भाषात म भी रहस यवादी रचनाए

1वासदव भसह(स) कबीर 2004 ि 138 2धीरदर वमाश (परस) हहदी साहहतयकोर (परथम भाव )2009 ि 37 3वही ि-37

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उिलब ध ह रवीदरनाथ स परभाववि होकर छायावादी कववयक न भी रहस यवादी रचनाए दी एक िरह स यह कबतरम रहस वाद ह

उियशत ि वववररक स स िष ट ह कक रहस यवादी ववचार बहि ही व यािक ह ककसी न ककसी कि म यह मनष य क आहदम काल स आज िक उिकसथि ह तसक ववववध परकार और भद ह यह ककसी ववभरष ट अवधाररा म नही बधा ह िकशचमी रहस यवाद और भारिीय रहस यवाद म अन िर क बावजद समान ित व मलजद ह

रहस यवाद की कसथति

रामकमार वमाश न रहस यवाद की िीन िररकसथनियक का उक लख ककया ह- 1 िहली िररकसथनि वह ह जहा व यकति ववरष अनि रकति स अिना सबध जोड़न क भलए अगरसर होिा ह1

2 दवविीय कसथनि िब आिी ह जब आत मा िरमात मा स परम करन लव जािी ह भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक आत मा म एक परकार का उन माद या िावलिन छा जािा ह2

3 तसक िश चाि रहस यवाहदयक की िीसरी कसथनि आिी ह जो रहस यवाद की चरम सीमा बिला सकिी ह तस दरा म आत मा और िरमात मा का तिना ऐत य हो जािा ह कक कफर उनम कोई भभन निा नही रहिी3

उियशत ि उदधररक स स िष ट ह रहस यवाद म िरम सत िा क परनि कजजञासा की भावना रहिी ह रहस यवादी साधक िरम सत िा क महत व का परदरशन करि हए उसस भमलन या दरशन करन का परयास करि ह भलनिक ववध और त लष स

1रामकमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 96 2वही ि 97 3 वहीि 97

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छटकारा िान क बाद उस सत िा का आभास या दरशन होिा ह िथा ससार का वास िववक जञान या िरोकष अनभनि होिी ह कफर आत मा और िरमात मा का चचर भमलन होिा ह आत मा म िरमात मा क वरक का समाहार हो जािा ह कबीर क रहस यवाद की कसथनि और ववरषिा क अध ययन स ििा चलिा ह कक रहस यवाद क कछ सामान य ित वक क अनिररत ि उनकी अलव ववरषिा ह उनक रहस यवाद म भारिीय और ववदरी दोनक परकार की ववरषिात का समावर ह यह कबीर क हहद और मसलमान दोनक परकार क सिक क साननध य म रहन का िररराम ह कबीर रहस यवादी कसथनियक को बड़ सजीव िव स परस िि करि ह यथा-

(1) कजजञासा की भावना- रहस यवाद म िरम ित व को जानन की त छा िीवर होिी ह उसी िरह कबीर म भी कजजञासा की भावना ह कबीर का ईश वर ननवशर एव ननराकार ह वह सवशतर ववदयमान ह कबीर का मन अिन तष टदव क परनि कजजञासा उत िन न करि ह और जानना चाहि ह कक वह रहहम कसा ह कहा ह और ककस िरह वह अिनी सिरश करियया करिा रहिा ह तस चचिन म डबकर भलखि ह कक कजस रहहम का न कि ह न रखा ह और न कजसका वरश ह वह त या ह यह रहहमाण ड िथा य परार कहा स आि ह मि जीव कहा जाकर ववलीन हो जािा ह जीवक की समस ि तकनदरया कहा ववशराम करिी ह वह मरन क बाद कहा जािी ह-

कबीर जानना चाहि ह कक lsquoरब दrsquoकहा लीन हो जािा ह जब रहहम और विड कछ नही ह िब िच ित व कहा लीन हो जािा ह समस ि वर कहा समा जाि ह- ldquoसििो धागा टटा गगन ववतनभस गया सबद ज कहाा समाई ए सिसा मोहह तनस हदन व याप कोई न कह समझाई

73

नहीि बरहमािड पतन नााही पिच ित व भी नाहीि इडा वप िगला सखमन नााही ए गण कहाा समाहीि1

उियशत ि िकतियक स स िष ट ह कक कबीर क मकसिष क म कििहल कजजञासा एव ववस मय की भावना ह कबीर सब कछ जानन क भलए िीवर उत क ा व यत ि करि ह

(2)बरहम का महततव परदशयन और अतनवयचनीयिा-

कजजञासा और किहल की कसथनि म साधक को िथ-परदरशक की आवश यकिा िड़िी ह अि साधक सिवक की ररर म िह च जािा ह वक की किा स ही जञान की आ धी आिी ह और भरम टट जािा ह कबीर कहि ह कक वक अिन हाथ म कमान लकर उसस परम सहहि ऐसा उिदर किीबार चलािा ह कक वह भरष य क दयदय म लविा ह- सिगर लई कमािण करर बााहण लागा िीर एक ज बाहय परीति सा भीिरी रहया सरीर2

अललककक सतिा अननवशचनीय ह वह अदभि और अललककक सतिा ह जो सवशतर वयाि होकर भी कही हदखाई नही दिी उसका िररचय मन बवदध एव वारी स परा ि करना सवशथा असम भव ह और उसका वरशन करना व व का वड़ ह कफर भी वरशन करन कापरयत न करि हए कहि ह कक कभी उस lsquoिहि बास स िािराrsquo कहकर उसकी सकष मानि सकष म कसथनि की तर सकि करि ह िो कभी उस िज-िज िारसमिर कहकर उसकी शरष िा का परनििादन करि ह कबीर िरम सत िा को एक ऐसा रसायर कहि ह कजसम स िरश मातर स सारा ररीर कचन बन जािा ह

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 125 2वही ि 49

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सब रसायन म ककया हरर सा और न कोई तिल इक घट म सिचर िौ सब िन कि चन होइ1

तस िरह स िष ट ह कक कबीर उस अव यत ि िरम सत िा की महतिा शरष िा का परनििादन करि ह साथ ही उसकी अननवशचनीयिा भी स वीकार करि ह (3) दशयन और भमलन का परयत न- रहस यवादी साधक िरम ित व स साकषात कार या भमलन का परयत न करि ह कजस िरह एक ववयोचवनी परमी स भमलन क भलए आिर रहिी ह उसी िरह कबीर भी िरम सत िा स भमलन का परयत न करि ह कबीर भावकिा म अवयति सत िा स भमलना चाहि ह रहस यवादी कववयक म भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक िरम ित व स भमलन क भलए िावलिन छा जािा ह रामकमार वमाश क अनसार कजस परकार ककसी जलपरिाि क याद म समीि क सभी छोट छोट स वर अिननशहहि हो जाि ह ीक उसी परकार उस ईश वरीय परम म सार ववचार या िो ल ि हो जाि ह अथवा उसी परम क बहाव म बह जाि ह2 कबीर भमलन की उत क ा म स वय को भस म कर दना चाहि ह भमलन क परयत न म कबीर ररीर को जलाकर राख कर डालना चाहि ह और कहि ह कक उस राख की स याही बनाकर अिनी हडडी की लखनी स अिन वपरयतिम राम क िास चचटठी भलखकर भज सम भवि िभी मरा स मरर हो सकवा और व मझस भमलन आ सक व- यह िन जारौ मभस करौ भलखौ राम का नाऊा

लखनी करा करिक की भलखख भलखख राम पठाउा 3

कबीर कहि ह ववरह स वय मझस कह रहा ह कक ि मझ कभी मि छोड़ना त यककक म ही िझ उस िरम रहहम क िज म लीन कर द वा- 1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 61 2राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-97 33शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 54

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ववरह कह कबीर सौ ि कजन छााछ मोहह पार बरहम क िज म िहाा ल राखो िोहह1

कबीर की िकतियक म कजस िरह का परयत न ह वह परम का चरमोत कषश ह तसम दाम ित य परम ह कजसम स वय को राम की बहररया कहि ह तसभलए िरषोतिम अगरवाल का कथन ह - ldquoउनकी साधना ही परम क सबस सकशलष ट कि दाित य रनि का किक ह2 तस दाम ित य कि म कबीर िरम सतिा का वपरयिमा ह अगरवाल जी आव कहि ह -रीनि-ररवाज धमश-कमश और परदत ि मयाशदा का िरषोन मख महावरा नारी ननदा करिा ह िो साधना का परमोन मख महावरा कवव को नारी ही बना दिा ह3 तस िरह कबीर क मन म ऊषमा ह जनन ह जो आत मानभनि की तर अगरसर करिा ह

(4) सिसाररक बाधाएा

ननवकति रहस यवादी साधना िथ िर अनक परकार क ससाररक कष टक का सामना करना िड़िा ह उस िरम सतिा का साकषात कार सरलिा स सभव नही होिा कबीर न भी अिन साधना िथ िर अनक सासाररक ववघनक का सामना ककया ह उनहोन सबस बड़ा कारर माया को माना ह तस माया क कारर ही काम रियोध लोभ मोह आहद ववकार सिाि रहि ह तसक दो परमख कि ह- कचन और काभमनी कबीर कहि ह कक माया व याभभचारररी ह मोहहनी ह और सभी जीवक को धोखक म डालिी रहिी ह माया विराचनी ह-कबीर माया डाकणीि सब ककसही कौ खाइ4

वक क किा स कबीर का मन तस ससार स ववमख होकर ईश वरोन मख हआ तस कसथनि को परा ि करन क भलए उन ह अिन मन का िरश िररषकार 1दवाररका परसाद सतसनाहहनदी क पराचीन परनिननचध कवव( नवीिम स) ि 85 2िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 3िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि74

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करना िड़ा कबीर न मन को ननयबतरि करन िरमात मा क नाम का स मरर करन आचरर को रदध रखन ववचार और आचरर म एकिा लान सासाररक परलोभनक स अलव रहन सत य को गरहर करन अहहसात मक दकषटकोर को अिनानअहकार को तयावन और जीवन को मत ि होन की आवश यकिा िर जो बार-बार बल हदया ह वह मन क िररष कार क भलए ही होिा ह सब वक की किा स सभव होि ह-

कबीर िीछ लावा जात था लोक वद क साथ आव थ सिवक भमक या दीिक दीया हाचथ1 उियशत ि वववचन स स िष ट ह कक कबीर की साधना क मावशम ववघ न आि ह और उनस ननवकति का उिाय भी बिाि ह (5) िरम सतिा क दरशन का आभास

रहस यवाद म जब कोई साधक माया-मोह िर ववजय परा ि करक मावश क समस ि भलनिक ववघ न को िार कर साधना मावश िर आव बढिा ह वह थोड़ा आध याकतमक ससार म िह च जािा ह साधक क दयदय म जञान ज योनि का िीवर आलोक भर जािा ह तस सासाररक अधकार स दर हदव य रकति का दरशन करन लविा ह कबीर कहि ह- हद छाड़ ड बहहद गया हआ तनरन िर बास का वल ज फल या फल बबन को नीरष दास2

अथाशि म ससीम को िार करक असीम म िह च वया वही मरा राशवि ननवास हो वया वहा मन अनभव ककया कक बबना फल क एक कमल िखला हआ ह तसका दरशन भववान का ननजी दास ही कर सकिा ह तस िरह कबीर सासाररक माया मोह िर ववजय परा ि करक रहहम ज योनि दरशन करन लविा हlsquoरहहम-ज योनिrsquo का दरशन सब नहीबककक कोई साधक ही कर सकिा ह 1मािा परसाद वि कबीर गरथावली 1969 ि- 41 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 58

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(6) वास िववक जञान और परमानभति

जब ककसी साधक को िरम सतिा का आभास होन लविा ह िो उसक दयदय म जञान की ज योनि जलन लविी ह और उस वास िववक ससार का बोध होन लविा ह यही जञान भरभमि परािरयक का मावश-दरशन करिी ह कबीर कहि ह कक कजस उतकटिा और िीवरिा क साथ मन माया-जनय ववषयक म रमिा ह उिनी ही उत कटिा और िीवरिा क साथ यहद वह राम म रम जाए िो वह साधक िारामण डल स भी िर वहा िह च सकिा ह जहा स वह आया ह अथाशि उस रहहम म लीन हो जािा ह- जस माया मन रम या ज राम रमाइ िौ िारामण डल छााड़ड करर जहाा क सो िहाा जाई1

स थायी भमलन

रहस यवाद की अनिम कसथनि आत मा और िरमात मा का स थायी भमलन माना वया ह भमलन की तस अवस था को कबीर न ववववध परिीकक और किकक क माध यम स कहा ह स वय को दकहन बिाि हए कबीर कहि ह कजस परकार एक ित नी अिन िनि क साथ रयन करिी ह उसी परकार आत मा और िरमात मा दोनक एक होकर रयन करि ह‒

बहि हदनन थ परीिम पाए बड घर बठ आए मिहदर मााहह भया उकजयारा ल सिी अपना पीव प यारा2

कबीर न चचर भमलन का किक ववाहहक उत सव क माध यम स व यत ि ककया ह- दलहहन गावहा मिगलाचार हम घरर आय हो परम पररस भरिार| िन रति करर म मन रति करहा पिच िति बरािी|1

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि59 2 वहीि 117

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वववाहोिराि िरम ित व स अदभि भमलन होिा ह कजसस अननवचशनीय आनद की उिलब ध होिी ह कबीर कहि ह भववान की सवनि स म रीिल हो वया ह अब मोह की िाि भमट वई ह अब अदर म साकषात कार हो जान क कारर म राि-हदन सख की ननचध परा ि कर रहा ह हरर सिगति सीिल भया भमटा मोह की िाप तनस बासरर सख तनध य लहयाजब अििरर परकटना आप2

तस िरह आत म ित व और िरम ित व का स थायी भमलन हो जािा ह भत ि और भववान साधक और साध य जीव और रहहम एक हो जाि ह दोनक अमर हो जाि ह

कबीर क कावय म वयति रहसयवादी िररकसथयक का अध ययन करन िर जञाि होिा ह कक उनकी रहसयवाद की अिनी ववरषिाए ह तन िर हहदत क अदविवाद िथा मसलमानक क सफी-मि का परभाव लत हकषि होि ह तनक रहस यवाद म आकसिकिा माधयश भावना अन िमशखी साधना परम ित व भावनात मक सबधक का समावर ह रकर क अदविवाद का परादभाशव 8वी रिाब दी म होिा ह अदविवाद क अनसार आत मा और िरमात मा एक सतिा ह माया क कारर ही िरमात मा क नाम और कि का अकसित व ह वस िि आि मा और िरमात मा एक ही रकति क दो भाव ह जो माया क कारर अलव ह लककन व िन एक ही म भमल जाि ह तस परकरियया को कबीर तस िरह व यत ि करि ह

जल म कि भ कि भ म जल ह बाहहर भीिर पानी फटा कि भ जल जलहह समान यह िि कथो चगयानी3

1 जीएनदास लव स गज ऑफ कबीर1994 ि 39 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 59 3वहीि 128

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जल म भरा घड़ा जल म िर रहा ह तसक बाहरभीिर िानी ह घड़ा (माया) फटन िर जल एक हो जािा ह

ईसा क 8वी रिाब दी म तस लाम धमश क अिवशि तनक िरिरावि आदरो क ववरोध म सफी सपरदाय का उदय हआ सफीमि म बद और खदा का एकीकरर हो सकिा ह िर माया की ववरष चचाश नही ह िरमात मा स भमलन क भलए आत मा की चार दराए िार करनी िड़िी ह- (1) ररीयि (2) िरीकि (3)हकीकि(4) माररफि

तन दरात को िार करक ही आत मा और िरमात मा का सकममलन होिा ह तस परकार आत माम िरमात मा का अनभव होन लविा ह दसरी बाि यह ह कक सफी मि म परम का अर महत विरश हपरम ही कमश ह और परम ही धमश ह रामकमार वमाश का कथन ह कक ननस वाथश परम ही सफीमि का परार ह फारसी म कजिन सफी कवव ह व कवविा म परम क अनिररत ि कछ जानि ही नही ह1परम सफीमि म नरा ह खमारी ह परम क नर म साधक को ससार का कछ ध यान नही रहिा कबीर न भलखा ह-

हरर रसपीया जाातनय कबहा न जाय खमार ममििा घामि रह नााही िन की सार2

सफीमि म ईश वर स तरी कि म ह िर कबीर यहा ईश वर िरष कि म ह कबीर क रहस यवाद क बार म आव रामकमार वमाश न भलखा ह कबीर न अिन रहस यवाद क स िष टीकरर म दोनक की अदविवाद और सफीमि की बाि ली ह फलि उन हकन अदविवाद स माया और चचिन िथा सफीमि स परम लकर अिन रहस यवाद की सकषट की हrsquorsquo3

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 102 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-61 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-104

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रहस यवाद म परम का महत विरश स थान ह तसम उिनी जञान की आवश यकिा नही ह कजिन परम की तसभलए कबीर कहि ह- अ कथ कहानी परम की कछ कही न जाई गाग करी सरकरा बठा मसकाई1

परम की कहानी अकथ ह जो उसका आस वाद ल लिा ह वह व व क रत कर खान क अनभव जसा होिा ह कजसका वरशन वह नही कर सकिा तसभलए कबीर क रहस यवाद को भकतिमलक और परममलक रहस यवाद जाना जा सकिा ह

23 कबीर का दाशयतनक ववचार

मानव एक ववचाररील परारी ह ससार म घहटि होन वाल परत यक वनिववचध क परनि जावकक रहिा ह और चचिन क माध यम स रहस य समझन का परयत न करि ह ितिशचाि एक ववचार का जन म होिा ह यही ववचार दरशन का कि धारर करिा ह दारशननक ववचार जब भाव म किािररि होि ह िो भकति का ववषय बनिा ह

दरशन रब द का राकबदक अथश चाकषष परत यकष साकषात कार जानना2 तत याहद ह सामान य कि म परत यक व यकति का कोई न कोई दरशन अवश य होिा ह रास तर क कि म वह रास तर कजसम आत मा अनात मा जीव रहहम परकनि िरष जवि धमश मोकष मानव जीवन क उददश य आहद का ननकिर हो3 अगरजी कोर क अनसार ldquoदरशन एक अध ययन ह कजसम जीवन और जवि क परकनि और अथश का अध ययन ककया जािा हrdquo4सामान य अथश म lsquoदरशनrsquo का परयोव ककसी ववचार या भसदधाि की व याख या िाककश क ियशवकषर अथवा ववभभन न 1जीएनदास लव सागस ऑफ कबीर1994 ि-115 2 काभलक परासाद( स )वहि हहनदी कोर 1992 ि 509 3वही 509 4 The Study of the nature and meaning of universe and the human life- एस हॉनशबीऔतसफोडश लनशर डडतसनरी 2010 ि 1137

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ित व चचिन की परकरिययात क भलए आिा हककि मल कि म यह आत म जञान ित व जञान अथवा िरम ित व क जञान कि म आिा ह यह अनभव का िाककश क अथवा परमािरक मीमासा ह यह ससार क ममश को उदघाहटि करिा ह यह िरष परकनि का जञान ह

भकति काव य म भत ि कववयक न अिन आचायवोप स दारननशक िततववादी भसदधािक का जञान परा ि ककया ह परा ि जञान को उन हकन अिनी रचनात म अनभव क स िर िर उिारा ह भत ि कवव अिनी रचनात क स िर िर िहल रचनाकार ह उस सीध िलर िर दारशननक नही कहा जा सकिा उनक काव य म चचिन भावाभभव यकति की अिकषा वलर ह यदयवि भत ि कवव ककसी न ककसी वष रव आचायश क भरष य मान जाि ह िरन ि उनक काव य म सबदध आचायो क ित ववाद को िाककश क चचिन क कि म िरररि नही ह जहा िक कबीर का परशन ह िो यह कहा जा सकिा ह कक कबीर अचधक स वितर व यकतित व क साधक ह कबीर मलि दारशननक नही ह िरन ि उनक काव य म कई िरह क भसदधािक को दखा जा सकिा ह कबीर ककसी िवश परचभलि ववभरष ट सम परदाय यामिवाद स नही बध थ

रामकमार वमाश न कबीर क दरशन क सदभश म भलखा ह - सि मि का दरशन ककसी ववरष रास तर स नही भलया वया रास तरक म कबीर की आस था नही थी त यककक रास तर एक दकषटकोर ववरष स भलए या कह जाि ह और सापरदानयकिा क आधार िर ही हटक होि हhellip अि सि सपरदाय का दरशन उिननषद भारिीय षडदरशन बलदध धमश सफी सपरदाय नाथ सपरदाय की ववश वजनीन अनभनियक क ित वक को भमलाकर सवह ि हआ ह य ित व सीध रास तर स नही आय वरन रिाकबदयक की अनभनि िला िलकर महात मात की व यावहाररक जञान की कसलटी िर कस जाकर सत सव और वक क उिदरक स

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

98

भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

99

2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

100

1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

101

परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

102

वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 9: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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श यामसन दर दास कहि ह कक कवविा म रहस यवाद भावकिा का आधार िाि ह व भलखि ह- चचन िन क कषतर का रहहमवाद कवविा क कषतर म जाकर कक िना और भावकिा का आधार िाकर रहस यवाद का कि िकड़िा ह1

उियशत ि कथनक स स िष ट ह कक रहस यवाद आत मा-िरमात मा क एकात म स थाविि करन की परवकति ह यह परत यकष सयोवानभव की परकरियया ववरष ह तसकी अनभनि की अवस था म ववषय और व यकति का अववभाज य एकात म-भमशरर हो जािा ह िरमात मा सवाशिीि ह और आत मा उसकी परकनि की अराचधकारररी ह अनभनि की अवस था भी सवाशिीि होिी ह यह दयदय का धमश ह वह अिन जीवन म ववचाररा एकान ि आध याकतमक आनन द को स वीकार करिा ह साकषात कार की कसथनि अननवशचनीय होिी ह तस िरह हम कह सकि ह कक दश य जवि म व या ि उस व यत ि और अवोचर सतिा स आत मा क रावात मक सबध स थाविि करन को रहस यवाद कहा जािा ह रहस यवादी िरम सतिा की कजजञासा परकट करिा ह तसक अन िवशि एक कवव उस ववराट सतिा क परनि अिन ऐस भावोदवारक को व यत ि करिा ह कजनम सख-दख आनन द-ववषाद हास-रदन सयोव-ववयोव घल रहि ह और अननवशचनीय आनन द का अनभव ककया जा सकिा ह

दारशननक दकषट स रहस यवाद रब द बहि व यािक ह तस ककसी ववभरष ट दारशननक मि िक सीभमि करना समाचीन नही ह तसक अिवशि कई भदक को स वीकार ककया जा सकिा ह नावन दरनाथ उिाध याय रहस यवाद क यहा िर ववचार करि हए भलखि ह-परकार अथवा भद क ववषय म कभी वववचक िवी और िकशचमी का भद स वीकार करि ह कभी धमो क आधार िर ईसाई सफी हहद बलदध आहद भद स वीकार करि ह और कभी धमशननष ावादी िथा उदारवादी भदक म उनका ववभाजन करि ह िवी रहस यवाद क अिवशि भारिीय रहस यवाद म भी भदक का ननकिर कमशकाण डिरक रहस यवाद औिननषद रहस यवाद योविरक

1 वही ि 56

70

रहस यवाद बलदध रहस यवाद और व यकतििरक रहस यवाद क कि म भमलिा ह अनिम परकार क भी दो कि रास तरीय और सावशललककक स वीकार ककए वए ह1 तस िरह रहस यवाद की तस व यािक अवधाररा को सवशसम मि दारशननक मान यिात क कि म बाधना कह न ह ईसाई धमश म भी रहस यवादी िि व भमलि ह बातबबल रहस यवाद का शरष गरथ हउसक एविभसक स नामक अरक म ईश वर क परत यकष साकषात कार की हदव यानभनि का वरशन ह सि िाल की शरदधा आस था और ववश वास का आधार यह हदव य साकषात कार ही ह2 तस िरह ईसाई धमश क अिवशि बहि स सि ऐस हए ह जो रहस यवादी हतस लाम म रहस यवाद का परारभ सफीवाद स हआ उनकी साधना म अनक सीह िया िार करनी होिी ह परायकशचि िररविशन त याव दररदरिा धयश ईश वर म ववश वास ईश वर छा म सिोष आहद तनक उिराि आध याकतमक अनभनि की भय आरा परम यास और साकषात कार की दराए आिी ह सफी साधना स दररदरिा िि और िववतरिा यत ि जीवन िथा सदवक की किा अननवायश ह3 उियशत ि वववरर स सिषट ह कक तस लामी रहस यवाद म भी िरम ित व वक की महिा अध याकतमक अनभनि साकषात कार आहद का समावर ह यह भारिीय रहस यवाद स अचधक ननकट ह वजाली जलालददीन सफी हाकफज उमर खयास ननजामीसादी और जामी परभसदध ईरानी सफी कवव ह भारि म भी सफी सि और कवव हए ह

हहदी म आहदकाल स रहस यवाद की िरम िरा रही ह हहदी साहहत य क आरभभक रहस यवादी कवव भसदध ह हहदी साहहत य क मध य यव (भकतिकाल) म सवर एव ननवशर दो किक म रहस यवादी रचनाए परचर मातरा म उिलब ध ह तस यव म रहस यवादी रचनाकार कबीर नानक दाद सरदास िलसीदास मीराबाई आहद बहि स कवव ह अन य भारिीय भाषात म भी रहस यवादी रचनाए

1वासदव भसह(स) कबीर 2004 ि 138 2धीरदर वमाश (परस) हहदी साहहतयकोर (परथम भाव )2009 ि 37 3वही ि-37

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उिलब ध ह रवीदरनाथ स परभाववि होकर छायावादी कववयक न भी रहस यवादी रचनाए दी एक िरह स यह कबतरम रहस वाद ह

उियशत ि वववररक स स िष ट ह कक रहस यवादी ववचार बहि ही व यािक ह ककसी न ककसी कि म यह मनष य क आहदम काल स आज िक उिकसथि ह तसक ववववध परकार और भद ह यह ककसी ववभरष ट अवधाररा म नही बधा ह िकशचमी रहस यवाद और भारिीय रहस यवाद म अन िर क बावजद समान ित व मलजद ह

रहस यवाद की कसथति

रामकमार वमाश न रहस यवाद की िीन िररकसथनियक का उक लख ककया ह- 1 िहली िररकसथनि वह ह जहा व यकति ववरष अनि रकति स अिना सबध जोड़न क भलए अगरसर होिा ह1

2 दवविीय कसथनि िब आिी ह जब आत मा िरमात मा स परम करन लव जािी ह भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक आत मा म एक परकार का उन माद या िावलिन छा जािा ह2

3 तसक िश चाि रहस यवाहदयक की िीसरी कसथनि आिी ह जो रहस यवाद की चरम सीमा बिला सकिी ह तस दरा म आत मा और िरमात मा का तिना ऐत य हो जािा ह कक कफर उनम कोई भभन निा नही रहिी3

उियशत ि उदधररक स स िष ट ह रहस यवाद म िरम सत िा क परनि कजजञासा की भावना रहिी ह रहस यवादी साधक िरम सत िा क महत व का परदरशन करि हए उसस भमलन या दरशन करन का परयास करि ह भलनिक ववध और त लष स

1रामकमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 96 2वही ि 97 3 वहीि 97

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छटकारा िान क बाद उस सत िा का आभास या दरशन होिा ह िथा ससार का वास िववक जञान या िरोकष अनभनि होिी ह कफर आत मा और िरमात मा का चचर भमलन होिा ह आत मा म िरमात मा क वरक का समाहार हो जािा ह कबीर क रहस यवाद की कसथनि और ववरषिा क अध ययन स ििा चलिा ह कक रहस यवाद क कछ सामान य ित वक क अनिररत ि उनकी अलव ववरषिा ह उनक रहस यवाद म भारिीय और ववदरी दोनक परकार की ववरषिात का समावर ह यह कबीर क हहद और मसलमान दोनक परकार क सिक क साननध य म रहन का िररराम ह कबीर रहस यवादी कसथनियक को बड़ सजीव िव स परस िि करि ह यथा-

(1) कजजञासा की भावना- रहस यवाद म िरम ित व को जानन की त छा िीवर होिी ह उसी िरह कबीर म भी कजजञासा की भावना ह कबीर का ईश वर ननवशर एव ननराकार ह वह सवशतर ववदयमान ह कबीर का मन अिन तष टदव क परनि कजजञासा उत िन न करि ह और जानना चाहि ह कक वह रहहम कसा ह कहा ह और ककस िरह वह अिनी सिरश करियया करिा रहिा ह तस चचिन म डबकर भलखि ह कक कजस रहहम का न कि ह न रखा ह और न कजसका वरश ह वह त या ह यह रहहमाण ड िथा य परार कहा स आि ह मि जीव कहा जाकर ववलीन हो जािा ह जीवक की समस ि तकनदरया कहा ववशराम करिी ह वह मरन क बाद कहा जािी ह-

कबीर जानना चाहि ह कक lsquoरब दrsquoकहा लीन हो जािा ह जब रहहम और विड कछ नही ह िब िच ित व कहा लीन हो जािा ह समस ि वर कहा समा जाि ह- ldquoसििो धागा टटा गगन ववतनभस गया सबद ज कहाा समाई ए सिसा मोहह तनस हदन व याप कोई न कह समझाई

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नहीि बरहमािड पतन नााही पिच ित व भी नाहीि इडा वप िगला सखमन नााही ए गण कहाा समाहीि1

उियशत ि िकतियक स स िष ट ह कक कबीर क मकसिष क म कििहल कजजञासा एव ववस मय की भावना ह कबीर सब कछ जानन क भलए िीवर उत क ा व यत ि करि ह

(2)बरहम का महततव परदशयन और अतनवयचनीयिा-

कजजञासा और किहल की कसथनि म साधक को िथ-परदरशक की आवश यकिा िड़िी ह अि साधक सिवक की ररर म िह च जािा ह वक की किा स ही जञान की आ धी आिी ह और भरम टट जािा ह कबीर कहि ह कक वक अिन हाथ म कमान लकर उसस परम सहहि ऐसा उिदर किीबार चलािा ह कक वह भरष य क दयदय म लविा ह- सिगर लई कमािण करर बााहण लागा िीर एक ज बाहय परीति सा भीिरी रहया सरीर2

अललककक सतिा अननवशचनीय ह वह अदभि और अललककक सतिा ह जो सवशतर वयाि होकर भी कही हदखाई नही दिी उसका िररचय मन बवदध एव वारी स परा ि करना सवशथा असम भव ह और उसका वरशन करना व व का वड़ ह कफर भी वरशन करन कापरयत न करि हए कहि ह कक कभी उस lsquoिहि बास स िािराrsquo कहकर उसकी सकष मानि सकष म कसथनि की तर सकि करि ह िो कभी उस िज-िज िारसमिर कहकर उसकी शरष िा का परनििादन करि ह कबीर िरम सत िा को एक ऐसा रसायर कहि ह कजसम स िरश मातर स सारा ररीर कचन बन जािा ह

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 125 2वही ि 49

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सब रसायन म ककया हरर सा और न कोई तिल इक घट म सिचर िौ सब िन कि चन होइ1

तस िरह स िष ट ह कक कबीर उस अव यत ि िरम सत िा की महतिा शरष िा का परनििादन करि ह साथ ही उसकी अननवशचनीयिा भी स वीकार करि ह (3) दशयन और भमलन का परयत न- रहस यवादी साधक िरम ित व स साकषात कार या भमलन का परयत न करि ह कजस िरह एक ववयोचवनी परमी स भमलन क भलए आिर रहिी ह उसी िरह कबीर भी िरम सत िा स भमलन का परयत न करि ह कबीर भावकिा म अवयति सत िा स भमलना चाहि ह रहस यवादी कववयक म भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक िरम ित व स भमलन क भलए िावलिन छा जािा ह रामकमार वमाश क अनसार कजस परकार ककसी जलपरिाि क याद म समीि क सभी छोट छोट स वर अिननशहहि हो जाि ह ीक उसी परकार उस ईश वरीय परम म सार ववचार या िो ल ि हो जाि ह अथवा उसी परम क बहाव म बह जाि ह2 कबीर भमलन की उत क ा म स वय को भस म कर दना चाहि ह भमलन क परयत न म कबीर ररीर को जलाकर राख कर डालना चाहि ह और कहि ह कक उस राख की स याही बनाकर अिनी हडडी की लखनी स अिन वपरयतिम राम क िास चचटठी भलखकर भज सम भवि िभी मरा स मरर हो सकवा और व मझस भमलन आ सक व- यह िन जारौ मभस करौ भलखौ राम का नाऊा

लखनी करा करिक की भलखख भलखख राम पठाउा 3

कबीर कहि ह ववरह स वय मझस कह रहा ह कक ि मझ कभी मि छोड़ना त यककक म ही िझ उस िरम रहहम क िज म लीन कर द वा- 1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 61 2राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-97 33शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 54

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ववरह कह कबीर सौ ि कजन छााछ मोहह पार बरहम क िज म िहाा ल राखो िोहह1

कबीर की िकतियक म कजस िरह का परयत न ह वह परम का चरमोत कषश ह तसम दाम ित य परम ह कजसम स वय को राम की बहररया कहि ह तसभलए िरषोतिम अगरवाल का कथन ह - ldquoउनकी साधना ही परम क सबस सकशलष ट कि दाित य रनि का किक ह2 तस दाम ित य कि म कबीर िरम सतिा का वपरयिमा ह अगरवाल जी आव कहि ह -रीनि-ररवाज धमश-कमश और परदत ि मयाशदा का िरषोन मख महावरा नारी ननदा करिा ह िो साधना का परमोन मख महावरा कवव को नारी ही बना दिा ह3 तस िरह कबीर क मन म ऊषमा ह जनन ह जो आत मानभनि की तर अगरसर करिा ह

(4) सिसाररक बाधाएा

ननवकति रहस यवादी साधना िथ िर अनक परकार क ससाररक कष टक का सामना करना िड़िा ह उस िरम सतिा का साकषात कार सरलिा स सभव नही होिा कबीर न भी अिन साधना िथ िर अनक सासाररक ववघनक का सामना ककया ह उनहोन सबस बड़ा कारर माया को माना ह तस माया क कारर ही काम रियोध लोभ मोह आहद ववकार सिाि रहि ह तसक दो परमख कि ह- कचन और काभमनी कबीर कहि ह कक माया व याभभचारररी ह मोहहनी ह और सभी जीवक को धोखक म डालिी रहिी ह माया विराचनी ह-कबीर माया डाकणीि सब ककसही कौ खाइ4

वक क किा स कबीर का मन तस ससार स ववमख होकर ईश वरोन मख हआ तस कसथनि को परा ि करन क भलए उन ह अिन मन का िरश िररषकार 1दवाररका परसाद सतसनाहहनदी क पराचीन परनिननचध कवव( नवीिम स) ि 85 2िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 3िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि74

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करना िड़ा कबीर न मन को ननयबतरि करन िरमात मा क नाम का स मरर करन आचरर को रदध रखन ववचार और आचरर म एकिा लान सासाररक परलोभनक स अलव रहन सत य को गरहर करन अहहसात मक दकषटकोर को अिनानअहकार को तयावन और जीवन को मत ि होन की आवश यकिा िर जो बार-बार बल हदया ह वह मन क िररष कार क भलए ही होिा ह सब वक की किा स सभव होि ह-

कबीर िीछ लावा जात था लोक वद क साथ आव थ सिवक भमक या दीिक दीया हाचथ1 उियशत ि वववचन स स िष ट ह कक कबीर की साधना क मावशम ववघ न आि ह और उनस ननवकति का उिाय भी बिाि ह (5) िरम सतिा क दरशन का आभास

रहस यवाद म जब कोई साधक माया-मोह िर ववजय परा ि करक मावश क समस ि भलनिक ववघ न को िार कर साधना मावश िर आव बढिा ह वह थोड़ा आध याकतमक ससार म िह च जािा ह साधक क दयदय म जञान ज योनि का िीवर आलोक भर जािा ह तस सासाररक अधकार स दर हदव य रकति का दरशन करन लविा ह कबीर कहि ह- हद छाड़ ड बहहद गया हआ तनरन िर बास का वल ज फल या फल बबन को नीरष दास2

अथाशि म ससीम को िार करक असीम म िह च वया वही मरा राशवि ननवास हो वया वहा मन अनभव ककया कक बबना फल क एक कमल िखला हआ ह तसका दरशन भववान का ननजी दास ही कर सकिा ह तस िरह कबीर सासाररक माया मोह िर ववजय परा ि करक रहहम ज योनि दरशन करन लविा हlsquoरहहम-ज योनिrsquo का दरशन सब नहीबककक कोई साधक ही कर सकिा ह 1मािा परसाद वि कबीर गरथावली 1969 ि- 41 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 58

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(6) वास िववक जञान और परमानभति

जब ककसी साधक को िरम सतिा का आभास होन लविा ह िो उसक दयदय म जञान की ज योनि जलन लविी ह और उस वास िववक ससार का बोध होन लविा ह यही जञान भरभमि परािरयक का मावश-दरशन करिी ह कबीर कहि ह कक कजस उतकटिा और िीवरिा क साथ मन माया-जनय ववषयक म रमिा ह उिनी ही उत कटिा और िीवरिा क साथ यहद वह राम म रम जाए िो वह साधक िारामण डल स भी िर वहा िह च सकिा ह जहा स वह आया ह अथाशि उस रहहम म लीन हो जािा ह- जस माया मन रम या ज राम रमाइ िौ िारामण डल छााड़ड करर जहाा क सो िहाा जाई1

स थायी भमलन

रहस यवाद की अनिम कसथनि आत मा और िरमात मा का स थायी भमलन माना वया ह भमलन की तस अवस था को कबीर न ववववध परिीकक और किकक क माध यम स कहा ह स वय को दकहन बिाि हए कबीर कहि ह कजस परकार एक ित नी अिन िनि क साथ रयन करिी ह उसी परकार आत मा और िरमात मा दोनक एक होकर रयन करि ह‒

बहि हदनन थ परीिम पाए बड घर बठ आए मिहदर मााहह भया उकजयारा ल सिी अपना पीव प यारा2

कबीर न चचर भमलन का किक ववाहहक उत सव क माध यम स व यत ि ककया ह- दलहहन गावहा मिगलाचार हम घरर आय हो परम पररस भरिार| िन रति करर म मन रति करहा पिच िति बरािी|1

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि59 2 वहीि 117

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वववाहोिराि िरम ित व स अदभि भमलन होिा ह कजसस अननवचशनीय आनद की उिलब ध होिी ह कबीर कहि ह भववान की सवनि स म रीिल हो वया ह अब मोह की िाि भमट वई ह अब अदर म साकषात कार हो जान क कारर म राि-हदन सख की ननचध परा ि कर रहा ह हरर सिगति सीिल भया भमटा मोह की िाप तनस बासरर सख तनध य लहयाजब अििरर परकटना आप2

तस िरह आत म ित व और िरम ित व का स थायी भमलन हो जािा ह भत ि और भववान साधक और साध य जीव और रहहम एक हो जाि ह दोनक अमर हो जाि ह

कबीर क कावय म वयति रहसयवादी िररकसथयक का अध ययन करन िर जञाि होिा ह कक उनकी रहसयवाद की अिनी ववरषिाए ह तन िर हहदत क अदविवाद िथा मसलमानक क सफी-मि का परभाव लत हकषि होि ह तनक रहस यवाद म आकसिकिा माधयश भावना अन िमशखी साधना परम ित व भावनात मक सबधक का समावर ह रकर क अदविवाद का परादभाशव 8वी रिाब दी म होिा ह अदविवाद क अनसार आत मा और िरमात मा एक सतिा ह माया क कारर ही िरमात मा क नाम और कि का अकसित व ह वस िि आि मा और िरमात मा एक ही रकति क दो भाव ह जो माया क कारर अलव ह लककन व िन एक ही म भमल जाि ह तस परकरियया को कबीर तस िरह व यत ि करि ह

जल म कि भ कि भ म जल ह बाहहर भीिर पानी फटा कि भ जल जलहह समान यह िि कथो चगयानी3

1 जीएनदास लव स गज ऑफ कबीर1994 ि 39 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 59 3वहीि 128

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जल म भरा घड़ा जल म िर रहा ह तसक बाहरभीिर िानी ह घड़ा (माया) फटन िर जल एक हो जािा ह

ईसा क 8वी रिाब दी म तस लाम धमश क अिवशि तनक िरिरावि आदरो क ववरोध म सफी सपरदाय का उदय हआ सफीमि म बद और खदा का एकीकरर हो सकिा ह िर माया की ववरष चचाश नही ह िरमात मा स भमलन क भलए आत मा की चार दराए िार करनी िड़िी ह- (1) ररीयि (2) िरीकि (3)हकीकि(4) माररफि

तन दरात को िार करक ही आत मा और िरमात मा का सकममलन होिा ह तस परकार आत माम िरमात मा का अनभव होन लविा ह दसरी बाि यह ह कक सफी मि म परम का अर महत विरश हपरम ही कमश ह और परम ही धमश ह रामकमार वमाश का कथन ह कक ननस वाथश परम ही सफीमि का परार ह फारसी म कजिन सफी कवव ह व कवविा म परम क अनिररत ि कछ जानि ही नही ह1परम सफीमि म नरा ह खमारी ह परम क नर म साधक को ससार का कछ ध यान नही रहिा कबीर न भलखा ह-

हरर रसपीया जाातनय कबहा न जाय खमार ममििा घामि रह नााही िन की सार2

सफीमि म ईश वर स तरी कि म ह िर कबीर यहा ईश वर िरष कि म ह कबीर क रहस यवाद क बार म आव रामकमार वमाश न भलखा ह कबीर न अिन रहस यवाद क स िष टीकरर म दोनक की अदविवाद और सफीमि की बाि ली ह फलि उन हकन अदविवाद स माया और चचिन िथा सफीमि स परम लकर अिन रहस यवाद की सकषट की हrsquorsquo3

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 102 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-61 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-104

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रहस यवाद म परम का महत विरश स थान ह तसम उिनी जञान की आवश यकिा नही ह कजिन परम की तसभलए कबीर कहि ह- अ कथ कहानी परम की कछ कही न जाई गाग करी सरकरा बठा मसकाई1

परम की कहानी अकथ ह जो उसका आस वाद ल लिा ह वह व व क रत कर खान क अनभव जसा होिा ह कजसका वरशन वह नही कर सकिा तसभलए कबीर क रहस यवाद को भकतिमलक और परममलक रहस यवाद जाना जा सकिा ह

23 कबीर का दाशयतनक ववचार

मानव एक ववचाररील परारी ह ससार म घहटि होन वाल परत यक वनिववचध क परनि जावकक रहिा ह और चचिन क माध यम स रहस य समझन का परयत न करि ह ितिशचाि एक ववचार का जन म होिा ह यही ववचार दरशन का कि धारर करिा ह दारशननक ववचार जब भाव म किािररि होि ह िो भकति का ववषय बनिा ह

दरशन रब द का राकबदक अथश चाकषष परत यकष साकषात कार जानना2 तत याहद ह सामान य कि म परत यक व यकति का कोई न कोई दरशन अवश य होिा ह रास तर क कि म वह रास तर कजसम आत मा अनात मा जीव रहहम परकनि िरष जवि धमश मोकष मानव जीवन क उददश य आहद का ननकिर हो3 अगरजी कोर क अनसार ldquoदरशन एक अध ययन ह कजसम जीवन और जवि क परकनि और अथश का अध ययन ककया जािा हrdquo4सामान य अथश म lsquoदरशनrsquo का परयोव ककसी ववचार या भसदधाि की व याख या िाककश क ियशवकषर अथवा ववभभन न 1जीएनदास लव सागस ऑफ कबीर1994 ि-115 2 काभलक परासाद( स )वहि हहनदी कोर 1992 ि 509 3वही 509 4 The Study of the nature and meaning of universe and the human life- एस हॉनशबीऔतसफोडश लनशर डडतसनरी 2010 ि 1137

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ित व चचिन की परकरिययात क भलए आिा हककि मल कि म यह आत म जञान ित व जञान अथवा िरम ित व क जञान कि म आिा ह यह अनभव का िाककश क अथवा परमािरक मीमासा ह यह ससार क ममश को उदघाहटि करिा ह यह िरष परकनि का जञान ह

भकति काव य म भत ि कववयक न अिन आचायवोप स दारननशक िततववादी भसदधािक का जञान परा ि ककया ह परा ि जञान को उन हकन अिनी रचनात म अनभव क स िर िर उिारा ह भत ि कवव अिनी रचनात क स िर िर िहल रचनाकार ह उस सीध िलर िर दारशननक नही कहा जा सकिा उनक काव य म चचिन भावाभभव यकति की अिकषा वलर ह यदयवि भत ि कवव ककसी न ककसी वष रव आचायश क भरष य मान जाि ह िरन ि उनक काव य म सबदध आचायो क ित ववाद को िाककश क चचिन क कि म िरररि नही ह जहा िक कबीर का परशन ह िो यह कहा जा सकिा ह कक कबीर अचधक स वितर व यकतित व क साधक ह कबीर मलि दारशननक नही ह िरन ि उनक काव य म कई िरह क भसदधािक को दखा जा सकिा ह कबीर ककसी िवश परचभलि ववभरष ट सम परदाय यामिवाद स नही बध थ

रामकमार वमाश न कबीर क दरशन क सदभश म भलखा ह - सि मि का दरशन ककसी ववरष रास तर स नही भलया वया रास तरक म कबीर की आस था नही थी त यककक रास तर एक दकषटकोर ववरष स भलए या कह जाि ह और सापरदानयकिा क आधार िर ही हटक होि हhellip अि सि सपरदाय का दरशन उिननषद भारिीय षडदरशन बलदध धमश सफी सपरदाय नाथ सपरदाय की ववश वजनीन अनभनियक क ित वक को भमलाकर सवह ि हआ ह य ित व सीध रास तर स नही आय वरन रिाकबदयक की अनभनि िला िलकर महात मात की व यावहाररक जञान की कसलटी िर कस जाकर सत सव और वक क उिदरक स

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 10: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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रहस यवाद बलदध रहस यवाद और व यकतििरक रहस यवाद क कि म भमलिा ह अनिम परकार क भी दो कि रास तरीय और सावशललककक स वीकार ककए वए ह1 तस िरह रहस यवाद की तस व यािक अवधाररा को सवशसम मि दारशननक मान यिात क कि म बाधना कह न ह ईसाई धमश म भी रहस यवादी िि व भमलि ह बातबबल रहस यवाद का शरष गरथ हउसक एविभसक स नामक अरक म ईश वर क परत यकष साकषात कार की हदव यानभनि का वरशन ह सि िाल की शरदधा आस था और ववश वास का आधार यह हदव य साकषात कार ही ह2 तस िरह ईसाई धमश क अिवशि बहि स सि ऐस हए ह जो रहस यवादी हतस लाम म रहस यवाद का परारभ सफीवाद स हआ उनकी साधना म अनक सीह िया िार करनी होिी ह परायकशचि िररविशन त याव दररदरिा धयश ईश वर म ववश वास ईश वर छा म सिोष आहद तनक उिराि आध याकतमक अनभनि की भय आरा परम यास और साकषात कार की दराए आिी ह सफी साधना स दररदरिा िि और िववतरिा यत ि जीवन िथा सदवक की किा अननवायश ह3 उियशत ि वववरर स सिषट ह कक तस लामी रहस यवाद म भी िरम ित व वक की महिा अध याकतमक अनभनि साकषात कार आहद का समावर ह यह भारिीय रहस यवाद स अचधक ननकट ह वजाली जलालददीन सफी हाकफज उमर खयास ननजामीसादी और जामी परभसदध ईरानी सफी कवव ह भारि म भी सफी सि और कवव हए ह

हहदी म आहदकाल स रहस यवाद की िरम िरा रही ह हहदी साहहत य क आरभभक रहस यवादी कवव भसदध ह हहदी साहहत य क मध य यव (भकतिकाल) म सवर एव ननवशर दो किक म रहस यवादी रचनाए परचर मातरा म उिलब ध ह तस यव म रहस यवादी रचनाकार कबीर नानक दाद सरदास िलसीदास मीराबाई आहद बहि स कवव ह अन य भारिीय भाषात म भी रहस यवादी रचनाए

1वासदव भसह(स) कबीर 2004 ि 138 2धीरदर वमाश (परस) हहदी साहहतयकोर (परथम भाव )2009 ि 37 3वही ि-37

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उिलब ध ह रवीदरनाथ स परभाववि होकर छायावादी कववयक न भी रहस यवादी रचनाए दी एक िरह स यह कबतरम रहस वाद ह

उियशत ि वववररक स स िष ट ह कक रहस यवादी ववचार बहि ही व यािक ह ककसी न ककसी कि म यह मनष य क आहदम काल स आज िक उिकसथि ह तसक ववववध परकार और भद ह यह ककसी ववभरष ट अवधाररा म नही बधा ह िकशचमी रहस यवाद और भारिीय रहस यवाद म अन िर क बावजद समान ित व मलजद ह

रहस यवाद की कसथति

रामकमार वमाश न रहस यवाद की िीन िररकसथनियक का उक लख ककया ह- 1 िहली िररकसथनि वह ह जहा व यकति ववरष अनि रकति स अिना सबध जोड़न क भलए अगरसर होिा ह1

2 दवविीय कसथनि िब आिी ह जब आत मा िरमात मा स परम करन लव जािी ह भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक आत मा म एक परकार का उन माद या िावलिन छा जािा ह2

3 तसक िश चाि रहस यवाहदयक की िीसरी कसथनि आिी ह जो रहस यवाद की चरम सीमा बिला सकिी ह तस दरा म आत मा और िरमात मा का तिना ऐत य हो जािा ह कक कफर उनम कोई भभन निा नही रहिी3

उियशत ि उदधररक स स िष ट ह रहस यवाद म िरम सत िा क परनि कजजञासा की भावना रहिी ह रहस यवादी साधक िरम सत िा क महत व का परदरशन करि हए उसस भमलन या दरशन करन का परयास करि ह भलनिक ववध और त लष स

1रामकमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 96 2वही ि 97 3 वहीि 97

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छटकारा िान क बाद उस सत िा का आभास या दरशन होिा ह िथा ससार का वास िववक जञान या िरोकष अनभनि होिी ह कफर आत मा और िरमात मा का चचर भमलन होिा ह आत मा म िरमात मा क वरक का समाहार हो जािा ह कबीर क रहस यवाद की कसथनि और ववरषिा क अध ययन स ििा चलिा ह कक रहस यवाद क कछ सामान य ित वक क अनिररत ि उनकी अलव ववरषिा ह उनक रहस यवाद म भारिीय और ववदरी दोनक परकार की ववरषिात का समावर ह यह कबीर क हहद और मसलमान दोनक परकार क सिक क साननध य म रहन का िररराम ह कबीर रहस यवादी कसथनियक को बड़ सजीव िव स परस िि करि ह यथा-

(1) कजजञासा की भावना- रहस यवाद म िरम ित व को जानन की त छा िीवर होिी ह उसी िरह कबीर म भी कजजञासा की भावना ह कबीर का ईश वर ननवशर एव ननराकार ह वह सवशतर ववदयमान ह कबीर का मन अिन तष टदव क परनि कजजञासा उत िन न करि ह और जानना चाहि ह कक वह रहहम कसा ह कहा ह और ककस िरह वह अिनी सिरश करियया करिा रहिा ह तस चचिन म डबकर भलखि ह कक कजस रहहम का न कि ह न रखा ह और न कजसका वरश ह वह त या ह यह रहहमाण ड िथा य परार कहा स आि ह मि जीव कहा जाकर ववलीन हो जािा ह जीवक की समस ि तकनदरया कहा ववशराम करिी ह वह मरन क बाद कहा जािी ह-

कबीर जानना चाहि ह कक lsquoरब दrsquoकहा लीन हो जािा ह जब रहहम और विड कछ नही ह िब िच ित व कहा लीन हो जािा ह समस ि वर कहा समा जाि ह- ldquoसििो धागा टटा गगन ववतनभस गया सबद ज कहाा समाई ए सिसा मोहह तनस हदन व याप कोई न कह समझाई

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नहीि बरहमािड पतन नााही पिच ित व भी नाहीि इडा वप िगला सखमन नााही ए गण कहाा समाहीि1

उियशत ि िकतियक स स िष ट ह कक कबीर क मकसिष क म कििहल कजजञासा एव ववस मय की भावना ह कबीर सब कछ जानन क भलए िीवर उत क ा व यत ि करि ह

(2)बरहम का महततव परदशयन और अतनवयचनीयिा-

कजजञासा और किहल की कसथनि म साधक को िथ-परदरशक की आवश यकिा िड़िी ह अि साधक सिवक की ररर म िह च जािा ह वक की किा स ही जञान की आ धी आिी ह और भरम टट जािा ह कबीर कहि ह कक वक अिन हाथ म कमान लकर उसस परम सहहि ऐसा उिदर किीबार चलािा ह कक वह भरष य क दयदय म लविा ह- सिगर लई कमािण करर बााहण लागा िीर एक ज बाहय परीति सा भीिरी रहया सरीर2

अललककक सतिा अननवशचनीय ह वह अदभि और अललककक सतिा ह जो सवशतर वयाि होकर भी कही हदखाई नही दिी उसका िररचय मन बवदध एव वारी स परा ि करना सवशथा असम भव ह और उसका वरशन करना व व का वड़ ह कफर भी वरशन करन कापरयत न करि हए कहि ह कक कभी उस lsquoिहि बास स िािराrsquo कहकर उसकी सकष मानि सकष म कसथनि की तर सकि करि ह िो कभी उस िज-िज िारसमिर कहकर उसकी शरष िा का परनििादन करि ह कबीर िरम सत िा को एक ऐसा रसायर कहि ह कजसम स िरश मातर स सारा ररीर कचन बन जािा ह

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 125 2वही ि 49

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सब रसायन म ककया हरर सा और न कोई तिल इक घट म सिचर िौ सब िन कि चन होइ1

तस िरह स िष ट ह कक कबीर उस अव यत ि िरम सत िा की महतिा शरष िा का परनििादन करि ह साथ ही उसकी अननवशचनीयिा भी स वीकार करि ह (3) दशयन और भमलन का परयत न- रहस यवादी साधक िरम ित व स साकषात कार या भमलन का परयत न करि ह कजस िरह एक ववयोचवनी परमी स भमलन क भलए आिर रहिी ह उसी िरह कबीर भी िरम सत िा स भमलन का परयत न करि ह कबीर भावकिा म अवयति सत िा स भमलना चाहि ह रहस यवादी कववयक म भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक िरम ित व स भमलन क भलए िावलिन छा जािा ह रामकमार वमाश क अनसार कजस परकार ककसी जलपरिाि क याद म समीि क सभी छोट छोट स वर अिननशहहि हो जाि ह ीक उसी परकार उस ईश वरीय परम म सार ववचार या िो ल ि हो जाि ह अथवा उसी परम क बहाव म बह जाि ह2 कबीर भमलन की उत क ा म स वय को भस म कर दना चाहि ह भमलन क परयत न म कबीर ररीर को जलाकर राख कर डालना चाहि ह और कहि ह कक उस राख की स याही बनाकर अिनी हडडी की लखनी स अिन वपरयतिम राम क िास चचटठी भलखकर भज सम भवि िभी मरा स मरर हो सकवा और व मझस भमलन आ सक व- यह िन जारौ मभस करौ भलखौ राम का नाऊा

लखनी करा करिक की भलखख भलखख राम पठाउा 3

कबीर कहि ह ववरह स वय मझस कह रहा ह कक ि मझ कभी मि छोड़ना त यककक म ही िझ उस िरम रहहम क िज म लीन कर द वा- 1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 61 2राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-97 33शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 54

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ववरह कह कबीर सौ ि कजन छााछ मोहह पार बरहम क िज म िहाा ल राखो िोहह1

कबीर की िकतियक म कजस िरह का परयत न ह वह परम का चरमोत कषश ह तसम दाम ित य परम ह कजसम स वय को राम की बहररया कहि ह तसभलए िरषोतिम अगरवाल का कथन ह - ldquoउनकी साधना ही परम क सबस सकशलष ट कि दाित य रनि का किक ह2 तस दाम ित य कि म कबीर िरम सतिा का वपरयिमा ह अगरवाल जी आव कहि ह -रीनि-ररवाज धमश-कमश और परदत ि मयाशदा का िरषोन मख महावरा नारी ननदा करिा ह िो साधना का परमोन मख महावरा कवव को नारी ही बना दिा ह3 तस िरह कबीर क मन म ऊषमा ह जनन ह जो आत मानभनि की तर अगरसर करिा ह

(4) सिसाररक बाधाएा

ननवकति रहस यवादी साधना िथ िर अनक परकार क ससाररक कष टक का सामना करना िड़िा ह उस िरम सतिा का साकषात कार सरलिा स सभव नही होिा कबीर न भी अिन साधना िथ िर अनक सासाररक ववघनक का सामना ककया ह उनहोन सबस बड़ा कारर माया को माना ह तस माया क कारर ही काम रियोध लोभ मोह आहद ववकार सिाि रहि ह तसक दो परमख कि ह- कचन और काभमनी कबीर कहि ह कक माया व याभभचारररी ह मोहहनी ह और सभी जीवक को धोखक म डालिी रहिी ह माया विराचनी ह-कबीर माया डाकणीि सब ककसही कौ खाइ4

वक क किा स कबीर का मन तस ससार स ववमख होकर ईश वरोन मख हआ तस कसथनि को परा ि करन क भलए उन ह अिन मन का िरश िररषकार 1दवाररका परसाद सतसनाहहनदी क पराचीन परनिननचध कवव( नवीिम स) ि 85 2िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 3िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि74

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करना िड़ा कबीर न मन को ननयबतरि करन िरमात मा क नाम का स मरर करन आचरर को रदध रखन ववचार और आचरर म एकिा लान सासाररक परलोभनक स अलव रहन सत य को गरहर करन अहहसात मक दकषटकोर को अिनानअहकार को तयावन और जीवन को मत ि होन की आवश यकिा िर जो बार-बार बल हदया ह वह मन क िररष कार क भलए ही होिा ह सब वक की किा स सभव होि ह-

कबीर िीछ लावा जात था लोक वद क साथ आव थ सिवक भमक या दीिक दीया हाचथ1 उियशत ि वववचन स स िष ट ह कक कबीर की साधना क मावशम ववघ न आि ह और उनस ननवकति का उिाय भी बिाि ह (5) िरम सतिा क दरशन का आभास

रहस यवाद म जब कोई साधक माया-मोह िर ववजय परा ि करक मावश क समस ि भलनिक ववघ न को िार कर साधना मावश िर आव बढिा ह वह थोड़ा आध याकतमक ससार म िह च जािा ह साधक क दयदय म जञान ज योनि का िीवर आलोक भर जािा ह तस सासाररक अधकार स दर हदव य रकति का दरशन करन लविा ह कबीर कहि ह- हद छाड़ ड बहहद गया हआ तनरन िर बास का वल ज फल या फल बबन को नीरष दास2

अथाशि म ससीम को िार करक असीम म िह च वया वही मरा राशवि ननवास हो वया वहा मन अनभव ककया कक बबना फल क एक कमल िखला हआ ह तसका दरशन भववान का ननजी दास ही कर सकिा ह तस िरह कबीर सासाररक माया मोह िर ववजय परा ि करक रहहम ज योनि दरशन करन लविा हlsquoरहहम-ज योनिrsquo का दरशन सब नहीबककक कोई साधक ही कर सकिा ह 1मािा परसाद वि कबीर गरथावली 1969 ि- 41 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 58

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(6) वास िववक जञान और परमानभति

जब ककसी साधक को िरम सतिा का आभास होन लविा ह िो उसक दयदय म जञान की ज योनि जलन लविी ह और उस वास िववक ससार का बोध होन लविा ह यही जञान भरभमि परािरयक का मावश-दरशन करिी ह कबीर कहि ह कक कजस उतकटिा और िीवरिा क साथ मन माया-जनय ववषयक म रमिा ह उिनी ही उत कटिा और िीवरिा क साथ यहद वह राम म रम जाए िो वह साधक िारामण डल स भी िर वहा िह च सकिा ह जहा स वह आया ह अथाशि उस रहहम म लीन हो जािा ह- जस माया मन रम या ज राम रमाइ िौ िारामण डल छााड़ड करर जहाा क सो िहाा जाई1

स थायी भमलन

रहस यवाद की अनिम कसथनि आत मा और िरमात मा का स थायी भमलन माना वया ह भमलन की तस अवस था को कबीर न ववववध परिीकक और किकक क माध यम स कहा ह स वय को दकहन बिाि हए कबीर कहि ह कजस परकार एक ित नी अिन िनि क साथ रयन करिी ह उसी परकार आत मा और िरमात मा दोनक एक होकर रयन करि ह‒

बहि हदनन थ परीिम पाए बड घर बठ आए मिहदर मााहह भया उकजयारा ल सिी अपना पीव प यारा2

कबीर न चचर भमलन का किक ववाहहक उत सव क माध यम स व यत ि ककया ह- दलहहन गावहा मिगलाचार हम घरर आय हो परम पररस भरिार| िन रति करर म मन रति करहा पिच िति बरािी|1

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि59 2 वहीि 117

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वववाहोिराि िरम ित व स अदभि भमलन होिा ह कजसस अननवचशनीय आनद की उिलब ध होिी ह कबीर कहि ह भववान की सवनि स म रीिल हो वया ह अब मोह की िाि भमट वई ह अब अदर म साकषात कार हो जान क कारर म राि-हदन सख की ननचध परा ि कर रहा ह हरर सिगति सीिल भया भमटा मोह की िाप तनस बासरर सख तनध य लहयाजब अििरर परकटना आप2

तस िरह आत म ित व और िरम ित व का स थायी भमलन हो जािा ह भत ि और भववान साधक और साध य जीव और रहहम एक हो जाि ह दोनक अमर हो जाि ह

कबीर क कावय म वयति रहसयवादी िररकसथयक का अध ययन करन िर जञाि होिा ह कक उनकी रहसयवाद की अिनी ववरषिाए ह तन िर हहदत क अदविवाद िथा मसलमानक क सफी-मि का परभाव लत हकषि होि ह तनक रहस यवाद म आकसिकिा माधयश भावना अन िमशखी साधना परम ित व भावनात मक सबधक का समावर ह रकर क अदविवाद का परादभाशव 8वी रिाब दी म होिा ह अदविवाद क अनसार आत मा और िरमात मा एक सतिा ह माया क कारर ही िरमात मा क नाम और कि का अकसित व ह वस िि आि मा और िरमात मा एक ही रकति क दो भाव ह जो माया क कारर अलव ह लककन व िन एक ही म भमल जाि ह तस परकरियया को कबीर तस िरह व यत ि करि ह

जल म कि भ कि भ म जल ह बाहहर भीिर पानी फटा कि भ जल जलहह समान यह िि कथो चगयानी3

1 जीएनदास लव स गज ऑफ कबीर1994 ि 39 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 59 3वहीि 128

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जल म भरा घड़ा जल म िर रहा ह तसक बाहरभीिर िानी ह घड़ा (माया) फटन िर जल एक हो जािा ह

ईसा क 8वी रिाब दी म तस लाम धमश क अिवशि तनक िरिरावि आदरो क ववरोध म सफी सपरदाय का उदय हआ सफीमि म बद और खदा का एकीकरर हो सकिा ह िर माया की ववरष चचाश नही ह िरमात मा स भमलन क भलए आत मा की चार दराए िार करनी िड़िी ह- (1) ररीयि (2) िरीकि (3)हकीकि(4) माररफि

तन दरात को िार करक ही आत मा और िरमात मा का सकममलन होिा ह तस परकार आत माम िरमात मा का अनभव होन लविा ह दसरी बाि यह ह कक सफी मि म परम का अर महत विरश हपरम ही कमश ह और परम ही धमश ह रामकमार वमाश का कथन ह कक ननस वाथश परम ही सफीमि का परार ह फारसी म कजिन सफी कवव ह व कवविा म परम क अनिररत ि कछ जानि ही नही ह1परम सफीमि म नरा ह खमारी ह परम क नर म साधक को ससार का कछ ध यान नही रहिा कबीर न भलखा ह-

हरर रसपीया जाातनय कबहा न जाय खमार ममििा घामि रह नााही िन की सार2

सफीमि म ईश वर स तरी कि म ह िर कबीर यहा ईश वर िरष कि म ह कबीर क रहस यवाद क बार म आव रामकमार वमाश न भलखा ह कबीर न अिन रहस यवाद क स िष टीकरर म दोनक की अदविवाद और सफीमि की बाि ली ह फलि उन हकन अदविवाद स माया और चचिन िथा सफीमि स परम लकर अिन रहस यवाद की सकषट की हrsquorsquo3

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 102 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-61 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-104

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रहस यवाद म परम का महत विरश स थान ह तसम उिनी जञान की आवश यकिा नही ह कजिन परम की तसभलए कबीर कहि ह- अ कथ कहानी परम की कछ कही न जाई गाग करी सरकरा बठा मसकाई1

परम की कहानी अकथ ह जो उसका आस वाद ल लिा ह वह व व क रत कर खान क अनभव जसा होिा ह कजसका वरशन वह नही कर सकिा तसभलए कबीर क रहस यवाद को भकतिमलक और परममलक रहस यवाद जाना जा सकिा ह

23 कबीर का दाशयतनक ववचार

मानव एक ववचाररील परारी ह ससार म घहटि होन वाल परत यक वनिववचध क परनि जावकक रहिा ह और चचिन क माध यम स रहस य समझन का परयत न करि ह ितिशचाि एक ववचार का जन म होिा ह यही ववचार दरशन का कि धारर करिा ह दारशननक ववचार जब भाव म किािररि होि ह िो भकति का ववषय बनिा ह

दरशन रब द का राकबदक अथश चाकषष परत यकष साकषात कार जानना2 तत याहद ह सामान य कि म परत यक व यकति का कोई न कोई दरशन अवश य होिा ह रास तर क कि म वह रास तर कजसम आत मा अनात मा जीव रहहम परकनि िरष जवि धमश मोकष मानव जीवन क उददश य आहद का ननकिर हो3 अगरजी कोर क अनसार ldquoदरशन एक अध ययन ह कजसम जीवन और जवि क परकनि और अथश का अध ययन ककया जािा हrdquo4सामान य अथश म lsquoदरशनrsquo का परयोव ककसी ववचार या भसदधाि की व याख या िाककश क ियशवकषर अथवा ववभभन न 1जीएनदास लव सागस ऑफ कबीर1994 ि-115 2 काभलक परासाद( स )वहि हहनदी कोर 1992 ि 509 3वही 509 4 The Study of the nature and meaning of universe and the human life- एस हॉनशबीऔतसफोडश लनशर डडतसनरी 2010 ि 1137

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ित व चचिन की परकरिययात क भलए आिा हककि मल कि म यह आत म जञान ित व जञान अथवा िरम ित व क जञान कि म आिा ह यह अनभव का िाककश क अथवा परमािरक मीमासा ह यह ससार क ममश को उदघाहटि करिा ह यह िरष परकनि का जञान ह

भकति काव य म भत ि कववयक न अिन आचायवोप स दारननशक िततववादी भसदधािक का जञान परा ि ककया ह परा ि जञान को उन हकन अिनी रचनात म अनभव क स िर िर उिारा ह भत ि कवव अिनी रचनात क स िर िर िहल रचनाकार ह उस सीध िलर िर दारशननक नही कहा जा सकिा उनक काव य म चचिन भावाभभव यकति की अिकषा वलर ह यदयवि भत ि कवव ककसी न ककसी वष रव आचायश क भरष य मान जाि ह िरन ि उनक काव य म सबदध आचायो क ित ववाद को िाककश क चचिन क कि म िरररि नही ह जहा िक कबीर का परशन ह िो यह कहा जा सकिा ह कक कबीर अचधक स वितर व यकतित व क साधक ह कबीर मलि दारशननक नही ह िरन ि उनक काव य म कई िरह क भसदधािक को दखा जा सकिा ह कबीर ककसी िवश परचभलि ववभरष ट सम परदाय यामिवाद स नही बध थ

रामकमार वमाश न कबीर क दरशन क सदभश म भलखा ह - सि मि का दरशन ककसी ववरष रास तर स नही भलया वया रास तरक म कबीर की आस था नही थी त यककक रास तर एक दकषटकोर ववरष स भलए या कह जाि ह और सापरदानयकिा क आधार िर ही हटक होि हhellip अि सि सपरदाय का दरशन उिननषद भारिीय षडदरशन बलदध धमश सफी सपरदाय नाथ सपरदाय की ववश वजनीन अनभनियक क ित वक को भमलाकर सवह ि हआ ह य ित व सीध रास तर स नही आय वरन रिाकबदयक की अनभनि िला िलकर महात मात की व यावहाररक जञान की कसलटी िर कस जाकर सत सव और वक क उिदरक स

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

102

वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 11: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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उिलब ध ह रवीदरनाथ स परभाववि होकर छायावादी कववयक न भी रहस यवादी रचनाए दी एक िरह स यह कबतरम रहस वाद ह

उियशत ि वववररक स स िष ट ह कक रहस यवादी ववचार बहि ही व यािक ह ककसी न ककसी कि म यह मनष य क आहदम काल स आज िक उिकसथि ह तसक ववववध परकार और भद ह यह ककसी ववभरष ट अवधाररा म नही बधा ह िकशचमी रहस यवाद और भारिीय रहस यवाद म अन िर क बावजद समान ित व मलजद ह

रहस यवाद की कसथति

रामकमार वमाश न रहस यवाद की िीन िररकसथनियक का उक लख ककया ह- 1 िहली िररकसथनि वह ह जहा व यकति ववरष अनि रकति स अिना सबध जोड़न क भलए अगरसर होिा ह1

2 दवविीय कसथनि िब आिी ह जब आत मा िरमात मा स परम करन लव जािी ह भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक आत मा म एक परकार का उन माद या िावलिन छा जािा ह2

3 तसक िश चाि रहस यवाहदयक की िीसरी कसथनि आिी ह जो रहस यवाद की चरम सीमा बिला सकिी ह तस दरा म आत मा और िरमात मा का तिना ऐत य हो जािा ह कक कफर उनम कोई भभन निा नही रहिी3

उियशत ि उदधररक स स िष ट ह रहस यवाद म िरम सत िा क परनि कजजञासा की भावना रहिी ह रहस यवादी साधक िरम सत िा क महत व का परदरशन करि हए उसस भमलन या दरशन करन का परयास करि ह भलनिक ववध और त लष स

1रामकमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 96 2वही ि 97 3 वहीि 97

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छटकारा िान क बाद उस सत िा का आभास या दरशन होिा ह िथा ससार का वास िववक जञान या िरोकष अनभनि होिी ह कफर आत मा और िरमात मा का चचर भमलन होिा ह आत मा म िरमात मा क वरक का समाहार हो जािा ह कबीर क रहस यवाद की कसथनि और ववरषिा क अध ययन स ििा चलिा ह कक रहस यवाद क कछ सामान य ित वक क अनिररत ि उनकी अलव ववरषिा ह उनक रहस यवाद म भारिीय और ववदरी दोनक परकार की ववरषिात का समावर ह यह कबीर क हहद और मसलमान दोनक परकार क सिक क साननध य म रहन का िररराम ह कबीर रहस यवादी कसथनियक को बड़ सजीव िव स परस िि करि ह यथा-

(1) कजजञासा की भावना- रहस यवाद म िरम ित व को जानन की त छा िीवर होिी ह उसी िरह कबीर म भी कजजञासा की भावना ह कबीर का ईश वर ननवशर एव ननराकार ह वह सवशतर ववदयमान ह कबीर का मन अिन तष टदव क परनि कजजञासा उत िन न करि ह और जानना चाहि ह कक वह रहहम कसा ह कहा ह और ककस िरह वह अिनी सिरश करियया करिा रहिा ह तस चचिन म डबकर भलखि ह कक कजस रहहम का न कि ह न रखा ह और न कजसका वरश ह वह त या ह यह रहहमाण ड िथा य परार कहा स आि ह मि जीव कहा जाकर ववलीन हो जािा ह जीवक की समस ि तकनदरया कहा ववशराम करिी ह वह मरन क बाद कहा जािी ह-

कबीर जानना चाहि ह कक lsquoरब दrsquoकहा लीन हो जािा ह जब रहहम और विड कछ नही ह िब िच ित व कहा लीन हो जािा ह समस ि वर कहा समा जाि ह- ldquoसििो धागा टटा गगन ववतनभस गया सबद ज कहाा समाई ए सिसा मोहह तनस हदन व याप कोई न कह समझाई

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नहीि बरहमािड पतन नााही पिच ित व भी नाहीि इडा वप िगला सखमन नााही ए गण कहाा समाहीि1

उियशत ि िकतियक स स िष ट ह कक कबीर क मकसिष क म कििहल कजजञासा एव ववस मय की भावना ह कबीर सब कछ जानन क भलए िीवर उत क ा व यत ि करि ह

(2)बरहम का महततव परदशयन और अतनवयचनीयिा-

कजजञासा और किहल की कसथनि म साधक को िथ-परदरशक की आवश यकिा िड़िी ह अि साधक सिवक की ररर म िह च जािा ह वक की किा स ही जञान की आ धी आिी ह और भरम टट जािा ह कबीर कहि ह कक वक अिन हाथ म कमान लकर उसस परम सहहि ऐसा उिदर किीबार चलािा ह कक वह भरष य क दयदय म लविा ह- सिगर लई कमािण करर बााहण लागा िीर एक ज बाहय परीति सा भीिरी रहया सरीर2

अललककक सतिा अननवशचनीय ह वह अदभि और अललककक सतिा ह जो सवशतर वयाि होकर भी कही हदखाई नही दिी उसका िररचय मन बवदध एव वारी स परा ि करना सवशथा असम भव ह और उसका वरशन करना व व का वड़ ह कफर भी वरशन करन कापरयत न करि हए कहि ह कक कभी उस lsquoिहि बास स िािराrsquo कहकर उसकी सकष मानि सकष म कसथनि की तर सकि करि ह िो कभी उस िज-िज िारसमिर कहकर उसकी शरष िा का परनििादन करि ह कबीर िरम सत िा को एक ऐसा रसायर कहि ह कजसम स िरश मातर स सारा ररीर कचन बन जािा ह

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 125 2वही ि 49

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सब रसायन म ककया हरर सा और न कोई तिल इक घट म सिचर िौ सब िन कि चन होइ1

तस िरह स िष ट ह कक कबीर उस अव यत ि िरम सत िा की महतिा शरष िा का परनििादन करि ह साथ ही उसकी अननवशचनीयिा भी स वीकार करि ह (3) दशयन और भमलन का परयत न- रहस यवादी साधक िरम ित व स साकषात कार या भमलन का परयत न करि ह कजस िरह एक ववयोचवनी परमी स भमलन क भलए आिर रहिी ह उसी िरह कबीर भी िरम सत िा स भमलन का परयत न करि ह कबीर भावकिा म अवयति सत िा स भमलना चाहि ह रहस यवादी कववयक म भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक िरम ित व स भमलन क भलए िावलिन छा जािा ह रामकमार वमाश क अनसार कजस परकार ककसी जलपरिाि क याद म समीि क सभी छोट छोट स वर अिननशहहि हो जाि ह ीक उसी परकार उस ईश वरीय परम म सार ववचार या िो ल ि हो जाि ह अथवा उसी परम क बहाव म बह जाि ह2 कबीर भमलन की उत क ा म स वय को भस म कर दना चाहि ह भमलन क परयत न म कबीर ररीर को जलाकर राख कर डालना चाहि ह और कहि ह कक उस राख की स याही बनाकर अिनी हडडी की लखनी स अिन वपरयतिम राम क िास चचटठी भलखकर भज सम भवि िभी मरा स मरर हो सकवा और व मझस भमलन आ सक व- यह िन जारौ मभस करौ भलखौ राम का नाऊा

लखनी करा करिक की भलखख भलखख राम पठाउा 3

कबीर कहि ह ववरह स वय मझस कह रहा ह कक ि मझ कभी मि छोड़ना त यककक म ही िझ उस िरम रहहम क िज म लीन कर द वा- 1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 61 2राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-97 33शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 54

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ववरह कह कबीर सौ ि कजन छााछ मोहह पार बरहम क िज म िहाा ल राखो िोहह1

कबीर की िकतियक म कजस िरह का परयत न ह वह परम का चरमोत कषश ह तसम दाम ित य परम ह कजसम स वय को राम की बहररया कहि ह तसभलए िरषोतिम अगरवाल का कथन ह - ldquoउनकी साधना ही परम क सबस सकशलष ट कि दाित य रनि का किक ह2 तस दाम ित य कि म कबीर िरम सतिा का वपरयिमा ह अगरवाल जी आव कहि ह -रीनि-ररवाज धमश-कमश और परदत ि मयाशदा का िरषोन मख महावरा नारी ननदा करिा ह िो साधना का परमोन मख महावरा कवव को नारी ही बना दिा ह3 तस िरह कबीर क मन म ऊषमा ह जनन ह जो आत मानभनि की तर अगरसर करिा ह

(4) सिसाररक बाधाएा

ननवकति रहस यवादी साधना िथ िर अनक परकार क ससाररक कष टक का सामना करना िड़िा ह उस िरम सतिा का साकषात कार सरलिा स सभव नही होिा कबीर न भी अिन साधना िथ िर अनक सासाररक ववघनक का सामना ककया ह उनहोन सबस बड़ा कारर माया को माना ह तस माया क कारर ही काम रियोध लोभ मोह आहद ववकार सिाि रहि ह तसक दो परमख कि ह- कचन और काभमनी कबीर कहि ह कक माया व याभभचारररी ह मोहहनी ह और सभी जीवक को धोखक म डालिी रहिी ह माया विराचनी ह-कबीर माया डाकणीि सब ककसही कौ खाइ4

वक क किा स कबीर का मन तस ससार स ववमख होकर ईश वरोन मख हआ तस कसथनि को परा ि करन क भलए उन ह अिन मन का िरश िररषकार 1दवाररका परसाद सतसनाहहनदी क पराचीन परनिननचध कवव( नवीिम स) ि 85 2िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 3िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि74

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करना िड़ा कबीर न मन को ननयबतरि करन िरमात मा क नाम का स मरर करन आचरर को रदध रखन ववचार और आचरर म एकिा लान सासाररक परलोभनक स अलव रहन सत य को गरहर करन अहहसात मक दकषटकोर को अिनानअहकार को तयावन और जीवन को मत ि होन की आवश यकिा िर जो बार-बार बल हदया ह वह मन क िररष कार क भलए ही होिा ह सब वक की किा स सभव होि ह-

कबीर िीछ लावा जात था लोक वद क साथ आव थ सिवक भमक या दीिक दीया हाचथ1 उियशत ि वववचन स स िष ट ह कक कबीर की साधना क मावशम ववघ न आि ह और उनस ननवकति का उिाय भी बिाि ह (5) िरम सतिा क दरशन का आभास

रहस यवाद म जब कोई साधक माया-मोह िर ववजय परा ि करक मावश क समस ि भलनिक ववघ न को िार कर साधना मावश िर आव बढिा ह वह थोड़ा आध याकतमक ससार म िह च जािा ह साधक क दयदय म जञान ज योनि का िीवर आलोक भर जािा ह तस सासाररक अधकार स दर हदव य रकति का दरशन करन लविा ह कबीर कहि ह- हद छाड़ ड बहहद गया हआ तनरन िर बास का वल ज फल या फल बबन को नीरष दास2

अथाशि म ससीम को िार करक असीम म िह च वया वही मरा राशवि ननवास हो वया वहा मन अनभव ककया कक बबना फल क एक कमल िखला हआ ह तसका दरशन भववान का ननजी दास ही कर सकिा ह तस िरह कबीर सासाररक माया मोह िर ववजय परा ि करक रहहम ज योनि दरशन करन लविा हlsquoरहहम-ज योनिrsquo का दरशन सब नहीबककक कोई साधक ही कर सकिा ह 1मािा परसाद वि कबीर गरथावली 1969 ि- 41 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 58

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(6) वास िववक जञान और परमानभति

जब ककसी साधक को िरम सतिा का आभास होन लविा ह िो उसक दयदय म जञान की ज योनि जलन लविी ह और उस वास िववक ससार का बोध होन लविा ह यही जञान भरभमि परािरयक का मावश-दरशन करिी ह कबीर कहि ह कक कजस उतकटिा और िीवरिा क साथ मन माया-जनय ववषयक म रमिा ह उिनी ही उत कटिा और िीवरिा क साथ यहद वह राम म रम जाए िो वह साधक िारामण डल स भी िर वहा िह च सकिा ह जहा स वह आया ह अथाशि उस रहहम म लीन हो जािा ह- जस माया मन रम या ज राम रमाइ िौ िारामण डल छााड़ड करर जहाा क सो िहाा जाई1

स थायी भमलन

रहस यवाद की अनिम कसथनि आत मा और िरमात मा का स थायी भमलन माना वया ह भमलन की तस अवस था को कबीर न ववववध परिीकक और किकक क माध यम स कहा ह स वय को दकहन बिाि हए कबीर कहि ह कजस परकार एक ित नी अिन िनि क साथ रयन करिी ह उसी परकार आत मा और िरमात मा दोनक एक होकर रयन करि ह‒

बहि हदनन थ परीिम पाए बड घर बठ आए मिहदर मााहह भया उकजयारा ल सिी अपना पीव प यारा2

कबीर न चचर भमलन का किक ववाहहक उत सव क माध यम स व यत ि ककया ह- दलहहन गावहा मिगलाचार हम घरर आय हो परम पररस भरिार| िन रति करर म मन रति करहा पिच िति बरािी|1

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि59 2 वहीि 117

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वववाहोिराि िरम ित व स अदभि भमलन होिा ह कजसस अननवचशनीय आनद की उिलब ध होिी ह कबीर कहि ह भववान की सवनि स म रीिल हो वया ह अब मोह की िाि भमट वई ह अब अदर म साकषात कार हो जान क कारर म राि-हदन सख की ननचध परा ि कर रहा ह हरर सिगति सीिल भया भमटा मोह की िाप तनस बासरर सख तनध य लहयाजब अििरर परकटना आप2

तस िरह आत म ित व और िरम ित व का स थायी भमलन हो जािा ह भत ि और भववान साधक और साध य जीव और रहहम एक हो जाि ह दोनक अमर हो जाि ह

कबीर क कावय म वयति रहसयवादी िररकसथयक का अध ययन करन िर जञाि होिा ह कक उनकी रहसयवाद की अिनी ववरषिाए ह तन िर हहदत क अदविवाद िथा मसलमानक क सफी-मि का परभाव लत हकषि होि ह तनक रहस यवाद म आकसिकिा माधयश भावना अन िमशखी साधना परम ित व भावनात मक सबधक का समावर ह रकर क अदविवाद का परादभाशव 8वी रिाब दी म होिा ह अदविवाद क अनसार आत मा और िरमात मा एक सतिा ह माया क कारर ही िरमात मा क नाम और कि का अकसित व ह वस िि आि मा और िरमात मा एक ही रकति क दो भाव ह जो माया क कारर अलव ह लककन व िन एक ही म भमल जाि ह तस परकरियया को कबीर तस िरह व यत ि करि ह

जल म कि भ कि भ म जल ह बाहहर भीिर पानी फटा कि भ जल जलहह समान यह िि कथो चगयानी3

1 जीएनदास लव स गज ऑफ कबीर1994 ि 39 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 59 3वहीि 128

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जल म भरा घड़ा जल म िर रहा ह तसक बाहरभीिर िानी ह घड़ा (माया) फटन िर जल एक हो जािा ह

ईसा क 8वी रिाब दी म तस लाम धमश क अिवशि तनक िरिरावि आदरो क ववरोध म सफी सपरदाय का उदय हआ सफीमि म बद और खदा का एकीकरर हो सकिा ह िर माया की ववरष चचाश नही ह िरमात मा स भमलन क भलए आत मा की चार दराए िार करनी िड़िी ह- (1) ररीयि (2) िरीकि (3)हकीकि(4) माररफि

तन दरात को िार करक ही आत मा और िरमात मा का सकममलन होिा ह तस परकार आत माम िरमात मा का अनभव होन लविा ह दसरी बाि यह ह कक सफी मि म परम का अर महत विरश हपरम ही कमश ह और परम ही धमश ह रामकमार वमाश का कथन ह कक ननस वाथश परम ही सफीमि का परार ह फारसी म कजिन सफी कवव ह व कवविा म परम क अनिररत ि कछ जानि ही नही ह1परम सफीमि म नरा ह खमारी ह परम क नर म साधक को ससार का कछ ध यान नही रहिा कबीर न भलखा ह-

हरर रसपीया जाातनय कबहा न जाय खमार ममििा घामि रह नााही िन की सार2

सफीमि म ईश वर स तरी कि म ह िर कबीर यहा ईश वर िरष कि म ह कबीर क रहस यवाद क बार म आव रामकमार वमाश न भलखा ह कबीर न अिन रहस यवाद क स िष टीकरर म दोनक की अदविवाद और सफीमि की बाि ली ह फलि उन हकन अदविवाद स माया और चचिन िथा सफीमि स परम लकर अिन रहस यवाद की सकषट की हrsquorsquo3

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 102 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-61 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-104

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रहस यवाद म परम का महत विरश स थान ह तसम उिनी जञान की आवश यकिा नही ह कजिन परम की तसभलए कबीर कहि ह- अ कथ कहानी परम की कछ कही न जाई गाग करी सरकरा बठा मसकाई1

परम की कहानी अकथ ह जो उसका आस वाद ल लिा ह वह व व क रत कर खान क अनभव जसा होिा ह कजसका वरशन वह नही कर सकिा तसभलए कबीर क रहस यवाद को भकतिमलक और परममलक रहस यवाद जाना जा सकिा ह

23 कबीर का दाशयतनक ववचार

मानव एक ववचाररील परारी ह ससार म घहटि होन वाल परत यक वनिववचध क परनि जावकक रहिा ह और चचिन क माध यम स रहस य समझन का परयत न करि ह ितिशचाि एक ववचार का जन म होिा ह यही ववचार दरशन का कि धारर करिा ह दारशननक ववचार जब भाव म किािररि होि ह िो भकति का ववषय बनिा ह

दरशन रब द का राकबदक अथश चाकषष परत यकष साकषात कार जानना2 तत याहद ह सामान य कि म परत यक व यकति का कोई न कोई दरशन अवश य होिा ह रास तर क कि म वह रास तर कजसम आत मा अनात मा जीव रहहम परकनि िरष जवि धमश मोकष मानव जीवन क उददश य आहद का ननकिर हो3 अगरजी कोर क अनसार ldquoदरशन एक अध ययन ह कजसम जीवन और जवि क परकनि और अथश का अध ययन ककया जािा हrdquo4सामान य अथश म lsquoदरशनrsquo का परयोव ककसी ववचार या भसदधाि की व याख या िाककश क ियशवकषर अथवा ववभभन न 1जीएनदास लव सागस ऑफ कबीर1994 ि-115 2 काभलक परासाद( स )वहि हहनदी कोर 1992 ि 509 3वही 509 4 The Study of the nature and meaning of universe and the human life- एस हॉनशबीऔतसफोडश लनशर डडतसनरी 2010 ि 1137

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ित व चचिन की परकरिययात क भलए आिा हककि मल कि म यह आत म जञान ित व जञान अथवा िरम ित व क जञान कि म आिा ह यह अनभव का िाककश क अथवा परमािरक मीमासा ह यह ससार क ममश को उदघाहटि करिा ह यह िरष परकनि का जञान ह

भकति काव य म भत ि कववयक न अिन आचायवोप स दारननशक िततववादी भसदधािक का जञान परा ि ककया ह परा ि जञान को उन हकन अिनी रचनात म अनभव क स िर िर उिारा ह भत ि कवव अिनी रचनात क स िर िर िहल रचनाकार ह उस सीध िलर िर दारशननक नही कहा जा सकिा उनक काव य म चचिन भावाभभव यकति की अिकषा वलर ह यदयवि भत ि कवव ककसी न ककसी वष रव आचायश क भरष य मान जाि ह िरन ि उनक काव य म सबदध आचायो क ित ववाद को िाककश क चचिन क कि म िरररि नही ह जहा िक कबीर का परशन ह िो यह कहा जा सकिा ह कक कबीर अचधक स वितर व यकतित व क साधक ह कबीर मलि दारशननक नही ह िरन ि उनक काव य म कई िरह क भसदधािक को दखा जा सकिा ह कबीर ककसी िवश परचभलि ववभरष ट सम परदाय यामिवाद स नही बध थ

रामकमार वमाश न कबीर क दरशन क सदभश म भलखा ह - सि मि का दरशन ककसी ववरष रास तर स नही भलया वया रास तरक म कबीर की आस था नही थी त यककक रास तर एक दकषटकोर ववरष स भलए या कह जाि ह और सापरदानयकिा क आधार िर ही हटक होि हhellip अि सि सपरदाय का दरशन उिननषद भारिीय षडदरशन बलदध धमश सफी सपरदाय नाथ सपरदाय की ववश वजनीन अनभनियक क ित वक को भमलाकर सवह ि हआ ह य ित व सीध रास तर स नही आय वरन रिाकबदयक की अनभनि िला िलकर महात मात की व यावहाररक जञान की कसलटी िर कस जाकर सत सव और वक क उिदरक स

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 12: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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छटकारा िान क बाद उस सत िा का आभास या दरशन होिा ह िथा ससार का वास िववक जञान या िरोकष अनभनि होिी ह कफर आत मा और िरमात मा का चचर भमलन होिा ह आत मा म िरमात मा क वरक का समाहार हो जािा ह कबीर क रहस यवाद की कसथनि और ववरषिा क अध ययन स ििा चलिा ह कक रहस यवाद क कछ सामान य ित वक क अनिररत ि उनकी अलव ववरषिा ह उनक रहस यवाद म भारिीय और ववदरी दोनक परकार की ववरषिात का समावर ह यह कबीर क हहद और मसलमान दोनक परकार क सिक क साननध य म रहन का िररराम ह कबीर रहस यवादी कसथनियक को बड़ सजीव िव स परस िि करि ह यथा-

(1) कजजञासा की भावना- रहस यवाद म िरम ित व को जानन की त छा िीवर होिी ह उसी िरह कबीर म भी कजजञासा की भावना ह कबीर का ईश वर ननवशर एव ननराकार ह वह सवशतर ववदयमान ह कबीर का मन अिन तष टदव क परनि कजजञासा उत िन न करि ह और जानना चाहि ह कक वह रहहम कसा ह कहा ह और ककस िरह वह अिनी सिरश करियया करिा रहिा ह तस चचिन म डबकर भलखि ह कक कजस रहहम का न कि ह न रखा ह और न कजसका वरश ह वह त या ह यह रहहमाण ड िथा य परार कहा स आि ह मि जीव कहा जाकर ववलीन हो जािा ह जीवक की समस ि तकनदरया कहा ववशराम करिी ह वह मरन क बाद कहा जािी ह-

कबीर जानना चाहि ह कक lsquoरब दrsquoकहा लीन हो जािा ह जब रहहम और विड कछ नही ह िब िच ित व कहा लीन हो जािा ह समस ि वर कहा समा जाि ह- ldquoसििो धागा टटा गगन ववतनभस गया सबद ज कहाा समाई ए सिसा मोहह तनस हदन व याप कोई न कह समझाई

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नहीि बरहमािड पतन नााही पिच ित व भी नाहीि इडा वप िगला सखमन नााही ए गण कहाा समाहीि1

उियशत ि िकतियक स स िष ट ह कक कबीर क मकसिष क म कििहल कजजञासा एव ववस मय की भावना ह कबीर सब कछ जानन क भलए िीवर उत क ा व यत ि करि ह

(2)बरहम का महततव परदशयन और अतनवयचनीयिा-

कजजञासा और किहल की कसथनि म साधक को िथ-परदरशक की आवश यकिा िड़िी ह अि साधक सिवक की ररर म िह च जािा ह वक की किा स ही जञान की आ धी आिी ह और भरम टट जािा ह कबीर कहि ह कक वक अिन हाथ म कमान लकर उसस परम सहहि ऐसा उिदर किीबार चलािा ह कक वह भरष य क दयदय म लविा ह- सिगर लई कमािण करर बााहण लागा िीर एक ज बाहय परीति सा भीिरी रहया सरीर2

अललककक सतिा अननवशचनीय ह वह अदभि और अललककक सतिा ह जो सवशतर वयाि होकर भी कही हदखाई नही दिी उसका िररचय मन बवदध एव वारी स परा ि करना सवशथा असम भव ह और उसका वरशन करना व व का वड़ ह कफर भी वरशन करन कापरयत न करि हए कहि ह कक कभी उस lsquoिहि बास स िािराrsquo कहकर उसकी सकष मानि सकष म कसथनि की तर सकि करि ह िो कभी उस िज-िज िारसमिर कहकर उसकी शरष िा का परनििादन करि ह कबीर िरम सत िा को एक ऐसा रसायर कहि ह कजसम स िरश मातर स सारा ररीर कचन बन जािा ह

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 125 2वही ि 49

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सब रसायन म ककया हरर सा और न कोई तिल इक घट म सिचर िौ सब िन कि चन होइ1

तस िरह स िष ट ह कक कबीर उस अव यत ि िरम सत िा की महतिा शरष िा का परनििादन करि ह साथ ही उसकी अननवशचनीयिा भी स वीकार करि ह (3) दशयन और भमलन का परयत न- रहस यवादी साधक िरम ित व स साकषात कार या भमलन का परयत न करि ह कजस िरह एक ववयोचवनी परमी स भमलन क भलए आिर रहिी ह उसी िरह कबीर भी िरम सत िा स भमलन का परयत न करि ह कबीर भावकिा म अवयति सत िा स भमलना चाहि ह रहस यवादी कववयक म भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक िरम ित व स भमलन क भलए िावलिन छा जािा ह रामकमार वमाश क अनसार कजस परकार ककसी जलपरिाि क याद म समीि क सभी छोट छोट स वर अिननशहहि हो जाि ह ीक उसी परकार उस ईश वरीय परम म सार ववचार या िो ल ि हो जाि ह अथवा उसी परम क बहाव म बह जाि ह2 कबीर भमलन की उत क ा म स वय को भस म कर दना चाहि ह भमलन क परयत न म कबीर ररीर को जलाकर राख कर डालना चाहि ह और कहि ह कक उस राख की स याही बनाकर अिनी हडडी की लखनी स अिन वपरयतिम राम क िास चचटठी भलखकर भज सम भवि िभी मरा स मरर हो सकवा और व मझस भमलन आ सक व- यह िन जारौ मभस करौ भलखौ राम का नाऊा

लखनी करा करिक की भलखख भलखख राम पठाउा 3

कबीर कहि ह ववरह स वय मझस कह रहा ह कक ि मझ कभी मि छोड़ना त यककक म ही िझ उस िरम रहहम क िज म लीन कर द वा- 1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 61 2राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-97 33शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 54

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ववरह कह कबीर सौ ि कजन छााछ मोहह पार बरहम क िज म िहाा ल राखो िोहह1

कबीर की िकतियक म कजस िरह का परयत न ह वह परम का चरमोत कषश ह तसम दाम ित य परम ह कजसम स वय को राम की बहररया कहि ह तसभलए िरषोतिम अगरवाल का कथन ह - ldquoउनकी साधना ही परम क सबस सकशलष ट कि दाित य रनि का किक ह2 तस दाम ित य कि म कबीर िरम सतिा का वपरयिमा ह अगरवाल जी आव कहि ह -रीनि-ररवाज धमश-कमश और परदत ि मयाशदा का िरषोन मख महावरा नारी ननदा करिा ह िो साधना का परमोन मख महावरा कवव को नारी ही बना दिा ह3 तस िरह कबीर क मन म ऊषमा ह जनन ह जो आत मानभनि की तर अगरसर करिा ह

(4) सिसाररक बाधाएा

ननवकति रहस यवादी साधना िथ िर अनक परकार क ससाररक कष टक का सामना करना िड़िा ह उस िरम सतिा का साकषात कार सरलिा स सभव नही होिा कबीर न भी अिन साधना िथ िर अनक सासाररक ववघनक का सामना ककया ह उनहोन सबस बड़ा कारर माया को माना ह तस माया क कारर ही काम रियोध लोभ मोह आहद ववकार सिाि रहि ह तसक दो परमख कि ह- कचन और काभमनी कबीर कहि ह कक माया व याभभचारररी ह मोहहनी ह और सभी जीवक को धोखक म डालिी रहिी ह माया विराचनी ह-कबीर माया डाकणीि सब ककसही कौ खाइ4

वक क किा स कबीर का मन तस ससार स ववमख होकर ईश वरोन मख हआ तस कसथनि को परा ि करन क भलए उन ह अिन मन का िरश िररषकार 1दवाररका परसाद सतसनाहहनदी क पराचीन परनिननचध कवव( नवीिम स) ि 85 2िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 3िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि74

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करना िड़ा कबीर न मन को ननयबतरि करन िरमात मा क नाम का स मरर करन आचरर को रदध रखन ववचार और आचरर म एकिा लान सासाररक परलोभनक स अलव रहन सत य को गरहर करन अहहसात मक दकषटकोर को अिनानअहकार को तयावन और जीवन को मत ि होन की आवश यकिा िर जो बार-बार बल हदया ह वह मन क िररष कार क भलए ही होिा ह सब वक की किा स सभव होि ह-

कबीर िीछ लावा जात था लोक वद क साथ आव थ सिवक भमक या दीिक दीया हाचथ1 उियशत ि वववचन स स िष ट ह कक कबीर की साधना क मावशम ववघ न आि ह और उनस ननवकति का उिाय भी बिाि ह (5) िरम सतिा क दरशन का आभास

रहस यवाद म जब कोई साधक माया-मोह िर ववजय परा ि करक मावश क समस ि भलनिक ववघ न को िार कर साधना मावश िर आव बढिा ह वह थोड़ा आध याकतमक ससार म िह च जािा ह साधक क दयदय म जञान ज योनि का िीवर आलोक भर जािा ह तस सासाररक अधकार स दर हदव य रकति का दरशन करन लविा ह कबीर कहि ह- हद छाड़ ड बहहद गया हआ तनरन िर बास का वल ज फल या फल बबन को नीरष दास2

अथाशि म ससीम को िार करक असीम म िह च वया वही मरा राशवि ननवास हो वया वहा मन अनभव ककया कक बबना फल क एक कमल िखला हआ ह तसका दरशन भववान का ननजी दास ही कर सकिा ह तस िरह कबीर सासाररक माया मोह िर ववजय परा ि करक रहहम ज योनि दरशन करन लविा हlsquoरहहम-ज योनिrsquo का दरशन सब नहीबककक कोई साधक ही कर सकिा ह 1मािा परसाद वि कबीर गरथावली 1969 ि- 41 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 58

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(6) वास िववक जञान और परमानभति

जब ककसी साधक को िरम सतिा का आभास होन लविा ह िो उसक दयदय म जञान की ज योनि जलन लविी ह और उस वास िववक ससार का बोध होन लविा ह यही जञान भरभमि परािरयक का मावश-दरशन करिी ह कबीर कहि ह कक कजस उतकटिा और िीवरिा क साथ मन माया-जनय ववषयक म रमिा ह उिनी ही उत कटिा और िीवरिा क साथ यहद वह राम म रम जाए िो वह साधक िारामण डल स भी िर वहा िह च सकिा ह जहा स वह आया ह अथाशि उस रहहम म लीन हो जािा ह- जस माया मन रम या ज राम रमाइ िौ िारामण डल छााड़ड करर जहाा क सो िहाा जाई1

स थायी भमलन

रहस यवाद की अनिम कसथनि आत मा और िरमात मा का स थायी भमलन माना वया ह भमलन की तस अवस था को कबीर न ववववध परिीकक और किकक क माध यम स कहा ह स वय को दकहन बिाि हए कबीर कहि ह कजस परकार एक ित नी अिन िनि क साथ रयन करिी ह उसी परकार आत मा और िरमात मा दोनक एक होकर रयन करि ह‒

बहि हदनन थ परीिम पाए बड घर बठ आए मिहदर मााहह भया उकजयारा ल सिी अपना पीव प यारा2

कबीर न चचर भमलन का किक ववाहहक उत सव क माध यम स व यत ि ककया ह- दलहहन गावहा मिगलाचार हम घरर आय हो परम पररस भरिार| िन रति करर म मन रति करहा पिच िति बरािी|1

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि59 2 वहीि 117

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वववाहोिराि िरम ित व स अदभि भमलन होिा ह कजसस अननवचशनीय आनद की उिलब ध होिी ह कबीर कहि ह भववान की सवनि स म रीिल हो वया ह अब मोह की िाि भमट वई ह अब अदर म साकषात कार हो जान क कारर म राि-हदन सख की ननचध परा ि कर रहा ह हरर सिगति सीिल भया भमटा मोह की िाप तनस बासरर सख तनध य लहयाजब अििरर परकटना आप2

तस िरह आत म ित व और िरम ित व का स थायी भमलन हो जािा ह भत ि और भववान साधक और साध य जीव और रहहम एक हो जाि ह दोनक अमर हो जाि ह

कबीर क कावय म वयति रहसयवादी िररकसथयक का अध ययन करन िर जञाि होिा ह कक उनकी रहसयवाद की अिनी ववरषिाए ह तन िर हहदत क अदविवाद िथा मसलमानक क सफी-मि का परभाव लत हकषि होि ह तनक रहस यवाद म आकसिकिा माधयश भावना अन िमशखी साधना परम ित व भावनात मक सबधक का समावर ह रकर क अदविवाद का परादभाशव 8वी रिाब दी म होिा ह अदविवाद क अनसार आत मा और िरमात मा एक सतिा ह माया क कारर ही िरमात मा क नाम और कि का अकसित व ह वस िि आि मा और िरमात मा एक ही रकति क दो भाव ह जो माया क कारर अलव ह लककन व िन एक ही म भमल जाि ह तस परकरियया को कबीर तस िरह व यत ि करि ह

जल म कि भ कि भ म जल ह बाहहर भीिर पानी फटा कि भ जल जलहह समान यह िि कथो चगयानी3

1 जीएनदास लव स गज ऑफ कबीर1994 ि 39 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 59 3वहीि 128

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जल म भरा घड़ा जल म िर रहा ह तसक बाहरभीिर िानी ह घड़ा (माया) फटन िर जल एक हो जािा ह

ईसा क 8वी रिाब दी म तस लाम धमश क अिवशि तनक िरिरावि आदरो क ववरोध म सफी सपरदाय का उदय हआ सफीमि म बद और खदा का एकीकरर हो सकिा ह िर माया की ववरष चचाश नही ह िरमात मा स भमलन क भलए आत मा की चार दराए िार करनी िड़िी ह- (1) ररीयि (2) िरीकि (3)हकीकि(4) माररफि

तन दरात को िार करक ही आत मा और िरमात मा का सकममलन होिा ह तस परकार आत माम िरमात मा का अनभव होन लविा ह दसरी बाि यह ह कक सफी मि म परम का अर महत विरश हपरम ही कमश ह और परम ही धमश ह रामकमार वमाश का कथन ह कक ननस वाथश परम ही सफीमि का परार ह फारसी म कजिन सफी कवव ह व कवविा म परम क अनिररत ि कछ जानि ही नही ह1परम सफीमि म नरा ह खमारी ह परम क नर म साधक को ससार का कछ ध यान नही रहिा कबीर न भलखा ह-

हरर रसपीया जाातनय कबहा न जाय खमार ममििा घामि रह नााही िन की सार2

सफीमि म ईश वर स तरी कि म ह िर कबीर यहा ईश वर िरष कि म ह कबीर क रहस यवाद क बार म आव रामकमार वमाश न भलखा ह कबीर न अिन रहस यवाद क स िष टीकरर म दोनक की अदविवाद और सफीमि की बाि ली ह फलि उन हकन अदविवाद स माया और चचिन िथा सफीमि स परम लकर अिन रहस यवाद की सकषट की हrsquorsquo3

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 102 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-61 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-104

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रहस यवाद म परम का महत विरश स थान ह तसम उिनी जञान की आवश यकिा नही ह कजिन परम की तसभलए कबीर कहि ह- अ कथ कहानी परम की कछ कही न जाई गाग करी सरकरा बठा मसकाई1

परम की कहानी अकथ ह जो उसका आस वाद ल लिा ह वह व व क रत कर खान क अनभव जसा होिा ह कजसका वरशन वह नही कर सकिा तसभलए कबीर क रहस यवाद को भकतिमलक और परममलक रहस यवाद जाना जा सकिा ह

23 कबीर का दाशयतनक ववचार

मानव एक ववचाररील परारी ह ससार म घहटि होन वाल परत यक वनिववचध क परनि जावकक रहिा ह और चचिन क माध यम स रहस य समझन का परयत न करि ह ितिशचाि एक ववचार का जन म होिा ह यही ववचार दरशन का कि धारर करिा ह दारशननक ववचार जब भाव म किािररि होि ह िो भकति का ववषय बनिा ह

दरशन रब द का राकबदक अथश चाकषष परत यकष साकषात कार जानना2 तत याहद ह सामान य कि म परत यक व यकति का कोई न कोई दरशन अवश य होिा ह रास तर क कि म वह रास तर कजसम आत मा अनात मा जीव रहहम परकनि िरष जवि धमश मोकष मानव जीवन क उददश य आहद का ननकिर हो3 अगरजी कोर क अनसार ldquoदरशन एक अध ययन ह कजसम जीवन और जवि क परकनि और अथश का अध ययन ककया जािा हrdquo4सामान य अथश म lsquoदरशनrsquo का परयोव ककसी ववचार या भसदधाि की व याख या िाककश क ियशवकषर अथवा ववभभन न 1जीएनदास लव सागस ऑफ कबीर1994 ि-115 2 काभलक परासाद( स )वहि हहनदी कोर 1992 ि 509 3वही 509 4 The Study of the nature and meaning of universe and the human life- एस हॉनशबीऔतसफोडश लनशर डडतसनरी 2010 ि 1137

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ित व चचिन की परकरिययात क भलए आिा हककि मल कि म यह आत म जञान ित व जञान अथवा िरम ित व क जञान कि म आिा ह यह अनभव का िाककश क अथवा परमािरक मीमासा ह यह ससार क ममश को उदघाहटि करिा ह यह िरष परकनि का जञान ह

भकति काव य म भत ि कववयक न अिन आचायवोप स दारननशक िततववादी भसदधािक का जञान परा ि ककया ह परा ि जञान को उन हकन अिनी रचनात म अनभव क स िर िर उिारा ह भत ि कवव अिनी रचनात क स िर िर िहल रचनाकार ह उस सीध िलर िर दारशननक नही कहा जा सकिा उनक काव य म चचिन भावाभभव यकति की अिकषा वलर ह यदयवि भत ि कवव ककसी न ककसी वष रव आचायश क भरष य मान जाि ह िरन ि उनक काव य म सबदध आचायो क ित ववाद को िाककश क चचिन क कि म िरररि नही ह जहा िक कबीर का परशन ह िो यह कहा जा सकिा ह कक कबीर अचधक स वितर व यकतित व क साधक ह कबीर मलि दारशननक नही ह िरन ि उनक काव य म कई िरह क भसदधािक को दखा जा सकिा ह कबीर ककसी िवश परचभलि ववभरष ट सम परदाय यामिवाद स नही बध थ

रामकमार वमाश न कबीर क दरशन क सदभश म भलखा ह - सि मि का दरशन ककसी ववरष रास तर स नही भलया वया रास तरक म कबीर की आस था नही थी त यककक रास तर एक दकषटकोर ववरष स भलए या कह जाि ह और सापरदानयकिा क आधार िर ही हटक होि हhellip अि सि सपरदाय का दरशन उिननषद भारिीय षडदरशन बलदध धमश सफी सपरदाय नाथ सपरदाय की ववश वजनीन अनभनियक क ित वक को भमलाकर सवह ि हआ ह य ित व सीध रास तर स नही आय वरन रिाकबदयक की अनभनि िला िलकर महात मात की व यावहाररक जञान की कसलटी िर कस जाकर सत सव और वक क उिदरक स

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

98

भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 13: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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नहीि बरहमािड पतन नााही पिच ित व भी नाहीि इडा वप िगला सखमन नााही ए गण कहाा समाहीि1

उियशत ि िकतियक स स िष ट ह कक कबीर क मकसिष क म कििहल कजजञासा एव ववस मय की भावना ह कबीर सब कछ जानन क भलए िीवर उत क ा व यत ि करि ह

(2)बरहम का महततव परदशयन और अतनवयचनीयिा-

कजजञासा और किहल की कसथनि म साधक को िथ-परदरशक की आवश यकिा िड़िी ह अि साधक सिवक की ररर म िह च जािा ह वक की किा स ही जञान की आ धी आिी ह और भरम टट जािा ह कबीर कहि ह कक वक अिन हाथ म कमान लकर उसस परम सहहि ऐसा उिदर किीबार चलािा ह कक वह भरष य क दयदय म लविा ह- सिगर लई कमािण करर बााहण लागा िीर एक ज बाहय परीति सा भीिरी रहया सरीर2

अललककक सतिा अननवशचनीय ह वह अदभि और अललककक सतिा ह जो सवशतर वयाि होकर भी कही हदखाई नही दिी उसका िररचय मन बवदध एव वारी स परा ि करना सवशथा असम भव ह और उसका वरशन करना व व का वड़ ह कफर भी वरशन करन कापरयत न करि हए कहि ह कक कभी उस lsquoिहि बास स िािराrsquo कहकर उसकी सकष मानि सकष म कसथनि की तर सकि करि ह िो कभी उस िज-िज िारसमिर कहकर उसकी शरष िा का परनििादन करि ह कबीर िरम सत िा को एक ऐसा रसायर कहि ह कजसम स िरश मातर स सारा ररीर कचन बन जािा ह

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 125 2वही ि 49

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सब रसायन म ककया हरर सा और न कोई तिल इक घट म सिचर िौ सब िन कि चन होइ1

तस िरह स िष ट ह कक कबीर उस अव यत ि िरम सत िा की महतिा शरष िा का परनििादन करि ह साथ ही उसकी अननवशचनीयिा भी स वीकार करि ह (3) दशयन और भमलन का परयत न- रहस यवादी साधक िरम ित व स साकषात कार या भमलन का परयत न करि ह कजस िरह एक ववयोचवनी परमी स भमलन क भलए आिर रहिी ह उसी िरह कबीर भी िरम सत िा स भमलन का परयत न करि ह कबीर भावकिा म अवयति सत िा स भमलना चाहि ह रहस यवादी कववयक म भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक िरम ित व स भमलन क भलए िावलिन छा जािा ह रामकमार वमाश क अनसार कजस परकार ककसी जलपरिाि क याद म समीि क सभी छोट छोट स वर अिननशहहि हो जाि ह ीक उसी परकार उस ईश वरीय परम म सार ववचार या िो ल ि हो जाि ह अथवा उसी परम क बहाव म बह जाि ह2 कबीर भमलन की उत क ा म स वय को भस म कर दना चाहि ह भमलन क परयत न म कबीर ररीर को जलाकर राख कर डालना चाहि ह और कहि ह कक उस राख की स याही बनाकर अिनी हडडी की लखनी स अिन वपरयतिम राम क िास चचटठी भलखकर भज सम भवि िभी मरा स मरर हो सकवा और व मझस भमलन आ सक व- यह िन जारौ मभस करौ भलखौ राम का नाऊा

लखनी करा करिक की भलखख भलखख राम पठाउा 3

कबीर कहि ह ववरह स वय मझस कह रहा ह कक ि मझ कभी मि छोड़ना त यककक म ही िझ उस िरम रहहम क िज म लीन कर द वा- 1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 61 2राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-97 33शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 54

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ववरह कह कबीर सौ ि कजन छााछ मोहह पार बरहम क िज म िहाा ल राखो िोहह1

कबीर की िकतियक म कजस िरह का परयत न ह वह परम का चरमोत कषश ह तसम दाम ित य परम ह कजसम स वय को राम की बहररया कहि ह तसभलए िरषोतिम अगरवाल का कथन ह - ldquoउनकी साधना ही परम क सबस सकशलष ट कि दाित य रनि का किक ह2 तस दाम ित य कि म कबीर िरम सतिा का वपरयिमा ह अगरवाल जी आव कहि ह -रीनि-ररवाज धमश-कमश और परदत ि मयाशदा का िरषोन मख महावरा नारी ननदा करिा ह िो साधना का परमोन मख महावरा कवव को नारी ही बना दिा ह3 तस िरह कबीर क मन म ऊषमा ह जनन ह जो आत मानभनि की तर अगरसर करिा ह

(4) सिसाररक बाधाएा

ननवकति रहस यवादी साधना िथ िर अनक परकार क ससाररक कष टक का सामना करना िड़िा ह उस िरम सतिा का साकषात कार सरलिा स सभव नही होिा कबीर न भी अिन साधना िथ िर अनक सासाररक ववघनक का सामना ककया ह उनहोन सबस बड़ा कारर माया को माना ह तस माया क कारर ही काम रियोध लोभ मोह आहद ववकार सिाि रहि ह तसक दो परमख कि ह- कचन और काभमनी कबीर कहि ह कक माया व याभभचारररी ह मोहहनी ह और सभी जीवक को धोखक म डालिी रहिी ह माया विराचनी ह-कबीर माया डाकणीि सब ककसही कौ खाइ4

वक क किा स कबीर का मन तस ससार स ववमख होकर ईश वरोन मख हआ तस कसथनि को परा ि करन क भलए उन ह अिन मन का िरश िररषकार 1दवाररका परसाद सतसनाहहनदी क पराचीन परनिननचध कवव( नवीिम स) ि 85 2िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 3िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि74

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करना िड़ा कबीर न मन को ननयबतरि करन िरमात मा क नाम का स मरर करन आचरर को रदध रखन ववचार और आचरर म एकिा लान सासाररक परलोभनक स अलव रहन सत य को गरहर करन अहहसात मक दकषटकोर को अिनानअहकार को तयावन और जीवन को मत ि होन की आवश यकिा िर जो बार-बार बल हदया ह वह मन क िररष कार क भलए ही होिा ह सब वक की किा स सभव होि ह-

कबीर िीछ लावा जात था लोक वद क साथ आव थ सिवक भमक या दीिक दीया हाचथ1 उियशत ि वववचन स स िष ट ह कक कबीर की साधना क मावशम ववघ न आि ह और उनस ननवकति का उिाय भी बिाि ह (5) िरम सतिा क दरशन का आभास

रहस यवाद म जब कोई साधक माया-मोह िर ववजय परा ि करक मावश क समस ि भलनिक ववघ न को िार कर साधना मावश िर आव बढिा ह वह थोड़ा आध याकतमक ससार म िह च जािा ह साधक क दयदय म जञान ज योनि का िीवर आलोक भर जािा ह तस सासाररक अधकार स दर हदव य रकति का दरशन करन लविा ह कबीर कहि ह- हद छाड़ ड बहहद गया हआ तनरन िर बास का वल ज फल या फल बबन को नीरष दास2

अथाशि म ससीम को िार करक असीम म िह च वया वही मरा राशवि ननवास हो वया वहा मन अनभव ककया कक बबना फल क एक कमल िखला हआ ह तसका दरशन भववान का ननजी दास ही कर सकिा ह तस िरह कबीर सासाररक माया मोह िर ववजय परा ि करक रहहम ज योनि दरशन करन लविा हlsquoरहहम-ज योनिrsquo का दरशन सब नहीबककक कोई साधक ही कर सकिा ह 1मािा परसाद वि कबीर गरथावली 1969 ि- 41 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 58

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(6) वास िववक जञान और परमानभति

जब ककसी साधक को िरम सतिा का आभास होन लविा ह िो उसक दयदय म जञान की ज योनि जलन लविी ह और उस वास िववक ससार का बोध होन लविा ह यही जञान भरभमि परािरयक का मावश-दरशन करिी ह कबीर कहि ह कक कजस उतकटिा और िीवरिा क साथ मन माया-जनय ववषयक म रमिा ह उिनी ही उत कटिा और िीवरिा क साथ यहद वह राम म रम जाए िो वह साधक िारामण डल स भी िर वहा िह च सकिा ह जहा स वह आया ह अथाशि उस रहहम म लीन हो जािा ह- जस माया मन रम या ज राम रमाइ िौ िारामण डल छााड़ड करर जहाा क सो िहाा जाई1

स थायी भमलन

रहस यवाद की अनिम कसथनि आत मा और िरमात मा का स थायी भमलन माना वया ह भमलन की तस अवस था को कबीर न ववववध परिीकक और किकक क माध यम स कहा ह स वय को दकहन बिाि हए कबीर कहि ह कजस परकार एक ित नी अिन िनि क साथ रयन करिी ह उसी परकार आत मा और िरमात मा दोनक एक होकर रयन करि ह‒

बहि हदनन थ परीिम पाए बड घर बठ आए मिहदर मााहह भया उकजयारा ल सिी अपना पीव प यारा2

कबीर न चचर भमलन का किक ववाहहक उत सव क माध यम स व यत ि ककया ह- दलहहन गावहा मिगलाचार हम घरर आय हो परम पररस भरिार| िन रति करर म मन रति करहा पिच िति बरािी|1

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि59 2 वहीि 117

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वववाहोिराि िरम ित व स अदभि भमलन होिा ह कजसस अननवचशनीय आनद की उिलब ध होिी ह कबीर कहि ह भववान की सवनि स म रीिल हो वया ह अब मोह की िाि भमट वई ह अब अदर म साकषात कार हो जान क कारर म राि-हदन सख की ननचध परा ि कर रहा ह हरर सिगति सीिल भया भमटा मोह की िाप तनस बासरर सख तनध य लहयाजब अििरर परकटना आप2

तस िरह आत म ित व और िरम ित व का स थायी भमलन हो जािा ह भत ि और भववान साधक और साध य जीव और रहहम एक हो जाि ह दोनक अमर हो जाि ह

कबीर क कावय म वयति रहसयवादी िररकसथयक का अध ययन करन िर जञाि होिा ह कक उनकी रहसयवाद की अिनी ववरषिाए ह तन िर हहदत क अदविवाद िथा मसलमानक क सफी-मि का परभाव लत हकषि होि ह तनक रहस यवाद म आकसिकिा माधयश भावना अन िमशखी साधना परम ित व भावनात मक सबधक का समावर ह रकर क अदविवाद का परादभाशव 8वी रिाब दी म होिा ह अदविवाद क अनसार आत मा और िरमात मा एक सतिा ह माया क कारर ही िरमात मा क नाम और कि का अकसित व ह वस िि आि मा और िरमात मा एक ही रकति क दो भाव ह जो माया क कारर अलव ह लककन व िन एक ही म भमल जाि ह तस परकरियया को कबीर तस िरह व यत ि करि ह

जल म कि भ कि भ म जल ह बाहहर भीिर पानी फटा कि भ जल जलहह समान यह िि कथो चगयानी3

1 जीएनदास लव स गज ऑफ कबीर1994 ि 39 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 59 3वहीि 128

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जल म भरा घड़ा जल म िर रहा ह तसक बाहरभीिर िानी ह घड़ा (माया) फटन िर जल एक हो जािा ह

ईसा क 8वी रिाब दी म तस लाम धमश क अिवशि तनक िरिरावि आदरो क ववरोध म सफी सपरदाय का उदय हआ सफीमि म बद और खदा का एकीकरर हो सकिा ह िर माया की ववरष चचाश नही ह िरमात मा स भमलन क भलए आत मा की चार दराए िार करनी िड़िी ह- (1) ररीयि (2) िरीकि (3)हकीकि(4) माररफि

तन दरात को िार करक ही आत मा और िरमात मा का सकममलन होिा ह तस परकार आत माम िरमात मा का अनभव होन लविा ह दसरी बाि यह ह कक सफी मि म परम का अर महत विरश हपरम ही कमश ह और परम ही धमश ह रामकमार वमाश का कथन ह कक ननस वाथश परम ही सफीमि का परार ह फारसी म कजिन सफी कवव ह व कवविा म परम क अनिररत ि कछ जानि ही नही ह1परम सफीमि म नरा ह खमारी ह परम क नर म साधक को ससार का कछ ध यान नही रहिा कबीर न भलखा ह-

हरर रसपीया जाातनय कबहा न जाय खमार ममििा घामि रह नााही िन की सार2

सफीमि म ईश वर स तरी कि म ह िर कबीर यहा ईश वर िरष कि म ह कबीर क रहस यवाद क बार म आव रामकमार वमाश न भलखा ह कबीर न अिन रहस यवाद क स िष टीकरर म दोनक की अदविवाद और सफीमि की बाि ली ह फलि उन हकन अदविवाद स माया और चचिन िथा सफीमि स परम लकर अिन रहस यवाद की सकषट की हrsquorsquo3

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 102 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-61 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-104

80

रहस यवाद म परम का महत विरश स थान ह तसम उिनी जञान की आवश यकिा नही ह कजिन परम की तसभलए कबीर कहि ह- अ कथ कहानी परम की कछ कही न जाई गाग करी सरकरा बठा मसकाई1

परम की कहानी अकथ ह जो उसका आस वाद ल लिा ह वह व व क रत कर खान क अनभव जसा होिा ह कजसका वरशन वह नही कर सकिा तसभलए कबीर क रहस यवाद को भकतिमलक और परममलक रहस यवाद जाना जा सकिा ह

23 कबीर का दाशयतनक ववचार

मानव एक ववचाररील परारी ह ससार म घहटि होन वाल परत यक वनिववचध क परनि जावकक रहिा ह और चचिन क माध यम स रहस य समझन का परयत न करि ह ितिशचाि एक ववचार का जन म होिा ह यही ववचार दरशन का कि धारर करिा ह दारशननक ववचार जब भाव म किािररि होि ह िो भकति का ववषय बनिा ह

दरशन रब द का राकबदक अथश चाकषष परत यकष साकषात कार जानना2 तत याहद ह सामान य कि म परत यक व यकति का कोई न कोई दरशन अवश य होिा ह रास तर क कि म वह रास तर कजसम आत मा अनात मा जीव रहहम परकनि िरष जवि धमश मोकष मानव जीवन क उददश य आहद का ननकिर हो3 अगरजी कोर क अनसार ldquoदरशन एक अध ययन ह कजसम जीवन और जवि क परकनि और अथश का अध ययन ककया जािा हrdquo4सामान य अथश म lsquoदरशनrsquo का परयोव ककसी ववचार या भसदधाि की व याख या िाककश क ियशवकषर अथवा ववभभन न 1जीएनदास लव सागस ऑफ कबीर1994 ि-115 2 काभलक परासाद( स )वहि हहनदी कोर 1992 ि 509 3वही 509 4 The Study of the nature and meaning of universe and the human life- एस हॉनशबीऔतसफोडश लनशर डडतसनरी 2010 ि 1137

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ित व चचिन की परकरिययात क भलए आिा हककि मल कि म यह आत म जञान ित व जञान अथवा िरम ित व क जञान कि म आिा ह यह अनभव का िाककश क अथवा परमािरक मीमासा ह यह ससार क ममश को उदघाहटि करिा ह यह िरष परकनि का जञान ह

भकति काव य म भत ि कववयक न अिन आचायवोप स दारननशक िततववादी भसदधािक का जञान परा ि ककया ह परा ि जञान को उन हकन अिनी रचनात म अनभव क स िर िर उिारा ह भत ि कवव अिनी रचनात क स िर िर िहल रचनाकार ह उस सीध िलर िर दारशननक नही कहा जा सकिा उनक काव य म चचिन भावाभभव यकति की अिकषा वलर ह यदयवि भत ि कवव ककसी न ककसी वष रव आचायश क भरष य मान जाि ह िरन ि उनक काव य म सबदध आचायो क ित ववाद को िाककश क चचिन क कि म िरररि नही ह जहा िक कबीर का परशन ह िो यह कहा जा सकिा ह कक कबीर अचधक स वितर व यकतित व क साधक ह कबीर मलि दारशननक नही ह िरन ि उनक काव य म कई िरह क भसदधािक को दखा जा सकिा ह कबीर ककसी िवश परचभलि ववभरष ट सम परदाय यामिवाद स नही बध थ

रामकमार वमाश न कबीर क दरशन क सदभश म भलखा ह - सि मि का दरशन ककसी ववरष रास तर स नही भलया वया रास तरक म कबीर की आस था नही थी त यककक रास तर एक दकषटकोर ववरष स भलए या कह जाि ह और सापरदानयकिा क आधार िर ही हटक होि हhellip अि सि सपरदाय का दरशन उिननषद भारिीय षडदरशन बलदध धमश सफी सपरदाय नाथ सपरदाय की ववश वजनीन अनभनियक क ित वक को भमलाकर सवह ि हआ ह य ित व सीध रास तर स नही आय वरन रिाकबदयक की अनभनि िला िलकर महात मात की व यावहाररक जञान की कसलटी िर कस जाकर सत सव और वक क उिदरक स

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 14: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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सब रसायन म ककया हरर सा और न कोई तिल इक घट म सिचर िौ सब िन कि चन होइ1

तस िरह स िष ट ह कक कबीर उस अव यत ि िरम सत िा की महतिा शरष िा का परनििादन करि ह साथ ही उसकी अननवशचनीयिा भी स वीकार करि ह (3) दशयन और भमलन का परयत न- रहस यवादी साधक िरम ित व स साकषात कार या भमलन का परयत न करि ह कजस िरह एक ववयोचवनी परमी स भमलन क भलए आिर रहिी ह उसी िरह कबीर भी िरम सत िा स भमलन का परयत न करि ह कबीर भावकिा म अवयति सत िा स भमलना चाहि ह रहस यवादी कववयक म भावनाए तिनी िीवर हो जािी ह कक िरम ित व स भमलन क भलए िावलिन छा जािा ह रामकमार वमाश क अनसार कजस परकार ककसी जलपरिाि क याद म समीि क सभी छोट छोट स वर अिननशहहि हो जाि ह ीक उसी परकार उस ईश वरीय परम म सार ववचार या िो ल ि हो जाि ह अथवा उसी परम क बहाव म बह जाि ह2 कबीर भमलन की उत क ा म स वय को भस म कर दना चाहि ह भमलन क परयत न म कबीर ररीर को जलाकर राख कर डालना चाहि ह और कहि ह कक उस राख की स याही बनाकर अिनी हडडी की लखनी स अिन वपरयतिम राम क िास चचटठी भलखकर भज सम भवि िभी मरा स मरर हो सकवा और व मझस भमलन आ सक व- यह िन जारौ मभस करौ भलखौ राम का नाऊा

लखनी करा करिक की भलखख भलखख राम पठाउा 3

कबीर कहि ह ववरह स वय मझस कह रहा ह कक ि मझ कभी मि छोड़ना त यककक म ही िझ उस िरम रहहम क िज म लीन कर द वा- 1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 61 2राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-97 33शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 54

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ववरह कह कबीर सौ ि कजन छााछ मोहह पार बरहम क िज म िहाा ल राखो िोहह1

कबीर की िकतियक म कजस िरह का परयत न ह वह परम का चरमोत कषश ह तसम दाम ित य परम ह कजसम स वय को राम की बहररया कहि ह तसभलए िरषोतिम अगरवाल का कथन ह - ldquoउनकी साधना ही परम क सबस सकशलष ट कि दाित य रनि का किक ह2 तस दाम ित य कि म कबीर िरम सतिा का वपरयिमा ह अगरवाल जी आव कहि ह -रीनि-ररवाज धमश-कमश और परदत ि मयाशदा का िरषोन मख महावरा नारी ननदा करिा ह िो साधना का परमोन मख महावरा कवव को नारी ही बना दिा ह3 तस िरह कबीर क मन म ऊषमा ह जनन ह जो आत मानभनि की तर अगरसर करिा ह

(4) सिसाररक बाधाएा

ननवकति रहस यवादी साधना िथ िर अनक परकार क ससाररक कष टक का सामना करना िड़िा ह उस िरम सतिा का साकषात कार सरलिा स सभव नही होिा कबीर न भी अिन साधना िथ िर अनक सासाररक ववघनक का सामना ककया ह उनहोन सबस बड़ा कारर माया को माना ह तस माया क कारर ही काम रियोध लोभ मोह आहद ववकार सिाि रहि ह तसक दो परमख कि ह- कचन और काभमनी कबीर कहि ह कक माया व याभभचारररी ह मोहहनी ह और सभी जीवक को धोखक म डालिी रहिी ह माया विराचनी ह-कबीर माया डाकणीि सब ककसही कौ खाइ4

वक क किा स कबीर का मन तस ससार स ववमख होकर ईश वरोन मख हआ तस कसथनि को परा ि करन क भलए उन ह अिन मन का िरश िररषकार 1दवाररका परसाद सतसनाहहनदी क पराचीन परनिननचध कवव( नवीिम स) ि 85 2िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 3िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि74

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करना िड़ा कबीर न मन को ननयबतरि करन िरमात मा क नाम का स मरर करन आचरर को रदध रखन ववचार और आचरर म एकिा लान सासाररक परलोभनक स अलव रहन सत य को गरहर करन अहहसात मक दकषटकोर को अिनानअहकार को तयावन और जीवन को मत ि होन की आवश यकिा िर जो बार-बार बल हदया ह वह मन क िररष कार क भलए ही होिा ह सब वक की किा स सभव होि ह-

कबीर िीछ लावा जात था लोक वद क साथ आव थ सिवक भमक या दीिक दीया हाचथ1 उियशत ि वववचन स स िष ट ह कक कबीर की साधना क मावशम ववघ न आि ह और उनस ननवकति का उिाय भी बिाि ह (5) िरम सतिा क दरशन का आभास

रहस यवाद म जब कोई साधक माया-मोह िर ववजय परा ि करक मावश क समस ि भलनिक ववघ न को िार कर साधना मावश िर आव बढिा ह वह थोड़ा आध याकतमक ससार म िह च जािा ह साधक क दयदय म जञान ज योनि का िीवर आलोक भर जािा ह तस सासाररक अधकार स दर हदव य रकति का दरशन करन लविा ह कबीर कहि ह- हद छाड़ ड बहहद गया हआ तनरन िर बास का वल ज फल या फल बबन को नीरष दास2

अथाशि म ससीम को िार करक असीम म िह च वया वही मरा राशवि ननवास हो वया वहा मन अनभव ककया कक बबना फल क एक कमल िखला हआ ह तसका दरशन भववान का ननजी दास ही कर सकिा ह तस िरह कबीर सासाररक माया मोह िर ववजय परा ि करक रहहम ज योनि दरशन करन लविा हlsquoरहहम-ज योनिrsquo का दरशन सब नहीबककक कोई साधक ही कर सकिा ह 1मािा परसाद वि कबीर गरथावली 1969 ि- 41 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 58

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(6) वास िववक जञान और परमानभति

जब ककसी साधक को िरम सतिा का आभास होन लविा ह िो उसक दयदय म जञान की ज योनि जलन लविी ह और उस वास िववक ससार का बोध होन लविा ह यही जञान भरभमि परािरयक का मावश-दरशन करिी ह कबीर कहि ह कक कजस उतकटिा और िीवरिा क साथ मन माया-जनय ववषयक म रमिा ह उिनी ही उत कटिा और िीवरिा क साथ यहद वह राम म रम जाए िो वह साधक िारामण डल स भी िर वहा िह च सकिा ह जहा स वह आया ह अथाशि उस रहहम म लीन हो जािा ह- जस माया मन रम या ज राम रमाइ िौ िारामण डल छााड़ड करर जहाा क सो िहाा जाई1

स थायी भमलन

रहस यवाद की अनिम कसथनि आत मा और िरमात मा का स थायी भमलन माना वया ह भमलन की तस अवस था को कबीर न ववववध परिीकक और किकक क माध यम स कहा ह स वय को दकहन बिाि हए कबीर कहि ह कजस परकार एक ित नी अिन िनि क साथ रयन करिी ह उसी परकार आत मा और िरमात मा दोनक एक होकर रयन करि ह‒

बहि हदनन थ परीिम पाए बड घर बठ आए मिहदर मााहह भया उकजयारा ल सिी अपना पीव प यारा2

कबीर न चचर भमलन का किक ववाहहक उत सव क माध यम स व यत ि ककया ह- दलहहन गावहा मिगलाचार हम घरर आय हो परम पररस भरिार| िन रति करर म मन रति करहा पिच िति बरािी|1

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि59 2 वहीि 117

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वववाहोिराि िरम ित व स अदभि भमलन होिा ह कजसस अननवचशनीय आनद की उिलब ध होिी ह कबीर कहि ह भववान की सवनि स म रीिल हो वया ह अब मोह की िाि भमट वई ह अब अदर म साकषात कार हो जान क कारर म राि-हदन सख की ननचध परा ि कर रहा ह हरर सिगति सीिल भया भमटा मोह की िाप तनस बासरर सख तनध य लहयाजब अििरर परकटना आप2

तस िरह आत म ित व और िरम ित व का स थायी भमलन हो जािा ह भत ि और भववान साधक और साध य जीव और रहहम एक हो जाि ह दोनक अमर हो जाि ह

कबीर क कावय म वयति रहसयवादी िररकसथयक का अध ययन करन िर जञाि होिा ह कक उनकी रहसयवाद की अिनी ववरषिाए ह तन िर हहदत क अदविवाद िथा मसलमानक क सफी-मि का परभाव लत हकषि होि ह तनक रहस यवाद म आकसिकिा माधयश भावना अन िमशखी साधना परम ित व भावनात मक सबधक का समावर ह रकर क अदविवाद का परादभाशव 8वी रिाब दी म होिा ह अदविवाद क अनसार आत मा और िरमात मा एक सतिा ह माया क कारर ही िरमात मा क नाम और कि का अकसित व ह वस िि आि मा और िरमात मा एक ही रकति क दो भाव ह जो माया क कारर अलव ह लककन व िन एक ही म भमल जाि ह तस परकरियया को कबीर तस िरह व यत ि करि ह

जल म कि भ कि भ म जल ह बाहहर भीिर पानी फटा कि भ जल जलहह समान यह िि कथो चगयानी3

1 जीएनदास लव स गज ऑफ कबीर1994 ि 39 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 59 3वहीि 128

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जल म भरा घड़ा जल म िर रहा ह तसक बाहरभीिर िानी ह घड़ा (माया) फटन िर जल एक हो जािा ह

ईसा क 8वी रिाब दी म तस लाम धमश क अिवशि तनक िरिरावि आदरो क ववरोध म सफी सपरदाय का उदय हआ सफीमि म बद और खदा का एकीकरर हो सकिा ह िर माया की ववरष चचाश नही ह िरमात मा स भमलन क भलए आत मा की चार दराए िार करनी िड़िी ह- (1) ररीयि (2) िरीकि (3)हकीकि(4) माररफि

तन दरात को िार करक ही आत मा और िरमात मा का सकममलन होिा ह तस परकार आत माम िरमात मा का अनभव होन लविा ह दसरी बाि यह ह कक सफी मि म परम का अर महत विरश हपरम ही कमश ह और परम ही धमश ह रामकमार वमाश का कथन ह कक ननस वाथश परम ही सफीमि का परार ह फारसी म कजिन सफी कवव ह व कवविा म परम क अनिररत ि कछ जानि ही नही ह1परम सफीमि म नरा ह खमारी ह परम क नर म साधक को ससार का कछ ध यान नही रहिा कबीर न भलखा ह-

हरर रसपीया जाातनय कबहा न जाय खमार ममििा घामि रह नााही िन की सार2

सफीमि म ईश वर स तरी कि म ह िर कबीर यहा ईश वर िरष कि म ह कबीर क रहस यवाद क बार म आव रामकमार वमाश न भलखा ह कबीर न अिन रहस यवाद क स िष टीकरर म दोनक की अदविवाद और सफीमि की बाि ली ह फलि उन हकन अदविवाद स माया और चचिन िथा सफीमि स परम लकर अिन रहस यवाद की सकषट की हrsquorsquo3

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 102 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-61 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-104

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रहस यवाद म परम का महत विरश स थान ह तसम उिनी जञान की आवश यकिा नही ह कजिन परम की तसभलए कबीर कहि ह- अ कथ कहानी परम की कछ कही न जाई गाग करी सरकरा बठा मसकाई1

परम की कहानी अकथ ह जो उसका आस वाद ल लिा ह वह व व क रत कर खान क अनभव जसा होिा ह कजसका वरशन वह नही कर सकिा तसभलए कबीर क रहस यवाद को भकतिमलक और परममलक रहस यवाद जाना जा सकिा ह

23 कबीर का दाशयतनक ववचार

मानव एक ववचाररील परारी ह ससार म घहटि होन वाल परत यक वनिववचध क परनि जावकक रहिा ह और चचिन क माध यम स रहस य समझन का परयत न करि ह ितिशचाि एक ववचार का जन म होिा ह यही ववचार दरशन का कि धारर करिा ह दारशननक ववचार जब भाव म किािररि होि ह िो भकति का ववषय बनिा ह

दरशन रब द का राकबदक अथश चाकषष परत यकष साकषात कार जानना2 तत याहद ह सामान य कि म परत यक व यकति का कोई न कोई दरशन अवश य होिा ह रास तर क कि म वह रास तर कजसम आत मा अनात मा जीव रहहम परकनि िरष जवि धमश मोकष मानव जीवन क उददश य आहद का ननकिर हो3 अगरजी कोर क अनसार ldquoदरशन एक अध ययन ह कजसम जीवन और जवि क परकनि और अथश का अध ययन ककया जािा हrdquo4सामान य अथश म lsquoदरशनrsquo का परयोव ककसी ववचार या भसदधाि की व याख या िाककश क ियशवकषर अथवा ववभभन न 1जीएनदास लव सागस ऑफ कबीर1994 ि-115 2 काभलक परासाद( स )वहि हहनदी कोर 1992 ि 509 3वही 509 4 The Study of the nature and meaning of universe and the human life- एस हॉनशबीऔतसफोडश लनशर डडतसनरी 2010 ि 1137

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ित व चचिन की परकरिययात क भलए आिा हककि मल कि म यह आत म जञान ित व जञान अथवा िरम ित व क जञान कि म आिा ह यह अनभव का िाककश क अथवा परमािरक मीमासा ह यह ससार क ममश को उदघाहटि करिा ह यह िरष परकनि का जञान ह

भकति काव य म भत ि कववयक न अिन आचायवोप स दारननशक िततववादी भसदधािक का जञान परा ि ककया ह परा ि जञान को उन हकन अिनी रचनात म अनभव क स िर िर उिारा ह भत ि कवव अिनी रचनात क स िर िर िहल रचनाकार ह उस सीध िलर िर दारशननक नही कहा जा सकिा उनक काव य म चचिन भावाभभव यकति की अिकषा वलर ह यदयवि भत ि कवव ककसी न ककसी वष रव आचायश क भरष य मान जाि ह िरन ि उनक काव य म सबदध आचायो क ित ववाद को िाककश क चचिन क कि म िरररि नही ह जहा िक कबीर का परशन ह िो यह कहा जा सकिा ह कक कबीर अचधक स वितर व यकतित व क साधक ह कबीर मलि दारशननक नही ह िरन ि उनक काव य म कई िरह क भसदधािक को दखा जा सकिा ह कबीर ककसी िवश परचभलि ववभरष ट सम परदाय यामिवाद स नही बध थ

रामकमार वमाश न कबीर क दरशन क सदभश म भलखा ह - सि मि का दरशन ककसी ववरष रास तर स नही भलया वया रास तरक म कबीर की आस था नही थी त यककक रास तर एक दकषटकोर ववरष स भलए या कह जाि ह और सापरदानयकिा क आधार िर ही हटक होि हhellip अि सि सपरदाय का दरशन उिननषद भारिीय षडदरशन बलदध धमश सफी सपरदाय नाथ सपरदाय की ववश वजनीन अनभनियक क ित वक को भमलाकर सवह ि हआ ह य ित व सीध रास तर स नही आय वरन रिाकबदयक की अनभनि िला िलकर महात मात की व यावहाररक जञान की कसलटी िर कस जाकर सत सव और वक क उिदरक स

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

101

परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

102

वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 15: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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ववरह कह कबीर सौ ि कजन छााछ मोहह पार बरहम क िज म िहाा ल राखो िोहह1

कबीर की िकतियक म कजस िरह का परयत न ह वह परम का चरमोत कषश ह तसम दाम ित य परम ह कजसम स वय को राम की बहररया कहि ह तसभलए िरषोतिम अगरवाल का कथन ह - ldquoउनकी साधना ही परम क सबस सकशलष ट कि दाित य रनि का किक ह2 तस दाम ित य कि म कबीर िरम सतिा का वपरयिमा ह अगरवाल जी आव कहि ह -रीनि-ररवाज धमश-कमश और परदत ि मयाशदा का िरषोन मख महावरा नारी ननदा करिा ह िो साधना का परमोन मख महावरा कवव को नारी ही बना दिा ह3 तस िरह कबीर क मन म ऊषमा ह जनन ह जो आत मानभनि की तर अगरसर करिा ह

(4) सिसाररक बाधाएा

ननवकति रहस यवादी साधना िथ िर अनक परकार क ससाररक कष टक का सामना करना िड़िा ह उस िरम सतिा का साकषात कार सरलिा स सभव नही होिा कबीर न भी अिन साधना िथ िर अनक सासाररक ववघनक का सामना ककया ह उनहोन सबस बड़ा कारर माया को माना ह तस माया क कारर ही काम रियोध लोभ मोह आहद ववकार सिाि रहि ह तसक दो परमख कि ह- कचन और काभमनी कबीर कहि ह कक माया व याभभचारररी ह मोहहनी ह और सभी जीवक को धोखक म डालिी रहिी ह माया विराचनी ह-कबीर माया डाकणीि सब ककसही कौ खाइ4

वक क किा स कबीर का मन तस ससार स ववमख होकर ईश वरोन मख हआ तस कसथनि को परा ि करन क भलए उन ह अिन मन का िरश िररषकार 1दवाररका परसाद सतसनाहहनदी क पराचीन परनिननचध कवव( नवीिम स) ि 85 2िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 3िकषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की 2010 ि -368 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि74

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करना िड़ा कबीर न मन को ननयबतरि करन िरमात मा क नाम का स मरर करन आचरर को रदध रखन ववचार और आचरर म एकिा लान सासाररक परलोभनक स अलव रहन सत य को गरहर करन अहहसात मक दकषटकोर को अिनानअहकार को तयावन और जीवन को मत ि होन की आवश यकिा िर जो बार-बार बल हदया ह वह मन क िररष कार क भलए ही होिा ह सब वक की किा स सभव होि ह-

कबीर िीछ लावा जात था लोक वद क साथ आव थ सिवक भमक या दीिक दीया हाचथ1 उियशत ि वववचन स स िष ट ह कक कबीर की साधना क मावशम ववघ न आि ह और उनस ननवकति का उिाय भी बिाि ह (5) िरम सतिा क दरशन का आभास

रहस यवाद म जब कोई साधक माया-मोह िर ववजय परा ि करक मावश क समस ि भलनिक ववघ न को िार कर साधना मावश िर आव बढिा ह वह थोड़ा आध याकतमक ससार म िह च जािा ह साधक क दयदय म जञान ज योनि का िीवर आलोक भर जािा ह तस सासाररक अधकार स दर हदव य रकति का दरशन करन लविा ह कबीर कहि ह- हद छाड़ ड बहहद गया हआ तनरन िर बास का वल ज फल या फल बबन को नीरष दास2

अथाशि म ससीम को िार करक असीम म िह च वया वही मरा राशवि ननवास हो वया वहा मन अनभव ककया कक बबना फल क एक कमल िखला हआ ह तसका दरशन भववान का ननजी दास ही कर सकिा ह तस िरह कबीर सासाररक माया मोह िर ववजय परा ि करक रहहम ज योनि दरशन करन लविा हlsquoरहहम-ज योनिrsquo का दरशन सब नहीबककक कोई साधक ही कर सकिा ह 1मािा परसाद वि कबीर गरथावली 1969 ि- 41 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 58

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(6) वास िववक जञान और परमानभति

जब ककसी साधक को िरम सतिा का आभास होन लविा ह िो उसक दयदय म जञान की ज योनि जलन लविी ह और उस वास िववक ससार का बोध होन लविा ह यही जञान भरभमि परािरयक का मावश-दरशन करिी ह कबीर कहि ह कक कजस उतकटिा और िीवरिा क साथ मन माया-जनय ववषयक म रमिा ह उिनी ही उत कटिा और िीवरिा क साथ यहद वह राम म रम जाए िो वह साधक िारामण डल स भी िर वहा िह च सकिा ह जहा स वह आया ह अथाशि उस रहहम म लीन हो जािा ह- जस माया मन रम या ज राम रमाइ िौ िारामण डल छााड़ड करर जहाा क सो िहाा जाई1

स थायी भमलन

रहस यवाद की अनिम कसथनि आत मा और िरमात मा का स थायी भमलन माना वया ह भमलन की तस अवस था को कबीर न ववववध परिीकक और किकक क माध यम स कहा ह स वय को दकहन बिाि हए कबीर कहि ह कजस परकार एक ित नी अिन िनि क साथ रयन करिी ह उसी परकार आत मा और िरमात मा दोनक एक होकर रयन करि ह‒

बहि हदनन थ परीिम पाए बड घर बठ आए मिहदर मााहह भया उकजयारा ल सिी अपना पीव प यारा2

कबीर न चचर भमलन का किक ववाहहक उत सव क माध यम स व यत ि ककया ह- दलहहन गावहा मिगलाचार हम घरर आय हो परम पररस भरिार| िन रति करर म मन रति करहा पिच िति बरािी|1

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि59 2 वहीि 117

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वववाहोिराि िरम ित व स अदभि भमलन होिा ह कजसस अननवचशनीय आनद की उिलब ध होिी ह कबीर कहि ह भववान की सवनि स म रीिल हो वया ह अब मोह की िाि भमट वई ह अब अदर म साकषात कार हो जान क कारर म राि-हदन सख की ननचध परा ि कर रहा ह हरर सिगति सीिल भया भमटा मोह की िाप तनस बासरर सख तनध य लहयाजब अििरर परकटना आप2

तस िरह आत म ित व और िरम ित व का स थायी भमलन हो जािा ह भत ि और भववान साधक और साध य जीव और रहहम एक हो जाि ह दोनक अमर हो जाि ह

कबीर क कावय म वयति रहसयवादी िररकसथयक का अध ययन करन िर जञाि होिा ह कक उनकी रहसयवाद की अिनी ववरषिाए ह तन िर हहदत क अदविवाद िथा मसलमानक क सफी-मि का परभाव लत हकषि होि ह तनक रहस यवाद म आकसिकिा माधयश भावना अन िमशखी साधना परम ित व भावनात मक सबधक का समावर ह रकर क अदविवाद का परादभाशव 8वी रिाब दी म होिा ह अदविवाद क अनसार आत मा और िरमात मा एक सतिा ह माया क कारर ही िरमात मा क नाम और कि का अकसित व ह वस िि आि मा और िरमात मा एक ही रकति क दो भाव ह जो माया क कारर अलव ह लककन व िन एक ही म भमल जाि ह तस परकरियया को कबीर तस िरह व यत ि करि ह

जल म कि भ कि भ म जल ह बाहहर भीिर पानी फटा कि भ जल जलहह समान यह िि कथो चगयानी3

1 जीएनदास लव स गज ऑफ कबीर1994 ि 39 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 59 3वहीि 128

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जल म भरा घड़ा जल म िर रहा ह तसक बाहरभीिर िानी ह घड़ा (माया) फटन िर जल एक हो जािा ह

ईसा क 8वी रिाब दी म तस लाम धमश क अिवशि तनक िरिरावि आदरो क ववरोध म सफी सपरदाय का उदय हआ सफीमि म बद और खदा का एकीकरर हो सकिा ह िर माया की ववरष चचाश नही ह िरमात मा स भमलन क भलए आत मा की चार दराए िार करनी िड़िी ह- (1) ररीयि (2) िरीकि (3)हकीकि(4) माररफि

तन दरात को िार करक ही आत मा और िरमात मा का सकममलन होिा ह तस परकार आत माम िरमात मा का अनभव होन लविा ह दसरी बाि यह ह कक सफी मि म परम का अर महत विरश हपरम ही कमश ह और परम ही धमश ह रामकमार वमाश का कथन ह कक ननस वाथश परम ही सफीमि का परार ह फारसी म कजिन सफी कवव ह व कवविा म परम क अनिररत ि कछ जानि ही नही ह1परम सफीमि म नरा ह खमारी ह परम क नर म साधक को ससार का कछ ध यान नही रहिा कबीर न भलखा ह-

हरर रसपीया जाातनय कबहा न जाय खमार ममििा घामि रह नााही िन की सार2

सफीमि म ईश वर स तरी कि म ह िर कबीर यहा ईश वर िरष कि म ह कबीर क रहस यवाद क बार म आव रामकमार वमाश न भलखा ह कबीर न अिन रहस यवाद क स िष टीकरर म दोनक की अदविवाद और सफीमि की बाि ली ह फलि उन हकन अदविवाद स माया और चचिन िथा सफीमि स परम लकर अिन रहस यवाद की सकषट की हrsquorsquo3

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 102 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-61 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-104

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रहस यवाद म परम का महत विरश स थान ह तसम उिनी जञान की आवश यकिा नही ह कजिन परम की तसभलए कबीर कहि ह- अ कथ कहानी परम की कछ कही न जाई गाग करी सरकरा बठा मसकाई1

परम की कहानी अकथ ह जो उसका आस वाद ल लिा ह वह व व क रत कर खान क अनभव जसा होिा ह कजसका वरशन वह नही कर सकिा तसभलए कबीर क रहस यवाद को भकतिमलक और परममलक रहस यवाद जाना जा सकिा ह

23 कबीर का दाशयतनक ववचार

मानव एक ववचाररील परारी ह ससार म घहटि होन वाल परत यक वनिववचध क परनि जावकक रहिा ह और चचिन क माध यम स रहस य समझन का परयत न करि ह ितिशचाि एक ववचार का जन म होिा ह यही ववचार दरशन का कि धारर करिा ह दारशननक ववचार जब भाव म किािररि होि ह िो भकति का ववषय बनिा ह

दरशन रब द का राकबदक अथश चाकषष परत यकष साकषात कार जानना2 तत याहद ह सामान य कि म परत यक व यकति का कोई न कोई दरशन अवश य होिा ह रास तर क कि म वह रास तर कजसम आत मा अनात मा जीव रहहम परकनि िरष जवि धमश मोकष मानव जीवन क उददश य आहद का ननकिर हो3 अगरजी कोर क अनसार ldquoदरशन एक अध ययन ह कजसम जीवन और जवि क परकनि और अथश का अध ययन ककया जािा हrdquo4सामान य अथश म lsquoदरशनrsquo का परयोव ककसी ववचार या भसदधाि की व याख या िाककश क ियशवकषर अथवा ववभभन न 1जीएनदास लव सागस ऑफ कबीर1994 ि-115 2 काभलक परासाद( स )वहि हहनदी कोर 1992 ि 509 3वही 509 4 The Study of the nature and meaning of universe and the human life- एस हॉनशबीऔतसफोडश लनशर डडतसनरी 2010 ि 1137

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ित व चचिन की परकरिययात क भलए आिा हककि मल कि म यह आत म जञान ित व जञान अथवा िरम ित व क जञान कि म आिा ह यह अनभव का िाककश क अथवा परमािरक मीमासा ह यह ससार क ममश को उदघाहटि करिा ह यह िरष परकनि का जञान ह

भकति काव य म भत ि कववयक न अिन आचायवोप स दारननशक िततववादी भसदधािक का जञान परा ि ककया ह परा ि जञान को उन हकन अिनी रचनात म अनभव क स िर िर उिारा ह भत ि कवव अिनी रचनात क स िर िर िहल रचनाकार ह उस सीध िलर िर दारशननक नही कहा जा सकिा उनक काव य म चचिन भावाभभव यकति की अिकषा वलर ह यदयवि भत ि कवव ककसी न ककसी वष रव आचायश क भरष य मान जाि ह िरन ि उनक काव य म सबदध आचायो क ित ववाद को िाककश क चचिन क कि म िरररि नही ह जहा िक कबीर का परशन ह िो यह कहा जा सकिा ह कक कबीर अचधक स वितर व यकतित व क साधक ह कबीर मलि दारशननक नही ह िरन ि उनक काव य म कई िरह क भसदधािक को दखा जा सकिा ह कबीर ककसी िवश परचभलि ववभरष ट सम परदाय यामिवाद स नही बध थ

रामकमार वमाश न कबीर क दरशन क सदभश म भलखा ह - सि मि का दरशन ककसी ववरष रास तर स नही भलया वया रास तरक म कबीर की आस था नही थी त यककक रास तर एक दकषटकोर ववरष स भलए या कह जाि ह और सापरदानयकिा क आधार िर ही हटक होि हhellip अि सि सपरदाय का दरशन उिननषद भारिीय षडदरशन बलदध धमश सफी सपरदाय नाथ सपरदाय की ववश वजनीन अनभनियक क ित वक को भमलाकर सवह ि हआ ह य ित व सीध रास तर स नही आय वरन रिाकबदयक की अनभनि िला िलकर महात मात की व यावहाररक जञान की कसलटी िर कस जाकर सत सव और वक क उिदरक स

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 16: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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करना िड़ा कबीर न मन को ननयबतरि करन िरमात मा क नाम का स मरर करन आचरर को रदध रखन ववचार और आचरर म एकिा लान सासाररक परलोभनक स अलव रहन सत य को गरहर करन अहहसात मक दकषटकोर को अिनानअहकार को तयावन और जीवन को मत ि होन की आवश यकिा िर जो बार-बार बल हदया ह वह मन क िररष कार क भलए ही होिा ह सब वक की किा स सभव होि ह-

कबीर िीछ लावा जात था लोक वद क साथ आव थ सिवक भमक या दीिक दीया हाचथ1 उियशत ि वववचन स स िष ट ह कक कबीर की साधना क मावशम ववघ न आि ह और उनस ननवकति का उिाय भी बिाि ह (5) िरम सतिा क दरशन का आभास

रहस यवाद म जब कोई साधक माया-मोह िर ववजय परा ि करक मावश क समस ि भलनिक ववघ न को िार कर साधना मावश िर आव बढिा ह वह थोड़ा आध याकतमक ससार म िह च जािा ह साधक क दयदय म जञान ज योनि का िीवर आलोक भर जािा ह तस सासाररक अधकार स दर हदव य रकति का दरशन करन लविा ह कबीर कहि ह- हद छाड़ ड बहहद गया हआ तनरन िर बास का वल ज फल या फल बबन को नीरष दास2

अथाशि म ससीम को िार करक असीम म िह च वया वही मरा राशवि ननवास हो वया वहा मन अनभव ककया कक बबना फल क एक कमल िखला हआ ह तसका दरशन भववान का ननजी दास ही कर सकिा ह तस िरह कबीर सासाररक माया मोह िर ववजय परा ि करक रहहम ज योनि दरशन करन लविा हlsquoरहहम-ज योनिrsquo का दरशन सब नहीबककक कोई साधक ही कर सकिा ह 1मािा परसाद वि कबीर गरथावली 1969 ि- 41 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 58

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(6) वास िववक जञान और परमानभति

जब ककसी साधक को िरम सतिा का आभास होन लविा ह िो उसक दयदय म जञान की ज योनि जलन लविी ह और उस वास िववक ससार का बोध होन लविा ह यही जञान भरभमि परािरयक का मावश-दरशन करिी ह कबीर कहि ह कक कजस उतकटिा और िीवरिा क साथ मन माया-जनय ववषयक म रमिा ह उिनी ही उत कटिा और िीवरिा क साथ यहद वह राम म रम जाए िो वह साधक िारामण डल स भी िर वहा िह च सकिा ह जहा स वह आया ह अथाशि उस रहहम म लीन हो जािा ह- जस माया मन रम या ज राम रमाइ िौ िारामण डल छााड़ड करर जहाा क सो िहाा जाई1

स थायी भमलन

रहस यवाद की अनिम कसथनि आत मा और िरमात मा का स थायी भमलन माना वया ह भमलन की तस अवस था को कबीर न ववववध परिीकक और किकक क माध यम स कहा ह स वय को दकहन बिाि हए कबीर कहि ह कजस परकार एक ित नी अिन िनि क साथ रयन करिी ह उसी परकार आत मा और िरमात मा दोनक एक होकर रयन करि ह‒

बहि हदनन थ परीिम पाए बड घर बठ आए मिहदर मााहह भया उकजयारा ल सिी अपना पीव प यारा2

कबीर न चचर भमलन का किक ववाहहक उत सव क माध यम स व यत ि ककया ह- दलहहन गावहा मिगलाचार हम घरर आय हो परम पररस भरिार| िन रति करर म मन रति करहा पिच िति बरािी|1

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि59 2 वहीि 117

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वववाहोिराि िरम ित व स अदभि भमलन होिा ह कजसस अननवचशनीय आनद की उिलब ध होिी ह कबीर कहि ह भववान की सवनि स म रीिल हो वया ह अब मोह की िाि भमट वई ह अब अदर म साकषात कार हो जान क कारर म राि-हदन सख की ननचध परा ि कर रहा ह हरर सिगति सीिल भया भमटा मोह की िाप तनस बासरर सख तनध य लहयाजब अििरर परकटना आप2

तस िरह आत म ित व और िरम ित व का स थायी भमलन हो जािा ह भत ि और भववान साधक और साध य जीव और रहहम एक हो जाि ह दोनक अमर हो जाि ह

कबीर क कावय म वयति रहसयवादी िररकसथयक का अध ययन करन िर जञाि होिा ह कक उनकी रहसयवाद की अिनी ववरषिाए ह तन िर हहदत क अदविवाद िथा मसलमानक क सफी-मि का परभाव लत हकषि होि ह तनक रहस यवाद म आकसिकिा माधयश भावना अन िमशखी साधना परम ित व भावनात मक सबधक का समावर ह रकर क अदविवाद का परादभाशव 8वी रिाब दी म होिा ह अदविवाद क अनसार आत मा और िरमात मा एक सतिा ह माया क कारर ही िरमात मा क नाम और कि का अकसित व ह वस िि आि मा और िरमात मा एक ही रकति क दो भाव ह जो माया क कारर अलव ह लककन व िन एक ही म भमल जाि ह तस परकरियया को कबीर तस िरह व यत ि करि ह

जल म कि भ कि भ म जल ह बाहहर भीिर पानी फटा कि भ जल जलहह समान यह िि कथो चगयानी3

1 जीएनदास लव स गज ऑफ कबीर1994 ि 39 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 59 3वहीि 128

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जल म भरा घड़ा जल म िर रहा ह तसक बाहरभीिर िानी ह घड़ा (माया) फटन िर जल एक हो जािा ह

ईसा क 8वी रिाब दी म तस लाम धमश क अिवशि तनक िरिरावि आदरो क ववरोध म सफी सपरदाय का उदय हआ सफीमि म बद और खदा का एकीकरर हो सकिा ह िर माया की ववरष चचाश नही ह िरमात मा स भमलन क भलए आत मा की चार दराए िार करनी िड़िी ह- (1) ररीयि (2) िरीकि (3)हकीकि(4) माररफि

तन दरात को िार करक ही आत मा और िरमात मा का सकममलन होिा ह तस परकार आत माम िरमात मा का अनभव होन लविा ह दसरी बाि यह ह कक सफी मि म परम का अर महत विरश हपरम ही कमश ह और परम ही धमश ह रामकमार वमाश का कथन ह कक ननस वाथश परम ही सफीमि का परार ह फारसी म कजिन सफी कवव ह व कवविा म परम क अनिररत ि कछ जानि ही नही ह1परम सफीमि म नरा ह खमारी ह परम क नर म साधक को ससार का कछ ध यान नही रहिा कबीर न भलखा ह-

हरर रसपीया जाातनय कबहा न जाय खमार ममििा घामि रह नााही िन की सार2

सफीमि म ईश वर स तरी कि म ह िर कबीर यहा ईश वर िरष कि म ह कबीर क रहस यवाद क बार म आव रामकमार वमाश न भलखा ह कबीर न अिन रहस यवाद क स िष टीकरर म दोनक की अदविवाद और सफीमि की बाि ली ह फलि उन हकन अदविवाद स माया और चचिन िथा सफीमि स परम लकर अिन रहस यवाद की सकषट की हrsquorsquo3

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 102 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-61 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-104

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रहस यवाद म परम का महत विरश स थान ह तसम उिनी जञान की आवश यकिा नही ह कजिन परम की तसभलए कबीर कहि ह- अ कथ कहानी परम की कछ कही न जाई गाग करी सरकरा बठा मसकाई1

परम की कहानी अकथ ह जो उसका आस वाद ल लिा ह वह व व क रत कर खान क अनभव जसा होिा ह कजसका वरशन वह नही कर सकिा तसभलए कबीर क रहस यवाद को भकतिमलक और परममलक रहस यवाद जाना जा सकिा ह

23 कबीर का दाशयतनक ववचार

मानव एक ववचाररील परारी ह ससार म घहटि होन वाल परत यक वनिववचध क परनि जावकक रहिा ह और चचिन क माध यम स रहस य समझन का परयत न करि ह ितिशचाि एक ववचार का जन म होिा ह यही ववचार दरशन का कि धारर करिा ह दारशननक ववचार जब भाव म किािररि होि ह िो भकति का ववषय बनिा ह

दरशन रब द का राकबदक अथश चाकषष परत यकष साकषात कार जानना2 तत याहद ह सामान य कि म परत यक व यकति का कोई न कोई दरशन अवश य होिा ह रास तर क कि म वह रास तर कजसम आत मा अनात मा जीव रहहम परकनि िरष जवि धमश मोकष मानव जीवन क उददश य आहद का ननकिर हो3 अगरजी कोर क अनसार ldquoदरशन एक अध ययन ह कजसम जीवन और जवि क परकनि और अथश का अध ययन ककया जािा हrdquo4सामान य अथश म lsquoदरशनrsquo का परयोव ककसी ववचार या भसदधाि की व याख या िाककश क ियशवकषर अथवा ववभभन न 1जीएनदास लव सागस ऑफ कबीर1994 ि-115 2 काभलक परासाद( स )वहि हहनदी कोर 1992 ि 509 3वही 509 4 The Study of the nature and meaning of universe and the human life- एस हॉनशबीऔतसफोडश लनशर डडतसनरी 2010 ि 1137

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ित व चचिन की परकरिययात क भलए आिा हककि मल कि म यह आत म जञान ित व जञान अथवा िरम ित व क जञान कि म आिा ह यह अनभव का िाककश क अथवा परमािरक मीमासा ह यह ससार क ममश को उदघाहटि करिा ह यह िरष परकनि का जञान ह

भकति काव य म भत ि कववयक न अिन आचायवोप स दारननशक िततववादी भसदधािक का जञान परा ि ककया ह परा ि जञान को उन हकन अिनी रचनात म अनभव क स िर िर उिारा ह भत ि कवव अिनी रचनात क स िर िर िहल रचनाकार ह उस सीध िलर िर दारशननक नही कहा जा सकिा उनक काव य म चचिन भावाभभव यकति की अिकषा वलर ह यदयवि भत ि कवव ककसी न ककसी वष रव आचायश क भरष य मान जाि ह िरन ि उनक काव य म सबदध आचायो क ित ववाद को िाककश क चचिन क कि म िरररि नही ह जहा िक कबीर का परशन ह िो यह कहा जा सकिा ह कक कबीर अचधक स वितर व यकतित व क साधक ह कबीर मलि दारशननक नही ह िरन ि उनक काव य म कई िरह क भसदधािक को दखा जा सकिा ह कबीर ककसी िवश परचभलि ववभरष ट सम परदाय यामिवाद स नही बध थ

रामकमार वमाश न कबीर क दरशन क सदभश म भलखा ह - सि मि का दरशन ककसी ववरष रास तर स नही भलया वया रास तरक म कबीर की आस था नही थी त यककक रास तर एक दकषटकोर ववरष स भलए या कह जाि ह और सापरदानयकिा क आधार िर ही हटक होि हhellip अि सि सपरदाय का दरशन उिननषद भारिीय षडदरशन बलदध धमश सफी सपरदाय नाथ सपरदाय की ववश वजनीन अनभनियक क ित वक को भमलाकर सवह ि हआ ह य ित व सीध रास तर स नही आय वरन रिाकबदयक की अनभनि िला िलकर महात मात की व यावहाररक जञान की कसलटी िर कस जाकर सत सव और वक क उिदरक स

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

102

वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

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(6) वास िववक जञान और परमानभति

जब ककसी साधक को िरम सतिा का आभास होन लविा ह िो उसक दयदय म जञान की ज योनि जलन लविी ह और उस वास िववक ससार का बोध होन लविा ह यही जञान भरभमि परािरयक का मावश-दरशन करिी ह कबीर कहि ह कक कजस उतकटिा और िीवरिा क साथ मन माया-जनय ववषयक म रमिा ह उिनी ही उत कटिा और िीवरिा क साथ यहद वह राम म रम जाए िो वह साधक िारामण डल स भी िर वहा िह च सकिा ह जहा स वह आया ह अथाशि उस रहहम म लीन हो जािा ह- जस माया मन रम या ज राम रमाइ िौ िारामण डल छााड़ड करर जहाा क सो िहाा जाई1

स थायी भमलन

रहस यवाद की अनिम कसथनि आत मा और िरमात मा का स थायी भमलन माना वया ह भमलन की तस अवस था को कबीर न ववववध परिीकक और किकक क माध यम स कहा ह स वय को दकहन बिाि हए कबीर कहि ह कजस परकार एक ित नी अिन िनि क साथ रयन करिी ह उसी परकार आत मा और िरमात मा दोनक एक होकर रयन करि ह‒

बहि हदनन थ परीिम पाए बड घर बठ आए मिहदर मााहह भया उकजयारा ल सिी अपना पीव प यारा2

कबीर न चचर भमलन का किक ववाहहक उत सव क माध यम स व यत ि ककया ह- दलहहन गावहा मिगलाचार हम घरर आय हो परम पररस भरिार| िन रति करर म मन रति करहा पिच िति बरािी|1

1शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि59 2 वहीि 117

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वववाहोिराि िरम ित व स अदभि भमलन होिा ह कजसस अननवचशनीय आनद की उिलब ध होिी ह कबीर कहि ह भववान की सवनि स म रीिल हो वया ह अब मोह की िाि भमट वई ह अब अदर म साकषात कार हो जान क कारर म राि-हदन सख की ननचध परा ि कर रहा ह हरर सिगति सीिल भया भमटा मोह की िाप तनस बासरर सख तनध य लहयाजब अििरर परकटना आप2

तस िरह आत म ित व और िरम ित व का स थायी भमलन हो जािा ह भत ि और भववान साधक और साध य जीव और रहहम एक हो जाि ह दोनक अमर हो जाि ह

कबीर क कावय म वयति रहसयवादी िररकसथयक का अध ययन करन िर जञाि होिा ह कक उनकी रहसयवाद की अिनी ववरषिाए ह तन िर हहदत क अदविवाद िथा मसलमानक क सफी-मि का परभाव लत हकषि होि ह तनक रहस यवाद म आकसिकिा माधयश भावना अन िमशखी साधना परम ित व भावनात मक सबधक का समावर ह रकर क अदविवाद का परादभाशव 8वी रिाब दी म होिा ह अदविवाद क अनसार आत मा और िरमात मा एक सतिा ह माया क कारर ही िरमात मा क नाम और कि का अकसित व ह वस िि आि मा और िरमात मा एक ही रकति क दो भाव ह जो माया क कारर अलव ह लककन व िन एक ही म भमल जाि ह तस परकरियया को कबीर तस िरह व यत ि करि ह

जल म कि भ कि भ म जल ह बाहहर भीिर पानी फटा कि भ जल जलहह समान यह िि कथो चगयानी3

1 जीएनदास लव स गज ऑफ कबीर1994 ि 39 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 59 3वहीि 128

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जल म भरा घड़ा जल म िर रहा ह तसक बाहरभीिर िानी ह घड़ा (माया) फटन िर जल एक हो जािा ह

ईसा क 8वी रिाब दी म तस लाम धमश क अिवशि तनक िरिरावि आदरो क ववरोध म सफी सपरदाय का उदय हआ सफीमि म बद और खदा का एकीकरर हो सकिा ह िर माया की ववरष चचाश नही ह िरमात मा स भमलन क भलए आत मा की चार दराए िार करनी िड़िी ह- (1) ररीयि (2) िरीकि (3)हकीकि(4) माररफि

तन दरात को िार करक ही आत मा और िरमात मा का सकममलन होिा ह तस परकार आत माम िरमात मा का अनभव होन लविा ह दसरी बाि यह ह कक सफी मि म परम का अर महत विरश हपरम ही कमश ह और परम ही धमश ह रामकमार वमाश का कथन ह कक ननस वाथश परम ही सफीमि का परार ह फारसी म कजिन सफी कवव ह व कवविा म परम क अनिररत ि कछ जानि ही नही ह1परम सफीमि म नरा ह खमारी ह परम क नर म साधक को ससार का कछ ध यान नही रहिा कबीर न भलखा ह-

हरर रसपीया जाातनय कबहा न जाय खमार ममििा घामि रह नााही िन की सार2

सफीमि म ईश वर स तरी कि म ह िर कबीर यहा ईश वर िरष कि म ह कबीर क रहस यवाद क बार म आव रामकमार वमाश न भलखा ह कबीर न अिन रहस यवाद क स िष टीकरर म दोनक की अदविवाद और सफीमि की बाि ली ह फलि उन हकन अदविवाद स माया और चचिन िथा सफीमि स परम लकर अिन रहस यवाद की सकषट की हrsquorsquo3

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 102 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-61 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-104

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रहस यवाद म परम का महत विरश स थान ह तसम उिनी जञान की आवश यकिा नही ह कजिन परम की तसभलए कबीर कहि ह- अ कथ कहानी परम की कछ कही न जाई गाग करी सरकरा बठा मसकाई1

परम की कहानी अकथ ह जो उसका आस वाद ल लिा ह वह व व क रत कर खान क अनभव जसा होिा ह कजसका वरशन वह नही कर सकिा तसभलए कबीर क रहस यवाद को भकतिमलक और परममलक रहस यवाद जाना जा सकिा ह

23 कबीर का दाशयतनक ववचार

मानव एक ववचाररील परारी ह ससार म घहटि होन वाल परत यक वनिववचध क परनि जावकक रहिा ह और चचिन क माध यम स रहस य समझन का परयत न करि ह ितिशचाि एक ववचार का जन म होिा ह यही ववचार दरशन का कि धारर करिा ह दारशननक ववचार जब भाव म किािररि होि ह िो भकति का ववषय बनिा ह

दरशन रब द का राकबदक अथश चाकषष परत यकष साकषात कार जानना2 तत याहद ह सामान य कि म परत यक व यकति का कोई न कोई दरशन अवश य होिा ह रास तर क कि म वह रास तर कजसम आत मा अनात मा जीव रहहम परकनि िरष जवि धमश मोकष मानव जीवन क उददश य आहद का ननकिर हो3 अगरजी कोर क अनसार ldquoदरशन एक अध ययन ह कजसम जीवन और जवि क परकनि और अथश का अध ययन ककया जािा हrdquo4सामान य अथश म lsquoदरशनrsquo का परयोव ककसी ववचार या भसदधाि की व याख या िाककश क ियशवकषर अथवा ववभभन न 1जीएनदास लव सागस ऑफ कबीर1994 ि-115 2 काभलक परासाद( स )वहि हहनदी कोर 1992 ि 509 3वही 509 4 The Study of the nature and meaning of universe and the human life- एस हॉनशबीऔतसफोडश लनशर डडतसनरी 2010 ि 1137

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ित व चचिन की परकरिययात क भलए आिा हककि मल कि म यह आत म जञान ित व जञान अथवा िरम ित व क जञान कि म आिा ह यह अनभव का िाककश क अथवा परमािरक मीमासा ह यह ससार क ममश को उदघाहटि करिा ह यह िरष परकनि का जञान ह

भकति काव य म भत ि कववयक न अिन आचायवोप स दारननशक िततववादी भसदधािक का जञान परा ि ककया ह परा ि जञान को उन हकन अिनी रचनात म अनभव क स िर िर उिारा ह भत ि कवव अिनी रचनात क स िर िर िहल रचनाकार ह उस सीध िलर िर दारशननक नही कहा जा सकिा उनक काव य म चचिन भावाभभव यकति की अिकषा वलर ह यदयवि भत ि कवव ककसी न ककसी वष रव आचायश क भरष य मान जाि ह िरन ि उनक काव य म सबदध आचायो क ित ववाद को िाककश क चचिन क कि म िरररि नही ह जहा िक कबीर का परशन ह िो यह कहा जा सकिा ह कक कबीर अचधक स वितर व यकतित व क साधक ह कबीर मलि दारशननक नही ह िरन ि उनक काव य म कई िरह क भसदधािक को दखा जा सकिा ह कबीर ककसी िवश परचभलि ववभरष ट सम परदाय यामिवाद स नही बध थ

रामकमार वमाश न कबीर क दरशन क सदभश म भलखा ह - सि मि का दरशन ककसी ववरष रास तर स नही भलया वया रास तरक म कबीर की आस था नही थी त यककक रास तर एक दकषटकोर ववरष स भलए या कह जाि ह और सापरदानयकिा क आधार िर ही हटक होि हhellip अि सि सपरदाय का दरशन उिननषद भारिीय षडदरशन बलदध धमश सफी सपरदाय नाथ सपरदाय की ववश वजनीन अनभनियक क ित वक को भमलाकर सवह ि हआ ह य ित व सीध रास तर स नही आय वरन रिाकबदयक की अनभनि िला िलकर महात मात की व यावहाररक जञान की कसलटी िर कस जाकर सत सव और वक क उिदरक स

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

102

वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 18: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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वववाहोिराि िरम ित व स अदभि भमलन होिा ह कजसस अननवचशनीय आनद की उिलब ध होिी ह कबीर कहि ह भववान की सवनि स म रीिल हो वया ह अब मोह की िाि भमट वई ह अब अदर म साकषात कार हो जान क कारर म राि-हदन सख की ननचध परा ि कर रहा ह हरर सिगति सीिल भया भमटा मोह की िाप तनस बासरर सख तनध य लहयाजब अििरर परकटना आप2

तस िरह आत म ित व और िरम ित व का स थायी भमलन हो जािा ह भत ि और भववान साधक और साध य जीव और रहहम एक हो जाि ह दोनक अमर हो जाि ह

कबीर क कावय म वयति रहसयवादी िररकसथयक का अध ययन करन िर जञाि होिा ह कक उनकी रहसयवाद की अिनी ववरषिाए ह तन िर हहदत क अदविवाद िथा मसलमानक क सफी-मि का परभाव लत हकषि होि ह तनक रहस यवाद म आकसिकिा माधयश भावना अन िमशखी साधना परम ित व भावनात मक सबधक का समावर ह रकर क अदविवाद का परादभाशव 8वी रिाब दी म होिा ह अदविवाद क अनसार आत मा और िरमात मा एक सतिा ह माया क कारर ही िरमात मा क नाम और कि का अकसित व ह वस िि आि मा और िरमात मा एक ही रकति क दो भाव ह जो माया क कारर अलव ह लककन व िन एक ही म भमल जाि ह तस परकरियया को कबीर तस िरह व यत ि करि ह

जल म कि भ कि भ म जल ह बाहहर भीिर पानी फटा कि भ जल जलहह समान यह िि कथो चगयानी3

1 जीएनदास लव स गज ऑफ कबीर1994 ि 39 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011 ि 59 3वहीि 128

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जल म भरा घड़ा जल म िर रहा ह तसक बाहरभीिर िानी ह घड़ा (माया) फटन िर जल एक हो जािा ह

ईसा क 8वी रिाब दी म तस लाम धमश क अिवशि तनक िरिरावि आदरो क ववरोध म सफी सपरदाय का उदय हआ सफीमि म बद और खदा का एकीकरर हो सकिा ह िर माया की ववरष चचाश नही ह िरमात मा स भमलन क भलए आत मा की चार दराए िार करनी िड़िी ह- (1) ररीयि (2) िरीकि (3)हकीकि(4) माररफि

तन दरात को िार करक ही आत मा और िरमात मा का सकममलन होिा ह तस परकार आत माम िरमात मा का अनभव होन लविा ह दसरी बाि यह ह कक सफी मि म परम का अर महत विरश हपरम ही कमश ह और परम ही धमश ह रामकमार वमाश का कथन ह कक ननस वाथश परम ही सफीमि का परार ह फारसी म कजिन सफी कवव ह व कवविा म परम क अनिररत ि कछ जानि ही नही ह1परम सफीमि म नरा ह खमारी ह परम क नर म साधक को ससार का कछ ध यान नही रहिा कबीर न भलखा ह-

हरर रसपीया जाातनय कबहा न जाय खमार ममििा घामि रह नााही िन की सार2

सफीमि म ईश वर स तरी कि म ह िर कबीर यहा ईश वर िरष कि म ह कबीर क रहस यवाद क बार म आव रामकमार वमाश न भलखा ह कबीर न अिन रहस यवाद क स िष टीकरर म दोनक की अदविवाद और सफीमि की बाि ली ह फलि उन हकन अदविवाद स माया और चचिन िथा सफीमि स परम लकर अिन रहस यवाद की सकषट की हrsquorsquo3

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 102 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-61 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-104

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रहस यवाद म परम का महत विरश स थान ह तसम उिनी जञान की आवश यकिा नही ह कजिन परम की तसभलए कबीर कहि ह- अ कथ कहानी परम की कछ कही न जाई गाग करी सरकरा बठा मसकाई1

परम की कहानी अकथ ह जो उसका आस वाद ल लिा ह वह व व क रत कर खान क अनभव जसा होिा ह कजसका वरशन वह नही कर सकिा तसभलए कबीर क रहस यवाद को भकतिमलक और परममलक रहस यवाद जाना जा सकिा ह

23 कबीर का दाशयतनक ववचार

मानव एक ववचाररील परारी ह ससार म घहटि होन वाल परत यक वनिववचध क परनि जावकक रहिा ह और चचिन क माध यम स रहस य समझन का परयत न करि ह ितिशचाि एक ववचार का जन म होिा ह यही ववचार दरशन का कि धारर करिा ह दारशननक ववचार जब भाव म किािररि होि ह िो भकति का ववषय बनिा ह

दरशन रब द का राकबदक अथश चाकषष परत यकष साकषात कार जानना2 तत याहद ह सामान य कि म परत यक व यकति का कोई न कोई दरशन अवश य होिा ह रास तर क कि म वह रास तर कजसम आत मा अनात मा जीव रहहम परकनि िरष जवि धमश मोकष मानव जीवन क उददश य आहद का ननकिर हो3 अगरजी कोर क अनसार ldquoदरशन एक अध ययन ह कजसम जीवन और जवि क परकनि और अथश का अध ययन ककया जािा हrdquo4सामान य अथश म lsquoदरशनrsquo का परयोव ककसी ववचार या भसदधाि की व याख या िाककश क ियशवकषर अथवा ववभभन न 1जीएनदास लव सागस ऑफ कबीर1994 ि-115 2 काभलक परासाद( स )वहि हहनदी कोर 1992 ि 509 3वही 509 4 The Study of the nature and meaning of universe and the human life- एस हॉनशबीऔतसफोडश लनशर डडतसनरी 2010 ि 1137

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ित व चचिन की परकरिययात क भलए आिा हककि मल कि म यह आत म जञान ित व जञान अथवा िरम ित व क जञान कि म आिा ह यह अनभव का िाककश क अथवा परमािरक मीमासा ह यह ससार क ममश को उदघाहटि करिा ह यह िरष परकनि का जञान ह

भकति काव य म भत ि कववयक न अिन आचायवोप स दारननशक िततववादी भसदधािक का जञान परा ि ककया ह परा ि जञान को उन हकन अिनी रचनात म अनभव क स िर िर उिारा ह भत ि कवव अिनी रचनात क स िर िर िहल रचनाकार ह उस सीध िलर िर दारशननक नही कहा जा सकिा उनक काव य म चचिन भावाभभव यकति की अिकषा वलर ह यदयवि भत ि कवव ककसी न ककसी वष रव आचायश क भरष य मान जाि ह िरन ि उनक काव य म सबदध आचायो क ित ववाद को िाककश क चचिन क कि म िरररि नही ह जहा िक कबीर का परशन ह िो यह कहा जा सकिा ह कक कबीर अचधक स वितर व यकतित व क साधक ह कबीर मलि दारशननक नही ह िरन ि उनक काव य म कई िरह क भसदधािक को दखा जा सकिा ह कबीर ककसी िवश परचभलि ववभरष ट सम परदाय यामिवाद स नही बध थ

रामकमार वमाश न कबीर क दरशन क सदभश म भलखा ह - सि मि का दरशन ककसी ववरष रास तर स नही भलया वया रास तरक म कबीर की आस था नही थी त यककक रास तर एक दकषटकोर ववरष स भलए या कह जाि ह और सापरदानयकिा क आधार िर ही हटक होि हhellip अि सि सपरदाय का दरशन उिननषद भारिीय षडदरशन बलदध धमश सफी सपरदाय नाथ सपरदाय की ववश वजनीन अनभनियक क ित वक को भमलाकर सवह ि हआ ह य ित व सीध रास तर स नही आय वरन रिाकबदयक की अनभनि िला िलकर महात मात की व यावहाररक जञान की कसलटी िर कस जाकर सत सव और वक क उिदरक स

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 19: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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जल म भरा घड़ा जल म िर रहा ह तसक बाहरभीिर िानी ह घड़ा (माया) फटन िर जल एक हो जािा ह

ईसा क 8वी रिाब दी म तस लाम धमश क अिवशि तनक िरिरावि आदरो क ववरोध म सफी सपरदाय का उदय हआ सफीमि म बद और खदा का एकीकरर हो सकिा ह िर माया की ववरष चचाश नही ह िरमात मा स भमलन क भलए आत मा की चार दराए िार करनी िड़िी ह- (1) ररीयि (2) िरीकि (3)हकीकि(4) माररफि

तन दरात को िार करक ही आत मा और िरमात मा का सकममलन होिा ह तस परकार आत माम िरमात मा का अनभव होन लविा ह दसरी बाि यह ह कक सफी मि म परम का अर महत विरश हपरम ही कमश ह और परम ही धमश ह रामकमार वमाश का कथन ह कक ननस वाथश परम ही सफीमि का परार ह फारसी म कजिन सफी कवव ह व कवविा म परम क अनिररत ि कछ जानि ही नही ह1परम सफीमि म नरा ह खमारी ह परम क नर म साधक को ससार का कछ ध यान नही रहिा कबीर न भलखा ह-

हरर रसपीया जाातनय कबहा न जाय खमार ममििा घामि रह नााही िन की सार2

सफीमि म ईश वर स तरी कि म ह िर कबीर यहा ईश वर िरष कि म ह कबीर क रहस यवाद क बार म आव रामकमार वमाश न भलखा ह कबीर न अिन रहस यवाद क स िष टीकरर म दोनक की अदविवाद और सफीमि की बाि ली ह फलि उन हकन अदविवाद स माया और चचिन िथा सफीमि स परम लकर अिन रहस यवाद की सकषट की हrsquorsquo3

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 102 2शयामसदर दास कबीर गरथावली 2011ि-61 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि-104

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रहस यवाद म परम का महत विरश स थान ह तसम उिनी जञान की आवश यकिा नही ह कजिन परम की तसभलए कबीर कहि ह- अ कथ कहानी परम की कछ कही न जाई गाग करी सरकरा बठा मसकाई1

परम की कहानी अकथ ह जो उसका आस वाद ल लिा ह वह व व क रत कर खान क अनभव जसा होिा ह कजसका वरशन वह नही कर सकिा तसभलए कबीर क रहस यवाद को भकतिमलक और परममलक रहस यवाद जाना जा सकिा ह

23 कबीर का दाशयतनक ववचार

मानव एक ववचाररील परारी ह ससार म घहटि होन वाल परत यक वनिववचध क परनि जावकक रहिा ह और चचिन क माध यम स रहस य समझन का परयत न करि ह ितिशचाि एक ववचार का जन म होिा ह यही ववचार दरशन का कि धारर करिा ह दारशननक ववचार जब भाव म किािररि होि ह िो भकति का ववषय बनिा ह

दरशन रब द का राकबदक अथश चाकषष परत यकष साकषात कार जानना2 तत याहद ह सामान य कि म परत यक व यकति का कोई न कोई दरशन अवश य होिा ह रास तर क कि म वह रास तर कजसम आत मा अनात मा जीव रहहम परकनि िरष जवि धमश मोकष मानव जीवन क उददश य आहद का ननकिर हो3 अगरजी कोर क अनसार ldquoदरशन एक अध ययन ह कजसम जीवन और जवि क परकनि और अथश का अध ययन ककया जािा हrdquo4सामान य अथश म lsquoदरशनrsquo का परयोव ककसी ववचार या भसदधाि की व याख या िाककश क ियशवकषर अथवा ववभभन न 1जीएनदास लव सागस ऑफ कबीर1994 ि-115 2 काभलक परासाद( स )वहि हहनदी कोर 1992 ि 509 3वही 509 4 The Study of the nature and meaning of universe and the human life- एस हॉनशबीऔतसफोडश लनशर डडतसनरी 2010 ि 1137

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ित व चचिन की परकरिययात क भलए आिा हककि मल कि म यह आत म जञान ित व जञान अथवा िरम ित व क जञान कि म आिा ह यह अनभव का िाककश क अथवा परमािरक मीमासा ह यह ससार क ममश को उदघाहटि करिा ह यह िरष परकनि का जञान ह

भकति काव य म भत ि कववयक न अिन आचायवोप स दारननशक िततववादी भसदधािक का जञान परा ि ककया ह परा ि जञान को उन हकन अिनी रचनात म अनभव क स िर िर उिारा ह भत ि कवव अिनी रचनात क स िर िर िहल रचनाकार ह उस सीध िलर िर दारशननक नही कहा जा सकिा उनक काव य म चचिन भावाभभव यकति की अिकषा वलर ह यदयवि भत ि कवव ककसी न ककसी वष रव आचायश क भरष य मान जाि ह िरन ि उनक काव य म सबदध आचायो क ित ववाद को िाककश क चचिन क कि म िरररि नही ह जहा िक कबीर का परशन ह िो यह कहा जा सकिा ह कक कबीर अचधक स वितर व यकतित व क साधक ह कबीर मलि दारशननक नही ह िरन ि उनक काव य म कई िरह क भसदधािक को दखा जा सकिा ह कबीर ककसी िवश परचभलि ववभरष ट सम परदाय यामिवाद स नही बध थ

रामकमार वमाश न कबीर क दरशन क सदभश म भलखा ह - सि मि का दरशन ककसी ववरष रास तर स नही भलया वया रास तरक म कबीर की आस था नही थी त यककक रास तर एक दकषटकोर ववरष स भलए या कह जाि ह और सापरदानयकिा क आधार िर ही हटक होि हhellip अि सि सपरदाय का दरशन उिननषद भारिीय षडदरशन बलदध धमश सफी सपरदाय नाथ सपरदाय की ववश वजनीन अनभनियक क ित वक को भमलाकर सवह ि हआ ह य ित व सीध रास तर स नही आय वरन रिाकबदयक की अनभनि िला िलकर महात मात की व यावहाररक जञान की कसलटी िर कस जाकर सत सव और वक क उिदरक स

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 20: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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रहस यवाद म परम का महत विरश स थान ह तसम उिनी जञान की आवश यकिा नही ह कजिन परम की तसभलए कबीर कहि ह- अ कथ कहानी परम की कछ कही न जाई गाग करी सरकरा बठा मसकाई1

परम की कहानी अकथ ह जो उसका आस वाद ल लिा ह वह व व क रत कर खान क अनभव जसा होिा ह कजसका वरशन वह नही कर सकिा तसभलए कबीर क रहस यवाद को भकतिमलक और परममलक रहस यवाद जाना जा सकिा ह

23 कबीर का दाशयतनक ववचार

मानव एक ववचाररील परारी ह ससार म घहटि होन वाल परत यक वनिववचध क परनि जावकक रहिा ह और चचिन क माध यम स रहस य समझन का परयत न करि ह ितिशचाि एक ववचार का जन म होिा ह यही ववचार दरशन का कि धारर करिा ह दारशननक ववचार जब भाव म किािररि होि ह िो भकति का ववषय बनिा ह

दरशन रब द का राकबदक अथश चाकषष परत यकष साकषात कार जानना2 तत याहद ह सामान य कि म परत यक व यकति का कोई न कोई दरशन अवश य होिा ह रास तर क कि म वह रास तर कजसम आत मा अनात मा जीव रहहम परकनि िरष जवि धमश मोकष मानव जीवन क उददश य आहद का ननकिर हो3 अगरजी कोर क अनसार ldquoदरशन एक अध ययन ह कजसम जीवन और जवि क परकनि और अथश का अध ययन ककया जािा हrdquo4सामान य अथश म lsquoदरशनrsquo का परयोव ककसी ववचार या भसदधाि की व याख या िाककश क ियशवकषर अथवा ववभभन न 1जीएनदास लव सागस ऑफ कबीर1994 ि-115 2 काभलक परासाद( स )वहि हहनदी कोर 1992 ि 509 3वही 509 4 The Study of the nature and meaning of universe and the human life- एस हॉनशबीऔतसफोडश लनशर डडतसनरी 2010 ि 1137

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ित व चचिन की परकरिययात क भलए आिा हककि मल कि म यह आत म जञान ित व जञान अथवा िरम ित व क जञान कि म आिा ह यह अनभव का िाककश क अथवा परमािरक मीमासा ह यह ससार क ममश को उदघाहटि करिा ह यह िरष परकनि का जञान ह

भकति काव य म भत ि कववयक न अिन आचायवोप स दारननशक िततववादी भसदधािक का जञान परा ि ककया ह परा ि जञान को उन हकन अिनी रचनात म अनभव क स िर िर उिारा ह भत ि कवव अिनी रचनात क स िर िर िहल रचनाकार ह उस सीध िलर िर दारशननक नही कहा जा सकिा उनक काव य म चचिन भावाभभव यकति की अिकषा वलर ह यदयवि भत ि कवव ककसी न ककसी वष रव आचायश क भरष य मान जाि ह िरन ि उनक काव य म सबदध आचायो क ित ववाद को िाककश क चचिन क कि म िरररि नही ह जहा िक कबीर का परशन ह िो यह कहा जा सकिा ह कक कबीर अचधक स वितर व यकतित व क साधक ह कबीर मलि दारशननक नही ह िरन ि उनक काव य म कई िरह क भसदधािक को दखा जा सकिा ह कबीर ककसी िवश परचभलि ववभरष ट सम परदाय यामिवाद स नही बध थ

रामकमार वमाश न कबीर क दरशन क सदभश म भलखा ह - सि मि का दरशन ककसी ववरष रास तर स नही भलया वया रास तरक म कबीर की आस था नही थी त यककक रास तर एक दकषटकोर ववरष स भलए या कह जाि ह और सापरदानयकिा क आधार िर ही हटक होि हhellip अि सि सपरदाय का दरशन उिननषद भारिीय षडदरशन बलदध धमश सफी सपरदाय नाथ सपरदाय की ववश वजनीन अनभनियक क ित वक को भमलाकर सवह ि हआ ह य ित व सीध रास तर स नही आय वरन रिाकबदयक की अनभनि िला िलकर महात मात की व यावहाररक जञान की कसलटी िर कस जाकर सत सव और वक क उिदरक स

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 21: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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ित व चचिन की परकरिययात क भलए आिा हककि मल कि म यह आत म जञान ित व जञान अथवा िरम ित व क जञान कि म आिा ह यह अनभव का िाककश क अथवा परमािरक मीमासा ह यह ससार क ममश को उदघाहटि करिा ह यह िरष परकनि का जञान ह

भकति काव य म भत ि कववयक न अिन आचायवोप स दारननशक िततववादी भसदधािक का जञान परा ि ककया ह परा ि जञान को उन हकन अिनी रचनात म अनभव क स िर िर उिारा ह भत ि कवव अिनी रचनात क स िर िर िहल रचनाकार ह उस सीध िलर िर दारशननक नही कहा जा सकिा उनक काव य म चचिन भावाभभव यकति की अिकषा वलर ह यदयवि भत ि कवव ककसी न ककसी वष रव आचायश क भरष य मान जाि ह िरन ि उनक काव य म सबदध आचायो क ित ववाद को िाककश क चचिन क कि म िरररि नही ह जहा िक कबीर का परशन ह िो यह कहा जा सकिा ह कक कबीर अचधक स वितर व यकतित व क साधक ह कबीर मलि दारशननक नही ह िरन ि उनक काव य म कई िरह क भसदधािक को दखा जा सकिा ह कबीर ककसी िवश परचभलि ववभरष ट सम परदाय यामिवाद स नही बध थ

रामकमार वमाश न कबीर क दरशन क सदभश म भलखा ह - सि मि का दरशन ककसी ववरष रास तर स नही भलया वया रास तरक म कबीर की आस था नही थी त यककक रास तर एक दकषटकोर ववरष स भलए या कह जाि ह और सापरदानयकिा क आधार िर ही हटक होि हhellip अि सि सपरदाय का दरशन उिननषद भारिीय षडदरशन बलदध धमश सफी सपरदाय नाथ सपरदाय की ववश वजनीन अनभनियक क ित वक को भमलाकर सवह ि हआ ह य ित व सीध रास तर स नही आय वरन रिाकबदयक की अनभनि िला िलकर महात मात की व यावहाररक जञान की कसलटी िर कस जाकर सत सव और वक क उिदरक स

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

102

वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 22: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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सवहीि हए यह दरशन स वाकजशि अनभनि ह जस सहतरक िरषक की सवचधि मध की एक ब द म समाहहि ह1

रामानद कबीर क वक मान जाि ह यह स िष ट नही ह कक कबीर रामानद जी स कबीर त या गरहर करि ह रामानद क आनद भाषय क आधार िर माना वया ह कक ववभरषटादवि ही रहहम-सतर-सममि ह ित ववाद की दकषट स रामानजम क मि को ही स वीकार करि ह ककन ि उनक कन दर म अननय भकति ही ह हजारी परसाद दवववदी समस ि चचिन क बाद यह स वीकार करि ह कक तस परकार यह अनमान असवि नही ज चिा कक रामानद जी क मि म भकति ही सबस बड़ी चीज थी ित ववाद नही उनक भरष यक म और सपरदाय म अदवि वदाि का िरश समादर ह िथावि व स वय ववभरष टिा दविवाद क परचारक थ तसी िरह उनक भरष यक म कवल एक बाि को छोड़कर अन य बािक म काफी सवितरिा का िररचय िाया जािा ह वह बाि ह अनन य भकतिrdquo2 कबीर न भी अिन आचायश स अननय भकति गरहर करि ह चचिकक न कबीर िर ववभभन न दकषट स ववचार ककया ह बाब श यामसदर दास न रहहमवादी या अदविवादी माना ह- यह रकर का अदवि ह कजसम आत मा और िरमात मा एक मान जाि ह िरन ि बीच म अजञान क आ िड़न स आत मा अिनी िारमचथशकिा की अनभनि हो जािी ह यही बाि कबीर म भी दख चक हrdquo3 हजारी परसाद न दवववदी अिनी स थािना दि हए भलखा ह- कबीर दास न ह सकर जवाब हदया कक भला उन लड़न वाल िडडिक स िछो कक भववान कि स ननकल वया रस स अिीि हो वया वरक क ऊिर उ वया करिययात क िह च क बाहर ही रहा वह अि म आकर सख या म अटक जाएवा जो सबस िर ह वह कथा सख या स िर नही हो सकिा यह कबीर का दविादवि

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि85 2हजारी परसाद दवदी कबीर1990lsquoि-38 3शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि-33

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 23: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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ववलकषर समततववाद ह1िररराम चिवदी कथन ह कक कबीर क मि म जो ित व परकाभरि हआ था वह उनक स वाधीन चचिन का ही िररराम था2 शरी अयोध या भसह उिाध याय हररऔध न भी भलखा ह कक कबीर साहब स वाधीन चचिा क िरष थउन हकन अिन ववचारक क भलए कोई आधार नही ि िा ककसी गरथ का परमार नही चाहा 3 वास िव म कबीर साहब ककसी गरथ आहद ननकिर नही करि ह डॉ राम कमार वमाश का कथन ह वह एक तर िो हहदत क अदविवाद क रियोड म िोवषि ह और दसरी तर मसलमानक क सफी भसदधािक को स िरश करिा ह4

उियशत ि वववचना क आधार िर उनक ववषय म ननम न बाि कही जा सकिी ह-1 कबीरदास एकश वरवादी थ 2कबीरदास रहहमवादी या अदविवादी थ3 कबीरदास दविादवि ववलकषर समततववादी थ 4 कबीरदास स वितर ववचार थ उियशत ि बबन दत िर चचिकक म मितय नही ह कबीर की ववचार िरम िरा का िररराम ह या उनका स वितर ववचार ह तस वववाद म िड़ बबना यह कहना उचचि होवा कक कबीर न ववभभन न परकार क अनभवक को ववचारक को अिन काव य म स थान हदया ह कबीर भाषात की सीमात को बार-बार िार करि ह कफर भी जीवन क ववभभन न धरािलक स िरक िथा वयकतिक साधना क ववभभन न चररक क कारर उनक काव य म ववभभन न िरह क ववचारक का समावर भमल जािा ह डॉ रघवर क रब दक म यह कहा जा सकिा ह कक काव यात मक अभभव यकति म अनभव की समगरिा को दखा जा सकिा ह कजसक ित ववादी चचिन अन िननशहहि हो जािा ह5

1हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 38 2िारररम चिवदी कबीर साहहतय की िरख 2011 ि 89 3आयोघयभसह उिाधयाय कबीर वाचनावली 2004ववरियम सि 49 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि101 5रघवर कबीर एक नई दकषट 2004 ि 68

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

102

वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 24: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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कबीर क काव य म अन िननशहहि दारशननक ववचारक को ननम नभलिखि बबन दत क कि म िरखा जा सकिा हmdash

बरहम ववचार

कबीर क वक रामानद न रहहम को (ननभमतिोिादानकारर रहहम) को माना ह आचायश हजारी परसाद जी भलखि ह रामानद अननय भकति को मोकष का अव यवहहिोिाय माना ह परिकति को मोकष का हि माना ह कमश को भकति का अव माना ह जवि का अभभन न ननभमतिकिादारकारर रहहम को माना ह1 रहहम दो परकार क मान जाि ह- एक सवर और दसरा ननवशर शरनियक क िरररीलन स स िष ट ही जान िड़िा ह कक ऋवषयक क मकसिस क म रहहम क दो स वकि थ एक वर ववश लषर आकार और उिाचध स िर ननवशर ननववशरष ननराकार और दसरा तन सब बािक स यत ि अथाशि सवर सववरष साकार और सोिाचध2 रहहम सवर होि ह या ननवशर तस परश न िर दवववदी जी एक और मि का उक लख करि ह तसक उतिर म वदािी लोव कहि ह कक रहहम अिन-आिम िो ननवशर ननराकारननववशरष और ननकिाचध ही हिरन ि अववदया या वलिफहमी क कारर या उिासना क भलए हम उसम उिाचधयक या सीमात का आरोि करि ह3 रहहम ननवशर या सवर उस िर बहि बहस होिी ह ककि कबीर या सि कवव का रहहम ननवशर ह सि सपरदाय का रहहम एक ह उसका कि और आकार नही ह वह ननवशर और सवर स िर ह वह ससार क कर-कर म ह यह मनि श या िीथश म नही ह वह हमार ररीर म ही ह हमारी परत यक सा स म ह वह अविार लकर नही आिा ह वरन ससार की परत यक वस ि म पर छन न कि स विशमान ह4ननसदह कबीर का रहहम का कि ह न आकार वह ननवशर-सवर स िर ह वह अजन मा अव यत ि ह कजसक न मख ह न 1कबीर हजारी परसाद दवदी1990 ि 86 2 हजारी परसाद दवदी कबीर1990 ि 86 3वही ि 86 4राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 84

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

102

वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 25: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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मस िक न कि ह न ककि जो िष ि क सवध स भी िहला होन क कारर अनि सकष म ह कबीर कहि ह- जाक माह माथा नहीि नाहीि रप करप

पहाप बास ि पािलाऐसा िति अनपrdquo1

रहहम िज स भरा ह ऐसा िज ह जस सतरक की माला हो वह परकार कि ह

पारबरहम क िज का कसा ह उनमान| कहहब कि सोभा नहीि दख याही परवान||rsquo2

स िष ट ह कक कबीर क रहहम ननवशर-सवर स िर ह वह ननरजन अजन मा ह वह िजयत ि ह वह सत य स वकि ह और उसन रहहमाड म अिनी लीला का ववस िार वह सबक अदर ववदयमान रहिा ह सकषि म िारसनाथ निवारी क रब दक म कह िो कबीर का रहहम ननवशर ननराकार अजनमा आचचत य अव यत ि और अलकष य ह3

जीव भारिीय दरशन म आत मा (जीव) क अकसित व को स वीकारा वया ह हजारी परसाद दवववदी कहि ह भारिीय दारशननकक म पराय कोई मिभद नही ह कक आत मा नामक एक स थायी वस ि ह जो बाहरी दश यभाव जवि क ववववध िररविशनक क भीिर स वजरिा हआ सदा एक रस रहिा ह4 कबीर जीवात मा क अलव अकसिि व को स वीकार नही करि ह उनहोन जीवात मा और िरमात मा को एक सतिा माना ह ककि माया क परभाव क कारर दोनक म अिर परिीि होिा ह व कहि ह राबतर क स व न म िारस (रहहम) और जीव म भद रहिा ह जब 1 मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 70 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि58 3राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि36 4कबीरहजारी परसाद दवदी1990 ि 88

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 26: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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िक म सोिा रहिा ह िब दविभाव बना रहिा ह जब जाविा ह िो अभद हो जािा ह यहा िर राबतर अजञानावस था का परिीक ह और जावनि जञान दरा का जावनि अवस था म जीव और रहहम की सतिा एक ह कबीर भलखि ह-

कबीर स वपन रखण क जीय म छक

ज सोऊा िो दोइ जणाा ज जागा िो एक1

कबीर जीव को रहहम का अर मानि हए कहि ह- कह कबीर इह राम कौ अिस जर-कागद पर भमट न यिस2

व कहि ह कक कजन िच ित वक म ररीर बना ह उन ित वक का आहद कारर भी वही ह उसी न जीव को कमश बधन स यत ि ककया ह उसी का सब म अकसितव ह व कहि ह- पिच िि भमभल का काया कीनी िि कहा ि कीनर करम बिध ि जीउ कहि हौ करमहह ककतन जीउ दीन र हरर महह िन ह िन महह हरर ह सरब तनरििर सईरrsquorsquo3 कबीर कहि ह यह ररीर िच ित व ररीर जब नष ट होिा ह िब जीव और िरम ित व का भद नष ट हो जािा ह व कहि ह- जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी4 माया कबीर दास न माया को िररहहम की एक रकति माना ह जो ववश वमयी

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 66 2राम कमार वमाश(स) सि कबीर ि 168 3वही ि 87 4शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 128

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

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नारी क कि म परकट होकर सम िरश जीवक को भरभमि कर विी ह रामकमार वमाश कबीर क सदभश म भलखा ह कक ldquoसि मि म माया अदवि माया की भा नि भरमात मक और भमथ या िो ह ही ककि तसक अनिररत ि यह सकरियय कि स जीव को सत िथ स हटान वाली भी ह तस दकषट म सि सपरदाय म माया का मानवीकरर ह एक नारी क कि म ह जो चवनी ह डाककनी ह सबको खान वाली ह1 कबीर कहि ह कक बतरवरमयी माया क वरक का वरशन करना सवशथा कह न ह त यककक काटन िर वह हरी-भरी हो जािी ह यहद सीचक िो कम हला जािी ह माया सि रज िम स उत िन न एक वकष ह दख और सिोष तसकी राखाए ह रीिलिा तसक सिन म भी नही ह- कबीर माया िरबर बिबबध का साखा दख सििाप सीिलिा सवपन नहीि फल फीको ितन िाप2

कबीर कहि ह कक माया डाककनी ह विराचनी हयह सार ससाररक परािरयक को खा जान वाली ह-

कबीर माया ढ़ाकडी सब ककसही कौ खाइ दााि उपाणौपापडी ज सििौ नडी जाइ3

कबीर माया स दर रहन की सलाह दि ह कबीर कहि ह कक यहद माया सल बार भी बा ह दकर बलाए कफर भी उसस नही भमलना चाहहए क यककक तसन नारद जस मननयक को भी ननवल भलया िो तस िर कस भरोसा ककया जाय साधारर जीव को वह कस छोड़ सकिी ह

1राम कमार वमाश कबीर एक अनरीलन 1998ि 85 2जीएनदास भमकसटक स गज ऑफ कबीर1994 ि-42 3वही ि-42

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 28: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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कबीर माया कजतन भमल सौ बररयाि द बााहह नारद स मतनयर भमल ककसौ भरौसो तयााह1

जगि भलनिक कि स दकषटवोचर होन वाला विड जवि ह कबीर की दकषट म जवि का कोई स वितर अकसित व नही ह कवल माया क कारर तसकी सतिा दीखिी ह जवि नश वर ह चचल ह वनिरील ह कबीर कहि ह कक सिरश एक घड़ क समान जो रहहम किी जल म रखा ह और अन दर बाहर वही एक रहहम किी जल भरा हआ ह ककन ि जस ही घड़ा फटिा ह िो उसका जल बाहर क जल म भमल जािा ह वस ही यह नाम किाि मक जवि भी अि म उसी रहहम म लीन हो जािा ह

जल म कम भ कम भ म जल ह बाहर भीिरर पातन फटा कम भ जल जलहहि समाना यह िथ कहयो जञानी2

मोकष

कबीर मोकष क भलए मकति ननवाशर अभय-िद िरम िद जीवनि आहद रब दक का परयोव करि ह कबीर न आत मा का िच ित वक स मत ि होकर रहहम म लीन होना या आत मा और िरमात मा की दविानभनि का समा ि हो जाना ही मकति की दरा माना ह कबीर कहि ह कक जहा िरम ज योनि परकारमान ह वहा तकनदरय माध यमक स न िह चा जा सकिा ह और न दखा जा सकिा ह वहा ककसी ललककक साधन स नही िह चा जा सकिा िानी और बफश क किान िरर की परकरियया क समान ववरदध चिन य माया स सबभलि होकर बदध जीव हो जािा ह और आत मबोध या जञान परा ि होन िर वह माया आहद स यत ि होकर ववरदध चिन य या रदध रहहम हो जािा ह तनम ित वि भद नही रहिा ह कबीर कहि

1शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 75 2वही ि 128

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 29: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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ह- पााणी ही ि हहम भया हहम हव गया बबलाइ जो कछ था सोई भया अब कछ कहया न जाय1

उियशत ि वववचन स स िष ट होिा ह कक कबीर दास क काव य म अनक िरसिर ववरोधी दरशन ित वक का भी समावर दकषटवि होिा ह

24 कबीर का समाज दशयन

ककसी रचनाकार की समाज दकषट उसकी वचाररक परनिबदधिा और सामाकजक िकषधरिा स ही बनिी ह तस दननया क सामान िर एक ऐसा सामाज हजो रचनाकार की रचना म सकजि होिा ह रचनाकार क स िर िर कबीर की िकषधरिा उसी जनिा स ह जो धमश कमशकाड और बाहय आडबर म बरी िरह फ सी हई ह तस धमश काड और बाहय आडबर को िहचानन की दकषट उन ह अदविवाद स भमलिी ह कजसक परनि वचाररक कि स परनिबदध ह यह अदविवादी दकषट समाज म सबको एक समान या बराबर मानिी ह

साहहत य का मख य परयोजन और परकायश सामाकजक आलोचना भी हसाहहत य सामाकजक परवकतियक क सबध म पराय कभी भी िरी िरह िटस थ नही हो सकिा वह ियाशवरर का सवकषर करिा ह और सामाकजक परवकतियक की ननवरानी भी सामाकजक रीनि-नीनि चाह िरानी हो या नयी उसकी हट िरी का ववषय बनिी ह2 कबीर जो मलि भत ि थ िर उनकी भकति को अभभवयकति दन स जो साहहत य उिजा ह वह साहहत य भी अिन समय क सवालक स टकरान वाला साहहत य ह

1मोहन भसह ककी कबीर2001 ि- 28 2शयामाचरर दब िरम िरा तनिहास और सस कनि1991 ि- 154

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 30: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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कबीर क समय को दख िो कबीर भारिीय तनिहास क कजसयव म िदा हए वह यव मकसलम काल क नाम स जाना जािा ह उनक जन म स बहि िहल हदक ली म मकसलम रासन स थाविि हो चका था कबीर क समय िक उतिर भारि की आबादी का एक अ छा-खासा भाव मसलमान हो चका था स वय कबीर कजस जलाहा िररवार म िदा हए थ वह एक दो िीढी िहल मसलमान हो चकी थी1

तस लाम क भारि म आन क फलस वकि हहद धमश की जो िनशव याख या रक हई उनम हहन दत को और भी हहद बना हदया हहद धमश िीथश वरि उिवास और होमाचार की िरिरा उसकी कन दर बबद हो वई तस समय िवश और उतिर म सबस परबल सपरदाय नाथ िथी योचवयक का थाववववध भसवदधयक क दवारा व काफी सम मान और सभरम क िातर बन वए थ य वरािीि भरव या ननवशर-िततव क उिासक थ कछ काल क तस लामी ससवश क बाद य लोव धीर-धीर मसलमानी धमश-मि की तर झकन लव िर तनक सस कार बहि हदनक िक बन रह जब व तसी परकरियया स वजर रह थ उसी समय कबीर का आववभाशव हआ था2 कबीर िर तसका जबरदस ि परभाव दखन को भमला ह कबीर न तन भसदधक एव नाथक की िरह वरशव यवस था वरबराबरी को चनलिी दी वोरखनाथ क समय स ही नाथ िथी लोव हहदत और मसलमानक क धाभमशक िाखड वाहय आडबर जाििाि की कटटरिा सामाकजक कह िवाद तत याहद क िखलाफ आदोलन चला रह थ तस आन दोलन की बावडोर नाथिचथयक फकीरक क हाथ म थी नाथिचथयक का यह आन दोलन सामिवाद क ऐसो- अराम राहखची स लकर उसक उन िमाम उिादानक क िखलाफ था कजसस जनिा का रोषर हो रहा था कबीर की समाज दकषट क अन ि सतर नाथो को तस परनिरोध म खोजा जा सकिा ह

1राजककरोर (स)कबीर की खोज ि- 53 2हजारी परसाद दवदी कबीर 1990 ि 139

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 31: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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भकति आदोलन अिन समय क सामाकजक-आचथशक राजनीनिक एव धाभमशक कसथनियक स टकराहट स उत िन न हआ था वह रदध कि स धाभमशक आदोलन नही था क दामोदरन भलखि ह कक भकति आन दोलन क रचनाकारक (कबीर आहद) न सास कनिक कषतर म राष रीय नवजावरर का कि धारर ककया सामाकजक ववषयवस ि म व जानिपरथा क आचधित य और अन याय क ववरदध अतयि महत विरश ववदरोह क दयोिक थ तस आदोलन न भारि म ववभभन न राष रीय तकातयक क उदय को नया बल परदान ककया साथ ही राष रीय भाषात और उसक साहहत य की अभभववदध की मा व भी पररस ि ककया व यािारी और दस िकार सामिी रोषर का मकाबला करन क भलए तस आन दोलन स परररा परा ि करि थ यह भसदधान ि ईश वर क सामन सभी मनष य कफर ऊ ची जानि क हक अथवा नीची जानि क समान ह तस आन दोलन का ऐसा कन दर बबन द बन वया कजसन िरोहहि ववश और जानि परथा क आिक क ववरदध सघषश करन वाल आम जनिा क व यािक हहस सक को अिन चारक तर एक जट ककयाrdquo1

कबीर क सामन एक तर हहद समाज था िो दसरी िरफ मकसलम समाज कबीर दोनक समाजक क धाभमशक आडम बर एव िाखण ड क िखलाफ खड़ थ धमश उनक भलए एक मातर सत य था ककन ि हहद -मकसलम धमश म व भद नही मानि थ व एकश वरवादी थ कजसक सदभश म तरफान हबीब भलखि ह कक वास िव म कबीर ऐस एकश वरवाद की स थािना करि ह कजसम ईश वर क परनि िरश समिशर िो ह िरन ि सार धाभमशक अनष ानक को नकारा वया ह और तस िरह वह कटटर तस लाम स बहि आव ननकल वया ह कबीर क भलए ईश वर स एकाकार होन का अथश मनष यक का एक होना ह और तसभलए वहा रदधिा और छआछि की परथा को सम िरश कि स स िष ट रब दक म नकारा वया ह िथा सब िरह क अनष ानक को अस वीकार ककया वया ह2 कबीर कहि ह ndash

1क दामोदरन - भारिीय चचन िन िरम िराि -315 2तरफान हबीब - साम परदानयकिा एव सस कनि क सवाल ि- 23

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

93

कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 32: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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ldquoतया अज जप मिजन कीएा तया मसीति भसरनाएि|

हदल महह कपट तनवाज गजार तया हज काव जाय||rdquo1

कबीर क समय म समाज म वरशव यवस था जानि-भद छआ-छि का जबदस ि बोल बाला था| कबीर न उसका परनिवाद ककया ह| व कल िररवार क शरष िा क आधार िर अिन को शरष मान लन वालो िर िीखा व यव करि ह-

ऊा च कल त या जनभमयाा ज करणीि ऊा च न होई सोवन कलस सर भरया साधा तनिदया सोई2

भकति काव य म िलसीदास न कजस िरह कवविावली म ितकालीन यथाथश को उकरा ह उसस कही वहर अथो म कबीर अिन समय क यथाथश को रच रह थ कबीर क समय का समाज धनी और वरीब क बीच बटा हआ था ककसी क िास अतयचधक धन था िो ककसी को दो जन की रोटी भी नसीब नही होिी थी यह महम मद िवलक का समय था कजसक बार म क एम अररफ न भलखा ह कक चार मबतरयक म स परत यक को परनिवषश 20000 स 40000 टका भमलि थ सचचवालय क कमशचारी जो लवभव 300 थ कम स कम 10 हजार टका परनिवषश िाि थ उनम स कछ को 50 हजार टका भी भमलिा था3 यह उस समय का सच था उसी समय म एक वरीब जलाहा िररवार म कबीर िदा हए थ उनक भलए िट काटना मकशकल हो वया था अिनी दररदरिा क सदभश म कबीर न भलखा ह कक- भख भगति न की ज यह माला अपनी लीज

हौ मािगो सििन रना म नाहीि ककसी का दना

माधो कस बन िमसिग आप न दउ ि लवउ मिग||

1िारसनाथ निवारी(स) कबीर गरथवली1961ि103 2शयामसदर दास कबीर गरथवली 2011 ि 85 3क एम अररफ हहन दस िान क ननवाभसयक का जीवन और उनकी िररकसथनिया 2006 स- 158

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 33: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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कबीर को अस वीकार क साहस वाला कवव कहा जािा ह उनक अन दर अिनी ित कालीन समाज क उन परनिकरिययावादी िततवक को अस वीकार कर दन का साहस था जो समाज को िीछ ल जािी थी यह अस वीकार ही कबीर को ननवशर सि क कि म उनको अिनी अलव िहचान दिा ह ििीस करोड़ दवी-दविात और दभसयक अविारक वाल दर म उन ह एकश वरवादी होन का हलसला परदान करिा ह- सार अविारक और दवी-दविात का ननषध करि हए उन ह ईश वर-रहहम-अकलाह राम-रहीम स उस एक क ही अनक नामक को जोड़िा ह यह एकश वरवाद ही उन ह मकसजद महदर काबा-कारी िीथश वरि-रोजा-उिवास-समाज-बदवी सबस अलव-घर घर म विण ड-विण ड म और दननया जहान म उन ह दखन और िान का ववश वास दिा ह1

कबीर अिन समय एव समाज क कट आलोचक ही नही बककक समाज को लकर स व न दरष टा भी हउनक भति मन म भारिीय समाज का एक पराकि ह कजस िर व ववजन क साथ काम कर रह थ व मसलमान होकर भी असल म मसलमान नही थ व हहद होकर भी हहद नही थ व साध होकर भी योवी (अगरहस थ) नही थ व वष रव होकर भी वष रव नही थ2

तस परकार कबीर का अिन समाज क परनि दकषट कोर वजञाननक एव व यवकसथि था वो ककसी परकार क बाहय आडबर िथा रोषर क िखलाफ खड़ थ अि म तस सन दभश म हजारी परसाद दवववदी न भलखा भी ह कक कबीरदास ऐस ही भमलन बबन द िर खड़ थ जहा एक तर हहन दत व ननकल जािा था दसरी तर मसलमानत व जहा एक तर जञान ननकल जािा ह दसरी तर अभरकषा जहा एक तर योवमावश ननकल जािा ह दसरी तर भकति मावश जहा एक तर ननवशर भावना ननकल जािी ह दसरी तर सवर साधना उसी पररस ि चलराह िर

1भरवकमार भमशर भकति आन दोलन और भकति काव य-2010 ि- 107 2हजारी परसाद दवववदी हहन दी साहहत य उदभव और ववकार ि- 77

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

102

वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 34: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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व खड़ थ व दोनक को दख सकि थ और िरस िर ववरदध हदरा म वय मावो क वरदोष उन ह स िष ट हदखाई द जाि थ1

25 कबीर की अभभवयिजना शली

कबीर मलि भत ि थ िर तस भकति साधना म उन हकन जो कछ कहा उस कथन क भलए उन हकन जो भाषा परयोव की वह कवविा की कसलटी िर उ च कोहट की ह उन हकन अनजान म ही कवविा क उ च भरखर को छ भलया ह आचायश हजारी परसाद दवववदी भलखि ह कक हहदी साहहत य क हजार वषो क तनिहास म कबीर जसा व यकतित व लकर कोई लखक उत िन न नही हआ मस िी फत कड़ना स वभाव और सब कछ डाट फटकार कर चल दन वाली िज न कबीर को हहदी साहहत य का अदवविीय व यकति बना हदया ह उनकी वािरयक म सबकछ को छकर उनका सवशजयी व यकतित व ववराजिा ह कबीर की वारी का अनकरर नही हो सकिा अनकरर करन की सभी चष टाए व यथश भसदध हई ह तसी व यकतित व क कारर कबीर की उकतिया शरोिा को बलिवशक आकष ट करिी ह तसी व यकतित व क आकषशर को समालोचक सभाल नही िािा और खीझकर कबीर को कवव कहन म सिोष िािा ह ऐस आकषशक वत िा को कवव न कहा जाए िो और त या कहा जाए2 कबीर की कवविाई को दखि हए ऐसा लविा ह कक कबीर को कवविा की रास तरीय परराली का जञान था िर यह सही नही वास िव म वह उनक अनभव की उिज थी उन हकन कवविा भलखन की परनिजञा करक अिनी बाि नही कही थी उनका कवव कि घलए म भमली हई वस ि ह उनकी छदक योजना उकति वचचत य और अलकार ववधान िरश कि स स वभाववक और परयत नसाचधि ह काव य कह ियक क व न जानकार थ न कायल3

1 हजारी परसाद दवववदी कबीर ि 77 -78 2वही ि170-171 3वही ि171

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

Page 35: अध्ा 2 – की का काव् : अ ु ूति औ अभ व् क्ति 21 की की क्ति ावनाshodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/24613/8/08_chapter

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तस परकार कबीर की कवविा परयत न साध य न होकर अयत नसाचधि ह अभभव यजना क अनक कलात मक ित व कबीर की कवविा म सहज भाव स आि ह लककन यह ध यान रखना होवा कक िर भकतिकाल म यहद कबीर कजिन भत ि क कि म चचचशि ह उिन ही कवव क कि म भी व अनभनि को अभभव यत ि करन क भलए भाषा की सजशना करि ह तसीभलए भाषा क सजशक कवव ह कजसक सदभश म आचायश हजारी परसाद दवववदी न भलखा ह कक भाषा िर कबीर का जबरदस ि अचधकार था व वारी क डडत टटर थ कजस बाि को उन हकन कजस कि म परकट करना चाहा ह उस उसी कि म भाषा स कहलवा भलया- बन वया ह िो सीध सीध नही िो दररा दकर भाषा कबीर क सामन कछ लाचार सी नजर आिी ह1

बड़ा रचनाकार भी वही होिा ह जो भाषा और भाव म सामयिा स थाविि कर ल अथाशि अिन भावक को अभभव यत ि करन क भलए सही भाषा की िलार कर सक मकति बोध न सजन क िीन कषरक की चचाश करि हए ककसी भी साहहत यकार क भलएिीसर कषर को महत विरश माना ह- कला का िहला कषर ह जीवन का उतकट िीवर अनभव कषर दसरा कषर ह तस अनभव का अिन कसकि-दखि हए मलक स िथक हो जाना और ऐसी फन टसी का कि धारर कर लना मानो वह फन टसी अिनी आ खक क सामन ही खड़ी हो िीसरी और अनिम कषर ह तस फन टसी क रब द बदध होन की परकरियया का आरभ और उस परकरियया की िररिराशवस था िक वनिमानिातस परकार कला क िीसर कषर म मल दवद ह भाषा िथा भाव क बीच2 भाषा और भाव क दवदव क उिराि जो कवविा उिजिी ह वह कालजयी कवविा होिी ह कबीर की कवविा कालजयी कवविा तन ही अथो म ह कक उन हकन भाषा को अिन भावक क अनसार िाल भलया था व कजस भाषा भाषी कषतर म जाि थ वहा की भाषा म व उकतिया कहा करि थ

1हजारी परसाद दवववदी कबीरि170 2मकतिबोध रचनावली-मकतिबोध ि 90

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

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तसी भलए कबीर की भाषा क सदभश म ननरशय करना टढी खीर ह कबीर की रचना म कई भाषात क रब द भमलि ह िरि भाषा का ननरशय अचधकिर रब दक िर ननभशर नही ह भाषा क आधार िर करिययािद सयोजक रब द िथा कारक चचन ह ह जो वात य ववन यास की ववरषिात क भलए उत िरदायी होि ह कबीर म कवल रबद ही नही करिययािद कारक चचन हाहद भी कई भाषात क भमलि ह करियया िदक क कि म अचधकिर रहजभाषा और खड़ी बोली क ह कारक चचन हक म क सब सा आहद अवधी क ह को रहज का ह और थ राजस थानी का|1 यदयवि कबीर खद कहि ह कक मरी बोली िरबी ह

ldquoबोली हमरी परब िाहह न चचनह कोई हमरी बोली सो लख जो परब का होयldquo2

लककन यह ध यान दना होवा कक कबीर न अिन को कवल िरबी बोली िक सीभमि नही रखा बककक ऐसी सब बोभलयक का परयोव ककया कजसस उनकी बानी लर- लर क साधत क भलए सहज परषरीय बनिी कबीर जब हहद िडडिक को बाि करि ह िो फारसी भमचशरि हहदी परयत ि करि ह उनक िदक म यहद बवाली करिययाकि आनछनक आहद भमलि ह िो राजस थानी और लहदा क कि भी िाय जाि ह3 तस िचमल िखचड़ी भाषा का कारर भी यही ह कक व दर-दर िक सिो क साथ सत सव ककया करि थ कछ अलव-अलव बोली बानी क िद दखि ह तसस कबीर की भाषा को स िष टिा स समझा जा सकिा ह 1 खड़ी बोली िथा उदश भमचशरि कि दरषटवय ह - ldquoहमन ह इश क मस िाना हमन को हाभशयारी तया रह आजाद या जग स हमन दतनया स यारी त याrdquo4

1कबीर गरथावली-श यामसदर दास ि 45 2 राम ककरोर रमाशकबीर गरथावली2010 ि 90 3परभाकर माचव कबीर ि 36 4हजारी परसाद दवववदी कबीर 1990 ि127

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

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2िरबी भोजिरी बबहारी क साथ कई बोभलयक का मल भमलिा ह- ldquoमोरी चनरी म परर गयो दाग वपया पााच िि की बनी चनररया सोलह स बिद लाग कजया यह चनरी मर मक ि आई ससरा म मनआा खोय हदयाrdquo1

3 कबीर क कावय म अषडडया जीभडड़या तत याहद िजाबी रब दक क साथ िड़या करियया िर राजस थानी परभाव भी भमलिा ह- ldquoअिखखयाा िो झााई पडी पिथ तनहारर तनहारर जीभड़डयाा छाला पडया नाम पकारर पकाररrdquo2

4 कबीर क यहा अरबी फारसी रब दक की भरमार ह जस ननमन िद म दखा जा सकिा ह -

ldquoपिजर जभस करद दसमन मरद करर पमाल भभस ि हसकाा दोजगाा दिदर दराज हदवाल पहनाम परदा ईि आिम जहर जिगम जालrdquo3

कबीर की तस भाषा वववध य का कारर दराटन ह व िर दर म घमि रह िढ भलख नही थ तसीभलए व बाहरी परभावक क ज यादा भरकार हए भाषा एव व याकरर की कसथरिा उनम नही भमलिी यह भी सभव ह कक उन हकन जान बझकर अनक परािक क रब दक का परयोव ककया हो अथवा रब द भण डार क कमी कारर कजस भाषा का सना- सनाया रब द सामन आया उस उन हकन उस कवविा म रख हदया ह कल भमलाकर कबीर की भाषा को ध यान स िरख िो रहजभाषा अवधी मचथली भोजिरी खड़ी बोली फारसी अरबी तत याहद बोभलयक एव

1कबीर-हजारी परसाद दवववदी1990ि 151 2 जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-106 3शयामसदर दास कबीर गरथवली2011 ि-179

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

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भाषात क परयोव दखन को भमलि ह कबीर क रब द चयन की कषमिा िर तसभलए किई नही सदह ककया जा सकिा कक व िढ भलख नही थ उन हकन भावक क उत कट अभभव यकति क भलए उस उत कटिा को अभभव यत ि करन वाल रब दक िक िह चि ह जस नीच हदय जा रह िद म कबीर ददश िीर िीड़ा तत याहद रब दक स कही आव जाकर ददश क टीस को अभभव यत ि करन क भलए िलफ रब द का परयोव करि ह जो िलफ म ददश की टीस ह वह और रब दक म नही आ सकिी थी- िलफ बबन बालम मोर कजया हदन नहीि चन राि नहहि तनिदया िलफ िलफ क भोर ककयाrdquo1

कबीर न अिनी कवविा म परिीकक का खब परयोव ककया ह उनक दवारा परयत ि अचधकार परिीक दरशन एव योव की िरिरा स आए ह कबीर न आध याकतमक अनभनियक स बोधवम य बनान क भलए परिीकक का परयोव ककया ह तड़ा विवला नाड डयक क भलए ववा-यमना तड़ा विवला और सषम ना क भमलन स थल क भलए बतरवरी रन य चरिय क भलए आकार मन क भलए मव ररक मस जीव क भलए िारधी रहहमनाड़ी क भलए बाबी अनाहिनाद क भलए सबद वासना क भलए सविशरी आहद ऐस सकड़क परिीक ह कजन ह रास तरीय िरिरा क माध यम स आसानी स समझा जा सकिा ह2 कबीर अिनी मलभलक परनिभा स अिनी रचना म उियशत त ा परिीकक का सयोजन करि ह

1) ldquoकाह री नलनी ि कमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानी जल म उिपति जल म बास जल म नलनी िोर तनवासrdquo3

1जी एन दास लव स गज आ फ कबीर ि-41 2 राम ककरोर रमाश कबीर गरथावली 2006 ि 95 3शयामसदर दासकबीर गरथावली2011ि -41

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

101

परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

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2) ldquoअििर गति अतन अतन बाणी गगन गपि मधकर मध पीवि

सगति सस भसवजाणी1

कबीर छदरास तर स अनभभजञ थ यहा िक की व दोहक को विवल की खराद िर न चढा सक डफली बजाकर वान म जो रब द कजस कि म ननकल वया वही ीक था मातरात क घट-बढ जान की चचिा व यथश थी िर साथ ही कबीर म परनिभा थी मलभलकिा थी2 उन हकन सािखया दोहा छद म रमनी म कछ चलिाई क बाद एक दोहा िथा रमनी िद रली म भलखा छद कबीर क भलए एक साधन मातर था साध य नही तसीभलए कबीर न उस िर कोई ववरष ध यान नही हदया दोहा- बभलहारी गर आपण दयौ हाडी क बार कजनी मतनष म दविा करि न लागी बारldquo3

कबीर क िदक को राव-राचवननयक क सहयोव स वाया जा सकिा ह कबीर क िद वायन क भलए आज क सदभश काफी लोक वपरय हए कबीर न कछ लोक छदक का भी परयोव अिनी कवविा म ककया राव वलड़ी का यह िद दख- ldquoदलहहनी गावहा मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटकrdquo4

कबीर न जानबझ कर नही बककक अनजान म ही अलकारक का जबरदस ि परयोव अिनी कवविा म ककया ह अनपरास दष टाि अन योकति ववभावना उिमा सावकिक तत याहद अलकार उनक वपरय अलकार ह- 1 िरषोिम अगरवाल अकथ कहानी परम की ि426 2श यामसदर दासकबीर गरथावली2011 ि 44 3वही ि-49 4 वहीि307

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

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1) ldquoसनि न छाड सििई ज कोहटक भमल असिि चिदन भविगा बहठया सीिलिा न िजििldquo1(दष टािि अलिकार) 2) ldquoकाह र नभलनी ि ककमहलानी िर ही नाभल सरोवर पानीrdquo2

कबीर की उलटबा सीrsquo परभसदध ह वस lsquoउलटबा सीrsquoकी व यत िकति अभी िक सदहास िद ही ह सहजयाननयक क यहा स चली आ रही lsquoउलटबा सीrsquoकी िरम िरा कबीर क यहा आकर ववकभसि होिी ह तसक भलए परयत ि भाषा को सध या भाषा कहा जािा ह उलटवासी को कबीर न उलटा वद कहा ह िारसनाथ निवारी न ि िररराम चिवदी न तसकी व यत िकति की दो सभावनात का सकि ककया ह एक तस उलटा िथा अर स भमलाकर बना हआ बिाया जा सकिा ह कजसक अनसार तसका िात ियश उस रचना स होवा कजसक ककसी न ककसी अर म उलटी बाि भमलिी ह दसरी सभावना क सबध म चिवदी जी कहि ह कक उलटबा सी रब द क तस अथश का समथशन उस उलटा एव बा स रब दक दवारा ननभमशि मानकर भी ककया जा सकिा ह- िरन ि यहद तसक मल कि की कक िना तसक अनस वार को हटा कर कवल उलटवासी मातर कि म की जाय िो तसका िात ियश उस रचना स भी हो सकिा ह जो उसक वकवास ललटवास आहद क समान ककस उलटवास रब द क आधार िर ननभमशि होन क कारर व यथश की उलट-िलट सचचि करन वाल उदाहररक स भरी हो3

ldquoअिबर बरस धरिी भीज बझ जााण सब कोई धरिी बरस अिबर भीज बझ बबरला कोईrdquo4 कबीर की कवविा का रास िा भी उनक व यकतित व की िरह सिाट न होकर उबड़-खाबड़ ह कजस िर चलना उनकी कवविाई क वास िववक ममश को समझना ह 1 श यामसदर दासकबीर गरथावली2011ि87 2 जयदव भसह कबीर वाडन मय खड-2 (सबद)2002 ि 104 3 िारसनाथा निवारी कबीर वारी ि 129 4श यामसदर दास कबीर गरथावली2011ि 154

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

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परिीक िथा उलटबासी जस परयोव क बाद कबीर की कवविा म बबब धभमशिा भी उत कष ट कोहट की ह कजस कवव म बबब सजशनात मक रकति अचधक होिी ह उसका काव य उिना ही मानभसक बोधवम य बनिा ह कबीर न भी आत मा और िरमात मा जस अवोचर ित व को अनक बबम बक दवारा दश यवि करि ह कबीर बबम बक का चयन लोक क िररवर स करि ह व लोक क िर िकषी वनस िनि कवष सामाकजक रीनि-ररवाज सस कार आहद क दवारा बबब का सजन करि ह उनकी बबब ननधान की परकरियया अचधकिर किक िथा उिमानक िर आधाररि ह परस िि िथा अपरस िि चचतरक दवारा भी व भाव बबब रहि ह कबीर दास क ननम न िद को दखा जा सकिा ह कजसम उन हकन लोक बबब क दवारा अिनी आध याकतमक मान यिात को ननकविि करि ह दलहहनी गावह मिगलचार हम घरर आए हौ राजा राम भरिारटक

िन रति करर म मन रि कररहा पिच िि बरािी राम दव मोर पाहान आय म जोबन ममािीrdquo1

अिः सिषट ह कक कबीर भाषा सजशक कवव ह व अिन भावक की िरश अभभवयकति क भलए भाषा की िलार करि ह कबीर की कवविा वसि और कि म एककििा सथाविि करिी ह उनकी कवविाई कक यही ववरषिा भी ह

ननषकषश कि म हम कहा सकि ह कक कबीरदास भकतिकाल की जञानमावी राखा क परनिननचध कवव ह उनकी भकति का मल ितव परम ह जो समिशर िर आधाररि ह कबीर की भकति िर नारदीय भकति और शरीमदभाववि की गयारह आसकतियक का परभाव ह कबीर क कावय म साधनातमक और भावनातमक रहसयवाद ह कबीर साधनातमक रहसयवाद को भसदधक और नाथक स गरहर कराि ह जबकक भावनातमक रहसयवाद को सकफयक स कबीर क दरशन िर एक िरफ

1हजारी परसाद दवववदी कबीर1990 ि 81

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह

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वषरव क अदविवाद अहहसा और परवकति िो दसरी िरफ तसलाम क एकशवरवाद का परभाव ह कबीरदास न जानि-िानि ऊच-नीच छआ-छि आहद का िरजोर ववरोध ककया व धाभमशक- कमशकाड वाहय-आडबर और सापरदानयकिा आहद स आजीवन लड़ि रह कबीर की भाषा सधतकड़ी ह अथाशि िचमल िखचड़ी हकबीर की दकषट म अनभनि महतविरश ह अभभवयति कलरल िो उसकी अनचारी ह लोक रभलयक का परयोव कबीर क कावय की एक महतव महतविरश ववरषिा ह