भारत का संविधान, िृवतिक आचारनीवत · this book...

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  • भारत का संविधान, िवृतिक आचारनीवत और मानि अवधकार

  • ॐ सह नािित।ु

    सह नौ भनुकु्।

    सह िीययं करिािह।ै

    तेजवसि नािधीतमसत ुमा विवद्षाि ह।ै

    ॐ शावनतः शावनतः शावनतः।।

    ह ेप्रभ ु! आ्प हम दोनों (गरुु-वशष्य) की रक्ा करें, हम दोनों का ्पोषण करें,

    हम दोनों को शवक् प्रदान करें,

    हमारा ज्ञान तेजमयी हो, और हम वकसी से द्षे न करें,

    ॐ, शावनतः। शावनतः। शावनतः।।

    — तैवतिरीय उ्पवनषद्

  • भारत का संविधान, िवृतिक आचारनीवत और मानि अवधकार

    प्रिीणकुमार मले्लल्लीसहायक प्रोफ़े सर, मसैरू विश्वविद्ालय, मसैरू

  • Copyright © Praveenkumar Mellalli, 2017

    All rights reserved. No part of this book may be reproduced or utilized in any form or by any means, electronic or mechanical, including photocopying, recording or by any information storage or retrieval system, without permission in writing from the publisher.

    Originally Published in 2015 in English bySAGE Publications India Pvt Ltd as Constitution of India, Professional Ethics and Human Rights

    This edition published in 2017 by

    SAGE Publications India Pvt LtdB1/I-1 Mohan Cooperative Industrial AreaMathura Road, New Delhi 110 044, Indiawww.sagepub.in

    SAGE Publications Inc2455 Teller RoadThousand Oaks, California 91320, USA

    SAGE Publications Ltd1 Oliver’s Yard, 55 City RoadLondon EC1Y 1SP, United Kingdom

    SAGE Publications Asia-Pacific Pte Ltd3 Church Street #10-04 Samsung HubSingapore 049483

    Published by Vivek Mehra for SAGE Publications India Pvt Ltd, typeset in 12.5/15 pt Kokila by Diligent Typesetter India Pvt Ltd, Delhi and printed at Repro India Ltd., Mumbai.

    ISBN: 978-93-866-0207-7 (PB)

    Translator: Nisha Sharma SAGE Team: Syed Husain Naqvi, Vinayak Dubey

  • म़ेऱे माता और विता तथा

    इस़े विष्ाििू्वक िढ़ि़े िालों करो समवि्वत

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  • विषय सचूी

    तावलकाओ ंकी सचूी ixवचत्ों की सचूी xiप्सताििा xiiiिसुतक करो िढ़ि़े ह़ेत ुविशा-वििदेश xvल़ेखक िररचय xviiआभाररोवति xix

    अनुभाग I भारत के सवंिधान का पररचय 1

    1 2 3

    संविधान की संकल्पना 3संविधान का वनमामाण 5संविधान की प्रमखु विशषेताए ँ 10

    अनुभाग II सिैंधावनक ढांचा 19

    4 5 6 7

    भारतीय संविधान की प्रसतािना 21म्ूल अवधकार और उनकी सीमाए ँ 25राजय नीवत के वनदशेक तति 35म्ूल कतमावय 39

    अनुभाग III सघं विधावयका, राजय विधानमंडल और भारत में वनिावाचन प्रवरिया 41

    8 9

    10

    संसद 43राजय विधानमंड्ल 55भारत में वनिामाचन प्रवरिया 60

    अनुभाग IV सघं कायवापावलका और राजय कायवापावलका 65

    1112131415161718

    राष्ट्र्पवत 67उ्पराष्ट्र्पवत 77राजय्पा्ल 80प्रधानमतं्ी 86मखुयमतं्ी 89संघीय मवंत््पररषद 91राजय मवंत््पररषद 95भारत के महानयायिादी और राजय का महावधिक्ा 98

  • अनुभाग V उचचतम नयायालय और उचच नयायालय 101

    1920

    उचचतम नयाया्लय 103उचच नयाया्लय 109

    अनुभाग VI स्ानीय शासन और सहकारी सवमवतयाँ 113

    21 22

    भारत में स्ानीय शासन: ्पंचायतें और नगर ्पाव्लकाए ँ 115सहकारी सवमवतयाँ 123

    अनुभाग VII सवंिधान के सशंोधन और आपातकालीन प्रािधान 129

    2324

    संविधान में संशोधन और महति्पणूमा संशोधन (42िाँ, 44िाँ, 74िाँ, 76िाँ, 86िाँ और 91िाँ) 131आ्पातका्लीन प्रािधान 135

    अनुभाग VIII समाज के कमजोर िगवा के वलए सिैंधावनक प्रािधान 139

    25 अनसुवूचत जावतयों, अनसुवूचत जनजावतयों, अनय व्पछडे िगगों, मवह्लाओ ंऔर बचचों हते ुविशषे उ्पबंध 141

    अनुभाग IX मानि अवधकार 147

    26 27

    मानि अवधकार: अ म्ा, ्पररभाषाए ँऔर विवशष्ट मदु् े 149मानि अवधकार: विवध वनमामाण और राष्ट्रीय मानि अवधकार आयोग 152

    अनुभाग X अवभयांवरिकीय नीवत 159

    28 29 30 31

    अवभयांवत्कीय नीवत का कायमाक्ेत् और प्रयोजन 161इजंीवनयरों के उतिरदावयति और उतिरदावयतिों की बाधाए ं 170जोवखम, सरुक्ा और इजंीवनयरों की जिाबदहेी 176इजंीवनयररंग में ईमानदारी, वनष्ा और विश्वसनीयता 186

    िररवशष्ट I: संघ, राजय और समितती सचूी की विषय-िसत ु 195िररवशष्ट II: श़्ेणी अिकु्रम 203

    viii भारत का संविधाि, िवृतिक आचारिीवत और मािि अवधकार

  • ताव्लकाओ ंकी सचूी

    तावलका रि. शीरवाक प.ृरि.

    2.1 संिैधावनक महति्पणूमा ्पडाि और भारत में वरिविश शासन के दौरान उनके महति्पणूमा प्रािधान 7

    2.2 संविधान सभा की महति्पणूमा सवमवतयाँ और उनके अधयक् 9

    3.1 स्ोत जहाँ से प्रािधान गहृीत वकए गये हैं और भारतीय संविधान में उनका योगदान 15

    5.1 छह म्ूल अवधकारों का संवक्प्त वििरण 34

    8.1 संसद में राजयों और कें द्र शावसत प्रदशेों को सीिों का आबंिन 51

    8.2 ्लोक सभा अधयक्ों की सचूी 52

    8.3 ्लोक सभा के उ्पाधयक्ों की सचूी 53

    8.4 राजय सभा के सभा्पवतयों की सचूी 54

    8.5 राजय सभा के उ्प-सभा्पवतयों की सचूी 54

    10.1 भारत के मखुय वनिामाचन आयकु्ों की सचूी 63

    10.2 भारत में आम चनुािों ्पर सरसरी नजर 64

    11.1 भारत के राष्ट्र्पवतयों की सचूी 75

    12.1 भारत के उ्प-राष्ट्र्पवतयों की सचूी 79

    14.1 भारत के प्रधानमवंत्यों की सचूी 88

    19.1 भारत के मखुय नयायमवूतमायों की सचूी 107

  • वचत्ों की सचूी

    वचरि रि. शीरवाक प.ृरि.

    1.1 भारत के संविधान की आधारभतू संकल्पना 4

    3.1 संघीय सरकार और एकातमक सरकार की अिधारणा का वचत्ण 11

    30.1 एक द्ुपवहया िाहन मोिर बाइक को चा्ल ूकरने की समसया का फालि ट्री विशे्षण 179

  • प्रसतािना

    मैं यह ्पसुतक प्रसततु करते हुए अतयनत प्रसननता महससू कर रहा हू।ँ ्पसुतक को, छात्ों के व्लए अवधक ्पररष्कृत अधययन सामग्ी प्रदान करके ्परीक्ा उतिीणमा करने में उनकी सहायता करने हते ुत्ा कुश्लतम और अतयवधक प्रभािी ढंग से और िह भी सर्लतम श्ैली में उद्शेय और विषय के ्लक्य को सफ्लता्पिूमाक हावस्ल करने के प्रयोजन से व्लखा गया ह।ै

    मैं व्पछ्ेल सात िषगों में इस विषय के सा् स्ुपररवचत हो गया हू।ँ वसवि्ल सेिा के एक प्रा्थी के रू्प में, मैंने अ्पने दृढ़प्रवतज्ञ सिाधयाय के माधयम से इस विषय में गहन ज्ञान और समझ को विकवसत वकया ह।ै मैंने व्पछ्ेल छह सा्ल तक वसवि्ल सेिा के उममीदिारों, बी.ई. के छात्ों और अनय छात्ों के बीच अतयनत उतसाह के सा् इस विषय का अधया्पन वकया ह।ै इस प्रकार, इस विषय से संबद्ध मरेे उचच सतर के अधययन, ज्ञान, समझ और अनभुि ने मझु ेइस ्पसुतक को व्लखने में अतयवधक मदद की ह।ै

    छात्ों की ्परीक्ा की आिशयकताओ ंत्ा विषय के ्पाठ्यरिम के उद्शेयों और ्पररणामों के बीच एक प्रभािशा्ली संत्ुलन बनाये रखना, इस ्पसुतक को व्लखते समय मरेे सममखु आने िा्ली प्रमखु कवठनाइयों में से एक ्ा। मैंने इस ्पसुतक की संरचना, सामग्ी और प्रसतवुतकरण में एक अवभनि रणनीवत का प्रयोग वकया ह,ै वजससे मझु ेउ्पयुमाक् कवठनाइयों ्पर वनयंत्ण ्पाने में सफ्लता्पिूमाक मदद वम्ली ह।ै मैंने ्पाठ्यरिम के सबुोध वनरू्पण हते ुअ्पनी ्परूी कोवशश की ह ैऔर जहाँ भी आिशयकता ्पडी, स्पष्ट और आसान प्रसतवुतकरण के व्लए वचत्ों और ताव्लकाओ ंका प्रयोग वकया ह।ै

    मझु े्पणूमा विश्वास ह ैवक यह ्पसुतक छात्ों को ्परीक्ा उतिीणमा करने में सहायक होकर और इस तरह एक आसान तरीके से ्पाठ्यरिम के उद्शेयों और ्पररणामों को ्परूा करने में अतयंत उ्पयोगी होगी।

    मैं सभी रचनातमक विप्पवणयों के प्रवत बहुत ही उदार हू ँऔर इस ्पुसतक के ्पाठकों की ओर से सभी महति्पूणमा सुझािों का सिागत करता हू।ँ

    ‘अतं तो शरुुआत से तय ह’ै, इसव्लये अधययन में एक अचछा अतं ्पाने हते ुएक अचछी शरुुआत करते हैं। आ्पको अधययन के व्लए शभुकामनाए!ं

    प्रिीणकुमार मेलललली