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    पा य म अ भक प स म त अ य ो. (डॉ.) नरेश दाधीच नविृ तमान कुलप त वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा (राज थान)

    संयोजक / सद य सयंोजक डॉ. बी. अ ण कुमार सह आचाय,राजनी त व ान वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    सद य ो. (डॉ.) एम.एल. शमा

    आचाय,गांधी अ ययन के पंजाब व व व यालय, चंडीगढ़

    ो. आर.एस. यादव वभागा य (राजनी तक व ान) एव ं नदेशक, गांधी अ ययन के कु े व व व यालय, कु े

    ो. के.एस. भारती वभागा य (गांधी एवं वचार) ट .के.एम. नागपुर व व व यालय, नागपुर

    ो. एम.एल. शमा आचाय,गांधी अ ययन के पंजाब व व व यालय, चंडीगढ़

    ो. एन. राधाकृ णन ्पूव अ य गाधंी मृ त एव ंदशन स म त राजघाट, नई द ल

    ो. पी. मो टयानी शां त एव ंसंदभ नवारण वभाग गुजरात व यापीठ,अहमदाबाद गुजरात

    स पादक एवं पाठ लेखक स पादक डॉ. बी. अ ण कुमार सह आचाय,राजनी त व ान वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    इकाई लेखक इकाई सं या इकाई लेखक इकाई सं या डॉ. बी. अ ण कुमार सह आचाय,राजनी त व ान वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    1,2,3,4 डॉ. राधाकृ ण या याता, राजनी त व ान, साभरलेख

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    डॉ. ेम आन द म ा सहायक आचाय, शाि त शोध सं थान गुजरात व यापीठ,अहमदाबाद

    5 डॉ. एल.आर. गजुर सह आचाय, राजनी त व ान वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

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    डॉ. पकंज गु ता या याता, राजनी त व ान एल.बी.एस. राजक य महा व यालय, कोटपुतल

    6 ो. (डॉ.) एम.के. घड़ो लया आचाय(सेवा नवृ त) वधमान महावीर खुला व व व यालय,कोटा

    12,13

    डॉ. हु कमा राम सथुार या याता, राजनी त व ान राजक य महा व यालय, बाड़मेर

    7 ो. एन. राधाकृ णन ्पूव अ य गाधंी मृ त एव ंदशन स म त राजघाट, नई द ल

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    डॉ. राजेश शमा सहायक आचाय, राजनी त व ान राज थान व व व यालय, जयपुर

    8 डॉ. सतंोष बकाया या याता, राजनी त व ान एस.एस.जे. राजक य महा व यालय, भरतपुर

    डॉ. फूल सहं गजुर या याता, राजनी त व ान राजक य महा व यालय, झालावाड़

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    ो. द प सहुानी अ य , राजनी त व ान वभाग राजक य पी.जी. महा व यालय, मंडसौर, म य देश

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    अकाद मक एवं शास नक यव था ो.(डॉ.) वनय पाठक

    कुलप त वधमान महावीर खुला व व व यालय,कोटा

    ो. (डॉ.) बी.के. शमा नदेशक,संकाय वभाग

    वधमान महावीर खुला व व व यालय,कोटा

    ो.(डॉ.) पी.के. शमा नदेशक, े ीय सेवाए ं

    वधमान महावीर खुला व व व यालय,कोटा

    पा य म उ पादन योगे गोयल

    सहायक उ पादन अ धकार , वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    उ पादन : अ ैल 2013 ISBN - 13/978-81-8496-378-6 इस साम ी के कसी भी अंश को व. म. खु. व., कोटा क ल खत अनुम त के बना कसी भी प मे ‘ म मयो ाफ ’ (च मु ण) वारा या अ य पुनः तुत करने क अनुम त नह ं है। व. म. खु. व., कोटा के लये कुलस चव व. म. खु. व., कोटा (राज.) वारा मु त एवं का शत

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    GP-06 वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा

    वषय सूची गाँधी एवं समकाल न व व इकाई सं या इकाई का नाम पृ ठ सं या

    इकाई - 1 गाँधी क विै वक ासं गकता 6—18 इकाई - 2 भूम डल करण एव ंगाधँी 19—32 इकाई - 3 आतंकवाद क सम या एव ंगाँधी 33—41 इकाई - 4 मानवा धकार तथा गाँधी 42—54 इकाई - 5 वत ता, अ धकार एव ंकत य और गाधँी 55—63 इकाई - 6 समानता पर गाधँी के वचार 64—82 इकाई - 7 गाँधी एव ंसामािजक याय 83—105 इकाई - 8 गाँधी एव ंनार वमश 106—120 इकाई - 9 गाँधी और सा दा यक स भाव 121—130 इकाई – 10 टाचार क सम या और गांधी 131—141 इकाई – 11 गांधी एव ंरा य एक करण 142—160 इकाई – 12 वके कृत नयोजन एव ंगाधँीवाद ि टकोण 161—178 इकाई – 13 ामीण अथ यव था का पनुगठन और गाधँी 179—189 इकाई – 14 ि थर वकास एव ंपयावरण और गाधँी 190—204 इकाई – 15 अ हसंा मक संघष नवारण एव ंगाधँी 205—215

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    इकाई 1 गाँधी क विै वक ासं गकता

    इकाई क परेखा 1.0 उ े य 1.1 तावना 1.2 समकाल न व व क सम याएं 1.3 आधु नक संसार के लए गाँधीवाद का अथ 1.4 गाँधीजी के श द म 1.5 विै वक सम याएं और गाँधीवाद समाधान

    1.5.1 मनु य का आ मबल 1.5.2 अ हसंा का अमोघ अ 1.5.3 गाँधीवाद आ थक स ा त 1.5.4 वै ा नक मशीनीकरण और गाँधी 1.5.5 पयावरणीय चुनौ तया ंऔर गाँधी 1.5.6 रा का आपसी अ व वास 1.5.7 स या ह और गाँधी 1.5.8 वसुधैव कुटु बकम 1.5.9 गाँधी और उनके स ा त का सनेमा म च ांकन 1.5.10 महा मा गाँधी अ तरा य परु कार और दवस 1.5.11 गाँधी क वचारधारा पर अ तरा य भाव 1.5.12 अ तरा य यि त व और गाँधी

    1.6 साराशं 1.7 अ यास न

    1.0 उ े य इस इकाई के अ ययन प चात व याथ :-

    विै वक सम याओं के बारे म जान सकगे। गाँधीवाद को समझ सकगे। महा मा गाँधी के वचार क विै वक ासं गकता क जानकार ा त कर सकगे।

    1.1 तावना बना कसी यास के गाँधीवाद दशन वत फूत भाव से परेू व व म सा रत हो रहा

    है। महा मा गाँधी क विै वक वीकायता तथा लोक यता लगातार बढ़ रह है। इसका कारण यह है क व व क मौजूदा सम याओं के समाधान के िजतने भी तौर तर के है, उनक सीमाएं

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    तथा न सहायता बार बार, हो रह है। आज संसार िजन चुनौ तय का सामना कर रहा है, वह नाना प लये हु ए है। जहाँ टाचार एव ंशासन सम याओं ने राजनी तक े म दखल दया है वह ंभूख, गर बी, बेरोजगार जैसी सम याएं आ थक े म गई है। अनै तकता तथा हसंा ने मानवीय मू य तथा संवेदनाओं पर कुठाराघात कया है, वह ं जातीय संघष ने मनु य के सामािजक सरोकार को जकड़ने म कोई कसर नह ंछोडी है। ये सम याएं केवल आज क नह ंहै। 19वीं तथा 20 वी ंशता द से इनका अि त व नरंतर बना हुआ है। आज वै ा नक वकास तथा तकनीक ान के कारण इन सम याओं म और वृ हु ई है।

    ऐसे म गाँधी क विै वक छ व और उनके दशन क उपयो गता तथा ासं गकता वत: ह प ट हो जाती है। गाँधीवाद वचार क शि त इस त य म न हत है क वे हम अ न चय तथा न सहायता क ि थ त म भी े रत करत ेहै। वे हम नभयता, आ मशि त, आ मो सग क नै तक शु चता, शां त क सावभौ मकता तथा अं तम प से उसक जीत, स य और अ हसंा के साथ ह अं तम प से मानव आ मा क अजेयता क श ा देते है।

    1.2 समकाल न व व क सम याएं आज के दौर ने मानवता के सामने अनेक चुनौ तया ंखड़ी कर द है। मनु य के बदलत े

    जीवन तर ने यापक प से हमारे नै तक मू य , ि टकोण तथा व वास क जड़ो को खोखला करना शु कर दया है। मनु य भौ तकवाद यव थाओं के इतना अधीन हो गया है क मानवीय मू य के अि त व का खतरा उ प न हो गया है। भौ तकवाद ने मनु य को इतना जकड़ लया है क इस बधंन से बाहर आने का माग भी दखाई नह ंदे रहा है। व व समुदाय के सामने सम याओं और चुनौ तय क एक ऐसी ल बी फेह र त है, जो मनु य को मनु य व से वलग करने का य न कर रह है। विै वक आतंकवाद और जलवाय ुप रवतन जैसे खतरे व व समुदाय के लए बहु त परुाने नह ं है कंत ुइन खतर का भाव अ य धक यापक तथा द घ है। साथ ह जातीय संघष का व तार, पयावरण का हास, गर बी, लगं असमानता, बेरोजगार क बढ़ती सं या, पयावरण के ास से उ प न वा य संबधंी मु ,े यु , लोग का व थापन, बार बार होने वाला ऊजा संकट आ द ऐसे संकट है जो व व के कसी एक देश के लए नह ं वरन स पणू व व के लए च ता का वषय है अथात उपयु त सभी सम याएं विै वक चतंाएँ है।

    समकाल न समय तथा समाज क ऐसी चुनौ तपणू ि थ त ने मनु य के जीवन के राजनै तक, आ थक, सामािजक, सां कृ तक, धा मक तथा नै तक सभी प को अ य धक भा वत कया है। जैसे-जैसे मनु य ग त और वकास क ओर बढ रहा है, इन चुनौ तय का

    आवरण भी उतना ह व ततृ होता ' रहा है। उपभो तावाद सं कृ त तथा यि तगत वकास क इ छा ने मनु य के पार प रक आ मीय संबधं पर कुठराघात कया है। हसंा तथा आतंकवाद के इस दौर म मनु य शां त क लालसा तो अव य ह रखता है कंत ुशां त ा त करने के यास को लेकर द मत है।

    इस संकट से भी अ धक सम याजनक बात इन चुनौ तय के नपटने के तौर ' क सीमाएं है। भाव असी मत हो सकत े है कंत ु उपाय क सीमा है और उसी सीमा म हम

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    समाधान खोजने का भी करना चा हये कंत ुमनु य का आ धप यवाद ि टकोण इन सीमाओं को समझने को तैयार नह ं है। तकनीक मताएं मनु य को तथाक थत अजेयता का आभास करा रह है कंत ुहम यह बात अ छ तरह समझ लेनी चा हये क सैकड़ सीमाओं को ख म कर देने पर भी आतंकवाद तथा त हसंा के सहारे आतंकवाद को ख म करके शां त को था पत नह ं कया जा सकता।

    आज व व समुदाय के सामने इस बात का अ य धक दबाव है क वह जलवाय ुप रवतन से उ प न होने वाले काबन उ सजन को सी मत कर। ऐसे साधन-संसाधन का योग कर जो जलवाय ु प रवतन को भी कम कर सके, साथ ह जलवाय ु प रवतन से होने वाले दु भाव को भी कम कर सके। ले कन व व क बढ़ती आबाद और बढती आबाद क बढती इ छाओं और लालसाओं के कारण व व के सी मत संसाधन व व समुदाय को जलवाय ुप रवतन से होने वाले दु भाव से सुर त रखने के लए पया त नह ंहै।

    व व म व भ न तर पर व भ न कार के संघष हो रहे है। त दन कसी न कसी प म मानवता शमसार हो रह है। स पणू व व भूख, गर बी, बेरोजगार जैसी चुनौ तय से

    सामना कर रहा है। गर बी और भूख से ता ड़त यि त असहाय होकर कह ं न कह ंगलत माग का चयन करने के लए मजबरू हो रहा है। ऐसे म हसंा को साधन के प म अपनाने से भी उसे कोई हच कचाहट नह ंहो रह है। छोटे तथा थानीय तर क हसंा ह प रव तत होकर धीरे-धीरे आतंकवाद का प धारण कर लेती है। आतंकवाद ग त व धय के सचंालन म ाकृ तक संसाधन का हास तो हो ह रहा है, साथ ह मनु य के बीच कभी न ख म होने वाल कटुता भी ज म ले रह है। जातीय संघष इस हद सीमा तक बढ़ चुके है क व व का कोई भी देश इन संघष से अपने आप को मु त नह ं रख पा रहा है। इन संघष का भाव मनु य के स पणू यि त व पर ि टगोचर है। संक ण मान सकता के दायरे म मनु य छोट -छोट चुनौ तय का सामना करने म भी स म नह ंहो रहा है जब क खा य संकट, ऊजा संकट तथा मानवा धकार का उ लंघन जैसी सम याएं व व समुदाय के सामने सुरसा क तरह मु ंह खोले खड़ी है।

    आतंकवाद, ऊजा तथा खा य संकट, जलवाय ु प रवतन, गर बी, भूख, बेरोजगार , मानवा धकार उ लंघन, जातीय संघष आ द इन सभी सम याओं म कुछ बात सामा यत: अ त न हत है। पहल बात जो इन सभी म सामा य है वह यह है क ये सभी विै वक चतंाएँ है। दसूर बात यह है क इन सभी सम याओं के के य त व म मानव जा त है, फर चाहे वह ल य के प म हो या कारण के प म। तीसर मह वपणू बात है महा मा गाँधी, य क इन सभी सम याओं के त उनका ि टकोण एक बेहतर समाधान तुत करता है। गाँधीजी के ि टकोण का चाहे हम कसी भी प म व लेषण कर, हम ात होगा क सार प म उनका

    ल य सदैव मानव हत ह रहा है।

    1.3 आधु नक संसार के लए गाँधीवाद का अथ महा मा गाँधी ने अपने नाम के साथ कभी भी कसी 'वाद' क थापना म व वास

    नह ं कया कंत ु फर भी उनक वचारधारा से उ प न अ ु त भाव ने उनक वचारधारा को

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    'गाँधीवाद' नाम दे दया। 20 वीं शता द से ह अ तरा य यव थाओं म सुधार क बात चल रह है। कई संगठन तथा धाराएं इस दशा म काय भी कर रह है कंत ुकोई भी उपाय विै वक तर पर चर थायी शां त था पत करने म सफल नह ंहो पाया। प रणाम व प, इस वतमान

    शता द म गाँधीवाद क ासं गकता न ववाद बन गई है। गाँधीवाद का के य मू य अ हसंा है िजसका थम और अं तम उ े य व व म शां त क थापना करना है विै वक शंकाओं तथा वाद- ववाद के इस यगु म गाँधीवाद क सफ ासं गकता नह ंहै बि क सम याओं के समाधान के प म यह दशन एक अ नवाय आव यकता भी बन गया है। मानव समाज क आधारभतू सम याओं के लए गाँधी आधारभूत समाधान तुत करत ेहै। गाँधीवाद मानवीय सम याओं का हल तुत करने के कम म एक शा वत स य है। इस लए इन चुनौ तय का सामना तथा सम याओं का नदान दोन ह मनु य के ह उ तरदा य व है।

    कुछ लोग इस बात का भी तक देते है क आधु नक सम याओं को आधु नक उपाय से भी हल कया जा सकता है, फर गाँधीवाद तर के म अलग या है। इस न का उ तर यह है क इन सम याओं का आधु नक हल भले ह मानव केि त हो कंत ुये सम त उपाय मनु य के बाहर नयं ण पर केि त है जब क गाँधीवाद उपाय मनु य के आंत रक प रवतन पर केि त है। गाँधीवाद तर के से सम या का द घका लक तथा थायी उपाय खोजा जा सकता है।

    गाँधीवाद का सार त व है मानवीय आचरण तथा कृ त के सभी आयाम के बारे म गाँधी क गहर समझ। गाँधी मनु य के महान वै ा नक थे। उ चत नै तक वकास का अभाव मनु य म कई क मय को ज म देता है ले कन साथ ह भ व य म सुधार क संभावनाओं को भी साथ लेकर चलता है। य द मनु य अ छे से बरेु क ओर फसल सकता है तो बरेु से अ छ दशा क ओर बढ़ने क संभावना भी उतनी ह सश त है। यि तय के लए नै तक सुधार क ये संभावना ह गाँधी का मु य भरोसा है। उनके लए सामािजक पनुरचना का ारं भक बदं ुयि त है।

    1.4 गाँधीजी के श द मे महा मा गाँधी ने 1942 म कहा- ' 'सव मुख वचारणीय मनु य है और कसी भी

    मामले म अपे त भी। अत: मानव समुदाय क स नता और उसका परूा मान सक तथा नै तक वकास होना चा हये। मनु य म आ म ान क मौ लक इ छा का संतुलन समाज क सेवा करने क भावना से कया जाना चा हये। '' यि तवाद क नदंा करत ेहु ए उ ह ने 1939 म कहा था क - ' ' वछंद यि तवाद जंगल जानवर के काननू जैसा है। '' य य प गाँधी सामािजक समूहवाद के भी खलाफ थे य क यह यि त क वत ता तथा उसके वकास का गला घ ट देता है। वा तव म गाँधी समाज तथा यि तय के बीच पणू एक करण के प धर थे। उ ह ने 1946 मे सामािजक एक करण के ि टकोण को प ट करत े हु ए कहा था - ' 'यह (भावी विै वक समाज) एक महासागर य वतृ क तरह होगा िजसके के म ऐसा यि त होगा जो हमेशा अपने गाँव के हत म नजी ाथ मकताओं को समा त करने को तैयार होगा और वे गाँव अपने आसपास के गाँव के समूह क ाथ मकताओं को सव प र रखने को त पर ह गे और यह काम इसी तरह से वहृ तर इकाईय क ओर बढता जायेगा जब तक क परूा समु चय एक

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    ऐसी सजीव इकाई के प म न था पत हो जाए िजसका संघटन यि तय से हुआ होगा। जो कभी अपनी अह म यता म आ ामक नह ंह गे बि क वन ता से उस महासागर य घेरे क मह ता म ह सेदार तथा अ वभा य अंग ह गे। नै तक यि त, नै तक समाज क गाँधी क धारणा जातीय संघष को हल करने के दशा एक सफल सकेंत देती ह।

    1.5 वैि वक सम याएं तथा गाँधीवाद समाधान गाँधीवाद यवहार तथा दशन म व व क सम याओं का समाधान न हत है।

    आव यकता सफ इस बात क है क गाँधीजी वारा सुझाए गए मू य तथा माग को अपनाया जाए, वह भी स य तथा ईमानदार के साथ। य य प विै वक तर पर हो रहे कुछ नकारा मक वकास गाँधीवाद स ा त के लाग ूहोना म गभंीर बाधा डालते है। भमू डल करण क या के साथ-साथ व ान और तकनीक े म भी ती ग त से प रवतन हो रहे है। देश के बीच ह थयार क होड और पूजंीवाद मान सकता समाज म अराजकता तथा असमानता उ प न कर रह है। तथा प यह भी नि चत है क विै वक यव था को बनाने तथा शां त के मु ेको सुलझाने के तमान के प म व व के सामने गाँधीवाद क विै वक ासं गकता को न न ब दओंु के अ तगत समझा जा सकता है –

    1.5.1 मनु य का आ मबल

    महा मा गाँधी ने मानव जीवन के बारे म एक समे कत अवधारणा तुत क है। इस अवधारणा के अनसुार यि त न केवल अपने आप म पणू प से संग ठत होगा बि क वह अपने आस पास के वातावरण से भी एकाकार होगा। गाँधी के अनसुार कोई भी सामािजक प रवतन तभी संभव तथा द घका लक हो सकता है जब मनु य म आंत रक बदलाव हो। उ ह ने पाया क समाज का आधार शां त तथा ेम है ना क हसंा। हसंा और घणृा पर आधा रत कोई भी समाज द घजीवी नह ंहो सकता। गाँधी के अनसुार यह व व य द नरंतर अि त वमान है तो इसका कारण कसी भी कार का शार रक बल नह ं है, बि क स य, दया तथा आ मा क शि त पर आधा रत बल क मह ता ह मानव समाज को चलायमान बनाए हु ए है।

    1.5.2 अ हसंा का अमोघ अ

    व वध कार के संघष , हसंा तथा आतंकवाद से पी ड़त आधु नक समाज के लए गाँधी के वचार क या ासं गकता है? या हम बल योग करके इन सम याओं से खुद को मुि त दला सकत े है? मानवता का इ तहास ऐसे उदाहरण से भरा पड़ा है िजनम बल और हसंा का योग कए जाने पर और यादा त हसंा तथा घणृा ने ज म लया। बल योग से ऊपर तौर पर राहत ज र मल सकती है क त ु इन सम याओं का हल नह ं नकाला जा सकता है। गाँधी दु नया को इस बात से सहमत करने क को शश करत े दखत ेहै क यु से कसी सम या का हल नह ं नकाला जा सकता है। इसके वपर त समझौत ेऔर सहम त क राह से मानवता क अनेक सम याओं का समाधान कया जा सकता है। यह सभी सम याएं मानवीय है िजनक जड लोग के दमाग म है अत: इनका समाधान भी लोग के दमाग म ह ढँूढ़ा जाना चा हए। अकारण या गलत समझ के कारण भी अ याय का अहसास होने क ि थ त म

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    समझाना और दमाग बदलने क को शश क रणनी त, हसंा का सहारा लेने क तुलना म अ धक े ठ है। हसंा का सहारा तो स य के लए लया जाना भी याय संगत नह ंहो सकता है।

    संघष के समाधान के लए अ हसंा का सहारा लेने क गाँधीवाद अपील को ाय: अ यावहा रक कह कर ठुकरा दया जाता है। कंत ुअ हसंा के सफल यावहा रक योग के माण गाँधी ने न केवल वदेशी धरती (द णी अ का) पर, बि क भारतीय वत ता सं ाम के समय भारतीय धरती पर भी दान कये। य द शां त और अ हसंा का माग अ यावहा रक होता तो, अभी तक संघष और आतंकवाद का थायी समाधान देने वाले अ य वक प अव य ह ढंूढ लये गए होत ेऔर व व म चहु ंओर शां त ह शां त था पत होती। वतमान आधु नक काननूी और सै य तौर-तर को से तो सम याओं के और अ धक बढने का खतरा है। इस लए, इस दशा म गाँधी आ खर रा त ेके प म सामने आत ेहै। एक ट पणीकार (गांगल) ने गाँधी के सुझाए तौर तर क का व लेषण करत ेहु ए पाया क नै तक चेतना क उ न त ह व भ न संघष का थायी समाधान है, ना क हसंा और ताकत।

    1.5.3 गाँधीवाद आ थक स ा त

    नव उदारवाद क तरफ बढ़त े व व के सभी देश म आ थक त पधा अ य धक बढ़ गई है। जहा ंआ थक प से वप न देश वकासशील बनने के कम म है, वह ं वकासशील देश वक सत बन जाने के लए हर कार क कया अपना रहे है । वक सत देश भी वकास के नये पायदान को छूने के यास म रत है। सुनने और समझने म ये सभी त य यावहा रक जान पड़त े है कंत ु वकास क इस अंधी दौड़ ने व व के सामने अनेक आ थक चुनौ तया ं

    तुत कर द है। आय, स पि त और भोजन क वषमताएं, गर बी तथा बेरोजगार , अ य धक उ पाद करण तथा औ यो गक करण म लु त होता मनु य का अि त व, अमानवीय आ थक त पधाएं अ य त ज टल प र य उ प न करत े है। इस स दभ गाँधीवाद आ थक स ा त

    नई उ मीद को ज म देते है। उपभो तावाद सं कृ त के इस यगु म गाँधीवाद आ थक दशन समृ , सामािजक याय

    तथा संतु लत वकास का माग है। आ थक आ म नभरता, आ थक वके करण, अनपे त आव यकताओं को सी मत रखना और लघ ुउ योग को ो साहन आ द गाँधी के वचार को अपनाकर व व क आ थक सम याओं का हल खोजा जा सकता है। याग तथा नै तक दशन पर आधा रत यासधार ( ट शप) होने का वचार आ थक वतरण क सम याओं का हल करने के साथ ह समाजवाद क थापना का माग भी सझुाता। गाँधी कभी भी नी तशा और अथशा को अलग करने क को शश नह ंकरत े य क नै तक प से अ व थकर अथ यव था कभी भी अ छ नह ंहो सकती। गाँधी के वदेशी तथा वराज के स ा त वतमान पूजंीवाद वकास के ा प के रोग का इलाज करने म स म है।

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    1.5.4 वै ा नक मशीनीकरण और गाँधी

    महा मा गाँधी पर आरोप लगाया जाता है क वे पि चमी वै ा नक वकास तथा आधु नक मशीन के वरोधी थे। कंत ुइस कार के आरोप उन लोग वारा लगाये जात ेहै जो गाँधी के क आधी अधूर जानकार रखत ेहै। व तुत: गाँधी मशीन के वरोधी नह ंथे, बि क वे मनु य वारा मशीनी सं कृ त क दासता के वरोधी थे। गाँधी का वरोध मनु य के अ नयं त लालच, असी मत भौ तक लालसाओं क पू त यास और मानवीय ग रमा तथा वतं ता क क मत पर बेरोकटोक आ थक तथा वै ा नक वकास के त। इस स यता के वप रत गाँधी एक ऐसी स ची स यता का खाका खींचत े है िजसम लोग नै तक मू य के पर अपने दा य व का नवाह करत ेहै। चार ओर या त भौ तकवाद, उपभो तावाद सं कृ त और नाि तकवाद यह वे वि टया ंहै िजनके खलाफ गाँधी आजीवन संघष करत ेरहे और गाँधी का यह संघष आज क

    इन 'के स दभ म ासं गक भी बन जाता है।

    1.5.5 पयावरणीय चुनौ तया ंऔर गाँधी

    आ थक चुनौ तय के समान ह पयावरणीय चुनौ तया ंभी स पणू व व के लए चतंा का वषय बनी हु ई है जो व व को व भ न कार के वनाश , खा य तथा ऊजा संकट और सामािजक तनाव तथा संघष क ओर ले जा रह है। जलवाय ु प रवतन इस चुनौती का सवा धक य उदाहरण है। वतमान वकास कम म काबन उ सजन एक वकट सम या है िजसको नयं त करने के लए मशीन का योग अनेक नयी सम याओं को ज म दे रहा है। त य यह है क मानव समाज ने संसाधन का ज रत से यादा दोहन ह नह ं कया है बि क मनु य तथा कृ त के बीच के मौ लक संबधं को भी तोड़ दया है। कंत ुगाँधी इस अ तसंबधं के त सजग थे। उ ह ने चेतावनी द थी क य द आधु नक स यता कृ त का यान नह ंरखती है और कृ त के साथ तालमेल बठाकर अपनी इ छाओं को घटाने को तैयार नह ंहोता है तो अनेक कार क । ि थ तया ँ जैसे - सामािजक-राजनै तक उथलपथुल, पा रि थ तक य वनाश आ द ज म लगी। गाँधी के अनसुार पृ वी सभी मनु य क आव यकताओं क पू त करने म स म है कंत ुमनु य को अपने लालच को छोड़कर नै तकता के साथ ाकृ तक संसाधन का उपयोग करना होगा। लोग , समाज तथा सरकार , सभी प वारा कृ त के त नै तक दा य व का नवहन करना होगा।

    गाँधीजी ने चेतावनी द थी क आधु नक उ योगवाद व व को ट डी दल वारा मैदान साफ कए जाने के समान साफ कर देगा। यह बात कसी भी तक से नह ंसमझाई जा सकती क मानव समाज क लगातार बढ़ती आव यकताओं क पू त के लए ाकृ तक संसाधन के अंधाधुधं दोहन क ि थ त बरकरार रहत े हु ए भी हम आस न पयावरणीय महा वनाश को रोक पाने म स म हो सकगे। हमारे पास गाँधी क ओर लौटाने के सवाय कोई उपाय नह ं है। आ खर, वहनीय वकास या है? यह वकास क अवधारणा के साथ े रत तथा भावी पी ढ़य के त गाँधीवाद नै तक दा य व को मलाने से ह तो बना है। इस नै तक दा य व के अभाव का लोग समाज और सरकार वारा नवहन हु ए बना वहनीय वकास का वचार सफल नह ंहो सकता। इसके बना आम लोग के आम संसाधन के संर ण के लए चल रहे यास भी

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    केवल काननूी तथा व तीय सहायताओं के भरोसे सफल नह हो सकत।े इसके लए नै तक दा य व को अपनाने क भावना सभी प म उजागर होना आव यक है। इसी लए व व भर म सभी थान पर बहु त से लोग और संगठन पयावरणीय याय पाने के लए गाँधीवाद स ा त को अपना रहे है। िजनम ीलकंा के सव दय आ दोलन के णेता डी.एट . आ रयार ने थाईलड ि प रट इन एजुकेशन मूवमट के अ णी सुलाक शवर ा अमे रका म जान ां सस, फोरन ऑन रल जन एंड इकोलॉजी क सह सं थापक मेर ए ल न टकर, लाइमेट कै पेन के सं थापक बल पै रश आ द कुछ उ लेखनीय उदाहरण है। समकाल न पयावरण संकट का हल तलाशने म गाँधीवाद स ा त क ासं गकता का व लेषण करत ेहु ए डायना कालथोप रोज ने लखा क ' ' व व को लोबल वा मग क सम या के हल के लए जो शि त चा हए वह है स या ह क शि त।....... जलवाय ुआ दोलन को गाँधी से बहु त कुछ सीखना है। ''

    1.5.6 रा का आपसी अ व वास

    अ धकांश राजनै तक सम याओं का आधार रा य तथा रा के बीच व वास क कमी है। यह अ व वास रा के बीच संघष को उ प न कर देता है। त काल आव यकता इस बात क है रा के बीच इस कार के संघष को गाँधीवाद अ हसंा मक तर क के योग से सुलझाया जाए। इनके बीच आपसी व वास के लए नयी सं था नक यव थाओं का वकास कया जाए। संब देश के यवहार म प रवतन लाने का यास कया जाए तथा उनम स इ छा नमाण का य न कया जाए। गाँधीवाद तर के से यि त के यि त से संबधं को मह वपणू मानकर व वास क इस छोट इकाई को अ तरा य तर तक व ततृ कया जाए। इस य न से इस बात क संभावना अव य ह होती है क थायी शां त क दशा म हम एक और कदम उठा रहे है।

    1.5.7 स या ह और गाँधी

    महा मा गाँधी के जीवन के मु य आधार म से एक था स या ह अथात ्स य का आ ह। स य का अथ स चाई है, वह ंआ ह म ढ़ता का भाव समा हत है। द णी अ का म हो रहे जातीय भेदभाव के व महा मा गाँधी ने इस श द का योग कया था। स या ह गाँधी के लए केवल सीखने- सखाने का श द भर नह ंथा। गाँधी ने इस श द के स पणू अथ -को जीवन म च रताथ भी कया। स या ह गांधीजी के लए आि मक शि त भी थी। उ होने अनेक उदाहरण था पत करके व व को यह बताने का यास कया क स या ह को अपनाकर व व और अ धक अ छ अव था म आ सकता है। गांधी कहत ेहै क स या ह हसंा का हसंा वारा तकार का वरोध करता है। यह वरोधी क आ मा क शु का शाि तपणू यास है

    िजसे कोई भी अपना सकता है चाहे ी, पु ष हो या ब चे अथवा अकेला यि त या कोई समुदाय। आव यकता सफ आ मा के शु करण क तथा स य पर अ डग रहने क है। ढ़ता के साथ कया गया स य का अ हसंक आ ह कसी ' भी वरोधी को झुकाने का भावशाल मा यम है।

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    गाँधी ने स या ह को वय ंतथा वरो धय को शु करके स य क खोज के वास के प म तैयार कया था। व तुत: गाँधी का स या ह अ हसंक साधन के वारा शां त नमाण का

    एक भावशाल यं है। यु और संघष, वरोधी पर वजय ाि त के वह तर के है िजसम वरोधी के त घणृा, श तुा तथा ई या उ प न होती है कंत ुएक स या ह दया, क णा, ेम और मा जैसे मानवीय मू य से प रपणू होता है। वह अ याय का तरोध तो करता है कंत ुसाथ ह वरोधी के त स मान तथा सहानभुू त भी कट करता है। द ण अ का म भारतीय के हत के लए स या ह, चंपारण, खेड़ा और बारदोल म आ थक कारण से स या ह, टश शोषण के त स या ह के अचूक भाव से इस गाँधीवाद अ हसंा मक तरोध (स या ह) क विै वक ासं गकता न ववाद ह था पत हो जाती है।

    आज व व जब हसंा और अशाि त के नये तमान छू रहा है। लालसाओं क बढ़ती दर म यि त एक दसूरे का श ुबन गया है, ऐसे म स या ह व व को शाि त क ओर ले जाने का एक अचूक अ है, और स या ह क यह विै वक मांग गांधी को विै वक च र का दजा भी दान करती है।

    1.5.8 वसुधैव कुटु बकम

    जब हम गाँधी क विै वक ासं गकता क चचा करत ेहै तो न चय ह प ट हो जाता है क गाँधी एक यि त नह ं थे। वह एक सं था थे, एक दशन थे। एक ऐसा दशन जो क भौगो लक सीमाओं म नह ंबांधा जा सकता है। गाँधी जब सवजन हताय क बात करत े है तो उनक यापक ि ट म व व का येक मनु य समा हत हो जाता है। व व के सभी मनु य के लए शां त, सुख, समृ तथा क याण क भावना के कारण गाँधी वसुधैव कुटु बकम के ेरक बन गए है।

    1.5.9. गाँधी और उनके स ा त का सनेमा म च ांकन

    गाँधी एक शाि त पु ष तथा अ हसंा के पजुार थे। कसी भी देश ने स य प रवतन का ऐसा दौर कभी नह ं देखा जैसा गाँधी के आने के बाद दखाई पड़ता है। गाँधी के स य, अ हसंा और स या ह के तीन स ा त म उनका स पणू जीवन तथा परेू व व के लए भावशाल सीख सि म लत है। महा मा गाँधी ने क टपणू जीवन जीकर व व के सामने एक

    जीवतं उदाहरण तुत कया। हसंा के इस यगु म शाि त क खोज करत े व व के लए गाँधी क सोच वत: ह ासं गक हो जाती है। गाँधी क वचारधारा आज इस लए भी ासं गक है य क उनक सोच, उनके वचार और उनके स ा त मानवीय मू य से स बं धत है। इस लये

    गाँधीवाद वचारधारा को सचंार मा यम के मा यम से चा रत और सा रत कया जा रहा है। इसी कडी म सनेमा भी गाँधी के वचार को सामने लेकर आया। यह गाँधी के वचार और स ा त क विै वक ासं गकता' ह थी िजसने सनेमा के मा यम से गाँधी को व व के सामने लाने क आव यकता अनभुव क , िजससे तकनीक यगु म जी रह पीढ़ गाँधी क वजय और शहादत का सह तथा सट क प हण कर सके।

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    सन ् 1982 म रचड एटेनबरो वारा न मत फ म ' 'लाइफ ऑफ गाँधी' ' एक अ तरा य या त ा त फ म थी जो गाँधी क उपलि यय तथा उनके स य और अ हसंा के स ा त को अ तरा य पटल पर ले आयी। फ म लुईस फशर क कताब 'द लाइफ ऑफ महा मा गाँधी' पर आधा रत थी। गाँधी पर एटेनबरो क इस फ म ने इस महान शि सयत को पि चम के देश म फर से तुत कया। इसी कार हमांश ुराय क ' 'अछूत क या' ' देवक बोस क 'चंडीदास', महाक व स यजीत राय क 'स ग त, वमल रॉय क 'सुजाता', जान ुब आ क ''मैने गाँधी को नह ंमारा', यावसा यक प से बनी फ म 'लगे रहो मु नाभाई' 2005 म बनी 'वाटर' जो वधवाओं के मा मक जीवन को तुत करती है, 2007 म आयी फ म 'गाँधी माई फादर' ' सर खी कतनी ह फ म गाँधी के जीवन और उनके मू य को सनेमाई मा यम से च रताथ करती है तथा इस बात क ओर संकेत करती है क गाँधी क ासं गकता सदैव रहेगी य क मनु य जीवन क िजन उलझन से सामना कर रहा है, उस येक प को गाँधी ने बार क से समझा और उनक इसी समझ के आगे व व नतम तक है।

    1.5.10. महा मा गाँधी अ तरा य परु कार और दवस

    महा मा गाँधी क विै वक ासं गकता को कसी माण क आव यकता नह ंहै और न ह कसी को भी गाँधी के वचार और यि त व के विै वक होने म कसी कार का संशय होना चा हए। गाँधी के भाव तथा वचार क पहु ँच व व समुदाय पर एकदम प ट है। व व अनेकानेक संघष से जूझ रहा है जो घर जैसी छोट इकाई से ार भ होकर येक देश के अि त व को झकझोरने का य न कर रहे है। ऐसे समय म शाि त, सहनशीलता ेम, था य व, स मान, अ हसंा, स य, व वास जैसे मू य ह समाज को मानवता क ओर उज़ख

    कर सकत ेहै। ये तथा इन जैसे अनेक मू य के धनी गाँधी को इसी लए व व नमन करता है। गाँधी क ेरणा से व व को एक नयी श ा ा त हो सके इस लए सन ्2003 म महा मा गाँधी के नाम पर Mahatma Gandhi International Award for Peace and Reconciliation (MAGI Award) ार भ कया गया जो शाि त और सौहाद के लए कायरत लोग और सं थाओं को महा मा गाँधी क याद म तवष दया जाता है।

    इतना ह नह ं व व समुदाय ने 2007 म उनका ज म दवस अ तरा य अ हसंा दवस के प म मनाने का नणय लया। इसी कार यनेू को ने अ टूबर 2009 म अपने 35व अ धवेशन के दौरान भारत म महा मा गाँधी इं ट यटू ऑव एजुकेशन फॉर पीस ए ड स टेनेबल डेवलपमट था पत करने का नणय लया। यह परेू ए शया म यनेू को का एकमा ेणी-1 का सं थान है।

    महा मा गाँधी के नाम पर और उनक याद म था पत हो रहे ये अ तरा य तमान गाँधी क विै वक ासं गकता को न ववाद प म था पत करत ेहै।

    1.5.11 गाँधी क वचारधारा पर अ तरा य भाव

    महान वै ा नक आइं ट न ने एक बार कहा था क आने वाल पी ढ़य को व वास नह ंहोगा क हाड-माँस का बना ऐसा कोई इंसान (गाँधी) कभी इस पृ वी पर वा तव म था। हमारे

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    काल क आम धारणा है क गाँधी विै वक है। यह धारणा उनके वचार और कृ त व क तीन यापक वधाओं को रेखां कत करती है। पहल क गाँधी के वचार के ोत का च र विै वक है य क उ होने बहु त सारे लोग , थान और धाराओं से वचार हण कए थे। अगर टा सटॉय क पु तक ' कंगडम ऑव गॉड इज व दन’ य ूने अ हसंा म उनके व वास को ढ़ता दान क तो रि कन क पु तक 'अनटु दस ला ट' ने उनके आ थक वचार को भा वत कया। हेनर थोर के शासन वरोधी थं ' स वल डसो ब डएंस ने उनके स या ह के वचार पर गहरा भाव डाला। य ू टे टामट के ' द सरमन आन माउंट' ने उन पर वशेष भाव डाला य क इसम अ छाई और स यपरकता के महान स ा त समा हत थे। थॉमस कालाइल क

    पु तक 'ह रोज एड ह रो व शप' ने भी उ हे गहराई से भा वत कया था। गाँधी इसम व णत पगै बर क महानता, बहादरु और तप वी जीवन के वचारो से े रत हु ए थे। एड वन आन ड वारा गीता के अनवुाद 'द सांग सेलेि टयल' को प ने के बाद ह गाँधी अनास त कम क

    अवधारणा को समझ पाए थे। अत: गाँधी के त विै वक आकषण का कारण उनके वचार का विै वक ोत से होना है। फर भी गाँधी के वचार का आधार सनातन भारतीय वचार और स ा त थे। वै वीकरण फ या शु होने से काफ पहले ह वे बाहर वचार तथा भाव को हण करने के लए उ सुक थे। वे कहते भी है क ' म अपने घर क सभी खड़ कय को खुला

    रखना पसंद क ं गा ता क सभी दशाओं से ताजा हवा का वाह हो सके क त ुइन हवाओं को म अपने परै नह ंउखाड़ने दूंगा।

    1.5.12. अ तरा य यि त व और गाँधी

    गाँधी क विै वक वीकायता तथा उनके जादईु यि त व का भाव नरंतर बढता जा रहा है। परूा व व उनके वचार से स मो हत है। गाँधी क विै वक छ व के समथको क सं या म तेजी से वृ हो रह है और यह एक वत फूत या है। एक समाचार (एनआरआई व ड 2010) के अनसुार गाँधी क आव मू तय क मांग व व के सभी ह स म लगातार बढ रह है। उनके आदश और आदश को जीवन ल उतारने म उनक सफलता इतनी आकषक है क आज दु नयां के सभी कोन म उनके थानीय त प खड ेहो चूके है। अमे रक गाँधी मा टन लूथर कंग तथा अ क गाधँी ने सन मंडलेा तो व व यापी थापना पा चुके है। अमे रक गांधी डॉ. मा टन लूथर कंग ने अमे रका म अ वेत के साथ होने वाले अ याय के व संघष के अ हसंा तथा स या ह के गाँधीवाद स ा त को अपनाया था। एक ट पणीकार लखत ेहै क ' 'डॉ. मा टन लथूर कंग मता धकार और एक करण हेत ुअपने अ भयान के लए महा मा गांधी क वरासत अ हसंा क भावो पादकता को पहचानत ेथे।......... अमे रका म अ वेत के उ थान हेत ुसंघष के लए गाँधी के बताए स या ह को अपनाकर वह गाँधी के सबसे बड़ े श य बन गए थे। यहा ँतक क कंग क ' ' यि तवाद' क अवधारणा जो मनु य के यि त व म अि तम वा त वकता क तलाश करती है, और कुछ नह ंमनु य क अ छाई म अगाध आ था के गाँधी के स ा त का व तार भर है।

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    मंडेला तथा लूथर कंग को अ क तथा अमर क गांधी कहे जाने क ि थ त को इस कार समझा जा सकता है। महान क व नाटककार का लदास क रचनाओं क े ठता सा बत

    करने के लए जैसे उ ह शे सपीयर कहा जाता है और ाचीन भारतीय चतंक कौ ट य को भारतीय मै कयावल पकुारा जाता है अथात ् े ठ क तुलना सव े ठ से क जाकर त ठा को था पत कया जाता है। उसी कार गाँधी एक आदश है येक े ठ के साथ जुड़ने हेत ुचाल

    चैप लन अपनी आ मकथा म गाँधीजी से डाक ट लंदन म अपनी मुलाकात का ववरण लखत ेहै और 1936 म उनके वचार से े रत होकर उ होने मशीन मनु य के र त पर आधा रत 'माडन टाइ स' का नमाण कया।

    इस कार गाँधी के व व समुदाय के साथ जुड़ ेहोने के माण वत: ह उनके विै वक ासं गकता को स कर देते है।

    1.6 सारांश इस कार उपयु त अ ययन से प ट होता है क के य गाँधीवाद मू य जैसे

    अ हसंा, स य, याय, शोषण का न होना, मानवीय क णा और शां त, समय एवम ् थान क सीमाओं से परे है। विै वक यव थाओं म प रवतन होने के बावजूद ये मू य ासं गक बने रहगे। समकाल न व व अनेक सम याओं का सामना कर रहा है िजसक कृ त राजनै तक, आ थक तथा मानवतावाद है और इन सम याओं का समाधान गाँधीवाद दशन को अपनाकर कया जा सकता है। य य प गाँधीवाद को यवहार म लाना चुनौती भरा काय है। वप ीय तथा विै वक शां त क ाि त म रा य सुर ा के न, शि त तमान, ह थयार क दौड़ और नरसंहार के ह थयार इ या द मु ेभटकाव क ि थ त उ प न करत ेहै। फर भी इस स दभ म बना नकारा मक भाव लाए रा य को गाँधीवाद मू य को के म रखकर व वास क कया को बनाए रखना होगा। मानवता का अ धका धक वकास कर शां त क सं कृ त को अपनाना ह होगा। प रणाम चाहे शी दखाई न दे, पर त ु व व म शां त थापना और अ य विै वक चुनौ तय के समाधान म गाँधीवाद मू य सदैव आधार का काम करत ेरहगे। समकाल न व व िजन सम याओं से पी ड़त है, उनके नवारण के लए गाँधीवाद मू य क ासं गकता सदैव बनी रहेगी। टश इ तहासकार अन ड टायनबी के श द म - ' 'अब यह प ट हो रहा है क य द मानव जा त को आ मघाती अंत से बचना है तो िजस अ याय का ारंभ पि चमी वचार के साथ हुआ था उसका अंत भारतीय वचार (गाँधीवाद) के साथ होगा। मानव इ तहास क इस अ य धक खतरनाक ग त पर मानव जा त के उ गार का एकमा रा ता भारतीय रा ता है।

    1.7 अ यास न 1. गाँधीवाद से आप या समझत ेहै? 2. समकाल न व व िजन सम याओं से जूझ रहा है, उनका उ लेख क िजए। 3. गाँधी क विै वक ासं गकता को समझाइये। 4. महा मा गाँधी कौन-कौन से अ तरा य ोत से भा वत हु ए, उ लेख क िजए।

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    1.8 संदभ थ सूची 1. एम के. गाँधी, मेरे सपन का भारत, नवजीवन काशन, अहमदाबाद, 1997 2. एम.के. गाँधी, सव दय; नवजीवन काशन, अहमदाबाद, 2012 3. परेल, ऐंथॉनी, ह द वराज ए ड अदर राइ ट स ऑफ एम. के. गाँधी, केि ज

    यू नव सट ेस,केि ज़, 1997 4. अ यर, राघवन, द मोरल ए ड पो लट कल थॉट ऑफ महा मा गाँधी, ओ.य.ूपी., द ल ,

    1973 5. सहं, रामजी गाँधी दशन मीमासंा, बहार ह द थं अकादमी, पटना, 1966। 6. म , अ नल दल, चेलेनजेस ऑफ 21 रट सचुर गाँधीयन ऑ डरने टक, म तल

    पि लकेशन, द ल , 2003 7. म , अ नल द त, गाँधीयन अ ोच टू क टे पोरर ो लमन,् म तल पि लकेशन,

    द ल , 1996

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    इकाई-2 भूम डल करण एव ंगाँधी

    इकाई क परेखा 2.0 उ े य 2.1 तावना 2.2 भूमंडल करण या वै वीकरण क अवधारणा 2.3 भूम डल करण के व वध आयाम

    2.3.1 आ थक भमू डल करण 2.3.2 राजनी तक भूम डल करण 2.3.3 सामािजक व सां कृ तक भमू डल करण

    2.4 भूम डल करण एक समी ा 2.5 भूम डल करण एव ंगाँधी 2.6 साराशं 2.7 अ यास न 2.8 संदभ थं सूची

    2.0 उ े य इस इकाई के अ ययन प चात व याथ :-

    भूम डल करण क अवधारणा को ठ क तरह से समझ सकगे। आ थक के साथ-साथ उसके राजनी तक, सामािजक, व सां कृ तक व धा मक भाव को

    जान सकगे। गाँधी के रा वाद वचार का सह व लेषण कर सकगे। गाँधी चतंन के संदभ म भूम डल करण क पनु:समी ा कर सकगे।

    2.0 तावना समचेू व व म आज भूम डल करण क हवा चल रह है। इसके अ तगत न केवल

    वक सत, वकासशील तथा अ - वक सत रा आ थक, यापा रक, राजनी तक, सामािजक व सां कृ तक ि ट से जुड़ रहे ह, बि क पवू और पि चम का भेद भी लगातार घटता नजर आ रहा है। सचूना, संचार, यातायात, यापार, उ योग, पूजंी, श ा व म के े म जो वाह है उससे रा के बीच दू रयाँ कम होती जा रह ह। सो वयत संघ के वघटन ने भूम डल करण को और अ धक ग त दान क है। व ान तथा तकनीक े म ' ग त से दु नया समट सी गई है और यह कहा जाने लगा है क समचूा व व “Global Village” हो गया है। पर त ु पछले कुछ वष म भूम डल करण ने नये आ थक, राजनी तक और पयावरण संबधंी संकट को ज म

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    दया है। भूम डल करण के बारे म अपना मत नमाण करने से पवू इसके व वध आयाम को '' तरह जानना ज र है।

    2.1 भूम डल करण या वै वीकरण क अवधारणा आमतौर पर यादातर लोग के मन म यह म या धारणा है क भूम डल करण क

    शु आत बीसवी ंशता द म सो वयत संघ के वघटन तथा सा यवाद गटु के बखराव से है य क इसी के बाद व व एक ु वीय यव था क ओर बढ़ने लगा। इसी के बाद वक सत

    रा , बहु रा य क प नय के मा यम से व व यव था पर अपना आ धप य था पत करने का यास करने लगे। परंत ुवा तव म यह एक अचानक उ प न या नह ं है। ऐ तहा सक प से देख तो भूम डल करण का बीजारोपण तब हुआ जब पाँच सौ साल पहले ना वक ने सुदरू

    पि चम म अमर का तथा पवू म भारत क खोज करके इनके साथ यापा रक संबधं था पत कये। ाचीन भारत म भी जब राजस ता लोकतां क नह ंथी, तब भी राजदतू , यापा रय तथा भ ुक आ द का आदान दान व भ न उ े य के लए होता था और ये लोग भूम डल करण के वाहक थे। न बे के दशक म संचार मा यम , क यटूर, उप ह चैनल ने उ पादन, नवेश, पूजंी, म संगठन, मनोरंजन, ब कंग, बीमा, पयटन को विै वक व प दान कर दया। पर त ुभ व य म इसका व प या होगा, इस बारे मे नि चत तौर पर अभी कुछ नह कहा जा सकता है।

    सामा य प म भूम डल करण का अथ एक ऐसा अथतं तथा बाजार का नमाण है िजसम येक रा क अथ यव था को अ नवायत: जुड़ना है। न:संदेह इस या से यापक लाभ हु ए है और मु त बाजार यव था म पूजंी, सूचना, तकनीक, आ द का सु वधाजनक आदान दान स भव हो पाया है। बाजार म त पधा बढ़ है य क बहु रा य क प नय को

    बेरोकटोक यापार के अवसर ा त हु ए ह, उपभो ता को अनेक वक प मले ह और लाइसस राज का नयं ण समा त हुआ है। परंत ुइसके साथ ह एक उपभो तावाद सं कृ त का उदय हुआ है जो परू तरह लाभ और भौ तकतावाद पर आधा रत है, िजसम यि तवाद का वच व है और सवजन हताय का लोप हो चुका है। पूजंी का वै वीकरण होने से उसका आवागमन तो आसान हो गया ह पर त ु वकास क ती मह वाकां ा के कारण वकासशील रा अपनी वतं नी त का समझौता करने के लए मजबरू हो गये है। बहु रा य क प नय (MNCs) ने वकासशील देश के बाजार व स त े म को आधार बनाकर परेू व व पर अपना क जा बना लया है, और सरकार भी इन पर नयं ण था पत करने म अपने आप को कमजोर महसूस कर रह है। उदार ऋणदाता बनकर वक सत रा ने ज रतमंद रा को तकनीक, मशीन, पूजंी आ द तो दान क है परंत ुसाथ ह ये रा अपनी आय का एक फ सद से भी कम खच करके तीसर दु नया के इन देश के भा य नयतंा बन गए है। डे नस ि मथ ने अपनी पु तक 'Globalization the hidden agenda'' म लखा है क भूम डल करण कट प म तो यवसा यक हत तथा साम ी संधान म वृ को ाथ मकता देता है परंत ुउसका ग भत ऐजे डा वक सत रा क साम य को बनाये रखना, राजनी तक वच व बनाये रखना तथा राजनयन और आ थक राजनी तक समीकरण को अपने प म बनाय रखना है।

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    थम व वयु से सा यवाद पूजंीवाद का वक प बनकर उभरा िजससे लगा क उनक समतामलूक यव था म सामािजक व आ थक वषमताओं का कोई थान नह होगा। पर त ुह थयार क होड़ मे दो- वुीय व व यव था का ढांचा व त हो गया और भूम डल करण का रा ता और आसान हो गया। सो वयत संघ के वघटन से व व अथ यव था पर अमर क नयं ण था पत होने लगा य क अ धकतर व व आ थक संगठन अमर का वारा ह नयं त थे। तीसर दु नया के रा , जो दसूरे व वयु के बाद वतं हु ए ाकृ तक संसाधन क ि ट से तो समृ थे परंत ुतकनीक ान के अभाव म कृ ष, पेटट व सेवा े बहु प ीय समझौत ेकरने को मजबरू हो गए। 1970 के दशक म तेल नयातक देश के संगठन (OPEC) के वारा मू य वृ से वकासशील देश के तेल बलो मे यापक वृ हु ई और परुाने कज को

    चुकाने के लए नया कज लेना इनक मजबरू बन गया। यहा ँखा या न तथा उजा का संकट मंडराने लगा; गर बी, कुपोषण, भुखमर , सा रता क दशा म भी यादा सुधार नह ंआया।

    भूम डल करण व हत का पोषक ह, यि तवाद को वर यता देता है। यह ंयो यतम क वजय (survival of the fittest) क अवधारणा मह व रखती है। अनभुव बताता है क कुछ सफल लोग के पीछे लाख लोगो का खून, पसीना व म होता है िज ह उसका उ चत देय भी ा त नह होता। आज भी वै वीकरण म दावा रा हत का कया जाता है जब क लाभाि वत

    बहु रा य क पनी हो रह है िजनक दु नया भर मे सं या साठ हजार के लगभग है। ये क प नया ँ भार मा ा म वकासशील व गर ब देश के ाकृ तक व मानवीय संसाधन का इ तेमाल अपने लए करके मुनाफा कमा रह ं है। इनका लोकतां क नयं ण महज एक दखावा है और विै वक त पधा था पत करने मे इनका कोई योगदान नह है, बि क ये बाजार म त पधा के थान पर एका धकार जमाना चाहत े है, व वधता ख म करना चाहत े है। वय ं

    अपने देश म तकनीक श त मानवीय स पदा महंगी होने के कारण ये गर ब देश क स ती, उ कृ ट मानवीय स पदा का उपयोग अपने लाभ के लए करत ेहै। इस लए आज वकास मॉडल का मु य संकेतक रा य पूजंी नह ,ं नजी उ यम, वतं बाजार नणय तथा रा य भौगो लक सीमाह न व व यव था बन गई है और अ तरा य मु ा कोष तथा व व 'बक ऐसे भूम डल करण के चारक बन गए ह।

    2.3 भूम डल करण के व वध आयाम भूम डल करण एक बहुआयामी या है। इसके आ थक, राजनी तक, सां कृ तक, आ द

    व भ न प ह।

    2.3.1 आ थक भूम डल करण

    आज अथ यव था नयातो मुख हो रह ह आयात- नयात नी त म भी विै वक यापार के अनु प नणय लए जा रहे ह - पूजंी के आवागमन के तबधं समा त हो रहे है, वदेशी व नयोग क मा ा, दशा व संरचना म यापक प रवतन हु ए है तथा क प नय के अ ध हण क या को बढ़ावा मला है। आ थक भूम डल करण क नींव उदार करण तथा वै वीकरण पर टक है। एडम ि मथ वय ंआ थक उदार करण और वतं व नबाध बाजार के समथक थे।

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    उनका वचार था क मनु य वभाव से ह वाथ कृ त का है और ऐसे म जब वतं बाजार का संचालन होगा तो लाभ परेू समाज को मलेगा।

    भूम डल करण पर व वान के मत अलग-अलग रहे है। मै स वेबर के अनसुार पूजंी के वकास के साथ सामािजक व धा मक प रवतन भी देखने को मलत े ह। समाज म े ठ यि तय ने अपने भु व को बनाए रखने के लए तथा धम मह तो ने अपना वच व बनाए रखने को पूजंी का सहारा लया है। शहर करण और औ यौ गकरण म मेहनती, कुशल व यो य यि त का अहम ्योगदान रहा है तथा इससे काय व मु ा के नये संबधं का उदय हुआ है। ड ल.ू ड ल.ू रो टव के मतानसुार सतत ्आ थक वकास के लए तकनीक, बचत, उ य मता तथा सह राजनी तक यव था ज र है य क उसी से ह आ थक वकास के ल य क ाि त होगी।

    वै वीकरण को समझने के लये ' नभरता स ा त' मे व व का वभाजन कया गया है। इसम समृ रा विै वक पूजंीवाद यव था के नयं क है तथा गर ब रा सहायक। समृ , गर ब रा के स त े म, क चे माल व व ततृ बाजार पर नभर करत े हु ए अपने लाभ का व तार करत ेहै। अत: वक सत रा का वकास ह गर ब रा के अ वकास का कारण है। गु डर क का तक है क अ - वकास एक चरण नह ,ं थायी ब द ु है िजससे बचाव केवल स पणू पूजंीवाद से बचाव म न हत है। 'गर ब रा गर ब य ह', इस वषय पर पाले टेन, डॉस से तोस व समीर अमीन आ द का मत एक ह है-पूजंीवाद यव था, त पधा क नह ंएका धकार क पोशाक है गर ब रा को अपने बाजार को स प न रा के शोषण पणू संबधं से बचाना होगा य क इन दोन के बीच संबधं सा ा यवाद ह िजस कारण गर ब रा स ती व त ुबनाने को मजबरू ह।

    जमनी के फो कर ोबल, ओते कैथी आ द भूम डल करण पर अपनी त या करत ेहु ए कहत ेहै क तकनीक आदान- दान व पूजंी व नवेश के नयम सरल करने के पीछे उ े य भलाई का नह , नजी वाथ व लाभ का है। वक सत रा से बहु रा य क प नया ँअपने लांट बदं करके वकासशील देश म व नयोजन कर रह है। य ? य क वय ंअपने देश म म सुर ा नयम और मापदंड कड़ ेहै और ऐसे म वह अपनी ग त व धया ँसंचा लत करत ेरहना

    लाभ द नह ं। इसके चलत े वकासशील देश म शहर क ओर पलायन बढ़ रहा है िजससे शहर म मलूभूत सु वधाओं का संकट उ प न हो रहा है। इन उ योग म लोग कसी भी पा र मक पर काय करने को बा य है िजससे शोषण व बेरोजगार बढ रह है कुशल और अकुशल मक क आमदनी का फासला बढ़ता जा रहा है, पूजंी का के करण हो रहा है, नमाण उ योग क बजाय सेवा े का वकास हो रहा ह। उपयु त या से इन रा क अथ यव था डगमगा रह है, कर का दायरा सकुड रहा है और सरकार को द घकाल न व तीय घाटा उठाना पड़ रहा ह। बाजार म साख मता (credit worthiness) का नधारण स ा बाजार के यापार कर रहे है, विै वक बधंन म थानीय जनता व सरकार क नणायक भू मका समा त हो रह है और परू या मे यि त कह गायब हो गया है। इसी संदभ म लंदन कूल ऑफ इकनो म स के ोफेसर लेसल केलेयर न�