श्री परशुराम स्तवन...

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ी परशुराम ˑवन संह www.shdvef.com Page 1 परमाȏने नम: ी गणेशाय नमः परशुराम ˑवन संह

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ॱॐॱ ॱॐ श्री परमात्मने नम: ॱ

ॱश्री गणेशाय नमःॱ

श्री परशुराम स्तवन संग्रह

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विषय-सचूी

ॱ श्री परशुरामसु्तती ॱ ............................................................................... 4

ॱ श्रीपरशुरामसहस्रनामस्तोत्रम् ॱ ................................................................. 5

ॱ परशुरामाष्टाववंशवतनामस्तोत्रम् ॱ ............................................................. 30

ॱ श्रीपरशुरामाष्टाववंशवतनामावव ःॱ ............................................................ 32

श्री परशुराम जयंती

वहंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष

की तृतीया वतवथ को भगवान परशुराम की जयंती

मनाई जाती है॰ धमम गं्रथो ंके अनुसार इसी वदन

भगवान ववषु्ण के आवेशावतार श्री परशुराम का

जन्म रॅआ था

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ॐ ब्रह्मक्षत्राय ववद्महे क्षवत्रयान्ताय धीमवह तन्नो परशुराम: प्रचोदयात्ॱ

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॥ श्री परशुरामसु्तती ॥

श्री गणेशाय नमः ॰

कु ाच ा यस्य मही ंविजेभ्यः प्रयच्छतः सोमदृषत्त्वमापुः ॰

बभूवुरुत्सगमज ं समुद्ाः स रैणुकेयः वश्रयमातनीतु ॱ १ॱ

नावशष्यः वकमभूद्भवः वकपभवन्नापुवत्रणी रेणुका

नाभूविश्वमकामुमकं वकवमवत यः प्रीणातु रामत्रपा ॰

ववप्राणां प्रवतमन्दिरं मवणगणोन्दन्मश्रावण दण्डाहतेनाांब्धीनो

स मया यमोऽवपम मवहषेणाम्ांवस नोिावहतः ॱ २ॱ

पायािो यमदविवंशवत को वीरव्रता ङ्कृतो

रामो नाम मुनीश्वरो नृपवधे भास्वतु्कठारायुधः ॰

येनाशेषहतावहताङ्गरुवधरैः सन्तवपमताः पूवमजा

भक्त्या चाश्वमखे समुद्वसना भूहमन्तकारीकृता ॱ ३ॱ

िारे कल्पतरंु गृहे सुरगवी ंवचन्तामणीनङ्गदे पीयूषं

सरसीषु ववप्रवदने ववद्याश्चतस्रो दश ॰

एव कतुममयं तपस्यवत भृगोवांशावतंसो मुवनः

पायािोऽन्दख राजकक्षयकरो भूदेवभूषामवणः ॱ ४ॱ

ॱ इवत परशुराममसु्तवतः ॱ

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॥ श्रीपरशुरामसहस्रनामस्तोत्रम् ॥

श्रीगणेशाय नमः ॰

पुरा दाशरथी रामः कृतोिाहः सबान्धवः ॰

गच्छन्नयोध्ां राजेन्द्रः वपतृमातृसुरॄद् वृतः ॱ १ॱ

ददशम यानं्त मागेण क्षवत्रयान्तकरं ववभुम् ॰

रामं तं भागमवं दृष्ट्वावभतसु्तष्टाव राघवः ॰

रामः श्रीमान्महाववषु्णररवत नाम सहस्रतः ॱ २ॱ

अहं त्वत्तः परं राम ववचरावम स्व ी या ॰

इतु्यक्तवन्तमभ्यर्च्म प्रवणपत्य कृताञ्जव ः ॱ ३ॱ

श्रीराघव उवाच -

यन्नामग्रहणाज्जनु्तः प्रापु्नयात्र भवापदम् ॰

यस्य पादाचमनान्दत्सन्दधः से्वन्दितां नौवम भागमवम् ॱ ४ॱ

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वनःसृ्पहो यः सदा देवो भूम्ां वसवत माधवः ॰

आत्मबोधोदवधं स्वचं्छ योवगनं नौवम भागमवम् ॱ ५ॱ

यस्मादेतज्जगत्सवां जायते यत्र ी या ॰

न्दथथवतं प्राप्नोवत देवेशं जामदगं्न्य नमाम्हम् ॱ ६ॱ

यस्य भू्र भङ्गमाते्रण ब्रह्माद्याः सक ाः सुराः ॰

शतवारं भवन्यत्र भवन्दन्त न भवन्दन्त च ॱ ७ॱ

तप उगं्र चचारादौ यमुविश्य च रेणुका ॰

आद्या शन्दक्तममहादेवी रामं तं प्रणमाम्हम् ॱ ८ॱ

ॱ अथ वववनयोगः ॱ

ॐ अस्य श्रीजामदग्न्यसहस्रनामस्तोत्रमहामन्त्रस्य श्रीराम ऋवषः ॰

जामदग्न्यः परमात्मा देवता ॰

अनुष्ट्टुप् छिः ॰ श्रीमदववनाशरामप्रीत्यथां

चतुववमधपुरुषाथमवसद्ध्यथां जपे वववनयोगः ॱ

ॱ अथ करन्यासः ॱ

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ॐ ह्ां गोवविात्मने अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ॰

ॐ ह्ी ंमहीधरात्मने तजमनीभ्यां नमः ॰

ॐ हंू् रॄषीकेशात्मने मध्माभ्यां नमः ॰

ॐ ह्ैं वत्रववरेमात्मने अनावमकाभ्यां नमः ॰

ॐ ह्ौ ंववष्णवात्मने कवनवष्ठकाभ्यां नमः ॰

ॐ ह्ः माधवात्मने करत करपृष्ठाभ्यां नमः ॱ

ॱ अथ रॄदयन्यासः ॱ

ॐ ह्ां गोवविात्मने रॄदयाय नमः ॰

ॐ ह्ी ंमहीधरात्मने वशरसे स्वाहा ॰

ॐ हंू् रॄषीकेशात्मने वशखायै वषट् ॰

ॐ ह्ैं वत्रववरेमात्मने कवचाय रॅम् ॰

ॐ ह्ौ ंववष्णवात्मने नेत्रत्रयाय वौषट् ॰

ॐ ह्ः माधवात्मने अस्त्राय फट् ॰

ॱ अथ ध्ानम् ॱ

शुधजामू्बनदवनभं ब्रह्मववषु्णवशवात्मकम् ॰

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सवामभरणसंयुकं्त कृष्णावजनधरं ववभुम् ॱ ९ॱ

बाणचापौ च परशुमभयं च चतुभुमजैः ॰

प्रकोष्ठशोवभ रुद्ाकै्षदमधानं भृगुनिनम् ॱ १०ॱ

हेमयज्ञोपवीतं च विग्धन्दस्मतमुखामु्बजम् ॰

दभामवितकरं देवं क्षवत्रयक्षयदीवक्षतम् ॱ ११ॱ

श्रीवत्सवक्षसं रामं ध्ायेिै ब्रह्मचाररणम् ॰

रॄतु्पण्डरीकमध्थथं सनकादै्यरवभष्ट्टुतम् ॱ १२ॱ

सहस्रवमव सूयामणामेकी भूय पुरः न्दथथतम् ॰

तपसावमव सनू्मवतां भृगुवंशतपन्दस्वनम् ॱ १३ॱ

चूडाचुन्दम्बतकङ्कपत्रमवभतसू्तणीियं पृष्ठतो

भस्मविग्धपववत्र ाञ्छनवपुधमते्त त्वचं रौरवीम् ॰

मौञ्ज्या मेख या वनयन्दन्त्रतमधोवासश्च मावञ्जष्ठकम्

पाणौ कामुमकमक्षसूत्रव यं दणं्ड परं पैप्प म् ॱ १४ॱ

रेणुकारॄदयानिं भृगुवंशतपन्दस्वनम् ॰

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क्षवत्रयाणामन्तकं पूणां जामदगं्न्य नमाम्हम् ॱ १५ॱ

अव्यक्तव्यक्तरूपाय वनगुमणाय गुणात्मने ॰

समस्तजगदाधारमूतमये ब्रह्मणे नमः ॱ १६ॱ

श्री परशुराम भगवान् ववषु्ण के छठे अवतार हैं॰ पौरावणक वृत्तांतो ंके

अनुसार उनका जन्म भृगुशे्रष्ठ महवषम जमदवि िारा संपन्न पुते्रवष्ट यज्ञ से

प्रसन्न देवराज इंद् के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गभम से वैशाख

शुक्ल तृतीया को रॅआ था॰ वपतामह भृगु िारा संपन्न नामकरण संस्कार

के कारण राम, जमदवि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और वशवजी

िारा प्रदत्त परशु धारण वकए रहने के कारण वह परशुराम कह ाए॰

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॥ श्रीपरशुराम द्वादश नामानन ॥

हररः परशुधारी च रामश्च भृगुनिनः ॰

एकवीरात्मजोववषु्णजाममदग्न्यः प्रतापवान् ॱ १७ॱ

सह्यावद्वासी वीरश्च क्षत्रवजतृ्पवथवीपवतः ॰

इवत िादशनामावन भागमवस्य महात्मनः ॰

यन्दस्त्रका े पठेवन्नतं्य सवमत्र ववजयी भवेत् ॱ १८ॱ

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॥ अथ श्रीपरशुरामसहस्रनामस्तोत्रम् ॥

ॐ रामः श्रीमान्महाववषु्णभामगमवो जमदविजः ॰

तत्त्वरूपी परं ब्रह्म शाश्वतः सवमशन्दक्तधृक् ॱ १ॱ

वरेण्यो वरदः सवमवसन्दधदः कञ्ज ोचनः ॰

राजेन्द्रश्च सदाचारो जामदग्न्यः परात्परः ॱ २ॱ

परमाथैकवनरतो वजतावमत्रो जनादमनः ॰

ऋवष प्रवरवन्धश्च दान्तः शतु्रववनाशनः ॱ ३ॱ

सवमकमाम पववत्रश्च अदीनो दीनसाधकः ॰

अवभवाद्यो महावीरस्तपस्वी वनयमः वप्रयः ॱ ४ॱ

स्वयमू्ः सवमरूपश्च सवामत्मा सवमदृक्प्रभुः ॰

ईशानः सवमदेवावदवमरीयन्ऱवमगोऽरु्च्तः ॱ ५ॱ

सवमज्ञः सवमवेदावदः शरण्यः परमेश्वरः ॰

ज्ञानभाव्योऽपररचे्छद्यः शुवचवामग्मी प्रतापवान् ॱ ६ॱ

वजतरेोधो गुडाकेशो द्युवतमानररमदमनः ॰

रेणुकातनयः साक्षादवजतोऽव्यय एव च ॱ ७ॱ

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ववपु ांसो महोरस्कोऽतीन्द्रो वन्द्द्यो दयावनवधः ॰

अनावदभमगवावनन्द्रः सवम ोकाररमदमनः ॱ ८ॱ

सत्यः सत्यव्रतः सत्यसन्धः परमधावममकः ॰

ोकात्मा ोककृल्रोकवन्द्द्यः सवममयो वनवधः ॱ ९ॱ

वश्यो दया सुधीगोप्ता दक्षः सवैकपावनः ॰

ब्रह्मण्यो ब्रह्मचारी च ब्रह्म ब्रह्मप्रकाशकः ॱ १०ॱ

सुिरोऽवजनवासाश्च ब्रह्मसूत्रधरः समः ॰

सौम्ो महवषमः शान्तश्च मौञ्जीभृिण्डधारकः ॱ ११ॱ

कोदण्डी सवमवजत्छत्रदपमहा पुण्यवधमनः ॰

सवमवजच्छतु्रदपमहाकववब्रमह्मवषम वरदः कमण्ड ुधरः कृती ॱ १२ॱ

महोदारोऽतु ो भाव्यो वजतषड्वगममण्ड ः ॰

कान्तः पुण्यः सुकीवतमश्च विभुजश्चावद पूरुषः ॱ १३ॱ

अकल्मषो दुराराध्ः सवामवासः कृतागमः ॰

वीयमवान्दन्द्स्मतभाषी च वनवृत्तात्मा पुनवमसुः ॱ १४ॱ

अध्ात्मयोगकुश ः सवामयुधववशारदः ॰

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यज्ञस्वरूपी यजे्ञशो यज्ञपा ः सनातनः ॱ १५ॱ

घनश्यामः सृ्मवतः शूरो जरामरणववजमतः ॰

धीरो दान्तः सुरूपश्च सवमतीथममयो वववधः ॱ १६ॱ

धीरोदात्तः स्वरूपश्चवणी वणामश्रमगुरुः सवमवजतु्परुषोऽव्ययः ॰

वशववशक्षापरो युक्तः परमात्मा परायणः ॱ १७ॱ

प्रमाण रूपो दुजे्ञयः पूणमः रूेरः रेतुववमभुः ॰

आनिोऽथ गुणशे्रष्ठोऽनन्तदृवष्टगुमणाकरः ॱ १८ॱ

धनुधमरो धनुवेदः सन्दिदानिववग्रहः ॰

जनेश्वरो ववनीतात्मा महाकायस्तपन्दस्वराट् ॱ १९ॱ

अन्दख ाद्यो ववश्वकमाम ववनीतात्मा ववशारदः ॰

अक्षरः केशवः साक्षी मरीवचः सवमकामदः ॱ २०ॱ

कल्याणः प्रकृवत कल्पः सवेशः पुरुषोत्तमः ॰

ोकाध्क्षो गभीरोऽथ सवमभक्तवरप्रदः ॱ २१ॱ

योवतरानिरूपश्च वह्नीरक्षय आश्रमी ॰

भूभुमवःस्वस्तपोमूती रववः परशुधृक् स्वराट् ॱ २२ॱ

बरॅशु्रतः सत्यवादी भ्रावजषु्णः सहनो ब ः ॰

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सुखदः कारणं भोक्ता भवबन्ध ववमोक्षकृत् ॱ २३ॱ

संसारतारको नेता सवमदुःखववमोक्षकृत् ॰

देवचूडामवणः कुिः सुतपा ब्रह्मवधमनः ॱ २४ॱ

वनत्यो वनयतकल्याणः शुधात्माथ पुरातनः ॰

दुःस्वप्ननाशनो नीवतः वकरीटी स्किदपमरॄत् ॱ २५ॱ

अजुमनः प्राणहा वीरः सहस्रभुजवजधरीः ॰

क्षवत्रयान्तकरः शूरः वक्षवतभारकरान्तकृत् ॱ २६ॱ

परश्वधधरो धन्री रेणुकावाक्यतत्परः ॰

वीरहा ववषमो वीरः वपतृवाक्यपरायणः ॱ २७ॱ

मातृप्राणद ईशश्च धममतत्त्वववशारदः ॰

वपतृरेोधहरः रेोधः सप्तवजह्वसमप्रभः ॱ २८ॱ

स्वभावभद्ः शतु्रघ्नः थथाणुः शमु्श्च केशवः ॰

थथववष्ठः थथववरो बा ः सूक्ष्मो क्ष्यद्युवतममहान् ॱ २९ॱ

ब्रह्मचारी ववनीतात्मा रुद्ाक्षव यः सुधीः ॰

अक्षकणमः सहस्रांशुदीप्तः कैवल्यतत्परः ॱ ३०ॱ

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आवदत्यः का रुद्श्च का चरेप्रवतमकः ॰

कवची कुण्ड ी खड्गी चरेी भीमपरारेमः ॱ ३१ॱ

मृतु्यञ्जयो वीर वसंहो जगदात्मा जगद्गुरुः ॰

अमृतु्यजमन्मरवहतः का ज्ञानी महापटुः ॱ ३२ॱ

वनष्क ङ्को गुणग्रामोऽवनववमण्णः स्मररूपधृक् ॰

अवनवेद्यः शतावतो दण्डो दमवयता दमः ॱ ३३ॱ

प्रधानस्तारको धीमांस्तपस्वी भूतसारवथः ॰

अहः संवत्सरो योगी संवत्सरकरो विजः ॱ ३४ॱ

शाश्वतो ोकनाथश्च शाखी दण्डी ब ी जटी ॰

का योगी महानिः वतग्ममनु्यः सुवचमसः ॱ ३५ॱ

अमषमणो मषमणात्मा प्रशान्तात्मा रॅताशनः ॰

सवमवासाः सवमचारी सवामधारो ववरोचनः ॱ ३६ॱ

हैमो हेमकरो धमो दुवामसा वासवो यमः ॰

उग्रतेजा महातेजा जयो ववजयः का वजत् ॱ ३७ॱ

सहस्रहस्तो ववजयो दुधमरो यज्ञभागभुक् ॰

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अविर्ज्ाम ी महार्ज्ा स्त्ऱवतधूमो रॅतो हववः ॱ ३८ॱ

स्वन्दस्तदः स्वन्दस्तभागश्च महान्द्भगमः परो युवा ॰

महत्पादो महाहस्तो बृहत्कायो महायशाः ॱ ३९ॱ

महाकवटममहाग्रीवो महाबारॅममहाकरः ॰

महानासो महाकमु्बममहामायः पयोवनवधः ॱ ४०ॱ

महावक्षा महौजाश्च महाकेशो महाजनः ॰

महामूधाम महामात्रो महाकणो महाहनुः ॱ ४१ॱ

वृक्षाकारो महाकेतुममहादंष्टर ो महामुखः ॰

एकवीरो महावीरो वसुदः का पूवजतः ॱ ४२ॱ

महामेघवननादी च महाघोषो महाद्युवतः ॰

शैवः शैवागमाचारी हैहयानां कु ान्तकः ॱ ४३ॱ

सवमगुह्यमयो वज्री बरॅ ः कममसाधनः ॰

कामी कवपः कामपा ः कामदेवः कृतागमः ॱ ४४ॱ

पिववंशवततत्त्वज्ञः सवमज्ञः सवमगोचरः ॰

ोकनेता महानादः का योगी महाब ः ॱ ४५ॱ

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असङ्येयोऽप्रमेयात्मा वीयमकृिीयमकोववदः ॰

वेदवेद्यो ववयद्गोप्ता सवाममरमुनीश्वरः ॱ ४६ॱ

सुरेशः शरणं शमम शब्दब्रह्म सतां गवतः ॰

वन ेपो वनष्प्रपिात्मा वनव्यमग्रो व्यग्रनाशनः ॱ ४७ॱ

शुधः पूतः वशवारम्ः सहस्रभुजवजधररः ॰

वनरवद्यपदोपायः वसन्दधदः वसन्दधसाधनः ॱ ४८ॱ

चतुभुमजो महादेवो वू्यढोरस्को जनेश्वरः ॰

द्युमवणस्तरवणधमन्यः कातमवीयम ब ापहा ॱ ४९ॱ

क्ष्मणाग्रजवन्द्द्यश्च नरो नारायणः वप्रयः ॰

एकयोवतवनमरातङ्को मत्स्यरूपी जनवप्रयः ॱ ५०ॱ

सुप्रीतः सुमुखः सूक्ष्मः कूमो वाराहकस्तथा ॰

व्यापको नारवसंहश्च बव वजन्मधुसूदनः ॱ ५१ॱ

अपरावजतः सवमसहो भूषणो भूतवाहनः ॰

वनवृत्तः संवृत्तः वशल्पी कु्षद्हा वनत्य सुिरः ॱ ५२ॱ

स्तव्यः स्तववप्रयः स्तोता व्यासमूवतमरनाकु ः ॰

प्रशान्तबुन्दधरकु्षद्ः सवमसत्त्वाव म्बनः ॱ ५३ॱ

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परमाथमगुरुदेवो मा ी संसारसारवथः ॰

रसो रसज्ञः सारज्ञः कङ्कणीकृतवासुवकः ॱ ५४ॱ

कृष्णः कृष्णसु्ततो धीरो मायातीतो ववमत्सरः ॰

महेश्वरो महीभताम शाकल्यः शवमरीपवतः ॱ ५५ॱ

तटथथः कणमदीक्षादः सुराध्क्षः सुराररहा ॰

धे्योऽग्रधुयो धात्रीशो रुवचन्दस्त्रभुवनेश्वरः ॱ ५६ॱ

कमामध्क्षो वनरा म्बः सवमकाम्ः फ प्रदः ॰

अव्यक्त क्षणो व्यक्तो व्यक्ताव्यक्तो ववशाम्पवतः ॱ ५७ॱ

वत्र ोकात्मा वत्र ोकेशो जगन्नाथो जनेश्वरः ॰

ब्रह्मा हंसश्च रुद्श्च स्रष्टा हताम चतुमुमखः ॱ ५८ॱ

वनममदो वनरहङ्कारो भृगुवंशोिहः शुभः ॰

वेधा ववधाता दु्वहणो देवज्ञो देववचन्तनः ॱ ५९ॱ

कै ासवशखरावासी ब्राह्मणो ब्राह्मणवप्रयः ॰

अथोऽनथो महाकोशो येष्ठः शे्रष्ठः शुभाकृवतः ॱ ६०ॱ

बाणाररदममनो यर्ज्ा विग्धप्रकृवतरवियः ॰

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वरशी ो वरगुणः सत्यकीवतमः कृपाकरः ॱ ६१ॱ

सत्त्ववान् सान्दत्त्वको धमी बुधः कल्की सदाश्रयः ॰

दपमणो दपमहा दपामतीतो दृप्तः प्रवतमकः ॱ ६२ॱ

अमृतांशोऽमृतवपुवामङ्मयः सदसन्मयः ॰

वनधानगभो भूशायी कवप ो ववश्वभोजनः ॱ ६३ॱ

प्रभववषु्णग्रमवसषु्णश्च चतुवमगमफ प्रदः ॰

नारवसंहो महाभीमः शरभः कव पावनः ॱ ६४ॱ

उग्रः पशुपवतभमगो वैद्यः केवशवनषूदनः ॰

गोवविो गोपवतगोप्ता गोपा ो गोपवल्रभः ॱ ६५ॱ

भूतावासो गुहावासः सत्यवासः शु्रतागमः ॰

वनष्कण्टकः सहस्रावचमः विग्धः प्रकृवत क्षणः ॱ ६६ॱ

अकन्दम्पतो गुणग्राही सुप्रीतः प्रीवतवधमनः ॰

पद्मगभो महागभो वज्रगभो ज ोद्भवः ॱ ६७ॱ

गभन्दस्तब्रमह्मकृद्ब्रह्म राजराजः स्वयम्वः ॰

स्वयमु्वः सेनानीरग्रणी साधुबम स्ता ीकरो महान् ॱ ६८ॱ

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पृवथवी वायुरापश्च तेजः खं बरॅ ोचनः ॰

सहस्रमूधाम देवेन्द्रः सवमगुह्यमयो गुरुः ॱ ६९ॱ

अववनाशी सुखारामन्दस्त्र ोकी प्राणधारकः ॰

वनद्ारूपं क्षमा तन्द्रा धृवतमेधा स्वधा हववः ॱ ७०ॱ

होता नेता वशवस्त्राता सप्तवजह्वो ववशुधपात् ॰

स्वाहा हव्यश्च कव्यश्च शतघ्नी शतपाशधृक् ॱ ७१ॱ

आरोहश्च वनरोहश्च तीथमः तीथमकरो हरः ॰

चराचरात्मा सूक्ष्मसु्त वववस्वान् सववतामृतम् ॱ ७२ॱ

तुवष्टः पुवष्टः क ा काष्ठा मासः पक्षसु्त वासरः ॰

ऋतुयुमगावदका सु्त व ङ्गमात्माथ शाश्वतः ॱ ७३ॱ

वचरञ्जीवी प्रसन्नात्मा नकु ः प्राणधारणः ॰

स्वगमिारं प्रजािारं मोक्षिारं वत्रववष्टपम् ॱ ७४ॱ

मुन्दक्त मक्ष्मीस्तथा भुन्दक्तववमरजा ववरजाम्बरः ॰

ववश्वके्षतं्र सदाबीजं पुण्यश्रवणकीतमनः ॱ ७५ॱ

वभकु्षभैकं्ष्य गृहं दारा यजमानश्च याचकः ॰

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पक्षी च पक्षवाहश्च मनोवेगो वनशाचरः ॱ ७६ॱ

गजहा दैत्यहा नाकः पुरुरॆतः पुरुभूतः ॰

बान्धवो बनु्धवगमश्च वपता माता सखा सुतः ॱ ७७ॱ

गायत्रीवल्रभः प्रांशुमामन्धाता भूतभावनः ॰

वसधाथमकारी सवामथमश्छिो व्याकरण शु्रवतः ॱ ७८ॱ

सृ्मवतगामथोपशान्दन्तश्च पुराणः प्राणचञ्ज्चुरः ॰

वामनश्च जगत्का ः सुकृतश्च युगावधपः ॱ ७९ॱ

उद्गीथः प्रणवो भानुः स्किो वैश्रवणस्तथा ॰

अन्तरात्मा रॄषीकेशः पद्मनाभः सु्तवतवप्रयः ॱ ८०ॱ

परश्वधायुधः शाखी वसंहगः वसंहवाहनः ॰

वसंहनादः वसंहदंष्टर ो नगो मिरधृक् शरः ॱ ८१ॱ

सह्याच वनवासी च महेन्द्रकृतसंश्रयः ॰

मनोबुन्दधरहङ्कारः कम ानिवधमनः ॱ ८२ॱ

सनातनतमः स्रग्वी गदी शङ्खी रथाङ्गभृत् ॰

वनरीहो वनववमकल्पश्च समथोऽनथमनाशनः ॱ ८३ॱ

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अकायो भक्तकायश्च माधवोऽथ सुरावचमतः ॰

योधा जेता महावीयमः शङ्करः सन्ततः सु्ततः ॱ ८४ॱ

ववशे्वश्वरो ववश्वमूवतमववमश्वारामोऽथ ववश्वकृत् ॰

आजानुबारॅः सु भः परं योवतः सनातनः ॱ ८५ॱ

वैकुण्ठः पुण्डरीकाक्षः सवमभूताशयन्दथथतः ॰

सहस्रशीषाम पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् ॱ ८६ॱ

ऊर्ध्मरेताः ऊर्ध्मव ङ्गः प्रवरो वरदो वरः ॰

उन्मत्तवेशः प्रच्छन्नः सप्तिीपमहीप्रदः ॱ ८७ॱ

विजधममप्रवतष्ठाता वेदात्मा वेदकृच्छर यः ॰

वनत्यः समू्पणमकामश्च सवमज्ञः कुश ागमः ॱ ८८ॱ

कृपापीयूषज वधधामता कताम परात्परः ॰

अच ो वनमम सृ्तप्तः से्व मवहवि प्रवतवष्ठतः ॱ ८९ॱ

असहायः सहायश्च जगधेतुरकारणः ॰

मोक्षदः कीवतमदशै्चव पे्ररकः कीवतमनायकः ॱ ९०ॱ

अधममशतु्ररक्षोभ्यो वामदेवो महाब ः ॰

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ववश्ववीयो महावीयो श्रीवनवासः सतां गवतः ॱ ९१ॱ

स्वणमवणो वराङ्गश्च सद्योगी च विजोत्तमः ॰

नक्षत्रमा ी सुरवभववमम ो ववश्वपावनः ॱ ९२ॱ

वसन्तो माधवो ग्रीष्मो नभस्यो बीजवाहनः ॰

वनदाघस्तपनो मेघो नभो योवनः पराशरः ॱ ९३ॱ

सुखावन ः सुवनष्पन्नः वशवशरो नरवाहनः ॰

श्रीगभमः कारणं जप्यो दुगमः सत्यपरारेमः ॱ ९४ॱ

आत्मभूरवनरुधश्च दत्ताते्रयन्दस्त्रववरेमः ॰

जमदविबम वनवधः पु स्त्यः पु होऽवङ्गराः ॱ ९५ॱ

वणी वणमगुरुश्चण्डः कल्पवृक्षः क ाधरः ॰

महेन्द्रो दुभमरः वसधो योगाचायो बृहस्पवतः ॱ ९६ॱ

वनराकारो ववशुधश्च व्यावधहताम वनरामयः ॰

अमोघोऽवनष्टमथनो मुकुिो ववगतर्ज्रः ॱ ९७ॱ

स्वयंयोवतगुमरुतमः सुप्रसादोऽच स्तथा ॰

चन्द्रः सूयमः शवनः केतुभूमवमजः सोमनिनः ॱ ९८ॱ

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भृगुममहातपा दीघमतपाः वसधो महागुरुः ॰

मन्त्री मन्त्रवयता मन्त्रो वाग्मी वसुमनाः न्दथथरः ॱ ९९ॱ

अवद्रवद्शयो शमु्मामङ्गल्यो मङ्ग ोवृतः ॰

जयस्तम्ो जगत्स्तम्ो बरॅरूपो गुणोत्तमः ॱ १००ॱ

सवमदेवमयोऽवचन्त्यो देवतात्मा ववरूपधृक् ॰

चतुवेदश्चतुभामवश्चतुरश्चतुरवप्रयः ॱ १०१ॱ

आद्यन्तशून्यो वैकुण्ठः कममसाक्षी फ प्रदः ॰

दृढायुधः स्किगुरुः परमेष्ठी परायणः ॱ १०२ॱ

कुबेरबनु्धः श्रीकण्ठो देवेशः सूयमतापनः ॰

अ ुब्धः सवमशास्त्रज्ञः शास्त्राथमः परमःपुमान् ॱ १०३ॱ

अग्न्यास्यः पृवथवीपादो द्युमूधाम विमूधाम परः ॰

सोमान्तः करणो ब्रह्ममुखः क्षत्रभुजस्तथा ॱ १०४ॱ

वैश्योरुः शूद्पादसु्त नदीसवामङ्गसन्दन्धकः ॰

जीमूतकेशोऽन्दब्धकुवक्षसु्त वैकुण्ठो ववष्टरश्रवाः ॱ १०५ॱ

के्षत्रज्ञः तमसः पारी भृगुवंशोद्भवोऽववनः ॰

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आत्मयोनी रैणुकेयो महादेवो गुरुः सुरः ॱ १०६ॱ

एको नैकोऽक्षरः श्रीशः श्रीपवतदुम ःखभेषजम् ॰

रॄषीकेशोऽथ भगवान् सवामत्मा ववश्वपावनः ॱ १०७ॱ

ववश्वकमामपवगोऽथ म्बोदरशरीरधृक् ॰

अरेोधोऽद्ोह मोहश्च सवमतोऽनन्तदृक्तथा ॱ १०८ॱ

कैवल्यदीपः कैवल्यः साक्षी चेताः ववभावसुः ॰

एकवीरात्मजो भद्ोऽभद्हा कैटभादमनः ॱ १०९ॱ

ववबुधोऽग्रवरः शे्रष्ठः सवमदेवोत्तमोत्तमः ॰

वशवध्ानरतो वदव्यो वनत्ययोगी वजतेन्दन्द्रयः ॱ ११०ॱ

कममसतं्य व्रतिैव भक्तानुग्रहकृधररः ॰

सगमन्दथथत्यन्तकृद्ामो ववद्यारावशगुमरूत्तमः ॱ १११ॱ

रेणुकाप्राणव ङं्ग च भृगुवंश्यः शतरेतुः ॰

शु्रवतमानेकबनु्धश्च शान्तभद्ः समञ्जसः ॱ ११२ॱ

आध्ात्मववद्यासारश्च का भक्षो ववरृङ्ख ः ॰

राजेन्द्रो भूपवतयोगी वनमामयो वनगुमणो गुणी ॱ ११३ॱ

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वहरण्मयः पुराणश्च ब भद्ो जगत्प्रदः ॰

वेदवेदाङ्गपारज्ञः सवमकमाम महेश्वरः ॱ ११४ॱ

ॱ फ शु्रवतः ॱ

एवं नािां सहसे्रण तुष्टाव भृगुवंशजम् ॰

श्रीरामः पूजयामास प्रवणपातपुरःसरम् ॱ १ॱ

कोवटसूयमप्रतीकाशो जटामुकुटभूवषतः ॰

वेदवेदाङ्गपारज्ञः स्वधममवनरतः कववः ॱ २ॱ

र्ज्ा ामा ावृतो धन्री तुष्टः प्राह रघूत्तमम् ॰

सवैश्वयमसमायुकं्त तुभं्य प्रणवत रघूत्तमम् ॱ ३ॱ

प्रादां स्वतेजो वनगमतं तस्मात्प्राववशद्ाघवं ततः ॰

यदा वववनगमतं तेजः ब्रह्माद्याः सक ाः सुराः ॱ ४ॱ

चे ुश्च ब्रह्मसदनं च कमे्प च वसुन्धरा ॰

चे ुश्वच ब्रह्ममदनंददाह भागमवं तेजः प्राने्त वै शतयोजनाम् ॱ ५ॱ

अधस्तादूर्ध्मतशै्चव हाहेवत कृतवाञ्जनः ॰

तदा प्राह महायोगी प्रहसवन्नव भागमवः ॱ ६ॱ

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श्रीभागमव उवाच -

मा भैष्ट सैवनका रामो मत्तो वभन्नो न नामतः ॰

रूपेणाप्रवतमेनावप महदाश्चयममद्भुतम् ॰

संसु्तत्य प्रणायाद्ामः कृताञ्जव पुटो॰ब्रवीत् ॱ ७ॱ

श्रीराम उवाच -

यदू्पं भवतो बं्ध सवम ोकभयङ्करम् ॰

वहतं च जगतां तेन देवानां दुःखनाशनम् ॱ ८ॱ

दुःख शातनम्जनादमन करोम्द्य ववष्णो भृगुकु ोद्भवः ॰

आवशषो देवह ववपे्रन्द्र भागमवस्तदनन्तरम् ॱ ९ॱ

उवाचाशीवमचो योगी राघवाय महात्मने ॰

परं प्रहषममापन्नो भगवान् राममब्रवीत् ॱ १०ॱ

श्रीभागमव उवाच -

धमे दृढतं्व युवध शतु्रघातो यशस्तथादं्य परमं ब ि ॰

योगवप्रयतं्व मम सवन्नकषमः सदासु्त ते राघव राघवेशः ॱ ११ॱ

तुष्टोऽथ राघवः प्राह मया प्रोकं्त स्तवं तव ॰

यः पठेचृ्छणुयािावप श्रावयेिा विजोत्तमान् ॱ १२ॱ

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विजेष्वकोपं वपतृतः प्रसादं शतं समानामुपभोगयुक्तम् ॰

कु े प्रसूवतं मातृतः प्रसादं समां प्रान्दपं्त प्रापु्नयािावप दाक्ष्यम् ॰

प्रीवतं चाग्र्ां बान्धवानां वनरोगम् कु ं प्रसूतैः पौत्रवगैः समेतम् ॱ १३ॱ

अश्वमेध सहसे्रण फ ं भववत तस्य वै ॰

घृतादै्यः िापयेद्ामं थथाल्यां वै क शे न्दथथतम् ॱ १४ॱ

नािां सहसे्रणानेन श्रधया भागमवं हररम् ॰

सोऽवप यज्ञसहस्रस्य फ ं भववत वान्दञ्छतम् ॱ १५ॱ

पूयो भववत रुद्स्य मम चावप ववशेषतः ॰

तस्मान्नािां सहसे्रण पूजयेद्यो जगद्गुरुम् ॱ १६ॱ

जपन्नािां सहसं्र च स यावत परमां गवतम् ॰

श्रीः कीवतमधीधृमवतसु्तवष्टः सन्तवतश्च वनरामया ॱ १७ॱ

अवणमा वघमा प्रान्दप्तरैश्वयामद्याश्च च वसधयः ॰

सवमभूतसुरॄतं्त्व च ोके वृधीः परा मवतः ॱ १८ॱ

भवेत्प्रातश्च मध्ाहं्न सायं च जपतो हरेः ॰

नामावन ध्ायतो राम सावन्नधं् च हरेभमवेत् ॱ १९ॱ

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अयने ववषुवे चैव जपन्द्त्वाव य पुस्तकम् ॰

दद्यािै यो वैष्णवेभ्यो नष्टबन्धो न जायते ॱ २०ॱ

न भवेि कु े तस्य कवश्चल्रक्ष्मीववववजमतः ॰

वरदो भागमवस्तस्य भते च सतां गवतम् ॱ २१ॱ

ॱ इवत श्रीअविपुराणे दाशरवथरामप्रोकं्त श्रीपरशुरामसहस्रनामस्तोतं्र

समू्पणमम् ॱ

श्रीभागमवापमणमसु्त ॰

ॱ श्रीरसु्त ॱ

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॥ परशुरामाष्टान िंशनतनामस्तोत्रम् ॥

श्री गणेशाय नमः ॰

ऋवषरुवाच ॰

यमारॅवामसुदेवांशं हैहयानां कु ान्तकम् ॰

वत्रःसप्तकृत्वो य इमां चरेे वनःक्षवत्रयां महीम् ॱ १ॱ

दुषं्ट क्षतं्र भुवो भारमब्रह्मण्यमनीनशत् ॰

तस्य नामावन पुण्यावन वन्दि ते पुरुषषमभ ॱ २ॱ

भूभारहरणाथामय मायामानुषववग्रहः ॰

जनादमनांशसमू्तः न्दथथतु्यत्पत्त्यप्ययेश्वरः ॱ ३ॱ

भागमवो जामदग्न्यश्च वपत्राज्ञापररपा कः ॰

मातृप्राणप्रदो धीमान् क्षवत्रयान्तकरः प्रभुः ॱ ४ॱ

रामः परशुहस्तश्च कातमवीयममदापहः ॰

रेणुकादुःखशोकघ्नो ववशोकः शोकनाशनः ॱ ५ॱ

नवीननीरदश्यामो रक्तोत्प वव ोचनः ॰

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घोरो दण्डधरो धीरो ब्रह्मण्यो ब्राह्मणवप्रयः ॱ ६ॱ

तपोधनो महेन्द्रादौ न्यस्तदण्डः प्रशान्तधीः ॰

उपगीयमानचररतः वसधगन्धवमचारणैः ॱ ७ॱ

जन्ममृतु्यजराव्यावधदुःखशोकभयावतगः ॰

इत्यष्टाववंशवतनामिामुक्ता स्तोत्रान्दत्मका शुभा ॱ ८ॱ

अनया प्रीयतां देवो जामदग्न्यो महेश्वरः ॰

नेदं स्तोत्रमशान्ताय नादान्तायातपन्दस्वने ॱ ९ॱ

नावेदववदुषे वार्च्मवशष्याय ख ाय च ॰

नासूयकायानृजवे न चावनवदमष्टकाररणे ॱ १०ॱ

इदं वप्रयाय पुत्राय वशष्यायानुगताय च ॰

रहस्यधमो वक्तव्यो नान्यसै्म तु कदाचन ॱ ११ॱ

ॱ इवत परशुरामाष्टाववंशवतनामस्तोतं्र समू्पणमम् ॱ

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॥ श्रीपरशुरामाष्टान िंशनतनामा न िः॥

भूभारभरणाथामय

मायामानुषववग्रहाय नमः

जनादमनांशसमू्ताय नमः ॰

न्दथथतु्यत्पत्त्यप्ययेश्वराय नमः ॰

भागमवाय नमः ॰

जामदग्न्याय नमः ॰

वपत्राज्ञापररपा काय नमः ॰

मातृप्राणप्रदाय नमः ॰

श्रीमते नमः ॰

क्षवत्रयान्तकराय नमः ॰

प्रभवे नमः ॰

रामाय नमः ॰

परशुहस्ताय नमः ॰

कातमवीयममदापहाय नमः ॰

रेणुकादुःखशोकघ्नाय नमः ॰

ववशोकाय नमः ॰

शोकनाशनाय नमः ॰

नवीननीरदश्यामाय नमः ॰

रक्तोत्प वब ोचनाय नमः ॰

घोराय नमः ॰

दण्डधराय नमः ॰

धीराय नमः ॰

ब्रह्मण्याय नमः ॰

ब्राह्मणवप्रयाय नमः ॰

तपोधनाय नमः ॰

महेन्द्राद्ौ न्यस्तदण्डाय नमः ॰

प्रशान्तवधये नमः ॰

वसधगन्धवमचारणैरुपगीयमानच

ररताय नमः ॰

जन्ममृतु्यजराव्यावधदुःखशोकभ

यावतगाय नमः ॱ २८

पायािो जमदविवंशवत को वीरव्रता ङ्कृतो

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रामो नाम मुनीश्वरो नृपवधे भास्वतु्कठारायुधः ॰

येनाशेषहतावहताङ्गरुवधरैः सन्तवपमताः पूवमजाः

भक्त्या चाश्वमखे समुद्वसना भूहमन्तकारीकृता ॱ

ॱ इवत श्रीपरशुरामाष्टाववंशवतनामावव ः समाप्त ॱ

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जमदनि सुतो ीर क्षनत्रयान्तकर प्रभो। गृहाणार्घ्य मया दत्तिं कृपया परमेश्वर।।

सिंक नकताय:

श्री मनीष त्यागी

सिंस्थापक ए िं अध्यक्ष

श्री नहिंदू धमय ैनदक एजुकेशन फाउिंडेशन

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।।ॐ नमो भग ते ासुदे ाय:।।

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