श्री गजानन महाराज पररवार...श्री गजानन...

24
ी गजानन महाराज परवार 1

Upload: others

Post on 30-Jul-2020

32 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    1

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    2

    II श्री गणेशाय नमः II

    II श्री गजानन महाराज का गुरुवार व्रत II

    शगेााँव के श्री गजानन महाराज महाराष्ट्र के ववदर्भ क्षेत्र के एक महान संत थे । वह 23 फ़रवरी 1878 को शगेााँव में प्रगट हुए और 8 ससतंबर 1910 को उन्होंने महा समाधि में प्रवेश ककया। 32 साल के इतने अल्प समय में उन्होंने अपनी लीला से कई र्क्तों पर कृपा की I श्री गजानन महाराज के र्क्तों का मानना है कक वह र्गवान गणेश और र्गवान दत्तात्रये का अवतार है।पोथी में कहा हैं की महाराज समथभ राम दास स्वामी जो सशवाजी के आध्यात्ममक गुरु थे उनका अवतार हैं पर उसकी कोई पुत्ष्ट्ट नही हुइ हैं। आज र्ी श्री गजानन महाराज अपने र्क्तों के कष्ट्ट हरकर उनपर कृपा करते हैं Iअपने र्क्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। श्री गजानन महाराज का यह व्रत शीघ्र फलदायी व शे्रष्ट्ट व्रत है।श्री गजानन महाराज का व्रत कोई र्ी व्यत्क्त कर सकता हैI इस व्रत को करने के ननयम र्ी अमयंत सरल हैI श्री गजानन महाराज अपने र्क्तों की हर इच्छा पूरी करते हैI उनकी कृृ्पा से सर्ी की मनोकामनाएं पूरी होती हैI उनके स्मरण मात्र से जीवन में आ रही बािाओं में कमी होती हैI कहा र्ी जाता है, कक शगेााँव वाले श्री गजानन महाराज कक महहमा का कोई और छोर नहीं हैI श्री गजानन महाराज पर पूणभ समपभण और पूरी श्रद्िा व ववश्वास होना चाहहये I पूरा ववश्वास करने वालों को कर्ी ननराशा का सामना नहीं करना पडता हैI

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    3

    II श्री गजानन महाराज के व्रत के सामान्य ननयम II

    श्री गजानन महाराज के व्रत को कोई र्ी जन कर सकता हैI श्री गजानन महाराज का व्रत एक बार शुरु करने के बाद ननयसमत रुप से ५, ७, १४, २१ गुरुवार तक ककया जाता हैI इस व्रत को कोई र्ी व्यत्क्त श्री गजानन महाराज का नाम लेकर शुरु कर सकता हैI

    व्रत करने के सलये स्नान करने के बाद श्री गजानन महाराज की उदी ( र्र्ूत या Ash) लगानी चाहहए और फोटो या मुती की पूजा करनी चाहहए I ( उदी न हो तो श्री गजानन महाराज के सामने लगाइ गइ अगरबत्ती की राख को आप महाराज का नाम लेकर इस्तमाल कर सकते हैं।

    पूजा का स्थान स्वच्छ करके लाल कपडा ( कोई छोटा रूमाल या कोई र्ी तरह का लाल नया कपडा सलया जा सकता है बबछाकर श्री गजानन महाराज की तस्वीर या मूती रखें ।

    श्री गजानन महाराज के चरणों व मस्तक पर चदंन या अष्ट्टगंि या कुमकुम लगाये I श्री गजानन महाराज को गुलाब या अन्य सुगंधित फूल या माला चढ़ाये I दरुवा अगर

    उपलर्द है तो दरुवा र्ी चढ़ाये Iमहाराज के सामने ईत्तर रूई में र्रकर रख सकते हैं I अगरबती और घी का दीपक या मोमबत्ती या तेल का दीपक या अन्य दीपक जलाकर

    पूजा करनी चाहहए , और श्री गजानन महाराज का स्मरण करना चाहहए I प्राथभना के बाद श्री गजानन महाराज का १०८ नाम, गजानन बावन्नी या गजानन

    चालीसा, गजानन अषटक और श्री गजानन ववजय ग्रंथ का पोथी पारायण करें।पोथी में से या ३ या ७ या १३ या १४ अध्याय करना चाहीए I परीत्स्थती या मनोकामना के अनुकुल पारायण करना चाहीये । या २१ वा अध्याय करना चाहीये I

    ३ अध्याय - स्वस्थ संबत्न्ित समस्या हो ७ अध्याय - बच्चा होने के सलये १३ अध्याय - कोइ र्ी कष्ट्ट हो १४ अध्याय - आथीक समस्या हो (पारायण इच्छानुसार कर सकते हैं I 1 अध्याय 21 हदन 3 अध्याय 7 हदन 7 अध्याय 3 हदन

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    4

    या एक साथ 21 अध्याय एक हदन में बीच में आप चाय पानी के सलये उठ सकते हैं।) इसके बाद नैवेद्य अपभण करना चाहहए I नैवेद्य में फल,समठाई शक्कर या गड़ु या बेसन

    र्ाकर प्याज मीचभ या मोदक या खखचडी या जो र्ी र्ोजन घर में तैयार हो कुछ र्ी रख सकते हैं I यदी कुछ र्ी सम्र्व ना हो तो आप एक छोटे प्याले में दिू शकर र्ी रख सकते है।

    ५, ७, १४, २१ यथाशक्ती दक्षक्षणा रखें I व्रत के हदन त्स्त्रयों को माससक की समस्या से व्रत नहीं हो पा रहा है तो वह गुरूवार को

    संकल्प ककये हुये गुरूवार में नही ले। इस गुरूवार के बदले अगले गुरूवार को व्रत करके संकल्प ककये हुये गुरूवार पूणभ करे।

    ककसी कारणवश ककसी गुरूवार को व्रत नहीं हो पाएाँ तो उस गुरूवार को संकल्प ककये हुये गुरूवार की धगनती में न ले। पररत्स्थनत अनुकूल होते ही आगे के गुरूवार को व्रत करके संकल्प ककये हुये गुरूवार पूणभ करें और उद्यापन करें।

    र्ूखे रहकर इस व्रत को नहीं ककया जाता सकता हैI इस व्रत को फलाहार ग्रहण करके ककया जा सकता है, या कफर एक समय में र्ोजन करके ककया जा सकता हैI इस व्रत में कुछ न कुछ खाना जरुरी हैI

    अन्य व्रत की तरह इस व्रत में र्ी व्रत के हदन परननदंा, झूठ, अपशब्द प्रयोग,झगड़ा आहद नही करना चाहहए।

    अन्य व्रत की तरह इस व्रत में व्रत के हदन मदीरा व मास का सेवन नही करना चाहहए और जुआ र्ी नही खेलना चाहहए।

    इस प्रकार व्रत करने के बाद ५, ७, १४, २१ गुरुवार तक श्री गजानन महाराज के मंहदर जाकर दशभन करना र्ी शुर् रहता हैI घर के ननकट श्री गजानन महाराज मंहदर न हो तो साई बाबा के मंहदर जा सकते हैं I या अन्य कोई मंदीर र्ी जा सकते हैं।अगर कोई मंहदर ननकट न हो तो ईन्टरनेट पर दशभन कर सकते हैं । घर में र्ी श्री गजानन महाराज की फोटों की पूरी श्रद्िा व ववश्वास से पूजा करनी चाहहए I

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    5

    II श्री गजानन महाराज के व्रत उद्यापन II श्री गजानन महाराज के व्रत की संख्या ५, ७, १४, २१ संकल्प अनुसार हो जाने पर अनंतम व्रत के हदन र्ी हमेशा की तरह पंचोपचार पूजा करें। अनंतम व्रत के हदन महाराज से प्राथना करें की आपकक व्रत और उद्यापन की पूजा स्वीकार करके इष्ट्ट मनोकामना पूणभ करें।

    उद्यापन के हदन गरीब व्यत्क्तयों को र्ोजन और सामर्थयभ अनुसार दान देना चाहहए I जो र्क्त ववदेश में रहते हैं और अन्न दान नहीं कर सकते हैं वह अपने दोस्तों या बच्चौं को कुछ र्ी मीठा दे सकते हैं I या ककसी र्ी मंहदर में प्रसाद बांट सकते हैं I

    इसके साथ ही श्री गजानन महाराज की कृृ्पा का प्रचार करने के सलये ५, ७, १४, २१ श्री गजानन पुस्तकें , अपने आस-पास के लोगों में बांटनी चाहहए I या ई-मेल र्ी कर सकते हैं। इस प्रकार इस व्रत को समाप्त ककया जाता है I

    II समर्थ सद्गरुु श्री गजानन महाराज की जय II

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    6

    II श्री गजानन महाराज अष्टोत्तरशतनामावली II

    ॐ अक्षय सखुाय नमः

    ॐ अयोननसभंवाय नमः

    ॐ अनखलशेाय नमः

    ॐ अच्यतुाय नमः

    ॐ अभयाय नमः

    ॐ अभदेाय नमः

    ॐ अनतंाय नमः

    ॐ अभ्यदुयाय नमः

    ॐ अनिपिुाय नमः

    ॐ अखडंाय नमः

    ॐ अनवनानशनेन नमः

    ॐ अमरत्वाय नमः

    ॐ अग्न्यतु्पनत्तकराय नमः

    ॐ अनिशमनाय नमः

    ॐ अर्वथवदेाय नमः

    ॐ अधनथमनाशकाय नमः

    ॐ आत्मकै्याय नमः

    ॐ आशतुोषाय नमः

    ॐ अद्वतैाय नमः

    ॐ उष्णशीयपजथ् याय नमः

    ॐ उपानधरनहताय नमः

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    7

    ॐ एकदतंाय नमः

    ॐ ऐं वाक्यप्रदाय नमः

    ॐ ऐंश्वयाथय नमः

    ॐ ओंकारेश्वराय नमः

    ॐ औदुबंरकल्पवकृ्षाय नमः

    ॐ ऋषय े नमः

    ॐ ऋग्नवदेाय नमः

    ॐ ऋणमोचनाय नमः

    ॐ कनलमलहदहनाय नमः

    ॐ कपपथरगौराय नमः

    ॐ काला्तकाय नमः

    ॐ क्ली कृष्णाय नमः

    ॐ कृतज्ञाय नमः

    ॐ केशवाय नमः

    ॐ कैवल्यधामाय नमः

    ॐ ख ंब्रह्माय नमः

    ॐ ग ंगणपतय ेनमः

    ॐ गणाध्यक्षाय नमः

    ॐ गजाननाय नमः

    ॐ गणुातीताय नमः

    ॐ गोववदंाय नमः

    ॐ घषृ्णशे्र्वराय नमः

    ॐ नचरंजीनवन ेनमः

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    8

    ॐ चतै्याय नमः

    ॐ जगध्दीशाय नमः

    ॐ जगन्नार्ाय नमः

    ॐ जनादथनाय नमः

    ॐ जगध्दीताय नमः

    ॐ नजतेंद्रियाय नमः

    ॐ जीव्मकु्ताय नमः

    ॐ तजेोमयाय नमः

    ॐ नतनमरनाशकाय नमः

    ॐ तत्परुूषाय नमः

    ॐ तयुाथतीताय नमः

    ॐ दयाननधय ेनमः

    ॐ िा ंदत्ताियेाय नमः

    ॐ द्रदव्याय नमः

    ॐ द्रदगंबराय नमः

    ॐ दःुखभजंनाय नमः

    ॐ दवेानधवेाय नमः

    ॐ धमथरक्षकाय नमः

    ॐ निाऽवधपता नमः

    ॐ नारायणाय नमः

    ॐ ननर्वथकाराय नमः

    ॐ ननरंजनाय नमः

    ॐ ननत्यशधु्दाय नमः

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    9

    ॐ परुूषोत्तमाय नमः

    ॐ पनततोध्दारकाय नमः

    ॐ परमात्मन ेनमः

    ॐ पणु्यपरुूषाय नमः

    ॐ परब्रह्मस्वरूनपण ेनमः

    ॐ परमहसंाय नमः

    ॐ प्रत्यक्षाय नमः

    ॐ परोक्षाय नमः

    ॐ परात्पराय नमः

    ॐ प्रसन्नवदवाय नमः

    ॐ परेशाय नमः

    ॐ पापनवमोचनाय नमः

    ॐ ब्रह्माडंनायका नमः

    ॐ ब्रह्मारूपाय नमः

    ॐ भक्तवत्सलाय नमः

    ॐ भक्ततारकाय नमः

    ॐ भजननप्रयाय नमः

    ॐ भागवतधमाथय नमः

    ॐ भपमडंलाचायथ नमः

    ॐ महादवेाय नमः

    ॐ मतृ्युजंयाय नमः

    ॐ महानसध्दाय नमः

    ॐ यजवुदेाय नमः

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    10

    ॐ योगशे्र्वराय नमः

    ॐ रा ंरामाय नमः

    ॐ रामदासाय नमः

    ॐ लबंोदराय नमः

    ॐ नवष्णव ेनमः

    ॐ नवश्वदवेाय नमः

    ॐ वदेपरुषाय नमः

    ॐ वदेनप्रयाय नमः

    ॐ नशवस्वरूपाय नमः

    ॐ शगेावंननवानसन ेनमः

    ॐ स्मतृथगानमन ेनमः

    ॐ स्मरणमािसतंषु्टाय नमः

    ॐ सवथयिंमिंतिंस्वरूपाय नमः

    ॐ सवथसपंषु्टपल्लवस्वरूपाय नमः

    ॐ सवथज्ञाय नमः

    ॐ सनिदानदंायं नमः

    ॐ सामवदेाय नमः

    ॐ श्रीगरुूदवेाय नमः

    ॐ हररहराय नमः

    ॐ ज्ञानशेाय नमः

    अनंतकोरि ब्रह्माडंनायक महाराजानधराज योगीराज

    परब्रह्म सनिदानदं भक्तप्रनतपालक शगेावननवासी

    समर्थ सद्गरुु श्री गजानन महाराज की जय ।।

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    11

    ।। श्री गजानन बावन्नी ।।

    जय जय सद्गरुू गजानना । रक्षक तपची भक्तजना ।।१।।

    ननगुथण तपं परमात्मा तप । सगणु रूपात गजानन तप ।।२।।

    सदहे तप ंपरर नवदहे तप । दहे असनुन दहेातीत तप ।।३।।

    माघ वद्य सप्तमी द्रदनी । शगेावात प्रगिोनी ।।४।।

    उष्या पिावळी नननमत्त । नवदहेत्व तव हो प्रगि ।।५।।

    बकंिलालावरी तझुी । कृपा जाहली ती साची ।।६।।

    गोसाव्याच्या नवसासाठी । गाजंा घसेी लावनुी ओठी ।।७।।

    तव पदतीर् ेवाचनवला । जानराव तो भक्त भला ।।८।।

    जानकीरामा वचंचवण े। नासवनुी स्वरूपी आणण े।।९।।

    मदु्रकन चदंचु ेकानवलॆं । खाऊनन कृतार्थ त्या केल े।।१० ।।

    नवनहरीमाजी जलनवनहना । केल ेदवेा जलभरणा ।।११।।

    मधमाशयाचं ेडखं तवुा । सहन सखु ेकेल ेदेवा ।।१२।।

    त्याचं ेकािे योगबल े। काढुनी सहजी दाखनवल े।।१३।।

    कुस्ती हररशी खळेोनी । शक्ती दशथन घडवोनी ।।१४।।

    वदे म्हणपनी दाखनवला । चद्रकत िनवड ब्राह्मण झाला ।।१५।।

    जळत्या पयथकावरती । ब्रह्मनगरीला य ेप्रनचती ।।१६।।

    िाकळीकर हररदासाचा । अश्व शातं केला साचा ।।१७।।

    बाळकृष्ण बालापपरचा । समर्थ भक्तनच जो होता ।।१८

    रामदास रूप ेत्याला । दशथन दवेनुन तोषनवला ।।१९।।

    सकुलालाची गोमाता । व्दाड बहू होती ताता ।। २०।।

    कृपा तझुी होताचं क्षणी । शांत जाहली ती जननी ।। २१।।

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    12

    घडु ेलक्ष्मण शगेावंी । यतेा व्याधी तपं ननरवी ।। २२।।

    दानंभकता परर ती त्याची । तप न चालवनुन घ ेसाची ।। २३।।

    भास्कर पािील तव भक्त । उद्धररलासी तप त्वररत ।। २४।।

    आज्ञा तव नशरंसा वंद्य । काकनह माननत तुज वंद्य ।। २५।।

    नवनहरीमाजी रनक्षयला । देवा तप ंगणप जवय्राला ।। २६।।

    नपताबंराकरवी लीला । वठला आंबा पल्लनवला ।। २७।।

    सबुदु्धी दशेी जोशयाला । माफ करी तो दडंाला ।। २८।।

    सवडद यरे्ील गगंाभारती । र्ुकुंनन वाररली रक्तनपती ।। २९।।

    पुडंनलकाच ेगडंांतर । ननष्ठा जाणुनन केल ेदपर ।। ३०।।

    ओंकारेश्र्वरी फुिली नौका । तारी नमथदा क्षणातं एका ।। ३१।।

    माधवनार्ा समवते । केल ेभोजन अदषृ्य ।। ३२।।

    लोकमा्य त्या रिळकानंा । प्रसाद तपंची पाठनवला ।। ३३।।

    कवर सतुाची कादंा भाकर । भनक्षलीस त्या प्रमेाखातर ।। ३४।।

    नि बसैनुी गाडीत । लीला दानवली नवपरीत ।। ३५।।

    बायज ेनचत्ती तव भक्ती । पुंडनलकावर नवरक्त प्रीनत ।। ३६।।

    बापुना मनी नवठ्ठल भक्ती । स्वय ेहोनश तपं नवठ्ठल मपर्तथ ।। ३७।।

    कवठयाच्या त्या वारकऱ्याला । मरीपासपनी वाचवीला ।। ३८।।

    वासदुवे यनत तुज भिेे । प्रमेाची ती खपण पिे ।। ३९।।

    उद्धि झाला हवालदार । भनस्मभपत झाल ेघरदार ।। ४०।।

    दहेांताच्या नंतर ही । द्रकतीजणा अनभुव यईे ।। ४१।।

    पडत्या मजरुा झनेलयले े। बघती जन आश्चयथ भल े।। ४२।।

    अगंावरती खबं पड े। स्त्री वाचं ेआश्चयथ घड े।। ४३।।

    गजाननाच्या अद्भतु लीला । अनभुव यतेी आज नमतीला ।। ४४।।

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    13

    शरण जाऊनी गाजानना । दःुख तयात ेकरी कर्ना ।। ४५।।

    कृपा करी तो भक्तासंी । धावुनी येतो वगेसेी ।। ४६।।

    गजाननाची बावन्नी । ननत्य असावी ध्यानीमनी ।। ४७।।

    बावन्न गरुूवारी नमे े। करा पाठ बहु भक्ती ने ।। ४८।।

    नवघ्न ेसारी पळती दपर । सवथ सखुाचा येई पपर ।। ४९।।

    वचतंा साऱ्या दपर करी । सकंिातनुी पार करी ।। ५०।।

    सदाचार रत सद्भक्ता । फळ लाभ ेबघता-बघता ।। ५१।।

    भक्त बोल ेजय बोला । गजाननाची जय बोला ।। ५२।।

    जय बोला हो जय बोला । गजाननाची जय बोला ।।

    अनतंकोरि ब्रह्माडंनायक महाराजानधराज योगीराज

    परब्रह्म सनिदानदं भक्तप्रनतपालक शेगावननवासी

    समर्थ सद्गुरु श्री गजानन महाराज की जय ।।

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    14

    ।। श्री गजानन चालीसा ।।

    अद भतु कृनतयााँ प्रकृनत ग्ररं् में , अगनणत वर्णथत हैं नजनकी ॥

    कनतपय कृनतयााँ चालीसा में , वणथन करता मैं उनकी ॥१॥

    प्रभो गजानन शरण आपकी , अिपि सवेा भनक्त नमल े॥

    सौंप द्रदया यह जीवन सारा , चरण शरण तब शनक्त नमल े॥२॥

    माघ महीना कृष्ण सप्तमी , शके अठारह सौ ही र्ा ॥

    तारीख तवेीस फ़रवरी महीना , वषथ अठारह अठोत्तर र्ा ॥३॥

    प्रगिे र् ेशगेााँव गााँव में , अतं काल तक वहीं रह े॥

    इसके पहल ेकाशी में र्,े दीनक्षत स्यासी रह े॥४॥

    प्रर्म बताया अन्न ब्रह्म ह ै, पानी ईश्वर कहााँ नहीं ॥

    गनणगण कहत ेकरवात ेर् े, राम भजन भी कहीं कहीं ॥५॥

    महाभागवत सनुा सतं मखु , तुबं ेजल न ेचकराया ॥

    जानराव जब मरण तोल र् े, चरण तीर्थ स ेबच पाया ॥६॥

    नचलम जली जब नबना आग स े, सनुा अलौद्रकक गणु भारी ॥

    जन समपह तो अपार उमडा , दशथन लने ेसखु कारी ॥७॥

    इनकार द्रकया जब सनुार न े, उसन ेवसैा फल पाया ॥

    का्होला की करी मााँग जब , माह परुाना भी आया ॥८॥

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    15

    म्ि उजागर हते ुअचानक , नवप्र वदे पाठी आए ॥

    यह भी गरुु की मनहमा ही र्ी , मानो स्वय ंबलुा लाए ॥९॥

    उठ बठैा जब मरा श्वान भी , शषु्क कप प में जल आया ॥

    आया जल भी अर्ाह उसमें , जन समपह बहु चकराया ॥१०॥

    भाग गया सारा जन समपह , स्वामीजी तो रह ेअड े॥

    िपि पडी मध ुमनक्खयााँ कााँिे , श्वास रोक स ेननकल पड े॥११॥

    महापरुुष नरवसहं दवे को , ईश तत्व का ज्ञान द्रदया ॥

    कमथ भनक्त अरूयोग परं् स े, नमलत ेप्रभ ुहैं समझ नलया ॥१२॥

    गवथ ना आव ेननज ननज पर् में , अवशय नसनद्ध उस ेनमलती ॥

    कमल पि सम जग में रहत े, शानंत सतं को तब नमलती ॥१३॥

    भास्कर खडुं बड ेभक्त र् े, सवेा स्वामी की करत े॥

    अ्य बधं ुतो हाँसी उडात े, हारे पर सतपर् धरत े॥१४॥

    खडुंजी को पिु नहीं र्ा , गुरु प्रसाद स ेपिु हुआ ॥

    जले कष्ट र्ा खडुंजी को , गुरु कृपा स ेकुछ ना हुआ ॥१५॥

    स्वामीजी के मखु स ेननकली , वदे रुचाए घबराए ॥

    भसुरु भाग ेऐस ेभाग े, ननज ग़लती पर पछ्ताय े॥१६॥

    गरुुजी क्या रामदास भी , बालकृष्ण को चकराया ॥

    बाद द्रदखाकर ननज स्वरूप भी , समझ इस ेभक्तन पाया ॥१७॥

    रामदास का श्लोक श्रवण कर , गुरु गजानन के मखु स े॥

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    16

    कभी गजानन रामदास के , रूप द्रदखाए अतंर स े॥१८॥

    पनुः स्वप्न में समरर् आए , मरेा रूप गजानन ह ै॥

    कभी ना लाना मन में सशंय , समरर् रूप गजानन ह ै॥१९॥

    बालापरु में एक गाय र्ी , सबको र्ी वह दखु दतेी ॥

    द्रकसी तरह गरुुजी तक लाए , सबको छपन ेअब दतेी ॥२०॥

    इस आश्रम में रही हमशेा , सतंनत उसकी अब भी ह ै॥

    कृत्य अलौद्रकक योगीजी के , अमर सवथदा अब भी ह ै॥२१॥

    पनंडतजी के घोड ेकी भी , छुडा दषु्टता भी दी र्ी ॥

    गुरु शरण में पनंडत आए , चरण वदंना अनत की र्ी ॥२२॥

    गुरुकृपा न ेभास्कर जी को , प्राण छप ित ेमोक्ष द्रदया ॥

    अन्न दान भी स्वय ंगरुु न े, भपखों को भर पिे द्रदया ॥२३॥

    याद द्रकया जब गण ुभक्त न े, रक्षा कर उपदशे द्रदया ॥

    बच्च ुगरुु को वस्त्राभपषण , देत ेगरुु न ेनहीं नलया ॥२४॥

    छोड गय ेसब वस्त्राभपषण , हमको इसस ेलाभ नहीं ॥

    हम तो केवल भनक्त चाहत े, धन दौलत का काम नहीं ॥२५॥

    बडुं तात्या नवप्र नाम का , क़र्जथ भार स ेघबराया ॥

    आत्म हत्या करना सोचा , गुरु न ेतब धन बतलाया ॥२६॥

    उसी िव्य स ेक़र्जथ मकु्त हो , गुरु स ेसिा ज्ञान नलया ॥

    अनके लीला बकंि के घर , करके सिा ज्ञान द्रदया ॥२७॥

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    17

    बीच नमथदा नाव गयी जब , बड ेछेद स ेजल आया ॥

    मात ुनमथदा इ्ह ेदखे कर , स्वय ंद्रदखाई ननज माया ॥२८॥

    सबको धीरज द्रदया सतं न े, और कहा रेबा चतरुाई ॥

    जहााँ सतं ह ैवहााँ पणु्य ह ै , पुण्य ना होता दखु दाई ॥२९॥

    रोिी त्र्यबंक भाऊ भक्त की , बड ेप्रमे स ेखाई र्ी ॥

    इस भोजन की करी प्रतीक्षा , गुरुजी को जो भाई र्ी ॥३०॥

    तकुारम के नसर में छर रा , उसको बहेद पीडा र्ी ॥

    गुरुकॄपा स ेनगरा कान स े, हिी परुानी पीडा र्ी ॥३१॥

    सनुा गया ह ैरेल भ्रमण में , ह्ठ योगी तह ेकहलाए ॥

    नतलक सभा में सभापनत र् े, राज योगी भी कहलाए ॥३२॥

    आम्र पडे पर गरुुजी न ेतो , नबना ऋत ुफल बतलाया ॥

    गुरु कृपा स ेपीताम्बर न े, वकृ्ष हरा कर द्रदखलाया ॥३३॥

    कोंडोली में यही वकृ्ष भी , आज अनधक फल दतेा ह ै॥

    कुछ ना असभंव गरुु कृपा स े, आशीष गरुु की लतेा ह ै॥३४॥

    पहुाँच ेजीवन मकु्त नस्र्नत में , शरीर का कुछ भान नहीं ॥

    चररि उनके बड ेअलौद्रकक , भोजन का भी ध्यान नहीं ॥३५॥

    भादव महीना शकु्ल पचंमी , शके अठारह बत्तीस र्ा ॥

    गुरुवार र्ा दहे त्याग का , सन भी उन्नीस सौ दस र्ा ॥३६॥

    अनस्तत्व हमारा यहीं रहगेा , भल ेदहे स ेछुिकारा ॥

    समाधी अदंर दहे रहगेा , बाहर आतम उनजयारा ॥३७॥

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    18

    योगी ही र् ेगरुु गजानन , अब भी व ेदशथन दते े॥

    समाधी का जो दशथन करत े, उनकी अब भी सनुध लते े॥३८॥

    बनी हुई शगेााँव गााँव में , समाधी जो सब ताप हारे ॥

    दशथन करन ेजो भी जात े, उन सबके दखु हरण हारे ॥३९॥

    जगह जगह पर गरुु गजानन , मदं्रदर बनत ेजात ेहैं ॥

    ननत्य ननयम जो दशथन करत े, सातों सखु व ेपात ेहैं ॥४०॥

    कृत्य अलौद्रकक योगीजी के , नत मस्तक स्वीकार करो ॥

    शीश झकुा ह ैगरुु चरणों म े, मम प्रणाम स्वीकार करो ॥

    दोहा

    श्रवण करे या ननत पढे, गुरु की मनहमा कोए

    उसकी पपरण कामना , जो भी मन में होय.े

    II अनतंकोरि ब्रह्माडंनायक महाराजानधराज

    योगीराज परब्रह्म सनिदानदं भक्तप्रनतपालक शगेावननवासी

    समर्थ सद्गरुु श्री गजानन महाराज की जय ।।

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    19

    ।। श्री गजानन महाराज अष्टक ।।

    गजानना गणुागरा परम मगंला पावना,

    अशीच अवघ ेहरी दरुरत तेनव दवुाथसना !

    नस ेनिभवुनामध्य ेतजुनवणे आम्हा ंआसरा,

    करी पदनतावरी बहु दया न रोषा धरा !!

    ननरालसपण ेनस ेघडली अल्प सवेा करी,

    तझुी पनततपावना भिकलो वरृ्ा भपवरी !

    नवसबंत न गाय ती आपनुलया कधी वासरा,

    करी पदनतावरी बहु दया न रोषा धरा !!

    आलास जगी लावण्या परतनुी सवुािे जन,

    समर्थ गरुुराज ज्या भपषवी नाम नारायण !

    म्हणपन तजु प्रार्थना सतत जोडपननया करा,

    करी पदनतावरी बहु दया न रोषा धरा !!

    क्षणातं जल आनणल ेनसपन र्ेंब त्या वानपला,

    क्षणातं गमनाप्रती कररसी इच्छीलले्या स्र्ला !

    क्षणातं स्वरूप ेद्रकती नवनवध धररसी धीवरा,

    करी पदनतावरी बहु दया न रोषा धरा !!

    अगाध करणी तझुी गरुुवरा न लोका ंकळे,

    तलुा त्यजपन व्यर्थ त ेआचररतात नाना खळेु !

    कृपा उदक मागती त्यजनुी गौतमीच्या तीरा,

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    20

    करी पदनतावरी बहु दया न रोषा धरा !!

    समर्थ स्वरूपाप्रती धरुनी साच बाळापरुी,

    तुम्ही प्रकि जाहला सशुील बालकृष्णा घरी !

    हरी स्वरूप घवेपनी द्रदधली भिे भीमातीरा,

    करी पदनतावरी बहु दया न रोषा धरा !!

    सनच्छि नौके प्रती त्व्दीय पाय ह ेलागतां,

    जलातं बडुता तरर नतजसी नमथदा द ेहाता ं!

    अशा तजुनस वाण्या नच समर्थ माझी नगरा,

    करी पदनतावरी बहु दया न रोषा धरा !!

    अता ंन बहु बोलता ंतव पदांबजुा वदं्रदतो,

    पडो नवसर न कदा मदीय हचे मी मागतो !

    तुम्ही वरद पलुा कर धरा गणपच्या नशरा,

    करी पदनतावरी बहु दया न रोषा धरा. !!!!

    अनतंकोरि ब्रह्माडंनायक महाराजानधराज

    योगीराज परब्रह्म सनिदानदं भक्तप्रनतपालक शेगावननवासी

    समर्थ सद्गुरु श्री गजानन महाराज की जय ।।

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    21

    ।। श्री गजानन महाराजाचंी आरती ।।

    जय जय सतनचतस्वरूपा स्वामी गणराया l अवतरलासी भपवर जड -मपढ ताराया ll

    जयदवे जयदवे ll ध.ृll

    ननगुथण ब्रह्म सनातन अव्यय अनवनाशी l नस्र्रचर व्यापनु उरल ेज ेया जगतासी

    तें तप ंतत्त्व खरोखर नन:सशंय अससी l लीलामाि ेधररल ेमानवदहेासी ll १ ll जय

    होऊं न दशेी त्याची जानणव तपं कवणा l करुनन 'गनण गण गणात बोत े' या भजना l

    धाता हररहर गुरुवर तपंनच सखुसदना l नजकड ेपाहाव ेनतकड ेतप ंद्रदससी नयना ll २ ll जय

    लीला अनतं केल्या बकंिसदनास lपिेनवल ेत्या अिीवाचनुन नचलमसे l

    क्षणातं आनणल ेजीवन ननजथल वापीस l केला ब्रह्मनगरीच्या गवाथचा नाश ll ३ ll जय

    व्याधी वारून केल ेकैका ंसपंन्न l करनवल ेभक्तालागी नवट्ठलदशथन l

    भववसधं ुहा ंतरण्या नौका तव चरण l स्वामी दासगणपच ेमा्य करा कवन ll ४ ll जय

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    22

    ।। कपपथरा आरती ।।

    कपपथरगौरं करुणावतारं ससंारसारम भजुगे्िहारम ।

    सदावस्त ंहृदयारनव्द ेभव ंभवानीसनहत ंनमानम ॥

    कपपथर पपरेण मनोहरेण सवुणथ पि ेरजससं्कृतने

    प्रद्रदत्त वासाय वससाय ननत्य ंननराजन ंतेत जगद्रदष कुयाथत II

    ।। प्रार्थना ।।

    सदा सवथदा, योग तझुा घडावा, तझु ेकारणी दहे माझा पडावा ।

    उपके्ष ुनको गणुवतंा अनतंा, रघनुायका मागण ेहनेच आता ।।

    उपासनलेा दढृ चालवाव ेभप-दवे सतंासी सदा नमाव े।

    सत्कमथ योग ेवय घालवाव,े सवाथ मखुी मगंल बोलवाव े।।

    ज्या ज्या रठकाणी मन जाए माझ,े त्या त्या रठकाणी ननज रूप तुझ े।

    मी ठेनवतो मस्तक ज्या रठकाणी, तरे् ेतझु ेसद्गरु पाय दो्ही ।।

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    23

    ।। क्षमा प्रार्थना ।।

    यानन कानन च पापानन ज्मातंर कृताननच |

    तानन तानन नवनशयंनत प्रदनक्षणा पद ेपद े||

    आवाहन ंन जानानम न जानानम तव अचथना |

    पपजा ंचवै न जानानम क्षम्यता ंपरमशे्वर ||

    मिंहीन ंद्रियाहीन ंभनक्तहीन ंसरेुश्वर |

    यत्पपनजत ंमया दवे पररपपण ंतदस्त ुम े||

    अ्यर्ा शरण ंनानस्त त्वमवे शरण ंमम |

    तस्मात कारुण्य भावने रक्ष रक्ष परमशे्वर ||

    ॐ एकदतंाय नवद्मह ेवितुडंाय धीमही

    तन्नो दंतीः प्रचोदयात

    ॐ नारायणाय नवद्मह ेवासदुवेाय धीमही

    तन्नो नवष्णःु प्रचोदयात

    ॐ भास्कराय नवद्मह ेसहस्त्रयनुत कराय धीमही

    तन्नो आद्रदत्यः प्रचोदयात

    ॐ महालक्ष्मीच नवद्मह ेनवष्णपुत्नीच धीमही

    तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात

  • श्री गजानन महाराज पररवार

    24

    ॐ द्रदगंबराय नवद्मह ेअिीपिुाय धीमही

    तन्नो दत्तः प्रचोदयात

    ॐ परं परुुषाय नवद्मह ेपावमानाय धीमही

    तन्नो गजानन प्रचोदयात

    II अनतंकोरि ब्रह्माडंनायक

    महाराजानधराज योगीराज परब्रह्म

    सनिदानदं भक्तप्रनतपालक शगेावननवासी

    समर्थ सद्गरुु श्री गजानन महाराज की जय II