एकांक ñ आ ðद ग Ò या प Ò क ñ आलोचना तो...

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36 () िशवदान ᳲसह चौहान कᳱ दृि मᱶ आलोचना आलोचना मनुय कᳱ ज᭠मजात ᮧवृिᱫ है । ᭜येक पाठक ा एवं ᮰ा होता है , पर उसकᳱ अपनी सीमा होती है । उसी सीमा मᱶ रह कर वह अपना मू᭨यांकन तुत करता है । सािह᭜येितहास मᱶ आᳰद से अंत तक ᳰकसी न ᳰकसी ᱨप मᱶ आलोचना होती रही है । आलोचक कृित के त᭜कालीन पᳯरिथितयᲂ के साथ तादा᭜᭥य थािपत कर उसमᱶ अिभᲦ िवचार धाराᲐ को अपनी पᳯरिथितयᲂ के अनुᱨप समालोचना ᮧतुत करता है । ᳲहदी आलोचना अ᭜यंत ᮧाचीन एवं सुदृढ़ है । िशवदान सह चौहान ने तो ᳲहदी आलोचना को िव᳡ कᳱ सभी भाषाᲐ कᳱ आलोचना से ᮧाचीन माना है । चीन भारतीय आलोचना पर िवचार करते ᱟए चौहान साहब ने िलखा है – “चीन भारतीय आलोचना ᳰकसी एक ही युग कᳱ देन नहᱭ है , बि᭨क अनेक युगᲂ मᱶ ा उसके िवकासᮓम कᳱ धारा ने लगभग दो हजार सालᲂ का िवतार घेरा है । सूकालीन भरतमुिन के नाᲷशाᳫसे ले कर सहवᱭ शता᭣दी मᱶ मुगल साट शाहजहाँ के दरवारी पंिडतराज जगाथ के रसगंगाधरकᳱ रचना के बीच कᳱ दीघᭅ अविध मᱶ सैकड़ᲂ िव᳇ानᲂ और आचायᲄ ने उसका िवकास ᳰकया है । सािह᭜यशाᳫ को इतनी दीघᭅ और सुिवशाल परंपरा िव᳡ कᳱ ᳰकसी भी चीन भाषा अरबी, चीनी, यूनानी, लातीनी मᱶ नहᱭ िमलती 1 बीसवᱭ शता᭣दी के पहले आलोचना श᭣द का ᮧयोग िभ अथᲄ मᱶ ᳰकया जाता था । ᮧाचीन युग मᱶ उसके िलए भाय, टीका, ᳯट᭡पण आᳰद श᭣दᲂ का ᮧचलन था। आधुिनक युग मᱶ समीᭃा, समालोचना और आलोचना आᳰद श᭣दᲂ का ᮧयोग ᳰकया जाता रहा है । इन सभी श᭣दᲂ का अथᭅ गुण-दोष िववेचन ही है। आज आलोचना ᳲहदी सािह᭜य के इितहास मᱶ एक िवधा का ᱨप धारण कर ली है । किवता, कहानी, नाटक, उप᭠यास,

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(क) िशवदान सह चौहान क दि म आलोचना

आलोचना मन य क ज मजात वि ह यक पाठक ा एव ा होता

ह पर उसक अपनी सीमा होती ह उसी सीमा म रह कर वह अपना म याकन

तत करता ह सािह यितहास म आ द स अत तक कसी न कसी प म

आलोचना होती रही ह आलोचक कित क त कालीन प रि थितय क साथ

तादा य थािपत कर उसम अिभ िवचार धारा को अपनी प रि थितय क

अन प समालोचना तत करता ह हदी आलोचना अ यत ाचीन एव सदढ़ ह

िशवदान सह चौहान न तो हदी आलोचना को िव क सभी भाषा क

आलोचना स ाचीन माना ह ाचीन भारतीय आलोचना पर िवचार करत ए

चौहान साहब न िलखा ह ndash ldquo ाचीन भारतीय आलोचना कसी एक ही यग क दन

नह ह बि क अनक यग म ा उसक िवकास म क धारा न लगभग दो हजार

साल का िव तार घरा ह स कालीन भरतमिन क lsquoना शा rsquo स ल कर स हव

शता दी म मगल स ाट शाहजहा क दरवारी पिडतराज जग ाथ क lsquoरसगगाधरrsquo क

रचना क बीच क दीघ अविध म सकड़ िव ान और आचाय न उसका िवकास

कया ह सािह यशा को इतनी दीघ और सिवशाल परपरा िव क कसी भी

ाचीन भाषा ndash अरबी चीनी यनानी लातीनी म नह िमलती rdquo1 बीसव शता दी

क पहल आलोचना श द का योग िभ अथ म कया जाता था ाचीन यग म

उसक िलए भा य टीका ट पण आ द श द का चलन था आधिनक यग म

समी ा समालोचना और आलोचना आ द श द का योग कया जाता रहा ह इन

सभी श द का अथ गण-दोष िववचन ही ह आज आलोचना हदी सािह य क

इितहास म एक िवधा का प धारण कर ली ह किवता कहानी नाटक उप यास

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एकाक आ द ग या प क आलोचना तो िलखी ही जा रही ह साथ ही साथ

आलोचना क भी आलोचना अ यत तजी स क जा रही ह आज क आलोचना

ाचीन काल क आलोचना स दर जा रही ह शा ीय आलोचना धीर-धीर ल सा

होत जा रही ह या ह भी तो वहा रक आलोचना क अन प ाय आलोचक

मनगढ़ आलोचना प ित पर कित का म याकन करत ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह क आलोचना कित क िववचन-िव षण मा नह ह बि क वह कित क

िविश ता पाठक क हणशीलता एव कितकार क दशाबोध म सहायक भी होती

ह कमल र क िवचार को चौहान न इस कार उ लख कया ह ndash ldquoआलोचना क

मान पर शा ीय मतमतातर म न फस कर हम ऐस म य पर दि पात कर सकत ह

जो एक ओर पाठक क सािह यबोध म सहायक हो और दसरी ओर रचनाकार को

व थ दशा द सक आप ऐस आधार क ओर इिगत कर सकत ह आज क समी ा

(Review) धान और पवा ह- य आलोचना मक म य क थान पर व थ और

िवकासशील मान का िनधारण कर सक जो बीज प म आज भी वतमान ह-

आलोचना क चिलत प रपाटी स अलग ापक मानवीय म य क सदभ म ऐस

म य का आधार खोजा जा सकता ह जो आलोचक क स ा पाठक क

हणशीलता और लखक क दशाबोध म सहायक हो सक rdquo2 आज क सदभ म

आलोचना एक हिथयार बन कर रह गयी ह कह कह तो कित गौण रह जाती ह

और आलोचक कितकार क सर पर लठी का हार करता ह िशवदान सह चौहान

का मानना ह आलोचना अध क लाठी बन गयी ह चौहान साहब न इस बात को

प करत ए प िलखा ह ndash ldquoिन य नए-नए सािह य- िस ात क बार म पढ़कर व

वय यह नह तय कर पात क सािह य का स य या ह उसक ता को जाचन का

कोई मानदड हो भी सकता ह या नह और इसीिलए रचना क परख करत

समय सब िस ात को ितलाजिल दकर व कवल अपनी वयि क ित या अपन

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मड को ही करन लगत ह या फर आलोचना को रचना मक सािह य का एक

वत प-िवधान (िजस अ यापक य भाषा म अब िवधा क स ा दी जाती ह)

मानकर िवव य रचना को उपल य बना क अपना उि -चम कार दखान लगत ह

आलोचना अध क लाठी बन गयी ह उसको घमान स अगर रचना का िसर

फटता ह तो फट आलोचक कर ही या सकता ह rdquo3 सच बात तो यह ह क 19व

शता दी तक ाचीन भारतीय का शा क िस ात (रस अलकार विन

व ोि रीित आ द) को म यनजर रखत ए सािह यालोचना करत रह परत 19

व शता दी क प ात हदी सािह य क इितहास म अनक पा ा य िस ात वाद

एव िवचार का चलन आ िजसस आलोचक बच नह पाय भारतीय आलोचक

पर पा ा य िवचार धारा का भाव पड़ा और उ ह िवचार धारा को आधार

बनाकर सािह य का म याकन आलोचक न कया ह आलो य सािह य उनक

िवचार धारा क खम म नह आया तो उस सािह य स िनकाल फकन क कोिशश क

आलोचना और आलोचक आज क चिलत अथ म आधिनक श द ह यह

कहना अनिचत न होगा क आलोचक ही पहल भावक था जो सािह य का म याकन

कर सकता था lsquoभावकrsquo स ता पय ह-स दय या पाठक पाठक स दयपवक सािह य

क गण-दोष का िववचन कर सकता था परत उसका उ य दोष िनकालना मा

नह था िशवदान सह चौहान न िविश पाठक को आलोचक तथा आलोचक का

काय भाषा और िश प का िव षण माना ह हर पाठक का अपना िविश ि व

होता ह इस सदभ म उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी कित को पढ़कर उस पर जो भाव

पड़ता ह कसी अ य पाठक पर पड़ा भाव सवथा वसा ही नह हो सकता

आलोचक भी एक ऐसा ही िविश पाठक ह ndash इसिलए उसक आलोचना उस पर पड़

िविश भाव को ही कर सकती ह ऐसी ि थित म इन िविभ अनभितय

कितय भाव म कोई सामा य त व हो ही या सकता ह िजसका रणा या

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म याकन कया जाए इसिलए आलोचक का काम कसी कित का म याकन करना

नह ह न उसक भाव क परख करना ह न उसम भाव -िवचार या अ य

बात को दखना ह उसका काम तो कवल भाषा और िश प का िव षण करना मा

ह rdquo4 भाषा क मा यम स भाव एव िवचार क अिभ ि होती ह और शली इन

भाव एव िवचार को अिभ करन का कौशल ह अत कसी न कसी प म

आलोचक कित क गण-दोष का िववचन तत करता ह वह गण का िवकास तथा

दोष को दर करन क रणा दता ह आलोचक का उ रदािय व ितहरा ह- पहला

किव या लखक क ित दसरा कित क ित और तीसरा समाज क ित किव या

लखक का आलोचक रक और मागदशक ह कित क गण का िव ापन और दोष का

िववचन और द दशन करा क उसका मह व कट करना उसका मख काय ह और

समाज को कित और कितकार क सदभ म वा तिवक ान कराना स कितय क पठन

क रणा जागत करना और उनक लखक क ित स मान भाव जगाना आलोचक का

सव धान उ रदािय व ह आलोचना या आलोचक क अथ क ापकता पर

िशवदान सह चौहान न िलखा ह ndash ldquo ापक अथ म आलोचना मन य क आ म

चतना ह ndash सािह य और कला क प म िनमाण क ई अपनी अथवान रचना क

सदर-असदर शभ-अशभ स य-अस य प क ित जा त ई चतना ह इसक

प रणम व प ही म य-िन पण क मानदड और िस ात बनत ह य मानदड और

िस ात बदलत जात ह िजस कार दश-काल क िविश प रि थितय स ापक

भाव हण करक सािह य और कला क वि या बदलती जाती ह और इस कार

अतवा जीवन क स य या वा तिवकता का मत छिवय क भाषा म यगानकल

आकलन करती जाती ह कत एक बार जब आलोचना का ज म हो जाता ह तो वह

सािह य-कला क कवल तट थ ा याता या िनरप ा ही नह बनी रहती

सा कितक परपरा और मन य क अ जत ान का समाहार करक और वतमान क

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ऐितहािसक चतना लकर सवदनशील यग- ा आलोचक ाचीन और सामियक

सािह य क कितय का म य आकत ए नए ा या-स क उ ावना भी करता

ह िजसस आलोचना कवल पाठक को सािह य क कितय स पर स दय-म य तथा

चतना- िवकासी मानव सवदना ा करन म ही साहायता नह दती बि क

सािह यकार को भी नई अतदि दान करक उनक आग रचना क नए और

सीमात खोल दती ह आलोचना एक स य शि ह जो सािह य और कला क

धारा का आव यकतानसार िनय ण करती ह तो सािह य और कला म नई

वि य और धारा को िवकास क िलए ो साहन और रणा भी दती ह इस

कार आलोचना वय एक रचना मक या ह rdquo5 अत चौहानजी आलोचना को

एक वत ग िवधा मानत ह भाव क िववचन िशवदान सह चौहान न समाज

क प र य म क ह वह भावजगत और समाज क सबध को अिभ मानत ह

िनरप भाव को वह बि का िवषय मानत ह

िन कष - िशवदान सह चौहान न जहा स ाितक आलोचना क म का

क स म स दय का िववचन करक एक ापक प दान कया वह उ ह न

ावहा रक आलोचना क म यग इितहास मत स दाय और कला मक

अिभ ि आ द को थान दकर अपनी ापक दि का प रचय दया ह उनक

आलोचना मक िवचार क दि िजतनी ौढ़ एव मह वपण ह उतनी ही

अिभ ि शली-प क दि स सरस रोचक एव भवो पादक ह

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(ख) आलोचना क मान

आलोचना क मान स ता पय हndash कसी कित का नापन या तौलन का साधन

या पमाना रचना और रचनाकार क सीमा मह व आ द सिचत करन का

मह वपण साधन आलोचना ह आलोचना का िज करत ही आनयास कित या

कितकार सामन आ जात ह स कत का शा को छोड़ कर आज तक हदी

आलोचना का कोई िनि त मानदड थािपत नह हो पाया ह आलोचना का सीधा

सबध कित स ह कित को आधार बनाकर आलोचक आलोचना करता ह कित

कसी िवशष ि क नीिज भाव िवचार अनभितय क अिभ ि ह भाव

क अिभ ि होन क चलत कित म अलौ कक स ा का सामहार होता ह और यही

उसक आलोचना का माग करता ह रचनाकार िविभ िवचार धारा स

भािवत होता ह अत उसी िवचार धारा क आधार पर उसक रचना क

आलोचना क जाती ह ऐसी आलोचनाए िनराधार एव एकागी होती ह िशवदान

सह चौहान का मानना ह क सािह य क आलोचना जब कसी िस ात या

िवचारधारा का आ ह लकर चलन लगती ह तब वह ावहा रक समी ा तर पर

भी और अ सािह य म भद करना भल जाती ह कसी ि क ि गत

िच आलोचना का मान नह बन सकती मन य क िचया सजीव और

िवकासमान ह य द िच कसी िवचारधारा स जड़ीभत ह तब वह पवा ह

कहलाती ह अत पवा ह आलोचना क कसौटी नह बन सकती िशवदान सह

चौहान क दि इस िवषय पर अ यत व छ ह उ ह न प िलखा ह ndash ldquo िच

िभ ता का िस ात ाचीन काल स मा य ह-यह एक हक़ कत ह िस ात नह -

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ल कन िच कभी भी सािह यालोचना का मानदड नह बनी हrdquo6 कसी एक

आलोचक या पाठक क िच या अ िच उ क सािह य को िनक नह बना सकती

उ क सािह य स ता पय ह मानव म य या वा तिवक स य पर रची गयी वह

सािह य जो आज हमारी स कित क अ य िनिध ह य द lsquoसािह यrsquo सामािजक

सबध अपन यग क क ीय िवचार िश प- ान और नितक मा यता पर रचा गया

ह तब वह कालजयी एव रचना होगा आलोचक को सािह य का म याकन

सामािजक म य एव त कालीन प रि थितय क आधार पर करना चािहए

आलोचना क मान आधार और कसौटी का अित आधिनक ह स कत

सािह य म कई िस ात मा य ह उ ह िस ा त क आधार पर सािह य को दखन-

परखन क सिवधा थी आज नयी चतना और व ािनक यग क िवकास क कारण नय-

नय िस ात िवचार एव ान-िव ान का िवकास आ िजसक चलत हर व त को

दखन-परखन क नज़ रया बदली ह िशवदान सह चौहान न स कत क पाठक एव

आज क स दय म अतर प करत ए िलखा ह- ldquoउन दोन क पाठक भी आज क

अप ा अिधक ब और स कत थ-मन lsquoस कतrsquo श द का योग कया ह lsquoिशि तrsquo

का नह य क आज क पाठक शायद अिधक िशि त ह उन दन सामा य पाठक

कसी एक ही वग क लखक क रचना नह पढ़त थ बि क भारतीय और पा ा य

लािसक सािह य क अित र आधिनक यग क सभी मानववादी महान लखक क

कितय को उनक िच समान उ साह स हण करती थी-इनम सब िवचारधारा

क सािह यकार और समाज िच तक होत थ क त आज क अिधक िशि त पाठक

कवल समाचार प और फ मी पि का स ही अपनी आ याि मक धाप त करत

ह और उनम जो थोड़ स lsquoअितिशि तrsquo ह व का का फॉकनर इज़रा पाउड

ईिलयट सलर आवल आ द कवल अना थावादी लखक क ही रचनाए पढ़त ह

तब क पाठक को आलोचना क मान पर अलग स बहस करन क ज रत नह होती

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थी य क जीवनम य म उनक आ था उनक सािह य का म याकन करन क एक

सहज दि दान कर दती थी िजसस व और िनक उदा और ील और

अ ील मानववादी और मानव ोही का भद समझत थ- कसी कार का कोरा

शाि दक चम कार उ ह अिधक समय तक भलाव म नह डाल पाता था rdquo7 आज क

आलोचक ही नह रचनाकार भी अनक मत-मतातर और वाद-िववाद म फस कर

अपनी वानभित पर दसरी िवचारधारा को आरोिपत कर लता ह िजसक चलत

आलोचना सािह य म अनक िवसगितया फल गयी ह यही कारण ह क आलोचना

का कोई एक िनि त एव वत मानदड थािपत करना अ यत द कर ह

सािह कार समाज का एक अ यत सवदनशील ि होता ह और आलोचक रचना

का म मक पाठक सािह यकार समाज म ा वा तिवक स य और जीवन म य को

अिभ करन म कतना सफल ह इस मम को समझन-समझान का दािय व

आलोचक का ह िशवदान सह चौहान का मानना ह - ldquoसािह यकार और आलोचक

य द वा तिवक जीवन म य को ही भला द या उनक सामािजक िवकितय को ही

मानव सबध का िचरतन स य मान बठ तो उ ह सािह य क ऊटपटाग मयादाए

गढ़न स कोई नह रोक सकता rdquo8 सािह यकार और आलोचक को मानव म य और

वा तिवक स य क ित जाग क रहना अ यत आव यक ह

सािह य एक जीवत या ह प रवतन म िवकास छपा होता ह और िवकास क साथ-साथ सािह य सम एव शि शाली होता ह िविभ िवचार एव

िस ात क चलत सािह य म अनक िवकितया फल गयी ह ाय आलोचक कसी न

कसी िवचारधारा स भािवत ह और उसी दि स सािह य का म याकन करता ह जब कोई आलोचक कसी िवचारधारा या िस ात को आधार मानकर सािह य का िववचन एव म याकन करता ह तब वह आलोचना पवा ह स िसत मानी जायगी

िशवदान सह चौहान न इस त य को और प करत ए िलखा ह ndash ldquoमन य क

िचया और सहानभितया सजीव और िवकासमान व त ह - सम समि वत

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स कित क वातावरण म उनका वत माजन और स कार होता जाता ह और व

ापक मानवीय म य को हण करक उदार शालीन और साि वक बनती जाती ह ल कन सक ण और अनदार िस ात या िवचारधाराए उ ह िन ाण और जड़ बना

दती ह-उनक चौखट म जड़ीभत हो गई िचया ही पवा ह कहलाती ह अत

पवा ह ही समी ा- तर क आलोचना म म याकन क कसौटी बना हो तो पहल उनको तोड़ बगर स ाितक- तर क थापनाए व मान अराजकता को दर करन म

कहा तक सहायक हो सकगी यह स द ध ह rdquo9 िन प एव व तिन आलोचना ही

सािह यकार क िलए रणा दायक होती ह और वह मानवीय म य का उ ाटन करती ह ऐसी ही आलोचना सािह य और सािह यकार म ाण डालती ह और वही आलोचना िचरजीवी होती ह परत ऐसा ब त कम दखा जाता ह डॉ िव नाथ

साद का मानना हndash ldquoव त और म याकन क या यह ह क पहल व त क स ा

ह और बाद म उसक म याकन का काय वणन व य व त का होता ह अत

आलोचना रचना का अनसरण कर यही उिचत ह परत ऐसा हो नह पाता ह ाय

आलोचक अपनी पवा जत धारणा क िनकष पर रचना का म यकन करता ह इसस रचना का कत िवधान उलट जाता ह यह िनषधमलक वहार आलोचना-

क सवािधक उ लखनीय िवसगित हrdquo10 अत आलोचना व त साप होनी

चािहए

िन कषत कहा जा सकता ह क आलोचना कसी कित क ता एव उसक

म य िनधारण का मा यम ह आलोचना सािह य स जीिवत ह सािह य आलोचना

स नह आलोचना का काय कित को सही थान दलाना ह सािह य च क सम

मानव जीवन को ित बिबत करता ह इसिलए उसम जीवन क िविभ तरीय

म य का सघष भी होता ह इसक सही िन कष तक प चन क िलए आलोचक को

ापक दि एव उदार भावना का होना अ यत आव यक ह आलोचना क मान पर

शा ीय मतमतातर म न फसकर ऐस म य पर दि पात कर सकत ह जो एक ओर

पाठक क सािह य बोध म सहायक हो और दसरी ओर रचनाकार को व थ दशा द

सक

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(ग) आलोचना का सामािजक सदभ

lsquoसािह यrsquo सहका रता का तीक ह यह जनता क जीवन क सख-दख हष-

िवषाद आ द क तान बान स बना होता ह सािह य जीवन क ा या होता ह

सािह य क क म मानव होता ह मानव क अनभितय भावना िवचार और

कला का साकार प ही सािह य ह सािह य का रसा वादन पाठक करता ह

स दय पाठक ही आलोचक होता ह आलोचक समाज क अ य ि य स िभ

और अिधक सवदनशील होता ह आलोचक का सीधा सबध सािह य स होता ह और

सािह य का समाज स अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना उिचत होगा

िशवदान सह चौहान का सािह य और सािह यालोचना सबधी िवचार अ यत

नवीन ह उ ह न हदी क ाचीन किवय और नए किवय म भद करत ए िलखा

हndash ldquoपहल किव आ करत थ कत अब नए किव पदा हो गय ह जो किवता न िलख

कर नई किवता िलखत ह िजसका अथ ह क व अपनी किवता म लय और छद क

बधन क तो बात दर कसी भी कार क बधन बदा त नह करत उनक नई

किवता म रस और स दय क खोज थ ह उसम कसी भी प िवचार सामािजक

योजन ापक मानवीय म य आ द क माग करत ही व िबगड़ उठत ह य क व

समझत ह क ऐसा करना उनक ि गत वत ता पर हार ह व कसी

सामािजक दािय व को भी नह मानना चाहत rdquo11 ऐसी ि थित म आलोचक को

सामािजक सदभ म दखना अ यत क ठन हो जाता ह य क बात दािय व क नह

क का ह सािह यकार य द अपन क का पालन नह करता तब आलोचक

अपन दािय व का िनवाह कस कर सकता ह

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आलोचक तट थ होकर सािह य का म यकन करता ह आलोचक को

सािह य सािह यकार और समाज क ित आपन दािय व का पालन करना पड़ता ह

वह कसी भी कित को सामािजक सदभ म दखना चाहता ह कोई कतना भी बड़ा

आलोचक य न हो वह कसी बरी रचना को उ क नह बना सकता ह अत

आलोचक क िलए सामािजकता का िनवाह अित आव यक ह िशवदान सह चौहान

इस बात को इस कार िलखत ह ndash ldquoआलोचक सािह य-जगत का भा य-िवधाता भी

नह ह जो चाह तो खल हाथ अमर व बाट सकता हो कसी आलोचक म यह

शि नह क वह बरी रचना को अपनी म शसा स अमर व दला सक या अपन

कठोर वाक हार स कसी महान रचना को अमर होन स रोक सक इसिलए लखक

य द महान कित व क िबना ही महानता और अमर व पान क मह वका ा पर थोड़ा

सा सयम रखकर आलोचक को अपन दािय व का पालन करन का अवसर द तो

सभव ह क आलोचना क म वसी अराजकता न रह जसी क आज दखाई दती

ह rdquo12 समाज कित और लखक म सबध उसका वा तिवक ान और स कितय क

पठन क रण जगाना आलोचक का वधम ह आलोचक को िवषय का िव तत ान

होना चािहए स दयता क साथ कित और कितकार का िन प िववचन करना

आलोचक का समािजक दािय व ह

आलोचना रचना क होती ह और रचना सामािजक सपि ह रचनाकार अपनी अनभित िवचार एव जीवन दि को एका कर कित म अिभ करता ह आलोचक और रचनाकार दोन अ यो याि त ह कोई कित समाज क िलए कतना उपयोगी ह वह स दय पाठक ही बता सकता ह सािह य म हर समय नई-नई िवचार एव वि या आती रहती ह उसक सामािजकता का अ ययन आलोचक ही करता ह रमश दव क श द म ndash ldquoसजक और सजन य द कसी आलोचक क बौि क

और स कार मानस म स मानीय नह ह तो उसका आलोचना कम बकार ह उस कसी भी रचना पर िवचार एव िववचन का आिधकार नह ह कसी भी सजन क

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पहली शत यह ह क वह कसी भी िवधा म हो और िजस हदी क अिधकाश लोग भल ही िन दा क तरह मान लत ह ल कन उसम मन य क शील का िनवाह आव यक ह कोई आलोचना कसी भी सजक या सजन क वस क िलए नह होती बि क एक सजक को मोहम कर अिधक खर और गभीर होकर सजन क िलए उकसाती भी ह य द आलोचना-कम सजक ह ता कम होता कसी ितब ता स उपजा ितशोधा मक िन दा आ यान होगा तो फर उस आलोचना कहा ही नह जा

सकता rdquo13 आलोचक सािह य को समाज क प र य म रखत ए तठ थ और

व तिन म याकन तत करता ह य क समाज म िवचार क ारा काय

सपा दत होत ह सािह य िवचार का समह होता ह अत सािह य म

िवचार क ग शि सि होकर समाज का नत व करती ह उस भाव एव िवचार को सवसधारण आलोचक ही करता ह समाज स सािह यकार सजन क

रणा एव समा ी ा करता ह तथा वह समाज ारा भािवत होता रहता ह इसी कार समाज पर सािह य का िजतना ापक एव गहरा भाव पड़ता ह उतना अ य कसी साधन का नह पड़ता व तत सािह य समाज स उ प होता ह और

फर समाज को भािवत करता ह इस कार सािह यकार समाज स भािवत होता ह तथा वह समाज को भािवत करता ह आलोचक इस भाव का दशा और दशा

िनधारण करता ह अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना अित अिनवाय ह

िन कष प म कहा जा सकता ह क आलोचना को सामािजक दािय व

िनभाना पड़ता ह धम और दशन क अधोगित क इस यग म सािह य और

आलोचना पर एक अित र िज मदारी अिनवायत आ पड़ी ह सािह य म

पनरिचत जीवन क पदन को मानवता क अत माण क यगीन िवचार वाह क

भर-पर प र य म दखन-परखन क ज रत ह अत आलोचना अपन वधम स ही

अत ववश ह उस र थान क प त करन और समाज को िशि त करन का वह

सा कितक कम अपन हाथ म लन क िलए िववश ह

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(घ) आलोचना क अिनवायता

िशवदान सह चौहान न आलोचना क उपयोिगता और अिनवायता पर नतन

दि कोण आपनाया ह उ ह न सािह य क िलए आलोचना को अिनवाय माना ह

नरश ारा lsquoनव िबहारrsquo क एक अक म उठाया गया ndash या आलोचना अिनवाय

ह इस पर िविव िवचारक न अपना-अपना मत कट कया ह िशवदान सह

चौहान न अपनी गहरी सोच िवल ण ितभा क ारा तत िवषय पर नई सोच

एव िवचार कट कया ह इनका मानना ह क आलोचना रचना क िलए अिनवाय

ह आलोचना क अिनवायता पर िवचार करत ह और जब यह उठता ह क या

आलोचना अिनवाय ह तब अनयास ित उठता ह ndash या रचना अिनवाय ह

या पढ़ना ही अिनवाय ह िशवदान सह चौहान का मानना ह ndash ldquoरचनाकार क

ितभा- मता क तरह आलोचक क ितभा- मता का उठाना भी असगत

नह ह िजस तरह हर लखक रचनाकार नह बन सकता उसी तरह समी क

आलोचक नह बन सकताrdquo14 इस कार िशवदान सह चौहान न नए-नए

को उठाकर इस सदभ म नई आलोचना क ह इसी क मा यम स इस िवषय पर

िवचार-िवमश करना तथा िशवदान सह चौहान क आलोचना दि को दखना

समीचीन होगा

बौि क चतन मनन और अ ययन क दौरान कित क रह य को जानन क

इ छा बढ़ जाती ह यही कारण ह क कसी ि व त थान घटना एव रचना

क ित िवचारशील ि िज ासा क दि स दखन लगता ह वा तिवकता जानन

करन क िलए जब ि अपन मन म उस ि व त थान घटना या रचना क

ित िवचार-िवमश करन लगता ह तभी उसक मन म आलोचना का उदय होता ह

49

ि सोचन और न सोचन म वत होता ह ठीक इसी कार रचनाकार रचना

करन और न करन म वत होता ह पाठक पढ़न और न पढ़न म वत ह और

आलोचक आलोचना करन और न करन म वत ह तब यह िनि त ह क

रचनाकार पाठक और आलोचक वत ता क िलए नह दािय व क िलए जीत ह यह

दािय व अपन-आप क ित रचना क ित रचनाकार क ित समाज क ित रा

क ित तथा िव क ित होता ह अथात दािय व क तर पर आलोचक रचनाकार

तथा पाठक म कोई िवशष अतर नह होता ह िशवदान सह चौहान एक समथ

आलोचक को समथ रचनाकार और समथ रचनाकार को समथ आलोचक मानत ह

उनका प कहना ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर

स िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार हrdquo15 आग चौहान जी न आलोचक क आलोचना करत ए आलोचक क

कई िणया बतात ह जस- सािह य क अनक िवधा पर िलखी आलोचना

अ यापक य आलोचना प -पि का म ित मास नई प तक क र प तक

क सपादक य क प म िलखी गयी आलोचना आ द आलोचक क दािय व का

कवल उनक िलए ही उठता ह जो इन दोन िणय स िभ णी क आलोचक ह

आलोचक का सबध सािह य स होता ह न क िव ान स य द हम व ािनक

श दावली म पानी को H2O कहत ह तो वह ससार म एक ही नाम स (H2O) जाना

जाता ह परत सािह य म lsquoपानीrsquo श द का योग एक जसा नह होता वह कह नीर

कह जल कह मघ कह वि कह चमक कह व-पदाथ कह मान- ित ा या

यश बन जाता ह इस कार पानी का अनक अथ होन क कारण उिचत अथ बोध क

िलए आलोचना अिनवाय ह कहन का ता पय यह ह क आलोचना का सबध

सािह य स ह न क िव ान स कला क आलोचना को िव ान भी मान सकत ह

आलोचना सािह य क िलए कतना अिनवाय ह यह िवचरणीय ह

50

कोई भी सािह यक िवधा कसी एक ि क अपनी सपि नह होती वह

चाह उसक ारा ही िलखी गयी य न हो पर वह उस भाषा क सम त ि य क

िलए हो जाती ह जो उस भाषा क जनकार ह रचनाकार रचना को वत प स

रचता ह फर भी उस सामािजक दािय व एव या का भी यान रखना पड़ता ह

कोई भी रचनाकार अपनी रचना क मा यम स त कालीन प रि थित एव सा कितक

या को बचाय रखन क िलए रचना क सि करता ह एक कार स पाठक ही

आलोचक होता ह lsquoरचनाrsquo क िलए रचनाकार पाठक और आलोचक य तीन

अिनवाय अग ह य द रचना ह तो पाठक ह ग और पाठक ह तो आलोचना अव य

ह गी य द पाठक नह ह तब रचना कसी काम क नह कारण रचनाकार रचना

को अपन िलए नह िलखता इस कार रचना क िलए रक और कारण दोन

पाठक ही होत ह जो भी हो रचनाकार पाठक तथा आलोचक तीन एक-दसर क

आिनवाय अग होत ए भी अलग- अलग वत अि त व रखत ह इसी कारण

रचनाकार वत प स वात सख आ मानद पाता ह आलोचक एक िविश

पाठक होता ह रमश दव न अपन एक लख म िलखा ह ndash ldquoएक बड़ा यापक वग ह

जो अपन क ाई तर तक क रचना का आ वादा मक िववचन करना ही

आलोचना मानता ह यह अव य ह क उसक पास आलोचना िस ात क प भिम

होती ह और स ाितक व आलोचना क मानक या मानदड अपना कर वह रचना क

आलोचना करता ह ऐसा आलोचक कॉट ज स क तरह यह कह सकता ह क य द

नदी पर पल बनान क काम क जाच करायी जायगी तो उसक इजीिनयर को बलाया

जायगा ल कन सािह य क जाच करन क िलए उसक रचनाकार क बजाय आलोचक

को रचना स पी जायगी जहा आलोचना एक सीमा बन गई ह रचना क जाच क

तीन आधार य नह हो सकत ndash एक वह पाठक जो कवल पढ़ता ह आनद लता या

ऊबता ह कत उसको आनद या ऊब ही उसका पाठ ह िजस वह िलख कर

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नह करता ऐसा पाठक िसफ पाठक ही बना रहता ह दसरा होता ह रचनाकार

वय जो कई बार वय अपनी रचना क भद-अभद खोलता ह और रचना क कन-

कन दबाव तनाव भािषक चनौितय अ द स उस जझना पड़ा ह यह प करता

ह इसिलए किवता स ह क साथ भिमका वय िलखन क णाली बड़-बड़

रचनाकार न अपनायी ह तीसरा ह श आलोचक जो रचना क ित अन य क

बजाय अ य भाव स कट होता ह rdquo16 रचनाकार िवषय सगठन क िलए सवथा

वत होता ह वह कसी भी िवषय का चयन कसी भी ि थित म कर सकता ह पर

आलोचक क िलए यह वत ता नह ह य क वह कसी िनि त रचनाकार क

रचना क िवषय पर ही स यक िवचार कट कर सकता ह इसक आग उस छट नह

ह आलोचक उस रचना क तठ थ होकर रचना क शि और सीमा का उ ाटन

करता ह वह रचना क ित अपना दािय व िनभाता ह अपन इस दािय व को

िनभात ए आलोचक रचना क उपयोिगता एव ासिगकता पर भी जोड़ दता ह

िशवदान सह चौहान न प िलखा ह ndash ldquoसािह य का हर पाठक एक कार स

आलोचक होता ह वह कसी कहानी या किवता को पढ़त ही तरत अपना मत कट

कर दता ह क वह अ छी ह बरी ह या असदर ह आलोचक हम उस ही कहत ह

िजसम अपनी ि गत ित या को व तपरक िनणय क साथ समि वत करन क

मता हो और जो रचना क िववचन ारा अपन अनभव-समि वत िनणय को प

अिभ ि दकर साधारण पाठक क दि को भी ि गत ित या क तल स

उठाकर ापक और व तपरक बना सक ता क व रचना स उन सार चतना-िवकासी

म य को ा कर सक जो उसम िनिहत हrdquo17 िनप आलोचना स रचना का

िवकास तो होता ही ह साथ ही साथ रचनाकार क ि व का भी ितफलन होता

ह तथा उसक िवचार एव भाव स समाज का त यदशन भी होता ह यह आलोचना

करन क उपरत ही पता चलता ह क कित या कितकार समाज क िलए कतना

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उपयोगी ह इस िवषय पर दवीशकर अव थी न अपन एक लख lsquoरचना और

आलोचकrsquo म प िलखा ह ndash ldquoम कहना चा गा क समी ा कित और कितकार क

िलए उपयोगी ह सामा य पाठक क िलए उपयोगी ह एव ान क एक िविश शाखा

क प म अपन-आप म भी उपयोगी ह उसक इस प म अपनी वत स ा भी ह

परत इन सभी उपयोिगता क मल म आधारभत या उपजी साम ी वह रचना

िवशष ही होती ह rdquo18

आलोचना क उपयोिगता-अनपयोिगता क िवषय पर चचा करन क िलए कछ

ऐस बद पर िवचार करना आव यक ह िजसस आलोचना क अिनवायता को

प कया जा सक-

आलोचना मर जान पर भी सािह य जदा रहगा- यह एक क पना ह इसस

एक बात यह प होता ह क आलोचना या सािह य जीिवत व त ह इसम वह

चतना ह जो जीव ाणी म होता ह यह चतना य ह य क सािह य म

सािह यकार क सपण चतना क अिभ ि होती ह तब य द हम क पना भी कर

ल क आलोचना मर जायगी तो इसका सीधा अथ यही होगा क जनता क समाज

क एव सािह यकार क चतना मर जायगी इस मर ए समाज म सजना मक क

या कस कार चल पायगी अथात सजना मक पर भी उठ खड़ा होगा

सािह य म राजनीितक सामािजक धा मक आ थक सा कितक एव सािहि यक

सपण ि थितय का वणन कया जाता ह तथा इन सभी प रि थितय का अवलोकन

आलोचना क मा यम स ही सभव ह य द आलोचना ही न हो तब उन प रि थितय

का सही आकलन कस होगा सािह य म सािह यकार क भावना िवचार एव

क पना क अिभ ि कभी शोक क होती ह कभी हष क होती ह तथा कभी वह

सावभौिमकता क िलए होती ह जब हम उसक सपण ि थित क जनकारी लना

53

चाहत ह तब हम आलोचना क आव यकता पड़ती ह कहन का ता पय यह ह क

य द सािह य को जीिवत रखना ह तब आलोचना क मर जान क क पना अधरी ह

ाचीन काल स आलोचना होती रही ह उस समय आलोचक और रचनाकार

सवथा िभ आ करत थ धीर-धीर यह दरी आधिनक काल तक आत-आत ख म सा

हो गया ह आलोचना आज ग क अनक कार क िवधा म स एक ह पहल यह

माना जाता था क जो आलोचना करत ह व रचना नह कर सकत आज बौि क

जीवन म यह माग क जा रही ह क रचनाकार ही आलोचना कर

का का आ वादन आलोचना स न घटता ह न बढ़ता ह ndash यह बात तो

सतही तर पर स य लगती ह पर इसक मम को हम उधड़ कर दख तो आलोचना

सािह य क िलए अिनवाय ह यह कहना न होगा क हर पाठक क समझ सोच एव

भाव क गहराई तक प चना आसान नह ह िजस मम को सामा य पाठक नह

समझ पात उस जगह तक प चन का काय आलोचक करता ह िशवदान सह

चौहान का मानना ह ndash ldquo कसी कित को पढ़कर उस पर जो भाव पड़ता ह कसी

अ य पाठक परपड़ा भाव सवथा वसा ही नह हो सकता आलोचक भी एक ऐसा

ही िविश पाठक ह- इसिलए उसक आलोचना उस पर पड़ िविश भाव को ही

कर सकती ह ऐसी ि थित म इन िविभ अनभितय कितय भाव म कोई

सामा य त व हो ही या सकता ह िजसका षण या म याकन कया जाए rdquo19 यह

ठीक ह क आलोचना स रचना क आ वाद म अतर नह होता पर िजसक ारा

आ वादन कया जाता ह वह कतना व थ ह कतना तद त ह इस पर भी यान

क आव यकता ह जीभ पर कसी व त को रखन पर उस व त का वाद न घटता

ह न बढ़ता ह नाक क पास सगध बदल नह जाती िजतनी जीभ या नाक व थ

होगी उतना ही वाद पण प स िलया जा सकता ह जहा तक रचना का सवाल

ह तो जीभ और नाक का काय आलोचक करता ह आलोचक मलत एक िवशष

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कार का पाठक होता ह हाला क पाठक ही आलोचक होता ह फर भी पाठक और

आलोचक म ताि वक फक ह पाठन क ज रय आलोचक उसक छप ए रह य को भी

खोल कर समाज क सामन प कर दता ह आचाय कसरी कमार न भी आलोचक

को पाठक मानत ह पर आलोचक और पाठक म अतर प कया ह उनका मानना

ह ndash ldquoसामा य पाठक और आलोचक क आ वादन म कछ वसा फक ह जसा द तावज

पर अगठ क छाप लगाना और पढ़कर द तावज करन का ह rdquo20 प प स आचाय

कसरी कमार न पाठक को ही आलोचक मानत ह पर उनका पाठक सामा य पाठक

नह ह एक िवशष कार का पाठक होता ह और चौहानजी न भी िविश पाठक को

ही आलोचक मानत ह

सािह य का आ वादन वयि क तर पर होता ह आलोचक सािह य का

रसा वादन वयि क तर पर ही हण करता ह आलोचक एक सिनि त मानदड

थािपत करना चाहता ह य द कसी िवचार-धारा या वाद स भािवत होकर

मानदड थािपत करता ह तब वह मानदड असमीचीन हो जाता ह आलोचक य द

पवा ह स भािवत वाद क आधार पर अपना मानदड थािपत करता ह तब वह

उस कित का सा यक म याकन नह कर पायगा डॉ िव नाथ साद न इस त य

को प करत ए िलखा ह ndash ldquoउ क आलोचना पवा ह स बचकर चलती ह और

ऐसा तभी सभव ह जब आलोचक का एक पाव अपन यग म तथा एक पाव लखक क

यग म हो अथवा उसक एक आख रस सवदना पर हो तथा दसरी आख लखक क

भाव-िनवदन पर इसस आलोचना क म ामक म याकन क सभावना नह

रहती rdquo21 आलोचना क िलए एक मानदड या फामला क थापना कर उस पर

आलोचना करना ब त क ठन काय ह आलोचना का कोई मानदड तभी सराहनीय

ह जब तक वह कसी िवचारधारा एव वाद स कोई सबध नह रखता

55

पहल सािह य आ तब आलोचना िशवदान सह चौहान न प िलखा ह

क ndash ldquoसािह य स ही आलोचना ह आलोचना स सािह य नह ह rdquo22 इस िवषय पर

चौहानजी न आपना मह वपण िवचार कट कया ह कहन का ता पय यह ह क

वद बड़ा क लबद कद बड़ा क पद या यह भी उठ सकता ह क पहल मग ई

क अड़ा पहल बीज आ क पड़ यह िवचरणीय नह ह यह अपन-अपन

अनभव क बात ह इस कार उ का िहसाब सािह य और आलोचना पर करना

उिचत नह िजस कार मन य क अिनवायता क िलए सािह य िलखा गया उसी

अिनवायता क िलए ही आलोचना उ म सािह य बड़ी ह क आलोचना यह

िववादा पद ह यह भी हम कह सकत ह क सािह यकार बड़ा ह क सािह य

या आलोचक बड़ा ह क आलोचना सि बड़ी ह क सि क ा य ब त उपय

नह ह इस कार सािह य और आलोचना अपनी-अपनी अिनवायता क िलए

अपनी-अपनी जगह पर बड़ी ह

िन कष- आलोचक सािह य सािह यकार और समाज क ित ितब होता

ह आलोचना गण-दोष िववचन सराहना-भ सना और प तक समी ा नह ह वह

सजन और चतन क भी िवधा ह वह जो ग रची जाती ह उस कथा-कहानी स

तौला नह जा सकता ह वह कित और कितकार क अित र सदव एक तीसरी

शि क खोज करती ह कहानी किवता नाटक उप यास या ग क अ य िवधा

म एक आलोचक को कित क साथ तीन तर खोलन होत ह पहला िजस िवधा म

कित ह उस िवधा क त व उस कित का मानक माप-दड या ह दसरी कित क शली

एव स दय िववचन और िव यास कस कार आ ह और तीसरा प ह उसक

आत रक चतना उसका मम उसम िनिहत सवदना िवचार और क पनाशीलता जो

कित का ि व रचती ह इन तीन त व क आधार पर जब आलोचक कितगत

आलोचना करता ह तब कित क िलए आलोचना अिनवाय हो जाता ह

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आलोचना एक सजन या ह

सािह य और आलोचना का सबध अ यो या ीत ह जो सािह य क रचना

या ह वही आलोचना का फक मा इतना ह क सािह य का ल य समाज

होता ह और आलोचना का ल य रचना िशवदान सह चौहान न इस बात को प

करत ए कहत ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर स

िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार ह इसिलए इस आप शा ीय वग करण क तरह अिमट और अल य न

मान ल rdquo23 अत रचना क सजन या को जान िबना आलोचना क सजन या

को अ छी तरह समझी नह जा सकती ह

सािह य वह व त ह िजसम मनोभावा मक क पना मक बौि क तथा

रचना मक त व का समावश होता ह सािह य सजन क या क अतगत

क पना बि भाव तथा शली का होना अिनवाय ह यह उठता ह क

सािह यकार क मल रणा या होती ह िजसक कारण सािह यकार को इन त व

का सहारा लना पड़ता ह सीध स हम कह सकत ह क वह समाज म घटी घटना

क अनभित ह अनभित हम घटना क प ा य करत ह तथा अनभित रचना स पव

हमार दय म कट होती ह जस िबना दख क सख का अनभव नह होता ठीक

उसी कार िबना सख-दख स रचना दोन का िम ण ही का ह हदी क िस

आलोचक आचाय नददलार वाजपयी न lsquoसािह य का योजन आ मानभितrsquo म

िलखा ह ndash ldquoका क रणा अनभित स िमलती ह यह वत एक अनभित त य ह

गो वामी तलसीदास न रामच रतमानस का िनमाण करत समय िलखा था ndash

57

lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

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मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

59

रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

61

सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

62

(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

37

एकाक आ द ग या प क आलोचना तो िलखी ही जा रही ह साथ ही साथ

आलोचना क भी आलोचना अ यत तजी स क जा रही ह आज क आलोचना

ाचीन काल क आलोचना स दर जा रही ह शा ीय आलोचना धीर-धीर ल सा

होत जा रही ह या ह भी तो वहा रक आलोचना क अन प ाय आलोचक

मनगढ़ आलोचना प ित पर कित का म याकन करत ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह क आलोचना कित क िववचन-िव षण मा नह ह बि क वह कित क

िविश ता पाठक क हणशीलता एव कितकार क दशाबोध म सहायक भी होती

ह कमल र क िवचार को चौहान न इस कार उ लख कया ह ndash ldquoआलोचना क

मान पर शा ीय मतमतातर म न फस कर हम ऐस म य पर दि पात कर सकत ह

जो एक ओर पाठक क सािह यबोध म सहायक हो और दसरी ओर रचनाकार को

व थ दशा द सक आप ऐस आधार क ओर इिगत कर सकत ह आज क समी ा

(Review) धान और पवा ह- य आलोचना मक म य क थान पर व थ और

िवकासशील मान का िनधारण कर सक जो बीज प म आज भी वतमान ह-

आलोचना क चिलत प रपाटी स अलग ापक मानवीय म य क सदभ म ऐस

म य का आधार खोजा जा सकता ह जो आलोचक क स ा पाठक क

हणशीलता और लखक क दशाबोध म सहायक हो सक rdquo2 आज क सदभ म

आलोचना एक हिथयार बन कर रह गयी ह कह कह तो कित गौण रह जाती ह

और आलोचक कितकार क सर पर लठी का हार करता ह िशवदान सह चौहान

का मानना ह आलोचना अध क लाठी बन गयी ह चौहान साहब न इस बात को

प करत ए प िलखा ह ndash ldquoिन य नए-नए सािह य- िस ात क बार म पढ़कर व

वय यह नह तय कर पात क सािह य का स य या ह उसक ता को जाचन का

कोई मानदड हो भी सकता ह या नह और इसीिलए रचना क परख करत

समय सब िस ात को ितलाजिल दकर व कवल अपनी वयि क ित या अपन

38

मड को ही करन लगत ह या फर आलोचना को रचना मक सािह य का एक

वत प-िवधान (िजस अ यापक य भाषा म अब िवधा क स ा दी जाती ह)

मानकर िवव य रचना को उपल य बना क अपना उि -चम कार दखान लगत ह

आलोचना अध क लाठी बन गयी ह उसको घमान स अगर रचना का िसर

फटता ह तो फट आलोचक कर ही या सकता ह rdquo3 सच बात तो यह ह क 19व

शता दी तक ाचीन भारतीय का शा क िस ात (रस अलकार विन

व ोि रीित आ द) को म यनजर रखत ए सािह यालोचना करत रह परत 19

व शता दी क प ात हदी सािह य क इितहास म अनक पा ा य िस ात वाद

एव िवचार का चलन आ िजसस आलोचक बच नह पाय भारतीय आलोचक

पर पा ा य िवचार धारा का भाव पड़ा और उ ह िवचार धारा को आधार

बनाकर सािह य का म याकन आलोचक न कया ह आलो य सािह य उनक

िवचार धारा क खम म नह आया तो उस सािह य स िनकाल फकन क कोिशश क

आलोचना और आलोचक आज क चिलत अथ म आधिनक श द ह यह

कहना अनिचत न होगा क आलोचक ही पहल भावक था जो सािह य का म याकन

कर सकता था lsquoभावकrsquo स ता पय ह-स दय या पाठक पाठक स दयपवक सािह य

क गण-दोष का िववचन कर सकता था परत उसका उ य दोष िनकालना मा

नह था िशवदान सह चौहान न िविश पाठक को आलोचक तथा आलोचक का

काय भाषा और िश प का िव षण माना ह हर पाठक का अपना िविश ि व

होता ह इस सदभ म उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी कित को पढ़कर उस पर जो भाव

पड़ता ह कसी अ य पाठक पर पड़ा भाव सवथा वसा ही नह हो सकता

आलोचक भी एक ऐसा ही िविश पाठक ह ndash इसिलए उसक आलोचना उस पर पड़

िविश भाव को ही कर सकती ह ऐसी ि थित म इन िविभ अनभितय

कितय भाव म कोई सामा य त व हो ही या सकता ह िजसका रणा या

39

म याकन कया जाए इसिलए आलोचक का काम कसी कित का म याकन करना

नह ह न उसक भाव क परख करना ह न उसम भाव -िवचार या अ य

बात को दखना ह उसका काम तो कवल भाषा और िश प का िव षण करना मा

ह rdquo4 भाषा क मा यम स भाव एव िवचार क अिभ ि होती ह और शली इन

भाव एव िवचार को अिभ करन का कौशल ह अत कसी न कसी प म

आलोचक कित क गण-दोष का िववचन तत करता ह वह गण का िवकास तथा

दोष को दर करन क रणा दता ह आलोचक का उ रदािय व ितहरा ह- पहला

किव या लखक क ित दसरा कित क ित और तीसरा समाज क ित किव या

लखक का आलोचक रक और मागदशक ह कित क गण का िव ापन और दोष का

िववचन और द दशन करा क उसका मह व कट करना उसका मख काय ह और

समाज को कित और कितकार क सदभ म वा तिवक ान कराना स कितय क पठन

क रणा जागत करना और उनक लखक क ित स मान भाव जगाना आलोचक का

सव धान उ रदािय व ह आलोचना या आलोचक क अथ क ापकता पर

िशवदान सह चौहान न िलखा ह ndash ldquo ापक अथ म आलोचना मन य क आ म

चतना ह ndash सािह य और कला क प म िनमाण क ई अपनी अथवान रचना क

सदर-असदर शभ-अशभ स य-अस य प क ित जा त ई चतना ह इसक

प रणम व प ही म य-िन पण क मानदड और िस ात बनत ह य मानदड और

िस ात बदलत जात ह िजस कार दश-काल क िविश प रि थितय स ापक

भाव हण करक सािह य और कला क वि या बदलती जाती ह और इस कार

अतवा जीवन क स य या वा तिवकता का मत छिवय क भाषा म यगानकल

आकलन करती जाती ह कत एक बार जब आलोचना का ज म हो जाता ह तो वह

सािह य-कला क कवल तट थ ा याता या िनरप ा ही नह बनी रहती

सा कितक परपरा और मन य क अ जत ान का समाहार करक और वतमान क

40

ऐितहािसक चतना लकर सवदनशील यग- ा आलोचक ाचीन और सामियक

सािह य क कितय का म य आकत ए नए ा या-स क उ ावना भी करता

ह िजसस आलोचना कवल पाठक को सािह य क कितय स पर स दय-म य तथा

चतना- िवकासी मानव सवदना ा करन म ही साहायता नह दती बि क

सािह यकार को भी नई अतदि दान करक उनक आग रचना क नए और

सीमात खोल दती ह आलोचना एक स य शि ह जो सािह य और कला क

धारा का आव यकतानसार िनय ण करती ह तो सािह य और कला म नई

वि य और धारा को िवकास क िलए ो साहन और रणा भी दती ह इस

कार आलोचना वय एक रचना मक या ह rdquo5 अत चौहानजी आलोचना को

एक वत ग िवधा मानत ह भाव क िववचन िशवदान सह चौहान न समाज

क प र य म क ह वह भावजगत और समाज क सबध को अिभ मानत ह

िनरप भाव को वह बि का िवषय मानत ह

िन कष - िशवदान सह चौहान न जहा स ाितक आलोचना क म का

क स म स दय का िववचन करक एक ापक प दान कया वह उ ह न

ावहा रक आलोचना क म यग इितहास मत स दाय और कला मक

अिभ ि आ द को थान दकर अपनी ापक दि का प रचय दया ह उनक

आलोचना मक िवचार क दि िजतनी ौढ़ एव मह वपण ह उतनी ही

अिभ ि शली-प क दि स सरस रोचक एव भवो पादक ह

41

(ख) आलोचना क मान

आलोचना क मान स ता पय हndash कसी कित का नापन या तौलन का साधन

या पमाना रचना और रचनाकार क सीमा मह व आ द सिचत करन का

मह वपण साधन आलोचना ह आलोचना का िज करत ही आनयास कित या

कितकार सामन आ जात ह स कत का शा को छोड़ कर आज तक हदी

आलोचना का कोई िनि त मानदड थािपत नह हो पाया ह आलोचना का सीधा

सबध कित स ह कित को आधार बनाकर आलोचक आलोचना करता ह कित

कसी िवशष ि क नीिज भाव िवचार अनभितय क अिभ ि ह भाव

क अिभ ि होन क चलत कित म अलौ कक स ा का सामहार होता ह और यही

उसक आलोचना का माग करता ह रचनाकार िविभ िवचार धारा स

भािवत होता ह अत उसी िवचार धारा क आधार पर उसक रचना क

आलोचना क जाती ह ऐसी आलोचनाए िनराधार एव एकागी होती ह िशवदान

सह चौहान का मानना ह क सािह य क आलोचना जब कसी िस ात या

िवचारधारा का आ ह लकर चलन लगती ह तब वह ावहा रक समी ा तर पर

भी और अ सािह य म भद करना भल जाती ह कसी ि क ि गत

िच आलोचना का मान नह बन सकती मन य क िचया सजीव और

िवकासमान ह य द िच कसी िवचारधारा स जड़ीभत ह तब वह पवा ह

कहलाती ह अत पवा ह आलोचना क कसौटी नह बन सकती िशवदान सह

चौहान क दि इस िवषय पर अ यत व छ ह उ ह न प िलखा ह ndash ldquo िच

िभ ता का िस ात ाचीन काल स मा य ह-यह एक हक़ कत ह िस ात नह -

42

ल कन िच कभी भी सािह यालोचना का मानदड नह बनी हrdquo6 कसी एक

आलोचक या पाठक क िच या अ िच उ क सािह य को िनक नह बना सकती

उ क सािह य स ता पय ह मानव म य या वा तिवक स य पर रची गयी वह

सािह य जो आज हमारी स कित क अ य िनिध ह य द lsquoसािह यrsquo सामािजक

सबध अपन यग क क ीय िवचार िश प- ान और नितक मा यता पर रचा गया

ह तब वह कालजयी एव रचना होगा आलोचक को सािह य का म याकन

सामािजक म य एव त कालीन प रि थितय क आधार पर करना चािहए

आलोचना क मान आधार और कसौटी का अित आधिनक ह स कत

सािह य म कई िस ात मा य ह उ ह िस ा त क आधार पर सािह य को दखन-

परखन क सिवधा थी आज नयी चतना और व ािनक यग क िवकास क कारण नय-

नय िस ात िवचार एव ान-िव ान का िवकास आ िजसक चलत हर व त को

दखन-परखन क नज़ रया बदली ह िशवदान सह चौहान न स कत क पाठक एव

आज क स दय म अतर प करत ए िलखा ह- ldquoउन दोन क पाठक भी आज क

अप ा अिधक ब और स कत थ-मन lsquoस कतrsquo श द का योग कया ह lsquoिशि तrsquo

का नह य क आज क पाठक शायद अिधक िशि त ह उन दन सामा य पाठक

कसी एक ही वग क लखक क रचना नह पढ़त थ बि क भारतीय और पा ा य

लािसक सािह य क अित र आधिनक यग क सभी मानववादी महान लखक क

कितय को उनक िच समान उ साह स हण करती थी-इनम सब िवचारधारा

क सािह यकार और समाज िच तक होत थ क त आज क अिधक िशि त पाठक

कवल समाचार प और फ मी पि का स ही अपनी आ याि मक धाप त करत

ह और उनम जो थोड़ स lsquoअितिशि तrsquo ह व का का फॉकनर इज़रा पाउड

ईिलयट सलर आवल आ द कवल अना थावादी लखक क ही रचनाए पढ़त ह

तब क पाठक को आलोचना क मान पर अलग स बहस करन क ज रत नह होती

43

थी य क जीवनम य म उनक आ था उनक सािह य का म याकन करन क एक

सहज दि दान कर दती थी िजसस व और िनक उदा और ील और

अ ील मानववादी और मानव ोही का भद समझत थ- कसी कार का कोरा

शाि दक चम कार उ ह अिधक समय तक भलाव म नह डाल पाता था rdquo7 आज क

आलोचक ही नह रचनाकार भी अनक मत-मतातर और वाद-िववाद म फस कर

अपनी वानभित पर दसरी िवचारधारा को आरोिपत कर लता ह िजसक चलत

आलोचना सािह य म अनक िवसगितया फल गयी ह यही कारण ह क आलोचना

का कोई एक िनि त एव वत मानदड थािपत करना अ यत द कर ह

सािह कार समाज का एक अ यत सवदनशील ि होता ह और आलोचक रचना

का म मक पाठक सािह यकार समाज म ा वा तिवक स य और जीवन म य को

अिभ करन म कतना सफल ह इस मम को समझन-समझान का दािय व

आलोचक का ह िशवदान सह चौहान का मानना ह - ldquoसािह यकार और आलोचक

य द वा तिवक जीवन म य को ही भला द या उनक सामािजक िवकितय को ही

मानव सबध का िचरतन स य मान बठ तो उ ह सािह य क ऊटपटाग मयादाए

गढ़न स कोई नह रोक सकता rdquo8 सािह यकार और आलोचक को मानव म य और

वा तिवक स य क ित जाग क रहना अ यत आव यक ह

सािह य एक जीवत या ह प रवतन म िवकास छपा होता ह और िवकास क साथ-साथ सािह य सम एव शि शाली होता ह िविभ िवचार एव

िस ात क चलत सािह य म अनक िवकितया फल गयी ह ाय आलोचक कसी न

कसी िवचारधारा स भािवत ह और उसी दि स सािह य का म याकन करता ह जब कोई आलोचक कसी िवचारधारा या िस ात को आधार मानकर सािह य का िववचन एव म याकन करता ह तब वह आलोचना पवा ह स िसत मानी जायगी

िशवदान सह चौहान न इस त य को और प करत ए िलखा ह ndash ldquoमन य क

िचया और सहानभितया सजीव और िवकासमान व त ह - सम समि वत

44

स कित क वातावरण म उनका वत माजन और स कार होता जाता ह और व

ापक मानवीय म य को हण करक उदार शालीन और साि वक बनती जाती ह ल कन सक ण और अनदार िस ात या िवचारधाराए उ ह िन ाण और जड़ बना

दती ह-उनक चौखट म जड़ीभत हो गई िचया ही पवा ह कहलाती ह अत

पवा ह ही समी ा- तर क आलोचना म म याकन क कसौटी बना हो तो पहल उनको तोड़ बगर स ाितक- तर क थापनाए व मान अराजकता को दर करन म

कहा तक सहायक हो सकगी यह स द ध ह rdquo9 िन प एव व तिन आलोचना ही

सािह यकार क िलए रणा दायक होती ह और वह मानवीय म य का उ ाटन करती ह ऐसी ही आलोचना सािह य और सािह यकार म ाण डालती ह और वही आलोचना िचरजीवी होती ह परत ऐसा ब त कम दखा जाता ह डॉ िव नाथ

साद का मानना हndash ldquoव त और म याकन क या यह ह क पहल व त क स ा

ह और बाद म उसक म याकन का काय वणन व य व त का होता ह अत

आलोचना रचना का अनसरण कर यही उिचत ह परत ऐसा हो नह पाता ह ाय

आलोचक अपनी पवा जत धारणा क िनकष पर रचना का म यकन करता ह इसस रचना का कत िवधान उलट जाता ह यह िनषधमलक वहार आलोचना-

क सवािधक उ लखनीय िवसगित हrdquo10 अत आलोचना व त साप होनी

चािहए

िन कषत कहा जा सकता ह क आलोचना कसी कित क ता एव उसक

म य िनधारण का मा यम ह आलोचना सािह य स जीिवत ह सािह य आलोचना

स नह आलोचना का काय कित को सही थान दलाना ह सािह य च क सम

मानव जीवन को ित बिबत करता ह इसिलए उसम जीवन क िविभ तरीय

म य का सघष भी होता ह इसक सही िन कष तक प चन क िलए आलोचक को

ापक दि एव उदार भावना का होना अ यत आव यक ह आलोचना क मान पर

शा ीय मतमतातर म न फसकर ऐस म य पर दि पात कर सकत ह जो एक ओर

पाठक क सािह य बोध म सहायक हो और दसरी ओर रचनाकार को व थ दशा द

सक

45

(ग) आलोचना का सामािजक सदभ

lsquoसािह यrsquo सहका रता का तीक ह यह जनता क जीवन क सख-दख हष-

िवषाद आ द क तान बान स बना होता ह सािह य जीवन क ा या होता ह

सािह य क क म मानव होता ह मानव क अनभितय भावना िवचार और

कला का साकार प ही सािह य ह सािह य का रसा वादन पाठक करता ह

स दय पाठक ही आलोचक होता ह आलोचक समाज क अ य ि य स िभ

और अिधक सवदनशील होता ह आलोचक का सीधा सबध सािह य स होता ह और

सािह य का समाज स अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना उिचत होगा

िशवदान सह चौहान का सािह य और सािह यालोचना सबधी िवचार अ यत

नवीन ह उ ह न हदी क ाचीन किवय और नए किवय म भद करत ए िलखा

हndash ldquoपहल किव आ करत थ कत अब नए किव पदा हो गय ह जो किवता न िलख

कर नई किवता िलखत ह िजसका अथ ह क व अपनी किवता म लय और छद क

बधन क तो बात दर कसी भी कार क बधन बदा त नह करत उनक नई

किवता म रस और स दय क खोज थ ह उसम कसी भी प िवचार सामािजक

योजन ापक मानवीय म य आ द क माग करत ही व िबगड़ उठत ह य क व

समझत ह क ऐसा करना उनक ि गत वत ता पर हार ह व कसी

सामािजक दािय व को भी नह मानना चाहत rdquo11 ऐसी ि थित म आलोचक को

सामािजक सदभ म दखना अ यत क ठन हो जाता ह य क बात दािय व क नह

क का ह सािह यकार य द अपन क का पालन नह करता तब आलोचक

अपन दािय व का िनवाह कस कर सकता ह

46

आलोचक तट थ होकर सािह य का म यकन करता ह आलोचक को

सािह य सािह यकार और समाज क ित आपन दािय व का पालन करना पड़ता ह

वह कसी भी कित को सामािजक सदभ म दखना चाहता ह कोई कतना भी बड़ा

आलोचक य न हो वह कसी बरी रचना को उ क नह बना सकता ह अत

आलोचक क िलए सामािजकता का िनवाह अित आव यक ह िशवदान सह चौहान

इस बात को इस कार िलखत ह ndash ldquoआलोचक सािह य-जगत का भा य-िवधाता भी

नह ह जो चाह तो खल हाथ अमर व बाट सकता हो कसी आलोचक म यह

शि नह क वह बरी रचना को अपनी म शसा स अमर व दला सक या अपन

कठोर वाक हार स कसी महान रचना को अमर होन स रोक सक इसिलए लखक

य द महान कित व क िबना ही महानता और अमर व पान क मह वका ा पर थोड़ा

सा सयम रखकर आलोचक को अपन दािय व का पालन करन का अवसर द तो

सभव ह क आलोचना क म वसी अराजकता न रह जसी क आज दखाई दती

ह rdquo12 समाज कित और लखक म सबध उसका वा तिवक ान और स कितय क

पठन क रण जगाना आलोचक का वधम ह आलोचक को िवषय का िव तत ान

होना चािहए स दयता क साथ कित और कितकार का िन प िववचन करना

आलोचक का समािजक दािय व ह

आलोचना रचना क होती ह और रचना सामािजक सपि ह रचनाकार अपनी अनभित िवचार एव जीवन दि को एका कर कित म अिभ करता ह आलोचक और रचनाकार दोन अ यो याि त ह कोई कित समाज क िलए कतना उपयोगी ह वह स दय पाठक ही बता सकता ह सािह य म हर समय नई-नई िवचार एव वि या आती रहती ह उसक सामािजकता का अ ययन आलोचक ही करता ह रमश दव क श द म ndash ldquoसजक और सजन य द कसी आलोचक क बौि क

और स कार मानस म स मानीय नह ह तो उसका आलोचना कम बकार ह उस कसी भी रचना पर िवचार एव िववचन का आिधकार नह ह कसी भी सजन क

47

पहली शत यह ह क वह कसी भी िवधा म हो और िजस हदी क अिधकाश लोग भल ही िन दा क तरह मान लत ह ल कन उसम मन य क शील का िनवाह आव यक ह कोई आलोचना कसी भी सजक या सजन क वस क िलए नह होती बि क एक सजक को मोहम कर अिधक खर और गभीर होकर सजन क िलए उकसाती भी ह य द आलोचना-कम सजक ह ता कम होता कसी ितब ता स उपजा ितशोधा मक िन दा आ यान होगा तो फर उस आलोचना कहा ही नह जा

सकता rdquo13 आलोचक सािह य को समाज क प र य म रखत ए तठ थ और

व तिन म याकन तत करता ह य क समाज म िवचार क ारा काय

सपा दत होत ह सािह य िवचार का समह होता ह अत सािह य म

िवचार क ग शि सि होकर समाज का नत व करती ह उस भाव एव िवचार को सवसधारण आलोचक ही करता ह समाज स सािह यकार सजन क

रणा एव समा ी ा करता ह तथा वह समाज ारा भािवत होता रहता ह इसी कार समाज पर सािह य का िजतना ापक एव गहरा भाव पड़ता ह उतना अ य कसी साधन का नह पड़ता व तत सािह य समाज स उ प होता ह और

फर समाज को भािवत करता ह इस कार सािह यकार समाज स भािवत होता ह तथा वह समाज को भािवत करता ह आलोचक इस भाव का दशा और दशा

िनधारण करता ह अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना अित अिनवाय ह

िन कष प म कहा जा सकता ह क आलोचना को सामािजक दािय व

िनभाना पड़ता ह धम और दशन क अधोगित क इस यग म सािह य और

आलोचना पर एक अित र िज मदारी अिनवायत आ पड़ी ह सािह य म

पनरिचत जीवन क पदन को मानवता क अत माण क यगीन िवचार वाह क

भर-पर प र य म दखन-परखन क ज रत ह अत आलोचना अपन वधम स ही

अत ववश ह उस र थान क प त करन और समाज को िशि त करन का वह

सा कितक कम अपन हाथ म लन क िलए िववश ह

48

(घ) आलोचना क अिनवायता

िशवदान सह चौहान न आलोचना क उपयोिगता और अिनवायता पर नतन

दि कोण आपनाया ह उ ह न सािह य क िलए आलोचना को अिनवाय माना ह

नरश ारा lsquoनव िबहारrsquo क एक अक म उठाया गया ndash या आलोचना अिनवाय

ह इस पर िविव िवचारक न अपना-अपना मत कट कया ह िशवदान सह

चौहान न अपनी गहरी सोच िवल ण ितभा क ारा तत िवषय पर नई सोच

एव िवचार कट कया ह इनका मानना ह क आलोचना रचना क िलए अिनवाय

ह आलोचना क अिनवायता पर िवचार करत ह और जब यह उठता ह क या

आलोचना अिनवाय ह तब अनयास ित उठता ह ndash या रचना अिनवाय ह

या पढ़ना ही अिनवाय ह िशवदान सह चौहान का मानना ह ndash ldquoरचनाकार क

ितभा- मता क तरह आलोचक क ितभा- मता का उठाना भी असगत

नह ह िजस तरह हर लखक रचनाकार नह बन सकता उसी तरह समी क

आलोचक नह बन सकताrdquo14 इस कार िशवदान सह चौहान न नए-नए

को उठाकर इस सदभ म नई आलोचना क ह इसी क मा यम स इस िवषय पर

िवचार-िवमश करना तथा िशवदान सह चौहान क आलोचना दि को दखना

समीचीन होगा

बौि क चतन मनन और अ ययन क दौरान कित क रह य को जानन क

इ छा बढ़ जाती ह यही कारण ह क कसी ि व त थान घटना एव रचना

क ित िवचारशील ि िज ासा क दि स दखन लगता ह वा तिवकता जानन

करन क िलए जब ि अपन मन म उस ि व त थान घटना या रचना क

ित िवचार-िवमश करन लगता ह तभी उसक मन म आलोचना का उदय होता ह

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ि सोचन और न सोचन म वत होता ह ठीक इसी कार रचनाकार रचना

करन और न करन म वत होता ह पाठक पढ़न और न पढ़न म वत ह और

आलोचक आलोचना करन और न करन म वत ह तब यह िनि त ह क

रचनाकार पाठक और आलोचक वत ता क िलए नह दािय व क िलए जीत ह यह

दािय व अपन-आप क ित रचना क ित रचनाकार क ित समाज क ित रा

क ित तथा िव क ित होता ह अथात दािय व क तर पर आलोचक रचनाकार

तथा पाठक म कोई िवशष अतर नह होता ह िशवदान सह चौहान एक समथ

आलोचक को समथ रचनाकार और समथ रचनाकार को समथ आलोचक मानत ह

उनका प कहना ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर

स िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार हrdquo15 आग चौहान जी न आलोचक क आलोचना करत ए आलोचक क

कई िणया बतात ह जस- सािह य क अनक िवधा पर िलखी आलोचना

अ यापक य आलोचना प -पि का म ित मास नई प तक क र प तक

क सपादक य क प म िलखी गयी आलोचना आ द आलोचक क दािय व का

कवल उनक िलए ही उठता ह जो इन दोन िणय स िभ णी क आलोचक ह

आलोचक का सबध सािह य स होता ह न क िव ान स य द हम व ािनक

श दावली म पानी को H2O कहत ह तो वह ससार म एक ही नाम स (H2O) जाना

जाता ह परत सािह य म lsquoपानीrsquo श द का योग एक जसा नह होता वह कह नीर

कह जल कह मघ कह वि कह चमक कह व-पदाथ कह मान- ित ा या

यश बन जाता ह इस कार पानी का अनक अथ होन क कारण उिचत अथ बोध क

िलए आलोचना अिनवाय ह कहन का ता पय यह ह क आलोचना का सबध

सािह य स ह न क िव ान स कला क आलोचना को िव ान भी मान सकत ह

आलोचना सािह य क िलए कतना अिनवाय ह यह िवचरणीय ह

50

कोई भी सािह यक िवधा कसी एक ि क अपनी सपि नह होती वह

चाह उसक ारा ही िलखी गयी य न हो पर वह उस भाषा क सम त ि य क

िलए हो जाती ह जो उस भाषा क जनकार ह रचनाकार रचना को वत प स

रचता ह फर भी उस सामािजक दािय व एव या का भी यान रखना पड़ता ह

कोई भी रचनाकार अपनी रचना क मा यम स त कालीन प रि थित एव सा कितक

या को बचाय रखन क िलए रचना क सि करता ह एक कार स पाठक ही

आलोचक होता ह lsquoरचनाrsquo क िलए रचनाकार पाठक और आलोचक य तीन

अिनवाय अग ह य द रचना ह तो पाठक ह ग और पाठक ह तो आलोचना अव य

ह गी य द पाठक नह ह तब रचना कसी काम क नह कारण रचनाकार रचना

को अपन िलए नह िलखता इस कार रचना क िलए रक और कारण दोन

पाठक ही होत ह जो भी हो रचनाकार पाठक तथा आलोचक तीन एक-दसर क

आिनवाय अग होत ए भी अलग- अलग वत अि त व रखत ह इसी कारण

रचनाकार वत प स वात सख आ मानद पाता ह आलोचक एक िविश

पाठक होता ह रमश दव न अपन एक लख म िलखा ह ndash ldquoएक बड़ा यापक वग ह

जो अपन क ाई तर तक क रचना का आ वादा मक िववचन करना ही

आलोचना मानता ह यह अव य ह क उसक पास आलोचना िस ात क प भिम

होती ह और स ाितक व आलोचना क मानक या मानदड अपना कर वह रचना क

आलोचना करता ह ऐसा आलोचक कॉट ज स क तरह यह कह सकता ह क य द

नदी पर पल बनान क काम क जाच करायी जायगी तो उसक इजीिनयर को बलाया

जायगा ल कन सािह य क जाच करन क िलए उसक रचनाकार क बजाय आलोचक

को रचना स पी जायगी जहा आलोचना एक सीमा बन गई ह रचना क जाच क

तीन आधार य नह हो सकत ndash एक वह पाठक जो कवल पढ़ता ह आनद लता या

ऊबता ह कत उसको आनद या ऊब ही उसका पाठ ह िजस वह िलख कर

51

नह करता ऐसा पाठक िसफ पाठक ही बना रहता ह दसरा होता ह रचनाकार

वय जो कई बार वय अपनी रचना क भद-अभद खोलता ह और रचना क कन-

कन दबाव तनाव भािषक चनौितय अ द स उस जझना पड़ा ह यह प करता

ह इसिलए किवता स ह क साथ भिमका वय िलखन क णाली बड़-बड़

रचनाकार न अपनायी ह तीसरा ह श आलोचक जो रचना क ित अन य क

बजाय अ य भाव स कट होता ह rdquo16 रचनाकार िवषय सगठन क िलए सवथा

वत होता ह वह कसी भी िवषय का चयन कसी भी ि थित म कर सकता ह पर

आलोचक क िलए यह वत ता नह ह य क वह कसी िनि त रचनाकार क

रचना क िवषय पर ही स यक िवचार कट कर सकता ह इसक आग उस छट नह

ह आलोचक उस रचना क तठ थ होकर रचना क शि और सीमा का उ ाटन

करता ह वह रचना क ित अपना दािय व िनभाता ह अपन इस दािय व को

िनभात ए आलोचक रचना क उपयोिगता एव ासिगकता पर भी जोड़ दता ह

िशवदान सह चौहान न प िलखा ह ndash ldquoसािह य का हर पाठक एक कार स

आलोचक होता ह वह कसी कहानी या किवता को पढ़त ही तरत अपना मत कट

कर दता ह क वह अ छी ह बरी ह या असदर ह आलोचक हम उस ही कहत ह

िजसम अपनी ि गत ित या को व तपरक िनणय क साथ समि वत करन क

मता हो और जो रचना क िववचन ारा अपन अनभव-समि वत िनणय को प

अिभ ि दकर साधारण पाठक क दि को भी ि गत ित या क तल स

उठाकर ापक और व तपरक बना सक ता क व रचना स उन सार चतना-िवकासी

म य को ा कर सक जो उसम िनिहत हrdquo17 िनप आलोचना स रचना का

िवकास तो होता ही ह साथ ही साथ रचनाकार क ि व का भी ितफलन होता

ह तथा उसक िवचार एव भाव स समाज का त यदशन भी होता ह यह आलोचना

करन क उपरत ही पता चलता ह क कित या कितकार समाज क िलए कतना

52

उपयोगी ह इस िवषय पर दवीशकर अव थी न अपन एक लख lsquoरचना और

आलोचकrsquo म प िलखा ह ndash ldquoम कहना चा गा क समी ा कित और कितकार क

िलए उपयोगी ह सामा य पाठक क िलए उपयोगी ह एव ान क एक िविश शाखा

क प म अपन-आप म भी उपयोगी ह उसक इस प म अपनी वत स ा भी ह

परत इन सभी उपयोिगता क मल म आधारभत या उपजी साम ी वह रचना

िवशष ही होती ह rdquo18

आलोचना क उपयोिगता-अनपयोिगता क िवषय पर चचा करन क िलए कछ

ऐस बद पर िवचार करना आव यक ह िजसस आलोचना क अिनवायता को

प कया जा सक-

आलोचना मर जान पर भी सािह य जदा रहगा- यह एक क पना ह इसस

एक बात यह प होता ह क आलोचना या सािह य जीिवत व त ह इसम वह

चतना ह जो जीव ाणी म होता ह यह चतना य ह य क सािह य म

सािह यकार क सपण चतना क अिभ ि होती ह तब य द हम क पना भी कर

ल क आलोचना मर जायगी तो इसका सीधा अथ यही होगा क जनता क समाज

क एव सािह यकार क चतना मर जायगी इस मर ए समाज म सजना मक क

या कस कार चल पायगी अथात सजना मक पर भी उठ खड़ा होगा

सािह य म राजनीितक सामािजक धा मक आ थक सा कितक एव सािहि यक

सपण ि थितय का वणन कया जाता ह तथा इन सभी प रि थितय का अवलोकन

आलोचना क मा यम स ही सभव ह य द आलोचना ही न हो तब उन प रि थितय

का सही आकलन कस होगा सािह य म सािह यकार क भावना िवचार एव

क पना क अिभ ि कभी शोक क होती ह कभी हष क होती ह तथा कभी वह

सावभौिमकता क िलए होती ह जब हम उसक सपण ि थित क जनकारी लना

53

चाहत ह तब हम आलोचना क आव यकता पड़ती ह कहन का ता पय यह ह क

य द सािह य को जीिवत रखना ह तब आलोचना क मर जान क क पना अधरी ह

ाचीन काल स आलोचना होती रही ह उस समय आलोचक और रचनाकार

सवथा िभ आ करत थ धीर-धीर यह दरी आधिनक काल तक आत-आत ख म सा

हो गया ह आलोचना आज ग क अनक कार क िवधा म स एक ह पहल यह

माना जाता था क जो आलोचना करत ह व रचना नह कर सकत आज बौि क

जीवन म यह माग क जा रही ह क रचनाकार ही आलोचना कर

का का आ वादन आलोचना स न घटता ह न बढ़ता ह ndash यह बात तो

सतही तर पर स य लगती ह पर इसक मम को हम उधड़ कर दख तो आलोचना

सािह य क िलए अिनवाय ह यह कहना न होगा क हर पाठक क समझ सोच एव

भाव क गहराई तक प चना आसान नह ह िजस मम को सामा य पाठक नह

समझ पात उस जगह तक प चन का काय आलोचक करता ह िशवदान सह

चौहान का मानना ह ndash ldquo कसी कित को पढ़कर उस पर जो भाव पड़ता ह कसी

अ य पाठक परपड़ा भाव सवथा वसा ही नह हो सकता आलोचक भी एक ऐसा

ही िविश पाठक ह- इसिलए उसक आलोचना उस पर पड़ िविश भाव को ही

कर सकती ह ऐसी ि थित म इन िविभ अनभितय कितय भाव म कोई

सामा य त व हो ही या सकता ह िजसका षण या म याकन कया जाए rdquo19 यह

ठीक ह क आलोचना स रचना क आ वाद म अतर नह होता पर िजसक ारा

आ वादन कया जाता ह वह कतना व थ ह कतना तद त ह इस पर भी यान

क आव यकता ह जीभ पर कसी व त को रखन पर उस व त का वाद न घटता

ह न बढ़ता ह नाक क पास सगध बदल नह जाती िजतनी जीभ या नाक व थ

होगी उतना ही वाद पण प स िलया जा सकता ह जहा तक रचना का सवाल

ह तो जीभ और नाक का काय आलोचक करता ह आलोचक मलत एक िवशष

54

कार का पाठक होता ह हाला क पाठक ही आलोचक होता ह फर भी पाठक और

आलोचक म ताि वक फक ह पाठन क ज रय आलोचक उसक छप ए रह य को भी

खोल कर समाज क सामन प कर दता ह आचाय कसरी कमार न भी आलोचक

को पाठक मानत ह पर आलोचक और पाठक म अतर प कया ह उनका मानना

ह ndash ldquoसामा य पाठक और आलोचक क आ वादन म कछ वसा फक ह जसा द तावज

पर अगठ क छाप लगाना और पढ़कर द तावज करन का ह rdquo20 प प स आचाय

कसरी कमार न पाठक को ही आलोचक मानत ह पर उनका पाठक सामा य पाठक

नह ह एक िवशष कार का पाठक होता ह और चौहानजी न भी िविश पाठक को

ही आलोचक मानत ह

सािह य का आ वादन वयि क तर पर होता ह आलोचक सािह य का

रसा वादन वयि क तर पर ही हण करता ह आलोचक एक सिनि त मानदड

थािपत करना चाहता ह य द कसी िवचार-धारा या वाद स भािवत होकर

मानदड थािपत करता ह तब वह मानदड असमीचीन हो जाता ह आलोचक य द

पवा ह स भािवत वाद क आधार पर अपना मानदड थािपत करता ह तब वह

उस कित का सा यक म याकन नह कर पायगा डॉ िव नाथ साद न इस त य

को प करत ए िलखा ह ndash ldquoउ क आलोचना पवा ह स बचकर चलती ह और

ऐसा तभी सभव ह जब आलोचक का एक पाव अपन यग म तथा एक पाव लखक क

यग म हो अथवा उसक एक आख रस सवदना पर हो तथा दसरी आख लखक क

भाव-िनवदन पर इसस आलोचना क म ामक म याकन क सभावना नह

रहती rdquo21 आलोचना क िलए एक मानदड या फामला क थापना कर उस पर

आलोचना करना ब त क ठन काय ह आलोचना का कोई मानदड तभी सराहनीय

ह जब तक वह कसी िवचारधारा एव वाद स कोई सबध नह रखता

55

पहल सािह य आ तब आलोचना िशवदान सह चौहान न प िलखा ह

क ndash ldquoसािह य स ही आलोचना ह आलोचना स सािह य नह ह rdquo22 इस िवषय पर

चौहानजी न आपना मह वपण िवचार कट कया ह कहन का ता पय यह ह क

वद बड़ा क लबद कद बड़ा क पद या यह भी उठ सकता ह क पहल मग ई

क अड़ा पहल बीज आ क पड़ यह िवचरणीय नह ह यह अपन-अपन

अनभव क बात ह इस कार उ का िहसाब सािह य और आलोचना पर करना

उिचत नह िजस कार मन य क अिनवायता क िलए सािह य िलखा गया उसी

अिनवायता क िलए ही आलोचना उ म सािह य बड़ी ह क आलोचना यह

िववादा पद ह यह भी हम कह सकत ह क सािह यकार बड़ा ह क सािह य

या आलोचक बड़ा ह क आलोचना सि बड़ी ह क सि क ा य ब त उपय

नह ह इस कार सािह य और आलोचना अपनी-अपनी अिनवायता क िलए

अपनी-अपनी जगह पर बड़ी ह

िन कष- आलोचक सािह य सािह यकार और समाज क ित ितब होता

ह आलोचना गण-दोष िववचन सराहना-भ सना और प तक समी ा नह ह वह

सजन और चतन क भी िवधा ह वह जो ग रची जाती ह उस कथा-कहानी स

तौला नह जा सकता ह वह कित और कितकार क अित र सदव एक तीसरी

शि क खोज करती ह कहानी किवता नाटक उप यास या ग क अ य िवधा

म एक आलोचक को कित क साथ तीन तर खोलन होत ह पहला िजस िवधा म

कित ह उस िवधा क त व उस कित का मानक माप-दड या ह दसरी कित क शली

एव स दय िववचन और िव यास कस कार आ ह और तीसरा प ह उसक

आत रक चतना उसका मम उसम िनिहत सवदना िवचार और क पनाशीलता जो

कित का ि व रचती ह इन तीन त व क आधार पर जब आलोचक कितगत

आलोचना करता ह तब कित क िलए आलोचना अिनवाय हो जाता ह

56

आलोचना एक सजन या ह

सािह य और आलोचना का सबध अ यो या ीत ह जो सािह य क रचना

या ह वही आलोचना का फक मा इतना ह क सािह य का ल य समाज

होता ह और आलोचना का ल य रचना िशवदान सह चौहान न इस बात को प

करत ए कहत ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर स

िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार ह इसिलए इस आप शा ीय वग करण क तरह अिमट और अल य न

मान ल rdquo23 अत रचना क सजन या को जान िबना आलोचना क सजन या

को अ छी तरह समझी नह जा सकती ह

सािह य वह व त ह िजसम मनोभावा मक क पना मक बौि क तथा

रचना मक त व का समावश होता ह सािह य सजन क या क अतगत

क पना बि भाव तथा शली का होना अिनवाय ह यह उठता ह क

सािह यकार क मल रणा या होती ह िजसक कारण सािह यकार को इन त व

का सहारा लना पड़ता ह सीध स हम कह सकत ह क वह समाज म घटी घटना

क अनभित ह अनभित हम घटना क प ा य करत ह तथा अनभित रचना स पव

हमार दय म कट होती ह जस िबना दख क सख का अनभव नह होता ठीक

उसी कार िबना सख-दख स रचना दोन का िम ण ही का ह हदी क िस

आलोचक आचाय नददलार वाजपयी न lsquoसािह य का योजन आ मानभितrsquo म

िलखा ह ndash ldquoका क रणा अनभित स िमलती ह यह वत एक अनभित त य ह

गो वामी तलसीदास न रामच रतमानस का िनमाण करत समय िलखा था ndash

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lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

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मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

59

रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

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दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

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सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

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(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

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उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

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ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

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इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

38

मड को ही करन लगत ह या फर आलोचना को रचना मक सािह य का एक

वत प-िवधान (िजस अ यापक य भाषा म अब िवधा क स ा दी जाती ह)

मानकर िवव य रचना को उपल य बना क अपना उि -चम कार दखान लगत ह

आलोचना अध क लाठी बन गयी ह उसको घमान स अगर रचना का िसर

फटता ह तो फट आलोचक कर ही या सकता ह rdquo3 सच बात तो यह ह क 19व

शता दी तक ाचीन भारतीय का शा क िस ात (रस अलकार विन

व ोि रीित आ द) को म यनजर रखत ए सािह यालोचना करत रह परत 19

व शता दी क प ात हदी सािह य क इितहास म अनक पा ा य िस ात वाद

एव िवचार का चलन आ िजसस आलोचक बच नह पाय भारतीय आलोचक

पर पा ा य िवचार धारा का भाव पड़ा और उ ह िवचार धारा को आधार

बनाकर सािह य का म याकन आलोचक न कया ह आलो य सािह य उनक

िवचार धारा क खम म नह आया तो उस सािह य स िनकाल फकन क कोिशश क

आलोचना और आलोचक आज क चिलत अथ म आधिनक श द ह यह

कहना अनिचत न होगा क आलोचक ही पहल भावक था जो सािह य का म याकन

कर सकता था lsquoभावकrsquo स ता पय ह-स दय या पाठक पाठक स दयपवक सािह य

क गण-दोष का िववचन कर सकता था परत उसका उ य दोष िनकालना मा

नह था िशवदान सह चौहान न िविश पाठक को आलोचक तथा आलोचक का

काय भाषा और िश प का िव षण माना ह हर पाठक का अपना िविश ि व

होता ह इस सदभ म उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी कित को पढ़कर उस पर जो भाव

पड़ता ह कसी अ य पाठक पर पड़ा भाव सवथा वसा ही नह हो सकता

आलोचक भी एक ऐसा ही िविश पाठक ह ndash इसिलए उसक आलोचना उस पर पड़

िविश भाव को ही कर सकती ह ऐसी ि थित म इन िविभ अनभितय

कितय भाव म कोई सामा य त व हो ही या सकता ह िजसका रणा या

39

म याकन कया जाए इसिलए आलोचक का काम कसी कित का म याकन करना

नह ह न उसक भाव क परख करना ह न उसम भाव -िवचार या अ य

बात को दखना ह उसका काम तो कवल भाषा और िश प का िव षण करना मा

ह rdquo4 भाषा क मा यम स भाव एव िवचार क अिभ ि होती ह और शली इन

भाव एव िवचार को अिभ करन का कौशल ह अत कसी न कसी प म

आलोचक कित क गण-दोष का िववचन तत करता ह वह गण का िवकास तथा

दोष को दर करन क रणा दता ह आलोचक का उ रदािय व ितहरा ह- पहला

किव या लखक क ित दसरा कित क ित और तीसरा समाज क ित किव या

लखक का आलोचक रक और मागदशक ह कित क गण का िव ापन और दोष का

िववचन और द दशन करा क उसका मह व कट करना उसका मख काय ह और

समाज को कित और कितकार क सदभ म वा तिवक ान कराना स कितय क पठन

क रणा जागत करना और उनक लखक क ित स मान भाव जगाना आलोचक का

सव धान उ रदािय व ह आलोचना या आलोचक क अथ क ापकता पर

िशवदान सह चौहान न िलखा ह ndash ldquo ापक अथ म आलोचना मन य क आ म

चतना ह ndash सािह य और कला क प म िनमाण क ई अपनी अथवान रचना क

सदर-असदर शभ-अशभ स य-अस य प क ित जा त ई चतना ह इसक

प रणम व प ही म य-िन पण क मानदड और िस ात बनत ह य मानदड और

िस ात बदलत जात ह िजस कार दश-काल क िविश प रि थितय स ापक

भाव हण करक सािह य और कला क वि या बदलती जाती ह और इस कार

अतवा जीवन क स य या वा तिवकता का मत छिवय क भाषा म यगानकल

आकलन करती जाती ह कत एक बार जब आलोचना का ज म हो जाता ह तो वह

सािह य-कला क कवल तट थ ा याता या िनरप ा ही नह बनी रहती

सा कितक परपरा और मन य क अ जत ान का समाहार करक और वतमान क

40

ऐितहािसक चतना लकर सवदनशील यग- ा आलोचक ाचीन और सामियक

सािह य क कितय का म य आकत ए नए ा या-स क उ ावना भी करता

ह िजसस आलोचना कवल पाठक को सािह य क कितय स पर स दय-म य तथा

चतना- िवकासी मानव सवदना ा करन म ही साहायता नह दती बि क

सािह यकार को भी नई अतदि दान करक उनक आग रचना क नए और

सीमात खोल दती ह आलोचना एक स य शि ह जो सािह य और कला क

धारा का आव यकतानसार िनय ण करती ह तो सािह य और कला म नई

वि य और धारा को िवकास क िलए ो साहन और रणा भी दती ह इस

कार आलोचना वय एक रचना मक या ह rdquo5 अत चौहानजी आलोचना को

एक वत ग िवधा मानत ह भाव क िववचन िशवदान सह चौहान न समाज

क प र य म क ह वह भावजगत और समाज क सबध को अिभ मानत ह

िनरप भाव को वह बि का िवषय मानत ह

िन कष - िशवदान सह चौहान न जहा स ाितक आलोचना क म का

क स म स दय का िववचन करक एक ापक प दान कया वह उ ह न

ावहा रक आलोचना क म यग इितहास मत स दाय और कला मक

अिभ ि आ द को थान दकर अपनी ापक दि का प रचय दया ह उनक

आलोचना मक िवचार क दि िजतनी ौढ़ एव मह वपण ह उतनी ही

अिभ ि शली-प क दि स सरस रोचक एव भवो पादक ह

41

(ख) आलोचना क मान

आलोचना क मान स ता पय हndash कसी कित का नापन या तौलन का साधन

या पमाना रचना और रचनाकार क सीमा मह व आ द सिचत करन का

मह वपण साधन आलोचना ह आलोचना का िज करत ही आनयास कित या

कितकार सामन आ जात ह स कत का शा को छोड़ कर आज तक हदी

आलोचना का कोई िनि त मानदड थािपत नह हो पाया ह आलोचना का सीधा

सबध कित स ह कित को आधार बनाकर आलोचक आलोचना करता ह कित

कसी िवशष ि क नीिज भाव िवचार अनभितय क अिभ ि ह भाव

क अिभ ि होन क चलत कित म अलौ कक स ा का सामहार होता ह और यही

उसक आलोचना का माग करता ह रचनाकार िविभ िवचार धारा स

भािवत होता ह अत उसी िवचार धारा क आधार पर उसक रचना क

आलोचना क जाती ह ऐसी आलोचनाए िनराधार एव एकागी होती ह िशवदान

सह चौहान का मानना ह क सािह य क आलोचना जब कसी िस ात या

िवचारधारा का आ ह लकर चलन लगती ह तब वह ावहा रक समी ा तर पर

भी और अ सािह य म भद करना भल जाती ह कसी ि क ि गत

िच आलोचना का मान नह बन सकती मन य क िचया सजीव और

िवकासमान ह य द िच कसी िवचारधारा स जड़ीभत ह तब वह पवा ह

कहलाती ह अत पवा ह आलोचना क कसौटी नह बन सकती िशवदान सह

चौहान क दि इस िवषय पर अ यत व छ ह उ ह न प िलखा ह ndash ldquo िच

िभ ता का िस ात ाचीन काल स मा य ह-यह एक हक़ कत ह िस ात नह -

42

ल कन िच कभी भी सािह यालोचना का मानदड नह बनी हrdquo6 कसी एक

आलोचक या पाठक क िच या अ िच उ क सािह य को िनक नह बना सकती

उ क सािह य स ता पय ह मानव म य या वा तिवक स य पर रची गयी वह

सािह य जो आज हमारी स कित क अ य िनिध ह य द lsquoसािह यrsquo सामािजक

सबध अपन यग क क ीय िवचार िश प- ान और नितक मा यता पर रचा गया

ह तब वह कालजयी एव रचना होगा आलोचक को सािह य का म याकन

सामािजक म य एव त कालीन प रि थितय क आधार पर करना चािहए

आलोचना क मान आधार और कसौटी का अित आधिनक ह स कत

सािह य म कई िस ात मा य ह उ ह िस ा त क आधार पर सािह य को दखन-

परखन क सिवधा थी आज नयी चतना और व ािनक यग क िवकास क कारण नय-

नय िस ात िवचार एव ान-िव ान का िवकास आ िजसक चलत हर व त को

दखन-परखन क नज़ रया बदली ह िशवदान सह चौहान न स कत क पाठक एव

आज क स दय म अतर प करत ए िलखा ह- ldquoउन दोन क पाठक भी आज क

अप ा अिधक ब और स कत थ-मन lsquoस कतrsquo श द का योग कया ह lsquoिशि तrsquo

का नह य क आज क पाठक शायद अिधक िशि त ह उन दन सामा य पाठक

कसी एक ही वग क लखक क रचना नह पढ़त थ बि क भारतीय और पा ा य

लािसक सािह य क अित र आधिनक यग क सभी मानववादी महान लखक क

कितय को उनक िच समान उ साह स हण करती थी-इनम सब िवचारधारा

क सािह यकार और समाज िच तक होत थ क त आज क अिधक िशि त पाठक

कवल समाचार प और फ मी पि का स ही अपनी आ याि मक धाप त करत

ह और उनम जो थोड़ स lsquoअितिशि तrsquo ह व का का फॉकनर इज़रा पाउड

ईिलयट सलर आवल आ द कवल अना थावादी लखक क ही रचनाए पढ़त ह

तब क पाठक को आलोचना क मान पर अलग स बहस करन क ज रत नह होती

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थी य क जीवनम य म उनक आ था उनक सािह य का म याकन करन क एक

सहज दि दान कर दती थी िजसस व और िनक उदा और ील और

अ ील मानववादी और मानव ोही का भद समझत थ- कसी कार का कोरा

शाि दक चम कार उ ह अिधक समय तक भलाव म नह डाल पाता था rdquo7 आज क

आलोचक ही नह रचनाकार भी अनक मत-मतातर और वाद-िववाद म फस कर

अपनी वानभित पर दसरी िवचारधारा को आरोिपत कर लता ह िजसक चलत

आलोचना सािह य म अनक िवसगितया फल गयी ह यही कारण ह क आलोचना

का कोई एक िनि त एव वत मानदड थािपत करना अ यत द कर ह

सािह कार समाज का एक अ यत सवदनशील ि होता ह और आलोचक रचना

का म मक पाठक सािह यकार समाज म ा वा तिवक स य और जीवन म य को

अिभ करन म कतना सफल ह इस मम को समझन-समझान का दािय व

आलोचक का ह िशवदान सह चौहान का मानना ह - ldquoसािह यकार और आलोचक

य द वा तिवक जीवन म य को ही भला द या उनक सामािजक िवकितय को ही

मानव सबध का िचरतन स य मान बठ तो उ ह सािह य क ऊटपटाग मयादाए

गढ़न स कोई नह रोक सकता rdquo8 सािह यकार और आलोचक को मानव म य और

वा तिवक स य क ित जाग क रहना अ यत आव यक ह

सािह य एक जीवत या ह प रवतन म िवकास छपा होता ह और िवकास क साथ-साथ सािह य सम एव शि शाली होता ह िविभ िवचार एव

िस ात क चलत सािह य म अनक िवकितया फल गयी ह ाय आलोचक कसी न

कसी िवचारधारा स भािवत ह और उसी दि स सािह य का म याकन करता ह जब कोई आलोचक कसी िवचारधारा या िस ात को आधार मानकर सािह य का िववचन एव म याकन करता ह तब वह आलोचना पवा ह स िसत मानी जायगी

िशवदान सह चौहान न इस त य को और प करत ए िलखा ह ndash ldquoमन य क

िचया और सहानभितया सजीव और िवकासमान व त ह - सम समि वत

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स कित क वातावरण म उनका वत माजन और स कार होता जाता ह और व

ापक मानवीय म य को हण करक उदार शालीन और साि वक बनती जाती ह ल कन सक ण और अनदार िस ात या िवचारधाराए उ ह िन ाण और जड़ बना

दती ह-उनक चौखट म जड़ीभत हो गई िचया ही पवा ह कहलाती ह अत

पवा ह ही समी ा- तर क आलोचना म म याकन क कसौटी बना हो तो पहल उनको तोड़ बगर स ाितक- तर क थापनाए व मान अराजकता को दर करन म

कहा तक सहायक हो सकगी यह स द ध ह rdquo9 िन प एव व तिन आलोचना ही

सािह यकार क िलए रणा दायक होती ह और वह मानवीय म य का उ ाटन करती ह ऐसी ही आलोचना सािह य और सािह यकार म ाण डालती ह और वही आलोचना िचरजीवी होती ह परत ऐसा ब त कम दखा जाता ह डॉ िव नाथ

साद का मानना हndash ldquoव त और म याकन क या यह ह क पहल व त क स ा

ह और बाद म उसक म याकन का काय वणन व य व त का होता ह अत

आलोचना रचना का अनसरण कर यही उिचत ह परत ऐसा हो नह पाता ह ाय

आलोचक अपनी पवा जत धारणा क िनकष पर रचना का म यकन करता ह इसस रचना का कत िवधान उलट जाता ह यह िनषधमलक वहार आलोचना-

क सवािधक उ लखनीय िवसगित हrdquo10 अत आलोचना व त साप होनी

चािहए

िन कषत कहा जा सकता ह क आलोचना कसी कित क ता एव उसक

म य िनधारण का मा यम ह आलोचना सािह य स जीिवत ह सािह य आलोचना

स नह आलोचना का काय कित को सही थान दलाना ह सािह य च क सम

मानव जीवन को ित बिबत करता ह इसिलए उसम जीवन क िविभ तरीय

म य का सघष भी होता ह इसक सही िन कष तक प चन क िलए आलोचक को

ापक दि एव उदार भावना का होना अ यत आव यक ह आलोचना क मान पर

शा ीय मतमतातर म न फसकर ऐस म य पर दि पात कर सकत ह जो एक ओर

पाठक क सािह य बोध म सहायक हो और दसरी ओर रचनाकार को व थ दशा द

सक

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(ग) आलोचना का सामािजक सदभ

lsquoसािह यrsquo सहका रता का तीक ह यह जनता क जीवन क सख-दख हष-

िवषाद आ द क तान बान स बना होता ह सािह य जीवन क ा या होता ह

सािह य क क म मानव होता ह मानव क अनभितय भावना िवचार और

कला का साकार प ही सािह य ह सािह य का रसा वादन पाठक करता ह

स दय पाठक ही आलोचक होता ह आलोचक समाज क अ य ि य स िभ

और अिधक सवदनशील होता ह आलोचक का सीधा सबध सािह य स होता ह और

सािह य का समाज स अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना उिचत होगा

िशवदान सह चौहान का सािह य और सािह यालोचना सबधी िवचार अ यत

नवीन ह उ ह न हदी क ाचीन किवय और नए किवय म भद करत ए िलखा

हndash ldquoपहल किव आ करत थ कत अब नए किव पदा हो गय ह जो किवता न िलख

कर नई किवता िलखत ह िजसका अथ ह क व अपनी किवता म लय और छद क

बधन क तो बात दर कसी भी कार क बधन बदा त नह करत उनक नई

किवता म रस और स दय क खोज थ ह उसम कसी भी प िवचार सामािजक

योजन ापक मानवीय म य आ द क माग करत ही व िबगड़ उठत ह य क व

समझत ह क ऐसा करना उनक ि गत वत ता पर हार ह व कसी

सामािजक दािय व को भी नह मानना चाहत rdquo11 ऐसी ि थित म आलोचक को

सामािजक सदभ म दखना अ यत क ठन हो जाता ह य क बात दािय व क नह

क का ह सािह यकार य द अपन क का पालन नह करता तब आलोचक

अपन दािय व का िनवाह कस कर सकता ह

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आलोचक तट थ होकर सािह य का म यकन करता ह आलोचक को

सािह य सािह यकार और समाज क ित आपन दािय व का पालन करना पड़ता ह

वह कसी भी कित को सामािजक सदभ म दखना चाहता ह कोई कतना भी बड़ा

आलोचक य न हो वह कसी बरी रचना को उ क नह बना सकता ह अत

आलोचक क िलए सामािजकता का िनवाह अित आव यक ह िशवदान सह चौहान

इस बात को इस कार िलखत ह ndash ldquoआलोचक सािह य-जगत का भा य-िवधाता भी

नह ह जो चाह तो खल हाथ अमर व बाट सकता हो कसी आलोचक म यह

शि नह क वह बरी रचना को अपनी म शसा स अमर व दला सक या अपन

कठोर वाक हार स कसी महान रचना को अमर होन स रोक सक इसिलए लखक

य द महान कित व क िबना ही महानता और अमर व पान क मह वका ा पर थोड़ा

सा सयम रखकर आलोचक को अपन दािय व का पालन करन का अवसर द तो

सभव ह क आलोचना क म वसी अराजकता न रह जसी क आज दखाई दती

ह rdquo12 समाज कित और लखक म सबध उसका वा तिवक ान और स कितय क

पठन क रण जगाना आलोचक का वधम ह आलोचक को िवषय का िव तत ान

होना चािहए स दयता क साथ कित और कितकार का िन प िववचन करना

आलोचक का समािजक दािय व ह

आलोचना रचना क होती ह और रचना सामािजक सपि ह रचनाकार अपनी अनभित िवचार एव जीवन दि को एका कर कित म अिभ करता ह आलोचक और रचनाकार दोन अ यो याि त ह कोई कित समाज क िलए कतना उपयोगी ह वह स दय पाठक ही बता सकता ह सािह य म हर समय नई-नई िवचार एव वि या आती रहती ह उसक सामािजकता का अ ययन आलोचक ही करता ह रमश दव क श द म ndash ldquoसजक और सजन य द कसी आलोचक क बौि क

और स कार मानस म स मानीय नह ह तो उसका आलोचना कम बकार ह उस कसी भी रचना पर िवचार एव िववचन का आिधकार नह ह कसी भी सजन क

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पहली शत यह ह क वह कसी भी िवधा म हो और िजस हदी क अिधकाश लोग भल ही िन दा क तरह मान लत ह ल कन उसम मन य क शील का िनवाह आव यक ह कोई आलोचना कसी भी सजक या सजन क वस क िलए नह होती बि क एक सजक को मोहम कर अिधक खर और गभीर होकर सजन क िलए उकसाती भी ह य द आलोचना-कम सजक ह ता कम होता कसी ितब ता स उपजा ितशोधा मक िन दा आ यान होगा तो फर उस आलोचना कहा ही नह जा

सकता rdquo13 आलोचक सािह य को समाज क प र य म रखत ए तठ थ और

व तिन म याकन तत करता ह य क समाज म िवचार क ारा काय

सपा दत होत ह सािह य िवचार का समह होता ह अत सािह य म

िवचार क ग शि सि होकर समाज का नत व करती ह उस भाव एव िवचार को सवसधारण आलोचक ही करता ह समाज स सािह यकार सजन क

रणा एव समा ी ा करता ह तथा वह समाज ारा भािवत होता रहता ह इसी कार समाज पर सािह य का िजतना ापक एव गहरा भाव पड़ता ह उतना अ य कसी साधन का नह पड़ता व तत सािह य समाज स उ प होता ह और

फर समाज को भािवत करता ह इस कार सािह यकार समाज स भािवत होता ह तथा वह समाज को भािवत करता ह आलोचक इस भाव का दशा और दशा

िनधारण करता ह अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना अित अिनवाय ह

िन कष प म कहा जा सकता ह क आलोचना को सामािजक दािय व

िनभाना पड़ता ह धम और दशन क अधोगित क इस यग म सािह य और

आलोचना पर एक अित र िज मदारी अिनवायत आ पड़ी ह सािह य म

पनरिचत जीवन क पदन को मानवता क अत माण क यगीन िवचार वाह क

भर-पर प र य म दखन-परखन क ज रत ह अत आलोचना अपन वधम स ही

अत ववश ह उस र थान क प त करन और समाज को िशि त करन का वह

सा कितक कम अपन हाथ म लन क िलए िववश ह

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(घ) आलोचना क अिनवायता

िशवदान सह चौहान न आलोचना क उपयोिगता और अिनवायता पर नतन

दि कोण आपनाया ह उ ह न सािह य क िलए आलोचना को अिनवाय माना ह

नरश ारा lsquoनव िबहारrsquo क एक अक म उठाया गया ndash या आलोचना अिनवाय

ह इस पर िविव िवचारक न अपना-अपना मत कट कया ह िशवदान सह

चौहान न अपनी गहरी सोच िवल ण ितभा क ारा तत िवषय पर नई सोच

एव िवचार कट कया ह इनका मानना ह क आलोचना रचना क िलए अिनवाय

ह आलोचना क अिनवायता पर िवचार करत ह और जब यह उठता ह क या

आलोचना अिनवाय ह तब अनयास ित उठता ह ndash या रचना अिनवाय ह

या पढ़ना ही अिनवाय ह िशवदान सह चौहान का मानना ह ndash ldquoरचनाकार क

ितभा- मता क तरह आलोचक क ितभा- मता का उठाना भी असगत

नह ह िजस तरह हर लखक रचनाकार नह बन सकता उसी तरह समी क

आलोचक नह बन सकताrdquo14 इस कार िशवदान सह चौहान न नए-नए

को उठाकर इस सदभ म नई आलोचना क ह इसी क मा यम स इस िवषय पर

िवचार-िवमश करना तथा िशवदान सह चौहान क आलोचना दि को दखना

समीचीन होगा

बौि क चतन मनन और अ ययन क दौरान कित क रह य को जानन क

इ छा बढ़ जाती ह यही कारण ह क कसी ि व त थान घटना एव रचना

क ित िवचारशील ि िज ासा क दि स दखन लगता ह वा तिवकता जानन

करन क िलए जब ि अपन मन म उस ि व त थान घटना या रचना क

ित िवचार-िवमश करन लगता ह तभी उसक मन म आलोचना का उदय होता ह

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ि सोचन और न सोचन म वत होता ह ठीक इसी कार रचनाकार रचना

करन और न करन म वत होता ह पाठक पढ़न और न पढ़न म वत ह और

आलोचक आलोचना करन और न करन म वत ह तब यह िनि त ह क

रचनाकार पाठक और आलोचक वत ता क िलए नह दािय व क िलए जीत ह यह

दािय व अपन-आप क ित रचना क ित रचनाकार क ित समाज क ित रा

क ित तथा िव क ित होता ह अथात दािय व क तर पर आलोचक रचनाकार

तथा पाठक म कोई िवशष अतर नह होता ह िशवदान सह चौहान एक समथ

आलोचक को समथ रचनाकार और समथ रचनाकार को समथ आलोचक मानत ह

उनका प कहना ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर

स िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार हrdquo15 आग चौहान जी न आलोचक क आलोचना करत ए आलोचक क

कई िणया बतात ह जस- सािह य क अनक िवधा पर िलखी आलोचना

अ यापक य आलोचना प -पि का म ित मास नई प तक क र प तक

क सपादक य क प म िलखी गयी आलोचना आ द आलोचक क दािय व का

कवल उनक िलए ही उठता ह जो इन दोन िणय स िभ णी क आलोचक ह

आलोचक का सबध सािह य स होता ह न क िव ान स य द हम व ािनक

श दावली म पानी को H2O कहत ह तो वह ससार म एक ही नाम स (H2O) जाना

जाता ह परत सािह य म lsquoपानीrsquo श द का योग एक जसा नह होता वह कह नीर

कह जल कह मघ कह वि कह चमक कह व-पदाथ कह मान- ित ा या

यश बन जाता ह इस कार पानी का अनक अथ होन क कारण उिचत अथ बोध क

िलए आलोचना अिनवाय ह कहन का ता पय यह ह क आलोचना का सबध

सािह य स ह न क िव ान स कला क आलोचना को िव ान भी मान सकत ह

आलोचना सािह य क िलए कतना अिनवाय ह यह िवचरणीय ह

50

कोई भी सािह यक िवधा कसी एक ि क अपनी सपि नह होती वह

चाह उसक ारा ही िलखी गयी य न हो पर वह उस भाषा क सम त ि य क

िलए हो जाती ह जो उस भाषा क जनकार ह रचनाकार रचना को वत प स

रचता ह फर भी उस सामािजक दािय व एव या का भी यान रखना पड़ता ह

कोई भी रचनाकार अपनी रचना क मा यम स त कालीन प रि थित एव सा कितक

या को बचाय रखन क िलए रचना क सि करता ह एक कार स पाठक ही

आलोचक होता ह lsquoरचनाrsquo क िलए रचनाकार पाठक और आलोचक य तीन

अिनवाय अग ह य द रचना ह तो पाठक ह ग और पाठक ह तो आलोचना अव य

ह गी य द पाठक नह ह तब रचना कसी काम क नह कारण रचनाकार रचना

को अपन िलए नह िलखता इस कार रचना क िलए रक और कारण दोन

पाठक ही होत ह जो भी हो रचनाकार पाठक तथा आलोचक तीन एक-दसर क

आिनवाय अग होत ए भी अलग- अलग वत अि त व रखत ह इसी कारण

रचनाकार वत प स वात सख आ मानद पाता ह आलोचक एक िविश

पाठक होता ह रमश दव न अपन एक लख म िलखा ह ndash ldquoएक बड़ा यापक वग ह

जो अपन क ाई तर तक क रचना का आ वादा मक िववचन करना ही

आलोचना मानता ह यह अव य ह क उसक पास आलोचना िस ात क प भिम

होती ह और स ाितक व आलोचना क मानक या मानदड अपना कर वह रचना क

आलोचना करता ह ऐसा आलोचक कॉट ज स क तरह यह कह सकता ह क य द

नदी पर पल बनान क काम क जाच करायी जायगी तो उसक इजीिनयर को बलाया

जायगा ल कन सािह य क जाच करन क िलए उसक रचनाकार क बजाय आलोचक

को रचना स पी जायगी जहा आलोचना एक सीमा बन गई ह रचना क जाच क

तीन आधार य नह हो सकत ndash एक वह पाठक जो कवल पढ़ता ह आनद लता या

ऊबता ह कत उसको आनद या ऊब ही उसका पाठ ह िजस वह िलख कर

51

नह करता ऐसा पाठक िसफ पाठक ही बना रहता ह दसरा होता ह रचनाकार

वय जो कई बार वय अपनी रचना क भद-अभद खोलता ह और रचना क कन-

कन दबाव तनाव भािषक चनौितय अ द स उस जझना पड़ा ह यह प करता

ह इसिलए किवता स ह क साथ भिमका वय िलखन क णाली बड़-बड़

रचनाकार न अपनायी ह तीसरा ह श आलोचक जो रचना क ित अन य क

बजाय अ य भाव स कट होता ह rdquo16 रचनाकार िवषय सगठन क िलए सवथा

वत होता ह वह कसी भी िवषय का चयन कसी भी ि थित म कर सकता ह पर

आलोचक क िलए यह वत ता नह ह य क वह कसी िनि त रचनाकार क

रचना क िवषय पर ही स यक िवचार कट कर सकता ह इसक आग उस छट नह

ह आलोचक उस रचना क तठ थ होकर रचना क शि और सीमा का उ ाटन

करता ह वह रचना क ित अपना दािय व िनभाता ह अपन इस दािय व को

िनभात ए आलोचक रचना क उपयोिगता एव ासिगकता पर भी जोड़ दता ह

िशवदान सह चौहान न प िलखा ह ndash ldquoसािह य का हर पाठक एक कार स

आलोचक होता ह वह कसी कहानी या किवता को पढ़त ही तरत अपना मत कट

कर दता ह क वह अ छी ह बरी ह या असदर ह आलोचक हम उस ही कहत ह

िजसम अपनी ि गत ित या को व तपरक िनणय क साथ समि वत करन क

मता हो और जो रचना क िववचन ारा अपन अनभव-समि वत िनणय को प

अिभ ि दकर साधारण पाठक क दि को भी ि गत ित या क तल स

उठाकर ापक और व तपरक बना सक ता क व रचना स उन सार चतना-िवकासी

म य को ा कर सक जो उसम िनिहत हrdquo17 िनप आलोचना स रचना का

िवकास तो होता ही ह साथ ही साथ रचनाकार क ि व का भी ितफलन होता

ह तथा उसक िवचार एव भाव स समाज का त यदशन भी होता ह यह आलोचना

करन क उपरत ही पता चलता ह क कित या कितकार समाज क िलए कतना

52

उपयोगी ह इस िवषय पर दवीशकर अव थी न अपन एक लख lsquoरचना और

आलोचकrsquo म प िलखा ह ndash ldquoम कहना चा गा क समी ा कित और कितकार क

िलए उपयोगी ह सामा य पाठक क िलए उपयोगी ह एव ान क एक िविश शाखा

क प म अपन-आप म भी उपयोगी ह उसक इस प म अपनी वत स ा भी ह

परत इन सभी उपयोिगता क मल म आधारभत या उपजी साम ी वह रचना

िवशष ही होती ह rdquo18

आलोचना क उपयोिगता-अनपयोिगता क िवषय पर चचा करन क िलए कछ

ऐस बद पर िवचार करना आव यक ह िजसस आलोचना क अिनवायता को

प कया जा सक-

आलोचना मर जान पर भी सािह य जदा रहगा- यह एक क पना ह इसस

एक बात यह प होता ह क आलोचना या सािह य जीिवत व त ह इसम वह

चतना ह जो जीव ाणी म होता ह यह चतना य ह य क सािह य म

सािह यकार क सपण चतना क अिभ ि होती ह तब य द हम क पना भी कर

ल क आलोचना मर जायगी तो इसका सीधा अथ यही होगा क जनता क समाज

क एव सािह यकार क चतना मर जायगी इस मर ए समाज म सजना मक क

या कस कार चल पायगी अथात सजना मक पर भी उठ खड़ा होगा

सािह य म राजनीितक सामािजक धा मक आ थक सा कितक एव सािहि यक

सपण ि थितय का वणन कया जाता ह तथा इन सभी प रि थितय का अवलोकन

आलोचना क मा यम स ही सभव ह य द आलोचना ही न हो तब उन प रि थितय

का सही आकलन कस होगा सािह य म सािह यकार क भावना िवचार एव

क पना क अिभ ि कभी शोक क होती ह कभी हष क होती ह तथा कभी वह

सावभौिमकता क िलए होती ह जब हम उसक सपण ि थित क जनकारी लना

53

चाहत ह तब हम आलोचना क आव यकता पड़ती ह कहन का ता पय यह ह क

य द सािह य को जीिवत रखना ह तब आलोचना क मर जान क क पना अधरी ह

ाचीन काल स आलोचना होती रही ह उस समय आलोचक और रचनाकार

सवथा िभ आ करत थ धीर-धीर यह दरी आधिनक काल तक आत-आत ख म सा

हो गया ह आलोचना आज ग क अनक कार क िवधा म स एक ह पहल यह

माना जाता था क जो आलोचना करत ह व रचना नह कर सकत आज बौि क

जीवन म यह माग क जा रही ह क रचनाकार ही आलोचना कर

का का आ वादन आलोचना स न घटता ह न बढ़ता ह ndash यह बात तो

सतही तर पर स य लगती ह पर इसक मम को हम उधड़ कर दख तो आलोचना

सािह य क िलए अिनवाय ह यह कहना न होगा क हर पाठक क समझ सोच एव

भाव क गहराई तक प चना आसान नह ह िजस मम को सामा य पाठक नह

समझ पात उस जगह तक प चन का काय आलोचक करता ह िशवदान सह

चौहान का मानना ह ndash ldquo कसी कित को पढ़कर उस पर जो भाव पड़ता ह कसी

अ य पाठक परपड़ा भाव सवथा वसा ही नह हो सकता आलोचक भी एक ऐसा

ही िविश पाठक ह- इसिलए उसक आलोचना उस पर पड़ िविश भाव को ही

कर सकती ह ऐसी ि थित म इन िविभ अनभितय कितय भाव म कोई

सामा य त व हो ही या सकता ह िजसका षण या म याकन कया जाए rdquo19 यह

ठीक ह क आलोचना स रचना क आ वाद म अतर नह होता पर िजसक ारा

आ वादन कया जाता ह वह कतना व थ ह कतना तद त ह इस पर भी यान

क आव यकता ह जीभ पर कसी व त को रखन पर उस व त का वाद न घटता

ह न बढ़ता ह नाक क पास सगध बदल नह जाती िजतनी जीभ या नाक व थ

होगी उतना ही वाद पण प स िलया जा सकता ह जहा तक रचना का सवाल

ह तो जीभ और नाक का काय आलोचक करता ह आलोचक मलत एक िवशष

54

कार का पाठक होता ह हाला क पाठक ही आलोचक होता ह फर भी पाठक और

आलोचक म ताि वक फक ह पाठन क ज रय आलोचक उसक छप ए रह य को भी

खोल कर समाज क सामन प कर दता ह आचाय कसरी कमार न भी आलोचक

को पाठक मानत ह पर आलोचक और पाठक म अतर प कया ह उनका मानना

ह ndash ldquoसामा य पाठक और आलोचक क आ वादन म कछ वसा फक ह जसा द तावज

पर अगठ क छाप लगाना और पढ़कर द तावज करन का ह rdquo20 प प स आचाय

कसरी कमार न पाठक को ही आलोचक मानत ह पर उनका पाठक सामा य पाठक

नह ह एक िवशष कार का पाठक होता ह और चौहानजी न भी िविश पाठक को

ही आलोचक मानत ह

सािह य का आ वादन वयि क तर पर होता ह आलोचक सािह य का

रसा वादन वयि क तर पर ही हण करता ह आलोचक एक सिनि त मानदड

थािपत करना चाहता ह य द कसी िवचार-धारा या वाद स भािवत होकर

मानदड थािपत करता ह तब वह मानदड असमीचीन हो जाता ह आलोचक य द

पवा ह स भािवत वाद क आधार पर अपना मानदड थािपत करता ह तब वह

उस कित का सा यक म याकन नह कर पायगा डॉ िव नाथ साद न इस त य

को प करत ए िलखा ह ndash ldquoउ क आलोचना पवा ह स बचकर चलती ह और

ऐसा तभी सभव ह जब आलोचक का एक पाव अपन यग म तथा एक पाव लखक क

यग म हो अथवा उसक एक आख रस सवदना पर हो तथा दसरी आख लखक क

भाव-िनवदन पर इसस आलोचना क म ामक म याकन क सभावना नह

रहती rdquo21 आलोचना क िलए एक मानदड या फामला क थापना कर उस पर

आलोचना करना ब त क ठन काय ह आलोचना का कोई मानदड तभी सराहनीय

ह जब तक वह कसी िवचारधारा एव वाद स कोई सबध नह रखता

55

पहल सािह य आ तब आलोचना िशवदान सह चौहान न प िलखा ह

क ndash ldquoसािह य स ही आलोचना ह आलोचना स सािह य नह ह rdquo22 इस िवषय पर

चौहानजी न आपना मह वपण िवचार कट कया ह कहन का ता पय यह ह क

वद बड़ा क लबद कद बड़ा क पद या यह भी उठ सकता ह क पहल मग ई

क अड़ा पहल बीज आ क पड़ यह िवचरणीय नह ह यह अपन-अपन

अनभव क बात ह इस कार उ का िहसाब सािह य और आलोचना पर करना

उिचत नह िजस कार मन य क अिनवायता क िलए सािह य िलखा गया उसी

अिनवायता क िलए ही आलोचना उ म सािह य बड़ी ह क आलोचना यह

िववादा पद ह यह भी हम कह सकत ह क सािह यकार बड़ा ह क सािह य

या आलोचक बड़ा ह क आलोचना सि बड़ी ह क सि क ा य ब त उपय

नह ह इस कार सािह य और आलोचना अपनी-अपनी अिनवायता क िलए

अपनी-अपनी जगह पर बड़ी ह

िन कष- आलोचक सािह य सािह यकार और समाज क ित ितब होता

ह आलोचना गण-दोष िववचन सराहना-भ सना और प तक समी ा नह ह वह

सजन और चतन क भी िवधा ह वह जो ग रची जाती ह उस कथा-कहानी स

तौला नह जा सकता ह वह कित और कितकार क अित र सदव एक तीसरी

शि क खोज करती ह कहानी किवता नाटक उप यास या ग क अ य िवधा

म एक आलोचक को कित क साथ तीन तर खोलन होत ह पहला िजस िवधा म

कित ह उस िवधा क त व उस कित का मानक माप-दड या ह दसरी कित क शली

एव स दय िववचन और िव यास कस कार आ ह और तीसरा प ह उसक

आत रक चतना उसका मम उसम िनिहत सवदना िवचार और क पनाशीलता जो

कित का ि व रचती ह इन तीन त व क आधार पर जब आलोचक कितगत

आलोचना करता ह तब कित क िलए आलोचना अिनवाय हो जाता ह

56

आलोचना एक सजन या ह

सािह य और आलोचना का सबध अ यो या ीत ह जो सािह य क रचना

या ह वही आलोचना का फक मा इतना ह क सािह य का ल य समाज

होता ह और आलोचना का ल य रचना िशवदान सह चौहान न इस बात को प

करत ए कहत ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर स

िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार ह इसिलए इस आप शा ीय वग करण क तरह अिमट और अल य न

मान ल rdquo23 अत रचना क सजन या को जान िबना आलोचना क सजन या

को अ छी तरह समझी नह जा सकती ह

सािह य वह व त ह िजसम मनोभावा मक क पना मक बौि क तथा

रचना मक त व का समावश होता ह सािह य सजन क या क अतगत

क पना बि भाव तथा शली का होना अिनवाय ह यह उठता ह क

सािह यकार क मल रणा या होती ह िजसक कारण सािह यकार को इन त व

का सहारा लना पड़ता ह सीध स हम कह सकत ह क वह समाज म घटी घटना

क अनभित ह अनभित हम घटना क प ा य करत ह तथा अनभित रचना स पव

हमार दय म कट होती ह जस िबना दख क सख का अनभव नह होता ठीक

उसी कार िबना सख-दख स रचना दोन का िम ण ही का ह हदी क िस

आलोचक आचाय नददलार वाजपयी न lsquoसािह य का योजन आ मानभितrsquo म

िलखा ह ndash ldquoका क रणा अनभित स िमलती ह यह वत एक अनभित त य ह

गो वामी तलसीदास न रामच रतमानस का िनमाण करत समय िलखा था ndash

57

lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

58

मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

59

रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

61

सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

62

(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

39

म याकन कया जाए इसिलए आलोचक का काम कसी कित का म याकन करना

नह ह न उसक भाव क परख करना ह न उसम भाव -िवचार या अ य

बात को दखना ह उसका काम तो कवल भाषा और िश प का िव षण करना मा

ह rdquo4 भाषा क मा यम स भाव एव िवचार क अिभ ि होती ह और शली इन

भाव एव िवचार को अिभ करन का कौशल ह अत कसी न कसी प म

आलोचक कित क गण-दोष का िववचन तत करता ह वह गण का िवकास तथा

दोष को दर करन क रणा दता ह आलोचक का उ रदािय व ितहरा ह- पहला

किव या लखक क ित दसरा कित क ित और तीसरा समाज क ित किव या

लखक का आलोचक रक और मागदशक ह कित क गण का िव ापन और दोष का

िववचन और द दशन करा क उसका मह व कट करना उसका मख काय ह और

समाज को कित और कितकार क सदभ म वा तिवक ान कराना स कितय क पठन

क रणा जागत करना और उनक लखक क ित स मान भाव जगाना आलोचक का

सव धान उ रदािय व ह आलोचना या आलोचक क अथ क ापकता पर

िशवदान सह चौहान न िलखा ह ndash ldquo ापक अथ म आलोचना मन य क आ म

चतना ह ndash सािह य और कला क प म िनमाण क ई अपनी अथवान रचना क

सदर-असदर शभ-अशभ स य-अस य प क ित जा त ई चतना ह इसक

प रणम व प ही म य-िन पण क मानदड और िस ात बनत ह य मानदड और

िस ात बदलत जात ह िजस कार दश-काल क िविश प रि थितय स ापक

भाव हण करक सािह य और कला क वि या बदलती जाती ह और इस कार

अतवा जीवन क स य या वा तिवकता का मत छिवय क भाषा म यगानकल

आकलन करती जाती ह कत एक बार जब आलोचना का ज म हो जाता ह तो वह

सािह य-कला क कवल तट थ ा याता या िनरप ा ही नह बनी रहती

सा कितक परपरा और मन य क अ जत ान का समाहार करक और वतमान क

40

ऐितहािसक चतना लकर सवदनशील यग- ा आलोचक ाचीन और सामियक

सािह य क कितय का म य आकत ए नए ा या-स क उ ावना भी करता

ह िजसस आलोचना कवल पाठक को सािह य क कितय स पर स दय-म य तथा

चतना- िवकासी मानव सवदना ा करन म ही साहायता नह दती बि क

सािह यकार को भी नई अतदि दान करक उनक आग रचना क नए और

सीमात खोल दती ह आलोचना एक स य शि ह जो सािह य और कला क

धारा का आव यकतानसार िनय ण करती ह तो सािह य और कला म नई

वि य और धारा को िवकास क िलए ो साहन और रणा भी दती ह इस

कार आलोचना वय एक रचना मक या ह rdquo5 अत चौहानजी आलोचना को

एक वत ग िवधा मानत ह भाव क िववचन िशवदान सह चौहान न समाज

क प र य म क ह वह भावजगत और समाज क सबध को अिभ मानत ह

िनरप भाव को वह बि का िवषय मानत ह

िन कष - िशवदान सह चौहान न जहा स ाितक आलोचना क म का

क स म स दय का िववचन करक एक ापक प दान कया वह उ ह न

ावहा रक आलोचना क म यग इितहास मत स दाय और कला मक

अिभ ि आ द को थान दकर अपनी ापक दि का प रचय दया ह उनक

आलोचना मक िवचार क दि िजतनी ौढ़ एव मह वपण ह उतनी ही

अिभ ि शली-प क दि स सरस रोचक एव भवो पादक ह

41

(ख) आलोचना क मान

आलोचना क मान स ता पय हndash कसी कित का नापन या तौलन का साधन

या पमाना रचना और रचनाकार क सीमा मह व आ द सिचत करन का

मह वपण साधन आलोचना ह आलोचना का िज करत ही आनयास कित या

कितकार सामन आ जात ह स कत का शा को छोड़ कर आज तक हदी

आलोचना का कोई िनि त मानदड थािपत नह हो पाया ह आलोचना का सीधा

सबध कित स ह कित को आधार बनाकर आलोचक आलोचना करता ह कित

कसी िवशष ि क नीिज भाव िवचार अनभितय क अिभ ि ह भाव

क अिभ ि होन क चलत कित म अलौ कक स ा का सामहार होता ह और यही

उसक आलोचना का माग करता ह रचनाकार िविभ िवचार धारा स

भािवत होता ह अत उसी िवचार धारा क आधार पर उसक रचना क

आलोचना क जाती ह ऐसी आलोचनाए िनराधार एव एकागी होती ह िशवदान

सह चौहान का मानना ह क सािह य क आलोचना जब कसी िस ात या

िवचारधारा का आ ह लकर चलन लगती ह तब वह ावहा रक समी ा तर पर

भी और अ सािह य म भद करना भल जाती ह कसी ि क ि गत

िच आलोचना का मान नह बन सकती मन य क िचया सजीव और

िवकासमान ह य द िच कसी िवचारधारा स जड़ीभत ह तब वह पवा ह

कहलाती ह अत पवा ह आलोचना क कसौटी नह बन सकती िशवदान सह

चौहान क दि इस िवषय पर अ यत व छ ह उ ह न प िलखा ह ndash ldquo िच

िभ ता का िस ात ाचीन काल स मा य ह-यह एक हक़ कत ह िस ात नह -

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ल कन िच कभी भी सािह यालोचना का मानदड नह बनी हrdquo6 कसी एक

आलोचक या पाठक क िच या अ िच उ क सािह य को िनक नह बना सकती

उ क सािह य स ता पय ह मानव म य या वा तिवक स य पर रची गयी वह

सािह य जो आज हमारी स कित क अ य िनिध ह य द lsquoसािह यrsquo सामािजक

सबध अपन यग क क ीय िवचार िश प- ान और नितक मा यता पर रचा गया

ह तब वह कालजयी एव रचना होगा आलोचक को सािह य का म याकन

सामािजक म य एव त कालीन प रि थितय क आधार पर करना चािहए

आलोचना क मान आधार और कसौटी का अित आधिनक ह स कत

सािह य म कई िस ात मा य ह उ ह िस ा त क आधार पर सािह य को दखन-

परखन क सिवधा थी आज नयी चतना और व ािनक यग क िवकास क कारण नय-

नय िस ात िवचार एव ान-िव ान का िवकास आ िजसक चलत हर व त को

दखन-परखन क नज़ रया बदली ह िशवदान सह चौहान न स कत क पाठक एव

आज क स दय म अतर प करत ए िलखा ह- ldquoउन दोन क पाठक भी आज क

अप ा अिधक ब और स कत थ-मन lsquoस कतrsquo श द का योग कया ह lsquoिशि तrsquo

का नह य क आज क पाठक शायद अिधक िशि त ह उन दन सामा य पाठक

कसी एक ही वग क लखक क रचना नह पढ़त थ बि क भारतीय और पा ा य

लािसक सािह य क अित र आधिनक यग क सभी मानववादी महान लखक क

कितय को उनक िच समान उ साह स हण करती थी-इनम सब िवचारधारा

क सािह यकार और समाज िच तक होत थ क त आज क अिधक िशि त पाठक

कवल समाचार प और फ मी पि का स ही अपनी आ याि मक धाप त करत

ह और उनम जो थोड़ स lsquoअितिशि तrsquo ह व का का फॉकनर इज़रा पाउड

ईिलयट सलर आवल आ द कवल अना थावादी लखक क ही रचनाए पढ़त ह

तब क पाठक को आलोचना क मान पर अलग स बहस करन क ज रत नह होती

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थी य क जीवनम य म उनक आ था उनक सािह य का म याकन करन क एक

सहज दि दान कर दती थी िजसस व और िनक उदा और ील और

अ ील मानववादी और मानव ोही का भद समझत थ- कसी कार का कोरा

शाि दक चम कार उ ह अिधक समय तक भलाव म नह डाल पाता था rdquo7 आज क

आलोचक ही नह रचनाकार भी अनक मत-मतातर और वाद-िववाद म फस कर

अपनी वानभित पर दसरी िवचारधारा को आरोिपत कर लता ह िजसक चलत

आलोचना सािह य म अनक िवसगितया फल गयी ह यही कारण ह क आलोचना

का कोई एक िनि त एव वत मानदड थािपत करना अ यत द कर ह

सािह कार समाज का एक अ यत सवदनशील ि होता ह और आलोचक रचना

का म मक पाठक सािह यकार समाज म ा वा तिवक स य और जीवन म य को

अिभ करन म कतना सफल ह इस मम को समझन-समझान का दािय व

आलोचक का ह िशवदान सह चौहान का मानना ह - ldquoसािह यकार और आलोचक

य द वा तिवक जीवन म य को ही भला द या उनक सामािजक िवकितय को ही

मानव सबध का िचरतन स य मान बठ तो उ ह सािह य क ऊटपटाग मयादाए

गढ़न स कोई नह रोक सकता rdquo8 सािह यकार और आलोचक को मानव म य और

वा तिवक स य क ित जाग क रहना अ यत आव यक ह

सािह य एक जीवत या ह प रवतन म िवकास छपा होता ह और िवकास क साथ-साथ सािह य सम एव शि शाली होता ह िविभ िवचार एव

िस ात क चलत सािह य म अनक िवकितया फल गयी ह ाय आलोचक कसी न

कसी िवचारधारा स भािवत ह और उसी दि स सािह य का म याकन करता ह जब कोई आलोचक कसी िवचारधारा या िस ात को आधार मानकर सािह य का िववचन एव म याकन करता ह तब वह आलोचना पवा ह स िसत मानी जायगी

िशवदान सह चौहान न इस त य को और प करत ए िलखा ह ndash ldquoमन य क

िचया और सहानभितया सजीव और िवकासमान व त ह - सम समि वत

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स कित क वातावरण म उनका वत माजन और स कार होता जाता ह और व

ापक मानवीय म य को हण करक उदार शालीन और साि वक बनती जाती ह ल कन सक ण और अनदार िस ात या िवचारधाराए उ ह िन ाण और जड़ बना

दती ह-उनक चौखट म जड़ीभत हो गई िचया ही पवा ह कहलाती ह अत

पवा ह ही समी ा- तर क आलोचना म म याकन क कसौटी बना हो तो पहल उनको तोड़ बगर स ाितक- तर क थापनाए व मान अराजकता को दर करन म

कहा तक सहायक हो सकगी यह स द ध ह rdquo9 िन प एव व तिन आलोचना ही

सािह यकार क िलए रणा दायक होती ह और वह मानवीय म य का उ ाटन करती ह ऐसी ही आलोचना सािह य और सािह यकार म ाण डालती ह और वही आलोचना िचरजीवी होती ह परत ऐसा ब त कम दखा जाता ह डॉ िव नाथ

साद का मानना हndash ldquoव त और म याकन क या यह ह क पहल व त क स ा

ह और बाद म उसक म याकन का काय वणन व य व त का होता ह अत

आलोचना रचना का अनसरण कर यही उिचत ह परत ऐसा हो नह पाता ह ाय

आलोचक अपनी पवा जत धारणा क िनकष पर रचना का म यकन करता ह इसस रचना का कत िवधान उलट जाता ह यह िनषधमलक वहार आलोचना-

क सवािधक उ लखनीय िवसगित हrdquo10 अत आलोचना व त साप होनी

चािहए

िन कषत कहा जा सकता ह क आलोचना कसी कित क ता एव उसक

म य िनधारण का मा यम ह आलोचना सािह य स जीिवत ह सािह य आलोचना

स नह आलोचना का काय कित को सही थान दलाना ह सािह य च क सम

मानव जीवन को ित बिबत करता ह इसिलए उसम जीवन क िविभ तरीय

म य का सघष भी होता ह इसक सही िन कष तक प चन क िलए आलोचक को

ापक दि एव उदार भावना का होना अ यत आव यक ह आलोचना क मान पर

शा ीय मतमतातर म न फसकर ऐस म य पर दि पात कर सकत ह जो एक ओर

पाठक क सािह य बोध म सहायक हो और दसरी ओर रचनाकार को व थ दशा द

सक

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(ग) आलोचना का सामािजक सदभ

lsquoसािह यrsquo सहका रता का तीक ह यह जनता क जीवन क सख-दख हष-

िवषाद आ द क तान बान स बना होता ह सािह य जीवन क ा या होता ह

सािह य क क म मानव होता ह मानव क अनभितय भावना िवचार और

कला का साकार प ही सािह य ह सािह य का रसा वादन पाठक करता ह

स दय पाठक ही आलोचक होता ह आलोचक समाज क अ य ि य स िभ

और अिधक सवदनशील होता ह आलोचक का सीधा सबध सािह य स होता ह और

सािह य का समाज स अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना उिचत होगा

िशवदान सह चौहान का सािह य और सािह यालोचना सबधी िवचार अ यत

नवीन ह उ ह न हदी क ाचीन किवय और नए किवय म भद करत ए िलखा

हndash ldquoपहल किव आ करत थ कत अब नए किव पदा हो गय ह जो किवता न िलख

कर नई किवता िलखत ह िजसका अथ ह क व अपनी किवता म लय और छद क

बधन क तो बात दर कसी भी कार क बधन बदा त नह करत उनक नई

किवता म रस और स दय क खोज थ ह उसम कसी भी प िवचार सामािजक

योजन ापक मानवीय म य आ द क माग करत ही व िबगड़ उठत ह य क व

समझत ह क ऐसा करना उनक ि गत वत ता पर हार ह व कसी

सामािजक दािय व को भी नह मानना चाहत rdquo11 ऐसी ि थित म आलोचक को

सामािजक सदभ म दखना अ यत क ठन हो जाता ह य क बात दािय व क नह

क का ह सािह यकार य द अपन क का पालन नह करता तब आलोचक

अपन दािय व का िनवाह कस कर सकता ह

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आलोचक तट थ होकर सािह य का म यकन करता ह आलोचक को

सािह य सािह यकार और समाज क ित आपन दािय व का पालन करना पड़ता ह

वह कसी भी कित को सामािजक सदभ म दखना चाहता ह कोई कतना भी बड़ा

आलोचक य न हो वह कसी बरी रचना को उ क नह बना सकता ह अत

आलोचक क िलए सामािजकता का िनवाह अित आव यक ह िशवदान सह चौहान

इस बात को इस कार िलखत ह ndash ldquoआलोचक सािह य-जगत का भा य-िवधाता भी

नह ह जो चाह तो खल हाथ अमर व बाट सकता हो कसी आलोचक म यह

शि नह क वह बरी रचना को अपनी म शसा स अमर व दला सक या अपन

कठोर वाक हार स कसी महान रचना को अमर होन स रोक सक इसिलए लखक

य द महान कित व क िबना ही महानता और अमर व पान क मह वका ा पर थोड़ा

सा सयम रखकर आलोचक को अपन दािय व का पालन करन का अवसर द तो

सभव ह क आलोचना क म वसी अराजकता न रह जसी क आज दखाई दती

ह rdquo12 समाज कित और लखक म सबध उसका वा तिवक ान और स कितय क

पठन क रण जगाना आलोचक का वधम ह आलोचक को िवषय का िव तत ान

होना चािहए स दयता क साथ कित और कितकार का िन प िववचन करना

आलोचक का समािजक दािय व ह

आलोचना रचना क होती ह और रचना सामािजक सपि ह रचनाकार अपनी अनभित िवचार एव जीवन दि को एका कर कित म अिभ करता ह आलोचक और रचनाकार दोन अ यो याि त ह कोई कित समाज क िलए कतना उपयोगी ह वह स दय पाठक ही बता सकता ह सािह य म हर समय नई-नई िवचार एव वि या आती रहती ह उसक सामािजकता का अ ययन आलोचक ही करता ह रमश दव क श द म ndash ldquoसजक और सजन य द कसी आलोचक क बौि क

और स कार मानस म स मानीय नह ह तो उसका आलोचना कम बकार ह उस कसी भी रचना पर िवचार एव िववचन का आिधकार नह ह कसी भी सजन क

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पहली शत यह ह क वह कसी भी िवधा म हो और िजस हदी क अिधकाश लोग भल ही िन दा क तरह मान लत ह ल कन उसम मन य क शील का िनवाह आव यक ह कोई आलोचना कसी भी सजक या सजन क वस क िलए नह होती बि क एक सजक को मोहम कर अिधक खर और गभीर होकर सजन क िलए उकसाती भी ह य द आलोचना-कम सजक ह ता कम होता कसी ितब ता स उपजा ितशोधा मक िन दा आ यान होगा तो फर उस आलोचना कहा ही नह जा

सकता rdquo13 आलोचक सािह य को समाज क प र य म रखत ए तठ थ और

व तिन म याकन तत करता ह य क समाज म िवचार क ारा काय

सपा दत होत ह सािह य िवचार का समह होता ह अत सािह य म

िवचार क ग शि सि होकर समाज का नत व करती ह उस भाव एव िवचार को सवसधारण आलोचक ही करता ह समाज स सािह यकार सजन क

रणा एव समा ी ा करता ह तथा वह समाज ारा भािवत होता रहता ह इसी कार समाज पर सािह य का िजतना ापक एव गहरा भाव पड़ता ह उतना अ य कसी साधन का नह पड़ता व तत सािह य समाज स उ प होता ह और

फर समाज को भािवत करता ह इस कार सािह यकार समाज स भािवत होता ह तथा वह समाज को भािवत करता ह आलोचक इस भाव का दशा और दशा

िनधारण करता ह अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना अित अिनवाय ह

िन कष प म कहा जा सकता ह क आलोचना को सामािजक दािय व

िनभाना पड़ता ह धम और दशन क अधोगित क इस यग म सािह य और

आलोचना पर एक अित र िज मदारी अिनवायत आ पड़ी ह सािह य म

पनरिचत जीवन क पदन को मानवता क अत माण क यगीन िवचार वाह क

भर-पर प र य म दखन-परखन क ज रत ह अत आलोचना अपन वधम स ही

अत ववश ह उस र थान क प त करन और समाज को िशि त करन का वह

सा कितक कम अपन हाथ म लन क िलए िववश ह

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(घ) आलोचना क अिनवायता

िशवदान सह चौहान न आलोचना क उपयोिगता और अिनवायता पर नतन

दि कोण आपनाया ह उ ह न सािह य क िलए आलोचना को अिनवाय माना ह

नरश ारा lsquoनव िबहारrsquo क एक अक म उठाया गया ndash या आलोचना अिनवाय

ह इस पर िविव िवचारक न अपना-अपना मत कट कया ह िशवदान सह

चौहान न अपनी गहरी सोच िवल ण ितभा क ारा तत िवषय पर नई सोच

एव िवचार कट कया ह इनका मानना ह क आलोचना रचना क िलए अिनवाय

ह आलोचना क अिनवायता पर िवचार करत ह और जब यह उठता ह क या

आलोचना अिनवाय ह तब अनयास ित उठता ह ndash या रचना अिनवाय ह

या पढ़ना ही अिनवाय ह िशवदान सह चौहान का मानना ह ndash ldquoरचनाकार क

ितभा- मता क तरह आलोचक क ितभा- मता का उठाना भी असगत

नह ह िजस तरह हर लखक रचनाकार नह बन सकता उसी तरह समी क

आलोचक नह बन सकताrdquo14 इस कार िशवदान सह चौहान न नए-नए

को उठाकर इस सदभ म नई आलोचना क ह इसी क मा यम स इस िवषय पर

िवचार-िवमश करना तथा िशवदान सह चौहान क आलोचना दि को दखना

समीचीन होगा

बौि क चतन मनन और अ ययन क दौरान कित क रह य को जानन क

इ छा बढ़ जाती ह यही कारण ह क कसी ि व त थान घटना एव रचना

क ित िवचारशील ि िज ासा क दि स दखन लगता ह वा तिवकता जानन

करन क िलए जब ि अपन मन म उस ि व त थान घटना या रचना क

ित िवचार-िवमश करन लगता ह तभी उसक मन म आलोचना का उदय होता ह

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ि सोचन और न सोचन म वत होता ह ठीक इसी कार रचनाकार रचना

करन और न करन म वत होता ह पाठक पढ़न और न पढ़न म वत ह और

आलोचक आलोचना करन और न करन म वत ह तब यह िनि त ह क

रचनाकार पाठक और आलोचक वत ता क िलए नह दािय व क िलए जीत ह यह

दािय व अपन-आप क ित रचना क ित रचनाकार क ित समाज क ित रा

क ित तथा िव क ित होता ह अथात दािय व क तर पर आलोचक रचनाकार

तथा पाठक म कोई िवशष अतर नह होता ह िशवदान सह चौहान एक समथ

आलोचक को समथ रचनाकार और समथ रचनाकार को समथ आलोचक मानत ह

उनका प कहना ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर

स िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार हrdquo15 आग चौहान जी न आलोचक क आलोचना करत ए आलोचक क

कई िणया बतात ह जस- सािह य क अनक िवधा पर िलखी आलोचना

अ यापक य आलोचना प -पि का म ित मास नई प तक क र प तक

क सपादक य क प म िलखी गयी आलोचना आ द आलोचक क दािय व का

कवल उनक िलए ही उठता ह जो इन दोन िणय स िभ णी क आलोचक ह

आलोचक का सबध सािह य स होता ह न क िव ान स य द हम व ािनक

श दावली म पानी को H2O कहत ह तो वह ससार म एक ही नाम स (H2O) जाना

जाता ह परत सािह य म lsquoपानीrsquo श द का योग एक जसा नह होता वह कह नीर

कह जल कह मघ कह वि कह चमक कह व-पदाथ कह मान- ित ा या

यश बन जाता ह इस कार पानी का अनक अथ होन क कारण उिचत अथ बोध क

िलए आलोचना अिनवाय ह कहन का ता पय यह ह क आलोचना का सबध

सािह य स ह न क िव ान स कला क आलोचना को िव ान भी मान सकत ह

आलोचना सािह य क िलए कतना अिनवाय ह यह िवचरणीय ह

50

कोई भी सािह यक िवधा कसी एक ि क अपनी सपि नह होती वह

चाह उसक ारा ही िलखी गयी य न हो पर वह उस भाषा क सम त ि य क

िलए हो जाती ह जो उस भाषा क जनकार ह रचनाकार रचना को वत प स

रचता ह फर भी उस सामािजक दािय व एव या का भी यान रखना पड़ता ह

कोई भी रचनाकार अपनी रचना क मा यम स त कालीन प रि थित एव सा कितक

या को बचाय रखन क िलए रचना क सि करता ह एक कार स पाठक ही

आलोचक होता ह lsquoरचनाrsquo क िलए रचनाकार पाठक और आलोचक य तीन

अिनवाय अग ह य द रचना ह तो पाठक ह ग और पाठक ह तो आलोचना अव य

ह गी य द पाठक नह ह तब रचना कसी काम क नह कारण रचनाकार रचना

को अपन िलए नह िलखता इस कार रचना क िलए रक और कारण दोन

पाठक ही होत ह जो भी हो रचनाकार पाठक तथा आलोचक तीन एक-दसर क

आिनवाय अग होत ए भी अलग- अलग वत अि त व रखत ह इसी कारण

रचनाकार वत प स वात सख आ मानद पाता ह आलोचक एक िविश

पाठक होता ह रमश दव न अपन एक लख म िलखा ह ndash ldquoएक बड़ा यापक वग ह

जो अपन क ाई तर तक क रचना का आ वादा मक िववचन करना ही

आलोचना मानता ह यह अव य ह क उसक पास आलोचना िस ात क प भिम

होती ह और स ाितक व आलोचना क मानक या मानदड अपना कर वह रचना क

आलोचना करता ह ऐसा आलोचक कॉट ज स क तरह यह कह सकता ह क य द

नदी पर पल बनान क काम क जाच करायी जायगी तो उसक इजीिनयर को बलाया

जायगा ल कन सािह य क जाच करन क िलए उसक रचनाकार क बजाय आलोचक

को रचना स पी जायगी जहा आलोचना एक सीमा बन गई ह रचना क जाच क

तीन आधार य नह हो सकत ndash एक वह पाठक जो कवल पढ़ता ह आनद लता या

ऊबता ह कत उसको आनद या ऊब ही उसका पाठ ह िजस वह िलख कर

51

नह करता ऐसा पाठक िसफ पाठक ही बना रहता ह दसरा होता ह रचनाकार

वय जो कई बार वय अपनी रचना क भद-अभद खोलता ह और रचना क कन-

कन दबाव तनाव भािषक चनौितय अ द स उस जझना पड़ा ह यह प करता

ह इसिलए किवता स ह क साथ भिमका वय िलखन क णाली बड़-बड़

रचनाकार न अपनायी ह तीसरा ह श आलोचक जो रचना क ित अन य क

बजाय अ य भाव स कट होता ह rdquo16 रचनाकार िवषय सगठन क िलए सवथा

वत होता ह वह कसी भी िवषय का चयन कसी भी ि थित म कर सकता ह पर

आलोचक क िलए यह वत ता नह ह य क वह कसी िनि त रचनाकार क

रचना क िवषय पर ही स यक िवचार कट कर सकता ह इसक आग उस छट नह

ह आलोचक उस रचना क तठ थ होकर रचना क शि और सीमा का उ ाटन

करता ह वह रचना क ित अपना दािय व िनभाता ह अपन इस दािय व को

िनभात ए आलोचक रचना क उपयोिगता एव ासिगकता पर भी जोड़ दता ह

िशवदान सह चौहान न प िलखा ह ndash ldquoसािह य का हर पाठक एक कार स

आलोचक होता ह वह कसी कहानी या किवता को पढ़त ही तरत अपना मत कट

कर दता ह क वह अ छी ह बरी ह या असदर ह आलोचक हम उस ही कहत ह

िजसम अपनी ि गत ित या को व तपरक िनणय क साथ समि वत करन क

मता हो और जो रचना क िववचन ारा अपन अनभव-समि वत िनणय को प

अिभ ि दकर साधारण पाठक क दि को भी ि गत ित या क तल स

उठाकर ापक और व तपरक बना सक ता क व रचना स उन सार चतना-िवकासी

म य को ा कर सक जो उसम िनिहत हrdquo17 िनप आलोचना स रचना का

िवकास तो होता ही ह साथ ही साथ रचनाकार क ि व का भी ितफलन होता

ह तथा उसक िवचार एव भाव स समाज का त यदशन भी होता ह यह आलोचना

करन क उपरत ही पता चलता ह क कित या कितकार समाज क िलए कतना

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उपयोगी ह इस िवषय पर दवीशकर अव थी न अपन एक लख lsquoरचना और

आलोचकrsquo म प िलखा ह ndash ldquoम कहना चा गा क समी ा कित और कितकार क

िलए उपयोगी ह सामा य पाठक क िलए उपयोगी ह एव ान क एक िविश शाखा

क प म अपन-आप म भी उपयोगी ह उसक इस प म अपनी वत स ा भी ह

परत इन सभी उपयोिगता क मल म आधारभत या उपजी साम ी वह रचना

िवशष ही होती ह rdquo18

आलोचना क उपयोिगता-अनपयोिगता क िवषय पर चचा करन क िलए कछ

ऐस बद पर िवचार करना आव यक ह िजसस आलोचना क अिनवायता को

प कया जा सक-

आलोचना मर जान पर भी सािह य जदा रहगा- यह एक क पना ह इसस

एक बात यह प होता ह क आलोचना या सािह य जीिवत व त ह इसम वह

चतना ह जो जीव ाणी म होता ह यह चतना य ह य क सािह य म

सािह यकार क सपण चतना क अिभ ि होती ह तब य द हम क पना भी कर

ल क आलोचना मर जायगी तो इसका सीधा अथ यही होगा क जनता क समाज

क एव सािह यकार क चतना मर जायगी इस मर ए समाज म सजना मक क

या कस कार चल पायगी अथात सजना मक पर भी उठ खड़ा होगा

सािह य म राजनीितक सामािजक धा मक आ थक सा कितक एव सािहि यक

सपण ि थितय का वणन कया जाता ह तथा इन सभी प रि थितय का अवलोकन

आलोचना क मा यम स ही सभव ह य द आलोचना ही न हो तब उन प रि थितय

का सही आकलन कस होगा सािह य म सािह यकार क भावना िवचार एव

क पना क अिभ ि कभी शोक क होती ह कभी हष क होती ह तथा कभी वह

सावभौिमकता क िलए होती ह जब हम उसक सपण ि थित क जनकारी लना

53

चाहत ह तब हम आलोचना क आव यकता पड़ती ह कहन का ता पय यह ह क

य द सािह य को जीिवत रखना ह तब आलोचना क मर जान क क पना अधरी ह

ाचीन काल स आलोचना होती रही ह उस समय आलोचक और रचनाकार

सवथा िभ आ करत थ धीर-धीर यह दरी आधिनक काल तक आत-आत ख म सा

हो गया ह आलोचना आज ग क अनक कार क िवधा म स एक ह पहल यह

माना जाता था क जो आलोचना करत ह व रचना नह कर सकत आज बौि क

जीवन म यह माग क जा रही ह क रचनाकार ही आलोचना कर

का का आ वादन आलोचना स न घटता ह न बढ़ता ह ndash यह बात तो

सतही तर पर स य लगती ह पर इसक मम को हम उधड़ कर दख तो आलोचना

सािह य क िलए अिनवाय ह यह कहना न होगा क हर पाठक क समझ सोच एव

भाव क गहराई तक प चना आसान नह ह िजस मम को सामा य पाठक नह

समझ पात उस जगह तक प चन का काय आलोचक करता ह िशवदान सह

चौहान का मानना ह ndash ldquo कसी कित को पढ़कर उस पर जो भाव पड़ता ह कसी

अ य पाठक परपड़ा भाव सवथा वसा ही नह हो सकता आलोचक भी एक ऐसा

ही िविश पाठक ह- इसिलए उसक आलोचना उस पर पड़ िविश भाव को ही

कर सकती ह ऐसी ि थित म इन िविभ अनभितय कितय भाव म कोई

सामा य त व हो ही या सकता ह िजसका षण या म याकन कया जाए rdquo19 यह

ठीक ह क आलोचना स रचना क आ वाद म अतर नह होता पर िजसक ारा

आ वादन कया जाता ह वह कतना व थ ह कतना तद त ह इस पर भी यान

क आव यकता ह जीभ पर कसी व त को रखन पर उस व त का वाद न घटता

ह न बढ़ता ह नाक क पास सगध बदल नह जाती िजतनी जीभ या नाक व थ

होगी उतना ही वाद पण प स िलया जा सकता ह जहा तक रचना का सवाल

ह तो जीभ और नाक का काय आलोचक करता ह आलोचक मलत एक िवशष

54

कार का पाठक होता ह हाला क पाठक ही आलोचक होता ह फर भी पाठक और

आलोचक म ताि वक फक ह पाठन क ज रय आलोचक उसक छप ए रह य को भी

खोल कर समाज क सामन प कर दता ह आचाय कसरी कमार न भी आलोचक

को पाठक मानत ह पर आलोचक और पाठक म अतर प कया ह उनका मानना

ह ndash ldquoसामा य पाठक और आलोचक क आ वादन म कछ वसा फक ह जसा द तावज

पर अगठ क छाप लगाना और पढ़कर द तावज करन का ह rdquo20 प प स आचाय

कसरी कमार न पाठक को ही आलोचक मानत ह पर उनका पाठक सामा य पाठक

नह ह एक िवशष कार का पाठक होता ह और चौहानजी न भी िविश पाठक को

ही आलोचक मानत ह

सािह य का आ वादन वयि क तर पर होता ह आलोचक सािह य का

रसा वादन वयि क तर पर ही हण करता ह आलोचक एक सिनि त मानदड

थािपत करना चाहता ह य द कसी िवचार-धारा या वाद स भािवत होकर

मानदड थािपत करता ह तब वह मानदड असमीचीन हो जाता ह आलोचक य द

पवा ह स भािवत वाद क आधार पर अपना मानदड थािपत करता ह तब वह

उस कित का सा यक म याकन नह कर पायगा डॉ िव नाथ साद न इस त य

को प करत ए िलखा ह ndash ldquoउ क आलोचना पवा ह स बचकर चलती ह और

ऐसा तभी सभव ह जब आलोचक का एक पाव अपन यग म तथा एक पाव लखक क

यग म हो अथवा उसक एक आख रस सवदना पर हो तथा दसरी आख लखक क

भाव-िनवदन पर इसस आलोचना क म ामक म याकन क सभावना नह

रहती rdquo21 आलोचना क िलए एक मानदड या फामला क थापना कर उस पर

आलोचना करना ब त क ठन काय ह आलोचना का कोई मानदड तभी सराहनीय

ह जब तक वह कसी िवचारधारा एव वाद स कोई सबध नह रखता

55

पहल सािह य आ तब आलोचना िशवदान सह चौहान न प िलखा ह

क ndash ldquoसािह य स ही आलोचना ह आलोचना स सािह य नह ह rdquo22 इस िवषय पर

चौहानजी न आपना मह वपण िवचार कट कया ह कहन का ता पय यह ह क

वद बड़ा क लबद कद बड़ा क पद या यह भी उठ सकता ह क पहल मग ई

क अड़ा पहल बीज आ क पड़ यह िवचरणीय नह ह यह अपन-अपन

अनभव क बात ह इस कार उ का िहसाब सािह य और आलोचना पर करना

उिचत नह िजस कार मन य क अिनवायता क िलए सािह य िलखा गया उसी

अिनवायता क िलए ही आलोचना उ म सािह य बड़ी ह क आलोचना यह

िववादा पद ह यह भी हम कह सकत ह क सािह यकार बड़ा ह क सािह य

या आलोचक बड़ा ह क आलोचना सि बड़ी ह क सि क ा य ब त उपय

नह ह इस कार सािह य और आलोचना अपनी-अपनी अिनवायता क िलए

अपनी-अपनी जगह पर बड़ी ह

िन कष- आलोचक सािह य सािह यकार और समाज क ित ितब होता

ह आलोचना गण-दोष िववचन सराहना-भ सना और प तक समी ा नह ह वह

सजन और चतन क भी िवधा ह वह जो ग रची जाती ह उस कथा-कहानी स

तौला नह जा सकता ह वह कित और कितकार क अित र सदव एक तीसरी

शि क खोज करती ह कहानी किवता नाटक उप यास या ग क अ य िवधा

म एक आलोचक को कित क साथ तीन तर खोलन होत ह पहला िजस िवधा म

कित ह उस िवधा क त व उस कित का मानक माप-दड या ह दसरी कित क शली

एव स दय िववचन और िव यास कस कार आ ह और तीसरा प ह उसक

आत रक चतना उसका मम उसम िनिहत सवदना िवचार और क पनाशीलता जो

कित का ि व रचती ह इन तीन त व क आधार पर जब आलोचक कितगत

आलोचना करता ह तब कित क िलए आलोचना अिनवाय हो जाता ह

56

आलोचना एक सजन या ह

सािह य और आलोचना का सबध अ यो या ीत ह जो सािह य क रचना

या ह वही आलोचना का फक मा इतना ह क सािह य का ल य समाज

होता ह और आलोचना का ल य रचना िशवदान सह चौहान न इस बात को प

करत ए कहत ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर स

िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार ह इसिलए इस आप शा ीय वग करण क तरह अिमट और अल य न

मान ल rdquo23 अत रचना क सजन या को जान िबना आलोचना क सजन या

को अ छी तरह समझी नह जा सकती ह

सािह य वह व त ह िजसम मनोभावा मक क पना मक बौि क तथा

रचना मक त व का समावश होता ह सािह य सजन क या क अतगत

क पना बि भाव तथा शली का होना अिनवाय ह यह उठता ह क

सािह यकार क मल रणा या होती ह िजसक कारण सािह यकार को इन त व

का सहारा लना पड़ता ह सीध स हम कह सकत ह क वह समाज म घटी घटना

क अनभित ह अनभित हम घटना क प ा य करत ह तथा अनभित रचना स पव

हमार दय म कट होती ह जस िबना दख क सख का अनभव नह होता ठीक

उसी कार िबना सख-दख स रचना दोन का िम ण ही का ह हदी क िस

आलोचक आचाय नददलार वाजपयी न lsquoसािह य का योजन आ मानभितrsquo म

िलखा ह ndash ldquoका क रणा अनभित स िमलती ह यह वत एक अनभित त य ह

गो वामी तलसीदास न रामच रतमानस का िनमाण करत समय िलखा था ndash

57

lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

58

मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

59

रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

61

सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

62

(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

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चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

40

ऐितहािसक चतना लकर सवदनशील यग- ा आलोचक ाचीन और सामियक

सािह य क कितय का म य आकत ए नए ा या-स क उ ावना भी करता

ह िजसस आलोचना कवल पाठक को सािह य क कितय स पर स दय-म य तथा

चतना- िवकासी मानव सवदना ा करन म ही साहायता नह दती बि क

सािह यकार को भी नई अतदि दान करक उनक आग रचना क नए और

सीमात खोल दती ह आलोचना एक स य शि ह जो सािह य और कला क

धारा का आव यकतानसार िनय ण करती ह तो सािह य और कला म नई

वि य और धारा को िवकास क िलए ो साहन और रणा भी दती ह इस

कार आलोचना वय एक रचना मक या ह rdquo5 अत चौहानजी आलोचना को

एक वत ग िवधा मानत ह भाव क िववचन िशवदान सह चौहान न समाज

क प र य म क ह वह भावजगत और समाज क सबध को अिभ मानत ह

िनरप भाव को वह बि का िवषय मानत ह

िन कष - िशवदान सह चौहान न जहा स ाितक आलोचना क म का

क स म स दय का िववचन करक एक ापक प दान कया वह उ ह न

ावहा रक आलोचना क म यग इितहास मत स दाय और कला मक

अिभ ि आ द को थान दकर अपनी ापक दि का प रचय दया ह उनक

आलोचना मक िवचार क दि िजतनी ौढ़ एव मह वपण ह उतनी ही

अिभ ि शली-प क दि स सरस रोचक एव भवो पादक ह

41

(ख) आलोचना क मान

आलोचना क मान स ता पय हndash कसी कित का नापन या तौलन का साधन

या पमाना रचना और रचनाकार क सीमा मह व आ द सिचत करन का

मह वपण साधन आलोचना ह आलोचना का िज करत ही आनयास कित या

कितकार सामन आ जात ह स कत का शा को छोड़ कर आज तक हदी

आलोचना का कोई िनि त मानदड थािपत नह हो पाया ह आलोचना का सीधा

सबध कित स ह कित को आधार बनाकर आलोचक आलोचना करता ह कित

कसी िवशष ि क नीिज भाव िवचार अनभितय क अिभ ि ह भाव

क अिभ ि होन क चलत कित म अलौ कक स ा का सामहार होता ह और यही

उसक आलोचना का माग करता ह रचनाकार िविभ िवचार धारा स

भािवत होता ह अत उसी िवचार धारा क आधार पर उसक रचना क

आलोचना क जाती ह ऐसी आलोचनाए िनराधार एव एकागी होती ह िशवदान

सह चौहान का मानना ह क सािह य क आलोचना जब कसी िस ात या

िवचारधारा का आ ह लकर चलन लगती ह तब वह ावहा रक समी ा तर पर

भी और अ सािह य म भद करना भल जाती ह कसी ि क ि गत

िच आलोचना का मान नह बन सकती मन य क िचया सजीव और

िवकासमान ह य द िच कसी िवचारधारा स जड़ीभत ह तब वह पवा ह

कहलाती ह अत पवा ह आलोचना क कसौटी नह बन सकती िशवदान सह

चौहान क दि इस िवषय पर अ यत व छ ह उ ह न प िलखा ह ndash ldquo िच

िभ ता का िस ात ाचीन काल स मा य ह-यह एक हक़ कत ह िस ात नह -

42

ल कन िच कभी भी सािह यालोचना का मानदड नह बनी हrdquo6 कसी एक

आलोचक या पाठक क िच या अ िच उ क सािह य को िनक नह बना सकती

उ क सािह य स ता पय ह मानव म य या वा तिवक स य पर रची गयी वह

सािह य जो आज हमारी स कित क अ य िनिध ह य द lsquoसािह यrsquo सामािजक

सबध अपन यग क क ीय िवचार िश प- ान और नितक मा यता पर रचा गया

ह तब वह कालजयी एव रचना होगा आलोचक को सािह य का म याकन

सामािजक म य एव त कालीन प रि थितय क आधार पर करना चािहए

आलोचना क मान आधार और कसौटी का अित आधिनक ह स कत

सािह य म कई िस ात मा य ह उ ह िस ा त क आधार पर सािह य को दखन-

परखन क सिवधा थी आज नयी चतना और व ािनक यग क िवकास क कारण नय-

नय िस ात िवचार एव ान-िव ान का िवकास आ िजसक चलत हर व त को

दखन-परखन क नज़ रया बदली ह िशवदान सह चौहान न स कत क पाठक एव

आज क स दय म अतर प करत ए िलखा ह- ldquoउन दोन क पाठक भी आज क

अप ा अिधक ब और स कत थ-मन lsquoस कतrsquo श द का योग कया ह lsquoिशि तrsquo

का नह य क आज क पाठक शायद अिधक िशि त ह उन दन सामा य पाठक

कसी एक ही वग क लखक क रचना नह पढ़त थ बि क भारतीय और पा ा य

लािसक सािह य क अित र आधिनक यग क सभी मानववादी महान लखक क

कितय को उनक िच समान उ साह स हण करती थी-इनम सब िवचारधारा

क सािह यकार और समाज िच तक होत थ क त आज क अिधक िशि त पाठक

कवल समाचार प और फ मी पि का स ही अपनी आ याि मक धाप त करत

ह और उनम जो थोड़ स lsquoअितिशि तrsquo ह व का का फॉकनर इज़रा पाउड

ईिलयट सलर आवल आ द कवल अना थावादी लखक क ही रचनाए पढ़त ह

तब क पाठक को आलोचना क मान पर अलग स बहस करन क ज रत नह होती

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थी य क जीवनम य म उनक आ था उनक सािह य का म याकन करन क एक

सहज दि दान कर दती थी िजसस व और िनक उदा और ील और

अ ील मानववादी और मानव ोही का भद समझत थ- कसी कार का कोरा

शाि दक चम कार उ ह अिधक समय तक भलाव म नह डाल पाता था rdquo7 आज क

आलोचक ही नह रचनाकार भी अनक मत-मतातर और वाद-िववाद म फस कर

अपनी वानभित पर दसरी िवचारधारा को आरोिपत कर लता ह िजसक चलत

आलोचना सािह य म अनक िवसगितया फल गयी ह यही कारण ह क आलोचना

का कोई एक िनि त एव वत मानदड थािपत करना अ यत द कर ह

सािह कार समाज का एक अ यत सवदनशील ि होता ह और आलोचक रचना

का म मक पाठक सािह यकार समाज म ा वा तिवक स य और जीवन म य को

अिभ करन म कतना सफल ह इस मम को समझन-समझान का दािय व

आलोचक का ह िशवदान सह चौहान का मानना ह - ldquoसािह यकार और आलोचक

य द वा तिवक जीवन म य को ही भला द या उनक सामािजक िवकितय को ही

मानव सबध का िचरतन स य मान बठ तो उ ह सािह य क ऊटपटाग मयादाए

गढ़न स कोई नह रोक सकता rdquo8 सािह यकार और आलोचक को मानव म य और

वा तिवक स य क ित जाग क रहना अ यत आव यक ह

सािह य एक जीवत या ह प रवतन म िवकास छपा होता ह और िवकास क साथ-साथ सािह य सम एव शि शाली होता ह िविभ िवचार एव

िस ात क चलत सािह य म अनक िवकितया फल गयी ह ाय आलोचक कसी न

कसी िवचारधारा स भािवत ह और उसी दि स सािह य का म याकन करता ह जब कोई आलोचक कसी िवचारधारा या िस ात को आधार मानकर सािह य का िववचन एव म याकन करता ह तब वह आलोचना पवा ह स िसत मानी जायगी

िशवदान सह चौहान न इस त य को और प करत ए िलखा ह ndash ldquoमन य क

िचया और सहानभितया सजीव और िवकासमान व त ह - सम समि वत

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स कित क वातावरण म उनका वत माजन और स कार होता जाता ह और व

ापक मानवीय म य को हण करक उदार शालीन और साि वक बनती जाती ह ल कन सक ण और अनदार िस ात या िवचारधाराए उ ह िन ाण और जड़ बना

दती ह-उनक चौखट म जड़ीभत हो गई िचया ही पवा ह कहलाती ह अत

पवा ह ही समी ा- तर क आलोचना म म याकन क कसौटी बना हो तो पहल उनको तोड़ बगर स ाितक- तर क थापनाए व मान अराजकता को दर करन म

कहा तक सहायक हो सकगी यह स द ध ह rdquo9 िन प एव व तिन आलोचना ही

सािह यकार क िलए रणा दायक होती ह और वह मानवीय म य का उ ाटन करती ह ऐसी ही आलोचना सािह य और सािह यकार म ाण डालती ह और वही आलोचना िचरजीवी होती ह परत ऐसा ब त कम दखा जाता ह डॉ िव नाथ

साद का मानना हndash ldquoव त और म याकन क या यह ह क पहल व त क स ा

ह और बाद म उसक म याकन का काय वणन व य व त का होता ह अत

आलोचना रचना का अनसरण कर यही उिचत ह परत ऐसा हो नह पाता ह ाय

आलोचक अपनी पवा जत धारणा क िनकष पर रचना का म यकन करता ह इसस रचना का कत िवधान उलट जाता ह यह िनषधमलक वहार आलोचना-

क सवािधक उ लखनीय िवसगित हrdquo10 अत आलोचना व त साप होनी

चािहए

िन कषत कहा जा सकता ह क आलोचना कसी कित क ता एव उसक

म य िनधारण का मा यम ह आलोचना सािह य स जीिवत ह सािह य आलोचना

स नह आलोचना का काय कित को सही थान दलाना ह सािह य च क सम

मानव जीवन को ित बिबत करता ह इसिलए उसम जीवन क िविभ तरीय

म य का सघष भी होता ह इसक सही िन कष तक प चन क िलए आलोचक को

ापक दि एव उदार भावना का होना अ यत आव यक ह आलोचना क मान पर

शा ीय मतमतातर म न फसकर ऐस म य पर दि पात कर सकत ह जो एक ओर

पाठक क सािह य बोध म सहायक हो और दसरी ओर रचनाकार को व थ दशा द

सक

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(ग) आलोचना का सामािजक सदभ

lsquoसािह यrsquo सहका रता का तीक ह यह जनता क जीवन क सख-दख हष-

िवषाद आ द क तान बान स बना होता ह सािह य जीवन क ा या होता ह

सािह य क क म मानव होता ह मानव क अनभितय भावना िवचार और

कला का साकार प ही सािह य ह सािह य का रसा वादन पाठक करता ह

स दय पाठक ही आलोचक होता ह आलोचक समाज क अ य ि य स िभ

और अिधक सवदनशील होता ह आलोचक का सीधा सबध सािह य स होता ह और

सािह य का समाज स अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना उिचत होगा

िशवदान सह चौहान का सािह य और सािह यालोचना सबधी िवचार अ यत

नवीन ह उ ह न हदी क ाचीन किवय और नए किवय म भद करत ए िलखा

हndash ldquoपहल किव आ करत थ कत अब नए किव पदा हो गय ह जो किवता न िलख

कर नई किवता िलखत ह िजसका अथ ह क व अपनी किवता म लय और छद क

बधन क तो बात दर कसी भी कार क बधन बदा त नह करत उनक नई

किवता म रस और स दय क खोज थ ह उसम कसी भी प िवचार सामािजक

योजन ापक मानवीय म य आ द क माग करत ही व िबगड़ उठत ह य क व

समझत ह क ऐसा करना उनक ि गत वत ता पर हार ह व कसी

सामािजक दािय व को भी नह मानना चाहत rdquo11 ऐसी ि थित म आलोचक को

सामािजक सदभ म दखना अ यत क ठन हो जाता ह य क बात दािय व क नह

क का ह सािह यकार य द अपन क का पालन नह करता तब आलोचक

अपन दािय व का िनवाह कस कर सकता ह

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आलोचक तट थ होकर सािह य का म यकन करता ह आलोचक को

सािह य सािह यकार और समाज क ित आपन दािय व का पालन करना पड़ता ह

वह कसी भी कित को सामािजक सदभ म दखना चाहता ह कोई कतना भी बड़ा

आलोचक य न हो वह कसी बरी रचना को उ क नह बना सकता ह अत

आलोचक क िलए सामािजकता का िनवाह अित आव यक ह िशवदान सह चौहान

इस बात को इस कार िलखत ह ndash ldquoआलोचक सािह य-जगत का भा य-िवधाता भी

नह ह जो चाह तो खल हाथ अमर व बाट सकता हो कसी आलोचक म यह

शि नह क वह बरी रचना को अपनी म शसा स अमर व दला सक या अपन

कठोर वाक हार स कसी महान रचना को अमर होन स रोक सक इसिलए लखक

य द महान कित व क िबना ही महानता और अमर व पान क मह वका ा पर थोड़ा

सा सयम रखकर आलोचक को अपन दािय व का पालन करन का अवसर द तो

सभव ह क आलोचना क म वसी अराजकता न रह जसी क आज दखाई दती

ह rdquo12 समाज कित और लखक म सबध उसका वा तिवक ान और स कितय क

पठन क रण जगाना आलोचक का वधम ह आलोचक को िवषय का िव तत ान

होना चािहए स दयता क साथ कित और कितकार का िन प िववचन करना

आलोचक का समािजक दािय व ह

आलोचना रचना क होती ह और रचना सामािजक सपि ह रचनाकार अपनी अनभित िवचार एव जीवन दि को एका कर कित म अिभ करता ह आलोचक और रचनाकार दोन अ यो याि त ह कोई कित समाज क िलए कतना उपयोगी ह वह स दय पाठक ही बता सकता ह सािह य म हर समय नई-नई िवचार एव वि या आती रहती ह उसक सामािजकता का अ ययन आलोचक ही करता ह रमश दव क श द म ndash ldquoसजक और सजन य द कसी आलोचक क बौि क

और स कार मानस म स मानीय नह ह तो उसका आलोचना कम बकार ह उस कसी भी रचना पर िवचार एव िववचन का आिधकार नह ह कसी भी सजन क

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पहली शत यह ह क वह कसी भी िवधा म हो और िजस हदी क अिधकाश लोग भल ही िन दा क तरह मान लत ह ल कन उसम मन य क शील का िनवाह आव यक ह कोई आलोचना कसी भी सजक या सजन क वस क िलए नह होती बि क एक सजक को मोहम कर अिधक खर और गभीर होकर सजन क िलए उकसाती भी ह य द आलोचना-कम सजक ह ता कम होता कसी ितब ता स उपजा ितशोधा मक िन दा आ यान होगा तो फर उस आलोचना कहा ही नह जा

सकता rdquo13 आलोचक सािह य को समाज क प र य म रखत ए तठ थ और

व तिन म याकन तत करता ह य क समाज म िवचार क ारा काय

सपा दत होत ह सािह य िवचार का समह होता ह अत सािह य म

िवचार क ग शि सि होकर समाज का नत व करती ह उस भाव एव िवचार को सवसधारण आलोचक ही करता ह समाज स सािह यकार सजन क

रणा एव समा ी ा करता ह तथा वह समाज ारा भािवत होता रहता ह इसी कार समाज पर सािह य का िजतना ापक एव गहरा भाव पड़ता ह उतना अ य कसी साधन का नह पड़ता व तत सािह य समाज स उ प होता ह और

फर समाज को भािवत करता ह इस कार सािह यकार समाज स भािवत होता ह तथा वह समाज को भािवत करता ह आलोचक इस भाव का दशा और दशा

िनधारण करता ह अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना अित अिनवाय ह

िन कष प म कहा जा सकता ह क आलोचना को सामािजक दािय व

िनभाना पड़ता ह धम और दशन क अधोगित क इस यग म सािह य और

आलोचना पर एक अित र िज मदारी अिनवायत आ पड़ी ह सािह य म

पनरिचत जीवन क पदन को मानवता क अत माण क यगीन िवचार वाह क

भर-पर प र य म दखन-परखन क ज रत ह अत आलोचना अपन वधम स ही

अत ववश ह उस र थान क प त करन और समाज को िशि त करन का वह

सा कितक कम अपन हाथ म लन क िलए िववश ह

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(घ) आलोचना क अिनवायता

िशवदान सह चौहान न आलोचना क उपयोिगता और अिनवायता पर नतन

दि कोण आपनाया ह उ ह न सािह य क िलए आलोचना को अिनवाय माना ह

नरश ारा lsquoनव िबहारrsquo क एक अक म उठाया गया ndash या आलोचना अिनवाय

ह इस पर िविव िवचारक न अपना-अपना मत कट कया ह िशवदान सह

चौहान न अपनी गहरी सोच िवल ण ितभा क ारा तत िवषय पर नई सोच

एव िवचार कट कया ह इनका मानना ह क आलोचना रचना क िलए अिनवाय

ह आलोचना क अिनवायता पर िवचार करत ह और जब यह उठता ह क या

आलोचना अिनवाय ह तब अनयास ित उठता ह ndash या रचना अिनवाय ह

या पढ़ना ही अिनवाय ह िशवदान सह चौहान का मानना ह ndash ldquoरचनाकार क

ितभा- मता क तरह आलोचक क ितभा- मता का उठाना भी असगत

नह ह िजस तरह हर लखक रचनाकार नह बन सकता उसी तरह समी क

आलोचक नह बन सकताrdquo14 इस कार िशवदान सह चौहान न नए-नए

को उठाकर इस सदभ म नई आलोचना क ह इसी क मा यम स इस िवषय पर

िवचार-िवमश करना तथा िशवदान सह चौहान क आलोचना दि को दखना

समीचीन होगा

बौि क चतन मनन और अ ययन क दौरान कित क रह य को जानन क

इ छा बढ़ जाती ह यही कारण ह क कसी ि व त थान घटना एव रचना

क ित िवचारशील ि िज ासा क दि स दखन लगता ह वा तिवकता जानन

करन क िलए जब ि अपन मन म उस ि व त थान घटना या रचना क

ित िवचार-िवमश करन लगता ह तभी उसक मन म आलोचना का उदय होता ह

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ि सोचन और न सोचन म वत होता ह ठीक इसी कार रचनाकार रचना

करन और न करन म वत होता ह पाठक पढ़न और न पढ़न म वत ह और

आलोचक आलोचना करन और न करन म वत ह तब यह िनि त ह क

रचनाकार पाठक और आलोचक वत ता क िलए नह दािय व क िलए जीत ह यह

दािय व अपन-आप क ित रचना क ित रचनाकार क ित समाज क ित रा

क ित तथा िव क ित होता ह अथात दािय व क तर पर आलोचक रचनाकार

तथा पाठक म कोई िवशष अतर नह होता ह िशवदान सह चौहान एक समथ

आलोचक को समथ रचनाकार और समथ रचनाकार को समथ आलोचक मानत ह

उनका प कहना ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर

स िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार हrdquo15 आग चौहान जी न आलोचक क आलोचना करत ए आलोचक क

कई िणया बतात ह जस- सािह य क अनक िवधा पर िलखी आलोचना

अ यापक य आलोचना प -पि का म ित मास नई प तक क र प तक

क सपादक य क प म िलखी गयी आलोचना आ द आलोचक क दािय व का

कवल उनक िलए ही उठता ह जो इन दोन िणय स िभ णी क आलोचक ह

आलोचक का सबध सािह य स होता ह न क िव ान स य द हम व ािनक

श दावली म पानी को H2O कहत ह तो वह ससार म एक ही नाम स (H2O) जाना

जाता ह परत सािह य म lsquoपानीrsquo श द का योग एक जसा नह होता वह कह नीर

कह जल कह मघ कह वि कह चमक कह व-पदाथ कह मान- ित ा या

यश बन जाता ह इस कार पानी का अनक अथ होन क कारण उिचत अथ बोध क

िलए आलोचना अिनवाय ह कहन का ता पय यह ह क आलोचना का सबध

सािह य स ह न क िव ान स कला क आलोचना को िव ान भी मान सकत ह

आलोचना सािह य क िलए कतना अिनवाय ह यह िवचरणीय ह

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कोई भी सािह यक िवधा कसी एक ि क अपनी सपि नह होती वह

चाह उसक ारा ही िलखी गयी य न हो पर वह उस भाषा क सम त ि य क

िलए हो जाती ह जो उस भाषा क जनकार ह रचनाकार रचना को वत प स

रचता ह फर भी उस सामािजक दािय व एव या का भी यान रखना पड़ता ह

कोई भी रचनाकार अपनी रचना क मा यम स त कालीन प रि थित एव सा कितक

या को बचाय रखन क िलए रचना क सि करता ह एक कार स पाठक ही

आलोचक होता ह lsquoरचनाrsquo क िलए रचनाकार पाठक और आलोचक य तीन

अिनवाय अग ह य द रचना ह तो पाठक ह ग और पाठक ह तो आलोचना अव य

ह गी य द पाठक नह ह तब रचना कसी काम क नह कारण रचनाकार रचना

को अपन िलए नह िलखता इस कार रचना क िलए रक और कारण दोन

पाठक ही होत ह जो भी हो रचनाकार पाठक तथा आलोचक तीन एक-दसर क

आिनवाय अग होत ए भी अलग- अलग वत अि त व रखत ह इसी कारण

रचनाकार वत प स वात सख आ मानद पाता ह आलोचक एक िविश

पाठक होता ह रमश दव न अपन एक लख म िलखा ह ndash ldquoएक बड़ा यापक वग ह

जो अपन क ाई तर तक क रचना का आ वादा मक िववचन करना ही

आलोचना मानता ह यह अव य ह क उसक पास आलोचना िस ात क प भिम

होती ह और स ाितक व आलोचना क मानक या मानदड अपना कर वह रचना क

आलोचना करता ह ऐसा आलोचक कॉट ज स क तरह यह कह सकता ह क य द

नदी पर पल बनान क काम क जाच करायी जायगी तो उसक इजीिनयर को बलाया

जायगा ल कन सािह य क जाच करन क िलए उसक रचनाकार क बजाय आलोचक

को रचना स पी जायगी जहा आलोचना एक सीमा बन गई ह रचना क जाच क

तीन आधार य नह हो सकत ndash एक वह पाठक जो कवल पढ़ता ह आनद लता या

ऊबता ह कत उसको आनद या ऊब ही उसका पाठ ह िजस वह िलख कर

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नह करता ऐसा पाठक िसफ पाठक ही बना रहता ह दसरा होता ह रचनाकार

वय जो कई बार वय अपनी रचना क भद-अभद खोलता ह और रचना क कन-

कन दबाव तनाव भािषक चनौितय अ द स उस जझना पड़ा ह यह प करता

ह इसिलए किवता स ह क साथ भिमका वय िलखन क णाली बड़-बड़

रचनाकार न अपनायी ह तीसरा ह श आलोचक जो रचना क ित अन य क

बजाय अ य भाव स कट होता ह rdquo16 रचनाकार िवषय सगठन क िलए सवथा

वत होता ह वह कसी भी िवषय का चयन कसी भी ि थित म कर सकता ह पर

आलोचक क िलए यह वत ता नह ह य क वह कसी िनि त रचनाकार क

रचना क िवषय पर ही स यक िवचार कट कर सकता ह इसक आग उस छट नह

ह आलोचक उस रचना क तठ थ होकर रचना क शि और सीमा का उ ाटन

करता ह वह रचना क ित अपना दािय व िनभाता ह अपन इस दािय व को

िनभात ए आलोचक रचना क उपयोिगता एव ासिगकता पर भी जोड़ दता ह

िशवदान सह चौहान न प िलखा ह ndash ldquoसािह य का हर पाठक एक कार स

आलोचक होता ह वह कसी कहानी या किवता को पढ़त ही तरत अपना मत कट

कर दता ह क वह अ छी ह बरी ह या असदर ह आलोचक हम उस ही कहत ह

िजसम अपनी ि गत ित या को व तपरक िनणय क साथ समि वत करन क

मता हो और जो रचना क िववचन ारा अपन अनभव-समि वत िनणय को प

अिभ ि दकर साधारण पाठक क दि को भी ि गत ित या क तल स

उठाकर ापक और व तपरक बना सक ता क व रचना स उन सार चतना-िवकासी

म य को ा कर सक जो उसम िनिहत हrdquo17 िनप आलोचना स रचना का

िवकास तो होता ही ह साथ ही साथ रचनाकार क ि व का भी ितफलन होता

ह तथा उसक िवचार एव भाव स समाज का त यदशन भी होता ह यह आलोचना

करन क उपरत ही पता चलता ह क कित या कितकार समाज क िलए कतना

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उपयोगी ह इस िवषय पर दवीशकर अव थी न अपन एक लख lsquoरचना और

आलोचकrsquo म प िलखा ह ndash ldquoम कहना चा गा क समी ा कित और कितकार क

िलए उपयोगी ह सामा य पाठक क िलए उपयोगी ह एव ान क एक िविश शाखा

क प म अपन-आप म भी उपयोगी ह उसक इस प म अपनी वत स ा भी ह

परत इन सभी उपयोिगता क मल म आधारभत या उपजी साम ी वह रचना

िवशष ही होती ह rdquo18

आलोचना क उपयोिगता-अनपयोिगता क िवषय पर चचा करन क िलए कछ

ऐस बद पर िवचार करना आव यक ह िजसस आलोचना क अिनवायता को

प कया जा सक-

आलोचना मर जान पर भी सािह य जदा रहगा- यह एक क पना ह इसस

एक बात यह प होता ह क आलोचना या सािह य जीिवत व त ह इसम वह

चतना ह जो जीव ाणी म होता ह यह चतना य ह य क सािह य म

सािह यकार क सपण चतना क अिभ ि होती ह तब य द हम क पना भी कर

ल क आलोचना मर जायगी तो इसका सीधा अथ यही होगा क जनता क समाज

क एव सािह यकार क चतना मर जायगी इस मर ए समाज म सजना मक क

या कस कार चल पायगी अथात सजना मक पर भी उठ खड़ा होगा

सािह य म राजनीितक सामािजक धा मक आ थक सा कितक एव सािहि यक

सपण ि थितय का वणन कया जाता ह तथा इन सभी प रि थितय का अवलोकन

आलोचना क मा यम स ही सभव ह य द आलोचना ही न हो तब उन प रि थितय

का सही आकलन कस होगा सािह य म सािह यकार क भावना िवचार एव

क पना क अिभ ि कभी शोक क होती ह कभी हष क होती ह तथा कभी वह

सावभौिमकता क िलए होती ह जब हम उसक सपण ि थित क जनकारी लना

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चाहत ह तब हम आलोचना क आव यकता पड़ती ह कहन का ता पय यह ह क

य द सािह य को जीिवत रखना ह तब आलोचना क मर जान क क पना अधरी ह

ाचीन काल स आलोचना होती रही ह उस समय आलोचक और रचनाकार

सवथा िभ आ करत थ धीर-धीर यह दरी आधिनक काल तक आत-आत ख म सा

हो गया ह आलोचना आज ग क अनक कार क िवधा म स एक ह पहल यह

माना जाता था क जो आलोचना करत ह व रचना नह कर सकत आज बौि क

जीवन म यह माग क जा रही ह क रचनाकार ही आलोचना कर

का का आ वादन आलोचना स न घटता ह न बढ़ता ह ndash यह बात तो

सतही तर पर स य लगती ह पर इसक मम को हम उधड़ कर दख तो आलोचना

सािह य क िलए अिनवाय ह यह कहना न होगा क हर पाठक क समझ सोच एव

भाव क गहराई तक प चना आसान नह ह िजस मम को सामा य पाठक नह

समझ पात उस जगह तक प चन का काय आलोचक करता ह िशवदान सह

चौहान का मानना ह ndash ldquo कसी कित को पढ़कर उस पर जो भाव पड़ता ह कसी

अ य पाठक परपड़ा भाव सवथा वसा ही नह हो सकता आलोचक भी एक ऐसा

ही िविश पाठक ह- इसिलए उसक आलोचना उस पर पड़ िविश भाव को ही

कर सकती ह ऐसी ि थित म इन िविभ अनभितय कितय भाव म कोई

सामा य त व हो ही या सकता ह िजसका षण या म याकन कया जाए rdquo19 यह

ठीक ह क आलोचना स रचना क आ वाद म अतर नह होता पर िजसक ारा

आ वादन कया जाता ह वह कतना व थ ह कतना तद त ह इस पर भी यान

क आव यकता ह जीभ पर कसी व त को रखन पर उस व त का वाद न घटता

ह न बढ़ता ह नाक क पास सगध बदल नह जाती िजतनी जीभ या नाक व थ

होगी उतना ही वाद पण प स िलया जा सकता ह जहा तक रचना का सवाल

ह तो जीभ और नाक का काय आलोचक करता ह आलोचक मलत एक िवशष

54

कार का पाठक होता ह हाला क पाठक ही आलोचक होता ह फर भी पाठक और

आलोचक म ताि वक फक ह पाठन क ज रय आलोचक उसक छप ए रह य को भी

खोल कर समाज क सामन प कर दता ह आचाय कसरी कमार न भी आलोचक

को पाठक मानत ह पर आलोचक और पाठक म अतर प कया ह उनका मानना

ह ndash ldquoसामा य पाठक और आलोचक क आ वादन म कछ वसा फक ह जसा द तावज

पर अगठ क छाप लगाना और पढ़कर द तावज करन का ह rdquo20 प प स आचाय

कसरी कमार न पाठक को ही आलोचक मानत ह पर उनका पाठक सामा य पाठक

नह ह एक िवशष कार का पाठक होता ह और चौहानजी न भी िविश पाठक को

ही आलोचक मानत ह

सािह य का आ वादन वयि क तर पर होता ह आलोचक सािह य का

रसा वादन वयि क तर पर ही हण करता ह आलोचक एक सिनि त मानदड

थािपत करना चाहता ह य द कसी िवचार-धारा या वाद स भािवत होकर

मानदड थािपत करता ह तब वह मानदड असमीचीन हो जाता ह आलोचक य द

पवा ह स भािवत वाद क आधार पर अपना मानदड थािपत करता ह तब वह

उस कित का सा यक म याकन नह कर पायगा डॉ िव नाथ साद न इस त य

को प करत ए िलखा ह ndash ldquoउ क आलोचना पवा ह स बचकर चलती ह और

ऐसा तभी सभव ह जब आलोचक का एक पाव अपन यग म तथा एक पाव लखक क

यग म हो अथवा उसक एक आख रस सवदना पर हो तथा दसरी आख लखक क

भाव-िनवदन पर इसस आलोचना क म ामक म याकन क सभावना नह

रहती rdquo21 आलोचना क िलए एक मानदड या फामला क थापना कर उस पर

आलोचना करना ब त क ठन काय ह आलोचना का कोई मानदड तभी सराहनीय

ह जब तक वह कसी िवचारधारा एव वाद स कोई सबध नह रखता

55

पहल सािह य आ तब आलोचना िशवदान सह चौहान न प िलखा ह

क ndash ldquoसािह य स ही आलोचना ह आलोचना स सािह य नह ह rdquo22 इस िवषय पर

चौहानजी न आपना मह वपण िवचार कट कया ह कहन का ता पय यह ह क

वद बड़ा क लबद कद बड़ा क पद या यह भी उठ सकता ह क पहल मग ई

क अड़ा पहल बीज आ क पड़ यह िवचरणीय नह ह यह अपन-अपन

अनभव क बात ह इस कार उ का िहसाब सािह य और आलोचना पर करना

उिचत नह िजस कार मन य क अिनवायता क िलए सािह य िलखा गया उसी

अिनवायता क िलए ही आलोचना उ म सािह य बड़ी ह क आलोचना यह

िववादा पद ह यह भी हम कह सकत ह क सािह यकार बड़ा ह क सािह य

या आलोचक बड़ा ह क आलोचना सि बड़ी ह क सि क ा य ब त उपय

नह ह इस कार सािह य और आलोचना अपनी-अपनी अिनवायता क िलए

अपनी-अपनी जगह पर बड़ी ह

िन कष- आलोचक सािह य सािह यकार और समाज क ित ितब होता

ह आलोचना गण-दोष िववचन सराहना-भ सना और प तक समी ा नह ह वह

सजन और चतन क भी िवधा ह वह जो ग रची जाती ह उस कथा-कहानी स

तौला नह जा सकता ह वह कित और कितकार क अित र सदव एक तीसरी

शि क खोज करती ह कहानी किवता नाटक उप यास या ग क अ य िवधा

म एक आलोचक को कित क साथ तीन तर खोलन होत ह पहला िजस िवधा म

कित ह उस िवधा क त व उस कित का मानक माप-दड या ह दसरी कित क शली

एव स दय िववचन और िव यास कस कार आ ह और तीसरा प ह उसक

आत रक चतना उसका मम उसम िनिहत सवदना िवचार और क पनाशीलता जो

कित का ि व रचती ह इन तीन त व क आधार पर जब आलोचक कितगत

आलोचना करता ह तब कित क िलए आलोचना अिनवाय हो जाता ह

56

आलोचना एक सजन या ह

सािह य और आलोचना का सबध अ यो या ीत ह जो सािह य क रचना

या ह वही आलोचना का फक मा इतना ह क सािह य का ल य समाज

होता ह और आलोचना का ल य रचना िशवदान सह चौहान न इस बात को प

करत ए कहत ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर स

िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार ह इसिलए इस आप शा ीय वग करण क तरह अिमट और अल य न

मान ल rdquo23 अत रचना क सजन या को जान िबना आलोचना क सजन या

को अ छी तरह समझी नह जा सकती ह

सािह य वह व त ह िजसम मनोभावा मक क पना मक बौि क तथा

रचना मक त व का समावश होता ह सािह य सजन क या क अतगत

क पना बि भाव तथा शली का होना अिनवाय ह यह उठता ह क

सािह यकार क मल रणा या होती ह िजसक कारण सािह यकार को इन त व

का सहारा लना पड़ता ह सीध स हम कह सकत ह क वह समाज म घटी घटना

क अनभित ह अनभित हम घटना क प ा य करत ह तथा अनभित रचना स पव

हमार दय म कट होती ह जस िबना दख क सख का अनभव नह होता ठीक

उसी कार िबना सख-दख स रचना दोन का िम ण ही का ह हदी क िस

आलोचक आचाय नददलार वाजपयी न lsquoसािह य का योजन आ मानभितrsquo म

िलखा ह ndash ldquoका क रणा अनभित स िमलती ह यह वत एक अनभित त य ह

गो वामी तलसीदास न रामच रतमानस का िनमाण करत समय िलखा था ndash

57

lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

58

मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

59

रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

61

सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

62

(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

41

(ख) आलोचना क मान

आलोचना क मान स ता पय हndash कसी कित का नापन या तौलन का साधन

या पमाना रचना और रचनाकार क सीमा मह व आ द सिचत करन का

मह वपण साधन आलोचना ह आलोचना का िज करत ही आनयास कित या

कितकार सामन आ जात ह स कत का शा को छोड़ कर आज तक हदी

आलोचना का कोई िनि त मानदड थािपत नह हो पाया ह आलोचना का सीधा

सबध कित स ह कित को आधार बनाकर आलोचक आलोचना करता ह कित

कसी िवशष ि क नीिज भाव िवचार अनभितय क अिभ ि ह भाव

क अिभ ि होन क चलत कित म अलौ कक स ा का सामहार होता ह और यही

उसक आलोचना का माग करता ह रचनाकार िविभ िवचार धारा स

भािवत होता ह अत उसी िवचार धारा क आधार पर उसक रचना क

आलोचना क जाती ह ऐसी आलोचनाए िनराधार एव एकागी होती ह िशवदान

सह चौहान का मानना ह क सािह य क आलोचना जब कसी िस ात या

िवचारधारा का आ ह लकर चलन लगती ह तब वह ावहा रक समी ा तर पर

भी और अ सािह य म भद करना भल जाती ह कसी ि क ि गत

िच आलोचना का मान नह बन सकती मन य क िचया सजीव और

िवकासमान ह य द िच कसी िवचारधारा स जड़ीभत ह तब वह पवा ह

कहलाती ह अत पवा ह आलोचना क कसौटी नह बन सकती िशवदान सह

चौहान क दि इस िवषय पर अ यत व छ ह उ ह न प िलखा ह ndash ldquo िच

िभ ता का िस ात ाचीन काल स मा य ह-यह एक हक़ कत ह िस ात नह -

42

ल कन िच कभी भी सािह यालोचना का मानदड नह बनी हrdquo6 कसी एक

आलोचक या पाठक क िच या अ िच उ क सािह य को िनक नह बना सकती

उ क सािह य स ता पय ह मानव म य या वा तिवक स य पर रची गयी वह

सािह य जो आज हमारी स कित क अ य िनिध ह य द lsquoसािह यrsquo सामािजक

सबध अपन यग क क ीय िवचार िश प- ान और नितक मा यता पर रचा गया

ह तब वह कालजयी एव रचना होगा आलोचक को सािह य का म याकन

सामािजक म य एव त कालीन प रि थितय क आधार पर करना चािहए

आलोचना क मान आधार और कसौटी का अित आधिनक ह स कत

सािह य म कई िस ात मा य ह उ ह िस ा त क आधार पर सािह य को दखन-

परखन क सिवधा थी आज नयी चतना और व ािनक यग क िवकास क कारण नय-

नय िस ात िवचार एव ान-िव ान का िवकास आ िजसक चलत हर व त को

दखन-परखन क नज़ रया बदली ह िशवदान सह चौहान न स कत क पाठक एव

आज क स दय म अतर प करत ए िलखा ह- ldquoउन दोन क पाठक भी आज क

अप ा अिधक ब और स कत थ-मन lsquoस कतrsquo श द का योग कया ह lsquoिशि तrsquo

का नह य क आज क पाठक शायद अिधक िशि त ह उन दन सामा य पाठक

कसी एक ही वग क लखक क रचना नह पढ़त थ बि क भारतीय और पा ा य

लािसक सािह य क अित र आधिनक यग क सभी मानववादी महान लखक क

कितय को उनक िच समान उ साह स हण करती थी-इनम सब िवचारधारा

क सािह यकार और समाज िच तक होत थ क त आज क अिधक िशि त पाठक

कवल समाचार प और फ मी पि का स ही अपनी आ याि मक धाप त करत

ह और उनम जो थोड़ स lsquoअितिशि तrsquo ह व का का फॉकनर इज़रा पाउड

ईिलयट सलर आवल आ द कवल अना थावादी लखक क ही रचनाए पढ़त ह

तब क पाठक को आलोचना क मान पर अलग स बहस करन क ज रत नह होती

43

थी य क जीवनम य म उनक आ था उनक सािह य का म याकन करन क एक

सहज दि दान कर दती थी िजसस व और िनक उदा और ील और

अ ील मानववादी और मानव ोही का भद समझत थ- कसी कार का कोरा

शाि दक चम कार उ ह अिधक समय तक भलाव म नह डाल पाता था rdquo7 आज क

आलोचक ही नह रचनाकार भी अनक मत-मतातर और वाद-िववाद म फस कर

अपनी वानभित पर दसरी िवचारधारा को आरोिपत कर लता ह िजसक चलत

आलोचना सािह य म अनक िवसगितया फल गयी ह यही कारण ह क आलोचना

का कोई एक िनि त एव वत मानदड थािपत करना अ यत द कर ह

सािह कार समाज का एक अ यत सवदनशील ि होता ह और आलोचक रचना

का म मक पाठक सािह यकार समाज म ा वा तिवक स य और जीवन म य को

अिभ करन म कतना सफल ह इस मम को समझन-समझान का दािय व

आलोचक का ह िशवदान सह चौहान का मानना ह - ldquoसािह यकार और आलोचक

य द वा तिवक जीवन म य को ही भला द या उनक सामािजक िवकितय को ही

मानव सबध का िचरतन स य मान बठ तो उ ह सािह य क ऊटपटाग मयादाए

गढ़न स कोई नह रोक सकता rdquo8 सािह यकार और आलोचक को मानव म य और

वा तिवक स य क ित जाग क रहना अ यत आव यक ह

सािह य एक जीवत या ह प रवतन म िवकास छपा होता ह और िवकास क साथ-साथ सािह य सम एव शि शाली होता ह िविभ िवचार एव

िस ात क चलत सािह य म अनक िवकितया फल गयी ह ाय आलोचक कसी न

कसी िवचारधारा स भािवत ह और उसी दि स सािह य का म याकन करता ह जब कोई आलोचक कसी िवचारधारा या िस ात को आधार मानकर सािह य का िववचन एव म याकन करता ह तब वह आलोचना पवा ह स िसत मानी जायगी

िशवदान सह चौहान न इस त य को और प करत ए िलखा ह ndash ldquoमन य क

िचया और सहानभितया सजीव और िवकासमान व त ह - सम समि वत

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स कित क वातावरण म उनका वत माजन और स कार होता जाता ह और व

ापक मानवीय म य को हण करक उदार शालीन और साि वक बनती जाती ह ल कन सक ण और अनदार िस ात या िवचारधाराए उ ह िन ाण और जड़ बना

दती ह-उनक चौखट म जड़ीभत हो गई िचया ही पवा ह कहलाती ह अत

पवा ह ही समी ा- तर क आलोचना म म याकन क कसौटी बना हो तो पहल उनको तोड़ बगर स ाितक- तर क थापनाए व मान अराजकता को दर करन म

कहा तक सहायक हो सकगी यह स द ध ह rdquo9 िन प एव व तिन आलोचना ही

सािह यकार क िलए रणा दायक होती ह और वह मानवीय म य का उ ाटन करती ह ऐसी ही आलोचना सािह य और सािह यकार म ाण डालती ह और वही आलोचना िचरजीवी होती ह परत ऐसा ब त कम दखा जाता ह डॉ िव नाथ

साद का मानना हndash ldquoव त और म याकन क या यह ह क पहल व त क स ा

ह और बाद म उसक म याकन का काय वणन व य व त का होता ह अत

आलोचना रचना का अनसरण कर यही उिचत ह परत ऐसा हो नह पाता ह ाय

आलोचक अपनी पवा जत धारणा क िनकष पर रचना का म यकन करता ह इसस रचना का कत िवधान उलट जाता ह यह िनषधमलक वहार आलोचना-

क सवािधक उ लखनीय िवसगित हrdquo10 अत आलोचना व त साप होनी

चािहए

िन कषत कहा जा सकता ह क आलोचना कसी कित क ता एव उसक

म य िनधारण का मा यम ह आलोचना सािह य स जीिवत ह सािह य आलोचना

स नह आलोचना का काय कित को सही थान दलाना ह सािह य च क सम

मानव जीवन को ित बिबत करता ह इसिलए उसम जीवन क िविभ तरीय

म य का सघष भी होता ह इसक सही िन कष तक प चन क िलए आलोचक को

ापक दि एव उदार भावना का होना अ यत आव यक ह आलोचना क मान पर

शा ीय मतमतातर म न फसकर ऐस म य पर दि पात कर सकत ह जो एक ओर

पाठक क सािह य बोध म सहायक हो और दसरी ओर रचनाकार को व थ दशा द

सक

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(ग) आलोचना का सामािजक सदभ

lsquoसािह यrsquo सहका रता का तीक ह यह जनता क जीवन क सख-दख हष-

िवषाद आ द क तान बान स बना होता ह सािह य जीवन क ा या होता ह

सािह य क क म मानव होता ह मानव क अनभितय भावना िवचार और

कला का साकार प ही सािह य ह सािह य का रसा वादन पाठक करता ह

स दय पाठक ही आलोचक होता ह आलोचक समाज क अ य ि य स िभ

और अिधक सवदनशील होता ह आलोचक का सीधा सबध सािह य स होता ह और

सािह य का समाज स अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना उिचत होगा

िशवदान सह चौहान का सािह य और सािह यालोचना सबधी िवचार अ यत

नवीन ह उ ह न हदी क ाचीन किवय और नए किवय म भद करत ए िलखा

हndash ldquoपहल किव आ करत थ कत अब नए किव पदा हो गय ह जो किवता न िलख

कर नई किवता िलखत ह िजसका अथ ह क व अपनी किवता म लय और छद क

बधन क तो बात दर कसी भी कार क बधन बदा त नह करत उनक नई

किवता म रस और स दय क खोज थ ह उसम कसी भी प िवचार सामािजक

योजन ापक मानवीय म य आ द क माग करत ही व िबगड़ उठत ह य क व

समझत ह क ऐसा करना उनक ि गत वत ता पर हार ह व कसी

सामािजक दािय व को भी नह मानना चाहत rdquo11 ऐसी ि थित म आलोचक को

सामािजक सदभ म दखना अ यत क ठन हो जाता ह य क बात दािय व क नह

क का ह सािह यकार य द अपन क का पालन नह करता तब आलोचक

अपन दािय व का िनवाह कस कर सकता ह

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आलोचक तट थ होकर सािह य का म यकन करता ह आलोचक को

सािह य सािह यकार और समाज क ित आपन दािय व का पालन करना पड़ता ह

वह कसी भी कित को सामािजक सदभ म दखना चाहता ह कोई कतना भी बड़ा

आलोचक य न हो वह कसी बरी रचना को उ क नह बना सकता ह अत

आलोचक क िलए सामािजकता का िनवाह अित आव यक ह िशवदान सह चौहान

इस बात को इस कार िलखत ह ndash ldquoआलोचक सािह य-जगत का भा य-िवधाता भी

नह ह जो चाह तो खल हाथ अमर व बाट सकता हो कसी आलोचक म यह

शि नह क वह बरी रचना को अपनी म शसा स अमर व दला सक या अपन

कठोर वाक हार स कसी महान रचना को अमर होन स रोक सक इसिलए लखक

य द महान कित व क िबना ही महानता और अमर व पान क मह वका ा पर थोड़ा

सा सयम रखकर आलोचक को अपन दािय व का पालन करन का अवसर द तो

सभव ह क आलोचना क म वसी अराजकता न रह जसी क आज दखाई दती

ह rdquo12 समाज कित और लखक म सबध उसका वा तिवक ान और स कितय क

पठन क रण जगाना आलोचक का वधम ह आलोचक को िवषय का िव तत ान

होना चािहए स दयता क साथ कित और कितकार का िन प िववचन करना

आलोचक का समािजक दािय व ह

आलोचना रचना क होती ह और रचना सामािजक सपि ह रचनाकार अपनी अनभित िवचार एव जीवन दि को एका कर कित म अिभ करता ह आलोचक और रचनाकार दोन अ यो याि त ह कोई कित समाज क िलए कतना उपयोगी ह वह स दय पाठक ही बता सकता ह सािह य म हर समय नई-नई िवचार एव वि या आती रहती ह उसक सामािजकता का अ ययन आलोचक ही करता ह रमश दव क श द म ndash ldquoसजक और सजन य द कसी आलोचक क बौि क

और स कार मानस म स मानीय नह ह तो उसका आलोचना कम बकार ह उस कसी भी रचना पर िवचार एव िववचन का आिधकार नह ह कसी भी सजन क

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पहली शत यह ह क वह कसी भी िवधा म हो और िजस हदी क अिधकाश लोग भल ही िन दा क तरह मान लत ह ल कन उसम मन य क शील का िनवाह आव यक ह कोई आलोचना कसी भी सजक या सजन क वस क िलए नह होती बि क एक सजक को मोहम कर अिधक खर और गभीर होकर सजन क िलए उकसाती भी ह य द आलोचना-कम सजक ह ता कम होता कसी ितब ता स उपजा ितशोधा मक िन दा आ यान होगा तो फर उस आलोचना कहा ही नह जा

सकता rdquo13 आलोचक सािह य को समाज क प र य म रखत ए तठ थ और

व तिन म याकन तत करता ह य क समाज म िवचार क ारा काय

सपा दत होत ह सािह य िवचार का समह होता ह अत सािह य म

िवचार क ग शि सि होकर समाज का नत व करती ह उस भाव एव िवचार को सवसधारण आलोचक ही करता ह समाज स सािह यकार सजन क

रणा एव समा ी ा करता ह तथा वह समाज ारा भािवत होता रहता ह इसी कार समाज पर सािह य का िजतना ापक एव गहरा भाव पड़ता ह उतना अ य कसी साधन का नह पड़ता व तत सािह य समाज स उ प होता ह और

फर समाज को भािवत करता ह इस कार सािह यकार समाज स भािवत होता ह तथा वह समाज को भािवत करता ह आलोचक इस भाव का दशा और दशा

िनधारण करता ह अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना अित अिनवाय ह

िन कष प म कहा जा सकता ह क आलोचना को सामािजक दािय व

िनभाना पड़ता ह धम और दशन क अधोगित क इस यग म सािह य और

आलोचना पर एक अित र िज मदारी अिनवायत आ पड़ी ह सािह य म

पनरिचत जीवन क पदन को मानवता क अत माण क यगीन िवचार वाह क

भर-पर प र य म दखन-परखन क ज रत ह अत आलोचना अपन वधम स ही

अत ववश ह उस र थान क प त करन और समाज को िशि त करन का वह

सा कितक कम अपन हाथ म लन क िलए िववश ह

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(घ) आलोचना क अिनवायता

िशवदान सह चौहान न आलोचना क उपयोिगता और अिनवायता पर नतन

दि कोण आपनाया ह उ ह न सािह य क िलए आलोचना को अिनवाय माना ह

नरश ारा lsquoनव िबहारrsquo क एक अक म उठाया गया ndash या आलोचना अिनवाय

ह इस पर िविव िवचारक न अपना-अपना मत कट कया ह िशवदान सह

चौहान न अपनी गहरी सोच िवल ण ितभा क ारा तत िवषय पर नई सोच

एव िवचार कट कया ह इनका मानना ह क आलोचना रचना क िलए अिनवाय

ह आलोचना क अिनवायता पर िवचार करत ह और जब यह उठता ह क या

आलोचना अिनवाय ह तब अनयास ित उठता ह ndash या रचना अिनवाय ह

या पढ़ना ही अिनवाय ह िशवदान सह चौहान का मानना ह ndash ldquoरचनाकार क

ितभा- मता क तरह आलोचक क ितभा- मता का उठाना भी असगत

नह ह िजस तरह हर लखक रचनाकार नह बन सकता उसी तरह समी क

आलोचक नह बन सकताrdquo14 इस कार िशवदान सह चौहान न नए-नए

को उठाकर इस सदभ म नई आलोचना क ह इसी क मा यम स इस िवषय पर

िवचार-िवमश करना तथा िशवदान सह चौहान क आलोचना दि को दखना

समीचीन होगा

बौि क चतन मनन और अ ययन क दौरान कित क रह य को जानन क

इ छा बढ़ जाती ह यही कारण ह क कसी ि व त थान घटना एव रचना

क ित िवचारशील ि िज ासा क दि स दखन लगता ह वा तिवकता जानन

करन क िलए जब ि अपन मन म उस ि व त थान घटना या रचना क

ित िवचार-िवमश करन लगता ह तभी उसक मन म आलोचना का उदय होता ह

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ि सोचन और न सोचन म वत होता ह ठीक इसी कार रचनाकार रचना

करन और न करन म वत होता ह पाठक पढ़न और न पढ़न म वत ह और

आलोचक आलोचना करन और न करन म वत ह तब यह िनि त ह क

रचनाकार पाठक और आलोचक वत ता क िलए नह दािय व क िलए जीत ह यह

दािय व अपन-आप क ित रचना क ित रचनाकार क ित समाज क ित रा

क ित तथा िव क ित होता ह अथात दािय व क तर पर आलोचक रचनाकार

तथा पाठक म कोई िवशष अतर नह होता ह िशवदान सह चौहान एक समथ

आलोचक को समथ रचनाकार और समथ रचनाकार को समथ आलोचक मानत ह

उनका प कहना ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर

स िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार हrdquo15 आग चौहान जी न आलोचक क आलोचना करत ए आलोचक क

कई िणया बतात ह जस- सािह य क अनक िवधा पर िलखी आलोचना

अ यापक य आलोचना प -पि का म ित मास नई प तक क र प तक

क सपादक य क प म िलखी गयी आलोचना आ द आलोचक क दािय व का

कवल उनक िलए ही उठता ह जो इन दोन िणय स िभ णी क आलोचक ह

आलोचक का सबध सािह य स होता ह न क िव ान स य द हम व ािनक

श दावली म पानी को H2O कहत ह तो वह ससार म एक ही नाम स (H2O) जाना

जाता ह परत सािह य म lsquoपानीrsquo श द का योग एक जसा नह होता वह कह नीर

कह जल कह मघ कह वि कह चमक कह व-पदाथ कह मान- ित ा या

यश बन जाता ह इस कार पानी का अनक अथ होन क कारण उिचत अथ बोध क

िलए आलोचना अिनवाय ह कहन का ता पय यह ह क आलोचना का सबध

सािह य स ह न क िव ान स कला क आलोचना को िव ान भी मान सकत ह

आलोचना सािह य क िलए कतना अिनवाय ह यह िवचरणीय ह

50

कोई भी सािह यक िवधा कसी एक ि क अपनी सपि नह होती वह

चाह उसक ारा ही िलखी गयी य न हो पर वह उस भाषा क सम त ि य क

िलए हो जाती ह जो उस भाषा क जनकार ह रचनाकार रचना को वत प स

रचता ह फर भी उस सामािजक दािय व एव या का भी यान रखना पड़ता ह

कोई भी रचनाकार अपनी रचना क मा यम स त कालीन प रि थित एव सा कितक

या को बचाय रखन क िलए रचना क सि करता ह एक कार स पाठक ही

आलोचक होता ह lsquoरचनाrsquo क िलए रचनाकार पाठक और आलोचक य तीन

अिनवाय अग ह य द रचना ह तो पाठक ह ग और पाठक ह तो आलोचना अव य

ह गी य द पाठक नह ह तब रचना कसी काम क नह कारण रचनाकार रचना

को अपन िलए नह िलखता इस कार रचना क िलए रक और कारण दोन

पाठक ही होत ह जो भी हो रचनाकार पाठक तथा आलोचक तीन एक-दसर क

आिनवाय अग होत ए भी अलग- अलग वत अि त व रखत ह इसी कारण

रचनाकार वत प स वात सख आ मानद पाता ह आलोचक एक िविश

पाठक होता ह रमश दव न अपन एक लख म िलखा ह ndash ldquoएक बड़ा यापक वग ह

जो अपन क ाई तर तक क रचना का आ वादा मक िववचन करना ही

आलोचना मानता ह यह अव य ह क उसक पास आलोचना िस ात क प भिम

होती ह और स ाितक व आलोचना क मानक या मानदड अपना कर वह रचना क

आलोचना करता ह ऐसा आलोचक कॉट ज स क तरह यह कह सकता ह क य द

नदी पर पल बनान क काम क जाच करायी जायगी तो उसक इजीिनयर को बलाया

जायगा ल कन सािह य क जाच करन क िलए उसक रचनाकार क बजाय आलोचक

को रचना स पी जायगी जहा आलोचना एक सीमा बन गई ह रचना क जाच क

तीन आधार य नह हो सकत ndash एक वह पाठक जो कवल पढ़ता ह आनद लता या

ऊबता ह कत उसको आनद या ऊब ही उसका पाठ ह िजस वह िलख कर

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नह करता ऐसा पाठक िसफ पाठक ही बना रहता ह दसरा होता ह रचनाकार

वय जो कई बार वय अपनी रचना क भद-अभद खोलता ह और रचना क कन-

कन दबाव तनाव भािषक चनौितय अ द स उस जझना पड़ा ह यह प करता

ह इसिलए किवता स ह क साथ भिमका वय िलखन क णाली बड़-बड़

रचनाकार न अपनायी ह तीसरा ह श आलोचक जो रचना क ित अन य क

बजाय अ य भाव स कट होता ह rdquo16 रचनाकार िवषय सगठन क िलए सवथा

वत होता ह वह कसी भी िवषय का चयन कसी भी ि थित म कर सकता ह पर

आलोचक क िलए यह वत ता नह ह य क वह कसी िनि त रचनाकार क

रचना क िवषय पर ही स यक िवचार कट कर सकता ह इसक आग उस छट नह

ह आलोचक उस रचना क तठ थ होकर रचना क शि और सीमा का उ ाटन

करता ह वह रचना क ित अपना दािय व िनभाता ह अपन इस दािय व को

िनभात ए आलोचक रचना क उपयोिगता एव ासिगकता पर भी जोड़ दता ह

िशवदान सह चौहान न प िलखा ह ndash ldquoसािह य का हर पाठक एक कार स

आलोचक होता ह वह कसी कहानी या किवता को पढ़त ही तरत अपना मत कट

कर दता ह क वह अ छी ह बरी ह या असदर ह आलोचक हम उस ही कहत ह

िजसम अपनी ि गत ित या को व तपरक िनणय क साथ समि वत करन क

मता हो और जो रचना क िववचन ारा अपन अनभव-समि वत िनणय को प

अिभ ि दकर साधारण पाठक क दि को भी ि गत ित या क तल स

उठाकर ापक और व तपरक बना सक ता क व रचना स उन सार चतना-िवकासी

म य को ा कर सक जो उसम िनिहत हrdquo17 िनप आलोचना स रचना का

िवकास तो होता ही ह साथ ही साथ रचनाकार क ि व का भी ितफलन होता

ह तथा उसक िवचार एव भाव स समाज का त यदशन भी होता ह यह आलोचना

करन क उपरत ही पता चलता ह क कित या कितकार समाज क िलए कतना

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उपयोगी ह इस िवषय पर दवीशकर अव थी न अपन एक लख lsquoरचना और

आलोचकrsquo म प िलखा ह ndash ldquoम कहना चा गा क समी ा कित और कितकार क

िलए उपयोगी ह सामा य पाठक क िलए उपयोगी ह एव ान क एक िविश शाखा

क प म अपन-आप म भी उपयोगी ह उसक इस प म अपनी वत स ा भी ह

परत इन सभी उपयोिगता क मल म आधारभत या उपजी साम ी वह रचना

िवशष ही होती ह rdquo18

आलोचना क उपयोिगता-अनपयोिगता क िवषय पर चचा करन क िलए कछ

ऐस बद पर िवचार करना आव यक ह िजसस आलोचना क अिनवायता को

प कया जा सक-

आलोचना मर जान पर भी सािह य जदा रहगा- यह एक क पना ह इसस

एक बात यह प होता ह क आलोचना या सािह य जीिवत व त ह इसम वह

चतना ह जो जीव ाणी म होता ह यह चतना य ह य क सािह य म

सािह यकार क सपण चतना क अिभ ि होती ह तब य द हम क पना भी कर

ल क आलोचना मर जायगी तो इसका सीधा अथ यही होगा क जनता क समाज

क एव सािह यकार क चतना मर जायगी इस मर ए समाज म सजना मक क

या कस कार चल पायगी अथात सजना मक पर भी उठ खड़ा होगा

सािह य म राजनीितक सामािजक धा मक आ थक सा कितक एव सािहि यक

सपण ि थितय का वणन कया जाता ह तथा इन सभी प रि थितय का अवलोकन

आलोचना क मा यम स ही सभव ह य द आलोचना ही न हो तब उन प रि थितय

का सही आकलन कस होगा सािह य म सािह यकार क भावना िवचार एव

क पना क अिभ ि कभी शोक क होती ह कभी हष क होती ह तथा कभी वह

सावभौिमकता क िलए होती ह जब हम उसक सपण ि थित क जनकारी लना

53

चाहत ह तब हम आलोचना क आव यकता पड़ती ह कहन का ता पय यह ह क

य द सािह य को जीिवत रखना ह तब आलोचना क मर जान क क पना अधरी ह

ाचीन काल स आलोचना होती रही ह उस समय आलोचक और रचनाकार

सवथा िभ आ करत थ धीर-धीर यह दरी आधिनक काल तक आत-आत ख म सा

हो गया ह आलोचना आज ग क अनक कार क िवधा म स एक ह पहल यह

माना जाता था क जो आलोचना करत ह व रचना नह कर सकत आज बौि क

जीवन म यह माग क जा रही ह क रचनाकार ही आलोचना कर

का का आ वादन आलोचना स न घटता ह न बढ़ता ह ndash यह बात तो

सतही तर पर स य लगती ह पर इसक मम को हम उधड़ कर दख तो आलोचना

सािह य क िलए अिनवाय ह यह कहना न होगा क हर पाठक क समझ सोच एव

भाव क गहराई तक प चना आसान नह ह िजस मम को सामा य पाठक नह

समझ पात उस जगह तक प चन का काय आलोचक करता ह िशवदान सह

चौहान का मानना ह ndash ldquo कसी कित को पढ़कर उस पर जो भाव पड़ता ह कसी

अ य पाठक परपड़ा भाव सवथा वसा ही नह हो सकता आलोचक भी एक ऐसा

ही िविश पाठक ह- इसिलए उसक आलोचना उस पर पड़ िविश भाव को ही

कर सकती ह ऐसी ि थित म इन िविभ अनभितय कितय भाव म कोई

सामा य त व हो ही या सकता ह िजसका षण या म याकन कया जाए rdquo19 यह

ठीक ह क आलोचना स रचना क आ वाद म अतर नह होता पर िजसक ारा

आ वादन कया जाता ह वह कतना व थ ह कतना तद त ह इस पर भी यान

क आव यकता ह जीभ पर कसी व त को रखन पर उस व त का वाद न घटता

ह न बढ़ता ह नाक क पास सगध बदल नह जाती िजतनी जीभ या नाक व थ

होगी उतना ही वाद पण प स िलया जा सकता ह जहा तक रचना का सवाल

ह तो जीभ और नाक का काय आलोचक करता ह आलोचक मलत एक िवशष

54

कार का पाठक होता ह हाला क पाठक ही आलोचक होता ह फर भी पाठक और

आलोचक म ताि वक फक ह पाठन क ज रय आलोचक उसक छप ए रह य को भी

खोल कर समाज क सामन प कर दता ह आचाय कसरी कमार न भी आलोचक

को पाठक मानत ह पर आलोचक और पाठक म अतर प कया ह उनका मानना

ह ndash ldquoसामा य पाठक और आलोचक क आ वादन म कछ वसा फक ह जसा द तावज

पर अगठ क छाप लगाना और पढ़कर द तावज करन का ह rdquo20 प प स आचाय

कसरी कमार न पाठक को ही आलोचक मानत ह पर उनका पाठक सामा य पाठक

नह ह एक िवशष कार का पाठक होता ह और चौहानजी न भी िविश पाठक को

ही आलोचक मानत ह

सािह य का आ वादन वयि क तर पर होता ह आलोचक सािह य का

रसा वादन वयि क तर पर ही हण करता ह आलोचक एक सिनि त मानदड

थािपत करना चाहता ह य द कसी िवचार-धारा या वाद स भािवत होकर

मानदड थािपत करता ह तब वह मानदड असमीचीन हो जाता ह आलोचक य द

पवा ह स भािवत वाद क आधार पर अपना मानदड थािपत करता ह तब वह

उस कित का सा यक म याकन नह कर पायगा डॉ िव नाथ साद न इस त य

को प करत ए िलखा ह ndash ldquoउ क आलोचना पवा ह स बचकर चलती ह और

ऐसा तभी सभव ह जब आलोचक का एक पाव अपन यग म तथा एक पाव लखक क

यग म हो अथवा उसक एक आख रस सवदना पर हो तथा दसरी आख लखक क

भाव-िनवदन पर इसस आलोचना क म ामक म याकन क सभावना नह

रहती rdquo21 आलोचना क िलए एक मानदड या फामला क थापना कर उस पर

आलोचना करना ब त क ठन काय ह आलोचना का कोई मानदड तभी सराहनीय

ह जब तक वह कसी िवचारधारा एव वाद स कोई सबध नह रखता

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पहल सािह य आ तब आलोचना िशवदान सह चौहान न प िलखा ह

क ndash ldquoसािह य स ही आलोचना ह आलोचना स सािह य नह ह rdquo22 इस िवषय पर

चौहानजी न आपना मह वपण िवचार कट कया ह कहन का ता पय यह ह क

वद बड़ा क लबद कद बड़ा क पद या यह भी उठ सकता ह क पहल मग ई

क अड़ा पहल बीज आ क पड़ यह िवचरणीय नह ह यह अपन-अपन

अनभव क बात ह इस कार उ का िहसाब सािह य और आलोचना पर करना

उिचत नह िजस कार मन य क अिनवायता क िलए सािह य िलखा गया उसी

अिनवायता क िलए ही आलोचना उ म सािह य बड़ी ह क आलोचना यह

िववादा पद ह यह भी हम कह सकत ह क सािह यकार बड़ा ह क सािह य

या आलोचक बड़ा ह क आलोचना सि बड़ी ह क सि क ा य ब त उपय

नह ह इस कार सािह य और आलोचना अपनी-अपनी अिनवायता क िलए

अपनी-अपनी जगह पर बड़ी ह

िन कष- आलोचक सािह य सािह यकार और समाज क ित ितब होता

ह आलोचना गण-दोष िववचन सराहना-भ सना और प तक समी ा नह ह वह

सजन और चतन क भी िवधा ह वह जो ग रची जाती ह उस कथा-कहानी स

तौला नह जा सकता ह वह कित और कितकार क अित र सदव एक तीसरी

शि क खोज करती ह कहानी किवता नाटक उप यास या ग क अ य िवधा

म एक आलोचक को कित क साथ तीन तर खोलन होत ह पहला िजस िवधा म

कित ह उस िवधा क त व उस कित का मानक माप-दड या ह दसरी कित क शली

एव स दय िववचन और िव यास कस कार आ ह और तीसरा प ह उसक

आत रक चतना उसका मम उसम िनिहत सवदना िवचार और क पनाशीलता जो

कित का ि व रचती ह इन तीन त व क आधार पर जब आलोचक कितगत

आलोचना करता ह तब कित क िलए आलोचना अिनवाय हो जाता ह

56

आलोचना एक सजन या ह

सािह य और आलोचना का सबध अ यो या ीत ह जो सािह य क रचना

या ह वही आलोचना का फक मा इतना ह क सािह य का ल य समाज

होता ह और आलोचना का ल य रचना िशवदान सह चौहान न इस बात को प

करत ए कहत ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर स

िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार ह इसिलए इस आप शा ीय वग करण क तरह अिमट और अल य न

मान ल rdquo23 अत रचना क सजन या को जान िबना आलोचना क सजन या

को अ छी तरह समझी नह जा सकती ह

सािह य वह व त ह िजसम मनोभावा मक क पना मक बौि क तथा

रचना मक त व का समावश होता ह सािह य सजन क या क अतगत

क पना बि भाव तथा शली का होना अिनवाय ह यह उठता ह क

सािह यकार क मल रणा या होती ह िजसक कारण सािह यकार को इन त व

का सहारा लना पड़ता ह सीध स हम कह सकत ह क वह समाज म घटी घटना

क अनभित ह अनभित हम घटना क प ा य करत ह तथा अनभित रचना स पव

हमार दय म कट होती ह जस िबना दख क सख का अनभव नह होता ठीक

उसी कार िबना सख-दख स रचना दोन का िम ण ही का ह हदी क िस

आलोचक आचाय नददलार वाजपयी न lsquoसािह य का योजन आ मानभितrsquo म

िलखा ह ndash ldquoका क रणा अनभित स िमलती ह यह वत एक अनभित त य ह

गो वामी तलसीदास न रामच रतमानस का िनमाण करत समय िलखा था ndash

57

lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

58

मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

59

रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

61

सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

62

(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

42

ल कन िच कभी भी सािह यालोचना का मानदड नह बनी हrdquo6 कसी एक

आलोचक या पाठक क िच या अ िच उ क सािह य को िनक नह बना सकती

उ क सािह य स ता पय ह मानव म य या वा तिवक स य पर रची गयी वह

सािह य जो आज हमारी स कित क अ य िनिध ह य द lsquoसािह यrsquo सामािजक

सबध अपन यग क क ीय िवचार िश प- ान और नितक मा यता पर रचा गया

ह तब वह कालजयी एव रचना होगा आलोचक को सािह य का म याकन

सामािजक म य एव त कालीन प रि थितय क आधार पर करना चािहए

आलोचना क मान आधार और कसौटी का अित आधिनक ह स कत

सािह य म कई िस ात मा य ह उ ह िस ा त क आधार पर सािह य को दखन-

परखन क सिवधा थी आज नयी चतना और व ािनक यग क िवकास क कारण नय-

नय िस ात िवचार एव ान-िव ान का िवकास आ िजसक चलत हर व त को

दखन-परखन क नज़ रया बदली ह िशवदान सह चौहान न स कत क पाठक एव

आज क स दय म अतर प करत ए िलखा ह- ldquoउन दोन क पाठक भी आज क

अप ा अिधक ब और स कत थ-मन lsquoस कतrsquo श द का योग कया ह lsquoिशि तrsquo

का नह य क आज क पाठक शायद अिधक िशि त ह उन दन सामा य पाठक

कसी एक ही वग क लखक क रचना नह पढ़त थ बि क भारतीय और पा ा य

लािसक सािह य क अित र आधिनक यग क सभी मानववादी महान लखक क

कितय को उनक िच समान उ साह स हण करती थी-इनम सब िवचारधारा

क सािह यकार और समाज िच तक होत थ क त आज क अिधक िशि त पाठक

कवल समाचार प और फ मी पि का स ही अपनी आ याि मक धाप त करत

ह और उनम जो थोड़ स lsquoअितिशि तrsquo ह व का का फॉकनर इज़रा पाउड

ईिलयट सलर आवल आ द कवल अना थावादी लखक क ही रचनाए पढ़त ह

तब क पाठक को आलोचना क मान पर अलग स बहस करन क ज रत नह होती

43

थी य क जीवनम य म उनक आ था उनक सािह य का म याकन करन क एक

सहज दि दान कर दती थी िजसस व और िनक उदा और ील और

अ ील मानववादी और मानव ोही का भद समझत थ- कसी कार का कोरा

शाि दक चम कार उ ह अिधक समय तक भलाव म नह डाल पाता था rdquo7 आज क

आलोचक ही नह रचनाकार भी अनक मत-मतातर और वाद-िववाद म फस कर

अपनी वानभित पर दसरी िवचारधारा को आरोिपत कर लता ह िजसक चलत

आलोचना सािह य म अनक िवसगितया फल गयी ह यही कारण ह क आलोचना

का कोई एक िनि त एव वत मानदड थािपत करना अ यत द कर ह

सािह कार समाज का एक अ यत सवदनशील ि होता ह और आलोचक रचना

का म मक पाठक सािह यकार समाज म ा वा तिवक स य और जीवन म य को

अिभ करन म कतना सफल ह इस मम को समझन-समझान का दािय व

आलोचक का ह िशवदान सह चौहान का मानना ह - ldquoसािह यकार और आलोचक

य द वा तिवक जीवन म य को ही भला द या उनक सामािजक िवकितय को ही

मानव सबध का िचरतन स य मान बठ तो उ ह सािह य क ऊटपटाग मयादाए

गढ़न स कोई नह रोक सकता rdquo8 सािह यकार और आलोचक को मानव म य और

वा तिवक स य क ित जाग क रहना अ यत आव यक ह

सािह य एक जीवत या ह प रवतन म िवकास छपा होता ह और िवकास क साथ-साथ सािह य सम एव शि शाली होता ह िविभ िवचार एव

िस ात क चलत सािह य म अनक िवकितया फल गयी ह ाय आलोचक कसी न

कसी िवचारधारा स भािवत ह और उसी दि स सािह य का म याकन करता ह जब कोई आलोचक कसी िवचारधारा या िस ात को आधार मानकर सािह य का िववचन एव म याकन करता ह तब वह आलोचना पवा ह स िसत मानी जायगी

िशवदान सह चौहान न इस त य को और प करत ए िलखा ह ndash ldquoमन य क

िचया और सहानभितया सजीव और िवकासमान व त ह - सम समि वत

44

स कित क वातावरण म उनका वत माजन और स कार होता जाता ह और व

ापक मानवीय म य को हण करक उदार शालीन और साि वक बनती जाती ह ल कन सक ण और अनदार िस ात या िवचारधाराए उ ह िन ाण और जड़ बना

दती ह-उनक चौखट म जड़ीभत हो गई िचया ही पवा ह कहलाती ह अत

पवा ह ही समी ा- तर क आलोचना म म याकन क कसौटी बना हो तो पहल उनको तोड़ बगर स ाितक- तर क थापनाए व मान अराजकता को दर करन म

कहा तक सहायक हो सकगी यह स द ध ह rdquo9 िन प एव व तिन आलोचना ही

सािह यकार क िलए रणा दायक होती ह और वह मानवीय म य का उ ाटन करती ह ऐसी ही आलोचना सािह य और सािह यकार म ाण डालती ह और वही आलोचना िचरजीवी होती ह परत ऐसा ब त कम दखा जाता ह डॉ िव नाथ

साद का मानना हndash ldquoव त और म याकन क या यह ह क पहल व त क स ा

ह और बाद म उसक म याकन का काय वणन व य व त का होता ह अत

आलोचना रचना का अनसरण कर यही उिचत ह परत ऐसा हो नह पाता ह ाय

आलोचक अपनी पवा जत धारणा क िनकष पर रचना का म यकन करता ह इसस रचना का कत िवधान उलट जाता ह यह िनषधमलक वहार आलोचना-

क सवािधक उ लखनीय िवसगित हrdquo10 अत आलोचना व त साप होनी

चािहए

िन कषत कहा जा सकता ह क आलोचना कसी कित क ता एव उसक

म य िनधारण का मा यम ह आलोचना सािह य स जीिवत ह सािह य आलोचना

स नह आलोचना का काय कित को सही थान दलाना ह सािह य च क सम

मानव जीवन को ित बिबत करता ह इसिलए उसम जीवन क िविभ तरीय

म य का सघष भी होता ह इसक सही िन कष तक प चन क िलए आलोचक को

ापक दि एव उदार भावना का होना अ यत आव यक ह आलोचना क मान पर

शा ीय मतमतातर म न फसकर ऐस म य पर दि पात कर सकत ह जो एक ओर

पाठक क सािह य बोध म सहायक हो और दसरी ओर रचनाकार को व थ दशा द

सक

45

(ग) आलोचना का सामािजक सदभ

lsquoसािह यrsquo सहका रता का तीक ह यह जनता क जीवन क सख-दख हष-

िवषाद आ द क तान बान स बना होता ह सािह य जीवन क ा या होता ह

सािह य क क म मानव होता ह मानव क अनभितय भावना िवचार और

कला का साकार प ही सािह य ह सािह य का रसा वादन पाठक करता ह

स दय पाठक ही आलोचक होता ह आलोचक समाज क अ य ि य स िभ

और अिधक सवदनशील होता ह आलोचक का सीधा सबध सािह य स होता ह और

सािह य का समाज स अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना उिचत होगा

िशवदान सह चौहान का सािह य और सािह यालोचना सबधी िवचार अ यत

नवीन ह उ ह न हदी क ाचीन किवय और नए किवय म भद करत ए िलखा

हndash ldquoपहल किव आ करत थ कत अब नए किव पदा हो गय ह जो किवता न िलख

कर नई किवता िलखत ह िजसका अथ ह क व अपनी किवता म लय और छद क

बधन क तो बात दर कसी भी कार क बधन बदा त नह करत उनक नई

किवता म रस और स दय क खोज थ ह उसम कसी भी प िवचार सामािजक

योजन ापक मानवीय म य आ द क माग करत ही व िबगड़ उठत ह य क व

समझत ह क ऐसा करना उनक ि गत वत ता पर हार ह व कसी

सामािजक दािय व को भी नह मानना चाहत rdquo11 ऐसी ि थित म आलोचक को

सामािजक सदभ म दखना अ यत क ठन हो जाता ह य क बात दािय व क नह

क का ह सािह यकार य द अपन क का पालन नह करता तब आलोचक

अपन दािय व का िनवाह कस कर सकता ह

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आलोचक तट थ होकर सािह य का म यकन करता ह आलोचक को

सािह य सािह यकार और समाज क ित आपन दािय व का पालन करना पड़ता ह

वह कसी भी कित को सामािजक सदभ म दखना चाहता ह कोई कतना भी बड़ा

आलोचक य न हो वह कसी बरी रचना को उ क नह बना सकता ह अत

आलोचक क िलए सामािजकता का िनवाह अित आव यक ह िशवदान सह चौहान

इस बात को इस कार िलखत ह ndash ldquoआलोचक सािह य-जगत का भा य-िवधाता भी

नह ह जो चाह तो खल हाथ अमर व बाट सकता हो कसी आलोचक म यह

शि नह क वह बरी रचना को अपनी म शसा स अमर व दला सक या अपन

कठोर वाक हार स कसी महान रचना को अमर होन स रोक सक इसिलए लखक

य द महान कित व क िबना ही महानता और अमर व पान क मह वका ा पर थोड़ा

सा सयम रखकर आलोचक को अपन दािय व का पालन करन का अवसर द तो

सभव ह क आलोचना क म वसी अराजकता न रह जसी क आज दखाई दती

ह rdquo12 समाज कित और लखक म सबध उसका वा तिवक ान और स कितय क

पठन क रण जगाना आलोचक का वधम ह आलोचक को िवषय का िव तत ान

होना चािहए स दयता क साथ कित और कितकार का िन प िववचन करना

आलोचक का समािजक दािय व ह

आलोचना रचना क होती ह और रचना सामािजक सपि ह रचनाकार अपनी अनभित िवचार एव जीवन दि को एका कर कित म अिभ करता ह आलोचक और रचनाकार दोन अ यो याि त ह कोई कित समाज क िलए कतना उपयोगी ह वह स दय पाठक ही बता सकता ह सािह य म हर समय नई-नई िवचार एव वि या आती रहती ह उसक सामािजकता का अ ययन आलोचक ही करता ह रमश दव क श द म ndash ldquoसजक और सजन य द कसी आलोचक क बौि क

और स कार मानस म स मानीय नह ह तो उसका आलोचना कम बकार ह उस कसी भी रचना पर िवचार एव िववचन का आिधकार नह ह कसी भी सजन क

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पहली शत यह ह क वह कसी भी िवधा म हो और िजस हदी क अिधकाश लोग भल ही िन दा क तरह मान लत ह ल कन उसम मन य क शील का िनवाह आव यक ह कोई आलोचना कसी भी सजक या सजन क वस क िलए नह होती बि क एक सजक को मोहम कर अिधक खर और गभीर होकर सजन क िलए उकसाती भी ह य द आलोचना-कम सजक ह ता कम होता कसी ितब ता स उपजा ितशोधा मक िन दा आ यान होगा तो फर उस आलोचना कहा ही नह जा

सकता rdquo13 आलोचक सािह य को समाज क प र य म रखत ए तठ थ और

व तिन म याकन तत करता ह य क समाज म िवचार क ारा काय

सपा दत होत ह सािह य िवचार का समह होता ह अत सािह य म

िवचार क ग शि सि होकर समाज का नत व करती ह उस भाव एव िवचार को सवसधारण आलोचक ही करता ह समाज स सािह यकार सजन क

रणा एव समा ी ा करता ह तथा वह समाज ारा भािवत होता रहता ह इसी कार समाज पर सािह य का िजतना ापक एव गहरा भाव पड़ता ह उतना अ य कसी साधन का नह पड़ता व तत सािह य समाज स उ प होता ह और

फर समाज को भािवत करता ह इस कार सािह यकार समाज स भािवत होता ह तथा वह समाज को भािवत करता ह आलोचक इस भाव का दशा और दशा

िनधारण करता ह अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना अित अिनवाय ह

िन कष प म कहा जा सकता ह क आलोचना को सामािजक दािय व

िनभाना पड़ता ह धम और दशन क अधोगित क इस यग म सािह य और

आलोचना पर एक अित र िज मदारी अिनवायत आ पड़ी ह सािह य म

पनरिचत जीवन क पदन को मानवता क अत माण क यगीन िवचार वाह क

भर-पर प र य म दखन-परखन क ज रत ह अत आलोचना अपन वधम स ही

अत ववश ह उस र थान क प त करन और समाज को िशि त करन का वह

सा कितक कम अपन हाथ म लन क िलए िववश ह

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(घ) आलोचना क अिनवायता

िशवदान सह चौहान न आलोचना क उपयोिगता और अिनवायता पर नतन

दि कोण आपनाया ह उ ह न सािह य क िलए आलोचना को अिनवाय माना ह

नरश ारा lsquoनव िबहारrsquo क एक अक म उठाया गया ndash या आलोचना अिनवाय

ह इस पर िविव िवचारक न अपना-अपना मत कट कया ह िशवदान सह

चौहान न अपनी गहरी सोच िवल ण ितभा क ारा तत िवषय पर नई सोच

एव िवचार कट कया ह इनका मानना ह क आलोचना रचना क िलए अिनवाय

ह आलोचना क अिनवायता पर िवचार करत ह और जब यह उठता ह क या

आलोचना अिनवाय ह तब अनयास ित उठता ह ndash या रचना अिनवाय ह

या पढ़ना ही अिनवाय ह िशवदान सह चौहान का मानना ह ndash ldquoरचनाकार क

ितभा- मता क तरह आलोचक क ितभा- मता का उठाना भी असगत

नह ह िजस तरह हर लखक रचनाकार नह बन सकता उसी तरह समी क

आलोचक नह बन सकताrdquo14 इस कार िशवदान सह चौहान न नए-नए

को उठाकर इस सदभ म नई आलोचना क ह इसी क मा यम स इस िवषय पर

िवचार-िवमश करना तथा िशवदान सह चौहान क आलोचना दि को दखना

समीचीन होगा

बौि क चतन मनन और अ ययन क दौरान कित क रह य को जानन क

इ छा बढ़ जाती ह यही कारण ह क कसी ि व त थान घटना एव रचना

क ित िवचारशील ि िज ासा क दि स दखन लगता ह वा तिवकता जानन

करन क िलए जब ि अपन मन म उस ि व त थान घटना या रचना क

ित िवचार-िवमश करन लगता ह तभी उसक मन म आलोचना का उदय होता ह

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ि सोचन और न सोचन म वत होता ह ठीक इसी कार रचनाकार रचना

करन और न करन म वत होता ह पाठक पढ़न और न पढ़न म वत ह और

आलोचक आलोचना करन और न करन म वत ह तब यह िनि त ह क

रचनाकार पाठक और आलोचक वत ता क िलए नह दािय व क िलए जीत ह यह

दािय व अपन-आप क ित रचना क ित रचनाकार क ित समाज क ित रा

क ित तथा िव क ित होता ह अथात दािय व क तर पर आलोचक रचनाकार

तथा पाठक म कोई िवशष अतर नह होता ह िशवदान सह चौहान एक समथ

आलोचक को समथ रचनाकार और समथ रचनाकार को समथ आलोचक मानत ह

उनका प कहना ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर

स िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार हrdquo15 आग चौहान जी न आलोचक क आलोचना करत ए आलोचक क

कई िणया बतात ह जस- सािह य क अनक िवधा पर िलखी आलोचना

अ यापक य आलोचना प -पि का म ित मास नई प तक क र प तक

क सपादक य क प म िलखी गयी आलोचना आ द आलोचक क दािय व का

कवल उनक िलए ही उठता ह जो इन दोन िणय स िभ णी क आलोचक ह

आलोचक का सबध सािह य स होता ह न क िव ान स य द हम व ािनक

श दावली म पानी को H2O कहत ह तो वह ससार म एक ही नाम स (H2O) जाना

जाता ह परत सािह य म lsquoपानीrsquo श द का योग एक जसा नह होता वह कह नीर

कह जल कह मघ कह वि कह चमक कह व-पदाथ कह मान- ित ा या

यश बन जाता ह इस कार पानी का अनक अथ होन क कारण उिचत अथ बोध क

िलए आलोचना अिनवाय ह कहन का ता पय यह ह क आलोचना का सबध

सािह य स ह न क िव ान स कला क आलोचना को िव ान भी मान सकत ह

आलोचना सािह य क िलए कतना अिनवाय ह यह िवचरणीय ह

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कोई भी सािह यक िवधा कसी एक ि क अपनी सपि नह होती वह

चाह उसक ारा ही िलखी गयी य न हो पर वह उस भाषा क सम त ि य क

िलए हो जाती ह जो उस भाषा क जनकार ह रचनाकार रचना को वत प स

रचता ह फर भी उस सामािजक दािय व एव या का भी यान रखना पड़ता ह

कोई भी रचनाकार अपनी रचना क मा यम स त कालीन प रि थित एव सा कितक

या को बचाय रखन क िलए रचना क सि करता ह एक कार स पाठक ही

आलोचक होता ह lsquoरचनाrsquo क िलए रचनाकार पाठक और आलोचक य तीन

अिनवाय अग ह य द रचना ह तो पाठक ह ग और पाठक ह तो आलोचना अव य

ह गी य द पाठक नह ह तब रचना कसी काम क नह कारण रचनाकार रचना

को अपन िलए नह िलखता इस कार रचना क िलए रक और कारण दोन

पाठक ही होत ह जो भी हो रचनाकार पाठक तथा आलोचक तीन एक-दसर क

आिनवाय अग होत ए भी अलग- अलग वत अि त व रखत ह इसी कारण

रचनाकार वत प स वात सख आ मानद पाता ह आलोचक एक िविश

पाठक होता ह रमश दव न अपन एक लख म िलखा ह ndash ldquoएक बड़ा यापक वग ह

जो अपन क ाई तर तक क रचना का आ वादा मक िववचन करना ही

आलोचना मानता ह यह अव य ह क उसक पास आलोचना िस ात क प भिम

होती ह और स ाितक व आलोचना क मानक या मानदड अपना कर वह रचना क

आलोचना करता ह ऐसा आलोचक कॉट ज स क तरह यह कह सकता ह क य द

नदी पर पल बनान क काम क जाच करायी जायगी तो उसक इजीिनयर को बलाया

जायगा ल कन सािह य क जाच करन क िलए उसक रचनाकार क बजाय आलोचक

को रचना स पी जायगी जहा आलोचना एक सीमा बन गई ह रचना क जाच क

तीन आधार य नह हो सकत ndash एक वह पाठक जो कवल पढ़ता ह आनद लता या

ऊबता ह कत उसको आनद या ऊब ही उसका पाठ ह िजस वह िलख कर

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नह करता ऐसा पाठक िसफ पाठक ही बना रहता ह दसरा होता ह रचनाकार

वय जो कई बार वय अपनी रचना क भद-अभद खोलता ह और रचना क कन-

कन दबाव तनाव भािषक चनौितय अ द स उस जझना पड़ा ह यह प करता

ह इसिलए किवता स ह क साथ भिमका वय िलखन क णाली बड़-बड़

रचनाकार न अपनायी ह तीसरा ह श आलोचक जो रचना क ित अन य क

बजाय अ य भाव स कट होता ह rdquo16 रचनाकार िवषय सगठन क िलए सवथा

वत होता ह वह कसी भी िवषय का चयन कसी भी ि थित म कर सकता ह पर

आलोचक क िलए यह वत ता नह ह य क वह कसी िनि त रचनाकार क

रचना क िवषय पर ही स यक िवचार कट कर सकता ह इसक आग उस छट नह

ह आलोचक उस रचना क तठ थ होकर रचना क शि और सीमा का उ ाटन

करता ह वह रचना क ित अपना दािय व िनभाता ह अपन इस दािय व को

िनभात ए आलोचक रचना क उपयोिगता एव ासिगकता पर भी जोड़ दता ह

िशवदान सह चौहान न प िलखा ह ndash ldquoसािह य का हर पाठक एक कार स

आलोचक होता ह वह कसी कहानी या किवता को पढ़त ही तरत अपना मत कट

कर दता ह क वह अ छी ह बरी ह या असदर ह आलोचक हम उस ही कहत ह

िजसम अपनी ि गत ित या को व तपरक िनणय क साथ समि वत करन क

मता हो और जो रचना क िववचन ारा अपन अनभव-समि वत िनणय को प

अिभ ि दकर साधारण पाठक क दि को भी ि गत ित या क तल स

उठाकर ापक और व तपरक बना सक ता क व रचना स उन सार चतना-िवकासी

म य को ा कर सक जो उसम िनिहत हrdquo17 िनप आलोचना स रचना का

िवकास तो होता ही ह साथ ही साथ रचनाकार क ि व का भी ितफलन होता

ह तथा उसक िवचार एव भाव स समाज का त यदशन भी होता ह यह आलोचना

करन क उपरत ही पता चलता ह क कित या कितकार समाज क िलए कतना

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उपयोगी ह इस िवषय पर दवीशकर अव थी न अपन एक लख lsquoरचना और

आलोचकrsquo म प िलखा ह ndash ldquoम कहना चा गा क समी ा कित और कितकार क

िलए उपयोगी ह सामा य पाठक क िलए उपयोगी ह एव ान क एक िविश शाखा

क प म अपन-आप म भी उपयोगी ह उसक इस प म अपनी वत स ा भी ह

परत इन सभी उपयोिगता क मल म आधारभत या उपजी साम ी वह रचना

िवशष ही होती ह rdquo18

आलोचना क उपयोिगता-अनपयोिगता क िवषय पर चचा करन क िलए कछ

ऐस बद पर िवचार करना आव यक ह िजसस आलोचना क अिनवायता को

प कया जा सक-

आलोचना मर जान पर भी सािह य जदा रहगा- यह एक क पना ह इसस

एक बात यह प होता ह क आलोचना या सािह य जीिवत व त ह इसम वह

चतना ह जो जीव ाणी म होता ह यह चतना य ह य क सािह य म

सािह यकार क सपण चतना क अिभ ि होती ह तब य द हम क पना भी कर

ल क आलोचना मर जायगी तो इसका सीधा अथ यही होगा क जनता क समाज

क एव सािह यकार क चतना मर जायगी इस मर ए समाज म सजना मक क

या कस कार चल पायगी अथात सजना मक पर भी उठ खड़ा होगा

सािह य म राजनीितक सामािजक धा मक आ थक सा कितक एव सािहि यक

सपण ि थितय का वणन कया जाता ह तथा इन सभी प रि थितय का अवलोकन

आलोचना क मा यम स ही सभव ह य द आलोचना ही न हो तब उन प रि थितय

का सही आकलन कस होगा सािह य म सािह यकार क भावना िवचार एव

क पना क अिभ ि कभी शोक क होती ह कभी हष क होती ह तथा कभी वह

सावभौिमकता क िलए होती ह जब हम उसक सपण ि थित क जनकारी लना

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चाहत ह तब हम आलोचना क आव यकता पड़ती ह कहन का ता पय यह ह क

य द सािह य को जीिवत रखना ह तब आलोचना क मर जान क क पना अधरी ह

ाचीन काल स आलोचना होती रही ह उस समय आलोचक और रचनाकार

सवथा िभ आ करत थ धीर-धीर यह दरी आधिनक काल तक आत-आत ख म सा

हो गया ह आलोचना आज ग क अनक कार क िवधा म स एक ह पहल यह

माना जाता था क जो आलोचना करत ह व रचना नह कर सकत आज बौि क

जीवन म यह माग क जा रही ह क रचनाकार ही आलोचना कर

का का आ वादन आलोचना स न घटता ह न बढ़ता ह ndash यह बात तो

सतही तर पर स य लगती ह पर इसक मम को हम उधड़ कर दख तो आलोचना

सािह य क िलए अिनवाय ह यह कहना न होगा क हर पाठक क समझ सोच एव

भाव क गहराई तक प चना आसान नह ह िजस मम को सामा य पाठक नह

समझ पात उस जगह तक प चन का काय आलोचक करता ह िशवदान सह

चौहान का मानना ह ndash ldquo कसी कित को पढ़कर उस पर जो भाव पड़ता ह कसी

अ य पाठक परपड़ा भाव सवथा वसा ही नह हो सकता आलोचक भी एक ऐसा

ही िविश पाठक ह- इसिलए उसक आलोचना उस पर पड़ िविश भाव को ही

कर सकती ह ऐसी ि थित म इन िविभ अनभितय कितय भाव म कोई

सामा य त व हो ही या सकता ह िजसका षण या म याकन कया जाए rdquo19 यह

ठीक ह क आलोचना स रचना क आ वाद म अतर नह होता पर िजसक ारा

आ वादन कया जाता ह वह कतना व थ ह कतना तद त ह इस पर भी यान

क आव यकता ह जीभ पर कसी व त को रखन पर उस व त का वाद न घटता

ह न बढ़ता ह नाक क पास सगध बदल नह जाती िजतनी जीभ या नाक व थ

होगी उतना ही वाद पण प स िलया जा सकता ह जहा तक रचना का सवाल

ह तो जीभ और नाक का काय आलोचक करता ह आलोचक मलत एक िवशष

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कार का पाठक होता ह हाला क पाठक ही आलोचक होता ह फर भी पाठक और

आलोचक म ताि वक फक ह पाठन क ज रय आलोचक उसक छप ए रह य को भी

खोल कर समाज क सामन प कर दता ह आचाय कसरी कमार न भी आलोचक

को पाठक मानत ह पर आलोचक और पाठक म अतर प कया ह उनका मानना

ह ndash ldquoसामा य पाठक और आलोचक क आ वादन म कछ वसा फक ह जसा द तावज

पर अगठ क छाप लगाना और पढ़कर द तावज करन का ह rdquo20 प प स आचाय

कसरी कमार न पाठक को ही आलोचक मानत ह पर उनका पाठक सामा य पाठक

नह ह एक िवशष कार का पाठक होता ह और चौहानजी न भी िविश पाठक को

ही आलोचक मानत ह

सािह य का आ वादन वयि क तर पर होता ह आलोचक सािह य का

रसा वादन वयि क तर पर ही हण करता ह आलोचक एक सिनि त मानदड

थािपत करना चाहता ह य द कसी िवचार-धारा या वाद स भािवत होकर

मानदड थािपत करता ह तब वह मानदड असमीचीन हो जाता ह आलोचक य द

पवा ह स भािवत वाद क आधार पर अपना मानदड थािपत करता ह तब वह

उस कित का सा यक म याकन नह कर पायगा डॉ िव नाथ साद न इस त य

को प करत ए िलखा ह ndash ldquoउ क आलोचना पवा ह स बचकर चलती ह और

ऐसा तभी सभव ह जब आलोचक का एक पाव अपन यग म तथा एक पाव लखक क

यग म हो अथवा उसक एक आख रस सवदना पर हो तथा दसरी आख लखक क

भाव-िनवदन पर इसस आलोचना क म ामक म याकन क सभावना नह

रहती rdquo21 आलोचना क िलए एक मानदड या फामला क थापना कर उस पर

आलोचना करना ब त क ठन काय ह आलोचना का कोई मानदड तभी सराहनीय

ह जब तक वह कसी िवचारधारा एव वाद स कोई सबध नह रखता

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पहल सािह य आ तब आलोचना िशवदान सह चौहान न प िलखा ह

क ndash ldquoसािह य स ही आलोचना ह आलोचना स सािह य नह ह rdquo22 इस िवषय पर

चौहानजी न आपना मह वपण िवचार कट कया ह कहन का ता पय यह ह क

वद बड़ा क लबद कद बड़ा क पद या यह भी उठ सकता ह क पहल मग ई

क अड़ा पहल बीज आ क पड़ यह िवचरणीय नह ह यह अपन-अपन

अनभव क बात ह इस कार उ का िहसाब सािह य और आलोचना पर करना

उिचत नह िजस कार मन य क अिनवायता क िलए सािह य िलखा गया उसी

अिनवायता क िलए ही आलोचना उ म सािह य बड़ी ह क आलोचना यह

िववादा पद ह यह भी हम कह सकत ह क सािह यकार बड़ा ह क सािह य

या आलोचक बड़ा ह क आलोचना सि बड़ी ह क सि क ा य ब त उपय

नह ह इस कार सािह य और आलोचना अपनी-अपनी अिनवायता क िलए

अपनी-अपनी जगह पर बड़ी ह

िन कष- आलोचक सािह य सािह यकार और समाज क ित ितब होता

ह आलोचना गण-दोष िववचन सराहना-भ सना और प तक समी ा नह ह वह

सजन और चतन क भी िवधा ह वह जो ग रची जाती ह उस कथा-कहानी स

तौला नह जा सकता ह वह कित और कितकार क अित र सदव एक तीसरी

शि क खोज करती ह कहानी किवता नाटक उप यास या ग क अ य िवधा

म एक आलोचक को कित क साथ तीन तर खोलन होत ह पहला िजस िवधा म

कित ह उस िवधा क त व उस कित का मानक माप-दड या ह दसरी कित क शली

एव स दय िववचन और िव यास कस कार आ ह और तीसरा प ह उसक

आत रक चतना उसका मम उसम िनिहत सवदना िवचार और क पनाशीलता जो

कित का ि व रचती ह इन तीन त व क आधार पर जब आलोचक कितगत

आलोचना करता ह तब कित क िलए आलोचना अिनवाय हो जाता ह

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आलोचना एक सजन या ह

सािह य और आलोचना का सबध अ यो या ीत ह जो सािह य क रचना

या ह वही आलोचना का फक मा इतना ह क सािह य का ल य समाज

होता ह और आलोचना का ल य रचना िशवदान सह चौहान न इस बात को प

करत ए कहत ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर स

िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार ह इसिलए इस आप शा ीय वग करण क तरह अिमट और अल य न

मान ल rdquo23 अत रचना क सजन या को जान िबना आलोचना क सजन या

को अ छी तरह समझी नह जा सकती ह

सािह य वह व त ह िजसम मनोभावा मक क पना मक बौि क तथा

रचना मक त व का समावश होता ह सािह य सजन क या क अतगत

क पना बि भाव तथा शली का होना अिनवाय ह यह उठता ह क

सािह यकार क मल रणा या होती ह िजसक कारण सािह यकार को इन त व

का सहारा लना पड़ता ह सीध स हम कह सकत ह क वह समाज म घटी घटना

क अनभित ह अनभित हम घटना क प ा य करत ह तथा अनभित रचना स पव

हमार दय म कट होती ह जस िबना दख क सख का अनभव नह होता ठीक

उसी कार िबना सख-दख स रचना दोन का िम ण ही का ह हदी क िस

आलोचक आचाय नददलार वाजपयी न lsquoसािह य का योजन आ मानभितrsquo म

िलखा ह ndash ldquoका क रणा अनभित स िमलती ह यह वत एक अनभित त य ह

गो वामी तलसीदास न रामच रतमानस का िनमाण करत समय िलखा था ndash

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lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

58

मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

59

रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

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सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

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(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

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15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

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30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

43

थी य क जीवनम य म उनक आ था उनक सािह य का म याकन करन क एक

सहज दि दान कर दती थी िजसस व और िनक उदा और ील और

अ ील मानववादी और मानव ोही का भद समझत थ- कसी कार का कोरा

शाि दक चम कार उ ह अिधक समय तक भलाव म नह डाल पाता था rdquo7 आज क

आलोचक ही नह रचनाकार भी अनक मत-मतातर और वाद-िववाद म फस कर

अपनी वानभित पर दसरी िवचारधारा को आरोिपत कर लता ह िजसक चलत

आलोचना सािह य म अनक िवसगितया फल गयी ह यही कारण ह क आलोचना

का कोई एक िनि त एव वत मानदड थािपत करना अ यत द कर ह

सािह कार समाज का एक अ यत सवदनशील ि होता ह और आलोचक रचना

का म मक पाठक सािह यकार समाज म ा वा तिवक स य और जीवन म य को

अिभ करन म कतना सफल ह इस मम को समझन-समझान का दािय व

आलोचक का ह िशवदान सह चौहान का मानना ह - ldquoसािह यकार और आलोचक

य द वा तिवक जीवन म य को ही भला द या उनक सामािजक िवकितय को ही

मानव सबध का िचरतन स य मान बठ तो उ ह सािह य क ऊटपटाग मयादाए

गढ़न स कोई नह रोक सकता rdquo8 सािह यकार और आलोचक को मानव म य और

वा तिवक स य क ित जाग क रहना अ यत आव यक ह

सािह य एक जीवत या ह प रवतन म िवकास छपा होता ह और िवकास क साथ-साथ सािह य सम एव शि शाली होता ह िविभ िवचार एव

िस ात क चलत सािह य म अनक िवकितया फल गयी ह ाय आलोचक कसी न

कसी िवचारधारा स भािवत ह और उसी दि स सािह य का म याकन करता ह जब कोई आलोचक कसी िवचारधारा या िस ात को आधार मानकर सािह य का िववचन एव म याकन करता ह तब वह आलोचना पवा ह स िसत मानी जायगी

िशवदान सह चौहान न इस त य को और प करत ए िलखा ह ndash ldquoमन य क

िचया और सहानभितया सजीव और िवकासमान व त ह - सम समि वत

44

स कित क वातावरण म उनका वत माजन और स कार होता जाता ह और व

ापक मानवीय म य को हण करक उदार शालीन और साि वक बनती जाती ह ल कन सक ण और अनदार िस ात या िवचारधाराए उ ह िन ाण और जड़ बना

दती ह-उनक चौखट म जड़ीभत हो गई िचया ही पवा ह कहलाती ह अत

पवा ह ही समी ा- तर क आलोचना म म याकन क कसौटी बना हो तो पहल उनको तोड़ बगर स ाितक- तर क थापनाए व मान अराजकता को दर करन म

कहा तक सहायक हो सकगी यह स द ध ह rdquo9 िन प एव व तिन आलोचना ही

सािह यकार क िलए रणा दायक होती ह और वह मानवीय म य का उ ाटन करती ह ऐसी ही आलोचना सािह य और सािह यकार म ाण डालती ह और वही आलोचना िचरजीवी होती ह परत ऐसा ब त कम दखा जाता ह डॉ िव नाथ

साद का मानना हndash ldquoव त और म याकन क या यह ह क पहल व त क स ा

ह और बाद म उसक म याकन का काय वणन व य व त का होता ह अत

आलोचना रचना का अनसरण कर यही उिचत ह परत ऐसा हो नह पाता ह ाय

आलोचक अपनी पवा जत धारणा क िनकष पर रचना का म यकन करता ह इसस रचना का कत िवधान उलट जाता ह यह िनषधमलक वहार आलोचना-

क सवािधक उ लखनीय िवसगित हrdquo10 अत आलोचना व त साप होनी

चािहए

िन कषत कहा जा सकता ह क आलोचना कसी कित क ता एव उसक

म य िनधारण का मा यम ह आलोचना सािह य स जीिवत ह सािह य आलोचना

स नह आलोचना का काय कित को सही थान दलाना ह सािह य च क सम

मानव जीवन को ित बिबत करता ह इसिलए उसम जीवन क िविभ तरीय

म य का सघष भी होता ह इसक सही िन कष तक प चन क िलए आलोचक को

ापक दि एव उदार भावना का होना अ यत आव यक ह आलोचना क मान पर

शा ीय मतमतातर म न फसकर ऐस म य पर दि पात कर सकत ह जो एक ओर

पाठक क सािह य बोध म सहायक हो और दसरी ओर रचनाकार को व थ दशा द

सक

45

(ग) आलोचना का सामािजक सदभ

lsquoसािह यrsquo सहका रता का तीक ह यह जनता क जीवन क सख-दख हष-

िवषाद आ द क तान बान स बना होता ह सािह य जीवन क ा या होता ह

सािह य क क म मानव होता ह मानव क अनभितय भावना िवचार और

कला का साकार प ही सािह य ह सािह य का रसा वादन पाठक करता ह

स दय पाठक ही आलोचक होता ह आलोचक समाज क अ य ि य स िभ

और अिधक सवदनशील होता ह आलोचक का सीधा सबध सािह य स होता ह और

सािह य का समाज स अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना उिचत होगा

िशवदान सह चौहान का सािह य और सािह यालोचना सबधी िवचार अ यत

नवीन ह उ ह न हदी क ाचीन किवय और नए किवय म भद करत ए िलखा

हndash ldquoपहल किव आ करत थ कत अब नए किव पदा हो गय ह जो किवता न िलख

कर नई किवता िलखत ह िजसका अथ ह क व अपनी किवता म लय और छद क

बधन क तो बात दर कसी भी कार क बधन बदा त नह करत उनक नई

किवता म रस और स दय क खोज थ ह उसम कसी भी प िवचार सामािजक

योजन ापक मानवीय म य आ द क माग करत ही व िबगड़ उठत ह य क व

समझत ह क ऐसा करना उनक ि गत वत ता पर हार ह व कसी

सामािजक दािय व को भी नह मानना चाहत rdquo11 ऐसी ि थित म आलोचक को

सामािजक सदभ म दखना अ यत क ठन हो जाता ह य क बात दािय व क नह

क का ह सािह यकार य द अपन क का पालन नह करता तब आलोचक

अपन दािय व का िनवाह कस कर सकता ह

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आलोचक तट थ होकर सािह य का म यकन करता ह आलोचक को

सािह य सािह यकार और समाज क ित आपन दािय व का पालन करना पड़ता ह

वह कसी भी कित को सामािजक सदभ म दखना चाहता ह कोई कतना भी बड़ा

आलोचक य न हो वह कसी बरी रचना को उ क नह बना सकता ह अत

आलोचक क िलए सामािजकता का िनवाह अित आव यक ह िशवदान सह चौहान

इस बात को इस कार िलखत ह ndash ldquoआलोचक सािह य-जगत का भा य-िवधाता भी

नह ह जो चाह तो खल हाथ अमर व बाट सकता हो कसी आलोचक म यह

शि नह क वह बरी रचना को अपनी म शसा स अमर व दला सक या अपन

कठोर वाक हार स कसी महान रचना को अमर होन स रोक सक इसिलए लखक

य द महान कित व क िबना ही महानता और अमर व पान क मह वका ा पर थोड़ा

सा सयम रखकर आलोचक को अपन दािय व का पालन करन का अवसर द तो

सभव ह क आलोचना क म वसी अराजकता न रह जसी क आज दखाई दती

ह rdquo12 समाज कित और लखक म सबध उसका वा तिवक ान और स कितय क

पठन क रण जगाना आलोचक का वधम ह आलोचक को िवषय का िव तत ान

होना चािहए स दयता क साथ कित और कितकार का िन प िववचन करना

आलोचक का समािजक दािय व ह

आलोचना रचना क होती ह और रचना सामािजक सपि ह रचनाकार अपनी अनभित िवचार एव जीवन दि को एका कर कित म अिभ करता ह आलोचक और रचनाकार दोन अ यो याि त ह कोई कित समाज क िलए कतना उपयोगी ह वह स दय पाठक ही बता सकता ह सािह य म हर समय नई-नई िवचार एव वि या आती रहती ह उसक सामािजकता का अ ययन आलोचक ही करता ह रमश दव क श द म ndash ldquoसजक और सजन य द कसी आलोचक क बौि क

और स कार मानस म स मानीय नह ह तो उसका आलोचना कम बकार ह उस कसी भी रचना पर िवचार एव िववचन का आिधकार नह ह कसी भी सजन क

47

पहली शत यह ह क वह कसी भी िवधा म हो और िजस हदी क अिधकाश लोग भल ही िन दा क तरह मान लत ह ल कन उसम मन य क शील का िनवाह आव यक ह कोई आलोचना कसी भी सजक या सजन क वस क िलए नह होती बि क एक सजक को मोहम कर अिधक खर और गभीर होकर सजन क िलए उकसाती भी ह य द आलोचना-कम सजक ह ता कम होता कसी ितब ता स उपजा ितशोधा मक िन दा आ यान होगा तो फर उस आलोचना कहा ही नह जा

सकता rdquo13 आलोचक सािह य को समाज क प र य म रखत ए तठ थ और

व तिन म याकन तत करता ह य क समाज म िवचार क ारा काय

सपा दत होत ह सािह य िवचार का समह होता ह अत सािह य म

िवचार क ग शि सि होकर समाज का नत व करती ह उस भाव एव िवचार को सवसधारण आलोचक ही करता ह समाज स सािह यकार सजन क

रणा एव समा ी ा करता ह तथा वह समाज ारा भािवत होता रहता ह इसी कार समाज पर सािह य का िजतना ापक एव गहरा भाव पड़ता ह उतना अ य कसी साधन का नह पड़ता व तत सािह य समाज स उ प होता ह और

फर समाज को भािवत करता ह इस कार सािह यकार समाज स भािवत होता ह तथा वह समाज को भािवत करता ह आलोचक इस भाव का दशा और दशा

िनधारण करता ह अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना अित अिनवाय ह

िन कष प म कहा जा सकता ह क आलोचना को सामािजक दािय व

िनभाना पड़ता ह धम और दशन क अधोगित क इस यग म सािह य और

आलोचना पर एक अित र िज मदारी अिनवायत आ पड़ी ह सािह य म

पनरिचत जीवन क पदन को मानवता क अत माण क यगीन िवचार वाह क

भर-पर प र य म दखन-परखन क ज रत ह अत आलोचना अपन वधम स ही

अत ववश ह उस र थान क प त करन और समाज को िशि त करन का वह

सा कितक कम अपन हाथ म लन क िलए िववश ह

48

(घ) आलोचना क अिनवायता

िशवदान सह चौहान न आलोचना क उपयोिगता और अिनवायता पर नतन

दि कोण आपनाया ह उ ह न सािह य क िलए आलोचना को अिनवाय माना ह

नरश ारा lsquoनव िबहारrsquo क एक अक म उठाया गया ndash या आलोचना अिनवाय

ह इस पर िविव िवचारक न अपना-अपना मत कट कया ह िशवदान सह

चौहान न अपनी गहरी सोच िवल ण ितभा क ारा तत िवषय पर नई सोच

एव िवचार कट कया ह इनका मानना ह क आलोचना रचना क िलए अिनवाय

ह आलोचना क अिनवायता पर िवचार करत ह और जब यह उठता ह क या

आलोचना अिनवाय ह तब अनयास ित उठता ह ndash या रचना अिनवाय ह

या पढ़ना ही अिनवाय ह िशवदान सह चौहान का मानना ह ndash ldquoरचनाकार क

ितभा- मता क तरह आलोचक क ितभा- मता का उठाना भी असगत

नह ह िजस तरह हर लखक रचनाकार नह बन सकता उसी तरह समी क

आलोचक नह बन सकताrdquo14 इस कार िशवदान सह चौहान न नए-नए

को उठाकर इस सदभ म नई आलोचना क ह इसी क मा यम स इस िवषय पर

िवचार-िवमश करना तथा िशवदान सह चौहान क आलोचना दि को दखना

समीचीन होगा

बौि क चतन मनन और अ ययन क दौरान कित क रह य को जानन क

इ छा बढ़ जाती ह यही कारण ह क कसी ि व त थान घटना एव रचना

क ित िवचारशील ि िज ासा क दि स दखन लगता ह वा तिवकता जानन

करन क िलए जब ि अपन मन म उस ि व त थान घटना या रचना क

ित िवचार-िवमश करन लगता ह तभी उसक मन म आलोचना का उदय होता ह

49

ि सोचन और न सोचन म वत होता ह ठीक इसी कार रचनाकार रचना

करन और न करन म वत होता ह पाठक पढ़न और न पढ़न म वत ह और

आलोचक आलोचना करन और न करन म वत ह तब यह िनि त ह क

रचनाकार पाठक और आलोचक वत ता क िलए नह दािय व क िलए जीत ह यह

दािय व अपन-आप क ित रचना क ित रचनाकार क ित समाज क ित रा

क ित तथा िव क ित होता ह अथात दािय व क तर पर आलोचक रचनाकार

तथा पाठक म कोई िवशष अतर नह होता ह िशवदान सह चौहान एक समथ

आलोचक को समथ रचनाकार और समथ रचनाकार को समथ आलोचक मानत ह

उनका प कहना ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर

स िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार हrdquo15 आग चौहान जी न आलोचक क आलोचना करत ए आलोचक क

कई िणया बतात ह जस- सािह य क अनक िवधा पर िलखी आलोचना

अ यापक य आलोचना प -पि का म ित मास नई प तक क र प तक

क सपादक य क प म िलखी गयी आलोचना आ द आलोचक क दािय व का

कवल उनक िलए ही उठता ह जो इन दोन िणय स िभ णी क आलोचक ह

आलोचक का सबध सािह य स होता ह न क िव ान स य द हम व ािनक

श दावली म पानी को H2O कहत ह तो वह ससार म एक ही नाम स (H2O) जाना

जाता ह परत सािह य म lsquoपानीrsquo श द का योग एक जसा नह होता वह कह नीर

कह जल कह मघ कह वि कह चमक कह व-पदाथ कह मान- ित ा या

यश बन जाता ह इस कार पानी का अनक अथ होन क कारण उिचत अथ बोध क

िलए आलोचना अिनवाय ह कहन का ता पय यह ह क आलोचना का सबध

सािह य स ह न क िव ान स कला क आलोचना को िव ान भी मान सकत ह

आलोचना सािह य क िलए कतना अिनवाय ह यह िवचरणीय ह

50

कोई भी सािह यक िवधा कसी एक ि क अपनी सपि नह होती वह

चाह उसक ारा ही िलखी गयी य न हो पर वह उस भाषा क सम त ि य क

िलए हो जाती ह जो उस भाषा क जनकार ह रचनाकार रचना को वत प स

रचता ह फर भी उस सामािजक दािय व एव या का भी यान रखना पड़ता ह

कोई भी रचनाकार अपनी रचना क मा यम स त कालीन प रि थित एव सा कितक

या को बचाय रखन क िलए रचना क सि करता ह एक कार स पाठक ही

आलोचक होता ह lsquoरचनाrsquo क िलए रचनाकार पाठक और आलोचक य तीन

अिनवाय अग ह य द रचना ह तो पाठक ह ग और पाठक ह तो आलोचना अव य

ह गी य द पाठक नह ह तब रचना कसी काम क नह कारण रचनाकार रचना

को अपन िलए नह िलखता इस कार रचना क िलए रक और कारण दोन

पाठक ही होत ह जो भी हो रचनाकार पाठक तथा आलोचक तीन एक-दसर क

आिनवाय अग होत ए भी अलग- अलग वत अि त व रखत ह इसी कारण

रचनाकार वत प स वात सख आ मानद पाता ह आलोचक एक िविश

पाठक होता ह रमश दव न अपन एक लख म िलखा ह ndash ldquoएक बड़ा यापक वग ह

जो अपन क ाई तर तक क रचना का आ वादा मक िववचन करना ही

आलोचना मानता ह यह अव य ह क उसक पास आलोचना िस ात क प भिम

होती ह और स ाितक व आलोचना क मानक या मानदड अपना कर वह रचना क

आलोचना करता ह ऐसा आलोचक कॉट ज स क तरह यह कह सकता ह क य द

नदी पर पल बनान क काम क जाच करायी जायगी तो उसक इजीिनयर को बलाया

जायगा ल कन सािह य क जाच करन क िलए उसक रचनाकार क बजाय आलोचक

को रचना स पी जायगी जहा आलोचना एक सीमा बन गई ह रचना क जाच क

तीन आधार य नह हो सकत ndash एक वह पाठक जो कवल पढ़ता ह आनद लता या

ऊबता ह कत उसको आनद या ऊब ही उसका पाठ ह िजस वह िलख कर

51

नह करता ऐसा पाठक िसफ पाठक ही बना रहता ह दसरा होता ह रचनाकार

वय जो कई बार वय अपनी रचना क भद-अभद खोलता ह और रचना क कन-

कन दबाव तनाव भािषक चनौितय अ द स उस जझना पड़ा ह यह प करता

ह इसिलए किवता स ह क साथ भिमका वय िलखन क णाली बड़-बड़

रचनाकार न अपनायी ह तीसरा ह श आलोचक जो रचना क ित अन य क

बजाय अ य भाव स कट होता ह rdquo16 रचनाकार िवषय सगठन क िलए सवथा

वत होता ह वह कसी भी िवषय का चयन कसी भी ि थित म कर सकता ह पर

आलोचक क िलए यह वत ता नह ह य क वह कसी िनि त रचनाकार क

रचना क िवषय पर ही स यक िवचार कट कर सकता ह इसक आग उस छट नह

ह आलोचक उस रचना क तठ थ होकर रचना क शि और सीमा का उ ाटन

करता ह वह रचना क ित अपना दािय व िनभाता ह अपन इस दािय व को

िनभात ए आलोचक रचना क उपयोिगता एव ासिगकता पर भी जोड़ दता ह

िशवदान सह चौहान न प िलखा ह ndash ldquoसािह य का हर पाठक एक कार स

आलोचक होता ह वह कसी कहानी या किवता को पढ़त ही तरत अपना मत कट

कर दता ह क वह अ छी ह बरी ह या असदर ह आलोचक हम उस ही कहत ह

िजसम अपनी ि गत ित या को व तपरक िनणय क साथ समि वत करन क

मता हो और जो रचना क िववचन ारा अपन अनभव-समि वत िनणय को प

अिभ ि दकर साधारण पाठक क दि को भी ि गत ित या क तल स

उठाकर ापक और व तपरक बना सक ता क व रचना स उन सार चतना-िवकासी

म य को ा कर सक जो उसम िनिहत हrdquo17 िनप आलोचना स रचना का

िवकास तो होता ही ह साथ ही साथ रचनाकार क ि व का भी ितफलन होता

ह तथा उसक िवचार एव भाव स समाज का त यदशन भी होता ह यह आलोचना

करन क उपरत ही पता चलता ह क कित या कितकार समाज क िलए कतना

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उपयोगी ह इस िवषय पर दवीशकर अव थी न अपन एक लख lsquoरचना और

आलोचकrsquo म प िलखा ह ndash ldquoम कहना चा गा क समी ा कित और कितकार क

िलए उपयोगी ह सामा य पाठक क िलए उपयोगी ह एव ान क एक िविश शाखा

क प म अपन-आप म भी उपयोगी ह उसक इस प म अपनी वत स ा भी ह

परत इन सभी उपयोिगता क मल म आधारभत या उपजी साम ी वह रचना

िवशष ही होती ह rdquo18

आलोचना क उपयोिगता-अनपयोिगता क िवषय पर चचा करन क िलए कछ

ऐस बद पर िवचार करना आव यक ह िजसस आलोचना क अिनवायता को

प कया जा सक-

आलोचना मर जान पर भी सािह य जदा रहगा- यह एक क पना ह इसस

एक बात यह प होता ह क आलोचना या सािह य जीिवत व त ह इसम वह

चतना ह जो जीव ाणी म होता ह यह चतना य ह य क सािह य म

सािह यकार क सपण चतना क अिभ ि होती ह तब य द हम क पना भी कर

ल क आलोचना मर जायगी तो इसका सीधा अथ यही होगा क जनता क समाज

क एव सािह यकार क चतना मर जायगी इस मर ए समाज म सजना मक क

या कस कार चल पायगी अथात सजना मक पर भी उठ खड़ा होगा

सािह य म राजनीितक सामािजक धा मक आ थक सा कितक एव सािहि यक

सपण ि थितय का वणन कया जाता ह तथा इन सभी प रि थितय का अवलोकन

आलोचना क मा यम स ही सभव ह य द आलोचना ही न हो तब उन प रि थितय

का सही आकलन कस होगा सािह य म सािह यकार क भावना िवचार एव

क पना क अिभ ि कभी शोक क होती ह कभी हष क होती ह तथा कभी वह

सावभौिमकता क िलए होती ह जब हम उसक सपण ि थित क जनकारी लना

53

चाहत ह तब हम आलोचना क आव यकता पड़ती ह कहन का ता पय यह ह क

य द सािह य को जीिवत रखना ह तब आलोचना क मर जान क क पना अधरी ह

ाचीन काल स आलोचना होती रही ह उस समय आलोचक और रचनाकार

सवथा िभ आ करत थ धीर-धीर यह दरी आधिनक काल तक आत-आत ख म सा

हो गया ह आलोचना आज ग क अनक कार क िवधा म स एक ह पहल यह

माना जाता था क जो आलोचना करत ह व रचना नह कर सकत आज बौि क

जीवन म यह माग क जा रही ह क रचनाकार ही आलोचना कर

का का आ वादन आलोचना स न घटता ह न बढ़ता ह ndash यह बात तो

सतही तर पर स य लगती ह पर इसक मम को हम उधड़ कर दख तो आलोचना

सािह य क िलए अिनवाय ह यह कहना न होगा क हर पाठक क समझ सोच एव

भाव क गहराई तक प चना आसान नह ह िजस मम को सामा य पाठक नह

समझ पात उस जगह तक प चन का काय आलोचक करता ह िशवदान सह

चौहान का मानना ह ndash ldquo कसी कित को पढ़कर उस पर जो भाव पड़ता ह कसी

अ य पाठक परपड़ा भाव सवथा वसा ही नह हो सकता आलोचक भी एक ऐसा

ही िविश पाठक ह- इसिलए उसक आलोचना उस पर पड़ िविश भाव को ही

कर सकती ह ऐसी ि थित म इन िविभ अनभितय कितय भाव म कोई

सामा य त व हो ही या सकता ह िजसका षण या म याकन कया जाए rdquo19 यह

ठीक ह क आलोचना स रचना क आ वाद म अतर नह होता पर िजसक ारा

आ वादन कया जाता ह वह कतना व थ ह कतना तद त ह इस पर भी यान

क आव यकता ह जीभ पर कसी व त को रखन पर उस व त का वाद न घटता

ह न बढ़ता ह नाक क पास सगध बदल नह जाती िजतनी जीभ या नाक व थ

होगी उतना ही वाद पण प स िलया जा सकता ह जहा तक रचना का सवाल

ह तो जीभ और नाक का काय आलोचक करता ह आलोचक मलत एक िवशष

54

कार का पाठक होता ह हाला क पाठक ही आलोचक होता ह फर भी पाठक और

आलोचक म ताि वक फक ह पाठन क ज रय आलोचक उसक छप ए रह य को भी

खोल कर समाज क सामन प कर दता ह आचाय कसरी कमार न भी आलोचक

को पाठक मानत ह पर आलोचक और पाठक म अतर प कया ह उनका मानना

ह ndash ldquoसामा य पाठक और आलोचक क आ वादन म कछ वसा फक ह जसा द तावज

पर अगठ क छाप लगाना और पढ़कर द तावज करन का ह rdquo20 प प स आचाय

कसरी कमार न पाठक को ही आलोचक मानत ह पर उनका पाठक सामा य पाठक

नह ह एक िवशष कार का पाठक होता ह और चौहानजी न भी िविश पाठक को

ही आलोचक मानत ह

सािह य का आ वादन वयि क तर पर होता ह आलोचक सािह य का

रसा वादन वयि क तर पर ही हण करता ह आलोचक एक सिनि त मानदड

थािपत करना चाहता ह य द कसी िवचार-धारा या वाद स भािवत होकर

मानदड थािपत करता ह तब वह मानदड असमीचीन हो जाता ह आलोचक य द

पवा ह स भािवत वाद क आधार पर अपना मानदड थािपत करता ह तब वह

उस कित का सा यक म याकन नह कर पायगा डॉ िव नाथ साद न इस त य

को प करत ए िलखा ह ndash ldquoउ क आलोचना पवा ह स बचकर चलती ह और

ऐसा तभी सभव ह जब आलोचक का एक पाव अपन यग म तथा एक पाव लखक क

यग म हो अथवा उसक एक आख रस सवदना पर हो तथा दसरी आख लखक क

भाव-िनवदन पर इसस आलोचना क म ामक म याकन क सभावना नह

रहती rdquo21 आलोचना क िलए एक मानदड या फामला क थापना कर उस पर

आलोचना करना ब त क ठन काय ह आलोचना का कोई मानदड तभी सराहनीय

ह जब तक वह कसी िवचारधारा एव वाद स कोई सबध नह रखता

55

पहल सािह य आ तब आलोचना िशवदान सह चौहान न प िलखा ह

क ndash ldquoसािह य स ही आलोचना ह आलोचना स सािह य नह ह rdquo22 इस िवषय पर

चौहानजी न आपना मह वपण िवचार कट कया ह कहन का ता पय यह ह क

वद बड़ा क लबद कद बड़ा क पद या यह भी उठ सकता ह क पहल मग ई

क अड़ा पहल बीज आ क पड़ यह िवचरणीय नह ह यह अपन-अपन

अनभव क बात ह इस कार उ का िहसाब सािह य और आलोचना पर करना

उिचत नह िजस कार मन य क अिनवायता क िलए सािह य िलखा गया उसी

अिनवायता क िलए ही आलोचना उ म सािह य बड़ी ह क आलोचना यह

िववादा पद ह यह भी हम कह सकत ह क सािह यकार बड़ा ह क सािह य

या आलोचक बड़ा ह क आलोचना सि बड़ी ह क सि क ा य ब त उपय

नह ह इस कार सािह य और आलोचना अपनी-अपनी अिनवायता क िलए

अपनी-अपनी जगह पर बड़ी ह

िन कष- आलोचक सािह य सािह यकार और समाज क ित ितब होता

ह आलोचना गण-दोष िववचन सराहना-भ सना और प तक समी ा नह ह वह

सजन और चतन क भी िवधा ह वह जो ग रची जाती ह उस कथा-कहानी स

तौला नह जा सकता ह वह कित और कितकार क अित र सदव एक तीसरी

शि क खोज करती ह कहानी किवता नाटक उप यास या ग क अ य िवधा

म एक आलोचक को कित क साथ तीन तर खोलन होत ह पहला िजस िवधा म

कित ह उस िवधा क त व उस कित का मानक माप-दड या ह दसरी कित क शली

एव स दय िववचन और िव यास कस कार आ ह और तीसरा प ह उसक

आत रक चतना उसका मम उसम िनिहत सवदना िवचार और क पनाशीलता जो

कित का ि व रचती ह इन तीन त व क आधार पर जब आलोचक कितगत

आलोचना करता ह तब कित क िलए आलोचना अिनवाय हो जाता ह

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आलोचना एक सजन या ह

सािह य और आलोचना का सबध अ यो या ीत ह जो सािह य क रचना

या ह वही आलोचना का फक मा इतना ह क सािह य का ल य समाज

होता ह और आलोचना का ल य रचना िशवदान सह चौहान न इस बात को प

करत ए कहत ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर स

िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार ह इसिलए इस आप शा ीय वग करण क तरह अिमट और अल य न

मान ल rdquo23 अत रचना क सजन या को जान िबना आलोचना क सजन या

को अ छी तरह समझी नह जा सकती ह

सािह य वह व त ह िजसम मनोभावा मक क पना मक बौि क तथा

रचना मक त व का समावश होता ह सािह य सजन क या क अतगत

क पना बि भाव तथा शली का होना अिनवाय ह यह उठता ह क

सािह यकार क मल रणा या होती ह िजसक कारण सािह यकार को इन त व

का सहारा लना पड़ता ह सीध स हम कह सकत ह क वह समाज म घटी घटना

क अनभित ह अनभित हम घटना क प ा य करत ह तथा अनभित रचना स पव

हमार दय म कट होती ह जस िबना दख क सख का अनभव नह होता ठीक

उसी कार िबना सख-दख स रचना दोन का िम ण ही का ह हदी क िस

आलोचक आचाय नददलार वाजपयी न lsquoसािह य का योजन आ मानभितrsquo म

िलखा ह ndash ldquoका क रणा अनभित स िमलती ह यह वत एक अनभित त य ह

गो वामी तलसीदास न रामच रतमानस का िनमाण करत समय िलखा था ndash

57

lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

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मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

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रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

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दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

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सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

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(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

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ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

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िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

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स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

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45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

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स कित क वातावरण म उनका वत माजन और स कार होता जाता ह और व

ापक मानवीय म य को हण करक उदार शालीन और साि वक बनती जाती ह ल कन सक ण और अनदार िस ात या िवचारधाराए उ ह िन ाण और जड़ बना

दती ह-उनक चौखट म जड़ीभत हो गई िचया ही पवा ह कहलाती ह अत

पवा ह ही समी ा- तर क आलोचना म म याकन क कसौटी बना हो तो पहल उनको तोड़ बगर स ाितक- तर क थापनाए व मान अराजकता को दर करन म

कहा तक सहायक हो सकगी यह स द ध ह rdquo9 िन प एव व तिन आलोचना ही

सािह यकार क िलए रणा दायक होती ह और वह मानवीय म य का उ ाटन करती ह ऐसी ही आलोचना सािह य और सािह यकार म ाण डालती ह और वही आलोचना िचरजीवी होती ह परत ऐसा ब त कम दखा जाता ह डॉ िव नाथ

साद का मानना हndash ldquoव त और म याकन क या यह ह क पहल व त क स ा

ह और बाद म उसक म याकन का काय वणन व य व त का होता ह अत

आलोचना रचना का अनसरण कर यही उिचत ह परत ऐसा हो नह पाता ह ाय

आलोचक अपनी पवा जत धारणा क िनकष पर रचना का म यकन करता ह इसस रचना का कत िवधान उलट जाता ह यह िनषधमलक वहार आलोचना-

क सवािधक उ लखनीय िवसगित हrdquo10 अत आलोचना व त साप होनी

चािहए

िन कषत कहा जा सकता ह क आलोचना कसी कित क ता एव उसक

म य िनधारण का मा यम ह आलोचना सािह य स जीिवत ह सािह य आलोचना

स नह आलोचना का काय कित को सही थान दलाना ह सािह य च क सम

मानव जीवन को ित बिबत करता ह इसिलए उसम जीवन क िविभ तरीय

म य का सघष भी होता ह इसक सही िन कष तक प चन क िलए आलोचक को

ापक दि एव उदार भावना का होना अ यत आव यक ह आलोचना क मान पर

शा ीय मतमतातर म न फसकर ऐस म य पर दि पात कर सकत ह जो एक ओर

पाठक क सािह य बोध म सहायक हो और दसरी ओर रचनाकार को व थ दशा द

सक

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(ग) आलोचना का सामािजक सदभ

lsquoसािह यrsquo सहका रता का तीक ह यह जनता क जीवन क सख-दख हष-

िवषाद आ द क तान बान स बना होता ह सािह य जीवन क ा या होता ह

सािह य क क म मानव होता ह मानव क अनभितय भावना िवचार और

कला का साकार प ही सािह य ह सािह य का रसा वादन पाठक करता ह

स दय पाठक ही आलोचक होता ह आलोचक समाज क अ य ि य स िभ

और अिधक सवदनशील होता ह आलोचक का सीधा सबध सािह य स होता ह और

सािह य का समाज स अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना उिचत होगा

िशवदान सह चौहान का सािह य और सािह यालोचना सबधी िवचार अ यत

नवीन ह उ ह न हदी क ाचीन किवय और नए किवय म भद करत ए िलखा

हndash ldquoपहल किव आ करत थ कत अब नए किव पदा हो गय ह जो किवता न िलख

कर नई किवता िलखत ह िजसका अथ ह क व अपनी किवता म लय और छद क

बधन क तो बात दर कसी भी कार क बधन बदा त नह करत उनक नई

किवता म रस और स दय क खोज थ ह उसम कसी भी प िवचार सामािजक

योजन ापक मानवीय म य आ द क माग करत ही व िबगड़ उठत ह य क व

समझत ह क ऐसा करना उनक ि गत वत ता पर हार ह व कसी

सामािजक दािय व को भी नह मानना चाहत rdquo11 ऐसी ि थित म आलोचक को

सामािजक सदभ म दखना अ यत क ठन हो जाता ह य क बात दािय व क नह

क का ह सािह यकार य द अपन क का पालन नह करता तब आलोचक

अपन दािय व का िनवाह कस कर सकता ह

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आलोचक तट थ होकर सािह य का म यकन करता ह आलोचक को

सािह य सािह यकार और समाज क ित आपन दािय व का पालन करना पड़ता ह

वह कसी भी कित को सामािजक सदभ म दखना चाहता ह कोई कतना भी बड़ा

आलोचक य न हो वह कसी बरी रचना को उ क नह बना सकता ह अत

आलोचक क िलए सामािजकता का िनवाह अित आव यक ह िशवदान सह चौहान

इस बात को इस कार िलखत ह ndash ldquoआलोचक सािह य-जगत का भा य-िवधाता भी

नह ह जो चाह तो खल हाथ अमर व बाट सकता हो कसी आलोचक म यह

शि नह क वह बरी रचना को अपनी म शसा स अमर व दला सक या अपन

कठोर वाक हार स कसी महान रचना को अमर होन स रोक सक इसिलए लखक

य द महान कित व क िबना ही महानता और अमर व पान क मह वका ा पर थोड़ा

सा सयम रखकर आलोचक को अपन दािय व का पालन करन का अवसर द तो

सभव ह क आलोचना क म वसी अराजकता न रह जसी क आज दखाई दती

ह rdquo12 समाज कित और लखक म सबध उसका वा तिवक ान और स कितय क

पठन क रण जगाना आलोचक का वधम ह आलोचक को िवषय का िव तत ान

होना चािहए स दयता क साथ कित और कितकार का िन प िववचन करना

आलोचक का समािजक दािय व ह

आलोचना रचना क होती ह और रचना सामािजक सपि ह रचनाकार अपनी अनभित िवचार एव जीवन दि को एका कर कित म अिभ करता ह आलोचक और रचनाकार दोन अ यो याि त ह कोई कित समाज क िलए कतना उपयोगी ह वह स दय पाठक ही बता सकता ह सािह य म हर समय नई-नई िवचार एव वि या आती रहती ह उसक सामािजकता का अ ययन आलोचक ही करता ह रमश दव क श द म ndash ldquoसजक और सजन य द कसी आलोचक क बौि क

और स कार मानस म स मानीय नह ह तो उसका आलोचना कम बकार ह उस कसी भी रचना पर िवचार एव िववचन का आिधकार नह ह कसी भी सजन क

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पहली शत यह ह क वह कसी भी िवधा म हो और िजस हदी क अिधकाश लोग भल ही िन दा क तरह मान लत ह ल कन उसम मन य क शील का िनवाह आव यक ह कोई आलोचना कसी भी सजक या सजन क वस क िलए नह होती बि क एक सजक को मोहम कर अिधक खर और गभीर होकर सजन क िलए उकसाती भी ह य द आलोचना-कम सजक ह ता कम होता कसी ितब ता स उपजा ितशोधा मक िन दा आ यान होगा तो फर उस आलोचना कहा ही नह जा

सकता rdquo13 आलोचक सािह य को समाज क प र य म रखत ए तठ थ और

व तिन म याकन तत करता ह य क समाज म िवचार क ारा काय

सपा दत होत ह सािह य िवचार का समह होता ह अत सािह य म

िवचार क ग शि सि होकर समाज का नत व करती ह उस भाव एव िवचार को सवसधारण आलोचक ही करता ह समाज स सािह यकार सजन क

रणा एव समा ी ा करता ह तथा वह समाज ारा भािवत होता रहता ह इसी कार समाज पर सािह य का िजतना ापक एव गहरा भाव पड़ता ह उतना अ य कसी साधन का नह पड़ता व तत सािह य समाज स उ प होता ह और

फर समाज को भािवत करता ह इस कार सािह यकार समाज स भािवत होता ह तथा वह समाज को भािवत करता ह आलोचक इस भाव का दशा और दशा

िनधारण करता ह अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना अित अिनवाय ह

िन कष प म कहा जा सकता ह क आलोचना को सामािजक दािय व

िनभाना पड़ता ह धम और दशन क अधोगित क इस यग म सािह य और

आलोचना पर एक अित र िज मदारी अिनवायत आ पड़ी ह सािह य म

पनरिचत जीवन क पदन को मानवता क अत माण क यगीन िवचार वाह क

भर-पर प र य म दखन-परखन क ज रत ह अत आलोचना अपन वधम स ही

अत ववश ह उस र थान क प त करन और समाज को िशि त करन का वह

सा कितक कम अपन हाथ म लन क िलए िववश ह

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(घ) आलोचना क अिनवायता

िशवदान सह चौहान न आलोचना क उपयोिगता और अिनवायता पर नतन

दि कोण आपनाया ह उ ह न सािह य क िलए आलोचना को अिनवाय माना ह

नरश ारा lsquoनव िबहारrsquo क एक अक म उठाया गया ndash या आलोचना अिनवाय

ह इस पर िविव िवचारक न अपना-अपना मत कट कया ह िशवदान सह

चौहान न अपनी गहरी सोच िवल ण ितभा क ारा तत िवषय पर नई सोच

एव िवचार कट कया ह इनका मानना ह क आलोचना रचना क िलए अिनवाय

ह आलोचना क अिनवायता पर िवचार करत ह और जब यह उठता ह क या

आलोचना अिनवाय ह तब अनयास ित उठता ह ndash या रचना अिनवाय ह

या पढ़ना ही अिनवाय ह िशवदान सह चौहान का मानना ह ndash ldquoरचनाकार क

ितभा- मता क तरह आलोचक क ितभा- मता का उठाना भी असगत

नह ह िजस तरह हर लखक रचनाकार नह बन सकता उसी तरह समी क

आलोचक नह बन सकताrdquo14 इस कार िशवदान सह चौहान न नए-नए

को उठाकर इस सदभ म नई आलोचना क ह इसी क मा यम स इस िवषय पर

िवचार-िवमश करना तथा िशवदान सह चौहान क आलोचना दि को दखना

समीचीन होगा

बौि क चतन मनन और अ ययन क दौरान कित क रह य को जानन क

इ छा बढ़ जाती ह यही कारण ह क कसी ि व त थान घटना एव रचना

क ित िवचारशील ि िज ासा क दि स दखन लगता ह वा तिवकता जानन

करन क िलए जब ि अपन मन म उस ि व त थान घटना या रचना क

ित िवचार-िवमश करन लगता ह तभी उसक मन म आलोचना का उदय होता ह

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ि सोचन और न सोचन म वत होता ह ठीक इसी कार रचनाकार रचना

करन और न करन म वत होता ह पाठक पढ़न और न पढ़न म वत ह और

आलोचक आलोचना करन और न करन म वत ह तब यह िनि त ह क

रचनाकार पाठक और आलोचक वत ता क िलए नह दािय व क िलए जीत ह यह

दािय व अपन-आप क ित रचना क ित रचनाकार क ित समाज क ित रा

क ित तथा िव क ित होता ह अथात दािय व क तर पर आलोचक रचनाकार

तथा पाठक म कोई िवशष अतर नह होता ह िशवदान सह चौहान एक समथ

आलोचक को समथ रचनाकार और समथ रचनाकार को समथ आलोचक मानत ह

उनका प कहना ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर

स िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार हrdquo15 आग चौहान जी न आलोचक क आलोचना करत ए आलोचक क

कई िणया बतात ह जस- सािह य क अनक िवधा पर िलखी आलोचना

अ यापक य आलोचना प -पि का म ित मास नई प तक क र प तक

क सपादक य क प म िलखी गयी आलोचना आ द आलोचक क दािय व का

कवल उनक िलए ही उठता ह जो इन दोन िणय स िभ णी क आलोचक ह

आलोचक का सबध सािह य स होता ह न क िव ान स य द हम व ािनक

श दावली म पानी को H2O कहत ह तो वह ससार म एक ही नाम स (H2O) जाना

जाता ह परत सािह य म lsquoपानीrsquo श द का योग एक जसा नह होता वह कह नीर

कह जल कह मघ कह वि कह चमक कह व-पदाथ कह मान- ित ा या

यश बन जाता ह इस कार पानी का अनक अथ होन क कारण उिचत अथ बोध क

िलए आलोचना अिनवाय ह कहन का ता पय यह ह क आलोचना का सबध

सािह य स ह न क िव ान स कला क आलोचना को िव ान भी मान सकत ह

आलोचना सािह य क िलए कतना अिनवाय ह यह िवचरणीय ह

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कोई भी सािह यक िवधा कसी एक ि क अपनी सपि नह होती वह

चाह उसक ारा ही िलखी गयी य न हो पर वह उस भाषा क सम त ि य क

िलए हो जाती ह जो उस भाषा क जनकार ह रचनाकार रचना को वत प स

रचता ह फर भी उस सामािजक दािय व एव या का भी यान रखना पड़ता ह

कोई भी रचनाकार अपनी रचना क मा यम स त कालीन प रि थित एव सा कितक

या को बचाय रखन क िलए रचना क सि करता ह एक कार स पाठक ही

आलोचक होता ह lsquoरचनाrsquo क िलए रचनाकार पाठक और आलोचक य तीन

अिनवाय अग ह य द रचना ह तो पाठक ह ग और पाठक ह तो आलोचना अव य

ह गी य द पाठक नह ह तब रचना कसी काम क नह कारण रचनाकार रचना

को अपन िलए नह िलखता इस कार रचना क िलए रक और कारण दोन

पाठक ही होत ह जो भी हो रचनाकार पाठक तथा आलोचक तीन एक-दसर क

आिनवाय अग होत ए भी अलग- अलग वत अि त व रखत ह इसी कारण

रचनाकार वत प स वात सख आ मानद पाता ह आलोचक एक िविश

पाठक होता ह रमश दव न अपन एक लख म िलखा ह ndash ldquoएक बड़ा यापक वग ह

जो अपन क ाई तर तक क रचना का आ वादा मक िववचन करना ही

आलोचना मानता ह यह अव य ह क उसक पास आलोचना िस ात क प भिम

होती ह और स ाितक व आलोचना क मानक या मानदड अपना कर वह रचना क

आलोचना करता ह ऐसा आलोचक कॉट ज स क तरह यह कह सकता ह क य द

नदी पर पल बनान क काम क जाच करायी जायगी तो उसक इजीिनयर को बलाया

जायगा ल कन सािह य क जाच करन क िलए उसक रचनाकार क बजाय आलोचक

को रचना स पी जायगी जहा आलोचना एक सीमा बन गई ह रचना क जाच क

तीन आधार य नह हो सकत ndash एक वह पाठक जो कवल पढ़ता ह आनद लता या

ऊबता ह कत उसको आनद या ऊब ही उसका पाठ ह िजस वह िलख कर

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नह करता ऐसा पाठक िसफ पाठक ही बना रहता ह दसरा होता ह रचनाकार

वय जो कई बार वय अपनी रचना क भद-अभद खोलता ह और रचना क कन-

कन दबाव तनाव भािषक चनौितय अ द स उस जझना पड़ा ह यह प करता

ह इसिलए किवता स ह क साथ भिमका वय िलखन क णाली बड़-बड़

रचनाकार न अपनायी ह तीसरा ह श आलोचक जो रचना क ित अन य क

बजाय अ य भाव स कट होता ह rdquo16 रचनाकार िवषय सगठन क िलए सवथा

वत होता ह वह कसी भी िवषय का चयन कसी भी ि थित म कर सकता ह पर

आलोचक क िलए यह वत ता नह ह य क वह कसी िनि त रचनाकार क

रचना क िवषय पर ही स यक िवचार कट कर सकता ह इसक आग उस छट नह

ह आलोचक उस रचना क तठ थ होकर रचना क शि और सीमा का उ ाटन

करता ह वह रचना क ित अपना दािय व िनभाता ह अपन इस दािय व को

िनभात ए आलोचक रचना क उपयोिगता एव ासिगकता पर भी जोड़ दता ह

िशवदान सह चौहान न प िलखा ह ndash ldquoसािह य का हर पाठक एक कार स

आलोचक होता ह वह कसी कहानी या किवता को पढ़त ही तरत अपना मत कट

कर दता ह क वह अ छी ह बरी ह या असदर ह आलोचक हम उस ही कहत ह

िजसम अपनी ि गत ित या को व तपरक िनणय क साथ समि वत करन क

मता हो और जो रचना क िववचन ारा अपन अनभव-समि वत िनणय को प

अिभ ि दकर साधारण पाठक क दि को भी ि गत ित या क तल स

उठाकर ापक और व तपरक बना सक ता क व रचना स उन सार चतना-िवकासी

म य को ा कर सक जो उसम िनिहत हrdquo17 िनप आलोचना स रचना का

िवकास तो होता ही ह साथ ही साथ रचनाकार क ि व का भी ितफलन होता

ह तथा उसक िवचार एव भाव स समाज का त यदशन भी होता ह यह आलोचना

करन क उपरत ही पता चलता ह क कित या कितकार समाज क िलए कतना

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उपयोगी ह इस िवषय पर दवीशकर अव थी न अपन एक लख lsquoरचना और

आलोचकrsquo म प िलखा ह ndash ldquoम कहना चा गा क समी ा कित और कितकार क

िलए उपयोगी ह सामा य पाठक क िलए उपयोगी ह एव ान क एक िविश शाखा

क प म अपन-आप म भी उपयोगी ह उसक इस प म अपनी वत स ा भी ह

परत इन सभी उपयोिगता क मल म आधारभत या उपजी साम ी वह रचना

िवशष ही होती ह rdquo18

आलोचना क उपयोिगता-अनपयोिगता क िवषय पर चचा करन क िलए कछ

ऐस बद पर िवचार करना आव यक ह िजसस आलोचना क अिनवायता को

प कया जा सक-

आलोचना मर जान पर भी सािह य जदा रहगा- यह एक क पना ह इसस

एक बात यह प होता ह क आलोचना या सािह य जीिवत व त ह इसम वह

चतना ह जो जीव ाणी म होता ह यह चतना य ह य क सािह य म

सािह यकार क सपण चतना क अिभ ि होती ह तब य द हम क पना भी कर

ल क आलोचना मर जायगी तो इसका सीधा अथ यही होगा क जनता क समाज

क एव सािह यकार क चतना मर जायगी इस मर ए समाज म सजना मक क

या कस कार चल पायगी अथात सजना मक पर भी उठ खड़ा होगा

सािह य म राजनीितक सामािजक धा मक आ थक सा कितक एव सािहि यक

सपण ि थितय का वणन कया जाता ह तथा इन सभी प रि थितय का अवलोकन

आलोचना क मा यम स ही सभव ह य द आलोचना ही न हो तब उन प रि थितय

का सही आकलन कस होगा सािह य म सािह यकार क भावना िवचार एव

क पना क अिभ ि कभी शोक क होती ह कभी हष क होती ह तथा कभी वह

सावभौिमकता क िलए होती ह जब हम उसक सपण ि थित क जनकारी लना

53

चाहत ह तब हम आलोचना क आव यकता पड़ती ह कहन का ता पय यह ह क

य द सािह य को जीिवत रखना ह तब आलोचना क मर जान क क पना अधरी ह

ाचीन काल स आलोचना होती रही ह उस समय आलोचक और रचनाकार

सवथा िभ आ करत थ धीर-धीर यह दरी आधिनक काल तक आत-आत ख म सा

हो गया ह आलोचना आज ग क अनक कार क िवधा म स एक ह पहल यह

माना जाता था क जो आलोचना करत ह व रचना नह कर सकत आज बौि क

जीवन म यह माग क जा रही ह क रचनाकार ही आलोचना कर

का का आ वादन आलोचना स न घटता ह न बढ़ता ह ndash यह बात तो

सतही तर पर स य लगती ह पर इसक मम को हम उधड़ कर दख तो आलोचना

सािह य क िलए अिनवाय ह यह कहना न होगा क हर पाठक क समझ सोच एव

भाव क गहराई तक प चना आसान नह ह िजस मम को सामा य पाठक नह

समझ पात उस जगह तक प चन का काय आलोचक करता ह िशवदान सह

चौहान का मानना ह ndash ldquo कसी कित को पढ़कर उस पर जो भाव पड़ता ह कसी

अ य पाठक परपड़ा भाव सवथा वसा ही नह हो सकता आलोचक भी एक ऐसा

ही िविश पाठक ह- इसिलए उसक आलोचना उस पर पड़ िविश भाव को ही

कर सकती ह ऐसी ि थित म इन िविभ अनभितय कितय भाव म कोई

सामा य त व हो ही या सकता ह िजसका षण या म याकन कया जाए rdquo19 यह

ठीक ह क आलोचना स रचना क आ वाद म अतर नह होता पर िजसक ारा

आ वादन कया जाता ह वह कतना व थ ह कतना तद त ह इस पर भी यान

क आव यकता ह जीभ पर कसी व त को रखन पर उस व त का वाद न घटता

ह न बढ़ता ह नाक क पास सगध बदल नह जाती िजतनी जीभ या नाक व थ

होगी उतना ही वाद पण प स िलया जा सकता ह जहा तक रचना का सवाल

ह तो जीभ और नाक का काय आलोचक करता ह आलोचक मलत एक िवशष

54

कार का पाठक होता ह हाला क पाठक ही आलोचक होता ह फर भी पाठक और

आलोचक म ताि वक फक ह पाठन क ज रय आलोचक उसक छप ए रह य को भी

खोल कर समाज क सामन प कर दता ह आचाय कसरी कमार न भी आलोचक

को पाठक मानत ह पर आलोचक और पाठक म अतर प कया ह उनका मानना

ह ndash ldquoसामा य पाठक और आलोचक क आ वादन म कछ वसा फक ह जसा द तावज

पर अगठ क छाप लगाना और पढ़कर द तावज करन का ह rdquo20 प प स आचाय

कसरी कमार न पाठक को ही आलोचक मानत ह पर उनका पाठक सामा य पाठक

नह ह एक िवशष कार का पाठक होता ह और चौहानजी न भी िविश पाठक को

ही आलोचक मानत ह

सािह य का आ वादन वयि क तर पर होता ह आलोचक सािह य का

रसा वादन वयि क तर पर ही हण करता ह आलोचक एक सिनि त मानदड

थािपत करना चाहता ह य द कसी िवचार-धारा या वाद स भािवत होकर

मानदड थािपत करता ह तब वह मानदड असमीचीन हो जाता ह आलोचक य द

पवा ह स भािवत वाद क आधार पर अपना मानदड थािपत करता ह तब वह

उस कित का सा यक म याकन नह कर पायगा डॉ िव नाथ साद न इस त य

को प करत ए िलखा ह ndash ldquoउ क आलोचना पवा ह स बचकर चलती ह और

ऐसा तभी सभव ह जब आलोचक का एक पाव अपन यग म तथा एक पाव लखक क

यग म हो अथवा उसक एक आख रस सवदना पर हो तथा दसरी आख लखक क

भाव-िनवदन पर इसस आलोचना क म ामक म याकन क सभावना नह

रहती rdquo21 आलोचना क िलए एक मानदड या फामला क थापना कर उस पर

आलोचना करना ब त क ठन काय ह आलोचना का कोई मानदड तभी सराहनीय

ह जब तक वह कसी िवचारधारा एव वाद स कोई सबध नह रखता

55

पहल सािह य आ तब आलोचना िशवदान सह चौहान न प िलखा ह

क ndash ldquoसािह य स ही आलोचना ह आलोचना स सािह य नह ह rdquo22 इस िवषय पर

चौहानजी न आपना मह वपण िवचार कट कया ह कहन का ता पय यह ह क

वद बड़ा क लबद कद बड़ा क पद या यह भी उठ सकता ह क पहल मग ई

क अड़ा पहल बीज आ क पड़ यह िवचरणीय नह ह यह अपन-अपन

अनभव क बात ह इस कार उ का िहसाब सािह य और आलोचना पर करना

उिचत नह िजस कार मन य क अिनवायता क िलए सािह य िलखा गया उसी

अिनवायता क िलए ही आलोचना उ म सािह य बड़ी ह क आलोचना यह

िववादा पद ह यह भी हम कह सकत ह क सािह यकार बड़ा ह क सािह य

या आलोचक बड़ा ह क आलोचना सि बड़ी ह क सि क ा य ब त उपय

नह ह इस कार सािह य और आलोचना अपनी-अपनी अिनवायता क िलए

अपनी-अपनी जगह पर बड़ी ह

िन कष- आलोचक सािह य सािह यकार और समाज क ित ितब होता

ह आलोचना गण-दोष िववचन सराहना-भ सना और प तक समी ा नह ह वह

सजन और चतन क भी िवधा ह वह जो ग रची जाती ह उस कथा-कहानी स

तौला नह जा सकता ह वह कित और कितकार क अित र सदव एक तीसरी

शि क खोज करती ह कहानी किवता नाटक उप यास या ग क अ य िवधा

म एक आलोचक को कित क साथ तीन तर खोलन होत ह पहला िजस िवधा म

कित ह उस िवधा क त व उस कित का मानक माप-दड या ह दसरी कित क शली

एव स दय िववचन और िव यास कस कार आ ह और तीसरा प ह उसक

आत रक चतना उसका मम उसम िनिहत सवदना िवचार और क पनाशीलता जो

कित का ि व रचती ह इन तीन त व क आधार पर जब आलोचक कितगत

आलोचना करता ह तब कित क िलए आलोचना अिनवाय हो जाता ह

56

आलोचना एक सजन या ह

सािह य और आलोचना का सबध अ यो या ीत ह जो सािह य क रचना

या ह वही आलोचना का फक मा इतना ह क सािह य का ल य समाज

होता ह और आलोचना का ल य रचना िशवदान सह चौहान न इस बात को प

करत ए कहत ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर स

िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार ह इसिलए इस आप शा ीय वग करण क तरह अिमट और अल य न

मान ल rdquo23 अत रचना क सजन या को जान िबना आलोचना क सजन या

को अ छी तरह समझी नह जा सकती ह

सािह य वह व त ह िजसम मनोभावा मक क पना मक बौि क तथा

रचना मक त व का समावश होता ह सािह य सजन क या क अतगत

क पना बि भाव तथा शली का होना अिनवाय ह यह उठता ह क

सािह यकार क मल रणा या होती ह िजसक कारण सािह यकार को इन त व

का सहारा लना पड़ता ह सीध स हम कह सकत ह क वह समाज म घटी घटना

क अनभित ह अनभित हम घटना क प ा य करत ह तथा अनभित रचना स पव

हमार दय म कट होती ह जस िबना दख क सख का अनभव नह होता ठीक

उसी कार िबना सख-दख स रचना दोन का िम ण ही का ह हदी क िस

आलोचक आचाय नददलार वाजपयी न lsquoसािह य का योजन आ मानभितrsquo म

िलखा ह ndash ldquoका क रणा अनभित स िमलती ह यह वत एक अनभित त य ह

गो वामी तलसीदास न रामच रतमानस का िनमाण करत समय िलखा था ndash

57

lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

58

मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

59

रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

61

सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

62

(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

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(ग) आलोचना का सामािजक सदभ

lsquoसािह यrsquo सहका रता का तीक ह यह जनता क जीवन क सख-दख हष-

िवषाद आ द क तान बान स बना होता ह सािह य जीवन क ा या होता ह

सािह य क क म मानव होता ह मानव क अनभितय भावना िवचार और

कला का साकार प ही सािह य ह सािह य का रसा वादन पाठक करता ह

स दय पाठक ही आलोचक होता ह आलोचक समाज क अ य ि य स िभ

और अिधक सवदनशील होता ह आलोचक का सीधा सबध सािह य स होता ह और

सािह य का समाज स अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना उिचत होगा

िशवदान सह चौहान का सािह य और सािह यालोचना सबधी िवचार अ यत

नवीन ह उ ह न हदी क ाचीन किवय और नए किवय म भद करत ए िलखा

हndash ldquoपहल किव आ करत थ कत अब नए किव पदा हो गय ह जो किवता न िलख

कर नई किवता िलखत ह िजसका अथ ह क व अपनी किवता म लय और छद क

बधन क तो बात दर कसी भी कार क बधन बदा त नह करत उनक नई

किवता म रस और स दय क खोज थ ह उसम कसी भी प िवचार सामािजक

योजन ापक मानवीय म य आ द क माग करत ही व िबगड़ उठत ह य क व

समझत ह क ऐसा करना उनक ि गत वत ता पर हार ह व कसी

सामािजक दािय व को भी नह मानना चाहत rdquo11 ऐसी ि थित म आलोचक को

सामािजक सदभ म दखना अ यत क ठन हो जाता ह य क बात दािय व क नह

क का ह सािह यकार य द अपन क का पालन नह करता तब आलोचक

अपन दािय व का िनवाह कस कर सकता ह

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आलोचक तट थ होकर सािह य का म यकन करता ह आलोचक को

सािह य सािह यकार और समाज क ित आपन दािय व का पालन करना पड़ता ह

वह कसी भी कित को सामािजक सदभ म दखना चाहता ह कोई कतना भी बड़ा

आलोचक य न हो वह कसी बरी रचना को उ क नह बना सकता ह अत

आलोचक क िलए सामािजकता का िनवाह अित आव यक ह िशवदान सह चौहान

इस बात को इस कार िलखत ह ndash ldquoआलोचक सािह य-जगत का भा य-िवधाता भी

नह ह जो चाह तो खल हाथ अमर व बाट सकता हो कसी आलोचक म यह

शि नह क वह बरी रचना को अपनी म शसा स अमर व दला सक या अपन

कठोर वाक हार स कसी महान रचना को अमर होन स रोक सक इसिलए लखक

य द महान कित व क िबना ही महानता और अमर व पान क मह वका ा पर थोड़ा

सा सयम रखकर आलोचक को अपन दािय व का पालन करन का अवसर द तो

सभव ह क आलोचना क म वसी अराजकता न रह जसी क आज दखाई दती

ह rdquo12 समाज कित और लखक म सबध उसका वा तिवक ान और स कितय क

पठन क रण जगाना आलोचक का वधम ह आलोचक को िवषय का िव तत ान

होना चािहए स दयता क साथ कित और कितकार का िन प िववचन करना

आलोचक का समािजक दािय व ह

आलोचना रचना क होती ह और रचना सामािजक सपि ह रचनाकार अपनी अनभित िवचार एव जीवन दि को एका कर कित म अिभ करता ह आलोचक और रचनाकार दोन अ यो याि त ह कोई कित समाज क िलए कतना उपयोगी ह वह स दय पाठक ही बता सकता ह सािह य म हर समय नई-नई िवचार एव वि या आती रहती ह उसक सामािजकता का अ ययन आलोचक ही करता ह रमश दव क श द म ndash ldquoसजक और सजन य द कसी आलोचक क बौि क

और स कार मानस म स मानीय नह ह तो उसका आलोचना कम बकार ह उस कसी भी रचना पर िवचार एव िववचन का आिधकार नह ह कसी भी सजन क

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पहली शत यह ह क वह कसी भी िवधा म हो और िजस हदी क अिधकाश लोग भल ही िन दा क तरह मान लत ह ल कन उसम मन य क शील का िनवाह आव यक ह कोई आलोचना कसी भी सजक या सजन क वस क िलए नह होती बि क एक सजक को मोहम कर अिधक खर और गभीर होकर सजन क िलए उकसाती भी ह य द आलोचना-कम सजक ह ता कम होता कसी ितब ता स उपजा ितशोधा मक िन दा आ यान होगा तो फर उस आलोचना कहा ही नह जा

सकता rdquo13 आलोचक सािह य को समाज क प र य म रखत ए तठ थ और

व तिन म याकन तत करता ह य क समाज म िवचार क ारा काय

सपा दत होत ह सािह य िवचार का समह होता ह अत सािह य म

िवचार क ग शि सि होकर समाज का नत व करती ह उस भाव एव िवचार को सवसधारण आलोचक ही करता ह समाज स सािह यकार सजन क

रणा एव समा ी ा करता ह तथा वह समाज ारा भािवत होता रहता ह इसी कार समाज पर सािह य का िजतना ापक एव गहरा भाव पड़ता ह उतना अ य कसी साधन का नह पड़ता व तत सािह य समाज स उ प होता ह और

फर समाज को भािवत करता ह इस कार सािह यकार समाज स भािवत होता ह तथा वह समाज को भािवत करता ह आलोचक इस भाव का दशा और दशा

िनधारण करता ह अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना अित अिनवाय ह

िन कष प म कहा जा सकता ह क आलोचना को सामािजक दािय व

िनभाना पड़ता ह धम और दशन क अधोगित क इस यग म सािह य और

आलोचना पर एक अित र िज मदारी अिनवायत आ पड़ी ह सािह य म

पनरिचत जीवन क पदन को मानवता क अत माण क यगीन िवचार वाह क

भर-पर प र य म दखन-परखन क ज रत ह अत आलोचना अपन वधम स ही

अत ववश ह उस र थान क प त करन और समाज को िशि त करन का वह

सा कितक कम अपन हाथ म लन क िलए िववश ह

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(घ) आलोचना क अिनवायता

िशवदान सह चौहान न आलोचना क उपयोिगता और अिनवायता पर नतन

दि कोण आपनाया ह उ ह न सािह य क िलए आलोचना को अिनवाय माना ह

नरश ारा lsquoनव िबहारrsquo क एक अक म उठाया गया ndash या आलोचना अिनवाय

ह इस पर िविव िवचारक न अपना-अपना मत कट कया ह िशवदान सह

चौहान न अपनी गहरी सोच िवल ण ितभा क ारा तत िवषय पर नई सोच

एव िवचार कट कया ह इनका मानना ह क आलोचना रचना क िलए अिनवाय

ह आलोचना क अिनवायता पर िवचार करत ह और जब यह उठता ह क या

आलोचना अिनवाय ह तब अनयास ित उठता ह ndash या रचना अिनवाय ह

या पढ़ना ही अिनवाय ह िशवदान सह चौहान का मानना ह ndash ldquoरचनाकार क

ितभा- मता क तरह आलोचक क ितभा- मता का उठाना भी असगत

नह ह िजस तरह हर लखक रचनाकार नह बन सकता उसी तरह समी क

आलोचक नह बन सकताrdquo14 इस कार िशवदान सह चौहान न नए-नए

को उठाकर इस सदभ म नई आलोचना क ह इसी क मा यम स इस िवषय पर

िवचार-िवमश करना तथा िशवदान सह चौहान क आलोचना दि को दखना

समीचीन होगा

बौि क चतन मनन और अ ययन क दौरान कित क रह य को जानन क

इ छा बढ़ जाती ह यही कारण ह क कसी ि व त थान घटना एव रचना

क ित िवचारशील ि िज ासा क दि स दखन लगता ह वा तिवकता जानन

करन क िलए जब ि अपन मन म उस ि व त थान घटना या रचना क

ित िवचार-िवमश करन लगता ह तभी उसक मन म आलोचना का उदय होता ह

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ि सोचन और न सोचन म वत होता ह ठीक इसी कार रचनाकार रचना

करन और न करन म वत होता ह पाठक पढ़न और न पढ़न म वत ह और

आलोचक आलोचना करन और न करन म वत ह तब यह िनि त ह क

रचनाकार पाठक और आलोचक वत ता क िलए नह दािय व क िलए जीत ह यह

दािय व अपन-आप क ित रचना क ित रचनाकार क ित समाज क ित रा

क ित तथा िव क ित होता ह अथात दािय व क तर पर आलोचक रचनाकार

तथा पाठक म कोई िवशष अतर नह होता ह िशवदान सह चौहान एक समथ

आलोचक को समथ रचनाकार और समथ रचनाकार को समथ आलोचक मानत ह

उनका प कहना ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर

स िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार हrdquo15 आग चौहान जी न आलोचक क आलोचना करत ए आलोचक क

कई िणया बतात ह जस- सािह य क अनक िवधा पर िलखी आलोचना

अ यापक य आलोचना प -पि का म ित मास नई प तक क र प तक

क सपादक य क प म िलखी गयी आलोचना आ द आलोचक क दािय व का

कवल उनक िलए ही उठता ह जो इन दोन िणय स िभ णी क आलोचक ह

आलोचक का सबध सािह य स होता ह न क िव ान स य द हम व ािनक

श दावली म पानी को H2O कहत ह तो वह ससार म एक ही नाम स (H2O) जाना

जाता ह परत सािह य म lsquoपानीrsquo श द का योग एक जसा नह होता वह कह नीर

कह जल कह मघ कह वि कह चमक कह व-पदाथ कह मान- ित ा या

यश बन जाता ह इस कार पानी का अनक अथ होन क कारण उिचत अथ बोध क

िलए आलोचना अिनवाय ह कहन का ता पय यह ह क आलोचना का सबध

सािह य स ह न क िव ान स कला क आलोचना को िव ान भी मान सकत ह

आलोचना सािह य क िलए कतना अिनवाय ह यह िवचरणीय ह

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कोई भी सािह यक िवधा कसी एक ि क अपनी सपि नह होती वह

चाह उसक ारा ही िलखी गयी य न हो पर वह उस भाषा क सम त ि य क

िलए हो जाती ह जो उस भाषा क जनकार ह रचनाकार रचना को वत प स

रचता ह फर भी उस सामािजक दािय व एव या का भी यान रखना पड़ता ह

कोई भी रचनाकार अपनी रचना क मा यम स त कालीन प रि थित एव सा कितक

या को बचाय रखन क िलए रचना क सि करता ह एक कार स पाठक ही

आलोचक होता ह lsquoरचनाrsquo क िलए रचनाकार पाठक और आलोचक य तीन

अिनवाय अग ह य द रचना ह तो पाठक ह ग और पाठक ह तो आलोचना अव य

ह गी य द पाठक नह ह तब रचना कसी काम क नह कारण रचनाकार रचना

को अपन िलए नह िलखता इस कार रचना क िलए रक और कारण दोन

पाठक ही होत ह जो भी हो रचनाकार पाठक तथा आलोचक तीन एक-दसर क

आिनवाय अग होत ए भी अलग- अलग वत अि त व रखत ह इसी कारण

रचनाकार वत प स वात सख आ मानद पाता ह आलोचक एक िविश

पाठक होता ह रमश दव न अपन एक लख म िलखा ह ndash ldquoएक बड़ा यापक वग ह

जो अपन क ाई तर तक क रचना का आ वादा मक िववचन करना ही

आलोचना मानता ह यह अव य ह क उसक पास आलोचना िस ात क प भिम

होती ह और स ाितक व आलोचना क मानक या मानदड अपना कर वह रचना क

आलोचना करता ह ऐसा आलोचक कॉट ज स क तरह यह कह सकता ह क य द

नदी पर पल बनान क काम क जाच करायी जायगी तो उसक इजीिनयर को बलाया

जायगा ल कन सािह य क जाच करन क िलए उसक रचनाकार क बजाय आलोचक

को रचना स पी जायगी जहा आलोचना एक सीमा बन गई ह रचना क जाच क

तीन आधार य नह हो सकत ndash एक वह पाठक जो कवल पढ़ता ह आनद लता या

ऊबता ह कत उसको आनद या ऊब ही उसका पाठ ह िजस वह िलख कर

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नह करता ऐसा पाठक िसफ पाठक ही बना रहता ह दसरा होता ह रचनाकार

वय जो कई बार वय अपनी रचना क भद-अभद खोलता ह और रचना क कन-

कन दबाव तनाव भािषक चनौितय अ द स उस जझना पड़ा ह यह प करता

ह इसिलए किवता स ह क साथ भिमका वय िलखन क णाली बड़-बड़

रचनाकार न अपनायी ह तीसरा ह श आलोचक जो रचना क ित अन य क

बजाय अ य भाव स कट होता ह rdquo16 रचनाकार िवषय सगठन क िलए सवथा

वत होता ह वह कसी भी िवषय का चयन कसी भी ि थित म कर सकता ह पर

आलोचक क िलए यह वत ता नह ह य क वह कसी िनि त रचनाकार क

रचना क िवषय पर ही स यक िवचार कट कर सकता ह इसक आग उस छट नह

ह आलोचक उस रचना क तठ थ होकर रचना क शि और सीमा का उ ाटन

करता ह वह रचना क ित अपना दािय व िनभाता ह अपन इस दािय व को

िनभात ए आलोचक रचना क उपयोिगता एव ासिगकता पर भी जोड़ दता ह

िशवदान सह चौहान न प िलखा ह ndash ldquoसािह य का हर पाठक एक कार स

आलोचक होता ह वह कसी कहानी या किवता को पढ़त ही तरत अपना मत कट

कर दता ह क वह अ छी ह बरी ह या असदर ह आलोचक हम उस ही कहत ह

िजसम अपनी ि गत ित या को व तपरक िनणय क साथ समि वत करन क

मता हो और जो रचना क िववचन ारा अपन अनभव-समि वत िनणय को प

अिभ ि दकर साधारण पाठक क दि को भी ि गत ित या क तल स

उठाकर ापक और व तपरक बना सक ता क व रचना स उन सार चतना-िवकासी

म य को ा कर सक जो उसम िनिहत हrdquo17 िनप आलोचना स रचना का

िवकास तो होता ही ह साथ ही साथ रचनाकार क ि व का भी ितफलन होता

ह तथा उसक िवचार एव भाव स समाज का त यदशन भी होता ह यह आलोचना

करन क उपरत ही पता चलता ह क कित या कितकार समाज क िलए कतना

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उपयोगी ह इस िवषय पर दवीशकर अव थी न अपन एक लख lsquoरचना और

आलोचकrsquo म प िलखा ह ndash ldquoम कहना चा गा क समी ा कित और कितकार क

िलए उपयोगी ह सामा य पाठक क िलए उपयोगी ह एव ान क एक िविश शाखा

क प म अपन-आप म भी उपयोगी ह उसक इस प म अपनी वत स ा भी ह

परत इन सभी उपयोिगता क मल म आधारभत या उपजी साम ी वह रचना

िवशष ही होती ह rdquo18

आलोचना क उपयोिगता-अनपयोिगता क िवषय पर चचा करन क िलए कछ

ऐस बद पर िवचार करना आव यक ह िजसस आलोचना क अिनवायता को

प कया जा सक-

आलोचना मर जान पर भी सािह य जदा रहगा- यह एक क पना ह इसस

एक बात यह प होता ह क आलोचना या सािह य जीिवत व त ह इसम वह

चतना ह जो जीव ाणी म होता ह यह चतना य ह य क सािह य म

सािह यकार क सपण चतना क अिभ ि होती ह तब य द हम क पना भी कर

ल क आलोचना मर जायगी तो इसका सीधा अथ यही होगा क जनता क समाज

क एव सािह यकार क चतना मर जायगी इस मर ए समाज म सजना मक क

या कस कार चल पायगी अथात सजना मक पर भी उठ खड़ा होगा

सािह य म राजनीितक सामािजक धा मक आ थक सा कितक एव सािहि यक

सपण ि थितय का वणन कया जाता ह तथा इन सभी प रि थितय का अवलोकन

आलोचना क मा यम स ही सभव ह य द आलोचना ही न हो तब उन प रि थितय

का सही आकलन कस होगा सािह य म सािह यकार क भावना िवचार एव

क पना क अिभ ि कभी शोक क होती ह कभी हष क होती ह तथा कभी वह

सावभौिमकता क िलए होती ह जब हम उसक सपण ि थित क जनकारी लना

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चाहत ह तब हम आलोचना क आव यकता पड़ती ह कहन का ता पय यह ह क

य द सािह य को जीिवत रखना ह तब आलोचना क मर जान क क पना अधरी ह

ाचीन काल स आलोचना होती रही ह उस समय आलोचक और रचनाकार

सवथा िभ आ करत थ धीर-धीर यह दरी आधिनक काल तक आत-आत ख म सा

हो गया ह आलोचना आज ग क अनक कार क िवधा म स एक ह पहल यह

माना जाता था क जो आलोचना करत ह व रचना नह कर सकत आज बौि क

जीवन म यह माग क जा रही ह क रचनाकार ही आलोचना कर

का का आ वादन आलोचना स न घटता ह न बढ़ता ह ndash यह बात तो

सतही तर पर स य लगती ह पर इसक मम को हम उधड़ कर दख तो आलोचना

सािह य क िलए अिनवाय ह यह कहना न होगा क हर पाठक क समझ सोच एव

भाव क गहराई तक प चना आसान नह ह िजस मम को सामा य पाठक नह

समझ पात उस जगह तक प चन का काय आलोचक करता ह िशवदान सह

चौहान का मानना ह ndash ldquo कसी कित को पढ़कर उस पर जो भाव पड़ता ह कसी

अ य पाठक परपड़ा भाव सवथा वसा ही नह हो सकता आलोचक भी एक ऐसा

ही िविश पाठक ह- इसिलए उसक आलोचना उस पर पड़ िविश भाव को ही

कर सकती ह ऐसी ि थित म इन िविभ अनभितय कितय भाव म कोई

सामा य त व हो ही या सकता ह िजसका षण या म याकन कया जाए rdquo19 यह

ठीक ह क आलोचना स रचना क आ वाद म अतर नह होता पर िजसक ारा

आ वादन कया जाता ह वह कतना व थ ह कतना तद त ह इस पर भी यान

क आव यकता ह जीभ पर कसी व त को रखन पर उस व त का वाद न घटता

ह न बढ़ता ह नाक क पास सगध बदल नह जाती िजतनी जीभ या नाक व थ

होगी उतना ही वाद पण प स िलया जा सकता ह जहा तक रचना का सवाल

ह तो जीभ और नाक का काय आलोचक करता ह आलोचक मलत एक िवशष

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कार का पाठक होता ह हाला क पाठक ही आलोचक होता ह फर भी पाठक और

आलोचक म ताि वक फक ह पाठन क ज रय आलोचक उसक छप ए रह य को भी

खोल कर समाज क सामन प कर दता ह आचाय कसरी कमार न भी आलोचक

को पाठक मानत ह पर आलोचक और पाठक म अतर प कया ह उनका मानना

ह ndash ldquoसामा य पाठक और आलोचक क आ वादन म कछ वसा फक ह जसा द तावज

पर अगठ क छाप लगाना और पढ़कर द तावज करन का ह rdquo20 प प स आचाय

कसरी कमार न पाठक को ही आलोचक मानत ह पर उनका पाठक सामा य पाठक

नह ह एक िवशष कार का पाठक होता ह और चौहानजी न भी िविश पाठक को

ही आलोचक मानत ह

सािह य का आ वादन वयि क तर पर होता ह आलोचक सािह य का

रसा वादन वयि क तर पर ही हण करता ह आलोचक एक सिनि त मानदड

थािपत करना चाहता ह य द कसी िवचार-धारा या वाद स भािवत होकर

मानदड थािपत करता ह तब वह मानदड असमीचीन हो जाता ह आलोचक य द

पवा ह स भािवत वाद क आधार पर अपना मानदड थािपत करता ह तब वह

उस कित का सा यक म याकन नह कर पायगा डॉ िव नाथ साद न इस त य

को प करत ए िलखा ह ndash ldquoउ क आलोचना पवा ह स बचकर चलती ह और

ऐसा तभी सभव ह जब आलोचक का एक पाव अपन यग म तथा एक पाव लखक क

यग म हो अथवा उसक एक आख रस सवदना पर हो तथा दसरी आख लखक क

भाव-िनवदन पर इसस आलोचना क म ामक म याकन क सभावना नह

रहती rdquo21 आलोचना क िलए एक मानदड या फामला क थापना कर उस पर

आलोचना करना ब त क ठन काय ह आलोचना का कोई मानदड तभी सराहनीय

ह जब तक वह कसी िवचारधारा एव वाद स कोई सबध नह रखता

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पहल सािह य आ तब आलोचना िशवदान सह चौहान न प िलखा ह

क ndash ldquoसािह य स ही आलोचना ह आलोचना स सािह य नह ह rdquo22 इस िवषय पर

चौहानजी न आपना मह वपण िवचार कट कया ह कहन का ता पय यह ह क

वद बड़ा क लबद कद बड़ा क पद या यह भी उठ सकता ह क पहल मग ई

क अड़ा पहल बीज आ क पड़ यह िवचरणीय नह ह यह अपन-अपन

अनभव क बात ह इस कार उ का िहसाब सािह य और आलोचना पर करना

उिचत नह िजस कार मन य क अिनवायता क िलए सािह य िलखा गया उसी

अिनवायता क िलए ही आलोचना उ म सािह य बड़ी ह क आलोचना यह

िववादा पद ह यह भी हम कह सकत ह क सािह यकार बड़ा ह क सािह य

या आलोचक बड़ा ह क आलोचना सि बड़ी ह क सि क ा य ब त उपय

नह ह इस कार सािह य और आलोचना अपनी-अपनी अिनवायता क िलए

अपनी-अपनी जगह पर बड़ी ह

िन कष- आलोचक सािह य सािह यकार और समाज क ित ितब होता

ह आलोचना गण-दोष िववचन सराहना-भ सना और प तक समी ा नह ह वह

सजन और चतन क भी िवधा ह वह जो ग रची जाती ह उस कथा-कहानी स

तौला नह जा सकता ह वह कित और कितकार क अित र सदव एक तीसरी

शि क खोज करती ह कहानी किवता नाटक उप यास या ग क अ य िवधा

म एक आलोचक को कित क साथ तीन तर खोलन होत ह पहला िजस िवधा म

कित ह उस िवधा क त व उस कित का मानक माप-दड या ह दसरी कित क शली

एव स दय िववचन और िव यास कस कार आ ह और तीसरा प ह उसक

आत रक चतना उसका मम उसम िनिहत सवदना िवचार और क पनाशीलता जो

कित का ि व रचती ह इन तीन त व क आधार पर जब आलोचक कितगत

आलोचना करता ह तब कित क िलए आलोचना अिनवाय हो जाता ह

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आलोचना एक सजन या ह

सािह य और आलोचना का सबध अ यो या ीत ह जो सािह य क रचना

या ह वही आलोचना का फक मा इतना ह क सािह य का ल य समाज

होता ह और आलोचना का ल य रचना िशवदान सह चौहान न इस बात को प

करत ए कहत ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर स

िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार ह इसिलए इस आप शा ीय वग करण क तरह अिमट और अल य न

मान ल rdquo23 अत रचना क सजन या को जान िबना आलोचना क सजन या

को अ छी तरह समझी नह जा सकती ह

सािह य वह व त ह िजसम मनोभावा मक क पना मक बौि क तथा

रचना मक त व का समावश होता ह सािह य सजन क या क अतगत

क पना बि भाव तथा शली का होना अिनवाय ह यह उठता ह क

सािह यकार क मल रणा या होती ह िजसक कारण सािह यकार को इन त व

का सहारा लना पड़ता ह सीध स हम कह सकत ह क वह समाज म घटी घटना

क अनभित ह अनभित हम घटना क प ा य करत ह तथा अनभित रचना स पव

हमार दय म कट होती ह जस िबना दख क सख का अनभव नह होता ठीक

उसी कार िबना सख-दख स रचना दोन का िम ण ही का ह हदी क िस

आलोचक आचाय नददलार वाजपयी न lsquoसािह य का योजन आ मानभितrsquo म

िलखा ह ndash ldquoका क रणा अनभित स िमलती ह यह वत एक अनभित त य ह

गो वामी तलसीदास न रामच रतमानस का िनमाण करत समय िलखा था ndash

57

lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

58

मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

59

रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

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सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

62

(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

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चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

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15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

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30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

46

आलोचक तट थ होकर सािह य का म यकन करता ह आलोचक को

सािह य सािह यकार और समाज क ित आपन दािय व का पालन करना पड़ता ह

वह कसी भी कित को सामािजक सदभ म दखना चाहता ह कोई कतना भी बड़ा

आलोचक य न हो वह कसी बरी रचना को उ क नह बना सकता ह अत

आलोचक क िलए सामािजकता का िनवाह अित आव यक ह िशवदान सह चौहान

इस बात को इस कार िलखत ह ndash ldquoआलोचक सािह य-जगत का भा य-िवधाता भी

नह ह जो चाह तो खल हाथ अमर व बाट सकता हो कसी आलोचक म यह

शि नह क वह बरी रचना को अपनी म शसा स अमर व दला सक या अपन

कठोर वाक हार स कसी महान रचना को अमर होन स रोक सक इसिलए लखक

य द महान कित व क िबना ही महानता और अमर व पान क मह वका ा पर थोड़ा

सा सयम रखकर आलोचक को अपन दािय व का पालन करन का अवसर द तो

सभव ह क आलोचना क म वसी अराजकता न रह जसी क आज दखाई दती

ह rdquo12 समाज कित और लखक म सबध उसका वा तिवक ान और स कितय क

पठन क रण जगाना आलोचक का वधम ह आलोचक को िवषय का िव तत ान

होना चािहए स दयता क साथ कित और कितकार का िन प िववचन करना

आलोचक का समािजक दािय व ह

आलोचना रचना क होती ह और रचना सामािजक सपि ह रचनाकार अपनी अनभित िवचार एव जीवन दि को एका कर कित म अिभ करता ह आलोचक और रचनाकार दोन अ यो याि त ह कोई कित समाज क िलए कतना उपयोगी ह वह स दय पाठक ही बता सकता ह सािह य म हर समय नई-नई िवचार एव वि या आती रहती ह उसक सामािजकता का अ ययन आलोचक ही करता ह रमश दव क श द म ndash ldquoसजक और सजन य द कसी आलोचक क बौि क

और स कार मानस म स मानीय नह ह तो उसका आलोचना कम बकार ह उस कसी भी रचना पर िवचार एव िववचन का आिधकार नह ह कसी भी सजन क

47

पहली शत यह ह क वह कसी भी िवधा म हो और िजस हदी क अिधकाश लोग भल ही िन दा क तरह मान लत ह ल कन उसम मन य क शील का िनवाह आव यक ह कोई आलोचना कसी भी सजक या सजन क वस क िलए नह होती बि क एक सजक को मोहम कर अिधक खर और गभीर होकर सजन क िलए उकसाती भी ह य द आलोचना-कम सजक ह ता कम होता कसी ितब ता स उपजा ितशोधा मक िन दा आ यान होगा तो फर उस आलोचना कहा ही नह जा

सकता rdquo13 आलोचक सािह य को समाज क प र य म रखत ए तठ थ और

व तिन म याकन तत करता ह य क समाज म िवचार क ारा काय

सपा दत होत ह सािह य िवचार का समह होता ह अत सािह य म

िवचार क ग शि सि होकर समाज का नत व करती ह उस भाव एव िवचार को सवसधारण आलोचक ही करता ह समाज स सािह यकार सजन क

रणा एव समा ी ा करता ह तथा वह समाज ारा भािवत होता रहता ह इसी कार समाज पर सािह य का िजतना ापक एव गहरा भाव पड़ता ह उतना अ य कसी साधन का नह पड़ता व तत सािह य समाज स उ प होता ह और

फर समाज को भािवत करता ह इस कार सािह यकार समाज स भािवत होता ह तथा वह समाज को भािवत करता ह आलोचक इस भाव का दशा और दशा

िनधारण करता ह अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना अित अिनवाय ह

िन कष प म कहा जा सकता ह क आलोचना को सामािजक दािय व

िनभाना पड़ता ह धम और दशन क अधोगित क इस यग म सािह य और

आलोचना पर एक अित र िज मदारी अिनवायत आ पड़ी ह सािह य म

पनरिचत जीवन क पदन को मानवता क अत माण क यगीन िवचार वाह क

भर-पर प र य म दखन-परखन क ज रत ह अत आलोचना अपन वधम स ही

अत ववश ह उस र थान क प त करन और समाज को िशि त करन का वह

सा कितक कम अपन हाथ म लन क िलए िववश ह

48

(घ) आलोचना क अिनवायता

िशवदान सह चौहान न आलोचना क उपयोिगता और अिनवायता पर नतन

दि कोण आपनाया ह उ ह न सािह य क िलए आलोचना को अिनवाय माना ह

नरश ारा lsquoनव िबहारrsquo क एक अक म उठाया गया ndash या आलोचना अिनवाय

ह इस पर िविव िवचारक न अपना-अपना मत कट कया ह िशवदान सह

चौहान न अपनी गहरी सोच िवल ण ितभा क ारा तत िवषय पर नई सोच

एव िवचार कट कया ह इनका मानना ह क आलोचना रचना क िलए अिनवाय

ह आलोचना क अिनवायता पर िवचार करत ह और जब यह उठता ह क या

आलोचना अिनवाय ह तब अनयास ित उठता ह ndash या रचना अिनवाय ह

या पढ़ना ही अिनवाय ह िशवदान सह चौहान का मानना ह ndash ldquoरचनाकार क

ितभा- मता क तरह आलोचक क ितभा- मता का उठाना भी असगत

नह ह िजस तरह हर लखक रचनाकार नह बन सकता उसी तरह समी क

आलोचक नह बन सकताrdquo14 इस कार िशवदान सह चौहान न नए-नए

को उठाकर इस सदभ म नई आलोचना क ह इसी क मा यम स इस िवषय पर

िवचार-िवमश करना तथा िशवदान सह चौहान क आलोचना दि को दखना

समीचीन होगा

बौि क चतन मनन और अ ययन क दौरान कित क रह य को जानन क

इ छा बढ़ जाती ह यही कारण ह क कसी ि व त थान घटना एव रचना

क ित िवचारशील ि िज ासा क दि स दखन लगता ह वा तिवकता जानन

करन क िलए जब ि अपन मन म उस ि व त थान घटना या रचना क

ित िवचार-िवमश करन लगता ह तभी उसक मन म आलोचना का उदय होता ह

49

ि सोचन और न सोचन म वत होता ह ठीक इसी कार रचनाकार रचना

करन और न करन म वत होता ह पाठक पढ़न और न पढ़न म वत ह और

आलोचक आलोचना करन और न करन म वत ह तब यह िनि त ह क

रचनाकार पाठक और आलोचक वत ता क िलए नह दािय व क िलए जीत ह यह

दािय व अपन-आप क ित रचना क ित रचनाकार क ित समाज क ित रा

क ित तथा िव क ित होता ह अथात दािय व क तर पर आलोचक रचनाकार

तथा पाठक म कोई िवशष अतर नह होता ह िशवदान सह चौहान एक समथ

आलोचक को समथ रचनाकार और समथ रचनाकार को समथ आलोचक मानत ह

उनका प कहना ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर

स िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार हrdquo15 आग चौहान जी न आलोचक क आलोचना करत ए आलोचक क

कई िणया बतात ह जस- सािह य क अनक िवधा पर िलखी आलोचना

अ यापक य आलोचना प -पि का म ित मास नई प तक क र प तक

क सपादक य क प म िलखी गयी आलोचना आ द आलोचक क दािय व का

कवल उनक िलए ही उठता ह जो इन दोन िणय स िभ णी क आलोचक ह

आलोचक का सबध सािह य स होता ह न क िव ान स य द हम व ािनक

श दावली म पानी को H2O कहत ह तो वह ससार म एक ही नाम स (H2O) जाना

जाता ह परत सािह य म lsquoपानीrsquo श द का योग एक जसा नह होता वह कह नीर

कह जल कह मघ कह वि कह चमक कह व-पदाथ कह मान- ित ा या

यश बन जाता ह इस कार पानी का अनक अथ होन क कारण उिचत अथ बोध क

िलए आलोचना अिनवाय ह कहन का ता पय यह ह क आलोचना का सबध

सािह य स ह न क िव ान स कला क आलोचना को िव ान भी मान सकत ह

आलोचना सािह य क िलए कतना अिनवाय ह यह िवचरणीय ह

50

कोई भी सािह यक िवधा कसी एक ि क अपनी सपि नह होती वह

चाह उसक ारा ही िलखी गयी य न हो पर वह उस भाषा क सम त ि य क

िलए हो जाती ह जो उस भाषा क जनकार ह रचनाकार रचना को वत प स

रचता ह फर भी उस सामािजक दािय व एव या का भी यान रखना पड़ता ह

कोई भी रचनाकार अपनी रचना क मा यम स त कालीन प रि थित एव सा कितक

या को बचाय रखन क िलए रचना क सि करता ह एक कार स पाठक ही

आलोचक होता ह lsquoरचनाrsquo क िलए रचनाकार पाठक और आलोचक य तीन

अिनवाय अग ह य द रचना ह तो पाठक ह ग और पाठक ह तो आलोचना अव य

ह गी य द पाठक नह ह तब रचना कसी काम क नह कारण रचनाकार रचना

को अपन िलए नह िलखता इस कार रचना क िलए रक और कारण दोन

पाठक ही होत ह जो भी हो रचनाकार पाठक तथा आलोचक तीन एक-दसर क

आिनवाय अग होत ए भी अलग- अलग वत अि त व रखत ह इसी कारण

रचनाकार वत प स वात सख आ मानद पाता ह आलोचक एक िविश

पाठक होता ह रमश दव न अपन एक लख म िलखा ह ndash ldquoएक बड़ा यापक वग ह

जो अपन क ाई तर तक क रचना का आ वादा मक िववचन करना ही

आलोचना मानता ह यह अव य ह क उसक पास आलोचना िस ात क प भिम

होती ह और स ाितक व आलोचना क मानक या मानदड अपना कर वह रचना क

आलोचना करता ह ऐसा आलोचक कॉट ज स क तरह यह कह सकता ह क य द

नदी पर पल बनान क काम क जाच करायी जायगी तो उसक इजीिनयर को बलाया

जायगा ल कन सािह य क जाच करन क िलए उसक रचनाकार क बजाय आलोचक

को रचना स पी जायगी जहा आलोचना एक सीमा बन गई ह रचना क जाच क

तीन आधार य नह हो सकत ndash एक वह पाठक जो कवल पढ़ता ह आनद लता या

ऊबता ह कत उसको आनद या ऊब ही उसका पाठ ह िजस वह िलख कर

51

नह करता ऐसा पाठक िसफ पाठक ही बना रहता ह दसरा होता ह रचनाकार

वय जो कई बार वय अपनी रचना क भद-अभद खोलता ह और रचना क कन-

कन दबाव तनाव भािषक चनौितय अ द स उस जझना पड़ा ह यह प करता

ह इसिलए किवता स ह क साथ भिमका वय िलखन क णाली बड़-बड़

रचनाकार न अपनायी ह तीसरा ह श आलोचक जो रचना क ित अन य क

बजाय अ य भाव स कट होता ह rdquo16 रचनाकार िवषय सगठन क िलए सवथा

वत होता ह वह कसी भी िवषय का चयन कसी भी ि थित म कर सकता ह पर

आलोचक क िलए यह वत ता नह ह य क वह कसी िनि त रचनाकार क

रचना क िवषय पर ही स यक िवचार कट कर सकता ह इसक आग उस छट नह

ह आलोचक उस रचना क तठ थ होकर रचना क शि और सीमा का उ ाटन

करता ह वह रचना क ित अपना दािय व िनभाता ह अपन इस दािय व को

िनभात ए आलोचक रचना क उपयोिगता एव ासिगकता पर भी जोड़ दता ह

िशवदान सह चौहान न प िलखा ह ndash ldquoसािह य का हर पाठक एक कार स

आलोचक होता ह वह कसी कहानी या किवता को पढ़त ही तरत अपना मत कट

कर दता ह क वह अ छी ह बरी ह या असदर ह आलोचक हम उस ही कहत ह

िजसम अपनी ि गत ित या को व तपरक िनणय क साथ समि वत करन क

मता हो और जो रचना क िववचन ारा अपन अनभव-समि वत िनणय को प

अिभ ि दकर साधारण पाठक क दि को भी ि गत ित या क तल स

उठाकर ापक और व तपरक बना सक ता क व रचना स उन सार चतना-िवकासी

म य को ा कर सक जो उसम िनिहत हrdquo17 िनप आलोचना स रचना का

िवकास तो होता ही ह साथ ही साथ रचनाकार क ि व का भी ितफलन होता

ह तथा उसक िवचार एव भाव स समाज का त यदशन भी होता ह यह आलोचना

करन क उपरत ही पता चलता ह क कित या कितकार समाज क िलए कतना

52

उपयोगी ह इस िवषय पर दवीशकर अव थी न अपन एक लख lsquoरचना और

आलोचकrsquo म प िलखा ह ndash ldquoम कहना चा गा क समी ा कित और कितकार क

िलए उपयोगी ह सामा य पाठक क िलए उपयोगी ह एव ान क एक िविश शाखा

क प म अपन-आप म भी उपयोगी ह उसक इस प म अपनी वत स ा भी ह

परत इन सभी उपयोिगता क मल म आधारभत या उपजी साम ी वह रचना

िवशष ही होती ह rdquo18

आलोचना क उपयोिगता-अनपयोिगता क िवषय पर चचा करन क िलए कछ

ऐस बद पर िवचार करना आव यक ह िजसस आलोचना क अिनवायता को

प कया जा सक-

आलोचना मर जान पर भी सािह य जदा रहगा- यह एक क पना ह इसस

एक बात यह प होता ह क आलोचना या सािह य जीिवत व त ह इसम वह

चतना ह जो जीव ाणी म होता ह यह चतना य ह य क सािह य म

सािह यकार क सपण चतना क अिभ ि होती ह तब य द हम क पना भी कर

ल क आलोचना मर जायगी तो इसका सीधा अथ यही होगा क जनता क समाज

क एव सािह यकार क चतना मर जायगी इस मर ए समाज म सजना मक क

या कस कार चल पायगी अथात सजना मक पर भी उठ खड़ा होगा

सािह य म राजनीितक सामािजक धा मक आ थक सा कितक एव सािहि यक

सपण ि थितय का वणन कया जाता ह तथा इन सभी प रि थितय का अवलोकन

आलोचना क मा यम स ही सभव ह य द आलोचना ही न हो तब उन प रि थितय

का सही आकलन कस होगा सािह य म सािह यकार क भावना िवचार एव

क पना क अिभ ि कभी शोक क होती ह कभी हष क होती ह तथा कभी वह

सावभौिमकता क िलए होती ह जब हम उसक सपण ि थित क जनकारी लना

53

चाहत ह तब हम आलोचना क आव यकता पड़ती ह कहन का ता पय यह ह क

य द सािह य को जीिवत रखना ह तब आलोचना क मर जान क क पना अधरी ह

ाचीन काल स आलोचना होती रही ह उस समय आलोचक और रचनाकार

सवथा िभ आ करत थ धीर-धीर यह दरी आधिनक काल तक आत-आत ख म सा

हो गया ह आलोचना आज ग क अनक कार क िवधा म स एक ह पहल यह

माना जाता था क जो आलोचना करत ह व रचना नह कर सकत आज बौि क

जीवन म यह माग क जा रही ह क रचनाकार ही आलोचना कर

का का आ वादन आलोचना स न घटता ह न बढ़ता ह ndash यह बात तो

सतही तर पर स य लगती ह पर इसक मम को हम उधड़ कर दख तो आलोचना

सािह य क िलए अिनवाय ह यह कहना न होगा क हर पाठक क समझ सोच एव

भाव क गहराई तक प चना आसान नह ह िजस मम को सामा य पाठक नह

समझ पात उस जगह तक प चन का काय आलोचक करता ह िशवदान सह

चौहान का मानना ह ndash ldquo कसी कित को पढ़कर उस पर जो भाव पड़ता ह कसी

अ य पाठक परपड़ा भाव सवथा वसा ही नह हो सकता आलोचक भी एक ऐसा

ही िविश पाठक ह- इसिलए उसक आलोचना उस पर पड़ िविश भाव को ही

कर सकती ह ऐसी ि थित म इन िविभ अनभितय कितय भाव म कोई

सामा य त व हो ही या सकता ह िजसका षण या म याकन कया जाए rdquo19 यह

ठीक ह क आलोचना स रचना क आ वाद म अतर नह होता पर िजसक ारा

आ वादन कया जाता ह वह कतना व थ ह कतना तद त ह इस पर भी यान

क आव यकता ह जीभ पर कसी व त को रखन पर उस व त का वाद न घटता

ह न बढ़ता ह नाक क पास सगध बदल नह जाती िजतनी जीभ या नाक व थ

होगी उतना ही वाद पण प स िलया जा सकता ह जहा तक रचना का सवाल

ह तो जीभ और नाक का काय आलोचक करता ह आलोचक मलत एक िवशष

54

कार का पाठक होता ह हाला क पाठक ही आलोचक होता ह फर भी पाठक और

आलोचक म ताि वक फक ह पाठन क ज रय आलोचक उसक छप ए रह य को भी

खोल कर समाज क सामन प कर दता ह आचाय कसरी कमार न भी आलोचक

को पाठक मानत ह पर आलोचक और पाठक म अतर प कया ह उनका मानना

ह ndash ldquoसामा य पाठक और आलोचक क आ वादन म कछ वसा फक ह जसा द तावज

पर अगठ क छाप लगाना और पढ़कर द तावज करन का ह rdquo20 प प स आचाय

कसरी कमार न पाठक को ही आलोचक मानत ह पर उनका पाठक सामा य पाठक

नह ह एक िवशष कार का पाठक होता ह और चौहानजी न भी िविश पाठक को

ही आलोचक मानत ह

सािह य का आ वादन वयि क तर पर होता ह आलोचक सािह य का

रसा वादन वयि क तर पर ही हण करता ह आलोचक एक सिनि त मानदड

थािपत करना चाहता ह य द कसी िवचार-धारा या वाद स भािवत होकर

मानदड थािपत करता ह तब वह मानदड असमीचीन हो जाता ह आलोचक य द

पवा ह स भािवत वाद क आधार पर अपना मानदड थािपत करता ह तब वह

उस कित का सा यक म याकन नह कर पायगा डॉ िव नाथ साद न इस त य

को प करत ए िलखा ह ndash ldquoउ क आलोचना पवा ह स बचकर चलती ह और

ऐसा तभी सभव ह जब आलोचक का एक पाव अपन यग म तथा एक पाव लखक क

यग म हो अथवा उसक एक आख रस सवदना पर हो तथा दसरी आख लखक क

भाव-िनवदन पर इसस आलोचना क म ामक म याकन क सभावना नह

रहती rdquo21 आलोचना क िलए एक मानदड या फामला क थापना कर उस पर

आलोचना करना ब त क ठन काय ह आलोचना का कोई मानदड तभी सराहनीय

ह जब तक वह कसी िवचारधारा एव वाद स कोई सबध नह रखता

55

पहल सािह य आ तब आलोचना िशवदान सह चौहान न प िलखा ह

क ndash ldquoसािह य स ही आलोचना ह आलोचना स सािह य नह ह rdquo22 इस िवषय पर

चौहानजी न आपना मह वपण िवचार कट कया ह कहन का ता पय यह ह क

वद बड़ा क लबद कद बड़ा क पद या यह भी उठ सकता ह क पहल मग ई

क अड़ा पहल बीज आ क पड़ यह िवचरणीय नह ह यह अपन-अपन

अनभव क बात ह इस कार उ का िहसाब सािह य और आलोचना पर करना

उिचत नह िजस कार मन य क अिनवायता क िलए सािह य िलखा गया उसी

अिनवायता क िलए ही आलोचना उ म सािह य बड़ी ह क आलोचना यह

िववादा पद ह यह भी हम कह सकत ह क सािह यकार बड़ा ह क सािह य

या आलोचक बड़ा ह क आलोचना सि बड़ी ह क सि क ा य ब त उपय

नह ह इस कार सािह य और आलोचना अपनी-अपनी अिनवायता क िलए

अपनी-अपनी जगह पर बड़ी ह

िन कष- आलोचक सािह य सािह यकार और समाज क ित ितब होता

ह आलोचना गण-दोष िववचन सराहना-भ सना और प तक समी ा नह ह वह

सजन और चतन क भी िवधा ह वह जो ग रची जाती ह उस कथा-कहानी स

तौला नह जा सकता ह वह कित और कितकार क अित र सदव एक तीसरी

शि क खोज करती ह कहानी किवता नाटक उप यास या ग क अ य िवधा

म एक आलोचक को कित क साथ तीन तर खोलन होत ह पहला िजस िवधा म

कित ह उस िवधा क त व उस कित का मानक माप-दड या ह दसरी कित क शली

एव स दय िववचन और िव यास कस कार आ ह और तीसरा प ह उसक

आत रक चतना उसका मम उसम िनिहत सवदना िवचार और क पनाशीलता जो

कित का ि व रचती ह इन तीन त व क आधार पर जब आलोचक कितगत

आलोचना करता ह तब कित क िलए आलोचना अिनवाय हो जाता ह

56

आलोचना एक सजन या ह

सािह य और आलोचना का सबध अ यो या ीत ह जो सािह य क रचना

या ह वही आलोचना का फक मा इतना ह क सािह य का ल य समाज

होता ह और आलोचना का ल य रचना िशवदान सह चौहान न इस बात को प

करत ए कहत ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर स

िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार ह इसिलए इस आप शा ीय वग करण क तरह अिमट और अल य न

मान ल rdquo23 अत रचना क सजन या को जान िबना आलोचना क सजन या

को अ छी तरह समझी नह जा सकती ह

सािह य वह व त ह िजसम मनोभावा मक क पना मक बौि क तथा

रचना मक त व का समावश होता ह सािह य सजन क या क अतगत

क पना बि भाव तथा शली का होना अिनवाय ह यह उठता ह क

सािह यकार क मल रणा या होती ह िजसक कारण सािह यकार को इन त व

का सहारा लना पड़ता ह सीध स हम कह सकत ह क वह समाज म घटी घटना

क अनभित ह अनभित हम घटना क प ा य करत ह तथा अनभित रचना स पव

हमार दय म कट होती ह जस िबना दख क सख का अनभव नह होता ठीक

उसी कार िबना सख-दख स रचना दोन का िम ण ही का ह हदी क िस

आलोचक आचाय नददलार वाजपयी न lsquoसािह य का योजन आ मानभितrsquo म

िलखा ह ndash ldquoका क रणा अनभित स िमलती ह यह वत एक अनभित त य ह

गो वामी तलसीदास न रामच रतमानस का िनमाण करत समय िलखा था ndash

57

lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

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मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

59

रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

61

सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

62

(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

47

पहली शत यह ह क वह कसी भी िवधा म हो और िजस हदी क अिधकाश लोग भल ही िन दा क तरह मान लत ह ल कन उसम मन य क शील का िनवाह आव यक ह कोई आलोचना कसी भी सजक या सजन क वस क िलए नह होती बि क एक सजक को मोहम कर अिधक खर और गभीर होकर सजन क िलए उकसाती भी ह य द आलोचना-कम सजक ह ता कम होता कसी ितब ता स उपजा ितशोधा मक िन दा आ यान होगा तो फर उस आलोचना कहा ही नह जा

सकता rdquo13 आलोचक सािह य को समाज क प र य म रखत ए तठ थ और

व तिन म याकन तत करता ह य क समाज म िवचार क ारा काय

सपा दत होत ह सािह य िवचार का समह होता ह अत सािह य म

िवचार क ग शि सि होकर समाज का नत व करती ह उस भाव एव िवचार को सवसधारण आलोचक ही करता ह समाज स सािह यकार सजन क

रणा एव समा ी ा करता ह तथा वह समाज ारा भािवत होता रहता ह इसी कार समाज पर सािह य का िजतना ापक एव गहरा भाव पड़ता ह उतना अ य कसी साधन का नह पड़ता व तत सािह य समाज स उ प होता ह और

फर समाज को भािवत करता ह इस कार सािह यकार समाज स भािवत होता ह तथा वह समाज को भािवत करता ह आलोचक इस भाव का दशा और दशा

िनधारण करता ह अत आलोचना को सामािजक सदभ म दखना अित अिनवाय ह

िन कष प म कहा जा सकता ह क आलोचना को सामािजक दािय व

िनभाना पड़ता ह धम और दशन क अधोगित क इस यग म सािह य और

आलोचना पर एक अित र िज मदारी अिनवायत आ पड़ी ह सािह य म

पनरिचत जीवन क पदन को मानवता क अत माण क यगीन िवचार वाह क

भर-पर प र य म दखन-परखन क ज रत ह अत आलोचना अपन वधम स ही

अत ववश ह उस र थान क प त करन और समाज को िशि त करन का वह

सा कितक कम अपन हाथ म लन क िलए िववश ह

48

(घ) आलोचना क अिनवायता

िशवदान सह चौहान न आलोचना क उपयोिगता और अिनवायता पर नतन

दि कोण आपनाया ह उ ह न सािह य क िलए आलोचना को अिनवाय माना ह

नरश ारा lsquoनव िबहारrsquo क एक अक म उठाया गया ndash या आलोचना अिनवाय

ह इस पर िविव िवचारक न अपना-अपना मत कट कया ह िशवदान सह

चौहान न अपनी गहरी सोच िवल ण ितभा क ारा तत िवषय पर नई सोच

एव िवचार कट कया ह इनका मानना ह क आलोचना रचना क िलए अिनवाय

ह आलोचना क अिनवायता पर िवचार करत ह और जब यह उठता ह क या

आलोचना अिनवाय ह तब अनयास ित उठता ह ndash या रचना अिनवाय ह

या पढ़ना ही अिनवाय ह िशवदान सह चौहान का मानना ह ndash ldquoरचनाकार क

ितभा- मता क तरह आलोचक क ितभा- मता का उठाना भी असगत

नह ह िजस तरह हर लखक रचनाकार नह बन सकता उसी तरह समी क

आलोचक नह बन सकताrdquo14 इस कार िशवदान सह चौहान न नए-नए

को उठाकर इस सदभ म नई आलोचना क ह इसी क मा यम स इस िवषय पर

िवचार-िवमश करना तथा िशवदान सह चौहान क आलोचना दि को दखना

समीचीन होगा

बौि क चतन मनन और अ ययन क दौरान कित क रह य को जानन क

इ छा बढ़ जाती ह यही कारण ह क कसी ि व त थान घटना एव रचना

क ित िवचारशील ि िज ासा क दि स दखन लगता ह वा तिवकता जानन

करन क िलए जब ि अपन मन म उस ि व त थान घटना या रचना क

ित िवचार-िवमश करन लगता ह तभी उसक मन म आलोचना का उदय होता ह

49

ि सोचन और न सोचन म वत होता ह ठीक इसी कार रचनाकार रचना

करन और न करन म वत होता ह पाठक पढ़न और न पढ़न म वत ह और

आलोचक आलोचना करन और न करन म वत ह तब यह िनि त ह क

रचनाकार पाठक और आलोचक वत ता क िलए नह दािय व क िलए जीत ह यह

दािय व अपन-आप क ित रचना क ित रचनाकार क ित समाज क ित रा

क ित तथा िव क ित होता ह अथात दािय व क तर पर आलोचक रचनाकार

तथा पाठक म कोई िवशष अतर नह होता ह िशवदान सह चौहान एक समथ

आलोचक को समथ रचनाकार और समथ रचनाकार को समथ आलोचक मानत ह

उनका प कहना ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर

स िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार हrdquo15 आग चौहान जी न आलोचक क आलोचना करत ए आलोचक क

कई िणया बतात ह जस- सािह य क अनक िवधा पर िलखी आलोचना

अ यापक य आलोचना प -पि का म ित मास नई प तक क र प तक

क सपादक य क प म िलखी गयी आलोचना आ द आलोचक क दािय व का

कवल उनक िलए ही उठता ह जो इन दोन िणय स िभ णी क आलोचक ह

आलोचक का सबध सािह य स होता ह न क िव ान स य द हम व ािनक

श दावली म पानी को H2O कहत ह तो वह ससार म एक ही नाम स (H2O) जाना

जाता ह परत सािह य म lsquoपानीrsquo श द का योग एक जसा नह होता वह कह नीर

कह जल कह मघ कह वि कह चमक कह व-पदाथ कह मान- ित ा या

यश बन जाता ह इस कार पानी का अनक अथ होन क कारण उिचत अथ बोध क

िलए आलोचना अिनवाय ह कहन का ता पय यह ह क आलोचना का सबध

सािह य स ह न क िव ान स कला क आलोचना को िव ान भी मान सकत ह

आलोचना सािह य क िलए कतना अिनवाय ह यह िवचरणीय ह

50

कोई भी सािह यक िवधा कसी एक ि क अपनी सपि नह होती वह

चाह उसक ारा ही िलखी गयी य न हो पर वह उस भाषा क सम त ि य क

िलए हो जाती ह जो उस भाषा क जनकार ह रचनाकार रचना को वत प स

रचता ह फर भी उस सामािजक दािय व एव या का भी यान रखना पड़ता ह

कोई भी रचनाकार अपनी रचना क मा यम स त कालीन प रि थित एव सा कितक

या को बचाय रखन क िलए रचना क सि करता ह एक कार स पाठक ही

आलोचक होता ह lsquoरचनाrsquo क िलए रचनाकार पाठक और आलोचक य तीन

अिनवाय अग ह य द रचना ह तो पाठक ह ग और पाठक ह तो आलोचना अव य

ह गी य द पाठक नह ह तब रचना कसी काम क नह कारण रचनाकार रचना

को अपन िलए नह िलखता इस कार रचना क िलए रक और कारण दोन

पाठक ही होत ह जो भी हो रचनाकार पाठक तथा आलोचक तीन एक-दसर क

आिनवाय अग होत ए भी अलग- अलग वत अि त व रखत ह इसी कारण

रचनाकार वत प स वात सख आ मानद पाता ह आलोचक एक िविश

पाठक होता ह रमश दव न अपन एक लख म िलखा ह ndash ldquoएक बड़ा यापक वग ह

जो अपन क ाई तर तक क रचना का आ वादा मक िववचन करना ही

आलोचना मानता ह यह अव य ह क उसक पास आलोचना िस ात क प भिम

होती ह और स ाितक व आलोचना क मानक या मानदड अपना कर वह रचना क

आलोचना करता ह ऐसा आलोचक कॉट ज स क तरह यह कह सकता ह क य द

नदी पर पल बनान क काम क जाच करायी जायगी तो उसक इजीिनयर को बलाया

जायगा ल कन सािह य क जाच करन क िलए उसक रचनाकार क बजाय आलोचक

को रचना स पी जायगी जहा आलोचना एक सीमा बन गई ह रचना क जाच क

तीन आधार य नह हो सकत ndash एक वह पाठक जो कवल पढ़ता ह आनद लता या

ऊबता ह कत उसको आनद या ऊब ही उसका पाठ ह िजस वह िलख कर

51

नह करता ऐसा पाठक िसफ पाठक ही बना रहता ह दसरा होता ह रचनाकार

वय जो कई बार वय अपनी रचना क भद-अभद खोलता ह और रचना क कन-

कन दबाव तनाव भािषक चनौितय अ द स उस जझना पड़ा ह यह प करता

ह इसिलए किवता स ह क साथ भिमका वय िलखन क णाली बड़-बड़

रचनाकार न अपनायी ह तीसरा ह श आलोचक जो रचना क ित अन य क

बजाय अ य भाव स कट होता ह rdquo16 रचनाकार िवषय सगठन क िलए सवथा

वत होता ह वह कसी भी िवषय का चयन कसी भी ि थित म कर सकता ह पर

आलोचक क िलए यह वत ता नह ह य क वह कसी िनि त रचनाकार क

रचना क िवषय पर ही स यक िवचार कट कर सकता ह इसक आग उस छट नह

ह आलोचक उस रचना क तठ थ होकर रचना क शि और सीमा का उ ाटन

करता ह वह रचना क ित अपना दािय व िनभाता ह अपन इस दािय व को

िनभात ए आलोचक रचना क उपयोिगता एव ासिगकता पर भी जोड़ दता ह

िशवदान सह चौहान न प िलखा ह ndash ldquoसािह य का हर पाठक एक कार स

आलोचक होता ह वह कसी कहानी या किवता को पढ़त ही तरत अपना मत कट

कर दता ह क वह अ छी ह बरी ह या असदर ह आलोचक हम उस ही कहत ह

िजसम अपनी ि गत ित या को व तपरक िनणय क साथ समि वत करन क

मता हो और जो रचना क िववचन ारा अपन अनभव-समि वत िनणय को प

अिभ ि दकर साधारण पाठक क दि को भी ि गत ित या क तल स

उठाकर ापक और व तपरक बना सक ता क व रचना स उन सार चतना-िवकासी

म य को ा कर सक जो उसम िनिहत हrdquo17 िनप आलोचना स रचना का

िवकास तो होता ही ह साथ ही साथ रचनाकार क ि व का भी ितफलन होता

ह तथा उसक िवचार एव भाव स समाज का त यदशन भी होता ह यह आलोचना

करन क उपरत ही पता चलता ह क कित या कितकार समाज क िलए कतना

52

उपयोगी ह इस िवषय पर दवीशकर अव थी न अपन एक लख lsquoरचना और

आलोचकrsquo म प िलखा ह ndash ldquoम कहना चा गा क समी ा कित और कितकार क

िलए उपयोगी ह सामा य पाठक क िलए उपयोगी ह एव ान क एक िविश शाखा

क प म अपन-आप म भी उपयोगी ह उसक इस प म अपनी वत स ा भी ह

परत इन सभी उपयोिगता क मल म आधारभत या उपजी साम ी वह रचना

िवशष ही होती ह rdquo18

आलोचना क उपयोिगता-अनपयोिगता क िवषय पर चचा करन क िलए कछ

ऐस बद पर िवचार करना आव यक ह िजसस आलोचना क अिनवायता को

प कया जा सक-

आलोचना मर जान पर भी सािह य जदा रहगा- यह एक क पना ह इसस

एक बात यह प होता ह क आलोचना या सािह य जीिवत व त ह इसम वह

चतना ह जो जीव ाणी म होता ह यह चतना य ह य क सािह य म

सािह यकार क सपण चतना क अिभ ि होती ह तब य द हम क पना भी कर

ल क आलोचना मर जायगी तो इसका सीधा अथ यही होगा क जनता क समाज

क एव सािह यकार क चतना मर जायगी इस मर ए समाज म सजना मक क

या कस कार चल पायगी अथात सजना मक पर भी उठ खड़ा होगा

सािह य म राजनीितक सामािजक धा मक आ थक सा कितक एव सािहि यक

सपण ि थितय का वणन कया जाता ह तथा इन सभी प रि थितय का अवलोकन

आलोचना क मा यम स ही सभव ह य द आलोचना ही न हो तब उन प रि थितय

का सही आकलन कस होगा सािह य म सािह यकार क भावना िवचार एव

क पना क अिभ ि कभी शोक क होती ह कभी हष क होती ह तथा कभी वह

सावभौिमकता क िलए होती ह जब हम उसक सपण ि थित क जनकारी लना

53

चाहत ह तब हम आलोचना क आव यकता पड़ती ह कहन का ता पय यह ह क

य द सािह य को जीिवत रखना ह तब आलोचना क मर जान क क पना अधरी ह

ाचीन काल स आलोचना होती रही ह उस समय आलोचक और रचनाकार

सवथा िभ आ करत थ धीर-धीर यह दरी आधिनक काल तक आत-आत ख म सा

हो गया ह आलोचना आज ग क अनक कार क िवधा म स एक ह पहल यह

माना जाता था क जो आलोचना करत ह व रचना नह कर सकत आज बौि क

जीवन म यह माग क जा रही ह क रचनाकार ही आलोचना कर

का का आ वादन आलोचना स न घटता ह न बढ़ता ह ndash यह बात तो

सतही तर पर स य लगती ह पर इसक मम को हम उधड़ कर दख तो आलोचना

सािह य क िलए अिनवाय ह यह कहना न होगा क हर पाठक क समझ सोच एव

भाव क गहराई तक प चना आसान नह ह िजस मम को सामा य पाठक नह

समझ पात उस जगह तक प चन का काय आलोचक करता ह िशवदान सह

चौहान का मानना ह ndash ldquo कसी कित को पढ़कर उस पर जो भाव पड़ता ह कसी

अ य पाठक परपड़ा भाव सवथा वसा ही नह हो सकता आलोचक भी एक ऐसा

ही िविश पाठक ह- इसिलए उसक आलोचना उस पर पड़ िविश भाव को ही

कर सकती ह ऐसी ि थित म इन िविभ अनभितय कितय भाव म कोई

सामा य त व हो ही या सकता ह िजसका षण या म याकन कया जाए rdquo19 यह

ठीक ह क आलोचना स रचना क आ वाद म अतर नह होता पर िजसक ारा

आ वादन कया जाता ह वह कतना व थ ह कतना तद त ह इस पर भी यान

क आव यकता ह जीभ पर कसी व त को रखन पर उस व त का वाद न घटता

ह न बढ़ता ह नाक क पास सगध बदल नह जाती िजतनी जीभ या नाक व थ

होगी उतना ही वाद पण प स िलया जा सकता ह जहा तक रचना का सवाल

ह तो जीभ और नाक का काय आलोचक करता ह आलोचक मलत एक िवशष

54

कार का पाठक होता ह हाला क पाठक ही आलोचक होता ह फर भी पाठक और

आलोचक म ताि वक फक ह पाठन क ज रय आलोचक उसक छप ए रह य को भी

खोल कर समाज क सामन प कर दता ह आचाय कसरी कमार न भी आलोचक

को पाठक मानत ह पर आलोचक और पाठक म अतर प कया ह उनका मानना

ह ndash ldquoसामा य पाठक और आलोचक क आ वादन म कछ वसा फक ह जसा द तावज

पर अगठ क छाप लगाना और पढ़कर द तावज करन का ह rdquo20 प प स आचाय

कसरी कमार न पाठक को ही आलोचक मानत ह पर उनका पाठक सामा य पाठक

नह ह एक िवशष कार का पाठक होता ह और चौहानजी न भी िविश पाठक को

ही आलोचक मानत ह

सािह य का आ वादन वयि क तर पर होता ह आलोचक सािह य का

रसा वादन वयि क तर पर ही हण करता ह आलोचक एक सिनि त मानदड

थािपत करना चाहता ह य द कसी िवचार-धारा या वाद स भािवत होकर

मानदड थािपत करता ह तब वह मानदड असमीचीन हो जाता ह आलोचक य द

पवा ह स भािवत वाद क आधार पर अपना मानदड थािपत करता ह तब वह

उस कित का सा यक म याकन नह कर पायगा डॉ िव नाथ साद न इस त य

को प करत ए िलखा ह ndash ldquoउ क आलोचना पवा ह स बचकर चलती ह और

ऐसा तभी सभव ह जब आलोचक का एक पाव अपन यग म तथा एक पाव लखक क

यग म हो अथवा उसक एक आख रस सवदना पर हो तथा दसरी आख लखक क

भाव-िनवदन पर इसस आलोचना क म ामक म याकन क सभावना नह

रहती rdquo21 आलोचना क िलए एक मानदड या फामला क थापना कर उस पर

आलोचना करना ब त क ठन काय ह आलोचना का कोई मानदड तभी सराहनीय

ह जब तक वह कसी िवचारधारा एव वाद स कोई सबध नह रखता

55

पहल सािह य आ तब आलोचना िशवदान सह चौहान न प िलखा ह

क ndash ldquoसािह य स ही आलोचना ह आलोचना स सािह य नह ह rdquo22 इस िवषय पर

चौहानजी न आपना मह वपण िवचार कट कया ह कहन का ता पय यह ह क

वद बड़ा क लबद कद बड़ा क पद या यह भी उठ सकता ह क पहल मग ई

क अड़ा पहल बीज आ क पड़ यह िवचरणीय नह ह यह अपन-अपन

अनभव क बात ह इस कार उ का िहसाब सािह य और आलोचना पर करना

उिचत नह िजस कार मन य क अिनवायता क िलए सािह य िलखा गया उसी

अिनवायता क िलए ही आलोचना उ म सािह य बड़ी ह क आलोचना यह

िववादा पद ह यह भी हम कह सकत ह क सािह यकार बड़ा ह क सािह य

या आलोचक बड़ा ह क आलोचना सि बड़ी ह क सि क ा य ब त उपय

नह ह इस कार सािह य और आलोचना अपनी-अपनी अिनवायता क िलए

अपनी-अपनी जगह पर बड़ी ह

िन कष- आलोचक सािह य सािह यकार और समाज क ित ितब होता

ह आलोचना गण-दोष िववचन सराहना-भ सना और प तक समी ा नह ह वह

सजन और चतन क भी िवधा ह वह जो ग रची जाती ह उस कथा-कहानी स

तौला नह जा सकता ह वह कित और कितकार क अित र सदव एक तीसरी

शि क खोज करती ह कहानी किवता नाटक उप यास या ग क अ य िवधा

म एक आलोचक को कित क साथ तीन तर खोलन होत ह पहला िजस िवधा म

कित ह उस िवधा क त व उस कित का मानक माप-दड या ह दसरी कित क शली

एव स दय िववचन और िव यास कस कार आ ह और तीसरा प ह उसक

आत रक चतना उसका मम उसम िनिहत सवदना िवचार और क पनाशीलता जो

कित का ि व रचती ह इन तीन त व क आधार पर जब आलोचक कितगत

आलोचना करता ह तब कित क िलए आलोचना अिनवाय हो जाता ह

56

आलोचना एक सजन या ह

सािह य और आलोचना का सबध अ यो या ीत ह जो सािह य क रचना

या ह वही आलोचना का फक मा इतना ह क सािह य का ल य समाज

होता ह और आलोचना का ल य रचना िशवदान सह चौहान न इस बात को प

करत ए कहत ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर स

िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार ह इसिलए इस आप शा ीय वग करण क तरह अिमट और अल य न

मान ल rdquo23 अत रचना क सजन या को जान िबना आलोचना क सजन या

को अ छी तरह समझी नह जा सकती ह

सािह य वह व त ह िजसम मनोभावा मक क पना मक बौि क तथा

रचना मक त व का समावश होता ह सािह य सजन क या क अतगत

क पना बि भाव तथा शली का होना अिनवाय ह यह उठता ह क

सािह यकार क मल रणा या होती ह िजसक कारण सािह यकार को इन त व

का सहारा लना पड़ता ह सीध स हम कह सकत ह क वह समाज म घटी घटना

क अनभित ह अनभित हम घटना क प ा य करत ह तथा अनभित रचना स पव

हमार दय म कट होती ह जस िबना दख क सख का अनभव नह होता ठीक

उसी कार िबना सख-दख स रचना दोन का िम ण ही का ह हदी क िस

आलोचक आचाय नददलार वाजपयी न lsquoसािह य का योजन आ मानभितrsquo म

िलखा ह ndash ldquoका क रणा अनभित स िमलती ह यह वत एक अनभित त य ह

गो वामी तलसीदास न रामच रतमानस का िनमाण करत समय िलखा था ndash

57

lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

58

मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

59

रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

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सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

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(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

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उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

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ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

48

(घ) आलोचना क अिनवायता

िशवदान सह चौहान न आलोचना क उपयोिगता और अिनवायता पर नतन

दि कोण आपनाया ह उ ह न सािह य क िलए आलोचना को अिनवाय माना ह

नरश ारा lsquoनव िबहारrsquo क एक अक म उठाया गया ndash या आलोचना अिनवाय

ह इस पर िविव िवचारक न अपना-अपना मत कट कया ह िशवदान सह

चौहान न अपनी गहरी सोच िवल ण ितभा क ारा तत िवषय पर नई सोच

एव िवचार कट कया ह इनका मानना ह क आलोचना रचना क िलए अिनवाय

ह आलोचना क अिनवायता पर िवचार करत ह और जब यह उठता ह क या

आलोचना अिनवाय ह तब अनयास ित उठता ह ndash या रचना अिनवाय ह

या पढ़ना ही अिनवाय ह िशवदान सह चौहान का मानना ह ndash ldquoरचनाकार क

ितभा- मता क तरह आलोचक क ितभा- मता का उठाना भी असगत

नह ह िजस तरह हर लखक रचनाकार नह बन सकता उसी तरह समी क

आलोचक नह बन सकताrdquo14 इस कार िशवदान सह चौहान न नए-नए

को उठाकर इस सदभ म नई आलोचना क ह इसी क मा यम स इस िवषय पर

िवचार-िवमश करना तथा िशवदान सह चौहान क आलोचना दि को दखना

समीचीन होगा

बौि क चतन मनन और अ ययन क दौरान कित क रह य को जानन क

इ छा बढ़ जाती ह यही कारण ह क कसी ि व त थान घटना एव रचना

क ित िवचारशील ि िज ासा क दि स दखन लगता ह वा तिवकता जानन

करन क िलए जब ि अपन मन म उस ि व त थान घटना या रचना क

ित िवचार-िवमश करन लगता ह तभी उसक मन म आलोचना का उदय होता ह

49

ि सोचन और न सोचन म वत होता ह ठीक इसी कार रचनाकार रचना

करन और न करन म वत होता ह पाठक पढ़न और न पढ़न म वत ह और

आलोचक आलोचना करन और न करन म वत ह तब यह िनि त ह क

रचनाकार पाठक और आलोचक वत ता क िलए नह दािय व क िलए जीत ह यह

दािय व अपन-आप क ित रचना क ित रचनाकार क ित समाज क ित रा

क ित तथा िव क ित होता ह अथात दािय व क तर पर आलोचक रचनाकार

तथा पाठक म कोई िवशष अतर नह होता ह िशवदान सह चौहान एक समथ

आलोचक को समथ रचनाकार और समथ रचनाकार को समथ आलोचक मानत ह

उनका प कहना ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर

स िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार हrdquo15 आग चौहान जी न आलोचक क आलोचना करत ए आलोचक क

कई िणया बतात ह जस- सािह य क अनक िवधा पर िलखी आलोचना

अ यापक य आलोचना प -पि का म ित मास नई प तक क र प तक

क सपादक य क प म िलखी गयी आलोचना आ द आलोचक क दािय व का

कवल उनक िलए ही उठता ह जो इन दोन िणय स िभ णी क आलोचक ह

आलोचक का सबध सािह य स होता ह न क िव ान स य द हम व ािनक

श दावली म पानी को H2O कहत ह तो वह ससार म एक ही नाम स (H2O) जाना

जाता ह परत सािह य म lsquoपानीrsquo श द का योग एक जसा नह होता वह कह नीर

कह जल कह मघ कह वि कह चमक कह व-पदाथ कह मान- ित ा या

यश बन जाता ह इस कार पानी का अनक अथ होन क कारण उिचत अथ बोध क

िलए आलोचना अिनवाय ह कहन का ता पय यह ह क आलोचना का सबध

सािह य स ह न क िव ान स कला क आलोचना को िव ान भी मान सकत ह

आलोचना सािह य क िलए कतना अिनवाय ह यह िवचरणीय ह

50

कोई भी सािह यक िवधा कसी एक ि क अपनी सपि नह होती वह

चाह उसक ारा ही िलखी गयी य न हो पर वह उस भाषा क सम त ि य क

िलए हो जाती ह जो उस भाषा क जनकार ह रचनाकार रचना को वत प स

रचता ह फर भी उस सामािजक दािय व एव या का भी यान रखना पड़ता ह

कोई भी रचनाकार अपनी रचना क मा यम स त कालीन प रि थित एव सा कितक

या को बचाय रखन क िलए रचना क सि करता ह एक कार स पाठक ही

आलोचक होता ह lsquoरचनाrsquo क िलए रचनाकार पाठक और आलोचक य तीन

अिनवाय अग ह य द रचना ह तो पाठक ह ग और पाठक ह तो आलोचना अव य

ह गी य द पाठक नह ह तब रचना कसी काम क नह कारण रचनाकार रचना

को अपन िलए नह िलखता इस कार रचना क िलए रक और कारण दोन

पाठक ही होत ह जो भी हो रचनाकार पाठक तथा आलोचक तीन एक-दसर क

आिनवाय अग होत ए भी अलग- अलग वत अि त व रखत ह इसी कारण

रचनाकार वत प स वात सख आ मानद पाता ह आलोचक एक िविश

पाठक होता ह रमश दव न अपन एक लख म िलखा ह ndash ldquoएक बड़ा यापक वग ह

जो अपन क ाई तर तक क रचना का आ वादा मक िववचन करना ही

आलोचना मानता ह यह अव य ह क उसक पास आलोचना िस ात क प भिम

होती ह और स ाितक व आलोचना क मानक या मानदड अपना कर वह रचना क

आलोचना करता ह ऐसा आलोचक कॉट ज स क तरह यह कह सकता ह क य द

नदी पर पल बनान क काम क जाच करायी जायगी तो उसक इजीिनयर को बलाया

जायगा ल कन सािह य क जाच करन क िलए उसक रचनाकार क बजाय आलोचक

को रचना स पी जायगी जहा आलोचना एक सीमा बन गई ह रचना क जाच क

तीन आधार य नह हो सकत ndash एक वह पाठक जो कवल पढ़ता ह आनद लता या

ऊबता ह कत उसको आनद या ऊब ही उसका पाठ ह िजस वह िलख कर

51

नह करता ऐसा पाठक िसफ पाठक ही बना रहता ह दसरा होता ह रचनाकार

वय जो कई बार वय अपनी रचना क भद-अभद खोलता ह और रचना क कन-

कन दबाव तनाव भािषक चनौितय अ द स उस जझना पड़ा ह यह प करता

ह इसिलए किवता स ह क साथ भिमका वय िलखन क णाली बड़-बड़

रचनाकार न अपनायी ह तीसरा ह श आलोचक जो रचना क ित अन य क

बजाय अ य भाव स कट होता ह rdquo16 रचनाकार िवषय सगठन क िलए सवथा

वत होता ह वह कसी भी िवषय का चयन कसी भी ि थित म कर सकता ह पर

आलोचक क िलए यह वत ता नह ह य क वह कसी िनि त रचनाकार क

रचना क िवषय पर ही स यक िवचार कट कर सकता ह इसक आग उस छट नह

ह आलोचक उस रचना क तठ थ होकर रचना क शि और सीमा का उ ाटन

करता ह वह रचना क ित अपना दािय व िनभाता ह अपन इस दािय व को

िनभात ए आलोचक रचना क उपयोिगता एव ासिगकता पर भी जोड़ दता ह

िशवदान सह चौहान न प िलखा ह ndash ldquoसािह य का हर पाठक एक कार स

आलोचक होता ह वह कसी कहानी या किवता को पढ़त ही तरत अपना मत कट

कर दता ह क वह अ छी ह बरी ह या असदर ह आलोचक हम उस ही कहत ह

िजसम अपनी ि गत ित या को व तपरक िनणय क साथ समि वत करन क

मता हो और जो रचना क िववचन ारा अपन अनभव-समि वत िनणय को प

अिभ ि दकर साधारण पाठक क दि को भी ि गत ित या क तल स

उठाकर ापक और व तपरक बना सक ता क व रचना स उन सार चतना-िवकासी

म य को ा कर सक जो उसम िनिहत हrdquo17 िनप आलोचना स रचना का

िवकास तो होता ही ह साथ ही साथ रचनाकार क ि व का भी ितफलन होता

ह तथा उसक िवचार एव भाव स समाज का त यदशन भी होता ह यह आलोचना

करन क उपरत ही पता चलता ह क कित या कितकार समाज क िलए कतना

52

उपयोगी ह इस िवषय पर दवीशकर अव थी न अपन एक लख lsquoरचना और

आलोचकrsquo म प िलखा ह ndash ldquoम कहना चा गा क समी ा कित और कितकार क

िलए उपयोगी ह सामा य पाठक क िलए उपयोगी ह एव ान क एक िविश शाखा

क प म अपन-आप म भी उपयोगी ह उसक इस प म अपनी वत स ा भी ह

परत इन सभी उपयोिगता क मल म आधारभत या उपजी साम ी वह रचना

िवशष ही होती ह rdquo18

आलोचना क उपयोिगता-अनपयोिगता क िवषय पर चचा करन क िलए कछ

ऐस बद पर िवचार करना आव यक ह िजसस आलोचना क अिनवायता को

प कया जा सक-

आलोचना मर जान पर भी सािह य जदा रहगा- यह एक क पना ह इसस

एक बात यह प होता ह क आलोचना या सािह य जीिवत व त ह इसम वह

चतना ह जो जीव ाणी म होता ह यह चतना य ह य क सािह य म

सािह यकार क सपण चतना क अिभ ि होती ह तब य द हम क पना भी कर

ल क आलोचना मर जायगी तो इसका सीधा अथ यही होगा क जनता क समाज

क एव सािह यकार क चतना मर जायगी इस मर ए समाज म सजना मक क

या कस कार चल पायगी अथात सजना मक पर भी उठ खड़ा होगा

सािह य म राजनीितक सामािजक धा मक आ थक सा कितक एव सािहि यक

सपण ि थितय का वणन कया जाता ह तथा इन सभी प रि थितय का अवलोकन

आलोचना क मा यम स ही सभव ह य द आलोचना ही न हो तब उन प रि थितय

का सही आकलन कस होगा सािह य म सािह यकार क भावना िवचार एव

क पना क अिभ ि कभी शोक क होती ह कभी हष क होती ह तथा कभी वह

सावभौिमकता क िलए होती ह जब हम उसक सपण ि थित क जनकारी लना

53

चाहत ह तब हम आलोचना क आव यकता पड़ती ह कहन का ता पय यह ह क

य द सािह य को जीिवत रखना ह तब आलोचना क मर जान क क पना अधरी ह

ाचीन काल स आलोचना होती रही ह उस समय आलोचक और रचनाकार

सवथा िभ आ करत थ धीर-धीर यह दरी आधिनक काल तक आत-आत ख म सा

हो गया ह आलोचना आज ग क अनक कार क िवधा म स एक ह पहल यह

माना जाता था क जो आलोचना करत ह व रचना नह कर सकत आज बौि क

जीवन म यह माग क जा रही ह क रचनाकार ही आलोचना कर

का का आ वादन आलोचना स न घटता ह न बढ़ता ह ndash यह बात तो

सतही तर पर स य लगती ह पर इसक मम को हम उधड़ कर दख तो आलोचना

सािह य क िलए अिनवाय ह यह कहना न होगा क हर पाठक क समझ सोच एव

भाव क गहराई तक प चना आसान नह ह िजस मम को सामा य पाठक नह

समझ पात उस जगह तक प चन का काय आलोचक करता ह िशवदान सह

चौहान का मानना ह ndash ldquo कसी कित को पढ़कर उस पर जो भाव पड़ता ह कसी

अ य पाठक परपड़ा भाव सवथा वसा ही नह हो सकता आलोचक भी एक ऐसा

ही िविश पाठक ह- इसिलए उसक आलोचना उस पर पड़ िविश भाव को ही

कर सकती ह ऐसी ि थित म इन िविभ अनभितय कितय भाव म कोई

सामा य त व हो ही या सकता ह िजसका षण या म याकन कया जाए rdquo19 यह

ठीक ह क आलोचना स रचना क आ वाद म अतर नह होता पर िजसक ारा

आ वादन कया जाता ह वह कतना व थ ह कतना तद त ह इस पर भी यान

क आव यकता ह जीभ पर कसी व त को रखन पर उस व त का वाद न घटता

ह न बढ़ता ह नाक क पास सगध बदल नह जाती िजतनी जीभ या नाक व थ

होगी उतना ही वाद पण प स िलया जा सकता ह जहा तक रचना का सवाल

ह तो जीभ और नाक का काय आलोचक करता ह आलोचक मलत एक िवशष

54

कार का पाठक होता ह हाला क पाठक ही आलोचक होता ह फर भी पाठक और

आलोचक म ताि वक फक ह पाठन क ज रय आलोचक उसक छप ए रह य को भी

खोल कर समाज क सामन प कर दता ह आचाय कसरी कमार न भी आलोचक

को पाठक मानत ह पर आलोचक और पाठक म अतर प कया ह उनका मानना

ह ndash ldquoसामा य पाठक और आलोचक क आ वादन म कछ वसा फक ह जसा द तावज

पर अगठ क छाप लगाना और पढ़कर द तावज करन का ह rdquo20 प प स आचाय

कसरी कमार न पाठक को ही आलोचक मानत ह पर उनका पाठक सामा य पाठक

नह ह एक िवशष कार का पाठक होता ह और चौहानजी न भी िविश पाठक को

ही आलोचक मानत ह

सािह य का आ वादन वयि क तर पर होता ह आलोचक सािह य का

रसा वादन वयि क तर पर ही हण करता ह आलोचक एक सिनि त मानदड

थािपत करना चाहता ह य द कसी िवचार-धारा या वाद स भािवत होकर

मानदड थािपत करता ह तब वह मानदड असमीचीन हो जाता ह आलोचक य द

पवा ह स भािवत वाद क आधार पर अपना मानदड थािपत करता ह तब वह

उस कित का सा यक म याकन नह कर पायगा डॉ िव नाथ साद न इस त य

को प करत ए िलखा ह ndash ldquoउ क आलोचना पवा ह स बचकर चलती ह और

ऐसा तभी सभव ह जब आलोचक का एक पाव अपन यग म तथा एक पाव लखक क

यग म हो अथवा उसक एक आख रस सवदना पर हो तथा दसरी आख लखक क

भाव-िनवदन पर इसस आलोचना क म ामक म याकन क सभावना नह

रहती rdquo21 आलोचना क िलए एक मानदड या फामला क थापना कर उस पर

आलोचना करना ब त क ठन काय ह आलोचना का कोई मानदड तभी सराहनीय

ह जब तक वह कसी िवचारधारा एव वाद स कोई सबध नह रखता

55

पहल सािह य आ तब आलोचना िशवदान सह चौहान न प िलखा ह

क ndash ldquoसािह य स ही आलोचना ह आलोचना स सािह य नह ह rdquo22 इस िवषय पर

चौहानजी न आपना मह वपण िवचार कट कया ह कहन का ता पय यह ह क

वद बड़ा क लबद कद बड़ा क पद या यह भी उठ सकता ह क पहल मग ई

क अड़ा पहल बीज आ क पड़ यह िवचरणीय नह ह यह अपन-अपन

अनभव क बात ह इस कार उ का िहसाब सािह य और आलोचना पर करना

उिचत नह िजस कार मन य क अिनवायता क िलए सािह य िलखा गया उसी

अिनवायता क िलए ही आलोचना उ म सािह य बड़ी ह क आलोचना यह

िववादा पद ह यह भी हम कह सकत ह क सािह यकार बड़ा ह क सािह य

या आलोचक बड़ा ह क आलोचना सि बड़ी ह क सि क ा य ब त उपय

नह ह इस कार सािह य और आलोचना अपनी-अपनी अिनवायता क िलए

अपनी-अपनी जगह पर बड़ी ह

िन कष- आलोचक सािह य सािह यकार और समाज क ित ितब होता

ह आलोचना गण-दोष िववचन सराहना-भ सना और प तक समी ा नह ह वह

सजन और चतन क भी िवधा ह वह जो ग रची जाती ह उस कथा-कहानी स

तौला नह जा सकता ह वह कित और कितकार क अित र सदव एक तीसरी

शि क खोज करती ह कहानी किवता नाटक उप यास या ग क अ य िवधा

म एक आलोचक को कित क साथ तीन तर खोलन होत ह पहला िजस िवधा म

कित ह उस िवधा क त व उस कित का मानक माप-दड या ह दसरी कित क शली

एव स दय िववचन और िव यास कस कार आ ह और तीसरा प ह उसक

आत रक चतना उसका मम उसम िनिहत सवदना िवचार और क पनाशीलता जो

कित का ि व रचती ह इन तीन त व क आधार पर जब आलोचक कितगत

आलोचना करता ह तब कित क िलए आलोचना अिनवाय हो जाता ह

56

आलोचना एक सजन या ह

सािह य और आलोचना का सबध अ यो या ीत ह जो सािह य क रचना

या ह वही आलोचना का फक मा इतना ह क सािह य का ल य समाज

होता ह और आलोचना का ल य रचना िशवदान सह चौहान न इस बात को प

करत ए कहत ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर स

िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार ह इसिलए इस आप शा ीय वग करण क तरह अिमट और अल य न

मान ल rdquo23 अत रचना क सजन या को जान िबना आलोचना क सजन या

को अ छी तरह समझी नह जा सकती ह

सािह य वह व त ह िजसम मनोभावा मक क पना मक बौि क तथा

रचना मक त व का समावश होता ह सािह य सजन क या क अतगत

क पना बि भाव तथा शली का होना अिनवाय ह यह उठता ह क

सािह यकार क मल रणा या होती ह िजसक कारण सािह यकार को इन त व

का सहारा लना पड़ता ह सीध स हम कह सकत ह क वह समाज म घटी घटना

क अनभित ह अनभित हम घटना क प ा य करत ह तथा अनभित रचना स पव

हमार दय म कट होती ह जस िबना दख क सख का अनभव नह होता ठीक

उसी कार िबना सख-दख स रचना दोन का िम ण ही का ह हदी क िस

आलोचक आचाय नददलार वाजपयी न lsquoसािह य का योजन आ मानभितrsquo म

िलखा ह ndash ldquoका क रणा अनभित स िमलती ह यह वत एक अनभित त य ह

गो वामी तलसीदास न रामच रतमानस का िनमाण करत समय िलखा था ndash

57

lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

58

मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

59

रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

61

सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

62

(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

49

ि सोचन और न सोचन म वत होता ह ठीक इसी कार रचनाकार रचना

करन और न करन म वत होता ह पाठक पढ़न और न पढ़न म वत ह और

आलोचक आलोचना करन और न करन म वत ह तब यह िनि त ह क

रचनाकार पाठक और आलोचक वत ता क िलए नह दािय व क िलए जीत ह यह

दािय व अपन-आप क ित रचना क ित रचनाकार क ित समाज क ित रा

क ित तथा िव क ित होता ह अथात दािय व क तर पर आलोचक रचनाकार

तथा पाठक म कोई िवशष अतर नह होता ह िशवदान सह चौहान एक समथ

आलोचक को समथ रचनाकार और समथ रचनाकार को समथ आलोचक मानत ह

उनका प कहना ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर

स िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार हrdquo15 आग चौहान जी न आलोचक क आलोचना करत ए आलोचक क

कई िणया बतात ह जस- सािह य क अनक िवधा पर िलखी आलोचना

अ यापक य आलोचना प -पि का म ित मास नई प तक क र प तक

क सपादक य क प म िलखी गयी आलोचना आ द आलोचक क दािय व का

कवल उनक िलए ही उठता ह जो इन दोन िणय स िभ णी क आलोचक ह

आलोचक का सबध सािह य स होता ह न क िव ान स य द हम व ािनक

श दावली म पानी को H2O कहत ह तो वह ससार म एक ही नाम स (H2O) जाना

जाता ह परत सािह य म lsquoपानीrsquo श द का योग एक जसा नह होता वह कह नीर

कह जल कह मघ कह वि कह चमक कह व-पदाथ कह मान- ित ा या

यश बन जाता ह इस कार पानी का अनक अथ होन क कारण उिचत अथ बोध क

िलए आलोचना अिनवाय ह कहन का ता पय यह ह क आलोचना का सबध

सािह य स ह न क िव ान स कला क आलोचना को िव ान भी मान सकत ह

आलोचना सािह य क िलए कतना अिनवाय ह यह िवचरणीय ह

50

कोई भी सािह यक िवधा कसी एक ि क अपनी सपि नह होती वह

चाह उसक ारा ही िलखी गयी य न हो पर वह उस भाषा क सम त ि य क

िलए हो जाती ह जो उस भाषा क जनकार ह रचनाकार रचना को वत प स

रचता ह फर भी उस सामािजक दािय व एव या का भी यान रखना पड़ता ह

कोई भी रचनाकार अपनी रचना क मा यम स त कालीन प रि थित एव सा कितक

या को बचाय रखन क िलए रचना क सि करता ह एक कार स पाठक ही

आलोचक होता ह lsquoरचनाrsquo क िलए रचनाकार पाठक और आलोचक य तीन

अिनवाय अग ह य द रचना ह तो पाठक ह ग और पाठक ह तो आलोचना अव य

ह गी य द पाठक नह ह तब रचना कसी काम क नह कारण रचनाकार रचना

को अपन िलए नह िलखता इस कार रचना क िलए रक और कारण दोन

पाठक ही होत ह जो भी हो रचनाकार पाठक तथा आलोचक तीन एक-दसर क

आिनवाय अग होत ए भी अलग- अलग वत अि त व रखत ह इसी कारण

रचनाकार वत प स वात सख आ मानद पाता ह आलोचक एक िविश

पाठक होता ह रमश दव न अपन एक लख म िलखा ह ndash ldquoएक बड़ा यापक वग ह

जो अपन क ाई तर तक क रचना का आ वादा मक िववचन करना ही

आलोचना मानता ह यह अव य ह क उसक पास आलोचना िस ात क प भिम

होती ह और स ाितक व आलोचना क मानक या मानदड अपना कर वह रचना क

आलोचना करता ह ऐसा आलोचक कॉट ज स क तरह यह कह सकता ह क य द

नदी पर पल बनान क काम क जाच करायी जायगी तो उसक इजीिनयर को बलाया

जायगा ल कन सािह य क जाच करन क िलए उसक रचनाकार क बजाय आलोचक

को रचना स पी जायगी जहा आलोचना एक सीमा बन गई ह रचना क जाच क

तीन आधार य नह हो सकत ndash एक वह पाठक जो कवल पढ़ता ह आनद लता या

ऊबता ह कत उसको आनद या ऊब ही उसका पाठ ह िजस वह िलख कर

51

नह करता ऐसा पाठक िसफ पाठक ही बना रहता ह दसरा होता ह रचनाकार

वय जो कई बार वय अपनी रचना क भद-अभद खोलता ह और रचना क कन-

कन दबाव तनाव भािषक चनौितय अ द स उस जझना पड़ा ह यह प करता

ह इसिलए किवता स ह क साथ भिमका वय िलखन क णाली बड़-बड़

रचनाकार न अपनायी ह तीसरा ह श आलोचक जो रचना क ित अन य क

बजाय अ य भाव स कट होता ह rdquo16 रचनाकार िवषय सगठन क िलए सवथा

वत होता ह वह कसी भी िवषय का चयन कसी भी ि थित म कर सकता ह पर

आलोचक क िलए यह वत ता नह ह य क वह कसी िनि त रचनाकार क

रचना क िवषय पर ही स यक िवचार कट कर सकता ह इसक आग उस छट नह

ह आलोचक उस रचना क तठ थ होकर रचना क शि और सीमा का उ ाटन

करता ह वह रचना क ित अपना दािय व िनभाता ह अपन इस दािय व को

िनभात ए आलोचक रचना क उपयोिगता एव ासिगकता पर भी जोड़ दता ह

िशवदान सह चौहान न प िलखा ह ndash ldquoसािह य का हर पाठक एक कार स

आलोचक होता ह वह कसी कहानी या किवता को पढ़त ही तरत अपना मत कट

कर दता ह क वह अ छी ह बरी ह या असदर ह आलोचक हम उस ही कहत ह

िजसम अपनी ि गत ित या को व तपरक िनणय क साथ समि वत करन क

मता हो और जो रचना क िववचन ारा अपन अनभव-समि वत िनणय को प

अिभ ि दकर साधारण पाठक क दि को भी ि गत ित या क तल स

उठाकर ापक और व तपरक बना सक ता क व रचना स उन सार चतना-िवकासी

म य को ा कर सक जो उसम िनिहत हrdquo17 िनप आलोचना स रचना का

िवकास तो होता ही ह साथ ही साथ रचनाकार क ि व का भी ितफलन होता

ह तथा उसक िवचार एव भाव स समाज का त यदशन भी होता ह यह आलोचना

करन क उपरत ही पता चलता ह क कित या कितकार समाज क िलए कतना

52

उपयोगी ह इस िवषय पर दवीशकर अव थी न अपन एक लख lsquoरचना और

आलोचकrsquo म प िलखा ह ndash ldquoम कहना चा गा क समी ा कित और कितकार क

िलए उपयोगी ह सामा य पाठक क िलए उपयोगी ह एव ान क एक िविश शाखा

क प म अपन-आप म भी उपयोगी ह उसक इस प म अपनी वत स ा भी ह

परत इन सभी उपयोिगता क मल म आधारभत या उपजी साम ी वह रचना

िवशष ही होती ह rdquo18

आलोचना क उपयोिगता-अनपयोिगता क िवषय पर चचा करन क िलए कछ

ऐस बद पर िवचार करना आव यक ह िजसस आलोचना क अिनवायता को

प कया जा सक-

आलोचना मर जान पर भी सािह य जदा रहगा- यह एक क पना ह इसस

एक बात यह प होता ह क आलोचना या सािह य जीिवत व त ह इसम वह

चतना ह जो जीव ाणी म होता ह यह चतना य ह य क सािह य म

सािह यकार क सपण चतना क अिभ ि होती ह तब य द हम क पना भी कर

ल क आलोचना मर जायगी तो इसका सीधा अथ यही होगा क जनता क समाज

क एव सािह यकार क चतना मर जायगी इस मर ए समाज म सजना मक क

या कस कार चल पायगी अथात सजना मक पर भी उठ खड़ा होगा

सािह य म राजनीितक सामािजक धा मक आ थक सा कितक एव सािहि यक

सपण ि थितय का वणन कया जाता ह तथा इन सभी प रि थितय का अवलोकन

आलोचना क मा यम स ही सभव ह य द आलोचना ही न हो तब उन प रि थितय

का सही आकलन कस होगा सािह य म सािह यकार क भावना िवचार एव

क पना क अिभ ि कभी शोक क होती ह कभी हष क होती ह तथा कभी वह

सावभौिमकता क िलए होती ह जब हम उसक सपण ि थित क जनकारी लना

53

चाहत ह तब हम आलोचना क आव यकता पड़ती ह कहन का ता पय यह ह क

य द सािह य को जीिवत रखना ह तब आलोचना क मर जान क क पना अधरी ह

ाचीन काल स आलोचना होती रही ह उस समय आलोचक और रचनाकार

सवथा िभ आ करत थ धीर-धीर यह दरी आधिनक काल तक आत-आत ख म सा

हो गया ह आलोचना आज ग क अनक कार क िवधा म स एक ह पहल यह

माना जाता था क जो आलोचना करत ह व रचना नह कर सकत आज बौि क

जीवन म यह माग क जा रही ह क रचनाकार ही आलोचना कर

का का आ वादन आलोचना स न घटता ह न बढ़ता ह ndash यह बात तो

सतही तर पर स य लगती ह पर इसक मम को हम उधड़ कर दख तो आलोचना

सािह य क िलए अिनवाय ह यह कहना न होगा क हर पाठक क समझ सोच एव

भाव क गहराई तक प चना आसान नह ह िजस मम को सामा य पाठक नह

समझ पात उस जगह तक प चन का काय आलोचक करता ह िशवदान सह

चौहान का मानना ह ndash ldquo कसी कित को पढ़कर उस पर जो भाव पड़ता ह कसी

अ य पाठक परपड़ा भाव सवथा वसा ही नह हो सकता आलोचक भी एक ऐसा

ही िविश पाठक ह- इसिलए उसक आलोचना उस पर पड़ िविश भाव को ही

कर सकती ह ऐसी ि थित म इन िविभ अनभितय कितय भाव म कोई

सामा य त व हो ही या सकता ह िजसका षण या म याकन कया जाए rdquo19 यह

ठीक ह क आलोचना स रचना क आ वाद म अतर नह होता पर िजसक ारा

आ वादन कया जाता ह वह कतना व थ ह कतना तद त ह इस पर भी यान

क आव यकता ह जीभ पर कसी व त को रखन पर उस व त का वाद न घटता

ह न बढ़ता ह नाक क पास सगध बदल नह जाती िजतनी जीभ या नाक व थ

होगी उतना ही वाद पण प स िलया जा सकता ह जहा तक रचना का सवाल

ह तो जीभ और नाक का काय आलोचक करता ह आलोचक मलत एक िवशष

54

कार का पाठक होता ह हाला क पाठक ही आलोचक होता ह फर भी पाठक और

आलोचक म ताि वक फक ह पाठन क ज रय आलोचक उसक छप ए रह य को भी

खोल कर समाज क सामन प कर दता ह आचाय कसरी कमार न भी आलोचक

को पाठक मानत ह पर आलोचक और पाठक म अतर प कया ह उनका मानना

ह ndash ldquoसामा य पाठक और आलोचक क आ वादन म कछ वसा फक ह जसा द तावज

पर अगठ क छाप लगाना और पढ़कर द तावज करन का ह rdquo20 प प स आचाय

कसरी कमार न पाठक को ही आलोचक मानत ह पर उनका पाठक सामा य पाठक

नह ह एक िवशष कार का पाठक होता ह और चौहानजी न भी िविश पाठक को

ही आलोचक मानत ह

सािह य का आ वादन वयि क तर पर होता ह आलोचक सािह य का

रसा वादन वयि क तर पर ही हण करता ह आलोचक एक सिनि त मानदड

थािपत करना चाहता ह य द कसी िवचार-धारा या वाद स भािवत होकर

मानदड थािपत करता ह तब वह मानदड असमीचीन हो जाता ह आलोचक य द

पवा ह स भािवत वाद क आधार पर अपना मानदड थािपत करता ह तब वह

उस कित का सा यक म याकन नह कर पायगा डॉ िव नाथ साद न इस त य

को प करत ए िलखा ह ndash ldquoउ क आलोचना पवा ह स बचकर चलती ह और

ऐसा तभी सभव ह जब आलोचक का एक पाव अपन यग म तथा एक पाव लखक क

यग म हो अथवा उसक एक आख रस सवदना पर हो तथा दसरी आख लखक क

भाव-िनवदन पर इसस आलोचना क म ामक म याकन क सभावना नह

रहती rdquo21 आलोचना क िलए एक मानदड या फामला क थापना कर उस पर

आलोचना करना ब त क ठन काय ह आलोचना का कोई मानदड तभी सराहनीय

ह जब तक वह कसी िवचारधारा एव वाद स कोई सबध नह रखता

55

पहल सािह य आ तब आलोचना िशवदान सह चौहान न प िलखा ह

क ndash ldquoसािह य स ही आलोचना ह आलोचना स सािह य नह ह rdquo22 इस िवषय पर

चौहानजी न आपना मह वपण िवचार कट कया ह कहन का ता पय यह ह क

वद बड़ा क लबद कद बड़ा क पद या यह भी उठ सकता ह क पहल मग ई

क अड़ा पहल बीज आ क पड़ यह िवचरणीय नह ह यह अपन-अपन

अनभव क बात ह इस कार उ का िहसाब सािह य और आलोचना पर करना

उिचत नह िजस कार मन य क अिनवायता क िलए सािह य िलखा गया उसी

अिनवायता क िलए ही आलोचना उ म सािह य बड़ी ह क आलोचना यह

िववादा पद ह यह भी हम कह सकत ह क सािह यकार बड़ा ह क सािह य

या आलोचक बड़ा ह क आलोचना सि बड़ी ह क सि क ा य ब त उपय

नह ह इस कार सािह य और आलोचना अपनी-अपनी अिनवायता क िलए

अपनी-अपनी जगह पर बड़ी ह

िन कष- आलोचक सािह य सािह यकार और समाज क ित ितब होता

ह आलोचना गण-दोष िववचन सराहना-भ सना और प तक समी ा नह ह वह

सजन और चतन क भी िवधा ह वह जो ग रची जाती ह उस कथा-कहानी स

तौला नह जा सकता ह वह कित और कितकार क अित र सदव एक तीसरी

शि क खोज करती ह कहानी किवता नाटक उप यास या ग क अ य िवधा

म एक आलोचक को कित क साथ तीन तर खोलन होत ह पहला िजस िवधा म

कित ह उस िवधा क त व उस कित का मानक माप-दड या ह दसरी कित क शली

एव स दय िववचन और िव यास कस कार आ ह और तीसरा प ह उसक

आत रक चतना उसका मम उसम िनिहत सवदना िवचार और क पनाशीलता जो

कित का ि व रचती ह इन तीन त व क आधार पर जब आलोचक कितगत

आलोचना करता ह तब कित क िलए आलोचना अिनवाय हो जाता ह

56

आलोचना एक सजन या ह

सािह य और आलोचना का सबध अ यो या ीत ह जो सािह य क रचना

या ह वही आलोचना का फक मा इतना ह क सािह य का ल य समाज

होता ह और आलोचना का ल य रचना िशवदान सह चौहान न इस बात को प

करत ए कहत ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर स

िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार ह इसिलए इस आप शा ीय वग करण क तरह अिमट और अल य न

मान ल rdquo23 अत रचना क सजन या को जान िबना आलोचना क सजन या

को अ छी तरह समझी नह जा सकती ह

सािह य वह व त ह िजसम मनोभावा मक क पना मक बौि क तथा

रचना मक त व का समावश होता ह सािह य सजन क या क अतगत

क पना बि भाव तथा शली का होना अिनवाय ह यह उठता ह क

सािह यकार क मल रणा या होती ह िजसक कारण सािह यकार को इन त व

का सहारा लना पड़ता ह सीध स हम कह सकत ह क वह समाज म घटी घटना

क अनभित ह अनभित हम घटना क प ा य करत ह तथा अनभित रचना स पव

हमार दय म कट होती ह जस िबना दख क सख का अनभव नह होता ठीक

उसी कार िबना सख-दख स रचना दोन का िम ण ही का ह हदी क िस

आलोचक आचाय नददलार वाजपयी न lsquoसािह य का योजन आ मानभितrsquo म

िलखा ह ndash ldquoका क रणा अनभित स िमलती ह यह वत एक अनभित त य ह

गो वामी तलसीदास न रामच रतमानस का िनमाण करत समय िलखा था ndash

57

lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

58

मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

59

रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

61

सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

62

(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

50

कोई भी सािह यक िवधा कसी एक ि क अपनी सपि नह होती वह

चाह उसक ारा ही िलखी गयी य न हो पर वह उस भाषा क सम त ि य क

िलए हो जाती ह जो उस भाषा क जनकार ह रचनाकार रचना को वत प स

रचता ह फर भी उस सामािजक दािय व एव या का भी यान रखना पड़ता ह

कोई भी रचनाकार अपनी रचना क मा यम स त कालीन प रि थित एव सा कितक

या को बचाय रखन क िलए रचना क सि करता ह एक कार स पाठक ही

आलोचक होता ह lsquoरचनाrsquo क िलए रचनाकार पाठक और आलोचक य तीन

अिनवाय अग ह य द रचना ह तो पाठक ह ग और पाठक ह तो आलोचना अव य

ह गी य द पाठक नह ह तब रचना कसी काम क नह कारण रचनाकार रचना

को अपन िलए नह िलखता इस कार रचना क िलए रक और कारण दोन

पाठक ही होत ह जो भी हो रचनाकार पाठक तथा आलोचक तीन एक-दसर क

आिनवाय अग होत ए भी अलग- अलग वत अि त व रखत ह इसी कारण

रचनाकार वत प स वात सख आ मानद पाता ह आलोचक एक िविश

पाठक होता ह रमश दव न अपन एक लख म िलखा ह ndash ldquoएक बड़ा यापक वग ह

जो अपन क ाई तर तक क रचना का आ वादा मक िववचन करना ही

आलोचना मानता ह यह अव य ह क उसक पास आलोचना िस ात क प भिम

होती ह और स ाितक व आलोचना क मानक या मानदड अपना कर वह रचना क

आलोचना करता ह ऐसा आलोचक कॉट ज स क तरह यह कह सकता ह क य द

नदी पर पल बनान क काम क जाच करायी जायगी तो उसक इजीिनयर को बलाया

जायगा ल कन सािह य क जाच करन क िलए उसक रचनाकार क बजाय आलोचक

को रचना स पी जायगी जहा आलोचना एक सीमा बन गई ह रचना क जाच क

तीन आधार य नह हो सकत ndash एक वह पाठक जो कवल पढ़ता ह आनद लता या

ऊबता ह कत उसको आनद या ऊब ही उसका पाठ ह िजस वह िलख कर

51

नह करता ऐसा पाठक िसफ पाठक ही बना रहता ह दसरा होता ह रचनाकार

वय जो कई बार वय अपनी रचना क भद-अभद खोलता ह और रचना क कन-

कन दबाव तनाव भािषक चनौितय अ द स उस जझना पड़ा ह यह प करता

ह इसिलए किवता स ह क साथ भिमका वय िलखन क णाली बड़-बड़

रचनाकार न अपनायी ह तीसरा ह श आलोचक जो रचना क ित अन य क

बजाय अ य भाव स कट होता ह rdquo16 रचनाकार िवषय सगठन क िलए सवथा

वत होता ह वह कसी भी िवषय का चयन कसी भी ि थित म कर सकता ह पर

आलोचक क िलए यह वत ता नह ह य क वह कसी िनि त रचनाकार क

रचना क िवषय पर ही स यक िवचार कट कर सकता ह इसक आग उस छट नह

ह आलोचक उस रचना क तठ थ होकर रचना क शि और सीमा का उ ाटन

करता ह वह रचना क ित अपना दािय व िनभाता ह अपन इस दािय व को

िनभात ए आलोचक रचना क उपयोिगता एव ासिगकता पर भी जोड़ दता ह

िशवदान सह चौहान न प िलखा ह ndash ldquoसािह य का हर पाठक एक कार स

आलोचक होता ह वह कसी कहानी या किवता को पढ़त ही तरत अपना मत कट

कर दता ह क वह अ छी ह बरी ह या असदर ह आलोचक हम उस ही कहत ह

िजसम अपनी ि गत ित या को व तपरक िनणय क साथ समि वत करन क

मता हो और जो रचना क िववचन ारा अपन अनभव-समि वत िनणय को प

अिभ ि दकर साधारण पाठक क दि को भी ि गत ित या क तल स

उठाकर ापक और व तपरक बना सक ता क व रचना स उन सार चतना-िवकासी

म य को ा कर सक जो उसम िनिहत हrdquo17 िनप आलोचना स रचना का

िवकास तो होता ही ह साथ ही साथ रचनाकार क ि व का भी ितफलन होता

ह तथा उसक िवचार एव भाव स समाज का त यदशन भी होता ह यह आलोचना

करन क उपरत ही पता चलता ह क कित या कितकार समाज क िलए कतना

52

उपयोगी ह इस िवषय पर दवीशकर अव थी न अपन एक लख lsquoरचना और

आलोचकrsquo म प िलखा ह ndash ldquoम कहना चा गा क समी ा कित और कितकार क

िलए उपयोगी ह सामा य पाठक क िलए उपयोगी ह एव ान क एक िविश शाखा

क प म अपन-आप म भी उपयोगी ह उसक इस प म अपनी वत स ा भी ह

परत इन सभी उपयोिगता क मल म आधारभत या उपजी साम ी वह रचना

िवशष ही होती ह rdquo18

आलोचना क उपयोिगता-अनपयोिगता क िवषय पर चचा करन क िलए कछ

ऐस बद पर िवचार करना आव यक ह िजसस आलोचना क अिनवायता को

प कया जा सक-

आलोचना मर जान पर भी सािह य जदा रहगा- यह एक क पना ह इसस

एक बात यह प होता ह क आलोचना या सािह य जीिवत व त ह इसम वह

चतना ह जो जीव ाणी म होता ह यह चतना य ह य क सािह य म

सािह यकार क सपण चतना क अिभ ि होती ह तब य द हम क पना भी कर

ल क आलोचना मर जायगी तो इसका सीधा अथ यही होगा क जनता क समाज

क एव सािह यकार क चतना मर जायगी इस मर ए समाज म सजना मक क

या कस कार चल पायगी अथात सजना मक पर भी उठ खड़ा होगा

सािह य म राजनीितक सामािजक धा मक आ थक सा कितक एव सािहि यक

सपण ि थितय का वणन कया जाता ह तथा इन सभी प रि थितय का अवलोकन

आलोचना क मा यम स ही सभव ह य द आलोचना ही न हो तब उन प रि थितय

का सही आकलन कस होगा सािह य म सािह यकार क भावना िवचार एव

क पना क अिभ ि कभी शोक क होती ह कभी हष क होती ह तथा कभी वह

सावभौिमकता क िलए होती ह जब हम उसक सपण ि थित क जनकारी लना

53

चाहत ह तब हम आलोचना क आव यकता पड़ती ह कहन का ता पय यह ह क

य द सािह य को जीिवत रखना ह तब आलोचना क मर जान क क पना अधरी ह

ाचीन काल स आलोचना होती रही ह उस समय आलोचक और रचनाकार

सवथा िभ आ करत थ धीर-धीर यह दरी आधिनक काल तक आत-आत ख म सा

हो गया ह आलोचना आज ग क अनक कार क िवधा म स एक ह पहल यह

माना जाता था क जो आलोचना करत ह व रचना नह कर सकत आज बौि क

जीवन म यह माग क जा रही ह क रचनाकार ही आलोचना कर

का का आ वादन आलोचना स न घटता ह न बढ़ता ह ndash यह बात तो

सतही तर पर स य लगती ह पर इसक मम को हम उधड़ कर दख तो आलोचना

सािह य क िलए अिनवाय ह यह कहना न होगा क हर पाठक क समझ सोच एव

भाव क गहराई तक प चना आसान नह ह िजस मम को सामा य पाठक नह

समझ पात उस जगह तक प चन का काय आलोचक करता ह िशवदान सह

चौहान का मानना ह ndash ldquo कसी कित को पढ़कर उस पर जो भाव पड़ता ह कसी

अ य पाठक परपड़ा भाव सवथा वसा ही नह हो सकता आलोचक भी एक ऐसा

ही िविश पाठक ह- इसिलए उसक आलोचना उस पर पड़ िविश भाव को ही

कर सकती ह ऐसी ि थित म इन िविभ अनभितय कितय भाव म कोई

सामा य त व हो ही या सकता ह िजसका षण या म याकन कया जाए rdquo19 यह

ठीक ह क आलोचना स रचना क आ वाद म अतर नह होता पर िजसक ारा

आ वादन कया जाता ह वह कतना व थ ह कतना तद त ह इस पर भी यान

क आव यकता ह जीभ पर कसी व त को रखन पर उस व त का वाद न घटता

ह न बढ़ता ह नाक क पास सगध बदल नह जाती िजतनी जीभ या नाक व थ

होगी उतना ही वाद पण प स िलया जा सकता ह जहा तक रचना का सवाल

ह तो जीभ और नाक का काय आलोचक करता ह आलोचक मलत एक िवशष

54

कार का पाठक होता ह हाला क पाठक ही आलोचक होता ह फर भी पाठक और

आलोचक म ताि वक फक ह पाठन क ज रय आलोचक उसक छप ए रह य को भी

खोल कर समाज क सामन प कर दता ह आचाय कसरी कमार न भी आलोचक

को पाठक मानत ह पर आलोचक और पाठक म अतर प कया ह उनका मानना

ह ndash ldquoसामा य पाठक और आलोचक क आ वादन म कछ वसा फक ह जसा द तावज

पर अगठ क छाप लगाना और पढ़कर द तावज करन का ह rdquo20 प प स आचाय

कसरी कमार न पाठक को ही आलोचक मानत ह पर उनका पाठक सामा य पाठक

नह ह एक िवशष कार का पाठक होता ह और चौहानजी न भी िविश पाठक को

ही आलोचक मानत ह

सािह य का आ वादन वयि क तर पर होता ह आलोचक सािह य का

रसा वादन वयि क तर पर ही हण करता ह आलोचक एक सिनि त मानदड

थािपत करना चाहता ह य द कसी िवचार-धारा या वाद स भािवत होकर

मानदड थािपत करता ह तब वह मानदड असमीचीन हो जाता ह आलोचक य द

पवा ह स भािवत वाद क आधार पर अपना मानदड थािपत करता ह तब वह

उस कित का सा यक म याकन नह कर पायगा डॉ िव नाथ साद न इस त य

को प करत ए िलखा ह ndash ldquoउ क आलोचना पवा ह स बचकर चलती ह और

ऐसा तभी सभव ह जब आलोचक का एक पाव अपन यग म तथा एक पाव लखक क

यग म हो अथवा उसक एक आख रस सवदना पर हो तथा दसरी आख लखक क

भाव-िनवदन पर इसस आलोचना क म ामक म याकन क सभावना नह

रहती rdquo21 आलोचना क िलए एक मानदड या फामला क थापना कर उस पर

आलोचना करना ब त क ठन काय ह आलोचना का कोई मानदड तभी सराहनीय

ह जब तक वह कसी िवचारधारा एव वाद स कोई सबध नह रखता

55

पहल सािह य आ तब आलोचना िशवदान सह चौहान न प िलखा ह

क ndash ldquoसािह य स ही आलोचना ह आलोचना स सािह य नह ह rdquo22 इस िवषय पर

चौहानजी न आपना मह वपण िवचार कट कया ह कहन का ता पय यह ह क

वद बड़ा क लबद कद बड़ा क पद या यह भी उठ सकता ह क पहल मग ई

क अड़ा पहल बीज आ क पड़ यह िवचरणीय नह ह यह अपन-अपन

अनभव क बात ह इस कार उ का िहसाब सािह य और आलोचना पर करना

उिचत नह िजस कार मन य क अिनवायता क िलए सािह य िलखा गया उसी

अिनवायता क िलए ही आलोचना उ म सािह य बड़ी ह क आलोचना यह

िववादा पद ह यह भी हम कह सकत ह क सािह यकार बड़ा ह क सािह य

या आलोचक बड़ा ह क आलोचना सि बड़ी ह क सि क ा य ब त उपय

नह ह इस कार सािह य और आलोचना अपनी-अपनी अिनवायता क िलए

अपनी-अपनी जगह पर बड़ी ह

िन कष- आलोचक सािह य सािह यकार और समाज क ित ितब होता

ह आलोचना गण-दोष िववचन सराहना-भ सना और प तक समी ा नह ह वह

सजन और चतन क भी िवधा ह वह जो ग रची जाती ह उस कथा-कहानी स

तौला नह जा सकता ह वह कित और कितकार क अित र सदव एक तीसरी

शि क खोज करती ह कहानी किवता नाटक उप यास या ग क अ य िवधा

म एक आलोचक को कित क साथ तीन तर खोलन होत ह पहला िजस िवधा म

कित ह उस िवधा क त व उस कित का मानक माप-दड या ह दसरी कित क शली

एव स दय िववचन और िव यास कस कार आ ह और तीसरा प ह उसक

आत रक चतना उसका मम उसम िनिहत सवदना िवचार और क पनाशीलता जो

कित का ि व रचती ह इन तीन त व क आधार पर जब आलोचक कितगत

आलोचना करता ह तब कित क िलए आलोचना अिनवाय हो जाता ह

56

आलोचना एक सजन या ह

सािह य और आलोचना का सबध अ यो या ीत ह जो सािह य क रचना

या ह वही आलोचना का फक मा इतना ह क सािह य का ल य समाज

होता ह और आलोचना का ल य रचना िशवदान सह चौहान न इस बात को प

करत ए कहत ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर स

िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार ह इसिलए इस आप शा ीय वग करण क तरह अिमट और अल य न

मान ल rdquo23 अत रचना क सजन या को जान िबना आलोचना क सजन या

को अ छी तरह समझी नह जा सकती ह

सािह य वह व त ह िजसम मनोभावा मक क पना मक बौि क तथा

रचना मक त व का समावश होता ह सािह य सजन क या क अतगत

क पना बि भाव तथा शली का होना अिनवाय ह यह उठता ह क

सािह यकार क मल रणा या होती ह िजसक कारण सािह यकार को इन त व

का सहारा लना पड़ता ह सीध स हम कह सकत ह क वह समाज म घटी घटना

क अनभित ह अनभित हम घटना क प ा य करत ह तथा अनभित रचना स पव

हमार दय म कट होती ह जस िबना दख क सख का अनभव नह होता ठीक

उसी कार िबना सख-दख स रचना दोन का िम ण ही का ह हदी क िस

आलोचक आचाय नददलार वाजपयी न lsquoसािह य का योजन आ मानभितrsquo म

िलखा ह ndash ldquoका क रणा अनभित स िमलती ह यह वत एक अनभित त य ह

गो वामी तलसीदास न रामच रतमानस का िनमाण करत समय िलखा था ndash

57

lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

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मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

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रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

61

सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

62

(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

51

नह करता ऐसा पाठक िसफ पाठक ही बना रहता ह दसरा होता ह रचनाकार

वय जो कई बार वय अपनी रचना क भद-अभद खोलता ह और रचना क कन-

कन दबाव तनाव भािषक चनौितय अ द स उस जझना पड़ा ह यह प करता

ह इसिलए किवता स ह क साथ भिमका वय िलखन क णाली बड़-बड़

रचनाकार न अपनायी ह तीसरा ह श आलोचक जो रचना क ित अन य क

बजाय अ य भाव स कट होता ह rdquo16 रचनाकार िवषय सगठन क िलए सवथा

वत होता ह वह कसी भी िवषय का चयन कसी भी ि थित म कर सकता ह पर

आलोचक क िलए यह वत ता नह ह य क वह कसी िनि त रचनाकार क

रचना क िवषय पर ही स यक िवचार कट कर सकता ह इसक आग उस छट नह

ह आलोचक उस रचना क तठ थ होकर रचना क शि और सीमा का उ ाटन

करता ह वह रचना क ित अपना दािय व िनभाता ह अपन इस दािय व को

िनभात ए आलोचक रचना क उपयोिगता एव ासिगकता पर भी जोड़ दता ह

िशवदान सह चौहान न प िलखा ह ndash ldquoसािह य का हर पाठक एक कार स

आलोचक होता ह वह कसी कहानी या किवता को पढ़त ही तरत अपना मत कट

कर दता ह क वह अ छी ह बरी ह या असदर ह आलोचक हम उस ही कहत ह

िजसम अपनी ि गत ित या को व तपरक िनणय क साथ समि वत करन क

मता हो और जो रचना क िववचन ारा अपन अनभव-समि वत िनणय को प

अिभ ि दकर साधारण पाठक क दि को भी ि गत ित या क तल स

उठाकर ापक और व तपरक बना सक ता क व रचना स उन सार चतना-िवकासी

म य को ा कर सक जो उसम िनिहत हrdquo17 िनप आलोचना स रचना का

िवकास तो होता ही ह साथ ही साथ रचनाकार क ि व का भी ितफलन होता

ह तथा उसक िवचार एव भाव स समाज का त यदशन भी होता ह यह आलोचना

करन क उपरत ही पता चलता ह क कित या कितकार समाज क िलए कतना

52

उपयोगी ह इस िवषय पर दवीशकर अव थी न अपन एक लख lsquoरचना और

आलोचकrsquo म प िलखा ह ndash ldquoम कहना चा गा क समी ा कित और कितकार क

िलए उपयोगी ह सामा य पाठक क िलए उपयोगी ह एव ान क एक िविश शाखा

क प म अपन-आप म भी उपयोगी ह उसक इस प म अपनी वत स ा भी ह

परत इन सभी उपयोिगता क मल म आधारभत या उपजी साम ी वह रचना

िवशष ही होती ह rdquo18

आलोचना क उपयोिगता-अनपयोिगता क िवषय पर चचा करन क िलए कछ

ऐस बद पर िवचार करना आव यक ह िजसस आलोचना क अिनवायता को

प कया जा सक-

आलोचना मर जान पर भी सािह य जदा रहगा- यह एक क पना ह इसस

एक बात यह प होता ह क आलोचना या सािह य जीिवत व त ह इसम वह

चतना ह जो जीव ाणी म होता ह यह चतना य ह य क सािह य म

सािह यकार क सपण चतना क अिभ ि होती ह तब य द हम क पना भी कर

ल क आलोचना मर जायगी तो इसका सीधा अथ यही होगा क जनता क समाज

क एव सािह यकार क चतना मर जायगी इस मर ए समाज म सजना मक क

या कस कार चल पायगी अथात सजना मक पर भी उठ खड़ा होगा

सािह य म राजनीितक सामािजक धा मक आ थक सा कितक एव सािहि यक

सपण ि थितय का वणन कया जाता ह तथा इन सभी प रि थितय का अवलोकन

आलोचना क मा यम स ही सभव ह य द आलोचना ही न हो तब उन प रि थितय

का सही आकलन कस होगा सािह य म सािह यकार क भावना िवचार एव

क पना क अिभ ि कभी शोक क होती ह कभी हष क होती ह तथा कभी वह

सावभौिमकता क िलए होती ह जब हम उसक सपण ि थित क जनकारी लना

53

चाहत ह तब हम आलोचना क आव यकता पड़ती ह कहन का ता पय यह ह क

य द सािह य को जीिवत रखना ह तब आलोचना क मर जान क क पना अधरी ह

ाचीन काल स आलोचना होती रही ह उस समय आलोचक और रचनाकार

सवथा िभ आ करत थ धीर-धीर यह दरी आधिनक काल तक आत-आत ख म सा

हो गया ह आलोचना आज ग क अनक कार क िवधा म स एक ह पहल यह

माना जाता था क जो आलोचना करत ह व रचना नह कर सकत आज बौि क

जीवन म यह माग क जा रही ह क रचनाकार ही आलोचना कर

का का आ वादन आलोचना स न घटता ह न बढ़ता ह ndash यह बात तो

सतही तर पर स य लगती ह पर इसक मम को हम उधड़ कर दख तो आलोचना

सािह य क िलए अिनवाय ह यह कहना न होगा क हर पाठक क समझ सोच एव

भाव क गहराई तक प चना आसान नह ह िजस मम को सामा य पाठक नह

समझ पात उस जगह तक प चन का काय आलोचक करता ह िशवदान सह

चौहान का मानना ह ndash ldquo कसी कित को पढ़कर उस पर जो भाव पड़ता ह कसी

अ य पाठक परपड़ा भाव सवथा वसा ही नह हो सकता आलोचक भी एक ऐसा

ही िविश पाठक ह- इसिलए उसक आलोचना उस पर पड़ िविश भाव को ही

कर सकती ह ऐसी ि थित म इन िविभ अनभितय कितय भाव म कोई

सामा य त व हो ही या सकता ह िजसका षण या म याकन कया जाए rdquo19 यह

ठीक ह क आलोचना स रचना क आ वाद म अतर नह होता पर िजसक ारा

आ वादन कया जाता ह वह कतना व थ ह कतना तद त ह इस पर भी यान

क आव यकता ह जीभ पर कसी व त को रखन पर उस व त का वाद न घटता

ह न बढ़ता ह नाक क पास सगध बदल नह जाती िजतनी जीभ या नाक व थ

होगी उतना ही वाद पण प स िलया जा सकता ह जहा तक रचना का सवाल

ह तो जीभ और नाक का काय आलोचक करता ह आलोचक मलत एक िवशष

54

कार का पाठक होता ह हाला क पाठक ही आलोचक होता ह फर भी पाठक और

आलोचक म ताि वक फक ह पाठन क ज रय आलोचक उसक छप ए रह य को भी

खोल कर समाज क सामन प कर दता ह आचाय कसरी कमार न भी आलोचक

को पाठक मानत ह पर आलोचक और पाठक म अतर प कया ह उनका मानना

ह ndash ldquoसामा य पाठक और आलोचक क आ वादन म कछ वसा फक ह जसा द तावज

पर अगठ क छाप लगाना और पढ़कर द तावज करन का ह rdquo20 प प स आचाय

कसरी कमार न पाठक को ही आलोचक मानत ह पर उनका पाठक सामा य पाठक

नह ह एक िवशष कार का पाठक होता ह और चौहानजी न भी िविश पाठक को

ही आलोचक मानत ह

सािह य का आ वादन वयि क तर पर होता ह आलोचक सािह य का

रसा वादन वयि क तर पर ही हण करता ह आलोचक एक सिनि त मानदड

थािपत करना चाहता ह य द कसी िवचार-धारा या वाद स भािवत होकर

मानदड थािपत करता ह तब वह मानदड असमीचीन हो जाता ह आलोचक य द

पवा ह स भािवत वाद क आधार पर अपना मानदड थािपत करता ह तब वह

उस कित का सा यक म याकन नह कर पायगा डॉ िव नाथ साद न इस त य

को प करत ए िलखा ह ndash ldquoउ क आलोचना पवा ह स बचकर चलती ह और

ऐसा तभी सभव ह जब आलोचक का एक पाव अपन यग म तथा एक पाव लखक क

यग म हो अथवा उसक एक आख रस सवदना पर हो तथा दसरी आख लखक क

भाव-िनवदन पर इसस आलोचना क म ामक म याकन क सभावना नह

रहती rdquo21 आलोचना क िलए एक मानदड या फामला क थापना कर उस पर

आलोचना करना ब त क ठन काय ह आलोचना का कोई मानदड तभी सराहनीय

ह जब तक वह कसी िवचारधारा एव वाद स कोई सबध नह रखता

55

पहल सािह य आ तब आलोचना िशवदान सह चौहान न प िलखा ह

क ndash ldquoसािह य स ही आलोचना ह आलोचना स सािह य नह ह rdquo22 इस िवषय पर

चौहानजी न आपना मह वपण िवचार कट कया ह कहन का ता पय यह ह क

वद बड़ा क लबद कद बड़ा क पद या यह भी उठ सकता ह क पहल मग ई

क अड़ा पहल बीज आ क पड़ यह िवचरणीय नह ह यह अपन-अपन

अनभव क बात ह इस कार उ का िहसाब सािह य और आलोचना पर करना

उिचत नह िजस कार मन य क अिनवायता क िलए सािह य िलखा गया उसी

अिनवायता क िलए ही आलोचना उ म सािह य बड़ी ह क आलोचना यह

िववादा पद ह यह भी हम कह सकत ह क सािह यकार बड़ा ह क सािह य

या आलोचक बड़ा ह क आलोचना सि बड़ी ह क सि क ा य ब त उपय

नह ह इस कार सािह य और आलोचना अपनी-अपनी अिनवायता क िलए

अपनी-अपनी जगह पर बड़ी ह

िन कष- आलोचक सािह य सािह यकार और समाज क ित ितब होता

ह आलोचना गण-दोष िववचन सराहना-भ सना और प तक समी ा नह ह वह

सजन और चतन क भी िवधा ह वह जो ग रची जाती ह उस कथा-कहानी स

तौला नह जा सकता ह वह कित और कितकार क अित र सदव एक तीसरी

शि क खोज करती ह कहानी किवता नाटक उप यास या ग क अ य िवधा

म एक आलोचक को कित क साथ तीन तर खोलन होत ह पहला िजस िवधा म

कित ह उस िवधा क त व उस कित का मानक माप-दड या ह दसरी कित क शली

एव स दय िववचन और िव यास कस कार आ ह और तीसरा प ह उसक

आत रक चतना उसका मम उसम िनिहत सवदना िवचार और क पनाशीलता जो

कित का ि व रचती ह इन तीन त व क आधार पर जब आलोचक कितगत

आलोचना करता ह तब कित क िलए आलोचना अिनवाय हो जाता ह

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आलोचना एक सजन या ह

सािह य और आलोचना का सबध अ यो या ीत ह जो सािह य क रचना

या ह वही आलोचना का फक मा इतना ह क सािह य का ल य समाज

होता ह और आलोचना का ल य रचना िशवदान सह चौहान न इस बात को प

करत ए कहत ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर स

िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार ह इसिलए इस आप शा ीय वग करण क तरह अिमट और अल य न

मान ल rdquo23 अत रचना क सजन या को जान िबना आलोचना क सजन या

को अ छी तरह समझी नह जा सकती ह

सािह य वह व त ह िजसम मनोभावा मक क पना मक बौि क तथा

रचना मक त व का समावश होता ह सािह य सजन क या क अतगत

क पना बि भाव तथा शली का होना अिनवाय ह यह उठता ह क

सािह यकार क मल रणा या होती ह िजसक कारण सािह यकार को इन त व

का सहारा लना पड़ता ह सीध स हम कह सकत ह क वह समाज म घटी घटना

क अनभित ह अनभित हम घटना क प ा य करत ह तथा अनभित रचना स पव

हमार दय म कट होती ह जस िबना दख क सख का अनभव नह होता ठीक

उसी कार िबना सख-दख स रचना दोन का िम ण ही का ह हदी क िस

आलोचक आचाय नददलार वाजपयी न lsquoसािह य का योजन आ मानभितrsquo म

िलखा ह ndash ldquoका क रणा अनभित स िमलती ह यह वत एक अनभित त य ह

गो वामी तलसीदास न रामच रतमानस का िनमाण करत समय िलखा था ndash

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lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

58

मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

59

रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

61

सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

62

(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

52

उपयोगी ह इस िवषय पर दवीशकर अव थी न अपन एक लख lsquoरचना और

आलोचकrsquo म प िलखा ह ndash ldquoम कहना चा गा क समी ा कित और कितकार क

िलए उपयोगी ह सामा य पाठक क िलए उपयोगी ह एव ान क एक िविश शाखा

क प म अपन-आप म भी उपयोगी ह उसक इस प म अपनी वत स ा भी ह

परत इन सभी उपयोिगता क मल म आधारभत या उपजी साम ी वह रचना

िवशष ही होती ह rdquo18

आलोचना क उपयोिगता-अनपयोिगता क िवषय पर चचा करन क िलए कछ

ऐस बद पर िवचार करना आव यक ह िजसस आलोचना क अिनवायता को

प कया जा सक-

आलोचना मर जान पर भी सािह य जदा रहगा- यह एक क पना ह इसस

एक बात यह प होता ह क आलोचना या सािह य जीिवत व त ह इसम वह

चतना ह जो जीव ाणी म होता ह यह चतना य ह य क सािह य म

सािह यकार क सपण चतना क अिभ ि होती ह तब य द हम क पना भी कर

ल क आलोचना मर जायगी तो इसका सीधा अथ यही होगा क जनता क समाज

क एव सािह यकार क चतना मर जायगी इस मर ए समाज म सजना मक क

या कस कार चल पायगी अथात सजना मक पर भी उठ खड़ा होगा

सािह य म राजनीितक सामािजक धा मक आ थक सा कितक एव सािहि यक

सपण ि थितय का वणन कया जाता ह तथा इन सभी प रि थितय का अवलोकन

आलोचना क मा यम स ही सभव ह य द आलोचना ही न हो तब उन प रि थितय

का सही आकलन कस होगा सािह य म सािह यकार क भावना िवचार एव

क पना क अिभ ि कभी शोक क होती ह कभी हष क होती ह तथा कभी वह

सावभौिमकता क िलए होती ह जब हम उसक सपण ि थित क जनकारी लना

53

चाहत ह तब हम आलोचना क आव यकता पड़ती ह कहन का ता पय यह ह क

य द सािह य को जीिवत रखना ह तब आलोचना क मर जान क क पना अधरी ह

ाचीन काल स आलोचना होती रही ह उस समय आलोचक और रचनाकार

सवथा िभ आ करत थ धीर-धीर यह दरी आधिनक काल तक आत-आत ख म सा

हो गया ह आलोचना आज ग क अनक कार क िवधा म स एक ह पहल यह

माना जाता था क जो आलोचना करत ह व रचना नह कर सकत आज बौि क

जीवन म यह माग क जा रही ह क रचनाकार ही आलोचना कर

का का आ वादन आलोचना स न घटता ह न बढ़ता ह ndash यह बात तो

सतही तर पर स य लगती ह पर इसक मम को हम उधड़ कर दख तो आलोचना

सािह य क िलए अिनवाय ह यह कहना न होगा क हर पाठक क समझ सोच एव

भाव क गहराई तक प चना आसान नह ह िजस मम को सामा य पाठक नह

समझ पात उस जगह तक प चन का काय आलोचक करता ह िशवदान सह

चौहान का मानना ह ndash ldquo कसी कित को पढ़कर उस पर जो भाव पड़ता ह कसी

अ य पाठक परपड़ा भाव सवथा वसा ही नह हो सकता आलोचक भी एक ऐसा

ही िविश पाठक ह- इसिलए उसक आलोचना उस पर पड़ िविश भाव को ही

कर सकती ह ऐसी ि थित म इन िविभ अनभितय कितय भाव म कोई

सामा य त व हो ही या सकता ह िजसका षण या म याकन कया जाए rdquo19 यह

ठीक ह क आलोचना स रचना क आ वाद म अतर नह होता पर िजसक ारा

आ वादन कया जाता ह वह कतना व थ ह कतना तद त ह इस पर भी यान

क आव यकता ह जीभ पर कसी व त को रखन पर उस व त का वाद न घटता

ह न बढ़ता ह नाक क पास सगध बदल नह जाती िजतनी जीभ या नाक व थ

होगी उतना ही वाद पण प स िलया जा सकता ह जहा तक रचना का सवाल

ह तो जीभ और नाक का काय आलोचक करता ह आलोचक मलत एक िवशष

54

कार का पाठक होता ह हाला क पाठक ही आलोचक होता ह फर भी पाठक और

आलोचक म ताि वक फक ह पाठन क ज रय आलोचक उसक छप ए रह य को भी

खोल कर समाज क सामन प कर दता ह आचाय कसरी कमार न भी आलोचक

को पाठक मानत ह पर आलोचक और पाठक म अतर प कया ह उनका मानना

ह ndash ldquoसामा य पाठक और आलोचक क आ वादन म कछ वसा फक ह जसा द तावज

पर अगठ क छाप लगाना और पढ़कर द तावज करन का ह rdquo20 प प स आचाय

कसरी कमार न पाठक को ही आलोचक मानत ह पर उनका पाठक सामा य पाठक

नह ह एक िवशष कार का पाठक होता ह और चौहानजी न भी िविश पाठक को

ही आलोचक मानत ह

सािह य का आ वादन वयि क तर पर होता ह आलोचक सािह य का

रसा वादन वयि क तर पर ही हण करता ह आलोचक एक सिनि त मानदड

थािपत करना चाहता ह य द कसी िवचार-धारा या वाद स भािवत होकर

मानदड थािपत करता ह तब वह मानदड असमीचीन हो जाता ह आलोचक य द

पवा ह स भािवत वाद क आधार पर अपना मानदड थािपत करता ह तब वह

उस कित का सा यक म याकन नह कर पायगा डॉ िव नाथ साद न इस त य

को प करत ए िलखा ह ndash ldquoउ क आलोचना पवा ह स बचकर चलती ह और

ऐसा तभी सभव ह जब आलोचक का एक पाव अपन यग म तथा एक पाव लखक क

यग म हो अथवा उसक एक आख रस सवदना पर हो तथा दसरी आख लखक क

भाव-िनवदन पर इसस आलोचना क म ामक म याकन क सभावना नह

रहती rdquo21 आलोचना क िलए एक मानदड या फामला क थापना कर उस पर

आलोचना करना ब त क ठन काय ह आलोचना का कोई मानदड तभी सराहनीय

ह जब तक वह कसी िवचारधारा एव वाद स कोई सबध नह रखता

55

पहल सािह य आ तब आलोचना िशवदान सह चौहान न प िलखा ह

क ndash ldquoसािह य स ही आलोचना ह आलोचना स सािह य नह ह rdquo22 इस िवषय पर

चौहानजी न आपना मह वपण िवचार कट कया ह कहन का ता पय यह ह क

वद बड़ा क लबद कद बड़ा क पद या यह भी उठ सकता ह क पहल मग ई

क अड़ा पहल बीज आ क पड़ यह िवचरणीय नह ह यह अपन-अपन

अनभव क बात ह इस कार उ का िहसाब सािह य और आलोचना पर करना

उिचत नह िजस कार मन य क अिनवायता क िलए सािह य िलखा गया उसी

अिनवायता क िलए ही आलोचना उ म सािह य बड़ी ह क आलोचना यह

िववादा पद ह यह भी हम कह सकत ह क सािह यकार बड़ा ह क सािह य

या आलोचक बड़ा ह क आलोचना सि बड़ी ह क सि क ा य ब त उपय

नह ह इस कार सािह य और आलोचना अपनी-अपनी अिनवायता क िलए

अपनी-अपनी जगह पर बड़ी ह

िन कष- आलोचक सािह य सािह यकार और समाज क ित ितब होता

ह आलोचना गण-दोष िववचन सराहना-भ सना और प तक समी ा नह ह वह

सजन और चतन क भी िवधा ह वह जो ग रची जाती ह उस कथा-कहानी स

तौला नह जा सकता ह वह कित और कितकार क अित र सदव एक तीसरी

शि क खोज करती ह कहानी किवता नाटक उप यास या ग क अ य िवधा

म एक आलोचक को कित क साथ तीन तर खोलन होत ह पहला िजस िवधा म

कित ह उस िवधा क त व उस कित का मानक माप-दड या ह दसरी कित क शली

एव स दय िववचन और िव यास कस कार आ ह और तीसरा प ह उसक

आत रक चतना उसका मम उसम िनिहत सवदना िवचार और क पनाशीलता जो

कित का ि व रचती ह इन तीन त व क आधार पर जब आलोचक कितगत

आलोचना करता ह तब कित क िलए आलोचना अिनवाय हो जाता ह

56

आलोचना एक सजन या ह

सािह य और आलोचना का सबध अ यो या ीत ह जो सािह य क रचना

या ह वही आलोचना का फक मा इतना ह क सािह य का ल य समाज

होता ह और आलोचना का ल य रचना िशवदान सह चौहान न इस बात को प

करत ए कहत ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर स

िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार ह इसिलए इस आप शा ीय वग करण क तरह अिमट और अल य न

मान ल rdquo23 अत रचना क सजन या को जान िबना आलोचना क सजन या

को अ छी तरह समझी नह जा सकती ह

सािह य वह व त ह िजसम मनोभावा मक क पना मक बौि क तथा

रचना मक त व का समावश होता ह सािह य सजन क या क अतगत

क पना बि भाव तथा शली का होना अिनवाय ह यह उठता ह क

सािह यकार क मल रणा या होती ह िजसक कारण सािह यकार को इन त व

का सहारा लना पड़ता ह सीध स हम कह सकत ह क वह समाज म घटी घटना

क अनभित ह अनभित हम घटना क प ा य करत ह तथा अनभित रचना स पव

हमार दय म कट होती ह जस िबना दख क सख का अनभव नह होता ठीक

उसी कार िबना सख-दख स रचना दोन का िम ण ही का ह हदी क िस

आलोचक आचाय नददलार वाजपयी न lsquoसािह य का योजन आ मानभितrsquo म

िलखा ह ndash ldquoका क रणा अनभित स िमलती ह यह वत एक अनभित त य ह

गो वामी तलसीदास न रामच रतमानस का िनमाण करत समय िलखा था ndash

57

lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

58

मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

59

रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

61

सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

62

(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

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15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

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30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

53

चाहत ह तब हम आलोचना क आव यकता पड़ती ह कहन का ता पय यह ह क

य द सािह य को जीिवत रखना ह तब आलोचना क मर जान क क पना अधरी ह

ाचीन काल स आलोचना होती रही ह उस समय आलोचक और रचनाकार

सवथा िभ आ करत थ धीर-धीर यह दरी आधिनक काल तक आत-आत ख म सा

हो गया ह आलोचना आज ग क अनक कार क िवधा म स एक ह पहल यह

माना जाता था क जो आलोचना करत ह व रचना नह कर सकत आज बौि क

जीवन म यह माग क जा रही ह क रचनाकार ही आलोचना कर

का का आ वादन आलोचना स न घटता ह न बढ़ता ह ndash यह बात तो

सतही तर पर स य लगती ह पर इसक मम को हम उधड़ कर दख तो आलोचना

सािह य क िलए अिनवाय ह यह कहना न होगा क हर पाठक क समझ सोच एव

भाव क गहराई तक प चना आसान नह ह िजस मम को सामा य पाठक नह

समझ पात उस जगह तक प चन का काय आलोचक करता ह िशवदान सह

चौहान का मानना ह ndash ldquo कसी कित को पढ़कर उस पर जो भाव पड़ता ह कसी

अ य पाठक परपड़ा भाव सवथा वसा ही नह हो सकता आलोचक भी एक ऐसा

ही िविश पाठक ह- इसिलए उसक आलोचना उस पर पड़ िविश भाव को ही

कर सकती ह ऐसी ि थित म इन िविभ अनभितय कितय भाव म कोई

सामा य त व हो ही या सकता ह िजसका षण या म याकन कया जाए rdquo19 यह

ठीक ह क आलोचना स रचना क आ वाद म अतर नह होता पर िजसक ारा

आ वादन कया जाता ह वह कतना व थ ह कतना तद त ह इस पर भी यान

क आव यकता ह जीभ पर कसी व त को रखन पर उस व त का वाद न घटता

ह न बढ़ता ह नाक क पास सगध बदल नह जाती िजतनी जीभ या नाक व थ

होगी उतना ही वाद पण प स िलया जा सकता ह जहा तक रचना का सवाल

ह तो जीभ और नाक का काय आलोचक करता ह आलोचक मलत एक िवशष

54

कार का पाठक होता ह हाला क पाठक ही आलोचक होता ह फर भी पाठक और

आलोचक म ताि वक फक ह पाठन क ज रय आलोचक उसक छप ए रह य को भी

खोल कर समाज क सामन प कर दता ह आचाय कसरी कमार न भी आलोचक

को पाठक मानत ह पर आलोचक और पाठक म अतर प कया ह उनका मानना

ह ndash ldquoसामा य पाठक और आलोचक क आ वादन म कछ वसा फक ह जसा द तावज

पर अगठ क छाप लगाना और पढ़कर द तावज करन का ह rdquo20 प प स आचाय

कसरी कमार न पाठक को ही आलोचक मानत ह पर उनका पाठक सामा य पाठक

नह ह एक िवशष कार का पाठक होता ह और चौहानजी न भी िविश पाठक को

ही आलोचक मानत ह

सािह य का आ वादन वयि क तर पर होता ह आलोचक सािह य का

रसा वादन वयि क तर पर ही हण करता ह आलोचक एक सिनि त मानदड

थािपत करना चाहता ह य द कसी िवचार-धारा या वाद स भािवत होकर

मानदड थािपत करता ह तब वह मानदड असमीचीन हो जाता ह आलोचक य द

पवा ह स भािवत वाद क आधार पर अपना मानदड थािपत करता ह तब वह

उस कित का सा यक म याकन नह कर पायगा डॉ िव नाथ साद न इस त य

को प करत ए िलखा ह ndash ldquoउ क आलोचना पवा ह स बचकर चलती ह और

ऐसा तभी सभव ह जब आलोचक का एक पाव अपन यग म तथा एक पाव लखक क

यग म हो अथवा उसक एक आख रस सवदना पर हो तथा दसरी आख लखक क

भाव-िनवदन पर इसस आलोचना क म ामक म याकन क सभावना नह

रहती rdquo21 आलोचना क िलए एक मानदड या फामला क थापना कर उस पर

आलोचना करना ब त क ठन काय ह आलोचना का कोई मानदड तभी सराहनीय

ह जब तक वह कसी िवचारधारा एव वाद स कोई सबध नह रखता

55

पहल सािह य आ तब आलोचना िशवदान सह चौहान न प िलखा ह

क ndash ldquoसािह य स ही आलोचना ह आलोचना स सािह य नह ह rdquo22 इस िवषय पर

चौहानजी न आपना मह वपण िवचार कट कया ह कहन का ता पय यह ह क

वद बड़ा क लबद कद बड़ा क पद या यह भी उठ सकता ह क पहल मग ई

क अड़ा पहल बीज आ क पड़ यह िवचरणीय नह ह यह अपन-अपन

अनभव क बात ह इस कार उ का िहसाब सािह य और आलोचना पर करना

उिचत नह िजस कार मन य क अिनवायता क िलए सािह य िलखा गया उसी

अिनवायता क िलए ही आलोचना उ म सािह य बड़ी ह क आलोचना यह

िववादा पद ह यह भी हम कह सकत ह क सािह यकार बड़ा ह क सािह य

या आलोचक बड़ा ह क आलोचना सि बड़ी ह क सि क ा य ब त उपय

नह ह इस कार सािह य और आलोचना अपनी-अपनी अिनवायता क िलए

अपनी-अपनी जगह पर बड़ी ह

िन कष- आलोचक सािह य सािह यकार और समाज क ित ितब होता

ह आलोचना गण-दोष िववचन सराहना-भ सना और प तक समी ा नह ह वह

सजन और चतन क भी िवधा ह वह जो ग रची जाती ह उस कथा-कहानी स

तौला नह जा सकता ह वह कित और कितकार क अित र सदव एक तीसरी

शि क खोज करती ह कहानी किवता नाटक उप यास या ग क अ य िवधा

म एक आलोचक को कित क साथ तीन तर खोलन होत ह पहला िजस िवधा म

कित ह उस िवधा क त व उस कित का मानक माप-दड या ह दसरी कित क शली

एव स दय िववचन और िव यास कस कार आ ह और तीसरा प ह उसक

आत रक चतना उसका मम उसम िनिहत सवदना िवचार और क पनाशीलता जो

कित का ि व रचती ह इन तीन त व क आधार पर जब आलोचक कितगत

आलोचना करता ह तब कित क िलए आलोचना अिनवाय हो जाता ह

56

आलोचना एक सजन या ह

सािह य और आलोचना का सबध अ यो या ीत ह जो सािह य क रचना

या ह वही आलोचना का फक मा इतना ह क सािह य का ल य समाज

होता ह और आलोचना का ल य रचना िशवदान सह चौहान न इस बात को प

करत ए कहत ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर स

िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार ह इसिलए इस आप शा ीय वग करण क तरह अिमट और अल य न

मान ल rdquo23 अत रचना क सजन या को जान िबना आलोचना क सजन या

को अ छी तरह समझी नह जा सकती ह

सािह य वह व त ह िजसम मनोभावा मक क पना मक बौि क तथा

रचना मक त व का समावश होता ह सािह य सजन क या क अतगत

क पना बि भाव तथा शली का होना अिनवाय ह यह उठता ह क

सािह यकार क मल रणा या होती ह िजसक कारण सािह यकार को इन त व

का सहारा लना पड़ता ह सीध स हम कह सकत ह क वह समाज म घटी घटना

क अनभित ह अनभित हम घटना क प ा य करत ह तथा अनभित रचना स पव

हमार दय म कट होती ह जस िबना दख क सख का अनभव नह होता ठीक

उसी कार िबना सख-दख स रचना दोन का िम ण ही का ह हदी क िस

आलोचक आचाय नददलार वाजपयी न lsquoसािह य का योजन आ मानभितrsquo म

िलखा ह ndash ldquoका क रणा अनभित स िमलती ह यह वत एक अनभित त य ह

गो वामी तलसीदास न रामच रतमानस का िनमाण करत समय िलखा था ndash

57

lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

58

मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

59

रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

61

सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

62

(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

54

कार का पाठक होता ह हाला क पाठक ही आलोचक होता ह फर भी पाठक और

आलोचक म ताि वक फक ह पाठन क ज रय आलोचक उसक छप ए रह य को भी

खोल कर समाज क सामन प कर दता ह आचाय कसरी कमार न भी आलोचक

को पाठक मानत ह पर आलोचक और पाठक म अतर प कया ह उनका मानना

ह ndash ldquoसामा य पाठक और आलोचक क आ वादन म कछ वसा फक ह जसा द तावज

पर अगठ क छाप लगाना और पढ़कर द तावज करन का ह rdquo20 प प स आचाय

कसरी कमार न पाठक को ही आलोचक मानत ह पर उनका पाठक सामा य पाठक

नह ह एक िवशष कार का पाठक होता ह और चौहानजी न भी िविश पाठक को

ही आलोचक मानत ह

सािह य का आ वादन वयि क तर पर होता ह आलोचक सािह य का

रसा वादन वयि क तर पर ही हण करता ह आलोचक एक सिनि त मानदड

थािपत करना चाहता ह य द कसी िवचार-धारा या वाद स भािवत होकर

मानदड थािपत करता ह तब वह मानदड असमीचीन हो जाता ह आलोचक य द

पवा ह स भािवत वाद क आधार पर अपना मानदड थािपत करता ह तब वह

उस कित का सा यक म याकन नह कर पायगा डॉ िव नाथ साद न इस त य

को प करत ए िलखा ह ndash ldquoउ क आलोचना पवा ह स बचकर चलती ह और

ऐसा तभी सभव ह जब आलोचक का एक पाव अपन यग म तथा एक पाव लखक क

यग म हो अथवा उसक एक आख रस सवदना पर हो तथा दसरी आख लखक क

भाव-िनवदन पर इसस आलोचना क म ामक म याकन क सभावना नह

रहती rdquo21 आलोचना क िलए एक मानदड या फामला क थापना कर उस पर

आलोचना करना ब त क ठन काय ह आलोचना का कोई मानदड तभी सराहनीय

ह जब तक वह कसी िवचारधारा एव वाद स कोई सबध नह रखता

55

पहल सािह य आ तब आलोचना िशवदान सह चौहान न प िलखा ह

क ndash ldquoसािह य स ही आलोचना ह आलोचना स सािह य नह ह rdquo22 इस िवषय पर

चौहानजी न आपना मह वपण िवचार कट कया ह कहन का ता पय यह ह क

वद बड़ा क लबद कद बड़ा क पद या यह भी उठ सकता ह क पहल मग ई

क अड़ा पहल बीज आ क पड़ यह िवचरणीय नह ह यह अपन-अपन

अनभव क बात ह इस कार उ का िहसाब सािह य और आलोचना पर करना

उिचत नह िजस कार मन य क अिनवायता क िलए सािह य िलखा गया उसी

अिनवायता क िलए ही आलोचना उ म सािह य बड़ी ह क आलोचना यह

िववादा पद ह यह भी हम कह सकत ह क सािह यकार बड़ा ह क सािह य

या आलोचक बड़ा ह क आलोचना सि बड़ी ह क सि क ा य ब त उपय

नह ह इस कार सािह य और आलोचना अपनी-अपनी अिनवायता क िलए

अपनी-अपनी जगह पर बड़ी ह

िन कष- आलोचक सािह य सािह यकार और समाज क ित ितब होता

ह आलोचना गण-दोष िववचन सराहना-भ सना और प तक समी ा नह ह वह

सजन और चतन क भी िवधा ह वह जो ग रची जाती ह उस कथा-कहानी स

तौला नह जा सकता ह वह कित और कितकार क अित र सदव एक तीसरी

शि क खोज करती ह कहानी किवता नाटक उप यास या ग क अ य िवधा

म एक आलोचक को कित क साथ तीन तर खोलन होत ह पहला िजस िवधा म

कित ह उस िवधा क त व उस कित का मानक माप-दड या ह दसरी कित क शली

एव स दय िववचन और िव यास कस कार आ ह और तीसरा प ह उसक

आत रक चतना उसका मम उसम िनिहत सवदना िवचार और क पनाशीलता जो

कित का ि व रचती ह इन तीन त व क आधार पर जब आलोचक कितगत

आलोचना करता ह तब कित क िलए आलोचना अिनवाय हो जाता ह

56

आलोचना एक सजन या ह

सािह य और आलोचना का सबध अ यो या ीत ह जो सािह य क रचना

या ह वही आलोचना का फक मा इतना ह क सािह य का ल य समाज

होता ह और आलोचना का ल य रचना िशवदान सह चौहान न इस बात को प

करत ए कहत ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर स

िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार ह इसिलए इस आप शा ीय वग करण क तरह अिमट और अल य न

मान ल rdquo23 अत रचना क सजन या को जान िबना आलोचना क सजन या

को अ छी तरह समझी नह जा सकती ह

सािह य वह व त ह िजसम मनोभावा मक क पना मक बौि क तथा

रचना मक त व का समावश होता ह सािह य सजन क या क अतगत

क पना बि भाव तथा शली का होना अिनवाय ह यह उठता ह क

सािह यकार क मल रणा या होती ह िजसक कारण सािह यकार को इन त व

का सहारा लना पड़ता ह सीध स हम कह सकत ह क वह समाज म घटी घटना

क अनभित ह अनभित हम घटना क प ा य करत ह तथा अनभित रचना स पव

हमार दय म कट होती ह जस िबना दख क सख का अनभव नह होता ठीक

उसी कार िबना सख-दख स रचना दोन का िम ण ही का ह हदी क िस

आलोचक आचाय नददलार वाजपयी न lsquoसािह य का योजन आ मानभितrsquo म

िलखा ह ndash ldquoका क रणा अनभित स िमलती ह यह वत एक अनभित त य ह

गो वामी तलसीदास न रामच रतमानस का िनमाण करत समय िलखा था ndash

57

lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

58

मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

59

रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

61

सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

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(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

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45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

55

पहल सािह य आ तब आलोचना िशवदान सह चौहान न प िलखा ह

क ndash ldquoसािह य स ही आलोचना ह आलोचना स सािह य नह ह rdquo22 इस िवषय पर

चौहानजी न आपना मह वपण िवचार कट कया ह कहन का ता पय यह ह क

वद बड़ा क लबद कद बड़ा क पद या यह भी उठ सकता ह क पहल मग ई

क अड़ा पहल बीज आ क पड़ यह िवचरणीय नह ह यह अपन-अपन

अनभव क बात ह इस कार उ का िहसाब सािह य और आलोचना पर करना

उिचत नह िजस कार मन य क अिनवायता क िलए सािह य िलखा गया उसी

अिनवायता क िलए ही आलोचना उ म सािह य बड़ी ह क आलोचना यह

िववादा पद ह यह भी हम कह सकत ह क सािह यकार बड़ा ह क सािह य

या आलोचक बड़ा ह क आलोचना सि बड़ी ह क सि क ा य ब त उपय

नह ह इस कार सािह य और आलोचना अपनी-अपनी अिनवायता क िलए

अपनी-अपनी जगह पर बड़ी ह

िन कष- आलोचक सािह य सािह यकार और समाज क ित ितब होता

ह आलोचना गण-दोष िववचन सराहना-भ सना और प तक समी ा नह ह वह

सजन और चतन क भी िवधा ह वह जो ग रची जाती ह उस कथा-कहानी स

तौला नह जा सकता ह वह कित और कितकार क अित र सदव एक तीसरी

शि क खोज करती ह कहानी किवता नाटक उप यास या ग क अ य िवधा

म एक आलोचक को कित क साथ तीन तर खोलन होत ह पहला िजस िवधा म

कित ह उस िवधा क त व उस कित का मानक माप-दड या ह दसरी कित क शली

एव स दय िववचन और िव यास कस कार आ ह और तीसरा प ह उसक

आत रक चतना उसका मम उसम िनिहत सवदना िवचार और क पनाशीलता जो

कित का ि व रचती ह इन तीन त व क आधार पर जब आलोचक कितगत

आलोचना करता ह तब कित क िलए आलोचना अिनवाय हो जाता ह

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आलोचना एक सजन या ह

सािह य और आलोचना का सबध अ यो या ीत ह जो सािह य क रचना

या ह वही आलोचना का फक मा इतना ह क सािह य का ल य समाज

होता ह और आलोचना का ल य रचना िशवदान सह चौहान न इस बात को प

करत ए कहत ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर स

िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार ह इसिलए इस आप शा ीय वग करण क तरह अिमट और अल य न

मान ल rdquo23 अत रचना क सजन या को जान िबना आलोचना क सजन या

को अ छी तरह समझी नह जा सकती ह

सािह य वह व त ह िजसम मनोभावा मक क पना मक बौि क तथा

रचना मक त व का समावश होता ह सािह य सजन क या क अतगत

क पना बि भाव तथा शली का होना अिनवाय ह यह उठता ह क

सािह यकार क मल रणा या होती ह िजसक कारण सािह यकार को इन त व

का सहारा लना पड़ता ह सीध स हम कह सकत ह क वह समाज म घटी घटना

क अनभित ह अनभित हम घटना क प ा य करत ह तथा अनभित रचना स पव

हमार दय म कट होती ह जस िबना दख क सख का अनभव नह होता ठीक

उसी कार िबना सख-दख स रचना दोन का िम ण ही का ह हदी क िस

आलोचक आचाय नददलार वाजपयी न lsquoसािह य का योजन आ मानभितrsquo म

िलखा ह ndash ldquoका क रणा अनभित स िमलती ह यह वत एक अनभित त य ह

गो वामी तलसीदास न रामच रतमानस का िनमाण करत समय िलखा था ndash

57

lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

58

मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

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रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

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सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

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(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

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िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

56

आलोचना एक सजन या ह

सािह य और आलोचना का सबध अ यो या ीत ह जो सािह य क रचना

या ह वही आलोचना का फक मा इतना ह क सािह य का ल य समाज

होता ह और आलोचना का ल य रचना िशवदान सह चौहान न इस बात को प

करत ए कहत ह ndash ldquoसच तो यह ह क आलोचक और लखक भी सवथा एक दसर स

िभ नह ह अनक रचनाकार समथ आलोचक ह और अनक आलोचक समथ

रचनाकार ह इसिलए इस आप शा ीय वग करण क तरह अिमट और अल य न

मान ल rdquo23 अत रचना क सजन या को जान िबना आलोचना क सजन या

को अ छी तरह समझी नह जा सकती ह

सािह य वह व त ह िजसम मनोभावा मक क पना मक बौि क तथा

रचना मक त व का समावश होता ह सािह य सजन क या क अतगत

क पना बि भाव तथा शली का होना अिनवाय ह यह उठता ह क

सािह यकार क मल रणा या होती ह िजसक कारण सािह यकार को इन त व

का सहारा लना पड़ता ह सीध स हम कह सकत ह क वह समाज म घटी घटना

क अनभित ह अनभित हम घटना क प ा य करत ह तथा अनभित रचना स पव

हमार दय म कट होती ह जस िबना दख क सख का अनभव नह होता ठीक

उसी कार िबना सख-दख स रचना दोन का िम ण ही का ह हदी क िस

आलोचक आचाय नददलार वाजपयी न lsquoसािह य का योजन आ मानभितrsquo म

िलखा ह ndash ldquoका क रणा अनभित स िमलती ह यह वत एक अनभित त य ह

गो वामी तलसीदास न रामच रतमानस का िनमाण करत समय िलखा था ndash

57

lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

58

मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

59

रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

61

सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

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(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

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उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

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ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

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उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

57

lsquo वात सखाय तलसी रघनाथ गाथा भाषा िनबध मित मजल मातनोितrsquo यहा

lsquo वात सखायrsquo स उनका ता पय आ मानभित या अनभित स ही ह rdquo24 अनभित को

सभी रचनाकार समान प स अिभ ि नह द सतका य क कारिय ी ितभा

सब का समान नह होती ठीक उसी कार भाविय ी ितभा सभी स दय म समान

नह होती िजसक चलत सभी स दय आलोचक नह होता िशवदान सह

चौहान न प िलखा ह ndash ldquoरचनाकार क ितभा- मता क तरह आलोचक क

ितभा- मता का उठना भी असगत नह ह िजस तरह हर लखक

रचनाकार नह बन सकता उसी तरह हर समी क आलोचक नह बन

सकताrdquo25 अथात हर कोई श द को एक म म जोड़ सकता ह पर हर का जोड़ा

आ श दाथ सािह य नह हो सकता सािह य या म वही ि सफल हो

सकता ह जो धय-धारण कर क अपन सख-दख को एक करक एक िनि त बद पर

जा प चता ह वहा ई र और कित को अिभ ता का व प का अनभव करता ह

तब सािह य-सजन या आरभ होता ह सािह य नामक िनबध म िशवपजन

सहाय न िलखा ह ndash ldquoयह ई र क िवराट प क समान िव क सम त िवभितय

का आ य थल ह द यमान जगत क सम वभव क िनिध तो यह ह ही अद य

लोक क सपदा का भी कबर यही ह लौ कक और अलौ कक सब कछ इसी क

भड़ार म ह इहलोक और परलोक इसक िलए ह तामलववत ह जान पड़ता ह

श दमय अना द अनत का यह तीक ह इसम हम अिखल ाड का िच दख

सकत ह ऐसा यह सवशि सप ह rdquo26 उ क सािह य क रचना क िलए सजन

शि क साथ-साथ आलोचना शि क मह ा भी अिनवाय ह सािह य सजन क

सदभ म म यत दो कार क शि या दखन म आती ह ndashसजन शि और आलोचना

शि सजन शि सािह यकार क अपनी अलग शि होती ह सजन क यह शि

58

मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

59

रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

61

सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

62

(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

58

मलत मन य क एक शि ह दसरी शि यग क शि होती ह और मन य क

सजना शि यग क शि क आभाव म सारहीन और अथहीन कहलाएगी यग क

यह शि आलोचना शि होती ह और इसक िबना सािह य क रचना सभव

नह ह सािह य का सजन करन स पव किव को जीवन और जगत का ान होना

चािहए तथा जीवन और जगत आजकल क दिनया म अनक ज टलता स भर ह

उपय िववचन स यह प ह क आलोचना मक शि क िबना सजना मक शि

का कोई म य नह होता

मानव कित का एक अग ह और कित क अग- यग का आकलन रचना

कलाकार कित का अनकरण कर भावा वषण कर आ मािभ ि कर या

आ मिव तार कर या न कर कला म कित का गोचर प ही होता ह इसी

गोचर प क मा यम स िवल ण ि व वाल ि अनत स ा क उ ाटन

करता ह िजसक कारण रचना क सजन या एक ज टल प धारण कर लती ह

हर ि क अदर नयी चीज क सजना करन क लालसा होती ह पर उसक अदर

छपा आ शि को जगान वाली रणा ही उपल ध नह होती िजसक कारण वह

चतना या िवचारवान भावा मक ि व होन क वजाय वह एक जीव मा ही रह

जाता ह रचनाकार या आलोचक आम मानव स सदा िभ होता ह वह अपनी

अनभित क मा यम स उस अनत शि क अिभ ि जब भावना क प म कट

करता ह तब वह हर ि क भावना बन जाती ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर कलाकित अनक अथ अनक रस और अनक भाव को करन

वाली एक सि ईकाइ होती ह तभी वह स य-सि क समानातर बनती हrdquo27

भाव हर ि क अदर सोई ई अव था म होती ह तथा जहा उसक भाव का

अनादर होता ह उसका हनन होता ह वह अनायास कट हो जाता ह इसी कार

हर ि क अदर वहार ान होता ह पर उस योग म नह ला पाता उ ी

59

रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

61

सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

62

(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

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िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

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कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

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कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

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चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

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उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

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सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

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15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

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30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

59

रकन वाल ान क कारण वह अपन आप को अपनी शि का उ ाटन करन लगता

आलोचना या रचना क म कवल बि या चतना ही सब कछ नह ह

रचना या आरभ करन स पहल कसी एक ोत का होना अिनवाय ह तत

ोत का दयागम या उसक मम का कलाकार िजतन भावशाली ढग स अनभव

करता ह उतना ही सदढ़ सािह य क रचना कर सकता ह बगर ल य का अत नह

ह और बगर ोत का ल य इस कार रचनाकार कसी ोत स पाय गय मम को

अपनी चतना और बि क मा यम स उसक हर वहार को जान कर जनता क

सम रख दता ह तथा वह जनता क िलए अ यत अिनिभ य होत ए भी अपना

लगन लगता ह आचाय कसरी कमार क अनसार ndash ldquoकला दशन और ाकितक

िव ान क घन सबध क चचा म बि को उपचतन क सव व था स पन क

कोिशश तो नह क गयी पर इस साहचय स इतना ज र समझा गया क यह मन

को उपचतन-प रमडल तक ल जानवाला मा यम ह जहा कित पवज ारा

अनवशत सिचत ब त महान और ब म य रचना मक अनभव शि या जमा करती

ह इस कार कवल बि या चतन ही नह ह िजसक ारा कोई रचना बि क

सवािधक स म ोत वह उपचतन ह जहा ाकितक सजना मक शि य को

ता कक मि त क स क अवरोध का सामना नह करना पड़ता rdquo28 रचनाकार क

कित सजन शि य को तक क मा यम स अपनी मि त क म उसका मथन करक

उस शि को म य नजर रखत ए एक अ य कार क शि का अिभ ि करनी

होता ह जो रचना म ककट होती ह डॉ िव नाथ साद न अपन लख म रचना

क िलए कसी एक उ म ोत क चचा क ह उनक अनसार ndash सािह य का सजन

सािह यकार करता ह सािह यकार जब कसी व त को दखता ह तब उसक मानस

म एक भाव छिव िन मत होती ह वह अपन स कात िच यो यता मता और

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

61

सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

62

(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

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15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

60

दि कोण क िविश ता क आधार पर आलोचना मनन अिभमान और अवधारणा

क या स मश आग बढ़त ए अपनी सजन- या ा करता ह 29 इसीिलए

हम इस कित का अनकरण मा ही नह मानत बि क कित का नयी सि भी

मानत ह य क कित हम जो कछ द सकती ह उसस कह यादा रचना म

िनिहत ह

आलोचना या रचना य द पनरी ण ह तो जािहर ह क इसका बीज लखक क

ब त पहल पड़ चका होगा रचनाकार िजस िवषय पर रचना करन जाता ह उस

िवषय का ान ब त पव स होता ह रचनाकार अपन आ मिव षण क मा यम स

ही कट परता ह यह िनि त नह ह क िजस िवषय का वणन करन जा रहा ह

उसका सपण अथ क सभावना उस पता हो य क कभी-कभी रचनाकार ऐसा कर

डालता ह क उस उस िवषय का ही भान नह होता वह जो कहना चाहता ह वह

तो कहता ही ह उसक अलावा और भी ब त कछ कह डालता ह इस कार िवषय

का पव िव षण करत ए भी वतमान म कछ अ य अथ कट कर दन वाला श द

कट हो जात ह रचना कतनी मह वपण ह यह बाद रचना क सजन या ख म

होन क बाद जब वह रचना समाज म जाता ह तथा पाठक उसका कतना रसा वादन

करता ह उसक आधार पर ही हम रचना क मह ा का आकलन कर लकत ह इसक

पहल तो वय रचनाकार अ ानी बना रहता ह य क रचनाकार उस स दय

पाठक क प म रसा वादन नह कर पाता वह रचना या स ही जझन लगता

ह इस कार उस रचना क बार म वह कछ नह कह सकता ह आचाय कसरी कमार

न प िलखा ह ndash ldquoसजक अहसास नह करता क यह कसी स मान क यो य ह

याल तो होता ह क वह बवकफ बना रहता ह और मानव समाज का एक सद य

होन क नात कछ अपराधी भी अनभव करता ह rdquo30 कलाकार अपनी कला क मा यम

स समाज का भी य कभी-कभी कर दता ह सािह य सजन क या क दौरान

61

सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

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(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

61

सािह यकार सख-दख हास-िवषाद राग- ष तथा पाप-प य आ द भल कर वह एक

ऐस ण का अनभव करता ह िजसक प रणाम व प उसक उस ण क अिभ ि

एक नयी दिनया क सि कर दती ह

रचना एक सजना मक साधन ह यह सजन या एकाएक पण नह होती

इसक िलए कछ आव यक चीज का होना अिनवाय ह रचनाकार समाज म रहता ह

तथा समाज क हर या- ित या क प रणाम व प उसक अनभित बनती ह

अनभित को अिभ ि तक लान क या को सजन- या कहत ह जब यह

काय का क सजन म होती ह तब उस का सजन- या कहत ह अनभित को

अिभ ि तक लान म भाव क अनसार भाषा- योग श द- योग बब- योग

तीक- योग आ द क योजना करनी पड़ती ह यही नह अपनी अनभित क सगित

दशकाल प रवश परपरा स कित तथा िव प रद य स बठानी पड़ती ह इन

सबक बाद अनभित-अिभ ि का प धारण करती ह आलोचक इन सब बात

को प र ण करता ह क इन त व का सम वय रचनाकार कतना सफलता स कया

िन कष - आलोचना शि क उ य का िव षण करत ए यह कहा जा सकता ह क आलोचना का काय कवल सजना मक सािह य क िलए उपय आधारभिम तयार करना ह सजना मक सािह य का मलाधार ससार क सव क बात िवचार और मानवीय भाव होत ह और आलोचक इ ह भाव आ द को जटाता ह इस कार यह प होता ह क सजना मक शि क मल त त आलोचना मक शि स भी अिधक मह व दया जाता ह इसी बात को इस ढग स भी कहा जा सकता ह क आलोचना भी एक कार का सजन ह य क सजना मक सािह य म जो उ क और नतन िवचार दखत ह और जो समाज का पश करत ह उनका मल

किव अथवा लखक म नह आलोचक क आलोचना मक शि म होता ह अत

आलोचना भी एक कार का सजन- या ह

62

(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

62

(च) आलोचना म सािह य का स दय और सामािजकता

सािह य क रचना सबधी उ य को थलत तीन वग म रखा जा सकता हndash

पहला आननदवादी दसरा नितकतावादी और तीसरा यथाथवादी या स दयवादी

इस तरह कला क तीन उ य ए ndash कला आनदवादी दि कोण स सख क िलए होती

ह नितकतावादी दि कोण स सामािजक स य एव मानवीय म य क िश ा दन क

िलए होती ह और यथाथवादी दि कोण स कला स दय क अनभित क िलए होती ह

अत इस हम व तप भावप एव कलाप भी कह सकत ह तीन प पर

िवचार करन स ऐसा लगता ह क सािह य क आलोचना करत समय इसम स कसी

एक का नह वरन तीन प का िववचन आव यक ह िशवदान सह चौहान इस

त य को प करन स पहल यह उठात ह क ndash ldquoसािह य म वह या चीज ह जो

म यवान ह या कन- कन िवशष म य क िलए हम सािह य का अ ययन करना

चािहए या सािह य का म याकन कस आधार पर करना चािहए या आलोचक

कसी कित क पगत स दय तक ही अपन िववचन को सीिमत रख या उसक व त

क भी जाच कर rdquo31 कहन का ता पय यह ह क सािह य क िनणय क कसौटी या

हो पगत स दय या व तगत सामािजक तथा नितक म य ऐस गभीर एव मलभत

को लकर आलोचक म ाचीन काल स ही मतभद रहा ह िशवकमार िम न

इस बात को प करत ए िलखा ह ndash ldquoसािह य क अतगत व त (content) और

प (form) क सापि त ि थती का य तो ारभ स ही सािह य चतन क एक

मख क प म च चत रहा ह परत मा सवादी सािह य चतन क अतगत उस

िवशष मखता ा ई ह rdquo32 बात इन म उलझन का नह ह इन का

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उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

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ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

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िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

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इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

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स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

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िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

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कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

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चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

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15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

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30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

63

उ र ढढना ह इसका उ र दन स पहल स दयवादी और व तवादी अथात पवाद

और व तवाद को समझ लना चािहए

प प को स दयवादी पवादी कलावादी नाम स जाना जाता ह इसक

अतगत भाषा-शली अलकार बब तीक छद लय सगीत आ द आत ह

भाषा मन य क अ जत सपती ह जो सामािजक जीवन स ा होती ह

भाषा क मा यम स मन य समाज का हर या-कलाप सचािलत करता ह िवचार

अनभित एव सवदना क अिभ ि का मा यम भाषा ह सािह य िवचार

अनभितय एव सवदना का पज होता ह अत सािह य म भाषा का मह व अ यिधक

ह डॉ ब न सह न िलखा ह ndash ldquoकला क िनमाण म क माल क प म पदाथ क

ज रत होती ह म त क िलए प थर ज री ह तो िच कला क िलए रग और रखा

सगीत क िलए वर क आव यकता ह तो सािह य क िलए भाषा क म तकार को

अनगढ़ प थर उपल ध ह दशकाल अिभ िच और अपनी द ता और उ य क

अनसार माईकल िजल सगमरमर को एक ढग स तराशता ह तो रोिडन अपन डग

स इसी कार किव भाषा लय बब तीक िमथक आ द को अपन स सयोिजत

करता ह rdquo33 अत प-त व क अतगत भाव एव िवचार क अिभ ि कौशल को

रखा जाता ह कोई सािह यकार अपनी अनभित एव िवचार को िजतनी कौशल क

साथ अिभ करता ह वह सािह य कालजयी होता ह अिभ ि का कौशल

उसक शली िश प कला को ही पगत स दय क अतगत रखा जाता ह

मा सवादी सािह य चतक न अिभ ि क मा यम को भी सामािजक आधार

वीकार कया ह और उ ह भी समाज का ही दन माना ह भाषा हो या बब तीक

सबका आधार और सबका ोत यह सामािजक जीवन ही ह पवादी आलोचक

सािह यकार को सामािजक म य स िवरत होकर तकनीक को ही किवता मान लता

ह अत स दयवादी आलोचक सािह य को कवल मनोरजन का व त मानता ह

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ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

64

ldquoस दयवादी सािह य को कवल आनद या मनोरजन क व त समझत ह उनका

कहना ह क पगत स दय को ही सािह य क म याकन क कसौटी बनाना चािहए

य क लखक कसी िवशष सामािजक मत को कािशत करन क िलए नह बि क

स दर या चम कारपण उि ारा अपनी ि गत अनभित को अिभ ि दन क

िलए िलखता ह उसक दि म व त गौण ह और अिभ ि धान rdquo34 िशवदान

सह चौहान इस स दयवादी दि कोण स सहमत नह ह व इस सािह य का एक

प मानत ह स दय क स ा मानव जीवन स हट कर नह ह िशवकमार िम न

प िलखा ह ndash ldquoस दय अपन म कोई द व त न होकर मानव जीवन क सदभ म

ही मश िवकिसत होन वाली एक ऐसी धारणा ह िजस बा जगत क साथ अपन

सपक क फल व प मन य न ा और िवकिसत कया rdquo35 डॉ रामिवलास शमा न

सािह य म प या स दय को उपयोिगतावादी दि कोण स दखा ह व स दय क

सािह य म अपव ि थित थािपत करत ह परत उन भख यास नग ि य क

िलए सािह य का स दय क आव यकता नह ह उनक िलए भोजन कपड़ा और

मकान चािहए जो सािह य उ ह कभी नह द सकता उनको अपन खन-पिसन स

इस कमाना होगा ड रामिवलास शमा का कथन ह ndash ldquoजीवन क प रि थितया

मन य क स दयवि को क ठत भी करती ह मा सवाद पर अ सर यह आरोप

लगाया जाता ह क उस उपयोिगतावाद क अलावा स दय स काम नह ल कन

स दय का िवरोधी कौन ह व जो करोड़ आदिमय को गरीब और भखमरी क हवाल

करक उनक स दयवितया क ठत कर दत ह या व जो उनक िलए भी इसान क

जदगी चाहत ह उनक अिधकार क िलए लड़त ह उस समाज क रचना करत ह

जहा मन य क स दयवि क ठत न होकर प लिवत हो सक rdquo36 सािह य क म

य स दयवाद कोई दाशिनक मतवाद नह ह सामा यत यह उपयोिगतावादी क

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

65

िवरोध म तत कया जाता ह िशवदान सह चौहान न भारतीय का शा क

अलकाररीित और व ोि िस ात को स दयवादी या रीितवादी क अतगत रखा

ह - ldquoउपयोिगतावादी धारा क अतगत हम रस विन औिच य क का िस ात को

रख सकत ह और रीितवादी धारा क अतगत अलकार रीित और व ोि क िस ात

आत ह rdquo37 जो सािह य नितक म य स िव ोह करता ह वह सािह य य त

जीवन स िव ोह करता ह िशवदान सह चौहान न सािह य क उपयोिगतावादी

दि कोण पर अिधक बल दया ह परत रीितवादी को एकदम नकारा नह ह

मा सवादी आलोचक पर िवशषत उपयोिगतावाद का आरोप कया जाता ह

ल कन चौहान जी इसका समथन नह करत ह प षो म अ वाल न इस त य को

प करत ए िलखा ह ndash ldquoव उपयोिगतावादी और रीितवादी म स उपयोिगतावादी

का प लत ह ल कन इस चतावनी क साथ क रचना का lsquoउपयोगrsquo मा सवादी

िवचार क चार म नह मानवीय म य क रखाकन म साथक होता ह इसी

कारण गर गितशील रचनाकार का रचनाकम भी गितशील हो सकता ह rdquo38

आधिनक काल म छायावाद या रह यवाद किवता को एक सीमा तक स दयवादी

माना जा सकता ह वही गितवादी किवता को उपयोिगतावादी या नितकतावादी

भारतदयग एव ि वदीयग क किवती तो मखत उपयोिगतावादी ह आचाय

रामच श ल न लोकमगल को िजस कार का -म य क प म तत कया ह

उसी कार व किवता को नितक म य क साथ जोड़ कर दखा ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमन य क शरीर क जस दि ण और वाम दो प ह वस ही उसक दय क भी कोमल

और बराबर रहग का कला क परी रमिणयता इन दोन प क सम वय क बीच

मगल या स दय क िवकास म दखाई पड़ती ह rdquo39

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

67

स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

66

इस िववचन िवशलषण का िन कष यह ह क पवा दय या स दयवा दय न

सािह य क अिनवाय गण (नीित उपदश सदाचार आ द ) को नह माना य क

सािह यकार या कलाकार का कम और उपदशक का कम दो पणत िभ कम ह

उपदशक का काय ह- अपनी बात को मनवानाजब क सािह यकार का काय ह -

अिभ जना करना डॉ ब न सह न प िलखा ह ndashldquoकला प म व त स षण न

होकर अिभ होती ह पाठक प क मा यम स ही अिभ ि को पकड़ता ह

प पर उसक पकड़ िजतनी मजबत होगी अिभ ि क पकड़ भी उतनी ही

मजबत होगी यह प का क र मा ह क पाठक उसम स अभीि सत अथ िनकालता

ह कभी-कभी दो पाठक एक-दसर क िवरोधी अथ िनकाल लत ह व तत व

िवरोधी नह होत बि क प क िविभ अथ छायाए होती ह rdquo40

व तवादी स ता पय ह कथाव त स सािह य का िनमाण कोरी क पना नह

ह उसम त य क अिभ ि भी होती ह िवषयव त क िबना अिभ ि सभव

नह ह िवषयव त या क य क साथ ही िवचार भाव अनभित च र नीित

िस ात आ द आ जात ह अभी तक आलोचक न िजन मानदड पर िवचार कया

ह व ाय सािह य क अिभ ि प स सबिधत ह परत इसक अित र

सािह यकार अपन सािह य क मा यम स जो नई सि करता ह नितकता का या

सामािजकता का जो ान तत करता ह उसपर िवचार करना अिनवाय ह अत

यह कहा जा सकता ह क सािह य का िववचन अिभ ि या पवादी (स दयवाद)

दि कोण क साथ-साथ उसक सामािजकता मानव म य एव नितकता (व तवादी)

दि कोण का भी परी ा होनी चािहए जो कित इन दोन ही कसौ टय पर खरी

उतरती ह वही सािह य सािह य माना जायगा िशवदान सह चौहान न इस

बात को प िलखा ह ndash ldquoय द लखक अपनी अनभित को स दर और चम कारी ढग

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स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

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स करन म सफल हो गया ह तो सामािजक नितक मानदड स वह अनभित

चाह खोखली अ ील ित यावादी घोर िनराशावादी या मानव ोही य न हो

उसक कित म साधारण पाठक को स दय और आनद िमलगा ही य क अपन

िविश मतवादी पवा ह क बावजद उि का चम कार उसक मन म सखद सवदन

क सरिण पदा करक एक अतरग प रतोष या आनद दगा ही बौि क सतोष चाह न

द स दय या उसक अनभित स उ प होन वाला आनद ऐसी अलौ कक व त ह

िजसक मन य क कम-जीवन स अलग एक अ यात रक स ा ह यहा कसी व त

क उपयोिगता स स दय का कोई सबध नह ह rdquo41 अत व त क अभाव म सािह य

पणत अपन आप को अिभ नह कर सकता इस बात को प करत ए

िशवकमार िम न प िलखा ह ndash ldquoव त क अभाव म उनक िवचार स कला का

अि त व ही स भव नह ह कोरा कलावाद या पवाद भल ही दखायी पड़ जाय

यह कलावाद या पवाद तभी ज म लता ह जब रचनाकार उस सामािजक जीवन

स अपन को परी तरह काट लता ह जो कला क बीज व त का धान ोत ह

सामािजक जीवन स कट जान पर उस न तो जीवत सवदनाए ही ा होती ह और न

अनभव भाव या िवचार rdquo42 जब तक मन य क अत थल म भाव या अनभित

उ प नह होगी तब तक वह कसी भी िवचार को अिभ ि नह द सकता और

भाव या अनभित तभी उ प होगी जब कोई व त ि घटना एव उस कार क

ि थित प रि थित को दख कर भावक न हो जाय इस तरह भावक क ि थित कर ल

जान का काय व त या घटना का ह यह काय अिभ ि स पहल का ह

रामिवलास शमा न lsquoस दय क उपयोिगताrsquo नामक लख म िलखा ह ndash ldquoजस मन य स

बाहर मन यता क स ा नह ह वस ही स दर व त ( या स दर भाव िवचार )

स बाहर स दय क स ा नह ह और तमाम स दर व तए तमाम स दर भाव

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िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

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कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

72

उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

74

15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

75

30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

76

45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

68

िवचार मन य क िलए ह उसक सवा करन क िलए उसका िहत साधन क िलए ह

सािह य का स दय मन य क उपयोग क िलए मन य सािह य क िलए नह हrdquo43

जब सािह य और समाज म नितक म य िव खिलत होन लग तो आलोचक

आ म थ वयकि त हो गया अपनी िवचार धारा क आधार पर सािह य का

म याकन करन लगा म यजय सह न िलखा ह क कवल िवचारधारा या कवल

सािहि यकता ही आलोचना का मानदड नह बन सकती उ ह न िलखा ह ndash

ldquoसािह य कवल िवचार नह होता ल कन यह बात तब परी होती ह जब इसक साथ

यह जोड़ा जाय क कवल शली-स दय या कला मकता भी सािह य नह होता

बि क दोन क रचना मक सतलन स कोई रचना सािह य या कलाकित का दजा

पाती ह rdquo44 सािह य नितक म य एव सामािजक स दय का सामज य ह सािह य

म या कलाकित म वा तिवकता का वणन होता ह और आलोचक इसी वा तिवकता

को मानदड बनाकर सािह य का म याकन करता ह िशवदान सह चौहान का

मानना ह ndash ldquoहर दश और काल का सािह य मानव जीवन क वा तिवकता को ही

ित बिबत करता आया ह इसिलए स दयवादी मानदड स सािह य का सही

म याकन सभव नह ह वा तिवकता ही उसक म याकन क कसौटी हो सकती ह

मन य क सामािजक सबध िवचार िश प- ान और नितक मा यताए आ द सभी

कछ वा तिवकता क अतगत ही आत ह rdquo45 इस त य को और भी प करत ए डॉ

रामिवलास शमा न िलखा ह ndash ldquoस दय और उपयोिगता दो िवरोधी व तए मालम

होती ह ल कन उनक ा मक एकता क िबना सािह य रचना असभव ह जो लोग

उपयोिगता स इनकार करत ह व वा तव म स दय क घ टया उपयोग को िछपाना

चाहत ह उनक िलए स दय इि यबोध तक सीिमत ह अपन िवलास और

मनोरजन पर व श आनद का पदा डालत ह ल कन स दय किवय क िलए स दर

69

कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

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कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

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चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

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उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

73

सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

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15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

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30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

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45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

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कम स बाहर स दय क स ा ह ही नह उनका सािह य-कम स ही भािवत होता

ह मानव-कम को भािवत करन क िलए होता ह rdquo46 यहा सािह य का म याकन क

िलए उपयोिगतावादी दि कोण अपनाया गया ह स दयानभित और जीवनानभित

दोन सािह य म उ ा टत होता ह अत आलोचक को सािह य का म याकन करत

समय दोन दि य पर समान प स िववचन-िव षण करना चािहए ता क

सािह य क म य को और उसक महानता एव ता को उ ा टत कया जा सक

डॉ क णद पालीवाल न मि बोध क सदभ म यह बात प कया ह क वही

सािह यकार सफल सािह यकार ह जो स दयानभित क साथ जीवनानभित को

सामज य थािपत कर मानव जीवन बोध क ओर सकत कर ldquoजो कलाकार िजतना

ही जाग क होगा उसका स दय बोध समाज क गितिविध स उतना ही ज टल होता

जाएगा उसम ज टल भाव-बोध तथा वयि क सवदनाए िमलती जाती ह

मानवीय ऐि कता क समि स बौि क बोध तथा जीवन बोध म मश

मानवीय बोध का िवकास हो जाता ह इस ढग स हमार थायीभाव भी मानवीय

बोध को हण कर क मनवीकत हो जात ह मानव का स दय बोध इसी या स

िवकिसत आ ह अत स दयानभित को जीवनानभित का पयाय मानना चिहएrdquo47

स दयवादी या कलावादी आलोचक स दयानभित तथा जीवनानभित दोन को

एकदम अलग-अलग प म दखत ह इस धारणा को िशवदान सह चौहान न सीधा

ितवाद कया ह और इ ह न दोन दि य को एकागी माना ह उ ह न िलखा ह ndash

ldquoमरा अपना िवचार ह क य दोन दि या एकागी ह य िप अपनी-अपनी जगह पर

दोन सही ह य द आप पवा दय क सािह य दशन को सही मान ल तो िन य ही

सािह य म व त का कोई मह व नह रह जाता और य द उपयोिगतावा दय क

दि कोण स दख तो अिभ जना गौण हो जाती ह दोन म आिसक स य होन क

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कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

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चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

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उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

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सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

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15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

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30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

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45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

70

कारण िविभ यग म िविभ सामियक आ ह को लकर यह दोन िवचार धाराए

नए-नए नाम स सामन आती रही ह rdquo48 दसरी जगह इस बात को और खलासा

करत ए चौहान जी न यह िलखा ह क आधिनक सािह य और समाज म इतनी

िवशखलता आ गयी ह क उस ाचीन ा याकार क मा यता स दर जाकर दखना

आव यक ह उ ह न िलखा ह ndash ldquoआधिनक का म आधिनक समाज क िवशषता

क जो अनभव गिहत ए ह ाचीन ा याकार उनक क पना भी नह पर सकत

थ इस कारण उनक ा याए आिशक स य रखत ए भी अधरी ह और पवकालीन

यग क ही तरह आज हम उसक नई ा या क आव यकता ह जो हम किवता

उसक स दयगत िवशषता उसक सिवधायक प उसक िवकास धारा क

दशा और उसक उ म क मल ोत का अ वषण कर हम उस समझन म सहायता

द rdquo49 यहा चौहान जी न कई स म बद पर काश डाला ह किवता म

स दयगत िवशषता क साथ किवता क शा ीय िववचन अथात िनयम नीित क

साथ सािह य क उ म क मल ोत अथात व तगत अ ययन क ओर सकत ह

सम या यह ह क व तगत एव पगत िववचन दोन आिशक प स सही ह

इसिलए उनम स कसी एक को ावहा रक योग म लान स अनक क ठनाईया

उपि थत हो जाती ह ldquoसािह यालोचना क य दोन दि या एकागी ह और इनम स

कसी एक को ही अपनान स जो वहा रक क ठनाईया उ प हो जाती ह उनका

समाधान आलोचक अकसर नह कर पात सािह यालोचना क म इस कारण

सदा इतनी भयकर अराजकता रही ह rdquo50 इस अराजकता क समाधान क िलए

चौहान साहब न टी एस इिलएट का सहारा िलया ह िजस कार इिलएट न

सािह य क सािहि यकता जाचन क िलए पगत स दय का सहारा िलया तथा

उसक महानता को जाचन क िलए व तगत स दय को िलया ठीक उसी कार

71

चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

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उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

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सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

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15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

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30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

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45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

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चौहान जी न भी यह सझाव दया ndash ldquo कसी कित क सािहि यकता जाचन क िलए

तो पगत स दय क ितमान का योग करना चािहए ल कन उसक महानता का

िनणय करन क िलए सािह यतर ि ितमान का योग ज री ह rdquo51

कला म प एव व त दोन का सामनज य ह एक दसर स ऐस गि फत ह

क दोन को अलग-अलग करक उसक मह ा को नह दखा जा सकता ह सम ता

म ही इसक मह ा एव सािहि यकता बची रहती ह िजस कार मन य क मह ा

उसक शरीर और आ मा म िनिहत ह उसी कार सािह य म व त और प दोन

अ यत मह वपण ह आलोचक बा और आत रक दोन प क जाच करता ह

और उ ह क आधार पर सािह य का िववचन-िव षण करता ह कसी व त भाव

या िवचार को उ ा टत कर दि गोचर बनान क मल ापार क साथ-साथ

स दययोजना का काय भी िस करता ह आलोचक क आलोचना पार इस

कार दख जा सकत ह ndashसािह य म अिभ अथ को पणतया प करनाभाव को

स षिणयता और उ िजत बनाना व त या घटना को य कराना तथा प

स दय या गण को दयगम बनाना अथात आलोचक को कवल व त भाव िवचार

क िववचन तक ही सीिमत नह रहना चािहए बि क पस दय क साथ कित क

सम प को दखना चािहए िशवदान सह चौहान कसी भी कित को सम प म

दखना चाहत ह उ ह न िलखा ह ndash ldquo कसी सािह यक रचना का म याकन करत

समय कवल रचना कौशल िश प या उि -चम कार तक ही अपनी दि सीिमत नह

कर लनी चािहए और न कवल व त िववचन तक हीबि क उस कित को सम प

म दखना चािहएrdquo52 सम प म दखन का ता पय ह ndash व त और स दय क साथ

सामािजकता नितकता और उपयोिगता क ओर यान दया जाय जो सािह य एव

सािह यकार क िलए उिचत ह

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उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

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सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

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15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

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30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

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45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

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उपय िववचन क आधार पर कहा जा सकता ह क सािह य म व णत स दय

भौितक स दय नह ह बि क वह हमारी आ मा का स दय ह वह हमारी भावना

और मानस का स दय ह आलोचना को इस मानस क र ा करनी होगी सािह य

और समाज क उ कष क तमाम ित ाए तभी परी हो सकती ह जब एक समथ

आलोचक रचना क प और व त का तठ थ म याकन कर

िन कष ndash िशवदान सह चहान क आलोचन-दि म यत ावदा रक ह

उनक आलोचना मानव-म य पर आधार ह सािह यकार या आलोचक अपनी

वा तिवक जीवन म य को य द भला द तो वह अनक िवकितया को पदा करगा

कसी एक िवचारधारा क झल म सभी सािह य को नह रखा जा सकता य क हर

सािह यकार का अपना अलग दि कोण एव िवचार होता ह आलोचना तठ थ एव

िनरप होनी चािहए आज लोग वयि गत िस ात क आधार पर कित का

म याकर करत ह मनगढ़ स ात आलोचना का आधार नह हो सकाता ऐसी

आलोचना को िशवदान सह चौहान न कहा- आलोचना अध क लाठी बन गई ह

पवा ह आलोचना का मान नह बन सकता आलोचना कित क होती ह

और कित समाज क कसी िवशष सवदनशील ि क अ य िनधी होती ह

अथात सामािजक म य या मानव म य ही आलोचना का मान बन सकता ह

आलोचना को सामािजक सदभ म दखा जाना चािहए आलोचना सािह य क िलए

अित अिनवाय ह य क सािह य भाव एव िवचार का गफन होता ह जो हर

पाठक क िलए उस भाव-िवचार तक प चना असान नह ह अत आलोचक ही इस

सवसाधारण करता ह आलोचना क रचना या रचना क रचना या स

जड़ी ह आलोचना म सामािजक स दय और सामािजकता को उकरा जाता ह

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सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

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15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

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30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

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45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

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सदभ-सिच - 1 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085 स करण - 2001 प 33 2 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002प 25 3 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली - 110085

थम काशन -1958 पनम ण - 2002 प 35 4 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085

थम काशन-1958 पनम ण-2002प 39 5 हदी सािह य क अ सी वष ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण-2007 प 170 6 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 33 7 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958 पनम ण-2002 प 22 8 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 25 9 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 26 10 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 27 11 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 141 12 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 148 13 आलोचना समय और समाज ndash रमश दव भारतीय ानपीठ नई द ली- 110003 दसरा स करण-2006 प 92 14 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 143

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15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

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30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

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45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

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15 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 16 मा यम( पि का )स स य काश िम हदी सािह य स मलन यागस मलन मागइलाहाबाद-3 अ ल-जन 2007 प 41 17 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002प 148 18 रचना और आलोचना ndash दवीशकर अव थी वाणी काशन नई द ली-110002

थम स करण-1995 प 10 19 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 38 20 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल काशननई द ली-110002 थम स करण-1980 प31

21 आचाय ी निलन िवलोचन शमा क आलोचना साधना ndash डॉ िव नाथ साद अयन काशन नई द ली-110030 थम स करण-2003 प 48 22 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 47 23 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज पकाशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 150 24 आधिनक सािह य ndash न ददलार वाजपयी राजकमल काशन नई द ली-110002 पहला स करण-2003 प 375 25 सािह य क सम याए ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1959 ि तीय स करण-2002 प 143 26 हदी ग प रमल ndash स डॉ भप राय चौधरी िव िव ालय काशन गवाहाटी-14 थम स करण-2004 प 50 27 आलोचना क िस ात ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 स करण- 2001 प 43 28 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाएndashकसरी कमारराजकमल

काशननयी द ली-110002 थम स करण-1980 प23 29 सािह य प र मा (पि का) ndash स मरारीलाल ग गीतश अखील भारतीय सािह य यास जनवरी-माच - 2006 प 20

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30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

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45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

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30 सािह य क नय धरातल शकाए और दशाए - कसरी कमार राजकमल काशन नयी द ली-110002 थम स करण-1980 प25 31 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम काशन-1958पनम ण-2002 प 52 32 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 344 33 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

34 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 स करण-2002प 52 35 मा सवादी सािह य चतन इितहास तथा स ात ndash डॉ िशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण- 2010 प 354 36 मा सवाद और गितशील सािह यndashरामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प259 37 आलोचना क िस ात ndashिशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958स करण-2001प 35 38 भारतीय सािह य क िनमाता िशवदान स चौहान ndash प षो म अ वाल सािह य अकादमी नई द ली-110001 थम स करण- 2007 प 115 39 आचाय श ल ितिनिध िनबध ndash स सधाकर पाडय राधाक ण काशन नई द ली-110002 आवि 2000 प 93

40 आधिनक हदी आलोचना क बीज श द ndash डॉ ब न सह वाणी काशन नई द ली-110002 स करण-2007 प 93

41 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण-2002प 53 42 मा सवादी सािह य िच तन इितहास तथा स ात ndash डॉिशवकमार िम वाणी

काशन नई द ली-110002 स करण-2010 प 345 43 मा सवाद और गितशील सािह यndash रामिवलास शमावाणी काशननई द ली -110002ततीय स करण- 2008 प291

44 गितशील हदी आलोचना िववाद और िवमश ndashम यजय सह िश पायन काशन द ली- 110032 स करण- 2009प 36

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द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 57

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45 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958पनम ण- 2002प 53 46 मा सवाद और गितशील सािह य ndashरामिवलास शमावाणी काशन नई

द ली-110002ततीय स करण ndash 2008 प295 47 हदी आलोचना क नए वचा रक सरोकार ndash डॉ क णद पालीवाल वाणी

काशन नई द ली- 110002 थम स करण-2002 ि तीय स करण- 2007 प 211 48 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958पनम ण-2001प 54 49 प र को सही करत ए ndash िशवदान सह चौहान वाणी काशन नई द ली-110002 थम स करण-1999 प 121 50 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 51 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

110085 थम स करण-1958 पनम ण-2001प 55 52 आलोचना क मान ndash िशवदान सह चौहान वराज काशन द ली-

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