प्रथम इकाई पर ा पाठ्यक्रम ( 2020...

25
थम इकाई पर��ा पायम ( 2020-21) �हदक�ा -8 वसंत पाठ -1 व�न पाठ -2 लाख क� च �ड़याँ पाठ -3 बस क� याा पाठ -4 द�वान� क� हती पाठ -5 �च�ठय� क� अनोखी द �नयाँ याकरण वण �वचार - वणमाला (वर व यंजन) - �लख� व याद कर� पयायवाची - 1-25 याद कर� �वलोम शद - 1-25 याद कर� अनेकाथ� शद - 1-25 याद कर� वसंत अन छे द �व�भन �वषय� व समसाम�यक घटनाओं पर लेख पढ़� भारत क� खोज 1. अहमद नगर का �कला 2. तलाश दोन� पाठ यान प वक पढ़� । Notes by: Sadhana Chaturvedi

Upload: others

Post on 07-Jun-2020

12 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • प्रथम इकाई पर��ा पाठ्यक्रम ( 2020-21)

    �हन्द�

    क�ा -8

    वसंत पाठ -1 ध्व�न पाठ -2 लाख क� चू�ड़याँ पाठ -3 बस क� यात्रा पाठ -4 द�वान� क� हस्ती पाठ -5 �चट्�ठय� क� अनोखी द�ुनया ँ

    व्याकरण वणर्–�वचार - वणर्माला (स्वर व व्यंजन) - �लख� व याद कर� पयार्यवाची - 1-25 याद कर� �वलोम शब्द - 1-25 याद कर� अनेकाथ� शब्द - 1-25 याद कर�

    वसंत – अनुच्छेद – �व�भन्न �वषय� व समसाम�यक घटनाओ ंपर लेख पढ़�

    भारत क� खोज 1. अहमद नगर का �कला 2. तलाश दोन� पाठ ध्यान पूवर्क पढ़� ।

    Notes by: Sadhana Chaturvedi

  • Class VIII Notes by: Sadhana Chaturvedi

    पाठ 1 क�वता – ध्व�न

    क�व – सूयर्कांत �त्रपाठ� ‘�नराला’ अभी न होगा मेरा अंत अभी-अभी ह� तो आया है मेरे मन म� मदृलु वसंत अभी न होगा मेरा अंत हरे-हरे ये पात, डा�लयाँ, क�लयाँ, कोमल गात। म� ह� अपना स्वप्न-मदृलु-कर फेरंूगा �न�द्रत क�लय� पर जगा एक प्रत्यूष मनोहर। पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा म�। अपने नव जीवन का अमतृ सहषर् सींच दूंगा म�। द्वार �दखा दूंगा �फर उनको ह� वे मेरे जहाँ अनंत अभी न होगा मेरा अंत।

    शब्दाथर् अंत - समािप्त मदृलु - कोमल वसंत - फूल �खलने क� ऋत ुपात - प�ा गात - शर�र स्वप्न - सपना कर - हाथ मदृलु-क�लय� - थोड़ी �खल� क�लयाँ

    पुष्प-पुष्प - फूल तंद्रालस - नींद से अलसाया हुआ लालसा - लालच नव - नये अमतृ - सुधा सहषर् - ख़ुशी के साथ सींच - �सचंाई द्वार - दरवाज़ा

  • प्रत्यूष - सवेरा मनोहर - सुन्दर

    अनंत - िजसका कभी अंत न हो अंत - खत्म

    क�वता का सार

    क�व मानते ह� �क अभी उनका अंत नह�ं होगा। अभी-अभी उनके जीवन रूपी वन म� वसंत रूपी यौवन आया है। क�व प्रकृ�त का वणर्न करते हुए कहते ह� �क चार� ओर व�ृ हरे-भरे ह�, पौध� पर क�लयाँ �खल� ह� जो अभी तक सो रह� ह�। क�व कहते ह� वो सूयर् को लाकर इन अलसाई हुई क�लय� को जगाएँग ेऔर एक नया सुन्दर सवेरा लेकर आएंगे। क�व प्रकृ�त के द्वारा �नराश-हताश लोग� के जीवन को खु�शय� से भरना चाहते है। क�व बड़ी तत्परता से मानव जीवन को संवारने के �लए अपनी हर ख़ुशी एवं सखु को दान करने के �लए तैयार ह�। वे चाहत ेह� हर मनुष्य का जीवन सुखमय व्यतीत हो। इ�सलए व ेकहते है �क उनका अंत अभी नह�ं होगा जबतक वो सबके जीवन म� खु�शयाँ नह�ं ला देते।

    क�वता व्याख्या 1. अभी न होगा मेरा अंत

    अभी-अभी ह� तो आया है मेरे वन म� मदृलु वसंत – अभी न होगा मेरा अंत।

    संदभर् - प्रस्तुत पंिक्तयाँ हमार� �हदं� क� पाठ्य पुस्तक वसंत भाग-3म� संक�लत क�वता ‘ध्व�न’ से ह�| क�वता के क�व सूयर्कान्त �त्रपाठ� �नरालाजी ह�। इस क�वता म� क�व का जीवन के प्र�त आशावाद� दृिष्टकोण �दखाया गया है। क�व का यह मानना है �क हम� जीवन के प्र�त आशावाद� रहना चा�हए, अपनी उम्मीद को नह�ं छोड़ना चा�हए और पूर� सकारात्मकता के साथ और पूरे जोश और उत्साह के साथ जीवन का आनन्द उठाना चा�हए। प्रसंग - क�व प्रकृ�त के �चत्रण के द्वारा नई युवाओं क� पीढ़� को समझाना चाहते है �क वह अपने आलस को छोड़ ेऔर नए उत्साह, साहस और जोश के साथ जीवन का आंनद ले। यह उद्देश्य क�व का है और वह युवा पीढ़� को जागतृ करना चाहत ेहै। प्रकृ�त म� फूल� क� भरमार है और उनक� सुन्दरता और खुशबू चार� तरफ फैल� हुई है । अभी इस समय का अन्त नह�ं होगा, ऐसा क�व का कहना है। क�व कहते है �क यह वसंत उनके जीवन म� अभी-अभी तो आया है अथार्त ्जीवन म� उत्साह और जोश क� भरपूर �मता है, अभी कुछ �दन ठहरेगा अभी इसका अन्त नह�ं होगा। और कहते है �क अभी इस चीज़ का अंत नह�ं होगा क्य��क अभी-अभी तो

  • जीवन म� फूल� क� भरमार आई है, वसंत ऋतु �खल� है, जीवन म� नया उत्साह नया जोश जागा है िजसक� सहायता से युवा पीढ़� को जागरूक करने के संकल्प को पूरा करँूगा। व्याख्या – क�व मानते ह� �क उनका अंत अभी नह�ं होगा, क्य��क अभी-अभी क�व के जीवन के अमतृ रूपी वन म� वसंत रूपी यौवन आया है। अतः अभी उनका अंत नह�ं होगा।क�व मानते ह� �क उनका अंत अभी नह�ं होगा, क्य��क वह आशावाद� है जैसा �क हमने जाना और इस गणु क� वजह से वह यह मानते ह� �क अभी उनका अंत नह�ं होगा जब तक वे अपने उद्देश्य क� पू�त र् नह�ं कर लेते। क्य��क अभी क�व के जीवन म� अमतृ रूपी वन म� वसंत रूपी यौवन आया है। अथार्त ्एक नये उत्साह और जोश का आगामन हुआ है उनके जीवन म�, �फर से वसंत ऋत ुम� चार� तरफ फूल� क� भरमार और उनक� खुशबू फैल� है जो�क बहुत ह� सुन्दर लगती है। अतः अभी उनका अंत नह�ं होगा। यह� कारण है जैसा �क अभी उत्साह जोश क� अ�धकता है तो अभी यह कुछ �दन ठहरेगा और इसका अंत अभी नह�ं होगा। 2. हरे-हरे ये पात,

    डा�लयाँ, क�लयाँ, कोमल गात। म� ह� अपना स्वप्न – मदृलु-कर फेरँूगा �न�द्रत क�लय� पर जगा एक प्रत्यूष मनोहर।

    संदभर् – प्रस्तुत पंिक्तयाँ हमार� �हदं� क� पाठ्य पुस्तक वसंत भाग-3 म� संक�लत क�वता ध्व�न से ह�। क�वता के क�व सूयर्कान्त �त्रपाठ� �नराला जी ह�। उपयुर्क्त पंिक्तय� म� क�व ने प्रकृ�त क� संुदरता से मनुष्य के मन के भाव कोमल और सुकुमार बन जाते ह� यह बताया है।मनुष्य प्रकृ�त से प्रेरणा लेता है और उसम� नए उत्साह जोश का संचार होता है यह� सब क�व न ेबताया है। प्रसंग - जैसा �क वसंत ऋतु आई है प्रकृ�त म�, और पेड़ पौध� पर हरे-हरे प�� पर और नए-नए फूल� क� भरमार है। सभी पेड़� पौध� क� डा�लयाँ लहलहा रह� ह�, नई-नई क�लयाँ �खल� ह� और नए नए प�े बहुत शोभामान लग रह� है। क�व कहते ह� �क यह मेरा सपना जो�क युवा पीढ़� को जागरूक करना है म� अपने कोमल हाथ� से, म� अपना सपना स्वंय साकर करना चाहता हँू अथार्त ्प्रकृ�त िजस तरह से पूरे वातावरण म� शोभा प्रदान करती है और एक नए जोश उत्साह का आगमान करती है, सूयर् के आगमान के साथ प्रकृ�त म� नए-नए फूल �खलते ह� और एक नया उत्साह भर देते ह� उसी तरह से क�व कह रह� है �क म� अपने हाथ� स ेअपना जो उद्देश्य है युवा पीढ़� को जागरूक करने का, स्वंय पूरा करँूगा।

  • क�व कहते ह� �क यहाँ जो युवा पीढ़� है जो आलस से भर� हुई है, नींद म� सोई हुई है उन्ह� जागतृ करना चाहते ह� । इन कोमल क�लय� पर म� अपन ेकोमल हाथ फेरँूगा अथार्त ्उन्ह� सह� �दशा म� भेज दूँगा और एक नया प्ररेणा स्त्रोत दूँगा, िजससे वह जागरूक हो जाएँगे और एक सह� राह पर चल�गे। इस तरह से म� इस जीवन म�, पूरे संसार म�, समाज म�, एक नया सुन्दर सवेरे का आगमन करँूगा जो�क मेरा उद्देश्य है युवा पीढ़� को जागतृ कर, पूरे समाज म� सकारात्मकता लाऊँगा। व्याख्या – क�व प्रकृ�त का वणर्न करते हुए कहते ह� �क चार� ओर व�ृ हरे भरे ह�,पौध� पर क�लयाँ �खल� ह� जो अभी तक सो रह�ं ह�।क�व कहते ह� म� सूयर् को लाकर इन अलसाई क�लय� को जगाऊंगा। पंिक्तय� के माध्यम से क�व यह भी कहना चाह रह� ह� �क �नराश और िजंदगी से हारे लोगो को म� जीवन दान दूँगा।क�व प्रकृ�त का वणर्न करते हुए कहते ह� �क चार� ओर व�ृ, हरे भरे ह�ए पौध� पर क�लयाँ �खल� ह� जो अभी तक सो रह�ं ह�। क�व कहते ह� म� सूयर् को लाकर इन अलसाई क�लय� को जगाऊंगा। – इसका अथर् यह है �क वह युवा पीढ़� म� नई पे्ररणा और उत्साह का संचार कर�गे और उन्ह� जागतृ कर�गे। िजस प्रकार सूयर् के आने से प्रकृ�त म� एक नया जोश और उत्साह छा जाता है और चार� ओर ह�रयाल� और फूल� क� नई नई खुशबू फैल जाती है। पंिक्तय� के माध्यम से क�व यह भी कहना चाह रह� ह� �क �नराश और िजंदगी से हारे लोगो को म� जीवन दान दूँगा। िजन लोग� को �नराशा घेर �लया है अथार्त ्वो हार मान चुके है जीवन स ेम� उन लोग� से जीवन म� भी बहार ला दूँगा| िजस तरह से फूल� क� बहार वसंत ऋतु म� चार� ओर फैल� हुई है, इस तरह से म� एक नया जीवन दूँगा। 3. पुष्प-पुष्प से तंद्रालस

    लालसा खींच लूँगा म�, अपने नव जीवन का अमतृ सहषर् सींच दूँगा म� द्वार �दखा दूँगा �फर उनको। ह� मेरे वे जहाँ अनंत – अभी न होगा मेरा अंत।

    संदभर् – प्रस्तुत पंिक्तयाँ हमार� �हदं� क� पाठ्य पुस्तक वसंत भाग-3 म� संक�लत क�वता ‘ध्व�न’ से ह�। क�वता के क�व सयूर्कान्त �त्रपाठ� ‘�नराला’ जी ह�। उपयुक्त पंिक्तय� म� क�व जीवन से आलस को दरू भगाने क� बात कहते ह� तथा क�व कमर् का प�रचय देते ह�। प्रसंग - युवा पीढ़� जो �क अभी तक सोई हुई ह�, आलस ने उन्ह� घेरा हुआ है, म� उसके आलस के लालच को दरू कर दूँगा। म� इस युवा पीढ़� को एक नया जोश और उत्साह दूँगा। और जो

  • �क म�ने जीवन के वास्त�वकता और इसक� अमतृ को जाना है, वैसा नया रूप म� इन सबको दूँगा अथार्त ्नई युवा पीढ़� को म� नये जोश और उत्साह के साथ और जीवन के इस अमतृ के साथ, जो जीवन क� वास्त�वक सुख है और उसको �कस तरह से िजया जा सकता है यह सब �ान म� नई युवा पीढ़� को दूँगा। क�व प्रसन्नता के साथ यह सब करना चाहते ह�, िजस तरह से हम पौध� को सींचते है और वह बहुत हरा-भरा हो जाते ह�, इस तरह से युवा पीढ़� के अन्दर भी नये जोश और उत्साह संचार कर द�गे और वह युवा पीढ़� जागतृ होकर अपने जीवन का भरपूर आनंद ले सकती है क�व इस क�वता के द्वारा प्रकृ�त का उदाहरण लेकर प्ररेणा देना चाहते है। सह� रास्ता �दखा दूँगा उनको ता�क वह सह� रास्ते पर चल सके। कहते ह� इस तरह से इस जीवन का कभी अंत नह�ं होगा, जहाँ तक म� चाहता हँू युवा पीढ़� पूरे उत्साह जोश के साथ जीवन का आनंद ले। जब तक म� अपन ेउदेद्श्य को पूरा नह�ं कर लूँगा तब तक मेरा अंत नह�ं होगा। ऐसा क�व का मानना है क्य��क क�व बहुत ह� आशावाद� �वचार� के ह� और अपने संकल्प जो �क युवा पीढ़� के �लए �लया है, अपने ह� हाथ� से पूरा करना चाहते ह� यह उनका सपना है �क युवा पीढ़� को जागतृ कर� और उसके आलस को दरू कर� और एक नये जोश और उत्साह का संचार उनके जीवन म� कर�। व्याख्या – प्रस्तुत पद्यांश म� क�व प्रकृ�त के द्वारा �नराश-हताश लोग� के जीवन को खु�शय� से भरना चाहत ेह�। वे कहते ह�-म� एक-एक फूल से आलस्य को खींच लूँगा अथार्त म� आलस म� पड़े युवक� के मन म� नए जीवन का अमतृ प्रसन्नता से भर दूँगा।क�व प्रकृ�त के द्वारा �नराश-हताश लोग� के जीवन को खु�शय� को भरना देना चाहत ेह�। क�व खुशी-खुशी से यह कायर् करना चाहते ह� और हर युवा जा�त के भीतर एक नया जोश भर देना चाहते ह� उनके आलस को दरू कर देना चाहते ह�। िजससे प्रेत्यक मानव सुखमय जीवन जी सके। अथार्त ्मनुष्य को जीवन जीने क� कला �सखाना चाहते ह� ता�क वे प्रसन्नतापूवकर् अपने जीवन म� आए दखु� से पार हो सके और साहसपूवकर् जीवन जी सके। क�व का यह मानना है युवा पीढ़� अब अपने आलस को दरू कर अगर प�रश्रम करेगी तो वह स्वगर् को भी पा लेग�। जो ईश्वर को प्राप्त कर लेता है उसका अंत नह�ं होता। इसका अथर् यह है जो जीवन क� वास्त�वकता का आनंद उठाते ह�, खुशी-खुशी हर मुिश्कल से पार पाते ह�, उसका अंत कभी नह�ं हो सकता। क�व कहते है �क जब तक वो नई पीढ़� को राह नह�ं �दखा द�गे, सह� �दशा �ान नह�ं दे देग�, तब तक उनका अंत नह�ं हो सकता। क्य��क क�व ने अभी जीवन म� यह ठाना है �क जब तक वह युवा पीढ़� को सह� राह नह�ं �दखा देग� तब तक उनका अंत नह�ं होगा।

    प्रश्न-उ�र

    प्र॰1 क�व को ऐसा �वश्वास क्य� है �क उसका अंत अभी नह�ं होगा? उ�र – क�व मानते ह� �क उनका अंत अभी नह�ं होगा, क्य��क अभी उनके अंदर उत्साह, उमंग और जीने क� चाह कूट-कूट कर भर� है। क�व के अनुसार, एक मनुष्य तभी मरता है, जब उसके

  • अंदर से ख़ुशी, उल्लास और उत्साह ख़त्म हो जाता है। उनके अंदर ये सभी चीज� अभी प्रचुर मात्रा म� ह�, इस�लए वो कहते ह� �क अभी उनका अंत नह�ं होगा। प्र॰2 फूल� को अनंत तक �वक�सत करने के �लए क�व कौन-कौन-सा प्रयास करता है? उ�र – क�व फूल� को अंनत तक �वक�सत करन ेके �लए अपने ख़्वाब� के स्पशर् से जगाने क� को�शश करते ह�, ता�क क�लयां नई सुबह देख सक� । �फर क�व, उन्ह� नया जीवन जीने क� ऐसी कला �सखाने का प्रयास करते ह�, िजससे फूल अंनत तक �वक�सत होते रह�। प्र॰3 क�व पुष्प� क� तंद्रा और आलस्य दरू हटाने के �लए क्या करना चाहता है? उ�र – क�व पुष्प� क� तन्द्रा व आलस्य दरू हटाने के �लए, उन्ह� नव जीवन रूपी अमतृ से सींचना चाहते ह�, ता�क वो अनंत तक �वक�सत होते रह�। प्र॰4 वसंत को ऋतरुाज क्य� कहा जाता है? आपस म� चचार् क�िजए। उ�र - वसंत को ऋतुराज कहा जाता है क्य��क यह सभी ऋतओुं का राजा है। इस ऋतु म� प्रकृ�त पूरे यौवन होती है। इस ऋतु के आन ेपर सद� कम हो जाती है। मौसम सुहावना हो जाता है। इस समय पंचतत्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप म� प्रकट होते ह�। पचंतत्व जल, वायु, धरती, आकाश और अिग्न सभी अपना मोहक रूप �दखाते ह�। पेड़� म� नए प�े आने लगत ेह�। आम बौर� से लद जाते ह� और खेत सरस� के फूल� से भरे पीले �दखाई देते ह�। सरस� के पीले फूल ऋतुराज के आगमन क� घोषणा करते ह�। खेत� म� फूल� हुई सरस�,पवन के झ�क� से �हलती, ऐसी �दखाई देती है, मानो, सामने सोने का सागर लहरा रहा हो। कोयल पंचम स्वर म� गाती है और सभी को कुहू-कुहू क� आवाज़ से मंत्रमुग्ध करती है। इस ऋतु म� उसक� छठा देखते ह� बनती है। इस ऋतु म� कई प्रमुख त्यौहार मनाए जाते ह�, जैसे – वसंत पंचमी, महा �शवरा�त्र, होल� आ�द। प्र॰5 वसंत ऋतु म� आनेवाले त्योहार� के �वषय म� जानकार� एकत्र क�िजए और �कसी एक त्योहार पर �नबंध �ल�खए। उ�र - वसंत ऋतु म� कई त्यौहार मनाए जात ेहै, जैसे – वसंत-पंचमी, महा �शवरा�त्र, होल� आ�द। होल� हमारा देश भारत �वश्व का अकेला एवं ऐसा अनूठा देश है, जहँ पूरे साल कोइर् न कोइर् त्योहार मनाया जाता है। रंग� का त्योहार होल� �हदंओुं का प्र�स़द्ध त्योहार है, जो फाल्गुन मास क� पू�णर्मा को मनाया जाता है। यह त्योहार रंग एव ंउमंग का अनुपम त्योहार है जब वसंत अपने पूरे यौवन पर होता है। सद� को �वदा देने और ग्रीष्म का स्वागत करने के �लए इसे मनाया जाता है। संस्कृत सा�हत्य म� इस त्योहार को ‘मदनोत्सव’ के नाम से भी पुकारा जाता है।

  • होल� के संबंध म� एक पौरा�णक कथा प्रच�लत है �क भगवान �वष्णु के परम भक्त प्रहलाद को अिग्न म� जलाने के प्रयास म� उसक� बुआ ‘हो�लका’ अिग्न म� जलकर स्वाहा हो गइर् थी। इसी घटना को याद कर प्र�तवषर् हो�लका दहन �कया जाता है। दसूरे �दन फाग खेला जाता है। इस �दन छोटे-बड़े, अमीर-गर�ब आ�द का भेदभाव �मट जाता है। सब एक दसूरे पर रंग फ� कते ह�, गुलाल लगाते ह� और गले �मलते ह�। चार� ओर आनंद, मस्ती और उल्लास का समाँ बँध जाता है। ढोल पर �थरकत,े मजीर� क� ताल पर झूमते, नाचत-ेगाते लोग आपसी भेदभाव भुलाकर अपने शतु्र को भी गले लगा लेते ह�। परन्तु कुछ लोग अशोभनीय व्यवहार कर इस त्योहार क� प�वत्रता को नष्ट कर देते ह�। हमारा कतर्व्य है �क हम होल� का त्योहार उसके आदश� के अनुरूप मनाएँ तथा आपसी वैमनस्य, वैर-भाव, घणृा आ�द को जलाकर एक-दसूरे पर गुलाल लगाकर आपस म� प्रेम,एकता और सद्भाव बढ़ाने का प्रयास कर�। “होल� के अवसर पर आओ एक दजेू पर गुलाल लगाएँ अपने सब भेदभाव भूलाकर, प्रेम और सद्भाव बढाएँ”

    ---------------

  • Class VIII Notes by: Sadhana Chaturvedi

    पाठ 2 लाख क� चू�ड़याँ

    लेखक - कामतानाथ

    प�रचय कामतानाथ क� कहानी “लाख क� चू�ड़याँ” शहर�करण और औद्यो�गक �वकास से गाँव के उद्योग के ख़त्म होने के दखु को �च�त्रत करती है। यह कहानी �रश्त-ेनाते के प्यार म� रचे-बसे गाँव के सहज सम्बन्धो म� �बखराव और सांस्कृ�तक नुकसान के आ�थर्क कारण� को स्पष्ट करती है। यह कहानी एक बच्चे और बदलू मामा क� है। जो उसे लाख क� गो�लयाँ बनाकर देता है और वह बच्चा इस बात से बहुत खुश होता है। धीरे-धीरे समय बीतता है और वह बच्चा बड़ा होने के बाद एक बार �फर गॉवं आता है और बदलू से �मलकर औपचा�रक बात करते हुए उसे मालुम होता है क� गांव म� “लाख क� चू�ड़याँ” बनाने का कामकाज लगभग ख़त्म हो रहा है। बदलू इस बदलाव से दखुी है �कन्तु वो अपने उसूल नह�ं त्यागता तथा साथ ह� अपना जीवन चलाने के �लए कई और रास्ते �नकाल लेता है। इस कहानी म� लेखक �वपर�त प�रिस्थ�तय� म� भी अपने उसूल को न त्यागने क� सीख देता है तथा उन्ह� इस बात पर संतोष भी है।

    पाठ का सार

    इस पाठ के द्वारा लेखक लघु उद्योग क� ओर पाठको का ध्यान करवा रहे है। वे कहत ेह� �क बदलते समय का प्रभाव हर वस्तु पर पड़ता है। बदलू व्यवसाय से म�नहार है। वह अत्यंत आकषर्क चू�ड़याँ बनाता है। गाँव क� िस्त्रयाँ उसी क� बनाई चू�ड़याँ पहनती ह�। बदलू को काँच क� चू�ड़य� से बहुत �चढ़ है। वह काँच क� चू�ड़य� क� बड़ाई भी नह�ं सुन सकता तथा कभी-कभी तो दो बात� सुनाने से भी नह�ं चूकता । शहर और गाँव क� औरत� क� तुलना करते हुए वह कहता है �क शहर क� औरत� क� कलाई बहुत नाजुक होती है। इस�लए वह लाख क� चू�ड़याँ नह�ं पहनती है। लेखक अकसर गाँव जाता है तो बदलू काका से जरूर �मलता है क्यो�क वह उसे लाख क� गो�लयां बनाकर देता है। परन्तु अपने �पता जी क� बदल� हो जाने क� वजह से इस बार वह काफ� �दन� बाद गाँव आता है।

  • वह वहां औरत� को काँच क� चू�ड़याँ पहने देखता है तो उसे लाख क� चू�ड़य� क� याद हो आती है वह बदलू से �मलन ेउसके घर जाता है।बातचीत के दौरान बदलू उसे बताता है �क लाख क� चू�ड़य� का व्यवसाय मशीनी युग आने के कारण बंद हो गया है और काँच क� चू�ड़य� का प्रचलन बढ़ गया है। इस पाठ के द्वारा लेखक ने बदलू के स्वभाव, उसके सीधेपन और �वनम्रता को दशार्या है। मशीनी युग से आये प�रवतर्न से लघु उद्योग क� हा�न पर प्रकाश डाला है। अंत म� लेखक यह भी मानता है �क काँच क� चू�ड़य� के आने से व्यवसाय म� बहुत हा�न हुई हो �कन्तु बदलू का व्यिक्तत्व काँच क� चू�ड़य� क� तरह नाजुक नह�ं था जो सरलता से टूट जाए।

    शब्दाथर्

    लाख – लाह चाव – ख़ुशी गो�लयाँ – कंचे मोह – आक�षर्त सहन – आँगन व�ृ – पेड़ भट्ट� – अँगीठ� दहकती –जलती चौखट – लकड़ी का चौकोर टुकड़ा सलाख – धातु क� छड़ बेलननुमा मुँगे�रयाँ – गोल लकड़ी पश्चात ्– बाद म� म�चये – चौकोर खाट नव-वधू – नई बहू म�नहार– चूड़ी बनाने वाला पैतकृ – �पता सम्बन्धी वास्तव – हक�कत खपत – �बक्र� वस्तु-�व�नमय – वस्तु के बदले वस्तु �ववाह – शाद� कसर – कमी लोहे लगना – मुिश्कल होना घरवाल� – पत्नी

    िस्त्रयाँ – औरत� �वरले – बहुत कम सहसा – अचानक आँगन – बेड़ा मरहम-पट्ट� – घाव पर दवा लगाकर पट्ट� बाँधना सहसा – एकाएक ध्यान – ख्याल चबूतरे – ऊँचा और चौरस स्थान खाट – चारपाई �नहारता – एकटक देखना अतीत के �चत्र –पुरानी याद� दृिष्ट – नज़र भट्ट� – चूल्हा प्रचार – चलन खतरनाक – नुकसान देने वाला नाजुक – मुलायम दमा – लगातार खांसते रहना ढल – कमजोर उभर – �दखने लगी शंका – द�ुवधा या शक़ भाँप – जानना

  • ढेर� – बहुत सारा पगड़ी – पग अंदर-ह�-अंदर कुढ़ – मन ह� मन दखुी होना मरद – प�त नाजुक – कोमल खा�तर – मेहमान नवाजी अ�त�रक्त – अलावा रोज – प्र�त�दन बहुधा – हमेशा अव�ध – समय रु�च – लगाव ध्यान – याद

    फसल� खाँसी – बदलते मौसम के कारण हुई ख़ासी व्यथा – दखु हाथ काटना – बेरोज़गार करना पश्चात – बाद लहककर – खुश हो कर मुखा�तब – सामने मुख करके बोलना ढेर – बहुत चौगुने – चार-गुना बखत – समय अंजुल� – हथेल� �ठठक – रूक फब – सुन्दर दृिष्ट – नज़र

    प्रश्न-उ�र

    प्र॰1 बचपन म� लेखक अपने मामा के गाँव चाव से क्य� जाता था और बदलू को ‘बदलू मामा’ न कहकर ‘बदलू काका’ क्य� कहता था? उ�र - बचपन म� लेखक अपने मामा के गाँव चाव से इस�लय जाता था क्य��क वहाँ बदलू उसे लाख क� गो�लयाँ बनाकर देता था। जो उसे पसंद थी। लेखक उसे “बदलू मामा” न कहकर “बदलू काका” इस�लए कहता था क्य��क गाँव के सभी बच्च� उसे “बदलू काका”कहते थे। प्र॰2 वस्तु-�व�नमय क्या है? �व�नमय क� प्रच�लत पद्ध�त क्या है? उ�र – वस्तु �व�नयम एक पुरानी व्यापार पध्द�त है। िजसम� वस्त ुके बदले वस्तु द� जाती है। पुराने समय म� के वस्तु बदले पैसे का लेनदेन नह�ं होता था। आधु�नक व्यापार पध्द�त म� वस्तु के बदले धन का लेनदेन होता है। प्र॰3 ‘मशीनी युग ने �कतने हाथ काट �दए ह�।’-इस पंिक्त म� लेखक न े�कस व्यथा क� ओर संकेत �कया है? उ�र – मशीनीकरण के कारण हस्त�शल्प पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। मशीन� के आ जाने से कई लोग� क� आमदनी साधन न रहा। लोग बेरोज़गार हो गए ह�। बढ़ गई है। पतैकृ व्यवसाय बंद हो गया है। ऊपर �लखी गई पंिक्त बदलू क� दशा क� ओर संकेत करती है। लाख क�

  • चू�ड़य� का व्यवसाय बंद हो गया। इसका उसके जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा है। उसक� आ�थर्क िस्थ�त और स्वास्थ्य �बगड़ गया। प्र॰4 बदलू के मन म� ऐसी कौन-सी व्यथा थी जो लेखक से �छपी न रह सक�। उ�र – मशीनीकरण के आने तथा काँच क� चू�ड़य� के प्रचलन एवं गाँव म� औरत� के काँच क� चू�ड़य� के पहनने के कारण बदलू का व्यवसाय �बल्कुल बंद हो गया था। उसक� आ�थर्क िस्थ�त भी ख़राब हो गई थी। अपना पैतकृ काम खो देने क� व्यथा लेखक से �छपी नसक�। प्र॰5 मशीनी युग से बदलू के जीवन म� क्या बदलाव आया? उ�र – मशीनी युग के कारण बदलू का सुखी जीवन दखु म� बदल गया था। गाँव क� सार� औरत� काँच क� चू�ड़याँ पहनन ेलगी थी। बदलू क� कला को अब कोई नह�ं पूछता था। उसक� चू�ड़य� क� माँग अब नह�ं रह� थी। इसी कारण शाद�-ब्याह से �मलने वाला अनाज, कपड़े तथा अन्य उपहार उसे नह�ं �मलते थे। उसक� आ�थर्क हालत �बगड़ गई िजससे उसके स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ा था।

    ---------------

  • Class VIII Notes by: Sadhana Chaturvedi

    पाठ 3 बस क� यात्रा

    लेखक – ह�रशंकर परसाई

    प�रचय वे इस लेख के द्वारा, अपने व्यिक्तगत अनुभव का बखान करते ह� जो �क है ‘‘बस क� यात्रा।” वे एक बार बस के द्वारा अपनी यात्रा करते ह� और �कस तरह क� परेशा�नयाँ इस यात्रा म� आती ह�, इस सब का अनभुव इस रचना के द्वारा दषार्या गया है। एक बार बस से पन्ना को जा रहे थे। बस बहुत ह� पुरानी थी जैसा �क दशार्या गया है। इस सफर म� क्या-क्या अनुभाव �कया, क्या-क्या उनके साथ घटा, और उन्ह�ने प�रवहन �नगम क� जो बस� होती ह� ,उनक� खस्ता हाँलत पर व्यंग �कया है और ये भी दशार्या गया है �क �कस तरह से वे अपनी बस� क� देख-भाल नह�ं करते ह� । जब हम इसको पढ़ते ह� तो बहुत सी घटानाऐं हास्यपद (हँसीपद) लगती ह� और बहुत ह� र�चक हो गई है उनक� यह रचना। तो आइए हम भी चलते ह� उनक� इस यात्रा पर।

    पाठ का सार

    एक बार लेखक अपने चार �मत्र� के साथ बस से जबलपुर जाने वाल� टे्रन पकड़ने के �लए अपनी यात्रा बस से शुरु करने का फैसला लेते ह�। परन्तु कुछ लोग उसे इस बस से सफर न करने क� सलाह देते ह�। उनक� सलाह न मानत ेहुए, वे उसी बस स ेजाते ह� �कन्त ुबस क� हालत देखकर लेखक हंसी म� कहते ह� �क बस पूजा के योग्य है। नाजुक हालत देखकर लेखक क� आखँ� म� बस के प्र�त श्रद्धा के भाव आ जाते ह�। इंजन के स्टाटर् होते ह� ऐसा लगता है जैसे पूर� बस ह� इंजन हो। सीट पर बैठ कर वह सोचता है वह सीट पर बैठा है या सीट उसपर। बस को देखकर वह कहता है ये बस जरूर गाँधी जी के असहयोग आंदोलन के समय क� है क्य��क बस के सारे पुज� एक-दसूरे को असहयोग कर रहे थे। कुछ समय क� यात्रा के बाद बस रुक गई और पता चला �क पटे्रोल क� टंक� म� छेद हो गया है। ऐसी दशा देखकर वह सोचने लगा न जाने कब बे्रक फेल हो जाए या स्टेय�रगं टूट जाए।आगे पेड़ और झील को देख कर सोचता है न जाने कब टकरा जाए या गोता लगा ले।अचानक बस

  • �फर रुक जाती है। आत्मग्ला�न से मनभर उठता है और �वचार आता है �क क्य� इस वदृ्धा पर सवार हो गए। इंजन ठ�क हो जाने पर बस �फर चल पड़ती है �कन्तु इस बार और धीरे चलती है।आगे पु�लया पर पहँुचते ह� टायर पंचर हो जाता है। अब तो सब यात्री समय पर पहँुचने क� उम्मीद छोड़ देते है तथा �चतंा मुक्त होने के �लए हँसी-मजाक करने लगते है।अंत म� लेखक डर का त्याग कर आनंद उठाने का प्रयास करते ह� तथा स्वयं को उस बस का एक �हस्सा स्वीकार कर सारे भय मन से �नकाल देते ह�।

    शब्दाथर्

    हािज़र - उपिस्थत सफ़र - यात्रा डा�कन - डराने वाल� श्रद्धा - �कसी के प्र�त आदर,सम्मान और प्यार का भाव उमड़ - जमा होना वयोवदृ्ध - बूढ़� या पुरानी �नशान - �चन्ह वदृ्धावस्था - बुढ़ापा कष्ट - परेशानी सवार - चढ़ा �हस्सेदार - साझेदार गज़ब - आश्चयर् �वश्वसनीय (भरोसे वाल�) �वदा - आ�खर� सलाम रंक - गर�ब कूच करने - जाना �न�म� - कारण फौरन - तुरंत सरक - �खसक स�वनय अव�ा आंदोलन� - गाँधी जी द्वारा चलाया गया 1921 का आंदोलन टे्र�नग - सीख दौर - ज़माने गुजर - चल

    भरोसा - �वश्वास गोता - डुबक� इ�फ़ाक - संयोग �ीण - कमज़ोर व�ृ� - पेड़ दयनीय - बेचार� वदृ्धा - बूढ� ग्ला�न - खेद प्राणांत - मरना �बयाबान - सुनसान अंत्येिष्ट - अं�तम �क्रया ज्यो�त - रोशनी टटोलकर - ढंूढकर र�ग - धीरे-धीरे एक पु�लया - छोटा सा पुल �फस्स - एक प्रकार क� ध्व�न थम - रूक श्रद्धाभाव - सम्मान के साथ जान हथेल� पर लेकर - बहुत खतरा लेना उत्सगर् - ब�लदान दलुर्भ - जो कम �मलता हो पसारे - फैलाए प्राण - जान वक्त - समय उम्मीद - आशा

  • असहयोग - साथ न देना भेदभाव - अंतर उम्मीद - आस रफ़्तार – ग�त

    लोक - मतृ्यु लोक प्रयाण - प्रस्थान बेताबी - बेचैनी तनाव - �चतंा

    प्रश्न-उ�र

    प्र॰1 “म�न ेउस कंपनी के �हस्सदेार क� तरफ़ पहल� बार श्रद्धाभाव से देखा।” लेखक के मन म� �हस्सेदार साहब के �लए श्रद्धा क्य� जग गई? उ�र - लेखक के मन म� �हस्सेदार के प्र�त श्रद्धाभाव इस�लए जगी क्य��क वह थोड़े से पैस ेबचाने के चक्कर म� बस का टायर नह�ं बदलवा रहा था और अपने साथ-साथ या�त्रय� क� जान भी जो�खम म� डाल रहा था, इस�लए लेखक ने श्रद्धाभाव कहकर उसपर व्यंग �कया है। प्र॰2 “लोग� ने सलाह द� �क समझदार आदमी इस शाम वाल� बस से सफर नह�ं करते।” लोग� ने यह सलाह क्य� द�? उ�र - लोग� ने लेखक को शाम वाल� बस म� सफर न करने क� सलाह उसक� जीणर्-शीणर् हालत को देखकर द�। य�द रात म� वह कह�ं खराब हो गई तो परेशानी होगी। प्र॰3 “ऐसा जैसे सार� बस ह� इंजन है और हम इंजन के भीतर बठेै ह�।” लेखक को ऐसा क्य� लगा? उ�र - सार� बस लेखक को इंजन इस�लए लगी क्य��क पूर� बस म� इंजन क� आवाज़ गूंज रह� थी। प्र॰4 “गज़ब हो गया। ऐसी बस अपने आप चलती है।” लेखक को यह सुनकर हैरानी क्य� हुई? उ�र - लेखक को इस बात पर हैरानी हुई क� इतनी टूट�-फूट� बस कैसे चल सकती है। व ेयह मानते ह� �क इस बस को कौन चला सकता है। यह तो स्वयं ह� चल सकती है। प्र॰5 “म� हर पेड़ को अपना दशु्मन समझ रहा था।” लेखक पेड़� को दशु्मन क्य� समझ रहा था? उ�र - लेखक को बहुत डर लग रहा था। उन्ह� ऐसा लग रहा था �क बस अभी �कसी पेड़ स ेटकरा जाएगी और वो लोग जख्मी हो जाय�गे। इस�लए वे पेड़ को अपना दशु्मन समझ रहे थे।

    ---------------

  • Class VIII Notes by: Sadhana Chaturvedi

    पाठ - 4 क�वता – द�वान� क� हस्ती क�व – भगवती चरण वमार्

    हम द�वान� क� क्या हस्ती, ह� आज यहाँ, कल वहाँ चले, मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले। आए बन कर उल्लास अभी, आँसू बन कर बह चले अभी, सब कहते ह� रह गए, अरे, तुम कैसे आए, कहाँ चले? �कस ओर चले? यह मत पूछो, चलना है, बस इस�लए चले, जग से उसका कुछ �लए चले, जग को अपना कुछ �दए चले, दो बात कह�, दो बात सुनी। कुछ हँसे और �फर कुछ रोए। छककर सुख-दखु के घूँट� को हम एक भाव से �पए चले। हम �भखमंग� क� द�ुनया म�, स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले, हम एक �नसानी – सी उर पर, ले असफलता का भार चले। अब अपना और पराया क्या? आबाद रह� रुकने वाले! हम स्वयं बँधे थे और स्वयं हम अपने बँधन तोड़ चले।

  • शब्दाथर् द�वान�: अपनी मस्ती म� रहने वाले हस्ती: अिस्तत्व मस्ती: मौज आलम: द�ुनया उल्लास: ख़ुशी जग: संसार छककर: तपृ्त होकर भाव: एहसास

    �भखमंग�: �भखा�रय� स्वच्छंद: आजाद �नसानी: �चन्ह उर: ह्रदय असफलता: जो सफल न हो भार: बोझ आबाद: बसना स्वयं: खुद

    क�वता का सार

    प्रस्तुत क�वता म� क�व का मस्त-मौला और बे�फक्र� का स्वभाव �दखाया गया है । मस्त-मौला स्वभाव का व्यिक्त जहां जाता है खु�शयाँ फैलाता है। वह हर रूप म� प्रसन्नता देने वाला है चाहे वह ख़ुशी हो या आँख� म� आया आँसू हो। क�व ‘बहते पानी-रमते जोगी’ वाल� कहावत के अनुसार एक जगह नह�ं �टकते। वह कुछ याद� संसार को देकर और कुछ याद� लेकर अपने नये-नये सफर पर चलते रहत ेह�। वह सुख और दःुख को समझकर एक भाव से स्वीकार करते ह�। क�व संसा�रक नह�ं ह� वे द�वाने ह�। वह संसार के सभी बंधन� से मुक्त ह�। इस�लए संसार म� कोई अपना कोई पराया नह�ं है।िजस जीवन को उन्होने खुद चुना है उससे वे प्रसन्न ह� और सदा चलते रहना चाहते ह�।

    क�वता व्याख्या 1. हम द�वान� क� क्या हस्ती,

    ह� आज यहाँ, कल वहाँ चले, मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले। आए बन कर उल्लास अभी, आँसू बन कर बह चले अभी, सब कहते ह� रह गए, अरे, तुम कैसे आए, कहाँ चले?

  • संदभर् – प्रस्तुत पंिक्तयाँ हमार� �हदं� क� पाठय पुस्तक “वसंत-3” म� संक�लत क�वता “द�वान� क� हस्ती” से ल� गयी है। इसके क�व “भगवती चरण वमार्“ है। इस क�वता म� क�व ने मस्त-मौला और फक्कड़ स्वभाव का वणर्न �कया है। प्रसंग - अपनी मस्ती म� रहने वाले लोग� क� क्या हस्ती, क्या अिस्तत्व है। कभी यहाँ है तो कभी वहाँ। एक जगह तो रूकने वाले नह�ं है, आज यहाँ, कल वहाँ चले । या�न जो मस्त-मौला �कस्म के व्यिक्त ह� वो कभी भी एक जगह नह�ं ठहरते, आज यहाँ है तो कल कह�ं और। यह जो मौज मस्ती का आलम है यह क�व के साथ चला। जहाँ क�व गया वहाँ पर उन्ह�ने अपनी मस्ती से, अपनी प्रसन्नता से, सब म� खु�शयाँ बाँट�। क�व कहते ह� �क हम अपनी मस्त-मौला आदत के अनुसार जहाँ भी गए, प्रसन्नता से धूल उड़ाते चले, मौज मजा करते चले। हम द�वान� क� हस्ती कुछ ऐसी ह� होती है हम जहाँ भी जाते है अपने ढंग से जीत ेहै अपने ढंग से ह� चलते-चलते है । हम पर �कसी का कोई असर नह�ं होता। क�व कहते है - वे अभी-अभी आएँ है और खु�शयाँ बाँट� ह�, खु�शयाँ लुटाई है और अभी कुछ हुआ �क आँसू भी बनकर बहे �नकले।अथार्त ्अभी-अभी खुश थे और अभी-अभी दखुी हो गए है तो आँसू भी बह �नकले है । क�व मस्त-मौला �कस्म के है अपने मन मरजी के मा�लक ह� कभी कह�ं जाते है तो कभी कह�ं के �लए चल पड़ते है तो जहाँ पर पहँुचते है खु�शयाँ लुटाते है और वहाँ स ेआगे �नकल चलते है तो लोग कहते है �क अरे, तुम कब आए और कब चले गए पता ह� नह�ं चला। व्याख्या – इसम� क�व कहते ह� �क उनका स्वभाव मस्त-मौला है, वह एक स्थान पर �टके नह�ं रहते। वे जहाँ भी जाते ह�, चार� तरफ खु�शयाँ फैल जाती है। क�व जहाँ धूल उड़ाते हुए जाते है वह� चार� तरफ प्रसन्नता का माहौल हो जाता है। क�व रमता जोगी है। वह मन म� उत्पन्न भाव� क� भाँ�त कभी ख़ुशी का सन्देश तो कभी आँख� म� बहते आँस ूक� तरह सब जगह फ़ैल जाता है। क�व कहते ह� �क वे इतनी जल्द� आते जाते रहते ह� �क लोग� को पता ह� नह�ं चलता �क वे कब आए और कब चले गए। 2. �कस ओर चले? यह मत पूछो,

    चलना है, बस इस�लए चले, जग से उसका कुछ �लए चले, जग को अपना कुछ �दए चले, दो बात कह�, दो बात सुनी। कुछ हँसे और �फर कुछ रोए। छककर सुख-दखु के घूँट� को हम एक भाव से �पए चले।

  • संदभर् – प्रस्तुत पंिक्तयाँ हमार� �हदं� क� पाठय पसु्तक “वसंत-3″ म� संक�लत क�वता” द�वान� क� हस्ती” से ल� गयी है। इसके क�व “भगवती चरण वमार्” है। इस काव्यांश म� क�व संसार से दरू अपनी अलग राह पर चलने क� बात कह रहे ह�। प्रसंग - क�व कहते ह� �क यह मत पूछो �क म� कहाँ जा रहा हँू मेर� मंिजल क्या है क्य��क इसके बारे म� तो मुझे भी नह�ं पता स्वयं को भी नह�ं पता। जैसा �क म� मस्त-मौला हँू, एक जगह ठहरता नह�ं हँू, चलता ह� रहता हँू इस�लए बस आगे चलते ह� रहना है। इस द�ुनया से कुछ �ान उन्ह�ने प्राप्त �कया है , कुछ सीख ल� है , उसको लेकर वह आगे बढ़ चले है। जो भी उनके पास था वे भी इस द�ुनया के साथ बाँटते हुए आगे चल पड़े है। क�व जहाँ कह�ं भी पहँुचे वहाँ के लोग� से खुशी-खुशी से �मले और उनसे बात चीत क�, अपना सुख-दखु बाँटा और अपने मन क� बात कह�। जब सुख के भाव जगे तो उनके साथ �मलकर हँसे भी और जब उनको दखु का अनुभाव हुआ तो उनके साथ अपना दखु भी बाँटा । उनका भी सुख-दखु बाँटा। जो दखु-सुख के समय भावनाएँ जगी, उनको एक दसूरे के साथ बाँटा िजससे व्यिक्त का मन हल्का हो जाता है। जो सुख-दखु के भाव है एक सामान हम गम� स े�पए चले और आग ेबढे

    चले। व्याख्या - संसार जब क�व से जानना चाहता है अब वो �कस ओर जा रहे ह� तो वे कहत ेह� �क ये मत पूछो �क म� कहाँ जा रहा हँू क्य��क मेर� कोई �निश्चत मंिजल नह�ं है। म� चलता हँू क्य��क यह मेरा स्वभाव है। क�व कहते ह� �क वो संसार से कुछ �ान लेकर और कुछ अपने पास से देकर जा रहे ह�। क�व का स्वभाव चलने का है परन्तु वह जहां रुकते ह� वहां लोग� से प्रेम भर� बात� करते ह� तथा उनक� बात� सुनते ह� और उनसे अपना तथा उनका सुख-दखु बाटत� ह� तथा सुख-दःुख रूपी अमतृ का घूँट पीकर वह �फर नये सफर पर चल देते ह�। 3. हम �भखमंग� क� द�ुनया म�,

    स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले, हम एक �नसानी – सी उर पर, ले असफलता का भार चले। अब अपना और पराया क्या? आबाद रह� रुकने वाले! हम स्वयं बँधे थे और स्वयं हम अपने बँधन तोड़ चले।

    संदभर् – प्रस्तुत पंिक्तयाँ हमार� �हदं� क� पाठय पुस्तक “वसंत-3” म� संक�लत क�वता “द�वान� क� हस्ती” से ल� गयी है। इसके क�व “भगवती चरण वमार्” है। इस काव्यांश म� क�व प्यार क�

  • दौलत से ह�न संसार को �भखार� कहते ह� और फक्कड़ होत ेहुए भी व ेसंसार पर अपना प्यार लुटाते ह�। प्रसंग - क�व इन पंिक्तय� म� कह रहे है �क यह जो द�ुनया है, द�ुनया के लोग �भखा�रय� क� तरह कुछ न कुछ माँग करते रहते है । �भखार� क� आदत माँगना होती है । इस द�ुनया के लोग� को उन्ह�ने �भखमंगे कहा है । �भखमंग� क� इस द�ुनया म� अपनी मन मरजी से अपना प्यार लुटाकर चले है। वे अपने हृदय म� यह� एक �नशानी लेकर आगे चले है । उन्ह�ने जीवन म� असफलता भी पाई है, हार भी मानी है, ले�कन उस का बोझ स्वयं ह� उठाया है। उसका बोझ �कसी पर नह�ं डाला है अथार्त उसके �लए िजम्मेदार �कसी अन्य व्यिक्त को नह�ं मानत ेह� । जो अपनी मंिजल पर रूके है वह आबाद रहे, बसे रहे यह� आश�वाद देते है। क�व कहत ेहै �क हम स्वय ंह� अपने इन बँधन� म� बँधे थे, अपनी स्वततं्रता से, अपनी मरजी से, और हम स्वयं ह� यह बँधन तोड़ आगे चल �नकले है। क�व का यह मानना है �क वे संकल �कस्म के मस्त-मौला आदमी द�वाने कभी �कसी बँधन म� नह�ं बँधे है । अगर बँधे है तो वह अपनी मरजी से और अब वो आगे बढ़ �नकले है अथार्त ्बँधन� को तोड़ चले है तो भी वे अपनी मन मरजी से ह� उन बँधन� को तोड़कर आगे बढ़े है । वह स्वयं ह� इस बात का अफसोस जताते है अपने जीवन म� इस बात क� हार मानते है �क वे कभी भी एक संसा�रक व्यिक्त नह�ं बन पाए, एक संसा�रक व्यिक्त का सुख नह�ं भोग पाए । व्याख्या – क�व के अनुसार ये संसार �भखार� है इसके पास प्रेम नामक धन नह�ं है। �कन्तु क�व पूर� आजाद� से सब जगह प्रेम लुटाते चलते ह� क्य��क क�व सारे संसार को अपना मानत ेह� इसी�लए वे बंधन मुक्त ह�। इतना प्रेम होते हुए भी एक सफल संसा�रक व्यिक्त न बन पान ेक� ददर् या �नशानी उनके ह्रदय म� है और यह� भार उनक� असफलता है। क�व के अनुसार संसार म� कोई अपना और कोई पराया नह�ं है। व ेकहते ह� वे स्वयं इन बधंन� म� बंधे थे और स्वयं इन बंधन� को तोड़कर आगे चलते जा रहे ह� तथा इससे वे प्रसन्न ह� और सदा चलते रहना चाहते ह�।

    प्रश्न-उ�र

    प्र॰1 क�व ने अपने आने को ‘उल्लास’ और जाने को ‘आँसू बन कर बह जाना’ क्य� कहा है? उ�र – क�व खुद के आन ेको उल्लास इस�लए कहते ह� क्य��क वे जहाँ भी जाते ह� खु�शयाँ फैलाते ह� तथा अपने जाने को आंसू बनकर बह जाना इस�लए कहते ह� क्य��क इतनी खु�शय� के बाद जब वो जाते ह� तो उनक� याद म� लोग� को आँसू आने लगते ह�।

  • प्र॰2 �भखमंग� क� द�ुनया म� बेरोक प्यार लुटाने वाला क�व ऐसा क्य� कहता है �क वह अपन ेहृदय पर असफलता का एक �नशान भार क� तरह लेकर जा रहा है? क्या वह �नराश है या प्रसन्न है? उ�र – क�व प्रेम क� दौलत संसार म� लुटाता है। इतना प्रेम होने पर भी वह अपने को असफल इस�लए कहता है क्य��क वह कभी सांसा�रक व्यिक्त नह�ं बन पाया। यह� असफलता उसके ह्रदय म� एक �नशाँ क� तरह चुभती है। �कन्तु वो �नराश नह�ं है वह प्रसन्न है क्य��क यह रास्ता उसने खुद चुना है और वह इसके �लए �कसी को दोषी भी नह�ं ठहराता है। प्र॰3 क�वता म� ऐसी कौन-सी बात है जो आपको सब से अच्छ� लगी? उ�र – इस क�वता म� क�व का अपने ढंग से अपना जीवन जीना तथा चार� ओर प्यार और खु�शयाँ बाँटना सबसे अच्छा लगा। क�व अपने जीवन क� असफलता के �लए �कसी अन्य को दोषी नह�ं ठहराता यह भी अच्छा लगा।

    ---------------

  • Class VIII Notes by: Sadhana Chaturvedi

    पाठ 5 �चट्�ठय� क� अनूठ� द�ुनया लेखक – अर�वदं कुमार �सहं

    प�रचय अर�वदं कुमार जी अपने इस लेख के द्वारा �चट्�ठय� क� अनूठ� द�ुनया के बारे म� बताना चाहते ह� �क �कस तरह से �चट्�ठय� और पत्र� क� द�ुनया अनूठ� है, अनोखी है। आजकल का जमाना वाट्सअप, एसएमएस, मोबाइल का जमाना है, को�रयर का जमाना है। �चट्�ठयाँ कह�ं पीछे खो गई है ले�कन एक जमाना था जब �चट्�ठय� क� बहुत एह�मयत थी। लोग डा�कया का इंतजार करते थे और �चट्�ठय� को सहेज कर रखते थे। अपने �प्रय जन� क� �चट्�ठय� को सहेज कर रखना और पुरानी याद� को �फर ताजा करना बहुत ह� सरल था। लेखक ने �चट्�ठय� के महत्व के बारे म� बताया है �क पहले �कस तरह क� �चट्�ठयां होती थीं।

    पाठ का सार

    लेखक ‘पत्र’ क� मह�ा बताते ह� �क आज का यगु वै�ा�नक युग है। मनषु्य के पास अनेक संचार के साधन ह� �फर भी मनुष्य पत्र� का सहारा जरूर लेता है। इनके नाम भी भाषा के अनुसार अलग-अलग ह�। तेलगू म� उ�रम, कन्नड़ म� कागद, संस्कृत म� पत्र, उदूर् म� खत, त�मल म� क�डद कहा जाता है। आज भी कई लोग अपने पुरख� के पत्र सहेजकर रख� ह�। हमारे सै�नक अपने घर वाल� के पत्र� का इंतजार बड़ी बेसब्री से करते ह�। उन्ह�ने यह बतात ेहुए कहा है �क आज भी �सफर् भारत म� प्र�त�दन साढ़े चार करोड़ पत्र डाक म� डाले जाते ह�। पं�डत जवाहर लाल नेहरू ने भी पत्र के मह�व को माना है। लेखक कहते ह� �क २०वीं शताब्द� म� पत्र केवल संचार का साधन ह� नह�ं अ�पतु एक कला मानी गई है। इस ेपाठ्यक्रम का �हस्सा बनाया गया तथा कई पत्र लेखन प्र�तयो�गताएँ आयोिजत क� गई। लेखक का मानना है इस संसार म� कोई ऐसा मनुष्य नह�ं होगा िजसने कभी �कसी को पत्र न �लखा हो। पत्र �सफर् एक संचार माध्यम ह� नह�ं ह�, ये मागर्दशर्क क� भू�मका भी �नभाते ह�। मोबाइल से प्राप्त एसमएस तो लोग �मटा देते ह� परन्तु पत्र हमेशा सहेज कर रखते ह�। आज भी संग्रहालय म� महान हिस्तय� के पत्र शोभा बने हुए ह�। महात्मा गांधी के पास पूरे �वश्व से पत्र आत ेथे और वे उनका जवाब तुरंत �लख देते थे। ‘रवीन्द्रनाथ टैगोर’ और ‘महात्मा गांधी’ के पत्र व्यवहार को “महात्मा और क�व” के शीषर्क से प्रका�शत �कया गया है।

  • भारत म� पत्र व्यवहार क� परम्परा बहुत पुरानी है। सरकार� क� अपे�ा घरेलू पत्र मुख्य भू�मका �नभाते ह� क्यो�क ये आम लोगो को जोड़ने का काम करते ह�। चाहे गर�ब हो या अमीर सभी को अपने �प्रयजन� से प्राप्त पत्र का इन्तजार रहता है। गर�ब बस्ती म� तो मनीऑडर्र लेकर आने वाले डा�कए को लोग देवता समझते ह�। अंत म� वे कहते ह� �क अत्य�धक संचार साधन� के होने के बावजूद भी पत्र� क� अपनी एक महत्वपूणर् भू�मका है।

    शब्दाथर्

    आधु�नकतम - नये ज़माने के �सल�सला - चलन �ववाद - झगड़ा द�ुनया - संसार क� �द्रत - आधा�रत अनूठ� - अलग सहेजकर - संभालकर संदेह - शक दायरा - सीमा तलाशते - ढंूढते �ठकान� - जगह सा�बत - �सद्ध अह�मयत - मह�व हरकारे - दतू शताब्द� - सौ वषर् प्रयास - को�शश संस्कृ�त - परम्परा �वक�सत - बढ़ावा पाठ्यक्रम� - �सलेबस �सल�सला - क्रम आवा-जाह� - आना-जाना देहाती - गाँव तह - गहराई बार�क� - सू�मता बेसब्री - अधीरता उत्सकुता - अधीरता

    सँजोकर - संभालकर �वरासत - धरोहर उद्यमी - व्यापार� अनुसंधान - खोज तमाम - सभी हिस्तय� - नामी लोग पैमाना - मापदंड सा�बत - �सद्ध जमीनी - वास्त�वक केवल - �सफर् �दग्गज - महान जोड़ - बराबर� जवाब - उ�र प्रशिस्तपत्र - प्रशंसा पत्र दस्तावेज - प्रमाण पत्र प्रेरक - प्रेरणा देने वाले मुस्तैद - तत्पर संग्रह - जमा करना प्रका�शत - छापना तथ्य� - हक�कत मनोदशा - मन क� दशा लेखा-जोखा - �हसाब-�कताब उन्नत - बढ़त ेआल�शान - शानदार दगुर्म - क�ठन रास्त े ढाँ�णय� - कच्चे मकान� क� बस्ती

  • इतंजार - प्रती�ा �मसाल - उदाहरण प�रवहन - यातायात �वक�सत - बढ़े

    बेसब्री - अधीरता आयामी - हर तरफ अथव्यर्वस्था - घर चलाने का ज�रया पुरख� - पूवर्ज�

    प्रश्न-उ�र

    प्र॰1 पत्र जैसा संतोष फोन या एसएमएस का संदेश क्य� नह�ं दे सकता? उ�र – पत्र जैसा संतोष फोन या एसएमएस का संदेश नह� दे सकता क्य��क पत्र जो काम कर सकते ह�, वह नये जमान ेके संचार के साधन नह�ं कर सकते। पत्र एक नया �सल�सला शुरू करते ह� और राजनी�त, सा�हत्य तथा कला के �ेत्र� म� तमाम �ववाद और नयी घटनाओं क� जड़ भी पत्र ह� होते ह�। द�ुनया का तमाम सा�हत्य पत्र� पर क� �द्रत है और मानव सभ्यता के �वकास म� इन पत्र� ने अनूठ� भू�मका �नभाई है। प्र॰2 पत्र को खत, कागद, उ�रम,् जाबू, लेख, क�डद, पाती, �चट्ठ� इत्या�द कहा जाता है। इन शब्द� से संबं�धत भाषाओं के नाम बताइए। उ�र – पत्र को उदूर् म� खत और �चट्ठ�, ससं्कृत म� पत्र, कन्नड़ म� कागद, तेलुगु म� उ�रम,् जाबू और लेख, �हदं� म� पाती तथा त�मल म� क�डद कहा जाता है। प्र॰3 पत्र लेखन क� कला के �वकास के �लए क्या-क्या प्रयास हुए? �ल�खए। उ�र – पत्र लेखन क� कला के �वकास के �लए �नम्न प्रयास हुए। डाक व्यवस्था के सुधार के साथ पत्र� को सह� �दशा देने के �लए �वशेष प्रयास �कए गए। पत्र संस्कृ�त �वक�सत करने के �लए स्कूल� पाठ्यक्रम� म� पत्र लेखन का �वषय भी शा�मल �कया गया। �वश्व डाक संघ क� ओर से 16 वषर् से कम आयवुगर् के बच्च� के �लए पत्र लेखन प्र�तयो�गताएँ आयोिजत करने का �सल�सला सन ्1972 से शुरू �कया गया। प्र॰4- पत्र धरोहर हो सकते ह� ले�कन एसएमएस क्य� नह�ं? तकर् स�हत अपना �वचार �ल�खए। उ�र – आज देश म� ऐसे लोग� क� कमी नह�ं है जो अपने पुरख� क� �चट्�ठय� को सहेज और सँजोकर �वरासत के रूप म� रखे हुए ह�, पत्र� को तो आप सहजेकर रख लेते ह� पर एसएमएस सद�षां को आप जल्द� ह� भूल जाते ह�। �कतने सदेंश� को आप सहेजकर रख सकते ह�? तमाम महान हिस्तय� क� तो सबसे बड़ी धरोहर उनके द्वारा �लखे गए पत्र ह� ह�। भारत म� इस शे्रणी म� राष्ट्र�पता महात्मा गांधी को सबसे आगे रखा जा सकता है। द�ुनया के तमाम संग्रहालय म� जानी मानी हिस्तय� के पत्र� का अनूठा संकलन भी ह�। इस�लए कहा जाता है �क पत्र धरोहर हो सकते ह� ले�कन एसएमएस नह�ं।

  • प्र॰5 क्या �चट्�ठय� क� जगह कभी फैक्स, ई-मेल, टेल�फोन तथा मोबाइल ले सकते ह�? उ�र – �चट्�ठय� क� जगह कभी फैक्सए ई-मेलए टेल�फ़ोन तथा मोबाइल नह�ं ले सकते है क्य��क यह सब वै�ा�नक युग के ह�ए जो मानव के �लए बहुत मह�व रखते है परन्तु ये कभी भी पत्र� का स्थान नह�ं ले सकते। िजतना प्रेम और अपनापन हमे पत्र� म� �ल�खत एक-एक शब्द द्वारा �मलता है वह इन �वक�सत संचार साधनो द्वारा नह�ं। इस�लए ये कभी भी �चट्�ठय� का स्थान नह�ं ले सकते।

    ---------------

    प्रथम इकाई परीक्षा पाठ्यक्रम -2020-पाठ 1पाठ 2पाठ 3पाठ 4पाठ 5