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    वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा TM–02

    पयटन अवधारणाएं

    ख ड –3 : पयटक गंत य इकाई –11 पयटन गतं य 7—15 इकाई –12 गतं य आकषण एव ंपयटक वाह 16—27 इकाई –13 पयटन संगठन

    28—43

    ख ड –4 : पयटन मांग इकाई –14 नयं ण काय एव ंतकनीक 44—60 इकाई –15 ब ध सूचना णाल एव ं नयं ण 61—73 इकाई –16 भाव, मू यांकन एव ं ब ध 74—91 इकाई –17 पयावरणीय भाव आंकलन एव ंअंके ण

    92—104

    ख ड –5 : पयटन नी तगत ढांचा इकाई –18 पयटन नी तयां और वकास 105—116 इकाई –19 पयटन स ब धी काननू 117—128 इकाई –20 पयटन सूचनाओं के ोत एव ंमागदशक 129—139

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    पा य म अ भक पना स म त TM–02 डॉ .आर.वी. यास कुलप त वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    ो. पी.के. शमा आचाय ( ब ध) एवं सम वयक, पयटन अ ययन, नदेशक, वा ण य एव ं ब ध अ ययन व यापीठ वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    ो. संद प कुल े ठ सम वयक, भारतीय पयटन एव ं या ा ब ध सं थान गो व दपरु , वा लयर (म. .)

    डॉ. राजेश कुमार यास पयटन वषय वशेष , जयपरु

    पा य म लेखन डॉ. राजेश कुमार यास पयटन वषय वशेष , पयटन वषय वशेष , जयपरु

    पा य म स पादन ी राम कुमार

    पयटन वषय वशेष , 55, यू आकाशवाणी कॉलोनी, कोटा

    आवरण पृ ठ स जा डॉ. राजेश कुमार यास पयटन वषय वशेष , जयपरु

    साम ी उ पादन ो. पी.के. शमा नदेशक, पा यसाम ी उ पादन एव ं वतरण वभाग वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    ी योगे गोयल सहायक उ पादन अ धकार पा यसाम ी उ पादन एव ं वतरण वभाग वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

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    तावना पयटन बधंन के इस पा य म म पयटन उ योग से स बं धत अवधारणाओं क व ततृ

    या या क गई है । इस पा य म का उ े य पयटन अवधारणाओं के व भ न पहलओंु से व या थय को अवगत करवाना है । इसके अ तगत पयटन उ व का वकास, पयटन के व प सेवाएं, पयटन ग त य, पयटन के आ थक सामािजक भाव एव ं पयटन नी तगत ढाचंा से स बं धत जानकार द गई है ।

    थम ख ड – अवधारणाएं ढांचा म यु त पांच इकाईया ं है जो मश: पयटन क अवधारणा, उ व एव ं वकास, पयटन क ेरणा व व प, पयटन आधा रत संरचना एव ंपयटन उ योग के अवयव पर काश डालती है ।

    ख ड दो म पयटन मांग पर आधा रत पाचं, इकाईयां है । इन इकाइय म अथ यव था एव ंपयटन मांग, संि यक उभरती वृ तयां, पयटन सेवाएं एव ं ेवल एजे सी व टूर सचंालन का व ततृ वणन कया गया है ।

    ततृीय ख ड – पयटक ग त य म द गई तीन इकाइया ं पयटक ग त य, ग त य आकषण एव ंपयटक वाह तथा पयटक संगठन पर आधा रत है ।

    चतथु ख ड – पयटन के आ थक सामािजक, पहल ुके अ तगत पयटन के भाव, खतरे एव ंबाधाएं, भाव मू यांकन एव ं बधं तथा पयावरणीय भाव, आंकलन व अकें ण से स बं धत चार इकाईयां है ।

    अि तम ख ड म यु त तीन इकाइयां पयटन नी तयां और वकास, पयटन स बधंी काननू एव ंपयटन सुवहनओन के ोत एव ंमागदशक पर आधा रत है ।

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    ख ड –3 : पयटक गंत य इकाई –11 पयटन गतं य इकाई –12 गतं य आकषण एव ंपयटक वाह इकाई –13 पयटन संगठन

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    इकाई – 11 : पयटक गंत य परेखा :

    11.0 उ े य 11.1 तावना 11.2 पयटक गतं य 11.3 सामा य वशेषताएं 11.4 पयटक गतं य के आव यक त व 11.5 पयटक गतं य वकास 11.6 पयटक गतं य वपणन 11.7 साराशं 11.8 अ यासाथ न

    11.0 उ े य इस इकाई को पढने के बाद आप –

    पयटक गतं य का आशय समझ सकेग। पयटक गतं य क सामा य वशेषताओं के बारे म जान सकगे। पयटक गतं य के आव यक त व को समझ सकगे। आव यक त व के वकास म व भ न े क भू मका के बारे मे अवगत हो सकगे। पयटन थल के आव यक त व के आधार पर पयटन वपणन को ग त दे सकगे।

    11.1 तावना पयटन कसी के लए पयटन कौतुहल के अ वेषण का मा यम है तो कसी के लए

    सु ंदर याव लयो के मण क लालसा को शांत करना। कोई अतीत क मृ तय को जीव त करने क चाह से पयटन क राह पकडता है। कुछ भी हो, इस बात से तो इ कार कया ह नह ं जा सकता है क पयटन आनदं क अनभुू त से जुडा है। यह अलग बात है क हर यि त क आनदंानभुू त अलग–अलग आकषण से संब होती है। अब न यह उठता है क पयटन थल कसे कहा जाएगा ? सरल श द म कहे तो वह ंपयटक का गतं य है जहा ंवह जाना चाहता है और जहा ंउसके लए आकषण है। पयटन उ योग के अंतगत पयटक गतं य वह थान होता है िजसे पयटक पयटन के लए चुनत ेहै तथा वहा ँवे कुछ समय के लए एक नधा रत रा श का यय करत े है। पयटन यव था के अंतगत गतं य पयटन का अं तम थल है। रा त ेम पडने वाले थान या कुछ समय के ठहराव के थल को गतं य नह ं कहा जा सकता। पयटन यव था के अंतगत कसी पयटक गतं य पर पयटक क पहुचँ तभी सु नि चत हो सकती है जब वहा ंपयटन संबधंी आकषण क पहचान कर पहु ंच सबंधंी आव यक सु वधाओं का वकास कर दया जाए। कसी पयटन थल के वे कौनसे त व होत ेहै, िजनके कारण पयटक वहा ंखींचे चले आत ेहै? या ऐसी आव यकताए होती है िजनसे क पयटक पयटन के लए आकृ ट होता

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    है? कैसे पयटन के आव यक त व का वकास कया जाए? आव यक त व के वकास म या होगी वपणन क भू मका? आईए, जाने–

    11.2 पयटक गंत य भौगो लक प से पयटक गतं य को कसी सीमा मे नह ंबांधा जा सकता। एक छोटा

    महा वीपीय े पयटक गतं य हो सकता है तो अपने व श ट आकषण के कारण कसी परेू देश को पयटक गतं य कहा जा सकता है। इसे इस प म समझा जा सकता है क क ह पयटक के लए चूह क देवी के प म व यात राज थान के बीकानेर िजले के छोटे से क बे देश नोक का करणी माता मं दर पयटक गतं य हो सकता है तो अपने शौय, ऐ तहा सक धरोहर, रेत के स दय के कारण परूा राज थान पयटक गतं य हो सकता है। यह नह ंअपने असीम सौ दय को लए इसी देश के पयटक के लए परूा भारतवष पयटक गतं य क ेणी म आ सकता है। यहा ंयह कहा जा सकता हे क ऐसे सभी थल िजनम पयटक क पसंद से संब त व मौजूद होत ेहै, वे पयटक गतं य कहलायगे।

    गतं य मौटे तौर पर दो कार के होत े है। एक कार के गतं य वे होते है जो परू तरह से पयटन के आ थक मह व को देखत ेहु ए टू र ट रसोट के प म वक सत कए जात ेहै और जहा ंपर आवास, सु वधाएं और व भ न कार क सेवाएं दान क जाती है। उदाहरणाथ “ डजनी व ड'', “रामोजी राव सट '', ''फन व ड'' आ द। इन थान पर मनोरंजन के व वध कार के आकषण, होटल, रे टोरेट, ए पो रयम आ द क सु वधाएं पयटक के लए मौजदू होती

    है। खास बात यह भी है क लोग इन थान पर ह जाना पसंद करत ेहै न क जहां पर या िजस शहर म इनक थापना क होती है वहा ंजाना। दसूरे कार के गतं य वे होत े है जो पयटन के अनकूुल होत े हु ए वत: ह पयटक को अपनी और खींचत े है पर त ुजहा ंपर पयटन वहा ंक कुल अथ यव था का एक मा ोत होता है। उदाहरणाथ क मीर जहा ंक अथ यव था परू तरह से पयटन पर ह नभर है।

    एक पयटक गतं य म पयटक को वहा ंआने के े रत करने क परू मता होनी चा हए। इस कार के े उ च तर पर फर पयटन के सकारा मक और उतने ह नकारा मक भाव डालत े है। अत: गतं य के वकास के समय इस बात पर वशेष यान देने क

    आव यकता होती है क पयटन के लाभ को अ धका धक करके कैसे उसके नकारा मक भाव को कम से कम कया जाकर पयटन को सफलतम बनाया जा सके। पयटक गतं य पर नवास करने वाले लोग क भी इस दशा म मह वपणू भू मका होती है। मु यत: एक उ पाद के प म पयटक गतं य म तीन मु य अवयव का म ण होता है –

    गतं य आकषण । वहा ंउपल ध सु वधाएं । वहा ंतक पहु चने क सुगमता । उपयु त तीन त व के साथ ह इधर के वष म पयावरण, सं कृ त और सामािजक

    सरोकार भी कसी पयटक गतं य के मुख आधार बनकर सामने आ रहे है।

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    11.3 सामा य वशषेताएं पयटक गतं य का मु य आधार यह होता है क वह अपने अंदर मौजूद व श टताओं

    से पयटक को अपनी ओर आक षत करता है। एक पयटक गतं य पर पयटक से संबं धत व भ न कार क सुख सु वधाएं और सेवाएं वहा ंपयटक के पहु ंचने क ेरणा बनती है तो वहा ंपर आवास, खान–पान तथा मनोरंजन क उपल धता भी पयटन ो साहन का कारण बनती है। सामा यतया मु य पयटक गतं य पर न न समान वशेषताएँ पायी जाती है –

    गतं य म व भ न आकषण का समावेश होता है। गतं य म सां कृ तक मू य न हत होत ेहै। गतं य ेरक होते है, वे पयटन वारा न मत और उपयोग म लाये जात ेहै। गतं य केवल पयटक वारा ह नह ंबि क बहु त से अ य समहू वारा भी उपयोग म

    लये जात ेहै। गतं य मे दरअसल व भ न कार के आकषण का म ण होता है। उनम मानव

    न मत आकषण हो सकता है, ाकृ तक सौ दय के मनोहार य का स मोहन हो सकता है तो कृ त और उ सवध मता का भी आकषण हो सकता है। कुल मलाकर गतं य पयटक को अपने

    यहा ंआने का नमं ण देते है। एक पयटक गतं य पर पयटक से संबं धत व भ न कार क सु वधाओं, सेवाओं के साथ ह आवास, खान–पान आ द क समु चत यव था उसके भावी वकास को दशा दान करती है। थानीय प रवेश, वहा ंके लोग का यवहार भी गतं य को पयटक के लए आकषक बनाने म मह वपणू भू मका नभाता है।

    कसी गतं य को पयटक गतं य तभी कहा जाएगा जब वहा ंपयटक जाने के लए े रत ह । इस संबधं म यह मह वपणू है क पयटक क च के अनसुार गतं य होने के साथ ह वहा ंपर पहु ंचने क सुगमता, वहा ंपर सामा य अपे ा क सु वधाएं, व भ न तर क सेवाएं आ द क मौजूदगी तो कम से कम हो ह । यहा ंयह जानना भी मह वपणू होगा क ऐसे कौन से त व ह जो कसी गतं य को पयटक गतं य बनात ेह।

    11.4 पयटक गंत य के आव यक त व वह कारण िजसके लए कोई यि त पयटन थल क या ा करता है, पयटन का

    आव यक त व कहलाएगा। इसे ऐसे भी कहा जा सकता है क कसी थान क या ा पयटक क वृ त पर नभर है। पयटक के अंदर का जो च र होता है, वह ंउसे पयटन के लए े रत

    करता है। अ तमन क संतुि ट के लए क जाने वाल या ा के बहु त से कारण हो सकत े है। कोई ऐ तहा सक कले, महल, मारक को देखने क चाह से या ा करता है तो कोई धम, अ या म के कारण सैलानी बनता है। कोई कृ त क सु दरता को नहारने, वा त ुकला के सौ दय क अनभुू त करने के लए या ा करता है तो कोई व य जीव, वन प त म च के कारण या ा क राह पकडता है। कोई साह सक खेल से रोमाचं ा त करने के लए तो कोई अनजाने थल एव ं व तुओं क िज ासा को शा त करने के लए मण करता है। ये सब दरअसल वे आकषण ब द ु ह है िजनके कारण पयटन का ज म होता है। यहा ं पयटन के आव यक त व है। बगरै कसी आकषण के पयटन नह ंहोता।

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    एक ह थान या यू ंकह गतं य के त दो या दो से अ धक पयटक म आकषण के अलग–अलग कारण हो सकत े है। मसलन ताजमहल देखने के लए कसी के मन म इस लए आकषण होता है क वह उसके थाप य सौ दय, वा तुकला को नजद क से देखना चाहता है तो कसी के मन म यह आकषण उसके इ तहास, ेम क अ व मरणीय गाथा के अतीत के कारण होता है। इसी कार अमतृसर के वण मं दर क या ा समुदाय वशेष के लए धा मक आ था के तीथ थल के प म होती है तो यह या ा मं दर क सु दरता, वहा ंके वातावरण क प व ता को अनभुूत करने के लए भी क ह ंके लए होती है। कहने का अथ प ट है क पयटन के लए हर यि त का अपना अलग–अलग आकषण होता है। भ न– भ न चय के कारण पयटन थल के आकषण त व पयटक को आक षत करत े है। इन आकषण त व क पहचान कर

    उनका अ धका धक वकास करके ह पयटन को ग त द जा सकती है। पयटन थल के आकषकत वो के साथ वहा ंआधारभूत सु वधाओं एव ं सेवाओं क उपल धता पयटन को सभी तर पर ो सा हत करती है।

    कोई भी गतं य तब तक लोक य नह हो सकता जब तक क वहा ंपर पहु ंचने क सुलभता और पयटक मांग से संबं धत आव यक सुख–सु वधाएं उपल ध नह करा द जाए। इसका अथ यह हुआ क पयटक गतं य पर आव यक सेवाएं यथा आवास, प रवहन, खान–पान, मनोरंजन, थानीय प रवहन आ द होना नता त आव यक है। कसी पयटक गतं य के वकास म केवल सरकार क भू मका नह होती बि क नजी, गरै सरकार सं थाओं आ द के साथ ह आम जन क भागीदार भी होती है।

    मु य प से पयटक गतं य मे न न 4 आव यक त व होते है – आकषण – कसी पयटक गतं य का मु य त व उसका आकषण ह होता है। पयटन उ योग का भी आधार पयटक गतं य आकषण होता है। आकषण लोग को पयटन करने के लए ेरक क भू मका नभाने का काय करता है। सामा यतया गतं य आकषण को दो भाग म वग कृत कया जाता है। थम मानव न मत तथा वतीय ाकृ तक आकषण। ाकृ तक आकषण के अंतगत परू तरह से पयावरण और कृ त पर नभर त व पयटक को अपनी ओर खींचत े है यथा न दया,ं झील, बीच, पहाड, हमा छा दत पवत ृंखलाएं आ द। इसी कार मानव न मत आकषण के अंतगत परुात व थल, च डयाधर कले, महल, सं हालय आ द पयटक को लुभात ेहै। व भ न अवसरो पर आयोिजत कए जाने वाले उ सव, मेले आ द भी पयटन आकषण होत ेहै। कुल मलाकर मानव एव ं कृ त न मत आकषण म खींचने क मता (PULL CAPACITY) होती है। यह मता ह पयटक को कसी थान वशेष क या ा करने के लए े रत करती है। पहु ंचने क सुगमता – कसी गतं य पर पहु ंचने क सुगमता पयटक गतं य का मुख त व है। गतं य तक पहु ंच क सुगमता इस लए भी अ याव यक है क इससे पयटक वहा ंया ा करने क ओर उ मुख होत ेहै। ऐसे बहु त से थान इस लए पयटक से वं चत रह जात ेहै क वहा ंपर पहु ंचना सुगम नह ंहोता है। इरा प म कहा जा सकता है क

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    कसी पयटक गतं य पर जब तक पहु ंचने क सु वधा नह ंहोगी तब तक वह आकषण का के नह ंबन सकेगा। यह ज र भी है क गतं य तक या उसके पास पहु ंचने के लए प रवहन के समु चत साधन एव ंसु वधाएं यथा हवाई अ डा, रेलवे टेशन, बस टड आ द हो।

    सामा य सु वधाएं – इसके तहत वे सभी सु वधाएँ आती है िजनक क पयटक को आव यकता होती है। कुछेक मामल म इस कार क सु वधाओं को पयटन क आधारभूत आव यकता भी कहा जा सकता है। इसके तहत पयटक के आवास, खान– पान, थानीय प रवहन, पयटक सूचना के के साथ ह पयटन को सहायता दान करने वाल आधारभूत सु वधाएं यथा सड़क, जनोपयोगी सेवाएं, पा कग आ द सि म लत है। इस कार क सु वधाएं दरअसल गतं य क कृ त के अनु प होनी चा हए। मसलन साह सक, ामीण पयटन के अंतगत इस कार क सु वधाओं क वत: ह यनूतम ज रत होती है। अगर यादा सु वधाएं इस कार के पयटन थल पर होगी तो उनका आकषण भी धीरे–धीरे कम होता चला जायेगा। इसी कार कुछ पयटक गतं य के त झान का कारण केवल वहा ंउपल ध सु वधाएं ह होती है।

    सहायक या परूक सेवाएं – पयटक गतं य के आव यक त व म वहा ंउपल ध सहायक या परूक सेवाएं भी होती है। इस संबधं म थानीय संगठन क भू मका सवा धक होती है। थानीय संगठन के अंतगत पयटक गतं य पर रहने वाले लोग, थानीय शासन, थानीय यवसायी आ द वारा दत क जाने वाल सेवाएं मह वपणू भू मका नभाती

    है । उदाहरणाथ कसी थान का आकषण वहा ं के आ त य–स कार और लोग क आ मीयता होता है तो उस थान पर पयटक क सुर ा और स मान का वातावरण और इसके लए उपल ध यथाएं सहायक या परूक सेवाओं का काय करती है।

    11.5 पयटक गंत य वकास कसी गतं य का आकषण वहा ंका ाकृ तक और भौगो लक स दय हो सकता है पर त ु

    वह तब तक पयटन थल के प म लोक य नह हो सकता जब तक क वहा ंपर पयटन संबधंी सु वधाओं का व तार नह ं कया जाए। यहा ंयह कहा जा सकता है क व भ न चय के पयटक के लए कसी थान का आकषण वहा ंका अनठूापन, हमा छा दत पवत ृंखलाएं, दरू तक पसर रेत, बयाबान जंगल हो सकता है पर त ुपयटक सु वधाओं के बगरै उस थान क पहचान पयटन थल के प म नह ंबन सकती। वसेै भी भ–ू य का साधारण श द म अथ जमीन जैसी है वसैी ह दखना होता है। एक गतं य अपने भ–ू य से पयटक को तब आक षत करता है जब वहा ंपयटन के प म व भ न तर पर वकास और सु वधाओं क उपल धता हो। कसी भी पयटक गतं य के वकास म दो त व मुख होत ेहै–

    पशु (PUSH) अथात ्आगे बढाना। पलु (PULL) अथात ्आकषण पदैा करना। यहा ं पशु (PUSH) त व से आशय कसी थान पर जाने के लए यि तय म

    सा थय पदैा करने से है। सीधे सादे अथ म कह तो यह त व कसी पयटक गतं य तक पहु ंचने

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    और उसके त च पदैा करने क मता से संबं धत है। अपने देश या देश को छोडकर दसूरे देश या देश म जाने क इ छा तथा सा थय के साथ ह इस त व के तहत सरकार क नी तया ंभी मह वपणू कारक होती है। कौनसा देश अपने यहां से दसूरे देश म जाने क अनमु त दए जाने के त उदार है, वदेशी मु ा क या नी त है आ द के तहत थान वशेष के त आकषण को बढावा दया जाता है।

    पलु (PULL) अथात ्आकषण पदैा करना पयटक गतं य के वकास का मुख आधार है। कसी भी थान वशेष पर मौजूद पयटन आकषण म बढ़ावा करने से संबं धत सम त वकास काय इस त व के तहत आत े है। उदाहरणाथ भारत अपनी व श ट मेहमाननवाजी, पर पराओं, सां कृ तक मू य , सुख–शां त आ द के कारण पयटन का असीम आकषण लए है। यहा ं मौजूद पयटन आकषण के इन त व को नरंतर वक सत कए जाने के यास पलु (PULL) त व के अंतगत आयगे।

    पयटन थल पर व भ न कार क सेवाओं और सु वधाओं का वकास करत ेसमय इस बात पर भी वशेष प से यान दया जाना चा हए क पयटन के नकारा मक भाव को कम से कम कया जाकर उसके सकारा मक भाव को सभी तर पर बढ़ावा दया जाए। मसलन पवतीय, पयावरणीय, समु तल, वन प त आ द थल पर भौ तक सु वधाओं का वकास कया जाए पर त ुयह वकास इस प म हो क थानोय जलवाय ुएव ंपयावरण का कसी तर पर नकुसान न हो।

    पयटक गतं य के वकास क िज मेदार व भ न तर पर सु नि चत क जाती है। वसेै भी पयटन को जन उ योग कहा जाता है। इस प म पयटक गतं य के वकास मे आम जन को ह अ धका धक भागीदार होनी चा हए। इसी से पयटक गतं य और पयटन उ योग का सभी तर पर वकास हो सकता है। अममून पयटक गतं य के वकास के लए सावज नक े को ह िज मेदार माना जाता है। यह सह है क सावज नक े के अंतगत सरकार क भू मका वहृद होती है और सावज नक सरोकार से संब वकास मे सरकार ह मुख भू मका नभाती है पर त ुयहा ँयह भी नह ंभलूना चा हए क सरकार क भू मका एक आधारभतू ढांचा न मत करना है, बाद क सेवाओं और सु वधाओं का वकास नजी, गरै सरकार सं थाओं, ट आ द के मा यम से ह कया जाना चा हए। पयटन थल पर साफ सफाई, सुर ा आ द मे मह वपणू भू मका वहा ंरहने वाले नवा सय क अ धक होती है। सं ेप मे पयटक गतं य के वकास म न न क मुख भू मका होती है–

    सावज नक े । नजी े । गरै सरकार सं थाओं । धमाथ ट । सामािजक सं थाओं । पयटक वारा गतं य के चयन के बाद सबसे बडी आव यकता वहा ंपर पहु चने क

    सुगमता के साधन क होती है। अ धकांश पयटन थल पर पयटक जाने क ह मत तभी कर पाते ह जब वहा ंमाग क क ठनाईया ंकम से कम ह साथ ह आवागमन के अ धका धक ोत

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    ह । पयटक गतं य के वकास के अंतगत सावज नक े क भू मका मु यत: पयटन थल तक सड़क, रेल, वाय ुमाग का नमाण करने के साथ ह इन माग से संबं धत प रवहन साधन क उपल धता सु नि चत करना होता है। इसी कार संबं धत थान पर साफ सफाई क समु चत यव था, वहा ंसुर ा का वातावरण, जन सु वधाओं के वकास म सावज नक े ह मु य भू मका नभाता है। उदाहरणाथ भारत सरकार व भ न पयटक गतं य तक पहुचँ, वहा ं व भ न सु वधाओं के वकास क योजनाएँ बनाकर उनका या वयन करती है। इसी कार नजी े क भू मका के अंतगत पयटन थल पर आवास, प रवहन क सु वधाओं के वकार। म सहयोग दया जाता है। कसी थान वशेष का वशेष प से वकास करने मे नजी े अपने लाभ के लए वकास करता है तो समाज सेवा के अंतगत सामािजक एव ंगरै सरकार सं थाएं पयटक को पयटन थल पर मया दत आचरण कए जाने, वहा ं गदंगी नह ं फैलाने, आ मीयता से पयटक से पेश आने, नयम काननू का पालन करने पयावरण संर ण आ द के लए वातावरण नमाण करने के अंतगत अपनी सेवाएं देती ह। इधर के वष म धमाथ ट क भू मका भी पयटक गतं य के वकास म मह वपणू होने लगी है। उदाहरणाथ जग के कटार म वै णोदेवी मं दर ट गफुा तक चढाई के माग क साफ–सफाई, वहा ंआवासीय प रसर का वकास करने, पयटक के लए व भ न तर क सेवाओं और सु वधाओं के वकास म मुख भू मका नभाता है तो राज थान म नाथ वारा मे मं दर बोड वारा इस कार का काय कया जाता है व भ न पयटन थल के संर ण, उनके वकास, वहा ंपयटन ग त व धय से पड़ने वाले तकूल भावो को कम करने के लए वातावरण नमाण मे वयसेंवी सं थाओं क भी मुख भू मका होती है। इस कार क सं थाएँ पयटक क सु वधा के लए सूचना प लगाने, उनके साथ कसी कार क दघुटना को रोके जाने आ द के लए उ ह सचेत करने के लो न, बोड आ द लगाने का काय करती ह।

    पयटक गतं य का वकास दरअसल कसी एक यि त क िज मेदार नह ंहोकर साझा िज मेदार होती है। ऐसे म सभी तर पर इस दशा म यान दया जाना चा हए। पयटक से संबं धत व भ न सेवाओं ओर सु वधाओं क उपल धता व भ न आय वग क मता के अनु प क जाए तो इसके अनकूुल भाव वत: ह पयटन यवसाय क वृ के प म सामने आते ह।

    11.6 पयटक गंत य वपणन पयटक गतं य का व भ न तर पर वकास जब कर दया जाए तो उसका वपणन

    वहा ँ पर पयटक के अ धका धक आगमन का आधार बनता है। वपणन के अंतगत पयटक गतं य क व भ न ाकृ तक एव ंभौगो लक वशेषताओं के साथ वहा ंउपल ध करायी जाने वाल सु वधाओं एव ंसेवाओं के बारे म जनसंचार मा यम से चार कया जाता है। चार का मुख उ े य यह होता है क पयटक गतं य पर पहु ंचने के लए उ सुक ह नह ंहो बि क े रत भी हो। पयटक गतं य के आकषण, वहा ंक वशेषताओं को अ धका धक लोग । तक पहु ंचाने के साथ ह गतं य पर पहु चने के साधनो, वहा ंअ थायी नवास करने के लए होटल , खान–पान आ द के पकेैज तैयार कर उनका अ धका धक चार करके ह कसी थान को अ धका धक लोक य एव ंपयटक पसंद का के बनाया जा सकता है।

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    वपणन के अंतगत पयटन थल के व भ न त व के साथ ह वहा ं के ह त श प, सां कृ तक पर पराओं, खान–पान आ द का भी इस प मे चार– सार कया जाता है क पयटक गतं य पर पहु ंचने के साथ ह वहा ंखर ददार , कुछ समय बता कर थानीय उ पाद, मनोरंजन त व के लए कुछ रा श खच कर सक।

    11.7 सारांश यह पयटक पर नभर करता है क वे पयटन के लए कस कार के थान का चयन

    करत ेहै। भौगो लक प से कसी थान का आकषण वहा ँका भ–ू य अथात ्जैसा वह थान है वसैा ह दखे, के आधार पर हो सकता है। पर त ुउस थान वशेष पर पहु ंचने क सुगमता, वहा ंउपल ध आव यक सेवाएं तथा व भ न भौ तक सु वधाएं आ द ह उसे पयटक थल के प म पहचान दलाती है। इस प मे यह कहा जा सकता है क पयटक गतं य वह है िजसे पयटक या ा के लए चय नत करत े है और कुछ समय बताने क एवज म वहा ं रा श खच करत ेहै। भौगो लक प म कोई थान छोटे भ–ूभाग म होते हु ए भी वहृद आकषण लए पयटक गतं य हो सकता है तो सम प म कसी देश क व श टताएं उसे पयटक गतं य बनाती है।

    पयटक गतं य के आव यक त व म वहा ँका आकषण, पहु ंचने क सुगमता, कहा उपल ध आवास, थानीय प रवहन, खान–पान, पयटन क सहायक या परूक सेवाओं के प मे गतं य ो साहन, गतं य नेतृ व और मागदशन आ द क सु वधाएं होगी तभी वहा ँअ धका धक पयटक क पहु ंच सु नि चत हो सकेगी।

    पयटक गतं य का वकास सावज नक एव ं नजी े के साथ ह ट, गरै सरकार सामािजक सं थाओं आ द के मा यम से कया जाता है। वसेै भी पयटन को जन उ योग से संबो धत कया जाता है। ऐसे म जनता क अ धका धक भागीदार से कए जाने वाले वकास से ह पयटन यवहार म वक सत हो सकता है। वकास के साथ ह वपणन अगर भावी प म कया जाये तभी कसी पयटक गतं य पर पयटक क अ धका धक पहु ंच सु नि चत क जा सकती है।

    इस इकाई म आपने जाना है क कैसे कोई गतं य पयटक गतं य बनता है तथा पयटक गतं य का कैसे वकास कर उसका वपणन कया जा सकता है। यह आपके लए इस प म मह वपणू है क आप भी अब कसी न कसी प म पयटन उ योग का ह सा बनगे।

    11.8 अ यासाथ न (अ) न न न का उ तर 150 श द म द िजये:–

    1. पयटक गतं य से आप या समझत ेहै? इसक वशेषताओं पर काश डा लए । ...................................................................................................................... ......................................................................................................................

    2. कोई थान पयटक गतं य कैसे बनता है? पयटक गतं य के आव यक त व को समझाईए । ......................................................................................................................

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    ...................................................................................................................... 3. पयटक गतं य वकास म नजी, सावज नक एव ं व भ न अ य े क भू मका पर

    काश डा लए । ............................................................................................................................. .............................................................................................................................

    (ब) न न न का उ तर 500 श द म द िजये:– 1. पयटन गतं य वकास पर काश डा लए । पयटन गतं य वपणन पर सं त म

    ट पणी ल खए । ............................................................................................................................. .............................................................................................................................

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    इकाई – 12 : गंत य आकषण एव ंपयटक वाह परेखा :

    12.0 उ े य 12.1 तावना 12.2 पयटक वाह 12.3 गतं य आकषण एव ंपयटन वाह

    12.3.1 धा मक आ था 12.3.2 ाकृ तक य 12.3.3 सां कृ तक धरोहर 12.3.4 शै क त व 12.3.5 इ तहास

    12.3.5.1 कले, गढ, कोट और दगु 12.3.5.2 सं हालय 12.3.5.3 अ य त व

    12.4 साराशं 12.5 अ यासाथ न

    12.0 उ े य इस इकाई को पढ़ने के बाद आप –

    पयटक वाह के बारे म समझ सकगे। पयटक वाह के अंतगत कसी थान के आकषण के आव यक त व के बारे म

    जान सकग। पयटक गतं य वकास म पयटन वाह क भू मका से अवगत हो सकेग।

    12.0 तावना पयटक गतं य पर पयटक के जाने क वृ त भ न– भ न मानवीय चय पर नभर

    करती है। कसी पयटक गतं य क ाकृ तक सु दरता एक पयटक के लए वहा ंजाने का मह वपणू कारण हो सकती है तो वह थान दसूरे पयटक क च के अनकूुल न हो। दरअसल कसी थान का मह व इस बात पर नभर करता है क वह कतने लोग को अपने आकषण से वहा ंखींच लाता है। थान– वशेष का सां कृ तक, ऐ तहा सक पौरा णक, धा मक मह व वहा ंपर पयटन वाह का बडा कारण है तो वहा ंतक पहु ंचने क सगुमता, उपल ध सु वधाएं और सेवाओं के साथ ह भ व य क संभावनाओं पर भी पयटन भाव नभर करता है। या है पयटन वाह ऐसे कौनसे कारण है िजनसे कसी पयटक गतं य पर पयटन वाह होता है? पयटन वाह से कैसे पयटक गतं य का वकास होता है? आईए, जान–

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    12.2 पयटक वाह साधारण श द मे पयटक वाह से आशय कसी पयटक गतं य पर पयटक क

    आवाजाह से ह। कोई गतं य–तब पयटक गतं य बनता है जब वहा ंपर पयटन क संभावनाएं मौजूद ह । पयटन संभावनाओं से आशय यह है क वह अपने आकषण से कतना लोग को अपनी ओर आक षत करता है, वहा ंसु वधाओं का तर कैसा है और पयटन यवसाय क वहा ंकैसी संभावनाएं ह। वसेै भी आरंभ म कोई थान पयटक थल नह ं होता, वहा ं पर मौजूद मण संभावनाओं, वहा ं के त लोग के आकषण, पहु ंच क सुगमता, लोग का प रवेश,

    वातावरण आ द बहु त से ऐसे त व ह जो कसी थान को पयटक य ि ट से मह वपणू बनाते ह। धीरे–धीरे उस थान वशेष के त लोग का आकषण ह नह ंबढता बि क उसका वपणन इस कार से होता है क पयटन एव ंपयटन से संब बहु त से अ य यवसाय क वहा ं थापना होने लगती है।

    कसी पयटक गतं य पर पयटक के साथ होने वाल लूट–पाट, ठगी, लोग का अशोभनीय यवहार आ द वहा ंपयटन वाह को बा धत भी करत ेह। इधर के वष म बहु च लत पयटन थल पर होने वाल अ य धक भीड–भाड, वहा ंपर पयावरण दषूण, होटल एव ं नमाण काय क भरमार से सवथा अनजान एव ंनए पयटन थल क ओर पयटन वाह बढा भी ह। कसी थान पर पहु ंचने क सुगमता, अ य धक लोक यता, उपल ध समु चत सु वधाओं और सेवाओं के बावजूद वह थान कई बार पयटक क नापसंदगी का कारण बन जाता है। पयटन अपे ाओं के अनकूुल होने और वहा ंपर पहु ंचने क सुगमता के पया त साधन के बावजूद कई बार इस लए उस थान वशेष के त आकषण घट भी जाता है क वहा ंअ धक लोग क भीड होती है। कई बार एकरसता से उ प न ऊब भी उस थान वशेष का आकषण घटा देती है। इसके साथ ह बहु त से गतं य इस लए पयटक को आक षत करत ेह क वे वहा ंपहु ंच नह ंसकत,े वहा ंपर पहु ंचने क सुगम यव था नह ंहोती। पहु ंचने क सुगमता नह ंहोने से उस थान के बारे म िज ासा चरम पर होती है। िज ासा चरम ि थ त को शांत करने के कारण भी

    लोग वहा ंजाने के त उ सुक होने लगत ेह। यहा ंयह कहा जा सकता है क येक गतं य क एक नि चत समयाव ध होती है और इस दौरान वह कई आयाम से गजुरता है। गतं य पर पयटक का थायी वाह इस बात पर भी नभर करता है क वहा ंपर पयटक के लए उपल ध करायी जाने वाल सु वधाएं और सेवाएं उसके मूल प को कसी तर पर बदल नह ंडाले। कसी पयटक गतं य पर पयटन वाह को न न त व भाि त करत ेह – (1) उ सुकता : बहु त से गतं य पर उ सुकता के कारण पयटन वाह होता है। इस ि ट से गतं य पर आकषण के व भ न त व के अंतगत पहु चने क सुगमता नह ं होने के बावजूद पयटक वहा ंजाना पसंद करत ेह। दरअसल इसके पीछे कारण पयटक क खोजी वृ त भी होती है। (2) सहभा गता : कसी गतं य क खोज के बाद वहा ंपर व भ न तर पर उपल ध होने वाल सु वधाएं पयटक को वहा ंजाने के लए े रत कर पयटन वाह का कारण बनती है। इस ि ट से गतं य या उसके आस–पास के े म रहने वाले थानीय समुदाय क सहभा गता पयटन

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    वाह को वशेष प रो भा वत करती है। िजतनी अ धक थानीय समुदाय क सकारा मक भागीदार वहा ंआने वाले पयटक के त होगी, उतना ह वहा ंपयटन वाह होगा। (3) गतं य वकास : गतं य क उ सुकता से जब वह काश म आ जाता है और थानीय समुदाय भी पयटन म अपनी भू मका नभाना ारंभ कर देते ह तो फर यह गतं य वकास का आरं भक चरण हो जाता है। इस चरण के अंतगत थानीय समुदाय पयटन वकास का व भ न तर पर वय ं या वयन करना ारंभ कर देत ेह, चू ं क वे यह समझ लेत ेहै क इस कार

    के वकास का दरूगामी प रणाम उनक आयवृ और जीवन तर वृ के प म ह होगा। जब थानीय समुदाय क वकास म भागीदार ारंभ हो जाती है तो सावज नक े क भू मका भी वकास के प मे होने लगती है। इससे बड़ी सं या म पयटन वाह सु नि चत होने म खासी मदद मलती है। (4) पयटक क आवाजाह – कसी गतं य पर पयटक का वाह सदैव एक जैसा नह ं रहता। पयटक थल पर पहु ंचने क सुगमता और वहा ंपर वकास क आधारभूत सु वधाओं के वकास के साथ ह जब पयटक का आगमन वहा ं ारंभ हो जाता है तो यह ज र नह ं है क सदैव बड़ी सं या मे ह पयटक वहा ंपहु ंचे। ऐसा भी नह ं है क हमेशा उस गतं य पर पयटक क पहु ंच हो। पयटक क पहु ंच कभी कसी कारण से वहा ंअ धक हो सकती है तो कभी नह ंके बराबर भी हो सकती है। दरअसल यहा ंपयटन वाह म एक नया ब द ुयह भी जुड़ता है क अब वह थान सवथा नया नह ंरहा है। ऐसे म उस थान के साथ–साथ नये थान क ओर भी पयटक का झान होने लगता है। (5) ि थरता : जैसे ह कोई थान पयटन मान च पर आ जाता है और वहा ंसमु चत पयटन सु वधाएं उपल ध हो जाती है, एक समय बाद उस' थान पर पयटन म ि थरता आ जाती है। इसका अथ यह हुआ क जो लोग उस थान को पसंद करत ेह या फर िजनको वह भाता है, केवल वह लोग बार–बार वहा ंआने लगत ेह। ऐसे म पयटक गतं य म एक कार क ि थरता आ जाती है। इस ि थरता का दु भाव भी पयटन वाह पर. पड़ता है। एक कार से ऐसे थान पर पयावरण, सामािजक और सां कृ तक ि ट से दषूण क सम याएं भी पदैा हो सकती है। उदाहरणाथ राज थान का पयटक गतं य पु कर और जैसलमेर के त आकषण आज भी कम नह ं है पर त ुवहा ंपर अब सां कृ तक, पयावरण और सामािजक प से व भ न वकार क घटनाएं भी काश मे आने लगी ह। (6) गतं य उदासीनता : पयटन वाह क चरणब कया के अंतगत जैसे ह कसी थान पर पयटन श दावल म ि थरता आ जाती है, एक सार उस थान के त पयटक क उदासीनता होने लगती है। ऐसे पयटक गतं य पर फर सी मत तर पर पयटक का गमन होता है, चू ं क पयटक का झान सदैव नए थान क ओर अ धक होता है। हमाचल देश के व भ न पयटन थल के अंतगत यहा ं शमला का उदाहरण ह काफ होगा। शमला मे बेशुमार सं या म बने पयटन रसोट, होटल आ द से इतना दबाव हुआ है क अब वहा ंपयटक जाना कम पसंद करने लगे ह। एक कार से हमाचल के इस पयटन थल के त उदासीनता सी होने लगी है।

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    (7) संर ण एव ंपनुरो ार : जैसे ह कसी पयटक गतं य के त पयटक क उदासीनता ारंभ होती है, उस थान के त वकास म संल न लोग क चतंाओं के फल व प संर ण और पनुरो ार क ग त व धया ं भी ारंभ होने लगती है। पयटन उ योग के लए यह अ य त मह वपणू चरण होता है। इस चरण के अंतगत गतं य पर पयटन को बढावा देने, वहा ं पर पयटक के अ धका धक आगमन को सु नि चत करने के लए थानीय तर के साथ ह साथ सावज नक े क ओर से मह वपणू यास व भ न नवाचार , नये पयटन पकेैज के मा यम से होता है। केरल का उदाहरण ह इस संबधं मे पया त होगा क 'देवताओं क अपनी भू म' का नारा देत े हु ए केरल ने पयटन संर ण एव ंनवाचार क दशा म ां तकार यास इस प म कए ह क वहा ंपर अब देश के सवा धक पयटक जाना पसंद करने लगे ह।

    12.3 पयटक वाह को भा वत करने वाले मु य घटक कसी गतं य के आकषण के बहु त से घटक होते ह। कसी एक ह गतं य पर कई

    अलग–अलग आकषण हो सकत ेह। कोई वहा ंपर कृ त क सु दरता नहारने के लए जाना चाहता है तो कोई वहा ंबनी इमारत , ए तहा सक मह व के कारण वहा ंजाना पसंद करता है। इसी कार कसी थान का आकषण इस लए होता है क वहा ंमील तक रेत ह रेत है तो कोई इस लए जाना चाहता है क वह वहा ंवन प तया ंऔर पेड–पौध , थानीय पश–ुप य को देखने, उनम च रखने के कारण जाना पसंद करता है। थान– वशेष के त आकषण मानव द त नमाण काय के कारण हो सकता है तो कृ त द त वातावरण के कारण भी हो सकता है। इस ि ट से पयटन वाह को भा वत करने वाले व भ न घटक न न हो सकत ेह –

    12.3.1 धा मक आ था

    धा मक आ था आरंभ से ह पयटन का कारण रह है। चरैवे त। चलत े रहो। मनु य जा त के लए तीथाटन का मूल मं ह रहा है। बु ने अपने श य से कहा था क नभय होकर वचरण करो और अपनी राह खुद बनाओ। इ लाम म भी हजया ा को ेय कर माना गया है। ईसाइयत म भी तीथाटन का वधान रहा है। बाई बल के अनसुार तीथाटन से हसंक यवहार के वारा कए पापकम के कलंक धुल जात ेह, यह व वास ईसाइय को तब से रहा है जब अपने भाई बल क ह या का कलंक मटाने को केन भ ूमहोवा के ई वर य आदेश से तीथाटन पर नकला था। ह द ूधमशा म तीथ क क टकर या ाएं करके तीथजल म डूबक लगाकर सारे पाप धोने क बात के त बल व वास है। इसी कार यहु दय के अरा य यहोवा ने लंबे मण को ु वतारे क तरह नद शत कया है। शु आती यहू द पगै बर आइजाइया जेरे शया रमोस तथा होसी सभी घमूंत ुफक र थे। तीथाटन क इस पर परा मे कहा यहा ंतक जाता है क जो नरंतर मण करत ेरहे, उनक स यताएँ भी आगे बढ । जो जा तया ँबठै रह , उनका नसीब भी बठैा रहा।

    धा मक संग , आ था के इ तहास के इन कारण से मनु य म तीथ थल के त आरंभ से ह आकषण रहा है। तीथाटन क यह पर परा ह बाद म पयटन म प रव तत होती चल गयी। कसी थान का धा मक इ तहास वहा ंजाने के लए ेरणा का कारण बनता है।

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    उदाहरणाथ भगवान राम क ज मभू म के कारण अयो या पावन तीथ के प म धा मक आ था का के बन गया तो मथरुा–वृदंावन तीथ थल के प म व यात हो गए। अकबर वारा न मत वाजा मोइनु ीन च ती क दरगाह, अमतृसर का रचण मं दर, आ द शंकराचाय वारा देश के चार कोन मे था पत चार धाम, बोधगया का महाबो ध मं दर आ द अपने धा मक इ तहास के कारण तीथ थल बन गए। पांच हजार वषा से अ धक परुानी भारतीय संकृ त क मूल धारा आ या म पर ह आधा रत है। शां त और सुकून क तलाश, तीथ से पु य कमाने क चाह से धा मक आ था थलो पर पयटन क पर परा आज भी कायम है।

    वसेै भी तीथाटन से आधु नक पयटन का ज म माना जाता है। भारत म तो वसेै भी ह द ू बौ , जैन, ई लाम धम के थल क मीर से क याकुमार तक फैले हु ए है। ये तीथ आ था के पावन थल तो ह ह , थाप यकला क ि ट से भी दु नयाभर म इनक अलग पहचान है। सोमनाथ, ब नाथ, केदारनाथ आ द के साथ ह त मलनाडु का मना ी सु ंदरे वर मं दर, साँची के तपू, गोवा का कैथे ल ओर बै स लका ऑफ बॉय जीसस चच, परु का जग नाथ मं दर, कोणाक का सूय मं दर, गजुरात म श ुजंय पहाड़ी के जैन मं दर, राज थान म आब ूपवत के देलवाडा मं दर, देशनोक का करणीमाता मं दर, मीरा ंका मेड़ता आ द अनेक ऐसे आ याि मक थल ह िजनसे देश के करोडो लोग क भावनाएं जुडी हु ई है। इन थान पर आने वाले लोग का मुख आकषण धम के त आ था तो होता ह ह, साथ ह भौ तकता क अंधी दौड म कुछ समय के लए सुकून ाि त भी होता है। आरंभ से ह सुकून क ाि त ई वर मे बतायी जो गयी है।

    महाभारत, गीता, रामायण, बाई बल, कुरान आ द धम थं के पौरा णक संग से जुड ेथल को तीथ मानत े हु ए वहा ंजाने क सोच ने या ाओं के त आकषण पदैा कया। यह

    आकषण उन थान क प व ता को अनभुूत करने के साथ ह वहा ंके धा मक इ तहास के त कौतुहल, थान वशेष के शां तमय वातावरण, कृ त क सुर यता, पावनता के कारण बढता गया। इसी कारण या य वारा थान वशेष के इ तहास, वहा ंके अवशेष के आधार पर उन थान पर मं दर, मठ, गु वार , मि जद, चच के भ य प वक सत कर दए गए। कालांतर

    म वहा ं मण क और सु वधाएं और सेवाएं वक सत हु ई फलत: ह वे थान धा मक आ था के अलावा अ य लोग के लए भी आकषण के के होत ेचले गए। यह आकषक मं दर, गठ, गफुाएं, मि जद, चच आ द के थाप य सौ दय, वा तुकला के कारण भी हुआ। इस कार धा मक आ था ने पयटन थल के आकषण त व के प म मुख भू मका नभायी है।

    12.3.2 ाकृ तक य

    कृ त से मनु य का लगाव आरंभ से ह रहा है। नयना भराम ाकृ तक याव लया ंइस प म मनु य को लुभाती है क इससे वह अपने भीतर नयी ऊजा, नई शि त का संचार हुआ पात ेहै। कल–कल बहती न दया,ं शीतल मंद पवन, झरन का गान, दरू तक फैल ह रयाल , मनोरम समु तट आ द कृ त के ऐसे त व है जो पयटक को वत: ह अपनी ओर आक षत करत ेहै। कोई थान क ह वशेष च के पयटक को इस लए आक षत करता है क वहा ंपर

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    दरू तक ह र तमा से आ छा दत वातावरण है तो कोई केवल इस लए आक षत करता है क वहा ंबयाबान जंगल, व य जीव है। कसी के लए कल–कल बहती नद आकषण का के होती है तो कोई पवत के बीच आनदं क अनभुू त करता है। कहने का ता पय प ट है क ाकृ तक

    याव लया पयटक को कसी थान पर जाने के लए आकषक त व का काय करती है। यह आकषक त व ह उस थान को धीरे–धीरे पयटन के बना देता है।

    हमाचल देश म डलहौजी ऐसा ह थल है। ाकृ तक सुषमा के लए मशहू र पांच पहा ड़य पर बसे इस सुर य थल को टश गवनर जनरल लाड डलहौजी ने पहले–पहल ढंूढा था। उ नीसवी ंसद के म य मे डलहौजी यहा ंआए और यहा ंके ाकृ तक य उ ह इतने भाए क उ होन इस जगह को अपनी व ाम थल बना लया। इसी कार शमला क ाकृ तक खूबसूरती के कारण अं ेज ने उसे टश रा य क ी म राजधानी बनाया। धरती के वग के प म क मीर, देवताओं क भू म के प म केरल, कृ त के अ ु त नजार क भू म के प म सि कम, अ णाचल देश, असम, मेघालय, पहाड क रानी के प म मसरू आ द थल पयटक को वशेष प से लुभात ेहै। इन थान क ाकृ तक याव लया ह वह कारण रह है िजससे ये पयटन थल के प म अपनी व श ट पहचान बना सके।

    आधु नक भागम–भाग और आपाधापी म कुछ पल कृ त के बीच गजुारने क चाह ने ह ाकृ तक प से समृ थान क सैर के लए मनु य को े रत कया। ात: 3:30 बजे ह जागकर टाईगर हल तक पहु ंचने क इस लए पयटक म होड लग जाती है क वे ातःकाल के सूय दय के नजारे को देखना चाहत ेहै तो माउंट आब ूम साझं होत ेह सनसेट पाईट पर सूया त के य को नहारने के लए भीड होने लगती है। क मीर, शमला, ऊट आ द ठंड े थल पर बफ को गरत े हु ए देखने क चाह पयटक को वहा ंले जाती है तो मलो पसरे रे ग तान को पास रो देखने क चाह सुदरू थान से पयटको को राज थान खींच लाती है। कृ त के नजार के आकषण से ह ाकृ तक थल के त पयटक आक षत होत े है। नद , झरने, पवत, रेत, बफ, सघन वृ ृंखला, ह र तमा से आ छा दत धरती आ द ह तो वे आव यक त व है िजनके कारण पयटक पयटन के लए आक षत होत ेह।

    12.3.3 सां कृ तक धरोहर

    स यता और सं कृ त, समुदाय अथवा समाज क संरचना को भा वत कर उसक र त–नी त का नयमन करने के साथ ह उसे दशा–बोध और मू य बोध देती है। थाप य, पकंर और दशनकार कलाएं, लोक जीवन पर पराएं, नृ य, का य और सा ह य, रहन–सहन, वेशभूषा आ द सां कृ तक धरोहरो के त मानव मन आरंभ से ह आकृ ट रहा है। सां कृ तक धरोहर पयटन ेरणा क दशा म मह ती काय करती है। आधु नक करण के बल आ ह के बावजूद सां कृ तक पर पराओं के त यि त का आकषण कम नह ंहुआ है।

    कसी थान वशेष को लोक य बनाने, वहा ं के त आकषण पदैा करने म वहा ं के सां कृ तक धरोहर संबधंी त व का सभी तर पर योगदान होता है। पयटन थल का आकषण वहा ं के ाकृ तक वभैव, मौसम आ द से तो होता ह है, साथ ह उस थान क सं कृ त, पर पराओं से भी होता है। इंडोने शया, जावा आ द देशो म 'रामायण और 'महाभारत' क

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    सं कृ त आज भी पयटक के आकषण क मुख के है। राज थान, गजुरात, महारा , बगंाल उ ड़सा आ द व भ न रा य क सं कृ त एव ंपर पराएं मन को आ हा दत ह नह ंकरती बि क लुभाती भी है।

    इसे इस प म समझा जा सकता है क पयटन थल पर पयटन करने वाले पयटक म अ धकांश सं या उनक होती है जो वहा ं के ाकृ तक प रवेश के साथ–साथ थानीय नवा सय के रहन–सहन, उनक वेशभूषा, लोक पर पराओं, सं कृ त आ द से ब होना चाहते ह। लोक नृ य , गीत–संगीत के आनदं क सुखानभुू त भी पयटक वशेष प से करना चाहत ेह 1 यह कारण है क आजकल मुख पयटन थल के मण काय म म वहा ंक सं कृ त से जुड ेत व का भी समावेश कया जाने लगा है। पयटन के पर थानीय कला–सं कृ त से संब आयोजन, कलाकार के नृ य, गायन आ द के व वध काय म पयटक को आंनद देने के साथ ह उनके ान व न म भी सहायक होते ह। इस प म कसी थान को पयटन के के प म स करने क ि ट से भी वहा ंक सां कृ तक धरोहर का खासा योगदान होता है।

    यहा ंयह कहा जा सकता है क सां कृ तक धरोहर पयटन का ऐसा आव यक त व है िजससे पयटक पयटन के त आकृ ट ह नह ंहोते बि क वे बार–बार कसी थान पर जाने के उ सुक भी रहत ेह।

    भारत क सं कृ त और यहा ंक व भ न कलाएं अभी भी जीव तता लए है। उ तर भारत के क मीर, पजंाब, हमाचल, उ तर देश आ द रा य के ह त श प के अंतगत का ठ श प, धात ु के बतन, जर का काम, कसीदाकार , चांद के बतन, हाथी दांत से बनी व तुए, पेपरमे श, शॉल आ द के त जहा ंपयटक का वशेष झान होता है वह ंपवू भारत के उडीसा, पि चमी बगंाल रा य के अंतगत वहा ंक म ी क मू तया,ं कागज च वल , का ठ श प आ द खासे स ह। म य देश का प थर श प, कसीदाकार , राज थान क टेराकोटा, चंदन श प, का ठ कलाएं, म ी के बतन, आं देश, कनाटक, त मलनाडू गजुरात आ द रा य क ह तकलाओं म टोकर नमाण काय, चटाई नमाण काय, हाथी दांत से बनी व तुएं, कठपतुल आ द का काय पयटन उ पाद के प म पयटक को आक षत करता है। ह तकलाओं के साथ ह थान वशेष क व कला, मांडणे, लोक च शै लया ंआ द भी पयटक को आक षत करती है। सां कृ तक धरोहर के प म नृ य कलाएं भी पयटन आकषण का के होती है। यथा उ डसा का ओ डसी नृ य, म णपरु का म णपरु नृ य, राज थान का गणगौर, घमूर, केरल का क थकल , त मलनाडू का भरत ना यम, पजंाब का भांगड़ा, गजुरात का गबा आ द देखने के लए भी पयटन वहा ंजाना पसंद करत ेह।

    सां कृ तक धरोहर के अंतगत व भ न रंगो से रंगी भारत क भू म, पयटक के लए असीम आकषण लए ह। जी वत और दशना मक कलाओं के व वध प म सं कृ त, पर पराएं नरंतर मण क ग त व धय को ो सा हत करती है। ऐसे म यह कहा जा सकता है क सां कृ तक धरोहर पयटक के आकषण का मुख कारण ह। िजतनी समृ थान क सां कृ तक धरोहर होगी उतना ह अ धक वक सत वहा ंका पयटन उ योग होगा, चू ं क इसी से अ धकांश पयटन ग त व धया ं भा वत होती है।

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    12.3.4 शै क त व :

    कसी थान को पयटन य बनाने म श ा का भी मह वपणू योगदान होता है। ाचीन काल म नाल दा, त शला व व व यालय म व याअजन का इतना आकषण था क

    दरू–दरू से व याथ इन के पर प ने आया करत े थे। धम, मजहब के आधार पर धा मक श ा के के भी काला तर म पयटन के आकषण के बनत ेचले गए। मसलन हमाचल देश म धमशाला पयटन के प म खासा व यात है। इस पहाड़ी पयटन के का आकषण

    धमशाला से कुछ ऊंचाई पर मैकलोडगजं ि थत बौ व व व यालय भी है। इसी कार सि कम म मटेक बौ श ा का देश का मुख के होने के कारण

    आकषण का के ह। व भ न थान पर वहा ंके श ा के , ाचीन श ा प तय के बारे म जानने क िज ासा पयटन को ज म देती है। बनारस का ह द ु व व व यालय हो या फर आधु नक श ा के के प म स लकोन सट के नाम से मशहू र बगलोगर शहर, इन सभी का आकषण वहा ंका नसै गक सौ दय तो है ह साथ ह वहा ंका श ा त व भी है। इसी कार राज थान म कोटा ने इधर तकनीक श ा के े के प म देश के मुख के के प म अपनी पहचान बना ल ह।

    12.3.5 इ तहास :

    कहा जाता है क अतीत को व मतृ कर वतमान के साथ याय नह ं कया जा सकता। हर यगु म इ तहास हमारे साथ चलता आया है। कहा जाता है क अतीत क नीव पर ह वतमान अपने को सदैव मजबतूी से खड़ा करता है। समृ भारतीय सां कृ तक वरासत के प म ऐ तहा सक मह व के थल, मारक, कले, गढ और दगु आ द पयटक के आकषण के वशेष के ह। वसेै भी अ तरा य पयटन म भारत ऐ तहा सक इमारत , मारक , सं हालय के गतं य थल के प म अपनी व श ट पहचान रखता है। यहा ंक ऐ तहा सक वरासत को देखने ह व वभर से पयटक ह दु तान आते ह। पयटन उ पाद के प म पयटक गाइड इ तहास क अनमोल वरासत के बारे म जहा ंपयटक को जानकार देता है वह ं थान वशेष के पयटन सा ह य से भी ऐ तहा सक वरासत–संबधंी जानकार ा त क जा सकती है। ेवल एजेि सया,ं टूर आपरेटर वारा तुत टूर पकेैज म ऐ तहा सक थल , सं हालय आ द को स म लत करत ेहु ए पयटको को पयटन के लए ेरणा देने का काय आरंभ से कया जाता रहा है।

    ऐ तहा सक वरासत के अंतगत भी पयटको के लए आकषण के अलग–अलग पहल ूहो सकत ेह। कोई पयटक इ तहास क वरासत के कले, महल, दगु आ द देखने का इ छुक होता है तो कोई ाचीन काल क स यता के अवशेष के त च रखता है। इसी कार कसी क च ाचीन भि त च , गफुाओं, आ द म होती है तो कोई इ तहास के क से–कहा नया ंसे जुड़ ेथान पर जाना पसंद करत े ह। कहने का ता पय प ट है क इ तहास व भ न प म

    पयटक को अपनी ओर आक षत करता है। मोहनजोदड़ो, हड़ पा आ द ाचीन स यता के

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    अवशेष थल, अंजता, एलोरा, ए लफटा क गफुाओं आ द के साथ ह इ तहास से संब थल भी पयटन के आकषण के होत ेह।

    इ तहास से जड़ुी कथाओं, मृ तयां आ द वाले थल भी धीरे–धीरे पयटन के के प म अपनी पहचान बनाने लगत ेह। उदाहरणाथ राज थान म ह द घाट इस लए स पयटन थल है क वहा ंपर कभी मह�