कविता...

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व रेले, मालदा म डल की सृजनामक हिदी ई-माहसकी -16 -10 2017-18 कविता विशेषाक

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  • पूर्व रेलरे्, मालदा मंडल की सजृनात्मक हिन्दी ई-माहसकी

    र्र्व-15

    अंक-11

    2017

    र्र्व-16

    अंक-02

    2017-18

    र्र्व-15

    अंक-11

    2017

    र्र्व-16

    अंक-10

    2017-18

    कविता विशषेाांक

  • 8 2

    भारत के सहंर्धान में राजभार्ा

    सघं की राजभाषा हहंदी और हिहि दवेनागरी है । सघं के शासकीय प्रयोजनों के हिए प्रयोग होने वािे अकंों का रूि भारतीय अकंों का अतंराष्ट्रीय रूि

    है { सहंवधान का अनुच्छेद 343 (1)} । िरन्तु हहंदी के अहतररक्त अगें्रजी भाषा का प्रयोग भी सरकारी कामकाज में हकया जा सकता है।

    ससंद का कायय हहंदी में या अगें्रजी में हकया जा सकता है । िरन्तु राज्यसभा के सभािहत महोदय या िोकसभा के अध्यक्ष महोदय हवशेष िररहथिहत में

    सदन के हकसी सदथय को अिनी मातृभाषा में सदन को सबंोहधत करने की अनुमहत द ेसकते हैं ।

    हकन प्रयोजनों के हिए केवि हहंदी का प्रयोग हकया जाना है, हकन के हिए हहंदी और अगें्रजी दोनों भाषाओ ंका प्रयोग आवश्यक है और हकन कायों के

    हिए अगें्रजी भाषा का प्रयोग हकया जाना है, यह राजभाषा अहधहनयम 1963, राजभाषा हनयम 1976 और उनके अतंगयत समय समय िर राजभाषा हवभाग, गृह

    मंत्रािय की ओर स ेजारी हकए गए हनदशेों द्वारा हनधायररत हकया गया है ।

    अध्यायअध्यायअध्याय --- 111 संघ की भाषा

    ऄनचु्छेद 120. संसद ्में प्रयोग की जाने वाली भाषा - (1) भाग 17 में ककसी बात के होते हुए भी, ककंत ुऄनचु्छेद 348 के ईपबंधों के ऄधीन रहते हुए, संसद ्में कायय कहदंी में या ऄगें्रजी में ककया जाएगा

    परंत,ु यथाकथथकत, राज्य सभा का सभापकत या लोक सभा का ऄध्यक्ष ऄथवा ईस रूप में कायय करने वाला व्यकि ककसी सदथय को, जो

    कहदंी में या ऄगें्रजी में ऄपनी पयायप्त ऄकभव्यकि नहीं कर सकता ह,ै ऄपनी मात-ृभाषा में सदन को संबोकधत करने की ऄनजु्ञा द ेसकेगा ।

    (2) जब तक संसद ्कवकध द्वारा ऄन्यथा ईपबंध न करे तब तक आस संकवधान के प्रारंभ से पंद्रह वषय की ऄवकध की समाकप्त के पश्चात् यह ऄनचु्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानो या ऄगें्रजी में” शब्दों का ईसमें से लोप कर कदया गया हो ।

    ऄनचु्छेद 210: कवधान-मंडल में प्रयोग की जान ेवाली भाषा - (1) भाग 17 में ककसी बात के होते हुए भी, ककंत ुऄनचु्छेद 348 के

    ईपबंधों के ऄधीन रहते हुए, राज्य के कवधान-मंडल में कायय राज्य की राजभाषा या राजभाषाओ ंमें या कहदंी में या ऄगें्रजी में ककया जाएगा परंत,ु यथाकथथकत, कवधान सभा का ऄध्यक्ष या कवधान पररषद ्का सभापकत ऄथवा ईस रूप में कायय करन ेवाला व्यकि ककसी सदथय

    को, जो पवूोि भाषाओ ंमें से ककसी भाषा में ऄपनी पयायप्त ऄकभव्यकि नहीं कर सकता ह,ै ऄपनी मातभृाषा में सदन को संबोकधत करने की

    ऄनजु्ञा द ेसकेगा ।

    (2) जब तक राज्य का कवधान-मंडल कवकध द्वारा ऄन्यथा ईपबंध न करे तब तक आस संकवधान के प्रारंभ से पंद्रह वषय की ऄवकध की समाकप्त के पश्चात् यह ऄनचु्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानो “ या ऄगें्रजी में ” शब्दों का ईसमें से लोप कर कदया गया हो :

    परंतु कहमाचल प्रदशे, मकणपरु, मेघालय और किपरुा राज्यों के कवधान-मंडलों के संबंध में, यह खंड आस प्रकार प्रभावी होगा मानो आसमें अने वाले“पंद्रह वषय” शब्दों के थथान पर “पच्चीस वषय” शब्द रख कदए गए हों :

    परंतु यह और कक ऄरूणाचल प्रदशे, गोवा और कमजोरम राज्यों के कवधान-मंडलों के संबंध में यह खंड आस प्रकार प्रभावी होगा मानो आसमें अन ेवाले “ पंद्रह वषय ” शब्दों के थथान पर “ चालीस वषय ” शब्द रख कदए गए हों ।

    ऄनचु्छेद 343. संघ की राजभाषा--

    (1) संघ की राजभाषा कहदंी और कलकप दवेनागरी होगी, संघ के शासकीय प्रयोजनों के कलए प्रयोग होने वाले ऄकंों का रूप भारतीय ऄकंों का ऄतंरायष्ट्रीय रूप होगा।

    (2) खंड (1) में ककसी बात के होते हुए भी, आस संकवधान के प्रारंभ से पंद्रह वषय की ऄवकध तक संघ के ईन सभी शासकीय प्रयोजनों के कलए ऄगें्रजी भाषा का प्रयोग ककया जाता रहगेा कजनके कलए ईसका ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग ककया जा रहा था :

    परन्तु राष्ट्रपकत ईि ऄवकध के दौरान, अदशे द्वारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में से ककसी के कलए ऄगें्रजी भाषा के ऄकतररि कहदंी

    भाषा का और भारतीय ऄकंों के ऄतंरायष्ट्रीय रूप के ऄकतररि दवेनागरी रूप का प्रयोग प्राकधकृत कर सकेगा।

    (3) आस ऄनचु्छेद में ककसी बात के होते हुए भी, संसद ्ईि पन्द्रह वषय की ऄवकध के पश्चात् , कवकध द्वारा

    (क) ऄगें्रजी भाषा का, या

    (ख) ऄकंों के दवेनागरी रूप का, ऐसे प्रयोजनों के कलए प्रयोग ईपबंकधत कर सकेगी जो ऐसी कवकध में कवकनकदयष्ट ककए जाए।ं

    क्रमशः

    8 2

    भारत के सहंर्धान में राजभार्ा

    क्रमशः

    आठवीं अनसुचूी के अनसुार भाषाएं

    भारत की मखु्य कवशेषता यह ह ै कक यहााँ कवकभन्नता में एकता ह ै । भारत में कवकभन्नता का थवरूप न केवल

    भौगोकलक ह,ै बककक भाषायी तथा सांथकृकतक भी ह ै। एक ररपोर्य के ऄनसुार भारत में 1652 मातभृाषायें प्रचलन में हैं,

    जबकक संकवधान द्वारा 22 भाषाओ ंको राजभाषा की मान्यता प्रदान की गयी ह ै। संकवधान के ऄनचु्छेद 344 के ऄतंगयत

    पहले केवल 14 भाषाओ ं को राजभाषा की मान्यता दी गयी थी ।71वााँ संकवधान संशोधन द्वारा

    नेपाली, कोंकणी तथा मकणपरुी को भी राजभाषा का दजाय प्रदान ककया गया । बाद में 92वााँ संकवधान संशोधन ऄकधकनयम,

    2003 के द्वारा संकवधान की अठवीं ऄनसुचूी में चार नइ भाषाओ ंबोडो, डोगरी, मकैथली तथा संथाली को राजभाषा में

    शाकमल कर कलया गया । आस प्रकार ऄब संकवधान में 22 भाषाओ ंको राजभाषा का दजाय प्रदान ककया गया ह।ै भारत में आन

    22 भाषाओ ंको बोलने वाले लोगों की कुल संख्या लगभग 90% ह।ै आन 22 भाषाओ ंके ऄकतररि ऄगं्रेजी भी सहायक

    राजभाषा ह ै और यह कमजोरम, नागालैण्ड तथा मेघालयकी राजभाषा भी ह ै । कुल कमलाकर भारत में 58 भाषाओ ं में

    थकूलों में पढायी की जाती ह ै। संकवधान की अठवीं ऄनसुचूी में ईन भाषाओ ंका ईकलेख ककया गया ह,ै कजन्हें राजभाषा

    की संज्ञा दी गइ ह।ै

    ऄनचु्छेद 344 (1), 351, अठवीं ऄनसुचूी के ऄनसुार 22 भाषाऐ ंह ैकजनके नाम आस प्रकार ह:ै-

    1 असहमया, बांग्ला, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़ , कश्मीरी , कोंकणी, मलयालम,

    महणपुरी मराठी, नेपाली, उहड़या, पंजाबी, संस्कृत , हसंधी, तहमल, उदूव, तेलुगु,

    बोडो ,डोगरी ,मैहथली एरं् संथाली ।

    संकवधान के ऄनचु्छेद 344 में राष्ट्रपकत को राजभाषा अयोग को गकठत करने का ऄकधकार कदया गया ह ै। राष्ट्रपकत ऄपने

    आस ऄकधकार का प्रयोग प्रत्येक दस वषय की ऄवकध के पश्चात ्करेंग े। राजभाषा अयोग में ईन भाषाओ ंके प्रकतकनकधयों को

    शाकमल ककया जाएगा, जो संकवधान की अठवीं ऄनसुचूी में कवकनकदयष्ट हैं । आस प्रकार राजभाषा अयोग में 18 सदथय होते

    हैं।

    राजभाषा अयोग का कतयव्य कनम्नकलकखत कवषयों पर राष्ट्रपकत को कसफाररश दनेा होता है—

    संघ के शासकीय प्रयोजनों के कलए कहन्दी भाषा के ऄकधकाररक प्रयोग के कवषय में,

    संघ के सभी या ककन्हीं शासकीय प्रयोजनों के कलए ऄगं्रेजी भाषा के प्रयोग के कनबयन्धन के कवषय में,

    ईच्चतम न्यायालय और ईच्च न्यायालय की काययवाकहयों में और संघ की तथा राज्य के ऄकधकनयमों तथा ईनके

    ऄधीन बनाये गये कनयमों में प्रयोग की जाने वाली भाषा के कवषय में,

    संघ के ककसी एक या ऄकधक ईककलकखत प्रयोजनों के कलए प्रयोग ककये जाने वाले ऄकंों के कवषय में,

    संघ की राजभाषा तथा संघ और ककसी राज्य के बीच ऄथवा एक राज्य तथा दसूरे राज्यों के बीच पिाचार की भाषा

    तथा ईनके प्रयोग के कवषय में, और संघ की राजभाषा के बारे में या ककसी ऄन्य कवषय में, जो राष्ट्रपकत अयोग को

    सौंपे।

    http://www.rajbhasha.gov.in/GOLPContent.aspx?t=const.htmhttp://www.rajbhasha.gov.in/GOLPContent.aspx?t=dolact.htmhttp://www.rajbhasha.gov.in/GOLPContent.aspx?t=dolact.htmhttp://www.rajbhasha.gov.in/GOLPContent.aspx?t=dolrules.htmhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%86%E0%A4%A0%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%82_%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%9A%E0%A5%80http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%A3%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AE%E0%A4%A3%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%80http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A5%8B_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%A1%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%A5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%AEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%88%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AFhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%86%E0%A4%A0%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%82_%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%9A%E0%A5%80http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%9C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%A1%E0%A4%BC_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%A3%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AE_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AE%E0%A4%A3%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A0%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%89%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%89%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%97%E0%A5%81_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A5%8B_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%A1%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%A5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BEhttp://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE

  • हर्र्य र्स्तु

    आस ऄकं के ककव

    —सधुांश ुकुमार कवश्वास — 3

    — परुूषोत्तम राजमणी 4

    —शैलेंद्रराम 6

    —ईमेश कुमार मोदी 8

    —कवनय कुमार झा 10

    — सकच्चदानंद 12

    —आदं्र ज्योकत राय 14

    — श्रीमती डेजी सरकार कवश्वास 15

    — ऄरुण कुमार झा 16

    — कवजय कुमार 17

    कचि कवकथका 19-20

    हनिःशुल्क हर्तरण िेतु

    सरंक्षक

    मोकहत कसन्हा

    मंडल रेल प्रबंधक

    परामशव

    कवजय कुमार साहू ऄपर मुख्य राजभाषा ऄकधकारी

    एवं ऄपर मंडल रेल प्रबंधक

    प्रधान सपंादक

    सधुांश ुकुमार कवश्वास

    राजभाषा ऄकधकारी(प्र।)

    सपंादक

    सकच्चदानंद

    व. ऄनवुादक

    कायवकारी सपंादक

    कैलाश चंद्र धाररया

    व. ऄनवुादक

    सियोग

    आदं्र ज्योकत राय

    क. ऄनवुादक

    3

    कववता क्या ह?ै

    ककवता क्या ह?ै ऄगर हम ककवता या साकहत्य की कवधा काव्य की कववचेना

    करें तो अचायय रामचंद्र शकु्ल के शब्दों में कहना ऄकतशयोकि नहीं होगी कक जब

    ककव "भावनाओ ंकी प्रसव" से गजुरते हैं तो ककवताए ंप्रथफूकर्त होती हैं । ककवता

    के द्वारा हम संसार के सखु, दःुख, अनन्द और क्लेश अकद यथाथय रूप से ऄनभुव

    कर सकते हैं । रृदयों को द्रवीभतू करके ईन्हें ऄपने थवाभाकवक धमय पर लाने का

    सामर्थयय काव्य में ही ह ै। प्रायः लोग कहा करते हैं कक ककवता का ऄकन्तम ईद्ङशे्य

    मनोरंजन ह ैपर मनोरंजन ककवता का ऄकन्तम ईद्ङशे्य नहीं ह ै। ककवता पढते समय

    मनोरंजन ऄवश्य होता ह,ै पर आसके कसवा कुछ समथयायें भी होती ह ैकजनके बारे

    में काव्य के माध्यम से ककव अम जनमानस के मन मकथतष्ट्क पर ऄपनी छाप

    छोड़ने की कोकशश करता ह ै। कसफय मनोरंजन करना ककवता का प्रधान गणु ह ैऐसा

    नहीं ह।ै

    ककवता सकृष्ट-सौन्दयय का ऄनभुव कराती ह ैऔर मनषु्ट्य को सनु्दर वथतओु ंमें

    ऄनरुि करती ह ैजो ककवता रमणी के रूप माधयुय से हमें अह्लाकदत करती ह ैवही

    ईसके ऄन्तःकरण की सनु्दरता और कोमलता अकद की मनोहाररणी छाया कदखा

    कर मगु्ध भी करती ह ै। भौकतक सौन्दयय के ऄवलोकन से हमारी अत्मा को कजस

    प्रकार सन्तोष होता ह ैईसी प्रकार ककवता से मानकसक सौन्दयय भी ऄकभभतू होता

    ह ै। ककवता का ईद्गार, ईदार और कनःथवाथय रृदय की ईपज ह ै।

    ककवता की बोली और साधारण बोली में बड़ा ऄन्तर ह।ै भाव-सौन्दयय और

    नाद-सौन्दयय दोनों के संयोग से ककवता की सकृष्ट होती ह ै । आसके कबना ककवता

    करना ऄथवा केवल आसी को सवयथव मानकर ककवता करने की कोकशश करना,

    कनष्ट्फल प्रयास होगा । नाद-सौन्दयय के साथ भाव-सौन्दयय भी होना चाकहए ।

    जयशकंर प्रसाद ने सत्य की ऄनभुकूत को ही ककवता माना ह ै। संसार के सखु

    -दखु से परे ककवता का मधरु और ऄनठूा संसार मनषु्ट्य को सखु—सन्तोष प्रदान

    करता हैं व ेआसी काव्य जगत में डूबे रहने की कामना करते हुए कहते हैं -

    ले चल मझु ेभलुावा द ेकर मरेे नाकवक धीरे-धीरे

    कजस कनजयन में सागर लहरी, ऄम्बर के कानों में गहरी

    कनश्चल प्रेम कथा कहती हो तेज कोलाहल की ऄवकन रे ।

    सुधांशु कुमार हर्श्वास

    प्रसंगर्श

    सपंर्क सतू्र

    संपादर्, बढ़ते र्दम

    मंडल रेल प्रबंधर् र्ार्ाकलर्

    पूर्क रेलर्े/मालदा

    फोन- 72190/ 72192 (रेलर्े) Email – [email protected]

    प्रकाकशत रचनाओ ं में व्यि कवचार लेखकों के ऄपने है आससे संपादक मंडल का सहमत होना अवश्यक नही ह।ै

    https://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%9C%E0%A4%AF%E0%A4%B6%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%B0_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6_%E0%A4%A8%E0%A5%87&action=edit&redlink=1

  • 04

    कहर्ता

    बेरोजगारी, राजनीकत की कबसात पर,

    एक चनुावी मोहरा ह ै।

    कहीं कोइ अशा की ककरण नहीं

    बस कोहरा ही कोहरा ह।ै

    ककंत,ु राजनीकत थवयं एक ईद्योग ह ै

    जहां कदन ही कदन होती ह ै/कभी रात नहीं ,

    आसकलए कचंता की कोइ बात नहीं।

    तो राजनीकत के आस ईद्योग में

    हमशेा बहाली रहता ह ै

    ना घसु, ना पैरवी, /बस कशक्षा के नाम पर

    भाषण ऄगर द ेसको,

    कबना रसीद का चंदा ले सको,

    तो समझो नौकरी पक्की

    जब चाहो कर लो जॉआन

    हमशेा जगह खाली रहता ह ै।

    तो बेकारी में राजनीकत करने लगो

    कोइ काम नहीं ह ैकफर भी

    आधर ईधर दौड़ने लगो।

    कमले जो करने का खचय जनता पर,

    ईससे ऄपना घर भरने लगो ।

    क्योंकक आसमें वेतन का सवाल नहीं,

    लरू्ो कजतना लरू् सको कोइ बवाल नहीं,

    ऄगर पााँच वषय के कलए भी

    कदकली या पर्ना पहुचं गए तो,

    तीन पथुत तक कोइ मलाल नहीं ।

    कुछ कदन बाद तमु

    जनता के कलए जनता द्वारा चनुे गए

    जनप्रकतकनकध हो जाओगे

    दीन दकुनया से बेखबर

    परुुषोत्तम राजमवि

    श्री परुषोत्तम राजमकण पवूय

    रेलव,े मालदा मडंल के मालदा

    र्ाईन थरे्शन पर वररष्ठ गाड़ी

    कलकपक के पद पर काययरत ह।ै अप

    मालदा के ईदीयमान ककव एव ंसाकहत्यसजृक हैं। ऄपनी रेल

    सेवा के साथ साथ साकहत्य साधना में भी पयायप्त समय दतेे हैं।

    मुगंरे कबहार के रहने वाले श्री राजमकण की प्रारंकभक

    कशक्षा मुंगरे में संपन्न हुइ और आन्होने वषय 2012 इ. में बतौर

    गाडी कलकपक मालदा मडंल में ऄपना योगदान कदया ।

    आनकी रूकच बचपन से ही ककवता लेखन के प्रकत रही

    ह।ै आनकी रचनायें मडंल की माकसक पकिका बढ़ते कदम में

    कनयकमत रूप से प्रकाकशत होती ह ै।

    कफर रुतवा होगा पैसा होगा,

    संग दो या चार हम जसैा होगा।

    पर्ना कदकली दौड़ते रहो,

    दसूरों की ईबली मछली

    ऄपनी काढाआ में छौकते रहो ।

    ना VRS की कचंता न ररर्ायरमेंर् का डर

    जब तक मजी काम कर ।

    आसमें VRS होता नहीं

    ररर्ायरमेंर् के बाद भी कोइ रोता नहीं ।

    क्योंकक आस कवभाग में

    ररर्ायरमेंर् नहीं सन्यास कलया जाता ह,ै

    और पेंशन के तौर पर

    ककसी प्रदशे का राज्यपाल या

    बोडय का ऄध्यक्ष बना कदया जाता ह ै।

    ****

    रोजगार समाचाररोजगार समाचाररोजगार समाचार

  • 05

    कहर्ता

    ***************क्षविकाएांक्षविकाएांक्षविकाएां*************** पोस्टर

    100 घायल 10 की मौत

    शहर की गकलयों में गोली चली ह ै

    अपसी मतभदे को भलुाकर

    सांप्रदाकयक सद्भाव बनाए रखें

    चौराह ेपर एक पोथर्र लगी ह।ै

    भखू से कबलकबलाते लोग

    पानी के कलए घरं्ों से कतार में लग ेहैं।

    देंग ेहर हाथ को काम

    हर खते को पानी

    ऄखबार की सकुखययों में रोज अने लग ेहैं।

    मोहरे थवणय, ऄछूत, अकदवासी,

    राजनीकत की कबसात पर

    चनुावी मोहरे कबछी ह ै

    कमली ह ैजबसे अरक्षण

    और सरुक्षा की गारंर्ी

    सामकूहक नरसंहार की घर्ना बढी ह।ै

    योजना कसंचाइ और बाढ कनयंिण पर

    करोड़ों की योजनाए ंबनते हैं,

    सखू ेसे फर्ी दरार,और

    बाढ का ऄथाह पानी क्या होता ह ै

    हर वषय आन की सच्ची कहानी कहते हैं।

    प्रश्न कनत घर मैं बहुयें जला दी जाती ह.ै...

    सड़कों पर कचकलाती ह ैबेर्ीयााँ

    बचाओ बचाओ ।

    क्य़ा यही कदनं दखेने को

    र्ीवी पर रोज बोला जाता ह ै

    बेर्ी बचाओ बेर्ी पढाओ ?

    परुुषोत्तम राजमकण

  • कहर्ता

    06

    ग ांगेग ांगेग ांग,े , , लांगड ेऔर अांधेलांगड ेऔर अांधेलांगड ेऔर अांध े

    फलते यहां हम तीन पौधे

    गूगं ेलंगडे़ और ऄधंे

    रहो खडे़ या कगरो मुहं औधंे

    चलने तमु्हें हमीं के हैं कंधे

    मनहर होते हैं हम सब

    करते हैं थवांग जब तक ।

    चलोग ेसंग ऄधंे कगरोग ेमुहं औधंे

    दखेकर सब हसंेंग,ेना कोइ हाथ देंग े

    ईकरे् ही कसर चढेगें,चाहत परूी जो करेंग े।

    रहो संग गूगं ेतो कुछ ना कहेंग े

    कखचड़ी ऄदंर पकेगी, गमी सबको लगगेी

    खाएगं ेजीजा साले ,बाकी कुछ भाग्य वाले

    न लो मझुसे पंग,ेयह लंगडे़ कहेंग े

    जो यूं तमु करोग े,तो हम कहां रहेंग े

    ना शीघ्र धीरे तो चलेंग,े पर शतय यकद मन कमलेंग े।

    हम यूं ही चलेंग ेरे्ढे कभी सीधे

    हो क्या जपते, यकद कोइ राथते

    तो चाल चल दखे ले

    जरा हम भी दखे ले । ***

    शलैेंद्र राम

    श्री शलैेंद्र राम पवूय रेलव,ेमालदा मडंल के मालदा र्ाईन थरे्शन पर वररष्ठ सेक्शन

    आजंीकनयर/समाकड के ऄधीन हकेपर के पद पर काययरत ह ै । बोदरा,गोड्डा झारखडं के

    रहने वाले श्री राम की प्रारंकभक कशक्षा गोड्डा में संपन्न हुइ और आन्होने वषय 2012 इ. में

    बतौर हकेपर मालदा मंडल में ऄपना योगदान कदया । ऄपने अस पास गरीबी,मानवता

    का शोषण और कनरीह जनों पर शासन की बबयरता से प्रेररत होकर ककवता लेखन के

    प्रकत आनका लगाव बढा । आनकी रचनायें मडंल की माकसक पकिका बढ़ते कदम में

    कनयकमत रूप से प्रकाकशत होती ह ै।

  • कहर्ता

    त्रस्त मजद रत्रस्त मजद रत्रस्त मजद र सारे मजदरू ह ैिथत,नेता ह ैमौका परथत

    सत्ता को नहीं ह ैफुसयत ,पूंजीपकत सब हैं व्यथत

    गरीबों का ह ैजीवन ऄथत, सारे मजदरू हैं िथत

    मान कजसे उपर का वर ,जीते जीवन हो मजबरू

    छोर्ा घर पर बड़ा ईर ,घर छोड़ जाते हैं दरू

    अते घर जब सरूज ऄथत, सारे मजदरू हैं िथत

    बांधकर कुछ चना-चबेना,काम का कोइ नहीं कठकाना

    नहीं ककसी से लेना दनेा,पहन के ऄबंर फर्ा परुाना

    फाकाकशी में जीवन पथत,सारे मजदरू हैं िथत

    कजदंगी ही परोपकार,साक्षात ज्यों हो शकंर

    मत्ययलोक के कुछ नामवर,कुछ लर्के-झर्के कदखा

    बन जाते हैं वरद हथत, सारे मजदरू हैं िथत

    महल कजस कर से हैं ईठते,पसीने से गारे बनते

    वही हो उपर जब आठलाते,ईसी हथत की हसंी ईड़ाते

    व्यथा कथा क्या कहू ंऄनंत,सारे मजदरू हैं िथत

    माना ह ैये ऄभी ऄसि, नहीं चाहते ऄस्त्र-शस्त्र

    पर हो जाने पर कुकपत,राम नाम कफर होगा सत्

    शीघ्र संभालो ऄब भी वि ,सारे मजदरू हैं िथत

    कुछ करो ऄब सोचो मत, सोचने का गया वि

    हो जाओ सब एक मत,तभी कमरे्गा सारा दुग्यत

    बोलो सब कमल जय जगत ,सारे मजदरू हैं िथत

    ***

    —- शलैेंद्र राम

    07

  • 09 08

    कहर्ता

    विकृत सभ्यताविकृत सभ्यताविकृत सभ्यता कवकृत सभ्यता कृकतत्व कृशसं,दहला मानव छाया नशृसं

    बदल गइ सत्यता की पररभाषा ,सभ्य समाज की ऄसभ्य ऄकभलाषा

    हुइ कवथमतृ सभ्यता संथकृकत शालीन,पररवकधयत हुइ ह ैकू्रर कपपासा ।

    कनत्य नतून रच रहा कवध्वसं, कवकृत सभ्यता कृकतत्व कृशंस

    ररि जबे ईदर भले ही खाली हैं, होठों पर कनत्य सजती लाली ह,ै

    गढ बाहु कनतंब रै्रू् बेढंग ,वाला बनी वन व्याली ह ै

    द ेरही दना दन दशं ,कवकृत सभ्यता कृकतत्व कृशसं

    मगुाय भर रहा ह ैबांग ,दखे कमनीय नग्न र्ांग

    कक्षप्रपर् तुंग ईन्नत ईरोज ,रच रहा कनकृष्ट कुकत्सत थवांग

    कवकल कवदग्ध कवकध कवभ्रंश ,कवकृत सभ्यता कृकतत्व कृशंस

    कोइ सकुचिा कोइ सलेुखा ,कोइ सती सीता सरैुता

    कहां रामायण गीता लेखा ,कहां बैठा ह ैव्यथय कववकेा

    कहां रमा ह ैपरमहसं ,कवकृत सभ्यता कृकतत्व कृशसं

    ईमेश कर द ेकुछ ऐसी रचना, हो कवकृकत की कवभत्स भत्सयना

    ऄतीत ऄकथमता अहत ऄपंग, लरेु् कलप्सा कमरे् तषृ्ट्णा

    खोज रहा क्या जल में हसं, कवकृत सभ्यता कृकतत्व कृशसं ।

    ***

    उमशे कुमार मोदी

    श्री ईमशे कुमार मोदी पवूय रेलव,ेमालदा मंडल के साकहबगजं थरे्शन पर वररष्ठ सेक्शन

    आजंीकनयर/लोको के ऄधीन लोको पायलर् के पद पर काययरत ह ै। रणग्राम, तारापरु, कबहार

    के रहने वाले श्री मोदी की प्रारंकभक कशक्षा गांव में संपन्न हुइ और बाद में आन्होनें ईच्च

    कशक्षा भागलपरु व मुगंरे से प्राप्त की । मालदा मंडल के साकहबगजं थरे्शन कथथत लोको

    शडे राजभाषा कायायन्वयन सकमकत के ये संयोजक ह ै। ऄपने अस पास गरीबी, मानवता

    का शोषण और समाज में व्याप्त कुररकतयों व बबयरता से प्रेररत होकर ककवता लेखन के प्रकत

    आनका लगाव बढा । आनकी पहली काव्य रचना मैं सकुसकुकया ह ूं ह ै। आनकी रचनायें मडंल

    की माकसक पकिका बढ़ते कदम में कनयकमत रूप से प्रकाकशत होती ह ै।

  • कहर्ता

    09

    होगी कब वहांदी आजादहोगी कब वहांदी आजादहोगी कब वहांदी आजाद

    ऐ दशे के कणयधारों, समय शकि क्यों करते बबायद ।

    कहदंथुतान अजाद हुअ ह ैहोगी कहदंी कब अजाद ।।

    कहदंथुतान में ऄलबत्ता, मुबंइ से कोलकाता

    ऄगं्रेजी की चल रही ह ैसवयि एकछि सत्ता

    शहर शहर या गांव गांव छाया ह ैयही ऄवसाद ।

    कहदंथुतान अजाद हुअ ह ैहोगी कहदंी कब अजाद ।।

    कहदंी पग में अगं्ल बेड़ी ह,ै करबद्च कराल कू्रर कड़ी ह ै

    कववश वधैव्या कवककप पड़ी ह,ै अज आकम्तहान की घड़ी ह ै

    वीर बज ईठी प्रणभरेी ह,ै कमर्ा प्रवर प्रयोग प्रमाद ।

    कहदंथुतान अजाद हुअ ह ैहोगी कहदंी कब अजाद ।।

    ईधर कहमालय हुकंार रहा ह ैआधर ईदकध दहाड़ रहा ह ै

    भाषाइ दासता ईखाड़ फें कने को, जन-जन को ललकार रहा ह ै

    कदग कदगतं गूजं रहा ह ैअज यही थवर नाद ।

    कहदंथुतान अजाद हुअ ह,ै होगी कहदंी कब अजाद ।।

    करके मन, कचत्त्त, अत्मा, शदु्च, छेड़ लड़ाइ का तीसरा यदु्च

    ईठो ईठो ए वीर सपतू वगय, ऄपवगय, अबोध प्रबदु्च

    ले कतलक आस कमट्टी का, बढ अग ेकर शखंनाद ।

    कहदंथुतान अजाद हुअ ह ैहोगी कहदंी कब अजाद ।।

    उमेश कुमार मोदी

  • कहर्ता

    10

    ववनय कुमार झा

    कफन हतरंगा िो

    कजस दशे में गगंा हो, राष्ट्रध्वज कतरंगा हो

    जहां फूल ऄमन का कखले कोइ ना दगंा हो

    झरना हो, पतझड़ हो, कनत प्रकत र्पकती हो

    सागर की लहरों से संदशे यह दतेी हो

    अज अग ेहर दम बढना हाथों में कतरंगा हो

    कजस कजस दशे में गंगा हो राष्ट्रध्वज कतरंगा

    मन नाजकु ह ैमरेा, कदल में भी कतरंगा हो

    हम भलेू नहीं गोधरा, कश्मीर का वह मजंर

    सब दखेता हू ंहर पल कफर भी मैं ऄधंा हू ं

    कजस दशे में गगंा हो, राष्ट्रध्वज कतरंगा हो

    यमनुा पावन पनुीत गोदावरी बहती ह ै

    तरंग कलए कृष्ट्णा कावरेी बहती ह ै

    रह ेहरदम ऄमन चैन ना कोइ पंगा हो

    कजस कजस दशे में गंगा हो राष्ट्र ध्वज कतरंगा हो

    श्री कवनय कुमार झा पवूय रेलव,ेमालदा मंडल के साकहबगंज थरे्शन पर वररष्ठ सेक्शन

    आजंीकनयर/कबजली के ऄधीन काययरत ह ै । सपुौल कबहार के रहने वाले श्री झा की

    प्रारंकभक कशक्षा करजाआन बाजार सपुौल में संपन्न हुइ और आन्होने वषय 2012 इ. में

    मालदा मडंल में ऄपना योगदान कदया ।

    ऄपने अस पास घर्ने वाली घर्नाओ ंसे प्रेररत होकर ककवता लेखन के प्रकत आनका

    लगाव बढा । ककवता रचना के साथ साथ कवकभन्न मचंों पर काव्य पाठ में भी ये

    कसद्चहथत ह ै। मालदा मडंल के साकहबगजं थरे्शन कथथत थरे्शन राजभाषा कायायन्वयन

    सकमकत के ये संयोजक ह ै।

    कहदंी में ऄपना ऄकधकाकधक कायय संपन्न करने के कलए एवं ऄन्य को प्रेररत करने के

    कलए आन्हें राजभाषा सारथी के रूप में चनुा गया था । आनकी रचनायें मडंल की माकसक

    पकिका बढ़ते कदम में कनयकमत रूप से प्रकाकशत होती ह ै।

  • कहर्ता

    11

    कदल सागर सा गहरा, सर कशखर कहमालय हो

    खतरों से खलेते हैं हम पीछे नहीं हर्ते हैं

    कमर्ने न द ूकथमता बह ेखनू का कतरा हो

    कजस कजस दशे में गंगा हो राष्ट्र ध्वज कतरंगा हो

    सामने हो दशु्मन परवाह नहीं करते

    हो खनू से लतपत तन, पर कदम नहीं रुक सकते

    ईद्घोष हो भारत में हाथ में झंडा हो

    कजस दशे में गगंा हो राष्ट्रध्वज कतरंगा हो

    जब सीमा पर जाउं संगीन हो हाथों में

    हम पथ से ना हो कवचकलत दशे प्रेम का जज्बा हो

    सर कतलक हो मार्ी बन हाथों में कतरंगा हो

    कजस दशे में गगंा हो राष्ट्रध्वज कतरंगा हो ***

    प्यारा वतन ढा न पाये कोइ यूं कसतम दोथतों

    यह ह ैऄपना प्यारा सा वतन दोथतों

    आनकी अाँचल संवारे ह ैबचपन मरेा

    नाम आनकी जवानी त ूकर द ेमरेी

    कभी पीछे न करना कदम ए दोथतों

    यह ह ैऄपना प्यारा सा वतन दोथतों

    ऄपनी मार्ी का गौरव हू ं रखना याद सदा

    कोइ छूने न पाये यह पावन धरा

    करना कहफाजत त ूखेल जान पर आसकी

    यह ह ैजननी जन्मभकूम ऄपनी

    बढती ह ैरौनक मरेे शान में आससे

    ढा न पाये कोइ कसतम दोथतों

    यह ह ैऄपना प्यारा सा वतन दोथतों

    —- हर्नय कुमार झा

  • कहर्ता

    12

    सच्चिदानंद वजज्ञास ु

    श्री सकच्चदानंद ”कजज्ञासु” पवूय रेलव,ेमालदा मडंल के राजभाषा कवभाग में वररष्ठ

    ऄनवुादक के पद पर काययरत ह ै। धनमा जमइु, कबहार में जन्म ेएव ंआनकी प्रारंकभक कशक्षा

    पार्म,मुगंरे में संपन्न हुइ । आन्होंने वषय 1983 इ. में बतौर तार बाब ू रेल सेवा में ऄपना

    योगदान कदया ।

    आसके बाद 1990 में राजभाषा कवभाग में राजभाषा सहायक के पद पर कसयालदह मंडल

    में ऄपना योगदान कदया । अप 1964 इ.से ही लेखन से जडेु़ हुए ह ै । ऄपने अस पास

    घर्ने वाली घर्नाओ ंसे प्रेररत होकर ककवता लेखन के प्रकत आनका लगाव बढा । 1987

    में आनकी पहली काव्य रचना क ूंतन प्रकाकशत हुइ । आनकी रचनायें मडंल की माकसक

    पकिका बढ़ते कदम में कनयकमत रूप से प्रकाकशत होती ह ैकजनके ये संपादक भी हैं ।

    ईश्वर कुछ मुझसे अच्छा करर्ा

    इश्वर कुछ मझुसे ऄच्छा करवा

    जब भी भर्कंू मागय से मझु ेसही पथ कदखा

    जब भी मन में असकि अए

    मरेे मन में भकि जगा ।

    जब भी मरेे कदल में शितुा ईपज े

    मझु में करुणा का सागर बहा

    जब भी मन कंचन काकमनी के कलए तड़पे

    तमु मझुमें बैराग्य भर ।

    मरेे मन की आष्ट्याय,क्रोध,लोभ-लालच को

    त ूदया प्रेम और सकहष्ट्णतुा में बदल

    इश्वर! कुछ मझुसे ऄच्छा करवा

    यह पापी मन तेरे चरणों में ही लगा रह े

    मनषु्ट्य योकन में जन्म लेने का साध परेू

    मझुसे ककसी का ना ऄकहत हो

    मरेे कदल में ककसी के प्रकत भी पाप न ईपजे

    बस करुणा सागर ही ईमड़ता रह े

    सारे जग वासी से बैर भाव छूरे्

    ऐसा सपुथ कदखा-

    इश्वर! मझुसे कुछ ऐसा चमत्कार करा

    पीकढयों तक पथ अलोककत रह े

    ऐसा मरेा भाग्य बना,

    प्रभ!ु मझुसे कुछ ऄच्छा करवा ।

    ***

  • कहर्ता

    13

    इत्ती सी अहभलार्ा

    न मैं पी.एम न जी.एम बनने के कलए लालाकयत हू ं।

    ना र्ार्ा,डालकमया, ऄबंानी बनने की ही मरेी ख्वाकहश ह ै

    ना हीरो, कखलाड़ी या गायक बनकर शोहरत बर्ोरने की चाहत ह,ै

    ना तो दशेरत्न, नोबेल पाने की तमन्ना ह,ै

    संसार की न कोइ संपदा सखु पाने की आच्छा ही शषे ह ै।

    मैं एक ऄकपज्ञ, ककव, लेखक, व्यंगकार हू ं

    लोगों को जागरूक बनाने, समाज से जात-पात हर्ाने

    दजयनों पथुतके कलख चकुा हू ंऔर कलखना ह।ै कनधयनों के कलए पाठशाला ,ऄथपताल

    बढूे, बेसहारों ,ऄबला हते ुकनकेतन बनाना ह ै

    अजीवन दीन दकुखयों की सेवा में सहषय

    तन मन धन न्योक्षावर करना ह ै

    बस आत्ती सी ऄकभलाषा ह ै

    ह ेप्रभ ुमझु ेदो ऐसी भकि, शकि, बकुद्च

    ऄपनी ऄकभलाषा परूी कर

    आस नश्वर संसार से खशुी-खशुी कवदा ले सकंू ।

    मौन धारण

    चोरों की बथती में अए थे हम,

    ऄब लरेु्रों की बथती में अ गए हैं हम,

    हर जकुम को जानकर भी

    ऄनजान बनने पर मजबरू हैं हम ।

    जबसे भगवान के शरणागत हुए हैं हम

    तभी से मौन धारण ककए हुए हैं हम,

    करनी का फल भगुतना ही पडे़गा

    मानकर ऐसा ऑकफस, समाज का

    हर ऄन्याय, ऄत्याचार भलुा कदए हैं हम

    लडे़ तो लडे़ ककसके कवरुद्च ?

    लाखों में एक अध ही आसंान बचे हुए हैं ।

    हर ओर ऄन्याय, बाहुबली का बोलबाला ह ै

    कोर्य कचहरी सरकार कोइ नहीं

    द ेपा रही आन्हें सजा ह ै। सहच्िदानंद”हजज्ञासु”

  • कहर्ता

    मेरी बेटी थोड़ी बड़ी हो गई ह ै

    मरेी बेर्ी थोड़ी सी बड़ी हो गइ ह ै

    कुछ कजद्ङी, कुछ नक् चढी हो गइ ह ै

    हााँ, मरेी बेर्ी थोड़ी सी बड़ी हो गइ ह ै

    ऄब ऄपनी हर बात मनवाने लगी ह ै

    हमको ही ऄब वो समझाने लगी ह ै

    हर कदन नइ नइ फरमाआशें होती ह ै

    लगता ह ैकक फरमाआशों की झड़ी हो गइ है

    मरेी बेर्ी थोड़ी सी बड़ी हो गइ ह ै

    ऄगर डांर्ता हूाँ तो अखें कदखाती ह ै

    खदु ही गथुसा करके रूठ जाती ह ै

    ईसको मनाना बहुत मकुश्कल होता ह ै

    गथुसे में कभी पर्ाखा कभी फूलझड़ी हो गइ ह ै

    मरेी बेर्ी थोड़ी सी बड़ी हो गइ ह ै

    जब वो हसंती ह ैतो मन को मोह लेती ह ै

    घर के कोने कोने म ेईसकी महक होती ह ै

    कइ बार ईसके ऄजीब से सवाल भी होते हैं

    बस ऄब तो वो जाद ूकी छड़ी हो गइ ह ै

    मरेी बेर्ी थोड़ी सी बड़ी हो गइ ह ै

    14

    इन्द्द्रज्योवत राय

    श्री आन्द्रज्योकत राय पवूय रेलव,ेमालदा मंडल के राजभाषा कवभाग में ककनष्ठ ऄनुवादक

    के पद पर काययरत ह ै । भागलपरु ,कबहार में जन्म े एव ं आनकी प्रारंकभक कशक्षा

    दमुका,झारखडं में संपन्न हुइ ।

    आन्होंने वषय 2010 इ. में बतौर ककनष्ठ ऄनवुादक राजभाषा कवभाग में मालदा मडंल में

    ऄपना योगदान कदया । बचपन से ही लेखन से जडेु़ हुए ह ै । समाज में घर्ने वाली

    समसमाकयक घर्नाओ ं से प्रेररत होकर ककवता कलखते ह ै । 2010 में आनकी पहली

    काव्य रचना मैं पयाावरण ह ूं प्रकाकशत हुइ थी ।

    घर अते ही कदल ईसी को पकुारता ह ै

    सपने सारे ऄब ईसी के संवारता ह ै

    दकुनयााँ में ईसको ऄलग पहचान कदलानी ह ै

    मरेे कदम से कदम कमलाकर वो खड़ी हो गइ है

    मरेी बेर्ी थोड़ी सी बड़ी हो गइ ह ै

    — इन्रज्योहत राय

  • कहर्ता

    15

    श्रीमती डेजी सरकार ववश्वास

    श्रीमती डेजी सरकार कवश्वास पवूय रेलव,ेमालदा मडंल के काकमयक कवभाग में कायायलय ऄधीक्षक के पद पर काययरत ह ै।

    आनका जन्म पाकुड़ ,झारखडं में हुअ एव ंआनकी प्रारंकभक कशक्षा मालदा मडंल के बड़हरवा में संपन्न हुइ । आन्होन ेवषय

    2012 इ. में बतौर ककनष्ठ कलकपक के रूप में काकमयक कवभाग में मालदा मडंल में ऄपना

    योगदान कदया । बचपन से ही लेखन में आनकी रूकच रही ह ै । समाज में घर्ने वाली

    समसमाकयक घर्नाओ ं से प्रेररत होकर ये प्रकतवादी ककवता कलखती हैं । 2001 में

    आनकी पहली काव्य रचना प्रकृकत और मैं कें द्रीय कवद्यालय मालदा की गहृ पकिका में

    प्रकाकशत हुइ थी ।

    ईश्वर क्या ह ै

    क्या कभी ककसी ने इश्वर को दखेा ह ै

    या कफर भी ईनके होने का एहसास हमें ह ै

    आन फूलों में, आन ककरणों में

    बाररश की छोर्ी-छोर्ी बूंदों में

    हवाओ ंमें ,आन कफजाओ ंमें

    प्रकृकत के हर नजारों में इश्वर ह ै।

    हमारे दखु में ,हमारे सखु में

    हमारी हार में, हमारी जीत में

    धरती और बादल

    धरती न जाने कब से सखू रही थी

    ऄपना माथा फोड़ रही थी

    वह बाररश की चंद बूंदों के कलए

    ना जाने कब से तड़प रही थी

    सावन के महीने में,

    अया बादल का एक रु्कड़ा

    दखे आस बादल को धरती का मन नाच ईठा

    वह बोली बादलों से, ऐ बादल बरसो तो जरा

    तरस रही हू ंकब से मैं आन बूंदों के कलए भला

    धरती की सनु आन बातों को

    बादल ने कहा, मैं मैं अया हू ंदरू दशे से

    कसफय तमु्हारी प्यास बझुाने

    कफर क्या था लग गइ बूंदों की झड़ी

    कजस पल का था आतंजार अकखर वह अ गइ घड़ी

    वषाय की बूंदों को पाकर

    कखल ईठी यह धरती सारी

    बूंदों को पाकर हषायए फूल फूल

    झमू ईठे यह धरती सारी

    — श्रीमती डेजी सरकार हर्श्वास

    आस धरती के कण कण में

    और हमारे मन मकंदर में इश्वर ह ै।

    पर ना जाने क्यों हम

    हर वि ईन्हें ढूंढते रहते हैं,

    जो जो हमारे पास ह ैऔर हमारे साथ ह ै

    ना जाने क्यों ईसकी तलाश में भर्कते हैं ।

  • अरूि कुमार झा

    श्री ऄरूण कुमार झा पवूय रेलवे,मालदा मडंल के पररचालन कवभाग में मखु्य कनयंिक के पद पर

    काययरत ह ै। मलू रूप से भागलपरु ,कबहार के रहने वाले श्री झा मालदा मडंल के एक जाने मान े

    ककव भी ह ै। आन्होने वषय 1986 इ. में बतौर सहायक थरे्शन माथर्र मकनग्राम थरे्शन पर मालदा

    मडंल में ऄपना योगदान कदया ।

    कवज्ञान में थनातक श्री झा लेखन के ऄलावे,नार्क,कनदशेन,ऄकभनय,मचं संचालन से भी जडेु़ हुए

    ह ै ।ईद्घोषक के रूप में अकाशवाणी भागलपरु से आनके कइ काययक्रम प्रसाररत हुए ह ै । आनकों

    कहदंी लेखन के कलए कइ परुथकारों से भी सम्माकनत ककया जा चकुा ह ै।

    वीर रेलकवमियों तमु महान हो

    वीर रेलककमययों तुम महान हो

    महान ह ैमां भारती

    कनत्य ऄपने खनू से ईतारते तमु अरती

    दशे की धमकनयों में बहते

    रि के प्रवाह तमु

    समाज के कवकास के

    सशि हो गवाह तमु

    कशक्षा और संथकृकत के

    प्रबल रह ेवाहक तमु

    और ऄथयतंि वकृ्ष के

    मां हो पालक तमु

    कनशा की मीठी नींद में

    जब समथत कवश्व सो रहा

    तब भी रेलककमययों का

    कतयव्य कनवयहन हो रहा

    ऄपनी मां पत्नी बेर्ी

    जब बीमार हो

    दशे की ऄसंख्य मां बेकर्यों का

    करते रह ेकतमार हो

    16

    कहर्ताए ंकहर्ता

    ककतनी कवदाइ की

    असं ूपीकर तमु

    खकुशयों के हषय में

    याकियों के संग जी के तमु

    बस एक तर्थय पर दृढ रह े

    की कतयव्य यही पकुारती

    वीर रेलककमययों महान तमु

    और महान ह ैमां भारती — अरूण कुमार झा

  • 17

    कहर्ता

    प्यार करन ेदो मझु े

    फूल हुलस रहा कचनार ह ैकुक रही कादबंरी

    सज गइ नदी नहीं पहन नवल कपतांबरी

    रृदय आजहार ह ैकबहार करने दो मझुे

    चेतना के तौर पर झमू प्यार करने दो मझु े

    ह ैगलुकसता मधबुन मरेा मधमुास अगमन से यहां

    गलुाबी ठंडक में जरा कुछ अवास करने दो मझु े

    अम्र तरु पर मजंररयां कचनार कखलकखला गए

    मध ुकरंग के गुजंार में ऄनुवाद करने दो मझु े

    सवरंा सब वन कखला वातावरण सरुकभत हुअ

    महुअ के र्प र्प चऄुन मधपुान करने दो मझु े

    वनांचल के अचंल से अती खशुब ूयहां

    चंद्रोदय की चंकद्रका में मदहोश होने दो मझु े

    अकर प्रकृकत के द्वार पर बसंत दथतक द ेरहा

    झमूने दो नाचने दो अज कप्रयतम अएगं ेमरेे

    हो रहा हकषयत मधबुन मरेा सजने सवरंने दो मझु े

    मन के ऄतंर दीप से अरती ईतारने दो मझु े

    ववजय कुमार

    श्री कवजय कुमार पवूय रेलव,ेमालदा मडंल के कनवयतमान मखु्य कनकर् कनरीक्षक ह ै ।

    साकहबगजं झारखडं के रहने वाले श्री कुमार की प्रारंकभक साकहबगजं में संपन्न हुइ और

    बाद में आन्होनें ईच्च कशक्षा भी साकहबगजं कालेज से प्राप्त की ।

    ये मालदा मंडल के साकहबगजं थरे्शन कथथत राजभाषा कायायन्वयन सकमकत के ये

    संयोजक रह चकेु ह ै।1975 इ. में आन्होनें रेल सेवा में योगदान कदया । य ेवषय 1992 इ. स े

    मडंल के राजभाषा कवभाग से जडेु़ हुए ह ै । आनके जीवन पर माता-कपता व आनके गरुु श्री

    राजेंद्र प्रसाद ठाकुर का गहरा प्रभाव पडा । आनकी पहली काव्य रचना आह जो

    साकहबगजं से प्रकाकशत होने वाली पकिका कदशारी में सन ् 1989 में छपी थी । आनकी

    रचनायें मडंल की माकसक पकिका बढ़ते कदम में कनयकमत रूप से प्रकाकशत होती ह ै

  • 18

    कहर्ता

    नैसकगयक कसंगार से सजी ईपहार पाने दो मझु े

    रंग ऄबीर गलुाल ऄब ईड़ा लेने दो मझु े

    लता गकुम के बाहों में, झमूा ऄब झमू कहलोरे लेने दो मझुे

    नवल पषु्ट्प कोमल पि दल से पथ सजाने दो मझु े

    सज रह ेगली कूचे सज रहा सारा जहान

    अज सजन अएंग ेमरेे छाया ह ैचहु ंऔर ईकलास

    कवरह वदेना के तार से मन झकृंत होने लगा

    प्रमद कचत्त से कप्रय कमलन को ईत्कंकठत होने दो मझुे

    हो रहा कवह्वल मरेा मन पपीहा के अतरु कपहुक से

    वासंकतक रास के कलए वेण ु बजाने जाने दो मझुे

    नतून ईमंग बर्ोरकर मन मदन के कलए

    ऄमराआयों के ऄकभसार में ऄब खो जाने दो मझु े।

    सभंल जाओ

    ऐलान यह कर दो गद्ङारो को

    ऄब तेरी खरै नहीं होगी

    जयगान करती दसो कदशाए ं

    नव ग्रह करता मगंल गान

    नव पकलकवत हुइ पावन धरती

    जाग ईठा ह ैकहन्दथुतान

    अथतीन के सांपों का

    कवषदतं तोड़ कर रख देंग े

    तैयार खडे़ हैं वीर बाकुडं़

    तझु ेसचेत करते हैं हम

    शषे समय ह ैसंभल जाओ

    जयचंद मीर जाफर के वशंज

    ऄब तेरी खरै नहीं होगी।

    —हर्जय कुमार

    शेषांश ऄगले ऄकं में

  • मालदा मडंल द्वारा स्र्च्छता पखर्ाडा 2017 के दौरान आयोहजत हर्हभन्न

    प्रहतयोहगताओ ंके हर्जयी प्रहतभाहगयों िेतु आयोहजत पुरस्कार हर्तरण के दृश्य

    19

  • मंडल राजभार्ा कायावन्र्यन सहमहत मालदा की हतमािी बैठक एर्ं मंडल की माहसक

    पहिका बढ़ते कदम के हर्मोिन के दृश्य