मार्च भोजपnरm - jogira.com · तभखारी ठाकुर...

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www.aakhar.com www.facebook.com/Aakhar भोजपुरी @aakharbhojpuri एगो डेग भोजप री साहिय खाहि माच अैल 2017 वच:3 अंक:2

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    भोजपुरी

    @aakharbhojpuri

    एगो डेग भोजपुरी साहित्य खाहि

    मार्च– अप्रैल 2017 वर्च:3 अंक:2

  • सब पद अवैिहिक बा ।

    वर्ष: 3 । अंक: 2 (मार्ष– अपै्रल -2017) । ई - पत्रिका

    मलू्य : शनू्य

    आखर में प्रकाहिि रचिा लेखक के आपि ि आ ई जरुरी िइखे की संपादक

    के हवचार लेखक के हवचार स ेहमले । लखे पे हववाद के हजम्मेदारी लेखक के बा ।

    आखर बतकूर्न सौरभ पाण्डये

    भोजपुरी

    नशामुक्तत मनोज कुमार

    हम द्रौपदी सरोज ससहं

    सरेआम लूटल जा रहल बा भोजपरुी के अस्मत पंकज भारद्वाज

    महात्मा गाधंी अउरी मार्टचन लथूर ककंग गौरव ससहं

    प्रकािि / संपादि मंडल : संजय ससंह , ससवान दवेेंद्र नाथ सिवारी , वर्ाा शसश रजंन सिश्र , नई सदल्ली नबीन कुिार , दबुई

    िकिीकी -एहडह ंग, कम्पोहजगं असिनी रूद्र , न्यू यॉका असनिेष कुिार विाा , अबू र्ाबी छाया हचत्र सियोग स्वयम्बरा बक्सी , पी. राज ससंह, अजय कुिार, असिि सिश्र

    आखर पिा ग्राि पोस्ट- पंजवार (पोखरी) ससवान , सबहार 841509 क़ािूिी सलािकार लसलिेिर नाथ सिवारी , पटना

    संपका : आपन िौसलक अप्रकासशि रचना , लेख ,कसविा , फोटो , सवचार आखर के ईिेल-

    आईडी [email protected] पे भेज सकेनीं । ससुवर्ा खासिर रचना सहंदी

    यूसनकोड िें ही भेजीं । राउर रचना पासहले से कहीं प्रकासशि ना होखे के चाहीं ।

    मुख्य पृष्ठ छाया/आवरण : अहिमेष वमाा

    www.aakhar.com | facebook.com/Aakhar | Twitter : @aakharbhojpuri

    IऽऽN: 2395 –7255

    05 15

    25

    30

    39

    18

    35

    परामिा मंडल प्रभाष सिश्र , नाससक सरु्ीर पाण्डेय , दबुई अिलु कुिार राय , बनारस पंसडि राजीव , फ़रीदाबाद र्नंजय सिवारी , िुंबई असजि सिवारी , सदल्ली चंदन ससंह , पटना असिि सिश्र, डुिरांव बजृ सकशोर सिवारी , सोनभद्र राजेश ससंह , ओिान

    जँतसार देवने्द्द्रनाथ ततवारी

    सभखारी ठाकुर के नाटक आ भोजपरुी समाज डॉ० प्रमोद कुमार ततवारी

    28

    दखु आपन नूरैन अंसारी

  • च िंतन/ बत-कही

    कथा कहानी/ लघु कथा

    कचिता / गज़ल गीत स्थाई स्तिंभ

    सरेआम लटूल जा रहल बा भोजपरुी के अस्मत: पंकज

    भारद्वाज 15

    जतँसार : दवेने्र नाथ ततवारी 18

    उत्तर सच्र्ाई के जगु आ भावना के राजनीतत : पी० राज०

    तसंह 20

    भोजपरुी भार्ा के कतव लोगन के दृति में र्म्पारण : प्रो०

    तनत्यानंद ओझा 23

    तभखारी ठाकुर के नाटक अउर भोजपरुी समाज : डॉ० प्रमोद

    कुमार ततवारी 25

    महात्मा गाँधी अउरी मातटषन लूथर तकंग के वरै्ाररक संगम :

    गौरव तसंह 30

    ललका गलुाब: गजब के र्ोख, भवगर आ पतनगर तिल्म :

    नबीन कुमार 40 मनोहर के प्रेम कहानी : प्रीतम पांडे सांस्कृत 11

    नोकरी :प्रभार् तमश्र 13

    बथान : डॉ. रतसक तबहारी ओझा 'तनतभषक 17

    लइकी : मनोज कुमार 34

    नशामतुि :मनोज कुमार 35

    आपन बात 4

    बतकूर्न 5

    तर्त्रकथा 42

    राउर बात 44

    तनहोरा 45

    भोजपरुी तलख ेके सीखीं: शतश रंजन तमश्र 9

    रजा बनारस : शलैजा पाठक 10

    पतथक अनजान सिर के: हृतर्केश र्तवुदेी 10

    हम रौपदी : सरोज तसंह 28

    परजातन्त्र :प्रततक ततवारी 33

    तजतनतगया : अतलु कुमार राय 33

    गीत हो जाई : र्ंरभरू्ण पाण्डेय 37

    हमह ँखलेब होरी : जयशकंर प्रसाद तद्ववदेी 37

    गमी के महीना : अतलु कुमार राय 38

    दहजे : अवनीश पाठक 39

    दखु आपन : नरैून असंारी 39

  • आखर | मार्ष– अप्रैल 2017 | 4

    आपन बात आखर पररवार

    आखर चौपाल

    भो जपरुरया समाज के मन तमजाज में संगीत बसेला । जीवन

    के हर पक्ष में संगीत के जबरदस्त दखल दखे ेके तमलेला ।

    अपना सांस्कृततक नायकन के साथे भोजपरुरया मानस

    जवना स्तर तक जड़ेुला, ओकर दोसर उदाहरण शायद े

    तमली । एकरा बावजदू समाज के एह तवरासत पर संकट मँड़रा रहल बा ।

    संगीत दतूर्त हो रहल बा । तदन पर तदन सांतगततक पातकजगी पर कीर्ड़

    उछालेवाला तलखवैया, गवैया आ बढ़वैया के संख्या बढ़ल जा रहल बा ।

    बाहरी समाज भोजपरुरया संगीत के एह अधःपतन पर स्तब्ध बा बातकर

    भोजपरुरया समाज पर कवनो खास असर नइख े । वजह स्पि बा ।

    भोजपरुरया समाज अपना पहर्ान छुपावे लागल बा । संस्कृतत के लेके

    कवनो आग्रह नइखे ओकरा लगे । जे गंदगी कर रहल बा ओकर तवरोध

    नइखे हो पावत । आतखर कइसे होखे ? जेकरा गंदगी नइखे रुर्त उ आँख

    आ नाक दबा के तकनारे तनकल जाता । घड़ी भर खाततर भी उ अपना

    भीतर नइखे झाँकत । अगर झाँतकत त अपना ममाषहत आत्मा के उपेक्षा

    शायद ेकर पाइत ।

    आतखर भोजपरुी संगीत के ई ददुषशा भइल कइसे ? तजम्मेद्दार के बा ?

    भोजपरुी संगीत त गंगा जी के तनमषल, कलकल धार रह े। एह पतवत्र धार में

    नहइले तबना कवनो संस्कार परुा ना मानल जाव । कृतर् प्रधान भोजपरुरया

    समाज हाड़तोड़ पररश्रम करत घरी भी आनंद में रह े। समाज के रर्ना के

    आधार रह ेसंगीत । सम्बन्धन के तजवंतता के घोर्णा रह ेसंगीत । मलू्यन

    के पतवत्र पूंज रह ेसंगीत । दशेभति के ह कँार रह े संगीत । वेदना के स्वर

    रह ेसंगीत । सौंदयष के मादकता रह ेसंगीत ।साँर् कहीं त भोजपरुरया समाज

    संगीत से ही जानल पहर्ानल जाव । आज भी भोजपरुरया समाज संगीत

    के वजह से ही जानल जा रहल बा । अतंर इह ेबा तक काल्ह जहाँ अपना

    संगीत पर गौरव के भाव रह ेआज ओकर स्थान लज्जा आ घणृा ले लेले

    बा । ई बदलाव अर्ानक नइख े भइल । धीरे-धीरे भइल बा बातकर,

    सबकुछ आँतख के सोझा भइल बा । बाजार के आपन वसलू होला ।

    ओकरा मलू्य आ संस्कृतत से कवनो मतलब ना होखे । ओकर एकमात्र

    उद्दशे्य होला अतधक से अतधक मनुािा कमाइल । जवना समाज में

    ओकरा आपन प्रोडक्ट बरे् ेके रहलेा ओकर बतढ़या से अध्ययन क के उ

    व्यापार करे उतरेला । शरुुआत में कइ तरह के प्रलोभन दलेा । एह दौरान उ

    अपना क्षेत्र के तवस्तार करेला । अन्य सहायक शतियन के साथे समझौता

    करेला । जे प्रततरोध कर सकेला ओकर काट खोजलेा । र्ारो ओर से

    आश्वस्त भइला के बाद उतर जाला मैदान में । बटोरे लागलेा रुतपया ।

    तबना तर्ंता कइले तक रुतपया के स्रोत का बा ? भोजपरुी संगीत के बाजार

    ग्रस लेले बा । एकरा से मतुि खाततर एकरे हतथयार से एकरा के काटे के

    पड़ी । तनमन तलखवैया, तनमन गवैया आ तनमन बढ़वैया आगे आवस ।

    बदलाव लउके लागी ।

    जब भी भोजपरुी संगीत के बात आवेला, द ू गो नाम जेहन में उतरेला ।

    महेंदर तमतसर आ तभखारी ठाकुर । परम्परागत जाततगत सामातजक ढाँर्ा

    में दनु ूनाम द ूगो ध्रवु पर खड़ा रह े। दनु ूके लेखनी र्लल । सबसे आश्चयष

    के तवर्य ई बा तक हद दजाष के सामंती ढाँर्ा में रमल-जमल भोजपरुरया

    समाज के ई दनु ू तलखवैया जवन भी तलखलन ओमें कवनो जाततगत भा

    वगषगत तवमशष नइखे । तभखारी ठाकुर अपना रर्ना सन में बेर बेर अपना

    जातत के उल्लेख कइले बाड़न बातकर कहीं हीनता के भाव नइखे । ओजगुे

    महेंदर तमतसर भी अपना गीतन में अपना नाम के प्रयोग कइले बाड़न

    बातकर कहीं जाततगत अतभमान नइखे । भोजपरुरया तमजाज के इह ेतासीर

    हऽ । गीत संगीत समाज के व्यापक रूप से दखेलेा । महेंदर तमतसर आ

    तभखारी ठाकुर भोजपरुी संगीत के एह व्यापकता के आउर तवस्तार दबेे

    वाला नाम हऽ लो । तबरतहन, पे्रयसी, तकसान, गतृहणी, हास्य र्ररत्र,

    दाशषतनक आ खल र्ररत्रन के अदु्भत तवतवधता दखे ेके तमलेला एह लो के

    रर्नावली में । वतषमान दौर में संगीत में िइलल अश्लीलता आ िुहड़पन

    के करारा जवाब दबेे खाततर हमनी के एतह द्वय के शरण में जाये के पड़ी ।

    उ ह नर तसखे के पड़ी जवना से ई दनु ू सांस्कृततक योद्धा लगभग परुा

    परुतबया समाज के आपन दीवाना बना लेले रहलन ।

    गेह ँ के बाली अनाज से लद र्कुल बा । छठ पजूा आ नवरातत्र के उमंग

    तसर र्ढ़ के बोल रहल बा । सभे आध्यात्म आ भति के खमुारी में डूबल

    बा । आम के मंजर आ मह आ के कोंर् ए खशुी में शमुार होके मदमस्त हो

    रहल बाड़न । परुुबी बयार के अलगे खमुारी बा । कुल तमला के

    भोजपरुरया समाज आनदं आ उत्सव के अततरेक में बा । अइसन समय में

    आखर आपन सन्यिुांक लेके रउआ सोझा बा । सातहत्य के उह ेतवतवधता

    एह अकं में बा जवना तवतवधता आ आकर्षण खाततर भोजपरुरया तमजाज

    जानल जाला । तवश्वास बा हमेशा खानी राउर आशीवाषद प्राप्त होई ।

  • आखर | मार्ष– अप्रैल 2017 | 5

    बतकूचन– 23 सौरभ पाण्डेय

    सचंिन/ बिकही

    गा ँव से र्लत घररया तबसेसर के ई गमुान ना रह ए जे परदसे के मान े का होला ? खलसा तदल में ना तदमगओ में धकुधकुी बनल रह।े बातकर सङहीं के सटल-बनल र्ार-पाँर् गो तजतनतगयन के डबर

    -डबर ततकवत आ ह कह के तजयत आस कवनो तजम्मेवार मनई खाततर

    अपना पेट के आतग ले ढरे बड़ जारन होले। एगो तजम्मेवार कान्ह से

    लटकत अइसने आस-उमेद एगो पररवार बनावेले। हालत आ हालात के

    अछछ भ गइला प मरुआइल मन के झकझोरत ‘अब कुछ करहीं के परी’

    के होसगर तबर्ार ओह तजम्मेवार मनई के कान्ह र्ाकर कइले रहलेे।

    र्ाकरे कान्ह प तजतनगी के जआु धराइल रहलेा। तबसेसर गोंड़ अइसन े

    तजम्मेवार मनई हवे।

    परदसे तबदसे भा कवनो दोसर दसे ना होला। ना ई लमहर दरूी प बसल

    कवनो जगहा से जानल-जनावल जाला। ईहो हो सकेला, बातकर परदसे

    ऊह ेभर ले ना हऽ। परदसे में भइल भा रहल एगो भाव हऽ, आपन समाज-

    जवार से दरू अनतर्न्हारा समाज में रतहवासी होखे के भाव, अइसना

    कवनो समाज के अजनतबयत से उपजल मन में उठल छटपटी के भाव।

    आ कहल जाव, त अपना-अपना तहस्सा के परदसेन में भोजपरुरया लोग

    पाढ़ी दर पीढ़ी रहत आ गजुारत र्लल आइल बा। ई पेट के आतग होखो,

    भा अपने लोक-समाज में के ऊँर्-नीर् के ससुनुत ताव होखो, एगो अबर

    मनई के हर तरीके लर्ार बनावत रहल बा। द ूपइसा कमाए के ‘जरूरत’

    भोजपरुरया जवान का कपारा अस ना नार्त रहल बा, जे ओकरा खाततर

    कवनो परदसेवे के भरोसा रतह जाला। जमाना भइल, एक सम ै ई परदसे

    रंगनू आ कलकाता भइल करे। आजकाल के परदसे पंजाब, मुंबई आ

    सरूत भइल बा। आ मनई ततनका खँखरत पररवार से होखो, त ओकर

    परदसे दबुई भा दतुनया के कवनो दसे हो जाला। बातकर अपना-अपना

    तहस्सा के परदसे हर ऊ अमदी तजयेला जेकरा लगे द ूपइसा जोरे के जरूरत

    छछाते ठाढ़ लउकत होखो। ना त रउए कहीं, आपन घर-दआुर, दर-समाज

    में बनल रहला के सखु का आगा का कवनो इन्रसन होई ? पाछा हने ेमनई

    के गरै मौजदूगी में मतहनन-मतहनन बढ़ू के पाकल त बार्ा के काँर् आँतख

    दअुरे टङाइल रहलेे। आ ऊ मनई जवना के भतार होला, ओह मेहरारू के

    आँतख त अपना परदसेी के तनकहा वापसी के मनता माङत, राह जोहत

    पथर के गोट भइल रहलेे। हालत ई हो जाला, जे ऊ मेहरारू अपना

    अङनवें-ओसारा में एगो परदसे तजयत-भोगत लसरत र्लल जाले। ना

    ओकर आँतख के लोर बझुाला, आ ना कबह ँओकर आँतख सखुाले।

    तबसेसर रेलगाड़ी में आपन सीट खाततर हलकान भइल रहले। गाड़ी

    ‘सद्भावना’ रह।े तवना प जनरल तडब्बा ! प्लेटािारम प ‘सद्भावना’

    लागल ना तक ओह में ढूके खाततर जइसे परूा मार ठन गइल। अर्के में

    जइसे ठेलम्ठेली मर् गइल। धसोरा-धसोरी, गारा-गारी, तर्तर्यात-ललात

    मार थकु्का-िजीहत के हहे बरेा में तबसेसर आपन िोमवाला बगै आ

    सतुतया झोरा के कोरा में जँतले धँसोरात, ठेलात तडब्बा में जबरी अमा

    गइले। तडब्बा के तभतररयो केह के केह खाततर कवनो सद्भावना ना

    लउकत रह।े उनकर आँतख िरहर भइल तनकहा कोना भा टेकन जोह े

    लागल। सीट के उपरा वाला रेक प धइल बैग-बक्सा का पाछा ततनका

    जगह बझुाइल। तबसेसर आव दखेले ना ताव, लाम-लाम टापत, एक्के

    हाली में िानत रेक प र्तढ़ गइले। आ अपना समेटत-सतहषयावत ओइजे

    र्कूु-मकूु अड़ँस गइले। उनका मालूम रह,े जे गाड़ी जब मोसन बना लीही

    त ईह ेअतँड़सल काम दीही, आ तनकहा पलथी मारत िइल के बइठे के

    तमल जाई। नीर्े के सीटवन प कूतलयन के ठेका रह।े ऊ खातलस नजायज

    रह ेत का हऽ, एकैक सीट पर्ास रोपया में बरे्ात रह।े कीने वाला तकनते

    रहले। कुछ खास लोगन के, जे सीट पा गइल रहले, छोड़ तदयाव त

    अकसरहाँ लोग तडब्बा में गते-गते अतँड़सल रहले। आ ज ेजाना तखड़की

    वाला सीट पा गइल रहले, ऊ जाना त सरग के आनन्द में तबभोर रहले।

    हनेे तबसेसर सोर्त रह अन, जे दइबा, तडब्बा में मर्ल एह डोमकर्इयों में

    अमदी अपना-अपना तहसाब से बड़, छोट आ लसराहा के भेद क लेले

    बा ! ऊपर रेक प बइठल तबसेसर र्पुर्ाप नीर्े के होत कूतल्ह कारबार

    दखेत जात रहलन। तबना कवनो बाउर-नीमन के सान प र्ढ़वले। उनका

    मालूम रह,े जे अइसना में तदमाग ना र्लावे के। कूतल्ह तर्ल्लपों कवनो

    तजयत तसनेमा अस तबसेसर के सोझा र्लत जात रह।े कपारा तजय ेप बतन

    आवेला त मनई के बेवहार आ संस्कार से धेयान हतट जाला। ई बततया

    अइसना सिर प तनकलल लोगवे खाततर साँर् नइखे। भोजपरुरया समाज

    के लोगन के मनोदासा आ सोर् प ईह ेबततया हावी रहल तबया, जवन

    अब एगो र्लन के तौर प आम हो गइल बा। ‘जा ना अपना घरे बड़का

    होतखहऽ, हमार कुछऊ कबार ना लेबऽ’ के दरुदरुाई के सभले बड़ कारन

    समह त समाज के अछछ गरीबी में तजयत-बीतत तजतनगी हऽ। बातकर, एगो

    भोजपरुरया मनई मन से तनकहा भावकु भइला के कारन पक्का समाजी

    होला, ईहो बात ओतने साँर् हऽ। आध-पौन घटंा ना बीतल होई, कूतल्ह

    हाहोमाई-हाहोजाई आस्ते-आस्ते अतस्थराए लागल। घटंा भर प गाड़ी

    डोलल। आ गाड़ी के र्लला अबहीं दस-पनरह तमनट ना भइल होखी,

    तडब्बा के लोगन में राम-रहीम होख ेलागल। िलनवा ‘कवना गाँव के हवे’

    पछुाए से जवन ना नातेदारी सरुु भइल, आतक माहौल समरस होख े

    लागल। होखहीं के रह।े सिरी लोगन के ओह भीड़ में कवन जाना ‘बावन

    तबगहा में पोदीना’ रोतप के गाड़ी धइले रहले ? सभके तभतरी त एके सोर्

    रह,े आपन-आपन तजतनगी, आपन-आपन पररवार र्लाव े के बा, र्ाह े

    जवन कुछ ना करे के होखो..

  • आखर | मार्ष– अप्रैल 2017 | 6

    ई जवन लोग कहलेा जे शहररयन के मोह में गाँव के लोग मताइल बा आ

    एही कारन ेगाँव के गाँव खतलयाइल जाता, ऊ सोझ साँर् नइखे बोलत।

    कतना परुतबया भाई सँर्ह ँके शहर जी रहल बाड़े ? शहर के मोह ओकरा

    का होखी जे शहर में रहतो आपन गाँव जी रहल बा ? शहररयन के

    मोहल्ला में आपन-आपन गाँव, आ ना त आपन जवार, तजला जगवले

    आ जोगवले तजयत मनई के गोल का शहर के र्कार्ौंध में जीही जी ?

    गाड़ी अब ले परूा मोसन में आ गइल रह।े बात प बात तनकले लागल।

    लाल बशु्शट वाला भाई के सउँसे बार पाकल रह।े ओकरा भासा में

    शहरीपन त रहबे कइल, भोजपरुरयो बोले त बड़ा निासत से। बझुात रह ए

    जे ऊ बररसन से शहररयन के रतहवासी हो र्कुल बा। बसेसर ओकर

    परभाव आ धमक से तर्ंहाँइल रहले। ऊ अमदी एक हाली ओजगुा बइठल

    -अतँड़सल सभ से मुँहा-मुँही हालर्ाल पछूत जात रह ए। तले खखँारत

    ह ड़कला अस बोल परल - ‘अरे भाई, ततनका र्ाकर ना हो जा लोग..

    अब ता गाँव-जवार छूटल.. र्लऽ हो मन घर आपन.े.’

    ‘का कतह तदहलऽ ए भाई, घर आपने ? .. कतनो तदन-बररस ओजगुा बीतत

    जाओ, घर त बाब ू गँइये रही। ऊह े गँइया जहवाँ के माटी-पानी लागल

    आपन-आपन काठी के तजयवले बानीं जा..’ - ई ततनका पौढ़ अइसन

    बातकर अबहीं िरहरे लउकत दोसर जाना बोलले।

    ‘बात त भाई तूँ अपना तहसाबे सतहये कतह रहल बाड़ऽ.. ‘ - िेर ततनक

    अतस्थराह े बातकर अपना बोतलये से धमकत पछुलस - ‘का नाँव भइल

    तहार ?’ - कह ेके ना, जे एह सवाल के अवाज में तनकहा रुआब रह।े

    ‘तमसरी.. तमसरी कमकर.. ‘ - कहत ना कहत तमसरी के अवाज सपाट

    अस हो गइल। ततनका थथमते ना थथमत िेरु ऊहो ईह ेसवाल पछुले -

    ‘रउआ का कहानीं भाईजी ?’

    ‘रुरप्रताप तसंह !’ - ऊ आँख में गतहरे ततकवत बोलले - ‘ओइसे गाँव से

    लेले इहवाँ रोतहल्ला.. आ होने मानेसर ले हमरा लोग ठाकुर साहबे

    कहलेा..’ - तमसरी के नाँव पछुला प ठाकुर साहबे के रुआब साि बझुात

    रह।े ठाकुर साहबे अपने रौ में बहत अपनहीं पररर्य दबेे लगले - ‘हम मैन-

    पावर सप्लायर हई.ं. ओजगुा साएद े कवनो इण्डस्री भा िैक्टरी होखी

    जवना में हमार बीस-पर्ीस जवान काम नइखन करत..’

    ‘आछा ? .. रउआ आपन पररवार कहवाँ छोतड़ आइल बानीं ठाकुर

    साहबे ? गाँवहीं ?..’

    ‘ना .. पररवार त ओजगु ेबा.. रोतहल्ला सराय में.. बलुक हमहीं महीना में

    एकाध र्क्कर एने के लगा लेवेनीं। गाँव के गाँव हो जाला आ आपन धंधा

    -पानी के उतजोग बनल रहलेा..’

    ‘मने राउर पररवार के लोग, लइका-िइका हाल्द ेएने ना आवेला लोग..

    ना ?’

    ‘कूतल्ह शहरी हो गइल बाड़न स महराज।.. अब हमनी के जले बानीं जा

    तले गाँव-घर, नाता-जवार, पर-परोजन र्ल रहल बा.. आगा राम जानस ु

    के कहवाँ रही.. भा तबलाई..’ - ठाकुर साहबे के अवाज में से ििनत आह

    के तींत ओजगुा बइठल आ एह बतकही के र्ोपर्ाप सनुत सभ के बझुात

    रह।े तमसरी कमकर के ताड़हीं के रह।े

    ठाकुर सहबे आपन भाव के सहारा जोहत वातपस पछुले - ‘आ तहार

    पररवार कहवाँ बा हो तमसरी ?’

    ‘गाँवहीं बा ठाकुर साहबे..’ - िेर आपन कहल्का के सतहषयावत तमसरी

    बोलले - ‘शहररया में बेकत लोगन के ले आवे के बेंवतओ त होखे के न ू

    र्ाहीं !.. शहर के िहिही में कतहीं पतूा लोग उतधयाये लागल, त जवनो

    द-ूर्ार बाँर् रहल बा हावा होख ेलागी..’

    ‘ई त हइये हऽ..’ - ठाकुर साहबे आपन आह आ तहया के दरद के ओट

    दते आपन तकष दवेे लगले - ‘गाँव में त आज ुऊह े रतह जाता तमसरी,

    जेकरा कवनो उपाय नइखे रतह गइल। भाए.. नोकररहा समाज के लइका

    पतढ़-लीतख के कमाय-ेधमाये ना तनकतलहें, त का अपना घरवा के रोटी

    तूररहें ?.. ना न ू?’

    ‘ई त बड़ले बा..’

    ‘तबह ँहम बता दीहीं.. भलहीं हमार ढगं गँइयाँ से ततनका बदल गइल बा,

    बातकर हमरा से आज ुले कवनो जाना, र्ाह ेपंडीतजये लोग काँहें ना होखो,

    रंग भदसे ना करे लोग..’ - कहत ना कहत ठाकुर साहबे के दतहना हाथ

    अपनहीं आप तलवारी मोंछ प र्तल गइल। ऊ लगले ओकरा गमे-गमे िेरे

    - ‘त ईहो हऽ, जवन जाना आज ु के पातल्टस से ‘छुआइल’ ततनतकयो

    बहकल लोग, त आजओु हम तनकह े ह रमरू् दनेीं !.. आजओु मान े

    सौ रभ पाण्डेय जी के पैतृकभूमि उत्तरप्रदेश के बमिया

    जनपद के द्वाबा पररक्षेत्र हऽ ।

    रउआ पचीस बरीस से सपररवार

    इिाहाबाद िें बानीं । मपछिा

    बाइस बरीस से राष्ट्रीय स्तर के

    अिग-अिग कॉपोरेट इकाई िें

    काययरत रहि बानी । आजकाि केन्द्रीय सरकार के पररयोजना

    आ स्कीि के संचािन खामतर एगो व्यावसामयक इकाई िें

    नेशनि-हडे के पद पर काययरत बानी । परों को खोिते हुए

    (सम्पादन), इकमियााँ जेबी से (काव्य-संग्रह), छन्द्द-िञ्जरी (छन्द्द-

    मवधान) नााँव से राउर ककताब प्रकामशत हो चुकि बाडी स ।

    सामहत्य के िगभग हर मवधा िें रउआ रचनारत बानीं आ महन्द्दी

    आ भोजपुरी दनूो भासा िें सिान रूप से रचनाकिय जारी बा ।

    सामहमत्यक संमिप्तता के दोसर क्षेत्र बा - सदस्य प्रबन्द्धन सिूह ई

    -पमत्रका,”ओपनबुक्सऑनिाइन डॉट कॉि’; सदस्य परािशयदात्री

    िण्डि तै्रिामसक पमत्रका ’मवश्वगाथा’ ।

    सौरभ पाण्डेय

  • आखर | मार्ष– अप्रैल 2017 | 7

    आजओु !.. नीमन-नीमन टाङर लोग हमरा से थरुइला प गाँव छोड़ दलेे

    बा.. ‘ - ई कहते-कहते ठाकुर साहबे के नथनुी ढबरा बेंग अस िूल गइल।

    र्लत बतकही में रस लेत आ एकैक शब्द के काने ओड़त ओजगुा सभ

    ‘ह-ँना’ करत समथषन में मड़ूी तहलौले जात रह।े होने, तबसेसर उपरा रेक प

    से द ूतिया के बीर् के बतकही सनुत आपन ‘हाल’ आ घर के ‘बेहाल’ के

    तौले प लागल रहले। बतहरी कमाए केह ना तनकली त खाई का आ तजयाई

    का ? बातकर एह र्लत बतकही में ऊ अपना ओर से कुछऊ जोरले ना।

    कवनो इस्टेसन प गाड़ी रूकल रह।े तखड़की प बइठला के भाव में आ

    अबतहयें-अबहीं आपन बोलल्का के ताव में प्लेटिारम प लउकत एगो

    लइका के ठाकुर साहबे र्ाल परले - ‘अरेः ! .. ना हनेे सनुलेा !.. अरे

    लइके, ले हई बोतल.. एह में पानी भर ले आउ त !.. ‘ - ई कहत ऊ

    तमरण्डा के द ूलीटर वाला बोतल बढ़ा तदहले। के जान ेओह लइकवा के

    का बझुाइल, ऊ उनका हाथ से बोतल ले तलहलस आ एक झटके में

    उनका मुहँ तबरावत, आ जीतभ दखेावत र्लल भातग। ठाकुर साहबे के एह

    भइला के इतर्को अदंाजा ना रह े! ऊ ‘अरे-अरे..’ करत रतह गइले। तले

    अतने में गाड़ी टान तदहलस। सभ ेलागल हें-हें हें-हें करे। हसँी थमले ना

    थमाय। ठाकुर साहबे कहवाँ आपन बोली के रुआब दखेवते, तले लगले

    आपन लाज तोपत सिाई दबेे - ‘इन्हनीं के ? .. इन्हनीं के त रोजीना सबुह

    -साँझ ततबयत से थरुकूर् ेके र्ाहीं.. सरवा के हमरा लेखा अदमी से पले

    ना परल होई। ना त आज ुले ऊ बार्ाराम सँस्कारी भ गइल रतहते।’

    एह प ओइजा बइठल लोग मुँह खोल के लागल ठहाका लगावे। आ हसँी

    ततनका सम्हरल, त पारापारी सभ ेआपन-आपन लागल बधूी बततयावे।

    ‘आ जाये ना दीहीं.. ओकरा अतने लूर रतहत त का ऊ सरवा का मुँह

    तबराइत, जीभ दखेाइत ? .. मारी होने, बदमास रह ेससरुा..’

    ‘आउर का ? बाबसूाहबे तपयासे त रतहये गइले, अभगवा द ूलीटर आला

    बोतलओ ले भागल..’

    ‘ई त बड़ले बा.. बातकर, ईहो बा न,ू कुछऊ माँगहीं के रह,े भलहीं पातनये

    काहें ना होखो, ततनका तनहोरे बोलेला न ू ? रउआ त लगनीं एके हाली

    ओकरा रे-बे करत रेघारी पारे..’

    ठाकुर साहबे ई सनुते तर्ंह कँ उठले - ‘बाब ूतहरा मालमू नइखे, हमनी के

    भभकत आतग प मतेू वाला लोग हई ं जा, तनहोरा ना करीं जा.. सरवा

    भागल त भागल, हमार करम आ तकस्मत ना न ूले भागल !.. आगा िेर

    एगो बोतल तकनाई..’

    तबसेसर के मन घर छोड़ला के मारे मरुआइल रह ेत का हऽ, एह कूतल्ह प

    हसँी त बरले रह।े बातकर उनका सभन सङे समह ते हसँल ना रुर्ल। ई

    जरूर रह ेजे एह बततया प उनका आपन छोटका मन पर गइल रह।े ऊहो

    बड़ उत्पाती हऽ। तबसेसर के मन ओकर इयाद पारत आउर नम भ गइल

  • आखर | मार्ष– अप्रैल 2017 | 8

    रह।े के जाने छोटका आगा का करी ? गाँव के लइका, ओकरा खाततर

    आगा का लेके सोर्ल जाव ? के सोर्ी ? सोतर्य ेके का होई ? ढेर होखी

    त दरोगाजी के भाठा प ऊ माटी ढोई ! आ ना त जनादषन राय मतुखया के

    खेते मनरेगा के ओट में गदहा लेखा खटत रही ! आ नाँव होई जे खरंझा प

    माटी तबगे के हतना हजार खार्ाष भ गइल ! तबसेसर के मन ई सोर्ते

    करौंना खइला अस हो गइल। ऊ लगले मनहीं तर्र्री पारे - ‘दइबा जीवन

    बनवले रहस,ु आ तनकह े तजयावस,ु घर से तनकलल हमार सकुलान

    होखो.. त कूतल्ह बेकत के त ना, बातकर छोटका के अपना सङे लेइये

    आइब। ऊ द ू अच्छर पतढ़ लीही त ओकर तजतनगी अपना उठान प

    कमसेकम तबसेसर अस लोगन के तजतनगी लेखा असहाय त ना लउकी..’

    तबसेसर तनर्वा तकले त गते-गते लोग गँजाइल लउकले। र्लत गाड़ी के

    मोसन में बतकतहयो उिान प रह।े तीन-र्ार लोगन के गोल बझुात रह ए जे

    जमनुापार के हऽ। घर, कमरा तकराया, तबजली, पानी कूतल्ह प बात

    तनकलल रह।े

    ‘धरु मरद.े. जतना में गँइयाँ के कवनो घर के तपछवाड़ा वाली तखड़की

    होले, ओतना में त उहवाँ परूा मकान बन जाला। आ उन्हनीं के ओही के

    वन-रूम-सेट कहलेन स !’

    ‘तबका..’ - तमसरी कहल्का के समथषन कइलन।

    ‘एक ितजरे से जे पानी के लाइन लागेला ओकर तुलना त होइये ना सके !

    कतहीं तदन के तबर्ही पानी ओरा गइल त िेर बाँर्ल तदन भर पानी

    खाततर छछनत तिरऽ..’

    ‘ईह ेत हमनी के शहर हऽ !.. आ लोग कहलेा ज ेशहरी र्कार्ौंध से गाँव

    के लोग मताइल शहर का ओर पलायन कर रहल बा..’

    ‘जेकर जलवा बा ए भाए, ओकरा खाततर त सर्की र्कार्ौंधे वाला शहर

    बा..’

    ‘बातकर ई भाग के िल सभ केह के ना न ूतमले..’

    ‘गाँव में जवन बाउर बा, ऊ त बाउर बड़ले बा। एह शहररयन में भभका

    मारत गली-सड़क काँहें बा जी ?’

    ‘ई त बड़ले बा.. आ तवना प गान्ही जी के कहनाम, जे, भारत गाँव में

    बसेला, आ रहलेा। जा हो करम ! जवन ई भारत के बसावट हऽ त नरक के

    बसावट का कहाला ए भाए ?’

    ‘ऊ जमनुापार कहाला..’

    एक हाली िेरु सभ के बीतर् में हसँी के ठहाका लाग ेलागल। बझुाय जे

    कूतल्ह परेसानी सोर्ला भर के बा ।

    तबसेसर के मन भइल जे ऊ उपरे से बइठल-बइठल भर मन तर्करत पछूस,ु

    जे जवना जगतहया के ऊ लोग र्र्ाष क रहल बा, ओइजा का दोसरा लोक-

    ग्रह से प्रानी आइ के बसल बाड़े ? ना न ू? त िेर ऊ लोग केकरा प हसँ

    रहल बा ? जब ओइजा रह ेलागल लोग, त ऊ केकर भइल ? जले रहो

    लोग भले तबहीं ले, कम-से-कम साि सथुरा त कके, पानी-ओनी के

    इतंजाम कके रहो लोग ! हसँल, आ बात के हल्के में उड़ावल त बड़

    असान होला ! बातकर तबसेसर र्पुाइले परल रहले। गाड़ी अपना र्ाल में

    बढ़त जात रह।े ओही र्ाल में तबससेर के तदमगओ र्करतघन्नी भइल रह े-

    ‘का बाउर बा ? गाँव के हालत आतक शहर के ताकत ? ताकत ऊ, ज े

    कतनो अबेवस्था काँहें नइख ेिइलल, शहररयन के औकात बढ़ले जाता।

    गाँव-घर से आइल आ पेट आ पररवार तजयावे के करम ेओजगुा बसल

    मनई से ई शहर का-का नइखे हसँोथ लेत ? जवना हाथे हर आ खरुपा के

    मूँठ भइल करेला, ई शहर ओकरा हाथे रेक्सा के हैंतडल, आ ना त कवनो

    मशीन के कल धरा दतेा। ई शहर तकसानी-पगड़ी के मजदरून के पोशाक में

    बदल दतेा। ई शहर र्ाकर-लाम काया के जवानन के तसकरुटी गाडष के

    टोपी पतहरा दतेा। ई शहर सोझ साि सोर् में तजयत मनई के कुछहीं तदन में

    भारी घाघ बना दतेा। बातकर अतनो प गाँव-दसे के औकात नइखे, आ ना

    हालत बड़ुए, जे अपना पतूा लोगन के वातपस बोला लीही, जे आव जा

    लोगे.. हमरो लगे रोटी तबया.. एक बरोबर के काम बा.. हर घर के बड़का-

    छोटका खाततर साँर्ह ँके इस्कूल बा.. ..

    सोर्त-सोर्त तबसेसर के अतँख के कोर ओद होखे लागल। ऊ बलाते

    आँतख मूतँद तलहले। गाड़ी परूा बेग में भागल जात रह.े. ओही शहर का

    ओर जहवाँ कूतल्ह बा आपन गाँव के नइख.े.

  • आखर | मार्ष– अप्रैल 2017 | 9

    कविता / गज़ल गीत

    शतश रंजन तमश्र

    भोजपरुी लिख ेके सीखीं

    भइया हो ! भोजपरुी तलखऽ

    तहन्दी काह ेतहनतहनावत बाड़ऽ !?

    भासा भाव के भेव बझुऽ

    गाय भईसं के तसंघ काह ेतमलवत बाड़ऽ !?

    बोललका तलखलका में

    भेव काह ेभाई

    जइसन बोलबऽ जबानी

    ओइसने न ूतलखाई

    कभी भी के तलखऽ कब्बो

    जब भी के जबे जब आ जब्बो

    तिर भी आ तब भी तहन्दी हऽ

    एकरा के तलखऽ तब्बो

    जब तक आ तब तक में

    तक के बदल द ले से

    जबले तबले भोजपरुी ह

    तलखाला कहले के

    ईल प्रत्यय लागल शब्द में

    इल के राखीं धेयान **

    स्वर के उतार र्ढ़ाव

    के तलखीं जइसे बा बेयान

    तकन्त ुपरंत ुलेतकन के

    छोड़ के तलखीं बाकी (र)

    यहीं वहीं खाततर

    एतहजा ओतहजा राखीं

    ही आ भी के परयोग से

    भोजपरुी पर तहन्दी भारी

    एह िें ट िांट के छोड़ीं

    भोजपरुी के सधुारीं

    तमतसर ही कतवता कहीहें

    गलत बा उपयोग

    तमतसरे कतवता कहीहें

    सनु्नर बा परयोग

    तमतसर भी कतवता तलतखहें

    तहन्दी भोजपरुी के मरेांव

    तमतसरो कतवता तलतखहें

    सुंदर सहज बा भाव

    गते गते सेंहो सेंहो

    भासा बझुीं सररयायीं

    बोले पढ ेआ तलखे में

    ईतर्को जन अझरुायीं

    सोजहग सरस पानी के

    धार ह भोजपरुी

    आपन अलगा भाव लपेटले

    परुवैया बेयार ह भोजपरुी

    ** भोजपरुी में ‘ईल’ प्रत्यय के मनाही बा । कइल , धइल, गइल जइसन

    शब्द में ‘ईल’ के जगह ‘इल’ के परयोग सही ह ।

  • आखर | मार्ष– अप्रैल 2017 | 10

    ज बले रहलीं तबले ना परेम कइला । अब जब भीड़ क तहस्सा

    हो गयल हई त मुँह उठवले रोजे याद आ रहल हउवा ।

    अम्मा कहते मर गइली तक गलुगप्पा दोसा खा ला जेतना

    मन हो िेर कवन ेदसे ले जाए तकस्मत ।

    कब्बो कब्बो त गल्ली गल्ली आवाज लगावेला । तदनवा भर कंर्ा खलेत

    बीतल कौन यार काउन दोस्त के पानी सरकल हमहन ेतरुते्त कही सरवा

    मोहतसनवा होइ ।

    बड़ी गड्ुडी उड़े बड़ी बजार में । नख से हरमेसा हथवा कटल रह े। परेती पर

    अपने नाम क मंझा लपेट कुल लइकी सब का जन ेकवने डोरी से बन्ध

    गइली । महानगर क हथेली में समन्दर का नमकीन पानी पड़ेला त खबू

    भरभरला याद ।

    गलुगप्पा वाले गइले पे पहर्ान लेवेलन । कहो दीदी दइु जने बच्र्ा हउवन

    तोहरे । मररयल लइका दोना बनावत गलुगप्पा वाले के लइका । टीबी

    भइल रह ेदीदी । इलाज र्लत ह ।

    सनसनात ररक्शावालन क बह ते याद परेला । स्पीड जबबदषस्त भले कमर

    टूट जाए । कर्र कर्र पान ।

    बकर बकर बततयावत कहाँ से कहाँ पैदल पह रँ् जाई हमहने ।

    सहरो क करेजा होत होइ न । कब्बो बोला लेता राम जी । नकटैया क

    काली माई तोहरे साथै त केतना तलवार लड़वले रहली

    जहाँ भेजल गयल हनै लतड़की मनवा लतगए जात ह । पर ई जवन बोडष

    परीक्षा क हवा गरम र्लत ह ऐ समय हमहने खबू बाल्टी डब्बा से मट्टी क

    आँगन तभगवाल जाय

    जनात ह महक उठल ह ओहर एहर ह क

    कब्बो कहता करेजा क टुकड़ा रहलु काह ेदरू र्ली गइलू

    सोशल साइट से

    रजा बनारस

    शलैजा पाठक

    ई त्रिर्गुि र्ीत स्वo बीरेंदर त्रसिंह "धगराि" के हमरा तरफ से एर्ो श्रद्ािंजत्रि बा।

    हरेत-हरेत ए सतखया, गईनी हम हरेाई,

    नदी बीर् हरेर ना पवनी बनू एक गईल हरेाई ।

    ए सतखया हरेत-हरेत गईनी हारर ॥

    र्मकत सरुुज आकासे बतुड़हें , बतुड़ जइहें दइुजी के र्ान,

    रात अन्हररया डगररया भलुाई , भतूल जइह ैगरब-गमुान ।

    एक त पतथक अनजान डगर के , दजेू नाहीं बतुद्ध तगयान,

    तीजे नाहीं प्रीतम के रंग-ढंग जानल , कइसे के होई तमलान ।

    कंर्न-कंर्न रटत रहनी, कंर्न बतन गईल छार,

    “ऋतर्” तसंगार काम नाहीं आईल, छूटल जब संसार ।

    हृतर्केश र्तवुदेी

    पलिक अनजान सफर के

  • आखर | मार्ष– अप्रैल 2017 | 11

    प्रीतम पांडे सांस्कृत

    मनोहर के प्रमे-कहानी कथा-कहानी

    पे्र म के डोरी अइसनहोला तक ओहमें बन्हा गईला पर िेर छूटे के मन

    ना करे । आदमी लाख जतन कर लेबे बाकी बह त मतुश्कल होला

    इ डोरी के तुरल । अइसने कुछ भइल रह ेहमरा गाँव के मनोहर संग े

    जब गाँव के लईका , बच्र्ा आ बढुवा प्यार के माने मतारी के दलुार आ

    बतहनी के राखी बझूत रहलें तब ओही समय मनोहर के मन आइल रह े

    बगल गाँव के कलावती पर । दनु ुजना के भेंट भइल रह ेिगनुी तशवरात्र के

    मेला में । मनोहर अपना िटितटया से अपना छोट भाई के लेके मेला

    गइल रहलें आ कलावती अपना सहलेीयन के साथे आइल रहली ।

    मनोहर अपना िटितटया के नीयत ठेकाना पर लगावे जात रहलें आ आगे

    कलावती र्लत रहली तब तक तनी तनगाह गड़बड़ाइल मनोहर के आ ऊ

    जाके कलावती के ठोक दहेलें । तगर गईली कलावती आ भाग र्लले

    मनोहर । खरै जादा र्ोट ना आइल बाकी कलावती मनोहर के दखे लेहली

    आ उनका के तर्न्ह गईली । अब मनोहर भाग के एगो आईसक्रीम के

    दोकान पर पह रँ्ले आ संजोग से ओही दोकान पर कलावती पह रँ्ली ।

    उनका के दखेते ऊ आगबबलूा हो उठली आ तीन र्ार थप्पड़ उनका गाल

    पर रख दहेली बाकी जवाब में मनोहर एक शब्द ना बोललें । शायद

    कलावती के जवना बेरा र्ोट लागल ऊहो उनका के दखे लेले रहलें र्ाह े

    उनका इ बझूाइल होई तक भरल बाजार में कवनो लईकी अईसही थप्पड़

    ना मारी । ऊ र्पूर्ाप अपना भाई के मलाई खरीद के र्ल दहेलें ओजा

    से , आ एन ेकलावतीयो खीस में हट गइली । मनोहर आ गईले घरे बाकी

    उनका आवे से पतहले गाँव में एह बात के र्र्ाष गरमाइल रह ेबाकी शांत

    लईका हऊअन , ई सोर् के केह उनका से कुछ ना पछूलस एह तवर्य में ।

    तदन बीतत गइल आ होली तनयरात आइल । मनोहर अब होली के समान

    आ कपड़ा खरीद ेर्ल दहेले बाजार । जब ऊ सब सामान खरीदला के बाद

    कपड़ा के दोकान पर पह रँ्ले त सामनही कलावती के दखेले आ दखेते

    लौटे लगलें बाकी कलावती उनका के ऐ सनुऽ कहके रोकली । रोक गईले

    मनोहर आ कलावती आके उनका से मािी माँगे लगली तक ओह तदन

    गलती भइल भरल बाजार में तहरा के थप्पड़ मार दहेनी । हमरा अतना ना

    खीस रह ेतक तहरा के दखेते हमार खीस आऊर बढ गइल आ हम तहरा के

    मार दहेनी । हमरा के माि कर द । अब मनोहर बाब ूतनी गंभीर भईलें

    बाकी उनका मुँह से कुछ तनकलबे ना करे । कलावती के मािी माँग लेला

    से उनकर बोलती बंद हो गइल रह ेबाकी आपन परूा बल लगाके पछूलें -

    तहरा र्ोट ना न ू लागल रह े । अतना सनु के तखलातखला के हसँली

    कलावती आ उनकर मुहँ ताकत रह गईले मनोहर । जब ऊ अपना ओरी

    मनोहर के तनहारत दखेली त सम्हार के कहली - ऐ का दखेतारऽ । हमरा

    र्ोट ना लागल रह ेबाकी त ूओह तदन कुछ कहलऽ काह ेना जब हम तहरा

    के थप्पड़ मरनी ।

    भीतर से रो दहेले मनोहर बाकी हसँ के कहलें- हम तहरा के र्ोट पह रँ्वनी

    आ त ूहमरा के मरलू तब हम का कहीं । हम एहीसे तबना कुछ कहले र्ल

    अईनी । घटंा भर द ूगो अजंान आदमी बततआवत रह गईले तबना कवनो

    पता-पररर्य के । जब समय के अहसास भइल तब र्ले के तईयार भईली

    कलावती । पीछे से आवाज दहेलें मनोहर - आरे खरीदारी ना कर ब ूका

    ।आवाज सनु के लौट अईली कलावती । आके कहली तक खरीदारी होई

    काल्ह । अब जातानी घरे , बह त दरे हो गइल बा । इ कहके जब र्ले

    लगली तब रोक के उनकर नाम पछूलें मनोहर । मसु्कुरा के कहली

    कलावती , काल्ह पता र्ल जाई जब आएम बाजार । तब तक आराम कर

    । र्पू लगा गईले मनोहर आ सारा र्ोट भलूा के मसु्कुरात लौट अईले घरे

    । तदन में ना उनका खाना रूर्ल आ रात में ना नींद पड़ल । रात भर करवट

    बदल के तबहान कईलें मनोहर लाल बाब ू । अतगला तदने खबू बतढया

    तईयार होके र्ल दहेले बाजार बाकी कलावती के परूा बाजार में कही पता

    ना रह े । अब मन मसोस के र्ले लगले घरे तबतक दोकान के कोना से

    तनकल अईली कलावती । उनका के दखेते तखल उठल इनकर र्ेहरा आ

    बसंती बयार बह े लागल मन में । बातर्ीत भइल आ जमके खरीदारी

    कइल लोग बाकी एक दोसरा के नाम से अनजान दनु ुजन े। तब तक एगो

    लड़की आइल आ आके पछूलस - का हो कलावती , हो गइल खरीदारी ।

    कलावती नाम सनु के गदगद हो गईले मनोहर बाब ू । खरीदारी हो गइल

    आ र्ल दलेस लोग दनु ुजने । कलावती उनका के रोक के पछूली - हमार

    नाम जान गइलऽ आपन ना बतईबऽ का ?

    तवजयी मसु्कान के साथे आपन मुँह खोलले मनोहर बाब-ू हमार नाम

    मनोहर ह । कहाँ घर ह तहार ? काल्ह होली के तदन ेहोली खलेे अईतीं

    जतद तहार मन होईत त । लजाके कहली कलावती - बनेरा घर ह आ

    कहके अपना सहलेी साथे भाग र्लली । मनोहर के मन अब उड़े लागल

    रह ेआ उनका खशुी के कवनो तठकाना ना रह े । अब लौट अईलें मनोहर

    घरे बाकी उनकर बरे्ैनी पीछा छोड़े के नाम ना लेत रह े। कब भोर होई ,

    कब हम कलावती से तमलब इह ेकुल्ही सोर्ते सोर्त तभनसुार हो गइल ।

    अब बाब ूभोर उठ के अपना तक्रयाकरम से तनतर्ंत भईला के बाद र्ल

    दहेले बनेरा गाँव तबना केह से बतईले । कलावती अपना सखी लोग के

    साथे रंग खलेत रहली आ जब ऊ मनोहर के दखेली त लजा के भाग े

    लगली बाकी िेर कुछ सोर् के रोक गईली । मनोहर तबना कुछ सोर्ले

    दऊर के उनका लग ेपह रँ्ले आ कलावती के पकड़ के मन भर रंग लगवलें

    बाकी भाग खराब रह ेबेर्ारे के । कलावती के भाई ई कुल्ह नजारा दखेत

  • आखर | मार्ष– अप्रैल 2017 | 12

    कथा-कहानी

    रहलें बाकी रंग लगला से ऊ कलावती के तर्न्ह ना पईलें बाकी एगो

    लईकी आके कह दलेस तक कवनो लईका तहरा बतहन के रंग लगावता ।

    आग बबलूा भइल कलावती के भाई द-ुर्ार गो संघाती के तलहले र्ल

    तदहलें आ मनोहर के पकड़ के मन से कुटाई कईले । होली के तदने भरपेट

    पीटा गइल एगो पे्रमी जवना के पे्रम के शरुूआतो बतढया से ना भइल रह े

    बाकी तबो तबना बरुा मनले र्ल दहेले अपना घर ओरी मनोहर बाब ूतक

    शायद ई उनका प्रमे के अतननपरीक्षा रहल ह । एनें कलावती के घर के सभे

    लोग खबू बोलल , खबू सनुावल आ ओही तदन ेसभका सहमतत से ई तय

    भइल तक अब जतल्दये कवनो लईका से कलावती के तबयाह कर दहेल

    जाई ।

    एने मनोहर बाब ूजब घरे पह रँ्ले त कई तकसीम के बहाना बना के आपन

    पीटाई सभका से लुकावत तिरस बाकी छोटका भाई बझू गइल रह े तक

    भईया ओही लईतकया के र्क्कर में पीटाइल बा जवना के मेला में धक्का

    लागल रह े । ऊ आके पछूलस र्ोट के बारे में त जमके आपन खीस

    तनकलले मनोहर बाब ू ओह लईका पर । खैर तदन बीतत रह े बाकी

    कलावती के याद उनका रह-रह के हमेशा आवे बाकी िेर तपटाईयो याद

    पड़ जाए । कुछ तदन बाद मनोहर के अब कलावती के पे्रम भलूाए लागल

    रह े। उनका अब कलावती याद ना आवस आ ऊ लगलें अपना रोजी-रोटी

    के िेर में सोर्ें ।

    अगिला अंक में कलावती आ मनोहर के पे्रम-गववाह सभका

    सहमगत से बाकी बहुत लीला भईला के बाद....

  • आखर | मार्ष– अप्रैल 2017 | 13

    प्रभार् तमश्र

    नोकरी कथा-कहानी

    ए बबओु , अब तेह सेयान हो गइलीस , तनी बहरी जाए के सोर् । घर दआुर के हाल त ते जानते बाररस । कबो एजी के घटल ओरात नइख े। ननूो तेल खरीद ेके पइसा नइख ेरहत । बाबजूी के

    गंजी में अठारह हो छेद बा बातकर एगो नाया कीने के सपरते रह जा तरे ।

    अब बंटइआ के खते बो बो के घर र्लावल मतुश्कल हो गइल बा - कहत

    तसतेसरी र्लू्हा के लग ेपीढ़ा पर बइठल मंटु के थररआ में गरम तावा पर से

    एगो रोटी िुला के डलली आ िेरु दोसरका रोटी बेल के हाथा हाथी ऊपर

    करत तावा पर राख दहेली ।

    मंटु र्पुर्ाप खात, माई के सब बात सनुत रह वन । खाना भला का रुर्ो

    बातक तबो र्ार गो रोटी खा के कल पर मूंह हाथ धो के माई से कहले -

    माई , हम एकाध घटंा में आवतनी । तहु तले खा लींह । मंटु दअुरा आ के

    भसूा के खोंप पर ओठंगल साइतकल उठइले आ र्ल दहेले अपना एगो

    संघततआ के लगे तजन कोतर्ंग र्लावत रह वन । अपना दोस्त के कोतर्गं

    तर पह र्ले त ऊ क्लास र्लावत रह वन । उ तले बगल के अतिस आला

    रुम में जा के अखबार पढ़ ेलगले । जब दोस्त पढ़ा के रुम में अइले आ मंटु

    के बइठल अखबार में घसुव दखेले त तपछे से आ के उनका दनु ुआंख पर

    हाथ राख दहेले । इ बर्पन के खलेा ऐ लो के आजो परुनका तदन में लौटा

    दवे । मटुं अपना आंख पर राखल उनकर हाथ छुवत पछूले - खतम हो

    गइल क्लास का ?

    दोस्त ( आंख पर से हाथ हटावत ) - ह हो गइल । बातकर तु अइल ह त

    बतावे ला न ू। आ के र्पुर्ाप बइठ गइल ।

    मंटु - त ुपढ़ावत रल ह त बीर् में का टोकी ।

    तले दोस्त मंटु के लग ेराखल एगो कुरसी पर बइठ गइले । दोस्त - कह ,

    का हाल र्ाल बा । बड़ी तदन से लऊकत ना रल ह । रोक पतहले र्ाय

    तपअल जाव , कह के ऊ बहरी तनकल के सोझा के र्ाय दोकान पर दरेू से

    अगंरुी से द ू कप र्ाह के इशारा कऊवन । िेरु आ के कुरसी पर बइठ

    गऊवन ।

    मंटु - का हाल र्ाल कही हो । सब जानते बाड़ । अब तदन काटल

    मतुश्कल होत जाता । तबना नोकरी र्ाकरी के अब काम ना र्ली । घरे के

    हाल बद से बदतर होत जाता । बाबजूी भलहीं हमसे कुछ कहत नइखन

    बातकर उनकर तदकदारी अब सहात नइख े। आ अस भाग खराब बा तक

    कहीं नोकरीओ ं नइख े लागत । हम तहरे लग ेआइल बानी । हम ु तहरे

    कोतर्गं में पढ़ाएम , जवन द े दबे र्ली । आपनो खरर्ा त तनकलो ।

    तकताब कॉपी पतत्रका के त मांगे के ना परी । दखे बाबजूीओ ंके तबीयत

    खराब रहता बातकर ऊ .... !

    तले र्ाय दोकान से द ुगो र्ाय लेले छोटू आ गइल रहले । दोस्त - ल

    पतहले हइ र्ाय तपय कहत अपने हाथ से र्ाय के तगलास छोटू के हाथ से

    ले के मंटु कावर बढ़वले । मटुं आ दोस्त र्ाय तपए लागल लोग ।

    दोस्त - इ बझु तहरे कोतर्गं ह । तहरा अइला से त लइका टुट पररहें । तु त

    हमार क्लास सातथए ना टीर्रो हऊवो , त ुभला ना रहत त हम का पढ़ती

    बझुते बाड़ । काल्ह से द ुगो बैर् तु दखे । आ पइसा के तर्ंता छोड़ तहरा

    के हम अपना से हरमेशा बेसी दमे । रहल बात नोकरी के त आज ना

    काल्ह त तहार सरकारी नोकरी होखहीं के बा । अबेर बा बातकर अधेंर

    नइखे ।

    मंटु - भाई , तहरा लग ेआव ेके अलावा हमरा लग ेकवनो र्ारा ना रहल ह

    । त ु एह तवपत में संगे बाड़ ऐसे बड़हन हमरा खाततर कुछ नइख े । ना त

    आज हमरो मजरूी करे कही तदल्ली बंबे के िएटरी में जाए के परीत ।

    अइसन समय में कवनो तदल्ली बंबे के प्राइवेट कंपनी में मजरूा कइला के

    मतलब आपन भतवष्य के गतहर गड़हा में डलला तनअर रह वे ।

    इश्ताक ऐतना सनु के कुरसी से उठत मटुं के कान्हा पर हाथ रखत कह वन -

    तु अवाट बंवाट जन सोर् । नोकरी त तहार सरकारी केह ना रोकी बस त ु

    तपछे जन भाग । बरुा दौर के संघर्ष ही बड़हन सिलता तदवावेला । तु जम

    के तइआरी कर आ दखेींह कुछ तदन में नोकरी तहरा दआुरे रही ।

    मशु्ताक मटुं के छोड़े उनका साइतकल ले अउवे आ बेसी तर्ंता ना करे के

    कहत बइठत घरी अपना बगली के परूा रुतपआ तबन तगनले मंटु के पॉतकट

    में डाल दहेले । मंटु ना ना करत रह गऊवन बातकर एश्ताक काल्ह से आव

    कह के मसु्कात तपछे आ गऊवन।

    मंटु अतगला तदन से कोतर्गं में पढ़ावे लगले । संगे संगे नोकरी र्ाकरी

    खाततर हाथ गोड़ मारत रहस । बातकर क गो नोकरी में एकदम तनी तनी

    कम नंबर से छंटत उनकर उतमर सरकारी नोकरी में खतम होखे के कगार

    पर र्ह प ेलागल । घर पररवार के खरर्ा तदन पर तदन बढ़त गइल रह े ।

    बाबजूी के बेमारी में तलआइल तीस हजार के करजा द ुसाल बादों जस के

    तस बनल रह ेबस ओह करजा के सदू हर महीना केह गं द ेपावस । करजा

    आला के रोजो के टोकला से ऊहो परेशान हो गइल रह वन आ ऐन े

    कोतर्गं के आमद पतहले त बढ़ल बातक अब बढ़े के जगहा घटे लागल रह े

    । एह हालत से आतजज आ के आ अपना एगो संघततआ के कहला

    समझइला पर तक उनका जान पहर्ान के एगो बड़हन स्टोर में उनकर

    नोकरी लगवा दमे , ऊ अब परदसे में जाए के मन बनवले । बातक मन से

    ततनको इच्छा ना रह े तक ऊ परदसे में कवनो दोकान में काम करस ।

    बातकर का करस , रोज रोज के जरुरतो त गांवे रहला आ कोतर्गं में

    पढ़इला से ना परूा होत रह े । पइसा के जरुरत रोज बढ़ल जात रह ेआ

    बगली खाली बेसी रहत रह े । बाबजूी थाक गइल रहन , उनकर बेमारी

    अलग ेपरेशान करत रह ेआ तले छोट बतहनो अब सेयान हो गइल रही ।

    उनको तबआह एकाध साल में करहीं के परीत । हार पाछ के मटुं लग े

  • आखर | मार्ष– अप्रैल 2017 | 14

    कथा-कहानी

    परदसे जाए के अलावा कवनो अब उपाय बांर्ल ना रह े । ऊहो भला

    बररसों से एके िुलपाएट बशुट पतहरले आतजज आ गइल रह वन ।

    परदसे जाए के तदन ेअपना कोठरी के छज्जा पर तकताब के ऊंढुक के ओरी

    दखे के उनकर मन रोवे पर तरुा गइल । मन ेमन रोवत केह गं केह गं बगल के

    एगो लइका के ले के साइतकल से स्टेशन पह र्वुन , रेन धरे । जेनरल के

    तटकट ले के रेन कहां ले आइल तबआ संवार्े स्टेशन मास्टर के केतबन में

    गऊवन त पता र्लल की रेन द ु घटंा लेट तबआ । उ स्टेसन के बहरी जा

    के एगो र्ाय के दोकान पर अखबार पढ़े लगले । गांव से संगे आइल

    लइको तले तजलेबी समोसा खाए लागल । तले ओजी बीर् ेर्ाय पीए

    पोस्टमनै भी संजोग से ओहीजी र्ह पवुन । मंटु के जब पोस्टमैन, अखबार

    मूंह पर से हटुवे त दखेते कह वन अरे माट साहबे राऊर एगो पोस्ट बा ,

    दखेी एकही रऊरे तर्ट्ठी खाततर हमरा रऊरा गांवे जाए के रहल ह बातक

    तकस्मत नीमन तक रऊरा एहीजी तमल गइनी । उ र्ाय के आधा पीयल

    तगलास टेबलु पर राख के अपना झोरी से तर्ट्ठी मंटु के धरवले । एह तर्ट्ठी

    के दखेते मंटु के र्हेरा पर एगो र्मक आ गइल । ऊ ओकरा खाम के िाड़

    के जब पढ़ले त उनका तजनगी के राह बदल गइल रह े। उनकर सतर्वालय

    में नोकरी हो गइल रह ेजवना के परीक्षा द ुसाल पतहले उ दलेे रह वन आ

    अगीले महीना नोकरी पर बोलाहट रह े। उनकर खशुी ओहबेरा ठेकाना ना

    रह वे । ऊ ऊ पोस्टमैन के गोड़ ध लेह वन । आंखे लोर बहत रह ेखशुी के

    मारे । ऊ आपन झोरा आ तटकट दखेावत पोस्टमैन से सब बात बतइले के

    आज ऊ कहां जात रले ह आ िेरु हइसन ...! तुरत उनका के द ुगो रसगलुा

    तखआवे के दोकान आल ूसे कह वन। आ िेरु एक तकलो तमठाई बांधे के

    कह वन । तले ऊ जा के �