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बाइिबल की 52 कहािनयाँ 1

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  • बाइिबल की 52 कहािनयाँ

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  • बाइिबल की 52 कहािनयाँ

    व्यवस्था 1. सृिष्ट और परमेश्वर: उत्पित्त का पहला अध्याय सम्पूणर् बाइिबल के िलये मूल-भूत अध्याय ह।ै यह हमें केवल यह ही नहीं बताता ह ैिक सारी चीजों का आरम्भ कैसे हुआ, परन्तु यह इस बात की बुिनयादी िशक्षा भी देता ह ैिक परमेश्वर कौन ह ैऔर हम परमेश्वर से कैसे सम्बिन्धत हैं। इितहास और िवज्ञान के िद्वतीय मुद्दों पर तकर् िवतकर् न करके, उत्पित्त का 1 अध्याय हमें बताता ह ैिक हमं◌े अपनी आखें स्वगर् की ओर लगानी चािहये। जो परमेश्वर की मिहमा का अद्भतु बयान करता ह।ै

    2. सृिष्ट और हम: सृिष्ट के छठवें िदन हम यह सीखत ेहैं िक इंसान परमेश्वर के सृिष्ट की सवोर्त्तम रचना ह,ै िजस ेपरमेश्वर के स्वरूप में रचा गया ह।ै यह मनुष्य की गिरमा का स्रोत ह ैऔर इसीिलये हम आित्मक तरक्की करना चाहते हैं तािक हम और आिधक उसके समान िदखाई पड़ सकें ।

    3. पतन: उत्पित्त का 3 अध्याय इस बात का वणर्न करता ह ैिक आदम और हव्वा िकस तरह से पाप में िगर गए थे। और उनके पाप के कारण, कैस ेपरमेश्वर से उनका और समस्त मानव जाित का सम्बन्ध टूट गया, और वहा ँपर परमेश्वर एक उद्धारकतार् की प्रितज्ञा करता ह।ै

    4. जल प्रलय: उत्पित्त 6-9 अध्यायों में बच्चों की कहानी नहीं ह,ै यह हमारे पाप के प्रित परमेश्वर के क्रोध को दशार्ता ह ैऔर िफर यह भी िदखाता ह ैिक परमेश्वर छुड़ाने वाला परमेश्वर ह।ै नूह की तरह हमें अपने िवश्वास में कदम उठाने के िलये चुनौती देती ह।ै

    5. इब्राहीम की वाचा: उत्पित्त 12:1-15:6 एक व्यिक्त इब्राहीम पर केिन्द्रत ह ैजो अदन के बगीचे के मानव जाित के छुटकारे के िलये की गयी प्रितज्ञा के पूरे होने का िहस्सा ह।ै इब्राहीम को दो कायर् करना आवश्यक ह,ै िवश्वास करना और उस िवश्वास के अनुसार कायर् करना। और जब वह ऐसा करता ह ैतो परमेश्वर उसके साथ और उसकी सारी सन्तानों के साथ और इस्राएल और कलीिसया के साथ एक अनन्त वाचा बान्धता ह।ै हमें भी अपने आित्मक िपता के पद िचन्हों पर चलना चािहये: िवश्वास करें व उसके अनुसार कायर् करें।

    6. यूसुफ: उत्पित्त 37-50 अधयायों में यूसुफ की कहानी िमलती ह ैजो परमेश्वर की प्रितज्ञाओं के प्रित िवश्वासयोग्यता का वणर्न ह।ै जो उसने इब्राहीम से की थी िक वह सवर्शिक्तमान ह ैऔर वह सवर्ज्ञानी ह।ै यूसुफ के भाइयों ने उसे गुलामी में बेंच िदया था परन्तु परमेश्वर ने उन लोगों की बुराई को भी भलाई में बदल िदया - िक इब्राहीम की पूरे राष्ट्र की सन्ताने छुटकारा पाएँ। हमें भी परमेश्वर की प्रितज्ञाओं पर िवश्वास करने के िलये बुलाया गया ह।ै

    7. िवपित्तयाँ: िनगर्मन 7:14 से 10 अध्याय तक हम इस्राएली राष्ट्र के िलये परमेश्वर के उद्धार को देखते हैं। िमस्री लोगों ने उन्हें गुलाम बना िलया था परन्तु परमेश्वर ने मूसा के द्वारा उनपर 10 बड़ी िवपित्तया ँडालकर उन्हें दिण्डत िकया और इस्राएिलयों को स्वतन्त्र िकया। परमेश्वर अपनी प्रितज्ञाओं को पूरा करने में िवश्वासयोग्य ह ैऔर उसे ही सारा आदर और मिहमा िमलनी चािहये।

    8. दस आज्ञाएँ: िनगर्मन 20 अध्याय में जो दस आज्ञाएँ दी गयी हैं वे केवल िनयम नहीं ह ैिक हम उनका पालन करें, परन्तु ये एक संरचना और ढांचा प्रदान करती हैं िक हम परमेश्वर से कैस ेप्रेम करें (शेमा) और यह इस बात में िदखाई पड़ना चािहये िक हम परमेश्वर और दसूरों के साथ िकस प्रकार का व्यवहार करते हैं।

    9. परमेश्वर की उपिस्थित: मूसा परमेश्वर को देखना चाहता ह ैिनगर्मन 33 अध्याय में इस बात का वणर्न िमलता ह ैिक परमेश्वर मूसा को अपना दशर्न नहीं करने देता हैं नहीं तो मूसा मर जाएगा। परन्त ुवह मूसा को अपनी मिहमा की पीठ देखने की अनुमित देता ह।ै यह ही मसीिहयत का सार ह:ै परमेश्वर को देखने की इच्छा, सारी बातों के उपरान्त परमेश्वर ने हमें इसिलये रचा ह ैिक हम उसके साथ संगित करें, हमारी रचना इसीिलये हई ह ैिक हम उसके साथ सहभािगता करें।

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  • 10. परमेश्वर की पिवत्रता: लैव्यव्यवस्था की पूरी पुस्तक परमेश्वर की पिवत्रता के बारे में बताती ह ैिक परमेश्वर िनष्पाप ह।ै बिलदान िविध हमें बताती ह ैिक पाप से परमेश्वर के िनयमों का उल्लंघन होता ह।ै िजसका सार यह ह ैिक पापों की भारी कीमत चुकानी पड़गेी यानी मृत्यु ह।ै परन्त ुलैव्यव्यवस्था में यह िसखाया गया ह ैिक परमेश्वर क्षमा भी करता ह ैऔर एक बिलदान के द्वारा हमारे पापों की कीमत चुकाई जा सकती ह,ै यिद हम पश्चाताप करें। ऐसा करना हमें यीशु मसीह के कू्रस के िलये तैयार करता ह।ै

    11. परमेश्वर के िलये बेचे गए लोग: शेमा पुराने िनयम का केन्द्र-िबन्द ुह ै”ह ेइस्राएल सुन यहोवा हमारा परमेश्वर ह,ै यहोवा एक ही ह“ै (व्यवस्था िववरण 6:4) यह बात हमें पूणर् रूप से एक ईश्वर वाद की बात बताती ह,ै िजसस ेहम िकसी भी प्रकार की मूरत, की पूजा नहीं करेंगे।

    12. िवश्वास आनुवंिशक नहीं होता ह:ै न्यािययों की पुस्तक वाचा के नवीनीकरण की आवश्यकता को दशार्ता ह।ै िक प्रत्येक नई पीढ़ी जो परमेश्वर के पीछे चलना चाहती ह ैउसे स्वयं अपने िलये िनणर्य लेना होगा। जब इस्राएिलयों को प्रितज्ञा का देश दे िदया गया, अिधकांश िहस्से में वे वाचा के नवीनीकरण में असफल हो गए। और परमेश्वर से आशीष पाने स ेभी वंिचत हो गए। हमारे अपने पिरवारों के ऊपर भी यही बात लागू होती ह।ै

    13. परमेश्वर राजा ह:ै 1शमूएल की पुस्तक हमें बताती ह ैिक िकस तरह से एक राष्ट्र जो न्यािययों के द्वारा संचािलत होता था वह एक राजा का चुनाव करता ह,ै इस्राएल को एक ऐसा राष्ट्र होना चािहय ेथा जो परमेश्वर के द्वारा शािपत होता, इसिलये लोगों का राजा माँगना परमेश्वर का ितरस्कार करना था। शाउल जो पहला राजा था उसने यह सबक नहीं सीखा िक अभी तक परमेश्वर ही राजा ह ैऔर हमारे िलये यह बात आवश्यक ह ैिक हम िवश्वासयोग्य बने रहें। दभुार्ग्य से कई लोग शाउल के जैसी ही गलती करते हैं।

    14. दाऊद और गोिलयत: यह कहानी इस िवषय में नहीं ह ैिक एक छोटा सा लड़का एक महान योद्धा को हरा देता ह ै(1शमूएल 16-17)। यह इस बात का बयान करती ह ैिक चाह ेजैसी भी पिरिस्थितयाँ हों िवश्वास हमें प्रभु में आगे बढ़ने के िलये प्रेिरत करता ह।ै

    प्रलेख 15. भजनसंिहता 23 और दाऊद का िवश्वास : भजनसंिहता 23 िवश्वास में दाऊद की एक पुकार ह ैिक यहोवा जो उसका चरवाहा ह ैउसकी आवश्यकताओं के पूरा करेगा। और सभी पिरिस्थितयों में उसकी रक्षा करेगा और परमेश्वर अपनी भेड़ों से भरपूरी से प्रेम करता ह।ै

    16. पाप से सामना और अंगीकार: भजनसंिहता 51 में इस बात का नमूना िमलता ह ैिक बाइबल के अनुसार सच्चा अंगीकार क्या ह ैिजसमें हमें अपने अपराधों को मानना ह ैऔर परमेश्वर के न्याय को जानना ह,ै िजसम े◌ंकोई बहाना नहीं बनाया गया ह ैऔर अपने कमोर्ं पर नहीं परन्तु परमेश्वर की दया पर िनभर्र रहना ह।ै

    17. सुलैमान - बुिद्धमान और मूखर्: सुलैमान सबसे अिधक बुिद्धमान था तौभी उसकी मृत्य ुएक मूखर् के रूप में हुई क्योंिक उसने अपनी ही सलाह (नीितवचन) को अनदेखा कर िदया। केवल सच्चाई को जान लेना ही काफी नहीं ह ैआपको उसे करना ह।ै बुिद्ध का आरम्भ यह जानने से होता ह ैिक परमेश्वर सबसे उत्तम जानता ह।ै

    18. अय्यूब-कष्ट, और परमेश्वर पर िवश्वास: अचे्छ लोगों के साथ भी बुरी बातें होती हैं। सवाल यह ह ैिक क्या आप किठन पिरिस्थितयों में परमेश्वर पर भरोसा रखेंगे, जब हमारे जीवन दःुख से भरे होते हैं और हम सब बातों का उत्तर नहीं जानत ेतो क्या वह िवश्वासयोग्य ह?ै

    भिवष्यवक्ता

    19. एिलय्याह और समन्वयवाद: 1राजा 14-18 अध्यायों में एिलय्याह और झूठे धमर् एवं उसके संघषर् की कहानी ह।ै वह समय ”समन्वयवाद“ (यानी दो धमोर्ं का िमश्रण) का था। आज हमारे िदलों में भी हमारे सामन ेयही चुनौती ह,ै िवशेष करके मसीिहयत और धमर् िनरपेक्ष संसृ्कितयों का िमश्रण। एिलय्याह हमें चुनौती देता ह ैिक हम दो मन के न हों और हमारी वफादारी भी िवभािजत न हो।

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  • 20. यशायाह और परमेश्वर की पिवत्रता: यशायाह 6:1-8 में यशायाह के दशर्न को बताया गया जो उसने परमेश्वर के िसंहासन को देखा, और वहाँपर हमने आराधना के सच्चे अथर् के बारे में सीखा, प्रकाशन और प्रितिक्रया का चक्र। जब परमेश्वर स्वयं को हमारे ऊपर प्रगट करता ह ैतो हमें उिचत रूप से जवाब देना चािहये। इसमें यह सवाल उठता ह ैिक आपका परमेश्वर िकतना बड़ा ह।ै

    21. यशायाह और परमेश्वर का दःुखी दास: यशायाह 52-53 अध्याय में हमें मसीह की मृत्य ुका एक सबसे सटीक धमर् वैज्ञािनक दृिष्टकोण िमलता ह।ै यशायाह एक ऐसे दास के बारे में भिवष्यवाणी करता ह ैजो आने वाला ह,ै िजसको परमेश्वर हमारे पापों के बदल ेदिण्डत करेंगे। जािहर ह ैिक यह भिवष्यवाणी यीशु के िवषय में ह।ै यहाँपर हम सीखते हैं िक ऐसा कोई पाप नहीं ह ैिजस ेपरमेश्वर क्षमा नहीं कर सकता, और शािन्त हमारे अन्दर स ेनहीं आती परन्त ुबाहर यानी परमेश्वर से आती ह।ै

    22. मीका: मीका ने तीन समूह वाली भिवष्यवाणी की िजन्हें हम हाय (न्याय) और सुख (बहाली) से जानत ेहैं। इस्राएिलयों का ऐसा िवश्वास था िक उन्हें बाहरी तरीकों से आराधना करनी थी और िफर वे पूरे सप्ताह अपनी मजीर् से चल सकत ेथे। इसी कारण उन पर न्याय आया परन्तु इस न्याय के साथ परमेश्वर ने उन्हें भिवष्य में बहाल करने की प्रितज्ञा भी की।

    23. होशे: होशे ने उन लोगों की भिवष्यवाणी की जो लगातार पाप में जीवन िबता रह ेथे। उनके पापों ने उन्हें मूितर् पूजा में िगराकर िवलािसता के पाप में ढकेल िदया। यहाँ तक िक पाप के तलवे से जब उन्होंने पयार्प्त दण्ड का अनुभव कर िलया, परमेश्वर उन्हें अभी भी माफ करने के िलये िवद्यमान ह।ै पािपयों को ”वैश्या“ कहा गया ह।ै यानी िवश्वासघाती जीवन।

    24. हबकू्कक और िवश्वास: हबकू्कक के अन्दर यह सवाल ह ैिक दषु्ट लोग क्यों फलफूल रह ेहैं जबिक धमीर् लोग बड़ी ददुर्शा में पड़ ेहैं। उसके प्रश्न से ऐसा लगता ह ैिक परमेश्वर न्यायी ह ैिक नहीं, क्योंिक हबकू्कक िवश्वास से प्रश्न पूछता ह ैपरमेश्वर उसके प्रश्न का जवाब यह कह कर देता ह ैिक इन्तजार करो। आिखर में दषु्टों को दण्ड िमलता ह ैऔर धिमर् यों को ईनाम। बीच में यह बात प्रगट होती ह ैिक धमीर् जन धमीर् परमेश्वर पर िवश्वास स ेजीिवत रहगेा।

    25. नयी वाचा: ियमर्याह और यहजेकेल ने बन्धुवाई के पहले व बन्धुवाई के दौरान भिवष्यवाणी की जब परमेश्वर के लोग बेबीमलोिनयों के द्वारा परािजत हो गए थे तो उन्होंने परमेश्वर के न्याय के साथ-साथ आशा की प्रितज्ञा का भी प्रचार िकया। आशा तो नयी वाचा थी िजसमें परमेश्वर की व्यवस्था पिवत्र आत्मा के कायर् के द्वारा उनके हृदयों पर िलखी जाएगी।

    26. प्रमािणक अंगीकार और िवश्वास: िवलापगीत की पुस्तक यह िसखाती ह ैिक पाप के िलये परमेश्वर के धैयर् का अन्त हो जाता ह।ै यह एक राष्ट्रीय िवलाप ह ैिजसमें इस्राएल पाप के प्रित गहरे दःुख को व्यक्त करता ह।ै इसका आरम्भ पाप के कारण के प्रित ईमानदार होकर दसूरों को दोषी न ठहराकर अपने आप को दोषी इहराना ह।ै लेिकन िनष्कषर् में वे परमेश्वर में अपन ेिवश्वास को िदखात ेहैं जो पापों को क्षमा करता ह।ै

    मसीह का जीवन 27. यीशु का जन्म: पीछे उत्पित्त 3:15 में परमेश्वर ने यह प्रितज्ञा की थी िक वह पाप के िलये कुछ इन्तजाम करेगा। पुराना िनयम यह दशार्ता ह ैिक परमेश्वर अपनी प्रितज्ञा पर कायर् कर रहा ह,ै एक ऐसी प्रितज्ञा जो आिखरकार यीशु में पूरी हुई। परन्तु लोकिप्रय अपेक्षा के िवपरीत यीशु इन्सान से बहुत कुछ बढ़कर थे। वह पूणर्रूप से परमेश्वर थे और पूणर्रूप स ेमानव भी थे। परन्तु केवल इन सच्चाइयों को जान लेना ही काफी नहीं ह ैपरमेश्वर के साथ सम्बन्ध बनाकर चलने के िलये आपको परमेश्वर की आशीष अवश्य प्राप्त करनी होगी।

    28. यूहन्ना बपितस्मा देने वाला: पुराना िनयम एक प्रितज्ञा के साथ में समाप्त होता ह ै- िक परमेश्वर एिलय्याह को भेजेगा तािक वह लोगों को आने वाल ेमसीहा के िलये तैयार करे। एिलय्याह यूहन्ना बपितस्मा देने वाल ेके रूप में आता ह ैजो लोगों को पश्चाताप के बारे में िसखाकर तैयार करता ह।ै और बड़ ेआश्चयर् की बात यह ह ैिक एक यहूदी के रूप में जन्म लेन ेका कोई फायदा नही ह,ै और उन्हें भी यह सीखना पड़ा िक यिद उन्हें परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना ह ैतो उनके पास परमेश्वर को देने के िलये कुछ भी नहीं ह।ै

    29. नीकुदेमुस और नया जन्म: शायद मसीिहयों के द्वारा प्रयोग िकया जाने वाला सबसे प्रचिलत शब्द ह ै”नए िसरे से जन्म“ लेना या ”िफर से जन्म लेना।“ यह बात यहूदी अगुवे नीकुदेमुस की कहानी से िनकल कर आती ह।ै यीश ुउसे बतात ेहैं िक अगर उसे परमेश्वर के

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  • राज्य में प्रवेश करना ह ैतो वह स्वाभािवक रीित से या अपने कायेर्ों के द्वारा वह प्रवेश नहीं कर सकता ह।ै केवल परमेश्वर के आत्मा का अलौिकक कायर् ही हमें नया बनाता ह।ै यही नया जन्म ह ैइसी से हमें उद्धार प्राप्त होता ह ैबाइबल के सबसे प्रचिलत पद यूहन्ना 3:16 में यह बात समझायी गयी ह।ै

    30. धन्य वचन: क्या आप परमेश्वर के द्वारा धन्य होना चाहते हैं ? यीशु बतात ेहैं िक यह िकस प्रकार से होता ह,ै जो यीशु का प्रचिलत पहाड़ी उपदेश ह ैउसके आरम्भ में प्रभु ने आठ बातें बतायी हैं। आम धारणा के िवपरीत आशीष अपनी आित्मक कमजोरी को पहचानने और अपने पापों पर शोक करन ेसे आती ह।ै और इसका पिरणाम नम्र होना, हृदय शुद्ध होना, और मेल िमलाप के खोजी होना ह।ै संसार की क्या प्रितिक्रया होगा ? वह आपको सताएगा और यह भी आपके िलये आशीष ह।ै

    31. प्रभु की प्राथर्ना: यीशु सीखाते ह ैिक हमारी प्राथर्ना हमारे स्वगीर्य िपता की तरफ मुड़ने से आरम्भ होती ह,ै िजसमें हमें उनकी मिहमा की चाहत हो, और उनके राज्य की बढ़ोत्तरी हो, और हमारी शारीिरक और आित्मक आवश्यकताओं के िलये उस पर सम्पूणर् िनभर्रता में हमारे प्रवेश के साथ समाप्त होती ह।ै यह प्राथर्ना मुख्य रूप से परमेश्वर के बारे में ह।ै

    32. सब बातों से बढ़कर परमेश्वर को खोजें: िचन्ता इस बात के भ्रम को लाती ह ैिक हमारे पास भी कुछ िनयन्त्रण ह ैऔर िचन्ता से भी कुछ प्राप्त िकया जा सकता ह।ै परन्तु यह ऐसा कुछ भी नहीं करती ह।ै चेलों को परमेश्वर पर अटूट िवश्वास रखना चािहये। जब हम देखते हैं िक परमेश्वर अपनी सृिष्ट की देखभाल कैस ेकरता ह ैतो हम इस बात को समझ सकते हैं िक वह हमारी भी देखभाल करेगा। हमारा ध्यान परमेश्वर के राज्य और उसकी धािमर् कता की खोज होनी चािहये और बदले में वह हमारी सारी जरूरतों को पूरा करेगा।

    33. मसीह का ईश्वरत्व: मसीह के आने से बहुत साल पहले परमेश्वर ने मूसा से कहा था िक उसका नाम ”मैं हँू ह।ै“ यीशु वास्तव में इसी नाम महान मैं हँू को अपने िलये चुनते हैं वह इस प्रकार बताते हैं, जैसे जीवन की रोटी मैं हँू, जगत की ज्योित मैं हँू। ित्रएकता का रहस्य, िक एक परमेश्वर ह ैतौभी परमेश्वर में तीन ह ैिपता, पुत्र और पिवत्र आत्मा। यह समझना किठन ह ैहमें परमेश्वर के बारे में सब कुछ जानने की उम्मीद नहीं करनी चािहये।

    34. िशष्यता: जब यीशु हमसे कहते हैं िक मेरे पीछे चलो, तो िकसी एक व्यिक्त ने कहा ह ैिक आओ और मरो। अपनी व्यिक्तगत महात्वकाक्षाओं के िलये मर जाना, और प्रितिदन वैसे िजयें जैसे आप अपने िलये मर गए हो और प्रभु के िलये िजयें। स्वगर् में केवल चेल ेही होंगे।

    35. सबसे बड़ी आज्ञा: सबसे महत्वपूणर् और बड़ा कायर् आप क्या कर सकते हैं? परमेश्वर हमस ेमुख्य रूप से क्या चाहता ह?ै यह ह ैिक हम अपनी सम्पूणर्ता से उसस ेपे◌्रम करें। हमारा प्रेम भावनात्मक अवश्य होना चािहये (केवल आज्ञाकािरता ही नहीं) और व्यिक्तगत होना चािहये (िक हम परमेश्वर से प्रेम करे न िक उससे सम्बिन्धत वस्तुओं से)। यिद हम परमेश्वर से प्रेम करते हैं तो हमें अपने पड़ोसी से भी अवश्य पे◌्रम करना चािहये।

    36. स्वगर् राज्य सम्बिन्धत अध्ययन: िशष्य लोग दो प्रमुख घटनाओं की अपेक्षा में थे: मिन्दर का िवनाश और यीशु का दोबारा आगमन, इसके िचन्ह और चेताविनयाँ होगी तािक वे यरूशलेम से भाग सकें और यह घटना 70 ई०पू० में घटी परन्तु यीश ुदोबारा कब आएँग ेइसके िलये कोई िचन्ह और चेतावनी नहीं दी गई ह ैऔर इस युग का अन्त कब होगा। चेलों की यह िजम्मेदारी नहीं ह ैिक वे जाने िक यह कब होगा - यहाँ तक िक यीशु भी नहीं जानते हैं परन्त ुतैयार होकर जीवन िबताए हमेशा तैयार रहें।

    37. पिवत्र आत्मा: यीशु न ेअपनी मृत्यु और पुनरूत्थान से पहले जो िशक्षा दी उनमें से बहुत बातों के साथ उन्होंने अपने चेलों को पिवत्र आत्मा के आगमन के बारे में बताया, जो आकर संसार के उसके पापों के िलये और संसार को यीशु की धािमर् कता को िदखाने के िलये, और संसार को आने वाले न्याय के िवषय में िनरूत्तर करेगा। हम जानते हैं िक यह ”आत्मा“ पिवत्र आत्मा ह ैजो ित्रएकता का एक व्यिक्त ह।ै

    38. प्रभु भोज: कू्रस से पहले उद्धार का सबस ेबड़ा कायर् इस्राएिलयों को िमस्र से छुटकारा िदलाना था और इस घटना के उत्सव को मनाने के िलये परमेश्वर ने फसह के पवर् का उत्सव ठहराया, परमेश्वर के उस बड़ ेअनुग्रह पूणर् कायर् को जब उसने इस्राएिलयों के घरों को छोड़कर िमस्र देश के सारे पिहलौठों को मारा, इस बड़ ेउत्सव को मनाना था। और अब परमेश्वर अपने पुत्र को कू्रस पर मार करके सबसे

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  • बड़ ेउद्धार के कायर् को करन ेजा रहा ह।ै मसीिहयों को पीछे िमस्र की तरफ देखकर नहीं परन्तु यीशु की मृत्य ुऔर उसके दोबारा आगमन को देखकर फसह का पवर् मनाना ह।ै

    39. मृत्यु और पुनुरूत्थान: यीशु की मृत्यु और पुनरूत्थान केवल यीशु के जीवन का ही नहीं परन्तु इितहास के उस िबन्द ुकी भी पराकाष्ठा ह।ै यीश ुकू्रस पर मरे तािक हम परमेश्वर के िमत्र बन जाएँ और कब्र से जी उठने के द्वारा यीशु ने मृत्यु पर िवजय हािसल की। मिन्दर का वह परदा जो परमेश्वर और मनुष्य के बीच दरूी का एक िचन्ह था वह ऊपर से नीचे तक दो भागों में बट गया और अब हम सीधे परमेश्वर से सम्बन्ध रख सकते हैं।

    40. महान आदेश: पृथ्वी पर यीशु का अिन्तम कायर् अपने चेलों को महान आदेश देना था। उनका प्रमुख कायर् चेले बनाना ह।ै उन्हें सुसमाचार का प्रचार करके, नए चेले बनाने ह,ै उनको बपितस्मा देना ह,ै और यीशु ने िजतनी भी बातें िसखाई ह ैउन्हें मानना िसखाकर उन्हें पूणर् रूप से समिपर् त चेले तैयार करने हैं। क्योंिक परमेश्वर सबके ऊपर राज्य करता ह ैहमें यह अवश्य करना ह ैक्योंिक वह हमें कभी नहीं छोड़गेा, और हम यह कर सकते हैं।

    आरिम्भक कलीिसया और पौलुस 41. िपन्तेकुस्त: यहूदी पवर् िपन्तेकुस्त के दौरान फसह के 50 िदनों के बाद यीशु की प्रितज्ञा पूरी हुई और पिवत्र आत्मा ने आकर यीशु के सभी अनुयािययों को सामथ्र्य दी, उन्हें अलौिकक सामथ्र्य दी और दसूरी बातों के साथ उन्हें ऐसी मानवीय भाषा बोलन ेकी सामथ्र्य दी जो उन्होंने सीखी नहीं थी। पतरस इस घटना को पुराने िनयम की भिवष्यवािणयाँ पूरी होना बतात ेहैं और िफर उस मौिलक सन्देश का प्रचार करते हैं जो प्रेरतों के काम की पूरी पुस्तक में पाया जाता ह।ै यीशु रह,े मर गए, और मुदोर्ं में से जी उठे। इसीिलय ेसभी लोगों को पश्चाताप करने की बुलाहट ह,ै िजन्हें यीशु के बारे में गलत फहमी ह।ै

    42. कलीिसया: कलीिसया कोई इमारत या गितिविध नहीं ह ैकलीिसया सभी सच्चे िवश्वािसयों का एक झणु्ड ह,ै मसीह िसर ह।ै हम उसकी देह ह!ै हम एक पिरवार हैं! हम परमेश्वर का मिन्दर हैं यानी वह स्थान जहा ँपर परमेश्वर िनवास करता ह।ै

    43. िवश्वास के द्वारा धमीर् ठहरना: हमारे पापों के िलये हमें दोषी न ठहराया जाना धमीर् ठहरने का िसद्धान्त ह।ै यह केवल परमेश्वर का ही कायर् ह ैइसमें हमारा कोई योगदान नहीं ह।ै रोिमयों 1:16-17 और 3:21-26 में पौलुस इसे स्पष्ट करत ेहैं िक धमीर् ठहराए जान ेकी यह घोषणा हमारे ‘‘कायोर्ं’’ पर आधािरत नहीं हैं परन्तु यह हमारे उस ‘‘िवश्वास’’ पर आधािरत ह ैजो हम यीशु पर करत ेहैं िक जो कुछ यीशु ने कू्रस पर हमारे िलये िकया जो हम स्वय ंके िलये नहीं कर सकते थे।

    44. दान देने का अनुग्रह: केवल अनुग्रह के द्वारा हमारा उद्धार ही नहीं हुआ ह ैपरन्तु यही अनुग्रह हमें पूरे जीवन भर सम्भालता ह।ै हम धन िकस प्रकार से देत ेहैं, यह एक तरीका ह ैिजससे परमेश्वर के अनुग्रह का पता चलता ह।ै परमेश्वर का अनुग्रह दोनों बातों, दान देने की चाहत रखना दान देने की सामथ्र्य प्रदान करता ह।ै यिद कोई नहीं देता ह ैतो उन्हें अपने हृदय की इस दशा को जाँचना चािहये, िक परमेश्वर का अनुग्रह उनमें सिक्रय क्यां◌े नहीं ह।ै

    45. मसीही आनन्द: रोिमयों 5-8 में पौलुस हमें बहुत से कारण याद िदलात ेहैं िजसके कारण हम प्रसन्न रहत ेहैं। परमेश्वर से हमारा मेल िमलाप हो गया ह,ै हम पूरी तरह से उससे मेल िमलाप कर चुके हैं, हम पाप से छुटकारा पा चुके हैं और जो मसीह यीशु में हैं अब उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं। पिवत्र आत्मा हमारे अन्दर रहता ह,ै हमे◌े परमेश्वर के पिरवार में अपना िलया गया ह,ै हम ेइस बात का आश्वासन िमला ह ैिक हम उसकी सन्तान हैं, धमीर् जीवन का यही आनन्द ह।ै

    46. िवनम्रता: िफिलिप्पयों की कलीिसया से पौलुस चाहते थे िक वे िवनम्रता एवं दीनता को समझें। उन्हें एक मुख्य बात पर एक मन होना था जो िवनम्रता थी, जो मसीह में आप क्या हैं की समझ से िनकालती ह ैउदाहरण के िलये हम यीशु की तरफ देखते हैं जो परमेश्वर के तुल्य होने के बावजूद अपने आप को इन्सान के रूप में दीन िकया और इसी कारण उन्हें महान िकया गया। उद्धार पाने से क्या उत्पन्न होता ह ैहमें उस पर गहनता से िवचार करना चािहये।

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  • 47. पिवत्र शास्त्र: मसीही लोग बाइबल के मसीही हैं हमारा िवश्वास ह ैिक सम्पूणर् पिवत्र शास्त्र परमेश्वर के मुँह से िनकला ह।ै यह सत्य ह ैऔर हमारे जीवन पर इसका अिधकार ह ैचुनौती का वह िबन्द ुह ैजब आप वास्तव में इस पर िवश्वास करें।

    48. इब्रािनयों: इब्रािनयों की पुस्तक मसीह की सवोर्च्चता िक वह सब लोगों के और सारी चीजों के ऊपर सवोर्च्च ह ैइसका गहरा धमर् वैज्ञािनक अध्ययन ह ैपूरी पत्री में ऐसी चेताविनयाँ दी गयी हैं िजनमें लेखक कहता ह ैिक िवश्वासी लोग कहीं िवश्वास से भटक न जाएँ। यिद लोग मसीही िवश्वास को छोड़ देते हैं तो उनके िलये यह आश्वासन ह ैिक वे एक सच्चे मसीही नहीं हैं।

    49. याकूब: जीभ को वश में करने से किठन और कोई बात नहीं ह।ै यह लोगों की प्रितष्ठा को खत्म कर देती ह,ै हम कई बार चोिटल और घायल होते हैं। हम चाहते हैं िक लोग हमें सही समझें इसिलये हम ईश्वर भिक्त का भेष घरत ेहैं। जीभ पर िवजय पान ेका केवल एक ही रास्ता ह ैिक हम हृदय पर कायर् करें, क्योंिक जो कुछ मन से िनकलता ह ैवहीं मुँह बोलता ह।ै दभुार्ग्य की बात यह ह ैिक गपशप कलीिसया में भी सामान्य बात हो गई ह,ै परन्तु इसपर िवजय हािसल की जा सकती ह।ै

    50. 1 पतरस: जीवन के बुिनयादी सवालों में से एक यह ह ैिक एक सवर्शिक्तमान और इतना भला और अच्छा परमेश्वर दःुख और पीड़ा को क्यों अनुमित देता ह।ै पतरस इस प्रश्न का सामना करने के िलये हमारा ध्यान जीवन की वास्तिवकताओं की ओर लगात ेहैं, िवशेष करके यह सच्चाई िक हम इस पृथ्वी पर परदेशी और बाहरी हैं और हमारा अपना घर स्वगर् में ह।ै दःुखों के बीच में हमें इस बात को भी जानना ह ैिक परमेश्वर अब भी हमारी भलाई के िलय ेही कायर् कर रहा ह।ै

    51. मसीही प्रेम: यूहन्ना की पहली पत्री मुख्य रूप से प्रेम के बारे में ह।ै परमेश्वर ने हमस ेप्रेम िकया ह ैतो हमें दसूरों से भी प्रेम करना चािहये। प्रेम केवल सामान्यतयः भावना ही नहीं परन्त ुइसमें कायर् शािमल होता ह।ै परमेश्वर ने हमस ेप्रेम िकया इसिलये उसने अपने पुत्र को भेजा। प्रेम में दसूरों की भलाई के िलये अपने आपको दे देना ह।ै

    52. प्रकािशतवाक्य: बाइबल इस बात की भिवष्यवाणी के साथ बन्द होती ह ैिक समस्त वस्तुएँ कैसे समाप्त होंगी। इस पुस्तक के सही अथर् को जानने के िलये बहुत सारे प्रश्न हैं इसका केन्द्रीय सन्देश िबलकुल स्पष्ट ह ैपरमेश्वर हमें कष्टों और सताव से नहीं बचाएगा। यह और भी बुरा होता जाएगा। परमेश्वर ने हमें कष्टों के बीच में भी िवश्वासयोग्य होने के िलये बुलाया ह।ै यिद हम अन्त तक िवश्सवासयोग्य बने रहें तो हमें ईनाम िमलेगा। हम एक नए आकाश और नई पृथ्वी की बाट जोह रह ेहैं जहा ँपर कोई भी कष्ट नहीं होगा, कोई दःुख और पाप नहीं होगा। अन्त में िफर से अदन का बगीचा स्थािपत होगा। हमें इसिलये बनाया गया था िक हम परमेश्वर के साथ सहभािगता करें और हम उस िदन का इन्तजार कर रह ेहैं जब यीशु हमें िफर से घर ले जाने के िलये आएँगे।

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  • पाठ 1

    सृिष्ट और परमेश्वर बाईबल की ५२ मुख्य कहािनयाँ

    मैं इस परचार िक श्रंखला का पिरचय देते हुए कुछ शब्द कहना चाहता हँू। जब मैंने यह एहसास िकया िक मैं सेिमनरी में िशक्षा देने का कायर् छोड़ कर परचार की सेवकाई में आऊंगा, यहा ँका मैं हँू, तो एक श्रंखला जो मैं करना चाहता था, वह थी, “बाईबल की ५२ मुख्य घटनाएँ”यह कुछ ऐसा था िजसे मैं करने के पीछे पड़ा हुआ था और अब वह समय आ पहुचंा ह।ै और इसिलए आज सुबह हम बाईबल की ५२ मुख्य घटनायों के ऊपर श्रंखला शुरू करेंग ेजो िक बाईबल िक ५२ मुख्य कहािनओं पर आधािरत ह।ै शायद सुधार के समय से लेकर कभी भी अमेिरका में बाईबल की इतनी अनपढ़ता नहीं थी िजतनी आज पाई जाती ह।ै दभुार्ग्य से बहुत सारी जगहों पर, यिद सभी जगहों पर नहीं तो, कलीिसया एक मील चौड़ी ह ैऔर एक इंच गिहरी ह।ै और परमेश्वर ने इस के िवषय में ऐसा नहीं सोचा था।

    मैंने एक पास्टर के िवषय में एक वषर् पिहले सुना था जो िकसी कान्फरंस में बोल रहा था और उसने लोगों का एक सवेर्क्षण िकया, और उसके प्रश्न जो उसने पूछे थ ेउनमें से एक प्रश्न यह था, “बाईबल में एक व्यिक्त की कहानी ह ैिजस ेएक बड़ी मछली ने िनगल िलया था, वह कौन होगा?” उस झणु्ड के ८०% लोगों ने पूरे यकीन के साथ कहा, “Pinocchio!” मारला ने सभा के दौरान मुझे बताया था िक यही प्रश्न एक चचर् में पुछा गया यहाँ पर वह दिक्षणी कैिलफ़ोिनर् या में वह सेवकाई कररह ेथ ेऔर जवानों के झणु्ड में भी यही उत्तर िमला; जो बच्चे चचर् में बड़ ेहुए थे उन्होंने सोचा यह Pinocchio था।

    पास्टर ने िफर उनसे कहा, मैं सोचता हँू िक अभी वह ऐसे नहीं करते ह,ै परन्तु फूटबाल के से्टिडयम में गोल की जगह के पीछे एक िचन्ह हुआ करता था, और उस िचन्ह पर िलखा होता था युहन्ना और एक तीन अक्षर और िफर दो : और सोलह और उसने लोगों से पुछा, “इसका क्या अथर् ह?ै” और वह इसके ऊपर थोड़ ेपरेशान हो गए, क्योंिक उन्हें पता नहीं था। परन्तु बहुत से लोगों का उत्तर था िक यह जॉन मैडने का भार था। दसुरे कुछ लोगों ने सोचा िक यह बाथरूम की और जान ेका अजीब इशारा ह।ै मैं मजाक नहीं कर रहा हँू, आप सभी! उनको नहीं पता था िक यह एक बाईबल की आयत ह।ै

    बाईबल की साक्षरता

    हम बाईबल की अनपढ़ता के िदनों में रहते ह ैऔर मैं नहीं जानता िक हम कहाँ हैं। मैं यह यकीन बनाना चाहता हँू िक हम इस कहािनयों को जानते ह।ै बाईबल अपनी बहुत सी िशक्षा कहिनयों के माध्यम से देती ह ैऔर मैं इस बात का यकीन बनाना चाहता हँू िक हम सभी बाईबल की कहािनयों को जाने। मैं इस बात का यकीन बनाना चाहता हँू िक हम बाईबल की ५२ मुख्य कहािनयों को जाने। और बच्चों की कलीिसया में, एक और बात उनको भी वही कहानी िसखाई जा रही ह ैजो आपको िसखाई जा रही ह।ै इसिलए आप घर जाकर अपने बच्चों से बात करसकत ेह ैऔर कहें, “आपने चचर् में क्या सीखा?” उनको भी वही बातें िसखाई जाएंगी जो आपको िसखाई जा रहीं ह।ै मैं इस बात का यकीन बनाना चाहता हँू िक हम कहािनयों को जानते हैं।

    धमर्शास्त्र

    धमर्शास्त्र की िशक्षा का महत्व

    परन्तु मैं यह भी यकीन बनाना चाहता हँू िक हम धमर्शास्त्र को जानते ह।ै कहानी महज कहानी सुनाने के िलये नहीं बताई जा रही, परन्तु यह इसिलए बताई जा रही ह ैिक यह इसमें धमर्शास्त्र की िशक्षा का महत्व को बता सके। धमर्शास्त्र की िशक्षा का महत्ता को बता सकें । मैं इस बात का यकीन बनाना चाहता हँू िक हम इस को जानते ह।ै क्या आप जानत ेह,ै उदाहरण के िलए िक योना की पुस्तक का पूणर् अथर् क्या ह?ै क्या आप जानते हैं िक वह मछली िबलकुल आकिस्मक ह।ै इस कहानी से बहुत कम प्रासंिगकता ह ैक्योंिक उस समय के

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  • यहूदी यह िवश्वास करते थे िक भौगोिलक रीित से और राष्ट्र के रूप में परमेश्वर मात्र इस्राएल का परमेश्वर ह।ै इस िलए जब परमेश्वर योना को नीन्वेह को जाकर प्रचार करने के िलए कहता ह,ै वह जाता ह,ै “नहीं कभी नहीं, वह यहूदी नहीं ह!ै परमेश्वर तुम उनकी िचंता नहीं कर सकते हो, वह अन्य जाती के हैं। मैं जानता हँू मैं क्या करंूगा, मैं इस्राएल की सीमायों स ेदरू भाग जाऊंगा तािक परमेश्वर मुझे पकड़ न पाए” और योना की पुस्तक यह कहती ह ैिक परमेश्वर भौगोिलक रीित पर राष्ट्र की रीित पर इस्राएल से बड़ा ह।ै मेरा यही अथर् ह ैजब मैं कहता हँू िक धमर् िशक्षा इन कहािनयों में से आ रही ह।ै और मैं यकीन बनाना चाहता हँू िक मैं उन्हें जानता हँू।

    बाइबल के कुल िमलाकर संरचना

    और तीसरी बात मैं यहाँ पर यकीनन करना चाहता हँू िक हम वचन की पूणर् संरचना से वािकफ हैं। धमर् शाश्त्र वास्तव में एक कहानी ह।ै यह सृिष्ट से शुरू होती ह ैऔर यह नये स्वगर् और पृथ्वी पर जाकर यीशु के आमने साम्हने जीत ेहुए खत्म होती ह।ै यह एक कहानी ह,ै और मैं कई बार सोचता हँू िक हम छोटे छोटे टुकड़ों में इसे जानते हैं, परन्तु हम यह नहीं जानते हैं िक यह कहाँ पर िफट होती ह।ै मैं चाहता हँू िक हम बाहाव को सम्झें और यह देखें िक टुकड़ ेकहाँ पर िफट होते हैं इसिलए आने वाले ५२ या और संदेशों में हम इन कहानीयों के िवषय में बात करने जा रह ेहैं। अब मैं इस श्रंखला को समय के अनुसार िवभािजत करने जा रहा हँू। हम िक्रसमस और ईस्टर पर ब्रेक लेंगे और शायद आने वाली गमीर् ऋतू में हम रुकें गे। िकसी भी श्रंखला में कुछ समय के पश्चात हमें ब्रेक लेनी चािहए। और मेरा यह अंदाजा ह ैिक इसको पूरा करने के ऊपर १ वषर् ६ महीने लग जायेंगे। और इसी के ऊपर मैं आने वाले १ वषर् और ६ महीने तक ध्यान देने जा रहा हँू। और आप इसकी बाट जो सकते हैं।

    उत्पित १

    आज की सुबह हम उत्पित १ की और देखने जा रह ेहैं। शुरुआत से शुरू करना हमेशा अच्छा होता ह ैऔर इसिलए मैं उत्पित १ में सृिष्ट की कहानी से शुरू करना चाहता हँू। उत्पित १ बाईबल से २-३ महत्वपूणर् अध्यायों में से एक ह।ै क्योंिक यह आने वाली सभी वस्तुओं की नींव रखता ह।ै

    जैसे आप पुराने िनयम में से जाते हैं और आप नयें िनयम में जाते हैं, आप देख सकत ेहैं िक लेखक बार बार सृिष्ट की और जात ेहैं और सृिष्ट में से सत्य को खींचते हैं जो उनके समय में उपयुक्त था और उनकी िस्थित में उपयुक्त था। और उत्पित १ धमर्शास्त्र की नींव रखने में बहुत ही अच्छा कायर् करता ह।ै और वास्तव में यह इतना अच्छा कायर् करता ह,ै यह धमर्शास्त्र की िशक्षा से इतना भरा हुआ ह ैिक मैं िकतनी भी कोिशश करंू इस े३० िमनट में समेट नहीं सकता हँू। और मैं आशा करता हँू िक िकसी और अध्याय के साथ मुझे ऐसा न करना पड़गेा, परन्तु हम उत्पित १ को दो िभन्न िभन्न संदेशों में िवभािजत करेंगे। क्योंिक यहाँ पर बहुत ज्यादा ह।ै

    परन्तु उत्पित १ बहुत भरा होने के साथ साथ बहुत ही िववादपूणर् भी ह।ै यह िववादपूणर् ह ैक्योंिक कुछ लोगों के अनुसार यह िवज्ञान के साथ मेल नहीं खाता ह।ै और इस से िववाद पैदा हो जाता ह।ै मैं एक बहुत ही अदभु्त टीका उत्पित के ऊपर पढ़ रहा था, यह िजतने टीके मैंने पढ़ें हैं उनमें से सब से अच्छा था, मुझे इसका आनंद आ रहा था। यह धमर्शास्त्र की िशक्षा से भरा हुआ था, यह पद का िववरण दे रहा था। और लेखक उस जगह पर जाता ह ैयहाँ पर वह ६ िदनों की बात करता ह।ै क्या वह वह ६ िदन २४ घंटे वाले समय हैं? क्या वह ६ कथाएं थी? क्या यह सािहित्यक संरचना ह ैिजसका इस्तेमाल धमर् शाश्त्र के सत्य बताने के िलए िकया गया? वह इन प्रश्नों पर कायर् करने की कोिशश कर रहा था। और उसने सब से अदभु्त बात कही, उसने कहा, “सभी िवज्ञानी यह मानत ेहैं िक संसार ६ िदनों में नहीं बना होगा, और इस िलए जािहर ह ैिक उत्पित इसकी िशक्षा नहीं दे रही ह”ै और मैंने इसकी और देखा और मैंने कहा, “सुखद दखु! यहाँ पर एक संसार का प्रिसद्ध शाश्त्री ह ैऔर वह बहुत ही सुसमाचार की िवचारधारा वाला ह ैऔर क्योंिक िवज्ञानी सोचते हैं िक परमेश्वर संसार को ६ िदन २४ घंटे वालों में नहीं बना सकता। मेरा अथर् ह,ै मैं हरैान रह गया जब मैंने इसे पढ़ा। परन्तु एक िववाद ह ैऔर हमें इससे अवगत होना चािहए।

    परन्तु उत्पित १ के ऊपर कलीिसया में भी एक िववाद ह ैऔर यह बूढ़ ेलोगों और जवान लोगों के बीच में बहस का मुद्दा ह।ै परन्तु उन मुद्दों के ऊपर मेरी कोई भी िस्थित या आपकी कोई भी िस्थित हो, मैं सब से पहले यह सोचता हँू िक उत्पित १ धमर्शाश्त्र की िशक्षा के साथ भरा हुआ ह।ै जब सब कुछ एक और रख िदया जाता ह,ै तो मुख्य उदेश्य होता ह ै िक हम धमर् शाश्त्र के अनुसा र यह िशक्षा दें िक सृिष्टकरता कौन ह ैऔर सृिष्ट क्या ह।ै और यह बातें, यह धमर्शाश्त्र की चुनौितयां यह िवज्ञानं और इितहास और कालक्रम से कहीं ज्यादा महत्वपूणर् हैं। मैं यह नहीं कहता िक यह बातें महत्वपूणर् नहीं हैं, परन्तु यह जो उत्पित १ मुख्य तौर पर हमें कहन ेकी कोिशश कर रही ह ै

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  • उसकी तुलना में यह दसुरे स्थान पर आती हैं। और समस्या यह हैं िक हम इन बहसों में पड़ जात ेहैं और हम अक्सर मुख्य प्रश्न से हमारे ध्यान को हटा देते हैं। और हम जवान पृथ्वी और बूढ़ी पृथ्वी की बहस में इतना फंस जात ेहैं िक हम भूल जात ेहैं िक उत्पित १ हमें परमेश्वर के चिरत्र के िवषय में िशक्षा देती ह।ै और उत्पित १ ह ैिक हमें वह सृिष्ट के चिरत्र के िवषय में िशक्षा दे। मैं यहाँ पर गलती नहीं करना चाहता हँू। और मैं यहाँ पर क्या करना चाहता हँू िक मैं उत्पित १ की मुख्य िशक्षा को दूँ और यह धमर् शाश्त्र के अनुसार ह ैजब यह बात परमेश्वर और सृिष्ट के िवषय में बात करती ह।ै

    और यह कहने के पश्चात आयें बाईबल के पहले अध्याय को देखें।

    उत्पित १। “आिद में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृिष्ट की। और पृथ्वी बेडौल और सुनसान पड़ी थी; और गहरे जल के ऊपर अिन्धयारा था: तथा परमेश्वर का आत्मा जल के ऊपर मण्डलाता था” पहली आयत शीिषर् क की तरह ह।ै यह वह शीिषर् क ह ैजो पूरे अध्याय के ऊपर बैठता ह ैऔर शायद पहले कई अध्यायों के ऊपर। यह उत्पित १ के केन्द्रीय सत्य को अिभपुष्ट करता ह।ै उत्पित १ का केन्द्रीय सत्य ह ैिक परमेश्वर हर एक वस्तु का अकेला श्रृिष्टकरता ह।ै िक परमेश्वर हर एक वस्तु का अकेला श्रृिष्टकरता ह।ै िक मात्र परमेश्वर ही ह ैिजसके पास सृिष्ट करन ेकी सामथर् और ज्ञान ह ैऔर परमेश्वर मात्र परमेश्वर सब कुछ जो उसने बनाया ह ैप्रभु ह।ै

    अब बहुत सी बातें ह ैिजनको िसखाने की मूसा िचंता नही करता ह।ै वह परमेश्वर के अिस्तत्व को सािबत करने की िचंता नहीं करता ह।ै वह इस बात से िचंतत नहीं ह ैिक परमेश्वर ने मैट्र बनाया हालाँिक एक सम्भावना इस शीिषर् क में ह,ै स्वगर् और पृथ्वी को मरिजम कहा गया ह।ै यहाँ पर आप उलटे का इस्तेमाल करते हैं िक आप सब कुछ िदखा सकें । परन्तु मूसा के िलए यह बातें महत्वपूणर् नहीं हैं। मूसा के िलए जो महत्वपूणर् ह ैवह २ आयत में हैं, वह सृिष्ट की कहानी के िववरण में प्रवेश करना चाहता ह।ै इस बात को बतान ेके पश्चात िक परमेश्वर ने यह िकया वह सृिष्ट की कहानी के िववरण में प्रवेश करना चाहता ह।ै और २ आयत में संसार को देखें: “और पृथ्वी बेडौल और सुनसान पड़ी थी; और गहरे जल के ऊपर अिन्धयारा था: तथा परमेश्वर का आत्मा जल के ऊपर मण्डलाता था और वह कायर् करने के िलए तैयारी कर रहा ह।ै यह ह ै२ आयत।

    सृिष्ट के सात िदन

    और हम सृिष्ट के छह िदनों में प्रवेश करते हैं। आयें हम सृिष्ट के छह िदनों की और देखतें ह ैऔर देखतें हैं िक १, २ और ३ िदन को क्या बांधता ह,ै और ४, ५, और ६ िदन को आप में क्या बांधता हैं। यदिप इन सभी िदनों में िवशेषता ह,ै परन्तु एक शीषर्क ह ैजो सृिष्ट के पहल ेतीन िदनों में बहता ह ैऔर वही इनको आपस में बाँध कर रखता ह।ै और एक अलग शीषर्क िदन ४, ५ और ६ में बहता ह।ै

    िदन १ और २ और ३ को कौन से शीषर्क ह ैजो आपस में बांधते हैं? यह सृिष्ट के तीन िदन िदखाते हैं िक परमेश्वर कुछ को जो िक रहने योग्य अथवा वास करने योग्य नहीं था उसे लेता ह,ै और इसे रहने योग्य बना देता ह।ै सृिष्ट के पहल ेतीन िदन परमेश्वर के अस्तव्यस्तता और िनराकार और खालीपन के बीच में से चलने के िवषय में ह ैऔर उसे संरिचत बनाने के िवषय में और आिदष्ट बनाने के िवषय में और इसे ऐसी जगह बनाने के िवषय में ह ैिजस में वह वास कर सके। २ और ३ िदन पृथ्वी को रहने योग्य बनाने के िवषय में हैं। मैं सोचता हँू िक यह वह शीषर्क ह ैजो इन तीन िदनों को आपस में बांधता ह।ै

    िदन १ – ज्योित

    इसिलए १ िदन के बीच में मूसा ३ आयत से शुरू करता ह,ै “तब परमेश्वर ने कहा, उिजयाला हो: तो उिजयाला हो गया। और परमेश्वर ने उिजयाले को देखा िक अच्छा ह;ै और परमेश्वर ने उिजयाले को अिन्धयारे से अलग िकया।

    और परमेश्वर ने उिजयाले को िदन और अिन्धयारे को रात कहा। तथा सांझ हुई िफर भोर हुआ। इस प्रकार पिहला िदन हो गया” पिहल ेिदन में परमेश्वर ने ज्योित की सृिष्ट की और ज्योित क्या करती ह?ै यह अलग करती ह;ै यह क्रम लेकर आती ह;ै यह िदन को रात से अलग करती ह।ै और यह ह ैिदन १ की सृिष्ट।

    आप देखें िक ब्रह्मांड और इसस ेआगे की अंितम सामथर्; परमेश्वर मात्र बोलता ह ैऔर सृिष्ट हो जाती ह।ै वह बोलता ह ैऔर अस्तव्यस्तता में क्रम ले आता ह;ै यह ह ैजब परमेश्वर बोलता ह,ै वह वस्तुयों को सही कर देता ह।ै मैं जानता हँू िक यह हम सभी की जानी पहचानी कहानी ह,ै और जब वस्तुएं आम हो जाती हैं तो हम अक्सर जो वह कह रह ेह ैउसे खो देत ेहैं।

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  • इसके िवषय में सोचें: परमेश्वर साधारण रीित से बोल सकता ह,ै िजस परमेश्वर की हम इस वक्त अराधना कर रहें हैं, िजस परमेश्वर के िवषय में हम इस समय गा रह ेहैं, िजस परमेश्वर की हम सेवा करत ेहैं, िजस परमेश्वर के आगे हम प्राथर्ना करते हैं, वह बोल सकता ह ैऔर ब्रह्मांड बन जाता ह।ै आपका परमेश्वर िकतना बड़ा ह?ै मेरा अथर् ह,ै यह ह ैप्रश्न, या नहीं? आपका परमेश्वर िकतना बड़ा ह?ै मेरा अथर् ह ैिक यह ह ैप्रश्न या नहीं? आपका परमेश्वर िकतना बड़ा ह?ै हम उसकी आराधना करते हैं, उसकी सेवा करत ेहैं, वह हमें बुलाता ह ैिक हम उसका पीछा करें, वह हमें बुलाता ह ैिक हम उसे प्रेम करें। यह परमेश्वर िकतना बड़ा ह?ै ठीक ह,ै मैं आपको बताता हँू िक यह परमेश्वर िकतना बड़ा ह।ै वह परमेश्वर इतना बड़ा ह ैिक उसने सूयर् के िबना ज्योित को बना िदया। क्या आप ने यह देखा ह?ै सूयर्, चाँद और तारे चौथे िदन तक नहीं आते हैं। परन्तु परमेश्वर को ज्योित बनाने के िलए सूयर् की आवश्यकता नहीं ह।ै उसे ज्योित बनाने के िलए तारों की आवश्यकता नहीं ह।ै

    मेरी कामना ह ैिक मेरे पास समय होता ह ैिक मैं आपके आगे कुछ मूितर् पूजक लोगों की सृिष्ट की िमथक कथाओं को पढ़ पाता। वह बहुत ही रौिचक हैं। उनमे से एक प्रिसद्ध ह ैअनुमा इिलश की कथा, यह एक बाबल की कहानी ह ैऔर यह एक इस तरह का सािहत्य ह ैयहाँ पर गडबडी ह ैऔर अस्तव्यस्तता ह ैऔर देवते और तारे और समुन्द्र के जंतु और राक्षश सभी एक दसुरे के साथ युद्ध कर रहें हैं और एक दसुरे के िसरों को काट रहें हैं और एक दसुरे को िमटा रह ेहैं। और ितअमुट्स की आँखों में प्रहार होता ह ैऔर उसकी आँखों में से िटगिरस और यूफरातेस निदयाँ बहने लग जाती ह।ै और इस तरह के संसार में उत्पित १ को िलखा गया ह,ै एक संसार िजसम ेतारों में शिक्त ह,ै और अिधकारी मनुष्य जीवन को िनयं ित्रत करते ह ैऔर मनुष्य की मंिजल को िनयंित्रत करते हैं। और मूसा िलखता ह,ै उिजयाला हो जाये। मुझे अपनी ज्योित बनाने के िलए तारों की भी आवश्यकता नहीं ह”ै िदन १

    िदन २ – फैलाव (आसमान)

    िदन २ छह आयत से शुरू होता ह,ै “िफर परमेश्वर ने कहा, जल के बीच एक ऐसा अन्तर हो िक जल दो भाग हो जाए। तब परमेश्वर ने एक अन्तर करके उसके नीचे के जल और उसके ऊपर के जल को अलग अलग िकया; और वैसा ही हो गया। और परमेश्वर ने उस अन्तर को आकाश कहा। तथा सांझ हुई िफर भोर हुआ। इस प्रकार दसूरा िदन हो गया” सृिष्ट के दसुरे िदन परमेश्वर ने आकाश को बनाया िक वह िफर से ऊपर के पानी अथार्त बादलों को और नीचे के पानी से अलग करे। वह अस्त्वस्त्ता में क्रम लेकर आ रहा ह।ै वह संसार को रहने योग्य बना रहा ह।ै

    िदन ३ – समुन्द्र को सूखी भूिम से अलग कर े- वनस्पित उगाने के िलए

    िदन ३ और परमेश्वर ने कहा, “ िफर परमेश्वर ने कहा, आकाश के नीचे का जल एक स्थान में इकट्ठा हो जाए और सूखी भूिम िदखाई दे; और वैसा ही हो गया” देखें जब परमेश्वर बोलता ह ैतो वैसा ही होता ह।ै और परमेश्वर ने सूखी भूिम को पृथ्वी कहा; तथा जो जल इकट्ठा हुआ उसको उसने समुद्र कहा: और परमेश्वर ने देखा िक अच्छा ह”ै और िफर लड़ी टूटती ह ैऔर परमेश्वर के सृिष्ट के कायर् का यह तीसरा िदन ह।ै “िफर परमेश्वर ने कहा, पृथ्वी से हरी घास, तथा बीज वाले छोटे छोटे पेड़, और फलदाई वृक्ष भी िजनके बीज उन्ही में एक एक की जाित के अनुसार होते हैं पृथ्वी पर उगें; और वैसा ही हो गया। तो पृथ्वी से हरी घास, और छोटे छोटे पेड़ िजन में अपनी अपनी जाित के अनुसार बीज होता ह,ै और फलदाई वृक्ष िजनके बीज एक एक की जाित के अनुसार उन्ही में होत ेहैं उगे; और परमेश्वर ने देखा िक अच्छा ह।ै तथा सांझ हुई िफर भोर हुआ। इस प्रकार तीसरा िदन हो गया”

    तीसरे िदन परमेश्वर न ेजल को अलग िकया और हमारे पास भूिम थी। और उस भूिम से परमेश्वर ने कहा, “वनस्पित और फल पैदा करे” इस बात पर मूसा को कृपया सुने, िवशेष रीित से आप जो हाई सू्कल या कॉलेज में हैं। भूिम के पास योग्यता नहीं ह ैवह जीवन पैदा कर सके। पीिरयड। पृथ्वी के पास जीवन पैदा करने की योग्यता नहीं ह ैऔर इसमें कोई जन्मजात योग्यता नहीं ह ैिक यह कर सके। भूिम वनस्पित पैदा करती ह ैक्योंिक परमेश्वर ने इसे पैदा करने के िलए कहा। परमेश्वर सब कुछ को अपने द्वारा रचने के व्यवसाय में ह।ै उसे िकसी की सहायता की आवश्यकता नहीं ह,ै िवशेष रीित से पृथ्वी पर। बाईबल में धरती माता नाम की कोई िवचारधारा नहीं ह।ै यह िवचारधारा नहीं ह ैचाह ेआप इसे िकतनी भी बार सुने। यह सत्य नहीं ह।ै शुरू में परमेश्वर ने सृिष्ट की। परमेश्वर ने इसे भूिम में बोला और भूिम ग्लेंन डोिबन गेंहँू पैदा कर रही ह ैक्योंिक परमेश्वर ने इसे ऐसा करने के िलए कहा।

    इसिलए आप के पास सृिष्ट के तीन िदन हैं। आप के पास अस्त्व्यस्त आकार रहत संसार ह ैिजस ेिहलाया जा रहा ह ैऔर अकार िदया जा रहा ह।ै आप देखें िक वनस्पित कैसे अपनी िकस्म के अनुसार पैदा करती ह।ै देखें परमेश्वर ने सब कुछ क्रमवार िकया ह ैऔर परमेश्वर