प्रेमचंद - kishore karuppaswamy€¦  · web viewमालिक- भाई,...

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Page 1: प्रेमचंद - Kishore Karuppaswamy€¦  · Web viewमालिक- भाई, यही तो बड़े आदमियों की बातें है।

पे्रमचंद

Page 2: प्रेमचंद - Kishore Karuppaswamy€¦  · Web viewमालिक- भाई, यही तो बड़े आदमियों की बातें है।

क्रम

त्रि�याचरि� : 3मिमलाप : 20मनावन : 27अंधे : 38सि�र्फ� एक आवाज : 44

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Page 3: प्रेमचंद - Kishore Karuppaswamy€¦  · Web viewमालिक- भाई, यही तो बड़े आदमियों की बातें है।

त्रि�या-चरि��

ठ लगनदा� जी के जीवन की बत्रिगया र्फलहीन थी। कोई ऐ�ा मानवीय, आध्यात्मि*मक या सिचत्रिक*�ा*मक प्रय*न न था जो उन्होंने न त्रिकया हो। यों शादी में एक प*नीव्रत के

कायल थे मग जरुत औ आग्रह �े त्रिववश होक एक-दो नहीं पॉँच शादिदयॉँ कीं, यहॉँ तक त्रिक उम्र के चाली� �ाल गुजए गए औ अँधेे घ में उजाला न हुआ। बेचाे बहुत ंजीदा हते। यह धन-�ंपत्तिA, यह ठाट-बाट, यह वैभव औ यह ऐश्वय� क्या होंगे। मेे बाद इनका क्या होगा, कौन इनको भोगेगा। यह ख्याल बहुत अर्फ�ो�नाक था। आखिK यह �लाह हुई त्रिक त्रिक�ी लड़के को गोद लेना चात्रिहए। मग यह म�ला पारिवारिक झगड़ों के काण के �ालों तक स्थत्रिगत हा। जब �ेठ जी ने देKा त्रिक बीत्रिवयों में अब तक बदस्तू कशमकश हो ही है तो उन्होंने नैत्रितक �ाह� �े काम सिलया औ होनहा अनाथ लड़के को गोद ले सिलया। उ�का नाम Kा गया मगनदा�। उ�की उम्र पॉँच-छ: �ाल �े ज्यादा न थी। बला का जहीन औ तमीजदा। मग औतें �ब कुछ क �कती हैं, दू�े के बचे्च को अपना नहीं �मझ �कतीं। यहॉँ तो पॉँच औतों का �ाझा था। अग एक उ�े प्या कती तो बाकी चा औतों का र्फज्र था त्रिक उ��े नर्फत कें। हॉँ, �ेठ जी उ�के �ाथ त्रिबलकुल अपने लड़के की �ी मुहब्बत कते थे। पढ़ाने को मास्ट क्Kें, �वाी के सिलए घोडे़। ई�ी ख्याल के आदमी थे। ाग-ंग का �ामान भी मुहैया था। गाना �ीKने का लड़के ने शौक त्रिकया तो उ�का भी इंतजाम हो गया। गज जब मगनदा� जवानी प पहुँचा तो ई�ाना दिदलचास्पि\यों में उ�े कमाल हासि�ल था। उ�का गाना �ुनक उस्ताद लोग कानों प हाथ Kते। शह�वा ऐ�ा त्रिक दौड़ते हुए घोडे़ प �वा हो जाता। डील-डौल, शक्ल �ूत में उ�का-�ा अलबेला जवान दिदल्ली में कम होगा। शादी का म�ला पेश हुआ। नागपु के कोड़पत्रित �ेठ मक्Kनलाल बहुत लहाये हुए थे। उनकी लड़की �े शादी हो गई। धूमधाम का जिजक्र त्रिकया जाए तो त्रिकस्�ा त्रिवयोग की ात �े भी लम्बा हो जाए। मक्Kनलाल का उ�ी शादी में दीवाला त्रिनकल गया। इ� वक्त मगनदा� �े ज्यादा ईर्ष्याया� के योग्य आदमी औ कौन होगा? उ�की जिजन्दगी की बहा उमंगों प भी औ मुादों के रू्फल अपनी शबनमी ताजगी में खिKल-खिKलक हुस्न औ ताजगी का �माँ दिदKा हे थे। मग तकदी की देवी कुछ औ ही �ामान क ही थी। वह �ै-�पाटे के इादे �े जापान गया हुआ था त्रिक दिदल्ली �े Kब आई त्रिक ईश्व ने तुम्हें एक भाई दिदया है। मुझे इतनी Kुशी है त्रिक ज्यादा अ�d तक जिजन्दा न ह �कँू। तुम बहुत जल्द लौट आओं।

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मगनदा� के हाथ �े ता का कागज छूट गया औ � में ऐ�ा चक्क आया त्रिक जै�े त्रिक�ी ऊँचाई �े त्रिग पड़ा है।

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गनदा� का त्रिकताबी ज्ञान बहुत कम था। मग स्वभाव की �ज्जनता �े वह Kाली हाथ न था। हाथों की उदाता ने, जो �मृजिj का वदान है, हृदय को भी उदा बना

दिदया था। उ�े घटनाओं की इ� कायापलट �े दुK तो जरु हुआ, आखिK इन्�ान ही था, मग उ�ने धीज �े काम सिलया औ एक आशा औ भय की मिमली-जुली हालत में देश को वाना हुआ।

मात का वक्त था। जब अपने दवाजे प पहुँचा तो नाच-गाने की महत्रिर्फल �जी

देKी। उ�के कदम आगे न बढे़ लौट पड़ा औ एक दुकान के चबूते प बैठक �ोचने लगा त्रिक अब क्या कना चात्रिहऐ। इतना तो उ�े यकीन था त्रिक �ेठ जी उ�क �ाथ भी भलमन�ी औ मुहब्बत �े पेश आयेंगे बस्पिल्क शायद अब औ भी कृपा कने लगें। �ेठात्रिनयॉँ भी अब उ�के �ाथ गैों का-�ा वता�व न केंगी। मुमत्रिकन है मझली बहू जो इ� बचे्च की Kुशन�ीब मॉँ थीं, उ��े दू-दू हें मग बाकी चाों �ेठात्रिनयों की तर्फ �े �ेवा-�*का में कोई शक नहीं था। उनकी डाह �े वह र्फायदा उठा �कता था। ताहम उ�के स्वात्तिभमान ने गवाा न त्रिकया त्रिक जिज� घ में मासिलक की हैसि�यत �े हता था उ�ी घ में अब एक आत्तिnत की हैसि�यत �े जिजन्दगी ब� के। उ�ने रै्फ�ला क सिलया त्रिक �ब यहॉँ हना न मुनासि�ब है, न म�लहत। मग जाऊँ कहॉं? न कोई ऐ�ा र्फन �ीKा, न कोई ऐ�ा इल्म हासि�ल त्रिकया जिज��े ोजी कमाने की �ूत पैदा होती। ई�ाना दिदलचस्पि\यॉँ उ�ी वक्त तक कद्र की त्रिनगाह �े देKी जाती हैं जब तक त्रिक वे ई�ों के आभूषण हें। जीत्रिवका बन क वे �म्मान के पद �े त्रिग जाती है। अपनी ोजी हासि�ल कना तो उ�के सिलए कोई ऐ�ा मुस्पिrकल काम न था। त्रिक�ी �ेठ-�ाहूका के यहॉँ मुनीम बन �कता था, त्रिक�ी काKाने की तर्फ �े एजेंट हो �कता था, मग उ�के कन्धे प एक भाी जुआ क्Kा हुआ था, उ�े क्या के। एक बडे़ �ेठ की लड़की जिज�ने लाड़-प्या मे परिवरिश पाई, उ��े यह कंगाली की तकलीर्फें क्योंक झेली जाऍंगीं क्या मक्Kनलाल की लाड़ली बेटी एक ऐ�े आदमी के �ाथ हना प�न्द केगी जिज�े ात की ोटी का भी दिठकाना नहीं ! मग इ� त्रिर्फक्र में अपनी जान क्यों Kपाऊँ। मैंने अपनी मजu �े शादी नहीं की मैं बाब इनका कता हा। �ेठ जी ने जबद�स्ती मेे पैों में बेड़ी डाली है। अब वही इ�के जिजम्मेदा हैं। मुझ �े कोई वास्ता नहीं। लेत्रिकन जब उ�ने दुबाा ठंडे दिदल �े इ� म�ले प गौ त्रिकया तो वचाव की कोई �ूत नज न आई। आखिKका उ�ने यह रै्फ�ला त्रिकया त्रिक पहले नागपु चलँू, जा उन महाानी के तौ-तीके को देKँू, बाह-ही-बाह उनके स्वभाव की, मिमजाज की जॉँच करँू। उ� वक्त तय करँूगा त्रिक मुझे क्या कके चात्रिहये। अग ई�ी की बू उनके दिदमाग �े त्रिनकल गई है औ मेे �ाथ रूKी ोदिटयॉँ Kाना उन्हें मंजू है, तो इ��े अच्छा त्रिर्फ औ क्या, लेत्रिकन अग वह अमीी ठाट-बाट के हाथों त्रिबकी हुई हैं तो मेे सिलए ास्ता �ार्फ है। त्रिर्फ मैं हँू औ दुत्रिनया का गम। ऐ�ी जगह जाऊँ जहॉँ त्रिक�ी परिसिचत की �ूत �पने में भी न दिदKाई दे। गीबी की जिजल्लत नहीं हती, अग अजनत्रिबयों में जिजन्दगी ब�ा की जाए। यह जानने-पहचानने वालों की कनखिKयाँ औ कनबत्रितयॉँ हैं जो गीबी को यन्�णा बना देती हैं। इ� तह दिदल में जिजन्दगी का नक्शा बनाक मगनदा� अपनी मदा�ना त्रिहम्मत के भो�े प

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नागपु की तर्फ चला, उ� मल्लाह की तह जो त्रिकrती औ पाल के बगै नदी की उमड़ती हुई लहों में अपने को डाल दे।

म के वक्त �ेठ मक्Kनलाल के �ंुद बगीचे में �ूज की पीली त्रिकणें मुझाये हुए रू्फलों �े गले मिमलक त्रिवदा हो ही थीं। बाग के बीच में एक पक्का कुऑं था औ

एक मौलसि�ी का पेड़। कँुए के मुँह प अंधेे की नीली-�ी नकाब थी, पेड़ के सि� प ोशनी की �ुनही चाद। इ�ी पेड़ में एक नौजवान थका-मांदा कुऍं प आया औ लोटे �े पानी भक पीने के बाद जगत प बैठ गया। मासिलन ने पूछा- कहॉँ जाओगे? मगनदा� ने जवाब दिदया त्रिक जाना तो था बहुत दू, मग यहीं ात हो गई। यहॉँ कहीं ठहने का दिठकाना मिमल जाएगा?

शा

मासिलक- चले जाओ �ेठ जी की धम�शाला में, बडे़ आाम की जगह है।मगनदा�-धम�शाले में तो मुझे ठहने का कभी �ंयोग नहीं हुआ। कोई हज� न हो तो

यहीं पड़ा हँू। यहाँ कोई ात को हता है?मासिलक- भाई, मैं यहॉँ ठहने को न कहूँगी। यह बाई जी की बैठक है। झोKे में

बैठक �े त्रिकया कती हैं। कहीं देK-भाल लें तो मेे सि� में एक बाल भी न हे।मगनदा�- बाई जी कौन? मासिलक- यही �ेठ जी की बेटी। इजिन्दा बाई।मगनदा�- यह गजे उन्हीं के सिलए बना ही हो क्या?मासिलन- हॉँ, औ �ेठ जी के यहॉँ है ही कौन? रू्फलों के गहने बहुत प�न्द कती हैं।मानदा�- शौकीन औत मालूम होती हैं?मासिलक- भाई, यही तो बडे़ आदमिमयों की बातें है। वह शौक न कें तो हमाा-तुम्हाा

त्रिनबाह कै�े हो। औ धन है त्रिक� सिलए। अकेली जान प द� लौंत्रिडयॉँ हैं। �ुना कती थी त्रिक भगवान आदमी का हल भूत जोतता है वह ऑंKों देKा। आप-ही-आप पंKा चलने लगे। आप-ही-आप �ाे घ में दिदन का-�ा उजाला हो जाए। तुम झूठ �मझते होगे, मग मैं ऑंKों देKी बात कहती हँू।

उ� गव� की चेतना के �ाथ जो त्रिक�ी नादान आदमी के �ामने अपनी जानकाी के बयान कने में होता है, बूढ़ी मासिलन अपनी �व�ज्ञता का प्रदश�न कने लगी। मगनदा� ने उक�ाया- होगा भाई, बडे़ आदमी की बातें त्रिनाली होती हैं। लक्ष्मी के ब� में �ब कुछ है। मग अकेली जान प द� लौंत्रिडयॉँ? �मझ में नहीं आता।

मासिलन ने बुढ़ापे के सिचड़सिचडे़पन �े जवाब दिदया- तुम्हाी �मझ मोटी हो तो कोई क्या के ! कोई पान लगाती है, कोई पंKा झलती है, कोई कपडे़ पहनाती है, दो हजा रुपये में तो �ेजगाड़ी आयी थी, चाहो तो मुँह देK लो, उ� प हवा Kाने जाती हैं। एक बंगासिलन गाना-बजाना सि�Kाती है, मेम पढ़ाने आती है, शास्�ी जी �ंस्कृत पढ़ाते हैं, कागद प ऐ�ी मूत बनाती हैं त्रिक अब बोली औ अब बोली। दिदल की ानी हैं, बेचाी के भाग रू्फट गए। दिदल्ली के �ेठ लगनदा� के गोद सिलये हुए लड़के �े ब्याह हुआ था। मग ाम जी की लीला �A ब� के मुदd को लड़का दिदया, कौन पत्रितयायेगा। जब �े यह �ुनावनी आई है, तब �े

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बहुत उदा� हती है। एक दिदन ोती थीं। मेे �ामने की बात है। बाप ने देK सिलया। �मझाने लगे। लड़की को बहुत चाहते हैं। �ुनती हँू दामाद को यहीं बुलाक क्Kेंगे। नाायन के, मेी ानी दूधों नहाय पतों र्फले। माली म गया था, उन्होंने आड़ न ली होती तो घ भ के टुकडे़ मॉँगती।

मगनदा� ने एक ठण्डी �ॉँ� ली। बेहत है, अब यहॉँ �े अपनी इज्जत-आबरू सिलये हुए चल दो। यहॉँ मेा त्रिनबाह न होगा। इजिन्दा ई�जादी है। तुम इ� कात्रिबल नहीं हो त्रिक उ�के शौह बन �को। मासिलन �े बोला-ता धम�शाले में जाता हँू। जाने वहॉँ Kाट-वाट मिमल जाती है त्रिक नहीं, मग ात ही तो काटनी है त्रिक�ी तह कट ही जाएगी ई�ों के सिलए मKमली गदे्द चात्रिहए, हम मजदूों के सिलए पुआल ही बहुत है।

यह कहक उ�ने लुदिटया उठाई, डण्डा �म्हाला औ दद�भे दिदल �े एक तर्फ चल दिदया।

उ� वक्त इजिन्दा अपने झोKे प बैठी हुई इन दोनों की बातें �ुन ही थी। कै�ा �ंयोग है त्रिक स्�ी को स्वग� की �ब सि�जिjयॉँ प्राप्त हैं औ उ�का पत्रित आवों की तह माा-माा त्रिर्फ हा है। उ�े ात काटने का दिठकाना नहीं।

गनदा� त्रिनाश त्रिवचाों में डूबा हुआ शह �े बाह त्रिनकल आया औ एक �ाय में ठहा जो सि�र्फ� इ�सिलए मशहू थी, त्रिक वहॉँ शाब की एक दुकान थी। यहॉँ आ�-

पा� �े मजदू लोग आ-आक अपने दुK को भुलाया कते थे। जो भूले-भटके मु�ात्रिर्फ यहॉँ ठहते, उन्हें होसिशयाी औ चौक�ी का व्यावहारिक पाठ मिमल जाता था। मगनदा� थका-मॉँदा ही, एक पेड़ के नीचे चाद त्रिबछाक �ो हा औ जब �ुबह को नींद Kुली तो उ�े त्रिक�ी पी-औसिलया के ज्ञान की �जीव दीक्षा का चम*का दिदKाई पड़ा जिज�की पहली मंजिजल वैाग्य है। उ�की छोटी-�ी पोटली, जिज�में दो-एक कपडे़ औ थोड़ा-�ा ास्ते का Kाना औ लुदिटया-डो बंधी हुई थी, गायब हो गई। उन कपड़ों को छोड़क जो उ�के बद प थे अब उ�के पा� कुछ भी न था औ भूK, जो कंगाली में औ भी तेज हो जाती है, उ�े बेचैन क ही थी। मग दृढ़ स्वभाव का आदमी था, उ�ने त्रिकस्मत का ोना ोया त्रिक�ी तह गुज कने की तदबीें �ोचने लगा। सिलKने औ गत्तिणत में उ�े अच्छा अभ्या� था मग इ� हैसि�यत में उ��े र्फायदा उठाना अ�म्भव था। उ�ने �ंगीत का बहुत अभ्या� त्रिकया था। त्रिक�ी सि�क ई� के दबा में उ�की क़द्र हो �कती थी। मग उ�के पुरुषोसिचत अत्तिभमान ने इ� पेशे को अख्यिख्यता कने इजाजत न दी। हॉँ, वह आला दजd का घुड़�वा था औ यह र्फन मजे में पूी शान के �ाथ उ�की ोजी का �ाधन बन �कता था यह पक्का इादा कके उ�ने त्रिहम्मत �े कदम आगे बढ़ाये। ऊप �े देKने प यह बात यकीन के कात्रिबल नही मालूम होती मग वह अपना बोझ हलका हो जाने �े इ� वक्त बहुत उदा� नहीं था। मदा�ना त्रिहम्मत का आदमी ऐ�ी मु�ींबतों को उ�ी त्रिनगाह �े देKता है,जिज�मे एक होसिशया त्रिवद्याथu पीक्षा के प्रश्नों को देKता है उ�े अपनी त्रिहम्मत आजमाने का, एक मुस्पिrकल �े जूझने का मौका मिमल जाता है उ�की त्रिहम्मत अजनाने ही मजबूत हो जाती है। अक� ऐ�े माकd मदा�ना हौ�ले के सिलए पे्रणा का काम देते हैं। मगनदा� इ�

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जोश़ �े कदम बढ़ाता चला जाता था त्रिक जै�े कायमाबी की मंजिजल �ामने नज आ ही है। मग शायद वहाँ के घोड़ो ने शात औ त्रिबगडै़लपन �े तौबा क ली थी या वे स्वाभात्रिवक रुप बहुत मजे मे धीमे- धीमे चलने वाले थे। वह जिज� गांव में जाता त्रिनाशा को उक�ाने वाला जवाब पाता आखिKका शाम के वक्त जब �ूज अपनी आखिKी मंजिजल प जा पहुँचा था, उ�की कदिठन मंजिजल तमाम हुई। नागघाट के ठाकु अटलसि�हं ने उ�की सिचन्ता मो �माप्त त्रिकया। यह एक बड़ा गाँव था। पक्के मकान बहुत थे। मग उनमें पे्रता*माऍं आबाद थीं। कई �ाल पहले प्लेग ने आबादी के बडे़ त्रिहस्�े का इ� क्षणभंगु �ं�ा �े उठाक स्वग� में पहुच दिदया था। इ� वक्त प्लेग के बचे-Kुचे वे लोग गांव के नौजवान औ शौकीन जमींदा �ाहब औ हल्के के कागुजा ओ ोबीले थानेदा �ाहब थे। उनकी मिमली-जुली कोसिशशों �े गॉँव मे �तयुग का ाज था। धन दौलत को लोग जान का अजाब �मझते थे ।उ�े गुनाह की तह छुपाते थे। घ-घ में रुपये हते हुए लोग कज� ले-लेक Kाते औ र्फटेहालों हते थे। इ�ी में त्रिनबाह था । काजल की कोठी थी, �रे्फद कपडे़ पहनना उन प धब्बा लगाना था। हुकूमत औ जब��दस्ती का बाजा गम� था। अहीों को यहाँ आँजन के सिलए भी दूध न था। थाने में दूध की नदी बहती थी। मवेशीKाने के मुहर्रि� दूध की कुख्यिल्लयाँ कते थे। इ�ी अंधेनगी को मगनदा� ने अपना घ बनाया। ठाकु �ाहब ने अ�ाधाण उदाता �े काम लेक उ�े हने के सिलए एक माकन भी दे दिदया। जो केवल बहुत व्यापक अथ� में मकान कहा जा �कता था। इ�ी झोंपड़ी में वह एक हफ्ते �े जिजन्दगी के दिदन काट हा है। उ�का चेहा जद� है। औ कपडे़ मैले हो हे है। मग ऐ�ा मालूम होता है त्रिक उ� अब इन बातों की अनुभूत्रित ही नही ही। जिजन्दा है मग जिजन्दगी रुK�त हो गई है। त्रिहम्मत औ हौ�ला मुस्पिrकल को आ�ान क �कते है ऑंधी औ तुर्फान �े बचा �कते हैं मग चेहे को खिKला �कना उनके �ामर्थ्यय� �े बाह है टूटी हुई नाव प बैठकी मल्हा गाना त्रिहम्मत काम नही त्रिहमाकत का काम है।

एक ोज जब शाम के वक्त वह अंधे मे Kाट प पड़ा हुआ था। एक औत उ�के दवाजे प आक भीK मांगने लगी। मगनदा� का आवाज त्रिपसिचत जान पडी। बहा आक देKा तो वही चम्पा मासिलन थी। कपडे़ ता–ता, मु�ीबत की ोती हुई त�बी। बोला-मासिलन ? तुम्हाी यह क्या हालत है। मुझे पहचानती हो।?

मासिलन ने चौंकक देKा औ पहचान गई। ोक बोली –बेटा, अब बताओ मेा कहाँ दिठकाना लगे? तुुमने मेा बना बनाया घ उजाड़ दिदया न उ�े दिदन तुुम�े बात कती ने मुझे प यह त्रिबपत पड़ती। बाई ने तुम्हें बैठे देK सिलया, बातेुं भुी �ुनी �ुबह होते ही मुझे बुलाया औ ब� पड़ी नाक कटवा लूँगी, मुंह में कासिलK लगवा दँूगी, चुडै़ल, कुटनी, तू मेी बात त्रिक�ी गै आदमी �े क्यों चलाये? तू दू�ों �े मेी चचा� के? वह क्या तेा दामाद था, जो तू उ��े मेा दुKड़ा ोती थी? जो कुुछ मुंह मे आया बकती ही मुझ�े भी न �हा गया। ानी रुठें गी अपना �ुहाग लेंगी! बोली-बाई जी, मुझ�े क�ू हुआ, लीजिजए अब जाती हँू छींकते नाक कटती है तो मेा त्रिनबाह यहाँ न होगा। ईश्व ने मुंह दिदया हैं तो आहा भी देगा चा घ �े माँगूँगी तो मेे पेट को हो जाऐगा।। उ� छोकी ने मुझे Kडे़ Kडे़

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त्रिनकलवा दिदया। बताओ मैने तुम�े उ�की कौन �ी सिशकायत की थी? उ�की क्या चचा� की थी? मै तो उ�का बKान क ही थी। मग बडे़ आदमिमयों का गुस्�ा भी बड़ा होता है। अब बताओ मै त्रिक�की होक हँू? आठ दिदन इ�ी दिदन तह टुकडे़ माँगते हो गये है। एक भतीजी उन्हीं के यहाँ लौंत्रिडयों में नौक थी, उ�ी दिदन उ�े भी त्रिनकाल दिदया। तुम्हाी बदौलत, जो कभी न त्रिकया था, वह कना पड़ा तुम्हें कहो का दोष लगाऊं त्रिकस्मत में जो कुछ सिलKा था, देKना पड़ा।मगनदा� �न्नाटे में जो कुछ सिलKा था। आह मिमजाज का यह हाल है, यह घमण्ड, यह शान! मासिलन का इ*मीनन दिदलाया उ�के पा� अग दौलत होती तो उ�े मालामाल क देता �ेठ मक्Kनलाल की बेटी को भी मालूम हो जाता त्रिक ोजी की कंूजी उ�ी के हाथ में नहीं है। बोला-तुम त्रिर्फक्र न को, मेे घ मे आाम �े हो अकेले मेा जी भी नहीं लगता। �च कहो तो मुझे तुम्हाी तह एक औत की तलाशा थी, अच्छा हुआ तुम आ गयीं।

मासिलन ने आंचल रै्फलाक अ�ीम दिदया– बेटा तुम जुग-जुग जिजयों बड़ी उम्र हो यहॉँ कोई घ मिमले तो मुझे दिदलवा दो। मैं यही हँूगी तो मेी भतीजी कहाँ जाएगी। वह बेचाी शह में त्रिक�के आ�े हेगी। मगनलाल के Kून में जोश आया। उ�के स्वात्तिभमान को चोट लगी। उन प यह आर्फत मेी लायी हुई है। उनकी इ� आवाागद� को जिजम्मेदा मैं हँू। बोला–कोई हज� न हो तो उ�े भी यहीं ले आओ। मैं दिदन को यहाँ बहुत कम हता हँू। ात को बाह चापाई डालक पड़ हा करँुगा। मेी वहज �े तुम लोगों को कोई तकलीर्फ न होगी। यहाँ दू�ा मकान मिमलना मुस्पिrकल है यही झोपड़ा बड़ी मुस्पिrकलो �े मिमला है। यह अंधेनगी है जब तुम्ही �ुभीता कहीं लग जाय तो चली जाना। मगनदा� को क्या मालूम था त्रिक हजते इrक उ�की जबान प बैठे हुए उ��े यह बात कहला हे है। क्या यह ठीक है त्रिक इrक पहले माशूक के दिदल में पैदा होता है?

गपु इ� गॉव �े बी� मील की दूी प था। चम्मा उ�ी दिदन चली गई औ ती�े दिदन म्भा के �ाथ लौट आई। यह उ�की भतीजी का नाम था। उ�क आने �े

झोंपडें में जान �ी पड़ गई। मगनदा� के दिदमाग में मासिलन की लड़की की जो तस्वी थी उ�का म्भा �े कोई मेल न था वह �ौंदय� नाम की चीज का अनुभवी जौही था मग ऐ�ी �ूत जिज�प जवानी की ऐ�ी मस्ती औ दिदल का चैन छीन लेनेवाला ऐ�ा आकष�ण हो उ�ने पहले कभी नहीं देKा था। उ�की जवानी का चॉँद अपनी �ुनही औ गम्भी शान के �ाथ चमक हा था। �ुबह का वक्त था मगनदा� दवाजे प पड़ा ठण्डी–ठण्डी हवा का मजा उठा हा था। म्भा सि� प घड़ा क्Kे पानी भने को त्रिनकली मगनदा� ने उ�े देKा औ एक लम्बी �ाँ� Kींचक उठ बैठा। चेहा-मोहा बहुत ही मोहम। ताजे रू्फल की तह खिKला हुआ चेहा आंKों में गम्भी �लता मगनदा� को उ�ने भी देKा। चेहे प लाज की लाली दौड़ गई। पे्रम ने पहला वा त्रिकया।

ना

मगनदा� �ोचने लगा-क्या तकदी यहाँ कोई औ गुल खिKलाने वाली है! क्या दिदल मुझे यहां भी चैन न लेने देगा। म्भा, तू यहाँ नाहक आयी, नाहक एक गीब का Kून तेे

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� प होगा। मैं तो अब तेे हाथों त्रिबक चुका, मग क्या तू भी मेी हो �कती है? लेत्रिकन नहीं, इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं दिदल का �ौदा �ोच-�मझक कना चात्रिहए। तुमको अभी जब्त कना होगा। म्भा �ुन्दी है मग झूठे मोती की आब औ ताब उ�े �च्चा नहीं बना �कती। तुम्हें क्या Kब त्रिक उ� भोली लड़की के कान पे्रम के शब्द �े परिसिचत नहीं हो चुके है? कौन कह �कता है त्रिक उ�के �ौन्दय� की वादिटका प त्रिक�ी रू्फल चुननेवाले के हाथ नही पड़ चुके है? अग कुछ दिदनों की दिदलबस्तगी के सिलए कुछ चात्रिहए तो तुुम आजाद हो मग यह नाजुक मामला है, जा �म्हल के कदम Kना। पेशेव जातों मे दिदKाई पड़नेवाला �ौन्दय� अक� नैत्रितक बन्धनों �े मुक्त होता है।

तीन महीने गुज गये। मगनदा� म्भा को ज्यों ज्यों बाीक �े बाीक त्रिनगाहों �े देKता *यों–*यों उ� प पे्रम का ंग गाढा होता जाता था। वह ोज उ�े कँुए �े पानी त्रिनकालते देKता वह ोज घ में झाडु देती, ोज Kाना पकाती आह मगनदा� को उन ज्वा की ोदिटयां में मजा आता था, वह अचे्छ �े अचे्छ वं्यजनो में, भी न आया था। उ�े अपनी कोठी हमेशा �ार्फ �ुधी मिमलती न जाने कौन उ�के त्रिबस्त त्रिबछा देता। क्या यह म्भा की कृपा थी? उ�की त्रिनगाहें शमuली थी उ�ने उ�े कभी अपनी तर्फ चचंल आंKो � ताकते नही देKा। आवाज कै�ी मीठी उ�की हं�ी की आवाज कभी उ�के कान में नही आई। अग मगनदा� उ�के पे्रम में मतवाला हो हा था तो कोई ताज्जुब की बात नही थी। उ�की भूKी त्रिनगाहें बेचैनी औ लाल�ा में डुबी हुई हमेशा म्भा को ढुढां कतीं। वह जब त्रिक�ी गाँव को जाता तो मीलों तक उ�की जिजद्दी औ बेताब ऑंKे मुड़–मूड़क झोंपडे़ के दवाजे की तर्फ आती। उ�की ख्यात्रित आ� पा� रै्फल गई थी मग उ�के स्वभाव की मु�ीवत औ उदाहृयता �े अक� लोग अनुसिचत लाभ उठाते थे इन्�ार्फप�न्द लोग तो स्वागत �*का �े काम त्रिनकाल लेते औ जो लोग ज्यादा �मझदा थे वे लगाता तकाजों का इन्तजा कते चूंत्रिक मगनदा� इ� र्फन को त्रिबलकुल नहीं जानता था। बावजूद दिदन ात की दौड़ धूप के गीबी �े उ�का गला न छुटता। जब वह म्भा को चक्की पी�ते हुए देKता तो गेहँू के �ाथ उ�का दिदल भी त्रिप� जाता था ।वह कुऍं �े पानी त्रिनकालती तो उ�का कलेजा त्रिनकल आता । जब वह पड़ो� की औत के कपडे़ �ीती तो कपड़ो के �ाथ मगनदा� का दिदल सिछद जाता। मग कुछ ब� था न काबू।मगनदा� की हृदयभेदी दृमि� को इ�में तो कोई �ंदेह नहीं था त्रिक उ�के पे्रम का आकष�ण त्रिबलकुल बेअ� नही है वना� म्भा की उन वर्फा �े भी हुई Kात्रितदरियों की तुक कै�ा त्रिबठाता वर्फा ही वह जादू है रुप के गव� का सि� नीचा क �कता है। मग। पे्रमिमका के दिदल में बैठने का माद्दा उ�में बहुत कम था। कोई दू�ा मनचला पे्रमी अब तक अपने वशीकण में कामायाब हो चुका होता लेत्रिकन मगनदा� ने दिदल आशत्रिक का पाया था औ जबान माशूक की।

एक ोज शाम के वक्त चम्पा त्रिक�ी काम �े बाजा गई हुई थी औ मगनदा� हमेशा की तह चापाई प पड़ा �पने देK हा था। म्भा अदभूत छटा के �ाथ आक उ�के �मने Kडी हो गई। उ�का भोला चेहा कमल की तह खिKला हुआ था। औ आKों �े �हानुभूत्रित का भाव झलक हा था। मगनदा� ने उ�की तर्फ पहले आश्चय� औ त्रिर्फ पे्रम

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की त्रिनगाहों �े देKा औ दिदल प जो डालक बोला-आओं म्भा, तुम्हें देKने को बहुत दिदन �े आँKें त� ही थीं।

म्भा ने भोलेपन �े कहा-मैं यहां न आती तो तुम मुझ�े कभी न बोलेते। मगनदा� का हौ�ला बढा, बोला-त्रिबना मजu पाये तो कुAा भी नही आता।

म्भा मुस्काई, कली खिKल गई–मै तो आप ही चली आई। मगनदा� का कलेजा उछल पड़ा। उ�ने त्रिहम्मत कके म्भा का हाथ पकड़ सिलया औ भावावेश �े कॉपती हुई आवाज मे बोला–नहीं म्भा ऐ�ा नही है। यह मेी महीनों की तपस्या का र्फल है।

मगनदा� ने बेताब होक उ�े गले �े लगा सिलया। जब वह चलने लगी तो अपने पे्रमी की ओ पे्रम भी दृमि� �े देKक बोली–अब यह प्रीत हमको त्रिनभानी होगी।

पौ र्फटने के वक्त जब �ूय� देवता के आगमन की तैयारियॉँ हो ही थी मगनदा� की आँKे Kुली म्भा आटा पी� ही थी। उ� शांत्तिAपूण� �न्नाटे में चक्की की घुम–घुम बहुत �ुहानी मालूम होती थी औ उ��े �ू मिमलाक आपने प्याे ढंग �े गाती थी।

झुलत्रिनयाँ मोी पानी में त्रिगी मैं जानूं त्रिपया मौको मनैहैं

उलटी मनावन मोको पड़ी झुलत्रिनयाँ मोी पानी मे त्रिगी �ाल भ गुज गया। मगनदा� की मुहब्बत औ म्भा के �लीके न मिमलक उ�

वीान झोंपडे़ को कंुज बाग बना दिदया। अब वहां गायें थी। रू्फलों की क्यारियाँ थीं औ कई देहाती ढंग के मोढे़ थे। �ुK–�ुत्रिवधा की अनेक चीजे दिदKाई पड़ती थी।

एक ोज �ुबह के वक्त मगनदा� कही जाने के सिलए तैया हो हा था त्रिक एक �म्भ्रांत व्यसिक्त अंग्रेजी पोशाक पहने उ�े ढूढंता हुआ आ पहुंचा औ उ�े देKते ही दौड़क गले �े सिलपट गया। मगनदा� औ वह दोनो एक �ाथ पढ़ा कते थे। वह अब वकील हो गया। था। मगनदा� ने भी अब पहचाना औ कुछ झेंपता औ कुछ जिझझकता उ��े गले सिलपट गया। बड़ी दे तक दोनों दोस्त बातें कते हे। बातें क्या थीं घटनाओं औ �ंयोगो की एक लम्बी कहानी थी। कई महीने हुए �ेठ लगन का छोटा बच्चा चेचक की नज हो गया। �ेठ जी ने दुK क माे आ*मह*या क ली औ अब मगनदा� �ाी जायदाद, कोठी इलाके औ मकानों का एकछ� स्वामी था। �ेठात्रिनयों में आप�ी झगडे़ हो हे थे। कम�चारियों न गबन को अपना ढंग बना क्Kा था। बडी �ेठानी उ�े बुलाने के सिलए Kुद आने को तैया थी, मग वकील �ाहब ने उन्हे ोका था। जब मदनदा� न मुस्कााक पुछा–तुम्हों क्योंक मालूम हुआ त्रिक मै। यहाँ हँू तो वकील �ाहब ने र्फमाया-महीने भ �े तुम्हाी टोह में हँू। �ेठ मक्ख्नलाल ने अता-पता बतलाया। तूम दिदल्ली पहुँचें औ मैंने अपना महीने भ का त्रिबल पेश त्रिकया।

म्भा अधी हो ही थी। त्रिक यह कौन है औ इनमे क्या बाते हो ही है? द� बजते-बजते वकील �ाहब मगनदा� �े एक हफ्ते के अन्द आने का वादा लेक त्रिवदा हुए उ�ी वक्त म्भा आ पहुँची औ पूछने लगी-यह कौन थे। इनका तुम�े क्या काम था?

मगनदा� ने जवाब दिदया- यमाज का दूत। 10

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म्भा–क्या अ�गुन बकते हो!मगन-नहीं नहीं म्भा, यह अ�गुन नही है, यह �चमुच मेी मौत का दूत था। मेी

Kुसिशयों के बाग को ौंदने वाला मेी ही-भी Kेती को उजाड़ने वाला म्भा मैने तुम्हाे �ाथ दगा की है, मैंने तुम्हे अपने र्फेब क जाल में र्फाँ�या है, मुझे मार्फ को। मुहब्बत ने मुझ�े यह �ब कवाया मैं मगनसि�हं ठाकू नहीं हँू। मैं �ेठ लगनदा� का बेटा औ �ेठ मक्Kनलाल का दामाद हँू।

मगनदा� को ड था त्रिक म्भा यह �ुनते ही चौक पडे़गी ओ शायद उ�े जासिलम, दगाबाज कहने लगे। मग उ�का ख्याल गलत त्रिनकला! म्भा ने आंKो में ऑं�ू भक सि�र्फ� इतना कहा-तो क्या तुम मुझे छोड़क चले जाओगे?

मगनदा� ने उ�े गले लगाक कहा-हॉँ।म्भा–क्यों?मगन–इ�सिलए त्रिक इजिन्दा बहुत होसिशया �ुन्द औ धनी है।म्भा–मैं तुम्हें न छोडूगँी। कभी इजिन्दा की लौंडी थी, अब उनकी �ौत बनँूगी। तुम

जिजतनी मेी मुहब्बत कोगे। उतनी इजिन्दा की तो न कोगे, क्यों? मगनदा� इ� भोलेपन प मतवाला हो गया। मुस्काक बोला-अब इजिन्दा तुम्हाी

लौंडी बनेगी, मग �ुनता हँू वह बहुत �ुन्द है। कहीं मै उ�की �ूत प लुभा न जाऊँ। मद� का हाल तुम नही जानती मुझे अपने ही �े ड लगता है।

म्भा ने त्रिवश्वा�भी आंKो �े देKक कहा-क्या तुम भी ऐ�ा कोगे? उँह जो जी में आये कना, मै तुम्हें न छोडूगँी। इजिन्दा ानी बने, मै लौंडी हँूगी, क्या इतने प भी मुझे छोड़ दोगें?

मगनदा� की ऑंKे डबडबा गयीं, बोला–प्याी, मैने रै्फ�ला क सिलया है त्रिक दिदल्ली न जाऊँगा यह तो मै कहने ही न पाया त्रिक �ेठ जी का स्वग�वा� हो गया। बच्चा उन�े पहले ही चल ब�ा था। अर्फ�ो� �ेठ जी के आखिKी दश�न भी न क �का। अपना बाप भी इतनी मुहब्ब्त नही क �कता। उन्होने मुझे अपना वारि� बनाया हैं। वकील �ाहब कहते थे। त्रिक �ेठारियों मे अनबन है। नौक चाक लूट मा-मचा हे हैं। वहॉँ का यह हाल है औ मेा दिदल वहॉँ जाने प ाजी नहीं होता दिदल तो यहाँ है वहॉँ कौन जाए।

म्भा जा दे तक �ोचती ही, त्रिर्फ बोली-तो मै तुम्हें छोड़ दँूगीं इतने दिदन तुम्हाे �ाथ ही। जिजन्दगी का �ुK लुटा अब जब तक जिजऊँगी इ� �ूK का ध्यान कती हँूगी। मग तुम मुझे भूल तो न जाओगे? �ाल में एक बा देK सिलया कना औ इ�ी झोपडे़ में।

मगनदा� ने बहुत ोका मग ऑं�ू न रुक �के बोले–म्भा, यह बाते ने को, कलेजा बैठा जाता है। मै तुम्हे छोड़ नही �कता इ�सिलए नही त्रिक तुम्हाे उप कोई एह�ान है। तुम्हाी Kात्रित नहीं, अपनी Kात्रित वह शात्तिA वह पे्रम, वह आनन्द जो मुझे यहाँ मिमलता है औ कहीं नही मिमल �कता। Kुशी के �ाथ जिजन्दगी ब� हो, यही मनुर्ष्याय के जीवन का लक्ष्य है। मुझे ईश्व ने यह Kुशी यहाँ दे क्Kी है तो मै उ�े क्यो छोड़ू?ँ धन–दौलत को मेा �लाम है मुझे उ�की हव� नहीं है।

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म्भा त्रिर्फ गम्भी स्व में बोली-मै तुम्हाे पॉव की बेड़ी न बनँूगी। चाहे तुम अभी मुझे न छोड़ो लेत्रिकन थोडे़ दिदनों में तुम्हाी यह मुहब्बत न हेगी।

मगनदा� को कोड़ा लगा। जोश �े बोला-तुम्हाे सि�वा इ� दिदल में अब कोई औ जगह नहीं पा �कता।

ात ज्यादा आ गई थी। अ�मी का चॉँद �ोने जा चुका था। दोपह के कमल की तह �ार्फ आ�मन में सि�ताे खिKले हुए थे। त्रिक�ी Kेत के Kवाले की बा�ुी की आवाज, जिज�े दूी ने ता�ी, �न्नाटे न �ुीलापन औ अँधेे ने आत्मि*मकता का आकष�ण दे दिदया। था। कानो में आ जा ही थी त्रिक जै�े कोई पत्रिव� आ*मा नदी के त्रिकनाे बैठी हुई पानी की लहों �े या दू�े त्रिकनाे के Kामोश औ अपनी तर्फ Kीचनेवाले पेड़ो �े अपनी जिजन्दगी की गम की कहानी �ुना ही है।

मगनदा� �ो गया मग म्भा की आंKों में नीद न आई।

बह हुई तो मगनदा� उठा औ म्भा पुकाने लगा। मग म्भा ात ही को अपनी चाची के �ाथ वहां �े कही चली गयी मगनदा� को उ�े मकान के दो

दीवा प एक ह�त-�ी छायी हुई मालूम हुई त्रिक जै�े घ की जान त्रिनकल गई हो। वह घबाक उ� कोठी में गया जहां म्भा ोज चक्की पी�ती थी, मग अर्फ�ो� आज चक्की एकदम त्रिनश्चल थी। त्रिर्फ वह कँुए की तह दौड़ा गया लेत्रिकन ऐ�ा मालूम हुआ त्रिक कँुए ने उ�े त्रिनगल जाने के सिलए अपना मुँह Kोल दिदया है। तब वह बच्चो की तह चीK उठा ोता हुआ त्रिर्फ उ�ी झोपड़ी में आया। जहॉँ कल ात तक पे्रम का वा� था। मग आह, उ� वक्त वह शोक का घ बना हुआ था। जब जा ऑ�ू थमे तो उ�ने घ में चाों तर्फ त्रिनगाह दौड़ाई। म्भा की �ाड़ी अगनी प पड़ी हुई थी। एक त्रिपटाी में वह कंगन क्Kा हुआ था। जो मगनदा� ने उ�े दिदया था। बत�न �ब क्Kे हुए थे, �ार्फ औ �ुधे। मगनदा� �ोचने लगा-म्भा तूने ात को कहा था-मै तुम्हे छोड़ दुगीं। क्या तूने वह बात दिदल �े कही थी।? मैने तो �मझा था, तू दिदल्लगी क ही हैं। नहीं तो मुझे कलेजे में सिछपा लेता। मैं तो तेे सिलए �ब कुछ छोडे़ बैठा था। तेा पे्रम मेे सिलए �क कुछ था, आह, मै यों बेचैन हंू, क्या तू बेचैन नही है? हाय तू ो ही है। मुझे यकीन है त्रिक तू अब भी लौट आएगी। त्रिर्फ �जीव कल्पनाओं का एक जमघट उ�क �ामने आया- वह नाजुक अदाए ँवह मतवाली ऑंKें वह भोली भाली बातें, वह अपने को भूली हुई-�ी मेहबात्रिनयॉँ वह जीवन दायी। मुस्कान वह आसिशकों जै�ी दिदलजोइयाँ वह पे्रम का नाश, वह हमेशा खिKला हने वाला चेहा, वह लचक-लचकक कुए ँ�े पानी लाना, वह इन्ताजा की �ूत वह मस्ती �े भी हुई बेचैनी-यह �ब तस्वीें उ�की त्रिनगाहों के �ामने हमतनाक बेताबी के �ाथ त्रिर्फने लगी। मगनदा� ने एक ठण्डी �ॉ� ली औ आ�ुओं औ दद� की उमड़ती हुई नदी को मदा�ना जब्त �े ोकक उठ Kड़ा हुआ। नागपु जाने का पक्का रै्फ�ला हो गया। तत्रिकये के नीच �े �न्दूक की कँुजी उठायी तो कागज का एक टुकड़ा त्रिनकल आया यह म्भा की त्रिवदा की सिचट्टी थी-

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प्याे,मै बहुत ो ही हँू मेे पै नहीं उठते मग मेा जाना जरूी है। तुम्हे जागाऊँगी। तो

तुम जाने न दोगे। आह कै�े जाऊं अपने प्याे पत्रित को कै�े छोडू!ँ त्रिकस्मत मुझ�े यह आनन्द का घ छुड़वा ही है। मुझे बेवर्फा न कहना, मै तुम�े त्रिर्फ कभी मिमलूँगी। मै जानती हँू। त्रिक तुमने मेे सिलए यह �ब कुछ *याग दिदया है। मग तुम्हाे सिलए जिजन्दगी में। बहुत कुछ उम्मीदे हैं मैं अपनी मुहब्बत की धुन में तुम्हें उन उम्मीदो �े क्यों दू क्Kँू! अब तुम�े जुदा होती हूुँ। मेी �ुध मत भूलना। मैुं तुम्हें हमेशा याद Kूगीं। यह आनन्द कुे सिलए कभी न भूलेुंगे। क्या तूम मुझे भूल �कोगें?

तुम्हाी प्याीम्भा

गनदा� को दिदल्ली आए हुए तीन महीने गुज चुके हैं। इ� बीच उ�े �ब�े बड़ा जो त्रिनजी अनुभव हुआ वह यह था त्रिक ोजी की त्रिर्फक्र औ धन्धों की बहुतायत �े

उमड़ती हुई भावनाओं का जो कम त्रिकया। जा �कता है। डे़ढ �ाल पहले का बत्रिर्फक्र नौजवान अब एक �मझदा औ �ूझ-बूझ Kने वाला आदमी बन गया था। �ाग घाट के उ� कुछ दिदनों के हने �े उ�े रिआया की इन तकलीर्फो का त्रिनजी ज्ञान हो गया, था जो कारिन्दों औ मुख्ताो की �ख्यिख्तयों की बदौलत उन्हे उठानी पड़ती है। उ�ने उ�े रिया�त के इन्तजाम में बहुत मदद दी औ गो कम�चाी दबी जबान �े उ�की सिशकायत कते थे। औ अपनी त्रिकस्मतो औ जमाने क उलट रे्फ को को�ने थे मग रिआया Kुशा थी। हॉँ, जब वह �ब धंधों �े रु्फ�त पाता तो एक भोली भाली �ूतवाली लड़की उ�के Kयाल के पहलू में आ बैठती औ थोड़ी दे के सिलए �ाग घाट का वह हा भा झोपड़ा औ उ�की मस्पिस्तया ऑKें के �ामने आ जातीं। �ाी बाते एक �ुहाने �पने की तह याद आ आक उ�के दिदल को म�ो�ने लगती लेत्रिकन कभी कभी Kूद बKुद-उ�का ख्याल इजिन्दा की तर्फ भी जा पहूँचता गो उ�के दिदल मे म्भा की वही जगह थी मग त्रिक�ी तह उ�मे इजिन्दा के सिलए भी एक कोना त्रिनकल आया था। जिजन हालातो औ आर्फतो ने उ�े इजिन्दा �े बेजा क दिदया था वह अब रुK�त हो गयी थीं। अब उ�े इजिन्दा �े कुछ हमदद� हो गयी । अग उ�के मिमजाज में घमण्ड है, हुकूमत है तकल्लूर्फ है शान है तो यह उ�का क�ू नहीं यह ई�जादो की आम कमजोरियां है यही उनकी सिशक्षा है। वे त्रिबलकुल बेब� औ मजबू है। इन बदते हुए औ �ंतुसिलत भावो के �ाथ जहां वह बेचैनी के �ाथ म्भा की याद को ताजा त्रिकया कता था वहा इजिन्दा का स्वागत कने औ उ�े अपने दिदल में जगह देने के सिलए तैया था। वह दिदन दू नहीं था जब उ�े उ� आजमाइश का �ामना कना पडे़गा। उ�के कई आ*मीय अमीाना शान-शौकत के �ाथ इजिन्दा को त्रिवदा काने के सिलए नागपु गए हुए थे। मगनदा� की बत्रितयत आज तह तह के भावो के काण, जिजनमें प्रतीक्षा औ मिमलन की उ*कंठा त्रिवशेष थी, उचाट �ी हो ही थी। जब कोई नौक आता तो वह �म्हल

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बैठता त्रिक शायद इजिन्दा आ पहुँची आखिK शाम के वक्त जब दिदन औ ात गले मिमले हे थे, जनानKाने में जो शाे के गाने की आवाजों ने बहू के पहुचने की �ूचना दी।

�ुहाग की �ुहानी ात थी। द� बज गये थे। Kुले हुए हवादा �हन में चॉँदनी सिछटकी हुई थी, वह चॉँदनी जिज�में नशा है। आजू है। औ खिK�चाव है। गमलों में खिKले हुए गुलाब औ चम्मा के रू्फल चॉँद की �ुनही ोशनी में ज्यादा गम्भी ओ Kामोश नज आते थे। मगनदा� इजिन्दा �े मिमलने के सिलए चला। उ�के दिदल �े लाल�ाऍं जरु थी मग एक पीड़ा भी थी। दश�न की उ*कण्ठा थी मग प्या� �े Kोली। मुहब्बत नही प्राणों को खिKचाव था जो उ�े Kीचे सिलए जाताथा। उ�के दिदल में बैठी हुई म्भा शायद बा-बा बाह त्रिनकलने की कोसिशश क ही थी। इ�ीसिलए दिदल में धड़कन हो ही थी। वह �ोने के कमे के दवाजे प पहुचा ेशमी पदा� पड़ा हुआ था। उ�ने पदा� उठा दिदया अन्द एक औत �रे्फद �ाड़ी पहने Kड़ी थी। हाथ में चन्द Kूब�ूत चूत्रिड़यों के सि�वा उ�के बदन प एक जेव भी न था। ज्योही पदा� उठा औ मगनदा� ने अन्दी हम क्Kा वह मुस्कााती हुई उ�की तर्फ बढी मगनदा� ने उ�े देKा औ चत्रिकत होक बोला। “म्भा!“ औ दोनो पे्रमावेश �े सिलपट गये। दिदल में बैठी हुई म्भा बाह त्रिनकल आई थी।�ाल भ गुजने के वाद एक दिदन इजिन्दा ने अपने पत्रित �े कहा। क्या म्भा को त्रिबलकुल भूल गये? कै�े बेवर्फा हो! कुछ याद है, उ�ने चलते वक्त तुम�े या त्रिबनती की थी?

मगनदा� ने कहा- Kूब याद है। वह आवाज भी कानों में गूज ही है। मैं म्भा को भोली –भाली लड़की �मझता था। यह नहीं जानता था त्रिक यह त्रि�या चरि� का जादू है। मै अपनी म्भा का अब भी इजिन्दा �े ज्यादा प्या कता हंू। तुम्हे डाह तो नहीं होती?

इजिन्दा ने हं�क जवाब दिदया डाह क्यों हो। तूम्हाी म्भा है तो क्या मेा गनसि�हं नहीं है। मैं अब भी उ� प मती हंू।

दू�े दिदन दोनों दिदल्ली �े एक ाष्ट्रीय �माोह में शीक होने का बहाना कके वाना हो गए औ �ाग घाट जा पहुचें। वह झोपड़ा वह मुहब्बत का मजिन्द वह पे्रम भवन रू्फल औ त्रिहयाली �े लहा हा था चम्पा मासिलन उन्हें वहाँ मिमली। गांव के जमींदा उन�े मिमलने के सिलए आये। कई दिदन तक त्रिर्फ मगनसि�ह को घोडे़ त्रिनकालना पडें । म्भा कुए �े पानी लाती Kाना पकाती। त्रिर्फ चक्की पी�ती औ गाती। गाँव की औते त्रिर्फ उ��े अपने कुतd औ बच्चो की ले�दा टोत्रिपयां सि�लाती है। हा, इतना जरु कहती त्रिक उ�का ंग कै�ा त्रिनK आया है, हाथ पावं कै�े मुलायम यह पड़ गये है त्रिक�ी बडे़ घ की ानी मालूम होती है। मग स्वभाव वही है, वही मीठी बोली है। वही मुौवत, वही हँ�मुK चेहा।

इ� तह एक हर्फते इ� �ल औ पत्रिव� जीवन का आनन्द उठाने के बाद दोनो दिदल्ली वाप� आये औ अब द� �ाल गुजने प भी �ाल में एक बा उ� झोपडे़ के न�ीब जागते हैं। वह मुहब्बत की दीवा अभी तक उन दोनो पे्रमिमयों को अपनी छाया में आाम देने के सिलए Kड़ी है।

-- जमाना , जनवी 1913

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मिमलाप

ला ज्ञानचन्द बैठे हुए त्रिह�ाब–त्रिकताब जाँच हे थे त्रिक उनके �ुपु� बाबू नानकचन्द आये औ बोले- दादा, अब यहां पडे़ –पडे़ जी उ�ता गया, आपकी आज्ञा हो तो

मौ �ै को त्रिनकल जाऊं दो एक महीने में लौट आऊँगा। ला

नानकचन्द बहुत �ुशील औ नवयुवक था। ंग पीला आंKो के त्रिगद� हलके स्याह धब्बे कंधे झुके हुए। ज्ञानचन्द ने उ�की तर्फ तीKी त्रिनगाह �े देKा औ वं्यगपण� स्व मे बोले –क्यो क्या यहां तुम्हाे सिलए कुछ कम दिदलचस्पि\यॉँ है?

ज्ञानचन्द ने बेटे को �ीधे ास्ते प लोने की बहुत कोसिशश की थी मग �र्फल न हुए। उनकी डॉँट-र्फटका औ �मझाना-बुझाना बेका हुआ। उ�की �ंगत्रित अच्छी न थी। पीने त्रिपलाने औ ाग-ंग में डूबा हता था। उन्हें यह नया प्रस्ताव क्यों प�न्द आने लगा, लेत्रिकन नानकचन्द उ�के स्वभाव �े परिसिचत था। बेधड़क बोला- अब यहॉँ जी नहीं लगता। कrमी की बहुत ताीर्फ �ुनी है, अब वहीं जाने की �ोचना हँू।

ज्ञानचन्द- बेहत है, तशीर्फ ले जाइए।नानकचन्द- (हं�क) रुपये को दिदलवाइए। इ� वक्त पॉँच �ौ रुपये की �ख्त

जरूत है।ज्ञानचन्द- ऐ�ी त्रिर्फजूल बातों का मझ�े जिजक्र न त्रिकया को, मैं तुमको बा-बा

�मझा चुका। नानकचन्द ने हठ कना शुरू त्रिकया औ बूढे़ लाला इनका कते हे, यहॉँ तक त्रिक

नानकचन्द झूँझलाक बोला- अच्छा कुछ मत दीजिजए, मैं यों ही चला जाऊँगा। ज्ञानचन्द ने कलेजा मजबूत कके कहा- बेशक, तुम ऐ�े ही त्रिहम्मतव हो। वहॉँ भी

तुम्हाे भाई-बन्द बैठे हुए हैं न!नानकचन्द- मुझे त्रिक�ी की पवाह नहीं। आपका रुपया आपको मुबाक हे। नानकचन्द की यह चाल कभी पट नहीं पड़ती थी। अकेला लड़का था, बूढे़ लाला

�ाहब ढीले पड़ गए। रुपया दिदया, Kुशामद की औ उ�ी दिदन नानकचन्द कrमी की �ै के सिलए वाना हुआ।

ग नानकचन्द यहॉँ �े अकेला न चला। उ�की पे्रम की बातें आज �र्फल हो गयी थीं। पड़ो� में बाबू ामदा� हते थे। बेचाे �ीधे-�ादे आदमी थे, �ुबह दफ्त जाते औ

शाम को आते औ इ� बीच नानकचन्द अपने कोठे प बैठा हुआ उनकी बेवा लड़की �े मुहब्बत के इशाे त्रिकया कता। यहॉँ तक त्रिक अभागी लसिलता उ�के जाल में आ र्फॅं �ी। भाग जाने के मं�ूबे हुए।

मआधी ात का वक्त था, लसिलता एक �ाड़ी पहने अपनी चापाई प कवटें बदल

ही थी। जेवों को उताक उ�ने एक �न्दूकचे में K दिदया था। उ�के दिदल में इ� वक्त 15

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तह-तह के Kयाल दौड़ हे थे औ कलेजा जो-जो �े धड़क हा था। मग चाहे औ कुछ न हो, नानकचन्द की तर्फ �े उ�े बेवर्फाई का जा भी गुमान न था। जवानी की �ब�े बड़ी नेमत मुहब्बत है औ इ� नेमत को पाक लसिलता अपने को Kुशन�ीब �मझ ही थी। ामदा� बे�ुध �ो हे थे त्रिक इतने में कुण्डी Kटकी। लसिलता चौंकक उठ Kड़ी हुई। उ�ने जेवों का �न्दूकचा उठा सिलयां एक बा इध-उध ह�त-भी त्रिनगाहों �े देKा औ दबे पॉँव चौंक-चौकक कदम उठाती देहलीज में आयी औ कुण्डी Kोल दी। नानकचन्द ने उ�े गले �े लगा सिलया। बग्घी तैया थी, दोनों उ� प जा बैठे।

�ुबह को बाबू ामदा� उठे, लसिलत न दिदKायी दी। घबाये, �ाा घ छान माा कुछ पता न चला। बाह की कुण्डी Kुली देKी। बग्घी के त्रिनशान नज आये। � पीटक बैठ गये। मग अपने दिदल का द 2 द� त्रिक��े कहते। हँ�ी औ बदनामी का ड जबान प मोह हो गया। मशहू त्रिकया त्रिक वह अपने नत्रिनहाल औ गयी मग लाला ज्ञानचन्द �ुनते ही भॉँप गये त्रिक कrमी की �ै के कुछ औ ही माने थे। धीे-धीे यह बात �ाे मुहल्ले में रै्फल गई। यहॉँ तक त्रिक बाबू ामदा� ने शम� के माे आ*मह*या क ली।

हब्बत की �गर्मिम�यां नतीजे की तर्फ �े त्रिबलकुल बेKब होती हैं। नानकचन्द जिज� वक्त बग्घी में लसिलत के �ाथ बैठा तो उ�े इ�के सि�वाय औ कोई Kयाल ने था त्रिक एक

युवती मेे बगल में बैठी है, जिज�के दिदल का मैं मासिलक हँू। उ�ी धुन में वह मस्त थां बदनामी का ड़, कानून का Kटका, जीत्रिवका के �ाधन, उन �मस्याओं प त्रिवचा कने की उ�े उ� वक्त रु्फ�त न थी। हॉँ, उ�ने कrमी का इादा छोड़ दिदया। कलकAे जा पहुँचा। त्रिकर्फायतशाी का �बक न पढ़ा था। जो कुछ जमा-जथा थी, दो महीनों में Kच� हो गयी। लसिलता के गहनों प नौबत आयी। लेत्रिकन नानकचन्द में इतनी शार्फत बाकी थी। दिदल मजबूत कके बाप को Kत सिलKा, मुहब्बत को गासिलयॉँ दीं औ त्रिवश्वा� दिदलाया त्रिक अब आपके पै चूमने के सिलए जी बेका है, कुछ Kच� भेजिजए। लाला �ाहब ने Kत पढ़ा, त�कीन हो गयी त्रिक चलो जिजन्दा है Kैरियत �े है। धूम-धाम �े �*यनाायण की कथा �ुनी। रुपया वाना क दिदया, लेत्रिकन जवाब में सिलKा-Kै, जो कुछ तुम्हाी त्रिकस्मत में था वह हुआ। अभी इध आने का इादा मत को। बहुत बदनाम हो हे हो। तुम्हाी वजह �े मुझे भी त्रिबादी �े नाता तोड़ना पडे़गा। इ� तूर्फान को उत जाने दो। तुमहें Kच� की तकलीर्फ न होगी। मग इ� औत की बांह पकड़ी है तो उ�का त्रिनबाह कना, उ�े अपनी ब्याहता स्�ी �मझो।

मु

नानकचन्द दिदल प �े सिचन्ता का बोझ उत गया। बना� �े माहवा वजीर्फा मिमलने लगा। इध लसिलता की कोसिशश ने भी कुछ दिदल को Kींचा औ गो शाब की लत न टूटी औ हफ्ते में दो दिदन जरू सिथयेट देKने जाता, तो भी तत्रिबयत में ख्यिस्थता औ कुछ �ंयम आ चला था। इ� तह कलकAे में उ�ने तीन �ाल काटे। इ�ी बीच एक प्याी लड़की के बाप बनने का �ौभाग्य हुआ, जिज�का नाम उ�ने कमला क्Kा।

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�ा �ाल गुजा था त्रिक नानकचन्द के उ� शान्तिन्तमय जीवन में हलचल पैदा हुई। लाला ज्ञानचन्द का पचा�वॉँ �ाल था जो त्रिहन्दोस्तानी ई�ों की प्राकृत्रितक आयु है।

उनका स्वग�वा� हो गया औ ज्योंही यह Kब नानकचन्द को मिमली वह लसिलता के पा� जाक चीKें मा-माक ोने लगा। जिजन्दगी के नये-नये म�ले अब उ�के �ामने आए। इ� तीन �ाल की �ँभली हुई जिजन्दगी ने उ�के दिदल शोहदेपन औ नशेबाजी क Kयाल बहुत कुछ दू क दिदये थे। उ�े अब यह त्रिर्फक्र �वा हुई त्रिक चलक बना� में अपनी जायदाद का कुछ इन्तजाम कना चात्रिहए, वना� �ाा काोबा में अपनी जायदाद का कुछ इन्तजाम कना चात्रिहए, वना� �ाा काोबा धूल में मिमल जाएगा। लेत्रिकन लसिलता को क्या करँू। अग इ�े वहॉँ सिलये चलता हँू तो तीन �ाल की पुानी घटनाए ंताजी हो जायेगी औ त्रिर्फ एक हलचल पैदा होगी जो मुझे हूक्काम औ हमजोहलयॉँ में जलील क देगी। इ�के अलावा उ�े अब कानूनी औलाद की जरुत भी नज आने लगी यह हो �कता था त्रिक वह लसिलता को अपनी ब्याहता स्�ी मशहू क देता लेत्रिकन इ� आम Kयाल को दू कना अ�म्भव था त्रिक उ�ने उ�े भगाया हैं लसिलता �े नानकचन्द को अब वह मुहब्बत न थी जिज�में दद� होता है औ बेचैनी होती है। वह अब एक �ाधाण पत्रित था जो गले में पडे़ हुए ढोल को पीटना ही अपना धम� �मझता है, जिज�े बीबी की मुहब्बत उ�ी वक्त याद आती है, जब वह बीमा होती है। औ इ�मे अचज की कोई बात नही है अग जिज�दगीं की नयी नयी उमंगों ने उ�े उक�ाना शुरू त्रिकया। म�ूबे पैदा होने लेगे जिजनका दौलत औ बडे़ लोगों के मेल जोल �े �बंध है मानव भावनाओं की यही �ाधाण दशा है। नानकचन्द अब मजबूत इाई के �ाथ �ोचने लगा त्रिक यहां �े क्योंक भागूँ। अग लजाजत लेक जाता हंू। तो दो चा दिदन में �ाा पदा� र्फाश हो जाएगा। अग हीला त्रिकये जाता हँू तो आज के ती�े दिदन लसिलता बन� में मेे � प �वा होगी कोई ऐ�ी तकीब त्रिनकालूं त्रिक इन �म्भावनओं �े मुसिक्त मिमले। �ोचते-�ोचते उ�े आखिK एक तदबी �ुझी। वह एक दिदन शाम को दरिया की �ै का बाहाना कके चला औ ात को घ प न अया। दू�े दिदन �ुबह को एक चौकीदा लसिलता के पा� आया औ उ�े थाने में ले गया। लसिलता हैान थी त्रिक क्या माजा है। दिदल में तह-तह की दुसिशचन्तायें पैदा हो ही थी वहॉँ जाक जो कैत्रिर्फयत देKी तो दूत्रिनया आंKों में अंधी हो गई नानकचन्द के कपडे़ Kून में त-ब-त पडे़ थे उ�की वही �ुनही घड़ी वही Kूब�ूत छती, वही ेशमी �ार्फा �ब वहाँ मौजूद था। जेब मे उ�के नाम के छपे हुए काड� थे। कोई �ंदेश न हा त्रिक नानकचन्द को त्रिक�ी ने क*ल क डाला दो तीन हफ्ते तक थाने में तककीकातें होती ही औ, आखिK का Kूनी का पता चल गया पुसिल� के अर्फ�ा को बडे़ बडे़ इनाम मिमले।इ�को जा�ू�ी का एक बड़ा आश्चय� �मझा गया। Kूनी नेप्रेम की प्रत्रितद्वखिन्द्वता के जोश में यह काम त्रिकया। मग इध तो गीब बेगुनाह Kूनी �ूली प चढ़ा हुआ था। औ वहाँ बना� में नानक चन्द की शादी चायी जा ही थी।

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ला नानकचन्द की शादी एक ई� घाने में हुई औ तब धीे धीे त्रिर्फ वही पुाने उठने बैठनेवाले आने शुरु हुए त्रिर्फ वही मजसिल�े जमीं औ त्रिर्फ वही �ाग-ओ-

मीना के दौ चलने लगे। �यंम का कमजो अहाता इन त्रिवषय –वा�ना के बटमाो को न ोक �का। हॉँ, अब इ� पीने त्रिपलाने मे कुछ पदा Kा जाता है। औ ऊप �े थोडी �ी गम्भीता बनाये Kी जाती है �ाल भ इ�ी बहा में गुजा नवेली बहूघ में कुढ़ कुढ़क म गई। तपेदिदक ने उ�का काम तमाम क दिदया। तब दू�ी शादी हुई। मग इ� स्�ी में नानकचन्द की �ौन्दय� पे्रमी आंKो के सिलए सिलए कोई आकष�ण न था। इ�का भी वही हाल हुआ। कभी त्रिबना ोये कौ मुंह में नही दिदया। तीन �ाल में चल ब�ी। तब ती�ी शादी हुई। यह औत बहुत �ुन्द थी अचछी आभूषणों �े �ु�ख्यिज्जत उ�ने नानकचन्द के दिदल मे जगह क ली एक बच्चा भी पैदा हुआ था औ नानकचन्द गाह�ख्यि¦क आनंदों �े परिसिचत होने लगा। दुत्रिनया के नाते रिशते अपनी तर्फ Kींचने लगे मग प्लेग के सिलए ही �ाे मं�ूबे धूल में मिमला दिदये। पत्रितप्राणा स्�ी मी, तीन ब� का प्याा लड़का हाथ �े गया। औ दिदल प ऐ�ा दाग छोड़ गया जिज�का कोई महम न था। उच्छnृंKलता भी चली गई ऐयाशी का भी Kा*मा हुआ। दिदल प ंजोगम छागया औ तत्रिबयत �ं�ा �े त्रिवक्त हो गयी।

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वन की दुघ�टनाओं में अक� बडे़ मह*व के नैत्रितक पहलू सिछपे हुआ कते है। इन �इमों ने नानकचन्द के दिदल में मे हुए इन्�ान को भी जगा दिदया। जब वह त्रिनाशा

के यातनापूण� अकेलपन में पड़ा हुआ इन घटनाओं को याद कता तो उ�का दिदल ोने लगता औ ऐ�ा मालूम होता त्रिक ईश्व ने मुझे मेे पापों की �जा दी है धीे धीे यह ख्याल उ�के दिदल में मजबूत हो गया। ऊर्फ मैने उ� मा�ूम औत प कै�ा जूल्म त्रिकया कै�ी बेहमी की! यह उ�ी का दण्ड है। यह �ोचते-�ोचते लसिलता की मायू� तस्वी उ�की आKों के �ामने Kड़ी हो जाती औ प्याी मुKडे़वाली कमला अपने मे हूए �ौतेल भाई के �ाथ उ�की तर्फ प्या �े दौड़ती हुई दिदKाई देती। इ� लम्बी अवमिध में नानकचन्द को लसिलता की याद तो कई बा आयी थी मग भोग त्रिवला� पीने त्रिपलाने की उन कैत्रिर्फयातो ने कभी उ� Kयाल को जमने नहीं दिदया। एक धुधला-�ा �पना दिदKाई दिदया औ त्रिबK गया। मालूम नहीदोनो म गयी या जिजन्दा है। अर्फ�ो�! ऐ�ी बेक�ी की हालत में छोउ़क मैंने उनकी �ुध तक न ली। उ� नेकनामी प मिधक्का है जिज�के सिलए ऐ�ी त्रिनद�यता की कीमत देनी पडे़। यह Kयाल उ�के दिदल प इ� बुी तह बैठा त्रिक एक ोज वह कलकAा के सिलए वाना हो गया।

जी

�ुबह का वक्त था। वह कलकAे पहुँचा औ अपने उ�ी पुाने घ को चला। �ाा शह कुछ हो गया था। बहुत तलाश के बाद उ�े अपना पुाना घ नज आया। उ�के दिदल में जो �े धड़कन होने लगी औ भावनाओं में हलचल पैदा हो गयी। उ�ने एक पड़ो�ी �े पूछा-इ� मकान में कौन हता है?

बूढ़ा बंगाली था, बोला-हाम यह नहीं कह �कता, कौन है कौन नहीं है। इतना बड़ा मुलुक में कौन त्रिक�को जानता है? हॉँ, एक लड़की औ उ�का बूढ़ा मॉँ, दो औत हता है।

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त्रिवधवा हैं, कपडे़ की सि�लाई कता है। जब �े उ�का आदमी म गया, तब �े यही काम कके अपना पेट पालता है।

इतने में दवाजा Kुला औ एक तेह-चौदह �ाल की �ुन्द लड़की त्रिकताव सिलये हुए बाह त्रिनकली। नानकचन्द पहचान गया त्रिक यह कमला है। उ�की ऑंKों में ऑं�ू उमड़ आए, बेआख्यिख्तया जी चाहा त्रिक उ� लड़की को छाती �े लगा ले। कुबे की दौलत मिमल गयी। आवाज को �म्हालक बोला-बेटी, जाक अपनी अम्मॉँ �े कह दो त्रिक बना� �े एक आदमी आया है। लड़की अन्द चली गयी औ थोड़ी दे में लसिलता दवाजे प आयी। उ�के चेहे प घूँघट था औ गो �ौन्दय� की ताजगी न थी मग आकष�ण अब भी था। नानकचन्द ने उ�े देKा औ एक ठंडी �ॉँ� ली। पत्रितव्रत औ धैय� औ त्रिनाशा की �जीव मूर्तित� �ामने Kड़ी थी। उ�ने बहुत जो लगाया, मग जब्त न हो �का, बब� ोने लगा। लसिलता ने घूंघट की आउ़ �े उ�े देKा औ आश्चय� के �ाग में डूब गयी। वह सिच� जो हृदय-पट प अंत्रिकत था, औ जो जीवन के अल्पकासिलक आनन्दों की याद दिदलाता हता था, जो �पनों में �ामने आ-आक कभी Kुशी के गीत �ुनाता था औ कभी ंज के ती चुभाता था, इ� वक्त �जीव, �चल �ामने Kड़ा था। लसिलता प ऐ बेहोशी छा गयी, कुछ वही हालत जो आदमी को �पने में होती है। वह व्यग्र होक नानकचन्द की तर्फ बढ़ी औ ोती हुई बोली-मुझे भी अपने �ाथ ले चलो। मुझे अकेले त्रिक� प छोड़ दिदया है; मुझ�े अब यहॉँ नहीं हा जाता।

लसिलता को इ� बात की जा भी चेतना न थी त्रिक वह उ� व्यसिक्त के �ामने Kड़ी है जो एक जमाना हुआ म चुका, वना� शायद वह चीKक भागती। उ� प एक �पने की-�ी हालत छायी हुई थी, मग जब नानकचनद ने उ�े �ीने �े लगाक कहा ‘लसिलता, अब तुमको अकेले न हना पडे़गा, तुम्हें इन ऑंKों की पुतली बनाक Kूँगा। मैं इ�ीसिलए तुम्हाे पा� आया हँू। मैं अब तक नक में था, अब तुम्हाे �ाथ स्वग� को �ुK भोगूँगा।’ तो लसिलता चौंकी औ सिछटकक अलग हटती हुई बोली-ऑंKों को तो यकीन आ गया मग दिदल को नहीं आता। ईश्व के यह �पना न हो!

-जमाना, जून १९१३

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मनावन

बू दयाशंक उन लोगों में थे जिजन्हें उ� वक्त तक �ोहबत का मजा नहीं मिमलता जब तक त्रिक वह पे्रमिमका की जबान की तेजी का मजा न उठायें। रूठे हुए को मनाने में

उन्हें बड़ा आनन्द मिमलता त्रिर्फी हुई त्रिनगाहें कभी-कभी मुहब्बत के नशे की मतवाली ऑंKें �े भी ज्यादा मोहक जान पड़तीं। आकष�क लगती। झगड़ों में मिमलाप �े ज्यादा मजा आता। पानी में हलके-हलके झकोले कै�ा �मॉँ दिदKा जाते हैं। जब तक दरिया में धीमी-धीमी हलचल न हो �ै का लु*र्फ नहीं।

बाअग बाबू दयाशंक को इन दिदलचस्पि\यों के कम मौके मिमलते थे तो यह उनका

क�ू न था। त्रिगरिजा स्वभाव �े बहुत नेक औ गम्भी थी, तो भी चूंत्रिक उनका क�ू न था। त्रिगरिजा स्वभाव �े बहुत नेक औ गम्भी थी, तो भी चूंत्रिक उ�े अपने पत्रित की रुसिच का अनुभव हो चुका था इ�सिलए वह कभी-कभी अपनी तत्रिबयत के खिKलार्फ सि�र्फ� उनकी Kात्रित �े उन�े रूठ जाती थी मग यह बे-नींव की दीवा हवा का एक झोंका भी न �म्हाल �कती। उ�की ऑंKे, उ�के होंठ उ�का दिदल यह बहुरूत्रिपये का Kेल ज्यादा दे तक न चला �कते। आ�मान प घटायें आतीं मग �ावन की नहीं, कुआ की। वह ड़ती, कहीं ऐ�ा न हो त्रिक हँ�ी-हँ�ी �े ोना आ जाय। आप� की बदमजगी के ख्याल �े उ�की जान त्रिनकल जाती थी। मग इन मौकों प बाबू �ाहब को जै�ी-जै�ी रिझाने वाली बातें �ूझतीं वह काश त्रिवद्याथu जीवन में �ूझी होतीं तो वह कई �ाल तक कानून �े सि� माने के बाद भी मामूली क्लक� न हते।

याशंक को कौमी जल�ों �े बहुत दिदलच\ी थी। इ� दिदलच\ी की बुत्रिनयाद उ�ी जमाने में पड़ी जब वह कानून की दगाह के मुजात्रिव थे औ वह अक तक कायम थी।

रुपयों की थैली गायब हो गई थी मग कंधों में दद� मौजूद था। इ� �ाल कांफ्रें � का जल�ा �ताा में होने वाला था। त्रिनयत ताीK �े एक ोज पहले बाबू �ाहब �ताा को वाना हुए। �र्फ की तैयारियों में इतने व्यस्त थे त्रिक त्रिगरिजा �े बातचीत कने की भी रु्फ��त न मिमली थी। आनेवाली Kुसिशयों की उम्मीद उ� क्षत्तिणक त्रिवयोग के Kयाल के ऊप भाी थी।

दकै�ा शह होगा! बड़ी ताीर्फ �ुनते हैं। दकन �ौन्दय� औ �ंपदा की Kान है। Kूब

�ै हेगी। हजत तो इन दिदल को Kुश कनेवाले ख्यालों में मस्त थे औ त्रिगरिजा ऑंKों में आं�ू भे अपने दवाजे प Kड़ी यह कैत्रिर्फयल देK ही थी औ ईश्व �े प्राथ�ना क ही थी त्रिक इन्हें Kैरितय �े लाना। वह Kुद एक हफ्ता कै�े काटेगी, यह ख्याल बहुत ही क� देनेवाला था।

त्रिगरिजा इन त्रिवचाों में व्यस्त थी दयाशंक �र्फ की तैयारियों में। यहॉँ तक त्रिक �ब तैयारियॉँ पूी हो गई। इक्का दवाजे प आ गया। त्रिब�त औ टं्रक उ� प K दिदये औ तब त्रिवदाई भेंट की बातें होने लगीं। दयाशंक त्रिगरिजा के �ामने आए औ मुस्काक बोले-अब जाता हँू।

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त्रिगरिजा के कलेजे में एक बछ�-�ी लगी। बब� जी चाहा त्रिक उनके �ीने �े सिलपटक ोऊँ। ऑं�ुओं की एक बाढ़-�ी ऑंKें में आती हुई मालूम हुई मग जब्त कके बोली-जाने को कै�े कहूँ, क्या वक्त आ गया?

इयाशंक-हॉँ, बस्पिल्क दे हो ही है।त्रिगरिजा-मंगल की शाम को गाड़ी �े आओगे न?दयाशंक-जरू, त्रिक�ी तह नहीं रूक �कता। तुम सि�र्फ� उ�ी दिदन मेा इंतजा

कना।त्रिगरिजा-ऐ�ा न हो भूल जाओ। �ताा बहुत अच्छा शह है। दयाशंक-(हँ�क) वह स्वग� ही क्यों न हो, मंगल को यहॉँ जरू आ जाऊँगा। दिदल

बाब यहीं हेगा। तुम जा भी न घबाना।यह कहक त्रिगरिजा को गले लगा सिलया औ मुस्काते हुए बाह त्रिनकल आए।

इक्का वाना हो गया। त्रिगरिजा पलंग प बैठ गई औ Kूब ोयी। मग इ� त्रिवयोग के दुK, ऑं�ुओं की बाढ़, अकेलेपन के दद� औ तह-तह के भावों की भीड़ के �ाथ एक औ ख्याल दिदल में बैठा हुआ था जिज�े वह बा-बा हटाने की कोसिशश कती थी-क्या इनके पहलू में दिदल नहीं है! या है तो उ� प उन्हें पूुा-पूा अमिधका है? वह मुस्काहट जो त्रिवदा होते वक्त दयाशंक के चेहे लग ही थी, त्रिगरिजा की �मझ में नहीं आती थी।

ताा में बड़ी धूधम थी। दयाशंक गाड़ी �े उते तो वद�पोश वालंदिटयों ने उनका स्वागात त्रिकया। एक त्रिर्फटन उनके सिलए तैया Kड़ी थी। उ� प बैठक वह कांफ्रें �

पंड़ाल की तर्फ चलें दोनों तर्फ झंत्रिडयॉँ लहा ही थीं। दवाजे प बन्दवाें लटक ही थी। औतें अपने झोKों �े औ मद� बामदों में Kडे़ हो-होक Kुशी �े तासिलयॉँ बाजते थे। इ� शान-शौकत के �ाथ वह पंड़ाल में पहुँचे औ एक Kूब�ूत Kेमे में उते। यहॉँ �ब तह की �ुत्रिवधाऍं एक� थीं, द� बजे कांफ्रें � शुरू हुई। वक्ता अपनी-अपनी भाषा के जलवे दिदKाने लगे। त्रिक�ी के हँ�ी-दिदल्लगी �े भे हुए चुटकुलों प वाह-वाह की धूम मच गई, त्रिक�ी की आग ब�ानेवाले तकी ने दिदलों में जोश की एक तह-�ी पेछा क दी। त्रिवद्वAापूण� भाषणों के मुकाबले में हँ�ी-दिदल्लगी औ बात कहने की Kुबी को लोगों ने ज्यादा प�न्द त्रिकया। nोताओं को उन भाषणों में सिथयेट के गीतों का-�ा आनन्द आता था।

कई दिदन तक यही हालत ही औ भाषणों की दृन्तिrट �े कांफ्रें � को शानदा कामयाबी हासि�ल हुई। आखिKका मंगल का दिदन आया। बाबू �ाहब वाप�ी की तैयारियॉँ कने लगे। मग कुछ ऐ�ा �ंयोग हुआ त्रिक आज उन्हें मजबून ठहना पड़ा। बम्बई औ यू.पी. के डे़लीगेटों में एक हाकी मैच ठह गई। बाबू दयाशंक हाकी के बहुत अचे्छ खिKलाड़ी थे। वह भी टीम में दाखिKल क सिलये गये थे। उन्होंने बहुत कोसिशश की त्रिक अपना गला छुड़ा लूँ मग दोस्तों ने इनकी आनाकानी प त्रिबलकुल ध्यान न दिदया। �ाहब, जो ज्यादा बेतकल्लुर्फ थे, बोल-आखिK तुम्हें इतनी जल्दी क्यों है? तुम्हाा दफ्त अभी हफ्ता भ बंद है। बीवी �ाहबा की जााजगी के सि�वा मुझे इ� जल्दबाजी का कोई काण नहीं दिदKायी

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पड़ता। दयाशंक ने जब देKा त्रिक जल्द ही मुझप बीवी का गुलाम होने की र्फबत्रितयॉँ क�ी जाने वाली हैं, जिज��े ज्यादा अपमानजनक बात मद� की शान में कोई दू�ी नहीं कही जा �कती, तो उन्होंने बचाव की कोई �ूत न देKक वाप�ी मुल्तवी क दी। औ हाकी में शीक हो गए। मग दिदल में यह पक्का इादा क सिलया त्रिक शाम की गाड़ी �े जरू चले जायेंगे, त्रिर्फ चाहे कोई बीवी का गुलाम नहीं, बीवी के गुलाम का बाप कहे, एक न मानेंगे।

Kै, पांच बजे Kेल शुनू हुआ। दोनों तर्फ के खिKलाड़ी बहुत तेज थे जिजन्होने हाकी Kेलने के सि�वा जिजन्दगी में औ कोई काम ही नहीं त्रिकया। Kेल बडे़ जोश औ �गमu �े होने लगा। कई हजा तमाशाई जमा थे। उनकी तासिलयॉँ औ बढ़ावे खिKलात्रिड़यों प मारू बाजे का काम क हे थे औ गेंद त्रिक�ी अभागे की त्रिकस्मत की तह इध-उध ठोकें Kाती त्रिर्फती थी। दयाशंक के हाथों की तेजी औ �र्फाई, उनकी पकड़ औ बेऐब त्रिनशानेबाजी प लोग हैान थे, यहॉँ तक त्रिक जब वक्त K*म होने में सि�र्फ� एक़ मिमनट बाकी ह गया था औ दोनों तर्फ के लोग त्रिहम्मतें हा चुके थे तो दयाशंक ने गेंद सिलया औ त्रिबजली की तह त्रिवोधी पक्ष के गोल प पहुँच गये। एक पटाKें की आवाज हुई, चाों तर्फ �े गोल का नाा बुलन्द हुआ! इलाहाबाद की जीत हुई औ इ� जीत का �ेहा दयाशंक के सि� था-जिज�का नतीजा यह हुआ त्रिक बेचाे दयाशंक को उ� वक्त भी रुकना पड़ा औ सि�र्फ� इतना ही नहीं, �ताा अमेच क्लब की तर्फ �े इ� जीत की बधाई में एक नाटक Kेलने का कोई प्रस्ताव हुआ जिज�े बुध के ोज भी वाना होने की कोई उम्मीद बाकी न ही। दयाशंक ने दिदल में बहुत पेचोताब Kाया मग जबान �े क्या कहते! बीवी का गूलाम कहलाने का ड़ जबान बन्द त्रिकये हुए था। हालॉँत्रिक उनका दिदल कह हा था त्रिक अब की देवी रूठेंगी तो सि�र्फ� Kुशामदों �े न मानेंगी।

बू दयाशंक वादे के ोज के तीन दिदन बाद मकान प पहुँचे। �ताा �े त्रिगरिजा के सिलए कई अनूठे तोहरे्फ लाये थे। मग उ�ने इन चीजों को कुछ इ� तह देKा त्रिक

जै�े उन�े उ�का जी भ गया है। उ�का चेहा उता हुआ था औ होंठ �ूKे थे। दो दिदन �े उ�ने कुछ नहीं Kाया था। अग चलते वक्त दयाशंक की आंK �े आुँ�ू की चन्द बूंदें टपक पड़ी होतीं या कम �े कम चेहा कुछ उदा� औ आवाज कुछ भाी हो गयी होती तो शायद त्रिगरिजा उन�े न रूठती। आँ�ुओं की चन्द बूँदें उ�के दिदल में इ� Kयाल को तो-ताजा Kतीं त्रिक उनके न आने का काण चाहे ओ कुछ हो त्रिनषु्ठता हत्रिगज नहीं है। शायद हाल पूछने के सिलए उ�ने ता दिदया होता औ अपने पत्रित को अपने �ामने Kैरियत �े देKक वह बब� उनके �ीने में जा सिचमटती औ देवताओं की कृतज्ञ होती। मग आँKों की वह बेमौका कंजू�ी औ चेहे की वह त्रिनषु्ठ मु�कान इ� वक्त उ�के पहलू में Kटक ही थी। दिदल में Kयाल जम गया था त्रिक मैं चाहे इनके सिलए म ही मिमटँू मग इन्हें मेी पवाह नहीं है। दोस्तों का आग्रह औ जिजद केवल बहाना है। कोई जबदस्ती त्रिक�ी को ोक नहीं �कता। Kूब! मैं तो ात की ात बैठक काटँू औ वहॉँ मजे उड़ाये जाऍं!

बा

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बाबू दयाशंक को रूठों के मनाने में त्रिवषेश दक्षता थी औ इ� मौके प उन्होंने कोई बात, कोई कोसिशश उठा नहीं Kी। तोहरे्फ तो लाए थे मग उनका जादू न चला। तब हाथ जोड़क एक पै �े Kडे़ हुए, गुदगुदाया, तलुवे �हलाये, कुछ शोKी औ शात की। द� बजे तक इन्हीं �ब बातों में लगे हे। इ�के बाद Kाने का वक्त आया। आज उन्होंने रूKी ोदिटयॉँ बड़ें शौक �े औ मामूली �े कुछ ज्यादा Kायीं-त्रिगरिजा के हाथ �े आज हफ्ते भ बाद ोदिटयॉँ न�ीब हुई हैं, �ताे में ोदिटयों को त� गयें पूत्रिडयॉँ Kाते-Kाते आँतों में बायगोले पड़ गये। यकीन मानो त्रिगरिजन, वहॉँ कोई आाम न था, न कोई �ै, न कोई लु*र्फ। �ै औ लु*र्फ तो महज अपने दिदल की कैत्रिर्फयत प मुनह� है। बेत्रिर्फक्री हो तो चदिटयल मैदान में बाग का मजा आता है औ तत्रिबयत को कोई त्रिर्फक्र हो तो बाग वीाने �े भी ज्यादा उजाड़ मालूम होता है। कम्बख्त दिदल तो हदम यहीं धा हता था, वहॉँ मजा क्या Kाक आता। तुम चाहे इन बातों को केवल बनावट �मझ लो, क्योंत्रिक मैं तुम्हाे �ामने दोषी हँू औ तुम्हें अमिधका है त्रिक मुझे झूठा, मक्का, दगाबाज, वेवर्फा, बात बनानेवाला जो चाहे �मझ लो, मग �च्चाई यही है जो मैं कह हा हँू। मैं जो अपना वादा पूा नहीं क �का, उ�का काण दोस्तों की जिजद थी।

दयाशंक ने ोदिटयों की Kूब ताीर्फ की क्योंत्रिक पहले कई बा यह तकीब र्फायदेमन्द �ात्रिबत हुई थी, मग आज यह मन्� भी काग न हुआ। त्रिगरिजा के तेव बदले ही हे।

ती�े पह दयाशंक त्रिगरिजा के कमे में गये औ पंKा झलने लगे; यहॉँ तक त्रिक त्रिगरिजा झुँझलाक बोल उठी-अपनी नाजबदारियॉँ अपने ही पा� खिKये। मैंने हुजू �े भ पाया। मैं तुम्हें पहचान गयी, अब धोKा नही Kाने की। मुझे न मालूम था त्रिक मुझ�े आप यों दगा केंगे। गज जिजन शब्दों में बेवर्फाइयों औ त्रिनषु्ठताओं की सिशकायतें हुआ कती हैं वह �ब इ� वक्त त्रिगरिजा ने Kच� क डाले।

म हुई। शह की गसिलयों में मोत्रितये औ बेले की लपटें आने लगीं। �ड़कों प सिछड़काव होने लगा औ मिमट्टी की �ोंधी Kुशबू उड़ने लगी। त्रिगरिजा Kाना पकाने

जा ही थी त्रिक इतने में उ�के दवाजे प इक्का आक रूका औ उ�में �े एक औत उत पड़ी। उ�के �ाथ एक मही थी उ�ने ऊप आक त्रिगरिजा �े कहा—बहू जी, आपकी �Kी आ ही हैं।

शायह �Kी पड़ो� में हनेवाली अहलमद �ाहब की बीवी थीं। अहलमद �ाहब बूढे़

आदमी थे। उनकी पहली शादी उ� वक्त हुई थी, जब दूध के दॉँत न टूटे थे। दू�ी शादी �ंयोग �े उ� जमाने में हुई जब मुँह में एक दॉँत भी बाकी न था। लोगों ने बहुत �मझाया त्रिक अब आप बूढे़ हुए, शादी न कीजिजए, ईश्व ने लड़के दिदये हैं, बहुएुँ हैं, आपको त्रिक�ी बात की तकलीर्फ नहीं हो �कती। मग अहलमद �ाहब Kुद बुढ� डे औ दुत्रिनया देKे हुए आदमी थे, इन शुभचिच�तकों की �लाहों का जवाब व्यावहारिक उदाहणों �े दिदया कते थे—क्यों, क्या मौत को बूढ़ों �े कोई दुrमनी है? बूढे़ गीब उ�का क्या त्रिबगाड़ते हैं? हम बाग

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में जाते हैं तो मुझाये हुए रू्फल नहीं तोड़ते, हमाी आँKें तो-ताजा, हे-भे Kूब�ूत रू्फलों प पड़ती हैं। कभी-कभी गजे वगैह बनाने के सिलए कसिलयॉँ भी तोड़ ली जाती हैं। यही हालत मौत की है। क्या यमाज को इतनी �मझ भी नहीं है। मैं दावे के �ाथ कह �कता हँू त्रिक जवान औ बचे्च बूढ़ों �े ज्यादा मते हैं। मैं अभी ज्यों का *यो हँू, मेे तीन जवान भाई, पॉँच बहनें, बहनों के पत्रित, तीनों भावजें, चा बेटे, पॉँच बेदिटयॉँ, कई भतीजे, �ब मेी आँKों के �ामने इ� दुत्रिनया �े चल ब�े। मौत �बको त्रिनगल गई मग मेा बाल बॉँका न क �की। यह गलत, त्रिबलकुल गलत है त्रिक बूढे़ आदमी जल्द म जाते हैं। औ अ�ल बात तो यह है त्रिक जबान बीवी की जरूत बुढ़ापे में ही होती है। बहुए ँमेे �ामने त्रिनकलना चाहें औ न त्रिनकल �कती हैं, भावजें Kुद बूढ़ी हुईं, छोटे भाई की बीवी मेी पछाईं भी नही देK �कती है, बहनें अपने-अपने घ हैं, लड़के �ीधे मुंह बात नहीं कते। मैं ठहा बूढ़ा, बीमा पडू ँतो पा� कौन र्फटके, एक लोटा पानी कौन दे, देKँू त्रिक�की आँK �े, जी कै�े बहलाऊँ? क्या आ*मह*या क लूँ। या कहीं डूब मरँू? इन दलीलों के मुकात्रिबले में त्रिक�ी की जबान न Kुलती थी।

गज इ� नयी अहलमदिदन औ त्रिगरिजा में कुछ बहनापा �ा हो गया था, कभी-कभी उ��े मिमलने आ जाया कती थी। अपने भाग्य प �न्तोष कने वाली स्�ी थी, कभी सिशकायत या ंज की एक बात जबान �े न त्रिनकालती। एक बा त्रिगरिजा ने मजाक में कहा था त्रिक बूढे़ औ जवान का मेल अच्छा नहीं होता। इ� प वह नााज हो गयी औ कई दिदन तक न आयी। त्रिगरिजा मही को देKते ही र्फौन ऑंगन में त्रिनकल आयी औ गो उ� इ� वक्त मेहमान का आना नागवाा गुजा मग मही �े बोली-बहन, अच्छी आयीं, दो घड़ी दिदल बहलेगा।

जा दे में अहलमदिदन �ाहब गहने �े लदी हुई, घूंघट त्रिनकाले, छमछम कती हुई आँगन मे आक Kड़ी हो गईं। त्रिगरिजा ने कीब आक कहा-वाह �Kी, आज तो तुम दुलत्रिहन बनी हो। मुझ�े पदा� कने लगी हो क्या? यह कहक उ�ने घूंघट हटा दिदया औ �Kी का मुंह देKते ही चौंकक एक कदम पीछे हट गई। दयाशंक ने जो �े कहकहा लगाया औ त्रिगरिजा को �ीने �े सिलपटा सिलया औ त्रिवनती के स्व में बोले-त्रिगरिजन, अब मान जाओ, ऐ�ी Kता त्रिर्फ कभी न होगी। मग त्रिगरिजन अलग हट गई औ रुKाई �े बोली-तुम्हाा बहुरूप बहुत देK चुकी, अब तुम्हाा अ�ली रूप देKना चाहती हँू।

याशंक पे्रम-नदी की हलकी-हलकी लहों का आनन्द तो जरू उठाना चाहते थे मग तूर्फान �े उनकी तत्रिबयत भी उतना ही घबाती थी जिजतना त्रिगरिजा की, बस्पिल्क शायद

उ��े भी ज्यादा। हृदय-पत्रिवत�न के जिजतने मं� उन्हें याद थे वह �ब उन्होंने पढे़ औ उन्हें काग न होते देKक आखिK उनकी तत्रिबयत को भी उलझन होने लगी। यह वे मानते थे त्रिक बेशक मुझ�े Kता हुई है मग Kता उनके Kयाल में ऐ�ी दिदल जलानेवाली �जाओं के कात्रिबल न थी। मनाने की कला में वह जरू सि�jहस्त थे मग इ� मौके प उनकी अक्ल ने कुछ काम न दिदया। उन्हें ऐ�ा कोई जादू नज नहीं आता था जो उठती हुई काली घटाओं

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औ जो पकड़ते हुए झोंकों को ोक दे। कुछ दे तक वह उन्हीं ख्यालों में Kामोश Kडे़ हे औ त्रिर्फ बोले-आखिK त्रिगरिजन, अब तुम क्या चाहती हो।

त्रिगरिजा ने अ*यन्त �हानुभूत्रित शून्य बेपवाही �े मुँह रे्फक कहा-कुछ नहीं।दयाशंक-नहीं, कुछ तो जरू चाहती हो वना� चा दिदन तक त्रिबना दाना-पानी के

हने का क्या मतलब! क्या मुझ प जान देने की ठानी है? अग यही रै्फ�ला है तो बेहत है तुम यों जान दो औ मैं क*ल के जुम� में र्फॉँ�ी पाऊँ, त्रिकस्�ा तमाम हो जाये। अच्छा होगा, बहुत अच्छा होगा, दुत्रिनया की पेशात्रिनयों �े छुटकाा हो जाएगा।

यह मन्त त्रिबलकुल बेअ� न हा। त्रिगरिजा आँKों में आँ�ू भक बोली-तुम KामKाह मुझ�े झगड़ना चाहते हो औ मुझे झगडे़ �े नर्फत है। मैं तुम�े न बोलती हँू औ न चाहती हँू त्रिक तुम मुझ�े बोलने की तकलीर्फ गवाा को। क्या आज शह में कहीं नाच नहीं होता, कहीं हाकी मैच नहीं है, कहीं शतंज नहीं त्रिबछी हुई है। वहीं तुम्हाी तत्रिबयत जमती है, आप वहीं जाइए, मुझे अपने हाल प हने दीजिजए मैं बहुत अच्छी तह हँू।

दयाशंक करुण स्व में बोले-क्या तुमने मुझे ऐ�ा बेवर्फा �मझ सिलया है? त्रिगरिजा-जी हॉँ, मेा तो यही तजुबा� है।दयाशंक-तो तुम �ख्त गलती प हो। अग तुम्हाा यही ख्याल है तो मैं कह �कता

हँू त्रिक औतों की अन्तदृ�मि� के बाे में जिजतनी बातें �ुनी हैं वह �ब गलत हैं। त्रिगजन, मेे भी दिदल है...

त्रिगरिजा ने बात काटक कहा-�च, आपके भी दिदल है यह आज नयी बात मालूम हुईं।

दयाशंक कुछ झेंपक बोले-Kै जै�ा तुम �मझों। मेे दिदल न �ही, मे जिजग न �ही, दिदमाग तो �ार्फ जात्रिह है त्रिक ईश्व ने मुझे नहीं दिदया वना� वकालत में रे्फल क्यों होता? गोया मेे शी में सि�र्फ� पेट है, मैं सि�र्फ� Kाना जानता हँू औ �चमुच है भी ऐ�ा ही, तुमने मुझे कभी र्फाका कते नहीं देKा। तुमने कई बा दिदन-दिदन भ कुछ नहीं Kाया है, मैं पेट भने �े कभी बाज नहीं आया। लेत्रिकन कई बा ऐ�ा भी हुआ है त्रिक दिदल औ जिजग जिज� कोसिशश में अ�र्फल हे वह इ�ी पेट ने पूी क दिदKाई या यों कहों त्रिक कई बा इ�ी पेट ने दिदल औ दिदमाग औ जिजग का काम क दिदKाया है औ मुझे अपने इ� अजीब पेट प कुछ गव� होने लगा था मग अब मालूम हुआ त्रिक मेे पेट की अजीब पेट प कुछ गव� होने लगा था मग अब मालूम हुआ त्रिक मेे पेट की बेहयाइयॉँ लोगों को बुी मालूम होती है...इ� वक्त मेा Kाना न बने। मैं कुछ न Kाऊंगा।

त्रिगरिजा ने पत्रित की तर्फ देKा, चेहे प हलकी-�ी मुस्काहट थी, वह यह क ही थी त्रिक यह आखिKी बात तुम्हें ज्यादा �म्हलक कहनी चात्रिहए थी। त्रिगरिजा औ औतों की तह यह भूल जाती थी त्रिक मद´ की आ*मा को भी क� हो �कता है। उ�के Kयाल में क� का मतलब शाीरिक क� था। उ�ने दयाशंक के �ाथ औ चाहे जो रियायत की हो, खिKलाने-त्रिपलाने में उ�ने कभी भी रियायत नहीं की औ जब तक Kाने की दैत्रिनक मा�ा उनके पेट में पहुँचती जाय उ�े उनकी तर्फ �े ज्यादा अन्देशा नहीं होता था। हजम कना दयाशंक का काम था। �च पूसिछये तो त्रिगरिजा ही की �ख्यिख्यतों ने उन्हें हाकी का शौक

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दिदलाया वना� अपने औ �ैकड़ों भाइयों की तह उन्हें दफ्त �े आक हुक्के औ शतंज �े ज्यादा मनोंजन होता था। त्रिगरिजा ने यह धमकी �ुनी तो *योरियां चढ़ाक बोली-अच्छी बात है, न बनेगा।

दयाशंक दिदल में कुछ झेंप-�े गये। उन्हें इ� बेहम जवाब की उम्मीद न थी। अपने कमे मे जाक अKबा पढ़ने लगे। इध त्रिगरिजा हमेशा की तह Kाना पकाने में लग गई। दयाशंक का दिदल इतना टूट गया था त्रिक उन्हें Kयाल भी न था त्रिक त्रिगरिजा Kाना पका ही होगी। इ�सिलए जब नौ बजे के कीब उ�ने आक कहा त्रिक चलो Kाना Kा लो तो वह ताज्जुब �े चौंक पडे़ मग यह यकीन आ गया त्रिक मैंने बाजी मा ली। जी हा हुआ, त्रिर्फ भी ऊप �े रुKाई �े कहा-मैंने तो तुम�े कह दिदया था त्रिक आज कुछ न Kाऊँगा।

त्रिगरिजा-चलो थोड़ा-�ा Kा लो।दयाशंक-मुझे जा भी भूK नहीं है।त्रिगरिजा-क्यों? आज भूK नहीं लगी?दयाशंक-तुम्हें तीन दिदन �े भूK क्यों नहीं लगी?त्रिगरिजा-मुझे तो इ� वजह �े नहीं लगी त्रिक तुमने मेे दिदल को चोट पहुँचाई थी।दयाशंक-मुझे भी इ� वजह �े नहीं लगी त्रिक तुमने मुझे तकलीर्फ दी है।दयाशंक ने रुKाई के �ाथ यह बातें कहीं औ अब त्रिगरिजा उन्हें मनाने लगी। र्फौन

पॉँ�ा पलट गया। अभी एक ही क्षण पहले वह उ�की Kुशामदें क हे थे, मुजरिम की तह उ�के �ामने हाथ बॉँधे Kडे़, त्रिगड़त्रिगड़ा हे थे, मिमन्नतें कते थे औ अब बाजी पलटी हुई थी, मुजरिम इन्�ार्फ की म�नद प बैठा हुआ था। मुहब्बत की ाहें मकड़ी के जालों �े भी पेचीदा हैं।

दयाशंक ने दिदन में प्रत्रितज्ञा की थी त्रिक मैं भी इ�े इतना ही हैान करँूगा जिजतना इ�ने मुझे त्रिकया है औ थोड़ी दे तक वह योत्रिगयों की तह ख्यिस्थता के �ाथ बैठे हे। त्रिगरिजा न उन्हें गुदगुदाया, तलुवे Kुजलाये, उनके बालो में कंघी की, त्रिकतनी ही लुभाने वाली अदाए ँKच� कीं मग अ� न हुआ। तब उ�ने अपनी दोनों बॉँहें उनकी गद�न में ड़ाल दीं औ याचना औ पे्रम �े भी हुई आँKें उठाक बोली-चलो, मेी क�म, Kा लो।रू्फ� की बॉँध बह गई। दयाशंक ने त्रिगरिजा को गले �े लगा सिलया। उ�के भोलेपन औ भावों की �लता ने उनके दिदल प एक अजीब दद�नाक अ� पेदा त्रिकया। उनकी आँKे भी गीली हो गयीं। आह, मैं कै�ा जासिलम हँू, मेी बेवर्फाइयों ने इ�े त्रिकतना रुलाया है, तीन दिदन तक उ�के आँ�ू नहीं थमे, आँKे नहीं झपकीं, तीन दिदन तक इ�ने दाने की �ूत नहीं देKी मग मेे एक जा-�े इनका ने, झूठे नकली इनका ने, चम*का क दिदKाया। कै�ा कोमल हृदय है! गुलाब की पंKुड़ी की तह, जो मुझा जाती है मग मैली नहीं होती। कहॉँ मेा ओछापन, Kुदगजu औ कहॉँ यह बेKुदी, यह *यागा, यह �ाह�।

दयाशंक के �ीने �े सिलपटी हुई त्रिगरिजा उ� वक्त अपने प्रबल आकष�ण �े अनके दिदल को Kींचे लेती थी। उ�ने जीती हुई बाजी हाक आज अपने पत्रित के दिदल प कब्जा पा सिलया। इतनी जबद�स्त जीत उ�े कभी न हुई थी। आज दयाशंक को मुहब्बत औ भोलेपन की इ� मूत प जिजतना गव� था उ�का अनुमान लगाना कदिठन है। जा दे में वह उठ Kडे़ हुए औ बोले-एक शत� प चलँूगा।

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त्रिगरिजा-क्या?दयाशंक-अब कभी मत रूठना।त्रिगरिजा-यह तो टेढ़ी शत� है मग...मंजू है।दो-तीन कदम चलने के बाद त्रिगरिजा ने उनका हाथ पकड़ सिलया औ बोली-तुम्हें भी

मेी एक शत� माननी पडे़गी।दयाशंक-मैं �मझ गया। तुम�े �च कहता हँू, अब ऐ�ा न होगा।दयाशंक ने आज त्रिगरिजा को भी अपने �ाथ खिKलाया। वह बहुत लजायी, बहुत

हीले त्रिकये, कोई �ुनेगा तो क्या कहेगा, यह तुम्हें क्या हो गया है। मग दयाशंक ने एक न मानी औ कई कौ त्रिगरिजा को अपने हाथ �े खिKलाये औ ह बा अपनी मुहब्बत का बेदद� के �ाथ मुआवजा सिलया।

Kाते-Kाते उन्होंने हँ�क त्रिगरिजा �े कहा-मुझे न मालूम था त्रिक तुम्हें मनाना इतना आ�ान है।

त्रिगरिजा ने नीची त्रिनगाहों �े देKा औ मुस्कायी, मग मुँह �े कुछ न बोली।--उदू� ‘प्रेम पची�ी’ �े

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अँधे�

गपंचमी आई। �ाठे के जिजन्दादिदल नौजवानों ने ंग-त्रिबंगे जॉँमिघये बनवाये। अKाडे़ में ढोल की मदा�ना �दायें गूँजने लगीं। आ�पा� के पहलवान इकटे्ठ हुए औ

अKाडे़ प तम्बोसिलयों ने अपनी दुकानें �जायीं क्योंत्रिक आज कुrती औ दोस्ताना मुकाबले का दिदन है। औतों ने गोब �े अपने आँगन लीपे औ गाती-बजाती कटोों में दूध-चावल सिलए नाग पूजने चलीं।

ना�ाठे औ पाठे दो लगे हुए मौजे थे। दोनों गंगा के त्रिकनाे। Kेती में ज्यादा मशक्कत

नहीं कनी पड़ती थी इ�ीसिलए आप� में र्फौजदारियॉँ Kूब होती थीं। आदिदकाल �े उनके बीच होड़ चली आती थी। �ाठेवालों को यह घमण्ड था त्रिक उन्होंने पाठेवालों को कभी सि� न उठाने दिदया। उ�ी तह पाठेवाले अपने प्रत्रितदं्वत्रिद्वयों को नीचा दिदKलाना ही जिजन्दगी का �ब�े बड़ा काम �मझते थे। उनका इत्रितहा� त्रिवजयों की कहात्रिनयों �े भा हुआ था। पाठे के चवाहे यह गीत गाते हुए चलते थे:

�ाठेवाले काय �गे पाठेवाले हैं �दा

औ �ाठे के धोबी गाते:

�ाठेवाले �ाठ हाथ के जिजनके हाथ �दा तवा।उन लोगन के जनम न�ाये जिजन पाठे मान लीन अवता।।

गज आप�ी होड़ का यह जोश बच्चों में मॉँ दूध के �ाथ दाखिKल होता था औ उ�के प्रदश�न का �ब�े अच्छा औ ऐत्रितहासि�क मौका यही नागपंचमी का दिदन था। इ� दिदन के सिलए �ाल भ तैयारियॉँ होती हती थीं। आज उनमें माकd की कुrती होने वाली थी। �ाठे को गोपाल प नाज था, पाठे को बलदेव का गा�। दोनों �ूमा अपने-अपने र्फीक की दुआए ँऔ आजुए ँसिलए हुए अKाडे़ में उते। तमाशाइयों प चुम्बक का-�ा अ� हुआ। मौजें के चौकीदाों ने लट्ठ औ डण्डों का यह जमघट देKा औ मद´ की अंगाे की तह लाल आँKें तो त्रिपछले अनुभव के आधा प बेपता हो गये। इध अKाडे़ में दॉँव-पेंच होते हे। बलदेव उलझता था, गोपाल पैंते बदलता था। उ�े अपनी ताकत का जोम था, इ�े अपने कतब का भो�ा। कुछ दे तक अKाडे़ �े ताल ठोंकने की आवाजें आती हीं, तब यकायक बहुत-�े आदमी Kुशी के नाे मा-मा उछलने लगे, कपडे़ औ बत�न औ पै�े औ बताशे लुटाये जाने लगे। त्रिक�ी ने अपना पुाना �ार्फा र्फें का, त्रिक�ी ने अपनी बो�ीदा टोपी हवा में उड़ा दी �ाठे के मनचले जवान अKाडे़ में त्रिपल पडे़। औ गोपाल को गोद में उठा लाये। बलदेव औ उ�के �ासिथयों ने गोपाल को लहू की आँKों �े देKा औ दॉँत पी�क ह गये।

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� बजे ात का वक्त औ �ावन का महीना। आ�मान प काली घटाएुँ छाई थीं। अंधेे का यह हाल था त्रिक जै�े ोशनी का अस्पिस्त*व ही नहीं हा। कभी-कभी त्रिबजली

चमकती थी मग अँधेे को औ ज्यादा अंधेा कने के सिलए। मेंढकों की आवाजें जिजन्दगी का पता देती थीं वना� औ चाों तर्फ मौत थी। Kामोश, डावने औ गम्भी �ाठे के झोंपडे़ औ मकान इ� अंधेे में बहुत गौ �े देKने प काली-काली भेड़ों की तह नज आते थे। न बचे्च ोते थे, न औतें गाती थीं। पात्रिव�ा*मा बुडे्ढ ाम नाम न जपते थे।

दमग आबादी �े बहुत दू कई पुशो नालों औ ढाक के जंगलों �े गुजक ज्वा

औ बाजे के Kेत थे औ उनकी मेंड़ों प �ाठे के त्रिक�ान जगह-जगह मडै़या ड़ाले Kेतों की Kवाली क हे थे। तले जमीन, ऊप अंधेा, मीलों तक �न्नाटा छाया हुआ। कहीं जंगली �ुअों के गोल, कहीं नीलगायों के ेवड़, सिचलम के सि�वा कोई �ाथी नहीं, आग के सि�वा कोई मददगा नहीं। जा Kटका हुआ औ चौंके पडे़। अंधेा भय का दू�ा नाम है, जब मिमट्टी का एक ढे, एक ठँूठा पेड़ औ घा� का ढे भी जानदा चीजें बन जाती हैं। अंधेा उनमें जान ड़ाल देता है। लेत्रिकन यह मजबूत हाथोंवाले, मजबूत जिजगवाले, मजबूत इादे वाले त्रिक�ान हैं त्रिक यह �ब �ख्यिख्तयॉ। झेलते हैं तात्रिक अपने ज्यादा भाग्यशाली भाइयों के सिलए भोग-त्रिवला� के �ामान तैया कें। इन्हीं Kवालों में आज का हीो, �ाठे का गौव गोपाल भी है जो अपनी मडै़या में बैठा हुआ है औ नींद को भगाने के सिलए धीमें �ुों में यह गीत गा हा है:

मैं तो तो�े नैना लगाय पछतायी े

अचाकन उ�े त्रिक�ी के पॉँव की आहट मालूम हुई। जै�े त्रिहन कुAों की आवाजों को कान लगाक �ुनता है उ�ी तह गोपल ने भी कान लगाक �ुना। नींद की औंघाई दू हो गई। लट्ठ कंधे प क्Kा औ मडै़या �े बाह त्रिनकल आया। चाों तर्फ कासिलमा छाई हुई थी औ हलकी-हलकी बूंदें पड़ ही थीं। वह बाह त्रिनकला ही था त्रिक उ�के � प लाठी का भपू हाथ पड़ा। वह *योाक त्रिगा औ ात भ वहीं बे�ुध पड़ा हा। मालूम नहीं उ� प त्रिकतनी चोटें पड़ीं। हमला कनेवालों ने तो अपनी �मझ में उ�का काम तमाम क ड़ाला। लेत्रिकन जिजन्दगी बाकी थी। यह पाठे के गैतमन्द लोग थे जिजन्होंने अंधेे की आड़ में अपनी हा का बदला सिलया था।

पाल जात्रित का अही था, न पढ़ा न सिलKा, त्रिबलकुल अक्Kड़। दिदमागा ौशन ही नहीं हुआ तो शी का दीपक क्यों घुलता। पूे छ: रु्फट का कद, गठा हुआ बदन, ललकान

क गाता तो �ुननेवाले मील भ प बैठे हुए उ�की तानों का मजा लेते। गाने-बजाने का आसिशक, होली के दिदनों में महीने भ तक गाता, �ावन में मल्हा औ भजन तो ोज का शगल था। त्रिनड़ ऐ�ा त्रिक भूत औ त्रिपशाच के अस्पिस्त*व प उ�े त्रिवद्वानों जै�े �ंदेह थे। लेत्रिकन जिज� तह शे औ चीते भी लाल लपटों �े डते हैं उ�ी तह लाल पगड़ी �े उ�की

गो

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रूह अ�ाधाण बात थी लेत्रिकन उ�का कुछ ब� न था। सि�पाही की वह डावनी तस्वी जो बचपन में उ�के दिदल प Kींची गई थी, पत्थ की लकी बन गई थी। शातें गयीं, बचपन गया, मिमठाई की भूK गई लेत्रिकन सि�पाही की तस्वी अभी तक कायम थी। आज उ�के दवाजे प लाल पगड़ीवालों की एक र्फौज जमा थी लेत्रिकन गोपाल जख्मों �े चू, दद� �े बेचैन होने प भी अपने मकान के अंधेे कोने में सिछपा हुआ बैठा था। नम्बदा औ मुखिKया, पटवाी औ चौकीदा ोब Kाये हुए ढंग �े Kडे़ दाोगा की Kुशामद क हे थे। कहीं अही की र्फरियाद �ुनाई देती थी, कहीं मोदी ोना-धोना, कहीं तेली की चीK-पुका, कहीं कमाई की आँKों �े लहू जाी। कलवा Kड़ा अपनी त्रिकस्मत को ो हा था। र्फोहश औ गन्दी बातों की गम�बाजाी थी। दाोगा जी त्रिनहायत कागुजा अर्फ� थे, गासिलयों में बात कते थे। �ुबह को चापाई �े उठते ही गासिलयों का वजीर्फा पढ़ते थे। मेहत ने आक र्फरियाद की-हुजू, अण्डे नहीं हैं, दाोगाजी हण्ट लेक दौडे़ औn उ� गीब का भुकु� त्रिनकाल दिदया। �ाे गॉँव में हलचल पड़ी हुई थी। कांसि�टेबल औ चौकीदा ास्तों प यों अकड़ते चलते थे गोया अपनी ��ुाल में आये हैं। जब गॉँव के �ाे आदमी आ गये तो वादात हुई औ इ� कम्बख्त गोलाल ने पट तक न की।

मुखिKया �ाहब बेंत की तह कॉँपते हुए बोले-हुजू, अब मार्फी दी जाय।दाोगाजी ने गाजबनाक त्रिनगाहों �े उ�की तर्फ देKक कहा-यह इ�की शात

है। दुत्रिनया जानती है त्रिक जुम� को छुपाना जुम� कने के बाब है। मैं इ� बदकाश को इ�का मजा चKा दँूगा। वह अपनी ताकत के जोम में भूला हुआ है, औ कोई बात नहीं। लातों के भूत बातों �े नहीं मानते।

मुखिKया �ाहब ने सि� झुकाक कहा-हुजू, अब मार्फी दी जाय।दाोगाजी की *योरियॉँ चढ़ गयीं औ झुंझलाक बोले-अे हजू के बचे्च, कुछ

�दिठया तो नहीं गया है। अग इ�ी तह मार्फी देनी होती तो मुझे क्या कुAे ने काटा था त्रिक यहॉँ तक दौड़ा आता। न कोई मामला, न ममाले की बात, ब� मार्फी की ट लगा क्Kी है। मुझे ज्यादा रु्फ�त नहीं है। नमाज पढ़ता हँू, तब तक तुम अपना �लाह मशत्रिवा क लो औ मुझे हँ�ी-Kुशी रुK�त को वना� गौ�Kॉँ को जानते हो, उ�का माा पानी भी नही मॉँगता!

दाोगा तकवे व तहात के बडे़ पाबन्द थे पॉँचों वक्त की नमाज पढ़ते औ ती�ों ोजे Kते, ईदों में धूमधाम �े कुबा�त्रिनयॉँ होतीं। इ��े अच्छा आचण त्रिक�ी आदमी में औ क्या हो �कता है!

खिKया �ाहब दबे पॉँव गुपचुप ढंग �े गौा के पा� औ बोले-यह दाोगा बड़ा कात्रिर्फ है, पचा� �े नीचे तो बात ही नहीं कता। अब्बल दजd का थानेदा है। मैंने बहुत कहा,

हुजू, गीब आदमी है, घ में कुछ �ुभीता नहीं, मग वह एक नहीं �ुनता।

मुगौा ने घूँघट में मुँह सिछपाक कहा-दादा, उनकी जान बच जाए, कोई तह की आंच

न आने पाए, रूपये-पै�े की कौन बात है, इ�ी दिदन के सिलए तो कमाया जाता है।30

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गोपाल Kाट प पड़ा �ब बातें �ुन हा था। अब उ��े न हा गया। लकड़ी गॉँठ ही प टूटती है। जो गुनाह त्रिकया नहीं गया वह दबता है मग कुचला नहीं जा �कता। वह जोश �े उठ बैठा औ बोला-पचा� रुपये की कौन कहे, मैं पचा� कौत्रिड़यॉँ भी न दँूगा। कोई गद है, मैंने क�ू क्या त्रिकया है?

मुखिKया का चेहा र्फक हो गया। बड़प्पन के स्व में बोले-धीे बोलो, कहीं �ुन ले तो गजब हो जाए।

लेत्रिकन गोपाल त्रिबर्फा हुआ था, अकड़क बोला-मैं एक कौड़ी भी न दँूगा। देKें कौन मेे र्फॉँ�ी लगा देता है।

गौा ने बहलाने के स्व में कहा-अच्छा, जब मैं तुम�े रूपये माँगूँतो मत देना। यह कहक गौा ने, जो इ� वक्त लौड़ी के बजाय ानी बनी हुई थी, छप्प के एक कोने में �े रुपयों की एक पोटली त्रिनकाली औ मुखिKया के हाथ में K दी। गोपाल दॉँत पी�क उठा, लेत्रिकन मुखिKया �ाहब र्फौन �े पहले �क गये। दाोगा जी ने गोपाल की बातें �ुन ली थीं औ दुआ क हे थे त्रिक ऐ Kुदा, इ� मदूद के दिदल को पलट। इतने में मुखिKया ने बाह आक पची� रूपये की पोटली दिदKाई। पची� ास्ते ही में गायब हो गये थे। दाोगा जी ने Kुदा का शुक्र त्रिकया। दुआ �ुनी गयी। रुपया जेब में क्Kा औ �द पहुँचाने वालों की भीड़ को ोते औ त्रिबलत्रिबलाते छोड़क हवा हो गये। मोदी का गला घुंट गया। क�ाई के गले प छुी त्रिर्फ गयी। तेली त्रिप� गया। मुखिKया �ाहब ने गोपाल की गद�न प एह�ान क्Kा गोया �द के दाम त्रिगह �े दिदए। गॉँव में �ुK�रू हो गया, प्रत्रितष्ठा बढ़ गई। इध गोपाल ने गौा की Kूब Kब ली। गाँव में ात भ यही चचा� ही। गोपाल बहुत बचा औ इ�का �ेहा मुखिKया के सि� था। बड़ी त्रिवपत्तिA आई थी। वह टल गयी। त्रिपतों ने, दीवान हदौल ने, नीम तलेवाली देवी ने, तालाब के त्रिकनाे वाली �ती ने, गोपाल की क्षा की। यह उन्हीं का प्रताप था। देवी की पूजा होनी जरूी थी। �*यनाायण की कथा भी लाजिजमी हो गयी।

�ुबह हुई लेत्रिकन गोपाल के दवाजे प आज लाल पगत्रिड़यों के बजाय लाल �ात्रिड़यों का जमघट था। गौा आज देवी की पूजा कने जाती थी औ गॉँव की

औतें उ�का �ाथ देने आई थीं। उ�का घ �ोंधी-�ोंधी मिमट्टी की Kुशबू �े महक हा था जो K� औ गुलाब �े कम मोहक न थी। औतें �ुहाने गीत गा ही थीं। बचे्च Kुश हो-होक दौड़ते थे। देवी के चबूते प उ�ने मिमटटी का हाथी चढ़ाया। �ती की मॉँग में �ेंदु डाला। दीवान �ाहब को बताशे औ हलुआ खिKलाया। हनुमान जी को लड्डू �े ज्यादा पे्रम है, उन्हें लड्डू चढ़ाये तब गाती बजाती घ को आयी औ �*यनाायण की कथा की तैयारियॉँ होने लगीं । मासिलन रू्फल के हा, केले की शाKें औ बन्दनवाें लायीं। कुम्हा नये-नये दिदये औ हॉँत्रिडयाँ दे गया। बाी हे ढाक के पAल औ दोने K गया। कहा ने आक मटकों में पानी भा। बढ़ई ने आक गोपाल औ गौा के सिलए दो नयी-नयी पीदिढ़यॉँ बनायीं। नाइन ने ऑंगन लीपा औ चौक बनायी। दवाजे प बन्दनवाें बँध गयीं। ऑंगन में केले की शाKें

त्रिर्फ

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गड़ गयीं। पख्यिण्डत जी के सिलए चि��हा�न �ज गया। आप� के कामों की व्यवस्था Kुद-ब-Kुद अपने त्रिनत्तिश्चत दाये प चलने लगी । यही व्यवस्था �ंस्कृत्रित है जिज�ने देहात की जिजन्दगी को आडम्ब की ओ �े उदा�ीन बना क्Kा है । लेत्रिकन अर्फ�ो� है त्रिक अब ऊँच-नीच की बेमतलब औ बेहूदा कैदों ने इन आप�ी कत�व्यों को �ौहाद्र� �हयोग के पद �े हटा क उन प अपमान औ नीचता का दागालगा दिदया है।

शाम हुई। पख्यिण्डत मोटेामजी ने कन्धे प झोली डाली, हाथ में शंK सिलया औ Kड़ाऊँ प Kटपट कते गोपाल के घ आ पहुँचे। ऑंगन में टाट त्रिबछा हुआ था। गॉँव के प्रत्रितमिष्ठत लोग कथा �ुनने के सिलए आ बैठे। घण्टी बजी, शंK रंु्फका गया औ कथा शुरू हुईं। गोपाल भी गाढे़ की चाद ओढे़ एक कोने में रंू्फका गया औ कथा शुरू हुई। गोजाल भी गाढे़ की चाद ओढे़ एक कोने में दीवा के �हाे बैठा हुआ था। मुखिKया, नम्बदा औ पटवाी ने माे हमदद� के उ��े कहा—�*यनाायण क मत्रिहमा थी त्रिक तुम प कोई ऑंच न आई।

गोपाल ने अँगड़ाई लेक कहा—�*यनाायण की मत्रिहमा नहीं, यह अंधे है। --जमाना, जुलाई १९१३

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सि�र्फ� एकआवाज

बह का वक्त था। ठाकु दश�नचि��ह के घ में एक हंगामा बपा था। आज ात को चन्द्रग्रहण होने वाला था। ठाकु �ाहब अपनी बूढ़ी ठकुाइन के �ाथ गंगाजी जाते थे

इ�सिलए �ाा घ उनकी पुशो तैयाी में लगा हुआ था। एक बहू उनका र्फटा हुआ कुता� टॉँक ही थी, दू�ी बहू उनकी पगड़ी सिलए �ोचती थी, त्रिक कै�े इ�की मम्मत करंँू दोनो लड़त्रिकयॉँ नाrता तैया कने में तल्लीन थीं। जो ज्यादा दिदलच\ काम था औ बच्चों ने अपनी आदत के अनु�ा एक कुहाम मचा क्Kा था क्योंत्रिक ह एक आने-जाने के मौके प उनका ोने का जोश उमंग प होत था। जाने के वक्त �ाथा जाने के सिलए ोते, आने के वक्त इ�सिलए ोते त्रिकशीनी का बॉँट-बKा मनोनुकूल नहीं हुआ। बढ़ी ठकुाइन बच्चों को रु्फ�लाती थी औ बीच-बीच में अपनी बहुओं को �मझाती थी-देKों Kबदा ! जब तक उग्रह न हो जाय, घ �े बाह न त्रिनकलना। हँसि�या, छुी ,कुल्हाड़ी , इन्हें हाथ �े मत छुना। �मझाये देती हँू, मानना चाहे न मानना। तुम्हें मेी बात की पवाह है। मुंह में पानी की बूंदे न पड़ें। नाायण के घ त्रिवपत पड़ी है। जो �ाधु—त्तिभKाी दवाजे प आ जाय उ�े रे्फना मत। बहुओं ने �ुना औ नहीं �ुना। वे मना हीं थीं त्रिक त्रिक�ी तह यह यहॉँ �े टलें। र्फागुन का महीना है, गाने को त� गये। आज Kूब गाना-बजाना होगा।

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ठाकु �ाहब थे तो बूढे़, लेत्रिकन बूढ़ापे का अ� दिदल तक नहीं पहुँचा था। उन्हें इ� बात का गव� था त्रिक कोई ग्रहण गंगा-स्नान के बगै नहीं छूटा। उनका ज्ञान आश्चय� जनक था। सि�र्फ� प�ों को देKक महीनों पहले �ूय�-ग्रहण औ दू�े पव� के दिदन बता देते थे। इ�सिलए गाँववालों की त्रिनगाह में उनकी इज्जत अग पख्यिण्डतों �े ज्यादा न थी तो कम भी न थी। जवानी में कुछ दिदनों र्फौज में नौकी भी की थी। उ�की गमu अब तक बाकी थी, मजाल न थी त्रिक कोई उनकी तर्फ �ीधी आँK �े देK �के। �म्मन लानेवाले एक चपा�ी को ऐ�ी व्यावहारिक चेतावनी दी थी जिज�का उदाहण आ�-पा� के द�-पॉँच गॉँव में भी नहीं मिमल �कता। त्रिहम्मत औ हौ�ले के कामों में अब भी आगे-आगे हते थे त्रिक�ी काम को मुस्पिrकल बता देना, उनकी त्रिहम्मत को पे्ररित क देना था। जहॉँ �बकी जबानें बन्द हो जाए,ँ वहॉँ वे शेों की तह गजते थे। जब कभी गॉँव में दोगा जी तशीर्फ लाते तो ठाकु �ाहब ही का दिदल-गुदा� था त्रिक उन�े आँKें मिमलाक आमने-�ामने बात क �कें । ज्ञान की बातों को लेक सिछड़नेवाली बह�ों के मैदान में भी उनके कानामे कुछ कम शानदा न थे। झगड़ा पख्यिण्डत हमेशा उन�े मुँह सिछपाया कते। गज, ठाकु �ाहब का स्वभावगत गव� औ आ*म-त्रिवश्वा� उन्हें ह बात में दूल्हा बनने प मजबू क देता था। हॉँ, कमजोी इतनी थी त्रिक अपना आल्हा भी आप ही गा लेते औ मजे ले-लेक क्योंत्रिक चना को चनाका ही Kूब बयान कता है!

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ब दोपह होते-होते ठाकुाइन गॉँव �े चले तो �ैंकड़ों आदमी उनके �ाथ थे औ पक्की �ड़क प पहुँचे, तो यात्रि�यों का ऐ�ा तॉँता लगा हुआ था त्रिक जै�े कोई

बाजा है। ऐ�े-ऐ�े बुढ़ें लादिठयॉँ टेकते या डोसिलयों प �वा चले जाते थे जिजन्हें तकलीर्फ देने की यमाज ने भी कोई जरूत न �मझी थी। अने्ध दू�ों की लकड़ी के �हाे कदम बढ़ाये आते थे। कुछ आदमिमयों ने अपनी बूढ़ी माताओं को पीठ प लाद सिलया था। त्रिक�ी के � प कपड़ों की पोटली, त्रिक�ी के कन्धे प लोटा-डो, त्रिक�ी के कन्धे प काँव। त्रिकतने ही आदमिमयों ने पैों प चीथडे़ लपेट सिलये थे, जूते कहॉँ �े लायें। मग धार्मिम�क उ*�ाह का यह वदान था त्रिक मन त्रिक�ी का मैला न था। �बके चेहे खिKले हुए, हँ�ते-हँ�ते बातें कते चले जा हे थें कुछ औतें गा ही थी:

चॉँद �ूज दूनो लोक के मासिलकएक दिदना उनहूँ प बनतीहम जानी हमहीं प बनती

ऐ�ा मालूम होता था, यह आदमिमयों की एक नदी थी, जो �ैंकड़ों छोटे-छोटे नालों औ धाों को लेती हुई �मुद्र �े मिमलने के सिलए जा ही थी।

जब यह लोग गंगा के त्रिकनाे पहुँचे तो ती�े पह का वक्त था लेत्रिकन मीलों तक कहीं त्रितल Kने की जगह न थी। इ� शानदा दृrय �े दिदलों प ऐ�ा ोब औ भसिक्त का ऐ�ा भाव छा जाता था त्रिक बब� ‘गंगा माता की जय’ की �दायें बुलन्द हो जाती थीं। लोगों के त्रिवश्वा� उ�ी नदी की तह उमडे़ हुए थे औ वह नदी! वह लहाता हुआ नीला मैदान! वह प्या�ों की प्या� बुझानेवाली! वह त्रिनाशों की आशा! वह वदानों की देवी! वह पत्रिव�ता का स्�ोत! वह मुट्ठी भ Kाक को आnय देनेवीली गंगा हँ�ती-मुस्काती थी औ उछलती थी। क्या इ�सिलए त्रिक आज वह अपनी चौतर्फा इज्जत प रू्फली न �माती थी या इ�सिलए त्रिक वह उछल-उछलक अपने पे्रमिमयों के गले मिमलना चाहती थी जो उ�के दश�नों के सिलए मंजिजल तय कके आये थे! औ उ�के परिधान की प्रशं�ा त्रिक� जबान �े हो, जिज� �ूज �े चमकते हुए ताे टॉँके थे औ जिज�के त्रिकनाों को उ�की त्रिकणों ने ंग-त्रिबंगे, �ुन्द औ गत्रितशील रू्फलों �े �जाया था।

अभी ग्रहण लगने में धण्टे की दे थी। लोग इध-उध टहल हे थे। कहीं मदारियों के Kेल थे, कहीं चूनवाले की लचे्छदा बातों के चम*का। कुछ लोग मेढ़ों की कुrती देKने के सिलए जमा थे। ठाकु �ाहब भी अपने कुछ भक्तों के �ाथ �ै को त्रिनकले। उनकी त्रिहम्मत ने गवाा न त्रिकया त्रिक इन बाजारू दिदलचस्पि\यों में शीक हों। यकायक उन्हें एक बड़ा-�ा शामिमयाना तना हुआ नज आया, जहॉँ ज्यादात पढे़-सिलKे लोगों की भीड़ थी। ठाकु �ाहब ने अपने �ासिथयों को एक त्रिकनाे Kड़ा क दिदया औ Kुद गव� �े ताकते हुए र्फश� प जा बैठे क्योंत्रिक उन्हें त्रिवश्वा� था त्रिक यहॉँ उन प देहात्रितयों की ईर्ष्याया�--दृमि� पडे़गी औ �म्भव है कुछ ऐ�ी बाीक बातें भी मालूम हो जायँ तो उनके भक्तों को उनकी �व�ज्ञता का त्रिवश्वा� दिदलाने में काम दे �कें ।

यह एक नैत्रितक अनुष्ठान था। दो-ढाई हजा आदमी बैठे हुए एक मधुभाषी वक्ता का भाषण�ुन हे थे। रै्फशनेबुल लोग ज्यादात अगली पंसिक्त में बैठे हुए थे जिजन्हें कनबत्रितयों का

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इ��े अच्छा मौका नहीं मिमल �कता था। त्रिकतने ही अचे्छ कपडे़ पहने हुए लोग इ�सिलए दुKी नज आते थे त्रिक उनकी बगल में त्रिनम्न nेणी के लोग बैठे हुए थे। भाषण दिदलचस्त मालूम पड़ता था। वजन ज्यादा था औ चटKाे कम, इ�सिलए तासिलयॉँ नहीं बजती थी।

वक्ता ने अपने भाषण में कहा—

मेे प्याे दोस्तो, यह हमाा औ आपका कत�व्य है। इ��े ज्यादा महत्त्वपूण�, ज्यादा परिणामदायक औ कौम के सिलए ज्यादा शुभ औ कोई कत�व्य नहीं है। हम मानते हैं त्रिक उनके आचा-व्यवहा की दशा अ*यंत करुण है। मग त्रिवश्वा� मात्रिनये यह �ब हमाी कनी है। उनकी इ� लज्जाजनक �ांस्कृत्रितक ख्यिस्थत्रित का जिजम्मेदा हमाे सि�वा औ कौन हो �कता है? अब इ�के सि�वा औ कोई इलाज नहीं हैं त्रिक हम उ� घृणा औ उपेक्षा को; जो उनकी तर्फ �े हमाे दिदलों में बैठी हुई है, घोयें औ Kूब मलक धोयें। यह आ�ान काम नहीं है। जो कासिलK कई हजा वष� �े जमी हुई है, वह आ�ानी �े नहीं मिमट �कती। जिजन लोगों की छाया �े हम बचते आये हैं, जिजन्हें हमने जानवों �े भी जलील �मझ क्Kा है, उन�े गले मिमलने में हमको *याग औ �ाह� औ पमाथ� �े काम लेना पडे़गा। उ� *याग �े जो कृर्ष्याण में था, उ� त्रिहम्मत �े जो ाम में थी, उ� पमाथ� �े जो चैतन्य औ गोत्रिवन्द में था। मैं यह नहीं कहता त्रिक आप आज ही उन�े शादी के रिrते जोडें या उनके �ाथ बैठक Kायें-त्रिपयें। मग क्या यह भी मुमत्रिकन नहीं है त्रिक आप उनके �ाथ �ामान्य �हानुभूत्रित, �ामान्य मनुर्ष्यायता, �ामान्य �दाचा �े पेश आयें? क्या यह �चमुच अ�म्भव बात है? आपने कभी ई�ाई मिमशनरियों को देKा है? आह, जब मैं एक उच्चकोदिट का �ुन्द, �ुकुमा, गौवण� लेडी को अपनी गोद में एक काला–कलूटा बच्च सिलये हुए देKता हँू जिज�के बदन प र्फोडे़ हैं, Kून है औ गन्दगी है—वह �ुन्दी उ� बचे्च को चूमती है, प्या कती है, छाती �े लगाती है—तो मेा जी चाहता है उ� देवी के कदमों प सि� K दँू। अपनी नीचता, अपना कमीनापन, अपनी झूठी बड़ाई, अपने ह्रदय की �ंकीण�ता मुझे कभी इतनी �र्फाई �े नज नहीं आती। इन देत्रिवयों के सिलए जिजन्दगी में क्या-क्या �ंपदाए,ँ नहीं थी, Kुसिशयॉँ बॉँहें प�ाे हुए उनके इन्तजा में Kड़ी थी। उनके सिलए दौलत की �ब �ुK-�ुत्रिवधाए ँ थीं। पे्रम के आकष�ण थे। अपने आ*मीय औ स्वजनों की �हानुभूत्रितयॉँ थीं औ अपनी प्याी मातृभूमिम का आकष�ण था। लेत्रिकन इन देत्रिवयों ने उन तमाम नेमतों, उन �ब �ां�ारिक �ंपदाओं को �ेवा, �च्ची त्रिनस्वाथ� �ेवा प बसिलदान क दिदया है ! वे ऐ�ी बड़ी कुबा�त्रिनयॉँ क �कती हैं, तो हम क्या इतना भी नहीं क �कते त्रिक अपने अछूत भाइयों �े हमदद� का �लूक क �कें ? क्या हम �चमुच ऐ�े पस्त-त्रिहम्मत, ऐ�े बोदे, ऐ�े बेहम हैं? इ�े Kूब �मझ लीजिजए त्रिक आप उनके �ाथ कोई रियायत, कोई मेहबानी नहीं क हें हैं। यह उन प कोई एह�ान नहीं है। यह आप ही के सिलए जिजन्दगी औ मौत का �वाल है। इ�सिलए मेे भाइयों औ दोस्तो, आइये इ� मौके प शाम के वक्त पत्रिव� गंगा नदी के त्रिकनाे काशी के पत्रिव� स्थान में हम मजबूत दिदल �े प्रत्रितज्ञा कें त्रिक आज �े हम अछूतों के �ाथ भाई-चाे का �लूक केंगे,

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उनके तीज-*योहाों में शीक होंगे औ अपने *योहाों में उन्हें बुलायेंगे। उनके गले मिमलेंगे औ उन्हें अपने गले लगायेंगे! उनकी Kुसिशयों में Kुश औ उनके दद´ मे दद�मन्द होंगे, औ चाहे कुछ ही क्यों न हो जाय, चाहे ताना-त्रितश्नों औ जिजल्लत का �ामना ही क्यों न कना पडे़, हम इ� प्रत्रितज्ञा प कायम हेंगे। आप में �ैंकड़ों जोशीले नौजवान हैं जो बात के धनी औ इादे के मजबूत हैं। कौन यह प्रत्रितज्ञा कता है? कौन अपने नैत्रितक �ाह� का परिचय देता है? वह अपनी जगह प Kड़ा हो जाय औ ललकाक कहे त्रिक मैं यह प्रत्रितज्ञा कता हँू औ मते दम तक इ� प दृढ़ता �े कायम हँूगा।

ज गंगा की गोद में जा बैठा था औ मॉँ पे्रम औ गव� �े मतवाली जोश में उमड़ी हुई ंग के� को शमा�ती औ चमक में �ोने की लजाती थी। चा तर्फ एक ोबीली

Kामोशी छायी थीं उ� �न्नाटे में �ंन्या�ी की गमu औ जोश �े भी हुई बातें गंगा की लहों औ गगनचुम्बी मंदिदों में �मा गयीं। गंगा एक गम्भी मॉँ की त्रिनाशा के �ाथ हँ�ी औ देवताओं ने अर्फ�ो� �े सि� झुका सिलया, मग मुँह �े कुछ न बोले।

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�ंन्या�ी की जोशीली पुका त्रिर्फजां में जाक गायब हो गई, मग उ� मजमे में त्रिक�ी आदमी के दिदल तक न पहुँची। वहॉँ कौम प जान देने वालों की कमी न थी: स्टेजों प कौमी तमाशे Kेलनेवाले कालेजों के होनहा नौजवान, कौम के नाम प मिमटनेवाले प�का, कौमी �ंस्थाओं के मेम्ब, �ेके्रटी औ पे्रसि�डेंट, ाम औ कृर्ष्याण के �ामने सि� झुकानेवाले �ेठ औ �ाहूका, कौमी कासिलजों के ऊँचे हौं�लोंवाले प्रोरे्फ� औ अKबाों में कौमी तख्यिक्कयों की Kबें पढ़क Kुश होने वाले दफ्तों के कम�चाी हजाों की तादाद में मौजूद थे। आँKों प �ुनही ऐनकें लगाये, मोटे-मोटे वकीलों क एक पूी र्फौज जमा थी। मग �ंन्या�ी के उ� गम� भाषण �े एक दिदल भी न त्रिपघला क्योंत्रिक वह पत्थ के दिदल थे जिज�में दद� औ घुलावट न थी, जिज�में �दिदच्छा थी मग काय�-शसिक्त न थी, जिज�में बच्चों की �ी इच्छा थी मद� का–�ा इादा न था।

�ाी मजसिल� प �न्नाटा छाया हुआ था। ह आदमी सि� झुकाये त्रिर्फक्र में डूबा हुआ नज आता था। शर्मिंम�दगी त्रिक�ी को � उठाने न देती थी औ आँKें झेंप में माे जमीन में गड़ी हुई थी। यह वही � हैं जो कौमी चच´ प उछल पड़ते थे, यह वही आँKें हैं जो त्रिक�ी वक्त ाष्ट्रीय गौव की लाली �े भ जाती थी। मग कथनी औ कनी में आदिद औ अन्त का अन्त है। एक व्यसिक्त को भी Kडे़ होने का �ाह� न हुआ। कैं ची की तह चलनेवाली जबान भी ऐ�े महान� उAदामिय*व के भय �े बन्द हो गयीं।

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कु दश�नचि��ह अपनी जगी प बैठे हुए इ� दृrय को बहुत गौ औ दिदलच\ी �े देK हे थे। वह अपने मार्मिम�क त्रिवश्वा�ो में चाहे कट्ट हो या न हों, लेत्रिकन

�ांस्कृत्रितक मामलों में वे कभी अगुवाई कने के दोषी नहीं हुए थे। इ� पेचीदा औ डावने ास्ते में उन्हें अपनी बुजिj औ त्रिववेक प भो�ा नहीं होता था। यहॉं तक� औ युसिक्त को भी उन�े हा माननी पड़ती थी। इ� मैदान में वह अपने घ की त्मिस्�यों की इच्छा पूी कने ही अपना कA�व्य �मझते थे औ चाहे उन्हें Kुद त्रिक�ी मामले में कुछ एताज भी हो लेत्रिकन यह औतों का मामला था औ इ�में वे हस्तक्षेप नहीं क �कते थे क्योंत्रिक इ��े परिवा की व्यवस्था में हलचल औ गड़बड़ी पैदा हो जाने की जबदस्त आशंका हती थी। अग त्रिक�ी वक्त उनके कुछ जोशीले नौजवान दोस्त इ� कमजोी प उन्हें आडे़ हाथों लेते तो वे बड़ी बुजिjमAा �े कहा कते थे—भाई, यह औतों के मामले हैं, उनका जै�ा दिदल चाहता है, कती हैं, मैं बोलनेवाला कौन हँू। गज यहॉँ उनकी र्फौजी गम�-मिमजाजी उनका �ाथ छोड़ देती थी। यह उनके सिलए त्रितसिलस्म की घाटी थी जहॉँ होश-हवा� त्रिबगड़ जाते थे औ अने्ध अनुकण का पै बँधी हुई गद�न प �वा हो जाता था।

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लेत्रिकन यह ललका �ुनक वे अपने को काबू में न K �के। यही वह मौका था जब उनकी त्रिहम्मतें आ�मान प जा पहुँचती थीं। जिज� बीडे़ को कोई न उठाये उ�े उठाना उनका काम था। वज�नाओं �े उनको आत्मि*मक पे्रम था। ऐ�े मौके प वे नतीजे औ म�लहत �े बगावत क जाते थे औ उनके इ� हौ�ले में यश के लोभ को उतना दKल नहीं था जिजतना उनके नै�र्तिग�क स्वाभाव का। वना� यह अ�म्भव था त्रिक एक ऐ�े जल�े में जहॉँ ज्ञान औ �भ्यता की धूम-धाम थी, जहॉँ �ोने की ऐनकों �े ोशनी औ तह-तह के परिधानों �े दीप्त सिचन्तन की त्रिकणें त्रिनकल ही थीं, जहॉँ कपडे़-लAे की नर्फा�त �े ोब औ मोटापे �े प्रत्रितष्ठा की झलक आती थी, वहॉँ एक देहाती त्रिक�ान को जबान Kोलने का हौ�ला होता। ठाकु ने इ� दृrय को गौ औ दिदलच\ी �े देKा। उ�के पहलू में गुदगुदी-�ी हुई। जिजन्दादिदली का जोश गों में दौड़ा। वह अपनी जगह �े उठा औ मदा�ना लहजे में ललकाक बोला-मैं यह प्रत्रितज्ञा कता हँू औ मते दम तक उ� प कायम हँूगा।

इतना �ुनना था त्रिक दो हजा आँKें अचमे्भ �े उ�की तर्फ ताकने लगीं। �ुभानअल्लाह,

क्या हुसिलया थी—गाढे की ढीली मिमज�ई, घुटनों तक चढ़ी हुई धोती, � प एक भाी-�ा उलझा हुआ �ार्फा, कन्धे प चुनौटी औ तम्बाकू का वजनी बटुआ, मग चेहे �े गम्भीता औ दृढ़ता \� थी। गव� आँKों के तंग घेे �े बाह त्रिनकला पड़ता था। उ�के दिदल में अब इ� शानदा मजमे की इज्जत बाकी न ही थी। वह पुाने वक्तों का आदमी था जो अग पत्थ को पूजता था तो उ�ी पत्थ �े डता भी था, जिज�के सिलए एकादशी का व्रत केवल स्वा¦य-क्षा की एक युसिक्त औ गंगा केवल स्वा¦यप्रद पानी की एक धाा न थी। उ�के त्रिवश्वा�ों में जागृत्रित न हो लेत्रिकन दुत्रिवधा नहीं थी। यानी त्रिक उ�की कथनी औ कनी में

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अन्त न था औ न उ�की बुत्रिनयाद कुछ अनुकण औ देKादेKी प थी मग अमिधकांशत: भय प, जो ज्ञान के आलोक के बाद वृत्रितयों के �ंस्का की �ब�े बड़ी शसिक्त है। गेरुए बाने का आद औ भसिक्त कना इ�के धम� औ त्रिवश्वा� का एक अंग था। �ंन्या� में उ�की आ*मा को अपना अनुच बनाने की एक �जीव शसिक्त सिछपी हुई थी औ उ� ताकत ने अपना अ� दिदKाया। लेत्रिकन मजमे की इ� हैत ने बहुत जल्द मजाक की �ूत अख्यिख्तया की। मतलबभी त्रिनगाहें आप� में कहने लगीं—आखिK गंवा ही तो ठहा! देहाती है, ऐ�े भाषण कभी काहे को �ुने होंगे, ब� उबल पड़ा। उथले गडे्ढ में इतना पानी भी न �मा �का! कौन नहीं जानता त्रिक ऐ�े भाषणों का उदे्दrय मनोंजन होता है! द� आदमी आये, इकटे्ठ बैठ, कुछ �ुना, कुछ गप-शप माी औ अपने-अपने घ लौटे, न यह त्रिक कौल-का कने बैठे, अमल कने के सिलए क�में Kाये!

मग त्रिनाश �ंन्या�ी �ो हा था—अर्फ�ो�, जिज� मुल्क की ोशनी में इतना अंधेा है, वहॉँ कभी ोशनी का उदय होना मुस्पिrकल नज आता है। इ� ोशनी प, इ� अंधेी, मुदा� औ बेजान ोशनी प मैं जहालत को, अज्ञान को ज्यादा ऊँची जगह देता हँू। अज्ञान में �र्फाई है औ त्रिहम्मत है, उ�के दिदल औ जबान में पदा� नहीं होता, न कथनी औ कनी में त्रिवोध। क्या यह अर्फ�ो� की बात नहीं है त्रिक ज्ञान औ अज्ञान के आगे सि� झुकाये? इ� �ाे मजमें में सि�र्फ� एक आदमी है, जिज�के पहलू में मद´ का दिदल है औ गो उ�े बहुत �जग होने का दावा नहीं लेत्रिकन मैं उ�के अज्ञान प ऐ�ी हजाों जागृत्रितयों को कुबा�न क �कता हँू। तब वह प्लेटर्फाम� �े नीचे उते औ दश�नचि��ह को गले �े लगाक कहा—ईश्व तुम्हें प्रत्रितज्ञा प कायम Kे।

--जमाना, अगस्त-सि�तम्ब १९१३

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