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कार्यकर्ता हस्तपुस्तिका

कार्यकर्ता हस्तपुस्तिकाक्या करें कैसे करें और क्यों करें

ये एक ज़रुरी पुस्तिका है जिसका उपयोग सामुदायिक कार्यों को समझने और करने में किया जाता है! ये केवल इम्पावर पीपुल के कार्यकर्ताओं के लिए उपयोगी है इसमें इम्पावर पीपुल की विचारधारा और कार्यशैली परिलक्षित होती है! हालांकि ये पुस्तिका किसी भी सामाजिक कार्यकर्त्ता के लिए बेहद उपयोगी है! यह एक परिचय है कुछ मुख्य मुद्दों और कुछ तरीकों का जो संगठन कार्यकर्ता कार्यक्षेत्र में ईस्तमाल कर सकता है.

इम्पावर पीपुल 9/3/[email protected] [email protected]

कौन बन सकता है सामुदायिक कार्यकर्ता

हर कोई नहीं बन सकता एक अच्छा सामुदायिक कार्यकर्ता

लेकिन यह मत मान के चलिए की ट्रेनिंग और कोई विशिष्ट शिक्षा आपको अपने आप से समुदाय के साथ काम करना सिखा देगी. कोई सामाजिक कार्य का प्रमाण - पत्र या डिप्लोमा यह सुनिश्चित नहीं करता की आप कम आय के वर्ग के लोगो के साथ काम करने में प्रभावित हो सकते है. इंजीनियर, विज्ञान अवं वाणिज्य के स्नातक, वेह व्यक्ति जिन्होंने केवल एक वर्ष की प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की है, यह सब अच्छे सामुदायिक कार्यकर्ता बन्ने में सफल हुए है.

जहाँ तक हो सके, सामुदायिक कार्यकर्ता बनना एक आत्म चयन प्रक्रिया होनी चाहिए.

जब आप कसरत करते है तो आपके भुजाओ के स्नायु ज्यादा बलवान बनते है. अगर आपके स्नायु कभी भी प्रतिरोध का सामना नहि करेगे तो वह कमजोर हो जायेगें. अगर आप समाज के लिये बहुत ज्यादा करेंगें तो वह बलवान नहि बनेगा.

समाज प्राथमिकता का जो पेहला प्रस्ताव रखता है उसके बारे मे शायद ज्यादा विचार नहि किया गया होता, अगर आप उसको चुनौती देंगे तो शायद समाज ज्याद ध्यान से सोचेगा के उन्हे क्या कार्य करना चाहिये.

चलिये एक कल्पित उदाहरण को देखते है. शायद समाज के लोग कहते है की उनका प्राथमिक लक्ष्य एक चिकित्सालय बनाना है.

"ठीक है," मगर आप जवाब दें, "इस लक्ष्य की प्राथमिकता के पीछे आपका क्या तर्क है?" "क्या इस समाज के पास चिकित्सालय बनाने की और उसे संभालने की क्षमता है?" " चिकित्सालय बनाने से आपकी कौनसी समस्यायो का समाधान होगा? और इसे बनाने से आपको कौनसी परेशानियो का सामना करना पडेगा?" उनको अपने चुनाव का बचाव करने देने से आप उनको बलवान बना रहे है.

अगर समाज के लोग चिकित्सालय इस लिये बनाना चाहते है क्योकी कोई प्रतियोगी समाज ने चिकित्सालय बनाया है तो फिर उनकि प्रेरणा का कारण है अहंकार, और आपको यह बात स्पष्ट करनी होगी.

आप कहेः "याद रखें के इसको बनाने के लिये जो संसाधन चाहिये वह आपको खुद एकत्र करने होंगे; क्या आप अपने पैसे इस तरह खर्च करना चाहते है?" फिर शायद आपको पता चलेगा के की बच्चो कि मौत हो रहि है और वहि उनकी प्राथमिक चिन्ता है.

यहा आपको मौका मिलता है उनहे पी एच सी (प्राथमिक स्वास्थ्य); के महत्वपूर्ण सिद्धान्त के बारे मे बताने के लिये; बताने के लिये के निवारण उपाय से बेहतर है. बच्चे दस्त से मर रहे है जिसका कारण है गंदे पानी से फैलने वाली बिमारिया. देखिये पानी.

एक चिकित्सालय बिमारीयो को अच्छा करने मे मदद कर सकता है, मगर ज्यदा कोमल,सस्ती और कम जोखिम वाला उपाय हो सकता है गंदे पानी से फैलने वाली बिमारियो को कम करना. यह तीन चीजो के संयोजन से हो सकता हैः (१) स्वास्थ्य शिक्षा जिससे आचरण मे बदलाव आये, (२) साफ वहनीय पानी की पर्याप्तता और (३) प्रभावशाली आरोग्य विद्या जो सिखाता है मानव कूडे को पीने वाले पानी से दूर रखना. निवारण उपाय से बेहतर है.

उनको चुनौती देकर उनहे अपनी समस्याओ का विश्लेशण करके उनका व्यावहारिक और संभाव्य उपाय खोजना, इसके जवाब मे शायद समाज अपनी समस्याओ कि प्राथमिकता का निरीक्षण फिर से कर सकते है और नए समस्याओ कि प्राथमिकता को परिभाषित कर सकते है.

निष्क्रिय हो कर उनके लक्ष्य की पेहले पसंद को स्वीकार ना करें.

यह मॉड्यूल में ऐसी सुचना है जो संभावित मोबिलीज़ेर को समझा सके की उनका काम कैसा होगा, उनमे क्या व्यक्तिगत विशेषता होनी चाहिए अवं उन्हें क्या प्रशिक्षण मिलेगा. इस मॉड्यूल का प्रयोग ऐसे करे की एक ऐसा वातावरण बन सके की वेह यह फैसला ले सके की उन्हें काम जारी रखना चाहिए की नहीं.

परिचय:

यह दस्तावेज़, अन्य बहुतों की तरह, कार्यक्षेत्र में संगठन कार्यकर्ता की तरफ केंद्रित है, और यह कोई पाठनीय या सैद्धांतिक लेख नही है.

इसका उद्देश्य संगठन कार्यकर्ताओं का कुछ लिंग संबंधित मुद्दों से परिचय करवाना, और उनकी लिंग संबंधी जागरूकता बढ़ाने के लिए और उनके समुदायों और संस्थाओं को लिंग संतुलन और निष्पक्षता की ओर बढ़ाने के लिए, कौशल विकास में सहायता करना है.

माननीय मेरी नागू ने कहा है, "आप लिंग संतुलन के बिना सच्चा समाज विकास नहीं पा सकते, और इस संतुलन को पाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व समाज की भागीदारी है" ( इस्तांबुल, 1996).

स्पष्टतया, समाज कार्य लिंग संबंधित मुद्दों की जागरूकता बढ़ाने और कुछ पक्षपात को संतुलित करने का एक लाभदायक माध्यम है. विरुद्धतया, समाज कार्य लिंग संबंधित मुद्दों की जागरूकता बढ़ाने और लिंग संतुलन को बढ़ावा देने के बिना अधूरा होगा.

लिंग और स्त्री-पुरुष भेद:

स्त्रियों के दबाव के कुछ हठी समर्थक तर्क देते हैं की शब्द "लिंग" एक जायज़ शब्द नही है, यह केवल पारंपरिक सामाजिक ढाँचे को तोड़ने के लिए एक आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है. यह ग़लत है, और संगठन कार्यकर्ता के लिए "लिंग" शब्द के बारे में कुछ चीज़ें जान लेना उपयोगी होगा जैसे यह क्यों इस्तेमाल होता है और इसका क्षमता विकास, आमदनी उत्पादन और कम आमदनी के समुदायों को शक्तिप्रदान करने में क्या महत्व है .

एक अच्छी शुरुआत होगी "लिंग" और केवल स्त्री-पुरुष के भेद में अंतर करना.

लगभग, स्त्री या पुरुष होना जैविक है; लिंग सामाजिक है. जैविक विशिष्टतायें पीढ़ी दर पीढ़ी माता-पिता से मिले अणु (जीन्स) द्वारा (प्रजनन के दौरान) प्रसारित होते हैं जबकि सामाजिक विशिष्टतायें संचार और ज्ञान प्राप्ति (के चिन्हों) द्वारा प्रसारित होती हैं (सामाजिक प्रजनन).

लिंग केवल स्त्री पुरुष का भेद नही है, लिंग में, व्याकरण की तरह मुख्य अंतर पुलिंग एवम् स्त्रीलिंग में है. (आनुवांशिक शोध दिखाता है की हमारे दो से ज़्यादा सेक्स हो सकते हैं और शायद जे एवं य गुणसूत्रों के और उनसे संबंधी जीन्स के पाँच तक के जोड़े हो सकते हैं).

"पुलिंग" और "स्त्रीलिंग " क्या संघटित करते हैं बहुत अनित्य है, और यह संस्कृति और इतिहास के हर काल के साथ बदलता है. इसका यह मतलब है की सामाजिक विशेषतायें (पुलिंग और स्त्रीलिंग) जो अलग अलग लोगों को लागू होते हैं, उनके जैविक विशिष्ठताओं के जवाब में, सांस्कृतिक रूप से मनचाही हैं, और एक विकास की विधि या सामाजिक बदलाव द्वारा बदली जा सकतीं हैं.

(हमारी जैविक विशिष्ठतायें हमारी आनुवांशिक धरोहर से तय होती हैं, और ज़्यादा दिक्कत से बदली जा सकती हैं, जैसे की शल्यक्रिया, दवाओं या अन्य भौतिक तरीकों द्वारा).

मानवाधिकार मुद्दा:

हालाँकि मूल्य हर समुदाय, देश और समय में अलग होतें हैं, हम ये स्वीकार कर सकते हैं की ग़लत और सही के बारें में कुछ बहुत व्यापक धारणाओं में एकमत है.

जातिवाद एक ऐसी धारणा है और यह आमतौर पे ग़लत मानी जाती है, हालाँकि कुछ लोग जो जातिवादी मूल्य रखते हैं उन्हें पहचाना जा सकता है. जातिवाद में प्रधान मूल्य यह है की कुछ लोग कुछ भौतिक लक्षणों से पहचाने जाते हैं (चमड़ी का रंग, बाल, हड्डी-ढाँचा) , और जातिवादी व्यक्ति यह मानता है की वो भौतिक लक्षण लोगों को एक श्रेणी में डालते हैं, और कुछ सामाजिक, मानसिक, सांस्कृतिक और दूसरी अभौतिक विशेषताएँ अपनेआप ही उस श्रेणी के सब लोगों को लागू होती हैं. ठेठ जातिवादी यकीन और रुढ़िबद्ध धारणाएँ हैं, जैसे की (1) "सब अफ्रीकी मूल के व्यक्ति सुरीले होते हैं", (2) "सब गोरे जातिवादी होते हैं", (3) "सब यहूदी पैसों के मामले में चालाक होते हैं" या (4) "कुछ लोग अविश्वासनीय, व्यभिचारी, लोभी, अयथार्थ, या शक्ति के भूखे होते हैं"- वग़ैरह, वग़ैरह.

यह रूढिबद्ध धारणायें कुछ लोगों के साथ कुछ चुनिंदा, नकारात्मक और पक्षपाती ढंगों से बर्ताव करने को सही ठहराने के लिए, या जो नियम उनकी सहभागिता सीमित करने के लिए बनाए जा रहें हैं, उन्हें सही ठहराने के लिए प्रायः उद्धृत् की जाती हैं. विश्लेषण करने पर यह सॉफ है की लिंग के आधार पर भेद-भाव या लैंगिकवाद तत्वतः जातिवाद के जैसा ही है. यह अभौतिक सामाजिक विशिष्ठतायों की, और कुछ जैविक विशिष्ठतायों वाले लोगों के प्रति बर्ताव की रुदिबद्धता है.

अगर हम अंतरराष्ट्रीय करारनामें देखें जैसे की "मानव अधिकारों की घोषणा", हम वो विस्तृत मूल्य ढूँढ सकते हैं जिनकी तरफ हमें काम करना है. उनमें से एक भाव यह है की हर एक को सेवायों, अवसरों, क़ानून और नागरिक सहभागिता को पहुँच का अधिकार है, बिना जाती, लिंग, धार्मिक विश्वास और प्रथायों, या किसी और श्रेणी जो एक मानव जाती को बाँटति हो, पर ध्यान दिए हुए.

फिर भी, हम जानते हैं की दूरवर्ती और अकेले, कम आमदनी वाले और असंतोषजनक ढंग से शिक्षित समुदायों में जहाँ हमें नियुक्त किया जाता है, यह मूल्य नहीं होते, और प्रायः उन्हें पता भी नहीं होते हैं. यह संगठन कार्यकर्ता और क्षमता विकास को सहेज बनाने वालों पर एक ज़िम्मेदारी का भार डालता है; ये मूल्य बतानें और समझानें की, और इस संगठन कार्य के अंतर्गत बदलाव कर्ता के रूप में ये सर्वव्यापी मूल्यों को लागू करने की ओर काम करने की ज़िम्मेदारी.

आर्थिक और राजनैतिक मुद्दे:

सभी मनुष्य अपने समाज और समुदाय में अलग- अलग तरह से और अलग-अलग मात्रा में योगदान कर सकते हैं. समुदाय और समाज उन योगदानों से उन विभिन्नतयों की वजह सेमज़बूत होते हैं, न की उनके बावजूद.

यदि एक समूह की जानबूझ कर अपनी जनता के पचास प्रतिशत लोगों को उत्पादक गतिविधियों में से निकाल देने की आदत है, तो उसकी आर्थिक गतिविधियों की पचास प्रतिशत उत्पादन क्षमता खो जाती है. गुणा प्रभाव के कारण, यदि वो पचास प्रतिशत निवेश मिला लिया जाए तो उत्पादन पचास प्रतिशत से कहीं अधिक बढ़ जाएगा, शायद पाँच गुना तक भी. आधी आबादी का उनके लिंग के आधार पर निकाले जाना अर्थ व्यवस्था को पचास प्रतिशत से कहीं ज़्यादा नुकसान पहुँचाता है. स्त्रियों और पुरुषों को बराबर तरह से किसी भी समाज या समुदाय के आर्थिक उत्पादन में शामिल करना आर्थिक समझदारी की बात है.

.इस ही तरह, यदि एक समूह की जानबूझ कर अपनी जनता के पचास प्रतिशत लोगों को राजनैतिक फ़ैसलों में से (वो फ़ैसले जो पूरे समुदाय पर असर करते हैं) निकाल देने की आदत है, तो मुमकिन फ़ैसलों का दायरा कम हो जाता है. एक समुदाय या समाज को जो अपने आने वाले कल और अपनी संभावनाओं के बारे में ख़याल होता है, वह सीमित होता है. मूल्य खो जाता है. स्त्रियों को राजनैतिक फ़ैसलों में बराबर शामिल करना राजनैतिक समझदारी की बात है.

इस घाटे को देखने और समझने का दूसरा तरीका ऐसे सोचना है की अगर पुरुषों को जानबूझ कर आर्थिक कामकाज या राजनैतिक फ़ैसलों में से निकल दिया जाए तो कैसा होगा. पुरुषों का योगदान स्त्रियों के योगदान से बेहतर या बड़ा है मान लेने के पीछे कोई वैज्ञानिक कारण नही है.

जिन लोगों को आर्थिक या राजनैतिक कामों में पूरी तरह से योगदान देने से निकल दिया जाता है, जैसे की महिलायें, वे एक संस्था, समुदाय या समाज के निर्माण में एक मूल्यवान साधन हैं जिन्हें न तो उपेक्षित करना चाहिए और न ही भूलना चाहिए. इनके बिना ग़रीबी अधिक होगी.

एक समुदाय जिसमें स्त्रियों और पुरुषों को उसकी राजनैतिक और आर्थिक ज़िंदगी में भाग लेने के बराबर मौके दियें जाते हैं, वह राजनैतिक और आर्थिक रूप से ज़्यादा मज़बूत, विविध, रचनात्मक, उपजाऊ और निष्पक्ष होगा.

सांस्कृतिक मुद्दे:

मंत्रालय की दो युवा महिलायों द्वारा की जा रही एक सामाजिक कार्यशाला (हमारे समुदाय शक्तिप्रदान कार्यक्रम के लिए) में मैनें एक बूढ़े पुरुष को चिल्लाते सुना, "क्या तुम हमारी संस्कृति को मारना चाहते हो?" उन्हें विश्वास हो चुका था की यह पारंपरिक, और सांस्कृतिक रूप से सही था की स्त्रियाँ सब पुरुषों को खुद से उच्चतर समझें, और की महिलयों को सामाजिक फ़ैसले करने में शामिल नही होना चाहिए, और यह की उनका काम पुरुषों की सेवा करना है. बैठक के सामने एक युवती ने जवाब दिया, "नहीं." हम अपनी ही संस्कृति को मारने की कोशिश नहीं कर रहें हैं," "हम उसके सबसे अच्छे भागों को मज़बूत करना चाहते हैं और उन भागों को छोड़ देना चाहते हैं जो अब किसी काम के नहीं हैं."

आपको, एक कार्यकर्ता के रूप में उनके लिए जवाब चाहिए जो संस्कृति के बचाव की दलील देते हैं, जो डरतें हैं की कुछ रिवाज़ और ढंग बदलनें से आप उनकी संस्कृति नष्ट कर दोगे.

इस बात की समझ से शुरू कीजिए की संस्कृति क्या है. संस्कृति एक जीवित वस्तु है(जीव), जैविक नहीं बल्कि सामाजिक. इसमे वो सारी चीज़ें आती हैं (ढंग, व्यवहार, मान्यतायें) जो सीखी जाती हैं ना की आनुवांशिक रूप से पाई जाती हैं. जीवित रहने के लिए उसका बढ़ते रहना और रूपांतरित होना, जीवों की तरह ज़रूरी है. बढ़ना और रूपांतरण मतलब है बदलना.

बचा के रखना मतलब वह चीज़ मृत है. सार्डीन (एक प्रकार की मछली) को डब्बे में बचा के रखने के लिए मरना पढ़ता है...मर्तबान में पड़ा आचार मृत होता है. म्यूज़ीयम में रखी शिल्पकृतियाँ भी मृत होती हैं. वो बदलते नहीं हैं, यही उनकी सुरक्षा का उद्देश्य है.

हम कार्यकर्ताओं के रूप में आपके रिवाज़ों और सांस्कृतिक धरोहर को इज़्ज़त देते हैं. हम अपनी संस्कृति को जीवित देखते हैं, न की मृत या ना बदलने वाली जैसे की लातिन भाषा. हमारी आदरणीय संस्कृति को जीवित रहने के लिए पनपना होगा और रूपांतरित होगा; इसलिए उसे बदलते नए वातावरण के साथ मिलने के लिए बदलना होगा.

बदलाव अनिवार्य है. अगर बदलाव होना है, तो उसकी दिशा पर कुछ प्रभाव होना, उसके सांस्कृतिक ढंग से हमारे योगदान के बिना निर्धारित होने से बेहतर है. अगर हमारे नियम बदलने ही हैं, तो उनका सार्वलौकिक मानवाधिकार घोषणा की तरफ बदलना बेहतर है, न की शहरी जंगलों के नियमों की ओर.

छोटे समय में, लिंग संतुलन बढ़ाना परंपरायों के विरुढ़ जाता नज़र आ सकता है , ख़ासकर वहाँ जहाँ महिलायें दबाई जाती रहीं है. जबकि अंततः, स्त्रियों और पुरुषों की बराबर सहभागिता एक ज़्यादा मज़बूत समाज और समुदायों का निर्माण करेगा, और इससे हमारी संस्कृति भी मज़बूत होगी, उपजेगी और जीवित रहेगी.

उपर के चार भागों ने लिंग के सामाजिक और सांस्कृतिक रूप और समाज और समुदायों को मज़बूत करने के लिए लिंग संतुलन को बढ़ाने की ज़रूरत के बारे में बताया, और अब आगे के भाग आपको, समुदायों को ज़्यादा लिंग अपक्षपात तक पहुँचनें में मदद करने के लिए और उनका मार्गदर्शन करने के लिए अपनी रणनीतियाँ बनाने की ओर बढ़ाएँगें.

जागरूकता बढ़ाना:

हम एक ऐसी समस्या को हल नहीं कर सकते जो हमें पता ही नहीं है की वह है.

याद रखिए की एक समाज और समुदाय के लोगों को अपनी दिक्कतें खुद ही सुलझानी चाहियें. जैसे की किसी भी समुदाय के विकास में, आप समुदाय को विकसित नहीं करते हैं, समुदाय खुद को विकसित करता है. आपका हस्तक्षेप, जैसे की मार्गदर्शन, उत्तेजन, प्रशिक्षण और प्रोत्साहन कुछ दिशा दे सकते हैं परंतु बदलाव सदरयों को ही लाना होगा.

काफ़ी सदस्य ये नहीं देखते हैं की सुलझाने के लिए कोई समस्या है, या नहीं देखना चाहते. काफ़ी सदस्यों को असमान दर्जे से फयडा हो रहा होता है और वे डरते हैं की कोई भी बदलाव उनके दर्जे, सम्मान, शक्ति या उनकी आर्थिक बढ़त को नीचे कर देगा. जिनको एसे निहित स्वार्थ होते हैं, वो कहेंगें की कोई दिक्कत नहीं है, या तर्क देंगें की पारंपरिक तरीकों और विश्वासों को बदलने से संस्कृति का नाश होगा.

आपका पहली बात के लिए जवाब है वकालत, समुदाय के सारे सदस्यों को जागरूक करना. दूसरे के लिए, निहित स्वार्थों को कैसे सम्भोधित करना है, यह अगले भाग में शामिल किया जाएगा.

श्रोतागण को जागरूक बनाने की सबसे अच्छी पहुँच उनको हिस्सेदार बनाने वाले तरीके इस्तेमाल करना है.

याद रखें की हम सुन कर सबसे कम सीखते हैं, देख कर थोड़ा सा ज़्यादा और करने में हिस्सा लेके सबसे ज़्यादा. याद रखें की समुदाय के सदस्य एक योजना की ज़्यादा ज़िम्मेदारी तब लेंगें यदि वो उससे जुड़े फ़ैसले खुद लेंगें, और जब उन्हे ये ना लगे की यह उनपे बाहर से थोपा जा रहा है. उन्हें ऐसा लगना चाहिए की यह योजना या विधि उनकी अपनी है. यह समुदाय विकास के आधारीय मूल हैं जैसा की समझाया गया है कार्यकर्ता हस्तपुस्तक में.

तो फिर समूह सभायों में आपका मौलिक तरीका, सॉक्रटेस की तरह सवाल पूछना है. सहभागियों को उपदेश या वर्णन मत करो. उनसे ऐसे सवाल करो जो उन्हें अपनी स्थिति, अपने समुदाय को लिंग संतुलन के विषय में देखने की ओर ले जायें, की वह अभी कैसा है और कैसा हो सकता है.

फिर भी, गुप्त रूप से जागरूक और सहानुभूति वाले धार्मिक या अन्य नेताओं और राय बनाने वालों से मिलने, और उनको कुछ इस विषय में उपदेश देने के लिए या वर्णन करने के लिए प्रोत्साहित करने में कोई नुकसान नहीं है.

लिंग संतुलन से संबंधित सवाल केवल ख़ास कार्यशालाओं को नहीं सीमित रहने चाहिए (इससे मुद्दा किनारे हो जाता है, और अक्सर जो समझ चुके हैं उन्हें ही उपदेश देने जैसा रह जाता है), बल्कि सब प्रबंध शिक्षण और समुदाय को अपनी योजनायें शुरू करने के प्रोत्साहन के साथ जोड़ने चाहियें.

लिंग संतुलन को बढ़ावा देना:

असली दुनिया में, बहुत बढ़ी और अनुचित असमानतायें हैं, जिनमे पुरुष कुछ स्थितियों में एकत्रित हैं और स्त्रियाँ कुछ स्थितियों में, ज़्यादातर पुरुषों के मुक़ाबले स्त्रियों के लिए ये स्थितियाँ प्रतिकूल हैं. लिंग संतुलन का एक लक्ष्य इन असमानतायों को ठीक करना है.

(पचास प्रतिशत का एक कड़ा अंश हर स्थिति के लिए निर्धारित कर देना बहुत सख़्त होगा, और उसकी ओर काम करने से मुसीबतें सुलझने से ज़्यादा नई मुसीबतें खड़ी हो जाएँगी. ).

यह देखने के बाद की लिंग संतुलन की दृष्टि रखना मानवाधिकारों के सर्वोत्तम मूल्यों के साथ मिलता है, और साथ ही साथ हमारी संस्कृति और उसके आर्थिक और राजनैतिक प्रणालियों को भी फ़ायदेमंद है, अब हमें यह पूछने की ज़रूरत है की उसकी ओर बढ़ने के लिए हमें क्या तरीके अपनाने चाहियें. यह एक ऐसा नुस्ख़ा तरीका जिससे एक ही तरह से सबको ठीक करने की कोशिश की जाए, अपनाने का समय नहीं है. हर स्थिति का विश्लेषण करना ज़रूरी है और फिर उसके अनुसार एक समाधान निकालने की ज़रूरत है. कॅटलीना टरजिल्लो, यू.न.सी.एच.स. की प्राकृतिक वास में महिलायें प्रोग्राम से संबंधित, ने इस लक्ष्य के सन्धर्भ में एक जानमाना नारा एस्तेमाल किया: "सारे संसार के विषय में सोचो, और काम स्थानीय स्तर पर करो" देखें यू.न.सी.एच.स.

जब किसी भी सामाजिक बदलाव के बारे में सोचा जाता है, तो कुछ लोग ऐसे मिलेंगे जो बदलाव के पक्ष में होंगे और कुछ विरोध में. उधारणतः, यह मामला समुदाय की सहभागिता के विषय में कार्यकर्ता हस्तपुस्तक में उठाया गया था.

बदलाव के विरोधी अक्सर वह लोग होते हैं जो सोचते हैनकी बदलाव होने से उनका कुछ छिन जाएगा. आश्चर्यजनक बात यह है की कभी कभी जो अभी नुकसान में हैं, वे भी बदलाव का विरोध करेंगें, क्योंकि वो भी सोचते हैं की उनका कुछ छिन जाएगा, चाहे वह आपके लिए मूल्यवान ना हो. कभी कभी जो लोग दबे हुए हैं, दास हैं या बंधित है, वे अपनी बेड़ियाँ नहीं खोना चाहते, क्योंकि उन्हें उनसे सुरक्षा मिलती है और उन्हें लगता है की ज़िम्मेदारी न उठाने और फ़ैसले ना लेने की आज़ादी उनसे छिन जाएगी.

जो लोग सोचते हैं की बदलाव से उन्हे फायदा होगा, अपने अब तक समझ ही लिया होगा, की वे आपके और जो बदलाव चाहते हैं उनके सहयोगी हैं, या बन सकते हैं.

आपकी रणनीतियाँ, इसलिए, ये दिखायें की जो प्रस्तावित बदलाव है वह सबको फायदा करेगा, उनको भी जो अभी सोचते हैं की वो कुछ खो देंगें. जो बदलाव है, उसे उसके विरोधियों के लिए लाभकर बनायो, और हो सकता है की वे अपना विरोध वापिस ले लें और बदलाव को सक्रिय रूप से समर्थन भी दे दें. यह विचार के रूप में आसान लगता है, परंतु करने में आवश्यक रूप से आसान नहीं है.

एक और समान बात है जैसे मज़दूर संघ रचना. एक संघ बनाने से सभी सदस्यों को बेहतर आमदनी और कम करने की परिस्थितियाँ मिलने से फायदा होगा, मगर तभी अगर सारे या काफ़ी लोग संघ मे जुड़ें.

एक बात आप जानते हैं, जैसा पहले कहा गया था, की संस्था, समुदाय या समाज, दोनों स्त्रियों और पुरुषों की सहभागिता से फ़ायदे में रहेंगें. किसी भी वर्ग के लोगों की सहभागिता पर रोक हटाने से हर तरह की आगत (राजनैतिक, सांस्कृतिक, तकनीकी, आर्थिक) ज़्यादा विविध, धनी और ज़्यादा रचनात्मक होगी. यह पूर्ण को शक्ति प्रदान करेगा (उसकी क्षमता बढ़ेगी) और उसके सदस्यों को भी फ़ायदा करेगा. उन लोगों को जो सामाजिक और राजनैतिक रूप से ज़्यादा जागरूक हैं, यह बात बतानी आसान होगी. इसलिए आपका सुग्राही कार्य, जैसा पहले कहा गया, सिर्फ़ असमानतायों पे ही न बात करे बल्कि लिंग संतुलन बढ़ाने से समाज और हर सदस्य को जो फ़ायदे होंगें, वे भी दिखायें.

मूल्य ये है की सबको सम्मिलित करने वाली नीति पूरे (समुदाय, संस्था और समाज) और उसको बनाने वाले व्यक्तियों को भी फ़ायदेमंद होगी.

लिंग को मुख्य धारा में लाना:

बहुत सामाजिक बदलाव या विकास योजनायों की एक समान रणनीति होती है , बदलाव की शुरुआत एक क्षेत्र में करना और फिर उसकी सफलता को देखते हुए और सीखें सीखते हुए उसे पूरे समाज से जोड़ देना.

आपके काम के लिए, संगठन कार्य, ग़रीबी घटाने, संस्थायों का क्षमता विकास, प्रबंध शिक्षण, स्वयंनिर्भरता के लिए प्रोत्साहन, के लिए यह तरीका ठीक नही होगा. लिंग संतुलन और जागरूकता को मुख्या धारा से जोड़ना आपके काम के शुरू में ही कर लेना सबसे अच्छा है और अंत तक करना चाहिए.

पहले केवल कुछ ही हिस्सों में लिंग पर ध्यान देने में यह दिक्कत है, जैसा पहले कहा गया है, की यह मुद्दा किनारे हो जाएगा. अगर आप एक लिंग कार्यशाला आयोजित करते हो, तो काफ़ी संभव है की केवल वे सहभागी आएँगे जो पहले से समस्या के बारे में जानते हैं और समाधान चाहते हैं. अगर आप लिंग जागरूकता और संतुलन के प्रोत्साहन की रणनीतियों का खास विषय अपने सब शिक्षण सत्रों में शामिल करेंगें, और अपने और काम के साथ मिलाएँगें, तब ज़्यादा संभव है की आप ऐसे लोगों को शामिल करेंगें जिन तक आपका संदेश पहुँचना चाहिए.

केवल एक ही समय लिंग पर ज़ोर देती हुई कार्यशाला काम आएगी जब आप शिक्षकों की शिक्षा आयोजित कर रहे होंगें या फिर जब आप क्षेत्र कर्मचारियों या स्वयंसेवकों को बता रहें हैं; तब आपको रणनीतियाँ बनानें पे ध्यान देना होगा ना की केवल जागरूकता बढ़ाना पे. ऐसे में आप एक लिंग रणनीति को लागू नहीं कर रहें हैं, बल्कि अपने कर्मचारियों और मददगारों को एक रणनीति बनानें में तैयार कर रहें हैं.

इस बीच, अपनी सब क्रियाओं में, समुदायों को संगठित करना, समूह बनाना, प्रबंध शिक्षण, क्षमता विकास, ग़रीबी कम करना, आपको लिंग जागरूकता और संतुलन को सम्मिलित करना होगा. मुख्य धारा में जोड़ने के काम शुरू से करना होगा.

निष्कर्ष:

लिंग जागरूकता बढ़ाना और लिंग संतुलन प्रोत्साहित करना संगठन कार्य का, प्रभंध शिक्षण का, क्षमता विकास का और ग़रीबी कम करने का एक महत्वपूर्ण भाग है.

आपको स्थिति के अनुसार रणनीतियाँ विकसित करनी होंगी, जो बदलाव का विरोध करेंगें उन्हें पहचानना होगा, उन्हें उनको होने वाले फ़ायदे के विषय में जागरूक कराना होगा, और यह सब अपने काम में शुरू से ही सम्मिलित करना होगा.

कोई एक खास नुस्ख़ा या कुछ निर्धारित क्रियायें नहीं हैं जिनका पालन करना है.

आपको परिस्थिति का विश्लेशण करना पड़ेगा, इस दस्तावेज़ में लिखे मूल्यों को इस्तेमाल करना पड़ेगा और फिर एक स्थिति अनुसार एक उपयोगी रणनीति बनानी होगी.

सक्रियता से भाग लेना ही संगठन की कुंजी है

सिर्फ़ भाग लेने से ही हमेशा संगठनिकरणनही पैदा होता. इसके लिये एक सहयोगी वातावरण चाहिये जिसमें लोगों की इच्छायों और कुशलतायों को बढ़ावा मिले जिससे उनका सामर्थ्य बढ़ॆ और जिससे खुद ही संगठनिकरणउत्पन्न हो. ऐसा करने के लिए कुछ तरीके हैं:

कभी भी लोगों को कम न समझें. उन्हें जटिल समस्यायों से उलझने के लिये उपयुक्त साधन दें; समस्यायों को छोटे हिस्सों में बांटें

लोगों की निजी समस्यायों और विषयों से शुरुआत करें

अपने निजी विचारों और समाधानों को शुरू में ही कदापि न जाहिर करें

लोगों को अपनी सोच का दायरा बढ़ाने में मदद करें और हर चयन के लाभ-हानि के बारे में भी सोचने दें

शुरु में ऐसे कार्य चुनें जिनमें जल्दी सफ़लता मिले जिससे उनका विश्वास बढ़े

"सीढी" के उदाहरण से इस क्रिया में कला, विश्वास, और लगन के महत्व को उभारिये: धीरे धीरे लोगों का सभी कार्यों में भाग लेना बढाइये जिससे वह खुद ही इस सीढी पर चढ सकें

अगर आप सीधे ही स्वाव्लंबन या संगठनिकरणकी बात करें तो शायद उन्हें समझने में मुश्किल हो- इसलिये बेहतर होगा कि आप उन गुणों को उभारने की कोशिश करें जिनसे स्वाव्लंबन अपने आप ही पैदा हो

अगर संभव हो तो कोई ऐसे समाधान न निकालें जो बदले न जा सकें. कोशिश कीजिये कि यह एक ऐसी सीखने की क्रिया बन जाय जिसमें लोग खुद सहज समाधान निकालें जिनमें वह फेर- बदल कर सकें जब तक वह एक पूर्ण और सही नतीजे पर न पहुंचें

लगातार सदस्यों की सूची को जांचिये और बढ़ाने का प्रयत्न कीजिये. जैसे जैसे कोई नयी सोच वाले जुट मिलें सोचिये कि उन्हें आप कैसे इस क्रिया में सम्मिलित करेंगे?

लोगों को किसी भी विषय पर निर्णय तक पहुंचने की क्रिया को समझने में मदद करें - कैसे जटिल समस्यायों पर निर्णय कई बार उन स्थितियों पर निर्भर होते हैं जो उनकी शक्ति के बाहर हैं, पर जिनका प्रभाव नतीजे पर होता है

नये रिश्तों और संबन्धों को प्रोत्साहन दें

योजनायों का साफ लक्ष्य होना चाहिये और कर्म की ओर केन्द्रित होनी चाहिये

एक और नियन्त्रण बहुत ज़रूरी है - भिन्न रुचि वाले दलों की अपने वादों को पूरा करने की क्षमता और उनकी गतिविधियों की समाज की ओर जवाबदारी एवं समाज द्वारा उनका नियन्त्रण

इस क्रिया में अवसर होने चाहिये चिन्तन के लिये और स्वयं-समीक्षा के लिये

कुछ ऐसा संयोजन कीजिये कि लोगों को मजा आये! (प्रभावशाली भागीदारी की कुंजियां .से डेविड विल्को़क्स द्वारा)

भाग लेने के लिये १० मुख्य सूत्र

१. भाग लेने की सीमायें.

शेरी आर्नस्टिन (१९६९) ने किसी भी क्रिया में भाग लेने की सीढी में ८ पायदान बताये. संक्षेप में यह हैं: १ जुगाड़ और 2 उपचार. यह सम्मलन (भागीदारी) की क्रिया नही है. यहां लक्ष्य सिर्फ़ ञान देना या उपचार करना है. इसमे माना जाता है कि जो योजना प्रस्तुत की जाय वही सबसे अच्छी है और लोगों को शामिल करने का लक्ष्य सिर्फ़ उनकी हामी लेने के लिये है. ३ जानकारी देना. भागीदारी के लिये यह बहुत ही महत्वपूर्ण पहला कदम है. पर कई बार यह सिर्फ़ एक तर्फ़ा वक्तव्य हो जाता है. कोई सुझाव पाने का द्वार नही होता. ४ सलह लेना. सामुहिक तौर पर बैठकों का संयोजन करना, या लोगों से पूछना आदि.किन्तु अक्सर यह दिखावा भर बन जाता है ५. सांत्वना देना. कुछ चुने हुए व्यक्तियों को समिति में ले लेना. ६. साझेदारी. यहां शक्ति एक जगह केन्द्रित नही रहती, किन्तु चर्चा के बाद लोगों में बंट जाती है. योजना बनाने का काम और निर्णय लेने का काम अलग अलग लोगों को सौंपा जाता है ७ शक्ति का प्रतिनिधित्व. समाज द्वारा चुने गये लोग समिति में होते हैं और उन्हॆं समाज द्वारा शक्ति दी जाती है. उनकी ज़िम्मेदारी अब समाज की ओर होती है सभी योजनायों के लिये. ८ नागरिक नियन्त्रण. सारा कार्य स्वयं नागरिकों द्वारा किया जाता है-योजना बनाना, दिशा निश्चित करना,और योजना का नियन्त्रण.

२. शुरुआत और क्रिया

लोग खुद-ब-खुद ही नही भाग लेते, कोई शुरुआत करता है. फिर कोई इस क्रिया को आगे बढ़ाता है और धीरे धीरे दूसरों को भी अवसर देता है कि उनके कार्यों से फल पर प्रभाव हो. इस क्रिया का विस्तार से विवरण ४ भागों में किया गया है: शुरुआत - तैय्यारी - भाग लेना - जारी रखना.

३. नियन्त्रण

शुरुआत करने वाला यह निश्चित करने की अच्छी स्थिति में होता है कि कितना नियन्त्रण होना चाहिये. यह निर्णय ऐसा ही है जैसे निश्चित करना कि सीढी की कौन सी पायदान पर हम होंगे -- या हम किस सीमा तक कार्यों में शामिल होंगे.

४. लक्ष्य और प्रभाव

भागीदारी या सम्मलन के महत्व को समझना ऐसा ही है जैसे शक्ति को समझना:अलग अलग द्रिष्टिकोण वाले दलों का अपने लक्ष्य को पाने की क्षमता. ताकत उसके पास होती है जिसके पास जानकारी हो, धन हो. यह लोगों के भरोसे और कुशलतायों पर भी निर्भर है. बहुत सी ऐसी संस्थायें होती हैं जो लोगों को भाग नही लेने देती क्यों कि उन्हें डर होता है कि उनका प्रभाव कम हो जायेगा. पर बहुत ऐसे अवसर आते हैं जहां लोगों के सम्मिलित रूप से कार्य करने से नतीजा एक अकेले व्यक्ति के प्रयास से कई गुणा बेहतर होता है. यही मिल कर काम करने का सबसे बढ़ा लाभ है.

५. सहायक की भूमिका

सहायकों का प्रभाव बहुत होता है. यह ज़रूरी है कि वह लगातार अपनी भूमिका के बारे में सोचें

६. समाज और कार्यकर्ता

यहां कार्यकर्ता से हमारा तात्पर्य है किसी भी ऐसे व्यक्ति से जिसको जो हो रहा है उसमें रुचि हो. किस योजना से किस पर प्रभाव पडे़गा, किस के पास धन, कुशलता, या जानकारी है, कौन सहायक हो सकता है, कौन बाधा डाल सकता है. सभी लोगों का बराबर प्रभाव नही होता. सीढ़ी के उदाहरण से सोचिये कि कौन कम प्रभावशाली है और कौन अधिक.

समाज का कौन सा वर्ग किस योजना में सम्मिलित होता है निर्भर होगा अलग अलग वर्गों की रुचियों पर

७. साझेदारी

जब अलग अलग रुचि वाले लोग अपने आप ही किसी सार्वजनिक लक्ष्य के लिये मिल कर कार्य करते हैं तो साझेदारी बहुत उपयोगी साबित होती है. ज़रूरी नही कि सभी में बराबर की क्षमतायें, धन, या विश्वास हो, पर यह ज़रूरी है कि आपस में भरोसा हो और एक सी लगन हो. भरोसा और लगन उत्पन्न करने में समय लगता है.

८. लगन

लगन उदासीनता का विपरीत रूप है: जिनमे लगन होती है वह लोग कुछ करना चाहते हैं, उदासीन लोग नही.पर लगन कैसे पैदा की जाये? सिर्फ़ ऐसी बातों से नहीं जैसे "तुम्हें परवाह होनी चाहिये,"या उन्हें सामुहिक बैठकों में बुलाना या आकर्शक पर्चे देना. लोग उन विषयों की परवाह करते हैं जिनमे उनकी रुचि हो, और तब लगन उत्पन्न होती है जब उन्हे लगता है कि वह कुछ कर सकते हैं. जोर जबर्दस्ती से यह नही हो सकता. अगर लोग आपकी योजनायों के प्रति उदासीन हैं तो इसका सिर्फ़ यह अर्थ है कि उनकी आपकी योजनायों में रुचि नही है.

९. विचारों को अपनाना

लोगों में लगन से कार्य करने की संभावना तब होती है जब उसमें वह कुछ फायदा देखते हैं, या जब वह कह सकते हैं"यह हमारा इरादा था." इसको सच्चाई में उतारने के लिये आपको वर्क-शौप्स करनी होंगी जहां विचारों का खुले रूप से आदान-प्रदान हो, जहां लोग विचारों की व्यवहारिकता पर गौर करें, और अन्त में पूरी चर्चा के बाद एक ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचें जो अत्यधिक लोगों की सहमति से हो. जितना लोगों को किसी कार्य में लाभ नज़र आयेगा उतनी उदासीनता कम होगी.

१०. भरोसा और क्षमता

इरादों को सच्चाई में उतारना निर्भर करता है लोगों के भरोसे और क्षमता पर. भागीदारी की क्रियायों में ऐसे अवसर भी आते हैं जब बिल्कुल नई दिशायों में जाना पढ़्ता है. ऐसा सोचना भूल होगी कि अचानक ही लोगों में जटिल और उलझी हुई समस्यायों का हल निकालने की क्षमता आ जायेगी. उन्हें शिक्षण चाहिये, और अवसर चाहिये सीखने के लिये.अपने पर भरोसे के लिये, एक दूसरे पर विश्वास के लिये.

समुदाय के साथ आप

कार्य (kaarya)

काम तब शुरु होता है जब समूह, आपका लक्षय समूह, कुछ करता है, बजाय केवल सीखने के.

सबसे प्रभावी प्रशिक्षण वह कार्रवाई प्रशिक्षण है जहां प्रतिभागियों करके सीखते है.

जुटावक के रूप में आपका काम प्रोत्साहित करने का और समुदाय कार्रवाई के लिये गाइड करना है.

अगर आपने सबको साथ बैथक के लिये बुलाया है या अगर आपने समिति बनायी है जिसने अभी तक कुछ नही किया, तो आपने सनुदय को जुटाया नही है.

आपने तभी उनहें जुटाया है जब वह कार्रवाई में लगे है,

जागरूकता स्थापना (jaagrookta badhaanaa) :

आपकी सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों में से एक है उनहें सही जानकारी देना, आप चाहते हैं कि, हाँ, वहाँ एक समस्या है संप्रेषित करने के लिए है, लेकिन इस समस्या का समाधान उनके साथ समाज में है. वह यह सोच सकते है कि आप संसाधन लायेंगे या उनकी समस्याओं का समाधान करेंगे (इसी वजह से उनकी उम्मीदें बढ़ जाती है), लेकिन आपको इन मान्यताओं की प्रतिक्रिया करनी होगी.

एनिमेशन (sanjeevta) :

कभी कभी सामाजिक एनीमेशन बुलाया जाता है. शास्त्रीय शब्द एनिमा (जीवन, आत्मा, आग, ऑटो आंदोलन) से. समुदाय को उत्तेजित या जुटाना, जिससे वह अपने आप चल सके, जीवित रह सके, और आगे बढ सके.

कभी कभी जुटाने के लिए एक विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया. ऐनीमेशन का मतलब समुदाय को एकत्र करना और जुटाना (जो वह एक हो कर) करना चाहते है.

समुदाय अधिकारिता सामाजिक एनीमेशन को एक कदम आगे ले जाता है, समुदाय की क्षमता और समुदाय की आधारित संगठनों को बढ़ाने के लिए प्रबंधन प्रशिक्षण विधियों का प्रयोग करके और आगे योजना तय करने के लिए और अपने स्वयं के विकास का प्रबंधन लेता है. यह समुदाय के सदस्यों और नेताओं को उन प्रबंधन तकनीकों तैयार करते है जो कि समुदाय को अपने विकास का नियंत्रन करने के लिये ज़रुरी है .

वह सरकारी अधिकारियों, स्थानीय अधिकारियों और सामुदायिक नेताओं को सुविधाएं और सेवाएं प्रदान करने का सहायक व्यवहर त्याग करने के लिये प्रोत्साहित करते है. वह समुदाय को संसाधनों की पहचान करना और कार्य उपलब्ध कराने के लिए और मानव निपटान सुविधाओं और सेवाओं को बनाए रखने के लिये सुविधाजनक बनाने के बारे मेन सिखाते है

रिपोर्ट लिखनासामुदायिक मोबिलीज़ेर के लिए गाइड

संक्षेप:

मॉड्यूल प्रश्न पूछता है: "क्यूँ?" लिखे रिपोर्ट. "किसके?" पास रिपोर्ट जानी चाहिए और "क्या?" होना चाहिए रिपोर्ट में, उसके बाद चर्चा करता है "कैसे?" लिखे ऐसी रिपोर्ट जो की उपयोगी हो. यह फील्ड कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता, फेसिलिटेटर, प्रशिक्षक, अथवा अन्य लोगो पर निर्भर करता है की वेह समुदाय के सदस्य को प्रशिक्षण दे अपनी समस्याओ का समाधान निकलने के लिए, अपने ही संसाधनों की मदद से, और अपने विकास की खुद ही योजना बनाये. हालाँकि यह फील्ड कार्यकर्ता और मोबिलीज़ेर के लिए है, यहाँ समुदाय आधारित संगठन, जिसकी क्षमता को मजबूत किया जाना है, उनकी भी चर्चा है. इसलिए फील्ड कर्येकर्ता इन नोट्स से न केवल अपनी रिपोर्ट लिख सकते है पर समुदाय आधारित संगठन को भी सिखा सकते है की वेह अपनी रिपोर्ट कैसे लिखे.

परिचय:

सामुदायिक फील्ड कार्यकर्ताओ का काम सहानिये (परन्तु मुश्किल है); समुदाय को इकठ्ठा करना, उनकी जरूरतों को पहचानना, और उनको संगठित करना ताकि वेह अपनी ज़रूरतों को पहचान सके और संसाधनों का इंतज़ाम कर सके.

उनके कार्य के लिए, दो तरह की रिपोर्ट है:

अपने कार्य की प्रगति (जैसे उपलब्धिया) की रिपोर्ट. और अपने कार्य में कोई अनुशंसा, अथवा

समुदाय की गतिविधि और परियोजना पर आधारित रिपोर्ट,

यह पुस्तिका कार्यकर्ता के लिए बनायीं गयी है, ताकि:

वोह अपनी गतिविधिओ के बारे में रिपोर्ट लिख सके, एवं परियोजना की प्रगति की रिपोर्ट लिखने में समुदाय की मदद करसकें.

एक भेद जो आप रिपोर्ट में कर सकते है वोह है रिपोर्ट में क्या लिखा गया है.

कथात्मक प्रगति रिपोर्ट (लक्ष्य से सम्बंधित);

यह दस्तावेज जोर देता है "क्यों" और "कैसे" एक कथात्मक रिपोर्ट की, पर कुछ संदर्भ वित्तीय रिपोर्ट के ऊपर भी है.

भाग १: रिपोर्ट क्यूँ लिखे?

आशय

कारण

रिपोर्ट की ज़रुरत

किसे लाभ होगा?

उन्हें लाभ कैसे होगा?

भाग २: रिपोर्ट किसे मिलनी चाहिए?

लक्षित पाठक

उन्हें रिपोर्ट की ज़रुरत क्यूँ है?

वितरण

भाग ३: रिपोर्ट कैसे लिखे:

रिपोर्ट में क्या होना चाहिए?

क्या विषय होने चाहिए?

क्या शामिल करे?

अध्याय?

जोर किसपे दे? (कार्य या परिणाम)

भाग ४: बेहतर रिपोर्ट लिखना:

कौशल

सुझाव

संगठनात्मक

शैली

स्पष्टता (संक्षिप्त और सरल)

भाग १: रिपोर्ट लेखन का "क्यूँ"

क्या आप कभी नाराज या हतोत्साहित हुए है क्यूंकि आपको रिपोर्ट लिखनी पड़ी हो. क्या लिखना मतलब है बोरिंग एवं ग़ैरदिलचस्प काम, जो आपको सिर्फ नौकरशाही विनियमन की कारण लिखना पड रहा है.

यहाँ एक अच्छी खबर है. रिपोर्ट लिखना चुनौतीपूर्ण, दिलचस्प और मजेदार हो सकता है. और रिपोर्ट लिखना आपके "असली" कार्य से अलग नहीं है. यह आपके कार्य का आवश्यक अवं अविभाज्य भाग है. यह भी बाकी कार्य के बराबर ही "असली" है.

रिपोर्ट लिखना उपयोगी और मूल्यवान काम है (विशेष रूप से जब यह ठीक तरीके से किया जाए). पढते रहिये, यह दस्तावेज आपको इसके बारे में सब बताएगा. वो भी मजेदार तरीके से बोरियात हो तो बाद में पढ़ें......

मोबिलीज़ेर के साथ हुई कुछ चर्चा:

हाल ही में, मैंने कुछ मोबिलीज़ेर से पूछा झारखण्ड में एक सामुदायिक प्रशिक्षण सत्र के दौरान, "रिपोर्ट को क्यूँ लिखना चाहिए?"

ये उनके जवाब में से कुछ हैं:

क्यूंकि हमें लिखनी पड़ती है;

हमारे अभिलेख रखने के लिए सक्षम करने के लिए;

लोगो के लिए जो रूचि रखते है;

विफलताओं और सफलताओं के बारे में बताने के लिए;

खुद के लिए, ताकि हम जान सके की हम क्या कर रहे है;

जिन्होंने परियोजना में पैसा लगाया है उन्हें सूचित करने के लिए (परियोजना कैसे बढ रही है);

ताकि दाता प्रोत्साहित हो सके यह जनके की उनके दान से क्या हो रहा है;

अन्य लोगो को परियोजना के विकास के बारे में बताने के लिए;

ताकि अन्य लोग अपनी परियोजना के लिए प्रोत्साहित हो सके;

ताकि समुदाय के सदस्य सूचित किये जा सके अवं वेह प्रोत्साहित हो सके;

ताकि अन्य लोग सीख सके जो हमें किया है;

शोधकर्ताओ को उनके कार्य में मदद मिल सके;

आगे की कार्रवाई निर्धारित करने के लिए;

मूल्यांकन के उपयोग के लिए, और सरकार के लिए.

और एक बड़ा ही मजेदार जवाब की

सरकारी जाँच होने पर दिखने के लिए

मुझे कुछ हिमाचल प्रदेश के साथियों (मोबिलीज़ेर) ने बुलाया ताकि मैं उन्हें रिपोर्ट लिखने के लिए कुछ सुझाव दे सकूँ. समुदाय आधारित संगठन के साथ सामुदायिक प्रबंधन अनुबंध यह था की, संस्था को सामुदायिक परियोजना की रिपोर्ट लिखनी थी, अन्येथा आगे पैसा नहीं मिलता. वेह यह चाहते थे की उनकी रिपोर्ट "मापदंड के अनुसार" हो, जो प्रबंधक को पसंद आ जाए, ताकि उन्हें अगली किश्त मिल सके. जैसे मुझे दिख रहा था, मेरा कार्य उन खंडो का वर्णन करना था जो संस्था को प्रगति रिपोर्ट लिखने में मदद करे. यह खंड एक अच्छे कारण के लिए थे (समुदाय के सशक्तिकरण; न केवल नासमझ नौकरशाही जरूरत. इस मौके पर में धन्यवाद देना चाहूँगा सभी मोबिलीज़ेर का, सामुदायिक विकास सहायको का, अवं अन्य सदस्यों का, जिन्होंने इस कर्येशाला में योगदान दिया. (सभी गलतिया मेरी अपनी है).

जैसे की चर्चा बढ़ती गयी, और प्रतिभागी नए कारण बताते गए, हम सब इस बात से अवगत हुए की रिपोर्ट लिखने के कई उपयोगी कारण है और (जब वेह पढ़ी जाए) सामुदायिक कार्य की सफलता में अभिन्न अंग है.

इसलिए, हमने निष्कर्ष निकाला:

हमें रिपोर्ट लिखनी चाहिए;

रिपोर्ट पढ़ी जानी चाहिए; और

हर रिपोर्ट से कुछ परिणाम निकलना चाहिए.

नियंत्रण एवं रिपोर्ट लेखन.

किसी भी व्यावहारिक परियोजना के डिजाइन में, कुछ विशिष्ट चरण होते है (जैसे की समस्या को परिभाषित करना, लक्ष्यों को निर्दिष्ट करना, संसाधनों की पहचान, रणनीति का चुनाव, कार्य करना, नियंत्रण करना, फिर से डिजाईन बनाना अगर जरूरत हो), और नियंत्रण बहुत आवश्यक भाग है.

जैसे की हम किसी साइकल पर नहीं बैठ सकते जब तक हमें यह न पता हो की वोह कहाँ जा रही है, हम सामुदायिक परियोजना के रास्ते में नहीं रह सकते, जब तक हमें यह न दिखे की परियोजना कहाँ जा रही है. यह "देह्खा" परियोजना का नियंत्रण है, अवं इसकी सुचना योगदानकर्ता अवं निर्णय लेने वालो को देना.

इसलिए परोयोजना की प्रगति का नियंत्रण को योजना के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए. यह इसलिए समुदाय प्रबंधन प्रशिक्षण का हिस्सा है.

यह नियंत्रण समुदाय के सदस्यों द्वारा किया जाना चाहिए, अवं अन्य लोगो से जिनका नाम अनुबंध में है, या दाता की और से, जो परियोजना का हिस्सा हैं.

यदि किसी एक कारण की वजह से सामुदायिक गतिविधि शुरुआत में बंद हो जाती है, इसका मतलब है की संसाधनों का उपयोग गलत तरीके से हो रहा है; "इस प्रकार स्थिरता का अंत हो जाता है"

परियोजना प्रगति रिपोर्ट:

परियोजना बिना नियंत्रण के पूरी नहीं होती. नियंत्रण का अभिलेख रखना जरूरी है और इसकी सुचना देना भी. यह सुचना ही रिपोर्ट है.

प्रगति रिपोर्ट एक अभिलेख है जो परियोजना की गतिविधिओ के बारे में सूचित करती है: किस हद्द तक लक्ष्यों को हासिल किया गया है, और उनके कारण: तत्वों का मूल्यांकन; एवं अनुशंसा.

प्रगति रिपोर्ट एक जरूरी हिस्सा है किसी भी परियोजना का

फील्ड कार्यकर्ता की दिनचर्या की रिपोर्ट: इम्पावर पीपुल मोमेंट रजिस्टर कहता हैं

कार्यकर्ता को काम कुछ लक्ष्य पाने के लिए दिया जाता है. यह लक्ष्य कार्यकर्ता के नौकरी के विवरण में लिखे होते है. हमें कैसे पता चल सकता है की कार्यकर्ता ने इन लक्ष्य को हासिल कर लिया है (या नहीं किया और जो किया वो किस हद्द तक)

कार्यकर्ता की दिनचर्या रिपोर्ट से पता लगता है की किन गतिविधिओ से लय परिणाम हासिल हुआ है; कारण क्यूँ: कारको का मूल्यांकन; एवं अनुशंसा

दोनों ही मामलो में, रिपोर्ट में तुलना करनी चाहिए की क्या चाहिए था, और क्या हासिल किया गया; इन कारणों का विश्लेषण एवं अनुशंसा.

कार्यकर्ता की दिनचर्या रिपोर्ट उसे किसी भी बाह्य खतरे से बचाती है! ज़ाहिर है की आप जब समुदाय के साथ काम करते हैं तो कुछ लोग आपके खिलाफ खड़े हो जाते हैं और वो आपके विरुद्ध कई प्रकार के अनर्