रामचिरतमानस - lakshmi...

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रामचिरतमानस - 1 - बालकांड Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org गोवामी तुलसीदास िवरिचत रामचिरतमानस बालकाड

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  • रामचिरतमानस - 1 - बालकांड

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    गोस्वामी तलुसीदास िवरिचत

    रामचिरतमानस

    बालकाण्ड

    http://www.swargarohan.org/Ramayana/Ramcharitmanas.htm

  • रामचिरतमानस - 2 - बालकांड

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    ीगणेशाय नमः

    ीरामचिरतमानस थम सोपान

    बालकाण्ड

    ोक वणार्नामथर्संघानां रसानां छन्दसामिप । मङ्गलानां च क ार्रौ वन्दे वाणीिवनायकौ ॥ १ ॥

    भवानीशङ्करौ वन्दे ािव ासरूिपणौ । याभ्यां िवना न पश्यिन्त िस ाःस्वान्तःस्थमी रम ॥ ् २ ॥

    वन्दे बोधमयं िनत्यं गुरंु शङ्कररूिपणम ् । यमाि तो िह व ोऽिप चन् ः सवर् वन् ते ॥ ३ ॥

    सीतारामगुण ामपुण्यारण्यिवहािरणौ । वन्दे िवशु िवज्ञानौ कबी रकपी रौ ॥ ४ ॥

    उ विस्थितसंहारकािरणीं क्लेशहािरणीम ् । सवर् येस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम ॥ ् ५ ॥

    यन्मायावशवित िव मिखलं ािददेवासरुा यत्सत्वादमषैृव भाित सकलं रज्जौ यथाहे र्मः । यत्पादप्लवमेकमेव िह भवाम्भोधेिस्ततीषार्वतां वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हिरम ॥ ् ६ ॥

    नानापुराणिनगमागमसम्मतं यद् रामायणे िनगिदतं क्विचदन्यतोऽिप । स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा भाषािनबन्धमितमञ्जुलमातनोित ॥ ७ ॥

  • रामचिरतमानस - 3 - बालकांड

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    सोरठा

    जो सुिमरत िसिध होइ गन नायक किरबर बदन । करउ अनु ह सोइ बुि रािस सुभ गुन सदन ॥ १ ॥

    मकू होइ बाचाल पंगु चढइ िगिरबर गहन । जासु कृपाँ सो दयाल वउ सकल किल मल दहन ॥ २ ॥

    नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बािरज नयन । करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन ॥ ३ ॥

    कंुद इंद सम देह उमा रमन करुना अयन ।ु जािह दीन पर नेह करउ कृपा मदर्न मयन ॥ ४ ॥

    बंदउ गुरु पद कंज कृपा िसंधु नररूप हिर । महामोह तम पंुज जास ु बचन रिब कर िनकर ॥ ५ ॥

    बंदउ गुरु पद पदम परागा ।ु सुरुिच सुबास सरस अनुरागा ॥ अिमय मूिरमय चरून चारू । समन सकल भव रुज पिरवारू ॥ १ ॥ सकृुित संभु तन िबमल िबभतूी । मजुंल मंगल मोद सूती ॥ जन मन मंजु मुकुर मल हरनी । िकएँ ितलक गुन गन बस करनी ॥२ ॥ ीगुर पद नख मिन गन जोती । सुिमरत िदब्य ि िहयँ होती ॥ृ दलन मोह तम सो स कासू । बड़े भाग उर आवइ जासू ॥ ३ ॥ उघरिहं िबमल िबलोचन ही के । िमटिहं दोष दख भव रजनी के ॥ु सझूिहं राम चिरत मिन मािनक । गुपुत गट जहँ जो जेिह खािनक ॥४॥

    दोहरा

    जथा सुअंजन अंिज दृग साधक िस सुजान । कौतुक देखत सैल बन भतूल भूिर िनधान ॥ १ ॥

  • रामचिरतमानस - 4 - बालकांड

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    गुरु पद रज मदृ मजुंल अंजन ।ु नयन अिमअ दृग दोष िबभजंन ॥ तेिहं किर िबमल िबबेक िबलोचन । बरनउँ राम चिरत भव मोचन ॥ १ ॥ बंदउँ थम महीसुर चरना । मोह जिनत संसय सब हरना ॥ सजुन समाज सकल गुन खानी । करउँ नाम स ेम सुबानी ॥ २ ॥ साधु चिरत सुभ चिरत कपासू । िनरस िबसद गुनमय फल जासू ॥ जो सिह दख परिछ दरावा । बंदनीय जेिहं जग जस पावा ॥ु ु ३ ॥ मदु मंगलमय सतं समाजू । जो जग जंगम तीरथराजू ॥ राम भि जहँ सुरसिर धारा । सरसइ िबचार चारा ॥ ४ ॥ िबिध िनषेधमय किल मल हरनी । करम कथा रिबनंदिन बरनी ॥ हिर हर कथा िबराजित बेनी । सनुत सकल मुद मगंल देनी ॥ ५ ॥ बट िबस्वास अचल िनज धरमा ।ु तीरथराज समाज सुकरमा ॥ सबिहं सुलभ सब िदन सब देसा । सेवत सादर समन कलेसा ॥ ६ ॥ अकथ अलौिकक तीरथराऊ । देइ स फल गट भाऊ ॥ ७ ॥

    दोहरा

    सिुन समुझिहं जन मिुदत मन मज्जिहं अित अनुराग । लहिहं चािर फल अछत तनु साधु समाज याग ॥ २ ॥

    मज्जन फल पेिखअ ततकाला । काक होिहं िपक बकउ मराला ॥ सिुन आचरज करै जिन कोई । सतसंगित मिहमा निहं गोई ॥ १ ॥ बालमीक नारद घटजोनी । िनज िनज मुखिन कही िनज होनी ॥ जलचर थलचर नभचर नाना । जे जड़ चेतन जीव जहाना ॥ २ ॥ मित कीरित गित भिूत भलाई । जब जेिहं जतन जहाँ जेिहं पाई ॥ सो जानब सतसंग भाऊ । लोकहँ बेद न आनु उपाऊ ॥ ३ ॥ िबनु सतसंग िबबेक न होई । राम कृपा िबनु सुलभ न सोई ॥ सतसगंत मुद मगंल मूला । सोइ फल िसिध सब साधन फूला ॥ ४ ॥ सठ सुधरिहं सतसंगित पाई । पारस परस कुधात सुहाई ॥ िबिध बस सुजन कुसंगत परहीं ।फिन मिन सम िनज गुन अनुसरहीं॥५॥

  • रामचिरतमानस - 5 - बालकांड

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    िबिध हिर हर किब कोिबद बानी । कहत साधु मिहमा सकुचानी ॥ सो मो सन किह जात न कैसें । साक बिनक मिन गुन गन जैसें ॥ ६ ॥

    दोहरा

    बंदउँ संत समान िचत िहत अनिहत निहं कोइ । अंजिल गत सुभ सुमन िजिम सम सुगंध कर दोइ ॥ ३(क) ॥

    सतं सरल िचत जगत िहत जािन सुभाउ सनेह ।ु बालिबनय सिुन किर कृपा राम चरन रित देह ॥ ु ३(ख) ॥

    बहिर बंिद खल गन सितभाएँ । जे िबनु काज दािहनेह बाएँ ॥ु ु पर िहत हािन लाभ िजन्ह केरें । उजरें हरष िबषाद बसेरें ॥ १ ॥ हिर हर जस राकेस राह से । पर अकाजु भट सहसबाह से ॥ु जे पर दोष लखिहं सहसाखी । पर िहत घतृ िजन्ह के मन माखी ॥ २ ॥ तेज कृसानु रोष मिहषेसा । अघ अवगुन धन धनी धनेसा ॥ उदय केत सम िहत सबही के । कंुभकरन सम सोवत नीके ॥ ३ ॥ पर अकाजु लिग तनु पिरहरहीं । िजिम िहम उपल कृषी दिल गरहीं ॥ बंदउँ खल जस सेष सरोषा । सहस बदन बरनइ पर दोषा ॥ ४ ॥ पुिन नवउँ पथुृराज समाना । पर अघ सुनइ सहस दस काना ॥ बहिर स सम िबनवउँ तेही । संतत सरुानीक िहतु जेही ॥ ५ ॥ बचन ब जेिह सदा िपआरा । सहस नयन पर दोष िनहारा ॥ ६ ॥

    दोहरा

    उदासीन अिर मीत िहत सुनत जरिहं खल रीित । जािन पािन जुग जोिर जन िबनती करइ स ीित ॥ ४ ॥

    मैं अपनी िदिस कीन्ह िनहोरा । ितन्ह िनज ओर न लाउब भोरा ॥ बायस पिलअिहं अित अनुरागा । होिहं िनरािमष कबहँ िक कागा ॥ु १ ॥

  • रामचिरतमानस - 6 - बालकांड

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    बंदउँ संत असज्जन चरना । दखु द उभय बीच कछ बरना ॥ु िबछरत एक ान हिर लेहीं । िमलत एक दख दारुन देहींु ु ॥ २ ॥ उपजिहं एक संग जग माहीं । जलज जोंक िजिम गुन िबलगाहीं ॥ सुधा सरुा सम साधू असाधू । जनक एक जग जलिध अगाधू ॥ ३ ॥ भल अनभल िनज िनज करतूती । लहत सुजस अपलोक िबभूती ॥ सुधा सुधाकर सुरसिर साधू । गरल अनल किलमल सिर ब्याधू ॥ ४ ॥ गुन अवगुन जानत सब कोई । जो जेिह भाव नीक तेिह सोई ॥ ५ ॥

    दोहरा

    भलो भलाइिह पै लहइ लहइ िनचाइिह नीचु । सुधा सरािहअ अमरताँ गरल सरािहअ मीचु ॥ ५ ॥

    खल अघ अगुन साध ू गुन गाहा । उभय अपार उदिध अवगाहा ॥ तेिह तें कछ गुन दोष बखाने ु । सं ह त्याग न िबनु पिहचाने ॥ १ ॥ भलेउ पोच सब िबिध उपजाए । गिन गुन दोष बेद िबलगाए ॥ कहिहं बेद इितहास पुराना । िबिध पंचु गुन अवगुन साना ॥ २ ॥ दख सुख पाप पुन्य िदन राती ।ु साधु असाधु सजुाित कुजाती ॥ दानव देव ऊँच अरु नीचू । अिमअ सुजीवनु माहरु मीचूु ॥ ३ ॥ माया जीव जगदीसा । लिच्छ अलिच्छ रंक अवनीसा ॥ कासी मग सुरसिर मनासा । मरु मारव मिहदेव गवासा ॥ ४ ॥ सरग नरक अनुराग िबरागा । िनगमागम गुन दोष िबभागा ॥ ५ ॥

    दोहरा

    जड़ चेतन गुन दोषमय िबस्व कीन्ह करतार । सतं हंस गुन गहिहं पय पिरहिर बािर िबकार ॥ ६ ॥

    अस िबबेक जब देइ िबधाता । तब तिज दोष गुनिहं मनु राता ॥ काल सभुाउ करम बिरआई । भलेउ कृित बस चकुइ भलाई ॥ १ ॥

  • रामचिरतमानस - 7 - बालकांड

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    सो सुधािर हिरजन िजिम लेहीं । दिल दख दोष िबमल जसु देहीं ॥ु खलउ करिहं भल पाइ सुसगूं । िमटइ न मिलन सुभाउ अभंगू ॥ २ ॥ लिख सबेुष जग बंचक जेऊ । बेष ताप पूिजअिहं तेऊ ॥ उधरिहं अंत न होइ िनबाह । कालनेिम िजिम रावन राह ॥ू ू ३ ॥ िकएहँ कुबेष साधुु सनमानू । िजिम जग जामवंत हनुमानू ॥ हािन कुसगं ससंुगित लाह । लोकहँ बेद िबिदतू ु सब काह ॥ू ४ ॥ गगन चढ़इ रज पवन संगा । कीचिहं िमलइ नीच जल संगा ॥ साध ुअसाधु सदन सुक सारीं । सुिमरिहं राम देिहं गिन गारी ॥ ५ ॥ धूम कुसंगित कािरख होई । िलिखअ पुरान मंजु मिस सोई ॥ सोइ जल अनल अिनल संघाता । होइ जलद जग जीवन दाता ॥ ६ ॥

    दोहरा

    ह भेषज जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग । होिह कुबस्तु सुबस्तु जग लखिहं सुलच्छन लोग ॥ ७(क) ॥

    सम कास तम पाख दहँ नाु ु म भेद िबिध कीन्ह । सिस सोषक पोषक समुिझ जग जस अपजस दीन्ह ॥ ७(ख) ॥

    जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जािन । बंदउँ सब के पद कमल सदा जोिर जुग पािन ॥ ७(ग) ॥

    देव दनुज नर नाग खग ेत िपतर गंधबर् । बंदउँ िकंनर रजिनचर कृपा करह अब सबर् ॥ ु ७(घ) ॥

    आकर चािर लाख चौरासी । जाित जीव जल थल नभ बासी ॥ सीय राममय सब जग जानी । करउँ नाम जोिर जुग पानी ॥ १ ॥ जािन कृपाकर िकंकर मोह । सब िमिल करह छािड़ छलू ु छोह ॥ू िनज बुिध बल भरोस मोिह नाहीं । तातें िबनय करउँ सब पाही ॥ २ ॥ करन चहउँ रघुपित गुन गाहा । लघु मित मोिर चिरत अवगाहा ॥ सझू न एकउ अगं उपाऊ । मन मित रंक मनोरथ राऊ ॥ ३ ॥

  • रामचिरतमानस - 8 - बालकांड

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    मित अित नीच ऊँिच रुिच आछी । चिहअ अिमअ जग जुरइ न छाछी ॥ छिमहिहं सज्जन मोिर िढठाई । सिुनहिहं बालबचन मन लाई ॥ ४ ॥ जौ बालक कह तोतिर बाता । सनुिहं मिुदत मन िपतु अरु माता ॥ हँिसहिह कूर कुिटल कुिबचारी । जे पर दषन भूषनधारीू ॥ ५ ॥ िनज किवत केिह लाग न नीका । सरस होउ अथवा अित फीका ॥ जे पर भिनित सनुत हरषाही । ते बर पुरुष बहत जग नाहीं ॥ु ६ ॥ जग बह नर सर सिर सम भाई । जे िनज बािढ़ु बढ़िहं जल पाई ॥ सज्जन सकृत िसंधु सम कोई । देिख पूर िबधु बाढ़इ जोई ॥ ७ ॥

    दोहरा

    भाग छोट अिभलाषु बड़ करउँ एक िबस्वास । पैहिहं सुख सिुन सुजन सब खल करहिहं उपहास ॥ ८ ॥

    खल पिरहास होइ िहत मोरा । काक कहिहं कलकंठ कठोरा ॥ हंसिह बक दादरु चातकही । हँसिहं मिलन खल िबमल बतकही ॥ १ ॥ किबत रिसक न राम पद नेह । ितन्ह कहँ सुखदू हास रस एह ॥ू भाषा भिनित भोिर मित मोरी । हँिसबे जोग हँसें निहं खोरी ॥ २ ॥ भु पद ीित न सामिुझ नीकी । ितन्हिह कथा सुिन लागिह फीकी ॥ हिर हर पद रित मित न कुतरकी। ितन्ह कहँ मधुर कथा रघुवर की ॥ु ३॥ राम भगित भूिषत िजयँ जानी । सुिनहिहं सजुन सरािह सुबानी ॥ किब न होउँ निहं बचन बीनू । सकल कला सब िब ा हीनू ॥ ४ ॥ आखर अरथ अलंकृित नाना । छंद बंध अनेक िबधाना ॥ भाव भेद रस भेद अपारा । किबत दोष गुन िबिबध कारा ॥ ५ ॥ किबत िबबेक एक निहं मोरें । सत्य कहउँ िलिख कागद कोरे ॥ ६ ॥

    दोहरा

    भिनित मोिर सब गुन रिहत िबस्व िबिदत गुन एक । सो िबचािर सुिनहिहं सुमित िजन्ह कें िबमल िबवेक ॥ ९ ॥

  • रामचिरतमानस - 9 - बालकांड

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    एिह महँ रघुपित नाम उदारा । अित पावन पुरान िुत सारा ॥ मगंल भवन अमंगल हारी । उमा सिहत जेिह जपत पुरारी ॥ १ ॥ भिनित िबिच सुकिब कृत जोऊ । राम नाम िबनु सोह न सोऊ ॥ िबधबुदनी सब भाँित सवँारी । सोन न बसन िबना बर नारी ॥ २ ॥ सब गुन रिहत कुकिब कृत बानी । राम नाम जस अंिकत जानी ॥ सादर कहिहं सुनिहं बुध ताही । मधकुर सिरस संत गुन ाही ॥ ३ ॥ जदिप किबत रस एकउ नाही । राम ताप कट एिह माहीं ॥ सोइ भरोस मोरें मन आवा । केिहं न सुसंग बडप्पनु पावा ॥ ४ ॥ धूमउ तजइ सहज करुआई । अगरु संग सगंुध बसाई ॥ भिनित भदेस बस्तु भिल बरनी । राम कथा जग मगंल करनी ॥ ५ ॥

    छंद

    मगंल करिन किल मल हरिन तुलसी कथा रघुनाथ की ॥ गित कूर किबता सिरत की ज्यों सिरत पावन पाथ की ॥ भु सुजस संगित भिनित भिल होइिह सुजन मन भावनी ॥ भव अगं भूित मसान की सुिमरत सुहाविन पावनी ॥

    दोहरा

    ि य लािगिह अित सबिह मम भिनित राम जस संग । दारु िबचारु िक करइ कोउ बंिदअ मलय सगं ॥ १०(क) ॥

    स्याम सुरिभ पय िबसद अित गुनद करिहं सब पान । िगरा ाम्य िसय राम जस गाविहं सुनिहं सुजान ॥ १०(ख) ॥

    मिन मािनक मुकुता छिब जैसी । अिह िगिर गज िसर सोह न तैसी ॥ नपृ िकरीट तरुनी तनु पाई । लहिहं सकल सोभा अिधकाई ॥ १ ॥ तैसेिहं सुकिब किबत बुध कहहीं । उपजिहं अनत अनत छिब लहहीं ॥ भगित हेतु िबिध भवन िबहाई । सुिमरत सारद आवित धाई ॥ २ ॥

  • रामचिरतमानस - 10 - बालकांड

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    राम चिरत सर िबनु अन्हवाएँ । सो म जाइ न कोिट उपाएँ ॥ किब कोिबद अस हृदयँ िबचारी । गाविहं हिर जस किल मल हारी ॥ ३ ॥ कीन्हें ाकृत जन गुन गाना । िसर धुिन िगरा लगत पिछताना ॥ हृदय िसंधु मित सीप समाना । स्वाित सारदा कहिहं सुजाना ॥ ४ ॥ जौं बरषइ बर बािर िबचारू । होिहं किबत मुकुतामिन चारू ॥ ५ ॥

    दोहरा

    जुगुित बेिध पुिन पोिहअिहं रामचिरत बर ताग । पिहरिहं सज्जन िबमल उर सोभा अित अनुराग ॥ ११ ॥

    जे जनमे किलकाल कराला । करतब बायस बेष मराला ॥ चलत कुपंथ बेद मग छाँड़े । कपट कलेवर किल मल भाँड़ें ॥ १ ॥ बंचक भगत कहाइ राम के । िकंकर कंचन कोह काम के ॥ ितन्ह महँ थम रेख जग मोरी । धींग धरमध्वज धंधक धोरी ॥ २ ॥ जौं अपने अवगुन सब कहऊँ । बाढ़इ कथा पार निहं लहऊँ ॥ ताते मैं अित अलप बखाने । थोरे महँ जािनहिहं सयाने ॥ु ३ ॥ समुिझ िबिबिध िबिध िबनती मोरी । कोउ न कथा सुिन देइिह खोरी ॥ एतेह पर किरहिहं जेु असंका । मोिह ते अिधक ते जड़ मित रंका ॥ ४ ॥ किब न होउँ निहं चतुर कहावउँ । मित अनुरूप राम गुन गावउँ ॥ कहँ रघुपित के चिरत अपारा । कहँ मित मोिर िनरत संसारा ॥ ५ ॥ जेिहं मारुत िगिर मेरु उड़ाहीं । कहह तूल केिह लेखे माहीं ॥ु समुझत अिमत राम भतुाई । करत कथा मन अित कदराई ॥ ६ ॥

    दोहरा

    सारद सेस महेस िबिध आगम िनगम पुरान । नेित नेित किह जासु गुन करिहं िनरंतर गान ॥ १२ ॥

    सब जानत भु भतुा सोई । तदिप कहें िबनु रहा न कोई ॥ तहाँ बेद अस कारन राखा । भजन भाउ भाँित बहु भाषा ॥ १ ॥

  • रामचिरतमानस - 11 - बालकांड

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    एक अनीह अरूप अनामा । अज सिच्चदानंद पर धामा ॥ ब्यापक िबस्वरूप भगवाना । तेिहं धिर देह चिरत कृत नाना ॥ २ ॥ सो केवल भगतन िहत लागी । परम कृपाल नत अनुरागी ॥ जेिह जन पर ममता अित छोह । जेिहं करुना किर कीन्ह न कोह ॥ू ू ३ ॥ गई बहोर गरीब नेवाज ू । सरल सबल सािहब रघुराज ू ॥ बुध बरनिहं हिर जस अस जानी । करिह पुनीत सफुल िनज बानी ॥४ ॥ तेिहं बल मैं रघुपित गुन गाथा । किहहउँ नाइ राम पद माथा ॥ मिुनन्ह थम हिर कीरित गाई । तेिहं मग चलत सुगम मोिह भाई ॥५॥

    दोहरा

    अित अपार जे सिरत बर जौं नपृ सेतु करािहं । चिढ िपपीिलकउ परम लघु िबनु म पारिह जािहं ॥ १३ ॥

    एिह कार बल मनिह देखाई । किरहउँ रघुपित कथा सुहाई ॥ ब्यास आिद किब पंुगव नाना । िजन्ह सादर हिर सुजस बखाना ॥ १ ॥ चरन कमल बंदउँ ितन्ह केरे । पुरवहँ सकल मनोरथ मेरे ॥ु किल के किबन्ह करउँ परनामा । िजन्ह बरने रघुपित गुन ामा ॥ २ ॥ जे ाकृत किब परम सयाने । भाषाँ िजन्ह हिर चिरत बखाने ॥ भए जे अहिहं जे होइहिहं आगें । नवउँ सबिहं कपट सब त्यागें ॥ ३ ॥ होहु सन्न देह बरु दानू । साधु समाज भिनित सनमानू ॥ जो बंध बुध निहं आदरहीं । सो म बािद बाल किब करहीं ॥ ४ ॥ कीरित भिनित भूित भिल सोई । सरुसिर सम सब कहँ िहत होई ॥ राम सकुीरित भिनित भदेसा । असमंजस अस मोिह अँदेसा ॥ ५ ॥ तुम्हरी कृपा सुलभ सोउ मोरे । िसअिन सुहाविन टाट पटोरे ॥ ६ ॥

    दोहरा

    सरल किबत कीरित िबमल सोइ आदरिहं सुजान । सहज बयर िबसराइ िरपु जो सिुन करिहं बखान ॥ १४(क) ॥

  • रामचिरतमानस - 12 - बालकांड

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    सो न होइ िबनु िबमल मित मोिह मित बल अित थोर । करह कृपा हिर जस कहउँ पुिन पुिन करउँ िनहोर ॥ ु १४(ख) ॥

    किब कोिबद रघुबर चिरत मानस मजुं मराल । बाल िबनय सुिन सुरुिच लिख मोपर होह कृपाल ॥ ु १४(ग) ॥

    सोरठा

    बंदउँ मुिन पद कंजु रामायन जेिहं िनरमयउ । सखर सुकोमल मंजु दोष रिहत दषन सिहत ॥ ू १४(घ) ॥

    बंदउँ चािरउ बेद भव बािरिध बोिहत सिरस । िजन्हिह न सपनेहँ खेद बरनत रघुबर िबसद जसु ॥ ु १४(ङ) ॥

    बंदउँ िबिध पद रेनु भव सागर जेिह कीन्ह जहँ । सतं सुधा सिस धेनु गटे खल िबष बारुनी ॥ १४(च) ॥

    दोहरा

    िबबुध िब बुध ह चरन बंिद कहउँ कर जोिर । होइ सन्न पुरवह सकल मंजु मनोरथ मोिर ॥ ु १४(छ) ॥

    पुिन बंदउँ सारद सुरसिरता । जुगल पुनीत मनोहर चिरता ॥ मज्जन पान पाप हर एका । कहत सुनत एक हर अिबबेका ॥ १ ॥ गुर िपतु मातु महेस भवानी । नवउँ दीनबंधु िदन दानी ॥ सेवक स्वािम सखा िसय पी के । िहत िनरुपिध सब िबिध तुलसीके ॥२॥ किल िबलोिक जग िहत हर िगिरजा । साबर मं जाल िजन्ह िसिरजा ॥ अनिमल आखर अरथ न जापू । गट भाउ महेस तापू ॥ ३ ॥ सो उमेस मोिह पर अनुकूला । किरिहं कथा मुद मंगल मूला ॥ सिुमिर िसवा िसव पाइ पसाऊ । बरनउँ रामचिरत िचत चाऊ ॥ ४ ॥ भिनित मोिर िसव कृपाँ िबभाती । सिस समाज िमिल मनहँ सुराती ॥ु जे एिह कथिह सनेह समेता । किहहिहं सुिनहिहं समिुझ सचेता ॥ ५ ॥

  • रामचिरतमानस - 13 - बालकांड

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    होइहिहं राम चरन अनुरागी । किल मल रिहत सुमंगल भागी ॥ ६ ॥

    दोहरा सपनेहँ साचेहँ मोिह पर जौं हर गौिर पसाउ ।ु ु तौ फुर होउ जो कहेउँ सब भाषा भिनित भाउ ॥ १५ ॥

    बंदउँ अवध पुरी अित पाविन । सरजू सिर किल कलषु नसाविन ॥ नवउँ पुर नर नािर बहोरी । ममता िजन्ह पर भुिह न थोरी ॥ १ ॥ िसय िनंदक अघ ओघ नसाए । लोक िबसोक बनाइ बसाए ॥ बंदउँ कौसल्या िदिस ाची । कीरित जासु सकल जग माची ॥ २ ॥ गटेउ जहँ रघुपित सिस चारू । िबस्व सुखद खल कमल तुसारू ॥ दसरथ राउ सिहत सब रानी । सुकृत समंुगल मूरित मानी ॥ ३ ॥ करउँ नाम करम मन बानी । करह कृपाु सतु सेवक जानी ॥ िजन्हिह िबरिच बड़ भयउ िबधाता । मिहमा अविध राम िपत ुमाता ॥४ ॥

    सोरठा

    बंदउँ अवध भुआल सत्य ेम जेिह राम पद । िबछरत दीनदयाल ि य तनुु तनृ इव पिरहरेउ ॥ १६ ॥

    नवउँ पिरजन सिहत िबदेह । जािह राम पद गूढ़ सनेहू ू ॥ जोग भोग महँ राखेउ गोई । राम िबलोकत गटेउ सोई ॥ १ ॥ नवउँ थम भरत के चरना । जासु नेम त जाइ न बरना ॥ राम चरन पंकज मन जासू । लुबुध मधपु इव तजइ न पासू ॥ २ ॥ बंदउँ लिछमन पद जलजाता । सीतल सुभग भगत सुख दाता ॥ रघुपित कीरित िबमल पताका । दंड समान भयउ जस जाका ॥ ३ ॥ सेष सह सीस जग कारन । जो अवतरेउ भूिम भय टारन ॥ सदा सो सानुकूल रह मो पर । कृपािसंधु सौिमि गुनाकर ॥ ४ ॥ िरपुसूदन पद कमल नमामी । सरू सुसील भरत अनुगामी ॥ महावीर िबनवउँ हनुमाना । राम जासु जस आप बखाना ॥ ५ ॥

  • रामचिरतमानस - 14 - बालकांड

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    सोरठा

    नवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन । जासु हृदय आगार बसिहं राम सर चाप धर ॥ १७ ॥

    किपपित रीछ िनसाचर राजा । अगंदािद जे कीस समाजा ॥ बंदउँ सब के चरन सुहाए । अधम सरीर राम िजन्ह पाए ॥ १ ॥ रघुपित चरन उपासक जेते । खग मगृ सरु नर असुर समेते ॥ बंदउँ पद सरोज सब केरे । जे िबनु काम राम के चेरे ॥ २ ॥ सकु सनकािद भगत मुिन नारद । जे मुिनबर िबग्यान िबसारद ॥ नवउँ सबिहं धरिन धिर सीसा । करह कृपा जन जािन मुनीसा ॥ु ३ ॥ जनकसतुा जग जनिन जानकी । अितसय ि य करुना िनधान की ॥ ताके जगु पद कमल मनावउँ । जासु कृपाँ िनरमल मित पावउँ ॥ ४ ॥ पुिन मन बचन कमर् रघुनायक । चरन कमल बंदउँ सब लायक ॥ रािजवनयन धरें धनु सायक । भगत िबपित भंजन सुख दायक ॥ ५ ॥

    दोहरा

    िगरा अरथ जल बीिच सम किहअत िभन्न न िभन्न । बदउँ सीता राम पद िजन्हिह परम ि य िखन्न ॥ १८ ॥

    बंदउँ नाम राम रघुवर को । हेतु कृसानु भानु िहमकर को ॥ िबिध हिर हरमय बेद ान सो । अगुन अनूपम गुन िनधान सो ॥ १ ॥ महामं जोइ जपत महेसू । कासीं मुकुित हेतु उपदेसू ॥ मिहमा जासु जान गनराउ । थम पूिजअत नाम भाऊ ॥ २ ॥ जान आिदकिब नाम तापू । भयउ सु किर उलटा जापू ॥ सहस नाम सम सुिन िसव बानी । जिप जेई िपय सगं भवानी ॥ ३ ॥ हरषे हेतु हेिर हर ही को । िकय भूषन ितय भषून ती को ॥ नाम भाउ जान िसव नीको । कालकूट फलु दीन्ह अमी को ॥ ४ ॥

    दोहरा

  • रामचिरतमानस - 15 - बालकांड

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    बरषा िरतु रघुपित भगित तुलसी सािल सुदास ॥ राम नाम बर बरन जुग सावन भादव मास ॥ १९ ॥

    आखर मधरु मनोहर दोऊ । बरन िबलोचन जन िजय जोऊ ॥ सिुमरत सुलभ सुखद सब काह । लोक लाह परलोक िनबाहू ु ू ॥ १ ॥ कहत सनुत सुिमरत सुिठ नीके । राम लखन सम ि य तुलसी के ॥ बरनत बरन ीित िबलगाती । जीव सम सहज सघँाती ॥ २ ॥ नर नारायन सिरस सु ाता । जग पालक िबसेिष जन ाता ॥ भगित सिुतय कल करन िबभूषन । जग िहत हेतु िबमल िबधु पूषन ॥३॥ स्वाद तोष सम सगुित सुधा के । कमठ सेष सम धर बसुधा के ॥ जन मन मंजु कंज मधकुर से । जीह जसोमित हिर हलधर से ॥ ४ ॥

    दोहरा

    एकु छ ु एकु मकुुटमिन सब बरनिन पर जोउ । तुलसी रघुबर नाम के बरन िबराजत दोउ ॥ २० ॥

    समुझत सिरस नाम अरु नामी । ीित परसपर भु अनुगामी ॥ नाम रूप दइ ईस उपाधी । अकथ अनािद सुसामिुझ साधीु ॥ १ ॥ को बड़ छोट कहत अपराधू । सुिन गुन भेद समुिझहिहं साध ू ॥ देिखअिहं रूप नाम आधीना । रूप ग्यान निहं नाम िबहीना ॥ २ ॥ रूप िबसेष नाम िबनु जानें । करतल गत न परिहं पिहचानें ॥ सिुमिरअ नाम रूप िबनु देखें । आवत हृदयँ सनेह िबसेषें ॥ ३ ॥ नाम रूप गित अकथ कहानी । समुझत सुखद न परित बखानी ॥ अगुन सगुन िबच नाम सुसाखी । उभय बोधक चतुर दभाषी ॥ु ४ ॥

    दोहरा

    राम नाम मिनदीप धरु जीह देहरी ार । तुलसी भीतर बाहेरहँ जौं चाहिस उिजआर ॥ ु २१ ॥

  • रामचिरतमानस - 16 - बालकांड

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    नाम जीहँ जिप जागिहं जोगी । िबरित िबरंिच पंच िबयोगी ॥ सुखिह अनुभविहं अनूपा । अकथ अनामय नाम न रूपा ॥ १ ॥

    जाना चहिहं गूढ़ गित जेऊ । नाम जीहँ जिप जानिहं तेऊ ॥ साधक नाम जपिहं लय लाएँ । होिहं िस अिनमािदक पाएँ ॥ २ ॥ जपिहं नामु जन आरत भारी । िमटिहं कुसकंट होिहं सुखारी ॥ राम भगत जग चािर कारा । सुकृती चािरउ अनघ उदारा ॥ ३ ॥ चह चतुरू कहँ नाम अधारा । ग्यानी भुिह िबसेु िष िपआरा ॥ चहँ जुग चहँ िुत ना भाऊु ु । किल िबसेिष निहं आन उपाऊ ॥ ४ ॥

    दोहरा

    सकल कामना हीन जे राम भगित रस लीन । नाम सु ेम िपयूष हद ितन्हहँ िकए मन मीन ॥ ु २२ ॥

    अगुन सगुन दइ सरूपा ।ु अकथ अगाध अनािद अनूपा ॥ मोरें मत बड़ नामु दह तें । िकए जेिहं ु ू जगु िनज बस िनज बूतें ॥ १ ॥ ोिढ़ सुजन जिन जानिहं जन की । कहउँ तीित ीित रुिच मन की ॥ एकु दारुगत देिखअ एकू । पावक सम जुग िबबेकू ॥ २ ॥ उभय अगम जुग सुगम नाम तें । कहेउँ नामु बड़ राम तें ॥ ब्यापकु एकु अिबनासी । सत चेतन धन आनँद रासी ॥ ३ ॥ अस भु हृदयँ अछत अिबकारी । सकल जीव जग दीन दखारी ॥ु नाम िनरूपन नाम जतन तें । सोउ गटत िजिम मोल रतन तें ॥ ४ ॥

    दोहरा

    िनरगुन तें एिह भाँित बड़ नाम भाउ अपार । कहउँ नामु बड़ राम तें िनज िबचार अनुसार ॥ २३ ॥

    राम भगत िहत नर तनु धारी । सिह संकट िकए साधु सुखारी ॥ नाम ु स ेम जपत अनयासा । भगत होिहं मदु मंगल बासा ॥ १ ॥

  • रामचिरतमानस - 17 - बालकांड

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    राम एक तापस ितय तारी । नाम कोिट खल कुमित सुधारी ॥ िरिष िहत राम सुकेतुसुता की । सिहत सेन सुत कीन्ह िबबाकी ॥ २ ॥ सिहत दोष दख दास दरासा । दलइ नामु िजिम रिब िनिस नासा ॥ु ु भजेंउ राम आपु भव चापू । भव भय भजंन नाम तापू ॥ ३ ॥ दंडक बनु भु कीन्ह सहुावन । जन मन अिमत नाम िकए पावन ॥ । िनिसचर िनकर दले रघुनंदन । नामु सकल किल कलषु िनकंदन ॥ ४ ॥

    दोहरा

    सबरी गीध सुसेवकिन सुगित दीिन्ह रघुनाथ । नाम उधारे अिमत खल बेद िबिदत गुन गाथ ॥ २४ ॥

    राम सुकंठ िबभीषन दोऊ । राखे सरन जान सबु कोऊ ॥ नाम गरीब अनेक नेवाजे । लोक बेद बर िबिरद िबराजे ॥ १ ॥ राम भालु किप कटकु बटोरा । सेतु हेतु मु कीन्ह न थोरा ॥ नामु लेत भविसंधु सुखाहीं । करह िबचारु सुजन मन माहीं ॥ु २ ॥ राम सकुल रन रावनु मारा । सीय सिहत िनज पुर पगु धारा ॥ राजा रामु अवध रजधानी । गावत गुन सुर मुिन बर बानी ॥ ३ ॥ सेवक सुिमरत नामु स ीती । िबनु म बल मोह दल ु जीती ॥ िफरत सनेहँ मगन सखु अपनें । नाम साद सोच निहं सपनें ॥ ४ ॥

    दोहरा

    राम तें नामु बड़ बर दायक बर दािन । रामचिरत सत कोिट महँ िलय महेस िजयँ जािन ॥ २५ ॥

    मासपारायण, पहला िव ाम

    नाम साद संभु अिबनासी। साजु अमंगल मगंल रासी ॥ सकु सनकािद िस मुिन जोगी । नाम साद सुख भोगी ॥ १ ॥ नारद जानेउ नाम तापू । जग ि य हिर हिर हर ि य आपू ॥ नाम ु जपत भु कीन्ह साद ।ू भगत िसरोमिन भे हलाद ॥ू २ ॥

  • रामचिरतमानस - 18 - बालकांड

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    वँु सगलािन जपेउ हिर नाऊँ । पायउ अचल अनूपम ठाऊँ ॥ सिुमिर पवनसतु पावन नामू । अपने बस किर राखे रामू ॥ ३ ॥ अपतु अजािमलु गजु गिनकाऊ । भए मकुुत हिर नाम भाऊ ॥ कहौं कहाँ लिग नाम बड़ाई । रामु न सकिहं नाम गुन गाई ॥ ४ ॥

    दोहरा

    नाम ु राम को कलपतरु किल कल्यान िनवासु । जो सुिमरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु ॥ २६ ॥

    चहँ जुग तीिन काल ितहँ लोका । भए नाम जिपु ु जीव िबसोका ॥ बेद पुरान सतं मत एह । सकल सकृुत फल राम सनेह ॥ू ू १ ॥ ध्यानु थम जुग मखिबिध दजें । ापर पिरतोषत भु पूजें ॥ू किल केवल मल मूल मलीना । पाप पयोिनिध जन जन मीना ॥ २ ॥ नाम कामतरु काल कराला । सिुमरत समन सकल जग जाला ॥ राम नाम किल अिभमत दाता । िहत परलोक लोक िपतु माता ॥ ३ ॥ निहं किल करम न भगित िबबेकू । राम नाम अवलबंन एकू ॥ कालनेिम किल कपट िनधानू । नाम सुमित समरथ हनुमानू ॥ ४ ॥

    दोहरा

    राम नाम नरकेसरी कनककिसपु किलकाल । जापक जन हलाद िजिम पािलिह दिल सुरसाल ॥ २७ ॥

    भायँ कुभायँ अनख आलसहँ । नाम जपत मंगल िदिस दसहँू ू ॥ सिुमिर सो नाम राम गुन गाथा । करउँ नाइ रघुनाथिह माथा ॥ १ ॥ मोिर सुधािरिह सो सब भाँती । जासु कृपा निहं कृपाँ अघाती ॥ राम ससु्वािम कुसेवकु मोसो । िनज िदिस दैिख दयािनिध पोसो ॥ २ ॥ लोकहँ बेद सुसािहब रीतीं । िबनय सनुत पिहचानत ीतीु ॥ गनी गरीब ामनर नागर । पंिडत मूढ़ मलीन उजागर ॥ ३ ॥

  • रामचिरतमानस - 19 - बालकांड

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    सकुिब कुकिब िनज मित अनुहारी । नपृिह सराहत सब नर नारी ॥ साधु सजुान सुसील नपृाला । ईस अंस भव परम कृपाला ॥ ४ ॥ सिुन सनमानिहं सबिह सुबानी । भिनित भगित नित गित पिहचानी ॥ यह ाकृत मिहपाल सुभाऊ । जान िसरोमिन कोसलराऊ ॥ ५ ॥ रीझत राम सनेह िनसोतें । को जग मंद मिलनमित मोतें ॥ ६ ॥

    दोहरा

    सठ सेवक की ीित रुिच रिखहिहं राम कृपालु । उपल िकए जलजान जेिहं सिचव सुमित किप भालु ॥ २८(क) ॥

    हौह कु हावत सबु कहत राम सहत उपहास । सािहब सीतानाथ सो सेवक तुलसीदास ॥ २८(ख) ॥

    अित बिड़ मोिर िढठाई खोरी । सुिन अघ नरकहँ नाक सकोरी ॥ु समुिझ सहम मोिह अपडर अपनें । सो सिुध राम कीिन्ह निहं सपनें ॥१॥ सिुन अवलोिक सिुचत चख चाही । भगित मोिर मित स्वािम सराही ॥ कहत नसाइ होइ िहयँ नीकी । रीझत राम जािन जन जी की ॥ २ ॥ रहित न भु िचत चकू िकए की । करत सुरित सय बार िहए की ॥ जेिहं अघ बधेउ ब्याध िजिम बाली। िफिर सकंुठ सोइ कीन्ह कुचाली ॥३॥ सोइ करतूित िबभीषन केरी । सपनेहँ सो न राम िहयँ हेरीु ॥ ते भरतिह भेंटत सनमाने । राजसभाँ रघुबीर बखाने ॥ ४ ॥

    दोहरा

    भु तरु तर किप डार पर ते िकए आपु समान ॥ तुलसी कहँ न राम से सािहब सीलिनधान ॥ ू २९(क) ॥

    राम िनकाईं रावरी है सबही को नीक । जों यह साँची है सदा तौ नीको तुलसीक ॥ २९(ख) ॥

    एिह िबिध िनज गुन दोष किह सबिह बहिर िसरु नाइ ।ु

  • रामचिरतमानस - 20 - बालकांड

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    बरनउँ रघुबर िबसद जस ु सिुन किल कलुष नसाइ ॥ २९(ग) ॥

    जागबिलक जो कथा सहुाई । भर ाज मिुनबरिह सुनाई ॥ किहहउँ सोइ संबाद बखानी । सुनहँ सकल सज्जन सुखु मानीु ॥ १ ॥ संभु कीन्ह यह चिरत सहुावा । बहिर कृपा किर उमिह सुनावा ॥ु सोइ िसव कागभुसंुिडिह दीन्हा । राम भगत अिधकारी चीन्हा ॥ २ ॥ तेिह सन जागबिलक पुिन पावा । ितन्ह पुिन भर ाज ित गावा ॥ ते ोता बकता समसीला । सवँदरसी जानिहं हिरलीला ॥ ३ ॥ जानिहं तीिन काल िनज ग्याना । करतल गत आमलक समाना ॥ औरउ जे हिरभगत सुजाना । कहिहं सुनिहं समुझिहं िबिध नाना ॥ ४ ॥

    दोहरा

    मै पुिन िनज गुर सन सुनी कथा सो सूकरखेत । समुझी निह तिस बालपन तब अित रहेउँ अचेत ॥ ३०(क) ॥

    ोता बकता ग्यानिनिध कथा राम कै गूढ़ । िकिम समुझौं मै जीव जड़ किल मल िसत िबमढ़ू ॥ ३०(ख)

    तदिप कही गुर बारिहं बारा । समुिझ परी कछ मित अनुसारा ॥ु भाषाब करिब मैं सोई । मोरें मन बोध जेिहं होई ॥ १ ॥ जस कछ बुिध िबबेक बल मेरें । तसु किहहउँ िहयँ हिर के ेरें ॥ िनज सदेंह मोह म हरनी । करउँ कथा भव सिरता तरनी ॥ २ ॥ बुध िब ाम सकल जन रंजिन । रामकथा किल कलुष िबभंजिन ॥ रामकथा किल पंनग भरनी । पुिन िबबेक पावक कहँ अरनी ॥ु ३ ॥ रामकथा किल कामद गाई । सुजन सजीविन मूिर सुहाई ॥ सोइ बसुधातल सुधा तरंिगिन । भय भंजिन म भेक भअुंिगिन ॥ ४ ॥ असुर सेन सम नरक िनकंिदिन । साधु िबबुध कुल िहत िगिरनंिदिन ॥ सतं समाज पयोिध रमा सी । िबस्व भार भर अचल छमा सी ॥ ५ ॥

  • रामचिरतमानस - 21 - बालकांड

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    जम गन मुहँ मिस जग जमुना सी । जीवन मुकुित हेतु जनु कासी ॥ रामिह ि य पाविन तुलसी सी । तुलिसदास िहत िहयँ हलसी सी ॥ु ६ ॥ िसव य मेकल सैल सतुा सी । सकल िसि सुख संपित रासी ॥ सदगुन सुरगन अबं अिदित सी । रघुबर भगित ेम परिमित सी ॥ ७ ॥

    दोहरा

    राम कथा मंदािकनी िच कूट िचत चारु । तुलसी सुभग सनेह बन िसय रघुबीर िबहारु ॥ ३१ ॥

    राम चिरत िचतंामिन चारू । सतं सुमित ितय सुभग िसंगारू ॥ जग मगंल गुन ाम राम के । दािन मुकुित धन धरम धाम के ॥ १ ॥ सदगुर ग्यान िबराग जोग के । िबबुध बैद भव भीम रोग के ॥ जनिन जनक िसय राम ेम के । बीज सकल त धरम नेम के ॥ २ ॥ समन पाप संताप सोक के । ि य पालक परलोक लोक के ॥ सिचव सुभट भूपित िबचार के । कंुभज लोभ उदिध अपार के ॥ ३ ॥ काम कोह किलमल किरगन के । केहिर सावक जन मन बन के ॥ अितिथ पूज्य ि यतम पुरािर के । कामद घन दािरद दवािर के ॥ ४ ॥ मं महामिन िबषय ब्याल के । मेटत किठन कुअकं भाल के ॥ हरन मोह तम िदनकर कर से । सेवक सािल पाल जलधर से ॥ ५ ॥ अिभमत दािन देवतरु बर से । सेवत सुलभ सुखद हिर हर से ॥ सकुिब सरद नभ मन उडगन से । रामभगत जन जीवन धन से ॥ ६ ॥ सकल सुकृत फल भूिर भोग से । जग िहत िनरुपिध साध ुलोग से ॥ सेवक मन मानस मराल से । पावक गंग तंरग माल से ॥ ७ ॥

    दोहरा

    कुपथ कुतरक कुचािल किल कपट दंभ पाषंड । दहन राम गुन ाम िजिम इंधन अनल चंड ॥ ३२(क) ॥

    रामचिरत राकेस कर सिरस सुखद सब काह ।ु

  • रामचिरतमानस - 22 - बालकांड

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    सज्जन कुमुद चकोर िचत िहत िबसेिष बड़ लाह ॥ ु ३२(ख) ॥

    कीिन्ह स्न जेिह भाँित भवानी । जेिह िबिध संकर कहा बखानी ॥ सो सब हेतु कहब मैं गाई । कथा बंध िबिच बनाई ॥ १ ॥ जेिह यह कथा सुनी निहं होई । जिन आचरजु करैं सिुन सोई ॥ कथा अलौिकक सुनिहं जे ग्यानी । निहं आचरज ुकरिहं अस जानी ॥२ ॥ रामकथा कै िमित जग नाहीं । अिस तीित ितन्ह के मन माहीं ॥ नाना भाँित राम अवतारा । रामायन सत कोिट अपारा ॥ ३ ॥ कलपभेद हिरचिरत सहुाए । भाँित अनेक मुनीसन्ह गाए ॥ किरअ न संसय अस उर आनी । सिुनअ कथा सारद रित मानी ॥ ४ ॥

    दोहरा

    राम अनंत अनंत गुन अिमत कथा िबस्तार । सिुन आचरज ु न मािनहिहं िजन्ह कें िबमल िबचार ॥ ३३ ॥

    एिह िबिध सब संसय किर दरी । िसर धिर गुर पद पंकज धूरी ॥ू पुिन सबही िबनवउँ कर जोरी । करत कथा जेिहं लाग न खोरी ॥ १ ॥ सादर िसविह नाइ अब माथा । बरनउँ िबसद राम गुन गाथा ॥ सबंत सोरह सै एकतीसा । करउँ कथा हिर पद धिर सीसा ॥ २ ॥ नौमी भौम बार मधु मासा । अवधपुरीं यह चिरत कासा ॥ जेिह िदन राम जनम िुत गाविहं । तीरथ सकल तहाँ चिल आविहं ॥३॥ असुर नाग खग नर मुिन देवा । आइ करिहं रघुनायक सेवा ॥ जन्म महोत्सव रचिहं सजुाना । करिहं राम कल कीरित गाना ॥ ४ ॥

    दोहरा

    मज्जिह सज्जन बृंद बह पावन सरजू नीर ।ु जपिहं राम धिर ध्यान उर संुदर स्याम सरीर ॥ ३४ ॥

    दरस परस मज्जन अरु पाना । हरइ पाप कह बेद पुराना ॥ नदी पुनीत अिमत मिहमा अित । किह न सकइ सारद िबमलमित ॥ १ ॥

  • रामचिरतमानस - 23 - बालकांड

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    राम धामदा पुरी सहुाविन । लोक समस्त िबिदत अित पाविन ॥ चािर खािन जग जीव अपारा । अवध तजे तनु निह संसारा ॥ २ ॥ सब िबिध पुरी मनोहर जानी । सकल िसि द मंगल खानी ॥ िबमल कथा कर कीन्ह अरंभा । सुनत नसािहं काम मद दंभा ॥ ३ ॥ रामचिरतमानस एिह नामा । सुनत वन पाइअ िब ामा ॥ मन किर िवषय अनल बन जरई । होइ सुखी जौ एिहं सर परई ॥ ४ ॥ रामचिरतमानस मिुन भावन । िबरचेउ संभु सुहावन पावन ॥ ि िबध दोष दख दािरद दावन । किल कुचािल कुिल कलुष नसावनु ॥५ ॥ रिच महेस िनज मानस राखा । पाइ सुसमउ िसवा सन भाषा ॥ तातें रामचिरतमानस बर । धरेउ नाम िहयँ हेिर हरिष हर ॥ ६ ॥ कहउँ कथा सोइ सुखद सहुाई । सादर सुनह सजुन मन लाईु ॥ ७ ॥

    दोहरा

    जस मानस जेिह िबिध भयउ जग चार जेिह हेतु । अब सोइ कहउँ सगं सब सुिमिर उमा बषृकेतु ॥ ३५ ॥

    संभु साद सुमित िहयँ हलसी । रामचिरतमानसु किब तुलसी ॥ करइ मनोहर मित अनुहारी । सजुन सुिचत सिुन लेह सुधारी ॥ु १ ॥ सुमित भूिम थल हृदय अगाधू । बेद पुरान उदिध घन साधू ॥ बरषिहं राम सुजस बर बारी । मधुर मनोहर मंगलकारी ॥ २ ॥ लीला सगुन जो कहिहं बखानी । सोइ स्वच्छता करइ मल हानी ॥ ेम भगित जो बरिन न जाई । सोइ मधरुता सुसीतलताई ॥ ३ ॥ सो जल सुकृत सािल िहत होई । राम भगत जन जीवन सोई ॥ मेधा मिह गत सो जल पावन । सिकिल वन मग चलेउ सहुावन ॥४ ॥ भरेउ सुमानस सुथल िथराना । सुखद सीत रुिच चारु िचराना ॥ ५ ॥

    दोहरा

    सिुठ संुदर संबाद बर िबरचे बुि िबचािर । तेइ एिह पावन सुभग सर घाट मनोहर चािर ॥ ३६ ॥

  • रामचिरतमानस - 24 - बालकांड

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    स बन्ध सुभग सोपाना । ग्यान नयन िनरखत मन माना ॥ रघुपित मिहमा अगुन अबाधा । बरनब सोइ बर बािर अगाधा ॥ १ ॥ राम सीय जस सिलल सुधासम । उपमा बीिच िबलास मनोरम ॥ पुरइिन सघन चारु चौपाई । जगुुित मंजु मिन सीप सुहाई ॥ २ ॥ छंद सोरठा संुदर दोहा । सोइ बहरंग कमल कुल सोहा ॥ु अरथ अनूप सुमाव सुभासा । सोइ पराग मकरंद सुबासा ॥ ३ ॥ सकृुत पुंज मंजुल अिल माला । ग्यान िबराग िबचार मराला ॥ धिुन अवरेब किबत गुन जाती । मीन मनोहर ते बहभाँती ॥ु ४ ॥ अरथ धरम कामािदक चारी । कहब ग्यान िबग्यान िबचारी ॥ नव रस जप तप जोग िबरागा । ते सब जलचर चारु तड़ागा ॥ ५ ॥ सकृुती साधु नाम गुन गाना । ते िबिच जल िबहग समाना ॥ सतंसभा चहँ िदिसु अवँराई । ा िरतु बसंत सम गाई ॥ ६ ॥ भगित िनरुपन िबिबध िबधाना । छमा दया दम लता िबताना ॥ सम जम िनयम फूल फल ग्याना । हिर पत रित रस बेद बखाना ॥७ ॥ औरउ कथा अनेक सगंा । तेइ सुक िपक बहबरन िबहंगा ॥ु ८ ॥

    दोहरा

    पुलक बािटका बाग बन सुख सुिबहंग िबहारु । माली सुमन सनेह जल सींचत लोचन चारु ॥ ३७ ॥

    जे गाविहं यह चिरत सँभारे । तेइ एिह ताल चतुर रखवारे ॥ सदा सनुिहं सादर नर नारी । तेइ सरुबर मानस अिधकारी ॥ १ ॥ अित खल जे िबषई बग कागा । एिहं सर िनकट न जािहं अभागा ॥ सबुंक भेक सेवार समाना । इहाँ न िबषय कथा रस नाना ॥ २ ॥ तेिह कारन आवत िहयँ हारे । कामी काक बलाक िबचारे ॥ आवत एिहं सर अित किठनाई । राम कृपा िबनु आइ न जाई ॥ ३ ॥ किठन कुसगं कुपंथ कराला । ितन्ह के बचन बाघ हिर ब्याला ॥ गहृ कारज नाना जंजाला । ते अित दगर्म सैल िबसाला ॥ु ४ ॥

  • रामचिरतमानस - 25 - बालकांड

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    बन बह िबषम मोह मद माना । नदीं कुतकर् भयंकर नानाु ॥ ५ ॥

    दोहरा जे ा संबल रिहत निह संतन्ह कर साथ । ितन्ह कहँ मानस अगम अितु िजन्हिह न ि य रघुनाथ ॥ ३८ ॥

    जौं किर क जाइ पुिन कोई । जातिहं नींद जुड़ाई होई ॥ जड़ता जाड़ िबषम उर लागा । गएहँ न मज्जन पाव अभागा ॥ु १ ॥ किर न जाइ सर मज्जन पाना । िफिर आवइ समेत अिभमाना ॥ जौं बहोिर कोउ पूछन आवा । सर िनंदा किर तािह बुझावा ॥ २ ॥ सकल िबघ्न ब्यापिह निहं तेही । राम सकृुपाँ िबलोकिहं जेही ॥ सोइ सादर सर मज्जनु करई । महा घोर यताप न जरई ॥ ३ ॥ ते नर यह सर तजिहं न काऊ । िजन्ह के राम चरन भल भाऊ ॥ जो नहाइ चह एिहं सर भाई । सो सतसंग करउ मन लाई ॥ ४ ॥ अस मानस मानस चख चाही । भइ किब बुि िबमल अवगाही ॥ भयउ हृदयँ आनंद उछाहू । उमगेउ ेम मोद बाह ॥ू ५ ॥ चली सुभग किबता सिरता सो । राम िबमल जस जल भिरता सो ॥ सरजू नाम सुमंगल मूला । लोक बेद मत मंजुल कूला ॥ ६ ॥ नदी पुनीत सुमानस नंिदिन । किलमल तनृ तरु मूल िनकंिदिन ॥ ७ ॥

    दोहरा

    ोता ि िबध समाज पुर ाम नगर दहँ कूल ।ु ु सतंसभा अनुपम अवध सकल सुमगंल मूल ॥ ३९ ॥

    रामभगित सुरसिरतिह जाई । िमली सुकीरित सरज ु सुहाई ॥ सानुज राम समर जसु पावन । िमलेउ महानद सोन सुहावन ॥ु १ ॥ जुग िबच भगित देवधुिन धारा । सोहित सिहत सुिबरित िबचारा ॥ ि िबध ताप ासक ितमहुानी । राम सरुप िसंधु समुहानी ॥ २ ॥

  • रामचिरतमानस - 26 - बालकांड

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    मानस मूल िमली सरुसिरही । सुनत सजुन मन पावन किरही ॥ िबच िबच कथा िबिच िबभागा । जनु सिर तीर तीर बन बागा ॥ ३ ॥ उमा महेस िबबाह बराती । ते जलचर अगिनत बहभाँती ॥ु रघुबर जनम अनंद बधाई । भवँर तरंग मनोहरताई ॥ ४ ॥

    दोहरा

    बालचिरत चह बंधु के बनज िबपुल बहरंगु ु । नपृ रानी पिरजन सुकृत मधकुर बािरिबहंग ॥ ४० ॥

    सीय स्वयंबर कथा सुहाई । सिरत सुहाविन सो छिब छाई ॥ नदी नाव पट स्न अनेका । केवट कुसल उतर सिबबेकाु ॥ १ ॥ सिुन अनुकथन परस्पर होई । पिथक समाज सोह सिर सोई ॥ घोर धार भगृुनाथ िरसानी । घाट सबु राम बर बानी ॥ २ ॥ सानुज राम िबबाह उछाह । सो सुभ उमग सुखद सब काहू ू ॥ कहत सुनत हरषिहं पुलकाहीं । ते सकृुती मन मुिदत नहाहीं ॥ ३ ॥ राम ितलक िहत मगंल साजा । परब जोग जनु जरेु समाजा ॥ काई कुमित केकई केरी । परी जासु फल िबपित घनेरी ॥ ४ ॥

    दोहरा

    समन अिमत उतपात सब भरतचिरत जपजाग । किल अघ खल अवगुन कथन ते जलमल बग काग ॥ ४१ ॥

    कीरित सिरत छहँ िरतु रूरी । समय सुहाविन पाविन भरूी ॥ू िहम िहमसैलसुता िसव ब्याह । िसिसर सुखद भु जनम उछाह ॥ू ू १ ॥ बरनब राम िबबाह समाजू । सो मुद मगंलमय िरतुराजू ॥ ीषम दसह राम बनगवनू । पंथकथा खर आतप पवनूु ॥ २ ॥ बरषा घोर िनसाचर रारी । सरुकुल सािल सुमंगलकारी ॥ राम राज सुख िबनय बड़ाई । िबसद सुखद सोइ सरद सुहाई ॥ ३ ॥

  • रामचिरतमानस - 27 - बालकांड

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    सती िसरोमिन िसय गुनगाथा । सोइ गुन अमल अनूपम पाथा ॥ भरत सुभाउ सुसीतलताई । सदा एकरस बरिन न जाई ॥ ४ ॥

    दोहरा

    अवलोकिन बोलिन िमलिन ीित परसपर हास । भायप भिल चह बंधु की जल माु धरुी सुबास ॥ ४२ ॥

    आरित िबनय दीनता मोरी । लघुता लिलत सुबािर न थोरी ॥ अदभुत सिलल सुनत गुनकारी । आस िपआस मनोमल हारी ॥ १ ॥ राम सु ेमिह पोषत पानी । हरत सकल किल कलुष गलानौ ॥ भव म सोषक तोषक तोषा । समन दिरत दख दािरद दोषा ॥ु ु २ ॥ काम कोह मद मोह नसावन । िबमल िबबेक िबराग बढ़ावन ॥ सादर मज्जन पान िकए तें । िमटिहं पाप पिरताप िहए तें ॥ ३ ॥ िजन्ह एिह बािर न मानस धोए । ते कायर किलकाल िबगोए ॥ तिृषत िनरिख रिब कर भव बारी । िफिरहिह मगृ िजिम जीव दखारी ॥ु ४॥

    दोहरा

    मित अनुहािर सुबािर गुन गिन मन अन्हवाइ । सिुमिर भवानी संकरिह कह किब कथा सुहाइ ॥ ४३(क) ॥

    अब रघुपित पद पंकरुह िहयँ धिर पाइ साद । कहउँ जुगल मुिनबजर् कर िमलन सुभग संबाद ॥ ४३(ख) ॥

    भर ाज मिुन बसिहं यागा । ितन्हिह राम पद अित अनुरागा ॥ तापस सम दम दया िनधाना । परमारथ पथ परम सुजाना ॥ १ ॥ माघ मकरगत रिब जब होई । तीरथपितिहं आव सब कोई ॥ देव दनुज िकंनर नर नेी । सादर मज्जिहं सकल ि बेनीं ॥ २ ॥ पूजिह माधव पद जलजाता । परिस अखय बट हरषिहं गाता ॥ु भर ाज आ म अित पावन । परम रम्य मुिनबर मन भावन ॥ ३ ॥

  • रामचिरतमानस - 28 - बालकांड

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    तहाँ होइ मुिन िरषय समाजा । जािहं जे मज्जन तीरथराजा ॥ मज्जिहं ात समेत उछाहा । कहिहं परसपर हिर गुन गाहा ॥ ४ ॥

    दोहरा

    िनरूपम धरम िबिध बरनिहं त व िबभाग । कहिहं भगित भगवंत कै संजुत ग्यान िबराग ॥ ४४ ॥

    एिह कार भिर माघ नहाहीं । पुिन सब िनज िनज आ म जाहीं ॥ ित संबत अित होइ अनंदा । मकर मिज्ज गवनिहं मुिनबृंदा ॥ १ ॥ एक बार भिर मकर नहाए । सब मुनीस आ मन्ह िसधाए ॥ जगबािलक मिुन परम िबबेकी । भरव्दाज राखे पद टेकी ॥ २ ॥ सादर चरन सरोज पखारे । अित पुनीत आसन बैठारे ॥ किर पूजा मुिन सुजस बखानी । बोले अित पुनीत मदृ बानी ॥ु ३ ॥ नाथ एक संसउ बड़ मोरें । करगत बेदतत्व सबु तोरें ॥ कहत सो मोिह लागत भय लाजा । जौ न कहउँ बड़ होइ अकाजा ॥ ४ ॥

    दोहरा

    सतं कहिह अिस नीित भु िुत पुरान मिुन गाव । होइ न िबमल िबबेक उर गुर सन िकएँ दराव ॥ ु ४५ ॥

    अस िबचािर गटउँ िनज मोह । हरह नाथ किर जन पर छोहू ु ू ॥ रास नाम कर अिमत भावा । सतं पुरान उपिनषद गावा ॥ १ ॥ सतंत जपत संभु अिबनासी । िसव भगवान ग्यान गुन रासी ॥ आकर चािर जीव जग अहहीं । कासीं मरत परम पद लहहीं ॥ २ ॥ सोिप राम मिहमा मुिनराया । िसव उपदेसु करत किर दाया ॥ राम ुकवन भु पूछउँ तोही । किहअ बुझाइ कृपािनिध मोही ॥ ३ ॥ एक राम अवधेस कुमारा । ितन्ह कर चिरत िबिदत संसारा ॥ नािर िबरहँ दखु लहेउ अपारा । भयह रोषु रन रावनु मारा ॥ु ु ४ ॥

    दोहरा

  • रामचिरतमानस - 29 - बालकांड

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    भु सोइ राम िक अपर कोउ जािह जपत ि पुरािर । सत्यधाम सबर्ग्य तुम्ह कहहु िबबेकु िबचािर ॥ ४६ ॥

    जैसे िमटै मोर म भारी । कहह सो कथा नाथ िबस्तारीु ॥ जागबिलक बोले मुसुकाई । तुम्हिह िबिदत रघुपित भुताई ॥ १ ॥ राममगत तुम्ह मन म बानी । चतुराई तुम्हारी मैं जानी ॥ चाहह सुनै राम गुन गूढ़ा । कीिन्हहु ु स्न मनहँ अित मूढ़ा ॥ु २ ॥ तात सुनह सादर मनु लाई । कहउँ राम कै कथा सुहाईु ॥ महामोह मिहषेसु िबसाला । रामकथा कािलका कराला ॥ु ३ ॥ रामकथा सिस िकरन समाना । संत चकोर करिहं जेिह पाना ॥ ऐसेइ संसय कीन्ह भवानी । महादेव तब कहा बखानी ॥ ४ ॥

    दोहरा

    कहउँ सो मित अनुहािर अब उमा संभु संबाद । भयउ समय जेिह हेतु जेिह सनुु मिुन िमिटिह िबषाद ॥ ४७ ॥

    एक बार ेता जगु माहीं । संभु गए कंुभज िरिष पाहीं ॥ सगं सती जगजनिन भवानी । पूजे िरिष अिखलेस्वर जानी ॥ १ ॥ रामकथा मुनीबजर् बखानी । सुनी महेस परम सुखु मानी ॥ िरिष पूछी हिरभगित सुहाई । कही संभु अिधकारी पाई ॥ २ ॥ कहत सुनत रघुपित गुन गाथा । कछ िदन तहाँ रहे िगिरनाथा ॥ु मिुन सन िबदा मािग ि पुरारी । चले भवन सँग दच्छकुमारी ॥ ३ ॥ तेिह अवसर भजंन मिहभारा । हिर रघुबंस लीन्ह अवतारा ॥ िपता बचन तिज राजु उदासी । दंडक बन िबचरत अिबनासी ॥ ४ ॥

    दोहरा

    ह्दयँ िबचारत जात हर केिह िबिध दरसनु होइ । गु रुप अवतरेउ भु गएँ जान सबु कोइ ॥ ४८(क) ॥

    सोरठा

  • रामचिरतमानस - 30 - बालकांड

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    सकंर उर अित छोभु सती न जानिहं मरमु सोइ ॥ तुलसी दरसन लोभु मन डरु लोचन लालची ॥ ४८(ख) ॥

    रावन मरन मनुज कर जाचा । भु िबिध बचनु कीन्ह चह साचा ॥ जौं निहं जाउँ रहइ पिछतावा । करत िबचारु न बनत बनावा ॥ १ ॥ एिह िबिध भए सोचबस ईसा । तेिह समय जाइ दससीसा ॥ लीन्ह नीच मारीचिह सगंा । भयउ तुरत सोइ कपट कुरंगा ॥ २ ॥ किर छलु मूढ़ हरी बैदेही । भु भाउ तस िबिदत न तेही ॥ मगृ बिध बन्धु सिहत हिर आए । आ म ुदेिख नयन जल छाए ॥ ३ ॥ िबरह िबकल नर इव रघुराई । खोजत िबिपन िफरत दोउ भाई ॥ कबहँ जोग िबयोग न जाकें । देखाू गट िबरह दख ताकें ॥ु ४ ॥

    दोहरा

    अित िविच रघुपित चिरत जानिहं परम सुजान । जे मितमदं िबमोह बस हृदयँ धरिहं कछ आन ॥ ु ४९ ॥

    संभु समय तेिह रामिह देखा । उपजा िहयँ अित हरपु िबसेषा ॥ भिर लोचन छिबिसंध ुिनहारी । कुसमय जा