तुम्हारेजीिन मेंचार चााँद न ......सव र ण...

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1 वियाथिय ि अभििािक के भिए पािन संदेश हारे जीिन म चार चाद न िग तो मेरी जजमेदारी ! डॉ. जे. मागन और द सरे डॉटर लो कहते ह क हहद तान का कार मं बडा सफल है। ʹणववादʹ ंथ म कार मं से सबंधित 22 हजार लोक का समावेश है। आपको म कार का जप करने की रीतत बताता ह । आपको पापनाशशनी ऊजाग शमलेी, आपके दय म भवान का रस आयेा। बचे-बचय के परीा म अछे अंक आये, यादशत बढेी। उह भवान भी ेम करे और लो भी ेम करे। कार मं जपते समय पहले ता करनी होती है ʹकार मं, ायी छंद, भवान नारायण ऋषि, अंतयागमी परमामा देवता, अंतयागमी ीयथे, परमामातत अथे जपे षवतनयो।ʹ कान म उशलया डालकर लबा वास लो। जतना यादा वास लोे उतने फे फड के बंद तछ ख ले, रोततकारक शत बढेी। कफर वास रोककर कं ठ म भवान के पषव, सवगकयाणकारी ʹʹ का जप करो। मन म ʹमेरे, म भ काʹ बोलो, कफर म ह बद रख के

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विदयारथियो ि अभििािको क भिए पािन सदश

तमहार जीिन म चार चााद न िग तो मरी जजममदारी !

डॉ. ज. मारगन और दसर डॉकटर लोर कहत ह कक हहनदसतान का ૐकार मतर बडा सफल ह। ʹपरणववादʹ गरथ म ૐकार मतर स समबधित 22 हजार शलोको का समावश ह। आपको म ૐकार का जप करन की रीतत बताता ह। आपको पापनाशशनी ऊजाग शमलरी, आपक हदय म भरवान का रस आयरा। बचच-बचचचयो क परीकषा म अचछ अक आयर, यादशचकत बढरी। उनह भरवान भी परम करर और लोर भी परम करर।

ૐकार मतर जपत समय पहल परतता करनी होती हः ʹૐकार मतर, रायतरी छदः, भरवान नारायण ऋषि, अतयागमी परमातमा दवता, अतयागमी परीतयथ, परमातमपराचतत अथ जप षवतनयोरः।ʹ

कानो म उरशलया डालकर लमबा शवास लो। चजतना जयादा शवास लोर उतन फफडो क बद तछदर खलर, रोरपरततकारक शचकत बढरी। कफर शवास रोककर कठ म भरवान क पषवतर, सवगकलयाणकारी ʹૐʹ का जप करो। मन म ʹपरभ मर, म परभ काʹ बोलो, कफर मह बनद रख क

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कठ स ʹૐ....ૐ....ૐ.....ૐ....ૐ.....ૐ.....ૐ.....ૐ....ૐ....ૐ...ૐ....ओઽઽઽम.....ʹ का उचचारण करत हए शवास छोडो। इस परकार दस बार करो। कफर कानो स उरशलया तनकाल दो।

इतना करन क बाद बठ रय। होठो स जपो - ʹૐૐ परभजी ૐ, आनद दवा ૐ, अतयागमी ૐ....ʹ दो शमनट करना ह। कफर हदय स जपो - ʹૐशातत....ૐआनद...ૐૐ.... म परभ का, परभ मर....ʹ आनद आयरा, रस आयरा। जब ૐकार मतर क जप का परयोर करो तो रौ-चदन या ररल िप कर सको तो ठीक ह नही तो ऐस ही करो। षवदयत का कचालक कमबल, कारपट आहद का आसन होना चाहहए। यह परयोर करो, तमहार जीवन म चार चाद यहद न लर तो मरी चजममदारी !

(हटतपणीः इस परयोर की षवडडयो चकलप http://www.bsk.ashram.org/dppgp/cp.aspx पर दख।

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

पराथिना यह शरीर मददर ह परि का....

यह शरीर महदर ह परभ का, कण-कण म भरवान। दवी समपदा भरत जाय, भारत दश महान।। यह शरीर महदर ह....

भद नही ह अपना पराया, ईशवर की सतान। रर सदश सनात जाय, भारत दश महान।। यह शरीर महदर ह....

होता ह तनदोि बाल मन, रर दत ह ानाजन। सससकार य लत जाय, भारत दश महान।। यह शरीर महदर ह.....

रीता ह आिार यहा का, रर का आतमान। यही ान सजोत जाय, भारत दश महान।। यह शरीर महदर ह....

माटी ह भारत की पावन, दव ह हर इनसान। ानामत यहा पीत जाय, भारत दश महान।। यह शरीर महदर ह....

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

महहला उतथान टरसट

सत शरीआशारामजी आशरम, साबरमती, अहमदाबाद-5

email: [email protected] website: http://www.ashram.org

दरभािः 079.39877749.50.51.88 27505010.11

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ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

अणकरमणणका तमहार जीवन म चार चाद न लर तो मरी चजममदारी ! .............................................................. 1

पराथगना .................................................................................................................................... 2

यह शरीर महदर ह परभ का.... ............................................................................................... 2

वीर ! तम बढ चलो.... ............................................................................................................. 4

सदर समाज क तनमागण का आहवान .......................................................................................... 9

मात-षपत पजन हदवस (14 फरवरी) ....................................................................................... 9

14 फरवरी ʹवलनटाइन ड नही मात-षपत पजन हदवस ........................................................... 10

बरहमचयग ही जीवन ह ............................................................................................................. 10

जीवन को महान बनाना ह तो.... ............................................................................................ 11

सतरी-जातत क परतत मातभाव परबल करो ..................................................................................... 15

सवामी रामतीथग का अनभव ..................................................................................................... 18

उतसाह जहा, सफलता वहा ...................................................................................................... 19

मन को सवसथ व बलवान बनान क शलए ................................................................................. 20

जार मसाकफर जार ! ............................................................................................................ 21

कया आपको पता ह ? ............................................................................................................ 23

ʹम मीठी वाणी बोल।ʹ ............................................................................................................ 24

भरवतपाद साई शरी लीलाशाहजी की शमठाई ............................................................................... 25

रर बबन भव तनधि तरहह न कोई। .......................................................................................... 26

शरदधापवागः सवगिमाग.... .............................................................................................................. 27

दबर बाप ............................................................................................................................. 28

मतरदाता पजनीय ह ................................................................................................................ 30

मतरदीकषा कयो ? ..................................................................................................................... 31

मतरदीकषा स हदवय लाभ .......................................................................................................... 31

अनभव परकाश ....................................................................................................................... 32

ररविाग दवारा बरसी ररकपा ............................................................................................... 32

बडदादा की कपा स बलड क सर रायब ................................................................................. 33

शरीआशारामायण क पाठ स जीवनदान .................................................................................. 33

नाम परताप स सनामी स सरकषा .......................................................................................... 33

मझको जो शमला ह वो तर दर स शमला ह... ........................................................................ 33

दीकषा स बदलती ह जीवन हदशा .......................................................................................... 34

जो यहा शमला वह कही नही ............................................................................................... 34

सारसवतय मतर क अदभत पररणाम ...................................................................................... 34

अपना ईशवरीय वभव जरान का पवग ररपणणगमा ........................................................................ 35

4

सत शमलन को जाइय ............................................................................................................ 35

सतो का षवलकषण ऐशवयग ........................................................................................................ 36

षवदयाथी जीवन को महान बनान क आठ हदवय सतर ................................................................. 37

मोबाइल बजा रहा ह खतर की घटी ......................................................................................... 38

दःखद तनमतरण ...................................................................................................................... 39

एकादशी वरत माहातमय ........................................................................................................... 40

सवासय की अनपम कचजया ................................................................................................... 41

शरीर की जषवक घडी पर आिाररत हदनचयाग ............................................................................. 42

पररपरशनन ............................................................................................................................. 44

बोलता मसकराता कमगयोर ...................................................................................................... 45

सवाकायो की झलक ............................................................................................................... 45

जीवनशचकत का षवकास कस हो ?........................................................................................... 46

योरामत ............................................................................................................................... 47

रोमखासन ........................................................................................................................ 47

मयरासन .......................................................................................................................... 48

पादारषठासन ..................................................................................................................... 48

रोरकषासन ......................................................................................................................... 49

ररडासन .......................................................................................................................... 50

कालभरवासन .................................................................................................................... 50

बषदधशचकतयौधरक परयोरः ..................................................................................................... 51

मिाशचकत यौधरक परयोर.................................................................................................... 51

उननतत की उडानः ʹकभकʹ .................................................................................................. 51

अचशवनी मदरा-अशवशचकत (हासग पावर)................................................................................... 52

ानमदरा-एकागरता(Concentration) ..................................................................................... 52

अपानवाय मदरा .................................................................................................................. 53

अपान मदरा ....................................................................................................................... 53

हदवय पररणा परकाश ान परततयोधरता क परशनपतर का परारप ........................................................ 53

िीर ! तम बढ चिो.... मजककि ददि क इराद आजमाती ह।

सिपन क परद ननगाहो स हटाती ह।।

हौसिा मत हार रगरकर ओ मसाफिर !

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ठोकर इनसान को चिना भसखाती ह।।

लाल बहादर शासतरी एक ररीब षविवा माता क सपतर थ। ररीबी क कारण उनकी मा न उनह पढन क शलए अपन एक दर क ररशतदार क यहा भज हदया। लालबहादर स व लोर जठ बतगन मजवात, कपड िलवात ततस पर राशलया अलर स शमलती। लालबहादर वासतव म बहादर तनकल। शशला सम हदय बनाकर उनहोन अनक बार अपमान ततरसकार सहा पर डट रह और पढ शलख क एक हदन भारत क परिानमतरी पद तक पहच। उनकी ईमानदारी और कततगवयतनषठा को आज भी याद ककया जाता ह।

ईशवरचनदर क सामन बडी चनौतीपणग पररचसथतत थी। हदन भर तो व कालज म पढत-पढात, वहा स आकर चार लोरो क शलए भोजन तयार करत, सबको भोजन कराकर बतगन माजत और रात क दो बज तक पढत। अपन इस कहठन पररशरम स व वयाकरण, साहहतय, समतत, अलकार आहद म पाररत हो रय और िीर-िीर ʹषवदयासाररʹ क रप म उनकी खयातत सवगतर फल रयी। आज भी उनह उनकी उदारता व समाज सवा क शलए याद ककया जाता ह।

ऐस ही सवामी रामतीथगजी भी षवदयाथी-अवसथा म बडी अभावगरसत दशा म रह। कभी तल न होता तो तो सडक क ककनार क लमप क नीच बठकर पढ लत। कभी िन क अभाव म एक वकत ही भोजन कर पात। कफर भी दढ सकलप और तनरनतर परिाथग स उनहोन लौककक षवदया ही नही पायी अषपत आतमषवदया म भी आर बढ और मानवीय षवकास की चरम अवसथा आतमसाकषातकार को उपलबि हए। अमररका का परशसडट रजवलट उनक दशगन और सतसर स िनय-िनय हो जाता था। कहा तो एक ररीब षवदयाथी और कहा ૐकार क जप व परभपराचतत क दढ तनशचय स महान सत हो रय !

ह षवदयाथी ! परिाथी बनो, सयमी बनो, उतसाही बनो। लौककक षवदया तो पाओ ही पर उस षवदया को भी पा लो, जो मानव को जीत-जी मतय क पार पहचा दती ह। उस भी जानो चजसको जानन स सब जाना जाता ह, इसी म तो मानव-जीवन की साथगकता ह। ह वीर ! तम बढ चलो....

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

बढ चिो, बढ चिो.... बढ चलो... बढ चलो.... बढ चलो। - 2

न हाथ एक शसतर हो, न साथ एक असतर हो। न अनन नीर वसतर हो, हटो नही डटो वही।। बढ चलो....

रह समझ हहम शशखर, तमहारा पर उठ तनखर। भल ही जाय तन बबखर, रको नही झको नही।। बढ चलो......

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घटा तघरी अटट हो, अिमग कालकट हो। वही अमत घट हो, चजय चलो कर चलो।। बढ चलो.....

जमी उरलती आर हो, तछडा मरण का रार हो। लह का अपन फार हो, अडो वही रडो वही।। बढ चलो....

चलो नयी शमसाल हो, जलो तमही मशाल हो। बढो नया कमाल हो, रको नही झको नही।। बढ चलो....

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ अनकरमणणका

सदढ राषटर का ननमािण

बरहमननषटठ सत शरी आशारामजी बाप की दहतिरी िाणी हमार दश का भषवषय हमारी यवा पीढी पर तनभगर ह ककनत उधचत मारगदशगन क अभाव म

वह आज रमराह हो रही ह। बबरतानी औपतनवशशक ससकतत की दन वतगमान शशकषा-परणाली म जीवन क नततक मलयो क परतत उदासीनता बरती रयी ह। फलतः आज क षवदयाथी का जीवन कौमायागवसथा स ही षवलासी और असयमी हो जाता ह। पाशचातय आचार-वयवहार क अिानकरण स यवानो म जो फशनपरसती, अशदध आहार-षवहार क सवन की परवचतत, कसर, अभदरता, चलधचतर-परम आहद बढ रह ह, इसस हदनोहद उनका पतन होता जा रहा ह। व तनबगल और कामी बनत जा रह ह। उनकी इस अवदशा को दखकर ऐसा लरता ह कक व सयमी जीवन की, बरहमचयग की महहमा स सवगथा अनशभ ह। लाखो नही, करोडो-करोडो छातर-छातराए अानतावश अपन तन मन क मल ऊजाग-सरोत का वयथग म कषय कर परा जीवन दीनता-हीनता-दबगलता म तबाह कर दत ह और सामाचजक अपयश क भय स मन-ही-मन कषट झलत रहत ह। इसस उनका शारीररक-मानशसक सवासय चौपट हो जाता ह और सामानय शारीररक-मानशसक षवकास भी नही हो पाता। इसका मल कारण कया ह ? दवयगसन तथा अनततक, अपराकततक एव अमयागहदत मथन दवारा वीयग की कषतत ! इसस रोरपरततकारक शचकत घटती ह, जीवनशचकत का हरास होता ह।

बरहमचयग क दवारा ही हमारी यवा पीढी अपन वयचकततव का सतशलत एव शरषठतर षवकास कर सकती ह। बरहमचयग क पालन स बषदध कशागर बनती ह, रोरपरततकारक शचकत बढती ह तथा महान-स-महान लकषय तनिागररत करन एव उस समपाहदत करन का उतसाह उभरता ह, सकलप म दढता आती ह, मनोबल पषट होता ह। आधयाचतमक षवकास का मल भी बरहमचयग ही ह। भारत का सवाारीण षवकास सचचररतर एव सयमी यवािन पर ही आिाररत ह। इसकी अवहलना करना हमार दश व समाज क हहत म नही ह। यौवन की सरकषा स ही सदढ राषटर का तनमागण हो सकता ह।

अनकरमणणका विदयाथी-जीिन का आधार

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सयम-बरहमचयि बरहमचयग षवदयाथी जीवन का आिार ह। काम, करोि, लोभ आहद आतररक शतरओ स यदध

करन क ल यह आवशयक रकषा-कवच ह। बरहमचयग का पालन न करन वाल, असयशमत जीवन जीन वाल षवदयाथी करोि, ईषयाग,

आलसय, भय, तनाव आहद का शशकार बन जात ह। ʹद हररटज सटर फॉर डाटा एनाशलशससʹ की एक ररपोटग क अनसार सतत अवसाद (डडपरशन) स पीडडत व आतमहतया करन वाली लडककयो म सयमी लडककयो की अपकषा यौन-सबि करन वाली लडककयो की सखया तीन रनी स अधिक ह। सतत अवसाद स पीडडत लडको म सयमी लडको की अपकषा यौन-वयवहार करन वाल लडको की सखया दरन स अधिक ह और आतमहतया का परयास करन वाल लडको म सयमी लडको की अपकषा यौन-वयवहार करन वाल लडको की सखया आठ रना अधिक ह। इस कारण अमररका क सरकार न 33 परततशत सकलो म यौन शशकषा क अतरगत कवल सयम की शशकषा दन क शलए दस विो म नौ अरब डॉलर खचग ककय।

भारत क ऋषियो न तो पराचीनकाल म ही अपन सदगरथो म बरहमचयग की भरर-भरर परशसा कर रखी ह। आितनक भोरवादी सभयता यवक-यवततयो को मानशसक व शारीररक रप स बबलकल अशकत कर रही ह। जरा-जरा सी बात पर मानशसक सतलन खो दना और आतमहतया जसा कदम उठान की बढ रही वचतत इसी का दषपररणाम ह। शसनमा व टीवी चनलो दवारा हदखाय जा रह अशलील व हहसातमक दशय षवदयाधथगयो क शलए बड घातक शसदध हो रह ह।

अतः षवदयाथी वहदक ससकतत स सयकत ान का, सयम-शशकषा का महततव समझ और अपन म छपी हई हदवय योगयताओ का षवकास हो सक ऐस सससकारो स अपन जीवन को सवार।

अनकरमणणका

आप म और पशओ म कया अनतर ह ?

बरहमचयग सभी अवसथाओ म षवदयाथी, रहसथी, साि-सनयासी, सभी क शलए अतयत आवशयक ह।

जब सवामी षववकानद जी षवदश म थ, तब बरहमचयग की चचाग तछडन पर उनहोन कहाः "कछ हदन पहल एक भारतीय यवक मझस शमलन आया था। वह करीब दो विग स अमररका म ही रहता ह। वह यवक सयम का पालन बडी दढतापवगक करता ह। एक बार वह बीमार हो रया तो उसन डॉकटर को बताया। तम जानत हो कक डॉकटर न उस यवक को कया सलाह दी ? कहाः ʹबरहमचयग परकतत क तनयम क षवरदध ह। अतः बरहमचयग का पालन करना सवासय क शलए हहतकर नही ह।ʹ

उस यवक को बचपन स ही बरहमचयग-पालन क ससकार शमल थ। डॉकटर की ऐसी सलाह स वह उलझन म पड रया। उसन मझ सारी बात बतायी। मन उस समझायाः "तम चजस दश क

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वासी हो वह भारत आज भी अधयातम क कषतर म षवशवरर क पद पर आसीन ह। अपन दश क ऋषि मतनयो क उपदश पर तमह जयादा षवशवास ह कक बरहमचयग को जरा भी न समझन वाल पाशचातय जरत क असयमी डॉकटर पर ? बरहमचयग को परकतत क तनयम षवरदध कहन वालो को ʹबरहमचयग शबद क अथग का भी पता नही ह। बरहमचयग क षविय म ऐस रलत खयाल रखन वालो स एक ही परशन ह कक आपम और पशओ म कया अनतर ह ?"

सदाचारी एव सयमी वयचकत ही जीवन क परतयक कषतर म सफलता परातत कर सकता ह। चाह बडा वातनक हो या दाशगतनक, षवदवान हो या बडा उपदशक, सभी को सयम की जररत ह। सवसथ रहना हो तब भी बरहमचयग की जररत ह, सखी रहना हो तब भी बरहमचयग की जररत ह और सममातनत रहना हो तब भी बरहमचयग की जररत ह। ह भारत क यवक व यवततयो ! यहद जीवन म सयम, सदाचार को अपना लो तो तम भी महान-स-महान कायग करन म सफल हो सकत हो।

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

ददवय पररणा परकाश जञान परनतयोरगता क परकनपतर क परारप क उततर

1-2, 2-3, 3-4, 4-2, 5-4, 6-3, 7-4, 8-1, 9-2, 10-2, 11-3, 12-1, 13-1, 14-1, 15-3

यिक यिनतयो ! सािधान..... आजकल क यवक-यवततयो क साथ बडा अनयाय हो रहा ह। उन पर चारो ओर स षवकारो

को भडकान वाल आकरमण हो रह ह। एक तो वस ही अपनी पाशवी वचततया यौन उचरखलता की ओर परोतसाहहत करती ह और दसरा, सामाचजक पररचसथततया भी उसी ओर का आकिगण बढाती ह। इस पर उन परवचततयो को वातनक समथगन शमलन लर और सयम को हातनकारक बताया जान लर... कछ तथाकधथत आचायग भी फरायड जस नाचसतक व अिर मनोवातनक क वयशभचारशासतर को आिार बनाकर ʹसमभोर स समाधिʹ का उपदश दन लर, तब तो ईशवर ही बरहमचयग क रकषक ह।

16 शसतमबर 1977 क ʹनययाकग टाइमसʹ म छपा थाः ʹअमररकन पनल कहती ह कक अमरीका म दो करोड स अधिक लोरो को मानशसक धचककतसा की आवशयकता ह।ʹ इन पररणामो को दखत हए अमररका क एक महान लखक समपादक व शशकषा षवशारद माहटगन गरोस अपनी ʹThe

Psychological Societyʹ पसतक म शलखत ह- ʹहम चजतना समझत ह उसस कही जयादा फरायड क मानशसक रोरो न हमार मानस व समाज म रहरा परवश पा शलया ह। अब हम फरायड की छाया म बबलकल नही रहना चाहहए।ʹ

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फरायड सवय सपाचसटक कोलोन, सदा रहन वाला मानशसक अवसाद, सनायषवक रोर, सजातीय सबि, षवकत सवभाव, माइगरन, कबज, मतय व िननाश का भय, घणा और खनी षवचारो क दौर आहद रोरो स पीडडत था। सवय क जीवन म सयम का नाश कर दसरो को भी घणणत सीख दन वाला फरायड इतना रोरी और अशात होकर मरा। कया आप भी ऐसा बनना चाहत ह ? आतमहतया क शशकार बनना चाहत ह ? उसक मनोषवान न षवदशी यवक-यवततयो को रोरी बनाकर उनक जीवन का सतयानाश कर हदया।

ʹसमभोर स समाधिʹ का परचार फरायड की रगण मनोदशा का ही परचार ह। परो. एडलर और परो. सी.जी. जर जस मिगनय मनोवातनको न फरायड क शसदधानतो का खडन कर हदया ह, कफर भी यह खद की बात ह कक भारत म अभी भी की मानशसक रोर षवशि और सकसोलॉचजसट फरायड जस पारल वयचकत क शसदधानतो का आिार लकर इस दश क यवक यवततयो को अनततक और अपराकततक मथन का, समभोर का सदश व इसका समथगन समाचार-पतरो और पबतरकाओ क दवारा दत रहत ह। अब व इस दश क लोरो को चररतरभरषट और रमराह करना छोड द, ऐसी हमारी नमर पराथगना ह। ʹहदवय पररणा परकाशʹ पसतक पाच बार पढ-पढाय, इसी म सबका कलयाण ह।

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

सदर समाज क ननमािण का आहिान

मात-वपत पजन ददिस (14 िरिरी) भारतीय ससकतत क हदवय ससकारो एव उसक महापरिो क हदवय ान को अपना क दश-

षवदश क लोर आनद व शातत का अनभव कर रह ह। लककन यह घोर षवडमबना ह कक अपन ही दश म ककशोर एव यवा वरग ऐस आतमारामी महापरिो क साचननधय और भारतीय ससकतत क हदवय जीवन को छोडकर पाशचातय कलचर क अिानकरण स अशात तथा दराचार और एडस का शशकार हो रहा ह। भारतीय ससकतत पर हो रह कठाराघात स वयधथत होकर लोकहहतकारी महापरि पजय सत शरी आशारामजी बाप न इस बराई को मोडकर समाज को सही हदशा दत हए एक अचछाई का सजगन करन का सकलप शलया हः "वलनटाइन ड की रदरी हमार दश म न फल इसशलए मन ʹवलटाइन ड मनान क बदल ʹमात-षपत पजन हदवसʹ मनान का आहवान ककया ह।"

विकभसत दशो म फकशोररयो की दशा,

ििनटाइन ड का दषटपरिाि

कल रभगवती ककशोररया (उमर 13 स 19) – 12,50,000 परततविग।

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रभगपात करान वाली ककशोररया – 5,00,000

क वारी माता बनकर नशसार होम, सरकार व मा-बाप क शलए बोझा बनन वाली अथवा वशयावचतत िारण करन वाली ककशोररया – 7 लाख कछ हजार

(ʹइननोसनटी ररपोटि काडि ) क अनसार

अनकरमणणका

14 िरिरी ʹििनटाइन ड नही मात-वपत पजन ददिस

ʹमात-वपत पजन ददिसʹ पिि क परितिक पजय सत शरी आशारामजी बाप का पािन सदश

षवशव चाहता ह, सभी चाहत ह – सवसथ, सखी, सममातनत जीवन। बषदध म भरवान का परकाश हो, मन म परभ का परम, मानवता का परम हो, इचनदरयो म सयम हो, बस हो रया ! आपका जीवन िनभारी हो जायरा।

ʹवलनटाइन ड मनान वालो की ददगशा स हमारा हदय वयधथत होता ह, लाखो का हदय वयधथत होता ह। तो दर-सवर यह रदी परमपरा हमार भारत स जाय..... 14 फरवरी क हदन रणशजी की समतत करो और ʹमात-षपत पजन हदवसʹ मनाओ। आपका तीसरा नतर खल जाय, सझबझ खल जाय। बचच अपन माता-षपता का पजन कर, ततलक कर, परदकषकषणा कर और मा-बाप बचचो को ततलक कर और हदय स लराय। वस भी मा-बाप का हदय तो उदार होता ह, व ऐस ही कपा बरसात रहत ह ! लककन जब बचचा कहता ह न, "मा ! तम मरी हो न ?" तो मा की खशी का हठकाना नही रहताः "षपता जी ! तम मर हो न ?" तो षपताजी का हदय दरषवत हो जाता ह। अरर ʹमात-वपतदिो ििʹ करक नमसकार कररा तो मा-बाप की आतमा भी तो बचचो पर रसिार, करणा-कपा बरसायरी एव मर भारत की कनयाए और मर भारत क यवक महान बनर।

हम तो चाहत ह कक ईसाइयो का भी मरल हो, मसलमानो का भी मरल हो, मानवता का मरल हो। यवक-यवती एक दसर को फल द क जो परम-हदवस मनात ह, उसम तो षवनाश ह और माता-षपता का पजन करन म अनतरातमा की परसननता, सयम, सदरण क फल णखलान का अवसर ह। िनय ह व बचच जो मात-षपत पजन करक सदरणो क फल णखलात ह ! िनय ह व मा-बाप जो हदवय पररणा की तरफ बचचो को ल जात ह।

अनकरमणणका

बरहमचयि ही जीिन ह

बरहमचयग क बबना जरत म, नही ककसी न यश पाया।।टक।। बरहमचयग स परशराम न, इककीस बार िनणी जीती। बरहमचयग स वालमीकक न, रच दी रामायण नीकी।।

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बरहमचयग क बबना जरत म, ककसन जीवन रस पाया ?... बरहमचयग स रामचनदर न, सारर-पल बनवाया था। बरहमचयग स लकषमण जी न, मघनाद को मारा था।

बरहमचयग क बबना जरत म, सब को ही परवश पाया।.... बरहमचयग स महावीर न, सारी लका जलायी थी। बरहमचयग स अरदजी न, अपनी पज जमायी थी।।

बरहमचयग क बबना जरत म, सबन ही अपयश पाया।..... बरहमचयग स आलहा-उदल न, बावन ककल धरराय थ। प वीराज हदललीशवर को भी, रण म मार भराय थ।।

बरहमचयग क बबना जरत म, कवल षवि-ही-षवि पाया।.... बरहमचयग स भीषम-षपतामह, शरशया पर सोय थ। बरहमचारी शशवा वीर स, यवनो क दल रोय थ।।

बरहमचयग क रस क भीतर, हमन तो िडरस पाया।।... बरहमचयग स राममतत ग न, छाती पर पतथर तोडा। लोह की जजीर तोड दी, रोका मोटर का जोडा।।

बरहमचयग ह सरस जरत म, बाकी को ककग श पाया।.... ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

अनकरमणणका

जीिन को महान बनाना ह तो.... भारतीय मनोवातनक महषिग पतजशल क शसदधानतो पर चलन वाल हजारो योरशसदध महापरि

इस दश म हए ह, अभी भी ह और आर भी होत रहर। बापजी न सवय ऐस अदशय होन वाल कई शसषदधयो क िनी योधरयो स भट की हई ह। जस-बापजी क शमतर सत नारायण बाप, चजनक आशीवागद ल क राषटरपतत ानी जल शसह िनय हए, आनदमयी मा, चजनक चरणो म जा क इहदरा रािी िनय होती थी, ऐस ही हहमालय म विो की समाधि स समपनन लमबी आयवाल महापरि शमल ह, शमलत ह।

महषिग योरानद, सवामी शरी लीलाशाहजी महाराज और पजय बापजी भी ऐस कई महापरिो स शमल ह। योरी चारदव और ानशवर महाराज तो लोकपरशसदध ह ही। महषिग पतजशल क शसदधानतो पर चलकर ऊ चाई को परातत हए और भी कई महापरि तथा राजा अशवपतत, राजा जनक और समथग रामदासजी, शशवाजी जस परशसदध और कई अपरशसदध अनको उदाहरण इततहास म दखन को शमलत ह। जबकक समभोर क मारग पर चलकर कोई योरशसदध महापरि हआ हो ऐसा हमन तो

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नही सना, बचलक दबगल हए, रोरी हए, एडस क शशकार हए, अकाल मतय क शशकार हए, णखननमना हए, अशात हए, पारल हए, ऐस कई नमन हमन दख ह।

"ह षवदयाथी ! अपन जीवन म सयम का पाठ याद रख। महान बनन की यही शतग ह। सयम और सदाचार। हजार बार असफल होन पर भी कफर स परिाथग कर, अवशय सफलता शमलरी। हहममत न हार। छोटा-छोटा तनयम, छोटा-छोटा सयम का वरत जीवन म लात हए आर बढ और महान हो जा।" पजय बाप जी।

आज समाज म ककतन ही ऐस अभार लोर ह जो शररार रस की पसतक पढकर, शसनमाओ क कपरभाव क शशकार हो क, अशलील वबसाइट दखकर सवतनावसथा या जागरतावसथा म अथवा तो हसतमथन दवारा माह म अनक बार वीयगनाश करत ह। शरीर और मन को ऐसी आदत डालन स वीयागशय बार-बार खाली होता रहता ह। उसको भरन म ही शारीररक शचकत का अधिकतर भार वयय होन लरता ह, चजसस शरीर को काततमान बनान वाला ओज सधचत ही नही हो पाता और वयचकत शचकतहीन, ओजहीन, उतसाहशनय बन जाता ह। ऐस वयचकत का वीयग पतला होता ह। यहद वह समय पर अपन को सभाल नही सका तो शीघर ही वह चसथतत आती ह कक उसक अणडकोि वीयग बनान म असमथग हो जात ह। कफर भी यहद थोडा-बहत वीयग बनता ह तो वह पानी जसा ही बनता ह, चजसम सतानोतपचतत की ताकत नही होती। ऐस वयचकत की हालत मतक परि जसी हो जाती ह। कई परकार क रोर उस घर लत ह। वह वयचकत जीत जी नरक का दःख भोरता रहता ह। शासतरकारो न शलखा हः

आयसतजो बि िीय परजञा शरीकच महद यशः। पणय च परीनतमति च हनयतઽबरहमचयिया।।

ʹआय, तज, बल, वीयग, बषदध, लकषमी, यश, पणय और परीतत – य सब बरहमचयग का पालन न करन स नषट हो जात ह। इसीशलए वीयगरकषा सततय ह।ʹ

ʹअथवगवदʹ (16.1.1,4) म कहा रया हः अनतसषटटो अपा िषिोઽनतसषटटा अगनयो ददवयाः। इद तमनत सजाभम त माઽभयिननकषि। ʹशरीर म वयातत वीयगरपी जल को बाहर ल जान वाल, शरीर स अलर कर दन वाल काम

को मन पर हटा हदया ह। अब म इस काम को अपन स सवगथा दर फ कता ह। म इस बल, बषदध, आरोगयतानाशक काम का कभी शशकार नही होऊ रा।ʹ .....और इस परकार क सकलप स अपना जीवन-तनमागण न करक जो वयचकत वीयगनाश करता रहता ह, उसकी कया रतत होती ह, इसका भी वदो म उललख आता हः

रजन परररजन मणन परमणन।। मरोको मनोहा खनो ननदािह आतमदवषसतनदवषः।। ʹयह काम रोरी बनान वाला ह, बहत बरी तरह रोरी करन वाला ह। मणन यानी मार दन

वाला ह। परमणन यानी बहत बरी तरह मारन वाला ह। यह टढी चाल चलाता ह, मानशसक शचकतयो

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को नषट कर दता ह। शरीर म स सवासय, बल, आरोगयता आहद को नोच-नोच क बाहर फ क दता ह। शरीर की सब िातओ को जला दता ह। जीवातमा को मशलन कर दता ह। शरीर क वात, षपतत, कफ को दषित करक उस तजोहीन बना दता ह।ʹ (अथवगवदः 16.1.2,3)

अतः हमार यवक-यवततयो को बरहमचयग सबधित जानकारी जस – यौन-सवासय, आरोगयशासतर, दीघागय-पराचतत क उपाय व कामवासना तनयबतरत करन की षवधि का सपषट ान होना चाहहए। यवाओ का शारीररक सवासय, मानशसक परसननता और बौषदधक सामयग बनाय रखन व इस दश क नारररको को एडस जसी घातक बीमाररयो स गरसत होन स बचान तथा सवसथ समाज क तनमागण क शलए हम सभी का यह नततक कततगवय ह कक सयम-सदाचार को बढान वाल वातावरण को तयार कर। बरहमचयग को पोषित करन वाला सतसाहहतय ʹहदवय पररणा परकाशʹ जसी पसतक यवा पीढी को जरर पढाय।

अनकरमणणका महापरषो और रचफकतसको का कहना ह

बरहमचयि स बनोग महान स महान

बरहमचयग क पालन स बषदध कशागर बनती ह, रोरपरततकारक शचकत बढती ह तथा महान-स-महान लकषय तनिागररत करन एव उस समपाहदत करन का उतसाह उभरता ह, सकलप म दढता आती ह, मनोबल पषट होता ह।

पजय सत शरी आशारामजी बाप

दःख क मल को नषट करन क शलए बरहमचयग का पालन आवशयक ह।

महातमा बदध

बारह विग तक वीयग को असखशलत रखन स अथागत तरह विग की उमर स पचीस विग की उमर तक तीनो योरो (भचकत, ान व कमग योर) स बरहमचयग क पालन स जो शचकत पदा होती ह, उसस उस वयचकत की समरणशचकत अतीव तीवर हो जाती ह।

शरी रामकषटण परमहस

वीयगकतता ही सािता ह और तनवीयता ही पाप ह, अतः बलवान और वीयगवान बनन की चषटा करनी चाहहए।

सिामी वििकानदजी जो पणग बरहमचारी ह उसक शलए इस ससार म कछ भी असाधय नही ह।

महातमा गाधी बरहमचयग जीवन-वकष का पषप ह और परततभा, पषवतरता, वीरता आहद रण उसक कततपय

फल ह। महातमा थोरो

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बरहम क शलए चयाग (आचरण) ही बरहमचयग ह। बरहमचयग अथागत सभी इचरदरयो पर सयम, सभी इचनदरयो का उधचत उपयोर।

सत विनोबा िाि

समाज म सख-शातत की वषदध क शलए सतरी-परि दोनो को बरहमचयग क तनयमो का पालन करना चाहहए।

टॉिसटाय

बरहमचारी अपना परतयक कायग तनरतर करता रहता ह। उस परायः थकान नही लरती। वह कभी धचतातर नही होता। उसका शरीर सदढ होता ह। उसका मख तजसवी होता ह। उसका सवभाव आनदी और उतसाही होता ह।

डॉ. एकसन

वीयग को पानी की भातत बहान वाल आजकल क अषववकी यवाओ क शरीर को भयकर रोर इस परकार घर लत ह कक डॉकटर की शरण म जान पर भी उनका उदधार नही होता।

डॉ. ननकोिस

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

िासतविक सौनदयि राजकमारी मचललका इतनी खबसरत थी कक कई राजकमार व राजा उसक साथ षववाह

करना चाहत थ लककन वह ककसी को पसद नही करती थी। आणखरकार उन राजकमारो व राजाओ न आपस म एक जट होकर मचललका क षपता को ककसी यदध म हराकर उसका अपहरण करन की योजना बनायी।

मचललका को इस बात का पता चल रया। उसन राजकमारो व राजाओ को कहलवाया कक "आप लोर मझ पर कबागन ह तो म भी आप पर कबागन ह। ततधथ तनचशचत कररय। आप लोर आकर बातचीत कर। म आप सबको अपना सौदयग द दरी।"

इिर मचललका न अपन जसी ही एक सदर मतत ग बनवायी एव तनचशचत की रयी ततधथ स दो चार हदन पहल स वह अपना भोजन उसम डाल दती थी। चजस महल म राजकमारो व राजाओ को मलाकात दनी थी, उसी म एक ओर वह मतत ग रखवा दी रयी। तनचशचत ततधथ पर सार राजा व राजकमार आ रय। मतत ग इतनी हबह थी कक उसकी ओर दखकर राजकमार षवचार कर ही रह थ कक ʹअब बोलरी.... अब बोलरी...ʹ इतन म मचललका सवय आयी तो सार राजा व राजकमार उस दखकर दर रह रय कक ʹवासतषवक मचललका हमार सामन बठी ह तो यह कौन ह ?ʹ

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मचललका बोलीः "यह परततमा ह। मझ यही षवशवास था कक आप सब इसको ही सचची मानर और सचमच म मन इसम सचचाई छपाकर रखी ह। आपको जो सौदयग चाहहए वह मन इसम छपाकर रखा ह।" यह कहकर जयो ही मतत ग का ढककन खोला रया, तयो ही सारा ककष दरगनि स भर रया। षपछल चार पाच हदनो स जो भोजन उसम डाला रया था, उसक सड जान स ऐसी भयकर बदब तनकल रही थी कक सब तछः तछः कर उठ।

तब मचललका न वहा आय हए सभी राजाओ व राजकमारो को समबोधित करत हए कहाः "भाइयो ! चजस अनन, जल, दि, फल, सबजी इतयाहद को खाकर यह शरीर सनदर हदखता ह, मन व ही खादय सामधगरया चार पाच हदनो स इसम डाल रखी थी। अब य सडकर दरगनि पदा कर रही ह। दरगनि पदा करन वाल इन खादयाननो स बनी हई चमडी पर आप इतन कफदा हो रह हो तो इस अनन को रकत बनाकर सौदयग दन वाला वह आतमा ककतना सदर होरा !"

मचललका की इन साररशभगत बातो का राजा एव राजकमारो पर रहरा असर हआ और उनहोन कामषवकार स अपना षपड छडान का सकलप ककया। उिर मचललका सत-शरण म पहच रयी और उनक मारगदशगन स अपन आतमा को पाकर मचललयनाथ तीथाकर बन रयी।

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

सतरी-जानत क परनत मातिाि परबि करो मातित परदारष परदरवयष िोषटटित |

पराई सतरी को माता क समान और पराए िन को शमटटी क ढल क समान समझो |

शरी रामकषण परमहस कहा करत थ : “ ककसी सदर सतरी पर नजर पड जाए तो उसम मा जरदमबा क दशगन करो | ऐसा षवचार करो कक यह अवशय दवी का अवतार ह, तभी तो इसम इतना सौदयग ह | मा परसनन होकर इस रप म दशगन द रही ह, ऐसा समझकर सामन खडी सतरी को मन-ही-मन परणाम करो | इसस तमहार भीतर काम षवकार नही उठ सकरा |

भशिाजी का परसग

शशवाजी क पास कलयाण क सबदार की चसतरयो को लाया रया था तो उस समय उनहोन यही आदशग उपचसथत ककया था | उनहोन उन चसतरयो को ‘मा’ कहकर पकारा तथा उनह कई उपहार दकर सममान सहहत उनक घर वापस भज हदया |

अजिन और उििशी अजगन सशरीर इनदर सभा म रया तो उसक सवारत म उवगशी, रमभा आहद अतसराओ न

नतय ककय | अजगन क रप सौनदयग पर मोहहत हो उवगशी राबतर क समय उसक तनवास सथान पर

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रई और परणय-तनवदन ककया तथा साथ ही 'इसम कोई दोि नही लरता' इसक पकष म अनक दलील भी की | ककनत अजगन न अपन दढ इचनदरयसयम का पररचय दत हए कहा :

गचछ मरधनाि परपननोऽजसम पादौ त िरिणणिनी | ति दह म मातित पजया रकषयोऽह पतरित तिया ||

( महाभारत : वनपवगणण इनदरलोकाशभरमनपवग : ४६.४७) "मरी दचषट म कनती, मादरी और शची का जो सथान ह, वही तमहारा भी ह | तम मर शलए

माता क समान पजया हो | म तमहार चरणो म परणाम करता ह | तम अपना दरागरह छोडकर लौट जाओ | मरी दचषट म तम माता क समान पजनीया हो और पतर क समान मानकर तमह मरी रकषा करनी चाहहए।"

(महाभारत, वनपवगणण, इनदरलोकाशभरमन पवगः 46.46,47) इस पर उवगशी न करोधित होकर उस नपसक होन का शाप द हदया | अजगन न उवगशी स

शाषपत होना सवीकार ककया, परनत सयम नही तोडा | जो अपन आदशग स नही हटता, ियग और सहनशीलता को अपन चररतर का भिण बनाता ह, उसक शलय शाप भी वरदान बन जाता ह | अजगन क शलय भी ऐसा ही हआ | जब इनदर तक यह बात पहची तो उनहोन अजगन को कहा : "तमन इचनदरय सयम क दवारा ऋषियो को भी पराचजत कर हदया | तम जस पतर को पाकर कनती वासतव म शरषठ पतरवाली ह | उवगशी का शाप तमह वरदान शसदध होरा | भतल पर वनवास क १३व विग म अातवास करना पडरा उस समय यह सहायक होरा | उसक बाद तम अपना परितव कफर स परातत कर लोर |" इनदर क कथनानसार अातवास क समय अजगन न षवराट क महल म नतगक वश म रहकर षवराट की राजकमारी को सरीत और नतय षवदया शसखाई थी और इस परकार वह शाप स मकत हआ था | परसतरी क परतत मातभाव रखन का यह एक सदर उदाहरण ह |

ऐसा ही एक उदाहरण वालमीकककत रामायण म भी आता ह | भरवान शरीराम क छोट भाई लकषमण को जब सीताजी क रहन पहचानन को कहा रया तो लकषमण जी बोल : ह तात ! म तो सीता माता क परो क रहन और नपर ही पहचानता ह, जो मझ उनकी चरणवनदना क समय दचषटरोचर होत रहत थ | कयर-कणडल आहद दसर रहनो को म नही जानता |" यह मातभाववाली दचषट ही इस बात का एक बहत बडा कारण था कक लकषमणजी इतन काल तक बरहमचयग का पालन ककय रह सक | तभी रावणपतर मघनाद को, चजस इनदर भी नही हरा सका था, लकषमणजी हरा पाय |

पषवतर मातभाव दवारा वीयगरकषण का यह अनपम उदाहरण ह जो बरहमचयग की महतता भी परकट करता ह |

भारतीय सभयता और ससकतत म 'माता' को इतना पषवतर सथान हदया रया ह कक यह मातभाव मनषय को पततत होत-होत बचा लता ह | शरी रामकषण एव अनय पषवतर सतो क समकष जब कोई सतरी कचषटा करना चाहती तब व सजजन, सािक, सत यह पषवतर मातभाव मन म लाकर षवकार क फद स बच जात | यह मातभाव मन को षवकारी होन स बहत हद तक रोक रखता ह |

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जब भी ककसी सतरी को दखन पर मन म षवकार उठन लर, उस समय सचत रहकर इस मातभाव का परयोर कर ही लना चाहहए |

परकनः सबह सनान क बाद तिसी क पतत कयो खान चादहए ?

उततरः तिसी को घर का िदय कहा गया ह। िजञाननको न परयोग करक जाना फक अनय पौधो क मकाबि तिसी म ऑकसीजन की मातरा नतगनी होती ह। तिसी क पततो क सिन स बि, तज और यादशजकत बढती ह। इसम क सर-विरोधी ततति िी पाय जात ह। फर च डॉकटर विकटर रभसन न कहा हः "तिसी एक अदित औषरध ह।" अतः सबह सनान क बाद खािी पट तिसी क 5-7 पतत खाकर थोडा पानी पीना चादहए। तिसी सिन क दो घट पहि और बाद म दध न ि।

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

कोई दख रहा ह..... (बरहमिीन सिामी शरी िीिाशाहजी महाराज क अमतिचन)

एक मसाकफर न रोम दश म एक मसलमान लहार को दखा। वह लोह को तपाकर, लाल करक उस हाथ म पकडकर वसतए बना रहा था, कफर भी उसका हाथ जल नही रहा था। यह दखकर मसाकफर न पछाः "भया ! यह कसा चमतकार ह कक तमहारा हाथ जल नही रहा !"

लहारः "इस फानी (नशवर) दतनया म म एक सतरी पर मोहहत हो रया था और उस पान क शलए सालो तक कोशशश करता रहा परत उसम मझ असफलता ही शमलती रही। एक हदन ऐसा हआ कक चजस सतरी पर म मोहहत था, उसक पतत पर कोई मसीबत आ रयी।

उसन अपनी पतनी स कहाः "मझ िन की अतयधिक आवशयकता ह। यहद उसका बदोबसत न हो पाया तो मझ मौत को रल लराना पडरा। अतः तम कछ भी करक, तमहारी पषवतरता बचकर भी मझ कछ िन ला दो।ʹ ऐसी चसथतत म वह सतरी चजसको म पहल ही चाहता था, मर पास आयी। उस दखकर म बहत खश हो रया। सालो क बाद मरी इचछा पणग हई। म उस एकात म ल रया। मन उसस आन का कारण पछा तो उसन सारी हकीकत बतायी। उसन कहाः "मर पतत को िन की बहत आवशयकता ह। अपनी इजजत व शील को बचकर भी म उनह कछ िन ला दना चाहती ह। आप मरी मदद कर सक तो आपकी बडी महरबानी।"

तब मन कहाः "थोडा िन तो कया, तम चजतना भी मारोरी, म दन को तयार ह।" म कामाि हो रया था, मकान क सार णखडकी-दरवाज मन बनद ककय। कही स थोडा भी

हदखायी द ऐसी जरह भी बद कर दी ताकक हम कोई दश न ल। कफर म उसक पास रया। उसन कहाः ʹरको ! आपन सार णखडकी-दरवाज, छद व सराख बद ककय ह, चजसस हम

कोई दख न सक लककन मझ षवशवास ह कक कोई हम अब भी दख रहा ह।"

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मन पछाः "अब भी कौन दख रहा ह ?"

"ईशवर ! ईशवर हमार परतयक कायग को दख रहा ह। आप उनक आर भी कपडा रख दो ताकक आपको पाप का परायचशचत न करना पड।" उसक य शबद मर हदल क आर-पार उतर रय। मझ पर मानो हजारो घड पानी ढल रया। मझ कदरत का भय सतान लरा। मरी सारी वासना चर-चर हो रयी। मन खदा स माफी मारी और अपनी इस दवागसना क शलए बहत ही पशचाताप ककया। परमशवर की अनकमपा मझ पर हई। भतकाल म ककय हए ककमो की माफी शमली, इसस मरा हदल तनमगल हो रया। मन सार णखडकी-दरवाज खोल हदय और कछ िन लकर उस सतरी क साथ चल पडा। वह सतरी मझ अपन पतत क पास ल रयी। मन िन की थली उसक पास रख दी और सारी हकीकत सनायी। उस हदन स मझ परतयक वसत म खदाई नर हदखन लरा ह। तब स अचगन, वाय व जल मर अिीन हो रय ह।"

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

सिामी रामतीथि का अनिि

सवामी रामतीथग जब परोफसर थ तब उनहोन एक परयोर ककया और बाद म तनषकिगरप म बताया कक जो षवदयाथी परीकषा क हदनो म या परीकषा स कछ हदन पहल षवियो म फ स जात ह, व परीकषा म परायः असफल हो जात ह, चाह विग भर उनहोन अपनी ककषा म अचछ अक कयो न पाय हो। चजन षवदयाधथगयो का धचतत परीकषा क हदनो म एकागर और शदध रहा करता ह, व ही सफल होत ह।

ऐस ही बबरटन की षवशवषवखयात ʹकचमबरज यतनवशसगटीʹ क कॉलजो म ककय रय सवकषण क तनषकिग असयमी षवदयाधथगयो को साविानी का इशारा दन वाल ह। इनक अनसार चजन कॉलजो क षवदयाथी अतयधिक कदचषट क शशकार होकर असयमी जीवन जीत थ, उनक परीकषा पररणाम खराब पाय रय तथा चजन कॉलजो म षवदयाथी तलनातमक दचषट स सयमी थ, उनक परीकषा-पररणाम बहतर सतर क पाय रय।

"कामषवकार स बचना हो तो शशवजी, रणपतत जी, अयगमादव, हनमानजी, भीषम जी का सशमरन कर सबह-सबह। काम स बचकर राम म मन लरान की पराथगना करो। हदन म भरवद-समतत, ह नाथ, दयाल, सदबषदध द, तरी परीतत द – इतना तो कर सकत हो मर भाई, सजजनो ! लाडल लाल, जलदी हो जाओ तनहाल !" पजय बाप जी

विदयाथी परकनोततरी

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परशनः पजय बाप जी ! साविानी बरतत हए भी वीयगपात, सवतनदोि होता हो तो कया कर ?

उततरः साविानी बरतन पर भी वीयगपात का कषट हो तो धचततन न हो, बचलक दढ तनशचय स अधिक साविानी बरतो। भरवतपराथगना करो। ʹૐ अयगमाय नमः"। मतर का जप करो। सवाारासन करक योतन को शसकोड लो (मलबनि करो) और शवास को बाहर तनकालत हए पट को अदर की ओर खीचो। कछ समय तक शवास को बाहर ही रोक रखो और भावना करो कक ʹमरा वीयग ऊधवगरामी हो रहा ह।ʹ इस परयोर स बरहमचरग की रकषा होरी।

ʹૐ मा !..... ૐ रजानन.....ૐ शशवजी !..... रकषा करो।ʹ यह पराथगना कर। अवशय रकषा होती ह।

सिपनदोष स बचन क उपाय

ૐ अयिमाय नमः मतर का जप सोन स पिि 21 बार करन स बर सपन नही आत। सोन स पहि तजिनी उागिी स तफकय पर अपनी माता का नाम भिखकर सोन स बहत

िाि होता ह। आािि क चणि म चौथाई दहससा (25 परनतशत) हलदी चणि भमिाकर रख। 7 ददन तक सबह

शाम यह भमशरण 3-4 गराम िन स चमतकाररक िाि होता ह। इसक सिन स 2 घट पिि ि पकचात दध न ि।

अनकरमणणका

उतसाह जहाा, सििता िहाा पजय बाप जी का उतसाहविगक सदश उतसाहसमजनितः.... कताि साजततिक उचयत। ʹउतसाह स यकत कताग साचततवक कहा जाता ह।ʹ (शरीमद भरवदरीताः 18.26) जो कायग कर उतसाह स कर, ततपरता स कर, लापरवाही न बरत। उतसाह स काम करन

स योगयता बढती ह, आनद आता ह। उतसाहहीन होकर काम करन स कायग बोझा बन जाता ह। उतसाह का मतलब ह सफलता, उननतत, लाभ और आदर क समय धचतत म काम करन

का जसा जोश, ततपरता, बल बना रहता ह, ठीक ऐसा ही परततकल पररचसथतत म भी धचतत बना रह। यही वासतषवक उतसाह ह। कसी भी पररचसथतत आय उसका सदपयोर कर। कसी भी अिकारमय राबतर हो रजर जायरी। परततकलता को दख क घबरा मत। बीत हए सख-दःख की याद स अभी अपन को परशान मत कर।

रम की अिरी रात म, हदल को न बकरार कर। सबह जरर आयरी, सबह का इतजार कर।।

20

चजसका उतसाह टटा, उसका जीवन परा हो रया। उतसाहहीन जीवन वयथग ह। उतसाह लान क उपाय शरीर को खब खीच, इतना खीच कक रर-रर म सफततग आ जाय। कफर शरीर को ढीला छोड

द और दढ भावना कर कक ʹमझम परमातमा की शचकत, परमातमा का आनद, परमातमा का उतसाह-सामयग, परमातमा की समता भरी ह। हरर ૐ.... हरर ૐ... हरर ૐ.... ईशवर मर साथ ह, ईशवर क सदरण मर साथ ह... ૐ... ૐ.... ૐ.... ૐ.... शातत... हरर ૐ...ʹ कछ शमनटो तक शवासन म पड रह।

शदध हवा म अनलोम-षवलोम पराणायाम करक 10 बार शवास ल-छोड। कफर शवास लकर कठ पर दबाव पड इस परकार शसर को आर-पीछ हहलात हए कठ स ʹૐʹ का उचचारण कर, मह बद रख। ऐसा 2 बार कर। जहा रहत ह वहा थोडा-सा कपर का चरा तछडक द।

पीपल का सपशग और घर म तलसी लराना भी उतसाह, बल व आरोगय विगक ह। अनकरमणणका

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

मन को सिसथ ि बििान बनान क भिए

आहारशवदधः आहारशदधौ सततिशवदधः सततिशदधौ धरिा समनतः। ʹआहार शदध होन पर मन शदध होता ह। शदध मन म तनशचल समतत (अखड आतमानभतत)

होती ह।ʹ (छानदोगय उपतनिद 7.26,2) पराणायामः पराणायाम स मन का मल नषट होता ह। रजो व तमो रण दर होकर मन चसथर व शात

होता ह।

शि कमिः मन को सतत शभ कमो म रत रखन स उसकी षविय-षवकारो की ओर होन वाली भारदौड रक जाती ह।

मौनः सवदन, समतत, भावना, मनीिा, सकलप व िारणा – य मन की छः शचकतया ह। मौन व पराणायाम स इन सितत शचकतयो का षवकास होता ह।

मतरजपः भरवान क नाम का जप सभी षवकारो को शमटाकर दया, कषमा, तनषकामता आहद दवी रणो को परकट करता ह।

उपिासः (अतत भखमरी नही) उपवास स मन षविय-वासनाओ स उपराम होकर अतमगख होन लरता ह।

21

"एकादशी वरत पापनाशक तथा पणयदायी वरत ह। परतयक वयचकत को माह म दो हदन उपवास करना चाहहए।" पजय बाप जी

पराथिनाः पराथगना स मानशसक तनाव दर होकर मन हलका व परफचललत होता ह। मन म षवशवास व तनभगयता आती ह।

सतयिाषणः सदव सतय बोलन स मन म असीम शचकत आती ह।

सद विचारः कषवचार मन को अवनत व सद षवचार उननत बनात ह।

परणिोचचारणः दषकमो का तयार कर ककया रया ૐकार का दीघग उचचारण मन को आतम-परमातम शातत म एकाकार कर दता ह।

शासतरो म हदय रय इन उपायो स मन तनमगलता, समता व परसननता रपी परसाद परातत करता ह।

षवदयाथी परशनोततरी परशनः सयोदय क बाद भी सोत रहन स कया हातन होती ह ?

उततरः ʹअथवगवदʹ म बताया रया ह कक जो वयचकत सयोदय क बाद भी सोता रहता ह उसक ओज-तज को सयग की ककरण पी जाती ह।

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

जाग मसाफिर जाग !

आदमी को िग जाय तो ऊा ट की मौत िी उसम िरागय जगा दती ह, अनयथा तो िोग ररकतदारो को जिाकर या दिनाकर आत ह फिर िी उनक जीिन म िरागय नही जगता।

(पजय बाप जी की अमतिाणी) बलख बखारा का शख वाचजद अली 999 ऊ टो पर अपना बावचीखाना लदवाकर जा रहा था।

रासता सकरा था। एक ऊ ट बीमार होकर मर रया। उसक पीछ आन वाल ऊ टो की कतार रक रयी। यातायात बद हो रया। शख वाचजद न कतार रकन का कारण पछा तो सवक न बतायाः "हजर ! ऊ ट मर रया ह। रासता सकरा ह। आर नही जा सकत।"

शख को आशचयग हआः "ऊ ट मर रया ! मरना कसा होता ह ?"

वह अपन घोड स नीच उतरा। चलकर आर आया। सकरी रली म मर हए ऊ ट को रौर स दखन लरा।

"अर ! इसका मह भी ह, रदगन और पर भी मौजद ह, पछ भी ह, पट और पीठ भी ह तो यह मरा कस ?"

22

उस षवलासी शख को पता ही नही कक मतय कया चीज होती ह ! सवक न समझायाः "जहापनाह ! इसका मह, रदगन, पर, पछ, पट, पीठ आहद सब कछ ह लककन इसम जो जीवतततव था, उसस इसका सबि टट रया ह। इसक पराण-पखर उड रय ह।"

"....तो अब रह नही चलरा कया ?"

"चलरा कस ! यह सड जायरा, रल जायरा, शमट जायरा, जमीन म दफन हो जायरा या रीि, चील, कौव, कतत इसको खा जायर।"

"ऐसा ऊ ट मर रया ! मौत ऐस होती ह ?"

"हजर ! मौत अकल ऊ ट की ही नही बचलक सबकी होती ह। हमारी भी मौत हो जायरी।" "......और मरी भी ?"

"शाह आलम ! मौत सभी की होती ह।" ऊ ट की मतय दखकर वाचजदअली क धचतत को झकझोरता हआ वरागय का तफान उठा।

यरो स जनमो स परराढ तनदरा म सोया हआ आतमदव अब जयादा सोना नही चाहता था। 999 ऊ टो पर अपना सारा रसोईघर, भोर-षवलास की सािन-सामधगरया लदवाकर नौकर-चाकर, बावची, शसपाहहयो क साथ जो जा रहा था, उस समराट न उन सबको छोडकर अरणय का रासता पकड शलया। वह फकीर हो रया। उसक हदय स आजगवभरी पराथगना उठीः ʹह खदा ! ह परवरहदरार ! ह जीवनदाता ! यह शरीर कबबरसतान म दफनाया जाय, सड जाय, रल जाय, उसक पहल त मझ अपना बना ल माशलक !ʹ

शख वाचजद क जीवन म वरागय की जयोतत ऐसी जली कक उसन अपन साथ कोई सामान नही रखा। कवल एक शमटटी की हाडी साथ म रखी। उसम शभकषा मारकर खाता था, उसी स पानी पी लता था, उसी को शसर का शसरहाना बनाकर सो लता था। इस परकार बडी षवरकतता स वह जी रहा था।

अधिक वसतए पास रखन स वसतओ का धचतन होता ह, उनक अधिषठान आतमदव का धचतन खो जाता ह। सािक का समय वयथग म चला जाता ह।

एक बार वाचजदअली हाडी का शसरहाना बनाकर दोपहर को सोया था। कतत को भोजन की सरि आयी तो हाडी को सघन लरा, मह डालकर चाटन लरा। उसका शसर हाडी क सकर मह म फ स रया। वह ʹकयाऊ ...... कयाऊ ....ʹ करक हाडी शसर क बल खीचन लरा। फकीर की नीद खली। वह उठ बठा तो कतता हाडी क साथ भारा। दर जाकर पटका तो हाडी फट रयी। शख वाचजद हसन लराः

"यह भी अचछा हआ। मन परा सामराजय छोडा, भोर-वभव छोड, 999 ऊ ट, घोड, नौकर-चाकर, बावची आहद सब छोड और यह हाडी ली। ह परभ ! तन यह भी छडा ली कयोकक अब त मझस शमलना चाहता ह। परभ तरी जय हो !

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अब पट ही हाडी बन जायरा और हाथ ही शसरहान का काम दरा। चजस दह को दफनाना ह, उसक शलए अब हाडी भी कौन सभाल ! चजसस सब सभाला जाता ह, उसकी महबबत को अब सभालरा।"

आदमी को लर जाय तो ऊ ट की मौत भी उसम वरागय जरा दती ह, अनयथा तो कमबखत लोर अबबाजान को दफनाकर घर आकर शसररट सलरात ह। अभार लोर अममा को, बीबी को, ररशतदारो को कबबरसतान म पहचाकर वापस आकर वाइन (शराब) पीत ह। ऐस करर लोरो क जीवन म वरागय नही जरता। पापो क कारण मन ईशवर-धचतन म, रामनाम म न लरता हो तो भी रामनाम जपत जाओ, सतसर सनत जाओ, ईशवर धचतन म मन लरात जाओ। इसस पाप कटत जायर और भीतर का ईशवरीय आनद परकट होता जायरा।

अभारा तो मन ह, आप अभार नही हो। आप सब पषवतर हो, भरवतसवरप हो। आपका पापी, अभारा मन अरर आपको भीतर का रस न भी लन द, तो भी राम-राम, हरर ૐ, शशव-शशव आहद भरवननाम क जप म, कीतगन म, धयान-भजन म, सत-महातमा क सतसर समारम म बार-बार जाकर हरर रसरपी शमशरी चसत रहो। इसस पापरपी सखा रोर शमटता जायरा और हरररस की मिरता हदय म परकट होती जाररी। आपका बडा पार हो जायरा।

अनकरमणणका

कया आपको पता ह ?

फरास क वातनक डॉ. एटोनी बोषवस न बायोमीटर (ऊजा मापक यतर) का उपयोर करक वसत, वयचकत, वनसपतत या सथान की आभा की तीवरता मापन की पदधतत खोज तनकाली। इस यतर दवारा यह मापा रया कक साचततवक जरह और मतर का वयचकत पर ककतना परभाव पडता ह। वातनको न पाया कक सामानय, सवसथ मनषय का ऊजाग-सतर 6500 बोषवस होता ह। पषवतर महदर, आशरम आहद क रभगरहो का ऊजाग-सतर 11000 बोषवस तक होता ह। ऐस सथानो म जाकर सतसर, जप, कीतगन, धयान आहद का लाभ ल क अपना ऊजाग-सतर बढान की जो परमपरा अपन दश म ह, उसकी अब आितनक षवान भी सराहना कर रहा ह कयोकक वयचकत का ऊजाग-सतर चजतना अधिक होता ह उतना ही अधिक वह सवासय, तदरसती, परसननता का िनी होता ह।

ऊजाग-अधययन करत हए जब वातनको न ૐकार क जप स उतपनन ऊजाग को मापा तब तो उनक आशचयग का हठकाना ही न रहा कयोकक यह ऊजाग 70000 बोषवस पायी रयी। और यही कारण ह कक ૐकार यकत सारसवतय मतर की दीकषा लकर जो षवदयाथी परततहदन कछ पराणायाम और जप करत ह, व चाह थक-हार एव षपछड भी हो तो भी शीघर उननत हो जात ह। ૐकार की महहमा स जपकताग को सब तरह स लाभ अधिक ह। यहद आपक मतर म ૐकार ह तो लर रहहय।

अनकरमणणका

24

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

ʹम मीठी िाणी बोिा।ʹ (अथिििदः 16.2.2)

मीठी और दहतिरी िाणी दसरो को आनद, शानत

और परम का दान करती ह और सिय आनद शानत

और परम को खीचकर बिाती ह।

सत शरी आशारामजी बाप का मधमय सदश

मख स ऐसा शबद कभी मत तनकालो जो ककसी का हदल दखाय और अहहत कर। कडवी और अहहतकारी वाणी सतय को बचा नही सकती और उसम रहन वाल आशशक सतय का सवरप भी बडा कचतसत और भयानक हो जाता ह जो ककसी को तयारा और सवीकायग नही लर सकता। ढर स कही हई बात षपरय और मिर लरती ह। ऐसी वाणी स सतय की रकषा होती ह एव उसम ही सतय की शोभा ह।

चजसकी जबान रदी होती ह उसका मन भी रदा होता ह। महामना पडडत मदनमोहन मालवीय जी स ककसी षवदवान न कहाः "आप मझ सौ राली दकर दणखय, मझ रससा नही आयरा।"

महामना न जो उततर हदया वह उनकी महानता को परकट करता ह। व बोलः "आपक करोि की परीकषा तो बाद म होरी, मरा मह तो पहल ही रदा हो जायरा।"

रदी बातो को परसाररत करन म न तो अपना मह रदा बनाओ और न औरो की वसी बात ही गरहण करो। दसरा कोई कडवा बोल, राली द तो तम पर तो तभी उसका परभाव होता ह जब तम उस गरहण करत हो। सत रजजबजी न कहा हः

रजजब रोष न कीजजय कोई कह कयो ही। हासकर उततर दीजजय हाा बाबा जी ! यो ही।। रोसवामी तलसीदासजी क य वचन सदव याद रखन योगय ह- तिसी मीठ िचन त सख उपजत चहा ओर। िशीकरण यह मतर ह तज द िचन कठोर।।

विदयाथी परकनोततरी परशनः बरहममहतग म (सबह 4.30-5 बज कयो जरना चाहहए ? उततरः इस समय शात वातावरण, शदध और शीतल वाय रहन क कारण मन म साचततवक

षवचार, उतसाह तथा शरीर म सफततग रहती ह। षवदयाधथगयो क शलए अधययन का यह सबस अचछा समय ह।

25

जो जागत ह सो पाित ह। जो सोित ह सो खोित ह।। अनकरमणणका

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

िगितपाद सााई शरी िीिाशाहजी की भमठाई

पजय बाप जी का सदगर ससमरण मर रर जी का आशरम नतनताल म था। एक बार रर जी क साथ सामान लकर एक कली

आशरम म आया। रर जी न कहाः "अर आशाराम !" मन कहाः "जी साई !" "रससी लाओ। इसको बािना ह।" "जी साई लाता ह।" रर जी अपनी कटी म रय और म रससी लान का नाटक करन लरा। वह कली तो घबरा

रया। जो दो रपय लन को बोल रहा था, वह रपय शलए बबना ही चल जान का षवचार करन लरा। मन उस रोका और कहाः "अर, खडा रहा।"

कली न पछाः "भाई ! कया बात ह ?" मन कहाः "अर भाई ! खडा रहा। रर जी न बािन की आा दी ह।"

इतन म रर जी आय और कली स कहन लरः "इिर आ... इिर आ ! ल यह शमठाई। खाता ह कक नही ? नही तो वह आशाराम तझ बाि दरा।"

उसन तो जलदी-जलदी शमठाई खाना शर कर हदया। साई बोलः "खा, चबा-चबाकर खा। खाना जानता ह कक नही ?"

उसन कहाः "बाबा जी ! जानता ह।" साई न कहाः "अर आशाराम ! यह तो खाना जानता ह। इस बािना नही।" मन कहाः "जी साई !" साई न पनः कहाः "आशाराम ! यह तो शमठाई खाना जानता ह। चबा-चबाकर खाता ह।"

कफर उसकी तरफ दखकर बोलः "यह शमठाई घर ल जा। दो हदन तक थोडी-थोडी खाना। शमठाई कसी लरती ह ?"

कली न कहाः "बाबाजी ! मीठी लरती ह।" साई बोलः "हा... लीलाशाह की शमठाई ह। सबह म भी मीठी और शाम को भी मीठी, हदन को भी मीठी और रात को भी मीठी। लीलाशाहजी की शमठाई जब खाओ तब मीठी।"

26

कली भल अपन ढर स समझा होरा परत हम तो समझ रह थ कक पजय शरी लीलाशाहजी बाप का ान जब षवचारो तब मिर-मिर। ान भी मिर और ान दन वाल भी मिर तो ान लन वाला मिर कयो न हो जाय ?

जयो कि क पात म, पात-पात म पात। तयो सतन की बात म, बात-बात म बात।।

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

गर बबन िि ननरध तरदह न कोई।

गर बबन िि ननरध1 तरदह2 न कोई |

जौ3 बबररच4 सकर सम होई ||

-सत तलसीदासजी

हररहर आददक जगत म पजयदि जो कोय |

सदगर की पजा फकय सबकी पजा होय ||

-तनशचलदासजी महाराज

सहजो कारज5 ससार को गर बबन होत नााही |

हरर तो गर बबन कया भमि, समझ ि मन मााही ||

-सत कबीरजी सत

सत सरनन6 जो जन7 पर8 सो जन उधरनहार9 |

सत की ननदा नानका बहरर बहरर अितार10 ||

-रर नानक दवजी "ररसवा सब भागयो की जनमभशम ह और वह शोकाकल लोरो को बरहममय कर दती ह |

रररपी सयग अषवदयारपी राबतर का नाश करता ह और ानाान रपी शसतारो का लोप करक बषदधमानो को आतमबोि का सहदन हदखाता ह |"

-सत जञानकिर महाराज

"सतय क कटकमय मारग म आपको रर क शसवाय और कोई मारगदशगन नही द सकता |"

- सिामी भशिानद सरसिती

27

"ककतन ही राजा-महाराजा हो रय और होर, सायजय मचकत कोई नही द सकता | सचच राजा-महाराज तो सत ही ह | जो उनकी शरण जाता ह वही सचचा सख और सायजय मचकत11 पाता ह |"

-समथि शरी रामदास सिामी

"मनषय चाह ककतना भी जप-तप कर, यम-तनयमो का पालन कर परत जब तक सदरर की कपादचषट नही शमलती तब तक सब वयथग ह |"

-सिामी रामतीथि

तलटो कहत ह कक : "सकरात जस रर पाकर म िनय हआ ।"

इमसगन न अपन रर थोरो स जो परातत ककया उसक महहमारान म व भावषवभोर हो जात थ ।

शरी रामकषण परमहस पणगता का अनभव करानवाल अपन सदररदव की परशसा करत नही अघात थ ।

पजयपाद सवामी शरी लीलाशाहजी महाराज भी अपन सदररदव की याद म सनह क आस बहाकर रदरद कठ हो जात थ।

पजय बापजी भी अपन सदररदव की याद म कस हो जात ह यह तो दखत ही बनता ह । अब हम उनकी याद म कस होत ह यह परशन ह । बहहमगख तनरर लोर कछ भी कह , सािक को अपन सदरर स कया शमलता ह इस तो सािक ही जात ह ।

1-ससार सारर, 2-तरना, 3-चाह, 4-बरहमाजी, 5-कायग, 6-शरण, 7-लोर, 8-पडत ह, 9-उदधार होता ह, 10-सत-तनदक अनक-अनक योतनयो म भटकता ह। 11-सवोपरर मचकत, जीवातमा को अपन सवगवयापक आतम-परमातमसवरप का अनभव होना।

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

शरदधापिािः सििधमाि.... शरदधापिािः सििधमाि मनोरथििपरदाः।

शरदधया सारधयत सि शरदधया तषटयत हररः।। ʹशरदधापवगक आचरण म लाय हए ही सब िमग मनोवातछत फल दन वाल होत ह। शरदधा स

सब कछ शसदध होता ह। और शरदधा स ही भरवान शरी हरर सतषट होत ह।ʹ (नारद पराण) ʹचजनहोन नीम क पड को आा दकर चला हदया ऐस साई शरी लीलाशाहजी का शशषय लरता

ह। यमराज को दम मारकर चजदी हो रयी ऐसी नानी का दोहता लरता ह।

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ररीबो की सवा का तनयम न चक इसशलए घटो मरा जनम रोक हदया ऐसी मा का बटा लरता ह।

मर पवगत चाह डडर जाय पर चजनकी शरदधा कभी डडरती नही ऐस करोडो-करोडो शशषयो का म बाप लरता ह।ʹ

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

दबग बाप ऐसा कोई नाम याद करना चाह चजनका सब कछ दबर हो तो जो नाम मख म आता ह,

वह ह आधयाचतमक रर पजय सत शरी आशाराम जी बाप ! दबग पराकटय जनम क बाद तो हर कोई खशशया मनाता ह, लककन बाप जी क िरती पर पराकटय स

पहल ही एक सौदारर सदर और षवशाल झला लकर घर पर आ रया। बोलाः "आपक घर सत-परि आऩ वाल ह।" और खब अननय षवनय करक भवय झला द रया। ह न दबर पराकटय !

दबग बालयकाि बालयावसथा म ककसी न "ऐ टणी (हठरजी)" कहकर बलाया तो बालक आसमल न रोज

पलअतस करक 40 हदनो म ही पीछ स जाकर उसक कि पर हाथ रखाः "ऐ पहचाना ?" वह वयचकत बोलाः "अर भाई साहब ! आप.... आप .... कषमा करना !" ऐसी दबरई की बोलती बद !

दबग यिािसथा आपकी यवावसथा योर, ान, वरागय की दबरई स सशोशभत रही। एक बार नदी-ककनार

खाली बरामद म राबतर को धयानसथ बठ आपको चोर-डाक समझकर मचछीमारो का परा राव लाहठया, भाल हधथयारो स लस होकर आपको घर क खडा हो रया। लककन आप तो शातभाव स भीड को चीरत हए तनकल पड, ककसी की हहममत नही कक तनहतथ आपको सपशग भी करता।

डीसा(रजरात) म बनास नदी क सनसान तटवती इलाक म एक शराब की भटटीवाल न आपक रल पर िाररया (तलवार स भी बडा िारदार हधथयार) रखा, बोलाः "खीच ?"

"तरी मजी परण हो।" – यह सनकर वह रला काटन वाला िाररया एक तरफ फ का और शाततर, खखार वयचकत खद चरणो म धरर पडा। वह अपरािी वयचकत और उसक साथी भी भचकतभाव वाल हो रय। कसी दबरई !

दबग चनौती आपन चनौती भी दी तो सीि ईशवर कोः "मझ भल तमह पान क शलए खब यतन करन

पड रह ह ककत त मझ एक बार शमल , म तमह ससता बना दरा।"

29

और कया दबरई ह कक पाया भी और चलज तनभाया भी ! दबग महबबत एक हदन सबह भख लरी तो उस समय जरल म रमत जोरी हठ कर बठ रयः ʹचजसको

ररज होरी आयरा, सचषटकताग खद लायरा।ʹ और दो ककसान सवतन म परमातमा की पररणा पा क दि व फल लकर हाचजर !

दबग सतसग शरीर की 72 विग की उमर म भी – बाप जी एक... पनम एक..... और पनम दशगन-सतसर

4-4 जरह ! हर जरह, हर रोज हवा-पानी का बदलाव और सतत भरमण... कफर भी अजब सफततग, अजब मसती, अजब नतय और तनतय उतसव.... भारत म ही नही पाककसतान क ʹराजी राडगनʹ म भी अभतपवग उतसव ! ʹषवशव िमग ससदʹ म भी भारत का दबर नततव ! वहा क सबस परभावशाली वकता, सतसर क शलए दसरो स कही जयादा समय। सब कछ दबर !

दबग पररणासरोत लौककक पढाई ककषा 3 तक लककन आधयाचतमक अनभतत का ान अदभत ! तभी तो कई

डड. शलट., पी.एच.डी., आई.ए.एस. आहद तथा कई राषटरपतत, परिानमतरी, मखयमतरी, णखलाडी, वातनक एव सपरशसदध हचसतया चरणो म शीश झकाकर भागय चमका लती ह।

दबग पहि 14 फरवरी को वलनटाइन ड क सथान पर मात-षपत-पजन हदवसʹ का षवशववयापी अशभयान

आपन शर ककया, चजसको आज समाज क सभी िमग, सभी मत-पथ, समपरदायो क साथ सभी कषतर क अगरणणयो, राषटरपतत, मखयमबतरयो का भी समथगन परातत हआ ह। महाराजशरी की इस दबर पहल का समथगन करत हए छततीसरढ सरकार न इस राजयसतरीय पवग घोषित कर हदया ह।

दबग चमतकार 29 अरसत 2012 को रोिरा (रजरात) म बाप जी का हशलकॉतटर करश हआ। मजबत

िात क भारी भरकम पजो स बन हशलकॉतटर क तो टकड-टकड हो रय लककन अदर बठ पजय बाप जी और सभी शशषयो क कोमल शरीरो का पजाग-पजाग चसत-तदरसत रहा। जबकक आज तक की हशलकॉतटर करश दघगटनाओ का इततहास बडा रकतरचजत ह। हादस क तरत बाद बाप जी न भकतो क बीच पहचकर दबर सतसर भी ककया हशलकॉतटर हआ चर-चर, दबर बाप जी जयो-क-तयो भरपर !

आप अपन हदवय ʹपावर हाउसʹ स कडशलनी शचकतपात की ऐसी दबर विाग कर दत ह कक सामन बठ हए हजारो शशषवराधथगयो की कडशलनी जारत हो जाती ह और उनक जीवन म ान और आनद का उजाला-ही-उजाला हो जाता ह।

जीवन का हर पल, हर लमहा दबर उतसव बन जाता ह। अनकरमणणका

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मतरदाता पजनीय ह पजय बाप जी की जञानमयी अमतिाणी

नशमिारणय (जो लखनऊ क पास ह) म शबर जातत का कपाल नाम का एक वयचकत ʹवकष-नमनʹ मतरषवदया जानता था। उसकी षवदया म ऐसा परभाव था कक खजर क वकष झक जात थ र उनका रस वह एकतर करता था। महषिग वदवयासजी को वह मतर जान लन की चजासा हई। वयास जी उसक पास जात तो कपाल भार जाता था।

जब बहत बार वयासजी तनराश होकर लौट तो उसक बट को उन पर दया आ रयी। वह बोलाः "आप जस महापरि हमार घर आय और हमार षपता जी न शमल, यह ठीक नही लरता। आणखर आपको हमार षपता जी स कया काम ह ?"

वदवयासजी बोलः "म उनस ʹवकष नमन षवदयाʹ का मतर लना चाहता ह।" "महाराज ! यह छोटी सी बात तो म ही बता द आपको।" थोडी षवधि करा क बट न मतर

द हदया। कपाल शबर आया तो बट न सारी हकीकत बता दी। वह नाराज हो रया कक "मखग ह त !

वदवयासजी इतन बड महापरि ह, उनह हम मनतर कस द सकत ह ! अरर हम मतर द और उनम शरदधा नही हो तो मतर सफल नही होरा। जो मतर और मतरदाता का आदर नही करता उसको मतर फलता नही ह।

त जा और दख, वयासजी मतर दन वाल का आदरपजन करत ह कक नही करत ? अरर नही करर तो उनको मतर नही फलरा।"

शबरपतर वदवयासजी क पास रया तो उस समय ऋषि, मतन, तपसवी, हजारो लोरो स और राजाओ स सममातनत होन वाल वयचकत भी वयासजी क चरणो म बठ थ। वयासजी की नजर जब शबरपतर पर पडी तो व उठकर उसका सवारत करन रय और आसन पर बठाकर उसका सतकार ककया। वह दर रह रया कक ʹभरवान शरी कषण चजनका आदर करत ह ऐस भरवान वयासजी न मरा सतकार ककया !ʹ

घर जाकर अपन षपता को सारा वततात सनाया। तब उसक षपता न कहाः "सचमच, वयासजी महान ह।"

वयासजी की षवशाल बषदध एव नमरता का सदरण, मतरदाता का आदर और मतर पर शरदधा षवशवास हम बहत कछ शसखाता ह।

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

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मतरदीिा कयो ?

ૐ नमः शशवाय। राम ૐ. ૐ र र रणपतय नमः। हरर ૐ। ૐ नमो भरवत वासदवाय। ૐ रर। हरर ૐ।

भरवान शरीकषण न शरीमद भरवदरीता म कहा हः यजञाना जपयजञोઽजसम। ʹयो म जपय म ह।ʹ मतरजाप मम दढ बबसिासा। पचम िजकत सो बद परकासा।।

ʹमर मतर का जप और मझम दढ विकिास – यह पााचिी िजकत ह।ʹ (शरीरामचररत मानस) इस परकार षवशभनन शासतरो म मतरजप की अदभत महहमा बतायी रयी ह। परत यहद मतर

ककनही बरहमतनषठ सदरर स दीकषा म परातत हो जाय तो उसका परभाव अनत रना होता ह। सत कबीर जी कहत ह-

सदगर भमि अनत िि, कहत कबीर विचार। शरीसदररदव की कपा और शशषट की शरदधा, इन दो पषवतर िाराओ क सरम का नाम ही

ʹदीकषाʹ ह। भरवान शशवजी न पावगतीजी को आतमानी महापरि वामदवजी स दीकषा हदलवायी थी। काली माता न शरी रामकषण को बरहमतनषठ सदरर तोतापरी महाराज स दीकषा लन क शलए कहा था। भरवान षवटठल न नामदवजी को आतमवतता सतपरि षवसोबा खचर स दीकषा लन क शलए कहा था। भरवान शरी राम और शरीकषण न भी अवतार लन पर सदरर की शरण म जाकर मारगदशगन शलया था। इस परकार जीवन म बरहमतनषठ सदरर स दीकषा पान का बडा महततव ह।

"तीन चीज मतय क बाद भी पीछा नही छोडती- पणय, पाप और ररमतर। पणय मतय क बाद सवरग म ल जाता ह, पाप नरक म ल जाता ह और अरर शरदधा स ररमतर का जप करत रह तो जब तक ईशवरपराचतत नही होती तब तक समथग सदरर स दीकषा म शमला मतर भी पीछा नही छोडता।" (पजय बाप जी)

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

मतरदीिा स ददवय िाि

पजय बाप जी स मतरदीकषा लन क बाद भकतो क जीवन म अनक परकार क लाभ होन लरत ह, चजनम 19 परकार क परमख लाभ इस परकार ह-

ररमतर क जप स बराइया कम होन लरती ह। पापनाश व पणय सचय होन लरता ह। मन पर सख-दःख का परभाव पहल जसा नही पडता। सासाररक वासनाए कम होन लरती ह। मन कक चचलता व तछछोरापन शमटन लरता ह।

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अतःकरण म अतयागमी परमातमा की पररणा परकट होन लरती ह। अशभमान रलता जाता ह। बषदध म शदध साचततवक परकाश आन लरता ह। अषववक नषट होकर षववक जारत होता ह। धचतत को समािान, शातत शमलती ह, भरवदरस, अतमगखता का रस और आनद आन लरता

ह। आतमा व बरहम की एकता का ान परकाशशत होता ह कक ʹमरा आतमा परमातमा का

अषवभाजय अर ह।ʹ हदय म भरवतपरम तनखरन लरता ह, भरवननाम, भरवतकथा म परम बढन लरता ह। परमानद की पराचतत होन लरती ह और भरवान व भरवान का नाम एक ह – ऐसा ान

होन लरता ह। धचतत म पहल की अपकषा हलचल कम होन लरती ह और वयचकत समतवयोर म पहचन

क काबबल बनता जाता ह। वयचकत साकार या तनराकार चजसको भी मानता ह, उसी की पररणा स उसक ान व आनद

क साथ और अधिक एकाकारता का एहसास करन लरता ह। दःखालय ससार म, दतनयावी चीजो म पहल जसी आसचकत नही रहती ह। मनोरथ पणग होन लरत ह। ररमतर परमातमा का सवरप ही ह। उसक जप स परमातमा स सबि जडन लरता ह।

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

अनिि परकाश

रगिषाि दिारा बरसी गरकपा "मर पतत आई.एस.आर.ओ.(इडडयन सपस ररसचग ऑरगनाइजशन) म वातनक ह। मर बचच

रौरव क षपतताशय (राल बलडर) म पथरी थी। मन एक स एक डॉकटर को हदखाया पर सभी न बोला कक इसक षपतताशय की थली को ऑपरशन करक तनकालना पडरा। मझ भीतर स पररणा हई कक बाप जी क होली शशषवर म सरत जाय। बाप जी क हाथो स ररविाग का लाभ शमला। हम लोर वापस भोपाल आय और सोनोगराफी करवायी तो षपतताशय म कछ भी नही शमला, पथरी रायब हो रयी थी।

ममता शसह, अयोधया नरर, भोपाल, म.पर.

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बडदादा की कपा स बिड क सर गायब

"मझ ʹबलड क सरʹ था। म रायपर चसथत बाप जी क आशरम म रया, बड बादशाह (पजय बाप जी दवारा शचकतपात ककया रया वटवकष) की पररकरमा की। 20 हदन बाद खन की जाच करायी तो शवत कणो की सखया पाच लाख स घट कर 9600∕घन शम.मी. हो रयी थी। डॉकटर बोल उठः "मन अपन पर कररयर म ऐसा कस पहली बार दखा कक बलड क सर का मरीज मातर 20 हदन म ठीक हो रया।"

भोज चनदराकर बालोद, चज.दरग (छततीसरढ)

शरीआशारामायण क पाठ स जीिनदान

"मरा 10 विीय पतर अचानक बीमार हआ। सास भी मचशकल स ल रहा था। डॉकटर बोलः ʹरभीर हालत ह। ऑपरशन करना पडरा।ʹ म पस लन घर रया व ʹशरीआशारामायण का पाठ शर करवाया। कफर हॉचसपटल पहचा तो बचचा हस खल रहा था। यह सब बाप जी की असीम कपा और शरी आशारामायण-पाठ का फल ह।"

सनील चाडक, अमरावती (महा.)

नाम परताप स सनामी स सरिा "म तोशशबा की सॉफटवयर कमपनी म काम करता ह। 12 हदसमबर 2010 को म वयापार-

यातरा पर टोककयो (जापान) रया था। एक हदन सबह जब म ररमतर का जप कर रहा था तो एकाएक मझ पररणा हई कक ʹत भारत वापस चला जा।ʹ 11 माचग को म टोककयो स बरलोर क शलए रवाना हो रया। उसक कवल दो घट बाद वहा सनामी का महाताडव हआ। मझ मौत क मह स तनकालन वाल सदररदव और ररमतर की महहमा का वणगन नही हो सकता।"

तारकशवर परसाद, बरलोर

मझको जो भमिा ह िो तर दर स भमिा ह... "1998 म मातर 7 विग की उमर म मन सारसवतय मतर की दीकषा परातत की। सन 2001 म

मझ सटार टीवी पर आयोचजत कायगकरम म परथम परसकार व भारत सरकार की ओर स सन 2006 का ʹबाल शरीʹ परसकार शमला। नवमबर 2007 म 15 व इनटरनशनल धचलरनस कफलम फसटीवल, हदराबादʹ म मझ बाल तनणागयक मडल म आमबतरत ककया रया। 2008-09 म ʹइचणडयन आयडल-4ʹ म म टॉप-6 तक पहची। रायन कषतर क परततचषठत तनणागयको न मर रायन की खल हदल स परशसा की। यह सब ररदव क आशीवागद एव ररदीकषा का ही परभाव ह।"

भवया पडडत, मबई

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दीिा स बदिती ह जीिन ददशा "म पश स एक डॉकटर ह और सन 1960 स अमररका म रहता ह। मझ मडडकल कॉलज

म परवश नही शमल रहा था, उस समय भरवान की महती कपा स ही मझ बाप जी क सतसर म जान का सौभागय शमला। उनकी कपा स मझ कॉलज म परवश शमल रया। म कई साि-महातमाओ क पास रया पर बाप जी क सतसर म मझ अवणगनीय, असीम शातत का अनभव हआ। मझ कई दवयगसनो स भी मचकत शमल रयी। पहल मरी आमदनी भी बहत कम थी ककत अब बाप जी की कपा स सालभर म लरभर एक करोड रपय स भी जयादा कमा लता ह। आज मरा परा पररवार पजय बाप जी स दीकषकषत ह।"

Dr. Rajeev Yadav, 2362, Camberwell, St. Louis, Missouri (U.S.A.)

जो यहाा भमिा िह कही नही "मर माता-षपता क पास अरबो की जमीन-जायदाद ह। म अनक दशो म घमा ह लककन

जो परम और शातत मन पजय बाप जी क हदवय साचननधय म पायी ह वह मझ दतनया म कही नही शमली।"

Mr. James W.Higgins, South Wells, U.K.

सारसितय मतर क अदित पररणाम

"म बारहवी का छातर ह। पहल म पढाई म बहत कमजोर था। खलकद तता सकल की ककसी भी परवचतत म मरा मन नही लरता था। सन 2006 म माता-षपता न मझ पजय बाप जी स सारसवतय मतर की दीकषा हदला दी थी। मन मतरजप, भरामरी पराणायाम तथा बाप जी दवारा बताय रय अनय परयोर शर कर हदय। मन 2 अनषठान ककय तो उनक चमतकाररक फायद मझ दखन को शमल। विग 2011 म जी.क. ओलचमपयाड म राजय म पहला तथा भारतभर म चौथा सथान परातत कर मन सवणगपदक पाया तथा षवान ओलचमपयाड म रजत पदक पाया। करणाशसि ररदव पजय बाप जी की महहमा अपार ह !"

पकज शमाग, तनजामपर, चज. बलदशहर (उ.पर.) सारसवतय मतर की दीकषा लकर कई षवदयाधथगयो न अपना भषवषय उजजवल बनाया ह। आप

भी ऐस सौभागयशाली बतनय। अनकरमणणका

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अपना ईकिरीय ििि जगान का पिि गरपणणिमा पजय बाप जी की ददवय अमतिाणी

ररपणणगमा का दसरा नाम ह वयासपणणगमा। वद क रढ रहसयो का षवभार करन वाल कषणदवपायन की याद म यह ररपणणगमा महोतसव मनाया जाता ह। भरवान वदवयास न बहत कछ हदया मानव जातत को। ऐस वदवयासजी को सार ऋषियो और दवताओ न खब-खब पराथगना की ʹह जागरत दव सदरर ! हर दव का अपना ततधथ-तयौहार होता ह तो आप जस महापरिो क पजन-अशभवादन क शलए भी कोई हदन होना चाहहए।ʹ ररभकतो क शलए ररवार तय हआ और वयासजी न जो षवशव का परथम आिग गरथ रचा ʹबरहमसतरʹ, उसक आरमभ-हदवस आिाढी पणणगमा का ʹवयासपणणगमा, ररपणणगमाʹ नाम पडा।

तो इस हदन वयासजी की समतत म ʹअपन-अपन रर म सत-धचत-आनदसवरप बरहम परमातमा का वास हʹ, ऐसा सचचा ान याद करक उनका पजन करत ह। यह तपसया का हदन ह, वरत का हदन ह। ʹमर मन म य कशमया ह, मर वयवहार म य-य कशमया ह, मर जीवन म य-य कशमया हʹ - इस परकार आतम-षवशलिण करक उन कशमयो को तनकालन क शलए हम कर सक उस परकार का कोई वरत या जप-अनषठान आहद का कोई तनयम लकर आर की यातरा क शलए सकलप करन का हदन ह।

वयासपणणगमा का पवग हमारी सोयी हई शचकतया जरान को आता ह। वयासपणणगमा हम सवततर सख, सवततर ान, सवततर जीवन का सदश दती ह, हम अपनी महानता का दीदार कराती ह।

मानव ! तझ नही याद कया, त बरहम का ही अश ह। वयासपणणगमा कहती ह कक तम अपन भागय क आप षविाता हो, तम अपन आनद क सरोत

आप हो। सख हिग दरा, दःख शोक दरा लककन य हिग-शोक आयर-जायर, तम तमहार आनदसवरप को जराओ कफर सब बौन हो जायर। यह वह पनम ह जो हर जीव को अपन भरवतसवभाव म चसथतत करन म बडा सहयोर दती ह।

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

सत भमिन को जाइय

कबीर सोई हदन भला जा हदन साि शमलाय। अक भर भरर भहटय पाप शरीरा जाय।।1।। कबीर दरशन साि क बड भार दरशाय। जो होव सली सजा काट ई टरी जाय।।2।।

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दरशन कीज साि का हदन म कई कई बार। आसोजा का मह जयो बहत कर उपकार।।3।। कई बार नही कर सक दोय बखत करर लय। कबीर साि दरस त काल दरा नही दय।।4।।

दोय बखत नही कर सक हदन म कर इक बार। कबीर साि दरस त उतर भौ जल पार।।5।। दज हदन नही करर सक तीज हदन कर जाय। कबीर साि दरस त मोकष मचकत फल पाय।।6।।

तीज चौथ नही कर सात हदन कर जाय। या म षवलब न कीचजय कह कबीर समझाय।।7।। सात हदन नही करर सक पाख पाख करर लय।

कह कबीर सो भकतजन जनम सफल करर लय।।8।। पाख पाख नही करर सक मास मास कर जाय। ता म दर न लाइय कह कबीर समझाय।।9।। मात-षपता सत इसतरी आलस बि कातन।

साि दरस को जब चल य अटकाव खातन।।10।। इन अटकाया ना रह साि दरस को जाय।

कबीर सोई सतजन मोकष मचकत फल पाय।।11।। अनकरमणणका

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

सतो का विििण ऐकियि एक बार भचकतमतत मीराबाई को ककसी न ताना माराः "मीरा ! त तो राजरानी ह। महलो

म रहन वाली, शमषठानन-पकवान खान वाली और तर रर झोपड म रहत ह। उनह तो एक वकत की रोटी भी ठीक स नही शमलती।"

मीरा स यह कस सहन होता। मीरा न पालकी मरवायी और ररदशगन क शलए चल पड। मायक स कनयादान म शमला एक हीरा उसन राठ म बाि शलया। रदास जी की कहटया जरह-जरह स टटी हई थी। व एक हाथ म सई और दसर म एक फटी-परानी जती लकर बठ थ। पास ही एक कठोती पडी थी। हाथ स काम और मख म नाम चल रहा था। ऐस महापरि कभी बाहर स चाह सािन-समपदा षवहीन हदख पर अदर की परम समपदा क िनी होत ह और बाहर की िन-समपदा उनक चरणो की दासी होती ह। यह सतो का षवलकषण ऐशवयग ह।

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मीरा न ररचरणो म वह बहमलय हीरा रखत हए परणाम ककया। उसक नतरो म शरदधा-परम क आस उमड रह थ। वह हाथ जोडकर तनवदन करन लरीः "ररजी ! लोर मझ तान मारत ह कक मीरा त तो महलो म रहती ह और तर रर को रहन क शलए अचछी कहटया भी नही ह। ररदव मझस यह सना नही जाता। अपन चरणो म एक दासी की यह तचछ भट सवीकार कीचजय। इस झोपडी और कठौती को छोडकर तीथगयातरा कीचजय और...."

और आर सत रदासजी न मीरा को बोलन का मौका नही हदया। व बोलः "धररिर नारर की सषवका होकर तम ऐसा कहती हो ! मझ इसकी जररत नही ह। बटी ! मर शलए इस कठौती का पानी ही रराजी ह, यह झोपडी ही मरी काशी ह।"

इतना कहकर रदासजी न कठौती म स एक अजशल जल लकर उसकी िार की और अनको सचच मोती जमीन पर बबखर रय। मीरा चककत-सी दखती रह रयी।

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

विदयाथी जीिन को महान बनान क आठ ददवय सतर

पजय बाप जी ओजसवी-तजसवी व महान बनन क शलए षवदयाथी-जीवन म आठ सदरण आन ही चाहहएः शात सििािः शात रहना सीखो मर बचच ! ૐઽઽઽ..... उचचारण ककया और चजतनी दर

उचचारण ककया उतनी दर शात हो रय। ऐसा 10 स 15 शमनट धयान कर। शात रहन स याददाशत, सामयग बढर और दसर भी कई लाभ होर।

इजनदरय-सयमः कौन ककतनी जयादा दर चप रह सकता ह ? कौन ककतनी दर अपनी इचनदरयो को तनयबतरत कर सकता ह ? – ऐस अपनी इचनदरयो पर अपना परभाव जमाओ। जो चजतना सयमी होता ह, उसका जीवन उतना ही अधिक सफल होता ह।

ननदोष वयिहारः मा-बाप स झठ बोलना, लडना-झरडना आहद दोि चजनम ह – उनक दोि अपन म न आय और उनक भी दोि तनकल, ऐसा अपना तनदोि वयवहार रख। अपनी खशी स दसर क रम हरो। अपनी सझबझ स दसर की बवकफी दर करो बाप क बचच !

सदाचारः झठ-कपट, पलायनवाहदता, कपटाचार अपना बहत नकसान करत ह। चजसक जीवन म सयम ह, सदाचार ह वह षवदयाथी जीवन क हर कषतर म सफल होता ह।

बरहमचयिः ʹहदवय पररणा परकाशʹ पसतक पढना। बरहमचयग का रण षवदयाथी-जीवन म होना ही चाहहए। यह बषदध म परकाश लाता ह, जीवन म ओज-तज, ऊ ची समझ लाता ह कक ʹआतमा बरहम ह, उसको पहचानना ही हमारा लकषय ह।ʹ

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अनासजकतः षवदयाथी आसचकत-रहहत होना चाहहए। ʹमझ ऐसा कपडा चाहहए, ऐसा खाना चाहहए।ʹ नही-नही। हर हाल म मसत रहन का सदरण ! मा-बाप का खयाल रखो और अपन अडोस-पडोस का भी मरल और खयाल....!

सतयागरहः कोई झठ-कपट करक तमह दबाय और तम उसक आर घटन टक क हदखावटी माफी मारो, काह को ? तम सचमच दीन-हीन नही हो तो ऐसा करना भी असत ह। अपनी महहमा म रहो।

सदहषटणताः कोई पररचसथतत सदा नही रहरी। न अपन को पापी मानो, न धचततत मानो, न दोिी मानो। अपन को परभ का और परभ को अपना मानो तो तमहारी सार दोि शमटान की शचकतया षवकशसत होरी।

इन सदरणो क षवकास स सवगरणसमपनन परमातमा का दीदार करना भी आसान हो जायरा।

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

मोबाइि बजा रहा ह खतर की घटी अनक वातनक परयोरो स परमाणणत हो चका ह कक मोबाइल स परसाररत षवदयत-चमबकीय

षवककरण स क सर, मचसतषक-टयमर, नपसकता, आनवाशशक षवकततया, अतनदरा, याददाशत म कमी, शसरददग आहद अऩक भयानक रोर भी होत ह। य इतनी सारी हातनया जो षवान स पकड म आयी, इनक अलावा कछ और भी हातनया भषवषय म पकड म आयरी।

कफनलड की शोि ससथा ʹरडडएशन एड नयचकलयर सफटी अथॉररटीʹ न पाया कक मचसतषक क चजस ओर (दाय-बाय) मोबाइल सटाकर परयोर ककया जाता ह, उस तरफ मचसतषक-क सर होन की समभावना 39 परततशत बढ जाती ह।

कवल मोबाइल ही नही, सामानयतया इमारतो की छत पर सथाषपत मोबाइल एटना या टॉवर भी कम हातनकारक नही ह। जमगनी म ककय रय एक अधययन क अनसार मोबाइल टॉवर भी कम हातनकारक नही ह। जमगनी म ककय रय एक अधययन क अनसार मोबाइल टॉपर की 400 मीटर की पररधि म रहन या कायग करन वाल लोरो म क सर पीडडतो की सखया दस विो म तीन रना बढ रयी। सवीडन म हए शोि स सपषट हआ कक 20 विग की उमर स पवग ही मोबाइल का परयोर शर करन वालो को मचसतषक-क सर का सवागधिक खतरा ह।

षवदयाथी क सवासय एव अधययन म वयविान आन स कई शशकषा बोडो व शशकषण ससथाओ न मोबाइल क इसतमाल पर पाबदी लरा दी ह।

ििकर िी उन खभशयो स न खिो, जजनक पीछ िगी हो गम की कतार।

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वातनक परमाण व रोजमराग क अऩभव हमारी आख खोलन क शलए पयागतत ह। मोबाइल क षवापनो म अकसर आता हः ʹशसफग इतन पस भरो और अनशलशमटड बात करो।ʹ पर याद रणखय आपका समय, आपका जीवन अनशलशमटड नही ह। अततम घडी म एक शवास भी आप अधिक नही ल सकत। आपक जीवन का कषण-कषण कीमती ह और ईशवर की पराचतत क शलए ह। अपन कीमती समय को कीमती-म-कीमती परमातमा क भजन-सशमरन, सतसर, सतकमग म लराय, मोबाइल की मसीबतो म न उलझ।

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

दःखद ननमतरण

अशि वििाह

अमगि गटखा खादय, अमगि सरापानम। अमगि धमरपान, अमगि सििदवयिसनम।।

सनही सिजन

रच.क सर कमार उिि िाइिाज मरकट

(कपतर-शरी असयम भसह एि तमबाक दिी) ननिास सथानः वयसनपर

सग

सौ. बीडी कमारी उिि भसगरट दिी कपतरी-चरमदास एि कोकीन बहन) ननिास सथानः दःखनगर

का अशभ षववाह तय हो रया ह। अतः इस भयकर परसर पर ककमाम काका, कॉफी काकी, रटखा मामा, पान-मसाला मामी, शराब फफा, चटकी बआ, राजा मौसा, चाय मौसी, समक बहनोई, हरोइन बहन, चना दादा, खनी दादी जस दषट बजरो की उपचसथतत म नव दमपचतत को अशभशाप परदान करन हत आप सभी महानभाव सादर आमबतरत ह।

सचनाः बारात का समय सषविानसार ह। बारात वयसनपर स ऐमबयलस दवारा असपताल पहचरी। वहा स शमशान घाट जायरी, जहा बाराततयो का सवारत शमशान अचगन स तनरनतर जारी रहरा।

वििाह सथि

रचता ििन, न. 2, कषटट महलिा, दगिनत गिी, दःख नगर

जज. यमपरी (नरक िोक) – 420420

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आन स पहल खब सोच-षवचार लो कयोकक आना सलभ ह पर वापस जाना.... अनकरमणणका

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

एकादशी वरत माहातमय

मानव-जीवन का मखय उददशय परमातमपराचतत ही ह। शारीररक सवासय, मनोबल और बषदध का सततव इन तीनो स समपनन मनषय ही भोर और मोकष पा लता ह। इसम समझपवगक ककय रय एकादशी आहद वरत-उपवासो की अतयत महततवपणग भशमका ह। मनषय की सवाारीण उननतत क सतर इनम तनहहत ह।

ननजििा एकादशी (जयषटठ शकि पि)- विगभर की एकादशशयो का फल इस एकादशी को करन स परातत हो जाता

ह। इस हदन ककय रय दान-पणय, हवन-होम का फल अकषय होता ह। राबतर जाररण क साथ तनजगला एकादशीʹ करन वाल की बीती हई और आऩ वाली सौ पीहढयो को परम िाम की पराचतत होती ह।

शयनी (दिशयनी) एकादशी (आषाढ शकि पि)- यह महान पणयमयी, सवरग व मोकष परदान करन वाली ह। दवशयनी स परबोधिनी एकादशी तक भलीभातत िमग का आचरण करन वाला परम रतत पाता ह।

पापाकशा एकादशी (आजकिन शकि पि)- यह सब पापो को हरन वाली, सवरग व मोकषपरद, शरीर को तनरोर बनान वाली तथा सदर सतरी, िन एव शमतर दन वाली ह। इस हदन उपवास और राबतर जाररण करन वाल माता, षपता तथा पतनी क पकष की 10-10 पीहढयो का उदधार कर लत ह।

रमा एकादशी (कानतिक शकि पि)- इस वरत क परभाव स चनदरभारा हदवय भोर, हदवय रप को परातत हो मदराचल क शशखर पर षवहार करती ह। यह एकादशी बड-बड पापो को हरन तथा धचतामणण व कामिन क समान सब मनोरथो को पणग करन वाली ह।

परबोरधनी/दिउठी एकादशी (कानतिक शकि पि)- षवधिपवगक इस वरत को करन वाला नत सख पाता ह और अत म सवरगलोक जाता ह।

मोिदा एकादशी (मागिशीषि शकि पि)- यह वरत धचतामणण क समान समसत कामनाओ को पणग करन वाला ह। इस वरत क परभाव स पाप नषट होता ह और मरन क बाद मोकष की पराचतत होती ह।

आमिकी एकादशी (िालगन शकि पि) इस हदन आवल क वकष क पास राबतर-जाररण करन स मनषय सब पापो स छट जाता ह और सहसर रोदान का फल पाता ह।

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(िषि की सिी एकादभशयो की विसतत कथाओ तथा वरत मदहमा एि विरध की विसतत जानकारी क भिए पढ आशरम की पसतक ʹएकादशी वरत-कथाएा )

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

सिासय की अनपम कजजयाा सपनदोष दर, बि िी िरपरः दो खब पक कलो का रदा तनकालकर खब फ ट ल। कफर

उसम हर आवलो का रस 1 तोला (11.5 गराम) तथा शदध शहद 1 तोला शमलाकर सबह शाम चाट। कछ ही हदनो क परयोर स परभाव परतयकष हदखरा।

घर म किह-ननिारण, सख, सिासय ि शानत हतः रोज परातः व साय दशी राय क रोबर स बन कड का एक छोटा टकडा जला ल। उस पर दशी राय क घी म शमधशरत चावल क कछ दान डाल द ताकक व जल जाय। इसस घर म सवासय व शातत बनी रहती ह तथा वासतदोिो का तनवारण होता ह।

डरािन, बर सिपनो स बचाि ि बदढया नीद हतः ૐ हरय नमः मतर जपत हए सोय। शसरहान आशरम की तनःशलक परसादी ʹरहदोि-बािा तनवारण यतर रख द।

याददाकत का चमतकाररक पोषकः Memory Booster रोज सबह आवल का मरबबा खान स समरणशचकत म वषदध होती ह। अथवा चयवनपराश खान स इसक साथ की अनय लाभ भी होत ह।

100 गराम सौफ, 100 गराम बादाम व 200 गराम शमशरी तीनो को कटकर शमला ल। सबह यह शमशरण 3 स 5 गराम चबा-चबाकर खाय, ऊपर स दि पी ल। (दि क साथ भी ल सकत ह।) इसस भी याददाशत बढरी।

चमकत दाात, मजबत मसडः िाद नही हकीकत

रात को नीब क रस म दातन क अरल हहसस को डबो द। सबह उस दातन स दात साफ कर तो मल दात भी चमक जायर।

सतताह-पनदरह हदन म एक बार रात को सरसो का तल और सिा नमक शमला क उसस दातो को ररड ल। इसस दात और मसड मजबत बनर।

मधमह को अिविदा (डायबबटीज का रामबाण परयोग) सबह आिा ककलो करल (पक, ससत भी चलर) काटकर एक चौड बतगन म रख क उनह

परो स कचल। जीभ म कडवाहट का एहसास हो तब कचलना छोड द। यह परयोर दस हदन तक कर। इसस मिमह तनयबतरत हो जायरा। आवशयक हो तो यह परयोर दस हदन बाद पनः दोहरा सकत ह।

गहदोष-िासतदोष ननिारक परसादः

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यह आशरम स तनःशलक शमलता ह। इस अपन कमर व कायागलय म रख द। इसको छकर ऋणायनो स समदध बनी हई हवा और िनातमक ऊजाग लाभदायी होरी।

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

शरीर की जविक घडी पर आधाररत ददनचयाि हम कया खात ह कस सोत ह यह चजतना महततवपणग ह, उतना ही महततवपणग ह हम खात

और सोत ह। यहद अपनी हदनचयाग, खान-पान तथा नीद को पराकततक शारीररक कालचकर या शरीर की जषवक घडी क अनरप तनयशमत ककया जाय तो अधिकाश रोरो स रकषा, उततम सवासय एव दीघागय की पराचतत होती ह। समय व षवशि ककरयाशील अर

षववरण

परातः 3 स 5 फफड

बराहममहतग म उठन वाल वयचकत बषदधमान व उतसाही होत ह। थोडा सा रनरना पानी पीकर खली हवा म घम। दीघग शवसन व पराणायाम कर। फफडो को शदध वाय व ऋण आयन षवपल मातरा म शमलन स शरीर सवसथ व सफततगमान होता ह। बराहममहतग म सोय नही। इस समय सोन स जीवन तनसतज हो जाता ह।

परातः 5 स 7 बडी आत

जो वयचकत इस समय भी सोत रहत ह या मल-तयार नही करत, उनकी आत मल म स तयाजय दरवाश का शोिण कर मल को सखा दती ह। इसस कबज तथा कई अनय रोर उतपनन होत ह। अतः परातः जाररण स लकर सबह 7 बज क बीच मल तयार कर लना चाहहए।

सबह 7 स 9 जठर

इस समय (भोजन क 2 घट पहल) दि अथवा फलो का रस या कोई पय पदाथग ल सकत ह।

9 स 11 अगनाशय व तलीहा

यह भोजन क शलए उपयकत ह। इस समय पाचक रस अधिक बनत ह। भोजन स पहल ʹर-र-र...ʹ बीज मतर का जप करन स जठराचगन और भी परदीतत होती ह।

दोपहर 11 स 1 हदय

करणा, दया, परम आहद हदय की सवदनाओ को षवकशसत एव पोषित करन क शलए दोपहर 12 बज क आसपास मधयाहन-सधया करन का षविान हमारी ससकतत म ह। इस समय भोजन न कर।

1 स 3 छोटी आत

लरभर इस समय अथागत भोजन क करीब 2 घट बाद तयास अनरप पानी पीना चाहहए, चजसस तयाजय पदाथो को आर बडी आत की तरफ भजन म

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छोटी आत को सहायता शमल सक। इस समय भोजन करन अथवा सोन स पोिक आहार-रस क शोिण म अवरोि उतपनन होता ह तथा शरीर रोरी व दबगल हो जाता ह।

3 स 5 मतराशय

2 स 4 घट पहल षपय पानी स इस समय मतरतयार की परवचतत होरी।

शाम 5 स 7 रद

इस काल म हलका भोजन कर लना चाहहए। सयागसत क 10 शमनट पहल स 10 शमनट तक (सधयाकाल म) भोजन न कर। दर रात को ककया रया भोजन ससती लाता ह यह अनभवरमय ह। शाम को भोजन क तीन घट बाद दि पी सकत ह।

राबतर 7 स 9 मचसतषक

परातः काल क अलावा इस काल म पढा हआ पाठ जलदी याद रह जाता ह। शाम को दीप जलाकर ʹदीपो जयोनतः पर बरहम....ʹ आहद सतोतरपाठ व शयन स पवग सवाधयाय अपनी ससकतत का अशभनन अर ह।

9 स 11 रीढ की हडडी म मररजज

इस समय की नीद सवागधिक षवशरातत परदान करती ह और जाररण शरीर व बषदध को थका दता ह। राबतर 9 बज क बाद पाचन ससथान क अवयव षवशरातत परातत करत ह, अतः यहद इस समय भोजन ककया जाय तो वह सबह तक जठर म पडा रहता ह, पचता नही ह और उसक सडन स हातनकारक दरवय पदा होत ह जो अमल (एशसड) क साथ आतो म जान स रोर उतपनन करत ह। इसशलए इस समय भोजन करना खतरनाक ह।

11 स 1 षपतताशय

इस समय का जाररण षपतत को परकषपत कर अतनदरा, शसरददग आहद षपतत-षवकार तथा नतररोरो को उतपनन करता ह। राबतर को 12 बजन क बाद हदन म ककय रय भोजन दवारा शरीर क कषततगरसत कोशो क बदल म नय कोशो का तनमागण होता ह। इस समय जारत रहोर तो बढापा जलदी आयरा।

1 स 3 यकत इस समय शरीर को रहरी नीद की जररत होती ह। इसकी पतत ग होन न पर पाचनततर बबरडता ह।

ननमन बातो का िी विशष रधयान रख ऋषियो व आयवदाचायो न बबना भख लर भोजन करना वचजगत बताया ह। अतः परातः एव

शाम क भोजन की मातरा ऐसी रख, चजसस ऊपर बताय समय म खलकर भख लर। सबह व शाम क भोजन क बीच बार-बार कछ खात रहन स मोटापा, मिमह, हदयरोर

जसी बीमाररया और मानशसक तनाव अवसाद (Mental stress & depression) आहद का खतरा बढता ह।

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जमीन पर कछ बबछाकर सखासन म बठकर ही भोजन कर। कसी पर बठकर भोजन करन स पाचन शचकत कमजोर तथा खड होकर भोजन करन स तो बबलकल नहीवत हो जाती ह। इसशलए ʹबफ डडनरʹ स बचना चाहहए।

भोजन क तरनत बाद पानी न षपय, अनयथा जठराचगन मद पड जाती ह और पाचन ठीक स नही हो पाता। अतः डढ-दो घट बाद ही पानी षपय। भोजन क बीच-बीच म रनरना पानी अनकलता अनसार घट-घट षपय। कफरज का ठडा पानी कभी न षपय।

इस परकार थोडी सी सजरता हम सवसथ जीवन की पराचतत करा दरी। अनकरमणणका

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

पररपरकनन

परकनः ननयभमत सतसग-शरिण स कया िाि होत ह ?

पजय बाप जीः तनयशमत रप स सतसर सनर तो आपका मन हलकी कामनाओ और तचछ आकिगणो स बच जायरा। यहद कोई वयचकत बार-बार सतसर सनता षवचारता ह तो वह शरषठ-म-शरषठ उस परमातम दव का साकषातकार भी कर सकता ह। सतसर-शरवण स अतःकरण म जो शातत और आनद फलता ह, उसक आर सवरग का सख भी अतयत तचछ ह।

परकनः जीिन म शरदधा का कया महतति ह ?

पजय बाप जीः शरदधा एक ऐसा सदरण ह कक यह चजसक हदय म रहता ह वह रसमय हो जाता ह, उसकी हताशा, तनराशा, पलायनवाहदता नषट हो जाती ह। भरवान, भरवतपरातत महापरि, शासतर, ररमतर और अपन-आप पर शरदधा परम सख की अमोघ कजी ह। ʹनारद पराणʹ म शरी सनकजी कहत ह-

शरदधापिािः सििधमाि मनोरथििपरदाः। शरदधया सारधयत सि शरदधया तषटयत हररः।। ʹशरदधापवगक आचरण म लाय हए ही सब िमग मनोवातछत फल दन वाल होत ह। शरदधा स

सब कछ शसदध होता ह और शरदधा स ही भरवान शरीहरर सतषट होत ह।ʹ परकनः विकि म शासतरो का अथाह िणडार ह परनत उनम स ʹशरीमद िगिद गीताʹ सििशरषटठ

कयो ह ?

पजय बाप जीः रीता सवगशासतरमयी ह। इसम सार शासतरो का सार भरा ह। रीता कमगयोर, ानयोर और भचकतयोर की बतरवणी ह। इसन मातर भारत म ही नही बचलक षवशव क अनक दशो म अपन हदवय ान का परकाश फलाया ह। इस छोट-स गरथ म जीवन की रहराइयो को छत ऐस सतय व ानयकत षवचारो का समावश ह, चजनक तनतय अधययन एव धचतनमातर स मनषय की

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हताशा, तनराशा एव धचताए शमट जाती ह और उसम साहस, समता, सरलता, सनह, शातत िमगतनषठा आहद दवी रण सहज ही षवकशसत हो उठत ह। रीता गरथ पर षवशव म अदषवतीय ह।

परकनः िौनतक विकास क साथ आरधयाजतमक विकास कयो जररी ह ?

पजय बाप जीः वासतव म भौततक षवकास उनही क जीवन म शोभा पाता ह चजनक जीवन म आधयाचतम रस का षवकास हआ ह। अरर मानव-समाज आधयाचतमक रस को भलकर कवल भौततक षवकास म ही लरा रह तो वह षवनाश की ओर जान लररा जसी आज भौततक दचषट स षवकशसत दशो की दशा ह। भौततक वसतए कवल बाहय सषविाए दती ह। भीतर की शातत और आनद नही दती। चजसन भौततक षवकास क साथ-साथ आधयाचतमक षवकास की ओर धयान हदया ह, वही सरलता स आर बढ सका ह।

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

बोिता मसकराता कमियोग

महान कमगयोरी पजय बाप जी की जीवनचयाग का अवलोकन ककया जाय तो लरता ह जस कमगयोर न सवय शरीर िारण कर शलया हो। तनदा व सततत क ककतन ही परसर आय-रय लककन महाकमगयोरी का कमगयोर, अलौककक आनद बाटन का सवाकायग अबाधित रतत स सतत चलता ही रहा ह। महाकमगयोरी बाप जी सवय तो कमगयोर म रह रहत ही ह, साथ ही अपन करोडो शशषयो को भी पराणणमातर क हहत क शलए सवाकायो म लरात ह।

पजय बाप जी कहत ह- "समाज क अनक लोर पीडा गरसत ह, उनका धयान रख। महदर तो बनन चाहहए लककन ररीबो क शलए मकान भी बनन चाहहए, आरोगय कनदर भी बनन चाहहए, उनह कपड भी शमलन चाहहए।

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

सिाकायो की झिक

हर साल दश क सकडो सथानो म सतसर-कायगकरमो क दवारा करोडो लोरो का आधयाचतमक, नततक, सामाचजक एव सवासयसमबिी मारगदशगन और सवाारीण षवकास।

धयान योर शशषवरो क माधयम स हर साल लाखो सािको का षवहर (हवाई) मारग स आधयाचतमक षवकास।

17000 स अधिक बाल ससकार कनदर। ररीब बचचो म नोटबको व परसाद आहद का षवतरण।

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षवदयालयो म ʹयोर व उचच ससकार शशकषाʹ कायगकरम। यवा सवा सघ, महहला उतथान मणडल, बाल मणडल, कनया मणडल व छातर मणडल दवारा

भचकत जारतत यातराए। वयसनमचकत अशभयान। वकषारोपण स पयागवरण-सरकषा। ररीबो-आहदवाशसयो म तनयशमत तनःशलक अनाज षवतरण। कारारह म परोजकटर-सतसर। शीतल पलाश शरबत, छाछ व जल का तनःशलक षवतरण। ररीबो, मजदरो म रमग भोजन क डडबबो (हॉट-कस) का षवतरण। पराकततक आपदाओ (अकाल, बाढ, भकमप आहद) म सवाकायग। ररीबो, बरोजरारो, वदधो क शलए ʹभजन करो, भोजन करो, दकषकषणा पाओʹ योजना। आयवहदक, होशमयोपधथक, एकयपरशर व पराकततक धचककतसा सवाए एव ररीब इलाको हत

चल-धचककतसालय सवा (मोबाइल डडसपनसरीज)। असपतालो म सवा- मरीजो को फल, दवाओ व सतसाहहतय आहद का षवतरण। रौ सवा- कतलखान ल जायी जा रही हजारो रायो का सरकषण-पालन।

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

जीिनशजकत का विकास कस हो ?

छातरो क महान आचायि पजय बाप जी दिारा सकषम विकिषण

हमार शारीररक व मातनसक आरोगय का आिार हमारी जीवनशचकत (Life Energy) ह। इस ʹपराणशचकतʹ भी कहत ह। हमार जीवन जीन क ढर क मताबबक हमारी जीवनशचकत का हरास या षवकास होता ह। हमार ऋषि-मतनयो न जीवन का सकषम तनरीकषण करक जीवनशचकत षवियक रहनतम रहसय खोज शलय थ। डॉ. डायमड न उन मनीषियो की खोज को अधययन व परयोर की सहायता स समझन का परयास ककया। (जीवनशचकत को परभाषवत करन वाल आठ घटको म स तनमनशलणखत दो घटको पर हम षवचार करर।)

आहार का परिाि

बरड, बबसकट, शमठाई, फासटफड आहद कबतरम खादय पदाथो स तथा बार-बार रमग ककय हए और अततशय पकाय हए पदाथो स जीवनशचकत कषीण होती ह।

एक सामानय आदमी की जीवनशचकत यतर क दवारा जाच लो, कफर उसक मह म शककर दो और जीवनशचकत यतर क दवारा जाच लो, कफर उसक मह म शककर दो और जीवनशचकत को

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जाचो, वह कम हई शमलरी। डॉ. डायमड न परयोरो स शसदध ककया कक कबतरम शककर आहद पदाथो क उपभोर स जीवनशचकत का हरास होता ह और पराकततक फल, सबजी आहद क सवन स षवकास होता ह।

िौनतक िातािरण का परिाि

टररलीन, पोशलएसटर आहद शसथहटक कपडो स तथा रयॉन, तलाचसटक आहद स बनी हई चीजो स जीवनशचकत को कषतत पहचती ह। रशम ऊन, सत आहद पराकततक चीजो स बन हए कपड, टोपी आहद स यह नकसान नही होता।

ररीन चशमा, इलकटरातनक घडी, ऊ ची एडी की चतपल, सडल आहद पहनन स जीवनशचकत कम होती ह। परायः तमाम परफयमस शसथहटक (कबतरम) होत ह। व सब हातनकारक शसदध हए ह। बफग वाला पानी पीन स जीवनशचकत एव पाचनशचकत कम होती ह।

ककसी भी परकार की फलोरोसनट लाइट, टयबलाइट क सामन दखन स जीवनशचकत कम होती ह। उदयोरो क कारण होन वाल वाय-परदिण स भी जीवनशचकत का हरास होता ह।

बीडी, शसररट, तमबाक आहद क वयसन स पराणशचकत को अतयत हातन होती ह। कवल इन चीजो का वयसनी ही नही बचलक उसक समपकग म आन वाल भी इनक दषपररणामो क शशकार होत ह।

एकस-र-मशीन क आसपास दस फट क कषतर म जान वाल आदमी की पराणशचकत म कमी आती ह।

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

योगामत

गोमखासन

इस आसन म शरीर का आकार राय क मख जसा हो जाता ह, इसशलए यह ʹरोमखासन कहलाता ह।

िािः दमा, कषय व फफडो स सबधित बीमाररयो क शलए यह बहत उपयोरी माना रया ह।

पाव, भजाए, कि, घटन कमर बलवान तथा हडडडया मजबत बनती ह। वीयग पषट होन स यह बरहमचयग तथा अचछ सवासय क शलए सहायभत

ह।

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विरधः जमीन पर बठ जाय। बाय पाव को मोडकर एडी का हहससा रदा पर लराय। कफर दाय पर को मोडकर उसकी एडी बाय तनतमब की बरल म सटा द। परो क पज सीि व जमीन स लर रह और घटन एक दसर स सट रह।

अब दाय हाथ को रल की बरल क नीच स होकर पीछ की ओर स ल जाकर व बाय हाथ को बायी ओर उलटकर बायी बरल क नीच स होकर पीठ की तरफ स इतना रदगन की तरफ लाय कक दोनो हाथो की आठो उरशलया आपस म फ स जाय। कफर कमर क उपरी भार को सीिा रखत हए चसथर रह। इसम आख खली हो और शवास सािारण चलना चाहहए। कफर इस ककरया को हाथ व परो को बदलकर करना चाहहए।

मयरासन

इस आसन क अभयास स पदमासन और मयरासन दोनो स होन वाल लाभ शमलत ह। इसशलए इस ʹपदममयरासन या मयरपदमासनʹ कहत ह।

िािः चहर का तज बढता ह। बरहमचयग-पालन म सहायता शमलती ह। शरीर क जहरील तततव नषट हो जात ह। सीना, फफड, तलीहा, यकत, रद, अगनाशय आहद सभी अर सचार रप स कायगशील बनत ह।

विरधः पदमासन लराकर जमीन पर घटनो क बल खड हो जाय। दोनो हाथो क बीच चार अरर का अतर रखत हए हाथो को कोहतनयो स मोडकर नाशभ क आसपास पट क कोमल भार पर रख तथा शवास भरत हए आर की तरफ झककर परो को पदमासन की चसथतत म ही रखकर पीछ की ओर लमबा कर। परा शरीर जमीन क समानातर रह। इस चसथतत म यथासमभव रह। पनः मल चसथतत म आत हए शवास छोड। इस आसन को 3 स 5 बार कर।

पादागषटठासन

इसम शरीर का भार कवल पाव क अरठ पर आन स इस ʹपादारषठासनʹ कहत ह। वीयग की रकषा व ऊधवगरमन हत महततवपणग होन स सभी को षवशितः बचचो व यवाओ को यह आसन अवशय करना चाहहए।

िािः अखड बरहमचयग की शसषदध, वजरनाडी(वीयगनाडी) व मन पर तनयतरण तथा वीयगशचकत को ओज म रपातररत करन म उततम ह।

मचसतषक सवसथ रहता ह। बषदध की चसथरता व परखरता शीघर परातत होती ह। रोगो म िािः सवतनदोि, मिमह, नपसकता व वीयगदोिो म षवशि लाभदायी ह। विरधः पजो क बल बठ । बाय पर की एडी सीवनी (रदा व जननचनदरय क बीच का सथान)

पर लराय। दोनो हाथो की उरशलया जमीन पर रखकर दाया पर बायी जाघ पर रख। सारा भार

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बाय पज पर (षवशितः अरठ पर) सतशलत करक हाथ कमर पर या नमसकार की मदरा म रख। परारमभ म कछ हदन आिार लकर कर सकत ह। कमर सीिी व शरीर चसथर रह। शवास सामानय, दचषट आर ककसी बबनद पर एकागर व धयान सतलन रखन म हो। यही ककरया पर बदलकर भी कर।

समयः परारमभ म दोनो परो स आिा एक शमनट कर। दोनो परो को एक समान समय दकर यथासमभव बढा सकत ह।

सािधानीः अततम चसथतत क शलए शीघरता नही कर, करमशः अभयास बढाय। इस हदन भर म दो-तीन बार कभी भी कर सकत ह ककत भोजन क तरत बाद न कर।

गोरिासन

िािः सकलपबल बढता ह। बषदध तीकषण होती ह। कलपनाशचकत का षवकास होता ह। तन म सफततग एव मन म परसननता अपन आप परकट होती ह। सनाय सदढ बनत ह।

िातकषय, सवतनदोि, अजीणग, कमर का ददग, मदाचगन, शसरददग, अतनदरा, उदररोर, नतरषवकार आहद असखय रोरो म इस आसन स लाभ होता ह।

विरधः बबछ हए आसन पर बठ जाय। दाहहन पर घटन स मोडकर एडी सीवन (उपसथ और रदा क मधय) क दाहहन भार म और बाया पर मोडकर एडी सीवन क बाय भार म ऐस रख कक दोनो पर क तलव एक दसर को लरकर रह।

शवास लकर दोनो हाथ सामन जमीन पर टककर शरीर को ऊपर उठाय और दोनो परो क पजो पर इस परकार बठ कक शरीर का वजन एडी क मधय भार म आय। उरशलयो वाला भार छटा रह। अब शवास छोडत हए दोनो हाथो की हथशलयो को दोनो घटनो पर रख। अत म बहहकग मभक करक ठोडी छाती पर दबाय। धचततवचतत मलािार चकर म और दचषट भी उसी हदशा म लराय। करमशः अभयास बढाकर दस शमनट तक यह आसन कर सकत ह।

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गरडासन

इस आसन म शरीर का आकार ररड पकषी क समान हो जाता ह, इसशलए इस ʹररडासनʹ कहत ह।

िािः इसस परो, घटनो और जाघो को बल शमलता ह। कि, कोहतनयो, घटनो, परो और जोडो तथा समपणग भजाओ म ककसी परकार का ददग या कमपन आहद हो तो इस आसन क अभयास स ठीक हो जाता ह। इस आसन स शरीर क सतलन व एकागरता म वषदध होती ह।

विरधः धचतर म दशागय अनसार खड होकर बाय पाव स दाय पाव की जघा और षपडशलयो को लपट ल तथा दोनो हाथो को इस परकार लपट कक रससी क समान समपणग भजा बट जाय। कछ समय इसी चसथतत म खड रहकर कफर दाय घटन को थोडा-सा मोडत हए शरीर को कछ नीच लाय। धयान रह कक लपटा हआ हाथ छाती क सममख ररड की चोच क समान

होरा। पनः सीि खड हो जाय व पर बदलकर अभयास कर।

काििरिासन

सचषट सहार क समय कालभरव चजस परकार का भयकर रप िारण करत ह, इस आसन म ठीक वसी ही शारीररक चसथतत होती ह। इसशलए इसको शसदधो न ʹकालभरवासनʹ कहा ह।

िािः शरीर म दढता आती ह और आतररक बल भी बढता ह। तनभीकता आती ह। शरीर म सफततग आती ह। चजहवा व रल क रोर और टॉचनसलस की तकलीफ म आराम शमलता ह।

यह आखो क शलए भी परम उपयोरी माना रया ह। इसस चहर पर होन वाल फोड-फशसया ठीक हो जात ह।

इसका अभयास करन पर चहर पर अदभत कातत आ जाती ह तथा सीना चौडा व सदर हो जाता ह। विरधः दोनो परो क बीच एक एक फट का अतर रखकर इस परकार खड हो कक एक पर क पीछ दसरा पर हो। कफर धचतर म हदखाय अनसार एक हाथ को आर और दसर हाथ को पीछ करत हए और मख को पणगतया खोलकर जीभ को बाहर तनकालत हए दोनो आखो को पणगतया खोलकर दोनो भौहो को दखत हए, बबना ककसी हहलचाल क चसथर रह।

दटपपणीः इस पर बदलकर भी करना चाहहए।

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बवदधशजकतयौरगक परयोगः िािः इसक तनयशमत अभयास स ानतत पषट होत ह। चोटी क सथान क नीच राय क खर क आकारवाला बषदधमडल ह, चजस पर इस परयोर का षवशि परभाव पडता ह और बषदध व िारणाशचकत का षवकास होता ह। विरधः सीि खड हो जाय। हाथो की महटठया बद करक हाथो को शरीर स सटाकर रख। शसर पीछ की तरफ ल जाय। दचषट आसमान की ओर हो। इस चसथतत म रहरा शवास 25 बार

ल और छोड। मल चसथतत म आ जाय।

मधाशजकत यौरगक परयोग

िािः इसक तनयशमत अभयास स मिाशचकत बढती ह। विरधः सीि खड हो जाय। हाथो की महटठया बद करक हाथो को शरीर स सटा

कर रख। आख बद करक शसर को नीच की तरफ इस तरह झकाय कक ठोढी कठकप स लरी रह और कठकप पर हलका-सा दबाव पड। इस चसथतत म रहरा शवास 25 बार ल और छोड। मल चसथतत म आ जाय।

विशषः उपरोकत दोनो परयोरो म शवास लत समय मन म ʹૐʹ का जप कर व छोडत समय उसकी धरनती कर।

रधयान द- य दोनो परयोर सबह खाली पट कर। शर-शर म 15 बार शवास ल और छोड, कफर िीर-िीर बढात हए 25 तक पहच।

उनननत की उडानः ʹकिकʹ

शवास को अदर भरकर रोक दना इस ʹआभयातर कमभकʹ कहत ह। शवास को पणगतया बाहर तनकालकर बाहर ही रोक रखना इस ʹबाहय कमभकʹ कहत ह।

िािः आभयातर कमभक स आरोगय तथा बल की वषदध होती ह। बाहया कमभक स पाप, ताप, रोर व शोक तनवतत होत ह। कमभक क अभयास स वयचकत सवासय व दीघागय परातत करता ह।

वीयग ऊधवगरामी होकर शरीर को पषट, तजसवी व काततमान बनाता ह। कमभक शवास को लमबा, रहरा व लयबदध बनाता ह। इसस शवास कम खचग होत ह व आय बढती ह।

विरधः पदमासन, शसदधासन या सखासन म बठ जाय। मसतक, रदगन और छाती एक सीिी रखा म व आख आिी खली, आिी बद रह।

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अब दोनो नथनो स रहरा शवास ल और एक शमनट आभयातर कमभक कर। कफर शवास को िीर-िीर बाहर छोड द। 4-5 सामानय शवास ल ल, कफर रहरा शवास ल और परा बाहर तनकाल कर 40 सकणड तक बाहय कमभक कर। कफर शवास लकर सामानय शवास चलन द। इस परकार 7 बार आभयातर व 7 बार बाहय कमभक कर। इस दौरान परणव ૐ अथवा ररमतर का मानशसक जप चाल रख। बतरबि क साथ कमभक ककया जाय तो वह पणग लाभदायी शसदध होता ह।

बतरबि म सवगपरथम मलबि कर यानी शवास लन स पहल रदा को अदर शसकोड ल, कफर उडडीयान बि कर अथागत नाशभ क सथान को अधिक स अधिक भीतर व ऊपर की ओर शसकोड ल, उसक बाद दोनो नथनो स खब शवास भरकर ठोडी को रल क बीच म जो खडडा (कठकप) ह, उसम दबा द – यह हो रया जालनिर बि। अब आभयातर व बाहय कमभक करन क पशचात उडडीयान बि, कफर जालिर बि, कफर मलबि खोल।

अजकिनी मदरा-अकिशजकत (हासि पािर) िािः इस करन स 132 परकार की बीमाररया दर होती

ह। शवत परदर, िातकषय, सवतनदोि, पट क षवकार दर होत ह। सितत शचकतया णखल उठती ह। बषदध व वयचकततव परभावशाली

बनत ह। घोड की तरह परचड शचकत का भडार परातत होता ह। विरधः सबह खाली पट चटाई या कमबल बबछा क पवग अथवा दकषकषण की तरफ शसर करक

शवासन म लट जाय। परा शवास बाहर फ क द और 30-40 बार रदादवार का आकचन-परसरण कर, जस घोडा लीद छोडत समय करता ह। इस परककरया को 4-5 बार दहराय।

जञानमदरा-एकागरता(Concentration) िािः मानशसक रोर जस की अतनदरा अथवा अतततनदरा, कमजोर याददाशत, करोिी

सवभाव आहद हो तो यह मदरा अतयनत लाभदायक शसदध होरी। यह एकागरता म परम लाभदायी ह।

यह मदरा करन स पजा पाठ, धयान भजन म मन लरता ह। विरधः तजगनी अथागत परथम उरली को अरठ क नकील भार पर सपशग कराओ।

शि तीनो उरशलया सीिी रह। अिरधः इस मदरा का परततहदन 30 शमनट करना चाहहए।

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अपानिाय मदरा िािः हदयरोरो जस कक हदय की घबराहट, हदय की तीवर या मद रतत, हदय

का िीर-िीर बठ जाना आहद म थोड ही समय म लाभ होता ह। अरर ककसी को हदयाघात (हाटग-अटक) आय या हदय म अचानक पीडा होन लर, तब तरत ही यह मदरा करन स हदयाघात को भी रोका जा सकता ह।

पट की रस, मद की वषदध और हदय तथा पर शरीर की बचनी इस मदरा क अभयास स दर होती ह।

विरधः अरठ क पासवाली पहली उरली को अरठ क मल म लरा क अरठ क अगरभार को बीच की दोनो उरशलयो क अगरभार क साथ शमलाकर सबस छोटी उरली (कतनचषठका) को अलर स सीिी रख।

अिरधः आवशयकतानसार हर रोज 20 स 30 शमनट तक इस मदरा का अभयास ककया जा सकता ह।

अपान मदरा िािः शारीररक व मानशसक पषवतरता म वषदध होती ह और अभयासकताग म

साचततवक रणो का समावश होन लरता ह। मतर उतसजगन म कहठनाई, पटददग, कचबजयत और मिमह जसी बीमाररयो म

लाभदायक ह। छाती और रल म कफ जम रया हो तो इस मदरा क अभयास स कफ को भी सहज ही उतसचजगत ककया जा सकता ह।

विरधः अरठ क अगरभार स मधयमा और अनाशमका (छोटी उरली क पास वाली उरली) क अगरभारो का सपशग कर। बाकी की दो उरशलया सहजावसथा म सीिी रख।

अिरधः इस मदरा का अभयास ककसी भी समय, ककतनी भी अवधि क शलए कर सकत ह, परत परततहदन तनयशमत रप स कर।

अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

सत शरी आशारामजी आशरम दिारा आयोजजत

ददवय पररणा परकाश जञान परनतयोरगता क परकनपतर का परारप

समयः 1.30 घटा कि अक- 100

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आपकी जानकारी क शलए यहा कछ नमन हदय रय ह। ʹहदवय पररणा परकाश ान परततयोधरताʹ म ऐस 100 सरल व षवकलपातमक परशन () होर। ʹह िीर आग बढोʹ साहहतय स 70 अक और शरीमद भरवद रीता, महाभारत व रामायणʹ गरनथो स 30 अक क परशन होर।

ननमनभिणखत ररकत सथानो की पनत ि हत सही विकलप का करमाक कोषटठक म भिख। भारत का सवाारीण षवकास सचचररतरता और .......... यवािन पर ही आिाररत ह। ( ) 1.फशनपरसत 2.सयमी 3. अशशकषकषत 4.तनबगल

............... न 14 फरवरी को ʹमात-षपत-पजन हदवसʹ मनान का आहवान ककया ह। ( ) 1.रामतीथगजी 2.रािी जी 3.पजय सत शरी आशारामजी बाप 4.ततलकजी। ..............करन स 132 परकार की बीमाररया दर होती ह। ( ) 1.कालभरवासन 2.अपानमदरा 3 हलासन 4.अचशवनी मदरा। एकादशी वरत –

1 रोरविगक 2 पणयदायक 3.पापविगक 4.तीनो सही ( ) ૐकार मतर क जप स परातत ऊजाग (बोषवस म) – 1.75000 2.11000 3.6500 4.70000 ( ) उरचत भमिान कीजजए

शमठाई फासटफड ररपजन का पवग राबतर 7 स 9 बज पाच बार पढ-पढाय वयासपणणगमा जीवनशचकत का हरास

ʹहदवय पररणा परकाशʹ पसतक मचसतषक की षवशि सककरयता ननमनभिणखत िचन फकनक ह, यह नीच ददय गय विकलपो म स छाादटय। "अनन को रकत बनाकर सौनदयग दन वाला वह आतमा ककतना सनदर होरा।" ( ) "आपक करोि की परीकषा तो बाद म होरी, मरा मह तो पहल ही रदा हो जायरा।" ( ) "रर बबन भव तनधि तरहह न कोई। जो बबरधच शकर सम होई।।" ( ) षवकलपः 1.सत तलसीदासजी 2. मचललका 3.मदनमोहन मालवीय जी। शरीमद िगिद गीता, रामायण ि महािारत गरथो पर आधाररत परकन

ʹʹयो म जपय म ह।ʹʹ य वचन ककनक ह ?

1.भरवान शरीकषण 2.अजगन 3.भरवान शशवजी। ( ) हनमान जी क अनसार षवपचततकाल कौन-सा होता ह ?

1.जब भरवत सशमरन न हो 2.जब िन तछन जाय 3.जब रोर आ घर। ( ) भीम न कौन-स हदन बबना अनन-जल क वरत रखा था ? ( ) 1.दवउठी एकादशी 2.शशवराबतर 3.तनजगला एकादशी

अनकरमणणका

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अनकरमणणका ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ