तृतीय अÚयाय िग Ðरराज कशोर के कथा...

73
117 तृतीय अÚयाय िगǐरराज Ǒकशोर के कथा-साǑह×य मɅ वèतुǒवधान 3.1 िगǐरराज Ǒकशोर कȧ कहािनयɉ का वèतु -ǒवधान 3.1.1 सामाǔजक 3.1.2 आिथ[क 3.1.3 राजनैितक 3.1.4 सांèकृ ितक 3.1.5 दÝतरȣजीवन या नौकरशाहȣ 3.1.6 आधुिनकता-बोध 3.1.7 महानगरȣय जीवन-बोध 3.2 िगǐरराज Ǒकशोर के उपÛयासɉ का वèतुǒवधान 3.2.1 सामाǔजक 3.2.2 आिथ[क 3.2.3 राजनैितक 3.2.4 सांèकृ ितक 3.2.5 दÝतरȣजीवन या नौकरशाहȣ 3.2.6 आधुिनकता-बोध 3.2.7 महानगरȣय जीवन-बोध

Upload: others

Post on 22-Jan-2020

13 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • 117

    तृतीय अ याय िग रराज कशोर के कथा-सा ह य म व तु वधान

    3.1 िग रराज कशोर क कहािनय का व तु- वधान

    3.1.1 सामा जक

    3.1.2 आिथक

    3.1.3 राजनैितक

    3.1.4 सां कृितक

    3.1.5 द तर जीवन या नौकरशाह

    3.1.6 आधुिनकता-बोध

    3.1.7 महानगर य जीवन-बोध

    3.2 िग रराज कशोर के उप यास का व तु वधान

    3.2.1 सामा जक

    3.2.2 आिथक

    3.2.3 राजनैितक

    3.2.4 सां कृितक

    3.2.5 द तर जीवन या नौकरशाह

    3.2.6 आधुिनकता-बोध

    3.2.7 महानगर य जीवन-बोध

  • 118

    तृतीय अ याय िग रराज कशोर के कथा-सा ह य म व तु वधान

    आधुिनक एवं वै ािनक जीवन के वीकार से जहाँ मनु य-जीवन तेज़ी से प रवितत हो रहा है वह ं दूसर ओर जीवन ज टल-सा बनता जा रहा है । ऐसी थित म मनु य क अ मता और अ त व पर -िच ह लग गया है । सारे संदभ, थितयाँ समय के साथ बदलती जा रह ह, जसम से मनु य के िलए रा बनाना मु कल सा हो गया है । वमतान जीवन क गित और थित को रचना मक धरातल पर अिभ य देने का ईमानदार और साथक यास जन कथाकार ने कया है, उनम िग रराज कशोर का नाम अ ग य है ।

    िग रराज कशोर के मतानुसार – ‘‘आज कथाकार म अनुभूित क गहराई बढ़ है। उनम अिभ य क मता भी बढ़ है । वषय का व तार भी हुआ है । यह जो अभाव का व फोट हुआ है उसका लाभ हमारे लेखक कम उठा पा रहे ह । व ान, ौ ोिगक , राजनीित, उपभोगवाद, खुली आिथक यव था, आिथक परतं ता, जीवन के

    मू य, अफसरशाह , ाचार, अवसरवा दता, जाितवाद पर िनभरता, ेन ेन आ द इतने वषय ह क या तो हमारे लेखक का अनुभव उन े म नग य है या फर वे उन अनुभव पर िलखना नह ं चाहते ह । इन वषय पर लखते ह तो वे अलग-अलग पड़ जाते ह । इससे कथा-जगत समृ नह ं होगा । न इसका व तार हो पाएगा ।’’1

    3.1 िग रराज कशोर क कहािनय का व तु- वधान : समकालीन कहानीकार म िग रराज कशोर का थान सव प र है । उनके पास

    समृ जीवानुभूित है, जसे वे केवल देखते-परखते ह नह ं अ पतु रचना-धरातल पर उतारते ह । वे जीवनानुभव को महज घटनाओं ारा तुत ह नह ं करकते, ब क वयं को भी तुत करते ह । जंदगी का वषैलापन, कंुठाएं और यथाथ को अपनी रचना तर पर उतारने क या से गुज़रते हुए वे अनुभव करते ह –

    ‘‘म बराबर महसूस करता रहा हूँ क कहािनयाँ िलखना धीरे-धीरे क ठन होता जा रहा है । इसका कारण जीवन के उलझाव और कंुठाएँ तो ह ह , साथ ह अपनी भी अपनी ह अ वेषक बनती जा रह है और िनममता के साथ सदा चीरफाड़ करती रहती ह। जब य जानता रहता है क उसके अपने अ दर ह एक ऐसा काँटा लगा हुआ है,

  • 119

    जो कुछ भी वह करता है, उसका लेखा-जोखा उस काँटे पर आता रहता है, तो सम याओं का कोई ओर छोर नह ं रहता ।’’2

    साठो र कथाकार म िग रराज कशोर एक मह वपूण ह ता र ह । उ ह ने मानव समाज क गित विधय और प रणाम पर आधा रत कहािनयाँ िलखी ह । वे साहसी कथाकार ह । उ ह ने वयं िलखा है - ‘‘राजनीितक प रवेश, मानवीय संबंध , पित-प ी के बनते- बगड़ते र ते, ी क थित, सामा जक अंत वरोध , ब च क मानिसकता, व ान और ौ ोिगक के नकारा मक-सकारा मक और अमानवीय यवहार के बारे म कहािनयाँ िलखकर मने जंदगी और समाज के साथ अपना एक व तृत संवाद था पत करने का य कया है ।’’3

    िग रराज कशोर ने अपनी कहािनय म म यवग य तथा िन न म यवग य साथ ह साथ िन न वग य प रवार क यथा-कथा का िच ण कया है । उ ह ने अपनी कहािनय म आधुिनक युग म हो रहे मू य वघटन, राजनीितक दाँव-पेच , द तर म हो रहे अनाचार, आिथक असमानता, अंत वरोध तथा जै वक, यावसाियक, अपरािधक, ए सचज और सां कृितक असां कृितक काम संबंध पर आधा रत कहािनयाँ िलखी ह । हर य वभावतः कहानीकार होता है । य क वह अपने जीवन म या प रवेश म घ टत होने वाली घटनाओं का यौरा कसी न कसी को ज र सुनाता है । यह देखन-ेसुनने क वृ ह य को कहानीकार बनाती है । कहानीकार जब कहानी िलखना चाहता है, तो उसे भटकने क आव यकता नह ं होती । वह भो भोगता है, अनुभव करता है, सहता है उसी से उसे कहानी क साम ी िमलती है । य के जीवन म घ टत हर घटना एक अलग मह व रखते हुए उसे एक अलग अनुभव देती है । उसम जीवन क कटुता, महानता, दुःख, लाचार , आदत, ेम, यां कता आ द कई पहलू हो सकते ह ।

    कसी भी रचनाकार के सा ह य क पहचान उसक रचना मक वृ याँ ह कराती ह, जो उसक वशेषता होती है । सम सा ह य म पाई जाने वाली विश वृ याँ ह लेखक क पहचान होती है । इन विश वृ य को वग कृत कर देखना दु कर है, य क जीवन का अ प-सा अंश भी कहानी का वषय हो सकता है और कहानी म य जीवन का अंकन होता है । कसी कहानी म एक साथ कई वृ य का अंकन भी

    हो सकता है इसिलए जीवन को वग या चौखट म वभा जत नह ं कया जा सकता ।

  • 120

    अतः क ह ं विश कसी कहानीकार क कहािनय का, उनम पाई जाने वाली मु य वृ य एवं वषयव तु क से वग करण करना उपयु हो सकता है । इस से

    िग रराज कशोर क कहािनय को उनम पाई जाने वाली क यगत वृ य के आधार पर व तु- वधान क से वभा जत कया गया है । 3.1.1 सामा जक :

    सा ह य का सीधा संबंध समाज से होता है । समाज म घ टत घटनाएँ, सम याए,ँ प र थितयाँ आ द से सा ह यकार अछूता नह ं रह सकता । वह समाज म जी कर ह सा ह य सृजन करकता है इसिलए सामा जक व तु कसी भी सा ह यकार क मूल ेरणा होती है । अतः समाज श द सं अथ म य समूह से लेकर यापक संदभ म व समाज तक क अिभ य रखता है । िग रराज कशोर क कहािनय म सामा जक व तु- वधान के अनेक पहलुओं का उ घाटन हुआ है ।

    िग रराज कशोर क ‘वे नह ं आये’ कहानी पा रवा रक संबंध के वघटन क कहानी है । इसम आधुिनक प र े य म टूटते पा रवा रक संबंध का अंकन हुआ है । इसम मरणास न पता को इलाज के िलए बड़ा भाई शहर लाता है । इलाज के बाद होश आने पर वे अपने छोटे बेटे क िचंता करते कहते ह क वे नह ं आय,े मा ंका उ र है - ‘‘मने कहा ना, वे आये ह कहाँ ! कोई लाता तो आते ! एंबुलस चली तो वे बेचारे लाचार से टुकुर-टुकुर देख रहे थे ।’’4 बड़ा भाई उ ह अभी जाकर ले आने क बात कर संबंध म संतुलन लाने का यास करता है ।

    ‘छः शीशे दो आकार’ कहानी म दांप य जीवन संबंध के मू य वघटन क व ूपता का मािमक अंकन हुआ है । इसम नैितकता का ास एवं नार -उ पीड़न के वर को मुख रत कया गया है ।

    नीलू वयं को आ दम काल म जीती महसूस करती है । वह ज़ंदगी क लीक से ऊब कर चज के िलए अपने पता के साथ घूमने हेतु कसी दसूरे शहर म जाती है । वहाँ पाक म एक अप रिचत युवक से आक षत होकर यह सोचकर णय करने लगती है क - ‘‘वहाँ पर तो अनचाहे लोग के साथ, बेमन हंसना-बोलना पड़ता है । आज यह खेल अपने मन का ह सह ।’’8

  • 121

    सावजिनक थल पर खुली णय- ड़ा करने के जुम म वह पकड़ जाती है, युवक भाग जाता है । पुिलस अफसर के साथ आ फस क ओर जाते समय वह महसूस करती है क - ‘‘मेज के छः शीश म वह और उसका पित एक-दूसरे के मुकाबले म खड़े ह । इस घटना से उसे दु ःख नह ं हुआ था ब क अनोखा-सा ह कापन महसूस हो रहा था।’’9

    ‘ ाकवाला घोड़ा, िनकरवाला साईस’ यह कहानी दांप य जीवन मू य के वघटन को नये धरातल पर तुत करती है ।

    कहानी का नायक ‘म’ एक म यमवग य लक है । उसक प ी र ता कसी वभाग म ड ट से े टर है । वह अपने पद और पैसे के अहं भाव से त है । प रणाम व प वह ‘म’ से जुड़ नह ं पाती । दोन के संबंध म दरार आने म ‘अथ’ एवं पद ह मुख कारण बने ह । र ता क मा यता है - ‘‘आप पु ष लोग समझते ह, जो कुछ प

    कमाकर लाते ह, उसके कारण हम लोग आप लोग का स मान करते ह और इसी कारण आप लोग अपने आपको वतं रख पाने म समथ ह । ले कन आज य गत संबंध का भी आिथक मह व अिधक है । अगर म आपसे छः गुना कमाती हूँ तो छः गुना बड़ भी हूँ ।’’10

    ‘शीषकह न’ कहानी के पित-प ी के आपसी संबंध म यह बात प तः देखी जा सकती है । कहानी क नाियका ारंभ से ह पता के घर अफसर जीवन एवं प रवेश म पली है । प रणाम व प अफसीर ठाट-बाट, ऐ य संप नता क मानिसकता उस पर हावी है । प ी अफसर जीवन के रौब म पली होने के कारण उससे जुड़ नह ं पाती ।

    ‘ यावतन’ कहानी म प ी क ासद को उभारा गया है । अपनी आदशवाद एवं पुरानपंथी माँ के िस ांत के पालन को जीवन मानने वाला कथा नायक राकेश एक दन प ी के सामने बा ाटन का ताव रखता है । प ी च क जाती है, य क शाद के बाद साल-भर म वह घर से बाहर नह ं िनकली थी । मानो वह पित और सास के बंधन म जकड़ हो । वह यह सोच कर तैयार होती है क चलो अब इनका मन ठ क हो रहा है । पित के मन म कुछ और ह है । वह उसे िनजन पहाड़ के ऊपर ले जाता है । चोट पर पहुँच कर वह उसे अपने पास बुलाता है । वह उसक ओर खंची चली जाती है । यहाँ थित एकदम बदल जाती है - ‘‘प ी उठ तो अकेली थी । नीचे झांका ख डे म अंधेरा

  • 122

    और भी गहरा हो गया था । वहाँ उसे वह कह ं दखाई नह ं पड़ा । िसफ एक ह क , गहर चीख आयी । उसने झांका और इतनी जोर से हंसी क पहा ड़य का सीना चाक होने लगा ।’’12

    ‘मवेशी’ कहानी िन न एवं म यवग य जीवन के ववाह संबंध को तुलना मक से देखती है । कथानाियका ‘वह’ एक िन नवग य औरत है, जो पित के अ याचार

    भरे यवहार से त होकर अपनी माँ के पास रह रह है । ‘वह’ डॉ टरनी के घर काम करती है । डॉ टरनी क थित भी लगभग उसके जैसी ह है, य क उसके और उसके पित के संबंध म अलगाव आया है । प रणाम व प उसे वभ रहना पड़ता है ।

    ‘कलम’, ‘काँटे और फूल’ कहानी क डॉ टरनी जीजी क थित भी दांप य जीवन म वभ सी ह है । उनका पं ह वष का वैवा हक जीवन उनम आई र ता, अजनबीपन और अकेलापन को दूर नह ं कर सकता । उनका पित दो ह स म बँटा है – एक जीजी के साथ और दूसरा अपनी पहली प ी के संग ब च स हत । उनके जीवन क िनरथकता प होती है । ‘‘जीज को बाद म ात हुआ उनके पित के पास जो कुथ था वह पहली प ी को दो चुके ह । उ ह देने के िलए अब उनके पास कुछ भी नह ं । ऑपरेशन..... ! क सूचना से उनका दल..... बंध गया ।’’14 दा प य-जीवन म ा िनराशा अंत म उ ह अकेलेपन म जीने के िलए ववश कर देती है ।

    ‘ह या’ कहानी अनैितक संबंध के प र े य म दांप य-जीवन मू य के वघटन को दशाती है, कहानी क चाची अपने पित क दूर से उ प न काम-वासना क पूित शंकर से कराती है । कहानी म ह या कसी जीव क नह ं अ पतु वह दंपित के पर पर व ास, आ था एवं एकिन ता क है ।

    ‘हंसी के पार’ क नाियका अमोला अनैितक संबंध से िनिमत अपराध-बोध से त नार है, जसका अपनी इ छा के व ववाह होने के कारण वह संक प कर

    अपने पूव ेमी के ब चे क माँ बनती है । थित यह है क अब वह पित को दूसरा संतान दे नह ं सकती । अंत म अपने व ान एवं महान पित को अपने बेटे और वयं पर सदा स न देखकर अपराध बोध महसूस करती है ।

    ‘पगडं डया’ँ कहानी भारतीय वैवा हक जीवन क मयादाओं क टूटन को मािमकता से िच त करती है । कहानी म िम.सेन और िमसेज जोशी जैसे पा जीवन क मयादाओं

  • 123

    का उ लंघन कर अनैितक संबंध थाित कराने म कतई संकोच महसूस नह ं करते । पा रवा रक या दांप य जीवन संबंध के वघटन का िच ण िग रराज कशोर क ‘बात कौड़ क ’, ‘ठंडक’, ‘ बसात’, ‘शहर-दर-शहर’, ‘देहाित मण’ आ द कहािनय म देखा जा सकता है ।

    ‘परछाइया’ँ कहानी ववाह पूव ी-पु ष संबंध को ं ा मक थित म वतमान म देखती है । कहानी क नाियका ‘वह’ ववा हत होकर भी अपने पूव संबंध को भूला नह ं पाई है । ‘वह’ अपने पूव ेमी ‘म’ से िमलने आई है, जो अ ववा हत है । उसके आने पर पुरानी मृताँ और संदभ जाग पड़ते ह । दोन ह वयं को अजीब भूिमका म महसूस करते ह । ‘म’ अपने अंतमन से उससे जुड़ जाता है । वह जद करके ‘म’ के कमरे म ह अपना ब तर लगाती है । बातचीत म वह अपने पित क व तृत जानकार देती है - ‘‘उनका कहना है तु ह अपने य गत संबंध रखने क पुर छूट है । जब मने उ ह तु हारे बारे म बताया, बचपन से हमलोग साथ-साथ पढ़े-िलखे और बड़े हुए ह तो वे हंसकर चुप हो गए । तु हारे बारे म अ सर पूछते रहते ह ।’’15

    यह प है क ‘वह’ अपने पूव संबंध जी वत करना चाहती है । जससे जीवन म उ प न कंुठा, तनाव दूर हो सके । यहाँ आधुिनक प रवितत मू य- य है, जो ववाह सं था के ढाँचे म आ रहे बदलाव को प करती है । ववाह पूव संबंध क परचाइयाँ वतमान म पीछा करती दखाई देती ह ।

    ‘और म था’ यह कहानी ववाह पूव ी-पु ष संबंध के कारण ेिमका के ववाह प ात ् उ प न संकट क थित का िच ण करती है । तुत कहानी म पु ष से िमलने क इ छा और ी क मुसीबत उभरती है ।

    वे दोन काम संबंध म खो जाते ह । प ात ् लौटते समय ‘म’ को लािन महसूस होती है ।

    छः वष बाद ‘म’ बंबई जाता है । एक दन अचानक उसे सुओधा दखाई देती है । वह उसे अनदेखा करती ह, ले कन ‘म’ जब समीप पहुँचता है तब वह अपने पित से उसका प रचय ‘कुढ़ाने वाले पुनी भैया’ कहकर कराती है । थित यहाँ प कराती है क बगत संबंध वतमान म संकट बन सकते ह ।

  • 124

    ‘वह थी एक-फा ता’ कहानी क नाियका नीरा के जीवन म भी ववाह पूव ेम-संबंध क मिृतय के कारण र ता एवं उदासीनता आई है । ववाह के बाद भी वह अपने पूव ेमी क याद म घुलती रहती है । वह वयं को न कभी सजाती है और न सँवारती है । उदासी उसके जीवन पर पूण प से छाई है । उसका यह कथन जीवन क वडंबना को मािमकता से य करता है - ‘‘आदमी क एक ह गलती उसक जंदगी के एक-एक साँस पर य क जा कर लेती है ? दे खए बेचार बार-बार रो रह है..... ये यादा दन नह ं जयेगी । आ खर रो-रोकर आदमी कब तक जी सकता है ?’’18

    ‘हु ना, अब म वापस आ सकता हू’ँ कहानी ववाह पूव ेम-संबंध के आकषण का अंकन करती है । इसम कथानायक अपने याह के दो-चार दन बाद ह अपनी ेिमका से पूव संबंध का समाँ बाँध देता है । अपने शहर से नौकर के िलए द ली म आ बसने के बाद भी वह पुरानी याद से जुड़ा है । पं ह वष बाद बीमार म भी उसे याद ह जलाए आ रह ह । अपनी पूव ेिमका से िमलने क अद य इ छा से शहर आता है । उसे अपनी तंदुर ती का डॉ टर सट फकेट नौकर के िलए ज़ र है । अपनी पूव ेिमका हु ना से िमलने पर वह अपने म तंदुर ती महसूस करता है, जसम उसका पुनज वत आ म व ास एवं संक प य है - ‘‘अब तुम वापस भी आ जा ! इंशाअ लाह नौकर भी प क हो जायेगी और खुदा ने चाहा तो अब वापस भी आ जाऊँगा । वाकई, हु ना खुदा ने चाहा तो अब म वापस भी आ सकता हूँ ।’’19 यह कहानी ववाह पूव संबंध जीने के िलए आ म व ास तो दान करते ह, साथ ह भ व य म वे पुनः था पत होने क थित का संकेत भी देते ह ।

    ‘देहाित मण’ यह कहानी पित-प ी के काम-संबंध म उ प न मानिसक िशिथलता का िच ण करती ह । कहानी के पित-प ी दोन के ववाह को प चीस-तीस वष होने पर उनके शर र ढ ले पड़ चुके ह । अधशती पर कर चुके पित का अपनी प ी रानी को हर तरह से संतु रखने का यास है । प ी अपने पित वनायक मोहन से यह एहसास चाहती है क वह उससे नजद क से भी यादा नजद क बना रहे । इसी अहसास को वह रात लेटने पर पित के शर र पश से महसूस करने क कोिशश करती है । रात ज द सोना और सुबह ज द उठना उसका म है । ऐसी थित म उसे रात म प ी का पास आकर लेटना और काफ देर तक जागना ववशता लगता है, वह सोचता है क

  • 125

    ‘‘पहले म करता था अब यह कर रह है । या हम दोन ने आपस म र ते बदल िलए?’’21

    अतः कहा जा सकता है क से स मानवी देह का ाकृितक आवेग है, जससे हर कोई जुड़ा है । मनु य वयं को चाहे कतना भी झाने का यास करे, पर यह सच है क संबंध के धरातल पर वह काम और देह क सीमा का उ लंघन नह ं कर सकता । कहानी के पित-प ी भी इसी सीमा म बंधे ह ।

    ‘पीली प याँ नीम क ’ यह काम-संबंध क जै वक अिनवायता को प करने वाली कहानी है । कथानायक ‘म’ अपने अकेलेपन से ऊब गया है । नाियका ‘वह’ भी जीवन के अकेलेपन से त है । दोन अप रिचत ह, सड़क पर घूमकर अपने अकेलेपन को दूर करना चाहते ह । म एक र ववार फ म देखने जाता है, पर वहाँ उस लड़क को उप थत देखकर बाहर चला जाता है । उसके पीछे-पीछे वह भी उठकर चली आती है । उसके कहने पर ‘म’ उसे छोड़ने उसके घर जाता है । कॉफ पीने के बाद ‘म’ लौटना चाहता है, पर वह मना कर देती है । दोन एक-दूसरे के मन क बात पहचानते ह । बात को प करने हेतु वह वयं पहल करती है - ‘‘नो..... यंग मैन..... नो ! आई वांट सम वाम टा स । आई वांट टू ेक िधस ल ल ऑफ माई लाइफ । यह अकेलापन रात भर बोलता है, उसी को चुप करने के िलए म आपको यहाँ लाई हूँ । मेरा याल है यह अकेलापन तुम पर भी अनचाहे मेहमान क तरह लदा हुआ है । यू कैन वैल रयलाइज माई फिलं ज ।..... इसीिलए म तु ह लाई हूँ । लीज कम..... आउट लीज ।’’24

    रात भर दोन साथ रहकर अपनी काम-भावना क संतु ी करते ह । सुबह अपने घर लौटते ‘म’ को एक य दखता है - ‘‘सुबह..... जब म लौट रहा था तो मेहतर रात भर बखर ..... नीम क पीली प य को सकेर कर इक ठा करने लगा था । उसका ऐसा करना मुझे बहुत अ छा लगा – न जाने य ।’’25

    ‘हम यार कर ल’ यह कहानी जै वक काम-त व को उभारती है । कहानी के लड़का-लड़क दोन पर पर एक दूसरे से ेम करते ह । दोन बाढ़ से पी ड़त े के एक ऊपर मं जल के मकान म अटक जाते ह । खाने के िलए कुछ भी न होने के कारण वे तीन दन से भूखे ह । बातचीत कर वे अपनी खामोशी दूर करते ह । पानी पीकर भूख को िमटाने का असफल यास भी वे करते ह । अंधेरे म दोन पास-पास लेटते ह । ऐसे

  • 126

    म जीवन त व उभरकर सामने आता है - ‘‘लड़क ने हाथ बढ़ाकर टटोला, अरे तुमने चादर लपेट ली ।...... मद ने धीरे-धीरे अपना हाथ उसके शर र पर रख दया, ‘तुम अपना मन छोट न करो । अ छा हो, इस समय हम सब-कुछ छोड़कर यार म लग जाय । शायद कुछ आराम िमलेगा ।’..... ‘मेरे भी कपड़े उतार दो ।’ वह अपन-ेआप बोली, लो, मने अपने कपड़े उतार दये । वह िसफ सरक कर उसके पास आ गया ।’’27 बा रश कने पर भी वे उसी तरह संबंध म खोए रहते ह । वे पेट क भूख िमटाने म असमथ

    ह, पर शर र क भूख िमटाने म समथ ह । बदलती थित और बदलते संदभ म ी-पु ष संबंध का एक नया समीकरण

    ‘संगत’ कहानी म सामने आता है, जो काम संबंध क जै वक आव यकता को दशाता है । ‘‘कथा का नायक ‘म’ अप रिचत गाियका ल मी रे ड के साथ तबले क संगत कराता है । काय म समाि के बाद वह उसे अपने साथ व ाम क म ले जाती है । कुछ देर कने के बाद ‘म’ चला जाना चाहता है, पर वह उसे रोक लेती है । दोन म, अंधेरे म

    अनायास संबंध बन जाते ह । बातचीत म वह ‘म’ के रयाज़ क शंसा करती है । ‘म’ का उ र है – हम तो मा संगत करते ह । सुबह उसे रेल म बढाने पर ‘म’ क संगत समा होती है ।’’28

    यहाँ समय क आव यकता के अनु प संबंध बनते दखाई देते ह । जै वक त व ‘काम’ थित एवं संग के अनु प अिनवाय होते जा रहा है ।

    ‘पत’ कहानी ी-पु ष के पार प रक आकषण को मनोवै ािनक धरातल पर तुत करती है । कहानी का ‘म’ कसी द तर म अ छे पद पर कायरत है उनक प ी

    मीता म हला कॉलेज म ा या पका है । उ ह ने घर का कामकाज करने हेतु नौकर एवं नौकरानी को रखा है । थित यह है क नौकरानी ‘म’ क सार िचय एवं आदत से प रिचत हो गई है और वह उसके सारे काम करती है, जो नौकर राजा को करने होते ह । मीता के सारे काम, जो नौकरानी के ह, वे नौकर राजा करता है । ये सब अपने-आप होता है । इस थित से पित-प ी दोन संतु ह । प ी कॉलेज से घर पर आने के बाद अनायास ह नौकरानी को पुकारने क बजाय राजा को पुकारती है और पित द तर से लौटने के बाद राजा क बजाय नौकरानी का नाम लेता है । उनका यह दैनं दन म बन जाता है । दोन इस थित पर काफ सोचकर एक मनोवै ािनक स य पर पहुँच कर

  • 127

    िन कष िनकालते ह - ‘‘मीता दन भर य क कनिमन सुनती है और जनाने नाम पुकारती है, शायद इसीिलए भी उसके मुँह पर ‘राजा’ का ह नाम पहले आता है । मेरे बारे म भी शायद यह बात हो । ‘म’ दन भर राम कशन, याम कशन पुकारता हू ँऔर कान म फटे बांस बजते रहते ह ।’’29

    ‘रात और खड़क ’ कहानी ी-पु ष के बीच के आकषण क वृ का अंकन करती है । ‘‘कथा नाियका दूवा अपनी सहेली आभा के भाई देवा से आक षत है । वह अपने मन क बात य कर नह ं पाती । सोने पर सपने म वह देखती है क कोई आकृित उसक ओर बढ़ रह है । उसे एहसास होता है क पदा हला..... देवा बाहर आया । ब तर पर बैठा और हाथ का सहारा लेकर मेरे ऊपर झुक गया ।’’30

    कुछ बड़बड़ाने से उसका सपना टूट जाता है । जा ताव था म वह महसूस करती है क अब तक जो घ टत हुआ वह उसका आकषण था । सं ेप म, वह अपनी अतृ इ छा, आकां ाओं क तृि व न म करती है, जसम उसका पु ष-आकषण का भाव प होता है ।

    ‘ व नदंश’ कहानी का नायक रामानुज वदेशी ी ी से आक षत है । उसे भारतीय सा ह य और हंद लेखक पर अनुसंधान काय करने आया पैटसन िमलता है, जो अमे रकन है । पैटसन और उसक प ी ी दोन बड़े आ ह से रामानुज को अपने साथ होटल म ठहरते ह । इसके पीछे उनका उ े य है क लेखक क जीवानुभूितया,ँ सहचय और य व को वे समीप से देख सक । वहाँ ट के आकषण एवं सहचय म रामानुज असु वधा महसूस करता है । वह वहाँ से दूसर जगह जाकर रहना चाहता है, पर ी उसे कने का आ ह करती है । काफ अंतराल बाद वह प थर तोड़ आदमी और सुंदर ी क कहानी िलखता है । यह कहानी वह दोन को सुनाता है ।

    ‘वे गुलाब’ कहानी समिलंगी य य के यौन आकषण क मनोवृ को उभारती है । कहानी क मधु और िन खला दोन युवितयाँ ममे स ह । मधु म मदाना ढंग पूण प से या ह । उसम पु ष ंिथ का अ यािधक आकषण है । इसके वपर त िन खला

    आकषण एवं ी व गुण से भर सुंदर युवती है । उससे मधु पूणतः आक षत है । उसे अपने हाथ से सजाकर दवाने क तरह िनहारना मधु का काम बन जाता है । उसे कसी न कसी बहाने पश, आिलंगन देने म वह य त है । हो टेल क अ य लड़ कय को

  • 128

    मधु के इस यवहार का पता चलने पर थित वप रत होती है । िन खला अपना कमरा बदल देती है । उसी रात िन खला के आकषण से त मधु को महसूस होता है क वह धीम-ेधीमे पुकार रह है । वह बना कसी संकोच के वहाँ पहुँचती है - ‘‘चांदनी शीशे के अ स क तरह सके सुंदर गोल चेहरे पर वृ ाकार घूम रह थी । मधु क आँक म िन खल क अंगभरे हुए याल क तरह छलक पड़े और वह ढुके हे कवाड़ को खोलकर अंदर चली गई । अंदर..... उसे कोई झुकाने लगा, वह अश झुकती चली गई और उसके होठ दो गुलाब क पंखु ड़य पर अनायास जा टके ।’’32

    इस कहानी म दो युवितय क सम-काम क यौन वकृित को य कया गया है, जसम ढलती उ तक पढ़ाई करने क ववशताज य मन क कंुठाएँ प होती ह ।

    ‘लालघर’ यह िग रराज कशोर क बहुचिचत तीका मक कहानी है । सां दाियकता क लपेट म वाहा होते गांधी दशन, परधम स ह णुता, इंसािनयत आ द मानवीय जीवन मू य का मािमक अंकन इसम हुआ है । कहानी के हरचरण िसंह सोढ और उनका सारा प रवार गांधीदशन को आदश मानकर जीवन यतीत करने का कायल है । उ ह ने मू क को आज़ाद दलाने म वाधीनता सेनानी क भूिमका अदा क है, पर वे स ा से परे रहते ह । वे वयं ह द-ूिस ख एकता के बड़े समथक होने के कारण अपनी बेट ब ता का याह उसके ेमी मनमोहन से करा देने का संक प करते ह, जो ह दू है । यकायक भड़के हंद-ूिस ख दंगे म उनका बेटा हर जंदर और उसका दो त मनमोहन मारा जाता है । प रणाम सव प ढंगे म बहे खून से शातं सफेद घर प रवितत होकर लाल बन जाता है । ब ता व -सी बन जाती है । घर म गांधी क त वीर क जगह हर जंदर के फोटो को लगाया जाता है । घर क मु ता क जगह पहरा लग जाता है । इस कांड क अमे रका म बसे बड़े बेटे परिम टर को खबर ह नह ं थी ।

    ऐसी भयावह ासद म जी रहे प रवार से िमलने अमे रका से आए वनीत से सोढ यह कह कर यथाथ य करते ह क - ‘‘परिम दर को कहना गांधी के मरने क जो खबर साल पहले उड़ थी वह झूठ थी – हम सबने िमलकर उसे अब मारा है । उसक बोट का भी अब यहाँ कह ं नामोिनशान नह ं । बस दुकानदार कभी िस के क तरह नाम उढलकर देखते ह, खरा है या खोटा हो गया ।’’34

  • 129

    मु क को आज़ाद दलाने के बदले म तबाह क ाि होने पर भी सोढ िचंितत ह क कह ं उनका बेटा अपने वतन से नफरत न करे । वे विनत से अनुरोध करते ह –

    ‘‘इस तबाह क बात परिम दर से मत कहना – नह ं तो वह भी इस मू क से नफरत करने लगेगा । वैसे ह या नफरत करने वाले कम ह ।’’35

    ‘कभी न छाँडो खेत’ यह कहानी सां दाियक दंग क भयावहता का िच ण कर सामा जक अस ह णुतापूण माहौल म य क अ मता एवं जीवन क सुर तता क सम या को तुत करती है । ीित और खुशव त दोन मशः ह दू और िस ख ह । उ ह ने शहर म चल रहे सां दाियक दंग के माहौल म सबक नाराज़गी के बावजूद ेम ववाह कया है । शहर म हो रह मारकाट वे वयं अपनी आँख से देखते ह । ऐसे माहौल म वे अपने जीवन क र ा क से न केवल िचंितत ह, ब क आतं कत भी ह । पित के िस ख होने क पहचान ज़ंदगी के िलए खतरा बन गई है । प ी के सामने

    है क पित से कैसे कहे क वह सब कुछ याग दे, जो जंदगी को खतरे म डालता हो । वह धमा ध नह ं है, पर प र थितवश अपनी सोच पित के स मुख रखती है - ‘‘लोग के दल नफरत से कतने लबरेज ह । उनके िलए आदमी क श ल आदमी क न रहकर जाित और धम क श ल म बदल गई है । ऐसा य हो गया ? आदमी को आदमी क तरह पहचानना य बंद हो गया ? कह ं उनक आँख म पुतिलय क जगह शीशा तो फट नह ं हो गया, जसम सब श ल पहले स जुड़ ह..... अगर वे अपने शीश को नह ं बदले तो या हम अपने चेहर को भी नह ं बदल सकते ।’’36

    शहर म बढ़ती अशांित के डर से पित अपने बा - य व को बदलने का संक प करता है । वह सोचता है क अपनी दाढ़ -मूंछ एवं केश को कटवाने से अ मता जाएगा, पर ज़मीन पी जान बचेगी तो भ व य म वंश बचा रहेगा । उसक सुर ा अपनी पहचान खोने म िन हत हो जाती है ।

    ‘अंतदाह’ सां दाियकता क आग का शमन करने वाली कहानी है । म ज़द क द वार म अनायास उग आया पीपल हंदुओं का मानकर काट दया जाता है, पर वह अपनी जड़ शेष होने के कारण फर उग आता है । मु लम क धारणा बनती है क कसी का फर ने जान बूझकर उसे यहाँ लगाया है जससे म ज़द क द वार िगर जाए । इमाम के समझाने से लोग से काटते नह ं ह । पीपल बड़ा होकर बुजुग बनने पर महसूस

  • 130

    करता है क वह हंदुओं क म िस वृ बन गया है, य क लोग उसक पूजा-अचना कर उसे देवता के प म वीकार करते ह । शहर म अफवाह फैलती है क पीपल बाबा के पास कोई मं दर था, जो बाद म म ज़द म त द ल कराया गया । थित यह हो जाती है क मु लम भाई उसे काटना चाहते ह और हंदू उसे मं दर क पृ भूिम म देखते ह । ऐसी अशांित क थित म वयं के कारण दो वग म आयी नफरत से पीपल दुःखी होता है । इस थित स ेउबरने के िलए वह आ मदाह करने का यास करता है, पर बूढ़ा इमाम और अ य लोग उसे बचाते ह । दूसरे दन शहर म अफवाह फैलती है क पीपल महादेव को इमाम ारा जलाया गया है प रणाम व प दंगा होता है । थित शांत होने के बाद पीपल बाबा को सह सलामत पाने पर दूसर अफवाह उठती है क जब पीपल बाबा को जलाया जा रहा था तब सा ात ् ा ने उ ह अंतदान कर लोग के जाने के बाद उ ह पुनः कट कया । पीपल अपने अंदर के दाह को िच लाते बाहर िनकालकर प करना चाहता है क सार अफवाहे झूठ ह, पर उसक आवाज़ उसके अंदर ह

    घुटकर रह जाती है । ‘िस टर, यू आर ेट’ कहानी एक िभ न धरातल और िभ न मनोदशा क ज टल

    थितय का िच ण करती है । लांसनायक विच िसंह घायल सैिनक है । उसने यु म अपना एक हाथ और पैर गँवा दए ह । दु मन क गोली कमर के नीचे के ह से म लगने से उसे काट कर अलग कया जाता है । उसक धारणा बन जाती है क उसक मदानगी चली गई है । वह वयं को नपुंसक मानकर अ पताल म व सा यवहार करता है । िस टर िस या उसे एहसास दलाती है क ऑपरेशन से उसक मदानगी को कुछ नह ं हुआ है । फर भी वह पागल-सा वयं अपने पर गािलयाँ बकता है । िस टर िस वा वयं अधव ा होकर उससे सट जाती है । ी के पश से विच िसंह को महसूस होता है क उसके सारे अंग जी वत हो उठे ह । िस टर िस वा का उसे दया हुआ एहसास उसके िलए जीवन क गहन अनुभूित है ।

    ‘हर लाल रोशनी’ कहानी दुख क ती संवेदना को य करती है । इसम इसी शा त स य का सा ा कार कराया गया है क जीवन म य पीड़ा या दुख जीने के िलए अिभश है । कथा नायक ‘म’ अपने बीवी-ब चे एवं दो त के साथ सफर म रेल दुघटना का िशकार होता है । होश आने पर टूटे-र दे ड बे म से वयं मु होता है ।

  • 131

    उसे महसूस होता है क ‘‘चार ओर अंधेरे म फैले स नाटे म लावट और ददभर विनयाँ या ह । मलबे के ढेर म वह अपने आ जन को डरते-डरते खोजता है । साथ

    म रेल कमचार और उनक हर लाल रोशन है । उसे खून से लथपथ हुई प ी दखाई देती है, पर चंद ल ह म वह भी दम तोड़ देती है । सुबह क रोशनी म उसे एक ओर अपना दो त मृत दखाई देता है, तो दूसर और मलबे म त ते के नीचे दबा अपने बेटे का कोट दखाई देता है । वह उसके समीप जाना चाहता है, पर उसम उतनी ताकत नह ं है ।’’39 ऐसी दुखद हताहत म उसे महसूस होता है - ‘‘कई चेहरे घूमने लगते ह..... । धुएं का बड़ा गहरा बादल मुझसे लपटने लगता है । अभी-अभी कट हुई रोशनी..... रात वाली भयानकता म प रवतन होने लगती है । फर लगने लगता है...... भूचाल आया है...... आसमान िगरा है...... ।’’40

    ‘िनवृ मान’ यह कहानी य -जीवन क पीड़ा का अंकन करती है । कहानी म भूत और वतमान म एक जैसे संदभ य क ासद बनकर सामने आती ह । कथा नायक ‘वह’ ेम म असफल य है । अथ, जाित आ द कारण से उसे उसक ेिमका का पता अ वीकार कर देता है । लगभग छ बीस वष बाद यह थित उसक बेट के भ व य के प म सामने आती है बेट कसी युवक से ेम करती है । वह युवक उसका हाथ माँगने ‘वह’ के पास जाता है । वहाँ उसे अपमािनत होना पड़ता है । पता अपनी बेट के ेम क तुलना अपने अतीत से करता है । वह तय नह ं कर पाता क वीकृित दे या न दे । िनणय लेने म वह असमथता के घेरे म िघर जाता है । अंत म महसूस करता है क बेट के िनणय क और वह झुकता जा रहा है ।

    ‘हमसाया’ कहानी म य के अंत य व म िछपी ई या एवं जलन क वृ का अंकन हुआ है । कथानायक ‘म’ ई या- त य है । वह अपने पड़ोसी या हमसाया से बचपन से जुड़ा है । दोन एक-दूसरे के सुख-दुख म सदा साथ ह । द तर म ‘वह’ क अ य लोग क शंसा ‘म’ के िलए ई या बन जाती है । प रणाम व प ‘म’ भी कुछ-न-कुछ कर लोग क शंसा ा करता है । ‘वह’ के बेटे क आक मक मृ यु पर लोग क शोक-संवेदना क तुित भी उसके िलए ई या है । लोग का िमलने आना भी ‘म’ को खलने लगता है । वह सोचता है क –

  • 132

    ‘‘इस बहाने वलाप म भी लोग उससे जुड़े रहे ह । ‘म’ अचेतन म अपन ेबेटे क मौत देखता है, जसे वह बड़े ह मत से सहता है । िमलने आए लोग को देखकर ‘म’ सोचता है क उसका हमसाया जल रहा होगा क लोग को उसने अपनी तरफ िमला िलया है । चेतनाव था म लौटने पर वह फर सामा य होता है ।’’41

    बड़े-बड़े लोग के साथ अपने संबंध होने क बात को अित यो पूण ढंग से तुत कर लोग म अपना भाव बनाए रखने का यास करने वाले य य पर

    िग रराज कशोर क कहािनयाँ करारा यं य करती ह । ‘वी.आई.पी.’ कहानी का ‘वह’ बड़े-बड़े नेताओं से अपना नज़द क का संबंध होना

    और उनके स चे अनुयायी होने क बात को अितशयो पूण ढंग से तुत कर लोग म अपना भाव जमाये रखता है । उसका वभाव, आदत, रहन-सहन, खान-पान द बाबूजी जैसा ह बन गया है । वह वयं को बड़े य के समीप का मानता है, जससे उसका लोग म एक अलग ह रौब है ।

    ‘‘वी.आई.पी. कहानी म एक ऐसे म यम ेणी के य का चेहरा उधड़ता है जो सू म मानिसक सतह पर परजीवी है और दोहर मानिसकता म जी रहा है । वह जस बड़ पन को ओढ़ता है, उससे उसक थित और यादा क ण हो उठती है ।’’42

    ‘समीकरण’, ‘िनमं ण’ आ द िग रराज कशोर क ऐसी ह कहािनयाँ ह, जनम आधुिनक य के य व क दूसर पर भाव बनाए रखने क वृ गोचर होती है । िग रराज कशोर क कहािनयाँ ‘ बसात’, ‘आं े क ेिमका’, ‘एक जानदार आदमी’, ‘पामेला’, ‘यह देह कसक है ?’, ‘खंडहर’ आ द य जीवन क व वधता का िच ण करती है ।

    ‘बंगलेवाल’े कहानी िन नवग य जीवन संघष को उभारती है । कथा नाियका अमृती अपने प रवार के साथ सवण वाटस म रहती है । उसे बंगले वाले लोग का बड़ा आकषण है । वह अपने ब च क परव रश बंगले वाले ब च क तरह करना चाहती है, जससे उनका भ व य सँवर सके । इसिलए वह साहब क कोठर म रहकर चौका-बतन एवं झाडू-बुहार करने का काम करती है । वह सोचती है क – यहाँ रहते उसे कतना भी अपमान सहना पड़े, पर भ व य म ब चे पढ़-िलखकर सँवर जायगे । ले कन यहाँ थित वपर त हो जाती है । बड़ा लड़का पढ़ाई न करने के कारण हाथ से बाहर हो जाता है, तो

  • 133

    छोटा कसी दुघटना म लंगड़ा हो जाता है । अमृती का दुख यह है क उसके लाख चाहने और यास के बावजूद वह सब कुछ हो नह ं पाता, जो वह चाहती है । बंगले वाल को आदश मानकर वह अपना एवं प रवार का जीवन सुधारना चाहती है, पर इस यास म वह िनराशा के घेरे म जीने के िलए ववश है ।

    बुिनयाद आव यकताओं क आपूित म दबाववश असहाय जान लेवा थित म गुजरते गर ब क पीड़ा को ‘ब च से कौन डरता है’ यह कहानी अिभ य करती है । कहानी के ज मी और उसक प ी दोन को साय े (घर) क पकड़ से उबरने के िलए बंगले वाल का बेगार करने पर ववश होना पड़ता है जब तक साहब और मेमसाहब क कृपा बनी है, तब तक कोई िचंता नह ं । उनसे बेबनाव घर यागने जैसा है । दोन क थित कराये का मकान लेकर रहने जैसी नह ं है । इसिलए प ी अपने इकलौते

    अपा हल बेटे को घर पर रखकर बंगले म काम करने जाती है । ब चे के रोने से उसका बार-बार घर आना मेमसाहब को अखरता है । थित यह होती है क उ ह वाटर खाली करना पड़ता है । फर कसी दूसरे साहब या मेमसाहब के साये क तलाश म वे वयं को असहाय महसूस करते ह ।

    ‘ प ली’ यह कहानी िन नवग य जीवन को िच त करती है । जसम एक नार के संघषमय और वप नतापूण जीवन का अंकन हुआ है । कहानी अनाथ जीवन को सश प म तुत करती है । कहानी क नाियका ध नौ अनाथ रह चुक है । उसके पूव जीवन क याद अनुभूित बनकर सामने आती है । एक अनाथ ब ची प ा उसके सामने आने पर वह उसम अपना प देखती है और वयं अपने म अपनी द द को तलाशती है । वह अनाथ बािलका को अपने पास ह रखती है । जब उसक सास अनाथ ब ची को प रवार से अलग करना चाहती है, तो ध नो उसके िलए वयं अपने भरे-पूरे प रवार से अलग होना वीकार करती है ।

    िन नवग य य के शोषण को फंतासी के मा यम से य करती ‘ज़मीन का टुकड़ा’ यह कहानी यहाँ तुत है । कथानायक राम खलावन चतुथ ेणी का कमचार है । उसे कसी बु ढ़या क सेवा करने से उसक मृ यु के बाद ज़मीन का टुकड़ा िमलता है । वह टुकड़ा उसे अपने ाण से य है । उसे संभालकर रखना चाहते ह । ज़मीन के टुकड़े को लेकर वह सपन म खोता है । उसक एकलौती बेट बड़ होने पर उसके याह के

  • 134

    िलए वह ज़मीन का टुकड़ा बेचना चाहता है । अपने बॉस से गहरा प रचय होने क वजह से वह ज़मीन का टुकड़ा उसे देकर अिधक पैसे िमलने क आशा रखता है । बाँस बाज़ार से भी कम मू य म ज़मीन हिथयाना चाहता है । वह संक प करता है क, चाहे कुछ भी हो ज़मीनका टुकड़ा बॉस को नह ं देगा । उसका खौफ उसे सपने म दखाई देता है - ‘‘बॉस के पैर पर िसक दर क तरह प टयाँ थीं । वह एक टाँग उस पर फैलाये उसक तरफ देख रहा है । हाथ म र सी है जो उसके गले म बंधी है और उसे अंदर घसीट रहा है । उस हांड क तली हर ण गहर होती जा रह थी और वह उसम समाता जा रहा था । उसके कहने मा से ज़मीन का टुकड़ा बाँस क हांड म चला गया । यकायक वह पकने लगा । वह पकना अजीब था । उसे आँच ब कुल नह ं लग रह थी । पर वह खदबदा रहा था ।’’43

    ‘ र ते’ यह म यमवग य जीवन क अनुभूित क कहानी है । इसम जंदगी क भौितक सु वधाओं म उलझे य क पीड़ा को िच त कया गया है । ‘‘म यवग य िग रश मेहरा अपनी आय और आिथक थित का वचार न कर एक पुरानी कार खर दता है । उसक धारणा है क कार से उसका समा म टेटस बना रहेगा । कार के आने के बाद जैसे खच बढ़ने लगता है, वैसे उसक तकलीफ भी बढ़ने लगती ह । वह कार को वापस लौटाना चाहता है । इसके िलए उसे पये क त म भी वीकारना मंजूर है । कार के पूव मािलक से उसका र ता स भावना का न होकर यवहार का है । जस कार उसने पुरानी चीज बेचकर मु क राहत महसूस क है, वैसे ह मु िगर श

    मेहरा को चा हए । इसिलए उसे कार के संकट से उबरने के िलए नये र ते क तलाश है।’’44

    सं ेप म म यवग य य क भौितक सु वधाओं के पीछे भागने क दौड़ पीड़ाज य होती जा रह है । इसी त य को कहानी पाियत करती है । 3.1.2 आिथक :

    ह द कथा-सा ह य म मुंशी ेमचंद से आिथक सम याओं के िच ण क एक परंपरा चल पड़ है । उनका संपूण सा ह य भारतीय अथ यव था के विभ न आयाम को सफलतापूवक उ घा टत करता है । िग रराज कशोर भी य या जन साधारण और समाज के साथ गहरा सरोकार रखने वाले लेखक ह । उनक कहािनय म आिथक

  • 135

    वप नताओ,ं वसंगितय , अभाव एवं उ पीड़न म संघषरत य और जीवन का यथाथ िच ण हुआ है । जसम ‘अथ’ मानव पीड़ा के प म उभरता है । वे ‘अथ’ को प रवितत मू य एवं संबंध क से मानवीय धरातल पर तुत करते ह । उनक कहािनयाँ आम आदमी एवं िन नवग य आिथक जीवन संघष को सश ता से अिभ य करती ह । िग रराज कशोर क कहािनय म आिथक-व तु वधान को िन न से देखा जा सकता है –

    ‘ठंडक’ कहानी जीवन पर पड़े ‘अथ’ के यापक भाव को अिभ य करती है । इसम ‘अथ’ तं क मार से ववश य जीवन क नीरसता एवं र ता का अंकन है । कथा नायक ीकर रोट क जुगाड़ म अपने प रवार से दूर शहर म अकेले रहता है । वह चाहकर भी पैसे क कमी के कारण बार-बार अपने बीवी-ब च से िमलने म असमथ है । कई दन बाद घर लौटने पर वह अपनी प ी से सामा य यवहार करने म िशिथलता महसूस करता है । प ी इस थित को लेकर िचंितत है - ‘‘उसका ठठुरा हुआ हाथ और मुंह क िसकुड़ हुई खाल देखने लगी । खाल क िसकुड़न को देखकर पछतावा-सा होता रहा । सारा शर र ह िसकुड़ गया होगा । उसे इस तरह बाहर बाहर नह ं जाने देना चा हए था । रोट का िमलना बाहर जाने या अंदर रहने पर िनभर थोड़े ह करता है । बाहर जाकर भी आदमी रहेगा तो मु क म ह । मु क-भर क हालत लगातार एक-सी होती जा रह है ।’’45 पित बातचीत म प करता है क, ‘‘पैसे क खच वहाँ भी बहुत रह ।’’46

    यह कथन ववशता को दशाता है । वह अथ पाजन के िलए अपने प रवार से कटकर बाहर जाता है, क तु वहाँ से भी वह िनराशा का दंश लेकर लौटता है ।

    ‘अथ’ का जीवन पर पड़ा यापक भाव ‘कठपुतली’ कहानी म भी गोचर होता है । कहानी कामकाजी नार के जीवन संघष को प करती है । कथा नाियका र ता ा या पका है, जो अपने पित से दूर रहकर अथ पाजन कर रह है । वह अपने ब चे को

    संभालने के िलए नौकरानी रखती है । एक दन वह देखती है क उसके ब चे के ब तर पर लेटा आया का ब चा दूध क बोतल पी रहा है । जसे देखकर वह ोिधत होकर आया को घर से िनकालने का फैसला करती है । उसके सामने प रवार और नौकर दोन

  • 136

    िच ह बने ह । उसका पित कई बार उसे नौकर छोड़ने के िलए कहता है, पर वह ववश है –

    ‘‘नौकर छोड देने म असमथ वह, दो सौ पये कमाने वाले पित के घर म सात सौ कमाने का साधन थी । उसके नौकर छोड़कर घर म चले आने पर सब कंगाल हो सकते थे ।’’47

    वह काफ सोच समझकर समझौता करती है क आया को काम पर रखकर वयं नौकर करेगी । आया काम पर बनी रहती है । इस समझौते म दोन क ववशता है, जो ‘अथ’ से जुड़े रहने क अिभ नता को दशाती है - ‘‘वह (र ता) ब चे के ित अपनी ज़ मेदार को आया से पूरा कराना चाहती है और आया ने भी अपने ब चे को पालने के िलए ह उसका दूध बेचा है । दोन ह एक सू म बंधी दो कठपुतिलयाँ ह ।’’48

    ‘ ाकवाला घोड़ा, िनकरवाला साईस’ कहानी म ‘अथ’ के भाव व प दांप य संबंध म आई टूटन को िच त कया गया है । कथानायक ‘म’ एक म यवग य लक है और उसक प ी र ता कसी वभाग म ड ट से े टर है । वह अपने पद और तर से अहंभाव म त है । अ य लक क प ी क तरह पित क सेवा म हाथ बाँधे खड़े रहना उसके िलए असंभव है । वह अिधक कमाने के कारण वयं को पित से बड़ा मानती है । उसक मा यता है - ‘‘आप पु ष लोग समलते है, जो कुछ आप कमाकर लाते ह उसके कारण हम लोग आप लोग का स मान करते ह और इसी कारण आप लोग अपने आपको वतं रख पाने म समथ ह । ले कन आज य गत संबंध का भी आिथक मह व अिधक है । अगर म आपसे छः गुना कमाती हूँ तो छः गुना बड़ भी हूँ ।’’49

    पैसा एवं भौितक सुख क लालसा संबंध को तोड़ देती है । इस से ‘छः शीशे दो आकार’ कहानी पित-प ी के दांप य संबंध के वघटन को य करती है । कथानाियका नीलू के पित क म पद एवं पैसा मह वपूण है इसिलए उ च पद ा करने के िलए वह अपनी प ी का साधन के प म उपयोग करते है - ‘‘पित जब लक थे, उसे धकेल कर अपने बॉस के पास भेजा करते थे । एक ितहाई उ काटे हुए लोग, ज ह मुँह से बात करते हुए सी रया-ँसी बजती थी और मसाले के जबड़े बाहर को दौड़ते थे – फूहड़ मज़ाक कर देते थे । कई बार अ दर धँसी हुई उनक आँख म अश और बूढ़ वासना के दशन भी कए थे, कुचे ाएँ भी देखी थीं ।’’51

  • 137

    जीवन जीने क सम या को यथाथ के धरातल पर ‘व द रोजी’ नामक कहानी को तुत कया गया है । वकास और उसक माँ दोन के सामने जीवन-यावन क सम या

    है । इसी सम या के िन पण के िलए म ासी नारायणन क दूसर बीबी बनने म माँ क ववशता दखाई देती है । ‘‘म या क ँ ...... जहर खाकर मर जाऊँ ! एक पेट और दूसरा सीस ! न पेट काट के फका जाव और न शीश द वार से टकरा के फोड़ा जावे । वकास के बाप ने दूसर औरत बैठा ली थी । मने सोचा, िच ड़या तक ब चा देने से पहले घर बनाती है । मेरा तो बेटा है । घर नह ं बनाऊँगी तो जाऊँगी कहाँ ? जगह-जगह मुँह मारने से बेहतर छ पर के नीचे िसर िछपना ! इनसे मुलाकात हो गई । ये मेरे बेटे..... इसी वकास को..... और मुझे..... रखने को तैयार हो गए ?’’52

    ‘ र ता’ कहानी जीवन के आिथक संघष क दाहकता को य करती है । इसम ‘अथ’ क चपेट म वाह होते नीित मू य, मा यताओं आ द को मानवीय जीवन के धरातल पर तुत कया गया है । कहानी क नाियका, मनक वधवा, एक ब चे क माँ है । वह जीवन म आिथक ववंचनाओं से जूझते जी रह है । वह ज़ंदगी से तंग आकर कसी भी आदमी के साथ रहने को तैयार है, जो उसके बेटे िगरधार को भी रखने को तैयार है । उसके सामने दो पयाय ह, एक बूढ़ा नौकर बा तथा दूसरा प क नौकर वाला जवान रामतीरथ । रामतीरथ को वीकार करे म उसक इ छा पूित और बेटे का भ व य दोन क प रपूणता है । वह सोचती है क रामतीरथ के साथ रहने से उसके बेटे को िमल म नौकर लग जायेगी और उसका याह भी होगा ।

    इस कहानी के संदभ म िग रराज कशोर वीकार करते ह क, ‘‘‘ र ता’ कहानीक मनक का पूरा आिथक संघष है । अपने मानिसक यं य बेटे को और अपने को पालने के िलए वह से स म आनंद नह ं ले रह है, ब क उसे िस के क तरह इ तेमाल कर रह है । जब हम यथाथ क बात करते है तो हम यथाथ को हर से देखना चा हए।’’52

    ‘ब च से कौन डरता है’ इस कहानी म आिथक वषमताज य संकट से सश ता से अिभ य कया गया है । बुिनयाद गरज़ क आपूित म दबाववश थित से गज़ुरते गर ब क पीड़ा को िग रराज कशोर ने कहानी म तुत कया है । वे प करते ह क - ‘‘सच पूिछए तो अपने मु क म सबसे खतरनाक पकड़ रोज़ी और साये क है । साया

  • 138

    यानी घर । काशी के रांड-सांड, सीढ़ और सं यासी से भी यादा खतरनाक । उनसे तो छुट जाए पर इनसे बचना..... ह दु तानी हमेशा इ ह ं दो मार से मरता है । ये दोन िमल जाये तो उससे बड़ा फ ने खाँ संसार म दूसरा न हो । बस यह एक घुटना उनके पास है जस पर रखकर हमारे आधुिनक ‘नरिसंह’ इ सान क र ढ़ ह ड चटका देते ह और पेट फाड़ डालते ह ।’’54 सं ेप म दोन साये क पकड़ से उबरने के िलए बेगार करने के िलए ववश ह । ऐसी थित म वे अपने को असहाय महसूस करते ह ।

    ‘चोर के पाँव’ कहानी आिथक वप नता एवं ववशता से संघषरत िन न-वग य जीवन का यथाथ िच तुत करती है । कहानी का र शावाला अपने प रवार के िलए जी-तोड़ मेहनत करता है, पर दो जून क रोट जुटाने म असफल है । ऐसी थित म वह लाचार होकर अपनी प ी का ज म बेचने को उसे जबरन तैयार कराता है - ‘‘तड़, तड़ ! कसी को पीटने क आवाज़ आई । फर उसके बाद क असहाय ित या..... िससकन..... सुनाई द । कुछ ह ण के बाद फर शा त हो गई । ब चे क बीमार-सी आवाज़ अब भी सुनाई पड़ रह थी । चोर करने वाले के कैसे पाँव होते ह, वैसे ह मेरे भी थे । उखड़ने लगे । दल एक-एक धड़कन छोड़कर धड़कने लगे ।’’55

    ‘असमंजस’ कहानी म आिथक प र े य म वा स य, ममता क दय ावक यथा-कथा सुम रया के मा यम से य होती है । कथा नाियका सुम रया चार ब च क माँ है, जो अपने ब च को गाँव म छोड़कर अथ पाजन के िलए शहर म आई है । उसे कसी प रवार म रसोईदार का काम िमलता है, पर उसका मन अपने ब च म अटका है । याद उसे अपने अभाव त प रवार क ओर खींच ले जाती ह - ‘‘ब चे..... बड़ लड़क , बड़ा और छोटे दोन लड़के..... । सबका या होगा ? अचानक वह िचंितत हो गई – फर सोचा ब टया संभाल लेगी । गर ब क बेट तो जनमते माँ जनमते माँ बन जाती है ।..... समझदार..... समझदार से उसका मतलब गर बी के कारण मन मार लेने से था ।’’57

    जब वह खाने बैठती है तो उसक आँख के सामने वप नाव था म जी रकहे अपने ब च का य उभरता है । उनक याद के कारण वह कुछ खा नह ं सकती । वह संक प करती है क गाँव जाते समय ब च के िलए दाल-चावल लेकर जाएगी । इस कहानी म वा स य और आिथक संघष म असमंज है, जो पाठक का मन हला देता है ।

  • 139

    ‘गुलाब जामुन खाइए’ कहानी म आिथक वषमता और ववशताओं के बीच िमल मज़दूर क टूटती आशा-आकां ाओं क पीड़ा को अिभ य कया गया है । कथा नायक गंगाधर का -जोड़ के सात-आठ पये बचाता है, जससे उसक अपने प रवार के साथ फोट खंचवाने क इ छा पूण हो सके । बाज़ार म आने पर थित अ थर-सी होती है । बेट वमला िमठाई खर दना चाहती है, तो प ी फोटो के पैस म आठ- दन घर चलाने क बात करती है । वह सोचता है - ‘‘ खंचवा ह ल । पता नह ं, जये या मर । ज़ंदगी का कुछ पता थोड़े ह है ।.....