ankush parmar class 10 अलंकार
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नाम - अंकुश परमारकक्षा - 10 वीं
1.शब्दालंकार :- जि�स अलंकार में शब्दों के प्रयोग के कारण कोई चमत्कार उपस्थि"त हो �ाता है
और उन शब्दों के "ान पर समानार्थी( दूसरे शब्दों के रख देने से वह चमत्कार समाप्त हो �ाता ह,ै वह पर शब्दालंकार माना �ाता है।
शब्दालंकार के प्रमुख भेद है -
1.अनुप्रास 2.यमक 3.शेष
1.अनुप्रास :- अनुप्रास शब्द 'अनु‘ तर्थीा 'प्रास‘ शब्दों के योग से बना है । 'अनु' का अर्थी1 है :- बार- बार तर्थीा 'प्रास‘ का अर्थी1 है -वण1 । �हाँ स्वर की समानता के बिबना भी वण8 की बार -बार आवृत्ति< होती है ,वहाँ अनुप्रास
अलंकार होता है । इस अलंकार में एक ही वण1 का बार -बार प्रयोग बिकया �ाता ह ै। �ैसे -
जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप । वि�श्व बदर इ� धृत उदर जो�त सो�त सूप । ।
2. यमक अलंकार :-
�हाँ एक ही शब्द अधिAक बार प्रयुक्त हो , लेबिकन अर्थी1 हर बार त्तिभन्न हो , वहाँ यमक अलंकार होता है। उदाहरण -
कनक कनक त ेसौगुनी ,मादकता अधिधकाय ।�ा खाये बौराय नर ,�ा पाय े बौराय। ।
यहाँ कनक शब्द की दो बार आवृत्ति< हुई है जि�समे एक कनक का अर्थी1 –है Aतूरा और दूसरे का स्वण1 है ।
3.शे्लषशे्लष अलंकारअलंकार :-
�हाँ पर ऐस ेशब्दों का प्रयोग हो ,जि�नस ेएक से अधिAक अर्थी1 बिनलकते हो ,वहाँ पर श्लेष अलंकार होता ह ै।�ैसे -
धि)रजी�ो जोरी जुर े क्यों न सनेह गंभीर ।को घटि0 ये �ृष भानुजा , �े हलधर के बीर। ।
यहाँ वृषभानु�ा के दो अर्थी1 ह ै-1. वृषभानु की पुत्री राAा 2.वृषभ की अनु�ा गाय ।
इसी प्रकार हलAर के भी दो अर्थी1 है -1. बलराम
2. हल को Aारण करने वाला बैल ।
2.रूपक अलंकार :-
�हाँ उपमेय पर उपमान का आरोप बिकया �ाय , वहाँ रूपक अलंकार होता है , यानी उपमेय और उपमान में कोई अन्तर न दिदखाई पडे़ ।
उदाहरण -
बीती वि�भा�री जाग री।अम्बर -पनघ0 में डुबों रही , तारा -घ0 उषा नागरी । ‘
यहाँ अम्बर में पनघट ,तारा में घट तर्थीा उषा में नागरी का अभेद कर्थीन है।
3.उत्प्रेक्षा अलंकार :-
�हाँ उपमेय को ही उपमान मान लिलया �ाता है यानी अप्रस्तुत को प्रस्तुत मानकर वण1न बिकया �ाता है। वहा उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यहाँ त्तिभन्नता में अत्तिभन्नता दिदखाई �ाती है।
उदाहरण -
सखिख सोहत गोपाल के , उर गंुजन की माल बाहर सोहत मनु विपये, दा�ानल की ज्�ाल । ।
यहाँ गंू�ा की माला उपमेय में दावानल की ज्वाल उपमान के संभावना होने से उत्प्रेक्षा अलंकार है।
4.अवितशयोधि9 अलंकार :-
�हाँ पर लोक - सीमा का अबितक्रमण करके बिकसी बिवषय का वण1न होता है । वहाँ पर अबितशयोलिक्त अलंकार होता है।
उदाहरण -
हनुमान की पंूछ में लगन न पायी आविग ।सगरी लंका जल गई ,गये विनसा)र भाविग। ।
यहाँ हनुमान की पूंछ में आग लगते ही समू्पण1 लंका का �ल �ाना तर्थीा राक्षसों का भाग �ाना आदिद बातें अबितशयोलिक्त रूप में कहीं गई है।
5.संदेह अलंकार :-
�हाँ प्रस्तुत में अप्रस्तु त का संशयपूण1 वण1न हो , वहाँ संदेह अलंकार होता है।
–�ैसे
'सारी विब) नारी है विक नारी विब) सारी है ।विक सारी हीकी नारी है विक नारी हीकी सारी है । ‘
इस अलंकार में नारी और सारी के बिवषय में संशय है अतः यहाँ संदेह अलंकार है ।
6.दृष्टान्त अलंकार :-
�हाँ दो सामान्य या दोनों बिवशेष वाक्य में बिबम्ब -प्रबितबिबम्ब भाव होता है ,वहाँ पर दृष्टान्त अलंकारहोता है। इस अलंकार में उपमेय रूप में कहीं गई बात से धिमलती -�ुलती बात उपमान रूप में दूसरे वाक्य में होती है।
उदाहरण :-
'एक म्यान में दो तल�ारें ,कभी नही रह सकती है ।विकसी और पर पे्रम नारिरयाँ,पवित का क्या सह सकती है । । ‘
इस अलंकार में एक म्यान दो तलवारों का रहना वैस े ही असंभव है �ैसा बिक एक पबित का दो नारिरयों पर अनुरक्त रहना । अतः यहाँ बिबम्ब-प्रबितबिबम्ब भाव दृधिष्टगत हो रहा है।
उभयालंकार
�हाँ काव्य में शब्द और अर्थी1 दोनों का चमत्कार एक सार्थी उत्पन्न होता है , वहाँ उभयालंकार होता है ।
उदाहरण -
'कजरारी अखंिखयन में कजरारी न लखाय।‘
इस अलंकार में शब्द और अर्थी1 दोनों है।
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