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Kundalini Sadhana (कु� ण्डलि�नी�-साधनी)कु� ण्डलि�नी� शलि� क्या� है�?यो ग कु� ण्डल्यो�पनिनीषद्� में� कु� ण्डलि�नी� कु वर्ण�नी इसा तरह निकुयो गयो ह�- ´कु� ण्ड� अस्यो´ स्त: इनित: कु� ण्डलि�नी�। द् कु� ण्ड� व�� ह नी कु कुरर्ण निपण्डस्थ उसा शलि' प्रवह कु कु� ण्डलि�नी� कुहत ह)। द् कु� ण्ड� अर्था�त इड़ा और पिंप.ग�। बाईं ओर सा बाहनी व�� नीड़ा� कु ´इड़ा´ और द्निहनी� ओर सा बाहनी व�� नीड़ा� कु ´निपग�´ कुहत ह)। इनी द् नी2 नीनिडयो2 कु बा�च जि5साकु प्रवह ह त ह�, उसा सा�ष�म्नी नीड़ा� कुहत ह)। इसा सा�ष�म्नी नीड़ा� कु सार्था और भी� नीनिड़ायो8 ह त� ह�। जि5सामें� एकु लिचत्रर्ण� नीमें कु; नीड़ा� भी� ह त� ह�। इसा लिचत्रर्ण� नीमें कु; नीड़ा� में� सा ह कुर कु� ण्डलि�नी� शलि' प्रवनिहत ह त� ह�, इसालि�ए सा�ष�म्नी नीड़ा� कु; द् नी2 ओर सा बाहनी व�� उपयो�' 2 नीनिड़ायो8 ह� कु� ण्डलि�नी� शलि' कु 2 कु� ण्ड� ह)।

कु� ण्डलि�नी� याज्ञ कु� वि�श�ष �र्ण�नी कुरते� हुए मु�ण्डकु�पविनीषद कु� २/१/८ सं$दर्भ� मु& कुहै� गया� है�- ''सात्तप्रर्ण� उसा� सा उत्पन्न हुए । अग्निAनी कु; सात ज्व�एC उसा� सा प्रकुट हुईं । योह� साप्त सामिमेंधएC ह), योह� सात हनिव ह) । इनीकु; ऊ5� उनी सात � कु2 तकु 5त� जि5नीकु साH5नी परमें श्वर नी उच्च प्रयो 5नी2 कु लि�ए निकुयो गयो ह� ।''

उपविनीषद) मु& कु� ण्डलि�नी� शलि� कु� स्�रूप कु� �र्ण�नी-मेंK�धरस्यो वहवयोत्में त 5 मेंध्यो व्यवस्थिस्थत।5�वशलि': कु� ण्ड�ख्यो प्रर्णकुरर्ण त�5सा�।।

अर्था�त कु� ण्डलि�नी� मेंK�धर चक्र में� स्थिस्थत आत्मेंAनी� त 5 कु मेंध्यो में� स्थिस्थत ह�। वह 5�वनी� शलि' ह�। त 5 और प्रर्णकुर ह�।

कु� ण्डलि�नी� शलि� कु� ज्ञ�नी�र्ण�� ते$त्र मु& �र्ण�नी इसं प्रकु�र विकुया� गया� है�-मेंK�धर मेंK�निवद्दयो निवद्यु�त्कु टिट सामेंप्रभीसामें�।साKयो�कुटिट प्रत�कुश8 चन्द्रकु टिट द्रव8 निप्रयो ।।

अर्था�त मेंK�धर चक्र में� निवद्यु�त प्रकुश ह� कुर ड़ा2 निकुरर्ण2 व�, कुर ड़ा2 साKयोW और चन्द्रमेंओं कु प्रकुश कु सामेंनी, कुमें� कु; डण्ड� कु सामेंनी अनिवस्थिYन्न त�नी घे र ड� हुए मेंK� निवद्यु रूनिपर्ण� कु� ण्डलि�नी� स्थिस्थत ह�। वह कु� ण्डलि�नी� परमें प्रकुशमेंयो ह�, अनिवस्थिYन्न शलि'धर ह� और त 5 धर ह�।

घे�रण्ड सं$विहैते� कु� अनी�सं�र-घे रण्ड सा8निहत में� कु� ण्डलि�नी� कु ह� आत्मेंशलि' यो टिद्व्य शलि' व परमें द् वत कुह गयो ह�।

मेंK�धर आत्मेंशलि': कु� ण्ड�� परद् वत।शमिमेंत भी�5गकुर, साध�नित्रबा�योन्विन्वत।।

अर्था�त मेंK�धर में� परमें द् व� आत्मेंशलि' कु� ण्डलि�नी� त�नी बा�यो व�� सार्पिप.र्ण� कु सामेंनी कु� ण्ड� मेंरकुर सा रह� ह�।

मेंहकु� ण्डलि�नी� प्र ': परब्रह्म स्वरूनिपर्ण�।शब्द्ब्रह्ममेंयो� द् व� एकुऽनी कुक्षरकुH नित:।।

अर्था�त कु� ण्डलि�नी� शलि' परमें ब्रह्म स्वरूनिपर्ण�, मेंहद् व�, प्रर्ण स्वरूनिपर्ण� तर्था एकु और अनी कु अक्षर2 कु में8त्र2 कु; आकुH नित में� में� कु सामेंनी 5�ड़ा� हुई बातयो� 5त� ह�।

कुन्द् ध्व� कु� ण्ड�� शलि': सा�प्त में क्षयो यो निगनीमें�।बान्धनीयो च मेंKढ़ानी8 योस्त8 व नित सा यो निगनिवत�।।

अर्था�त कुन्द् कु ऊपर कु� ण्डलि�नी� शलि' अवस्थिस्थत ह�। योह कु� ण्डलि�नी� शलि' सा ई हुई अवस्थ में� ह त� ह�। इसा कु� ण्डलि�नी� शलि' कु द्वार ह� यो निग5नी2 कु में क्ष प्रप्त ह त ह�। सा�ख कु बान्धनी कु कुरर्ण भी� कु� ण्डलि�नी� ह�। 5 कु� ण्डलि�नी� शलि' कु अनी�भीव पKर्ण� रूप सा कुर पत ह�, वह� साच्च यो ग� ह त ह�।

संप्ते ��कु2 कु� द��� र्भ�ग�ते मु& अन्या प्रकु�र सं� उल्��ख हुआ है�-उसामें� भीKh में� धरिरत्र� भी�वh में� वयो� स्वh में� त 5सा मेंहh में� मेंहनीत, 5नीh में� 5नीसामें�द्यो, तपh में� तपश्चयो� एव8 सात्यो में� लिसाद्धवर्ण�-वकु लिसाजिद्ध रूप सात शलि'योC सामेंनिहत बातयो� गयो� ह) ।

इसा प्रकुर कु� ण्डलि�नी� यो ग कु अ8तग�त चक्र सामें�द्यो में� वह साभी� कु� छ आ 5त ह�, जि5साकु; निकु भीmनितकु और आत्मित्मेंकु प्रयो 5नी2 कु लि�ए आवश्योकुत पड़ात� ह� ।

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मेंनीव� कुयो कु एकु प्रकुर सा भीK� कु कु सामेंनी मेंनी गयो ह�। इसामें� अवस्थिस्थत मेंK�धर चक्र कु पHथ्व� कु; तर्था साहस्रार कु साKयो� कु; उपमें द्r गई ह� । द् नी2 कु बा�च च�नी व� आद्नी-प्रद्नी मेंध्योमें कु में रुद्ण्ड कुह गयो ह� । ब्रह्मर8ध्र ब्रह्मण्ड कु प्रत�कु ह� । ठीvकु इसा� प्रकुर साहस्रार � कु ब्रह्मण्ड�यो च तनी कु अवतरर्ण कु न्द्र ह� और इसा मेंहनी� भीण्डगर में� सा मेंK�धर कु जि5सा कुयो� कु लि�ए जि5तनी� मेंत्र में� जि5सा स्तर कु; शलि' निकु आवश्यो' ह त� ह� उसाकु; पKर्पित. �गतर ह त� रहत� ह� ।

कु� ण्डलि�नी� प्रसा8ग यो ग वलिशष्ठ, यो ग चKड़ामेंणिर्ण, द् व� भीवगत�, शरद् नित�कु, शग्निyल्यो सापनिनीषद् में�लि'-कु पनिनीषद्, हठीयो ग सा8निहत, कु� �र्ण�नी त8त्र, यो निगनी� त8त्र निबान्दूपनिनीषद्, रुद्र योमें� त8त्र साmन्द्यो� �हर� आटिद् ग8र्था2 में� निवस्तर पKव�कु टिद्यो गयो ह� ।

याहै� कु�रर्ण है� विकु ऋग्��द मु& ऋविष कुहैते� है9-ह ''प्रर्णग्निAनी! में र 5�वनी में� ऊष बानीकुर प्रकुट2 अज्ञानी कु अ8धकुर दूर कुर2, ऐसा बा� प्रद्नी कुर जि5सासा द् व शलि'योC खिंख.च� च�� आएC ।''

वित्रशिशखिखब्रहै�पविनीषद मु& श�स्त्रकु�र नी� कुहै� है�-''यो ग साधनी द्वार 5गई हुई कु� ण्डलि�नी� निबा5�� कु सामेंनी �डपत� और चमेंकुत� ह� । उसासा 5 ह�, सा यो सा 5गत ह� । 5 5गत ह�, वह द्mड़ानी �गत ह� ।''

मुहै�मु$त्र मु& �र्ण�नी आते� है�-''5ग्रत हुई कु� ण्डलि�नी� असा�में शलि' कु प्रसाव कुरत� ह� । उसासा नीद् निबान्दू, कु� कु त�नी2 अभ्योसा स्वयो8में व साध 5त ह) । पर, पश्योन्विन्त, मेंध्योमें और बा�खर� चर2 वणिर्णयोC में�खर ह उठीत� ह) । इY शलि', ज्ञानी शलि' और निक्रयो शलि' में� उभीर आत ह� । शर�र-व�र्ण कु साभी� तर क्रमेंबाद्ध ह 5त ह) और मेंध�र ध्वनिनी में� बा5त हुए अन्तर� कु झं8कुH त कुरत ह) । शब्द्ब्रह्म कु; योह लिसाजिद्ध मेंनी�ष्यो कु 5�वनीमें�' कुर द् वत्में बानी द् त� ह� । ''

शर�र मु& कु� ण्डलि�नी� कु= अ�स्था�5नीनी जिन्द्रयो कु मेंK� में� यो लिं�.ग उपस्थ में� नीनिड़ायो2 कु एकु ग�Y ह�। यो ग शस्त्र2 में� इसा� कु “कुन्द्” कुह 5त ह�। इसा� पर कु� ण्डलि�नी� गहर� नी�द् में� 5न्में-5न्मेंन्तर सा सा रह� ह त� ह�।

कु� ण्ड� कु� टिट�कुर साप�वत� परिरकु;र्पित.त।सा शलि'श्चलि�त यो नी, सा यो�'2 नीत्र सा8शयो।।

अर्था�त कु� ण्डलि�नी� कु साप� कु आकुर कु; कु� टिट� कुह गयो ह�। जि5सा तरह सा8प कु� ण्ड�� मेंरकुर सा त ह�, उसा� प्रकुर कु� ण्डलि�नी� शलि' भी� आटिद्कु� सा ह� मेंनी�ष्यो कु अन्द्र सा ई हुई रहत� ह�।

योवत्सा निनीटिद्रत द् ह तवज्जी�व: पयो�यो र्था।ज्ञानी नी 5योत तवत� कु टिट यो गनिवध रनिप।।

अर्था�त 5बा तकु कु� ण्डलि�नी� शलि' मेंनी�ष्यो कु अन्द्र सा ई हुई अवस्थ में� रहत� ह�, तबा तकु मेंनी�ष्यो परिरस्थिस्थनित कु अध�नी रहत ह�। ऐसा व्यलि' कु आचरर्ण पश�ओं कु सामेंनी ह त ह�। ऐसा व्यलि' द्rनी-ह�नी 5�वनी योपनी कुरत ह), तर्था उनीकु रहनी-साहनी, भीव2 और निवचर2, आहर-निवहर आटिद् में� आत्में निवश्वसा, ध�यो�, साKझं-बाKझं, उमें8ग, उत्साह, उल्�सा, दृढ़ात, स्थिस्थरत, एकुग्रत, कुयो� कु� श�त, उद्रत और हृद्यो निवश�त 5�सा ग�र्ण2 कु अभीव ह त ह�। ऐसा व्यलि' अनी कु यो ग साधनी, पK5-पठी आटिद् कुरकु भी� अपनी ब्रह्मज्ञानी निवव कु कु प्रप्त नीह� कुर पत।

मेंK�धर प्रसा�प्त साऽऽमेंशलि' उस्थिन्न्द्रत-निवश�द्ध नितष्ठनित में�लि'रूप परशलि':।

अर्था�त वह प्रबा� आत्मेंशलि' मेंK�धर में� सा रह� ह�। उसाकु प्रयो ग निकुसा� बाड़ा यो चमेंत्कुर� कुयो� में� नी ह नी सा वह अपमेंनिनीत व्यलि' कु; तरह लिशलिर्था� और गनितह�नी बानी� हुई ह�। व्यलि' कु अन्द्र 5ग� हुई इYशलि' कु मेंहनी उद्द श्यो2 कु; पKर्पित. में� निनीयो जि5त वह� शलि' परशलि' कु रूप में� निवर5त� ह�।

कु� ण्डलि�नी� जा�ग@ते कुरनी� कु� कु�रर्णशर�र कु अन्द्र कु� ण्डलि�नी� शलि' कु 5गरर्ण ह नी सा शर�र कु अन्द्र मेंm5Kद् दूनिषत कुफ, निपत्त, वत आटिद् सा उत्पन्न ह नी व� निवकुर नीष्ट ह 5त ह)। इसाकु 5गरर्ण सा मेंनी�ष्यो कु अन्द्र कुमें, क्र ध, � भी, में ह 5�सा द् ष, आटिद् खत्में ह 5त ह)। इसा शलि' कु 5गरर्ण ह नी सा योह अपनी� सा ई हुई अवस्थ कु त्योग कुर सा�ध� ह 5त� ह� और निवद्यु�त तर8ग कु सामेंनी कुम्पनी कु सार्था इड़ा, पिंप.ग� नीनिड़ायो2 कु छ ड़ाकुर सा�ष�म्नी सा ह त हुए मेंस्तिस्तष्कु में� पहु8च 5त� ह�।

कु� ण्डल्यो व भीव Yलि'स्त8 त� साच�यो त बा�ध:।स्पश्योनीद्भ्रव में�ध्यो, शलि'च�नीमें�च्चत ।।

अर्था�त अपनी अन्द्र आ8तरिरकु ज्ञानी व अत्योमिधकु शलि' कु; प्रन्विप्त कु लि�ए साभी� मेंनी�ष्यो2 कु चनिहए निकु वह अपनी अन्द्र सा ई हुई कु� ण्डलि�नी� (आत्मेंशलि') कु 5गरर्ण कुर�, उसा कुयो�श�� बानीए8! प्रर्णयोमें कु द्वार 5बा मेंK�धर सा स्फूK र्पित. तर8ग कु; तरह ऊ5� शलि' उठीकुर मेंस्तिस्तष्कु

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में� आत� हुई मेंहसाKसा ह नी �ग त सामेंझंनी चनिहए निकु कु� ण्डलि�नी� शलि' 5गHत ह च�कु; ह�।

ज्ञा यो शलि'रिरयो8 निवश्नो निनीभी�यो स्वर्ण�भी: स्वर।

अर्था�त शर�र में� उत्पन्न ह नी व�� इसा कु� ण्डलि�नी� शलि' कु स्वर्ण� कु सामेंनी सा�न्द्र निवष्र्ण� कु; निनीभी�यो शलि' ह� सामेंझंनी चनिहए। योह� शलि' आत्मेंशलि', 5�वशलि' आटिद् नीमें सा भी� 5नी 5त ह�। योह� ईश्वर�यो शलि' भी� ह�, प्रर्णशलि' और कु� ण्डलि�नी� शलि' भी� ह�। मेंनी�ष्यो कु शर�र में� मेंm5Kद् कु� ण्डलि�नी� शलि' और पर�mनिकुकु शलि' द् नी2 एकु ह� शलि' कु अ�ग-अ�ग रूप ह)।

पते�$जालि� द्वा�र� रलिBते ´या�ग दश�नी´ श�स्त्र कु� अनी�सं�र-पत85लि� द्वार रलिचत ´यो ग द्श�नी´ शस्त्र कु साधनीपद् में� कु� ण्डलि�नी� शलि' कु 5गरर्ण कु अनी कु2 उपयो बातए गए ह�। में8त्र ग्रन्थों2 में� जि5तनी यो ग2 कु वर्ण�नी ह�, व साभी� कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण कु; ह� साधनी ह�। मेंहबान्ध, मेंहव ध, मेंहमें�द्र, ख चर� में�द्र, निवपर�त कुरर्ण� मेंद्र, अणिश्वनी� में�द्र, यो निनी में�द्र, शलि' चलि�नी� में�द्र, आटिद् कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण में� साहयोत कुरत ह)। इसामें� प्रर्णयोमें कु द्वार कु� ण्डलि�नी� कु 5गरर्ण कुरनी और उसा सा�ष�म्नी में� �नी कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण कु साबासा अY उपयो ह�। प्रर्णयोमें कु द्वार कु� छ सामेंयो में� ह� कु� ण्डलि�नी� शलि' कु 5गरर्ण कुर उसाकु �भी2 कु प्रप्त निकुयो 5 साकुत ह�।

प्रर्णयोमें सा कु व� कु� ण्डलि�नी� शलि' ह� 5गHत ह� नीह� ह त� बास्तिल्कु इसासा अनी कु2 �भी भी� प्रप्त ह त ह)। ´यो ग द्श�नी´ कु अनी�सार प्रर्णयोमें कु अभ्योसा सा ज्ञानी पर पड़ा हुआ अज्ञानी कु पद्� नीष्ट ह 5त ह�। इसासा मेंनी�ष्यो भ्रमें, भीयो, लिंच.त, असामें85स्यो, मेंK� धरर्णए8 और अनिवद्यु व अन्धनिवश्वसा आटिद् नीष्ट ह कुर ज्ञानी, अY सा8स्कुर, प्रनितभी, बा�जिद्ध-निवव कु आटिद् कु निवकुसा ह नी �गत ह�। इसा साधनी कु द्वार मेंनी�ष्यो अपनी मेंनी कु 5ह8 चह वह8 �ग साकुत ह�। प्रर्णयोमें कु द्वार मेंनी निनीयो8त्रर्ण में� रहत ह�। इसासा शर�र, प्रर्ण व मेंनी कु साभी� निवकुर नीष्ट ह 5त ह)। इसासा शर�रिरकु क्षमेंत व शलि' कु निवकुसा ह त ह�। प्रर्णयोमें कु द्वार प्रर्ण व मेंनी कु वश में� कुरनी सा ह� व्यलि' आश्चयो�5नीकु कुयो� कु कुर साकुनी में� सामेंर्था� ह त ह�। प्रर्णयोमें आयो� कु बाढ़ानी व�, र ग2 कु दूर कुरनी व�, वत-निपत्त-कुफ कु निवकुर2 कु नीष्ट कुरनी व� ह त ह�। योह मेंनी�ष्यो कु अन्द्र ओ5-त 5 और आकुष�र्ण कु बाढ़ात ह�। योह शर�र में� स्फूK र्पित., �चकु, कु में�, श8नित और सा�दृढ़ात �त ह�। योह र' कु श�द्ध कुरनी व� ह�, चमें� र ग नीशकु ह�। योह 5ठीरग्निAनी कु बाढ़ानी व�, व�यो� द् ष कु नीष्ट कुरनी व� ह त ह�।

प्रर्णयोमें कु द्वार व�यो� और प्रर्ण कु ऊध्व�गमेंनी सा बा�जिद्ध त8त्र कु बान्द् कु ष ख��त ह�, सार्था ह� शर�र कु; नीसा-नीसा में� अत्यो8त शलि', साहसा कु सा8चर ह नी सा निक्रयोश��त कु निवकुसा भी� ह त ह�।

कु�$ डलि�नी� जा�गरर्ण कु� अर्थ� है�मेंनी�ष्यो कु प्रप्त मेंहनीशलि' कु 5ग्रत कुरनी। योह शलि' साभी� मेंनी�ष्यो2 में� सा�प्त पड़ा� रहत� ह�। कु� ण्ड�� शलि' उसा ऊ5� कु नीमें ह� 5 हर मेंनी�ष्यो में� 5न्में5त पयो� 5त� ह�। इसा 5गनी कु लि�ए प्रयोसा यो साधनी कुरनी� पड़ात� ह�।

कु�8 ड�� 5गरर्ण कु लि�ए साधकु कु शर�रिरकु, मेंनीलिसाकु एव8 आत्मित्मेंकु स्तर पर साधनी यो प्रयोसा कुरनी पड़ात ह�। 5प, तप, व्रत-उपवसा, पK5-पठी, यो ग आटिद् कु मेंध्योमें सा साधकु अपनी� शर�रिरकु एव8 मेंनीलिसाकु, अश�जिद्धयो2, कुमिमेंयो2 और बा�रइयो2 कु दूर कुर सा ई पड़ा� शलि'यो2 कु 5गत ह�। अत: हमें कुह साकुत ह) निकु निवणिभीन्न उपयो2 सा अपनी� अज्ञात, ग�प्त एव8 सा ई पड़ा� शलि'यो2 कु 5गरर्ण ह� कु�8 ड�� 5गरर्ण ह�।

यो ग और अध्योत्में में� इसा कु�8 ड��नी� शलि' कु निनीवसा र�ढ़ा कु; हड्डी� कु सामेंनी8तर स्थिस्थत छ: चक्र2 में� सा प्रर्थामें चक्र मेंK�धर कु नी�च मेंनी गयो ह�। योह र�ढ कु; हड्डी� कु आग्निखर� निहस्सा कु चर2 ओर साढ त�नी आCट �गकुर कु� ण्ड�� मेंर सा ए हुए सा8प कु; तरह सा ई रहत� ह�।

आध्योत्मित्मेंकु भीष में� इन्ह� षट�-चक्र कुहत ह)।

या� Bक्र क्रमुश:इसा प्रकुर ह�:- मेंK�धर-चक्र, स्वमिधष्ठनी-चक्र, मेंणिर्णप�र-चक्र, अनीहत-चक्र, निवश�द्ध-चक्र, आज्ञा-चक्र। साधकु क्रमेंश: एकु-एकु चक्र कु 5ग्रत कुरत हुए, आज्ञा-चक्र तकु पहु8चत ह�। मेंK�धर-चक्र सा प्रर8भी ह कुर आज्ञाचक्र तकु कु; साफ�तमें योत्र ह� कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण कुह�त ह�।

षट�-चक्र एकु प्रकुर कु; साKक्ष्में ग्र8लिर्थायो8 ह�। इनी चक्र ग्र8लिर्थायो2 में� 5बा साधकु अपनी ध्योनी कु एकुग्र कुरत ह� त उसा वह8 कु; साKक्ष्में स्थिस्थनित कु बाड़ा निवलिचत्र अनी�भीव ह त ह�। इनी चक्र2 में� निवनिवध शलि'यो8 सामेंनिहत ह त� ह�। उत्पद्नी, प षर्ण, सा8हर, ज्ञानी, सामेंHजिद्ध, बा� आटिद्। साधकु 5प कु द्वार ध्वनिनी तर8ग2 कु चक्र2 तकु भी 5त ह�। इनी पर ध्योनी एकुग्र कुरत ह�। प्रर्णयोमें द्वार चक्र2 कु उत्त जि5त कुरत ह�। आसानी2 द्वार शर�र कु इसाकु लि�ए उपयो�' बानीत ह�। इसा प्रकुर हमें कुह साकुत ह) निकु निवणिभीन्न शर�रिरकु, मेंनीलिसाकु एव8 आत्मित्मेंकु प्रयोसा2 कु द्वार साधकु, शलि' कु कु� द्र इनी चक्र2 कु 5ग्रत कुरत ह�।

व�टिद्कु ग्रन्थों2 में� लि�ख ह� निकु मेंनीव शर�र आत्में कु भीmनितकु घेर मेंत्र ह�। आत्में सात प्रकुर कु कु ष2 सा ढकु; हुई ह�h- १- अन्नमेंयो कु ष (द्रव्य, भीmनितकु शर�र कु रूप में� 5 भी 5नी कुरनी सा स्थिस्थर रहत ह�), २- प्रर्णमेंयो कु ष (5�वनी शलि'), ३- मेंनी मेंयो कु ष (मेंस्तिस्तष्कु 5 स्पष्टतh बा�जिद्ध सा णिभीन्न ह�), ४- निवज्ञानीमेंयो कु ष (बा�जिद्धमेंत्त), ५- आनीन्द्मेंयो कु ष (आनीन्द् यो अक्षयो आनीन्द् 5 शर�र यो टिद्मेंग सा साम्बात्मिन्धत नीह� ह त), ६- लिचत�-मेंयो कु ष (आध्योत्मित्मेंकु बा�जिद्धमेंत्त) तर्था ७- सात�-मेंयो कु ष (अन्विन्तमें अवस्थ 5 अनीन्त कु सार्था मिमें� 5त� ह�)। मेंनी�ष्यो कु आध्योत्मित्मेंकु रूप सा पKर्ण� निवकुलिसात ह नी कु लि�यो सात2 कु ष2 कु पKर्ण� निवकुसा ह नी अनित आवश्योकु ह�।

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साधकु कु; कु� ण्डलि�नी� 5बा च तनी ह कुर साहस्त्रर में� �यो ह 5त� ह�, त इसा� कु में क्ष कुह गयो ह�।

कु� ण्डलि�नी� या�ग कु� अ$तेग�ते शलि�प�ते वि�धा�नी कु� �र्ण�नी अनी�कु ग्रं$र्थ2 मु& मिमु�ते� है� जा�सं�-यो ग वलिशष्ठ, त 5निबान्दूनिनीषद्�, यो ग चKड़ामेंणिर्ण, ज्ञानी सा8कुलि�नी� त8त्र, लिशव प�रर्ण, द् व� भीगवत, शस्थिण्डपनिनीषद्, में�लि'कु पनिनीषद्, हठीयो ग सा8निहत, कु� �र्ण�व त8त्र, यो गनी� त8त्र, घे र8ड सा8निहत, कु8 ठी श्रु�नित ध्योनी निबान्दूपनिनीषद्, रुद्र योमें� त8त्र, यो ग कु� ण्डलि�नी� उपनिनीषद्�, शरद् नित�कु आटिद् ग्र8र्था2 में� इसा निवद्यु कु निवणिभीन्न पह��ओं पर प्रकुश ड� गयो ह� ।

त�त्तर�यो आरण्योकु में� चक्र2 कु द् व� कु एव8 द् व सा8स्थनी कुह गयो । श8कुरचयो� कुH त आनीन्द् �हर� कु १७ व� श्लो कु में� भी� ऐसा ह� प्रनितपद्नी ह� ।

या�ग दश�नी संमु�लिधाप�द कु� ३६��J संKत्र है�-'निवश कुयो ज्यो नितष्मेंत�'इसामें� श कु सा8तप2 कु हरर्ण कुरनी व�� ज्यो नित शलि' कु रूप में� कु� ण्डलि�नी� शलि' कु; ओर सा8कु त ह�।

हमेंर ऋनिषयो2 नी गहनी श ध कु बाद् इसा लिसाद्धन्त कु स्व�कुर निकुयो निकु 5 ब्रह्मण्ड में� ह�, वह� साबा कु� छ निपण्ड (शर�र) में� ह�। इसा प्रकुर “मेंK�धर-चक्र” सा “कुण्ठी पयो�न्त” तकु कु 5गत “मेंयो” कु और “कुण्ठी” सा � कुर ऊपर कु 5गत “परब्रह्म” कु ह�।

मेंK�द्धरजिद्ध षट�चक्र8 शलि'रर्थानीमेंKद्rरतमें� ।कुण्ठीदुपरिर मेंKद्ध�न्त8 शम्भव स्थनीमें�च्योत ॥ -वरहश्रु�नित

अर्था�त मेंK�धर सा कुण्ठीपयो�न्त शलि' कु स्थनी ह� । कुण्ठी सा ऊपर सा मेंस्तकु तकु शम्भव स्थनी ह� ।

मेंK�धर सा साहस्रार तकु कु; योत्र कु ह� मेंहयोत्र कुहत ह) । यो ग� इसा� मेंग� कु पKर कुरत हुए परमें �क्ष्यो तकु पहुCचत ह) । 5�व, सात्त, प्रर्ण, शलि' कु निनीवसा 5नीनी जिन्द्रयो मेंK� में� ह� । प्रर्ण उसा� भीKमिमें में� रहनी व� र5 व�यो� सा उत्पन्न ह त ह) । ब्रह्म सात्त कु निनीवसा ब्रह्म� कु (ब्रह्मरन्ध्र) में� मेंनी गयो ह� । योह� द्यु�� कु, द् व� कु, स्वग�� कु ह�। आत्मेंज्ञानी (ब्रह्मज्ञानी) कु साKयो� इसा� � कु में� निनीवसा कुरत ह� ।

पतनी कु गत� में� पड़ा� क्षत-निवक्षत आत्में सात्त अबा उध्व�गमें� ह त� ह� त उसाकु �क्ष्यो इसा� ब्रह्म� कु (साKयो�� कु) तकु पहुCचनी ह त ह� । यो गभ्योसा कु परमें प�रुषर्था� इसा� निनीमिमेंत्त निकुयो 5त ह� । कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण कु उद्द श्यो योह� ह� ।

आत्में त्कुष� कु; मेंहयोत्र जि5सा मेंग� सा ह त� ह� उसा में रुद्ण्ड यो सा�ष�म्नी कुहत ह) ।

में रुद्ण्ड कु र5मेंग� यो मेंहमेंग� कुहत ह) । इसा धरत� सा स्वग� पहुCचनी कु द् वयोनी मेंग� कुह गयो ह� । इसा योत्र कु मेंध्यो में� सात � कु ह) । इस्�में धमें� कु सातव� आसामेंनी पर ख�द् कु निनीवसा मेंनी गयो ह� । ईसाई धमें� में� भी� इसासा मिमें�त�-5��त� मेंन्योत ह� । निहन्दू धमें� कु भीKh, भी�वh, स्वh, तपh, मेंहh, सात्योमें� योह सात-� कु प्रलिसाद्ध ह� । आत्में और परमेंत्में कु मेंध्यो इन्ह� निवरमें स्थ� मेंनी गयो ह� ।

षट्)-Bक्र-र्भ�दनी-षट�-चक्र-भी द्नी निवधनी निकुतनी उपयो ग� एव8 साहयोकु ह� इसाकु; चच� कुरत हुए ‘आत्में निवव कु’ नीमेंकु साधनी ग्र8र्था में� कुह गयो ह� निकु-ग�द्लि�ङान्तर चक्रमेंधर8 त� चत�द्��में�।परमेंh साह5स्तद्वाद्नीन्द् व�रपKव�कुh॥यो गनीन्द्श्च तस्यो स्योद्rशनीटिद्द्� फ�में�।स्वमिधष्ठनी8 लिं�.गमेंK� षट�पत्रञ्त्र� क्रमेंस्यो त�॥पKव�टिद्ष� द्� ष्वहुh फ�न्यो तन्योनी�क्रमेंत�।प्रश्रुयोh क्रK रत गव¥ नीश मेंKYर� ततh परमें�॥अवज्ञा स्योद्निवश्वसा 5�वस्यो चरत ध्र�रवमें�।नीभीm द्शद्�8 चक्र8 मेंणिर्णपKरकुसा8ज्ञाकुमें�।सा�ष�न्विप्तरत्र तHष्र्ण स्योद्rष्र्यो निपश�नीत तर्था॥�ज्जी� भीयो8 घेHर्ण में हh कुषयो ऽर्था निवषटिद्त।�mन्यो8 प्रनीशh कुपट8 निवतकुWऽप्योनी�निपत॥आश्श प्रकुशणिश्चन्त च सामें�ह मेंमेंत ततh।क्रमें र्ण द्म्भ व�कुल्यो8 निववकु ऽह8क्वनितस्तर्था॥फ�न्यो तनिनी पKव�टिद्द्स्थस्योत्मेंनी2 5ग�h।कुण्ठी ऽस्तिस्त भीरत�स्थनी8 निवश�जिद्धh ष डशYद्में�॥तत्र प्रर्णव उद्गीrर्था हुC फट� वषट� स्वध तर्था।स्वह नीमें ऽमेंHत8 साप्त स्वरh षड�5द्यो निवष॥इनित पKव�टिद्पत्रस्थ फ�न्योत्मेंनिनी ष डश॥

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(1) ग�द् और लिं�.ग कु बा�च चर द्� (प8ख�निड़ायो2) व� ‘आधर चक्र’ ह�। वहC व�रत और आनीन्द् भीव कु वसा ह�।

(2) इसाकु बाद् स्वमिधष्ठनी-चक्र लिं�.ग मेंK� में� ह�। इसाकु छh द्� ह)। इसाकु 5ग्रत ह नी पर क्रK रत, गव�, आ�स्यो, प्रमेंद्, अवज्ञा, अनिवश्वसा आटिद् दुग�र्ण2 कु नीश ह त ह�।

चक्र2 कु; 5गHनित मेंनी�ष्यो कु ग�र्ण, कुमें�, स्वभीव कु प्रभीनिवत कुरत� ह�। स्वमिधष्ठनी कु; 5गHनित सा मेंनी�ष्यो अपनी में� नीव शलि' कु सा8चर अनी�भीव कुरत ह�। उसा बालि�ष्ठत बाढ़ात� प्रत�त ह त� ह�। श्रुमें में� उत्साह और गनित में� स्फूK र्पित. कु; अणिभीवHजिद्ध कु आभीसा मिमें�त ह�।

(3) नीणिभी में� द्सा द्� व� मेंणिर्णपKर-चक्र ह�। योह प्रसा�प्त पड़ा रह त तHष्र्ण, ईष्यो�, च�ग��, �ज्जी, भीयो, घेHर्ण, में ह, आटिद् कुषयो-कुल्मेंष मेंनी में� 5ड़ा 5मेंयो रहत ह)।

मेंणिर्णपKर चक्र सा साहसा और उत्साह कु; मेंत्र बाढ़ा 5त� ह�। सा8कुल्प दृढ़ा ह त ह) और परक्रमें कुरनी कु हmसा� उठीत ह)। मेंनी निवकुर स्वयो8में व घेटत 5त ह) और परमेंर्था� प्रयो 5नी2 में� अप क्षकुH त अमिधकु रसा मिमें�नी �गत ह�।

(4) हृद्यो स्थनी में� अनीहत-चक्र ह�। योह बारह द्� व� ह�। योह सा त रह त लि�प्सा, कुपट, त ड़ा-फ ड़ा, कु� तकु� , लिचन्त, में ह, द्म्भ, अनिवव कु तर्था अह8कुर सा साधकु भीर रह ग। इसाकु 5गरर्ण ह नी पर योह साबा दुग��र्ण हट 5यो�ग ।

अनीहत चक्र कु; मेंनिहमें ईसाई धमें� में� साबासा ज्योद् मेंनी� 5त� ह�। हृद्यो स्थनी पर कुमें� कु फK � कु; भीवनी कुरत ह) और उसा मेंहप्रभी� ईसा कु प्रत�कु ‘आईच�नी’ कुनीकु कुमें� मेंनीत ह)। भीरत�यो यो निगयो2 कु; दृमिष्ट सा योह भीव सा8स्थनी ह�। कु�त्मेंकु उमें8ग�-रसानी�भी�नित एव8 कु में� सा8व द्नीओं कु उत्पद्कु स्रा त योह� ह�। बा�जिद्ध कु; वह परत जि5सा निवव कु-श��त कुहत ह)। आत्में�योत कु निवस्तर, साहनी�भीKनित एव8 उद्र सा व, साहकुरिरत, इसा अनीहत चक्र सा ह� उद्भूªत ह त ह)।

(5) कुण्ठी में� निवश�द्ध-चक्र ह�। योह सारस्वत� कु स्थनी ह�। योह सा �ह द्� व� ह�। योहC सा �ह कु�एC तर्था सा �ह निवभीKनितयोC निवद्युमेंनी ह�।

कुण्ठी में� निवश�द्ध चक्र ह�। इसामें� बानिहर8ग स्वYत और अ8तर8ग पनिवत्रत कु तत्त्व रहत ह)। द् ष व दुग��र्ण2 कु निनीरकुरर्ण कु; प्र रर्ण और तद्नी�रूप सा8घेष� क्षमेंत योह� सा उत्पन्न ह त� ह�। में रुद्ण्ड में� कु8 ठी कु; सा�ध पर अवस्थिस्थत निवश�द्ध चक्र, लिचत्त सा8स्थनी कु प्रभीनिवत कुरत ह�। तद्नी�सार च तनी कु; अनित मेंहत्वपKर्ण� परत2 पर निनीयो8त्रर्ण कुरनी और निवकुलिसात एव8 परिरष्कुH त कुर साकुनी कु साKत्र हर्था में� आ 5त ह)। नीद्यो ग कु मेंध्योमें सा टिद्व्य श्रुवर्ण 5�सा� निकुतनी� ह� पर क्षनी�भीKनितयोC निवकुलिसात ह नी �गत� ह)।

(6) भ्रK-मेंध्यो में� आज्ञा चक्र ह�। योहC- ॐ, उद्गीrयो, हूँC, फट, निवषद्, स्वध, स्वह, साप्त स्वर आटिद् कु वसा ह�। आज्ञा चक्र कु 5गरर्ण ह नी सा योह साभी� शलि'योC 5ग 5त� ह)।

(7) साहस्रार मेंस्तिस्तष्कु कु मेंध्यो भीग में� ह�। शर�र सा8रचनी में� इसा स्थनी पर अनी कु मेंहत्वपKर्ण� ग्र8लिर्थायो2 कु अस्तिस्तत्व ह�। वहC सा ऊ5� कु स्वयो8भीK प्रवह ह त ह�। योह ऊ5� मेंस्तिस्तष्कु कु अगणिर्णत कु न्द्र2 कु; ओर 5त�/द्mड़ात� ह)। इसामें� सा छ टr-छ टr निकुरर्ण निनीकु�त� रहत� ह)। उनीकु; सा8ख्यो कु; साह� गर्णनी त नीह� ह साकुत�, पर व ह5र2 में� ह त� ह�। इसालि�ए इसा चक्र कु लि�यो ‘साहस्रार’ शब्द् प्रयो ग में� �यो 5त ह�। साहस्रार चक्र कु नीमेंकुरर्ण इसा� आधर पर हुआ ह�।

योह सा8स्थनी ब्रह्मण्ड�यो च तनी कु सार्था साम्पकु� साधनी में� अग्रर्ण� ह�, इसालि�ए उसा ब्रह्मरन्ध्र यो ब्रह्म� कु भी� कुहत ह)। निहन्दू धमें�नी�योयो� इसा स्थनी पर लिशख रखत ह)।

कुबी�र सं�विहैबी नी� अपनी� विनीम्नीलि�खिखते प्रलिसंद्ध रBनी� ‘कुर नी�नी2 दPद�र मुहै� मु& प्या�र� है�’ मु& संबी कुमु�2 कु� �र्ण�नी वि�स्ते�र पK��कु इसं प्रकु�र विकुया� है�-कुर नी�नी द्rद्र मेंह� में� प्योर ह� ॥ट कु॥कुमें क्र ध मेंद् � भी निबासार , सा�� सा8त ष लिछमें सात धर ।मेंद्यु में8सा मिमेंथ्यो तजि5 डर , ह ज्ञानी घे ड़ा असावर, भीरमें सा न्योर ह� ॥1॥ध त� नी त� वस्त� पओ, आसानी पद्म 5�गत सा �ओ ।कु�8 भीकु कुर र चकु कुरवओ, पनिह� मेंK� सा�धर कुर5 ह सार ह� ॥2॥मेंK� कुC व� द्� चत�र बाखनी , कुलिं�.ग 5प �� र8ग मेंनी ।द् व गनी सा तह र प र्थानी , रिरध लिसाध चCवर ढ��र ह� ॥3॥स्वद् चक्र षट�द्� निबास्तर , ब्रह्म सानिवत्र� रूप निनीहर ।उ�टिट नीनिगनी� कु लिसार मेंर , तह8 शब्द् ओंकुर ह� ॥4॥नीभी� अष्टकुC व� द्� सा5, सा त लिंसा.हसानी निबास्नी� निबार5 ।निहरिंर.ग 5प तसा� में�ख ग5, �छमें� लिसाव आधर ह� ॥5॥द्वाद्सा कुC व� हृद्यो कु मेंह�, 58ग गmर लिसाव ध्योनी �गई ।सा ह8 शब्द् तह8 ध�नी छई, गनी कुर� 5�5�कुर ह� ॥6॥ष ड़ाश द्� कुC व� कु8 ठी कु मेंह�, त निह मेंध बासा अनिवद्यु बाई ।

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हरिर हर ब्रह्म चCवर ढ�रई, 5ह8 शरिंर.ग नीमें उचर ह� ॥7॥त पर कु8 5 कुC व� ह� भीई, बाग भीmर दुह रूप �खई ।निनी5 मेंनी कुरत तह8 ठी�कुरई, साm नी�नीनी निपछवर ह� ॥8॥कु8 व�नी भी द् निकुयो निनीव�र, योह साबा रचनी निपण्ड में8झंर ।सातसा8ग कुर सातग�रु लिसार धर, वह सातनीमें उचर ह� ॥9॥आ8ख कुनी में�ख बा8द् कुरओ अनीहद् झिंझं.ग साब्द् सा�नीओ ।द् नी2 नित� इकुतर मिमें�ओ, तबा द् ख ग��5र ह� ॥10॥च8द् साKर एकु� घेर �ओ, सा�षमेंनी सा त� ध्योनी �गओ ।नितरबा नी� कु सा8घे सामेंओ, भी र उतर च� पर ह� ॥11॥घे8ट सा8ख सा�नी ध�नी द् ई साहसा कुC व� द्� 5गमेंग ह ई ।त मेंध कुरत निनीरख सा ई, बा8कुनी� धसा पर ह� ॥12॥डनिकुनी सानिकुनी� बाहु निकु�कुर�, 5में पिंकु.कुर धमें� दूत हकुर� ।सात्तनीमें सा�नी भीग� सार , 5बा सातग�रु नीमें उचर ह� ॥13॥गगनी में8ड� निवच उध�में�ख कु� इआ, ग�रुमें�ख साधK भीर भीर प�यो ।निनीग�र प्योसा मेंर निबानी कु;यो, 5 कु निहयो अ8मिधयोर ह� ॥14॥नित्रकु� टr मेंह� में� निवद्यु सार, घेनीहर गर5� बा5 नीगर ।�� बारनी साKर5 उजि5योर, चत�र कु8 व� में8झंर साब्द् ओंकुर ह� ॥15॥साध सा ई जि5नी योह गढ़ा ��नी, नीm द्रव5 परगट च�न्ह ।द्साव8 ख � 5यो जि5नी द्rन्ह, 5ह8 कु�8 फ� � रह मेंर ह� ॥16॥आग सा त सा�न्न ह� भीई, मेंनीसार वर प�टिठी अन्हई ।ह8सानी मिमें� ह8सा ह इ 5ई, मिमें�� 5 अमें� अहर ह� ॥17॥पिंकु.गर� सार8ग बा5� लिसातर, अYर ब्रह्म सा�न्न द्रबार ।द्वाद्सा भीनी� ह8सा उजि5योर, खट द्� कु8 व� में8झंर साब्द् रर8कुर ह� ॥18॥मेंहसा�न्न लिंसा.ध निबाषमें� घेटr, निबानी सातग�र पव� नीह� बाटr ।ब्योघेर लिंसा.ह सारप बाहु कुटr, तह8 साह5 अलिंच.त पसार ह� ॥19॥अष्ट द्� कु8 व� परब्रह्म भीई, द्निहनी द्वाद्सा अलिंच.त रहई ।बायो� द्सा द्� साह5 सामेंई, योK8 कु8 व�नी निनीरवर ह� ॥20॥प8च ब्रह्म प8च2 अ8ड बा�नी , प8च ब्रह्म निनीhअक्षर च�न्ह ।चर में�कुमें ग�प्त तह8 कु;न्ह , 5 मेंध बा8द्rवनी प�रुष द्रबार ह� ॥21॥द् पबा�त कु सा8ध निनीहर , भी8वर ग�फ त सा8त प�कुर ।ह8सा कुरत कु � अपर , तह8 ग�रनी द्रबार ह� ॥22॥साहसा अठीसा� द्rप रचयो , ह�र पन्न मेंह� 5ड़ायो ।में�र�� बा5त अख8ड साद्यो , तह8 सा ह8 झं�नीकुर ह� ॥23॥सा ह8 हद्द त5� 5बा भीई, सात्त � कु कु; हद् प�निनी आई ।उठीत सा�ग8ध मेंह अमिधकुई, 5 कु वर नी पर ह� ॥24॥ष ड़ासा भीनी� ह8सा कु रूप, बा�नी सात ध�नी बा5� अनीKप ।ह8सा कुरत च8वर लिसार भीKप, सात्त प�रुष द्रबार ह� ॥25॥कु टिटनी भीनी� उद्यो 5 ह ई, एत ह� प�निनी च8द्र �ख ई ।प�रुष र में सामें एकु नी ह ई, ऐसा प�रुष द्rद्र ह� ॥26॥आग अ�ख � कु ह� भीई, अ�ख प�रुष कु; तह8 ठीकु� रई ।अरबानी साKर र में सामें नीह�, ऐसा अ�ख निनीहर ह� ॥27॥त पर अगमें मेंह� इकु सा5, अगमें प�रुष तनिह कु र5 ।खरबानी साKर र में इकु �5, ऐसा अगमें अपर ह� ॥28॥त पर अकुह � कु ह) भीई, प�रुष अनीमें� तह8 रहई ।5 पहुCच 5नी ग वह�, कुहनी सा�नीनी सा न्योर ह� ॥29॥कुयो भी द् निकुयो निनीबा�र, योह साबा रचनी पिंप.ड में8झंर ।मेंयो अवगनित 5� पसार, सा कुर�गर भीर ह� ॥30॥आटिद् मेंयो कु;न्ह� चत�रई, झंKठीv बा5� पिंप.ड टिद्खई ।अवगनित रचनी रच� अ8ड मेंह�, त कु प्रनितपिंबा.बा डर ह� ॥31॥साब्द् निबाह8गमें च� हमेंर�, कुह) कुबा�र सातग�र द्इ तर� ।ख�� कुपट साब्द् झं�नीकुर�, पिंप.ड अ8ड कु पर सा द् सा हमेंर ह� ॥32॥

कु� ण्डलि�नी� शलि� अभी� तकु हमेंनी जि5तनी सामेंझं ह�, वह साबा शस्त्र2 कु अनी�सार सामेंझं ह� निकु कु� ण्डलि�नी� शलि' क्यो ह� और कु� सा कुमें कुरत� ह�। अबा अपनी� बात कु� ण्ड�नी� शलि' इन्सानी कु शर�र में� उसा परमेंत्में द्वार द्r गई सामेंस्त शलि'यो2 में� सा साबासा ज्योद् शलि'श�� एव8 अनित ग�प्त निवद्यु ह�।

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कु� ण्डलि�नी� शलि' कु ऊपर प्ररम्भ सा ह� अनी कु बार, अनी कु व्यखयो� द्r 5 च�कु; ह�। तर्था अनी कु बार इसाकु ऊपर शस्त्रर्था� ह च�कु ह�। आ5 कु सामेंयो में� साधकु2 कु साम्प्रद्यो द् निहस्सा2 में� बाट च�कु ह�। 5 साधकु सा8त मेंत कु मेंनीत ह), व कु� ण्डलि�नी� शलि' सा दूर रहत ह�, अर्था�त कु� ण्ड�नी� शलि' कु 5गनी और इसाकु बार में� 5नीनी व आवश्योकु नीह� सामेंझंत । उनीकु अनी�सार आज्ञा चक्र पर ध्योनी �गनी और नीमें कु 5प कुरनी, इसाकु ह� व प्रधनी मेंनीत ह�। यो साधकु आज्ञा चक्र सा नी�च कु चक्र कु कु ई भी� मेंहत्व द् नी पसान्द् नीह� कुरत । इनीकु अनी�सार नी�च कु चक्र पर साधनी कुरनी कु मेंत�बा ह�- सामेंयो कु; बारबाद्r। इनीकु अनी�सार कु� yलि�नी� शलि' 5ग्रत ह कुर आज्ञा चक्र पर ह� पहुCचत� ह�। इसालि�यो क्यो नी आज्ञा चक्र सा ह� योत्र श�रू कु; 5यो । आज्ञा चक्र सा साधनी कुरनी कु निकुतनी फयोद् ह त ह�, योह त वह� साधकु 5नी ।

निकुन्त� हमेंर� दृष्ट� में� ऐसा साम्भव नीह� ह�, क्यो2निकु निबानी कु� yलि�नी� शलि' कु 5ग्रत हुऐ आज्ञा चक्र कु 5ग्रत ह नी असाम्भव ह�। क्यो2निकु साभी� चक्र कु 5ग्रत कुरनी कु मेंK� में� कु� ण्डलि�नी� शलि' कु मेंहत्वपKर्ण� यो गद्नी ह�। 5 साधकु सा�ध ह� आज्ञा चक्र सा साधनी प्ररम्भ कुरत ह�। सा�2-सा� बा�त 5नी पर भी� उनीकु; मेंनीलिसाकु स्थिस्थत� और उनीकु; निवचरधर में� तनिनीकु/निबा�कु� � भी� बाद्�व नीह� आत। योटिद् उनी सा इसा बार में� पKछ 5यो त उनीकु अनी�सार कुमें-सा -कुमें चर 5न्में में� व अपनी� में�लि' मेंनीत ह�। कु ई उनीसा पKछनी व� ह त निकु योह 5न्में त निबातनी इतनी में�स्तिश्कु� ह�। आग कु त�नी 5न्में कु बार में� क्यो बात कुर�।उनी साधकु2 कु अनी�सार योटिद् ग�रू कुH प ह त चर 5न्में में� में�लि' साम्भव ह� और योह साधकु लिसाफ� में�लि' कु लि�यो ह� साधनी कुरत ह�। ग�रू और नीमें 5प पर इनीकु; पKर्ण� श्रुद्ध ह त� ह�। इनीमें सा अमिधकु8श साधकु नी�च कु चक्र कु नीमें सा ह� डरत ह�, व कुहत ह� निकु- योटिद् नी�च कु चक्र 5ग्रत ह गयो त अनी कु लिसाजिद्धयोC कु; प्रन्विप्त ह ग�, जि5सासा निकु साधकु में�लि' कु मेंग� सा भ्रष्ट ह साकुत ह� और लिसाजिद्धयो2 कु ��च में� फ8 सा कुर अपनी आप कु खरबा कुर � त ह�।

� निकुनी 5बा इनी साधकु2 कु; नीमें और ग�रू कु प्रनित इतनी� श्रुद्ध और निवश्वसा ह�, त योह साधकु कु� सा भीटकु साकुत ह�, क्यो2निकु इनीकु पKर्ण� ग�रू त हर व' इनीकु सार्था ह� निफर भीटकुव क्यो2 और कु� सा ?

हमेंर� नी5र में� कु ई मेंनी यो नी मेंनी यो त इनीकु ग�रूओं कु कु� ण्डलि�नी� शलि' 5गरर्ण कु निवधनी, उसाकु निनीयोमें आटिद् नीह� में�Kमें और योटिद् में�Kमें ह� त - यो अपनी लिशष्यो2 कु बातनी यो लिसाखनी नीह� चहत , क्यो2निकु कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण कु; प्रनिकुयो बाहुत ह� गहनी और 5टिट� ह�। कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण कु द्mरनी ग�रू-लिशष्यो कु सार्था-सार्था प�रूषर्था� कुरनी अनित आवश्योकु ह�। मेंत्र प्रवचनी द् कुर यो शस्त्र2/ग्रन्थों कु; कुहनिनीयोC सा�नी कुर यो रमेंयोर्ण, ग�त आटिद् कु उपद् श द् कुर कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण साम्भव नीह� ह�।

असा� में� कु� ण्डलि�नी� शलि' कु लि�यो पKर� में हनीत, पKर्ण� आत्में-निवश्वसा और पKर्ण�-ग�रु कु ह नी आवश्योकु ह�। क्यो2निकु कु� yलि�नी� शलि' 5ग्रत ह नी पर मेंत्र में क्ष ह� नीह�, भी ग भी� प्रद्नी कुरत� ह�।

में ट त र पर आ5 कु साधकु साम्प्रद्यो त�नी निहसा2 में� बाट हुआ ह�। ध्योनी-यो ग, हठी-यो ग और तन्त्र यो ग। त8त्र कु , साधकु यो ग नीह� मेंनीत । उनीकु; नी5र में� त8त्र यो त एकु व�भीत्सा निक्रयो ह�, यो निफर एकु चमेंत्कुर टिद्खनी कु; निवमिध। हमेंर� नी5र में� त8त्र कु अर्था� ह�- तनी�+प्रर्ण= तनी सा में�लि' पनी कु उपयो त8त्र ह�, अर्था�त अन्नमेंयो, प्रर्णमेंयो, मेंनी मेंयो, निवज्ञानीमेंयो आटिद् साप्त शर�र सा में�लि' पनी और आत्में कु उसा परमेंत्में में� पKर्ण� �यो ह नी ह� त8त्र ह�। पKर्ण� त8त्र में� निबान्दू कु र5 सा मिमें�नी कुरनी ह� कु� ण्डलि�नी� शलि' ह�, अर्था�त त8त्र कु; सावWच्चयो-भी�रव�-साधनी ह� कु� yलि�नी� साधनी ह�। 5�सा -5�सा साधकु अपनी आप कु उधव�-में�ख� कुरनी श�रू कुरत ह�। उनीकु; कु� ण्डलि�नी� शलि' 5ग्रत ह कुर पKर्ण� योत्र कु निनीकु� पड़ात� ह�। आटिद् श8कुरचयो� नी इसा कु� ण्डलि�नी� शलि' कु प्ररूप ‘श्रु� यो8त्र अर्था�त श्रु� चक्र’ कु बानीयो ह�।

बाहुत ह� ध्योनी प�व�कु योटिद् हमें त8त्र और सा8त मेंत कु अध्योयोनी यो निवश्लो षर्ण कुर त हमें ऐसा मेंहसाKसा ह ग 5�सा निकुसा� नी हमेंर� बा�जिद्ध कु ठीग लि�यो ह । सा8त मेंत कु अनी�सार-

ब्रह्म मेंर , निवष्र्ण� मेंर , मेंर श8कुर भीगवनी।अक्षर मेंर , क्षर मेंर , तबा प्रकुट पKर्ण� भीगवनी॥

त8त्र कु अनी�सार ‘श्रु� चक्र’ में� स्थिस्थत कुमें श्वर और कुमें श्वर� 5हC वसा कुरत ह)। जि5सा आसानी पर निवर5मेंनी रहत ह�, उसा आसानी कु पKव� टिद्श कु पयो ब्रह्म-प्र त ह� अर्था�त वहC पर ब्रह्म कु प्र त मेंनी गयो ह�। पणिश्चमें� पयो निवष्र्ण�-प्र त अर्था�त वहC पर श्रु� हर� कु प्र त रूप में� मेंनी गयो ह�। द्णिक्षर्ण टिद्श कु पयो रूद्र-प्र त अर्था�त योहC पर लिशव कु मेंHत मेंनी गयो ह�। उत्तर पयो ईश्वर-प्र त मेंनी गयो ह�, योहC पर अक्षर-ब्रह्म कु मेंHत मेंनी गयो ह�। कुमें श्वर और कुमें श्वर� जि5सा फ�कु कु उपर आसा�नी ह�, उसा साद्लिशव यो क्षर-ब्रहमें मेंनी गयो ह�। असा� में� कुमें श्वर और कुमें श्वर� कु ई द् व� यो द् वत नीह� ह�, बास्तिल्कु आत्में-रूप� कुमें श्वर� ह�, परब्रह्म रूप� कुमें श्वर कु सार्था आलिं�.गनी बाद्ध ह�।

5हC सा8त मेंत लिसाफ� ग�रू-तत्व कु ध्योनी कुरत ह�। वह� त8त्र यो हठी-यो ग� अनी कु2 प्रकुर कु; निक्रयोयो� कुरकु साभी� प्रकुर कु आ8नीद् � त हुऐ अपनी� आत्में रूप� प्र योसा� कु प्र�तमें रूप� परमेंत्में सा मिमें� द् त ह�। हठी यो ग कु; साधनी कु आधर अष्टCग यो ग ह�। इसाकु अ8तरगत आसानी, प्रर्णयोमें, बान्द्, योमें-निनीयोमें में�ख्यो ह�। सार्था ह� ध्योनी-धरर्ण और सामेंध� कु द्वार कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण कुरनी इनीकु ध्यो यो ह�। इनी साधकु2 कु; नी5र में� योटिद् प्रर्ण-वयो� कु; अपनी-वयो� में� एव8 अपनी-वयो� कु; प्रर्ण-वयो� में� आहुनित द् द्r 5यो त कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण साम्भव ह)। इसाकु लि�यो हठी-यो ग� मेंK� रूप सा त�नी बान्ध कु प्रयो ग कुरत ह�- मेंK�-बान्द्, उनिड़ायोनी-बान्ध, 5�न्धर-बान्ध। मेंK�-बान्ध अर्था�त ग�द् कु सा8कु चनी अर्था�त अपनी वयो� कु बाहर नी निनीकु�नी द् नी। उनिड़ायोनी बान्ध अर्था�त पKर्ण�-बाह्य-कु� म्भकु कु प्रयो ग कुरनी। 5�न्धर बान्द् अर्था�त अपनी� ठी ड़ा� कु अपनी कुन्ठी सा �गनी।

हमेंर ध्यो यो निकुसा� भी� साधनी कु अY यो बा�र बातनी नीह� ह�। 5�सा कु; आ5 कु सामेंयो में� अमिधकुतर प�रूष अपनी यो ग कु बाड़ा और दूसार

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कु यो ग कु छ ट बातत ह�। साधकु2 कु; इसा� निवचर धर कु; व5ह सा ह� निहन्दुस्तनी सा अनी कु2 निवद्युयो ��प्त ह गई ह�।

हमें एकु उद्हरर्ण द् कुर सामेंस्त साधकु2 कु सामेंझंनी कु; कु लिशश/प्रयोसा कुरत ह�। आपकु सामेंझं में� आयो यो नी आयो योह हमेंर बासा में� नीह� ह�। 5बा हमें अपनी बाच्च कु स्कुK � � कुर 5त ह�, त हमें हर च�5 कु ध्योनी रखत ह�, 5�सा कु;- स्कुK �, उसाकु अध्योपकु, कु न्टrनी और साबासा खसा च�5 निवषयो(साब्5 क्ट), बाच्च2 कु पढ़ायो 5नी व�� प�स्तकु� आटिद्। हमें अपनी बाच्च कु मेंत्र एकु ह� निवषयो नीह� टिद्�वत , उसाकु साभी� निवषयो2 कु ख्यो� रखत ह�। सार्था में� ह� ख �नी, कु� द्नी, नीHत्यो आटिद् कु भी� ध्योनी रखत ह�। हमें अपनी बाच्च कु साबा कु� छ द् त ह�, निकुन्त� वह बाच्च निकुसा� निवश ष निवषयो कु; तरफ अपनी निवश ष ध्योनी द् त ह�, और बाकु; साभी� निवषयो2 कु साधरर्ण रूप सा ग्रहर्ण कुरत ह�। अमिधकुतर ऐसा ह त ह� कु; मेंC-बाप उसा ड³क्टर, इ85�निनीयोर आटिद् बानीनी चहत ह�, निकुन्त� वह बाच्च बानीत कु� छ ओर ह� ह�। योटिद् बाच्च कु स्कुK � में� ह मेंवकु� नी मिमें� यो उसाकु; च पिंकु.ग नी ह त हमें अपनी� लिशकुयोत � कुर में�ख्यो-अध्योपकु कु पसा पहुCच 5त ह�।

हमें अपनी 5�वनी में� हर च�5 कु ख्यो� रखत ह�, हर च�5 पर ध्योनी द् त ह�। निकुन्त� हमेंनी साधनी मेंग� कु इतनी सास्त क्यो2 5नी लि�यो? क्यो2 मेंनी लि�यो?

क्यो साधनी मेंग� इतनी सास्त ह� निकु, कु ई भी� साधरर्ण व्यलि', निकुसा� भी� ग�रू यो सा8त कु पसा 5 कुर द्rक्ष ग्रहर्ण कुर और नीमें कु 5प कुर , त क्यो में�लि' साम्भव ह�?

आ5 कु ग�रूओं और लिशष्यो2, द् नी नी मिमें� कुर साधनी और में�लि' कु मेंयोनी ह� बाद्� टिद्यो ह)। हमेंर� नी5र में� मेंत्र शब्द् कु रट्टा �ग कुर, कुहनिनीयोC, निकुतबा� पढ़ाकुर प्रवचनी सा�नी कुर में�लि' साम्भव नीह� ह�।

में�लि' एकु मेंहनी और उच्च स्थनी ह�। 5हC पहुCच कुर आत्में साभी� बा8धनी2 सा में�' ह 5त� ह�।

कु� ण्डलि�नी� साधनी कु लि�यो हमें तपनी पड़ात ह�। अत्योमिधकु में हनीत कु; 5रूरत ह त� ह�। 5�सा कु ई व्यलि' 5बा निकुसा� निवश ष पर�क्ष कु; त�योर� कुरत ह� त , वह त�योर� कु द्mरनी हर तरफ सा अपनी ध्योनी हट कुर अपनी� लिशक्ष पर कु जिन्द्रत कुरत ह�। मेंत्र कु� छ टिद्नी कु लि�यो वह अपनी साबा सा�ख-सा�निवध कु त्योग कुरकु अपनी� लिशक्ष कु पKर्ण� कुरत ह�, और लिशक्ष पKर्ण� ह नी पर अर्था�त उसाकु एकु अYr नीmकुर� �ग 5नी पर वह सान्त�ष्ट ह कुर सार�-उम्र साभी� सा�ख2 कु भी ग भी गत ह�। उसा� प्रकुर योटिद् एकु साधकु चह त अपनी� साधनी कु बा� पर पKर्ण� में�लि' कु फ� प्रप्त कुर साकुत ह�, और में�' हुई 5�व आत्में शर�र में� रहत हुऐ भी� उनी मेंहनी भी ग2 कु भी गत� ह�। जि5सा कु लि�यो बाड़ा -बाड़ा सा ठी साहुकुर और धनी� तरसात ह�।

च�त -च�त द् बात- योटिद् नी�च कु चक्र, मेंयो रूप ह), 5�सा निकु कु� छ मेंत यो प8र्था2 कु मेंनीनी ह� और ऊपर कु चक्र असा�� ह� त 5 चक्र(� कु) ब्रह्मण्ड में� ह� व क्यो ह)?

चह नी�च कु चक्र योनिनी � कु ह यो ऊपर कु चक्र ह , ह) त शर�र कु अन्द्र ह�।

5 अण्ड में� ह�, व निपण्ड में� ह) और 5 निपण्ड में� ह), व अण्ड में� ह)। योह कुहनी त ठीvकु ह� निकुन्त� 5बा मेंHत्यो� कु उपरन्त 5बा निपण्ड 5�कुर ख़ाकु ह 5एग त निफर आत्में निकुसा चक्र यो � कु में� वसा कुर ग�। क्यो2निकु सार� उम्र त निपण्ड में� अण्ड कु आभीसा कुरकु , निपण्ड कु � कु2 योनिनी चक्र कु; साधनी कु; ह�। � निकुनी 5बा निपण्ड खत्में ह 5एग, त आत्में कु निकुसा � कु में� स्थनी मिमें� ग, फ� सा� त तबा ह� ह ग। क्यो2निकु मेंनी कु साहर जि5नी � कु कु; साधनी कु; र्था�, व त खत्में ह गयो । अबा आत्में कु सामेंनी असा�� � कु अर्था�त मेंण्ड� ह)। जि5नीकु द् व2 कु; साधनी नीह� कु;, कुभी� आरधनी नीह� कु;। क्यो व द् व इसा आत्में कु अपनी � कु में� स्थनी द्�ग , कुद्निप नीह�। मेंनी कु जि5तनी में5· भीरमें � , लिशष्यो2 कु जि5तनी में5· बाहकु � । सात्यो त एकु टिद्नी ख�� कुर रह ग, निकु निपण्ड कु बाहर 5 ह�, वह� सात्यो ह� और निपण्ड कु अन्द्र 5 ह� वह मिमेंथ्यो ह�। इसालि�यो कु� छ सा8त2 नी 5गत कु मिमेंथ्यो यो मेंयो कु ख � कुह ह�।

5बा तकु साKक्ष्में-शर�र, स्थK�-शर�र सा अ�ग ह कुर ब्रह्मण्ड कु सात्यो � कु यो मेंण्ड�2 कु; आरधनी, सा व, भी5नी, द्श�नी नीह� कुर ग, तबा तकु साबा बा कुर ह�। साKक्ष्में-शर�र कु स्थK�-शर�र सा अ�ग कुरनी कु मेंत्र एकु ह� निवधनी ह�- कु� ण्डलि�नी� साधनी।

उद्हरर्ण कु तmर पर- जि5सा प्रकुर एकु छ ट बाच्च खनी प�नी, बा �नी-च�नी, लि�खनी-पढ़ानी आटिद् कु प्ररम्भ त घेर सा ह� कुरत ह�, निकुन्त� कु� छ सामेंयो बाद् हमें उसा उच्च लिशक्ष ह त� अY निवद्यु�यो में� प्रव श कुर द् त ह)। उसा� प्रकुर एकु साधकु कु लि�यो साधनी कु प्ररम्भ त शर�र में� स्थिस्थत मेंण्ड�2 सा ह� ह त ह�, निकुन्त� 5बा साKक्ष्में-शर�र, स्थK�-शर�र सा अ�ग ह 5त ह�, त ब्रह्मण्ड में� स्थिस्थत उच्च � कु कु; साधनी कुरकु , पKर्ण� ब्रह्म-ज्ञानी कु प्रप्त कुरकु , 5�व आत्में पKर्ण� कु� वल्यो पद् कु प्रप्त कुर � त� ह�। जि5सा प्रकुर हमेंर द् श में� एकु अY साधK यो नी त कु; इज्जीत कु; 5त� ह�, उसा� प्रकुर उसा आत्में कु भी�, उच्च � कु में� व�सा ह� साम्मेंनी यो आद्र निकुयो 5त ह�।

कु� y�नी� साधनी बाहुबा� कु; साधनी ह�। आप कु साहसा, आप कु आत्में-निवश्वसा और आपकु; साहनी-श��त कु; साधनी ह�।

योटिद् हमें कु� ण्डलि�नी� साधकु कु; उपमें द् त ऐसा� ह ग�, 5�सा एकु व�र 5वनी अपनी द् श कु; रक्ष कु लि�यो अपनी साव�स्व बालि�द्नी कुरकु सा�नी तनी , 5नी हर्था �� पर लि�यो खड़ा ह । वह� एकु साधरर्ण साधकु कु; उपमें ध्योनी यो ग� कु; उपमें, नीमें-5प कुरनी व�2 कु; उपमें, मेंत्र ऐसा� ह�- 5�सा एकु सामें5 सा�धरकु कु; छनिव ह त� ह�।

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अबा आपनी फ� सा� कुरनी ह� निकु, आप कु निकुसा रस्त पर च�नी ह�। हमेंनी 5 5नी, 5 पयो, 5 सामेंझं, व आपकु सामेंनी रख टिद्यो ह�। शब्द्2 कु कुभी� अन्त नीह� ह त, उद्हरर्ण कु; सा8ख्यो नीह� ह त�। सामेंझंनी व� और सामेंझंनी व� पर निनीभी�र कुरत ह� निकु, व निकुतनी सामेंझं साकुत ह�, और दूसार निकुतनी सामेंझं साकुत ह�। साभी� बात2 कु लि�ख कुर नीह� सामेंझंयो 5 साकुत।

रूद्रया�मु� मु& कु� ण्डलि�नी�-सं�धाकु2 कु� लि�या� एकु ‘उदघे�ट्नी-कु�B’ दिदया� गया� है� जिजासंकु� श्रद्ध�-पK��कु प�ठ कुरनी� सं�धाकु2 कु� लि�या� अत्यान्ते ��र्भप्रद मु�नी� गया� है�-॥ उदघे�ट्नी-कु�B ॥मेंK�धर स्थिस्थत द् निव, नित्रप�र चक्र नीमियोकु ।नीH5न्में भी�नित-नीशर्था¸, सावधनी साद्ऽस्त� ॥1॥स्वमिधष्ठनीख्यो चक्रस्थ, द् व� श्रु�नित्रप�र लिशनी� ।पश� बा�झिंद्ध. नीशमियोत्व, साव¹श्वयो� प्रद्ऽस्त� में ॥2॥मेंणिर्णप�र स्थिस्थत द् व�, नित्रप�र श�नित निवश्रु�त ।स्त्र� 5न्में-भी�नित नीशर्था¸, सावधनी साद्ऽस्त� ॥3॥स्वस्तिस्तकु सा8स्थिस्थत द् व�, श्रु�मेंत�-नित्रप�र सा�न्द्र� ।श कु भी�नित परिरत्रस्त8, पत� मेंमेंनीघे8 साद् ॥4॥अनीहतख्यो निनी�यो, श्रु�मेंत�-नित्रप�र वलिसानी� ।अज्ञानी भी�नितत रक्ष8, निवद्धत� साद् मेंमें ॥5॥नित्रप�र श्रु�रिरनित ख्योत, निवश�द्धख्यो स्थ� स्थिस्थत ।5र द्�-भीव भीयोत� पत�, पवनी� परमें श्वर� ॥6॥आज्ञा चक्र स्थिस्थत द् व�, नित्रप�र मेंलि�नी� त� यो ।सा मेंHत्यो� भी�नितत रक्ष8, निवद्धत� साद् मेंमें ॥7॥��ट पद्में� सा8स्थनी, लिसाद्ध यो नित्रप�रटिद्कु ।सा पत� प�ण्यो साम्भKनितर�-भी�नित-सा8घेत� सा�र श्वर� ॥8॥नित्रप�रम्बा नित निवख्योत, लिशरh पद्म सा�-सा8स्थिस्थत ।सा पप भी�नितत रक्ष8, निवद्धत� साद् मेंमें ॥9॥यो परम्बा पद् स्थनी गमेंनी , निवघ्नी साञ्चयोh ।त भ्यो रक्षत� यो ग श�, सा�न्द्र� साकु�र्पित.ह ॥10॥

कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण कु यो2 त अनी कु2 उपयो ह), निकुन्त� बाबा 5� द्वार रलिचत यो ग�रु-स्त त्र अपनी आप में� एकु अनी�भी�त प्रयो ग ह�। कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण कु इY� कु साधकु योटिद् सा-स्वर इसा स्त त्र कु �गतर पठी कुरत ह) त बाहुत ह� 5ल्द्r कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण ह नी �ग ग� और साधकु2 कु कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण कु अनीKठी अनी�भीव ह नी �ग�ग ।

॥ ग�रु-स्ते�त्र ॥॥ ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥ ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥द्यो� ग�रु ह�, बायो� ग�रु ह� । आग ग�रु ह�, प�छ ग�रु ह� ॥ऊपर ग�रु ह�, नी�च ग�रु ह� । अ8द्र ग�रु ह�, बाहर ग�रु ह� ॥ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥ ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥1॥

अ8ड में� ग�रु ह�, पिंप.ड में� ग�रु ह� । 5� में� ग�रु ह�, र्था� में� ग�रु ह� ॥पवनी में� ग�रु ह�, अनी� में� ग�रु ह� । नीभी में� ग�रु ह�, अ8तर में� ग�रु ह� ॥ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥ ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥2॥

तनी में� ग�रु ह�, मेंनी में� ग�रु ह� । घेर में� ग�रु ह�, वनी में� ग�रु ह� ॥में8त्र में� ग�रु ह�, में� यो8त्र ग�रु ह� । त8त्र में� ग�रु ह�, में� में� ग�रु ह� ॥ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥ ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥3॥

धKप में� ग�रु ह�, द्rप में� ग�रु ह� । फK � में� ग�रु ह�, फ� में� ग�रु ह� ॥भी ग में� ग�रु ह�, पK5 में� ग�रु ह� । � कु में� ग�रु ह�, पर� कु में� ग�रु ह� ॥ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥ ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥4॥

5प में� ग�रु ह�, तप में� ग�रु ह� । हठी में� ग�रु ह�, योज्ञा में� ग�रु ह� ॥5 ग में� ग�रु ह�, में� यो ग ग�रु ह� । ज्ञानी में� ग�रु ह�, ध्योनी में� ग�रु ह� ॥ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥ ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥5॥

॥ ॐ तत्सात� ॥

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