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    46-47, पंडित दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, आईटीओ, नई ददल्ली-110002

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    राष्ट्रीय सभा में पाररत प्रस्ताव ■ जैववक, प्राकृततक-परंपरार्त कृवि ही है लाभकारी

    ■ रोजर्ार भारतीय अर्गव्यवस्र्ा व समाज जीवन का प्राणतत्व है, इसकी वदृ्धि हेतु सरकार व समाज दोनों प्रयत्न करें

    ■ िेटा संप्रभुता-िेटा स्र्ानीयकरण-डिजजटल राष्ट्रवाद : समय की मांर् ■ रणनीततक ववतनवेश राष्ट्र दहत में नही ं

    29 नवंबर से 1 ददसंबर 2019

    स्वदेशी जार्रण मंच स्वदेशी : आत्मतनभगरता की तरफ कदम

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    आत्मतनभगरता की तरफ कदम

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    आत्मतनभगरता की तरफ कदम

    कृतत : रोजर्ार पर राष्ट्रीय कायगसममतत, स्व.ज.म.

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  • भारत में ‘स्वदेशी की अविारणा’ 150 विो से अधिक पुरानी है, फफर भी यह तनत-नूतन है। यह लोकमान्य ततलक, वीर सावरकर, मदििी अरववदं और महात्मा र्ांिी के दरूदशी नेततृ्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के मलए एक सशलत मार्गदशगक तत्वबल र्ा। ब्रिदटश उपतनवेशवाद से स्वतंत्रता के दशकों बाद भी यह अनुभव फकया र्या फक आधर्गक स्वावलंबन व समदृ्धि हेतु स्वदेशी को जीवन के मार्गदशगक मसद्िांत व शैली के रूप में मलया जाना चादहए। वैजववक आधर्गक साम्राज्यवादी ताकतों के ववरुद्ि देश को संघदित करने के मलए भारतीय मजदरू संघ, फकसान संघ, ववद्यार्ी पररिद आदद संर्िनों ने 1980 के दशक में स्वदेशी के मलए व्यापक जार्रूकता अमभयान शुरू फकया। इस अमभयान ने जनसामान्य के बीच स्वदेशी के महत्व को समझने में बहुत सहयोर् फकया।

    इस आंदोलन को ही एक सूत्र में वपरो कर पूणग रूप ददया र्या और स्वदेशी जार्रण मंच की स्र्ापना का तनणगय मलया र्या। तत्पवचात 22 नवंबर 1991 को यह मंच अजस्तत्व में आया। दत्तोपंत िेंर्ड़ी, जो भारतीय मजदरू संघ, फकसान संघ सदहत अनेक संर्िन प्रारंभ कर चुके रे्, उन्होंन ेही स्वदेशी जार्रण मंच को संपूणग अधिष्ट्िान ददया और प्ररेक संस्र्ापक बने। नार्पुर ववववववद्यालय के पूवग कुलपतत प्रोफेसर एम.जी. बोकरे इसके प्रर्म संयोजक व मदन दास जी दैवी सह-संयोजक बने।

    स्वदेशी जार्रण मंच का देश के लर्भर् सभी प्रांतों के 400 से अधिक जजलों में इकाई या काम है। सार् ही मंच, उन सभी लोर्ों और संर्िनों के सार् सफिय समन्वय कर रहा है जो स्वदेशी दृजष्ट्टकोण में ववववास रखते हैं। स्वदेशी जार्रण मंच वास्तव में आत्मतनभगर, समदृ्ि व रोजर्ारयुलत भारत और न्याय संर्त वववव व्यवस्र्ा के मलए प्रततबद्ि है। मंच एक समग्र दृजष्ट्टकोण और कायगयोजना के सार् एक ऐसे शजलतशाली जुटान के रूप में उभरा है, जजसकी कोई भी अनदेखी नहीं कर सकता।

    स्वदेशी जार्रण मंच द्वारा 2 विग में एक बार राष्ट्रीय सभा व एक बार राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन फकया जाता है। र्त विग 29 नवंबर से 1 ददसंबर 2019 को हररद्वार में 14वीं राष्ट्रीय सभा आयोजजत हुई, जजसकी अध्यक्षता पतंजमल योर् संस्र्ान हररद्वार के आचायग बालकृष्ट्ण जी ने की और ववमशष्ट्ट अततधर् के रूप में अमूल िेयरी के तनदेशक श्री रूपेंद्र मसहं सोढी ने भार् मलया। इस विग आववयक वविय व मुद्दे जजन पर मंच विग भर र्ंभीरता से काम करन ेवाला है। ऐसे चार प्रस्ताव पाररत फकए र्ए है, जो अग्र मलखखत हैं :-

    ■ जैववक, प्राकृततक-परंपरार्त कृवि ही है लाभकारी ■ रोजर्ार भारतीय अर्गव्यवस्र्ा व समाज जीवन का प्राणतत्व है, इसकी वदृ्धि हेतु सरकार व समाज दोनों प्रयत्न करें ■ िेटा संप्रभुता-िेटा स्र्ानीयकरण-डिजजटल राष्ट्रवाद : समय की मांर् ■ रणनीततक ववतनवेश राष्ट्र दहत में नहीं

    स्वदेश

    ी जार्रण

    मंच के बारे म

    ें

    स्वदेशी जार्रण मंच : एक पररचय ---------------------------◆◆◆

  • 1) 22 नवंबर 1991 को नार्पुर में र्िन। भारतीय मजदरू संघ व फकसान संघ के संस्र्ापक श्रदेय दत्तोंपन्त िेंर्िी (पूवग राज्यसभा सदस्य- 2 बार) को मार्गदशगन में नार्पुर ववववववद्यालय के पूवग कुलपतत प्रो. मा. र्ों. बोकरे प्रर्म संयोजक रहे।

    2) 1994-95 में देशव्यापी स्वदेशी जार्रण अमभयान। स्र्ानीय व स्वदेशी ही खरीदों का मन्त्र देश के 2.5 लाख नर्र व र्ावों में ददया र्या. र्ैर वतागओं व बहुराष्ट्रीय कंपतनयों के उत्पादों का ववरोि।

    3) वववव व्यापार संघ (WTO) में ब्रबना संसद में चचाग फकए भारत को सदस्य बनाने का ववरोि। आधर्गक साम्राज्यवादी नीततयों व संस्र्ानों से भारतीय अर्गव्यवस्र्ा पर पड़ने वाले ववपरीत प्रभावों के प्रतत जनजार्रण आन्दोलन।

    4) अमेररकी ब्रबजली कंपनी एनरान के खखलाफ व्यापक संघिग, पशुिन संरक्षण यात्रा, भारतीय समंुद्र में ववदेशी दलों का ववरोि, आयोिीन नमक, बीड़ी पत्ता मजदरू दहत संरक्षण, असंर्दित कायग क्षेत्र को समर्गन पर व्यापक अमभयान।

    5) ववतनवेश पर सरकार की अदरूदृष्ट्टी, लाभकारी संस्र्ानों को बेचने की र्ी सोच, रणनीततक ववतनवेश का मुखर ववरोि, बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) पर स्वदेशी धचतंन व कायगकमों की श्रृंखला।

    6) ई-कॉमसग में बहुराष्ट्रीय कंपतनयों के िड़यंत्र, ररटेल सेलटर का संरक्षण, िाय का एकीकरण, AI व Robotics, Big Data का भारतीय अर्गव्यवस्र्ा व रोजर्ार पर प्रभाव की समीक्षा व जनजार्रण।

    7) जैव संवधिगत (GM) फसलों का सफल व्यापक ववरोि, प्राकृततक व जैववक कृवि को समर्गन। नवादी अब। खाद पर जार्रण। जैसे कीटनाशक का ववरोि, पयागवरण, नददयां, जल संरक्षण पर जनजार्तृत।

    8) ववमभन्न द्ववपक्षीय, बहुपक्षीय, मुद्रा व्यापार समझौते की समीक्षा। RCEP (16 देशों का FTA) का व्यापक ववरोि करके रुकवाना। अन्य का भी संशोिन करवाना। बाजार व अन्य आधर्गक मुद्दों पर र्ोजष्ट्िया, मीडिया में प्रचार करना।

    9) चाइनीस वस्तुओं के बदहष्ट्कार का व्यापक अमभयान। ददल्ली में 1 लाख से अधिक लोर्ों की रैली, पररणामतः आयात शुल्क बड़े व अनेक उद्योर् चल तनकले। रोजर्ार पर र्हन धचतंन व समािान का व्यापक कायगिम प्रफियाएं।

    10) स्वदेशी मेले लघु, ऋण ववतरण, सौर ऊजाग, स्टाटगअप, स्वदेशी स्टोर, पररवार ममलन, पब्रत्रका-पुस्तक प्रकाशन, स्वदेशी तंत्र का देशव्यापी ववस्तार आदद रचनात्मक प्रफियाएं देशभर में व्यापक स्तर पर चल रही हैं।

    स्वदेशी आंदोलन ववकास िम

    व्यापक व सफल स्वदेशी आन्दोलन का ववकास िम ----◆◆◆

  • जैववक, प्राकृततक-परंपरार्त कृवि ही है लाभकारी ------------------------◆◆◆

    प्रस्ताव - 1

    स्वदेशी जार्रण मंच की राष्ट्रीय सभा ने भारत में कृवि की मौजूदा जस्र्तत और फकसानों और ग्रामीण अर्गव्यवस्र्ा की दबुगल जस्र्तत पर र्ंभीर धचतंा व्यलत की।भारत की आत्मा अपने र्ांवों में तनदहत है। प्राचीन भारतीय र्ााँव आत्मतनभगर रे्, जजनमें कुशल समुदाय शाममल रे् और सभी लोर् आत्मतनभगर रे्। देश के भोजन का उत्पादन करने के अलावा उन्होंन ेशहरों को प्रार्ममक और द्ववतीयक उत्पादों की आपूतत ग की। शहर, र्ााँवों पर तनभगर रे् और दतुनया भर में व्यापार और तनयागत फकए जाने वाले इन सामानों और उत्पादों के प्रार्ममक आपूतत ग के कें द्र रे्, र्ांव। इसके पररणामस्वरूप भारत ‘सोन ेकी धचडड़या’ कहलाया और दतुनया के कुल उत्पाद (जीिीपी) का 30 प्रततशत से अधिक दहस्सा भारत का हो र्या। दभुागग्य से, आज के र्ााँव पूरी तरह से बेरोजर्ारी की मार झेल रहे शहरों पर तनभगर हो र्ए हैं।

    भारत में हररत िांतत ने उच्च उपज देन ेवाली फकस्मों, बीजों, मसचंाई, रासायतनक कीटनाशकों और उवगरकों को अपनान ेऔर मशीनीकरण के कारण पारंपररक कृवि को एक औद्योधर्क प्रणाली में बदल ददया। हालााँफक इसने खाद्यान्न उत्पादन में वदृ्धि की और भारत को एक खाद्य अधिशेि राज्य बना ददया, लेफकन फकसानों के मलए दीघगकामलक सामाजजक और ववत्तीय समस्याएं पैदा कर दीं। फसलों के लार्त मूल्य में तेजी से वदृ्धि हुई। पर नतीजा यह हुआ फक कृवि पर तनभगरता 1947 में 70 प्रततशत से 44.8 प्रततशत तक कम हो र्ई है, सार् ही सार् राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में योर्दान 49 से 14 प्रततशत तक कम हो र्या है। फकसानों को संस्र्ार्त फसल ऋण अब 11.68 लाख करोड़ रुपय ेहै।

    इस तरह के भारी इनपुट लर्ाने के बाद भी, कृवि उत्पादकता में जस्र्रता आई है और कृवि क्षेत्र की वदृ्धि आम तौर पर स्वीकृत 4 प्रततशत के स्तर से भी कम 2.8 प्रततशत है। आधर्गक सुिारों और वैववीकरण के कारण ग्रामीण आय में असमानताएाँ हुई, जजससे संकट और बड़े पैमान ेपर फकसान आत्महत्याएाँ करने लर्े। एमएसपी वदृ्धि ने आम तौर पर संपन्न फकसानों को लाभाजन्वत फकया और भंिारण एजेंमसयों के सार् 50 मममलयन टन से अधिक खाद्यान्न की अभूतपूवग मात्रा में वदृ्धि की, परंत ुइससे सजससिी का बोझ कई र्ुना बढ र्या।

    रासायतनक खेती ने हमारी ममट्टी, पानी, नददयों, हवा, भोजन और यहां तक फक मां के दिू में भी जहर घोल ददया है। कैं सर, हाटगअटैक, िायब्रबटीज, बीपी, मनोवैज्ञातनक ववकार इत्यादद के खतरे वाले जीवन अब सामान्य हैं। कॉटन बेल्ट में ‘कैं सर रेन’ रासायतनक खेती का उपहार है। महंर्े कीटनाशकों और उवगरकों के उपयोर् ने न केवल खेती की लाभप्रदता को कम फकया है, बजल्क राष्ट्र के मलए र्ंभीर स्वास््य खतरे भी पैदा फकए हैं।

    उत्पादन की बढती लार्त ने 25 प्रततशत छोटे फकसानों को खेती से बाहर कर ददया और 31 प्रततशत सीमांत फकसान उत्पादकता में वदृ्धि के बावजूद र्रीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं। रासायतनक खेती ने न केवल ग्रामीण अर्गव्यवस्र्ा को चकनाचूर कर ददया, बजल्क र्ांवों से बड़े पैमाने पर पलायन के कारण रोजर्ार में कमी आई है। अकेले दस विों में, शहरी आबादी 25.6 प्रततशत से बढकर 30.2 प्रततशत हो र्ई है।

    भारत में हररत िांतत के जनक िॉ. एम.एस. स्वामीनार्न ने इन दषु्ट्पररणामों को स्वीकार फकया और अनेक वैज्ञातनकों ने साब्रबत फकया है फक पारंपररक कृवि उतनी अकुशल नहीं र्ी जजतनी फक इस ेबताया र्या र्ा। 1880 में नोबल पुरस्कार ववजेता अमत्यग सेन और अकाल आयोर् की ररपोटों से भी पारंपररक खेती के कारण भारत में अलसर अकाल कायम रहने का ममर्क टूटा है।

  • पारंपररक भारतीय कृवि प्रणाली ने बहु-स्तररत फसलों, ममट्टी के संविगन और उत्पाद मूल्य संविगन सदहत व अधिक उत्पादन वाले इष्ट्टतम मॉिल’ को अपनाया, जो पयागवरण के सार् एक जस्र्र संबंि भी स्र्ावपत करती है। यह मॉिल खेती का सबसे वैज्ञातनक तरीका र्ा, जो देशी र्ाय के आसपास ववकमसत और कें दद्रत र्ा, जजससे र्ााँव के सभी समुदायों को 100 प्रततशत रोजर्ार भी ममलता र्ा।

    रासायतनक खेती के दषु्ट्प्रभावों को दरू करने के मलए, स्वदेशी जार्रण मंच ने स्वदेशी स्वावलंबन मॉिल का आहवान फकया, जो फक भारत में 43 लाख से अधिक फकसानों द्वारा 15 से अधिक पारंपररक खेती के तरीकों का सफलतापूवगक अभ्यास फकया जा रहा है। महाराष्ट्र, कनागटक और आंध्र प्रदेश में बड़े पैमाने पर प्राकृततक खेती को सफलतापूवगक अपनाना इस बात का प्रमाण है फक रासायतनक खेती की तुलना में उत्पादन वास्तव में बढता है। ये भूमम अब ‘कीटनाशक मुलत’ हैं और फकसान की आय में कम से कम 25 प्रततशत की वदृ्धि हुई है।

    वैजववक वैज्ञातनक सबूतों को स्पष्ट्ट रूप से दोहराया र्या है फक ‘जैववक खेती मौजूदा भूमम से 2050 तक 9 अरब की आबादी को सहजता से खखला सकती है’। इंडियन काउंमसल फॉर ररसचग ऑन इंटरनेशनल इकोनॉममक ररलेशंस द्वारा हाल ही में फकए र्ए एक अध्ययन में पारंपररक भारतीय कृवि की अप्रत्यक्ष रूप से पुजष्ट्ट की र्ई है, जो शे्रष्ट्ि प्राकृततक उत्पादों की शे्रष्ट्िता है और भारत तनयागत व जैववक उत्पादों के मलए वववव नेता के रूप में है। भारत सरकार ने ववमभन्न प्राकृततक व परंपरार्त कृवि तकनीकों की सफलता और क्षमता का एहसास करते हुए रुपय ेके पररव्यय के सार् एक महत्वाकांक्षी ‘परंपरार्त कृवि ववकास योजना’ 4000 करोड़ की शुरू की।

    कुछ तनदहत स्वार्ों ने फकसानों को न्यूनतम समर्गन मूल्य में बढोतरी का ववरोि फकया है फक यह मुद्रास्फीतत को बढाता है। ववख्यात अर्गशाजस्त्रयों द्वारा हाल के कई अध्ययनों ने बड़े पैमाने पर वैज्ञातनक अध्ययन करके इस ममर्क का भंिाफोड़ फकया है।

    स्वदेशी जार्रण मंच भारत के नार्ररकों से अपील करता है फक वे अपने कृवि को ववदेशी कंपतनयों के चंर्ुल से बचाने के मलए तरीकों और सािनों की तलाश करें, जो फक संकर/जीएम बीजों, रासायतनक उवगरकों और कीटनाशकों को बढावा दे रहे हैं। फकसानों को उधचत मूल्य सुतनजवचत करने और ववदेशी बहुराष्ट्रीय कंपतनयों के जहरीले जबड़े से भारतीय कृवि को मुलत करने के मलए कें द्र सरकार भी अनुकूल नीततयों का मसौदा तैयार करे।

    इसमलए यह आववयक है फक पारंपररक भारतीय तरीके से कृवि को बढावा देने के मलए योजनाएं हों, कृवि उत्पादों के मूल्य संविगन को सुतनजवचत फकया जाए और एमएसपी में काफी वदृ्धि की जाए ताफक कृवि क्षेत्र को तेजी से ररकवरी मोि पर लाया जा सके। स्वदेशी जार्रण मंच की राष्ट्रीय सभा आम जनता और ववमभन्न राज्य सरकारों व कें द्र सरकार से भी इस संबंि में उधचत तनणगय लेने का अनुरोि करती है।

  • प्रस्ताव - 2

    रोजर्ार भारतीय अर्गव्यवस्र्ा व समाज जीवन का प्राणतत्व है, इसकी वदृ्धि हेतु सरकार व समाज दोनों प्रयत्न करें ------------------------------------◆◆◆

    भारत अनाददकाल से आधर्गक स्वावलम्बन-प्रिान एवं पूणग रोजर्ारयुलत राष्ट्र रहा है। हमारी अधिकांश जनसंख्या अपन ेपाररवाररक व्यवसाय के माध्यम से आधर्गक समदृ्धि व स्वावलम्बन के मार्ग पर अनवरत अग्रसर रही है और देश के ग्राम व नर्र अपनी अधिकांश आववयकताओं के मलए स्वावलम्बी रहे है। उन्नत व ववकेजन्द्रत उत्पादन के आिार पर ही ईसापूवग काल से ही भारत, वववव का सबसे बड़ा उत्पादन व वस्तु तनयागत का केन्द्र रहा है। ब्रिदटश आधर्गक इततहास लेखक एंर्स मेडिसन के अनुसार भारतविग 1500 तक वववव के एक ततहाई उत्पादों के उत्पादन व तनयागत का वैजववक उद्र्म रहा है। देश के ववकेजन्द्रत उत्पादन तंत्र का सुदृढ आिार नष्ट्ट होने और वैववीकरण में आयात उदारीकरण व ववदेशी पूंजी तनवेश प्रोत्साहन के कारण आज वववव के ववतनमागणी उत्पादन में भारत का योर्दान मात्र 3 प्रततशत ही है। आज देश के सूक्ष्म, लघु, मध्यम एवं वहृद-स्तरीय उद्यमों में फैलती रूग्णता व उद्यमबंदी से देश में फैलती बेरोजर्ारी के कारण, कायगशील आय की जनसंख्या की श्रम शजलत में भार्ीदारी तक 50 प्रततशत से भी न्यून हो र्यी है।

    देश में बेरोजर्ारी एवं संर्दित क्षेत्र मे रोजर्ार सजृन में सतत धर्रावट, अनौपचाररक क्षेत्र के संकुचन, संर्दित क्षेत्र में रोजर्ार के घटते अवसरों के आलोक में आन ेवाले समय में युवाओं को वहृद स्तर पर अपना स्व-उद्यम स्र्ावपत करन ेकी पहल कर स्वय ंरोजर्ार प्रदाता बनना होर्ा। देश में कई युवाओं द्वारा अध्ययनोपरान्त स्टाटग-अप सदहत ववववि सफल उद्यमों, कृवि क्षेत्र में नई तरीकों के प्रयोर्ों की स्र्ापना प्रववृत्त बढ भी रही है। लेफकन, स्वरोजर्ार, स्व-उद्यमों एवं स्टाटग-अप्स सदहत स्वदेशी पूंजी आिाररत उद्यमों की स्र्ापना के मलए वांतछत पाररजस्र्ततकी तंत्र एवं उधचत वातावरण के अभाव में स्वरोजर्ार सदहत सभी प्रकार के रोजर्ार सजृन में र्ंभीर र्ततरोि भी दृजष्ट्टर्ोचर होता है। कृवि के बाद रोजर्ार के सबसे बड़े आिार वस्त्रोद्योर् से लेकर सौर ऊजाग व इलेलरातनलस पयंत ववववि क्षेत्रों के उद्यमबंदी भी धचतंाजनक है। उद्यममता ववकास की मुद्रा योजना व स्टाटग-अप संवद्गिन आदद की 50 से अधिक शासकीय योजनाओं का अधिकतम लाभ उिाते हुये युवाओं को वेतनकमी बनने की अपेक्षा अपना सफल व स्व-संचामलत उपिम स्र्ावपत कर प्रत्येक ग्राम, कस्बे, नर्र व महानर्र को नवस्र्ावपत उद्यमों से युलत करते हुये हर घर-द्वार को रोजर्ार सजृन का आिार बनाना होर्ा। स्टाटग-अप इजडिया व स्टैडि-अप इजडिया की महत्वकांक्षी योजनाओं के उपरान्त भी इतन ेववशाल युवाओं वाले देश में आज भी मात्र 50,000 पंजीकृत स्टाटग-अपस ्हैं और आर्ामी पााँच विों में भी सरकार इसमें 50,000 की ही वदृ्धि की अपेक्षा कर रही हैं। इस र्तत से उद्यममता ववस्तार से देश की बेरोजर्ारी की समस्या का समािान कदिन है।

    अन्तरागष्ट्रीय श्रम संर्िन के अनुसार देश की अर्गव्यवस्र्ा 80 प्रततशत अनौपचाररक क्षते्रान्तर्गत व मात्र 6.5 प्रततशत औपचाररक क्षते्र में है। ववर्त 28 विों में नव-उदारवादी नीततयों के अिीन ववदेशी तनवेवकों व संर्दित क्षते्र को प्रदत्त लाखों करोड़ की राजकोिीय छूटों, सहायताओं, अनदुानों व उनके मलये घोवित ववववि राजकोिीय पकैजों का 80 प्रततशत से अधिक जनसखं्या के योर्क्षेम के मूल बने हुए आिार अनौपचाररक क्षेत्र को नहीं र्या है।

    इसके ववपरीत खुदरा व्यापार में ववदेशी तनवेश, ई-कामसग में ववदेशी कम्पतनयों के प्रवेश रोकड़ सदहत व अल्परोकड़ उपयोर् प्रोत्साहन योजनाओं आदद से स्वरोजर्ार क्षेत्र व अनौपचाररक क्षेत्र सवागधिक प्रभाववत हुआ है।

  • स्वदेशी जार्रण मंच सरकार से आग्रह करता है फक :-----------------------◆◆◆

    1 ) देश के स्वरोजर्ाररत वर्ों की समस्याओं का तनकट से अध्ययन कर उनके संरक्षण, समर्गन व सम्बल प्रदान करे। इस हेतु स्वरोजर्ार में संलग्न व्यजलतयों व पररवारों का ववववसनीय और त्यात्मक िेटा बैंक व ववस्ततृ प्रततवेदन भी ववकमसत करे। रोजर्ार तनमागण हेतु कोई तनयामक भी बनाया जा सकता है।

    2 ) स्वरोजर्ार को प्रभाववत करन ेवाली आधर्गक नीततयों को उलटकर, उस ेबढावा देन ेकी प्रभावी योजना लाये। स्वरोजर्ाररत एवं मुद्रा आदद ऋणों के पात्र लोर्ों को ऋण देने हेतु चयन बैंकां पर छोड़ने के स्र्ान पर इच्छुक लोर्ों का स्वतंत्र पंजीयन, चयन व अनुशंसा करन ेकी प्रफिया ववकमसत की जाये।

    मंच का आग्रह है फक सरकार स्व-उद्यम व स्टाटग-अप सदहत सभी प्रकार के स्वरोजर्ार में संलग्न वर्ों जजसमें फेरीवाले, ररलशा वाले, कुम्हार, बढई, चमगकार, हस्तमशल्पी, दटफफन सेवा प्रदाता, सौन्दयग ववशेिज्ञ (सयुदटमशयन) आदद सभी स्वरोजर्ाररत वर्ों के सूचीयन, संवद्गिन एवं उनके उधचत योर्क्षेम की वहृद स्तर पर आयोजन कर इसका अववलम्ब फियान्वयन करे।

    3 ) स्वरोजर्ाररत व अनौपचाररक क्षेत्र के उपिमों की सूचीयन, पंजीयन, ववपणन व संवद्गिन आदद के मलए ऐसा डिजजटल ववतनमय (Digital Exchange) ववकमसत करे जजस पर उनकी वस्तुओं व सेवाओं का लाभ पूणग ववपणन हो सके।

    मंच समाज से भी आग्रह करता है फक :--------------------------------------◆◆◆

    1 ) युवा वर्ग सदहत सभी शे्रणीयों के समाजजन ववववि प्रकार के स्व-उद्यम व स्वरोजर्ार के अवसरों का उपयोर् कर न केवल अपन ेरोजर्ार का सृजन करें, वरन अन्य भी रोजर्ार खोजन ेवाले अधिकतम लोर्ों के मलए रोजर्ार प्रदाता बनें। “We will not be jobseeker, we will be job provider” यह ववचार देश भर के युवाओं का प्रेरक-ददशा बोि हो, इस हेतु जनजार्रण करना होर्ा।

    2 ) स्र्ानीय व स्वदेशी की खरीद का आग्रह भी रोजर्ार, लघु व स्र्ानीय उद्योर्ों को बढायेर्ा व रोजर्ार बढेर्ा।

    3 ) कृवि उत्पादों का मूल्य संविगन कर बेचना, व कृवि की सहायक र्ततववधियां (र्ौ, पशुपालन, मिुमलखी, मुर्ी पालन आदद) भी ग्रामीण क्षेत्र की आय व रोजर्ार बढाती है।

    4 ) मंच सभी कायगकत्तागओं का भी आवाहन करता है फक सभी मशक्षण संस्र्ानों, स्र्ानीय स्व-उद्यम संकुलों और सम्पूणग समाज में स्व-उद्यम व स्वरोजर्ार की प्रेरणा जर्ायें और उद्यम उष्ट्मायन केन्द्रां अर्ागत इनलयूबेशन सदहत उद्यममता ववकास की र्ाततववधियों उद्यममता ववकास अभ्यास वर्ों आदद के माध्यम से समाज को व्यापक स्तर पर स्वरोजर्ार की ओर अग्रसर होन ेकी प्रेरणा एवं अधिकतम सहकार प्रदान करें।

  • प्रस्ताव - 3

    िेटा संप्रभुता-िेटा स्र्ानीयकरण-डिजजटल राष्ट्रवाद : समय की मांर् ---◆◆◆

    िेटा चौर्ी औद्योधर्क िांतत का नया आिार है और यदद िेटा को प्रोसेस करते हैं तो इसमें एक तेज एल्र्ोररर्म के सार् वह करन ेकी क्षमता है, जजसकी मानव अभी तक कल्पना भी नहीं कर पाया है। इसमें कोई संदेह नहीं फक यह सत्ता के मलए एक कच्चा माल है, प्रभाव बढान ेका स्रोत है और मानवता को तनयंब्रत्रत करने का एक माध्यम है। जब वैजववक शजलतयां इस िेटा को कसजान ेके मलए पूरी कोमशश कर रहे हैं, भारत जो दतुनया की आबादी का छिा दहस्सा; इंटरनेट उपभोलताओं का पांचवां दहस्सा है, चुप नहीं बैि सकता।

    भारत को न केवल देश में इलट्िा फकए िेटा के स्वाममत्व की ही नहीं, बजल्क देश की भौर्ोमलक सीमाओं के अंतर्गत िेटा की र्णना करन ेके अधिकार की भी आववयकता है। िेटा व्यवहार को समझने और व्यवहार को प्रभाववत करन ेके सार्-सार् कुशल रोजर्ार और उद्यमशीलता के अवसरों के सृजन की कंुजी है। यह भववष्ट्य है, यह वतगमान है और देश को इस अवसर को पान ेके मलए जार्ना होर्ा।

    यदद हम अपन ेआस-पास देखें तो रोबोट आिाररत उत्पादन और मशीन लतनंर् के मलए िेटा एक कंुजी है, जो मैन्युफैलचररंर् और सेवा क्षेत्र को आकार दे रही है। ई-कॉमसग फमें और प्लेटफामग डिजजटल अर्गव्यवस्र्ा में िेटा को तनयंब्रत्रत कर रहे हैं और इसके माध्यम से वे एकाधिकाररक लाभ उिा रहे हैं। बड़ा प्रवन यह है फक लया हम अपने ही आचरणों और उपिमों के व्यवहार और समािान जानने के मलए िा ॅलरों या यूरो में भुर्तान कर सकते हैं? चैर्ी औद्योधर्क िांतत या डिजजटल औद्योधर्क िांतत की सफलता िेटा तक पहंुच पर तनभगर करती है।

    ववकमसत देश अपनी कंपतनयों की प्रततस्पिाग शजलत को मजबूत बनाने हेतु िेटा के तनबागि प्रवाह को सुतनजवचत करने के मलए कई उपाय कर रहे हैं। हमें समझना होर्ा फक िेटा का मुलत प्रवाह ववकमसत और ववकासशील देशों के बीच संबंिों को असमममत बना देर्ा और ववकासशील देश के उद्यमों को नुकसान की जस्र्तत में िाल देर्ा। इसमलए िेटा का ववतनयमन बहुत जरूरी है।

    संयुलत राष्ट्र व्यापार एवं ववकास सम्मेलन

    (अंकटॉि) की ररपोटग 2018 कहती है, ‘‘देशों

    के मलए िेटा को तनयंब्रत्रत करना और अपने िेटा का उपयोर्/सांझा करना और उसके प्रवाह को ववतनयममत करना महत्वपूणग है।’’

    अंकटॉि की ररपोटग का यह तनष्ट्किग है, “आिार रेखा यह है फक ववकासशील देशों के मलए डिजजटल प्रौद्याधर्कीयों द्वारा प्रदत्त ववकास की संभावनाए ंआसानी से

    ववलुप्त हो जाएंर्ी, यदद उन्हें डिजजटल इन्रास्रलचर एवं डिजजटल को संवधिगत करन ेहेतु अपनी आधर्गक एवं औद्योधर्क नीततयों को तैयार करने हेतु लचीलापन

    और नीततर्त अवसर नहीं ददया जाता।”

    हमने हाल ही में क्षेत्रीय वहृत आधर्गक साझेदारी (आरसीईपी) की वातागओं, यहां तक की संयुलत राष्ट्र अमरीका के सार् चल रही व्यापार वातागओं में अधिकांश ध्यान हमारे िेटा को तनयंब्रत्रत करने और उसके संबंि में कानून बनाने के हमारे अधिकार को समाप्त करने की ओर है। यह हमारे मलए बड़े र्वग की बात है फक प्रिानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को आरसीईपी वातागओं से अलर् कर मलया है। संयुलत राष्ट्र अमरीका के सार् भी िेटा संप्रभुता के आत्मसमपगण के सार् व्यापार वातागओं में शाममल होने की कोई आववयकता नहीं है।

  • आधर्गक दहतों के सार्-सार्, देश की सीमाओं से परे महत्वपूणग िेटा का प्रवाह और स्र्ानीय सवगरों की अनुपजस्र्त, देश की सुरक्षा के मलए भी भारी खतरा उपजस्र्त करती है। ववकमसत देश व्यापार एवं तनवेश तनयमों का हवाला देते हुए िेटा के मुलत प्रवाह प्राप्त करने की कोमशश कर रहे हैं। जनवरी 2019 में वववव व्यापार संर्िन के कई देशों ने व्यापार संबधंित ई-कॉमसग वविय पर वातागएं शुरू कर दी हैं। भारत इस प्रकार की फकसी भी वाताग में मलप्त होने से अलर् रहा है। जी-20 सम्मेलन में भी, 24 देशों द्वारा हस्ताक्षररत डिजजटल अर्गव्यवस्र्ा की ओसाका घोिणा पर, िेटा के मुलत प्रवाह के मलए इसके तनदहतार्ग के कारण हस्ताक्षर करने के मलए भी भारत ने मना कर ददया र्ा।

    हालांफक व्यजलतयों की तनजता कम महत्वपूणग नहीं है, लेफकन अर्गव्यवस्र्ा के हर क्षेत्र में डिजजटलीकरण के बढने के सार्, िेटा अधिकारों को केवल तनजता या अन्यर्ा केवल एक व्यजलतवादी ढांचे में रखकर नहीं देखा जा सकता। मूल्यवान िेटा अलसर समजष्ट्ट, समूह या अज्ञात रूप में होता है। और इसमलए कॉरपोरेट की अधिकाधिक लाभ कमाने की लालशा िेटा के एक आधर्गक संसािन पर सामुदहक अधिकार की अवहेलना नहीं की जा सकती। यह जानना महत्वपूणग है फक राष्ट्रीय समाज, शहर, र्ांव या पड़ोस समुदाय और उसके सार्-सार् काममगकों के समुदाय/वर्ग, व्यापारी एवं उत्पादक इन सबका उस समस्त िेटा पर मौमलक आधर्गक अधिकार है, जो उनहोंने ववमभन्न डिजजटल प्लेफॉमों पर ददया है। जब तक इस तरह के नए वैकजल्पक ढांचे ववकमसत नहीं फकए जात,े तब तक मुलत व्यापार समझौतों के प्रसार और सार् ही सार् ई-कॉमसग पर वववव व्यापार संर्िन सरीखे बहुपक्षीय संर्िनों में ‘िेटा के वैजववक मुलत प्रवाह’ मसद्िांत पर आिाररत हो रहे प्रयासों से देश मूल्यवान िेटा पर अपना स्वाममत्व खो देर्ा।

    स्वदेशी जार्रण मंच की राष्ट्रीय सभा यह मांर् करती है फक :-----------◆◆◆

    1 ) भारत सरकार द्ववपक्षीय और बहुपक्षीय वातागओं में िेटा संप्रभुता पर बातचीत करन ेसे बचे।

    2 ) िेटा को न केवल भारत की भौर्ोमलक सीमाओं के अंतर्गत संग्रदहत फकया जाए, बजल्क उसकी र्णना भी भारत में ही हो।

    3 ) चाहे िेटा व्यवसातयक हो, रणनीततक हो या प्रार्ममक ही हो, यह एक राष्ट्रीय संपवत्त है, इसका संरक्षण होना ही चादहए।

    4 ) िेटा की तनजता जरूरी है, तनजता को पररभावित करन ेऔर इसके हनन की जबावदेही करने वाले कानून को जल्द से जल्द पाररत फकया जाए।

    5 ) यह समझत ेहुए फक कच्च ेरूप में िेटा का अधिक उपयोर् नहीं हो सकता, अधिक से अधिक वववलेिनात्मक कौशल के सार् कायगबल को प्रोत्सादहत फकया जाए।

    6 ) सरकार को उन एप्स की पहचान करनी चादहए, जो अनाववयक िेटा एकत्र कर रहे हैं और आववयक अनुमततयों से ज्यादा चाहत ेहैं और उनके खखलाफ दंिात्मक कायगवाही की जाए। इस क्षेत्र में काम कर रहे स्र्ानीय उद्यमों को प्रोत्साहन ददया जाना चादहए।

    7 ) भुर्तान र्ेटवे, सोशल मीडिया प्लेटफॉमग, सेवा समूह कतागओं इत्यादद में भारतीय ववकल्पों को प्रोत्साहन एवं समर्गन ददया जाए।

  • रणनीततक ववतनवेश राष्ट्र दहत में नहीं -------------------------------------◆◆◆

    प्रस्ताव - 4

    सावगजतनक क्षेत्र के उद्यमों (PSE) का रणनीततक ववतनवेश न केवल एक अवववेकी व्यावसातयक तनणगय है, बजल्क राष्ट्रीय दहत के खखलाफ भी है। यह न केवल भारत के लोर्ों, जो सावगजतनक क्षेत्र के उद्यमों के वास्तववक मामलक हैं, को इन उद्यमों में पररसंपवत्तयों और पूंजी तनवेश के उधचत मूल्य से वधंचत करता है, बजल्क यह उन लोर्ों को भी अनुधचत लाभ देता है जो इन्हें खरीदने का इरादा रखते हैं। स्वदेशी जार्रण मंच का मानना है फक, व्यवसाय करना सरकार का व्यवसाय नहीं है, लेफकन ववतनवेश के नाम पर हम बहुराष्ट्रीय तनर्मों और कॉरपोरेट घरानों को राष्ट्रीय संपवत्त सौंपन ेकी योजना का ववरोि करते हैं।

    सावगजतनक क्षेत्र के उद्यमों के तनष्ट्पक्ष मूल्यांकन की आववयकता है - उनकी क्षमता, रणनीततक आववयकता, टनगअराउंि संभाव्यता, बाजार उपयोधर्ता के अध्ययन के बाद ही ववतनवेश रणनीतत की आववयकता है। इस समय राष्ट्रीय वाहक एयर इडंिया और तेल ववपणन कंपनी बीपीसीएल का रणनीततक ववतनवेश करन ेकी योजना बनायी जा रही है। एयर इंडिया को पुनर्गिन और पेशेवर प्रबिंन की आववयकता है, ववतनवेश की नहीं। ये भावनात्मक जस्र्तत नहीं हैं, लेफकन एक शुद्ि व्यावसातयक आववयकता है।

    एयर इंडिया के ववत्तीय और अन्य दस्तावेजों की करीबी जांच से पता चलता है फक एयर इडंिया के ऋण और पररसंपवत्तयों के पनुर्गिन से न केवल कंपनी की देनदाररयों को कम फकया जा सकता है, बजल्क राष्ट्रीय वाहक को मुनाफे में वापस लाया जा सकता है। घाटे की एक बड़ी वजह कजग की मूल एवं सयाज की अदायर्ी है। यह ऋण र्लत इरादों के सार् खराब तनणगय लेन ेके कारण मलया र्या र्ा। एयर इंडिया को खराब संपवत्त कहना वास्तव में ददगनाक और अनुधचत है। भारत जैसे ववकासशील देश को रणनीततक और बाजार संतुलन की आववयकताओं को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय वाहक की आववयकता है।

    इस बीच, BPCL का रणनीततक ववतनवेश तनजवचत रूप से एक अच्छा व्यापाररक तनणगय नहीं है। दसूरी सबसे बड़ी तेल ववपणन सावगजतनक क्षेत्र की कंपनी तनयममत रूप से मुनाफा कमा रही है। उनकी ररफाइनररयों का सकल ररफाइतनरं् माजजगन (जीआरएम) वैजववक बाजारों के समकक्ष है।

    रणनीततक तनवेश से कोई लाभ नहीं ----------------------------------------◆◆◆ तनजीकरण के बारे में समर्गक कई बार दहदंसु्तान जजंक के मुनाफे का उदाहरण देते हैं, जजसका कोई अर्ग नहीं है। BPCL पहले से ही उदारीकृत वातावरण में चल रही है और एक पेशेवर रूप से संचामलत उद्यम है। उत्पाद मूल्य तनिागरण से लेकर संचालन तक अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हैं। यदद सरकार अपने इजलवटी को कम करना चाहती है, तो इसे तनष्ट्पाददत करने के मलए सबसे अच्छी जर्ह शेयर माकेट है। BPCL मुनाफे में है और पहले से ही अच्छालाभांश दे रही है और वतगमान में भारतीय शेयर बाजार भी अच्छा प्रदशगन कर रहा है। शेयर बाजार न केवल इजलवटी के मलए बेहतर मूल्य देर्ा, बजल्क बीपीसीएल के अच्छे प्रदशगन का लाभ छोटे तनवेशकों को भी ममलेर्ा। इसके ववपरीत भारत द्वारा BPCL के ववतनवेश की घोिणा के बाद ‘सऊदी अरामको’ इसकी संपवत्तयों पर नजर र्ड़ाए हुए है। यह न केवल अस्वीकायग है बजल्क खतरनाक भी है। राष्ट्रीय भावनाओं और कड़ी मेहनत के सार् बनाई र्ई संपवत्त ववदेशी तेल कंपतनयों के क़सजे में नहीं जानी चादहए। उनके BPCL की ख़रीद केवल अपनी संपवत्त को बढाने के मलए एक आंकड़े के रूप में है। रणनीततक ‘ब्रबिी बहुराष्ट्रीय कंपतनयों के मलए रणनीततक’ खरीद बन रही है।

    इसी तरह, मशवपरं् कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एससीआई) और कंटेनर कॉपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) की रणनीततक ब्रबिी भी समझदारी पूणग व्यापाररक तनणगय नहीं हैं। ये दोनों उद्यम न केवल बहुत बेहतर जस्र्तत में हैं, बजल्क भारतीय उद्योर्ों के मलए

  • लॉजजजस्टलस को और तेज करने की सरकार की योजना को फियाजन्वत करने के मलए आववयक भी हैं। वपछले पांच विों में, भारत ने िेडिकेटेि रेट कॉररिोर और औद्योधर्क र्मलयारे समेत सड़क और माल ढुलाई के बुतनयादी ढांचे, बुतनयादी सुवविाओं को बढाने के मलए प्रततविग लाखों करोड़ रुपये खचग कर रहा है। सीसीआई के इस समय एक तनजी हार् में जाने का कोई कारण नहीं है। इसके अलावा, एससीआई एकमात्र कंपनी है, जो भारतीय ध्वज के सार् दतुनया भर में जहाज चलाती है। अधिकांश तनजी कम्पतनयां टैलस बचाने के मलए स्वाममत्व मुख्य भूमम भारत को नहीं रखते हैं। एससीआई सकल घरेलू उत्पाद (जीिीपी) को अर्ले पााँच विों में दोर्ुना करने के मलए भारत का अमभन्न उद्यम है।

    स्वाममत्व को बेचकर पैसा इकट्िा करना और भववष्ट्य में होन ेवाली आजीवन कमाई छोड़ देना एक बुद्धिमान व्यापार तनणगय नहीं होर्ा, खासकर, जब सरकार कह कर रही है फक उनका कर संग्रह लक्ष्य से मेल नहीं खा रहा है। ववत्त मंत्री सुश्री तनमगला सीतारमण के हामलया बयान ने संकेत ददया फक सरकार पांच सावगजतनक उपिमों में अपने इजलवटी बेचकर 1 लाख करोड़ रुपये की तनकासी करने जा रही है। सरकार ने पहले ही ववतनवेश के मलए अन्य 28 सावगजतनक उपिमों, उनकी सहायक कंपतनयों और संयुलत उपिमों को तैयार कर मलया है। सूची में रणनीततक रूप से महत्वपूणग दहदंसु्तान एयरोनॉदटकल मलममटेि (एचएएल), पवन हंस, ग्रामीण ववद्युतीकरण तनर्म (आरईसी) शाममल हैं।

    सरकारी इजलवटी को बेचन ेके तरीकों और समय पर एक बड़ ेसावगजतनक ववचार-ववमशग और बहस की आववयकता है। सरकार को वामशरं्टन सवगसम्मतत के जाल में पड़ कर कुछ कॉपोरेट घरानों या बहुराष्ट्रीय कंपतनयों को इजलवटी बेचने के बजाय दीघगकामलक समािानों को देखना चादहए। भारत को बहुराष्ट्रीय कंपतनयों को अपनी राष्ट्रीय संपवत्त नहीं बेचनी चादहए। ववतनवेश की वतगमान योजना कुछ सलाहकारों, कुछ व्यावसातयक घरानों से प्रभाववत नौकरशाहों के िड्यंत्रों का पररणाम है। आज इन कदमों का ववरोि करन ेऔर राष्ट्रीय संपवत्त की सुरक्षा करने का समय है। सरकार को दहतों के टकराव और भारतीय पररसंपवत्तयों पर कसजा करन ेके आरोपों पर र्ौर करना चादहए।

    स्वदेशी जार्रण मंच की यह राष्ट्रीय सभा यह मांर् करती है फक :-----◆◆◆

    1 ) सावगजतनक के्षत्र के उद्यमों पर नीतत आयोर् की ररपोटग को ख़ाररज फकया जाना चादहए। अर्ले पांच विों में जीिीपी को दोरु्ना करने और संबंधित विों में इसे और तेज करने की कल्पना को ध्यान में रखते हुए पीएसई के मूल्यांकन के जााँच की आववयकता है। यह ररपोटग कुछ सलाहकारों के तनदहत स्वार्ों का काम है, उन्हें इस काम से दरू रखा जाना चादहए। नई ररपोटग को ऐसे लोर्ों के एक नए समूह के सार् बनाया जाना चादहए, जो न केवल पूवग िारणाओं से मुलत हैं, बजल्क भारतीय आववयकताओं पर ववचार करने के मलए खुला ववचार रखते हैं। 2 ) सावगजतनक के्षत्र के उद्यमों का पुनमूगल्यांकन, उनकी बैलेंस-शीट, .....भववष्ट्य में रणनीततक आववयकता और उपयोधर्ता के आिार पर फकया जाए। 3 ) व्यापक सावगजतनक उपिम नीतत बनाई जाए। इन उद्यमों की भूममका को पररभावित करते हुए, भारत को और अधिक मजबूत बनाने में उनके योर्दान का सही मूल्यांकन फकया जाए। 4 ) एयर इंडिया, बीएसएनएल आदद कई सावगजतनक उपिम हैं जो देश की रणनीततक जरूरतों के मलए आववयक हैं। इन सावगजतनक उपिमों को पुन: बेहतर फकया जा सकता है। इसे पूरा करने के मलए प्रयास फकए जाने की आववयकता है। 5 ) लाभदायक सावगजतनक उपिमों में ववतनवेश पर एक राष्ट्रीय बहस, समय की आववयकता है। एचपीसीएल के वपछले ववतनवेश पर एक ववेत पत्र की आववयकता है, जहां ओएनजीसी ने इजलवटी का अधिग्रहण फकया र्ा। इससे एचपीसीएल के संचालन को कैसे लाभ हुआ है? बीपीसीएल के तनजीकरण के लाभ के बारे में सरकार को बताना चादहए। सरकार को सलाह देने के मलए और बाद में इजलवटी को उतारने के मलए उनकी सहायता करने के मलए सलाहकार तनयुलत करने के तरीके की जांच करने की आववयकता है। इस संबंि में भारत की संपवत्त पर कसज ेको प्रभाव देने के मलए ‘दहतों के टकराव' और रु्ट के र्िन की आशंका व्यलत की जा रही है। 6 ) ववशेि व्यवसाय घरानों को लाभाजन्वत करने के मलए रणनीततक ब्रबिी का भ्रष्ट्ट अधिकाररयों द्वारा दरुुपयोर् फकया जा सकता है। ऐसे में पारदशी तंत्र की स्र्ापना की आववयकता है। फकसी भी ददशा में जाने से पहले सभी दहतिारकों के अधिकारों और ववचारों पर ववचार फकया जाना चादहए।

  • Organic, Natural-Traditional Agriculture Is Only Useful ---------◆◆◆

    Rashtriya Sabha of Swadeshi Jagran Manch expresses grave concern on the agricultural crisis and vulnerable condition

    of farmers in Bharat.

    Soul of Bharat lies in its villages. Ancient Indian villages were self reliant, consisted of skilled communities and all folks

    were gainfully self-employed. Besides producing country's food, they used to supply primary and secondary products

    to the cities. Cities were dependent on villages and many of goods produced in villages were traded and exported

    world over and as a result Bharat became "Golden Bird" and contributed 30% to world's GDP. Unfortunately, today's

    villages have become totally dependent on cities which are faced with burgeoning unemployment.

    Green revolution in India converted traditional agriculture into an industrial system due to adoption of high yielding

    varieties of seeds, irrigation, chemical pesticides and fertilizers and mechanization. Although it increased food grain

    production and made India a food surplus state but caused greater long term sociological and financial problems for

    the farmers. As a result, dependence of work force on agriculture has shrunk drastically from 70% in 1947 to 44.8%

    now, with simultaneous lowering of its contribution to GDP from 49 to 15% now. Institutional crop loan to farmers

    stand at Rs 11.68 lakh crores now.

    Even after applying such heavy inputs, productivity has stagnated and growth of agriculture sector is only 2.8%, far

    below the generally accepted 4% level. Despite economic reforms and globalization disparities in rural incomes are

    stark, leading to distress and large scale suicides. Demographic pressures have caused increased small and marginal

    holdings to 67.6%. Generally mindless policies have led to an unprecedented piling of over 50 million tonnes of food

    grains with storage agencies, increasing the subsidy burden manifold.

    Chemical farming has poisoned our soil, water, rivers, air, food and even mother's milk. Life threatening diseases of

    cancer, heart attack, diabetes, hyper tension, psychological disorders, etc. are common now. The "cancer train" in the

    cotton belt is the curse of chemical farming. Use of costly pesticides and fertilizers has not only reduced the profitability

    of farming but also posed grave health hazards for the nation.

    Rising cost of production forced 25% of small farmers out of farming and along with 31% marginal farmers living below

    poverty line, despite increase in productivity. Chemical farming not only shattered rural economy but also sharply

    reduced employment leading to mass migration from the villages. In ten years alone, urban population has increased

    from 25.6% to 30.2%.

    Father of green revolution in India Dr. M.S. Swaminathan acknowledged these ill effects and many scientists have

    proven that traditional agriculture was not inefficient as it had been publicised.

    The belief that frequent famines were norm in India due to traditional farming was shattered by reports of Noble

    laureate Amartya Sen and Famine Commission in 1880, who noted surplus food was available in every province and

    problem was of distribution and poverty.

    Resolution - 1

  • Traditional Bhartiya farming systems adopted highly productive "ecologically optimal model of agriculture" of organic

    farming based on animal husbandry including multi-layered crops, soil enrichment and product value addition that

    established a sustainable relationship with the environment. Traditional systems of farming were the most scientific

    methods of cultivation which ever evolved and centered around indigenous cow, providing 100% gainful employment

    to all the communities of the village.

    Bharat can easily feed the entire world. Developed nations through their multinational companies want to capture

    Indian agriculture, destroy fertile lands through use of chemical fertilizers, replace its biodiversity of indigenous seeds

    with hybrids and GM seeds, replace indigenous cow with cross breed, and poison our crops with chemicals.

    In order to overcome the ill effects of chemical farming, Swadeshi Jagran Manch proposes Swadeshi swabalamban

    model of “Environment resilient farming in Bharat”. More than 15 different traditional farming methods are

    successfully practiced by over 43 lakh farmers and large scale operations of kaneri math and the first organic state

    Sikkim are notable milestones. Large scale and successful adoption of natural farming in Maharashtra, Karnataka and

    Andhra Pradesh clearly is a testimony that production actually increases compared to chemical farming. These lands

    are now "pesticide free" and farmer's income has increased by at least 25%.

    Global scientific evidence reiterates unambiguously that "organic farming can feed the world population of 9 billion

    by 2050 from existing land". A recent study by Indian Council for Research on International Economic Relations

    confirms traditional Indian agriculture by default is organic, superiority of natural products and India as the world

    leader of organic products exported. Government of India realizing the success and potential of different natural

    farming techniques launched an ambitious "Paramparagat Krishi Vikas Yojana" with an outlay of Rs. 4000 crores.

    Some vested interests have opposed the hike in minimum support price to the farmers giving the argument that it

    increases inflation. Many recent studies by noted economists have busted this myth.

    Swadeshi Jagran Manch appeal to the citizens of India to find ways and means to protect our agriculture from the

    clutches of foreign companies that are promoting hybrid/GM seeds, chemical fertilizers and pesticides. Central

    government shall also make favourable policies to ensure fair prices to farmers produce and liberate Indian agriculture

    from the poisonous jaws of foreign MNCs. It is therefore urgently required to promote agriculture in traditional Indian

    way of natural farming, ensure value addition of products and fairly increase MSP so that agriculture sector is put on

    fast recovery mode.

    Rashtriya Sabha of Swadeshi Jagran Manch requests the general public and different state governments to take

    appropriate action in this regard.

  • From ancient times Bharat was self reliant with self employment approach. Most of our people were creating wealth

    by their family occupation and all villages & towns were self reliant for their regular needs. Since Christ era Bharat was

    the country with highest production in the world, through decentralised production system. According to British writer

    Angus Maddison till 1500 A.C. India contributed one third of world's production and business. By destroying our own

    decentralized production system & introducing open import & foreign investment policy of globalisation, India now

    contributes hardly 3% in world's economy. Today due to slowdown and closure of micro, small, medium and big

    industry, unemployment is increasing and percentage of employed people is down to less than 50%.

    In this situation, to prevent unemployment and encourage employment generation, in future, we have to make our

    young generation, employment creator by encouraging start-ups by youth. More and more people are initiating their

    start-ups after completing their studies. But unsuitable situation for creating start-up is becoming speed breaker in

    generating self-employment and any kind of employment. Lock out in most employment creating textile sector, solar

    sector, electronic sector and many other sectors also draws concern. By using several government schemes like 'Mudra

    Yojana', 'Start-up', etc. we have to transform young generation from job seekers to job provider and have to make

    every house an employment creator. There are important government schemes like 'Start-up India', but after this

    scheme was launched from the govt. only 50000 start-ups could come up till now and in next five years also only 50000

    start-ups are expected by govt of India. According to international labour organization, 80 percent of Indian economy

    belongs to unorganised sector and only 6.5 percent of employment comes from organised sector. For the last 28 years

    several lakh crores were given to the foreign companies of organised sector, by way of tax cuts, but hardly any scheme

    for unorganized sector was launched, which constitutes 80 percent of the economy. On the other hand foreign

    investment in retail sector, foreign company's investment in e-commerce sector etc. affects self-employment sector

    badly.

    Employment Generation Should Be Development Mantra ----◆◆◆

    Resolution - 2

    Swadeshi Jagran Manch demands from the govt. :---------------◆◆◆

    1 ) Help the self-employed sector by identifying their problem. To do this a database of self-employed

    persons and their related persons should be prepared. An authority be constituted for employment

    generation.

    2 ) Govt should take steps to encourage self-employment. Selection of Mudra borrowers should not be with

    banks. There should be separate database with separate lists and separate selection system of willing

    borrowers.

    3 ) New digital exchange with enlistment, enrolment, marketing and value addition and services of

    unorganised sector should be developed to help self employed in marketing.

  • Manch urges upon that government to list all people in self-employment including start-ups, like feri vendors, rickshaw

    pullers, potters, carpenter, artisans, tiffin suppliers, beauticians etc. to promote and encourage them and for their

    welfare.

    Manch appeals to the society :-----------------------------------------◆◆◆

    1 ) All segments including youth should use the opportunities for self-employment and self enterprises and

    create employment not only for themselves, but also for others and become job providers. Guiding principle

    should be that 'we should not be job seekers but job providers' and for this awareness be created.

    2 ) Call to buy local and swadeshi, will also become the calalyst to promote local and swadeshi enterprise

    and will help increase employment.

    3 ) Value addition of agriculture produce and promote allied activities of agriculture (like animal husbandry,

    bee farming, poultry etc.) will also increase income and employment in agriculture.

    4 ) Manch urges upon the patriotic people to create awareness in educational institution, local small

    industries clusters and the whole society about self enterprises and self employment and encourage and

    support the actions towards self employment through enterprise development activities, enterprise

    development centres including incubation centres.

  • Resolution - 3

    Data Sovereignty - Data Localisation - Digital Nationalism : The Need

    of the Hour ------------------------------------------------------------------◆◆◆

    Data; the new fulcrum of the Industrial Revolution 4.0 & if we process it, with a sharp algorithm, it has the potential

    to do what human minds haven’t envisaged as yet. Undoubtedly, this is a raw material for power, grains for influence

    & essence to govern the humanity. India, 1/6th of the world and 1/5th of the Internet consumers can’t sit idle; when

    global powers are looking at all avenues to capture this data. India not only requires owning the data produced in the

    country; but also need to compute the data inside the geographical limits of our country.

    The data is key to understand the behaviour, create influencers for these behaviours along with a big opportunity to

    create skilled jobs and entrepreneurship opportunities. It is future; it is present & country will have to rise to take the

    opportunity. If we look around, the data is the key to shaping robotic production and machine learning, which is

    shaping the manufacturing and service sector. E-commerce firms and platforms in the digital economy control the data

    and often indulge in rent-seeking behaviour. Can we afford to pay in dollars or Euros to learn behaviours & solutions

    of our own conducts or ventures? The Success in the industrial revolution 4.0 or digital industrial revolution depends

    on access to data.

    We need to understand that the developed countries are taking various measures to ensure the uninterrupted flow of

    data to facilitate the competitiveness of their companies. The free flow of data will create an asymmetric relation

    between the developed countries and developing countries and put the developing country firms in a disadvantageous

    position. Therefore, the regulation of data is very critical UNCTAD’s Trade and Development Report 2018 says: “it is

    important for the countries to control their data and be able to use/share their data and regulate its flow”. Further,

    the UNCTAD report concludes: “The bottom line is that the potential for development provided by digital technologies

    can be easily eclipsed if developing countries are not given the flexibility and policy space to design their economic

    and industrial policies and national regulatory frameworks to promote digital infrastructure and digital capacities.”

    We have seen in the negotiations at RCEP, even the trade talks with the USA, a major focus is to convince us to abort

    our right to frame the laws to govern the data. It is matter of great pride that the Prime Minister Narendra Modi bailed

    India out of RCEP talks. There is also no need to get into trade deal with the US, surrendering sovereignty of data.

    Along with the economic interest, the cross border flow of critical data and lack of local servers poses a threat to

    national security. The developed countries are using trade and investment rules to seek the free flow of data. In

    January 2019, a number of WTO member countries initiated negotiations on trade-related aspects of electronic

    commerce. India continued to refrain from indulge in any such conversation. At G-20 Summit India refused to sign the

    Osaka Declaration on Digital Economy that was signed by 24 countries due to its implications for free flow of data.

    Though privacy of individuals is no less important, with digitalization increasingly pervading every aspect of the

    economy, data rights cannot be seen solely as about privacy or otherwise just in an individualistic framework. Valuable

    data is often aggregated, group or anonymized data, and thus corporate lust for more and more profits, cannot

    underline collective rights over the economic resource of data. It is important to know a national community, city,

  • Rashtriya Sabha of Swadeshi Jagran Manch demands :---------◆◆◆

    1 ) India must refrain from negotiating data sovereignty at bilateral & multilateral trade negotiations.

    2 ) Data should not only be stored within geographical limits of India, but must also be computed here.

    3 ) Data is a national asset; it may be commercial, strategic or even elementary. The data must be protected.

    4 ) Privacy of the data must be sacrosanct. The law defining privacy & setting the accountability must be

    passed at earliest.

    5 ) We understand that the data in raw form might not be of much use; the workforce with much greater

    analytical skills is encouraged.

    6 ) The government must identify the apps, w


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