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हनुभान चारीसा आईमे आज गोस्वाभी तरुसीदास कृत " हनुभान चारीसा " के भूर यहस्म की फात कयते हं । क्यमंकक इसको ( ककसी साधायण कवव ने नहीॊ ) तरुसीदास ने लरखा है औय इसका मोग साधना से गहया सम्फन्ध है । इसभं जो भुख्म ऩात्र हनुभान है । उसका अथथ ही ऐसे साधक मा बक्त से है

- जो ऩूणथतमा भान यकहत होकय बक्त हो गमा हो । आऩको आध्मात्भ भं प्रत्मेक ऩात्र का नाभ ववशेष अथथ लरमे लभरेगा । मही फात हनुभान ऩवन सुत आकद नाभ भं बी है । एक औय फात बी है । मे ववशेष प्रकाय के बवक्त ऩद 40 दोहं भं क्यमं होते हं ?

भेये ववचाय से - 5 तत्वं का शयीय + 5 ऻानेन्द्न्िमाॊ + 5 कभने्द्न्िमाॊ + शयीय की 25 प्रकृलतमाॊ = 40 इसलरमे मे इसी भनुष्म शयीय की ऻान अऻान बवक्त आकद का वणथन है । तफ आईमे । हनुभान चारीसा का सही अथथ सभझने की कोलशश कयं ।

प्रस्ततुकताथ : भुक्तानन्द स्वाभी ऩयभहॊस

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श्री गुरु चयण सयोज यज । लनज भनु भुकुय सुधारय । फयनऊॉ यघुफय वफभर जसु । जो दामकु पर चारय । ( श्री ) का अथथ सम्ऩदा मा ऐश्वमथ से है । मे न्द्जसके बी आगे रगा है । उसके ऐश्वमथ का प्रतीक है । मे न्द्जस अन्द्स्तत्व के साथ जुङा हो । उसके वैबव को दशाथता है । अत् इसको हभेशा इसी अन्दाज भं सभझं । ( गुरु ) शब्द भं गु औय रु दो अऺय हं । गु अॊधकाय औय रु प्रकाश का द्योतक है । औय सॊमुक्त गुरु शब्द ऻान का ऩमाथम है । मानी एक ऐसा अन्द्स्तत्व.. जो आत्भा से जीवात्भा के फीच भं ऻान अऻान औय प्रकाश अॊधकाय का अॊतय मा फोध कयामे । एक दसूये बाव भं गुरु को अऻान रूऩी अॊधकाय से ऻान रूऩी प्रकाश की ओय रे जाने वारा बी कहते हं । कुर लभराकय फात एक ही है ।

( चयन सयोज यज ) अफ महाॉ भं सनातन धभथ जो आजकर कहन्द ूधभथ के नाभ से अलधक प्रचलरत

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हो गमा है ऩय एक ववशेष फात कहना चाहूॉगा । जो इस धभथ को सवोच्च औय सफसे अरग खास श्रणेी भं रे जाती है । देन्द्खमे - लसर्फथ गुरु के चयण ( सयोज ) कभर ( यज.. की ) धरू की ही फात कही गमी है । गुरु के ऩूणथ अन्द्स्तत्व को तो छोकङमे । अबी चयणं की बी फात नही है । अबी तो चयण यज भं ही इतनी शवक्त है कक ( लनज भनु भुकुय सुधारय ) भेये ( बक्त के ) भन

( अॊत्कयण ) रूऩी दऩथण को स्वच्छ कय देती है । ( फयनऊॉ यघुफय वफभर जसु ) फयनउॉ ( वणथन कयना ) चेतन ऩुरुष ( यघुवय ) ववभर ( लनववथकायी ) जसु ( मश मा प्रकाश )

( जो दामकु पर चारय ) मानी धभथ अथथ काभ भोऺ । मे चाय र्फर देने वारा है । लसर्फथ धरू भं मे ताकत है कक धभथ ( तत्व ऻान ) अथथ ( राब मा साथथक कभथ मा साथथक जीवन ) काभ ( ववलबन्न सान्द्त्वक वलृतमाॊ ) औय एक सम्ऩूणथ खशुहार जीवन के फाद भोऺ ( भुक्त होना ) मानी कोई कभथ फेङी बी नहीॊ फनी । न ऩाऩ की । न ऩुण्म की । अफ जया गौय कयं । ववश्व के ककसी बी धभथ ( वाणी ) भं मे कहम्भत मा ताकत है कक इतनी फङी फात कह सके ? ईसाई औय इस्राभ धभथ सबी प्रालि भयणोऩयाॊत औय बवक्त का र्फर जन्नत मा स्वगथ फताते हं । जफकक देन्द्खमे - मही तरुसीदास ककतनी सयरता से स्वगथ को अत्मन्त तचु्छ फता यहे हं - एकह तन कय पर वफषम न बाई । स्वगथउ स्वल्ऩ अॊत दखुदाई । हे बाई ! इस शयीय के पर ववषम कभथ नहीॊ है । क्यमंकक इस जगत के बोगं की तो फात ही क्यमा ( मकद तमु्हं स्वगथ बी लभर जामे ) तो वह स्वगथ बी थोङे सभम का ही है । औय 84 राख मोलनमं के दु् खदामी अन्त को ही प्राि होता है । तो देखा आऩने । लसर्फथ दो राइनं भं ही अऩाय भकहभा छुऩी है । फुवि हीन तनु जालन के । सुलभयौ ऩवन कुभाय । फर फुलध ववद्या देहु भोकह । हयहु करेस ववकाय । - स्वमॊ को फुवि हीन स्वीकाय कयते हुए । मानी ककसी बी अहॊ बाव से यकहत । ऩूणथ सभऩथण से । ( सुलभयौ ऩवन कुभाय ) सुलभयौ ( बावऩूणथ स्भयण ) कौन कयता है - ऩवन कुभाय ?

अलधकाॊश रोग मे सभझते हं कक मे चारीसा ऩढने वारे द्वाया " हनुभान " के सुलभयन की फात है । नहीॊ । आऩकी स्वाॊस क्यमा है ? ऩवन मानी वामु । औय इससे जो जीव रूऩी ऩुत्र उत्ऩन्न हुआ । वही कुभाय है । मानी बक्त । भान यकहत बक्त - हनुभान । भुझे ( आत्भ ) फर ( लनश्चमात्भक ) फुवि ( औय आध्मात्भ ऻान ) ववद्या दीन्द्जमे । न्द्जससे भेये करेश औय दोष दयू हं । गौय कयं । मे सबी प्राथथना बक्त ने गुरु से की है ।

जम हनुभान ऻान गुन सागय । जम कऩीस लतहुॉ रोक उजागय । याभ दतू अतलुरत फर धाभा । अॊजलन ऩुत्र ऩवन सुत नाभा । - भान यकहत बक्त ऻान औय ( सद ) गुणं का सभुि होकय तीनं रोकं भं प्रकालशत हुआ जम ऩाता है । अफ महाॉ कऩीश शब्द के लरमे सभझना होगा । एक तो सबी गूढ ऻान सॊकेतात्भक है ।

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दसूये हनुभान के सभान ही वानय कुर ( ऩुयाने सभम भं फहुत से स्थानं ऩय ऩशु ऩन्द्ऺमं के नाभ ऩय जालतमं के नाभकयण का रयवाज था । जैसे - गिृ । रयछ । वानय । सऩथ ) भं उत्ऩन्न बक्त । तीसये याभामण प्रतीकात्भक है । औय मे बी सच है कक - जहाॉ मह आॊतरयक सूक्ष्भ जगत के फाये भं फताता है । वही जन साभान्म हेत ुउसका स्थरू रूऩ बी प्रकट हुआ । गूढ का भतरफ ही मह है कक - ककसी बी चीज को यहस्मभम अन्दाज से फताना । याभ दतू ( याभ का सन्देश मा जानकायी देता हुआ बक्त ) साधायण जीव की अऩेऺा अतलु्म ( आत्भ ) फर से मुक्त होता है । अॊजलन ऩुत्र ( की व्माख्मा कयने ऩय फहुत ववस्ताय होगा । ऩय ववकायी काभनाओॊ से उत्ऩन्न जीव सभझा जा सकता है । वामु ऩुत्र की उऩालध ( क्यमं ? ऊऩय ) भहावीय ववक्रभ फजयॊगी । कुभलत लनवाय सुभलत के सॊगी । कॊ चन फयन वफयाज सुफेसा । कानन कुॊ डर कुॊ लचत केसा । - मानी याभ बक्त कुभलत को हटाकय सुभलत को अऩनाकय भहावीय ववक्रभ ( शूयवीय ) फजयॊगी आकद गुणं से मुक्त हो जाता है । स्वणथ के सभान चभकती देह ( मानी योगाकद से ) लनदोष सुन्दय वेशबूषा मुक्त । हाथ वज्र औ ध्वजा वफयाजै । काॉधे भूॉज जनेऊ साजै । शॊकय सुवन केसयीनॊदन । तेज प्रताऩ भहा जग फॊदन । - हाथ वज्र ( कभथठता औय भजफूती के साथ ) औ ध्वजा वफयाजै ( कभथऺ ेत्र भं ववजम ऩताका र्फहयाते हुमे ) साधायण तऩस्वी वेश भं । शॊकय के अॊश औय केसयी ऩुत्र ( महाॉ कर्फय से रूऩक भं सत्म घकटत अॊश जोङा गमा है । जो कक ऐसी यचनाओॊ के लरमे आवश्मक बी होता है । वैसे इसका अन्म यहस्म बी है । जो अलत ववस्ताय की वजह से सम्बव नहीॊ है ) ऐसा भहा तेजस्वी प्रताऩी बक्त । जो सॊसाय द्वाया वॊदनीम है ।

ववद्यावान गुनी अलत चातयु । याभ काज करयफे को आतयु । प्रबु चरयत्र सुलनफे को यलसमा । याभ रषन सीता भन फलसमा । - ववद्यावान ( भूर ऻान को जानने वारे ) गुनी ( गुणवान ) अलत चातयु ( साधओुॊ के लरमे " समाना " शब्द का प्रमोग बी ककमा जाता है - फुवि होम जो ऩयभ समानी । अथाथत तबी वो सवृि औय खदु के यहस्म को जान सकता है ) याभ काज करयफे को आतयु ( अथाथत लनष्काभ कभथ ।

कोई ऐसा कभथ नहीॊ । न्द्जसभं खदु की बावना जुङी हो । क्यमंकक सवृि ही लसमा याभ भम है ) प्रबु चरयत्र सुलनफे को यलसमा ( शब्द नाभ से जो सवृि यहस्म मा चेतन यहस्म ध्मान बवक्त भं अनुबव होते हं । याभ जनभ के हेत अनेका । अलत ववलचत्र एक ते एका । याभ कथा जे सुनत अघाहीॊ । यस ववशेष लतन जाना नाहीॊ ) याभ रषन सीता भन फलसमा ( चेतन जीव औय भामा तीनं को सभझना । देखं रेख - शॊकय के धनुष तोङने का यहस्म )

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सूक्ष्भ रूऩ धरय लसमकहॊ कदखावा । ववकट रूऩ धरय रॊक जयावा । बीभ रूऩ धरय असुय सॉहाये । याभचॊि के काज सॉवाये । - अऩने सूक्ष्भ रूऩ । सुयलत औय भामा को देखना । मोग ववशारता से असुय बूलभ को नि कयना । मोग फर से असुयत्व का ववनाश । वास्तव भं एक बक्त द्वाया चेतन ऻान भं मह बवक्त कामथ ही है ।

राम सजीवन रखन न्द्जमामे । श्री यघुफीय हयवष उय रामे । यघुऩलत कीन्ही फहुत फड़ाई । तभु भभ वप्रम बयतकह सभ बाई । राम सजीवन रखन न्द्जमामे ( अहभ से त्वभ तक की साधना भं स्वाबाववक ही कई स्थानं ऩय कृभश् प्राि होते मोगफर से साधक भं अक्यसय अहभ घटने के फजाम औय बी अलधक होता है । ऩूणथ ऻान न होने तक मे स्वाबाववक प्रकक्रमा ही है । तफ वह तभोगुण से प्रबाववत शवक्तहीन अचेत हो जाता है । ऐसे भं उसका ( अलब ) भान यकहत बाव ( हनुभान ) कर्फय से उसके लरमे सॊजीवनी ( ऩुन् जीवनदामी ) का कामथ कयता है ) ऩयभात्भ सत्ता ऐसे बक्त को हषथऩूवथक ह्रदम से रगाती है । मानी बयऩूय नेह फयसाती है । तफ प्रबु उसकी सयाहना कयते हं कक - तभु भुझे ( ककसी बी कामथ भं ) बयण ऩोषण ( बयत ) कयने वारे बाई के सभान ही वप्रम हो । सहस फदन तमु्हयो जस गावै । अस ककह श्रीऩलत कॊ ठ रगावै । सनकाकदक ब्रह्माकद भुनीसा । नायद सायद सकहत अहीसा । - हजायं जीव तमु्हाये मश ( बवक्त से जो लभरा ) से बवक्त हेत ुपे्ररयत हंगे । ऐसा प्रबु का स्नेह आशीवाथद होता है । सनक आकद ऋवष फहृ्मा आकद देव भुलन नायद सयस्वती औय शेषनाग..

जभ कुफेय कदगऩार जहाॉ ते । कवफ कोववद ककह सके कहाॉ ते । तभु उऩकाय सुग्रीवकहॊ कीन्हा । याभ लभराम याज ऩद दीन्हा । मभ कुफेय आकद कदग्ऩार बी इस बक्त भकहभा का फखान नहीॊ कय सकते हं । कपय कवव औय ववद्वान कैसे कय ऩामंगे । तभुने सुग्रीव ऩय उऩकाय कयते हुमे उसे याभ से लभरामा । औय याजऩद कदरामा । मे कर्फय रूऩक भं सत्म कथानक जोङा गमा है । हाराॊकक इसका बी यहस्म है । ऩय वो कभ से कभ इस रेख भं फताना सम्बव नहीॊ ) तमु्हयो भॊत्र ववबीषन भाना । रॊकेश्वय बए सफ जग जाना । जुग सहस्त्र जोजन ऩय बानू । रील्मो ताकह भधयु पर जानू । - मोग मा बवक्त भागथ भं ( आॊतरयक औय फाह्य दोनं रूऩ से ) एक ही प्रकाय भं बी दो तयह के अच्छे औय फुये जीव ( आत्भाओॊ ) से लभरना होता है । जैसे याऺसं भं बी कू्रय औय सदबावना मुक्त । ऐसे असुय प्रवलृत बी " याभ बक्त " से राब उठाकय अऩने उिाय का फीज फो देते हं ।

जुग सहस्त्र जोजन.. इसका अथथ मही है कक मोग कक्रमाओॊ भं ऐसी घटनामं याभ बक्त के लरमे भहज खेर के सभान हं । प्रबु भुकिका भेलर भुख भाहीॊ । जरलध राॉलघ गए अचयज नाहीॊ । दगुथभ काज जगत के जेते । सुगभ अनुग्रह तमु्हये तेते ।

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- हॉस की ऩाॊच भुकिकाओॊ भं से एक न्द्जसभं भुख के तारु भं जीब रगाकय अभ्मास ककमा जाता है । न्द्जससे तारु कभजोय होकय वहाॉ फहुत सूक्ष्भ छेद हो जाता है । तफ अभ्मास से इस भुकिका के लसि होने ऩय कई ऋवि लसवि औय ववशेष साधक भं उङने की ऺभता आ जाती है । सॊसाय के न्द्जतने बी फेहद ककठन औय असॊबव से कामथ हं । वो याभ बक्त के लरमे फहुत आसान हो जाते हं । जो इच्छा करयहो भन भाहीॊ । याभ कृऩा कुछ दरुथब नाहीॊ । याभ दआुये तभु यखवाये । होत न आऻा वफनु ऩैसाये । सफ सुख रहै तमु्हायी सयना । तभु यच्छक काहू को डयना । - एक भजेदाय फात कही जाती है । मह आरा ( अल्राह ) का घय है । खारा ( भौसी ) का नहीॊ । शीश ( अलबभान ) उताय बूलभ धयो । तफ ऩैठो घय भाकहॊ । मानी ऩूणथतमा भान यकहत हुमे वफना ऩयभात्भा के दयवाजे भं बी प्रवेश सम्बव नहीॊ । सबी सुख ऐसे याभ बक्त की सेवा भं हान्द्जय यहते हं । औय मे दसूयं को सुखी औय लनबथम बी कयता है । आऩन तेज सम्हायो आऩै । तीनं रोक हाॉक तं काॉऩै । बूत वऩसाच लनकट नकहॊ आवै । भहाफीय जफ नाभ सुनावै । - इसका ( तऩ बवक्त मोग ) तेज सहन कयने की शवक्त वारा तीन रोक के दामये भं नहीॊ होता । बूत ( ऩूवथ जन्भ के दफुथर मा ऩाऩी मा दिु सॊस्काय । ) वऩशाच ( तभोगुण से आक्राभक होने वारी अलत नीच वलृतमाॊ ) मे भहावीय बक्त जफ सत्म शब्द नाभ से जुङता है । तो ऩास बी नहीॊ र्फटकते । नासै योग हयै सफ ऩीया । जऩत लनयॊतय हनुभत फीया । सॊकट तं हनुभान छुडावं । भन क्रभ फचन ध्मान जो रावै । - सबी ( बव ) योगं का औय सबी करेशं का वीय हनुभान द्वाया ककमे जाने वारे लनयॊतय जऩ ( अखॊड अजऩा ) से सभूर नाश हो जाता है । महाॉ ववशेष सोचने वारी फात है कक हनुभान अगय लनयॊतय ..याभ याभ ? जऩते यहते थे । कर्फय वो अन्म तभाभ सेवा कामथ कैसे कयते थे ?

जाकहय है । वह कोई गूढ ( अजऩा ) जऩ ही है । ऐसा बक्त ( ऩूवथ सॊस्कायवश आमे ) सॊकटो से आसानी से भुक्त हो जाता है । फस उसे भन वचन औय कभथ से बवक्त मुक्त होना होगा ।

सफ ऩय याभ तऩस्वी याजा । लतन के काज सकर तभु साजा । औय भनोयथ जो कोई रावै । सोइ अलभत जीवन पर ऩावै । - लनरऩे प्रबु के सबी कामथ वास्तव भं उनके ऐसे ही बक्तं से सॊऩन्न होते हं । प्रबु की कृऩा दृवि भात्र से । ऐसे बक्त को सबी इच्छाओॊ के साथ अनन्त औय अभय जीवन रूऩी र्फर प्राि होता है ।

चायं जुग ऩयताऩ तमु्हाया । है ऩयलसि जगत उन्द्जमाया । साध ुसॊत के तभु यखवाये । असुय लनकॊ दन याभ दरुाये । आऩका प्रताऩ चायं मुगं भं ववद्यभान यहता है । आऩका प्रकाश साये जगत भं प्रलसि है । भान यकहत होना साध ुसॊतं की यऺा कयता है । ऐसा असुयता का नाश कयने वारा बक्त प्रबु को वप्रम है

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। अि लसवि नौ लनलध के दाता । अस फय दीन जानकी भाता । याभ यसामन तमु्हये ऩासा । सदा यहो यघुऩलत के दासा । आठ लसविमाॊ औय नौ लनलधमाॊ ऐसे बक्त को सहज प्राि हं । ऐसे लनमभ का अनुबव ( जानकी ) वही स्वाॊस द्वाया सुयलत शब्द मोग । जान क्यमा है ? स्वाॊस का चरना ही तो है । बक्त के ऻान भं आता है । याभ यसामन ( शब्द नाभ से उत्ऩन्न यस ववशेष । न्द्जससे सबी यसं की उत्ऩवत्त हुमी है । देखं - सफकहॊ यसामन हभ ककमे नकहॊ नाभ सभ कोम । यॊचक तन भं सॊचये सफ तन कॊ चन होम ) ऐसे बक्त को प्राि है । न्द्जससे वह सदा बवक्त भं सरॊग्न यहता है । तमु्हये बजन याभ को ऩावै । जनभ जनभ के दखु वफसयावै । अॊत कार यघुफय ऩुय जाई । जहाॉ जन्भ हरय बक्त कहाई । - अलधकाॊश रोग सोचते हं कक हनुभान का बजन मा सुभयण कयने से याभ ( ऩयभात्भा ) की प्रालि हो सकती है ? मह एकदभ गरत है । दयअसर इसका भतरफ है ( तमु्हये बजन ) मानी हनुभान जो बजन ध्मान कयते हं । उससे ही याभ की प्रालि होती है । याभचरयत भानस भं बी आमा है

- भहाभॊत्र जोई जऩत भहेशू । काशी भुवक्त हेत ुउऩदेशू । मानी शॊकय न्द्जस भहाभॊत्र का बजन कयते हं । वही काशी ( शयीय ) ..भन भथयुा कदर द्वारयका कामा काशी जान । के भुक्त कयने हेत ुउऩदेश है । औय याभ को ऩा रेने के फाद जन्भ जन्भ ( वास्तव भं कभथ र्फर सॊस्काय औय गबथ मोलनमं से छुटकाया होना ) के दु् ख नि हो जाते हं । वह कोई नई फात नहीॊ है । इस शयीय का ऩयभ रक्ष्म मानी अऩने भूर को प्राि ( यघुवय ऩुय ) कय हरय बक्त ( अनन्त चेतना से जुङना ) हो जाता है ।

औय देवता लचत न धयई । हनुभत से कह सवथ सुख कयई । सॊकट कटै लभटै सफ ऩीया । जो सुलभयै हनुभत फरफीया । - औय देवताओॊ भं उरझने की आवश्मकता ही नहीॊ है । हनुभत ( इसी बवक्त से ) से ही सबी सुख प्राि हो जाते हं । देखं - बवक्त स्वतॊत्र सकर सुख खानी । वफनु सतसॊग न ऩावकह प्राणी । सुखी भीन जहाॉ नीय अगाधा । न्द्जलभ हरय शयन न एक हू फाधा । कभथ सॊस्काय रूऩी सॊकट कटकय सबी दु् ख ददथ दयू हो जाते हं । मकद फरफीय हनुभान वारा बजन ध्मान आऩ कयते हं ।

जै जै जै हनुभान गोसाई । कृऩा कयहु गुरुदेव की नाई । जो सत फाय ऩाठ कय कोई । छूटकह फॊकद भहा सुख होई । - महाॉ तरुसीदास एक बक्त बाव भं इसी भानयकहत बक्त की मोग न्द्स्थलत की ववनम कयते हं कक - न्द्जस प्रकाय गुरु की असीभ कृऩा होती है । वैसे ही भेया मह भानयकहत बाव हभेशा जमी हो ।

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अथाथत बाव लगये नहीॊ । जो इस ( शब्द नाभ ) का सौ फाय ऩाठ कयता है । वह प्रत्मेक बव फन्धन से छूटकय भहासुख को प्राि होता है । देखं - कहे हू कह जात हू कहूॉ फजाकय ढोर स्वाॊसा खारी जात है..तीन रोक का भोर ? औय - जासु नाभ सुभयत एक फाया । उतयकहॊ नय बव लसॊध ुअऩाया । याभ एक ताऩस लतम ( अकहल्मा ) तायी । नाभ कोकट खर सुभलत सुधायी ।

जो मह ऩढै़ हनुभान चरीसा । होम लसवि साखी गौयीसा । तरुसीदास सदा हरय चेया । कीजै नाथ ह्रदम भहॉ डेया । - अत् जो इन चारीस ऩदं भं लछऩे सत्म को सभझकय अऩना रेता है । तो शॊकय साऺी है । उसका ऻान लसि होने भं कोई सॊशम नहीॊ है । इसलरमे तरुसीदास इस सत्म को जानकाय सदा के लरमे ही हरय ( चेतन याभ ) का दास हो गमा । हे प्रबु ! लसर्फथ आऩ ही भेये ह्रदम भं यहं । दसूया कोई असत्म बाव मा अन्द्स्तत्व न आमे । ऩवन तनम सॊकट हयन भॊगर भूयलत रूऩ । याभ रषन सीता सकहत ह्रदम फसहु सुय बूऩ । ऩवन तनम ( तो सबी हं । ऩय जो जान गमा ऐसा बक्त जीव । हय घट तेया साईमाॊ सेज न सूनी कोम । फलरहायी उन घटन की न्द्जन घट प्रकट होम । ) सॊकट दयू होना । भॊगर भूलतथ मानी स्वमॊ का अभॊगर यकहत अन्द्स्तत्व । याभ रषन सीता सकहत ( इस आत्भा औय चेतन भामा जीव सवृि ऻान सकहत ) सबी देवताओॊ के स्वाभी भेये ह्रदम भं वास कयं । अथाथत भेया बाव इससे कबी हटे नहीॊ ।

साय ववशेष - आऩने देखा होगा । ऻान रेखन आकद ववधाओॊ की अरग अरग गूढ सी शैलरमाॊ हं । जो व्मवक्त के लचॊतन भनन ववकास आकद के लरमे हं । औय जो सवृि को चरामे यखने के लरमे आवश्मक है । अगय ऐसा नहीॊ होता । तो बगवान को भनुष्म की योटी दार वस्त्र आकद की ऩूलतथ के लरमे इतने घुभावदाय प्रऩॊच की क्यमा आवश्मकता थी । वो सीधे ऐसे वृऺ ( मा अन्म भाध्मभ )

फना सकता था । न्द्जन ऩय दार योटी वस्त्र आकद सबी रगते । औय कोई झॊझट ही न होता ।

औय सोलचमे वफना झॊझटं के न्द्जन्दगी का क्यमा अथथ होता - भनुष्म मा भशीन ?

इसी नजरयमे से आऩ आध्मात्भ ऻान को जानंगे । तबी वास्तववक यहस्मं से अवगत हंगे । वही फात इस चारीसा भं बी है ।


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