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समास समास का तात्पर्य� है

‘संक्षि�प्तीकरण’।

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दो र्या दो से अधि�क शब्दों से धि�लकर बने हुए एक नवीन एवं सार्थ�क शब्द को स�ास कहते हैं।

जैसे - ‘रसोई के लिलए घर’

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गि-रह को काटने वाला�न से चाहा

देश से गिनकालासंदेह के गिबना

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स�ालिसक शब्दस�ास के गिनर्य�ों से गिनर्मि�1त शब्द सा�ालिसक शब्द

कहलाता है। इसे स�स्तपद भी कहते हैं। स�ास होने के बाद गिवभलि5र्यों के लिचह्न (परस-�) लुप्त हो जाते हैं

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सा�ालिसक शब्दों के बीच के संबं� को स्पष्ट करना स�ास-गिवग्रह कहलाता है।

जैसे-राजपुत्र-राजा का पुत्र।

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पूव�पद और उत्तरपद

स�ास �ें दो पद (शब्द) होते हैं। पहले पद को पूव�पद और दूसरे पद

को उत्तरपद कहते हैं। जैसे--ं-ाजल। इस�ें -ं-ा पूव�पद और जल उत्तरपद

है।

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समास के भेदअव्ययीभाव समास

तत्पुरुष समास

द्वन्द्व समास

बहुव्रीहि� समास

जिजस स�ास का पहला पद प्र�ान हो और वह अव्यर्य हो उसे अव्यर्यीभाव स�ास कहते हैं। जैसे - र्यर्था�गित (�गित के अनुसार), आ�रण (�ृत्र्यु कर) इन�ें र्यर्था और आ अव्यर्य हैं।

तत्पुरुष समास - जिजस स�ास का उत्तरपद प्र�ान हो और पूव�पद -ौण हो उसे तत्पुरुष स�ास कहते हैं। जैसे - तुलसीदासकृत = तुलसी द्वारा कृत (रलिचत)

जिजस स�ास के दोनों पद प्र�ान होते हैं तर्था गिवग्रह करने पर ‘और’, अर्थवा, ‘र्या’, एवं ल-ता है, वह दं्वद्व स�ास कहलाता है।

जिजस स�ास के दोनों पद अप्र�ान हों और स�स्तपद के अर्थ� के अगितरिर5 कोई सांकेगितक अर्थ� प्र�ान हो उसे बहुव्रीगिह स�ास कहते हैं।

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अव्ययीभाव समास

अव्ययीभाव समास की प�चान

इस�ें स�स्त पद अव्यर्य बन जाता है अर्था�त स�ास होने के बाद उसका रूप कभी नहीं बदलता है। इसके सार्थ गिवभलि5 लिचह्न भी नहीं

ल-ता।

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आजीवन - जीवन-भर र्यर्थासा�र्थ्यर्य� - सा�र्थ्यर्य� के अनुसार र्यर्थाशलि5 - शलि5 के अनुसार र्यर्थागिवधि� गिवधि� के अनुसार र्यर्थाक्र� - क्र� के अनुसार भरपेट - पेट भरकर हररोज़ - रोज़-रोज़ हार्थोंहार्थ - हार्थ ही हार्थ �ें रातोंरात - रात ही रात �ें प्रगितदिदन - प्रत्रे्यक दिदन बेशक - शक के गिबना गिनडर - डर के गिबना गिनस्संदेह - संदेह के गिबना प्रगितवष� - हर वष�

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तत्पुरुष समास के प्रकारज्ञातव्य- गिवग्रह �ें जो कारक प्रकट हो उसी कारक वाला वह स�ास होता है।

क�� तत्पुरुष गि-रहकट गि-रह को काटने वाला करण तत्पुरुष

�नचाहा �न से चाहा

संप्रदान तत्पुरुष रसोईघर रसोई के लिलए घर

अपादान तत्पुरुष देशगिनकाला देश

से गिनकाला

संबं� तत्पुरुष -ं-ाजल

-ं-ा का जल

अधि�करण तत्पुरुष

न-रवास न-र �ें

वास

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तत्पुरुष समास के प्रकार

नञ तत्पुरुष समासजिजस स�ास �ें पहला पद गिनषे�ात्�क हो उसे नञ

तत्पुरुष स�ास कहते हैं।

स�स्त पद स�ास-गिवग्रह स�स्त पद स�ास-गिवग्रह

असभ्र्य

अनादिद

अनंत न अंत न सभ्र्य

न आदिद असंभव न संभव

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कम"धारय समासजिजस स�ास का उत्तरपद प्र�ान हो और पूव�iद व उत्तरपद �ें गिवशेषण-गिवशेष्र्य अर्थवा उप�ान-

उप�ेर्य का संबं� हो वह क���ारर्य स�ास कहलाता है।

स�स्त पद स�ास-गिवग्रह स�स्त पद स�ास-गिवग्रह

देहलता देह रूपी लता दहीबड़ा दही �ें डूबा बड़ा

नीलक�ल

सज्जन

नीला क�ल पीतांबर पीला अंबर (वस्त्र)

सत् (अच्छा) जन नरसिस1ह नरों �ें सिस1ह के स�ान

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गित्रलोक तीनों लोकों का स�ाहार

नवग्रह नौ ग्रहों का स�ूह

नवरात्र नौ रागित्रर्यों का स�ूह

हिद्वगु समासजिजस स�ास का पूव�पद संख्र्यावाचक गिवशेषण हो

उसे गिद्व-ु स�ास कहते हैं। इससे स�ूह अर्थवा स�ाहार का बो� होता है।

स�स्त पद स�ास-गिवग्रह

अठन्नी आठ आनों का स�ूह

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दोपहर चौ�ासा

शताब्दी

त्रर्यम्बकेश्वर

दो पहरों का स�ाहार चार �ासों का स�ूह

सौ अब्दो (वषd) का स�ूह

तीन लोकों का ईश्वर

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द्वन्द्व समास

समस्त पद समास-हिवग्र�पाप-पुण्र्य पाप और पुण्र्यसीता-रा� सीता और रा�ऊँच-नीच ऊँच और नीचअन्न-जल अन्न और जल

खरा-खोटा खरा और खोटारा�ा-कृष्ण रा�ा और कृष्ण

जिजस स�ास के दोनों पद प्र�ान होते हैं तर्था गिवग्रह करने पर ‘और’, अर्थवा, ‘र्या’, एवं ल-ता है, वह दं्वद्व स�ास

कहलाता है।

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बहुव्रीहि� समास

जिजस स�ास के दोनों पद अप्र�ान हों और स�स्तपद के अर्थ� के अगितरिर5 कोई सांकेगितक अर्थ� प्र�ान हो

उसे बहुव्रीगिह स�ास कहते हैं।

समस्त पद समास-हिवग्र�

दशानन दश है आनन (�ुख) जिजसके अर्था�त् रावण

नीलकंठ नीला है कंठ जिजसका अर्था�त् लिशव

सुलोचना संुदर है लोचन जिजसके अर्था�त् �ेघनाद की पत्नी

पीतांबर पीले है अम्बर (वस्त्र) जिजसके अर्था�त् श्रीकृष्ण

लंबोदर लंबा है उदर (पेट) जिजसका अर्था�त् -णेशजी

दुरात्�ा बुरी आत्�ा वाला (कोई दुष्ट)

शे्वतांबर शे्वत है जिजसके अंबर (वस्त्र) अर्था�त् सरस्वती जी

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कम"धारय और बहुव्रीहि� समास में अंतरक���ारर्य �ें स�स्त-पद का एक पद दूसरे का गिवशेषण होता है। इस�ें शब्दार्थ� प्र�ान होता है। जैसे - नीलकंठ = नीला कंठ। बहुव्रीगिह �ें स�स्त पद के दोनों पदों �ें

गिवशेषण-गिवशेष्र्य का संबं� नहीं होता अगिपतु वह स�स्त पद ही गिकसी अन्र्य संज्ञादिद का गिवशेषण होता है। इसके सार्थ ही शब्दार्थ� -ौण होता है और कोई क्षिभन्नार्थ� ही प्र�ान हो जाता है। जैसे - नील+कंठ =

नीला है कंठ जिजसका अर्था�त लिशव।

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संधिध और समास में अंतरसंधि� वणd �ें होती है। इस�ें गिवभलि5 र्या शब्द का लोप नहीं होता है। जैसे - देव+आलर्य = देवालर्य। स�ास दो पदों �ें होता है। स�ास होने पर गिवभलि5 र्या शब्दों का लोप भी हो जाता है। जैसे - �ाता-गिपता = �ाता और

गिपता।


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