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तलवंडी का रहने वाला एक लंगड़ा क्षत्री सि�ख गुरु जी के भोजन के सिलए बड़ी श्रधा के �ाथ दही लाता था| एक दिदन रास्ते में गाँव के चौधरी न ेउ�की बै�ाखी छीन ली और मजाक उड़ाने लगा किक रोज दुखी होकर अपन ेगुरु के सिलए दही लेकर जाता है,तेरा गुरु तेरी टांग नहीं ठीक कर �कता?सि�ख ने कहा मेरा गुरु बेपरवाह हें,एक क्षण में �ब कुछ ठीक कर �कता है,अगर ना चाहे तो कुछ भी नहीं| उनकी अपनी इच्छा है,वे ठीक भी कर �कते है,और नहीं भी| मैंने खुद उनको कुछ नहीं कहना|अपनी बै�ाखी लेकर भगत सि�ख वहा �े किनकल पड़ा|

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वहा गुरु जी जी थाल रखकर प्रेमी किक प्रतीक्षा कर रहें थे| दही लेकर गुरु जी न ेभोजन खाया और लेट पहुँचने का कारण भी पूछा| सि�ख ने �ारी बात गुरु जी के आगे रख दी किक किक� प्रकार रास्ते में आते हुए चौधरी ने उ�की बै�ाखी छीन ली और कहा किक अगर तेरा गुरु �मथ> है तो तेरी टांग क्यों नहीं ठीक कर �कता?इतना �ुनते ही गुरु जी उ� सि�ख �े कहने लग ेकिक शाह हु�ैन के पा� चला जा किक मुझे गुरु जी न ेयहाँ आपके पा� टांग ठीक करान ेके सिलए भेजा है|

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गुरु जी का ऐ�ा वचन आते ही गुरुसि�ख उ�ी और ही चल दिदया जहाँ गुरु जी न ेभेजा था| शाह हु�ैन जी के पा� पहंुचकर सि�ख ने वहा ँआने का कारण बताया किक आप मेरी लंगडी टांग ठीक कर दे| हु�ैन ने एकदम हाथ में मोटा डंडा उठा सिलया और गुस्�े �े कहने लगा किक यह � ेभाग जा नहीं तो तेरी दू�री टांग भी तोड़ दँूगा व लंगड़ा बना दँूगा| वह सि�ख डंडे किक मार �े डरता हुआ जल्दी �े उठकर भाग पड़ा| भागते-२ उ�की दू�री टांग भी ठीक हो गई|

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तब वह पीछे मुड़कर हु�ैन जी के चरणों में किगर पड़ा और धन्यवाद करने लगा| हु�ैन जी कहने लग ेकिक करने वाले गुरु जी आप है मगर बदनामी मुझे देते है| मेरी तरफ �े गुरु जी को नमस्कार करनी|गुरु जी किक ऐ�ी रहमत को देखकर हँ�ते-२ गुरसि�ख गुरु घर किक और चल दिदया|

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