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एक दि�न श्री राम�ास जी को गुरु अमर�ास जी ने अपन ेपास बि�ठा लि�या व �ताया बिक सतयुग में इक्ष्वाकु जी, जो अयोध्या के पह�े राजे थे उन्होंने इस स्थान पर यज्ञ कराया था| जहां अ� भजनों का स्थान है| इस भारी यज्ञ पर ब्रह्मा, बिवष्ण ुऔर लि0वाजी, इन्द्र सभी �ेवते व ऋबि3 मुबिन आदि� आए थे| सभी �हुत प्रसन्न हुए| वे राजे का प्रेम व श्रद्धा �ेखकर हर्षि3;त हो रहे थे|

बिवष्ण ुजी न ेराजे इक्षावकु को वर मांगने को कहा|

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उन्होंने प्राथ=ना की बिक महाराज! अगर मुझ पर प्रसन्न हुए हैं तो मुझे या वर�ान �ो बिक इस हवनकुण्ड के स्थान पर एक तीथ= हो| जो संसार के जीवों का कल्याण करे व पापों का ना0 करने वा�ा है| आप का बिनवास इस हवनकुण्ड के चारों तरफ ही हो| आप जैसे अ� बिवराजमान है, वैसे ही स�ैव बिवराजमान रहे| बिवष्णु जी ने कहा - हे राजन! आपने यह वर�ान संसार के जीवों की भ�ाई के लि�ए मांगा है| यहा ं�हुत भारी तीथ= प्रगट होगा| वह पापों का ना0 करेगा व जीवों का उद्धार होगा| मेरी ज्योबित 0लिI स�ा ही यहां आवास करेगी|

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यह प्रसंग �ताकर गुरु अमर�ास जी 0ांत हो गए| बिफर एक�म कहने �गे बिक अ� आपके हाथों इस के 0ीघ्र प्रगट होने का समय आ चुका है|

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