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एक दि�न श्री गुरु अर्ज�न �ेव र्जी के पास �ो सिसख हाजिर्जर हुए| उन्होंने आकर गुरु र्जी से प्रार्थ�ना की किक गुरु र्जी! हम स�ैव दुखी रहते हैं| हमे सुख किकस प्रकार प्राप्त हो सकता है? हम अपन ेदुखों से किनर्जात पाना चाहत ेहैं| इससि+ए गुरु र्जी आप ही हमें दुखों से बाहर किनका+ सकते हैं| हमे इसका कोई उपाय बताए|ँ

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गुरु र्जी पह+े उनकी बात ध्यान पूव�क सुनते रहें| र्जब उन्होंने अपनी सारी बात गुरु र्जी के आगे रख �ी तो गुरु र्जी ने कहना शुरू किकया भाई! अरोग शरीर, सुशी+ स्त्री, आज्ञाकारी पुत्र और धन-धान्य के सुख किपछ+े र्जन्म में किकए �ान पुण्य के फ+ स्वरूप ही मिम+ते हैं| भाव मनुष्य को किपछ+े र्जन्म के अनुसार ही फ+ प्राप्त होता है|

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आगे गुरु र्जी कहने +गे की ग्रहस्थी का बड़ा धम� �ान पुण्य करना और नेक कमाई ही है| इससि+ए आप भी नेक कमाई, पुण्य �ान और सत्संग किकया करो| इससे आपके दुखों का नाश होगा| दुख आपको छुह भी नहीं पाएगंे| आपको सुखो की प्राप्तिप्त होगी|


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