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काशी से गरु तेग बहादर जी सासाराम शहर की ओर चाल पड़े| वहाँ पहुचँ कर आपने गुर घर के एक मसंद िसख फग्ग ूकी िचरकाल से दशर्शन करने की भावना को परूा करने के िलए गए| भाई फग्गू ने एक मकान बनवाया| उसने उसका दरवाज़ा बहुत बड़ा रखवाया| उसके आगे एक खुला आँगन भी रखा हुआ था|

लोगो ने फग्गू से जब इसका कारण पूछा िक उसके मकान बनवाकर उसका दरवाज़ा इतना बड़ा क्यो रखा ह?ै फग्गू ने उनका उत्तर िदया िक यह मैंने गुर जी के िलए बनवाया ह|ै

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जब वह मेरे घर मे आयेगे तब वह घोड़े पर सवार होकर आयेगे| उन्ह ेबाहर नही उतरना पड़गेा| वह घोड़े पर बैठे-बैठे ही मेरे घर के अंदर आ जाये इसिलिए मैंने दरवाज़ा खुलिा रखवाया ह|ै

फग्गू की इस श्रद्धा भावना को अन्तयार्यामी गुर जान गए| वह रास्ते मे सभी को दशनर्यान दतेे हुए फग्गू के घर मे जा पहुचँे| आप एक दम ही पहुचँ गए िजसको दखेकर फग्गू बहुत खुशन हुआ| उसने गरु जी के चरणो पर माथा टेका| िफर गुर जी को पलिंघ पर िबठाया जो की उसने िवशनेष रूप से गुर जी के िलिए ही तैयार िकया था|

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गुर जी कुछ िदिन वहा ँरके| वह फग्गू की श्रद्धा व प्रेम से की हुई सेवा से प्रसन हुए| प्रसन होकर आपने फग्गू ब्रह ज्ञान की दिात बक्शी और उसको िनहाल िकया| इस नगर के बाहर गुर जी को एक बाग भी संगत ने भेंट िकया, जो िक गुर का बाग करके प्रिसद्ध है|


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