dus dus mahavidya shabar dhyan mantra

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।। िǓनमȪग ।। Ȣसȡफय-शि-ऩȡठ कȡ, बǕजȲग-मȡत हȰ छद । बȡयऩȡज शि ऋि, Ȣभहȡ-कȡरȣ कȡर चड ।। ॐ ȧȲ कȡरȣ शयण- फȢज, हȰ िȡमǕ -तǂि धȡन । कȡर बȪग-भȪदȡ, Ǔनश-Ǒदन धयȯ जȪ मȡन ।। ।। मȡन ।। भȯघ-िशश भǕक Ǖ भɅ , ǒिनमन ऩȢतȡभ ्फय-धȡयȣ । भǕि-कȯ शȢ भद-उभ सतȡȲगȢ, शत-दर-कभर-िहȡयȣ ।। गȲगȡधय रȯ सऩण हȡथ भɅ , सि हȯतǕ Ȣ-सभǕख नȡचȰ । Ǔनयख तȡडि छि हȱसत, कȡरकȡ ियȲ ǗǑहउिȡचȰ ।। ।। ऩȡठ-ȡथणनȡ ।। जम जम Ȣशिȡनदनȡथ ! बगित बि-दǕȬख-हȡयȣ । कयȪ िȢकȡय सȡफय-शि-ऩȡठ, हȯ भहȡ-कȡर-अितȡयȣ ।। Ȣयि-कȡरȣ-सभऩण णभ ् नभȪ जगदफȡ बिȡनȢ, कयȪ सि कȡयज भहयȡनȢ । ǒिबǕिन भǑहभȡ Ǔतहȡयȣ , जȰ Ȣजमȡ गगन-िहȡयȣ ।। तȯयȯ बि कȪ दǕȬख मȡऩȯ , शȡि सȯ मभ-यȡज बȢ कȡȱऩȯ । हनǕभत िȢय चरȯ अगǕिȡनȢ, फȡȱऐȲ बȰयि हȰ भहȡयȡनȢ ।। ऩȢछȯ िȢयब जफ गयजɅ , दȡȱऐȲ Ǚ सȲह िȢय हɇ हिȶ । कर बȡि तǕहȡयȡ, जȪ सǕभयȯ दǕȬख िनसȯ सȡयȡ ।। यि-नȰनन सȯ गटȣ िȡरȡ , कȡȱऩ उठȯ सǕयȡसǕय Ǒदग ् -ऩȡरȡ । िȡǑह-िȡǑह बि-दǕȬख-बजन भȡतȡ , कय जȪय कहɅ सǕय सि िधȡतȡ ।। जफ-जफ धभण ऩय सȲकट आमȡ , उठȡ ǒिशǗर सफ दǕȬख भटȡमȡ । धभण सनȡतन कȧ भȡȱ तǕभ यक, ऩȡभय खर भȡनि दर बक ।। बि-ऩǗणǗ ȱ शयण तǕहȡयȣ, जम दǕगȶ मȡभȡ शि कȧ मȡयȣ ।। Ȣतȡयȡ-सभऩण णभ ् नभȪ ȢतȡǐयणȢ रȯश-हȡǐयणȢ, बि-यक भȡȱ गगन-िहȡǐयणȢ कय खऩय-खɬग भǕड कȧ भȡरȡ , ऩȡश गदȡ हȰ बǕजȡ िशȡरȡ ।। भद-बयȯ नमन ǒिबǕिन-जग भȪहɅ , ऩȡȱमन सǕियन घǕȱघǽ सȪहɅ यȡभ-ǽऩ तǕभनȯ जफ धȡयȡ, बȡय बǗभ सफ असǕय सȱहȡयȡ ।। जर-सȲकट-हतȡण फǕि कȧ दȡतȡ, जम जम Ȣतȡयȡफȡ भȡतȡ िȡहन भमǗय कय िȢणȡ फȡजȯ , सȡभ-िȯसǕदय िǓन गȡजȯ ।। ǽऩ कȡरकȡ घȪय बमȲकय, शȡि जनɉ कȪ रगतȡ सǕदय भतिȡरȣ हȪ यण भɅ धȡिȯ , दȡनि-दर तȪǑह दȯख घफयȡिȯ ।। िȡहन सȲह चढȪ अफ मȡभȡ , ऩȯि-सȲहȡय कȡ फजȯ दभȡभȡ मȡस बȰयि कȧ फǕझȡओ, करȡ-कȪǑट नय-भȯध यचȡओ ।। -तȡयȡ हȰ नȡभ Ǔतहȡयȡ, धǗभ-कȯ तǕ फन गटȪ तȡयȡ ।। सȲहȡय कयȪ Ǖ -Ǚ ि कȪ कȡरȣ, जम जम ȢदǕगȶ डभǽ िȡरȣ ।। नहȣȲ आȱच तȯयȯ बि कȪ आिȯ , भदȡध खरɉ कȧ सȡ भट जȡिȯ जफ बȢ ऩȡऩ फढȡ हȰ जग भɅ , कȡरȣ-ǽऩ हȪ भȯटȡ भɅ ।। बि-ऩǗणकहतȡ भȡȱ तǕझसȯ , ऩȡऩ सȡȡम उठȡ बǗ -तर सȯ धभण कȧ जमहȪ गǗ ȱजȯ नȡयȡ , अखड िगण धभण यहȯ तǕहȡयȡ ।। सम कȧ शȡǔत ƺचमण , भȡत Ǚ -फि सȯ यहȯ सदȡ यत ।सहƸ-बǕजȯ भȡȱ दǕगण -नǔदनȢ, शिȡ शȡबिȢ दǕि-ििणȢ ।। ǒिऩǕय-भȡरनȢ हȯ िम-िȡसनȢ, बȡर Ǖ अȲक िध-रȯख-नȡशनȢ ।अि-िȢय मȪगनȢ भȲगर गȡिɅ , तǕहȡयȡ चȱिय डǕ रȡिɅ ।।भण-ऩȢभɅ यȡज बिȡनȢ , धम-धम भȡȱ उभȡ भहयȡनȢ ।भǕझȯ जगजमȯ ! आशȡ तȯयȣ, अि-बǕजȯ ! बȡम फदर दȯ भȯयȡ ।। जȪ सǕभयȯ कȡरȣ -तȡयȡ, ऩȡऩ-ǒितȡऩ बभ हȪ सȡयȡ ।चयण ऩȡतȡर शȢश कȰ रȡशȡ, ǽऩ ियȡट तȪडȯ मभ-ऩȡशȡ ।।अनत ǽऩ मǕग- मǕग भɅ धȡयȯ , बि-जनɉ कȯ कȡज सȱिȡयȯ ǒिबǕ िन-दȡनȢ Ȣनȡद-नȡǑदनȢ, यि-शत-कȪǑट-बȡ-कȡशनȢ ।। ȢिȪडशȢ-सभऩण णभ ् नभȪ Ȣ िȪडशȢ िभǕख-जनǓन, सदȡ फसȪ भभ ǿदम ि-िणनȢ Ǘ ȱ बि-ऩǗणतȯयȡ हȣ अȲशȢ, ििणत हȪ मह सक Ǖ सɮ- िȲशȢ ।।Ȣमि-यȡज-भयण कȧ शि, चयण-कभर कȧ भȡȱ दȯ दȪ बि ।च ǒिशǗर खɬग कभर धȡयȯ , घन गजणन कय यȡस भȡयȯ ।।अǽण ियण ऩद सǕदय ǽऩȡ, मȡित जȪ नय हȪम सȪ बǗऩȡ ।यि-शश रǔजत Ǔनयख ऩद-शȪबȡ, सȯिȯ शȡि ǿदम अǓत रȪबȡ ।।ǒि-बǕिन-सǕदयȣ िमस कशȪयȡ, भȪहȯ शि मɉ -चकȪयȡ ।तन अभ Ǚ -यस-बडȡयȡ , ऩȢित हȪम फǕǑि-फर-बȡयȡ ।।जȯǑह ऩय Ǚ ऩȡ तǕहȡयȣ हȪई, तन-अभ Ǚ ऩȡिȯ सȪई ।कǽणȡ-Ǻि िरȪकȯ जȪई, ि-िमȡत कि सȪ हȪई ।। जȪ बगितȢ िȪडशȢ कȪ मȡिȯ , अम आमǕि-मȫिन ऩȡिȯ ।Ǔनऩणद िभर गǓत भǓत दȡतȡ, जम Ȣ मȡभȯ ! ǒिबǕिन बȡम- िधȡतȡ ।।ऩȲकज आबȡ सǕगध शयȣयȡ, मȡभ-गȡत ििध यȲग चȢयȡ ।भहȣि-भǑिणनȢ अभत फर-शȡरȣ, जȰ -जȰ सतȢ सǑिदȡ कȡरȣ ।।आसि-ऩȡन-अट-ऩट िȡणȢ, शȡि-भडर कȪ सǕख-खȡनȢ जर-थर-नब करȪर कयतȢ, जम बकȡरȣ भȡȱ भभ दǕख-हिȢ ।।Ǔनधणन Ǚ ि-गत जȪ फȡरक तȪयȯ , उनकȯ शȢ फसȡ दȯ डȯयȯ ।सȲसȡय-इछǕ क ǔजनकȡ भन, दȯ दȪ भȡȱ उहɅ ƸȢ- सǕत-धन ।।ह Ǘ ȱ बि-ऩǗणतȯयȯ चयणɉ कȡ बɋयȡ , तǕभकȪ नȰनȡ दȯखत चह Ǖ ȱ ओयȡ ।बȪग-भȪह सȯ बि मह हȰ मȡयȡ, भन चȡहत ति

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Page 1: dus dus mahavidya shabar dhyan mantra

।। विननमोग ।। श्रीसाफय-शक्ति-ऩाठ का, बुजॊग-प्रमात है छन्द । बायद्राज शक्ति ऋवि, श्रीभहा-कारी कार प्रचण्ड ।। ॐ क्रॊ कारी शयण-

फीज, है िामु-तत्त्ि प्रधान । कालर प्रत्मऺ बोग-भोऺदा, ननश-ददन धये जो ध्मान ।। ।। ध्मान ।। भेघ-िणण शलश भुकुट भें, त्रिनमन ऩीताभफ्य-धायी । भुि-केशी भद-उन्भत्त लसताॊगी, शत-दर-कभर-विहायी ।। गॊगाधय रे

सऩण हाथ भें, लसवि हेत ुश्री-सन्भुख नाच ै। ननयख ताण्डि छवि हॉसत, कालरका ‘ियॊ ब्रूदह’ उिाच ै।। ।। ऩाठ-प्राथणना ।। जम जम श्रीलशिानन्दनाथ ! बगिम्त बि-दु् ख-हायी । कयो स्िीकाय साफय-शक्ति-ऩाठ, हे भहा-कार-अितायी ।।

श्रीयि-कारी-सभऩणणभ ्

ॐ नभो जगदम्फा बिानी, कयो लसि कायज भहयानी । त्रिबुिन भदहभा नतहायी, जै श्रीजमा गगन-विहायी ।। तयेे बि को दु् ख न व्माऩ,े शाि स ेमभ-याज बी काॉऩ े। हनुभत िीय चरे अगुिानी, फाॉऐॊ बैयि है भहायानी ।। ऩीछे िीयबद्र जफ गयजें, दाॉऐॊ नलृसॊह िीय हैं हि े। कलर प्रत्मऺ प्रबाि तमु्हाया, जो सुभये दु् ख विनस ेसाया ।। यि-नैनन से प्रगटी ज्िारा, काॉऩ उठे सुयासुय ददग-्ऩारा । िादह-िादह बि-दु् ख-बञ्जन भाता, कय जोय कहें सुय लसि

विधाता ।। जफ-जफ धभण ऩय सॊकट आमा, उठा त्रिशूर सफ दु् ख लभटामा । धभण सनातन कर भाॉ तभु यऺक, ऩाभय खर

भानि दर बऺक ।। बक्ति-ऩूणण हूॉ शयण तमु्हायी, जम दगेु श्माभा लशि कर प्मायी ।। श्रीताया-सभऩणणभ ् ॐ नभो श्रीतारयणी क्रेश-हारयणी, बि-यऺक भाॉ गगन-विहारयणी । कय खप्ऩय-खड्ग भुण्ड कर भारा, ऩाश गदा है बुजा विशारा ।। भद-बये नमन त्रिबुिन-जग भोहें, ऩाॉमन सुियन घुॉघरु सोहें । याभ-रुऩ तभुन ेजफ धाया, बाय बूलभ सफ असुय

सॉहाया ।। जर-सॊकट-हताण फुवि कर दाता, जम जम श्रीतायाम्फा भाता । िाहन भमूय कय िीणा फाजे, साभ-िेद सुन्दय ध्िनन

गाजे ।। रुऩ कालरका घोय बमॊकय, शाि जनों को रगता सुन्दय । भतिारी हो यण भें धाि,े दानि-दर तोदह देख घफयाि े।। िाहन लसॊह चढो अफ श्माभा, दे्रि-सॊहाय का फजे दभाभा । उग्र प्मास बैयि कर फुझाओ, करा-कोदट नय-भेध यचाओ ।। उग्र-ताया है नाभ नतहाया, धभू-केत ुफन प्रगटो ताया ।। सॊहाय कयो कु-सवृि को कारी, जम जम श्रीदगेु डभरु िारी ।। नहीॊ आॉच तयेे बि को आि,े भदान्ध खरों कर सत्ता लभट जाि े। जफ बी ऩाऩ फढा है जग भें, कारी-रुऩ हो भेटा ऺण भें ।। बक्ति-ऩूणण कहता भाॉ तझुस,े ऩाऩ साम्राज्म उठा बू-तर से ।‘धभण कर जम’ हो गूॉजे नाया, अखण्ड िगण धभण यहे तमु्हाया ।। सत्म कर शान्न्त ब्रह्मचमण व्रत, भात-ृफक्ति से यहे सदा यत ।सहस्त्र-बुजे भाॉ दगुण-नन्न्दनी, लशिा शाम्बिी दिु-िविणणी ।। त्रिऩुय-भालरनी हे विन्ध्म-िालसनी, बार कुअॊक विधध-रेख-नालशनी ।अि-िीय मोधगनी भॊगर गािें, शक् तमु्हाया चॉिय डुरािें ।।भणण-द्रीऩ भें याज बिानी, धन्म-धन्म भाॉ उभा भहयानी ।भुझ ेजगज्जमे ! आशा तयेी, अि-बुजे ! बाग्म फदर दे भेया ।। जो सुभये कारी-ताया, ऩाऩ-त्रिताऩ बस्भ हो साया ।चयण ऩातार शीश कैराशा, रुऩ वियाट तोड ेमभ-ऩाशा ।।अनन्त रुऩ मुग-

मुग भें धाये, बि-जनों के काज सॉिाये । त्रिबिुन-दानी श्रीनाद-नाददनी, यवि-शत-कोदट-प्रबा-प्रकालशनी ।। श्रीिोडशी-सभऩणणभ ्

ॐ नभो श्री िोडशी िण्भुख-जननन, सदा फसो भभ हृदम िय-िणणणनी । हूॉ बक्ति-ऩूणण तयेा ही अॊशी, िविणत हो मह सत्कुर सद्-

िॊशी ।।श्रीमन्ि-याज-स्भयण कर शक्ति, चयण-कभर कर भाॉ दे दो बक्ति ।चक् त्रिशूर खड्ग कभर धाये, घन गजणन कय याऺस

भाये ।।अरुण ियण ऩद सुन्दय रुऩा, ध्माित जो नय होम सो बूऩा ।यवि-शलश रन्ज्जत ननयख ऩद-शोबा, सेिे शाि हृदम अनत

रोबा ।।त्रि-बुिन-सुन्दयी िमस ककशोया, भोहे लशि ज्मों चन्द्र-चकोया ।स्तन अभतृ-यस-बण्डाया, ऩीित होम फुदि-फर-बाया ।।जेदह ऩय कृऩा तमु्हायी होई, स्तन-अभतृ ऩाि ेसोई ।करुणा-दृवि विरोके जोई, विश्व-विख्मात कवि सो होई ।। जो बगिती िोडशी को ध्माि,े अऺम आमुि-मौिन ऩाि े।ननद्रणन्द विभर गनत भनत दाता, जम श्री श्माभ े! त्रिबुिन बाग्म-

विधाता ।।ऩॊकज आबा सुगन्ध शयीया, श्माभ-गात विविध यॊग चीया ।भहीि-भदिणनी अलभत फर-शारी, जै-जै सती लसदिदा कारी ।।आसि-ऩान-भत्त अट-ऩट िाणी, शाि-भण्डर को सुख-खानी । जर-थर-नब ककरोर कयन्ती, जम बद्रकारी भाॉ भभ दखु-हन्िी ।।ननधणन सवृि-गत जो फारक तोये, उनके शीघ्र फसा दे डयेे ।सॊसाय-इच्छुक न्जनका भन, दे दो भाॉ उन्हें स्त्री-सुत-धन ।।हूॉ बक्ति-ऩूणण तयेे चयणों का बौंया, तभुको नैना देखत चहुॉ ओया ।बोग-भोह स ेबि मह है न्माया, भन चाहत ति

Page 2: dus dus mahavidya shabar dhyan mantra

चयण-अधाया ।।ब्रह्म-िाददनी ब्रह्म-ऻान दे, विभरा विभर भनत-विऻान दे ।सावििी सिण-शोक-दु् ख-हताण, भभ जीिन-धन त ू

जग-बताण ।।भभ भात-वऩता गुरु-फन्ध ुतभु ऩद्मा, त ूगौयी सत-्असत-्रुऩा भाॉ ।यत्न-द्रीऩ कर तभु भहायानी, लसवि ऐश्वमण दो भुझ ेबिानी ।।जहाॉ जफ सुभरुॉ प्रकट हो जाओ, उठा त्रिशूर सफ विघ्न लभटाओ ।।अटर छि है याज तमु्हाया, जो सुभये हो बि-लसन्ध ुके ऩाया ।। श्रीबुिनेश्वयी-सभऩणणभ ्

ॐ नभो श्रीबुिनेश्री-ऩयभेश्वयी, श्रीऩािणती भाॉ याजेश्वयी ।श्रीकाभदा कार-यात्रि एक-िीया, तजे-स्िरुवऩणी दधुणिण-फर-धीया ।। ऋण-नाश-किी श्री-शक्ति त ूहै, भाॉ-भाॉ सुत ऩुकाये त ूककधय है ?सिाणथण-दािी नाभ तयेा जग भें, भेयी फाय कहाॉ बूरी हो भग भें ।।ऩुि हो कुऩुि ऩय कु-भाता न होि,े श्रीगॊगा कर धाया ज्मों ऩाऩ धोि े।भैं हूॉ तयेा-आशा है लसऩण तयेी, बरा मा फुया हूॉ-ऩय भाॉ हो तभु भेयी ।।खड्ग-खप्ऩय-ऩाश-भारा हाथ भें, चरता है बैयि तयेे साथ भें ।न्जधय बी भाॉ नजय तनू ेकपयाई, िहाॉ ही फटुक जा कयता सहाई ।।शाकम्बयी श्रीऩूणाण धगरय-नन्न्दनी, ऩयभाथण-शीरे भाॉ ननत्मानन्न्दनी ।ऺीय-लसन्ध ुककनाये फजाती हो िेणु,

श्रीजमाम्फ ेत ूही भेयी काभधेन ु।।दारयद्र-भदहिासुय न ेहै घेया, उठा त्रिशूर दगेु ! क्रेश भेटो भेया ।त ूही हरय-हय-वियन्ञ्च रुऩ

शक्ति, जम श्रीश्माभा दे श्री-करनतण-बक्ति ।।याज-यानी तयेे लसिा कौन दाता, लभटा दे फुया जो लरखा हो विधाता । तयेे ही प्रताऩ स ेकुफेय धनेश्वय कहरामा, जमनत जै श्री बुिन ेभामा ।। श्रीधभूािती-सभऩणणभ ्

ॐ नभो श्रीधभूािती रीरा-भमी, कलर प्रत्मऺ तभु हो भाहेश्वयी ।जो चन्द्र-भण्डर भें ध्मान धयत,े ऩा कवित्ि भोह-लसन्ध ुसे तयत े।।िण्भास जो तयेा स्िरुऩ ध्माता, ऩुष्ऩ-धन्िी बी उसस ेहाय जाता ।ऩद्म-भाराएॉ तयेे चयणों भें धयता, विश्व-भण्डर का होता िह बत्ताण ।।त ूही अनेक रुऩों स ेबास,े जो जान जामे-भतृ्म ुबी नास े।लसि-विद्या त ूअभतृ-सिरुऩी, न्जसके हृदम भें िही है देि-रुऩी ।।भ्राभयी बदद्रका भॊगर-कयी, जमन्ती जमा तभु दु् ख-हयी।त्रिगुण से ऩये है धाभ तयेा, सदा ही कल्माण कयो भाॉ भेया ।।त ूही ऩूणाणधगयीश्वयी काभेश्वयी, करुणा-भमी हो श्रीयाज-याजेश्वयी ।बूनत-विबूनत-दािी श्री सती, बिों को देती हो श्री-करनतण-गती ।।ददव्म-दृवि लसिैश्वमण-दाता, बक्ति-ऩूणण करुॉ भैं प्रणाभ भाता ।तयेा ही गुण गाता यहता हूॉ शाि, दमा-भमी चाहता हूॉ तयेी बक्ति ।।त्रफगाडो मा फनाओ अधधकाय तभुको, न होगा जया बी भरार भुझको ।ककश्ती मे कय दी भाॉ तयेे हिारे, चाहे

डुफा दे मा चाहे फचा रे ।।तभन्नओॊ कर धऩू देता हूॉ तभुको, तयेे नाभ से है इश्क भुझको ।तयेी माद भें भाॉ ददर आॉसू फहाता, हठी भुसाकपय याह चरता जाता ।।ऩीताम्फया चाहे न्जतना सता, कबी-न-कबी ऩाऊॉ गा तयेा ऩता ।अबमॊकयी हे भणण-दद्रऩ-

यानी, तयेी सेिा भें यत है लसि-ऻानी ।।त्रिशुर खप्ऩय गरे भुण्ड-भारा, भुि-केशी त्रिनमन है विशारा ।श्रीखेचयी गन्धिण-रोक-दािी, अिाॊग मोग-ििा त ूश्री-विधािी ।।ऩीरा कभर-सा चयण तयेा, फना है जीिन का आधाय भेया ।तयेी रीरा श्री त ूही जान,े बि तो मथा-शक्ति गुण फखान े।।कुराचाय स ेमोगी कयत ेहैं ऩूजा, त ूही तो ब्रह्म न औय दजूा ।भाॉ-ऩुि सफस ेफडा है

नाता, ऩुि हो कु-ऩुि-न भाता कु-भाता ।।इतना ही फस-भैं जानता हूॉ, भानो न भानो-भैं भानता हूॉ। श्रीभहा-बैयिी-सभऩणणभ ्। ॐ नभो श्रीबैयिी बूतशे्वयी, आनन्द-दाता त्िॊ ऻान-ेभातशे्वयी ।श्री िीय-विद्या चतबुुणजा सोहे, ऩाि नाग शूर ऩाश शि ुभोहे ।। श्भशान ेननिालसनी श्माभा ददगम्फया, भाॉ बेयिी बि-ऩारन-तत्ऩया ।अन्स्थ-भुण्ड-भार त्रिनेि-कयारा, चयणों भें सोहत

गुञ्ज-भारा ।।भद-भत्त हो तभु णखरणखराती, आ-सेत ुऩथृ्िी काॉऩ जाती ।त्रफगडी को फनाता है नाभ तयेा, ति ऩदाम्फुज भें लरऩटा यहे भन भेया ।।सॊग्राभ भें जीत ऩाए, िही, न्जस ऩय भाॉ ! तयेी छामा यही ।जो हुआ जग भें तयेे सहाये, उसका मभ बी क्मा त्रफगाड े।।भतृ्मुञ्जमी त ूहृदम भें न्जसके, कार बी घफयाता है उसस े।भायकण्ड ेऩय कर तनू ेभेहय, हो गमा उसी ऺण भाॉ ! िो अभय ।।हनुभान न ेजफ स्तनुत गाई, ऩा आलशिाणद जा रॊका जराई ।भेघनाद न ेजफ तझुे ध्मामा, इन्द्र को जा फाॉध रामा श्रीत्रिऩुया-चक्-मऻ याभ ने यचामा, तयेी कृऩा स ेही यािण लभटामा ।श्री-तत्त्िागभ जो ननत्म ध्माता, कलर भें िही बोग-भोऺ

ऩाता ।।विन्द-ुशक्ति लशि ऩथृ्िी को, बैयि-रुऩ हो ऩाि े।ऩाऩ-ऩुण्म स ेननद्रणन्द होि,े ननत्मानन्द-ऩद जािे ।।चक्-मोग का वििम है, भैथनु ऩाि आनन्द ।जो सभझ ेलशि-रुऩ ि,े नहीॊ तो ऩाभय-िनृ्द ।।विद्या-साधन अगभ है, चरना तरिाय कर धाय । गुरु-कृऩा स ेसपरता, ियना टुकड ेहोम हजाय ।।ददगम्फया विऩयीत-यनत ध्माि,े मा हो अभय मा नयक भें जािे ।कुर-ऩथ

अभतृ-भम धाया, न्जसभें काऩालरक कयें विहाया ।।बैयिी-बूतनाथ जऩता जो नय, भन-िान्ञ्छत लसवि हो सत्िय ।

Page 3: dus dus mahavidya shabar dhyan mantra

श्रीफगराभुखी सभऩणणभ ्

ॐ नभो श्रीफगराभुखी-स्िरुऩा, शि-ुसॊहाय कयो देवि ! अनूऩा ।चयण तयेे कोभर कभर-जैस,े न्जसके हृदम भें िही देि जैस े

।।दु् ख-शुम्ब ने आ घेया है भुझको, लभटा क्रेश भैमा बि कहे तझुको ।ऩीताम्फया श्रीअऩयान्जता त ूकहाई, अबी बि सुभये

त ूकयती सहाई ।।गदा-चक्-ऩाश-शॊख हाथों सोहे, चतबुुणज रुऩ तयेा लशि को भोहे ।मोग-दीऺा-हीन को न होता ऻान तयेा । ऩूणाणलबविि बी न जान ऩाएॉ धाभ तयेा ।।न्जस ऩय तयेी कृऩा हो िही गुण-गान कयता ।दम्बी तन्ि-साधक क्रेलशत हो के

भयता ।।तयेे अनन्त रुऩों न ेकर बि-यऺा ।तयेे िीय-बद्र सुत भन ेभाया था दऺा ।।कलर भें भदहभा-भनम ! व्मथण है कभण साये । बक्ति-ऩूणण हो जै-जै जमाम्फा ऩुकाये ।।तभ-प्रफर मुग भें भ्रलभत है कभण-काण्डी ।शुष्क िेदान्त छाॉटे फक-ित ्त्रि-दण्डी ।। िाक्-भनो-काम-ननग्रह कोई न कयत े।गहृ-सदृश ऩरॉग ऩय पर-पूर चयत े।।न्जधय देखा उधय ही सबी ब्रह्म-ििा ।उऩासना त्रफन स्िरुऩ-ऻान कैसा ।।आहाय-ननद्रा-ऩटु ऩथृ्िी-जर-चायी ।कैस ेहो भाता सहस्त्राय-विहायी ?कहत ेकवऩर सहस्त्राय हो आए । ईश्वय-सभ शक्ति-प्रनतबा को ऩाए ।।नालब-चक् तक मोगी जाता, अि-लसवि-गुण प्रगट हो जाता ।अनाहत-प्रकाश प्रत्मऺ हो जाए, सहस्त्र-ििण आम ुिह ऩाए ।।भैं तो स्िाधीष्ठान तक आमा, अनत अद्भतु देखी तयेी भामा ।भान-सयोिय त्रिकोण ददव्म

सुन्दय, श्रीधाता-शायदा फठेै हैं कभर ऩय ।।बुजॊग स्िणण-भमी भहा-काभ-स्िरुऩा, नत-भस्तक हो ऩूजत सुय-बूऩा । गामिी प्रकृनत श्री-मन्ि भनोहय, श्रीशुभ्र-ज्मोत्स्न ेविश्व-भोहन-कय ।।याज-याजेश्वयी अलभत फर-शारी, सिाणथण-ऩूणण-कयी श्री-हॊस-कारी ।श्री ददव्म लसि-धाभ गुरु-रुऩ धयी, जै श्रीफगरा शाि-भनोयथ ऩूणण कयी ।।न्जह्वा ऩकडकय गदा उठाए, ऩाश डार

शि ुको लभटाए ।उन्भत्त नेि फक-िाहन सुहाए, बि-यऺा हेत ुशीघ्र ही धाए ।।लसि-विद्या श्री स्तम्बनी भॊगरा, कयो िाण भभ

बीभा चञ्चरा ।त्र्मऺयी भन्ि-भूनतण भाॉ भाहेश्वयी, कलर-प्रत्मऺ परदा त ूऩयभेश्वयी ।।बुक्ति-भुक्तिदा बि-शयण्मे, नभालभ

बजालभ श्रीधगरय-याज-कन्मे !श्रीचक्-याज-शक्ति तभु कहाती, विधध का लरखा कु-अऺय लभटाती ।।लसि-बक्ति-ऩूणण को है

विश्वास तयेा, ब्रह्मास्त्र-भन्ि-रुऩ है आधाय भेया ।रोक-राज-प्रऩञ्च-कभण त्मागा, श्रीफगरा-चयण-कभर भन रागा ।। श्रीत्रिऩुयाम्फा सभऩणणभ ्। ॐ नभो धश्रत्रिऩुय-सुन्दयी-चयणॊ, ब्रह्मादद-सेवित दारयद्रम-हयणभ ्।फुि-देि-िन्न्दत दमा-सागयी, िज्र-मान-िगण-ऩूज्मा श्रीकाभेश्वयी ।।अभतृ-ऩाि-ऩद्म-इऺ-धनुफाणण-हस्ता, ताम्फूर-ऩूरयत-भुखी श्रीस्िानन्द-भस्ता ।ततृीमाियण भें फारा कहाई,

शयण भैं तयेी-कयी भाॉ सहाई ।।त्रिऩथगा त्रििणाणयाध्म शक्ति, श्री-सुन्दयी दे ऩद-कभर-बक्ति ।क्भ-दीऺाचाय-िणणणत श्रीबिानी, हे कु-यॊग नेिी ! त ूसिण-सुख-दानी ।।ऩद्मािती सिाणकविणणी कुरुकुल्रा, देखता हूॉ त ूही है अदहल्मा ।काभेश्वय-वप्रमा आद्या श्री-प्रसूता, ऩारन कयती है त ूविश्व-बूता ।।श्रीशताऺयी ददव्म-कादद-हादद-भूनतण, यहस्माथण-ऩूणे ! तभु हो सिण-ऩूनत ण ।अलबनि गुद्ऱ

स-ुऩून्जत भाहेश्वयी, लसि नागाजुणन-िन्दम िागेश्वयी ।।धाता हरय रुद्र शासन-कयी, जमनत जम श्रीअबमॊकयी ।ऩञ्च-प्रेतासन-

आरुढा त ूअम्फा, त्रफन्द-ुभालरनी जम-जम लसिाम्फा ।।कऩूणय-गौय-िणाण श्रीकाककनी, श्रीचके्श्वयी भदनातयुा राककनी ।श्रीरलरता रक्ष्भी काभ-फीज-रुऩा, कये प्रदक्षऺणा ऋवि-देि-मऺ-बूऩा ।।याज-याजेश्वरय त ूही अनन्ऩूणाण, श्रीऩीठाधीश्वयी सिाणबीि-तणूाण ।अफुणदाचर भें अन्म्फका कहाई, अि-बुजा लसॊह-िाहना कहाई ।।नीर-िस्त्र-धायी स-ुकुभायी, जमनत जमाऻा-चक्-विहायी ।अनॊग-भेखरा है तयेा नाभ, श्रीचक्-याज प्रनतत्रफम्फ-भम धाभ ।।त ूधया धमैण धभण कभण स्भनृत, बिों को देती बोग

औ सद्-गनत ।देखे चयण तयेे ऩयभेश्वयी, हो गमा तबी भुि श्रीभाहेश्वयी ।।ऩञ्चानन-वप्रमा दगुणभाथण-दािी, दगुणतोिारयणी तभु

हो विधािी ।िारुणी-वप्रमा भद-भत्त-हालसनी, जम हेभ-कूट-लशखये विरालसनी ।।चन्द्र-त्रफम्फ ेप्रबा त ूचतिुणग-परदा, एक-िीया अऩणाण श्रीकाभदा ।भहा-विद्या स्िम्ब ूश्रीसुधा, त्रिबुिन-िशॊकयी हे यत्न-सुविधा ।।भामा-नतृ्म-प्रिीणा गॊगे-नभणदे, त ूही है

सयस्िती विप्र-ियदे ।काव्म-छन्द-गनत ऋवि सन्भनत, शाि-सेवित श्रीिाभा त्रिभूनत ण ।।यत्न-हाय-बूवित ननत्म मौिन-जमा, बि को सदा दो अबम विजमा ।भधभुती-करा श्रीऩािणती सती, यहूॉ तयेे प्रताऩ स ेभैं सत्म-व्रती ।।ननभणरा याधधका त ूही कालरका, है तयेा ही रुऩ तो हय-फालरका ।कबी न विचलरत हो भनत भेयी, यहे सदा भुझ ऩय कृऩा-दृवि तयेी ।।

श्रीभहा-भातॊगी सभऩणणभ ्

नभो देिी ! भातॊगी-ऩादायविन्दा, यऺ-मऺ-सेवित भहा किीन्द्रा ।चतबुुणजा-चण्ड-क्रेश-ऩाऩ-हन्िी, बि-जनों कर सदा जम-

कयन्न्त ।।शुक-क्रडा-भग्न न्स्भत-भुखी, शीघ्र तयेा बि होता सुखी ।चतवुिॊशनत-दर ऩय कये ननिासा, धये ध्मान होत ेनछन्न

सबी ऩाशा ।।नाद-गबाण नायामण-ऩून्जता शुबा, भॊगरा बद्रा बि-कल्ऩ-सुधा ।याभेश्वयी रुद्र-वप्रमा श्रीयाधगनी, स्िणण-द्युनत-

कुन्ञ्जका विन्ध्म-िालसनी ।।हेभ-िज्र-भारा-धारयणी श्रीयनत, तयेे प्रताऩ स ेहोऊॉ ऩथृ्िी-ऩनत ।सॊग्राभ-ऺेि भें त ूयभा कयती,

Page 4: dus dus mahavidya shabar dhyan mantra

प्रगट हो बिों के सॊकट हयती ।।शादूणर-िाहना गरे शॊख-भारा, प्रज्िलरत-नेिा ऩीती हो हारा ।गन्धिण-फाराएॉ कयती गुण-

गान, तयेे यहे सहामक सिणदा भाॉ भेये ।।सूमण-चन्द्र-िक्ति-रुऩ नेि तयेे, यहे सहामक सिणदा भाॉ भेये ।जफ बी सुभरुॉ हयो कि भेया, श्री जमाम्फ ेभुझ ेतो आधाय तयेा ।।हे नाग-रोक-ऩूज्मा प्राण-दाता, बन्क्म-ऩूिणक कयता नभस्काय भाता । श्रीभहा-रक्ष्भी कभरा सभऩणणभ ्

ॐ विष्णु-वप्रमा ददग्दरस्था नभो, विश्वाधाय-जननन कभराम ैनभो ।फीजाऺयों कर तमु्हीॊ सवृि कयती, चयण-शयण बि के

क्रेश हयती ।।लसन्ध-ुकन्मा भामा-फीज-कामा, भोह-ऩाश से जग को भ्रभामा ।मोगी बी हुए नहैं हैयान तभुस,े कयाओ

अन्तफणदहमाणग ननत्म भुझस े।।न कयता हूॉ जाऩ-ऩूजा भैं तयेी, इतना ही जानता हूॉ भाॉ त ूभेयी ।ऩद्भ-चक्-शॊख-भध-ुऩाि धाये,

विकट िीय मोिा तनू ेसॉहाये ।।श्रीअऩयान्जता िैष्णिी नाभ तयेा, भाॉ एकाऺयी त ूआधाय भेया ।त ूही गुरु-गोविन्द करुणा-भमी, जै जै श्रीलशिानन्दनाथ-रीरा-भमी ।।ऐयाित है शुण्डालबिेक कयत,े दे प्रत्मऺ दयशन हे विश्व-बत े।मोग-बोगदा यभा विष्णु-

रुऩा, भेयी काभधेन ुकाभ-स्िरुऩा ।।लसिैशिमण-दािी हे शिे-शामी, कये दास त्रफनती कयो भाॉ सहाई ।ऩद्मा चञ्चरा श्रीरक्ष्भी कहाई, ऩीताम्फया त ूगरुड-िाहना सुहाई ।।त्रिरोक-भोहन-कयी कालभनी, जमनत जम श्रीहरय-बालभनी ।रुन्क्भणी याऻी अथण-क्रेश-िाता, जम श्रीधन-दािी विश्व-भाता ।।भहा-रक्ष्भी रक्ष्भणा श्माभराॊगी, ऩद्म-गन्धा श्री श्रीकोभराॊगी ।कालरन्दी कभरे

कभण-दोि-हन्िी, सुदशणनीमा ग्रीिा भें भारा िैजन्ती ।। श्री चण्डी सभऩणणभ ्

गदा-खड्ग-खेट-खप्ऩय-नाग-चक्-शूर-शॊख-ऩाि हाथों भें सोहे ।जम भदहिासुय-भददणनन चन्ण्डके, अिादश-बुजे विश्वम्बय-

भन भोहे ।।शाकम्बयी दगुाण दगुणभा कहराती, बि-यऺा दहत प्रगट त ूहो जाती ।अभतृ-दानमनी श्रीश्माभा सहोदयी, विद्युत्प्रब े

त ूसिाणथण-ऩूणण-कयी ।।श्रीइन्द्राऺी भणण-द्रीऩे याज-यानी, जमनत जम त्रिबुिन-विख्मात दानी ।सिण-भुद्रा-भमी खेचयी बूचयी, कुरजा कौरनी भाधिी चाचयी ।।अगोचयी हो तभु कुर-कभलरनी, सहस्त्राय-शक्ति अिण-नायीश्वयी ।इच्छा-कक्मा-ऻान-भूनतण भातशे्वयी, श्रीविद्या तत्त्ि-भाता ऩयभेश्वयी ।।बिानी बग-भालरनी हेभ-गबाण ऩया, सदसत अदै्रत-जननन ऋतम्बया ।अहॊकाय-

प्रकृनत-स्ि-स्िरुऩ-मजना, ब्रह्म-जननन िेद-भाता गगन-िसना ।।चतषु्िवि-तन्िागभ-माभरा, इनस ेबी ऩये हो तभु धचत-्

करा ।भातकृा िक्तियन्तमाणग-भामा, लसि-सनकादद न ेबी न बेद ऩामा ।।चक्-िेध स ेबी ऩये है धाभ तयेा, नम्र-ददव्म-बािी हृदम भें िास तयेा ।भैं दीन बि तमु्हें कैस ेभनाऊॉ , दे चयण-बक्ति सदा गुण गाऊॉ ।।श्रीविन्ध्मेश्वयी अजा िय-िणणणनी, तजैस-

तत्त्ि-शमाभ ेत ूअनत गविणणी ।आद्या अन्म्फका त ूहै श्रीसुन्दयी, चन्द्र-बधगनी हेभ-िदना ककन्नयी ।।त ूही त ूहै भाॉ व्माद्ऱ जग

भें, सिणि तभुको ही देखता हूॉ भग भें ।ऩाऩ-ऩुण्म से ऩये भैं हूॉ तयेा, श्रीजमाम्फ ेभाॊ ! त ूभेयी भैं तयेा ।।भहा-कार के िचन स े

बूतर ऩय आमा, त ुशयीयी भैं हूॉ तयेी छामा ।तयेे ही फर स ेसाफयी छन्द कहता, सिण-शक्ति-दामी शि-ुिॊश-हन्ता ।।तीन भास

ध्मािे दशणन ऩाि,े िाद-सम्िाद भें सुय-गुरु को हयाि े।साफयी-शक्ति-ऩाठ-िशी सुयेशा, सिण-लसवि ऩाि ेसाऺी हो भहेशा ।। त्रििणण के ही लरए साफयी मह, म्रेच्छ जो ऩढे तो ननिणश हो िह ।साफयी अधीन है िीय हनुभान, उठो-उठो लसमा-याभ कर आन

अञ्जनन-सुत सुग्रीि के सॊगी, कयो काभ भेया िीय फजयॊगी ।तीन यात्रि भें लसि कय काभा, शऩथ तोहे यघुऩनत कर फर-धाभा अि-बैयि यऺण कये तन का, िीयबद्र विकास कये भन का ।नलृसॊह िीय ! भभ नेिों भें यहना, जहाॉ ऩुकारुॉ सम्भोदहत कयना । लसि साफयी है श्माभा का फाण, रुद्र-ऩाठ हये शि ुका प्राण ।ननशा साफयी श्भशान भें गाि,े नऺि-ऩाठ जाग्रत हो जािे ।।ििण एक जो ऩढे तट गॊगा, अिण-यात्रि भें होकय असॊगा ।ताके सॊग यहें बैयि-नाथा, याजा-प्रजा झुकािें भाथा ।।फाया ििण यटे साफयी हो ऻानी, सदा सॊग भें यहें बिानी ।हो इच्छा-जीिी मो-गनत-ऻाना, ननष्प्रमास प्राद्ऱ हों सकर विऻाना ।।कहे लसवि-याज बि

सुनो भाॉ कारी ! शाफयी-शक्ति तमु्हीॊ हो कयारी ।शाफयी-ऩाठ ननन्दा जो कये, होम ननिणश तन करड ेऩड े।।शाि-यक्षऺणी भभ

शि-ुबक्षऺणी, श्रीयि-कालर ! ति बम-दु् ख-हरयणी ।लसवि-बि मह चयणों भें तयेे, ‘कल्माण कयो भभ’ फाय-फाय टेये ।।