education and indian heritage -...

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इकाई सइकाई 1 ाचीन कालन वैद Ancient Period ] इकाई 2 ाचीन कालन बौ इकाई 3 मयकालन ि Education System इकाई 4 सन 1833 का इकाई 5 मैकाले का ववरण Bentick’s Resolut इकाई 6 का घोषणा - इकाई 7 भारतीय शा आय 1882 इकाई 8 भारतीय वववध Commission 1902 इकाई 9 कलका ववव University Commissio इकाई 10 वधा शा योजना Education or Bas इकाई 11 वववधालय commission / Dr. इकाई 12 मायमक शा Education comm इकाई 13 राय शा आय Commission (196 इकाई 14 राय ान आयो इकाई 15 राय शा नीत Education and Indian शा और भारतीय वरासत (BAE इकाई का नाम दक शा णाल [Vedic Education System of शा णाल Anciant Period Budhistic Education S लम शा णाल Medieval Period Muslim m आा Anglicst Orientalist Controversy 183 और बैटक ताव 1835 Mecavlay’s Men tion of 1835. -1854 Wood’s Despatch 1854 योग) हटर कमीशन (India Education Commis धालय आयोग 1902-1904 Indian Universi 2-1904 यालय आयोग (सैडलर कमीशन( 1917-19 Ca on (Sadler Commission) 1917-19 अथवा बेसक शा 1937 Wardha Scheme sic Education आयोग 1948-49 University Education . Radhakrishahan Commisson 1948-49 आयोग (दालयर कमीशन( 1952-53 Secon mission 1952-53 योग 1964-66 (कोठार कमीशन( National Educa 64-66) National Knowledge Commission 1986 National Education Policy 1986 n Heritage ED 301) ट सf 1-21 System 22-44 45-64 33 65-77 nutes , 78-90 91-107 ssion 108-123 ity 124-140 alcutta 141-152 e of 153-169 170-189 ndary 190-208 ation 209-228 229-242 243-260

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  • इकाई स०

    इकाई 1 �ाचीन कालन वै�दकAncient Period ]

    इकाई 2 �ाचीन कालन बौ�ध

    इकाई 3 म�यकालन मुि�लमEducation System

    इकाई 4 सन ्1833 का आ�ा

    इकाई 5 मैकाले का ववरणBentick’s Resolution of 1835.

    इकाई 6 वुड का घोषणा प(-

    इकाई 7 भारतीय +श-ा आयोग1882

    इकाई 8 भारतीय व/व वधालयCommission 1902

    इकाई 9 कलक0ा व/व व�यालयUniversity Commission (Sadler Commission) 1917

    इकाई 10 वधा1 +श-ा योजनाEducation or Basic Education

    इकाई 11 व/व वधालय +श-ाcommission / Dr. Radhakrishahan Commisson 1948

    इकाई 12 मा�य+मक +श-ा आयोगEducation commission 1952

    इकाई 13 रा34य +श-ा आयोगCommission (1964

    इकाई 14 रा34य �ान आयोग

    इकाई 15 रा34य +श-ा नी5त

    Education and Indian Heritage

    �श�ा और भारतीय �वरासत

    (BAED 301)

    इकाई का नाम

    वै�दक +श-ा �णाल [Vedic Education System of

    बौ�ध +श-ा �णाल Anciant Period Budhistic Education System

    मुि�लम +श-ा �णाल Medieval Period Muslim Education System

    आ�ा प( Anglicst Orientalist Controversy 1833

    ववरण प( और बै�टक ��ताव 1835 Mecavlay’s Menutes , Bentick’s Resolution of 1835.

    -1854 Wood’s Despatch 1854

    आयोग ) ह9टर कमीशन (India Education Commission

    व/व वधालय आयोग 1902-1904 Indian University Commission 1902-1904

    व/व व�यालय आयोग (सैडलर कमीशन( 1917-19 Calcutta University Commission (Sadler Commission) 1917-19

    योजना अथवा बे+सक +श-ा – 1937 Wardha Scheme of Education or Basic Education

    +श-ा आयोग 1948-49 University Education commission / Dr. Radhakrishahan Commisson 1948-49

    आयोग (मुदा+लयर कमीशन( 1952-53 Secondary Education commission 1952-53

    आयोग 1964-66 (कोठार कमीशन( National Education Commission (1964-66)

    आयोग National Knowledge Commission

    नी5त 1986 National Education Policy 1986

    Education and Indian Heritage

    (BAED 301)

    ��ट स०

    [Vedic Education System of 1-21

    Anciant Period Budhistic Education System 22-44

    45-64

    1833 65-77

    Mecavlay’s Menutes , 78-90

    91-107

    India Education Commission 108-123

    1904 Indian University 124-140

    Calcutta 141-152

    1937 Wardha Scheme of 153-169

    170-189

    53 Secondary 190-208

    National Education 209-228

    229-242

    243-260

  • इकाई 16 संशो�धत रा��य �श�ा नी�त 1986 (1992) Revised National Education

    Policy, 1986 (1992)

    261-275

  • शिक्षा और भारतीय शिरासत BAED 301

    ईत्तराखडं मकु्त विश्वविद्यालय 1

    इकाई 1 प्राचीन कालीन वैददक दिक्षा प्रणाली [Vedic Education System of Ancient Period ]

    1.1 प्रस्तािना Introduction

    1.2 ईद्दशे्य Objectives

    1.3 विक्षा की संरचना एिं संगठन Structure and Organization of Education

    1.3.1 विक्षा का ऄथथ Meaning of Education

    1.3.2 व्यािसावयक विक्षा Vocational Education

    1.3.3 िैवदक विक्षा प्रणाली के मखु्य ऄवभलक्षण Main Characteristics of Vedic

    Education System

    1.3.4 विक्षा का प्रिासन एिं वित्त Adminisation and finance of Education

    1.4 विक्षा के ईद्दशे्य एिं अदिथ Aims and Ideal of Education

    1.4.1 विक्षा की पाठ्यचयाथ Curriculam of Education

    1.4.2 विक्षण विवधयााँ Teaching Methods

    1.4.2 विक्षण विवधयााँ Teaching Methods

    1.4.4 विक्षक Teacher

    1.5 गरुू-विष्य सम्बन्ध Relation of Teacher And Students

    1.5.1 गरुूओ ंके विष्यों के प्रवत कत्तथव्य-

    1.5.2 विष्यों के गरुूओ ंके प्रवत कत्तथव्य-

    1.5.3 परीक्षाएाँ एिं ईपावधयााँ- Examination and Degree

    1.5.4 समाितथन समारोह- Convocation Programme

    1.5.5 स्त्री विक्षा-Women Education

    1.5.6 िैवदक कालीन मखु्य विक्षा केन्र

    1.5.7 िैवदक विक्षा प्रणाली का मलूयांकन ऄथिा गणु- दोष वििेचन Merits and

    Demerits of Vedic Education

    1.6 िारांस Summary

    1.7 िब्दािली glossary

  • शिक्षा और भारतीय शिरासत BAED 301

    ईत्तराखडं मकु्त विश्वविद्यालय 2

    1.8 ऄभ्यास प्रश्नों के ईत्तर Answer of Practice Questions

    1.9 संदभथ Reference

    1.10 वनबन्धात्मक प्रश्न Essay Type Questions

    1.1 प्रस्तावना Introduction िवैदक काल :- भारतीय िदे (ऊग्िदे, यजिुदे, ऄथिथिदे और सामिदे ) संसार के प्राचीनतम

    ग्रंथ हैं। सामा न्यतः िदेों को धावमथक ग्रंथों के रूप में दखेा- समझा जाता है , िदेों की रचना कब और

    वकन विद्वानों ने की , आस विषय में भी विद्वान एक मत नहीं हैं। जमथन विद्वान मकै्समलूर सबसे पहले

    व्यवत्त हैं वजन्होंने भारत अकर आस में के्षत्र में िोध कायथ िरुू वकया । ईनके ऄनसुा र, िदेों में सबसे

    प्राचीन ऊग्िदे ह ैऔर आसकी रचना 1200 इ0 प0ू में हुइ थी। लोकमान्य वतलक ने ऊगिदे में िवणथत

    नक्षत्र वस्थवत के अधार पर आसका रचना काल 4000 इ0 से 2500 इ0 प0ू वसद्ध वकया ह।ै

    आवतहासकार हड़प्पा और मोहनजोदड़ों की खदुाइ में प्राप्त ऄििषेों के अधार पर हमारी सभ्यता एि ं

    संस्कृवत को केिल इ 0 प0ू 3500 िषथ परुानी मानते हैं। हमारे दिे भारत में इ 0 प0ू 7िीं िताब्दी में

    लोक भाषा प्राकृत और पाली थी। हमारे दिे में संस्कृत भाषा का प्रयोग होता था िदेों की संस्कृत

    भाषा आतनी समदृ्ध एि ंपररमावजथत ह ैओर ईनकी विषय- सामग्री आतनी विविध , विस्ततृ एि ंईच्च

    कोवि की ह ैवक ईस समय आनके विकास में काफी समय ऄिश्य लगा होगा।

    एफ0 डब्लू0 थॉमस के िब्दों में - ऐसा कोइ दिे नहीं ह ैजहााँ ज्ञान के प्रवत प्रेम आतने प्राचीन

    समय में प्रारम्भ हुअ हो वजतना भारत में या वजसने आतना स्थायी ओर िवक्तिाली प्रभाि ईत्पन्न

    वकया हो वजतना भारत *(There has been no country except India where the love of learning

    had so early an origin or has exercised so lasting and powerful influence.- F.W. Thomas) में

    । और यह बात भी सभी स्िीकार करते हैं वक भारत में 2500 इ0 प0ू से 500 इ0 प0ू तक िदेों का

    िचथस्ि रहा। आवतहासकार आस काल को िवैदक काल कहते हैं। िवैदक काल में हमारे दिे में एक

    समदृ्ध विक्षा प्रणाली का विकास हुअ।

    1.2 उद्देश्म Objectives i. िवैदक विक्षा प्रणाली के मखु्य ऄवभलक्षण को जान सकेग े|

    ii. िवैदक कालीन विक्षा के ईद्दशे्यों , पाठ्यचयाथ, विक्षण विवधया, ऄनिुासन अवद को समझ

    सकेग े|

    iii. गरुु विष्य समबन्ध को समझ कर अज समाज के सामने अदिथ प्रस्ततु कर सकेग े|

    iv. िवैदक कालीन विक्षा के मखु्य विक्षा केन्रों के बारे में जान सकेग े|

  • शिक्षा और भारतीय शिरासत BAED 301

    ईत्तराखडं मकु्त विश्वविद्यालय 3

    1.3 शिऺा की सयंचना एवं सगंठन Structure and Organization of Education

    िवैदक कालीन की विक्षा की सरचना एि संगठन वनम्नवलवखत है|

    1.3.1 शिक्षा का अथथ Meaning of Education

    सामान्यतः बच्चों को पररिारों में विद्यारम्भ संस्कार और गरुूकुलों में ईपनयन संस्कार के बाद

    विवभन्न विषयों में वदए जाने िाले ज्ञान एि ंकला- कौिल में प्रविक्षण को विक्षा कहा जाता था। यह

    विक्षा का संकुवचत ऄथथ था। परन्त ुजब विष्य गरुूकुल विक्षा परूी कर लेते थे तो समाितथन समारोह

    होता था और आस समारोह में गरुू विष्यों को ईपदिे यह भी दतेे थे वक स्िाध्याय में कभी प्रमाद

    (अलस्य) मत करना। आसका ऄथथ ह ैवक ईस काल में जीिन भर स्िाध्याय द्वारा ज्ञानाजथन वकया

    जाता था। यह विक्षा का व्यापक ऄथथ था।

    िवैदक काल में विक्षा वनम्न प्रकार थी |

    I. प्रारवम्भक विक्षा- िवैदक काल में प्रारवम्भक विक्षा की व्यिस्था पररिारों में होती थी। लगभग 5

    िषथ की अय ुपर वकसी िभु वदन बच्चे का विद्यारम्भ संस्कार वकया जाता था। यह संस्कार पररिार

    के कुल परुोवहत द्वारा कराया जाता था । बच्चे को स्नान कराकर नए िस्त्र पहनाए जाते थे ओर कुल

    परुोवहत के सम्मखु प्रस्ततु वकया जाता था। कुल परुोवहत नया िस्त्र वबछाता था और ईस पर चािल

    वबछाता था। आसके बाद िदे मन्त्रों द्वारा दिेताओ ंकी अराधना की जाती थी ओर बच्चे की ईंगली

    पकड़कर ईसके द्वारा वबछे हुए चािलों में िणथमाला के ऄक्षर बनिाए जाते थे। कुल परुोवहत को

    भोजन कराकर दवक्षणा दी जाती थी। कुल परुोवहत बच्चे को अिीिाथद दतेा था और आसके बाद

    बच्चे की विक्षा वनयवमत रूप से प्रारम्भ होती थी।

    II. ईच्च विक्षा- िवैदक काल में ईच्च विक्षा की व्यिस्था गरुूकुलों में होती थी। 8 से 12 िषथ की

    अय ुपर बच्चों का गरुूकुलों में प्रििे होता था , ब्राह्मण बच्चों का 8 िषथ की अय ुपर , क्षवत्रय

    बच्चों का 10 िषथ की अय ुपर और िशै्य बच्चों का 12 िषथ की अय ुपर । गरुूकुलों में प्रििे के

    समय बच्चों का ईपनयन संस्कार होता था। आस संस्कार के बाद ईनकी ईच्च विक्षा प्रारम्भ होती थी।

    1.3.2 व्यािसाशयक शिक्षा -

    िवैदक काल में अज की व्यािसावयक विक्षा को कमथ विक्षा कहा जाता था। प्रारवम्भक िवैदक

    काल में यह विक्षा छात्रों की योग्यता और क्षमता के अधार पर दी जाती थी और ईत्तर िवैदक काल

    में छात्रों के िणथ के अधार पर दी जाती थी। अधवुनक यगु में व्यािसावयक विक्षा सम्बन्धी ईत्तर

    िवैदक कालीन विचार मान्य नहीं ह।ै अज संसार के ऄवधकतर दिेों में लोकतन्त्र िासन प्रणाली ह।ै

  • शिक्षा और भारतीय शिरासत BAED 301

    ईत्तराखडं मकु्त विश्वविद्यालय 4

    लोकतन्त्र मनषु्य- मनषु्य में वकसी भी प्रकार का भदे नहीं करता। अज सभी मनषु्यों को ऄपनी

    योग्यता एि ंक्षमतानसुार वकसी भी प्रकार की व्यािसावयक विक्षा प्राप्त करने का ऄवधकार प्राप्त ह ै

    और ऐसा ही प्रारवम्भक िवैदक काल में था। कहना न होगा वक यह दने भी िवैदक का लीन विक्षा की

    ही ह।ै और आस बीच व्यािसावयक विक्षा के के्षत्र और स्िरूप में जो ऄन्तर हुअ ह ैिह तो विकास

    प्रवकया का पररणाम ह।ै

    1.3.3 िैशदक शिक्षा प्रणाली के मुख्य अशभलक्षण Main Characteristics of Vedic

    Education System

    िवैदक काल में वजस विक्षा प्रणाली का विकास हुअ ईसे िवैदक विक्षा प्रणाली कहते ह।ै

    परेू िवैदक काल में विक्षा का प्रिासन एि ंसंगठन तो सामान्यतः एक सा रहा परन्त ुसमय की

    पररवस्थवतयों और ज्ञान एि ंकला- कौिल के क्षेत्र में विकास के साथ- साथ ईसकी पाठ्यचयाथ और

    विक्षण विवधयों में विकास होता रहा। यहााँ िवैदक विक्षा प्रणाली के मखु्य ऄवभलक्षणों (Main

    Features) का क्रमबध िणथन प्रस्ततु ह।ै

    1.3.4 शिक्षा का प्रिासन एिं शित्त Adminisation and finance of Education

    िवैदक विक्षा प्रणाली के प्रिासन एि ंवित्त के सम्बन्ध में तीन तथ्य ईललेखनीय हैं-

    i. राज्य के वनयन्त्रण से मकु्त - िवैदक काल में विक्षा की व्यिस्था करना राज्य का

    ईत्तरदावयत्ि नहीं था पररणामतः ईस पर राज्य का कोइ वनयन्त्रण भी नहीं था। ईस पर विक्षा

    पणूथरूप से गरुूओ ंके व्यवक्तगत वनयन्त्रण में थी।

    ii. वनःिलुक विक्षा- िवैदक काल में विक्षा पणूथरूप से वनिलुक रही। विष्यों के अिास एि ं

    भोजन की व्यिस्था भी गरुू स्ियं करते थे। लेवकन विक्षा पणूथ होने पर विष्य गरुूओ ंको

    ऄपनी सामथ्याथनसुार गरुू दवक्षणा ऄिश्य दतेे थे।

    iii. अय के स्रोत-दान, वभक्षा और गरुू दवक्षणा- िवैदक काल में गरुूकुलों को अज की भााँवत

    राज्य से कोइ वनवित ऄनदुान प्राप्त नहीं होता था। ईस समय राजा , महाराजा और समाज के

    धनीिगथ के लोग आन गरुूकुलों को स्िचे्छा से भवूम , पि,ु ऄन्न, िस्त्र, पात्र और मरुा दान

    स्िरूप भेंि करते थे। गरुूकुलों की दवैनक अिश्यकताओ ंकी पवूतथ के वलए वि ष्य समाज से

    वनत्य वभक्षा मााँग कर लाते थे। आन गरुूकुलों की अय का तीसरा स्रोत था- गरुू दवक्षणा।

  • शिक्षा और भारतीय शिरासत BAED 301

    ईत्तराखडं मकु्त विश्वविद्यालय 5

    1.4शिऺा के उद्देश्म एवं आदिश Aims and Ideal of Education

    डॉ0 ऄलतेकर के िब्दो में इश्वर भवक्त तथा धावमथकता की भािना ,चररत्र वनमाणथ ,व्यवत्तत्ि का

    विकास, नागररक तथा सामावजक कतथव्यों का पालन , सामावजक कुिलता की ईन्नवत और राष्रीय

    संस्कृवत का संरक्षण एि ंप्रसार प्राचीन भारत में विक्षा के मखु्य ईद्दशे्य एि ंअदथि थे। ईस काल में

    विक्षा को ज्ञान के पयाथय के रूप में वलया जाता था। आससे स्पष्ट ह ैवक ईस काल में विक्षा का

    सिथप्रमखु ईद्दशे्य ज्ञान का विकास था। समाज एि ंराष्र के प्रवत कत्तथव्य पालन और राष्रीय संस्कृवत

    के संरक्षण एि ंविकास पर भी ईस काल में वििषे बल वदया जाता था। मोक्ष की प्रावप्त तो ईस काल

    में मनषु्य जीिन का ऄवन्तम ईद्दशे्य माना जाता था और आसकी प्रावप्त के वलए विक्षा द्वारा ईसका

    अध्यावत्मक विकास वकया जाता था।

    आन सब ईद्दशे्यों को हम अज की भाषा में वनम्नवलवखत रूप में क्रमबद्ध कर सकते हैं।

    i. ज्ञान का विकास- यह िवैदक कालीन विक्षा का सिथप्रमखु ईद्दशे्य था। तब ज्ञान को मनषु्य

    का तीसरा नेत्र माना जाता था। (ज्ञानं मनजुस्य ततृीयं नेतं्र) और यह माना जाता था वक ये दो

    नेत्र तो हमें केिल दृश्य जगत का ज्ञान भर कराते हैं परन्त ुयह तीसरा नेत्र हमें दृश्य और

    सकू्ष्म दोनों जगत का ज्ञान कराता ह ैयह हमें सत्य- ऄसत्य का भदे स्पष्ट करता है , करणीय

    तथा ऄकरणीय कमों का भदे स्पष्ट करता ह ैऔर भौवतक एि ंअध्यावत्मक ईपलवब्धयों को

    प्राप्त करने का मागथ स्पष्ट करता ह।ै

    ii. स्िास्थ्य संरक्षण एि ंसंिद्धथन - ऊवष अश्रमों और गरुूकुलों में विष्यों के िारीररक और

    मानवसक स्िास्थ्य के संरक्षण और संिद्धथन पर वििषे बल वदया जाता था और ईन्हें ईवचत

    अहार-विहार और अचार- विचार की विक्षा दी जाती थी। िारीररक स्िास्थ्य के संरक्षण

    एि ंसंिद्धथन के वलए विष्यों को प्रातः ब्रह्ममहूुतथ में ईठना होता था , दााँतनू एि ंस्नान करना

    होता था , व्यायाम करना होता था , सादा भोजन करना होता था , वनयवमत वदनचयाथ का

    पालन करना होता था ओर व्यसनों से दरू रहना होता था। विष्यों के मानवसक स्िास्थ्य के

    संरक्षण एि ंसंिद्धथन के वलए ईन्हें ईवचत अचार-विचार की ओर ईन्मखु वकया जाता था|

    iii. जीविकोपाजथन एि ंकला-कौिल की विक्षा- प्रारवम्भक िवैदक काल में विष्यों को ईनकी

    योग्यतानसुार कृवष, पिपुालन एि ंऄन्य कला-कौिलों की विक्षा दी जाती थी। ईस समय

    हमारा दिे धन-धान्य से सम्पन्न था , लोग बहुत ऄच्छा जीिन जीते थे। परन्त ुईत्तर िवैदक

    काल में ब्राहमणों ने स्िाथथ के ििीभतू होकर कमथ अधाररत िणथ व्यिस्था को जन्म

  • शिक्षा और भारतीय शिरासत BAED 301

    ईत्तराखडं मकु्त विश्वविद्यालय 6

    अधाररत िणथ व्यिस्था में बदल वदया वजसके पररणामस्िरूप लोगों को िणाथनसुार विक्षा

    दी जाने लगी | िवैदक काल के आस ऄवन्तम चरण में िरूों को वकसी भी प्रकार की विक्षा

    प्राप्त करने के ऄवधकार से िवंचत करना धतूथता ि स्िाथथ भरा कदम था ि ेविक्षा ऄपने-

    ऄपने पररिारों में प्राप्त करते थे।

    iv. संस्कृवत का संरक्षण एि ंविकास- िवैदक काल में विक्षा का एक ईद्दशे्य ऄपनी संस्कृवत

    का संरक्षण और हस्तान्तरण था। ईस काल म ेगरुूकुलों की सम्पणूथ कायथ पद्धवत धमथप्रधान

    थी। ईस काल में विष्यों को िदे मन्त्र रिाए जाते थे , संध्या-िन्दन की विवधयााँ वसखाइ जाती

    थी और अश्रमा नसुार कायथ करने का ईपदिे वदया जाता था। ईस परेू काल में विक्षा का

    एक ऐसा क्रम चला वक ईसके प्रभाि से ऄनेक लोग गहृस्थ अश्रम के बाद िानप्रस्थ

    अश्रम में प्रििे करते थे और जगंलों में रहते हुए ऄध्ययन ,वचन्तन, मनन और वनवदध्यासन

    करते थे और नए-नए तथ्यों की खोज करते थे। आनम ेसे कुछ लोग सन्यास अश्रम में प्रििे

    करते थे और ध्यान और समावध द्वारा मोक्ष प्राप्त करते थे। आससे आस दिे की संस्कृवत का

    संरक्षण और विकास हुअ।

    v. नैवतक एि ंचाररवत्रक विकास- िवैदक काल में चररत्र वनमाथण से तात्पयथ मनषु्य को

    धमथसम्मत अचरण में प्रविवक्ष त करने से वलया जाता था , ईसके अहार- विहार और

    अचार-विचार को धमथ के अधार पर ईवचत वदिा दनेे से वलया जाता था।

    vi. अध्यावत्मक ईन्नवत- िवैदक काल में विक्षा का ऄवन्तम और सिथश्रेष्ठ ईद्दशे्य मनषु्य के

    बाह्य एि ंअन्तररक दोनों पक्षों को पवित्र बनाकर ईन्हें चरम लक्ष्य मोक्ष की प्रावप्त की ओर

    ऄग्रसर करना था।

    1.4.1 शिक्षा की पाठ्यचयाथ Curriculam of Education

    िवैदक काल में विक्षा दो स्तरों में विभावजत थी- प्रारवम्भक और ईच्च।

    1. प्रारवम्भक विक्षा की पाठ्यचयाथ- िवैदक काल में प्रारवम्भक स्तर की पा ठ्यचथया में भाषा ,

    व्याकरण, छन्दिास्त्र और गणना का सामान्य ज्ञान और सामावजक व्यिहार एि ंधावमथक वक्रयाओ ंके

    प्रविक्षण को स्थान प्राप्त था। ईत्तर िवैदक काल में ईसमें नीवतप्रधान कहावनयों को और जोड़ वदया

    गया। जो लोग ऄपने बच्चों को ईच्च विक्षा हते ुगरुूकुलों में प्रििे वदलाना चाहते थे ि ेईन्हें संस्कृत

    भाषा और ईसके व्याकरण का ऄपेक्षाकृत ऄवधक ज्ञान कराते थे।

  • शिक्षा और भारतीय शिरासत BAED 301

    ईत्तराखडं मकु्त विश्वविद्यालय 7

    2. ईच्च विक्षा की पाठ्यचयाथ- आस काल में ईच्च स्तर पर संस्कृत भाषा और ईसके व्याकरण तथा

    धमथ एि ंनीवतिास्त्र की विक्षा ऄवनिायथ रूप से दी जाती थी। प्रारवम्भक िवैदक काल में िवैदक

    सावहत्य के विवभन्न ग्रन्थों , कमथकाण्ड, ज्योवतविथज्ञान, अयवुिज्ञान, सैवनक विक्षा , कृवष, पिपुालन,

    कला-कौिल, राजनीवतिास्त्र, भगूभथिास्त्र और प्रावणिास्त्र की विक्षा ऐवच्छक थी। ईत्तर िवैदक काल

    में ईच्च विक्षा की आस पाठ्यचयाथ में ऄनेक ऄ न्य विषय सवम्मवलत वकए गए .,जसैे- आवतहास, परुाण,

    नक्षत्र विद्या न्यायिास्त्र, ऄथथिास्त्र, दिे विद्या, ब्रह्म विद्या और भतू विद्या आसे विविष्ट विक्षा की संज्ञा

    दी जा सकती ह।ै विष्य आनमें से ऄपनी रूवच के कोइ भी विषय ऄध्ययन करने के वलए स्ितन्त्र थे।

    िवैदक कालीन विक्षा की पाठ्यचयाथ को ईसकी प्रकृवत के अधार पर वनम्नवलवखत दो रूपों में

    विभावजत वकया जाता ह-ै

    1. ऄपरा (भौवतक) पाठ्यचयाथ- आसके ऄन्तगथत भाषा, व्याकरण, ऄकंिास्त्र, कृवषथ, पिपुालन, कला

    (संगीत एि ंनतृ्य ), कौिल (कताइ, बनुाइ, रंगाइ, काष्ठ कायथ , धात ुकायथ एि ंविलप ), ऄथथिास्त्र,

    राजनीवतिास्त्र, भगूभथिास्त्र, प्रावणिास्त्र, सपथ विद्या, तकथ िास्त्र, ज्योवतविथज्ञान, अयवुिथज्ञान एि ंसैवनक

    विक्षा का ऄध्ययन और व्यायाम, गरुूकुल व्यिस्था एि ंगरुू सेिा वक्रयाएाँ सवम्मवलत थी।

    2. परा (अध्यावत्मक) पाठ्यचयाथ- आसके ऄन्तगथत िवैदक सावहत्य (िदे, िदेांग एि ंईपवनषद् ),

    धमथिास्त्र और नीवतिास्त्र का ऄध्ययन और आवन्रय वनग्रह , धमाथनकूुल अचरण , इश्वर भवक्त ,

    सन्ध्यािन्दन और यज्ञावद वक्रयाओ ंका प्रविक्षण सवम्मवलत था।

    1.4.2 शिक्षण शिशधयााँ Teaching Methods

    िवैदक काल में विक्षण सामान्यतः मौवखक रूप से होता था और प्रायः प्रश्नोत्तर , िकंा-समाधान,

    व्याख्यान और िाद-वििाद द्वारा होता था। ईस समय भाषा की विक्षा के वलए ऄनकुरण विवध और

    कला-कौिल की विक्षा के वलए प्रदिथन एि ंऄभ्यास विवधयों का प्रयोग वकया जाता था।

    ईपवनषदकारों ने विक्षण की एक बहुत प्रभािी विवध का विकास वकया था वजसे श्रिण , मनन और

    वनवदध्यासन विवध कहते ह।ै साफ जावहर ह ैवक ईस समस ईपरोक्त सब विवधयों का प्रयोग कुछ ऄपने

    ढंग से होता था ऄतः यहााँ आनके प्राचीन रूप को स्पष्ट करना अिश्यक ह।ै

    i. ऄनकुरण, अिवत्त एि ंक ण्ठस्थ विवध- ऄनकुरण विवध सीखने की स्िाभविक विवध ह।ै

    िवैदक काल में प्रारवम्भक स्तर पर भाषा और व्यिहार की विक्षा प्रायः आसी विवध से दी

    जाती थी। ईच्च स्तर पर भी आसका प्रयोग होता था- गरुू विष्यों के सम्मखु िदे मन्त्रों का

    ईच्चारण करते थे , विष्य ईनका ऄनकुरण करते थे, ईन्हें बार-बार ईच्चाररत करते थे और

    आस प्रकार ईन्हें कण्ठस्थ करते थे।

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    ii. व्याख्या एि ंदृष्टान्त विवध- िवैदक काल में विष्यों को व्याकरण का कोइ वनयम ऄथिा िदेों

    का कोइ मन्त्र कण्ठस्थ कराने के बाद गरुू ईसकी व्याख्या करते थे , ईसका ऄथथ एि ंभाि

    स्पष्ट करते थे और ईसके ऄथथ एि ंभाि को स्पष्ट करने के वलए ईपमा , रूपक और दृष्टान्तों

    का प्रयोग करते थे।

    iii. प्रश्नोत्तर, िाद-वििाद और िास्त्राथथ विवध- ईत्तर िवैदक काल में ईपवनषदों की िलैी के

    अधार पर प्रश्नोत्तर, िाद-वििाद और िास्त्राथथ विवधयों का विकास हुअ। प्रारवम्भक िवैदक

    काल में गरुू ईपदिे दतेे थे , व्याख्यान दतेे थे और विष्य िावन्तपिूथक सनुते थे , ईत्तर िवैदक

    काल में विष्य ऄपनी िकंा प्रस्ततु करते थे और गरुू ईनका समाधान करते थे।ईच्च विष्या

    में ईच्च स्तर के विष्यों और गरुूओ ंके बीच िाद- वििाद भी होता था। ऄवत गढ़ू विषयों पर

    चचाथ हते ुऄवधकारी विद्वानों के सम्मलेन भी बलुाए जाते थे , ईनके बीच िास्त्राथथ होता था ,

    विष्य आस सबको सनुते थे और ऄपने तत्सम्बन्धी ज्ञान में िवृद्ध करते थे।

    iv. कथन,प्रदिथन एि ंऄभ्यास विवध- िवैदक काल में कृवष , पिपुालन, कला-कौिल, सैन्य

    विक्षा और अयवुिथज्ञा न अवद वक्रयाप्रधान विषयों की विक्षा कथन , प्रदिथन और ऄभ्यास

    विवध से दी जाती थी। गरुू सिथप्रथम वसखाए जाने िाली वक्रया के सम्पादन की विवध बताते

    थे और वफर ईसे स्ियं करके वदखाते थे ., विष्य ईनका ऄनकुरण कर यथा वक्रया का

    ऄभ्यास करते थे और धीरे-धीरे ईसमें दक्षता प्राप्त करते थे।

    v. श्रिण, मनन, वनवदध्यासन विवध- यह विवध भी ईपवनषदकारों की दने ह।ै ईस काल में गरुू

    जो भी व्याख्यान दतेे थे , िदे मन्त्रों अवद वक जो भी व्याख्या करते थे , धमथ, दिथन एि ंऄन्य

    विषयों के सम्बन्ध में जो कुछ भी जानकारी दतेे थे, विष्य ईनको ध्यानपिूथक सनुते थे, ईसके

    बाद ईस पर मनन करते थे, वचन्तन करते थे।

    vi. तकथ विवध- ईत्तर िवैदक काल में तकथ िास्त्र जसेै गढ़ू विषयों के विक्षण हते ुतकथ विवध का

    विकास हुअ। ईस समय आस विवध के पााँच पद थे- प्रवतज्ञा, हते,ु ईदाहरण, ऄनपुयोग और

    वनगमन।

    vii. कहानी विवध- ईत्तर िवैदक काल में अचायथ विष्ण ुिमाथ ने राजकुमारों को नीवत की विक्षा

    दनेे के वलए कहावनयों की रचना की। ये कहावनयााँ पंचतन्त्र और वहतोपदिे के नाम से

    संग्रहीत हैं। कहानी सनुाने के बाद अचायथ विष्यों से प्रश्न पछूते थे। आन प्रश्नों में ऄवन्तम प्रश्न

    यह होता था वक आस कहानी से अपको क्या विक्षा वमलती ह।ै

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    1.4.3 अनुिासन Discipline

    प्रारवम्भक िवैदक काल में ऄनिुासन से तात्पयथ िारीररक , मानवसक और अवत्मक संयम से वलया

    जाता था। ईस काल में िारीररक , संयम से तात्पयथ था- ब्रह्मचयथ ब्रत का पालन , श्रंगार न करना ,

    सगुवन्धत पदाथों का प्रयोग न करना , नतृ्य एि ंसंगीत में अन्नद न लेना , मादक पदाथो का प्रयोग न

    करना, जअु न खलेना , गाय न मारना , झिू न बोलना और चगुली न करनां , मानवसक संयम से

    तात्पयथ था- आवन्रयवनग्रह, सत्य, ऄवहसंा, ऄस्तेय, ऄपररग्रह और ब्रह्मचयथ का पालन और काम ,

    क्रोध, लोभ, मोह और मद से दरू रहना , और अवत्मक संयम से तात्पयथ था- अत्मा के स्िरूप को

    पहचानना, सबमें एकात्म भाि दखेना और सबके कलयाण के वलए कायथ करना। परन्त ुईत्तर िवैदक

    काल में विष्यों द्वारा गरुूओ ंके अदिेों और वनयमों के पालन को ही ऄनिुासन माना जाने लगा

    और विष्य आनका पा लन नहीं करते थे ईन्हें दण्ड वदया जाता था। पर िारीररक दण्ड वििषे

    पररवस्थवतयों में ही वदया जाता था।

    1.4.4 शिक्षक (गुरू)Teacher

    िवैदक काल में ऄवत विद्वान , स्िाध्यायी, धमथपरायण और सच्चररत व्यवक्त ही गरुू हो सकते थे। ये

    ऄवतज्ञानी के साथ-साथ ऄवत संयमी भी होते थे। ईस समय आन्हें समाज में सिोच्च स्थान प्राप्त था। ये

    दिे रूप में प्रवतवष्ठत थे। आन्हें वधयािस ु (वजसकी बवुद्ध ही धन है), सत्यजन्मा (सत्य को जानने िाला)

    और विश्विदेा (सिथज्ञ) अवद वििषेणों से सम्बोवधत वकया जाता था। ये ऄपने गरुूकुलों के पणूथ

    स्िामी होते थे , पर पणूथ स्िावमत्ि के साथ पणूथ ईत्तरदावयत्ि जडुा ऺ था।ये ऄपने गरुूकुलों की सम्पणूथ

    व्यिस्था के वलए ईत्तरदायी होते थे। ये ऄपने विष्यों के अिास , भोजन एि ंिस्त्रावद की व्यिस्था

    करते थे, ईनके स्िास्थ की दखेभाल करते थे और ईनके सिाांगीण विकास के वलए प्रयत्न करते थे।

    1.5 गुरू-शिष्य सम्बन्ध Relation of Teacher And Students

    िवैदक काल में गरुू और विष्यों के बीच बहुत मधरु सम्बन्ध थे। गरुू विष्यों को पतु्रित ्मानते थे

    और विष्य गरुूओ ंको वपतातलुय मानते थे।- ईपर से प्रेम बरसता था और नीचे से श्रद्धा ईमड़ती थी।

    िवैदक काल में गरुूकुलों की व्यिस्था गरुू और विष्य दोनों संयकु्त रूप से करते थे। यहााँ गरुूओ ंके

    विष्यों के प्रवत और ईत्तरदावयत्िों एि ंकायों का िणथन संके्षप में प्रस्ततु ह।ै

    1.5.1 गुरूओ ंके शिष्यों के प्रशत कत्तथव्य-

    िवैदक काल में गरुू विष्यों के प्रवत पणूथरूप से ईत्तरदायी होते थे। ि ेविष्यों के प्रवत वनम्नवलवखत

    ईत्तरदावयत्िों एि ंकत्तथव्यो का वनिाथह करते थे -

    (1) विष्यों के अिास, भोजन एि ंिस्त्रावद की व्यिस्था करना।

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    (2) विष्यों के स्िास्थ की दखेभाल करना , ईनके ऄस्िस्थ होने पर ईपचार की

    व्यिस्था करना।

    (3) विष्यों को भाषा, धमथ और नीवतिास्त्र का ज्ञान ऄवनिायथ रूप से कराना।

    (4) विष्यों को ईनकी योग्यतानसुार (प्रारवम्भक िवैदक काल) ऄथिा िणाथनसुार (ईत्तर

    िवैदक काल) विविष्ट विषयों एि ंवक्रयाओ ं(कमथ) की विक्षा दनेा।

    (5) विष्यों को सदाचार की विक्षा दनेा और ईनका चररत्र वनमाथण करना।

    (6) विष्यों को करणीय कमों की ओर ईन्मखु करना और ऄकरणीय कमों से रोकना।

    (7) विष्यों का सिाांगीण विकास करना।

    (8) विक्षा परूी होने पर विष्यों को गहृस्थ जीिन में प्रििे करने की अज्ञा दनेा और

    ईनका मागथदिथन करना।

    1.5.2 शिष्यों के गुरूओ ंके प्रशत कत्तथव्य-

    िवैदक काल में विष्य गरुूओ ंके प्रवत पणूथरूप से समवपथत होते थे। ि ेगरुूओ ंके प्रवत वनम्नवलवखत

    ईत्तरदावयत्िों एि ंकत्तथव्यों का पालन करते थे-

    (1) गरुूकुल की सफाइ करना और ईसकी पणूथ व्यिस्था करना।

    (2) गरुूगहृ की सफाइ करना, गरुू के स्थान एि ंपजूा-पाठ की व्यिस्था करना।

    (3) गरुू एि ंगरुूकुलिावसयों के वलए वभक्षा मााँगना।

    (4) गरुू एि ंगरुूकुलिावसयों के भोजन की व्यिस्था करना।

    (5) गरुूओ ंके सोने से पहले ईनके पैर दबाना।

    (6) गरुूओ ंके अदिेों का पणूथ वनष्ठा से पालन करना।

    (7) विक्षा परूी होने पर ऄपनी सामथ्याथनसुार गरुू दवक्षणा दनेा।

    1.5.3 परीक्षाएाँ एिं उपाशधयााँ- Examination and Degree

    िवैदक काल में अज की तरह की परीक्षाएाँ नहीं होती थीं। सिथप्रथम तो गरुू ही मौवखक रूप से प्रश्न

    पछू कर यह वनणथय करते थे वक वकसी विष्य ने यथा ज्ञा न प्राप्त कर वलया ह ैऄथिा नहीं। आसके बाद

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    ईन्हें विद्वानों की सभा में ईपवस्थत वकया जाता था। ये विद्वान आन छात्रों से प्रश्न पछूते थे और सन्तषु्ट

    होने पर ईन्हें सफल घोवषत करते थे। िवैदक काल में सफल छात्रों को कोइ प्रमाणपत्र नहीं वदए जाते

    थे, ईनकी योग्यता ही ईनका प्रमाणपत्र होती थी। परन्त ुजो छात्र गरुूकुलों का 12 िषीय सामान्य

    पाठ्यक्रम ऄथिा वकसी एक िदे का ऄध्ययन परूा कर लेते थे ईन्हें स्नातक, जो 24 िषीय पाठ्यक्रम

    (वकन्हीं दो िदेों का ऄध्ययन ) परूा कर लेते थे ईन्हें िस ु ,जो 36 िषीय पाठ्यक्रम (वकन्हीं तीन िदेों

    का ऄध्ययन) परूा कर लेते थे ईन्हें रूर और जो 48 िषीय पाठ्यक्रम (चारों िदेों का ऄध्ययन ) परूा

    कर लेते थे ईन्हें अवदत्य कहा जाता था।

    1.5.4 समाितथन समारोह- Convocation Programme

    िवैदक काल में विष्यों की गरुूकुलीय विक्षा परूी होने पर समाितथ न समारोह होता था। समाितथन का

    िावब्दक ऄथथ है - घर लौिना। समाितथन समारोह में सिथप्रथम छात्रों को ब्रह्मचारी िस्त्र ईतार कर

    गहृस्थ िस्त्र पहनाए जाते थे। आसके बाद गरुू ईन्हें यज्ञ िदेी के सामने बैठाते थे। िदे मन्त्रों से दिेताओ ं

    की अराधना होती थी। आसके बाद गरुू विष्यों को ईपदिे (दीक्षान्त भाषण) दतेे थे। ि ेईन्हें गहृस्थ

    जीिन के कत्तथव्य पालन , समान सेिा और राष्र के प्रवत कत्तथव्य पालन का ईपदिे दतेे थे और

    ऄध्ययन में कभी प्रमाद (अलस्य) न करने का ईपदिे दतेे थे। ि ेईन्हें वपतऊृण , गरुूऊण और

    दिेऊण से ईऊण होने का ईपदिे दतेे थे। तैवत्तरीय ईपवनषद में आस प्रकार के दीक्षान्त भाषण का

    ईललेख ह।ै अज के ऄवधकतर भारतीय विश्वविद्यालयों में दीक्षान्त समारोहों में तैवत्तरीय ईपवनषदीय

    दीक्षान्त ईपदिे वदए जाते हैं। ईस काल में दीक्षान्त ईपदिे दनेे के बाद गरुू विष्यों को गहृस्थ जी िन

    में प्रििे की अज्ञा प्रदान करते थे और ईन्हें अिीिाथद दकेर गरुूकुल से घर के वलए विदा करते थे।

    1.5.5 स्त्री शिक्षा-Women Education

    यूाँ तो प्रारवम्भक िवैदक काल में वस्त्रयों को वकसी भी प्रकार की विक्षा प्राप्त करने का समान

    ऄवधकार प्राप्त था परन्तु ईत्तर िवैदक काल में ईन्हें िणाथनसुार विक्षा ही दी जाती थी। िरू िणथ की

    वस्त्रयों को तो ब्राहमणीय व्यिस्था ने धतूथता से ईच्च विक्षा के ऄवधकार से िवंचत कर वदया गया

    था। अज भी ब्राहमणी व्यिस्था की आनके विकास को नही चाहती ह ैआनके विकास में बाधक बनाती

    ह ैलेवकन अज आस िगथ की कन्या विक्षा , महेनत ि तकथ के बल पर बड़े से बड़े मकुाम पर पहुचकर

    संसार के विकास में ऄपना योगदान कर रही है | ऄलतेकर ने एक तथ्य यह ईजागर वकया ह ैवक

    िवैदक काल के ऄवन्तम चरण (ब्राह्मण काल) में बावलकाओ ंके वििाह की अय ु 12 िषथ वनवित

    कर दी गइ थी और साथ ही ईनके वलए िदेों का ऄध्ययन वनषधे कर वदया गया था। स्त्री विक्षा के

    सम्बन्ध में एक तथ्य यह भी ह ैवक ईस काल में वस्त्रयों के वलए ऄलग से कोइ गरुूकुल नहीं थे।

    पररणामतः सामान्य पररिारों की बवच्चयााँ ईच्च विक्षा प्राप्त नहीं कर पाती थीं ,केिल गरुूओ ंकी

    पवुत्रयााँ, रजघरानों और राज्यों में उाँ चं पदों पर असीन व्यवक्तयों की पवुत्रयााँ और ऄवत धनी एि ंऄवत

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    विविष्ट व्यवक्तयों की पवुत्रयााँ ही आन गरुूकुलों में प्रििे ले पाती थीं। यूाँ तो ईस काल में विश्वारा ,

    ऄपाला, होमिा, िाश्वती और घोषा अवद ऄनेक विदषुी मवहलाओ ंका भी ईललेंख वमलता ह ै

    परन्त ुिास्तविकता यह ह ैवक ईस परेू काल में स्त्री विक्षा बहुत सीवमत थी और यवद यह कहें वक ईस

    काल में स्त्री विक्षा ईपेवक्षत रही तो कोइ ऄवतियोवक्त न होगी। वजस काल में वस्त्रयों पर प्रवतबंध

    लगाये जाते ह ैिह काल ऄच्छा नही होता है|

    1.5.6 िैशदक कालीन मुख्य शिक्षा केन्र

    िवैदक काल में प्राथवमक विक्षा की व्यिस्था पररिारों और ईच्च विक्षा की व्यिस्था गरुूकुलों में

    होती थी। ये गरुूकुल प्रारवम्भक िवैदक काल में तो प्रायः जन कोलाहल से दरू प्रकृवत की सरुम्य गोद

    में स्थावपत होते थे परन्त ुईत्तर िवैद क काल में बड़े-बड़े नगरों और तीथथ स्थानों पर स्थावपत होने लग े

    थे। ईस काल में तीथथ स्थान धमथ प्रचार के केन्र होने के साथ- साथ ईच्च विक्षा के केन्रों के रूप में

    विकवसत हुए। बड़े-बड़े नगरों तक्षविला , पािवलपतु्र, वमवथला, धार, कन्नौज, नावसक, कनाथिक और

    कााँची ईस समय के मखु्य विक्षा केन्र थे। यहााँ आनमें से मखु्य विक्षा केन्रों का िणथन संके्षप में प्रस्ततु

    ह।ै

    1. तक्षविला- तक्षविक्षा ईस काल में ईत्तरी भारत के तत्कालीन गांधार राज्य को राजधानी था। ऐसा

    ईललेख वमलता ह ैवक आस नगर को तत्कालीन गांधार नरेि भारत ने ऄ पने पतु्र तक्ष के नाम से

    बसाया था। अग ेचलकर ईसने आसे ऄपने राज्य की राजधानी बनाया ओर साथ ही यहााँ दिे के

    विवभन्न भागों से विद्वानों को बलुाकर बसाया। ईसने ईन्हें गााँि के गााँि दान में वदए और ईन पर

    विक्षा की व्यिस्था का कायथ भार सौंपा। आस प्रकार यह नगर ईस समय राज्य की राजधानी के साथ-

    साथ एक विक्षा नगर के रूप में विकवसत हुअ। ऐसा ईललेख वमलता ह ैवक यहााँ संस्कृत

    भाषा,सावहत्य और व्याकरण की विक्षा के वलए प्रवसद्ध थे, कोइ वकसी िदे की विक्षा के वलए प्रवसद्ध

    थे और कोइ धमथ एिं दिथन की विक्षा के वलए प्रवसद्ध थे। ऐसा भी ईललेख वमलता ह ैवक कुछ

    विद्धान अयवुिथज्ञान के वििषेज्ञ थे। पररणामतः ईस काल में तक्षविला िवैदक सावहत्य , धमथ, दिथन

    और अयवुिथज्ञान की विक्षा के मखु्य केन्र के रूप में विकवसत हुअ। यहााँ कमथ (कला-कौिल एि ं

    व्यिस्यों) की विक्षा की भी ईत्त्तम व्यिस्था थी। यही कारण ह ैवक गांधार राज्य ईस समय का

    िभैििाली राज्य था। इ 0 प0ू 7िीं िताब्दी तक यह िवैदक और ब्राह्मणीय विक्षा का मखु्य केन्र

    रहा।

    2. केकय- केकय मध्य भारत के तत्कालीन केकय राज्य की राजधानी थी। ईपवनषद काल में यह

    विक्षा का मखु्य केन्र था। यहााँ संस्कृत भाषा , व्याकरण, सावहत्य, िदे, धमथ और दिथन की विक्षा का

    ईत्तम प्रबन्ध था। प्राचीन ग्रंन्थों में ऐसा ईललेख वमलता ह ैवक केकय नरेि ऄश्वपवत स्ियं बडऺे विद्धान

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    ईत्तराखडं मकु्त विश्वविद्यालय 13

    थे, ि ेविद्धानों का अदर करते थे। ईन्होंने ऄपनी राजधानी में बड़े- बड़े विद्धानों को बसाया था। ि े

    समय-समय पर राजधानी में विद्वत ्सम्मलेन भी करते थे

    3. वमवथला- वमवथला मध्य भारत के तत्कालीन वमवथला राज्य की राजधानी था। यूाँ तो यह िवैदक

    काल से पहले से ही विक्षा का मखु्य केन्र रहा था , यहााँ धमथ और दिथन के विद्धानों के सम्मलेन होते

    थे परन्त ुईपवनषद काल में तो यह िवैदक विक्षा के मखु्य केन्र के रूप में विकवसत हुअ। आस नगर में

    धमथ और दिथन के प्रकाण्ड विद्धान वनिास करते थे। दरू- दरू से लोग धमथ और दिथन की विक्षा प्राप्त

    करने यहााँ अते थे। ऐसा भी ईललेख वमलता ह ैवक आस नगर में प्रवतद्वन्दी राज्यों से भी लोग धमथ और

    दिथन की विक्षा प्राप्त करने अते थे और ईन्हें वबना वकसी भदे- भाि के यह विक्षा दी जाती थी। ईत्तर

    िवैदक काल में यहााँ कला-कौिल एि ंसैवनक विक्षा की भी व्यिस्था हुइ।

    4. प्रयाग- भारत के पिूी भाग में वस्थत प्रयाग (आलाहाबाद) प्रारम्भ से ही ऊवषयों की तपोभवूम रहा

    ह।ै िवैदक काल में आस के्षत्र के गगंातििती के्षत्रों में ऄनेक ऊवष अश्रम थे। ये अश्रम धमथ और दिथन

    की विक्षा के मखु्य केन्र थे। यहााँ बड़े-बड़े विद्धान भी ऄपने िकंाओ ंका समाधान करने अया करते

    थे। यह एक तीथथ स्थान तथा धावमथक स्थल था और ऊवषयों की तपोभवूम था आसवलए यह धमथ एि ं

    दिथन की विक्षा के केन्र के रूप में विकवसत हुअ।

    5. कािी- भारत के पिूी भाग में वस्थत कािी(िाराणसी) भी प्रारम्भ से ही ऊवषयों की तपोभवूम और

    विद्धानों के बीच िास्त्राथथ का मखु्य केन्र रहा ह।ै यहााँ के गगंातििती के्षत्रों में ऄनेक ऊवष अश्रम थे ।

    ऐसा ईललेख वमलता ह ैवक कािी नरेि ऄजातित्र ुईपवनषदीय ज्ञान (ब्रह्म विद्या ) के पंवडत थे।

    ईन्होंने ऄपने िासन काल में यहााँ विद्धानों को अमवंत्रत वकया था। और अत्मा- परमात्मा और ब्रह्म

    के स्िरूप के विषय में िास्त्राथथ कराया था। बस तभी से यह विवभन्न मतों की वि क्षा और िास्त्राथथ

    के केन्र के रूप में विकवसत हुअ। िवैदक विक्षा के वलए तो यह वजतना तब प्रवसद्ध था ईतना ही

    मध्यकाल में प्रवसद्ध रहा और ईतना ही अज भी प्रवसद्ध ह।ै

    6. कााँची- कााँची दवक्षण भारत का एक तीथथ स्थान ह।ै धावमथक लोग आसे दवक्षण कािी कहते हैं।

    भारत के नक्ि ेमें यह अज कााँजीिरम ह।ै ईत्तर िवैदक काल में यहााँ िदेों के विद्धान पहुाँच गए थे

    और ईन्होंने िवैदक धमथ और दिथन की विक्षा दनेा िरुू कर वदया था। ये ब्राह्मण परुोवहत थे ,

    कमथकाण्डी थे आसवलए आन्होंने यहााँ कमथकाण्डप्रधान विक्षा का ही विकास वकया। तब से लेकर अज

    तक यह ब्राह्मणीय विक्षा का मखु्य केन्र चला अ रहा ह।ै और चौंकने िाला तथ्य यह ह ैवक

    मध्यकाल (मवुस्लम काल) में भी यह ब्राह्मणीय विक्षा का मखु्य केन्र रहा।

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    1.5.7 िैशदक शिक्षा प्रणाली का मूलयांकन अथिा गुण-दोष शििेचनMerits and

    Demerits of Vedic Education

    िवैदक विक्षा प्रणाली का मलूयांकन ऄथिा गणु-दोष वििचेन प्रस्ततु ह।ै

    िैशदक शिक्षा प्रणाली के गुण :- यवद हम िवैदक कालीन विक्षा प्रणाली को ऄपने दिे भारत की

    ितथमान पररवस्थवतयों , अिश्यकताओ,ं सम्भािनाओ ंऔर अकांक्षाओ ंकी दृवष्ट से दखेें- समझ ेतो

    ईसमें वनम्नवलवखत गणु स्पष्ट होंग ेवजन्हें अज भी ग्रहण करना चावहए।

    1. वनःिलुक विक्षा- िवैदक काल में गरुूकुलों में विष्यों से वकसी भी प्रकार का िलुक नहीं वलया

    जाता था। ईस समय विष्यों के अिास , भोजन एि ंिस्त्रावद की व्यिस्था भी वनःिलुक होती थी। आस

    व्यय की पवूतथ राजा एि ंधनी लोगों से प्राप्त दान , वभक्षािन और गरुूदवक्षणा द्वारा होती थी। अज

    संसार के सभी दिेों में एक वनवित स्तर तक की विक्षा वनःिलुक है, हमारे दिे भारत में भी।

    2. विक्षा का व्यापक ऄथथ- िवैदक काल में छात्रों से यह ऄपेक्षा की जाती थी वक ि ेगरुूकल विक्षा

    परूी करने के बाद भी स्िाध्याय में कभी अलस्य न करें। ईस काल में लोग जीिन में ऄन्य कायों के

    सम्पादन के साथ-साथ वनरन्तर ज्ञानाजथन करते थे। गहृस्थाश्रम के बाद िाणप्रस्थाश्रम में प्रििे करने

    के बाद तो लोग ऄध्ययन और वचन्तन ही वकया करते थे और समाज को ऄपने ऄध्ययन एि ं

    ऄनभुिों से लाभ पहुाँचाया करते थे। अज संसार के प्रायः सभी दिेों में सतत ्विक्षा की व्यिस्था है,

    3. विक्षा के व्यापक ईद्दशे्य- िवैदक काल में विक्षा के ईद्दशे्य ऄवत व्यपक थे। ईस काल में विक्षा

    द्वारा मनषु्यों का िारीररक एि ंमानवसक विकास वकया जाता था , ईन्हें सामावजक एि ंराष्रीय

    कत्तथव्यों का बोध कराया जाता था , ईनका नैवतक एि ंचाररवत्रक विकास वकया जाता था , ईन्हें कमथ

    (व्यिसाय) की विक्षा दी जाती थी और आस सबके साथ- साथ ईनका अध्यावत्मक विकास वकया

    जाता था। हााँ , यह बात ऄिश्य ह ैवक ईस समय सिाथवधक बल ज्ञा न के विकास , चररत्र वनमाथण और

    अध्यावत्मक विकास पर वदया जाता था।

    4. विक्षा की व्यापक पाठ्यचयाथ - िवैदक काल में मनषु्य के प्राकृवतक , सामावजक और

    अध्यावत्मक, तीनों पक्षों के विकास पर बल वदया जाता था और आन ईद्दशे्यों की प्रावप्त के वलए

    पाठ्यचयाथ में ऄपरा (भौवतक) एि ंपरा (अध्यावत्मक) दोनों प्रकार के विषयों एि ंवक्रयाओ ंको

    स्थान वदया जाता था। हााँ , यह बात ऄिश्य ह ैवक ईस समय सिाथवधक बल भाषा , सावहत्य, धमथ,

    दिथन और नीवतिास्त्र की विक्षा पर वदया जाता था और ये ईस समय गरुूकुलीय विक्षा के ऄवनिायथ

    विषय थे। अज हमारे दिे में ईच्च विक्षा की पाठ्यचयाथ ऄवतव्यापक ह ैपरन्त ुिह बहुपक्षीय नहीं है ,

    मनषु्य के प्राकृवतक, सामावजक और अध्यावत्मक तीनों पक्षों का विकास नहीं करती।

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    5. विविष्टीकरण- हमारे दिे में ईच्च विक्षा के के्षत्र में विविष्टीकरण का िभुारम्भ िवैदक काल में ही

    हो गया था। हााँ , यह बात सत्य ह ैवक प्रारवम्भक िवैदक काल में तो यह विविष्टीकरण छात्रों की

    योग्यता के अधार पर होता था परन्त ुईत्तर िवैदक काल में यह छात्रों के िणथ के अधार पर होने लगा

    था। अज हमारे दिे में ही नहीं , संसार के सभी दिेों में ईच्च विक्षा के के्षत्र में विविष्टीकरण का क्षेत्र

    ऄवतव्यापक हो गया ह ैऔर छात्रों को ईनकी योग्यता एि ंक्षमता के ऄनसुार विविष्ट विक्षा एि ं

    प्रविक्षण प्राप्त करने के ऄिसर वदये जाते हैं।

    6. ईत्तम विक्षण विवधयों का विकास- िवैदक काल में गरुूओ ंने विक्षण की ऄनेक ईत्तम विवधयों-

    ऄनकुरण, व्याख्यान, प्रश्नोत्तर, विचार-विमिथ, श्रिण-मनन-वनवदध्यासन, तकथ , प्रयोग एि ंऄभ्यास ,

    नािक और कहानी का विकास वकया था। ईस काल में विक्षण को रोचक और प्रभािी बनाने पर

    वििषे बल वदया जाता था। यूाँ अज मनोविज्ञान के ज्ञान और विज्ञान के अविष्कारों की सहायता से

    ऄनेक ऄन्य ईत्तम विक्षण विवधयों का विकास हुअ ह ैपरन्त ुिवैदक कालीन ईपरोक्त विवधयों का

    महत्त्ि अज भी ह ैऔर सदिै रहगेा। हमें ईनका अिश्यकतानसुार प्रयोग करना चावहए।

    7. गरुू एि ंविष्यों का ऄनिुावसत जीिन- िवैदक काल में गरुूकुलों के वनयम बड़े कठोर होते थे

    और गरुू एि ंविष्य, दोनों ही आनका पालन करते थे। ईस काल में गरुू बहुत ऄनिुावसत जीिन जीते

    थे, ईनकी कथनी और करनी समान होती थी। गरुूओ ंके अदिथ अहार- विहार और अचार-विचार

    का विष्यों पर सीधा प्रभाि पड़ता था और ि ेभी ईवचत अहार- विहार और ईवचत अचार- विचार

    का पालन करते थे। गरुू और विष्य दोनों सादा जीिन जीते थे, ऄनिुावसत जीिन जीते थे। सच बात

    यह ह ैवक अचरण की विक्षा अचरण द्वारा ही दी जा सकती हैं। अज हमारे दिे में अिश्यकता आस

    बात की ह ैवक विक्षक स्ियं अदिथ अचरण करें, तभी विष्य अदिथ अचरण करेंग।े

    8. गरुू-विष्यों के बीच मधरु सम्बन्ध- िवैदक काल में गरुू- विष्यों के बीच बहुत मधरु सम्बन्ध थे।

    उपर से प्रेम बरसता था और नीचे से श्रद्धा ईमड़ती थी। गरुू विष्यों की परूी दखे- भाल करते थे और

    ईनके सिाथगीणथ विकास के वलए कठोर पररश्रम करते थे और विष्य गरुूओ ंका अदर करते थे , ईनके

    अदिेों का पालन करते थे और ईनकी सेिा करते थे। सच बात यह ह ैवक जब तक विष्यों की

    गरुूओ ंमें श्रद्धा नहीं होती , ि ेईनसे कुछ भी नहीं सीख सकते और जब तक गरुू विष्यों के प्रवत

    समवपथत नहीं होते, ि ेविष्यों को कुछ भी वसखा नहीं सकते।

    9. गरुूकुलों का ईत्तम पयाथिरण और संस्कारप्रधान जीिन पद्ध वत- िवैदक काल में गरुूकुल प्रकृवत

    की सरुम्य गोद में वस्थत होते थे। यहााँ िदु्ध िाय ुऔर िदु्ध जल प्राप्त होता था और िातािरणा एकदम

    िान्त होता था। आन गरुूकुलों की दसूरी वििषेता थी- संस्कारप्रधान जीिन पद्धवत। आनमें प्रििे के

    समय बच्चों का ईपनयन संस्कार होता था। आस संस्कार से बच्चों की मानवसक वस्थवत में पररितथन

    होता था, ि ेब्रह्मचयथ जीिन को सहज में स्िीकार करते थे और संयवमत जीिन जीते थे। वनयवतम रूप

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    से धावमथक कृत्यों (यज्ञावद ) के सम्पादन से ईनमें ईच्च संस्कारों का वनमाथण होता था। विक्षा परूी