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    Ramandeep Singh

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    विषय पेज सखं्या इतिहास(प्राचीन, मध्यकालीन व आधुतनक) 2 – 24

    भारि का संववधान व राजव्यवस्था 24 – 53 अथथव्यवस्था 54 – 63

    भुगोल 63 – 75 सामान्य ववज्ञान 75 – 80

    समसामतयकी (करेंट अफेयसथ) 80 - 108

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    इतिहास

    प्राचीन इतिहास

    भारि का इतिहास और संस् कृति गतिशील है और यह मानव सभ् यिा की शुरूआि िकजािी है। यह ससधुं घाटी की रहस् यमयी संस् कृति से शुरू होिी है और भारिके दक्षिणी इलाकों में ककसान समुदाय िक जािी है। भारि के इतिहास में भारिके आस पास स्स्थि अनेक संस् कृतियों से लोगों का तनरंिर समेकन होिा रहा है।उपलब् ध साक्ष् य सुझाि ेहैं कक लोहे, िांबे और अन् य धािुओं के उपयोग काफीशुरूआिी समय में भी भारिीय उप महाद्वीप में प्रचसलि थे, जो दतुनया के इसहहस् से द्वारा की गई प्रगति का संकेि है। चौंथी सहस्रास्ब्द बी. सी. के अंििक भारि एक अत् यंि ववकससि सभ् यिा के िेत्र के रूप में उभर चुका था।

    ससिंधु घाटी की सभ् यिा

    भारि का इतिहास ससधुं घाटी की सभ् यिा के जन् म के साथ आरंभ हुआ, औरअधधक बारीकी से कहा जाए िो हड़प् पा सभ् यिा के समय इसकी शुरूआि मानी जािीहै। यह दक्षिण एसशया के पस्चचमी हहस् से में लगभग 2500 बीसी में फली फूली, स्जसे आज पाककस् िान और पस्चचमी भारि कहा जािा है। ससधुं घाटी समश्र, मेसोपोटासमया, भारि और चीन की चार प्राचीन शहरी सबसे बड़ी सभ् यिाओं का घरथी। इस सभ् यिा के बारे में 1920 िक कुछ भी ज्ञाि नहीं था, जब भारिीयपुरािास्त्वक ववभाग ने ससधुं घाटी की खुदाई का कायथ आरंभ ककया, स्जसमें दोपुराने शहरों अथाथि मोहन जोदाड़ो और हड़प् पा के भग् नावशेष तनकल कर आए।भवनों के टूटे हुए हहस् से और अन् य वस् िुएं जैसे कक घरेलू सामान, युद्धके हधथयार, सोने

    और चांदी के आभूषण, मुहर, खखलौने, बिथन आहद दशाथि ेहैंकक इस िेत्र में लगभग पांच हजार साल पहले एक अत् यंि उच् च ववकससिसभ् यिा फली फूली।

    ससधुं घाटी की सभ् यिा मूलि: एक शहरी सभ् यिा थी और यहां रहने वाले लोगएक सुयोजनाबद्ध और सुतनसमथि कस् बों में रहा करि ेथे, जो व् यापार केकेन् र भी थे। मोहन जोदाड़ो और हड़प् पा के भग् नाव शेष दशाथि ेहैं ककये भव् य व् यापाररक शहर वैज्ञातनक दृस्टट से बनाए गए थे और इनकी देखभालअच् छी िरह की जािी थी। यहां चौड़ी सड़कें और एक सुववकससि तनकास प्रणालीथी। घर पकाई गई ईंटों से बने होि ेथे और इनमें दो या दो से अधधक मंस्जलेंहोिी थी।

    उच् च ववकससि सभ् यिा हड़प् पा में अनाज, गेहंू और जौ उगाने की कलाज्ञाि थी, स्जससे वे अपना मोटा भोजन िैयार करि ेथे। उन् होंने सस्ब्जयों औरफल िथा मांस, सुअर और अण् ड ेका सेवन भी ककया। साक्ष् य सुझाव देि ेहैं ककये ऊनी िथा सूिी कपड़ ेपहनि ेथे। वषथ 1500 से बी सी िक हड़प् पन सभ् यिाका अंि हो गया। ससधुं घाटी की सभ् यिा के नट ट हो जाने के प्रति प्रचसलिअनेक कारणों में शासमल है आयों द्वारा आक्रमण, लगािार बाढ़ और अन् यप्राकृतिक ववपदाओं का आना जैसे कक भूकंप आहद।

    वैदिक सभ् यिा

    प्राचीन भारि के इतिहास में वैहदक सभ् यिा सबसे प्रारंसभक सभ् यिा हैस्जसका संबंध आयों के आगमन से है। इसका नामकरण हहन् दओुं के प्रारस्भभकसाहहत् य वेदों के नाम पर ककया गया है। वैहदक सभ् यिा सरस् विी नदी केककनारे के िेत्र स्जसमें आधुतनक भारि के पंजाब और हररयाणा राज् य आि ेहैं, में ववकससि हुई। वैहदक आयों और हहन् दओुं का

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    पयाथयवाची है, यह वेदों सेतनकले धासमथक और आध् यास्त्मक ववचारों का दसूरा नाम है। बड़ ेपैमाने परस् वीकार दृस्टटकोणों के अनुसार आयों का एक वगथ भारिीय उप महाद्वीप कीसीमाओं पर ईसा पूवथ 2000 के आसपास पहंुचा और पहले पंजाब में बस गया, औरयही ऋगवेद के स् त्रोिों की रचना की गई।

    आयथ जन जनजातियों में रहिे थे और संस् कृि भाषा का उपयोग करि ेथे, जोभाषाओं के भारिीय - यूरोपीय समूह के थे। क्रमश: आयथ स् थानीय लोगों के साथसमल जुल गए और आयथ जनजातियों िथा मूल अधधवाससयों के बीच एक ऐतिहाससकसंच लेषण हुआ। यह संच लेषण आगे चलकर हहन् दतु् व कहलाया। इस अवधध के दोमहान ग्रंथ रामायण और महाभारि थे।

    बौद्ध युग

    भगवान गौिम बुद्ध के जीवनकाल में, ईसा पूवथ 7 वीं और शुरूआिी 6 वींशिास्ब्द के दौरान सोलह बड़ी शस्तियां (महाजनपद) ववद्यमान थे। अतिमहत् वपूणथ गणराज् यों में कवपलवस् िु के शात य और वैशाली के सलच् छवीगणराज् य थे। गणराज् यों के अलावा राजिंत्रीय राज् य भी थे, स्जनमें सेकौशाभ बी (वत् स), मगध, कोशल, और अवस्न्ि महत् वपूणथ थे। इन राज् यों काशासन ऐसे शस्तिशाली व् यस्तियों के पास था, स्जन् होंने राज् य ववस् िार औरपड़ोसी राज् यों को अपने में समलाने की नीति अपना रखी थी। िथावपगणराज् यात् मक राज् यों के िब भी स् पट ट संकेि थे जब राजाओं के अधीनराज् यों का ववस् िार हो रहा था।

    बुद्ध का जन् म ईसा पूवथ 560 में हुआ और उनका देहान् ि ईसा पूवथ 480 में 80 वषथ की आयु में हुआ। उनका जन् म स् थान नेपाल में हहमालय पवथिशं्रखला के पलपा धगरर की िलहटी में बसे कवपलवस् िु नगर का

    लुस्भबनी नामकतनकंुज था। बुद्ध, स्जनका वास् िववक नाम ससद्धाथथ गौिम था, ने बुद्ध धमथकी स् थापना की जो पूवी एसशया के अधधकांश हहस् सों में एक महान संस् कृतिके रूप में ववकससि हुआ।

    ससकिं िर का आक्रमण

    ईसा पूवथ 326 में ससकंदर ससधुं नदी को पार करके ििसशला की ओर बढ़ा वभारि पर आक्रमण ककया। िब उसने झलेम व धचनाब नहदयों के मध् य अवस्स्तिराज् य के राजा पौरस को चुनौिी दी। यद्यवप भारिीयों ने हाधथयों, स्जन् हेंमेसीडोतनया वाससयों ने पहले कभी नहीं देखा था, को साथ लेकर युद्ध ककया, परन् िु भयंकर युद्ध के बाद भारिीय हार गए। ससकंदर ने पौरस को धगरफ्िार करसलया, िथा जैसे उसने अन् य स् थानीय राजाओं को परास् ि ककया था, की भांतिउसे अपने िेत्र पर राज् य करने की अनुमति दे दी।

    दक्षिण में हैडासयस व ससधुं नहदयों की ओर अपनी यात्रा के दौरान, ससकंदरने दाशथतनकों, ब्राह्मणों, जो कक अपनी बुद्धधमानी के सलए प्रससद्ध थे, कीिलाश की और उनसे दाशथतनक मुद्दों पर बहस की। वह अपनी बुद्धधमिापूणथचिुराई व तनभथय ववजेिा के रूप में सहदयों िक भारि में ककवदंिी बना रहा।

    उग्र भारिीय लड़ाके कबीलों में से एक मासलयों के गांव में ससकन् दर कीसेना एकत्रत्रि हुई। इस हमले में ससकन् दर कई बार जख् मी हुआ। जब एक िीर उसकेसीने के कवच को पार करि ेहुए उसकी पससलयों में जा घुसा, िब वह बहुि गंभीररूप से जख् मी हुआ। मेसेडोतनयन अधधकाररयों ने उसे बड़ी मुस्चकल से बचाकरगांव से तनकाला।

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    ससकन् दर व उसकी सेना जुलाई 325 ईसा पूवथ में ससधुं नदी के मुहाने पर पहंुची, िथा घर की ओर जाने के सलए पस्चचम की ओर मुड़ी।

    मौयय साम्राज् य

    मौयथ साम्राज् य की अवधध (ईसा पूवथ 322 से ईसा पूवथ 185 िक) नेभारिीय इतिहास में एक युग का सूत्रपाि ककया। कहा जािा है कक यह वह अवधध थीजब कालक्रम स् पट ट हुआ। यह वह समय था जब, राजनीति, कला, और वाखणज् य नेभारि को एक स् वखणथम ऊंचाई पर पहंुचा हदया। यह खंडों में ववभास्जि राज् योंके एकीकरण का समय था। इससे भी आगे इस अवधध के दौरान बाहरी दतुनया के साथप्रभावशाली ढंग से भारि के संपकथ स् थावपि हुए।

    ससकन् दर की मतृ् यु के बाद उत् पन् न भ्रम की स्स्थति ने राज् यों कोयूनातनयों की दासिा से मुत ि कराने और इस प्रकार पंजाब व ससधं प्रांिों परकब् जा करने का चन् रगुप् ि को अवसर प्रदान ककया। उसने बाद में कौहटल् यकी सहायिा से मगध में नन् द के राज् य को समाप् ि कर हदया और ईसा पवूथ और 322 में प्रिापी मौयथ राज् य की स् थापना की। चन् रगुप् ि स्जसने 324 से 301 ईसा पूवथ िक शासन ककया, ने मुस्तिदािा की उपाधध प्राप् ि की व भारिके पहले सम्राट की उपाधध प्राप् ि की।

    वदृ्धावस् था आने पर चन् रगुप् ि की रुधच धमथ की ओर हुई िथा ईसापूवथ 301 में उसने अपनी गद्दी अपने पुत्र त्रबदंसुार के सलए छोड़ दी। अपने 28 वषथ के शासनकाल में त्रबदंसुार ने दक्षिण के ऊचांई वाले िेत्रों परववजय प्राप् ि की िथा 273 ईसा पूवथ में अपनी राजगद्दी अपने पुत्र अशोक कोसौंप दी। अशोक न केवल मौयथ साम्राज् य का अत् यधधक प्रससद्ध सम्राट

    हुआ, परन् िु उसे भारि व ववच व के महानिम सम्राटों में से एक माना जािा है।

    उसका साम्राज् य हहन् द ुकुश से बंगाल िक के पूवी भूभाग में फैला हुआथा व अफगातनस् िान, बलूधचस् िान व पूरे भारि में फैला हुआ था, केवल सुदरूदक्षिण का कुछ िेत्र छूटा था। नेपाल की घाटी व कच मीर भी उसकेसाम्राज् य में शासमल थे।

    अशोक के साम्राज् य की सबसे महत् वपूणथ घटना थी कसलगं ववजय (आधुतनकओडडशा), जो उसके जीवन में महत् वपूणथ बदलाव लाने वाली सात्रबि हुई। कसलगंयुद्ध में भयानक नरसंहार व ववनाश हुआ। युद्ध भूसम के कट टों व अत् याचारोंने अशोक के हृदय को ववदीणथ कर हदया। उसने भववट य में और कोई युद्ध नकरने का प्रण कर सलया। उसने सांसररक ववजय के अत् याचारों िथा सदाचार वआध् यास्त्मकिा की सफलिा को समझा। वह बुद्ध के उपदेशों के प्रति आकवषथि हुआिथा उसने अपने जीवन को, मनुट य के हृदय को किथव् य परायणिा व धमथपरायणिा से जीिने में लगा हदया।

    मौयय साम्राज् य का अिंि

    अशोक के उत् िराधधकारी कमजोर शासक हुए, स्जससे प्रान् िों को अपनीस् विंत्रिा का दावा करने का साहस हुआ। इिने बड़ ेसाम्राज् य का प्रशासनचलाने के कहिन कायथ का संपादन कमजोर शासकों द्वारा नहीं हो सका।उत् िराधधकाररयों के बीच आपसी लड़ाइयों ने भी मौयथ साम्राज् य के अवनतिमें योगदान ककया।

    ईसवी सन ्की प्रथम शिास्ब्द के प्रारभ भ में कुशाणों ने भारि के उत् िरपस्चचम मोचे में अपना साम्राज् य स् थावपि ककया। कुशाण सम्राटों मेंसबसे अधधक

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    प्रससद्ध सम्राट कतनट क (125 ई. से 162 ई. िक), जो कक कुशाणसाम्राज् य का िीसरा सम्राट था। कुशाण शासन ईस् वी की िीसरी शिास्ब्द केमध् य िक चला। इस साम्राज् य की सबसे महत् वपूणथ उपलस्ब्धयााँ कला के गांधारघराने का ववकास व बुद्ध मि का आगे एसशया के सुदरू िेत्रों में ववस् िारकरना रही।

    गुप् ि साम्राज् य

    कुशाणों के बाद गुप् ि साम्राज् य अति महत् वपूणथ साम्राज् य था।गुप् ि अवधध को भारिीय इतिहास का स् वखणथम युग कहा जािा है। गुप् िसाम्राज् य का प हला प्रससद्ध सम्राट घटोत् कच का पुत्र चन् रगुप् ि था।उसने कुमार देवी से वववाह ककया जो कक सलस्च्छववयों के प्रमुख की पुत्री थी।चन् रगुप् ि के जीवन में यह वववाह पररविथन लाने वाला था। उसेसलस्च्छववयों से पाटलीपुत्र दहेज में प्राप् ि हुआ। पाटलीपुत्र से उसने अपनेसाम्राज् य की आधार सशला रखी व सलस्च्छववयों की मदद से बहुि से पड़ोसीराज् यों को जीिना शुरू कर हदया। उसने मगध (त्रबहार), प्रयाग व साकेि (पूवीउत् िर प्रदेश) पर शासन ककया। उसका साम्राज् य गंगा नदी से इलाहाबाद िकफैला हुआ था। चन् रगुप् ि को महाराजाधधराज की उपाधध से ववभूवषि ककया गयाथा और उसने लगभग पन् रह वषथ िक शासन ककया।

    चन् रगुप् ि का उत् िराधधकारी 330 ई0 में समुन् रगुप् ि हुआ स्जसनेलगभग 50 वषथ िक शासन ककया। वह बहुि प्रतिभा सभ पन् न योद्धा था और बिायाजािा है कक उसने पूरे दक्षिण में सैन् य असभयान का नेितृ् व ककया िथाववन् ध् य िेत्र के बनवासी कबीलों को परास् ि ककया।

    समुन् रगुप् ि का उत् िराधधकारी चन् रगुप् ि हुआ, स्जसेववक्रमाहदत् य के नाम से भी जाना जािा है। उसने मालवा, गुजराि व काहियावाड़के बड़ ेभूभागों पर ववजय प्राप् ि की। इससे उन् हे असाधारण धन प्राप् िहुआ और इससे गुप् ि राज् य की समदृ्धध में वदृ्धध हुई। इस अवधध के दौरानगुप् ि राजाओं ने पस्चचमी देशों के साथ समुरी व् यापार प्रारभ भ ककया।बहुि संभव है कक उसके शासनकाल में संस् कृि के महानिम कवव व नाटककारकालीदास व बहुि से दसूरे वैज्ञातनक व ववद्वान फले-फूले।

    गुप् ि शासन की अवनति

    ईसा की 5वी ंशिास्ब्द के अन् ि व छिवीं शिास्ब्द में उत् िरी भारि मेंगुप् ि शासन की अवनति से बहुि छोटे स् विंत्र राज् यों में वदृ्धध हुई वववदेशी हूणों के आक्रमणों को भी आकवषथि ककया। हूणों का नेिा िोरामोरा था।वह गुप् ि साम्राज् य के बड़ ेहहस् सों को हड़पने में सफल रहा। उसका पुत्रसमहहराकुल बहुि तनदथय व बबथर िथा सबसे बुरा ज्ञाि िानाशाह था। दोस् थानीय शस्तिशाली राजकुमारों मालवा के यशोधमथन और मगध के बालाहदत् य नेउसकी शस्ति को कुचला िथा भारि में उसके साम्राज् य को समाप् ि ककया।

    हर्यवधयन 7वीं सदी के प्रारभ भ होने पर, हषथवधथन (606-647 इसवी में) ने अपनेभाई राज् यवधथन की मतृ् यु होने पर थानेच वर व कन् नौज की राजगद्दीसंभाली। 612 इसवी िक उत् िर में अपना साम्राज् य सुदृढ़ कर सलया।

    620 इसवी में हषथवधथन ने दक्षिण में चालुत य साम्राज् य, स्जस पर उससमय पलुकेसन द्वविीय का

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    शासन था, पर आक्रमण कर हदया परन् िु चालुत य नेबहुि जबरदस् ि प्रतिरोध ककया िथा हषथवधथन की हार हो गई। हषथवधथन कीधासमथक सहट णुिा, प्रशासतनक दििा व राजनतयक संबंध बनाने की योग् यिाजगजाहहर है। उसने चीन के साथ राजनतयक संबंध स् थावपि ककए व अपने राजदिूवहां भेजे, स्जन् होने चीनी राजाओं के साथ ववचारों का आदान-प्रदान ककया िथाएक दसूरे के संबंध में अपनी जानकारी का ववकास ककया।

    चीनी यात्री ह्वेनसांग, जो उसके शासनकाल में भारि आया था ने, हषथवधथनके शासन के समय सामास्जक, आधथथक व धासमथक स्स्थतियों का सजीव वणथन ककया हैव हषथवधथन की प्रशंसा की है। हषथवधथन की मतृ् यु के बाद भारि एक बारकफर कें रीय सवोच् च शस्ति से वंधचि हो गया।

    बािामी के चालुक् य

    6िवीं और 8िवीं इसवी के दौरान दक्षिण भारि में चालुत य बड़ ेशस्तिशालीथे। इस साम्राज् य का प्रथम शास क पुलकेसन, 540 इसवी मे शासनारूढ़ हुआ औरकई शानदार ववजय हाससल कर उसने शस्तिशाली साम्राज् य की स् थापना ककया। उसकेपुत्रों कीतिथवमथन व मंगलेसा ने कोंकण के मौयथन सहहि अपने पड़ोससयों केसाथ कई युद्ध करके सफलिाएं अस्जथि की व अपने राज् य का और ववस् िार ककया।

    कीतिथवमथन का पुत्र पुलकेसन द्वविीय, चालुत य साम्राज् य के महानशासकों में से एक था, उसने लगभग 34 वषों िक राज् य ककया। अपने लभ बेशासनकाल में उसने महाराट र में अपनी स्स्थति सुदृढ़ की व दक्षिण के बड़भेूभाग को जीि सलया,

    उसकी सबसे बड़ी उपलस्ब्ध हषथवधथन के ववरूद्धरिात् मक युद्ध लड़ना थी।

    िथावप 642 इसवी में पल् लव राजा ने पुलकेसन को परास् ि कर मार डाला।उसका पुत्र ववक्रमाहदत् य, जो कक अपने वपिा के समान महान शासक था, गद्दी परबैिा। उसने दक्षिण के अपने शत्रुओं के ववरूद्ध पुन: संघषथ प्रारंभ ककया।उसने चालुत यों के पुराने वैभव को काफी हद िक पुन: प्राप् ि ककया। यहां िककक उसका परपोिा ववक्रमाहदत् य द्वविीय भी महान योद्धा था। 753 इसवी मेंववक्रमाहदत् य व उसके पुत्र का दंिी दगुाथ नाम के एक सरदार ने िख् िा पलटहदया। उसने महाराट र व कनाथटक में एक और महान साम्राज् य की स् थापनाकी जो राट र कूट कहलाया।

    कािंची के पल् लव

    छिवीं सदी की अंतिम चौथाई में पल् लव राजा ससहंववट णु शस्तिशाली हुआिथा कृट णा व कावेरी नहदयों के बीच के िेत्र को जीि सलया। उसका पुत्र वउत् िराधधकारी महेन् रवमथन प्रतिभाशाली व् यस्ति था, जो दभुाथग् य सेचालुत य राजा पलुकेसन द्वविीय के हाथों परास् ि होकर अपने राज् य केउत् िरी भाग को खो बैिा। परन् िु उसके पुत्र नरससहं वमथन प्रथम नेचालुत य शस्ति का दमन ककया। पल् लव राज् य नरससहं वमथन द्वविीय केशासनकाल में अपने चरमोत् कषथ पर पहंुचा। वह अपनी स् थापत् य कला कीउपलस्ब्धयों के सलए प्रससद्ध था, उसने बहुि से मस्न्दरों का तनमाथण करवायािथा उसके समय में कला व साहहत् य फला-फूला। संस् कृि का महान ववद्वानदानहदन उस के राजदरबार में था। िथावप उसकी मतृ् यु के बाद पल् लवसाम्राज् य की अवनति होिी गई। समय के साथ-साथ यह मात्र स् थानीय कबीले कीशस्ति के रूप

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    में रह गया। आखखरकार चोल राजा ने 9वी ंइसवी. के समापन केआस-पास पल् लव राजा अपरास्जि को परास् ि कर उसका साम्राज् य हधथया सलया।

    भारि के प्राचीन इतिहास ने, कई साम्राज् यों, स्जन् होंने अपनी ऐसी बपौिीपीछे छोड़ी है, जो भारि के स् वखणथम इतिहास में अभी भी गूंज रही है, काउत् थान व पिन देखा है। 9वीं इसवी. के समाप् ि होि-ेहोि ेभारि कामध् यकालीन इतिहास पाला, सेना, प्रतिहार और राट र कूट आहद - आहद उत् थानसे प्रारंभ होिा है।

    मध् यकालीन इतिहास आने वाला समय जो इस् लासमक प्रभाव और भारि पर शासन के साथ सशत ि रूप सेसंबंध रखिा है, मध् य कालीन भारिीय इतिहास िथाकधथि स् वदेशी शासकों केअधीन लगभग िीन शिास्ब्दयों िक चलिा रहा, स्जसमें चालुत य, पल् व, पाण् डया, राट रकूट शासमल हैं, मुस्स्लम शासक और अंिि: मुगल साम्राज् य। नौवीशिाब् दी के मध् य में उभरने वाला सबसे महत् वपूणथ राजवंश चोल राजवंश था।

    पाल आिवीं और दसवीं शिाब् दी ए.डी. के बीच अनेक शस्तिशाली शासकों ने भारि केपूवी और उत्तरी भागों पर प्रभुत् व बनाए रखा। पाल राजा धमथपाल, जोगोपाल के पुत्र थे, में आिवीं शिाब् दी ए.डी. से नौवी शिाब् दी ए.डी. केअंि िक शासन ककया। धमथपाल द्वारा नालंदा ववच वववद्यालय और ववक्रमसशलाववच वववद्यालय की स् थापना इसी अवधध में की गई।

    सेन पाल वंश के पिन के बाद सेन राजवंश ने बंगाल में शासन स् थावपि ककया। इसराजवंश के स् थापक सामंि सेन थे। इस राजवंश के महानिम शासक ववजय सेन थे।उन् होंने पूरे बंगाल पर कब् जा ककया और उनके बाद उनके पुत्र बल् लाल सेनने राज ककया। उनका शासन शांतिपूणथ रहा ककन् िु इसने अपने ववचारधाराओं कोसमूचा बनाए रखा। वे एक महान ववद्वान थे िथा उन् होंने ज् योतिष ववज्ञान परएक पुस् िक सहहि चार पुस् िके सलखी। इस राजवंश के अंतिम शासक लक्ष् मण सेनथे, स्जनके कायथकाल में मुस्स्लमों ने बंगाल पर शासन ककया और कफर साम्राज् यसमाप् ि हो गया।

    प्रतिहार प्रतिहार राजवंश के महानिम शासक समहहर भोज थे। उन् होंने 836 मेंकन् नौज (कान् यकुब् ज) की खोज की और लगभग एक शिाब् दी िक प्रतिहारों कीराजधानी बनाया। उन् होंने भोजपाल (विथमान भोपाल) शहर का तनमाथण ककया।राजा भोज और उनके अन् य सहविी गुजर राजाओं को पस्चचम की ओर से अरब जनोंके अनेक आक्रमणों का सामना करना पड़ा और परास्जि होना पड़ा।

    वषथ 915 - 918 ए.डी. के बीच कन् नौज पर राट रकूट राजा ने आक्रमणककया। स्जसने शहर को ववरान बना हदया और प्रतिहार साम्राज् य की जड़ें कमजोरदी। वषथ 1018 में कन् नौज ने राज् यपाल प्रतिहार का शासन देखा, स्जसे गजनीके महमूद ने लूटा। पूरा साम्राज् य स् विंत्रिा राजपूि राज् यों में टूटगया।

    राष्ट रकूट

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    इस राजवंश ने कनाथटक पर राज् य ककया और यह कई कारणों से उल् लेखनीय है।उन् होंने ककसी अन् य राजवंश की िुलना में एक बड़ ेहहस् से पर राज ककया।वे कला और साहहत् व के महान संरिक थे। अनेक राट टकूट राजाओं द्वारासशिा और साहहत् य को हदया गया प्रोत् साहन अनोखा है और उनके द्वाराधासमथक सहनशीलिा का उदाहरण अनुकरणीय है।

    िक्षिण का चोल राजविंश यह भारिीय महाद्वीप के एक बड़ ेहहस् से को शासमल करि ेहुए नौवींशिाब् दी ए.डी. के मध् य में उभरा साथ ही यह श्रीलंका िथा मालदीव में भीफैला था।

    इस राजवंश से उभरने वाला प्रथम महत् वपूणथ शासक राजराजा चोल 1 और उनकेपुत्र िथा उत्तरविी राजेन् र चोल थे। राजराजा ने अपने वपिा की जोड़नेकी नीति को आगे बढ़ाया। उसने बंगाल, ओडडशा और मध् य प्रदेश के दरूदराज केइलाकों पर सशस् त्र चढ़ाई की।

    राजेन् र I, राजाधधराज और राजेन् र II के उत्तरविी तनडर शासक थेजो चालुत य राजाओं से आगे चलकर वीरिापूवथक लड़ ेककन् िु चोल राजवंश केपिन को रोक नहीं पाए। आगे चलकर चोल राजा कमजोर और अिम शासक ससद्ध हुए। इसप्रकार चोल साम्राज् य आगे लगभग डढे़ शिाब् दी िक आगे चला और अंिि:चौदहवीं शिाब् दी ए.डी. की शुरूआि में मसलक कफूर के आक्रमण पर समाप् ि होगया।

    िक्षिण एसशया में इस् लाम का उिय

    पैगभ बर मुहभ मद की मतृ् यु के बाद प्रथम शिाब् दी में दक्षिण एसशयाके अंदर इस् लाम का आरंसभक प्रवेश हुआ। उमायद खलीफा ने डमस् कस मेंबलूधचस् िान और ससधं पर 711 में मुहभ मद त्रबन काससन के नेितृ् व में चढ़ाईकी। उन् होंने ससधं और मुलिान पर कब् जा कर सलया। उनकी मौि के 300 साल बादसुल् िान मेहमूद गजनी, जो एक खंूख् वार नेिा थे, ने राजपूि राजशाहहयों केववरुद्ध िथा धनवान हहन् द ूमंहदरों पर छापामारी की एक श्रृखंला आरंभ की िथाभावी चढ़ाइयों के सलए पंजाब में अपना एक आधार स् थावपि ककया। वषथ 1024 में सुल् िान ने अरब सागर के साथ काहियावाड़ के दक्षिणी िट पर अपना अंतिमप्रससद्ध खोज का दौर शुरु ककया, जहां उसने सोमनाथ शहर पर हमला ककया और साथही अनेक प्रतिस्टिि हहदं ूमंहदरों पर आक्रमण ककया।

    भारि में मुस्स्लम आक्रमण मोहभ मद गोरी ने मुल् िान और पंजाब पर ववजय पाने के बाद 1175 ए.डी. मेंभारि पर आक्रमण ककया, वह हदल् ली की ओर आगे बढ़ा। उत्तरी भारि के बहादरुराजपूि राजाओं ने पतृ वी राज चौहान के नेितृ् व में 1191 ए.डी. में िराइनके प्रथम युद्ध में परास्जि ककया। एक साल चले युद्ध के पच चाि मोहभ मदगोरी अपनी पराजय का बदला लेने दोबारा आया। वषथ 1192 ए.डी. के दौरान िराइनमें एक अत् यंि भयानक युद्ध लड़ा गया, स्जसमें राजपूि परास्जि हुए और पतृ वीराज चौहान को पकड़ कर मौि के घाट उिार हदया गया। िराइन का दसूरा युद्ध एकतनणाथयक युद्ध ससद्ध हुआ और इसमें उत्तरी भारि में मुस्स्लम शासन कीआधारसशला रखी।

    दिल् ली की सल् िनि

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    भारि के इतिहास में 1206 ए.डी. और 1526 ए.डी. के बीच की अवधध हदल् ली कासल् िनि कायथकाल कही जािी है। इस अवधध के दौरान 300 वषों से अधधक समयमें हदल् ली पर पांच राजवंशों ने शासन ककया। ये थे गुलाम राजवंश (1206-90), खखलजी राजवंश (1290-1320), िुगलक राजवंश (1320-1413), सायीद राजवंश (1414-51), और लोदी राजवंश (1451-1526)।

    गुलाम राजविंश इस् लाम में समानिा की संकल् पना और मुस्स्लम परभ पराएं दक्षिण एसशया केइतिहास में अपने चरम त्रबन् द ुपर पहंुच गई, जब गुलामों ने सुल् िान कादजाथ हाससल ककया। गुलाम राजवंश ने लगभग 84 वषों िक इस उप महाद्वीप परशासन ककया। यह प्रथम मुस्स्लम राजवंश था स्जसने भारि पर शासन ककया। मोहभ मदगोरी का एक गुलाम कुिुब उद दीन ऐबक अपने मासलक की मतृ् यु के बाद शासक बनाऔर गुलाम राजवंश की स् थापना की। वह एक महान तनमाथिा था स्जसने हदल् ली मेंकुिुब मीनार के नाम से ववख् याि आच चयथजनक 238 फीट ऊंच ेपत् थर केस् िंभ का तनमाथण कराया।

    गुलाम राजवंश का अगला महत् वपूणथ राजा शभ स उद दीन इलिुिमश था, जोकुिुब उद दीन ऐबक का गुलाम था। इलिुिमश ने 1211 से 1236 के बीच लगभग 26 वषथ िक राज ककया और वह मजबूि आधार पर हदल् ली की सल् िनि स् थावपि करने केसलए उत्तरदायी था। इलिुिमश की सिम बेटी, रस्जया बेगम अपनी और अंतिममुस्स्लम महहला थी स्जसने हदल् ली के िख् ि पर राज ककया। वह बहादरुी से लड़ीककन् िु अंि में परास्जि होने पर उसे मार डाला गया।

    अंि में इलिुिमश के सबसे छोटे बेटे नसीर उद दीन मेहमूद को 1245 मेंसुल् िान बनाया गया। जबकक मेह मदू ने लगभग 20 वषथ िक भारि पर शासन ककया।ककन् िु अपने पूरे कायथकाल में उसकी मुख् य शस्ति उसके प्रधानमंत्री बलबनके हाथों में रही। मेहमूद की मौि होने पर बलबन ने ससहंासन पर कब् जा ककयाऔर हदल् ली पर राज ककया। वषथ 1266 से 1287 िक बलबन ने अपने कायथकाल मेंसाम्राज् य का प्रशासतनक ढांचा सुगहिि ककया िथा इलिुिमश द्वारा शुरू ककए गएकायों को पूरा ककया।

    खिलजी राजविंश बलवन की मौि के बाद सल् िनि कमजोर हो गई और यहां कई बगाविें हुईं। यहीवह समय था जब राजाओं ने जलाल उद दीन खखलजी को राजगद्दी पर त्रबिाया। इससेखखलजी राजवंश की स् थापना आरंभ हुई। इस राजवंश का राजकाज 1290 ए.डी. मेंशुरू हुआ। अला उद दीन खखलजी जो जलाल उद दीन खखलजी का भिीजा था, ने षड़यंत्रककया और सुल् िान जलाल उद दीन को मार कर 1296 में स् वयं सुल् िान बनबैिा। अला उद दीन खखलजी प्रथम मुस्स्लम शासक था स्जसके राज् य ने पूरे भारिका लगभग सारा हहस् सा दक्षिण के ससरे िक शासमल था। उसने कई लड़ाइयां लड़ी, गुजराि, रणथभ भौर, धचत्तौड़, मलवा और दक्षिण पर ववजय पाई। उसके 20 वषथ केशासन काल में कई बार मंगोलों ने देश पर आक्रमण ककया ककन् िु उन् हेंसफलिापूवथक पीछे खदेड़ हदया गया। इन आक्रमणों से अला उद दीन खखलजी नेस् वयं को िैयार रखने का सबक सलया और अपनी सशस् त्र सेनाओं को संपुट ट िथासंगहिि ककया। वषथ 1316 ए.डी. में अला उद दीन की मौि हो गई और उसकी मौि केसाथ खखलजी राजवंश समाप् ि हो गया।

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    िुगलक राजविंश गयासुद्दीन िुगलक, जो अला उद दीन खखलजी के कायथकाल में पंजाब काराज् यपाल था, 1320 ए.डी. में ससहंासन पर बैिा और िुगलक राजवंश की स् थापनाकी। उसने वारंगल पर ववजय पाई और बंगाल में बगावि की। मुहभ मद त्रबन िुगलकने अपने वपिा का स् थान सलया और अपने राज् य को भारि से आगे मध् य एसशया िकआगे बढ़ाया। मंगोल ने िुगलक के शासन काल में भारि पर आक्रमण ककया औरउन् हें भी इस बार हराया गया।

    मुहभ मद त्रबन िुगलक ने अपनी राजधानी को दक्षिण में सबसे पहले हदल् ली सेहटाकर देवधगरी में स् थावपि ककया। जबकक इसे दो वषथ में वापस लाया गया।उसने एक बड़ ेसाम्राज् य को ववरासि में पाया था ककन् िु वह कई प्रांिों कोअपने तनयंत्रण में नहीं रख सका, ववशेष रूप से दक्षिण और बंगाल को। उसकी मौि 1351 ए.डी. में हुई और उसके चचरेे भाई कफरोज िुगलक ने उसका स् थान सलया।

    कफरोज िुगलक ने साम्राज् य की सीमाएं आगे बढ़ाने में बहुि अधधक योगदाननहीं हदया, जो उसे ववरासि में समली थी। उसने अपनी शस्ति का अधधकांश भागलोगों के जीवन को बेहिर बनाने में लगाया। वषथ 1338 ने उसकी मौि के बादिुगलक राजवंश लगभग समाप् ि हो गया। यद्यवप िुगलक शासन 1412 िक चलिा रहा कफरभी 1398 में िैमूर द्वारा हदल् ली पर आक्रमण को िुगलक साम्राज् य का अंिकहा जा सकिा है।

    िैमूर का आक्रमण

    िुगलक राजवंश के अंतिम राजा के कायाथकाल के दौरान शस्तिशाली राजा िैमूरया टेमरलेन ने 1398 ए.डी. में भारि पर आक्रमण ककया। उसने ससधुं नदी को पारककया और मुल् िान पर कब् जा ककया िथा बहुि अधधक प्रतिरोध का सामना न करिहुेए हदल् ली िक चला आया।

    सायीि राजविंश इसके बाद खखजार खान द्वारा सायीद राजवंश की स् थापना की गई। सायीद नेलगभग 1414 ए.डी. से 1450 ए.डी. िक शासन ककया। खखजार खान ने लगभग 37 वषथिक राज् य ककया। सायीद राजवंश में अंतिम मोहभ मद त्रबन फरीद थे। उनकेकायथकाल में भ्रम और बगावि की स्स्थति बनी हुई। यह साम्राज् य उनकी मतृ् युके बाद 1451 ए.डी. में समाप् ि हो गया।

    लोिी राजविंश बुहलुल िान लोिी (1451-1489 ए. डी.)

    वे लोदी राजवंश के प्रथम राजा और संस् थापक थे। हदल् ली की सलिनि कोउनकी पुरानी भव् यिा में वापस लाने के सलए ववचार से उन् होंने जौनपुर केशस्तिशाली राजवंश के साथ अनेक िेत्रों पर ववजय पाई। बुहलुल खान नेग् वासलयर, जौनपुर और उत्तर प्रदेश में अपना िते्र ववस् िाररि ककया।

    ससकिं िर िान लोिी (1489-1517 ए. डी.)

    बुहलुल खान की मतृ् यु के बाद उनके दसूरे पुत्र तनजाम शाह राजा घोवषिककए गए और 1489 में उन् हें सुल् िान ससकंदर शाह का खखिाब हदया गया।उन् होंने अपने राज् य को मजबूि बनाने के सभी

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    प्रयास ककए और अपना राज् यपंजाब से त्रबहार िक ववस् िाररि ककया। वे बहुि अच् छे प्रशासक और कलाओं िथासलवप के संरिक थे। उनकी मतृ् यु 1517 ए.डी. में हुई।

    इब्रादहम िान लोिी (1489-1517 ए. डी.)

    ससकंदर की मतृ् यु के बाद उनके पुत्र इब्राहहम को गद्दी पर त्रबिाया गया।इब्राहहम लोदी एक सिम शासक ससद्ध नहीं हुए। वे राजाओं के साथ अधधक सेअधधक सख् ि होि ेगए। वे उनका अपमान करि ेथे और इस प्रकार इन अपमानों काबदला लेने के सलए दौलिखान लोदी, लाहौर के राज् यपाल और सुल् िान इब्राहहमलोदी के एक चाचा, अलाम खान ने काबुल के शासक, बाबर को भारि पर कब् जा करनेका आमंत्रण हदया। इब्राहहम लोदी को बाबर की सेना ने 1526 ए. डी. मेंपानीपि के युद्ध में मार धगराया। इस प्रकार हदल् ली की सल् िनि अंिि:समाप् ि हो गई और भारि में मुगल शासन का मागथ प्रशस् ि हुआ।

    ववजयनगर साम्राज् य जब मुहभ मद िुगलक दक्षिण में अपनी शस्ति खो रहा था िब दो हहन् दरुाजकुमार हररहर और बूत का ने कृट णा और िंुगभरा नहदयों के बीच 1336 मेंएक स् विंत्र राज् य की स् थापना की। जल् दी ही उन् होंने उत्तर हदशा मेंकृट णा नदी िथा दक्षिण में कावेरी नदी के बीच इस पूरे िेत्र पर अपनाराज् य स् थावपि कर सलया। ववजयनगर साम्राज् य की बढ़िी िाकि से इन कईशस्तियों के बीच टकराव हुआ और उन् होंने बहमनी साम्राज् य के साथ बार बारलड़ाइयां लड़ी।

    ववजयनगर साम्राज् य के सबसे प्रससद्ध राजा कृट ण देव राय थे। ववजयनगरका राजवंश उनके कायथकाल में

    भव् यिा के सशखर पर पहंुच गया। वे उन सभीलड़ाइयों में सफल रहे जो उन् होंने लड़ी। उन् होंने ओडडशा के राजा कोपरास्जि ककया और ववजयवाड़ा िथा राज महेन् री को जोड़ा।

    कृट ण देव राय ने पस्चचमी देशों के साथ व् यापार को प्रोत् साहन हदया।उनके पुिथगासलयों के साथ अच् छे संबंध थे, स्जनका व् यापार उन हदनों भारिके पस्चचमी िट पर व् यापाररक केन् रों के रूप में स् थावपि हो चुका था।वे न केवल एक महान योद्धा थे बस्ल्क वे कला के पारखी और अधधगभ यिा के महानसंरिक रहे। उनके कायथकाल में िलेगु साहहत् य काफी फला फुला। उनके िथाउनके उत्तरवतिथयों द्वारा धचत्रकला, सशल् पकला, नतृ् य और संगीि को काफीबढ़ावा हदया गया। उन् होंने अपने व् यस्तिगि आकषथण, दयालुिा और आदशथप्रशासन द्वारा लोगों को प्रश्रय हदया।

    ववजयनगर साम्राज् य का पिन 1529 में कृट ण देव राय की मतृ् यु के साथशुरू हुआ। यह साम्राज् य 1565 में पूरी िरह समाप् ि हो गया जब आहदलशाही, तनजामशाही, कुिुब शाही और बरीद शाही के संयुत ि प्रयासों द्वारा िालीकोटामें रामराय को परास्जि ककया गया। इसके बाद यह साम्राज् य छोटे छोटे राज् योंमें टूट गया।

    बहमनी राज् य बहमनी का मुस्स्लम राज् य दक्षिण के महान व् यस्तियों द्वारा स् थावपिककया गया, स्जन् होंने सुल् िान मुहभ मद िुगलक की दमनकारी नीतियों केववरुद्ध बकावि की। वषथ 1347 में हसन अब् दलु मुजफ्फर अल उद्दीन बहमन शाहके नाम से राजा बना और उसने बहमनी राजवंश की स् थापना की। यह राजवंश लगभग 175 वषथ िक चला और इसमें 18 शासक

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    हुए। अपनी भव् यिा की ऊंचाई पर बहमनीराज् य उत्तर में कृट णा सें लेकर नमथदा िक ववस् िाररि हुआ और बंगाल कीखाड़ी के िट से लेकर पूवथ - पस्चचम हदशा में अरब सागर िक फैला। बहमनी केशासक कभी कभार पड़ोसी हहन् द ूराज् य ववजयनगर से युद्ध करि ेथे।

    बहमनी राज् य के सवाथधधक ववसशटट व् यस्तित् व महमूद गवन थे, जो दो दशकसे अधधक समय के सलए अमीर उल अलमारा के प्रधान राज् यमंत्री रहे। उन् होंनेकई लड़ाइयां लड़ी, अनेक राजाओं को परास्जि ककया िथा कई िेत्रों को बहमनीराज् य में जोड़ा। राज् य के अंदर उन् होंने प्रशासन में सुधार ककया, ववत्तीय व् यवस् था को संगहिि ककया, जनसशिा को प्रोत् साहन हदया, राजस् वप्रणाली में सुधार ककया, सेना को अनुशाससि ककया एवं भ्रट टाचार कोसमाप् ि कर हदया। चररि और ईमानदारी के धनी उन् होंने अपनी उच् च प्रतिट िाको ववसशट ट व् यस्तियों के दक्षिणी समूह से ऊंचा बनाए रखा, ववशेष रूप सेतनजाम उल मुल, और उनकी प्रणाली से उनका तनट पादन हुआ। इसके साथ बहमनीसाम्राज् य का पिन आरंभ हो गया जो उसके अंतिम राजा कली मुल् लाह की मतृ् युसे 1527 में समाप् ि हो गया। इसके साथ बहमनी साम्राज् य पांच िेत्रीयस् विंत्र भागों में टूट गया - अहमद नगर, बीजापुर, बरार, त्रबदार औरगोलकोंडा।

    भस्क्ि आिंिोलन मध् यकालीन भारि का सांस् कृतिक इतिहास में एक महत् वपूणथ पड़ाव थासामास्जक - धासमथक सुधारकों की धारा द्वारा समाज में लाई गई मौन क्रांति, एक ऐसी क्रांति स्जसे भस्ति असभयान के नाम से जाना जािा है। यह असभयानहहन् दओंु, मुस्स्लमों और ससत खों द्वारा

    भारिीय उप महाद्वीप में भगवान कीपूजा के साथ जुड़ ेरीति ररवाजों के सलए उत्तरदायी था। उदाहरण के सलए, हहन् द ूमंहदरों में कीिथन, दरगाह में कव् वाली (मुस्स्लमों द्वारा) औरगुरुद्वारे में गुरबानी का गायन, ये सभी मध् यकालीन इतिहास में (800 - 1700) भारिीय भस्ति आंदोलन से उत् पन् न हुए हैं। इस हहन् द ूक्रांतिकारीअसभयान के नेिा थे शंकराचायथ, जो एक महान ववचारक और जाने माने दाशथतनकरहे। इस असभयान को चैिन् य महाप्रभु, नामदेव, िुकाराम, जयदेव ने और अधधकमुखरिा प्रदान की। इस असभयान की प्रमुख उपलस्ब्ध मूतिथ पूजा को समाप् िकरना रहा।

    भस्ति आंदोलन के नेिा रामानंद ने राम को भगवान के रूप में लेकर इसेकेस्न्रि ककया। उनके बारे में बहुि कम जानकारी है, परन् िु ऐसा माना जािाहै कक वे 15वीं शिाब् दी के प्रथमाधथ में रहे। उन् होंने ससखाया कक भगवानराम सवोच् च भगवान हैं और केवल उनके प्रति पे्रम और समपथण के माध् यम सेिथा उनके पववत्र नाम को बार - बार उच् चाररि करने से ही मुस्ति पाई जािीहै।

    चैिन् य महाप्रमु एक पववत्र हहन् द ूसभिु और सामास्जक सुधार थे िथा वेसोलहवीं शिाब् दी के दौरान बंगाल में हुए। भगवान के प्रति पे्रम भाव रखनेके प्रबल समथथक, भस्ति योग के प्रविथक, चैिन् य ने ईच वर की आराधनाश्रीकृट ण के रूप में की।

    श्री रामनुज आचायथ भारिीय दशथनशास् त्री थे और उन् हें सवाथधधकमहत् वपूणथ वैट णव संि के रूप में मान् यिा दी गई है। रामानंद ने उत्तरभारि में जो ककया वही रामानुज ने दक्षिण भारि में ककया। उन् होंने रुहढवादीकुववचार की बढ़िी औपचाररकिा के ववरुद्ध आवाज उिाई और पे्रम िथा समपथण कीनींव पर

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    आधाररि वैट णव ववचाराधारा के नए सभ प्रदायक की स् थापना की। उनकासवाथधधक असाधारण योगदान अपने मानने वालों के बीच जाति के भेदभाव कोसमाप् करना।

    बारहवीं और िरेहवीं शिाब् दी में भस्ति आंदोलन के अनुयातययों में भगिनामदेव और संि कबीर दास शासमल हैं, स्जन् होंने अपनी रचनाओं के माध् यम सेभगवान की स् िुति के भस्ति गीिों पर बल हदया।

    प्रथम ससत ख गुरु, और ससत ख धमथ के प्रविथक, गुरु नामक जी भीतनगुथण भस्ति संि थे और समाज सुधारक थे। उन् होंने सभी प्रकार के जाति भेदऔर धासमथक शत्रुिा िथा रीति ररवाजों का ववरोध ककया। उन् होंने ईच वर केएक रूप माना िथा हहन् द ूऔर मुस्स्लम धमथ की औपचाररकिाओं िथा रीति ररवाजोंकी आलोचना की। गुरु नामक का ससद्धांि सभी लोगों के सलए था। उन् होंने हरप्रकार से समानिा का समथथन ककया।

    सोलहवीं और सत्रहवीं शिाब् दी में भी अनेक धासमथक सुधारकों का उत् थानहुआ। वैट णव सभ प्रदाय के राम के अनुयायी िथा कृट ण के अनुयायी अनेकछोटे वगों और पंथों में बंट गए। राम के अनुयातययों में प्रमुख संि कवविुलसीदास थे। वे अत् यंि ववद्वान थे और उन् होंने भारिीय दशथन िथासाहहत् य का गहरा अध् ययन ककया। उनकी महान कृति 'राम चररि मानस' स्जसे जनसाधारण द्वारा िुलसीकृि रामायण कहा जािा है, हहन् द ूश्रदृ्धालुओं के बीचअत् यंि लोकवप्रय है। उन् होंने लोगों के बीच श्री राम की छवव सवथव् यापी, सवथ शस्तिमान, दतुनया के स् वामी और परब्रह्म के साकार रूप से बनाई।

    कृट ण के अनुयातययों ने 1585 ए. डी में हररवंश के अंिगथि राधा बल् लभीपंथ की स् थापना की। सूर दास

    ने ब्रज भाषा में ''सूर सरागर'' की रचना की, जो श्री कृट ण के मोहक रूप िथा उनकी पे्रसमका राधा की कथाओं से पररपूणथहै।

    सूफीवाि पद सूफी, वली, दरवेश और फकीर का उपयोग मुस्स्लम संिों के सलए ककया जािाहै, स्जन् होंने अपनी पूवाथभासी शस्तियों के ववकास हेिु वैराग् य अपनाकर, सभ पणूथिा की ओर जाकर, त् याग और आत् म अस् वीकार के माध् यम से प्रयासककया। बारहवीं शिाब् दी ए.डी. िक, सूफीवाद इस् लामी सामास्जक जीवन के एकसावथभौसमक पि का प्रिीक बन गया, त योंकक यह पूरे इस् लासमक समुदाय मेंअपना प्रभाव ववस् िाररि कर चुका था।

    सूफीवाद इस् लाम धमथ के अंदरुनी या गूढ़ पि को या मुस्स्लम धमथ केरहस् यमयी आयाम का प्रतितनधधत् व करिा है। जबकक, सूफी संिों ने सभी धासमथकऔर सामुदातयक भेदभावों से आगे बढ़कर ववशाल पर मानविा के हहि कोप्रोत् साहन देने के सलए कायथ ककया। सफूी सन् ि दाशथतनकों का एक ऐसा वगथथा जो अपनी धासमथक ववचारधारा के सलए उल् लेखनीय रहा। सूकफयों ने ईच वरको सवोच् च सुंदर माना है और ऐसा माना जािा है कक सभी को इसकी प्रशंसाकरनी चाहहए, उसकी याद में खुशी महसूस करनी चाहहए और केवल उसी पर ध् यानकेस्न्रि करना चाहहए। उन् होंने ववच वास ककया कक ईच वर ''माशूक'' औरसूफी ''आसशक'' हैं।

    सूफीवाद ने स् वयं को ववसभन् न 'ससलससलों' या क्रमों में बांटा।सवाथधधक चार लोकवप्रय वगथ हैं धचच िी, सुहारावाडड थस, काहदररयाह औरनत शबंदी।

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    सूफीवाद ने शहरी और ग्रामीण िेत्रों में जडें जमा ली ंऔर जन समूह परगहरा सामास्जक, राजनैतिक और सांस् कृतिक प्रभाव डाला। इसने हर प्रकार केधासमथक औपचाररक वाद, रुहढवाहदिा, आडबंर और पाखंड के ववरुद्ध आवाज उिाईिथा एक ऐसे वैस्चवक वगथ के सजृन का प्रयास ककया जहां आध् यास्त्मकपववत्रिा ही एकमात्र और अंतिम लक्ष् य है। एक ऐसे समय जब राजनैतिक शस्ति कासंघषथ पागलपन के रूप में प्रचसलि था, सूफी संिों ने लोगों को नैतिकबाध् यिा का पाि पढ़ाया। संघषथ और िनाव से टूटी दतुनया के सलए उन् होंनेशांति और सौहादथ लाने का प्रयास ककया। सूफीवाद का सबसे महत् वपूणथ योगदानयह है कक उन् होंने अपनी पे्रम की भावना को ववकससि कर हहन् द ू- मुस्स्लमपूवाथग्रहों के भेद समटाने में सहायिा दी और इन दोनों धासमथक समुदायों केबीच भाईचारे की भावना उपत् न् न की।

    मुगल राजविंश भारि में मुगल राजवंश महानिम शासकों में से एक था। मुगल शासकों नेहजारों लाखों लोगों पर शासन ककया। भारि एक तनयम के िहि एकत्र हो गया औरयहां ववसभन् न प्रकार की सांस् कृतिक और राजनैतिक समय अवधध मुगल शासन केदौरान देखी गई। पूरे भारि में अनेक मुस्स्लम और हहन् द ुराजवंश टूटे, औरउसके बाद मुगल राजवंश के संस् थापक यहां आए। कुछ ऐसे लोग हुए हैं जैसे ककबाबर, जो महान एसशयाई ववजेिा िैमूर लंग का पोिा था और गंगा नदी की घाटी केउत्तरी िेत्र से आए ववजेिा चंगेजखान, स्जसने खैबर पर कब् जा करने कातनणथय सलया और अंिि: पूरे भारि पर कब् जा कर सलया।

    बाबर (1526-1530): यह िैमूर लंग और चंगेजखान काप्रपौत्र था जो भारि में प्रथम मुगल शासक थे। उसने पानीपि के प्रथम युद्धमें 1526 के दौरान लोधी वंश के साथ संघषथ कर उन् हें परास्जि ककया और इसप्रकार अंि में मुगल राजवंश की स् थापना हुई। बाबर ने 1530 िक शासन ककया औरउसके बाद उसका बेटा हुमायंू गद्दी पर बिैा।

    हुमायूिं (1530-1540 और 1555-1556):बाबर का सबसे बड़ाथा स्जसने अपने वपिा के बाद राज् य संभाला और मुगल राजवंश का द्वविीय शासकबना। उसने लगभग 1 दशक िक भारि पर शासन ककया ककन् िु कफर उसे अफगानी शासकशेर शाह सूरी ने परास्जि ककया। हुमायंू अपनी पराजय के बाद लगभग 15 वषथ िकभटकिा रहा। इस बीच शेर शाह मौि हो गई और हुमायंू उसके उत्तरविी ससकंदरसूरी को परास्जि करने में सिम रहा िथा दोबारा हहन् दसु् िान का राज् यप्राप् ि कर सका। जबकक इसके कुछ ही समय बाद केवल 48 वषथ की उम्र में 1556 में उसकी मौि हो गई।

    शरे शाह सूरी (1540-1545): एक अफगान नेिा था स्जसने 1540 में हुमायंू को परास्जि कर मुगल शासन पर ववजय पाई। शेर शाह ने अधधक सेअधधक 5 वषथ िक हदल् ली के िख् ि पर राज ककया और वह इस उप महाद्वीप मेंअपने अधधकार िेत्र को स् थावपि नहीं कर सका। एक राजा के िौर पर उसके खािमेें अनेक उपलस्ब्धयों का शे्रय जािा है। उसने एक दि लोक प्रशासन कीस् थापना की। उसने भूसम के माप के आधार पर राजस् व संग्रह की एक प्रणालीस् थावपि की। उसके राज् य में आम आदमी को न् याय समला। अनेक लोक कायथ उसकेअल् प अवधध के शासन कायथ में कराए गए जैसे कक पेड़ लगाना, यात्रत्रयों केसलए कुएं और सरायों का तनमाथण कराया गया, सड़कें बनाई गई, उसी के शासन कालमें हदल् ली से काबुल िक ग्रांड रंक रोड बनाई गई। मुरा को बदल कर छोटीरकम के चांदी के ससत के बनवाए गए, स्जन् हें दाम कहि ेथे। यद्यवप शेर शाहिख् ि पर बैिने के बाद अधधक समय

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    जीववि नहीं रहा और 5 वषथ के शासन काल बाद 1545 में उसकी मौि हो गई।

    अकबर (1556-1605):हुमायंू के उत्तराधधकारी, अकबर काजन् म तनवाथसन के दौरान हुआ था और वह केवल 13 वषथ का था जब उसके वपिा कीमौि हो गई। अकबर को इतिहास में एक ववसशट ट स् थान प्राप् ि है। वह एकमात्र ऐसा शासक था स्जसमें मुगल साम्राज् य की नींव का संपुट ट बनाया।लगािार ववजय पाने के बाद उसने भारि के अधधकांश भाग को अपने अधीन कर सलया।जो हहस् से उसके शासन में शासमल नहीं थे उन् हें सहायक भाग घोवषि ककया गया।उसने राजपूिों के प्रति भी उदारवादी नीति अपनाई और इस प्रकार उनसे खिरे कोकम ककया। अकबर न केवल एक महान ववजेिा था बस्ल्क वह एक सिम संगिनकिाथ एवंएक महान प्रशासक भी था। उसने ऐसा ससं् थानों की स् थापना की जो एकप्रशासत�