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गजल गजल गजल गजल इस नदी की धार ठंडी हवा आती तो है , नाव जजर ही सही, लहर से टकराती तो है। एक िचनगारी कही से ढूँढ लाओ दोत, इस िदए तेल से भीगी बाती तो है। एक खंडहर के दय-सी, एक जंगली फूल-सी, आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है। एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी, यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है। िनवचन मैदान लेटी है जो नदी, पथर से , ओट जा-जाके बितयाती तो है। दुख नह कोई िअब उपलिधय के नाम पर, और कुछ हो या हो, आकाश-सी छाती तो है। - दुयत दुयत दुयत दुयत कु मार कु मार कु मार कु मार

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  • गजलगजलगजलगजल इस नदी की धार म� ठंडी हवा आती तो ह,ै नाव जज�र ही सही, लहर� से टकराती तो ह।ै एक िचनगारी कही से ढँूढ लाओ दो%त�, इस िदए म� तेल से भीगी (ई बाती तो ह।ै एक खंडहर के ,दय-सी, एक जंगली फूल-सी, आदमी की पीर गंूगी ही सही, गाती तो ह।ै एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी, यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो ह।ै िनव�चन मैदान म� लेटी (ई ह ैजो नदी, प4थर� से, ओट म� जा-जाके बितयाती तो ह।ै दखु नह7 कोई िक अब उपलि8धय� के नाम पर, और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो ह।ै ---- द�ुय�तद�ुय�तद�ुय�तद�ुय�त कुमारकुमारकुमारकुमार

  • बरस�बरस�बरस�बरस� केकेकेके बादबादबादबाद कह�कह�कह�कह� बरस� के बाद कभी हमतुम यिद िमल� कह7, दखे� कुछ पिरिचत से, लेिकन पिहचान� ना। याद भी न आय ेनाम, =प, रंग, काम, धाम, सोच�, यह स>मभव ह ै- पर, मन म� मान� ना। हो न याद, एक बार आया तूफान, ?वार बंद, िमटे पृA� को - पढ़ने की ठाने ना। बात� जो साथ (ई, बात� के साथ गय7, आँख� जो िमली रह7 - उनको भी जान� ना। ---- िगिरजाकुमारिगिरजाकुमारिगिरजाकुमारिगिरजाकुमार माथुरमाथुरमाथुरमाथुर

  • कारवाँकारवाँकारवाँकारवाँ गज़ुरगज़ुरगज़ुरगज़ुर गयागयागयागया %वC झरे फूल से, मीत चुभे शूल से, लुट गये िसगार सभी बाग़ के बबूल से, और हम खड़खेड़ ेबहार दखेते रह।े कारवाँ गुज़र गया, गुबार दखेते रह!े न7द भी खुली न थी िक हाय धूप ढल गई, पाँव जब तलक उठे िक िज़Gदगी िफसल गई, पातपात झर गये िक शाख़शाख़ जल गई, चाह तो िनकल सकी न, पर उमर िनकल गई, गीत अIक बन गए, छंद हो दफन गए, साथ के सभी िदऐ धुआँधआु ँपहन गये, और हम झुकेझुके, मोड़ पर KकेKके उL के चढ़ाव का उतार दखेते रह।े कारवाँ गुज़र गया, गुबार दखेते रह।े Mया शबाब था िक फूलफूल Nयार कर उठा, Mया सु=प था िक दखे आइना मचल उठा थाम कर िजगर उठा िक जो िमला नज़र उठा, एक िदन मगर यहाँ, ऐसी कुछ हवा चली, लुट गयी कलीकली िक घुट गयी गलीगली, और हम लुटेलुटे, वP से िपटेिपटे, साँस की शराब का खुमार दखेते रह।े कारवाँ गुज़र गया, गुबार दखेते रह।े हाथ थे िमले िक जुQफ चाँद की सँवार दू,ँ

  • होठ थे खुले िक हर बहार को पुकार दू,ँ दद� था िदया गया िक हर दखुी को Nयार दू,ँ और साँस यूँ िक %वग� भूमी पर उतार दू,ँ हो सका न कुछ मगर, शाम बन गई सहर, वह उठी लहर िक दह गय ेिकले िबखरिबखर, और हम डरेडरे, नीर नयन म� भरे, ओढ़कर कफ़न, पड़ ेमज़ार दखेते रह।े कारवाँ गुज़र गया, गुबार दखेते रह!े माँग भर चली िक एक, जब नई नई िकरन, ढोलक� धुमुक उठ7, ठुमक उठे चरनचरन, शोर मच गया िक लो चली दQुहन, चली दQुहन, गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयननयन, पर तभी ज़हर भरी, गाज एक वह िगरी, पुँछ गया िसदरू तारतार (ई चूनरी, और हम अजानसे, दरू के मकान से, पालकी िलये (ए कहार दखेते रह।े कारवाँ गुज़र गया, गुबार दखेते रह।े

    ---- गोपालदासगोपालदासगोपालदासगोपालदास नीरजनीरजनीरजनीरज

  • ��द��द��द��द �सगं�सगं�सगं�सगं नह�नह�नह�नह� ह!ह!ह!ह! हम जीवन के महाकाS हT केवल UGद Vसंग नह7 हT। कंकड़-प4थर की धरती ह ै अपने तो पाँव� के नीचे हम कब कहते बGध!ु िबछाओ %वागत म� मखमली गलीचे रेती पर जो िचW बनाती ऐसी रंग-तरंग नह7 ह।ै तुमको रास नह7 आ पायी Mय� अजातशWुता हमारी िछप-िछपकर जो करते रहत े शीतयुX की तुम तयैारी हम भाड़ ेके सैिनक लकेर लड़ते कोई जंग नह7 हT। कहत-ेकहते हम� मसीहा तुम लटका दतेे सलीब पर हसं� तु>हारी कूटनीित पर कुढ़� या िक अपने नसीब पर भीतर-भीतर से जो पोले हम वे ढोल-मृदगं नह7 ह।ै तुम सामुिहक बिहYकार की िमW! भले योजना बनाओ जहाँ-जहाँ पर िलखा (आ ह ै नाम हमारा, उसे िमटाओ िजसकी डोर हाथ त>ुहारे हम वह कटी पतंग नह7 ह।ै

    ---- दवे�े"दवे�े"दवे�े"दवे�े" शमा$शमा$शमा$शमा$ इ�"इ�"इ�"इ�"

  • कहोकहोकहोकहो कैसेकैसेकैसेकैसे होहोहोहो लौट रहा [ ँमT अतीत से दखँूे Vथम तु>हारे तेवर मेरे समय! कहो कैसे हो? शोर-शराबा चीख़-पुकार� सड़क� भीड़ दकुान� होटल सब सामान ब(त ह ैलेिकन गायक दद� नह7 ह ैकेवल लौट रहा [ ँमT अगेय से सोचा तमु से िमलता जाऊँ मेरे गीत! कहो कैसे हो? भवन और भवन� के जंगल चढ़ते और उतरते ज़ीन ेयहाँ आदमी कहाँ िमलेगा िसफ़� मशीन� और मशीन� लौट रहा [ ँमT यथाथ� से मन हो आया तु>ह� भ�ट लूँ मेरे %वC! कहो कैसे हो? न%ल मनुज की चली िमटाती यह लावे की एक नदी ह ैयुX� का आतंक न पूछो ख़बरदार बीसव7 सदी ह ै लौट रहा [ ँमT िवदशे से सब से पहले कुशल पूँछ लूँ मेरे दशे! कहो कैसे हो? यह स]यता नुमाइश जैसे लोग नह7 हT िसफ़� मुखौटे ठीक मनुYय नह7 ह ैकोई कद से ऊँचे मन से छोटे लौट रहा ( ँमT जंगल से सोचा तु>ह ेदखेता जाऊँ मेरे मनुज! कहो कैसे हो? जीवन की इन र^तार� को अब भी बाँधे क_ा धागा सुबह गया घर शाम न लौटे उस से बढ़ कर कौन अभागा लौट रहा [ ँमT िबछोह से पहले तु>ह� बाँह म� भर लू ँ मेरे Nयार! कहो कैसे हो? ---- च�"सनेच�"सनेच�"सनेच�"सने िवराटिवराटिवराटिवराट

  • अ*छाअ*छाअ*छाअ*छा अनभुवअनभुवअनभुवअनभुव मेरे ब(त पास मृ4यु का सुवास दहे पर उस का %पश� मधुर ही क[गँा उस का %वर कान� म� भीतर मगर Vाण� म� जीवन की लय तरंिगत और उaाम िकनार� म� काम के बँधा Vवाह नाम का एक दIृय सुबह का एक दIृय शाम का दोन� म� िbितज पर सूरज की लाली दोन� म� धरती पर छाया घनी और ल>बी इमारत� की वृb� की दहे� की काली दोन� म� कतार� पंिछय� की चुप और चहकती (ई दोन� म� राशीयाँ फूल� की कम-?यादा महकती (ई दोन� म� एक तरह की शािGत एक तरह का आवेग आँख� बGद Vाण खुले (ए अ%पc मगर धुले (ऐ िकतने आमGWण बाहर के भीतर के िकतने अद>य इराद ेिकतने उलझे िकतने साद े

  • अdछा अनुभव ह ैमृ4यु मानो हाहाकार नह7 ह ैकलरव ह!ै

    ---- भवानी�सादभवानी�सादभवानी�सादभवानी�साद िम-िम-िम-िम-

  • पाबिंदयाँपाबिंदयाँपाबिंदयाँपाबिंदया ँह�ठ पर पाबिGदयाँ हT गुनगुनाने की। िनज�न� म� जब पपीहा पी बुलाता ह।ै तब तु>हारा %वर अचानक उभर आता ह।ै अधर पर पाबिGदयाँ हT गीत गाने की। चाँदनी का पव�त� पर खेलना Kकना शीश सागर म� झुका कर =प को लखना। दप�ण� को मनाही छिबयाँ सजाने की। ओस म� भीगी नहाई दबू सी पलक� , eृंग से Iयामल मचलती धार सी अलक� । िशQप पर पाबिGदयाँ आकार पान ेकी। केतकी सँग पवन के ठहरे (ए वे bण, दखेते आकाश को भुजपाश म�, लोचन। िबजिलय� को ह ैमनाही मु%कुराने की। हवन करता मंW सा पढ़ता बदन चGदन, यf की उठती िशखा सा दgध पावन मन। Vाण पर पाबिGदयाँ सिमधा चढाने की। ---- बालकृ�णबालकृ�णबालकृ�णबालकृ�ण िम-ािम-ािम-ािम-ा

  • ऊँचाईऊँचाईऊँचाईऊँचाई ऊँचे पहाड़ पर, पेड़ नह7 लगते, पौध ेनह7 उगते, न घास ही जमती ह।ै जमती ह ैिसफ� बफ� , जो, कफन की तरह सफेद और, मौत की तरह ठंडी होती ह।ै खेलती, िखल-िखलाती नदी, िजसका =प धारण कर, अपने भाgय पर बंूद-बंूद रोती ह।ै ऐसी ऊँचाई, िजसका परस पानी को प4थर कर द,े ऐसी ऊँचाई िजसका दरस हीन भाव भर द,े अिभनGदन की अिधकारी ह,ै आरोिहय� के िलये आमंWण ह,ै उस पर झंड ेगाड़ ेजा सकते हT, िकGत ुकोई गौरैया, वहाँ नीड़ नह7 बना सकती, ना कोई थका-मांदा बटोही, उसकी छांव म� पलभर पलक ही झपका सकता ह।ै स_ाई यह ह ैिक केवल ऊँचाई ही कािफ नह7 होती, सबसे अलग-थलग, पिरवेश से पृथक, अपन� से कटा-बंटा, शूGय म� अकेला खड़ा होना, पहाड़ की महानता नह7, मजबूरी ह।ै

  • ऊँचाई और गहराई म� आकाश-पाताल की दरूी ह।ै जो िजतना ऊँचा, उतना एकाकी होता ह,ै हर भार को %वयं ढोता ह,ै चेहरे पर मु%कान� िचपका, मन ही मन रोता ह।ै ज=री यह ह ैिक ऊँचाई के साथ िव%तार भी हो, िजससे मनुYय, ठंूट सा खड़ा न रह,े और� से घुल-ेिमले, िकसी को साथ ले, िकसी के संग चले। भीड़ म� खो जाना, याद� म� डूब जाना, %वयं को भूल जाना, अि%त4व को अथ�, जीवन को सुगंध दतेा ह।ै धरती को बौन� की नह7, ऊँचे कद के इGसान� की ज=रत ह।ै इतने ऊँचे िक आसमान छू ल�, नये नbW� म� Vितभा की बीज बो ल�, िकGत ुइतने ऊँचे भी नह7, िक पाँव तले दबू ही न जमे, कोई कांटा न चुभे, कोई किल न िखल।े न वसंत हो, न पतझड़, ह� िसफ� ऊँचाई का अंधड़, माW अकेलापन का सhाटा।

  • मेरे Vभु! मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत दनेा, गैर� को गले न लगा सकँू, इतनी Kखाई कभी मत दनेा। ---- अटलअटलअटलअटल िबहारीिबहारीिबहारीिबहारी वाजपेयीवाजपेयीवाजपेयीवाजपेयी

  • सिृ3सिृ3सिृ3सिृ3 काकाकाका सारसारसारसार रंग� की मृगतृYणा कह7 डरती ह ैकैनवस की उस सादगी से िजसे आकृित के माiयम की आवIयकता नह7 जो कुछ रचे जाने के िलय ेनc होन ेको ह ैतैयार।। %वीकाय� ह ैउसे मेरी, काँपती उंगिलय� की अि%थरता मेरे अपिरपj अथk की माGयताय� मेरे अ%Nc भाव� का िवकार॥ तभी तो तब से अब तक यmिप ब(त बार ..... एकिWत िकया रेखाn को, रचने भी चाह ेसीमाn से मन के िव%तार ..... ॥ िफर भी कQपना को आकृित ना िमली ना कोई पया�य, ना कोई नाम िबछी ह ैअब तक मेरे और कैनवस के बीच एक अनवरत Vतीbा .... जो ढंढ रही ह ैअपनी बोयी िरPताn म� अपनी ही सृिc का सार ॥

    ---- अशुंअशुंअशुंअशुं जौहरीजौहरीजौहरीजौहरी

  • 5य�िक5य�िक5य�िक5य�िक ...... Mय�िक सपना ह ैअभी भी - इसिलए तलवार टूटे, अo घायल कोहरे डूबी िदशाय�, कौन दIुमन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध-धूिमल, िकGत ुकायम युX का संकQप ह ैअपना अभी भी ...... Mय�िक ह ैसपना अभी भी! तोड़ कर अपने चतुिदक का छलावा जबिक घर छोड़ा, गली छोड़ी, नगर छोड़ा, कुछ नह7 था पास बस इसके अलावा, िवदा बेला, यही सपना भाल पर तुमने ितलक की तरह आँका था (एक युग के बाद अब तुमको कहां याद होगा) िकGत ुमुझको तो इसी के िलए जीना और लड़ना ह ैधधकती आग म� तपना अभी भी ...... Mय�िक सपना ह ैअभी भी! तुम नह7 हो, मT अकेला [ ँमगर यह तु>ही हो जो टूटती तलवार की झंकार म� या भीड़ की जयकार म� या मौत के सुनसान हाहाकार म� िफर गंूज जाती हो और मुझको ढाल छूटे, कवच टूटे (ए मुझको िफर याद आता ह ैिक सब कुछ खो गया ह ै- िदशाए,ँ पहचान, कंुडल-कवच लेिकन शेष [ ँमT, युXरत् मT, तु>हारा मT तु>हारा अपना अभी भी इसिलए, तलवार टूटी, अo घायल, कोहरे डूबी िदशाए,ँ कौन दIुमन, कौन अपने लोग, सब कुछ धूंध-धुिमल

  • िकGत ुकायम युX का संकQप ह ैअपना अभी भी ...... Mय�िक सपना ह ैअभी भी! ---- धम$वीरधम$वीरधम$वीरधम$वीर भारतीभारतीभारतीभारती

  • शामशामशामशाम: : : : दोदोदोदो मनःि8थितयाँमनःि8थितयाँमनःि8थितयाँमनःि8थितया ँएक: शाम ह,ै मT उदास [ ँशायद अजनबी लोग अभी कुछ आय� दिेखए अनछुए (ए स>पुट कौन मोती सहजेकर लाय� कौन जाने िक लौटती बेला कौन-से तार कहाँ छू जाय�! बात कुछ और छेिड़ए तब तक हो दवा तािक बेकली की भी, sार कुछ बGद, कुछ खुला रिखए तािक आहट िमले गली की भी - दिेखए आज कौन आता ह ै- कौन-सी बात नयी कह जाये, या िक बाहर से लौट जाता ह ै दहेरी पर िनशान रह जाये, दिेखए ये लहर डुबोये, या िसफ़� तटरेख छू के बह जाये, कूल पर कुछ Vवाल छूट जाय� या लहर िसफ़� फेनावली हो अधिखले फूल-सी िवनत अंजुली कौन जाने िक िसफ़� खाली हो? दो: वtत अब बीत गया बादल भी Mया उदास रंग ले आय,े दिेखए कुछ (ई ह ैआहट-सी

  • कौन ह?ै तुम? चलो भले आय!े अजनबी लौट चुके sारे से दद� िफर लौटकर चले आय े Mया अजब ह ैपुकािरए िजतना अजनबी कौन भला आता ह ै एक ह ैदद� वही अपना ह ै लौट हर बार चला आता ह ै अनिखले गीत सब उसी के हT अनकही बात भी उसी की ह ै अनउगे िदन सब उसी के हT अन(ई रात भी उसी की ह ै जीत पहल-ेपहल िमली थी जो आिखरी मात भी उसी की ह ै एक-सा %वाद छोड़ जाती ह ै िज़Gदगी तृu भी व Nयासी भी लोग आय ेगये बराबर हT शाम गहरा गयी, उदासी भी!

    ---- धम$वीरधम$वीरधम$वीरधम$वीर भारतीभारतीभारतीभारती

  • कौनकौनकौनकौन रंगरंगरंगरंग फागनुफागनुफागनुफागनु रंगेरंगेरंगेरंग ेकौन रंग फागुन रंगे, रंगता कौन वसंत, Vेम रंग फागुन रंगे, Vीत कुसंुभ वसंत। रोमरोम केसर घुली, चंदन महके अंग, कब जाने कब धो गया, फागुन सारे रंग। रचा महो4सव पीत का, फागुन खेले फाग, साँस� म� क%तूिरयाँ, बोये मीठी आग। पलट पलट मौसम तके, भौचक िनरखे धूप, रह रहकर िचतवे हवा, ये फागुन के =प। मन टेसू टेसू (आ तन ये (आ गुलाल अंिखय�, अंिखय� बो गया, फागुन कई सवाल। होठ�होठ� चुिNपयाँ, आँख�, आँख� बात, गुलमोहर के vवाब म�, सड़क हसँी कल रात। अनायास टूटे सभी, संयम के VितबGध, फागुन िलखे कपोल पर, रस से भीद ेछंद। अंिखय� से जाद ूकरे, नजर� मारे मंूठ, गुदना गोद ेVीत के, बोले सौ सौ झूठ। पारा, पारस, पिwनी, पानी, पीर, पलाश, Vंय, Vकर, पीताभ के, अपने हT इितहास। भूली, िबसरी याद के, क_ेपxे रंग, दरे तलक गाते रह,े कुछ फागुन के संग।

    ---- िदनशेिदनशेिदनशेिदनशे शु5लशु5लशु5लशु5ल

  • लोलोलोलो वहीवहीवहीवही :आ:आ:आ:आ लो वही (आ िजसका था डर, ना रही नदी, ना रही लहर। सूरज की िकरन दहाड़ गई, गरमी हर दहे उघाड़ गई, उठ गया बवंडर, धूल हवा म� - अपना झंडा गाड़ गई, गौरइया हाँफ रही डर कर, ना रही नदी, ना रही लहर। हर ओर उमस के चचy हT, िबजली पंख� के खचy हT, बूढ़े म(ए के हाथ� से, उड़ रह ेहवा म� पचy हT, "चलना साथी लू से बच कर". ना रही नदी, ना रही लहर। संकQप िहमालय सा गलता, सारा िदन भzी सा जलता, मन भरे (ए, सब डरे (ए, िकस की िह>मत, बाहर िहलता, ह ैखड़ा सूय� सर के ऊपर, ना रही नदी ना रही लहर। बोिझल रात� के मiय पहर, छपरी से चG{िकरण छनकर, िलख रही नया नारा कोई, इन तपी (ई दीवार� पर, Mया बाँचँू सब थोथे आखर, ना रही नदी ना रही लहर।

  • ---- िदनेिदनेिदनेिदनेशशशश िसहिसहिसहिसह

  • स=पूण$स=पूण$स=पूण$स=पूण$ या?ाया?ाया?ाया?ा Nयास तो त>ुह7 बुझाओगी नदी मT तो सागर [ ँNयासा अथाह। तुम बहती रहो मुझ तक आन ेको। मT तु>ह� लूँगा नदी स>पूण�। कहना तुम पहाड़ से अपने िज%म पर झड़ा स>पूण� तप%वी पराग घोलता रह ेतुमम�। तुम सूW नह7 हो नदी न ही सेत ुस>पूण� याWा हो मुझ तक जागे (ए दवेताn की चेतना हो तुम। तुम सृजन हो च|ानी दहे का। Nयास तो त>ुही बुझाओगी नदी। मT तो सागर [ ँNयासा अथाह

    ---- िदिवकिदिवकिदिवकिदिवक रमशेरमशेरमशेरमशे

  • एकएकएकएक आशीवा$दआशीवा$दआशीवा$दआशीवा$द जा तेरे %वC बड़ ेह�। भावना की गोद से उतर कर जQद पृ}वी पर चलना सीख�। चाँद तार� सी अVाNय ऊचाँइय� के िलये =ठना मचलना सीख�। हसँ� मु%कुरा~ गा~। हर दीये की रोशनी दखेकर ललचाय� उँगली जलाय�। अपने पाँव पर खड़ ेह�। जा तेरे %वC बड़ ेह�।

    ---- द�ुय�तद�ुय�तद�ुय�तद�ुय�त कुमारकुमारकुमारकुमार

  • गजल हो गई ह ैपीर पव�त-सी िपघलनी चािहए, इस िहमालय से कोई गंगा िनकलनी चािहए। आज यह दीवार, परद� की तरह िहलने लगी, शत� लेिकन थी िक ये बुिनयाद िहलनी चािहए। हर सड़क पर, हर गली म�, हर नगर, हर गाँव म�, हाथ लहरात े(ए हर लाश चलनी चािहए। िसफ� हगंामा खड़ा करना मेरा मकसद नह7, सारी कोिशश ह ैिक ये सूरत बदलनी चािहए। मेरे सीने म� नह7 तो तेरे सीने म� सही, हो कह7 भी आग, लेिकन आग जलनी चािहए। ---- द�ुय�तद�ुय�तद�ुय�तद�ुय�त कुमारकुमारकुमारकुमार

  • इतनेइतनेइतनेइतने ऊँचेऊँचेऊँचेऊँचे उठोउठोउठोउठो इतने ऊँचे उठो िक िजतना उठा गगन ह।ै दखेो इस सारी दिुनया को एक दिृc से िसिचत करो धरा, समता की भाव वृिc से जाित भेद की, धम�-वेश की काले गोरे रंग-sषे की ?वालाn से जलत ेजग म� इतने शीतल बहो िक िजतना मलय पवन ह॥ै नये हाथ से, वत�मान का =प सँवारो नयी तूिलका से िचW� के रंग उभारो नये राग को नूतन %वर दो भाषा को नतून अbर दो युग की नयी मूित-रचना म� इतने मौिलक बनो िक िजतना %वयं सृजन ह॥ै लो अतीत से उतना ही िजतना पोषक ह ैजीण�-शीण� का मोह मृ4यु का ही mोतक ह ै तोड़ो बGधन, Kके न िचGतन गित, जीवन का स4य िचरGतन धारा के शाoत Vवाह म� इतने गितमय बनो िक िजतना पिरवत�न ह।ै चाह रह ेहम इस धरती को %वग� बनाना अगर कह7 हो %वग�, उसे धरती पर लाना सूरज, चाँद, चाँदनी, तारे सब हT Vितपल साथ हमारे दो कु=प को =प सलोना इतने सुGदर बनो िक िजतना आकष�ण ह॥ै

    ---- CािरकाCािरकाCािरकाCािरका �साद�साद�साद�साद माहDेरीमाहDेरीमाहDेरीमाहDेरी

  • आरामआरामआरामआराम करोकरोकरोकरो एक िमW िमले, बोले, "लाला, तुम िकस चxी का खाते हो? इस डढ़े छँटाक के राशन म� भी त�द बढ़ाए जाते हो। Mया रMखा ह ैमाँस बढ़ाने म�, मन[स, अMल से काम करो। संािGत-काल की बेला ह,ै मर िमटो, जगत म� नाम करो।" हम बोले, "रहने दो लेMचर, पुKष� को मत बदनाम करो। इस दौड़-धूप म� Mया रMखा, आराम करो, आराम करो। आराम िज़Gदगी की कंुजी, इससे न तपेिदक होती ह।ै आराम सुधा की एक बंूद, तन का दबुलापन खोती ह।ै आराम श8द म� 'राम' िछपा जो भव-बंधन को खोता ह।ै आराम श8द का fाता तो िवरला ही योगी होता ह।ै इसिलए तु>ह� समझाता [,ँ मेरे अनुभव से काम करो। ये जीवन, यौवन bणभंगुर, आराम करो, आराम करो। यिद करना ही कुछ पड़ जाए तो अिधक न तुम उ4पात करो। अपने घर म� बैठे-बैठे बस लंबी-लंबी बात करो। करन-ेधरने म� Mया रMखा जो रMखा बात बनाने म�। जो ओठ िहलान ेम� रस ह,ै वह कभी न हाथ िहलान ेम�। तुम मुझसे पूछो बतलाऊँ -- ह ैमज़ा मूख� कहलाने म�। जीवन-जागृित म� Mया रMखा जो रMखा ह ैसो जाने म�। मT यही सोचकर पास अMल के, कम ही जाया करता [।ँ जो बुिXमान जन होत ेहT, उनसे कतराया करता [।ँ दीए जलने के पहले ही घर म� आ जाया करता [।ँ जो िमलता ह,ै खा लेता [,ँ चुपके सो जाया करता [।ँ मेरी गीता म� िलखा (आ -- स_े योगी जो होत ेहT, वे कम-से-कम बारह घंटे तो बेिफ़ी से सोते हT। अदवायन िखची खाट म� जो पड़ते ही आनंद आता ह।ै वह सात %वग�, अपवग�, मोb से भी ऊँचा उठ जाता ह।ै जब 'सुख की न7द' कढ़ा तिकया, इस सर के नीचे आता ह,ै

  • तो सच कहता [ ँइस सर म�, इंजन जैसा लग जाता ह।ै मT मेल ेन हो जाता [,ँ बुिX भी फक-फक करती ह।ै भाव� का रश हो जाता ह,ै किवता सब उमड़ी पड़ती ह।ै मT और� की तो नह7, बात पहले अपनी ही लेता [।ँ मT पड़ा खाट पर बूट� को ऊँट� की उपमा दतेा [।ँ मT खटरागी [ ँमुझको तो खिटया म� गीत फूटते हT। छत की किड़याँ िगनत-ेिगनते छंद� के बंध टूटत ेहT। मT इसीिलए तो कहता [ ँमेरे अनुभव से काम करो। यह खाट िबछा लो आँगन म�, लेटो, बैठो, आराम करो।

    ---- गोपाल�सादगोपाल�सादगोपाल�सादगोपाल�साद EासEासEासEास

  • 8वत?ंता8वत?ंता8वत?ंता8वत?ंता काकाकाका दीपकदीपकदीपकदीपक घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो, आज sार sार पर यह िदया बुझे नह7। यह िनशीथ का िदया ला रहा िवहान ह।ै शिP का िदया (आ, शिP को िदया (आ, भिP से िदया (आ, यह %वतंWतािदया, Kक रही न नाव हो, ज़ोर का बहाव हो, आज गंगधार पर यह िदया बुझे नह7! यह %वदशे का िदया Vाण के समान ह!ै यह अतीत कQपना, यह िवनीत Vाथ�ना, यह पुनीत भावना, यह अनंत साधना, शांित हो, अशांित हो, युX, संिध ांित हो, तीर पर, कछार पर, यह िदया बुझे नह7! दशे पर, समाज पर, ?योित का िवतान ह!ै तीनचार फूल ह,ै आसपास धूल ह ैबाँस ह,ै बबूल ह,ै घास के दकूुल ह,ै वायु भी िहलोर से, फँूक द,े झकोर द,े क पर, मजार पर, यह िदया बुझे नह7! यह िकसी शहीद का पुय Vाणदान ह!ै झूमझूम बदिलयाँ, चूमचूम िबजिलयाँ आँिधयाँ उठा रह7, हलचल� मचा रह7! लड़ रहा %वदशे हो, शांित का न लेश हो bु{ जीतहार पर, यह िदया बुझे नह7! यह %वतंW भावना का %वतंW गान ह!ै ---- गोपालिसहगोपालिसहगोपालिसहगोपालिसह नपेालीनपेालीनपेालीनपेाली

  • FधनFधनFधनFधन छोटे थे, माँ उपले थापा करती थी हम उपल� पर शMल� गँूधा करते थ ेआँख लगाकर - कान बनाकर नाक सजाकर - पगड़ी वाला, टोपी वाला मेरा उपला - तेरा उपला - अपने-अपने जाने-पहचाने नाम� से उपले थापा करते थ े हसँता-खेलता सूरज रोज़ सवेरे आकर गोबर के उपल� पे खेला करता था रात को आँगन म� जब चूQहा जलता था हम सारे चूQहा घेर के बैठे रहते थ ेिकस उपले की बारी आयी िकसका उपला राख (आ वो पंिडत था - इक मुhा था - इक दशरथ था - बरस� बाद - मT Iमशान म� बैठा सोच रहा [ ँआज की रात इस वP के जलते चूQह ेम� इक दो%त का उपला और गया! ---- गलुज़ारगलुज़ारगलुज़ारगलुज़ार

  • बीतीबीतीबीतीबीती िवभावरीिवभावरीिवभावरीिवभावरी जागजागजागजाग रीरीरीरी!!!! बीती िवभावरी जाग री! अ>बर पनघट म� डुबो रही तारा घट ऊषा नागरी। खग कुल-कुल सा बोल रहा, िकसलय का अंचल डोल रहा, लो यह लितका भी भर लाई मधु मुकुल नवल रस गागरी। अधर� म� राग अमंद िपये, अलक� म� मलयज बंद िकये तू अब तक सोई ह ैआली आँख� म� भरे िवहाग री।

    ---- जयशंकरजयशंकरजयशंकरजयशंकर ����सादसादसादसाद

  • कामायनीकामायनीकामायनीकामायनी ((((''''लGालGालGालGा' ' ' ' पिर*छेदपिर*छेदपिर*छेदपिर*छेद))))

    कोमल िकसलय के अंचल म� नGह7 किलका ?य� िछपती-सी, गोधुली के धूिमल पट म� दीपक के %वर म� िदपती-सी। मंजुल %वCn की िव%मृित म� मन का उGमाद िनखरता ?य� - सुरिभत लहर� की छाया म� बुQले का िवभव िबखरता ?य� - वैसी ही माया से िलपटी अधर� पर उँगली धरे (ए, माधव के सरस कुतूहल का आँख� म� पानी भरे (ए। नीरव िनशीथ म� लितका-सी तुम कौन आ रही हो बढ़ती? कोमल-बाह� फैलाय-ेसी आिलगन का जाद ूपढ़ती! िकन इं{जाल के फूल� से लेकर सुहाग-कण राग-भरे, िसर नीचा कर हो गँूथ रही माला िजससे मधु धार ढरे? पुलिकत कदबं की माला-सी पहना दतेी हो अGतर म�, झुक जाती ह ैमन की डाली अपनी फलभरता के डर म�। वरदान सदशृ हो डाल रही नीली िकरन� से बुना (आ, यह अंचल िकतना हQका-सा िकतना सौरभ से सना (आ। सब अंग मोम से बनते हT कोमलता म� बल खाती [,ँ मT िसमट रही-सी अपने म� पिरहास-गीत सुन पाती [।ँ ि%मत बन जाती ह ैतरल हसँी नयन� म� भर कर बाँकपना, V4यb दखेती [ ँसब जो वह बनता जाता ह ैसपना। मेरे सपन� म� कलरव का संसार आँख जब खोल रहा, अनुराग समीर� पर ितरता था इतराता-सा डोल रहा। अिभलाषा अपने यौवन म� उठती उस सुख के %वागत को, जीवन भर के बल-वैभव से स4कृत करती दरूागत को। िकरन� की र ुसमेट िलया िजसका अवल>बन ले चढ़ती, रस के िनझ�र म� धँस कर मT आनGद-िशखर के Vित बढ़ती। छूने म� िहचक, दखेने म� पलक� आँख� पर झुकती हT, कलरव पिरहास भरी गँूज� अधर� तक सहसा Kकती हT। संकेत कर रही रोमाली चुपचाप बरजाती खड़ी रही, भाषा बन भौह� की काली रेखा-सी म म� पड़ी रही। तुम कौन! ,दय की परवशता? सारी %वतंWता छीन रही, %वdछंद सुमन जो िखले रह ेजीवन-वन से हो बीन रही!"

  • संiया की लाली म� हसँती, उसका ही आeय लेती-सी, छाया Vितमा गुनगुना उठी, eXा का उर दतेी-सी। "इतना न चमकृत हो बाल!े अपने मन का उपकार करो, मT एक पकड़ [ ँजो कहती ठहरो कुछ सोच-िवचार करो। अंबर-चंुबी िहम-eृंग� से कलरव कोलाहल साथ िलये, िवmुत की Vाणमयी धारा बहती िजसम� उGमाद िलये। मंगल कंुकुम की eी िजसम� िनखरी हो ऊषा की लाली, भोला सुहाग इठलाता हो ऐसा हो िजसम� हिरयाली, हो नयन� का कQयाण बना आनGद सुमन-सा िवकसा हो, वासंती के वन-वैभव म� िजसका पंचम%वर िपक-सा हो, जो गँूज उठे िफर नस-नस म� मूछ�ना समान मचलता-सा, आँख� के साँचे म� आकर रमणीय =प बन ढलता-सा, नयन� की नीलम की घाटी िजस रस घन से छा जाती हो, वह कध िक िजससे अGतर की शीतलता ठंढक पाती हो, िहQलोल भरा हो ऋतुपित का गोधुली की सी ममता हो, जागरण Vात-सा हसँता हो िजसम� मiयान िनखरता हो, हो चिकत िनकल आई सहसा जो अपने Vाची के घर से, उस नवल चंि{का-से िबछले जो मानस की लहर� पर से, फूल� की कोमल पंखिड़याँ िबखर� िजसके अिभनGदन म�, मकरंद िमलाती ह� अपना %वागत के कंुकुम चGदन म�, कोमल िकसलय मम�र-रव-से िजसका जयघोष सुनात ेह�, िजसम� दःुख सुख िमलकर मन के उ4सव आनंद मनात ेह�, उवल वरदान चेतना का सौGदय� िजसे सब कहते हT, िजसम� अनंत अिभलाषा के सपने सब जगते रहत ेहT। मT उसई चपल की धाWी [,ँ गौरव मिहमा [ ँिसखलाती, ठोकर जो लगने वाली ह ैउसको धीरे से समझाती, मT दवे-सृिc की रित-रानी िनज पंचबाण से वंिचत हो, बन आवज�ना-मूित दीना अपनी अतृिu-सी संिचत हो, अविशc रह ग अनुभव म� अपनी अतीत असफलता-सी, लीला िवलास की खेद-भरी अवसादमयी eम-दिलता-सी, मT रित की Vितकृित ला [ ँमT शालीनता िसखाती [,ँ

  • मतवाली सुGदरता पग म� नूपुर सी िलपट मनाती [,ँ लाली बन सरल कपोल� म� आँख� म� अंजन सी लगती, कंुिचत अलक� सी घुँघराली मन की मरोर बनकर जगती, चंचल िकशोर सुGदरता की मT करती रहती रखवाली, मT वह हलकी सी मसलन [ ँजो बनती कान� की लाली।" "हाँ, ठीक, परGत ुबताओगी मेरे जीवन का पथ Mया ह?ै इस िनिवड़ िनशा म� संसृित की आलोकमयी रेखा Mया ह?ै यह आज समझ तो पाई [ ँमT दबु�लता म� नारी [,ँ अवयव की सुGदर कोमलता लेकर मT सबसे हारी [।ँ पर मन भी Mय� इतना ढीला अपने ही होता जाता ह,ै घनIयाम-खंड-सी आँख� म� Mय� सहसा जल भर आता ह?ै सव�%व-समप�ण करने की िवoास-महा-तK-छाया म�, चुपचाप पड़ी रहने की Mय� ममता जगती हT माया म�? छायापथ म� तारक-mुित सी िझलिमल करने की मध-ुलीला, अिभनय करती Mय� इस मन म� कोमल िनरीहता eम-शीला? िन%संबल होकर ितरती [ ँइस मानस की गहराई म�, चाहती नह7 जागरण कभी सपने की इस सुघराई म�। नारी जीवन की िचW यही Mया? िवकल रंग भर दतेी हो, अ%फुट रेखा की सीमा म� आकार कला को दतेी हो। Kकती [ ँऔर ठहरती [ ँपर सोच-िवचार न कर सकती, पगली-सी कोई अंतर म� बैठी जैसे अनुिदत बकती। मT जभी तोलने का करती उपचार %वयं तुल जाती [,ँ भुजलता फँसा कर नर-तK से झूले-सी झ�के खाती [।ँ इस अप�ण म� कुछ और नह7 केवल उ4सग� छलकता ह,ै मT द ेदू ँऔर न िफर कुछ लूँ, इतना ही सरल झलकता ह।ै "Mया कहती हो ठहरो नारी! संकQप-अeु जल से अपने - तुम दान कर चुकी पहले ही जीवन के सोन-ेसे सपन।े नारी! तुम केवल eXा हो िवoास-रजत-नग पगतल म�, पीयूष-ोत बहा करो जीवन के संुदर समतल म�। दवे� की िवजय, दानव� की हार� का होता युX रहा, संघष� सदा उर-अंतर म� जीिवत रह िन4य-िवKX रहा।

  • आँसू से भ7गे अंचल पर मन का सब कुछ रखना होगा - तुमको अपनी ि%मत रेखा से यह संिधपW िलखना होगा।"

    ---- जयशंकरजयशंकरजयशंकरजयशंकर �साद�साद�साद�साद

  • कामायनीकामायनीकामायनीकामायनी ((((''''िनवHदिनवHदिनवHदिनवHद' ' ' ' पिर*छेदपिर*छेदपिर*छेदपिर*छेद केकेकेके कुछकुछकुछकुछ छंदछंदछंदछंद))))

    "तुमुल कोलाहल कलह म� मT ,दय की बात रे मन! िवकल होकर िन4य चंचल, खोजती जब न7द के पल, चेतना थक-सी रही तब, मT मलय की वात रे मन! िचर-िवषाद-िवलीन मन की, इस Sथा के ितिमर-वन की; मT उषा-सी ?योित-रेखा, कुसुम-िवकिसत Vात रे मन! जहाँ मK-?वाला धधकती, चातकी कन को तरसती, उGह7 जीवन-घािटय� की, मT सरस बरसात रे मन! पवन की Vाचीर म� Kक जला जीवन जी रहा झुक, इस झुलसते िवo-िदन की मT कुसुम-ऋत-ुरात रे मन! िचर िनराशा नीरधर से, Vितdछाियत अeु-सर म�, मधुप-मुखर-मरंद-मुकुिलत, मT सजल जलजात रे मन!"

    ---- जयशंकरजयशंकरजयशंकरजयशंकर �साद�साद�साद�साद

  • �याणगीत�याणगीत�याणगीत�याणगीत िहमाि{ तुंग eृंग से VबुX शुX भारती - %वयंVभा समुवला %वतंWता पुकारती - अम4य� वीर पुW हो, दढ़ृ-Vितf सोच लो, Vश%त पुय पंथ हT - बढ़े चलो बढ़े चलो। असंvय कीित-रिIमयाँ िवकीण� िदS दाह-सी। सपूत मातृभूिम के Kको न शूर साहसी। अराित सैGय िसधु म� - सुबाड़वाि से जलो, Vवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो बढ़े चलो।

    ---- जयशंकरजयशंकरजयशंकरजयशंकर �साद�साद�साद�साद

  • आजआजआजआज नदीनदीनदीनदी िबलकुलिबलकुलिबलकुलिबलकुल उदासउदासउदासउदास थीथीथीथी आज नदी िबलकुल उदास थी। सोयी थी अपने पानी म�, उसके दप�ण पर - बादल का व पड़ा था। मTने उसे नह7 जगाया, दबे पाँव घर वापस आया। ---- केदारनाथकेदारनाथकेदारनाथकेदारनाथ अIअIअIअIवालवालवालवाल

  • बसतंीबसतंीबसतंीबसतंी हवाहवाहवाहवा हवा [,ँ हवा मT बसंती हवा [।ँ सुनो बात मेरी - अनोखी हवा [।ँ बड़ी बावली [,ँ बड़ी म%4मौला। नह7 कुछ िफकर ह,ै बड़ी ही िनडर [।ँ िजधर चाहती [,ँ उधर घूमती [,ँ मुसािफर अजब [।ँ न घर-बार मेरा, न उaIेय मेरा, न इdछा िकसी की, न आशा िकसी की, न Vेमी न दIुमन, िजधर चाहती [ ँउधर घूमती [।ँ हवा [,ँ हवा मT बसंती हवा [!ँ जहाँ से चली मT जहाँ को गई मT - शहर, गाँव, ब%ती, नदी, रेत, िनज�न, हरे खेत, पोखर, झुलाती चली मT। झुमाती चली मT! हवा [,ँ हवा मै

  • बसंती हवा [।ँ चढ़ी पेड़ म(आ, थपाथप मचाया; िगरी ध>म से िफर, चढ़ी आम ऊपर, उसे भी झकोरा, िकया कान म� 'कू', उतरकर भगी मT, हरे खेत प(चँी - वहाँ, ग�(nँ म� लहर खूब मारी। पहर दो पहर Mया, अनेक� पहर तक इसी म� रही मT! खड़ी दखे अलसी िलए शीश कलसी, मुझे खूब सूझी - िहलाया-झुलाया िगरी पर न कलसी! इसी हार को पा, िहलाई न सरस�, झुलाई न सरस�, हवा [,ँ हवा मT बसंती हवा [!ँ मुझे दखेते ही अरहरी लजाई, मनाया-बनाया, न मानी, न मानी; उसे भी न छोड़ा - पिथक आ रहा था,

  • उसी पर ढकेला; हसँी ज़ोर से मT, हसँी सब िदशाए,ँ हसेँ लहलहात ेहरे खेत सारे, हसँी चमचमाती भरी धूप Nयारी; बसंती हवा म� हसँी सृिc सारी! हवा [,ँ हवा मT बसंती हवा [!ँ ---- केदारनाथकेदारनाथकेदारनाथकेदारनाथ अIवालअIवालअIवालअIवाल

  • कम$कम$कम$कम$ कम� दिैवक स>पदा का sार ह;ै िवo के उ4कष� का आधार ह।ै कम� पूजा, साधना का धाम ह;ै कम�योगी को कहाँ िवeाम ह।ै कम� भावी योजना का Gयास ह;ै स4य-िचत-आनGद का अ]यास ह।ै कम� जीवन का मधुरतम काS ह;ै कम� से ही मुिP भी स>भाS ह।ै

    ---- िकरीटच�"िकरीटच�"िकरीटच�"िकरीटच�" जोशीजोशीजोशीजोशी

  • आगतआगतआगतआगत काकाकाका 8वागत8वागत8वागत8वागत मँुह ढाँक कर सोने से ब(त अdछा ह,ै िक उठो ज़रा, कमरे की गद� को ही झाड़ लो। शेQफ़ म� िबखरी िकताब� का ढेर, तिनक चुन दो। िछतरे-िछतराए सब ितनक� को फ�को। िखड़की के उढ़के (ए, पQल� को खोलो। ज़रा हवा ही आए। सब रौशन कर जाए। ... हाँ, अब ठीक तिनक आहट से बैठो, जाने िकस bण कौन आ जाए। खुली (ई िफ़ज़ाँ म�, कोई गीत ही लहर जाए। आहट म� ऐसे Vतीbातुर दखे तु>ह�, कोई फ़िरIता ही आ पड़।े माँगने से जाने Mया द ेजाए। नह7 तो %वग� से िनवा�िसत, िकसी अNसरा को ही, यहाँ आeय दीख पड़।े खुले (ए sार से बड़ी संभावनाए ँहT िमW! नह7 तो जाने Mया कौन, द%तक द-ेदकेर लौट जाएगेँ। सुनो, िकसी आगत की Vतीbा म� बैठना, मँुह ढाँक कर सोने से ब(त बेहतर ह।ै

    ---- कीितकीितकीितकीित चौधरीचौधरीचौधरीचौधरी

  • गीतगीतगीतगीत----किवकिवकिवकिव कीकीकीकी EथाEथाEथाEथा ---- एकएकएकएक ओ लेखनी! िवeाम कर अब और याWाय� नह7। मंगल कलश पर काS के अब श8द के %वि%तक न रच। अbम समीbाय� परख सकत7 न किव का झूठ-सच। िलख मत गुलाबी पंिPयाँ िगन छGद, माWाय� नह7। बGदी अंधेरे कb म� अनुभूित की िशQपा छुअन। वाद�-िववाद� म� िघरा सािह4य का िशbा सदन। अनिगन VवPा हT यहाँ बस, छाW-छाWाय� नह7।

    ---- िकशनिकशनिकशनिकशन सरोजसरोजसरोजसरोज

  • गीतगीतगीतगीत----किवकिवकिवकिव कीकीकीकी EथाEथाEथाEथा ---- दोदोदोदो इस गीत-किव को Mया (आ? अब गुनगुनाता तक नह7। इसने रचे जो गीत जग ने पिWकाn म� पढ़े। मुखिरत (ए तो भजन-जैसे अनिगनत होठ� चढ़े। ह�ठ� चढ़े, वे मन-िबधे अब गीत गाता तक नह7। अनुराग, राग िवराग पर सौ Sंग-शर इसने सह।े जब-जब (ए गीले नयन तब-तब लगाये कहकह।े वह अ|हास� का धनी अब मु%कुराता तक नह7। मेल� तमाश� म� िलए इसको िफरी आवारगी। कुछ ढंूढती-सी दिृc म� हर शाम मधुशाला जगी। अब भीड़ िदखती ह ैिजधर उस ओर जाता तक नह7।

    ---- िकशनिकशनिकशनिकशन सरोजसरोजसरोजसरोज

  • मरेीमरेीमरेीमरेी िज़दिज़दिज़दिज़द तेरी कोिशश, चुप हो जाना, मेरी िज़द ह,ै शंख बजाना ... ये जो सोये, उनकी नीद� सीमा से भी ?यादा गहरी अब तक जाग नह7 पाय ेवे सर तक ह ैआ गई दपुहरी; कब से उGह�, पुकार रहा [ ँ तुम भी कुछ, आवाज़ िमलाना... तट की घेराबंदी करके बैठे हT सारे के सारे, कोई मछली छूट न जाये इसी दाँव म� हT मछुआरे..... मT उनको ललकार रहा [,ँ तुम जQदी से जाल हटाना..... ये जो गलत िदशा अनुगामी दौड़ रह ेहT, अंधी दौड़�, अdछा हो िक िह>मत करके हम इनकी हठधम तोड़�..... मT आगे से रोक रहा [ ँ- तुम पीछे से हाँक लगाना ....

    ---- कृ�णकृ�णकृ�णकृ�ण वLीवLीवLीवLी

  • िवदािवदािवदािवदा केकेकेके LणLणLणLण मT अपने इस तुdछ एकाकीपन से ही इतना िवचिलत हो जाता [ ँतो सागर! तुम अपना यह िवराट अकेलापन कैसे झेलते हो? समय के अGतहीन छोर� म� इस िbितज से उस िbितज तक यह साँ-साँ करता (आ फुफकारता सhाटा - युग� की उड़ती धूल म� अGतहीन रेिग%तान का िनपट एकाकी सफ़र - सिदय� से जागती खुली (ई आँख� म� महीन रेत-सी िकरिकराती असीम Vतीbा! - सचमुच सागर, तु>ह� य� अकेला छोड़ कर जाने का मन नह7 होता लेिकन त>ुहारे पास रह कर भी Mया कोई तु>हारे अकेलेपन को बाँट सकता ह?ै वह कौन ह ैजो अनािद से अनGत तक तु>हारा हाथ थामे चल सके, गहरे िनःoास� के साथ उठते-िगरते त>ुहारे वb को सहलाये? िकस के कान तु>हारी धड़कन� को सुन सक� गे, कौन से हाथ

  • तु>हारे माथे पर पड़ी दद� की सलवट� को हटाय�गे या िबखरे (ए बाल� को सँवारने का साहस जुटा पाय�गे? िकस का अगाध Nयार तु>हारे एकाकीपन को भी िभगो पायेगा? मुझे तो लगता ह ैओ सागर, अकेला होना हर िवराट् की िनयित ह।ै वह एक से अनेक होन ेकी िकतनी ही चेcा करे अपनी ही माया से, लीला से, लहराती लहर� से खुद को बहलाये पर अनGतः रहता एकाकी ह।ै - िफर भी तु>ह� छोड़ कर जात े(ए मन कुछ उदास (आ जाता ह ै- (शायद यही मोह ह,ै शायद यही अह ंह!ै) - तु>हारे पास एक अजनबी-सी पहचान िलये आया था एक िवराट् अकेलेपन का एक अिकचन-सा कण ले कर जा रहा [!ँ ---- कुलजीतकुलजीतकुलजीतकुलजीत

  • ब5स�ब5स�ब5स�ब5स� मMमMमMमM यादMयादMयादMयादM बMस� म� बGद हT याद� हर कपड़ा एक याद ह ै िजसे त>ुहारे हाथ� न ेतह िकया था धोबी ने धोत ेसमय इन को रगड़ा था पीटा था मैल कट गया पर ये न कट7 यह और अGदर चली गय7 हम ने िनम�म होकर इGह� उतार िदया इGह�न ेकुछ नह7 कहा पर हर बार ये हमारा कुछ अंश ले गय7 िजसे हम जान न सके 4वचा से इन का जो स>बGध ह ैवह रP तक ह ै रP का सारा उबाल इGह�न ेसहा ह ैइGह� खोल कर दखेो इन म� हमारे खून की खुशबू ज़=र होगी अभी ये मौन ह ै पर इन की एक-एक परत म� जो मन िछपा ह ै वह हमारे जाने के बाद बोलेगा याद� आदमी के बीत जाने के बाद ही बोलती हT बMस� म� बGद रहने दो इGह� जब पूरी फुरसत हो तब दखेना इन का वाता�लाप बड़ा ईYया�लू ह ै कुछ और नह7 करने दगेा।

    ---- कुमारकुमारकुमारकुमार रवी�"रवी�"रवी�"रवी�"

  • वाणीवाणीवाणीवाणी वभैववभैववभैववभैव मातृभाषा िभh ह ैिविभh भाषाभािषय� की, िभh िभh भाँित बोली िलखी पढ़ी जाती ह।ै अवधी, िबहारी, ज, बँगला, मराठी, िसGधी, कhड़, क�कण, मारवाड़ी, गुजराती ह॥ै तेलगू, तिमल मुशिकल िगन पाना िकGत,ु एक बात "वंचक" समान पाई जाती ह।ै लेते ही जनम "कहाँ-कहाँ" कहते हT सभी, सभी की Vाकृत भाषा एक ही लखाती ह॥ै आके धराधाम पे तमाम सह यातनाय�, मानव माल आँख ह ैVथम जब खोलता। जननी-जनक चाह ेिजस भाषा के ह� भाषी, िववश िजfासा "कहाँ-कहाँ" ही ह ैबोलता॥ "क" से "ह" ह ैSंजन औ %वर "अ" से "अँ" तलक, इGही से बना के श8द भाव ह ैिकलोलता। "वंचक" ह ैभाषा यही सभी की Vाकृत एक, अf वो ह ैजो ह ैअGय और को टटोलता॥

    ---- लNमीका�तलNमीका�तलNमीका�तलNमीका�त िम-िम-िम-िम- " " " "वचंकवचंकवचंकवचंक" " " "

  • अननुयअननुयअननुयअननुय मेरे अधर अधर से छू लेन ेदो! अधर अधर से छू लेन ेदो! ह ैबात वही, मधुपाश वही, सुरभीसुधारस पी लेने दो! अधर अधर से छू लेने दो! कंवल पंखुरी लाल लजीली, ह ैिथरक रही, नई कुसुमसी! रिIमनूतन को, सह लेने दो! मेरे अधर अधर से छू लेने दो! तुम जीवन की मदमाती लहर, ह ैवही डगर, डगमग पगभर, सुखसुमन-सुधा रस पी लेने दो! मेरे अधर अधर से छू लेन ेदो! अधर अधर से छू लेन ेदो! ---- लावOयालावOयालावOयालावOया शाहशाहशाहशाह

  • 8मिृत8मिृत8मिृत8मिृत दीपदीपदीपदीप भ उर की कामना के दीप, तुम, कर म� िलये, मौन, िनमंण, िवषम, िकस साध म� हो बाँटती? ह ैV?विलत दीप, उaीिपत कर� पे, नैन म� असुवन झड़ी! ह ैमौन, होठ� पर Vकि>पत, नाचती, ?वाला खड़ी! बहा दो अंितम िनशानी, जल के अंधेरे पाट पे, ' %मृितदीप ' बन कर बहगेी, यातना, िबछुड़ े%वजन की! एक दीप गंगा पे बहगेा, रोय�गी, आँख� तु>हारी। धुप अँधकाररािW का तमस। पुकारता Nयार मेरा तुझे, मरण के उस पार से! बहा दो, बहा दो दीप को जल रही कोमल हथेली! हा िVया! यह रािWवेला औ सूना नीरवसा नदी तट! नाचती लौ म� धूल िमल�गी, Vीत की बात� हमारी! ---- लावOयालावOयालावOयालावOया शाहशाहशाहशाह

  • गांवगांवगांवगांव एक अंधेरा, एक ख़ामोशी, और तनहाई, रात के तीन पांव होत ेहT। िज़Gदगी की सुबह के चेहरे पर, रा%त ेधूप छाँव होत ेहT। िज़Gदगी के घने िबयाबाँ म�, Nयार के कुछ पड़ाव होत ेहT। अजनबी शहर� म�, अजनबी लोग� के बीच, दो%त� के भी गांव होत ेहT।

    ---- मधुपमधुपमधुपमधुप मोहतामोहतामोहतामोहता

  • रोशनीरोशनीरोशनीरोशनी रात, हर रात ब(त दरे गए, तेरी िखड़की से, रोशनी छनकर, मेरे कमरे के दरो-दीवार� पर, जैसे द%तक सी िदया करती ह।ै मT खोल दतेा [ ँचुपचाप िकवाड़, रोशनी पे सवार तरेी परछाई, मेरे कमरे म� उतर आती ह,ै सो जाती ह ैमेरे साथ मेरे िब%तर पर।

    ---- मधुपमधुपमधुपमधुप मोहतामोहतामोहतामोहता

  • कौनकौनकौनकौन तमुतमुतमुतमु मरेेमरेेमरेेमरेे PदयPदयPदयPदय मMमMमMमM???? कौन तुम मेरे ,दय म�? कौन मेरी कसक म� िनत मधुरता भरता अलिbत? कौन Nयासे लोचन� म� घुमड़ िघर झरता अपिरिचत? %वण� %वC� का िचतेरा न7द के सूने िनलय म�! कौन तुम मेरे ,दय म�? अनुसरण िनoास मेरे कर रह ेिकसका िनरGतर? चूमने पदिचGह िकसके लौटत ेयह oास िफर िफर? कौन बGदी कर मुझे अब बँध गया अपनी िवजय मे? कौन तुम मेरे ,दय म�? एक कKण अभाव िचर - तृिu का संसार संिचत, एक लघु bण द ेरहा िनवा�ण के वरदान शत-शत; पा िलया मTने िकसे इस वेदना के मधुर य म�? कौन तुम मेरे ,दय म�? गंूजता उर म� न जान े दरू के संगीत-सा Mया! आज खो िनज को मुझे खोया िमला िवपरीत-सा Mया! Mया नहा आई िवरह-िनिश िमलन-मधिदन के उदय म�? कौन तुम मेरे ,दय म�? ितिमर-पारावार म� आलोक-Vितमा ह ैअकि>पत; आज ?वाला से बरसता

  • Mय� मधुर घनसार सुरिभत? सुन रही [ ँएक ही झंकार जीवन म�, Vलय म�? कौन तुम मेरे ,दय म�? मूक सुख-दखु कर रह े मेरा नया eृंगार-सा Mया? झूम गिवत %वग� दतेा - नत धरा को Nयार-सा Mया? आज पुलिकत सृिc Mया करने चली अिभसार लय म�? कौन तुम मेरे ,दय म�?

    - महादवेीमहादवेीमहादवेीमहादवेी वमा$वमा$वमा$वमा$ -

  • मरेेमरेेमरेेमरेे दीपकदीपकदीपकदीपक मधुर मधुर मेरे दीपक जल! युग युग Vितिदन Vितbण Vितपल; िVयतम का पथ आलोिकत कर! सौरभ फैला िवपुल धूप बन; मृदलु मोम-सा घुल रे मृद ुतन; द ेVकाश का िसधु अपिरिमत, तेरे जीवन का अणु गल-गल! पुलक-पुलक मेरे दीपक जल! सारे शीतल कोमल नतून, माँग रह ेतुझको ?वाला-कण; िवoशलभ िसर धनु कहता "मT हाय न जल पाया तुझम� िमल"! िसहर-िसहर मेरे दीपक जल! जलते नभ म� दखे असंvयक; ेहहीन िनत िकतने दीपक; जलमय सागर का उर जलता; िवmुत ले िघरता ह ैबादल! िवहसं-िवहसं मेरे दीपक जल! {मु के अंग हिरत कोमलतम, ?वाला को करते ,दयगंम; वसुधा के जड़ अंतर म� भी, बGदी नह7 ह ैताप� की हलचल! िबखर-िबखर मेरे दीपक जल! मेरे िनoास� से {तुतर, सुभग न तू बुझने का भय कर;

  • मT अंचल की ओट िकये [,ँ अपनी मृद ुपलक� से चंचल! सहज-सहज मेरे दीपक जल! सीमा ही लघुता का बGधन, ह ैअनािद तू मत घिड़याँ िगन; मT दगृ के अbय कोश� से - तुझम� भरती [ ँआँसू-जल! सजल-सजल मेरे दीपक जल! तम असीम तेरा Vकाश िचर; खेल�गे नव खेल िनरGतर; तम के अणु-अणु म� िवmुत सा - अिमट िचW अंिकत करता चल! सरल-सरल मेरे दीपक जल! तू जल जल होता िजतना bय; वह समीप आता छलनामय; मधुर िमलन म� िमट जाना तू - उसकी उवल ि%मत म� घुल-िखल! मिदर-मिदर मेरे दीपक जल! िVयतम का पथ आलोिकत कर! ---- महादवेीमहादवेीमहादवेीमहादवेी वमा$वमा$वमा$वमा$

  • पंथपंथपंथपंथ होनेहोनेहोनेहोने दोदोदोदो अपिरिचतअपिरिचतअपिरिचतअपिरिचत पंथ होन ेदो अपिरिचत Vाण रहने दो अकेला!

    और ह�गे चरण हारे,

    अGय हT जो लौटत ेद ेशूल को संकQप सारे; दखुती िनमा�ण-उGमद यह अमरता नापत ेपद;

    बाँध द�गे अंक-संसृित से ितिमर म� %वण� बेला!

    दसूरी होगी कहानी शूGय म� िजसके िमटे %वर, धूिल म� खोई िनशानी;

    आज िजसपर Nयार िवि%मत, मT लगाती चल रही िनत,

    मोितय� की हाट औ, िचनगािरय� का एक मेला!

    हास का मध-ुदतू भेजो, रोष की ूभंिगमा पतझार को चाह ेसहजेो;

    ले िमलेगा उर अचंचल वेदना-जल %वC-शतदल,

    जान लो, वह िमलन-एकाकी िवरह म� ह ैदकेुला! ---- महादवेीमहादवेीमहादवेीमहादवेी वमा$वमा$वमा$वमा$

  • ि�यि�यि�यि�य िचर�तनिचर�तनिचर�तनिचर�तन हैहहैैहै सजिनसजिनसजिनसजिन िVय िचरGतन ह ैसजिन, bण bण नवीन सुहािगनी मT! oास म� मुझको िछपा कर वह असीम िवशाल िचर घन, शूGय म� जब छा गया उसकी सजीली साध-सा बन, िछप कहाँ उसम� सकी बुझ-बुझ जली चल दािमनी मT! छाँह को उसकी सजिन नव आवरण अपना बना कर, धूिल म� िनज अeु बोने मT पहर सूने िबता कर, Vात म� हसँ िछप गई ले छलकते दगृ यािमनी मT! िमलन-मिGदर म� उठा दू ँजो सुमुख से सजल गुठन, मT िमटँू िVय म� िमटा ?य� तu िसकता म� सिलल-कण, सजिन मधुर िनज4व द े कैसे िमलूँ अिभमािननी मT! दीप-सी युग-युग जलूँ पर वह सुभग इतना बता द,े फँूक से उसकी बुझँू तब bार ही मेरा पता द!े वह रह ेआराiय िचGमय मृमयी अनुरािगनी मT! सजल सीिमत पुतिलयाँ पर िचW अिमट असीम का वह, चाह वह अनGत बसती Vाण िकGत ुससीम सा यह, रज-कण� म� खेलती िकस िवरज िवधु की चाँदनी मT? ---- महादवेीमहादवेीमहादवेीमहादवेी वमा$वमा$वमा$वमा$

  • तमुतमुतमुतमु मझुमMमझुमMमझुमMमझुमM ि�यि�यि�यि�य! ! ! ! िफरिफरिफरिफर पिरचयपिरचयपिरचयपिरचय 5या5या5या5या तुम मुझम� िVय! िफर पिरचय Mया तारक म� छिव, Vाण� म� %मृित, पलक� म� नीरव पद की गित, लघु उर म� पुलक� की संसृित, भर लाई [ ँतरेी चंचल और क=ँ जग म� संचय Mया! तेरा मुख सहास अKणोदय, परछाई रजनी िवषादमय, वह जागृित वह न7द %वCमय, खेलखेल थकथक सोने द े मT समझँूगी सृिc Vलय Mया! तेरा अधरिवचंुिबत Nयाला तेरी ही ि%मतिमिeत हाला, तेरा ही मानस मधुशाला, िफर पूछँू Mया मेरे साकी! दतेे हो मधुमय िवषमय Mया? रोमरोम म� नंदन पुलिकत, साँससाँस म� जीवन शतशत, %वC %वC म� िवo अपिरिचत, मुझम� िनत बनते िमटते िVय! %वग� मुझे Mया िनिYय लय Mया? हा=ँ तो खोऊँ अपनापन पाऊँ िVयतम म� िनवा�सन, जीत बनूँ तरेा ही बंधन भर लाऊँ सीपी म� सागर िVय मेरी अब हार िवजय Mया?

  • िचिWत तू मT [ ँरेखाम, मधुर राग तू मT %वर संगम, तू असीम मT सीमा का म, काया छाया म� रह%यमय। Vेयिस िVयतम का अिभनय Mया तुम मुझम� िVय! िफर पिरचय Mया ---- महादवेीमहादवेीमहादवेीमहादवेी वमा$वमा$वमा$वमा$

  • सोयेसोयेसोयेसोये ह!ह!ह!ह! पेड़पेड़पेड़पेड़ कुहरे म� सोये हT पेड़। पा-पा नम ह ैयह सबूत Mया कम ह ै लगता ह ैिलपट कर टहिनय� से ब(त-ब(त रोय ेहT पेड़। जंगल का घर छूटा, कुछ कुछ भीतर टूटा शहर� म� बेघर होकर �