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वैष्णव पुराण वि�ष्णु भाग�त

नारद

गरुड़

पद्म

�राह

ब्रह्मा पुराण ब्रह्म ब्रह्माण्ड

ब्रह्म �ै�त�

मार्क� ण्डेय

भवि�ष्य

�ामन

शैव पुराण शि�� शि�ङ्ग

स्र्कन्द

अग्नि%न

मत्स्य

रू्कम�

अग्नि�� पुराण / Agni Purana

'अग्नि%न पुराण' ज्ञान र्का वि��ा� भण्डार है। स्�यं अग्नि%नदे� ने इसे महर्षि./ �शिसष्ठ र्को सुनाते हुए र्कहा था-

आ%नेये विह पुराणेऽस्मिस्मन् स�ा� वि�द्या: प्रदर्शि�/ता:*

अथा�त 'अग्नि%न पुराण' में सभी वि�द्याओं र्का �ण�न है। आर्कार में �घु होते हुए भी वि�द्याओं रे्क प्रर्का�न र्की दृष्टिC से यह पुराण अपना वि�शि�C महत्त्� रखता है। इस पुराण में तीन सौ वितरासी (383) अध्याय हैं। 'गीता' , 'रामायण', 'महाभारत', 'हरिर�ं� पुराण ' आदिद र्का परिरचय इस पुराण में है। परा-अपरा वि�द्याओं र्का �ण�न भी इसमें प्राप्त होता है। मत्स्य, रू्कम� आदिद अ�तारों र्की र्कथाए ंभी इसमें दी गई हैं। सृष्टिC-�ण�न, सन्ध्या, स्नान, पूजा वि�ष्टिS, होम वि�ष्टिS, मुद्राओं रे्क �क्षण, दीक्षा और अभिभ.ेर्क वि�ष्टिS, विन�ा�ण-दीक्षा रे्क संस्र्कार, दे�ा�य विनमा�ण र्क�ा,

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शि��ान्यास वि�ष्टिS, दे� प्रवितमाओं रे्क �क्षण, लि�/ग �क्षण तथा वि�ग्रह प्राण-प्रवितष्ठा र्की वि�ष्टिS, �ास्तु पूजा वि�ष्टिS, तत्त्� दीक्षा, खगो� �ास्त्र, तीथ� माहात्म्य, श्राद्ध र्कल्प, ज्योवित. �ास्त्र, संग्राम वि�जय, ��ीर्करण वि�द्या, औ.ष्टिS ज्ञान, �णा�श्रम Sम�, मास व्रत, दान माहात्म्य राजSम�, वि�वि�S स्�प्न �ण�न, �रु्कन-अप�रु्कन, रत्न परीक्षा, Sनु�bद शि�क्षा, व्य�हार रु्क��ता, उत्पात �ान्तिन्त वि�ष्टिS, अश्व शिचविर्कत्सा, शिसद्धिद्ध मन्त्र, वि�वि�S र्काव्य �क्षण, व्यार्करण और रस-अ�ंर्कार आदिद रे्क �क्षण, योग, ब्रह्मज्ञान, स्�ग�-नरर्क �ण�न, अथ� �ास्त्र, न्याय, मीमांसा, सूय� �ं� तथा सोम �ं� आदिद र्का �ण�न इस पुराण में विर्कया गया है।

�ैष्ण�ों र्की पूजा-पद्धवित और प्रवितमा आदिद रे्क �क्षणों र्का सांगोपांग �ण�न इस पुराण में �र्णिण/त है। शि�� और �शिi र्की पूजा र्का पूरा वि�Sान इसमें बताया गया है। �ेदान्त रे्क सभी वि�.यों र्को उत्तम रिरवित से इसमें समझा गया है। इसरे्क अ�ा�ा जी�न रे्क शि�ए उपयोगी सभी वि�Sाओं र्की जानर्कारी इस पुराण में ष्टिम� जाती है।

अग्नि%नदे� रे्क मुख से र्कहे जाने रे्क र्कारण ही इस पुराण र्का नाम 'अग्नि%न पुराण' पड़ा है। यह एर्क प्राचीन पुराण है। इसमें शि��, वि�ष्णु और सूय� र्की उपासना र्का �ण�न विनष्पक्ष भा� से विर्कया गया है। यही इसर्की प्राचीनता र्को द�ा�ता है। क्योंविर्क बाद में �ै� और �ैष्ण� मता��म्बिम्बयों में र्काफ़ी वि�रोS उत्पन्न हो गया था, द्धिजसरे्क र्कारण उनर्की पूजा-अच�ना में उनर्का �च�स्� बहुत-चढ़ार्कर दिदखाया जाने �गा था। एर्क-दूसरे रे्क मतों र्की विनन्दा र्की जाने �गी थी जबविर्क 'अग्नि%न पुराण' में इस प्रर्कार र्की र्कोई विनन्दा उप�ब्ध नहीं होती।

तीथu रे्क �ण�न में �ंर्कराचाय� द्वारा स्थाविपत चारों मठों- बद्रीनाथ, जगन्नाथ, द्वारर्कापुरी और रामेश्वरम र्का उल्�ेख इसमें नहीं है। इसरे्क अ�ा�ा र्का�ी रे्क �ण�न में वि�श्वनाथ तथा द�ाश्वमेघ घाट र्का �ण�न भी इसमें नहीं हैं यही बात इसर्की प्राचीनता र्को द�ा�ती है।

विवषय-सामग्रीवि�.य-सामग्री र्की दृष्टिC से 'अग्नि%न पुराण' र्को भारतीय जी�न र्का वि�श्वर्को� र्कहा जा सर्कता है पुराणों रे्क पांचों �क्षणों- सग�, प्रवितसग�, राज�ं�, मन्�न्तर और �ं�ानुचरिरत आदिद र्का �ण�न भी इस पुराण में प्राप्त होता है। विर्कन्तु इसे यहाँ संके्षप रूप में दिदया गया है। इस पुराण र्का �े. र्क�े�र दैविनर्क जी�न र्की उपयोगी शि�क्षाओं से ओतप्रोत है।

'अग्नि%न पुराण' में �रीर और आत्मा रे्क स्�रूप र्को अ�ग-अ�ग समझाया गया है। इद्धिन्द्रयों र्को यंत्र मात्र माना गया है और देह रे्क अंगों र्को 'आत्मा' नहीं माना गया है। पुराणर्कार' आत्मा' र्को हृदय में स्थिस्थत मानता है। ब्रह्म से आर्का�, आर्का� से �ायु, �ायु से अग्नि%न, अग्नि%न से ज� और ज� से पृथ्�ी होती है। इसरे्क बाद सूक्ष्म �रीर और वि�र सू्थ� �रीर होता है।

'अग्नि%न पुराण' ज्ञान माग� र्को ही सत्य स्�ीर्कार र्करता है। उसर्का र्कहना है विर्क ज्ञान से ही 'ब्रह्म र्की प्रान्तिप्त सम्भ� है, र्कम�र्काण्ड से नहीं। ब्रह्म र्की परम ज्योवित है जो मन, बुद्धिद्ध, शिचत्त और अहंर्कार से भिभन्न है। जरा, मरण, �ोर्क, मोह, भूख-प्यास तथा स्�प्न-सु.ुन्तिप्त आदिद से रविहत है।

इस पुराण में 'भग�ान' र्का प्रयोग वि�ष्णु रे्क शि�ए विर्कया गया है। क्योंविर्क उसमें 'भ' से भत्ता� रे्क गुण वि�द्यमान हैं और 'ग' से गमन अथा�त प्रगवित अथ�ा सृजनर्कत्ता� र्का बोS होता है। वि�ष्णु र्को सृष्टिC र्का पा�नर्कत्ता� और श्री�ृद्धिद्ध र्का दे�ता माना गया है। 'भग' र्का पूरा अथ� ऐश्वय�, श्री, �ीय�, �शिi, ज्ञान, �ैरा%य और य� होता है जो विर्क वि�ष्णु में विनविहत है। '�ान' र्का प्रयोग प्रत्यय रे्क रूप में हुआ है, द्धिजसर्का अथ� Sारण र्करने �ा�ा अथ�ा च�ाने �ा�ा होता है। अथा�त जो सृजनर्कता� पा�न र्करता हो, श्री�ृद्धिद्ध र्करने �ा�ा हो, य� और ऐश्वय� देने �ा�ा हो; �ह 'भग�ान' है। वि�ष्णु में ये सभी गुण वि�द्यमान हैं।

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'अग्नि%न पुराण' ने मन र्की गवित र्को ब्रह्म में �ीन होना ही 'योग' माना है। जी�न र्का अन्तिन्तम �क्ष्य आत्मा और परमात्मा र्का संयोग ही होना चाविहए। इसी प्रर्कार �णा�श्रम Sम� र्की व्याख्या भी इस पुराण में बहुत अच्छी तरह र्की गई है। ब्रह्मचारी र्को हिह/सा और विनन्दा से दूर रहना चाविहए। गृहस्थाश्रम रे्क सहारे ही अन्य तीन आश्रम अपना जी�न-विन�ा�ह र्करते हैं। इसशि�ए गृहस्थाश्रम सभी आश्रमों में श्रेष्ठ है। �ण� र्की दृष्टिC से विर्कसी रे्क साथ भेदभा� नहीं र्करना चाविहए। �ण� र्कम� से बने हैं, जन्म से नहीं।

समता की भाव�ाइस पुराण में दे� पूजा में समता र्की भा�ना Sारण र्करने पर ब� दिदया गया है और अपराS र्का प्रायभि�त्त सच्चे मन से र्करने पर जोर दिदया गया है। म्बिस्त्रयों रे्क प्रवित उदार दृष्टिCर्कोण अपनाते हुए पुराणर्कार र्कहता है-

नCे मृते प्रव्रद्धिजते क्�ी�े च पवितते पतौ। पंचत्स्�ापस्तु नारीणां पवितरन्यों वि�Sीयते ॥* अथा�त पवित रे्क नC हो जाने पर, मर जाने पर, संन्यास

ग्रहण र्कर �ेने पर, नपुंसर्क होने पर अथ�ा पवितत होने पर इन पांच अ�स्थाओं में स्त्री र्को दूसरा पवित र्कर �ेना चाविहए।

इसी प्रर्कार यदिद विर्कसी स्त्री रे्क साथ र्कोई व्यशिi ब�ात्र्कार र्कर बैठता है तो उस स्त्री र्को अग�े रजोद��न तर्क त्याज्य मानना चाविहए। रजस्��ा हो जाने रे्क उपरान्त �ह पुन: �ुद्ध हो जाती है। ऐसा मानर्कर उसे स्�ीर्कार र्कर �ेना चाविहए।

राजSम� र्की व्याख्या र्करते हुए पुराणर्कार र्कहता है विर्क राजा र्को प्रजा र्की रक्षा उसी प्रर्कार र्करनी चाविहए, द्धिजस प्रर्कार र्कोई गर्णिभ/णी-स्त्री अपने गभ� में प� रहे बच्चे र्की र्करती है।

शिचविर्कत्सा �ास्त्र र्की व्याख्या में पुराण र्कहता है विर्क समस्त रोग अत्यष्टिSर्क भोजन ग्रहण र्करने से होते हैं या विब�रु्क� भी भोजन न र्करने से। इसशि�ए सदै� सन्तुशि�त आहार �ेना चाविहए। अष्टिSर्कां�त: जड़ी-बूदिटयों द्वारा ही इसमें रोगों रे्क �मन र्का उपचार बताया गया है।

'अग्नि%न पुराण' में भूगो� सम्बन्धी ज्ञान, व्रत-उप�ास-तीथu र्का ज्ञान, दान-दभिक्षणा आदिद र्का महत्�, �ास्तु - �ास्त्र और ज्योवित. आदिद र्का �ण�न अन्य पुराणों र्की ही भांवित है। �स्तुत: तत्र्का�ीन समाज र्की आ�श्यर्कताओं रे्क अनुसार ही इसमें विनत्य जी�न र्की उपयोगी जानर्कारी दी गई है।

इस पुराण में व्रतों र्का र्काफ़ी वि�स्तृत �ण�न प्राप्त होता है। व्रतों र्की सूची वितशिथ, �ार, मास, ऋतु आदिद रे्क अनुसार अ�ग-अ�ग बनाई गई है। पुराणर्कार ने व्रतों र्को जी�न रे्क वि�र्कास र्का पथ माना है। अन्य पुराणों में व्रतों र्को दान-दभिक्षणा र्का साSना-मात्र मानर्कर मोह द्वारा उत्पन्न आर्कांक्षाओं र्की पूर्षित/ र्का माध्यम बताया गया है। �ेविर्कन 'अग्नि%न पुराण' में व्रतों र्को जी�न रे्क उत्थान रे्क शि�ए संर्कल्प र्का स्परूप माना गया है। साथ ही व्रत-उप�ास रे्क समय जी�न में अत्यन्त सादगी और Sार्मिम/र्क आचार-वि�चार र्का पा�न र्करने पर भी ब� दिदया गया है।

'अग्नि%न पुराण' में स्�प्न वि�चार और �रु्कन-अप�रु्कन पर भी वि�चार विर्कया गया है। पुरु. और स्त्री रे्क �क्षणों र्की चचा� इस पुराण र्का अत्यन्त महत्त्�पूण� अं� है।

सपu रे्क बारे में भी वि�स्तृत जानर्कारी इस पुराण में उप�ब्ध होती है। मन्त्र �शिi र्का महत्त्� भी इसमें स्�ीर्कार विर्कया गया है।

विवष्णु पुराण / Vishnu Purana

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वि�ष्णु पुराण, गीतापे्रस गोरखपुर र्का आ�रण पृष्ठ

अठारह महापुराणों में 'वि�ष्णु पुराण' र्का आर्कार सबसे छोटा है। विर्कन्तु इसर्का महत्� प्राचीन समय से ही बहुत अष्टिSर्क माना गया है। संस्रृ्कत वि�द्वानों र्की दृष्टिC में इसर्की भा.ा ऊंचे दजb र्की, साविहन्तित्यर्क, र्काव्यमय गुणों से सम्पन्न और प्रसादमयी मानी गई है। इस पुराण में भूमण्ड� र्का स्�रूप, ज्योवित., राज�ं�ों र्का इवितहास, रृ्कष्ण चरिरत्र आदिद वि�.यों र्को बडे़ तार्षिर्क/र्क ढंग से प्रस्तुत विर्कया गया है। खण्डन-मण्डन र्की प्र�ृभित्त से यह पुराण मुi है। Sार्मिम/र्क तत्त्�ों र्का सर� और सुबोS �ै�ी में �ण�न विर्कया गया है।

भग�ान वि�ष्णु God Vishnu

[संपादि�त करें ] सात हज़ार श्लोकइस पुराण में इस समय सात हज़ार श्लोर्क उप�ब्ध हैं। �ैसे र्कई ग्रन्थों में इसर्की श्लोर्क संख्या तेईस हज़ार बताई जाती है। यह पुराण छह भागों में वि�भi है।

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प्रह्लाद र्को गोद में विबठार्कर बैठी होशि�र्कापह�े भाग में सग� अथ�ा सृष्टिC र्की उत्पभित्त, र्का� र्का स्�रूप और ध्रु�, पृथ ुतथा प्रह्लाद र्की र्कथाए ंदी गई हैं। दूसरे भाग में �ोर्कों रे्क स्�रूप, पृथ्�ी रे्क नौ खण्डों, ग्रह-नक्षत्र, ज्योवित. आदिद र्का �ण�न है। तीसरे भाग में मन्�न्तर, �ेदों र्की �ाखाओं र्का वि�स्तार, गृहस्थ Sम� और श्राद्ध-वि�ष्टिS आदिद र्का उल्�ेख है। चौथे भाग में सूय� �ं� और चन्द्र �ं� रे्क राजागण तथा उनर्की �ं�ा�शि�यों र्का �ण�न है। पांच�ें भाग में श्रीरृ्कष्ण चरिरत्र और उनर्की �ी�ाओं र्का �ण�न है जबविर्क छठे भाग में प्र�य तथा मोक्ष र्का उल्�ेख है।

'वि�ष्णु पुराण' में पुराणों रे्क पांचों �क्षणों अथ�ा �ण्य�-वि�.यों-सग�, प्रवितसग�, �ं�, मन्�न्तर और �ं�ानुचरिरत र्का �ण�न है। सभी वि�.यों र्का सानुपावितर्क उल्�ेख विर्कया गया है। बीच-बीच में अध्यात्म-वि��ेचन, र्कशि�र्कम� और सदाचार आदिद पर भी प्रर्का� डा�ा गया है।

[संपादि�त करें ] रच�ाकार पराशर ऋविषइस पुराण रे्क रचनार्कार परा�र ऋवि. थे। ये महर्षि./ �शिसष्ठ रे्क पौत्र थे। इस पुराण में पृथ,ु ध्रु� और प्रह्लाद रे्क प्रसंग अत्यन्त रोचर्क हैं। 'पृथ'ु रे्क �ण�न में Sरती र्को समत� र्कररे्क रृ्कवि. र्कम� र्करने र्की पे्ररणा दी गई है। रृ्कवि.-व्य�स्था र्को चुस्त-दुरूस्त र्करने पर जोर दिदया गया है। घर-परिर�ार, ग्राम, नगर, दुग� आदिद र्की नीं� डा�र्कर परिर�ारों र्को सुरक्षा प्रदान र्करने र्की बात र्कही गई है। इसी र्कारण Sरती र्को 'पृथ्�ी' नाम दिदया गया । 'ध्रु�' रे्क आख्यान में सांसारिरर्क सुख, ऐश्वय�, Sन-सम्पभित्त आदिद र्को क्षण भंगुर अथा�त् ना��ान समझर्कर आम्बित्मर्क उत्र्क.� र्की पे्ररणा दी गई है। प्रह्लाद रे्क प्रर्करण में परोपर्कार तथा संर्कट रे्क समय भी शिसद्धांतों और आद�u र्को न त्यागने र्की बात र्कही गई है।

[संपादि�त करें ] कृष्ण चरिरत्र का वण)�'वि�ष्णु पुराण' में मुख्य रूप से रृ्कष्ण चरिरत्र र्का �ण�न है, यद्यविप संके्षप में राम र्कथा र्का उल्�ेख भी प्राप्त होता है। इस पुराण में रृ्कष्ण रे्क समाज से�ी, प्रजा पे्रमी, �ोर्क रंजर्क तथा �ोर्क विहताय स्�रूप र्को प्रर्कट र्करते हुए उन्हें महामान� र्की संज्ञा दी गई है।

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राSा-रृ्कष्ण, रृ्कष्ण जन्मभूष्टिम , मथुराRadha - Krishna, Krishna's Birth Place, Mathuraश्रीरृ्कष्ण ने प्रजा र्को संगठन-�शिi र्का महत्त्� समझाया और अन्याय र्का प्रवितर्कार र्करने र्की पे्ररणा दी। अSम� रे्क वि�रुद्ध Sम�-�शिi र्का परचम �हराया। 'महाभारत' में र्कौर�ों र्का वि�ना� और 'र्काशि�या दहन ' में नागों र्का संहार उनर्की �ोर्कोपर्कारी छवि� र्को प्रस्तुत र्करता है।

राम,�क्ष्मण और सीताRam, Laxman and Sita

रृ्कष्ण रे्क जी�न र्की �ोर्कोपयोगी घटनाओं र्को अ�ौविर्कर्क रूप देना उस महामान� रे्क प्रवित भशिi-भा�ना र्की प्रतीर्क है। इस पुराण में रृ्कष्ण चरिरत्र रे्क साथ-साथ भशिi और �ेदान्त रे्क उत्तम शिसद्धान्तों र्का भी प्रवितपादन हुआ है। यहाँ 'आत्मा' र्को जन्म-मृत्यु से रविहत, विनगु�ण और अनन्त बताया गया है। समस्त प्राभिणयों में उसी आत्मा र्का विन�ास है। ईश्वर र्का भi �ही होता है द्धिजसर्का शिचत्त �त्रु और ष्टिमत्र और ष्टिमत्र में समभा� रखता है, दूसरों र्को र्कC नहीं देता, र्कभी व्यथ� र्का ग�� नहीं र्करता और सभी में ईश्वर र्का �ास समझता है। �ह सदै� सत्य र्का पा�न र्करता है और र्कभी असत्य नहीं बो�ता ।

[संपादि�त करें ] राजवंशों का वृत्तान्तइस पुराण में प्राचीन र्का� रे्क राज�ं�ों र्का �ृत्तान्त शि�खते हुए र्कशि�युगी राजाओं र्को चेता�नी दी गई है विर्क सदाचार से ही प्रजा र्का मन जीता जा सर्कता है, पापमय आचरण से नहीं। जो सदा सत्य र्का पा�न र्करता है, सबरे्क प्रवित मैत्री भा� रखता है और दुख-सुख में सहायर्क होता है; �ही राजा श्रेष्ठ होता है। राजा र्का Sम� प्रजा र्का विहत संSान और रक्षा र्करना होता है। जो राजा अपने स्�ाथ� में डूबर्कर प्रजा र्की उपेक्षा र्करता है और सदा भोग-वि��ास में डूबा रहता है, उसर्का वि�ना� समय से पू�� ही हो जाता है।

[संपादि�त करें ] कत्त)व्यों का पाल�इस पुराण में म्बिस्त्रयों, साSुओं और �ूद्रों र्को श्रेष्ठ माना गया है। जो स्त्री अपने तन-मन से पवित र्की से�ा तथा सुख र्की र्कामना र्करती है, उसे र्कोई अन्य र्कम�र्काण्ड विर्कए विबना ही सद्गवित प्राप्त हो जाती है। इसी प्रर्कार �ूद्र भी अपने र्कत्त�व्यों र्का पा�न र्करते हुए �ह सब प्राप्त र्कर �ेते हैं, जो ब्राह्मणों र्को वि�भिभन्न प्रर्कार रे्क र्कम�र्काण्ड और तप आदिद से प्राप्त होता है। र्कहा गया है-

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�ूद्रो� विद्वज�ुश्रु.ातत्परैविद्वजसत्तमा: ।तथा द्धि�स्त्रीभिभरनायासात्पवित�ुश्रुयै� विह॥[1]

अथा�त �ूद्र ब्राह्मणों र्की से�ा से और म्बिस्त्रयां प्रवित र्की से�ा से ही Sम� र्की प्रान्तिप्त र्कर �ेती हैं।

[संपादि�त करें ] आध्याग्नि2मक चचा)'वि�ष्णु पुराण' रे्क अन्तिन्तम तीन अध्यायों में आध्याम्बित्मर्क चचा� र्करते हुए वित्रवि�S ताप, परमाथ� और ब्रह्मयोग र्का ज्ञान र्कराया गया है। मान�-जी�न र्को स��शे्रष्ठ माना गया है। इसरे्क शि�ए दे�ता भी �ा�ाष्टियत रहते हैं। जो मनुष्य माया-मोह रे्क जा� से मुi होर्कर र्कत्त�व्य पा�न र्करता है, उसे ही इस जी�न र्का �ाभ प्राप्त होता है। 'विनष्र्काम र्कम�' और 'ज्ञान माग�' र्का उपदे� भी इस पुराण में दिदया गया है। �ौविर्कर्क र्कम� र्करते हुए भी Sम� पा�न विर्कया जा सर्कता है। 'र्कम� माग�' और 'Sम� माग�'- दोनों र्का ही श्रेष्ठ माना गया है। र्कत्त�व्य र्करते हुए व्यशिi चाहे घर में रहे या �न में, �ह ईश्वर र्को अ�श्य प्राप्त र्कर �ेता है।

महाभारतर्का�ीन भारत र्का मानशिचत्र

[संपादि�त करें ] भारत भारत�.� र्को र्कम�भूष्टिम र्कहर्कर उसर्की मविहमा र्का संुदर बखान र्करते हुए पुराणर्कार र्कहता है-

इत: स्�ग�� मोक्ष� मध्यं चान्त� गम्यते।न खल्�न्यत्र मत्या�नां र्कम�भूमौ वि�Sीयते ॥[2]

अथा�त यहीं से स्�ग�, मोक्ष, अन्तरिरक्ष अथ�ा पाता� �ोर्क पाया जा सर्कता है। इस दे� रे्क अवितरिरi विर्कसी अन्य भूष्टिम पर मनुष्यों पर मनुष्यों रे्क शि�ए र्कम� र्का र्कोई वि�Sान नहीं है।

इस र्कम�भूष्टिम र्की भौगोशि�र्क रचना रे्क वि�.य में र्कहा गया है-

उत्तरं यत्समुद्रस्य विहमादे्र�ै� दभिक्षणम् । �.� त�ारतं नाम भारती यत्र संतवित ॥[3]

अथा�त समुद्र र्कें उत्तर में और विहमा�य रे्क दभिक्षण में जो पवि�त्र भूभाग स्थिस्थत है, उसर्का नाम भारत�.� है। उसर्की संतवित 'भारतीय' र्कह�ाती है।

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इस भारत भूष्टिम र्की �न्दना रे्क शि�ए वि�ष्णु पुराण र्का यह पद वि�ख्यात है-

गायन्तिन्त दे�ा: विर्क� गीतर्काविन Sन्यास्तु ते भारत भूष्टिमभागे।स्�गा�प�गा�स्पदमाग�भूते भ�न्तिन्त भूय: पुरु.ा: सुरत्�ात्।र्कमा�ण्ड संर्कस्थिल्पत त�त्��ाविन संन्यस्य वि�ष्णौ परमात्मभूते।अ�ाप्य तां र्कम�महीमनन्ते तस्मिस्म/ल्�यं ये त्�म�ा: प्रयान्तिन्त ॥[4]

अथा�त दे�गण विनरन्तर यही गान र्करते हैं विर्क द्धिजन्होंने स्�ग� और मोक्ष रे्क माग्� पर च�ने रे्क शि�ए भारतभूष्टिम में जन्म शि�या है, �े मनुष्य हम दे�ताओं र्की अपेक्षा अष्टिSर्क Sन्य तथा भा%य�ा�ी हैं। जो �ोग इस र्कम�भूष्टिम में जन्म �ेर्कर समस्त आर्कांक्षाओं से मुi अपने र्कम� परमात्मा स्�रूप श्री वि�ष्णु र्को अप�ण र्कर देते हैं, �े पाप रविहत होर्कर विनम�� हृदय से उस अनन्त परमात्म �शिi में �ीन हो जाते हैं। ऐसे �ोग Sन्य होते हैं।

'वि�ष्णु पुराण' में र्कशि� युग में भी सदाचरण पर ब� दिदया गया है। इसर्का आर्कार छोटा अ�श्य है, परंतु मान�ीय विहत र्की दृष्टिC से यह पुराण अत्यन्त �ोर्कविप्रय और महत्�पूण� है।

श्रीमद्भागवत पुराण / Shrimad Bhagvat Purana

भाग�त पुराण, गीतापे्रस गोरखपुर र्का आ�रण पृष्ठ इस र्कशि�र्का� में 'श्रीम�ाग�त पुराण' विहन्दू समाज र्का स�ा�ष्टिSर्क आदरणीय पुराण है। यह �ैष्ण�

सम्प्रदाय र्का प्रमुख ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में �ेदों, उपविन.दों तथा द��न �ास्त्र रे्क गूढ़ ए�ं रहस्यमय वि�.यों र्को अत्यन्त सर�ता रे्क साथ विनरूविपत विर्कया गया है। इसे भारतीय Sम� और संस्रृ्कवित र्का वि�श्वर्को� र्कहना अष्टिSर्क समीचीन होगा। सैर्कड़ों �.u से यह पुराण विहन्दू समाज र्की Sार्मिम/र्क, सामाद्धिजर्क और �ौविर्कर्क मया�दाओं र्की स्थापना में महत्�पूण� भूष्टिमर्का अदा र्करता आ रहा हैं।

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रृ्कष्ण

Krishna इस पुराण में सर्काम र्कम�, विनष्र्काम र्कम�, ज्ञान साSना, शिसद्धिद्ध साSना, भशिi, अनुग्रह, मया�दा, दै्वत-

अदै्वत, दै्वतादै्वत, विनगु�ण-सगुण तथा व्यi-अव्यi रहस्यों र्का समन्�य उप�ब्ध होता है। 'श्रीम�ाग�त पुराण' �ण�न र्की वि��दता और उदात्त र्काव्य-रमणीयता से ओतप्रोत है। यह वि�द्या र्का अक्षय भण्डार है। यह पुराण सभी प्रर्कार रे्क र्कल्याण देने �ा�ा तथा त्रय ताप-आष्टिSभौवितर्क, आष्टिSदैवि�र्क और आध्याम्बित्मर्क आदिद र्का �मन र्करता है। ज्ञान, भशिi और �ैरागय र्का यह महान ग्रन्थ है।

इस पुराण में बारह स्र्कन्ध हैं, द्धिजनमें वि�ष्णु रे्क अ�तारों र्का ही �ण�न है। नैष्टिम.ारण्य में �ौनर्कादिद ऋवि.यों र्की प्राथ�ना पर �ोमह.�ण रे्क पुत्र उग्रश्र�ा सूत जी ने इस पुराण रे्क माध्यम से श्रीरृ्कष्ण रे्क चौबीस अ�तारों र्की र्कथा र्कही है।

भग�ान वि�ष्णु

God Vishnu इस पुराण में �णा�श्रम-Sम�-व्य�स्था र्को पूरी मान्यता दी गई है तथा स्त्री, �ूद्र और पवितत व्यशिi र्को �ेद

सुनने रे्क अष्टिSर्कार से �ंशिचत विर्कया गया है। ब्राह्मणों र्को अष्टिSर्क महत्त्� दिदया गया है। �ैदिदर्क र्का� में म्बिस्त्रयों और �ूद्रों र्को �ेद सुनने से इसशि�ए �ंशिचत विर्कया गया था विर्क उनरे्क पास उन मन्त्रों र्को श्र�ण

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र्कररे्क अपनी स्मृवित में सुरभिक्षत रखने र्का न तो समय था और न ही उनर्का बौद्धिद्धर्क वि�र्कास इतना तीक्ष्ण था। विर्कन्तु बाद में �ैदिदर्क ऋवि.यों र्की इस भा�ना र्को समझे विबना ब्राह्मणों ने इसे रूढ़ बना दिदया और एर्क प्रर्कार से �ग�भेद र्को जन्म दे डा�ा।

'श्रीम�ाग�त पुराण' में बार-बार श्रीरृ्कष्ण रे्क ईश्वरीय और अ�ौविर्कर्क रूप र्का ही �ण�न विर्कया गया है। पुराणों रे्क �क्षणों में प्राय: पांच वि�.यों र्का उल्�ेख विर्कय गया है, विर्कन्तु इसमें दस वि�.यों-सग�-वि�सग�, स्थान, पो.ण, ऊवित, मन्�न्तर, ई�ानुर्कथा, विनरोS, मुशिi और आश्रय र्का �ण�न प्राप्त होता है (दूसरे अध्याय में इन दस �क्षणों र्का वि��ेचन विर्कया जा चुर्का है)। यहाँ श्रीरृ्कष्ण रे्क गुणों र्का बखान र्करते हुए र्कहा गया है विर्क उनरे्क भiों र्की �रण �ेने से विर्करात् हूण, आन्ध्र, पुशि�न्द, पुल्र्कस, आभीर, रं्कर्क, य�न और खस आदिद तत्र्का�ीन जावितयां भी पवि�त्र हो जाती हैं।

सृवि6-उ2पत्तित्त सृष्टिC-उत्पभित्त रे्क सन्दभ� में इस पुराण में र्कहा गया है- एर्कोऽहम्बहुस्याष्टिम। अथा�त् एर्क से बहुत होने र्की

इच्छा रे्क ��स्�रूप भग�ान स्�यं अपनी माया से अपने स्�रूप में र्का�, र्कम� और स्�भा� र्को स्�ीर्कार र्कर �ेते हैं। तब र्का� से तीनों गुणों- सत्�, रज और तम में क्षोभ उत्पन्न होता है तथा स्�भा� उस क्षोभ र्को रूपान्तरिरत र्कर देता है। तब र्कम� गुणों रे्क महत्� र्को जन्म देता है जो क्रम�: अहंर्कार, [[आर्का�], �ायु तेज, ज�, पृथ्�ी, मन, इद्धिन्द्रयां और सत्� में परिर�र्षित/त हो जाते हैं। इन सभी रे्क परस्पर ष्टिम�ने से व्यष्टिC-समष्टिC रूप हिप/ड और ब्रह्माण्ड र्की रचना होती है। यह ब्रह्माण्ड रूपी अण्डां एर्क हज़ार �.� तर्क ऐसे ही पड़ा रहा। वि�र भग�ान ने उसमें से सहस्त्र मुख और अंगों �ा�े वि�राट पुरु. र्को प्रर्कट विर्कया। उस वि�राट पुरु. रे्क मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षवित्रओं से क्षवित्रय, जांघों से �ैश्य और पैरों से �ूद्र उत्पन्न हुए।वि�राट पुरु. रूपी नर से उत्पन्न होने रे्क र्कारण ज� र्को 'नार' र्कहा गया। यह नार ही बाद में 'नारायण' र्कह�ाया। रु्क� दस प्रर्कार र्की सृष्टिCयां बताई गई हैं। महत्तत्�, अहंर्कार, तन्मात्र, इद्धिन्दयां, इद्धिन्द्रयों रे्क अष्टिSष्ठाता दे� 'मन' और अवि�द्या- ये छह प्रारृ्कत सृष्टिCयां हैं। इनरे्क अ�ा�ा चार वि�रृ्कत सृष्टिCयां हैं, द्धिजनमें स्था�र �ृक्ष, प�ु-पक्षी, मनुष्य और दे� आते हैं।

काल गण�ा 'श्रीमद्भागवत पुराण' में र्का� गणना भी अत्यष्टिSर्क सूक्ष्म रूप से र्की गई है। �स्तु रे्क सूक्ष्मतम स्�रूप

र्को 'परमाणु' र्कहते हैं। दो परमाणुओं से एर्क 'अणु' और तीन अणुओं से ष्टिम�र्कर एर्क 'त्रसरेणु' बनता है। तीन त्रसरेणुओं र्को पार र्करने में सूय� विर्करणों र्को द्धिजतना समय �गता है, उसे 'तु्रदिट' र्कहते हैं। तु्रदिट र्का सौ गुना 'र्का��ेS' होता है और तीन र्का��ेS र्का एर्क '��' होता है। तीन �� र्का एर्क 'विनमे.', तीन विनमे. र्का एर्क 'क्षण' तथा पांच क्षणों र्का एर्क 'र्काCा' होता है। पन्द्रह र्काCा र्का एर्क '�घु' , पन्द्रह �घुओं र्की एर्क 'नाविड़र्का' अथ�ा 'दण्ड' तथा दो नाविड़र्का या दण्डों र्का एर्क 'मुहूत�' होता है। छह मुहूत� र्का एर्क 'प्रहर' अथ�ा 'याम' होता है।

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नारद मुविन

Narad Muni एर्क चतुयु�ग (सत युग , ते्रता युग , द्वापर युग , र्कशि� युग ) में बारह हज़ार दिदव्य �.� होते हैं 'सतयुग' रे्क चार

हज़ार आठ सौ �.�, 'ते्रता' रे्क तीन हज़ार छह सौ �.�, 'द्वापर' रे्क दो हज़ार चार सौ �.� और 'र्कशि�युग' रे्क एर्क हज़ार दो सौ �.� होते हैं। एर्क दिदव्य �.� मनुष्यों रे्क तीन सौ साठ �.� रे्क बराबर होता है।

द्वारिरर्काSी� मद्धिन्दर , द्वारर्का

Dwarkadhish Temple, Dwarkaयुग वष)

सत युग चार हज़ार आठ सौ ते्रता युग तीन हज़ार छह सौ द्वापर युग दो हज़ार चार सौ र्कशि� युग एर्क हज़ार दो सौ

प्रत्येर्क मनु 7,16,114 चतुयु�गों तर्क अष्टिSर्कारी रहता है। ब्रह्मा रे्क एर्क 'र्कल्प' में चौदह मनु होते हैं। यह ब्रह्मा र्की प्रवितदिदन र्की सृष्टिC है। सो�ह वि�र्कारों (प्ररृ्कवित, महत्तत्�, अहंर्कार, पांच तन्मात्रांए, दो प्रर्कार र्की इद्धिन्द्रयां, मन और पंचभूत) से बना यह ब्रह्माण्डर्को� भीतर से पचास र्करोड़ योजन वि�स्तार �ा�ा है। उसरे्क ऊपर दस-दस आ�रण हैं। ऐसी र्करोड़ों ब्रह्माण्ड राशि�यां, द्धिजस ब्रह्माण्ड में परमाणु रूप में

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दिदखाई देती हैं, �ही परमात्मा र्का परमSाम है। इस प्रर्कार पुराणर्कार ने ईश्वर र्की महत्ता, र्का� र्की महानता और उसर्की तु�ना में चराचर पदाथ� अथ�ा जी� र्की अत्यल्पता र्का वि��द ्वि��ेचन प्रस्तुत विर्कया है।

प्रथम स्कंध

रृ्कष्ण अजु�न र्को ज्ञान देते हुए इस पुराण रे्क प्रथम स्रं्कS में उनतीस अध्याय हैं द्धिजनमें �ुर्कदे� जी ईश्वर भशिi र्का माहात्म्य सुनाते हैं।

भग�ान रे्क वि�वि�S अ�तारों र्का �ण�न, दे�र्षि./ नारद रे्क पू��जन्मों र्का शिचत्रण, राजा परीभिक्षत रे्क जन्म, र्कम� और मोक्ष र्की र्कथा, अश्वत्थामा र्का विनन्दनीय रृ्कत्य और उसर्की पराजय, भीष्म विपतामह र्का प्राणत्याग, श्रीरृ्कष्ण र्का द्वारर्का गमन, वि�दुर रे्क उपदे�, Sृतराष्ट्र, गान्धारी तथा रु्कन्ती र्की तन गमन ए�ं पाण्ड�ों र्का स्�गा�रोहण रे्क शि�ए विहमा�य में जाना आदिद घटनाओं र्का क्रम�ार र्कथानर्क रे्क रूप में �ण�न विर्कया गया है।

वि=तीय स्कंध इस स्रं्कS र्का प्रारम्भ भग�ान रे्क वि�राट स्�रूप �ण�न से होता है। इसरे्क बाद वि�भिभन्न दे�ताओं र्की

उपासना, गीता र्का उपदे�, श्रीरृ्कष्ण र्की मविहमा और 'रृ्कष्णाप�णमस्तु' र्की भा�ना से र्की गई भशिi र्का उल्�ेख है। इसमें बताया गया है विर्क सभी जी�ात्माओं में 'आत्मा' स्�रूप रृ्कष्ण ही वि�राजमान हैं। पुराणों रे्क दस �क्षणों और सृष्टिC-उत्पभित्त र्का उल्�ेख भी इस स्रं्कS में ष्टिम�ता है।

तृतीय स्कंध

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नृलिस/ह भग�ान

Narsingh Bhagwan तृतीय स्रं्कS उद्ध� और वि�दुर जी र्की भेंट रे्क साथ प्रारम्भ होता है। इसमें उद्ध� जी श्रीरृ्कष्ण र्की बा� -

�ी�ाओं तथा अन्य �ी�ा चरिरत्रों र्का उल्�ेख र्करते हैं। इसरे्क अ�ा�ा वि�दुर और मैते्रय ऋवि. र्की भेंट, सृष्टिC क्रम र्का उल्�ेख, ब्रह्मा र्की उत्पभित्त, र्का� वि�भाजन र्का �ण�न, सृष्टिC-वि�स्तार र्का �ण�न, �राह अ�तार र्की र्कथा, दिदवित रे्क आग्रह पर ऋवि. र्कश्यप द्वारा असमय दिदवित से सह�ास ए�ं दो अमंग�र्कारी राक्षस पुत्रों रे्क जन्म र्का �ाप देना जय-वि�जय र्का सनत्रु्कमार द्वारा �ाविपत होर्कर वि�ष्णु�ोर्क से विगरना और दिदवित रे्क गभ� से 'विहरण्याक्ष' ए�ं 'विहरण्यर्कशि�पु' रे्क रूप में जन्म �ेना, प्रह्लाद र्की भशिi, �राह अ�तार द्वारा विहरण्याक्ष और नृलिस/ह अ�तार द्वारा विहरण्यर्कशि�पु र्का �S, र्कद�म-दे�हूवित र्का वि��ाह, सांख्य �ास्त्र र्का उपदे� तथा र्कविप� मुविन रे्क रूप में भग�ान र्का अ�तार आदिद र्का �ण�न इस स्रं्कS में विर्कया गया है।

चतुथ) स्कंध इस स्रं्कS र्की प्रशिसद्धिद्ध 'पुरंजनोपाख्यान' रे्क र्कारण बहुत अष्टिSर्क है। इसमें पुरंजन नामर्क राजा और

भारतखण्ड र्की एर्क सुन्दरी र्का रूपर्क दिदया गया है। इस र्कथा में पुरंजन भोग-वि��ास र्की इच्छा से न�द्वार �ा�ी नगरी में प्र�े� र्करता है। �हां �ह य�नों और गंS�u रे्क आक्रमण से माना जाता है। रूपर्क यह है विर्क न�द्वार �ा�ी नगरी यह �रीर है। यु�ा�स्था में जी� इसमें स्�चं्छद रूप से वि�हार र्करता है। �ेविर्कन र्का�र्कन्या रूपी �ृद्धा�स्था रे्क आक्रमण से उसर्की �शिi नC हो जाती है और अन्त में उसमें आग �गा दी जाती है। रूपर्क र्को स्पC र्करते हुए नारद जी र्कहते हैं- "पुरंजन देहSारी जी� है और नौ द्वार �ा�ा नगर यह मान� देह है (नौ द्वार- दो आंखें, दो र्कान, दो नाशिसर्का शिछद्र, एर्क मुख, एर्क गुदा, एर्क लि�/ग)। अवि�द्या तथा अज्ञान र्की माया रूपी �ह सुन्दरी है। उसरे्क दास से�र्क दस इद्धिन्द्रयां हैं। इस नगर (�रीर) र्की रक्षा पंचमुखी सप� (पांच प्राण�ायु-प्राण, अपान, उदान, व्यान और समान) र्करते हैं। %यारह सेनापवित (पांच ज्ञानेद्धिन्द्रयां, पांच र्कमbद्धिन्द्रयां और %यारह�ां मन), पाप और पुण्य रे्क दो पविहए, तीन गुणों (सत्�, रज, तम) �ा�ी रथ र्की ध्�जा, त्�चा आदिद सात Sातुओं र्का आ�रण तथा इद्धिन्द्रयों द्वारा भोग शि�र्कार र्का प्रतीर्क है। र्का� र्की प्रब� गवित ए�ं �ेग ही �त्रु गंS�� चण्ड�ेग है। उसरे्क तीन सौ साठ गंS�� सैविनर्क �.� रे्क तीन सौ साठ दिदन ए�ं रावित्र हैं, जो �नै:-�नै: आयु र्का हरण र्करते हैं। पांच प्राण �ा�ा मनुष्य रात-दिदन उनसे युद्ध र्करता रहता है और हारता रहता है। र्का� भयग्रस्त जी� र्को ज्�र अथ�ा व्याष्टिS से नC र्कर देता है।इस रूपर्क र्का भा� यही है विर्क मनुष्य अपनी इद्धिन्द्रयों रे्क उपभोग से विनरन्तर भोग-वि��ास में पड़र्कर

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अपने �रीर र्का क्षय र्करता रहता है। �ृद्धा�स्था आने पर �शिi क्षीण होर्कर अनेर्क रोगों से ग्रस्त ए�ं नC हो जाता है। परिरजन उसरे्क पार्शिथ/� �रीर र्को आग र्की भेंट चढ़ा देते हैं।

पंचम स्कंध पंचम स्रं्कS में विप्रयव्रत, अ%नीध्र, राजा नाभिभ, ऋ.भ दे� तथा भरत आदिद राजाओं रे्क चरिरत्रों र्का �ण�न

है। यह भरत जड़ भरत है, �रु्कन्त�ा पुत्र नहीं। भरत र्का मृग मोह में मृग योविन में जन्म, वि�र गण्डर्क नदी रे्क प्रताप से ब्राह्मण रु्क� में जन्म तथा लिस/Sु सौ�ीर नरे� से आध्याम्बित्मर्क सं�ाद आदिद र्का उल्�ेख है। इसरे्क प�ात पुरंजनोपाख्यान र्की भांवित रूपर्क द्वारा प्राभिणयों रे्क संसार रूपी माग� र्का सुन्दर �ण�न विर्कया गया है। इसरे्क बाद भरत �ं� तथा भु�न र्को� र्का �ण�न है। तदुपरान्त गंगा�तरण र्की र्कथा, भारत र्का भौगोशि�र्क �ण�न तथा भग�ान वि�ष्णु र्का स्मरण शि��ुमार नामर्क ज्योवित. चक्र द्वारा र्करने र्की वि�ष्टिS बताई गई है। अंत में वि�भिभन्न प्रर्कार रे्क रौर� नरर्कों र्का �ण�न यहाँ विर्कया गया है।

राम ,�क्ष्मण और सीता

Ram, Laxman and Sita षष्ठ स्कंध .ष्ठ स्रं्कS में नारायण र्क�च और पंुस�न व्रत वि�ष्टिS र्का �ण�न जनोपयोगी दृष्टिC से विर्कया गया है। पंुस�न

व्रत र्करने से पुत्र र्की प्रान्तिप्त होती है। व्याष्टिSयों, रोगों तथा ग्रहों रे्क दुष्प्रभा�ों से मनुष्य र्की रक्षा होती है। एर्काद�ी ए�ं द्वाद�ी रे्क दिदन इसे अ�श्य र्करना चाविहए।इस स्रं्कS र्का प्रारम्भ र्कान्यरु्कब्ज रे्क विन�ासी अजाष्टिम� उजाष्टिम� उपाख्यान से होता है। अपनी मृत्यु रे्क समय अजाष्टिम� अपने पुत्र 'नारायण' र्को पुर्कारता है। उसर्की पुर्कार पर भग�ान वि�ष्णु रे्क दूत आते हैं और उसे परम�ोर्क �े जाते हैं। भाग�त Sम� र्की मविहमा बताते हुए वि�ष्णु-दूत र्कहते हैं विर्क चोर, �राबी, ष्टिमत्र-द्रोही, ब्रह्मघाती, गुरु-पत्नीगामी और चाहे विर्कतना भी बड़ा पापी क्यों न हो, यदिद �ह भग�ान वि�ष्णु रे्क नाम र्का स्मरण र्करता है तो उसरे्क र्कोदिट-र्कोदिट जन्मों रे्क पाप नC हो जाते हैं। विर्कन्तु इस र्कथन में अवित�योशिi दिदखाई देती है। परस्त्रीगामी और गुरु र्की पत्नी रे्क साथ समागम र्करने �ा�ा र्कभी सुखी नहीं हो सर्कता। यह तो जघन्य पाप है। ऐसा व्यशिi रौर� नरर्क में ही विगरता है।इसी स्रं्कS में दक्ष प्रजापवित रे्क �ं� र्का भी �ण�न प्राप्त होता है। नारायण र्क�च रे्क प्रयोग से इन्द्र र्को �त्रु पर भारी वि�जय प्राप्त होती है। इस र्क�च र्का प्रभा� मृत्यु रे्क प�ात भी रहता है। इसमें �त्रासुर

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राक्षस द्वारा दे�ताओं र्की पराजयस, दSीशिच ऋवि. र्की अस्थिस्थयों से �ज्र विनमा�ण तथा �त्रासुर रे्क �S र्की र्कथा भी दी गई है।

सप्तम स्कंध सप्तम स्रं्कS में भiराज प्रह्लाद और विहरण्यर्कशि�पु र्की र्कथा वि�स्तारपू��र्क है। इसरे्क अवितरिरi मान�

Sम�, �ण� Sम� और स्त्री Sम� र्का वि�स्तृत वि��ेचन है। भi प्रह्लाद रे्क र्कथानर्क रे्क माध्यम से Sम�, त्याग, भशिi तथा विनस्पृहता आदिद र्की चचा� र्की गई है।

अ6म स्कंध इस स्रं्कS में ग्राह द्वारा गजेन्द्र रे्क पर्कडे़ जाने पर वि�ष्णु द्वारा गजेन्द्र उद्धार र्की र्कथा र्का रोचर्क �ृत्तान्त

है। इसी स्र्कन्ध में समुद्र मन्थन और मोविहनी रूप में वि�ष्णु द्वारा अमृत बांटने र्की र्कथा भी है। दे�ासुर संग्राम और भग�ान रे्क '�ामन अ�तार ' र्की र्कथा भी इस स्रं्कS में है। अन्त में 'मत्स्या�तार' र्की र्कथा यह स्रं्कS समाप्त हो जाता है।

�वम स्कंध पुराणों रे्क एर्क �क्षण '�ं�ानुचरिरत' रे्क अनुसार, इस स्रं्कS में मनु ए�ं उनरे्क पांच पुत्रों रे्क �ं�-इक्ष्�ारु्क

�ं�, विनष्टिम �ं� , चंद्र �ं� , वि�श्वाष्टिमत्र �ं� तथा पुरू �ं� , भरत �ं� , मगS �ं� , अनु �ं� , द्रह्यु �ं� , तु��सु �ं� और यदु �ं� आदिद र्का �ण�न प्राप्त होता है। राम, सीता आदिद र्का भी वि�स्तार से वि�शे्ल.ण विर्कया गया है। उनरे्क आद�u र्की व्याख्या भी र्की गई है।

�शम स्कंध

भीम -जरासंS युद्ध

Bheem-Jarasandh Combat यह स्रं्कS दो खण्डों- 'पू�ा�द्ध� ' और 'उत्तराद्ध� ' में वि�भाद्धिजत है। इस स्रं्कS में श्रीरृ्कष्ण चरिरत्र वि�स्तारपू��र्क

है। प्रशिसद्ध 'रास पंचाध्यायी' भी इसमें प्राप्त होती है। 'पू�ा�द्ध� ' रे्क अध्यायों में श्रीरृ्कष्ण रे्क जन्म से �ेर्कर अकू्रर जी रे्क हस्मिस्तनापुर जाने तर्क र्की र्कथा है। 'उत्तराद्ध� ' में जरासंS से युद्ध, द्वारर्कापुरी र्का विनमा�ण, रुस्थिक्मणी हरण, श्रीरृ्कष्ण र्का गृहस्थ Sम�, शि��ुपा� �S आदिद र्का �ण�न है।यह स्रं्कS पूरी तरह से श्रीरृ्कष्ण �ी�ा से भरपूर है। इसर्का प्रारम्भ �सुदे� दे�र्की रे्क वि��ाह से प्रारम्भ होता है। भवि�ष्य�ाणी, रं्कस द्वारा दे�र्की रे्क बा�र्कों र्की हत्या, रृ्कष्ण र्का जन्म, रृ्कष्ण र्की बा� �ी�ाए,ं

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गोपा�न, रं्कस �S, अकू्रर जी र्की हस्मिस्तनापुर यात्रा, जरासंS से युद्ध, द्वारर्का प�ायन, द्वारर्का नगरी र्का विनमा�ण, रुस्थिक्मणी से वि��ाह, प्रदु्यम्न र्का जन्म, �म्बासुर �S, स्यमंतर्क मभिण र्की र्कथा, जाम्ब�ती और सत्यभामा से रृ्कष्ण र्का वि��ाह, उ.ा-अविनरूद्ध र्का पे्रम प्रसंग, बाणासुर रे्क साथ युद्ध तथा राजा नृग र्की र्कथा आदिद रे्क प्रसंग आते हैं। इसी स्रं्कS में रृ्कष्ण-सुदामा र्की मैत्री र्की र्कथा भी दी गई है।

एका�श स्कंध एर्काद� स्रं्कS में राजा जनर्क और नौ योविगयों रे्क सं�ाद द्वारा भग�ान रे्क भiों रे्क �क्षण विगनाए गए

हैं। ब्रह्म�ेत्ता दत्ताते्रय महाराज यदु र्को उपदे� देते हुए र्कहते हैं विर्क पृथ्�ी से Sैय�, �ायु से संतो. और विनर्शि�/प्तता, आर्का� से अपरिरशिछन्नता, ज� से �ुद्धता, अग्नि%न से विनर्शि�/प्तता ए�ं माया, चन्द्रमा से क्षण-भंगुरता, सूय� से ज्ञान ग्राहर्कता तथा त्याग र्की शि�क्षा ग्रहण र्करनी चाविहए। आगे उद्ध� र्को शि�क्षा देते हुए अठारह प्रर्कार र्की शिसद्धिद्धयों र्का �ण�न विर्कया गया है। इसरे्क बाद ईश्वर र्की वि�भूवितयों र्का उल्�ेख र्करते हुए �णा�श्रम Sम�, ज्ञान योग, र्कम�योग और भशिiयोग र्का �ण�न है।

=ा�श स्कंध इस स्रं्कS में राजा परीभिक्षत रे्क बाद रे्क राज�ं�ों र्का �ण�न भवि�ष्यर्का� में विर्कया गया है। इसर्का सार

यह है विर्क 138 �.� तर्क राजा प्रद्योतन, वि�र शि��ुनाग �ं� रे्क दास राजा, मौय� �ं� रे्क दस राजा 136 �.� तर्क, �ंुग �ं� रे्क दस राजा 112 �.� तर्क, र्कण्� �ं� रे्क चार राजा 345 �.� तर्क, वि�र आन्ध्र �ं� रे्क तीस राजा 456 �.� तर्क राज्य र्करेंगे। इसरे्क बाद आमीर,गद�भी, र्कड, य�न, तुर्क� , गुरुण्ड और मौन राजाओं र्का राज्य होगां मौन राजा 300 �.� तर्क और �े. राजा एर्क हज़ार विनन्यान�े �.� तर्क राज्य र्करेंगे। इसरे्क बाद �ाल्हीर्क �ं� और �ूद्रों तथा म्�ेच्छों र्का राज्य हो जाएगा। Sार्मिम/र्क और आध्याम्बित्मर्क रृ्कवित रे्क अ�ा�ा �ुद्ध साविहन्तित्यर्क ए�ं ऐवितहाशिसर्क रृ्कवित रे्क रूप में भी यह पुराण अत्यन्त महत्�पूण� है।

�ार� पुराण / Narad Purana

नारद पुराण, गीतापे्रस गोरखपुर र्का आ�रण पृष्ठ

'नारद पुराण' एर्क �ैष्ण� पुराण है। इस पुराण रे्क वि�.य में र्कहा जाता है विर्क इसर्का श्र�ण र्करने से पापी व्यशिi भी पाप मुi हो जाते हैं। पाविपयों र्का उल्�ेख र्करते हुए र्कहा गया है विर्क जो व्यशिi ब्रह्महत्या र्का दो.ी है, मदिदरापान र्करता है, मांस भक्षण र्करता है, �ेश्यागमन र्करता हे, �हसुन-प्याज खाता है तथा चोरी र्करता है; �ह पापी है। इस पुराण र्का प्रवितपाद्य वि�.य 'वि�ष्णु भशिi' है। नारद जी वि�ष्णु रे्क परम भi हैं।

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नारद मुविन Narad Muni

'नारद पुराण' रे्क प्रारम्भ में ऋवि.गण सूत जी से पांच प्रश्न पूछते हैं-

भग�ान वि�ष्णु र्को प्रसन्न र्करने र्का सर� उपाय क्या है? मनुष्यों र्को मोक्ष विर्कस प्रर्कार प्राप्त हो सर्कता है?

भग�ान रे्क भiों र्का स्�रूप रै्कसा हो और भशिi से क्या �ाभ है?

अवितशिथयों र्का स्�ागत-सत्र्कार रै्कसे र्करें?

�णu और आश्रमों र्का �ास्तवि�र्क स्�रूप क्या है?

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�क्ष्मी Lakshmi

सूत जी ने उपयु�i प्रश्नों र्का सीSा उत्तर नहीं दिदया। अविपतु सनत्रु्कमारों रे्क माध्यम से बताया विर्क भग�ान वि�ष्णु ने अपने दभिक्षण भाग से ब्रह्मा और �ाम भाग से शि�� र्को प्रर्कट विर्कया था। �क्ष्मी, उमा, सरस्�ती दे�ी और दुगा� आदिद वि�ष्णु र्की ही �शिiयां हैं। श्री वि�ष्णु जी र्को प्रसन्न र्करने र्का स�¨त्तम साSन श्रद्धा, भशिi और सदाचरण र्का पा�न र्करना है। जो भi विनष्र्काम भा� से ईश्वर र्की भशिi र्करता है और अपनी समस्त इद्धिन्द्रयों र्को मन द्वारा संयष्टिमत रखता है; �ही ईश्वर र्का साष्टिन्नध्य प्राप्त र्कर सर्कता है। यदिद ऐसा भशिi से ईश्वर र्का संयोग प्राप्त हो जाए तो उससे बड़ा �ाभ और क्या हो सर्कता है?

भारत में अवितशिथ र्को दे�ता रे्क समान माना गया है। अवितशिथ र्का स्�ागत दे�ाच�न समझर्कर ही र्करना चाविहए ं�णu और आश्रमों र्का महत्त्� प्रवितपादिदत र्करते हुए यह पुराण ब्राह्मण र्को चारों �णu में स��शे्रष्ठ मानता है। उनसे भेंट होने पर सदै� उनर्का नमन र्करना चाविहए। क्षवित्रय र्का र्काय� ब्राह्मणों र्की रक्षा र्करना है तथा �ैश्य र्का र्काय� ब्राह्मणों र्का भरण-पो.ण और उनर्की इच्छाओं र्की पूर्षित/ र्करना है। दण्ड-वि�Sान, वि��ाह तथा अन्य सभी र्कम�र्काण्डों में ब्राह्मणों र्को छूट और �ूद्रों र्को र्कठोर दण्ड देने र्की बात र्कही गई है।

भग�ती सरस्�ती Saraswati Devi

आश्रम व्य�स्था रे्क अंतग�त ब्रह्मचय� र्का र्कठोरता से पा�न र्करने तथा गृहस्थाश्रम में प्र�े� र्करने �ा�ों र्को अन्य तीनों आश्रमों (ब्रह्मचय�, �ानप्रस्थ और संन्यास) में वि�चरण र्करने �ा�ों र्का ध्यान रखने र्की बात र्कही गई है।

इस प्रर्कार �णा�श्रम व्य�स्था में यह पुराण ब्राह्मणों र्का ही स�ा�ष्टिSर्क पक्ष �ेता दिदखाई पड़ता है। क्षवित्रय और �ैश्यों रे्क प्रवित इसर्का स्�ाथ© दृष्टिCर्कोण है जबविर्क �ूद्रों रे्क प्रवित र्कठोरता र्का व्य�हार प्रवितपादिदत है। 'नारद पुराण' में गंगा�तरण र्का प्रसंग और गंगा रे्क विर्कनारे स्थिस्थत तीथu र्का महत्त्� वि�स्तार से �र्णिण/त विर्कया गया है। सूय��ं�ी राजा बाहु र्का पुत्र सगर था। वि�माता द्वारा वि�. दिदए जाने पर ही उसर्का नाम 'सगर' पड़ा था। सगर द्वारा �र्क और य�न जावितयों से युद्ध र्का �ण�न भी इस पुराण में ष्टिम�ता है। सगर �ं� में ही भगीरथ हुए थे। उनरे्क प्रयास से गंगा स्�ग� से पृथ्�ी पर आई थीं। इसीशि�ए गंगा र्को 'भागीरथी' भी र्कहते हैं।

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'नारद पुराण' र्को दो भागों में वि�भi विर्कया गया है- पू�� भाग और उत्तर भाग। पह�े भाग में एर्क सौ पच्चीस अध्याय और दूसरे भाग में बयासी अध्याय सम्बिम्मशि�त हैं। यह पुराण इस दृष्टिC से र्काफ़ी महत्त्�पूण� है विर्क इसमें अठारह पुराणों र्की अनुक्रमभिणर्का दी गई है।

पूव) भागपू�� भाग में ज्ञान रे्क वि�वि�S सोपानों र्का सांगोपांग �ण�न प्राप्त होता है। ऐवितहाशिसर्क गाथाए,ं गोपनीय Sार्मिम/र्क अनुष्ठान, Sम� र्का स्�रूप, भशिi र्का महत्त्� द�ा�ने �ा�ी वि�शिचत्र और वि��क्षण र्कथाए,ं व्यार्करण, विनरूi, ज्योवित., मन्त्र वि�ज्ञान, बारह महीनों र्की व्रत-वितशिथयों रे्क साथ जुड़ी र्कथाए,ं एर्काद�ी व्रत माहात्म्य, गंगा माहात्म्य तथा ब्रह्मा रे्क मानस पुत्रों-सनर्क, सनन्दन, सनातन, सनत्रु्कमार आदिद र्का नारद से सं�ाद र्का वि�स्तृत, अ�ौविर्कर्क और महत्त्�पूण� आख्यान इसमें प्राप्त होता है। अठारह पुराणों र्की सूची और उनरे्क मन्त्रों र्की संख्या र्का उल्�ेख भी इस भाग में संर्कशि�त है।

उत्तर भागउत्तर भाग में महर्षि./ �शिसष्ठ और ऋवि. मान्धाता र्की व्याख्या प्राप्त होती है। यहाँ �ेदों रे्क छह अंगों र्का वि�शे्ल.ण है। ये अंग हैं- शि�क्षा, र्कल्प, व्यार्करण, विनरूi, छंद और ज्योवित.। शि�क्षा- शि�क्षा रे्क अंतग�त मुख्य रूप से स्�र, �ण� आदिद रे्क उच्चारण र्की वि�ष्टिS र्का वि��ेचन है। मन्त्रों र्की तान, राग, स्�र, ग्राम और मूच्छ�ता आदिद रे्क �क्षण, मन्त्रों रे्क ऋवि., छंद ए�ं दे�ताओं र्का परिरचय तथा गणे� पूजा र्का वि�Sान इसमें बताया जाता है।

हनुमानHanuman

र्कल्प- र्कल्प में ह�न ए�ं यज्ञादिद अनुष्ठानों रे्क सम्बंS में चचा� र्की गई है। इसरे्क अवितरिरi चौदह मन्�न्तर र्का एर्क र्का� या 4,32,00,00,000 �.� होते हैं। यह ब्रह्मा र्का एर्क दिदन र्कह�ाता है। अथा�त् र्का� गणना र्का उल्�ेख तथा वि��ेचन भी विर्कया जाता है।

व्यार्करण- व्यार्करण में �ब्दों रे्क रूप तथा उनर्की शिसद्धिद्ध आदिद र्का पूरा वि��ेचन विर्कया गया है।

विनरूi- इसमें �ब्दों रे्क विन�ा�चन पर वि�चार विर्कया जाता है। �ब्दों रे्क रूढ़ यौविगर्क और योगारूढ़ स्�रूप र्को इसमें समझाया गया है।

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ज्योवित.- ज्योवित. रे्क अन्तग�त गभिणत अथा�त् शिसद्धान्त भाग, जातर्क अथा�त् होरा स्रं्कS अथ�ा ग्रह-नक्षत्रों र्का ��, ग्रहों र्की गवित, सूय� संक्रमण आदिद वि�.यों र्का ज्ञान आता है।

छंद- छंद रे्क अन्तग�त �ैदिदर्क और �ौविर्कर्क छंदों रे्क �क्षणों आदिद र्का �ण�न विर्कया जाता है। इन छन्दों र्को �ेदों र्का चरण र्कहा गया है, क्योंविर्क इनरे्क विबना �ेदों र्की गवित नहीं है। छंदों रे्क विबना �ेदों र्की ऋचाओं र्का सस्�र पाठ नहीं हो सर्कता। इसीशि�ए �ेदों र्को 'छान्दस' भी र्कहा जाता है। �ैदिदर्क छन्दों में गायत्री, �म्बरी और अवित�म्बरी आदिद भेद होते हैं, जबविर्क �ौविर्कर्क छन्दों में 'मावित्रर्क' और '�ार्णिण/र्क' भेद हैं। भारतीय गुरुरु्क�ों अथ�ा आश्रमों में शि�ष्यों र्को चौदह वि�द्याएं शिसखाई जाती थीं- चार �ेद, छह �ेदांग, पुराण, इवितहास, न्याय और Sम� �ास्त्र।

'नारद पुराण' में वि�ष्णु र्की पूजा रे्क साथ-साथ राम र्की पूजा र्का भी वि�Sान प्राप्त होता है। हनुमान और रृ्कष्णोपासना र्की वि�ष्टिSयां भी बताई गई हैं। र्का�ी और महे� र्की पूजा रे्क मन्त्र भी दिदए गए हैं। विर्कन्तु प्रमुख रूप से यह �ैष्ण� पुराण ही है। इस पुराण रे्क अन्त में गोहत्या और दे� विनन्दा र्को जघन्य पाप मानते हुए र्कहा गया है विर्क 'नारद पुराण' र्का पाठ ऐसे �ोगों रे्क सम्मुख र्कदाविप नहीं र्करना चाविहए।

गरुड़ पुराण / Garun Puran

गरुड़ पुराण, गीतापे्रस गोरखपुर र्का आ�रण पृष्ठ

�ैष्ण� सम्प्रदाय से सम्बम्बिन्धत 'गरुड़ पुराण' सनातन Sम� में मृत्यु रे्क बाद सद्गवित प्रदान र्करने �ा�ा माना जाता है। विर्कन्तु यह भ्रम र्की स्थिस्थवित है। प्राय: र्कम�र्काण्डी ब्राह्मण इस पुराण रे्क 'पे्रत खण्ड' र्को ही 'गरुड़ पुराण' मानर्कर यजमानों रे्क सम्मुख प्रस्तुत र्कर देते हैं और उन्हें �ूटते हैं।

विवष्णु भत्तिD

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गरुड़Garuda

�ास्तवि�र्क तथ्य यह है विर्क इस पुराण में वि�ष्णु भशिi र्का वि�स्तार से �ण�न है। भग�ान वि�ष्णु रे्क चौबीस अ�तारों र्का �ण�न ठीर्क उसी प्रर्कार यहाँ प्राप्त होता है, द्धिजस प्रर्कार 'श्रीम�ाग�त पुराण ' में उप�ब्ध होता है। आरम्भ में मनु से सृष्टिC र्की उत्पभित्त, ध्रु� चरिरत्र और बारह आदिदत्यों र्की र्कथा प्राप्त होती है। उसरे्क उपरान्त सूय� और चन्द्र ग्रहों रे्क मन्त्र, शि��-पा��ती मन्त्र, इन्द्र से सम्बम्बिन्धत मन्त्र, सरस्�ती रे्क मन्त्र और नौ �शिiयों रे्क वि�.य में वि�स्तार से बताया गया है।

उन्नीस हज़ार श्लोक'गरुड़ पुराण' में उन्नीस हज़ार श्लोर्क र्कहे जाते हैं, विर्कन्तु �त�मान समय में रु्क� सात हज़ार श्लोर्क ही उप�ब्ध हैं। इस पुराण र्को दो भागों में रखर्कर देखना चाविहए। पह�े भाग में वि�ष्णु भशिi और उपासना र्की वि�ष्टिSयों र्का उल्�ेख है तथा मृत्यु रे्क उपरान्त प्राय: 'गरुड़ पुराण' रे्क श्र�ण र्का प्रा�Sान है। दूसरे भाग में पे्रत र्कल्प र्का वि�स्तार से �ण�न र्करते हुए वि�भिभन्न नरर्कों में जी� रे्क पड़ने र्का �ृत्तान्त है। इसमें मरने रे्क बाद मनुष्य र्की क्या गवित होती है, उसर्का विर्कस प्रर्कार र्की योविनयों में जन्म होता है, पे्रत योविन से मुi रै्कसे पाई जा सर्कती है, श्राद्ध और विपतृ र्कम� विर्कस तरह र्करने चाविहए तथा नरर्कों रे्क दारूण दुख से रै्कसे मोक्ष प्राप्त विर्कया जा सर्कता है आदिद र्का वि�स्तारपू��र्क �ण�न प्राप्त होता है।

ध्रु� जी मद्धिन्दर, मSु�नDhruva Ji Temple, Madhuvan

कथाइस पुराण में महर्षि./ र्कश्यप और तक्षर्क नाग र्को �ेर्कर एर्क सुन्दर उपाख्यान दिदया गया है। ऋवि. �ाप से जब राजा परीभिक्षत र्को तक्षर्क नाग डसने जा रहा था, तब माग� में उसर्की भेंट र्कश्यप ऋवि. से हुई। तक्षर्क ने ब्राह्मण र्का �े� Sरर्कर उनसे पूछा विर्क �े इस तरह उता��ी में र्कहां जा रहे हैं? इस पर र्कश्यप ने र्कहा विर्क तक्षर्क नाग महाराज परीभिक्षत र्को डसने �ा�ा है। मैं उनर्का वि�. प्रभा� दूर र्कररे्क उन्हें पुन: जी�न दे दंूगा। यह सुनर्कर तक्षर्क ने अपना परिरचय दिदया और उनसे �ौट जाने रे्क शि�ए र्कहा। क्योंविर्क उसरे्क वि�.-प्रभा� से आज तर्क र्कोई भी व्यशिi जीवि�त नहीं बचा था। तब र्कश्यप ऋवि. ने र्कहा विर्क �े अपनी मन्त्र �शिi से राज परीभिक्षत र्का वि�.-प्रभा�

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दूर र्कर देंगे। इस पर तक्षर्क ने र्कहा विर्क यदिद ऐसी बात है तो आप इस �ृक्ष र्को वि�र से हरा-भरा र्कररे्क दिदखाइए। मैं इसे डसर्कर अभी भस्म विर्कए देता हूं। तक्षर्क ने �ृक्ष र्को अपने वि�. प्रभा� से तत्र्का� भस्म र्कर दिदया।

इस पर र्कश्यप ऋवि. ने उस �ृक्ष र्की भस्म एर्कत्र र्की और अपना मन्त्र �ंूर्का। तभी तक्षर्क ने आ�य� से देखा विर्क उस भस्म में से र्कोंप� �ूट आई और देखते ही देखते �ह हरा-भरा �ृक्ष हो गया। हैरान तक्षर्क ने ऋवि. से पूछा विर्क �े राजा र्का भ�ा र्करने विर्कस र्कारण से जा रहे हैं? ऋवि. ने उत्तर दिदया विर्क उन्हें �हां से प्रचुर Sन र्की प्रान्तिप्त होगी। इस पर तक्षर्क ने उन्हें उनर्की सम्भा�ना से भी अष्टिSर्क Sन देर्कर �ापस भेज दिदया। इस पुराण में र्कहा गया है विर्क र्कश्यप ऋवि. र्का यह प्रभा� 'गरुड़ पुराण' सुनने से ही पड़ा था।

इस पुराण में नीवित सम्बन्धी सार तत्त्�, आयु�bद, गया तीथ� माहात्म्य श्राद्ध वि�ष्टिS , द�ा�तार चारिरत्र तथा सूय�-चन्द्र �ं�ों र्का �ण�न वि�स्तार से प्राप्त होता है। बीच-बीच में रु्कछ अन्य �ं�ों र्का भी उल्�ेख है। इसरे्क अवितरिरi गारूड़ी वि�द्या मन्त्र पभिक्ष ॐ स्�ाहा और 'वि�ष्णु पंजर स्तोत्र' आदिद र्का �ण�न भी ष्टिम�ता है।

'गरुड़ा पुराण' में वि�वि�S रत्नों और मभिणयों रे्क �क्षणों र्का �ण�न वि�स्तारपू��र्क विर्कया गया है। साथ ही ज्योवित. �ास्त्र, सामुदिद्रर्क �ास्त्र, सांपों रे्क �क्षण, Sम� �ास्त्र, वि�नायर्क �ान्तिन्त, �णा�श्रम Sम� व्य�स्था, वि�वि�S व्रत-उप�ास, सम्पूण� अCांग योग, पवितव्रत Sम� माहात्म्य, जप-तप-र्कीत�न और पूजा वि�Sान आदिद र्का भी सवि�स्तार उल्�ेख हुआ है। इस पुराण रे्क 'पे्रत र्कल्प' में पैतीस अध्याय हैं। द्धिजसर्का प्रच�न सबसे अष्टिSर्क विहन्दुओं रे्क सनातन Sम� में है। इन पैंतीस अध्यायों में यम�ोर्क, पे्रत�ोर्क और पे्रत योविन क्यों प्राप्त होती है- उसरे्क र्कारण, दान मविहमा, पे्रत योविन से बचने रे्क उपाय, अनुष्ठान और श्राद्ध र्कम� आदिद र्का �ण�न वि�स्तार से विर्कया गया है। ये सारी बातें मृत्यु र्को प्राप्त व्यशिi रे्क परिर�ार �ा�ों पर गहरा प्रभा� डा�ती हैं। �े दिद�ंगत व्यशिi र्की सद्गवित और मोक्ष रे्क शि�ए पुराण-वि�Sान रे्क अनुसार भरपूर दान-दभिक्षणा देने रे्क शि�ए तत्पर हो जाते हैं। इस पुराण र्का उदे्दश्य भी यही जान पड़ता है।

मृ2यु के बा� क्या होता हैयह एर्क ऐसा प्रश्न है द्धिजसर्का उत्तर जानने र्की इच्छा सभी र्को होती है। सभी अपने-अपने तरीके़ से इसर्का उत्तर भी देते हैं। 'गरुड़ पुराण' भी इसी प्रश्न र्का उत्तर देता है। जहां Sम� �ुद्ध और सत्य आचरण पर ब� देता है, �हीं पाप-पुण्य, नैवितर्कता-अनैवितर्कता, र्कत्त�व्य-अर्कत्त�व्य तथा इनरे्क �ुभ-अ�ुभ ��ों पर भी वि�चार र्करता है। �ह इसे तीन अ�स्थाओं में वि�भi र्कर देता है। पह�ी अ�स्था में समस्त अचे्छ-बुरे र्कमu र्का �� इसी जी�न में प्राप्त होता है। दूसरी अ�स्था में मृत्यु रे्क उपरान्त मनुष्य वि�भिभन्न चौरासी �ाख योविनयों में से विर्कसी एर्क में अपने र्कमा�नुसार जन्म �ेता है। तीसरी अ�स्था में �ह अपने र्कमu रे्क अनुसार स्�ग� या नरर्क में जाता है।

स्वग)-�रकविहन्दू Sम� �ास्त्रों में इन तीन प्रर्कार र्की अ�स्थाओं र्का खु�र्कर वि��ेचन हुआ है। द्धिजस प्रर्कार चौरासी �ाख योविनयां हैं, उसी प्रर्कार चौरासी �ाख नरर्क भी हैं द्धिजन्हें मनुष्य अपने र्कम��� रे्क रूप में भोगता है। 'गरुड़ पुराण' ने इसी स्�ग�-नरर्क �ा�ी व्य�स्था र्को चुनर्कर उसर्का वि�स्तार से �ण�न विर्कया है।

इसी र्कारण भयभीत व्यशिi अष्टिSर्क दान-पुण्य र्करने र्की ओर प्र�ृत्त होता है। 'पे्रत र्कल्प' में र्कहा गया है विर्क नरर्क में जाने रे्क प�ात प्राणी पे्रत बनर्कर अपने परिरजनों और सम्बम्बिन्धयों र्को अनेर्कानेर्क र्कCों से प्रताविड़त र्करता रहता है। �ह परायी स्त्री और पराये Sन पर दृष्टिC गड़ाए व्यशिi र्को भारी र्कC पहुंचाता है।

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जो व्यशिi दूसरों र्की सम्पभित्त हड़प र्कर जाता है, ष्टिमत्र से द्रोह र्करता है, वि�श्वासघात र्करता है, ब्राह्मण अथ�ा मद्धिन्दर र्की सम्पभित्त र्का हरण र्करता है, म्बिस्त्रयों और बच्चों र्का संग्रहीत Sन छीन �ेता है, परायी स्त्री से व्यभिभचार र्करता है, विनब�� र्को सताता है, ईश्वर में वि�श्वास नहीं र्करता, र्कन्या र्का वि�क्रय र्करता है; माता, बहन, पुत्री, पुत्र, स्त्री, पुत्रबSु आदिद रे्क विनद¨. होने पर भी उनर्का त्याग र्कर देता है, ऐसा व्यशिi पे्रत योविन में अ�श्य जाता है। उसे अनेर्कानेर्क नारर्कीय र्कC भोगना पड़ता है। उसर्की र्कभी मुशिi नहीं होती ।

ऐसे व्यशिi र्को जीते-जी अनेर्क रोग और र्कC घेर �ेते हैं। व्यापार में हाविन, गभ�ना�, गृह र्क�ह, ज्�र, रृ्कवि. हाविन, सन्तान मृत्यु आदिद से �ह दुखी होता रहता है अर्का� मृत्यु उसी व्यशिi र्की होती है, जो Sम� र्का आचारण और विनयमों र्को पा�न नहीं र्करता तथा द्धिजसरे्क आचार-वि�चार दूवि.त होते हैं। उसरे्क दुष्र्कम� ही उसे 'अर्का� मृत्यु' में Sरे्क� देते हैं।

'गरुड़ पुराण' में पे्रत योविन और नरर्क में पड़ने से बचने रे्क उपाय भी सुझाए गए हैं। उनमें स�ा�ष्टिSर्क प्रमुख उपाय दान-दभिक्षणा, विपण्डदान तथा श्राद्ध र्कम� आदिद बताए गए हैं।

स�ा�ष्टिSर्क प्रशिसद्ध इस पे्रत र्कल्प रे्क अवितरिरi इस पुराण में 'आत्मज्ञान' रे्क महत्त्� र्का भी प्रवितपादन विर्कया गया है। परमात्मा र्का ध्यान ही आत्मज्ञान र्का सबसे सर� उपाय है। उसे अपने मन और इद्धिन्द्रयों पर संयम रखना परम आ�श्यर्क है। इस प्रर्कार र्कम�र्काण्ड पर स�ा�ष्टिSर्क ब� देने रे्क उपरान्त 'गरुड़ पुराण' में ज्ञानी और सत्यव्रती व्यशिi र्को विबना र्कम�र्काण्ड विर्कए भी सद्गवित प्राप्त र्कर पर�ोर्क में उच्च स्थान प्राप्त र्करने र्की वि�ष्टिS बताई गई है।

पद्म पुराण / Padma Purana

पद्म पुराण, गीतापे्रस गोरखपुर र्का आ�रण पृष्ठ 'पद्म पुराण' एर्क वि��ा� पुराण है। रे्क�� 'स्र्कन्द पुराण ' ही इससे बड़ा है। इस पुराण रे्क श्लोर्कों र्की

संख्या पचास हज़ार है। �ैसे तो इस पुराण से संबंष्टिSत सभी वि�.यों र्का �ण�न स्थान वि��े. पर आ गया है, विर्कन्तु इसमें प्रSानता उपाख्यानों और र्कथानर्कों र्की है। ये र्कथानर्क तीथu तथा व्रत सम्बन्धी नहीं हैं, �रन् पौराभिणर्क पुरु.ों और राजाओं से सम्बम्बिन्धत हैं। अन्य पुराणों में यही र्कथानर्क द्धिजस रूप में प्राप्त होते हैं, यहाँ ये दूसरे रूप में हैं। ये आख्यान और उपाख्यान स��था न�ीन, वि�शिचत्र और सामान्य पाठर्कों र्को चमत्रृ्कत र्कर देने �ा�े हैं।

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शि��

Shiva 'पद्म पुराण' प्रमुख रूप से �ैष्ण� पुराण है। इस पुराण र्की मान्यता रे्क अनुसार 'वि�ष्णु' र्की उपासना र्का

प्रवितपादन र्करने �ा�े पुराण ही सान्तित्�र्क हैं। इस पुराण में प्रसंग�� शि�� र्का �ण�न भी प्राप्त होता है। विर्कन्तु यह �ण�न सम्प्रदाय�ाद से ग्रशिसत न होर्कर उत्तम रूप में प्रस्तुत विर्कया गया है। यद्यविप वित्रदे�- ब्रह्मा, वि�ष्णु और महे� में उन्हें वि�ष्णु से स�¨च्च नहीं माना गया है। यदिद इस पुराण र्को वि�ष्णु र्की उपासना रे्क र्कारण 'सान्तित्�र्क' माना गया है तो ब्रह्मा र्की उपासना र्करने �ा�े पुराणों र्को 'राजस' श्रेणी में रखा गया हैं इसरे्क अ�ा�ा शि��ोपासना से सम्बम्बिन्धत पुराणों र्को 'तामस' श्रेणी र्का माना गया है, जैसे- 'शि�� पुराण ' ,'लि�/ग पुराण ','रू्कम� पुराण ' ,'मत्स्य पुराण ','स्र्कन्द पुराण ' और 'अग्नि%न पुराण '।

'पद्म पुराण' र्को पांच खण्डों में वि�भाद्धिजत विर्कया गया है। ये खण्ड इस प्रर्कार हैं-सृष्टिC खण्ड, भूष्टिम खण्ड, स्�ग� खण्ड, पाता� खण्ड और उत्तर खण्ड। इसरे्क अ�ा�ा ब्रह्म खण्ड और विक्रयायोग सागर खण्ड र्का �ण�न भी ष्टिम�ता है। परन्तु 'नारद पुराण ' में जो खण्ड सूची है, उसमें पांच ही खण्ड दिदए गए हैं। उसमें ब्रह्म खण्ड और विक्रयायोग सागर खण्ड र्का उल्�ेख नहीं है। प्राय: पांच खण्डों र्का वि��ेचन ही पुराण सम्बन्धी Sार्मिम/र्क पुस्तर्कों में प्राप्त होता है। इसशि�ए यहाँ पांच खण्डों पर ही प्रर्का� डा�ा जा रहा है।

सृवि6 खण्ड सृष्टिC खण्ड में बयासी अध्याय हैं। यह पांच उपखण्डों- पौष्र्कर खण्ड, तीथ� खण्ड, तृतीय प�� खण्ड,

�ं�ानुर्कीत�न खण्ड तथा मोक्ष खण्ड में वि�भाद्धिजत है। इसमें मनुष्यों र्की सात प्रर्कार र्की सृष्टिC रचना र्का वि��रण है। साथ ही सावि�त्री सत्य�ान उपाख्यान, पुष्र्कर आदिद तीथu र्का �ण�न और प्रभंजन, Sम�मूर्षित/, नरर्कासुर, र्कार्षित/रे्कय आदिद र्की र्कथाए ंहैं। इसमें विपतरों र्का श्राद्धर्कम�, प��तों, द्वीपों, सप्त सागरों आदिद र्का �ण�न भी प्राप्त होता है। आदिदत्य �यन और रोविहण चन्द्र �यन व्रत र्को अत्यन्त पुण्य�ा�ी, मंग�र्कारी और सुख-सौभा%य र्का सूचर्क बताया गया है।

तीथ� माहात्म्य रे्क प्रसंग में यह खण्ड इस बात र्की सूचना देता है विर्क विर्कसी भी �ुक्� पक्ष में मंग��ार रे्क दिदन या चतुथ© वितशिथ र्को जो व्यशिi श्रद्धापू��र्क श्राद्धर्कम� र्करता है, �ह र्कभी पे्रत योविन में नहीं पड़ता। श्रीरामचन्द्र जी ने अपने विपता र्का श्राद्ध पुष्र्कर तीथ� में जार्कर विर्कया था, इसर्का �ण�न भी प्राप्त होता है। रामेश्वरम में ज्योवितर्लिं�/ग र्की पूजा र्का उल्�ेख भी इसमें ष्टिम�ता है। र्कार्षित/रे्कय द्वारा तारर्कासुर रे्क �S र्की र्कथा भी इसमें प्राप्त होती है।

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इस खण्ड में बताया गया है विर्क एर्काद�ी रे्क प्रवितदिदन आं��े रे्क ज� से स्नान र्करने पर ऐश्वय� और �क्ष्मी र्की प्रान्तिप्त होती है। आ�ं�े र्की मविहमा र्का बखान र्करने रे्क उपरान्त तु�सी र्की मविहमा र्का भी �ण�न है। तु�सी र्का पौSा घर में रहने से भूत-पे्रत, रोग आदिद र्कभी प्र�े� नहीं र्करते। इसमें व्यास जी गंगाज� रे्क एर्क मू�मन्त्र र्का भी �ण�न र्करते हैं। उनरे्क मतानुसार जो व्यशिi विनम्र�त् मन्त्र र्का एर्क बार जप र्कररे्क गंगाज� से स्नान र्करता है, �ह भग�ान वि�ष्णु रे्क चरणों र्का संयोग प्राप्त र्कर �ेता है।

मन्त्र इस प्रर्कार है, जो सृष्टिC खण्ड रे्क गंगा माहात्म्य-45 में �र्णिण/त है- ॐ नमो गंगायै वि�श्वरूविपण्यै नारायण्यै नमो नम:।

अथा�त् वि�श्व रूप �ा�ी साक्षात् नारायण स्�रूप भग�ती गंगा रे्क शि�ए मेरा बारम्बार प्रणाम है।

गणे�

Ganesha गंगा र्की स्तुवित रे्क बाद श्रीगणे� और सूय� र्की स्तुवित र्की गई है तथा संक्रान्तिन्त र्का� रे्क पुण्य �� र्का

उल्�ेख विर्कया गया है।

भूमिम खण्ड भूष्टिम खण्ड में अनेर्क आख्यान हैं। ब्रह्मचय�, दान, मान� Sम� आदिद र्का �ण�न इस खण्ड में है। जैन Sम�

र्का वि��ेचन भी इसमें है। भूष्टिम खण्ड रे्क प्रारम्भ में शि�� �मा� ब्राह्मण द्वारा विपतृ भशिi और �ैष्ण� भशिi र्की सुन्दर गाथा प्रस्तुत र्की गई है। इसरे्क उपरान्त सोम �मा� द्वारा भग�ान वि�ष्णु र्की भा�ना युi स्तुवित है। इसरे्क बाद इसरे्क उपरान्त सोम �मा� भग�ान वि�ष्णु र्की भा�ना युi स्तुवित है। इसरे्क बाद �ेन पुत्र राजा पृथ ुरे्क जन्म ए�ं चरिरत्र, गन्ध�� रु्कमार सु�ंख द्वारा मृत्यु अथ�ा यम र्कन्या सुनीया र्को �ाप, अंग र्की तपस्या, �ेन द्वारा वि�ष्णु र्की उपासना और पृथ ुरे्क आवि�भा�� र्की र्कथा र्का पुन: आ�त�न, वि�ष्णु द्वारा दान र्का� रे्क भेदों र्का �ेन र्को उपदे�, सुर्का�ा र्की र्कथा, �ूर्कर-�ूर्करी र्की उपाख्यान, विपप्प� र्की विपतृ तीथ� प्रसंग में तपस्या, सुर्कमा� र्की विपतृ भशिi, भग�ान शि�� र्की मविहमा और भग�ान वि�ष्णु र्को प्रसन्न र्करने �ा�ा स्तोत्र आदिद र्का उल्�ेख प्राप्त होता है।

ययावित र्की जरा�स्था, र्कामर्कन्या से भेंट तथा पुत्र पुरू द्वारा यौ�न दान र्की प्रशिसद्ध र्कथा भी इस खण्ड में दी गई है। अन्त में गुरु तीथ� रे्क प्रसंग में महर्षि./ च्य�न र्की र्कथा, रंु्कज� पक्षी द्वारा अपने पुत्र उज्ज्�� र्को ज्ञानव्रत और स्तोत्र र्का उपदे� आदिद र्का �ण�न भी इस खण्ड में ष्टिम�ता हे। साथ ही '�रीरोत्पभित्तह' र्का भी सुन्दर वि��ेचन इस खण्ड में विर्कया गया है।

स्वग) खण्ड

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स्�ग� खण्ड में बासठ अध्याय हैं। इसमें पुष्र्कर तीथ� ए�ं नम�दा रे्क तट तीथu र्का बड़ा ही मनोहारी और पुण्य देने �ा�ा �ण�न है। साथ ही �रु्कन्त�ा - दुष्यन्त उपाख्यान, ग्रह-नक्षत्र, नारायण, दिद�ोदास, हरिर�न्द्र, मांSाता आदिद रे्क चरिरत्रों र्का अत्यन्त सुन्दर �ण�न यहाँ प्राप्त होता है। खण्ड रे्क प्रारम्भ में भारत�.� रे्क �ण�न में रु्क� सात प��तों, एर्क सौ बाईस नदिदयों, उत्तर भारत रे्क एर्क सौ पैंतीस तथा दभिक्षण भारत रे्क इक्या�न जनपदों और म�ेच्छ राजाओं र्का भी इसमें �ण�न है। इसी सन्दभ� में बीस बशि�ष्ठ राजाओं र्की सूची भी दी गई है। साथ ही ब्रह्माण्ड र्की उत्पभित्त र्का भी सुन्दर वि��ेचन है।

वि�वि�S तीथu रे्क अन्तग�त में नागराज तक्षर्क र्की जन्मभूष्टिम वि�ताता (र्कश्मीर), गया है विर्क 'ब्रह्म पुराण ' हरिर र्का मस्तर्क और 'पद्म पुराण' उनर्का हृदय है। 'वि�ष्णु पुराण ' दाईं भुजा, 'शि�� पुराण ' बाईं भुजा,'श्रीमद ्भाग�त पुराण ' दो आंखें, 'नारद पुराण ' नाभिभ, 'मार्क� ण्डेय पुराण ' दायां चरण, 'अग्नि%न पुराण ' बायां चरण, 'भवि�ष्य पुराण ' दायां घुटना, 'ब्रह्म �ै�त� पुराण ' बायां घुटना, 'लि�/ग पुराण ' दायां टखना, '�राह पुराण ' बायां टखना, 'स्र्कन्द पुराण ' �रीर रे्क रोए,ं '�ामन पुराण ' त्�चा, 'रू्कम� पुराण ' पीठ, 'मत्स्य पुराण' मेदा, 'गरुड़ पुराण ' मज्जा और 'ब्रह्माण्ड पुराण ' उनर्की अस्थिस्थयां हैं।

इसी खण्ड में 'एर्काद�ी व्रत ' र्का माहात्म्य भी बताया गया है। र्कहा गया है विर्क द्धिजतने भी अन्य व्रतोप�ास हैं, उन सब में एर्काद�ी व्रत सबसे उत्तम है। इस उप�ास से भग�ान वि�ष्णु अत्यन्त प्रसन्न होर्कर �रदान देते हैं।

रा�ण रे्क �े� में, राम�ी�ा र्क�ार्कार, मथुरा पाताल खण्ड पाता� खण्ड में रा�ण वि�जय रे्क उपरान्त राम र्कथा र्का �ण�न है। श्रीरृ्कष्ण र्की मविहमा, रृ्कष्ण तीथ�,

नारद र्का स्त्री रूप आख्यान्, रा�ण तथा अन्य राक्षसों र्का �ण�न, बारह महीनों रे्क प�� और माहात्म्य तथा भूगो� सम्बन्धी सामग्री भी इस खण्ड में उप�ब्ध होती है। �स्तुत: इस खण्ड में भग�ान वि�ष्णु रे्क 'रामा�तार' और 'रृ्कष्णा�तार' र्की �ी�ाओं र्का ही �ण�न प्राप्त होता है।

गंगा नदी , हरिरद्वार

Ganga River, Haridwar उत्तर खण्ड

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उत्तर खण्ड में ज�ंSर राक्षस और सती पत्नी तु�सी �ृन्दा र्की र्कथा तथा अनेर्क दे�ों ए�ं तीथu रे्क माहात्म्स र्का �ण�न है। इस खण्ड र्का प्रारम्भ नारद-महादे� रे्क मध्य बदिद्रर्काश्रम ए�ं नारायण र्की मविहमा रे्क सं�ाद रे्क साथ होता है। इसरे्क प�ात गंगा�तरण र्की र्कथा, हरिरद्वार र्का माहात्म्य; प्रयाग, र्का�ी ए�ं गया आदिद तीथu र्का �ण�न है।

'पद्म पुराण' र्की रचना बारह�ीं �ताब्दी रे्क बाद र्की मानी जाती है। इस पुराण में नन्दी Sेनु उपाख्यान, बशि�-�ामन आख्यान, तु�ाSार र्की र्कथा आदिद द्वारा सत्य र्की मविहमा र्का प्रवितपादन विर्कया गया है। तु�ाSार र्कथा से पवितव्रत Sम� र्की �शिi र्का पता च�ता है। इन उपाख्यानों द्वारा पुराणर्कार ने यही शिसद्ध र्करने र्का प्रयत्न विर्कया है विर्क सत्य र्का पा�न र्करते हुए सादा जी�न जीना सभी र्कम�र्काण्डों और Sार्मिम/र्क अनुष्ठानों से बढ़र्कर है। सदाचारिरयों र्को ही 'दे�ता' और दुराचारिरयों तथा पाभिश्वर्क �ृभित्तयां Sारण र्करने �ा�े र्को 'राक्षस' र्कहा जाता है। पूजा जावित र्की नहीं, गुणों र्की होनी चाविहए। Sम� वि�रोSी प्र�ृभित्तयों रे्क विनरार्करण रे्क शि�ए प्रभु र्कीत�न बहुत सहायर्क होता है।

वराह पुराण / Varah Purana

�राह पुराण, गीतापे्रस गोरखपुर र्का आ�रण पृष्ठ '�राह पुराण' �ैष्ण� पुराण है। वि�ष्णु रे्क द�ा�तारों में एर्क अ�तार '�राह' र्का है। पृथ्�ी र्का उद्धार र्करने

रे्क शि�ए भग�ान वि�ष्णु ने यह अ�तार शि�या था। इस अ�तार र्की वि�स्तृत व्याख्या इस पुराण में र्की गई है।

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�राह अ�तार Varaha Avatar

इस पुराण में दो सौ सत्तरह अध्याय और �गभग दस हज़ार श्लोर्क हैं। इन श्लोर्कों में भग�ान �राह रे्क Sम¨पदे� र्कथाओं रे्क रूप में प्रस्तुत विर्कए गए हैं। '�राह पुराण' एर्क योजनाबद्ध रूप से शि�खा गया पुराण है। पुराणों रे्क सभी अविन�ाय� �क्षण इसमें ष्टिम�ते हैं। मुख्य रूप से इस पुराण में तीथu रे्क सभी माहात्म्य और पण्डों-पुजारिरयों र्को अष्टिSर्क से अष्टिSर्क दान-दभिक्षणा देने रे्क पुण्य र्का प्रचार विर्कया गया है। साथ ही रु्कछ सनातन उपदे� भी हैं द्धिजन्हें ग्रहण र्करना प्रत्येर्क प्राणी र्का �क्ष्य होना चाविहए। �े अवित उत्तम हैं।

[संपादि�त करें ] विवष्णु पूजा '�राह पुराण' में वि�ष्णु पूजा र्का अनुष्ठान वि�ष्टिSपू��र्क र्करने र्की शि�क्षा दी गई है। साथ ही वित्र�शिi

माहात्म्य, �शिi मविहमा , गणपवित चरिरत्र, र्कार्षित/रे्कय चरिरत्र, रुद्र के्षत्रों र्का �ण�न, सूय�, शि��, ब्रह्मा माहात्म्य, वितशिथयों रे्क अनुसार दे�ी-दे�ताओं र्की उपासना वि�ष्टिS और उनरे्क चरिरत्रों र्का सुन्दर �ण�न भी विर्कया गया है। इसरे्क अवितरिरi अग्नि%नदे�, अभिश्वनीरु्कमार, गौरी, नाग, दुगा�, रु्कबेर, Sम�, रुद्र, विपतृगण, चन्द्र र्की उत्पभित्त, मत्स्य और रू्कमा��तारों र्की र्कथा, व्रतों र्का महत्त्�, गोदान, श्राद्ध तथा अन्य अनेर्कानेर्क संस्र्कारों ए�ं अनुष्ठानों र्को वि�ष्टिSपू��र्क सम्पन्न र्करने पर ब� दिदया गया है। सभी Sम�-र्कमu में दान-दभिक्षणा र्की मविहमा र्का बखान भी है।

[संपादि�त करें ] �शावतार

बुद्ध

Buddha इस पुराण में 'द�ा�तार' र्की र्कथा पारम्परिरर्क रूप में न देर्कर वि�वि�S मासों र्की द्वाद�ी व्रत रे्क माहात्म्य

रे्क रूप में दी गई है। यथा-माग��ी.� मास र्की द्वाद�ी में 'मत्स्य अ�तार ', पौ. मास में 'रू्कम� अ�तार ', माघ मास में '�राह अ�तार ', �ाल्गुन मास में 'नृलिस/ह अ�तार ', चैत्र मास में '�ामन अ�तार ', �ै�ाख

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मास में 'पर�ुराम अ�तार ', ज्येष्ठ मास में 'राम अ�तार ', आ.ाढ़ मास में 'रृ्कष्ण अ�तार ', श्रा�ण मास में 'बुद्ध अ�तार ' और भाद्रपद मास में 'र्कस्मिल्र्क अ�तार ' रे्क स्मरण र्का माहात्म्य बताया गया है।

[संपादि�त करें ] �ारायण भगवा� की पूजा

राम ,�क्ष्मण और सीता

Ram, Laxman and Sita आभिश्वन मास में पद्मनाभ भग�ान र्की और र्कार्षित/र्क मास में Sरणी व्रत रे्क शि�ए नारायण भग�ान र्की

पूजा र्करने र्को र्कहा गया है। इन सभी �ण�नों में पूजा वि�ष्टिS �गभग एर्क जैसी है। यथा-व्रत-उप�ास र्कररे्क भग�ान र्की पूजा र्करें। वि�र श्रद्धा और �शिi रे्क अनुसार ब्राह्मणों र्को भोजन र्कराए।ं उन्हें दान-दभिक्षणा दें। इस प्रर्कार भग�ान र्की पूजा रे्क बहाने दान-दभिक्षणा र्की खु�र्कर मविहमा गाई गई है। इसे श्रेष्ठतम पुण्य र्काय� बताया गया है।

भग�ान वि�ष्णु

God Vishnu

[संपादि�त करें ] सृवि6

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सृष्टिC र्की रचना, युग माहात्म्य, प�ुपा�न, सप्त द्वीप �ण�न, नदिदयों और प��तों रे्क �ण�न, सोम र्की उत्पभित्त, तरह-तरह रे्क दान-पुण्य र्की मविहमा, सदाचारों और दुराचारों रे्क ��स्�रूप स्�ग�-नरर्क रे्क �ण�न, पापों र्का प्रायभि�त्त र्करने र्की वि�ष्टिS आदिद र्का वि�स्तृत �ण�न इस पुराण में विर्कया गया है। मविह.ासुर �S र्की र्कथा भी इसमें दी गई है। '�राह पुराण' में श्राद्ध और विपण्ड दान र्की मविहमा र्का �ण�न वि�स्तार से विर्कया गया है। इस पुराण र्की सबसे बड़ी वि��े.ता यह है विर्क �ास्तवि�र्क Sम� रे्क विनरूपण र्की व्याख्या इसमें बहुत अच्छी तरह र्की गई है।

राSा -रृ्कष्ण

Radha-Krishna

[संपादि�त करें ] �त्तिचकेता इसर्का 'नशिचरे्कता उपाख्यान' भी अत्यन्त महत्त्�पूण� है। इसमें पाप समूह और पाप-ना� रे्क उपायों र्का

सुन्दर �ण�न विर्कया गया है। रु्कछ प्रमुख पाप र्कमu र्का उल्�ेख र्करते हुए पुराणर्कार र्कहता है विर्क हिह/सा, चुग�ी, चोरी, आग �गाना, जी� हत्या, असत्य र्कथन, अप�ब्द बो�ना, दूसरों र्को अपमाविनत र्करना, वं्य%य र्करना, झूठी अ��ाहें �ै�ाना, म्बिस्त्रयों र्को बहर्काना, ष्टिम�ा�ट र्करना आदिद भी पाप हैं। नारद और यम रे्क सं�ाद में मनुष्य पाप र्कम� से विर्कस प्रर्कार बचे- इसर्का उत्तर देते हुए यम र्कहते हैं विर्क यह संसार मनुष्य र्की र्कम�भुष्टिम है। जो भी इसमें जन्म �ेता है, उसे र्कम� र्करने ही पड़ते हैं। र्कम� र्करने �ा�ा स्�यं ही अपने र्कमu रे्क शि�ए उत्तरदायी होता है। आत्मा ही आत्मा र्का बन्धु, ष्टिमत्र और सगा होता है। आत्मा र्की आत्मा र्का �त्रु भी होता है। द्धिजस व्यशिi र्का अन्त:र्कारण �ुद्ध है, द्धिजसने अपनी आत्मा पर वि�जय प्राप्त र्कर �ी है और जो समस्त प्राभिणयों में समता र्का भा� रखता है; �ह सत्यज्ञानी मनुष्य सभी पापों से मुi हो जाता है। जो व्यशिi योग तथा प्राणायाम द्वारा 'मन' और 'इद्धिन्द्रयों' पर वि�जय प्राप्त र्कर �ेता है, �ह सभी तरह रे्क पापों से छुटर्कारा पा जाता है। जो व्यशिi मन-�चन-र्कम� से विर्कसी जी� र्की हिह/सा नहीं र्करता, विर्कसी र्को दुख नहीं पहुंचाता, जो �ोभ और क्रोS से रविहत है, जो सदा न्याय-नीवित पर च�ता है तथा �ुभ र्कम� र्करते हुए अ�ुभ र्कमu से दूर रहता है; �ह विर्कसी पाप र्का भागीदार नहीं होता।

'�राह पुराण' र्का भौगोशि�र्क �ण�न अन्य पुराणों रे्क भौगोशि�र्क �ण�नों से अष्टिSर्क प्रामाभिणर्क और स्पC है। मथुरा रे्क तीथu र्का �ण�न अत्यन्त वि�स्तृत रूप से इस पुराण में विर्कया गया है। र्कहने र्का आ�य यही है विर्क '�राह पुराण' र्का वि��रण अन्य पुराणों र्की तु�ना में अत्यन्त सारगर्णिभ/त है।

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पर�ुराम

Parashurama

[संपादि�त करें ] चारों वणN के त्तिलए चारों �णu रे्क शि�ए सत्य Sम� र्का पा�न और �ुद्ध आचरण र्करने पर ब� दिदया गया है।'ब्राह्मण' र्को

अहंर्कार रविहत, स्�ाथ� रविहत, द्धिजतेद्धिन्द्रय और अनासi योगी र्की भांवित होना चाविहए। 'क्षवित्रय' र्को अहंर्कार रविहत, आदरणीय तथा छट-र्कपट से दूर रहना चाविहए। '�ैश्य' र्को Sम�परायण, दानी, �ाभ-हाविन र्की शिचन्ता न र्करने �ा�ा और र्कत्त�व्य परायण होना चाविहए। '�ूद्र' र्को अपने सभी र्काय� विनष्र्काम भा� और से�ा भा� से भग�ान र्को अप�ण र्करते हुए र्करने चाविहए। उसे अवितशिथ सत्र्कार र्करने �ा�ा, �ुद्धात्मा, वि�नय�ी�, श्रद्धा�ान और अहंर्कार वि�हीन होना चाविहए। ऐसा �ूद्र हज़ारों ऋवि.यों से बढ़र्कर होता है। उसर्की से�ा रे्क शि�ए सभी र्को सदै� तत्पर रहना चाविहए।

नृलिस/ह भग�ान

Narsingh Bhagwan इस र्कशि�युग में ब्राह्मण अपने र्कत्त�व्यों से वि�मुख, पाखण्डी, स्�ाथ© और र्काम�ासनाओं रे्क दास हो गए

हैं। इसरे्क पीछे एर्क र्कथानर्क '�राह पुराण' में दिदया गया है। एर्क बार रु्कछ ब्राह्मण ऋवि. गौतम ऋवि. रे्क आश्रम में जार्कर एर्क माया�ी गाय बांS आए। उस समय भयानर्क अर्का� पड़ रहा था। गौतम जी आश्रम में आए। जब उन्होंने माया�ी गाय र्को अटाने रे्क शि�ए पानी र्का छींटा मारा तो �ह मर गई। ऋवि.यों ने तत्र्का� उन पर गौहत्या र्का दो. �गा दिदया। गौतम ऋवि. ने अपने तपोब� से उस गाय र्को

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पुन: जीवि�त र्कर दिदया। तब �स्थिज्जत हुए ऋवि.यों र्को गौतम ऋवि. ने �ाप दिदया विर्क �े तीनों �ेदों रे्क भू� जाएगंे। तभी से र्कशि�युग में ब्राह्मण पतन र्की ओर उन्मुख हैं।

'�राह पुराण' रे्क अन्य अपाख्यानों में ची�, शिसयार, खंजन आदिद प�ु-पभिक्षयों द्वारा यह उपदे� दिदया गया है विर्क सच्चा सुख उसी र्को प्राप्त होता है जो स्�ाथ� त्याग र्कर परोपर्कार और परमाथ� र्का जी�न व्यतीत र्करता है। ईश्वर र्का सच्चा भi �ही है, जो परविनन्दा नहीं र्करता, सदै� सत्य बो�ता है तथा परस्त्री पर बुरी दृष्टिC नहीं डा�ता। Sम� र्कोई बंSी-बंSाई �स्तु नहीं है। सभी वि�द्वानों ने Sम� र्की व्याख्या अपने-अपने ढंग से र्की है। दे�-र्का� रे्क अनुसार Sम� रे्क रूप बद�ते रहते हैं।

इसशि�ए र्कहा गया है विर्क जो मनुष्य Sम� रे्क सत्य-स्�रूप र्को अच्छी प्रर्कार समझते हैं, �े र्कभी दूसरे Sमu र्का अपमान या विनरादर नहीं र्करते। �े सभी Sमu र्का समान रूप से आदर र्करते हैं। विर्कसी �ाद-वि��ाद में नहीं पड़ते। इस पुराण र्का यही उपदे� और यही उदे्दश्य है, जो अत्यन्त व्यापर्क तथा उदात्त है। पाप र्का प्रायभि�त्त ही मन र्की सच्ची �ान्तिन्त है।

ब्रह्म वैवत) पुराण / Brahm Vaivart Purana

ब्रह्म �ै�त� पुराण, गीतापे्रस गोरखपुर र्का आ�रण पृष्ठ यह �ैष्ण� पुराण है। इस पुराण में श्रीरृ्कष्ण र्को ही प्रमुख इC मानर्कर उन्हें सृष्टिC र्का र्कारण बताया गया

है। 'ब्रह्म�ै�त�' �ब्द र्का अथ� है- ब्रह्म र्का वि��त� अथा�त् ब्रह्म र्की रूपान्तर राशि�। ब्रह्म र्की रूपान्तर राशि� 'प्ररृ्कवित' है। प्ररृ्कवित रे्क वि�वि�S परिरणामों र्का प्रवितपादन ही इस 'ब्रह्म�ै�त� पुराण' में प्राप्त होता है। वि�ष्णु रे्क अ�तार रृ्कष्ण र्का उल्�ेख यद्यविप र्कई पुराणों में ष्टिम�ता है, विर्कन्तु इस पुराण में यह वि�.य भिभन्नता शि�ए हुए है। 'ब्रह्म�ै�त� पुराण' में रृ्कष्ण र्को ही 'परब्रह्म' माना गया है, द्धिजनर्की इच्छा से सृष्टिC र्का जन्म होता है।

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राSा -रृ्कष्ण

Radha-Krishna रृ्कष्ण से ही ब्रह्मा, वि�ष्णु, महे� और प्ररृ्कवित र्का जन्म बताया गया है। उनरे्क दाए ंपाश्व� से वित्रगुण (सत्�,

रज, तम) उत्पन्न होते हैं। वि�र उनसे महत्तत्�, अहंर्कार और पंच तन्मात्र उत्पन्न हुए। वि�र नारायण र्का जन्म हुआ जो श्याम �ण�, पीताम्बरSारी और �नमा�ा Sारण विर्कए चार भुजाओं �ा�े थे। पंचमुखी शि�� र्का जन्म रृ्कष्ण रे्क �ाम पाश्व� से हुआ। नाभिभ से ब्रह्मा, �क्षस्थ� से Sम�, �ाम पाश्व� से पुन: �क्ष्मी, मुख से सरस्�ती और वि�भिभन्न अंगों से दुगा�, सावि�त्री, र्कामदे�, रवित, अग्नि%न, �रुण, �ायु आदिद दे�ी-दे�ताओं र्का आवि�भा�� हुआ। ये सभी भग�ान रे्क 'गो�ोर्क' में स्थिस्थत हो गए।

सृष्टिC विनमा�ण रे्क उपरान्त रास मण्ड� में उनरे्क अद्ध� �ाम अंग से राSा र्का जन्म हुआ। रोमरू्कपों से %�ा� बा� और गोविपयों र्का जन्म हुआ। गायें, हंस, तुरंग और लिस/ह प्रर्कट हुए। शि�� �ाहन रे्क शि�ए बै�, ब्रह्मा रे्क शि�ए हंस, Sम� रे्क शि�ए तुरंग (अश्व) और दुगा� रे्क शि�ए लिस/ह दिदए गए।

'जमुना'(गोविपयों रे्क साथ रृ्कष्ण), द्वारा- राजा रवि� �मा� यह पुराण र्कहता है विर्क इस ब्रह्माण्ड में असंख्य वि�श्व वि�द्यमान हैं। प्रत्येर्क वि�श्व रे्क अपने-अपने वि�ष्णु,

ब्रह्मा और महे� हैं। इन सभी वि�श्वों से ऊपर गो�ोर्क में भग�ान श्रीरृ्कष्ण विन�ास र्करते हैं। इस पुराण रे्क चार खण्ड हैं- ब्रह्म खण्ड, प्ररृ्कवित खण्ड, गणपवित खण्ड और श्रीरृ्कष्ण जन्म खण्ड। इन चारों में दो सौ अठारह अध्याय हैं।

ब्रह्म खण्ड

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रृ्कष्ण

Krishna ब्रह्म खण्ड में रृ्कष्ण चरिरत्र र्की वि�वि�S �ी�ाओं और सृष्टिC क्रम र्का �ण�न प्राप्त होता है। रृ्कष्ण रे्क �रीर

से ही समस्त दे�ी-दे�ताओं र्को आवि�भा�� माना गया है। इस खण्ड में भग�ान सूय� द्वारा संर्कशि�त एर्क स्�तन्त्र 'आयु�bद संविहता' र्का भी उल्�ेख ष्टिम�ता है। आयु�bद समस्त रोगों र्का परिरज्ञान र्कररे्क उनरे्क प्रभा� र्को नC र्करने र्की सामथ्य� रखता है। इसी खण्ड में श्रीरृ्कष्ण रे्क अद्ध�नारीश्वर स्�रूप में राSा र्का आवि�भा�� उनरे्क �ाम अंग से दिदखाया गया है।

प्रकृवित खण्ड

गायत्री दे�ी

Gayatri Devi प्ररृ्कवित खण्ड में वि�भिभन्न देवि�यों रे्क आवि�भा�� और उनर्की �शिiयों तथा चरिरत्रों र्का सुन्दर वि��रण प्राप्त

होता है। इस खण्ड र्का प्रारम्भ 'पंचदे�ीरूपा प्ररृ्कवित' रे्क �ण�न से होता है। ये पांच रूप – य�दुगा�, महा�क्ष्मी, सरस्�ती, गायत्री और सावि�त्री रे्क हैं, जो अपने भiों र्का उद्धार र्करने रे्क शि�ए रूप Sारण र्करती हैं इनरे्क अवितरिरi स�¨परिर रासेश्वरी रूप राSा र्का है। राSा-रृ्कष्ण चरिरत्र और राSा जी र्की पूजा-अच�ना र्का संभिक्षप्त परिरचय इस खण्ड में प्राप्त होता है। इन देवि�यों रे्क वि�भिभन्न नामों र्का उल्�ेख भी प्ररृ्कवित खण्ड में है।

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गणपवित खण्ड

गणे�

Ganesha गणपवित खण्ड में गणे� जी रे्क जन्म र्की र्कथा और पुण्यर्क व्रत र्की मविहमा र्का �ण�न विर्कया गया हैं

गणे� जी रे्क चरिरत्र और �ी�ाओं र्का �ण�न भी इस खण्ड में है। बा�र्क गणे� र्को जब �विन दे� देख �ेते हैं तो उनरे्क दृष्टिCपात से गणे� जी र्का शिसर र्कटर्कर विगर जाता है। तब पा��ती र्की प्राथ�ना पर वि�ष्णुजी हाथी र्का शिसर र्काटर्कर गणे� रे्क Sड़ पर �गार्कर उन्हें जीवि�त र्कर देते हैं। गणे� जी रे्क आठ वि�घ्नना�र्क नामों र्की सूची इस खण्ड में इस प्रर्कार दी गई है- वि�घ्ने�, गणे�, हेरम्ब, गजानन, �ंबोदर, एर्कदंत, �ूप�र्कण� और वि�नायर्क। इसी खण्ड में 'सूय� र्क�च' तथा 'सूय� स्तोत्र' र्का भी �ण�न है। अन्त में यह र्कहा गया है विर्क गणे� जी र्की पूजा में तु�सी द� र्कभी नहीं अर्षिप/त र्करना चाविहए। पर�ुराम और राज सुचन्द्र रे्क �S रे्क प्रसंग में 'द�ाक्षरी वि�द्या' , 'र्का�ी र्क�च' और 'दुगा� र्क�च' र्का �ण�न भी इसी खण्ड में ष्टिम�ता है।

श्रीकृष्ण जन्म खण्ड श्रीरृ्कष्ण जन्म खण्ड एर्क सौ एर्क अध्यायों में �ै�ा सबसे बड़ा खण्ड है। इसमें श्रीरृ्कष्ण र्की �ी�ाओं

र्का वि�स्तार से �ण�न विर्कया गया है। 'श्रीम�ाग�त' में भी इसी प्रर्कार श्रीरृ्कष्ण र्की �ी�ाओं र्का �ण�न उप�ब्ध होता है। इस खण्ड में योगविनद्रा द्वारा �र्णिण/त 'श्रीरृ्कष्ण र्क�च' र्का उल्�ेख है द्धिजसरे्क पाठ से दैविहर्क, दैवि�र्क तथा भौवितर्क भयों र्का समू� ना� हो जाता है। श्रीरृ्कष्ण रे्क तेंतीस नामों र्की सूची भी इस खण्ड में दी गई है।

ब�राम जी रे्क नौ नामों और राSा जी रे्क सो�ह नामों र्का �ण�न भी श्रीरृ्कष्ण जन्म खण्ड में प्राप्त होता है। इसी खण्ड में सौ रे्क �गभग उन �स्तुओं, द्रव्यों और अनुष्ठानों र्की सूची भी दी गई है द्धिजनरे्क मात्र से सौभा%य र्की प्रान्तिप्त होती है। इसी खण्ड में वितशिथ वि��े. में वि�भिभन्न तीथu में स्नान र्करने और पुण्य �ाभ पाने र्का उल्�ेख विर्कया गया है। 'र्कार्षित/र्क पूर्णिण/मा ' में राSा जी र्की पूजा-अच�ना र्करने पर ब� दिदया गया है, जो वि��े. ��दायी है।

रास�ी�ा , रृ्कष्ण जन्मभूष्टिम , मथुरा

Raslila, Krishna's Birth Place, Mathura

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इसी खण्ड में र्कहा गया है विर्क 'अन्नदान' से बढ़र्कर र्कोई दूसरा दान नहीं है। भग�ान रे्क %यारह नामों- राम, नारायण, अनंत, मुरंु्कद, मSुसूदन, रृ्कष्ण, रे्क��, रं्कसरिर, हरे, �ैरु्कण्ठ और �ामन र्को अत्यन्त पुण्यदायर्क तथा सहस्त्र र्कोदिट जन्मों र्का पाप नC र्करने �ा�ा बताया गया है।

'ब्रह्म�ै�त� पुराण' में रास�ी�ा र्का �ण�न 'भाग�त पुराण ' रे्क रास पंचाध्यायी से र्काफ़ी भिभन्न है। 'भाग�त पुराण' र्का �ण�न साविहन्तित्यर्क और सान्तित्�र्क है जबविर्क 'ब्रह्म�ै�त� पुराण' र्का �ण�न अत्यन्त श्रृंगारिरर्क तथा र्कहीं-र्कहीं अश्ली� भी है। इस पुराण में सृष्टिC र्का मू� श्रीरृ्कष्ण र्को बताया गया है। परन्तु ब्रह्म विनरूपण रे्क दा��विनर्क वि��ेचन में �ेदान्त-वि�द्धान्त र्को ही स्�ीर्कार विर्कया गया है। इस पुराण में पूतना, रु्कब्जा, जाम्ब�ती तथा रृ्कष्ण र्की मृत्यु रे्क प्रसंग अन्य पुराणों से भिभन्न हैं। गणे� जन्म में भी वि�शिचत्रता है। इस पुराण रे्क अन्य वि�.यों में प��त, नदी, �ृक्ष, ग्राम, नगर आदिद र्की उत्पभित्त, मनु-�तरूपा र्की र्कथा, ब्रह्मा र्की पीठ से दरिरद्रा र्का जन्म, मा�ा�ती ए�ं र्का�पुरु. सं�ाद, दिदनचया�, श्रीरृ्कष्ण, शि�� और ब्रह्माण्ड र्क�चों र्का �ण�न, गंगा �ण�न तथा शि�� स्तोत्र आदिद र्का उल्�ेख भी �ाष्टिम� है।

श्रीराधा और श्रीकृष्ण के चरिरत्र

राSा -रृ्कष्ण

Radha-Krishna श्रीमहादे�जी र्कहते हैं- पा��ती! एर्क समय र्की बात है, श्रीरृ्कष्ण वि�रजा नाम�ा�ी सखी रे्क यहाँ उसरे्क

पास थें इससे श्रीराSाजी र्को क्षोभ हुआ। इस र्कारण वि�रजा �हाँ नदीरूप होर्कर प्र�ाविहत हो गयी। वि�रजा र्की सग्निखयाँ भी छोटी-छोटी नदिदयाँ बनीं। पृथ्�ी र्की बहुत-सी नदिदयाँ और सातों समुद्र वि�रजा से ही उत्पन्न हैं। राSा ने प्रणयर्कोप से श्रीरृ्कष्ण रे्क पास जार्कर उनसे रु्कछ र्कठोर �ब्द र्कहे। सुदामा ने इसर्का वि�रोS विर्कया। इस पर �ी�ामयी श्रीराSाने उसे असुर होने र्का �ाप दे दिदया। सुदामा ने भी �ी�ाक्रम से ही श्रीराSा र्को मान�ीरूप में प्रर्कट होने र्की बात र्कह दी। सुदामा माता राSा तथा विपता श्रीहरिर र्को प्रणाम र्कररे्क जब जाने र्को उद्यत हुआ तब श्रीराSा पुत्रवि�रह से र्कातर हो आँसू बहाने �गीं। श्रीरृ्कष्ण ने उन्हें समझा-बुझार्कर �ान्त विर्कया और �ीघ्र उसरे्क �ौट आने र्का वि�श्वास दिद�ाया। सुदामा ही तु�सी र्का स्�ामी �ंखचूड़ नामर्क असुर हुआ था, जो मेरे �ू� से वि�दीण� ए�ं �ापमुi हो पुन: गो�ोर्क च�ा गया। सती राSा इसी �ाराहर्कल्प में गोरु्क� में अ�तीण� हुई थीं। �े व्रज में �ृ.भानु �ैश्य र्की र्कन्या हुईं �े दे�ी अयोविनजा थीं, माता रे्क पेट से नहीं पैदा हुई थीं। उनर्की माता र्क�ा�ती ने अपने गभ� में '�ायु' र्को Sारण र्कर रखा था। उसने योगमाया र्की पे्ररणा से �ायु र्को ही जन्म दिदया; परंतु �हाँ स्�ेच्छा से श्रीराSा प्रर्कट हो गयीं। बारह �.� बीतने पर उन्हें नूतन यौ�न में प्र�े� र्करती देख माता-विपता �े 'रायाण' वैश्यके साथ उसका सम्बन्ध वि�श्चिTत कर दि�या। उस समय श्रीराधा घर में अप�ी छाया को स्थाविपत करके स्वयं अन्तधा)� हो गयीं। उस छाया के साथ ही उD रायाण का विववाह हुआ।

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रृ्कष्ण जन्म �सुदे�, रृ्कष्ण र्को रं्कस रे्क र्कारागार मथुरा से गोरु्क� �े जाते हुए, द्वारा- राजा रवि� �मा� 'जगत्पवित श्रीरृ्कष्ण रं्कस रे्क भय से रक्षा रे्क बहाने �ै��ा�स्था में ही गोरु्क� पहुँचा दिदये गये थे। �हाँ

श्रीरृ्कष्ण र्की माता जो य�ोदा थीं, उनर्का सहोदर भाई 'रायाण' था। गो�ोर्क में तो �ह श्रीरृ्कष्ण र्का अं�भूत गोप था, पर इस अ�तार रे्क समय भूत� पर �ह श्रीरृ्कष्ण र्का मामा �गता था। जगत्स्त्रCा वि�Sाता ने पुण्यमय �ृन्दा�न में श्रीरृ्कष्ण रे्क साथ साक्षात् श्रीराSा र्का वि�ष्टिSपू��र्क वि��ाहर्कम� सम्पन्न र्कराया था। गोपगण स्�प्न में भी श्रीराSा रे्क चरणारवि�न्दर्का द��न नहीं र्कर पाते थे। साक्षात् राSा श्रीरृ्कष्ण रे्क �क्ष: स्थ� में �ास र्करती थीं और छायाराSा रायाण रे्क घर में। ब्रह्माजी ने पू��र्का� में श्रीराSा रे्क चरणारवि�न्द र्का द��न पाने रे्क शि�ये पुष्र्कर में साठ हज़ार �.u तर्क तपस्या र्की थी; उसी तपस्या रे्क ��स्�रूप इस समय उन्हें श्रीराSाचरणों र्का द��न प्राप्त हुआ था। गोरु्क�नाथ श्रीरृ्कष्ण रु्कछ र्का� तर्क �ृन्दा�न में श्रीराSा रे्क साथ आमोद-प्रमोद र्करते रहे। तदनन्तर सुदामा रे्क �ाप से उनर्का श्रीराSारे्क साथ वि�योग हो गया। इसी बीच में श्रीरृ्कष्ण ने पृथ्�ी र्का भार उतारा। सौ �.� पूण� हो जाने पर तीथ� यात्रा रे्क प्रसंग से श्रीराSा ने श्रीरृ्कष्ण र्का और श्रीरृ्कष्ण ने श्रीराSा र्का द��न प्राप्त विर्कया। तदनन्तर तत्त्�ज्ञ श्रीरृ्कष्ण श्रीराSा रे्क साथ गो�ोर्कSाम पSारे। र्क�ा�ती (र्कीर्षित/दा) और य�ोदा भी श्रीराSा रे्क साथ ही गो�ोर्क च�ी गयीं।

रं्कस र्का र्कारागार, मथुरा

Kans Prison, Mathura प्रजापवित द्रोण नन्द हुए। उनर्की पत्नी Sरा य�ोदा हुईं। उन दोनों ने पह�े र्की हुई तपस्या रे्क प्रभा� से

परमात्मा भग�ान् श्रीरृ्कष्ण र्को पुत्ररूप में प्राप्त विर्कया था। महर्षि./ र्कश्यप �सुदे� हुए थे। उनर्की पत्नी सती साध्�ी अदिदवित अं�त: दे�र्की रे्क रूप में अ�तीण� हुई थीं। प्रत्येर्क र्कल्प में जब भग�ान् अ�तार �ेते हैं, दे�माता अदिदवित तथा दे�विपता र्कश्यप उनरे्क माता-विपता र्का स्थान ग्रहण र्करते हैं। श्रीराSा र्की माता र्क�ा�ती (र्कीर्षित/दा) विपतरों र्की मानसी र्कन्या थी। गो�ोर्क से �सुदाम गोप ही �ृ.भानु होर्कर इस

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भूत�पर आये थे। दुगb! इस प्रर्कार मैंने श्रीराSा र्का उत्तम उपाख्यान सुनाया। यह सम्पभित्त प्रदान र्करने�ा�ा, पापहारी तथा पुत्र और पौत्रों र्की �ृद्धिद्ध र्करने �ा�ा है। श्रीरृ्कष्ण दो रूपों में प्रर्कट हैं- विद्वभुज और चतुभु�ज। चतुभु�जरूप से �े �ैरु्कण्ठSाम में विन�ास र्करते हैं और स्�यं विद्वभुज श्रीरृ्कष्ण गो�ोर्कSाम में। चतुभु�जर्की पत्नी महा�क्ष्मी, सरस्�ती, गंगा और तु�सी हैं। ये चारों देवि�याँ चतुभु�ज नारायणदे� र्की विप्रया हैं। श्रीरृ्कष्ण र्की पत्नी श्रीराSा हैं, जो उनरे्क अSा¶ग से प्रर्कट हुई हैं। �े तेज, अ�स्था, रूप तथा गुण सभी दृष्टिCयों से उनरे्क अनुरूप हैं। विव=ा�् पुरुष को पहले 'राधा' �ाम का उच्चारण करके पTात 'कृष्ण' �ाम का उच्चारण कर�ा चाविहये। इस क्रम से उ�ट-�ेर र्करने पर �ह पाप र्का भागी होता है, इसमें सं�य नहीं है।

र्कार्षित/र्क र्की पूर्णिण/मार्कों गो�ोर्क रे्क रासमण्ड� में श्रीरृ्कष्ण ने श्रीराSा र्का पूजन विर्कया और तत्सम्बन्धी महोत्स� रचाया। उत्तम रत्नों र्की गुदिटर्का में राSार्क�च रखर्कर गोपोंसविहत श्रीहरिर ने उसे अपने र्कण्ठ और दाविहनी बाँह में Sारण विर्कया। भशिiभा� से उनर्का ध्यान र्कररे्क स्त�न विर्कया। वि�र मSुसूदन ने राSा रे्क चबाये हुए ताम्बू� र्को �ेर्कर स्�यं खाया। राSा श्रीरृ्कष्ण र्की पूजनीया हैं और भग�ान् श्रीरृ्कष्ण राSा रे्क पूजनीय हैं। �े दोनों एर्क-दूसरे रे्क इC दे�ता हैं। उनमें भेदभा� र्करने �ा�ा पुरु. नरर्क में पड़ता है।[1]

रृ्कष्ण जन्मभूष्टिम , मथुरा

Shri Krishna's Janm Bhumi, Mathura श्रीरृ्कष्ण रे्क बाद Sम� ने, ब्रह्माजी ने, मैंने, अनन्त ने, �ासुविर्कने तथा सूय� और चन्द्रमाने श्रीराSा र्का पूजन

विर्कया। तत्प�ात दे�राज इन्द्र, रुद्रगण, मनु, मनुपुत्र, दे�ेन्द्रगण, मुनीन्द्रगण तथा सम्पूण� वि�श्व रे्क �ोगों ने श्री राSा र्की पूजा र्की। ये सब विद्वतीय आ�रण रे्क पूजर्क हैं। तृतीय आ�रण में सातों द्वीपों रे्क सम्राट् सुयज्ञ ने तथा उनरे्क पुत्र-पौत्रों ए�ं ष्टिमत्रों ने भारत�.� में प्रसन्नतापू��र्क श्रीराष्टिSर्का र्का पूजन विर्कया। उन महाराज र्को दै��� विर्कसी ब्राह्मण ने �ाप दे दिदया था, द्धिजससे उनर्का हाथ रोगग्रस्त हो गया था। इस र्कारण �े मन-ही-मन बहुत दु:खी रहते थे। उनर्की राज्य�क्ष्मी शिछन गयी थी; परंतु श्री राSा रे्क �र से उन्होंने अपना राज्य प्राप्त र्कर शि�या। ब्रह्माजी रे्क दिदये हुए स्तोत्र से परमेश्वरी श्रीराSा र्की स्तुवित र्कररे्क राजा ने उनरे्क अभेद्य र्क�च र्को र्कण्ठ और बाँह में Sारण विर्कया तथा पुष्र्करतीथ� में सौ �.u तर्क ध्यानपू��र्क उनर्की पूजा र्की। अन्त में �े महाराज रत्नमय वि�मानपर स�ार होर्कर गो�ोर्कSाम में च�े गये।

ब्रह्माण्ड पुराण / Brahmand Puranaसमस्त महापुराणों में 'ब्रह्माण्ड पुराण' अन्तिन्तम पुराण होते हुए भी अत्यन्त महत्�पूण� है। समस्त ब्रह्माण्ड र्का सांगोपांग �ण�न इसमें प्राप्त होने रे्क र्कारण ही इसे यह नाम दिदया गया है। �ैज्ञाविनर्क दृष्टिC से इस पुराण र्का वि��े. महत्त्� है। वि�द्वानों ने 'ब्रह्माण्ड पुराण' र्को �ेदों रे्क समान माना है। छन्द �ास्त्र र्की दृष्टिC से भी यह उच्च र्कोदिट र्का पुराण है। इस पुराण में �ैदभ© �ै�ी र्का जगह-जगह प्रयोग हुआ है। उस �ै�ी र्का प्रभा� प्रशिसद्ध संस्रृ्कत र्कवि� र्काशि�दास र्की रचनाओं में देखा जा सर्कता है। यह पुराण 'पू��', 'मध्य' और 'उत्तर'- तीन भागों में वि�भi है। पू�� भाग में प्रविक्रया और अनु.ंग नामर्क दो पाद हैं। मध्य भाग उपोद्घात पाद रे्क रूप में है जबविर्क उत्तर भाग उपसंहार पाद प्रस्तुत र्करता है। इस पुराण में �गभग बारह हज़ार श्लोर्क और एर्क सौ छप्पन अध्याय हैं।

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र्काशि�दासKalidasa

पूव) भागपू�� भाग में मुख्य रूप से नैष्टिम.ीयोपाख्यान, विहरण्यगभ�-प्रादुभा��, दे�-ऋवि. र्की सृष्टिC, र्कल्प, मन्�न्तर तथा रृ्कतयुगादिद रे्क परिरणाम, रुद्र सग�, अग्नि%न सग�, दक्ष तथा �ंर्कर र्का परस्पर आरोप-प्रत्यारोप और �ाप, विप्रयव्रत �ं�, भु�नर्को�, गंगा�तरण तथा खगो� �ण�न में सूय� आदिद ग्रहों, नक्षत्रों, ताराओं ए�ं आर्का�ीय विपण्डों र्का वि�स्तार से वि��ेचन विर्कया गया है। इस भाग में समुद्र मंथन , वि�ष्णु द्वारा लि�/गोत्पभित्त आख्यान, मन्त्रों रे्क वि�वि�S भेद, �ेद र्की �ाखाए ंऔर मन्�न्तरोपाख्यान र्का उल्�ेख भी विर्कया गया है।

मध्य भाग

पर�ुरामParashurama

मध्य भाग में श्राद्ध और विपण्ड दान सम्बन्धी वि�.यों र्का वि�स्तार रे्क साथ �ण�न है। साथ ही पर�ुराम चरिरत्र र्की वि�स्तृत र्कथा, राजा सगर र्की �ं� परम्परा, भगीरथ द्वारा गंगा र्की उपासना, शि��ोपासना, गंगा र्को पृथ्�ी पर �ाने र्का व्यापर्क प्रसंग तथा सूय� ए�ं चन्द्र �ं� रे्क राजाओं र्का चरिरत्र �ण�न प्राप्त होता है।

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उत्तर भाग उत्तर भाग में भा�ी मन्�न्तरों र्का वि��ेचन, वित्रपुर सुन्दरी रे्क प्रशिसद्ध आख्यान द्धिजसे '�शि�तोपाख्यान'

र्कहा जाता है, र्का �ण�न, भंडासुर उ�� र्कथा और उसरे्क �ं� रे्क वि�ना� र्का �ृत्तान्त आदिद हैं। 'ब्रह्माण्ड पुराण' और '�ायु पुराण ' में अत्यष्टिSर्क समानता प्राप्त होती है। इसशि�ए '�ायु पुराण' र्को

महापुराणों में स्थान प्राप्त नहीं है। 'ब्रह्माण्ड पुराण' र्का उपदेCा प्रजापवित ब्रह्मा र्को माना जाता है। इस पुराण र्को पाप ना�र्क, पुण्य प्रदान

र्करने �ा�ा और स�ा�ष्टिSर्क पवि�त्र माना गया है। यह य�, आयु और श्री�ृद्धिद्ध र्करने �ा�ा पुराण है। इसमें Sम�, सदाचार, नीवित, पूजा-उपासना और ज्ञान-वि�ज्ञान र्की महत्त्�पूण� जानर्कारी उप�ब्ध होती है।

महाभारतर्का�ीन भारत र्का मानशिचत्र इस पुराण रे्क प्रारम्भ में बताया गया है विर्क गुरु अपना श्रेष्ठ ज्ञान स��प्रथम अपने सबसे यो%य शि�ष्य र्को

देता है। यथा-ब्रह्मा ने यह ज्ञान �शिसष्ठ र्को, �शिसष्ठ ने अपने पौत्र परा�र र्को, परा�र ने जातुर्कण्य� ऋवि. र्को, जातुर्कण्य� ने दै्वपायन र्को, दै्वपायन ऋवि. ने इस पुराण र्को ज्ञान अपने पांच शि�ष्यों- जषै्टिमविन, सुमन्तु, �ै�म्पायन, पे�� और �ोमह.�ण र्को दिदया। �ोमह.�ण सूत जी ने इसे भग�ान �ेदव्यास से सुना। वि�र नैष्टिम.ारण्य में एर्कवित्रत ऋवि.-मुविनयों र्को सूत जी ने इस पुराण र्की र्कथा सुनाई।

पुराणों रे्क वि�वि�S पांचों �क्षण 'ब्रह्माण्ड पुराण' में उप�ब्ध होते हैं। र्कहा जाता है विर्क इस पुराण र्का प्रवितपाद्य वि�.य प्राचीन भारतीय ऋवि. जा�ा द्वीप �त�मान में इण्डोनेशि�या �ेर्कर गए थे। इस पुराण र्का अनु�ाद �हां रे्क प्राचीन र्कवि�-भा.ा में विर्कया गया था जो आज भी उप�ब्ध है।

�ाराणसी में गंगा नदी रे्क घाटGhats of Ganga River in Varanasi

'ब्रह्माण्ड पुराण' में भारत�.� र्का �ण�न र्करते हुए पुराणर्कार इसे 'र्कम�भूष्टिम' र्कहर्कर सम्बोष्टिSत र्करता है। यह र्कम�भूष्टिम भागीरथी गंगा रे्क उद्गम स्थ� से र्कन्यारु्कमारी तर्क �ै�ी हुई है, द्धिजसर्का वि�स्तार नौ हज़ार

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योजन र्का है। इसरे्क पू�� में विर्करात जावित और पभि�म में म्�ेच्छ य�नों र्का �ास है। मध्य भाग में चारों �णu रे्क �ोग रहते हैं। इसरे्क सात प��त हैं। गंगा, शिसनु्ध, सरस्�ती, नम�दा, र्का�ेरी, गोदा�री आदिद सैर्कड़ों पा�न नदिदयां हैं। यह दे� रु्करु, पांचा�, र्कलि�/ग, मगS, �ाल्�, र्कौ��, रे्कर�, सौराष्ट्र आदिद अनेर्कानेर्क जनपदों में वि�भाद्धिजत है। यह आयu र्की ऋवि.भूष्टिम है।

र्का� गणना र्का भी इस पुराण में उल्�ेख है। इसरे्क अ�ा�ा चारों युगों र्का �ण�न भी इसमें विर्कया गया है। इसरे्क प�ात पर�ुराम अ�तार र्की र्कथा वि�स्तार से दी गई है। राज�ं�ों र्का �ण�न भी अत्यन्त रोचर्क है। राजाओं रे्क गुणों-अ�गुणों र्का विनष्पक्ष रूप से वि��ेचन विर्कया गया है। राजा उत्तानपाद रे्क पुत्र ध्रु� र्का चरिरत्र दृढ़ संर्कल्प और घोर संघ.� द्वारा स��ता प्राप्त र्करने र्का दिद%द��न र्कराता है। गंगा�तरण र्की र्कथा श्रम और वि�जय र्की अनुपम गाथा है। र्कश्यप, पु�स्त्य, अवित्र, परा�र आदिद ऋवि.यों र्का प्रसंग भी अत्यन्त रोचर्क है। वि�श्वाष्टिमत्र और �शिसष्ठ रे्क उपाख्यान र्काफ़ी रोचर्क तथा शि�क्षाप्रद हैं।

'ब्रह्माण्ड पुराण' में चोरी र्करने र्को महापाप बताया गया है। र्कहा गया है विर्क दे�ताओं � ब्राह्मणों र्की Sन-सम्पभित्त, रत्नाभू.णों आदिद र्की चोरी र्करने �ा�े व्यशिi र्को तत्र्का� मार डा�ना चाविहए।

माक) ण्डेय पुराण / Markandey Purana

मार्क� ण्डेय पुराण, गीतापे्रस गोरखपुर र्का आ�रण पृष्ठ

'मार्क� ण्डेय पुराण' आर्कार में छोटा है। इसरे्क एर्क सौ सैंतीस अध्यायों में �गभग नौ हज़ार श्लोर्क हैं। मार्क� ण्डेय ऋवि. द्वारा इसरे्क र्कथन से इसर्का नाम 'मार्क� ण्डेय पुराण' पड़ा। यह पुराण �स्तुत: दुगा� चरिरत्र ए�ं दुगा� सप्त�ती रे्क �ण�न रे्क शि�ए प्रशिसद्ध है। इसीशि�ए इसे �ाi सम्प्रदाय र्का पुराण र्कहा जाता है। पुराण रे्क सभी �क्षणों र्को यह अपने भीतर समेटे हुए है। इसमें ऋवि. ने मान� र्कल्याण हेतु सभी तरह रे्क नैवितर्क, सामाद्धिजर्क आध्याम्बित्मर्क और भौवितर्क वि�.यों र्का प्रवितपादन विर्कया है। इस पुराण में भारत�.� र्का वि�स्तृत स्�रूप उसरे्क प्रारृ्कवितर्क �ैभ� और सौन्दय� रे्क साथ प्रर्कट विर्कया गया है।

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दुगा� दे�ी Durga Devi

[संपादि�त करें ] गृहस्थ-धम) की उपयोविगताइस पुराण में Sनोपाज�न रे्क उपायों र्का �ण�न 'पभिद्मनी वि�द्या' द्वारा प्रस्तुत है। साथ ही राष्ट्रविहत में Sन-त्याग र्की पे्ररणा भी दी गई है। आयु�bद रे्क शिसद्धान्तों रे्क अनुसार �रीर-वि�ज्ञान र्का सुन्दर वि��ेचन भी इसमें है। 'मन्त्र वि�द्या' रे्क प्रसंग में पत्नी र्को �� में र्करने रे्क उपाय भी बताए गए हैं। 'गृहस्थ-Sम�' र्की उपयोविगता, विपतरों और अवितशिथयों रे्क प्रवित र्कत्त�व्यों र्का विन�ा�ह, वि��ाह रे्क विनयमों र्का वि��ेचन, स्�स्थ ए�ं सभ्य नागरिरर्क बनने रे्क उपाय, सदाचार र्का महत्त्�, सत्संग र्की मविहमा, र्कत्त�व्य परायणता, त्याग तथा पुरु.ाथ� पर वि��े. महत्त्� इस पुराण में दिदया गया है।

[संपादि�त करें ] वि�ष्काम कम)'मार्क� ण्डेय पुराण' में संन्यास रे्क बजाय गृहस्थ जी�न में विनष्र्काम र्कम� पर वि��े. ब� दिदया गया है। मनुष्यों र्को सन्माग� पर च�ाने रे्क शि�ए नरर्क र्का भय और पुनज�न्म रे्क शिसद्धान्तों र्का सहारा शि�या गया है। र्करुणा से पे्ररिरत र्कम� र्को पूजा-पाठ और जप-तप से श्रेष्ठ बताया गया है। ईश्वर प्रान्तिप्त रे्क शि�ए अपने भीतर ओंर्कार (ॐ) र्की साSना पर जोर दिदया गया है। यद्यविप इस पुराण में 'योग साSना' और उससे प्राप्त होने �ा�ी अC शिसद्धिद्धयों र्का भी �ण�न विर्कया गया है, विर्कन्तु 'मोक्ष' रे्क शि�ए आत्मत्याग और आत्मद��न र्को आ�श्यर्क माना गया है। संयम द्वारा इद्धिन्द्रयों र्को �� में र्करने र्की अविन�ाय�ता बताई गई है। वि�वि�S र्कथाओं और उपाख्यानों द्वारा तप र्का महत्त्� भी प्रवितपादिदत विर्कया गया है।

[संपादि�त करें ] समा� रूप से आ�र

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ब्रह्माBrahma

इस पुराण में विर्कसी दे�ी-दे�ता र्को अ�ग से वि��े. महत्त्� नहीं दिदया गया है। ब्रह्मा, वि�ष्णु, महे�, सूय�, अग्नि%न, दुगा�, सरस्�ती आदिद सभी र्का समान रूप से आदर विर्कया गया है। सूय� र्की स्तुवित र्करते हुए �ैदिदर्कों र्की परावि�द्या, ब्रह्म�ादिदयों र्की �ाश्वत ज्योवित, जवैिनयों र्का रै्क�ल्य, बौद्धों र्की बोSा�गवित, सांख्यों र्का द��न ज्ञान, योविगयों र्का प्रार्काम्य, Sम��ाम्बिस्त्रयों र्की स्मृवित और योगाचार र्का वि�ज्ञान आदिद सभी र्को सूय� भग�ान रे्क वि�भिभन्न रूपों में स्�ीर्कार विर्कया गया है।

जैन मस्तर्क Head of a Jina

'मार्क� ण्डेय पुराण' में मदा�सा रे्क र्कथानर्क द्वारा जहां ब्राह्मण Sम� र्का उल्�ेख विर्कया गया है, �हीं अनेर्क राजाओं रे्क आख्यानों द्वारा क्षवित्रय राजाओं रे्क साहस, र्कत्त�व्य परायणता तथा राजSम� र्का सुन्दर वि��ेचन भी दिदया गया है। पुराणर्कार र्कहता है विर्क जो राजा प्रजा र्की रक्षा नहीं र्कर सर्कता, �ह नरर्कगामी होता है। मद्यपान रे्क दो.ों र्को ब�राम रे्क प्रसंग द्वारा और क्रोS तथा अहंर्कार रे्क दुष्परिरणामों पर �शिसष्ठ ए�ं वि�श्वाष्टिमत्र रे्क र्कथानर्कों द्वारा प्रर्का� डा�ा गया है।

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बुद्धBuddha

वि�स्तृत व्याख्या र्की दृष्टिC से इस पुराण रे्क पांच भाग विर्कए जा सर्कते हैं-

पह�ा भाग- पह�े भाग में जषै्टिमनी ऋवि. र्को महाभारत रे्क सम्बन्ध में चार �ंर्काए ंहैं, द्धिजनर्का समाSान वि�न्ध्याच� प��त पर रहने �ा�े Sम� पक्षी र्करते हैं।

दूसरा भाग- दूसरे भाग में जड़ सुमवित रे्क माध्यम से Sम� पक्षी सग� प्रवितसग� अथा�त् सृष्टिC र्की उत्पभित्त, प्राभिणयों रे्क जन्म और उनरे्क वि�र्कास र्का �ण�न है।

तीसरा भाग- तीसरे भाग में ऋवि. मार्क� ण्डेय अपने शि�ष्य क्रोCुविर्क र्को पुराण रे्क मू� प्रवितपाद्य वि�.य- सूय¨पासना और सूय� द्वारा समस्त सृष्टिC रे्क जन्म र्की र्कथा बताते हैं।

चौथा भाग- चौथे भाग में 'दे�ी भाग�त पुराण' म् �र्णिण/त 'दुगा� चरिरत्र' और 'दुगा� सप्त�ती' र्की र्कथा र्का वि�स्तार से �ण�न है।

पांच�ां भाग- पांच�ें भाग में �ं�ानुचरिरत रे्क आSार पर रु्कछ वि��े. राज�ं�ों र्का उल्�ेख है।

[संपादि�त करें ] महाभारत'महाभारत' रे्क सम्बन्ध में पूछे गए चार प्रश्नों रे्क उत्तर में Sम� पक्षी बताते हैं विर्क श्रीरृ्कष्ण रे्क विनगु�ण और सगुण रूप में राग-दे्व. से रविहत �ासुदे� र्का प्रवितरूप, तमोगुण से युi �े. र्का अं�, सतोगुण से युi प्रदु्यम्न र्की छाया, रजोगुण से युi अविनरुद्ध र्की प्रगवित वि�द्यमान है। �े समस्त चराचर जगत् रे्क स्�ामी हैं और अSम� तथा अन्याय र्का वि�ना� र्करने रे्क शि�ए सगुण रूप में अ�तार �ेते हैं।

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रृ्कष्ण और अजु�नKrishna And Arjuna

द्रौपदी रे्क पांच पवितयों से सम्बम्बिन्धत दूसरे प्रश्न रे्क उत्तर में �े बताते हैं विर्क पांचों पाण्ड� दे�राज इन्द्र रे्क ही अं�ा�तार थ ेऔर द्रौपदी इन्द्र र्की पत्नी �ची र्की अं�ा�तार थी। अत: उसर्का पांच पवितयों र्को स्�ीर्कार र्करना पू��जन्म र्की र्कथा से जुड़ा प्रसंग है। इस प्रर्कार बहुपवितत्� रे्क रूप र्को दो. रविहत बताने र्का वि��े. प्रयास विर्कया गया है।

तीसरा प्रश्न महाब�ी ब�राम द्वारा तीथ�यात्रा में ब्रह्यहत्या रे्क �ाप रे्क संबंS में था उसरे्क वि�.य में Sम� पक्षी बताते हैं विर्क मद्यपान र्करने �ा�ा व्यशिi अपना वि��ेर्क खो बैठता है। ब�राम भी मद्यपान रे्क न�े में ब्रह्महत्या र्कर बैठे थे। मद्यपान र्का दो. सच्चे प�ाताप से दूर विर्कया जा सर्कता है और ब्रह्महत्या रे्क �ाप से मुशिi ष्टिम� सर्कती है।

चौथा प्रश्न, द्रोपदी रे्क अवि��ाविहत पुत्रों र्की हत्या र्की �ंर्का रे्क उत्तर में Sम� पक्षी सत्य�ादी राजा हरिर�न्द्र र्की सम्पूण� र्कथा र्का �ण�न र्करते हैं। राजत्याग र्कररे्क जाते राजा हरिर�न्द्र और उनर्की पत्नी �ैव्या पर वि�श्वाष्टिमत्र र्का अत्याचार देखर्कर पांचों वि�श्वदे� वि�श्वाष्टिमत्र र्को पापी र्कहते हैं। इस पर वि�श्वाष्टिमत्र उनर्को �ाप दे डा�ते हैं। उस �ाप रे्क ��ीभूत �े पांचों वि�श्वदे� रु्कछ र्का� रे्क शि�ए द्रोपदी रे्क गभ� से जन्म �ेते हैं। �े �ाप र्की अ�ष्टिS पूण� होते ही अश्वत्थामा द्वारा मारे जाते हैं और पुन: दे�त्� प्राप्त र्कर �ेते हैं।

[संपादि�त करें ] म�ालसाइस प्रसंग रे्क द्वारा और भाग�� पुत्र सुमवित रे्क प्रसंग रे्क माध्यम से पुनज�न्म रे्क शिसद्धान्त र्का बड़ा सुन्दर शिचत्रण 'मार्क� ण्डेय पुराण' में विर्कया गया है। साथ ही इस पुराण में नारिरयों रे्क पवितव्रत Sम� र्को बहुत महत्त्� दिदया गया है। मदा�सा र्का आख्यान नारी रे्क उदात्त चरिरत्र र्को उजागर र्करता है। मदा�सा अपने तीन पुत्रों र्को उच्च र्कोदिट र्की आध्याम्बित्मर्क शि�क्षा देती है। �े �ैरागी हो जाते हैं। तब �व्य रे्क शि�ए शिचन्तिन्तत पवित रे्क र्कहने पर �ह अपने चौथे पुत्र र्को Sमा�चरण, सत्संगवित, राजSम�, र्कत्त�व्य परायण और एर्क आद�� राजा रे्क रूप में ढा�ती है। इस प्रर्कार उसरे्क र्कथानर्क से माता र्की महत्ता, अध्यात्म, �ैरा%य, गृहस्थ Sम�, राजSम�, राजSम�, र्कत्त�व्य पा�न आदिद र्की अच्छी शि�क्षा प्राप्त होती है।

[संपादि�त करें ] सृवि6 का विवकास क्रमसृष्टिC रे्क वि�र्कास क्रम में पुराणर्कार ब्रह्मा द्वारा पुरु. र्का सृजन और उसरे्क आSे भाग से स्त्री र्का विनमा�ण तथा वि�र मैथुनी सृष्टिC से पवित-पत्नी द्वारा सृष्टिC र्का वि�र्कास विर्कया जाना बताते हैं। इस पुराण में जम्बू, प्�क्ष, �ाल्मशि�, रु्क�, क्राँच, �ार्क और पुष्र्कर आदिद सप्त द्वीपों र्का सुन्दर �ण�न विर्कया गया है। सारी सृष्टिC र्को सूय� से ही उत्पन्न माना गया है। सूय� पुत्र �ै�स्�त मनु से ही सृष्टिC र्का प्रारम्भ र्कहा गया है। इस पुराण में सूय� से सम्बम्बिन्धत अनेर्क र्कथाए ंभी हैं।

दुगा� चरिरत्र और दुगा� सप्त�ती र्की र्कथा में मSु - रै्कटभ , मविह.ासुर �S , �ंुभ-विन�ुंभ और रiबीज आदिद असुरों रे्क �S रे्क शि�ए दे�ी अ�तारों र्की र्कथाए ंभी इस पुराण में प्राप्त होती हैं। जब-जब आसुरी प्र�ृभित्तयां शिसर उठाती हैं, तब-तब उनर्का संहार र्करने रे्क शि�ए दे�ी-�शिi र्का जन्म होता है। पुराणों र्की र्का� गणना में मन्�न्तर र्को एर्क इर्काई माना गया है। ब्रह्मा र्का एर्क दिदन चौदह मन्�न्तरों र्का होता है। इस गणना रे्क अनुसार ब्रह्मा र्का एर्क दिदन आज र्की गणना रे्क विहसाब से एर्क र्करोड़ उन्नीस �ाख अट्ठाईस हज़ार दिदव्य �.u र्का होता है। एर्क चतुयु�ग में बारह हज़ार दिदव्य �.� होते हैं। ब्रह्मा रे्क एर्क दिदन में चौदह मनु होते हैं। पुराणों र्की यह र्का� गणना अत्यंत अ�तु है।

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इस पुराण में पृथ्�ी र्का भौगोशि�र्क �ण�न नौ खण्डों में है। ऋवि.यों द्वारा यह र्का� गणना, पृथ्�ी र्का भौगोशि�र्क �ण�न तथा ब्रह्माण्ड र्की असीमता गूढ़ रूप में योग साSना र्की अंग हैं। ब्रह्माण्ड रचना �रीर में स्थिस्थत इस ब्रह्माण्ड रे्क �घु रूप से सम्बम्बिन्धत ही दिदखाई पड़ती है, जो अत्यन्त गोपनीय है।

भविवष्य पुराण / Bhavishya Purana

भवि�ष्य पुराण, गीतापे्रस गोरखपुर र्का आ�रण पृष्ठ

सूय¨पासना और उसरे्क महत्� र्का जैसा व्यापर्क �ण�न 'भवि�ष्य पुराण' में प्राप्त होता है। �ैसा विर्कसी अन्य पुराण में नहीं उप�ब्ध होता। इसशि�ए इस पुराण र्को 'सौर गं्रथ' भी र्कहते हैं। यह गं्रथ बहुत अष्टिSर्क प्राचीन नहीं है। इस पुराण में दो हज़ार �.� र्का अत्यन्त सटीर्क वि��रण प्राप्त होता है। 'भवि�ष्य पुराण' रे्क अनुसार, इसरे्क श्लोर्कों र्की संख्या पचास हज़ार रे्क �गभग होनी चाविहए, परन्तु �त�मान में रु्क� अट्ठाईस हज़ार श्लोर्क ही उप�ब्ध हैं। इस पुराण र्को चार खण्डों में वि�भाद्धिजत विर्कया गया है- ब्राह्म प��, मध्यम प��, प्रवितसग� प�� और उत्तर प��। 'भवि�ष्य पुराण' र्की वि�.य �स्तु में सूय� र्की मविहमा, उनरे्क परम तेजस्�ी स्�रूप, उनरे्क परिर�ार, उनर्की उपासना पद्धवित, वि�वि�S व्रत-उप�ास, उनर्को र्करने र्की वि�ष्टिS, सामुदिद्रर्क �ास्त्र, स्त्री-पुरु. रे्क �ारीरिरर्क �क्षण, रत्नों ए�ं मभिणयों र्की परीक्षा र्का वि�Sान, वि�भिभन्न प्रर्कार रे्क स्त्रोत, अनेर्क सप्रर्कार र्की औ.ष्टिSयों र्का �ण�न, �प� वि�द्या र्का वि��द ्ज्ञान, वि�वि�S राज�ं�ों र्का उल्�ेख, वि�वि�S भारतीय संस्र्कार , तत्र्का�ीन सामाद्धिजर्क व्य�स्था, शि�क्षा-प्रणा�ी तथा �ास्तु शि�ल्प आदिद �ाष्टिम� हैं द्धिजन पर वि�स्तार से प्रर्का� डा�ा गया है।

ब्राह्म पव)ब्राह्म प�� में व्यास शि�ष्य महर्षि./ सुमंतु ए�ं राजा �तानीर्क रे्क सं�ादों द्वारा इस पुराण र्का �ुभारम्भ होता है। प्रारम्भ में इस पुराण र्की मविहमा, �ेदों तथा पुराणों र्की उत्पभित्त, र्का� गणना, युगों र्का वि�भाजन, गभा�Sान रे्क समय से �ेर्कर यज्ञोप�ीत संस्र्कारों तर्क र्की संभिक्षप्त वि�ष्टिS, भोजन वि�ष्टिS, दाए ंहाथ में स्थिस्थत वि�वि�S पांच प्रर्कार रे्क तीथu, ओंर्कार ए�ं गायत्री जप र्का महत्त्�, अभिभ�ादन वि�ष्टिS, माता-विपता तथा गुरु र्की मविहमा र्का �ण�न, वि��ाह यो%य म्बिस्त्रयों रे्क �ुभ-अ�ुभ �क्षण, पंच महायज्ञों, पुरु.ों ए�ं राजपुरु.ों रे्क �ुभ-अ�ुभ �क्षण, व्रत-उप�ास पूजा वि�ष्टिS, सूय¨पासना र्का माहात्म्य और उनसे जुड़ी र्कथाओं र्का वि��रण प्राप्त होता है।

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गायत्री दे�ी Gayatri Devi

इस प�� में दाए ंहाथ में स्थिस्थत पांच तीथu में– दे� तीथ�, विपतृ तीथ�, ब्रह्म तीथ�, प्रजापत्य तीथ� और सौम्य तीथ� बताए गए हैं।

दे� तीथ� में ब्राह्मण र्को दाए ंहाथ से दी गई दभिक्षणा आदिद र्कम� आते हैं।

विपतृ तीथ� में तप�ण ए�ं विपण्ड दान आदिद र्कमu र्का उल्�ेख ष्टिम�ता है।

ब्रह्म तीथ� में आचमन आदिद र्कम� आते हैं। प्रजापत्य तीथ� में वि��ाह रे्क समय �%नहोत्र आदिद र्कम� आते हैं। सौम्य तीथ� में दे� र्काय� रे्क शि�ए विर्कए गए र्कम�, पूजा-अच�ना आदिद हैं।

इसी पू�� में द्धिजन पंच महायज्ञों र्का उल्�ेख विर्कया गया है, �े इस प्रर्कार हैं-

1. ब्रह्म यज्ञ, 2. विपतृ यज्ञ,

3. दे� यज्ञ,

4. भूत यज्ञ तथा 5. अवितशिथ यज्ञ। ये यज्ञ अपने नामानुसार ही विर्कए जाते हैं। यथा-ब्रह्म मुहूत� में ईश्वर रे्क शि�ए विर्कया जाने

�ा�ा यज्ञ 'ब्रह्म यज्ञ', विपतरों र्की सन्तुष्टिC और प्रसन्नता रे्क शि�ए विर्कया जाने �ा�ा यज्ञ 'विपतृ यज्ञ', दे�तों र्की सन्तुष्टिC रे्क शि�ए विर्कया जाने �ा�ा यज्ञ 'दे� यज्ञ', समस्त प्राभिणयों र्की सुख-�ान्तिन्त रे्क शि�ए विर्कया जाने �ा�ा यज्ञ 'भूत यज्ञ' और अवितशिथ र्की से�ा में रत रहना ही 'अवितशिथ यज्ञ' र्कह�ाता है। इसी प�� में स्त्री-पुरु.ों रे्क �ुभ-अ�ुभ �क्षणों रे्क वि�.य में चचा� र्करते हुए ब्रह्मा जी र्कार्षित/रे्कय से र्कहते हैं। विर्क द्धिजस स्त्री र्की ग्री�ा में रेखाएं हों और नेत्रों रे्क र्कोरों र्का रु्कछ स�ेद भाग �ा�ी शि�ए हो; �ह स्त्री द्धिजस घर में जाती है, उस घर र्की उत्तरोत्तर �ृद्धिद्ध होती है। द्धिजसरे्क बाए ंहाथ, र्कान या ग�े पर वित� या मस्सा हो; उसर्की पह�ी सन्तान पुत्र होती है।

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मध्यम पव)इस प�� में मुख्य रूप से यज्ञ र्कमu र्का �ास्त्रीय वि��ेचन प्राप्त होता है। चार प्रर्कार रे्क मासों-

1. चन्द्र मास, 2. सौर मास,

3. नक्षत्र मास और

4. श्रा�ण मास र्का �ण�न भी इस प�� में विर्कया गया है।

�ुक्� पक्ष प्रवितपदा से अमा�स्या तर्क र्का मास 'चन्द्र मास',

सूय� द्वारा एर्क राशि� में संक्रावित से दूसरी संक्रावित में प्र�े� र्करने र्का समय 'सौर मास',

आभिश्वन नक्षत्र से रे�ती नक्षत्र पय�न्त 'नक्षत्र मास' और

पूरे तीस दिदन र्का या विर्कसी वितशिथ र्को �ेर्कर तीस दिदन बाद आने �ा�ी वितशिथ तर्क र्का समय 'श्रा�ण मास ' र्कह�ाता है।

श्राद्धर्कम� , विपतृर्कम� आदिद 'चन्द्र मास ' में र्करने चाविहए।

वि��ाह-संस्र्कार, यज्ञ, व्रत, स्नान आदिद सत्र्कम� 'सौर मास' में र्करने र्का वि�Sान है। सोम या विपतृगण रे्क र्काय� 'नक्षत्र मास' में विर्कए जाते हैं।

प्रायभि�त्त, अन्नप्रा�न, मन्त्रोपासना, राज र्कर देना, यज्ञ रे्क दिदनों र्की गणना आदिद र्कम� 'श्रा�ण मास' में र्करना चाविहए।

सूय� -चन्द्र र्की वितशिथयों रे्क योग से द्धिजस माह में पूर्णिण/मा र्का योग न हो और तीस दिदनों तर्क संक्रमण न हो, �ह 'म� मास' र्कह�ाता है। इस मास में र्कोई भी �ुभ र्कम� नहीं विर्कए जाते। इसी प�� में सूत जी वि�भिभन्न वितशिथयों में विर्कए गए र्कम� वि��े. रे्क ��ों र्का �ण�न भी र्करते हैं।

�ुक्� पक्ष में विद्वतीया वितशिथ र्को यदिद बृहस्पवित�ार हो तो उस दिदन अग्नि%न पूजन र्करने से ऐश्वय� और इच्छापूर्षित/ रे्क अनुसार Sन �ाभ होता है।

आ.ाढ़ ए�ं श्रा�ण मास में ष्टिमथुन-र्कर्क� राशि� रे्क सूय� में विद्वतीया वितशिथ र्को उप�ास र्कररे्क वि�ष्णु पूजन र्करने से स्त्री जल्दी वि�S�ा नहीं होती। इसी प्रर्कार अन्य वितशिथयों में विर्कए गए पूजन से क्या-क्या प्राप्त होते हैं, उनर्का वि�स्तार से उल्�ेख विर्कया गया है।

इसी प�� में उद्यानों, गोचर भूष्टिमयों, ज�ा�यों, तु�सी और मण्डप आदिद र्की प्रवितष्ठा र्की �ास्त्रीय वि�ष्टिSयों र्का उल्�ेख विर्कया गया है। गृहस्थाश्रम र्की उपयोविगता, सृष्टिC, पाता� �ोर्क, भूगो�, ज्योवित., ब्राह्मणों र्की महानता, माता-विपता ए�ं गुरुओं र्की मविहमा, �ृक्षारोपण र्का महत्� आदिद र्का वि�स्तार से �ण�न है। �ृक्षारोपण रे्क शि�ए �ै�ाख, आ.ाढ़, श्रा�ण तथा भादों मास स��शे्रष्ठ और ज्येष्ठ, आभिश्वन, र्कार्षित/र्क मास अ�ुभ ए�ं वि�ना�र्कारी माने जाते हैं। इसी प�� में दस प्रर्कार रे्क यज्ञ रु्कण्डों र्का �ण�न भी विर्कया गया है।

प्रवितसग) पव)

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ईसा मसीहJesus

प्रवितसग� प�� इवितहास र्का सुन्दर वि��ेचन प्रस्तुत र्करता है। इसमें आSुविनर्क घटनाओं र्का क्रम�ार �ण�न है। ईसा मसीह रे्क जन्म, उनर्की भारत यात्रा, मुहम्मद साहब र्का आवि�भा��, महारानी वि�क्टोरिरया र्का राज्यारोहण, सत युग रे्क राज�ं�ों र्का �ण�न, ते्रता युग रे्क सूय��ं�ी और चन्द्र�ं�ी राजाओं र्का �ण�न , द्वापर युग रे्क चन्द्र�ं�ी राजाओं र्का �ण�न, र्कशि� युग में होने �ा�े म्�ेच्छ राजाओं ए�ं उनर्की भा.ाओं र्का �ण�न, नूह र्की प्र�य गाथा, मगS रे्क राज�ं� राजा नन्द, बौद्ध राजाओं तथा चौहान � परमार �ं� रे्क राजाओं तर्क र्का �ण�न इसमें प्राप्त होता है। राज�ं�ों से सम्बंष्टिSत र्कई र्कथाओं रे्क माध्यम से मान�-जी�न रे्क आद�� मूल्यों रे्क स्थापना र्की पे्ररणा देने में 'भवि�ष्य पुराण' अग्रणी है। इस पुराण में प्रशिसद्ध बेता� र्कथाओं (वि�क्रम-बैता� र्कथाए)ं या बेता� पच्चीसी र्की र्कथाओं र्का उल्�ेख भी ष्टिम�ता हैं जीमूत�ाहन और �ंखचूड़ र्की प्रशिसद्ध र्कथा भी इस पुराण में उप�ब्ध होती है।

'श्री सत्यनारायण व्रत र्कथा ' र्का उल्�ेख इसी प�� रे्क तेइस�ें से उनतीस�ें अध्याय में विर्कया गया हें यह र्कथा विहन्दुओं रे्क सामाद्धिजर्क ए�ं पारिर�ारिरर्क जी�न रे्क शि�ए अत्यन्त �ोर्कोपर्कारी, मंग�र्कारी और पुण्य देने �ा�ी है।

इस प�� में भारत रे्क �गभग एर्क सहस्त्र �.� रे्क इवितहास पर सुन्दर प्रर्का� डा�ा गया है। इस �जह से इस पुराण र्को �त�मान भारतीय संस्रृ्कवित, Sम� और सभ्यता र्का महान ग्रन्थ र्कहना अनुशिचत नहीं होगा। प्रसंग�� इसमें 'मार्क� ण्डेय पुराण ' र्की भांवित 'दुगा� सप्त�ती ' रे्क चरिरत्रों र्का भी �ण�न प्राप्त होता है।

उत्तर पव)

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नारद मुविन Narad Muni

इस प�� में वि�ष्णु-माया से मोविहत नारद र्का �ण�न, शिचत्र�ेखा चरिरत्र �ण�न, अ�ोर्क तथा र्कर�ीर व्रत र्का माहात्म्य गोपनीय र्कोविर्क�ा व्रत र्का �ण�न (पवित-पत्नी में पे्रम र्की प्रगाढ़ता रे्क शि�ए) तथा म्बिस्त्रयों र्को सौभा%य प्रदा र्करने �ा�े अन्य व्रतों र्का �ण�न वि�स्तारपू��र्क विर्कया गया है।

'भवि�ष्य पुराण' र्की सबसे महत्त्�पूण� वि��े.ता यह है विर्क इसर्का पारायण और रचना मग ब्राह्मणों द्वारा र्की गई है। ये मग ब्राह्मण ईरानी पुरोविहत थ,े जो ईसा र्की तीसरी �ताब्दी में भारत आर्कर बस गए थे। ये सूय� रे्क उपासर्क थे। सूय� र्की उपासना �ैदिदर्क र्का� से भारत में होती रही है। मग ब्राह्मणों ने सूय¨पासना रे्क साथ 'खगो� वि�द्या' और 'ज्योवित.' र्का प्रच�न विर्कया। ज्योवित. �ास्त्र रे्क प्रशिसद्ध आचाय� �राह ष्टिमविहर,खगो� वि�द्या रे्क ज्ञाता मग ब्राह्मण ही थे। ये मग ब्राह्मण �नै:-�नै: भारतीय जन-जी�न में पूरी तरह से घु�-ष्टिम� गए।

भवि�ष्य पुराण तत्र्का�ीन समाज-व्य�स्था पर भी अच्छा प्रर्का� डा�ता है। उस र्का� र्की जावित-व्य�स्था रे्क बारे में यह पुराण र्कहता है-'जावित न तो जन्म से होती है, न �ं� से और न ही व्य�साय से, बस्मिल्र्क र्कम� तथा आचरण से होती है।

ऐसे अनेर्क उदाहरण इवितहास में ष्टिम� जाएगंे, जो �ूद्र रु्क� में जन्म �ेर्कर भी सत्र्कम� रे्क आSार पर पूजनीय बने। स्�यं रृ्कष्ण दै्वपायन व्यास जी महर्षि./ परा�र और मत्स्य र्कन्या सत्य�ती रे्क संसग� से उत्पन्न हुए थे। 'भवि�ष्य पुराण' रे्क अनुसार �ण�-व्य�स्था ईरान रे्क ब्राह्मणों र्की देन है। उन्होंने ही ब्राह्मण, क्षवित्रय, �ैश्य और �ूद्र जावितयों में समाज र्को बांटा था। यह विनर्षि�/�ाद रूप से सत्य है विर्क ईरानी पुरोविहत मग ज्योवित. वि�द्या में पारंगत थे। मग ब्राह्मणों रे्क अवितरिरi भोजर्क और अग्नि%न उपासर्क भी ईरान से यहाँ आए थ,े जो बाद में 'आय�' र्कह�ाने �गे।

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राम,�क्ष्मण और सीताRam, Laxman and Sita

'भवि�ष्य पुराण' रे्क अनुसार दक्ष र्की पुत्री संज्ञा र्का वि��ाह सूय� रे्क साथ हुआ था। उसी से यम और यमुना पैदा हुए। इस पुराण में सूय� पूजा र्की वि�ष्टिS वि�स्तार से बताई गई है। रi चन्दन, र्कर�ीर पुष्प तथा गुड़ से बनी खाद्य-सामग्री सूय¨पासना में उपयुi मानी गई है। सूय� रे्क अवितरिरi इस पुराण में गणे� जी र्की पूजा और स्�ग�-नरर्क र्का वि�स्तृत �ण�न भी प्राप्त होता है। इसमें बताया गया हे विर्क जो मनुष्य सुसंस्रृ्कत होते हुए भी दुराचार से शि�प्त रहता है, उसे रौर� नरर्क र्का दुख सहन र्करना पडे़गा-चाहे �ह ब्राह्मण र्की क्यों न हो।

शि�क्षा-प्रणा�ी रे्क बारे में वि�स्तार से चचा� र्करते हुए 'भवि�ष्य पुराण' र्कहता है विर्क रे्क�� पांच प्रर्कार रे्क गुरु होते हैं।

1. आचाय� जो �ेदों र्का रहस्य समझाए।ं 2. उपाध्याय जो जीवि�र्कोपाज�न हेतु �ेद पाठ र्कराए।ं 3. गुरु या विपता जो अपने शि�ष्यों और सन्तान र्को शि�भिक्षत र्करें तथा उनमें विर्कसी तरह र्का भेदभा� न र्करें।

4. ऋन्तित्�र्क जो अग्नि%नहोत्र या यज्ञ र्कराए।ं 5. महागुरु जो गुरुओं र्का भी गुरु हो; द्धिजसने '�ेद', 'पुराण', 'रामायण' और 'महाभारत' र्की पूरी तरह

अध्ययन विर्कया हो तथा सूय�, शि��, वि�ष्णु आदिद र्की उपासना वि�ष्टिSयों र्का पूरा ज्ञान रखता हो।

'भवि�ष्य पुराण' में व्रतों और उप�ासों रे्क वि�स्तृत �ण�न रे्क साथ-साथ मद्धिन्दर विनमा�ण र्की प्रविक्रया र्का भी वि�स्तार से उल्�ेख है। मद्धिन्दरों रे्क विनमा�ण में स्थापत्य र्क�ा र्का वि��द �ण�न भी इस पुराण में प्राप्त होता है। सूय� मद्धिन्दर में सूय� प्रवितमाओं रे्क बारे में भी वि�स्तार से बताया गया है।

समाज र्की आर्शिथ/र्क स्थिस्थवित रे्क बारे में 'भवि�ष्य पुराण' में अष्टिSर्क जानर्कारी नहीं उप�ब्ध होती। रे्क�� रु्कछ प्रर्कार र्की मजदूरी र्का उल्�ेख प्राप्त होता है। यदिद पह�े से मजदूरी तय न हो तो रु्क� विर्कए गए र्काम र्का विहसाब �गार्कर मजदूरी देनी चाविहए। साSारण तौर पर उस र्का� में मजदूरी 'पण' रे्क रूप में दी जाती थी। बीस र्कौड़ी र्की एर्क र्काविर्कणी और चार र्काविर्कणी र्का एर्क पण होता था।

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वाम� पुराण / Vaman Purana

'�ामन पुराण' नाम से तो �ैष्ण� पुराण �गता है, क्योंविर्क इसर्का नामर्करण वि�ष्णु रे्क '�ामन अ�तार ' रे्क आSार पर विर्कया गया है, परन्तु �ास्त� में यह �ै� पुराण है। इसमें �ै� मत र्का वि�स्तारपू��र्क �ण�न प्राप्त होता है। यह आर्कार में छोटा है। रु्क� दस हज़ार श्लोर्क इसमें बताए जाते हैं, विर्कन्तु वि��हा� छह हज़ार श्लोर्क ही उप�ब्ध हैं। इसर्का उत्तर भाग प्राप्त नहीं है। इस पुराण में पुराणों रे्क सभी अंगों र्का यथोशिचत �ण�न विर्कया गया है। इसर्की प्रवितपादन �ै�ी अन्य पुराणों से रु्कछ भिभन्न है। ऐसा �गता है विर्क इसे र्कई वि�द्वानों ने अ�ग-अ�ग समय पर शि�खा था। इसमें जो पौराभिणर्क उपाख्यान दिदए गए हैं, �े अन्य पुराणों में �र्णिण/त उपाख्यानों से भिभन्न हैं। विर्कन्तु यहाँ उनर्का उल्�ेख स्पC और वि��ेचनापूण� है।

�ै� पुराण होते हुए भी ' �ामन पुराण' में वि�ष्णु र्को र्कहीं नीचा नहीं दिदखाया गया है। एर्क वि��े. बात यह हे विर्क इस पुराण र्का नामर्करण द्धिजस राजा बशि� और �ामन चरिरत्र पर विर्कया गया है, उसर्का �ण�न यद्यविप इसमें दो बार

विर्कया गया है, परंतु �ह बहुत ही संके्षप में है।

अ�ुक्रम[छुपा]

1 �ामन पुराण / Vaman Purana 2 राजा बशि�

3 शि�� - सती

4 शि��लि�/ग

5 सृष्टिC र्की उत्पभित्त , वि�र्कास , वि�स्तार और भूगो�

6 र्कथाएँ और चरिरत्र

7 सुसंस्रृ्कत राजपुरु.

8 सम्बंष्टिSत लि�/र्क

[संपादि�त करें ] राजा बत्तिल�ेदों में र्कहा गया है- 'यह समस्त जगत वि�ष्णु रे्क तीन चरणों रे्क अन्तग�त है।' इसी र्की व्याख्या र्करते हुए ब्राह्मण ग्रन्थों में एर्क संभिक्षप्त र्कथानर्क जोड़ा गया। उसे ही पुराणर्कारों ने अपने र्काव्य और साविहन्तित्यर्क ज्ञान द्वारा एर्क प्रभा��ा�ी रूप दे दिदया। इस उपाख्यान रे्क अन्तग�त दैत्यराज प्रह्लाद रे्क पौत्र राजा बशि� र्का �ैभ�पूण� �ण�न र्करते हुए उसर्की दान�ी�ता र्की प्र�ंसा र्की गई है।

उपाख्यान इस प्रर्कार है विर्क एर्क बार राजा बशि� ने दे�ताओं पर चढ़ाई र्कररे्क इन्द्र�ोर्क पर अष्टिSर्कार र्कर शि�या। उसरे्क दान रे्क चचb स��त्र होने �गे। तब वि�ष्णु �ामन अंगु� र्का �े� Sारण र्कररे्क राजा बशि� से दान मांगने जा पहुंचे। दैत्यों रे्क गुरु �ुक्राचाय� ने बशि� र्को सचेत विर्कया विर्क तेरे द्वार पर दान मांगने स्�यं वि�ष्णु भग�ान पSारे है। उन्हे दान मत दे बैठनां परन्तु राजा बशि� उनर्की बात नहीं माना। उसने इसे अपना सौभा%य समझा विर्क भग�ान उसरे्क द्वार पर भिभक्षा मांगने आए हैं। तब वि�ष्णु ने बशि� से तीन पग भूष्टिम मांगी। राजा बशि� ने संर्कल्प र्कररे्क भूष्टिम दान र्कर दी। तब वि�ष्णु ने अपना वि�राट रूप Sारण र्कररे्क दो पगों में तीनों �ोर्क नाप शि�या और तीसरा पग राजा बशि� रे्क शिसर पर रखर्कर उसे पाता� भेज दिदया।

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[संपादि�त करें ] श्चिशव-सतीइस प्रर्करण में वि�ष्णु र्को सृष्टिC र्का विनयन्ता और दैत्यराज बशि� र्को दान�ीरता प्रदर्शि�/त र्की गई है। परन्तु यह र्कथा ही '�ामन पुराण' र्की प्रमुख �ण्य�-वि�.य नहीं है। इस पुराण में शि�� चरिरत्र र्का भी वि�स्तार से �ण�न है।

प्रशिसद्ध प्रचशि�त र्कथाओं रे्क अनुसार सती विबना विनमन्त्रण रे्क अपने विपता दक्ष रे्क यज्ञ में जाती हैं और �हां शि�� र्का अपमान हुआ देखर्कर अग्नि%न दाह र्कर �ेती हैं। परन्तु '�ामन पुराण' रे्क अनुसार गौतम-पुत्री जया सती रे्क द��न रे्क शि�ए आती हैं। उससे सती र्को ज्ञात होता है विर्क जया र्की अन्य बहनें वि�जया, जयन्ती ए�ं अपराद्धिजता अपने नाना दक्ष रे्क यज्ञ में गई हैं। इस बात र्को सुनर्कर सती शि�� र्को विनमन्त्रण न आया जानर्कर �ोर्क में डूब जाती है और �हीं भूष्टिम पर विगरर्कर अपने प्राण त्याग देती है। यह देख शि�� र्की आज्ञा से �ीरभद्र अपनी सेना रे्क साथ जाता है और दक्ष-यज्ञ र्का वि�ध्�ंस र्कर देता है।

[संपादि�त करें ] श्चिशवलिलंग'�ामन पुराण' में र्काम-दहन र्की र्कथा भी स��था भिभन्न है। इसमे दिदखाया गया है विर्क शि�� जब दक्ष-यज्ञ र्का वि�ध्�ंस र्कर रहे थ ेतब र्कामदे� ने उन पर 'उन्माद' ,'संताप' और 'वि�ज्रम्भण' नामर्क तीन बाण च�ाए, द्धिजससे शि�� वि�भिक्षप्त होर्कर सती रे्क शि�ए वि��ाप र्करने �गे। व्यशिथत होर्कर उन्होंने �े बाण रु्कबेर रे्क पुत्र पांचाशि�र्क र्को दे दिदए। जब र्कामदे� वि�र बाण च�ाने �गा तो शि�� भागर्कर दारूर्क�न में च�े गए। �हां तपस्या रत ऋवि.यों र्की पम्बित्नयां उन पर आसi हो गईं। इस पर ऋवि.यों ने शि��लि�/ग खंविडत होर्कर विगरने र्का �ाप दे दिदया। �ाप रे्क र्कारण जब शि��लि�/ग Sरती पर विगर पड़ा, तब सभी ने देखा विर्क उस लि�/ग र्का तो र्कोई ओर-छोर ही नहीं है। इस पर सभी दे�गण शि�� र्की स्तुवित र्करने �गे। ब्रह्मा और वि�ष्णु ने भी स्तुवित र्की। तब शि�� ने प्रसन्न होर्कर पुन: लि�/ग Sारण विर्कया। इस पर वि�ष्णु ने चारों �णu द्वारा शि��लि�/ग र्की उपासना र्का विनयम प्रारम्भ विर्कया। साथ ही '�ै�', 'पा�ुपत' , 'र्का�दमन' और 'र्कापाशि�र्क' नामर्क चार प्रमुख �ास्त्रों र्की रचना र्की।

एर्क र्कथा इस प्रर्कार है विर्क एर्क बार शि�� शिचत्र�न में तपस्या र्कर रहे थे। तभी र्कामदे� ने उन पर वि�र आक्रमण विर्कया। तब �ंर्कर भग�ान ने क्रोS में आर्कर उसे अपनी दृष्टिC से भस्म र्कर दिदया। भस्म होने रे्क उपरान्त �ह राख नहीं बना, अविपतु पांच पौSों रे्क रूप में परिर�र्षित/त हो गया। �े पौSे दुक्मSृC, चम्पर्क, �रु्क�, पाटल्य और जातीपुष्प र्कह�ाए।

इस प्रर्कार '�ामन पुराण' में र्कामदे� रे्क भस्म होर्कर अनंग हो जाने र्का �ण�न नहीं ष्टिम�ता, बस्मिल्र्क �ह सुगम्बिन्धत �ू�ों रे्क रूप में परिर�र्षित/त हो गया। इस पुराण में बसंत र्का बड़ा ही सुन्दर �ण�न विर्कया गया है-

ततो �सन्ते संप्राप्ते हिर्क/�ुर्का ज्��नप्रभा:।

विनष्पत्रा: सततंरेजु: �ोभयन्तो Sरात�म्॥ (�ामन पुराण 1/6/9)

अथा�तृ बसन्त ऋतु रे्क आगमन पर ढार्क रे्क �ृक्ष, �ा� �ण� �ा�े पुष्पों रे्क र्कारण अग्नि%न रे्क समान प्रभा �ा�े प्रतीत हो रहे थे। उन �ा� पुष्पों रे्क गुच्छों से �दे �ृक्षों रे्क र्कारण Sरा �ोभायमान हो रही थी।

[संपादि�त करें ] सृवि6 की उ2पत्तित्त, विवकास, विवस्तार और भूगोलइसरे्क अवितरिरi '�ामन पुराण' में सृष्टिC र्की उत्पभित्त, वि�र्कास, वि�स्तार और भूगो� र्का भी उल्�ेख है। भारत�.� रे्क वि�भिभन्न प्रदे�ों, प��तों, प्रशिसद्ध स्थ�ों और नदिदयों र्का भी �ण�न प्राप्त होता है। पाप-पुण्य तथा नरर्क र्का �ण�न

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भी इस पुराण में है। व्रत, पूजा, तीथा�टन आदिद र्का महत्त्� भी इसमें बताया गया है। द्धिजस व्यशिi र्को 'आत्मज्ञान' प्राप्त हो जाता है; उसे तीथu व्रतों आदिद र्की आ�श्यर्कता नहीं रह जाती । सच्चा ब्राह्मण �ही है, जो Sन र्की �ा�सा नहीं र्करता और दान ग्रहण र्करना हीन र्काय� समझता है। प्राणीमात्र रे्क र्कल्याण र्को ही �ह अपना Sम� मानता है।

[संपादि�त करें ] कथाए ँऔर चरिरत्रइस पुराण रे्क रु्कछ अन्य उपाख्यानों में प्रह्लाद र्की र्कथा, अन्धर्कासुर र्की र्कथा, तारर्कासुर और मविह.ासुर �S र्की र्कथा, दुगा� सप्त�ती , दे�ी माहात्म्य, �ेन चरिरत्र, चण्ड-मुण्ड और �ंुभ-विन�ुंभ �S र्की र्कथा, शिचत्रांगदा वि��ाह, जम्भ-रु्कजम्भ �S र्की र्कथा, Sुनु्ध पराजय आदिद र्की र्कथा, अनेर्क तीथu र्का �ण�न तथा राक्षस रु्क� रे्क राजाओं र्का �ण�न आदिद प्राप्त होता है।

[संपादि�त करें ] सुसंस्कृत राजपुरुष'�ामन पुराण' में राक्षस राजाओं र्को रiविपपासु या दुष्प्र�ृभित्तयों से ग्रस्त नहीं दिदखाया गया है, बस्मिल्र्क उन्हें उन्नत सभ्यता र्का पा�न र्करने �ा�े, र्क�ा पे्रमी ए�ं सुसंस्रृ्कत राजपुरु.ों रे्क रूप में द�ा�या गया है। �े �ोग आय� सम्यता र्को नहीं मानते थ,े इसीशि�ए आय� �ोग उन्हें राक्षस र्कहा र्करते थे। �े प्राय: उनसे युद्ध र्करते थ ेऔर उन्हें नC र्कर देते थे।

इस पुराण ने सदाचार र्का �ण�न र्करते हुए सबसे बड़ा पाप रृ्कतघ्नता र्को माना है। ब्रह्महत्या और गोहत्या र्का प्रायभि�त्त हो सर्कता है, परंतु उपर्कारी र्की प्रवित रृ्कतघ्न व्यशिi रे्क पाप र्का र्कोई प्रायभि�त्त नहीं है।

'�ामन पुराण' में र्कहा गया है विर्क दे�गण में भग�ान जनाद�न स��शे्रष्ठ हैं। प��तों में �े.ादिद्र, आयुSों में सुद��न चक्र, पभिक्षयों में गरुड़, सपu में �े.नाग, प्रारृ्कवितर्क भूतों में पृथ्�ी, नदिदयों में गंगा, ज�जों में पद्म, तीथu में रु्करुके्षत्र, सरो�रों में मानसरो�र, पुष्प�नों में नन्दन �न, Sम�-विनयमों में सत्य, यज्ञों में अश्वमेघ, तपस्मिस्�यों में रु्कम्भज ऋवि., समस्त आगमों में �ेद, पुराणों में 'मत्स्य पुराण ', स्मृवितयों में 'मनुस्मृवित' , वितशिथयों में द�� अमा�स्या, दे�ों में इन्द्र, तेज में सूय�, नक्षत्रों में चन्द्र, Sान्यों में अक्षत (चा��), विद्वपदों में वि�प्र (ब्राह्मण) और चतुष्पदों में लिस/ह स��शे्रष्ठ होता है।

यहाँ 'आत्मज्ञान' र्को ही स��ज्ञानों में स��शे्रष्ठ ज्ञान स्�ीर्कार विर्कया गया है। Sम� र्का वि��ेचन र्करते हुए यह पुराण र्कहता है-

हिर्क/ ते.ां सने�ैस्तीथbराश्रभै�ा� प्रयोजनम्।

ये.ां चानन्मरं्क शिचत्तमात्मन्ये� व्य�स्थिस्थम्॥ (�ामन पुराण 1/43/24)

अथा�त् द्धिजनर्का अन्तम�न (शिचत्त) व्य�स्थिस्थत अथ�ा संयष्टिमत है, उनर्को तीथu और आश्रमों र्की र्कोई आ�श्यर्कता नहीं होती। उनर्का हृदय ही तीथ� होता है। मन ही आश्रम होता है।

श्चिशव पुराण / Shiv Purana

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गतbश्वर महादे� मद्धिन्दर, मथुराGarteshwar Mahadev Temple, Mathura

'शि�� पुराण' र्का सम्बन्ध �ै� मत से है। इस पुराण में प्रमुख रूप से शि��-भशिi और शि��-मविहमा र्का प्रचार-प्रसार विर्कया गया है। प्राय: सभी पुराणों में शि�� र्को त्याग, तपस्या, �ात्सल्य तथा र्करुणा र्की मूर्षित/ बताया गया है। र्कहा गया है विर्क शि�� सहज ही प्रसन्न हो जाने �ा�े ए�ं मनो�ांशिछत �� देने �ा�े हैं। विर्कन्तु 'शि�� पुराण' में शि�� रे्क जी�न चरिरत्र पर प्रर्का� डा�ते हुए उनरे्क रहन-सहन, वि��ाह और उनरे्क पुत्रों र्की उत्पभित्त रे्क वि�.य में वि��े. रूप से बताया गया है।

भग�ान शि�� सदै� �ोर्कोपर्कारी और विहतर्कारी हैं। वित्रदे�ों में इन्हें संहार र्का दे�ता भी माना गया है। अन्य दे�ताओं र्की पूजा- अच�ना र्की तु�ना में शि��ोपासना र्को अत्यन्त सर� माना गया है। अन्य दे�ताओं र्की भांवित

र्को सुगंष्टिSत पुष्पमा�ाओं और मीठे पर्क�ानों र्की आ�श्यर्कता नहीं पड़ती । शि�� तो स्�च्छ ज�, विबल्� पत्र, रं्कटी�े और न खाए जाने �ा�े पौSों रे्क �� यथा- Sूतरा आदिद से ही प्रसन्न हो जाते हैं। शि�� र्को मनोरम �े�भू.ा

और अ�ंर्कारों र्की आ�श्यर्कता भी नहीं है। �े तो औघड़ बाबा हैं। जटाजूट Sारी, ग�े में शि�पटे नाग और रुद्राक्ष र्की मा�ाए,ं �रीर पर बाघम्बर, शिचता र्की भस्म �गाए ए�ं हाथ में वित्र�ू� पर्कडे़ हुए �े सारे वि�श्व र्को अपनी

पदच्ाप तथा डमरू र्की र्कण�भेदी ध्�विन से नचाते रहते हैं। इसीशि�ए उन्हें नटराज र्की संज्ञा भी दी गई है। उनर्की �े�भू.ा से 'जी�न' और 'मृत्यु' – र्का बोS होता है। �ी� पर गंगा और चन्द्र जी�न ए�ं र्क�ा रे्क द्योतम हैं। �रीर

पर शिचता र्की भस्म मृत्यु र्की प्रतीर्क है। यह जी�न गंगा र्की Sारा र्की भांवित च�ते हुए अन्त में मृत्यु सागर में �ीन हो जाता है।

अ�ुक्रम[छुपा]

1 शि�� पुराण / Shiv Purana 2 वि�दे्यश्वर संविहता

3 रुद्र संविहता

4 �तरुद्र संविहता

5 र्कोदिटरुद्र संविहता

6 उमा संविहता

7 रै्क�ास संविहता

8 �ायु संविहता

9 सम्बंष्टिSत लि�/र्क

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'रामचरिरतमानस' में तु�सीदास ने द्धिजन्हें 'अशि�� �े.Sारी' और 'नाना �ाहन नाना भे.' �ा�े गणों र्का अष्टिSपवित र्कहा है, �े शि�� जन-सु�भ तथा आडम्बर वि�हीन �े. र्को ही Sारण र्करने �ा�े हैं। �े 'नी�रं्कठ' र्कह�ाते हैं। क्योंविर्क समुद्र मंथन रे्क समय जब दे�गण ए�ं असुरगण अ�तु और बहुमूल्य रत्नों र्को हस्तगत र्करने रे्क शि�ए मरे जा रहे थ,े तब र्का�रू्कट वि�. रे्क बाहर विनर्क�ने से सभी पीछे हट गए। उसे ग्रहण र्करने रे्क शि�ए र्कोई तैयार नहीं हुआ। तब शि�� ने ही उस महावि�ना�र्क वि�. र्को अपने रं्कठ में Sारण र्कर शि�या। तभी से शि�� नी�रं्कठ र्कह�ाए। क्योंविर्क वि�. रे्क प्रभा� से उनर्का रं्कठ नी�ा पड़ गया था।

ऐसे परोपर्कारी और अपरिरग्रही शि�� र्का चरिरत्र �र्णिण/त र्करने रे्क शि�ए ही इस पुराण र्की रचना र्की गई है। यह पुराण पूण�त: भशिi ग्रन्थ है। पुराणों रे्क मान्य पांच वि�.यों र्का 'शि�� पुराण' में अभा� है। इस पुराण में र्कशि�युग रे्क पापर्कम� से ग्रशिसत व्यशिi र्को 'मुशिi' रे्क शि�ए शि��-भशिi र्का माग� सुझाया गया है।

मनुष्य र्को विनष्र्काम भा� से अपने समस्त र्कम� शि�� र्को अर्षिप/त र्कर देने चाविहए। �ेदों और उपविन.दों में 'प्रण� - ॐ' रे्क जप र्को मुशिi र्का आSार बताया गया है। प्रण� रे्क अवितरिरi 'गायत्री मन्त्र ' रे्क जप र्को भी �ान्तिन्त और मोक्षर्कारर्क र्कहा गया है। परन्तु इस पुराण में आठ संविहताओं सर्का उल्�ेख प्राप्त होता है, जो मोक्ष र्कारर्क हैं। ये संविहताए ंहैं- वि�दे्यश्वर संविहता, रुद्र संविहता, �तरुद्र संविहता, र्कोदिटरुद्र संविहता, उमा संविहता, रै्क�ास संविहता, �ायु संविहता (पू�� भाग) और �ायु संविहता (उत्तर भाग)।

इस वि�भाजन रे्क साथ ही स��प्रथम 'शि�� पुराण' र्का माहात्म्य प्रर्कट विर्कया गया है। इस प्रसंग में चंचु�ा नामर्क एर्क पवितता स्त्री र्की र्कथा है जो 'शि�� पुराण' सुनर्कर स्�यं सद्गवित र्को प्राप्त हो जाती है। यही नहीं, �ह अपने रु्कमाग�गामी पवित र्को भी मोक्ष दिद�ा देती है। तदुपरान्त शि�� पूजा र्की वि�ष्टिS बताई गई है। शि�� र्कथा सुनने �ा�ों र्को उप�ास आदिद न र्करने रे्क शि�ए र्कहा गया है। क्योंविर्क भूखे पेट र्कथा में मन नहीं �गता। साथ ही गरिरष्ठ भोजन, बासी भोजन, �ायु वि�र्कार उत्पन्न र्करने �ा�ी दा�ें, बैंगन, मू�ी, प्याज, �हसुन, गाजर तथा मांस-मदिदरा र्का से�न �र्जिज/त बताया गया है।

[संपादि�त करें ] विवदे्यश्वर संविहताइस संविहता में शि��रावित्र व्रत, पंचरृ्कत्य, ओंर्कार र्का महत्�, शि��लि�/ग र्की पूजा और दान रे्क महत्� पर प्रर्का� डा�ा गया है। शि�� र्की भस्म और रुद्राक्ष र्का महत्त्� भी बताया गया है। रुद्राक्ष द्धिजतना छोटा होता है, उतना ही अष्टिSर्क ��दायर्क होता है। खंविडत रुद्राक्ष, र्कीड़ों द्वारा खाया हुआ रुद्राक्ष या गो�ाई रविहत रुद्राक्ष र्कभी Sारण नहीं र्करना चाविहए। स�¨त्तम रुद्राक्ष �ह है द्धिजसमें स्�यं ही छेद होता है। सभी �ण� रे्क मनुष्यों र्को प्रात:र्का� र्की भोर �े�ा में उठर्कर सूय� र्की ओर मुख र्कररे्क दे�ताओं अथा�त् शि�� र्का ध्यान र्करना चाविहए। अर्जिज/त Sन रे्क तीन भाग र्कररे्क एर्क भाग Sन �ृद्धिद्ध में, एर्क भाग उपभोग में और एर्क भाग Sम�-र्कम� में व्यय र्करना चाविहए। इसरे्क अ�ा�ा क्रोS र्कभी नहीं र्करना चाविहए और न ही क्रोS उत्पन्न र्करने �ा�े �चन बो�ने चाविहए।

[संपादि�त करें ] रुद्र संविहतारुद्र संविहता में शि�� र्का जी�न-चरिरत्र �र्णिण/त है। इसमें नारद मोह र्की र्कथा, सती र्का दक्ष-यज्ञ में देह त्याग, पा��ती वि��ाह, मदन दहन , र्कार्षित/रे्कय और गणे� पुत्रों र्का जन्म, पृथ्�ी परिरक्रमा र्की र्कथा, �ंखचूड़ से युद्ध और उसरे्क संहार आदिद र्की र्कथा र्का वि�स्तार से उल्�ेख है। शि�� पूजा रे्क प्रसंग में र्कहा गया है विर्क दूS, दही, मSु, घृत और गन्ने रे्क रस (पंचामृत) से स्नान र्करारे्क चम्पर्क, पाट�, र्कनेर, मस्थिल्�र्का तथा र्कम� रे्क पुष्प चढ़ाए।ं वि�र Sूप, दीप, नै�ेद्य और ताम्बू� अर्षिप/त र्करें। इससे शि��जी प्रसन्न हो जाते हैं।

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इसी संविहता में 'सृष्टिC खण्ड' रे्क अन्तग�त जगत् र्का आदिद र्कारण शि�� र्को माना गया हैं शि�� से ही आद्या �शिi 'माया' र्का आवि�भा�� होता हैं वि�र शि�� से ही 'ब्रह्मा' और 'वि�ष्णु' र्की उत्पभित्त बताई गई है।

[संपादि�त करें ] शतरुद्र संविहताइस संविहता में शि�� रे्क अन्य चरिरत्रों-हनुमान, शे्वत मुख और ऋ.भदे� र्का �ण�न है। उन्हें शि�� र्का अ�तार र्कहा गया है। शि�� र्की आठ मूर्षित/यां भी बताई गई हैं। इन आठ मूर्षित/यों से भूष्टिम, ज�, अग्नि%न, प�न, अन्तरिरक्ष, के्षत्रज, सूय� और चन्द्र अष्टिSष्टिष्ठत हैं। इस संविहता में शि�� रे्क �ोर्कप्रशिसद्ध 'अद्ध�नारीश्वर' रूप Sारण र्करने र्की र्कथा बताई गई है। यह स्�रूप सृष्टिC-वि�र्कास में 'मैथुनी विक्रया' रे्क योगदान रे्क शि�ए Sरा गया था।

[संपादि�त करें ] कोदिeरुद्र संविहतार्कोदिटरुद्र संविहता में शि�� रे्क बारह ज्योवितर्लिं�/गों र्का �ण�न है। ये ज्योवितर्लिं�/गों क्रम�: सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्री�ै� में मस्थिल्�र्काजु�न, उज्जष्टियनी में महार्का�ेश्वर, ओंर्कार में अम्�ेश्वर, विहमा�य में रे्कदारनाथ, डाविर्कनी में भीमेश्वर, र्का�ी में वि�श्वनाथ, गोमती तट पर त्र्यम्बरे्कश्वर, शिचताभूष्टिम में �ैद्यनाथ, सेतुबंS में रामेश्वर, दारूर्क �न में नागेश्वर और शि��ा�य में घुश्मेश्वर हैं। इसी संविहता में वि�ष्णु द्वारा शि�� रे्क सहस्त्र नामों र्का �ण�न भी है। साथ ही शि��रावित्र व्रत रे्क माहात्म्य रे्क संदभ� में व्याघ्र और सत्य�ादी मृग परिर�ार र्की र्कथा भी है।

[संपादि�त करें ] उमा संविहताइस संविहता में शि�� रे्क शि�ए तप, दान और ज्ञान र्का महत्त्� समझाया गया है। यदिद विनष्र्काम र्कम� से तप विर्कया जाए तो उसर्की मविहमा स्�यं ही प्रर्कट हो जाती है। अज्ञान रे्क ना� से ही शिसद्धिद्ध प्राप्त होती है। 'शि�� पुराण' र्का अध्ययन र्करने से अज्ञान नC हो जाता है। इस संविहता में वि�भिभन्न प्रर्कार रे्क पापों र्का उल्�ेख र्करते हुए बताया गया है विर्क र्कौन से पाप र्करने से र्कौन-सा नरर्क प्राप्त होता है। पाप हो जाने पर प्रायभि�त्त रे्क उपाय भी बताए गए हैं।

[संपादि�त करें ] कैलास संविहतारै्क�ास संविहता में ओंर्कार रे्क महत्त्� र्का �ण�न है। इसरे्क अ�ा�ा योग र्का वि�स्तार से उल्�ेख है। इसमें वि�ष्टिSपू��र्क शि��ोपासना, नान्दी श्राद्ध और ब्रह्मयज्ञादिद र्की वि��ेचना भी र्की गई है। गायत्री जप र्का महत्त्� तथा �ेदों रे्क बाईस महा�ाक्यों रे्क अथ� भी समझाए गए हैं।

[संपादि�त करें ] वायु संविहताइस संविहता रे्क पू�� और उत्तर भाग में पा�ुपत वि�ज्ञान, मोक्ष रे्क शि�ए शि�� ज्ञान र्की प्रSानता, ह�न, योग और शि��-ध्यान र्का महत्त्� समझाया गया है। शि�� ही चराचर जगत् रे्क एर्कमात्र दे�ता हैं। शि�� रे्क 'विनगु�ण' और 'सगुण' रूप र्का वि��ेचन र्करते हुए र्कहा गया है विर्क शि�� एर्क ही हैं, जो समस्त प्राभिणयों पर दया र्करते हैं। इस र्काय� रे्क शि�ए ही �े सगुण रूप Sारण र्करते हैं। द्धिजस प्रर्कार 'अग्नि%न तत्त्�' और 'ज� तत्त्�' र्को विर्कसी रूप वि��े. में रखर्कर �ाया जाता है, उसी प्रर्कार शि�� अपना र्कल्याणर्कारी स्�रूप सार्कार मूर्षित/ रे्क रूप में प्रर्कट र्कररे्क पीविड़त व्यशिi रे्क सम्मुख आते हैं शि�� र्की मविहमा र्का गान ही इस पुराण र्का प्रवितपाद्य वि�.य है।

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लिलंग पुराण / Ling Purana

'लि�/ग पुराण' �ै� सम्प्रदाय र्का पुराण है। 'लि�/ग' र्का अथ� शि�� र्की जननेद्धिन्द्रय से नहीं अविपतु उनरे्क 'पहचान शिचह्न' से है, जो अज्ञात तत्त्� र्का परिरचय देता है। इस पुराण में लि�/ग र्का अथ� वि�स्तार से बताया गया है। यह पुराण प्रSान प्ररृ्कवित र्को ही लि�/ग रूप मानता है-

प्रSानं प्ररृ्कवित�ैवित यदाहुर्लिं�/गयुत्तमम्।

गन्ध�ण�रसैह©नं �ब्द स्प�ा�दिद�र्जिज/तम् ॥ (लि�/ग पुराण 1/2/2)

अथा�त् प्रSान प्ररृ्कवित उत्तम लि�/ग र्कही गई है जो गन्ध, �ण�, रस, �ब्द और स्प�� से तटस्थ या �र्जिज/त है।

अ�ुक्रम[छुपा]

1 लि�/ग पुराण / Ling Purana 2 र्कथा भाग

3 सृष्टिC र्का प्रारम्भ

4 तीन रूप

5 सृष्टिC

6 सृष्टिC र्का आवि�भा��

7 ब्रह्माण्ड

8 Sम� र्की व्याख्या

9 वि�र्कास क्रम

10 सा��जविनर्क विहत

11 युगों र्का �ण�न

12 खगो� वि�द्या

13 Sार्मिम/र्क सविहष्णुता

14 योग

15 पंचमुखी ब्रह्मा

16 सम्बंष्टिSत लि�/र्क

[संपादि�त करें ] कथा भाग'लि�/ग पुराण' र्का र्कथा भाग 'शि�� पुराण ' रे्क समान ही है। �ै� शिसद्धान्तों र्का अत्यन्त सर�, सहज, व्यापर्क और वि�स्तृत �ण�न जैसा इस पुराण में विर्कया गया है, �ैसा विर्कसी अन्य पुराण में नहीं है। इस पुराण में रु्क� एर्क सौ

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वितरसठ अध्याय हैं। पू�ा�द्ध� में एर्क सौ आठ और उत्तराद्ध� में पचपन अध्याय हैं। इसमें शि�� रे्क अव्यi ब्रह्मरूप र्का वि��ेचन र्करते हुए उनसे ही सृष्टिC र्का उ�� बताया गया है।

[संपादि�त करें ] सृवि6 का प्रारम्भभारतीय �ेदों, उपविन.दों तथा द��नों में सृष्टिC र्का प्रारम्भ '�ब्द ब्रह्म' से माना जाता रहा है। उस ब्रह्म र्का न र्कोई आर्कार है और न र्कोई रूप। उसी '�ब्द ब्रह्म' र्का प्रतीर्क शिचह्न सार्कार रूप में 'शि��लि�/ग' है। यह शि�� अव्यi भी है और अनेर्क रूपों में प्रर्कट भी होता है।

[संपादि�त करें ] ती� रूपभारतीय मनीवि.यों ने भग�ान रे्क तीन रूपों- 'व्यi', 'अव्यi' और 'व्यiाव्यi' र्का जगह-जगह उल्�ेख विर्कया है। 'लि�/ग पुराण' ने इसी भा� र्को शि�� रे्क तीन स्�रूपों में व्यi विर्कया है-

एरे्कनै� हृतं वि�शं्व व्याप्त त्�े�ं शि��ेन तु।

अलि�/ग चै� लि�/गं च लि�/गालि�/गाविन मूत�य:॥ (लि�/ग पुराण 1/2/7)

अथा�त् शि�� रे्क तीन रूपों में से एर्क रे्क द्वारा सृष्टिC (वि�श्व) र्का संहार हुआ और उस शि�� रे्क द्वारा ही यह व्याप्त है। उस शि�� र्की अलि�/ग, लि�/ग और शि�गांलि�/ग तीन मूर्षित/यां हैं।

[संपादि�त करें ] सृवि6भा� यही है विर्क शि�� अव्यi लि�/ग (बीज) रे्क रूप में इस सृष्टिC रे्क पू�� में स्थिस्थत हैं। �ही अव्यi लि�/ग पुन: व्यi लि�/ग रे्क रूप में प्रर्कट होता है। द्धिजस प्रर्कार ब्रह्म र्को पूरी तरह न समझ पाने रे्क र्कारण 'नेवित-नेवित' र्कहा जाता है, उसी प्रर्कार यह शि�� व्यi भी है और अव्यi भी। �स्तुत: अज्ञानी और अशि�भिक्षत व्यशिi र्को अव्यi ब्रह्म (विनगु�ण) र्की शि�क्षा देना जब दुष्र्कर जान पड़ता है, तब व्यi मूर्षित/ र्की र्कल्पना र्की जाती है। शि��लि�/ग �ही व्यi मूर्षित/ है। यह शि�� र्का परिरचय शिचह्न है। शि�� रे्क 'अद्ध�नारीश्वर' स्�रूप से द्धिजस मैथुनी-सृष्टिC र्का जन्म माना जा रहा है, यदिद उसे ही जनसाSारण र्को समझाने रे्क शि�ए लि�/ग और योविन रे्क इस प्रतीर्क शिचह्न र्को सृष्टिC रे्क प्रारम्भ में प्रचारिरत विर्कया गया हो तो क्या यह अनुपयुi और अश्ली� र्कह�ाएगा। जो �ोग इस प्रतीर्क शिचह्न में मात्र भौवितर्कता र्को त�ा�ते हैं, उन्हें इस पर वि�चार र्करना चाविहए।

'लि�/ग पुराण' में लि�/ग र्का अथ� ओंर्कार (ॐ) बताया गया है। इस पुराण में शि�� रे्क अट्ठाईस अ�तारों र्का �ण�न है। उसी प्रसंग में अंSर्क, ज�ंSर, वित्रपुरासुर आदिद राक्षसों र्की र्कथाओं र्का भी उल्�ेख है।

[संपादि�त करें ] सृवि6 का आविवभा)व'लि�/ग पुराण' में सृष्टिC र्की उत्पभित्त पंच भूतों (आर्का�, �ायु, अग्नि%न, ज� और पृथ्�ी) द्वारा बताई गई है। प्रत्येर्क तत्त्� र्का एर्क वि��े. गुण होता है, द्धिजसे 'तन्मात्र' र्कहा जाता है। भारतीय मनीवि.यों रे्क अनुसार, सृष्टिC सृजन र्का वि�चार जब ब्रह्म रे्क मन में आया तो उन्होंने अवि�द्या अथ�ा अहंर्कार र्को जन्म दिदया। यह अहंर्कार सृष्टिC से पू�� र्का गहन अन्धर्कार माना जा सर्कता हें इस अहंर्कार से पांच सूक्ष्म तत्त्�- �ब्द, स्प��, रूप, रस और गंS उत्पन्न हुए। यही तन्मात्र र्कह�ाए। इनरे्क पांच सू्थ� तत्त्�- आर्का�, �ायु, अग्नि%न, ज� और पृथ्�ी प्रर्कट हुए। भारतीय

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शिसद्धान्त रे्क अनुसार तत्त्�ों रे्क इसी वि�र्कास क्रम से सृष्टिC र्का आवि�भा�� होता है। यह शिसद्धान्त हज़ारों �.u से वि�द्वानों र्को मान्य है।

[संपादि�त करें ] ब्रह्माण्ड'लि�/ग पुराण' रे्क अनुसार सम्पूण� वि�श्व में र्करोड़ों र्की संख्या में ब्रह्माण्ड हैं। प्रत्येर्क ब्रह्माण्ड रे्क चारों ओर दस गुना ज� र्का आ�रण है। यह ज� से दस गुना अष्टिSर्क तेज से आ�ृत्त रहता है। तेज से दस गुना आ�रण �ायु र्का है, जो तेज र्को ढरे्क रहता है। �ायु से भी दस गुना आ�रण आर्का� र्का है, जो �ायु रे्क ऊपर रहता है। प्रत्येर्क ब्रह्माण्ड रे्क पृथर््क ब्रह्मा, वि�ष्णु और रुद्र (शि��) अथा�त् र्कत्ता�, Sत्ता� तथा संहारर्कत्ता� हैं। ब्रह्माण्डों र्की यह र्कल्पना वि�ज्ञान सम्मत है। क्योंविर्क बड़ी-बड़ी दूरबीनों से देखने पर अनेर्क सूयu र्का पता च�ता है द्धिजनर्का प्रर्का� पृथ्�ी पर पहुंचने में हज़ारों �.� �ग जाते हैं।

'लि�/ग पुराण' इस दृष्टिC से वि�ज्ञान पर आSारिरत है विर्क इस संसार में जो भी भिभन्नता (यथा-Sम�, जावित, सम्प्रदाय, समुदाय, �ग�, गोत्र आदिद) दिदखाई पड़ती है, �ह सब हमारे द्वारा र्कस्थिल्पत है। यदिद मू� रूप से वि�चार विर्कया जाए तो मनुष्य ही नहीं, समस्त प्राणी उसी प्रर्कार से एर्क हैं, द्धिजस प्रर्कार मुट्ठी भर रेत रे्क सभी र्कण या विर्कसी पात्र में भरे हुए ज� र्की प्रत्येर्क बंूद।

[संपादि�त करें ] धम) की व्याख्या'Sम�' र्की व्याख्या र्करते हुए यह पुराण र्कहता है विर्क Sम� और अध्यात्म र्का �ास्तवि�र्क सार इसी बात में विनविहत है विर्क मनुष्य अपनी संर्कीण� दृष्टिC त्याग र्कर समस्त प्राभिणयों से आत्मीय भा� र्का अनुभ� र्करे। र्कहा गया है- आत्म�त् स��भूते.ु य: पश्यवित स पंविडत: अथा�त् जो समस्त प्राभिणयों में आत्मीय भा� रखता है, �ही पंविडत है।

[संपादि�त करें ] विवकास क्रमइस संसार में द्धिजतने भी छोटे-बडे़ जड़-चेतन पदाथ� दिदखाई पड़ते हैं, �े सभी पंचभूतों रे्क ही खे� हैं। 'लि�/ग पुराण' इस तथ्य र्को पूरी तरह से स्�ीर्कार र्करता है। भारतीय दृष्टिC में 'सूक्ष्म से सू्थ� र्की ओर' जाने र्की प्र�ृवित देखी जा सर्कती है। इसीशि�ए भारतीय मनीवि.यों ने आर्का� से पृथ्�ी तर्क रे्क वि�र्कास क्रम र्को प्रर्कट विर्कया, जैसा विर्क ऊपर पदाथ� नहीं मानते, �रन् �े उन्हें उनर्की मू� अ�स्था रे्क रूप में स्�ीर्कार र्करते हैं। पृथ्�ी तत्त्� में उसर्की 'ठोस अ�स्था' है। ज� तत्त्� से तात्पय� उसर्की 'तर� अ�स्था' से है। अग्नि%न तत्त्� र्का तात्पय� उसर्की 'ऊष्मता' से है। �ायु तत्त्� र्का आ�य उसरे्क 'प्र�हमान स्�रूप' से है और आर्का� तत्त्� र्का आ�य उसरे्क 'सूक्ष्म तत्त्�' से है।

[संपादि�त करें ] साव)जवि�क विहत'लि�/ग पुराण' में जो उपदे� प्राप्त होते हैं, �े सभी सा��जविनर्क विहत रे्क हैं। स��प्रथम इस पुराण में सदाचार पर स�ा�ष्टिSर्क ब� दिदया गया है। भग�ान शि�� ऐसे �ोगों से प्रसन्न होते है। जो संयमी, Sार्मिम/र्क दया�ान, तपस्�ी, साSु, संन्यासी, सत्य�ादी, �ेदों और स्मृवितयों रे्क ज्ञाता तथा साम्प्रदाष्टियर्क �ैमनस्य से दूर Sम� में आस्था रखते हों। वि�द्या र्की साSना र्करने �ा�ा ही साSु र्कह�ाता है। र्कल्याणर्कारी र्कम� ही Sम� है। सत्र्कम� ही मनुष्य र्को साSारण से असाSारण बनाते हैं।

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पुराणर्कार राजा कु्षप और दSीशिच ऋवि. र्की र्कथा रे्क माध्यम से ब्राह्मणों र्की श्रेष्ठता र्का प्रवितपादन र्करता है। दोनों र्का प्रवित�ाद भi और शि��-भi रे्क मध्य युद्ध रे्क रूप में परिर�र्षित/त हो जाता है। अन्त में वि�जय दSीशिच र्की होती है, द्धिजन्हें भौवितर्कता से र्कोई मोह नहीं है। यही दSीशिच ऋवि. इन्द्र र्को �ज्र बनाने रे्क शि�ए अपनी अस्थिस्थयों तर्क र्का दान दे डा�ते हैं।

[संपादि�त करें ] युगों का वण)�चारों युगों रे्क �ण�न से पुराणर्कार सृष्टिC रे्क क्रष्टिमर्क वि�र्कास र्को ही स्पC र्करता है। 'सतयुग' रे्क प्राणी परम तृप्त थे। उनमें विर्कसी प्रर्कार र्का भेदभा� नहीं था। �े अष्टिSर्कतर प��तों और र्कन्दराओं में रहते थे। विनष्र्काम और र्कम��ी� थे। उस समय �णा�श्रम व्य�स्था नहीं थी। यह मनुष्य र्की आदिदम अ�स्था थी। उनर्की आ�श्यर्कताए ंसीष्टिमत थीं। 'ते्रता युग ' में जनसंख्या में भारी �ृद्धिद्ध होने रे्क र्कारण आहार र्की र्कमी होने �गी। सघन �ृक्ष उग आए थे। भोजन रे्क शि�ए �नस्पवितयों और ��ों र्का सहारा �ेना पड़ता था। इस युग में आपाSापी रे्क र्कारण �ृक्षों र्को भारी हाविन हुई। वि�र �े परस्पर ष्टिम�र्कर रहने �गे।

पृथ्�ी से ज� और खाद्य पदाथu र्को प्राप्त र्करने र्का ज्ञान उन्हें होने �गा। इसी युग में �णu र्का वि�भाजन हुआ। 'द्वापर युग' में खाद्य पदाथu, म्बिस्त्रयों और अपने पारिर�ारिरर्क समुदायों र्की सुरक्षा रे्क शि�ए संघ.� बढ़ गए। भा.ा र्का जन्म हुआ। ग्राम, नगर और राज्य बन गए। 'र्कशि� युग ' में जैसे स्�ाथ� प्रमुख हो गया और स्�यं रे्क प्रद��न र्की प्र�ृभित्त बढ़ गई। आचरणों र्का पा�न दुष्र्कर प्रतीत होने �गा। पारस्परिरर्क सीमांए, ईष्या� और दुराग्रह बढ़ गया। �ोग हिह/सर्क होने �गे। �ास्त� में युगों र्का यह �ण�न मान� वि�र्कास र्की ही र्कहानी है, जो अत्याचार और पतन र्की चरम स्थिस्थवित पर पहुंचर्कर नC हो जाती है।

[संपादि�त करें ] खगोल विवद्याखगो� वि�द्या पर भी 'लि�/ग पुराण' र्काफ़ी वि�स्तृत प्रर्का� डा�ता है। इसमें बताया गया है विर्क चन्द्रमा, नक्षत्र और ग्रह आदिद सभी सूय� से विनर्क�े हैं तथा एर्क दिदन उसी में �ीन हो जाएगंे। सूय� ही तीनों �ोर्कों र्का स्�ामी है। र्का�, ऋतु और युग उसी से उत्पन्न होते हैं तथा उसी में �य हो जाते हैं। जी�नी-�शिi उसी से प्राप्त होती है।

[संपादि�त करें ] धार्मिमंक सविहष्णुता'लि�/ग पुराण' में Sार्मिम/र्क सविहष्णुता पर वि��े. ब� दिदया गया है। न%न रहने �ा�े और ज� र्को छानर्कर पीने �ा�े अहिह/सा�ादी जैन साSुओं र्को यथोशिचत आदर दिदया गया है। सांसारिरर्क र्कCों र्की विन�ृभित्त रे्क शि�ए मुख्य माग� 'ध्यान' र्को बताया गया है। ज्ञान द्वारा अवि�द्या जन्य र्कामनाओं र्को नC विर्कया जा सर्कता है।

[संपादि�त करें ] योगइस पुराण में 'योग' रे्क पांच प्रर्कार बताए गए हैं- मन्त्र योग, स्प�� योग, भा� योग, अभा� योग और महायोग। 'मन्त्र योग' में मन्त्रों र्का जप और ध्यान विर्कया जाता है। 'स्प�� योग' में योविगयों द्वारा बताए गए 'अCांग योग' र्का �ण�न आता है। 'भा� योग' में राजयोग र्की भांवित शि�� र्की मन से आराSना र्की जाती है। 'अभा� योग' इस संसार र्को स��था �ून्य और ष्टिमथ्या मानता है। यह क्षणभंगुर है। जन्दी ही समाप्त हो जाने �ा�ा है। 'महायोग' इन सभी प्रर्कार रे्क योगों र्का संर्कशि�त ए�ं र्कल्याणर्कारी स्�रूप है।

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'लि�/ग पुराण' रे्क अन्य प्रवितपाद्य वि�.यों में शि�� र्की उपासना, गायत्री मविहमा , पंच यज्ञ वि�Sान, भस्म और स्नान वि�ष्टिS, सप्त द्वीप, भारत.� र्की �ण�न, ज्योवित. चक्र आख्यान, ध्रु� आख्यान, सूय� और चन्द्र �ं� �ण�न, र्का�ी माहात्म्य, दक्ष-यज्ञ वि�ध्�ंस, मदन दहन, उमा स्�यं�र, शि�� तांड�, उपमन्यु चरिरत्र, अम्बरी. चरिरत्र, अघोर रूप Sारी शि�� र्की प्रवितष्ठा तथा वित्रपुर �S आदिद र्का �ण�न �ाष्टिम� है।

[संपादि�त करें ] पंचमुखी ब्रह्मापौराभिणर्क दृष्टिC से 'लि�/ग पुराण' अनेर्क पुराणों से अष्टिSर्क शि�क्षाप्रद और सदुपदे� परर्क है। शि�� तत्त्� र्की गम्भीर समीक्षा इसी पुराण में प्राप्त होती है। शि�� ही पंचमुखी ब्रह्मा रे्क रूप में प्रर्कट होते हैं। �े ही सृष्टिC रे्क विनयन्ता और संहारर्क हैं। �स्तुत: �ै� मत र्का प्रवितपादन र्करते हुए भी 'लि�/ग पुराण' ब्रह्म र्की एर्कता र्का शिसद्धान्त प्रवितपादिदत र्करता है। सभी वि�द्धान इस तथ्य र्को स्�ीर्कार भी र्करते हैं।

स्कन्� पुराण / Skand Purana

शि��-पुत्र र्कार्षित/रे्कय र्का नाम ही स्र्कन्द है। स्र्कन्द र्का अथ� होता है- क्षरण अथा�त् वि�ना�। भग�ान शि�� संहार रे्क दे�ता हैं। उनर्का पुत्र र्कार्षित/रे्कय संहारर्क �स्त्र अथ�ा �शिi रे्क रूप में जाना जाता है। तारर्कासुर र्का �S र्करने रे्क शि�ए ही इसर्का जन्म हुआ था। 'स्र्कन्द पुराण' �ै� सम्प्रदाय र्का पुराण हैं यह अठारह पुराणों में सबसे बड़ा है। इसरे्क छह खण्ड हैं- माहेश्वर खण्ड, �ैष्ण� खण्ड, ब्रह्म खण्ड, र्का�ी खण्ड, अ�न्तिन्तर्का खण्ड और रे�ा खण्ड।

रु्कछ वि�द्वानों ने इसरे्क सात खण्ड बताए हैं। विर्कन्तु अष्टिSर्कां� वि�द्वान छह खण्ड ही स्�ीर्कार र्करते हैं। 'अ�न्तिन्तर्का खण्ड' र्को ही रु्कछ �ोग 'तान्तिप्त खण्ड' या 'प्रभास खण्ड' में वि�भाद्धिजत र्कररे्क सात खण्ड बना देते हैं। एर्क अन्य 'स्र्कन्द पुराण' भी है, द्धिजसे इस पुराण र्का उप-पुराण र्कहा जा सर्कता है। यह छह संविहताओं-सनत्रु्कमार संविहता, सूत संविहता, �ंर्कर संविहता, �ैष्ण� संविहता, ब्रह्म संविहता तथा सौर संविहता में वि�भाद्धिजत है।

' स्र्कन्द पुराण' में इक्यासी हज़ार श्लोर्क हैं। इस पुराण र्का प्रमुख वि�.य भारत रे्क �ै� और �ैष्ण� तीथu रे्क माहात्म्य र्का �ण�न र्करना है। उन्हीं तीथu र्का �ण�न र्करते समय प्रसंग�� पौराभिणर्क र्कथाएं भी दी गई हैं। बीच-

बीच में अध्यात्म वि�.यर्क प्रर्करण भी आ गए हैं। शि�� रे्क साथ ही इसमें वि�ष्णु और राम र्की मविहमा र्का भी सुन्दर वि��ेचन विर्कया गया है। तु�सीदास रे्क ' रामचरिरत मानस' में इस पुराण र्का व्यापर्क प्रभा� दिदखाई देता है।

अ�ुक्रम[छुपा]

1 स्र्कन्द पुराण / Skand Purana 2 माहेश्वर खण्ड

3 �ैष्ण� खण्ड

4 ब्रह्म खण्ड

5 र्का�ी खण्ड

6 अ�न्तिन्तर्का खण्ड

7 रे�ा खण्ड

8 सम्बंष्टिSत लि�/र्क

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[संपादि�त करें ] माहेश्वर खण्डइस खण्ड में दक्ष-यज्ञ �ण�न, सती दाह, दे�ताओं और शि�� गणों में युद्ध, दक्ष-यज्ञ वि�ध्�ंस, लि�/ग प्रवितष्ठा �ण�न, रा�णोपाख्यान, समुद्र मंथन , �क्ष्मी र्की उत्पभित्त, अमृत वि�भाजन, शि��लि�/ग माहात्म्य, राशि�-नक्षत्र �ण�न, दान भेद �ण�न, सुतनु-नारद सं�ाद, शि�� पूजन र्का माहात्म्य, शि�� तीथu सविहत �ाशिiपीठ आदिद र्की प्र�ंसा, अरुणाच� स्थान र्का महत्त्� तथा वि�ष्णु र्को शि�� र्का ही रूप बताया गया है। वि�ष्णु और शि�� में र्कोई अन्तर नहीं है।

यथा शि��स्तथा वि�ष्णुय�था वि�ष्णुस्तथा शि��:।

अन्तरं शि�� वि�ष्णो� मनागविप न वि�द्यते ॥ (स्र्कन्द पुराण)

अथा�त् द्धिजस प्रर्कार शि�� हैं, उसी प्रर्कार वि�ष्णु हैं और जैसे वि�ष्णु हैं, �ैसे ही शि�� हैं। इन दोनों में तविनर्क भी अन्तर नहीं है।

माहेश्वर खण्ड में र्कहा गया है- यो वि�ष्णु: स शि��ोज्ञेय: य: शि��ो वि�ष्णुरे� स: अथा�त् जो वि�ष्णु हैं, उन्हीं र्को शि�� जानना चाविहए और जो शि�� हैं, उन्हें वि�ष्णु मानना चाविहए। प्रर्कार दोनों में र्कोई भेद नहीं है। इसी स�ा�ना रे्क र्कारण 'स्र्कन्द पुराण' में �ै� मत रे्क शिसद्धान्त होने रे्क उपरान्त भी �ैष्ण� मत रे्क प्रवित विर्कसी प्रर्कार र्की विनन्दा या दुभा��ना दृष्टिCगोचर नहीं होती।

इस खण्ड में अनेर्क छोटे-बडे़ तीथu र्का �ण�न र्करते हुए शि�� मविहमा गाई गई है। इसरे्क अ�ा�ा ब्रह्मा, वि�ष्णु, शि��, इन्द्र, गन्ध��, ऋवि.-मुविन, दान�-दैत्य आदिद र्की सुन्दर र्कथाओं र्का �ण�न भी विर्कया गया है। इसी खण्ड रे्क 'र्कौमारिरर्का खण्ड' में एर्क ऐसी र्कथा दी गई है, द्धिजसमें सम्प्रदायों रे्क नाम पर संर्कीण� वि�चार रखने �ा�ों र्की खु�र्कर भत्स�ना है। राजा र्करन्धम अपनी �ंर्का-समाSान रे्क शि�ए महार्का� से पूछता है विर्क मोक्ष र्की प्रान्तिप्त रे्क शि�ए र्कोई शि�� र्का, र्कोई वि�ष्णु र्का और र्कोई ब्रह्मा र्का आश्रय ग्रहण र्करता है। इस वि�.य में आपर्का क्या र्कहना है?

इस पर महार्का� उत्तर देते हैं विर्क एर्क बार पह�े भी ऋवि.-मुविनयों ने नैष्टिम.ारण्य में �ास र्करते हुए यह प्रश्न सूत जी से पूछा था। सूत जी ने अपनी दिदव्य �शिi से उन्हें पह�े ब्रह्म�ोर्क में, वि�र �ैरु्कण्ठ �ोर्क में और वि�र रै्क�ास पर भेजा। �हां उन्होंने देखा विर्क ब्रह्मा जी वि�ष्णु और शि�� र्की उपासना र्कर रहे हैं। वि�ष्णु जी ब्रह्मा और शि�� र्की उपासना में मगन हैं। शि�� जी वि�ष्णु तथा ब्रह्मा रे्क ध्यान में रत दिदखाई दिदए। तब ऋवि.यों ने जाना विर्क ये वित्रदे� एर्क ही परम �शिi रे्क रूप हैं, जो परस्पर एर्क-दूसरे र्को महान समझते हैं। पुराणर्कार द्वारा व्यi र्की गई यह स�ा�ना अवित सुन्दर और स्तुवित र्करने यो%य है।

अष्टिSर्कां� पुराणों में 'बुद्धा�तार' र्का नाम देने रे्क अवितरिरi उनर्की र्कोई भी चचा� नहीं र्की गई है। परन्तु 'स्र्कन्द पुराण' में उनर्का 'माया-मोह' रे्क नाम से वि�स्तृत �ण�न विर्कया गया है, जो पुराणर्कार र्की विनष्पक्ष मनो�ृभित्त र्की परिरचायर्क है। र्कशि�युग प्रसंग में बुद्ध र्का वि�स्तार से �ण�न है और उन्हें वि�ष्णु र्का अ�तार माना गया है। उनरे्क माध्यम से 'अहिह/सा' और 'से�ा भा�' र्का माग� प्र�स्त विर्कया गया है'

[संपादि�त करें ] वैष्णव खण्ड�ैष्ण� खण्ड में �ेंर्कटाच� माहात्म्य, �राह मन्त्र उपासना वि�ष्टिS, रामानुजाचाय�, भद्रमवित ब्राह्मण र्की मविहमा और चरिरत्र �ण�न �ेंर्कटाच� तीथ� र्का �ण�न, ब्रह्मा र्की प्राथ�ना पर वि�ष्णु र्का आवि�भा��, रथ विनमा�ण प्रर्करण,

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जगन्नाथपुरी र्का रथ महोत्स�, बदिद्रर्काश्रम तीथ� र्की मविहमा, र्कार्षित/र्क मास में होने �ा�े व्रतों र्की मविहमा र्का �ण�न, स्नान माहात्म्य र्का उल्�ेख, ज्ञान, �ैरा%य ए�ं भशिi र्का स्�रूप तथा र्कम� योग आदिद र्का विनरूपण विर्कया गया है।

�ैष्ण� खण्ड अत्यन्त उपयोगी है। इसमें वि�वि�S ज्ञान, पुण्य और मोक्ष र्का माग्� प्र�स्त र्करने र्का प्रयास विर्कया गया है। इस खण्ड रे्क गंगा, यमुना और सरस्�ती खण्ड अत्यन्त पवि�त्र तथा उत्रृ्कC हैं। ये समस्त पापों र्को हरने �ा�े हैं। �ेंर्कटाच� या भूष्टिम �राह खण्ड में वितरूपवित बा�ाजी रे्क पा�न तीथ� रे्क प्रादुभा�� र्की र्कथा र्कही गई है। �हां र्की यात्रा रे्क महत्� र्का प्रवितपादन विर्कया गया है, जहां भग�ान वि�ष्णु विन�ास र्करते हैं।

आर्का� गंगा तीथ� र्का �ण�न र्करते हुए पुराणर्कार वि�ष्णु और रामानुजाचाय� र्की भेंट र्कराते हैं। रामानुजाचाय� �ैष्ण� सम्प्रदाय रे्क संस्थापर्क थे। राम र्की पूजा सारे भारत में स्थाविपत र्करने र्का श्रेय इन्हें जाता है। भग�ान वि�ष्णु रामानुजाचाय� र्को स्�यं बताते हैं विर्क सूय� र्की मे. राशि� में शिचत्रा नक्षत्र से युi पूर्णिण/मा र्को जो भी व्यशिi आर्का� गंगा तीथ� में स्नान र्करेगा, उसे अनन्त पुण्य प्राप्त होंगे। भग�ान रे्क सच्चे भiों रे्क �क्षण स्�यं वि�ष्णु भग�ान रामानुजाचाय� र्को बतार्कर उनर्का सम्मान र्करते हैं। यहाँ पुराणर्कार पूजा-पाठ और र्कम�र्काण्ड रे्क बजाय सादा जी�न, सदाचार, अहिह/सा, जी�-र्कल्याण, समभा� तथा परोपर्कार पर अष्टिSर्क ब� देता है।

'स्र्कन्द पुराण' र्कहता है विर्क ममता-मोह त्याग र्कर विनम�� शिचत्त से मनुष्य र्को भग�ान रे्क चरणों में मन �गाना चाविहए। तभी �ह र्कम� रे्क बन्धनों से मुi हो सर्कता है। मन रे्क �ान्त हो जाने पर ही व्यशिi योगी हो पाता है। जो व्यशिi राग-दे्व. छोड़र्कर क्रोS और �ोभ से दूर रहता है, सभी पर समान दृष्टिC रखता है तथा �ौच-सदाचार से युi रहता है; �ही सच्चा योगी है। 'बदिद्रर्काश्रम' र्की मविहमा र्का बखान र्करते हुए स्�यं �ंर्कर जी र्कहते हैं विर्क इस तीथ� में

1. नारद शि��ा, 2. मार्क� ण्डेय शि��ा, 3. गरुड़ शि��ा, 4. �राह शि��ा और

5. नारलिस/ही शि��ा- ये पांच शि��ाएं सम्पूण� मनोरथ शिसद्ध र्करने �ा�ी हैं। बद्रीनाथ प्रशिसद्ध ब्रह्मतीथ� है। यहाँ भग�ान वि�ष्णु ने ह्यग्री� र्का अ�तार �ेर्कर मSु - रै्कटभ दैत्यों से �ेदों र्को मुi र्कराया था।

इसी खण्ड में श्रा�ण और र्कार्षित/र्क मास रे्क माहात्म्य र्का �ण�न भी प्राप्त होता है। तदुपरान्त �ै�ाख मास र्का महात्म्य प्रवितपादिदत है। इस मास में दान र्का वि��े. महत्� द�ा�ना गया है। इसी खण्ड में अयोध्या माहात्म्य र्का �ण�न भी वि�स्तारपू��र्क विर्कया गया है।

[संपादि�त करें ] ब्रह्म खण्डब्रह्म खण्ड में रामेश्वर के्षत्र रे्क सेतु और भग�ान राम द्वारा बा�ुर्कामय शि��लि�/ग र्की स्थापना र्की मविहमा गाई गई है। इस के्षत्र रे्क अन्य चौबीस प्रSान तीथu- चक्र तीथ� , सीता सरो�र तीथ�, मंग� तीथ�, ब्रह्म रु्कण्ड , हनुमत्रु्कण्ड, अगस्त्य तीथ�, राम तीथ�, �क्ष्मण तीथ�, �क्ष्मी तीथ�, शि�� तीथ�, �ंख तीथ�, गंगा तीथ�, र्कोदिट तीथ�, मानस तीथ�, Sनु.र्कोदिट तीथ� आदिद र्की मविहमा र्का �ण�न भी वि�स्तार से हैं तीथ� माहात्म्य रे्क उल्�ेख रे्क उपरान्त Sम� और सदाचार माहात्म्य र्का �ण�न भी विर्कया गया है। ह्यग्री�, र्कशि�Sम� और चातुमा�स स्नान रे्क महत्� र्का भी उल्�ेख हुआ है।

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अश्वत्थामा द्वारा सोते हुए पाण्ड� पुत्रों रे्क �S रे्क पाप से मुशिi पाने रे्क शि�ए Sनु.र्कोदिट तीथ� में स्नान र्करने र्की र्कथा र्कही गई है। इसी खण्ड में पंचाक्षर मन्त्र र्की मविहमा र्का भी �ण�न है। भग�ान शि�� ने स्�यं ॐ नम: शि��ाय नामर्क आद्य मन्त्र र्कहा था। जो व्यशिi इस मन्त्र र्का उच्चारण र्कररे्क शि�� र्का ध्यान र्करता है; उसे विर्कसी तीथ�, विर्कसी जप-तप अथ�ा व्रत आदिद र्करने र्की आ�श्यर्कता नहीं होतीं उi मन्त्र समस्त पापों र्का ना� र्करने �ा�ा है। यह मन्त्र र्कभी भी, र्कहीं भी और र्कोई भी जप र्करता है। यह सभी र्का र्कल्याण र्करने �ा�ा मन्त्र है।

[संपादि�त करें ] काशी खण्डर्का�ी खण्ड में तीथu, गायत्री मविहमा, �ाराणसी रे्क मभिणर्कर्णिण/र्का घाट र्का आख्यान, गंगा मविहमा �ण�न, द�हरा स्तोत्र र्कथन, �ाराणसी मविहमा, ज्ञान�ापी माहात्म्य, योगाख्यान, द�ाश्वमेघ घाट र्का माहात्म्य, वित्र�ोचन आवि�भा�� �ण�न तथा व्यास भुजस्तम्भ आदिद र्का उल्�ेख विर्कया गया है।

र्का�ी रे्क माहात्म्य र्का �ण�न र्करते हुए पुराणर्कार र्कहता है-

अशिस सम्भेदतोगेन र्का�ीसंस्थोऽमृतो भ�ेत्।

देहत्यागोऽत्र�ैदानं देहत्यागोऽत्र�ैतप:॥ (स्र्कन्द पुराण-र्का�ी खण्ड)

अथा�त् अनेर्क जन्मों से प्रशिसद्ध, प्रारृ्कत गुणों से युi तथा अशिस सम्भेद रे्क योग से र्का�ीपुरी में विन�ास र्करने से वि�द्वान पुरु. अमृतमय हो जाता है। �हां अपने �रीर र्का त्याग र्कर देना ही दान होता है। यही सबसे बड़ा तप है। इस पुरी में अपना �रीर छोड़ना बड़ा भारी योगाभ्यास है, जो मोक्ष तथा सुख देने �ा�ा है। इसी प्रर्कार योग-साSना रे्क वि�.य में पुराणर्कार र्कहता है-

आत्मक्रीडास्यसततं सदात्म ष्टिमथुनस्य च।

आत्मन्ये� सुतृप्तस्य योगशिसद्धिद्धरदूरत: ॥ (स्र्कन्द पुराण 2/53/7)

अथा�त् विनरन्तर अपनी आत्मा रे्क ही साथ क्रीड़ा र्करने �ा�े, सदा आत्मा रे्क ही साथ योग स्थाविपत रखने �ा�े तथा अपनी आत्मा में ही संतृप्त रहने �ा�े व्यशिi र्को योग र्की शिसद्धिद्ध प्राप्त र्करने में वि��म्ब नहीं �गता। �ह शिसद्ध उससे र्कभी दूर नहीं होता।

र्का�ीपुरी में पापर्कम� र्करने �ा�ा व्यशिi पै�ाच (पे्रत) योविन में जन्म �ेता है। गाय र्की हत्या र्करने �ा�ा, स्त्री र्का �S र्करने �ा�ा, �ूद्रों र्को मारने �ा�ा, र्कथा र्को दूवि.त र्करने �ा�ा, कू्रर, चुग�खोर, Sम� वि�रूऋ आचरण र्करने �ा�ा, नास्मिस्तर्क, पापी और अभक्ष्य र्को भी खाने �ा�ा व्यशिi वित्र�ोचन भग�ान शि�� रे्क लि�/ग र्का नमन र्कररे्क पापमुi हो जाता है।

[संपादि�त करें ] अवग्निन्तका खण्डअ�न्तिन्तर्का खण्ड में महार्का� प्र�ंसा, अग्नि%न स्त�न, शिसद्याSर तीथ�, द�ाश्वमेघ माहात्म्य, �ाल्मीरे्कश्वर मविहमा, गणे� मविहमा, सोम�ती तीथ�, रामेश्वर तीथ�, सौभा%य तीथ�, गया तीथ�, नाग तीथ�, गंगेश्वर, प्रयागेश्वर तीथ� आदिद र्का माहात्म्य; भिक्षप्रा नदी र्की मविहमा, वि�ष्णु स्तोत्र, रु्कटुम्बेश्वर �ण�न, अखण्डेश्वर मविहमा �ण�न, हनुमत्रे्कश्वर मविहमा, �ंर्करादिदत्य मविहमा, वि�ष्णु मविहमा तथा अ�न्तिन्तर्का मविहमा आदिद र्का वि�स्तार से �ण�न है। अ�न्तिन्तर्का उज्जैन नगरी र्का प्राचीन नाम है।

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अ�न्तिन्तर्का खण्ड में पवि�त्र नदिदयों- गंगा, यमुना, सरस्�ती, नम�दा, गोदा�री, वि�तस्ता, चन्द्रभागा आदिद र्की मविहमा भी गाई गई है। साथ ही अग्नि%न तुल्य 'महार्का�' र्की �न्दना र्की गई है। इस खण्ड में सनत्रु्कमार जी भिक्षप्रा नदी रे्क तट पर स्थिस्थत अ�न्तिन्तर्का तीथ� र्की मविहमा र्का �ण�न र्करते हुए र्कहते हैं विर्क इस तीथ� रे्क द��न मात्र से मनुष्य मोक्ष प्राप्त र्कर �ेता है। इसी प्रर्कार अन्य तीथu र्की मविहमा र्का उल्�ेख भी इस खण्ड में प्राप्त होता है।

[संपादि�त करें ] रेवा खण्ड'स्र्कन्द पुराण' र्का रे�ा खण्ड पुराण संविहता र्का वि�स्तारपू��र्क �ण�न र्करता है। इसरे्क अवितरिरi रे�ा माहात्म्य, नम�दा, र्का�ेरी और संगम र्की मविहमा, �ू� भेद प्र�ंसा, र्का�रावित्र रृ्कत जगत् संहार �ण�न, सृष्टिC संहार �ण�न, शि�� स्तुवित विनरूपण, �राह �ृत्तान्त, सत्यनारायण व्रत र्कथा �ण�न, रे�ा खण्ड पुस्तर्क र्का दान महत्त्� तथा वि�वि�S तीथu, यथा- मेघनाद तीथ�, भीमेश्वर तीथ�, नारदेश्वर तीथ�, दीघ� स्र्कन्द और मSुस्र्कन्द तीथ�, सु�ण� शि��ा तीथ�, र्करंज तीथ�, र्कामद तीथ�, भंडारी तीथ�, स्र्कन्द तीथ�, अंविगरस तीथ�, र्कोदिट तीथ�, रे्कदारेश्वर तीथ�, विप�ाचेश्वर तीथ�, अग्नि%न तीथ�, सप� तीथ�, श्रीर्कपा� तीथ� ए�ं जमदग्नि%न तीथ� आदिद र्का वि�स्तृत �ण�न इस खण्ड में प्राप्त होता है।

स्र्कन्द तीथ� रे्क वि�.य में मार्क� ण्डेय मुविन र्कहते हैं विर्क नम�दा महानदी रे्क दभिक्षण तट पर यह तीथ� अत्यन्त �ोभायमान है। इस तीथ� र्की स्थापना भग�ान स्र्कन्द ने घोर तपस्या र्करने रे्क उपरान्त र्की थी। मार्क� ण्डेय ऋवि. स्र्कन्द भग�ान र्की र्कथा युष्टिSष्ठर र्को सुनाते हुए उनरे्क जन्म से �ेर्कर तारर्कासुर रे्क �S तर्क र्का �ण�न र्करते हैं। दे�ताओं रे्क सेनापवित बनने रे्क पू�� द्धिजस स्थान पर र्कार्षित/रे्कय ने तप विर्कया था, �ह स्थान स्र्कन्द तीथ� रे्क नाम से प्रशिसद्ध हुआ।

इसी प्रर्कार सभी तीथu र्की मविहमा रे्क साथ र्कोई न र्कोई र्कथा जुड़ी हुई है। विहमा�य से �ेर्कर र्कन्यारु्कमारी तर्क और अटर्क से �ेर्कर र्कामाख्या दे�ी रे्क मद्धिन्दर तर्क र्कोई ऐसा प्रदे� इस भारतभूष्टिम में नहीं है, जहां प्राचीनतम भारतीय संस्रृ्कवित र्का प्रवितविनष्टिSत्� र्करने �ा�ा र्कोई तीथ� न हो। र्का�ी में �ै� तीथ�, अ�न्तिन्तर्का (उज्जैन नगरी) में महार्का�ेश्वर शि�� र्की मविहमा तथा नम�दा तट�त© तीथu र्का वि��द ्�ण�न 'स्र्कन्द पुराण' में प्राप्त होता है। नम�दा र्को शि�� रे्क पसीने से उत्पन्न माना जाता है। नम�दा र्की मविहमा गंगा रे्क पा�न ज� र्की भांवित ही मानी गई है।

इस पुराण में 'विनष्र्काम र्कम� योग' पर वि��े. रूप से ब� दिदया गया है। Sम� र्का मुख्य �क्षण परपीड़ा विन�ारण होना चाविहए। इसी र्का उपदे� 'स्र्कन्द पुराण' देता है। �ह बताता है विर्क 'मोक्ष' मानो एर्क नगर है, द्धिजसरे्क चार दर�ाजे हैं। �म, सविद्वचार, सन्तो. औ सत्संग- इसरे्क चार द्वारपा� हैं। इन्हें सन्तुC र्कररे्क ही इस नगर में प्र�े� पाया जा सर्कता है। सांसारिरर्क बन्धनों में जर्कड़ने से बचे रहें, सम्भ�त: इसीशि�ए रु्कमार र्कार्षित/रे्कय जी�न भर �ै�ाविहर्क बन्धन में नहीं बंSे- ऐसा यह पुराण मानता है।

'स्र्कन्द पुराण' रे्क दारूर्क�न उपाख्यान में शि��लि�/ग र्की मविहमा र्का �ण�न है, द्धिजसमें वि�ष्णु और ब्रह्मा शि��लि�/ग र्का ओर-छोर सात आर्का� तथा सात पाता� पार र्करने रे्क उपरान्त भी नहीं जान पाते। इस अ�सर पर ब्रह्मा र्का झूठ उन्हें स्तुवित से �ंशिचत र्करा देता है। उनरे्क दो ग�ाह सुरभिभ गाय तथा रे्कतर्की र्का �ू� अपवि�त्र हो गया और रे्कतर्की र्का पुष्प शि��लि�/ग पर चढ़ाने रे्क शि�ए �र्जिज/त माना गया। इस प्रसंग से वि�श्व विनमा�ता �शिi रे्क अनन्त रूप र्का भी प्रवितपादन होता है। इस पुराण र्की रचना रे्क पीछे पुराणर्कार र्की यही मं�ा रही होगी विर्क �ोर्कमानस में जदिट� र्कम�र्काण्डों रे्क प्रवित झुर्का� न होर्कर सर� रूप से हरिर संर्कीत�न र्का माग� प्र�स्त हो। इसशि�ए पुराणर्कार ने राम नाम मविहमा, शि�� नाम मविहमा और रृ्कष्ण नाम मविहमा र्का उल्�ेख वि�स्तार से विर्कया है। यदिद इस पुराण र्को तीथu र्की विनदbशि�र्का माना जाए तो अनुशिचत नहीं होगा।

'स्र्कन्द पुराण' रे्क अरुणाच� रहस्य �ण�न में �गभग एर्क सौ चा�ीस महत्त्�पूण� और प्रशिसद्ध ऋवि.-मुविनयों रे्क नाम विगनाए गए हैं। ब्रह्मा रे्क मानस पुत्र सनर्क, नारद, सनातन, सनत्रु्कमार, पु�ह, पु�स्त्य, �शिसष्ठ, भृगु, परा�र,

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व्यास, भारद्वाज, याज्ञ�ल्क्य, चरर्क, सुश्रुत आदिद हैं। ऐसा �गाता है विर्क उस समय तर्क सभी प्रचशि�त और प्रशिसद्ध नामों र्को यहाँ संर्कशि�त र्कर दिदया गया है। इस पुराण मं 'अहिह/सा', 'सदाचार' तथा 'परदुख र्कातरता' पर वि��े. ब� दिदया गया है। दरिरद्र, रोगी ए�ं वि�र्क�ांग व्यशिiयों रे्क प्रवित द्धिजनरे्क मन में र्करुणा नहीं उत्पन्न होती, �े राक्षस हैं। जो व्यशिi समथ� होर्कर भी प्राण-संर्कट में पडे़ जी� र्की सहायता नहीं र्करता, �ह पापी है। नम�दा नदी रे्क तट पर 'आपस्तम्ब' नामर्क ऋवि. और मछेरों द्वारा मछ�ी पर्कड़ने रे्क प्रसंग में इसी भा�ना र्का उत्तम �ण�न विर्कया गया है।

'स्र्कन्द पुराण' में द्धिजतने तीथu र्का उल्�ेख है, उतने तीथ� आज देखने में नहीं आते। उनमें से अष्टिSर्कां� तीथu र्का तो नामोविन�ान तर्क ष्टिमट गया है और रु्कछ तीथ� खण्डहरों में परिर�र्षित/त हो चुरे्क हैं। इस र्कारण समस्त तीथu र्का सही-सही पता �गाना अत्यन्त र्कदिठन है। विर्कन्तु द्धिजन तीथu र्का माहात्म्य प्राचीन र्का� से च�ा आ रहा है, उनर्का अस्मिस्तत्� आज भी देखा जा सर्कता है। अपने माहात्म्य र्की दृष्टिC से ये तीथ� आज भी भव्य से भव्यतर रूप में देखे जा सर्कते हैं।

म2स्य पुराण / Matsya Purana

�ैष्ण� सम्प्रदाय से सम्बम्बिन्धत 'मत्स्य पुराण' व्रत, प��, तीथ�, दान, राजSम� और �ास्तु र्क�ा र्की दृष्टिC से एर्क अत्यन्त महत्त्�पूण� पुराण है। इस पुराण र्की श्लोर्क संख्या चौदह हज़ार है। इसे दो सौ इक्यान�े अध्यायों में वि�भाद्धिजत विर्कया गया है। इस पुराण रे्क प्रथम अध्याय में 'मत्स्या�तार' रे्क र्कथा है। उसी र्कथा रे्क आSार पर इसर्का यह नाम पड़ा है। प्रारम्भ में प्र�य र्का� में पू�� एर्क छोटी मछ�ी मनु महाराज र्की अंजशि� में आ जाती है। �े दया र्कररे्क उसे अपने र्कमण्ड� में डा� �ेते हैं। विर्कन्तु �ह मछ�ी �नै:-�नै.् अपना आर्कार बढ़ाती जाती है। सरो�र और नदी भी उसरे्क शि�ए छोटी पड़ जाती है। तब मनु उसे सागर में छोड़ देते हैं और उससे पूछते हैं विर्क �ह र्कौन है?

[संपादि�त करें ] प्रलय काल भग�ान मत्स्य मनु र्को बताते हैं विर्क प्र�य र्का� में मेरे सींग में अपनी नौर्का र्को बांSर्कर सुरभिक्षत �े जाना और

सृष्टिC र्की रचना र्करना। �े भग�ान रे्क ' मत्स्य अ�तार' र्को पहचान र्कर उनर्की स्तुवित र्करते हैं। मनु प्र�य र्का� में मत्स्य भग�ान द्वारा अपनी सुरक्षा र्करते हैं। वि�र ब्रह्मा द्वारा मानसी सृष्टिC होती है। विर्कन्तु अपनी उस सृष्टिC र्का

र्कोई परिरणाम न देखर्कर दक्ष प्रजापवित मैथुनी- सृष्टिC से सृष्टिC र्का वि�र्कास र्करते हैं।

अ�ुक्रम[छुपा]

1 मत्स्य पुराण / Matsya Purana 2 प्र�य र्का�

3 �ं�

4 राजSम� और राजनीवित

5 दुग�

6 श्री�ृद्धिद्ध तथा समृद्धिद्ध

7 स्थापत्य र्क�ा

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8 प्रारृ्कवितर्क �ोभा

9 सावि�त्री सत्य�ान

10 �रु्कन - अप�रु्कन

11 वि�राट रूप

12 आयु�bद शिचविर्कत्सा

13 मूर्षित/यों रे्क विनमा�ण

14 सम्बंष्टिSत लि�/र्क

[संपादि�त करें ] वंशइसरे्क उपरान्त 'मत्स्य पुराण' में मन्�न्तर, सूय� �ं� , चंद्र �ं� , यदु �ं� , क्रोCु �ं� , पुरू �ं� , रु्करु �ं� और अग्नि%न �ं� आदिद र्का �ण�न है। वि�र ऋवि.-मुविनयों रे्क �ं�ों र्का उल्�ेख विर्कया गया है।

[संपादि�त करें ] राजधम) और राज�ीवितइस पुराण मे 'राजSम�' और 'राजनीवित' र्का अत्यन्त श्रेष्ठ �ण�न है। इस दृष्टिC से 'मत्स्य पुराण' र्काफ़ी महत्�पूण� है। प्राचीन र्का� में राजा र्का वि��े. महत्त्� होता था। इसीशि�ए उसर्की सुरक्षा र्का बहुत ध्यान रखना पड़ता था। क्योंविर्क राजा र्की सुरक्षा से ही राज्य र्की सुरक्षा और श्री�ृद्धिद्ध सम्भ� हो पाती थी। इस दृष्टिC से इस पुराण में बहुत व्या�हारिरर्क ज्ञान दिदया गया है। 'मत्स्य पुराण' र्कहता है विर्क राजा र्को अपनी सुरक्षा र्की दृष्टिC से अत्यन्त �ंर्का�ु तथा सतर्क� रहना चाविहए। विबना परीक्षण विर्कए �ह भोजन र्कदाविप न र्करे। �य्या पर जाने से पू�� अच्छी प्रर्कार से देख �े विर्क उसमें र्कोई वि�.Sर आदिद तो नहीं छोड़ा गया है। उसे र्कभी भीड़ या ज�ा�य में अरे्क�े प्र�े� नहीं र्करना चाविहए। अनजान अश्व या हाथी पर नहीं चढ़ना चाविहए। विर्कसी अनजान स्त्री से सम्बन्ध नहीं बनाने चाविहए।

[संपादि�त करें ] दुग)इस पुराण में छह प्रर्कार रे्क दुगu- Sनु दुग�, मही दुग�, नर दुग�, �ाक्ष� दुग�, ज� दुग� औ विगरिर दुग� रे्क विनमा�ण र्की बात र्कही गई है। आपातर्का� रे्क शि�ए उसमें सेना और प्रजा रे्क शि�ए भरपूर खाद्य सामग्री, अस्त्र-�स्त्र ए�ं औ.ष्टिSयों र्का संग्रह र्कररे्क रखना चाविहए। उस र्का� में भी राज्य र्का जी�न आराम र्का नहीं होता था। राजा र्को हर समय र्कार्क दृष्टिC से सतर्क� रहना पड़ता था। इसीशि�ए उसे वि�श्वसनीय र्कम�चारिरयों र्का चयन र्करना पड़ता था। उनसे मSुर व्य�हार बनाना पड़ता था।

तथा च मSुराभा.ी भ�ेत्र्कोविर्क��न्नृप:।

र्कार्क�ंर्की भ�ेष्टिन्नत्यमज्ञात�सहित/ �सेत्॥ (मत्स्य पुराण 2/96/71)

अथा�त् राजा र्को र्कोय� रे्क समान मSुर �चन बो�ने �ा�ा होना चाविहए। जो पुर या बस्ती अज्ञात है, उसमें उसे विन�ास र्करना चाविहए। उसे सदै� र्कौए रे्क समान �ंर्कायुi रहना चाविहए। भा� यही है विर्क राजा र्को एर्काएर्क

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विर्कसी पर भी वि�श्वास नहीं र्करना चाविहए। उसे सदै� अपनी प्रजा र्का वि�श्वास और समथ�न प्राप्त र्करते रहना चाविहए। गुप्तचरों द्वारा राज्य र्की गवितवि�ष्टिSयों र्का पता �गाते रहना चाविहए।

[संपादि�त करें ] श्रीवृश्चिj तथा समृश्चिj'मत्स्य पुराण' में पुरु.ाथ� पर वि��े. ब� दिदया गया है। जो व्यशिi आ�सी होता है और र्कम� नही र्करता, �ह भूखों मरता है। भा%य रे्क भरोसे बैठे रहने �ा�ा व्यशिi र्कभी भी जी�न में स�� नहीं हो सर्कता। श्री�ृद्धिद्ध तथा समृद्धिद्ध उससे सदै� रूठी रहती है।

[संपादि�त करें ] स्थाप2य कलाइस पुराण में 'स्थापत्य र्क�ा' र्का भी सुन्दर वि��ेचन विर्कया गया है। इसमें उस र्का� रे्क अठारह �ास्तुशि�स्थिल्पयों रे्क नाम तर्क दिदए गए हैं। द्धिजनमें वि�श्वर्कमा� और मय दान� र्का नाम वि��े. रूप से उल्�ेखनीय है। इसमें बताया गया है विर्क सबसे उत्तम गृह �ह होता है, द्धिजसमें चारों ओर दर�ाजे और दा�ान होते हैं। उसे 'स��तोभद्र' नाम दिदया गया है। दे�ा�य और राजविन�ास रे्क शि�ए ऐसा ही भ�न प्र�स्त माना जाता है। इसी प्रर्कार 'नन्द्या�त्त�', '�द्ध�मान' , 'स्�स्मिस्तर्क' तथा 'रूचर्क' नामर्क भ�नों र्का उल्�ेख भी विर्कया गया है। राजा रे्क विन�ास गृह पांच प्रर्कार रे्क बताए गए हैं। स�¨त्तम गृह र्की �म्बाई एर्क सौ साठ हाथ (54 गज) होती है।

[संपादि�त करें ] प्राकृवितक शोभाउस र्का� में आज र्की भांवित नए घर में प्र�े� हेतु �ुभ मुहूत्त¨ र्की गणना पर पूरा वि�चार विर्कया जाता था। तभी �ोर्क गृह प्र�े� र्करते थे। 'मत्स्य पुराण' में प्रारृ्कवितर्क �ोभा र्का बड़ा ही सुन्दर �ण�न विर्कया गया है। [[विहमा�य[[ प��त, रै्क�ा� प��त , नम�दा ए�ं �ाराणसी रे्क �ोभा-�ण�न में भा.ा और भा� र्का अवित सुन्दर संयोग हुआ है-

तपस्मिस्त�रणं �ै�ं र्काष्टिमनामवितदु��भम्।

मृगैय�थानुचरिरतन्दन्तिन्त भिभन्नमहाद्रुमम्॥ (मत्स्य पुराण 1/51/12)

अथा�त् यह विहमा�य प��त तपस्मिस्�यों र्की पूण�तया रक्षा र्करने �ा�ा है। यह र्काम-भा�ना रखने �ा�ों रे्क शि�ए अत्यन्त दु��भ है। यह हाशिथयों रे्क समान महान और वि��ा� �ृक्षों से युi है। मृगों र्की भांवित अनुचरिरत है अथा�त् द्धिजस प्रर्कार मृगों रे्क सौन्दय� र्का �ण�न नहीं विर्कया जा सर्कता, उसर्की प्रर्कार विहमा�य र्की �ोभा र्का भी �ण�न र्करना बड़ा र्कदिठन है।

[संपादि�त करें ] साविवत्री स2यवा�इस पुराण र्का सबसे महत्त्�पूण� आख्यान 'सावि�त्री सत्य�ान ' र्की र्कथा है। पवितव्रता म्बिस्त्रयों में सावि�त्री र्की गणना स�¨परिर र्की जाती है। सावि�त्री अपनी �गन, दूरदृष्टिC, बुद्धिद्धमत्ता और पवितप्रेम रे्क र्कारण अपने मृत पवित र्को यमराज रे्क पा� से भी छुड़ा �ाने में स�� हो जाती है।

[संपादि�त करें ] शकु�-अपशकु�

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इसरे्क अवितरिरi 'मत्स्य पुराण' में दे�ी और वि�ष्णु र्की उपासना, �ाराणसी ए�ं नम�दा नदी र्का माहात्म्य, मंग�-अमंग� सूचर्क �रु्कन, स्�प्न वि�चार, अंग �ड़र्कने र्का सम्भावि�त ��; व्रत, तीथ� और दान र्की मविहमा आदिद र्का �ण�न अनेर्कानेर्क �ोर्कोपयोगी आख्यानों रे्क माध्यम से विर्कया गया है।

[संपादि�त करें ] विवराe रूप'नृलिस/ह अ�तार ' र्की र्कथा, भi प्रह्लाद र्को वि�ष्णु रे्क वि�राट रूप र्का द��न तथा दे�ासुर संग्राम में दोनों ओर रे्क �ीरों र्का �ण�न पुराणर्कार र्की र्कल्पना र्का सुन्दर परिरचय देता है। इस पुराण र्का र्काव्य तत्त्� भी अवित सुन्दर है। �ण�न �ै�ी अत्यन्त सहज है। अनेर्क स्थ�ों पर �ब्द वं्यजना र्का सौन्दय� देखते ही बनता है।

[संपादि�त करें ] आयुवk� त्तिचविक2साइस पुराण र्की एर्क वि��े.ता और भी है। पुराणर्कार र्को आयु�bद शिचविर्कत्सा र्का अच्छा ज्ञान प्राप्त था, ऐसा प्रतीत होता है। क्योंविर्क इसमें औ.ष्टिSयों और जड़ी-बूदिटयों र्की एर्क �म्बी सूची दी गई है। साथ ही साथ यह भी बताया गया है विर्क र्कौन-सी द�ा विर्कस व्याष्टिS रे्क र्काम आती है। इसर्का �ण�न वि�स्तार रे्क साथ इस पुराण में विर्कया गया है।

[संपादि�त करें ] मूर्तितंयों के वि�मा)णदे�ताओं र्की मूर्षित/यों रे्क विनमा�ण र्की पूरी प्रविर्कया और उनरे्क आर्कार-प्रर्कार र्का पूरा ब्योरा 'मत्स्य पुराण' में उप�ब्ध होता है। प्रत्येर्क दे�ता र्की मूर्षित/ रे्क अ�ग-अ�ग �क्षण बताए गए हैं। साथ ही उनरे्क वि��े. शिचन्हों र्का वि��रण भी दिदया गया है। एर्क जगह तो यहाँ तर्क र्कहा गया है विर्क मूर्षित/ र्की र्कदिट अठारह अंगु� से अष्टिSर्क नही होनी चाविहए। स्त्री-मूर्षित/ र्की र्कदिट बाईस अंगु� तथा दोनों स्तनों र्की माप बारह-बारह अंगु� होनी चाविहए। इसी प्रर्कार �रीर रे्क प्रत्येर्क भाग र्की माप बड़ी बारीर्की से प्रस्तुत र्की गई है। इससे पुराणर्कार र्की सूक्ष्म परख और र्क�ात्मर्क दृष्टिC र्का पता च�ता है। �स्तुत: र्क�ा, Sम�, राजनीवित, दान-पुण्य, स्थापत्य, शि�ल्प और र्काव्य-सौन्दय� र्की दृष्टिC से यह एर्क उत्तम पुराण है।

कूम) पुराण / Kurm Purana

अ�ुक्रम[छुपा]

1 रू्कम� पुराण / Kurm Purana 2 संविहता

3 सृष्टिC र्की उत्पभित्त

4 समुद्र मंथन

5 ईश्वर गीता और व्यास गीता

6 सांख्य योग

7 सम्बंष्टिSत लि�/र्क

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वि�ष्णु भग�ान 'रू्कमा��तार' अथा�त् र्कच्छप रूप में समुद्र मंथन रे्क समय मन्दराच� र्को अपनी पीठ पर Sारण र्करने रे्क प्रसंग में राजा इन्द्रदु्यम्न र्को ज्ञान, भशिi और मोक्ष र्का उपदे� देते हैं। उसे ही �ोमह.�ण सूत जी ने �ौनर्कादिद ऋवि.यों र्को नैष्टिम.ारण्य में सुनाया था। �ही 'रू्कम� पुराण' र्का रूप ग्रहण र्कर सर्का।

संविहताइस पुराण में चार संविहताए ंहैं-

1. ब्राह्मी संविहता, 2. भाग�ती संविहता, 3. �ौरी संविहता और

4. �ैष्ण�ी संविहता। इन चारों संविहताओं में आज रे्क�� ब्राह्मी संविहता ही प्राप्य उप�ब्ध है। �े. संविहताए ंउप�ब्ध नहीं हैं। ब्राह्मी संविहता में पुराणों रे्क प्राय: सभी �क्षण-सग�, प्रवितसग�, दे�ों और ऋवि.यों रे्क �ं�, मन्�न्तर, �ं�ानुचरिरत तथा अन्य Sार्मिम/र्क र्कथाए ंआदिद उप�ब्ध हैं। इस पुराण ने �ैष्ण�, �ै� और �ाi-तीनों सम्प्रदायों र्को समन्�यात्मर्क रूप प्रस्तुत विर्कया है। सभी र्को समान मान्यता दी है।

सृवि6 की उ2पत्तित्तअन्य पुराणों र्की भांवित 'रू्कम� पुराण' में भी सृष्टिC र्की उत्पभित्त 'ब्रह्म' से स्�ीर्कार र्की गई है। सभी जड़-चेतन स्�रूपों में जी�न र्का अं� माना गया है और इस जी�न-अं� र्को ही ब्रह्म र्का अं� र्कहा गया है। जैसे-मेरू प��त र्की आयवित और विनयवित दो र्कन्याए ंथीं, द्धिजनर्का वि��ाह Sाता ए�ं वि�Sाता से हुआ था। वि�र उनर्की भी सन्तानें हुईं। इस प्रर्कार जड़ पदाथ� र्को भी मान�ीय रूप देर्कर पुराणर्कार ने उन्हें जीवि�त मनुष्य ही माना है। इसी सृष्टिC से मान� जावित र्का भी वि�र्कास हुआ।

समुद्र मंथ�भारतीय पुराणर्कारों र्को वि��े.ता रही है विर्क उन्होंने सभी जड़-चेतन स्�रूपों में जी�न र्का अं� मानर्कर उनमें परस्पर बन्धुत्� र्की भा�ना समाविहत र्की है और उन्हें पूजनीय बना दिदया है। सबसे पह�े इस पुराण में समुद्र मंथन से उत्पन्न वि�ष्णु र्की माया अथ�ा �शिi '�क्ष्मी' रे्क प्रादुभा�� र्का प्रसंग उठार्कर उसर्की स्तुवित र्करने र्की बात र्कही गई है। तदुपरान्त वि�ष्णु रे्क नाभिभ र्कम� से ब्रह्मा जी र्का जन्म होता है। वि�र ब्रह्मा से उनरे्क नौ मानस पुत्रों रे्क जन्म र्का �ृत्तान्त है। वि�र �ेदों में विनविहत ज्ञान र्की मविहमा और �णा�श्रम Sम� र्का वि��द वि��ेचन है। यहाँ रू्कम� रूप में वि�ष्णु भग�ान स्�यं ऋवि.यों से चारों आश्रमों र्का उल्�ेख र्कररे्क उनरे्क दो-दो रूप बताते हैं। यथा-

ब्रह्मचय� आश्रम रे्क दो भेद- इस आश्रम में रहने �ा�े दो प्रर्कार रे्क ब्रह्मचारी- 'उपरु्क�भिणर्क' और 'नैष्टिCर्क' होते हैं। जो ब्रह्मचारी वि�ष्टिS�त �ेदों तथा अन्य �ास्त्रों र्का अध्ययन र्कररे्क गृहस्थ जी�न में प्र�े� र्करता है, �ह 'उपरु्क�भिणर्क ब्रह्मचारी' होता है और जो मनुष्य जी�नपय�न्त गुरु रे्क विनर्कट रहर्कर ब्रह्मज्ञान र्का सतत अभ्यास र्करता है, �ह 'नैष्टिCर्क ब्रह्मचारी' र्कह�ाता है।

गृहस्थाश्रम रे्क दो भेद- गृहस्थाश्रम में रहने �ा�े व्यशिi 'साSर्क' और 'उदासीन' र्कह�ाते हैं। जो व्यशिi अपनी गृहस्थी ए�ं परिर�ार रे्क भरण-पो.ण में �गा रहता है, �ह 'साSर्क गृहस्थ' र्कह�ाता है और जो दे�गणों रे्क ऋण, विपतृगणों रे्क ऋण तथा ऋवि.गण रे्क ऋण से मुi होर्कर विनर्शि�/प्त भा� से अपनी पत्नी ए�ं सम्पभित्त र्का उपभोग र्करता है, �ह 'उदासीन गृहस्थ' र्कहा जाता है।

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�ानप्रस्थ आश्रम रे्क दो भेद- इसे दो रूपों 'तापस' और 'सांन्याशिसर्क' में वि�भi विर्कया गया है। जो व्यशिi �न में रहर्कर ह�न, अनुष्ठान तथा स्�ाध्याय र्करता है, �ह 'तापस �ानप्रस्थी' र्कह�ाता है और जो साSर्क र्कठोर तप से अपने �रीर र्को रृ्क� ए�ं क्षीण र्कर �ेता है तथा ईश्वराSना में विनरन्तर �गा रहता है, उसे 'सांन्याशिसर्क �ानप्रास्थी' र्कहा जाता है।

संन्यास आश्रम रे्क दो भेद- संन्यास आश्रम में रहने �ा�े व्यशिi 'पारमेष्टिष्ठर्क' तथा 'योगी' र्कह�ाते हैं। विनत्यप्रवित योगाभ्यास द्वारा अपनी इद्धिन्द्रयों और मन र्को जीतने �ा�ा तथा मोक्ष र्की र्कामना रखने �ा�ा साSर्क 'पारमेष्टिष्ठर्क संन्यासी' र्कह�ाता है और जो व्यशिi ब्रह्म र्का साक्षात्र्कार र्कर अपनी आत्मा में ही परमात्मा रे्क दिदव्य स्�रूप र्का द��न र्करता है, �ह 'योगी संन्यासी' र्कहा जाता है।

यहाँ पुराणर्कार ने विनष्र्काम र्कम� योग साSना; नारायण, वि�ष्णु, ब्रह्मा और महादे� नामों र्की व्याख्या, चतुयु�ग �ण�न, र्का� �ण�न, नौ प्रर्कार र्की सृष्टिCयों र्का �ण�न, मSु - रै्कटभ राक्षस र्की उत्पभित्त और उनरे्क �S र्का दृCान्त, भग�ान शि�� रे्क वि�वि�S रूपों तथा नामों र्की मविहमा र्का �ण�न, �शिi र्की उपासना र्का गूढ़, गहन तथा भा�ुर्क �ण�न, दक्ष र्कन्याओं द्वारा उत्पन्न सन्तवित र्का �ण�न, नृलिस/ह अ�तार �ी�ा र्का �ण�न, भi प्रह्लाद र्का चरिरत्र, सूय��ं�ी राजाओं र्की �ं�ा��ी, चन्द्र �ं� र्की �ं�ा��ी, �ाराणसी रे्क वि�शे्वश्वर लि�/ग र्की मविहमा, व्यास और जषै्टिमविन ऋवि. रे्क मध्य Sम� सम्बन्धी सं�ादों र्का वि��रण, सू्थ� �रीर से सूक्ष्म �रीर में जाने र्का �ण�न, मोक्ष �ण�न तथा पौराभिणर्क भूगो� र्का वि�स्तृत उल्�ेख विर्कया है।

ईश्वर गीता और व्यास गीताये सारे वि�.य 'रू्कम� पुराण' रे्क पू�ा�द्ध� भाग में समाविहत हैं। इस पुराण रे्क उत्तराद्ध� में 'ईश्वर गीता' और 'व्यास गीता' र्का बड़ा ही सुन्दर-दा��विनर्क वि��ेचन विर्कया गया है। ईश्वर और भग�ान शि�� रे्क मध्य हुए सं�ाद र्को ऋवि.गण ग्रहण र्करते हैं। उसे 'ईश्वर गीता' र्का नाम दिदया गया है। इस गीता पर व्यास जी द्वारा 'महाभारत' में रशिचत 'श्रीम�ाग�त गीता' र्का गहरा और व्यापर्क प्रभा� दृष्टिCगोचर होता है। इसमें नटराज शि�� रे्क वि�श्व रूप र्का �ण�न है। 'आत्मतत्त्�' रे्क स्�रूप र्का विनरूपण र्करते हुए स्�यं भग�ान शि�� र्कहते हैं विर्क द्धिजस प्रर्कार प्रर्का� और अंSर्कार र्का, Sूप और छाया र्को र्कोई सम्बन्ध नहीं हो सर्कता, उसी प्रर्कार 'आत्मा' और 'प्रपंच' दोनों एर्क-दूसरे से स��था भिभन्न हैं। सुख-दुख, राग-दे्व., सू्थ� और सूक्ष्म आदिद आत्मा रे्क �क्षण नहीं हैं। ये सभी वि�र्कार हैं, द्धिजन्हें मनुष्य अपने अहंर्कार रे्क र्कारण Sारण र्कर �ेता है। इसर्का मू� र्कारण अज्ञान है। जब योगी सभी प्राभिणयों में आत्मा र्का समभा� देखने �गता है, तभी �ह सच्चा पे्रमी हो जाता है। व्यास र्की 'श्रीम�ाग�द ्गीता' में भग�ान श्रीरृ्कष्ण अजु�न से र्कहते हैं-आत्मौपम्येन स��त्र समं पश्यवित योऽजु�न।सुखं �ा यदिद �ा दु:खं स योगी परमो मत:॥ (श्रीम�ाग�द ्गीता 6/32)

अथा�त हे अजु�न! �ह व्यशिi पूण� योगी है, जो अपनी तु�ना से समस्त प्राभिणयों रे्क सुखों तथा दुखों में �ास्तवि�र्क समानता र्का द��न र्करता है। ऐसा ही भा� 'श्रीम�ाग�द ्गीता' में एर्क अन्य स्थान पर भी आया है-

वि�द्यावि�नयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि� हस्मिस्तविन।�ुविन चै� श्वपारे्क च पस्थिण्डता: समदर्शि�/न:॥ (श्रीम�ाग�द ्गीता 5/18)

अथा�त वि�नम्र-साSु पुरु. अपने �ास्तवि�र्क ज्ञान रे्क र्कारण एर्क वि�द्वान, वि�नीत ब्राह्मण, गाय, हाथी, रु्कत्ता तथा चण्डा� र्को समान दृष्टिC से देखते हैं। भा� यही है विर्क जड़-चेतन, प�ु-पक्षी, नर-नारी- सभी में जो व्यशिi आत्मा रे्क समान भा� से द��न र्करता है, �ही पूण� योगी होता है अथा�त परमात्मा से

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उसर्का संयोग हो जाता है। �ह उसी र्की परम ज्योवित में �ीन होर्कर अपना अस्मिस्तत्� समाप्त र्कर �ेता है।

सांख्य योग इसरे्क अ�ा�ा 'रू्कम� पुराण' में सांख्य योग रे्क चौबीस तत्त्�ों, सदाचार रे्क विनयमों, गायत्री, मविहमा, गृहस्थ

Sम�, श्रेष्ठ सामाद्धिजर्क विनयमों, वि�वि�S संस्र्कारों, विपतृर्कमu- श्राद्ध, विपण्डदान आदिद र्की वि�ष्टिSयों तथा चारों आश्रमों में रहते हुए आचार-वि�चारों र्का पा�न र्करने र्का वि�स्तार से वि��ेचन विर्कया गया है।

इस पुराण र्की गणना �ै� पुराणों में र्की जाती है। विर्कन्तु वि�ष्णु र्की विनन्दा अथ�ा उनरे्क प्रभा� र्को र्कम र्कररे्क इसमें नहीं आंर्का गया है। इसमें दे�ी माहात्म्य र्का भी व्यापर्क �ण�न है। सगुण और विनगु�ण ब्रह्म र्की उपासना र्का सुन्दर और सारगर्णिभ/त वि��ेचन भी इसमें प्राप्त होता है।

हरिरवंश पुराण / Harivansh Puran हरिर�ं� पुराण में �ै�स्�त मनु और यम र्की उत्पभित्त रे्क बारे में बताया है और साथ ही भग�ान वि�ष्णु रे्क

अ�तारों रे्क बारे में बताया गया है। आगे दे�ताओं र्का र्का�नेष्टिम रे्क साथ युद्ध र्का �ण�न है द्धिजसमें भग�ान् वि�ष्णु ने दे�ताओं र्को सान्त्�ना दी और अपने अ�तारों र्की बात विनभि�त र्कर दे�ताओं र्को अपने स्थान पर भेज दिदया। इसरे्क बाद नारद और रं्कस रे्क सं�ाद हैं। इस पुराण में भग�ान् वि�ष्णु र्का रृ्कष्ण रे्क रूप में जन्म बताया गया है। द्धिजसमें रं्कस र्का दे�र्की रे्क पुत्रों र्का �S से �ेर्कर रृ्कष्ण रे्क जन्म �ेने तर्क र्की र्कथा है। वि�र भग�ान रृ्कष्ण र्की ब्रज-यात्रा रे्क बारे में बताया है द्धिजसमें रृ्कष्ण र्की बा�-�ी�ाओं र्का �ण�न है। इसमें Sेनर्कासुर �S, गो�S�न उत्स� र्का �ण�न विर्कया गया है। आगे रं्कस र्की मृत्यु रे्क साथ उग्रसेन रे्क राज्यदान र्का �ण�न है। आगे बाणसुर प्रसंग में दोनों रे्क वि�.य में बताया है। भग�ान रृ्कष्ण रे्क द्वारा �ंर्कर र्की उपासना र्का �ण�न है। हंस-विडम्भर्क प्रसंग र्का �ण�न है। अंत में श्रीरृ्कष्ण और नन्द-य�ोदा ष्टिम�न र्का �ण�न है।