ishta siddhi

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Page 1: Ishta siddhi
Page 2: Ishta siddhi

प्रात् स्भयणीम ऩयभ ऩूज्म

सॊत श्री आसायाभजी फाऩू के

सत्सॊग-प्रवचन

इष्टससद्धि प्रास्ताद्धवक

इस मुग के आत्भऻानी, बक्ति औय मोग की द्धवसबन्न मात्राओॊ से गुजये हुए ऩूज्मऩाद स्वाभीजी की अनुबव सॊऩन्न वैददक वाणी को, ऋद्धषप्रसाद को साधक सुद्धवधाऩूववक ऩचा सकें औय अऩने जीवन को हय ऺेत्र भें चभका सकें इस हेतु भॊत्रानुष्ठान द्धवषमक 'इष्टससद्धि' नाभक इस ऩुस्तक का प्रकाशन हो यहा है।

भानससक व फौद्धिक फर का द्धवकास कयके अऩना जीवन सदा-सदा के सरए शाश्वत ्सुख भें, शाश्वत शाॊतत भें, जीवन्भुक्ति के द्धवरऺण आनॊद भें सयाफोय कयने की इच्छावारे साधकों के सरए मह सॊतप्रसाद उनके कयकभरों भें सभद्धऩवत कयते हुए ससभतत कुछ अॊशों भें उऋण हो यही है।

श्री मोग वेदान्त सेवा ससभतत

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 3: Ishta siddhi

अनुक्रभ

इष्टससद्धि ............................................................................................................................................. 4

द्धववेक की जागतृत .......................................................................................................................... 4

भनुष्म की दद्रधा ............................................................................................................................ 5

शास्त्रों भें उऩासना के प्रसॊग ............................................................................................................. 6

भॊत्र् ऩायभार्थवक ऺेत्र का टेसरपोन ................................................................................................... 7

अनुष्ठान की आवश्मकता ................................................................................................................. 8

अनुष्ठान कौन कये ? ....................................................................................................................... 8

स्थान की ऩसन्दगी ........................................................................................................................ 9

आसन ........................................................................................................................................ 10

ददशा .......................................................................................................................................... 12

भारा .......................................................................................................................................... 12

जऩ की सॊख्मा ............................................................................................................................ 14

बोजन ........................................................................................................................................ 15

भौन ........................................................................................................................................... 17

ब्रह्मचमव का ऩारन ........................................................................................................................ 18

अनुष्ठान अकेरे कयो ..................................................................................................................... 19

वासना का दीमा फुझाओ ............................................................................................................... 20

शमन ......................................................................................................................................... 21

तनद्रा-तन्द्रा-भनोयाज से फचो .......................................................................................................... 21

स्वच्छता औय ऩद्धवत्रता ................................................................................................................. 23

र्चत्त के द्धवऺेऩ का तनवायण कयो ................................................................................................... 24

शक्ति का सॊयऺण कयो .................................................................................................................. 25

भॊत्र भें दृढ़ द्धवश्वास ....................................................................................................................... 26

अप्रततहत प्रऻा को जगाओ............................................................................................................ 26

इष्टशयण से अतनष्ट दयू होता है ...................................................................................................... 27

छत्रऩतत सशवाजी की यऺा .................................................................................................................... 28

उऩासना का पर ............................................................................................................................... 29

दीऺाभात्र से भहाऩातक का नाश .......................................................................................................... 30

भसरन तत्त्वों से यऺण ........................................................................................................................ 31

अदै्रत भें सफ भतों का ऩमाववसान ......................................................................................................... 33

अखण्ड आत्भदेव की उऩासना ............................................................................................................. 34

अदै्रततनष्ठा ......................................................................................................................................... 35

आत्भ-कल्माण के सरए..... .................................................................................................................. 36

र्चन्ततनका ........................................................................................................................................ 38

ॐ स्वास््म के सरए भॊत्र ॐ .............................................................................................................. 42

Page 4: Ishta siddhi

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

इष्टससद्धि

हभाये ऩास खाने को ऩमावद्ऱ अन्न, ऩहनने को वस्त्र, यहने को घय होते हुए बी हभ बीतय से दु् खी क्मों हैं? दीन क्मों है ? अशान्त क्मों हैं ? क्मोंकक हभ रोग अऩने बीतय की चतेना जगाने की तयकीफ बूर गमे हैं, अन्तय भें तनदहत आनन्दसागय से सॊऩकव खो फैठे हैं, ऩयभात्भा का अनुसॊधान कयने के सॊऩकव -सूत्र छोड़ फैठे हैं, भॊत्रजऩ एवॊ उसके द्धवर्ध-द्धवधान त्माग चकेु हैं। ददनों ददन ऩाद्ळात्म जगत के फाह्य ददखावे से प्रबाद्धवत होते जा यहे हैं। परत् जैसे वे रोग बौततक साधनों से सॊऩन्न होते हुए बी अशान्त हैं वैसे हभाया जीवन बी अशाॊतत की ओय फढ़ यहा है।

वह बी एक ज़भाना था जफ घय-गहृस्थी भें एक आदभी कभाता था औय सौ आदभी शाॊतत से खाते थे, आनन्द से जीते थे। केवर कौऩीन ऩहनकय बी त्मागी रोग भस्ती भें यहते थे। अबी तो कोट, ऩैन्ट, शूट, फूट, टाई आदद सफ ठाठ-फाट होते हुए बी रृदम भें होरी है। हभ र्चत्त की प्रशाॊतत, आत्भ-द्धवश्राॊतत खो फैठे हैं।

अनुक्रभ

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द्धववेक की जागतृत

सौबाग्मवश जफ हभ ककसी सच्च ेसॊत-भहाऩुरुष के सान्न्नध्म भें ऩहुॉच जाते हैं, सत्सॊग भें ब्रह्मानॊद छरकानेवारी उनकी अभतृवाणी सुनते हैं, ध्मानाभतृ से सयाफोय कयने वारी उनकी तनगाहों भें अऩने जीवन की गहयाइमों को छूने रगते हैं तफ ऐसा रगता है कक बगवान हभाये कयीफ हैं। तत्त्ववेत्ता सदगुरु के कृऩा-प्रसाद को ऩाकय ऐसा भहसूस होता है कक जीवन को भहान ्फनाना कदठन नहीॊ है। हभाया खोमा हुआ खजाना कपय से ऩा रेना दषु्कय नहीॊ है। ...रेककन मह अवस्था सदा दटकती नहीॊ। र्चत्त सॊस्कायों भें कपय से फहने रगता है। कई द्धवघ्न औय फाधाएॉ हभको सताने रगती हैं।

अनुक्रभ

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भनुष्म की दद्रधा

एक तयप र्चत्त चाहता है कक् 'भनुष्म-जन्भ दरुवब है अत् इसका सदऩुमोग कयें। दतुनमा भें ऐसा कुछ कय रें कक भेये ऩदर्चह्नों ऩय चरकय अन्म रोग बी अऩना बाग्म फना रें।' दसूयी तयप भन हभें जगत की ओय, फुद्धि का तनणवम जागततक उऩरन्धधमों की ओय तथा शयीय बोग की ओय खीॊच रे जाता है।

ऐसे दद्रधाऩूणव जीवन भें क्मा ककमा जाम? कबी शे्रमस ्की ओय खखॊचाव होता है तो कबी प्रेमस की ओय खखॊचाव होता है। हभ न ऩूये शे्रमस ऩय चर सकते हैं न ऩूये प्रेमस ्के उऩबोिा हो सकते हैं। हभ न ऩूये सज्जन फन ऩाते हैं, न ईश्वयीम शाॉतत, र्चत्त की प्रशाॊतत, आत्भ-द्धवश्राॊतत रे ऩाते हैं, न हभें सॊसाय भें शैतान होने से ततृद्ऱ सभरती है। साधक औय बि का मह अनुबव होता है। इसके क्मा कायण हैं?

हभ अच्छाई चाहते हैं रेककन अच्छाई के भागव ऩय ऩूये चर नहीॊ ऩाते। फुयाई से फचना चाहते हैं रेककन फुयाई से ऩूये फच नहीॊ ऩाते। हभाया हार ऐसा है कक्

जानासभ धभं न च भे प्रवदृ्धत्त्। जानाम्मधभं न च भे तनवदृ्धत्त्। हभ धभव जानते हैं रेककन उस धभव भें हभायी प्रवदृ्धत्त नहीॊ हो यही है। हभ अधभव को जानते

हैं रेककन उस अधभव से हभायी तनवदृ्धत्त नहीॊ हो यही है। हभ जानते हैं कक मह अच्छा नहीॊ है कपय बी उसभें पॉ से यहते हैं। हभ जानते हैं कक मह अच्छा है रेककन उसभें हभायी प्रवदृ्धत्त नहीॊ हो ऩाती।

भानवभात्र का मह प्रद्ल है। जो अऩने को भानव भानें उन सफका मह प्रद्ल है। भनुष्म चाहता है कक् 'भैं शे्रष्ठ फन जाऊॉ ।' वह चाहता है कक् 'भैं ईश्वय के साथ खेरूॉ।' वह

चाहता है कक् 'भैं ईश्वय के साथ एक हो जाऊॉ ।' .....औय साथ-ही-साथ उसको अऩनी कसभमाॉ बी खटकती है।

बागवत भें एक कथा आती है। कॊ स ने श्रीकृष्ण को फुराने के सरए षड्मॊत्र यचा था। मऻ का आमोजन ककमा औय श्रीकृष्ण को रेने के सरए अकू्रयजी को बेजा।

अकू्रयजी यास्ते भें सोचने रगे् "आहा ! श्रीकृष्ण से बेंट होगी। वे भुझ े'काका' कहकय फुरामेंगे। ककतना आनन्द ! वे घक्तड़माॉ ककतनी सुहावनी होंगी ! रेककन.... भेया नाभ तो अकू्रय है, कभव भेये कू्रय हैं। कॊ स का अन्न खाता हूॉ, उस ऩाऩी की गुराभी कयता हूॉ। भेये जैसे को श्रीकृष्ण सभरेंगे ? भुझ ेदेखकय अन्तधावन तो नहीॊ हो जामेंगे ?"

अकू्रयजी जफ अऩने कभों की ओय देखते हैं तो उनकी दहम्भत छूट जाती है, ऩैय थयथयाते हैं। ..... औय जफ बगवान श्रीकृष्ण का सहज स्वबाव स्भयण भें आता है, ऩयभात्भा की उदायता,

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दमारुता, स्वाबाद्धवकता, सहजता, गरयभा एवॊ आत्भ-दृद्धष्ट का द्धवचाय आता है तफ दहम्भत आ जाती है।

ऐसा ही हभ रोगों का हार है। बगवान की ऊॉ चाई को देखते हैं, उनकी कृऩा औय करूणा को देखते हैं तो दहम्भत आ जाती है कक् 'अये ! क्मों नहीॊ होगा ब्रह्मऻान? आत्भ-साऺात्काय होना कोई कदठन थोड़ ेही है ! ऩयीक्षऺत को सात ददन भें हो सकता है, याजा जनक को घोड़ ेके यकाफ भें ऩैय डारते-डारते हो सकता है, अष्टावक्र को भाता के गबव भें हो सकता है, रीराशाह फाऩू को हो सकता है तो हभको क्मों नहीॊ होगा ?" फड़ी दहम्भत आती है। हभ ईश्वय की गरयभा औय भहाऩुरुषों के जीवन की ओय देखते हैं तो हभभें दहम्भत आ जाती है ककन्तु जफ हभ अऩनी ओय देखते हैं तो हभाये ऩैय ढीरे हो जाते हैं।

इसका कायण क्मा है ? हभायी जो सॊबावनाएॉ हैं, हभायी जो सुषुद्ऱ चतेना है, हभभें जो सुषुद्ऱ सत्त्व है उस सत्त्व को हभने द्धवकससत नहीॊ ककमा औय यजस-्तभस ्हभभें ऩूया द्धवकससत हो यहा है। इस यजस-्तभस ्से प्रेरयत होकय जफ हभायी प्रवदृ्धत्तमाॉ होती हैं तो हभ भन से कभजोय हो जाते हैं। जो सत्त्व भें ऩहुॉच ेहैं मा सत्त्व से बी ऩाय हो गमे हैं उनके जीवन का स्भयण कयते हैं तो दहम्भत आ जाती है। हभ जऩ, उऩासना, अनुष्ठान, ध्मान, बजन कयने भें तत्ऩय हो जाते हैं।

शे्रमद्ळ प्रेमद्ळ भनुष्मभेतस्तौ सम्ऩयीत्म द्धवद्धवनक्ति धीय्। शे्रमो दह धीयोऽसबप्रेमसो वणृीते प्रेमो भन्दो मोगऺेभाद् वणृीते।।

'शे्रम औय प्रेम (ऩयस्ऩय सभर्श्रत होकय) भनुष्म के ऩास आते हैं। फुद्धिभान ऩुरुष मथामोग्म सोच-द्धवचाय कयके इन दोनों को अरग कयता है। द्धववेकी ऩुरुष प्रेम औय शे्रम भें से शे्रम को ग्रहण कयता है ककन्तु भूढ़ मोगऺेभ चराने के सरए प्रेम को ऩसन्द कयता है।'

(कठोऩतनषद् – 2.2.2) इससे केवर ऩयभात्भ-प्रातद्ऱ ही होती है, ऐसी फात नहीॊ है। भॊत्रजऩ, अनुष्ठान, उऩासना

आदद से हभ अऩना ऐदहक, ऩायभार्थवक, स्वर्गवक, ऩैतकृ कल्माण के साथ-साथ ऩुत्र-ऩौत्र का कल्माण बी कय सकते हैं।

अनुक्रभ

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शास्त्रों भें उऩासना के प्रसॊग

शास्त्रों भें आयाधना-उऩासना कयके कामव ससि कयने के कई प्रसॊग आते हैं। याजा दशयथजी ने मऻदेवता की आयाधना की। मऻदेवता प्रकट हुए, खीय का प्रसाद ददमा। उससे श्रीयाभचन्द्रजी अवतरयत हुए।

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बगवान श्रीयाभ ने बी याभेश्वय की स्थाऩना की थी, सशवोऩासना की थी। 'ॐ नभ् सशवाम'

का जऩानुष्ठान ककमा था औय फाद भें रॊका ऩय चढ़ाई की थी।

बगवान श्रीकृष्ण की यानी जाम्फवती को ऩुत्र नहीॊ था। वे दु् खी यहती थीॊ। श्रीकृष्ण ने सूमवनायामण की आयाधना की तो जाम्फती को साम्फ नाभक फेटा प्राद्ऱ हुआ।

बगवान द्धवष्णु बी देवार्धदेव बगवान सशव की उऩासना कयते थे। प्रततददन एक हजाय कभर चढ़ाते। सशवजी ने एक ददन उनकी ऩयीऺा कयने के सरए भामा से एक कभर छुऩा ददमा। कभर चढ़ाते सभम द्धवष्णुजी को जफ हजायवाॉ कभर नहीॊ सभरा तो उन्होंने अऩना नेत्रकभर ही तनकारकय बगवान सशव को चढ़ा ददमा। इस ऩय बोरेनाथ प्रसन्न हो गमे औय द्धवष्णुजी को सुदशवन चक्र प्रदान ककमा।

मभयाज ने बी नभवदा के ककनाये मऻोऩासना की थी तफ वे मभऩुयी के अर्धष्ठाता फने। ध्रवु को सौतेरी भाॉ का ताना रगा, चोट ऩहुॉची औय ईश्वयोऩासना कयने चर ऩड़ा जॊगर

की ओय। नायदजी ने भॊत्रदीऺा दी। ध्रवु ने द्रादशाऺयी भॊत्र का अनुष्ठान ककमा औय दतुनमा जानती है कक छ् भहीने भें ही उसके आगे सगुण साकाय ऩयभात्भा प्रगट हो गमे।

अनुक्रभ

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भॊत्र् ऩायभार्थवक ऺेत्र का टेसरपोन

भॊत्र ऐसा साधन है कक हभाये बीतय सोमी हुई चतेना को वह जगा देता है, हभायी भहानता को प्रकट कय देता है, हभायी सुषुद्ऱ शक्तिमों को द्धवकससत कय देता है।

सदगुरु से प्राद्ऱ भॊत्र का ठीक प्रकाय से, द्धवर्ध एवॊ अथवसदहत, प्रेभऩूणव रृदम से जऩ ककमा जाम तो क्मा नहीॊ हो सकता? जैसे टेसरपोन के डामर ऩय नम्फय ठीक से घुभामा जाम तो द्धवश्व के ककसी बी देश के कोने भें न्स्थत व्मक्ति से फातचीत हो सकती है वैसे ही भॊत्र का ठीक से जऩ कयने से ससद्धि सभर सकती है। जफ टेसरपोन के इतने छोटे-से डामर का ठीक से उऩमोग कयके हभ द्धवश्व के ककसी बी देश के कोने भें न्स्थत व्मक्ति के साथ सम्फन्ध जोड़ सकते हैं तो बीतय के डामर का ठीक से उऩमोग कयके द्धवशे्वश्वय के साथ सम्फन्ध जोड़ रें इसभें क्मा आद्ळमव है?

द्धवश्व का टेसरपोन तो कबी ‘एन्गेज’ सभरता है रेककन द्धवशे्वश्वय का टेसरपोन कबी ‘एन्गेज’ नहीॊ होता। वह सववत्र औय सदा तत्ऩय है। हाॉ... नम्फय घुभाने भें जया-सा हेय-पेय ककमा तो याॉग नम्फय रगेगा। घण्टी फजानी है कहाॉ औय फजती है कहीॊ औय । इस प्रकाय भॊत्र भें बी थोड़ा सा हेय-पेय कय दें, भनभानी चरा दें तो ऩरयणाभ ठीक से नहीॊ सभरेगा।

आज कर धभव का प्रचाय इतना होते हुए बी भानव के जीवन भें देखा जाम तो वह तसल्री नहीॊ, वह सॊगीत नहीॊ, वह आनन्द नहीॊ जो होना चादहए। क्मा कायण है ? द्धवशे्वश्वय से

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सॊऩकव कयने के सरए ठीक से नम्फय जोड़ना नहीॊ आता। भॊत्र का अथव नहीॊ सभझते, अनुष्ठान की द्धवर्ध नहीॊ जानते मा जानते हुए बी राऩयवाही कयते हैं तो भॊत्र ससि नहीॊ होता।

भॊत्र जऩने कक द्धवर्ध, भॊत्र के अऺय, भॊत्र का अथव, भॊत्रानुष्ठान की द्धवर्ध हभ जान रें तो हभायी मोग्मता खखर उठती है। हभ द्धवशे्वश्वय के साथ एक हो सकते हैं। अये ! 'हभ स्वमॊ द्धवशे्वश्वय हैं....' ऐसा साऺात्काय कय सकते हैं।

अनुक्रभ

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अनुष्ठान की आवश्मकता

हभाये स्थरू शयीय को भाता-द्धऩता जन्भ देते हैं औय सच्च ेब्रह्मतनष्ठ सदगुरु, आत्भतनष्ठा भें जागे हुए भहाऩुरुष हभाये र्चन्भम वऩु को भॊत्रदीऺा के द्राया जन्भ देते हैं। जैसे एक दीऩक से दसूया दीऩक प्रकासशत हो उठता है वैसे ही दीऺा के सभम भॊत्र के साथ साधक भें, सशष्म भें चतैन्म की र्चॊगायी सदगुरु के द्राया स्थाद्धऩत होती है। भॊत्र प्राद्ऱ होने ऩय मदद उसका अनुष्ठान न ककमा जाम, द्धवर्धसदहत उसका ऩुयद्ळयण कयके भॊत्र ससि न ककमा जाम, र्चॊगायी को साधना के द्राया पूॉ क-पूॉ ककय प्रकासशत ज्मोत भें रूऩान्तरयत न की जाम तो भॊत्र से उतना राब नहीॊ होता न्जतना होना चादहए।

श्रिा, बक्तिबाव एवॊ मथामोग्म द्धवर्ध-द्धवधान का सभन्वम कयके जफ भॊत्र के अथव को, भॊत्र के यहस्म को अन्तदेश भें आत्भसात ्ककमा जाता है तफ साधक भें चतैन्म के ददव्म आन्दोरन उठते हैं। उससे जन्भ-जन्भाॊतय के ऩाऩ-ताऩभम सॊस्काय धरुने रगते हैं। चतेना जीवन्त, ज्वरन्त व जागतृ रूऩ भें चभक उठती है। श्रिा-बाव से भॊत्र का अनुष्ठान ककमा जाता है तो ऩयभात्भ-प्रेभ व आत्भऻान के उदम की सम्बावना फढ़ जाती है।

अनुष्ठान कई प्रकाय के होते हैं। उनभें से भॊत्रजऩानुष्ठान को केन्द्र भें यखकय कुछ फातें जानेंगे। भॊत्रानुष्ठान भें कुछ तनमभों की आवश्मकता होती है। मभ-तनमभ के सम्मक् ऩारन से आन्तय-फाह्य शुद्धि व शाॊतत फनी यहती है।

अनुक्रभ

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अनुष्ठान कौन कये?

भॊत्रानुष्ठान स्वमॊ कयना चादहए। मह सवोत्तभ कल्ऩ है। मदद श्री गुरुदेव ही कृऩा कयके अनुष्ठान कय दें तफ तो ऩूछना ही क्मा ! हभ अनुष्ठान न कय सकते हों तो ऩयोऩकायी, प्रेभी,

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शास्त्रवेत्ता, सदाचायी ब्राह्मण के द्राया बी कयामा जा सकता है। कहीॊ-कहीॊ अऩनी धभवऩत्नी से बी अनुष्ठान कयाने की आऻा है। ऐसे प्रसॊग भें ऩत्नी को ऩुत्रवती होना चादहए। ऩत्नी बी सतत अनुष्ठान नहीॊ कय सकती। उसको भाससकधभव की सभस्मा है। भाससक धभव की अवर्ध भें अनुष्ठान कयने से अनुष्ठान खन्ण्डत हो जाता है। न्स्त्रमों को अनुष्ठान के सरए उतने ही ददन आमोन्जत कयने चादहए न्जतने ददन उनका हाथ स्वच्छ हो।

अनुक्रभ

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स्थान की ऩसन्दगी

अनुष्ठान कयने के सरए ऐसी जगह ऩसन्द कयो जहाॉ फैठकय जऩ कयने से तुम्हाया भन भॊत्रजऩ भें रग सके, भॊत्र के अथव भें तल्रीन हो सके, आऩके र्चत्त की ग्रातन सभटे औय प्रसन्नता फढे़। अनुष्ठान के सरए ऐसा स्थान ही सववशे्रष्ठ है।

'श्रीगुरुगीता' भें तनदेश है कक् "जऩानुष्ठान के सरए सागय मा नदी के तट ऩय, तीथव भें, सशवारम भें, द्धवष्णु के मा देवी के भॊददय भें मा अन्म शुब देवारमों भें, गौशारा भें, वटवृऺ मा आॉवरे के वृऺ के नीच,े भठ भें, तुरसीवन भें, ऩद्धवत्र तनभवर स्थान भें फैठना चादहए। स्भशान भें, बफल्व, वटवृऺ मा कनकवृऺ के नीच ेऔय आम्रवृऺ के ऩास जऩ कयने से ससद्धि जल्दी होती है।"

अनुष्ठान के सरए ऐसी जगह ऩसन्द भत कयो जहाॉ आऩ बमबीत होते यहो, प्राकृततक घटनाओॊ से द्धवक्षऺद्ऱ होते यहो, दहॊसक प्राखणमों से डयते यहो तथा जहाॉ के रोग अनुष्ठान के द्धवयोधी हों। भन भें द्धवयोर्धमों के द्धवयोध का र्चन्तन होगा, शत्र ुका र्चन्तन होगा, बम होगा तो भॊत्र भें भन रग नहीॊ ऩामेगा। जहाॉ चोय-डाकू आदद का बम हो, सऩव-बफच्छू आदद का बम हो वहाॉ अनुष्ठान नहीॊ ककमा जाता।

इन्न्द्रमों को खीॊचकय फदहभुवख कय दे, ऐसे वातावयण भें अनुष्ठान सपर नहीॊ होता। ससनेभागहृ भें फैठकय मा अऩने घय भें टी.वी., येक्तडमो आदद चराते हुए अनुष्ठान कयने से सपरता नहीॊ सभरती।

अन्मत्र कहीॊ न जाकय अऩने तनवास स्थान भें ही एक कभया साप-सुथया, ऩद्धवत्र फनाकय, धऩू-दीऩ, अगयफत्ती, ऩुष्ऩ-चन्दनादद से भनबावन वातावयण यचकय अनुष्ठान के सरए फैठ सकते हैं। एक ऩूया खारी कभया न हो तो घय का एकाध कोना बी चर सकता है।

सूमव, अन्ग्न, गुरु, चन्द्रभा, दीऩक, जर, ब्राह्मण औय गौओॊ के साभने फैठकय जऩ कयना उत्तभ भाना गमा है। मह तनमभ साववबत्रक नहीॊ है। भुख्म फात मह है कक जहाॉ फैठकय जऩ कयने से र्चत्त की ग्रातन सभटे औय प्रसन्नता फढे़, वही स्थान सववशे्रष्ठ है।

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घय भें जऩ कयने से जो पर होता है उससे दसगुना पर गौशारा भें जऩ कयने से होता है। हाॉ, उस गौशारा भें गामों के साथ फैर नहीॊ होना चादहए। मदद वहाॉ फैर होगा तो उनभें एक-दसूये के चमु्फकत्व से 'वामब्रेशन' गन्दे होते हैं।

जॊगर भें जऩ कयने से घय की अऩेऺा सौ गुना पर होता है। ताराफ मा सयोवय के ककनाये हजायगुना पर होता है, नदी मा सागय के तीय, ऩववत मा सशवारम भें राखगुना पर होता है। जहाॉ ऻान का सागय रहयामा हो, ऻान की चचाव हुई हो, जहाॉ ऩहरे कोई ऻानी हो गमे हों ऐसे कोई तीथव भें अनुष्ठान कयना इन सफसे शे्रष्ठ है। मदद सदगुरु के ऩावन सान्न्नध्म भें, जीद्धवत ब्रह्मऻानी भहाऩुरुष के भागवदशवन भें अनुष्ठान कयने का सौबाग्म सभर जाम तो अनन्तगुना पर होता है।

अनुक्रभ

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आसन

(1) ध्मान, जऩ आदद साधना के सरए मथोर्चत आसन होना अतत आवश्मक है। जऩ कयने से हभाये शयीय भें द्धवद्युतशक्ति ऩैदा होती है। आध्मान्त्भक उत्थान भें मह शक्ति फड़ी भहत्त्वऩूणव है। न्जसके शयीय भें द्धवद्युतशक्ति द्धवऩुर प्रभाण भें होती है, साहस, दहम्भत औय तनयोगता उसका स्वबाव फन जाता है। न्जसके शयीय भें मह द्धवद्युतशक्ति कभ होती है उसको योग घेय रेते हैं।

बफना आसन के फैठकय जऩ कयने से शयीय भें उत्ऩन्न होने वारी द्धवद्युतशक्ति को बूसभ खीॊच रेती है। अत् इस द्धवद्युतशक्ति के सयॊऺण के सरए जऩ के सभम आसन ऩय फैठना चादहए। आसन को द्धवद्युत का अवाहक (Non-conductor) होना जरूयी है न्जससे द्धवद्युत उससे ऩाय गुजय न सके। गयभ आसन हो, भोड़ा हुआ कम्फर हो तो अच्छा है। गद्दी ऩय सादे टाट मा प्रान्स्टक का टुकड़ा बी चर सकता है।

बूसभ ऩय नॊगे ऩैय चरने से बी शयीय की द्धवद्युतशक्ति बूसभ द्राया खखॊच जाती है। अत् साधनाकार भें ऐसा वैऻातनक असबगभ अऩना कय अऩनी शक्ति का सॊयऺण एव सॊवधवन कयना चादहए। मह वैऻातनक दृद्धष्टबफन्द ु'श्रीगुरुगीता' भें बी देखा जाता है। बगवान शॊकय कहते हैं-

"बफना आसन ककमे हुए जऩ नीच कभव हो जाता है, तनष्पर हो जाता है।" कौन-से आसन का क्मा प्रबाव होता है, ककस हेतु कैसा आसन उऩमुि है इत्मादद का वणवन कयते हुए आगे कहते हैं-

"कऩड़ ेके आसन ऩय फैठ कय जऩ कयने से दरयद्रता आती है, ऩत्थय के आसन ऩय योग, बूसभ ऩय फैठकय जऩ कयने से दु् ख आता है औय रकड़ी के आसन ऩय ककमे हुए जऩ तनष्पर होते हैं। कुश औय दवुाव के आसन ऩय सपेद कम्फर बफछाकय उसके ऊऩय फैठकय जऩ कयना

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चादहए। कारे भगृचभव औय दबावसन ऩय फैठकय जऩ कयने से ऻानससद्धि होती है। व्माघ्रचभव ऩय फैठकय जऩ कयने से भुक्ति प्राद्ऱ होती है ऩयन्तु कम्फर के आसन ऩय सवव ससद्धि प्राद्ऱ होती है।"

दसूये के आसन ऩय फैठकय जऩ कयने से बी जऩ परदामी नहीॊ होते। साधना के सरए अऩना तनजी आसन अरग यखें। उसे अन्म रोगों के उऩमोग भें न रगाएॉ। अऩना आसन, अऩनी भारा, अऩना गुरुभॊत्र सुयक्षऺत यखना चादहए।

ससय ऩय कऩड़ा यखकय ककमे हुए जऩ परते नहीॊ। (2) अनुष्ठान भें रम्फे सभम तक न्स्थयता एवॊ एकाग्रता से फैठने के सरए ऩद्मासन,

अधवऩद्मासन, ससिासन, स्वन्स्तकासन का अभ्मास हो तो अच्छा है। ककसी आसन का अभ्मास न हो तो सुखासन भें ही स्वस्थ, सीधे होकय फैठें । खास ध्मान दें कक साभान्मतमा फैठते वि औय द्धवशषेकय अनुष्ठान के वि यीढ़ की हड्डी बफल्कुर सीधी यहे।

हभायी जीवनशक्ति, चतेनाशक्ति फीज रूऩ से नीच ेके केन्द्र भें, भूराधाय चक्र भें सुषुद्ऱ ऩड़ी है। जऩ के द्राया वह जागतृ होती है। जफ वह जागतृ होकय ऊऩय उठती है तबी काभ देती है। जऩ के द्राया इसको जगाना है, द्धवकससत कयना है, सदगुरु के आदेशानुसाय, बरी प्रकाय सभझकय मथाथवयीतत से प्रेभ-आदयऩूववक जऩ कयने से जीवनशक्ति जागतृ होती है। उस जगी हुई शक्ति को ऊऩय की ओय उठने के सरए यीढ़ की हड्डी सीधी होना तनतान्त आवश्मक है।

स्कूर भें बी सशऺक फच्चों को ऩढ़ाते वि आगे झुककय फूढ़ों की तयह फैठते हैं उन्हें अऩना ऩाठ माद कभ यहता है। वे ऩढ़ाई भें कच्च ेयहते हैं औय आगे चरकय जीवन भें बी दफुवर यहते हैं। उनभें साहस, दहम्भत, उत्साह का द्धवकास नहीॊ होता।

दहटरय जफ ककसी देश ऩय आक्रभण कयता तफ ऩहरे अऩने आदभी बेजकय जाॉच कयवाता कक उस देश के रोग यीढ़ की हड्डी सीधी यखकय चरते-फैठते हैं कक कभय झुकाकय। देश के जवान फूढ़ों की तयह चरत-ेफैठते हैं कक फूढे़ बी जवान की तयह चरते-फैठते हैं। न्जस देश के रोग यीढ़ की हड्डी सीधी कयके चरते-फैठते भारूभ ऩड़ते वहाॉ दहटरय सभझ जाता कक इस देश ऩय द्धवजम ऩाना कदठन है। जो रोग यीढ़ की हड्डी सीधी कयके चरते-फैठते हैं वे उत्साही होते हैं। उनकी जीवन-ऊजाव ठीक से काभ देती है। जो रोग ससकुड़कय फैठते हैं औय झुककय चरते हैं वे रोग न्जन्दे ही भुदे हैं। उनको हयाने भें देय नहीॊ रगती।

जो रोग दीवाय का सहाया रेकय जऩ कयने फैठते हैं उनको दीवाय अऩने जैसा जड़ फना देती है। अत् अऩनी जीवनशक्ति का ठीक से द्धवकास हो सके इसके सरए जऩ के सभम दीवाय का सहाया छोड़कय सीधे होकय फैठें ।

अनुक्रभ

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ददशा

साभान्मतमा ऩूवव मा उत्तय ददशा की ओय भुख कयके जऩ कयना चादहए। कपय बी अरग-अरग हेतुओॊ के सरए अरग-अरग ददशा की ओय भुख कयके जऩ कयने का द्धवधान है।

'श्रीगुरुगीता' भें आता है कक् "उत्तय ददशा की ओय भुख कयके फैठकय जऩ कयने से शाॊतत, ऩूवव ददशा की ओय वशीकयण, दक्षऺण ददशा की ओय भायण ससि होता है तथा ऩन्द्ळभ ददशा की ओय भुख कयके जऩ कयने से धन की प्रातद्ऱ होती है।

अन्ग्न कोण की तयप भुख कयके जऩ कयने से आकषवण, वामव्म कोण की तयप शत्रओुॊ का नाश, नैऋत्म कोण की तयप दशवन औय ईशान कोण की तयप भुख कयके जऩ कयने से ऻान की प्रातद्ऱ होती है।"

अनुक्रभ

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भारा

साधकों के सरए भारा फड़ा भहत्त्वऩूणव साधन है। भॊत्रजाऩ भें भारा फड़ी सहामक होती है। इससरए सभझदाय साधक अऩनी भारा को प्राण जैसी द्धप्रम सभझते हैं औय गुद्ऱ धन की बाॉतत उसकी सुयऺा कयते हैं। जऩभारा की प्राण-प्रततष्ठा ऩीऩर के ऩते्त ऩय यखकय उसकी ऩूजा इस भॊत्र के साथ कयें-

त्वॊ भारे सववदेवानाॊ प्रीततदा शुबदा बव। सशवॊ कुरुष्व भ ेबदे्र मशो वीमं च सववदा।।

अथावत ्'हे भारा ! तू सवव देवों की प्रीतत औय शुब पर देने वारी है। भुझ ेतू मश औय फर दे तथा सववदा भेया कल्माण कय।' इससे भारा भें वदृ्धत्त जागतृ हो जाती है औय उसभें ऩयभात्भ-चतेना का आबास आ जाता है। भारा को कऩड़ ेसे ढॉके बफना मा गौभुखी भें यखे बफना जो जऩ ककमे जाते हैं वे परते नहीॊ।

अनुष्ठान के ददनों भें हययोज के जऩ की सॊख्मा तनन्द्ळत होनी आवश्मक है। मह सॊख्मा ऩूणव कयने के सरए, अनुष्ठान भें उत्साह एवॊ रगन जायी यखने के सरए, प्रभाद फचने के सरए भारा फड़ी सहामक होती है। जऩ कयते-कयते भन अन्मत्र चरा जामेगा मा तॊद्रा घेय रेगी तो भारा रुक जामेगी। मदद भारा चरती यही तो जीब बी चरती यहेगी औय बटकते भन को थोड़ी देय भें वाऩस खीॊच रामेगी। जीब औय भारा दोनों घूभती यहीॊ तो फाहय घूभने वारा भन थोड़ी ही देय भें अऩने उस न्स्थय अॊश के ऩास रौट आमेगा जो भून्च्छवत रूऩ से जीब औय भारा को चराने भें

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कायणरूऩ था। भारा औय जीब को चराने भें जो श्रिा औय द्धवश्वास की शक्ति काभ कय यही है वह शक्ति एक ददन अवश्म व्मि हो जामेगी, जागतृ हो जामेगी।

भारा इतना भहत्त्वऩूणव कामव कयती है तफ आदयऩूववक उसका द्धवचाय न कयके मों ही साधायण-सी वस्तु सभझ रेना, केवर र्गनने की एक तयकीफ भात्र सभझकय एक साभान्म वस्तु की तयह अशुि अवस्था भें बी साथ यखना, फामें हाथ से भारा घुभाना, रोगों को ददखाते कपयना, ऩैय तक रटकामे यखना, जहाॉ कहीॊ यख देना मे फातें सभझदायी औय श्रिा की कभी से होती हैं।

भाराएॉ तीन प्रकाय की होती हैं- कयभारा, वणवभारा औय भखणभारा। अॉगुसरमों ऩय र्गनकय जो जाऩ ककमा जाता है वह कयभारा जाऩ है। वणवभारा का अथव है अऺयों के द्राया जऩ की सॊख्मा र्गनना। भखणभारा भाने भनका द्धऩयोकय जो भारा फनामी जाती है उसे भखणभारा कहते हैं।

अनुष्ठान भें इस भखणभारा का ही उऩमोग कयना दहतकय एवॊ सयर है। मह भारा अनेक चीजों की फनती है, जैसे रुद्राऺ, तुरसी, शॊख, ऩद्मफीज, भोती, स्पदटक, भखण, यत्न, सुवणव, चाॉदी, चन्दन, कुशभूर आदद। सूत औय ऊन से फनी हुई भारा बी काभ भें आती है।

सफ प्रकाय के जऩ भें 108 दानों की भारा काभ आती है। एक चीज की भारा भें दसूयी चीज का भनका नहीॊ आना चादहए। भारा के सफ भनके

एक जैसे होने चादहए, छोटे-फड़ ेएवॊ खन्ण्डत नहीॊ होने चादहए। सफ भाराओॊ भें वैष्णवों के सरए तुरसी की भारा औय स्भातव, शाि आदद के सरए रुद्राऺ

की भारा सवोत्तभ भानी गमी है। ब्राह्मण कन्माओॊ के द्राया तनसभवत सूत से भारा फनामी जाम तो वह बी अतत उत्तभ है।

शाॊततकभव भें शे्वत, वशीकयण भें रार, असबचाय भें कारी औय भोऺ तथा ऐश्वमव के सरए येशभी सूत की भारा द्धवशषे उऩमुि है।

भारा घुभाते वि तजवनी (अॉगूठे का ऩास वारी) अॉगुरी भारा को नहीॊ रगनी चादहए। सुभेरु का उल्रॊघन नहीॊ कयना चादहए। भारा घुभाते-घुभाते जफ सुभेरु आमे तफ भारा को उरटकय दसूयी ओय घुभाना प्रायॊब कयना चादहए।

ध्मान यहे कक भारा शयीय के अशुि भाने जाने वारे अॊगों का स्ऩशव न कये। नासब के नीच ेका ऩूया शयीय अशुि भाना जाता है अत् भारा घुभाते वि भारा नासब से नीच ेनहीॊ रटकनी चादहए एवॊ बूसभ का स्ऩशव बी नहीॊ होना चादहए।

भारा को स्वच्छ कऩड़ ेसे ढॉककय घुभाओ। गौभुखी भें भारा यखकय घुभाते हुए जऩ ककमा जाम तो उत्तभ है।

अनुक्रभ

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जऩ की सॊख्मा

अऩने इष्टदेव मा गुरुभॊत्र भें न्जतने अऺय हों उतने राख भॊत्रजऩ कयने से उस भॊत्र का अनुष्ठान ऩूया होता है। भॊत्रजऩ हो जाने के फाद उसकी दशाॊश सॊख्मा भें हवन कयना होता है। हवन भें हय भॊत्रोच्चाय के साथ अन्ग्न भें आहुतत देना होता है। हवन का दशाॊश तऩवण, तऩवण का दशाॊश भाजवन औय भाजवन का दशाॊश ब्रह्मबोजन कयाना होता है।

भान रो हभाया भॊत्र एक अऺय का है तो हभें अनुष्ठान कयने के सरए एक राख जऩ कयना चादहए, दस हजाय हवन, एक हजाय तऩवण, सौ भाजवन औय दस की सॊख्मा भें ब्रह्मबोजन कयाना चादहए।

मदद हवन, तऩवण, ब्रह्मबोजनादद कयाने का साभ्मव न हो, अनुकूरता न हो, आर्थवक न्स्थतत कभजोय हो तो हवन, तऩवण, भाजवन, ब्रह्मबोजन के फदरे उतनी सॊख्मा भें अर्धक जऩ कयने से बी काभ चर जाता है। इसका भतरफ मह नहीॊ है कक आर्थवक सुद्धवधा होते हुए बी अनुष्ठान दरयद्रों की नाईं ऩूया कयें।

मदद एक अऺय का भॊत्र है तो 10000+10000+1000+100+10=111110 भॊत्रजाऩ कयने से सफ द्धवर्धमाॉ ऩूयी भानी जाती हैं। आऩके भॊत्र भें न्जतने अऺय हों उनकी सॊख्मा से 111110 का गुणा कयो तो आऩके अनुष्ठान की जऩसॊख्मा सभरेगी।

अनुष्ठान के प्रायॊब भें ही हययोज की जऩसॊख्मा का तनधावयण कय रो। कुर ककतनी सॊख्मा भें जऩ कयने हैं औय मह सॊख्मा ककतने ददनों भें ऩूयी कयनी है, इसका दहसाफ रगाकय एक ददन के जऩ की सॊख्मा तनकारो। ककतनी भाराएॉ कयने से वह सॊख्मा ऩूयी होगी, मह देख रो। कपय हययोज उतनी भाराएॉ कयो। एक ददन भें बी सुफह, दोऩहय, शाभ, याबत्र की जऩसॊख्मा तनन्द्ळत कय दी जाम तो अच्छा है।

हययोज सभान सॊख्मा भें जऩ कयो। एक ददन 120 भाराएॉ की, दसूये ददन 140 कीॊ, तीसये ददन 130 कीॊ, चौथे ददन 110 कीॊ.... ऐसे नहीॊ। अनुष्ठान के सफ ददनों की जऩसॊख्मा एक सभान होनी जरूयी है। हाॉ, मह द्धवधान केवर आसन ऩय फैठकय न्जतनी भारा कयते हो, उसकी सॊख्मा के फाये भें ही है। चरते-कपयते, उठते-फैठते, खाते-ऩीते, श्वास के साथ मदद तुभ भानससक जऩ कयते हो, बफना भारा के, तो उसकी कोई र्गनती यखने की आवश्मकता नहीॊ है। इस प्रकाय के भानससक जऩ भें तो मही कहा जा सकता है् अर्धकस्म अर्धकॊ परभ।् जऩ न्जतना अर्धक हो सके उतना अच्छा है। स्तोत्रऩाठ भानससक ककमा जाम तो उसका पर नहीॊ होता औय अनुष्ठान भें भॊत्रजाऩ र्चल्रा-र्चल्रा कय ककमा जाम तो उसका बी पर नहीॊ होता।

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जऩ भें न फहुत जल्दफाजी कयनी चादहए औय न फहुत द्धवरम्फ। गाकय जऩना, ससय दहराना, सरखा हुआ ऩढ़ना, भॊत्र का अथव न जानना औय फीच-फीच भें बूर जाना-मे सफ भॊत्रससद्धि के अवयोधक हैं।

जऩ के सभम मह र्चन्तन कक इष्टदेवता, भॊत्र औय गुरुदेव एक ही हैं। अनुक्रभ

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बोजन

अनुष्ठान के ददनों भें बोजन बफल्कुर सादा, सान्त्त्वक, हल्का औय ऩुद्धष्टकय होना जरूयी है। ऩेट बायी हो जाम उतना अर्धक एवॊ द्धवशषे र्चकना-चऩुड़ा अथवा गरयष्ठ बोजन नहीॊ कयें। बोजन उतना कभ बी नहीॊ कयें, बुखभयी नहीॊ कयें कक न्जससे जऩ के कायण ददभाग चकयाने रगे, ससय भें खशु्की चढ़ जामे। कधज कयने वारा, ताभससक, याजससक एवॊ अबक्ष्म बोजन वज्मव है। अण्ड-ेभछरी की फात तो दयू यही, रहसुन, प्माज, चकुन्दय आदद चीजें बी अनुष्ठान के ददनों भें नहीॊ खामी जाती है। प्माज, रहसुन तथा तरी हुई एवॊ देय से ऩचने वारी चीजें साधना भें हातनकायक हैं। इनसे र्चत्त की शाॊतत औय प्रसन्नता बॊग होती है।

फासी बोजन बी नहीॊ कयना चादहए। बोजन फना है सुफह आठ फजे औय आऩ खा यहे हैं दोऩहय एक फजे तो मह बोजन ताभसी हो गमा। बोजन फनने के फाद तीन घण्टे के बीतय-ही-बीतय खा रेना चादहए। जो रोग दो-चाय ददन का बोजन फनाकय किज भें यखते हैं औय फासी कयके खाते हैं उनके जीवन भें देखो तो खफू फेचनैी औय अशाॊतत यहती है। प्रचयु भात्रा भें बोग्म ऩदाथव हैं रेककन शाॊतत नहीॊ है। द्धवदेशों भें मही हारत है। शाॊतत ऩाने की मुक्ति ('टेकतनक') को वे रोग जानते नहीॊ। मॊत्र की 'टेकतनक' को वे खूफ जानते हैं रेककन भॊत्र औय शाॊतत की 'टेकतनक'

को वे फेचाये नहीॊ जानते। बोजन एवॊ अन्न भें कई प्रकाय के दोष होते हैं। अन्न का सफसे फड़ा दोष है उसका

न्मामोऩान्जवत न होना। जो रोग चोयी, डकैती, फेईभानी, अन्माम आदद कयके आजीद्धवका चराते हैं, योटी कभाते हैं उनके भूर भें ही अशुि बावना है, इससरए वह बोजन सववथा ददू्धषत यहता है। जैसा अन्न वैसा भन। ऐसे ददू्धषत बोजन से शुि र्चत्त का तनभावण होना असॊबव है।

अऩनी कभाई के बोजन भें मदद दसूयों को र्चत्त कष्ट ऩाता हो तो ऐसे बोजन से र्चत्त का प्रसाद नहीॊ सभरेगा। ऩेट बय बोजन न सभरने ऩय न्जस गौ का फछड़ा तड़ऩता हो, गौ की आॉखों से आॉसू र्गय यहे हो, उस गाम का दधू चाहे न्मामोऩान्जवत हो तो बी र्चत्त को शुि एवॊ प्रसन्न कयने के सरए उऩमोगी नहीॊ होगा। न्जस बोजन को ग्रहण कयने से ककसी का हक भाया जाता हो, ककसी को कष्ट होता हो तो उस बोजन से खखन्नता उऩजती है।

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ककसी आदभी ने ददू्धषत कभव से, अन्माम से, धोखा-धड़ी से कभामा औय कुछ ऩदाथव हभें खाने को दे गमा। वह ऩदाथव खाकय अगय हभ बजन कयेंगे तो मह तनसभत्त अच्छा नहीॊ है।

बफना ऩरयश्रभ के सभरा हुआ बोजन बी ठीक नहीॊ है। साधतुा, सॊन्मास मा साधना बफना का आदभी मदद बफना ऩरयश्रभ का बोजन खामेगा तो उसका तेज कभ होने रगेगा। साधक है तो साधना का ऩरयश्रभ कय रे, ब्रह्मचायी है तो अऩने ब्रह्मचमव-व्रत भें अक्तडग यह रे तो उसके सरए बफना ऩरयश्रभ के बोजन, बफना नौकयी-धॊधे के बोजन भें कोई हजव नहीॊ है। रेककन जो न सॊन्मासी है, न ब्रह्मचायी है, न साधना कयता है औय दसूये का उऩान्जवत बोजन खा रेता है वह तेजोहीन हो जाता है। उसभें तभोगुण की वदृ्धि हो जाती है। वह प्रभादी औय आरसी फन जाता है। उसके र्चत्त का भर दयू होना कदठन है।

बोजन भें तीन प्रकाय के दोष होते हैं- जाततदोष, तनसभत्तदोष औय आश्रमदोष। साधक को इन तीनों प्रकाय के दोषोंवारे बोजन से फचना चादहए।

बोजन स्वबाव से ही ददू्धषत हो मह बोजन का जाततदोष है। जैसे, भाॊस, भछरी, अण्डा, रहसुन, प्माज आदद। दसूया है तनसभत्तदोष। हभने ऩरयश्रभ ककमा है, नौकयी धॊधा ककमा है, अनाज रामे हैं, घय भें फना यहे हैं, चीजें बी सान्त्त्वक हैं, ताभसी नहीॊ है रेककन फनानेवारी देवी का हाथ शुि नहीॊ है अथवा फेटी का हाथ शुि नहीॊ है, वह भाससक धभव भें आ गमी है औय उसकी नजय बोजन ऩय ऩड़ी है तो वह बोजन हभें शाॊतत ऩाने भें भदद नहीॊ कयेगा, अशाॊत होने भें भदद कयेगा। बोजन को कौआ, कुत्ता, बफल्री छू जाम तो बी बोजन अऩद्धवत्र हो जाता है। मह बोजन का तनसभत्तदोष है।

बोजन का कौआ, कुत्ता, बफल्री ने छूआ नहीॊ, भाससकधभववारी ने फनामा नहीॊ, बोजन हभाये ऩरयश्रभ का है, स्वउऩान्जवत है, सान्त्त्वक है, ताभससक नहीॊ है रेककन हभने बोजन फनामा है स्भशान भें जाकय तो मह बोजन अऩद्धवत्र है। बोजन का आश्रम अशुि है। गन्दे एवॊ अऩद्धवत्र स्थान के कायण बोजन अशुि हो जाता है। शुि दधू बी शयाफखाने भें यख ददमा जाम तो वह अशुि हो जाता है। मह बोजन का आश्रमदोष है। इससरए ऩहरे के जभाने भें औय कहीॊ रीऩा-ऩोती आदद कये न कये रेककन यसोईघय भें तो ऩहरे ही ककमा जाता था। जगह ऩद्धवत्र कयके ही बोजन फनामा जाता था। इन फातों ऩय आऩ थोड़ा गौय से अभर कयें तो कुछ ही ददनों भें भॊत्र के चभत्काय को आऩ देख सकें गे।

बोजन के यस से ही शयीय, प्राण औय भन का तनभावण होता है। जो अशुि बोजन कयते हैं उनके शयीय भें योग, प्राणों भें ऺोब औय र्चत्त भें ग्रातन की वदृ्धि होती है। खखन्न र्चत्त भें भॊत्रदेवता के प्रसाद का प्रादबुावव नहीॊ होता।

अनुक्रभ

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भौन

जफ अनुष्ठान चरता हो तो उन ददनों भें बफल्कुर सभतबाषी होना जरूयी है। तीन शधद फोरने से काभ चर जाता हो तो चाय शधद नहीॊ फोरें औय हो सके तो बफल्कुर ही भौनव्रत रे रें।

भुतनवय भौनी के दो प्रकाय फताते हैं- काष्ठभौनी औय जीवन्भुि। ऩयभात्भा की बावना से यदहत शुष्क कक्रमा भें फितनद्ळम औय हठ से सफ इन्न्द्रमों को वश भें कयके यहने वारे भुतन को काष्ठभौनी कहा जाता है। इस द्धवनाशशीर सॊसाय के स्वरूऩ को मथाथव रूऩ भें जानकय जो इस द्धवशुिात्भा व ऩयभात्भा भें न्स्थत ऻानी भहात्भा रौककक व्मवहाय कयते हुए बी अन्दय द्धवऻानानन्दघन ऩयभात्भा भें तदृ्ऱ यहते हैं उनको जीवन्भुि कहा जाता है।

भौन के यहस्म को जाननेवारे भुतन भौन के चाय प्रकाय फताते हैं- (1) वार्चक भौन (2) इन्न्द्रम भौन (3) काष्ठ भौन (4) सुषुद्ऱ भौन। वार्चक भौन का अथव होता है वाणी का तनयोध। इन्न्द्रम भौन का अथव है हठऩूववक द्धवषमों

से इन्न्द्रमों का तनग्रह कयना। काष्ठ भौन का अथव है सम्ऩूणव चषे्टाओॊ का त्माग। ऩयभात्भा के स्वरूऩानुबव भें जो जीवन्भुि तनयन्तय तनभग्न यहते हैं उनके भौन को सुषुद्ऱ भौन कहा जाता है।

काष्ठ भौन भें वार्चक औय इन्न्द्रम भौन अॊतबूवत है । सुषुद्ऱ भौनावस्था भें जो तुयीमावस्था है वही जीवन्भुिों की न्स्थतत है। प्रथभ तीन प्रकाय के भौन प्रस्पुरयत हो यहे र्चत्त की अवस्था के हैं, बिों एवॊ साधकों की साधनावस्था के हैं जफकक चौथा जो सुषुद्ऱ भौन है वह जीवन्भुिों कक ससि अवस्था का है। इस भौन भें ऩहुॉच ेहुए ससि ऩुरुष का ऩुनजवन्भ नहीॊ होता।

सुषुद्ऱ भौन भें सम्ऩूणव इन्न्द्रमवदृ्धत्तमाॉ अनुकूरता भें हद्धषवत नहीॊ होती औय प्रततकूरता भें घणृा नहीॊ कयतीॊ। द्धवबागयदहत, अभ्मासयदहत औय आदद-अॊत से यदहत तथा ध्मान कयते हुए मा नहीॊ कयते हुए, सफ अवस्थाओॊ भें सभबाव की न्स्थतत हो, मही सुषुद्ऱ भौन है। अनेक प्रकाय के द्धवभ्रभमुि सॊसाय के औय ऩयभात्भा के तत्त्व को मथाथव रूऩ से जानने ऩय जो सॊदेहयदहत न्स्थतत फनती है वही सुषुद्ऱ भौन है। 'जो सववशून्म, अवरॊफनयदहत, शाॊततस्वरूऩ, सवावत्भक तथा सत्ता साभान्मरूऩ ऩयभात्भा है वह भैं ही हूॉ....' इस प्रकाय की ऻानावस्था को सुषुद्ऱ भौन कहा जाता है।

जाग्रतावस्था भें सववथा मथामोग्म व्मवहाय कयते हुए अथवा तभाभ व्मवहाय छोड़कय सभार्ध भें न्स्थत जीवन्भुि देहमुि होते हुए बी सम्ऩूणव तनभवर शाॊतवदृ्धत्त से मुि तुयीमावस्था भें न्स्थत द्धवदेहस्वरूऩ ही हैं।

मह ऻानवानों का तनत्म भौन है। इसको ‘वेदान्ती भौन’ कह सकते हैं। आत्भस्वरूऩ भें, ब्रह्मस्वरूऩ भें जागे हुए फोधवान ्ऻानी ऩुरुष खाते-ऩीते, उठते-फैठते, चरते-कपयते सफ कुछ कयते हुए बी बरी प्रकाय से सभझते हैं कक् 'फोरा जाता है वाणी से, सरमा-ददमा जाता है हाथ से,

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चरा जाता है ऩैय से, सॊकल्ऩ होते हैं भन से, तनणवम होते हैं फुद्धि से। भैं इन सफको देखनेवारा, अचर, कूटस्थ, साऺी हूॉ। भैंने कबी कुछ ककमा ही नहीॊ।'

ऻानी फोरते हुए बी नहीॊ फोरत,े रेते हुए बी नहीॊ रेत,े देते हुए बी नहीॊ देते। बगवान श्रीकृष्ण का आजीवन भौन था, दवुावसा का भौन था, कफीय का भौन था, याभतीथव औय यभण भहद्धषव का भौन था। इन भहाऩुरुषों ने ठीक से जान सरमा था कक हभ शयीय, प्राण, वाणी, इन्न्द्रमाॉ, भन, फुद्धि, र्चत्त, अहॊकाय आदद से ऩथृक आत्भा हैं। ऐसे ऻानवान ऩुरुष सफ कुछ कयते हुए बी अऩने आऩ भें सभादहत होते हैं। मही ऩयभ भौन है।

हभ जफ तक ऩयभ भौन की प्रातद्ऱ न कय रें तफ तक वार्चक भौन यखें, ऐन्न्द्रम भौन यखें, काष्ठ भौन यखें। इससे फड़ा राब होता है। वाणी-व्माऩाय द्राया हभायी शक्ति का जो अऩव्मम होता है वह अनुष्ठान के सभम भौन यखने से रुक जामेगा औय अनुष्ठान सुपरदामी फनेगा।

अनुक्रभ

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

ब्रह्मचमव का ऩारन

स्त्री-सॊसगव, उनकी चचाव तथा जहाॉ वे यहती हों वह स्थान छोड़ देना चादहए। ऋतुकार के अततरयि अऩनी स्त्री का बी स्ऩशव कयना तनद्धषि है। स्त्री सार्धकाओॊ के सरए ऩुरुषों के सम्फन्ध भें बी मही फातें सभझनी चादहए। अनुष्ठान के ददनों भें दृढ़ता से ब्रह्मचमव का ऩारन कयना अतत आवश्मक है। शयीयरूऩी वृऺ को हया-बया यखनेवारा यस वीमव है। जीवन भें जो कुछ ओज-तेज, दहम्भत, साहस, ऩयाक्रभ आदद शे्रष्ठ गुण ददखाई देते हैं वे सफ इस वीमवधायण का ही ऩरयणाभ है। ठीक ही कहा है कक्

भयणॊ बफन्दऩुातेन जीवनॊ बफन्दधुायणात।् वीमवधायण होना जीवन है औय वीमवऩात होना भतृ्मु है। अनुष्ठान कयके न्जस जीवनशक्ति

को जगाकय उसको बरी प्रकाय द्धवकससत कयके अऩने आदशव को ससि कयना है उसी शक्ति को ब्रह्मचमव के बॊग भें नष्ट कय देना तो फेवकूपी है। ब्रह्मचमव के दृढ़ ऩारन के बफना अनुष्ठान का ऩूया राब नहीॊ उठा ऩामेंगे।

ब्रह्मचमव-व्रत शयीय को साधना के सुमोग्म फनाता है। तन साथ नहीॊ देगा तो भन बी ठीक से जऩ भें नहीॊ रगेगा। काभयदहत होने से र्चत्त साधना भें ठीक से गतत कय सकता है। काभ सताता हो तो बगवान नसृसॊह का र्चन्तन कयने से काभ से यऺा होती है। नसृसॊह बगवान ने काभना के ऩुतरे दहयण्मकसशऩु को चीय डारा था। बगवान के उग्र रूऩ का स्भयण-र्चन्तन कयने से काभावेग शाॊत हो जाता है।

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अनुष्ठान से ऩहरे "मौवन सुयऺा" ऩुस्तक का गहन अध्ममन कय रेना फड़ा दहतकायी होगा। ब्रह्मचमवयऺा के सरए एक भॊत्र बी है्

ॐ नभो बगवते भहाफरे ऩयाक्रभाम भनोसबराद्धषतॊ भन् स्तॊब कुरु कुरु स्वाहा। योज दधू भें तनहाय कय 21 फाय इस भॊत्र का जऩ कयें औय दधू ऩी रें। इससे ब्रह्मचमव की

यऺा होती है। स्वबाव भें आत्भसात ्कय रेने जैसा मह तनमभ है। ब्रह्मचमव का अथव केवर वीमवयऺण मा भैथनुत्माग तक ही सीसभत नहीॊ है। हाॉ, मे आवश्मक

ही नहीॊ, अतनवामव है। कपय बी व्माऩक अथव भें ब्रह्मचमव का भतरफ है कक इन्न्द्रमों को द्धवषमों से सॊमसभत कयके भन को प्रबु भें रगाना, र्चत्त को ऩयभात्भर्चन्तन भें, ब्रह्मर्चन्तन भें रगाना, ब्रह्म भें द्धवचयण कयना। इसको द्धवद्रान रोग ब्रह्मचमव भानते हैं।

अनुक्रभ

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनुष्ठान अकेरे कयो

ब्रह्मचायी अकेरा यहता है। अनुष्ठान कयने वारा मदद अद्धववादहत है औय सोच ेकक् 'हाम भैं अकेरा हूॉ... जीवन भें ककसी का साथ नहीॊ सभरा.... ऩतत-ऩत्नी होते तो दोनों सभरकय साथ भें धभव-ऩुण्म, उऩासना-अनुष्ठान कयते, कथा-सत्सॊग भें जाते....'

रड़का सोच ेकक् 'ऩत्नी सभर जाम तो अकेराऩन सभटे।' रड़की सोच ेकक् 'ऩतत सभर जाम तो अकेराऩन सभटे।' नहीॊ.... जो रोग सभझ से यदहत हैं, द्धववेक द्धवचाय से यदहत हैं उन नादानों को जीवन भें अकेराऩन खटकता है। वयना, न्जनके ऩास सभझ है वे सौबाग्मशारी साधक अऩने को एकदभ खारी, एकदभ अकेरा, रूखा भहसूस नहीॊ कयते। वे अऩने साथ ऩयभ चतेना का अन्स्तत्व भहसूस कयते हैं, ईश्वय के सान्न्नध्म की बावना कयके ततृद्ऱ-सुख बोगते हैं।

आखखयी दृद्धष्ट से, तत्त्वऻान की दृद्धष्ट से देखा जाम तो एक ही चतैन्म देव, आत्भदेव, अऩना आऩा द्धवसबन्न नाभ एवॊ रूऩों भें यभण कय यहा है, दसूया कुछ है ही नहीॊ।

अनुष्ठान कयने वारा मदद द्धववादहत है, गहृस्थी है तो बी अनुष्ठान अकेरे ही एकान्त भें कयना चादहए। ऐसा नहीॊ कक ऩतत औय ऩत्नी दोनों साथ भें फैठकय बजन कयें। नहीॊ....

तऩ् एकत्वभ।् तऩ अकेरे कयना चादहए। ऩतत-ऩत्नी दोनों अनुष्ठान बरे एक साथ चारू कयें रेककन अरग-अरग यहकय। अनुष्ठान

साथ भें फैठकय कयेंगे तो ऩतत को ऩत्नी का र्चन्तन होगा औय ऩत्नी का र्चन्तन होगा। इष्टभॊत्र का र्चॊतन, इष्टदेव का र्चन्तन, ईश्वय का र्चन्तन छूट जामेगा। र्चत्त को ब्रह्मचमव व्रत भें न्स्थत अथावत ्ब्रह्म भें द्धवचयण कयने वारा फनाना है। इससरए तुभ अकेरे यहकय अनुष्ठान कयोगे, उऩासना कयोगे, भौन यहोगे, कौन क्मा कय यहा है... इसका र्चन्तन छोड़कय ऩद्धवत्र स्थान भें ऩद्धवत्र यहकय

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जऩ-तऩ कयोगे तो तुम्हाये बीतय छुऩी हुई ईश्वयीम शक्तिमाॉ, छुऩा हुआ आध्मान्त्भक फर, छुऩा हुआ इष्ट का प्रबाव प्रकट होने रगेगा। न्जसका इष्ट भजफूत होता है उसका अतनष्ट नहीॊ होता।

अकेरेऩन से ऊफो नहीॊ। ऩयभात्भा सदा हभाये साथ सभरे हुए हैं.... इस वास्तद्धवकता की झाॉकी जफ तक न सभरे तफ तक रृदम भें इस ददव्म बावना का सेवन दृढ़ होकय कयते यहो।

अनुक्रभ

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वासना का दीमा फुझाओ

जो रोग तनगुये हैं, न्जन रोगों के र्चत्त भें वासना है उन रोगों को अकेराऩन खटकता है। न्जनके र्चत्त भें याग, दे्रष औय भोह की जगह ऩय सत्म की प्मास है उनके र्चत्त भें आसक्ति का तेर सूख जाता है। आसक्ति का तेर सूख जाता है तो वासना का दीमा फुझ जाता है। वासना का दीमा फुझते ही आत्भऻान का दीमा जगभगा उठता है।

सॊसाय भें फाह्य दीमा फुझने से अॉधेया होता है औय बीतय वासना का दीमा फुझने से उजारा होता है। इससरए वासना के दीमे भें इच्छाओॊ का तेर भत डारो। आऩ इच्छाओॊ को हटाते जाओ ताकक वासना का दीमा फुझ जाम औय ऻान का दीमा ददख जाम।

वासना का दीमा फुझने के फाद ही ऻान का दीमा जरेगा ऐसी फात नहीॊ है। ऻान का दीमा बीतय जगभगा यहा है रेककन हभ वासना के दीमे को देखते हैं इससरए ऻान के दीमे को देख नहीॊ ऩाते।

कुछ सैरानी सैय कयने सयोवय गमे। शयदऩूखणवभा की यात थी। वे रोग नाव भें फैठे। नाव आगे फढ़ी। आऩस भें फात कय यहे हैं कक् "माय ! सुना था कक् 'चाॉदनी यात भें जरद्धवहाय कयने का फड़ा भज़ा आता है.... ऩानी चाॉदी जैसा ददखता है...' महाॉ चायों औय ऩानी ही ऩानी है। गगन भें ऩूखणवभा का चाॉद चभक यहा है कपय बी भज़ा नहीॊ आता है।"

केवट उनकी फात सुन यहा था। वह फोरा् "फाफू जी ! चाॉदनी यात का भजा रेना हो तो मह जो दटभदटभा यहा है न रारटेन, उसको

पूॉ क भायकय फुझा दो। नाव भें पानूस यखकय आऩ चाॉदनी यात का भजा रेना चाहते हो? इस पानूस को फुझा दो।"

पानूस को फुझाते ही नावसदहत साया सयोवय चाॉदनी भें जगभगाने रगा। .....तो क्मा पानूस के ऩहरे चाॉदनी नहीॊ थी? आॉखों ऩय पानूस के प्रकाश का प्रबाव था इससरए चाॉदनी के प्रबाव को नहीॊ देख ऩा यहे थे।

इसी प्रकाय वासना का पानूस जरता है तो ऻान की चाॉदनी को हभ नहीॊ देख सकते हैं। अत् वासना को ऩोसो भत। ब्रह्मचारयव्रते न्स्थत्। जैसे ब्रह्मचायी अकेरा यहता है वैसे अऩने आऩ

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भें अकेरे.... ककसी की आशा भत यखो। आशा यखनी ही है तो याभ की आशा यखो। याभ की आशा कयोगे तो तुभ आशायाभ फन जाओगे। आशा का दास नहीॊ.... आशा का याभ !

आशा तो एक याभ की औय आश तनयाश। अनुक्रभ

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शमन

अनुष्ठान के ददनों भें बूसभशमन कयो अथवा ऩरॊग से कोभर-कोभर गदे्द के हटाकय उस ऩय चटाई, टाट मा कम्फर बफछाकय जऩ-ध्मान कयते-कयते शमन कयो। साधक को मदद अऩना जीवन तेजस्वी फनाना हो, प्रबावशारी फनाना हो, शयीय को नीयोगी यखना हो तो अतत कोभर औय भोटे गद्दों ऩय वह शमन न कये।

अनुक्रभ

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तनद्रा-तन्द्रा-भनोयाज से फचो

अनुष्ठान भें भॊत्रजऩ कयते सभम नीॊद आती हो, तन्द्रा आती हो, आरस्म आता हो अथवा भनोयाज भें खो जाते हो तो अनुष्ठान का ऩूया राब नहीॊ ऩा सकोगे।

तनद्रा दो प्रकाय की होती है् स्थरू एवॊ सूक्ष्भ। शयीय भें थकान हो, याबत्र का जागयण हो, बोजन भें गरयष्ठ ऩदाथव सरमे हों, ठूॉस-ठूॉसकय बयऩेट खामा हो तो जो नीॊद आती है वह स्थरू तनद्रा है।

गहयी नीॊद बी नहीॊ आमी औय ऩूणव जाग्रत बी नहीॊ यहे, जया सी झऩकी रग गई, असावधानी हो गई, भारा तो चरती यही मॊत्रवत ्रेककन ककतनी भारा घूभी कुछ ख्मार नहीॊ यहा। मह सूक्ष्भ तनद्रा है। इसे तन्द्रा फोरते हैं।

असभम सूक्ष्भ तनद्रा आने रगे तो उसके कायणों को जानकय उनका तनवायण कयना चादहए। ऩादऩन्द्ळभत्तोनासन, भमूयासन, ऩद्मासन, चक्रासन आदद आसन शयीय के योग दयू कयते हैं, आयोग्मता प्रदान कयते हैं औय तनद्रा का बी तनवायण कयते हैं। इन सफ आसनों भें ऩादऩन्द्ळभोत्तानासन अत्मर्धक राबदामक है।

सूक्ष्भ तनद्रा भाने तन्द्रा को जीतने के सरए प्राणामाभ कयने चादहए। प्राणामाभ से शयीय की नाड़ीशुद्धि होती है, यि का भर फाहय तनकरता है, पेपड़ों का ऩूया दहस्सा सकक्रम फनता है,

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शयीय भें प्राणवामु अर्धक प्रभाण भें एवॊ ठीक-ठीक प्रकाय से पैरता है, ऻानतॊतु ऩुष्ट होते हैं, ददभाग खरुता है। शयीय भें ताजगी-स्पूततव का सॊचाय होता है। इससे तन्द्रा नहीॊ घेयती।

भनोयाज का अथव है् आऩ कय तो कुछ यहे हैं औय भन कुछ औय ही सोच यहा है, जार फुन यहा है। कोई काभ कयते हैं, भन कहीॊ औय जगह घूभने चरा जाता है। हाथ भें भारा घूभ यही है, न्जह्वा भॊत्र यट यही है औय भन कुछ अन्म फातें सोच यहा है, कुछ आमोजन कय यहा है। मह है भनोयाज।

एक ऩुयानी कहानी है् एक सेठ के घय उनके फेटे की शादी का प्रसॊग था। एक भजदयू के ससय ऩय घी का घड़ा उठवाकय सेठ घय जा यहे थे। आज भजदयू को योज की अऩेऺा ज्मादा ऩैसे सभराने वारे थे। सेठ के वहाॉ खशुहारी का प्रसॊग था न ! ....तो भजदयू सोचने रगा्

"भैं इन ऩैसों से भुर्गवमाॉ रूॉगा.... भुर्गवमाॉ अण्ड ेदेंगी..... अण्डों से फच्च ेफनेंगे..... फच्च ेभुर्गवमाॉ फन जामेंगे.... भुर्गवमों से अण्ड.े.. अण्डों से भुर्गवमाॉ... भेये ऩास फहुत सायी भुर्गवमाॉ हो जामेंगी...."

ससय ऩय घड़ा है। कदभ ऩड़ यहे हैं औय भन भें भनोयाज चर यहा है् "कपय भुर्गवमाॉ फेचकय गाम खयीदूॉगा... दधू फेचूॉगा औय खफू ऩैसे इकटे्ठ हो जामेंगे तफ मह

सफ धॊधा छोड़कय ककयाने की दकुान खोरूॉगा... एक फदढ़मा द्धवस्ताय भें व्माऩाय करूॉ गा.... शादी होगी.... फार-फच्च ेहोंगे... आगे दकुान ऩीछे भकान.... दकुान ऩय खफू ग्राहक होंगे... भैं सौदे भें व्मस्त होऊॉ गा.... घय से रड़का फुराने आमेगा् "द्धऩताजी ! द्धऩताजी ! चरो, भाॉ बोजन कयने के सरए फुरा यही है...' भैं गुस्से भें कहूॉगा की चर हट्...!

'चर हट्...' कहते ही भजदयू ने भाया हाथ का झटका तो ससय का घड़ा नीचे.... घड़ा पूट गमा। घी ढुर गमा। भजदयू के बद्धवष्म का सुहावना स्वप्न हवा हो गमा।

सेठ आगफफूरा होकय ततरसभरा उठे् "ये दषु्ट ! मह क्मा कय ददमा? चर हट्...' भेये सैंकड़ों रूऩमे का घी बफगाड़ ददमा?"

भजदयू फोरा् "सेठजी ! आऩका तो केवर घी बफगड़ा रेककन भेया तो घय-फाय, ऩुत्र-ऩरयवाय, व्माऩाय-धॊधा सफ चौऩट हो गमा।"

मह है भनोयाज। आदभी काभ कुछ कयता है औय भन कुछ औय कल्ऩनाओॊ भें घूभता है। साभान्मतमा हभ ककसी कामव भें व्मस्त होते हैं तो भनोयाज कभ होता है रेककन जऩ, ध्मान कयने फैठते हैं तो भनोयाज हो ही जाता है। उस सभम कोई फाह्य कक्रमा नहीॊ होती है, इससे भन अऩनी जार फुनना शरुु कय देता है।

इस भनोयाज को हटाने के सरए उच्च स्वय से ॐ का उच्चायण कय रो। सावधानी से भन को देख रो औय उससे ऩूछो् 'अये भनीयाभ ! क्मा कय यहा है?' ....तो भन कल्ऩना का जार फुनना छोड़ देगा। उसे कपय जऩ भें, भॊत्र के अथव भें रगा दो।

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सॊऺेऩ भें- स्थरू तनद्रा को जीतने के सरए आसन, सूक्ष्भ तनद्रा-तन्द्रा को जीतने के सरए प्राणामाभ औय भनोयाज को जीतने के सरए ॐ का दीघव स्वय से जऩ कयना चादहए। जो रोग सूमावस्त एवॊ सूमोदम के सभम सोते हैं वे अऩने जीवन का ह्रास कयते हैं। फुद्धि ऩय इसका अच्छा प्रबाव नहीॊ ऩड़ता। फुद्धि का सम्फन्ध सूमव के साथ है औय भन का सम्फन्ध चन्द्र के साथ हैं। अत् उनके अनुकूर आचाय फनाने से राब होता है। जो रोग अनुष्ठान सपर कयना चाहते हैं, भहकना चाहते हैं उनके सरए मे फातें फड़ी भहत्त्वऩूणव हैं। सन्न्धकार उनके सरए फड़ा ही भहत्त्वऩूणव है। सूमोदम के 10-15 सभनट ऩूवव व ऩद्ळात.्... इन सन्न्धकारों के सभम जऩ कयके कुछ सभनटों के सरए तन औय भन के ऩरयश्रभ से यदहत हो जाना चादहए। जऩ छोड़कय श्रभयदहत न्स्थतत भें आने से अभाऩ राब होता है।

अनुक्रभ

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

स्वच्छता औय ऩद्धवत्रता

तन औय भन ऩयस्ऩय जुड़ ेहुए हैं। तन का प्रबाव भन ऩय ऩड़ता है औय भन का प्रबाव तन ऩय ऩड़ता है। तन गन्दा होगा तो भन बी प्रपुन्ल्रत नहीॊ यह सकता। तन ऩय ताभसी वस्त्र होंगे तो भन ऩय बी तभस ्छा जामेगा। अत् जो रोग भैरे कऩड़ ेऩहनते हैं, याबत्र भें ऩहने हुए कऩड़ ेसुफह भें नहाने के फाद कपय से ऩहन रेते हैं उन रोगों को सावधान हो जाना चादहए। वस्त्र धरेु हुए ऩहनने चादहए।

एक आदभी को भैंने देखा कक फेचाया दमा का ऩात्र है ! दय-दय की ठोकयें खा यहा है। इधय गमा.... उधय गमा रेककन कहीॊ ठहयने को नहीॊ सभरा। भैंने उसके व्मक्तित्व को जाॉचा, उसकी दमाजनक न्स्थतत का कायण खोजा तो ऩता चरा कक उसके कऩड़ ेभैरे कुचरेै होने के कायण ऐसा हो यहा था।

भुॉह जूठा, दाॉत भैरे औय कऩड़ ेगन्दे, मे तुम्हाये ओज को कभ कय देते हैं। जो वस्त्र ऩहन कय शौच जाते हो, कपय वे वस्त्र स्नान के फाद कदाद्धऩ नहीॊ ऩहनने चादहए।

वे वस्त्र उसी सभम स्नान के साथ धरु जाने चादहए, चाहे बफना साफुन के ही ऩानी भें डुफो दो। वस्त्र चाहे सादे हों रेककन धोमे हुए हों, भैरे-भैरे, गन्दे-गन्दे, ऩसीनेवारे मा फासी नहीॊ हों।

रघुशॊका कयते वि साथ भें ऩानी होना जरूयी है। रघुशॊका के फाद इन्न्द्रम ऩय ठण्डा ऩानी डारकय धो रो, हाथ-ऩैय बी धो रो औय कुल्रा कय रो। कुछ खाओ-द्धऩओ तो बी कुल्रा कयके भुखशुद्धि कय रो।

दाॉत बी स्वच्छ औय शे्वत यहने चादहए। गन्दे, ऩीरे दाॉत हभाये व्मक्तित्व को, हभाये तेज को धुॉधरा फनाते हैं। सुफह भें औय बोजन के फाद बी दाॉत अच्छा तयह साप कयने चादहए।

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भहीने भें एकाध फाय याबत्र को सोते सभम नभक औय सयसों का तेर सभराकय दाॉतों को भरना चादहए। कपय दाॉत फुढ़ाऩे भें बी सड़ेंगे नहीॊ।

जऩ कयने के सरए आसन ऩय फैठकय सफसे ऩहरे शुद्धि की बावना के साथ हाथ धोकय ऩानी के तीन आचभन रे रो। जऩ के अन्त भें बी तीन आचभन रे रो। जऩ कयते वि छीॊक आ जामे, जम्हाई आ जाम, खाॉसी आ जाम, अऩानवामु छूटे तो मह अशुद्धि है। वह भारा तनमत सॊख्मा भें नहीॊ र्गननी चादहए। आचभन कयके शुि होने के फाद वह भारा कपय से कयनी चादहए। आचभन के फदरे ॐ सॊऩुट के साथ गुरुभॊत्र सात फाय दहुया ददमा जाम तो बी शुद्धि हो जामेगी। जैस,े भॊत्र हैं 'नभ् सशवाम' तो सात फाय ॐ नभ् सशवाम ॐ' दहुया देने से ऩड़ा हुआ द्धवघ्न तनवतृ हो जामेगा।

जफ तुभ जऩ कय यहे हो औय भर-भूत्र द्धवसजवन की हारत हो जाम तो उसे योकना नहीॊ चादहए। 'जऩ ऩूया कयके कपय उठूॉगा....' ऐसा सोचकय जऩ चारू यखोगे तो मह ठीक नहीॊ है। कुदयती हाजत को योकना नहीॊ चादहए। अन्मथा शयीय भें उसकी ऩीड़ा होगी तो भन भर-भूत्र का र्चन्तन कयेगा, ईश्वय का र्चन्तन छूट जामेगा। भारा मॊत्रवत ्घूभती यहेगी, सभम फीत जामेगा औय उस सभम का जऩ परदामी नहीॊ यहेगा। अत् ऐसे प्रसॊग ऩय भारा कयना छोड़कय कुदयती हाजत को तनऩटा रो। शौच गमे हो तो स्नानादद से शुि होकय स्वच्छ वस्त्र ऩहनकय औय मदद रघुशॊका कयने गमे हो तो केवर हाथ, ऩैय धोकय कुल्रा कयके शुि ऩद्धवत्र हो जाओ। कपय से भारा का प्रायम्ब कयके फाकी यही हुई जऩ सॊख्मा ऩूणव कयो।

रघुशॊका कयके तुयन्त ऩानी न द्धऩमो औय ऩानी ऩीकय तुयन्त रघुशॊका न कयो। अनुक्रभ

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

र्चत्त के द्धवऺेऩ का तनवायण कयो

अनुष्ठान के ददनों भें शयीय-वस्त्रादद शुि यखने ही चादहए, साथ भें र्चत्त बी प्रसन्न, शाॊत औय तनभवर यखना आवश्मक है। न्जन कायणों से र्चत्त भें ऺोब ऩैदा हो उन कायणों का तनवायण कयते यहना चादहए। यास्ते भें कहीॊ भर ऩड़ा है, द्धवष्टा ऩड़ी है, ककसी का थकू-फरगभ ऩड़ा है, कोई गन्दी चीज ऩड़ी है तो उसे देखकय हभाये र्चत्त भें ऺोब ऩैदा होता है। मह ऺोब मदद फढ़ जाम तो स्वबाव खखन्न हो जाम। र्चत्त भें ऺोब के सॊस्काय घुस जाम तो स्वबाव द्धवकृत हो जामॉ। कपय प्रसन्नता के फदरे व्मवहाय भें र्चड़र्चड़ाऩन व्मि होने रगे।

भदारसा ने अऩने ऩुत्र अरयक आदद को उऩदेश देते हुए कहा था कक व्मक्ति को अऩना भर बी नहीॊ देखना चादहए। भर देखकय र्चत्त भें अहोबाव थोड़ ेही हो जागेगा ? ऺोब ही जागेगा। कई फच्च ेनादानी भें अऩने भर से ही खेरते हैं। भाॉ फाऩ को रगता है कक् 'फच्च ेहैं....

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खेरते हैं। कोई फात नहीॊ।' उन फेचायों को ऩता नहीॊ कक, मह फात तो छोटी सी ददखती है रेककन वे फच्च ेआगे चरकय इन सॊस्कायों के कायण जीवन भें ककतने खखन्न हो सकते हैं, ककतने अशाॊत हो सकते हैं !

जैसे गन्दी चीज को देखकय र्चत्त ऺुसबत होता है वैसे ही अशाॊत व्मक्ति, शूद्र, भहा चाण्डार, दषु्कृत्म कयने वारे दषु्ट को देखकय बी र्चत्त ऺुसबत होता है। गन्दगी खानेवारे जीवों जैसे चीर, कौआ, गीध आदद को देखकय बी र्चत्त ऩय ऐसा ही प्रबाव ऩड़ता है। ऐसे प्रसॊगो ऩय र्चत्त का ऺोब सभटाने के सरए सूमव, चन्द्र मा अन्ग्न का दशवन कय रो, सॊत भहात्भा, सदगुरु का दशवन कय रो, बावना से ब्रह्म-ऩयभात्भा का र्चन्तन कय रो। इससे र्चत्त की खखन्न दशा चरी जाएगी। र्चत्त प्रशाॊत होने के काबफर फन जामेगा।

ऻानी के सरए तो कौवा-कुत्ता, शूद्र-चाण्डार, हेम-त्माज्म सफ ब्रह्मस्वरूऩ है। जो स्वरूऩ भें जाग गमे हैं उन फोधवान भहाऩुरुषों के सरए सफ खेरभात्र है। रेककन उनके ऩदर्चह्नों का अनुकयण, अनुसयण हो सके, उनकी अनुबूततमाॉ अऩनी अनुबूततमाॉ फन सकें , जीवन की गहयाई को औय ऻान की ऊॉ चाई को छू सके ऐसे अन्त्कयण का तनभावण कयने हेतु साधक के सरए मे चीजें द्धवचायणीम एवॊ आचयणीम हैं।

अनुक्रभ

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शक्ति का सॊयऺण कयो

नाव नदी ऩाय कयने के सरए है, ससय ऩय उठाने के सरए नहीॊ है। नाव भें फैठकय नदी ऩाय कयनी है, नाव ससय ऩय यखकय नदी भें उतयना नहीॊ है।

भॊत्र एक नाव है। भॊत्र का उऩमोग ककमा जाम। ऐसा न हो कक भॊत्र इस ढॊग से जऩें कक यात को नीॊद ही न आमे। जो रोग ठीक से खाते-ऩीते नहीॊ, पर-दधू आदद का उऩमोग नहीॊ कयते, ब्रह्मचमव का ऩारन नहीॊ कयते औय र्चल्रा-र्चल्रा कय भॊत्र जऩते हैं तो उनके ऻानतॊतु ऺुसबत हो जाते हैं, आॉखें अर्धक चौड़ी हो जाती हैं। ऐसा हो जामे तो सभझ रेना कक कुछ-न-कुछ ‘Reaction’ (प्रततकक्रमा) हो गमा है भॊत्र का। दारू ऩीने से बी आॉखें अर्धक चौड़ी हो जाती हैं। आॉखों के गोरकों से शक्ति ऺीण हो जाती है। जो रोग आॉखें पाड़-पाड़कय देखते हैं उनकी शक्ति बी ऺीण हो जाती है। आॉखें फॊद कयके जऩ कयते हैं उनको भनोयाज हो जाने की सॊबावना यहती है।

भॊत्रजऩ एवॊ ध्मान के सभम अधोन्न्भसरत नेत्र होने चादहए। अधवभूॉददत नेत्र होने से ऊऩय की शक्ति नीच ेकी शक्ति से औय नीच ेकी शक्ति ऊऩय की शक्ति से सभर जामेगी, द्धवद्युत का वतुवर ऩूणव हो जामेगा। शक्ति फाहय ऺीण नहीॊ होगी।

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हभ जफ फस भें मा टे्रन भें मात्रा कयते हैं तफ खखड़की के ऩास फैठकय फाहय देखते यहते हैं तो थक जाते हैं औय झऩककमाॉ रेने रगते हैं। चरती गाड़ी भें आॉखें पाड़-पाड़ कय खखड़की से फाहय देखने से आॉखों के द्राया शक्ति के तयॊग फाहय तनकर जाते हैं। इससे थकान जल्दी रगती है।

ऐसे ढॊग से नहीॊ फोरो कक अऩनी शक्ति ऺीण हो जामे। ऐसा भनोयाज न होने दो कक आऩका भन शक्तिहीन हो जाम। ऐसे तनणवम भत कयो कक न्जससे कहीॊ पॉ सो औय झूठ फोरना ऩड़।े

अनुष्ठान के ददनों भें जीवन को फहुत भूल्मवान सभझकय न्जमो। साथ-ही-साथ, दसूयों को तुच्छ बी नहीॊ सभझना है। अऩने जीवन को, अऩने जीवन की शक्तिमों को भूल्मवान सभझकय ऩयभ भूल्मवान ्जो ऩयभात्भा है उनके चयणों भें रगाना है।

अनुक्रभ

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भॊत्र भें दृढ़ द्धवश्वास

भॊत्रजऩ भें दृढ़ द्धवश्वास होना चादहए। द्धवश्वासो परदामक्। 'मह भॊत्र फदढ़मा है कक वह भॊत्र फदढ़मा है ? इस भॊत्र से राब होगा कक नहीॊ होगा ?' –

ऐसा सन्देह कयके मदद भॊत्रजऩ ककमा जामेगा तो सौ प्रततशत ऩरयणाभ नहीॊ आमेगा। सॊशम सफको खात है, सॊशम सफका ऩीय।

सॊशम की जो पाकी कये, उसका नाभ पकीय।। अनुक्रभ

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अप्रततहत प्रऻा को जगाओ

छोटी-छोटी फातों भें र्चत्त की उरझन फुद्धि की शक्ति को नष्ट कय देती है। जया-जया फात भें हभ चककत हो जामें तो उससे फुद्धि कभजोय हो जाती है। जगत की छोटी-भोटी घटना से हभ प्रबाद्धवत हो जाते हैं, इॊग्रैण्ड-अभेरयका स,े जभवनी-जाऩान से आकद्धषवत हो जाते हैं कक उन रोगों ने मह आद्धवष्काय ककमा, वह आद्धवष्काय ककमा, मह फनामा, वह फनामा.....

प्रकृतत के द्रन्द्रों से हभ ऺुधध हो जाते हैं। ठण्डी-गभी, बूख-प्मास हभें असह्य जान ऩड़ती है। हभें अऩनी सहनशक्ति फढ़ानी चादहए। श्रीकृष्ण ने कहा है :

भात्रास्ऩशावस्तु कौन्तेम शीतोष्णसुखदु् खदा: ।

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आगभाऩातमनोऽतनत्मास्ताॊन्स्तततऺस्व बायत ।। 'हे कुन्तीऩुत्र ! सदी-गभी औय सुख-दु् ख को देने वारे इन्न्द्रम औय द्धवषमों के सॊमोग तो

उत्ऩद्धत्त-द्धवनमशीर औय अतनत्म हैं, इससरए हे बायत ! इनको तू सहन कय।' कपय आगे कहते हैं-

मॊ दह न व्मथमन्त्मेते ऩुरुषॊ ऩुरुषषवब । सभदु् खसुखॊ धीयॊ सोऽभतृत्वाम कल्ऩत े।।

'क्मोंकक हे ऩुरुषशे्रष्ठ ! दु् ख-सुख को सभान सभझने वारे न्जस धीय ऩुरुष को मे इन्न्द्रम औय द्धवषमों के सॊमोग व्माकुर नहीॊ कयते, वह भोऺ के मोग्म होता है।'

(बगवदगीता् 2.14.15) सुख-दु् खादद से जो प्रबाद्धवत नहीॊ होता, उसकी फुद्धि जल्दी ऋतॊबया प्रऻा हो जाती है।

प्रशान्तात्भा होने से फुद्धि ऋतॊबया प्रऻा होती है। आऩ अऩने र्चत्त को स्वस्थ यखो। ऩरयन्स्थततमों के फहाव भें अऩने को भत फहने दो। ऐसे सावधान यहोगे तो अनुष्ठान के पर का अनुबव हस्ताभरकवत ्कय सकोगे।

अनुक्रभ

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इष्टशयण से अतनष्ट दफुवर होता है

आश्रभ भें आने वारे एक प्रोपेसय ने फतामा था् "हभाये ऩड़ोस भें एक फड़ा दषु्ट आदभी था। फड़ा अतनष्ट कयता था। एक ददन भेयी ऩत्नी के साथ झगड़ा हुआ। उस सभम भैं ऩूजा कय यहा था। हय योज ग्मायह भारा जऩने का भेया तनमभ था। झगड़ा फढ़ गमा था। सौ-दौ सौ आदसभमों का हल्रा-गुल्रा सुनाई ऩड़ यहा था। भेयी ऩत्नी फेचायी उस दषु्ट से कैसे तनऩटे? एक भन कह यहा था कक् "उठूॉ .... उसको ठीक कय दूॉ जाकय।" दसूया भन कह यहा था कक् 'नहीॊ.... इष्टभॊत्र है, ऩहरे वह ऩूया करूॉ ।' भॊत्रजऩ ऩूया कयके गमा तो ऐसा कुछ हुआ, ऐसा जोश आमा.... अजनफी जैसा... कक सायी बीड़ एक तयप हो गई। उस आदभी को एक तयप धक्का दे ददमा औय सदा के सरए झगड़ा तनऩट गमा।

मदद भॊत्र छोड़कय ऐसे ही जाता औय फड़फड़ाने रगता तो हो सकता है, भैं पॉ स जाता, झगड़ा फढ़ जाता। कोई दषु्ऩरयणाभ बी आ सकता था।"

मदद हभ अऩने इष्टभॊत्र का जऩ कय यहे हैं तो हभाया अतनष्ट थोड़ी भेहनत से मा बफना भेहनत के खत्भ हो जामेगा। इष्ट भजफूत होता है तो अतनष्ट नहीॊ होता। इष्टों का बी इष्ट है ऩयभात्भा। मदद ऩयभात्भा के साथ हभाया भजफूत नाता है तो हभ भजफूत हैं।

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द्धवर्धसदहत, बाव एवॊ द्धवचायसदहत, स्वच्छता एवॊ ऩद्धवत्रतासदहत, साधना का सॊयऺण कयते हुए मदद अनुष्ठान ककमा जाम तो इष्टभॊत्र ससि हो जाता है। जीवन भें दो ही घटनाएॊ होती हैं- मा तो हभाया बरा होता है मा फुया, इष्ट होता है अथवा अतनष्ट।

न्जसका इष्ट भजफूत होता है उसका अतनष्ट नहीॊ हो सकता। अतनष्ट उसका हो सकता है न्जसका इष्ट कभजोय होता है। हभाया इष्ट भजफूत होता है तो शत्र ुबी हभाया कुछ बफगाड़ नहीॊ सकता औय अतनष्ट भजफूत होता है तो सभत्र बी हभसे शत्रतुा कयने रगते हैं।

अनुक्रभ

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छत्रऩतत सशवाजी की यऺा

सभथव याभदास के सशष्म छत्रऩतत सशवाजी भुगरों के साथ टक्कय रे यहे थे। शूयवीय सशवाजी से खरेुआभ भुठबेड़ कयने भें असभथव भुगरों ने भैरी द्धवद्या का उऩमोग कयके एकान्त भें सशवाजी को खत्भ कयने के सरए षड्मॊत्र यचा। एक भुगर ककसी तॊत्र-भॊत्र के फर से ससऩादहमों को चकभा देकय द्धवघ्न-फाधाओॊ को हटाकय, सशवाजी जहाॉ आयाभ कय यहे थे उस कभये भें ऩहुॉच गमा। उसने म्मान से तरवाय तनकारकय वाय कयने के सरए ज्मों ही हाथ उठामा कक ककसी अदृश्म शक्ति ने उसका हाथ ऩकड़ सरमा। भुगर को हुआ कक् 'भैं सफकी नजय से फचकय टोना-टोटका द्धवद्या के फर से महाॉ तक ऩहुॉचने भें सपर हो गमा तो अफ आखखयी भौके ऩय कौन भुझ ेयोक यहा है?'

उसे तुयन्त जवाफ सभरा कक् 'यऺकों की नजय से फचाकय तेया इष्ट तुझ ेमहाॉ तक रे आमा तो सशवाजी का इष्ट बी सशवाजी को फचाने के सरए भौजूद है।'

सशवाजी का इष्ट उस भुगर के इष्ट से सान्त्त्वक था इससरए शत्र ुके फदइयादे तनष्पर हो गमे। सशवाजी का फचाव हो गमा।

न्जसका इष्टभॊत्र न्जतना ससि होता है, इष्ट न्जतना प्रसन्न होता है, न्जतना प्रबावशारी होता है उसकी उतनी अर्धक यऺा होती है। इष्टों भें इष्ट, सफका इष्ट, साये इष्टों का फाऩ हभाया आत्भदेव है।

अनुक्रभ

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उऩासना का पर

भॊत्र तीन प्रकाय के होते हैं- साफयी भॊत्र, ताॊबत्रक भॊत्र औय वैददक भॊत्र। वैददक भॊत्र भें ऩेटा प्रकाय होते हैं।

साफयी भॊत्र ससद्धिमाॉ देते हैं, ताॊबत्रक भॊत्र ताॊबत्रक चभत्काय ददखाते हैं औय वैददक भॊत्र हभें आत्भशाॊतत प्रदान कयते हैं।

वैददक भॊत्रों से रयद्धि-ससद्धिमाॉ उऩरधध होती हैं। उसके द्राया बोग औय भोऺ प्राद्ऱ होते हैं, जफकक साफयी एवॊ ताॊबत्रक भॊत्रों के द्राया भोऺ-प्रातद्ऱ असॊबव है। उनसे ऐदहकय सपरता औय बोग प्राद्ऱ होता है ककन्तु शे्रष्ठ साधक उसभें उरझता नहीॊ। वह तो ससद्धिमों के आधायस्वरूऩ अऩने आत्भा भें, अऩने ब्रह्मस्वरूऩ भें जाग जाता है।

इन वैददक भॊत्रों के ऩाॉच इष्टदेव हैं- श्री गणऩतत, श्री सशव, श्री द्धवष्णु, श्री सूमव औय बगवती अम्फा। इन ऩाॉचों भें से ककसी बी देव की आयाधना ईभानदायी से कोई कये, श्रिा-बक्ति से उनकी उऩासना कये तो उन देवों के भॊत्रजाऩ से, दशवन से, उन ऩय की हुई श्रिा-बावना से उसकी बीतय की मोग्मता फढ़ जाती है औय मे देव उसे ककसी-न-ककसी जागे हुए ब्रह्मऻानी सदगुरुदेव के ऩास बेज देते हैं। कबी-न-कबी, ककसी-न-ककसी जन्भ भें हभने इन ऩाॉचों भें से ककसी की ऩूजा की होगी, आयाधना-अचवना की होगी तो उस ऩुण्म के फर से हभ ब्रह्मऻानी गुरु के ऩास ऩहुॉच जामेंगे। याभकृष्णदेव ने शक्ति की उऩासना की थी, बगवती कारी की उऩासना की थी। उनको ब्रह्मतनष्ठ सदगुरु श्री तोताऩुयी भहायाज घय फैठे आ सभरे।

ईश्वयोऩासना, आयाधना, श्रिा-बक्ति का ऩुण्म हभें ऐसे सदगुरु की प्रातद्ऱ कया देता है जो अॊतमावभी आत्भदेव के साथ सभरा दें। हभने मदद ऐसी कोई उऩासना-आयाधना नहीॊ की है, हभभें श्रिा-बक्ति नहीॊ है औय हभ ऩय कामदा रगामा जाम कक् 'तुभ ब्रह्मऻानी सॊत के दशवन कयो अन्मथा हजाय रुऩमे दण्ड ककमा जामेगा...' तो हभ उनके दशवन तो कयेंगे रेककन उन दशवन से, उनके सान्न्नध्म से शाॊतत औय आनन्द का एहसास नहीॊ कय सकते। 'ठीक है... चरो, हान्जयी बयवाकय आ जामें....' जैसे कामावरमों भें कुछ काभचोय कभवचायी रोग हान्जयी बयवाकय इधय-उधय खखसक जाते हैं ऐसे ही हभ रोग सॊत के दशवन कयने के सरए खखॊचकय चरे आमेंगे औय दशवन कयके, सत्सॊग सुनकय आनन्न्दत हो जामेंगे। हभाये ऩुण्मों भें कभी होगी तो हभें सॊत के सान्न्नध्म का ऩूया राब नहीॊ सभर ऩामेगा। सॊत का सान्न्नध्म प्राद्ऱ कयने भें हभायी रूर्च है तो सभझो हभाये ऩुण्म परे हैं।

अनुक्रभ

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दीऺाभात्र से भहाऩातक का नाश

भॊत्रदीऺा से हभायी साधना का कापी प्रततशत अॊश ऩूया हो जाता है। भॊत्र भें चतैन्म होता है।

काशी भें एक ब्रह्मचायी ब्राह्मण मुवक ऩढ़ाई ऩूणव कयके सॊसाय यचना चाहता था। धन था नहीॊ। उसने गामत्री भॊत्र का एक अनुष्ठान ककमा। कपय दसूया ककमा... तीसया ककमा। ददन-यात वह रगा यहता था। छ् भहीने भें एक अनुष्ठान ऩूया होता था। एक अनुष्ठान भें चौफीस राख भॊत्रजऩ। फायह सार भें ऐसे तेईस अनुष्ठान उसने ककमे रेककन कुछ हुआ नहीॊ, धन सभरा नहीॊ।

उसने चौफीस सार की उम्र तक द्धवद्याभ्मास ककमा था। फायह सार अनुष्ठान कयने भें फीत गमे। छत्तीस सार की उम्र हो गई। सोचा कक् 'अफ क्मा शादी कयें ? धन मदद सभर बी गमा, शादी बी कय री तो दो-ऩाॉच सार भें फच्चा होगा। हभ जफ 40-45 सार के होंगे तफ फच्चा होगा दो-ऩाॉच सार का। हभ जफ फूढे़ होंगे, भतृ्मु के कयीफ होंगे तफ फच्च ेका क्मा होगा? इस शादी से कोई पामदा नहीॊ।'

उस सज्जन ने शादी का द्धवचाय छोड़कय सॊन्मास रे सरमा। सॊन्मास की दीऺा रेकय जफ तऩवण कयने रगा औय गामत्री भॊत्र के जऩ का प्रायॊब ककमा तो प्रकाश.... प्रकाश.... ददखने रगा। उस प्रकाशऩुॊज भें गामत्री भाॉ प्रकट हुईं औय फोरीॊ- ''वयॊ ब्रूमात। वय भाॉग।''

उसने कहा् "भाता जी! वय भाॉगने के सरए तो तेईस अनुष्ठान ककमे। 'धनवान ्बव... ऩुत्रवान ्बव.... ऐश्वमववान ्बव...' ऐसा वयदान भाॉगने के सरए तो सफ ऩरयश्रभ ककमा था। अफ सॊन्मासी हो गमा। वयदान की कोई जरूयत नहीॊ यही। इच्छाओॊ का ही त्माग कय ददमा। अफ आऩ आमीॊ तो क्मा राब ? भाताजी! आऩ ऩहरे क्मों प्रकट नहीॊ हुई ?"

मे सज्जन थे श्री द्धवद्यायण्मस्वाभी, न्जन्होंने सॊस्कृत भें ‘ऩॊचदशी’ नाभक ग्रॊथ की यचना की है। उसी ‘ऩॊचदशी’ की गुजयाती बाषा भें टीका बफरखावारे श्री नथयुाभ शभाव ने की है।

श्री द्धवद्यायण्मस्वाभी ने ऩूछा् "भाॉ! आऩने क्मों इतनी देय की?"

भाॉ फोरी् "तुम्हाये अगरे जन्भों के चौफीस भहाऩातक थे। तुम्हाये एक-एक अनुष्ठान से वह एक-एक भहाऩातक कटता था। इससरए ऐदहक जगत भें अनुष्ठान का जो प्रबाव ददखना चादहए वह नहीॊ ददखा। भैं मदद प्रकट बी हो जाती तो तुभ भुझ ेनहीॊ देख सकते, नहीॊ झरे ऩाते। एक-एक कयके तेईस अनुष्ठान से तेईस भहाऩातक कट गमे। सॊन्मास की दीऺा रे री तो चौफीसवाॉ भहाऩातक दीऺा रेते ही कट गमा औय अफ भॊत्र को प्रथभ फाय जऩते ही भैं आ गई।"

अनुक्रभ

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भसरन तत्त्वों से यऺण

भॊत्र तनन्द्ळत रूऩ से अऩना काभ कयते हैं। जैसे, ऩानी भें कॊ कड़ डारते हैं तो उसभें वतुवराकाय तयॊग उठते हैं वैसे ही भॊत्रजऩ से हभायी चतेना भें आध्मान्त्भक तयॊग उत्ऩन्न होते हैं। हभाये इदव-र्गदव सूक्ष्भ रूऩ से एक प्रकासशत तेजोवरम का तनभावण होता है। सूक्ष्भ जगत भें उसका प्रबाव ऩड़ता है। भसरन तुच्छ चीजें उस तेजोभण्डर के कायण हभाये ऩास नहीॊ आ सकतीॊ।

'श्री भधसुूदनी टीका' श्रीभदबगवदगीता की भशहूय एवॊ भहत्त्वऩूणव टीकाओॊ भें से एक है। इसके यचतमता श्री भधसुूदन सयस्वती सॊकल्ऩ कयके जफ रेखनकामव के सरए फैठे ही थे कक एक भस्त ऩयभहॊस सॊन्मासी एकाएक द्राय खोरकय बीतय आमे औय फोरे्

"अये भधसुूदन! तू गीता ऩय टीका सरखता है तो गीताकाय से सभरा बी है कक ऐसे ही करभ उठाकय फैठ गमा है? बगवान श्रीकृष्ण के दशवन ककमे हैं कक ऐसे ही उनके वचनों ऩय टीका सरखने रग गमा?"

श्री भधसुूदनजी तो थे वेदान्ती, अदै्रतवादी। वे फोरे् "दशवन तो नहीॊ ककमे। तनयाकाय ब्रह्म-ऩयभात्भा सफभें एक है। श्रीकृष्ण के रूऩ भें उनका दशवन कयने का हभाया प्रमोजन बी नहीॊ है। हभें तो केवर उनकी गीता का अथव स्ऩष्ट कयना है।"

"नहीॊ.... ऩहरे उनके दशवन कयो कपय उनके शास्त्र ऩय टीका सरखो। रो मह भॊत्र। छ् भहीने इसका अनुष्ठान कयो। बगवान प्रकट होंगे। उनसे सभर-जुरकय कपय रेखनकामव का प्रायॊब कयो।"

भॊत्र देकय फाफाजी चरे गमे। श्री भधसुूदनजी ने अनुष्ठान चारू ककमा। छ् भहीने ऩूये हो गमे रेककन श्रीकृष्ण के दशवन न हुए। 'अनुष्ठान भें कुछ त्रदुट यह गई होगी...' ऐसा सोचकय उन्होंने दसूये छ् भहीने भें दसूया अनुष्ठान ककमा कपय बी श्रीकृष्ण आमे नहीॊ।

श्री भधसुूदन के र्चत्त भें ग्रातन हो गई। सोचा कक् 'ककसी अजनफी फाफाजी के कहने से भैंने फायह भास बफगाड़ ददमे अनुष्ठानों भें। कहाॉ तो सफभें ब्रह्म भाननेवारा भैं अदै्रतवादी औय कहाॉ 'हे कृष्ण... हे बगवान... दशवन दो... दशवन दो...' ऐसे भेया र्गड़र्गड़ाना ? जो श्रीकृष्ण की आत्भा है वही भेयी आत्भा है। उसी आत्भा भें भस्त यहता तो ठीक यहता। श्रीकृष्ण आमे नहीॊ औय ऩूया वषव बी चरा गमा। अफ क्मा टीका सरखना ?"

वे ऊफ गमे। 'भूड ऑप' हो गमा। अफ न टीका सरख सकते हैं न तीसया अनुष्ठान कय सकते हैं। चरे गमे मात्रा कयने को तीथव भें। वहाॉ ऩहुॉच ेतो साभने से एक चभाय आ यहा था। उस चभाय ने इनको ऩहरी फाय देखा औय इन्होंने बी चभाय को ऩहरी फाय देखा। चभाय ने कहा्

"फस, स्वाभीजी! थक गमे न दो अनुष्ठान कयके?"

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श्रीभधसुूदन स्वाभी चौंके ! सोचा् "अये भैंने अनुष्ठान ककमे, मह भेये ससवा औय कोई जानता नहीॊ। इस चभाय को कैसे ऩता चरा?"

वे चभाय से फोरे् "तेये को कैसे ऩता चरा?"

"कैसे बी ऩता चरा। फात सच्ची कयता हूॉ कक नहीॊ ? दो अनुष्ठान कयके थककय आमे हो। ऊफ गमे, तबी इधय आमे हो। फोरो, सच कहता हूॉ कक नहीॊ?"

"बाई ! तू बी अन्तमावभी गुरु जैसा रग यहा है। सच फता, तूने कैसे जाना ?"

"स्वाभी जी ! भैं अन्तमावभी बी नहीॊ औय गुरु बी नहीॊ। भैं तो हूॉ जातत का चभाय। भैंने बूत को वश भें ककमा है। भेये बूत ने फतामी आऩके अन्त्कयण की फात।"

"बाई ! देख.... श्रीकृष्ण के तो दशवन नहीॊ हुए, कोई फात नहीॊ। प्रणव का जऩ ककमा, कोई दशवन नहीॊ हुए। गामत्री का जऩ ककमा, दशवन नहीॊ हुए। अफ तू अऩने बूतड़ ेका ही दशवन कया दे, चर।"

"स्वाभी जी ! भेया बूत तो तीन ददन के अॊदय ही दशवन दे सकता है। 72 घण्टे भें ही वह आ जामेगा। रो मह भॊत्र औय उसकी द्धवर्ध।"

श्री भधसुूदन स्वाभी द्धवर्ध भें क्मा कभी यखेंगे ! उन्होंने द्धवर्धसदहत जाऩ ककमा। एक ददन फीता..... दसूया फीता..... तीसया बी फीत गमा औय चौथा चरने रगा। 72 घण्टे तो ऩूये हो गमे। बूत आमा नहीॊ। गमे चभाय के ऩास। फोरे् "श्री कृष्ण के दशवन तो नहीॊ हुए तेया बूत बी नहीॊ ददखता?"

"स्वाभी जी! ददखना चादहए।"

"नहीॊ ददखा।"

"भैं उसे योज फुराता हूॉ, योज देखता हूॉ। ठहरयमे, भैं फुराता हूॉ, उसे।" वह गमा एक तयप औय अऩनी द्धवर्ध कयके उस बूत को फुरामा, फातचीत की औय वाऩस आकय फोरा्

"फाफा जी ! वह बूत फोरता है कक भधसुूदन स्वाभी ने ज्मों ही भेया नाभ स्भयण ककमा, 'डामर' का ऩहरी ही नॊफय घुभामा, तो भैं खखॊचकय आने रगा। रेककन उनके कयीफ जाने से भेये को आग...आग... जैसा रगा। उनका तेज भेये से सहा नहीॊ गमा। उन्होंने ॐ का अनुष्ठान ककमा है तो आध्मान्त्भक ओज इतना फढ़ गमा है कक हभ जैसे म्रेच्छ उनके कयीफ खड़ ेनहीॊ यह सकते। अफ तुभ भेयी ओय से उनको हाथ जोड़कय प्राथवना कयना कक वे कपय से अनुष्ठान कयें तो सफ प्रततफन्ध दयू हो जामेंगे औय बगवान श्रीकृष्ण सभरेंगे। फाद भें जो गीता की टीका सरखेंगे। वह फहुत प्रससि होगी।"

श्री भधसुूदन जी ने कपय से अनुष्ठान ककमा, बगवान श्रीकृष्ण के दशवन हुए औय फाद भें बगवदगीता ऩय टीका सरखी। आज बी वह 'श्री भधुसूदनी टीका' के नाभ से जग प्रससि है।

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न्जसको गुरुभॊत्र सभरा है औय ठीक से उसका जऩ ककमा है वह ककतने बी बमानक स्भशान से गुजय जामे, ककतने बी बूत-प्रेतों के फीच चरा जाम तो बूत-प्रेत उस ऩय हभरा नहीॊ कय सकते, डया नहीॊ सकते।

प्राम् उन तनगुये रोगों को बूत-प्रेत, डाककनी-शाककनी इत्मादद सताते हैं जो रोग अशुि खाते हैं, प्रदोषकार भें बोजन कयते हैं, प्रदोषकार भें भैथनु कयते हैं। न्जसका इष्टदेव नहीॊ, इष्टभॊत्र नहीॊ, गुरुभॊत्र नहीॊ उसके ऊऩय ही बूत-प्रेत का प्रबाव ऩड़ता है। जो सदगुरु के सशष्म होते हैं, न्जनके ऩास गुरुभॊत्र होता है, बूत-प्रेत उनका कुछ नहीॊ कय सकते।

अनुक्रभ

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अदै्रत भें सफ भतों का ऩमाववसान

धभव के नाभ ऩय झगड़ ेहो यहे हैं। सफ रोग अरग-अरग देव को भान यहे हैं। सफ देवों के अन्दय जो आत्भदेव हैं उनको मदद सफ रोग भानने रग जामें तो धभव के नाभ ऩय जो फयफाददमाॉ होती हैं वे सफ फन्द हो जामें। रोग मदद वेदान्न्तक ईश्वय को भानने रग जामें तो सफ झगड़ ेखत्भ हो जामें।

एक कहेगा् 'भेया देव फड़ा।' दसूया कहेगा् 'भेया देव फड़ा।' तीसया कहेगा् 'द्धवष्णु जी फड़।े' चौथा कहेगा् 'हनुभानजी फड़।े' ऩाॉचवा कहेगा् 'ईसा फड़।े' छठा कहेगा् 'भोहम्भद फड़।े' ...रेककन भोहम्भद के ऩहरे जो चतैन्म था, ईसा के ऩहरे जो चतैन्म था, जो चतैन्म हभाये देवी देवता भें है वही चतैन्म आऩभें औय हभभें चभक यहा है। मह सभझ रें तो झगड़ा शाॊत हो जाता है। रेककन ईसाई फोरता है् 'ईसा फड़।े' श्रीकृष्ण वारे फोरते हैं- 'श्रीकृष्ण फड़।े' श्री याभ वारे फोरते हैं – श्रीयाभ फड़।े' वास्तद्धवकता जानने वारे ऻानी फोरते हैं-

एक नूय ते सफ जग उऩजा कौन बरे कौन भन्दे ?

एक ही ऩयभात्भा है। न कोई फड़ा है न कोई छोटा है। फड़े-भें-फड़ा जो आत्भा है उसे जाननेवारे को भेया नभस्काय है ! ॐ...ॐ....ॐ....

एक ईश्वयवाद ने अनेक ईश्वय स्वीकाय कय सरए हैं। उसका कायण मह है् ईश्वय तो एक ही है रेककन न्जस-न्जस ददर भें वह प्रकट हुआ है वह बी ईश्वयतुल्म है, उसका आदय ककमा जाता है।

सफ घट भेया साॉईमाॉ, खारी घट ना कोम। फसरहायी वा घट की, जा घट ऩयगट होम।।

कफीया कुआॉ एक है, ऩतनहायी अनेक। न्माये न्माये फतवनों भें, ऩानी एक का एक।।

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अनुक्रभ

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अखण्ड आत्भदेव की उऩासना

बगवान शॊकय श्री वसशष्ठ भुतन से कहते हैं- "हे ब्राह्मण ! जो उत्तभ देवाचवन हैं औय न्जसके ककमे से जीव सॊसायसागय से तय जाता है,

सो सुनो। हे ब्राह्मणों भें शे्रष्ठ ! ऩुण्डयीकाऺ द्धवष्णु देव नहीॊ औय बत्ररोचन सशव बी देव नहीॊ। कभर से उऩजे ब्रह्मा बी देव नहीॊ औय सहस्रनेत्रइन्द्र बी देव नहीॊ। न देव ऩवन है, न सूमव है न अन्ग्न, न चन्द्रभा है, न ब्राह्मण है, न ऺबत्रम है, न तुभ हो, न भैं हूॉ। अकृबत्रभ, अनादद, अनन्त औय सॊद्धवतरूऩ ही देव कहाता है। आकायाददक ऩरयन्च्छन्नरूऩ हैं। वे वास्तव भें कुछ नहीॊ। एक अकृबत्रभ, अनादद चतैन्मस्वरूऩ देव है। वही 'देव' शधद का वाचक है औय उसी का ऩूजन वास्तव भें ऩूजन है। न्जससे मह सफ हुआ है औय सत्ता शाॊत, आत्भरूऩ है, उस देव को सववत्र व्माद्ऱ देखना ही उसका ऩूजन है। जो उस सॊद्धवततत्त्व को नहीॊ जानते, उनके सरए साकाय की अचवना का द्धवधान है। जैसे, जो ऩुरुष मोजनऩमवन्त नहीॊ चर सकता, उसको एक कोस-दो कोस चरना बी बरा है। जो ऩरयन्च्छन्न (खन्ण्डत) की उऩासना कयता है, उसको पर बी ऩरयन्च्छन्न (खन्ण्डत) प्राद्ऱ होता है औय जो अकृबत्रभ आनन्दस्वरूऩ अनन्त देव की उऩासना कयता है, उसको वही ऩयभात्भारूऩी पर प्राद्ऱ होता है। हे साधो ! अकृबत्रभ पर त्मागकय जो कृबत्रभ को चाहते हैं वे ऐसे हैं जैसे कोई भन्दाय वृऺ के वन को त्मागकय कॊ टक के वन को प्राद्ऱ हो।

वह देव कैसा है, उसकी ऩूजा क्मा है औय कैसे होती है, सुनो। फोध, साम्म औय शभ मे तीन पूर हैं। 'फोध' सम्मक ऻान का नाभ है, अथावत ्आत्भतत्त्व

को ज्मों-का-त्मों जानना। 'साम्म' सफभें ऩूणव देखने को कहते हैं औय शभ का अथव है र्चत्त को तनवतृ्त कयना औय आत्भतत्त्व से सबन्न कुछ न देखना। इन्हीॊ तीनों पूरों से र्चन्भात्र शुि देव सशव की ऩूजा होती है, आकाय की अचवना से अचवना नहीॊ होती।

र्चन्भात्र आत्भसॊद्धवत ्का त्माग कय अन्म जड़ की जो अचवना कयते हैं, वे र्चयकार ऩमवन्त क्रेश के बागी होते हैं। हे भुतन ! जो ऻातेऻेम ऩुरुष हैं वे आत्भा बगवान एक देव है। वही सशव औय ऩयभ कल्माणरूऩ है। सववदा ऻान-अचवना से उसकी ऩूजा कयो, औय कोई ऩूजा नहीॊ है। ऩूज्म, ऩूजक औय ऩूजा इस बत्रऩुटी से आत्भदेव की ऩूजा नहीॊ होती।

मह सफ द्धवश्व केवर ऩयभात्भरूऩ है। ऩयभात्भाकाश ब्रह्म ही एक देव कहाता है। उसी का ऩूजन साय है औय उसी से सफ पर प्राद्ऱ होते हैं। वह देव सववऻ हैं औय सफ उसभें न्स्थत हैं। वह अकृबत्रभ देव अज, ऩयभानन्द औय अखन्डरूऩ है। उसको अवश्म ऩाना चादहए न्जससे ऩयभ सुख प्राद्ऱ होता है।

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हे भुनीश्वय ! तुभ जागे हुए हो, इस कायण भैंने तुभसे इस प्रकाय की देव-अचवना कही है। ऩय जो असम्मकदशी फारक हैं, न्जनको तनद्ळमात्भक फुद्धि नहीॊ प्राद्ऱ हुई है उनके सरए धऩू, दीऩ, ऩुष्ऩ, चॊदन आदद से अचवना कही है औय आकाय कन्ल्ऩत कयके देव की सभ्मा कल्ऩना की है। अऩने सॊकल्ऩ से जो देव फनाते हैं औय उसको ऩुष्ऩ, धऩू, दीऩाददक से ऩूजते हैं सो बावनाभात्र है। उससे उनको सॊकल्ऩयर्चत पर की प्रातद्ऱ होती है। मह फारक फुद्धि की अचवना है।

हे भुनीश्वय ! हभाये भत भें तो देव औय कोई नहीॊ। एक ऩयभात्भा देव ही तीनों बुवनों भें है। वही देव सशव औय सववऩद से अतीत है। वह सफ सॊकल्ऩों से अतीत है।

जो चतैन्मतत्त्व अरुन्धती का है औय जो चतैन्मतत्त्व तुभ तनष्ऩाऩ भुतन का औय ऩाववती का है, वही चतैन्म तत्त्व भेया है। वही चतैन्मतत्त्व बत्ररोकी भात्र का है। वही देव है, औय कोई देव नहीॊ। हाथ-ऩाॉव से मुि न्जस देव की कल्ऩना कयते हैं वह र्चन्भात्र साय नहीॊ है। र्चन्भात्र ही सफ जगत का सायबूत है औय वही अचवना कयने मोग्म है। मह देव कहीॊ दयू नहीॊ औय ककसी प्रकाय ककसी को प्राद्ऱ होना बी कदठन नहीॊ। जो सफकी देह भें न्स्थत औय सफका आत्भा है वह दयू कैसे हो औय कदठनता से कैसे प्राद्ऱ हो ? सफ कक्रमा वही कयता है। बोजन, बयण औय ऩोषण वही कयता है। वही श्वास रेता है। सफका ऻाता बी वही है। भनसदहत षट्इन्न्द्रमों की चषे्टा तनसभत्त तत्त्ववेत्ताओॊ ने 'देव' कन्ल्ऩत की है। एकदेव, र्चन्भात्र, सूक्ष्भ, सववव्माऩी, तनयॊजन, आत्भा, ब्रह्म इत्मादद नाभ ऻानवानों ने उऩदेशरूऩ व्मवहाय के तनसभत्त यखे हैं। वह आत्भदेव तनत्म, शुि औय अदै्रतरूऩ है औय सफ जगत भें अनुस्मूत है। वही चतैन्म तत्त्व चतुबुवज होकय दैत्मों का नाश कयता है, वही चतैन्म तत्त्व बत्रनेत्र, भस्तक ऩय चन्द्र धायण ककमे, वषृब ऩय आरूढ़, ऩाववतीरूऩ कभसरनी के भुख का बॉवया फनकय रूद्र होकय न्स्थत होता है। वही चतेना द्धवष्णुरूऩ सत्ता है, न्जसके नासबकभर से ब्रह्म उऩजे हैं। वह चतैन्म भस्तक ऩय चडू़ाभखण धायनेवारा बत्ररोकऩतत रूद्र है। देवता रूऩ होकय वही न्स्थत हुआ है औय दैत्मरूऩ होकय बी वही न्स्थत है।

हे भुनीश्वय ! वही चतेन सशवरूऩ होकय उऩदेश दे यहा है औय वही चतेन वसशष्ठ होकय सुन यहा है। उस ऩयभ चतैन्मदेव को जानना ही सच्ची अचवना है।"

(श्रीमोगवासशष्ठ भहायाभामण) अनुक्रभ

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अदै्रततनष्ठा

एक फाय याभकृष्ण ऩयभहॊस एक वटवृऺ के नीच ेसन्च्चदानॊद ऩयभात्भा की अदै्रततनष्ठा की भस्ती भें फैठे थे। इतने भें एक भुसरभान वहाॉ आमा। सपेद दाढ़ी.... हाथ भें सभट्टी की एक

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हाण्डी... औय उसभें यॉधे हुए चावर। थोड़ी ही दयू ऩय फैठे हुए कुछ भुसरभानों को चावर खखराकय वह फुजुगव याभकृष्णदेव के ऩास बी आमा औय चावर खखराकय चरा गमा।

याभकृष्ण तो अऩने सववव्माऩक आत्भ-चतैन्म की भस्ती भें भस्त थे। वदृ्धत्त जफ ब्रह्माकाय फनती है, सूक्ष्भता की चयभ सीभा प्राद्ऱ होती है तफ 'भैं-तू'... भेया-तेया... दहन्द-ूभुन्स्रभ... ससक्ख-ईसाई.... आदद सफ बेद गामफ हो जाते हैं। सफभें भैं ही आत्भ-चतैन्म के स्वरूऩ भें यभण जगत ब्रह्मभम हो जाता है। ऐसी ददव्म ऺणों भें यभभाण याभकृष्णदेव ने भुसरभान की हाण्डी के चावर खा तो सरमे ककन्तु जफ वदृ्धत्त स्थरू फनी, र्चत्त भें बेदफुद्धि के ऩुयाने सॊस्काय जागतृ हुए तफ ददर भें खटका रगा् 'हाम हाम ! भैंने मवन के हाथ का बोजन खामा ? अच्छा नहीॊ ककमा।' याभकृष्ण उठकय बवानी कारी के भॊददय भें आमे औय भाॉ के चयणों भें ऩद्ळाताऩ के आॉसू फहाते हुए प्राथवना कयने रगे् "भाॉ ! भुझ ेभाप कय दे।''

करूणाभमी जगदम्फा प्रकट होकय फोरीॊ- "फटेा ! तेयी बेदफुद्धि तुझ ेबटका यही है। एक सन्च्चदानॊद ऩयब्रह्म ऩयभात्भा ही सवव के रूऩ भें यभण कय यहे हैं। जीव बी वे ही हैं, जगत बी वे ही हैं, भैं बी वहीॊ हूॉ औय तू बी वही है। वे सपेद दाढ़ी वारे भुसरभान तो ऩैगॊफय भोहम्भद थे। वे बी वही हैं। उनभें औय तुझभें कोई बेद नहीॊ। एक ही चतैन्मदेव सन्च्चदानॊद ऩयभात्भा द्धवसबन्न रूऩों भें द्धवरास कय यहे हैं।"

आध्मान्त्भक उत्थान चाहने वारे साधक के अन्त्कयण भें अदै्रतबाव की अखण्डधाया यहनी चादहए। अॊत्कयण की अशुि अवस्था भें ही दै्रत ददखता है। अॊत्कयण की उच्च दशा भें अदै्रतबाव ही यहता है।

अनुक्रभ

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

आत्भ-कल्माण के सरए.....

प्रततददन तनमभऩूववक एकान्त भें फैठकय भन से सम्ऩूणव सॊसाय को बूर जाओ। इस प्रकाय सॊसाय को बुरा देने से केवर एक चतैन्म आत्भा शषे यह जामेगा। तफ उस चतैन्मस्वरूऩ का ध्मान कयो। ध्मान कयने से सभार्ध ससि होगी औय भुक्ति सभरेगी।

जो आदभी मभ-तनमभ से चरता है उसकी वासनाएॉ शुि होती हैं। गरत कभव रुक जाते हैं। धभव से वासनाएॉ शुि होती हैं। उऩासना से वासनाएॉ तनमॊबत्रत होती हैं औय ऻान से वासनाएॉ फार्धत होती हैं।

इष्ट भजफूत हो तो हभाया अतनष्ट नहीॊ होता। आत्भबाव भजफूत हो, 'सुदशवन' ठीक हो तो कुदशवन हभ ऩय कोई प्रबाव नहीॊ डार सकता। आत्भतनष्ठा भजफूत हो गई तो कोई देहधायी हभें ऩयेशान नहीॊ कय सकता।

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आनन्द ऩयभात्भा का स्वरूऩ है। चायों तयप फाहय-बीतय आनन्द-ही-आनन्द बया हुआ है। साये सॊसाय भें आनन्द छामा हुआ है। मदद ऐसा ददखराई न दे तो वाणी से केवर कहते यहो औय भन से भानते यहो। जर भें गोता खा जान,े डूफ जाने के सभान तनयन्तय आनन्द ही भें डूफे यहो, आनन्द भें गोता रगाते यहो। यात-ददन आनन्द भें भग्न यहो। ककसी की भतृ्मु हो जामे, घय भें आग रग जाम अथवा औय बी कोई अतनष्ट कामव हो जामे, तो बी आनन्द-ही-आनन्द... केवर आनन्द-ही-आनन्द....

इस प्रकाय अभ्मास कयने से सम्ऩूणव दु् ख एवॊ क्रेश नष्ट हो जाते हैं। वाणी से उच्चायण कयो तो केवर आनन्द ही का, भन से भनन कयो तो केवर आनन्द ही का, फुद्धि से द्धवचाय कयो तो केवर आनन्द ही का। मदद ऐसी प्रतीतत न हो तो कन्ल्ऩत रूऩ से ही आनन्द का अनुबव कयो। इसका पर बी फहुत अच्छा होता है। ऐसा कयते-कयते आगे चरकय तनत्म आनन्द की प्रातद्ऱ हो जाती है।

इस साधना को सफ कय सकते हैं। हभ रोगों को ही मह तनद्ळम कय रेना चादहए कक हभ सफ एक आनन्द ही हैं। ऐसा तनद्ळम कय रेने से आनन्द-ही-आनन्द हो जामेगा।

बगवान की भूतत व मा र्चत्र को साभने यखो। आॉखे खोरकय उनके नेत्रों से अऩने नेत्र सभराओ। त्राटक की बाॉतत आॉखें एकटक यखकय उनभें ध्मान रगाओ। ध्मान के सभम मह द्धवश्वास यखो कक प्रेभस्वरूऩ, आनन्दस्वरूऩ बगवान अवश्म प्रकट होंगे। मह बी बगवदप्रातद्ऱ का सुगभ उऩाम है।

ध्मान कयते सभम भन मदद न्स्थय न होकय इधय-उधय बटकने रगे तो ध्मान कयना छोड़कय भन को कहो् "अच्छा फेटा ! जाओ... जहाॉ तुम्हायी इच्छा हो वहीॊ जाओ। सफ रूऩ तो बगवान ने ही धायण कय यखे हैं। जो बी वस्तु ददखराई देती हैं वे सफ ऩयभात्भा नायामण के ही रूऩ हैं।" साये सॊसाय भें सफको बगवान का रूऩ सभझकय भन-ही-भन बगवद् फुद्धि से सफको प्रणाभ कयो। एक ऩयभात्भा ने ही अनन्त रूऩ धायण कय सरए हैं। फाय-फाय ऐसी बावना दृढ़ कयते यहने से बगवद् दशवन सुरब हो जाता है।

मदद आऩभें अऩने ऩयभ रक्ष्म को प्राद्ऱ कयने का दृढ़ सॊकल्ऩ है तो प्रगतत अवश्म होगी। द्धवनम बाव से सदगुणों का द्धवकास होगा। दसूयों की सेवा कयने की सच्ची तन्स्वाथव धनु है तो रृदम अवश्म शुि होगा। दृढ़ द्धवश्वास है तो आत्भ-साऺात्काय अवश्म होगा। मदद सच्चा वैयाग्म है तो ऻान तन्सन्देह होगा। मदद अटूट धमैव है तो शाॊतत अवश्म सभरेगी। मदद सतत ्प्रमत्न है तो द्धवघ्न फाधाएॉ अवश्म नष्ट होंगी। मदद सच्चा सभऩवण है तो बक्ति अवश्म आ जामेगी। मदद ऩूणव तनबवयता है तो तनयन्तय कृऩा का अनुबव अवश्म होगा। मदद दृढ़ ऩयभात्भ-र्चन्तन है तो सॊसाय का र्चन्तन अवश्म सभट जामेगा। मदद सदगुरु का दृढ़ आश्रम है तो फोध अवश्म होगा। जहाॉ सत्म का फोध होगा वहाॉ सभता अवश्म दृढ़ होगी। जहाॉ ऩूणव प्रेभ द्धवकससत होगा वहाॉ ऩूणावनन्द की न्स्थतत अवश्म सुरब होगी।

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दृढ़ बावना कयो कक् 'सॊसाय की कोई द्धवषभता भुझ ेऩयेशान नहीॊ कय सकती। भेये रृदम भें ईश्वयीम प्रेभ का सॊचाय हो यहा है। भेया र्चत्त, भेया स्वबाव शाॊत एवॊ तनदोष हो गमा है। सम्ऩूणव अशाॊतत, उदे्रग, भनोद्धवकाय एवॊ कुबाव भेये र्चत्त की बूसभका से उखड़ गमे हैं। भेया स्वबाव बफल्कुर फदर गमा है। सॊसाय के प्ररोबन भुझ ेफॊधन भें नहीॊ डार सकते। भेये ऩद्धवत्र औय शुि अॊत्कयण भें कोई ऺोब औय अशाॊतत उत्ऩन्न कयने वारी तयॊगें दहरोयें नहीॊ रे सकतीॊ।'

अनुक्रभ

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र्चन्ततनका

गुणातीत होने के सरए गुणातीत भहाऩुरुष की कृऩा सभरना अतनवामव है। मह सौबाग्म प्राद्ऱ कयने की ऩीदठका फने तफ तक त्माग औय वैयाग्म फढ़ाते यहो। भुक्ति के सरए मह अतनवामव शतव है।

शाश्वत चतैन्म देव को प्माय कयोगे तो नश्वय चीजें अऩने-आऩ ऩीछे-ऩीछे आमेंगी। कदार्चत ्नहीॊ बी आवें कपय बी आऩको आत्भशाॊतत तो सभरेगी ही। औय.... उस आत्भशाॊतत के आगे द्धवश्व के ककसी बी वैबव का कुछ बी भूल्म नहीॊ है।

रोगों को खशु कयने के पॊ दे भें पॉ सना नहीॊ। सफ रोग तुभ ऩय खशु हो जामें मह सम्बव नहीॊ। तुभ अऩने रृदम भें ईश्वय को सॉबारो। रृदम को जरने भत दो, दु् खी न होने दो। सदा प्रसन्न यहो। ईश्वय के ससवाम जो कुछ है वह सफ जर जाम तो हजव नहीॊ। ईश्वय के साथ तन्भमता हो गई तो सभझो आत्भशाॊतत सभर गई। आत्भशाॊतत के ससवाम औय क्मा उदे्दश्म भानव-जीवन भें हो सकता है? आत्भशाॊतत ऩाना ही ऩयभ ऩुरुषाथव है।

दैवी द्धवधान से द्धवऩयीत चरोगे तो आऩद्धत्त आमेगी ही। ईश्वय के ससवाम कहीॊ बी सत्मफुद्धि की तो ऐसा होगा ही।

ऩयभात्भा को सदा प्राथवना कयो कक् " हे प्माये प्रबु ! हभाये ददर ददभाग भें आऩके ससवाम औय कुछ आमे ही नहीॊ। हभ सॊसाय भें पॉ से नहीॊ। सॊसाय के प्रतत हभाये ददर भें भोह जग जाम तो हे प्रबु ! हभाये ददर-ददभाग को बस्भ कय देना। हे प्माये ! आऩके ससवाम कोई द्धवचाय हभाये भन भें उठे तो हभायी नस-नाक्तड़मों का खनू सूख जाम। स्वगव-प्रातद्ऱ के सरए आऩका बजन कयने रगें तो हभको कुम्बीऩाक नकव भें डार देना। स्वास््म औय सौन्दमव के सरए उऩासना कयें तो हभाये योभ-योभ भें कीड़ ेऩड़ें। कुछ बी कयके हभायी बक्ति की यऺा कयना प्रबु ! न्जससे हभ सदा आऩके चयणों रगे यहें।"

सॊसाय की नश्वयता देखकय, सॊसारयमों की फेवपाई देखकय अनन्त शाश्वत ्चतैन्मदेव भें, ऩयभात्भा भें जो कूद नहीॊ ऩड़ता वह भूखव है।

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अऩना जीवन ऐसा फनाओ कक आऩको ककसी बी आवश्मकता के सरए रोगों के ऩीछे बटकना न ऩड़।े रोग ही अऩने आऩ तुम्हाये ऩीछे-ऩीछे आवें। तुभको नश्वय के ऩीछे दौड़ना न ऩड़,े नश्वय ही तुम्हाये ऩीछे दौड़ता आवे क्मोंकक तुभ सन्च्चदानॊदस्वरूऩ हो। फस, अऩने उस शाश्वत स्वरूऩ को जान रो। कपय जीवन के तभाभ कत्तवव्म ऩूये हो जामेंगे।

फारक ज्मों-ज्मों फड़ा होता है त्मों-त्मों अऩनी जननी के प्रतत अनन्मता कभ होने से वह जननी से, आऩनी वात्सल्मभमी भाॉ से दयू होता जाता है। ऩयन्तु बक्तिभागव भें आगे फढ़ने वारा साधक ईश्वय के प्रतत अनन्मता फढ़ने से वह ददन-प्रततददन अर्धकार्धक ईश्वय के नजदीक होता जाता है।

बाग्मवान ्भनुष्मों को सॊत-भहात्भा तथा ईश्वय भें जल्दी श्रिा हो जाती है जफकक दषु्ट औय भूढ़ रोग जीवन के ककसी कोने भें ऩड़ ेहुए एकाध ऩुण्म के कायण देयी से बी जाग जामें तो सौबाग्म उनका। अन्मथा तो, ऐसे रोग भतृ्मुऩमवन्त सॊत-भहाऩुरुषों के भागव भें काॉटे औय कीचड़ ही डारते हैं।

ऩयभ ऩुरुषाथव के भागव भें कूद ऩड़ो। बूतकार के ऩद्ळाताऩ औय बद्धवष्म की र्चन्ता छोड़कय तनकर ऩड़ो। ऩयभात्भा के प्रतत अनन्म बाव यखो। कपय देखो कक इस घोय कसरमुग भें बी तुम्हाये सरए अन्न, वस्त्र औय तनवास की कैसी व्मवस्था होती है !

जीवन के फोझ को पें ककय हल्के पूर जैसे तनदोष फनने के सरए कहीॊ-न-कहीॊ अनन्म बाव यखना ही ऩड़गेा। ककतने ही रोग ककसी देवी-देवता भें अनन्म बाव यखते हैं जफकक वेदान्त का सत्सॊगाभतृ ऩीने वारा साधक सन्च्चदानॊद ऩयभात्भा भें अनन्म बाव यखता है।

न्जस साधना भें तुम्हायी रूर्च होगी उस साधना भें ईश्वय भधयुता बय देंगे। तुम्हायी बावना, तुम्हायी तनष्ठा ऩक्की होना भहत्त्वऩूणव है। तुम्हाये ऩयभ इष्टदेव तुभ ऩय खशु हो जामें तो अन्म अतनष्ट तुम्हाया कुछ बी नहीॊ बफगाड़ सकते। ऩयभ इष्टदेव है तुम्हायी आत्भा, तुम्हाया तनज स्वरूऩ। ऩयभात्भा भें तुम्हायी अनन्म बक्ति हो जाम तो ऩयभात्भा तुम्हें कुछ देंगे नहीॊ, वे तुम्हें अऩने भें सभरा रेंगे। अफ फताओ, आऩको कुछ देना शषे यहा क्मा?

भधयुाबक्ति का आसरॊगन इतना भधयु होता है कक उसके आगे ब्रह्मरोक का ऐश्वमव काकद्धवष्टा के सभानत तुच्छ है।

ईश्वय के ससवाम अन्म तभाभ सुखों के इदव-र्गदव व्मथवता के काॉटे रगे ही यहते हैं। जया-सा सावधान होकय सोचोगे तो मह फात सभझ भें आ जामेगी औय तुभ ईश्वय के भागव ऩय चर ऩड़ोगे।

रौककक सयकाय बी अऩने सयकायी कभवचायी की न्जम्भेदायी सॉबारती है। ऊध्ववरोक की ददव्म सयकाय, ऩयभ ऩारक ऩयभात्भा अध्मात्भ के ऩर्थक का फोझ नहीॊ उठामेंगे क्मा ?

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कुदयत के आखखयी तनमभ फहुत कठोय हैं। अन्त भें, तुम्हाये भोह ऩय वे डण्डा भायेंगे। अत् अबी से सावधान हो जाओ। कूड़-कऩट, छर-प्रऩॊच को बीतय से छोड़ते जाओ। आसक्ति का आवयण धीये-धीये हटाते जाओ। अन्मथा, अन्त सभम भें जफयन सफ छीन सरमा जामेगा। रोग भोह छोड़ने की जगह ऩय आकय बी भोह कयने रगते हैं। सॊत के ऩास आकय बी भकान-दकुान, नौकयी-धन्धा भाॉगते हैं, आत्भऻान नहीॊ भाॉगते।

शयीय का रारन-ऩारन थोड़ा कभ कयेंगे तो क्मा हो जामेगा ? शयीय की सॉबार नहीॊ रेंगे तो क्मा वग दो ददनों भें र्गय जामेगा? नहीॊ। ईश्वय भें भस्त यहोगे तो शयीय के खान-ऩान प्रायधध वेग से चरते यहेंगे। ईश्वय को छोड़कय शयीय के ऩीछे अर्धक सभम व शक्ति रगाओ नहीॊ। 'मह शयीय ईश्वय का सॊदेश देने के सरए प्रकट हुआ है। जफ तक मह कामव ऩूया नहीॊ होगा तफ तक वह र्गयेगा नहीॊ.....' ऐसा सभझकय साधना, ध्मान बजन भें रग जाओ। शयीय की र्चन्ता छोड़ दो। भयने वारे तो ऩरॊग ऩय बी भय जाते हैं औय फचने वारे बमानक दघुवटनाओॊ भें बी फच जाते हैं।

सॊसारयमों की, अऻातनमों की प्रीतत, बक्ति औय सम्भान से दयू यहो। वे रोग कफ क्मा कयेंगे, कुछ कह नहीॊ सकते। ईसा के सरए नगय सजाकय सम्भान कयने वारे रोगों ने ही प्रेभ का ऩाठ ऩढ़ाने वारे ईसा को फाद भें क्रॉस ऩय रटकामे। सत्म की खोज भें जीवन बफताने वारे सॉके्रटीस को, सत्म हजभ नहीॊ कयने वारे रोगों ने द्धवष द्धऩरामा। 'अदहॊसा ऩयभो धभव '् का झण्डा रेकय घूभने वारे गाॉधी ऩय गोसरमाॉ फयसामीॊ। अऻातनमों के ऐसे कृत्मों से साया इततहास बया ऩड़ा है।

एक जवान रड़का कुएॉ के ऩनघट ऩय गन्दगी कय यहा था। एक फुदढ़मा ने ऩूछा् "फेटा ! तू कौन है? कहाॉ से आमा है? मह क्मा कय यहा है?"

"भैं पराॊ गाॉव से आमा हूॉ। भेयी औयत बाग गई है उसे खोजने तनकरा हूॉ।"

"क्मा नाभ है तेयी औयत का?"

"उसका नाभ है पजीती।"

"अबी तक वह तुझ ेनहीॊ सभरी?"

"नहीॊ सभरी।"

"सभर जामेगी। र्चन्ता भत कय। तेया आचयण ही ऐसा है कक तू जहाॉ जामेगा वहाॉ पजीती तुयन्त हान्जय।"

भूखव के ऩीछे-ऩीछे पजीती चरती है। अऩने र्चत्त भें फेवकूपी यहेगी तो पजीती होगी ही। चाहे कहीॊ बी जाओ, द्धवश्व के ककसी बी कोने भें जाओ मा वैकुण्ठ भें जाओ, जफ तक अऩने र्चत्त भें अऻान चारू है तफ तक पजीती है ही। स्वमॊ को वह ददखे मा न ददखे वह अरग फात है रेककन होती है जरूय।

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तभाभ पजीततमों से, तभाभ दु् खों से जान छुड़ाने का एकभात्र सच्चा उऩाम है आत्भऻान। सभझदाय को कुदयत की थप्ऩड़ रगती है तो वह नश्वय के ऩीछे दौड़ना छोड़कय अनन्त भें

कूदने का साभ्मव जगा रेता है। नादान को कुदयत की थप्ऩड़ रगती है वह अर्धक ऩागर होकय वस्तुओॊ के ऩीछे दौड़ता है।

तनदोषता, तनष्कऩटता औय त्माग न्जतना फढ़ाओगे उतनी तुम्हायी शक्ति फढे़गी। आसक्ति औय इच्छाएॉ न्जतनी फढ़ाओगे उतने ही बीतय से खोखरे औय दीन-हीन हो जाओगे।

ऩक्षऺमों के साथ आकाश का कोई सम्फन्ध नहीॊ है। आकाश तनरेऩ है, असॊग है। जीवन नदी के प्रवाह जैसा है। उसभें सुखरूऩी पूर बी फहते हैं औय दु् खरूऩी काॉटे बी

फहते हैं। तुभ ककनाये ऩय फैठे हो द्रष्टा होकय। तुभको उसका स्ऩशव कैसे हो सकता है ?

ईश्वय का बजन बी कयना औय अऩने को देह भानना मह एक म्मान भें दो तरवाय यखने के सभान है। देहाध्मास सवव ऩाऩों का फाऩ है ! देहाध्मास आते ही तुम्हाये इदव-र्गदव कत्तवव्मों की बीड़ रग जाती है।

न्जसके जीवन भें उन्नत होने की आशा न हो, वह भुदाव है।

अऻानी यहना सफसे फड़ा ऩाऩ है। अऻानी ऩुण्म कयेगा तो बी फन्धन भें ऩड़गेा औय ऻानी के द्राया ऩाऩ होता ददखे तो बी वे तनरेऩ यहेंगे, दु् खी नहीॊ होंगे। हनुभानजी ने रॊका जरामी कपय बी उनको दोष न रगा। याजा अज ने हजायों गामों का दान ककमा कपय बी उन्हें दोष रगा औय अजगय की मोतन सभरी।

अध्मात्भ-भागव भें कूद ऩड़ो। डयो नहीॊ। न्जतने ददन गमे उतने सुख-दु् ख गमे। प्रायधध के खाते भें इतना दहसाफ ऩूया हुआ। ककतने ही शयीय, कुटुम्फ, सम्फन्ध औय सॊसाय आमे औय गमे, अफ भोह ककसका ? र्चन्ता ककसकी ? भौज भें यहो औय प्माये ऩयभात्भा का बजन कयो।

न्जस प्रकाय फतवन को हय योज भरें नहीॊ, साप न कयें तो जॊग रग जाता है, उसी प्रकाय भन को हययोज आत्भस्थ न कयें तो भन की आसक्ति फढ़ जाती है, साधना-ऩथ उतना रम्फा हो जाता है। आसक्ति ऩूववक कामव ककमे जामें तो भन को जॊग रग जाता है। उस जॊग को दयू कयने की प्रकक्रमा है उऩासना, मोग औय बक्ति। भतृ्मुऩमवन्त मह प्रकक्रमा चरनी चादहए। हय ऺण जागतृ यहना है। अहॊबाव कारे साॉऩ जैसा है। वह कफ घुसकय फैठ जाता है, कुछ ऩता नहीॊ चरता।

अऻानी हो मा ऻानी, सफको देह द्धवषमक थोड़ा फहुत अहॊकाय तो यहता ही है। देह के कष्ट दोनों को होंगे। ऻानी सॊकल्ऩ-द्धवकल्ऩ कयके दु् खी नहीॊ होते जफकक अऻानी द्धवचाय की ऩयम्ऩया से ऩयेशान होता है। कामव कयो रेककन आनन्दऩूववक, एकाग्र र्चत्त से, सभता से

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कयो। अधवदग्ध भन से, अशाॊत र्चत्त से कामव न कयो। खफू सभताऩूववक कामव कयने से आसक्ति नहीॊ होती।

सदगुरु के प्रतत अनन्म बाव जाग जाम तो वे तुम्हायी जीवन की डोय सॉबार रेंगे औय खेर-खेर भें, हास्म-द्धवनोद भें तुम्हायी ऩयभ धाभ की मात्रा ऩूणव कया देंगे।

ऩवव के ददन ककमा हुआ शुब कामव अर्धक परदामी होता है।

गुरूऩूखणवभा (आषाढ़ की ऩूखणवभा) के ददन गुरूऩूजन कयने की फड़ी भदहभा है। जो गुरुबि हैं, ब्रह्मवेत्ता सदगुरु से न्जन्होंने भॊत्रदीऺा प्राद्ऱ की है वे जानते हैं कक गुरुऩूखणवभा के ददन की हुई गुरुऩूजा से साये वषवऩमवन्त ककमे हुए सत्कामव कयने का पर सभर जाता है। जो रोग उस ददन गुरुऩूजा नहीॊ कय ऩाते मा कोई अऩयाधवश उनकी ऩूजा का स्वीकाय नहीॊ होता, उनका अनुबव होता है कक साया वषव ऩयेशानी भें ही फीतता है। उस ददन जो रोग गुरुऩूजा कयते हैं, न्जनकी ऩूजा का स्वीकाय हो जाता है वे रोग ऩूया वषव आनॊददत, प्रसन्न औय कामों भें सपर होते हैं।

अनुक्रभ

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ॐ स्वास््म के सरए भॊत्र ॐ

अच्मुतानन्त गोद्धवन्द नाभोच्चायणबेषजात।् नश्मन्न्त सकरा योगा् सत्मॊ सत्मॊ वदाम्महभ।्।

'हे अच्मुत ! हे अनन्त ! हे गोद्धवन्द ! इस नाभोच्चायणरूऩ औषध से तभाभ योग नष्ट हो जाते हैं, मह भैं सत्म कहता हूॉ.... सत्म कहता हूॉ।'

(धन्वॊतरय) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनुक्रभ