namak ka daroga by munshi premchand

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नमक का दारोगा लेखक - मं ुशी ĤेमचÛद जब नमक का नया वभाग बना और ईæवरĤद×त वèतु के åयवहार करने का Ǔनषेध हो गया तो लोग चोरȣ- Ǔछपे इसका åयापार करने लगे। अनेक Ĥकार के छल-Ĥपंचɉ का सğपात हआ , कोई घस से काम Ǔनकालता था, कोई चालाकȧ से। अधकाǐरयɉ के पौ-बारह थे। पटवारȣगरȣ का सव[सàमाǓनत पद छोड-छोडकर लोग इस वभाग कȧ बरकं दाजी करते थे। इसके दारोगा पद के लए तो वकȧलɉ का भी जी ललचाता था। यह वह समय था जब अंगरेजी श¢ा और ईसाई मत को लोग एक हȣ वèतु समझते थे। फारसी का Ĥाबãय था। Ĥेम कȧ कथाएँ और शंगा रस के काåय पढकर फारसीदाँ लोग सवȾÍच पदɉ पर ǓनयÈत हो जाया करते थे। मंशी वंशीधर भी जलेखा कȧ वरह-कथा समाÜत करके सीरȣ और फरहाद के Ĥेम-व×तांत को नल और नील कȧ लडाई और अमेǐरका के आवçकार से अधक मह×व कȧ बातɅ समझते हए रोजगार कȧ खोज मɅ Ǔनकले। उनके पता एक अनभवी पǽष थे। समझाने लगे , 'बेटा! घर कȧ दद[शा देख रहे हो। ॠण के बोझ से दबे हए ह। ɇ लडकयाँ हɇ , वे घास-फस कȧ तरह बढती चलȣ जाती ह। ɇ मɇ कगारे पर का व¢ हो रहा , मालमू कब गर पडू ँ ! अब तàहȣं घर के मालक-मÉतार हो। 'नौकरȣ मɅ ओहदे कȧ ओर Úयान मत देना, यह तो पीर का मजार है। Ǔनगाह चढावे और चादर पर रखनी चाǑहए। ऐसा काम ढढना ूँ जहाँ कछ ऊपरȣ आय हो। मासक वेतन तो पण[मासी का चाँद है , जो एक Ǒदन Ǒदखाई देता है और घटते -घटते लÜत हो जाता है। ऊपरȣ आय बहता हआ İोत है िजससे सदैव Üयास बझती है। वेतन मनçय देता है , इसी से उसमɅ विÚद नहȣं होती। ऊपरȣ आमदनी ईæवर देता है , इसी से उसकȧ बरकत होती हɇ , तम èवयं वÙवान हो, तàह Ʌ Èया समझाऊँ । 'इस वषय मɅ ववेक कȧ बडी आवæयकता है। मनçय को देखो, उसकȧ आवæयकता को देखो और अवसर को देखो, उसके उपरांत जो उचत समझो, करो। गरजवाले आदमी के साथ कठोरता करने मɅ लाभ हȣ लाभ है। लेकन बेगरज को दाँव पर पाना जरा कǑठन है। इन बातɉ को Ǔनगाह मɅ बाँध लो यह मेरȣ जÛम भर कȧ कमाई है। इस उपदेश के बाद पताजी ने आशीवा[द Ǒदया। वंशीधर आ£ाकारȣ पğ थे। ये बातɅ Úयान से सनीं और तब घर से चल खडे हए। इस वèतत संसार मɅ उनके लए धैय[ अपना मğ, बिÚद अपनी पथĤदश[क और आ×मावलàबन हȣ अपना सहायक था। लेकन अÍछे शकन से चले थे , जाते हȣ जाते नमक वभाग के दारोगा पद पर ĤǓतिçठत हो गए। वेतन अÍछा और ऊपरȣ आय का तो Ǒठकाना हȣ था। वÚद मंशीजी को सख -संवाद मला तो फले समाए। महाजन कछ नरम पडे , कलवार कȧ आशालता लहलहाई। पडोसयɉ के ǿदय मɅ शल उठने लगे।

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Page 1: Namak Ka Daroga by Munshi Premchand

नमक का दारोगा

लेखक - मुंशी ेमच द जब नमक का नया वभाग बना और ई वर द त व तु के यवहार करने का नषेध हो गया तो लोग चोर -

छपे इसका यापार करने लगे। अनेक कार के छल- पंच का स पातू हआु , कोई घसू से काम नकालता था, कोई चालाक से। अ धका रय के पौ-बारह थे। पटवार गर का सवस मा नत पद छोड-छोडकर लोग

इस वभाग क बरकंदाजी करते थे। इसके दारोगा पद के लए तो वक ल का भी जी ललचाता था। यह वह समय था जब अंगरेजी श ा और ईसाई मत को लोग एक ह व तु समझते थे। फारसी का ाब य

था। ेम क कथाएँ और शंगाृ र रस के का य पढकर फारसीदाँ लोग सव च पद पर नय तु हो जाया करते

थे। मंशीु वंशीधर भी जलेखाु क वरह-कथा समा त करके सीर और फरहाद के ेम-व तांतृ को नल और नील

क लडाई और अमे रका के आ व कार से अ धक मह व क बात समझते हएु रोजगार क खोज म नकले। उनके पता एक अनभवीु प षु थे। समझाने लगे, 'बेटा! घर क ददशाु देख रहे हो। ॠण के बोझ से दबे हएु

ह। लड कया ँह, वे घास-फसू क तरह बढती चल जाती ह। म कगारे पर का वृ हो रहा हँू, न मालमू कब

गर पडँू! अब त ह ंु घर के मा लक-म तारु हो। 'नौकर म ओहदे क ओर यान मत देना, यह तो पीर का मजार है। नगाह चढावे और चादर पर रखनी चा हए। ऐसा काम ढढनाू ँ जहा ँकछु ऊपर आय हो। मा सक वेतन तो पणमासीू का चाँद है, जो एक दन

दखाई देता है और घटते-घटते ल तु हो जाता है। ऊपर आय बहता हआु ोत है िजससे सदैव यास बझतीु

है। वेतन मन यु देता है, इसी से उसम वि दृ नह ंहोती। ऊपर आमदनी ई वर देता है, इसी से उसक बरकत

होती ह, तमु वयं व वान हो, त हु या समझाऊँ। 'इस वषय म ववेक क बडी आव यकता है। मन यु को देखो, उसक आव यकता को देखो और अवसर को देखो, उसके उपरातं जो उ चत समझो, करो। गरजवाले आदमी के साथ कठोरता करने म लाभ ह लाभ है। ले कन बेगरज को दाँव पर पाना जरा क ठन है। इन बात को नगाह म बाँध लो यह मेर ज म भर क

कमाई है। इस उपदेश के बाद पताजी ने आशीवाद दया। वंशीधर आ ाकार पु थे। ये बात यान से सनींु और तब

घर से चल खडे हए।ु इस व ततृ संसार म उनके लए धैय अपना म , बि दु अपनी पथ दशक और

आ मावल बन ह अपना सहायक था। ले कन अ छे शकनु से चले थे, जाते ह जाते नमक वभाग के

दारोगा पद पर ति ठत हो गए। वेतन अ छा और ऊपर आय का तो ठकाना ह न था। व दृ मंशीजीु को सखु -संवाद मला तो फलेू न समाए। महाजन कछु नरम पडे, कलवार क आशालता लहलहाई। पडो सय के

दय म शलू उठने लगे।

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जाडे के दन थे और रात का समय। नमक के सपाह , चौक दार नशे म म त थे। मंशीु वंशीधर को यहा ँआए

अभी छह मह न से अ धक न हएु थे, ले कन इस थोडे समय म ह उ ह ने अपनी कायकशलताु और उ तम

आचार से अफसर को मो हत कर लया था। अफसर लोग उन पर बहतु व वास करने लगे। नमक के द तर से एक मील पवू क ओर जमनाु बहती थी, उस पर नाव का एक पलु बना हआु था। दारोगाजी कवाड बंद कए मीठ नीदं सो रहे थे। अचानक ऑ ंख खलु तो नद के वाह क जगह गा डय क

गडगडाहट तथा म लाह का कोलाहल सनाईु दया। उठ बैठे। इतनी रात गए गा डया ँ य नद के पार जाती ह? अव य कछु न कछु गोलमाल है। तक ने म को प टु

कया। वरद पहनी, तमंचा जेब म रखा और बात क बात म घोडा बढाए हएु पलु पर आ पहचे।ु ँ गा डय क

एक ल बी कतार पलु के पार जाती देखी। डाँटकर पछाू , ' कसक गा डया ँह। थोडी देर तक स नाटा रहा। आद मय म कछु कानाफसीू हईु तब आगे वाले ने कहा-'पं डत अलोपीद न क । 'कौन पं डत अलोपीद न? 'दातागंज के। मुंशी वंशीधर च के। पं डत अलोपीद न इस इलाके के सबसे ति ठत जमींदार थे। लाख पए का लेन-देन

करते थे, इधर छोटे से बडे कौन ऐसे थे जो उनके ॠणी न ह । यापार भी बडा ल बा-चौडा था। बडे चलते-

परजेु आदमी थे। ऍ ं गरेज अफसर उनके इलाके म शकार खेलने आते और उनके मेहमान होते। बारह मास

सदा त चलता था। मंशीु ने पछाू , 'गा डया ँकहा ँजाएँगी? उ तर मला, 'कानपरु । ले कन इस न पर क इनम या है, स नाटा छा गया। दारोगा साहब का संदेह और भी बढा। कछु देर तक उ तर क बाट देखकर वह जोर से बोले, ' या तमु सब गगेूँ हो गए हो? हम पछतेू ह इनम या लदा है? जब इस बार भी कोई उ तर न मला तो उ ह ने घोडे को एक गाडी से मलाकर बोरे को टटोला। म दरू हो गया। यह नमक के डेले थे। पं डत अलोपीद न अपने सजीले रथ पर सवार, कछु सोते, कछु जागते चले आते थे। अचानक कई गाडीवान

ने घबराए हुए आकर जगाया और बोले-'महाराज! दारोगा ने गा डया ँरोक द ह और घाट पर खडे आपको बलातेु ह। पं डत अलोपीद न का ल मीजी पर अखंड व वास था। वह कहा करते थे क संसार का तो कहना ह या, वग म भी ल मी का ह रा य है। उनका यह कहना यथाथ ह था। याय और नी त सब ल मी के ह

खलौने ह, इ ह वह जैसे चाहती ह नचाती ह। लेटे ह लेटे गव से बोले, चलो हम आते ह। यह कहकर

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पं डतजी ने बडी नश◌ं चतता् से पान के बीडे लगाकर खाए। फर लहाफ ओढे हएु दारोगा के पास आकर

बोले, 'बाबजीू आशीवाद! क हए, हमसे ऐसा कौन सा अपराध हआु क गा डयाँ रोक द ग । हम ा मण पर

तो आपक कपाृ - ि ट रहनी चा हए। वंशीधर खाई से बोले, 'सरकार ह म।ु पं. अलोपीद न ने हसकरँ कहा, 'हम सरकार ह मु को नह ंजानते और न सरकार को। हमारे सरकार तो आप ह ह। हमारा और आपका तो घर का मामला है, हम कभी आपसे बाहर हो सकते ह? आपने यथ का क ट उठाया। यह हो नह ंसकता क इधर से जाएँ और इस घाट के देवता को भट न चढाव। म तो आपक

सेवा म वयं ह आ रहा था। वंशीधर पर ऐ वय क मो हनी वंशी का कछु भाव न पडा। ईमानदार क नई

उमंग थी। कडककर बोले, 'हम उन नमकहराम म नह ंहै जो कौ डय पर अपना ईमान बेचते फरते ह। आप

इस समय हरासत म ह। आपको कायदे के अनसारु चालान होगा। बस, मझेु अ धक बात क फसतु नह ंहै। जमादार बदल संहू ! तमु इ ह हरासत म ले चलो, म ह मु देता ह।ू ँ पं. अलोपीद न ति भत हो गए। गाडीवान म हलचल मच गई। पं डतजी के जीवन म कदा चत यह पहला ह अवसर था क पं डतजी को ऐसी कठोर बात सननीु पडीं। बदल संहू आगे बढा, क तु रोब के मारे यह

साहस न हआु क उनका हाथ पकड सके। पं डतजी ने धम को धन का ऐसा नरादर करते कभी न देखा था। वचार कया क यह अभी उ ंड लडका है। माया-मोह के जाल म अभी नह ंपडा। अ हड है, झझकता है। बहतु द नभाव से बोले, 'बाबू साहब, ऐसा न क िजए, हम मट जाएँगे। इ जत धलू म मल जाएगी। हमारा अपमान करने से आपके हाथ या आएगा। हम कसी तरह आपसे बाहर थोडे ह ह। वंशीधर ने कठोर वर म कहा, 'हम ऐसी बात नह ंसननाु चाहते। अलोपीद न ने िजस सहारे को च ान समझ रखा था, वह पैर के नीचे खसकता हआु मालमू हआ।ु

वा भमान और धन-ऐ वय क कडी चोट लगी। क तु अभी तक धन क सांि यक शि त का पराू भरोसा था। अपने म तारु से बोले, 'लालाजी, एक हजार के नोट बाबू साहब क भट करो, आप इस समय भखेू संह

हो रहे ह। वंशीधर ने गरम होकर कहा, 'एक हजार नह ,ं एक लाख भी मझेु स चे माग से नह ं हटा सकते। धम क इस बि दह नु ढता और देव-दलभु याग पर मन बहतु झझलाया।ुँ अब दोन शि तय म सं ाम

होने लगा। धन ने उछल-उछलकर आ मण करने शु कए। एक से पाँच, पाँच से दस, दस से पं ह और

पं ह से बीस हजार तक नौबत पहचीु ँ , क तु धम अलौ कक वीरता के साथ बहसं यकु सेना के स मखु

अकेला पवत क भाँ त अटल, अ वच लत खडा था। अलोपीद न नराश होकर बोले, 'अब इससे अ धक मेरा साहस नह ं। आगे आपको अ धकार है। वंशीधर ने अपने जमादार को ललकारा। बदल संहू मन म दारोगाजी को गा लयाँ देता हआु पं डत

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अलोपीद न क ओर बढा। पं डतजी घबडाकर दो-तीन कदम पीछे हट गए। अ यंत द नता से बोले, 'बाबू

साहब, ई वर के लए मझु पर दया क िजए, म प चीस हजार पर नपटारा करने का तैयार ह।ू ँ 'अस भव बात है। 'तीस हजार पर? ' कसी तरह भी स भव नह ं। ' या चाल स हजार पर भी नह ं। 'चाल स हजार नह ं, चाल स लाख पर भी अस भव है। 'बदल संहू , इस आदमी को हरासत म ले लो। अब म एक श द भी नह ंसननाु चाहता। धम ने धन को पैर तले कचलु डाला। अलोपीद न ने एक ट-प टु मन यु को हथक डयाँ लए हएु अपनी तरफ आते देखा। चार ओर नराश और कातर ि ट से देखने लगे। इसके बाद म छतू होकर गर पडे। द नयाु सोती थी पर द नयाु क जीभ जागती थी। सवेरे दे खए तो बालक-व दृ सबके महु ँ से यह बात सनाईु

देती थी। िजसे दे खए वह पं डतजी के इस यवहार पर ट का- ट पणी कर रहा था, नंदा क बौछार हो रह

थीं, मानो संसार से अब पापी का पाप कट गया। पानी को दधू के नाम से बेचने वाला वाला, कि पत रोजनामचे भरने वाले अ धकार वग, रेल म बना टकट सफर करने वाले बाबू लोग, जाल द तावेज बनाने वाले सेठ और साकार यह सब के सब देवताओं क

भाँ त गदन चला रहे थे। जब दसरेू दन पं डत अलोपीद न अ भय तु होकर कां टेबल के साथ, हाथ म हथक डया,ँ दय म ला न

और ोभ भरे, ल जा से गदन झकाएु अदालत क तरफ चले तो सारे शहर म हलचल मच गई। मेल म

कदा चत ऑ ंख इतनी य न होती ह गी। भीड के मारे छत और द वार म कोई भेद न रहा। कतं ु अदालत म पहचनेु ँ क देर थी। पं. अलोपीद न इस अगाध वन के संह थे। अ धकार वग उनके भ त,

अमले उनके सेवक, वक ल-म तारु उनके आ ा पालक और अरदल , चपरासी तथा चौक दार तो उनके

बना मोल के गलामु थे। उ ह देखते ह लोग चार तरफ से दौडे। सभी लोग वि मत हो रहे थे। इस लए नह ं क अलोपीद न ने यह

कम कया, बि क इस लए क वह काननू के पंजे म कैसे आए? ऐसा मन यु िजसके पास असा य साधन

करने वाला धन और अन य वाचालता हो, वह य काननू के पंजे म आए? येक मन यु उनसे सहानभ तु ू

कट करता था।

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बडी त परता से इस आ मण को रोकने के न म त वक ल क एक सेना तैयार क गई। याय के मैदान म

धम और धन म य द ठन गया। वंशीधर चपचापु खडे थे। उनके पास स य के सवा न कोई बल था, न

प ट भाषण के अ त र त कोई श । गवाह थे, कतं ु लोभ से डाँवाडोल। यहा ँतक क मंशीजीु को याय भी अपनी ओर कछु खंचा हआु द ख पडता था। वह याय का दरबार था, परंतु उसके कमचा रय पर प पात का नशा छाया हआु था। कतं ु प पात और याय का या मेल? जहा ँप पात हो, वहाँ याय क क पना नह ंक जा सकती। मकदमाु शी ह समा त हो गया। ड ट मिज ेट ने अपनी तजवीज म लखा, पं. अलोपीद न के व द दए गए माण नमलू और

मा मक ह। वह एक बडे भार आदमी ह। यह बात क पना के बाहर है क उ ह ने थोडे लाभ के लए ऐसा द साहसु कया हो। य य प नमक के दरोगा मंशीु वंशीधर का अ धक दोष नह ंहै, ले कन यह बडे खेद क

बात है क उसक उ ंडता और वचारह नता के कारण एक भलेमानसु को क ट झेलना पडा। हम स न ह

क वह अपने काम म सजग और सचेत रहता है, कतं ु नमक के मकदमेु क बढ हईु नमक से हलाल ने

उसके ववेक और बि दु को ट कर दया। भ व य म उसे हो शयार रहना चा हए। वक ल ने यह फैसला सनाु और उछल पडे। पं. अलोपीद न म करातेु ु हएु बाहर नकले। वजन बाँधव ने

पए क लटू क । उदारता का सागर उमड पडा। उसक लहर ने अदालत क नींव तक हला द । जब वंशीधर बाहर नकले तो चार ओर उनके ऊपर यं यबाण क वषा होने लगी। चपरा सय ने झकु -

झककरु सलाम कए। कतं ु इस समय एक कटु वा य, एक-एक संकेत उनक गवाि न को व लत कर

रहा था। कदा चत इस मुकदमे म सफल होकर वह इस तरह अकडते हएु न चलते। आज उ ह संसार का एक

खेदजनक व च अनभवु हआ।ु याय और व व ता, लंबी-चौडी उपा धयाँ, बडी-बडी दा ढयाँ, ढ ले चोगे

एक भी स चे आदर का पा नह ंहै। वंशीधर ने धन से बैर मोल लया था, उसका म यू चकानाु अ नवाय था। क ठनता से एक स ताह बीता होगा क मअ तलु का परवाना आ पहचा।ु ँ काय-परायणता का दंड मला। बेचारे भ न दय, शोक और खेद से

य थत घर को चले। बढेू मंशीजीु तो पहले ह से कडबडाु ु रहे थे क चलते-चलते इस लडके को समझाया था, ले कन इसने एक न सनी।ु सब मनमानी करता है। हम तो कलवार और कसाई के तगादे सह, बढापेु म भगत

बनकर बैठ और वहाँ बस वह सखीू तन वाह! हमने भी तो नौकर क है और कोई ओहदेदार नह ंथे। ले कन

काम कया, दल खोलकर कया और आप ईमानदार बनने चले ह। घर म चाहे ऍ ं धेरा हो, मि जद म अव य

दया जलाएँगे। खेद ऐसी समझ पर! पढना- लखना सब अकारथ गया। इसके थोडे ह दन बाद, जब मंशीु वंशीधर इस दराव थाु म घर पहचेु ँ और बढेू पताजी ने समाचार सनाु तो सर पीट लया। बोले- 'जी चाहता है क त हाराु और अपना सर फोड ल।ूँ बहतु देर तक पछता-पछताकर

हाथ मलते रहे। ोध म कुछ कठोर बात भी कह ंऔर य द वंशीधर वहा ँसे टल न जाता तो अव य ह यह

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ोध वकट प धारण करता। व दृ माता को भी द:ुख हआ।ु जग नाथ और रामे वर या ा क कामनाएँ

म ी म मल ग । प नी ने कई दन तक सीधे महुँ बात तक नह ंक । इसी कार एक स ताह बीत गया। सां य का समय था। बढेू मंशीजीु बैठे-बैठे राम नाम क माला जप रहे थे। इसी समय उनके वार पर सजा हआु रथ आकर का। हरे और गलाबीु परदे, पछ हए बैल क जोडी, उनक

गदन म नीले धागे, सींग पीतल से जडे हए।ु कई नौकर ला ठयाँ कंध पर रखे साथ थे। मंशीजीु अगवानी को दौडे देखा तो पं डत अलोपीद न ह। झककरु दंडवत ्क और ल लो-च पो क बात करने

लगे- 'हमारा भा य उदय हआु , जो आपके चरण इस वार पर आए। आप हमारे प यू देवता ह, आपको कौन

सा महुँ दखाव, महुँ म तो का लख लगी हईु है। कतं ु या कर, लडका अभागा कपतू है, नह ंतो आपसे या महुँ छपाना पडता? ई वर न संतान चाहे र खे पर ऐसी संतान न दे। अलोपीद न ने कहा- 'नह ंभाई साहब, ऐसा न क हए। मंशीजीु ने च कत होकर कहा- 'ऐसी संतान को और या कँ? अलोपीद न ने वा स यपणू वर म कहा- 'कल तलकु और प खु क क त उ वल करने वाले संसार म

ऐसे कतने धमपरायण मन यु ह जो धम पर अपना सब कछु अपण कर सक! पं. अलोपीद न ने वंशीधर से कहा- 'दरोगाजी, इसे खशामदु न सम झए, खशामदु करने के लए मझेु इतना क ट उठाने क ज रत न थी। उस रात को आपने अपने अ धकार-बल से अपनी हरासत म लया था, कतं ु आज म वे छा से आपक हरासत म आया ह।ू ँ मने हजार रईस और अमीर देखे, हजार उ च

पदा धका रय से काम पडा कतं ु परा त कया तो आपने। मने सबको अपना और अपने धन का गलामु

बनाकर छोड दया। मझेु आ ा द िजए क आपसे कछु वनय क ।ँ वंशीधर ने अलोपीद न को आते देखा तो उठकर स कार कया, कतं ु वा भमान स हत। समझ गए क यह

महाशय मझेु लि जत करने और जलाने आए ह। मा- ाथना क चे टा नह ंक , वरन ्उ ह अपने पता क

यह ठकरसहातीु ु क बात अस य सी तीत हई।ु पर पं डतजी क बात सनीु तो मन क मैल मट गई। पं डतजी क ओर उडती हईु ि ट से देखा। स ाव झलक रहा था। गव ने अब ल जा के सामने सर झकाु

दया। शमाते हएु बोले- 'यह आपक उदारता है जो ऐसा कहते ह। मझसेु जो कछु अ वनय हईु है, उसे मा क िजए। म धम क बेडी म जकडा हआु था, नह ंतो वैसे म आपका दास ह।ू ँ जो आ ा होगी वह मेरे सर-

माथे पर। अलोपीद न ने वनीत भाव से कहा- 'नद तट पर आपने मेर ाथना नह ं वीकार क थी, कतं ु आज

वीकार करनी पडेगी। वंशीधर बोले- 'म कस यो य हँू, कतं ु जो कछु सेवा मझसेु हो सकती है, उसम टु न होगी।

Page 7: Namak Ka Daroga by Munshi Premchand

अलोपीद न ने एक टा प लगा हआु प नकाला और उसे वंशीधर के सामने रखकर बोले- 'इस पद को वीकार क िजए और अपने ह ता र कर द िजए। म ा मण हँू, जब तक यह सवाल पराू न क िजएगा, वार से न हटगा।ू ँ

मंशीु वंशीधर ने उस कागज को पढा तो कत ताृ से ऑ ंख म ऑ ं सू भर आए। पं. अलोपीद न ने उनको अपनी सार जायदाद का थायी मैनेजर नयत कया था। छह हजार वाषक वेतन के अ त र त रोजाना खच

अलग, सवार के लए घोडा, रहने को बगलाँ , नौकर-चाकर म त।ु कि पत वर म बोले- 'पं डतजी मझमु

इतनी साम य नह ंहै क आपक उदारता क शंसा कर सकँू! कतं ु ऐसे उ च पद के यो य नह ंह।ू ँ अलोपीद न हसकरँ बोले- 'मझेु इस समय एक अयो य मन यु क ह ज रत है। वंशीधर ने गंभीर भाव से कहा- 'य म आपका दास ह।ू ँ आप जैसे क तवान, स जन प षु क सेवा करना मेरे

लए सौभा य क बात है। कतं ु मझमु न व या है, न बि दु , न वह वभाव जो इन टयु क प तू कर देता है। ऐसे महान काय के लए एक बडे मम अनभवीु मन यु क ज रत है। अलोपीद न ने कलमदान से कलम नकाल और उसे वंशीधर के हाथ म देकर बोले- 'न मझेु व व ता क

चाह है, न अनभवु क , न मम ता क , न कायकशलताु क । इन गणु के मह व को खबू पा चकाु ह।ू ँ अब

सौभा य और सअवसरु ने मझेु वह मोती दे दया िजसके सामने यो यता और व व ता क चमक फ क पड

जाती है। यह कलम ल िजए, अ धक सोच- वचार न क िजए, द तखत कर द िजए। परमा मा से यह

ाथना है क वह आपको सदैव वह नद के कनारे वाला, बेमरौवतु , उ ंड, कठोर परंतु धम न ठ दारोगा बनाए रखे। वंशीधर क ऑ ंख डबडबा आ । दय के संक चतु पा म इतना एहसान न समा सका। एक बार फर

पं डतजी क ओर भि त और दा क ि ट से देखा और काँपते हएु हाथ से मैनेजर के कागज पर

ह ता र कर दए। अलोपीद न ने फि लतु होकर उ ह गले लगा लया।