pipal chhav: munawwar rana

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Pipal Chhav: Munawwar Rana.odt जो तीर भी आता है वो ख़ाली नह जाता मायूस मेरे दर से सवाली नह जाता 1

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Page 1: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा मददत हई हमन कोई पीपल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो ग़ज़ल पढन म लगता भी ग़ज़ल जसा था िसफ़र ग़ज़ल नही लहजा भी ग़ज़ल जसा था

वक़त न चहर को बख़शी ह ख़राश वरना कछ िदनो पहल य चहरा भी ग़ज़ल जसा था

तमस िबछडा तो पसनद आ गयी बतरतीबी इसस पहल मरा कमरा भी ग़ज़ल जसा था

कोई मौसम भी िबछड कर हम अचछा न लगा वस पानी का बरसना भी ग़ज़ल जसा था

नीम का पड था बरसात भी और झला था गाव म गज़रा ज़माना भी ग़ज़ल जसा था

वो भी कया िदन थ तर पाव की आहट सन कर िदल का सीन म धडकना भी ग़ज़ल जसा था

इक ग़ज़ल दखती रहती थी दरीच स मझ सोचता ह वो ज़माना भी ग़ज़ल जसा था

कछ तबीयत भी ग़ज़ल कहन प आमादा थी कछ तरा फ़ट क रोना भी ग़ज़ल जसा था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मरा बचपन था मरा घर था िखलौन थ मर सर प मा-बाप का साया भी ग़ज़ल जसा था

नमर-ओ-नाज़क-सा बहत शोख़-सा शमीला-सा कछ िदनो पहल तो राना भी ग़ज़ल जसा था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फ़िरशत आ क उनक िजसम पर ख़शब लगात ह वो बचच रल क िडबबो म जो झाड लगात ह

अनधरी रात म अक़सर सनहरी मशअल लकर पिरनदो की मसीबत का पता जगन लगात ह

िदलो का हाल आसानी स कब मालम होता ह िक पशानी प चनदन तो सभी साध लगात ह

य माना आप को शोल बझान म महारत ह मगर वो आग जो मज़लम क आस लगात ह

िकसी क पाव की आहट स िदल ऐस उछलता ह छलाग जगलो म िजस तरह आह लगात ह

बहत ममिकन ह अब मरा चमन वीरान हो जाय िसयासत क शजर पर घोसल उल लगात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

धसती हई क़बरो की तरफ़ दख िलया था मा-बाप क चहरो की तरफ़ दख िलया था

दौलत स मोहबबत तो नही थी मझ लिकन बचचो न िखलौनो की तरफ़ दख िलया था

उस िदन स बहत तज़ हवा चलन लगी ह बस मन चरागो की तरफ़ दख िलया था

अब तमको बलनदी कभी अचछी न लगगी कयो ख़ाकनशीनो की तरफ़ दख िलया था

तलवार तो कया मरी नज़र तक नही उटठी उस शख़स क बचचो की तरफ़ दख िलया था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

त हर पिरनद को छत पर उतार लता ह य शौक़ वो ह जो ज़वर उतार लता ह

म आसमा की बलनदी प बारहा पहचा मगर नसीब ज़मी पर उतार लता ह

अमीर-शहर की हमददीयो स बच क रहो य सर स बोझ नही सर उतार लता ह

उसी को िमलता ह एजाज़ भी ज़मान म बहन क सर स जो चादर उतार लता ह

उठा ह हाथ तो िफ़र वार भी ज़ररी ह िक साप आखो म मज़र उतार लता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़बसरत झील म हसता कवल भी चािहए ह गला अचछा तो िफ़र अचछी ग़ज़ल भी चािहए

उठ क इस हसती हई दिनया स जा सकता ह म अहल-महिफ़ल को मगर मरा बदल भी चािहए

िसफ़र फ़लो स सजावट पड की ममिकन नही मरी शाख़ो को नय मौसम म फ़ल भी चािहए

ऐ मरी ख़ाक-वतन तरा सगा बटा ह म

कयो रह फ़टपाथ पर मझको महल भी चािहए

धप वादो की बरी लगी ह अब हम अब हमार मसअलो का कोई हल भी चािहए

तन सारी बािज़या जीती ह मझ पर बठ कर अब म बढा हो गया ह असतबल भी चािहए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द सख गया ज़ख़म न मरहम नही दखा इस खत न बरसात का मौसम नही दखा

इस कौम को तलवार स डर ही नही लगता तमन कभी ज़जीर का मातम नही दखा

शाख़-िदल-सरसबज़ म फ़ल ही नही आय आखो न कभी नीद का मौसम नही दखा

मिद सजद की चटाई प य सोत हए बचच इन बचचो को दखो कभी रशम नही दखा

हम ख़ानाबदोशो की तरह घर म रह ह कमर न हमार कभी शीशम नही दखा

इसकल क िदन याद न आन लग राना इस ख़ौफ़ स हमन कभी अलबम नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम सायादार पड ज़मान क काम आय जब सखन लग तो जलान क काम आय

तलवार की िमयान कभी फ़कना नही ममिकन ह दशमनो को डरान क काम आय

कचचा समझ क बच न दना मका को शायद य कभी सर को छपान क काम आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

इतना रोय थ िलपट कर दरो-िदवार स हम शहर म आ क बहत िदन रह बीमार-स हम

अपन िबकन का बहत दख ह हम भी लिकन मसकरात हए िमलत ह खरीदार स हम

सग आत थ बहत चारो तरफ़ स घर म इसिलए डरत ह अब शाख़-समरदार स हम

सायबा हो तरा आचल हो िक छत हो लिकन बच नही सकत रसवाई की बौछार स हम

रासता तकन म आख भी गवा दी राना िफ़र भी महरम रह आपक दीदार स हम

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मफ़िलसी पास-शराफ़त नही रहन दगी य हवा पड सलामत नही रहन दगी

शहर क शोर स घबरा क अगर भागोग िफ़र तो जगल म भी वहशत नही रहन दगी

कछ नही होगा तो आचल म छपा लगी मझ मा कभी सर प खली छत नही रहन दगी

आप क पास ज़माना नही रहन दगा आप स दर मोहबबत नही रहन दगी

शहर क लोग बहत अचछ ह लिकन मझको मीर जसी य तबीयत नही रहन दगी

रासता अब भी बदल दीिजए राना साहब शायरी आप की इज़ज़त नही रहन दगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दशतो-सहरा म कभी उजड खडर म रहना उमर भर कोई न चाहगा सफ़र म रहना

ऐ ख़दा फ़ल-स बचचो की िहफ़ाज़त करना मफ़िलसी चाह रही ह मर घर म रहना

इसिलए बठी ह दहलीज़ प मरी बहन फ़ल नही चाहत ता-उमर शजर म रहना

मददतो बाद कोई शख़स ह आन वाला ऐ मर आसओ तम दीद-ए-तर म रहना

िकस को य िफ़कर िक हालात कहा आ पहच लोग तो चाहत ह िसफ़र ख़बर म रहना

मौत लगती ह मझ अपन मका की मािनद िज़नदगी जस िकसी और क घर म रहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िहजर म पहल-पहल रोना बहत अचछा लगा उमर कचची थी तो फ़ल कचचा बहत अचछा लगा

मन एक मददत स मिद सजद भी नही दखी मगर एक बचच का अज़ा दना बहत अचछा लगा

िजसम पर मर बहत शफ़फ़ाक़ कपड थ मगर धल िमटटी म अटा बटा बहत अचछा लगा

शहर की सडक हो चाह गाव की पगडिद णडया मा की उगली थाम कर चलना बहत अचछा लगा

तार पर बठी हई िचिडयो को सोता दख कर फ़शर पर सोता हआ बचचा बहत अचछा लगा

हम तो उसको दखन आय थ इतनी दर स वो समझता था हम मला बहत अचछा लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हसत हए मा-बाप की गाली नही खात बचच ह तो कयो शौक़ स िमटटी नही खात

तम स नही िमलन का इरादा तो ह लिकन तम स न िमलग य क़सम भी नही खात

सो जात ह फ़टपाथ प अख़बार िबछा कर मज़दर कभी नीद की गोली नही खात

बचच भी ग़रीबी को समझन लग शायद जब जाग भी जात ह तो सहरी नही खात

दावत तो बडी चीज़ ह हम जस क़लनदर हर एक क पसो की दवा भी नही खात

अलाह ग़रीबो का मददगार ह राना हम लोगो क बचच कभी सदी नही खात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ऐ हकमत तरा मआर न िगरन पाय मरी मिद सजद ह य मीनार न िगरन पाय

आिधयो दशत म तहज़ीब स दािखल होना पड कोई भी समरदार न िगरन पाय

म िनहतथो पर कभी वार नही करता ह मर दशमन तरी तलवार न िगरन पाय

इसम बचचो की जली लाशो की तसवीर ह दखना हाथ स अख़बार न िगरन पाय

िमलता-जलता ह सभी माओ स मा का चहरा गरदवार की भी दीवार न िगरन पाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नय कमरो म अब चीज़ परानी कौन रखता ह पिरनदो क िलए शहरो म पानी कौन रखता ह

कही भी इन िदनो मरी तबीयत ही नही लगती तरी जािनब स िदल म बदगमानी कौन रखता ह

हमी िगरती हई दीवार को थाम रह वरना सलीक़ स बज़गो की िनशानी कौन रखता ह

य रिगसतान ह चशमा कही स फ़ट सकता ह शराफ़त इस सदी म ख़ानदानी कौन रखता ह

हमी भल नही अचछ-बर िदन आज तक वरना मनववर याद माज़ी की कहानी कौन रखता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िजसम का बरसो पराना य खडर िगर जाएगा आिधयो का ज़ोर कहता ह शजर िगर जाएगा

हम तवक़क़ो स ज़यादा सख़तजा सािबत हए वो समझता था की पतथर स समर िगर जाएगा

अब मनािसब ह िक तम काटो को दामन सौप दो फ़ल तो ख़द ही िकसी िदन सखकर िगर जाएगा

मरी गिडया-सी बहन को ख़दकशी करना पडी कयाzwnj ख़बर थी दोसत मरा इस क़दर िगर जाएगा

इसीिलए मन बज़गो की ज़मीन छोड दी मरा घर िजस िदन बसगा तरा घर िगर जाएगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़दा-न-ख़वासता जननत हराम कर लग मनिफ़क़ो को अगर हम सलाम कर लग

अभी तो मरी ज़ररत ह मर बचचो को बड हए तो य ख़द इनतज़ाम कर लग

इसी ख़याल स हमन य पड बोया ह हमार साथ पिरनद क़याम कर लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडन वालो का अब इनतज़ार कया करना उडा िदय तो कबतर शमार कया करना

हमार हाथ म तलवार भी ह मौक़ा भी मगर िगर हए दशमन प वार कया करना

वो आदमी ह तो एहसास-जमर काफ़ी ह वो सग ह तो उस सगसार कया करना

बदन म ख़न नही हो तो ख़बहा कसा

मगर अब इसका बया बार-बार कया करना

चराग़-आिख़र-शब जगमगा रहा ह मगर चराग़-आिख़र-शब का शमार कया करना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जल रह ह धप म लिकन इसी सहरा म ह कया ख़बर वहशत को हम भी शहर-कलकतता म ह

हम ह गज़र वक़त की तहज़ीब क रौशन चराग़ फ़ख़र कर अज़-वतन हम आज तक दिनया म ह

मछिलया तक ख़ौफ़ स दिरया िकनार आ गयी य हमारा हौसला ह हम अगर दिरया म ह

हम को बाज़ारो की ज़ीनत क िलय तोडा गया फ़ल होकर भी कहा हम गस-ए-लला म ह

मर पीछ आन वालो को कहा मालम ह ख़न क धबब भी शािमल मर नक़श-पा म ह

ऐब-जई स अगर फ़सरत िमल तो दखना दोसतो कछ ख़िबया भी हज़रत-राना म ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा मददत हई हमन कोई पीपल नही दखा

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वो ग़ज़ल पढन म लगता भी ग़ज़ल जसा था िसफ़र ग़ज़ल नही लहजा भी ग़ज़ल जसा था

वक़त न चहर को बख़शी ह ख़राश वरना कछ िदनो पहल य चहरा भी ग़ज़ल जसा था

तमस िबछडा तो पसनद आ गयी बतरतीबी इसस पहल मरा कमरा भी ग़ज़ल जसा था

कोई मौसम भी िबछड कर हम अचछा न लगा वस पानी का बरसना भी ग़ज़ल जसा था

नीम का पड था बरसात भी और झला था गाव म गज़रा ज़माना भी ग़ज़ल जसा था

वो भी कया िदन थ तर पाव की आहट सन कर िदल का सीन म धडकना भी ग़ज़ल जसा था

इक ग़ज़ल दखती रहती थी दरीच स मझ सोचता ह वो ज़माना भी ग़ज़ल जसा था

कछ तबीयत भी ग़ज़ल कहन प आमादा थी कछ तरा फ़ट क रोना भी ग़ज़ल जसा था

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मरा बचपन था मरा घर था िखलौन थ मर सर प मा-बाप का साया भी ग़ज़ल जसा था

नमर-ओ-नाज़क-सा बहत शोख़-सा शमीला-सा कछ िदनो पहल तो राना भी ग़ज़ल जसा था

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फ़िरशत आ क उनक िजसम पर ख़शब लगात ह वो बचच रल क िडबबो म जो झाड लगात ह

अनधरी रात म अक़सर सनहरी मशअल लकर पिरनदो की मसीबत का पता जगन लगात ह

िदलो का हाल आसानी स कब मालम होता ह िक पशानी प चनदन तो सभी साध लगात ह

य माना आप को शोल बझान म महारत ह मगर वो आग जो मज़लम क आस लगात ह

िकसी क पाव की आहट स िदल ऐस उछलता ह छलाग जगलो म िजस तरह आह लगात ह

बहत ममिकन ह अब मरा चमन वीरान हो जाय िसयासत क शजर पर घोसल उल लगात ह

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धसती हई क़बरो की तरफ़ दख िलया था मा-बाप क चहरो की तरफ़ दख िलया था

दौलत स मोहबबत तो नही थी मझ लिकन बचचो न िखलौनो की तरफ़ दख िलया था

उस िदन स बहत तज़ हवा चलन लगी ह बस मन चरागो की तरफ़ दख िलया था

अब तमको बलनदी कभी अचछी न लगगी कयो ख़ाकनशीनो की तरफ़ दख िलया था

तलवार तो कया मरी नज़र तक नही उटठी उस शख़स क बचचो की तरफ़ दख िलया था

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त हर पिरनद को छत पर उतार लता ह य शौक़ वो ह जो ज़वर उतार लता ह

म आसमा की बलनदी प बारहा पहचा मगर नसीब ज़मी पर उतार लता ह

अमीर-शहर की हमददीयो स बच क रहो य सर स बोझ नही सर उतार लता ह

उसी को िमलता ह एजाज़ भी ज़मान म बहन क सर स जो चादर उतार लता ह

उठा ह हाथ तो िफ़र वार भी ज़ररी ह िक साप आखो म मज़र उतार लता ह

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ख़बसरत झील म हसता कवल भी चािहए ह गला अचछा तो िफ़र अचछी ग़ज़ल भी चािहए

उठ क इस हसती हई दिनया स जा सकता ह म अहल-महिफ़ल को मगर मरा बदल भी चािहए

िसफ़र फ़लो स सजावट पड की ममिकन नही मरी शाख़ो को नय मौसम म फ़ल भी चािहए

ऐ मरी ख़ाक-वतन तरा सगा बटा ह म

कयो रह फ़टपाथ पर मझको महल भी चािहए

धप वादो की बरी लगी ह अब हम अब हमार मसअलो का कोई हल भी चािहए

तन सारी बािज़या जीती ह मझ पर बठ कर अब म बढा हो गया ह असतबल भी चािहए

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ख़द सख गया ज़ख़म न मरहम नही दखा इस खत न बरसात का मौसम नही दखा

इस कौम को तलवार स डर ही नही लगता तमन कभी ज़जीर का मातम नही दखा

शाख़-िदल-सरसबज़ म फ़ल ही नही आय आखो न कभी नीद का मौसम नही दखा

मिद सजद की चटाई प य सोत हए बचच इन बचचो को दखो कभी रशम नही दखा

हम ख़ानाबदोशो की तरह घर म रह ह कमर न हमार कभी शीशम नही दखा

इसकल क िदन याद न आन लग राना इस ख़ौफ़ स हमन कभी अलबम नही दखा

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हम सायादार पड ज़मान क काम आय जब सखन लग तो जलान क काम आय

तलवार की िमयान कभी फ़कना नही ममिकन ह दशमनो को डरान क काम आय

कचचा समझ क बच न दना मका को शायद य कभी सर को छपान क काम आय

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इतना रोय थ िलपट कर दरो-िदवार स हम शहर म आ क बहत िदन रह बीमार-स हम

अपन िबकन का बहत दख ह हम भी लिकन मसकरात हए िमलत ह खरीदार स हम

सग आत थ बहत चारो तरफ़ स घर म इसिलए डरत ह अब शाख़-समरदार स हम

सायबा हो तरा आचल हो िक छत हो लिकन बच नही सकत रसवाई की बौछार स हम

रासता तकन म आख भी गवा दी राना िफ़र भी महरम रह आपक दीदार स हम

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मफ़िलसी पास-शराफ़त नही रहन दगी य हवा पड सलामत नही रहन दगी

शहर क शोर स घबरा क अगर भागोग िफ़र तो जगल म भी वहशत नही रहन दगी

कछ नही होगा तो आचल म छपा लगी मझ मा कभी सर प खली छत नही रहन दगी

आप क पास ज़माना नही रहन दगा आप स दर मोहबबत नही रहन दगी

शहर क लोग बहत अचछ ह लिकन मझको मीर जसी य तबीयत नही रहन दगी

रासता अब भी बदल दीिजए राना साहब शायरी आप की इज़ज़त नही रहन दगी

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दशतो-सहरा म कभी उजड खडर म रहना उमर भर कोई न चाहगा सफ़र म रहना

ऐ ख़दा फ़ल-स बचचो की िहफ़ाज़त करना मफ़िलसी चाह रही ह मर घर म रहना

इसिलए बठी ह दहलीज़ प मरी बहन फ़ल नही चाहत ता-उमर शजर म रहना

मददतो बाद कोई शख़स ह आन वाला ऐ मर आसओ तम दीद-ए-तर म रहना

िकस को य िफ़कर िक हालात कहा आ पहच लोग तो चाहत ह िसफ़र ख़बर म रहना

मौत लगती ह मझ अपन मका की मािनद िज़नदगी जस िकसी और क घर म रहना

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िहजर म पहल-पहल रोना बहत अचछा लगा उमर कचची थी तो फ़ल कचचा बहत अचछा लगा

मन एक मददत स मिद सजद भी नही दखी मगर एक बचच का अज़ा दना बहत अचछा लगा

िजसम पर मर बहत शफ़फ़ाक़ कपड थ मगर धल िमटटी म अटा बटा बहत अचछा लगा

शहर की सडक हो चाह गाव की पगडिद णडया मा की उगली थाम कर चलना बहत अचछा लगा

तार पर बठी हई िचिडयो को सोता दख कर फ़शर पर सोता हआ बचचा बहत अचछा लगा

हम तो उसको दखन आय थ इतनी दर स वो समझता था हम मला बहत अचछा लगा

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हसत हए मा-बाप की गाली नही खात बचच ह तो कयो शौक़ स िमटटी नही खात

तम स नही िमलन का इरादा तो ह लिकन तम स न िमलग य क़सम भी नही खात

सो जात ह फ़टपाथ प अख़बार िबछा कर मज़दर कभी नीद की गोली नही खात

बचच भी ग़रीबी को समझन लग शायद जब जाग भी जात ह तो सहरी नही खात

दावत तो बडी चीज़ ह हम जस क़लनदर हर एक क पसो की दवा भी नही खात

अलाह ग़रीबो का मददगार ह राना हम लोगो क बचच कभी सदी नही खात

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ऐ हकमत तरा मआर न िगरन पाय मरी मिद सजद ह य मीनार न िगरन पाय

आिधयो दशत म तहज़ीब स दािखल होना पड कोई भी समरदार न िगरन पाय

म िनहतथो पर कभी वार नही करता ह मर दशमन तरी तलवार न िगरन पाय

इसम बचचो की जली लाशो की तसवीर ह दखना हाथ स अख़बार न िगरन पाय

िमलता-जलता ह सभी माओ स मा का चहरा गरदवार की भी दीवार न िगरन पाय

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नय कमरो म अब चीज़ परानी कौन रखता ह पिरनदो क िलए शहरो म पानी कौन रखता ह

कही भी इन िदनो मरी तबीयत ही नही लगती तरी जािनब स िदल म बदगमानी कौन रखता ह

हमी िगरती हई दीवार को थाम रह वरना सलीक़ स बज़गो की िनशानी कौन रखता ह

य रिगसतान ह चशमा कही स फ़ट सकता ह शराफ़त इस सदी म ख़ानदानी कौन रखता ह

हमी भल नही अचछ-बर िदन आज तक वरना मनववर याद माज़ी की कहानी कौन रखता ह

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िजसम का बरसो पराना य खडर िगर जाएगा आिधयो का ज़ोर कहता ह शजर िगर जाएगा

हम तवक़क़ो स ज़यादा सख़तजा सािबत हए वो समझता था की पतथर स समर िगर जाएगा

अब मनािसब ह िक तम काटो को दामन सौप दो फ़ल तो ख़द ही िकसी िदन सखकर िगर जाएगा

मरी गिडया-सी बहन को ख़दकशी करना पडी कयाzwnj ख़बर थी दोसत मरा इस क़दर िगर जाएगा

इसीिलए मन बज़गो की ज़मीन छोड दी मरा घर िजस िदन बसगा तरा घर िगर जाएगा

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ख़दा-न-ख़वासता जननत हराम कर लग मनिफ़क़ो को अगर हम सलाम कर लग

अभी तो मरी ज़ररत ह मर बचचो को बड हए तो य ख़द इनतज़ाम कर लग

इसी ख़याल स हमन य पड बोया ह हमार साथ पिरनद क़याम कर लग

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िबछडन वालो का अब इनतज़ार कया करना उडा िदय तो कबतर शमार कया करना

हमार हाथ म तलवार भी ह मौक़ा भी मगर िगर हए दशमन प वार कया करना

वो आदमी ह तो एहसास-जमर काफ़ी ह वो सग ह तो उस सगसार कया करना

बदन म ख़न नही हो तो ख़बहा कसा

मगर अब इसका बया बार-बार कया करना

चराग़-आिख़र-शब जगमगा रहा ह मगर चराग़-आिख़र-शब का शमार कया करना

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जल रह ह धप म लिकन इसी सहरा म ह कया ख़बर वहशत को हम भी शहर-कलकतता म ह

हम ह गज़र वक़त की तहज़ीब क रौशन चराग़ फ़ख़र कर अज़-वतन हम आज तक दिनया म ह

मछिलया तक ख़ौफ़ स दिरया िकनार आ गयी य हमारा हौसला ह हम अगर दिरया म ह

हम को बाज़ारो की ज़ीनत क िलय तोडा गया फ़ल होकर भी कहा हम गस-ए-लला म ह

मर पीछ आन वालो को कहा मालम ह ख़न क धबब भी शािमल मर नक़श-पा म ह

ऐब-जई स अगर फ़सरत िमल तो दखना दोसतो कछ ख़िबया भी हज़रत-राना म ह

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िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

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मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

68

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

69

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

71

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

73

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

76

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

77

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

78

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

80

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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वो ग़ज़ल पढन म लगता भी ग़ज़ल जसा था िसफ़र ग़ज़ल नही लहजा भी ग़ज़ल जसा था

वक़त न चहर को बख़शी ह ख़राश वरना कछ िदनो पहल य चहरा भी ग़ज़ल जसा था

तमस िबछडा तो पसनद आ गयी बतरतीबी इसस पहल मरा कमरा भी ग़ज़ल जसा था

कोई मौसम भी िबछड कर हम अचछा न लगा वस पानी का बरसना भी ग़ज़ल जसा था

नीम का पड था बरसात भी और झला था गाव म गज़रा ज़माना भी ग़ज़ल जसा था

वो भी कया िदन थ तर पाव की आहट सन कर िदल का सीन म धडकना भी ग़ज़ल जसा था

इक ग़ज़ल दखती रहती थी दरीच स मझ सोचता ह वो ज़माना भी ग़ज़ल जसा था

कछ तबीयत भी ग़ज़ल कहन प आमादा थी कछ तरा फ़ट क रोना भी ग़ज़ल जसा था

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मरा बचपन था मरा घर था िखलौन थ मर सर प मा-बाप का साया भी ग़ज़ल जसा था

नमर-ओ-नाज़क-सा बहत शोख़-सा शमीला-सा कछ िदनो पहल तो राना भी ग़ज़ल जसा था

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फ़िरशत आ क उनक िजसम पर ख़शब लगात ह वो बचच रल क िडबबो म जो झाड लगात ह

अनधरी रात म अक़सर सनहरी मशअल लकर पिरनदो की मसीबत का पता जगन लगात ह

िदलो का हाल आसानी स कब मालम होता ह िक पशानी प चनदन तो सभी साध लगात ह

य माना आप को शोल बझान म महारत ह मगर वो आग जो मज़लम क आस लगात ह

िकसी क पाव की आहट स िदल ऐस उछलता ह छलाग जगलो म िजस तरह आह लगात ह

बहत ममिकन ह अब मरा चमन वीरान हो जाय िसयासत क शजर पर घोसल उल लगात ह

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धसती हई क़बरो की तरफ़ दख िलया था मा-बाप क चहरो की तरफ़ दख िलया था

दौलत स मोहबबत तो नही थी मझ लिकन बचचो न िखलौनो की तरफ़ दख िलया था

उस िदन स बहत तज़ हवा चलन लगी ह बस मन चरागो की तरफ़ दख िलया था

अब तमको बलनदी कभी अचछी न लगगी कयो ख़ाकनशीनो की तरफ़ दख िलया था

तलवार तो कया मरी नज़र तक नही उटठी उस शख़स क बचचो की तरफ़ दख िलया था

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त हर पिरनद को छत पर उतार लता ह य शौक़ वो ह जो ज़वर उतार लता ह

म आसमा की बलनदी प बारहा पहचा मगर नसीब ज़मी पर उतार लता ह

अमीर-शहर की हमददीयो स बच क रहो य सर स बोझ नही सर उतार लता ह

उसी को िमलता ह एजाज़ भी ज़मान म बहन क सर स जो चादर उतार लता ह

उठा ह हाथ तो िफ़र वार भी ज़ररी ह िक साप आखो म मज़र उतार लता ह

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ख़बसरत झील म हसता कवल भी चािहए ह गला अचछा तो िफ़र अचछी ग़ज़ल भी चािहए

उठ क इस हसती हई दिनया स जा सकता ह म अहल-महिफ़ल को मगर मरा बदल भी चािहए

िसफ़र फ़लो स सजावट पड की ममिकन नही मरी शाख़ो को नय मौसम म फ़ल भी चािहए

ऐ मरी ख़ाक-वतन तरा सगा बटा ह म

कयो रह फ़टपाथ पर मझको महल भी चािहए

धप वादो की बरी लगी ह अब हम अब हमार मसअलो का कोई हल भी चािहए

तन सारी बािज़या जीती ह मझ पर बठ कर अब म बढा हो गया ह असतबल भी चािहए

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ख़द सख गया ज़ख़म न मरहम नही दखा इस खत न बरसात का मौसम नही दखा

इस कौम को तलवार स डर ही नही लगता तमन कभी ज़जीर का मातम नही दखा

शाख़-िदल-सरसबज़ म फ़ल ही नही आय आखो न कभी नीद का मौसम नही दखा

मिद सजद की चटाई प य सोत हए बचच इन बचचो को दखो कभी रशम नही दखा

हम ख़ानाबदोशो की तरह घर म रह ह कमर न हमार कभी शीशम नही दखा

इसकल क िदन याद न आन लग राना इस ख़ौफ़ स हमन कभी अलबम नही दखा

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हम सायादार पड ज़मान क काम आय जब सखन लग तो जलान क काम आय

तलवार की िमयान कभी फ़कना नही ममिकन ह दशमनो को डरान क काम आय

कचचा समझ क बच न दना मका को शायद य कभी सर को छपान क काम आय

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इतना रोय थ िलपट कर दरो-िदवार स हम शहर म आ क बहत िदन रह बीमार-स हम

अपन िबकन का बहत दख ह हम भी लिकन मसकरात हए िमलत ह खरीदार स हम

सग आत थ बहत चारो तरफ़ स घर म इसिलए डरत ह अब शाख़-समरदार स हम

सायबा हो तरा आचल हो िक छत हो लिकन बच नही सकत रसवाई की बौछार स हम

रासता तकन म आख भी गवा दी राना िफ़र भी महरम रह आपक दीदार स हम

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मफ़िलसी पास-शराफ़त नही रहन दगी य हवा पड सलामत नही रहन दगी

शहर क शोर स घबरा क अगर भागोग िफ़र तो जगल म भी वहशत नही रहन दगी

कछ नही होगा तो आचल म छपा लगी मझ मा कभी सर प खली छत नही रहन दगी

आप क पास ज़माना नही रहन दगा आप स दर मोहबबत नही रहन दगी

शहर क लोग बहत अचछ ह लिकन मझको मीर जसी य तबीयत नही रहन दगी

रासता अब भी बदल दीिजए राना साहब शायरी आप की इज़ज़त नही रहन दगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दशतो-सहरा म कभी उजड खडर म रहना उमर भर कोई न चाहगा सफ़र म रहना

ऐ ख़दा फ़ल-स बचचो की िहफ़ाज़त करना मफ़िलसी चाह रही ह मर घर म रहना

इसिलए बठी ह दहलीज़ प मरी बहन फ़ल नही चाहत ता-उमर शजर म रहना

मददतो बाद कोई शख़स ह आन वाला ऐ मर आसओ तम दीद-ए-तर म रहना

िकस को य िफ़कर िक हालात कहा आ पहच लोग तो चाहत ह िसफ़र ख़बर म रहना

मौत लगती ह मझ अपन मका की मािनद िज़नदगी जस िकसी और क घर म रहना

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िहजर म पहल-पहल रोना बहत अचछा लगा उमर कचची थी तो फ़ल कचचा बहत अचछा लगा

मन एक मददत स मिद सजद भी नही दखी मगर एक बचच का अज़ा दना बहत अचछा लगा

िजसम पर मर बहत शफ़फ़ाक़ कपड थ मगर धल िमटटी म अटा बटा बहत अचछा लगा

शहर की सडक हो चाह गाव की पगडिद णडया मा की उगली थाम कर चलना बहत अचछा लगा

तार पर बठी हई िचिडयो को सोता दख कर फ़शर पर सोता हआ बचचा बहत अचछा लगा

हम तो उसको दखन आय थ इतनी दर स वो समझता था हम मला बहत अचछा लगा

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हसत हए मा-बाप की गाली नही खात बचच ह तो कयो शौक़ स िमटटी नही खात

तम स नही िमलन का इरादा तो ह लिकन तम स न िमलग य क़सम भी नही खात

सो जात ह फ़टपाथ प अख़बार िबछा कर मज़दर कभी नीद की गोली नही खात

बचच भी ग़रीबी को समझन लग शायद जब जाग भी जात ह तो सहरी नही खात

दावत तो बडी चीज़ ह हम जस क़लनदर हर एक क पसो की दवा भी नही खात

अलाह ग़रीबो का मददगार ह राना हम लोगो क बचच कभी सदी नही खात

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ऐ हकमत तरा मआर न िगरन पाय मरी मिद सजद ह य मीनार न िगरन पाय

आिधयो दशत म तहज़ीब स दािखल होना पड कोई भी समरदार न िगरन पाय

म िनहतथो पर कभी वार नही करता ह मर दशमन तरी तलवार न िगरन पाय

इसम बचचो की जली लाशो की तसवीर ह दखना हाथ स अख़बार न िगरन पाय

िमलता-जलता ह सभी माओ स मा का चहरा गरदवार की भी दीवार न िगरन पाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नय कमरो म अब चीज़ परानी कौन रखता ह पिरनदो क िलए शहरो म पानी कौन रखता ह

कही भी इन िदनो मरी तबीयत ही नही लगती तरी जािनब स िदल म बदगमानी कौन रखता ह

हमी िगरती हई दीवार को थाम रह वरना सलीक़ स बज़गो की िनशानी कौन रखता ह

य रिगसतान ह चशमा कही स फ़ट सकता ह शराफ़त इस सदी म ख़ानदानी कौन रखता ह

हमी भल नही अचछ-बर िदन आज तक वरना मनववर याद माज़ी की कहानी कौन रखता ह

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िजसम का बरसो पराना य खडर िगर जाएगा आिधयो का ज़ोर कहता ह शजर िगर जाएगा

हम तवक़क़ो स ज़यादा सख़तजा सािबत हए वो समझता था की पतथर स समर िगर जाएगा

अब मनािसब ह िक तम काटो को दामन सौप दो फ़ल तो ख़द ही िकसी िदन सखकर िगर जाएगा

मरी गिडया-सी बहन को ख़दकशी करना पडी कयाzwnj ख़बर थी दोसत मरा इस क़दर िगर जाएगा

इसीिलए मन बज़गो की ज़मीन छोड दी मरा घर िजस िदन बसगा तरा घर िगर जाएगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़दा-न-ख़वासता जननत हराम कर लग मनिफ़क़ो को अगर हम सलाम कर लग

अभी तो मरी ज़ररत ह मर बचचो को बड हए तो य ख़द इनतज़ाम कर लग

इसी ख़याल स हमन य पड बोया ह हमार साथ पिरनद क़याम कर लग

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िबछडन वालो का अब इनतज़ार कया करना उडा िदय तो कबतर शमार कया करना

हमार हाथ म तलवार भी ह मौक़ा भी मगर िगर हए दशमन प वार कया करना

वो आदमी ह तो एहसास-जमर काफ़ी ह वो सग ह तो उस सगसार कया करना

बदन म ख़न नही हो तो ख़बहा कसा

मगर अब इसका बया बार-बार कया करना

चराग़-आिख़र-शब जगमगा रहा ह मगर चराग़-आिख़र-शब का शमार कया करना

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जल रह ह धप म लिकन इसी सहरा म ह कया ख़बर वहशत को हम भी शहर-कलकतता म ह

हम ह गज़र वक़त की तहज़ीब क रौशन चराग़ फ़ख़र कर अज़-वतन हम आज तक दिनया म ह

मछिलया तक ख़ौफ़ स दिरया िकनार आ गयी य हमारा हौसला ह हम अगर दिरया म ह

हम को बाज़ारो की ज़ीनत क िलय तोडा गया फ़ल होकर भी कहा हम गस-ए-लला म ह

मर पीछ आन वालो को कहा मालम ह ख़न क धबब भी शािमल मर नक़श-पा म ह

ऐब-जई स अगर फ़सरत िमल तो दखना दोसतो कछ ख़िबया भी हज़रत-राना म ह

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िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

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मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

51

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

53

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

54

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

55

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

58

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

59

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

60

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

61

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

63

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

65

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

66

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

67

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

68

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

69

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

70

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

71

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

73

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

76

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

77

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 4: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मरा बचपन था मरा घर था िखलौन थ मर सर प मा-बाप का साया भी ग़ज़ल जसा था

नमर-ओ-नाज़क-सा बहत शोख़-सा शमीला-सा कछ िदनो पहल तो राना भी ग़ज़ल जसा था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फ़िरशत आ क उनक िजसम पर ख़शब लगात ह वो बचच रल क िडबबो म जो झाड लगात ह

अनधरी रात म अक़सर सनहरी मशअल लकर पिरनदो की मसीबत का पता जगन लगात ह

िदलो का हाल आसानी स कब मालम होता ह िक पशानी प चनदन तो सभी साध लगात ह

य माना आप को शोल बझान म महारत ह मगर वो आग जो मज़लम क आस लगात ह

िकसी क पाव की आहट स िदल ऐस उछलता ह छलाग जगलो म िजस तरह आह लगात ह

बहत ममिकन ह अब मरा चमन वीरान हो जाय िसयासत क शजर पर घोसल उल लगात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

धसती हई क़बरो की तरफ़ दख िलया था मा-बाप क चहरो की तरफ़ दख िलया था

दौलत स मोहबबत तो नही थी मझ लिकन बचचो न िखलौनो की तरफ़ दख िलया था

उस िदन स बहत तज़ हवा चलन लगी ह बस मन चरागो की तरफ़ दख िलया था

अब तमको बलनदी कभी अचछी न लगगी कयो ख़ाकनशीनो की तरफ़ दख िलया था

तलवार तो कया मरी नज़र तक नही उटठी उस शख़स क बचचो की तरफ़ दख िलया था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

त हर पिरनद को छत पर उतार लता ह य शौक़ वो ह जो ज़वर उतार लता ह

म आसमा की बलनदी प बारहा पहचा मगर नसीब ज़मी पर उतार लता ह

अमीर-शहर की हमददीयो स बच क रहो य सर स बोझ नही सर उतार लता ह

उसी को िमलता ह एजाज़ भी ज़मान म बहन क सर स जो चादर उतार लता ह

उठा ह हाथ तो िफ़र वार भी ज़ररी ह िक साप आखो म मज़र उतार लता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़बसरत झील म हसता कवल भी चािहए ह गला अचछा तो िफ़र अचछी ग़ज़ल भी चािहए

उठ क इस हसती हई दिनया स जा सकता ह म अहल-महिफ़ल को मगर मरा बदल भी चािहए

िसफ़र फ़लो स सजावट पड की ममिकन नही मरी शाख़ो को नय मौसम म फ़ल भी चािहए

ऐ मरी ख़ाक-वतन तरा सगा बटा ह म

कयो रह फ़टपाथ पर मझको महल भी चािहए

धप वादो की बरी लगी ह अब हम अब हमार मसअलो का कोई हल भी चािहए

तन सारी बािज़या जीती ह मझ पर बठ कर अब म बढा हो गया ह असतबल भी चािहए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द सख गया ज़ख़म न मरहम नही दखा इस खत न बरसात का मौसम नही दखा

इस कौम को तलवार स डर ही नही लगता तमन कभी ज़जीर का मातम नही दखा

शाख़-िदल-सरसबज़ म फ़ल ही नही आय आखो न कभी नीद का मौसम नही दखा

मिद सजद की चटाई प य सोत हए बचच इन बचचो को दखो कभी रशम नही दखा

हम ख़ानाबदोशो की तरह घर म रह ह कमर न हमार कभी शीशम नही दखा

इसकल क िदन याद न आन लग राना इस ख़ौफ़ स हमन कभी अलबम नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम सायादार पड ज़मान क काम आय जब सखन लग तो जलान क काम आय

तलवार की िमयान कभी फ़कना नही ममिकन ह दशमनो को डरान क काम आय

कचचा समझ क बच न दना मका को शायद य कभी सर को छपान क काम आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

इतना रोय थ िलपट कर दरो-िदवार स हम शहर म आ क बहत िदन रह बीमार-स हम

अपन िबकन का बहत दख ह हम भी लिकन मसकरात हए िमलत ह खरीदार स हम

सग आत थ बहत चारो तरफ़ स घर म इसिलए डरत ह अब शाख़-समरदार स हम

सायबा हो तरा आचल हो िक छत हो लिकन बच नही सकत रसवाई की बौछार स हम

रासता तकन म आख भी गवा दी राना िफ़र भी महरम रह आपक दीदार स हम

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मफ़िलसी पास-शराफ़त नही रहन दगी य हवा पड सलामत नही रहन दगी

शहर क शोर स घबरा क अगर भागोग िफ़र तो जगल म भी वहशत नही रहन दगी

कछ नही होगा तो आचल म छपा लगी मझ मा कभी सर प खली छत नही रहन दगी

आप क पास ज़माना नही रहन दगा आप स दर मोहबबत नही रहन दगी

शहर क लोग बहत अचछ ह लिकन मझको मीर जसी य तबीयत नही रहन दगी

रासता अब भी बदल दीिजए राना साहब शायरी आप की इज़ज़त नही रहन दगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दशतो-सहरा म कभी उजड खडर म रहना उमर भर कोई न चाहगा सफ़र म रहना

ऐ ख़दा फ़ल-स बचचो की िहफ़ाज़त करना मफ़िलसी चाह रही ह मर घर म रहना

इसिलए बठी ह दहलीज़ प मरी बहन फ़ल नही चाहत ता-उमर शजर म रहना

मददतो बाद कोई शख़स ह आन वाला ऐ मर आसओ तम दीद-ए-तर म रहना

िकस को य िफ़कर िक हालात कहा आ पहच लोग तो चाहत ह िसफ़र ख़बर म रहना

मौत लगती ह मझ अपन मका की मािनद िज़नदगी जस िकसी और क घर म रहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िहजर म पहल-पहल रोना बहत अचछा लगा उमर कचची थी तो फ़ल कचचा बहत अचछा लगा

मन एक मददत स मिद सजद भी नही दखी मगर एक बचच का अज़ा दना बहत अचछा लगा

िजसम पर मर बहत शफ़फ़ाक़ कपड थ मगर धल िमटटी म अटा बटा बहत अचछा लगा

शहर की सडक हो चाह गाव की पगडिद णडया मा की उगली थाम कर चलना बहत अचछा लगा

तार पर बठी हई िचिडयो को सोता दख कर फ़शर पर सोता हआ बचचा बहत अचछा लगा

हम तो उसको दखन आय थ इतनी दर स वो समझता था हम मला बहत अचछा लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हसत हए मा-बाप की गाली नही खात बचच ह तो कयो शौक़ स िमटटी नही खात

तम स नही िमलन का इरादा तो ह लिकन तम स न िमलग य क़सम भी नही खात

सो जात ह फ़टपाथ प अख़बार िबछा कर मज़दर कभी नीद की गोली नही खात

बचच भी ग़रीबी को समझन लग शायद जब जाग भी जात ह तो सहरी नही खात

दावत तो बडी चीज़ ह हम जस क़लनदर हर एक क पसो की दवा भी नही खात

अलाह ग़रीबो का मददगार ह राना हम लोगो क बचच कभी सदी नही खात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ऐ हकमत तरा मआर न िगरन पाय मरी मिद सजद ह य मीनार न िगरन पाय

आिधयो दशत म तहज़ीब स दािखल होना पड कोई भी समरदार न िगरन पाय

म िनहतथो पर कभी वार नही करता ह मर दशमन तरी तलवार न िगरन पाय

इसम बचचो की जली लाशो की तसवीर ह दखना हाथ स अख़बार न िगरन पाय

िमलता-जलता ह सभी माओ स मा का चहरा गरदवार की भी दीवार न िगरन पाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नय कमरो म अब चीज़ परानी कौन रखता ह पिरनदो क िलए शहरो म पानी कौन रखता ह

कही भी इन िदनो मरी तबीयत ही नही लगती तरी जािनब स िदल म बदगमानी कौन रखता ह

हमी िगरती हई दीवार को थाम रह वरना सलीक़ स बज़गो की िनशानी कौन रखता ह

य रिगसतान ह चशमा कही स फ़ट सकता ह शराफ़त इस सदी म ख़ानदानी कौन रखता ह

हमी भल नही अचछ-बर िदन आज तक वरना मनववर याद माज़ी की कहानी कौन रखता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िजसम का बरसो पराना य खडर िगर जाएगा आिधयो का ज़ोर कहता ह शजर िगर जाएगा

हम तवक़क़ो स ज़यादा सख़तजा सािबत हए वो समझता था की पतथर स समर िगर जाएगा

अब मनािसब ह िक तम काटो को दामन सौप दो फ़ल तो ख़द ही िकसी िदन सखकर िगर जाएगा

मरी गिडया-सी बहन को ख़दकशी करना पडी कयाzwnj ख़बर थी दोसत मरा इस क़दर िगर जाएगा

इसीिलए मन बज़गो की ज़मीन छोड दी मरा घर िजस िदन बसगा तरा घर िगर जाएगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़दा-न-ख़वासता जननत हराम कर लग मनिफ़क़ो को अगर हम सलाम कर लग

अभी तो मरी ज़ररत ह मर बचचो को बड हए तो य ख़द इनतज़ाम कर लग

इसी ख़याल स हमन य पड बोया ह हमार साथ पिरनद क़याम कर लग

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िबछडन वालो का अब इनतज़ार कया करना उडा िदय तो कबतर शमार कया करना

हमार हाथ म तलवार भी ह मौक़ा भी मगर िगर हए दशमन प वार कया करना

वो आदमी ह तो एहसास-जमर काफ़ी ह वो सग ह तो उस सगसार कया करना

बदन म ख़न नही हो तो ख़बहा कसा

मगर अब इसका बया बार-बार कया करना

चराग़-आिख़र-शब जगमगा रहा ह मगर चराग़-आिख़र-शब का शमार कया करना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जल रह ह धप म लिकन इसी सहरा म ह कया ख़बर वहशत को हम भी शहर-कलकतता म ह

हम ह गज़र वक़त की तहज़ीब क रौशन चराग़ फ़ख़र कर अज़-वतन हम आज तक दिनया म ह

मछिलया तक ख़ौफ़ स दिरया िकनार आ गयी य हमारा हौसला ह हम अगर दिरया म ह

हम को बाज़ारो की ज़ीनत क िलय तोडा गया फ़ल होकर भी कहा हम गस-ए-लला म ह

मर पीछ आन वालो को कहा मालम ह ख़न क धबब भी शािमल मर नक़श-पा म ह

ऐब-जई स अगर फ़सरत िमल तो दखना दोसतो कछ ख़िबया भी हज़रत-राना म ह

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िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

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मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

61

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

63

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

69

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

70

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

71

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

73

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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फ़िरशत आ क उनक िजसम पर ख़शब लगात ह वो बचच रल क िडबबो म जो झाड लगात ह

अनधरी रात म अक़सर सनहरी मशअल लकर पिरनदो की मसीबत का पता जगन लगात ह

िदलो का हाल आसानी स कब मालम होता ह िक पशानी प चनदन तो सभी साध लगात ह

य माना आप को शोल बझान म महारत ह मगर वो आग जो मज़लम क आस लगात ह

िकसी क पाव की आहट स िदल ऐस उछलता ह छलाग जगलो म िजस तरह आह लगात ह

बहत ममिकन ह अब मरा चमन वीरान हो जाय िसयासत क शजर पर घोसल उल लगात ह

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धसती हई क़बरो की तरफ़ दख िलया था मा-बाप क चहरो की तरफ़ दख िलया था

दौलत स मोहबबत तो नही थी मझ लिकन बचचो न िखलौनो की तरफ़ दख िलया था

उस िदन स बहत तज़ हवा चलन लगी ह बस मन चरागो की तरफ़ दख िलया था

अब तमको बलनदी कभी अचछी न लगगी कयो ख़ाकनशीनो की तरफ़ दख िलया था

तलवार तो कया मरी नज़र तक नही उटठी उस शख़स क बचचो की तरफ़ दख िलया था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

त हर पिरनद को छत पर उतार लता ह य शौक़ वो ह जो ज़वर उतार लता ह

म आसमा की बलनदी प बारहा पहचा मगर नसीब ज़मी पर उतार लता ह

अमीर-शहर की हमददीयो स बच क रहो य सर स बोझ नही सर उतार लता ह

उसी को िमलता ह एजाज़ भी ज़मान म बहन क सर स जो चादर उतार लता ह

उठा ह हाथ तो िफ़र वार भी ज़ररी ह िक साप आखो म मज़र उतार लता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़बसरत झील म हसता कवल भी चािहए ह गला अचछा तो िफ़र अचछी ग़ज़ल भी चािहए

उठ क इस हसती हई दिनया स जा सकता ह म अहल-महिफ़ल को मगर मरा बदल भी चािहए

िसफ़र फ़लो स सजावट पड की ममिकन नही मरी शाख़ो को नय मौसम म फ़ल भी चािहए

ऐ मरी ख़ाक-वतन तरा सगा बटा ह म

कयो रह फ़टपाथ पर मझको महल भी चािहए

धप वादो की बरी लगी ह अब हम अब हमार मसअलो का कोई हल भी चािहए

तन सारी बािज़या जीती ह मझ पर बठ कर अब म बढा हो गया ह असतबल भी चािहए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द सख गया ज़ख़म न मरहम नही दखा इस खत न बरसात का मौसम नही दखा

इस कौम को तलवार स डर ही नही लगता तमन कभी ज़जीर का मातम नही दखा

शाख़-िदल-सरसबज़ म फ़ल ही नही आय आखो न कभी नीद का मौसम नही दखा

मिद सजद की चटाई प य सोत हए बचच इन बचचो को दखो कभी रशम नही दखा

हम ख़ानाबदोशो की तरह घर म रह ह कमर न हमार कभी शीशम नही दखा

इसकल क िदन याद न आन लग राना इस ख़ौफ़ स हमन कभी अलबम नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम सायादार पड ज़मान क काम आय जब सखन लग तो जलान क काम आय

तलवार की िमयान कभी फ़कना नही ममिकन ह दशमनो को डरान क काम आय

कचचा समझ क बच न दना मका को शायद य कभी सर को छपान क काम आय

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इतना रोय थ िलपट कर दरो-िदवार स हम शहर म आ क बहत िदन रह बीमार-स हम

अपन िबकन का बहत दख ह हम भी लिकन मसकरात हए िमलत ह खरीदार स हम

सग आत थ बहत चारो तरफ़ स घर म इसिलए डरत ह अब शाख़-समरदार स हम

सायबा हो तरा आचल हो िक छत हो लिकन बच नही सकत रसवाई की बौछार स हम

रासता तकन म आख भी गवा दी राना िफ़र भी महरम रह आपक दीदार स हम

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मफ़िलसी पास-शराफ़त नही रहन दगी य हवा पड सलामत नही रहन दगी

शहर क शोर स घबरा क अगर भागोग िफ़र तो जगल म भी वहशत नही रहन दगी

कछ नही होगा तो आचल म छपा लगी मझ मा कभी सर प खली छत नही रहन दगी

आप क पास ज़माना नही रहन दगा आप स दर मोहबबत नही रहन दगी

शहर क लोग बहत अचछ ह लिकन मझको मीर जसी य तबीयत नही रहन दगी

रासता अब भी बदल दीिजए राना साहब शायरी आप की इज़ज़त नही रहन दगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दशतो-सहरा म कभी उजड खडर म रहना उमर भर कोई न चाहगा सफ़र म रहना

ऐ ख़दा फ़ल-स बचचो की िहफ़ाज़त करना मफ़िलसी चाह रही ह मर घर म रहना

इसिलए बठी ह दहलीज़ प मरी बहन फ़ल नही चाहत ता-उमर शजर म रहना

मददतो बाद कोई शख़स ह आन वाला ऐ मर आसओ तम दीद-ए-तर म रहना

िकस को य िफ़कर िक हालात कहा आ पहच लोग तो चाहत ह िसफ़र ख़बर म रहना

मौत लगती ह मझ अपन मका की मािनद िज़नदगी जस िकसी और क घर म रहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िहजर म पहल-पहल रोना बहत अचछा लगा उमर कचची थी तो फ़ल कचचा बहत अचछा लगा

मन एक मददत स मिद सजद भी नही दखी मगर एक बचच का अज़ा दना बहत अचछा लगा

िजसम पर मर बहत शफ़फ़ाक़ कपड थ मगर धल िमटटी म अटा बटा बहत अचछा लगा

शहर की सडक हो चाह गाव की पगडिद णडया मा की उगली थाम कर चलना बहत अचछा लगा

तार पर बठी हई िचिडयो को सोता दख कर फ़शर पर सोता हआ बचचा बहत अचछा लगा

हम तो उसको दखन आय थ इतनी दर स वो समझता था हम मला बहत अचछा लगा

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हसत हए मा-बाप की गाली नही खात बचच ह तो कयो शौक़ स िमटटी नही खात

तम स नही िमलन का इरादा तो ह लिकन तम स न िमलग य क़सम भी नही खात

सो जात ह फ़टपाथ प अख़बार िबछा कर मज़दर कभी नीद की गोली नही खात

बचच भी ग़रीबी को समझन लग शायद जब जाग भी जात ह तो सहरी नही खात

दावत तो बडी चीज़ ह हम जस क़लनदर हर एक क पसो की दवा भी नही खात

अलाह ग़रीबो का मददगार ह राना हम लोगो क बचच कभी सदी नही खात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ऐ हकमत तरा मआर न िगरन पाय मरी मिद सजद ह य मीनार न िगरन पाय

आिधयो दशत म तहज़ीब स दािखल होना पड कोई भी समरदार न िगरन पाय

म िनहतथो पर कभी वार नही करता ह मर दशमन तरी तलवार न िगरन पाय

इसम बचचो की जली लाशो की तसवीर ह दखना हाथ स अख़बार न िगरन पाय

िमलता-जलता ह सभी माओ स मा का चहरा गरदवार की भी दीवार न िगरन पाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नय कमरो म अब चीज़ परानी कौन रखता ह पिरनदो क िलए शहरो म पानी कौन रखता ह

कही भी इन िदनो मरी तबीयत ही नही लगती तरी जािनब स िदल म बदगमानी कौन रखता ह

हमी िगरती हई दीवार को थाम रह वरना सलीक़ स बज़गो की िनशानी कौन रखता ह

य रिगसतान ह चशमा कही स फ़ट सकता ह शराफ़त इस सदी म ख़ानदानी कौन रखता ह

हमी भल नही अचछ-बर िदन आज तक वरना मनववर याद माज़ी की कहानी कौन रखता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िजसम का बरसो पराना य खडर िगर जाएगा आिधयो का ज़ोर कहता ह शजर िगर जाएगा

हम तवक़क़ो स ज़यादा सख़तजा सािबत हए वो समझता था की पतथर स समर िगर जाएगा

अब मनािसब ह िक तम काटो को दामन सौप दो फ़ल तो ख़द ही िकसी िदन सखकर िगर जाएगा

मरी गिडया-सी बहन को ख़दकशी करना पडी कयाzwnj ख़बर थी दोसत मरा इस क़दर िगर जाएगा

इसीिलए मन बज़गो की ज़मीन छोड दी मरा घर िजस िदन बसगा तरा घर िगर जाएगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़दा-न-ख़वासता जननत हराम कर लग मनिफ़क़ो को अगर हम सलाम कर लग

अभी तो मरी ज़ररत ह मर बचचो को बड हए तो य ख़द इनतज़ाम कर लग

इसी ख़याल स हमन य पड बोया ह हमार साथ पिरनद क़याम कर लग

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िबछडन वालो का अब इनतज़ार कया करना उडा िदय तो कबतर शमार कया करना

हमार हाथ म तलवार भी ह मौक़ा भी मगर िगर हए दशमन प वार कया करना

वो आदमी ह तो एहसास-जमर काफ़ी ह वो सग ह तो उस सगसार कया करना

बदन म ख़न नही हो तो ख़बहा कसा

मगर अब इसका बया बार-बार कया करना

चराग़-आिख़र-शब जगमगा रहा ह मगर चराग़-आिख़र-शब का शमार कया करना

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जल रह ह धप म लिकन इसी सहरा म ह कया ख़बर वहशत को हम भी शहर-कलकतता म ह

हम ह गज़र वक़त की तहज़ीब क रौशन चराग़ फ़ख़र कर अज़-वतन हम आज तक दिनया म ह

मछिलया तक ख़ौफ़ स दिरया िकनार आ गयी य हमारा हौसला ह हम अगर दिरया म ह

हम को बाज़ारो की ज़ीनत क िलय तोडा गया फ़ल होकर भी कहा हम गस-ए-लला म ह

मर पीछ आन वालो को कहा मालम ह ख़न क धबब भी शािमल मर नक़श-पा म ह

ऐब-जई स अगर फ़सरत िमल तो दखना दोसतो कछ ख़िबया भी हज़रत-राना म ह

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िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

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मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

63

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

73

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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धसती हई क़बरो की तरफ़ दख िलया था मा-बाप क चहरो की तरफ़ दख िलया था

दौलत स मोहबबत तो नही थी मझ लिकन बचचो न िखलौनो की तरफ़ दख िलया था

उस िदन स बहत तज़ हवा चलन लगी ह बस मन चरागो की तरफ़ दख िलया था

अब तमको बलनदी कभी अचछी न लगगी कयो ख़ाकनशीनो की तरफ़ दख िलया था

तलवार तो कया मरी नज़र तक नही उटठी उस शख़स क बचचो की तरफ़ दख िलया था

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त हर पिरनद को छत पर उतार लता ह य शौक़ वो ह जो ज़वर उतार लता ह

म आसमा की बलनदी प बारहा पहचा मगर नसीब ज़मी पर उतार लता ह

अमीर-शहर की हमददीयो स बच क रहो य सर स बोझ नही सर उतार लता ह

उसी को िमलता ह एजाज़ भी ज़मान म बहन क सर स जो चादर उतार लता ह

उठा ह हाथ तो िफ़र वार भी ज़ररी ह िक साप आखो म मज़र उतार लता ह

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ख़बसरत झील म हसता कवल भी चािहए ह गला अचछा तो िफ़र अचछी ग़ज़ल भी चािहए

उठ क इस हसती हई दिनया स जा सकता ह म अहल-महिफ़ल को मगर मरा बदल भी चािहए

िसफ़र फ़लो स सजावट पड की ममिकन नही मरी शाख़ो को नय मौसम म फ़ल भी चािहए

ऐ मरी ख़ाक-वतन तरा सगा बटा ह म

कयो रह फ़टपाथ पर मझको महल भी चािहए

धप वादो की बरी लगी ह अब हम अब हमार मसअलो का कोई हल भी चािहए

तन सारी बािज़या जीती ह मझ पर बठ कर अब म बढा हो गया ह असतबल भी चािहए

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ख़द सख गया ज़ख़म न मरहम नही दखा इस खत न बरसात का मौसम नही दखा

इस कौम को तलवार स डर ही नही लगता तमन कभी ज़जीर का मातम नही दखा

शाख़-िदल-सरसबज़ म फ़ल ही नही आय आखो न कभी नीद का मौसम नही दखा

मिद सजद की चटाई प य सोत हए बचच इन बचचो को दखो कभी रशम नही दखा

हम ख़ानाबदोशो की तरह घर म रह ह कमर न हमार कभी शीशम नही दखा

इसकल क िदन याद न आन लग राना इस ख़ौफ़ स हमन कभी अलबम नही दखा

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हम सायादार पड ज़मान क काम आय जब सखन लग तो जलान क काम आय

तलवार की िमयान कभी फ़कना नही ममिकन ह दशमनो को डरान क काम आय

कचचा समझ क बच न दना मका को शायद य कभी सर को छपान क काम आय

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इतना रोय थ िलपट कर दरो-िदवार स हम शहर म आ क बहत िदन रह बीमार-स हम

अपन िबकन का बहत दख ह हम भी लिकन मसकरात हए िमलत ह खरीदार स हम

सग आत थ बहत चारो तरफ़ स घर म इसिलए डरत ह अब शाख़-समरदार स हम

सायबा हो तरा आचल हो िक छत हो लिकन बच नही सकत रसवाई की बौछार स हम

रासता तकन म आख भी गवा दी राना िफ़र भी महरम रह आपक दीदार स हम

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मफ़िलसी पास-शराफ़त नही रहन दगी य हवा पड सलामत नही रहन दगी

शहर क शोर स घबरा क अगर भागोग िफ़र तो जगल म भी वहशत नही रहन दगी

कछ नही होगा तो आचल म छपा लगी मझ मा कभी सर प खली छत नही रहन दगी

आप क पास ज़माना नही रहन दगा आप स दर मोहबबत नही रहन दगी

शहर क लोग बहत अचछ ह लिकन मझको मीर जसी य तबीयत नही रहन दगी

रासता अब भी बदल दीिजए राना साहब शायरी आप की इज़ज़त नही रहन दगी

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दशतो-सहरा म कभी उजड खडर म रहना उमर भर कोई न चाहगा सफ़र म रहना

ऐ ख़दा फ़ल-स बचचो की िहफ़ाज़त करना मफ़िलसी चाह रही ह मर घर म रहना

इसिलए बठी ह दहलीज़ प मरी बहन फ़ल नही चाहत ता-उमर शजर म रहना

मददतो बाद कोई शख़स ह आन वाला ऐ मर आसओ तम दीद-ए-तर म रहना

िकस को य िफ़कर िक हालात कहा आ पहच लोग तो चाहत ह िसफ़र ख़बर म रहना

मौत लगती ह मझ अपन मका की मािनद िज़नदगी जस िकसी और क घर म रहना

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िहजर म पहल-पहल रोना बहत अचछा लगा उमर कचची थी तो फ़ल कचचा बहत अचछा लगा

मन एक मददत स मिद सजद भी नही दखी मगर एक बचच का अज़ा दना बहत अचछा लगा

िजसम पर मर बहत शफ़फ़ाक़ कपड थ मगर धल िमटटी म अटा बटा बहत अचछा लगा

शहर की सडक हो चाह गाव की पगडिद णडया मा की उगली थाम कर चलना बहत अचछा लगा

तार पर बठी हई िचिडयो को सोता दख कर फ़शर पर सोता हआ बचचा बहत अचछा लगा

हम तो उसको दखन आय थ इतनी दर स वो समझता था हम मला बहत अचछा लगा

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हसत हए मा-बाप की गाली नही खात बचच ह तो कयो शौक़ स िमटटी नही खात

तम स नही िमलन का इरादा तो ह लिकन तम स न िमलग य क़सम भी नही खात

सो जात ह फ़टपाथ प अख़बार िबछा कर मज़दर कभी नीद की गोली नही खात

बचच भी ग़रीबी को समझन लग शायद जब जाग भी जात ह तो सहरी नही खात

दावत तो बडी चीज़ ह हम जस क़लनदर हर एक क पसो की दवा भी नही खात

अलाह ग़रीबो का मददगार ह राना हम लोगो क बचच कभी सदी नही खात

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ऐ हकमत तरा मआर न िगरन पाय मरी मिद सजद ह य मीनार न िगरन पाय

आिधयो दशत म तहज़ीब स दािखल होना पड कोई भी समरदार न िगरन पाय

म िनहतथो पर कभी वार नही करता ह मर दशमन तरी तलवार न िगरन पाय

इसम बचचो की जली लाशो की तसवीर ह दखना हाथ स अख़बार न िगरन पाय

िमलता-जलता ह सभी माओ स मा का चहरा गरदवार की भी दीवार न िगरन पाय

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नय कमरो म अब चीज़ परानी कौन रखता ह पिरनदो क िलए शहरो म पानी कौन रखता ह

कही भी इन िदनो मरी तबीयत ही नही लगती तरी जािनब स िदल म बदगमानी कौन रखता ह

हमी िगरती हई दीवार को थाम रह वरना सलीक़ स बज़गो की िनशानी कौन रखता ह

य रिगसतान ह चशमा कही स फ़ट सकता ह शराफ़त इस सदी म ख़ानदानी कौन रखता ह

हमी भल नही अचछ-बर िदन आज तक वरना मनववर याद माज़ी की कहानी कौन रखता ह

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िजसम का बरसो पराना य खडर िगर जाएगा आिधयो का ज़ोर कहता ह शजर िगर जाएगा

हम तवक़क़ो स ज़यादा सख़तजा सािबत हए वो समझता था की पतथर स समर िगर जाएगा

अब मनािसब ह िक तम काटो को दामन सौप दो फ़ल तो ख़द ही िकसी िदन सखकर िगर जाएगा

मरी गिडया-सी बहन को ख़दकशी करना पडी कयाzwnj ख़बर थी दोसत मरा इस क़दर िगर जाएगा

इसीिलए मन बज़गो की ज़मीन छोड दी मरा घर िजस िदन बसगा तरा घर िगर जाएगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़दा-न-ख़वासता जननत हराम कर लग मनिफ़क़ो को अगर हम सलाम कर लग

अभी तो मरी ज़ररत ह मर बचचो को बड हए तो य ख़द इनतज़ाम कर लग

इसी ख़याल स हमन य पड बोया ह हमार साथ पिरनद क़याम कर लग

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िबछडन वालो का अब इनतज़ार कया करना उडा िदय तो कबतर शमार कया करना

हमार हाथ म तलवार भी ह मौक़ा भी मगर िगर हए दशमन प वार कया करना

वो आदमी ह तो एहसास-जमर काफ़ी ह वो सग ह तो उस सगसार कया करना

बदन म ख़न नही हो तो ख़बहा कसा

मगर अब इसका बया बार-बार कया करना

चराग़-आिख़र-शब जगमगा रहा ह मगर चराग़-आिख़र-शब का शमार कया करना

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जल रह ह धप म लिकन इसी सहरा म ह कया ख़बर वहशत को हम भी शहर-कलकतता म ह

हम ह गज़र वक़त की तहज़ीब क रौशन चराग़ फ़ख़र कर अज़-वतन हम आज तक दिनया म ह

मछिलया तक ख़ौफ़ स दिरया िकनार आ गयी य हमारा हौसला ह हम अगर दिरया म ह

हम को बाज़ारो की ज़ीनत क िलय तोडा गया फ़ल होकर भी कहा हम गस-ए-लला म ह

मर पीछ आन वालो को कहा मालम ह ख़न क धबब भी शािमल मर नक़श-पा म ह

ऐब-जई स अगर फ़सरत िमल तो दखना दोसतो कछ ख़िबया भी हज़रत-राना म ह

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िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

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मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

58

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

61

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

63

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

64

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

68

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

69

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

70

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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त हर पिरनद को छत पर उतार लता ह य शौक़ वो ह जो ज़वर उतार लता ह

म आसमा की बलनदी प बारहा पहचा मगर नसीब ज़मी पर उतार लता ह

अमीर-शहर की हमददीयो स बच क रहो य सर स बोझ नही सर उतार लता ह

उसी को िमलता ह एजाज़ भी ज़मान म बहन क सर स जो चादर उतार लता ह

उठा ह हाथ तो िफ़र वार भी ज़ररी ह िक साप आखो म मज़र उतार लता ह

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ख़बसरत झील म हसता कवल भी चािहए ह गला अचछा तो िफ़र अचछी ग़ज़ल भी चािहए

उठ क इस हसती हई दिनया स जा सकता ह म अहल-महिफ़ल को मगर मरा बदल भी चािहए

िसफ़र फ़लो स सजावट पड की ममिकन नही मरी शाख़ो को नय मौसम म फ़ल भी चािहए

ऐ मरी ख़ाक-वतन तरा सगा बटा ह म

कयो रह फ़टपाथ पर मझको महल भी चािहए

धप वादो की बरी लगी ह अब हम अब हमार मसअलो का कोई हल भी चािहए

तन सारी बािज़या जीती ह मझ पर बठ कर अब म बढा हो गया ह असतबल भी चािहए

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ख़द सख गया ज़ख़म न मरहम नही दखा इस खत न बरसात का मौसम नही दखा

इस कौम को तलवार स डर ही नही लगता तमन कभी ज़जीर का मातम नही दखा

शाख़-िदल-सरसबज़ म फ़ल ही नही आय आखो न कभी नीद का मौसम नही दखा

मिद सजद की चटाई प य सोत हए बचच इन बचचो को दखो कभी रशम नही दखा

हम ख़ानाबदोशो की तरह घर म रह ह कमर न हमार कभी शीशम नही दखा

इसकल क िदन याद न आन लग राना इस ख़ौफ़ स हमन कभी अलबम नही दखा

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हम सायादार पड ज़मान क काम आय जब सखन लग तो जलान क काम आय

तलवार की िमयान कभी फ़कना नही ममिकन ह दशमनो को डरान क काम आय

कचचा समझ क बच न दना मका को शायद य कभी सर को छपान क काम आय

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इतना रोय थ िलपट कर दरो-िदवार स हम शहर म आ क बहत िदन रह बीमार-स हम

अपन िबकन का बहत दख ह हम भी लिकन मसकरात हए िमलत ह खरीदार स हम

सग आत थ बहत चारो तरफ़ स घर म इसिलए डरत ह अब शाख़-समरदार स हम

सायबा हो तरा आचल हो िक छत हो लिकन बच नही सकत रसवाई की बौछार स हम

रासता तकन म आख भी गवा दी राना िफ़र भी महरम रह आपक दीदार स हम

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मफ़िलसी पास-शराफ़त नही रहन दगी य हवा पड सलामत नही रहन दगी

शहर क शोर स घबरा क अगर भागोग िफ़र तो जगल म भी वहशत नही रहन दगी

कछ नही होगा तो आचल म छपा लगी मझ मा कभी सर प खली छत नही रहन दगी

आप क पास ज़माना नही रहन दगा आप स दर मोहबबत नही रहन दगी

शहर क लोग बहत अचछ ह लिकन मझको मीर जसी य तबीयत नही रहन दगी

रासता अब भी बदल दीिजए राना साहब शायरी आप की इज़ज़त नही रहन दगी

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दशतो-सहरा म कभी उजड खडर म रहना उमर भर कोई न चाहगा सफ़र म रहना

ऐ ख़दा फ़ल-स बचचो की िहफ़ाज़त करना मफ़िलसी चाह रही ह मर घर म रहना

इसिलए बठी ह दहलीज़ प मरी बहन फ़ल नही चाहत ता-उमर शजर म रहना

मददतो बाद कोई शख़स ह आन वाला ऐ मर आसओ तम दीद-ए-तर म रहना

िकस को य िफ़कर िक हालात कहा आ पहच लोग तो चाहत ह िसफ़र ख़बर म रहना

मौत लगती ह मझ अपन मका की मािनद िज़नदगी जस िकसी और क घर म रहना

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िहजर म पहल-पहल रोना बहत अचछा लगा उमर कचची थी तो फ़ल कचचा बहत अचछा लगा

मन एक मददत स मिद सजद भी नही दखी मगर एक बचच का अज़ा दना बहत अचछा लगा

िजसम पर मर बहत शफ़फ़ाक़ कपड थ मगर धल िमटटी म अटा बटा बहत अचछा लगा

शहर की सडक हो चाह गाव की पगडिद णडया मा की उगली थाम कर चलना बहत अचछा लगा

तार पर बठी हई िचिडयो को सोता दख कर फ़शर पर सोता हआ बचचा बहत अचछा लगा

हम तो उसको दखन आय थ इतनी दर स वो समझता था हम मला बहत अचछा लगा

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हसत हए मा-बाप की गाली नही खात बचच ह तो कयो शौक़ स िमटटी नही खात

तम स नही िमलन का इरादा तो ह लिकन तम स न िमलग य क़सम भी नही खात

सो जात ह फ़टपाथ प अख़बार िबछा कर मज़दर कभी नीद की गोली नही खात

बचच भी ग़रीबी को समझन लग शायद जब जाग भी जात ह तो सहरी नही खात

दावत तो बडी चीज़ ह हम जस क़लनदर हर एक क पसो की दवा भी नही खात

अलाह ग़रीबो का मददगार ह राना हम लोगो क बचच कभी सदी नही खात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ऐ हकमत तरा मआर न िगरन पाय मरी मिद सजद ह य मीनार न िगरन पाय

आिधयो दशत म तहज़ीब स दािखल होना पड कोई भी समरदार न िगरन पाय

म िनहतथो पर कभी वार नही करता ह मर दशमन तरी तलवार न िगरन पाय

इसम बचचो की जली लाशो की तसवीर ह दखना हाथ स अख़बार न िगरन पाय

िमलता-जलता ह सभी माओ स मा का चहरा गरदवार की भी दीवार न िगरन पाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नय कमरो म अब चीज़ परानी कौन रखता ह पिरनदो क िलए शहरो म पानी कौन रखता ह

कही भी इन िदनो मरी तबीयत ही नही लगती तरी जािनब स िदल म बदगमानी कौन रखता ह

हमी िगरती हई दीवार को थाम रह वरना सलीक़ स बज़गो की िनशानी कौन रखता ह

य रिगसतान ह चशमा कही स फ़ट सकता ह शराफ़त इस सदी म ख़ानदानी कौन रखता ह

हमी भल नही अचछ-बर िदन आज तक वरना मनववर याद माज़ी की कहानी कौन रखता ह

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िजसम का बरसो पराना य खडर िगर जाएगा आिधयो का ज़ोर कहता ह शजर िगर जाएगा

हम तवक़क़ो स ज़यादा सख़तजा सािबत हए वो समझता था की पतथर स समर िगर जाएगा

अब मनािसब ह िक तम काटो को दामन सौप दो फ़ल तो ख़द ही िकसी िदन सखकर िगर जाएगा

मरी गिडया-सी बहन को ख़दकशी करना पडी कयाzwnj ख़बर थी दोसत मरा इस क़दर िगर जाएगा

इसीिलए मन बज़गो की ज़मीन छोड दी मरा घर िजस िदन बसगा तरा घर िगर जाएगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़दा-न-ख़वासता जननत हराम कर लग मनिफ़क़ो को अगर हम सलाम कर लग

अभी तो मरी ज़ररत ह मर बचचो को बड हए तो य ख़द इनतज़ाम कर लग

इसी ख़याल स हमन य पड बोया ह हमार साथ पिरनद क़याम कर लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडन वालो का अब इनतज़ार कया करना उडा िदय तो कबतर शमार कया करना

हमार हाथ म तलवार भी ह मौक़ा भी मगर िगर हए दशमन प वार कया करना

वो आदमी ह तो एहसास-जमर काफ़ी ह वो सग ह तो उस सगसार कया करना

बदन म ख़न नही हो तो ख़बहा कसा

मगर अब इसका बया बार-बार कया करना

चराग़-आिख़र-शब जगमगा रहा ह मगर चराग़-आिख़र-शब का शमार कया करना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जल रह ह धप म लिकन इसी सहरा म ह कया ख़बर वहशत को हम भी शहर-कलकतता म ह

हम ह गज़र वक़त की तहज़ीब क रौशन चराग़ फ़ख़र कर अज़-वतन हम आज तक दिनया म ह

मछिलया तक ख़ौफ़ स दिरया िकनार आ गयी य हमारा हौसला ह हम अगर दिरया म ह

हम को बाज़ारो की ज़ीनत क िलय तोडा गया फ़ल होकर भी कहा हम गस-ए-लला म ह

मर पीछ आन वालो को कहा मालम ह ख़न क धबब भी शािमल मर नक़श-पा म ह

ऐब-जई स अगर फ़सरत िमल तो दखना दोसतो कछ ख़िबया भी हज़रत-राना म ह

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िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

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मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

58

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

61

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

63

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

64

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

68

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

69

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

70

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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ख़बसरत झील म हसता कवल भी चािहए ह गला अचछा तो िफ़र अचछी ग़ज़ल भी चािहए

उठ क इस हसती हई दिनया स जा सकता ह म अहल-महिफ़ल को मगर मरा बदल भी चािहए

िसफ़र फ़लो स सजावट पड की ममिकन नही मरी शाख़ो को नय मौसम म फ़ल भी चािहए

ऐ मरी ख़ाक-वतन तरा सगा बटा ह म

कयो रह फ़टपाथ पर मझको महल भी चािहए

धप वादो की बरी लगी ह अब हम अब हमार मसअलो का कोई हल भी चािहए

तन सारी बािज़या जीती ह मझ पर बठ कर अब म बढा हो गया ह असतबल भी चािहए

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ख़द सख गया ज़ख़म न मरहम नही दखा इस खत न बरसात का मौसम नही दखा

इस कौम को तलवार स डर ही नही लगता तमन कभी ज़जीर का मातम नही दखा

शाख़-िदल-सरसबज़ म फ़ल ही नही आय आखो न कभी नीद का मौसम नही दखा

मिद सजद की चटाई प य सोत हए बचच इन बचचो को दखो कभी रशम नही दखा

हम ख़ानाबदोशो की तरह घर म रह ह कमर न हमार कभी शीशम नही दखा

इसकल क िदन याद न आन लग राना इस ख़ौफ़ स हमन कभी अलबम नही दखा

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हम सायादार पड ज़मान क काम आय जब सखन लग तो जलान क काम आय

तलवार की िमयान कभी फ़कना नही ममिकन ह दशमनो को डरान क काम आय

कचचा समझ क बच न दना मका को शायद य कभी सर को छपान क काम आय

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इतना रोय थ िलपट कर दरो-िदवार स हम शहर म आ क बहत िदन रह बीमार-स हम

अपन िबकन का बहत दख ह हम भी लिकन मसकरात हए िमलत ह खरीदार स हम

सग आत थ बहत चारो तरफ़ स घर म इसिलए डरत ह अब शाख़-समरदार स हम

सायबा हो तरा आचल हो िक छत हो लिकन बच नही सकत रसवाई की बौछार स हम

रासता तकन म आख भी गवा दी राना िफ़र भी महरम रह आपक दीदार स हम

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मफ़िलसी पास-शराफ़त नही रहन दगी य हवा पड सलामत नही रहन दगी

शहर क शोर स घबरा क अगर भागोग िफ़र तो जगल म भी वहशत नही रहन दगी

कछ नही होगा तो आचल म छपा लगी मझ मा कभी सर प खली छत नही रहन दगी

आप क पास ज़माना नही रहन दगा आप स दर मोहबबत नही रहन दगी

शहर क लोग बहत अचछ ह लिकन मझको मीर जसी य तबीयत नही रहन दगी

रासता अब भी बदल दीिजए राना साहब शायरी आप की इज़ज़त नही रहन दगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दशतो-सहरा म कभी उजड खडर म रहना उमर भर कोई न चाहगा सफ़र म रहना

ऐ ख़दा फ़ल-स बचचो की िहफ़ाज़त करना मफ़िलसी चाह रही ह मर घर म रहना

इसिलए बठी ह दहलीज़ प मरी बहन फ़ल नही चाहत ता-उमर शजर म रहना

मददतो बाद कोई शख़स ह आन वाला ऐ मर आसओ तम दीद-ए-तर म रहना

िकस को य िफ़कर िक हालात कहा आ पहच लोग तो चाहत ह िसफ़र ख़बर म रहना

मौत लगती ह मझ अपन मका की मािनद िज़नदगी जस िकसी और क घर म रहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िहजर म पहल-पहल रोना बहत अचछा लगा उमर कचची थी तो फ़ल कचचा बहत अचछा लगा

मन एक मददत स मिद सजद भी नही दखी मगर एक बचच का अज़ा दना बहत अचछा लगा

िजसम पर मर बहत शफ़फ़ाक़ कपड थ मगर धल िमटटी म अटा बटा बहत अचछा लगा

शहर की सडक हो चाह गाव की पगडिद णडया मा की उगली थाम कर चलना बहत अचछा लगा

तार पर बठी हई िचिडयो को सोता दख कर फ़शर पर सोता हआ बचचा बहत अचछा लगा

हम तो उसको दखन आय थ इतनी दर स वो समझता था हम मला बहत अचछा लगा

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हसत हए मा-बाप की गाली नही खात बचच ह तो कयो शौक़ स िमटटी नही खात

तम स नही िमलन का इरादा तो ह लिकन तम स न िमलग य क़सम भी नही खात

सो जात ह फ़टपाथ प अख़बार िबछा कर मज़दर कभी नीद की गोली नही खात

बचच भी ग़रीबी को समझन लग शायद जब जाग भी जात ह तो सहरी नही खात

दावत तो बडी चीज़ ह हम जस क़लनदर हर एक क पसो की दवा भी नही खात

अलाह ग़रीबो का मददगार ह राना हम लोगो क बचच कभी सदी नही खात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ऐ हकमत तरा मआर न िगरन पाय मरी मिद सजद ह य मीनार न िगरन पाय

आिधयो दशत म तहज़ीब स दािखल होना पड कोई भी समरदार न िगरन पाय

म िनहतथो पर कभी वार नही करता ह मर दशमन तरी तलवार न िगरन पाय

इसम बचचो की जली लाशो की तसवीर ह दखना हाथ स अख़बार न िगरन पाय

िमलता-जलता ह सभी माओ स मा का चहरा गरदवार की भी दीवार न िगरन पाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नय कमरो म अब चीज़ परानी कौन रखता ह पिरनदो क िलए शहरो म पानी कौन रखता ह

कही भी इन िदनो मरी तबीयत ही नही लगती तरी जािनब स िदल म बदगमानी कौन रखता ह

हमी िगरती हई दीवार को थाम रह वरना सलीक़ स बज़गो की िनशानी कौन रखता ह

य रिगसतान ह चशमा कही स फ़ट सकता ह शराफ़त इस सदी म ख़ानदानी कौन रखता ह

हमी भल नही अचछ-बर िदन आज तक वरना मनववर याद माज़ी की कहानी कौन रखता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िजसम का बरसो पराना य खडर िगर जाएगा आिधयो का ज़ोर कहता ह शजर िगर जाएगा

हम तवक़क़ो स ज़यादा सख़तजा सािबत हए वो समझता था की पतथर स समर िगर जाएगा

अब मनािसब ह िक तम काटो को दामन सौप दो फ़ल तो ख़द ही िकसी िदन सखकर िगर जाएगा

मरी गिडया-सी बहन को ख़दकशी करना पडी कयाzwnj ख़बर थी दोसत मरा इस क़दर िगर जाएगा

इसीिलए मन बज़गो की ज़मीन छोड दी मरा घर िजस िदन बसगा तरा घर िगर जाएगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़दा-न-ख़वासता जननत हराम कर लग मनिफ़क़ो को अगर हम सलाम कर लग

अभी तो मरी ज़ररत ह मर बचचो को बड हए तो य ख़द इनतज़ाम कर लग

इसी ख़याल स हमन य पड बोया ह हमार साथ पिरनद क़याम कर लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडन वालो का अब इनतज़ार कया करना उडा िदय तो कबतर शमार कया करना

हमार हाथ म तलवार भी ह मौक़ा भी मगर िगर हए दशमन प वार कया करना

वो आदमी ह तो एहसास-जमर काफ़ी ह वो सग ह तो उस सगसार कया करना

बदन म ख़न नही हो तो ख़बहा कसा

मगर अब इसका बया बार-बार कया करना

चराग़-आिख़र-शब जगमगा रहा ह मगर चराग़-आिख़र-शब का शमार कया करना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जल रह ह धप म लिकन इसी सहरा म ह कया ख़बर वहशत को हम भी शहर-कलकतता म ह

हम ह गज़र वक़त की तहज़ीब क रौशन चराग़ फ़ख़र कर अज़-वतन हम आज तक दिनया म ह

मछिलया तक ख़ौफ़ स दिरया िकनार आ गयी य हमारा हौसला ह हम अगर दिरया म ह

हम को बाज़ारो की ज़ीनत क िलय तोडा गया फ़ल होकर भी कहा हम गस-ए-लला म ह

मर पीछ आन वालो को कहा मालम ह ख़न क धबब भी शािमल मर नक़श-पा म ह

ऐब-जई स अगर फ़सरत िमल तो दखना दोसतो कछ ख़िबया भी हज़रत-राना म ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

59

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

63

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

66

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

69

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

70

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

71

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

73

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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ख़द सख गया ज़ख़म न मरहम नही दखा इस खत न बरसात का मौसम नही दखा

इस कौम को तलवार स डर ही नही लगता तमन कभी ज़जीर का मातम नही दखा

शाख़-िदल-सरसबज़ म फ़ल ही नही आय आखो न कभी नीद का मौसम नही दखा

मिद सजद की चटाई प य सोत हए बचच इन बचचो को दखो कभी रशम नही दखा

हम ख़ानाबदोशो की तरह घर म रह ह कमर न हमार कभी शीशम नही दखा

इसकल क िदन याद न आन लग राना इस ख़ौफ़ स हमन कभी अलबम नही दखा

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हम सायादार पड ज़मान क काम आय जब सखन लग तो जलान क काम आय

तलवार की िमयान कभी फ़कना नही ममिकन ह दशमनो को डरान क काम आय

कचचा समझ क बच न दना मका को शायद य कभी सर को छपान क काम आय

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इतना रोय थ िलपट कर दरो-िदवार स हम शहर म आ क बहत िदन रह बीमार-स हम

अपन िबकन का बहत दख ह हम भी लिकन मसकरात हए िमलत ह खरीदार स हम

सग आत थ बहत चारो तरफ़ स घर म इसिलए डरत ह अब शाख़-समरदार स हम

सायबा हो तरा आचल हो िक छत हो लिकन बच नही सकत रसवाई की बौछार स हम

रासता तकन म आख भी गवा दी राना िफ़र भी महरम रह आपक दीदार स हम

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मफ़िलसी पास-शराफ़त नही रहन दगी य हवा पड सलामत नही रहन दगी

शहर क शोर स घबरा क अगर भागोग िफ़र तो जगल म भी वहशत नही रहन दगी

कछ नही होगा तो आचल म छपा लगी मझ मा कभी सर प खली छत नही रहन दगी

आप क पास ज़माना नही रहन दगा आप स दर मोहबबत नही रहन दगी

शहर क लोग बहत अचछ ह लिकन मझको मीर जसी य तबीयत नही रहन दगी

रासता अब भी बदल दीिजए राना साहब शायरी आप की इज़ज़त नही रहन दगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दशतो-सहरा म कभी उजड खडर म रहना उमर भर कोई न चाहगा सफ़र म रहना

ऐ ख़दा फ़ल-स बचचो की िहफ़ाज़त करना मफ़िलसी चाह रही ह मर घर म रहना

इसिलए बठी ह दहलीज़ प मरी बहन फ़ल नही चाहत ता-उमर शजर म रहना

मददतो बाद कोई शख़स ह आन वाला ऐ मर आसओ तम दीद-ए-तर म रहना

िकस को य िफ़कर िक हालात कहा आ पहच लोग तो चाहत ह िसफ़र ख़बर म रहना

मौत लगती ह मझ अपन मका की मािनद िज़नदगी जस िकसी और क घर म रहना

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िहजर म पहल-पहल रोना बहत अचछा लगा उमर कचची थी तो फ़ल कचचा बहत अचछा लगा

मन एक मददत स मिद सजद भी नही दखी मगर एक बचच का अज़ा दना बहत अचछा लगा

िजसम पर मर बहत शफ़फ़ाक़ कपड थ मगर धल िमटटी म अटा बटा बहत अचछा लगा

शहर की सडक हो चाह गाव की पगडिद णडया मा की उगली थाम कर चलना बहत अचछा लगा

तार पर बठी हई िचिडयो को सोता दख कर फ़शर पर सोता हआ बचचा बहत अचछा लगा

हम तो उसको दखन आय थ इतनी दर स वो समझता था हम मला बहत अचछा लगा

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हसत हए मा-बाप की गाली नही खात बचच ह तो कयो शौक़ स िमटटी नही खात

तम स नही िमलन का इरादा तो ह लिकन तम स न िमलग य क़सम भी नही खात

सो जात ह फ़टपाथ प अख़बार िबछा कर मज़दर कभी नीद की गोली नही खात

बचच भी ग़रीबी को समझन लग शायद जब जाग भी जात ह तो सहरी नही खात

दावत तो बडी चीज़ ह हम जस क़लनदर हर एक क पसो की दवा भी नही खात

अलाह ग़रीबो का मददगार ह राना हम लोगो क बचच कभी सदी नही खात

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ऐ हकमत तरा मआर न िगरन पाय मरी मिद सजद ह य मीनार न िगरन पाय

आिधयो दशत म तहज़ीब स दािखल होना पड कोई भी समरदार न िगरन पाय

म िनहतथो पर कभी वार नही करता ह मर दशमन तरी तलवार न िगरन पाय

इसम बचचो की जली लाशो की तसवीर ह दखना हाथ स अख़बार न िगरन पाय

िमलता-जलता ह सभी माओ स मा का चहरा गरदवार की भी दीवार न िगरन पाय

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नय कमरो म अब चीज़ परानी कौन रखता ह पिरनदो क िलए शहरो म पानी कौन रखता ह

कही भी इन िदनो मरी तबीयत ही नही लगती तरी जािनब स िदल म बदगमानी कौन रखता ह

हमी िगरती हई दीवार को थाम रह वरना सलीक़ स बज़गो की िनशानी कौन रखता ह

य रिगसतान ह चशमा कही स फ़ट सकता ह शराफ़त इस सदी म ख़ानदानी कौन रखता ह

हमी भल नही अचछ-बर िदन आज तक वरना मनववर याद माज़ी की कहानी कौन रखता ह

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िजसम का बरसो पराना य खडर िगर जाएगा आिधयो का ज़ोर कहता ह शजर िगर जाएगा

हम तवक़क़ो स ज़यादा सख़तजा सािबत हए वो समझता था की पतथर स समर िगर जाएगा

अब मनािसब ह िक तम काटो को दामन सौप दो फ़ल तो ख़द ही िकसी िदन सखकर िगर जाएगा

मरी गिडया-सी बहन को ख़दकशी करना पडी कयाzwnj ख़बर थी दोसत मरा इस क़दर िगर जाएगा

इसीिलए मन बज़गो की ज़मीन छोड दी मरा घर िजस िदन बसगा तरा घर िगर जाएगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़दा-न-ख़वासता जननत हराम कर लग मनिफ़क़ो को अगर हम सलाम कर लग

अभी तो मरी ज़ररत ह मर बचचो को बड हए तो य ख़द इनतज़ाम कर लग

इसी ख़याल स हमन य पड बोया ह हमार साथ पिरनद क़याम कर लग

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िबछडन वालो का अब इनतज़ार कया करना उडा िदय तो कबतर शमार कया करना

हमार हाथ म तलवार भी ह मौक़ा भी मगर िगर हए दशमन प वार कया करना

वो आदमी ह तो एहसास-जमर काफ़ी ह वो सग ह तो उस सगसार कया करना

बदन म ख़न नही हो तो ख़बहा कसा

मगर अब इसका बया बार-बार कया करना

चराग़-आिख़र-शब जगमगा रहा ह मगर चराग़-आिख़र-शब का शमार कया करना

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जल रह ह धप म लिकन इसी सहरा म ह कया ख़बर वहशत को हम भी शहर-कलकतता म ह

हम ह गज़र वक़त की तहज़ीब क रौशन चराग़ फ़ख़र कर अज़-वतन हम आज तक दिनया म ह

मछिलया तक ख़ौफ़ स दिरया िकनार आ गयी य हमारा हौसला ह हम अगर दिरया म ह

हम को बाज़ारो की ज़ीनत क िलय तोडा गया फ़ल होकर भी कहा हम गस-ए-लला म ह

मर पीछ आन वालो को कहा मालम ह ख़न क धबब भी शािमल मर नक़श-पा म ह

ऐब-जई स अगर फ़सरत िमल तो दखना दोसतो कछ ख़िबया भी हज़रत-राना म ह

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िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

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मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

63

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

70

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

71

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

73

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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हम सायादार पड ज़मान क काम आय जब सखन लग तो जलान क काम आय

तलवार की िमयान कभी फ़कना नही ममिकन ह दशमनो को डरान क काम आय

कचचा समझ क बच न दना मका को शायद य कभी सर को छपान क काम आय

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इतना रोय थ िलपट कर दरो-िदवार स हम शहर म आ क बहत िदन रह बीमार-स हम

अपन िबकन का बहत दख ह हम भी लिकन मसकरात हए िमलत ह खरीदार स हम

सग आत थ बहत चारो तरफ़ स घर म इसिलए डरत ह अब शाख़-समरदार स हम

सायबा हो तरा आचल हो िक छत हो लिकन बच नही सकत रसवाई की बौछार स हम

रासता तकन म आख भी गवा दी राना िफ़र भी महरम रह आपक दीदार स हम

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मफ़िलसी पास-शराफ़त नही रहन दगी य हवा पड सलामत नही रहन दगी

शहर क शोर स घबरा क अगर भागोग िफ़र तो जगल म भी वहशत नही रहन दगी

कछ नही होगा तो आचल म छपा लगी मझ मा कभी सर प खली छत नही रहन दगी

आप क पास ज़माना नही रहन दगा आप स दर मोहबबत नही रहन दगी

शहर क लोग बहत अचछ ह लिकन मझको मीर जसी य तबीयत नही रहन दगी

रासता अब भी बदल दीिजए राना साहब शायरी आप की इज़ज़त नही रहन दगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दशतो-सहरा म कभी उजड खडर म रहना उमर भर कोई न चाहगा सफ़र म रहना

ऐ ख़दा फ़ल-स बचचो की िहफ़ाज़त करना मफ़िलसी चाह रही ह मर घर म रहना

इसिलए बठी ह दहलीज़ प मरी बहन फ़ल नही चाहत ता-उमर शजर म रहना

मददतो बाद कोई शख़स ह आन वाला ऐ मर आसओ तम दीद-ए-तर म रहना

िकस को य िफ़कर िक हालात कहा आ पहच लोग तो चाहत ह िसफ़र ख़बर म रहना

मौत लगती ह मझ अपन मका की मािनद िज़नदगी जस िकसी और क घर म रहना

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िहजर म पहल-पहल रोना बहत अचछा लगा उमर कचची थी तो फ़ल कचचा बहत अचछा लगा

मन एक मददत स मिद सजद भी नही दखी मगर एक बचच का अज़ा दना बहत अचछा लगा

िजसम पर मर बहत शफ़फ़ाक़ कपड थ मगर धल िमटटी म अटा बटा बहत अचछा लगा

शहर की सडक हो चाह गाव की पगडिद णडया मा की उगली थाम कर चलना बहत अचछा लगा

तार पर बठी हई िचिडयो को सोता दख कर फ़शर पर सोता हआ बचचा बहत अचछा लगा

हम तो उसको दखन आय थ इतनी दर स वो समझता था हम मला बहत अचछा लगा

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हसत हए मा-बाप की गाली नही खात बचच ह तो कयो शौक़ स िमटटी नही खात

तम स नही िमलन का इरादा तो ह लिकन तम स न िमलग य क़सम भी नही खात

सो जात ह फ़टपाथ प अख़बार िबछा कर मज़दर कभी नीद की गोली नही खात

बचच भी ग़रीबी को समझन लग शायद जब जाग भी जात ह तो सहरी नही खात

दावत तो बडी चीज़ ह हम जस क़लनदर हर एक क पसो की दवा भी नही खात

अलाह ग़रीबो का मददगार ह राना हम लोगो क बचच कभी सदी नही खात

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ऐ हकमत तरा मआर न िगरन पाय मरी मिद सजद ह य मीनार न िगरन पाय

आिधयो दशत म तहज़ीब स दािखल होना पड कोई भी समरदार न िगरन पाय

म िनहतथो पर कभी वार नही करता ह मर दशमन तरी तलवार न िगरन पाय

इसम बचचो की जली लाशो की तसवीर ह दखना हाथ स अख़बार न िगरन पाय

िमलता-जलता ह सभी माओ स मा का चहरा गरदवार की भी दीवार न िगरन पाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नय कमरो म अब चीज़ परानी कौन रखता ह पिरनदो क िलए शहरो म पानी कौन रखता ह

कही भी इन िदनो मरी तबीयत ही नही लगती तरी जािनब स िदल म बदगमानी कौन रखता ह

हमी िगरती हई दीवार को थाम रह वरना सलीक़ स बज़गो की िनशानी कौन रखता ह

य रिगसतान ह चशमा कही स फ़ट सकता ह शराफ़त इस सदी म ख़ानदानी कौन रखता ह

हमी भल नही अचछ-बर िदन आज तक वरना मनववर याद माज़ी की कहानी कौन रखता ह

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िजसम का बरसो पराना य खडर िगर जाएगा आिधयो का ज़ोर कहता ह शजर िगर जाएगा

हम तवक़क़ो स ज़यादा सख़तजा सािबत हए वो समझता था की पतथर स समर िगर जाएगा

अब मनािसब ह िक तम काटो को दामन सौप दो फ़ल तो ख़द ही िकसी िदन सखकर िगर जाएगा

मरी गिडया-सी बहन को ख़दकशी करना पडी कयाzwnj ख़बर थी दोसत मरा इस क़दर िगर जाएगा

इसीिलए मन बज़गो की ज़मीन छोड दी मरा घर िजस िदन बसगा तरा घर िगर जाएगा

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ख़दा-न-ख़वासता जननत हराम कर लग मनिफ़क़ो को अगर हम सलाम कर लग

अभी तो मरी ज़ररत ह मर बचचो को बड हए तो य ख़द इनतज़ाम कर लग

इसी ख़याल स हमन य पड बोया ह हमार साथ पिरनद क़याम कर लग

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िबछडन वालो का अब इनतज़ार कया करना उडा िदय तो कबतर शमार कया करना

हमार हाथ म तलवार भी ह मौक़ा भी मगर िगर हए दशमन प वार कया करना

वो आदमी ह तो एहसास-जमर काफ़ी ह वो सग ह तो उस सगसार कया करना

बदन म ख़न नही हो तो ख़बहा कसा

मगर अब इसका बया बार-बार कया करना

चराग़-आिख़र-शब जगमगा रहा ह मगर चराग़-आिख़र-शब का शमार कया करना

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जल रह ह धप म लिकन इसी सहरा म ह कया ख़बर वहशत को हम भी शहर-कलकतता म ह

हम ह गज़र वक़त की तहज़ीब क रौशन चराग़ फ़ख़र कर अज़-वतन हम आज तक दिनया म ह

मछिलया तक ख़ौफ़ स दिरया िकनार आ गयी य हमारा हौसला ह हम अगर दिरया म ह

हम को बाज़ारो की ज़ीनत क िलय तोडा गया फ़ल होकर भी कहा हम गस-ए-लला म ह

मर पीछ आन वालो को कहा मालम ह ख़न क धबब भी शािमल मर नक़श-पा म ह

ऐब-जई स अगर फ़सरत िमल तो दखना दोसतो कछ ख़िबया भी हज़रत-राना म ह

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िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

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मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

58

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

66

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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इतना रोय थ िलपट कर दरो-िदवार स हम शहर म आ क बहत िदन रह बीमार-स हम

अपन िबकन का बहत दख ह हम भी लिकन मसकरात हए िमलत ह खरीदार स हम

सग आत थ बहत चारो तरफ़ स घर म इसिलए डरत ह अब शाख़-समरदार स हम

सायबा हो तरा आचल हो िक छत हो लिकन बच नही सकत रसवाई की बौछार स हम

रासता तकन म आख भी गवा दी राना िफ़र भी महरम रह आपक दीदार स हम

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मफ़िलसी पास-शराफ़त नही रहन दगी य हवा पड सलामत नही रहन दगी

शहर क शोर स घबरा क अगर भागोग िफ़र तो जगल म भी वहशत नही रहन दगी

कछ नही होगा तो आचल म छपा लगी मझ मा कभी सर प खली छत नही रहन दगी

आप क पास ज़माना नही रहन दगा आप स दर मोहबबत नही रहन दगी

शहर क लोग बहत अचछ ह लिकन मझको मीर जसी य तबीयत नही रहन दगी

रासता अब भी बदल दीिजए राना साहब शायरी आप की इज़ज़त नही रहन दगी

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दशतो-सहरा म कभी उजड खडर म रहना उमर भर कोई न चाहगा सफ़र म रहना

ऐ ख़दा फ़ल-स बचचो की िहफ़ाज़त करना मफ़िलसी चाह रही ह मर घर म रहना

इसिलए बठी ह दहलीज़ प मरी बहन फ़ल नही चाहत ता-उमर शजर म रहना

मददतो बाद कोई शख़स ह आन वाला ऐ मर आसओ तम दीद-ए-तर म रहना

िकस को य िफ़कर िक हालात कहा आ पहच लोग तो चाहत ह िसफ़र ख़बर म रहना

मौत लगती ह मझ अपन मका की मािनद िज़नदगी जस िकसी और क घर म रहना

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िहजर म पहल-पहल रोना बहत अचछा लगा उमर कचची थी तो फ़ल कचचा बहत अचछा लगा

मन एक मददत स मिद सजद भी नही दखी मगर एक बचच का अज़ा दना बहत अचछा लगा

िजसम पर मर बहत शफ़फ़ाक़ कपड थ मगर धल िमटटी म अटा बटा बहत अचछा लगा

शहर की सडक हो चाह गाव की पगडिद णडया मा की उगली थाम कर चलना बहत अचछा लगा

तार पर बठी हई िचिडयो को सोता दख कर फ़शर पर सोता हआ बचचा बहत अचछा लगा

हम तो उसको दखन आय थ इतनी दर स वो समझता था हम मला बहत अचछा लगा

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हसत हए मा-बाप की गाली नही खात बचच ह तो कयो शौक़ स िमटटी नही खात

तम स नही िमलन का इरादा तो ह लिकन तम स न िमलग य क़सम भी नही खात

सो जात ह फ़टपाथ प अख़बार िबछा कर मज़दर कभी नीद की गोली नही खात

बचच भी ग़रीबी को समझन लग शायद जब जाग भी जात ह तो सहरी नही खात

दावत तो बडी चीज़ ह हम जस क़लनदर हर एक क पसो की दवा भी नही खात

अलाह ग़रीबो का मददगार ह राना हम लोगो क बचच कभी सदी नही खात

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ऐ हकमत तरा मआर न िगरन पाय मरी मिद सजद ह य मीनार न िगरन पाय

आिधयो दशत म तहज़ीब स दािखल होना पड कोई भी समरदार न िगरन पाय

म िनहतथो पर कभी वार नही करता ह मर दशमन तरी तलवार न िगरन पाय

इसम बचचो की जली लाशो की तसवीर ह दखना हाथ स अख़बार न िगरन पाय

िमलता-जलता ह सभी माओ स मा का चहरा गरदवार की भी दीवार न िगरन पाय

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नय कमरो म अब चीज़ परानी कौन रखता ह पिरनदो क िलए शहरो म पानी कौन रखता ह

कही भी इन िदनो मरी तबीयत ही नही लगती तरी जािनब स िदल म बदगमानी कौन रखता ह

हमी िगरती हई दीवार को थाम रह वरना सलीक़ स बज़गो की िनशानी कौन रखता ह

य रिगसतान ह चशमा कही स फ़ट सकता ह शराफ़त इस सदी म ख़ानदानी कौन रखता ह

हमी भल नही अचछ-बर िदन आज तक वरना मनववर याद माज़ी की कहानी कौन रखता ह

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िजसम का बरसो पराना य खडर िगर जाएगा आिधयो का ज़ोर कहता ह शजर िगर जाएगा

हम तवक़क़ो स ज़यादा सख़तजा सािबत हए वो समझता था की पतथर स समर िगर जाएगा

अब मनािसब ह िक तम काटो को दामन सौप दो फ़ल तो ख़द ही िकसी िदन सखकर िगर जाएगा

मरी गिडया-सी बहन को ख़दकशी करना पडी कयाzwnj ख़बर थी दोसत मरा इस क़दर िगर जाएगा

इसीिलए मन बज़गो की ज़मीन छोड दी मरा घर िजस िदन बसगा तरा घर िगर जाएगा

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ख़दा-न-ख़वासता जननत हराम कर लग मनिफ़क़ो को अगर हम सलाम कर लग

अभी तो मरी ज़ररत ह मर बचचो को बड हए तो य ख़द इनतज़ाम कर लग

इसी ख़याल स हमन य पड बोया ह हमार साथ पिरनद क़याम कर लग

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िबछडन वालो का अब इनतज़ार कया करना उडा िदय तो कबतर शमार कया करना

हमार हाथ म तलवार भी ह मौक़ा भी मगर िगर हए दशमन प वार कया करना

वो आदमी ह तो एहसास-जमर काफ़ी ह वो सग ह तो उस सगसार कया करना

बदन म ख़न नही हो तो ख़बहा कसा

मगर अब इसका बया बार-बार कया करना

चराग़-आिख़र-शब जगमगा रहा ह मगर चराग़-आिख़र-शब का शमार कया करना

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जल रह ह धप म लिकन इसी सहरा म ह कया ख़बर वहशत को हम भी शहर-कलकतता म ह

हम ह गज़र वक़त की तहज़ीब क रौशन चराग़ फ़ख़र कर अज़-वतन हम आज तक दिनया म ह

मछिलया तक ख़ौफ़ स दिरया िकनार आ गयी य हमारा हौसला ह हम अगर दिरया म ह

हम को बाज़ारो की ज़ीनत क िलय तोडा गया फ़ल होकर भी कहा हम गस-ए-लला म ह

मर पीछ आन वालो को कहा मालम ह ख़न क धबब भी शािमल मर नक़श-पा म ह

ऐब-जई स अगर फ़सरत िमल तो दखना दोसतो कछ ख़िबया भी हज़रत-राना म ह

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िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

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मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

71

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

76

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

78

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

80

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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मफ़िलसी पास-शराफ़त नही रहन दगी य हवा पड सलामत नही रहन दगी

शहर क शोर स घबरा क अगर भागोग िफ़र तो जगल म भी वहशत नही रहन दगी

कछ नही होगा तो आचल म छपा लगी मझ मा कभी सर प खली छत नही रहन दगी

आप क पास ज़माना नही रहन दगा आप स दर मोहबबत नही रहन दगी

शहर क लोग बहत अचछ ह लिकन मझको मीर जसी य तबीयत नही रहन दगी

रासता अब भी बदल दीिजए राना साहब शायरी आप की इज़ज़त नही रहन दगी

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दशतो-सहरा म कभी उजड खडर म रहना उमर भर कोई न चाहगा सफ़र म रहना

ऐ ख़दा फ़ल-स बचचो की िहफ़ाज़त करना मफ़िलसी चाह रही ह मर घर म रहना

इसिलए बठी ह दहलीज़ प मरी बहन फ़ल नही चाहत ता-उमर शजर म रहना

मददतो बाद कोई शख़स ह आन वाला ऐ मर आसओ तम दीद-ए-तर म रहना

िकस को य िफ़कर िक हालात कहा आ पहच लोग तो चाहत ह िसफ़र ख़बर म रहना

मौत लगती ह मझ अपन मका की मािनद िज़नदगी जस िकसी और क घर म रहना

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िहजर म पहल-पहल रोना बहत अचछा लगा उमर कचची थी तो फ़ल कचचा बहत अचछा लगा

मन एक मददत स मिद सजद भी नही दखी मगर एक बचच का अज़ा दना बहत अचछा लगा

िजसम पर मर बहत शफ़फ़ाक़ कपड थ मगर धल िमटटी म अटा बटा बहत अचछा लगा

शहर की सडक हो चाह गाव की पगडिद णडया मा की उगली थाम कर चलना बहत अचछा लगा

तार पर बठी हई िचिडयो को सोता दख कर फ़शर पर सोता हआ बचचा बहत अचछा लगा

हम तो उसको दखन आय थ इतनी दर स वो समझता था हम मला बहत अचछा लगा

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हसत हए मा-बाप की गाली नही खात बचच ह तो कयो शौक़ स िमटटी नही खात

तम स नही िमलन का इरादा तो ह लिकन तम स न िमलग य क़सम भी नही खात

सो जात ह फ़टपाथ प अख़बार िबछा कर मज़दर कभी नीद की गोली नही खात

बचच भी ग़रीबी को समझन लग शायद जब जाग भी जात ह तो सहरी नही खात

दावत तो बडी चीज़ ह हम जस क़लनदर हर एक क पसो की दवा भी नही खात

अलाह ग़रीबो का मददगार ह राना हम लोगो क बचच कभी सदी नही खात

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ऐ हकमत तरा मआर न िगरन पाय मरी मिद सजद ह य मीनार न िगरन पाय

आिधयो दशत म तहज़ीब स दािखल होना पड कोई भी समरदार न िगरन पाय

म िनहतथो पर कभी वार नही करता ह मर दशमन तरी तलवार न िगरन पाय

इसम बचचो की जली लाशो की तसवीर ह दखना हाथ स अख़बार न िगरन पाय

िमलता-जलता ह सभी माओ स मा का चहरा गरदवार की भी दीवार न िगरन पाय

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नय कमरो म अब चीज़ परानी कौन रखता ह पिरनदो क िलए शहरो म पानी कौन रखता ह

कही भी इन िदनो मरी तबीयत ही नही लगती तरी जािनब स िदल म बदगमानी कौन रखता ह

हमी िगरती हई दीवार को थाम रह वरना सलीक़ स बज़गो की िनशानी कौन रखता ह

य रिगसतान ह चशमा कही स फ़ट सकता ह शराफ़त इस सदी म ख़ानदानी कौन रखता ह

हमी भल नही अचछ-बर िदन आज तक वरना मनववर याद माज़ी की कहानी कौन रखता ह

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िजसम का बरसो पराना य खडर िगर जाएगा आिधयो का ज़ोर कहता ह शजर िगर जाएगा

हम तवक़क़ो स ज़यादा सख़तजा सािबत हए वो समझता था की पतथर स समर िगर जाएगा

अब मनािसब ह िक तम काटो को दामन सौप दो फ़ल तो ख़द ही िकसी िदन सखकर िगर जाएगा

मरी गिडया-सी बहन को ख़दकशी करना पडी कयाzwnj ख़बर थी दोसत मरा इस क़दर िगर जाएगा

इसीिलए मन बज़गो की ज़मीन छोड दी मरा घर िजस िदन बसगा तरा घर िगर जाएगा

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ख़दा-न-ख़वासता जननत हराम कर लग मनिफ़क़ो को अगर हम सलाम कर लग

अभी तो मरी ज़ररत ह मर बचचो को बड हए तो य ख़द इनतज़ाम कर लग

इसी ख़याल स हमन य पड बोया ह हमार साथ पिरनद क़याम कर लग

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िबछडन वालो का अब इनतज़ार कया करना उडा िदय तो कबतर शमार कया करना

हमार हाथ म तलवार भी ह मौक़ा भी मगर िगर हए दशमन प वार कया करना

वो आदमी ह तो एहसास-जमर काफ़ी ह वो सग ह तो उस सगसार कया करना

बदन म ख़न नही हो तो ख़बहा कसा

मगर अब इसका बया बार-बार कया करना

चराग़-आिख़र-शब जगमगा रहा ह मगर चराग़-आिख़र-शब का शमार कया करना

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जल रह ह धप म लिकन इसी सहरा म ह कया ख़बर वहशत को हम भी शहर-कलकतता म ह

हम ह गज़र वक़त की तहज़ीब क रौशन चराग़ फ़ख़र कर अज़-वतन हम आज तक दिनया म ह

मछिलया तक ख़ौफ़ स दिरया िकनार आ गयी य हमारा हौसला ह हम अगर दिरया म ह

हम को बाज़ारो की ज़ीनत क िलय तोडा गया फ़ल होकर भी कहा हम गस-ए-लला म ह

मर पीछ आन वालो को कहा मालम ह ख़न क धबब भी शािमल मर नक़श-पा म ह

ऐब-जई स अगर फ़सरत िमल तो दखना दोसतो कछ ख़िबया भी हज़रत-राना म ह

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िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

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मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

76

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

78

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

87

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

88

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

89

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 13: Pipal Chhav: Munawwar Rana

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दशतो-सहरा म कभी उजड खडर म रहना उमर भर कोई न चाहगा सफ़र म रहना

ऐ ख़दा फ़ल-स बचचो की िहफ़ाज़त करना मफ़िलसी चाह रही ह मर घर म रहना

इसिलए बठी ह दहलीज़ प मरी बहन फ़ल नही चाहत ता-उमर शजर म रहना

मददतो बाद कोई शख़स ह आन वाला ऐ मर आसओ तम दीद-ए-तर म रहना

िकस को य िफ़कर िक हालात कहा आ पहच लोग तो चाहत ह िसफ़र ख़बर म रहना

मौत लगती ह मझ अपन मका की मािनद िज़नदगी जस िकसी और क घर म रहना

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िहजर म पहल-पहल रोना बहत अचछा लगा उमर कचची थी तो फ़ल कचचा बहत अचछा लगा

मन एक मददत स मिद सजद भी नही दखी मगर एक बचच का अज़ा दना बहत अचछा लगा

िजसम पर मर बहत शफ़फ़ाक़ कपड थ मगर धल िमटटी म अटा बटा बहत अचछा लगा

शहर की सडक हो चाह गाव की पगडिद णडया मा की उगली थाम कर चलना बहत अचछा लगा

तार पर बठी हई िचिडयो को सोता दख कर फ़शर पर सोता हआ बचचा बहत अचछा लगा

हम तो उसको दखन आय थ इतनी दर स वो समझता था हम मला बहत अचछा लगा

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हसत हए मा-बाप की गाली नही खात बचच ह तो कयो शौक़ स िमटटी नही खात

तम स नही िमलन का इरादा तो ह लिकन तम स न िमलग य क़सम भी नही खात

सो जात ह फ़टपाथ प अख़बार िबछा कर मज़दर कभी नीद की गोली नही खात

बचच भी ग़रीबी को समझन लग शायद जब जाग भी जात ह तो सहरी नही खात

दावत तो बडी चीज़ ह हम जस क़लनदर हर एक क पसो की दवा भी नही खात

अलाह ग़रीबो का मददगार ह राना हम लोगो क बचच कभी सदी नही खात

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ऐ हकमत तरा मआर न िगरन पाय मरी मिद सजद ह य मीनार न िगरन पाय

आिधयो दशत म तहज़ीब स दािखल होना पड कोई भी समरदार न िगरन पाय

म िनहतथो पर कभी वार नही करता ह मर दशमन तरी तलवार न िगरन पाय

इसम बचचो की जली लाशो की तसवीर ह दखना हाथ स अख़बार न िगरन पाय

िमलता-जलता ह सभी माओ स मा का चहरा गरदवार की भी दीवार न िगरन पाय

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नय कमरो म अब चीज़ परानी कौन रखता ह पिरनदो क िलए शहरो म पानी कौन रखता ह

कही भी इन िदनो मरी तबीयत ही नही लगती तरी जािनब स िदल म बदगमानी कौन रखता ह

हमी िगरती हई दीवार को थाम रह वरना सलीक़ स बज़गो की िनशानी कौन रखता ह

य रिगसतान ह चशमा कही स फ़ट सकता ह शराफ़त इस सदी म ख़ानदानी कौन रखता ह

हमी भल नही अचछ-बर िदन आज तक वरना मनववर याद माज़ी की कहानी कौन रखता ह

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िजसम का बरसो पराना य खडर िगर जाएगा आिधयो का ज़ोर कहता ह शजर िगर जाएगा

हम तवक़क़ो स ज़यादा सख़तजा सािबत हए वो समझता था की पतथर स समर िगर जाएगा

अब मनािसब ह िक तम काटो को दामन सौप दो फ़ल तो ख़द ही िकसी िदन सखकर िगर जाएगा

मरी गिडया-सी बहन को ख़दकशी करना पडी कयाzwnj ख़बर थी दोसत मरा इस क़दर िगर जाएगा

इसीिलए मन बज़गो की ज़मीन छोड दी मरा घर िजस िदन बसगा तरा घर िगर जाएगा

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ख़दा-न-ख़वासता जननत हराम कर लग मनिफ़क़ो को अगर हम सलाम कर लग

अभी तो मरी ज़ररत ह मर बचचो को बड हए तो य ख़द इनतज़ाम कर लग

इसी ख़याल स हमन य पड बोया ह हमार साथ पिरनद क़याम कर लग

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िबछडन वालो का अब इनतज़ार कया करना उडा िदय तो कबतर शमार कया करना

हमार हाथ म तलवार भी ह मौक़ा भी मगर िगर हए दशमन प वार कया करना

वो आदमी ह तो एहसास-जमर काफ़ी ह वो सग ह तो उस सगसार कया करना

बदन म ख़न नही हो तो ख़बहा कसा

मगर अब इसका बया बार-बार कया करना

चराग़-आिख़र-शब जगमगा रहा ह मगर चराग़-आिख़र-शब का शमार कया करना

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जल रह ह धप म लिकन इसी सहरा म ह कया ख़बर वहशत को हम भी शहर-कलकतता म ह

हम ह गज़र वक़त की तहज़ीब क रौशन चराग़ फ़ख़र कर अज़-वतन हम आज तक दिनया म ह

मछिलया तक ख़ौफ़ स दिरया िकनार आ गयी य हमारा हौसला ह हम अगर दिरया म ह

हम को बाज़ारो की ज़ीनत क िलय तोडा गया फ़ल होकर भी कहा हम गस-ए-लला म ह

मर पीछ आन वालो को कहा मालम ह ख़न क धबब भी शािमल मर नक़श-पा म ह

ऐब-जई स अगर फ़सरत िमल तो दखना दोसतो कछ ख़िबया भी हज़रत-राना म ह

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िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

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मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 14: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िहजर म पहल-पहल रोना बहत अचछा लगा उमर कचची थी तो फ़ल कचचा बहत अचछा लगा

मन एक मददत स मिद सजद भी नही दखी मगर एक बचच का अज़ा दना बहत अचछा लगा

िजसम पर मर बहत शफ़फ़ाक़ कपड थ मगर धल िमटटी म अटा बटा बहत अचछा लगा

शहर की सडक हो चाह गाव की पगडिद णडया मा की उगली थाम कर चलना बहत अचछा लगा

तार पर बठी हई िचिडयो को सोता दख कर फ़शर पर सोता हआ बचचा बहत अचछा लगा

हम तो उसको दखन आय थ इतनी दर स वो समझता था हम मला बहत अचछा लगा

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हसत हए मा-बाप की गाली नही खात बचच ह तो कयो शौक़ स िमटटी नही खात

तम स नही िमलन का इरादा तो ह लिकन तम स न िमलग य क़सम भी नही खात

सो जात ह फ़टपाथ प अख़बार िबछा कर मज़दर कभी नीद की गोली नही खात

बचच भी ग़रीबी को समझन लग शायद जब जाग भी जात ह तो सहरी नही खात

दावत तो बडी चीज़ ह हम जस क़लनदर हर एक क पसो की दवा भी नही खात

अलाह ग़रीबो का मददगार ह राना हम लोगो क बचच कभी सदी नही खात

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ऐ हकमत तरा मआर न िगरन पाय मरी मिद सजद ह य मीनार न िगरन पाय

आिधयो दशत म तहज़ीब स दािखल होना पड कोई भी समरदार न िगरन पाय

म िनहतथो पर कभी वार नही करता ह मर दशमन तरी तलवार न िगरन पाय

इसम बचचो की जली लाशो की तसवीर ह दखना हाथ स अख़बार न िगरन पाय

िमलता-जलता ह सभी माओ स मा का चहरा गरदवार की भी दीवार न िगरन पाय

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नय कमरो म अब चीज़ परानी कौन रखता ह पिरनदो क िलए शहरो म पानी कौन रखता ह

कही भी इन िदनो मरी तबीयत ही नही लगती तरी जािनब स िदल म बदगमानी कौन रखता ह

हमी िगरती हई दीवार को थाम रह वरना सलीक़ स बज़गो की िनशानी कौन रखता ह

य रिगसतान ह चशमा कही स फ़ट सकता ह शराफ़त इस सदी म ख़ानदानी कौन रखता ह

हमी भल नही अचछ-बर िदन आज तक वरना मनववर याद माज़ी की कहानी कौन रखता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िजसम का बरसो पराना य खडर िगर जाएगा आिधयो का ज़ोर कहता ह शजर िगर जाएगा

हम तवक़क़ो स ज़यादा सख़तजा सािबत हए वो समझता था की पतथर स समर िगर जाएगा

अब मनािसब ह िक तम काटो को दामन सौप दो फ़ल तो ख़द ही िकसी िदन सखकर िगर जाएगा

मरी गिडया-सी बहन को ख़दकशी करना पडी कयाzwnj ख़बर थी दोसत मरा इस क़दर िगर जाएगा

इसीिलए मन बज़गो की ज़मीन छोड दी मरा घर िजस िदन बसगा तरा घर िगर जाएगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़दा-न-ख़वासता जननत हराम कर लग मनिफ़क़ो को अगर हम सलाम कर लग

अभी तो मरी ज़ररत ह मर बचचो को बड हए तो य ख़द इनतज़ाम कर लग

इसी ख़याल स हमन य पड बोया ह हमार साथ पिरनद क़याम कर लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडन वालो का अब इनतज़ार कया करना उडा िदय तो कबतर शमार कया करना

हमार हाथ म तलवार भी ह मौक़ा भी मगर िगर हए दशमन प वार कया करना

वो आदमी ह तो एहसास-जमर काफ़ी ह वो सग ह तो उस सगसार कया करना

बदन म ख़न नही हो तो ख़बहा कसा

मगर अब इसका बया बार-बार कया करना

चराग़-आिख़र-शब जगमगा रहा ह मगर चराग़-आिख़र-शब का शमार कया करना

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जल रह ह धप म लिकन इसी सहरा म ह कया ख़बर वहशत को हम भी शहर-कलकतता म ह

हम ह गज़र वक़त की तहज़ीब क रौशन चराग़ फ़ख़र कर अज़-वतन हम आज तक दिनया म ह

मछिलया तक ख़ौफ़ स दिरया िकनार आ गयी य हमारा हौसला ह हम अगर दिरया म ह

हम को बाज़ारो की ज़ीनत क िलय तोडा गया फ़ल होकर भी कहा हम गस-ए-लला म ह

मर पीछ आन वालो को कहा मालम ह ख़न क धबब भी शािमल मर नक़श-पा म ह

ऐब-जई स अगर फ़सरत िमल तो दखना दोसतो कछ ख़िबया भी हज़रत-राना म ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

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मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

39

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

49

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

51

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

52

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

54

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

58

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

59

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

60

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हसत हए मा-बाप की गाली नही खात बचच ह तो कयो शौक़ स िमटटी नही खात

तम स नही िमलन का इरादा तो ह लिकन तम स न िमलग य क़सम भी नही खात

सो जात ह फ़टपाथ प अख़बार िबछा कर मज़दर कभी नीद की गोली नही खात

बचच भी ग़रीबी को समझन लग शायद जब जाग भी जात ह तो सहरी नही खात

दावत तो बडी चीज़ ह हम जस क़लनदर हर एक क पसो की दवा भी नही खात

अलाह ग़रीबो का मददगार ह राना हम लोगो क बचच कभी सदी नही खात

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ऐ हकमत तरा मआर न िगरन पाय मरी मिद सजद ह य मीनार न िगरन पाय

आिधयो दशत म तहज़ीब स दािखल होना पड कोई भी समरदार न िगरन पाय

म िनहतथो पर कभी वार नही करता ह मर दशमन तरी तलवार न िगरन पाय

इसम बचचो की जली लाशो की तसवीर ह दखना हाथ स अख़बार न िगरन पाय

िमलता-जलता ह सभी माओ स मा का चहरा गरदवार की भी दीवार न िगरन पाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नय कमरो म अब चीज़ परानी कौन रखता ह पिरनदो क िलए शहरो म पानी कौन रखता ह

कही भी इन िदनो मरी तबीयत ही नही लगती तरी जािनब स िदल म बदगमानी कौन रखता ह

हमी िगरती हई दीवार को थाम रह वरना सलीक़ स बज़गो की िनशानी कौन रखता ह

य रिगसतान ह चशमा कही स फ़ट सकता ह शराफ़त इस सदी म ख़ानदानी कौन रखता ह

हमी भल नही अचछ-बर िदन आज तक वरना मनववर याद माज़ी की कहानी कौन रखता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िजसम का बरसो पराना य खडर िगर जाएगा आिधयो का ज़ोर कहता ह शजर िगर जाएगा

हम तवक़क़ो स ज़यादा सख़तजा सािबत हए वो समझता था की पतथर स समर िगर जाएगा

अब मनािसब ह िक तम काटो को दामन सौप दो फ़ल तो ख़द ही िकसी िदन सखकर िगर जाएगा

मरी गिडया-सी बहन को ख़दकशी करना पडी कयाzwnj ख़बर थी दोसत मरा इस क़दर िगर जाएगा

इसीिलए मन बज़गो की ज़मीन छोड दी मरा घर िजस िदन बसगा तरा घर िगर जाएगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़दा-न-ख़वासता जननत हराम कर लग मनिफ़क़ो को अगर हम सलाम कर लग

अभी तो मरी ज़ररत ह मर बचचो को बड हए तो य ख़द इनतज़ाम कर लग

इसी ख़याल स हमन य पड बोया ह हमार साथ पिरनद क़याम कर लग

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िबछडन वालो का अब इनतज़ार कया करना उडा िदय तो कबतर शमार कया करना

हमार हाथ म तलवार भी ह मौक़ा भी मगर िगर हए दशमन प वार कया करना

वो आदमी ह तो एहसास-जमर काफ़ी ह वो सग ह तो उस सगसार कया करना

बदन म ख़न नही हो तो ख़बहा कसा

मगर अब इसका बया बार-बार कया करना

चराग़-आिख़र-शब जगमगा रहा ह मगर चराग़-आिख़र-शब का शमार कया करना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जल रह ह धप म लिकन इसी सहरा म ह कया ख़बर वहशत को हम भी शहर-कलकतता म ह

हम ह गज़र वक़त की तहज़ीब क रौशन चराग़ फ़ख़र कर अज़-वतन हम आज तक दिनया म ह

मछिलया तक ख़ौफ़ स दिरया िकनार आ गयी य हमारा हौसला ह हम अगर दिरया म ह

हम को बाज़ारो की ज़ीनत क िलय तोडा गया फ़ल होकर भी कहा हम गस-ए-लला म ह

मर पीछ आन वालो को कहा मालम ह ख़न क धबब भी शािमल मर नक़श-पा म ह

ऐब-जई स अगर फ़सरत िमल तो दखना दोसतो कछ ख़िबया भी हज़रत-राना म ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

58

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

61

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

62

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

63

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

64

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

65

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

66

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

67

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

68

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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ऐ हकमत तरा मआर न िगरन पाय मरी मिद सजद ह य मीनार न िगरन पाय

आिधयो दशत म तहज़ीब स दािखल होना पड कोई भी समरदार न िगरन पाय

म िनहतथो पर कभी वार नही करता ह मर दशमन तरी तलवार न िगरन पाय

इसम बचचो की जली लाशो की तसवीर ह दखना हाथ स अख़बार न िगरन पाय

िमलता-जलता ह सभी माओ स मा का चहरा गरदवार की भी दीवार न िगरन पाय

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नय कमरो म अब चीज़ परानी कौन रखता ह पिरनदो क िलए शहरो म पानी कौन रखता ह

कही भी इन िदनो मरी तबीयत ही नही लगती तरी जािनब स िदल म बदगमानी कौन रखता ह

हमी िगरती हई दीवार को थाम रह वरना सलीक़ स बज़गो की िनशानी कौन रखता ह

य रिगसतान ह चशमा कही स फ़ट सकता ह शराफ़त इस सदी म ख़ानदानी कौन रखता ह

हमी भल नही अचछ-बर िदन आज तक वरना मनववर याद माज़ी की कहानी कौन रखता ह

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िजसम का बरसो पराना य खडर िगर जाएगा आिधयो का ज़ोर कहता ह शजर िगर जाएगा

हम तवक़क़ो स ज़यादा सख़तजा सािबत हए वो समझता था की पतथर स समर िगर जाएगा

अब मनािसब ह िक तम काटो को दामन सौप दो फ़ल तो ख़द ही िकसी िदन सखकर िगर जाएगा

मरी गिडया-सी बहन को ख़दकशी करना पडी कयाzwnj ख़बर थी दोसत मरा इस क़दर िगर जाएगा

इसीिलए मन बज़गो की ज़मीन छोड दी मरा घर िजस िदन बसगा तरा घर िगर जाएगा

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ख़दा-न-ख़वासता जननत हराम कर लग मनिफ़क़ो को अगर हम सलाम कर लग

अभी तो मरी ज़ररत ह मर बचचो को बड हए तो य ख़द इनतज़ाम कर लग

इसी ख़याल स हमन य पड बोया ह हमार साथ पिरनद क़याम कर लग

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िबछडन वालो का अब इनतज़ार कया करना उडा िदय तो कबतर शमार कया करना

हमार हाथ म तलवार भी ह मौक़ा भी मगर िगर हए दशमन प वार कया करना

वो आदमी ह तो एहसास-जमर काफ़ी ह वो सग ह तो उस सगसार कया करना

बदन म ख़न नही हो तो ख़बहा कसा

मगर अब इसका बया बार-बार कया करना

चराग़-आिख़र-शब जगमगा रहा ह मगर चराग़-आिख़र-शब का शमार कया करना

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जल रह ह धप म लिकन इसी सहरा म ह कया ख़बर वहशत को हम भी शहर-कलकतता म ह

हम ह गज़र वक़त की तहज़ीब क रौशन चराग़ फ़ख़र कर अज़-वतन हम आज तक दिनया म ह

मछिलया तक ख़ौफ़ स दिरया िकनार आ गयी य हमारा हौसला ह हम अगर दिरया म ह

हम को बाज़ारो की ज़ीनत क िलय तोडा गया फ़ल होकर भी कहा हम गस-ए-लला म ह

मर पीछ आन वालो को कहा मालम ह ख़न क धबब भी शािमल मर नक़श-पा म ह

ऐब-जई स अगर फ़सरत िमल तो दखना दोसतो कछ ख़िबया भी हज़रत-राना म ह

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िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

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मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

34

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

51

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

54

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

58

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

63

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

66

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

67

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

68

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

69

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

70

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

71

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

73

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

76

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

78

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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नय कमरो म अब चीज़ परानी कौन रखता ह पिरनदो क िलए शहरो म पानी कौन रखता ह

कही भी इन िदनो मरी तबीयत ही नही लगती तरी जािनब स िदल म बदगमानी कौन रखता ह

हमी िगरती हई दीवार को थाम रह वरना सलीक़ स बज़गो की िनशानी कौन रखता ह

य रिगसतान ह चशमा कही स फ़ट सकता ह शराफ़त इस सदी म ख़ानदानी कौन रखता ह

हमी भल नही अचछ-बर िदन आज तक वरना मनववर याद माज़ी की कहानी कौन रखता ह

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िजसम का बरसो पराना य खडर िगर जाएगा आिधयो का ज़ोर कहता ह शजर िगर जाएगा

हम तवक़क़ो स ज़यादा सख़तजा सािबत हए वो समझता था की पतथर स समर िगर जाएगा

अब मनािसब ह िक तम काटो को दामन सौप दो फ़ल तो ख़द ही िकसी िदन सखकर िगर जाएगा

मरी गिडया-सी बहन को ख़दकशी करना पडी कयाzwnj ख़बर थी दोसत मरा इस क़दर िगर जाएगा

इसीिलए मन बज़गो की ज़मीन छोड दी मरा घर िजस िदन बसगा तरा घर िगर जाएगा

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ख़दा-न-ख़वासता जननत हराम कर लग मनिफ़क़ो को अगर हम सलाम कर लग

अभी तो मरी ज़ररत ह मर बचचो को बड हए तो य ख़द इनतज़ाम कर लग

इसी ख़याल स हमन य पड बोया ह हमार साथ पिरनद क़याम कर लग

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िबछडन वालो का अब इनतज़ार कया करना उडा िदय तो कबतर शमार कया करना

हमार हाथ म तलवार भी ह मौक़ा भी मगर िगर हए दशमन प वार कया करना

वो आदमी ह तो एहसास-जमर काफ़ी ह वो सग ह तो उस सगसार कया करना

बदन म ख़न नही हो तो ख़बहा कसा

मगर अब इसका बया बार-बार कया करना

चराग़-आिख़र-शब जगमगा रहा ह मगर चराग़-आिख़र-शब का शमार कया करना

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जल रह ह धप म लिकन इसी सहरा म ह कया ख़बर वहशत को हम भी शहर-कलकतता म ह

हम ह गज़र वक़त की तहज़ीब क रौशन चराग़ फ़ख़र कर अज़-वतन हम आज तक दिनया म ह

मछिलया तक ख़ौफ़ स दिरया िकनार आ गयी य हमारा हौसला ह हम अगर दिरया म ह

हम को बाज़ारो की ज़ीनत क िलय तोडा गया फ़ल होकर भी कहा हम गस-ए-लला म ह

मर पीछ आन वालो को कहा मालम ह ख़न क धबब भी शािमल मर नक़श-पा म ह

ऐब-जई स अगर फ़सरत िमल तो दखना दोसतो कछ ख़िबया भी हज़रत-राना म ह

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िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

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मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

87

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

88

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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िजसम का बरसो पराना य खडर िगर जाएगा आिधयो का ज़ोर कहता ह शजर िगर जाएगा

हम तवक़क़ो स ज़यादा सख़तजा सािबत हए वो समझता था की पतथर स समर िगर जाएगा

अब मनािसब ह िक तम काटो को दामन सौप दो फ़ल तो ख़द ही िकसी िदन सखकर िगर जाएगा

मरी गिडया-सी बहन को ख़दकशी करना पडी कयाzwnj ख़बर थी दोसत मरा इस क़दर िगर जाएगा

इसीिलए मन बज़गो की ज़मीन छोड दी मरा घर िजस िदन बसगा तरा घर िगर जाएगा

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ख़दा-न-ख़वासता जननत हराम कर लग मनिफ़क़ो को अगर हम सलाम कर लग

अभी तो मरी ज़ररत ह मर बचचो को बड हए तो य ख़द इनतज़ाम कर लग

इसी ख़याल स हमन य पड बोया ह हमार साथ पिरनद क़याम कर लग

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िबछडन वालो का अब इनतज़ार कया करना उडा िदय तो कबतर शमार कया करना

हमार हाथ म तलवार भी ह मौक़ा भी मगर िगर हए दशमन प वार कया करना

वो आदमी ह तो एहसास-जमर काफ़ी ह वो सग ह तो उस सगसार कया करना

बदन म ख़न नही हो तो ख़बहा कसा

मगर अब इसका बया बार-बार कया करना

चराग़-आिख़र-शब जगमगा रहा ह मगर चराग़-आिख़र-शब का शमार कया करना

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जल रह ह धप म लिकन इसी सहरा म ह कया ख़बर वहशत को हम भी शहर-कलकतता म ह

हम ह गज़र वक़त की तहज़ीब क रौशन चराग़ फ़ख़र कर अज़-वतन हम आज तक दिनया म ह

मछिलया तक ख़ौफ़ स दिरया िकनार आ गयी य हमारा हौसला ह हम अगर दिरया म ह

हम को बाज़ारो की ज़ीनत क िलय तोडा गया फ़ल होकर भी कहा हम गस-ए-लला म ह

मर पीछ आन वालो को कहा मालम ह ख़न क धबब भी शािमल मर नक़श-पा म ह

ऐब-जई स अगर फ़सरत िमल तो दखना दोसतो कछ ख़िबया भी हज़रत-राना म ह

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िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

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मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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ख़दा-न-ख़वासता जननत हराम कर लग मनिफ़क़ो को अगर हम सलाम कर लग

अभी तो मरी ज़ररत ह मर बचचो को बड हए तो य ख़द इनतज़ाम कर लग

इसी ख़याल स हमन य पड बोया ह हमार साथ पिरनद क़याम कर लग

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िबछडन वालो का अब इनतज़ार कया करना उडा िदय तो कबतर शमार कया करना

हमार हाथ म तलवार भी ह मौक़ा भी मगर िगर हए दशमन प वार कया करना

वो आदमी ह तो एहसास-जमर काफ़ी ह वो सग ह तो उस सगसार कया करना

बदन म ख़न नही हो तो ख़बहा कसा

मगर अब इसका बया बार-बार कया करना

चराग़-आिख़र-शब जगमगा रहा ह मगर चराग़-आिख़र-शब का शमार कया करना

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जल रह ह धप म लिकन इसी सहरा म ह कया ख़बर वहशत को हम भी शहर-कलकतता म ह

हम ह गज़र वक़त की तहज़ीब क रौशन चराग़ फ़ख़र कर अज़-वतन हम आज तक दिनया म ह

मछिलया तक ख़ौफ़ स दिरया िकनार आ गयी य हमारा हौसला ह हम अगर दिरया म ह

हम को बाज़ारो की ज़ीनत क िलय तोडा गया फ़ल होकर भी कहा हम गस-ए-लला म ह

मर पीछ आन वालो को कहा मालम ह ख़न क धबब भी शािमल मर नक़श-पा म ह

ऐब-जई स अगर फ़सरत िमल तो दखना दोसतो कछ ख़िबया भी हज़रत-राना म ह

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िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

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मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

63

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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िबछडन वालो का अब इनतज़ार कया करना उडा िदय तो कबतर शमार कया करना

हमार हाथ म तलवार भी ह मौक़ा भी मगर िगर हए दशमन प वार कया करना

वो आदमी ह तो एहसास-जमर काफ़ी ह वो सग ह तो उस सगसार कया करना

बदन म ख़न नही हो तो ख़बहा कसा

मगर अब इसका बया बार-बार कया करना

चराग़-आिख़र-शब जगमगा रहा ह मगर चराग़-आिख़र-शब का शमार कया करना

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जल रह ह धप म लिकन इसी सहरा म ह कया ख़बर वहशत को हम भी शहर-कलकतता म ह

हम ह गज़र वक़त की तहज़ीब क रौशन चराग़ फ़ख़र कर अज़-वतन हम आज तक दिनया म ह

मछिलया तक ख़ौफ़ स दिरया िकनार आ गयी य हमारा हौसला ह हम अगर दिरया म ह

हम को बाज़ारो की ज़ीनत क िलय तोडा गया फ़ल होकर भी कहा हम गस-ए-लला म ह

मर पीछ आन वालो को कहा मालम ह ख़न क धबब भी शािमल मर नक़श-पा म ह

ऐब-जई स अगर फ़सरत िमल तो दखना दोसतो कछ ख़िबया भी हज़रत-राना म ह

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िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

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मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

41

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

76

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

78

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

80

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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जल रह ह धप म लिकन इसी सहरा म ह कया ख़बर वहशत को हम भी शहर-कलकतता म ह

हम ह गज़र वक़त की तहज़ीब क रौशन चराग़ फ़ख़र कर अज़-वतन हम आज तक दिनया म ह

मछिलया तक ख़ौफ़ स दिरया िकनार आ गयी य हमारा हौसला ह हम अगर दिरया म ह

हम को बाज़ारो की ज़ीनत क िलय तोडा गया फ़ल होकर भी कहा हम गस-ए-लला म ह

मर पीछ आन वालो को कहा मालम ह ख़न क धबब भी शािमल मर नक़श-पा म ह

ऐब-जई स अगर फ़सरत िमल तो दखना दोसतो कछ ख़िबया भी हज़रत-राना म ह

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िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

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मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

39

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या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

51

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

52

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 22: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िफ़र आसओ की ज़ररत न चशम-तर को हई हई जब उसस जदाई तो उमर भर को हई

तकलफ़ात म ज़ख़मो को कर िदया नासर कभी मझ कभी ताख़ीर चारागर को हई

अब अपनी जान भी जान का ग़म नही हमको चलो ख़बर तो िकसी तरह बख़बर को हई

बस एक रात दरीच म चाद उतरा था िक िफ़र चराग़ की ख़वािहश न बामो-दर को हई

िकसी भी हाथ का पतथर इधर नही आया नदामत अब क बहत शाख़-बसमर को हई

हमार पाव म काट चभ हए थ मगर कभी सफ़र म िशकायत न हमसफ़र को हई

म ब-पता िलख ख़त की तरह था ऐ राना मरी तलाश बहत मर नामाबर को हई

22

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

55

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

58

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

59

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

61

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

63

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

64

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

66

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

68

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

69

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

70

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

71

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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Page 23: Pipal Chhav: Munawwar Rana

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मर कमर म अधरा नही रहन दता आपका ग़म मझ तनहा नही रहन दता

वो तो य किहए िक शमशीर-ज़नी आती थी वरना दशमन हम िज़नदा नही रहन दता

मफ़िलसी घर म ठहरन नही दती हमको और परदस म बटा नही रहन दता

ितशनगी मरा मक़ददर ह इसी स शायद म पिरनदो को भी पयासा नही रहन दता

रत पर खलत बचचो को अभी कया मालम कोई सलाब घरौदा नही रहन दता

ग़म स लछमन की तरह भाई का िरशता ह मरा मझको जगल म अकला नही रहन दता

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तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

87

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

88

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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तझ अकल पढ कोई हमसबक़ न रह म चाहता ह िक तझ पर िकसी का हक़ न रह

मझ जदाई क मौसम पर एतराज़ नही मरी दआ ह िक उसको भी कछ क़लक़ न रह

जो तरा नाम िकसी अबनबी क लब चम मरी जबी प य ममिकन नही अरक़ न रह

वो मझको छोड न दता तो और कया करता म वो िकताब ह िजसक कई वरक़ न रह

उस भी हो गयी मददत िकताब-िदल खोल मझ भी याद परान कई सबक़ न रह

वो हमस छीन क माज़ी भी ल गया राना हम उसको याद भी करन क मसतहक़ न रह

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हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 25: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमपर अब इसिलए ख़जर नही फ़का जाता ख़शक तालाब म ककर नही फ़का जाता

उसन रकखा ह िहफ़ाज़त स हमार ग़म को औरतो स कभी ज़वर नही फ़का जाता

मर अजदाद न रौद ह समदर सार मझ स तफ़ान म लगर नही फ़का जाता

िलपटी रहती ह तरी याद हमशा हमस कोई मौसम हो य मफ़लर नही फ़का जाता

जो छपा लता हो दीदार उरयानी को दोसतो ऐसा कलडर नही फ़का जाता

गफ़तग फ़ोन प हो जाती ह राना साहब अब िकसी छत प कबतर नही फ़का जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

71

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

73

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

76

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

78

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

80

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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िजस तरह िकनार स िकनारा नही िमलता म िजसस िबछडता ह दोबारा नही िमलता

शमर आती ह मज़दरी बतात हए हमको इतन म तो बचचो का गबारा नही िमलता

आदत भी बज़गो स हमारी नही िमलती चहरा भी बज़गो स हमारा नही िमलता

ग़ािलब की तरफ़दार ह दिनया तो हम कया ग़ािलब स कोई शर हमारा नही िमलता

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तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

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कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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Page 27: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तलाश करत ह उनको ज़ररतो वाल कहा गय वो िदन परानी शरारतो वाल

तमाम उमर सलामत रह दआ ह यही हमार सर प ह जो हाथ बरक़तो वाल

हम एक िततली की ख़ाितर भटकत-िफ़रत थ कभी न आयग वो िदन शरारतो वाल

ज़रा-सी बात प आख़ बरसन लगती थी कहाzwnj चल गय मौसम वो चाहतो वाल

बध हए ह मर हाथ पशत की जािनब कहा ह आय परानी अदावतो वाल

27

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

76

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

78

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

80

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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कभी ख़शी स ख़शी की तरफ़ नही दखा तमहार बाद िकसी की तरफ़ नही दखा

य सोच कर िक तरा इनतज़ार लािज़म ह तमाम उमर घडी की तरफ़ नही दखा

यहा तो जो भी ह आब-रवा का आिशक़ ह िकसी न ख़शक नदी की तरफ़ नही दखा

न रोक ल हम रोता हआ कोई चहरा चल तो मड क गली की तरफ़ नही दखा

रिवश बज़गो की शािमल ह मरी घटटी म ज़ररतन भी सख़ी की तरफ़ नही दखा

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ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

58

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ानदानी िवरासत क नीलाम पर आप अपन तो तयार करत हए उस हवली क सार मकी रो िदए उस हवली को बाज़ार करत हए

दोसती-दशमनी दोनो शािमल रही दोसतो की नवािज़श थी कछ इस तरह काट ल शोख़ बचचा कोई िजस तरह मा क रख़सार पर पयार करत हए

दख बज़गो न काफ़ी उठाय मगर मरा बचपन बहत ही सहाना रहा उमर भर धप म पड जलत रह अपनी शाख़ समरदार करत हए

मा की ममता घन बादलो की तरह सर प साया िकय साथ चलती रही एक बचचा िकताब िलए हाथ म ख़ामशी स सडक पार करत हए

भीगी पलक मगर मसकरात हए जस पानी बरसन लग धप म मन राना मगर मड क दखा नही घर की दहलीज़ को पार करत हए

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बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

78

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

80

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

86

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 30: Pipal Chhav: Munawwar Rana

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बला स दाद कम िमलती मगर मआर बच जाता अगर परहज़ कर लता तो य बीमार बच जाता

मर जज़बात गग थ ज़बा खोली नही अपनी नही तो ग़र ममिकन था मरा िकरदार बच जाता

बना कर घोसला रहता था एक जोडा कबतर का अगर आधी नही आती तो य मीनार बच जाता

हम तो एक िदन मरना था हम चाह जहा मरत उस शिमरदगी होती जो उसका वार बच जाता

बज़गो की बनाई य इमारत िबकन वाली ह जो तम ग़ज़ल नही कहत तो कारोबार बच जाता

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ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 31: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ऐ खदा दख ल दखन लगी आखzwnj मरी जब स वो आ क चरा ल गया नीद मरी

कोई ख़वािहश न तमनना न मसररत न मलाल िजसम का क़ज़र अदा करती ह सास मरी

धप िरशतो की िनकल आयगी य आस िलय घर की दहलीज़ प बठी रही बहन मरी

म इक इसकल क आगन का शजर ह राना नोच ली जाती ह बचपन ही म शाख़ मरी

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सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

41

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 32: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सफ़र म जो भी हो रख़त-सफ़र उठाता ह फ़लो का बोझ तो हर एक शजर उठाता ह

हमार िदल को कोई दसरी शबीह नही कही िकराय प कोई य घर उठाता ह

िबछड क तझस बहत मज़मिहल ह िदल लिकन कभी-कभी तो य बीमार सर उठाता ह

वो अपन काधो प कनब का बोझ रखता ह इसीिलए तो क़दम सोच कर उठाता ह

म नमर िमटटी ह तम रौद कर गज़र जाओ िक मर नाज़ तो बस कज़ागर उठाता ह

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बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

63

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

70

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 33: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बड शहरो म भी रहकर बराबर याद करता था वो एक छोट-स इसटशन का मज़र याद करता था

बहन का पयार मा की ममता दो चीख़ती आख यही तोहफ़ थ वो िजनको म अकसर याद करता था

न जान कौन-सी मजबिरया परदस लायी थी वो िजतनी दर भी िज़नदा रहा घर याद करता था

उस मझस िबछडन पर नदामत तो नही लिकन कही िमल जाय तो कहना मनववर याद करता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

49

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

61

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 34: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हालािक हम लौट क जाना भी नही ह कशती मगर इस बार जलाना भी नही ह

तलवार न छन की क़सम खायी ह लिकन दशमन को कलज स लगाना भी नही ह

य दख क मक़तल म हसी आती ह मझको सचचा मर दशमन का िनशाना भी नही ह

म ह मरा बचचा ह िखलौनो की दका ह अब कोई मर पास बहाना भी नही ह

पहल की तरह आज भी ह तीन ही शायर य राज़ मगर सबको बताना भी नही ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

86

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

87

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

88

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

89

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 35: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हम भी पट की ख़ाितर ख़ज़ाना ढढ लना ह इसी फ़क हए खान स दाना ढढ लना ह

तमह ऐ भाइयो य छोडना अचछा नही लिकन हम अब शाम स पहल िठकाना ढढ लना ह

िखलोनोzwnjक िलय बचच अभी तक जागत होग तझ ऐ मफ़िलसी कोई बहाना ढढ लना ह

मसािफ़र ह हम भी शबगज़ारी क िलए राना बजाय मक़द क चायखाना ढढ लना ह

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सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सहरा म रह क क़स ज़यादा मज़ मzwnj ह दिनया समझ रही ह िक लला मज़ मzwnj ह

बरबाद कर िदया हमzwnj परदस न मगर मा सब स कह रही ह िक बटा मज़ मzwnj ह

ह रह बक़रार अभी तक यज़ीद की वो इसिलए िक आज भी पयासा मज़ मzwnj ह

दिनया अगर मज़ाक़ बदल द तो और बात अब तक तो झठ बोलनवाला मज़ मzwnj ह

शायद उस ख़बर भी नही ह िक इन िदनो बस इक वही उदास ह राना मज़ मzwnj ह

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हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 37: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमार साथ चल कर दख ल य भी चमन वाल यहा अब कोयला चनत ह फलो-स बदन वाल

बडी बचारगी स लौटती बारात तकत ह बहादर हो क भी मजबर होत ह दलहन वाल

हमारी चीख़ती आखो न जलत शहर दख ह बर लगत हzwnj अब िक़सस हम भाई-बहन वाल

गज़रता वक़त मरहम की तरह ज़ख़मो को भर दगा हमzwnj भी रफ़ता-रफ़ता भल जायग वतन वाल

जो घर वालो की मजबरी का सौदा कर िलया हमन हम िज़नदा न छोडग हमारी यिनयन वाल

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जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

49

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 38: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो मसलहत क क़फ़स मzwnj असीर हो जाता मझ यक़ीन ह म भी वज़ीर हो जाता

म दसत-इलम म रह कर क़लम की सरत ह अगर कमान मzwnj रहता तो तीर हो जाता

म अपन िदल को बडी बिद नदशो मzwnj रखता ह नही तो और य बचचा शरीर हो जाता

ज़मीर बचन वालो स दोसती न हई वगरना सबह स पहल अमीर हो जाता

मरा मक़ाम तर शहर न नही समझा अगर म िदली म रहता तो मीर हो जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

39

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

76

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

78

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

80

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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िबछडत वक़त भी चहरा नही उतरता ह यहा सरो स दपटटा नही उतरता ह

मझ बलाता ह मक़तल म िकस तरह जाऊ िक मरी गोद स बचचा नही उतरता ह

हविलयो की छत िगर गयी मगर अब तक मर बज़गो का नशशा नही उतरता ह

कोई पडोस म भखा ह इसिलए शायद मर गल स िनवाला नही उतरता ह

अज़ाब उतरग शायद मरी ज़मीनो पर िक निकयो का फ़िरशता नही उतरता ह

मर कट हए बाज़ भी दख कर राना मर हरीफ़ का ग़ससा नही उतरता ह

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या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

68

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

70

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

71

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

73

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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Page 40: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

या तो िदलो स लफ़ज़-तमनना िनकाल द या ख़शक बिद सतयो स भी गगा िनकाल द

घर हए ह चारो तरफ़ स मझ हरीफ़ मसा क रहनमा कोई रसता िनकाल द

म तर साथ चलन को तयार ह मगर काटा तो पाव स बाबा िनकाल द

इन गग नािक़दो की तसली क वासत उसताद मर शर स सकता िनकाल द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 41: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़ाली-ख़ाली न य ही िदल का मका रह जाय तम ग़म-यार स कह दो िक यहा रह जाय

रह भटकगी तो बस तर िलए भटकगी िजसम का कया भरोसा ह य कहा रह जाय

एक मददत स मर िदल म वो य रहता ह जस कमर म चराग़ो का धआ रह जाय

इसिलए ज़ख़मो को मरहम स नही िमलवाया कछ-न-कछ आपकी करबत का िनशा रह जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 42: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझम य जरअत-इज़हार नहीzwnj आयगी तर सर पर मरी दसतार नहीzwnj आयगी

ऐ मर भाई मर ख़न का बदला ल ल हाथ म रोज़ य तलवार नहीzwnj आयगी

कल कोई और नज़र आयगा इस मसनद पर तर िहसस म य हर बार नहीzwnj आयगी

आ मर िदल क िकसी गोश म आ कर छप जा कोई रसवाई की बौछार नहीzwnj आयगी

तम न साहब न मसाहब न गवनरर न वज़ीर तमको लन क िलए कोई कार नहीzwnj आयगी

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नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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नाकािमयो क बाद भी िहममत वही रही ऊपर का दध पी क भी ताक़त वही रही

शायद य निकया ह हमारी िक हर जगह दसतार क बग़र भी इज़ज़त वही रही

म सर झका क शहर म चलन लगा मगर मर मख़ालफ़ीन म दहशत वही रही

जो कछ िमला था माल-ग़नीमत मzwnj लट गया महनत स जो कमायी थी दौलत वही रही

क़दमो म ला क डाल दी सब नमत मगर सौतली माzwnj को बचचो स नफ़रत वही रही

खान की चीज़ माzwnj न जो भजी ह गाव स बासी भी हो गयी ह तो लज़ज़त वही रही

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िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िकस िदन कोई िरशता मरी बहनो को िमलगा कब नीद का मौसम मरी आखो को िमलगा

य सोच क मा-बाप की िख़दमत मzwnj लगा ह इस पड का साया मर बचचो को िमलगा

अब दिखए कौन आय जनाज़ को उठान य तार तो मर सभी बटो को िमलगा

दिनया की य तक़दीर बदलन को उठग मौक़ा जो िकसी रोज़ ग़रीबो को िमलगा

इस जग न बसािखया बख़शी मझ राना सरकार स इनाम वज़ीरोzwnj को िमलगा

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जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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जो अशक गग थ वो अज़-हाल करन लग हमार बचच हमी स सवाल करन लग

हवा उडाय िलय जा रही ह हर चादर परान लोग सभी इतक़ाल करन लग

िशकम की आग मzwnj जलन िदया न इज़ज़त को िकसी न पछ िलया तो िख़लाल करन लग

मझ ख़बर ह िक अब म िबखरन वाला ह इसीिलए वो बहत दख-भाल करन लग

मर ग़मो को लगाय हए हzwnj सीनोzwnj स पराय बचचोzwnj का वो भीzwnj ख़याल करन लग

पिरनद चप ह िक जस फ़साद मzwnj बचच िशकारी झील का पानी जो लाल करन लग

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उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 46: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

उड क य छत स कबतर मर सब जात ह जस इस मलक स मज़दर अरब जात ह

हमन बाज़ार म दख ह घरल चहर मफ़िलसी तझस बड लोग भी दब जात ह

कौन हसत हए िहजरत प हआ ह राज़ी लोग आसानी स घर छोड क कब जात ह

और कछ रोज़ क महमान हzwnj हम लोग यहा यार बकार हम छोड क अब जात ह

लोग मशकक िनगाहो स हम दखत ह रात को दर स घर लौट क जब जात ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमzwnj मज़दरो की महनतकशो की याद आती ह इमारत दख कर कारीगरो की याद आती ह

नमाज़ पढ क वापस लौटत बचचो स िमलत ही न जान कयोzwnj हम पग़मबरो की याद आती ह

म अपन भाइयो क साथ जब बाहर िनकलता ह मझ यसफ़ क जानी दशमनो की याद आती ह

तमहार शहर की य रौनक़ अचछी नहीzwnj लगती हमzwnj जब गाव क कचच घरो की याद आती ह

मर बचच कभी मझस जो पानी माग लत ह तो पहरो करबला क वाक़यो की याद आती ह

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कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ िखलौन कभी आगन म िदखाई दत काश हम भी िकसी बचच को िमठाई दत

सन पनघट का कोई ददर-भरा गीत थ हम शहर क शोर मzwnj कया तझ को सनाई दत

िकसी बचच की तरह फट क रोयी थी बहत अजनबी हाथ म वो अपनी कलाई दत

कही बनर न हो जाय वो बढी आखzwnj घर म डरत थ ख़बर भी मर भाई दत

साथ रहन स भी िखल जात ह िरशतो क कवल बिद नदश रोन लगी मझ को िरहाई दत

बस िकसी बात क एहसास न रोका वरना हम भी औरो की तरह तझ को बधाई दत

िससिकया उसकी न दखी गयी मझ स राना रो पडा म भी उस पहली कमाई दत

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कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कभी शहरो स गज़रग कभी सहरा भी दखग हम इस दिनया मzwnj आय ह तो य मला भी दखग

हमारी मफ़िलसी हम को इजाज़त तो नहीzwnj दती मगर हम तरी ख़ाितर कोई शहज़ादा भी दखग

मर अशको की तर शहर म क़ीमत नही लिकन तडप जायzwnjग घर वाल जो इक क़तरा भी दखग

मर वापस न आन पर बहत-स लोग ख़श होग मगर कछ लोग मरा उमर भर रसता भी दखग

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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ख़शक था जो पड उस पर पिततया अचछी लगी तर होठोzwnj पर लरज़ती िससिकया अचछी लगी

हर सहलत थी मयससर लिकन इसक बावजद माzwnj क हाथो की पकाई रोिटया अचछी लगी

िजसन आज़ादी क िक़सस भीzwnj सन होzwnj क़द म उस पिरनद को क़फ़स की तीिलया अचछी लगी

हाथ उठा कर वक़त-रख़सत जब दआए उसन दी उसक हाथो की खनकती चिडया अचछी लगी

हम बहत थक-हार कर लौट थ लिकन जान कयो रगती बढती सरकती चीिटया अचछी लगी

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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बजाय इसक िक ससद िदखायी दन लग ख़दा कर तझ गमबद िदखायी दन लग

वतन स दर भी यारब वहा प दम िनकल जहाzwnj स मलक की सरहद िदखायी दन लग

िशकािरयो स कहो सिदरयो का मौसम ह पिरनद झील प बहद िदखायी दन लग

मर ख़दा मरी आखो स मरी रोशनी ल ल िक भीख मागत सयद िदखायी दन लग

ह ख़ानाजगी क आसार मलक म राना िक हर तरफ़ यहा नारद िदखायी दन लग

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वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 52: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वो मला-सा बोसीदा-सा आचल नही दखा बरसो हए हमन कोई पीपल नही दखा

इनसानो को होत हए पागल नही दखा हरत ह िक तमन कभी मक़तल नही दखा

सहरा की कहानी भी बज़गो zwnj स सनी ह इस अहद क मजन न तो जगल नही दखा

इस डर स िक दिनया कही पहचान न जाय महिफ़ल म कभी उस को मसलसल नही दखा

सोन क ख़रीदार न ढढो िक मनववर मददत स यहाzwnj लोगो न पीतल नही दखा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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Page 53: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रौशनी दती हई सब लालटन बझ गयी ख़त नही आया जो बटो का तो माए बझ गयी

मफ़िलसी न सार आगन म अधरा कर िदया भाई ख़ाली हाथ लौट और बहन बझ गयी

वो चमक थी इक ज़मान म िक सरज माद था रफ़ता-रफ़ता िदल की सारी आरज़ए बझ गयी

अब अधरा मसतिक़ल ह इस दहलीज़ पर जो हमारी मनतिज़र रहती थी आख बझ गयी

53

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

54

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

56

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

57

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

58

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

63

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

67

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

68

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

71

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

73

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

76

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

80

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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Page 54: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

काश ऐस ही तरी याद कभी आ जाय जस रोत हए बचच को हसी आ जाय

म िक फ़रहाद नही बाप ह इक बट का िसफ़र रोज़ी क िलए कोहकनी आ जाय

आओ कछ दर कही बठ क रो ल राना इसस पहल िक जदाई की घडी आ जाय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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जो तीर भी आता ह वो ख़ाली नही जाता मायस मर दर स सवाली नही जाता

काट ही िकया करत हzwnj फलो की िहफ़ाज़त फलोzwnj को बचान कोई माली नही जाता

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जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

61

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

63

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

65

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

66

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

68

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

69

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

70

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

71

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

76

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

78

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

86

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

87

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

88

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

89

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 56: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जब तक रहा ह धप म चादर बना रहा म अपनी माzwnj का आिख़री ज़वर बना रहा

य आसओ का मझ प करम ह िक उमर भर चहरा मरा जवाब-गल-तर बना रहा

मन समदरो को खगाला म कछ नही वो नािलयो मzwnj रह कर शनावर बना रहा

हसना न भल जाय य दिनया इसीिलए म बादशाह हो क भी जोकर बना रहा

डब हए िकसी को ज़माना गज़र गया पानी प एक नक़श बराबर बना रहा

उसन भी ख़ततो-ख़ाल नमायाzwnj नही िकय म भी उक़ाब हो क कबतर बना रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

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मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

63

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

73

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

80

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

86

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

87

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

89

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 57: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अजीब तरह की मायिसयो म छोड आय हम आज उसको बडी उलझनो म छोड आय

अगर हरीफ़ो म होता तो बच भी सकता था ग़लत िकया जो उस दोसतो म छोड आय

सफ़र का शौक़ भी िकतना अजीब होता ह वो चहरा भीगा हआ आसओ म छोड आय

िफर उसक बाद वो आख कभी नही रोयी हम उनको ऐसी ग़लतफ़हिमयो म छोड आय

महाज़-जग प जाना बहत ज़ररी था िबलखत बचच हम अपन घरो म छोड आय

जब एक वाक़या बचपन का हमको याद आया हम उन पिरनदो को िफ़र घोसलो म छोड आय

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

58

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

78

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

80

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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Page 58: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मर ज़ख़मो की नमाइश नही होन वाली चारागर स कभी परिसश नही होन वाली

ख़ानक़ाहो स िनकल आओ िमसाल-शमशीर िसफ़र तक़रीर स बख़िशश नही होन वाली

अपनी फ़सलो को कए खोद क सराब करो हाथ फलान स बािरश नही होन वाली

ख़द को तक़सीम कई ख़ानो म करन वालो तमस ज़रो म भी जिद मबश नही होन वाली

तक़र इसलाम कर या कोई क़शक़ा खीच अपन ईमान म लिद ग़ज़श नही होन वाली

क़तल होना हम मज़र ह लिकन राना हमस क़ाितल की िसफ़ािरश नही होन वाली

58

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

62

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

63

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

65

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

66

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

67

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

68

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

69

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

70

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

80

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

86

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

87

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

88

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

89

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

90

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

91

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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Page 59: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

मझको गहराई म िमटटी की उतर जाना ह िज़नदगी बाध ल सामान-सफ़र जाना ह

घर की दहलीज़ पर रौशन ह वो बझती आख मझको मत रोक मझ लौट क घर जाना ह

म वो मल म भटकता हआ इक बचचा ह िजसक मा-बाप को रोत हए मर जाना ह

िज़नदगी ताश क पततो की तरह ह मरी और पततो को बहरहाल िबखर जाना ह

एक बनाम स िरशत की तमनना ल कर इस कबतर को िकसी छत प उतर जाना ह

59

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

60

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

61

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

62

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

63

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

64

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

65

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

66

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

67

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

68

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

69

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

70

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

71

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

73

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

76

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

77

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

78

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 60: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

फफ़डो को कारख़ानो का धआ खान लगा य समनदर अब बराबर किद शतयाzwnj खान लगा

भख स बहाल बचच तो नही रोय मगर घर का चलहा मफ़िलसी की चग़िलया खान लगा

मफ़िलसी हरिगज़ नही य सानहा ह दोसतो गोद म बचचा ह लिकन रोिटया खान लगा

िज़नदगी उस रासत पर मझको ल आयी जहा म टरक वालो की सरत गािलया खान लगा

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हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 61: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

हमकत खलत बचचो की शतानी नही जाती मगर िफर भी हमार घर स वीरानी नही जाती

िनगाह मसतिक़ल पडती ह इस पर ज़रपरसतो की िभखारन क बदन की िफर भी उरयानी नही जाती

हमार दोसतो न हम प पतथर तो बहत फक मगर िफर भी हमारी ख़नदापशानी नही जाती

िकसी बचच का य जमला अभी तक याद ह राना यतीमो को पढान कोई उसतानी नही जाती

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सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

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सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

73

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

76

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

77

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

78

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

80

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

86

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

87

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

89

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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Page 62: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सायबा ख़ानाबदोशो क हवाल कर द य घना पड पिरनदो क हवाल कर द

म ह िमटटी तो मझ कज़ागरो तक पहचा म िखलौना ह तो बचचो क हवाल कर द

शाम क वक़त पिरनद नही पकड जात बज़बा ह इनह शाख़ो क हवाल कर द

ठणड मौसम म भी सड जाता ह बासी खाना बच गया ह तो ग़रीबो क हवाल कर द

म भी सक़रात ह सच बोल िदया ह मन ज़हर सारा मर होठो क हवाल कर द

इस तरह िकशतो म मरना मझ मज़र नही अब मर शहर को फ़ौजो क हवाल कर द

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

63

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

67

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

68

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

71

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

88

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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Page 63: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चभन लगगा आखो म मज़र न दिखए इन िखडिकयो स झाक क बाहर न दिखए

मजबर िदल क हाथो न होना पड मझ जा ही रह ह आप तो मड कर न दिखए

आखो म रह न जाय कही पिद सतयो का अकस इतनी बलिद नदयो स मरा घर न दिखए

मासिमयत प आपकी हसन लगगी झील कचच घड को पानी स भर कर न दिखए

रोना पडगा बठ क अब दर तक मझ म कहा रहा था आपस हस कर न दिखए

काटो की रहगज़र हो िक फलो का रासता फला िदय ह पाव तो चादर न दिखए

63

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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सरक़ का कोई दाग़ जबी पर नही रखता म पाव भी ग़रो की ज़मी पर नही रखता

दिनया मzwnj कोई उसक बराबर ही नही ह होता तो क़दम अश-बरी पर नही रखता

कमज़ोर ह लिकन मरी आदत ही यही ह म बोझ उठा ल तो कही पर नही रखता

इनसाफ़ वो करता ह गवाहो की मदद स ईमान की बिनयाद यक़ी पर नही रखता

इनसानो को जलवायगी कल इसस य दिनया जो बचचा िखलौना भी ज़मी पर नही रखता

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िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

76

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

78

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

80

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

86

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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Page 65: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदली पकारती ह कभी बमबई मझ कया दर-बदर िफरायगी िमटटी मरी मझ

पततो न कछ कहा था िख़ज़ाओ क कान म ऐसा लगा िक आपन आवाज़ दी मझ

उसकी नवािज़श भी अजीबो-ग़रीब ह मफ़िलस बना क बख़श दी दरयािदली मझ

इस शहर न तो नाम भी मरा बदल िदया कहत थ पहल लोग मनववर अली मझ

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

88

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

89

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

90

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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Page 66: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

गौतम की तरह घर स िनकल कर नही जात हम रात म छप कर कही बाहर नही जात

बचपन म िकसी बात प हम रठ गय थ उस िदन स इसी शहर म ह घर नही जात

इक उमर य ही काट दी फ़टपाथ प रह कर हम ऐस पिरनद ह जो उड कर नही जात

उस वक़त भी अकसर तझ हम ढढन िनकल िजस धप म मज़दर भी छत पर नही जात

हर वार अकल ही सहा करत ह राना हम साथ म ल कर कही लशकर नही जात

66

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

68

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

69

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

70

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

71

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

73

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

76

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

77

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

87

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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शहर को िफ़रक़ापरसती की वबा खा जायगी य बज़गो की कमाई दाशता खा जायगी

शहर म आन स पहल य कहा मालम था बहयाई मरी आखो की हया खा जायगी

िफर चला ह कोई वाद को िनभान क िलए य नदी िफर आज इक कचचा घडा खा जायगी

अपन घर म सर झकाय इसिलए आया ह म इतनी मज़दरी तो बचच की दवा खा जायगी

67

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लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

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तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

77

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

78

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

80

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

86

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

87

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

88

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

89

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

90

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

91

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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Page 68: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

लज़ज़त-िगरया स िदल जब आशना हो जायगा तझ प हर लमहा मसररत का सज़ा हो जायगा

जब हवा सख हए पतत उडा ल जायगी मरी ख़ाितर कोई मसरफ़-दआ हो जायगा

म वसीयत कर सका कोई न वादा ल सका मन सोचा भी नही था हादसा हो जायगा

रासता तकती हई आखो स चल कर िमल भी ल फल बदलत मौसमो म बमज़ा हो जायगा

भीख स तो भख अचछी गाव को वापस चलो शहर म रहन स य बचचा बरा हो जायगा

68

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

69

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

70

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

71

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

73

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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तझको तडपायग पागल नही होन दग हम इमारत को मकममल नही होन दग

हम तरी ख़ाक को छ कर य क़सम खात ह ऐ ज़मी हम तझ मक़तल नही होन दग

उमर भर रासता दखगी हमारी आख हम य दरवाज़ मक़फ़फ़ल नही होन दग

हमन दखा ह कई शहरो को जगल बनत आख स बचचो को ओझल नही होन दग

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िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

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जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

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जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

73

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

76

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

77

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

78

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

80

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

86

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

87

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

88

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

89

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

90

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

91

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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Page 70: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िदल वो बसतीzwnj ह जहा कोई तमनना न िमली म वो पनघट ह िजस कोई भी राधा न िमली

एक ही आग म ता उमर जल हम दोनो तम को यसफ़ न िमला हमको जलख़ा न िमली

मरा बनवास प जान का इरादा था मगर मझ को दिनया म कही भी कोई सीता न िमली

उसन बलवाय थ मशहर नजमी लिकन खरदर हाथ म तक़दीर की रखा न िमली

इततफ़ाक़न कभी आयी तो कोई ग़म लायी ऐ ख़शी त मझ इक बार भी तनहा न िमली

70

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

71

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

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दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

73

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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जो हकम दता ह वो इलतजा भी करता ह य आसमान कही पर झका भी करता ह

म अपनी हार पर नािदम ह इस यक़ीन क साथ िक अपन घर की िहफ़ाज़त ख़दा भी करता ह

त बवफ़ा ह तो ल इक बरी ख़बर सन ल िक इनतज़ार मरा दसरा भी करता ह

हसीन लोगो स िमलन प एतराज़ न कर य जमर वो ह जो शादीशदा भी करता ह

हमशा ग़सस स नक़सान ही नही होता कही-कही य बहत फ़ायदा भी करता ह

71

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

72

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

73

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

76

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

77

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

78

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

80

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

86

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

87

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

88

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

89

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

90

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

91

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

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Page 72: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

जगमगात हए शहरो को तबाही दगा और कया मलक को मग़रर िसपाही दगा

पड उममीदो का सोच क काटा न कभी फल न आ पायग इसम तो हवा ही दगा

तमन ख़द ज़लम को मआर-हकमत समझा अब भला कौन तमह मसनद-शाही दगा

िजसम सिदयो स ग़रीबो का लह जलता हो वो िदया रौशनी कया दगा िसयाही दगा

मनिसफ़-वक़त ह त और म मज़लम मगर तरा क़ानन मझ िफर भी सज़ा ही दगा

िकस म िहममत ह जो सच बात कहगा राना कौन होगा जो मर हक़ मzwnj गवाही दगा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दख भी ला सकती ह लिकन जनवरी अचछी लगी िजस तरह बचचो को जलती फलझडी अचछी लगी

रो रह थ सब तो म भी फट कर रोन लगा वरना मझको बिटयो की रख़सती अचछी लगी

ऐ ख़दा त फ़ीस क पस अता कर द मझ मर बचचो को भी यनीविसरटी अचछी लगी

वो िसमट जाना िकसी का सन क मरा तज़िकरा लालटनो म सभलती रोशनी अचछी लगी

तर दामन म िसतार ह तो होग ऐ फ़लक मझ को तो अपनी मा की मली ओढनी अचछी लगी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

74

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

75

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

76

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

77

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

78

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

80

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

86

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

87

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

88

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

89

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

90

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

91

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

92

Page 74: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कछ तो िजगर का ख़न तर ग़म न पी िलया कछ तशनगी क जोश म ख़द हम न पी िलया

बाज़ार मzwnj अजीब कल इक वाक़या हआ मज़दर क पसीन को रशम न पी िलया

य िज़नदगी को चाट गयी ह मसीबत सरसो का तल िजस तरह शीशम न पी िलया

सक़रात जसा शख़स भी िजसको न पी सका उन तलख़य-हयात को भी हम न पी िलया

चहर की ताज़गी को तर ग़म न खा िलया तसवीर क शबाब को अलबम न पी िलया

ज़ख़मो स पहल चारागरो न बझायी पयास जो ख़न बच गया था वो मरहम न पी िलया

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

77

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

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िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

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अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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दिनया म मफ़िलसो का िठकाना नही रहा कया सययदो का कोई घराना नही रहा

कज़ागरो क घर म मसररत कहाzwnj स आय िमटटी क बरतनो का ज़माना नही रहा

होटो क पास लफ़ज़ोzwnj की पजी नही रही आखो म आसओzwnj का ख़ज़ाना नही रहा

उसन भी सब िनशािनया दिरया को सौप दी मझको भी याद कोई फ़साना नही रहा

वो जा रहा ह घर स जनाज़ा बज़गर का आगन म इस दरख़त पराना नही रहा

कछ रोज़ तक तो तमको यक़ी भी न आयगा जब य सनोग शहर म राना नही रहा

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

86

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

87

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

88

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

89

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

90

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

91

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

92

Page 76: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िबलखत-चीख़त बचचो को रोता छोड कर जाना अभी दखा नही तमन िकसी का दार पर जाना

मसािफ़र भीगती आखो का िलकखा पढ नही पात पलटना गाव को तो मोड पर तहरीर कर जाना

परशानी का मौसम भी बहत िदलचसप मौसम ह मर चहर को लोगो न ग़मो का पोसटर जाना

य माना गाव की पगडिद णडयो हमको बलाती ह मगर मिद शकल बहत ह अब हमारा लौट कर जाना

बवक़त-दशमनी उसकी यही ताक़ीद थी राना िकसी स बात मत करना जो हमस रठ कर जाना

76

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

77

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

78

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

80

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

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अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

86

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

87

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

88

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

91

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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शजर अनदर ही अनदर जल रहा ह मगर हसब-ज़ररत फल रहा ह

- घर लन को मझ जब भी बलाए आ गयी

ढाल बन कर सामन माzwnj की दआए आ गयी सन आगन की उदासी म इज़ाफ़ा हो गया चोच म ितनक िलय जब फ़ाख़ताए आ गयी

- काजल स मरा नाम न िलिखए िकताब पर कछ लोग जल न जाय कही इनतख़ाब पर

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कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

86

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कई घर हो गय बरबाद ख़ददारी बचान म ज़मीन िबक गयी सारी ज़मीदारी बचान म

कहा आसान ह पहली महबबत को भला दना बहत मन लह थका ह घरदारी बचान म

कली का ख़न कर दत ह क़बरो की सजावट म मकानो को िगरा दत हzwnj फलवारी बचान म

कोई मिद शकल नही ह ताज उठाना और पहन लना मगर जान चली जातीzwnj ह सरदारी बचान म

ख़दा की राह म सब कछ लटा दो हकम ह लिकन मअिद ज़जन को मज़ा आता ह अफ़तारी बचान म

बलावा जब बड दरबार स आता ह ऐ राना तो िफर नाकाम हो जात ह दरबारी बचान म

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बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

80

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

86

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

87

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

88

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

89

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

90

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

91

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

92

Page 79: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

बहत हसीन-सा इक बाग़ घर क नीच ह मगर सकन परान शजर क नीच ह

मझ कढ हए तिकयो की कया ज़ररत ह िकसी का हाथ अभी मर सर क नीच ह

य हौसला ह जो मझ स उक़ाब डरत ह वगरना गोशत कहा बालो-पर क नीच ह

उभरती-डबती मौज हम बताती ह

िक परसकन समनदर भवर क नीच ह

अब इसस बढ क महबबत का कछ सबत नही िक आज तक तरी तसवीर सर क नीच ह

मझ ख़बर नही जननत बडी की मा लिकन

बज़गर कहत ह जननत बशर क नीच ह

79

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

80

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

86

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

87

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

88

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

89

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

91

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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वफ़ादारी को परखा जा रहा ह हमारा िजसम दाग़ा जा रहा ह

िकसी बढ की लाठी िछन गयी

वो दखो इक जनाज़ा जा रहा ह

मरी तहज़ीब नगी हो रही ह य उड कर इक दपटटा जा रहा ह

न जान जमर कया हमस हआ था हम िक़सतो म लटा जा रहा ह

अब इस पर होगी कछ मरहम-नवाज़ी

हमारा ज़ख़म धोया जा रहा ह

क़लम कछ और िलखना चाहता था मगर काग़ज़ ही भीगा जा रहा ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

86

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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तो अब इस गाव स िरशता हमारा ख़तम होता ह

िफर आख खोल ली जाय िक सपना ख़तम होता ह

मक़ददस मसकराहट मा क होठो पर लरज़ती ह िकसी बचच का जब पहला िसपारा ख़तम होता ह

हवाए चपक-चपक कान म आ कर य कहती ह पिरनदो उड चलो अब आबो-दाना ख़तम होता ह

बहत िदन रह िलय दिनया क सकर स म तम ऐ राना चलो अब उठ िलया जाय तमाशा ख़तम होता ह

81

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

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अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

86

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

88

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

89

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

90

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

91

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

-

92

Page 82: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िरसत हए ज़ख़मो को दवा भी नही िमलती अब हमको बज़गो स सज़ा भी नही िमलती

कया जान कहा होत मर फल-स बचच

िवरस म अगर मा की दआ भी नही िमलती

जो धप मzwnj जलन का सलीक़ा नही रखता उस पड को पततो की क़बा भी नही िमलती

मददत स तमहारा कोई ख़त भी नही आया रसत म कही बाद-सबा भी नही िमलती

बसतो की जगह पीठ प जो बोझ िलय हो

उन बचचो म बचचो की अदा भी नही िमलती

82

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

83

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

85

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

86

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

87

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

88

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

89

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

91

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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अपन हाथो की लकीरो की तरफ़ कया दख

डबत वक़त जज़ीरोzwnj की तरफ़ कया दख

अपन ज़ख़मो स ही फ़सरत नही िमलती हमको तझ प चलत हए तीरो की तरफ़ कया दख

िजनस िमलत हए तौहीन हो ख़ददारी की ऐस बफ़ज़ अमीरो की तरफ़ कया दख

हारना अपना मक़ददर ही जो ठहरा राना

ऐसी हालात म वज़ीरो की तरफ़ कया दख

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

88

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

89

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

91

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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अपन चहर पर तबससम की नक़ाब न लगा

आिधया तज़ ह कमज़ोर तनाब न लगा

लोग पढ लत ह काजल स िलखी तहरीर िदल की अलमारी म यादो की िकताब न लगा

84

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

88

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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कानो म कोई फल भी हस कर नही पहना

उसन भी िबछड कर कभी ज़वर कर नही पहना

य ज़ख़म मझ मर अज़ीज़ो स िमल ह इन कपडो को मन कही बाहर नही पहना

अहबाब बदल दन की आदत ह कछ उसको इक कपड को उसन कभी िदन भर नही पहना

िदल ऐसा िक सीध िकय जत भी बडो क िज़द इतनी िक ख़द ताज उठा कर नही पहना

दिनया मर िकरदार प शक करन लगगी इस ख़ौफ़ स मन कभी खददर नही पहना

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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चराग़-िदल बझाना चाहता था वो मझको भल जाना चाहता था

मझ वो छोड जाना चाहता था मगर कोई बहाना चाहता था

ज़बा ख़ामोश थी उसकी मगर वो मझ वापस बलाना चाहता था

उस नफ़रत थी अपन आप स भी मगर उसको ज़माना चाहता था

बहत ज़ख़मी थ उसक होठ लिकन वो बचचा मसकराना चाहता था

सफ़दी आ गयी बालो म उसक वो बाइज़ज़त घराना चाहता था

तमनना िदल की जािनब बढ रही थी पिरनदा आिशयाना चाहता था

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आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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Page 87: Pipal Chhav: Munawwar Rana

Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

आखो म कोई ख़वाब सनहरा नही आता इस झील प अब कोई पिरनदा नही आता

हालात न चहर की चमक छीन ली वरना दो-चार बरस म तो बढापा नही आता

मददत स तमननाए सजी बठी ह िदल म इस घर म बड लोगो का िरशता नही आता

इस दजार मसायब क जहननम म जला ह अब कोई भी मौसम हो पसीना नही आता

म रल म बठा हआ य सोच रहा ह इस दौर म आसानी स पसा नही आता

बस तरी मोहबबत म चला आया ह वरना य सबक बला लन स राना नही आता

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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िसतार चाद किलया फल फलवारी नही लात ग़ज़ल म हम कभी भरती की गलकारी नही लात

ख़शामद चापलसी और मककारी नही लात हम अपन शर म अलफ़ाज दरबारी नही लात

भर शहरो म क़रबानी का मौसम जब स आया ह मर बचच कभी होली म िपचकारी नही लात

अभी तक मर क़सब म कई ऐस घरान ह कभी जो माग कर मिद सजद स अफ़तारी नही लात

सहीफ़ो को हमशा िदल क जज़दानो म रखत ह िकताबो क िलय चादी की अलमारी नही लात

य िबकत फल काफ़ी ख़बसरत ह मगर राना हम अपन घर म कोई चीज़ बाज़ारी नही लात

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Pipal Chhav Munawwar Ranaodt

साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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साथ अपन रौनक़ शायद उठा ल जायग जब कभी कालज स कछ लडक िनकाल जायग

हो सक तो दसरी कोईzwnj जगह द दीिजए आख का काजल तो चनद आस बहा ल जायग

कचची सडको स िलपट कर बलगाडी रो पडी ग़ािलबन परदस को कछ गाव वाल जायग

हम तो इक अख़बार स काटी हई तसवीर ह िजसको काग़ज़ चनन वाल कल उठा ल जायग

हादसो की गदर स ख़द को बचान क िलए मा हम अपन साथ बस तरी दआ ल जायग

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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अहद-नौ तर मीर ह हम लोग आप अपनी नज़ीर ह हम लोग

वक़त पडन पर जान तक दीzwnj ह य बज़ािहर फ़िक़र ह हम लोग

मौत को महजबी समझत ह िकस बला क शरीर ह हम लोग

वक़त की सीिढयो प लट ह इस सदी क कबीर ह हम लोग

रख रह ह तर क़फ़स का भरम मत समझना असीर ह हम लोग

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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रोत हए िबछडन की फ़सल चली गयी शहरो स अब ख़लस की रसम चली गयी

परदस जान वाल कभी लौट आयग लिकन इस इनतज़ार म आख चली गयी

लौटा ह जग हार क जब य पता चला राखी ज़मी प फक क बहन चली गयी

िदन-रात क सफ़र का नतीजा य ह िक अब आखो स सारी उमर की नीद चली गयी

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

पाव दाब ह बज़गो क तो फ़न आया ह

आदत अब भी ह उसकी वही पहल जसी िसफ़र कपड वो शरीफ़ो क पहन आया ह

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ख़द स चल कर नही य तज़ सख़न आया ह

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