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Sample Copy. Not For Distribution.

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  • Sample Copy. Not For Distribution.

  • i

    ये वक्त और एहसास

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  • ii

    Publishing-in-support-of,

    EDUCREATION PUBLISHING

    RZ 94, Sector - 6, Dwarka, New Delhi - 110075 Shubham Vihar, Mangla, Bilaspur, Chhattisgarh - 495001

    Website: www.educreation.in __________________________________________________

    © Copyright, 2018, Rahul Prasad

    All rights reserved. No part of this book may be reproduced, stored in a retrieval system, or transmitted, in any form by any means, electronic, mechanical, magnetic, optical, chemical, manual, photocopying, recording or otherwise, without the prior written consent of its writer.

    ISBN: - 978-1-5457-2369-2

    Price: ` 286.00

    The opinions/ contents expressed in this book are solely of the author and do not represent the opinions/ standings/ thoughts of Educreation.

    Printed in India

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  • iii

    ये वक्त और एहसास

    साहहत्य-संग्रह

    राहुल प्रसाद

    EDUCREATION PUBLISHING (Since 2011)

    www.educreation.in

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  • iv

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  • v

    यह पुस्तक मेरी पूजनीय दादीमा

    (श्रीमती भागमानो देवी) को सादर

    समहपित है। हजनके ईद्वारो ने मुझे

    सदैव जीवन के प्रहत सजगता,

    सकारात्मकता, मेहनत एव समाज

    सेवा के हलए ईत्साहहत रखा है वे

    मेरे पररवार एव गाव के हलए सतत पे्ररणाश्रोत रही है।

    शांत, सरल, सहज,सादगी व स्वाहभमान है दादीजी

    हौसला,हुनर, लगन व पररश्रम हक पहचान है दादीजी

    स्नेह, पे्रम, हवश्वास , सेवा, ईपकार के कइ रंग है दादीजी

    वफा,बंधन, ररश्ते नाते, हजमेदार आंसान में ईमंग है दादीजी

    घर में सब पथृक पृथक, वो ना बदले एक झलक

    ऄपने होसले, मेहनत,संघषि से हमटाइ सारे ऄंहधयारे

    हर घड़ी, हर एक पल, डटे रहे एक समान दादीजी

    अशीवाद,मान-सम्मान, गवि मेरा ऄहभमान है दादीजी

    घर की रौनक़, द्वार की शोभा सदा ईनसे रही

    हजंदगी की अन बान शान है दादीजी

    संस्कृहत, संस्कार, सदगुण सब ईन्हीं की देन है

    अप पूजनीय है सदा, हमलता रहे सम्मान दादीजी।

    MMM

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  • vi

    प्राक्कथन

    धरती पर अते ही मनुष्य की जीवन यात्रा प्रारम्भ हो जाती है।

    रोने,हसने,बोलने,खेलने,ससखने एव ज्ञान ऄजजन का। जैसे जैसे

    जीवन-यात्रा अगे बढती है, सजमेदाररया भी बढती जाती है और

    “काम-क्रोध-मद-लोभ”से सनरतर सामना होती ह ै सजमेदाररयो

    को सनभाते सनभाते आस यात्रा के दौरान आन्सान बहुत कुछ

    बटोरता है कुछ संचय करता है कुछ ब्यय! ऄंततः यात्रा समाप्त

    होते ही ऄचानक सबकुछ छुट जाता है। सारी कमाइ धन-

    दौलत,पूंजी, यश-ऄपयश, मान-प्रसत्ा सबकुछ परन्तु काम

    ऐसा गुण है जो अपको सवजथा लोगो के सबच सजन्दा रखता है

    ऄथाजत सलखने का तात्पयज है सक अज हम धरातल के सजस

    स्थान पर खड़े है ईसकी वजह है, हमारे द्वारा समाज में सकए गये

    काम ऄतः हमारे कमज ही हमारी पहचान होती है। ये वक्त और

    एहसास हमे जीवंत बनाये रखती है ।

    सवगत पाच वषो में सासहत्य पठन एव लेखन से स्वछंद

    कसवता,लघकुथा,कहानी आत्यासद की सवधा समझ अइ है ,ये

    पसु्तक मेरे जीवन के घटनाओ-दघुजटनाओ, अशा-सनराशा,

    सफलता-ऄसफलता, पे्ररणा एव चनुौसतयो के माध्य्मम्म से समले

    खटे्ठ –समटे्ठ ऄनुभवों का सनचोड़ है। मै कोइ सासहत्यकार नही हु,

    हां बस लेखन में रूसच है असपास जो भी महसूस सकया वो

    ऄपने टूटी फूटी शब्दों में सलखता चला गया सजसमे गलती एव

    सधुार की भरपरू गुंजाइश है। तु्रटी हेतु क्षमा!

    “ये वक्त और एहसास” पुस्तक पढने के लिए सरृदय

    धन्यवाद व अभार – राहुि प्रसाद

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  • vii

    ऄनुक्रमाहणका

    क्र. हवषय पृष्ठ

    कहवताए ं 1

    (क) जीवन/ऄनुभव 1

    1 बहते हुए झरने कक तरह 2

    2 देकखए 3

    3 ाअस रखे 5

    4 करे हम 6

    5 देखो 7

    6 ठहरो तो सही 8

    7 ाअकखर क्यों 9

    8 ख्वाबो के पते 10

    9 ाऄप्रचकलत शब्द सा 11

    10 दीप 13

    11 खदु में 14

    12 कभी कभी 15

    13 ाऄपने म ेकलप्त 16

    14 ाआश्क मोहब्बत प्यार 18

    15 नशा 20

    16 बेतला पाकक 22

    17 मेरी मााँ 23

    18 कलखते हैं एक नाइ क़िताब 24

    19 कहा जा रह ेह ैहम 25

    20 बचा लीकजए ाऄपनी सोच 26

    21 सपने 28

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  • viii

    22 ... !! 30

    (ख) स्वछंद कहवताए ं-पे्रम , श्रृगार व हवरह रस 33

    1 बस ाऄच्छा लगता ह ैहमे 34

    2 ये साल 35

    3 सहमी हुाइ थी वो 36

    4 तू वैसी ाऄब भी ह।ै 37

    5 ाईसका दायरा 38

    6 तू लौट ाअ 40

    7 खामोकशयाां 42

    8 तुम कनभा भी सकते थे 43

    9 तुमको, तुम्हीं से कमलाना चाहता ह ाँ 44

    10 ाआांद्रधनुषी यादे- 45

    11 ककतना दषु्कर 47

    12 कवसजकन तेरी यादों का 48

    13 खबूसरूत लगती हो 49

    14 बस एक और बार 50

    15 मकु्तक 51

    16 कघसा वक्त 53

    17 तुम कलखा जाती हो 54

    18 तुम्ही तो हो 55

    19 मैं बेहद याद ाअाउाँ गा! 56

    20 प्रेम पररवकतकत नही! 57

    21 कभी तो ऐसा हो 58

    22 यकीन नही करोगे 59

    23 ाआांतजार 61

    (ग) लेख (ARTICLE) 63

    1 जीवन ह ैगुब्बारे की तरह 63

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  • ix

    2 मसुकुराहट खदुा की एक खबूसरूत नेमत 66

    3 कमकडल क्लास का क्लाकसक सखु 70

    4 पे्ररणात्मक लेख ( खशुहाल जीवन, जो पसांद हो

    वही करे,डााइट रोल,स्टूडेंट्स तनाव,

    भावनात्मक समझदारी, बोररयत,

    क्यों टूटते ह ैररश्ते, खदु को समकझए)

    73

    (घ) लघु कहानी -ऄनुभव/हसख 99

    1 टेक @ केयर 99

    2 कमरा न. – 13 102

    3 नीम की पकियाां 107

    4 बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और बेटी को समझो भी 112

    5 लघकुथा~ मनोहर 123

    6 सांघषक ाऄभी बाकी ह-ै प्रेरणात्मक 127

    (ङ) बैंहकंग हकस्से 131

    7 ाऄगर एक कबकटया हो जाये .... 131

    8 सही काम 136

    9 जागरूकता (Raise your voice) 139

    10 खदु को ही खदु में गम कर कदया (बैंकर) 141

    11 एक सरूज डूब रहा थ(कलाम साहब) 141

    (च) लघु पे्रम कहानी- ऄधूरी ख्वाआशे 150

    12 चाय और खलुी जलु्फे 150

    13 तुम चोर हो (होली सांस्मरण) 153

    14 तुम्हारी यादों की मूाँगफली 159

    15 ाऄांकतम सोमवारी 162

    16 समांदर के ककनारे 167

    17 ओढ़नी 170

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  • x

    18 प्रेम < त्याग 174

    (छ)

    ख़त – 180

    (एक पत्र – घर से दरू ,

    सभी माओ ां को, ाअकखरी ाऄल्फाज ,

    ककसान, कदल टूटने वालो के नाम )

    (ज) यात्रा वतृांत (सपतुारा , पतरात ू) - 201

    (झ) मेरी पंहिया - 212

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  • राहुऱ प्रसाद

    1

    “सोच से ही सुख हमलें, सोच से ही दुखः हमलें”

    सांसार में ककसी भी वस्तु को, व्यकक्त को, कस्थकत को कोसने की

    ाअवश्यकता नही ह।ै जरुरत ह ैाईसका गुण, स्वभाव और प्रकृकत समझकर

    समाज के कहत में ाईपयोग करने की और यही काम लेखक ाऄपने ककवता

    कहानी ाईपन्यास नाटक गीत गजल कफल्म ाअकद द्वारा समाज को

    जागरूक करते ह ै“अतः साहित्य समाज का दर्पण िोता िै।“ साहहत्यसेवीयो को “नमन”

    (क) कहवताए-ं जीवन/ऄनुभव

    कसवता भावों की सौन्दयाजनुभसूत ह,ै कसव की व्यथा की ऄनुभसूत ह ै– जो

    महससू सकया ऄपने अस पास ईसे ऄपने शब्दों में व्यक्त करने का एक

    प्रयास एक ऐसा प्रयास जो सहज हो, इमानदार हो„„ सबना सकसी

    बनावट के व्यक्त हो„ मानों कोइ नदी „जो ईद्दाम ऄसवरल ऄबाध

    गसत स े ईमड़ती चली जाती ह ै स़िन्दगी की राह में, सखु-दःुख जो भी

    समला साथ साथ बह चला और रचता गया हर पल एक नयी ऄसभव्यसक्त

    और बन गइ ये कसवताएं...

    MMM

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  • ये वक्त और एहसास

    2

    स्वच्छंद कलवताये

    1.बहते झरने की तरह

    कसरकफरा समझते हो मझु े

    समझते रहो!

    मैं तो गीत गााईांगा जब सन्नाटा होगा चारो ओर

    हांसुांगा जब कदखेगा कोाइ ढोंगी ज्ञानी और दगेा ाईपदेश

    रोने लगुांगा जब हांसेंगे सब, खरी-खरी कहने-सनुने वाली

    मेरी ाअदत पर खाररज कर दूांगा थोपे हुए शब्दकोष

    क्योकक मेरा ाऄपना दशकन ह ैमरेी ाऄपनी समझ ह ै

    मैं ककसी तमगे का मोहताज़ नहीं

    मैने सींच के ाईगाये ह ैशब्द, सच की पथरीली ज़मीन पर

    बनावटी लोग, घमुावदार बाते या कल्पनाओ की मखमली घास

    नहीं ाअती मझु ेरास

    सांवेदनाओ की लेता ह ां साांसें

    और कलख दतेा ह ां वही जो मन में ाअता ह,ैकबना कुछ सोचे समझे..

    जैसे कक प्रसन्नतापूवकक बादलो से कगरती हुाइ पानी की बूाँदें

    पहाड़ों से बहते हुए झरने,बनते-भरते हुए छोटे-बड़े कुां ड,

    सागर में जाती हुाइ नकदयााँ...

    सभी महससू कराते हैं...गकतशीलता,

    पररवतकनशीलता एव नवीनता का सांदेश

    पानी की एक-एक बूाँद एक-दसूरे में समाकहत,

    कवसकजकत व सकृजत करती हुाइ...

    सजृन- रूपाांतरण श्ृांखला में न जाने ककतने पड़ाव,

    ककतने मोड़ ाअते ह ै

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