shri guru angad dev ji sakhi - 013a
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श्री गुरु अंगद देव जी फेरु मल जी तरेहण क्षत्रि� के घर माता दया कौर जी की पत्रिव� कोख से मते्त की सराए परगना मुक्तसर में वैशाख सुदी इकादशी सोमवार संवत 1561 को अवतरिरत हुए| आपके बचपन का नाम लत्रिहणा जी था| गुरु नानक देव जी को अपने सेवा भाव से प्रसन्न करके आप गुरु अंगद देव जी के नाम से पहचाने जाने लगे| आप जी की शादी खडूर त्रिनवासी श्री देवी चंद क्षत्रि� की सपु�ी खीवी जी के साथ 16 मघर संवत 1576 में हुई| खीवी जी की कोख से दो सात्रिहबजादे दासू जी व दातू जी और दो सुपुत्रि�याँ अमरो जी व अनोखी जी ने जन्म लिलया|
भाई जोधा सिसंह खडूर त्रिनवासी से लत्रिहणा जी को गुरु दश=न की पे्ररणा मिमली|
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जब आप संगत के साथ करतारपुर के पास से गुजरने लगे तब आप दश=न करने के लिलए गुरु जी के डेर ेमें आ गए| गुरु जी के पूछन ेपर आप ने बताया, "मैं खडूर संगत के साथ मिमलकर वैष्णोदेवी के दश=न करने जा रहा हूँ| आपकी मत्रिहमा सुनकर दश=न करने की इच्छा पैदा हुई| त्रिकरपा करके आप मुझे उपदेश दो जिजससे मेरा जीवन सफल हो जाये|" गुरु जी ने कहा, "भाई लत्रिहणा तुझे प्रभु ने वरदान दिदया है, तुमने लेना है और हमन ेदेना है| अकाल पुरख की भलिक्त त्रिकया करो| यह देवी देवते सब उसके ही बनाये हुए हैं|“
लत्रिहणा जी ने अपन ेसालिथयों से कहा आप देवी के दश=न कर आओ, मुझे मोक्ष देने वाले पूण= पुरुष मिमल गए हैं|
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आप कुछ समय गुरु जी की वहीं सेवा करते रहे और नाम दान का उपदेश लेकर वात्रिपस खडूर अपनी दुकान पर आगये परन्तु आपका धयान सदा करतारपुर गुरु जी के चरणों में ही रहता| कुछ दिदनों के बाद आप अपनी दुकान से नमक की गठरी हाथ में उठाये करतारपुर आ गए| उस समय गुरु जी धान में से नदीन त्रिनकलवा रहे थे| गुरु जी ने नदीन की गठरी को गाये भैंसों के लिलए घर ल ेजाने के लिलए कहा| लत्रिहणा जी ने शीघ्रता से भीगी गठड़ी को लिसर पर उठा लिलया और घर ले आये| गुरु जी के घर आन ेपर माता सुलखणी जी गुरु जी को कहने लगी जिजस लिसख को आपन ेपानी से भीगी गठड़ी के साथ भेजा था उसके सारे कपडे़ कीचड़ से भीग गए हैं| आपन ेउससे यह गठड़ी नहीं उठवानी थी|
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गुरु जी ने हँस कर कहा, "यह कीचड़ नहीं जिजससे उसके कपड़े भीगे हैं, बल्किQक केसर है| यह गठड़ी को और कोई नहीं उठा सकता था| अतः उसने उठा ली है|" श्री लत्रिहणा जी गुरु जी की सेवा में हमेशा हाजिजर रहते व अपना धयान गुरु जी के चरणों में ही लगाये रखते|
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